TYBA-Sem-VI-Paper-V-HINDI-munotes

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किवता अथ, परभाषा , वप
इकाई क पर ेखा
१.० इकाई का उ ेय
१.१ तावना
१.२ किवता अथ और परभाषा क े संबंध का कालान ुप अययन
१.३ किवता का अथ
१.४ किवता क परभाषा
१.५ किवता क े तव
१.६ किवता का वप
१.७ सारांश
१.८ दीघरी
१.९ लघुरी
१.० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अययन स े िवाथ िनन िलिखत म ु से अवगत हग े -
 किवता का अथ समझ सक गे
 किवता क परभाषा स े अवगत हग े
 किवता क े तव को जान गे
 किवता क े वप का अययन कर सक गे
१.१ तावना
किवता कह े या काय ाचीनकाल म दोनो ही पया य प म थे | भारत द ेश म
परपरान ुसार अन ेक ंथ िलख े गए जो आज क े समय म भी ेरणादायी सािबत होत े है |
उन - ंथो के ित भि - आथा का भाव तो था ही ल ेिकन उनक िसी का मायम
लेखन पित भाषायी सौव और लयामकता भी था | यही कारण ह ै िक िहदी भाषी
देश म 'रामचरत ् मानस ’ जैसे िवशाल ंथ का पारायण (वाचन) २४ घंटे म पुरा कर munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
2 िलया जाता ह ै | 'रामचर मानस ंथ के २४ घंटे म वाचन प ुरा होन े का कारण इसक
काय सघनता है और द ूसरा कारण यह भी है िक यह और इस ज ैसे अनेक ंथ िजतनी
आमीयता क े साथ पठन िकय े जाते है उसस े कई अिधक आमीय भाव क े साथ िलख े
भी गए ह ै यिक उनम किव क े अंतमन क े भाव ह ै उनका कौशल , आम िना और
समपण भाव ह ै िजनक बदौलत आज इतन े उच दज का काय हम पढ़ स ुन रहे है |
कबीर दासजी ज ैसे महानकिव क े िवषय म यह मायता ह ै िक व े पढ़े - िलखे नह थ े उनके
पद को य करन े का मायम वे रात े म चलत े चलत े पद गात े जाते थे और उनक े
िशय उन पद को िलख ल ेते थे | इस कार अन ेको ंथ पाड ूिलिप म ही उपलध थ े |
आज बदलत े समय क े साथ काय प म परवत न आया ह ै | ाचीन काल कह े या कह े
िक काय क े उगम स े ही काय का प प ही हमन े पढ़ा स ुना | आधुिनक काल तक
आते काय क े ग प का िवकास बहत तरता से बड़े पैमान पर हआ | लेिकन यह
सच ह ै िक काय क े प प को आज भी कौशयप ूण माना जाता ह ै | रस, छंद, अलंकार
से सजी किवता े समझी जाती ह ै |
१.२ किवता अथ और परभाषा क े संबंध का कालान ुप अययन
सवथम किवता का अथ ाचीन काल के संदभ से भी ात करना हमार े िलए
आवयक ह ै | यिक किवता का िस और प ूण अथ अभी तक अात ही है | २०० से
३०० वष पहल े का काय भी आज हमार े सामन े त ुत है और हम सहज ही अन ुमान
लगा सकत े है िक इसक े पहल े भी काय होगा | हम िजन ाचीन काल क े आचाय क े
काय और काय ि स े अवगत ह ै उनम भामह , दडी, भरतम ुिन, ट, उट, संघ
आिद िवान के नाम म ुख है |किवता क याया शायद किवता िलखन े से अिधक
जिटल हो सकती ह ै |
भिकाल के िवषय म यिद हम बात कर तो इस काल म हम िकसी कायशा क
आवयकता ही नह पड़ी | यिक सभी भ किव अपनी अन ुभूित, अपने अनुभाव स े
ेरत होकर वात ं सुखाय काय रचना कर रह े थे | उह काय क े िनयम और उसक े
अथ परभाषा क आवयकता ही नह थी इसी कारण काय शा क परभाषा द ेने क
चेा इस काल म नह हई यिक इस समय का काय आमा स े परमामा क े िमलन का
काय ह ै यह काय ईर क भि का काय ह ै | ई का माग शत करन े का काय ह ै |
रीितकाल क यिद हम चचा करे तो इस काल म शद अथ अलंकार, रीित, वोि
आिद अन ेक कार स े किवता क याया क क ेशव, मितराम आलम आिद लण
ंथकार न े काय क िवत ृत याया क ह ै|
आधुिनक काल म भारत ेदु हर ं ने सािहय म अमुय योगदान िदया कई िवधा और
सािहय स ृजन उनक े ारा हआ ल ेिकन किवता या ह ै इस िवषय म कोई याया
भारतेदुजी ने नह क | इस काल म महावीर साद िव ेदीजी ने काय को यायाियत
िकया और कहा ान राशी क े संिचत भाव को ही काय कहत े है,इस कार उहोन े munotes.in

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किवता अथ, परभाषा , वप
3 किवता म ान आवयक माना | आगे चलकर रामच ं शुल न े ान क महा को माना
लेिकन काय क े िलए बस ान होना ही पया नह ह ै इसक े िलए रस भाव क
आवयकता पर उहोन े बल िदया और किवता को दय क म ुि क साधना क े िलए
मनुय क वाणी जो शद िवधान करती ह ै उसे किवता कहत े है | इस कार श ुलजी न े
किवता क े िलए रस को अिनवाय तव माना ह ै |
सभी काल म किवता क याया को ल ेकर हमन े जो चचा क उसस े िस होता ह ै िक
जब तक किवता जनसामाय क समझ म आती रही उसक या या या कोई अथ
लगान े क आवयकता नह पड़ी ज ैसे भिकाल | और किवता जब जनसामाय से दूर
हो गई उसका अथ जानन े क आवयकता हई |
आधुिनक काल म नगे और न ंददुलारे वाजप ेयी ने किवता को परभािषत िकया और
रस भाव क अिनवाय ता पर जोर िदया |
आगे चलकर नई किवता , योगवाद का दौर आया उस समय क े िवान म अेय जी का
नाम म ुखता स े िलया जाता ह ै िजहोन तारसक क े मायम स े किवता को एक नए
आधुिनक भाव बोध को जम िदया िजसम े अ नेक भाव समािहत थ े जो मन ुय के
आतरक और बाहरी दोनो भाव क बात करता था आ ंतरक भाव व ैयिक था जो
अपने मौन, एकांत णबाद और क ुंठाओं क बात करता था | बाहरी भाव - बिहजगत स े
जुड़ने वाला था | िजस पर म ुिबोध न े अिधक काय िकया | लेिकन किवता का अथ
भावाथ दोनो क ि म एक ही था िक किवता वही ह ै जो हमार े अितव पर अ ंिकत हो
जाये, िमट न पाये | आधुिनक काल म हरव ंशराय बचनजी न े ‘किव ह ’ नामक किवता
िलखी ह ै वे कहत े है -
'जो सब मौन भोगत े िजते
म मुखरत करता ह ँ
मेरी उलझन म दुिनया स ुलझा करती ह ै
एक गा ँठ जो ब ैठ अक ेले खोली जाती
उसस े सबके मन क गा ँठ खुल जाती ह ै
एक गीत जो ब ैठे अकेले गाया जाता
अपने मन का पाती द ुिनया द ुहराती ह ै |
इस कार बचनजी न े किवता क े मायम स े किवता क े अथ और महव क उलझन
सुलझा दी ह ै |
इस कार हम कह सकत े है िक किवता एक ितिया ह ै बहरंगी िविवध पी िज ंदगी क े
ित ितिया और िया ह ै िजसम े जागकता , संवेदनशीलता , चेतना अन ुभूित,
सहान ुभूती, कपना , आिद तो चािहए ही ल ेिकन इन सबस े ऊपर मकसद होना बहत munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
4 जरी ह ै यह एक सा ंकृितक िया भी ह ै िजसस े सािहय जमता ह ै जो यादगार शद
और अथ के प म युग तक जाना जाता ह ै समझा जाता ह ै, |
१.३ किवता का अथ
किवता क े अथ के संदभ म जानन े क िजासा यिद हमार े सामन े उपिथत हो तो इस
के उर क े िलए शद अप ुरे पड़ जाय े | यिक किवता का व ृहमान इतना िवशाल ह ै
िक ये िकही शद म समािहत नह हो सकता | यिक किवता किव क े दय म िवचरन े
वाले मनोव ेग को शािदक वप म िपरोता ह ै | ये िवचार एक या दो नह अनिगनत हो
सकत े है और हर एक भाव - िवचार द ुसरे से िभन हो सकता ह ै | किवता सभी भावो -
िवचार म समािहत हो जाती ह ै ये भाव - ख़ुशी - गम, लोभ, िवसा इछा , तृणा, मोह,
ोध, मो आिद अन ेक कार क े हो सकत े है |
किवता मानव क े आस - पास के वातावरण पर भी िनभ र होती ह ै यिक मन म आने
वाले या आवा - जाही करन े वाले भाव स ुख - दुख, आशा - िनराशा ेम - घृणा, दया -
ोध आिद चलायमान भाव ह ै जो समय परिथित क े साथ बदलत े है आते जाते रहते है
और इही सव भाव का स ृजन - संवधन काय म या किवता म होता ह ै | किवता किव क
भावना - िवचार का स ुरेख त ुतीकरण ह ै | और एक ऐसी ी जो द ुिनया को समझन े,
जानन े म हमारी मदद करती ह ै | और क ुछ किवताए ँ तो हमारा आिमक दश न करान े क
मता भी रखती ह ै | इस कार किवता क अहिमयत समाज और सामािजकता क े िलए
महवप ूण है |
किवता और काय एक द ुसरे के पयायवाची समझ े जाते है और यह ह ै भी पया यवाची बस
अंतर इतना ही ह ै िक काय शद स ंकृत भाषा का ह ै और किवता िहदी भाषा का |
दोनो ही भाषा म किवता और काय शद का योग सािहय के िलए ही होता ह ै | िहदी
क तरह ाचीनकाल म संकृत भाषा म भी काय क े दो भ ेद िकय े गये ग काय और
प काय | काय का एक तीसरा कार भी होता ह ै िजस े चपू काय कहत े है | चपू
काय म ग और प दोनो प नीिहत होत े है |
१.४ किवता क परभा षा
किवता मन उठन े वाली उम ंग है जो शद क े मायम स े अथ को समिहत करती ह ै और
कभी इसका वप समय - परिथित क े अनुप बदलता ह ै तो अथ के िलए नए शद
क उपि भी करनी पढ़ती ह ै | लेिकन िसफ शद और अथ से किवता का िनमा ण नह
होता आचाय - भामह और द डी न े इसके िलए भाव क अिनवाय ता क ओर भी लय
कित िकया | और सवपर काय म भाव को धानता द ेते यिक अथ यिद भाव भरा
हो तभी किवता को प ूणता िमलती ह ै | और उसका रसावादन पाठक को िमलता ह ै |
किवता शद , अथ रसहीन हो तो किव का िलखना ही य थ है | भामह न े काय को
परभािषत करत े हए िलखा ह ै |
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किवता अथ, परभाषा , वप
5 "शदाथ सिहतौ कायम ्"
अनेक िवानो न े भी भामह क परभाषा का अन ुगमन िकया और इस े काय क सप ूण
समािहत परभाषा माना | भरतम ुिन ने पहली बार यह स ंकपना सामन े रखी िक िबना
भाव, िबना रस क े काय हो ही नह सकता - यिक अदर क े भाव, अनुभूित, संवेदना
अिधक आवयक ह ै तुलना म प सदय अलंकार क े उहन े कहा -
'न हे रासात े किदथ वतते' इस कार भरतम ुिन ने भाव िविहन , रस िविहन शद क े
िबना काय को नरथ क माना |
किवता को पया य प काय म अनेक आचाय न े परभािषत िकया ह ै साथ ही आध ुिनक
काल क े आचाय , िवान और पिमी िवान न े भी किवता को परभािषत करन े का
यास िकया ह ै इस स ंदभ म सवथम आचाय कुतक का नाम आता ह ै िजहोन े काय
को इस कार परभािषत िकया ह ै –
'वोि का यजीिवतम ्' |
आचाय वामन न े रीित क े अनुसार रचना को ही काय मानत े हए िलखा ह ै –
“रीितरामा कायय ” |
आचाय िवनाथ रस य ु वाय को ही काय मानत े है उहोन े कहा ह ै – “वायम
रसामकम ् कायम ् “|
पंिडत जगनाथ कहत े है –
“रमणीयाथ ितपादक : शद: कायम ्”
पंिडत अ ंिबकाद यास क े अनुसार –
“लोकोतरानददाता ब ंध: कायानाम ् यातु” अथात आन ंद देनेवाली रचना ही काय ह ै |
आचाय ीपितजी न े कहा ह ै -
"शद अथ िबन दोष ग ुण, अहंकार रसवान
ताको काय बखािनए ीपित परम स ुजान" |
इस कार स ंकृत काय शा म और भी िवान हए उनम े मुख है | ममट , राज श ेखर
पंिडत राज जगनाथ आिद इसक े अलावा किवता क याया िनर ंतर होती रही |
संकृत काय शा क े अितर जब िहदी आिद भाषा म सािहय िलख गया |
आचाय रामच ंशुल के अ नुसार - "िजस कार आमा क म ुावथा ानदशा
कहलाती ह ै, दय क इसी म ुि साधना क े िलए मन ुय क वाणी जो शद िवधान करती munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
6 आई ह ै, उसे किवता कहत े है किवता क े संदभ म आचाय शुलजी न े 'किवता या ह ै'
शीषक िनब ंध म किवता को 'जीवन क अन ुभूित' कहा ह ै |
महादेवी वमा ने किवता का वप प करत े हए कहा ह ै - 'किवता किव िवश ेष क
भावनाओ ं का िचण ह ै |'
पााय िवान - पााय िवानो न े किवता पर िवचार िकया ह ै उनक े अनुसार किवता
क परभाषा इस कार ह ै -
मैयु आनड - "किवता क े मूल म जीवन क आलोचना ह ै "
शैले के अनुसार - 'किवता कपना क अिभयि ह ै |'
वडस वथ :- वडसवथ ने भाव और वतः फ ुत सृजनामकता पर बल द ेते हए कहा ह ै
िक - " सपूण े किवता ती मनोव ेगो का सहज उछलन ह ै |"
१.५ किवता क े तव
सािहय क पहचान किवता और काय ह ै यिक ाचीन काल म सािहय काय का
पयायवाची प रहा ह ै | परवित त समय क व ृि ने सािहय का वप अथाह कर
िदया | ग और प वप न े सािहय को नया आयाम द े िवत ृत िकया और किवता
को अपना एक अलग नाम िमला - िवधा क े प म | ाचीन काल म काय को कई
िवान न े अपन े अपन े तरीक े से संबोिधत िकया ह ै |
किवता क े अथ परभाषा और वप का अययन करना िजतना महवप ूण है उतना ही
महवप ूण काय क े भेद को भी जानना ह ै | इसीिलए सव थम हम काय क े तव
अययन कर गे |
काय क े तव :- काय क े मुखत: चार तव मान े जाते है | १. भाव २. कपना , ३.
बुि ४. शैली
१. भाव तव :-
भाव का स ंबंध हमार े मन स े जुड़ा है और मन हमार े येक काय क प ुि करता ह ै उसी
कार भाव तव का स ंबंध केवल काय स े नह अिपत ु संपूण सािहय स े है | यिक
सािहय और काय म रचनामक भाव तव ारा ही आती ह ै | इस स ंबंध म आचाय राम
चं शुल कहत े है - 'नाना िवषय क े बोध का िवधान होन े पर उसस े संबंध रखन े वाली
इछा क एक पता क े अनुसार अन ुभूित के जो िभन - िभन योग स ंगिठत होत े है वे
भाव या मनोिवकार कह लाते है "| इस कार भाव का स ंबंध संवेदना स े होता ह ै और
संवेदनामक अन ुभूित काय का म ुख तव ह ै | इस कार ेम, कणा , ोध, हष,
उसाह आिद िविभन परिथितय का मम पश िचण ही भाव ह ै और इसी भाव
सदय को िवान न े रस कहा ह ै | munotes.in

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किवता अथ, परभाषा , वप
7 और इसी आधार पर ाचीन आचाय न े रस को काय क आमा माना ह ै और नव रास
को काय म थान िदया गया ह ै | कालांतर म आचाय न े भि और वासय को भी
काय म थान िदया और म ुखतः यारह कार क े रस मान े है |
िवचार या कपना तव :-
किवता या का य म सदय का मायम कपना ह ै | जो मानव और सािहयकार क े भाव
म िनित होती ह ै और उसक अिभयि का मायम बनती ह ै | कपना का स ंबंध भी
मन स े होता ह ै | जो किव क अन ुकूल भावनाओ ं को र ंग - प – आकार - कार द ेती है
और नव - सृि का िनमा ण करती ह ै कपना ब ंधन रिहत होती ह ै उसम जोड़ - तोड़,
उलट - फेर क प ूरी गुंजाइश होती ह ै | इस स ंबंध म शेसिपअर का कथन ह ै :- कपना
अात वत ुओं को आकार दान करती ह ै | शूय को भी सा और आकार द ेती है "|
कपना क ैसी भी या िकसी भी कार क हो सकती है कभी िनय ंित और कभी
अिनय ंित भी हो सकती ह ै | यह भाव किव क े िवचार और य करन े के मायम पर
िनभर होता ह ै | कबीर, रहीम, नानक क े िवचार म नीितपरकता थी वह स ूर तुलसी क
कपना उनक े भाव भ ंिगमा स े जुड़ी थी जो भ मयी थी |
ान और ब ुि :-
बुि और ान भी काय तव क े िनमाण म अहम भ ूिमका िनभाता ह ै | यह तव कपना
को अिनय ंित होन े से बचाता ह ै, िवचारो को सही िदशा म ले जाता ह ै | यह तव सय
क सृजनता करता ह ै | िवषय को उम कार स े तुत करता ह ै आचाय महावीर साद
िवेदी ने किवता म ान तव क अिनवाय ता पर बल िदया ह ै व ान ब ुि हीन काय
िनरथक माना ह ै | यिक ब ुि स े ही औिचय का िवतार होता ह ै | किव क भावनाए ँ
जब गलत िदशा म उड़ान करती ह ै तो ब ुि और ान ारा ही उसक सीमा िनधा रत
होने म सहायता िमलती ह ै | और ा न, बुि उपिजत काय समाज क े िलए भी ेरक
होता ह ै |
नाद अथवा श ैली तव :-
सािहयकार को असली पहचान उसक े ारा य श ैली स े िमलती ह ै य ेक
सािहयकार क े अिभयि का मायम अलग होता ह ै और इसी मायम क े ारा वह
पाठक स े जुड़ता ह ै इसक े अंतगत उसक भाषा , शद रचना अथ के साथ ही शद -
शि, अलंकार, छंद, गुण आिद का समाव ेश होता ह ै | इसके ारा ही किवता म लय,
तुक, गित क िदशा वाहमय होती ह ै उ सभी घटको का यिद किवता म िवयास हो
और स ंगीतामकता भी साथ हो तो किवता का सदय िगुिणत बढ़ जा ता है | यही तव
पाठक क े दय को आकिष त करता ह ै | इसी कार अय तव क े साथ श ैली तव क
अिनवाय ता को नकारा नह जा सकता यिद भाव , अथ, अनुभूित काय क े ाणतव ह ै तो
शैली तव काय का शरीर ह ै | munotes.in

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8 चार तव क अिनवाय ता काय को स ुगम स ुदर मनमोहक बनाने के िलए आवयक ह ै |
िकसी एक तव क कमी काय को िनह बना सकती ह ै |
१.६ किवता का वप
किवता भाव , िवचार , कपना , ितिया , अनुभूित और स ंवेदना ह ै लेिकन इसस े कह
ऊपर उठकर वह िकसी भाषा क े शदो का म ेल, अथ, विन और ताल ह ै इस कार
किवता या सािह य सृजनामक अिभयि ह ै जो कय , िवचार , भाव, कपना स े पूरत
होती ह ै इही सब तवो क े आधार स े ही काय या सािहय पाठक क े दय म अपना
थान तय करता ह ै | और इसी कारण किवता बा वप क े साथ मन ुय के आतरक
वप स े भी ज ुड़ी होती ह ै | किवता क े वप का िवत ृत अययन म इसके आतरक
और बा दोनो वप को जानना िनता ंत आवयक ह ै |
किवता का बा वप :-
किवता क े बा वप क े अययन म छः तव का म ुखता से समाव ेश िकया गया ह ै
जो इस कार ह ै -
१. लय :-
लय किवता का म ुख तव ह ै | िजस कार हमारी िदनचया और जीवन श ैली म सूयदय
सूयात, ऋतुएँ आिद अन ेक बात े िनयोिजत और िनधा रत ह ै यह म जीवन क े िलये
आवयक ह ै और इनका फ ेर उलट होना सब क ुछ िबगाड़ भी सकता ह ै | उसी कार
किवता म लय अथा त शदो का िनयोजन अिनवाय है जो किवता म िवशेष भाव उपन
करता ह ै किवता का सप ूण आनंद उसक े लय पर ही िनभ र है |
इस स ंदभ म हम उदाहरण वप क ैलाश वाजप ेयी क किवता क क ुछ पंियाँ देखते
है :-
"सबको रोशनी नह िमलती
समझौता कर लो
अंिधयार े से
हर भटक े राही को िसफ यही उर एक िमला ुवतारे से |"
२. तुक :-
तुक का अथ होता ह ै किवता , गीत आिद क े चरण का वह अ ंितम य ंजन, शद या पद
िजसक े अनुास का िनवा ह आग े के चरण या पद म करना आवयक होता ह ै, तुक ारा
किवता , गीत का कोई पद , चरण या कड़ी िजसम अंत क विन साय हो त ुक कहलाता
है | munotes.in

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किवता अथ, परभाषा , वप
9 िहदी सािहय क े आिदकाल स े ही किवता त ुकांत होती आयी ह ै इसके कारण किवता म
गेयता आ जाती ह ै | लेिकन आध ुिनक कालीन किवता म तुकांत नह ह ै और यह
आवयक भी नह ह ै िक त ुक हो | एक त ुकांत किवता का सीधा - सरल उदाहरण इस
कार ह ै -
'एक दो तीन चार
आओ चल े कुतुब िमनार |
पांच छः सात आठ
देखे चल क े राजघाट |
नौ, दस, यारा, बारा
चले चाँदनी चौक फवारा |
तेरा, चौदा, पं्ह, सोला
कनाट ल ेस म मुगा बोला |'
३. छंद :-
छंद का सव थम उल ेख हम ऋवेद म िमलता ह ै | िजसका अथ होता ह ै आहािदत
करना ख ुश करना | काय म वण या मााओ ं क िनयिमत स ंया क े िवयास स े जो
आहाद उपन होता ह ै उसे छंद कहत े है | आचाय रामच ं शुलजी छ ंद को परभािषत
करते हए िलखत े है-
"छंद वातव म बंधी हई लय क े िभन िभन ढा ँच का योग ह ै जो एक िनित ल ंबाई का
होता ह ै |"
िहदी सािहय म परपरागत रचनाए ँ इन िनयम का पालन करत े हए रची जाती थी यिद
छंद को िवतार स े देखे तो इसक े दो अ ंग है |
१. चरण और पाद :- एक छ ंद चार चरण का होता ह ै | चरण को ही पाद कहा जाता ह ै |
हर पाद म वण या मााओ ं क स ंया िनित होती ह ै | चरण दो कार क े होते है
i) समचरण ii) िवषम चरण
२. वण और मा :-
छंद म जो अर योग होत े है उहे वण कहत े है | छंद के चरण को वण क गणना क े
अनुसार यविथत िकया जाता ह ै | माा क ि स े वण दो कार क े होते है |
i) लघु या व ii) गु या दीध munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
10 इसी आधार पर छ ंद के दो कार तय िकय े गये है :-
i) मािक छ ंद, ii) वािणक छंद
इस कार छ ंद िनयम स े ब ह ै और मयय ुग तक क स ंपूण िहदी किवता िविभन
चरण म िलखी गई िजनम े चोपाई , दोहा, सोरठा , किवता , सवैया, कुडिलया ँ आिद म ुख
है | लेिकन आज क किवता म छंद ाय : समा हो गए ह ै यं तं आवयकतान ुसार छ ंद
बनाकर उसम मााओ ं का स ंयोजन िकया जाता ह ै |
४. शद योजना :- किवता का सदय शद चयन पर िनभ र होता ह ै इसीिलए किवता म
उपयु शद चयन बहत आवयक ह ै | भारतीय काय शा म तीन कार क शद
शियो का उल ेख है – अिभधा , लणा और य ंजना | अिभधा का योग सामाय अथ
के िलए लणा का स ंबंिधत अथ और य ंजना दोनो ही अथ म िवलण अथ का बोध
कराती ह ै | यंजना काय का सदय बढ़ान े का काय करती ह ै | किवता म शद स ंयोजन
क कुशलता चमकार का काय करती ह ै | एक उदाहरण इस कार ह ै :-
'मन म िवचार इस िविध आया |
कैसी है यह भ ूवर माया |
य आग े खड़ी ह ै िवषम बाधा |
म जपता रही क ृण - राधा |
५. िचामक भाषा :-
किवता क लोकियता का एक कारण िचामक भाषा भी है | इस कार क भाषा क े
योग स े कम शदो म अिधक भाव य िकय े जा सकत े है |
जैसे -
'हाँ मुझे मरण ह ै :
दूर पहाड़ स े काले मेघ क बाढ़
हािथय का मानो िच ंघाढ़ रहा हो य ुथ |
घरघराहट चढ़ती बिहया क |
रेतीले कगार का िगरना छप - छड़ाप |
झंझा क फ ुफकार त,
पेड़ो का अररा कर ट ूट - टूट कर िगरना |
ओले क कर चपत |' munotes.in

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किवता अथ, परभाषा , वप
11 ६. अलंकार :-
आचाय क े अनुसार िबना अल ंकार क े किवता स ंभव नह ह ै | अलंकार का शािदक अथ
आभूषण ह ै ी क शोभा िजस कार आभ ूषण स े बढ़ जाती ह ै | उसी कार काय क
शोभा अल ंकार स े बढ़ती ह ै |
संेप म हम कह सकत े है िक काय अथा त भाषा को शदाथ से सुसिजत तथा स ुदर
बनाने वाले चमकार प ूण ढंग को अल ंकार कहत े है | ये मुखतः दो कार क े होते है :- i)
शदाल ंकार ii) अथालंकार
इन अल ंकारो क े भेद व उप भ ेद भी ह ै िजह े इस कार समझा जा सकता ह ै :-
अत ुत वत ू योजना क े अलंकार - उपमा, पक उ ेा आिद |
वाय, वता क े अलंकार - याज त ुित, समासोि वण - िवयास क े अलंकार -
अनुास आिद |
आतरक वप :-
किवता क े आतरक वप का तापय किवता क आमा स े है | यिक सािह य वह
ग हो या प उसक े बाहरी प क े मायम स े नह आतरक याि के कारण ही
पाठक को आकिष त करता ह ै | इसे िविभन तवो ारा समझा जाना जा सकता ह ै |
१. अनुभूित :-
जैसा िक हम सभी जानत े है िक वही सािहय या वही काय े होता ह ै िजसका िस
संबंध दय स े हो और ऐसा तभी होता ह ै जब काय म अनुभूित हो | और अन ुभूित िनभ र
करती ह ै किव क स ंवेदना पर | काय तभी सफलता पाता ह ै जब किव िजस स ंवेदना स े
िलखे उसी क अन ुभूित पाठक को हो | उसमे िकसी भी कार का परवत न न हो | किव
भवानी साद िम न े किवय के िवषय म कुछ पंियाँ कही ह ै जो इस कार ह ै :-
' कलम अपनी साध
और मन क बात िबक ुल ठीक कह एकाध |
यह क त ेरी - भर न हो तो कह
और बहत े बने सादे ढंग से तो बह
िजस तरह हम बोलत े है, उस तरह त ू िलख
औ इसक े बाद भी हमस े बड़ा त ू िदख |'
इस कार अपन े सीधे साधे ढंग से भी किव एकाध बात किवता क े मायम स े िलखन े का
यन करता ह ै | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
12 िवचार क यापकता :- िहंदी म एक कहावत बहत ही चिलत ह ै 'जहाँ न पह ंचे रिव
वहाँ पहंचे किव'इस कहावत स े आपन े अंदाज लगा िलया होगा िक किव क े मन क े आवेग
या गित िकतनी अथाह ओ सकती ह ै | किव का ान का िवतार और उसक ि , सोच,
िवचार को यापक बनाता ह ै|और पाठक को भी जाग ृत करन े का काय करता ह ै |
कपना :- किव क सोच उसका अन ुमान और शदरचना का योग पाठक क कपना
शि को बढ़ान े का काय करती ह ै | उम शदावली और शद रचना किवता को उम
बनाती ह ै उसी कार पाठक क े किवता पठन क े उपरा ंत उसी िव म ले जाने का काय
करती ह ै | ाचीन आचाय न े कहा ह ै - कथन श ैली मन क आिमक शि को वतः
उूत करती ह ै |यिद कपना का सबध दय क स ंवेदना स े समवियत हो तो वह
किवता उच कोिट क कहलाती ह ै |
रस और सौदय ता :- शद और अथ किवता का िनमा ण करत े है लेिकन रस ,अलंकार
और भाव क े िबना किवता अध ूरी है इसीिलए आचाय न े रस को काय क आमा माना
है |किवता पठन क े समय पाठक क े मन म जागृत होन े वाली अन ुभूित िह रस ह ै |इस
कार रस किवता का पर म येय है |इसमे यि िविभन ियाओ स े होकर ग ुजरता
है |भाव ,िवभाव ,अनुभाव | भाव क े दो प होत े है आलबन और उीपन और अन ुभव
क भी एक िथित होती ह ै इस कार इन तीनो क े संयोजन स े रस क उपि मानी गयी
है |किवता म यिद स ुंदर मनोहर य का वण न हो तो पाठक अपन े आप ही उस य म
लीन हो जाता ह ै |
उदािकरण भाव :- किवता िसफ सौदय ,उेय,उपदेश आिद िवषय पर ही हो ऐसा
नह ह ै |किवता जीवन क पर ेशानी,उलझन े, अनुरत आिद को भी समता स े
दशाती है |साथ ही घ ृणा,ईया,िनदयता,कुिटलता ध ूतता, आिद िवषय को ल ेकर और
इनके कारण को ल ेकर आग े बढती ह ै | तो पाठक का दय परवत न भी कर सकती ह ै
और समाज म सय,अिहंसा,सिहण ुता आिद का भाव समाज म जू हो सकता ह ै और
इही भाव क उदाता किवय ारा अन ुिहत होती ह ै |इसिलए इित हास ,महापुष क
जीवनी आिद पर काय रचा जाता ह ै |
१.७ सारांश
इस कार हम कह सकत े है िक किवता एक ितिया ह ै बहरंगी िविवध पी िज ंदगी क े
ित ितिया और िया ह ै िजसम े जागकता , संवेदनशीलता , चेतना अन ुभूित,
सहान ुभूती, कपना , आिद तो चािहए ही लेिकन इन सबस े ऊपर मकसद होना बहत
जरी ह ै यह एक सा ंकृितक िया भी ह ै िजसस े सािहय जमता ह ै जो यादगार शद
और अथ के प म युग तक जाना जाता ह ै समझा जाता ह ै |

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किवता अथ, परभाषा , वप
13 १.८ दीघरी
१. किवता का अथ परभाषा समझत े हए उसक े वप को िवत ृत िलिखए |
२. किवता क े तव का परचय द ेते हए ,उसके वप पर चचा किजए |
३. किवता का कालान ुप अययन करत े हए अथ और परभाषा को िवतार स े
िलिखए |
१.९ लघुरी
१. ाचीन काल म सािहय का कौनसा प अिधक चिलत था ?
उर - प प
२. 'वायं रसामकम कायम ' उ परभाषा म काय म कौनस े भाव क अिनवाय ता
मानी गयी ह ै ?
उर - रस
३. 'किवता कवी िवश ेष क भावनाओ ं का िचण ह ै |' उ परभाषा िकसक ह ै ?
उर - महादेवी वमा
४. कौनस े पााय िवान न े किवता को कपना क अिभयि माना ह ै ?
उर - शैल


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14 २
वातयोर किवता स ंवेदना और िशप
इकाई क पर ेखा
२.० इकाई का उ ेय
२.१ तावना
२.२ वातयोर किवता
२.३ वातयोर किवता स ंवेदना
२.३.१ पूंजीवादी यवथा का िवरोध
२.३.२ सादाियकता , जाितवाद , िढ और अधिवास
२.३.३ नारी क े ित िकोण
२.३.४ िकसान ,मजदूर ब गरीबो क े ित उदार िकोण
२.३.५ यथाथ ,पीड़ा,िनराश और अवसाद वाद
२.३.६ मास वादी वप
२.३.७ गाँव क िमटटी क े ित लगाव
२.३.८ कृित वण न म सामािजक प
२.३.९ किव क भ ूिमका
२.४ वातयो र किवता म िशप
२.४.१ भाषा
२.४.२ िबब
२.४.३ तीक
२.४.४ उपमान
२.४.५ मुहावरे व लोकोि
२.४.६ सारांश
२.५ दीघरी
२.६ लघुरी
२.७ सदभ थ munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
15 २.० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अययन स े िवाथ वातयो रकिवय क किवताओ को जान
सकगे | साथ ही उस समय क े सामािजक ,आिथक ,राजनीितक परव ेश और उस
परवेश को स ुधरने म सािहय का या योगदान था यह भी जान सक गे |साथ ही मानवीय
संवेदना को िकस कार किवय न े किवता म िजवंत िकया ह ै |साथ ही वातयो र
किवय क किवताओ का िशपगत अययन स े भी अवगत हग े |
२.१ तावना
देश क आजादी का ज प ूरे देश के िलए एक बढ़ े यौहार सा था | यिक ३०० साल
क परतता क े बाद द ेश को आजादी िमली यह आजादी आसानी स े नही िमली थी |
इसके पीछे अनेक वतता स ैिनक के लह बह े थे न जान े िकतन े घर और गा ँव िमट े थे
आदोलन और स ंघष हए | आजादी िमलन े के बाद एक टीस अभी तक सबक े मन म थी
िक देश के दो टुकड़े भी हए थ े | लेिकन ३०० साल क े परतं को वतता म बदलन े के
िलए क ुछ तो कमत च ुकानी ही थी | यिद हम वातयो र सािहय क बात कर े खास
कर िह ंदी किवता क तो इस समय िह ंदी किवता का भी एक नए य ुग का स ूपात हआ था
किव परिथितय स े भलीभा ंित परिचत थ े |सभी किवय क े काय म कई थान पर
समानता द ेखी जा सकती ह ै। सारे िव म और खासकर द ेश म िवचार क जो नई बयार
बह रही थी , उसस े तार सक क े किव भली -भांित परिचत थ े और त ेजी से बदलत े हए
घटनाच पर सतक ि रख े हए थ े । कहा जा सकता ह ै िक किव समय क े साथ चल
रहा था । कई किव तो वतता स ंाम क लढाई म िहस े दार भी थ े इसिलए अपन े
दौर क राजन ैितक हलचल स े वयं को अलग नह रख सकना उनक े िलए असभव
था |
२.२ वातयोर िह ंदी किवता
वातयोर िह ंदी किवता म सवथम िज होता ह ै तार सक क े काशन का एव ं
वाधीनता ाि क े उपरा ंत रची गई िह ंदी किवता का इस िवषय पर िवचार करत े हए
पहले तो यह अययन करना होगा िक सात -आठ क े दशक क इस ल ंबी याा म किवता
अनेक मोड़ स े गुजरी ह ै, कई ठोकर े खायी ह ै अनेक पड़ाव पर ठहरी ह ै और इस बीच
उसने नए-नए आयाम भी हािसल िकए ह । इस समय क े िवचार , कय, भाषा, िशप,
सभी िय स े किवता कई िवषय को ल ेकर साझा ह ई है िकसी एक िवषय पर िटक
नह रही , िनरंतर अपना िवकास करती रही । इस अविध राीय िितज पर जो
परवत न हआ , किवता उनस े भी अछ ूती नह रही । सामािजक -राजनैितक परय म
आए परवत न से किवता भािवत होती रही ह ै ।सबस े बड़ा जो परवत न था वह था
भारत ती न सौ साल क ग ुलामी स े मुि पाकर वाधीन हआ । यह अययन का िवषय ह ै
िक इस एक बड़ी घटना न े किवता को िकस सीमा तक भािवत िकया। ऐस े समय म
परवत घटनाओ ं, संग व परिथितय क ल ंबी ृंखला ह ै िजसन े िवजन क े साथ -
साथ किव मन को भी आ ंदोिलत िकया जाना वाभािवक ह ै । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
16 कहा जाता ह ै िक किव समय क े साथ चल रहा था । द ूसरे, यह तो वीकाय है ि क
रचनाकार अपन े दौर क े सामािजक राजन ैितक परव ेश को ल ेकर आग े बढ़ता ह ै उसका
भाव तो िकसी न िकसी प म काय पर पड़ता ही ह ै, तार सक क े काशन एव ं
वाधीनता ाि क े उपरांत रची गई िह ंदी किवता के िवषय पर िवचार करत े हए पहल े तो
यह जानना होगा िक सव ेदनाओ स े तादाय रखन े वाला किव वय ं क चार िदवारी स े
बाहर िनकलकर समाज व जीवन क े गूढ़ यथाथ व सय स े सााकार कर उनम े िवया
िवसंगितयो ,िवषमताओ ं व िवडबनाओ क े मूल कारण को खोजकर अपनी किवता क े
मायम स े उह उजागर करता ह ै |
आज क े तकनीक य ुग ने िव क द ुरी बहत कम करदी ह ै लेिकन मानवता न े अपन को
अपन स े दूर कर िदया ह ै | वह भौितकता म मन हो मानवता को ितला ंजली द े रहा ह ै
एसी िथित म सवेदनामक सािहय मानव का िहत िचतक सािहय क े प म उभरा ह ै
िजसक े परणाम वप सािहय म अयिधक बौिकता िदखाई द ेती है | इन लोक
सवेदनाओ ं म भारतीय स ंकृित के मूय समािहत ह ै जो सामाय जन को सही िदशा द ेने
का काय करत े है इस सा िहय क म ुखता ह ै - िनलता , याग क भावना ,परपर
सोहाद क भावना , धम परपराओ ं के ित अन ुराग क भावना आिद | भौितकवादी य ुग
म सवेदना स े यु काय मानव क े आंतरक स ंतुलन अन ुशासन और उसक े उकष
के िलए म ंगलकारी सािबत हआ ह ै | सािहय क े आकषण से उपजी अन ेक समयाओ ं ने
जन मानस क े साथ-साथ किवय को भी गॉव क ओर आक ृ िकया ।
ामीण जीवन व स ुषमा क े बीच वह सहजता िदखी , जो शहरी क ृिमता स े कोसो द ूर
थी । क ुछ किवय न े गॉव क क ृित, वहाँ के जीवन क उम ुता, सरलता , सहजता को
जीवन - आदश के प म अपनान े क ेरणा द ेते हए अपनी ल ेखनी म े मुख थान
िदया ।
वातयोर िहदी किवता झ ंझावात क े झेलने क शि दान करती ह ै । इस काल
का नायक कोई राजक ुमार नह , वरन् वह आम आदमी ह ै जो सा व यवथा क
दुनितय स े सबस े अिधक पीिड़त ह ै । इस आम -आदमी को स ुढ़ करना व उसम े आम -
िवास जाग ृत करना इन किवय क े किवता का एक महवप ूण पहल ू है ।
वातयोर िहदी किवता म िनराशा , कुठा, हताशा िदखाई पडती ह ै, लेिकन इसका
कारण "मा यिगत द ुख-दद” ही नही ह ै । आम -जनता का प ुराने जड-मूयो स े िचपक े
रहना भी है । पर यह िनराशा थायी नह रहती । अतह किव आशावादी िकोण क े
साथ नय े परव ेश म नये व साथ क मूयो क थापना क े ित आत िदखाई पडत े है ।
वातयोर िहदी किवता क एक म ुख िवश ेषता “लोक क े ित उनक िना ' है ।
उसका सहज झान लो क जीवन व उसक स ंवेदनाओ क ओर ह ै । सामाय -जन क े
ित उसका लगाव आजादी -पूव के काय -सदभ स े िभ न है । आजादी क े पूव क
किवता म तकालीन परव ेशानुप आदोलन का वर म ुख है, पर वातयोर
किवता म य लोक जीवन िविवध सहजान ुभूितय व सवेदनाओ ं से भरा ह ै। गॉव का munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
17 सहज ाक ृितक प , वहाँ क िमी क सधी महक न े किवय को िवश ेष प स े भािवत
िकया ।
२.३ वातयोर िह ंदी किवता म सवेदना
देश के िलए वतता ाि एक वरदान था , भारत माता सिदय क े बंधन स े आजाद
हई थी । सबको आशा थी िक अब सब क -दुःख िमट गय े नयी भोर हई ह ै अब सब
सजल होगा पर हआ इस के िवपरीत सब क ुछ आसान नही था । सरकारी नीितया ँ
समानता क थी ल ेिकन सरकार क कथनी और करनी म अतर था । इसका परणाम
यह हआ िक द ेश का आम -आदमी आज भी बड े-बडे नगर क े फुट-पाथ पर अपनी
िजदगी क रोटी स ेकता हआ जाड े क रात म े भी उसी पर सोता ह और अपन े जीवन
को मौत क े मुँह म वय झकन े के िलए िववश ह ै ।
वतता ाि क े उपरात िहदी सािहय म े एक अ ुत आदोलन का ाद ुभाव हआ ।
वातयोर किवयो क सश ल ेखनी न े प शद म े शासन यवथा पर हार
करना ारभ कर िदया । किवताए ँ किवय क े दय क व ेदना क मम भेिदनी विन ह ै ।
यह विन खोखली नह ह ै वरन् आम-आदमी क असहनीय पीडा क सहायक विन ह ै,
िजसे किवता का वर ा हआ ह ै । किवयो न े इस पीडा का यीक रण के आधार पर
िचण नह िकया ह ै वरन् वानुभूत सय को किवता क भाषा क े मायम स े त ुत
िकया ह ै । इस े अिभय करन े के िलए इन किवयो न े नयी श ैली क सज ना क ह ै ।
नूतनता स ृि, चेतना और िवकास -िया क े मायम स े । जडता को तोडना इन किवयो
का लय है । यह जडता आम -आदमी , शोिषतो , दिलतो और सताय े हए सामाय जनो
क है, योिक वह यथािथित को वीकार कर नारकय जीवन जीन े के िलए बाय ह ै
अथवा इस े वह अपनी िनयित मान कर स ंघषशीलता को ितलाजिल द ेकर जडता को
अपनी िजदगी क सॉस मान कर जी रहा ह ै । वातयो र किवय म े नागाज ुन, धूिमल,
िलोचन , केदारनाथ अवाल तथा िगरजा क ुमार माथ ुर ,अेय, रघुवीर सहाय ,आिद
अनेक किवय क किवताओ ं मे आम-आदमी क े जीवन क यथाथ ता िचित क ह ै । इन
किवय न े इसी कार क े जीवन क िजया ह ै, इसिलए इह िजस पीड़ा क अन ुभूित हई है
उसक सजीव अिभयि उनक किवताओ म िदखाई पड़ती ह ै।
२.३.१ पूंजीवादी यवथा का िवरोध :
वातयोर किव पूँजीवादी -यवथा क े उद॒दाम श ु किव ह ै | ये किव किवता क े
मायम स े पूंजीपितय क े ूर िया कलाप का वण न कर पीिडतो का सव ेदना प ूण
िचांकन करत े है | लोकतािक यवथा म आम -आदमी क यह दशा शम नाक ह ै ।
पूँजीपितय न े लोकत का सव नाश कर िदया ह ै ।भारत का जनत केवल म ुखौटा मा
है ।इस शासन यवथा म े गरीब का शोषण और धिनय का पोषण होता ह ै |वतता
ाि क े बाद सभी जन यह आशा कर रह े थे िक हमारी शासन यवथा म समानता
होगी शोषक वग िसंहासन स े दूर होगा और आम जनता क े अनािदकालीन द ुख दूर
हगे ।अब वत भारत म े शोषण का अत हो जान े से आम आदमी , िजह पशु से भी munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
18 हेय समझा जा रहा था अब आदमी क भॉित वत ता क सॉस ल ेगे । िकत ु पूँजीपितय
या शासको न े ऐसा नही होन े िदया आज भी भारत का नागरक शोिषत ही रहा अ ंतर बस
इतना था पहल े गैर के हाथ दहन हो रहा था और अब अपन े ही ल ुट रहे थे | उसक
आह को वातयोर किवय न े पहचाना नागाज ुन , केदारनाथ और अय
वातयोर किव के अितर कौन स ुनने और द ेखने वाला था ऐसा उस समय का
मंजर था |
“रामराज म े अब क रावण न ंगा होकर नाचा ह ै ,
सूरत सकल वही ह ै भैया, बदला क ेवल ढॉ ँ चा ह ै,
गॉधी जी क कसम े खा-खा, कौन िकस े ठग सकता ह ै,
ठडा च ूहा फ ूटी हाडी , नह कह क ुछ पक ता है"
इसी सबध म किव िलोचन कहत े है -
“बीज ाित क े बोता ह ँ मै,
अर दान े है,
घर बाहर जन समाज को नय े िसरे से
रच देने क िच द ेता हँ,
िघरे-िघरे से
रहना असमान ह ै
जीवन का अनजान े
अगर घ ुटन हो ाण
छटपटाय े तो घ ेरा
तोड फोड दो योिक हआ नया सबेरा |”?
२.३.२ सादाियकता , जाितवाद , िढ और अधिवास :
वातयोर किवय न े सादाियकता , जाितवाद , िढ और अधिवासो का िनरतर
िवरोध करत े र हे है । इनक ि म े छुआछूत, िढया ँ, अधिवास आिद सामािजक
बुराइया ँ दीन-दिलतो क गित म बाधक ह ै | केदारनाथ अपनी किवता “भारत मा ँ का
गीत” मे सादाियकता क े िव भावकारी आवाज उठात े हए भारतमाता क े वर म े
कहते है िक
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वातयोर किवता संवेदना और िशप
19 "िहदू और म ुसलमान म मेरा ही र बहता ह ै
इसीिलए जब त ुम एक द ूसरे का ख ून करत े हो,
तो मेरा ही ख ून बहता ह ै|"
वातयो र किवय न े आजीवन सादाियकता का िवरोध करत े रहे । उनक ि म
धम क करता , िववंशकारणी व ृि, आम जनता को ही अपना िशकार बनाती ह ै ।
और उस े फैलाने वाले मूक-दशक बन े रहते है । शा और मानवता म े यिद िवरोध ह ै तो
शा क या आवय कता ह ै । मानवता ही मन ुय क अम ूय धरोहर होनी चािहए िजस े
सजोकर रखना हम सबका धम है ।
इस सबध म किव ध ूिमल मोचीराम किवता म कहत े है | आदमी एक जोडी ज ूता मा
है । उसक े पास आन े वाले दो िवपरीत वभावी ाहक किव क स ंवेदना को अलग -अलग
ढंग से भािवत करत े है एक गरीब ह ै िजसक े ित मोची क सहान ुभूित है ।उसक े
चकीदार ज ूतो पर मोची अपनी आ ँखे टॉक द ेना चाहता ह ै|“ यहाँ किव वय ं शोिषत ,
दिलत ,अभावत वग के एक यि क े प म े िदखाई पड रहा ह ै, जो दूसरो क े दुख से
दुखी है । दूसरा वह यि ह ै जो गरी बो पर अनायास रौब िदखाता ह ै । ऐस े लोगो क े िलए
किव का तक है- 'जैसा काम व ैसा दाम ! । बेवजह गरीबो को सतान े वाले यि क े ित
किव क े मन म े कोई स ंवेदना नह ह ै |
इस कार वातयोर किवय न े धम व जाित क े आधार पर बनी यवथा क
अमानवीय कहा ह ै | यिक वह हर एक को द ूसर स े अलग करन े मे जुटी है । ऐस े मे
सचा लोकत भला क ैसे जीिवत रह सकता ह ै योिक जाितगत भ ेदभाव क े रहने से
समानता क ैसे रह सकती ह ै?
२.३.३ नारी क े ित िकोण :
वातयोर किवय न े नारी क े िविभन प का वण न िकया है इन प म नारी का
यागमय प सवा िधक उल ेिखत ह ै | इनक किवता क े शद व ेश कुहाड़ स े तोडत े
हए िकसान क पनी ,मीलो तक पानी क े िलए जान े वाली औरत और लठ ैतो ारा बह -
बेिटयो क सर ेआम होन े वाली ब ेइजती आिद और ऐस े संवेदनशील म ु को अिभय
कर सय समाज को उनक े िनिहत समाज क े चर को सबक े सामन े रखत े ह ।
“सामती घरान े क जागीरदार
बूढी सी सास यो
वय िपशािचनी का चड प ल े
िवोिहणी िवधवा िनज बह पीटी गयी ,
पीठ पर ब ैठकर munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
20 जबदत हाथ म
गरम-गरम लोह े क ाका स े पीठ दागती ह ै,
यो रामू के जन-जन का िहय भी
पल-पल म े दागा ह ै।"
एक द ूसरा उदहारण इस कार ह ै -
"गभवती नारी का ।
जो पानी भरती ह ै
वजनदार घडो स े, मजदूरी करती ह ै
पु के भिवय क े िलए । ”
नारी का यागमय प किव और समाज दोन क े िलए अिधक आक ृ करता ह ै । देश क
वाधी नता क रा के िलए आमोसग करन े वाली क ुमारी रोशनआरा पर िलखी गयी
उनक किवता “आितश क े अनार सी , वह लडक -” देशभ नारी क े ित किव क
आदरा ंजली ह ै। नारी क े ित उहोन े कई स ंदभ म बात कही ह ै पर नारी का हर वह प ,
जो मया दाओं से बँधा है, उनक ि मे े है । किव का ' नारी क े ित द ूिषत िकोण
नह रहा ह ै। अपन े कम क े अनुप ही नारी अबला -सबला व कल ंिकनी, दुराचारणी
कहलाती ह ै । किव ध ूिमल जीवन क े हर े से िवकृितयो को उखाड फ ेकना चाहते थे ।
अत उहन े नारी क े इस क ुप प को ही िवश ेषतया उजागर िकया ह ै ।
वह किव म ुिबोध सय समाज को “बीमार समाज ” कहकर गभ पात ज ैसे कुकृयो पर
अयत स ंवेदनशील हो जात े ह” वे नारी क े शोषण को अयत मम पश प म े िचित
करते है |
२.३.४ िकसान ,मजदूर ब गरीबो क े ित उदार िकोण :
वातयो र किवय न े समय और परिथित क े साथ समाज क और द ेखने का बीड़ा
उठाया था | यही कारण था िक उनक नजर हर तरफ रही औोिगक बती या बड े-
बडे उोगो म काम करन े वाले अभावत मजद ूर क िववशता क प झा ँक त ुत
करती ह ै कुछ उोग ऐस े है जहाँ काम करने से मजद ूर क आय ु तेजी से कम होती जाती
है, िफर भी व े अपन े-आपको मजब ूरी वश उसम े झके रहते ह।
“एक फटा कोट एक िहलती चौक एक लालट ेन दोनो ,
बाप िमतरी ,
और बीस बरस का नर ेन munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
21 दोनो पहल े से जानत े है पेच क मरी हई च ूिडयाँ,
नेह-युग के औजारो
को मुसीला ल क सबस े बडी द ेन।"
किव नागाज ुन अपनी बदली हई मनोव ृि के कारण ितबत न जाकर भारत म े िकसान -
आदोलन क े नेतृवकता वामी सहजानद क े सहयोगी हए और उनक े जेल जान े पर
उहोन वय आदोलन का न ेतृव िकया , िजसक े कारण उह े भी ज ेल-याा करनी पडी
इस म शील जीवन काल म िविवध काय को करत े हए नागाज ुन दिलत -पीिडत जन क
ओर सवा िधक आकिष त हए । उनक े हाथ म मजब ूती से लेखनी पकडान े वाला यह
दुखी-पीिडत जन ही ह ै, िजनक अतहीन पीडा उनक ल ेखनी को िवराम नह करन े
देत । व े पीिडत -जनो क े बीच म रहकर उनक े दय क यथाओ ं मे समािव रह े । अपनी
किवताओ म य िकय े गये जीवन क े कटु अनुभव को उहन पग-पग पर भोगा ह ै ।
साथ ही झुगी झोपिडय का पीड़ा दायी जीवन ,सामािजक िवषमता ,िकसान क े फटे हाल
इन किवय को राजनीितक और समाज क े ठेकेदार क े िवषय म िलखन े को मजब ूर कर
देते है |
मुिबोध का िहद ुतान एक ऐसा दीन यि का द ेश है िजसक े शरीर क े मॉस को
शोिषत न े खा डाला ह ै । वह स ूखी हई अिथयो क े सहार े िहलता हआ चलता ह ै । उस े
तन ढ ँकने को व ा नह होता ह ै । रात े पर िबखर े हए चावल क े दानो को लपककर
बीनता रहता ह ै-
“सूखी हई जा ंघ क लबी -लबी अिथया ँ
हिडलाता हआ चलता ह ै
लगोटी धारी यह द ुबला म ेरा िहद ुतान
राते पर िबखर े हए
चावल क े दान को बीनता ड े लपककर ।
मेरा सॉवला इकहरा िहद ुतान । ”
२.३.५ यथाथ ,पीड़ा,िनराश और अवसाद वादी िचण :
वातयो र किवय न े रहयामक द ुिनया स े नीचे उतर कर उहोन े यथाथ जीवन
का सााकार िकया। फलत उनक किवताए ं मानवीय जीवन क स ंवेदनाओ स े युग
यथाथ से जुडती गयी । इस काल खड क किवताओ ं म तकालीन पराधीन भारत क
चेतना कह बदी जीवन क े कारण िनराशा व अवसाद म े डूबी हई िदखाई पडती ह ै तो munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
22 कह ा ंित, राीयता क भावना व वतता क चाह जन -जन क जाग ृत करती ह ै ।
इस कार क किवताए ँ वातयोर काल क े लगभग सभी किवय न े िलखी ह ै उन
किवय क किवताए ँ मािमक हो उठी ह ै िजहन े एसी परिथित को भोगा है जैसे किव
अेय ने बदी जीवन क े दौरान एक किवता िलखी िजसम े बदी क यथा , पीडा, उसक
राीयता व ाित क भावना का यथाथ िचण त ुत है और 'िहय हारल ” संह के
खड क अिधका ंश किवताए ं िवजय ाि क आशा स े आलोिकत , पराधीनता स े शी
मुि के िवास स े परप ूण, हारल क भा ँित अपन े वतता क े लय को ढता स े
पकड़े हए ह । । नयी शि क े साथ आग े बढने का उसाह उनम े सव िदखाई पड़ता ह ै ।
अतः प ह ै िक पराधीन भारत क जनच ेतना क म ुि के िलए यनशील किव द ेश व
जनता क े ित रागामक सबध रखता ह ै ।
“एकाी ,ठडे, चमकल े यम स े
मत िसात िशक ंजे
काठ मानकर जकड े है
इंसान को ठप ेदार ान क े
फोके चूसे टुकडे फेक सामन े।”
दो ही तो सचाइयो ँ स े है
एक ठोस , पािथव, शरीरी -मासल प क ,
एक व , वायवी आिमक - वासना क धध क क
बाक आग े मृषा क ,आम-समोहन क "
किव म ुिबोध न े फटेसी क श ैली मे अपनी बात कही ह । इस सदभ मे उहोन े वयं
कहा िक “बहत बार यह द ुिनया ज ैसी िदखलाई पडती ह ै, वैसी नह होती। उसक े
िदखलाई पडन े वाले प और असली प म तध कर द ेने वाला अतिव रोध होता ह ै।
तय यथाथ को िछपा ल ेते है ।"आगे वे कहत े है ऐसी िथित म फटेसी के जरय े ही
उसका असली प को िदखलाया जा सकता ह ै। उनक फ टेसी िन ेय नह ह ै। वे
कहते है- “ फैटेसी के भीतर वह मम - िजसम एक उ ेय है, एक पीड़ा ह ै,और एक िदशा
है-अनेक जीवनान ुभव स े सारगिभ त, सविध त और प ु होकर कट होना चाहता ह ै।”
कहा जा सकता ह ै िक उहोन े िवषम सामािजक परिथितय स े पीिडत -यि क े को
से जन-जन का गहराई स े सविविदत करान े के िलए फ टेसी ज ैसी आकष क शैली का
सहारा िलया न िक तकालीन यथाथ से पलायन क े िलए।
२.३.६ मास वादी वप :
वातयोर किव सामािजक िहतो क े ित ितब रह े है । उहन े उपीिडत जनो क
समयाओ को द ूर करन े के िलए वग -संघष या ाित का भी सहारा ल ेना पड े तो िलया munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
23 है | योिक याय क े िलए स ंघष का माग भी उिचत ह ै | मुिबोध क े अनुसार याय क े
िलए क ुछ भी अन ुिचत नह ह ै | पीिडत जन क े ित उनक यह स ंवेदनशील ि ही उह े
मास वादी िवचारधारा क ओर ल े गयी, जो ऐस े जनो क पधर है । िवान व
ौोिगक क े बढत े भाव क े कारण होन े वाले यापक परवत नो के देखते हए म ुिबोध
कभी मास वादी िवचारधारा को िसातवत ् न अपना सक े विक उहोन े उसे अपन े
िववेक व तक के बल पर भली -भांित परख कर उसक े जीवत -तव को ही हण िकया।
दूसरे शद म े कहे तो, उहन े िवि क े धरातल पर मास वाद को नया प िद या, जो
पूजीवादी -यािक सयता स े उपन परवत नो को द ेखते हए जरी था । कला को
रहयामक -जगत् क वत ु न मानन े वाले मुिबोध मास वादी सािहयकार क े इस
िवचार स े सहमत थ े िक कला का अययन व िव ेषण िव -चेतस हए िबना या बा -
जगत क िविवधता को जाने िबना नह हो सकता । यिक उनक े अनुसार बा -जगत
का आशयतरीकरण ही किवता या कला क े प म अिभयि पाता ह ै । “दूसरे शद म े
कहे तो बाहय -जगत् म जो हम द ेखते सुनते है, िजन घटनाओ ं से भािवत या ुध होत े
ह, वही आतरक अन ुभव म े ढलकर स ंवेदनामक प म े किवता म उपिथत होता ह ै ।
अतः कहा जा सकता ह ै िक किवता म समझन े व उसका सही . "िवेषण करन े मे बाहय
जगत का ान सहायक बनता ह ै ।
२.३.७ गाँव क िमटटी क े ित लगाव :
वातयोर किव अपने गाँव और िमटटी स े जुड़े रहे उनका यान सवा गीण था ल ेिकन
वे अपन े गाँव का िचण करना नह भ ूले किव िगरजा क ुमार माथ ुर क “मिटयाली धरती ”
गॉव क ध ूसर,सॉवर मिटयाली , काली, आसमान क े घेरे मे धूप से बुझी हई और ज ंगलो
से िमली हई धरती ह ै । इस पर उपज े नीम, आम, वट, पीपल क े वृो पर िनखर े-िनखर े
मौसम आत े रहते है । कची िम ॒टी के गाँव के व पर ध ूप कड़ा करती रहती ह ै और
फसलो म दूध बनकर उसी क े प म े िमल जाती ह ै । य ेक अन क े दानो म े चमा
अपना अम ृत भर द ेता है ।इसी मिटयाली धरती को नया बस ंत रंगीन बनाता रहता ह ै
िकतु आज िकसान क मिटयाली धरती क र ेखा के ऊपर गोल र पथर क े टुकडे के
समान स ूरज िठठक रहा ह ै । वहा ँ का वातावरण जम े हए िहम क चानो सा हो गया ह ै
और म ृत सूरज अतल म े िगर रहा ह ै । िलोचन क किवताओ ं मे अवधा ंचल क िमी क
याद अपनी सम ूची महक क े साथ नवीन आशा िबख ेरती हई िदखलाई पड़ती ह ै किव
िलोचन िसफ ामीण जन -जीवन क े मती भर े सौदय का ही बखान नह करत े, वरन्
वहाँ या भ ुखमरी व िपछड ेपन क याद े भी उनक किव -संवेदना को भािवत करती ह
और व े िकसान को यान म रख कह उठत े है िक-
“उस जनपद का किव ह ँ जो भ ूखा-दूखा है,“
नंगा है, अनजान ह ै. . ... -
-कब स ूखा उसक े जीवन का सोता ,
इितहास ही बता सकता ह ै ।“ munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
24 इन अभाव व िपछड़ ेपन ने कभी उह अयत खीझ स े भर यह कहन े को मजब ूर िकया
था | लेिकन बाद म उहोन वीकार िकया िक उनक े मन म पहले जो असतोष था अपन े
गाँव को ल ेकर, वह अब नह ह ै शायद इसक वजह यह ह ै िक कम मे आथा रखन े वाले
किव को यह िवास ह ै िक वह कभी न कभी अपन े म क े बल स े अपन े गॉव को इस
िवकट -यथाथ से उबार ल ेगा ।
वही द ूसरी ओर “िमी क ईहा ” क किवताओ ं म अ ेय क अन ेक िवचारधाराए ँ
परलित होती ह | िमटटी क े बीच उगन े वाले बस त के अंकुर प शोिषत क े ाित -
वर शोषको को दाश िनक प म भौितक जीवन क चकाचौध म सय का आभास
करात े है -
“िकतना त ुछ है तुहारा अिभमान ,
जो िक िमी नह हो
जो िक िमी को रदत े हो
जो िक इछा को रौदत े हो,
यिक िमट ॒टी ही इछा ह ै"
किव िसफ ामीण क ृित क सहजता म ही अपन े को नह ड ुबाये रखता । गा ँव मे रहने
वाल क सहज जीवन -शैली, उनक समयाय , उनके दुख-दद, रीित-रवाज , िवास व
परपराय भी किव क स ंवेदनशील ि से परे नह ह ै | “हमारा द ेश” किवता ामीण -
संकृित से उनके लगाव व शहरी सयता पर तीण य ंय करती ह ै -
“इह त ुण-फूस छपर स े
ढंके दुलमुल गंवा
झोपड़ो म ही हमारा द ेश बसता ह ै ।
है हर
इह क े मम को अनजान
शहरो क ढ़क लोल ुप
िवषैली वासना का सा ँप डंसता ह ै ।”
२.३.८ कृित वण न म सामािजक प :
ाकृितक य म े अपन े को िवलीन कर उसक े एक-एक य को अपनी किवता म किव
साकार करत े ह। उनक ि म े िमट॒टी अपनी जगह पर िनल पड़ी आनिदत ह ै। अपन े
प म े िलपटा हआ पौधा ध ूप और हवा का स ेवन करता हआ मगन ह ै । जल ब ेरोक-टोक munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
25 बहता हआ स न है। कट पी और लताए ँ सब आनिदत ह लेिकन किव क े आस -पास
क दुिनया हजारो चाब ुके िलए हए िदन -रात पागल क े समान दौड़ती रहती ह ै। इही
पागलो क द ुिनय न े पहाड़ के सौदय को नीलाम कर िदया ह ै, फल-फूल से लदे जगल
को काट डाला ह ै, निदयो िकनार े बँधी नाव क े भछेर के छपर म , , जआस े घर म आग
लगा दी ह ै िजसक े कारण िविभ न ऋतुओ मे होने वाले परवत नो से किव भिल -भाँित
परिचत ह ै । तभी तो वह भावकारी व सहज भाषा क े मायम स े हर-ऋतु को सजीव कर
देता है । गाँव से तादाय बनाय े रखन े वाले किव अ ेय क क ृित जय किवताए ँ उहे
लोक क े अयत िनकट ल े आती ह ै । “कतक प ूनो” (काितक पूिणमा) क शीतल चा ँदनी
मे फलॉग भरती शक क जोड़ी , फुहडार सा झर रहा क ुहरा, अकासनीम , मालती व
कास क आभा मन को सहज ही आकिष त करती है । उस वछ चॉदनी म े ाय बाला
के मन क हलास , जो अपन े ियतम क राह द ेख रही ह ै, इस कार कट हो रही ह ै जैसे
चोर क परछाई न चाहत े हए भी उभर जाती ह ै |
"िछटक गयी ह ै चॉदनी
मदमाती उ मा िदनी,
पक वार स े िनकल शशो क
जोडी गयी फलॉगती क ुहरा झीना और महीन "
रघुवीर सहाय न े भाती ,बसत ,पहला पानी आिद किवताओ म े कृित के सहज एव ं
जीवत िच को उक ेरा है । वत ुत किव क े िलए क ृित शरण थली न होकर सहभागी
है जो आलबन और उद ् दीपन स े उपर उठकर मन ुय और क ृित को बड़े ही कलामक
ढंग से जोडती ह ै । कृित और जीवन का स ेष उनक किवता पानी क े सकरण ,
धूप,आज िफर श ु हआ जीवन आिद किवताओ म बहत ही स ुदर ढ ंग से तुत िकया
गया ह ै ।
झर-झर पड े अकास नीम
उजली लािलम मालती
गध क े डोरे डालती , मन मे दुबक ह ै हलास य परछाई ं
हो चोर क -, तेरी बाट अगो रते ये आँखे हई चकोर क ।"
शरणािथ यो के ित सव ेदना :- अेय क “शरणाथ ” शीषक किवताए ँ वतता क े
कुछ समय बाद भारत -पािकतान क े बीच हए य ु के दुण शरणाथ हए यि क द ुदशा
का अयत स ंवेदना प ूण व सजीवा ंकन करती ह ै। यु क िवभीिष का स े भािवत आम -
आदमी शरणाथ बन कर दर -दर क ठोकर खान े को मजब ूर है। गाँव या शहर कह भी
उनके रहने का िठकाना नह ह ै । ािह -ािह करत े ये शरणाथ क ैसे अपन े- आपको इन munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
26 खतरो स े बचाय इसी िचता म े िबना क े अपरिचत पथ पर बढ े जा रह े है । बूढ़े, बचे
सभी इस गभीर ासदी क े िशकार ह ै । िसर झ ुकाये ,पीठ पर गर लादे, गोद म बची
िलए, अपनी िमी स े दूर होन े क पीडा को सम ेटे इन शरणािथ य क िववशता का किव
भी मूक साझीदार ह |“
आधुिनक जीवन क म ूयहीनता :- वातयोर किवय ारा आध ुिनक जीवन क
मूयहीनता व सामािजक अत यतता को शद म े िपरोया गया ह ै । किव न े इितहास
के उन प ृो को खोला ह ै, िजन पर ताजमहल बनान े वाले के हाथ काट िलए जान े व
गुदिणा म े एकलय का अग ूठा मांग िलए जान े क कण कथा अ ंिकत ह ै । सामािजक
असमानता का ममा तक य तकालीन समाज म े अपन े को दोहरा रहा ह ै । आज का
ोण िकसी एक िशय क े अिधकार का हरण नह करता , वरन वह सप ूण समाज का
भला नह चाहता । जो पददिलत ह ै, उनके िलए पहल े तो वह क ुएँ खुदवाता ह ै तािक
अपनी छिव उनक े बीच बना सक े । िफर वही ोण च ुपके से उनके कुऐ म भाग डाल द ेता
है तािक वह अपन े िववेक से उिचतान ुिचत का िनण य न कर सक े । अपन े इस काय के
ारा ोण पददिलतो क े िववेक को खरीद ल ेता है, िफर तो य े पददिलत ग ु के इशार े पर
अपने ही समान अय पददिलतो क झोपिड़यो म आग लगान े मे सकोच नह करत े। किव
सांकेितक प से यह भी कहन े का यास िकया ह ै िक गरीब ही जब गरीब का द ुमन बन
जाये तो सामािजक िवषमताओ को क ैसे दूर िकया जा सकता ह ै । इस सदभ म कुछ
पंियाँ इस कार ह ै-
“मगर म ै जानता ह ँ िक म ेरे देश का समाजवाद ,
मालगोदाम म े लटक हई ,
उन बािटयो क तरह ह ै,
िजस प र आग िलखा ह ै और उसम े बालू और पानी भरा ह ै।”
तकालीन परव ेश मे यि क े तर का िनरतर िगरत े जाना व मानवीय म ूय का
िदखावटी प किव रघ ुवीर सहाय क म ूल-िचता ह ै। आज मन ुय इत ेमाल क वत ु
बनता जा रहा ह ै। सव बनावटी रागामकता िदखाई द े रही ह ै, िजससे आिमक पतन
होता जा रहा ह ै। वे अपनी किवता क े मायम स े सच े रागामक सबधो क थापना
करना चाहत े है भले इसक े केिलये संघष को आधार बनाना पड े। इस सदभ वे कहत े है
िक' किव का हर समय साथ क अिभान यही ह ै िक सघष का आधार नए मानवीय रते
क खोज होना चािहए और यह खोज जारी न रहन े पर व े परणाम िनकल सकत े है
िजनको आज हम द ेख रह े है- इितहास व परपरा क िवक ृित के ारा एक बनावटी
इितहास का िनमा ण और आन े वाली पीढी क ायोिजत अिशा। ” सचे रागामक
सबधी क खोज व थापना क े िलए किव का यह दाियव ह ै िक वह परपरा स े ा
मानव-मूयो को स ंजोकर रख े तािक नयी पीढी उसस े कुछ हण कर सक े। munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
27 २.३.९ किव का थान :
वातयोर काल जाित का काल था वत ंता क े साथ नय े िवचार , नये आयाम
समाज म ज रह े थे | इस नय े पन म किव क परभाषा भी बदल रही थी |अब क िवता
जनजाग ृित का और सामािजक काय भी कर रही थी | किव क ेदारनाथ अवाल
वैािनक , राजनीित , अथशाी व समाजशाी क े समक ही किव का थान
िनधारत करत े हए कहत े है िक िजस तरह स े ये िवशेष समाज म समयाओ ं का
समाधान अपन े ढंग से अपन े काये मे रहकर ढूंढते है उसी तरह किव भी। उनक े
अनुसार जो किव ऐसा नह करत े और आम िचतन म ही लीन रहत े है, वह अपन े को
समाज स े कटा हआ व अजनबी महस ूस करत े ह ।” शद क े इजाल क े मायम स े म
व भुलावे मे डुबाये रखन े वाली किवता , अतीिय लोक क स ैर करा ने वाली मौिलक
किवता भल े ही लग े, पर वह आमीय -वंचना क े अलावा और भी बहत उ ेय क प ूित
कर सकती ह ै |
किव का काय िसफ किवता ब ुनते रहे यह नही ह ै| इनका किवता ब ुनने का तरीका काफ
अलग था “वह पहल े िकसी किवता क े िवषय को ल ेकर कई िदन औरो स े बहस करता
और ख ुद भी सोचता रहता। उस िवषय पर जो भी स ूझता, उसमे से जो िलखन े योय
होता उस े िलख ल ेता और िफर उस े तरतीब द ेकर किवता क रचना कर डालता था |
किवता को िजदगी क जरत क े अनुप शदो म ढालना चाहत े थे। िजस समय नय े
किव किवता क े वाय स ंसार क वकालत करत े हए किव ता िवधा क सलामती क े िलए
िचितत िदखाई पडत े थे उस समय ध ूिमल का यह कहना था -
“किवता म जाने से पहल े
मै आपस े ही पूछता ह ँ
जब इसस े न चोली बन सकती ह ै न चगा ,
तब आप कहो -
इस सस ुरी किवता को
जंगल स े जनता तक
ढोने से या होगा ?”
२.४ वातयोर किवता म िशप िवधान
किवता क े िवषय म पहल े से ही दुराहो पर िवचार आकर िटक जाता ह ै |िक किवता का
भाव प महवप ूण है या कला प सभी िवान न े इस सदभ म अपन े अपन े िकोण
तुत िकय े है | किवता क ेवल कला नह ह ै वरन् िनजव प म े एक ऐसा सजीव िच है
जो मानव जीवन क सप ूण कथा कहता ह ै लेिकन किवता को आकिष त बनान े के िलए munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
28 उसके कला प को द ेखना अिनवाय है | यिक कला क ुशलता क े कारण ही किवता का
अितव सिदय तक रहता ह ै | वातयोर िहदी -किवता म े लोक -सवेदना क े िविवध
आयाम क अिभयि के िलए य ु मायम - भाषा, रस,अलंकार, लोक-बोिलयो म े
यु िविवध शद , लोक-जीवन स े गृहीत उपमान , तीक और िबब |लोक-धुन लोक-
चिलत कहावत े व मुहावरे |आिद क े ारा ल ेखनी को काय प दान होता ह ै |
२.४.१ भाषा :
वातयोर किवय न े लोक-जीवन क भाषा क े मायम स े उनक पीडा , उनके हास-
परहास , उलास -ेम आिद भाव को अयत भावशाली ढ ंग से अिभय िकया |
येक भाषा क े शदो क अपनी िवशेषता ह ै । य ेक शद का अपना िविश अथ होता
है, इसिलए क ुशल किव िजनक िथित को उपिथत करना चाहता ह ै, उसके िलए यह
आवयक ह ै िक उसक “बोिलयो !” का वह अपनी किवता म े योग कर े । इन सभी
किवयो न े इसका साथ क योग िकया ह ै |इन किवय न े लोकभाषा क े मायम स े सामाय
जन जीवन क स ंवेदनाओ को अित कुशलता स े अिभय िकया ह ै किव नागाज ुन क
मातृभाषा म ैिथली और िपत ृ-भाषा सक ृत है । इसक े अितर पािल, अध-मागधी ,
अपंश, िसधी , ितबती , मराठी , गुजराती , बंगाली, पजाबी , िसधी आिद भाषाओ क े
जानकार होन े के कारण नागाज ुन सभी भाषाओ को पढन े मे िच रखते है । इसिलए
इनक रचनाओ म े य-त सभी भाषाओ क े शदो का साथ क योग हआ ह ै किव न े
लोकभाषा क े मायम स े सामाय जन जीवन क स ंवेदनाओ को अित कुशलता स े
अिभय िकया ह ै |“यह उमत दश न” शीषक किवता म े लोकभाषा क े शद छौन े“” का
योग कर उहोन े दीनो क े ित अपनी सव ेदना और अयाय क े ित घ ृणा को अिभय
िकया है। वतुत 'छौना” शूकर के बचे को कहा जाता ह ै । लणाथ से सभी पश ु के बचो
को 'छौना” कहते है । धनपितयो पर कटा करत े हए व े कहत े है िक “कुबेर के छौने” क
शान-शौकत न े दीनो को ज ूठन चाटन े के िलए बाय कर िदया ह ै। िलोचन क किवताए ँ
लोकभाषा क े बीज स े अंकुरत होकर प ल िवत एव प ुिपत हई है । इनक भाषा पह ेली
नह ह ै वरन् सरल व सहज ह ै ।िलोचन म ूलत अवध े के ह। इसिलए इनक किवताओ
म अवधी भाषा का सुदर स ंयोजन ह ै । किव ध ूिमल न े िजस काय भाषा को अपनाया ,
वह समसामियक परथितयो स े सीधे सााकार से उपन हई थी । किव ध ूिमल
मूलतः िकसान थ े। अतः उनक भाषा िकसानी जीवन स ंकार क ही उपज ह ै। “इसी
िकसानी ि क े ारा ध ूिमल न े िहदी किवता को एक जीवतता दान क जो क ेवल
शद स े नह , बिक वाय -िवयास और बात -चीत का लबो -लहजा भी , मुिबोध
शोिषत क आम बोलचाल क भाषा क े ारा अपनी किवता को अयत भावशाली प
दान करत े है -
"म कनफटा ह ेठा हँ ।
शेलेट डॉज क े नीचे मै लेटा हं ।
तेिलया-िलबास म े पुरजे सुधारता ह ँ ।” munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
29 वातयोर सभी किवय न े सहज भािषक -संवेदना न े डर,अयाय ,अयाचा र, घृणा-
ेष, िहंसा और शोषण क े िव आवाज उठाकर अपनी किवता को अकाल म ृयु से
बचा िलया ह ै । इनक किवताओ ं क मािम क पीड़ा पर -य नह ह ै वरन् वानुभूत
य का परणाम ह ै ।
गेहँ-भुखमरी , कागज -हरी ाित , कालाधन -इवायरी , िघनौन े उकसाय े दंगे, गला फाड
लडती बोिलया ँ, नकली एकता , अछूत-योजना , आबादी , शरारती -आम िनण य, घेराव
और दुमन क दलाली आिद िवक ृती को द ेखा ही नह वरन ् उसको तपवी क भा ँित
सहा ह ै । और इन इ ंिय टकराहट स े जमी हई इनक किवताओ ं क भाषा व स ंवेदना
वायवीय जगत ् क नह वरन ् जमीन क यथाओ ं को बड े ममपश प तुत करती
है । नागाज ुन, धूिमल, केदारनाथ अवाल और िलोचन ऐस े किव ह ै िजनक भाषा सरल ,
सपाट और सहज ह ै । इनम े भी नागाज ुन ने मैिथली भाषा क े शद और िलोचन न े
अवधी भाषा म आम आदमी क स ंवेदनाओ को सजीव प म े तुत िकया ह ै ।
२.४.२ िबब :
वातयोर किवय क े काय म िबब योजना बड़ी सफलता क े साथ िकया गया है |
इससे पूव िबब का इतना प प काय म नही उतरा था | वातयोर किवय न े
िबबो व उपमानो क े मायम स े किवता को स ंवेदनशी लता को अितीय बना द ेते है ।
िलोचन क े िबब िवधान परपरावादी होत े हए भी नवीन कपनाओ क े रंगो से िचित
होने के कारण अपना िविश महव रखत े है “कबीर, सूर, तुलसी क परपरा क याद
िदलान े वाले उनके िबब कथन क े वाह म े वयम ेव िनिम त होत े चलत े है, आयासप ूवक
अलग स े थोपे गये नह लगत े है । किव ध ूिमल जीवन क े यथाथ से जुडी संवेदनाओ को
मूत प द ेने मे काय म े िबबो का सहजयोग हआ ह ै । उहोन े िबबो क कारीगरी पर
नह, उसक ास ंिगक अथवा पर िवश ेष यान िदया ह ै । अतः उनक े िबब रचना
िया के अंग के प म े िदखाई पडत े ह, न िक अलग स े कलामकता उपन करन े के
िलए जोड े गये लगत े है । काय-संवेदना स े गहराई स े जुडे ह ए य े िबब उनक शद
योजना क े तहत वत पफ ूत हए है । धूिमल क े िबब आम आदमी क रोजमरा क
िजदगी स े जुडे हए ह | एक उदा हरण द ेिखए -
"इक आदमी “रोटी ब ेलता ह ै,
एक आदमी रोटी खाता ह ै,
एक तीसरा आदमी भी ह ै
जो न रोटी ब ेलता ह ै, न खाता ह ै
वह िसफ रोटी स े खेलता ह ै
मै पूछता हं munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
30 यह तीसरा आदमी कौन ह ै
मेरे देश क स ंसद मौन ह ै ।”
वातयोर किवय क किवता म समय और परिथित जय योग द ेखने को िमलत े
है िजनका सबध तकालीन समय क प ूंजीवादी ूरता, शोिषत , दिलत , गरीब, आम
आदमी , औरत े, िकसान , मजदूर आिद सभी स ंगो म िबब -िवधान क े िविभ न प
एकदम नवीन ह - “बचा । ग ुमसुम है िनढाल है । कह तो क ुछ सकता नह »बुझी हई
आँख स े िसफ देखता ह ै । बीमार ह ै।”*“बीमार बचे का िबव उसक असहायता णता
और असमथ ता क िथित को ोितत करता है। माथ ुर जी ारा “मै व त के हँ सामन े”
संह क एक किवता म इहन े चाँदनी क े िबब ारा शासन -यवथा क चोरबाजारी क
ममभेदनी यजना क है और गाँव के बूढ़े िकसान क े मुख से कहलवाया ह ै-
“गॉव पर अब भी अ ंधेरा पाख ह ै
साठ बरसो म े न बदली चा ंदनी ।”-
इसी कार इनक े शद-िबब_ पश-िबब,_ प-िबब: रसिबब , > गध” आिद िबब
ने लोक जीवन क अतहीन पीडा को वातयोर किवय न े अिभय ंिजत िकया है ।
बी और िशखा ”“” शीषक किवता म किव न े अपनी लोक -सवेदना को तीक
के मायम स े अिभय ंिजत िकया ह ै।बी मजीिवय क ाणोसग क भावना को य
करती ह ै और िशखा प ूजीपितय क े वैभव क तीक ह ै ।
२.४.३ तीक :
किवता क े तीक अन ेक कार क े उन अथ को अिभयि द ेते ह िजसक सीमा
कालातीत होती ह ै । कुछ किव ऐस े भी ह जो तीक और उपमानो क े योग स े अपनी
किवता को म ु रखन े का यास करत े ह िकत ु अिधका ंश किव इह क े मायम स े
अपनी किवताओ ं को और धारदार बनान े का सफल यास कर ते ह । माथ ुर जी न े इनके
योगो म सचम ुच नवीनता ला दी ह ै । किव अ ेय बी और िशखा शीषक किवता म किव
ने अपनी लोक -सवेदना को तीक के मायम स े अिभय ंिजत िकया ह ै। बी मजीिवय
क ाणोसग क भावना को य करती ह ै और िशखा प ूजीपितय क े वैभव क तीक
है । किव िगरजा क ुमार माथ ुरजी न े अपन े कय को पाठक क े अततल तक पह ँचाने के
िलए कई कार क े- आग, बीज, रोशनी ,चाँदनी, िशव-धनुष आिद -तीक का योग कर
जीवन क े सयामक तय को य ंिजत िकया ह ै|
२.४.४ उपमान :
वातयोर किव अपन े िवचार स े भी वत ं थे उहन े ाचीनता को य का य
वीकारा नही ह ै और उसक अवह ेलना भी नह क |किव अ ेय ाचीन उपमान , को
िनरथक तो नह मानत े, िकतु उसस े बचे रहना भी उिचत नह समझत े । उहन े इस
सदभ म “कलगी बाजर े क” शीषक किवता म प िकया िक अगर म ाचीन उपमान
का सहारा नह ल ेता तो इसका “मतलब यह ह ै िक य े उपमान अपनी वातिवक चमक munotes.in

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वातयोर किवता संवेदना और िशप
31 खो च ुके ह, ठीक उसी रह से, िजस तरह बत न अिधक िघसन े से अपनी वातिवक
चमक या आभा खो द ेता है । अतः किवता को और अिधक भावी बनान े के िलए नय े
उपमानािद का च ुनाव कई अनुिचत नह ह ै | किव न े “सागर क लहर ” उपमान क े
मायम स े शोषको को भयाात ही नह िकया ह ै वरन शोिषतो को सफल ाित करन े
क ेरणा दान क ह ै ।
२.४.५ मुहावरे व लोकोि का योग :
मुहावरे िकसी बोली या भाषा म यु होन े वाला वह क ुतुहलपूण वाय खड ह ै जो
अपनी उपिथित स े समत वाय को सत ेज, रोचक और च ुत बना द ेता है। संसार क े
मनुय ने अपन े लोक -यवहार म िजन-िजन वत ुओं व िवचार को बड े कौतहल स े देखा
और समझा है | मुिबोध न े अपनी किवताओ म े मुहावर और लोकोियो का जीवन क
सॉस क े समान वाभािवक योग िकया ह ै ।जैसे- िसट्॒टी गुम हो जाना ,आँख मूंदकर
चलना , िजसका खाओ उसका गाओ आिद
रघुबीर सहाय न े "जैसा िकया व ैसा भरा ” के प म यु कर ख ुशीराम ज ैसे गरीब यि
पर िकय े जाने वाले अयाचार को बतात े हए शोषण -वादी शासन पर यंय िकया है ।
इहोन े “अपनी -अपनी ढपली अपना -अपना राग ” कहावत को “बेसुरे लोग”“के प म े ढाल
कर सदायवाद ,जो उनक ि म भारत क एकता का िववस ंक तव ह ै. पर
साघाितक हार िकया ह ै|इन सभी किवयो न े लोकजीवन म े या शदो , मुहावर ,
कहावतो , लोकोि य का आय िलया है। किव का कय भल े ही आम जीवन क यथा
कथा कहता हो , पर “मायम क जिटलता ” आम पाठक को आकिष त करन े म उसे सम
बनाती ह ै । इस बात को यान म रखते हए इन किवयो न े मायम क सरलता का िवश ेष
याल रखा ह ै । मैिथल, अवधी बुदेलखडी व ठ ेठ ामीण शद क छटा िबख ेरती व
मुहावर , कहावतो स े सुसिजत नागाज ुन, िलोचन , केदार व ध ूिमल क किवताय आम
पाठक को आकिष त करन े मे पूणतया सम ह ै ।
२.४.६ सारांश :
वातयोर किवय क किवताओ म े या लोक सवा गीण ि स े िविवध पो क
खोज क गयी ह ै। जीवन क म ूल-भूत आवयकताओ को न जुटा पान े वाले शोिषत ,
पीिडत , दिलत जन क स ंवेदना किव क स ंवेदना बनकर उनक किवताओ ं म समािहत
है। कह य े किव शोषक -पूँजीवादी राजनीितक सा का िवरोध कर शोिषत जन क े ित
अपनी स ंवेदना य करत े है, तो कही इन शोिषत -पीिडत जनो को जाितवाद ,
सादाियकता , अंधिवास धम गत िढयो म े आकठ ड ूबा देखकर उन पर आोश
य करत े है व इह े इसस े मुि के उपाय स ुझाते हए सघष -शि दान करत े है। आम -
जन क े जीवन का वह स ुखद-प भी किव क ल ेखनी स े किवताओ का स ृजन कराता ह ै,
िजसम े ये जन स ंकारगत रीित -रवाज े,परपराओ ,िवासो व क ृित के सुरय वातावरण
म गॉव क िमी क सोधी ख ुशबू मे डूबे हए जीवन का आनद ल ेते िदखाई पडत े है।
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वातंयोर िह ंदी सािहय
32 २.५ दीघरी
१. वातयोर किवय का काय सव ेदनामक था | समझाइए !
२. वातयो र क िवता समाज स ुधार क भावना स े ओत -ोत थी वण न
किजए |
३. वातयोर किवता क े भाव प और कला प को समझाइए |
२.६ लघुरीय
१. वातयोर किवता का ारभ िकस काय स ंह से माना जाता ह ै ?
उर - तारसक
२. वातयोर काल क े िकही दो किवय क े नाम िलिखए ?
उर - अेय ,मुिबोध
३. वातयोर काल म िकस यवथा का िवरोध एक ज ुट हो सभी किवय क े
काय म िदखाई िदया ?
उर - पूंजीवादी यवथा
४. वातयोर काल क े किवय न े नारी क े कौनस े प को अिधक माना ?
उर - यागशील
२.७ सदभ थ स ूिच
१. किवता क े नए ितमान -डॉ.नामवर िस ंह, राजकमल काशन , नई िदली
२. धूिमल और उनका काय - द ेव िम , राजकमल काशन , नई िदली
३. नागाज ुन अतर ंग और स ृजन - सं. मुरली मनोहर साद िस ंह, राजकमल काशन ,
नई िदली
४. समकालीन ल ेखन और आध ुिनक सव ेदना -कपना व मा, राजकमल काशन , नई
िदली
५. https://archive.org/stream/in.ernet.dli.2015.480791/2015.480791.Sw
atantryottar -Hindi_djvu.txt
 munotes.in

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33 ३
काय सौरभ किवता स ंह
याी (सिचदानद हीरान ंद वायायन 'अेय'
उनको णाम (नागाज ुन)
नया किव (िगरजा साद माथ ुर)
इकाई क पर ेखा :-
३.० इकाई का उ ेय
३ .१ तावना
३.२ याी (सिचदानद हीरान ंद वायायन 'अेय)'
३.२.१ 'अेय' किव परचय
३.२.२ याी किवता का भावाथ
३ .२.३ याी किवता स ंदभ सिहत पीकरण
३.३ उनको णाम (नागाज ुन)
३.३.१ नागाज ुन किव परचय
३.३.२ उनको णाम किवता का भावाथ
३.३.३ उनको णाम किवता स ंदभ सिहत पीकरण
३.४ नया किव (िगरजा साद माथ ुर)
३.४.१ िगरजा साद माथ ुर जीवन परचय
३.४.२ नया किव किवता का भावाथ
३.४.३ नया किव किवता स ंदभ सिहत पीकरण
३.५ बोध
३.६ वतुिन / लघुरीय


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वातंयोर िह ंदी सािहय
34 ३.० इकाई का उ ेय
इस इकाई म काय सौरभ (किवता स ंह ) क तीन किवता का अययन िकया जायगा
पहली किवता - याी सिचदानद हीरान ंद वायायन 'अेय' ,दूसरी किवता - उनको
णाम (नागाज ुन),तीसरी किवता - नया किव (िगरजा साद माथ ुर)
 याी ,उनको णाम और नया किव किवता का भावाथ समझ सक गे |
 उ तीनो किवता स े चुने हए अंश क याया कर सक गे |
 वतुिन और बोध क े उर िलख सक गे |
३.१ तावना
काय सौरभ (किवता स ंह ) वातयोर किवय क किवता का स ंह है | इस स ंह
म किवय क े िवचार और भावनाओ ं से ेरत किवताओ को थान िदया गया ह ै |जो
सामािजक म ु और पाठक क े मन पर सीधा भाव डालती ह ै | अेय, नागाज ुन और
िगरजा साद माथ ुर िहंदी सािहय क े अणी किव ह ै उनक किवता का अययन
िवतृत प स े करना िवािथ य के िलए अिनवाय है |
३.२ याी (सिचदानद हीरान ंद वायायन 'अेय'
३.२.१ सिचदान ंद हीरानद वायायन 'अेय' - किव परचय :
अेय जी का जम 07 माच 1911 को देवरया िजल े के कसया गा ँव म हआ | िशा -
दीा मास और लाहौर म हई बी एस. सी पास करन े के बाद एम . ए. अंेजी से करत े
समय ाितकारी आदोलन म कूद पढ़त े ह | इसी कारण कई साल ज ेल म िबतान े पड़े |
अेय योगवाद एव ं नई किवता को सािहय जगत म ितित करन े वाले किव, ह |
अेय बहम ुखी सािहयकार क े प म पहचान े जात े है | अेय ने सािहय क हर
िवधाओ ं जैसे - कहानी , किवता , उपयास , याा - वृात, िनबंध, नाटक , सािहियक
डायरी , आलोचना आिद हर े म अपना महवप ूण योगदान ह ै | उनक रचनाओ ं पर
ायड क िवचारधारा का भाव द ेखा जाता ह ै | सन 1964 म 'आँगन के पार ार क े
िलए उह सािहय अकादमी प ुरकार स े समािनत िकया जाता ह ै | 'िकतनी नाव म
िकतनी बार ' नामक काय स ंह के िलए सन 1978 म उह भारतीय ानपीठ प ुरकार
स समािनत िकया गया | 04 अैल 1978 को उनका िनधन हो गया |
कहानी - संह - िवपथगा , उपयास - शेखर : एक जीवनी , नदी क े ीप पर ंपरा,
शरणाथ , जयदोल | अपने - अपने अजनबी '
याा व ृतांत - अरे यायावर रह ेगा याद , एक ब ूंद सहसा उछली |
िनबंध संह : सबरंग, िशंकु, आमन ेपद, आलवाल | समरण - मृित लेखा | munotes.in

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काय सौरभ किवता स ंह
35 ३.२.२ किवता का भावाथ
अेय जी याी किवता क े मायम स े हम एक आमसजग याा पर जान े क सलाह द ेता
है | किव हम पारंपरक चिलत िविधय स े पूजा करन े से रोकता ह ै | यही नह वह सभी
धम क े लोग को भी उनक े धािम क थल पर भी जान े से मना करता ह ै | किव क े
अनुसार सभी धम , तीथ, देवता हमार े अदर ही या है, कुछ भी बाहर नह ह ै | सभी
कुछ हमार े ा - भाव स े ही अथ ा करता ह ै |
आगे किव बोिधसव का मत कट करत े हए कहता ह ै िक अपन े जीवन याा को ही तीथ
याा मान लो | जीवन पथ पर िनरतर आग े बढते चलो और जीवन क े अनुभव स े ान
ा करत े चलो | जीवन क इस याा म अपन े आप को बाहर स े अदर क े ान क
ओर चलत े रहो | और किव िफर बोिध क े वर को धीमा करत े हए कहत े ह िक मिदर या
तीथ का अितव मन ुय क भावना स े बना हआ ह | यिद म ंिदर का अितव ह ै, तो
वह मन ुय क ही गित स े ह | मनुय के कारण ही म ूित अथ ा करती ह ै | अथात मंिदर
या तीथ का महव मन ुय क चहल - पहल पर ही आधारत ह ै |
किव कहता ह ै िक इस जीवन क े हर पग - पग पर तीथ है, मंिदर ह ै | इस जीवन म िजतनी
हम परमा कर गे, िजतन े फेरे लेगे अथात जीवन म िजतना क ुछ अन ुभव स े हम िमल ेगा
और हर थान स े कुछ िमल ेगा | जीवन का हर े मिदर ज ैसा ही लग ेगा | ऐसी िथ ित
म हम वातव म िजतना भीतर स े र अपन े को करत े जाते ह उतना ही अिधक पान े के
अिधकारी होत े जाते है | किव इस किवता क े मायम स े कम े म आगे - बढ़ते रहन े
से ही हम जीवन क सची अन ुभूित िमल ती है | सबकुछ हमार े शरीर क े अदर ही ह ै |
हम कह बाहर जान े क जरत नह ह ै |
३.२.३ संदभ सिहत पीकरण
पग - पग पर तीथ ह,
मिदर भी ह ;
तू िजतनी कर े परकपा , िजतन े लोग फ ेरे
मिदर स े, तीथ से, याा स े
हर पग स े, हर सा ँस से
कुछ िमल ेगा, अवय िमल ेगा,
पर उतना ही िजतन े का त ू है अपन े भीतर स े दानी !"
संदभ : तुत पंयाँ हमार े पाठ्य - पुतक 'काय - सौरभ ' के 'याा' नामक किवता स े
ली गई ह ै, इसके किव अ ेय जी ह ै | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
36 संग : तुत पंिय क े मायम स े किव अ ेय जी यह बतान े क को िशश करत े ह िक
मनुय को तीथ या म ंिदर क े िलए कह बाहर जान े क आवयकता नह ह ै | सबकुछ
मनुय के अदर ही ह ै , िसफ उसे अपन े कम के े म आगे बढ़ते रहना चािहय े |
याया : तुत पंिय क े मायम म किव यह बताना चाहता ह ै िक हम बाहरी िद खावे
म न आकर मिदर , मिजद , चच नह जाना चािहए | किव लबी - लबी तीथ याा पर
भी जान े से रोकता ह ै | किव के अनुसार हम अपन े जीवन म कम को महव द ेना चािहए |
हमारे मन म दया, ेम, कणा , दान का भाव होना चािहए | हम अपन े जीवन याा को ही
एक तीथ याा मानकर चल तो हम हर कदम पर तीथ नजर आय गे | पग - पग पर अन ेक
मिदर िदख गे | इस जीवन याा म हम िजतना स ंघष, परम कर गे | हम हर ण क ुछ न
कुछ अवय सीखन को िमल ेगा यिद हम जीवन म बहत क ुछ पाना चाहत े है तो हम
भीतर स े भी उ तना र होना होगा | तभी जाकर हम जीवन क े हर े म मिदर या तीथ
जाने िजतना प ुय िमलता रह ेगा |
िवशेष :
(१) भाषा सरल - सहज - सारगिभ त है |
(२) किवता म जीवन म ूय को महव िदया गया ह ै |
(३) किवता म बाहरी आड ंबर से बचने क बात क गई ह ै |
३.३ उनको णाम (नागाज ुन)
३.३.१ नागाज ुन - किव परचय :
जनकिव नागाज ुन का जम सन 1911 म िबहार क े दरभंगा िजल े के तरौनी गा ँव म एक
साधारण क ृषक परवार म हआ | इनका वातिवक नाम व ैनाथ िमा था | परतु बौद
धम से भािवत होकर इहन े अपन े नाम क े आगे नागाज ुन रख िलया | लोग समान स े
'बाबा' कहकर सबोिधत करत े थे | इनक आर ंिभक िशा थानीय पाठशाला म हई और
उच िशा काशी और कलका म पुरी होती ह | उहन े िहदी क े अलावा म ैिथली,
गुजराती और स ंकृत म भी अन ेक रचनाए ँ क है | किवता क े साथ - साथ नागाज ुन
सािहय क अय िवधाओ ं जैसे उपया स, आलोचना , बालसािहय , कहानी आिद हर
े म अपना महवप ूण योगदान िदया ह ै |
िहदी सािहय क े े म अपनी िविश गितशील च ेतना क े कारण नागाज ुन को जन -
जन का किव भी कहा जाता ह ै | सन 1961 म 'पहीन नन गाछ ' रचना क े िलए इह
मैिथली भाषा क े िलए सािहय अकादमी प ुरकार ा हआ | इह 1988 म मैिथलीशरण
गु समान और भारत - भारतीय प ुरकार स े समािनत िकया जाता ह ै | सन 1998 म
इनका िनधन हो गया |
इनके मुख काय स ंह ह - 'युग धारा', 'सतरंगे पंखोवाली; 'यासी पथराई आ ँखे', 'खून
और शोल े', 'ेत का बयान ', 'तालाब क गछिलया ँ', 'तुमने कहा था ' आिद ह | मुख munotes.in

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काय सौरभ किवता स ंह
37 उपयास म 'रितनाथ क चाची ', 'बलचनमा ', 'नई पौध ', बाबा बह ेसरनाथ 'वण क े बहे' ,
'इमरितया ', जमिनया क े बाबा आिद ह कुछ मुख बाल सािहय भी इहन े ि लखा था
जैसे - 'सयानी कोयल ', 'तीन अहवी ', 'ेमचद ' 'अयोया का राजा ', धीर िवम
आिद |
३.३.२ किवता का भावाथ :
तुत किवता क े मायम स े किव नागाज ुन ने उन तमाम असफल यिय को णाम
करता ह ै जो लगातार पर म करक े भी अपन े लय तक नह पह ँच पाय े | संसार म
हमेशा सफल यिय का मिहमा म ंडन िकया जाता ह ै, लेिकन जनकिव नागाज ुन उन
असफल यिय महव िदया ह ै जो िकसी कारण व ंश जीवन म सफल होन े से चूक जात े
ह | किव ऐस े लोग का उदाहरण द ेता है िजनक े मं से फूँके हए तीर गलत िनशा न पर
लगने के कारण य ु समाी स े पहल े ही उनक े बाण खम हो गय े | किव ऐस े लोग को
णाम करता ह ै जो परम और लगन क े साथ हम ेशा डट रहे भले ही कुछ परीिथितय
के कारणव श सफल न हो सक | कुछ ऐस े साहसी , परामी , लगनशील यि भी हए
िजहन े छोटी सी नाव ल ेकर िवशाल , समु को पार करन े क चेा करत े हए सफल भल े
नह हए | किव उन क िहमत क श ंसा करत े हए उनको भी णाम त ुत करता ह ै |
कुछ लोग सीिमत साधन स े ही उच िशखर पर चढ़न े चले गए या बफ म मर-गल गए या
िबना प ुरा चढ़ े असफल होक र वापस आ गए | किव उनक े ारा िकए गय े साहिसक काय
को णाम करता ह ै | साथ ही किव ऐस े लोग को भी णाम करता ह ै िजहन े एकाक
और अिक ंचन होकर प ुरी पृवी क परमा पर िनकल े, लेिकन राह म पंगु हो गए |
किव उह भी णाम करता ह ै िजहन े देश क वतंता प ूण करन े से पहल े ही उह े
फाँसी दे दी गयी | िजनक े बिलदान को द ुिनया भ ूल गयी ह ै | िजनक साधना उ थी ,
लेिकन िजनका असमय द ेहात हो जाता ह ै | जीवन क े शीष पर पह ँचने से पहल े ही
उनका अत हो जाता ह ै | जो ढ़ इछा शि , अदय साहस , याग क े मूित के, मगर
असमय अ ंत ने उह सफल नह होन े िदया | किव उह भी णाम करता ह ै, किव उह
भी याद करता ह ै िजहन े काम तो बहत िकया ल ेिकन चार - सार स े दूर रह |
इस किवता क े मायम स े किव उन साधारण जन को महव द ेता है, िजहन े िबना िकसी
बड़ी सफल ता के बहत साधारण जीवन जीत े रहते है | इस तरह क े लोग न े सीिमत
साधन क े बल पर गहन यास कर ते रह, लोग का यह मानना था क व े बहत बड़ी -
बड़ी सफलता ह ँ जीवन म ा करगे | लेिकन िवपरीत परिथ ितयॉ म कुछ करन े से
पहले ही चल े गए | ऐसे लोग क े इराद े, साहस लोग क े िलए ेरणा बनती थी , मगर क ुछ
िववशताओ ं और ितक ुल परिथितय न े उनके महान इराद का अत कर िदया | किव
नागाज ुन ऐस े सभी लोग को णाम त ुत करत े हए उनक े काय को याद रखन े क बात
करते है |

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वातंयोर िह ंदी सािहय
38 ३.३.३ संदभासिहत पीकरण :
िजनक स ेवाएँ अतुलनीय -------- उनको णाम !
संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक 'काय-सौरभ क े 'उनको णाम ' नामक
किवता स े ली गई ह ै | इसके रचनाकार नागाज ुन जी ह |
संग : इस किवता क े मायम स े किव नागाज ुन उन सभी लोग को याद रखन े क बात
करते ह िजहन े अपन े पके इराद े और साहस क े बल पर अपन े कमे म आगे बढ़े,
मगर िकसी कारणव श सफल न हो सक |
याया : तुत किवता म किव नागाज ुन ने यह बतान े क कोिशश क ह ै िक आज हम
उह को याद करत े ह जो अपन े जीवन म सफल र ह | असफल यि \ को कोई याद
नह रखता | हम उनक े ढ़इछा शि , अदम साहस , याग और बिलदान को भ ूल
जाते ह | माना िक ितक ूल परिथितय क े कारण सफल न हो सक | इसका मतलब
यह नह िक हम उनक अत ुलनीय स ेवा ओ ं को भ ूल जाए ँ, िजसका उहोन े कभी चार -
सार नह िकया | उहन े अपन े ारा िकय े गए काय का कभी मिहमा म ंडन िकया | कुछ
िवपरीत परिथितय न े उह सफल नह होन े िदया | उनके मनोरथ च ूर-चूर होत े गए |
किव ऐस े लोग को णाम करता ह ै |
िवशेष :
(१) भाषा सहज और सरल ह ै |
(२) किव असफल यिय ारा िकय े गए यास को महव द ेता है |
(३) संकृत शद का भी योग हआ ह ै |
३.४ नया किव - िगरजाक ुमार माथ ुर
३.४.१ िगरजाक ुमार माथ ुर - किव परचय :
िगरजाक ुमार माथ ुर का जम २२ अगत 1919 को गुण िजला , मय द ेश म ह आ
था | ारंिभक िशा घ र पर ही प ूरी होती ह ै | उनके िपता द ेवी चरण माथ ुर कूल
अयापक थ े | उहन े ही िगरजाक ुमार को अ ंेजी, इितहास , भूगोल और स ंगीत क
िशा घर पर ही दी थी | 1936 म थानीय कॉल ेज से इंटरमीिड एट करक े वािलयर स े
नातक प ुरा करत े ह | 1941 म लखनऊ िविवालय स े एम. ए. और वकालत क
परीा पास क | इसके बाद काफ समय तक आकाशवाणी म काम करत े ह | इनक
किवता म रंग, प, रस, भाव, िवषय तथा िशप क े नए - नए योग द ेखने को िमलता ह ै,
1941 म कािशत िनरालाजी न े वयं िलखा था |
सन 1943 म अेय जी ारा स ंपािदत एव ं कािशत 'तारसक ' के सात किवय म से
एक थ े | िगरजाक ुमार न े किवता क े साथ - साथ सािहय क अय िवधाओ ं जैसे munotes.in

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काय सौरभ किवता स ंह
39 एकांक, नाटक , आलोचना , गीित-काय तथा शाीय िवषय आिद हर ेो म अपना
महवप ूण योगदान िदया ह ै | उनका िलखा हआ सम ूह गान 'हम हग े कामयाब' काफ
लोकिय हआ | सन 1991 म किवता स ंह म य क े हँ सामन े' के िलए िह ंदी सािहय
अकादमी प ुरकार स े समािनत िकया जाता ह ै तो 1993 म के. के. िबरला फाउ ंडेशन
ारा िदया जान ेवाला ितित यास समान दान िकया गया | उह शलाका समान
से भी समािनत िकया जा च ुका ह | सन 1994 म इनका िनधन हो गया |
इनके मुख काय स ंह है : मंजीर नाश और िनमा ण, धूप के धान, िशलाप ंख चमकल े,
जो बंध नह सका , साी रह े वतमान, भीतरी नदी क याा , म व क े हँ सामन े आिद |
इसके अलावा इहन े कहानी , नाटक तथा अलोचनाए ँ भी िलखी ह ै |
३.४.२ किवता का भावाथ :
तुत किवता क े मायम म किव िगरजाक ुमार माथ ुर ने एक किव को िकस कार नए
जोश, उसाह क े सय क े ितब रहना चािहए ; साथ ही किव पुरानी िढ़या , दोहरे
मानदंडवाली अन ुभूितय को च ुनौती द ेता है | किव का मानना ह ै िक मानिसक उलझन ,
संकण बोध तथा िक ंकतयिवम ूढ़ िववेक एक क े कारण जो ब ूढ़ी हो च ुक परपराओ ं के
कारण उपन हई ह ै | ऐसी िथती म किव उन लोग को एक नया रता िद खाने क बात
करता ह ै | किव अपन े आपको अिनवज क तरह मानता ह ै, िक वह समाज म फैले
अंधकार को समा करन े का साहस रखता ह ै,
किव अपन े समय क तरफ इशारा करत े हए वह कहता ह ै िक अब क े समय म समझौता
जीवन क अिनवाय ता बन गया ह ै | लेिकन किव इस समझौत े को अवीकार करत े हए,
न झुकने क कसम खाता ह ै | किव उस समय सािहियक स ंगठन म चलन ेवाली बहस
के पुरानेपन, यि तथा सम ूह के सैदाितक िववाद पर चलन ेवाली र ंिजश,
आमिवापन तथा माग के बीच चलन ेवाली चालिकयॉ से किव भी तािढ़त ह ै | किव इन
सब को खोखला कहता ह ै और वह अपन े ढंग से नये का उर नय े ढंग से देना
चाहता ह ै | वह लोक से सबसे अलग होकर चलना चाहता ह ै | उसका सबस े अलग
चलना लोग को अपराध लगता ह ै, िजसक े कारण उस े परेशान िकया जाता ह ै ,
आधुिनक सािहियक तथा सामािजक परय म या स ुिवधापरती , चालाक लोग ,
अपनी समझदारी स े सय क सचाई को िछपात े है और क े उर स े भाग जात े ह |
हर कोई सचाई म िजस म ूय और न ैितकाओ ं क बात क जाती ह ै, वे सब सोची -
समझीचालाक होत े है, झूठ ह आडबर क े मायम स े हर समान , पुरकार ा िकया
जा सकता ह ै | मगर सच उजागर करन े क िहमत िकसी क नह ह ै | किव ऐस े लोग को
िनशाना बना ते हए वह कहता ह ै िक म ेरे भीतर को उपलिध सय और सहज क ह ै, अंतः
वह न चाहत े हए भी इस तरह क े वातावरण को तोड़न े को िववश ह ै | वह अपन े बड़े लोग
ारा बनाये गए, इस धन ुष को तोड़ना मज बूरी है | किव नए िवचार क े साथ अित
संवेदनशील भी ह ै, अंतः वह अंेजो माया चना करत े हए यह कहता िक उनका धन ुष
तोड़ना म ेरा उ ेय नह ह ै | यह काय मुझे िविवशता म करना पड़ रहा ह यिक यही य ुग
धम है | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
40 ३.४ .३ संदभासिहत पीकरण :
सब िछपात े सचा ई ----------- तोड़न े को म िववश हँ |
संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक काय -सौरभ क े 'नया किव ' नामक किवता
से ली गई ह ै | इसके रचनाकार िगरजाक ुमार माथ ुर है |
संग : इस किवता क े मायम स े किव िगरजाक ुमार माथ ुर जी उन सभी को आड़ े हाथ
िलया ह ै जो आज क े समय म सुिवधापरत लोग , चालाक लोग अपन े झूठ तथा
आडबर का सहारा ल ेकर सय को िछपान े का हर स ंभव यास करत े ह |
याया : तुत किवता म किव माथ ुर जी यह बतान े क कोिशश करत े है िक कैसे लोग
अपने झूठ तथा आडबर का सहारा ल ेकर सचाई स े मुख मोड़ ल ेते ह | उह
सुिवधापरती का आदत सी हो गई ह | उह हर िता , समान और प ुरकार स ुलभता
से िमल जाता ह ै यिक व े असिलयत को जानत े हए भी सचाई सामना नह कर पात े ह
| उहन े समझौता कर रखा ह ै िक व े सही का उर नह द गे | किव ऐस े लोग को
िनशाना बनात े हए कहता ह ै िक म ेरे अदर उपलिध सहज और सय क ह ै, अतः वह
उन लोग क े साथ वह नह जा सकता ह ै | वह न चाहत े हए भी उस े उनके ारा बनाय े गए
धनुषीय वातावरण को तोड़न े को िववश ह ै | साथ अित स ंवेदनशीलता क े साथ
मायाचना भी करता ह ै |
िवशेष :
(१) भाषा सरल सहज ह ै |
(२) किवता म किव प ुरानी िढ़वादी क जगह नवीनता को बढ़ावा द ेता है |
(३) किव सचाई क े प म खड़ा ह ै |
सारांश :-
इस अयाय म िवािथ य ने 'याी','उनको णाम ' और 'नया किव ' किवता का अययन
िकया ह ै इस ययन स े िवाथ किवय का जीवन परचय ,किवता का भावाथ और
किवता क क ुछ पंिय क सदभ सिहत याया का अययन िकया ह ै |आशा ह ै उ
सभी म ु से िवाथ अवगत हए हग े |
३.५ बोध
याी किवता -
. (१) 'याी' किवता का सारा ंश अपन े शद म िलिखए |
. (२) 'याी' किवता का क ेीय भाव िलिखए |
. (३) 'याी' किवता क े मायम स े किव या कहना चाहत े ह, सोदाहरण िलिखए | munotes.in

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काय सौरभ किवता स ंह
41 . (४) 'याी' किवता का उ ेय िलिखए |
उनको णाम किवता -
. (१) 'उनको णाम : किवता का सारा ंश अपन े शद म िलिखए |
. (२) 'उनको णाम ' किवता का क ेीय भाव िलिखए |
. (३) 'उनको णाम ' किवता क े माय म से किव या कहना चाहत े ह, इसे सोदाहरण
िलिखए |
. (४) 'उनको णाम ' किवता का उ ेय िलिखए |
'नया किव ' किवता -
(१) 'नया किव ' किवता का उ ेय अपन े शद म िलिखए |
(२) 'नया किव ' किवता का क ेीय भाव िलिखए |
(३) 'नया किव ' किवता क स ंवेदना को अपन े शद म िलिखए |
(४) 'नया किव ' किवता क े मायम स े किव या स ंदेश देना चाहता है ? अपने शद म
िलिखए |
३.६ अित लघ ुरी
याी किवता -
(१) 'याी' किवता क े किव कौन ह ै ?
उ. अेय जी |
(१) 'याी' किवता म बु कहा ँ जाने म रोकता ह ै ?
उ. मिदर
(२) 'याी' किवता म पग - पग पर या ह ै |
उ. पग-पग पर तीथ है |
(४) 'याी' किवता म बोिधसव िकस तरह क याा को मा ँगने को कहता ह ै ?
उ. लबी याा |
(५) 'याी' किवता म िकसक गित मिदर क प ूजा म चढ़ती ह ै ?
उ. मनुय क गित munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
42 (६) मनुय को जीवन याा म िकतना ही िमलता ह ै ?
उ. िजतना वह भीतर स े दानी होता ह ै |
(७) 'याी' किवता म िकसक अथ वा मनुय के उपिथत रहन े से बढ़ जाती ह ै ?
उ. मंिदर क म ूित क |
(८) 'याी' किवता म हर पल , हर सा ँस म या िमल ेगा ?
उ. जीवन क े े कुछ नया सीखन े को अवय िमल ेगा |
उनको णाम किवता -
. (१) 'उनको णाम ' किवता क े किव कौन ह ै ?
उ. नागाज ुन |
. (२) 'उनको णाम ' किवता म िकसे संबोिधत िकया गया ह ै |
उ. असफल यिय को |
. (३) उनको णाम किवता म किव िकसे णाम करता ह ै ?
उ. जो जीवन क े े म संघष करते हए असफल हो जात े ह |
. (४) किवता म छोटी - सी नाव ल ेकर या पार करन े क बात कह गई ह ै ?
उ. समु को पार करन े क बात कही गयी ह ै |
. (५) दुिनया िकस े भूल जाती ह ै ?
उ. असफल यिय ारा िकय े गए काय को |
. (६) लोग कहा ँ से असफल हो कर नीचे उतर आत े ह ?
उ. उचे िशखर स े |
. (७) हम िकनक अत ुलनीय स ेवाओं को भ ूल जाते ह ?
उ. जो यि अपन े ारा िकय े गए काय का िवापन नह करता ह ै |
. (८) नागाज ुन जी का वातिवक नाम या ह ै ?
उ. वैनाथ िम |
. (९) नागाज ुन जी जम कहा ँ हआ था ?
उ. िबहार क े दरभंगा िजल े म | munotes.in

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काय सौरभ किवता स ंह
43 . (१०) किवता म िहम - समािध कौन ल े लेता है ?
उ. जो उच े िशखर पर चढ़न े क चाहत ल ेकर उसाह क े साथ चढ़ाई करत े है |
'नया किव ' किवता -
(१) 'नया किव ' के रचनाकार कौन ह ै ?
उ. िगरजाक ुमार माथ ुर |
(२) किव अ ंधेरी रात म अपने आप को या बताता ह ै ?
उ. अिनवज
(३) आज क े समय म जीवन म या अिनवाय हो गया ह ै ?
उ. समझौता |
(४) 'नया किव ' किवता म किव जब य ुग के पास कोई उपाय नह रहता ह ै, तो िकस
तरफ कदम बढ़ान े क बात करता ह ै ?
उ. अछुती मंिजल को ओर !
(५) 'नया किव ' किवता म किव सभी क े सभी उर को या कहता ह ै ?
उ. पुराने खोखल े कहता ह ै |
(६) 'नया किव ' किवता म आजकल क े यि और सम ूहवाल े िकस खजान े के चकर
म पड़ गय े है ?
उ. आमिवािपत खजान े के चकर म |
(७) 'नया किव ' किवता म सभी या िछपा रह े है ?
उ. सचाई |
(८) सुिवधाप रत लोग का उर क ैसे देते है ?
उ. िबना उर िदए भाग जात े ह |
(९) 'नया किव ' किवता म किव या करन े को िववश होता ह ै |
उ. अज क शभ ू धनुष तोड़न े पर िववश होता ह ै |
(१०) िगरजाक ुमार माथ ुर का जम कहा ँ हआ था ?
उ. मय द ेश के गुना िजल े म |
 munotes.in

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44 ४
काय सौरभ (किवता स ंह )
मय ु गाथा (धमवीर भारती )
इस तरह तो (बाल वप 'राही')
पानी म िघरे हए लोग (केदारनाथ िस ंह)
इकाई क पर ेखा :
४.० इकाई का उ ेय
४.१ तावना
४.२ किवता - मय ु गाथा (धमवीर भारती )
४.२.१ धम वीर भारती का किव परचय
४.२.२ मय ु गाथा किवता का भावाथ
४.२.३ मय ु गाथा किवता स ंदभ सिहत पीकरण
४.३ इस तरह तो (बाल वप 'राही')
४.३.१ बाल वप 'राही' किव परचय
४.३.२ 'इस तरह तो ' किवता का भावाथ
४.३.३ 'इस तरह तो ' किवता स ंदभ सिहत पीकरण
४.४ 'पानी म िघरे हए लोग ' (केदारनाथ िस ंह)
४.४.१ केदारनाथ िस ंह किव परचय
४.४.२ 'पानी म िघरे हए लोग ' किवता का भावाथ
४.४.३ 'पानी म िघरे हए लोग ' किवता स ंदभ सिहत पीकरण
४.५ सारांश
४.६ बोध
४.७ वतुिन / लघुरीय
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काय सौरभ (किवता स ंह )
45 ४.० इकाई का उ ेय
इस इकाई म काय सौरभ (किवता स ंह ) क तीन इकाइय का अययन िकया जायगा
पहली किवता - मय ु गाथा (धमवीर भारती ),दूसरी किवता 'इस तरह तो ' (बाल
वप 'राही'), तीसरी किवता 'पानी म िघरे हए लोग ' (केदारनाथ िस ंह) ) | िवाथ
तीनो किवता क े किव का जीवन परचय स े अवगत हग े | साथ ही -
* मय ु गाथा , 'इस तरह तो ' और 'पानी म िघरे हए लोग ' किवता का भावाथ समझ
सकगे |
 उ तीनो किवता स े चुने हए अ ंश क याया कर सक गे |
 वतुिन और बोध क े उर िलख सक गे |
४.१ तावना
काय सौरभ (किवता स ंह ) वातयोर किवय क किवता का स ंह है | इस स ंह
म किवय क े िवचार और भावनाओ ं से ेरत किवताओ को थान िदया गया ह ै |जो
सामािजक म ु और पाठक क े मन पर सीधा भाव डालती ह ै | अेय, नागाज ुन और
िगरजा साद माथ ुर िहंदी सािहय क े अणी किव ह ै उनक किवता का अययन
िवतृत प स े करना िवािथ य के िलए अिनवाय है |
४.२ किवता - मय ु गाथा (धमवीर भारती )
४ .२.१ धमवीर भारती किव परचय :
धमवीर भारती का जम 25 िदसबर 1926 को इलाहाबाद (उ. .) म हआ था | इनक
िशा - दीा इलाहाबाद स े ही होती ह ै | याग िविवदयालय स े एम. ए. और पी -एच.
डी. क उपािध ल ेकर उसी िविवालय म कुछ िदन अयापन भी करत े है सन 1956 म
धमयुग के सपादन का भार ल ेकर म ुंबई चल े गए | 1997 म 'धमयुग' से अवकाश हण
िकया |
धमवीर भारती का क ृितव बह आयामी ह ै | वे किव, कथाकार , उपयास और नाट ्य -
िशपी क े साथ - साथ एक सफल िनब ंधकार भी ह | उनक ि म वतमान को स ुधारने
और भिवय को स ुखमय बनान े के िलए आम जनता क े दु:ख दद को समझान े और उस े
दूर करन े क आवयक ता है | दुख क बात तो यह ह ै िक आज 'जनतं' शिशाली लोग
के हाथ म चला गया और 'जन' परवाह िकसी को नह ह ै | भारती जी अपनी रचनाओ ं के
मायम स े इसी 'जन' क आशाओ ं, आका ंाओ ं, िववशताओ ं, क क अिभयि द ेने
का यास करते है |
भारती जी को काय े म 'ठठालोहा ', सात गीत वष , कनुिया, 'सपना अभी भी ' आिद
को िवश ेष याित िमली ह ै | काय नाटक 'अंधा युग' िहंदी सािहय क अम ुय िनिध ह ै | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
46 इनके मुख उपयास 'गुनाहो का द ेवता' और 'सूरज का सातवा ँ घोड़ा बहत िस ह |
1972 म भारती जी पदमी समान से अलंकृत िकया गया था | 1994 म उह महारा
गौरव समान स े महारा सरकार समािनत करती ह | 04 िसतबर 1997 म इनका
िनधन हो जाता ह ै |
४.२.२ किवता का भावाथ
तुत किवता क े मायम स े किव धम वीर भारती जी यह कहना चाहत े है िक जो यि
अपने अदम साहस स े लीक स े हटकर समाज क े िव जाकर समाज क े िलए कोई बडा
काय करता ह ै, तो वही समाज उस े दंड देता है | समाज क े लोग उसक े िकये गये काय
का फायदा भी उठात े है और उस े दंड पात े देखकर आनिदत भी होत े ह |
'मय ुगाथा' किवता य ुनानी प ुराण - पुष पर आ धारत एक य ुनानी प ुराण - पुष पर
आधारत एक य ुनानी कथा को आधार बनाकर िलखी गई ह ै | युनानी कथा एक प
ोमीिथयस ह ै जो स ृि के आरभ म पहली बार वग से जुिपटर क े महल स े अिन च ुरा
कर लाया था | जुिपटर क े महल स े अिन च ुरा लान े के कारण उस े दंडवप एक िश ला
से बाँध कर एक िग को उसक े दय िप ंड को खात े रहने के िलए त ैनात कर िदया जाता
है | समाज क े लोग उस े दंडपात े कौतूहल और आनद स े देखते रहते ह | किव धम वीर
भारती न े ीमीिथयस को मय ु और ज ुिपटर को घ ुिपतर नाम द ेकर किवता क कथा
वतु का आरंभ िकया है | इसके बाद मय ु घुिपतर, जनसाधारण , अिन और िगदध क े
बायानो स े किवता आग े बढ़ती ह ै |
मय ु पृवी का घना अ ँधेरा दूर करन े के िलए घ ुिपतर क े महल स े अिन चुरा लान े क
िहमत करता ह ै | वह वीकार करता ह ै िक म ने समाज क भलाई क े िलए पहली बार
साहस िदखाया | घुिपतर उस े आग च ुराने के कारण द ंड वप एक िशला म बँधवाकर
एक नरभी ब ूढ़े िगदध को उसका भोजन बनाकर छोड़ द ेता है | िग उसक े दय िप ंड
को खाता रहता ह ै और दय वापस प ुरा होता रहता ह ै, इस तरह मय ु लगातार पीड़ा
सहता रहता ह ै |
घुिपतर को मय ु के इस साहस प ूण काय पर बड़ा आय होता ह ै | वह कहता ह ै िक
मने मनुय का जो नशा बनाया था , उसम दासता , िवनय, कायरता , भय आत ंक और
अानता थी | मगर मय ु ने इस कार द ुसाहस क ैसे िकया | अंतः इस े ऐसा द ंड देना
होगा िक भिवय म िफर स े कोई इस कार का साहस न कर सक | वह जन - साधारण
मय ु के िकये गये साहसी काय क गलत मानत े है, पर उसक े ारा लाई गई अिन का
योग कर रह े ह | जन - साधारण लोग तमाशाबीन होकर कौत ूहल और आनद क े साथ
मय ु को सजा देते देख रह े है |
िगदध मय ु क उपलिध के महव को समझता है | वह मय ु के ारा अिन धरती
पर लान े का महान काय मानता ह ै | धरती पर अँिधयारा कैसे समा हो , इस बात क
िचता िगदध को भी थी | वह कहता ह ै िक उसक े पास ऊ ँची उड़ान के िलए प ंख भी थ े
और उसने अिन को द ेखा भी था , मगर उसक े पास मय ु जैसे साहस नह था | िगदध munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
47 कहता ह ै िक द ेखो िवधी का िवधान , आज त ुम मेरे िय होत े हए भी त ुह मेरा भोजन बना
िदया गया ह ै | वह मय ु को समझाता ह ै िक यिद त ुम इस कार समाज का भला करत े
हो तो त ुह इस कार क े क उठान े होगे, अपने मन को म ैला मत करो | सब क ुछ सहत े
हए, माथे पर िश कन मत आन े दो |
किव न े साधारण जनता क कायरता और नीचता का भी वण न िकया ह ै | साधारण जन
को आग क आवयकता थी , वे उसका उपयोग भी करत े है | लेिकन ज ब मय ु को द ंड
िमलता ह ै तो वह जनता कहन े लगती ह िक आग लान े के िलए हमन े तो नह कहा था ,
लेिकन जब अिन आ गई ह ै तो हम ल ेने से मना भी नह कर रह े ह | उनके अदर साहस
नह ह ै िक व े मय ु के समथ न ने आगे आये | वे तो िसफ तमाशा द ेखने आये ह | किव
यह बात प करता ह ै िक अगर व े चाहत े तो उनम से कोई मय ु क तरह साहस करक े
अिन ला सकता था | लेिकन िक सी ने ऐसी िहमत नह क | लोकनीित स े हटकर
समाज म कोई नया काम करन ेवाले के ितलोग का रव ैये इसी कार क े होते ह |
४.२.३ संदभ सिहत पीकरण
"मुझसे से, सुबह - शाम च ुहा स ुलगाए ँगे | ---------
मुझको य माथ े से लगाकर , िफर फ क िदया इन कायर क े बीच
संदभ : तुत पंिया हमार े पाठ्य पुतक 'काय - सौरभ ' के 'मय ु गाथा ' किवता स े
ली गई ह | इसके रचनाकार किव धम वीर भारती ह ै |
संग : जब अिन को घ ुिपतर क े महल स े चुराकर मय ु आम जनता क े बीच बा ँट देता
है | और मय ु को द ंडवप िशला म बाँध कर िग का भोजन बना िदया जाता ह ै |
साधारण जन म से कोई इसक े िवरोध क ुछ नह बोलता , बिक उस े दंड पात े देखकर
आनिदत होत े ह | इस स ंग म अिन यह बात कहती ह ै |
याया : तुत किवता क े मायम स े किव यह बताना चाहत े ह िक जो यि लीक से
हटकर , साहस करक े, समाज क े िलए क ुछ करता ह ै, समाज ही उस े दंिडत होत े देख
आनिदत होता ह ै | यहाँ पर अिन घ ुिपतर क े महल म कैद थी, उसे मय ु ने साहस
करके मु कराया , उसे समान स े अपने माथे पर लगा या | िकतु मय ु ने लोग क
भलाई क े िलए जनता म बाँट िदया | जनता उसी अिन का योग अपन े खाना - बनाने
म, आभूषण त ैयार करन े म करती ह ै | और नह तो और ईया के कारण लोग का घर
जलान े म भी अिन का योग करत े ह अिन को लगता ह ै िक उस े गलत हाथ म सौप
िदया गया ह ै | ये सभी कायर ह ै यिक जब मयु को द ंड िदया जा रहा था तो
आमजनता समथ न म न आकर तमाशाबीन बनी थी | इस बात का द ु:ख अिन को ह ै |
िवशेष
(१) भाषा सरल - सहज ह ै |
(२) यह किवता आमजनता पर कटा या य ंय का उदाहरण ह ै |
(३) लीक स े हटकर काम करन ेवाल क े ित लोग क सोच नकारामक ही होती ह ै | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
48 ४.३ इस तरह तो (बाल वप 'राही')
४.३.१ बालवप 'राही' - किव परचय :
बालवप 'राही' का जम 16 मई 1936 को िदली म हआ था | बालवप 'राही'
िहंदी किव और गीतकार ह ै | उहन े िहदी िफम क े िलए कई गीत िलख े है | उहन े
िहदी सािहय म नात कोर करन े के िदली िविवदयालय म िहंदी िवभाग क े मुख
के प म काम िकया ह ै | सािहियक ल ेखन क े साथ - साथ द ूरदशन पर कई व ृिच
का िनमा ण भी िकया ह ै | किवता , लेख, यंय रचनाए ँ, िनयंित त ंभ, सपादन और
अनुवाद क े काय भी िकया ह ै | िफम म कई पटकथा भी िलख े है |
मुख रचनाए ँ : गीत स ंह - मेरा प त ुहारा दप ण', जो िनतात म ेरी है', 'राग िवराग ' |
बाल - गीत - संह : 'दादी अमा म ुझे बताओ ', सूरज का रथ 'गाल बन े गुबारे', 'सूरज
का रथ ', 'हम सब आम े िनकल गे',
४.३.२ किवता का भावाथ
इस किवता क े मायम स े किव म अकेलेपन क े दद से बाहर िनकलन े को कहता ह ै |
अकेलापन आज क े समय म एक गभीर समया ह ै, उसके िनदान क े िलए हम अपन े मन
के बंद दरवाज े को खोलना ही होगा | किव क े अनुसार अगर हम अपन े मन क े दरवाज े
बद िकय े र हगे तो स ूरज यिद क आ शा क िकरण हमार े भीतर क ैसे प ह ँच पाय ेगी,
िननात अक ेले म रहकर िसफ आँसू बहान े से न ही हमारा दद कम होगा और न ही
हमारा व कट पाय ेगा | यिद हम मौन का याग कर द ेते है तो हमारा द ु:ख - दद पीले
पे के समान झर जाय ेगा | हम लोग क े साथ ह ँसने - बोलन े लगत े है तो िदल का घाव
वयं ही भर जाएगा | किव कहता ह ै िक तरह हमार े दय म भी एक सीढ़ी ह ै, जहाँ से
सभी रचनामक काय क े दूत होकर आत े ह | अत: हम अपन े अहम क ब ेिड़य को
तोड़कर गली और सड़क क े लोग स े िमले - जुले, उनके सुख - दु:ख को जान े | िफर
या गली - सड़क क े शोर स े हमारा द ुख अ पने - आप कर हो जाय ेगा, और हमारा
अकेलापन भी नह रह ेगा |
किव कहता ह ै िक अपन े - आप म िसमटकर ब ैठे रहते और आ ँयू बहान े से कुछ नह
होगा | हम इस परिथती स े बाहर आकर कोलाहल भरा जीवन जीना होगा | दुसरे के
दु:ख को जब हम जान गे, तो हमारा द ु:ख उनक े सामन े कह नह िटकेगा | अत: हम
अहंकार क ब ेिड़य को तोड़कर लोग क िनरथ क बात ुनी बात े, अफवाह , क स ुन |
तभी जाकर हमारा मन हका होगा और द ु:ख का अ ँधेरा या बदल अपन े आप हट
जायेगा |
४.३.३ संदभ सिहत पीकरण :
ये अहम क श ृंखलाए ँ तोिड़ए --------- तब अक ेलापन व यं मर जाएगा | munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
49 संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक 'काय - सौरभ ' के 'इस तरह तो ' नामक
किवता स े ली गई ह ै | इसके किव बालवप 'राही' है |
संग : इस किवता क े मायम स े किव राही जी अक ेलेपन के दद से बाहर िनकलन े क
सलाह द ेते हए कहत े है िक हम अपने अहम का याग करक े गली - सड़कवाल क े साथ
बातचीत करना होगा , िमलना ज ुलना होगा |
याया : तुत किवता म किव राही जी यह बतान े क कोिशश करता ह ै िक अक ेलेपन
के दद से हम क ैसे छुटकारा पा सकत े ह | एकांत म पड़े रहने से हमारा | अकेलापन और
बढ़ जाता ह ै | हम अपन े अहम को छोड़कर सड़क - गली, पड़ोस वाल े लोग स े अपना
नाता जोड़ना होगा | हम उनके दुख-सुख क जानकारी िमल ेगी, तब तो हमारा द ुख उनक े
दुख के सामन े कह नह िटक ेगा | जब हमार े आयेगा तो हमारा अक ेलापन वय ं समा हो
जायेगा |
िवशेष -
(१) आशावादी किवता ह ै |
(२) शद का सुदर समवय हआ ह ै |
(३) किवता को भाषा सरल और सहज ह ै |
४.४ 'पानी म िघरे हए लोग ' (केदारनाथ िस ंह)
४.४.१ केदारनाथ िस ंह - किव परचय :

केदारनाथ िस ंह का जम १९३४ को चिकया गा ँव, बिलया म हआ था। आर ंिभक िशा
गाँव से पूरी होती ह ै। बाद क िशा हाई क ूल से लेकर एम .ए. तक वाराणसी म पूरी होती
है। आध ुिनक िहदी किवता म िबब - िवधा िवषय पर सन ् १९६४ म पी.एच.डी. ा
क।वे पेशे से अयापक थ े। कई िवालय और िविवालय को अपनी स े लाभािवत
करते ह। साथ कायपाठ ्य के िलए कई द ेश जैसे अमेरका, स, जमनी, िटेन, इटली
तथा कजािकतान भ यााए ँ क। सन १९६० म उनका पहला काय स ंह अभी
िबलक ुल अभी कािशत होता ह ै। उह ानपीठ प ुरकार , सािहय अकाद ेमी पुरकार ,
िदनकर प ुरकार , भारत-भारती आिद समान स े समािनत िकया गया। १९ माच
२०१८ को उनका िनधन हो गया ।

कािशत सािहय :

'अभी िबलक ुल अभी ', 'जमीन पक रही ह ै', 'यहाँ से देख', 'अकाल म सारस ', 'मतदान
के पर झपक ', 'मेरे समय क े शद' आिद। उहन े कई िवद ेशी भाषाओ ंका अन ुवाद
भारतीय भाषाओ ंम िकया ह ै ।

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वातंयोर िह ंदी सािहय
50 ४.४.२ किवता का भावाथ
तुत किव ता के मायम स े किव बाढ़ क े पानी म िधरे हए लोग क तरफ हमारा यान
आकिष त करता ह ै। किव कहता ह ै िक पानी स े िधरे हए लोग क े बारे म बतात े हए कहता
है िक इन लोग का पानी क े साथ एक रता बन जाता ह ै। बढ़त े हए पानी क सतह को
देखकर य े लोग िकसी क ा थना नह करत े ह, पूरे िवास क े साथ परिचत क तरह
देखते है, िबना िकसी स ूचना क े अपना सामान खचर , बैल या भ स पर लाद कर अपना
सामान िकसी स ुरित जगह पर ल े जाते ह, जहाँ पानी क पह ँच नह ह ै, वह अपना
अथासी ड ेरा बनात े ह। अपन े साथ व े अपनी ग ृहथी के छोटे-मोटे समान भी लात े ह,
तािक िवपदा क े समय अपनी एक छोटी -सी दुिनया बसा सकग े।
बाढ़ क िबभीिषका म धीरे-धीरे उनक े मवेशी, घर क कची दीवार , फूल-पे, महावीर
क मूित सबको बहाकर ल े जाती ह ै। वे लोग उस ऊ ँची जगह स े िबना िकसी िशकायत क े
अपना सब क ुछ बहते हए द ेखते रहते ह। लेिकन उनक उमीद बरकरार रहती ह ै, चार
तरफ भर े पानी क े बीच म लालट ेन क जलाकर , उसक रोशनी स े दूर के लोग क यह
सूचना द ेते ह िक व े सही सलामत अभी तक बच े हए ह । उसी लालट ेन क मिम काश
म रात भर बढ़त े पानी को द ेखते हए पहरा देते ह। उनक उमीद बरकरार रहती ह िक
एक िदन पानी उतर ेगा तो वह प ुन: अपने घर को जाय गे।
किवता क अितम प ंिय म किव उनक असहायता , असमथा क और स ंकेत करत े
हए कहता ह ै िक इस कार क िया स े गुजरते हए हर बार उनक े भीतर क ुछ टूटता ह ै,
वह उस बाढ़ क े पानी िगरता रहता ह ै। यह बाढ़ यवथा क े कारण आती ह ै, और उनका
सब क ुछ बहाकर उह इस िथित म छोड़कर चली जाती ह ै। किव किवता क े मायम स े
सरकार , शासन सबको कटघर म खड़ा कर द ेता है। जो लोग च ुपचाप िबना िकसी शोर -
शराबा क े इतनी बड़ी आपदा को झ ेल जात े है, िकसी का यान उनक तरफ नह जा रहा
है ।
४.४.३ संदभसिहत पीकरण :
अपने साथ म ले आते ह पुआल क ग ंध, ............
वे ले आते ह िचलम और आग।
संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक काय सौरभ क े 'पानी म िघरे लोग' किवता
से ली गई ह ै। इसके किव क े दार नाथ िस ंह है ।
संग : इस किवता म किव क े दार नाथ िस ंह बाढ़ म िघरे हए लोग क िजजीिबषा क े बारे
म बतात े ह िक िकस कार व े लोग िबना िकसी िशकायत क े अपनी ग ृहथी का जरी
सामान ल ेकर िकसी ऊ ँचे थान पर शरण ल ेते ह।
याया : तुत किव ता म बाढ़ क े बढ़ते कोप क े कारण पानी स े िघरे लोग िबना िकसी
शोर-शराबे के अपन े गृहथी का जरी सामान खचर ब ैल या भ स क पीठ पर लाद कर
िकसी ऊ ँची जगह शरण ल ेते ह। वहाँ पहँच कर अपनी अथायी द ुिनया जमा ल ेते ह। खंभे munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
51 गाड़कर , बारे तानकर रिसय स े बाँध अपना अथायी घर बनात े है। अपन े साथ व े पुआल
लेकर आत े ह। बेआम ग ुठिलया ँ, खाली िटन और भ ुने चने भी ल ेकर आत े ह। िकसी तरह
उनके जीवन क े इस पल को काट सकत े। वे अपन े साथ िचलम और आग भी ल ेकर आत े
ह अथात जीवन उपयोगी सभी ची ]जे अपन े साथ ल ेकर आत े ह।
४.५ सारांश
इस अयाय म िवािथ य ने 'याी','उनको णाम ' और 'नया किव ' किवता का अययन
िकया ह ै इस ययन स े िवाथ किवय का जीवन परचय ,किवता का भावाथ और
किवता क क ुछ पंिय क सदभ सिहत याया का अययन िकया ह ै |आशा ह ै उ
सभी म ु से िवाथ अवगत हए हग े |
४.६ बोध
'मय ु गाथा ' किवता
(१) 'मय ु गाथा' किवता स े किव या स ंदेश देना चाहता ह ै, अपने शद म िलिखए |
(२) 'मय ु गाथा' किवता का क ेीय भाव प करए ?
(३) 'मय ु गाथा' किवता म किव वत मान काल क े लोग क सोच क े बारे म या कहा
है, इसे प किजए ?
(४) किवता का सारा ंश अपन े शद म िलिखए ?
'इस तरह तो ' किवता
१. 'इस तरह तो ' किवता क े मायम स े किव अक ेलेपन स े िनजात पान े के िलए या
कहता ह ै ? अपने शद म िलिखए |
२. किवता 'इस तरह तो ' का सारा ंश िलिखए |
३. 'इस तरह तो ' किवता का केीय भाव िलिखए |
४. 'इस तरह तो ' किवता का उ ेय िलिखए |
'पानी म िघरे हए लोग ' किवता
१) 'पानी म िघरे हए लोग ' किवता क े मायम स े किव ारा विण त य को िलिखए।
२) 'पानी म िघरे हए लोग ' किवता का उ ेय िलिखए।
३) 'पानी म िघरे हए लोग ' किवता का सारा ंश िलिखए।
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वातंयोर िह ंदी सािहय
52 ४.७ लघुरी
'मय ु गाथा ' किवता
(१) 'मय ु गाथा' किवता का रचनाकार कौन ह ै ?
उ. धमवीर भारती
(२) 'मय ु गाथा' किवता को िकस े आधार बनाकर िलखा गया ह ै |
उ. यूनानी कथा क े पा ोमीिथयस को |
(३) 'मय ु गाथा' किवता म जुिपटर को िकस नाम स े संबोिधत िकया गया ह ै ?
उ. घुिपतर
(४) मय ु या च ुरा कर लाता ह ै ?
उ. अिन |
(५) मय ु अिन को कहा ँ से चुरा कर लाता ह ै ?
उ. घुिपतर क े महल स े |
(६) मय ु धरती का घना अ ंधेरा दूर करन े िलए या करता ह ै ?
उ. घुिपतर क े महल स े अिन चुराने का साहस करता ह ै |
(७) घुिपतर मय ु का मा ँस खान े के िलए िकस े िनयु करता ह ै ?
उ. नरभी ब ूढ़े िग को
(८) मय ु िग को अपना या मानता ह ै ?
उ. गुजन
(९) िग मय ु के शरीर पर कहा ँ बैठा है ?
उ. सबल प ु कध पर |
(१०) अिन कहा ँ बदी थी |
उ. घुिपतर क े महल म |
'इस तरह तो ' किवता
(१) 'इस तरह तो ' किवता क े रचनाकार कौन ह ै ?
उ. बालवप 'राही' | munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
53 (२) बालवप 'राही' का जम कहा ँ हआ था ?
उ. िदली म |
(३) 'इस तरह तो ' किवता म िकस समया को रखा गया ह |
उ. अकेलेपन क समया |
(४) किव क े अनुसार घर क तरह और कहा ँ पर सीढ़ी होती ह ै ?
उ. दय म
(५) 'इस तरह तो ' किवता क े अनुसार सज ना के दूत कहा ँ से आते ह ?
उ. दय क सीढ़ी स े होकर आत े ह |
(६) 'इस तरह तो ' किवता म किव हम या तोड़कर गली स े नात जोड़न े क कहता
है ?
उ. अपने अहम क ब ेिड़याँ तोड़कर
(७) 'इस तरह तो ' किवता म किव अक ेलेपन स े छुटकारा पान े के िलए िकसस े नाता
जोड़न े को कहता ह ै ?
उ. गली - सड़क क े लोग स े
(८) 'इस तरह तो ' किवता म िकसक े शोर भीतर आन े से अकेलापन मर जाता ह ै ?
उ. सड़क का शोर आन े से |
(९) 'इस तर ह तो' किवता म िकस ब ंद दरवाज े को खोलन े क बात कही गई ह ै ?
उ. मन के बंद दरवाज े के
(१०) अकेलेपन क समया क बात िकस किवता म उठाई गई ह ै |
उ. 'इस तरह तो ' किवता म |
'पानी म िघरे हए लोग ' किवता
१) 'पानी म िघरे हए लोग ' के रचनाकार कौन ह ै?
उ. केदारनाथ िसंह ।
२) केदारनाथ िस ंह का जम कहा ँ हआ था ?
उ. बिलया म ।
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वातंयोर िह ंदी सािहय
54 ३) 'पानी म िघरे हए लोग ' अपना सामान िकस लाद क े ले जा रह है?
उ. खचर , बैल या भ स क पीठ पर ।
४) 'पानी म िघरे हए लोग ' अपने साथ िकसक ग ंध लेकर जात े ह?
उ. पुआल क ग ंध।
५) बाढ़ अपन े साथ या - या बहकार ल े जाती ह ै?
उ. मवेशी, पूजा क घ ंटी, महावीर क म ूित, दीवार , फूल-पे आिद ।
६) 'पानी म िघरे हए लोग ' बाँस पर या टा ँग देते है?
उ. टूटही लालट ेन ।
७) टूटही लालट ेन कहा ँ टाँगते है?
उ. ऊँचे बाँस पर ।
८) ऊँचे बाँस पर लालट ेन य टा ँगते है?
उ. तािक लोग क उनक े सुरित रहन े क खबर िमलती रह ।
९) 'पानी म िघरे हए लोग ' रातभर िकसक आ ँख म आँखे डाल कर खड़ े रहते ह?
उ. पानी क आ ँख म ।
१०) 'पानी म िघरे हए लोग ' िकसी स े या नह करत े ह?
उ. िशकायत नह करत े ह ।

 munotes.in

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55 ५
काय सौरभ (किवता स ंह )
थोड़े से बचे और बाक बच े(चकात द ेवताल े
िसलिसला - (धूिमल)
रात िकसी का घर नह (राजेश जोशी )
इकाई क पर ेखा :
५.० इकाई का उ ेय
५.१ तावना
५.२ थोड़े से बचे और बाक बच े(चकात द ेवताल े
५.२.१ किव परच य - चकात द ेवताल े
५.२.२ थोड़े से बचे और बाक बच े किवता का भावाथ
५.२.३ थोड़े से बचे और बाक बच े किवता स ंदभसिहत पीकरण
५.३ िसलिसला - (धूिमल)
५.३.१ किव परचय ध ूिमल
५.३.२ िसलिसला - किवता का भावाथ
५.३.३ िसलिसला - किवता स ंदभसिहत पी करण
५.४ रात िकसी का घर नह (राजेश जोशी )
५.४.१ किव परचय - राजेश जोशी
५.४.२ रात िकसी का घर नह - किवता का भावाथ
५.४.३ रात िकसी का घर नह -किवता स ंदभसिहत पीकरण
५.५ सारांश
५ .६ बोध
५.७ वतुिन

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वातंयोर िह ंदी सािहय
56 ५.० इकाई का उ ेय
इस इका ई म काय सौरभ (किवता स ंह ) क तीन किवताओ ं का अययन िकया
जायगा पहली किवता 'थोड़े से बच े और बाक बच े'(चकात द ेवताल े), दूसरी
किवता िसलिसला - (धूिमल), तीसरी किवता रात िकसी का घर नह (राजेश जोशी )
िवाथ तीनो किवता क े किव का जीवन परचय स े अवगत हग े | साथ ही -
* याी ,उनको णाम और नया किव किवता का भावाथ समझ सक गे |
 उ तीनो किवता स े चुने हए अ ंश क याया कर सक गे |
 वतुिन और बोध क े उर िलख सक गे |
५ .१ तावना

काय सौरभ (किवता स ंह ) वातयो र किवय क किवता का स ंह है | इस स ंह
म किवय क े िवचार और भावनाओ ं से ेरत किवताओ को थान िदया गया ह ै |जो
सामािजक म ु और पाठक क े मन पर सीधा भाव डालती ह ै | अेय, नागाज ुन और
िगरजा साद माथ ुर िहंदी सािहय क े अणी किव ह ै उनक किवता का अययन
िवतृत प स े करना िवािथ य के िलए अिनवाय है |

५.२ थोड़े से बचे और बाक बच े(चकात द ेवताल े)
५.२.१ चकात द ेवताल े - किव परचय :
चकात द ेवताल े का जम ७ नवबर १९३६ को जौलख ेड़ा (िजला ब ैतूल) मयद ेश
म हआ था । होफ र कॉल ेज, इदौर स े १९६० म िहदी सािहय म ए.ए. क उपािध
ा िकया। सागर िविवालय स े मुिबोध पर पी .एच.डी. िकया । छा जीवन म 'नई
दुिनया', 'नवभारत ' सिहत अय अखबार म काम िकया। साठोरी िह ंदी किवता क े
मुख हतादार द ेवताल े सन १९६१ से उच िशा म अयापन काय से सबद रह े है।
समकालीन सािहय क े बारे म उनके लेख, िवचार प तथा िटपिणया ँ भी कािशत हई ।
अनुवाद म उनक िच थी। उहन े किवताओ ंके अनुवाद ाय : सभी भारतीय और कई
िवदेशी भाषाओ ंम िकया । अेजी, जमन, बाँला, उदू, मलयालम , मराठी क े किवताओ ं का
अनुवाद िकया ।
देवताल े जी क किवता म समय और सवभ के साथ ताल ुकात रखन े वाली सभी
सामािजक , सांकृितक, राजनैितक व ृियाँ समा गई ह ै । उनक किवता म जहा ँ
यवथा क क ुपता क े िखलाफ ग ुसा नजर आता ह ै, तो वह मानवीय ेम भाव भी ह ै।
देवताल े जी क किवता क जड़ े गाँव-कब और िनन मयवग के जीवन म ह। उह
उनक रचनाओ ंके िलए अन ेक पुरकार स े समािनत िकया जा च ुका है। इनम मुख है
माखन लाल चत ुवदी पुरकार , मयद ेश शासन का िशखर समान , सािहय अकादमी munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
57 पुरकार आिद। व े केीय सािहय अकादमी क े भी सदय रह े। उनका द ेहात १४
अगत २०१७ म होता ह ै।
मुख रचनाए ँ :
हड्िडय म िछपा वर , दीवार पर ख ून से, लकड़बधा ह ँस रहा ह ै, रोशनी क े मैदान क
तरफ, भूखंड तय रहा ह ै, आम हर चीज म बताई गई भी , पथर क ब च, इतनी पथर
रोशनी , उसके सपन े आिद।
५.२.२ किवता का भावाथ :
इस किवता क े मायम स े किव बच क े मायम स े समाज क े वगय िवभाजन का एक
मािमक िच हमार े सामन े त ुत िकया ह ै। त ुत किवता म किवत एक तरप सभी
सुिवधा सपन घर क े थोड़े से बच को रखा ह ै, दूसरी तरफ सपन िवहीन गरीब
माता-िपता क े असंय बच को िलया ह ै। जो अपना प ेट भरन े के िलए मजद ूरी कर रह े
ह, होटल म बतन माँज रह है, गिलय - सड़क पर भटकत े हए असमय ही ब ुरी लत क े
िशकार हो रह े ह ।
किव दोन तरह क े बच क कई मािम क िच उक ेरे ह । एक तरफ जहा ँ कुछ बच े के
सामन े एक बड़ी -सी पर अ ंडे और स ेव रख े हए बच े िबना िकसी छीना -झपटी क े आशम
से खा रह े ह, तो वही द ूसरी तरफ स ैकड बच े एक ही कटोर दान स े अपनी भ ूख िमटा
रहे ह। उनक े हाथ म िसफ आधी स ूखी रोटी ही ह ै । कुछ बच के िलए आकष क क ूल
खुले ह, बचे अछो पोशाक म सन िदख रह े है तो द ूसरी तरफ अस ंय बच को
हमारे भी नसीब नह हो रही ह ै, उनक पोशाक े भी फटी हई ह ै ।
एक तरफ अखबार म तीन ??? बच क े आइम खात े हए, छापा गया ह ै, तो वह
कुछ बच २० पैसे कमान े के िलए बाय ह ै और प ुिलस ारा पकड़ े जाने पर उह पीटाई
भी पड़ती ह ै। इस तरह अलग -अलग पर ेय म दोन वग क े बच का िवतार स े
परचय द ेने के बाद किव कहता ह ै िक अगर ईर होत े तो इस तरह क असमानता तथा
साधनहीन बच क द ुदशा को द ेखकर अव य ही ईर को द ेह म कोढ़ हो गया होता।
अगर यायाधीश भी होता तो वह भी अपन े आँखे फोड़ ल ेता। किव कहता ह ै िक इस
संसार म नह ही ईर ह ै और नह कोई यायाधीश ह ै, नही तो इसकार का यह अयाय
होता ही नह। चापल ूसी, ाचार और लोभलालच स े िवकला ंग यवथा का हवाला द ेते
हए किव कहता ह ै िक भल े ही यह बच े असहाय ह ै, लेिकन इनक स ंया िवशाल ह ै। यिद
वे एक िदन एक ज ुट होकर चीख पड़ े तो गैर-बराबरी पर आधारत यह यवथा धराशायी
हो जाएगी।
५.२.३ संदभसिहत पीकरण :
पर वे शायद अभी जानत े नह, ................
अँधरे के सबस े बड़े बोगद े को। munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
58 संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठय पुतक काय सौरभ क े 'थोडे-से बचे और बाक
बचे' किवता स े ली गई ह ै। इसक े किव चकात द ेवताल े है।
संग : तुत किवता म असंय बच े जो असहाय ह , उह अपनी ताकत का पता ही
नह है। यिद व े एकज ुट होकर चीख भी लगा द ेते है तो गैर बराबरी पर आधारत यवथा
िगर जाय ेगी। इसी स ंग म यह बात कही गई ह ै।
याया : किव इस किवता क े मायम स े समाज क े वगय िवभाजन का िच त ुत
करता ह ै । एक तरफ हर स ुख-सुिवधा क े संपन क ुछ ही बच े ह तथा वह द ूसरी तरफ
असंय बच े ह जो हर तरफ स े साधनहीन ह ै । किव समाज को च ेतावनी द ेते हए कहता
है िक भल े ही ये बचे असहाय ह ै, लेिकन इनक स ंया िवशाल ह ै, अगर िकसी िदन एक
साथ िमलकर चीख पड़ े तो गैर-बराबरी वाल े क द ुिनया धराशायी हो जाएगी ।
िवशेष :
१) भाषा सरल, सहज और लयामक ह ै ।
२) िनन वगय परवार क दाण कथा का वण न है ।
३) समाज क े वगय िवभाजन का मािम क वण न है ।
५.३ िसलिसला - (धूिमल)
५ .३.१ धूिमल - किव परचय :
इनका जम ९ नवबर १९३६ को गा ँव खेवली, बनारस म एक िनन मयमवगय
िकसान परवार म हआ था । इनका नाम स ुदामा पाड ेय था । उनक पार ंिभक िशा गा ँव
तथा क ूिम िय इ ंटर कॉल ेज हरहआ स े १९५३ म हाईक ूल पास िकया। हाईक ूल क
मामूली िशा ा करन े के बाद रोटी -रोजी क े चकर म कलका पह ँचे और वहा ँ
मजदूरी के साथ लोहा ढोन े का काम करने लगे । पुन: सन् १९५७ म इहन े वाराणसी क े
औोिगक स ंथान म नामा ंकन करवाया तथा १९५८ म िवूत िडलोमा थम ेणी
पास करक े वह िव ूत अन ुदेशक क े पद पर बहाद हए । लेिकन ितशोध क भावना स े
कई बार होता रहता ह ै । धूिमल जी न े जीवनभर सरकारी ितान और षड ्यं का
िवरोध िकया ।
धूिमल क ुछ पीढ़ी क े माह म ंग आित ह ै। उनक किवताओ ंम सामाय जन क े िलए गहरी
पीड़ा और दद के भाव ह ै। धूिमल का सािहय वत ुत: समाज क े िनचल े वग क
संवेदनाओ ं, भावनाओ ंऔर भाषा क अिभयि का सािहय ह ै। उनका िनधन १०
फरवरी १९७५ को हआ।
कािशत सािहय :'संसद स े सड़क तक ', कल स ुनना म ुझे, सुदामा पाड े का जात ं।
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काय सौरभ (किवता स ंह )
59 ५.३.२ किवता का भावाथ
तुत किवता क े मायम स े किव ध ूिमल सिदय स े चली आ रही मजद ूरो - गरीब क े
िखलाफ शोषणकारी यवथा का िछन ्-िभन कर द ेने क बात पर जोर द ेता है । किवता
के आरंभ म काल मास के आहबान क बात करत े हए किव किवता को िवतार द ेता
है । काल मास ने कहा था िक 'दुिनया क े मजद ूर एक हो , तुहारे पास खान े के िलए
जंजीर क े िसवा क ुछ नह ह ै ।' किव जन साधारण क े हजूम को, मजदूर, गरीबो, िकसान
को एकज ुट होकर प ूँजीवादी सयता पर हमला करन े के ेरत करता ह ै । वह प ूँजीवादी
लोग को हरयाली स े संबोधन करता ह ै । वह मजद ूर - िकसान गरीब स े कहता ह ै िक
तुम लोग ारा लगाय े गये परम क े पेड़ का फल य े पूँजीवादी लोग खा रह े ह, अत: वह
कहता है िक इन परम क े पेड़ को जड़ को उखाड़ दो , हो सकता ह ै इसस े एकबार
सपूण जंगल स ुख जाए। त ुहारे पास जो क ुछ है अभी शायद उसस े भी हाथ धोना पड़ े ।
लेिकन त ुहारे पास खान े को बहत क ुछ नह ह ै िजसस े तुह हािन का अहसास होगा ।
किव मजद ूर - गरीब को बता ता है िक इस तरह क ाित क े बाद एक नई द ुिनया क
आधारिशला बन ेगी, जहाँ पर हर चीज त ुहारी अपनी होगी। जो ग ुलामी क ब िडयाँ ह,
उह तोड़ना होगा। द ूसरे शद म कह सकत े ह िक किव ध ूिमल आम ूय ाित और
बदलाव को तरफदारी करत े ह ।
५.३.३ संदभसिहत पीकरण :
कतु आए हए च ेहर क रौनक ,
...............................
िबना इस डरक े िक ज ंगल स ूख जाएगा।
संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक 'काय सौरभ ' के िसलिसला नामक किवता
से ली गई ह ै। इसक े किव ध ूिमल ह ै।
संग : इस किवता म किव प ूँजीवादी लो ग के िखलाफ गरीब मजद ूर को एक ज ुट
होकर, इस यवथा पर हमला करन े के िलए कहता ह ै।
याया : तुत किवता म किव सिधय स े चली आ रही प ूँजीवादी सयता को समा
कर एक नई यवथा थािपत करना चाहता ह ै जहाँ पर मजद ूर ारा बनाई गई चीज े पर
उनका अिधका र हो । उन पर होन ेवाले शोषण समा हो। किवता म किव प ूँजीवादी लोग
को गरीब मजद ूर के परम पर फलत े-फूलने वाले हरयाली बताया ह ै । इस हरयाली
को समा करन े के किव मजद ूर से अपन े परम क े पेड़ क जड़ का ख बदलन े को
कहता ह ै । किव कहता ह ै िक हो सकता है सपूण जंगल स ुखा जाए , इस बात क िचता
नह करनी ह ै । यिद यह सब कर सकत े हो तभी जाकर कट ु आए हए च ेहरे पर प ुन: रौनक
आ सकती ह ै ।
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वातंयोर िह ंदी सािहय
60 िवशेष :
१) भाषा सरल और सहज ह ै ।
२) मजदूर - गरीब क े शोषण क दाप वण न है ।
३) किव जन ा ंित क आशा करता ह ै ।
५.४ रात िकसी का घर नह (राजेश जोशी )
५.४.१ राजेश जोशी - किव परचय :
राजेश जोशी का जम १८ जुलाई १९४६ को नरिस ंहगढ़ िजला , मयद ेश म हआ था ।
उहन े ािणशा म एम.एस.सी. और समाजशा म एम.ए. िकया । उसक े बाद ज े.जे.
आट्स से ाइंग म इंटर सट िफकेट कोस पुरा िकया । उहन े िशा प ूरी करन े के बाद
पकारता श ु क और क ुछ साल तक अयापन िकया। इसक े बाद १९६७ से २००१
तक भारतीय ट ेट बक म कायरत रह ।
राजेश जोशी न े किवताओ ंके अलावा कहािनया ँ, नाटक , लेख और िटपिणया ँ भी िलखी ।
उहन े कुछ नाट्य पा ंतर तथा क ुछ लघ ु िफम क े िलए पटकथा ल ेखन का काय भी
िकया। कई भारतीय भाषाओ ंके साथ -साथ अ ंेजी, सी और जम न म भी उनक
किवताओ ंके अनुवाद कािशत हए । इनक किवताए ँ ग ह रे सामािजक अिभाय वाली
होती ह ै । उनक किवताओ ंम जीवन क े संकट म भी गहरी आथा को उभारती ह ै तथा
मनुयता को बचाए रखन े का एक िनर ंतर स ंघष भी करन े क ेरणा द ेती है । उनक
किवताओ ंम थानीय बोली , िमजाज और मौसम सभी क ुछ देखने को िमलती ह ै । उह
मुिबोध प ुरकार , ीकांत वमा मृित पुरकार , मयद ेश सरकार क े िशखर समान
और माखनलाल चत ुवदी पुरकार क े साथ-साथ ितित सािहय अकादमी प ुरकार स े
भी समािनत िकया गया ।
कािशत सािहय : राजेश जोशी का क ृितय बहआयामी ह ै। वे किव कथाकार ,
नाटककार क े साथ -साथ एक सफल आलोचक तथा अन ुवादक भी ह ै। 'समरगाथा '
(लबी किवता ), 'एक िदन बोलगे पेड़', 'िमी का च ेहरा', 'नेपय म हँसी', दो पंिय क े
बीच, गद िनराली िमठ ू क (बच क े िलए किवताए ँ आिद िस किवता स ंह है। कहानी
संह म सोमवार और अय कहािनया ँ और किपल का प ेड़ मुय ह ै। जाद ू का ज ंगल
अछे आदमी , टंकारा का गाना , हम जवाब चािहए आिद म ुख नाटक ह ै।
५.४.२ किवता का भावाथ :
तुत किवता क े मायम स े किव राज ेश जोशी न े एक व ृ यि क े मािमक स ंग को
उभारा ह ै जो अपन े बच को उप ेा और ताड़ना स े दु:खी होकर घर छोड़कर िनकल
आता ह ै। घर स े िनकलत े समय वह यह िनण य लेता है िक अब वह लौटकर कभी वापर
इस घर म नही आय ेगा। किव जब उस ब ुढ़े यि स े िमलता ह ै तो वह किव को बताता ह ै
िक उसक े लड़क न े उसे घर स े िनकाल िदया ह ै। उसक े लड़क े उसे मारत े ह तथा वह munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
61 िपछल े तीन िदन स े वह क ुछ खाया भी नह ह ै। मार का िनशान वह किव को अपनी फटी
हई कमीज को उठाकर िदखाता ह ै। बुढ़ा यि को यह बताता ह ै िक उसन े अने बच को
बचपन म कभी मारा नह था , मगर उसक े बचे उसे हर िदन पीटत े ह। वह यह भी मन ही
मन चाहता ह ै िक अभी उसक े बेट को जाकर समझाए। मगर द ूसरे पल ही वह यह
कहकर खड़ा हो जाता ह ै िक वे शायद उस े ढूँढ़ रहे हगे। कुछ ही समय पहल े वह कभी
घर न लौटन े का िनण य लेकर चला था मगर एक अिनितता का भय उसक े ऊपर घान े
लगता ह ै िक अब इस उ म वह कहा ँ जायेगा, या कर ेगा। वह किव को अपन े ारा िकय े
जानेवाले काम को भी बताता ह ै । िफर भी उस े अपन े घर म अपन े बच ारा तरह -तरह
क पर ेशािनया ँ झेलनी पड़ती ह ै । िफर वह अचानक इन सब बात कर नजर अदाज
करके अपनी गलितय को बोल पड़ता ह ै िक वह ब ूढ़ा होन े के कारण िचड़िचड़ा हो गया
है । कुछ बुरे हालात न े परिथितय को और िबगाड़ िदया ह ै । अचानक उस े उनके छोटे-
छोटे बच को याद आ जाती ह ै िजह े वह बहत यार करता ह ै, उह क े साथ उसका
समय बीत जाता ह ै । यह सब सोचकर वह प ुन: घर क और चल द ेता है ।
किव सोचता ह ै िक सचम ुच रात िकसी का घर नह हो सकती ह ै, कुछ समय क े िलए
अँधेरे म उसक े आँसू िछपा सकती ह ै, मगर रात िसर िछपान े क जगह नह द ेती । वृ
यि को अपन े घर जात े देखकर किव को मन म उठता ह ै िक जहा ँ वह जा रहा ह ै,
या सचम ुच म उसका घर उसी तरफ ह ै, घर तो वह होता ह ै जहाँ जाकर उस े आराम
िमलता ह ै, जहाँ उसका कोई िता करता होगा , जहाँ उसे कोई अपमािनत तथा
उपेित न कर ।
५.४.३ संदभसिहत पीकरण
’कहता ह ै िक वह अब कभी लौटकर
अपने घर नह जाएगा
.........................................
दूसरे ही पल वह कहता ह ै
िक अब इस उ म वह कहा ँ जा सकता ह ै?“
संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक 'काय सौ रभ' के रात िकसी का घर नह
नामक किवता स े ली गई ह ै। इसक े रचनाकार राज ेश जोशी ह ै।
संग : इस किवता क े मायम स े किव व ृ यिय पर हो रह े अयाचार , ताड़ना पर
चचा क ह ै। इस सब बात स े अजीज होकर व ृ यि या तो घर छोड़ द ेते है या उह
घर स े िनकाल िदया जाता ह ै।
याया : तुत किवता म किव व ृ यिय पर हो रह े अयाचार का मािम क ास ंग
के प म सामन े रखा ह ै। किव को एक ब ूढ़ा यि िमलता ह ै जो अपन े बेट ारा रोज -
रोज क े अयाचार , मारपीट , उपेा और ताड़ना स े दुखी होकर अपन े ही गर से िनकल munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
62 आता ह ै। साथ ही वह यह िनण य भी ल ेता है िक वह अब कभी लौटकर उस घर म नह
जायेगा। मगर अिनितता क े भय स े वह डर जाता ह ै और कहता ह ै िक शायद ोध म
आकर उसन े ऐसा सोचा होगा। अब इस उ म वह कहा ँ जा सकता ह ै। उसे अपन े गर म
लौटना ही होगा।
िवशेष :
१) भाषा सरल , सहज और यवहारक ह ै।
२) वृ यिय पर हो रह े अयाचार का वण न है।
५ .५ सारांश
इस अयाय म िवािथ य ने 'याी','उनको णाम ' और 'नया किव ' किवता का अययन
िकया ह ै इस ययन स े िवाथ किवय का जीवन परचय ,किवता का भावाथ और
किवता क क ुछ पंिय क सदभ सिहत याया का अययन िकया ह ै |आशा ह ै उ
सभी म ु से िवाथ अवगत हए हग े |
५ .६ बोध
'थोड़े से बचे और बाक बच े' किवता
१) 'थोड़े से बचे और बाक बच े' किवता म समाज क े वगय िवभाजन का एक मािम क
िच उभ ेरा गया ह ै । इस बात क प ुि कर ।
२) 'थोड़े से बचे और बाक बच े' किवता म सामािजक अस ंतुलन क समया उठाई
गई है । इस बात को अपन े शद म िलिखए ।
३) 'थोड़े से बचे और बाक बच े' किवता का सारा ंश अपन े शद म िलिखए ।
'िसलिसला ' किवता
१) 'िसलिसला ' किवता का क ेीय भाव िलिखए ।
२) 'िसलिसला ' किवता क े मायम स े किव मजद ूर- गरीब को या स ंदेश देता है, अपने
शद म िलिखए ।
३) 'िसलिसला ' किवता म किव िकस ा ंित क आशा करता ह ै? अपने शद म
िलिखए ।
'रात िकसी का घर नह ' किवता
१) 'रात िकसी का घर नह ' किवता का क ेीय भाव िलिखए ।
२) 'रात िकसी का घर नह ' किवता क े मायम स े किव या स ंदेश देना चाहता ह ै, अपने
शद म िलिखए ।
३) 'रात िकसी का घर नह ' किवता सारा ंश अपन े शद म िलिखए ।
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काय सौरभ (किवता स ंह )
63 ५ .७ लघुरी
'थोड़े से बचे और बाक बच े' किवता
१) 'थोड़े से बचे और बाक बच े' किवता क े किव कौन ह ै?
उ. चकात द ेवताल े ।
२) चकात द ेवताल े का जम िकस वष म हआ था ?
उ. ०७ नवबर १९३६ म ।
३) असंय बच गिलय म या बीन रह े ह?
उ. अपना भिवय बीन रह े है ।
४) किवता म एक म ेज के सामन े िकतन े बच है?
उ. एक म ेज सामन े िसफ छह बच है ।
५) किवता म सौ बच क े िलए िकतन े कटोरदान ह ै?
उ. एक कटोरदान ह ै ।
६) किवता म एक आकष क क ूल िकतन े बच क े िलए ह ै?
उ. कुछ बच क े िलए ।
७) किवता क े अनुसार यिद ईर होता तो बच क द ुदशा देखकर उसक शरीर म या
होता जाता ?
उ. कोढ़ ।
८) किवता म आइम खात े िकतन े बच क तवीर अखबार म छपी ह ै?
उ. तीन बच क ।
९) कौन नदी , तालाब , कुआँ, घासल ेट, मािचस , फदा ढ ूँढ़ रहा ह ै?
उ. गरीब घर क लड़ िकया ।
१०) िकनक े घर लड़िकया ँ अंधेरे म दुबक रही ह ?
उ. गरीब घर क लड़िकया ँ ।
'िसलिसला ' किवता
१) 'िसलिसला ' किवता क े रचनाकार कौन ह ै?
उ. धूिमल
२) धूिमल का प ुरा नाम या ह ै?
उ. सुदामा पाड ेय धूिमल ।
३) सुदामा पाड ेय धूिमल का जम कब और कहा ँ हआ था ? munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
64 उ. धूिमल का जम बनार स म सन १९३६ म हआ था ।
४) 'िसलिसला ' किवता म 'हरयाली ' शद का स ंबोधन िकसक े िलए िकया गया ह ै?
उ. पूँजीवादी सयता को ।
५) 'िसलिसला ' किवता किव प ेड़ो क जड़ कहा ँ िनकलन े क बात करता ह ै?
उ. जमीन क े बाहर िनकलन े क बात करता ह ै ।
६) 'िसलिसला ' किवता म िकसक गवाही स े मजद ूर लोग दरवाज े - मेज पर अपना हक
जमा सक गे?
उ. खानी क माम ूली सी गवाही पर ।
७) 'िसलिसला ' किवता मजद ूर - गरीब क े पास िकसक े िसवा खोन े को क ुछ नह ह ै?
उ. जंजीर क े िसवा ।
८) 'िसलिसला ' किवता म मजद ूर और गरीब को िकसपर हमला करन े को कहता है?
उ. हरयाली पर अथा त पूँजीवादी सयता पर ।
९) 'िसलिसला ' किवता म धमाका िकसका इतजाम कर रहा ह ै?
उ. एक हक -सी खाड़ का यानी िक एक ज ुट होकर यास करन े का ।
१०) कठु आए हए च ेहरे को रौनक वापर लान े के या करन े क बात किव कहता ह ै?
उ. सबको एक ज ुट होकर प ूँजीवादी सयता पर हमला करन े को कहता ह ै ।
'रात िकसी का घर नह ' किवता
१) 'रात िकसी का घर नह ' किवता क े किव कौन ह ै?
उ. राजेश जोशी
२) बूढ़ा यि िपछल े िकतन े िदन स े कुछ नह खाया ह ै?
उ. ितन िदन स े ।
३) बूढ़े यि को िकसन े घर स े िनकाल िदया ह ै?
उ. उसके लड़क न े ।
४) बूढ़ा यि अपनी फटी कमीज उघाडकर किव को या िदखाना चाहता ह ै?
उ. मार क े िनशान ।
५) बूढ़ा यि घर स े या िनण य लेकर िनकला था ?
उ. अब कभी लौटकर नह आय ेगा ।
६) बूढ़ा यि किव स े या चाहता ह ै?
उ. किव उसक े लड़को को जाकर समझाए ँ । munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
65 ७) बूढ़े यि को अपन े बच स े या आशा ह ै?
उ. वे आकर उस े ले जाएग ।
८) रात िकसी का या नह हो सकती ह ै?
उ. घर
९) किव ब ूढ़े यि स े या प ूछना चाहता था , मगर नह प ूछ पाया ?
उ. िक िजस तरफ वह जा रहा ह ै, या उसी तरफ उसका घर ह ै?
१०) 'रात िकसी का घर नह ' किवता म िकस समया को उठाया गया ह ै?
उ. वृ यिय पर हो रह े अयाचार और अयाय पर उह घर स े िनकाल िदया जाता
है ।


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66 ६
काय सौरभ (किवता स ंह )
चुपी टूटेगी (ओमकाश वामीिक )
बाजार े - नुमाइश म (दीित दनकौरी )
बूढ़ी पृवी का द ुःख (िनमला पुतुल )
इकाई क पर ेखा :
६. ० इकाई का उ ेय
६. १ तावना
६. २ चुपी टूटेगी (ओमकाश वामीिक )
६.२. १ ओमकाश वामीिक - किव परचय
६ .२. २ चुपी टूटेगीकिवता का भावाथ
६. २. ३ चुपी टूटेगी किवता स ंदभसिहत पीकरण
६.३ बाजार े - नुमाइश म (दीित दनकौरी )
६.३.१ दीित दनकौरी - किव परचय
६.३.२ बाजार े - नुमाइश म किवता का भावाथ
६.३.३ बाजार े - नुमाइश म किवता स ंदभसिहत पीकरण
६.४ बूढ़ी पृवी का द ुःख (िनमला पुतुल )
६.४.१ कवी परचय -िनमला पुतुल
६.४.२ बूढ़ी पृवी का द ुःख किवता का भावाथ
६.४.३ 'बूढ़ी पृवी का द ुःख' किवता स ंदभसिहत पीकरण
६.५ सारांश
६.६ बोध
६.७ वतुिन

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काय सौरभ (किवता स ंह )
67 ६.० इकाई का उ ेय
इस इकाई म िवाथ काय सौरभ (किवता स ंह ) क तीन किवताओ ं का अययन
करगे पहली किवता च ुपी टूटेगी,दूसरी किवता बाजार े - नुमाइश म ,और तीसरी किवता
बूढ़ी पृवी का द ुःख िवाथ इस इकाई क े मायम स े िननिलिखत म ु से अवगत
हगे –
* छा तीन किवता क े किव का परचय जान सक गे |
* छा तीन किवता का भावाथ समझ सक गे ।
* छा तीन किवता क क ुछ पंिय क स ंदभ सिहत याया कर सक गे |
६ .१ तावना
वातंयोर किवता नयी ओज और नयी िदशा क ओर ल े जाने वाली किवता थी ?जो
समाज म हो रह े अयाय ,अपराध ,भेदभाव गरीबी को उजागर करन े म कसर भर भी पीछ े
न रही | एक कार स े इन किवताओ ं ने जन जाित का काय िकया |
६. २ चुपी टूटेगी (ओमकाश वामीिक )
६.२.१ ओम काश वामीिक - किव परचय :
ओमकाश वामी िक का जम ३० जून १९५० को ाम बरला , िजला म ुजपÌफरनगर ,
उर द ेश म हआ । उहन े अपनी िशा अपन े गाँव और द ेहरादून से ा क । उनका
बचपन सामािजक एव ं आिथ क किठनाइय स े भरा हआ था। उहन े एम.ए. िहदी
सािहय स े पूरा िकया । उनका आर ंिभक एव ं शैिणक जीवन आिथ क, सामािजक एव ं
मानिसक क एव ं उपीड़न भरा था। वामीिक जब क ुछ समय तक महारा म रहे । वहाँ
के दिलत ल ेखक क े सपक म आए और उनक ेरणा स े डॉ. भीमराव अ ंबेडकर क
रचनाओ ंका अययन िकया। इसस े उनक रचना -ि म बुिनयादी परवत न आया । वे
देहरादून िथत आिड नस फैटरी म एक अिधकारी क े प म काम करत े हए अपन े पद
से सेवािनव ृ हो गय े ।
िहदी म दिलत सािहय क े िवकास म वामीिक जी क महवप ूण भूिमका रही । उनक
मायतान ुसार दिलत ही दिलत क पीड़ा को ब ेहतर ढ ंग से समज सकता ह ै और वही
सचे अनुभव क ामािणक , अिभयि कर सकता ह ै। उहन े सृजनामक सािहय को
साथ-साथ आलोचनामक ल ेखन भी िकया ह ै। उनक भाव , सरल, सहज, तयप ूण और
आवेगमयी ह ै। अपनी आमकथा 'जूठन' के कारण उह िहदी सािहय म पहचान और
िता िमली। इस आमकथा से पता चलता ह ै िक िकस वीभस उपीड़न क े बीच एक
दिलत रचनाकार क च ेतना का िनमा ण और िवकास होता ह ै ।
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वातंयोर िह ंदी सािहय
68 कािशत रचनाए ँ :
'सिवय का स ंताप', 'बरस! बहत हो च ुका', 'अब और नह ', 'शद झ ूठ नह बोलत े' आिद
इनके मुख किवता स ंह है। 'सलाम ', 'घुसपैिठये' अमा ए ंड अदर टोरीज , 'छतरी ',
आिद कहानी स ंह है। इनक िस आमकथा ज ूठन ह ै, िजसका अन ेक भाषाओ ंम
अनुवाद हो च ुका है। 'सफाई द ेवता', 'दिलत '।
सािहय : अनुभव, संघष ए वं यथाथ , मुयदारा और दिलत सािहय इनक म ुख
आलोचनाए ँ है। वामीिक न े कई अय भाषाओ ंके सािहय क िहदी म अनुवाद भी िकया
था।
समान : वामीिक जी १९९३ म डॉ. अंबेडकर राीय प ुरकार स े समािनत िकया
जाता ह ै। उनह े परव ेश समान , जयी समान , कथाकम समान , सािहय भ ूषण
समान , ८ वाँ िव िहदी सम ेलन २००६ यूयॉक आिद समान स े अलंकृत िकया
गया ह ै। इनका िनधन १७ नवंबर २०१३ म हआ।
६.२.२ किवता का भावाथ :
ओमकाश वामीिक दिलत च ेतना क े किव थ े। इस किवता क े मायम स े किव न े दिलत
उपीड़न क े िखलाफ लोग को एकज ुट होन े का अहवान करता ह ै। किव सिदय स े समाज
म फैली भेदभाव का िवरोध करता ह ै। वह दिलत समाज को अपनी च ुपी तोड़कर सवण
जाितय का म ुकाबला करन े को कहता ह ै। किव कहता ह ै िक यिद इसी कार स े
अयाचार , अयाय सहत े रहते रहोग े तो हम ेशा क तरह मार े जाते रहोग े। किव कहता ह ै
जो तुहारे उपीड़क , शोषक ह ै, तो तुह हर जगह िमल गे। वे तुहारे जाने-पहचान े होगे,
लेिकन त ुह उह पहचान नही पाओग े। तो अपना प बदल -बदल कर त ुहे मारत े रहगे।
उनके पास तमच े, बदुक, लाठी, डंडा, हथगाल े सब होग । साथ ही उनक े साथ प ुिलस,
सेना और शि भी होगी और त ुम िनहथ े रहोगे। यिद भागन े क कोिशश भी करोग े तो भी
पकड़े जाओग े और मार पड़ना िनित ह ै।
किव दिलत वग को आहवान करत े हए कहता ह ै िक मार तो त ुहे पड़न ेवाली ही ह ै तो
य न एकज ुट हो उपीड़न और अयाचार क े िखलाफ अपनी च ुपी तोड़त े हो। यह
चुपी कहता ह ै िक अपनी आन ेवाली िपढीयो क े उवल भिवय क े िलए त ुह संघष
करना होगा , अपनी सिदय स े चली आ रही च ुपी को तोड़ना होगा , िवरोध करना होगा।
तुमहारे साहस कहािनया ँ आनेवाली िपढीया ँ अपन े बड़ो स े सुनकर गिव त होग े।
६.२.३ संदभसिहत पीकरण :
बचा सकत े हो तो कोिशश करो
बचाने भी उह
जो अभी जम े भी नह ह ै munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
69 ....................................
डरी, सहजी हवाओ ंके सीने पर
उनके िलए
िजह अभी जम ल ेना है।
संदभ : तुत पंियाँ हमार े पाठ्य पुतक काय सौरभ क े 'चुपी टुटेगी' नामक किवता
से ली गई ह ै। इसक े किव ओमकाश वामीिक ह ै।
संग : इस किवता म किव सिदय से चली आ रही जाितगत भ ेदभाव क े िखलाफ
एकजुट होकर आवाज उठान े का आहवान करता ह ै।
याया : तुत किवता म किव दिलत समाज पर हो रह े अयाचार का म ुय कारण
उनका च ुपी को बताया ह ै। भाव दिलत समाज क े उपीड़क शासक समाज क े िखलाफ
अपनी आवाज ब ुलंद करन े को कहता है। किव कहता ह ै आज आपक े ारा िकया गया
याग व स ंघष आ न ेवाली िपढीय क े िलए वरदान िस होगा। अभी समय ह ै आपक े
कोिशश स े आनेवाली पीढ़ी का भिवय अछा होगा। त ुहारे िवरोध , याग, बिलदान क
कहािनया ँ वो अपन े बड़े-बुढ़ो से सुनकर त ुहारे ऊपर गव करगे। अब आप सबक े एकज ुट
होकर स ंघष करना होगा , अपनी खामोशी तोड़नी होगी।
िवशेष :
१) भाषा सरल , सहज, तयप ुण और अिवगमयी ह ै।
२) दिलत समाज क े शोषण क दाण वण न है।
३) किव दिलत को एकज ुट होन े का आहवान करता ह ै।
६. ३ बाजार े - नुमाइश म (दीित दनकौरी )
६.३.१ दीित दनकौरी - किव परचय :
दीित दनकौरी का जम 04 िसतबर 1956 क उर द ेश के अमरोहा म हआ था |
इनका म ूल नाम भ ुवनेर साद दीित ह ै | उहन े एम. ए. दशन शा स े तथा योग म
िडलोमा िकया ह ै | दनकौरी जी एक ब ेहद मज े हए शायर ह ै | दनकौरी जी का वतमान
आवास िदली म है | िदली म अयापक ह और द ेश - िवदेश के मुशयर म िशरकत
करते रहते ह |
इनक कािशत प ुतक म 'डूबते व''गजल द ुयंत के बाद' (उखंड), िहदी गजल
यानी' (गजल - संकलन ), गजल क े साधक दीित दनकौरी (सं. सतेव िस ंह) मुख है |
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वातंयोर िह ंदी सािहय
70 ६.३.२ किवता का भावाथ :
तुत रचना म उदू क लोकिय िवधा गजल क श ैली म िलखी 5 शोर ह ै , जो अलग
अलग िबब क े मायम स े एक यि क िवडबना का बयान करती ह ै, पहले शेर म एक
यि इस उलझन म नजर आता ह ै | क आज क े समय म वह सब क ैसे संभाल लगता
है | वह एक साथ अपना चर , घट बार और अपना यार क ैसे संभाले | वह कहता ह ै
िक बाजार क गहमागहमी म मेरे िलए अपन े येक अितव क े पहल ू क स ंभालना
किठन लग लग रहा ह ै | दूसरे शोर म वह िवकास क े चकाचौध म उसे अपन े वािभमान
बचाना म ुिकल लग रहा ह ै | वह कहता ह ै िक त ेजी स े भागत े हए इस व म सब स े
मुिकल उस े अपन े मान - समान को बचना लग रहा ह ै | किव को यह समय बड़ा
मुिकल भरा लग रहा ह ै | किव को यह समय बड़ा म ुिकल भर लग रहा ह ै | एक तरफ
उसे लोगो क े जमान े के रतार क े साथ चलना भी ह ै तो द ुसरी तरफ अपनी िता भी
बनाये रखनी ह ै |
किव ितसर े शेर म उसे वतमान समय म जाब प ूरी सयता - संकृित िछन -िभन नजर
आ रही ह ै, तो वह समझ नह पाता ह ै िक वह स ंकृित क ब ुिनयाद स ंभाले या दीवार
को | यहाँ तो प ूरी नव ही िहल रही ह ै | चाथे शेर म वह अपने ऊपर सौपी गई नयी
चुनौितय को बताता ह ै िक वह दरबार स ंभाले या सरकार को | यह िजम ेदारी का का ँटे
भरा ताज उस े पहना तो िदया जाता ह ै, मगर वह समय नह पाता ह ै िक अपन े साथ काम
करनेवाले लोग का साथ द े या नीित िनधा रक लोग का | किव अपन े पाँचवे शेर म
संसार म फैले चार तरफ अिवास क े कारण यह नह समझ पाता ह ै क आिखर िवास
िकस पर िकया जाय | ऐसी िथित म वह अपन े ऊपर भरोसा करना ही उिचत समझता
है |
६.३.३ संदभसिहत पीकरण :
कती का भरोसा ह ै, न मांझी पे यकन अब , िफर य न उठ ूँ खुद ही, म पतवार स ँभालू |
संदभ :- तुत पंिय हमार े पाठ्य पुतक 'काय - सौरभ क े बाजार े - नुमाइश म '
नामक किवता स े ली गई ह ै | इसके रचनाकार दीित दनकौरी ह ै |
संग :- इस किवता क े मायम स े किव आज क े समय म चार तरफ फ ैले अिवास पर
चचा क ह ै | िकसपर िवास करना ह ै यह समझ म नह आग ह ै |
याया :- तुत शेर के मायम स े किव स ंसार म चार तरफ बढ़त े अिवास को
देखकर यह नह समझ पाता ह ै िक वह िकस पर भरोसा कर , िकस पर नह | वह एक
उदाहरण क े मायम स े समझान े क कोिशश करता ह ै िक आज क े समयम न तो कती
पर भरोसा रहा , नह मा ंझी पर िवास ह ै, ऐसी िथित म खुद ही अपनी कती को आग े
बढ़ाने के िलए पतवार स ंभालन े क जरत ह ै अथात अब िकसी का भरोसा नह रहा |
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काय सौरभ (किवता स ंह )
71 िवशेष :-
(१) भाषा सरल , सहज और उद ू िमित ह ै |
(२) संसार म फैले अिवास क े बारे म बताया गया |
(३) गजल िवधा क े शेर म रची गई ह |
६. ४ बूढ़ी पृवी का द ुःख (िनमला पुतुल )
६.४.१ िनमला पुतुल - कवियी का परचय :
िनमला पुतुल का जम 06 माच 1972 को दुधानी क ुवा, दुमका (झारखड ) म हआ
था | िनमला जी क प ंजाबी, अंेजी, मराठी , उदू के अलावा अय भारतीय भाषाओ ं का
भी ान ह ै | उनक कहानो और किवताए ँ बहचिच त रही ह | िवगत कई वष स े िशा ,
सामािजक िवकास , मानवािधकार और आिदवासी मिहलाओ ं के सम उथान क े िलए
सिय ह ै | आिदवासी , मिहला , िशा और सािहियक िवषय पर आयोिजत सम ेलन,
आयोजन म अपनी बात बड़ े मुखर तरीक े से रखती ह ै | वह हम ेशा ही ामीण , िपछड़ी ,
दिलत , आिदवासी , आिदम ज ूनजातीय मिहलाओ ं के बीच िशा , सामािजक च ेतना एव ँ
जागकता क े िलए लगातार यास करती रहती ह ै |
इनके सािहियक रचनाओ ं के िलए उह सािहय अकादमी , नई िदली ारा 'सािहय
समान ' 2001 से समािनत िकया गया , सन 2006 म झारखड सरकार ारा 'राजकय
समान स े समािनत िकया गया | सन 2008 म महारा राय िहदी सािहय अकादमी
ारा समािनत िकया गया | उनके जीवन पर आधारत 'बु - गारा' नामक िफम बनी ,
िजसे 2010 म राीय िफम प ुरकार ा हआ |
इनक कािशत रचनाए ँ है - 'नगाड़े क तरह बजत े शद' ; अपने घर क तलाश म ,
ओनोड़ह े, 'फूटेगा एक नया िवोह |
६.४.२ किवता का भावाथ :
तुत किवता म कवियी न े बूढ़ी पृवी का मानवीकरण करत े हए उसक े दुख को
मनुय के सामन े बड़े ही मािम क तरीक े से रखा ह ै | पृवी मन ुय जाित स े पुछती ह ै िक
या त ुमने कभी क ुहािड़य क बार े सहत े पेड़ो के बचाव म हजार टहिनय को प ुकारत े
देखा है ? मनुय : कभी त ुमने मंदी हो रही निदय क रोत े देखा है ? या कभी त ुह दद
हआ ह ै टूटते पहाड़ो को द ेखकरा द ूिषत हवा ारा ख ून क उिटया ँ करत े देखा या
महसूस िकया ह ै ? यिद त ुहे यह सब िदखाई , सुनाई या अन ुभव नह होता ह ै तो ह ै मुझे
तुहारे मनुय होन े पर सद े है |
किवता क े मायम स े कवियी हमारा यान शहरीकरण और िवकास क े नाम ही रह े
खेत, जंगल, पहाड़ और निदयो क े अितमण स े हए िवनाश क तरफ ळ े जाना चाहती munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
72 है | कवियी ाक ृितक सपदाओ ं क ओर बढ़ती आध ुिनक िवतारवादी सोच कोल ेकर
काफ द ुखी है |
इस किवता म लगातार क ुहािड़य क े हार स े कटत े जंगल प ेड़, रोज द ूषण का िशकार
होती निदया ँ, धूल - धुएँ से बीमार होती हवा , िवफोट को चोट खात े पहाड़ क पीड़ा क
तरफ मन ुय का यान प ृवी क े मायम स े आकिष त करती ह ै | इन सब क े मूल म मनुय
क िवतारवादी महवाका ंा ही ह ै | पृवी का मानना ह ै िक यिद हम इन चीज क तरफ
यान नह देते है तो हम मन ुय कहलान े योय नह ह ै |
६.४.३ संदभसिहत पीकरण :
भागदौड़ क िज ंदगी स े
थोड़ा सा व च ुरा कर
------------------------
------------------------
तो मा करना |
मुझे तुहारे आदमी होन े पर सद ेह है !!!
संदभ : तुत पंिया हमा रे पाठ्य पुतक 'काय - सौरभ ' के 'बूढ़ी पृवी का द ुख'
नामक किवता स े ली गई ह ै | इसके रचनाकार िनम ला पुतुल' है |
संग :- इस किवता क े मायम स े कवियी ब ूढ़ी पृवी क े दुख को िगनात े हए ाक ृितक
सपदाओ ं क ओर यान आकिष त करती ह ै | इनक रा करना ही मनुय का कत य
है |
याया :- किवियी स ंसार क े आदापथ स े कहती ह ै िक जब इस भागम - भाग क
िजदगी स े समय िनकालकर कभी न िशकायत करन ेवाली ग ुमसुम बूढ़ी पृवी का द ुख
जनान े क कोिशश क ह ै | बूढ़ी पृवी य द ुखी है ? बढ़ते शहरीकरण और िवकास क े
नाम पर हो रह े खेत, जंगल, पहाड़ो और निदय क े अितमण क ओर त ुहारा यान
गया ह ै, पृवी क े दुख का म ूल कारण ही मन ुय क िवतारवादी सोच ही ह ै | अगर
तुहारा यान नह गया ह ै तो त ुम मनुय कहलान े योय नह हो |
६.४ सारांश
इस इकाई म हमने तीन किवताओ ं का अययन िकया ह ै | यह किवताए ँ है - चुपी टूटेगी
,बाजार े नुमाइश म , और ब ूढ़ी पृवी का द ुःख | हमने तीनो किवताओ ं के कवी का जीवन
परचय द ेखा ,किवता का भावाथ समझा और किवता क क ुछ पंिय क स ंदभ सिहत
याया क आशा ह ै िवाथ उ सभी म ु से अवगत ह ए हग े | munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
73 ६.५ बोध
'चुपी टूटेगी' किवता
१) 'चुपी टूटेगी' किवता का क ेीय भाव िलिखए।
२) 'चुपी टूटेगी' किवता का उ ेश्◌्य िलिखए।
३) 'चुपी टूटेगी' किवता क े मायम स े किव िकस कार क च ुपी तोड़न े क बात करता
है और य ? अपने शद म िलिखए।
४) 'चुपी टूटेगी' किवता का सारा ंश िलिखए।
'बाजार े - नुमाइश म ' किवता
. (१) 'बाजार े - नुमाइश म ' किवता क े मायम स े किव अलग - अलग श ेर के मायम
से या कहना चाहता ह ै ? अपने शद म िलिखए |
. (२) 'बाजार े - नुमाइश म ' किवता उ ेय िलिखए |
'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता
(१) 'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता का सारा ंश िलिखए |
(२) 'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता का क ेीय भाव िलिखए |
(३) 'बूढ़ी पृवी द ुख' किवता का उ ेय िलिखए |
(४) 'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता क े मायम स े कवियी या स ंदेश देना चाहती ह ै |
अपने शद म िलिखए |
६. ६ लघुरीय
१) 'चुपी टूटेगी' किवता क े रचनाकार कौन ह ै?
उ. ओम काश वामीिक।
२) ओम काश वामीिक िकस च ेतना क े किव थ े?
उ. दिलत च ेतना क े।
३) 'चुपी टूटेगी' किवता म कौन राता रोककर खड़ी हो जाएगी ?
उ. दिलत समाज क च ुपी।
४) किव िकस े अपनी च ुपी तोड़न े को कहता ह ै?
उ. दिलत समाज को । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
74 ५) दिलत समाज क े उपीड़क व शोषक समाज क े हाथ म या ह ै?
उ. तमंचा, बदूक, लाठा - डंडे, हथगोल े आिद ह ै।
६) कौन भ ेष बदलकर हर मोड़ पर िमल गे?
उ. उपीड़क व शोषक वग के लोग।
७) किव िकसे बचान े क कोिशश करन े को कहता ह ै?
उ. जो अभी तक जम े नह ह ै।
८) 'चुपी टूटेगी' किवता म कौन गिव त हग े चुपी तोड़न े वाल क कहािनया ँ सुनकर?
उ. आनेवाली पीढ़ी क े बचे।
९) आनेवाली िपढीय क े बचे िकसक कहािनया ँ सुनकर गिव त हग े?
उ. अयाय , अयाचार क े िखलाफ च ुपी तोड़न ेवाल क।
१०) पुिलस, सेना, शि िकसक े साथ होगी ?
उ. उपीड़क और शोषक समाज क े साथ।
'बाजार े नुमाइश म ' किवता
(१) 'बाजार े नुमाइश म ' किवता क े रचनाकार कौन ह ै ?
उ. दीित दनकौरी का म ूल नाम या ह ै ?
(२) दीित दनकौरी का म ूळ नाम या ह ै ?
उ. भुवनेर साद दीित |
(३) गजलिकसक लोकिय िवधा ह ै ?
उ. उदू क |
(४) किव को क ैसा ताज पहना िदया जाता ह ै ?
उ. काँट भर ताज |
(५) किव को िकसका भरोसा और यकन नह ह ै ?
उ. किव को कती का भरोसा नह और मा ंझे पर यकन नह ह ै |
(६) किव िकस े पतवार स ंभालन े को कहता ह ै ?
उ. खुद को | munotes.in

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काय सौरभ (किवता स ंह )
75 'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता
(१) 'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता क े रचनाकार कौन ह ै ?
उ. िनमला पुतुल
(२) किवता म कुहािड़य क े भय स े कौन चीकार रहा ह ै ?
उ. पेड़
(३) पेड़ के बचाव म कौन प ुकार रहा ह ै ?
उ. पेड़ क टहिनया ँ |
(४) किवता म मौन समािध लगाकर कौन कर रहा ह ै ?
उ. पहाड़ |
(५) किवता म खून क उिटया ँ कौन कर रहा ह ै ?
उ. हवा |
(६) किवता म िकस े थोड़ा सा य िनकलकर ब ूढ़ी पृवी का द ुख जानन े को कहा
गया ह ै ?
उ. मनुय को |
(७) किवता म कौन कभी िशकायत नह करता ह ै |
उ. बूढ़ी पृवी |
(८) 'बूढ़ी पृवी का द ुख' किवता िकस िवषय पर आधारत ह ै ?
उ. पयावरण पर बढ़त े खतर े पर |
(९) िकसका मानना ह ै िक यिद हम प ृवी क े दुख को नह समझत े है तो आदमी होन े
पर संदेह है ?
उ. किवियी का |
(१०) रात सनाट े म मुँह ढ़ाँपकर कौन रोता ह ै ?
उ. निदया ँ |


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76 ७
िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
इकाई क पर ेखा :
७.० इकाई का उ ेय
७.१ तावना
७.२ िहंदी िनब ंध िवधा का अथ और परभाषा
७.३ िहंदी िनब ंध िवधा का िवकास
७.३.१ भारतेदु युग
७.३.२ िवेदीयुग
७.३.३ शुल य ुग
७.३.४ शुलोर युग
७.४ लिलत िनब ंध
७.५ सारांश
७.६ बोध
७.७ लघूरीय
७.८ संदभ ंथ
७.० इकाई का उ ेय
िहंदी सािहय का इितहास म आध ुिनक य ुग के सम अययन क े अंतगत िनब ंध िवा
का िवकास िवषय पर अययन कर रह े ह-इस इकाई क े अययन स े िवाथ
िनबंध का शािदक अ थ और परभाषा का अययन कर सक गे ।
िनबंध िवा क े आरंभ और िवकास म को जान सक गे ।
िविभन िनब ंधकार उनक े ारा िलिखत िनब ंध क िवश ेषताओ ं से अवगत हग े ।

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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
77 ७.१ तावना
िहंदी िनब ंध िवा का िवकास आध ुिनक य ुग म हआ िनब ंध के िवकास म प पिकाओ ं
का मायम सवपर रहा तकालीन समय क सामािजक ,राजकय ,धािमक ,संकृित
े म चल रही उथल -पुथल का गहन िव ेषण िनब ंध के मायम स े भी हआ । िनब ंध म
भी कई कार का आर ंभ हआ ज ैसे लिलत िनब ंध, यंय िनब ंध, वैचारक िनब ंध आिद
क िवश ेषताएं हर एक युग म िभन रही और श ैली व भाषायी ि स े उनत होती रही
इसी िवकास म का अययन हम इस इकाई क े ारा कर गे ।
७.२ िहंदी िनब ंध िवधा का अथ और परभाषा
िनबंध ग सािहय क अन ुपम िवधा मानी जाती ह ै । िनब ंध का शािदक अथ है बांधना
लेिकन समय क बहती धारा म दीघ काला ंतर पात यह शद क ेवल सािहय िवधा क े
योग तक ही सीिमत रह गया । िनब ंध आकार म ल घु संगिठत और समास श ैली म
िलखा जाता ह ै । िनब ंध िवधा का उव आध ुिनक य ुग म हआ यह ग सािहय क म ुख
िवधा मानी जाती ह ै आचाय रामच ं शुल जी क े मत से अब िनब ंध िवधा क े महव का
अनुमान लगाया जा सकता ह ै उहन े िनबंध के महव को इस कार शद ब िकया ह ै-
"यिद ग किवय या ल ेखक क कसौटी ह ै तो िनब ंध तो ग क कसोटी
है । "िनबंध िवधा म े यि िकसी िवषय पर अपन े वैयिक िवचार िकोण वय ं के तक
और आपसी स ंवादो को भावी ढ ंग से अपनी ल ेखन क ुशलता स े पाठक क े मन को
भािवत कर सकता ह ै ।
िनबंध क परभाषा :- िनबंध सािहय को कई भारतीय और पााय सािहयकार न े शद
ब िकया ह ै । अ ंेजी िवान डॉ . शो स ैयुअल जासन न े इस कार िनब ंध को
परभा िषत िकया ह ै "िनबंध मितक का क े असंब िवचार का िवफोटन ह ै ।"
मटेयू िजह िनबंधो का जनक माना जाता ह ै उहेने िनबंधो को िवचार उरण और
कथाओ ं का िमण मानत े ह ।
ऑसफोड शदकोश म िलखा गया ह ै िनबंध क आक ृित सीिमत और परक ृत होती
है ।
मुख भारतीय िवान ारा दी गई िनब ंध क परभाषा -
१) आचाय रामच ं शुल जी न े िनबंध क जो महा दशा ई है उसका िववरण हम द े
चुके ह इसक े अितर श ुलजी कहत े ह-"आधुिनक पााय लण क े अनुसार
िनबंध इसी को कहना चािहए िजसम यिव अथात यिगत िवश ेषता हो ।

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वातंयोर िह ंदी सािहय
78 २) बाबू गुलाब राय :-
"िनबंध उस ग रचना को कहत े ह िजसम एक सीिमत आकार क े भीतर िकसी
िवषय का वण न या ितपादन एक िवश ेष िनजीपन , वछ ंदता, सौव और
सजीवता साथ ही आवयक स ंगित और स ुसंबता क े साथ िकया गया हो
३) डॉ. भागीरथ िम :-
"िनबंध वह ग रचना ह ै िजसम लेखक िकसी िवषय पर वछ ंदता प ूवक पर ंतु एक
िवशेष सौव ,संिहित, संजीवता और यिगत काशन क े साथ भाव िवचार और
अनुभव को य करता ह ै ।"
उपयृ परभाषाओ ं के अययन क े आधार पर हम कह सकत े ह िक िनबंध
िनबंधकार क े िवचार क स ुयविथत और स ुगिठत अिभयि ह ै िवषय
सािहयकार क े मनोिव ेषण स े तय होता ह ै कोई भी िवषय ल ेकर सािहयकार
िनबंध रचना कर सकता ह ै । आचाय शुल िनब ंध म िवचार गा ंभीय एवं सामािजकता
को महवप ूण मानत े ह । डॉ. गुलाबरायजी िन बंध म सम लिणय तव का समाव ेश
आवयक मानत े ह । भागीरथ िम जी िनब ंध म सजीवता क े साथ िवचार और
भाव क अिभयि को आवयक समझत े ह । इन सभी परभाषाओ ं से िनबंध िवधा
का िववरण प हो जाता ह ै ।
७.३ िहंदी िनब ंध िवधा का िवकास
आधुिनक य ुग म नवजागरण क च ेतना क े साथ िह ंदी िनब ंध का िवधा का आर ंभ हआ ।
इस य ुग म मानव क मानिसकता बदल रही थी तकनीिक े का ार ंभ हो वह िवकास
क ओर असर था । म ुण य ं के आरंभ से सािहियक जगत को एक नई िदशा िमली ।
जीवन क वातिवकता य ेक े क स ंकृित सयता स े समाज का हर एक यि
भली-भांित परिचत हो सका । मानव क इसी च ेतना स े सािहय म भी परवत न हआ
सािहय का आकार पहल े ही अपरिसिमत होता ह ै लेिकन समय क े साथ सािहय
वृहताकार हो गया । ग क े े म कई िवधाओ ं का िनमा ण हआ िजसम सािहयका र के
साथ-साथ पाठक क िजासा भी बढ़ी ह ै और सािहय ेमीय को िविवध कार क े
सािहय पढ़न े से सािहय क े ित उनका ेम गाढ़ हो रहा ह ै ।
िनबंध िवधा का िवकास भी इह सब वातिवकताओ ं के कारण हआ । िनब ंध िवधा ग
सािहय क महवप ूण िवधा मा नी जाती ह ै । सािहय और अययन े म पहली का स े
ही िवाथ िनब ंध िवधा स े अवगत हो जात े है इसी स े इस िवधा क शित का अन ुमान
हम लगा सकत े ह । तकालीन सािहयकार और सािहयलोचक न े अययन और
िचंतन क स ुलभता क ि स े िनबंध िवधा को चार य ुग म िवभािजत िकया ह ै । िनब ंध
िवधा का स ंपूण अययन हम इस य ूग के दीध अययन ारा कर गे ।
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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
79 १) भारतदु युग(सन्१८५७ -१९०० ) िहंदी िनब ंध का अय ुथान
२) िवेदी युग (सन्१९०० -१९२० ) िहंदी िनब ंध का परमाज न
३) शुल य ुग(सन् १९२० -१९४० ) िहंदी िनब ंध का उकष
४) शुलोर य ुग (सन् १९४० से अब तक ) िहंदी िनब ंध का सरण
७.३.१ भारत दु यूग:
भारतदु युग का उदय राीय जागरण और राजनीितक च ेतना का काल था । इस काल म
संकृितक च ेतना का सम िवकास ही सािहयकार का अभी था । कालान ुप िशा
का चार सार भारतीय ढ़ी - परंपराओ ं पर हार करन े के साथ-साथ द ेश म बढ़ रही
पिमी स ंकृित पर य ंय करना भी इस काल क म ुख िवश ेषता रही । इन सभी
सामािजक दाियव को प ूण करन े का दाियव िनब ंधकार न े िनभाया । इस य ुग के िनबंध
म िवषय क यापकता द ेखने को िमलती ह ै । इस य ुग म कई सािहयकार स ंपादक और
लेखक हए िजहन े प-पिकाओ ं म सामािजक िवषय सामािजक आ ंदोलन और अन ेक
कार क े िवषय क चचा िनबंध के मायम स े क । यह य ुग िनब ंध का ार ंभ काल होन े
के कारण भाषा और श ैलीगत ि स े एकपता न ह थी इस े म वैयिक योग क े
आधार पर ही िनब ंध लेखन होता रहा । इस काल म बहत माा म िनबंध िलख े गए इस
युग म िनबंध िवधा म ुख िवधा बन गई ।
भारतेदु युग म पिकाओ ं के मायम स े समाज म या हर े के थानीय वाता क
जानकारी िम ल जाती थी । भारत दु युग म िवदेशी शासन क े ित अिधक तर पर
आंदोलन क श ुआत नह हई थी । इसिलए ल ेखको न े यदा-कदा अ ंेजी शासन का
गुणगान भी कर िदया ह ै लेिकन द ेश िहत क भावना हम ेशा से ही सािहयकार क भ ूल
भावना रही ह ै और यह भावना तकालीन समय क े िनबंध म भी िगोचर होती ह ै ।
जैसे - समाज स ुधार, रा ेम, रा िवकास क भावना , िवदेशी शासन क े ित आोश
और कई िवषय पर इस काल म िनबंध िलख े गए । भारत दु यूग के लेखक न े गंभीर
िवषय को भी हाय मय या एक य ंय वप द ेते हए िनब ंध क रचना क उनक यह
शैली मनोिवनोदी और िचकोटी भरी थी । क ुछ िनब ंध के िवषय ल ेखक क िवनोदव ृि
को दशा ती है । जैसे ऑं ख , नाक, भ आिद वह क ुछ िनब ंध मानव जीवन श ैली को भी
य करत े ह जैसे बुढ़ापा धोखा आिद । इस य ुग के मुख िनब ंधकार ह ै भारत दु,
बालक ृण भ , ताप नारायण िम , बीनारायण चौधरी , ेमधन ,वाला साद ,
तोताराम , अंिवकाद यास , रामचरण गोवामी आिद ।
भारत ेदु हर ं :
भारतेदु हर ं िहदी क े थम िनब ंधकार मान े जात े है । ब ह म ुखी ितभा स ंपन
सािहयकार भारत ेदुजी ने किवता, नाटक क े अितर िनब ंध बहत माा म िलख े उनके
ारा िलिखत िनब ंध म ऐितहािसक , सामािजक , राजनीितक , आलोचनामक , यंय
आमचरत , कृित वण न, याा वण न, धम, भाषा आिद िवषय पर िनब ंध िलख े । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
80 भारतेदुजी सव तोमुखी ितभास ंपन सािहयकार थ े । उनक े सािहय म िवषय का
िवतृत अययन और िविवध िवषय पर िव ेषण हम द ेख सकत े है । उनक े िनबंध म
सामािजक िवषय म इितहास , धम, संकृित क म ूलभूत जानकारी हम िमल जाती ह ै जैसे
''अंेज स े िहंदुतािनय का जी य नही िमलता '' वह क ुछ िनब ंध रा भि क
भावना य करत े है । ‘ भारतवष क उनित क ैसे हो सकती ह ै’, ''लेवी ाण ल ेवी'',
भावनामक िनब ंध म ‘सूयदय’, ‘समपण’, ‘ईर बडा िवलण ह ै’ आिद िनब ंध आत े है ।
पुरातव स ंबंधी िनब ंध म ‘रामायण का समय ’, ‘काशी’, मिणकिण का’ आिद िन बंध म ुख
है ।
याा – वणन पर िलख े गये िनबंध म इितहास स ंबंधी िनब ंध म मुख है’ 'कामीर -
कुसुम’, 'बादशाह - दपण', 'अकबर और और ंगजेब', 'उदय- पुरोदय' आिद । जीवन चर
संबंधी म ुख िनब ंध है 'सूरदास जी का जीवन चर ', 'बीबी फाितमा ', 'ी जय राम शाी
का जीवन चर ' आिद इन िनब ंध म भावुकता और कपना क धानता ह ै । कला
संबंधी िनब ंध म ‘संगीत- सार’, जातीय स ंगीत तथा ’ िहंदी भाषा ’ िवशेष प स े
उलेखनीय ह ै । कृित वण न से जुड़े हए िविभन िवषय पर भारत दु जी न े िनबंध िलख े
ह जैसे- 'बसंत', 'वषा' 'काल', 'लखनौ ', 'हरार ', 'ीम ऋत ु' आिद । भारतदुजी क
अपनी िविश श ैली म ुख प स े हाय य ंय धान थी । इस श ैली म ‘ 'ईर बड़ा
िवलण ह ै’, 'सच मत बोलो ’, उदु का थापा आिद िनब ंध म ुख है । ‘िवचार सभा का
अिधव ेशन’, 'पांचव पैगंबर', 'कानून ताजीरात शौहर ', ात िववेिकनी सभा . अंेजी
ोत, 'कंकड़ ोत' जैसे िनबंध से भारत दुजी क राजन ैितक च ेतना का असर िनब ंध पर
िदखाई द ेता है ।
इस कार भारत दु जी क े िनबंध के सम अययन स े उनक े यायामक और
िवचारामक शैली का ान हम होता ह ै । इसी श ैली के मायम स े उहन े यंयामक
शैली क धानता सािहय म दशायी है । भाषायी ि स े भारत दु जी क े सािहय का
अययन कर तो भाषागत ि स े यथाथ वादी िकोण उहन े अपनाया ह ै । उहन े
िकसी एक भाषा का पूण प स े अनुसरण नह िकया न अरबी- फारसी िमित िह ंदी का
प िलया , न संकृत िन िह ंदी का उनका उ ेय था । सरल- सजीव और जनिय
भाषा का योग जो पाठक को सीध े समझ आ सक े उहन े संकृत िन भाषा व तसम
शद का योग िकया ह ै लेिकन भाषा के सहज प म िलता कह भी नजर नह
आती । तकालीन समय म कानून क भाषा उद ु िन थी इसीिलए राजनीितक च ेतना
संबंधी िनब ंध म उहन े उदु िन भाषा का योग िकया ह ै ।
बाल क ृण भ :-
बाल क ृण भ भारत दु युग के िनबंध िवधा क े मुख लेखक मान े जाते ह । इहन े
७०० के आस -पास िनब ंध िलख े ह । ये वत ंता ेमी और गितशील िवचार क े
िनबंधकार ह ै । इहन े समाज , सिहय , धम, संकित , रीित-नीित, था, भावना , कला,
कपना आिद सभी िवषय स े िनबंध िवधा को स ँवारा ह ै इसीिलए इह िवचार धान
िनबंधकार माना जाता ह ै । हाय िवनोद िवषय पर भी इनक ल ेखनी न े अभूतपूव काय munotes.in

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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
81 िकया इनक े ारा िकया गया िवषय का ग ंभीर अययन और िवचार - धानता क े कारण
िनबंध म सभी े का चयन हो सका । िवचारामक िनब ंध के अितर भावामक ,
कथामक और वण नामक िनब ंध भी िलख े ह- भावना धान िनब ंध म ‘ चंोदय’ िनबंध
यात ह ै । वणनामक िनब ंध म ‘संसार- महा नाट ्यशाला ’ और ‘ ेम के बाग का
सैलानी’ िनबंध म ुख मान े जाते ह । कथामक िनबंध म ‘ एक अनोखा वन’
िनबंध िमलता ह ै । यवहारक जीवन स े संबंिधत िनब ंध म 'माता का न ेह’, ‘आँसू’,
`लमी ’, 'कालच का चकर ’ आिद िनब ंध आत े ह ।
सािहय िवषय स े संबंिधत िनब ंध म ‘सािहय जन सम ूह के दय का िवकास ह ै’, शद
क आकष ण शि ितभा ,’ माधुय’, सािहय का सय ता से घिन स ंबंध आिद ह ै ।
दय क वृिय या मनो िवकार को भी िवषय गत ि स े िनबंध म सिमिलत कर - ‘
आशा, आम गौरव , 'िच', 'िभाव ृि', 'िवास ', 'बोध' आिद िनब ंध िलख े ह । वह
सामाय िवषय पर भी िलख े िनबंध म 'आंख', 'कान', 'नाक', 'बातचीत ' आिद िनब ंध
मुख है । हाय य ंय िवनोद परक िनब ंध म ‘इंिलश पढ़ े सौ बाबू होय’, 'दंभायान ’,
'अिकल अजीरन रोग ' जैसे िनबंध म ुख है । सामािजक समयाओ ं क ि स े िलख े गए
िनबंध म 'बाल िववाह ’, 'िया ँ और उनक िशा ’, 'मिहला वातंय' आिद िनब ंध है ।
बालक ृण भ क े िनबंध म ायः बोलचाल म योग म लायी आन े वाली िह ंदी का योग
हआ ह ै । वैसे बालक ृण जी स ंकृत भाषा क े गाढ प ंिडत थ े । उनक े िनबंध म िहंदी,
संकृत के अलावा अ ंेजी और उद ु भाषा क े शद का काफ योग हआ ह ै । भ जी
क भाषा म अलंकार का म ुख आकष ण िमलता ह ै और इनक े िनबंध के शीषक ायः
कहावत और म ुहावर स े िमलत े जुलते हम िदखाई द ेते ह । उनका शद चयन बहत
रोचक प ूण है. िनबंध रचना क े मायम स े नये भाषा रचना का ाप त ैयार करने क
कोिशश भ जी न े क ह ै ।
ताप नारायण िम :
भारतदु युग के बालक ृण भ क े पात म ुख िनब ंधकार ताप नारायण िम मान े जाते
ह । आपन े िनबंध को मायम बनाकर सामािजक जनजाग ृित से जोड़न े का काय िकया ।
इह आमय ंजक िनबंधकार माना जाता है इसम गंभीरता और च ुलबुले पन इस कार
दो भाव का समाव ेश िमलता ह ै ।
‘धोखा’, ‘वृ’, ‘खुशामद ’, ‘दांत’,’ बालक ’ आिद म चुलबुलापन ह ै वही ‘आप’, ‘बात’,
‘मां’, ‘नारी’ आिद ग ंभीर ेणी के िनबंध है ।
इनके िनबंध म तीखी य ंय वृि का उल ेख वय ं आचाय रामच ं शुल जी न े भी
िकया है । इनक भाषा म यंयपूण पूण वता क े साथ लोकोिया ं मुहावर का भी योग
िमलता ह ै । ये िनबंधकार होन े के साथ-साथ पकार भी थ े इसीिलए सामाय िवषय स े
सााकार कर उह भी िनब ंध से जोड़कर रोचक और व ैचारक बना िदया । ‘ईर क
मूित’ िनबंध नाितक िनब ंध भाव का िनब ंध है 'लोक लजा ’ भावनामक और ‘धरती
माता’ वणनामक ेणी के िनबंध म उल ेखनीय है । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
82 बालम ुकुंद गु:-
ये भी ताप नारायण िम क तरह पकार थ े । इहन े 'बंगवासी ' और 'भारत िम '
नामक िह ंदी प का स ंपादन काय िकया । इनके ारा िलिखत िस िनब ंध है- िशव
शंभू का िचा और ‘खत’ । भारतदु क तरह ही ग ुाजी सामािजक और सा ंकृितक े
से जुड़े िनबंधकार कहलाय े । देश भि और िह ंदी भाषा क े ित ेम इनक े िनबंध म
परलित होता ह ै । इहन े अपन े िनबंध म िवचार और भाव क यापकता दशा यी है ।
‘आमाराम ’ इनका आलोचनामक िनब ंध है ।
धम, सयता , समाजातग त िवषय क े अलावा द ेश क राजनीितक आ ंदोलन पर भी
इनक ल ेखनी चली ज ैसे ‘नेशनल का ंेस क द ुदशा’, 'भारती य जा क े दुख क द ुहाई'
और 'ठीठाई पर गवन मट क कडाई ’ आिद ।
इनके िनबंध सीधी सरल जनमानस क भाषा म िलख े गए ह जो म ुहावर और कहावत
से यु है व िवचार क पता सहज ही लित हो जाती ह ै ।
भारतदु युग म इनक े अितर अय म ुख िनब ंधकार है वाला साद , तोताराम ,
राधाचरण गोवामी , अंिबकाद यास आिद ।
७.३.२ िवेदी युग :- (१९०० से १९२० ):
िवेदी युग िहंदी िनब ंध िवधा का ितीय य ुग माना जाता ह ै । इसका आर ंभ ‘नागरी
चारणी सभा और ‘सरवती क े काशन स े माना जाता ह ै । इस य ुग क समत
सािहियक गितिविधय का ेय महावीर साद िव ेदी जी को िदया जाता ह ै इहन े
सवथम भाषा को परक ृत संकारत िकया । साथ ही भाषा को याकरण समत
बनाने पर अिधक जोर िदया इनम िवराम िचह का उपयोग आवयक माना । इस य ुग म
राीय च ेतना मुख िवषय बना यिक यह योग रा ेम, सामािजक ऐय, सांकृितक
- नव च ेतना, ऐितहािसक गौरव का काल था । इसीिलए िनब ंध के िवषय भी िविवध र ंग
से सजे थे उसम भाषायी शुता का िवश ेष यान रखा गया था । िवेदी जी न ैितकता
िय यि थ े इसीिलए इस य ुग म नैितक िनब ंध अिधक िलख े गये । िनब ंध म बौिकता
और सािहियकता अिधक आ गई । िवेदीजी न े सािहय म ान का परमाज न
आवयक माना परणाम वप सािहयकार का यान सािहय को स ंिचत स ंिहता
बनाने क ओर अिधक रहा यही कारण ह ै िक इस काल म अनुवाद ल ेखन क पर ंपरा भी
ारंभ हई । इस य ुग के सािहयकार न े भाषा स ंयोजन क े साथ राीय परिथितय
और स ंपूण युग का उरदाियव ग ंभीरता और व ैचारक ि स े अपनाकर िनब ंध म
हाय य ंय, रस- राग आिद भाव को नगय सा कर िदया इस युग के मुख
िनबंधकार ह ै- महावीर साद िव ेदी, बाबू यामस ुंदर दास , पिस ंह शमा , िम ब ंधु
माधव साद िम , चधर शमा गुलेरी, सरदार प ूण िसंह आिद ।

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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
83 महावीर साद िव ेदी :-
इहन े सरवती पिका का स ंपादन िकया । िहंदी को परिनित और याकरण समत
बनाने के िलए हम ेशा यनशील रह े । अनेक शद अय भाषा स े हण कर िह ंदी को
यापक बनाया य े शद इहन े मराठी , बांला, अंेजी और उद ु भाषा स े िलये । इनक े
िनबंध क म ुख िवश ेषता भाषा को सजाना , संवारना , िविवध िवषय पर अपन े िवचार
य करना आिद ह ै इहन े ३०० से अिधक िनब ंध िलख । इनके मुख िनब ंध
संकलन ह ै- 'सािहय सीकर ', 'सािहय स ंदभ', 'िवचार िवमश ' आिद । सन १९०३ म
इहन े ‘सरवती ’ पिका स ंपादन का दाियव वीकार िकया और इस पिका क े
मायम से सािहय को नयी िदशा दान क । अंेजी के िनबंध का िह ंदी म अनुवाद
िकया । इनके ारा िलिखत समीामक िनब ंध म ‘किव और किवता ’, 'सािहय क
महा ' वणनामक िनब ंध म ‘एक योगी क साािहक समािध ’, ‘अुत', 'इंजाल ’
मुख है । मौिलक िचंतन पर आधारत िनब ंध है - ‘दडद ेव का आम िनव ेदन’,
'कािलदास का भारत ’, 'गोिपय क भगवद ् भि' आिद । इस कार इनक े संपूण
िनबंध म भाषा श ु और स ुंदर प म तुत हई ह ै परंतु वैचारक ि स े िनबंध बािधत
हए ह ।
बाबू यामस ुंदर दास :-
आलोचक होन े के साथ ही उच कोिट क े िनबंधकार भी ह ै इनके िनबंध के िवषय म ुख
प स े सािहियक और सा ंकृितक रह े ह इनके ारा िलिखत म ुख िनब ंध है- भारतीय
सािहय क िवश ेषताएँ, 'तुलसीदास ', 'सूरदास', 'हमारी भाषा ' आिद । य े एक अछ े
वा थ े इसी कारण इनक े िनबंध म िवचार स ंचय क व ृि अिधक ह ै और अन ुभूित कम
उनके िनबंध के पठन स े यायान का भास हम होता ह ै । इहन े िवषय िवव ेचन स े
अिधक िवषय क यापकता पर िवचार िकया । यामस ुंदर दास जी न े भी िह ंदी भाषा
िवकास म महवप ूण योगदान िदया इसी स ंबंध म ‘ सािहय लोचन ’ नामक प ुतक िलखी
और साथ ही िह ंदी के हतिलिखत ंथ क खोज कर िह ंदी वैािनक कोश तथा शद
सागर का स ंपादन िकया । कई ाचीन किवय क े ंथ का स ंपादन िकया नागरी
चारणी सभा क थापना क । इनक भाषा तसम शद क े योग क े साथ संकृत
िन भाषा थी ।
माधव साद िम :-
इनके िनबंध म भारत क ाचीन स ंकृित, धम, दशन और सािहय क े ित गहरी
आथा दिश त होती ह ै । इहन े शाीय िनपण पर अिधक बल न देते हए अन ुभव
और यवहार क े आधार पर िनब ंध िलख । गृहिथक और मनोिवकार क समया भी
इनके िनबंध के िवषय रह े ।
माधव िम िनब ंध माला नाम स े िनबंध संह कािशत ह ै साथ ही िच ंतन परक िनब ंध म
- 'सब िमी हो गया ’ िनबंध म ुख है । भावपूण िनबंध म 'होली', 'रामलीला ', 'यास munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
84 पूजा', 'ी पंचमी' आिद िनब ंध म ुख है । शोध और अन ुसंधान पर आधारत िनब ंध है -
'बेबर का म '
सरदार प ूण िसंह:-
इनके जीवन का िकोण व ैािनक था ल ेिकन सािहय म भावामक और मानवतावादी
िकोण को ल ेकर आग े बढ़े । और क ेवल छ : िनबंध के बल पर े िनब ंधकार मान े
गये । इनके िनबंध म िवचार क य ंजना, गितशीलता और पामक िवकास क
अवधारणा पर जोर िदया गया ह ै । लिलत िनब ंध का ार ंभ उहन े ही िकया ह ै इस ेणी
म तीन म ुख िनब ंध है-'आचरण क सयता ', 'मजदूरी और ेम' तथा 'सची वीरता ',
अय िनब ंध है - 'कयादान ', 'पिवता' और 'अमेरका का मत योगी वाट िहटम ैन' इस
कार अपनी सहज और सरल शैली का अ ंकन िनब ंध म कर सरदार जी थोड़ े िनबंध
से ही इस े म अिवमरणीय हो गय े ।
चंधर शमा गुलेरी:-
भाषा क े कांड पंिडत होन े के कारण इनक े ारा िलिखत िनब ंध बौि क सरसता ग ंभीरता
व ाचीनता म नािवय का समवय ज ैसी अ ुत कला क े साथ त ुत हए ह . । इनके
िनबंध म अथ वता , यंयामकता , हाय भावना सव देखी जा सकती ह ै । 'मोरिस
मोिहं कुाव', 'कछुआ धम ' और 'संगित' मुख िनब ंध है जो सािहियक गुणामक ि स े
अतुलनीय ह ै । इनके िनबंध क भाषा सहज - सरल ह ै । केवल 'संग वश ' ही
पारभािषक शदावली का योग हआ ह ै ।
प िस ंह शमा :-
प पराग और ब ंध मंजरी नाम स े इनके दो िनब ंध संह कािशत ह ै । िकसी सामाय
िवषय पर भाषायी चमकार ा रा इनक े िनबंध आकष क बन पड़ े ह उदु, फारसी , अंेजी
शद का ख ुलकर योग क े साथ म ुहावरे, कहावत का भी योग िकया ह ै । इनके ारा
िलिखत आलोचना भी सरस भाषा क े कारण कहानी और उपयास क तरह स ुगम बन
गई है ।
इस कार िव ेदी युग म िवषय , सािहय औ र भाषा क े आधार पर िनब ंध िवधा का यथ े
िवकास
हआ । इस य ुग के िनबंध सािहयाज न और ानाज न क ि स े महवप ूण है । अय
िनबंधकार ह ै- यशोधन , आौरी , गोिवंदा नारायण िम , ेमचंद आिद ।
७.३.३ शुल य ुग : - (१९२० ई से १९४० ई)
इस य ुग को िनब ंध िवधा का िवकास काल माना जाता ह ै । िवेदी युग म िनबंध के
िवषय और भाषा को खर और परक ृत करन े का काय पूरी गहराई क े साथ हआ
लेिकन िवषय क े िव ेषण का काय नह हआ था । शुल य ुग म ग िवधाओ ं म
सृजनामक योग आर ंभ हए । शुलजी न े किठन से किठन िवषय पर िनब ंध िलख और munotes.in

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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
85 इन िनब ंध क भाषा , िवचार और भाव को बहत ही वणता क े साथ त ुत िकया ।
यह छायावादी य ुग होन े के कारण कपनाशीलता भाषा क सरसता , भाव क वणता
आिद ग ुण से ग सािहय सजा - संवरा इसी कारण इस य ुग के िनबंध सहज - सरल
और अथ क ि स े प ह ै । वतंता स ंाम का िबग ुल बज जान े के कारण मानवीय
िकोण को सवम ुखी रख द ेश ेम और राभि क भावना ग सािहय पर थी ।
शुल य ुग के मुख िनब ंधकार ह ै:- रामचं शुला, गुलाब राय , जयशंकर साद ,
सुिमानंदन प ंत, सूयकांत िपाठी िनराला , महादेवी वमा , नंददुलारे वाजप ेयी, ेमचंद,
राहल सा ंकृयायन , माखनलाल चत ुवदी आिद ।
आचाय रामच ं शुल :-
िहंदी सािहय म आलोचक क े प म शीष थान पर आचाय रामच ं शुल का नाम ह ै ।
िनबंध सािहय क े िवकास म आचाय शुल का अणीय थान ह ै । उनके अनुसार
भाषा क प ूण शि का िवकास िनब ंध िवधा क े मायम स े ही स ंभव है । िहंदी सािहय म
शुल जी का िनब ंध के ित िकोण क त ुलना अ ंेजी सािहय क े िनबंध लेखक ब ेकन
से क जाती ह ै । इहन े िविभन िवषय पर िनब ंध िलख िजह िचंतामिण भाग -१,भाग-
२, भाग-३ नामक िनब ंध संह के मायम स े कािशत िकया । िचंतामिण भाग -१ म
मानव यवहार स े संबंिधत िवषय का चयन कर उसम तव िच ंतन और व ैािनकता का
आधार ल ेकर िनब ंध िवधा को सवपर प िदया गया है । इन िनब ंध म उसाह ,
'कणा ', 'ईया', 'घृणा', 'ोध', 'लजा ', और 'लानी -भाव' और 'मनोिवकार ', 'ा',
'भि', 'लोभ', 'ीित' आिद शािमल ह ै । सािहियक अवधारणाओ ं के आधार पर भी
शुला जी न े छह िनबंध िलख इनम मुख है:- 'किवता या ह ै', 'साधारणीकरण और
यि व ैिचयवाद ', 'रसामक बोध क े िविवध प ', 'काय म ाकृितक य ', 'काय म
रहयवाद ', 'काय म अिभय ंजनावाद ' । सािहियक समीा िवषय पर तीन म ुख िनब ंध
शुल जी न े िलख े ह िजनम - 'भारतदु हर ं', 'तुलसी का भि माग', 'मानस क
धमभूिम' । शुल जी न े बड़े िनबंध भी िलख े ह इनम मुख प स े 'काय म लोकम ंगल
क साधनावथा ' का नाम िलया जाता ह ै । शुलजी क े िनबंध म िवचार क मबता ,
िववेचन और य ंय के मायम स े िनबंध अय ंत भावशाली बन पड़ े ह ।
शुलजी क े सािहय क भाषा परिनित खड़ी बोली ह ै । देशी और िवद ेशी भाषाओ ं के
शद भी स ंगानुप जोड़ िदए ह । शद और अथ का पारपरक साम ंजय श ुलजी क े
काय क िवश ेषता है । अपने िनबंध को भावप ूण बनान े के िलए कहावत और म ुहावर
का भी योग यापक प स े िकया गया ह ै । इस कार श ुलजी क े िनबंध का सम
अययन उनक े लेखन क स ृजनामक , सदय परक , िवचारामक और आलोचनामक
तर क पराकाा को दशा ता है ।
बाबू गुलाब राय :-
गुलाब राय इस य ुग के मुख िनब ंधकार ह ै इनके अनेक िनब ंध संह कािशत ह ै इनके
िनबंध वैचारक , मनोिव ेषणामक , भावामक और लिलत िनब ंध ेणी म हम िवभािजत
कर सकत े ह । गंभीर िच ंतन के साथ य ंय िवनोद प ूण शैली इनक े िनबंध क िवश ेषता ह ै munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
86 िफर िनराशा य और 'मेरी असफलताए ं' इसी ेणी के िनबंध म आने वाले िनबंध संह
है । 'मन क बात ' िनबंध संह मनोिव ेषणामक िवषय पर िलखा गया ह ै । ठलुआ लब
िनबंध संह लिलत िनब ंध म आता ह ै । गुलाब राय जी िवषय स े अिधक श ैली को म ुख
मानते ह उनके िनबंध क भाषा वछ ंद और सरल सामाय ह ै लोकोिया ं और म ुहावर
का ख ुलकर योग िकया ह ै ।
पं. माखनलाल चत ुवदी:-
बहमुखी ितभा क े धनी प ं. माखनलाल चत ुवदी जी न े िनबंध के अितर नाटक ,
कहानी , किवता आिद सािहियक ल ेखन काय िकया व े एक अछ े पकार , वा और
राजनीितक काय कता थे । देश क आजादी क लड़ाई म चतुवदी जी वत ंता स ंाम
सेनानी भी रह े उनका सम जीवन कमय रहा ।
राीयता क भावना रग रग म भरी होन े के कारण इनके िनबंध भावना धान बन पड़ े ह
उनका य ेय था घटनाओ ं और तय को रागामक च ेतना स े भर कर पाठक को उस कम
क ओर असर करना । रागामक वृि के कारण उनक े लयग और वाह य ु बन
गए ह । सािहय द ेवता िनब ंध संह उनक े भावनामक वप को य करता ह ै । साथ
ही इस िनब ंध संह म ऐितहािसक और पौरािणक स ंग का भी समाव ेश हआ ह ै ।
चतुवदी जी क भाषा अल ंकृत और लयब है । उनक भाषा म कथन क लािणकता
वाह और स ंवेदनशीलता का अ ुत समवय िमलता ह ै ।
राहल सा ंकृयायन :-
राहल सा ंकृयायन पय टक और याा वृतांत के िलए जान े जाते ह । ये भाषा क े िवान
और प ुरातव व ेा थ े ‘ पुरातव िनब ंधावली म इस िवषय पर सभी िनबंध िलख े गए ह
इनके िनबंध म यह िविवध नए िवषय का समाव ेश करने म िवास करत े थे । सािहय
संबंधी िनब ंध म 'मातृ भाषाओ ं का ', 'गितशील ल ेखक', 'हमारा सािहय ',
'भोजप ुरी' आिद िनब ंध म ुख है इन िनब ंध म भाषा िवषय को ल ेकर अिधक िव तृत ान
दिशत होता ह ै । मानव जीवन और क ृित पर िलख े गए िनब ंध है- 'गली', 'चौराहा ',
'सड़क ', 'भीड़', 'शोरगुल', 'वीरान ', 'लता', 'कुंज', 'उान ', 'सागर', 'सरता ', 'पवत',
'मभूिम', 'घाटी', 'टोकरी ' आिद म ुख है । राहल जी क िनब ंध क भाषा साधारण
बोलचाल क भाषा ह ै अंेजी और उद ु के शद का योग उहन े खुलकर िकया ह ै ।
सूयकांत िपाठी िनराला :-
िनराला जी महा किव क े प म िवयात ह ै लेिकन ग सािहय म भी इनका अम ूय
योगदान ह ै । इनके मुख िनब ंध संह है- 'बंध ितमा ', 'चयन', 'चाबुक', 'बंध प '
आिद िनराला जी क े जीवन का भाव उनक े िनबंध पर भी पड़ा उहन े आमािभयि
परक िनब ंध िलख । munotes.in

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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
87 जो कपना और भाव ुकता स े कोस द ूर थे । उनक ग श ैली यथाथ वादी िकोण क
थी और भाषा छोट े-छोटे वाय स े सजी हई ह ै साथ ही ामीण भाग म चिलत म ुहावर ,
लोकोिय का बख ूबी योग िनराला जी न े िकया ह ै ।
शुलोर य ुग:-
इसे िवतरण य ुग भी कहा जाता ह ै इसम समाव ेिशत सािहय वत ंता ाि क े पात
का सािहय है । इस य ुग तक आत े-आते िनबंध िवधा प ूरी तरह ितित हो च ुक थी ।
इस य ुग म िनबंध िवधा म अनेक व ृिय का समाव ेश हआ । आधुिनक लिलत िनब ंध
इस काय म अिधक चिलत हए और इसक े िवकास म म हजारी साद िव ेदी, कुबेर
नाथ राय , िवा िनवास िमा का नाम अिधक चिलत ह ै
७.४ लिलत िनब ंध
लिलत शद स े तापय है लािलय अथा त सरसता । िनबंधकार जब अपन े भाव
िवचार स े सरस , अनुभूित परक और रोचकता य ु िनब ंध िलखता ह ै वह िनब ंध लिलत
िनबंध क ेणी म आते ह । इन िनब ंध क भाषा सहज व सरल होती ह ै और िवषय म
कपनाशीलता का समाव ेश अिधक होता ह ै इसी कारणवश पाठक उबाऊ वण न, जिटल
वाय रचना , दीघ िवशेषण स े परे होता ह ै इन िनब ंध म लेखक क े यिव क छाप
होती ह ै ।
आचाय हजारी साद िव ेदी:-
लिलत िनब ंध म िवेदी जी का थान म ुख है ये अययन शील यिव क े धनी थ े
संकृत भाषा क े साथ पािल, अपंश भाषा का ान भी इह था । इहन े अपनी रचना
पर िवचार का बोझ नह पड़न े िदया बिक िविश रचना णाली ारा यि परक
िनबंध का एक वप िनित िकया और स ंकृित व स ंवेदना का यापक परव ेश रचा
यिक लिलत िनब ंध का आधार ही सदय होता है इनके मुख िनब ंध संह म 'अशोक
के फूल', 'कपकता ', 'िवचार और िवतक , 'िवचार वाह ', 'कुज और आलोक ', 'पव'
मुख है । िवेदी जी क भाषा तसम शद क े बहल माा म योग क े साथ उद ु फारसी
और अ ंेजी शदावली का योग ख ुलकर िकया ह ै वही शैली गत ि स े िवचार ,
आलोचना और भाव क धानता ह ै ।
डॉ. िवािनवास िम :-
िम जी का नाम लिलत िनब ंध कार म मुखता स े िलया जाता ह ै. इहन े लिलत
िनबंध को सा ंकृितक भाव भ ूिम दान क इस कारण िनब ंध म सदय बोध को थान
िमला इह ने भावनामक श ैली धान िनब ंध िलख साथ ही इनक े िनब ंध म
सामािजक , सांकृितक और पारवारक बांिधलक देखने को िमलती ह ै जो पाठक को
आकिष त करन े म कामयाब ह ै । इनके ारा िलिखत लिलत िनब ंध संह है :-’ िछतवन
क छाह ’, 'कदम क फ ूली डाह', 'तुम चंदन हम पानी ', 'मने सील पह ंचाई', 'आंगन का munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
88 पंछी' और 'बंजारा मन ', 'कटील े तार क े आर पार ', 'बसंत आ गया पर कोई उक ंठा
नह', 'मेरे राम का म ुकुट भीग रहा ह ै', आिद िम जी क े िनबंध क भाषा स ंकृत िन
होने के कारण तसम शद क अिधकता ह ै उदु, । फारसी अ ंेजी शद का योग भी
इहन े िकया ह ै ।
कुबेर नाथ राय :-
राय जी साठोर युग के े लिलत िनब ंधकार ह ै. इनके िनबंध वाभािवकता धाय
है जो कहानी , उपयास और किवता क भा ंित आकष क है जो मानवीय प को उजागर
करते ह इनके अनुसार धम उतना ही आव यक ह ै िजतना िक राय क े िलए, शासक
और स ंिवधान । इनका पहला िनब ंध संह ‘ िया नीलक ंठी है जो ईसा मसीह क े जीवन
पर आधारत ह ै वही ‘रस आख ेटक’ िनबंध संह क सभी रचनाए ं लािलय बोध स े
जुड़ी हई ह ै । इनके िनबंध म ामीण स ंकृित का िचण हआ ह ै साथ ही ामीण भाग का
मनोरम क ृित िचण भी राय जी न े िकया ह ै. कुल िमलाकर इनक े िनबंध म मानवीय
जीवन म ूय क े ित गहरी आथा िदखाई द ेती है. रायजी क े िनबंध म भाषा का
गांभीय नजर आता ह ै. अलंकार श ैली के लािलय क े साथ लािणकता भी ह ै भाषा
सरस व िवषयान ुकूल चयन हई ह ै ।
शुलोर य ुग म लिलत िनब ंध क बहलता होन े के साथ-साथ अय कार क े िनबंध
भी िलख े गए ह . इनम मुख है वैचारक िनब ंध और यंय िनब ंध पर ंतु िसि और
रोचकता लिलत िनब ंध क ही रही ।
७.५ सारांश
िहंदी सािहय म िनबंध िवधा का िवकास आध ुिनक य ुग म हआ । आ. रामचं शुल
मुख िनब ंधकार मान े जाते ह और उह क े नाम क े आधार पर िनब ंध के िवकास को
तीन युग म िवभािजत िकया गया ह ै ।
इस इकाई क े अययन स े िनबंध िवधा का सम अययन हमन े िकया ह ै । भारतदु युग
म समाज स ुधार और द ेश ेम क भावना बल थी । िवेदी युग म सांकृितक
नवजागरण , शुल य ुग म िचंतन और मानवतावादी प खर हआ और श ुलोर य ुग म
िनबंध का िवतार हआ जैसे लिलत िनब ंध, वैचारक िनब ंध, यंय िनब ंध ।
७.६ बोध
१. िनबंध का अथ और परभाषा प करत े हए िनब ंध के वप का वण न किजए ।
२. िहंदी म िनबंध िवधा का िवकास क ैसे हआ? प किजए ।
३. आ. रामचं शुल का िनब ंध िवधा म महवप ूण योगदान ह ै िवतार प ूवक
समझाइए । munotes.in

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िहंदी िनब ंध का िमक िवकास
89 ४. भारतदू हरं को िनब ंध िवधा का ण ैता माना जाता ह ै िववरणामक उर दीिजए
५. िवेदी युग म िनबंध परिनित भाषा और वप क े साथ िवकिसत हए उदाहरण
सिहत प किजए ।
७.७ लघुरीय
१. िनबंध िवधा क े थम काल को कहा गया ह ै?
उर - भारतदु युग
२. ऑसफोड शदकोश म िनबंध क आक ृित कैसे बताई गई ह ै?
उर - सीिमत और परक ृत
३. िहंदी िवधा का आर ंभ कब हआ ?
उर - आधुिनक य ुग म
४. ‘भारत वष क उनित क ैसे हो सकती ह ै’ नाटक िकसन े िलखा ह ै?
उर - भारतदु हर ं
५. लिलत िनब ंध कौन स े युग म िलख े गए ह ?
उर - शुलोर य ुग
६. कुबेर नाथ राय िनब ंध िवा क े कौन स े युग के लेखक ह ै?
उर - शुलोर य ुग
७. महावीर साद िव ेदी ने कौन सी पिका का स ंपादन िकया ?
उर - सरवती
७.८ संदभ ंथ
१. सािहय िवधाओ ं क क ृित - लेखक द ेवीशंकर अ वथी
२. आधुिनक िह ंदी सािहय का इितहास - डॉ. बचन िस ंह
३. वातंयोर िह ंदी सािहय का इितहास - डॉ लमी सागर
४. े िनब ंध आचाय रामच ं शुला स ंपादक रामच ं ितवारी
❖❖❖❖
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90 ८
िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
बाजार दश न -जैने
पाप क े चार हिथयार
इकाई क पर ेखा
८.० इकाई का उ ेय
८.१ बाजार दश न
८.१.१ लेखक परचय
८.१.२ तावना
८.१.३ याया / समीा
८.१.४ संदभ सिहत पीकरण
८.१.५ बोध
८.१.६ वतुिन / लघुरी
८.१.७ वैकिपक
८.२ पाप क े चार हिथयार
८.२.१ लेखक परचय
८.२.२ तावना
८.२.३ याया / समीा
८.२.४ संदभ सिहत पीकरण
८.२.५ बोध
८.२.६ वतुिन/ लघुरी
८.२.७ वैकिपक
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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
91 ८.० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अंतगत पाठ ्यम म िनधा रत दो िनब ंध 'बाजार दश न' और 'पाप क े चार
हिथयार ' का परचय िदया गया ह ै । इसस े इन िनब ंध म िनिहत उ ेय को समझा जा
सकेगा, िनबंध क समीा क जा सक ेगी । साथ ही इस िनब ंध से संबंिधत क ुछ अवतरण
क स ंदभ सिहत याया भी क जा सक ेगी । अंत म बोध िदए गए ह । वत ुिन या
लघुरी क े उर भी िदए गए ह । साथ ही क ुछ वैकिपक और उसक े उर िदए
गए ह । िजसस े पाठक को (िवािथ य) को इस िनब ंध को समझन े म सरलता होगी ।
८.१ बाजार दश न - जैने कुमार
८ .१.१ लेखक परचय :
जैने कुमार :
िहदी सािहय क परपरा म जैने कुमार का नाम अयत समान क े साथ िलया
जाता ह ै । इनक याित का म ूल आधार उपयास तथा कहािनया ँ रही ह लेिकन इहन े
िनबंध िवधा म भी अपनी अिमट छाप छोड़ी। ग क भाषा को ज ैने ने एक नय े मुकाम
तक पह ँचाया ह ै । इनक े िवचारपरक िनब ंध म मानवीय ं का उाटन ख ूब हआ ।
मनोिव ेषण पित का अन ुसरण कर ज ैने ने अपन े चर क े मन क े अनेकानेक परत
का उभारकर एक नय े संसार स े परिचत कराया ह ै । जैने कुमार का जम 2 जनवरी
1905 को उरद ेश के अलीगढ़ िजल े म हआ था । बचपन म इह आनंदीलाल क े नाम
से पुकारा जाता या ारिभक िशा -दीा ग ुकुल म सपन हई थी । मैिक क परीा
पास करन े के उपरा ंत काशी िहद ू िविवालय उच िशा ा कर ने के िलए आए ।
लेिकन वत ंता स ंाम क े आंदोलन क े ित आकिष त हए और पढ़ाई छोड़कर गा ंधीजी
के सहयोग आ ंदोलन म शािमल हो गए ।
'परख' , 'सुनीता' , 'यागप ' , 'कयाणी ' , 'िववत' और 'सुखदा' इनके अयत चिच त
उपयास ह । 'फाँसी' , 'वातायन ' , 'नीलम देश क राजकया ' , 'एक रात ' , 'दो िचिड़या ँ'
और 'पाजेब' शीषक से इनके कहानी स ंह कािशत हए ह । जैने कुमार क े िनबंध का
मुय िवषय ेम, िववाह , सेस, धम, रजनीित , संकृित और परपरा का अव ेषण ह ै ।
दशन और व ैचारकता क े आधार पर इहन े जीवन के तमाम स ूम पहल ुओं पर िच ंतन-
मनन िकया ह ै । जैने कुमार क े िनबंध क श ैली ामक ह ै। वे संवाद अथवा सवाल -
जवाब क े मायम स े दाशिनक तव को क े म रखकर िकसी भी जिटल म ुे पर िच ंतन
तुत करत े ह। सािहय क े े म अमूय यो गदान क े िलए इह पभ ूषण क े अितर
िहदुतान अकादमी प ुरकार , हतीमल डालिमया प ुरकार , िशखर समान तथा
ितित सािहय अकादमी प ुरकार स े समािनत िकया गया ह ै । इनका िनधन 24
िदसबर , 1988 को हआ ।
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वातंयोर िह ंदी सािहय
92 ८ .१.२ तावना :
िहंदी सािहय म जैन कुमार मनोव ैािनक ल ेखक क े प म जाने जाते ह, िवशेष प स े
उपयास कहािनय क े संदभ म। जैन कुमार न े अपनी मनोव ैािनक श ैली के अनुप
मानव मन क अन ेकानेक परत को खोलत े हए य ंयामक िनब ंध भी िलख े ह ।
'बाजारदश न' ऐसा ही एक िनब ंध है िजसक े ारा मानव मन क द ुबलता और लोभन ,
आकष ण, िवरि और स ंतुलन ज ैसी व ृिय का वण न िकया गया ह ै ।
८.१.३ याया / समीा :
इस िनब ंध ारा ल ेखक न े वणनामक श ैली म अलग -अलग उदाहरण क े ारा अपनी
बात कही ह ै । बाजार को जहा ँ वह आवयक मानता ह ै वह उस े एक जाद ूगर क उपमा
भी देता है । वह एक ऐसा जाद ूगर है, जो मानव मन को िवचिलत िकए िबना नह रहता ।
लेखक न े अपन े िम का उदाहरण िदया ह ै जो अपनी पनी को िजम ेदार ठहरात े ह ए
वयं क अितर खरीदारी करन े के कमजोर मन क द ुबलता को छ ुपाते हए बाजार को
शैतान का जाल कहता ह ै । बाजार क सजावट और द ुकानदार क श ैली को अितर
खच के िलए िजम ेदार मानता ह ै । लेखक क े अनुसार ऐस े यि व े होते ह िजनक े पास
पैसे तो काफ होत े ह पर मन खाली होता ह ै । उह पता नह रहता िक या ल ेना जरी
है और या ग ैरजरी । जो अछा लगा खरीदत े जाते ह और अ ंत म बाजार को दोष द ेते
ह । दूसर को अितर खच के िलए िजम ेदार ठहरात े ह ।
वह क ुछ ऐस े भी लोग होत े ह जो सारा बाजार घ ूम-घूमकर द ेखते ह, पर खरीदत े कुछ
नह । वे अपन े पैस को जमाकर रखन े म ही ख ुश रहत े ह । मन को मारकर या ब ंदकर
बाजार जान े वाले ये होते ह । उह पैस म ही सारी शि िदखाई द ेती है । िफज ूल वत ुएं
खरीदन े के बजाय प ैस को जमाकर रखन े म ही उह आनंद िमलता ह ै । ये कुछ यादा
ही चुत लोग होत े ह । मानो बाजार को च ुनौती द े रहे ह, देखो म तुहारी चकाचध द ेख
तो रहा ह ँ पर उसक े भाव म नह आन े वाला। ल ेखक इस े धन स ंचय क त ृणा ही
मानता ह ै, िजसे वैभव क चाहत होत े हए भी वय ं पर कठोर िनय ंण होता ह ै ।
लेखक न े भगत च ूरन वाल े के मायम स े संतुिलत मन स े बाजार जान े वाले यि का भी
उदाहरण िदया ह ै । भगत जी िसफ और िसफ अपनी जरत का सामान खरीदत े ह ।
उनके काम करन े का, कमाई का , खरीदारी और िब का स ुिनित िनयम ह ै । अय ंत
सधे हए स ंतुिलत मन स े वे बाजार जात े ह । बाजार क े प का जाद ू उन पर असर नह
करता शायद उनक यह िनयम बायता ही उह लोकिय बना द ेती है । बाजार को
उसक समता म देखते ह । आसपास क े लोग को भी द ेखते ह। अय ंत सरल और
संतु भाव क े साथ बाजार का समान करत े हए अपनी जरत क चीज ह वे खरीदत े ह,
उनके िलए बाजार क इतनी ही उपयोिगता ह ै ।
यहाँ लेखक मा बाजार को ल ेकर ेता और िव ेता ही नह बिक अथ क शि क े
िवषय म भी बहत क ुछ कह जात े ह । पैसे म िकतनी ताकत ह ै वह हम मानव मन को िकस
कार भािवत करता ह ै । िजसक े पास बहत क ुछ है, लोग उसस े भािवत होत े ह । munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
93 िजसक े पास क ुछ कम ह ै वह अिधक क लालसा रखता है । जैसे िक प ैदल चलन े वाला
कूटर क चाह रखता ह ै, कूटर वाला कार क इयािद । चीज क े ित आकष ण का यह
भाव वत ु क मा ंग को बढ़ा द ेता है और मा ंग बढ़न े पर मह ंगाई भी बढ़ती ह ै ।
लेखक बाजार क े जादू को प का जाद ू मानता ह ै, जोिक िबना िकसी भ ेदभाव क े मा
य शि को पहचानता ह ै । जो खरीद सकता ह ै वह उसक े िलए े है । इसका द ूसरा
पहलू यह भी ह ै िक यह उपभोावादी स ंकृित िकसी न िकसी तर पर सामािजक
समता भी दशा ती है । बाजार क असली क ृताथता आवयकता क े समय काम आन े म
है। संचय क त ृणा और व ैभव क चाह यि को कमजोर ही मािणत करती ह ै । बाजार
को साथ कता वही दान करता ह ै, जो जानता ह ै िक उस े या खरीदना ह ै । िजह यह
नह पता होता िक उह या खरीदना ह ै वे बाजापन को जम द ेते ह । एक द ूसरे क
देखादेखी लोग ह ैिसयत स े बाहर खरीदारी करना चाहत े ह । यिद सामय है तो धन का
अपमान और सामय नह ह ै तो छल -कपट व गलत तरीक े से धन ाि का योग
समाज म गलत व ृिय को बढ़ाता ह ै । अंततः बाजार का अथ शा, अनीित शा म
बदल जाता ह ै । दूसर क सम ृि देखकर वय ं के ित हीन भावना प ैस क य ंय शि
ही है ।
िनबंध म सरल , सहज और भावशाली भाषा का योग िकया गया ह ै । लेखक न े हर
िथित और घटना का वण न रोचक और प श ैली म िवतारप ूवक िकया ह ै । िहंदी के
साथ उद ू, फारसी , अंेजी भाषा क े शद क े योग न े लेखन श ैली को सम ृि दान क
है ।
(अंेजी-एनज , परपेिसंग पावर , बक, मनीबैग, फसी टोर , उदू, फारसी नाहक , पेशगी,
बेहया, खलल , हष, दरकार ज ैसे शद का योग हआ ह ै ।)
यह िनब ंध उपभोावाद एव ं बाजारवाद क अ ंतवतु को समझान े म सहायक ह ै । बाजार
उपभोा सामान और उपभोावादी स ंकृित दोन क े िलए िजम ेदार ह ै । इसका सारा
कारोबार ही इस पर िनभ र है । बाजार का आकष ण मानव मन को भटका द ेता है । उसे
ऐशो-आराम क वत ुओं को खरीदन े को आकिष त करता ह ै । लेखक न े भगत जी क े
मायम स े िनयंित खरीदारी का महव बतलाया ह ै िक बा जार हमारी जरत को प ूरा
कर इसी म उसक साथ कता ह ै । अयथा समाज म लूट-खसोट और ईया को ही बढ़ावा
िमलेगा । बाजार को साथ कता वही द ेगा जो अपनी आवयकताओ ं को जानता ह ै । जो
नह जानता वह बाजार को शोषक का प द ेता है । अंततः ल ेखक कहना यही चाहता ह ै
िक जैसे बाजार हमार े िलए उपयोगी और आवयक ह ै वैसे हम म अपनी जरत का
ान और स ंतुिलत मन आवयक ह ै ।
८.१.४ संदभ सिहत पीकरण
“उस आम ंण म यह ख ूबी है िक आह नह ह ै, आह ितरकार जगाता ह ै । लेिकन ऊ ँचे
बाजार का आम ंण म ूक होता ह ै और उसस े चाह जा गती ह ै ।” munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
94 संदभ : उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘बाजार दश न' से उृत है । इसक े िनबंधकार ज ैने कुमार ह ।
संग : िनबंधकार ज ैने कुमार जी न े अपन े इस िनब ंध के मायम स े बाजार क मिहमा
तथा उसम होनेवाले छल-कपट का ल ेखा-जोखा त ुत िकया ह ै । उपभोावादी
संकृित तथा बाजारवाद पर तीखा कटा भी ह ै ।
याया : िनबंधकार बाजार क े जादू से अवगत करात े हए कहत े ह िक बाजार म एक
चुंबकय आकष ण होता ह ै । जो ाहक को सहज ही अपनी ओर आकिष त करता है ।
बाजार क चमक -दमक लोग को एक म ूक आम ंण द ेती है िजसस े ाहक वय ं उस ओर
आकिष त हो खचा चला जाता ह ै और अपन े आप ही बाजार म िबक रही वत ु का अभाव
महसूस करन े लगता ह ै । िजस कारण उस वत ु को खरीदन े क चाह उस ाहक म बल
हो उठती ह ै । िफर वह यि उस वत ु क खरीदारी िकए िबना नह रह पाता ।
िवशेष : यहाँ मानव मन क द ुबलता और बाजार ारा िनिम त लोभन , आकष ण का
सटीक िवश ेषण हआ ह ै ।
बोध -
१. बाजार दश न िनब ंध क कथावत ु िलिखए |
२. बाजार दश न िनब ंध के िवषय पर िवव ेचन क िजए |
३. बाजार दश न आज क समयाओ ं को उजागर करता ह ै िस किजए |
वतुिन क े उर दीिजए ।
1. कौन ब ुिमान होत े ह ?
उर : जो पैसा बहात े ह वे बुिमान होत े ह ।
2. िकसका आम ंण म ूक होता ह ै ?
उर : ऊँचे बाजार का आम ंण मूक होता ह ै ?
3. मन खाली होन े पर मन तक िकसका िनम ंण पह ँच जाता ह ै ?
उर : मन खाली हो तो बाजार क अन ेकानेक चीज का िनम ंण उस तक पह ँच जाता
है ।
4. बाजार क असली क ृताथता िकसम है ?
उर : आवयकता क े समय काम आना बाजार क असली क ृताथता है ।
5. सचा कम सदा क ैसा होता ह ै ?
उर : सचा कम सदा अप ूणता क वीक ृित के साथ होता ह ै । munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
95 वैकिपक क े उर दीिजए ।
1. बाजार एक या ह ै ?
अ) पयटन ब) दुकान क) जादू ड) खेल
2. या खाली हो तो बाजार न जाओ ?
अ) मन ब) बटवा क) घर ड) दुकान
3. िकस पर बाजार का जाद ू नह चल सकता ?
अ) बच पर ब) ानी पर क) वृ पर ड) चूरनवाल े भगतजी पर
4. 'जो जानता ह ै िक वह या चाहता ह ै' वह मन ुय बाजार को या द ेता है ?
अ) पैसे ब) साथकता क) ाहक ड) घाटा
८.२ पाप क े चार हिथ यार - कहैयालाल िम भाकर
८.२.१ लेखक परचय :
कहैयालाल िम जी का जम 26 िसतबर , 1906 को उरद ेश के देवबद गा ँव म
हआ। आप िहदी क े कथाकार , िनबधकार , पकार तथा वतता स ेनानी थ े । आपन े
पकारता म वतता क े वर को ऊ ँचा उठा या । आपक े िनबध भारतीय िचतनधारा
को कट करत े ह । आपका सप ूण सािहय म ूलतः सामािजक सरोकार का शदा ंकन
है । आपन े सािहय और पकारता को यि और समाज क े साथ जोड़न े का यास
िकया ह ै । िम जी भारत ारा 'पी ' समान स े िवभूिषत ह । आपक भाषा सहज -
सरल और म ुहावरेदार ह ै जो कय को यमान और सजीव बना द ेती है । तसम शद
का योग भारतीय िचतन -मनन को अिधक भावशाली बनाता ह ै । आपका िनधन
1995 म हआ ।
मुख कृितयाँ : 'धरती क े फूल' (कहानी - संह), 'िजदगी म ुकुराई' , 'बाजे पायिल या
के घुँघ', 'िजदगी लहलहाई ', 'महके आँगन - चहके ार (िनबध -संह), 'दीप जल े,
शंख बज े', 'माटी हो गयी सोना ' (संमरण एव ं रेखािच ) आिद । िनबध का अथ है-
िवचार को भाषा म यविथत प स े बाँधना ह ै । िहंदी सािहयशा म िनबध को ग
क कसौ टी माना गया ह ै । िनबध िवधा म जो पार ंगत है वह ग क अय िवधाओ ं को
सहजता स े िलख सकता ह ै । िनबध िवधा म वैचारकता का अिधक महव होता ह ै तथा
िवषय को खरता स े पाठक क े समुख रखन े क सामय होती ह ै ।
८.२.२ तावना :
मानव समाज म युग-युग से महाप ुष का आिवभा व िविभन प म होता रहा ह ै । ये
सभी िवचारक , संत, महामा क े प म आत े रहे ह । वह समाज म पापी , दुकम, munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
96 अपराधी व ृि का वग भी िनर ंतर बना रहा ह ै । समाज क े सुधारक महाप ुष समाज को
इन द ुवृिय स े मुि का माग बतला रह े ह और मानव समाज भी जान े-अनजान े
उनका अन ुसरण करता रहा ह ै । पर महान स ुधारक क जय ंती, उनके मारक हम याद
िदलान े के िलए एक मरण िचह स े अिधक नही रह गए ह । हम उह याद तो करत े ह पर
उनके ारा दी गई िशा को नह अपनात े, उनके आचरण को नह अपनात े । आिखर
ऐसा य होता ह ै ? लेखक न े इसी का उर खोजन े का यास इस िनबध क े
मायम स े िकया ह ै ।
८.२.३ याया / समीा :
पाप क े चार हिथयार क े मायम स े लेखक न े वल ंत सांसारक , सामािजक समया का
िवेषण िकया ह ै । संसार म चार ओ र पाप , अयाय और अयाचार या ह ै । यिद कोई
संत, महामा , पैगबर इनस े मुि का माग बतलाता ह ै तो लोग उसक बात पर यान
नह द ेते, उसक अवह ेलना करत े ह, आलोचना करत े ह, इतना ही नह स ुधार क े यास
म सुधारक को अपनी जान स े भी हाथ धोना पड़ता ह ै ।
लेखक क े अनुसार समाज पीिड़त और पीड़क वग म बँट गया ह ै । इसक े अितर एक
ऐसा भी वग है जो मा म ूक दश क बना हआ ह ै जब ज ैसी िथित होती ह ै वह वय ं को
उसके अनुकूल बना ल ेता है । िवपरीत िथितय क े िवरोध म सुधारक आत े ह । सुधार
हेतु सय का स ंदेश देना चाहत े ह तो वह पीड़क वग िजस े लेखक न े पाप का स ंबोधन
िदया ह ै सुधारक क उप ेा करता ह ै, िकंतु इसका स ुधारक पर कोई असर न होता द ेख
वह उसक िन ंदा करना श ु करता ह ै । िनंदा का असर यह होता ह ै िक स ुधारक का सय
और भी ती हो जाता ह ै और वह अपन े े को भी बदल द ेता है । सुधारक क े इस क ृय
से बौखलाया पाप अपन े तीसर े और भयानक श का योग सय को परािजत करन े के
िलए करता ह ै ।
पाप का यह हिथयार होता ह ै हया । इितहास क े पन म सुकरात , ईसा और दयान ंद
वामी क े उदाहरण िमलत े ह । समाज स ुधारक क े अितव को ही समा कर द ेने के कई
उदाहरण हमार े इितहास म दज ह । लेिकन यह हिथयार भी स ुधारक क े भाव को नह
समा करता । िजस े जीते जी नह वीकार िकया , िनरंतर िवरोध िकया , उस स ुधारक
क हया समाज म आोश प ैदा कर द ेती है और उस आोश स े बचन े के िलए पाप ,
सुधारक का मिहमागान करन े लगता ह ै । उसे बंदनीय कहकर उसक े मारक बनवाकर ,
उसके सय को ंथ, भाय, जयंती और प ुयितिथ तक सीिमत कर िदया जाता ह ै । लोग
उसक याया तो करत े ह पर आचरण म नह लात े। अंततः होता यही ह ै िक जहा ँ से
सुधारक न े आरंभ िकया था वह इित हो जा ती है यह सय क पराजय होती ह ै । इस
कार ा उसका अ ंितम श होता ह ै ।
जनमानस अपनी सोच बदलना नह चाहता , उपेा, िनंदा, हया और ा का मशः
योग समाज म िनरंतर चलता रहता ह ै । सुधारक आत े रहते ह और पाप क े हिथयार क े
िशकार बनकर चल े जाते ह, और रह जाती ह ै उनक सम ृितयाँ, पुतले और प ुतक । पाप
और स ुधार का यह ख ेल समाज म सदैव होता रहता ह ै । िजस अयाय अयाचार और munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
97 बुरे काम स े सुधारक समाज को म ु करना चाहत े ह वे सब समाज म चलत े रहते ह ।
लेखक न े इस िनब ंध के मायम स े सामािजक िवो भ य िकया ह ै और अ ंततः वह
सय को परािजत मान ल ेता है । वह कहना चाहता ह ै िक स ुधारक , महामाओ ं आिद
महान हितय क े जीवनकाल म उनक े िवचार पर अमल करन े से ही समयाओ ं का
समाधान होता ह ै न िक उनक े मारक , मंिदर बनाकर मरण मा करन े से ।
८.२.४ संदभ सिहत पीकरण :
“जीवन अन ुभव का साी ह ै िक स ुधारक क े जो िजतना समीप ह ै, वह उतना ही बड़ा
िनंदक होता ह ै । यही कारण ह ै िक स ुधारक को ायः े बदलन े पड़त े ह ।”
संदभ : उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘पाप क े चार हिथयार ' से उृत है । इसक े िनबंधकार कह ैयालाल िम
भाकर जी ह ।
संग : इस िनब ंध के मायम स े िनबंधकार यह बताना चाहत े ह िक, दुिनया म इतन े
महापुष का जम हआ , इतने अवतार हए ल ेिकन अयाय , अयाचार , ाचार , पाप
और द ुकम कम होन े क बजाए बढ़ता गया ।
याया : िनबंधकार बतात े ह िक, सुधारक समाज म या पाप क े िखलाफ अपनी
आवाज ब ुलंद करता ह ै । तब पहल े लोग उनक उप ेा करत े ह, परंतु जब उनक बात
का भाव पड़न े लगता ह ै और वह समाज स ुधाकर क बात को स ुनने के िलए िविवश हो
जाते ह तो लोग स ुधारक क िन ंदा करन े लगत े ह । इस िन ंदा क श ुवात स ुधारक का
सबसे समीप का ही यि करता ह ै। ऐसे म सुधारक को अपन े काय वह थिगत कर उस
े से दूर हट जाना पड़ता ह ै ।
िवशेष : यहाँ पाप क े सवयापी भाव का तथा स ुधारक ारा इस पाप को द ूर करन े के
यन और उनक िवफलता पर कटा हआ ह ै ।
८.२.५ बोध :
१. पाप क े चार हिथयार िनब ंध समाज स ुधार का एक यास ह ै समझाईए |
२. पाप क े चार हिथयार िनब ंध का सारा ंश िलिखए |
३. पाप क े चार हिथयार िनब ंध म समाज पीिड़त और पीड़क व ग के िवभाजन को िवत ृत
समझा इए |
८.२.६ वतुिन/ लघुरी :
वतुिन क े उर दीिजए ।
१. समाज िकन वग म बँट गया ह ै ?
उर : समाज पीिड़त और पीड़क वग म बँट गया ह ै । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
98 २. पाप क े चार श कौन स े ह ?
उर : पाप के चार श ह – उपेा, िनंदा, हया और ा ।
३. सुधारक का सबस े बड़ा िन ंदक कौन होता ह ै ?
उर : सुधारक का सबस े बड़ा िन ंदक वही होता ह ै जो उसक े सबस े समीप होता ह ै ।
४. सुधारक का सय िकसस े खर हो जाता ह ै ?
उर : सुधारक का सय िन ंदा क रगड़ स े खर हो जाती ह ै ।
८.२.७ वैकिपक :
वैकिपक क े उर दीिजए ।
१. जीवन क िवड ंबनाओ ं पर कौन चोट करता ह ै ?
अ) शोषक ब) यवथा क) सुधारक ड) परिथितया ँ
२. पाप क े पास िकतन े श ह ?
अ) चार ब) तीन क) सात ड) पाँच
३. सुधारक िकसक े िव झ ंडा बुलंद करता ह ै ?
अ) गरीब ब) सरकार क) आडंबर ड) पाप
४. सुधारक को ायः या बदलन े पड़त े ह ?
अ) चोला ब) घर क) े ड) िशय

 munotes.in

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99 ९
िनबंध िविवधा (िनबंध संह)
मनुय क सवम क ृित : सािहय
िहमत और िज़ ंदगी
इकाई क पर ेखा :
९.० इकाई का उ ेय
९.१ तावना
९.२ मनुय क सवम क ृित : सािहय
९.२.१ लेखक परचय
९.२.२ याया / समीा
९.२.३ संदभ सिहत पीकर ण
९.२.४ बोध
९.२.५ वतुिन / लघुरी
९.२.६ वैकिपक
९.३ िहमत और िज़ ंदगी
९.३.१ लेखक परचय
९.३.२ याया / समीा
९.३.३ संदभ सिहत पीकरण
९.३.४ सारांश
९.३.५ बोध
९.३.६ वतुिन / लघुरी
९.३.७ वैकिपक
९.० इकाई का उ ेय
इकाई म हम िनब ंध िविवधा (िनबंध संह) के दो िनब ंध संह का अययन कर गे पहला
िनबंध है- मनुय क सवम क ृित सािहय (हजारी साद िव ेदी),और द ूसरा िनब ंध है
िहमत और िज ंदगी (रामधारी िस ंह िदनकर )| इस इकाई क े अययन स े िवाथ िनन
िलिखत म ु से अवगत हग े –
munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
100 *लेखक का परचय जान सक गे |
* िनबंध क िवतार स े समीा कर सक गे |
* िनबंध के कुछ अंश क स ंदभ सिहत याया कर सक गे |
९.१ तावना
िहदी सािहय को अम ूय योगदान द ेनेवाले आचाय हजा री साद िव ेदीजी क
रचनाओ ं म भारतीय स ंकृित और सािहय क े िविवध प का िवचारामक और
आलोचनापरक वप िदखलाई द ेता है । आलोचना क े े म इनका महवप ूण थान
है । इनक े सािहय म मानवता का परशीलन सव िदखाई द ेता है ।
भारतीय ानपीठ पुरकार स े समािनत राकिव रामधारी िस ंह 'िदनकर ' जी का िहदी
सािहय म महवप ूण थान ह ै। 'संकृित के चार अयाय ' उनक कालजयी रचना मानी
जाती ह ै। िदनकर जी क रचनाओ ं म सामािजक और आिथ क शोषण क े िवरोधी वर
िदखाई द ेते ह। रावाद और गितवा द के सािहियक आ ंदोलन स े जुड़े िदनकर जी क
रचनाओ ं म जोश और राीयता का भाव ह ै। िहमत और िज ंदगी िनब ंध म लेखक न े
जीवन म दुःख और स ंघष को महव द ेते हए उस े ही जीवन क अथ वा समझन े म
सहायक माना ह ै।
९.२ मनुय क सवम क ृित : सािहय - आचाय हजारी साद िव ेदी
९.२.१ लेखक परचय :
िस आलोचक और िनब ंधकार आचाय हजारी साद िव ेदी का जम बिलया क े
आरत द ूबे का छपरा नामक गा ँव म 19 अगत , 1907 को हआ था । ारिभक िशा
थानीय गा ँव से सपन होन े के उपरा ंत वे उच अययन क े िलए काशी आए और
काशी िहद ू िविवालय स े उच िशा हािसल क थी । आचाय हजारी साद िव ेदी
योितष शा म पीएच .डी. कर वह ायापक िनय ु हए । कुछ वष तक काशी िहद ू
िविवालय म अयापन करन े के बाद िफर थानीय राजनीित क े िशकार ह ए और
िविवालय स े बाहर िनकाल िदए गए । उसक े बाद उह आसरा िमला रवीनाथ ट ैगोर
ारा थािपत िवभारती म । वह उहन े अपन े अयापन जीवन का अिधका ंश िहसा
यतीत िकया। रवीनाथ ट ैगोर क छछाया म उनक ितभा ख ूब िनखरी ,
फली-फूली । सूर और कबीर क आलोचनामक प ुतक उहन े िव भारती क े ांगण म
ही िलखी । कबीर को आज जो म ुकमल थान हािसल हो सका ह ै, उसम आचाय िवेदी
के 'कबीर' नामक प ुतक क भ ूिमका ब ेहद महवप ूण रही ह ै ।
'िहदी सािहय क भ ूिमकाए ँ', 'िहदी सािहय : उव और िवकास ', 'िहदी सािहय का
आिदकाल ' नामक तीन इितहास क प ुतक िलखकर उहन े न केवल आचाय रामच
शुल क थापनाओ ं को च ुनौती दी थी बिक सािहय ेितहास क ि को नय े िसरे से
यापक बनाया था । आचाय हजारी साद िव ेदी का िनब ंध िवधा के िवषय म अहम munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
101 योगदान रहा ह ै। उहन े लिलत िनब ंध क द ुिनया म सााकार का उोष िकया तो
दूसरी तरफ 'भारतीय िच ंता का वाभािवक िवकास ' करवाया ।
हजारी साद िव ेदी का िनब ंध अशोक क े फूल (1948), कपलता (1951), िवचार
और िवतक (1954), कुटज (1964) और आलोक पव (1977) इनके िस िनब ंध
संह ह । इनक े िनबंध म भारतीय स ंकृित, इितहास , परपराए ँ, लोकजीवन का
घुलािमला अ ुत प िदखाई पड़ता ह ै । हजारी साद िव ेदी के चार उपयास भी
कािशत हए ह - बाणभ क आमकथाए ँ (1946), चा च ंलेख (1963), पुननवा
(1973) और अनाम दास का पोथा (1976) । ये चार उपयास िहदी उपयास क
िवकास याा क े मील का पथर सािबत हए ह । सािहय क े े म अमूय तथा
अिवमरणीय योगदान क े िलए आचाय िवेदी को प भ ूषण, सािहय अकादमी आिद
समान स े नवाजा गया ।
९.२.२ याया / समीा :
सािहय को मन ुय क सवम क ृित मानत े हए िव ेदी जी मानव जीवन म सामंजय को
महव द ेते ह और उसी को जीवन क स ुंदरता भी मानत े ह, इसके िलए व े मनुय क
आका ंाओ ं क अिभयि क े तौर-तरीक को महवप ूण मानते ह । जैसे एक सफल
िचकार क ुशलताप ूवक रंग का योग करता ह ै, उसी कार सािहय का ल ेखन, पठन,
अययन , अयापन इयािद ियाए ँ मनुय के भीतर मन ुयता और साम ंजय का
अनुपात बनाती ह । जहा ँ अय कलाए ँ काल िवश ेष तक सीिमत रहती ह , सािहय सदा क े
िलए होता ह ै । सािहय और कला हम जीवन क ब ेहतर समझ द ेते ह । लेखक सािहय
को अय कलाओ ं क त ुलना म े मानत े हैँ । हाला ँिक सािहय रचना हर िकसी क े वश
क बात नह ह ै पर सािहय का अययन तो अिधका ँश लोग करत े ही ह । धन स े संपन
यि अपनी धन स ंबंधी जरत पूरी कर सकता ह ै । धन स े दूसर क सहायता भी कर
सकता ह ै िकंतु आवयक नह िक उसक े कम और िवचार समाज क े िलए सही हो , उसके
काय मरणीय ह । धम संबंधी दान -दाताओ ं के भी म ृित िचह लगाए जात े ह, लोग उह
पढ़ते ह िफर भ ूल जात े ह ।
सािहय क े िवषय म ऐसा नह होता । सािहय मन ुय के मन म सद्वृिय को जगान े
का काय करता ह ै । यही सद ्वृियाँ यि म सामंजय क े भाव को जम द ेती ह ।
सामंजय स े परप ूण यि ही समाज म उथान काय करता ह ै और स ंसार म अपनी
अमूय म ृितयाँ छोड़कर जाता ह ै ।
सामंजय को महवप ूण बतलात े हए ल ेखक न े जीवन म उछ ृंखलता और सदय बोध क े
अंतर को भी समझाया ह ै । वतमान सामािजक िथित को द ेखते हए उिचत और अन ुिचत
सदय बोध क े मानदड बदल े हए िदखाई द ेते ह । सािहय का अययन इसक े अंतर को
सही प म समझान े म महवप ूण भूिमका िनभाता ह ै । अतः सािहय समाज क े कयाण
के िलए आवयक ह ै इसी तय को यान म रखत े हए ल ेखक न े सािहय को मन ुय क
सवे कृित माना ह ै । मनुय म इछा ह ै और उस े मूत प द ेने का सामय भी ह ै ।
जबिक मन ुयेतर ाणी म यह नह ह ै । मनुय क इछा का स ुंदर और िहतकारी होना munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
102 आवयक ह ै जैसे कृित म रंग का साम ंजय स ुंदर िदखाई द ेता है । िवस ंगितय स े परे
होता ह ै । लेिकन मशान म पड़ी िचताभम और नदी म पड़ी गिलछ सामी वीभस
होती ह ै यिक वहा ँ िकसी कार का साम ंजय नह होता ।
िजस कार क ुशल िचकार र ंग के भावशाली स ंयोजन क जानकारी रखता ह ै ठीक
उसी कार ल ेखक इस स ंसार को िवशाल कलाक ृित के प म देखता ह ै और उसम
या भ ेपन को , कुपताओ ं को द ूर करन े के िलए सािहय क रचना को साथ क मानता
है । सािहय मानव जीवन म छोटी -छोटी चीज म सामंजय क श ुआत करता ह ै और
धीरे-धीरे सामंजय कर पान े क मता िवकिसत होती ह ै। साम ंजय प ूण जीवन ही
साथक है, िविभन जाितय म मनुयता का परणाम उनक िनजी और सामािजक जीवन
शैली स े जुड़ा होता ह ै । जो जाित सािहय क े सवम प को समझ ल ेती है वही
मनुयता क े सवम प को भी समझ सकती ह ै ।
िजसक े पास प ैसा है, समय ह ै, सदयता ह ै वह दान -पुय कर सकता ह ै पर वह कब िकस े
और क ैसे करना चािहए य े कुछ ही लोग जानत े ह । दान -पुय भल े ही अछा हो पर
लेखक क े अनुसार वह चीज यादा अछी ह ै जो मन ुय को पश ु समान व ृिय स े परे ले
जाए और यह काय सािहय करता ह ै अतः वह े है। लेखक न े इस स ंदभ म ीक
संकृित का उदाहरण िदया ह ै । ीक स ंकृित आज भी स ंसार म े मानी जाती ह ै,
इसका ेय लेखक, ीक सािहय को द ेते ह। ीक स ंकृित म सािहय और कला का
भाव ह ै । जबिक इटली क स ंकृित म पशुता और बब रता क े लण ह । इसस े यही
सािबत होता ह ै िक िकसी भी जाित क े उकष और अपकष से उस जाित िवश ेष के
सािहय का पता चलता ह ै । हमार े देश म भी गुकालीन सािहय और अठारहव शतादी
म रिचत सािहय म ऐसा ही अतर िदखलाई द ेता है । लेखक सी सािहय को
सामंजय क ि स े े मानत े ह ।
िवषय क े अ नुकूल परमािज त भाषा और वण नामक श ैली म लेखक न े सािहय को
मनुय क सव े कृित मानत े हए जिटलताओ ं म उलझ े मानव को साम ंजय क ओर ल े
जाने के िलए सािहय को ही सािवक और े माना ह ै ।
९.२.३ संदभ सिहत पीकरण :
“सारे मानव समाज को स ुदर बनान े क साधना का नाम सािहय ह ै। सौदय को ठीक स े
समझन े से ही आदमी सौदय का श ंसक और स ृा बन सकता ह ै ।”
संदभ : उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘मनुय क सवम क ृित' से उृत है । इसक े िनबंधकार आचाय हजारी
साद िव ेदी जी ह ।
संग : सािहय को मन ुय क सवम क ृित मा नते हए िव ेदीजी मानव जीवन म
सामंजय को महव द ेते हए उसी को जीवन क स ुंदरता भी मानत े ह । munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
103 याया : लेखक का मानना ह ै िक सािहय एक तरह स े साधना ह ै । यह ऐसी साधन ह ै
िजसन े सारे मानव समाज को स ुदरता दान क ह ै । सािहय और कला मन ुय को
यादा स ुदर, यादा ब ेहतर बनान े म सहायक होती ह ै । लेखक का मानना ह ै िक
सािहय जीवन क स ुंदरता को समझन े म सहायक होती ह ै । और जो मन ुय अिधक
सौदय ेमी होगा , जीवन क े सौदय को ठीक स े समझन े का यास कर ेगा, उसम
मनुयता भी अिधक होगी । वही स ुंदरता को पह चान सकता ह ै और वही सौदय क
गढ़ना भी जान सकता ह ै ।
िवशेष : तुत िनब ंध ारा ल ेखक (िनबंधकार ) जीवन म सािहय क े महव का
ितपादन करता ह ै ।
९.२.४ बोध :
१. हजारी साद िव ेदी जी का परचय द ेते हए मन ुय क सवम क ृित सािहय िनब ंध
क समीा किजए |
२. मनुय क सवम क ृित सािहय िनब ंध म सािहय को िकस कार दशा या गया ह ै |
समझाइए |
९.२.५ वतुिन/ लघुरी :
वतुिन क े उर दीिजए ।
1. मनुय जगत म िवकास क ैसे िकया गया ?
उर : मनुय जगत म िवकास यनप ूवक िकया गया ।
2. सदय िकसम होता ह ै ?
उर : सौदय सामंजय म होता ह ै ।
3. िकसका नाम सािहय ह ै ?
उर : सारे मानव समाज को स ुंदर बनान े क साधना का नाम सािहय ह ै ।
4. सािहय ारा िकसी जाित क े बारे म या पता लगता ह ै ?
उर : सािहय ारा िकसी जाित क े उकष और अपकष का पता लगता ह ै ।
९.२.६ वैकिपक :
वैकिपक क े उर दीिजए ।
1. सभी मन ुय वभाव स े ही या होत े है?
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वातंयोर िह ंदी सािहय
104 अ) सािहय ेमी ब) सािहयकार क) किव ड) लेखक
2. सुंदरता को तलाश करन े क शि िकसक े ारा ा होती ह ै?
अ) गहन ब) वंदना क) साधना ड) आँख के ारा
3. मनुय क सवम क ृित या ह ै?
अ) मूित ब) सािहय क) िच ड) इमारत
4. िनबंध म सािहय का अथ िकसस े है?
अ) किवता ब) ग क) कला ड) सािवक िच ंता धारा
९.३ िहमत और िज ंदगी : रामधारी िस ंह 'िदनकर '
९.३.१ लेखक परचय :
रामधारी िस ंह 'िदनकर ' का जम िबहार िथत म ुंगेर िजल े के िसमरया घाट नामक गा ँव
म 23 िसतबर , 1908 को हआ था। इनक ारिभक िशा -दीा घर पर ही हई थी ।
मैिक क परीा म इह िहदी िवषय म सबस े यादा अ ंक ा हए , इस उपलिध क े
िलए इह 'भूदेव' नामक वण पदक ा हआ था । बी.ए. क परीा पटना स े उीण
करने के बाद एक क ूल म धानाचाय के पद पर िनय ु हए । जदी ही उहन े इस
नौकरी को छोड़ िदया । िफर इह सीतामढ़ी म रिजार क े पद पर िनय ुि िमली । बाद
म रामधारी िस ंह िदनकर भागलप ुर िविवालय क े कुलपित बनाए गए । वे सन् 1952 से
1963 के रायसभा क े सदय भी रह े । रामधारी िस ंह िदनकर क याित किवता िवधा
म खूब हई थी ।
रेणुका, हंकार, रसवंती, सामध ेनी, उवशी, रिमरथी , परशुराम क तीा काय क ृितय
के मायम स े िहदी सािहय क े संसार म िदनकर िस रचनाकार क े प म थािपत
हए। इनक किवता म रा ेम का ओजप ूण और ा ंितकारी वर म ुखर प स े
अिभय हआ । इस कारण ही इह 'रा किव ' का दजा हािसल हआ। रामधारी िस ंह
'िदनकर ' ने चुर माा म ग ल ेखन भी िकया । 'संकृित के चार अयाय ' उनक
कालजयी रचना म शुमार ह ।
िनबंध संह - शु किवता क खोज , सािहयोम ुखी, काय क भ ूिमका, िमी क ओर ,
अधनारीर शीष क से कािशत हए ह । इनक े िनबंध वैचारक तथा समीापरक ह ।
रामधारी िस ंह िदनकर को सािहय स ेवा म अिवमरणीय योगदान क े िलए प भ ूषण क
उपािध स े नवाजा गया । इह ितित भारतीय ानपीठ प ुरकार तथा सािहय
अकादमी प ुरकार भी ा हआ । िहदी भाषा क े सबस े मुखर आवाज और अपन े समय
का सूय 24 अैल, 1974 को देह यागकर इस स ंसार स े िवदा हो गए ।
munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
105 ९.३.२ याया / समीा :
लेखक क े अनुसार जीन े क साथ कता तभी ह ै जब यि म िहमत हो , साहस हो ।
साहसी होना ब ेहतर िज ंदगी क पहली शत है । हाला ँिक िहमत और साहस िज ंदगी म
मुिकल भी लाता ह ै पर ल ेखक क े अ नुसार िहमती यि म ुिकल स े नह डरता ,
मुिकल का सामना डटकर करना और आग े बढ़ना उसक े िलए वह जीवन का एक
िहसा ह ै । अनेक घटनाओ ं का उल ेख करत े हए ल ेखक म और क को ही जीत का
सेहरा पहनात े ह । बड़े मकसद को पान े के िलए बड़ े संघष क त ैयारी भी रखनी चािहए ।
जो यि जीवन म िवपरीत िथितय का सामना करता ह ै वही जीवन क े मम को समझ
सकता ह ै । सुख-सुिवधाओ ं म जीने वाला यि न तो काम क े महव को जानता ह ै और
न ही कृित के । एक ऊ ँचे मकसद को ल ेकर जीना उस े पूरा करना िहमत वाल का
काम ह ै । चाह े िजतन े रोड़े, क, परेशािनया ँ जीवन म आएँ, िनडरता स े हर िथित का
मुकाबला करत े हए आग े बढ़ना ही िज ंदगी ह ै । लेिकन हर िकसी क े बस क यह बात नह
होती ह ै ।
लेखक न े एक और भी जी वन श ैली का वण न िकया ह ै िजस े वह गोध ूली म जीनेवाली
आमा का स ंबोधन द ेते ह । ऐसे यि िनिल भाव स े जीनेवाले होते ह हर जीत और
हार म समभाव रखन े वाले िकसी भी कार क ख ुशी और साहस क े ब गैर दोन ही
िथितय म समभाव रखन ेवाले सुत स े लोग। ऐस े लोग क े पास कोई मकसद नह होता
न ही व े जीवन को प ूणता म जीते है न बहत स ुखी न द ुखी । ये झुंड म चलन े वाले लोग
भेड़ चाल क े होते ह जबिक साहसी यि अक ेला भी िनडर होता ह ै । खतर स े बचने का
यास यि को एक दायर े म सीिमत कर द ेता है । िजंदगी क े सही मायन े उसे नह
िमलत े ।
जनमत को ही महा द ेनेवाला यि असर सही फ ैसल स े चूक जाता ह ै । दूसर का
अनुगमन ही करता रहता ह ै, अपनी कोई राह नह बना पाता न ही पहचान । जीवन म न
जीत ह ै न हार । इसिलए ऐस े लोग को ल ेखक न े गोधूिल म जीनेवाला कहा ह ै जैसे एक
सुिनित समय पर अपन े िठकान े िनकलकर , शाम ढल े वह लौट आना पश ुओं का िनय
का काम ह ै । कुछ इसी तरह क जीवनश ैली कुछ मन ुय क भी होती ह ै । लेखक इस े
जीने का सही तरीका नह मानत े, यह कोई िज ंदगी नह ह ै । जनमत क उप ेा करक े
अपनी पहचान बनाना साहस का काम ह ै । साहसी यि िकसी क नकल नह करता ,
कायर नह होता । धूप म तपकर चा ँदनी क शीतलता को प ूरी िशत क े साथ महस ूस
करना , सुख का म ूय पहल े काम स े, िहमत स े साहस स े चुकाना िफर उसका अन ुभव
करना , संकट क घिड़य म हताश हए िबना स ंयम स े जीना ही िज ंदगी को िह मत क े
साथ जीना ह ै । बड़ी च ुनौितय को झ ेलकर ही बड़ी हितया ँ बनती ह ।
लेखक न े महाभारत म पांडव क जीत का ेय उनक े ारा च ुनौितय स े लड़न े के साहस
को िदया ह ै । जबिक कौरव राजसी जीवन जीत े हए भी आमसाहस क कमी स े हारे ।
लेखक ििटश न ेता िवस ट चिचल का उल ेख देते हए उनक े कथन का समथ न करत े ह
िक िज ंदगी क सबस े बड़ी ख ूबी िहमत होती ह ै । इंसान म सारे गुण उसक े िहमती होन े munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
106 से ही प ैदा होत े ह । मनुयता को साहसी यि ही जीिवत रखता ह ै । जीवन क
चुनौितय को वीकार न कर पान े वाले सुख का अ नुभव नह कर सकत े । ऐसे लोग वय ं
को हारा हआ महस ूस करत े ह, िजतनी प ूँजी लगात े ह, िजदगी स े उतना ही पात े ह । यह
पूँजी लगाना जीवन म संकट का सामना करना ह ै, िजसक े िलए साहस का होना
जरी ह ै ।
जो जीवन क े अंितम ण तक हार न मान े, अपने संकप पर डटा रह े, दुिनया नह बिक
अपने मकसद को पहचान कर उसक े साथ िजय े वही सचा श ूर है । मनुय के पास
अथाह शि ह ै लेखक इसी सय क ओर स ंकेत करत े ह िक मन , िवचार और स ंकप
क शि अनत ह ै, जरत ह ै उसे पहचानन े क, उसका िनभ य होकर उपयोग करन े क
ओर अप ने संकप को ढ़ रखन े क तभी वह साथ क होगी। क सहन े क िहमत , भोगी
बनकर भोगना नह बिक याग क े साथ भोगना ह ै। यही हमार े उपिनषद ् भी कहत े ह ।
९.३.३ संदभ सिहत पीकरण :
"साहसी मन ुय क पहली पहचान यह ह ै िक वह इस बात क िच ंता नह करता िक
तमाशा देखने वाले लोग उसक े बारे म कया सोच रह े ह ।"
संदभ : उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘िहमत और िज ंदगी' से उृत है। इसक े िनबंधकार रामधारी िस ंह
िदनकर जी ह ।
संग : इस िनब ंध के मायम स े िनबंधकार बतात े ह िक जीवन का स ुख वही मन ुय
भोगता ह ै जो िहमती होता ह ै । वे मनुय को साहसी बनन े क ेरणा द ेते ह ।
याया : िनबंधकार का मानना ह ै िक साहसी यि को ही जीवन का असली रस ा
होता ह ै । साहसी लोग तमाशा द ेखने वाल क परवाह नह करत े ह । जो यि अपन े
सपन को प ूरा करन े करन े के िलए अपन े ही ध ुन म लगे रहते ह, उह इस बात क िच ंता
नह रहती ह ै िक लोग उनक े बारे म या सोच गे । वे बस अपन े काम को प ूरा करन े म लगे
रहते ह साथ ही उस काम को प ूण करन े म आनेवाली हर म ुसीबत का साहस क े साथ
डँटकर सामना करत े ह और काय पूरा करक े ही दम ल ेते ह ।
िवशेष : यहाँ िनबंधकार न े िहमत और साहस स े जीवन जीन े क शत को ही जीवन क
साथकता माना ह ै ।
९.३.४ सारांश :
इकाई म हमन े िनब ंध िविवधा (िनबंध संह) के दो िनब ंध संह क े दो िनब ंध का
अययन िकया | आशा ह ै िक इस इकाई क े अययन स े िवाथ ल ेखक का परचय जान
सक,िनबंध क िवतार स े समीा कर सक ,िनबंध के कुछ अंश क स ंदभ सिहत याया
से अवगत हए हग े –
munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
107 ९.३.५ बोध :
१. िनबंधकार न े िहमत और साहस स े जीवन जीन े क शत को ही जीवन क साथ कता
माना ह ै । िवतार स े समझाइए |
२. िहमत और िज ंदगी िनब ंध क समीा किजए |
३. िहमत और िज ंदगी िनब ंध का उ ेय क िवत ृतता पर काश डािलए |
९.३.६ वतुिन/ लघुरी :
वतुिन क े उर दीिजए ।
१. िजंदगी क े असली मज े िकसक े िलए नह ह ?
उर : िजंदगी क े असली मज े उसक े िलए नह ह ै जो फ ूल के छाँह से नीचे खेलते और
सोते ह ।
२. िकनक े िलए आराम ही मौत ह ै ?
उर : िजह आराम आसानी स े िमल जाता ह ै उनके िलए आराम ही मौत ह ै ?
३. मोती ल ेकर बाहर कौन आय गे ?
उर : लहर म तैरने का िजह अयास ह ै वो मोती ल ेकर बाहर आय गे ।
४. िजंदगी स े अंत म हम िकतना पात े ह ?
उर : िजंदगी स े अंत म हम उतना ही पात े ह िजतनी उसम पूँजी लगात े ह ?
५. अड़ोस -पड़ोस को द ेखकर चलना यह िकसका काम ह ै ?
उर : अड़ोस -पड़ोस को देखकर चलना यह साधारण जीव का काम ह ै ?
९.३.७ वैकिपक :
वैकिपक क े उर दीिजए ।
१. िनबंध क े अ न ुसार हम िकसका म ूय पहल े चुकाते ह ?
अ) सुख का ब) वतु का क) भोजन का ड) कृित का
२. उपवास और स ंयम िकसक े साधन नह ह ?
अ) तपया के ब) आमहया के क) योग के ड) आहार के
३. बड़ी चीज िकसम िवकास पाती ह?
अ) बड़ी चीज म ब) धन म क) बड़े संकट म ड) बड़े लोग म
४) िजंदगी क िकतनी सूरते ह?
अ) एक ब) चार क) तीन ड) दो
 munotes.in

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108 १०
िनबंध िविवधा (िनबंध संह)
अगर मुक म अखबार न होते
रसायन और हमारा पयावरण
इकाई क परेखा:
१०.० इकाई का उेय
१०.१ तावना
१०.२ अगर मुक म अखबार न होते
१०.२.१ लेखक परचय - नामवर िसंह
१०.२.२ याया / समीा
१०.२.३ संदभसिहत पीकरण
१०.२.४ बोध
१०.२.५ वतुिन / लघुरी
१०.२.६ वैकिपक
१०.३ रसायन और हमारा पयावरण
१०.३.१ लेखक परचय - डॉ. एन. एल. रामनाथन
१०.३.२ याया / समीा
१०.३.३ संदभसिहत पीकरण
१०.३.४ बोध
१०.३.५ वतुिन / लघुरी
१०.३.६ वैकिपक
१०.० इकाई का उेय
इस इकाई म हम िनबंध िविवधा (िनबंध संह) के दो िनबंध का अययन करगे पहला है
अगर मुक म अखबार न होते (नामवर िसंह) और दूसरा है रसायन और हमारा पयावरण munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
109 (डॉ. एन. एल. रामनाथन ) िवाथ दोन िनबंध के लेखक का परचय जान सकगे |
िनबंध का समीामक अययन कर सकगे |
१०.१ तावना
िहंदी सािहय म नामवर िस ंह को िह ंदी आलोचना का शलाका प ुष कहा गया ह ै, और
उनक आलोचना को जीव ंत आलोचना । इनक रचनाओ ं म आध ुिनकता क े साथ-साथ
पारंपरकता क े भी दश न होत े ह । 'अगरम ुक म अखबार ना ह ' िनबंध इनक अय
रचनाओ ं से कुछ अलग ह ै । अखबार का द ैनंिदन जीवन म महवप ूण थान ह ै। यह
सामाय ान और िशा क े सार का शिशाली मायम ह ै। इस िनब ंध के मायम स े
लेखक न े अखबार को ल ेकर लोग क वत मान सोच को उजागर िकया ह ै या य ूं कह तो
अखबार क वत मान िथित को ेिषत िकया ह ै ।
डॉ.एन.एल. रामनाथन प ेशे से वैािनक ह । इहन े भौितक एव ं पयावरण क े ेम
महवप ूण शोधकाय िकया ह ै । 'रसायन औरहमारा पया वरण' िनबंध म लेखक न े रसायन
का योग और दवाइय के िनमाण म रासायिनक यौिगक क भ ूिमका पर चचा क ह ै ।
साथ ही मानव जीवन पर इन रसायन क े भाव एव ं दुभाव को उदाहरण सिहत
तुत िकया ह ै ।
१०.२ अगर मुक म अखबार न होत े - नामवर िस ंह
१०.२.१ लेखक परचय :
नामवर िसंह का जम 25 जुलाई, 1926 को जीयनप ुर, बनारस , उरद ेश म हआ था ।
वे िहदी आलोचना क े 'शलाका पुष' थे । लगभग पा ँच दशक तक िहदी आलोचना क े
शीष परकायम रह े । बनारस िहद ू िविवालय स े एम.ए. करने के बाद वह अयापन क े
िलए िनयु हए । वहा ँ कुछ ही वष अयापन िकए थ े िक 1959 मच िकया चदौली
लोकसभा े से भारतीय कय ुिनट पाट क े िटकट स े चुनाव लड़ गए । एक तरफ उह
उस च ुनाव म हार का म ुँह देखना पड़ा , दूसरी तरफ िविवालय शासन न े उह नौकरी
से बाहर का राता िदखा िदया । इसक े बाद वे कई वष तक अययन म लगे रहे, िफर
सागर िविवालय म उनक िनय ुि हई । वहाँ भी ठहर न सक े । जोधप ुर िविवालय
म ोफेसर क े पद पर िनय ुि हई । यहा ँ भी लब े समय तक नह रह े । जवाहरलाल
िविवालय म उह राहत िमली । एक तरह स े जे एन यू का भाषा अययन क े बनाने
का अवसर उह िमला । अपनी अक ूत ितभा और योयता क े बल पर उहन े देश को
सबसे बेहतरीन क े के प म थािपत िकया । लब े समय तक व े 'आलोचना ' पिका
के सपादक भी रह े । आलोचना क े े म नामवर िस ंह का बहत समान ह ै । ‘इितहास
और आलोचना ', 'आधुिनक सािहय क व ृियाँ', 'छायावाद ', 'नई कहानी ', 'किवता क े
नए ितमान ', 'दूसरी परपरा क खोज ' जैसी मुख आलोचनामक ंथ के जरय े
उहन े आलोचना िवधा को म ुखर िकया । इह सािहय अकादमी प ुरकार ज ैसे अनेक
पुरकार स े समािनत िकया गया । 19 फरवरी , 2019 को इनका िनधन हआ । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
110 १०.२.२ याया / समीा :
िकसी जमान े म महवप ूण सूचनाओ ं के चार -सार ह ेतु कािशत होन े वाले अखबार
आज सावभौिमक स ूचना का मायम बन गए ह । अखबार क े िवषय म हर िकसी क
अपनी धारणा बन गई ह ै। कुछ लोग अखबार म छपी खबर को पढ़कर िदनभर उसी क
चचा करत े रहते ह, वह क ुछ अखबार पढ़न े म िवास नह करत े, एक और भी पाठक
क ेणी होती ह ै जो अखबार क े समाचार स े अपन े ान और थान क े अनुप याया
करते रहते ह ।
लेखक भी सोच म पड़ जाता ह ै । जब वह अपन े गाँव के मुंशीजी क े पास अखबार पढ़न े के
िलए जाता ह ै और उस े उर िमलता ह ै िक क ुछ खास नह ह ै । अखबार म दूसरी ओर
चौधरी कोभी यही उर िमलता ह ै । अखबार क े बारे म एक िविच तरीका समाज म
चिलत ह ै, वह है वयं ना खरीदकर द ूसर स े मांगकर अखबार पढ़ना । चौधरी जी भी
इसी ेणी म आते ह । उह अखबार क े िवापन य ुवाओं को भटकान े वाले लगत े ह, तो
धानम ंी का भाषण िवापन लगता ह ै । चौधरी जी अखबार को प ैसेवाल, साधारी ,
राजनीित और िवापन का चार मायम मानत े ह, और यह काफ हद तक सच ह ै ।
अखबार म िवा पन, दुकान, मकान , गाड़ी, व, िकराना तक सब क ुछ बेचने कामायम
बना हआ ह ै । िजसस े कई लोग क रोजी -रोटी का भी ब ंध होता ह ै । िशक , िशाथ ,
घरेलू मिहलाए ं, बुजुग हर िकसी क े िलए क ुछ ना क ुछ होता ह ै, यहाँ तक िक कान ूनी और
वाय स ंबंधी समयाओ ं के हल भी िमलत े ह ।
लेखक के अनुसार अखबार क एक और िवश ेषता उसक े नाम को ल ेकर होती ह ै । उसे
जन स े जुड़ा जाकर जनमत का वाहक कहा जाता ह ै । जनकयाण क े िलए माना जाता ह ै
पर देखा गया ह ै िक अिधका ंश अखबार यि धान ह । इन पर भी धनाढ ्य वग का
भाव िदखाई द ेता है । सा और िसि क चाह म अखबार कािशत करवाना , अपनी
मज क े अनुसार समाचार छपवाना इनका शौक बन गया ह ै । लेखक को पर ेशानी इस
बात स े है िक अखबार क े मािलक अप िशित या अिशित होत े ह, और पढ़े-िलखे
सुिशित यिय को अपन े इशार पर चलात े ह । यह ल ेखक क े मन म उठता ह ै
िक िथित का भिवय या होगा । उसे अखबार स े ही पता चलता ह ै िक अखबार पर भी
सामंती सा का भाव ह ै । जो जनमत क े नाम पर म फ ैलाने का कामकर अपना वाथ
साध रह े ह । ऐसे लोग अपन े अखबार क ग ुणवा बढ़ान े के िलए सािहयकार पर भी
दबाव डालन े से नह च ूकते । लेखक को लगता ह ै 'पया बनाम अखबार ' बन गया ह ै ।
दोन का र ंग एक ही हो गया ह ै । 'कालाधन बनाम काली याही ' एक ही ठप े से दोन छप
रहे ह ।
लेखक का इशारा उस वग से है, जो अपनी अथशि का योग समाज म हलचल मचान े
के िलए, जनमानसक सोच बदलन े के िलए करत े ह । कब एक खबर आए और कब वही
खबर ख ंिडत हो जाए कहा नहजा सकता। पहली खबर छापन े क होड़ म कई दफा
परपर िवरोधी समाचार द ेखने पढ़न े को िमलत े ह । वतमान काल म सूचनाओ ं के
सारण क े अनेक क -ाय मायम भी उपलध ह । पर आज भी अखबार लोकिय munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
111 मायम ह ै । भले ही सामािजक , राजनैितक िव ेष ही फ ैला रहा हो । इनम िवापन क
ामक भ ूिमका भी है । गलत चीज को सही बताकर समाज और वाय क े िलए
हािनकारक िवापन भी छापे जाते ह। यहाँ अथ शि ही िदखाई द ेती है ।
लेखक ने अखबार क त ुलना स ुगंिधत फ ूल से क ह ै, िजसक सुगंध दूर-दूर तक जाती
है । अखबार म छपी खबर भी द ूर-दूर तक जाती ह ै । जनमानस को गहरे भािवत करती
है, भले ही झूठी खबर हो । सच को छापन े का साहस िवरल े ही कर पात े ह, यिक सय
को छाप े जाने पर राजकय शि क े योग िकए जान े का डर रहता ह ै, और ऐस े अखबार
अपाय ु होते ह । दूसरे शद म अखबार भी िबकाऊ मायम ही ह ै । िफर भी अखबार
एक शिशाली मायम ह ै अतःस ंपादन का दाियव बढ़ जाता ह ै । अंततः ल ेखक को भी
अपनी बात कहन े के िलए अखबार का ही सहारा ल ेना पड़ता है ।
१०.२.३ संदभ सिहत पीकरण :
''अखबार इस सयता का सबस े बड़ा फ ूल है िक िजसक स ुगंध िबना हवा क े संसार भर
म फैल रहीह ै । य तो यह बारह मासा ह ै परत ु इसके फलन े क िवश ेष ऋत ु है यु ।''
संदभ :उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनबंध ‘अगर म ुक म अखबार न होता ' से उृत है । इसक े िनबंधकार नामवर
िसंह जी ह ।
संग :िनबंधकार न े अखबार स ंकृित का उल ेख करत े हए अखबार क आध ुिनक शैली
क चचा क ह ै । आज क े दैनंिदन जीवन म अखबार िकतना आवयक अ ंग बन गया है
इसका य ंयामक प स े िचण िकया ह ै ।
याया :आज अखबार का द ैनंिदन जीवन म महवप ूण थान ह ै। यह हर कार क
खबर को अपन े म समाए हए ह ै । अतः हमार े आध ुिनक जीवन म अखबार एक अहम
िहसाबन च ुका ह ै । अखबार म छपन ेवाली खबर क चाह े देशी या नी िक गा ँव म
रहनेवाला होया शहर म रहनेवाला हो , हर कोई रसल ेकर पढ़ता , सुनता और चचा भी
करता ह ै । वतमान म अखबार पूरे देश-िवदेश क सयता का िवषय बन गया ह ै ।
िनबंधकार इस े एक फ ूल क उपमा द ेते हए कहत े ह िक ज ैसे फूल अपनी ख ुशबू चार
तरफ िबख ेर देती है वैसे ही अखबार एक कागजी फ ूल है िजसक स ुगंध संसार भर म
फैली हई ह ै । फूल तो मौसम क े िहसाब स े िखलत े ह परंतु अखबार पी फ ूल बारह
महीने िखला रहता ह ै। लेिकन य ु के दौरान िवशेष तौर पर अपनी मिहमा िदखाता ह ै ।
िवशेष :यहाँ अखबार द ैिनक जीवन म िकतना महवप ूण थान बना च ुका है उसके महव
पर काश डाला गया ह ै ।
१०.२.४ बोध :
१. लेखकारा िनबंध म संिचत अखबार क महाका वणन किजए |
२. अखबार िकस कार से सयता का तीक बन गया है | िवतार से समझाइए |
३. अखबार िनबंध के उेय पर चचा किजए | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
112 १०.२.५ वैकिपक क े उर दीिजए ।
1. लेखक जब स े गाँव आय े उह या नह िमला ?
उर : लेखक जब स े गाँव आय े उह अखबार नह िमला ।
2.लेखक अखबार पढ़न े िकसक े पास जात े ह?
उर : लेखक अखबार पढ़न े मुंशीजी क े पास जात े ह ।
3.चौधरी अखबार को या कहत े ह?
उर : चौधरी अखबार को नशा कहत े ह ।
4. आजकल एक ही ठप े से या छपत े ह?
उर : आजकल अखबार और पया एक ही ठप े से छपत े ह ।
5.आज क सयता का सबस े बड़ा फ ूल या ह ै?
उर : आज क सयता का सबस े बड़ा फ ूल अखबा र है ।
१०.२.६ वैकिपक क े उर दीिजए ।
1. िकसक स ुगंध िबना हवा क े संसार भर म फैल रही है?
क) राजनेता ब)इ क)अखबार ड)फूल
2. अखबार क े फलन े क िवश ेष ऋत ु कौन सी ह ै?
अ) महामारी ब)यु क) चुनाव ड) राजनीित
3. अखबार क े िसर उठात े ही िकसक ऊ ँगली उठ जाती ह ै?
अ) सरकार क ब) जनता क क) पकार क ड) समाज क
4. इस जमान े म मुँह से बोलना भी या ह ै?
अ) बड़ी बात ब) शंसा क) मजाक ड) गुनाह
१०.३ रसायन और हमारा पया वरण -डॉ. अिनल रामनाथन
१०.३.१ लेखक परचय :
डॉ . रामनाथन का जम 1927 ई . म केरल म हआ था ।कोचीन स े आरंिभक िशा क े
बाद आपन े काशी िहद ू िविवालय स े भौितक म एम एससी क उपािध ा क ।
बंगलौर तथा कलका म रहते हए आपन े भौितक और पया वरण क े े म महवप ूण
शोध काय िकया । जादवप ुर िविवालय स े इह पी एच.डी. क उपािध दान क गयी । munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
113 १०.३.२ याया / समीा :
मानव जीवन पर रसायन क े दुभाव पर भी िवचार त ुत िकए ह । लेखक क े अनुसार
सभी जड़, चेतन, ाणी, वतुएं रसायन स े ही बनी ह । रसायन ही धरती पर जीवन ह ै ।
यहाँ तक िक पानी भी एक रासायिनक िमण ह ै । इंधन, दवाइया ँ, फल, सिजया ँ सभी
कुछ रसायन ही है । इनम कुछ रसायन जहरील े होते ह, जो ािणय क े मायम स े मानव
शरीर तक पह ँचकर बीमारय का कारण बनत े ह, जैसे िक द ूिषत जल म रहने वाली
मछिलया ँ । कुछ रसायन दीघ काल क े उपरांत अपना िवष ैला भाव िद खाते ह । इसक े
िलए ल ेखक न े एबेटेस शीट का उदाहरण िदया ह ै, िजसे पहल े सुरित समझा जाता
था पर ल ंबे समय क े उपयोग क े बाद उसम कसर ज ैसी बीमारी का अवग ुण पता चला ।
औोिगककरणन े गैस, वाप और धात ु जैसी चीज क े मायम स े रासायिनक खतर को
बढ़ाया ह ै । तकनीक उनित न े सुख के साधन तो बढ़ाए ह , पर पया वरण को भी द ूिषत
िकया ह ै । िजसका द ुभाव मानव , पशु, पौधे, िमी, जल, फसल और फल -सिजय पर
पड़ रहा ह ै । कुछ तो हमार े शरीर म जल और वाय ु के साथ िव हो जात े ह । कुछ खा
पदाथ क े मायम स े ऐसे रसायन अपना द ुभाव डालत े ह, और क ुछ के िवषैले भाव
को तो हम जानत े ही ह , पर उसस े बचन े के िलए या िकया जाए ? इस िदशा म और
यादा खोज जरी ह ै। रसायन क े खतर को जानना बहत जरी ह ै, यिक स ंसार म
ऐसा क ुछ भी नह जो रसायन म ु हो । इसिलए लेखक न ेा और अा रसायन क े
खतरे का अ ंतर बतलाया ह ै । जैसे िक कटनाशक रसायन जहरील े होते ह, पर पया वरण
म इसका इतेमाल करन े के पहल े इसे भली-भांित परखा जाता ह ै तब इसक े इतेमाल
क अन ुमित दी जाती ह ै । यिक अिधक प ैदावार का लाभ इसस े होता ह ै। रसाय न के
कारण ही क ृिष म ांितकारी गित हो रही ह ै । खेत क उव रा शि बढ़ी ह ै । खा
रसायन , जैिवक पदाथ क े प म मांस, सलाद , दूध इयािद अपन े मुय घटक ज ैसे
काबहाइ ेट, िलिपड और ोटीन म जैव रसायन क े प म ा ह ।
इसीकार अय कटनाशक क े िनयंित योग को ा जोिखम कहा जाता ह ै । इनका
मूयांकन, समय और परिथित क े अनुसार बदल भी जाता ह ै, जैसे िक डीडीटी
कटनाशक पहल े इसका योग स ुरित समझा जाता था । पर वतमान म अिधका ंश देश
म इसका योग ितब ंिधत ह ै । कई रसायन सुरित तो होते ह पर अय रसायन स े
िमलन े पर हािनकारक बन जात े ह या िफर उपयोगी बन जात े ह, जैसे िक जल प ेय है पर
समुी जल प ेय क ि से जहरीला ह ै । नमक आवयक ह ै पर अिधक माा म इसका
सेवन बीमारी का कारण बन जाता है । इस कार माा और जहरीलाप न दोन ही
जोिखम का कारण बन जात े ह । कसर कोभी ल ेखक पया वरण और रसायन स े जोड़कर
देखते ह।
रसायन से होने वाले खतर स े बचाव क े िलए सरकार न े कई कान ून बनाए ह , पर
सामािजक िकोण स े हम यिगत तर पर भी यान रखन े क जरत होती ह ै । नशा
करने वाले चेतावनी िदए जान े के बावज ूद अपनी स ेहत के ित लापरवाह होत े ह । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
114 अंततःहम वय ं यह समझना होगा िक समत चराचर म रसायन या ह ै । वह हमार े
िलए आवयक ह ै पर उसका उपयोग िकस प म करत े ह, कबऔर कहा ँ करत े ह, इसका
ान भी आवयक ह ै । इस िनबंध म लेखक ने वातावरण म होने वाली रासायिनक
ितियाओ ं और उनक े मानव जाित और पया वरण पर होन े वाले भाव क े परणाम
वप , होनेवाले खतर क े िवषय म सचेत िकया ह ै । रसायन क े िवषैले भाव स े
पयावरण को बचाना जरी ह ै । कृित के िबना जीवन क कपना भी नह क जा
सकती । पंच तव (जल, थल, वायु, अिन और आकाश ) से ही मन ुय का जीवन ह ै,
और इसी म अंत भी । इसिलए हम भिवय म जीवन क स ंभावना स ुिनित करन े के िलए
अपने पयावरण को वथ और स ुरित रखना होगा । यह हम सब क साझी
िजमेदारी ह ै ।
१०.३.३ संदभ सिहत पीकरण :
“रसायन म कुछ दीघ कािलक खतर े भी होत े ह यिक क ुछ रसायन क े सपक म
अिधक समय तक रहन े पर चाह े उन रसायन का ल ेश मा ही य न हो , शरीर म
बीमारया ँ पैदा हो सकती ह ।”
संदभ : उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनबंध ‘रसायन और हमारा पया वरण' से उृत है । इसक े िनबंधकार डॉ .
अिनल रामनाथन जी ह ।
संग : इसम िनबंधकार न े रसायन का योग और दवाइय क े िनमाण मरा सायिनक
यौिगक क भ ूिमका पर चचा क ह ै। मानव जीवन पर रसायन क े दुभाव पर भी चचा
तुत क गयी ह ै ।
याया : िनबंधकार रसायन क े भाव क चचा करत े हए कहत े ह िक क ुछ रसायन क े
भाव अपकािलक होत े ह परंतु कुछ ऐस े भी रसायन होत े ह िजसका दुभाव
दीघकािलक होता ह ै । यानी िक वत मान म हम उसका असर शायद कम या िबलक ुल भी
परलित ना हो पर ंतु िनरंतर अगर हम उसक े संपक म आते ह तो उसका हम पर या
हमारे शरीर पर धीमी गित स े असर हो रहा होता ह ै और यह भिवय म कई भय ंकर
बीमारय का कारण बनती ह ै। एब ेटेस शीट का क सर ज ैसी भय ंकर बीमारी का कारण
बनना ज ैसे उदाहरण िनब ंध म िदए गए ह ।
िवशेष :यहाँ रसायन क े योग स े उसक े लाभ तथा होन ेवाली हािनय का सैांितक
िववेचन हआ ह ै ।
सारांश :- इस इकाई म हम िनबंध िविवधा (िनबंध संह) के दो िनबंध का अययन
िकया है आशा है िक इस इकाई के अययन से िवाथ 'अगर मुक म अखबार न होते'
(नामवर िसंह) और 'रसायन और हमारा पयावरण' (डॉ. एन. एल. रामनाथन ) िवाथ
दोन िनबंध के लेखक का परचय जान सक | िनबंध का समीामक अययन कर
सक |
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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
115 १०.३. ४ बोध :
१. मानव जीवन पर रसायन के दुपरणाम को लेखकन े िकस कार समझाया है |
िवतार पूवक बताएँ |
२. 'रसायन और हमारा पयावरण' िनबंध क समीा किजए |
३. 'रसायन और हमारा पयावरण' िनबंध म िकस कार हमारे पयावरण को हािन पहंचाई
गई है | िववरण दीिजए |
१०.३.५ वतुिन क े उर दीिजए ।
1.हम कौन स े युग म रह रह े ह?
उर : हम रसायन क े युग म रह रह े ह ।
2.कौन से रसायन म कसर पैदा करन े का अवग ुण है?
उर : ऐबेटस रसायन म कसर पैदा करन े का अवग ुण है ।
3. एक सवयापी िवष या ह ै?
उर : सीमा (लेड) एक सव यापी िवष है ।
4. सबसे पहले िकसस े पहचानना जरी ह ै?
उर : सबसे पहल े खतर को पहचानना जरी ह ै?
5. डी.डी.टी.पर िकस वष ितब ंध लगा िदया गया ह ै?
उर : सन् 1972 म डी.डी.टी. पर ितब ंध लगा िदया गया ।
१०.३.६ वैकिपक क े उर दीिजए ।
1. रसायन न होत े तो धरती पर या नह होता ?
अ) जीवन ब) मृयु क) पानी ड) आग
2. जापान म िमनामाटा मछली खान ेवाली आबादी िकस रोग स े त स े पायी गयी?
अ) कसर ब) टी.बी. क) अपंगता ड) पीिलया
3. रसायन हम ेशा कहा ँ मौजूद है?
अ) पयावरण म ब) अनाज म क) अंतर म ड) योगशाला म
4. रासायिनक स ुरा को काय मान िलया जाना चािहए ?
अ) बेकार का ब) ितिदन का क) िवान का ड) योगशाला का
 munotes.in

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116 ११
िनबंध िविवधा (िनबंध संह)
आंगन का पंछी याया / समीा
पाँत का आिखरी आदमी
इकाई क परेखा
११. ० इकाई का उेय
११. १ तावना
११. १.१ लेखक परचय -िवािनवास िम
११. १.२ आंगन का पंछी याया / समीा
११. १. ३ संदभसिहत पीकरण
११. १. ४ बोध
११. १.५ वतुिन / लघुरी
११. १.६ वैकिपक
११.२ पाँत का आिखरी आदमी
११. २.१. लेखक परचय - कुबेरनाथ राय
११. २. २पाँत का आिखरी आदमी - याया / समीा
११. २. ३. संदभसिहत पीकरण
११. २. ४ सारांश
११. २. ५ बोध
११.२.६ वतुिन / लघुरी
११. २. ७ वैकिपक
आँगन का प ंछी - डॉ िवािनवास िम
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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
117 ११.० इकाई का उेय
इस इकाई म हम िनबंध िविवधा (िनबंध संह) के दो िनबंध का अययन करगे जो इस
कार है - १ आंगन का पंछी (िवािनवास िम ), २ पांत का आिखरी आदमी
(कुबेरनाथ राय) | िवाथ इस इकाई के अययन से लेखक का जीवन परचय ,
िनबंधका समीामक अययन और िनबंध के अवतरण क संदभसिहत याया कर
सकगे |
११.१ तावना
डॉ . िवािनवास िम जी प ी , प िवभ ूषण ज ैसे पुरकार स े नवाज े गए बहम ुखी
ितभा क े धनी, कलम क े कुशल िचत ेरे ह। उनक रचनाओ ं म लिलत िनब ंध िवश ेष है ।
िवािनवास िम जी क े लेखन म समत िव क े ित स ंवेदना का भाव िदखाई द ेता है ।
समाज , संकृित और मानवता इनक रचनाओ ं का क िबंदु है तो पर ंपरा स े आधुिनकता
क झलक और सहज िच ंतन का ती स ंयोग भी ह ै । आँगन का प ंछी िनब ंध म गौरैया पी
को ल ेकर ल ेखक न े भारतीय स ंकृित, सामािजक पर ंपराएँ व क ृित ेम का िवव ेचन
िकया ह ै।
कुबेरनाथ राय आचाय हजारी साद िव ेदी क पर ंपरा क े िनबंधकार ह । इनक े िनबंध म
भारतीय स ंकृित के साथ इितहास क े नवीनतम बोध को दान करन े का यास ह ै, अतः
पाठक एव ं लेखक क े मय आमीयता का एक स ेतु बन जाता ह ै । पाँत का आिखरी
आदमी पामक श ैली म िलखा गया िनब ंध है। इसम गाँधीवादी िवचारधारा का भाव
िदखलाई द ेता है। लेखक अपनी प ुवधू मिणप ुतुल को स ंबोिधत करत े ह ए, वतमान
यवथा म या ाचार का िव ेषण करत े हए उस े समझान े का यास करत े ह ।
जीवन म उच कोिट क योयता , सफलता िदलाए ऐसा जरी नह ह ै ।
१०.१.१ लेखक परचय :
िवािनवास िम का जम 28 जनवरी , 1926 को उ र देश के गोरखप ुर िजल े म हआ
था। उनक ारिभक िशा - दीा थानीय क ूल म सपन होन े के बाद उच िशा
गोरखप ुर िविवालय स े सपन हई। इसी िविवालय स े उहन े 'पािणनीय याकरण
क िव ेषण पित ' म पीएच .डी . क िडी हािस ल क है । िवािनवास िम स ंकृत के
काड िवान क े प म थािपत रह े ह। िहदी िनब ंध को उहन े एक नई ऊ ँचाई दान
क है। उनक े िनबंध का लािलय आज भी बरकरार ह ै । िवािनवास िम क े मुख
िनबंध संह ह - 'िछतवन क छा ँह', 'तुम चंदन हम पानी ', 'वप िवमश ', 'बसंत आ गया
पर कोई उकठा नह ', 'भारतीय स ंकृित के आधार ' , 'मणन ंद का पचड़ा ', 'रिहमन
पानी रािखए ', 'लोक और लाक का वर ' आिद। िवािनवास िम क े िनबंध म भारतीय
संकृित का िचण सबस े अिधक हआ ह ै। लोक स ंकृित का बहआयामी र ेखांकन करन े
वाले िवािनवास िम को पी , मूित देवी पुरकार , िवभारती समान , मंगला साद munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
118 पारतोिषक समान ा हए। सािहय अकादमी का महर सदयता समान भी उह
ा हआ ह ै ।
११.१.२ याया समीा /
आँगन का प ंछी िनब ंध म गौरैया पी को ल ेकर ल ेखक न े भारतीय स ंकृित, सामािजक
परंपराएँ व क ृित ेम का िवव ेचन िकया ह ै। गौरैया क गितिविधय क ) हरकत क (
तुलना व े छोटे बच स े करत े ह। लेखक क े अनुसार गौर ैया बालपन का तीक ह ै। जीवन
म को आग े ले जाने वाले यि बच क े मह ◌्व को उनक गितिविधय को भली
भाँित समझत े ह। िजस कार बच े घर क े आँगन कशोभा होत े ह, उनक िकलकारया ँ,
खेलकूद आँगन को ग ुलजार कर द ेता है लेखक को गौर ैया म भी व ैसी ही िनछलता ,
िनडरता और िनि ंतता िदखाई द ेती है। गौरैया सव यापी पी ह ै उसक उड़ान बहत
ऊँची नह होती न ही प सदय होता ह ै, पर वह िनडरता प ूवक िवचरण करती ह ै। अन
के दान को च ुगती ह ै, साथ ही अनाज क े कड़ को भी साफ करती जाती ह ै। भारतीय
संकृित म गौरैया का मान ह ै। जैसे मनुय म ाण वग वैसे ही पी सम ुदाय म गौरैया।
गौरैया मनुय क श ु नह िम ह ै। सुबह क कोमलता और भीन ेपन म नह बिक तपती
दोपहरी म वह आती ह ै। उसे लेखक स ुख - दुःख का साथी और भारतीय आ ँगन क शोभा
मानते ह।
आँगन को ल ेकर ल ेखक न े तुलसी क े पौधे के महव को भी बतलाया ह ै। भारतीय
संकृित के अनुसार त ुलसी का पौधा पिव माना जाता ह ै, धािमक िवास क े चलत े
पूय भी ह ै और क ृित ेम, सािवकता और पिवता का तीक ह ै। कृित को मानव
जीवन का अिवभाय अ ंग माना गया ह ै। भारतीय स ंकृित म धरती को माता का प
माना गया ह ै। हमार े पैर भल े ही जमीन पर रह , हम पलते धरती क गोद म ही ह वह
जीवनदाियनी ह ै वह हम सब क ुछ देती है। हमारी स ंकृित म परवार क े ित ेम को
सवपर माना गया ह ै। यहा ँ देवी - देवताओ ं के ित आथा , नदी, पवत, तीथ-धाम,
आचाय मठ क कपना पारवारक िवतार का ही प ह ै और यह भाव ही हमारी
संकृित और सािहय म या ह ै। ह और न क े ारा जीवन को परखन े औ र
समयाओ ं का हल खोजन े का यास वस ुधैव कुटुबकम का ही प ह ै। जैसे परवार म
छोटे - बड़े सभी क े अिधकार स ुरित होत े ह वैसे ही स ृि म हम ‘अणोरणीयान ' और
'महती महीया न' को समान ि स े देखते ह।
चीन म गौरैया के ित िह ंसक रव ैये के बारे म जानकर ल ेखक गौर ैया के िवषय म सोचन े
पर िववश हो जात े ह िक चीन सरकार गौर ैया को फसल को हािन पह ँचानेवाला पी
मानकर उनको सम ूल न करन े का अिभयान चला रही ह ै। चीन क े इस क ृय को ल ेखक
उनक अभाव तता और वीरव का अपमान मानत े ह। वे गौरैया के अय ग ुण क ओर
नह द ेख रह े। उसे मारकर व े अपना ही न ुकसान कर रह े ह। लेखक क े मन म सहज
उठता ह ै िक या वहा ँ घर - आँगन, बचे, िकलकारया ँ, हँसी - िखलिखलाहट नह ह ै। कभी
बु क◌ी दया , मा, मैी का स ंदेश देने वाला न ैितक म ूय क द ुहाई द ेने वाला द ेश
कृित क यवथा क े साथ िकस तरह का िखलवाड़ कर रहा ह ै। यह अित बौिकता का munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
119 ही परणाम ह ै । इसी क े चलत े एक द ेश दूसरे देश के साथ िह ंसक यवहार कर रहा ह ै।
रचना क बजाए स ंहार का भाव जीवन मूय को न कर रहा ह ै।
पैदावार कम होन े का आरोप गौर ैया पर लगाकर उह मारन े क व ृि वाथ ह ै। लेखक
इस अिभयान को समत मानवता क े िलए खतर े का स ूचक मानता ह ै। आग े चलकर यह
अिभयान अय ािणय को भी अपनी चप ेट म ले सकता ह ै और घर म रहनेवाले मनुय
तक भी पह ँच सकता ह ै। चीन क ऐसी नीित अय द ेश म भी िवतारवादी नीित क े
चलते, धम, भाषा, जाित और स ंदाय स ंबंधी िवषमता को जम द े सकती ह ै। िवषमता स े
फैलनेवाली यह राजनीित -िशा , सािहय और जनमानस को भािवत करन े वाली यह
घृता समत िव क े िलए घातक होगी।
लेखक भारतीय स ंकृित म परव ेश और पया वरण क े ित क ृतता का भाव द ेखता ह ै।
उनके अनुसार भारतीय स ंकृित म एक द ूसरा ही शि वाह ह ै जो मन ुय को स ृि के
साथ जोड़न े म गौरव मानती ह ै। गौरैया के ित ीित को ल ेखक िनजी वाथ से ेरत
मानते ह, अय पिय क त ुलना म साधारण ही सही पर वह मानव - जीवन म , कृिष म
अपना िवश ेष थान रखती ह ै, जैसे अय पौध क त ुलना म तुलसी का पौधा।
आँगन का प ंी िनबध क भाषा श ैली स ंकृत िन ह ै, इसम मुहावर का योग
लोकजीवन क झलक द ेता है। िनब ंध के िवषयान ुसार भाषा श ैली लािलयप ूण है। डॉ .
िवािनवास िम शद क े िशपी ह । उहन े गौरैया के िखलाफ चलाए जा रह े अिभयान
पर आोश य करत े हए अपन े िवचार को बहत ही रोचक श ैली म य िकया ह ै।
आँगन का प ंछी म उहन े भौगोिलक सीमा ओं से परे अपन े मानवीय स ंवेदना स े पूरत
िचतन को िवतार िदया ह ै, िजसम 'वसुधैव कुटुबकम ' का भाव तो ह ै ही इसक े साथ
पयावरण क े ित परव ेश और क ृित के ित क ृतता क े भाव को भी व े आवयक
मानते ह।
११.१.३ संदभ सिहत पीकरण :
“गौरैया दाना च ुगती है पर शायद िजस माा म दाना च ुगती ह ै उसस े कह अिधक लाभ
वह ख ेत का इस कार करती ह ै िक अनाज म लगन े वाले कड़ को वह साफ करती
रहती ह ै।”
संदभ :उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘आँगन का प ंछी' से उृत है। इसक े िनबंधकार िवािनवास िम जी ह ।
संग :िनबंधकार गौर ैया के िखलाफ चलाए जा रह े अिभयान पर आोश य करत े ह।
वे गौरैया को अपनी िवरासत मानत े ह और उसक े ित क ृतता य करन े का आह
करते ह।
याया :गौरैया पी साधारण होत े हए भी हमारी स ंकृित का एक अहम िहसा ह ै और
उसके िखलाफ चलाए जा रह े अिभयान को द ेखते हए िनब ंधकार कहत े ह िक गौर ैया munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
120 आकार म बहत ही छोटी - सी होती ह ै। वह बहत ही कम माा म दाना च ुगती ह ै। इतना ही
नह तो वह िजतना दाना च ुगती ह ै उसस े अिधक वह हमार े खेत म अनाज पर लगन ेवाले
कड़ को साफ करन े का काम करती ह ै। यिप गौर ैया अय प स े अनाज क े
संरण म हमारी सहायता ही करती ह ै िफर भी गौर ैया को अनाज खराब करन ेवाली
बताकर चीन ज ैसे देश गौर ैया का वध कर इनको सम ूल न करन े पर लग े ह। इनक े इस
ूर कृय क ल ेखक भ सना करत े ह। िनब ंधकार बतात े ह िक गौर ैया एक हािनकारक
नह बिक मन को आन ंिदत करन ेवाली क ृित ेमी पी ह ै और उसका स ंवधन हम
करना चािहए।
िवशेष : गौरैया पी को ल ेकर भारतीय स ंकृित, सामािजक पर ंपराएँ व क ृित ेम का
िववेचन िकया गया ह ै।
११.१.४ बोध :
१. आँगन का पंछी िनबंध म गौरैया पी को लेकर लेखकन े भारतीय संकृित, सामािजक
परंपरा एँव कृित ेम का िववेचन िकस कार िकया है।
२. गोरैया के महव को रेखांिकत करते हए, चीन म गोरैया के साथ यवहार का िवतृत
िववेचन किजए |
३. आँगन का पंछी िनबंध क समीा किजए |
११.१.५ वतुिन क े उर दीिजए ।
१. िजस घर म गौरैया अपना घसला नह बनाती वह घर या हो जाता ह ै?
उर: : िजस घर म गौरैया अपना घसला नह बनाती वह घर िनब ल हो जाता ह ै।
२. िचिड़य का िशकार करन ेवाले िकस िचिड़या को मारना पाप समझत े ह?
उर: : िचिड़य का िशकार करन ेवाले गौरैया को मारना पाप समझत े ह?
३. चीन क सरकार न े िकसे खेती का श ु माना ह ै?
उर: : चीन क सरकार न े गौरैया को ख ेती का श ु माना ह ै।
४. हमारा सा ंकृितक जीवन िकसस े आला िवत ह ै?
उर: : हमारा सा ंकृितक जीवन पारवारक ेम से आप्लािवत ह ै।
५. लेखक क े एक मास वादी िम न े उह या स ंा दे रखी ह ै?
उर: : लेखक क े एक मास वादी िम न े उह आनंदवादी स ंा दे रखी ह ै।

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
121 ११.१.६ वैकिपक क े उर दीिजए।
1. िमनी िकतन े साल क ह ै?
(अ) एक (ब) दो (क) तीन (ड) चार
2. पिय म ाण िकस िचिड़या को कहा जाता ह ै?
(अ) गौरेया (ब) सारका (क) तोता (ड) शुतुरमुग
3. अिकंचन स े अिकंचन आ ँगन म भी कौन - सा पौधा जर िमलता ह ै?
(अ) गुलाब (ब) कमाल (क) तुलसी (ड) नीम
4. गौरैया के िखलाफ िकसन े सामूिहक अिभयान श ु िकया ?
(अ) चीन (ब) जपान (क) स (ड) याँमार
११.२ पाँत का आिखरी आदमी -कुबेरनाथ राय
११.२.१ लेखक परचय :
िहदी क े िस िनब ंधकार क ुबेरनाथ राय का जम 26 माच, 1998 उर देश के
गाजीप ुर िजल े म हआ था। 'पतसा ' नामक गा ँव म ारिभक िशा -द ◌ीा सपन हई।
उच िशा क े िलए व े बनारस िहद ू िविवालय आए और िफर कलका
िविवालय म े उच िशा हण क। बाद म गाजीप ुर िथत सहजानद महािवालय म
ाचा य के पर काय रत रह े। 5 जून, 1996 को उनका िनधन हो गया।
सािहियक िनब ंध म कुबेरनाथ राय का नाम आचाय हजारी साद िव ेदी क परपरा म
सबसे अिधक िलया जाता ह ै। लिलत िनब ंधकार क े प म उहन े खूब यश कमाया। 'िय
नील क े कंठी', 'रस आक 'गंध मादन ', 'िनषाद बा ँसुरी', 'िवषद योग ', 'महाकिव क तज नी',
'कामध ेनु', 'उर क ु', 'अंधकार म अिनिशा ' शीषक से उनक े मुख िनब ंध संह
कािशत हए ह । सािहय साधना क े िलए उह भारतीय ानपीठ का ितित म ूित देवी
पुरकार स े समािनत िकया गया। इसक े अितर उर द ेश िहदी स ंथान क े ारा
उह 'सािहय भ ूषण समान भी दान िकया गया ह ै ।
११.२.२ याया समीा /
वतमान काल म मानव िवडबनाओ ं म जी रहा ह ै, हर कह चत ुराई और मकारी का
बोलबाला ह ै। चतुराई का िशकार यि असर अवदिमत हो जा ता है। वामप ंथी बन
जाता ह ै। अवदमन का भाव जीवन क े हर े म िदखाई द ेता है। ऐिक , सामािजक ,
सांकृितक, आिथक अन ेक कार क े अवदमन आध ुिनक स ंकृित के िया कलाप म
िदखाई द ेते ह कह सब ंध के तो कह भाषा और यवहार क े प म । munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
122 लेखक इसी अव दमन स े मिणप ुतुल को बचाना चाहता ह ै। पााय ल ेखक हरबट
मारय ूज क 'काम और सयता ' म विणत 'मानवीय सयता क े आध ुिनक स ंकट' क
याया इसी अवदमन क े आधार पर क गई ह ै। अवदमन क ितियता क े वप जो
जीवनशि प ैदा होती ह ै वह कह ना कह मन म मलाल िलए होती ह ै और अवसर पात े
ही य होन े लगती ह ै। अवदमन क िवषम परणाम क त ुलना म जयकाश नारायण
क सदय मयी ा ंित का भी उल ेख िकया ह ै। सदय मयी ा ंित का भी उल ेख िकया ह ै।
सदय मयी ा ंित वह ह ै जो जीन े क उकट इछा और िशव - सुंदर होन े का भा व िलए
होती ह ै। गाँधीजी क े सवदय क े पीछे भी इसी जीिजिवषा आधारत ा ंित क अवधारणा
है ऐसा वो मानत े ह और मिणप ुतुल से कहत े ह—तुहारी प ूरी क प ूरी पीढ़ी इस अवदमन
क पीड़ा स े त ह ै िव म हर कह यही हो रहा ह ै। नई पीढ़ी का आोश आदोलन का
रस ल ेता है।
आज का य ुग आदश क े ित मोहभ ंग का य ुग है। जो स ंपन ह ै उसक े िलए मानिसक द ुख
है जो िवपन ह ै रोजी - रोटी और अन व का द ुख है। यह िनराशा - हताशा मिणप ुतुल क
ही नह कमोब ेश सभी क िकसी न िकसी प म है। जो छाजीवन म थम पा ँत म होने
ह, सांसारकता म पीछे आ जात े ह, जो अययन म तीसर े पाँत पर ह वे पहली प ंि म
आ जात े ह तो यह भी एक कार का अवदमन ही ह ै। इस अयाय का म ूल हमारी
यवथा म है िजस े लेखक न े 'चालू यवथा ' – (Prevaling System) िवेिलंग
िसटम कहा ह ै। लेखक इस यवथा म िवास नह करता। सभी राजनीितक दल क े
ितिनिध चाल ू यवथा क े ही ह ै। ऊपरी तौर पर आदश और ईमान क बात करत े ह
लेिखन काय शैली चाल ू यवथा क ही होती ह ै। इसिलए आम आदमी तक िकसी स ुिवधा
का कोई अवसर नह पह ँचता। पा ँत का आिखरी आदमी शीष क इसी सदभ म है। इस
चालू यवथा क े अंतगत बुिजीवी , सुिशित , संपन और राजनीित और शासन
यवथा स े जुड़ा वग आमक ित तो होता ही ह ै। यादा स े यादा कमान े का य ेय
रखता ह ै। इस वग को िनन वग से, ामीण वग से लेना देना नह रहता। िनचल े वग से
आया हए ितिनिध भी चाल ू वयवथा स े जुड़ने पर बदल पात े ह।
लेखक न े इस यवथा क त ुलना उस महाभोज स े क ह ै जो श ुआत म काफ दमदार
लगता ह ै। पाँत पर पा ँत बैठती जाती ह ै लेिकन आिखरी पा ँत के आने पर भोजन सामी
बचतौ ही नह। श ुआती प ंि के लोग डकारत े हए जात े ह, तो आिखरी प ंि के आधा
पेट, कई बार तो भ ूखे ही रह जात े ह। ठीक यही िथित हमार े देश क 'चालू यवथा ' क
है। जैसे आखरी पा ँत के यि क भ ूख से िकसी को क ुछ लेना - देना ही नह होता। इस
यवथा म भी आम आदमी तक क ुछ भी नह पह ंचता। सारा क ुछ ने ता अिधकारी और
उनके चमच े ले उड़त े ह। समाज का दुबल घटक सब क ुछ सहता रहता ह ै। इस यवथा
के ितिनिध जनवादी बात और दमनवादी क ृय करत े ह। राय यवथा और
अथयवथा क इस घपल ेबाजी क े चलत े आम आदमी िववश ह ै।
ऐसी यवथा क े चलत े कुबेरनाथ जी मिणप ुतुल से दुखी ना होन े क बात कहत े ह। अपन े
ही गाँव क डोम बती क महआ का उदाहरण द ेते ह। महआ क ुशल बा ंस िशपी ह ै पर
उसका कोई लाभ उस े नह िमलता यिक माग दशन, आिथक सहायता नह िमल रही। munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
123 वह भी पा ँत के आिखरी आदमी ज ैसी िथित म है। उसका द ुख मिणप ुतुल से भी यादा
है यिक वह सव हारा वग से है। लेखक मिणप ुतुल को इस अिभश वग क ओर द ेखने
को कहत े ह। तुम उनस े बेहतर हो इसिलए अपना च ुनाव ना होन े पर द ुखी न हो , बिक
समाज क े उपेित िनध न वग क शि बनो। गा ंधीजी क कामनवादी ि को अपनाओ।
इस िनब ंध म लेखक गा ंधीवादी िवचारधारा का समथ न करत े हए िदखाई द ेते ह। िजसम
मनुय म मनुयता, दशन, ामीण , संकृित और म सादगी प ूण जीवन श ैली को महव
िदया गया ह ै। आजादी क े बाद द ेश क शासन यवथा और सामािजक िवषमता न े देश
क अथ यवथा को ब ुरी तरह भािवत िकया ह ै। आम आदमी त ह ै। मिणप ुतुल भी
उस मयवग तीक ह ै जो चाल ू यवथा का िशकार बनती ह ै िजसक े गुण और मता
क उप ेा होती ह ै। लेखक न े गांधी िवचारधारा का समथ न करत े हए लघ ुयान और
महायान स े जुड़ने क इछा य क ह ै। लघुयान व ृ का बीज ह ै तो महायान उसक
शाखा शाखा जो उस े िवतारत करती ह ै। गांधीवाद को ल ेखक गा ंधीयान कहत े ह।
गांधीवाद क े अनुसार सरलता सादगी वछता स ंतुि रचन े वाली ऊव गामी ि का
होना आवयक ह ै। लेखक को खादी क े भीतर , परम आित जीवन क े भीतर और
सादगी भर े जीवन म गांधीवादी सदय का बोध होता ह ै। आजादी क े उपरा ंत जनमानस न े
गांधीजी क असफलताओ ं को सफलता स े यादा महव िदया। वह ल ेखक न े गांधीवाद
का भिवय लघ ुयान और महायान क े प म देखा है मिणप ुतुल को भी वह यही स ंदेश देते
ह। दूसरे अथ म वह समाज को भी यही बतलाना चाहत े ह।
इस िनब ंध म पामकक श ैली के मायम स े लेखक न े अपन े िवचार त ुत िकए ह ।
िनबंध क भाषा श ैली िवषय क े अनुप होन े के साथ - साथ लिलत और रोचक भी ह ै।
िवषय स ंेषण क े िलए िविभन ित को लण एकता और िबब योजना का आधार भी
िलया गया है इितहास और प ुराण का उल ेख नूतन स ंदभ मे ◌ं िकया गया ह ै लेखन श ैली
म तीकामकता और िचामकता भी ह ै। लेखक न े बड़ी स ंवेदना क े साथ यवथा और
आम जनता स े जुड़े कटु और द ुखद अवदमन क िथित का िव ेषण िकया ह ै िजसम
देश के भिवय क िच ंता भी िदखलाई द ेती है।
११.२.३ संदभ सिहत पीकरण :
“सबकुछ भोग रह े ह वे जो भडारग ृह के पास उजाल े म बैठे ह। शेष म से कोई स ूखी पूरी
चबा रहा ह ै, िकसी क े पल म महज चटनी पड़कर रह गयी ह ै और पा ँत के आिखरी
आदमी क तो पल ही खाली ह ै।”
संदभ :उपयु अवतरण डॉ .अ िनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘पाँत का आिखरी आदमी ' से उृत है। इसक े िनबंधकार क ुबेरनाथ राय
जी ह।
संग :िनबंधकार अपनी छोटी बह को स ंबोिधत करत े हए पामक श ैली म िनबंध
िलखकर वत मान यवथा क खािमय को उजागत करने का यास करत े ह। munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
124 याया : यहाँ िनबंधकार गा ँव के भोज का उदाहरण द ेकर हमार े देश क यवथा क
वातिवकता को उजागर करन े का यन करत े ह। वे समझात े हए कहत े ह िक, पहले
और द ूसरे आदमी को सब क ुछ िमल जाता ह ै परंतु आिखरी आदमी क ुछ नह पाता , पाँत
पर पाँत बैठती जाती ह ै, तो आिखरी पा ँत के आने पर भौजन सामी बचती ही नह।
शुआती प ंि के लोग डकारत े हए जात े ह, तो आिखरी प ंि के आधे पेट या कई बार
तो भूखे ही रह जात े ह। ठीख यहा ँ िथित हमार े देश क चाल ू यवथा क ह ै। इस
यवथा म भी आम आदमी तक क ुछ नह पह ँचता।
िवशेष : यहाँ पाँत के आिखरी आदमी क े उदाहरण वप हमार े देश क यवथा और
आम जनता स े जुड़कर और द ुःखद अवदमन क िथित का बड़ा ही स ंवेदनामक वण न
हआ ह ै
११.२.४ सारांश इस इकाई म हमने िनबंध िविवधा (िनबंध संह) के दो िनबंध का
अययन िकया - १ आंगन का पंछी (िवािनवास िम), २ पांत का आिखरीआदमी
(कुबेरनाथ राय) | आशा है िक िवाथ इस इकाई के अययन से लेखक का जीवन
परचय , िनबंध का समीामक अययन और िनबंध के अवतरण क संदभसिहत
याया आिद मु को जान सके |
११.२.५ बोध :
१. िनबंधकार कौनसी शैली म िनबंध िलखकर वतमान यवथा क खािमय को
उजागत करने का यास करते ह । िवतार से समझाइए |
२. लेखकन े पााय लेखक हरबट मारय ूज क काम और सयता म विणत मानव
सयता के आधुिनक संकट को िकस कार उलेिखत िकया है?
३. पांत का आिख री आदमी िनबंध क समीा किजए |
११.२.६ वतुिन क े उर दीिजए ।
१. मिणप ुतुल क असफलता का कारण या बनी ?
उर: : मिणप ुतुल क असफलता का कारण बनी सारी उमीार स े उसक सवच
योयता।
२. आजकल िनय ुियाँ कैसी होती ह ै?
उर: : आजकल िनय ुियाँ पूव िनित होती ह ै।
३. ‘द रवोय ूशन य ूटीफुल' िनबंध के लेखक कौन ह ?
उर : ‘द रवोय ूशन य ूटीफुल' िनबंध के लेखक जयकाश नारायण ह ै ।
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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
125 ४. जेल डायरी म िकसका स ंवग आता ह ै?
उर : जेल डायरी म चालू यवथा का संदभ आता ह ै।
५. हरेक राजनीितक दल क े पास िकसक एक पर ेखा है?
उर: : हरेक राजनीितक दल क े पास भडारग ृह क अपनी एक पर ेखा है।
११.२.७ वैकिपक क े उर दीिजए।
१. 'पाँत का आिखरी आदमी ' िनबंध म लेखक प िकस े िलख े है?
(अ) बेटो को (ब) बह को (क) बहन को (ड) भतीजी को
२. अब सचाई कहा ँ िनवास करती ह ै?
(अ) नौकरी म (ब) जंगल म (क) साँप क बा ँबी म (ड) गुफाओ ं म
३. मनुय क आध ुिनकता का म ूलाधार या ह ै?
(अ) अवदमन (ब) अवेषण (क) सामािजकता (ड) िवोह
४) कौन एक नय े अवदमन क जननी हो जाती ह ै?
(अ) सयता (ब) संकृित (क) िजजीिवषा (ड) ांित






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126 १२
िनबंध - िविवधा (िनबंध - संह)
मनुय और ठग
ओ वसंत तुह मनुहा रता कचनार
इकाई क परेखा:
१२.० इकाई का उेय
१२.१ तावना
१२. २ मनुय और ठग
१२. २.१ लेखक परचय - ेमजनम ेजय
१२. २.२ याया / समीा
१२. २. ३ संदभसिहत पीकरण
१२. २. ४ बोध
१२. २. ५ वतुिन / लघुरी
१२. २. ६ वैकिपक
१२. ३ ओ वसंत तुह मनुहा रता कचनार
१२. ३. १ लेखक परचय - ीराम परहार
१२. ३. २ याया / समीा
१२. ३. ३ संदभसिहत पीकरण
१२. ३. ४ सारांश
१२. ३. ५ बोध
१२. ३. ६ वतुिन / लघुरी
१२. ३. ७ वैकिपक
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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
127 १२.० इकाई का उेय
इस इकाई के अययन से िवाथ िनबंध - िविवधा (िनबंध - संह) के दो िनबंध का
अययन करगे | ये िनबंध है - १. मनुय और ठग (ेमजनम ेजय ), २ ओव संत तुहे
मनुहा रता कचना र (ीराम परहार ) का सपूण अययन करगे िजसम े लेखक का
परचय , िनबंध क समीा और मुख अवतरण क संदभसिहत याया आिद पहलु
का अययन िकया जायगा |
१२.१ तावना
ेम जनम ेजय िहदी य ंयकार म तीसरी पीढ़ी क े सश हतार ह । यंय ी समान
और य ंय भूषण समान ज ैसे अनेक पुरकार और समान स े िवभूिषत ह । िहंदी के
सुिस य ंयकार हरश ंकर परसाई क पर ंपरा को आग े ले जाने वाले लेखक म ेम
जनमेजय य ंय को ग ंभीर कम , सुिशित मितक क े योजन क िवधा मा ंनते हए यंय
के ित प ूरी तरह समिप त ह । 'यंग याा ' इनक अपनी पिका ह ै, िजसक े मायम स े वे
सामािजक िवस ंगित, ाचार , शोषण और राजनीित क े िगरत े तर क िथितय पर
हार करत े ह ।
िहंदी सािहय म नई पीढ़ी क े यात िनब ंधकार , सश आलोचक , लेखक ीराम
परहार जी अन ेक सािहियक , सांकृितक, शैिणक , सरकारी , गैर सरकारी स ंथाओ ं
ारा प ुरकृत ह । 'िनबंध लेखन का शा ', 'लिलत िनब ंध वप और पर ंपरा' उनक
पुतक ि हंदी सािहय म अपनी तरह क िवश ेष कृितयाँ ह । िनब ंध लेखन म ीराम
परहा र जी हजारी साद िव ेदी, िवािनवास िम एव ं कुबेरनाथ राय क पर ंपरा क े
वाहक ह । लेखक को अपनी लोक स ंकृित क गहरी पहचान ह ै । इनक रचनाओ ं म
लोकस ंकृित, कृित और क ृषक जीवन क च ुनौितया ँ और स ंघष का वण न िमलता ह ै ।
१२.२ मनुय और ठग --ेम जनम ेजय
१२.२.१ लेखक परचय :
ेम जनम ेजय हरश ंकर परसाई क य ंय परपरा को स ंरित रखन े म खास भ ूिमका
िनभान े वाले यंयकार ह िजनक सबस े बड़ी िवश ेषता ह ै - सामािजक और राजनीितक
िवसंगितय को म ुखता स े रेखांिकत करन े का यास। समकालीन य ंय िनब ंध क
परपरा म ेम जनम ेजय का नाम ब ेहद समान क े साथ िलया जाता ह ै । उनक े िनबंध म
िवषयगत िविवधता तो ह ै ही, िशपगत योग भी इनक े यहाँ खूब हए ह । ेम जनम ेजय
का जम 18 माच, 1948 को इलाहाबाद , उर द ेश म हआ । उनका रचनामक ल ेखन
यंय िवधा पर केित रहा । इस कारण ही व े यंय िनब ंध को एक अन ुपम पहचान
िदलान े म सफल रह े ह । 'राजधानी म गँवार', 'सयम ेव जयत े', 'पुिलस', 'म नार माखन
खायी', 'मेरी इयावन य ंय रचनाए ँ', 'शम मगर य आती ', 'डूबते सूरज का इक ',
'कौन क ुिटल ख ेल का भी ', 'य य ब ूडे याम र ंग' शीषक से उनक े िनबंध संह
कािशत हए ह । सािहय क े े म उकृ योगदान क े िलए उह अनेक समान munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
128 पुरकार स े नवाजा गया ह ै । यंय ी समान , यंय भूषण समान , सािहयकार
समान , हरशंकर परसाई म ृित पुरकार , काशवीर शाी समान स े समािनत िकए
गए ह ।
१२.२.२ याया समीा /
'मनुय और ठग ' ेम जनम ेजय ारा उनक े लेखन क े आरंिभक दौर म िलखा गया िनब ंध
है । लेखक न े इस िनब ंध के मायम स े शोषण और ाचार क ृंखलाब योजना क
ओर स ंकेत िकया है । कथामक श ैली म मब प स े घटनाओ ं का वण न िकया गया
है। िनबंध के घटक पा क कपना चार ठग क े प म क गई ह ै । इन चार ठग ारा
शोषण क े चार कार का िचण आम आदमी को क म रखकर िकया गया ह ै । िकस
कार ाचार और राजनीित क े नारे और िवषम िथितया ं जनमानस को झकझोर द ेती
ह । शासन यवथा का दबाव उस े पंगु बना द ेता है ।
पहला ठग अिह ंसा और खादी का ेमी गा ंधीवाद म िवास करन े वाला शा ंित और
अिहंसा के नाम पर मन ुय को याग और दयाल ुता का पाठ पढ़ाकर उनक स ुरा को
समा कर द ेता है । िजसका परणाम आग े चलकर द ूसरे ठग क े प म मनुय जीवन म
आ जाता ह ै ।
दूसरा ठग धमा धता का तीक ह ै । वह मन ुय को धम का पाठ पढ़ाता ह ै, उसे अंधा बना
देता है । उसक े मन मितक को अपनी बात स े भािवत कर , उसे धमाध ही नह बिक
आँख स े भी अ ंधा बना द ेता है । अब धमा ध यि या समाज को अपन े धम और
मायताओ ं म ही जीवन का सय िदखाई द ेता है । उसक सोच यह तक सीिमत रह
जाती ह ै । धम के नाम पर क जान े वाली नीित का तीक यह द ूसरा ठग होता ह ै ।
इसका ठगन े का तरीका भावशाली होता ह ै । य िक अपना धम सभी को यारा होता
है । इसक बात स े लोग जदी भािवत हो जात े ह ।
तीसरा ठग घोड़ े पर सवार राजसी व म सजा वय ं को राजा बतलाकर मन ुय को
आगे बढ़ने से रोकता ह ै । यिक मन ुय पहल े ही अपनी सोचन े समझन े और द ेखने क
शि हो चुका है । कना उसक िनयित ह ै । अिह ंसा और धम ने हर अयाय को सहन े
को बाय कर िदया ह ै। तीसरा ठग उसक यवथा का लाभ उठाकर उस े िखला -
िपलाकर उसक जीभ काट ल ेता है। फुसलाकर कहता ह ै िक हम हम ेशा उसका यान
रखगे, लेिकन ज ैसे ही उस पर िवास कर मन ुय िनि ंत मन स े झपक ल ेता है। तीसरा
ठग उसक े झोले को उठा ल ेता है और भागकर अपन े सािथय क े पास चला जाता ह ै। यह
उन न ेताओ ं का तीक ह ै, जो भोली - भाली जनता को तरह- तरह क े आासन तो द ेते ह ,
लालच द ेकर उसका म ुंह बंद कर द ेते ह, और वोट िमलन े पर उह भुला देते ह।
चौथा ठग अप ंग और लाचार मन ुय को उठाकर चल द ेता है, और अपन े सािथय स े
कहता ह ै म इसस े म करवाऊ ँगा और उसका फल म लूँगा। इस तरह यह हम ेशा मेरे
काम आएगा। चौथा ठग शासकय नीितय और यवथा का तीक ह ै, जो आम जनता
का शोषण करती ह ै। लोकत ं म जहाँ हर यि को अिभयि क वत ंता और munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
129 समािनत जीवन जीन े का अिधकार ह ै। वह इस ठगीय यवथा क े चलत े आम जनता को
नह िमलता। प ूँजी और सा का चत ुराई भरा ख ेल लगातार चलता रहता ह ै। देश क
चतुर चाल ू यवथा म अिहंसा, धम, दान और सहायता क े नाम पर स ुिनयोिजत शोषण
क पर ंपरा चली आ रही ह ै।
इस कथामक श ैली म िलख े गए िनब ंध म लेखक न े मनुय के जीवन म या िवस ंगितय
को लय बनाकर अपनी बात कही ह ै। तमाम अ ंतिवरोध सामािजक राजन ैितक
परिथितय स े अनुयूत िविवध िवचारधाराओ ं और घटनाओ ं से लेकर, मानव वभाव ,
यापार और आ चरण म सभी जगह पाए जात े ह। पाख ंड और िवस ंगित को लोकिहत म
उजागर करना ही य ंयकार का म ुय उ ेय है।
अपनी रचनाओ ं म िवषय गत िविवधता और िशप आयोजन क े िलए िस ेम
जनमेजय जी न े घटनाम क े ारा इस िनब ंध को लघ ुकथा क े प म िलखा ह ै। यंजना
के ारा तीक और शद िब ंबो ारा तीकामक भाषा म लेखक का य ंग पाठक क े मन
को भािवत करन े म सम ह ै, यही ल ेखक क सफलता ह ै।
१२.२.३ संदभ सिहत पीकरण :
“ हम यहा ँ के राजा ह और हम ईर न े तेरी भलाई क े िलए भ ेजा है। हम तू ईर क े समान
शिशाली समझ। त ेरी सुरा का भार अब हम पर ह ै। हम त ेरे िहत क रा कर गे।”
संदभ : उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘मनुय और ठग ' से उृत है। इसक े िनबंधकार ेम जनम ेजय जी ह ।
संग :इस िनबंध म िनबंधकार ठगी क नई तकनीक को उजागर करत े ह । समाज म
या शोषण और ाचार क ृंखलाब योजना क ओर स ंकेत िकया ह ै ।
याया :दूसरे ठग ारा मन ुय ठग े जाने पर जब आग े बढ़ता ह ै तो उस े रात े म राजसी
वेश मे तीसरा ठग िमलता ह ै । वह ख ुद को राजा बताकर अपन े हम का पालन करन े का
आदेश मन ुय को द ेता है। ठग यह भी आासन द ेता है िक ईरीय शि क े कारण वह
उसक स ुरा कर ेगा और उसक े िहत क भी रा कर ेगा। ज ैसे ही मन ुय आत होता ह ै
वह उस े िखला - िपलाकर उसक जीभ काट ल ेता है। यह उन न ेताओ ं का तीक ह ै , जो
भोली - भाली जनता को तरह- तरह क े आासन द ेकर , लालच द ेकर उसका म ुँह बंद कर
देते ह और वोट िमलन े पर उस े भुला देते ह।
िवशेष :यहाँ देश क चत ुर चाल ू यवथा म अिहंसा, धम, दान और सहायता क े नाम पर
सुिनयोिजत शोषण क पर ंपरा का उाटन हआ ह ै।
१२.२.३ बोध :
१. मनुय और ठग िनबंध म गांधीजी के िवचार िकस कार ितपािदत हए है |
समझाइए | munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
130 २. मनुय और ठग िनबंध क समीा किजए |
३. मनुय और ठग िनबंध को आज के परय म यायाियत किजए |
१२.२.४ वतुिन क े उर दीिजए ।
१. मनुय जब करीब आया तो पहला ठग या करन े लगा?
उर: : मनुय जब करीब आया तो पहला ठग भजन गान े लगा।
२. पहले ठग न े मनुय को य पहनाया ?
उर: : पहले ठग न े मनुय को टोपी और खादी क े व का जोड़ा पहनाया।
३. दूसरे ठग न े कैसा व धा रण िकया था ?
उर: : दूसरे ठग न े गेए व धारण िकया था।
४. तीसर े ठग न े मनुय का कौन सा अ ंग काट िलया ?
उर: : तीसर े ठग न े मनुय क जीभ काट ली।
५. चौथे ठग न े मनुय के िलए या िकया ?
उर: : चौथे ठग न े मनुय के िलए वािद भोजन औ र पेय का ब ंध िकया।
१२.२.५ वैकिपक क े उर दीिजए।
१. कुल िकतन े ठग थे?
(अ) चार (ब) छह (क) तीन (ड) पाँच
२. ठग को सामन े से कौन आता िदखाई िदया?
(अ) जानवर (ब) बचा (क) मनुय (ड) गाड़ी
३. तीसर े ठगने कैसा वधारण िकया था?
(अ) गेआ (ब) राजकय (क) साधारण (ड) खादी
४. मनुय का थैला िकसन े चुराया?
(अ) पहले ठगने (ब) दुसरे ठगने (क) तीसरे ठगने (ड) चौथे ठगने


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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
131 १२.३ ओ वसत : तुह मनुहारता कचनार - ीराम परहार
१२.३.१ लेखक परचय :
समकालीन िनब ंध िवधा म अपनी िविश पहचान रखन े वाले ीराम परहा र का जम
16 फरवरी , 1953 को ख ंडवा, मयद ेश म हआ। इनक े िनबंध म भारतीय लोक
संकृित का ितिब ंब न सबस े अिधक हआ जीवन का द ुख, उसका स ंघष तथा िकसान
क च ुनौितय का र ेखांकन ब ेहद भावशाली ढ ंग से करन े वाल े ीराम परहार न े
चकाचध स े हमेशा दूरी बनाकर रखी। सािहय साधना उनका म ुय य ेय रहा ह ै। िकसी
जोड़तोड़ क राजनीित स े िवमुख ीराम परहार क े िनबंध म पयावरण क च ुनौितया ँ,
कृषक जीवन क ासदी , आधुिनकता और परपरा , हािशए का जीवन प िदखाई
पड़ता ह ै। एक िनब ंधकार क े प म ीराम परहार न े खूब याित बटोरी ह ै। 'आँच अलाव
क', 'अँधेरे म उमीद ', ‘बजे तो वंशी, गूँजे तो श ंख', 'िठठरे पल प ंखुरी पर', 'रसवंती बोलो
तो', 'झरते फूल हरिस ंगार क े', 'धूप का अवसाद ', 'हँसा करो प ुरातन बात ', 'भय क े बीच
भरोसा ', 'परपरा का प ुनरायान ', 'रचनामकता और उर परपरा ' शीषक से ीराम
परहार क े िनबंध संह कािशत हए ह । आप नवगीत क ेित पिका ‘अत ' का
सपादन कर रह े ह। सािहय साधना क े िलए ीराम परहार वागीरी प ुरकार , चधर
समान , िनमल पुरकार ज ैसे अनेक समान स े नवाज े गये ह ।
िहंदी सािहय म नई पीढ़ी क े यात िनब ंधकार , सश आलोचक , लेखक ीराम
परहार जी अन ेक सािहियक , सांकृितक, शैिणक , सरकारी , गैर सरकारी स ंथाओ ं
ारा प ुरकृत ह। 'िनबंध लेखन का शा ', 'लिलत िनब ंध वप और पर ंपरा' उनक
पुतक िहंदी सािहय म अपनी तरह क िवश ेष कृितयाँ ह। िनब ंध लेखन म ीराम
परहार जी हजारी साद िव ेदी, िवािनवास िम एव ं कुबेरनाथ राय क पर ंपरा क े
वाहक ह । लेखक को अपनी लोक स ंकृित क गहरी प हचान ह ै। इनक रचनाओ ं म
लोकस ंकृित, कृित और क ृषक जीवन क च ुनौितया ँ और स ंघष का वण न िमलता ह ै।
१२.३.२ याया समीा / :
'ओ बस ंत : ! तुह मनुहारता कचनार ' िनबंध म लेखक न े वतमान िशा णाली को क
म रखकर उसक े मानव समाज और समत स ृि पर पड़न े वाले भाव पर िच ंतन - मनन
िकया ह ै। वतमान म गुकुल क पर ंपरा समा हो गई ह ै। इसक े साथ ही प ुरानी पर ंपरा
और आथा भी नह रही। िडी धारय क स ंया बढ़ रही ह ै, और स ुजान नागरक क
संया घट रही ह ै। आज िशा का स ंबंध नौकरी पान े तक ही सीिमत रह गया ह ै। बूढ़े और
खखराए हए कचनार क े पेड़ को द ेखकर ल ेखक को वस ंत ऋत ु म भी इसी कचनार क े
फूल स े भर जान े पर छा जान े वाली स ुंदरता मरण हो जाती ह ै। वह अपन े छा को
वसंत के िवषय म बताना चाहत े ह, पर छा को इस िवषय म कोई िच नह ह ै। लेखक
सोच म पड़ जाता ह ै, उसे लगता ह ै आज क िशा पित ब ेजान हो गई ह ै। तभी कोयल
का वर मानो 'कौन ठगवा नगरया ल ूटल हो ' कुछ ऐसा अथ दे जाता ह ै। उसे लगता ह ै munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
132 कृित को आध ुिनक िशा पित न े बुरी तरह ल ूटा - खसोटा ह ै। कृित से मनुय य
और िकस कार द ूर होता जा रहा है ? या यही िशा हम नई पीढ़ी को द े रहे ह?
िशा क यह नीित िसफ अथपाज न िसखा रही ह ै। इसका जीवन क वातिवकता और
यवहार स े कोई सरोकार नह ह ै। मशीन क े युग ने मनुय के चर को बदलकर रख
िदया ह ै। शहरीकरण को बढ़ावा िदया ह ै और ामीण स ंकृित का िवनाश िकया ह ै। आज
िशा हण करन े के दो ही मकसद रह गए ह , िशा ा कर नौकरी करना या िफर
राजनीितक पािट य क शरण म जाना। झ ंडे उठाकर तोड़फोड़ और आ ंदोलन क नीित
अपना ल ेना। जहा ँ रचना होनी चािहए वहा ँ िवव ंस का भाव िदख रहा ह ै। िशा न े कृित
के दोहन का भी तरीका इजाद िकया ह ै। मनुय क ृित से छेड़छाड़ करन े क कला म
कुशल हो गया ह ै। वृारोपण क े कृिम तरीक े अिधक उपज क े लालच म फूल, फल,
सिजय क े साथ भी अाक ृितक तरीक े अपनाए जा रह े ह। इन तरीक न े धाय और वन
संपदा को तो न ुकसान प हंचाया ही ह ै, मानव वाय स े संबंिधत समयाओ ं को भी
बढ़ाया ह ै। ाचीन काल म िशा ान क पर ंपरा का वाहक , संकृित क स ंरक हआ
करती थी , पर आज अथपाज न का साधन बन गई ह ै। यह िशा पित उपािध धारक
को नौकरी िदलान े म सहायक ह ै, पर सुजान नाग रक नह बनाती। स ुंदर फूल और फल
के बजाय बब ूल के कंटीले पेड़ उगा रही ह ै।
आिथक उनित क े आधार पर चकाचध वाल े जीवन क लालसा न े हमारी नई पीढ़ी को
भारतीय स ंकृित स े िवमुख कर िदया ह ै। हमार े पौरािणक ंथ का थान आध ुिनक
िवान न े ले िलया ह ै। पााय स ंकृित के भाव न े जीवन म यावहारकता क े मायन े
बदल िदए ह । पतझड़ का िशकार हो चली ह ै। आज मन ुय अन ेक ाक ृितक आपदाओ ं
को झेल रहा ह ै। यह मन ुय ारा क ृित म अपनी च ेतना को थािपत करन े का परणाम
है।
कृित हमार े जीवन म संसाधन का प ूरक ही नह बिक एक यवथा भी ह ै। बदलत े
मौसम , उनसे जुड़े उसव , ितिथया ँ हमार े जीवन म िनखार लात े ह। िहमालय क ऊ ंचाई
देश क स ुरा ही नह , धम और ढ़ता का भी स ंदेश देती है। कृित से मानव क द ूरी ने
िवषम परिथितय को ही जम िदया ह ै। िकताब का थान जीवन म ना रहकर मशीन
म हो गया ह ै। चै - वैशाख क े थान पर जनवरी - फरवरी पढ़ाया जा रहा ह ै। नागरक शा
पर राजनीित शा हावी हो गई ह ै। वद ेशी भाषा स े दूरी और िवद ेशी भाषाओ ं के ित
ेम बढ़ता जा रहा ह ै। पयावरण िवषय पढ़ाया जाता ह ै पर क ृषक क म ेह नत स े अन ◌ाज
हम िमलता ह ै। मनुय के साथ अय ािणय को भी जीन े का अिधकार ह ै। इसका ान
भी आवयक ह ै कृित के िनयम तोड़कर मन ुय ाक ृितक आपदाओ ं को ही िनम ंित कर
रहा है।
मानव स ृि का सबस े बुिमान ाणी ह ै। कृित ने उसे बहत क ुछ िदया ह ै, िसखा या है जो
एक द ूसरे के पूरक ह । मानव और क ृित पतझड़ और बस ंत हम जीवन म उतार - चढ़ाव
का स ंदेश देते है। किव क काय कपना भी क ृित को गोद म ही जम ल ेती है और
िवान क े िसा ंत भी। क ृित और मानव च ेतना क े बीच भावनामक स ंबंध है जीवन म munotes.in

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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
133 आंतरक शा ं ित और सा धना का भाव भी क ृित ही द ेती है। यहा ँ ीराम परहार जी न े
धमवीर भारती क ृत अंधा युग का उल ेख िकया ह ै। अंधा युग के मायम स े किव न े जीवन
म चुनौितय , आथा और मया दा के मापद ंड को समझन े का, वीकार करन े का स ंदेश
िदया ह ै। इस कला को हम क ृित और लोक स ंकृित से जोड़कर सीख सकत े है। लेिकन
वतमान िशा पित म हमारी स ंकृित के आथा और मया दा से जुड़े सोपान नह ह ।
लेखक नई पीढ़ी को स ंदेश देना चाहत े ह िक तकनीक िवकास क े साथ अपन े संकृित
का तालम ेल भी आवयक ह ै। िवद ेशी स ंकृित क अछी बात पूण क र पर अपनी
संकृित का म ूल संरण फ ूल म सुगंध क तरह कर । नई पीढ़ी हमारा भिवय ह ै, उह
संकार द ेना हमारी िजम ेदारी ह ै। लेखक आशािवत ह ै, हालाँिक कचनार का प ेड़ सूखा
है पर उसक छाती म कुछ हरयाली अभी भी ह ै, और उसक े नीचे नहा सा प लाश का
पौधा उग आया ह ै। कचनार म िदख रही िक ंिचत हरयाली और पलाश का पौधा ल ेखक
के मन म भिवय क े ित उमीद जगात े ह िक आन ेवाली पीढ़ी स ंकृित और क ृित के
महव को समझ ेगी। इनस े टूटा संबंध पुनः गाढ़ होगा और मानव जीवन स ुरभीत होगा।
तुत िनब ंध म कृित और स ंकृित को ल ेकर ल ेखक क शोध ि और िच ंतन
परलित होता ह ै। अपन े देश क स ंकृित के मूय क े आधार पर उसक िवश ेषताओ ं
को त ुत िकया गया ह ै। भारतीय स ंकृित से िवमुख हो रही पीढ़ी को भौितकता क
अंधी दौड़ स े बचान े का यास भी ह ै। संकृित, कृित और मन ुय को ल ेकर अपन े अंतस
के ंदन को ल ेखक न े अयंत ांजल और लािलय प ूण ढंग से य िकया ह ै। िनबंध क
िवषयान ुकूल भाषा म सौयता भी ह ै जो िक ल ेखक क े लेखन श ैली क िवश ेषता ह ै।
१२.३.३ संदभ सिहत पीकरण :
“एक ब ेजान िशा पित नयी पी ढ़ी क जमीन पर रोपी जाती रही। िवालय और
महािवालय म जो क ुछ पाया जा रहा ह ै उसका पढ़ - िलख जान े के बाद जीवन और
यवहार स े िकतना सरोकार श ेष रहता ह ै, यह छ ुपा नह ह ै।”
संदभ :उपयु अवतरण डॉ . अिनल िस ंह जी ारा स ंपािदत प ुतक ‘िनबंध िविवधा ' म
संकिलत िनब ंध ‘ओ वस ंत ! तुह मनुहारता कचनार ' से उृत है। इसक े िनबंधकार ीराम
परहार जी ह ।
संग :िनबंधकार वत मान िशा यवथा पर अपन े िवचार य करता ह ै। उनका मानना
है िक आज क पीढ़ी को िवालय या महािवालय कक े पाठ्यम म जो भी िशा दी
जा रही ह ै वह िबलक ुल ही ब ेजान ह ै। िजसम यावहारक ान जरा भी नह रह गया ह ै।
िवाथ धनवान , िवान , वैािनक , नेता और अफसर तो बन जा रह े ह ऐसी िशा
लेकर ल ेिकन आदमी और नागरक नह बन पा रह े। आज क िशा पित म न
ाकृितक ेम है, ना सा ंकृितक स ंरण क बात रह गयी ह ै, अिपत ु केवल अथपाज न
का साधन बन गई ह ै। munotes.in

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वातंयोर िह ंदी सािहय
134 िवशेष :यहाँ वतमान िशा पित को ल ेकर िनब ंधकार क िच ंता साफ कट हई ह ै।
िशा यवथा म परंपरा, संकृित के अभाव क े चलत े िवािथ य के िदशाहीन होन े से
लेखक क े अंतस क पी ड़ा बड़ी सौयता स े कट हई ह ै।
१२.३.४ सारांश
इस इकाई के अययन से िवाथ िनबंध - िविवधा (िनबंध - संह) के दो िनबंधका
अययन िकया है | ये िनबंध है - १. मनुय और ठग (ेमजनम ेजय ), २ ओ वसंत तुहे
मनु हारता कचनार (ीराम परहार ) आशा है िक इस इकाई के अययन से िवाथ
लेखक का परचय , िनबंध क समीा और मुख अवतरण क संदभसिहत याया
आिद पहलु ओं से अवगत हए हगे |
१२.३.५ बोध :
१. आज क िशा पित म न ाकृितक ेम है, ना सांकृितक संरण क बात रह गयी
है, अिपत ु केवल अथ पाजन का साधन बन गई है । िकस कार लेखक ने िनबंध म
चचा य क है | समझाइए |
२. 'ओ वसंत तुहे मनुहा रता कचनार ' िनबंध म ाकृितक ेम क और लेखक का
झान य और कैसे गया? िववरण दीिजए |
३. 'ओ वसंत तुहे मनुहा रता कचनार ' िनबंध क समीा किजए |
१२.३.६ वतुिन क े उर दीिजए ।
१. वसंत ऋत ु के आगमन क स ूचना कौन द ेता है?
उर: : िखला हआ कचनार वस ंत ऋत ु के आगमन क सूचना द ेता है।
२. कैसी पित नयी पीढ़ी क जमीन पर रोपी जा रही ह ै।
उर: : एक ब ेजान िशा पित नयी पीढ़ी क जमीन पर रोपी जा रही ह ै।
३. िकताबी िशा न े पीिढ़य क े िदमाग पर या बना िदया ह ै?
उर: : िकताबी िशा न े पीिढ़य क े िदमाग पर डामर क सड़क बना दी ह ।
४. गु और िशय क े बीच म कौन स ेतु बनता था ?
उर: : गु और िशय क े बीच म ान ही स ेतु बनता था।
५. िवकास िकसका चोला पहनकर आया ?
उर: : िवकास अ ंेजीयत का चोला पहनकर आया।
१२.३.७ वैकिपक क े उर दीिजए।
१. हमारा भिवय कौन है?
(अ) कृित (ब) नयी पी ढ़ी (क) पुरानी पी ढ़ी (ड) सरकार
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िनबंध िविवधा (िनबंध -संह)
135 २. हम कौनसा चमा लगाकर वयं को देखने - परखन ेलगेह?
(अ) काला (ब) वदेशी (क) िवदेशी (ड) सांकृितक
३.पढ़ाई िलखाई क े बारे म आरभ स े ही या पान े क धारणा जो ड़ दी गयी ह ै ?
(अ) नौकरी (ब) उच िशा (क) समाज (ड) राजनीित
४.िनबंधकार िकसका वागत करते ह?
(अ) वसंत का (ब) अितिथ का (क) िवािथ य का (ड) भिवय का



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नमूना प्रश्न पत्र
Semester – VI Course – V
समय : 3:00 घंटे पूणाांक : 100
सूिना : 1. अंवतम प्रश्न अवनिाया है।
2. सभी प्रश्नों के वलए समान अ ंक है।
प्रश्न 1. स्िातंत्र्योिर कविता की संिेदना पर प्रकाश डावलए। 20
अथिा
स्िातंत्र्योिर वनबंध सावहत्य का विकास स्पि कीवजए।
प्रश्न 2. वनम्नवलवखत अितरणों की संदभा सवहत व्याख्या कीवजए। 20
क) “पग-पग पर तीथा है,
मंवदर भी बहुतेरे हैं;
तू वजतनी करे परर कम्मा, वजतने लगा फेरे
मंवदर से, तीथा से, यात्रा से।”
अथिा
क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर वगरता है जब कोई पेड़ धरती पर ?
सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अ ंधेरे से मुँह ढाँप
वकस कदर रोती हैं नवदयाँ ?
ख) “मैंने मन में कहा ठीक। बाज़ार आम ंवत्रत करता है वक आओ म ुझे लूटो और
लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो।” 20
अथिा
“ताबड़तोड़ हररयाली लाने के वलए िानस्पवतक स ंसार के दािेदारों ने पोिी हरीवतमा
िाली जड़ों का पोषण श ुरू कर वदया।”
प्रश्न 3. ‘थोड़े-से बच्िे और बाक़ी बच्िे ’ कविता की संिेदनाएँ स्पि कीवजए। 20
अथिा
‘रात वकसी का घर नहीं’ कविता की मूलसंिेदना स्पि कीवजए।

प्रश्न 4. ‘आँगन का पंछी’ वनबंध का भाि-सौन्दया स्पि कीवजए। 20
अथिा
‘पाप के िार हवथयार’ वनबंध का संदेश स्पि कीवजए।

प्रश्न 5. वकन्हीं दो विषयों पर वटप्पवणयाँ वलवखए । 20
क) ‘िुप्पी टूटेगी’ कविता की मूल संिेदना ख) ‘नया कवि’कविता का भाि
ग) ‘मनुष्ट्य और ठग’का आशय घ) ‘रसायन और हमारा पयाािरण ’वनबंध का उद्देश्य munotes.in