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नाटक: अर्थ, परिभाषा, स्वरूप एवं ववकास
इकाई की रूपिेखा
१.० ाआकााइ का ाईद्ङेश्य
१.१ प्रस्तावना
१.२ नाटक का ाऄथथ
१.३ नाटक की पररभाषा
१.४ नाटक का स्वरुप
१.५ नाटक का ववकास
१.६ साराांश
१.७ लघुत्तरीय प्रश्न
१.८ दीघोत्तरी प्रश्न
१.९ सांदभथ ग्रांथ
१.० इकाई का उद्देश्य प्रस्तुत ाऄध्याय में वनम्नवलवखत वबांदुओां का छात्र ाऄध्ययन करेंगे।
• नाटक के ाऄथथ को समझने हेतु ।
• नाटक की पररभाषा को समझने हेतु ।
• नाटक के स्वरूप एवां ववकास को समझने हेतु ।
१.१ प्रस्तावना रांगमांच पर ाऄवभनय वक जा सकने योग्य रचना नाटक कहलाती है । नाटक की पूणथ सफलता
पात्रों की सजीवता पर वनभथर करती है । नाटक के वववभन्न तत्वों में कथावस्तु, पात्र, सांवाद,
देशकाल एवां वातावरण, भाषा शैली ाअवद को शावमल वकया जाता है । भारतीय नाटकों में
नायक कथा को कल की ओर ले जाता है । दशथक ाईसी के ववकास-ाईत्थान में रुवच रखते हैं।
जबवक पाश्चात्य नाटकों में नायक पररवस्थवतयों के चक्र में घूमता रहता है ।
१.२ नाटक का अर्थ नाटक की परांपरा बहुत प्राचीन है। नाटक ाऄपने जन्म से ही शब्द की कला के साथ-साथ
ाऄवभनय की कला भी है। ाऄवभनय रांगमांच पर होता है। रांगमांच पर नाटक के प्रस्तुतीकरण के
वलए लेखक के शब्दों के ाऄलावा वनदेशक, ाऄवभनेता, मांच व्यवस्थापक और प्रेक्षक (दशथक) munotes.in
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स्वातांत्र्योत्तर वहांदी सावहत्य
2 की ाअवश्यकता होती है । नाटक के शब्दों के साथ जब ाआन सबका सहयोग घवटत होता है
तब नाट्यानुभूवत या रांगानुभूवत पैदा होती है ।
ाअचायथ हजारी प्रसाद विवेदी ने वलखा है "बहुत पहले भारतवषथ में जो नाटक खेले जाते थे
ाईनमें बातचीत नहीं हुाअ करती थी । वे केवल नाना ाऄवभनयों के रूप में ाऄवभनीत होते थे ।
ाऄब भी सांस्कृत के पुराने नाटकों में ाआस प्रथा का भग्नावशेष प्राप्य है ।" यह ाआस बात का
सबूत बताया जाता है वक नाटकों में बातचीत ाईतनी महत्वपूणथ वस्तु नहीं मानी जाती थी,
वजतनी वक्रया । नाटक की पोथी में जो कुछ छपा होता है ाईसकी ाऄपेक्षा वही बात ज्यादा
महत्वपूणथ होती है, जो छपी नहीं होती और वसफथ रांगभूवम में ही देखी जा सकती है । नाटक
का सबसे प्रधान ाऄांग ाईसका वक्रया प्रधान दृश्याांश ही होता है, और ाआसीवलए पुराने
शास्त्रकार नाटक को दृश्य काव्य कह गए हैं । ाआससे यह बात वसद्च होती है वक कववता और
कथा सावहत्य की भाांवत नाटक के शब्द स्वतांत्र नहीं होते । नाटक के शब्दों का प्रधान कतथव्य
वक्रया प्रधान दृश्यों की प्रस्तावना है ।
नाटक ाऄवभनय के वलए होता है, पढ़ने के वलए नहीं। ाआसवलए नाटक के शब्दों में ाऄथथ ाईस
प्रकार नहीं घवटत होता जैसे कववता, ाईपन्यास या कहानी में । नाटक के शब्द कायथ की
योग्यता से साथथक होते हैं । नाटक के शब्दों में वनवहत कायथ की योग्यता रांगमांच पर वसद्च
होती है । ाआसवलए नाटक ाऄनुष्ठान धमी होता है । ाऄनुष्ठान का तात्पयथ यहाां यह है वक ाईसके
वलए कुछ वनयमों के ाऄनुसार तैयारी करनी पड़ती है । जैसे रांगमांच की व्यवस्था, वेशभूषा,
प्रकाश, ाऄवभनेताओां के वक्रया व्यापार, मुद्राएां, गवत रचना ाअवद। नाटक के शब्दों को जब ाआन
सारे व्यापारों में धारण कर वलया जाता है, तब रसानुभूवत होती है । ाअधुवनक युग में ाआसे
रांगानुभूवत कहा जाता है, काव्य की ाऄनुभूवत से नाटक की रांगानुभूवत ाआस ाऄनुष्ठान व्यापार
के कारण वभन्न होती है ।
नाटक के ाऄनुष्ठान धमी होने के कारण ाईपन्यास के मुकाबले नाटक की कुछ सीमाएां होती
है। ाईपन्यासकार की भाांवत नाटककार को वणथन और वचत्रण की स्वतांत्रता नहीं होती । वकसी
पात्र के जीवन या घटना के ववषय में ाईसे ाऄपनी ओर से कुछ भी कहने का ाऄवसर नहीं
होता। दशथकों के सामने कुछ घांटों में ाईसे पूरा नाटक प्रदवशथत करना होता है । ाआसवलए
ाईसका ाअकार और ववस्तार बहुत नहीं हो सकता । ाआन सब कारणों से नाटक ाईपन्यास के
मुकाबले ाऄवधक ठोस तथा जवटल होता है । नाटकों में ाऄवधक सांयम और कौशल की
जरूरत होती है। रांगमांच और ाऄवभनय की ाईपेक्षा के कारण नाटककार घटना, पात्र और
सांवाद को ाऄत्यांत सावधानी से चुनता है । ाआस चुनाव और ाईनके ववन्यास में नाटककार को
ाऄवतररक्त सांयम और कौशल का ाईपयोग करना पड़ता है । घटना, पात्र और वक्रया को वह
ऐसे सांवादों के जररए प्रस्तुत करता है, जो ाऄवभनय में ही ाऄपना पूरा ाऄथथ और प्रभाव प्राप्त
कर सकते हैं । नाटक के मुख्यताः दो रूप होते हैं, एक है श्रव्य नाटक, दूसरा है दृश्य नाटक ।
ाआसमें श्रेष्ठ रूप है दृश्य नाटक । नाटक की प्रमुख तीन कसौवटयााँ है - मांचीयता, ाऄवभनेता
और दृश्यात्मकता । नाट्य समीक्षकों एवां वविानों िारा ाआन दो प्रकारों पर नाटक के ाऄथथ
सांबांधी ाऄलग-ाऄलग मत प्रस्तुत वकए गए हैं । कोाइ वचांतक वनदेशक या ाऄवभनेता को ही
नाटक कहते हैं । दशथक वगथ तो ाआसमें महत्वपूणथ होता है । सामान्य बोलचाल की भाषा में
‘नाटक करना’ एक ाऄथाथपकषथण का वाचक है, और सावहत्य सांस्कृवत के पाररभावषक रूप में munotes.in
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नाटक: ाऄथथ, पररभाषा, स्वरूप एवां ववकास
3 वह भारत में सवाथवधक पूज्य वेद के समकक्ष देखा जाता है । नाट्यशास्त्र में ाईसे ‘पांचम वेद’
कहा गया है ।
१.३ नाटक की परिभाषा नाटक एक ऐसी वववध है वजसमें सभी शास्त्रों और वशल्पों के दशथन पाए जाते हैं, नाटक
मानव मन की ाऄांतर चेतना का ाऄवभनयात्मक रूप है । ाऄताः भाषा के माध्यम से हषथ,
ाईल्हास, दुख ाअवद भावनाओां को प्रकट करना नाटक की ववशेषता है । नाटककार
व्यवक्तवादी भूवमका लेकर नाटक का वनमाथण नहीं करता, क्योंवक नाटक सामूवहक कृवत होती
है । नाटक में सामूवहक ाअस्वाद एवां सामूवहक ाऄनुरूपता ाऄपेवक्षत होती है । नाटक का
नायक व्यवक्तगत जीवन प्रकट नहीं करता, वह तो समाज का प्रवतवनवधत्व करता है । दशथक
पल भर के वलए खुद को भूल कर नाटक के पात्रों के साथ एक रूप होते हैं, और यही
नाटक का सत्य है, ाआसी बात को स्पष्ट करने के वलए ाऄलग-ाऄलग वविानों ने वभन्न वभन्न
प्रकार से ाऄपने ववचार व्यक्त वकए हैं ।
भरत मुवन ने नाटक की पररभाषा ाआस प्रकार दी है - ‚सब ाऄांगों, ाईपाांगों और गवतयों का क्रम
व्यववस्थत करके ाईसका ाऄवभनय वकया जाता है और दशथकों तक पहुांचाया जाता है, ाईसे
नाटक कहते हैं ।” भरत मुवन ने ाऄनुकरण को महत्व वदया है ।
ाअचायथ ववश्वनाथ ने ाऄपने ‘सावहत्य दपथण’ में नाटक की पररभाषा ाआस प्रकार दी है ‚ाऄांवगक,
वावचक, ाअहायथ और सावत्वक भाव का ाऄनुकरण नाटक है ।‛
‘धनांजय’ ने नाटक की पररभाषा ाआस तरह से रेखाांवकत की है - ‚वकसी की वस्थवत ववशेष का
ाऄनुकरण नाट्य या ाऄवभनय कहलाता है । रूपक, नाटक या दृश्यकाव्य में नाट्य या
ाऄवभनय का प्रधान स्थान होता है । दृश्य काव्य के भीतर काव्यवस्तु, चररत्र तथा दृश्यों का
ाआसी प्रकार से सांगठन होता है, वजन्हें रांगमांच पर वदखाया जा सकता है ।
भरतमुवन ने नाटक की पररभाषा का ाआस प्रकार ववस्तृत वववेचन वकया है - ‚नाटक को सांपूणथ
लोक का भावानुकीतथन माना जाता है । ाआसमें धमथ, ाऄथथ, काम, ज्ञान, शाांवत, हास्य, खेल,
युद्च, धावमथको की धमथप्रवृवत्त, कावमयों की वासना, दुराचाररयों की वनग्रह, ववलयों की दृष्टता,
शूरो का ाईत्साह, मूखों की मूखथता, वविानों की ववित्ता, धवनको का ववलास, दुवखयों के प्रवत
धैयथ, व्यवसावययों का व्यवसाय ाअवद सम्पूणथ मानव वक्रयाओां का ाऄनुकीतथन भावों के ाअवेग
में वकया जाता है, ाईसे नाटक कहते है।" ाआस प्रकार नाटक मानव की समस्त भाव -
योजनाओां का ाऄनुकरण मात्र है। यह ाऄनुकरण चार प्रकार का है - १. ाऄांवगक, २. वावचक,
३. ाअहायथ, ४. सावत्वक । काव्यशास्त्र मनीषी डॉ. भगीरथ वमश्र जी ने नाटक को ाऄनुकरण
माना है । ाईन्होंने स्पष्ट वकया है वक "वकसी वस्थवत ववशेष का ाऄनुकरण नाट्य या ाऄवभनय
कहलाता है ।"
ाअचायथ हजारी प्रसाद विवेदी जी ने नाटक को पररभावषत करते हुए कहा है वक "काव्य में
ववणथत जो धीरोदात्त ाअवद नायको की ाऄवस्थाएां है, ाईनके ाऄनुकरण के िारा चार प्रकार के
ाऄवभनयो से ऐसा ाऄनुकरण है, जो राम, दुष्यांत ाअवद पात्रों को ज्यों का त्यों ाईपवस्थत करा munotes.in
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स्वातांत्र्योत्तर वहांदी सावहत्य
4 सके ाईसे नाट्य कहते है ।" भारतेंदु बाबू हररश्चांद्र के ाऄनुसार - "काव्य का सवथगुण सम्पन्न
प्रदशथन ही नाटक है ।"
बाबू गुलाबराय के ाऄनुसार - "नाटक का सांबांध नट से है। ाऄवस्थाओ की ाऄनुभूवत को नाट्य
कहते है । ाआसमें नाटक शब्द की साथथकता है ।"
डॉ. नगेंद्र ने नाटक को पररभावषत करते हुए कहा है "नाटक एक दृश्यकाव्य है, वजसमे मानव
जीवन की ाईदारता को ाईदात्त चररत्रों और ाऄवभनय के माध्यम से ाईद्घावटत वकया जाता है ।"
सार यह है वक नाटक में मानव जीवन के ाऄनुकरण और ाऄवभनय की वक्रया का महत्त्वपूणथ
स्थान है, ाऄथाथत ाऄनुकरण ही नाटक है ।
भारतीय वविानों की पररभाषाओ की तरह पाश्चात्य वविानों ने नाटक को 'ड्रामा' नाम वदया
है। ाऄरस्तु ने नाटक को 'ट्रेजेडी' कहा है । जीवन के व्यापारों का ाऄनुकरण माना है । ाऄरस्तू
ने नाटक की पररभाषा ाआस प्रकार से दी है - ‚ट्रेजडी में जीवन व्यापारों का ाऄनुकरण है, ाआन
व्यापारों में गांभीरता की और पूणथता की ाअवश्यकता होती है । ट्रेजडी में कलात्मक तथा
ाऄलांकाररक भाषा, ववषमताएाँ वणथनात्मक शैली के स्थान पर दृश्यात्मक शैली होती है ।
करुणा और भय के प्रदशथन िारा मनोववकारों के पररष्करण ाअवद ाअवश्यक होते हैं ।‛
काव्यशास्त्र में ाअनन्द लेने वाले वमन्टन वविान का नाम ाअता है ‚नाटक िारा रांगमांच पर
वाताथलाप के रूप में जीवन का ाऄनुकरण कहा है ।‛
ब्रेन्डर मैथूज ने "नाटक को रांगमांच पर जीवांत ाऄवभनेताओां के िारा सामावजकों के सम्मुख
जीवांत रूप में प्रस्तुत की गाइ कहानी कहा है ।"
ाआस प्रकार प्रस्तुत नाट्य ववषयक पररभाषाओ का ाऄवलोकन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है
वक नाटकों की वनवमथवत वेदो से हुाइ ाऄथाथत नाट्य का बीजवपन वेदो में प्राप्त है । वस्तुताः
नाटक वकसी एक वदन की पररणीवत न होकर ाऄनेक वषों के ववकास की गुणात्मक पररणीवत
है ।
१.४ नाटक का स्वरुप नाटक मूलताः काव्य का ही एक प्रकार है, तथा सावहत्य और काव्य नाटक के मूल स्वभाव
के ाऄांश है । ाआसका तात्पयथ यह है वक नाटक के स्वरुप को सावहत्य के स्वरुप से ाऄलग नहीं
देखा जा सकता । ाऄवधक से ाऄवधक ाईसे वववशष्ट सावहवत्यक स्वरुप कहा जा सकता है ।
सावहत्य को मनुष्य पढ़ता है । नाटक के वलए भी यही सच है वक सावहत्य में शब्दों िारा
मानव के जीवन को स्पष्ट वकया जाता है । नाटक एक भावषक कला है । वहांदी नाट्य सावहत्य
की परांपरा का ाअरांभ ाअधुवनक काल (१९वीं शताब्दी) से हुाअ है । वहांदी से पूवथ सांस्कृत
और प्राकृत की समृध्द नाट्य परांपरा थी । लेवकन वहांदी नाटकों का ववकास ाअधुवनक युग में
ही सांभव हो सका । ाआसका कारण शायद यह था वक सांस्कृत नाटकों के युग के बाद वहांदी
क्षेत्र में रांगमांच की परांपरा वसलवसलेवार ढांग से कायम नहीं रह सकी थी । पररणामताः नाट्य
लेखन की परांपरा का ववकास भी न हो सका । munotes.in
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नाटक: ाऄथथ, पररभाषा, स्वरूप एवां ववकास
5 मध्यकाल में लीलाओ, रासलीला, रामलीला, नौटांकी ाअवद का ाईदय होने से जन - नाटकों
का प्रचलन बढ़ा । ाआन जन - नाटकों या लीलाओ में गीत और नृत्य की ाऄवधकता रहती थी
और गद्य का बहुत कम प्रयोग होता था । बीच - बीच में वकसी एक व्यवक्त िारा पात्र-पररचय
वदया जाता था । कथा को ाअगे बढ़ाने के वलए यथावश्यक वणथन भी चलता था । लोक
नाटक जन - समूह के मनोरांजन प्रमुख साधन थे ।
ाअधुवनक काल से पूवथ सत्रहवीं - ाऄठारवी शताब्दी के ाअस-पास के कुछ ऐसे नाटक भी
ाईपलब्ध है, जो ब्रजभाषा में रवचत है । ये नाटक दो प्रकार के है १) मौवलक और २)
ाऄनूवदत। मौवलक नाटकों में प्राणचांद चौहान का 'रामायण महानाटक', ‘कृष्ण जीवन’
लच्छीराम का 'करुणाभरण', ाईदय कवव का 'हनुमान नाटक', महाराज ववश्वनाथ वसांह का
'ाअनांद रघुनन्दन' और गोपालचांद्र वगरधरदास का नाटक 'नहुष' है । ाआनमे 'ाअनांद रघुनन्दन'
(१७०० ाइ.) नाटक गद्य-पद्य वमवश्रत ब्रजभाषा में है । यह वहांदी नाटक सावहत्य का प्रथम
मौवलक नाटक माना जाता है। ाआसके ाऄांतगथत राम का सम्पूणथ जीवन सांक्षेप में वचवत्रत है ।
कथोपकथन, रांगसांकेत, ाऄांक ववभाजन ाअवद प्रयोग के कारण रामचांद्र शुक्ल ने ‘ाअनन्द
रघुनन्दन’ को वहांदी का प्रथम मौवलक नाटक कहा है ।
ाआन सभी ब्रजभाषा नाटकों पर सांस्कृत नाट्य सावहत्य की स्पष्ट छाप नजर ाअती है।
सांस्कृत नाटकों की तरह ही ाआनकी कथावस्तु का ाअधार धावमथक-पौरावणक ाअख्यान है ।
ाआन ाअख्यानों की तरह ही - धावमथक पौरावणक गाथाओ में श्रृांगाररक भावना का प्रयोग ाआस
युग की मूल मनोवृवत्त प्रतीत होती है । भले ही ाअज की दृवष्ट से ब्रजभाषा नाटक 'नाट्य' की
सभी ाऄांगों और रीवतयों को पूरा न करते हों, वकन्तु वे वहांदी नाटक का 'पूवथ रूप' ाऄवश्य कहे
जा सकते है। वहांदी सावहत्य में ाईनका महत्त्वपूणथ योगदान यही है वक ाईनके िारा वहांदी
सावहत्यकारों के रृदय में नाटक को कलात्मक एवां ववकवसत स्वरुप देने की कामना वनरांतर
बनी रही । दूसरी ओर ाऄनूवदत नाटकों में मुख्यताः महाराज यशवांत वसांह िारा ाऄनूवदत
'प्रबोध चांद्रोदय', नेवाज कवव का ‘शकुांतला नाटक' और सोमनाथ माथुर का 'माधव ववनोद'
ाआत्यावद है।
ाईन्नीसवीं सदी के ाईत्तराधथ में पारसी वथयेवट्रकल कम्पवनयााँ ाऄवस्तत्व में ाअ चुकी थी, और
ाआनका प्रमुख ाईद्ङेश्य वववभन्न नाटकों िारा जनता का मनोरांजन करना था । ाआनके नाटकों के
कथानक कभी रामायण-महाभारत से, कभी पारसी प्रेमकथाओ से और कभी ाऄांग्रेजी नाटकों
-'हेमलेट', 'रोवमयो जूवलएट' ाअवद से वलए जाते थे । ाआनमें बचकाने नृत्य, स्थान-स्थान पर
गीत, शेरो-शायरी, ग़ज़ल ाअवद का समावेश रहता था । ऐसा ही नाटक ाऄमानत िारा
वलवखत 'ाआांदरसभा' (१८५३ ाइ.) है । ाआसकी भाषा वहांदी-ाईदूथ वमवश्रत है । 'औपेरा' के समान
ाआस नाटक का ाऄवधकाांश भाग गीतों से भरा पड़ा है । गीतों में ब्रजभाषा, ाऄवधी और खड़ी
बोली का प्रयोग हुाअ है । बीच-बीच में सांवादों का समावेश है, तथा पात्र रांगमांच पर ाअकर
ाऄपना पररचय स्वयां देता है । श्रेष्ठ कलात्मकता के भाव के बावजूद ाईस जमाने में यह नाटक
बहुत लोकवप्रय हुाअ, और वहांदी नाट्य जगत पर ाआसका गहरा प्रभाव पड़ा है । ऐसे नाटकों
िारा ाईत्पन्न और स्तरीय कला से ववहीन ाऄसांस्कृत वातावरण से क्षुब्ध होकर ाईन्नीसवीं
सदी के ाईत्तराधथ में भारतेंदु ने वहांदी नाटक को सावहवत्यक और कलात्मक रूप देने का
प्रयास वकया। ाईनके िारा स्थावपत की गाइ नाटक और रांगमांच की परांपरा को जयशांकर
प्रसाद ने नया स्वरुप, नाइ वदशा प्रदान की । सावहत्य यवद मानवीय वृवत्तयों के रृदय की munotes.in
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स्वातांत्र्योत्तर वहांदी सावहत्य
6 धड़कन है, तो नाटक ाईसका स्वरुप । सावहत्य यवद ाईन्हें सांस्काररत कर मानस में
प्रस्थावपत करता है तो नाटक ाईन्हें ाऄवतररत कर मच ाईपवस्थत करता है। ाआस प्रकार नाटक
सावहत्य का एक सवक्रय ाऄांग है । सावहत्य के ववववध ाऄांग जब एक साथ ाऄपना स्वरुप
प्रदवशथत करते है तो, वे नाटक का ाअश्रय ग्रहण करते है । ाआस प्रकार नाटक में कथा, काव्य,
लेखावद ाऄनेक ववधाओां का ही नहीं ाऄनेक कलाओ का भी प्रदशथन एक साथ ही वववभन्न
वृवत्तयों के दशथक देखते है । नाटक मानवीय सावहवत्यक वृवत्तयों की समस्त क्षमताओां से पूणथ
होता है । एक स्थान पर वलखा है - 'सावहत्य यवद पुष्प है तो नाटक ाईसकी सुगवन्ध है ।
सावहत्य यवद धारा है तो नाटक लहर । सावहत्य की जो वृवत्तयों एकाांत, सीवमत, ाऄववख्यात
रहती है, वे नाटक के िारा सवथसुलभ, ाऄसीवमत और ववश्वववख्यात हो जाती है । शरीर और
प्राण के समान ही सावहत्य और नाटक का सांबांध है । नाटक सावहत्य की ाऄत्यांत श्रेष्ठ कला
है । नाट्य कला चक्षुग्राह्य है, ाआसका ाऄनुभव और सांवेदन हमारी ाआांवद्रयों के िारा होता है।
भारत में नाटक की ाईत्पवत्त और ाईसके ाऄवभनय ाअवद के ववषय में सबसे प्राचीन ग्रांथ
'नाट्यशास्त्र' माना जाता है । ाअचायथ भरतमुवन ने 'नाट्यशास्त्र' में नाटक ववधा में सबसे
प्राचीन ग्रांथ 'नाट्य' ववधा की चचाथ की है । 'नाट्य' के वलए कहीं 'रूपक' का भी प्रयोग हुाअ
है- ाऄथाथत 'रूप का ाअरोप', परन्तु ाअज ाआन दोनों स्थान पर नाटक शब्द का प्रयोग प्रचवलत
हुाअ है । नाटक की ाईत्पवत्त के ववषय में वविानों ने वसद्चाांत बनाये और ववचार व्यक्त वकये है,
वक यह ववधा प्राचीन है, परन्तु यह 'शुद्च भारतीय परांपरा' है, या ाआस पर पवश्चमी प्रभाव है, यह
ाऄपने ाअप में शोध का ववषय है ।
१.५ नाटक का ववकास ‘नाट्यशास्त्र’ में भरतमुवन नाटक के बारे में कहते हैं वक - ‚एक बार वैवस्वत मनु के दूसरे युग
में लोग बहुत दुखी हुए । ाआस पर ाआांद्र तथा ाऄन्य देवताओां ने जाकर ब्रह्मा जी से प्राथथना की
वक ाअप मनो-ववनोद का कोाइ ऐसा साधन ाईत्पन्न कीवजए, वजससे सबका रांजन हो सके ।”
ाआस पर ब्रह्मा जी ने चार वेदों को बुलाया और ाईनकी सहायता से ‘पांचम वेद’ नाटक की
रचना की । भारतीय और पाश्चात्य दृवष्टकोण से ‘कव्येशु नाटकां रम्यां’ के ाऄनुसार सावहत्य की
सबसे सुांदर एवां महत्वपूणथ ववधा नाटक है । मानव सृवष्ट के ाअरांभ से ही नाटक का बीज
वनमाथण हुाअ है । सभी देशों में सभ्यता के प्रारांवभक काल से ही ‘नाटक’ का वकसी न वकसी
रूप में प्रचलन रहा है । नाटक के ाईद्गम के ववषय में वववभन्न वविानों ने वभन्न-वभन्न ववचार
प्रकट वकए हैं। भरत के ाऄनुसार नाटक की व्युत्पवत्त ‘त्रेता युग’ के ाअरांभ में स्वगथ में हुाइ । ाआांद्र
तथा ाऄन्य देवताओां की प्राथथना पर ब्रह्मा ने ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुवेद से
ाऄवभनय और ाऄथवथवेद से रस लेकर सभी वणों के वलए ाईपयोगी तथा ाआवतहास युक्त ‘पांचम
नाट्यवेद’ की रचना की । धनांजय नाटक के ाईत्पवत्त के सांदभथ में कहते हैं - ‚नाट्य वेद’ में
महादेव ने ‘ताांडव’ तथा पावथती ने ‘लास्य नृत्य’ का समावेश वकया ।” नांदीकेश्वर ने ‘ाऄवभनय
दपथण’ के प्रारांभ में नाटक की ाईत्पवत्त के बारे में बताते हुए भरत का ही समथथन वकया है।
‘शारदा तनय’ में ाऄपने ग्रांथ ‘भावप्रकाशम’ के दशम ाऄवधकरण में सांगीत की ाईत्पवत्त के प्रसांग
में नाट्य वेद की ाईत्पवत्त के बारे में कहा है - ‚ाऄत्यांत प्राचीन काल में ब्रह्मा ने एक मुवन और
ाईनके पाांच वशष्यों को नाट्य वेद सीख कर गीत और रसों में भरे हुए ाऄनेक नाटक वदखाकर
ब्रह्मा को प्रसन्न वकया । ब्रह्मा ने ाईन्हें वरदान वदया। ाअप लोग तीनों लोगों में भरत कहलाएांगे
और नाट्य वेद भी तुम्हारे ही नाम पर भरत कहलाएगा। ाअगे चलकर भक्तों ने मनु के साथ munotes.in
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नाटक: ाऄथथ, पररभाषा, स्वरूप एवां ववकास
7 भारतवषथ में जाकर ाऄयोध्या में ाऄनेक नाटक खेले और नाट्यशास्त्र का प्रचार वकया ।”
ाआससे यह स्पष्ट हो जाता है वक नाट्य प्रयोग हमारे देश में ाऄत्यांत प्राचीन काल से चला
ाअया है । भारतीय नाट्य परांपरा की प्राचीनता के ववषय में ऋग्वेद के सांवादयुक्त ‘महाव्रत
स्तोम’ के ाऄवसर पर हुए नृत्यगान, यजुवेद में ‘शैलूष’ शब्द का ाऄनेक बार प्रयोग तथा
सामवेद का सांगीत प्रधान होना, ाआसकी प्राचीन परांपरा की पुवष्ट करते हैं । ाआससे यह स्पष्ट हो
जाता है वक नाट्य कला का ववकास प्राचीन काल में हो चुका था । सुरेंद्र वमाथ के ाऄनुसार,
“ाअगे चलकर मानव के ाईस प्राकृवतक नतथन ने ताल और लय के साथ भाव को व्यक्त करने
की शुरुाअत की होगी ।” ाआस प्रकार ाऄवभनय, नृत्य, वाद्य, कथानक, चररत्र और सांवादों के
एकीकरण से 'नाटक' ाऄवस्तत्व में ाअया होगा। डॉ. ररजवे ने नाटक की व्युत्पवत्त 'वीरपूजा' से
मानी है । कुछ पाश्चात्य वविानों ने नाटक की वनवमथवत लोक नाट्यों से स्वीकार की है, वजनमे
प्रो. कीनी और प्रो. ववशल ाअवद प्रमुख है । पाश्चात्य वविानों ने 'ाऄश्वघोष' को सांस्कृत का
प्रथम नाटककार घोवषत वकया है । सांस्कृत के सावहवत्यक नाटकों और जन नाटकों के
सांपकथ से ही वहांदी नाटकों का ववकास ाअरांभ होता है । डॉ. दशरथ ओझा कहते है - "वहांदी
नाटक की परांपरा के मूल स्त्रोत ये जन-नाटक ही है। जो स्वाांग ाअवद के नाम से ाऄपने
प्राचीन रूप में, ाऄब ववद्यमान है । क्रमशाः ाआन जन नाटकों ने ववकवसत होकर सावहवत्यक रूप
धारण वकया।" वास्तव में वहांदी सावहवत्यक नाटकों की ाईत्पवत्त ाअलोचकों ने सत्रहवीं
शताब्दी से मानी है, लेवकन डॉ. ओझा ाईसको तेरहवी शताब्दी से मानते है । डॉ. ओझा का
'गया सुकुमार रास' जो वहांदी का पहला नाटक माना जाता है, ाईपयुथक्त ाऄनेक प्रमाणों एवां
मतों का ाऄध्ययन करने के बाद यह कहा जा सकता है वक नाटक की वनवमथवत दैव शवक्त
िारा हुाइ है । प्रारांभ में नट एवां ाऄवतारों के िारा यह लीलाएाँ ाऄवभव्यक्त की जाती थी । धीरे-
धीरे यह जन सामान्य में प्रचवलत हो गाइ । भरतमुवन के ाऄनुसार 'लोकवचत्त नाटक' की मूल
प्रेरणा मनुष्य में ही होती है, क्योंवक नाटक लोक स्वभाव से ही वनमाथण होता है। 'दशरूपक'
में यह बात स्पष्ट है वक नाटक चाहे वेद या ाऄध्यात्म से ाईत्पन्न हो, तो भी वह तभी वसद्च
होता है वक वह लोक वसद्च है क्योंवक नाट्य-लोक स्वभाव से ाईत्पन्न होता है । ाआसवलए
नाट्य प्रयोग में लोक ही सबसे बड़ा प्रमाण होता है । वहांदी नाटक के ववकास क्रम को कुल
चार युगों में बाांटकर देखा जा सकता है - १) भारतेन्दु युग, २) विवेदी युग, ३) प्रसाद युग,
४) प्रसादोत्तर युग ।
भाितेन्दु युग:
भारतेन्दु युग राष्ट्रीय तथा साांस्कृवतक नवजागरण के साथ-साथ प्राचीन और नवीन के
सांघषथ का युग था । एक ओर प्राचीन सांस्कृत नाटक परांपरा तो दूसरी ओर पाश्चात्य नाटकों
का प्रभाव वहांदी नाटकों पर पड़ रहा था । ाआसी कारण ाआस युग में ववषय और रूप-ववधान
दोनों दृवष्टयों से दो प्रकार के नाटकों का वनमाथण हुाअ । एक प्रकार के नाटक प्राचीन प्रेम,
भवक्त ाअवद ववषयो पर सांस्कृत वशल्प-ववधान के ाअधार पर वलखे गए, तो दूसरे प्रकार के
नाटक सामवयक ववषयों को लेकर प्राचीन और नवीन नाट्य-वशल्प के वमवश्रत रूप को लेकर
वलखे गये । भारतेन्दु के दस मौवलक नाटकों में से 'सती प्रताप' 'सत्य हररश्चांद्र' पौरावणक
ववषयों पर ाअधाररत है । 'प्रेमजोवगनी' में सामावजक समस्या को ाईठाया गया है । ऐवतहावसक
ववषय पर 'नीलदेवी' वलखा गया तो ‘भारत दुदथशा', 'भारत जननी' में राष्ट्र प्रेम का वचत्रण
हुाअ है । ‘वैवदकी वहांसा, वहांसा न भववत’ और 'ाऄांधेर नगरी' नाटकों में समाजगत कुसांगवतयो
का वचत्रण हुाअ है । ‘ववषस्य ववषमौषधम' में ाऄांग्रेजों के राज्य में भारत के तत्कालीन munotes.in
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स्वातांत्र्योत्तर वहांदी सावहत्य
8 राजाओां-नवाबों की दीन-दशा का व्यांग्यपूणथ वचत्रण कर देशभवक्त के स्वर को ाईठाया गया है ।
'चन्द्रावली' में माधुयथ भाव की भवक्त-भावना का वचत्रण हुाअ है ।
विवेदी युग:
भारतेन्दु युग के बाद और प्रसाद युग के प्रारम्भ के पहले के कलाखांड में ाऄवधक मात्रा में
नाटकों की रचना होने पर भी नाटकों की शैली या वशल्प में कोाइ खास पररवतथन नहीं हुाअ ।
भारतेन्दु युग के नाटकों में जन-जीवन की वजस वनकटता का पररचय वमलता है, वह विवेदी
युग के नाटकों में नहीं । विवेदी जी के सामने ाईस समय वहांदी भाषा और सावहत्य से सांबांवधत
ाऄनेक समस्याएाँ थी । ाऄताः विवेदी तथा ाईनके समकालीन सुधार का कायथ करते रहे ।
पररणाम यह हुाअ वक, मौवलक नाटकों का सृजन ाऄपेक्षाकृत कम हुाअ । भारतेन्दु युग की
ाऄनुवाद परांपरा का क्रम ाआस युग में जारी रहा । ाआन नाटककारों ने पौरावणक, सांत चररत्रों पर
ाअधाररत सामावजक और प्रेमलीला पूणथ नाटकों का सृजन और ाऄनुवाद वकया। शेक्सपीयर
से प्रभाववत ‘ाअगा हश्र’ के 'कवलयुगी साधु' तथा जमुनादास मेहरा के 'पाप पररणाम' में
हास्य-रस की सृवष्ट हुाइ । बद्रीनाथ भट्ट के ‘वववाह-ववज्ञापन’ तथा 'वमस-ाऄमेररका' नामक
प्रहसनों में ववषय की नवीनता दृवष्टगोचर होती है ।
भारतेन्दु युग की ाऄपेक्षा ाआस युग में ऐवतहावसक नाटक ाऄवधक वलखे गये । जगन्नाथ प्रसाद
चतुवेदी का 'तुलसीदास' 'वमश्र बन्धुओ का ‘वशवाजी', प्रेमचांद का 'कबथला' ाअवद नाटक
ाईल्लेखनीय है ।
ाआस काल के नाटककारों में नारायण प्रसाद 'बेताब, राधेश्याम, कथावाचक, ाअगा हश्र
काश्मीरी, तुलसीदास शैदा, हररकृष्ण जोहर, बद्रीनाथ भट्ट तथा जी. पी. श्रीवास्तव ाअवद
प्रमुख है ।
प्रसाद युग:
वहांदी नाटकों के ववकास का जो ाअरम्भ भारतेन्दु युग में हुाअ था, वह प्रसाद युग में ाऄपने
पूणथ ाईत्कषथ को पहुाँचा । प्रसाद ने पहली बार वहांदी नाटक में पात्रों के ाऄांतिंि का वचत्रण कर,
ाईन्हें स्वतांत्र व्यवक्तत्व प्रदान वकया । ाईन्होंने ाऄपने नाटकों में पाश्चात्य तथा भारतीय नाट्य
कला का सुांदर समन्वय स्थावपत वकया है ।
प्रसाद के नाटकों की एक महत्वपूणथ ववशेषता यह है वक, ाईनके नाटक में न तो दुखाांत है और
न ही सुखाांत बवल्क वे प्रसादान्त है । ाईनके नाटकों का नायक ाऄांत में ववजयी होने पर भी
वैराग्य भावना से प्रभाववत होता है । ऐसे वैवशष्ट्यपूणथ ाऄांत को 'प्रसादान्त' कहा जाता है ।
प्रसादजी ने सन १९१० से लेकर १९३३ तक कुल १३ नाटकों की रचना की है ।
'चन्द्रगुप्त', 'स्कांदगुप्त', 'ववशाख', 'ाऄजातशत्रु', 'राजश्री' ाआनके ऐवतहावसक नाटक है, तो
'ध्रुवस्वावमनी' ऐवतहावसक नाटक होते हुए भी समस्याप्रधान नाटक है । 'जनमेजय का नाग
यज्ञ' पौरावणक नाटक है, तो 'सज्जन', 'कल्याणी-पररणय', 'प्रायवश्चत', 'एक घूांट' और
'करुणालय' एकाांकी नाटक है । 'करुणालय' वहांदी का पहला ‘गीवत नाटक’ है, तो 'कामना'
एक प्रतीकात्मक नाटक है । munotes.in
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नाटक: ाऄथथ, पररभाषा, स्वरूप एवां ववकास
9 प्रसाद के नाटकों पर प्रायाः ये दोष लगाए जाते है वक, ाईनकी भाषा वक्लष्ट, शैली और
काव्यमयता तथा दाशथवनकता के ाअवधक्य के कारण साधारण पाठक के वलए समझने में
कवठन है, और ाऄवभनय के योग्य नहीं है ।
प्रसादोत्ति युग:
प्रसाद युग के ववववध नाट्यरूपों का ाआस काल में ववकास हुाअ । साथ ही गीवतनाट्य, रेवडयो
नाटक के ववकास के साथ-साथ ाआस काल में ऐवतहावसक, पौरावणक, समस्याप्रधान,
सामावजक और राजनैवतक नाटकों का वनमाथण हुाअ । ाआस काल के नाटककारों में हररकृष्ण
प्रेमी, ाईपेन्द्रनाथ ाऄश्क, वृन्दावनलाल वमाथ, चतुरसेन शास्त्री, जगदीशचांद्र माथुर, ववष्णु
प्रभाकर ाअवद नाटककारों ने स्वतांत्र रूप से नाट्य रचना की । ाआस काल में राष्ट्रीय भावना
के ऐवतहावसक नाटक वलखे गये तो नाटक में मध्यमवगीय समस्याओां का यथाथथ वचत्रण
पहली बार 'ाऄश्क' के नाटकों में हुाअ । ाअधुवनक युग सभी दृवष्टयों से नवोन्मेष का युग है ।
ाआस युग में पाश्चात्य प्रभाव के कारण नाटक के ाऄवभनय और रांगमांच की ओर ाऄवधक ध्यान
वदया जाने लगा । ाआस काल में ऐवतहावसक, पौरावणक, सामावजक, नाटकों के साथ-साथ
व्यवक्तगत समस्या प्रधान, सामावजक समस्या प्रधान, गीवतनाटक, वसने नाटक, प्रतीक
नाटक ाअवद सभी प्रकार के नाटक रचे जा रहे है । ाआन नाटकों में पररवाररक, ाअवथथक,
सामावजक और जावतगत वगथगत समस्याओां का भी वचत्रण हो रहा है ।
जयशांकर प्रसाद के समकालीन और परवती नाटककार प्रसाद के ही नाट्यशास्त्रो को ग्रहण
कर नाटकों का सृजन करते रहे । ाईदयशांकर भट्ट, सेठ गोववन्द दास, हररकृष्ण प्रेमी, गोववन्द
वल्लभ पांत, रामकुमार वमाथ ाअवद के नाटकों पर प्रसाद की नाट्य शैली का प्रभाव है ।
प्रसाद युग के बाद वहांदी नाटकों के नए युग का प्रारम्भ होता है । नाटक ववषय और वशल्प
दोनों दृवष्ट से और भी ाऄवधक ववकवसत हुए । यह युग काइ दृवष्टयों से महत्त्वपूणथ है । ाऄब
राष्ट्रीय स्वतांत्रता सांघषथ में वकसान और मजदूर जनता भी शावमल हो गाइ थी । ाईनके सांगठन
बन चुके थे । जीवन में भावना की बजाय बुवद्च का महत्व ाऄवधक हो गया था । ाअदशथ का
स्थान यथाथथ ने ले वलया था । ाआस युग तक ाअते-ाअते रामलीला, नौटांकी ाअवद का प्रचार
काफी कम हो गया । पारसी रांगमांचीय नाटक भी ाईतने ाऄवधक लोकवप्रय नहीं रहे थे, क्योंवक
वसनेमा का प्रभाव जनता पर ाऄवधक पड़ रहा है । ऐवतहावसक नाटक ाआस काल में भी वलखे
गए । राष्ट्रीय भावनाओां और चेतना को ाऄवधक प्रश्रय वदया गया । पौरावणक नाटकों के प्रवत
जनरुवच कम होती गाइ, और ाऄपने चारो ओर की समस्याओां, समसामवयक ववषयो की ओर
ध्यान ाअकृष्ट हुाअ । ववदेशी सावहत्य का ाऄध्ययन करने की प्रवृवत्त बढ़ रही थी । ववशेषकर
ाआब्सन, बनाडथ शॉ, ओनील ाअवद का ाऄनुसरण वकया जा रहा था । ाआन नाटककारों ने पवश्चमी
नाटक के क्षेत्र में यथाथथवादी प्रवृवत्त का सूत्रपात वकया था । ाआनके प्रभाव स्वरूप वहांदी नाट्य
सावहत्य में समस्या नाटकों का सूत्रपात हुाअ । ाआसके प्रमुख प्रवतथक लक्ष्मीनारायण वमश्र थे ।
वमश्र जी ने लेखन की शुरुाअत प्रसाद के समय में ही कर दी थी । ाईनका नाटक 'सांन्यासी'
१९३६ में ाअया था । पवश्चम में नाटकों के माध्यम से ाआब्सन और बनाडथ शॉ ने प्रचवलत
परम्पराओां पर चोट कर बौवद्चक क्राांवत का बीज बोया था, ाआस तरह सावहत्य में ाअदशथ और
भावना की ाऄपेक्षा यथाथथ और बुवद्च तत्व का प्रवेश हुाअ था । वहांदी में ाआस प्रवृवत्त का ाअरम्भ
और बुवद्च तत्व का समावेश लक्ष्मीनारायण वमश्र की देन है । munotes.in
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स्वातांत्र्योत्तर वहांदी सावहत्य
10 १.६ सािांश साराांश रूप में यह कहा जा सकता है वक नाटक ववधा ववषयक सैद्चाांवतक ववमशथ प्रस्तुत
वकया गया है । नाटक सांकल्पना, ाऄथथ, स्वरुप, पररभाषा तथा नाटक के भारतीय तथा
पाश्चात्य तत्वों में होने वाले ाऄांतर को स्पष्ट वकया गया है । नाट्य भेदों के वववभन्न वबांदुओां पर
प्रकाश डाला गया है ।
१.७ लघुत्तिीय प्रश्न १. ‘काव्य का सवथगुण सांपन्न प्रदशथन ही नाटक है’ वकसने कहा है?
ाई - भारतेंदु हररश्चन्द्र ।
२. मध्यवगीय समस्याओां का यथाथथ वचत्रण पहली बार वकसके नाटकों में हुाअ?
ाई - ाईपेन्द्रनाथ ाऄश्क ।
३. हररकृष्ण प्रेमी वकस युग के नाटककार हैं?
ाई - प्रसादोत्तर युग ।
४. समस्या नाटकों के प्रवतथक कौन थे?
ाई - लक्ष्मीनाराण वमश्र ।
५. जयशांकर प्रसाद ने कुल वकतने नाटकों की रचना की है?
ाई - तेरह ।
१.८ दीघोत्तिी प्रश्न १. नाटक के ाऄथथ को स्पष्ट कीवजए ।
२. नाटक की पररभाषा बताते हुए ाईसके तत्वों पर प्रकाश डावलए ।
३. नाटक के स्वरुप क्या है ? स्पष्ट कीवजए ।
४. नाटक के ववकास को सोदाहरण स्पष्ट कीवजए ।
१.९ संदभथ ग्रंर् १. वहांदी नाटक - बच्चन वसांह
२. नाटक : वववेचना और दृवष्ट - डॉ. मोहवसन खान
३. वहांदी नाटक के पााँच दशक - कुसुम खेमानी
४. वहांदी नाटक बदलते ाअयाम - नरेंद्रनाथ वत्रपाठी
५. ाअधुवनक वहांदी नाटक - वगररश रस्तोगी
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11 २
नाटक के तßव एवं ÿकार
इकाई कì łपरेखा
२.० इकाई का उĥेÔय
२.१ ÿÖतावना
२.२ नाटक के तÂव
२.३ सारांश
२.४ लघु°रीय ÿij
२.५ दीघō°री ÿij
२.६ संदभª úंथ
२.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत अÅयाय म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं को छाý समझ जाय¤गे ।
• नाटक के िविभÆन तßवŌ पर िवचार करने हेतु ।
• नाटक के िविभÆन ÿकारो को समझने हेतु ।
२.१ ÿÖतावना नाट्य तÂव संबंधी भारतीय एवं पाIJाÂय धारणाओं म¤ काफì अंतर है । नाटक कì जो िवधा है
वह Óयापकता से ÿेरणा úहण करती है, और मानवीय जीवन के लोगो को क¤þीयभूत करती
है। नाट्य िवषयक धारणा एवं भारतीय तÂवŌ का अÅययन अÂयावÔयक है । तÂव ही नाटक
के ÖवŁप का िनमाªण करते है । भारतीय और पाIJाÂय आचायō ने नाटक के तÂवŌ को अलग
- अलग माना है ।
२.२ नाटक के तÂव अिभनय के अितåरĉ नाटक के तीन तÂवŌ का उÐलेख ÿाचीन भारतीय आचायō ने िकया है
१) वÖतु २) नेता ३) रस
१) वÖतु:
उपÆयास कì ही तरह नाटक कì जीवन सामúी को भी वÖतु कहते है । आचायŎ ने इसे तीन
ÿकार का माना है - ÿ´यात, उÂपाī, िमि®त । ÿ´यात वÖतु इितहास या पुराण से úहण
कì जाती है । लेखक जब वÖतु कì कÐपना कर लेता है तो उसे उÂपाī कहते है । िम®
वÖतु ऐितहािसक और काÐपिनक सामúी का मेल होती है । यह भेद वÖतु के ąोत के munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
12 आधार पर िकया गया है। महÂव के आधार पर भी वÖतु के भेद िकए गए है, िजÆहे
आिधकाåरक और ÿासंिगक कहा जाता है । आिधकाåरक कथावÖतु मु´य होती है और
ÿासंिगक सहायक ।
िकÆतु नाट्य वÖतु कì जो क¤þीय िवशेषता है उसका उÐलेख ÿाचीन भारतीय नाट्याचायŎ
ने नहé िकया है । नाटक कì वÖतु मूलतः िवरोध - गिभªत होती है । डॉ. हजारीÿसाद िĬवेदी
ने इस िवषय म¤ िलखा है - ÿÂयेक नाटकìय कथा कुछ िवरोधो को लेकर अúेसर होती है ।
नायक का उसके भाµय या पåरिÖथितयŌ के साथ िवरोध हो सकता है । सामािजक łिढ़यŌ
के साथ हो सकता है और िफर अपने मत के परÖपर िवरोधी आदशō के संघषª के łप म¤ भी
हो सकता है । इस िवरोध से ही नाटक कì घटना म¤ गित या िøया आती है । यह िवरोध
'मृ¸छकिटक' म¤ भी है और 'शकुंतला' म¤ भी है । अथाªत िवरोध-गिभªत जीवन िÖथितयŌ को
ही नाट्य वÖतु कहना उिचत है ।
कथानक:
इस नाट्य वÖतु का संगठन और िवÆयास िजस ÿिøया म¤ होता है उसे नाटक का कथानक
कहा जाता है । भारतीय आचायŎ ने कथानक संगठन म¤ तीन मु´य बातŌ का होना Öवीकार
िकया है । कायाªवÖथा, अथªÿकृित और संिध । इन तीनो के पांच भेद है । कायाªवÖथा के भेद
है – आरंभ, ÿयÂन, ÿाÈÂयाशा, िनयतािĮ और फलागम । नाटक के फल ÿािĮ कì ओर
बढ़ने म¤ कायª कì इन पाँचो अवÖथाओं का øिमक योग होता है । इन कायाªवÖथाओ के
कारण łप म¤ अथª ÿकृितयŌ कì भूिमका होती है । इनकì सं´या भी पाँच है - बीज, िबÆदु,
पताका, ÿकरी और कायª । नाटक के कथानक म¤ संिधयो कì योजना कायाªÆवयन और अथª
ÿकृितयŌ के योग से होती है । जैसे आरंभ और बीज के मेल से मुखसंिध होती है । इसी
ÿकार इन दोनŌ के øिमक मेल से गभª, िवमशª और िनवªहण संिधयŌ का होना बताया जाता
है । िकÆतु आधुिनक युग म¤ इन सब बातो को शाľीय मानकर ÿायः छोड़ िदया गया है ।
इनमे शाľ कì िनयम बĦता अिधक है, रचनाÂमक ÿेरण øम ।
पिIJम के ÿभाव और रचनाÂमक Öवभाव इन दोनŌ कारणŌ से नाटक के कथानक कì पाँच
अवÖथाओं को Öवीकार कर िलया गया है । इनके नाम है - आरंभ, िवकास, चरमिबंदु, öहास
और समािĮ । इÆही के आधार पर सामाÆयतः नाटकŌ म¤ ५ अंको का िवधान िकया जाता है ।
िकÆतु वतªमान समय के तीन अंक अथवा िबना अंक के भी नाटक िलखे जा रहे है। इससे
अनुमान िकया जा सकता है िक नाटकìय कथानक के िवकास कì øम - ÓयवÖथा टूट रही
है । जीवन म¤ आने वाली जिटलता के कारण गित के Öवłप म¤ भी जिटलता आई है ।
आरÌभ, िवकास और हाÖय कì सीधी रेखा वाली गित के मुकाबले घुसपैठ और िभतरघात
करने वाली गितयाँ øम-िवकास कì धारणा को अÿभावी करती जा रही है। वतªमान नाटक
का कथानक गित के इÆही संøमणशील łपŌ से बन रहा है ।
नेता:
(पाý) नाटक म¤ िनिहत िøयाओं को फल कì ओर ले जाने वाले ÿथम पाý को नायक कहा
जाता है । भारतीय ŀिĶ के अनुसार मु´य कायª का फल िजसे ÿाĮ होता है वही नायक हो
सकता है । िकÆतु पिIJमी ŀिĶ से जो पाý िøयाÓयापारŌ के क¤þ म¤ होता है उसे ही नायक कì munotes.in
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नाटक के तßव एवं ÿकार
13 सं²ा ÿाĮ होती है । नायक का ताÂपयª यह है िक उनमे जीवन के महÂवपूणª और िविवध łपŌ
तथा प±Ō के धारण करने कì योµयता होती है । शाľ के अनुसार ÿितनायक भी नाटक म¤
होता है । इसके अितåरĉ िवदूषक और अÆय पाý होते है, िजनकì भूिमका नाटकìय िøया
Óयापार म¤ होता है । ľी पाýो म¤ नाियका कì भूिमका महßवपूणª होती है । शाľीय ŀिĶ से
नायक धीरोदा° और धीरलिलत, धीर ÿशांत और धीरोदा° होता है । धीरोदा° और
धीरलिलत नायक कì ÿितķा अिधक होती है । नाियकाओं म¤ भी Öवकìया, परकìया और
सामाÆया नाियकाएँ होती है । Öवकìया नाियका को अिधक अ¸छा माना जाता है । िजस
ÿकार िवरोध गिभªत जीवन िÖथित नाटकìय मानी जाती है, उसी ÿकार िवरोध गिभªत
ÓयिĉÂव वाले पाý नाटक के अिधक उपयुĉ होते है । इसी कारण आधुिनक युग म¤ नाटक
के पाý अपने आदशō, गुणŌ और नैितकता के कारण महÂवपूणª न होकर आधुिनक समाज
और जीवन के अनेक अंतिवªरोधŌ के ÿकािशत करने के कारण महÂवपूणª होते है । यही
कारण है िक नायक कì धारणा भी खंिडत हो गयी है । आधुिनक नाटक के पाý अपने
चåरýगत नैितक गुणŌ के कारण कम, अपने ÓयिĉÂव के अंतिवªरोधŌ के कारण अिधक
सृजनशील होते है । आधुिनक जीवन कì जिटल िवकट पåरिÖथितयŌ म¤ आदशªवादी पाý
काÐपिनक लगते ह§, यथाथªवादी पाý वाÖतिवक । आदशªवादी पाý जीवन म¤ उभरे िवरोधो
को शांत करता है, और यथाथªवादी पाý उÆह¤ और उú बनाता है । इन यथाथªवादी पाýŌ म¤
आधुिनक नाटकŌ म¤ उन पाýŌ का अिधक महÂव है, िजनका ÓयिĉÂव यथाथªवादी
ÓयवÖथाओं के ÿित िवþोही है । पाIJाÂय िवĬानŌ ने इन तÂवŌ कì सं´या ६ बताई है
कथावÖतु, पाý, संवाद, देशकाल, उĥेÔय और शैली। पाIJाÂय म¤ रस के उĥेÔय के अंतगªत
संघषª तÂव को ÿधानता दी गयी है । ÿिसĦ अंúेजी नाटककार शे³सपीयर के नाटकŌ का
ÿाणतÂव संघषª ही है । अÆय सभी तÂव एक दूसरे से िमलते-जुलते है, अतः ६ तÂवŌ को
लेकर ही नाटक कì चचाª अिधक उपकारक िसĦ हो सकती है । भारतीय नाटक के तीनो
तÂव नाटक के ६ तÂवŌ के अंतगªत आ जाते है ।
(i) कथावÖतु:
कहानी या घटना øम को कथावÖतु कहते है । यīिप उपÆयास और कहानी कì तरह
नाटक के िलए भी वÖतु चयन िकसी भी ±ेý से िकया जा सकता है, िकंतु नाटककार को
िनÂय समय और अिभनय के अनुकूल रंगमंच आिद कì मयाªदा के अनुसार कथा सामúी का
चयन करना पड़ता है । मनोिव²ान ने नाटक म¤ भी कथानक कì Öथूलता को सूàमता म¤
łपांतåरत करने का भरसक ÿयÂन िकया है । आज नाटक के िलए उपÆयास या कहानी का
नाट्य łपांतर करने कì ÿिøया बड़ी सफल िसĦ हòई है ।
भारतीय नाट्य शाľ के अनुसार कथावÖतु दो ÿकार कì होती है ।
१) अिधकारी: अथाªत ÿमुख कथा ।
२) ÿासंिगक: अथाªत ÿसंग अनुसार आई हòई गौण कथा या कथाएं, दोनŌ कथाओं का
पारंपåरक संगठन आवÔयक है । ÿासंिगक कथा दो तरह कì होती है ।
i) पताका: जो मु´य कथा के साथ-साथ अंत तक चलती है । munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
14 ii) ÿकरी: जो कहé भी समाĮ हो सकती है । ÿेरणा ąोत या आधार कì ŀिĶ से कथावÖतु
के तीन ÿकार माने गए ह§ ।
१. ÿ´यात, िजसका आधार पूरा इितहास या कोई ÿिसĦ रचना हो ।
२. उÂपाī, जो लेखक कì कÐपना कì उपज होती है ।
३. िम®, िजसम¤ इितहास और कÐपना का समÆवय हो। भारतीय मतानुसार नाटक कì
कथावÖतु म¤ कायª-Óयापार कì पांच अवÖथा है, ÿारंभ, ÿयÂन, ÿाÈÂयाशा, िनयतािĮ
तथा फलागम । पाIJाÂय नाटक म¤ यही वगêकरण कुछ शÊद पåरवतªन के अनुसार इस
ÿकार िकया गया है । ÿारंभ, िवकास, चरम सीमा, उतार तथा अंत । उपयुªĉ दोनŌ
िवभाजनŌ म¤ सबसे बड़ा अंतर संघषª तÂव को लेकर है। हमारे यहां रस को नाटक कì
आÂमा माना गया है । जबिक पिIJम म¤ संघषª को नाटक का ÿाण तÂव Öवीकार िकया है
। ऊपर कì अवÖथाओं के संयोजन के िलए हमारे यहां पाँच अथªÿकृितयŌ और पांच
संिधयŌ का होना आवÔयक माना गया है। रंगमंच पर कथा कì ÿÖतुित को लेकर भी
उसके दो भेद बताए गए ह§ ।
१) ŀÔय: िजसकì मंच पर ÿÂय± ÿÖतुित कì गई है ।
२) सू¸य: िजसे मंच पर ÿÖतुत करने के बदले माý सूिचत कर िदया जाता है । ÿाचीन
और नवीन नाटकŌ म¤ कथावÖतु िवषयक उपयुªĉ सूàम िवभाजन को Åयान म¤ नहé
िलया जाता । आज नाटक कì कथावÖतु म¤ अिÆवित, सुÖवागतम, चुÖतता, संि±Įता,
सांकेितकता, तीĄता का होना अित आवÔयक माना जाता है । संि±Įता कì बात को
सभी ने Öवीकार िकया है और इसीिलए संकलन ýय के िसĦांत को अिधक महÂव
िदया गया है । वÖतुिÖथित के मािमªक िचýण के िलए नाट्य Óयाय का ÿयोग िकया जा
सकता है ।
(ii) पाý:
नाटक कì कथावÖतु या घटना Óयापार का मु´य आधार पाý होते ह§ । ÿमुख पाý नायक
कहलाता है । संÖकृत नाट्यशाľ म¤ नायक के चार ÿकारŌ का उÐलेख है ।
१) धीरोद° जो धीर, वीर, गंभीर और उदार हो ।
२) धीरलिलत जो कला और सŏदयª ÿेमी, लिलत गुणŌ से युĉ हो ।
३) धीरÿशांत जो सुख शांित और संतोष िÿय हो ।
४) धीरोदा° चपल, चंचल, छली, दंभी Óयिĉ इसके अंतगªत आ सकता है ।
नायक का िवरोधी या ÿितÖपधê खलनायक कहा जाता है । संÖकृत नाटकŌ म¤ िवदूषक का
होना जłरी माना जाता था । आधुिनक नाटक म¤ नायक या नाियका के िलए इन गुणŌ का
होना आवÔयक माना नहé जाता । साधारण से साधारण और बुरे से बुरा कोई भी Óयिĉ
नाटक का नायक हो सकता है । महÂव Óयिĉ कì िÖथित पåरिÖथित का नहé, िकंतु उसके
चåरý अंकन का है । नाटककार को कम से कम समय म¤ पाý के समú ÓयिĉÂव को खोल munotes.in
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नाटक के तßव एवं ÿकार
15 कर रखना होता है । पåरिÖथितयŌ से जूझते टकराते संघषªशील ÓयिĉÂव के पाý अिधक
सफल माने जाते ह§ । नाटक म¤ नाटककार Öवयं पाýŌ के िवषय म¤ कुछ नहé कहता, िकंतु
पाý संवाद, िवसंवाद तथा िविभÆन अिभनय मुþाओं के Ĭारा Öवयं अपने चåरý को उĤािटत
करता है । ÿाचीन नाटक कì भांित Öवगत कथन को अब अिधक महÂव नहé िदया जाता ।
(iii) संवाद:
वÖतुतः संवाद (कथोपकथन) ही नाटक को नाटक बनाते ह§ । ÿाचीन úीक नाटकŌ म¤ तो
संवादŌ के अितåरĉ कुछ होता ही नहé था । आज भी नाटक म¤ जब िक कायª (Action) का
महÂव बढ़ गया है, संवाद का महÂव कम नहé हòआ । बोÐटन का कहना है िक – ‘A play is
its dialogue ’ भारतीय आचायª ने भी संवाद योजना को नाटक का मूल आधार बताते हòए
उसके तीन ÿकार बताए ह§ ।
१) िनयत ®ाÓय: िजसम¤ िकसी िनिIJत पाý के साथ ही वाताªलाप िकया जाता है।
२) सवª ®ाÓय: यह सबके सुनने के िलए होता है । इसे ÿकट या ÿकाÔय भी कहते है।
३) अ®ाÓय: जो माý दशªकŌ के सुनने के िलए ही होता है । आधुिनक नाटक म¤ ऐसे िकसी
वगêकरण को पूणªłपेण Öवीकार नहé िकया जाता, िवषय के अनुłप संवादŌ म¤ वैिवÅय
का होना अपेि±त है। पिIJम म¤ नाटक के दो ÿमुख ÿकार बताए गए है - ůेजेडी और
कॉमेडी। ůेजेडी के संवादŌ म¤ गंभीरता और गåरमा तथा कॉमेडी के संवादŌ म¤ Óयंµय,
िवनोद कì ÿधानता होती है । पाý कì िÖथित, Öतर आिद के अनुकूल संवादŌ कì
योजना अिधक Öवाभािवक और ÿाणवान होती है । िफर भी नाटक के संवादŌ कì भाषा
म¤ सािहिÂयक अÂयंत आवÔयक है, शे³सपीयर नाटक इसके ÖपĶ ÿमाण है ।
(iv) देशकाल या वातावरण:
उपÆयास कì भाँित नाटक म¤ भी देशकाल या वातावरण का यथोिचत िचýण होना चािहए ।
नाटक का संबंध रंगमंच से है अतः नाटक म¤ रंगमंच के अनुłप वातावरण का िचýण हो, यह
बहòत आवÔयक है । नाटक के समय ÿभाव म¤ Öवाभािवकता लाने के िलए देशकाल या
उपयुĉ िचýण सहायक िसĦ होता है । ÿाचीन úीक समी±कŌ ने इसी संदभª म¤ संकलनýय
से ताÂपयª है - Öथल, कायª और काल कì एकता । अथाªत नाटक म¤ विणªत घटना िकसी एक
ही कायª या कृÂय से संबंिधत हो एक ही Öथान कì हो ओर एक ही समय म¤ घिटत हो ।
घटना Öथल और घटना काल कहé भी अलग-अलग न हो । संकलनýय का िवधान आगे
चलकर नाटक के कलाÂमक िवकास म¤ बाधक िसĦ हòआ, अतः उसका पालन øमशः कम
होने लगा । आधुिनक एकांिकयŌ म¤ कुछ सीमा तक ही इस तÂव का िवधान देखने को
िमलता है ।
(v) शैली:
नाटक मूलतः अिभनय कì कला है और रंगमंच के साथ उसका सीधा संबंध है अतः नाटक
कì ÿÖतुित कì िविभÆन शैिलयŌ कì चचाª अिभनय और रंगमंच के क¤þ म¤ रखकर ही कì जा munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
16 सकती है । भारतीय नाट्यशाľ म¤ अिभनय के चार ÿकार माने गए है - १) आंिगक, २)
वािचक, ३) आहायª, ४) सािÂवक ।
१) आंिगक: इसका सÌबÆध शरीर के िविभÆन अंगो से है । शरीर के िविभÆन अंगो के
संचालन Ĭारा भावŌ कì अिभÓयिĉ कì जाती है । यह तीन ÿकार से िकया जाता है ।
२) वािचक: इसका सÌबÆध वाणी या शÊद से है, आंिगक अिभनय कì पुिĶ म¤ यह सहायक
िसĦ होता है ।
३) आहायª: इसम¤ रंगłप, वेशभूषा, वľ, आभूषण आिद कì साज-सºजा का समावेश
होता है।
४) सािÂवक: इसम¤ Öवेद, रोमांच, कंप, हषª, अ®ु आिद Ĭारा सािÂवक भावŌ का ÿदशªन
िकया जाता है । आधुिनक नाटक मे भारतीय या पाIJाÂय नाटक म¤ परंपरागत ल±णŌ
का पूणª łपेण पालन नहé िकया जाता । आधुिनक ²ान-िव²ानं के ÿकाश म¤ रंगमंच
पर नाटक को ÿÖतुत करने कì नई-नई शैिलयŌ का िवकास हòआ है । िसनेमा के
अिवÕकार और एकांकì नाटक के बढ़ते ÿभाव ने रंगमंच िवषयक नए-नए ÿयोगŌ को
जÆम िदया । आज के नाटक म¤ ÿे±क या दशªक कì साझेदारी को अिधक महÂव िदया
जाता है । हÂया, मृÂयु, युĦ, िवषयक ŀÔयŌ को लेकर ÿाचीन नाटक म¤ जो ÿितबंध थे,
वे अब िशिथल हो चुके है । रंगमंच कì आधुिनक सुसºजा, Åविन ÿकाश योजना ने
नाटक कì ÿÖतुित को परंपरागत नाटक कì तुलना म¤ बहòत कुछ बदला है। रंगमंच को
लेकर आधुिनक नाटक म¤ िनरंतर नए ÿयोगŌ को Öथान िमलता रहा है । एक तरफ कुछ
लोग रंगमंच कì समृिĦ को आवÔयक मानते है तो कुछ लोग कम से कम साधनŌ Ĭारा
नाटक के अिभनय का समथªन करते है । टी. वी. नाटकŌ ने इस िवषय पर िफर से नए
िसरे से सोचने को ÿेåरत िकया है । इस ÿकार नाटक और रंगमंच का िनकट का
सÌबÆध है और दोनŌ ही एक-दूसरे को ÿभािवत करते है।
(vi) उĥेÔय:
नाटक के उĥेÔय को लेकर भारतीय तथा पाIJाÂय ŀिĶकोण िभÆन-िभÆन है । भारतीय
आचायŎ ने रसानुभूित को नाटक का मु´य उĥेÔय बताते हòए आदशªवादी नाटकŌ को महÂव
िदया है । अथª, धमª, काम, मो± आिद म¤ से कोई एक जीवन-उĥेÔय ही नाटक का भी उĥेÔय
हो सकता है । भारतीय नाटक ÿायः सुखांत होता है । पाIJाÂय नाटक म¤ जीवन कì
आलोचना ही ÿमुख उĥेÔय बनकर आती है। संघषª Ĭारा इस उĥेÔय कì ÿािĮ कì जाती है ।
आंतåरक और बाĻ संघषª के माÅयम से जीवन कì वाÖतिवकता का पåरचय िमलता है ।
पाýŌ के ÓयिĉÂव म¤ सूàम िवĴेषण म¤ संघषª Ĭारा तÂव ही सहायक िसĦ होता है । कुछ लोग
संघषª को ही नाटक का उĥेÔय मान बैठते है, िकÆतु वाÖतव म¤ संघषª Ĭारा जीवन को
समझाने म¤ सहायता िमलती है। वतªमान नाटक हमारे जीवन, समाज कì वाÖतिवकता,
खोखलापन, दंभ आिद का पदाªफाश करने को अपना मु´य उĥेÔय मानता है। Óयिĉ और
समाज कì िश±ा संÖकाåरता कì ŀिĶ से नाटक एक सवाªिधक सफल माÅयम बन सकता है।
दशªक या ÿे±क के साथ सीधा संबंध Öथािपत कर सकने कì अपने िवशेष ला±िणकता के
कारण नाटक सामािजक øांित का भी माÅयम बन सकता है। भारतीय काÓयशाľ म¤ नाट्य munotes.in
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नाटक के तßव एवं ÿकार
17 ल±ण तथा उसके भेदोपभेदŌ का िवÖतार पूवªक िववेचन िकया है। इसी ÿसंग म¤ संÖकृत
आचायŎ ने नाटक के िविभÆन तÂवŌ का िववेचन िकया है, िकंतु इन तÂवŌ को लेकर भारतीय
और पाIJाÂय आचायŎ म¤ मतभेद है, जो वÖतुतः नामकरण और ŀिĶकोण के कारण है।
भारतीय आचायŎ कì ŀिĶ भरतमुिन को नाट्यशाľ का ÿणेता माना गया है । उÆहŌने नाटक
के ÿमुख तÂवŌ का िवशद िवचार िकया है, िजसके अंतगªत परवतê आचायª ने नाटक के
मु´य łप से तीन तÂव माने ह§ - १) वÖतु २) पाý या नायक, ३) रस । जबिक भरत मुिन ने
चार तÂव Öवीकार िकए ह§ - १) संवाद, २) गान ३) नाट्य और ४) रस । कुछ िवĬानŌ ने
अिभनय और वृि° को भी नेतृÂव म¤ Öवीकार िकया है। वÖतु से ताÂपयª नाटक कì कहानी
कथा या कथानक होता है, िजसम¤ ५ नाट्य संिधयाँ तथा ५ अवÖथाएं समािवĶ होती है।
कथानक भी दो ÿकार का होता है - अिधकाåरक और ÿासंिगक। अथª ÿकृितयŌ के Ĭारा ही
कथानक का िवकास होता है। संÖकृत आचायŎ ने नायक, नाियका, उपनायक, िवदूषक, चेट
आिद पाýŌ कì योजना कथानक और रस के अनुसार Öवीकार कì है। नाट्य रचनाओं म¤
चार ÿकार के अिभनय के साथ ही िविभÆन ÿकृितयŌ को माना है। इस ÿकार ÿाचीन
भारतीय आचायŎ ने अिभनय और रस को ÿधानता देते हòए नाटक के ÿमुख तÂवŌ का
संयोजन िकया है।
वतªमान कालीन अनेक समी±कŌ ने पाIJाÂय आचायŎ के अनुसरण पर नाट्य तÂवŌ का
िववेचन िकया है। इनके अनुसार नाटक के ६ तÂव माने गए ह§ - १. कथावÖतु, २. पाý और
चåरý-िचýण, ३. कथोपकथन, ४. देशकाल, ५. उĥेÔय और ६. भाषा शैली।
२.३ सारांश िहंदी नाटक के िवकास तथा उसके तÂव कì कहानी अÂयंत ÖपĶ िदखाई देती है । िहंदी के
नाट्य सािहÂय को संÖकृत कì समृĦ नाटक परंपरा िवरासत म¤ िमली है । भरतमुिन का
नाट्यशाľ इस बात का ÿमाण है िक भारत म¤ रंगमंच व łपक का िवकास सैकड़Ō वषō
पहले हो चुका था । नाटक के तÂव कì जो ÿमुख िवशेषता है उसका उÐलेख ÿाचीन
भारतीय नाट्य आचायŎ ने िबÐकुल नहé िकया है । नाटक कì वÖतु मूलतः िवरोध - गिभªत
होती है। नाटक म¤ नाटक का अपने िवचारŌ भावŌ का ÿितपादन पाýŌ के माÅयम से करना
आवÔयक होता है । नाटक के तÂव म¤ देशकाल का िनवाªह भी होना चािहए। इस तÂव का
िनवाªह अिभनय, ŀÔय िवधान, पाýŌ कì वेशभूषा, आचार-िवचार, संÖकृित, रीित-åरवाज
आिद के Ĭारा होता है । देश काल के ÿयोग से नाटक जीवंत हो उठते ह§ ।
नाटक कì भाषा सरल, ÖपĶ और सजीव होनी चािहए। िभÆन-िभÆन पाýŌ कì ®ेणी योµयता
तथा पåरिÖथित के अनुसार भाषा का łप भी होना चािहए । पाýानुकूल भाषा नाटक म¤
सŏदयª कì वृिĦ करती है, उसे ÿसाद, ओज और माधुयª गुण से समिÆवत होना चािहए, साथ
ही उसे कलाÂमक एवं ÿभावशाली भी होना चािहए । नाटक म¤ अित अलंकृत भाषा अिधक
Łिचकर नहé होती है ।
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
18 २.४ लघु°रीय ÿij १. नाट्यशाľ के ÿणेता कौन माने जाते ह§?
उ - आचायª भरतमुिन ।
२. अनुभाव कì सं´या िकतनी मानी गई है?
उ - चार ।
३. पाIJाÂय आचायŎ ने नाटक के िकतने तÂव Öवीकार िकए है?
उ - छः ।
४. भरतमुिन ने नाटक के िकतने तßव बताये ह§?
उ - चार ।
५. रंगमंच पर कथा ÿÖतुित के िकतने भेद िकए गये ह§?
उ - दो ।
२.५ दीघō°री ÿij १) नाटक के िकतने तÂव ह§ ? ÖपĶ कìिजए ।
२) नेता (पाý) नाटक के तÂव कì ŀिĶ से ÖपĶ कìिजए ।
२.६ संदभª úंथ १. िहंदी नाटक - ब¸चन िसंह
२. नाटक : िववेचना और ŀिĶ - डॉ. मोहिसन खान
३. िहंदी नाटक के पाँच दशक - कुसुम खेमानी
४. िहंदी नाटक बदलते आयाम - नर¤þनाथ िýपाठी
५. आधुिनक िहंदी नाटक - िगåरश रÖतोगी
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19 ३
‘काला पÂथर’ नाटक कì कथावÖतु
इकाई कì łपरेखा
३.० इकाई का उĥेÔय
३.१ ÿÖतावना
३.२ 'काला पÂथर' नाटक कì कथावÖतु
३.४ सारांश
३.५ लघू°रीय ÿij
३.६ दीघō°रीय ÿij
३.७ संदभªसिहत Óया´या
३.८ संदभª úंथ
३.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे ।
इस इकाई के माÅयम से ‘नाटक’ िवधा के महÂव को समझ¤गे ।
‘काला पÂथर’ नाटक के लेखक डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ के सािहिÂयक योगदान से
अवगत कराना ।
इस नाटक से भारतीय úामीण जीवन म¤ ÓयाĮ समÖयाओं से अवगत हŌगे ।
इस इकाई के माÅयम से छाýŌ को नाटक कì कथावÖतु कì जानकारी िमलेगी ।
३.१ ÿÖतावना ‘काला पÂथर’ नाटक डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ कì उÂकृĶ रचना है। डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’
िहÆदी के शीषª नाटकारŌ म¤ एक है। इनका जÆम ८ फरवरी सन् १९३६ म¤ उ°र ÿदेश के
उÆनाव िजले म¤ हòआ था। अÅयापन के बाद पूणª कािलक लेखन म¤ जुट गए। डॉ. शु³ल जी
का लेखन ±ेý काफì िवÖतृत है। इÆहŌने सािहÂय को लगभग हर िवधा को समृĦ िकया
िजनम¤ नाटक एकांकì संúह, उपÆयास, काÓय-संúह, आÂमकथा और बाल-सािहÂय शािमल
है। अब तक इÆह¤ इनकì कृितयŌ के िलए सन् १९६८ म¤ उ. ÿ. शासन Ĭारा पुरÖकृत सन्
१९९८ म¤ उÂकल युवा सांÖकृितक संघ उड़ीसा Ĭारा नाट्यभूषण कì उपािध से िवभूिषत
िकया गया है। मÅय ÿदेश सािहÂय अकादमी Ĭारा सन् २००८ म¤ ‘हरीकृÕण ÿेúो’ पुरÖकार
से सÌमािनत िकया गया। munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
20 लोकिÿय नाटककार डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ Ĭारा रिचत नाटक ‘काला पÂथर’ आधुिनक
िहÆदी नाटकŌ म¤ अपना िविशĶ Öथान रखता है। यह नाटक úामीण जीवन कì समÖयाओं
पर क¤िþत नाटक है। इस नाटक म¤ शोषण कì पराकाķा पार कर सूदखोर महाजन कì
िनहायत Öवाथªपरता और हर तरह से लाचार, मजबूर, शोिषत िकसानŌ कì दयनीय दशा को
अÂयंत मािमªकता और संवेदना से उकेरा गया है। यह नाटक गाँव कì तमाम िवसंगितयŌ और
िवडंबनाओं को उजागर करता है। आज हमारे गाँव के सारे नैितक मूÐय नदारद हो रहे है।
आज भारतीय समाज म¤ िकसानŌ-मजदूरŌ कì आिथªक अवÖथा िदन-ÿितिदन बदतर होती
जा रही है। नाटक म¤ ľी िवषयक समÖयाओं जैसे बाल-िववाह, अनमेल िववाह, दहेज ÿथा,
पÂनी ÿताड़ना, ľी दासता जैसे अनेक मुĥŌ को दशाªया गया है। शासन तंý पूरी तरह से
ĂĶाचार म¤ डूबा िदखाया गया है। úाम पंचायत अपना िहत साधने के िलए साहóकारŌ का
साथ दे रही है। नाटककार गाँव म¤ ÓयाĮ ýासद िÖथित से उबारने के िलए युवा शिĉ पर
िवĵास जगाने कì कोिशश करता है। नाटककार का मानना है िक िजस िदन यह युवा-शिĉ
ĂĶाचार के िवŁĦ पूरी िनķा के साथ एकजुट खड़ी हो जायेगी, उस िदन देश म¤ नया ÿभात
िदखेगा।
डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ Ĭारा िलिखत नाटक ‘काला पÂथर’ अÿैल २०१२ म¤ िलखा गया है।
सन् २०१४ कì पहली बार इसका मंचन िकया गया। काला पÂथर नाटक कुल छः ŀÔय
पåरवतªनŌ म¤ िवभĉ है।
३.२ ‘काला पÂथर’ नाटक कì कथावÖतु: नाटक कì कथा का ÿारंभ गरीबपुर गाँव के एक िकसान संतोषी के घर से होती है। िकसान
संतोषी कì सारी जमीन, सारा सामान, घर सब कुछ कÐलू सेठ के पास िगरवी पड़ी है।
संतोषी िकसान अपनी लकवा-úÖत पÂनी का इलाज कराने के िलए धनाढ्य सेठ कÐलू सेठ
से नाक रगड़कर िगड़िगड़ाता हòआ पाँच सौ łपया माँगता रह जाता है, लेिकन कÐलू सेठ
िबना रेहन रखे कजª देने को तैयार नहé होता है। नतीजन कÐलू सेठ कì िनहायत िनदयªता
और Öवाथê ÿवृि° के कारण संतोषी िकसान कì पÂनी िबना इलाज के मर जाती है। उसका
दाह-संÖकार भी गाँव वाले चंदा इकęा करके करते ह§। नाटक के ÿथम ŀÔय म¤ िकसानŌ कì
गरीबी, लाचारी, मजबूरी और शोषक सूदखोर महाजन कÐलू सेठ कì िनķòरता को दशाªया
गया है। कÐलू सेठ कì संवेदनहीनता उस Óयĉ अपनी पराकाķाएँ लांघ जाती है, जब वह
गाँव के सरपंच Ĭारा दस हजार Łपये माँगने पर उसे तुरंत अपनी ितजोरी म¤ से िनकालकर दे
देता है, लेिकन वह सरपंच से रेहन के िवषय म¤ पूछता तक नहé है, और सरपंच कì सेवा का
मौका पाकर अपने को भाµयवान मानता है। जब सरपंच को पैसा िमल जाता है और कÐलू
सेठ से अपने िलए कोई काम हो तो बताने का मौका देता है, तो तुरंत कÐलू सेठ पुý ÿािĮ
कì अिभलाषा Óयĉ कर देता है। सरपंच Ĭारा पुिनया का नाम सुनाते ही वह ÿसÆन हो जाता
है। सरपंच Ĭारा प¸चीस हजार Łपये और पूरी जमात को भोज देने कì शतª को सहषª
Öवीकार कर लेता है।
महाजन कÐलू सेठ कì पÂनी िवमला उसे समझाते-बुझाते हòए ईमानदारी से काम करने के
िलए ÿेåरत करती है। िवमला कÐलू सेठ से संतोषी को उसकì बीमार पÂनी के इलाज के
िलए पाँच सौ Łपये न देने पर नाराजगी Óयĉ करती है, तो कÐलू सेठ उसे डाँटते हòए िवमला munotes.in
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‘काला पÂथर’ नाटक कì कथावÖतु
21 को िसफª अपने काम से काम रखने को सलाह देता है। कÐलू सेठ कहता है िक महाजनी
मेरा धÆधा है, म§ यहाँ पैसा लुटाने को नहé बैठा हóँ। िवमला कÐलू सेठ से कहती है िक गरीबŌ
का खून चूसने को धÆधा कहते है। िवमला के कभी िकसी राय-परामशª को कÐलू सेठ ने
आÂमसात नहé िकया। िवमला कभी नहé चाहती थी िक उसकì छह संतान¤ हŌ, लेिकन
कÐलू सेठ को िचता म¤ मुखािµन देने, वंश चलाने, िपतरŌ को पानी देने और िपतृ- ऋण से
उऋण होने के िलए िकसी भी कìमत पर अपना जÆमाया बेटा चािहए था, इसी के इÆतजार
म¤ छह बेिटयाँ हो जाती है। वह लड़िकयŌ को हमेशा पराया धन मानता था। कÐलू सेठ बेटा
गोद लेने म¤ िवĵास नहé करता था। उसकì इस मानिसकता को बदलने के िलए िवमला उसे
बहòत समझाती है “यह तुÌहारा Ăम है पुरानी सोच है। लड़के-लडकì म¤ कोई भेद नहé है।
तुÌहारी इसी मानिसकता ने घर को तबाह कर िदया।” िवमला का मानना है िक उसकì छह
बेिटयŌ के जीवन म¤ जो कुछ भी ýासदपूणª घटनाएँ घटी ह§, उसका एकमाý दोषी उसका पित
कÐलू सेठ ही ह§, ³यŌिक कÐलू सेठ के जीवन का मु´य उĥेÔय धन-संचय के अितåरĉ कुछ
नहé है। कÐलू सेठ दहेज बचाने म¤ अपनी चार बेिटयŌ का िववाह उनसे दुने उă के िĬजहा
वृĦ पुŁषŌ से करे देता है। िवमला कì यह आÂमपीड़ा उसकì इन उिĉयŌ म¤ झलकती है-
“तुमने चार लड़िकयŌ का िववाह िĬजहा लड़कŌ से िकया, जो लड़िकयŌ से दूनी उă के थे।
यही कारण है िक तीन िवधवा हòई, तुÌहारे िसर पर बैठी, तुÌह¤ कोस रही है। चौथी लड़कì
जब ससुराल के अÂयाचार नहé सह पाती तो आÂमहÂया कर ली। एक लड़कì कुवाँरी ही घर
से कहé भाग गयी। एक लड़कì कुवाँरी बैठी है। दहेज न देना पड़े, इसीिलए तुमने यह जघÆय
पाप िकया।” कÐलू सेठ िवमला कì बात सुनकर गुÖसे से लाल जो जाता है और कहता है
िक म§ने तो उन सभी का िववाह धनी घरŌ म¤ िकया था। म§ उनके सुख-दुख का िजÌमेदार नहé
हóँ। िवमला अपने पित कÐलू सेठ कì अपनी बेिटयŌ के ÿित उदासीनता को देखकर िनराश
हो जाती है। दरअसल महाजन कÐलू सेठ ľी जीवन को िखलौने के अितåरĉ अÆय कुछ
नहé समझता था। बेिटयŌ के साथ उसने जो कुछ िकया वह तो जगजािहर था, परंतु वह
अपनी पÂनी को भी कुछ नहé समझता था। जब िवमला उसे समझाने कì कोिशश करती है,
तो वह अÂयंत बेŁखी, अभþता और आøोश से पेश आता है।
कÐलू सेठ पुý ÿािĮ कì अिभलाषा कì बात जब वह गाँव के सरपंच के सामने रखता है, तो
सरपंच भी आIJयªकारक हो जाता है और उसे िकसी åरÔतेदार के ब¸चे को गोद लेने को
कहता है। कÐलू सेठ को तो अपने खून कì सÆतान चािहए थी, इसके िलए वह हर खचª
उठाने को तैयार है। बहरहाल, सरपंच िजस नवयुवती से सेठ कÐलू कì िववाह कì योजना
बनाता है, वह लड़कì जीवन म¤ अनेक झंझावातŌ के दौर से गुजर रही है। वह संतोषी िकसान
कì इकलौती संतान है, िजसका िववाह संबंध टूटने कì कगार पर था। पुिनया को वह पाने के
िलए सरपंच को प¸चीस हजार Łपया और पूरी जमात को भोज देने को सहषª तैयार हो
जाता है। उसे इस िÖथित म¤ न ही अपने जीवन संिगनी िवमला, तीन िवधवा और दो िबन
Óयाहé जवान बेिटयŌ कì परवाह नहé होती। अपनी साठ वषª कì आयु म¤ अपनी जाित-
िबरादरी कì बीस वषêय एक सुंदर युवती पुिनया से हर हाल िववाह करना चाहता है तािक
उससे बेटा पैदा कर सके। पुिनया के िपता कì सारी जायदाद सेठ कÐलू के पास िगरवी
रहती है। इÆहé सब का फा यदा उठाकर संतोषी िकसान के घर पहòँच कर कÐलू सेठ पुिनया
से िववाह करने कì अपनी अिभलाषा Óयĉ करता है। संतोषी के सारे कजª माफ करने कì भी
बात करता है। उसके इस ÿÖताव को नहé िकसान संतोषी मानता और न ही पुिनया। पुिनया munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
22 उसे तुरÆत अपने घर से िनकल जाने को कहती है। वह कÐलू सेठ को अपनी माँ का हÂयारा
मानती है ³यŌिक यिद कÐलू सेठ समय पर पाँच सौ Łपये दे िदया होता तो शायद उसकì
माँ आज जीिवत रहती।
पुिनया, िजसका िववाह उसके माता-िपता ने महज पाँच वषª कì आयु म¤ ही कर िदया था।
दस साल बाद यािन पंþह साल कì आयु म¤ महाजन कÐलू सेठ के पास अपनी जायदाद सब
कुछ िगरवी रखकर पाँच हजार Łपये कजª लेकर, बेटी पुिनया का गौना करता है। ससुराल म¤
जाने पर पुिनया को पता चलता है िक उसका पित, पित के łप म¤ एक रा±स है। उसका
शारीåरक-मानिसक शोषण करता है। िदन-रात शराब के नशे म¤ धुत रहकर गाली-गलौच
करता है, उसे मारता-पीटता है। पुिनया के जेवर, घर के बतªन बेचकर शराब पी जाता है।
उससे बार-बार शराब पीने के िलए पैसे माँगता है। इसके िलए वह अपना घर भी िगरवी रख
देता है। हद तो तब हो जाती है जब वह पुिनया को अपने शराबी दोÖतŌ के साथ शारीåरक
संबंध बनाने पर िववश कर उसको वेÔया बनाना-चाहता है। वह अपने दोÖतŌ को शराब
िपलाने के िलए अपने घर लाता है, उÆह¤ पुिनया के पास भेजता है तािक देह-Óयापार से
अिजªत धन को पुिनया लेकर वह शराब पी सके। जब पुिनया यह सब करने से मना कर देती
है तो वह अपनी पÂनी पर ही यह आरोप लगाते हòए ÿतािड़त करता है। पुिनया उसके दोÖतŌ
पर डोरे डालती है। पुिनया वहाँ िकसी तरह अपनी इºजत बचाकर अपने िपता के घर आती
है। िपछले छह महीनŌ से यहé रह रही है। यहाँ आने पर लकवाúÖत माँ िपछले छह महीने
तक बीमार रहते-रहते पैसŌ के अभाव म¤ इलाज नहé हो पाने के कारण दम तोड़ देती है।
िपता िबÐकुल बेबस और लाचार ह§। पुिनया ने जातीय पंचायत म¤ अपने पित दुरजन से
तलाक लेने कì अजê दी हòई है। लेिकन वह उसे तलाक लेने नहé दे रहा है। उसने पंचŌ को
शराब िपला-िपलाकर अपने प± म¤ कर िलया है और उस पर अपने साथ चलने का दबाव
डालता रहता है। पुिनया िनणªय करती है िक यिद उसे तलाक नहé िमलता है तो वह इस
िÖथित म¤ आÂमहÂया कर लेगी, परंतु कभी उस दुरजन दुराचारी पित के साथ नहé जाएगी।
देह-Óयापार करने से बेहतर वह आÂमहÂया को समझती है।
पुिनया अपने बचपन के ÿेमी ÿभात से अपने गौने के पाँच साल बाद िमलती है, तो ये तमाम
बात¤ अपने जीवन कì बताती है। ÿभात उसके बचपन का साथी है, ÿेमी है। पुिनया के माता-
िपता कì ŀिĶ म¤ वह एक अ¸छा और संÖकारी लड़का है। पुिनया भी उससे बहòत ÿेम करती
है, गौना होने से पहले वह अपनी माँ के सम± अपने ÿेम को जाहीर करते हòए ÿभात से शादी
करने कì इ¸छा Óयĉ कì थी, परÆतु माँ ने उसे दूसरी जाित का होने कì बात करके पुिनया
को समझाती है िक अपना समाज उसे कभी Öवीकार नहé करेगा। उसे भूलने म¤ ही तुÌहारी
भलाई है।
ÿभात पढ़ा-िलखा, समझदार, संÖकारी एवं अ¸छी सोच रखने वाला Óयिĉ है। यह कारण है
िक वह पुिनया से दो वषª गौना टाल कर उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने का आúह करता है,
लेिकन िववाह बंधन म¤ बंधी Óयाहता का गौना ससुरालवाले जÐदी-जÐदी करवाने कì िजĥ
पर अड़े हòए थे। पुिनया भी कम से कम हायर सेक¤डरी तक पढ़ना चाहती थी, लेिकन उसकì
पढ़ाई ससुरालवालŌ ने आठवé क±ा के बाद Łकवा दी ³यŌिक उसका पित केवल चौथी
क±ा तक पढ़ा था । ÿभात पुिनया कì सारी Óयथा-कथा सुनकर वह उसके सम± उससे
िववाह करने का ÿÖताव रखता है। वह उससे वचन लेता है िक वह अपने भरण-पोषण हेतु munotes.in
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‘काला पÂथर’ नाटक कì कथावÖतु
23 कभी िकसी कì मेहनत-मजदूरी नहé करेगी। ÿभात उसे हर तरह से आिथªक सहयोग करने,
उसके िपता को शहर ले जाकर आजीवन सेवा करने, पुिनया से कोटª मैåरज करने का
ÿÖताव भी रखता है। साथ ही यह भी पुिनया को बताता है िक पुिनया कì अितåरĉ िकसी
और से िववाह नहé करेगा, अÆयथा कुवाँरा ही रहेगा। उसकì ÿेम भरी बात¤ सुनकर पुिनया
कहती है म¤ भी तुमसे उतना ही ÿेम करती हóँ िजतना तुम मुझे करते हो। म§ हमेशा
भावनाÂमक łप से तुÌहारी थé, आज भी हóँ और भिवÕय म¤ भी हमेशा रहóँगी। यिद यह समाज
हम¤ िववाह करने कì अनुमित नहé देगा तो म§ भी दूसरा िववाह नहé कłंगी। पुिनया, ÿभात
िनIJल ÿेम से अिनभूत है, परंतु इस आंतरजातीय िववाह के बाद अपनी जातीय पंचायत के
कठोर िनķòर िनणªय, तानाशाही फ़रमानŌ से भी वह भली-भांित पåरिचत है।
इधर पुिनया से िकसी भी कìमत पर िववाह कराने के िलए कÐलू सेठ गाँव के सरपंच पर
दबाव बनता है और सरपंच तमाम दाँवपेच खेलकर पुिनया का उसके पित दुरजन से तलाक
करवाता है। पुिनया अपने नीच पित से गुजारा भ°ा लेने से भी इनकार करती है। इसके बाद
पंचायत म¤ दूसरी अजê पर सुनवाई होती है, जो कÐलू सेठ Ĭारा दी गई होती है, िजसम¤
पुिनया के िपता संतोषी िकसान Ĭारा पाँच वषª बाद भी रेहन पर रखी जमीन नहé छुड़वा पाने
और िलए गए पाँच हजार का कजª सूद समेत तीस हजार हो जाने पर उसकì कजª अदायगी
कैसे होगी, इस मुĥे को पंचायत म¤ उठाया जाता है। पाँच साल बाद जमीन नहé छुड़वा पाने
कì िÖथित म¤ महाजन के कानून के िहसाब से उस जमीन का मािलकाना अिधकार अब
संतोषी का नहé रहा। अत: संतोषी िकसान कì जमीन का मािलक अब सेठ कÐलू हो गया।
पाँच साल पहले िलए गए पाँच हजार Łपये अब सूद समेत तीस हजार Łपये हो गये थे,
उसकì अदायगी कैसे होगी, इस मुĥे पर चचाª होती है। संतोषी अपनी असमथªता Óयĉ
करता है, पåरिÖथितयŌ का हवाला देते हए थोड़े समय कì मोहलत माँगता है। कÐलू सेठ
एक शतª पर समय देने को तैयार होता है कì यिद संतोषी िकसान अपनी तलाकशुदा बेटी
पुिनया का िववाह उसके साथ कर दे, पुिनया Ĭारा कÐलू सेठ के ÿÖताव को Öवीकार न
करने पर वह उसे लालच देता है िक वह उसके िपता का सारा कजª माफ कर देगा, साथ ही
रेहन पर रखी गई जमीन पर उसे लौटा देगा। वह पुिनया को चेतावनी भी देता है यिद वह
उसके ÿÖताव को नहé Öवीकार करती है तो कजª अदा न कर पाने के कारण संतोषी
िकसान को जेल भी जाना पड़ सकता है। संतोषी िकसान को जेल जाना Öवीकार है, परंतु
उसे इस अनमेल िववाह कì शतª मंजूर नहé है। कÐलू सेठ साम-दाम-दंड-भेद कì नीितयŌ के
माÅयम से पुिनया को अपनाना चाहता है।
सरपंच दोनŌ प±Ō को अपनी िजĥ पर अड़ा देखकर पूवª िनधाªåरत योजना के तहत हÖत±ेप
करता है। वह एक षडयंý रचता है। अपने पास रखे झोले म¤ उसने पहले से ही एक ‘काला-
पÂथर’ डाल िदया था। पुन: गावँ वालŌ को िदखाकर जमीन पर पड़े एक काले और एक
सफेद पÂथर को उस झोले म¤ डालने का अिभनय करता है। हाथ म¤ िलए दोनŌ पÂथरŌ म¤ से
‘काला-पÂथर’ सबको िदखाकर झोले म¤ डालता है, लेिकन सफेद पÂथर को धोखे से सबको
नजर से बचाकर अपने पास ही रख लेता है और इसके बाद पुिनया से कहता है िक अब तूम
आँख मूँदकर दूसरी तरफ देखते हòए, झोले म¤ से एक पÂथर िनकालो। यिद सफेद पÂथर
िनकला है, तो तुÌह¤ कÐलू सेठ से िववाह नहé करना पड़ेगा और तुÌहारे बापू का सारा कजª
माफ हो जायेगा। लेिकन यिद तुमने काला पÂथर िनकाला तो तुÌह¤ सभी के सामने अभी munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
24 कÐलू सेठ से िववाह करना होगा और तुÌहारे बापू Ĭारा िलया गया सारा कजª माफ हो
जायेगा। सरपंच पुिनया को लालच देते हòए कहता है िक चाहे कोई पÂथर िनकले तुÌहारे बापू
का कजª माफ होना िनिIJत है। हाँ, यिद िवधाता ने तुÌहारा िववाह कÐलू सेठ से िलखा होगा
तो काला पÂथर िनकलेगा और यिद नहé िलखा होगा तो सफेद िनकलेगा। अब तो तुÌह¤ कोई
एतराज नहé होगा । पुिनया थोड़ा सोचने का समय माँगती है।
पुिनया इन जािलमŌ के छल-ÿपंच कì भली-भाँित भाँप जाती है। उसे पूरा िवĵास है िक
झोले म¤ डाले गये दोनŌ ही पÂथर काले ह§। सरपंच कì इस सािजश को समझते हòए वह
िवचार मंथन करती है, पुिनया अपनी िजंदगी को दाँव पर लगाकर अपने िपता कì जमीन
बचाने और कजª माफ करवाने का िवकÐप ढुँढती है। वह पÂथर िनकालने से पहले तलाक
मंजूरी और अपने बापू के कजª माफì का कागजात माँगती है। सरपंच सारे कागजात पुिनया
को देता है। अंत म¤ वह पÂथर िनकालने का िनणªय लेती है। वह झोले से एक पÂथर
िनकालकर बहòत होिशयारी से नीचे जमीन पर िगरा देती है, िजससे वह पÂथर काला-सफेद
पÂथरŌ म¤ िमल जाता है। जब वह दूसरी बार पÂथर िनकाल कर सािबत करना चाहती है िक
पहले पÂथर का रंग ³या रहा होगा, तो कÐलू सेठ और सरपंच िवरोध करते ह§, मगर úाम
वािसयŌ के समथªन और अपनी सूझ-बुझ से वह झोले म¤ से दूसरे काले पÂथर को
िनकालकर यह सािबत कर देती है िक जमीन पर िगरने वाला पहला पÂथर सफेद ही था।
इस ÿकार वह अपनी अÿितम सूझ-बुझ, समझदारी तािकªतता और बुिĦमता का पåरचय
देते हòए अपने िपता को कजª मुĉ बनाती है तो Öवयं को भी अनमेल िववाह के चंगुल से
बचाती है। उसके कृÂय Ĭारा िपता के मन से समाज का डर िनकल जाता है तो वहé उसका
ÿेमी ÿभात भी उसकì बुिĦमानी का कायल हो जाता है।
इस ÿकार ‘काला-पÂथर’ नाटक म¤ नाटककार डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ ने िववाह संबंधी
अनेक ýासदीपूणª िÖथितयŌ को ÿसंगानुसार अÂयंत सजीवता, सहजता एवं सरलता से
उभारा है। बाल िववाह, अनमेल िववाह, अंतरजातीय िववाह, दहेज ÿताड़ना, ľी पड़ताना,
संबंधी तमाम समÖयाओं, िवसंगितयŌ के माÅयम से समाज म¤ सजगता, सतकªता,
जागłकता फैलाने का सफल ÿयास िकया है। इस तरह इस नाटक म¤ िववाह और ÿेम से
संबंिधत अनेक िवडंबनाओं, ýासिदयŌ को बड़ी िशĥत और संजीदगी से उठाया गया है।
३.४ सारांश ‘काला पÂथर’ नाटक के माÅयम से नाटककार ने पाýŌ के माÅयम से िकसानŌ-®िमकŌ के
साथ होने वाले शोषण का सजीव िचýण िकया है तो वहé सूदखोर साहकारŌ, पुिलस, Æयाय
के ठेकेदारŌ, धािमªक पाखंडता को भी िचýांिकत करने म¤ सफलता िमली है। नाटक म¤ िववाह
संबंधी अनेक ýासिदयŌ को अÂयंत सजीवता से उभारा है। बाल-िववाह, दहेज, अनमेल
िववाह, ľी पड़ताना, नशे के कारण पाåरवाåरक कलह आिद मुĥŌ कì तरफ समाज का
Åयान आकिषªत िकया है। िववाह ľी-जीवन या लड़िकयŌ का अंितम सÂय नहé है, िजसकì
वजह से उनकì िश±ा Łकवा दी जाती है, उÆहे शराबी, जुआरी Óयिभचारी पुŁषŌ से
Óयाहकर, माँ-बाप दाियÂव से मुिĉ पाना चाहते ह§। लड़िकयŌ को अपने िववाह एवं वर चुनने
का कोई हक नहé है। इस नाटक म¤ िववाह और ÿेम संबंिधत समाज म¤ Óयाÿ िवसंगितयŌ-
िवडÌबनाओं और िवकृितयŌ का यथाथª िचýण हòआ है। munotes.in
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‘काला पÂथर’ नाटक कì कथावÖतु
25 ३.५ लघू°रीय ÿij ÿ.१. संतोषी िकसान का ५००० Ł पाँच वषª बाद सूद समेत िकतना हो जाता है?
उ. ३०,००० Łपये हो जाता है ।
ÿ.२. सरपंच कÐलू सेठ को िववाह कराने के िलए ³या खचª बताता है?
उ. सरपंच कÐलू सेठ को २५,००० और पूरी जमात को भोजन कराने का खचª बताता
है ।
ÿ.३. माँ के अनुसार ÿभात और पुिनया का िववाह ³यŌ संभव नहé था ।
उ. ÿभात के दूसरी जाती का होने के कारण िववाह संभव नहé था ।
ÿ.४. खोदवा चोर ने अपना नाम ³या रखा है?
उ. खोदवा चोर ने अपना नाम आचायª शंकरानंद रखा था ।
ÿ.५. सरपंच दुजªन को पुिनया को िकतने Łपये गुजारा भ°ा देने को कहते है?
उ. दुजªन को १००० Ł गुजारा भ°ा देने को कहते है ।
ÿ.६. सरपंच के झोले म¤ िकस रंग का पÂथर पहले से था?
उ. काले रंग का ।
ÿ.७. झोले म¤ से यिद पुिनया सफेद रंग का पÂथर िनकालती तो उसे शतª के अनुसार ³या
करना होगा?
उ. पुिनया शादी के बंधन से Öवतंý हो जाती और िपता का कजª माफ हो जाता ।
ÿ.८. साधु कÐलू सेठ को िकतने िदन तक पीपल के पेड़ के नीचे दी जलाने को कहता है?
उ. २१ िदन तक ।
३.६ दीघō°रीय ÿij ÿ.१. ‘काला पÂथर’ नाटक कì कथावÖतु अपने शÊदŌ म¤ िलिखए।
ÿ.२. ‘काला पÂथर’ नाटक के मूल कÃय कì िववेचना कìिजए।
ÿ.३. ‘काला पÂथर’ नाटक कì िवषय -वÖतु पर ÿकाश डािलए।
ÿ.४. ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िचिýत वैवािहक ýासदी पर ÿकाश डािलए।
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
26 ३.७ संदभªसिहत Óया´या “धैयª कì भी कोई सीमा होती है। म¤ एक रा±स कì पÂनी हóँ। ³या नहé िकया उसने मेरे साथ?
मुझसे घृिणत कायª कराने के िलए गौना कराया था।”
संदभª:
ÿÖतुत पंिĉयाँ ‘काला पÂथर’ नाटक से उĦृत है। इसके लेखक डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ है।
ÿसंग:
पुिनया यह बाते अपने दुराचारी पित के बारे म¤ अपने बचपन के ÿेमी ÿभात से कह रही है,
िजससे वह अपने गौने के पाँच साल बाद िमली है।
Óया´या:
पुिनया जब अपने गौने के पाँच साल बाद अपने बचपन के ÿेमी से िमलती है, अपने ऊपर
आपबीती को ÿभास को सुनाती है िक कैसे गवने के बाद उसे पित का अÂयाचार उसके
ऊपर होता है। उसका मानिसक -शारीåरक शोषण होता है। पित िदन-रात शराब के नशे म¤
धुत रहकर गाली-गलौच, मार-पीट करता है। पुिनया के जेवर, घर के बतªन बेचकर शराब पी
जाता है। अपना घर भी िगरवी रख देता है। हद तो तब हो गई जब वह अपने शराबी दोÖतŌ
से शारीåरक संबंध बनाने पर िववश कर उसे वेÔया बनाना चाहता है। उससे धंधा करवाकर
उसे अपनी आमदनी का जåरया बनाना चाहता है। वह कहती है िक वह तलाक न िमलने पर
आÂमहÂया कर लेगी, परंतु कभी उस दुरजन दुराचारी पित साथ नहé जाएगी। देह-Óयापार
करने से अ¸छा वह आÂमहÂया को समझती है। इस बात पर उसका ÿेमी ÿभात उसे धैयª
रखने कì बात कहता है, तो पुिनया कहती है िक धैयª कì भी कोई सीमा होती है।
िवशेष:
१) अनमेल िववाह संबंधी अनेक ýासदीपूणª िÖथितयŌ का अÂयंत सजीवता, सहजता एवं
सरलता से दशाªया गया है।
२) नशे के ÿभाव से होनेवाली हािनयŌ को बताया गया है।
३) भाषा सरल और सहज है।
३.८ संदभª úंथ १) काला पÂथर - डॉ. सुरेश शु³ल ‘चंþ’
२) नयी सदी: नये नाटक – डॉ. अजुªन जानु घरत
३) माधवी - भीÕम साहनी
४) ňुवÖवािमनी - जयशंकर ÿसाद
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27 ४
‘काला पÂथर’ नाटक: चåरý-िचýण
इकाई कì łपरेखा
४.० इकाई का उĥेÔय
४.१ ÿÖतावना
४.२ 'काला पÂथर' : चåरý िचýण
४.४ सारांश
४.५ लघू°रीय ÿij
४.६ दीघō°रीय ÿij
४.७ संदभª úंथ
४.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई का मु´य उĥेÔय है ‘काला पÂथर’ नाटक के सभी पाýŌ के संबंध म¤ िवīािथªयŌ को
संपूणª जानकारी देना। कथा सािहÂय को सफलता के चरम तक पहòँचने म¤ उसके पाý का
चåरý अÂयंत महÂवपूणª होता है। ये पाý ही अपने समÖत गुणŌ-अवगुणŌ, िøया-कलापŌ,
कमŎ, आदशŎ समेत सभी मानवीय ÿवृि°यŌ से कथा को आगे बढ़ाते है। इसिलए नाटक के
पाýŌ का चåरý-िचýण पर ÿकाश डालना इस इकाई का मु´य उĥेÔय है।
४.१ ÿÖतावना डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ Ĭारा िलिखत नाटक ‘काला पÂथर’ अÿैल २०१२ म¤ िलखा गया है।
यह नाटक úामीण जीवन कì समÖयाओं पर आधाåरत है। इस नाटक म¤ शोषण कì पराकाķा
पार कर गई है। हर तरह से लाचार मजबूर शोषत िकसानŌ कì दयनीय दशा को अÂयÆत
मािमªकता और संवेदना से उकेरा गया है। नाटक म¤ ľी िवषयक समÖयाओं जैसे बाल-
िववाह, अनमेल िववाह, पÂनी ÿताड़ना जैसे मुĥŌ को उकेरा गया है। पुिनया नाटक कì मु´य
पाýा है, जो ľी समाज कì पÂनी ÿताड़ना मिहलाओं का ÿितिनिधÂव करती है। पुिनया के
िपता संतोषी हर तरह से लाचार, मजबूर शोिषत िकसानŌ का ÿितिनिधÂव करता है। कÐलू
सेठ शोषण कì पराकाķा पार कर सूदखोर महाजन है जो पुý कì लालच म¤ साठ वषª कì उă
म¤ शादी करने कì इ¸छा रखता है। सेठ कÐलू कì पÂनी िवमला पÂनी ÿताड़ना एवं ľी
दासता के łप म¤ नाटक म¤ उभर कर आती है। पुिनया का ÿेमी ÿभात नए सामािजक मूÐयŌ
का ÿितिनिधÂव करता नजर आ रहा । इस नाटक म¤ कुछ ऐसे पाý ह§, जो अपनी-अपनी
भूिमका से नाटक को िनरंतर गितशील बनाए रखे ह§।
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
28 ४.२ ‘काला पÂथर’: चåरý-िचýण ‘काला पÂथर’ नाटक के ÿमुख पाýŌ का िचýण िनÌनिलिखत है -
१) पुिनया:
पुिनया ‘काला पÂथर’ नाटक कì मु´य पाý है। वह गरीबपुर गावँ के गरीब िकसान संतोषी कì
एकलौती बेटी है, पाँच वषª कì उă म¤ उसका िववाह हो जाता है। आठवé पास करते-पÆþह
वषª कì आयु म¤ गौना हो जाता है। उसे आगे पढ़ने कì बहòत इ¸छा भी, वह बारहवé तक
पढ़ना चाहती थी। चुिक इसका पित दुरजन चौथी ही पास था तो आगे पढ़ने से उसे रोक
िदया जाता है। िपता संतोषी कÐलू सेठ के पास अपनी जमीन जायदाद सब कुछ िगरवी
रखकर पाँच हजार Łपया कजª लेकर बेटी का गौना करता है। ससुराल जाने पर पुिनया को
पता चलता है िक उसका पित, पित के łप म¤ रा±स है। पित उसका शारीåरक-मानिसक
शोषण करता है। िदन-रात शराब के नशे म¤ डूबा रहता। पुिनया के जेवर, घर बतªन बेचकर
शराब पी जाता है। उससे बार-बार शराब पीने के िलए पैसे माँगता, मार-पीट करता है। हद
तो तब हो गई जब वह अपने शराबी दोÖतŌ के साथ पुिनया को शारीåरक संबंध बनाने को
िविवश करता। वह उसे वेÔया बनाकर धन अिजªत करना चाहता है, तािक उस पैसे से शराब
पी सके। यहé नहé, वह पुिनया पर यह आरोप भी लगाता था िक वह उसके दोÖतŌ पर डोरे
डालती है। पुिनया वहाँ से िकसी तरह अपनी इºजत बचाकर अपने िपता के पास आ जाती
है। िपछले छह महीने से अपने िपता के घर पर रह रही है। यहाँ आने पर अपनी लकवा úÖत
माँ कì सेवा करती है, मगर पैसŌ के अभाव म¤ सही इलाज न हो पाने के कारण उÆह¤ नहé
बचा पाती। जातीय पंचायत म¤ वह अपने पित दुरजन से तलाक लेने कì अजê दी हòई है।
लेिकन उसका पित पंचŌ को शराब िपला-िपला कर तलाक नहé होने देता है, उस पर अपने
साथ चलने का दबाव डालता रहता है। पुिनया अपनी इºजत और आÂमसÌमान कì र±ा के
िलए तलाक न िमलने पर वह आÂमहÂया कर लेगी। वह देह-Óयापार करने से बेहतर
आÂमहÂया को समझती है।
पुिनया जब अपने गौने के पाँच साल बाद अपने बचपन के ÿेमी ÿभात से िमलती है, तो
अपनी सारी Óयथा-कथा सुनाती है। ÿभात पुिनया के सामने िववाह करने का ÿÖताव रखता
है, परंतु पुिनया अंतरजातीय िववाह के बाद अपनी जातीय पंचायत के कठोर, िनķòर िनणªय,
तानाशाही फरमानŌ से वह भली-भांित पåरिचत है, इसिलए वह समाज कì łिढ़गत åरवाजŌ-
परंपराओं के सम± अपने सपनŌ-अरमानŌ को कुबाªन कर देती है। उसे लगता है िक
तथाकिथत समाज का सामना करने कì उसम¤ शिĉ नहé है। वह ÿभात से बहòत ÿेम करती
है। ÿभात को बताती है िक वह भावनाÂमक łप से हमेशा तुमसे जुड़ी हòई थी, आगे भी जुड़ी
रहेगी। अगर भिवÕय म¤ उनका िववाह नहé होगा, तो वह भी दूसरा िववाह नहé करेगी।
इधर कÐलू सेठ पुिनया से िकसी भी कìमत पर िववाह करके लड़का पैदा करने कì चाह
रखता है। वह संतोषी िकसान पर अपने कजª का दबाव बनाते हòए पुिनया से िववाह का
ÿÖताव रखता है। बदले म¤ उसके िपता के पुराने सारे कज¥ माफ करने, उनकì जमीन वापस
लौटाने का ÿलोभन देता है। पुिनया और संतोषी दोनŌ म¤ से कोई तैयार नहé होते है। अब
थक हार कर कÐलू सेठ गावँ के सरपंच पर दबाव बनाता है। सरपंच सबसे पहले दाँव पेच munotes.in
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‘काला पÂथर’ नाटक: चåरý-िचýण
29 खेलकर दुरजन से उसका तलाक करवाता है। पुिनया अपने नीच पित से गुजारा भ°ा लेने
से इनकार करती है। नाटक के अिÆतम भाग वह िकस ÿकार से अपनी सूझ-बुझ पåरचय देते
हòए सरपंच के जाल से बच िनकलती है। पुिनया सरपंच कì सािजश समझते हòए िवचार मंथन
करती है। वह अपनी िजंदगी दाँव पर लगाकर अपने िपता कì जमीन बचाने और कजª माफì
करवाने का राÖता चुनती है। यहé नहé पÂथर िनकालने से पूवª वह अपने िपता के कजª माफì
का कागज और तलाक मंजूरी का कागजात माँगती है। अÆत म¤ वह अपनी तािकªकता और
बुिĦम°ा का पåरचय देते हòए अपने िपता को कजª मुĉ बनाती है, तो अपने को भी अनमेल
िववाह से बचाती है।
िनÕकषªतः कहा जा सकता है पुिनया असीम धैयªवान, स¸चा ÿेम करवाने वाली, सतकª,
जागłक, दूरदशê, सुझ-बुझ रखनेवाली ÿगितशील िवचारŌ कì है। नाटककार ने पुिनया के
चåरý को अÂयÆत कुशलता से गढ़ा है, जो नाटक को और अिधक जीवनता, सजीवता और
यथाथªता ÿदान करता है।
२) कÐलू सेठ:
‘काला-पÂथर’ नाटक म¤ कÐलू सेठ शोषक वगª का ÿितिनिधÂव करता है। कÐलू सेठ
िनहायत िनदªयी और Öवाथê ÿवृि° का पाý है। वह ľी-जीवन को िखलौने के अितåरĉ
कुछ नहé समझता है। नाटक के ÿारंभ म¤ वह संतोषी िकसान को पाँच सौ Łपए, उसकì
बीमार पÂनी के इलाज के िलए इसिलए नहé देता िक उसके पास रेहन रखने के िलए कुछ
नहé था। लेिकन जब गाँव का सरपंच दस हजार Łपए माँगता है, तो तुरंत अपनी ितजोरी से
िनकाल कर दे देता है, रेहन के बारे म¤ पूछता थक नहé है। यही नहé संतोषी िकसान कì बेटी
पुिनया से बेटे कì चाहत म¤ िववाह संबंध बनाने के िलए सरपंच को पूरे प¸चीस हजार Łपए
और पूरी जमात को भोज देने का वादा करता है। जब उसकì पÂनी िवमला उसे समझाने कì
कोिशश करती है, तो उसे भी भला-बुरा कहता है। िवमला कì िकसी राय-परामशª को वह
आÂमसात नहé िकया। छह बेिटयŌ का िपता होने पर भी उसे यही िचंता रहती थी िक कौन
मुखािµन देगा, कौन िपतरŌ को पानी देगा। वह अपनी बेिटयŌ को हमेशा पराया धन समझता
था। दहेज देना पड़े इसिलए चार बेिटयŌ कì शादी उनसे दूनी उă के िĬजहा वृĦ पुŁषŌ से
िकया। चार म¤ से तीन िवधवा हो गई, चौथी लड़कì ससुराल कì अÂयाचार को न सह पाने के
कारण आÂमहÂया कर लेती है। उसकì एक लड़कì कुँवारी ही घर से भाग गयी, तो एक अभी
तक कुँवारी बैठी है। लाखŌ Łपये का मािलक होने के बावजूद वह इस धन उपयोग बेिटयŌ के
जीवन को सँवारने, सुखमय बनाने के िलए नहé करता है। बेिटयŌ के साथ जो उसने िकया
वह तो जगजािहर था, परंतु अपनी पÂनी को भी कुछ नहé समझता था वह अपनी पÂनी को
कभी जूते-चÈपलŌ-डंडŌ से, तो कभी घर को अÆय वÖतुओं से मारता-पीटता है।
पुý ÿािĮ कì अिभलाषा म¤ वह अपनी जीवन संिगनी िवमला, तीन िवधवा और दो िबन
Óयाही जवान बेिटयŌ कì परवाह िकये िबना अपनी साठ वषª कì आयु म¤ अपनी जाती-
िबरादरी कì बीस वषêय एक सुंदर नवयुवती जो िक उसकì बेटी के उă के बराबर है उससे
िववाह करना चाहता है, तािक उससे बेटा पैदा कर सके। इसके िलए वह अ¸छा-खासा खचª
भी करने कì तैयार है। वह अपने िववाह का ÿÖताव लेकर संतोषी िकसान के पास जाता है।
िववाह के बदले म¤ वह उसकì जमीन लौटाने तथा सभी पुराने कज¥ माफ करने का ÿलोभन munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
30 देता है। जब पुिनया और उसके िपता उसकì कोई भी शतª नहé मानते है तो वह सरपंच पर
दबाव बनाता है। सरपंच तमाम दाँवपेच खेलकर पुिनया का उसके पित दुरजन से तलाक
करवाता है और िफर एक षडयंý के चाल म¤ पुिनया को घेरने कì कोिशश करता है, मगर
पुिनया अपनी सूझ-बुझ, समझदारी और बुिĦमता से उनके चंगुल से बच जाती है। पुिनया
अपने िपता को कजª मुĉ कराती है तो अपने आप को भी अनमेल िववाह के चंगुल से
बचाती है। इस ÿकार कÐलू सेठ को पैसे, जमीन भी वापस करनी पड़ती है और िववाह का
सपना सपना ही रह जाता है।
िनÕकषªतः कहा जा सकता है सेठ कÐलू का चåरý नाटक म¤ िनķòर, संवेदनिहन, मौका
परÖत, गरीबŌ का शोषण करनेवाला, पुरानी मानिसकता रखने वाला, धूतª-बेईमान, कंजूस
आिद अवगुणŌ से भरा हòआ िदखाया गया है।
३) िवमला:
िवमला नाटक म¤ गौण ľी पाýा के łप म¤ उभर कर हमारे सम± आती है। वह अÂयंत
समजदार, दूरदशê, िववेकशील, सजग और ÿगितशील िवचारधाराओं कì है। वह अपने ĂĶ
पित कÐलू सेठ अपनी तािकªकतापूणª बातŌ से स¸चाई, ईमानदारी के मागª पर चलने को
ÿेåरत करती है िक उसे गरीबŌ का खून नहé चूसना चािहए। सेठ कÐलू कभी िवमला कì
राय-परामशª को महÂव नहé देता था। िवमला नहé चाहती थी िक उसकì छह संताने हो,
लेिकन कÐलू सेठ को बेटे कì चाहत ने उÆह¤ छह बेिटयŌ का बाप बन जाता है। कÐलू सेठ
बेिटयŌ को पराया धन मानते थे। उनकì इस मानिसकता को बदलने के िलए िवमला उÆह¤
बहòत समझाती है िक यह तुÌहारी पुरानी सोच है, आजकल लड़के-लड़िकयŌ म¤ कोई भेद
नहé है। िवमला अपने बेिटयŌ के जीवन म¤ जो कुछ भी ýासदपूणª घटनाएँ घटी है, उन सबका
माý दोष, अपने पित को मानती है। धन खचª न करना पड़े, इस कारण कÐलू सेठ अपनी
चार लड़िकयŌ का िववाह दूनी उă के िĬजहा लड़कŌ से कर देते है। तीन िवधवा हो जातé है,
एक आÂमहÂया कर लेती है। उसे लगता है िक लाखŌ Łपये रखकर ³या फायदा, जो
बि¸चयŌ का जीवन सुखमय न हòआ तो। उसम¤ जवानी म¤ वैधÓयता काटती बेिटयŌ कì पीड़ा
देखी नहé जाती।
नाटककार कÐलू सेठ कì पÂनी के माÅयम से समÖत भारतीय समाज के पितयŌ कì कड़वी
स¸चाई उजागर करते है िक िववाह के िलए लालाियत पुŁष िववाह हो जाने पर उसी पÂनी
कì सािधकार मारते-पीटते है। पित कì Öवतंý स°ा के सामान पÂनी कì भी अपनी Öवतंý
स°ा, अपने Öवतंý िवचार-सुझाव, राय-परामशª िनणªय लेने कì Öवतंýता होनी चािहए।
४) ÿभात:
ÿभात नाटक म¤ गौण पुŁष पाý के łप म¤ उभकर आया है। वह पुिनया के बचपन का ÿेमी है,
साथी है। वह एक अ¸छा और संÖकारी लड़का है। हायर सेकेÁडरी पास करने के बाद उसे
रायपुर म¤ नौकरी िमल जाती है। िपता कì मृÂयु के बाद सौतेली माँ और सौतेले भाईयŌ का
Óयवहार उसके ÿित अ¸छा नहé था। अत: वह ºयादातर रायपुर म¤ ही रहकर जीवन काट
रहा था। वह पुिनया से उसके गौने कì पाँच साल बाद िमलता है। पुिनया उससे अपने
दुराचारी पित के बारे म¤ बताती है, तो वह उसे समझता है िक म§ने तुमसे दो वषª गौना टालने munotes.in
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‘काला पÂथर’ नाटक: चåरý-िचýण
31 आúह िकया था। वह पुिनया को कम से कम हायर सेकेÁडरी तक पढ़वाना चाहता था।
पुिनया कì सारी Óयथा-कथा सुनकर वह उसके सम± िववाह करने का ÿÖताव रखता है।
उससे वचन लेता है िक वह अपने भरण-पोषण हेतु कभी िकसी कì मेहनत-मजदूरी नहé
करेगी। ÿभात उसे हर तरह से आिथªक सहयोग करने, उसके और उसके िपता को शहर ले
जाकर आजीवन सेवा करने, पुिनया से कोटª मैåरज करने का ÿÖताव भी रखता है। वह
पुिनया के अितåरĉ िकसी और से िववाह नहé करेगा, अÆयथा कुवाँरा ही रहेगा। वह हमेशा
पुिनया के भले के बारे म¤ सोचता रहता है। जब दुरजन पुिनया के घर, उसे ले जाने के िलए
झगड़ा करता है, तो वह पुिलस को पचास Łपये देकर भेजता है और वहाँ से हटाता है। वह
सरपंच से पुिनया के तलाक के बारे म¤ भी बात करता है।
इस ÿकार हम देखते है िक ÿभात नाटक म¤ एक युवा सोच रखने वाला पाý है। वह पढ़ा-
िलखा समझदार, संÖकारी लड़का है। वह पुिनया को स¸चे मन से Èयार करता है। उसे
समाज के łिढ़गत åरवाजŌ-परंपरा कì परवाह नहé है।
४.४ सारांश सारांश के łप म¤ कहा जा सकता है िक ‘काला-पÂथर’ नाटक के पाý अपने अपने वगª का
ÿितिनिधÂव करते ह§। समÖत पाý मानवीय गुण-दोषŌ के साथ ÿÖतुत ह§। खल पाý के गुणŌ
को उतना ही महÂव देते ह§ िजतना िक मु´य पाý के गुणŌ को िचýांिकत करते ह§। पाठकŌ के
Ńदय म¤ िकसानŌ, िľयŌ के ÿित गहरी संवेदना, सहानुभूित और सŃदयता कì भावना जग
सके। अत: कहा जा सकता है िक नाटककार ने पाýŌ को अपनी समÖत िविशĶताओं के
साथ हमारे सामने ÿÖतुत करने का सफल ÿयास िकया है।
४.५ लघू°रीय ÿij ÿ.१ पंचायत वाले सब ĂĶ ह§ थोड़े से पैसे और शराब कì बोतल म¤ िबक जाते ह§”- यह
िकसका कथन है।
उ. संतोषी का कथन है।
ÿ.२ कÐलू सेठ संतोषी के सामने कजª माफ करने का ÿÖताव िकस िलए रखता है?
उ. पुिनया से अपनी शादी के िलए।
ÿ.३ साधु कÐलू सेठ से िकतने Łपए लेता है?
उ. २१०० Łपए देता है।
ÿ.४ दुरजन को पकडने के िलए िकसने पुिलस को भेजा था?
उ. ÿभात ने।
ÿ.५ गावँ के नवयुवक कौन सी सिमित बनाकर गाँव के ĂĶाचार सुधार कर रहे थे?
उ. úाम-सुधार मंडली बनाकर। munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
32 ÿ.६ खोदता चोर ने कहाँ जाकर िसĦ बाबा से दी±ा ली है?
उ. वाराणसी जाकर दी±ा ली है।
४.६ दीघō°रीय ÿij ÿ.१ ‘काला पÂथर’ नाटक का ÿमुख पाý कौन है? उसके चåरý पर ÿकाश डािलए।
ÿ.२ ‘काला-पÂथर’ नाटक कì मु´य ľी पाý कौन है? उसके चåरý को अपने शÊदŌ के
िलिखए।
ÿ.३ कÐलू सेठ के चåरý पर ÿकाश डािलए।
ÿ.४ ÿभात के ÓयिĉÂव पर ÿकाश डािलए।
४.७ संदभª úंथ १. काला पÂथर - डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’
२. माधवी - भीÕम साहनी
३. ňुवÖवािमनी - जयशंकर ÿसाद
४. गोदान – ÿेमचंद
*****
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33 ५
‘काला-पÂथर’ नाटक: कथोपकथन
इकाई कì łपरेखा
५.० इकाई का उĥेÔय
५.१ ÿÖतावना
५.२ 'काला पÂथर' : कथोपकथन / संवाद
५.३ सारांश
५.४ लघू°रीय ÿij
५.५ दीघō°री ÿij
५.६ संदभª úंथ
५.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई का मु´य उĥेÔय है, नाटक म¤ आये कथोपकथन अथाªत संवाद के िवषय म¤
िवÖतृत łप म¤ बतलाना। नाटक म¤ संवाद का बहòत महÂव है। नाटक म¤ कथोपकथन के
माÅयम से ही पाý अपने भूिमका के अनुसार एक-दूसरे के साथ िवचारŌ, संवेदनाओं का
आदान-ÿदान करते ह§, िजससे नाटकìयता आती है। इस इकाई म¤ इन तÃयŌ कì िवÖतृत
चचाª कì गई है।
५.१ ÿÖतावना कथोपकथन वह माÅयम है िजससे िकसी रचना म¤ नाटकìयता का ŀÔय तैयार होता है,
नाटक कì कथावÖतु को गित िमलती है। िभÆन-िभÆन चåरýŌ के मन कì भावŌ को वाणी
िमलती है, िजससे पाýŌ का चåरý उĤघिटत होता है। इस नाटक म¤ úामीण पåरवेश को
Åयान म¤ रखकर पाýŌ का संवाद िभÆन-िभÆन शैली म¤ ÿÖतुत िकया गया है। िवषयानूकुल,
ÿसंगानुकूल, पाýानुकूल, Öथानानुकूल भाषा शैली के माÅयम से नाटक का कथोपकथन
®ेķ है।
५.२ काला पÂथर: कथोपकथन / संवाद ‘काला पÂथर’ नाटक पूरी तरह úामीण समÖयाओं पर केिÆþत नाटक है। गाँवŌ के गरीब
िकसान कजª म¤ डूबे हòए ह§। सूदखोर महाजन िकसानŌ का अनेक ÿकार से शोषण कर रहा है।
शासन तंý भी ĂĶाचार म¤ पूरी तरह से डूबा हòआ है और महाजन का साथ दे रहा है। नाटक
म¤ शोषण कì पराकाķा पार कर सूदखोर महाजन कì िनहायत Öवाथªपरता और जीणª-शीणª
अवÖथा म¤ हर तरह से लाचार, मजबूर, शोिषत िकसानŌ कì दयनीय दशा को संवादŌ के
माÅयम से अÂयंत मािमªकता और संवेदना के साथ उकेरा गया है। munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
34 नाटक के ÿारÌभ म¤ िकसान संतोषी अपनी बीमार पÂनी के इलाज कराने के िलए गाँव के
धनाढ्य महाजन कÐलू से िगड़िगडाता हòआ एक हजार Łपये माँग रहा होता तो कÐलू सेठ
पूछता है- “रेहन रखने के िलए ³या लाये हो?”
संतोषी िकसान डरते हòए कहता है – “अब तो रेहन रखने के िलये कुछ बचा नहé है। जेवर,
घर, जमीन सभी कुछ तो आपके पास रखा है।”
कÐलू सेठ बड़ी िनदªयतापूवªक कहता है- अब म§ और कुछ नहé दे सकता।
संतोषी िकसान िगड़िगड़ाते हòए कहता है- ऐसा न किहए सेठजी: पैसा न िमला तो पÂनी मर
जायेगी। तबीयत बहòत ºयादा खराब है। डॉ³टर को िदखाना जłरी है।”
कÐलू सेठ संतोषी को पैसे नहé देता है, उसे भगा देता है। मगर गाँव के सरपंच िबना िकसी
रेहन रखे खुशी-खुशी दस हजार Łपये थमा देता और अपना अहोभाµय समझता है। सेठ
कÐलू सेठ कहता है- “ये लीिजए दस हजार Łपये। मेरा अहोभाµय िक आप मेरे पास आय¤
और सेवा का मौका िदया।”
नाटककार ने कÐलू सेठ और उसकì पÂनी िवमला के माÅयम से पुŁष ÿधान समाज कì
मानिसकता को उजागर िकया है। नाटककार डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ कुÐलू सेठ कì पÂनी के
ÿित कÐलू सेठ के िवचारŌ और वा³यांशŌ के माÅयम से समÖत भारतीय पुŁष कì सोच-
समझ के िवषय म¤ बताया है। िवमला अपने पित को समझा-बुझाकर सही राÖते पर लाने कì
कोिशश करती िदखती है। िवमला कहती है- “उनका खून चूस रहे हो। यही दोष है।
ईमानदारी से धÆधा करो। नमक के बराबर खाओं। श³कर के बराबर ³यŌ खा रहे हो?” यही
नहé वह कुÐलू सेठ को लड़िकयŌ के पराया धन माने जाने का िवरोध करते हòए कहती है -
“यह तुÌहारा Ăम है, पुरानी सोच है। लड़के और लड़कì म¤ कोई भेद नहé है। तुÌहारी इसी
मानिसकता ने घर को तबाह कर िदया।” इस ÿकार नाटककार िवमला के माÅयम से समाज
म¤ फैले लड़के-लड़िकयŌ म¤ अÆतर करनेवालŌ पर कडा ÿहार करता है।
िवमला को लगता है, उसके तथा ‘उसको छह बेिटयŌ के जीवन म¤ जो कुछ ýासदपूणª
घटनाएँ घटी है, उसका एक माý दोषी उसका पित है। वह कÐलू सेठ के अनैितक तरीके से
धन संचय से भी नाराज िदखती है। वह कहती है-“पीछे बहòत सारी सÌपि° डाकू लूट ले गये
थे। उसी म¤ तुÌहारी एक आँख भी फूट गयी। वही पैसा यिद लड़िकयŌ को देते तो डाका ³यŌ
पड़ता और लड़िकयां भी सुखी होती।” कÐलू सेठ अपनी पÂनी कì ÿगितशील सोच से कोई
फकª नहé पड़ता है, उÐटे वह अÂयंत बेŁखी, अभþता और आøोश म¤ आकार बार-बार
धमकì देता हòआ नजर आता है। कÐलू सेठ आज के पुŁष समाज के वचªÖव करते हòए
कहता है “देखो मुँह पर लगाम दो, नहé तो मेरा पारा भड़क जाएगा। अब तुम हद से आगे बढ़
रही हो।
िवमला और कÐलू सेठ के बीच हòए संवाद को नाटककार बड़े ही जीवंतता, सजीवता और
Óयावहाåरकता से हमारे सम± रखा है िक पूरा ŀÔय कहé से काÐपिनक नहé लगता है। जैसा
मनुÕय के साधारणतः दाÌपÂय जीवन म¤ ऐसा ही कुछ चलता रहता है। इस पूरे ŀÔय का
ŀÔयांकन नाटककार सुरेश शु³लजी ने अÂयंत Öवाभािवक ढंग से िकया है। िवमला अपनी
तीन-तीन जवान िवधवा बेिटयŌ, िपता कì बेिटयŌ के ÿित बेŁखी देखते-देखते, तमाम तरह munotes.in
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‘काला-पÂथर’ नाटक: कथोपकथन
35 के सामािजक, पाåरवाåरक, मानिसक शोषण को सहते-सहते Öवभाव िबÐकुल łखी, िवþोही
ÿवृि° कì हो गई ह§। पित के łखे Óयवहार तथा मानिसक शोषण ने उसे ऐसा बना िदया है।
नाटक म¤ दो पीढ़ी के बीच कì अंतराल को उनके सोच-िवचार और समझ म¤ आए पåरवतªनŌ
का भी नाटककार सुरेश शु³ल ने बहòत ÿभावाÂपादक अंदाज म¤ उठाया है। úाम सुधार कì
टोली के युवकŌ Ĭारा नाटक के बीच-बीच म¤ आकार गीत के माÅयम से ĂĶाचार, शोषण,
अÆयाय के िखलाफ सभी को एकजुट होने का आवाहन करते ह§ -
“उठ जाग मुसािफर भोर भाई
अब रैन कहाँ जो सोबत है
जो जागत है सो पावत है
जो सोबत है सो खोवत है।”
नाटक म¤ ÿभात के माÅयम से नाटककार एक ऐसे पाý को Öथान देता है। जो नयी सोच
रखनेवाला पढ़ा-िलखा संÖकारी लड़का है तो वह समाज के łिढ़गत åरवाजŌ-परंपराओं
परवाह नहé करता है। वह पुिनया से कहता है - “समाज को मारो गोली। समाज ने तुÌह¤ ³या
िदया? बापू के कौन अब लड़का Êयाहने को बैठे है िक समाज को बाँध कर चल¤। म§ तुमसे
कोटª मैåरज कłँगा। तुÌह¤ कोई कĶ न होने पायेगा। मेरी बात पर सोचना।”
डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ कृषक समाज कì दुखती रग से भली-भाँित पåरिचत है िक जानते ह§
िक गाँवŌ के िकसान कजª म¤ डूबे हòए है। सूदखोर महाजन िकसानŌ का अनेक ÿकार से शोषण
कर रहे ह§। सेठ कÐलू कहता है- “कजª कì शतŎ के अनुसार पाँच वषª तक Łपया न अदा कर
पाने कì हालत म¤ रेहन रखी चीज कजªदाता कì हो जाती है। अब संतोषी कì जमीन पर मेरा
अिधकार है।” संतोषी कì यह पीड़ा समú िकसानŌ कì पीड़ा है जो सूदखोर साहóकारŌ के
शोषण कì अिवÖमरणीय गाथा कहती है।
इस ÿकार ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िविभÆन पाýŌ के संवादŌ से ऐसे अनेक ŀĶांत है जो
कथोपकथन कì ŀिĶ से इस कृित को समृĦ बनाते है। कथोपकथन िबÐकुल नदी कì
अिवरल धार के समान सतत ÿवाहमान है। नाटक म¤ िनरिहत कथोपकथन या संवादŌ का
अÅययन करने के उपराÆत यह कहा जा सकता है िक कथोपकथन कì ŀिĶ से यह नाटक
अÂयÆत सफल, समृĦ और साथªक नाटक है।
५.३ सारांश सारांश के łप म¤ कहा जा सकता है िक ‘काला पÂथर’ नाटक úामीण पåरवेश कì कथा म¤
िकसानŌ के साथ होनेवाले शोषण, अÆयाय का अहम दÖतावेज है। नाटककार úाम समाज म¤
िकसानŌ, मुजदूरŌ, िदन-दुिखयŌ के साथ शोषण कì बात संवादŌ के माÅयम से इतनी
सरलता, सरसता, सजीवता से हमारे सामने ÿÖतुत करने का सफल ÿयास िकया है।
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
36 ५.४ लघू°रीय ÿij ÿ.१ नाटक कì मु´य नाियका कौन है?
उ. पुिनया है ।
ÿ.२ “जाओगी यहाँ से िक उठाऊ जूता। अभी सारे ल¸छन उतर जाय¤गे।” यह कथन
िकसका है।
उ. कÐलू सेठ का ।
ÿ.३ नाटक का मु´य खल पाý कौन है?
उ. कÐलू सेठ ।
ÿ.४ सरपंच के झोले म¤ िकस रंग का पÂथर पहले से था?
उ. काले रंग का ।
ÿ.५ साधु कÐलू सेठ के ऊपर से काली छाया भगाने के िलए पहला उपाय ³या बताता
है?
उ. कÐलू सेठ को जूते से मारकर ।
५.५ दीघō°री ÿij ÿ. १ ‘काला पÂथर’ नाटक कथोपकथन पर ÿकाश डािलए ।
ÿ. २ ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िनिहत संवादŌ कì िववेचना कì िजए
ÿ. ३ कथोपकथन कì ŀिĶ से ‘काला पÂथर’ नाटक के महßव पर ÿकाश डािलए।
५.६ संदभª úंथ १. काला पÂथर – डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’
२. माधवी - भीÕम साहनी
3. ňुवÖवािमनी – जयशंकर ÿसाद
*****
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‘काला पÂथर’ नाटक: समÖयाएँ एवं उĥेÔय
इकाई कì łपरेखा
६.० इकाई का उĥेÔय
६.१ ÿÖतावना
६.२ ‘काला पÂथर’ नाटक कì समÖयाएँ एवं उĥेÔय
६.३ सारांश
६.४ लघू°रीय ÿij
६.५ दीघō°री ÿij
६.६ संदभª úंथ
६.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के मु´य लàय यह है िक ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िचýांिकत समÖयाओं पर
गंभीरता से िवचार िकया जाए, साथ ही नाटक के मूल उĥेÔय कì भी िवÖतृत łप से गहन
चचाª कì जा सके।
६.१ ÿÖतावना मनुÕय िजस पåरवेश से जुड़ा होता है उससे संबंिधत बाĻ और आंतåरक समÖयाओं से
िघरा रहता है। हर Óयिĉ के जीवन म¤ कोई न कोई समÖया अवÔय रहती है। इन समÖयाओं
से जूझनेवाला Óयिĉ हर समाज, हर वगª, हर जाित, हर सÌÿदाय म¤ है। इस नाटक म¤ ÿÂयेक
पाý अपनी-अपनी समÖयाओं से जूझते नजर आते ह§ खासतौर पर िकसान, ®िमक वगª
और िľयाँ कì समÖयाएं। अपनी िजÆदगी म¤ लगातार संघषª और पåर®म करते हòए अपनी
छोटी-छोटी इ¸छाओं-आकां±ाओं को पूरा करने म¤ असमथª नजर आते ह§। नाटक म¤ कुछ
ऐसे पाý है िजÆहŌने अपनी Öवाथªपरता कì सारी पराकाķाएँ, सारी हद¤ पार कर दé, इन
तमाम पाýŌ के जीवन से जुड़ी समÖयाओं को नाटक म¤ उभारना ही नाटककार का मु´य
उĥेÔय है।
६.२ ‘काला पÂथर’ नाटक कì समÖयाएँ एवं उĥेÔय ‘काला पÂथर’ नाटक सन् २०१२ म¤ ÿकािशत डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ का úामीण
समÖयाओं पर केिÆþत नाटक है। गाँवŌ के गरीब िकसान कजª म¤ डूबे हòए है। सूदखोर महाजन
िकसानŌ का नाना ÿकार से शोषण कर रहे है। िकसान हर तरफ से लाचार, मजबूर, शोिषत
है। शासन तंý भी ĂĶाचार म¤ डूबा हòआ है और शोषक वगª के साथ खडा नजर आ रहा है।
नाटक म¤ हमारे úामीण जीवन से स¸चाई, ईमानदारी, नैितकता, Æयाय, समानता जैसे सारे
नैितक मूÐय नदारद हो रहे है। इस नाटक म¤ गाँव कì तमाम िवसंगितयŌ, िवþूपताओं, munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
38 िवकृितयŌ और िवडÌबनाओं को उजागर करता है। भारतीय समाज म¤ जहाँ एक तरफ
िकसानŌ-मजदूरŌ कì जजªर आिथªक अवÖथा िदन-ÿितिदन बद से बदतर होती जा रही है,
तो वहé गाँव म¤ िनÌन जाित के लोगŌ के जीवन म¤ कुछ िवशेष सुधार नहé आया है।
भारत देश के úामीण जीवन म¤ देश कì आधी आबादी कही जाने वाली िľयŌ-लड़िकयŌ कì
दशा अÂयंत ýासदपूणª है। इस नाटक म¤ úामीण ľी जीवन म¤ ÓयाĮ तमाम समÖयाओं
मसलन बाल-िववाह, अनमेल िववाह, दहेज ÿथा, पÂनी ÿताड़ना, ľी दासता जैसे अनेक
मुĥŌ को उठाया गया है। मिहलाओं को भोग िवलास कì वÖतु समझा गया ह§। मिहलाओं को
दासतुÐय समझा जाता है। नाटककार ने तÂकालीन जीवन-जगत से जुड़ी अनेक समÖयाओं
को इस नाटक म¤ िचिýत िकया है। साथ ही वह एक ऐसे समाज कì संरचना करने कì
पåरकÐपना करते है, िजसम¤ िकसी तरह का कोई भेदभाव-अÆतर न हो, कोई िकसी का
शोषण न कर¤, जाितगत-वगªगत, िलंगगत जैसे तमाम तरह के भेदभाव समाĮ हो जाए। समाज
म¤ सभी को समान Æयाय िमले, समाज से ĂĶाचार समाĮ हो जाय¤।
‘काला पÂथर’ नाटक का मु´य उĥेÔय िकसानŌ के जीवन कì समÖयाओं, उनके शोषण से
संबंिधत समÖयाओं और उनकì अितशय दीनता-हीनता से सबको पåरिचत कराना है। हमारे
देश का िकसान रात-िदन जी तोड़ पåर®म करके अÆन उपजाता है, सबको अÆन देता है,
खुद कजª तले दबा रहता है। वह अपनी मूलभूत आवÔयकताओं को पूरा करने म¤ असमथª
रहता है। इससे बड़ी िवडंबना भला और ³या हो सकती है। गाँव के सूदखोर महाजन
िकसानŌ कì मानिसक -शारीåरक-आिथªक शोषण कì सारी पराकाķाएँ पार कर चुके है। इसी
संदभª म¤ कÐलू सेठ संतोषी से कहता है –“अब म§ ºयादा देर इंतजार नहé कर सकता। तुÌह¤
जमीन रेहन रखे हòए पाँच वषª से अिधक हो गया है। यिद कोई कजªदार पैसा नहé पटाता तो
िनयम के अनुसार पाँच वषª बाद रेहन रखी हòई चीज मेरी हो जाती है िफर म§ उसे बेचूँ या
कुछ भी कłँ। इसिलए तुÌहारी जमीन पर अब मेरा अिधकार है। अब तुम उस पर खेती
वैगरह नहé कर सकोगे।”
‘काला पÂथर’ नाटक म¤ ľी-जीवन से जुड़ी अनेक समÖयाओं को अÂयंत यथाथª परकता,
रोचकता और संवेदना के साथ रखा गया है । इस नाटक म¤ िľयŌ के साथ हजारŌ वषŎ से
समाज म¤ हो रहे अÂयाचारŌ को दशाªया गया है। महाजन कÐलू सेठ के माÅयम से मिहलाओं
पर होने वाले अÂयाचारŌ को िदखाया गया है। कÐलू सेठ कì पÂनी िवमला अपने ĂĶ पित
को जब स¸चाई, ईमानदारी के मागª पर चलने को कहती है तो कÐलू सेठ अÂयंत बेŁखी,
अभþता और आøोश म¤ आकार बार-बार कहता है- “देखो मुँह पर लगाम दो, नहé तो मेरा
पारा भड़क जायेगा” यही उसकì आवाज को दबाने, कुचलने हेतु कÐलू सेठ कहता है-
“जाओगी यहाँ से िक उठाऊँ जूता। अभी सारे ल¸छन उतार जाएंगे।” “बहòत िदनŌ से िपटाई
नहé हòई है। इसी से िदमाग चढ़ गया है।” इस ÿकार नाटककार डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ Ĭारा
समÖत भारतीय समाज Ĭारा मिहलाओं पर होनेवाली अÂयाचारŌ कì कड़वी स¸चाई सामने
रखने का सफल ÿयास िकया है।
नाटककार डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’ का मानना है िक समाज म¤ हर तरह के शोषण का िवरोध
करने के िलए उस पूरे वगª को एकजुट हो कर संघषª करना होगा, तभी समाज कì िÖथित म¤
पåरवतªन होगा। नाटक म¤ शासन तंý को भĶाचार म¤ डूबा हòआ िदखाया गया है, वह महाजन munotes.in
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39 का साथ दे रहा है। úाम पंचायत भी अपना िहत साधने म¤ लगी है। उसी का फायदा उठाकर
महाजन िकसानŌ कì मजबूरी का भरपूर फायदा उठाते है। ऐसी िÖथित म¤ गाँव के कुछ
युवक, ĂĶाचार के िवरोध म¤ खड़े हो जाते ह§ और शोिषत लोगŌ को जगाने का ÿयÂन करते
है। इस ÿकार इस नये जागरण से ĂĶ ÓयवÖथा के लोग भयभीत एक ऐसे सूý म¤ पूरे समाज
को बाँधने कì पåरकÐपना करता है जहाँ कहé िकसी तरह कì असमानता, अÆयाय,
अÂयाचार, शोषण, आतंक, अंधिवĵास न हो।
अत: इन तÃयŌ के आधार पर यह कहा जा सकता है िक ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िकसानŌ
के जीवन कì ýासदी कì िजतनी बरीिक से, सूàमता से अिभÓयिĉ ÿदान कì है, उतनी ही
सूàमता से नाटककार ने समाज कì अÆय समÖयाओं को भी उकेरा है। ‘काला पÂथर’
नाटक म¤ úामीण समाज कì समÖयाओं को नाटककार ने समाज का Åयान आकृĶ कराया
नाटककार पाठकŌ को सजग, जागłक बनाना ही मु´य उĥेÔय है।
६.३ सारांश सारांशत: ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िकसानŌ-®िमकŌ के जीवन कì हर समÖयाओं को परत-
दर-परत उधारते हòए िदखाया गया है। नाटककार िकसानŌ -®िमकŌ के साथ सिदयŌ से हो रहे
अनवरत शोषण कì ýासदी को इस ÿकार हमारे सम± रखते ह§ िक उनके एक-एक चåरý कì
तÖवीर शोषण को पूरा ŀÔय हमारे सामने उपिÖथत हो जाता है। नाटककार समाज के
भेदभाव के अिभशाप को हमेशा-हमेशा के िलए िमटाकर, समानता के धरातल पर एक
ÖवÖथ समाज के िनमाªण कì कÐपना करता है। लोगŌ के Ńदय म¤ Âयाग, सेवा, कŁणा, दया
जैसी सĬृि°यŌ का िवकास हो। अत: आवÔयक है िक धन-दौलत के बजाय मानवीय सģुणŌ
को अपनाया जाए, तभी समाज म¤ पåरवतªन संभव होगा।
६.४ लघू°रीय ÿij ÿ.१ कÐलू सेठ अपनी चार लड़िकयŌ िक शादी कैसे लड़कŌ से करता है?
उ. िĬजहा लड़कŌ से ।
ÿ.२ पुिनया िक माँ को कौन-सी बीमारी हो गई थी?
उ. लकवा मार िदया था ।
ÿ.३ पुिनया के माँ के अनुसार ÿभात का िववाह पुिनया से ³यŌ नहé हो सकता था?
उ. दूसरी जाित का होने के कारण ।
ÿ.४ “पंचायतवाले सब ĂĶ ह§, थोड़े से पैसे और शराब िक बोतल म¤ िबक जाते है।” यह
कथंन िकसका है?
उ. संतोषी िकसान का ।
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40 ÿ.५ पलटू कÐलू सेठ के पास ³या रखकर उधार लेता है।
उ. चाँदी िक पायल ।
ÿ.६ पुिलसवाला कÐलू सेठ के यहाँ िकस Âयोहार िक Âयोहारी लेने आता है?
उ. दीवाली िक ।
६.५ दीघō°री ÿij ÿ.१ ‘काला पÂथर’ नाटक म¤ िनिहत समÖयाओं पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.२ ‘काला पÂथर’ नाटक का उĥेÔय िलिखए ।
ÿ.३ ‘काला पÂथर’ नाटक िक समÖयाओं पर ÿकाश डालते हòए ÖपĶ कìिजए िक
नाटककार को अपने उĥेÔय म¤ पूरी सफलता ÿाĮ हòई है ?
६.६ संदभª úंथ १. काला पÂथर - डॉ. सुरेश शु³ल ‘चÆþ’
२. नयी सदी: नये नाटक - डॉ. अजुªन जानू घरत
३. माधवी – भीÕम साहनी
४. ňुवÖवािमनी - जयशंकर ÿसाद
*****
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41 ७
एकांकì: अथª, पåरभाषा, Öवłप एवं िवकास
इकाई कì łपरेखा
७.० इकाई का उĥेÔय
७.१ ÿÖतावना
७.२ एकांकì का अथª, पåरभाषा
७.३ एकांकì Öवłप
७.४ एकांकì िवकास
७.५ सारांश
७.६ लघु°रीय ÿij
७.७ दीघō°री ÿij
७.८ संदभª úंथ
७.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे।
एकांकì के अथª को समझने हेतु ।
एकांकì कì पåरभाषा को समझने हेतु ।
एकांकì के Öवłप को ÖपĶ करने हेतु ।
एकांकì के िवकास को समझने हेतु ।
७.१ ÿÖतावना िहंदी नाटक पूण łप से एक नयी िवधा है । आधुिनक कहानी कì भाँित िहंदी एकांकì नाटक
भी पिIJम से ÿेåरत है । कुछ आलोचकŌ के मत म¤ एकांकì को पिIJम से जोडना बहòत ठीक
नहé है, ³यŌिक łपक और उपłपक के कुछ भेद यथा – Óयायोग, भाण, ÿहसन, वीथी,
सĘक, िवलािसका, ÿकरिणका आिद एक ही अंक के थे । अत: भारत म§ एकांकì कì परंपरा
रही है । भास का ‘उłभंग’ और ‘मÅयम Óयायोग’ एकांकì नाटक के िनकट है । िकÆतु तुलना
करने पर आधुिनक एकांकì और संÖकृत के łपक म¤ ÖपĶ अंतर िदखता है । कथावÖतु
और िशÐप-दोनŌ ŀिĶयŌ से łपक और एकांकì म¤ अंतर है । आधुिनक एकांकì कì मूल
ÿेरणा जीवन का ĬंĬ और संघषª है । मानिसक िवĴेषण को आधार बनाकर आधुिनक
एकांकì नाटक जीवन कì अिभÓयिĉ को अपना मु´य उĥेÔय मानता है । संÖकृत के łपक
म¤ संघषª या ĬंĬ का ÿाय: अभाव था । munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
42 ७.२ एकांकì का अथª, पåरभाषा िहÆदी एकांकì महÂवपूणª और पूणª łप से एक नयी िवधा है । आधुिनक कहानी कì भाँित
िहÆदी एकांकì पर भी पिIJम का ÿभाव है । भारत म¤ एकांकì कì परंपरा रही है । आधुिनक
एकांकì कì मूल ÿेरणा जीवन का ĬÆĬ और संघषª है । मानिसक िवĴेषण को आधार
बनाकर आधुिनक एकांकì जीवन कì अिभÓयिĉ को अपना मु´य उĥेÔय मानता है ।
संÖकृत के łपक म¤ संघषª या ĬÆĬ का ÿाय: अभाव था । एकांकì का उद्भव एवं िवकास
पिIJम म¤ भी नया ही है । पिIJम म¤ ÿाचीन काल म¤ बडे-बडे नाटक ही खेले जाते थे । नाटक
के बीच ŀÔय–पåरवतªन के िलए समय िनकालने के िलए, छोटे-छोटे नाटक खेले जाते थे
िजÆह¤ “कटªन र¤जसª” कहते थे । ऐसे नाटकŌ का Öवतंý िवकास वहाँ भी नहé हो पाया । आप
सोच रहे हŌगे िक एकांकì का िवकास ³यŌ हòआ? इसका उ°र है – समय कì कमी के कारण
। िवĵ युÅद के बाद आधुिनक ²ान – िव²ान के युग म¤ मनुÕय के पास समय कì कमी हो
गयी । जीवन कì भाग–दौड म¤ वह कम-से-कम समय म¤ अिधक-से-अिधक कायª करना
चाहता है, यहाँ तक िक मनŌरजन के िलए भी वह कम-से-कम समय देना चाहता है । वतªमान
युग म¤ Óयिĉ कì ÓयÖतता और समय के अभाव के कारण अनेक ऐसी िवधाओं का िवकास
हòआ है जो आकार म¤ लघु ह§ । एकांकì का िवकास भी इसी कारण हòआ है । ÿिसÅद
एकांकìकार डॉ. रामकुमार वमाª के अनुसार “एकांकì म¤ एक घटना होती है और वह
नाटकìय कौशल से चरम सीमा तक पहॅुंचती है|” एकांकì म¤ एक सÌपूणª कायª एक ही Öथान
और समय म¤ होना चािहए । एकांकì म¤ विणªत कथावÖतु अलग-अलग ÖथानŌ एवं कालŌ म¤
घिटत नहé होनी चािहए । अिधकांश एकांकì एक ही अंक और एक ही ŀÔय म¤ समाĮ हो
जाते ह§, िजससे ÿभाव कì एकता एवं घटनाओं कì एकसूýता बनी रहती है । नाटक के
समान एकांकì म¤ भी छ: तÂव होते है । १) कथावÖतु २) चåरý-िचýण ३) पåरवेश
४)संरंचना िशÐप ५) रंगमंचीयता और ६) ÿितपाī | लेिकन नाटक के समान एकांकì म¤ न
तो कथावÖतु के िवÖतार का अवकाश रहता है और न ही पाýŌ कì बहòलता का । ऐसा भी
नहé िक नाटक को छोटा करके एकांकì बना िलया जाए । एकांकì सवªथा Öवतंý िवधा है ।
नाटक म¤ घटनाओं कì बहòलता रहती है । नाटक म¤ अनेक अंक होते ह§, िकंतु एकांकì म¤ एक
ही अंक होता है। एकांकì का कथानक भी इितहास, राजनीित, पुराण, लोकतंý, समाज या
चåरý िवशेष से िलया जा सकता है । उसका संबंध जीवन कì िकसी एक घटना या पहलू से
होता है । इसके कथानक के मु´य पाँच भाग होते है - १) ÿारंभ २) नाटकìय Öथल ३) ĬंĬ
४) चरम सीमा ५) पåरणित । उदाहरण के िलए हम डॉ. रामकुमार वमाª के एकांकì “दीपदान”
को ल¤ । इसम¤ कथानक एक महÂवपूणª घटना पर आधाåरत है – कथानक का िवÖतार इसम¤
नही है । पÆना धाय Ĭारा िच°ौड़ के राजकुमार कì जीवन-र±ा के िलए अपने पुý को
बिलदान करना ही इसकì कथावÖतु है, पर इसे नाटकìय ढंग से ÿÖतुत िकया गया है।
कथानक का ÿारंभ नाटकìय ढंग से तुलजा भवानी कì पूजा के अवसर पर होता है । शामली
का आकर पÆना धाय से यह कहना िक िसपािहयŌ ने महल को चारŌ ओर से घेर िलया है,
नाटकìय Öथल है।
कथानक म¤ ĬंĬ उस समय आता है, जब पÆना कॅुंअर कì जगह अपने पुý चंदन को सुलाने
कì बात सोचती है । कथानक म¤ रनवीर Ĭारा चंदन पर तलवार से आघात करना चरम सीमा
है । munotes.in
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एकांकì: अथª, पåरभाषा, Öवłप एवं िवकास
43 एकांकì म¤ िकसी कायª-िवशेष का ÿधानता रहती है । यह कायª िकसी काल -िवशेष म¤ घिटत
होता है, और इसके घटने का कोई Öथान नहé होता है । इÆह¤ देश-काल और वातावरण
अथवा पåरवेश का और भी अिधक महßव होता ह§ ।
७.३ एकांकì का Öवłप एकांकì ने नाटक से िभÆन अपना Öवतंý Öवłप ÿितिķत कर िलया है। एकांकì बड़े नाटक
कì अपे±ा छोटा अवÔय होता है परÆतु वह उसका संि±Į łप नहé है । बड़े नाटक म¤ जीवन
कì िविवधłपता, अनेक पाý, कथा का सांगोपांग िवÖतार, चåरý –िचýण कì िविवधता,
कुतूहल कì अिनिIJत िÖथित, वणªनाÂमकता कì अिधकता, चरम सीमा तक िवकास तथा
घटना िवÖतार आिद के कारण कथानक कì गित मÆद होती है, जबिक एकांकì म¤ इसके
िवपरीत, जीवन कì एकłपता कथा म¤ अनावÔयक िवÖतार कì अपे±ा, चåरý-िचýण कì
तीĄ और संि±Âप łप-रेखा, कुतूहल कì िÖथित, ÿारÌभ से ही Óयंजकता कì अिधकता और
ÿभावशीलता, चरम सीमा तक िनिIJत िबÆदु म¤ क¤þीयकरण तथा घटना–Æयूनता आिद के
कारण कथानक कì गित ि±ÿ होती है, सदगुłशरण अवÖथी का कथन है िक जीवन कì
वाÖतिवकता के एक Öफुिलंग को पकडकर एकांकìकार उसे ऐंसा ÿभावपूणª बना देता है िक
मानवता के समूचे भाव जगत को झनझना देने कì शिĉ उसम¤ आ जाती है । िहÆदी एकांकì
इतना लोकिÿय हो उठा है िक बडे नाटकŌ कì र±ा करने के िलए Óयावसाियक रंग शालाओ
ने उसे अपने यहाँ से िनकालना शुł कर िदया, लेिकन उसम¤ ÿयोग और िवकास कì
संभावनाओं को देखकर पिIJम के कई देशŌ म¤ अÓयावसाियक और ÿयोगाÂमक रंगमंचीय
आÆदोलनŌ ने उसे अपना िलया । लंदन, पेåरस, िशकागो, Æयूयॉकª इÂयािद देशŌ ने इस नए
ढंग के एकांकì को तथा उसके रंगमंच को आगे बढाया है, इसके अितåरĉ एकांकì नाटक
को पिIJम के अनेक महान सÆमािनत लेखकŌ का बल भी िमला है । रंगमंचीय आंदोलनŌ
और इन लेखकŌ के सिÌमिलत एवं अदÌय ÿयोगाÂमक साहस और उÂसाह के फलÖवłप
आधुिनक एकांकì सवªथा नई Öवतंý और सुÖपĶ िवधा के łप म¤ ÿितिķत हòई है । उनकì
कृितयŌ के आधार पर एकांकì नाटकŌ कì सामाÆय िवशेषताओं का अÅययन भी िकया जा
सकता है । पिIJम म¤ एकाकì २० वé शताÊदी म¤, िवशेषत: ÿथम महायुÅद के बाद, अÂयÆत
ÿचिलत और लोकिÿय हòआ । िहंदी और अÆय भारतीय भाषाओं म¤ उसका Óयापक ÿचलन
इस शताÊदी के चौथे दशक म¤ हòआ । इसका यह अथª नहé िक एकांकì सािहÂय कì सवªथा
आिभजाÂयहीन िवधा ह§ । पूवª और पिIJम दोनŌ के नाटय सािहÂय म¤ उसके िनकटवतê łप
िमलते है । संÖकृत नाटयशाľ म¤ नायक के चåरत, इितवृ°, रस आिद के आधार पर łपकŌ
और उपłपकŌ के जो भेद िकए गए उनम¤ से अनेक को डॉ. कìथ ने एकांकì नाटक कहा है ।
इस ÿकार ‘दशłपक’ और ‘सािहÂयदपªण’ म¤ विणªत Óयायोग, ÿहसन, भाग, वीथी, नािटका,
गोķी, सĘक, नाटयरासक, ÿकािशका, उÐलाÈय, काÓय ÿ¤खण, ®ीगिदत, िवलािसका,
ÿकरिणका, हÐलीश आिद łपकŌ और उपłपकŌ को आधुिनक एकांकì के िनकट संबंधी
कहना अनुिचत न होगा । ‘सािहÂयदपªण’ म¤ ‘एकाकं’ शÊद का ÿयोग भी हòआ है । एकांकì म¤
जहाँ एक ओर ऐितहािसक कथानकŌ का सहारा िलया गया, वही दूसरी ओर सामािजक
समÖयाओं के िलए तÂकालीन सामािजक यथाथª को िवषय बनाया गया । इितहास आधाåरत
एकांकì नाटकŌ म¤ ÿाचीन इितहास और सािहÂय के उन ÿसंगŌ को चुना गया िजनसे देश कì
ÿाचीन गåरमा का पता लगे तथा साहस, बिलदान, शौयª और Âयाग जैसे सģुणŌ को munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
44 जनमानस म¤ उÐलेिखत िकया जा सके । रामकुमार वमाª के ‘िशवाजी’, ‘औरंगजेब कì
आिखरी रात’, ‘चाłिमýा’, ‘िवøमािदÂय’, ‘पृÃवीराज कì आँखे’, जगदीश चंþ माधुर का
‘किलंग िवजय’, डाँ. सÂय¤þ के ‘कुणाल’, चतुरसेन के ‘पÆनाधाय’, ‘हाडा रानी’ तथा हåरकृÕण
ÿेमी कृत ‘मान का मंिदर’, ‘मालव ÿेम’ आिद एकांकì नाटको म¤ इितहास के उन ÿसंगो को
कथानक का िवषय बनाया गया जो तÂकालीन पåरिÖथितयŌ म¤ राÕůीय चेतना को मजबूत
बना सक¤ । चौथे और पाँचवे दशक म¤ समÖयामूलक िहÆदी एकांकì नाटक अिधक िलखे गए।
पाIJाÂय सËयता से ÿभािवत भारतीय समाज म¤ नई समÖयाएँ उठ खडी हòई । एक ओर
ÿाचीन łिढयŌ और माÆयताओं के ÿित िवþोह भाव जाग रहा था, तो दूसरी ओर नारी के
Öवतंý ÓयिĉÂव, ÿेम और िववाह कì समÖयाएँ तथा िवकृत कुठाएँ समाज और Óयिĉ को
घेरने लगी थी । यīिप १९३६ म¤ भुवनेĵर का ‘कारवाँ’ एकांकì संúह ÿकािशत हो चुका था,
िजसम¤ समाज कì कुंठाजÆय िवकृितयŌ और यौन समÖया को उभारा गया था । भुवनेĵर पर
इÊसन और बनाªडª शॉ का ÿभाव पडा । भुवनेĵर सवªथा नई तकनीक और ŀिĶ लेकर िहÆदी
एकांकì के ±ेý म¤ आए । राÕůीय आÆदोलन और गांधीवादी िवचारधारा के ÿभाव से अिहंसा,
साÌÿदाियकता , जाित उÂथान जैसी समÖयाओं के समाधान म¤ भी एकांकì नाटकŌ का
सृजन िकया गया ।
इस युग के एकांकìकारŌ ने समाज कì सूàम कमजोåरयŌ को देखा, समझा, पहचाना और
उसका समाधान ÿÖतुत िकया । उदयशंकर भĘ ने ‘सेठ लाभचंद’ ‘दस हजार’, ‘उÆनीस सौ
प§तीस’ आिद एकांिकयŌ म¤ मÅयवगêय बाĻ आडÌबरŌ पर चोट कì है । ‘नेता’ एकांकì म¤
उÆहोने Öवाथê राजनीितक ÓयिĉयŌ पर गहरा Óयंµय िकया है । उप¤þनाथ अÔक ने अपने
‘जोक’, ‘तौिलए’, ‘सूखी डाली’ जैसे एकांिकयŌ म¤ मÅयवगêय पåरवारŌ के पाýŌ कì
मनोवै²ािनक और आिथªक - सामािजक िÖथितयŌ को हाÖय Óयंµय के माÅयम से ÿÖतुत
िकया है ।
७.४ एकांकì का िवकास आधुिनक िहÆदी सािहÂय कì िजन गīाÂमक िवधाओं का िवकास िवगत एक शताÊदी म¤
हòआ है, उनम¤ एकांकì का भी महßवपूणª Öथान है । िकÆतु ऐितहािसक ŀिĶ से, िहÆदी
सािहÂय म¤ इसका उĩव उÆनीसवé शताÊदी के अंितम चतुथाªश म¤ माना जाता है| यिद इसके
संवादाÂमक Öवłप एवं एक नाटय िवधा के अिÖतÂव के पåरÿेàय म¤ िवचार िकया जाय तो
इसके सूý हम¤ अÂयंत ÿाचीन समय से िमलने लगते है ।
आधुिनक एकांकì वै²ािनक युग कì देन है । िव²ान के फलÖवłप मानव के समय और
शिĉ कì बचत हòई है । िफर भी जीवन संघषª म¤ मानव दौड-धूप अÓयाहत जारी है । जीवन
कì ýÖतता और ÓयÖतता के कारण आधुिनक मानव के पास इतना समय नहé है िक वह
बड़े-बड़े नाटकŌ, उपÆयासŌ, महाकाÓयŌ आिद का संपूणªतः रसाÖवादन कर सके और
इसिलए गीत, कहानी, एकांकì आिद सािहÂय के लघुłपŌ को अपनाया जा रहा है । िकÆतु
एकांकì कì लोकिÿयता का एकमाý कारण समयाभाव ही नहé है । भोलानाथ ितवारी के
शÊदŌ म¤ “यह नहé कहा जा सकता िक चूंिक हमारे पास बड़ी-बड़ी सािहिÂयक रचनाओं को
पढ़ने के िलए समय नहé है, इसिलए हम गीत, कहानी, एकांकì आिद पढ़ते है । बात यह है
िक हम जीवन कì महßवपूणª घटनाओं और समÖयाओं आिद को øमबÅद एवं समú łप से munotes.in
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एकांकì: अथª, पåरभाषा, Öवłप एवं िवकास
45 भी अिभÓयĉ देखना चाहते ह§ और उन अिभिÓयिĉयŌ का Öवागत करते ह§, मगर साथ ही
साथ िकसी एक महßवपूणª भावना, िकसी एक उīीĮ ±ण, िकसी एक असाधारण एवं
ÿभावशाली घटना या घटनांश कì अिभÓयिĉ का भी Öवागत करते ह§ । हम कभी अनिगनत
फूलŌ से सुसिºजत सलोनी वािटका पसÆद करते है और कभी भीनी सुगिÆध देने वाली
िखलने को तैयार नÆहé सी कली । दोनŌ बाते ह§, दो łिचयाँ है, दो पृथक िकÆतु समान łप
से महßवपूणª ŀिĶकोण ह§, समय के अभाव या अिधकता कì इसम¤ कोई बात नहé ।
एकांकì ने नाटक से िभÆन अपना Öवतंý łप ÿितिķत कर िलया है । एकांकì बडे नाटक कì
अपे±ा छोटा अवÔय होता है, परÆतु वह उसका संि±Į łप नहé है । बडे नाटक म¤ जीवन कì
िविवधłपता, अनेक पाý, कथा का साँगोपांग िवÖतार, चåरý िचýण कì िविवधता, कुतूहल
कì अिनिIJत िÖथित, वणªनाÂमकता कì अिधकता चरम सीमा तक िवकास तथा घटना-
िवÖतार आिद के कारण कथानक कì गित मÆद होती है, जबिक एकांकì म¤ इसके िवपरीत,
जीवन कì एकłपता, कथा म¤ अनावÔयक िवÖतार कì अपे±ा, चåरý-िचýण कì तीĄ और
संि±Į łप-रेखा, कुतूहल कì िÖथित, ÿारÌभ से ही Óयंजकता कì अिधकता और
ÿभावशीला, चरम सीमा तक िनिIJत िबÆदु म¤ केÆþीयकरण तथा घटना-Æयूनता आिद के
कारण कथानक कì गित ि±ÿ होती है सģुł शरण अवÖथी का कथन है िक ‘जीवन कì
वाÖतिवकता के एक Öफुिलंग को पकडंकर एकांकìकार उसे ऐसा ÿभावपूणª बना देता है िक
मानवता के समूचे भाव जगत को झनझना देने कì शिĉ उसम¤ आ जाती है।’
ऐितहािसक ŀिĶ से िहÆदी-एकांकì के िवकास-øम को िनÌनिलिखत ÿमुख काल – खÁडŌ मे
िवभािजत िकया जा सकता है:
१) भारत¤दु – िĬवेदी युग (१८७५-१९२८)
२) ÿसाद - युग (१९२९-१९३७)
३) ÿसादो°र-युग (१९३८-१९४७)
४) ÖवातंÞयो°र युग (१९४८ से अब तक)
वाÖतव म¤ ÿारिÌभक एकांकì-ÿयोगŌ म¤ भी भटकती हòई नाटय-ŀिĶ ही ÿमुखता से उभरकर
सामने आई है, िकÆतु िवकास कì ŀिĶ से उÆह¤ नकारा नहé जा सकता ।
१) भारतेÆदु - िĬवेदी युग:
िजस ÿकार भारतेÆदु िहÆदी म¤ अनेकांकì नाटकŌ को िलखने वालŌ म¤ ÿथम नाटकाकार माने
जाते ह§, उसी ÿकार िहÆदी म¤ सबसे पहला एकांकì भी उÆहŌने ही िलखा । यīिप इस
सÌबÆध म¤ िवĬानŌ म¤ मतभेद अवÔय है । िफर भी भारतेÆदु-ÿणीत ‘ÿेमयोिगनी’ (१८७५ई.)
से िहÆदी एकांकì का ÿारÌभ माना जा सकता है । आलो¸ययुग म¤ िवषयगत ŀिĶकोण को
सामने रखकर सामािजक, राजनीितक, आिथªक्, धािमªक एवं सांÖकृितक ÿवृि°यॉ उभरी ।
समाज म¤ ÿचिलत ÿाचीन परÌपराओं, कुÿथाओं एवं ÖवÖथ सामािजक िवकास म¤ बाधक
रीित-åरवाजŌ को दूर करने का ÿयास उन सामािजक समÖया-ÿधान रचनाओं के माÅयम से
िकया गया । इन एकांकìकारŌ ने जहाँ सामािजक कुरीितयŌ पर हाÖय एवं Óयंµयपूणª ÿहार munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
46 िकये, वहé सामािजक नविनमाªण के िलए भी समाज को ÿेåरत एवं जाúत िकया । इन
रचनाओं के पाý भारतीय जन–जीवन के जीिवत एवं सजीव पाý है, िजनके संवादŌ Ĭारा
भारतीय भþ जीवन म¤ ÿिवĶ पाखÁड एवं Óयिभचार का भÁडाफोड होता है । इस ŀिĶ से
भारतेÆदु रिचत ‘भारत-दुदªशा’, ÿतापनारायण िम® रिचत ‘किलकौतुक łपक’, ®ी-शरण-
रिचत ‘बाल-िववाह’, िकशोरीलाल गोÖवामी-रिचत ‘चौपट चपेट’, राधाचरण गोÖवामी-रिचत
‘भारत म¤ पवन लोक’, ‘बूढ़े मुँह मुहासे’ आिद महßवपूणª रचनाएँ ह§| िजनम¤ धािमªक पाखÁड,
सामािजक łिढयŌ एवं कुरीितयŌ पर तीखे Óयंµय िकये गये ह§ । देवकìनÆदन रिचत ‘किलयुगी
जनेऊ’, ‘किलयुगी िववाह’, राधाकृÕणदास रिचत ‘दुिखनीबाला’, काशीनाथ खýी रिचत
‘बाल िवधवा’ आिद रचनाएं भारतीय नारी के ýÖत िववािहत जीवन का यथाथª िचýण ह§ ।
सामािजक ĂĶाचार का िचýण काितªक ÿसाद खýी-रिचत ‘रेल का िवकट खेल’ म¤ िमलता
है, िजसम¤ रेÐवे िवभाग म¤ åरĵत लेने वालŌ का भÁडाफोड िकया गया है । समाज सुधार कì
परÌपरा के पोषक इन एकांकìकारो के ÿयास के फलÖवłप भारतीय समाज का यथाथª
िचýण समाज के सम± उपिÖथत हòआ तथा इÆहé के Ĭारा जन सामाÆय को नवीन एवं
ÿगितशील िवचारŌ को úहण करने कì ÿेरणा भी िमली । इÆहé के ÿयासŌ का पåरणाम था िक
उपयुªĉ रचनाओं म¤ से कुछ का उÐलेख नाटक के अÆतगªत भी िकया जाता है । वाÖतव म¤ ये
एक अंक के नाटक ही है । एकांकì कì परÌपरा म¤ आते हòए भी इÆह¤ सभी ŀिĶयŌ से पूणª
‘एकांकì’ नहé कहा जा सकता । इनम¤ एकांकì के कुछ तÂव अवÔय दॅूंढे जा सकते ह§ ।
कुल िमलाकर िवचार िकया जाए तो ²ात होगा िक उस काल के एकांकì सािहÂय को ÿेåरत
करने वाली कई नाटय शैिलयाँ थé| (क) संÖकृत कì नाट्य परÌपरा (ख) अंúेजी, बांगला,
पारसी रंगमंच और (ग) लोकनाटक । आलो¸य युग के सभी एकांकìकारŌ ने इÆह¤ आÂमसात्
िकया । इस ÿकार इस युग म¤ परÌपरा के ÿभाव कì ÿधानता रही । नए-नए ÿयोग होते रहे ।
इसिलए कला कì सूàम ŀिĶ इस काल के एकांकìकारŌ म¤ भले न हŌ, पर आधुिनक
एकांिकयŌ के पूवªगामी अवÔय ह§ ।
२) ÿसाद युग:
िहंदी एकांकì के िवकास कì ŀिĶ से िĬतीय युग ÿसाद के युग से माना जाता है। इस संदभª म¤
आधुिनक एकांकì सािहÂय कì ÿथम मौिलक कृित के łप म¤ ÿसाद के ‘एक घॅूंट’ का
उÐलेख िकया जा सकता है । यह रचना सन १९२९ म¤ ÿकािशत हòई । यहé से हम एकांकì
के िशÐप म¤ महßवपूणª पåरवतªन देखते है । ससोþेक के िलए संगीत-ÓयवÖथा, संÖकृत नाट्य
ÿणाली का िवदूषक, Öवगत कथन आिद ÿाचीन परÌपराओं के िनवाªह् के साथ ही Öथल कì
एकता, पाýŌ का मनौवे²ािनक चåरý-िचýण, गितशील कथानक आिद आधुिनक एकांकì
सभी िवशेषताएं ‘एक घूंट’ म¤ िमलती है । अत: भारतेÆदु ने यिद आधुिनक एकांकì कì नीवं
डाली है तो उसे पÐलिवत और पुिÕपत करने का ®ेय ÿसाद जी को ही है ।
वाÖतव म¤ आधुिनक ढंग से िहÆदी एकांिकयŌ का िवकास ÿसाद-युग म¤ ही हòआ, ³यŌिक इस
युग म¤ कुछ महßवपूणª नवीन ÿयोग एकांकì ±ेý म¤ हòए । इस युग म¤ एकांकìकारŌ ने पाIJाÂय
अनुकरण पर नवीन शैली म¤ एकांकì िलखना ÿारÌभ िकया तथा पाIJाÂय टेकनीक को
अपनाया । ÖपĶत: इस युग म¤ एकाकì नाटकŌ म¤ पाIJाÂय नाटय िसÅदाÆतŌ कì ÿेरणा एवं
ÿभाव िवīमान है, पाIJाÂय नाटककारŌ म¤ हैनåरक, इÊसन ,गाÐसवदê तथा बनाªडª शॉ आिद munotes.in
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एकांकì: अथª, पåरभाषा, Öवłप एवं िवकास
47 का ÿभाव इस युग के एकांिकयŌ पर ÿÂय± łप से पडा, तथा इससे एकांकì सािहÂय को
पåरप³वता कì िÖथित पर पंहòचने म¤ सहायता िमली । भारतेÆदु युग म¤ जो एकांकì संÖकृत
पåरपाटी पर िवरंिचत हòआ था, इस युग म¤ आकर वह नवीन łपŌ म¤ िवकिसत होने लगा ।
ÿाचीनता का मोह छोडकर नवीन ढंग के एकांकì नाटक िलखे गये जो कथानक कì ŀिĶ से
मानव जीवन के अÂयिधक िनकट थे । ÿाचीन कथावÖतु म¤ जो कृिýमता होती थी उसके
Öथान पर सामािजक, पाåरवाåरक एवं दैिनक समÖयाओं को एकांकì का िवषय बनाना
ÿारÌभ िकया गया । ये रचनाएं सामािजक यथाथª के िनकट आयé । ÿाचीन कृिýम ÿणाली,
काÓयमय कथोपकथन, ÿाचीन रंगमंच एवं अÖवाभािवकता के बिहÕकार का Öवर इस युग
कì रचनाओं म¤ ÿमुखतया ÿाĮ होता है । नई समÖयाएँ, िवचारधारा एवं गīाÂमक िशĶ भाषा
का ÿयोग ÿारÌभ हòआ ।
इस ÿकार ÖपĶ है िक ÿसाद-युग म¤ भी िविभÆन एकांकìकारŌ ने िविवध ±ेýीय समÖयाओं
एवं पåरिÖथितयŌ के उदघाटन हेतु हाÖय, Óयंµय को महÂव िदया तथा उसका सफलतापूवªक
ÿयोग भी िकया। ÿसाद-युग के उपयुªĉ ÿितभाशाली एकांकìकारŌ के अितåरĉ अÆय अनेक
एकांकìकार भी हòए, िजÆहŌने एकांकì के ±ेý म¤ अपनी रचनाÂमक ÿितभा का पåरचय िदया
है। अनेक एकांकìकारŌ ने अÆय भाषाओं म¤ िलिखत एकांिकयŌ का िहÆदी अनुवाद भी ÿÖतुत
िकया । यīिप इस युग म¤ आधुिनक युग कì अपे±ा िवकास नगÁय कहा जाता है, िकÆतु
इसम¤ संदेह नहé िक ÿसाद-युग म¤ आकर नाटयकला िवषयक माÆयताओं म¤ øांितकारी
पåरवतªन हòए । िनÕकषª łप म¤ कहा जा सकता है िक इस युग ने आगामी एकांकìकारŌ को
एक पुĶ आधारभूिम ÿदान कì िजसम¤ आधुिनक एकांकì सािहÂय और भी Öवतंý łप से
िवकिसत हòआ ।
३) ÿसादो°र-युग:
ÿसादो°र युग िहÆदी एकांकì के िवकास कì तीसरी अवÖथा है| िजसका समय सन १९३८
से १९४७ ई. (Öवतंýता ÿािĮ के पूवª) तक रहा । इसके भी हम दो उप-सोपान मान सकते
ह§।
१) १९३८ ई. से १९४० ई. तक और
२) १९४१ ई. से १९४७ ई. तक ।
ÿथम सोपान अथाªत् इस काल के ÿारिÌभक समय म¤ िहÆदी एकांकì म¤ अपने समय कì
िविभÆन समÖयाओं एवं पåरिÖथितयŌ पर तकª-िवतकª िमलता है । तभी कुछ िविचý एवं
øांितकारी पåरिÖथितयŌ ने िवषय, शैली, और ŀिĶकाण को भी नया मोड िदया । िहÆदी के
अनेक एकांकìकार इस समय पाIJाÂय नाटय शैिलयŌ एवं िवकिसत ÿवृि°यŌ से ÿभािवत
होकर उनका अनुकरण कर रहे थे । इÊसन, िविÐयम आचªर, बनाªडª शॉ आिद ´याित ÿाĮ
पाIJाÂय लेखकŌ का ÿभाव िहÆदी एकांकìकारŌ ने परÌपरागत एकांकì-तÂवŌ का िनवाªह करने
के साथ-साथ अिभनव िशÐप-łपŌ को भी Öथान िदया तथा िवषय कì ŀिĶ से एकांकì को
माý मनोरंजन कì वÖतु न बनाकर उसम¤ मानव जीवन कì सामाियक समÖयाओं एवं
िवłपताओं का िचýण ÿारÌभ कर िदया । अथाªत् इस समय िहÆदी एकांकì आदशªवाद के
एकांगी घेरे से िनकल कर यथाथªवाद कì और बढ़ा । सन १९४० से १९४७ तक का समय munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
48 भारत के िलए आपि°यŌ का समय था । युÅद कì िवभीिषकाएं, बंगाल का अकाल, आजादी
कì हòंकार, िवदेशी शासकŌ के लोमहषªक अÂयाचार, चोरबाजारी आिद इÆहé सात वषō के
भीतर कì ही बाते ह§ । इन सबने हमारे िचÆतन और हमारी कला को ÿभािवत िकया ।
एकांकì भी इनसे अछूता नहé रह सका| कृिýमता कì बजाय Öवाभािवक और सहज जीवन
को ÿितिबिÌबत करने वाले एकांकì कì रचना ÿारÌभ हòई । इन एकांिकयŌ म¤ नाटकìय
अिभनय के Öथान पर सरल अिभनयाÂमक संकेत िदए जाने लगे । इसम¤ परÌपरागत रंगमंच-
िवधान सÌपूणª łप से पåरवितªत हो गया और उससे सहजता, सरलता, Öवाभािवकता एवं
यथाथª के दशªन होने लगे । िशÐप-िवधान के अनावÔयक आडÌबर बÆधन से इस युग का
एकांकì सािहÂय मुĉ हो गया । संकलन ýय को वÖतुत: इसी समय एकांकì का अिनवायª
अंग माना जाने लगा । अब एकांकì केवल सािहिÂयक िवधा ही न रह गयी, अिपतु इस युग म¤
रंगमंच कì Öथापना के साथ उसके Öवłप म¤ भी अÆतर पåरलि±त हòआ। इस ÿकार,
ÿसादो°र युग म¤ पहòंचकर, हर ŀिĶ से एकांकì सािहÂय का एक Öवतंý अिÖतÂव पåरलि±त
होता है । अनेक पाIJाÂय नाटककारŌ जैसे इÊसन, शाँ, गाÐसवदê, चेखव आिद एकांकìकारŌ
कì रचनाओं का िहÆदी अनुवाद ÿारÌभ हो गया था । इन अंúेजी एकांिकयŌ के िहÆदी
अनुवांदो कì माँग रेिडयो के ±ेý म¤ अिधक थी । ÿो. अमरनाथ गुĮ ने ए. ए. िमलन के
एकांकì का िहÆदी अनुवाद िकया । कामेĵर भागªव Ĭारा ‘पुजारी’ शीषªक िहÆदी अनुवाद ÿाĮ
हòआ जो ‘िवशÈस कैिÆडलिÖट³स’ का िहÆदी अनुवाद है| इसके अितåरĉ हैराÐड
िĄगहाऊस कì रचनाओं के भी िहÆदी अनुवाद हòए । इस ÿकार आलो¸य युगीन एकांकìकारŌ
ने िविभÆन नवीन ÿयोगŌ के Ĭारा एकांकì सािहÂय को सिमृÅदशाली बनाया गया ।
७.५ सारांश िहÆदी एकांकì का ÿारंभ जयशंकर ÿसाद के ‘एक घॅूंट’ एकांकì से माना जाता है । इसम¤
एकांकì कì तकनीक का पूरा िनवाªह िकया गया है । िहÆदी म¤ पाIJाÂय एकांकì के िशÐप से
ÿभािवत एकांकì नाटकŌ कì रचना १९३० के दशक से होने लगी । िहÆदी एकांकì परÌपरा
को िवकिसत करने का ®ेय डाँ. रामकुमार वमाª को िदया जाता है । उनका पहला एकांकì
‘बादल कì मृÂयु’ १९३० म¤ ÿकािशत हòआ, इसके बाद वे िनरंतर एकांकì रचना करते रहे ।
िहÆदी एकांकì का उदय उस समय हòआ जब देश म¤ Öवतंýा आÆदोलन पूरी तरह जोरŌ पर
था । एकांकì कì िवषय वÖतु भी अÆय सािहिÂयक िवधाओं कì भाँित अपने समय कì
आवÔयकताओं से ÿेåरत थी । इस दौर के एकांकì नाटकŌ म¤ भी देश ÿेम, राÕůीय भावना
और समाज सुधार आिद को िवषय बनाया गया था । एकांकì म¤ जैसे-जैसे कथानक और
िशÐप म¤ बारीकì आती गई| वैसे-वैसे आदशª के Öथान पर यथाथªवादी ÿवृि°याँ उभर कर
सामने आती गई ।
७.६ लघु°रीय ÿij १. िहÆदी एकांकì का आरंभ िकस रचना से माना जाता है?
उ - एक घूँट ।
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एकांकì: अथª, पåरभाषा, Öवłप एवं िवकास
49 २. िहÆदी एकांकì परंपरा को िवकिसत करने का ®ेय िकसे िदया जाता?
उ - डॉ.रामकुमार वमाª ।
३. बादल कì मृÂयु के एकांकìकार कौन है?
उ - रामकुमार वमाª ।
४. ÿसादो°र युग कì शुŁआत कब से मानी जाती है?
उ - १९३८ से १९४७ ई तक ।
५. जŌक, तौिलए और सूखी डाली एकांकì के रचनाकार कौन ह§?
उ - उपेÆþनाथ अÔक ।
७.७ दीघō°री ÿij १. एकांकì कì पåरभाषा बताते हòए उसके अथª को ÖपĶ कìिजए ।
२. एकांकì के Öवłप िवÖतार को समझाइए ।
३. एकांकì के िवकास को ÖपĶ कìिजए ।
४. ÿमुख एकांकìकारŌ का उÐलेख करते हòए उनकì एकांिकयŌ पर ÿकाश डािलए ।
७.८ संदभª úंथ १. िहंदी एकांकì - िसĦनाथ कुमार
२. समकालीन एकांकì : संवेदना एवं िशÐप - डॉ. रंजना वद¥
३. मानक एकांकì - सं. डॉ. ब¸चन िसंह
४. एकांकì मंच - डॉ. वी. पी. 'अिमताभ'
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50 ८
नाटक और एकांकì म¤ साÌय वैषÌय
इकाई कì Łपरेखा
८.० इकाई का उĥेÔय
८.१ ÿÖतावना
८.२ नाटक और एकांकì
८.३ नाटक और एकांकì म¤ साÌय
८.४ नाटक और एकांकì म¤ वैषÌय
८.५ सारांश
८.६ लघु°रीय ÿij
८.७ दीघō°री ÿij
८.८ संदभª úंथ
८.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे।
• एकांकì का अथª समझने हेतु ।
• जीवनी लेखन म¤ Åयान रखने वाली बातŌ को समझने हेतु ।
• नाटक और एकांकì म¤ साÌय को समझने हेतु ।
• नाटक और एकांकì म¤ वैषÌय को समझने हेतु ।
८.१ ÿÖतावना िहंदी एकांिकयŌ कì परंपरा को िजस तरह अतीत के łपकŌ-उपłपकŌ से जोड़ने का ÿयास
िकया गया है, उसी ÿकार अंúेजी-सािहÂय के इितहास-लेखक भी अंúेजी एकांिकयŌ को
अतीत म¤ दूर तक घसीट ले जाते है। िकÆतु वहाँ भी आधुिनक एकांकì का जÆम बीसवé शती
के पहले दशक म¤ हòआ। कुछ इितहास लेखक १९०३ म¤ लंदन के 'वेÖट एंड िथएटर' म¤ खेले
गए पट-उÂथानक (करटेन-रेज़र) 'बÆदर का पंजा' से एकांकì का जÆम मानते है। पहले
इंµल§ड म¤ यह ÿथा थी िक दशªक ÿे±ागृह म¤ नाटक शुł होने के पहले पहòंच जाते थे। दशªकŌ
के आने के समय तथा नाटक आरंभ होने के बीच के वĉ म¤ छोटे-मोटे नाटकŌ का आयोजन
िकया जाता था। पर 'बÆदर का पंजा' जो पट-उÂथानक के łप म¤ खेला गया था, उसका
ÿभाव दशªकŌ पर इतना अिधक पड़ा िक लोग मूल नाटक देखे िबना ही वापस चले गए। munotes.in
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नाटक और एकांकì म¤ साÌय वैषÌय
51 इसके फलÖवłप पट-उÂथानक कì ÓयवÖथा हटा दी गई। िकÆतु कालांतर म¤ यही करटेन-
रेज़र एकांकì के łप म¤ बदल गया।
रंगमंच पर अिभनय कì जा सकने योµय रचना नाटक कहलाती है। नाटक कì पूणª सफलता
पाýŌ कì सजीवता पर िनभªर करती है। नाटक के िविभÆन तÂवŌ म¤ कथावÖतु, पाý , संवाद,
देशकाल एवं वातावरण, भाषा-शैली आिद को शािमल िकया जाता है। भारतीय नाटकŌ म¤
नायक कथा को कला कì ओर ले जाता है| दशªक उसी के िवकास उÂथान म¤ łिच रखते है।
जबिक पाIJाÂय नाटकŌ म¤ नायक पåरिÖथितयŌ के चø म¤ घूमता रहता है।
८.२ नाटक और एकांकì ८.२.१. िहंदी नाटक का िवकास :
िहंदी म¤ नाटक लेखन कì परंपरा का िवकास भी अÆय गī िवधाओं कì तरह भारतेÆदु युग से
ही ÿारंभ होता है। उससे पहले भी ÿाचीन काल से ही संÖकृत के अनुłप नाटकŌ का सृजन
होता आया है, पर पī łप म¤ ही ये िलखे गए है तथा इनम¤ नाटक के तÂवŌ का भाव है।
भारतेÆदु ने आधुिनक काल म¤ संÖकृत, बांµला तथा अंúेजी से कई नाटकŌ का अनुवाद भी
िकया। िहंदी के ÿथम नाटक के संबंध म¤ भी िवĬानŌ के बीच भी मतभेद है। रीवाँ नरेश
महाराज Ĭारा रिचत 'आनंद रघुनंदन' को ही िहंदी का सवª ÿथम नाटक माना जाता है।
िहंदी नाटकŌ के िवकास øम का अÅययन करने के िलए उसे िनÌनिलिखत कालखंडŌ म¤
िवभĉ िकया जा सकता है।
१) भारतेÆदु युग (सन १८५७ ई. से १९०० ई. तक)
२) ÿसाद युग (सन १९०० ई. से १९५० ई. तक)
३) ÿसादो°र युग (सन १९५० ई. के उपरांत)
१. भारतेÆदु युग:
भारतेÆदु युग म¤ मौिलक और अनूिदत दोनŌ ÿकार के नाटकŌ का ÿचार हòआ। Öवयं भारतेÆदु
ने दोनŌ ÿकार के नाटकŌ कì रचना म¤ अगुवाई कì। िवīासुÆदर, रÂनावली, धनंजय िवजय,
कपूªर मंजरी, पाखÁड िवडंबन, मुþारा±स, दुलªभ बÆधु उनके Ĭारा अनूिदत रचनाए है, और
भारत जननी, वैदकì िहंसा िहंसा न भवित, सÂय हåरIJþ, ®ी चÆþावली नािटका, िवषÖय
िवषमौषधम, भारत दुदªशा, नीलदेवी, अंधेर नगरी, सती ÿताप, ÿेम जोिगनी आिद उनके
Ĭारा रिचत मौिलक नाटक है।
भारतेÆदु के नाटकŌ म¤ सुधारवादी ŀिĶकोण के साथ-साथ राÕůीय चेतना कì अिभÓयिĉ हòई
है तथा युगीन समÖयाओं को जनता तक पहòंचाने कì चेĶा भी कì गई है। अतीत के गौरव एवं
ऐितहािसक ®ेķÂव का ÿितपादन करने का बीजवपन भारतेÆदु युग म¤ ही हòआ था, िजसका
िवकास ÿसाद युगीन नाटकŌ म¤ िदखाई देता है। munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
52 भारतेÆदु काल के अÆय नाटककारŌ म¤ ÿमुख है लाला ®ीिनवासदास, राधाकृÕण दास,
बालकृÕण भĘ, राधाचरण गोÖवामी, गोपालराम गहमरी, िकशोरीलाल गोÖवामी,
ÿतापनारायण िम® आिद| लाला ®ीिनवासदास Ĭारा रिचत रणधीर ÿेममोिहनी तथा
संयोिगता Öवयंवर उ¸च कोिट कì रचनाए है।
भारतेÆदु युग के नाटकŌ म¤ ऐितहािसक, पौरािणक, काÐपिनक कथाओ को िवषय-वÖतु
बनाया गया। समाज सुधार, राÕůीय गौरव, अतीत गौरव के नाटकŌ के माÅयम से दशªको तक
संÿेिषत िकया गया, ÿहसनŌ का मूल उĥेÔय Óयंµय के Ĭारा समाज कì कुरीितयŌ का समापन
करना था। भारतेÆदु नाट्यकला के तÂवŌ का भी समावेश िमलता है। भारतेÆदु ही इस पुग के
सवª®ेķ नाटककार है।
२. ÿसाद युग:
ÿसाद जी ने िहंदी ऐितहािसक नाटकŌ कì रचना कì है। उÆहŌने भारत के अतीत गौरव का
िचýण करने के साथ-साथ राÕůीयता कì भावना को भी उÂपÆन करने का ÿयास अपने
नाटकŌ के माÅयम से िकया है।
सबसे पहले िहंदी नाटकŌ म¤ पाýŌ के अंतĬ«Ĭ का कलाÂमक िचýण ÿसाद ने ही िकया था।
उनके नाटकŌ म¤ दाशªिनकता कì छाया फैली हòई है। उनके नाटक न तो सुखाÆत है न
दुखांत, वे ÿसादांत माने जाते है। उनके नाटकŌ म¤ ऐितहािसक नाटकŌ कì सं´या अिधक है।
ऐितहािसक होते हòए भी वे समÖयामूलक है। 'राº®ी', 'िवशाख', 'ÖकÆदगुĮ', 'अजातशýु',
'चÆþगुĮ', 'ňुवÖवािमनी' उनके ÿमुख ऐितहािसक नाटक है। 'जनमेजय का नागय²' उनका
पौरािणक नाटक है। ÿसाद के नाटकŌ म¤ इितहास और कÐपना का सुÆदर समÆवय िमलता
है। 'अजातशýु' पर बौĦ दशªन का ÖपĶ ÿभाव है, 'ňुवÖवािमनी' म¤ ÿसाद जी ने 'नारी मुिĉ'
के िवषय को अपनाया है।
नाट्य िशÐप कì ŀिĶ से ÿसाद जी के नाटक अिĬतीय है। उनम¤ भारतीय एवं पाIJÂय
नाट्यकला का सुÆदर समÆवय हòआ है। पर उनके नाटक पाठ्य अिधक है, अिभनेय कम।
ÿसाद युग के अÆय नाटककरŌ म¤ हåरकृÕण ÿेमी, लàमीनारायण िम®, सेठ गोिवÆददास,
गोिवÆद वÐलभ पÂन, उपेÆþनाथ अÔक, ŀÆदावनलाल वमाª, िकशोरीदास वाजपेयी, िवयोगी
हåर, चतुरसेन शाľी, पाÁडेय बेचन शमाª 'उú' आिद के नाम िलए जा सकते है।
लàमीनारायण िम® समÖयामूलक नाटकŌ के िलए ÿिसĦ ह§| उनके नाटकŌ म¤ ‘संÆयासी’,
‘रा±स का मंिदर’, ‘मुिĉ का रहÖय’, ‘िसंदूर कì होली’ तथा ‘आधी रात’ महÂवपूणª है। 'िसंदूर
कì होली' म¤ िम® जी ने िवधवा िववाह एवं नारी उĬार जैसी समÖयाओं को ÿÖतुत िकया है।
उपेÆþनाथ 'अÔक' ने ‘Öवगª कì झलक’, ‘छठां बेटा’, ‘अलग-अलग राÖते’, ‘अंजो दीदी’ ‘अंधी
गली’, ‘कैद और उड़ान’, ‘जय पराजय’ आिद अनेक नाटकŌ कì रचना कì। साथ ही पूवª युगŌ
के समान संÖकृत, बंगला, अंúेजी से नाटकŌ का िहंदी म¤ अनुवाद भी इस युग म¤ हòआ।
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नाटक और एकांकì म¤ साÌय वैषÌय
53 ३. ÿसादो°र युग:
ÿसादो°र नाटकŌ का ÿारÌभ हम सन १९५० ई. से मान सकते है। इस काल के बाद िलखे
गए नाटक जीवन यथाथª से अिधक जुड़े हòए है, तथा उनम¤ रंगमंचीयता एवं अिभनेयता का
िवशेष Åयान रखा गया है। इस युग के नाटकŌ म¤ िवषय-वÖतु एवं िशÐप कì ŀिĶ से बदलाव
नजर आने लगा। ÿासोदो°र नाटककारŌ म¤ िवÕणु ÿभाकर, जगदीशचंþ माथुर, धमªवीर
भारती, लàमीनाराण लाल, रामकुमार वमाª, मोहन राकेश, नरेश मेहता, िवनोद रÖतोगी,
सुरेÆþ वमाª, डॉ. शंकर शेष, रमेश ब´शी, मुþा रा±स, नर¤þ कोहली, िगåरराजिकशोर ,
गोिवÆद चातक, जयनाथ निलन आिद के नाम ÿिसĦ ह§|
िवÕणु ÿभाकर ने अपने नाटकŌ म¤ आधुिनक भावबोध से उÂपÆन तनाव एवं जीवन-संघषª को
सफलतापूवªक ÿÖतुत िकया है। इनके िलखे ÿिसĦ नाटकŌ म¤ 'डॉ³टर', 'युगे युगे øांित' और
'टूटते पåरवेश' के नाम िलए जा सकते है। 'युगे-युगे øांित' म¤ पीढ़éगत संघषª कì अिभÓयिĉ है
तथा 'टूटते पåरवेश' म¤ पाåरवाåरक िवघटन को यथाथª अिभÓयिĉ िमली है। 'डॉ³टर' एक
मनोवै²ािनक नाटक है, िजसमे भावना और क°ªÓय के अÆतĬªÆĬ को िचिýत िकया गया है।
जगदीशचंþ माथुर ने िहंदी रंगमंच को नई िदशा देने का ÿयास अपने बहòचिचªत नाटकŌ के
माÅयम से िकया। 'कोणाकª', 'शारदीया', 'पहला राजा' तथा 'दशरथनंदन' उनके ÿमुख नाटक
है।
४. साठो°री नाटक:
साठो°री नाटक जीवन म¤ अकेलेपन, åरĉता बोध, मानवीय संबंधŌ कì जड़ता को
अिभÓयिĉ देने वाले िवषयो से संबंिधत है। ये नाटक आधुिनकता बोध कì भूिमका पर िलखे
गए है। इन नाटकŌ के िशÐप म¤ भी नवीनता, सांकेितकता एवं िबंबधिमªता िदखाई पड़ती है।
इन नाटकŌ म¤ अँधा कुआ (लàमीनारायण लाल), गांधार कì िभ±ुणी (िवÕणु ÿभाकर),
हÂयारे (नर¤þ कोहली), एक ÿij मृÂयु ( डॉ. िवनय), पागल घर (नंदिकशोर आचायª), बांसुरी
बजती रही (गोिवÆद चातक) आिद महÂवपूणª रचनाएँ है।
१९९० के बाद िलखे गए 'कोटª माशªल', 'सबसे उदास किवता', 'जलता हòआ रथ' Öवदेश
दीपक के उÐलेखनीय नाटक है। नंदिकशोर आचायª के 'गुलाम बादशाह’ एवं 'हिÖतनापुर' भी
इसी काल के है। ‘नहé कोई अÆत नहé’ (ÿताप सहगल), जादू का कालीन (मृदुला गगª)
मुआवजे (भीÕम साहनी), भारत भाµय िवधाता (रमेश उपाÅयाय) आिद नाटक भी
उÐलेखनीय है।
कुल िमलाकर िहंदी नाटकŌ कì यह िवकास याýा अनवरत जारी है। नए नाटककार
ÿयोगधमê ह§। नाटक अब मानव जीवन कì िवंसगितयŌ को उजागर करने वाली सशĉ िवधा
बन चुकì है।
८.२.२ एकांकì:
िहंदी म¤ एकांकì रचना का आरंभ भारतेÆदु युग से हòआ था। भारतेÆदु ने संÖकृत नाट्य
सािहÂय से ÿेरणा úहण करते हòए नाटक और एकांकì के िविभÆन łपŌ के िवकास कì munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
54 कोिशश कì। उनके 'अँधेर नगरी' (ÿहसन), 'िवषÖय िवषमौषधम', ‘वैिदकì िहंसा िहंसा न
भवित’, 'ÿेमयोिगनी' आिद रचनाएँ ÿाचीन ढंग के एकांिकयŌ के ल±णŌ से युĉ है। उनके
अलावा राधाचरण गोÖवामी, बालकृÕण भĘ, राधाकृÕण दास, काितªक ÿसाद आिद लेखकŌ
ने भी एकांकì-सŀश रचनाएँ िलखी। िĬवेदी युग म¤ िहंदी एकांकì पर पाIJाÂय एकांकì का
ÿभाव ÖपĶ łप से पड़ने लगा। उनके बाĻ łप म¤ थोड़ा अंतर िदखाई पड़ा। उन एकांिकयŌ
का लàय समाज सुधार था।
लगभग १९३० ई. के बाद िहंदी म¤ एकांकì का वाÖतिवक िवकास हòआ। लगभग उसी समय
जयशंकर ÿसाद ने 'एक घूँट' कì रचना कì। जो आधुिनक ढंग का पहला एकांकì माना जाता
है। ÿसाद के 'सºजन' और 'कŁणालय' को भी एकांकì के अंतगªत ही रखा गया है। ÿसाद के
बाद अनेक रचनाकारŌ ने इस िवधा का िवकास िकया। १९३८ म¤ 'हंस' पिýका का एकांकì
िवशेषांक ÿकािशत हòआ, िजससे एकांकì कला से संबंिधत अनेक नई बात¤ सामने आई।
इसके बाद डॉ. रामकुमार वमाª, उपेÆþनाथ अÔक, लàमीनारायण िम®, उदयशंकर भĘ,
भुवनेĵर ÿसाद, सेठ गोिवÆद दास, जगदीशचंþ माथुर आिद ने कई एकांिकयŌ Ĭारा
सामािजक समÖयाओं का सफल िचýण िकया। लàमीनारायण िम® ने अपने अनेक एकांकì
संúहŌ के माÅयम से पौरिणक, ऐितहािसक, सामािजक तथा मनोवै²ािनक समÖयाओं कì
चचाª कì। सेठ गोिवÆददास ने आदशªवादी ŀिĶकोण के साथ सामािजक, ऐितहािसक आिद
िविभÆन ÿकार के एकांकì िलखे। जगदीशचंþ माथुर ने यथाथªवादी शैली म¤ िविभÆन
समÖयाओं को ÿÖतुत करके उनका समाधान भी िकया है। उनके एकांकì रंगमंचीय ŀिĶ से
सफल भी ह§।
लàमीनारायण लाल, धमªवीर भारती, मोहन राकेश, भारतभूषण अúवाल, िवनोद रÖतोगी,
ÿभाकर माचवे, सुर¤þ वमाª आिद ने कई एकांिकयŌ और रेिडयो एकांिकयŌ कì रचना करके
आधुिनक एकांकì के ±ेý म¤ अपनी महÂवपूणª भूिमका िनभाई। िĬतीय महायुĦ के बाद
एकांिकयŌ और Åविन łपकŌ को ÿमुखता ÿाĮ हòई। िपछले कुछ वषŎ से िहंदी म¤ िविभÆन
िवषयो पर आधाåरत असं´य एकांकì िलखे गए। इनम¤ सामािजक एवं नैितक िवषयŌ पर
सबसे अिधक सशĉ और ÿौढ़ एकांकì िलखे गए। डॉ. जयनाथ निलन, डॉ. अजुªन चौबे,
गोिवंदलाल माथुर, ÿो. इÆदु शेखर आिद एकांकìकारŌ ने आधुिनक युग एवं समाज का
िवĴेषण अÂयंत सूàम एवं ÓयंµयाÂमक शैली म¤ ÿÖतुत िकया है। िवÕणु ÿभाकर, हåरकृÕण
ÿेमी, िशवकुमार ओझा आिद एकांकìकारŌ ने राÕůीयता को ÿमुखता िदया। डॉ. धमªवीर
भारती ने आधुिनक जीवन के असंिगतयŌ का उदघाटन एकांिकयŌ के माÅयम से िकया।
उनम¤ यथाथªवादी ŀिĶकोण देखे जा सकते है।
एकाकì लेखन म¤ ÿवृ° सािहÂयकारŌ ने िहंदी म¤ कई Åविन-łपकŌ और रेिडयŌ एकांिकयŌ
कì रचना कì है। इनके अलावा गीत-नाट्य कì तरह काÓयÂव शैली म¤ एकांकì िलखने म¤ भी
कई लेखक सफल हòए है। उनम¤ आरसी ÿसाद िसंह, भगवती चरण वमाª आिद उÐलेखनीय
है।
आज का िहंदी एकांकìकार देशी और िवदेशी-िविवध नाटय सािहÂयŌ के संपकª म¤ आ रहा है।
एक ओर उस पर जहाँ अंúेजी, अमेåरकì ओर Łसी नाटकŌ का ÿभाव पड़ रहा है, वहाँ दूसरी
ओर भारतीय लोक नाटकŌ का भी। अंतः वह आज इस ±ेý म¤ नवीन ÿयोग कर रहा है। munotes.in
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नाटक और एकांकì म¤ साÌय वैषÌय
55 डॉ. रामकुमार वमाª:
आधुिनक िहंदी एकांकì के जनक के łप म¤ डॉ. रामकुमार वमाª जाने जाते है। इनके एकांकì
कला कì ŀिĶ से सुÆदर बन पड़े है। उÆहŌने ऐितहािसक और सामािजक एकांकì िलखे है
और वे अिधकांश दुखांत है। इनके पृÃवीराज कì ऑंखे, रेशमी टाई, चाŁिमýा, सĮ िकरण
यह चार ऐितहािसक एकांकì महÂवपूणª है।
भुवनेĵर ÿसाद:
सन १९६० के बाद ÿयोगवादी नाटकŌ का पयªवसान आधुिनकतावादी ऊलजलूल एÊसडª
नाटकŌ म¤ होता है, िजनका मूल Öवर असहायता, चरम िनराशा, अराजकता और शूÆयवाद
म¤ होता है| ऊलजलूल या Óयथªताबोधक एकांिकयŌ के ÿथम पुरÖकताª के łप म¤ भुवनेĵवर
ÿसाद जाने जाते है। उनका 'कारवाँ' एकांकì संúह १९३६ म¤ ÿकािशत हòआ था। इसम¤
'Ôयामा : एक वैवािहक िवडंबना', 'शैतान', 'रोमांस-रोमांच', और 'कारवाँ' एकांकì संगृहीत है।
शा लाट¤स और Āायड से ÿभािवत ये एकांकì ना होकर भी ÿेम के िýकोण Āेम म¤ बंधकर
पुराने ही है। १९३८ म¤ 'ऊसर' के ÿकाशन के साथ Óयथªता-बोध नाटक कì शुŁआत होती
है। 'तांबे के कìड़े' ऊलजलूल या िवसंगत नाटकŌ का ऐसा नमूना है, िजसकì परंपरा िहंदी म¤
५५ वषª बाद चली। भुवनेĵवर ने िĬतीय िवĵयुĦो°र वैिĵक ŀिĶ को इन एकांिकयो म¤
अपनाया। इसम¤ कोई कथा नहé है, चåरý नहé है, कथानक नहé है, संवादŌ का सामंजÖय
नहé है। वÖतुतः यहाँ बेतरतीब आवाजŌ का एक कोलाज है, एक अमूतª िचý है, िजससे
आधुिनक जीवन का अथªहीन संýास अिभÓयĉ होता है। एकांिकयŌ म¤ ÿयुĉ शÊदŌ के बीच
का मौन िकतना अथªपूणª और नाटकìय होता है, इसका एहसास भुवनेĵर को बहòत पहले हो
चुका था।
८.३ नाटक और एकांकì म¤ साÌय नाटक काÓय का िहÖसा है, जो ŀÔय काÓय म¤ आता है। इसे यिद आसान भाषा म¤ समझा
जाए तो जो लोग िथएंटर, टी. Óही, रेिडयो पर िकसी कहानी को िवÖतृत łप म¤ ÿÖतुत करते
ह§ उसे हम नाटक कहते है। नाटक म¤ कई पाý होते है, िजनमे सभी के अपने-अपने नाम
होते है और उÆह¤ अपने-अपने िकरदार के अनुसार अिभनय करना होता है।
िकसी एक अंक वाले नाटक को एकांकì कहा जाता है, अंúेजी म¤ इसे हम 'वन ऐ³ट Èले'
शÊद से जानते है, और िहंदी म¤ इÆहे 'एकांकì नाटक' और एकांकì के नाम से जाना जाता
है। एकांकì का अथª होता है िक जब िकसी नाटक म¤ एक Óयिĉ का ही पूरा वणªन हो, वह भी
उसकì युवावÖथा के बाद तो हम उसे एकांकì कहते है। एकांकì अिधक िवÖतार म¤ नहé
होती और इसकì गित तीĄ होती है। यह भी नाटक कì तरह िथएटर, टी. Óही, रेिडयो आिद
पर अिभनय के माÅयम से ÿÖतुत िकया जाता है। नाटक म¤ अनेक अंक होते है, जबिक
एकांकì म¤ िसफª एक ही अंक होता है।
नाटक म¤ आिधकाåरक के साथ उसके सहायक और गौण कथाएँ भी होती है, जबिक एकांकì
म¤ एक ही कथा का वणªन होता है। नाटक म¤ िकसी भी पाý या चåरý का øमशः िवकास munotes.in
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56 िदखाया जाता है। जबिक एकांकì म¤ िकसी भी चåरý को पूणªतः िवकिसत łप म¤ िदखाया
जाता है।
नाटक कì िवकास ÿिøया धीमी होती है, जबिक एकांकì कì िवकास ÿिøया बहòत तीĄ
होती है।
नाटक के कथानक म¤ फैलाव और िवÖतार होता है, जबिक एकांकì म¤ घनÂव होता है,
अथाªत नाटक म¤ हम पाý और कहानी को बढ़ा सकते है, जबिक एकांकì म¤ ऐसा नहé िकया
जा सकता है।
८.४ नाटक और एकांकì म¤ वैषÌय नाटक एकांकì १. नाटक म¤ अनेक अंक होते है। एकांकì म¤ एक अंक होता है। २. नाटक म¤ आिधकाåरक कथा के साथ-साथ सहायक गौण कथाएँ भी होती है। एकांकì म¤ एक ही कथा और घटना होती है। ३. नाटक के चåरý का øमशः िवकास दशाªया जाता है। एकांकì म¤ पाýŌ कì िøया कलापŌ और चåरýŌ का संयोजन इस Łप म¤ होता है िक एकांकì होते हòए भी उसके ÓयिĉÂव का समूचा िबÌब िमल जाए। ४. नाटक के कथानक म¤ फैलाव और िवÖतार होता है। एकांकì के कथानक म¤ ही घनÂव रहता है। ५. नाटक कì पृķभूिम और कथानक िवÖतृत होता है। एकांकì म¤ पृķभूिम अथवा कथानक के िवÖतार का अवसर नहé रहता। ६. नाटक म¤ जीवन कì िविवध पहलूओं का िचýण िकया जाता है। एकांकì म¤ जीवन के िकसी एक प± को िलया जाता है। ७. नाटक म¤ पाýŌ कì सं´या अिधक हो सकती है। एकांकì म¤ कम-से-कम पाý रखे जाते है। ८. नाटक म¤ मु´य घटना के साथ अवाÆतर ÿसंग भी हो सकते है। एकांकì म¤ कम-से-कम ÿसंग रखे जाते है। ९. नाटक म¤ िकसी िवचार को िवÖतार से ÿÖतुत िकया जा सकता है। एकांकì म¤ िवचार को संकेतŌ Ĭारा रखा जाता है। १०. नाटक म¤ Öथान और काल कì सीमा का िवÖतार हो सकता है। एकांकì म¤ Öथान, समय और घटना के िवÖतार के िलए अवसर नहé रहता, संि±Į एकांकì के िलए आवÔयक है।
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नाटक और एकांकì म¤ साÌय वैषÌय
57 ८.५ सारांश िहंदी म¤ नाटक लेखन कì परंपरा का िवकास भी अÆय गī िवधाओं कì तरह भारतेÆदु युग से
ही ÿारÌभ होता है। इससे पहले भी ÿाचीन काल से ही संरंकृत के अनुłप नाटकŌ का सृजन
होता है, पर पī म¤ ही ये िलखे गए है, तथा इनम¤ नाटक के तÂवŌ का आभाव है। भारतेÆदु ने
आधुिनक काल म¤ संÖकृत, बंगला तथा अंúेजी से कई नाटकŌ का अनुवाद भी िकया। िहंदी
के ÿथम नाटक के संबंध म¤ भी िवĬानŌ के बीच मतभेद है। नाटक कì ही जाित का एकांकì
भी है, लेिकन दोनŌ म¤ काफì िभÆनता है। नाटक का अिभनय जहाँ एक घंटे से ढाई घंटे के
भीतर हो जाता है, तो एकांकì का अिभनय दस िमनट से एक घंटे तक का समय पयाªĮ है|
उपÆयास और कहानी म¤ जो अÆतर है, वही नाटक और एकांकì म¤ है। नाटक जीवन का
सवा«गीण िचý ÿÖतुत करता है, तो एकांकì िकसी जीवन-ममª कì अिभÓयिĉ। एकांकì म¤ एक
क¤þीय भावना और एकोÆमुखता होती है। नाटक म¤ कई ÿकार के िøया-ÓयापारŌ और
ÿवृि°यŌ का सामूिहक िचýण है, तो एकांकì म¤ एक ही केÆþीय भाव का िचýण है। नाटक म¤
कई अंक और ŀÔय होते है। लेिकन एकांकì म¤ एक अंक है, और एक या एक से अिधक ŀÔय
होते है। सामाÆयतः एकांकì म¤ भी वे ही छः तÂव ह§ जो नाटक म¤ ह§| नाटकŌ कì अपे±ा
एकांकì का लघुकाय ढाँचा अिधक ÿासंिगक है। िहंदी के इितहासकारो ने ÿायः एकांकì का
उĩव भारतेÆदु युग से ही माना है। भारतेÆदु के युग म¤ देश िवपÆनावÖथा म¤ था। अंúेजो ने
जनता का शोषण करना आरÌभ िकया था। िनÌन वगª सरकार कì कठोर नीित के कारण कĶ
पा रहा था। मÅयवगª के हाथ म¤ नेतृÂव था, पर वह तो सरकारी नौकरी िमलने से सरकार का
और िवरोध करने के प± म¤ नहé था। धािमªक ±ेý म¤ भी अराजकता फैली हòई थी। इन सभी
ÿवृि°यŌ कì और िनद¥श कर उनसे मुिĉ पाने का उपदेश उस समय के सािहÂय म¤ हम¤ ÿाĮ
होता है।
उÆनीसवé शताÊदी के उ°राĦª म¤ िहंदी नाटक कì िशराओ म¤ नवीन शिĉ का संचार हòआ,
जबिक देश म¤ अंúेजी साăाºय कì जड¤ बहòत गहरी उतर चुकì थी। अंúेजी िश±ा, वटवृ± कì
भाँित फैलती जा रही थी। पाIJाÂय संÖकृित और परÌपराओं ने भारतीय सािहÂय को नया
मोड़ िदया। १९३० के बाद के एकांिकयŌ म¤ एकांकì के सभी तÂवŌ का िनवाªह ÿायः होने
लगा। िहंदी म¤ आधुिनक एकांकì का ÿचलन बीसवé शताÊदी म¤ हòआ और उस पर अंúेजी
ÿभाव, संÖकृत ÿभाव कì अपे±ा अिधक है। आधुिनक एकांकì उस युवक के समान है, जो
अपने आदशō म¤ भारतीय संÖकृित का उपासक है, िकÆतु आचरण म¤ पाIJाÂय सËयता का
अनुगामी बन गया है| अंत यह ÖपĶ है िक आधुिनक एकांकì म¤ ÿाण और आÂमा भारतीय
अवÔय है, िकÆतु उसकì बाĻ वेशभूषा पाIJाÂय है|
एकांकì बड़े नाटक का छोटा या संि±Į ÖवŁप नहé है, वह एक अलग िवधा है। बड़े नाटक म¤
मानव जीवन कì øमबĦ िववेचना हो सकती है, ³यŌिक िवÖतार के िलए उसमे गुंजाइश
रहती है। अनेक अंक, Öथल तथा अलग-अलग ÿकार कì पåरिÖथितयŌ से गुजरते हòए पाýŌ
का चåरý-िचýण उसम¤ होता है।
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
58 ८.६ लघु°रीय ÿij १. ‘हंस’ पिýका का एकांकì िवशेषांक कब ÿकािशत हòआ था?
उ - 1938 ई. ।
२. ‘एक घूँट’ एकांकì के रचनाकार कौन है?
उ - जयशंकर ÿसाद।
३. ‘ऊसर’ िकसका एकांकì संúह है?
उ - भुवनेĵर ÿसाद।
४. ‘पृÃवीराज कì आँखे’ िकसकì एकांकì है?
उ - डॉ. रामकुमार वमाª।
५. ‘कारवाँ’ एकांकì का ÿकाशन वषª ³या है?
उ - 1936 ई. ।
८.७ दीघō°री ÿij १. नाटक कì पåरभाषा देते हòए ÿमुख नाटककारŌ का पåरचय दीिजए ।
२. नाटक के अथª ÖवŁप को ÖपĶ कìिजए ।
३. नाटक के उĦभव और िवकास को िवÖतारपूवªक समझाइए ।
४. एकांकì के उĦव और िवकास को ÖपĶ कìिजए ।
५. नाटक और एकांकì म¤ साÌय Öथािपत कìिजए ।
६. नाटक और एकांकì म¤ वैषÌय बतलाइए ।
७. ÿमुख एकांकìकारŌ का पåरचय दीिजए ।
८.८ संदभª úंथ १. िहंदी एकांकì - िसĦनाथ कुमार
२. समकालीन एकांकì : संवेदना एवं िशÐप - डॉ. रंजना वद¥
३. मानक एकांकì - सं. डॉ. ब¸चन िसंह
४. एकांकì मंच - डॉ. वी. पी. 'अिमताभ'
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59 ९
दीपदान
इकाई कì Łपरेखा
९.० इकाई का उĥेÔय
९.१ ÿÖतावना
९.२ ‘दीपदान’ एकांकì कì कथावÖतु
९.३ ‘दीपदान’ एकांकì के ÿमुख पाýŌ का चåरý िचýण
९.४ सारांश
९.५ लघु°रीय ÿij
९.६ दीघō°री ÿij
९.७ संदभª úंथ
९.० इकाई का उĥेÔय प्रÖतुत इकाई का उĥेÔय राजकुमार वमाª Ĭारा िलिखत ‘दीपदान’ एकांकì के िविवध प±Ō व
उसके उĥेÔय को िवīािथªयŌ के सामने रखना है । इस इकाई के पठन के Ĭारा िवīाथê
ÿÖतुत एकांकì म¤ ऐितहािसक संदभª व मानवीय मूÐयŌ कì महानता को आÂमसात कर उÆह¤
अपने चåरý म¤ उतार सक¤गे ।
९.१ ÿÖतावना 'दीपदान' एकांकì राजकुमार वमाª Ĭारा िलिखत िहंदी कì एकांकì परंपरा म¤ महÂवपूणª
एकांकì है । इस एकांकì म¤ िचýौड़ के Öवगêय महाराजा साँग के सबसे छोटे पुý व राºय के
उ°रािधकारी कुँवर उदयिसंह कì हÂया के ÿयास को पÆना धाय Ĭारा िवफल करने के
ÿयास का बहòत सुंदर वणªन िकया गया है । यīिप इस ÿयास को िवफल करने म¤ पÆना धाय
को अपने पुý चÆदन का उÂसगª करना पड़ा । पÆना धाय के इस महान Âयाग ने मानवीय
Âयाग व बिलदान परंपरा को एक नयी ऊँचाई दी और पÆना धाय को भारतीय इितहास म¤
अमर बना िदया ।
९.२ 'दीपदान' एकांकì कì कथावÖतु ‘दीपदान’ एकांकì, ऐितहािसक एकांकì है । इस एकांकì म¤ िचýौड़ के महाराणा सांगा के
उ°रािधकारी कुँवर उदयिसंह के जीवन पर आए संकट का वणªन िकया गया है । कुँवर
उदयिसंह महाराणा सांगा के सबसे छोटे पुý ह§ और राºय के होनेवाले भावी महाराणा ह§ ।
उनकì अभी बाÐयावÖथा ही है । १४ वषª कì अवÖथा म¤ वे धाय माता पÆना के Ĭारा
पािलत-पोिषत ह§ । पÆना कलेजे के टुकड़े कì तरह उदयिसंह को पालती-पोसती है और उसे
िचýौड़ राजवंश का दीपक तथा महाराणा साँगा का कुलदीपक कहती है । कुँवर उदयिसंह munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
60 को वतªमान महाराणा िवøमािदÂय भी पयाªĮ ÿेम देते ह§ और पÆना धाय को यह पूरा िवĵास
था िक उă के बढ़ने पर जब महाराणा भजन भÓय कì ओर मुड़¤गे तब कुँवर उदयिसंह को ही
वे महाराणा कì गĥी सोप¤गे । पÆना धाय का अपना भी चÆदन नाम का पुý है और कुँवर
उदयिसंह का हमउă है। हमउă होने के कारण वह उदयिसंह का अ¸छा िमý है और साथ
साथ रहता है । पÆना उदयिसंह व चÆदन को समान भाव से पालती है ।
िचýौड़ के शांत वातावरण कì शांित अिधक िदन नहé बनी रहती । महाराणा सांगा के भाई
पृÃवी िसंह का दासी पुý बनवीर महाराणा बनने के सपने संजोए बैठा है और अपने इस
सपन¤ को साकार करने के िलए वह िकसी भी हद तक जाने कì इ¸छा रखता है । ३२ वषª
का बनवीर अपने इस सपने को जÐदी से सच करने के िलए एक षड़यंý रचता ह§ । बनवीर
महल कì लड़िकयŌ को इकĜा कर उÆह¤ अपने Ĭारा बनवाये गये मयूर प± कुंड म¤ दीपदान
करने के िलए और उÂसव मनाने के िलए कहता है । इस उÂसव कì आड़ म¤ वह अपने
षड़यंý को अमली जाम पहनाना चाहता था । रािý के समय जब महल म¤ उÂसव, शोर शराबे
व दीपदान का माहौल था ठीक उसी समय वह महाराणा िवøमािदÂय के महल म¤ घुस जाता
है और सोते हòए महाराणा िवøमािदÂय कì हÂया कर देता है । पहले से ही िबके हòए सैिनक व
सामंत बनवीर का कोई िवरोध नहé करते । महाराणा िवøमािदÂय कì इस नृशंस हÂया के
बाद वह कुँवर उदयिसंह को भी मारने के िलए उनके महल कì और बढ़ने लगता है िकंतु
इसी बीच सोना जो रावल सłप िसंह कì लड़कì है और उदयिसंह कì सहेली है इस बात
कì खबर पÆना धाय तक पहòँचा देती है । महाराणा िवøमािदÂय कì हÂया कì खबर सुनकर
पÆना धाय सÆन रह जाती है पर उसे यह पता चलता है िक बनवीर महाराणा िवøमािदÂय
कì हÂया करने के बाद उसी के महल कì ओर बढ़ रहा है तो वह सतकª हो जाती है । वह
समझ जाती है िक बनवीर एक खतरनाक इरादा लेकर उसके महल कì ओर बढ़ रहा है और
वह कुँवर उदयिसंह कì हÂया करना चाहता है । उसके महल के चारो ओर बनवीर के
सैिनकŌ का जमावड़ा भी इसी ओर संकेत कर रहा था । वह उदयिसंह कì र±ा को लेकर
िचंितत हो जाती है और हर िÖथित उसे बचाने के िलए ŀढ़ संकÐप होती है ।
पÆना धाय जब कुँवर उदयिसंह को बचाने के उपाय के बारे म¤ सोच रही थी ठीक उसी समय
कìरत बारी महल म¤ जूठी प°लŌ को उठानेवाले बड़े टोकरे के साथ ÿवेश करता है । पÆना
धाय तुरंत उदयिसंह को बचाने कì योजना बनाती है । वह कुँवर को जूठन उठाने के टोकरे
म¤ सावधानीपूवªक सुलाकर ऊपर से गीली पतलŌ को डालकर उÆह¤ महल से बाहर ले जाने
का आदेश कìरत बारी को देती है । साथ ही साथ उससे यह भी कहती है िक वह बेåरस नदी
के िकनारे उसे िमले तािक वहाँ से कुँवर को सुरि±त Öथान पर पहòँचाया जा सके ।
महल से कुँवर उदयिसंह को सुरि±त िनकालने के बाद वह अपने बेटे चÆदन को कुँवर के
Öथान पर सुला देती है और उसे चादर से ढंक देती है तािक बनवीर सोये हòए चÆदन को
पहचान न सके । होता भी ऐसा ही है, बनवीर रािý के अंधकार म¤ मिदरा के नशे म¤ धुत पÆना
धाय के महल म¤ ÿवेश करता है और पÆना धाय को जागीर या मुँहमांगा ईनाम देने कì
घोषणा करता है और बदले म¤ कुँवर उदयिसंह कì मांग करता है । बनवीर के ÿलोभन को
पÆना धाय ठुकरा देती है । और िहंसा के नशे म¤ úÖत बने बनवीर से कुँवर उदयिसंह के
जीवन कì भीख मांगती है पर स°ा को पाने के नशे म¤ चूर बनवीर उसे तलवार का भय
िदखाते हòए राÖते से हटने के िलए कहता है और उदयिसंह को मारने के इरादे से शैÍया कì munotes.in
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दीपदान
61 ओर तेजी से बढ़ता है। बनवीर के खतरनाक यादे व भयानक łप से िबना डरे पÆना उस पर
अपनी कटार चला देती है पर बनवीर उस वार को अपनी ढाल पर झेल लेता है और पÆना
कì कटार छीन लेता है तथा शैÍया के करीब जाकर सोये हòए बालक पर कुँवर उदयिसंह के
धोखे म¤ तलवार से जोरदार ÿहार करता है । अपने पुý चÆदन कì हÂया का दुख पÆना धाय
सह नहé पाती और चीखकर जमीन पर िगरकर बेहोश हो जाती है ।
इस ÿकार पÆना धाय महान Âयाग करती है । अपने पुý का बिलदान कर वह कुँवर उदयिसंह
कì र±ा करने म¤ सफल होती है और िचýौड़ के ÿित अपनी ईमानदारी, समपªण तथा
कमªिनķा का एक महान उदाहरण ÿÖतुत करते हòए मानवीय मूÐयŌ कì उ¸चतम गåरमा को
अपने पिवý आचरण से Öथािपत करती है ।
९.३ ‘दीपदान’ एकांकì के ÿमुख पाýŌ का चåरý िचýण पÆना धाय:
पÆना धाय दीपदान एकांकì कì केÆþीय पाý है । एकांकì कì संपूणª कथा पÆना धाय के इदª-
िगदª घूमती है । पÆना धाय पर कुँवर उदयिसंह के लालन-पालन कì िजÌमेदारी है और पÆना
धाय इसे पूरी ईमानदारी तथा कतªÓयिनķा के साथ िनभाती है । अपने पुý चÆदन और कुँवर
उदयिसंह दŌनो का लालन-पालन वह एक जैसे भाव से करती है । कुँवर उदयिसंह के जीवन
के महÂव व उसके ऊपर मंडराते खतरे को वह भली भाँित समझती है, इसिलए वह हमेशा
सतकª व चौकÆनी रहती है ।
बनवीर को लेकर वह हमेशा संशय व भय कì िÖथती म¤ रहती है ³यŌिक बनवीर कì
मानिसकता को वह जानती थी और इस बात को अ¸छी तरह से पहचानती थी िक बनवीर
कì ŀिĶ मेवाड़ कì राजगĥी पर लगी हòई है और वह कुँवर उदयिसंह के िलए भिवÕय म¤
खतरनाक िसĦ हो सकता है ।
पÆना धाय को जब सोना से यह पता चलता है िक बनवीर महाराणा िवøमािदÂय कì हÂया
करके उसी के महल कì ओर आ रहा है तो वह चौकÆनी हो जाती है कुँवर उदयिसंह कì
सुर±ा को लेकर िचंितत हो उठती है और कìरत बारी के माÅयम से वह कुँवर उदयिसंह को
जूठन कì टोकरी म¤ रखवाकर सुरि±त Öथान पर पहòँचा देती है । कुँवर उदयिसंह महल म¤
नहé ह§ इस बात कì भनक बनवीर को न लगे इसिलए वह एक और साहसपूणª व कठोर
िनणªय लेती है और अपने पुý चÆदन को कुँवर उदयिसंह के पलंग पर सुला देती है । बनवीर
कुँवर उदयिसंह के धोखे म¤ चÆदन कì हÂया कर देता है । इस ÿकार महान Âयाग व बिलदान
कर पÆना धाय िच°ौड़ के उ°रािधकारी को बचा लेती है ।
बनवीर:
बनवीर िचýौड़ के महाराणा सांगा के भाई पृÃवीिसंह का दासी पुý है । ३२ वषª का बनवीर
अित महÂवाकां±ी व स°ा का लालची युवक है । उसकì ŀिĶ िच°ौड़ के त´Ƿ पर लगी
रहती है । वह जानता है िक महाराणा िवøमािदÂय व कुँवर उदयिसंह के रहते वह कभी भी
िच°ौड़ के िसंहासन पर कािबज नहé हो सकता इसिलए वह िनरंतर इस कोिशश म¤ रहता है munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
62 िक कैसे इन दोनŌ को राÖते से हटाया जा सके । इसकì योजना भी वह दीपदान उÂसव के
माÅयम से बना लेता है । दीपदान कì भीड़ व शोर का सहारा लेकर वह महाराणा
िवøमािदÂय के महल म¤ घुस जाता ह§ । पहले से ही खरीद¤ हòए सामंत व सैिनक उसका कोई
िवरोध नहé करते और वह बड़ी आसानी से िवøमािदÂय कì हÂया कर देता है । महाराणा
िवøमािदÂय कì हÂया करने के बाद वह अपने राÖते के दूसर¤ काँट¤ को भी हटाना चाहता है
और कुँवर उदयिसंह कì हÂया करने के इरादे से वह पÆना धाय के महल कì ओर मुंड़ जाता
है । इसीबीच पÆना धाय को सोना के माÅयम से इस बात कì भनक लग जाती है िक बनवीर
कुँवर उदयिसंह कì हÂया करने उसके महल कì ओर पÆना धाय समय रहते कìरत नारी कì
मदत से कुँवर उदयिसंह को सुरि±त Öथान पर पहòँचा देती है। और अपने पुý चÆदन को
कुँवर कì शैÍया सुला देती है । शराब के नशे म¤ धुत बनवीर चÆदन पर अपनी तलवार का
जोरदार वार करके उसकì हÂया कर देता है । बनवीर स°ा के नशे म¤ सारी मयाªदाएँ व
नैितकताएं तोड़ता हòआ पशु ÿवृि° से भी नीचे िगर जाता है और दूसरी पÆना धाय अपने
महान Âयाग व बिलदान के कारण मनुÕयता कì सवō¸च कोटी म¤ पहòँच जाती है ।
९.४ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ पÆना धाय 'दीपदान' एकांकì कì ÿमुख पाý रही है। वह अपने बेटे का Âयाग
कुँवर उदयिसंह कì र±ा के िलए करती है और िच°ौड़ के उ°रािधकारी को बचा लेती है।
इसीकारण पÆना धाय अपनी ईमानदारी, समपªण और मानवीय मूÐयŌ कì उ¸च°म गåरमा
को Öथािपत करती ह§।
९.५ लघु°रीय ÿij १. पÆना धाय पुý का बिलदान देकर िकसकì र±ा करती है?
उ - कुँवर उदयिसंह।
२. पÆना धाय िकसके ऊपर कटार चला देती है?
उ - बनवीर पर।
३. कुँवर उदयिसंह कì हÂया कì सािजश के पहले बनवीर िकसकì हÂया करता है?
उ - महाराणा िवøमािदÂय कì।
९.६ दीघō°री ÿij १. ‘दीपदान’ एकांकì के कÃय पर िवचार करते हòए उसके संदेश को समझाइए ।
२. ‘दीपदान’ एकांकì के आधार पर पÆना धाय के चåरý का िचýण कìिजए ।
३. ‘दीपदान’ एकांकì के मु´य पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए । munotes.in
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दीपदान
63 ४. ‘दीपदान’ एकांकì के कÃय के आधार पर उसके शीषªक कì उपयुĉता पर िवचार
कìिजए ।
९.७ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय, मुंबई
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64 १०
और वह जा न सकì
इकाई कì łपरेखा
१०.० इकाई का उĥेÔय
१०.१ ÿÖतावना
१०.२ 'और वह जा न सकì' एकांकì कì कथावÖतु
१०.३ ‘और वह जा न सकì’ एकांकì के ÿमुख पाýŌ का चåरý-िचýण
१०.४ सारांश
१०.५ लघु°रीय ÿij
१०.६ दीघō°री ÿij
१०.७ संदभª úंथ
१०.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई का उĥेÔय िवÕणु ÿभाकर Ĭारा िलिखत एकांकì ‘और वह जा न सकì ’ के
िविवध प±Ō का िवīािथªयŌ के सामने उĤाटन करना है । इस इकाई के पठन के Ĭारा
िवīाथê ÿÖतुत एकांकì के िविवध पाýŌ, िÖथितयŌ, ľी-पुłष संबंधŌ व दाÌपÂय जीवन म¤
संघषª व सामंजÖय के िविवध łपŌ से पåरिचत हो सक¤गे ।
१०.१ ÿÖतावना ‘और वह जा न सकì’ िवÕणु ÿभाकर कì एक महÂवपूणª एकांकì है। इस एकांकì म¤ िवÕणु
ÿभाकर दाÌपÂय जीवन के संघषŎ, सामंजÖय और पित-पÂनी के बीच के संबंधŌ म¤ आनेवाले
उतार-चढ़ाव का बहòत सुंदर और मनोवै²ािनक िचýण करते ह§ । शैलेÆþ और शारदा िकस
तरह अपनी टूटती हòई गृहÖथी संभालते ह§ और कैसे पित-पÂनी के बीच िवĵास और
आÂमीयता का नाजुक सूý सभी ÿकार के झटकŌ को सहकर भी मजबूत बना रहता है । इन
तमाम िबÆदुओं का िचýण इस सुंदर एकांकì म¤ िकया गया है । शैलेÆþ पेशे से लेखक है और
अ¸छी खासी ÿिसĦी पा चुका है पर गृहÖथी को चलाने के मामले म¤ लापरवाह व बहòत
ºयादा लाचार है । कमाई का भी कोई Öथायी जåरया नहé है । इस सब के कारण उसकì
पÂनी शारदा बेहद परेशान रहती है और गृहÖथी को और आगे खéच पाने म¤ अपने-आपको
समथª नहé पाती । वह जीवन के इस िबÆदु पर पहòँचकर शैलेÆþ से अलग होना चाहती है पर
जब उसे इस बात का पता चलता है िक शैलेÆþ का ÿेम उसके िलए गहरा-स¸चा व एकिनķ
है तो वह अपनी गलती को Öवीकार कर और भी ईमानदारी व समपªण भाव से शैलेÆþ से
जुड़ जाती है । इस ÿकार वह शैलेÆþ को छोड़कर नहé जा पाती ।
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और वह जा न सकì
65 १०.२ 'और वह जा न सकì' एकांकì कì कथावÖतु ‘और वह जा न सकì ’ िवÕणु ÿभाकर कì एक महÂवपूणª एकांकì है । इस एकांकì म¤ िवÕणु
ÿभाकर ने शैलेÆþ व शारदा के माÅयम से दाÌपÂय जीवन के िविभÆन प±Ō का सुंदर व
मनोवै²ािनक िचýण िकया है । शैलेÆþ व शारदा पित-पÂनी ह§ । शैलेÆþ पेशे से लेखक है और
लेखक के łप म¤ समाज म¤ अपनी ÿितķा बना चुका है । लेखक के łप म¤ जहाँ व ÿितिķत
हो चुका है वही एक कमाऊ पित के łप म¤ उसकì िÖथित बहòत अ¸छी नहé है । वह अपने
लेखकìय ÓयिĉÂव के अनुłप अ¸छे पैसे नहé कमा पाता । ठीक-ठाक कमाई न होने के
कारण उसकì गृहÖथी अ¸छी नहé चल पाती । शारदा को गृहÖथी चलाने म¤ बड़ी मश³कत
करनी पड़ती है ।
शैलेÆþ अपनी सीमाओं को नहé समझता । वह िनरंतर अपने सामािजक दायरे को िवकिसत
करता रहता है । रोज चार-छह लोग उसके घर पहòँचते ह§ और वह बार-बार शारदा से चाय-
नाÔते तथा भोजन कì मांग करता है । बेचारी शारदा दौड़-भागकर उसकì हर फरमाइश पूरी
करने कì कोिशश करती है । कई बार वह पड़ोिसयŌ के यहाँ से भी खाने-पीने कì चीज¤ उधार
लाकर, खुद भुखे रहकर भी शैलेÆþ कì फरमाइशŌ को पुरा करती है पर शैलेÆþ इस गंभीरता
तथा खéचतान को समझते हòए भी नहé समझता । वह पåरवार व उसकì िजÌमेदाåरयŌ के
ÿित लापरवाह बना रहता है । शारदा अंततः इन िÖथितयŌ से गुजरते हòए अपना धैयª खोने
लगती है । शारदा को लगने लगता है िक वह इन िÖथितयŌ म¤ गृहÖथी नहé चला सकती और
शैलेÆþ कì लापरवाही व नकारेपन को और ºयादा बदाªÔत नहé कर सकती । वह सोचती है
िक शैलेÆþ को अपना जीवनसाथी चुनते हòए उसने िकतने हसीन सपने देखे थे लेिकन आज
वे सारे सपने िबखर चुके ह§ । शैलेÆþ अपनी दुिनया म¤ इतना डूब चुका है िक उसे पÂनी व
ब¸चे तक का कोई ´याल नहé है । उँगली म¤ िनकली फुंसी के कारण उँगली को काटने कì
नौबत आ गई है पर शैलेÆþ को शारदा कì कोई परवाह नहé है ।
शारदा का øोध तब और बढ़ जाता है जब शिश ताने मारते हòए आटा देने से मना कर देती
है। शिश कहती है िक - हर तीसरे िदन आटा माँगने आ जाते ह§ ? कहाँ से द¤ ? आटा माँगने
गया बेटा खाली हाथ वापस चला आता है और शिश चाची के øूर Óयवहार को शारदा से
बताता है। इस पर पहले तो शारदा उ°ेिजत होती है पर बाद म¤ वह इस बात का अनुभव
करती है िक शिश या कोई उसे िकतने िदन उधार देगा और पित िजसे घर कì िजÌमेदारी
देखनी चािहए थी वह सारी िजÌमेदाåरयŌ से िनरत लापरवाह बैठा है। शारदा को वे िदन याद
आते है जब उसकì सहेिलयŌ ने उसे केवल ÖवÈनदशê रचनाकार से िववाह करने से मना
िकया था पर उसने अंततः वही िकया िजसे न माने कì सलाह उसे दी गई थी।
अपनी वतªमान िÖथित से अÂयंत असंतुĶ शारदा जब शैलेÆþ का घर छोड़कर जाने का मन
बना रही थी तभी एक और घटना घटती है। शीला जो एक नवयुवती है और शैलेÆþ कì
ÿशंसक वह अचानक शैलेÆþ के घर पहòंच जाती है। शीला पहले भी शैलेÆþ के पास आती
रही थी, वह शैलेÆþ से कहानी िलखने कì कला सीखना चाहती थी पर आज वह अलग
तरह कì समÖया लेकर शैलेÆþ के पास आई थी। आज वह अपनी पाåरवाåरक समÖया को
लेकर शैलेÆþ के पास आई थी। वह अपने पित के आचरण से असंतुĶ थी और उसे छोड़कर
शैलेÆþ के पास आना चाहती थी। वह शैलेÆþ के सामने बार-बार अपनी समÖया को रखती munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
66 थी और उनसे उसका िनराकरण जानना चाहती थी। वह शैलेÆþ से कहती है िक वह कल ही
अपने पित को छोड़कर उनके पास आ जाएगी। इस पर शैलेÆþ बड़े साफ शÊदŌ म¤ उसे कह
देता है िक घर उसका नहé ह§, घर तो शारदा का है और इस बारे म¤ उसे शारदा से ही
इजाजत लेनी होगी। यहाँ तक िक वह जो भी है वह शारदा के कारण ही है। शैलेÆþ जब वह
कुछ शीला से कह रहा था तो पीछे िछपी शारदा यह सब सुन रही थी। उसे अपने कानŌ पर
िवĵास नहé होता। वह सोचती है िक वह िकतना गलत सोच रही थी। शैलेÆþ के ÿित उसके
मन म¤ सÌमान व ÿेम का भाव और भी बड़ जाता है । इसी बीच डािकया मनीआडªर और एक
चेक लेकर आ जाता है । शैलेÆþ मनीआडªर के पैसे और चेक शारदा को सŏपते हòए कहता है
िक चेक िकसी को देकर ब§क से पैसे मंगा ले और उसके जैसे िनकÌमŌ पर वह नाराज होकर
अपना खून न जलाया कर¤ । अब वह ³या सुधरेगा शारदा को ही उसके साथ िनभाना होगा,
उसे संभालना होगा ।
इस ÿकार शैलेÆþ के स¸चे ÿेम व समपªण को देखकर शारदा का øोध शांत हो जाता है
और वह शैलेÆþ को छोड़कर जाने का इरादा छोड़ देती है और अपनी छोटी व खूबसुरत
गृहÖथी को सँभालने म¤ लग जाती है ।
१०.३ ‘और वह जा न सकì ’ एकांकì के ÿमुख पाýŌ का चåरý-िचýण शारदा:
‘और वह जा न सकì ’ एकांकì कì केÆþीय पाý शारदा है । शारदा एक कतªÓय परायण ľी है
। अपने यौवन के ÿारंिभक िदनŌ म¤ उसने शैलेÆþ को अपने पित के łप म¤ चुना था । शैलेÆþ
कì िवĬ°ा व उसके लेखक ÓयिĉÂव ने उसे शैलेÆþ कì ओर आकिषªत िकया था । उस
समय उसकì सहेिलयŌ ने उसे एक Óयावहाåरक सलाह दी थी िक वह एक ऐसे युवक से
िववाह करे िजसके पास एक Öथायी आय का साधन हो और वह तमाम लौिकक इ¸छाओं
को शांत कर सके । पर उस समय शारदा इस Óयावहाåरक सलाह को न समझ सकì और न
उसे माना । उसने शैलेÆþ के आकषªण को अपने ऊपर हावी हो जाने िदया और अंततः
ÖवÈनदशê शैलेÆþ कì जीवन संिगनी बन गई ।
ÿारंभ म¤ उसके गृहÖथी कì गाड़ी ठीक-ठाक चलती रही । अभावŌ को भी उसने Öवीकार कर
िलया िकंतु धीरे-धीरे जैसे-जैसे शैलेÆþ िलखने-पढ़ने कì दुिनया म¤ डूबता चला गया वह
गृहÖथी कì जłरतŌ के ÿित लापरवाह होता चला गया । कमाई का कोई ठीक-ठाक जåरया
न था, शैलेÆþ कì फरमाइश¤ रोज दररोज बढ़ती जाती थé और इन फरमाइशŌ को पूरा करने
के िलए शारदा िदन रात खटती रहती थी । घर पर अभावŌ का मेला रोज ही लगा रहता था ।
कभी-कभी पड़ोिसयŌ से भी दाल-चावल-आटा उधार माँगना पड़ता था । शैलेÆþ कì
उदासीनता व अभावŌ से तंग आकर शारदा यह िनणªय लेती है िक वह अब शैलेÆþ के साथ
और नहé िनभा सकती । उसे अपने राÖते को अब अलग करना होगा ।
इसी बीच शैलेÆþ के जीवन म¤ शीला का ÿवेश होता है । शीला शैलेÆþ के िनकट आना
चाहती है पर शैलेÆþ उसके ÿित कोई िवशेष łझान नहé िदखाता । एक िदन शीला शैलेÆþ
से कहती है िक अब वह अपने पित के साथ और नहé रह सकती वह कल ही शैलेÆþ के
पास आ जाएगी । इस पर शैलेÆþ उससे साफ-साफ कह देता है िक यह घर उसका नहé है । munotes.in
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और वह जा न सकì
67 शारदा का है और यिद वह यहाँ आना चाहती है तो उसे शारदा से इजाजत लेनी होगी । यहाँ
तक िक वह जो भी है उसम¤ शारदा का एक बहòत बड़ा योगदान है । शारदा के िबना वह कुछ
भी नहé है । शारदा पीछे िछपी यह सब सुन रही होती है । उसे इस बात का अहसास हो
जाता है िक शैलेÆþ एक बेहद ईमानदार व समिपªत Óयिĉ है । उसे अपने सारे अभाव शैलेÆþ
कì स¸चाई के आगे छोटे लगने लगते ह§ और अंततः वह शैलेÆþ को न छोड़कर जाने का
िनणªय लेती है ।
शैलेÆþ:
एकांकì का दूसरा महÂवपूणª पाý शैलेÆþ है । शैलेÆþ एक लेखक है । लेखक के łप म¤ उसे
सामािजक łप से Öवीकृित िमल चुकì है िकंतु वह अपने गृहÖथी जीवन के ÿित बहòत
लापरवाह व गैरिजÌमेदार है । कमाई का कोई ठीक -ठाक और िनयिमत जåरया वह िवकिसत
नहé कर सका है । उसकì इस ÿवृि° का खािमयाजा शारदा को उठाना पड़ता है । शारदा
को गृहÖथी कì गाड़ी खéचना िदन-ब-िदन और भी किठन लगने लगता है । घर म¤ हमेशा
अभाव बना रहता है । कभी दाल नहé तो कभी चावल नहé तो कभी आटा खÂम हो जाता है
और पड़ोिसयŌ के घर का łख करना पड़ता है । पड़ोसी भी इस सबसे तंग आ चुके है और
एक िदन पड़ोसन शिश आटा देने से इंकार कर देती है । घर कì इस अभावúÖत िÖथित को
सुधारने के िलए शैलेÆþ कोई ÿयÂन नहé करता बिÐक िदन-ब-िदन अपने सामािजक दायरे
का िवÖतार करके चार-छह लोगŌ को रोज घर पर बुलाता है और सभी के चाय-नाÔते कì
िजÌमेदारी शारदा पर ड़ाल देता है । शारदा बेचारी खटते हòए पड़ोिसयŌ से उधार मांगकर
सारी िजÌमेदाåरयŌ को िनभाती तो है पर उसे िनरंतर पित का यह गैरिजÌमेदाराना Óयवहार
सालता है ।
शैलेÆþ कì लापरवािहयŌ व अभाव भरी िजÆदगी से तंग आकर अंततः घर छोड़कर चले
जाने का िनणªय लेती है । पर इसी बीच जब शैलेÆþ शीला को यह बताता है िक शारदा के
िबना इसका कोई अिÖतÂव नहé है । आज वह जो भी है उसम¤ शारदा का बहòत बड़ा योगदान
है तब शारदा कì आँख¤ खुल जाती ह§ और वह शैलेÆþ को कभी भी न छोड़ने का िनणªय लेती
है । मनीआडªर के łपये व चेक शारदा को सŏपते हòए शैलेÆþ कहता है – शारदा अब हम
³या सुधर¤गे, तुÌहé को िनभाना पड़ेगा, िनभा लो । इस पर शारदा का रहा सहा øोध भी उड़
जाता है और वह शैलेÆþ को बड़े Èयार से िझड़कते हòए कहती है, “हटो-हटो ³या अंट-संट
बोलते हो । बैठक म¤ जाकर अपना काम करो ।” इस ÿकार शैलेÆþ कì ईमानदारी व समपªण
भाव से उसकì गृहÖथी टूटने से बच जाती है ।
१०.४ सारांश ÿÖतुत एकांकì 'और वह जा न सकì' म¤ शैलेÆþ पाåरवाåरक िजÌमेदाåरयŌ को िनभाने म¤
असफल होता है, उसका मनोवै²ािनक तौर पर िचýण िकया है। साथ ही उसकì ईमानदारी
और स¸चे ÿेम तथा समपªण को देखकर पÂनी शारदा छोड़कर जाने के िनणªय को पूणªिवराम
देती है। टूटती हòई गृहÖथी को बचाती ह§।
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
68 १०.५ लघु°रीय ÿij १. 'और वह जा न सकì' म¤ िकसकì गृहÖथी टूटने से बच जाती है?
उ - शैलेÆþ और शारदा कì।
२. शारदा को शादी करने के बाद िकस सलाह कì याद आती है?
उ - सहेिलयŌ ने केवल ÖवÈनदशê रचनाकार से िववाह करने मना िकया था इस सलाह
कì याद आती है।
३. शैलेÆþ पेशे से ³या ह§?
उ - शैलेÆþ पेशे से लेखक है।
१०.६ दीघō°री ÿij १. ‘और वह जा न सकì ’ एकांकì के आधार पर शैलेÆþ व शारदा का चåरý-िचýण
कìिजए।
२. ‘और वह जा न सकì ’ एकांकì म¤ िचिýत दाÌपÂय जीवन के संघषª व सामंजÖय भाव
पर ÿकाश डािलए।
३. 'और वह जा न सकì' एकांकì के कÃय पर ÿकाश डालते हòए एकांकì के संदेश को
समझाइए।
१०.७ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय, मुंबई
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69 ११
बहó कì िवदा
इकाई कì łपरेखा
११.० इकाई का उĥेÔय
११.१ ÿÖतावना
११.२ 'बहó कì िवदा' एकांकì कì कथावÖतु
११.३ 'बहó कì िवदा' एकांकì के ÿमुख पाý
११.४ सारांश
११.५ लघु°रीय ÿij
११.६ दीघō°री ÿij
११.७ िटÈपिणयाँ
११.८ संदभª úंथ
११.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई का उĥेÔय िवनोद रÖतोगी के एकांकì ‘बहó कì िवदा’ के िविवध प±Ō को
िवīािथªयŌ के सामने रखना है । इस इकाई के पठन के Ĭारा िवīाथê ‘बहó कì िवदा’ के
िविवध प±Ō से पåरिचत हो सक¤गे और भारतीय समाज म¤ ÓयाĮ दहेज के िघनौने व
बहòÖतरीय łप से पåरिचत हो सक¤गे ।
११.१ ÿÖतावना ‘बहó कì िवदा’ िवनोद रÖतोगी Ĭारा िलिखत एक अÂयंत लोकिÿय एकांकì है । इस एकांकì
के Ĭारा िवनोद रÖतोगी ने भारतीय समाज म¤ ÓयाĮ दहेज ÿथा के अÂयंत िघनौने łप को
पाठकŌ के सामने ÿÖतुत िकया है । पढ़े िलखे और संपÆन वगª म¤ यह ÿथा िजस ÿकार जड़े
जमा रही है वह बेहद िचंतनीय है । जीवनलाल एक ÿौढ़ उă था धनी-Óयापारी है । पैसे और
सुख-सुिवधाओं कì उसे कोई कमी नहé है, िफर भी दहेज का इतना बड़ा लोभी है िक वह
अपनी बहó के दहेज से असंतुĶ है और उसे सावन म¤ अपने भाई के घर िवदा करने से इंकार
कर देता है । बहó को िवदा करने कì एवज म¤ वह पाँच हजार łपए नगद माँगता है । दूसरी
तरफ उसे इस बात का घमंड़ भी है िक उसने अपनी बेटी गौरी कì शादी खूब दहेज देकर कì
है । और आज गौरी के घरवाले उसे सÌमान के साथ मायके भेज¤गे । परंतु उसे ठेस तब
लगती है जब गौरी को िवदा कराके लाने गया उसका अपना बेटा रमेश खाली हाथ आ जाता
है और गौरी के घरवाले उसे और दहेज कì लालच म¤ मायके भेजने से इंकार कर देते ह§ ।
लेखक इस एकांकì के Ĭारा यह बताना चाहता है िक िकस तरह ‘जैसे के साथ तैसा’
Óयवहा र समाज म¤ होता है । दहेज जैसी ÿथा यिद बंद न कì गई तो एक न एक िदन यह हर munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
70 Óयिĉ को दुख देगी । दूसरे कì बेटी को दुख देकर हम भी सुखी न रह सक¤गे । दहेज कì
पीड़ा को हम¤ भी झेलना होगा ।
११.२ 'बहó कì िवदा' एकांकì कì कथावÖतु 'बहò कì िवदा ' यह िवनोद रÖतोगी का चिचªत एकांकì है। इस एकांकì ने भारतीय समाज म¤
ÓयाĮ दहेज़ ÿथा पर करारी चोट कì है। इस एकांकì के माÅयम से एकांकìकार भारतीय
समाज को यह संदेश देना चाहते ह§ िक यिद समय रहते हमने दहेज जैसी अमानवीय ÿथा
पर रोक नहé लगाई तो हमारे समाज का हर वगª इस ÿथा से भयंकर łप से ÿभािवत होगा
और इसका सबसे बड़ा खािमयाजा हमारी बेिटयŌ तथा बहनŌ को उठाना होगा।
एकांकì के केÆþ म¤ सेठ जीवनलाल का चåरý है। सेठ जीवनलाल एक बेहद सफल, संपÆन
व धनी -मानी Óयापारी है, पर पैसे का बड़ा लालची है। वह इस बात से खुश नहé है िक उसे
एक अ¸छी व सेवाभावना रखनेवाली नेक बहò िमली है बिÐक वह इस बात से नाराज है िक
उसकì बहó ढ़ेर सारा दहेज लेकर नहé आई। इसी नाराजी के कारण जब सावन म¤ बहó का
भाई उसे मायके िवदा कराने के िलए आता है तब सेठ जीवनलाल उसे न िवदा करने पर
अड़ जाता है और बहó कमला के भाई ÿमोद को खरी -खोटी सुनाते हòए इस बात पर अड़
जाता है िक जब तक वह दहेज के पाँच हजार łपये नगद लाकर उसकì हथेली म¤ नहé रख
देता तब तक वह कमला कì िबदाई नहé करेगा। वह ÿमोद से कहता है िक ये पाँच हजार
łपये उसके िलए मरहम का काम कर¤गे। इसी मरहम से उसके अपमान का घाव भरेगा और
उसके बाद ही वह कमला को िवदा करेगा। सेठ जीवनलाल ÿमोद के सामने अपनी बेटी कì
शादी का ÿसंग रखते हòए कहता है िक देखो म§ने भी अपनी बेटी गौरी कì शादी कì है, पर
िकतने धूम-धाम से, जी-खोलकर दहेज िदया, बारात के Öवागत म¤ कोई कमी नहé रखी
िजÆहŌने देखा दातŌ तले उंगली दबा ली। वह ÿमोद को खरी-खोटी सुनाते हòए कहता है िक
उसने और उसकì माँ ने उसकì नाक काट ली बाराितयŌ का Öवागत और खान-पान भी वे
ठीक से नहé कर सके। उनके इस Óयवहार से उसे बड़ी ठेस पहòँची है, उसके िदल को चोट
लगी है। यह घाव तो जब तक नहé भरेगा तब तक वह दहेज के पाँच हजार łपये लाकर दे
जाएगा। जब वह पाँच हजार łपये नगद लाकर हथेली पर रख देगा तब ही वह उसकì बहन
कमला को िवदा करेगा। जीवनलाल के इस Óयवहार का िवरोध उसकì पÂनी राजेĵरी करती
है। राजेĵरी उसे िध³कारते हòए कहती है िक आिखर तुम भी तो िकसी बेटी के िपता हो, यिद
ऐसा Óयवहार तुÌहारी बेटी के साथ हो तो तुÌह¤ कैसा लगेगा? परंतु अपने अहंकार और लोभ
म¤ डूबा हòआ जीवनलाल उसे डांट देता है।
मामले को न सुलझते देखकर राजेĵरी ÿमोद से कहती है िक म§ तुÌह¤ पाँच हजार łपये देती
हóँ जाकर जीवनलाल के मुँह पर मारकर कह दो िक ये लो कागज के रंग-िबरंगे टुकडे, िजÆह¤
तुम आदमी से ºयादा Èयार करते हो। िकंतु ÿमोद और कमला उसके इस अनुúह को
Öवीकार नहé करते और ससÌमान इस ÿÖताव को अÖवीकार कर देते ह§।
इधर दूसरी तरफ जीवनलाल का बेटा रमेश जो अपनी बहन गौरी को िबदा कराने के िलए
गया था , वह खाली हाथ लौट आता है। जीवनलाल के पुछने पर वह बताता है िक गौरी के
घरवालŌ ने उसे िवदा करने से मना कर िदया है ³यŌिक उÆह¤ और दहेज चािहए। गौरी के munotes.in
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बहó कì िवदा
71 ससुराल प± के Ĭारा िकया गया यह Óयवहार जीवनलाल के िलए एक सीख सािबत होता है।
राजेĵरी उसे समझाती है िक वह जैसा Óयवहार दूसरŌ कì बेटी के साथ करेगा वैसा ही
Óयवहार उसकì अपनी बेटी के साथ होगा। उसे बेटी और बहó के बीच अंतर नहé करना
चािहए। राजेĵरी के समझाने के बाद जीवनलाल के Óयवहार म¤ पåरवतªन आ जाता है वह
अपनी गलती को Öवीकार करते हòए उसे सुधारता है और िबना िकसी अÆय दहेज के वह
कमला कì िबदाई के िलए तैयार हो जाता है। अपनी गलती को Öवीकार करते हòए वह ÿमोद
से कहता है, “मुझ और लिºजत न करो बेटा! मेरी चोट क इलाज बेटी कì ससुराल वालŌ ने
दूसरी चोट से कर िदया।....XXX... कभी-कभी चोट भी मरहम का काम कर जाती है, बेटा।”
इस ÿकार यह एकांकì एक सुखांत एकांकì है। अपने कÃय के माÅयम से दहेज के लोिभयŌ
को यह संदेश देता है िक बेटी और बहó म¤ अंतर नहé करना चािहए। और दहेज जैसे
अमानवीय ÿथा से बचना चािहए।
११.३ ‘बहó कì िवदा’ एकांकì के ÿमुख पाý जीवनलाल:
जीवनलाल ‘बहó कì िवदा ’ एकांकì का एक महÂवपूणª पाý है । उă म¤ ५० वषª पार कर चुका
जीवनलाल एक धनी Óयापारी है । पैसा ही उसका दीन-ईमान है । पयाªĮ माýा म¤ पैसे कमाने
के कारण उसम¤ पैसे का घमंड आ चुका है । वह हर चीज को पैसे से तौलता है । कमला के
भाई रमेश से जीवनलाल पाँच हजार łपए कì मांग अितåरĉ दहेज के łप म¤ करता है ।
जीवनलाल िमले हòए दहेज से संतुĶ नहé है । कमला का भाई ÿमोद जब पहले सावन के
अवसर पर उसे िवदा कराने आता है तो जीवनलाल कमला को िवदा करने से इंकार कर
देता है और पाँच हजार łपए नग द कì शतª रखता है । जीवनलाल ÿमोद से कहता है िक
जब पाँच हजार łपए नगद लाकर वह उसकì हथेली पर रख देगा तभी वह बहó अथाªत
कमला को सावन के अवसर पर िवदा करेगा ।
ÿमोद लाख िमÆनत¤ करता है, अपनी गरीबी का हवाला देता है । पåरवार कì िवषम िÖथितयŌ
को बताता है, पर जीवनलाल कोई भी तकª Öवीकार नहé करता और दहेज को लेकर वह
अपनी मांग पर अड़ा रहता है । अपने धन-ऐĵयª का ÿदशªन करते हòए वह अपनी बेटी गौरी
कì शादी का हवाला देता है । वह कहता है देखो हमने भी अपनी बेटी गौरी कì शादी कì है ।
इतना दहेज िदया और ऐसी खाितरदारी कì िक बारातवाले देखकर दंग रह गए । देखनेवालŌ
ने दाँतŌ तले उँगली दबा ली । मेरा बेटा रमेश गौरी को िवदा कराने थोड़ी देर म¤ लाता ही
होगा । बेटीवाले होकर भी हमारी मूँछ ऊँची है ।
जीवनलाल को ध³का उस समय लगता है जब रमेश खाली हाथ वापस आ जाता है । रमेश
जब उसे बताता है िक बहन गौरी के ससुराल वालŌ ने उसे सावन म¤ भेजने से इंकार कर
िदया ³यŌकì उÆह¤ और दहेज चािहए । वे कह रहे है िक र³कम पूरी नहé दी है । जब तक पूरा
दहेज नहé दे िदया जाएगा तब तक गौरी को वे िवदा नहé कर¤गे । इसी बीच राजेĵरी जो
जीवनलाल कì पÂनी है पåरŀÔय म¤ आ जाती है, और वह जीवनलाल को समझाती है िक
दूसरŌ कì बेटी के साथ भी वही Óयवहार करो जो तुम अपनी बेटी के साथ होते हòए देखना munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
72 चाहते हो । अरे अब तो आँख खोलो जब तक बहó और बेटी को एक-सा नहé समझोगे, न
सुख िमलेगा और न शांित । पÂनी के समझाने के बाद जीवनलाल को समझ म¤ आ जाता है
िक वह बहó कमला के साथ िकतना बड़ा अÆयाय कर रहा था और अंततः वह दहेज कì िजद
छोड़ देता है और बहó कमला को उसके भाई ÿमोद के साथ िवदा करने के िलए तैयार हो
जाता है ।
ÿमोद:
ÿमोद कमला का भाई है । २३ वषª कì अवÖथा का नवयुवक है । अपनी बहन कमला को
िवदा कराने के िलए वह उसके घर पहóँचता है पर उसे तब ठेस लगती है जब बहन का ससुर
जीवनलाल कमला को िवदा करने से इंकार कर देता है । जीवनलाल कहता है िक उसे
दहेज कम िमला है । यहाँ तक बारात को िखलाने-िपलाने म¤ भी कतरÊयŏत बरती गई इससे
िबरादरी म¤ उसकì बड़ी हँसी हòई और उसके सÌमान म¤ करारी चोट लगी है । अब जब तक
पाँच हजार łपए मरहम के łप म¤ उसे नहé िमल जाते तब तक वह कमला को िवदा नहé
करेगा । ÿमोद जीवनलाल से ÿाथªना करता है और कहता है गौने म¤ वह उनके िलए मरहम
जłर जुटा लेगा पर जीवनलाल मानने के िलए तैयार नहé होता । ÿमोद अपनी बूढ़ी माँ, घर
कì गरीबी और अपनी मजबूरी का हवाला देता है पर जीवनलाल टस से मस नहé होता । वह
ÿमोद पर Óयंµय करते हòए कहता है िक यिद इतने गरीब हो तो अपनी बराबरी के िकसी गरीब
घर म¤ िववाह ³यŌ नहé करवाया, हमारे जैसे धनी-मानी घर म¤ बहन का åरÔता ³यŌ जोड़ा ?
तुÌह¤ अपनी बराबरी का ´याल रखना चािहए था ।
जीवनलाल कì िजद और अपनी मजबूरी के चलते ÿमोद अंततः घर बेचने का िनणªय लेता
है । कमला को आĵÖत करते हòए वह कहता है िक इतनी िगरी हòए िÖथित म¤ भी घर सात-
आठ हजार म¤ िबक जाएगा । तुम िचंता मत करो म§ जीवनलाल के िलए अगली बार मरहम
जłर लाऊँगा और तुÌह¤ िवदा कराके ले जाऊँगा । िकंतु इसी बीच जब जीवनलाल को
अपनी बेटी गौरी के घर से दहेज कì ठेस लगती है तो उसे सĨुिĦ आ जाती है और वह
ÿमोद व कमला के ÿित अपनी राय को बदलते हòए बहó कì िवदा के िलए राजी हो जाता है ।
राजेĵरी:
राजेĵरी जीवनलाल कì पÂनी है िकंतु बेहद सुलझी हòई व मानवीय गुणŌ से भरी संवेदनशील
मिहला है । जीवनलाल अपने धन के ऐĵयª म¤ एक घमंड़ी Óयिĉ है वहé राजेĵरी एक
संवेदनशील, िवनă तथा परदुखकातर ľी है । जीवनलाल जब दहेज म¤ पाँच हजार
अितåरĉ łपयŌ कì मांग ÿमोद से करता है और उसके िबना कमला को िवदा करने से
इंकार कर देता है तब राजेĵरी ÿमोद कì मदत के िलए आगे आती है और ÿमोद को वह
आĵÖत करती है िक वह उसे पाँच हजार łपये दे देगी । वह उस łपये को जीवनलाल को
देकर अपनी बहन को ससÌमान िवदा कराके सावन के अवसर पर ले जाए । राजेĵरी
जीवनलाल का िवरोध करते हòए ÿमोद को आĵÖत करती है िक वह िनिIJंत रहे उसके बहन
कì िवदा होगी । वह भी एक माँ है और माँ के Ćदय कì छटपटाहट को वह समझती है । वह
कमला को ितजोरी कì चाभी दे देती है तथा पाँच हजार łपये िनकालकर ÿमोद को देने के
िलए कहती है । िकंतु ÿमोद व कमला इससे िझझकते ह§ । इसी बीच जब रमेश गौरी के घर munotes.in
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बहó कì िवदा
73 से खाली हाथ लौटता है और बताता है िक गौरी के घरवाले और ºयादा दहेज कì मांग कर
रहे ह§ तथा उसके अभाव म¤ वे िवदा करने के िलए िबलकुल तैयार नहé है । तब जीवनलाल
के घमंड को ध³का लगता है और उसे वाÖतिवकता का बोध हौता है । राजेĵरी इस समय
भी उसे समझाती है । राजेĵरी उसे समझाते हòए कहती है “अब भी आँखे नहé खुलé, जो
Óयवहार अपनी बेटी के िलए तुम दूसरŌ से चाहते हो, वही दूसरे कì बेटी को भी दो । जब तक
बहó और बेटी को एक सा नहé समझोगे, न सुख िमलेगा और न शांित ।” इस ÿकार बहòत
मुखर होकर राजेĵरी जीवनलाल के गलत कायª का िवरोध करती है और उसे समझाते हòए
कमला कì िवदा के िलए राजी कर लेती है । इस ÿकार राजेĵरी एक महÂवपूणª चåरý के łप
म¤ एकांकì म¤ आती है ।
११.४ सारांश 'बहó कì िवदा' एकांकì म¤ भारतीय समाज म¤ सिदयŌ से चलती आ रही ÿथा को दशाªया गया
है। सेठ जीवनलाल ने अपनी बेटी को दहेज देकर िवदा िकया था उसी तरह से दूसरे
पåरवारŌ कì और से अपे±ा रखता है। लेिकन यह अपे±ा पूरी होने से पहले ही बेटी के
ससुराल कì ओर से दहेज कì मांग कì जाती है यह सुनते ही बहó कमला के साथ बड़ा
अÆयाय कर रहा था यह बात उसे समझ म¤ आती है और बहó कमला को िवदा कर देता है।
११.५ लघु°रीय ÿij १. 'बहó कì िवदा' एकांकì के लेखक कौन है?
उ - िवनोद रÖतोगी 'बहò कì िवदा' एकांकì के लेखक है।
२. 'बहó कì िवदा' म¤ भारतीय समाज म¤ ÓयाĮ िकस ÿथा को दशाªया है?
उ - भारतीय समाज म¤ चलनेवाली दहेज ÿथा को 'बहó कì िवदा' एकांकì म¤ दशाªया गया
है।
३. सेठ जीवनलाल दहेज के łप म¤ ÿमोद से िकतने ŁपयŌ कì मांग करता है?
उ - सेठ जीवनलाल दहेज के łप म¤ पांच हजार कì मांग ÿमोद से करता है।
४. 'बहó कì िवदा' एकांकì म¤ दहेज ÿथा का िवरोध कौन करती है?
उ - 'बहó कì िवदा' एकांकì म¤ सेठ जीवनलाल कì पÂनी राजेĵरी दहेज ÿथा का िवरोध
करती है।
११.६ दीघō°री ÿij १. ‘बहó कì िवदा’ एकांकì के आधार पर जीवनलाल के चåरý पर ÿकाश डािलए ।
२. ‘बहó कì िवदा’ एकांकì के कÃय पर ÿकाश डालते हòए उसके संदेश को समझाइए । munotes.in
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74 ३. ‘बहó व बेटी को एक ŀिĶ से देखने कì आवÔयकता है ।’ बहò कì िवदा एकांकì के
आधार पर इस वा³य के औिचÂय को ÖपĶ कìिजए ।
११.७ िटÈपिणयाँ १. जीवनलाल
२. राजेĵरी
३. कमला
४. ÿमोद
११.८ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय , मुंबई
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75 १२
रात के राही
इकाई कì łपरेखा
१२.० इकाई का उĥेÔय
१२.१ ÿÖतावना
१२.२ ‘रात के राही’ एकांकì कì कथावÖतु
१२.३ ‘रात के राही’ एकांकì के ÿमुख पाý
१२.४ सारांश
१२.५ लघु°रीय ÿij
१२.६ दीघō°री ÿij
१२.७ िटपÁणी
१२.८ संदभª úंथ
१२.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई का उĥेÔय ‘रात के राही’ एकांकì के सभी प±Ō को िवīािथªयŌ के सम± रखना
है । इस इकाई के माÅयम से िवīाथê ‘रात के राही’ एकांकì के पाýŌ, कÃय, भाषा-शैली तथा
एकांकì के उĥेÔय से पåरिचत हो सक¤गे ।
१२.१ ÿÖतावना ‘रात के राही’ एकांकì म¤ मेजर वमाª व िमस लीला के बीच एक रात म¤ घटे घटनाøम का
वणªन है । रात म¤ होनेवाली इन घटनाओं का संबंध एक रेलयाýा से है । रात कì इस रेलयाýा
म¤ िमस लीला मेजर वमाª को अपने łप-सŏदयª म¤ फंसा कर उÆह¤ Êलैकमेल करना चाहती ह§ ।
िमस लीला मेजर वमाª के चåरý पर कìचड़ उछालती है पर मेजर वमाª अपनी चåरिýक ŀढ़ता
व समझदारी से िमस लीला के षड़यंý को पुिलस के सामने उजागर कर देते ह§ और िमस
लीला को पुिलस के Ĭारा िगरÉतार कर िलया जाता है ।
१२.२ ‘रात के राही’ एकांकì कì कथावÖतु ‘रात के राही’ एकांकì āजभूषण का एक महÂवपूणª एकांकì है । इस एकांकì के माÅयम से
āजभूषण यह बताने कì कोिशश करते ह§ िक िकस तरह िमस लीला जैसे लोग मेजर वमाª
जैसे लोगŌ को अपने łप सŏदयª के जाल म¤ फंसाकर उÆह¤ Êलैकमेल करते ह§ तथा ºयादा से
ºयादा łपये उगाहने कì कोिशश करते ह§ । िकंतु मेजर वमाª जैसे अ¸छे चåरý व पारखी
िनगाहŌ के लोग इस षड़यंý को पहचानकर समय रहते उससे बचने व षड़यंý के भंडाफोड़
का तरीका िनकाल लेते ह§ । munotes.in
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76 मेजर वमाª सेना के åरटायडª मेजर ह§ और प¤शन पर जीवन जी रहे ह§ । वे प¤शन लेकर रात कì
गाड़ी से वापस लौŞ रहे ह§ । उनके पास १५ हजार łपये ह§, इस बात कì भनक िमस लीला
को लग जाती है । िमल लीला पेशेवर Êलैकमेलर है । वह मेजर वमाª को अपने जाल म¤
फंसाकर १५ हजार łपये उनसे ले लेना चाहती है । पहले िमस लीला एक सËय पåरवार कì
लड़कì होने का Öवांग करती है । िफर अपनी गरीबी व शादी के शगुन के िलए पैसे कì मांग
करने लगती है । वह कहती है िक मेजर उसे पैसे उधार दे दे कुछ िदनŌ म¤ उसका भाई जो
मुंबई कì एक बड़ी फमª म¤ काम करता है वह जब वापस आएगा तो वह मेजर के पैसे लौटा
देगी । इसी बीच मेजर कì उसके रहने के तरीके व कपड़Ō ल°Ō से कुछ शक होने लगता है
और वह समझ जाता है िक िमस लीला जैसी िदख रही ह§ या िदखा रही ह§ वह उनका सच
नहé है ।
कुछ और समय बीतने पर मेजर वमाª िमस लीला से पानी िपला देने का आúह करते ह§ ।
और कहते ह§ सदê ºयादा होने के कारण वे ओवरकोट से अपना हाथ बाहर नहé िनकाल
सकते इसिलए बड़ी मेहरबानी होगी िक िमस लीला पानी के िगलास को उनके हŌठŌ से लगा
दे । िमस लीला िहचकते हòए पानी का µलास मेजर वमाª के ओंठŌ से लगा देती ह§ पर उनके
अंदर बैठा शाितर िदमाग मेजर को फांसने कì िफतरत म¤ लग जाता है । वह बार-बार मेजर
से पैसे उधार देने का आúह करती है । कुछ देर बाद मेजर वमाª को छéक आती है और वह
िमस लीला से आúह करता है िक वह बाÖकेट म¤ से łमाल िनकालकर उसकì नाक पŌछ दे
तो बड़ी मेहरबानी होगी । िमस लीला पहले तो िझझकतé है पर बाद म¤ वे मेजर वमाª कì नाक
łमाल से साफ कर देती ह§ िकंतु इसके साथ ही उनका साहस भी बढ़ जाता है और वे मेजर
वमाª से १५ हजार łपये कì मांग कर बैठती ह§ तथा न देने कì िÖथित म¤ बुरे अंजाम को
भुगतने कì भी धमकì देती ह§ । मेजर वमाª को धमकाते हòए वह कहती है िक यिद १५ हजार
łपये उÆहŌने उसे शराफत से नहé िदया तो वह गाड़ी कì जंजीर खéच लेगी और सभी से
िचÐलाकर कह¤गी िक मेजर वमाª ने उसकì इºजत पर हाथ ड़ाला । इस ÿकार मेजर कì
सारी इºजत धूल म¤ िमल जाएगी और पुिलस जो कारवाई करेगी वह अलग मेजर के िलए
समÖया खड़ी करेगी । मेजर समझ जाते ह§ िक वे एक Êलैकमेलर के जाल म¤ फंस गए ह§ पर वे
अपने साहस को बनाए रखते हòए िमस लीला को जंजीर खéचने के िलए कहते ह§ और िमस
लीला सचमुच ही जंजीर खéच लेती ह§ तथा गाडª के आनेपर मेजर कì ओर इशारा कर उस
पर अपनी इºजत पर हाथ डालने का आरोप लगाती ह§ । अगले Öटेशन पर पुिलस के सामने
मामले को रखा जाता है । पुिलस के आने पर वह इंÖपे³टर से कहतé है िक मेजर वमाª ने
उसकì इºजत पर हाथ ड़ालने कì कोिशश कì है । मेजर ने चलती ůेन म¤ उसे जबरदÖती
पकड़ िलया तथा उसके मुँह को बंद कर के जबरदÖती उसने उसे बथª पर पटक िदया । पर
उसने साहस के साथ काम करते हòए मेजर के सीने पर लात से जोरदार ÿहार िकया और
उसे धकेल कर अपने-आपको उसकì पकड़ से आजाद करवाया ।
िमस लीला के बयान के बाद इंÖपे³टर मेजर से अपना बयान देने के िलए कहते ह§ । पर
मेजर कहता है िक पहले इंÖपे³टर उसका ओवरकोट उतारे तभी वह अपना बयान देगा ।
इस पर इंÖपे³टर अनमने मन से बहòत ठंडी ÿितिøया देता है । इस पर मेजर का आवेश बढ़
जाता है और वह इंÖपे³टर पर जोर से िचÐलाता है । इंÖपे³टर झुंझलाते हòए मेजर के कोट
को खéचता है तो सभी देखकर हैरान हो जाते ह§ । मेजर कì दोनŌ भुजाएं नहé थé । गोली
लगने के कारण उÆह¤ काटना पड़ा था । इंÖपे³टर को सारी बात समझ म¤ आ जाती ह§ । वह munotes.in
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रात के राही
77 समझ जाता है िक िमस लीला मेजर को फंसाने कì कोिशश कर रही ह§ और वह अपने
िसपािहयŌ को उस लड़कì अथाªत िमस लीला को पकड़ने का आदेश देता है । मेजर िमस
लीला को उपदेश देते हòए कहता है “िमस लीला बाहर कì बात को असल बात समझकर
बहòत से लोग बहòत भूल करते ह§, तुम आगे ऐसी भूल मत करना ।”
इस ÿकार अपनी सूझ-बूझ से मेजर वमाª अपने ऊपर आए संकट से िनपटते ह§ और िमस
लीला को पुिलस को पकड़वाने म¤ सफल होते ह§ ।
१२.३ ‘रात के राही’ एकांकì के ÿमुख पाý मेजर वमाª:
मेजर वमाª ‘रात के राही’ एकांकì के ÿमुख पाý ह§ । मेजर वमाª सेना के åरटायडª अिधकारी है
और प¤शन पर अपना जीवनयापन करते हòए पाåरवाåरक उ°रदाियÂवŌ व सामािजक
िजÌम¤दाåरयŌ को िनभा रहे है । एक बार जब वे प¤शन के łपए लेकर लौट रहे थे और उनके
पास १५ हजार łपयŌ कì ठीक-ठाक रकम थी तभी वे Êलैकमेलर िमस लीला के िशकार हो
जाते ह§ । िमस लीला इस बात को भांप लेती है िक मेजर के पास ठीक-ठाक łपये ह§ और
उसे अपने łप – सŏदयª के जाल म¤ फंसाकर Êलैकमेल करना चाहती ह§ । पहले तो वह
अपनी गरीबी व पाåरवाåरक मजबुåरयŌ का हवाला देते हòए मेजर से पैसे उधार मांगती है िकंतु
उधार न िमलता देखकर वह अपने वाÖतिवक चåरý पर उतर आती है । वह मेजर को
धमकाते हòए कहती ह§ िक या तो मेजर उसे १५ हजार łपये सीधे से दे दे, अथवा वह गाड़ी
कì चेन खéचकर उस पर अपनी इºजत पर हाथ ड़ालने का आरोप लगाएगी । वह करती भी
ऐसा ही है, पर मेजर इस संकट से नहé डरता और इंÖपे³टर से अपना ओवरकोट
उतरवाकर अपनी दोनŌ कटी हòई भुजाओं को िदखाता है और यह सािबत कर देता है िक
िमस लीला जो भी कुछ कह रही थी वह झूठ था । इंÖपे³टर िमस लीला के वाÖतिवक चåरý
को समझ जाता है और उसे िगरÉतार करके जेल म¤ ड़ाल देता है और मेजर से माफì मांगते
हòए खेद ÿकट करता है ।
िमस लीला:
िमस लीला ‘रात के राही’ एकाकì कì दूसरी महÂवपूणª पाý ह§ । िनÌनमÅयम पåरवार से संबंध
रखनेवाली िमस लीला एक अित महÂवांका±ी व शाितर लड़कì है । मेहनत करके कमाने व
संयिमत जीवन जीने के Öथान पर उसने Êलैकमेिलंग के Ĭारा ºयादा व आसान पैसे बनाने
का तरीका चुना है । ůेन के फÖटª-³लास िडÊबे के मासूम याýी उसके िशकार बनते है । इसी
øम म¤ वह मेजर वमाª को भी फंसाने व लूटने कì कोिशश करती है । पहले वह मेजर को
अपनी बातŌ म¤ फंसाना चाहती है घर कì गरीबी का हवाला देकर उससे łपय¤ उधार मांगती
है पर जब मेजर पर उसकì यह चाल नहé चलती तो वह धमकì देने पर उतर आती है । वह
मेजर पर अपनी इºजत पर हाथ ड़ालने का आरोप लगाती है । पुिलस कì पूछताछ म¤ वह
बयान भी इसी ÿकार का देती है और मेजर Ĭारा अपनी साड़ी को खéचे जाने, बलात बथª
पर पटके जाने का आरोप लगाती है । िकंतु मेजर जब अपनी दोनŌ कटी बाहŌ को िदखाता है
तो िमस लीला कì चाल वह समझ जाता है और िमस लीला को पकड़ने का आदेश
िसपािहयŌ को देते हòए मेजर वमाª से माफì मांगता है । munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
78 इस ÿकार मेजर वमाª कì सूझ-बूझ से िमस लीला अपने ही इस िबछाये जाल म¤ उलझ जाती
है ।
१२.४ सारांश ÿÖतुत एकांकì म¤ सेना के सेवािनवृ° मेजर वमाª प¤शन लेकर याýा कर रहे थे। उसी वĉ ůेन
म¤ िमस लीला Êलैकमेल करने कì कोिशश करती है और पुिलस के सामने इºजत लूटने का
आरोप मेजर वमाª पर लगाती है। परÆतु मेजर वमाª समय पर िमस लीला कì चाल को पहचान
लेता है और षड़यंý से बच जाता है।
१२.५ लघु°रीय ÿij १. िमस लीला अपने łप सŏदयª के जाल म¤ िकसे फसाती है?
उ - मेजर वमाª को।
२. मेजर वमाª रात कì गाड़ी से ³या लेकर लौट रहे थे?
उ - प¤शन।
३. मेजर वमाª को िकतने ŁपयŌ कì प¤शन िमलती है?
उ - मेजर वमाª को १५ हजार Łपये कì प¤शन िमलती है।
१२.६ दीघō°री ÿij १. ‘राक के राही’ एकांकì के कÃय पर ÿकाश डालते हòए उसके संदेश को समझाइए ।
२. ‘राक के राही’ एकांकì के आधार पर मेजर वमाª के चåरý का िचýण कìिजए ।
३. ‘राक के राही’ एकांकì के आधार पर िमस लीला के शाितर चåरý का उĤाटन
कìिजए ।
१२.७ िटÈपणी १. मेजर वमाª
२. िमस लीला
३. ‘राक के राही’ एकांकì कì भाषा शैली
१२.८ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय, मुंबई
***** munotes.in
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79 १३
जान से Èयारे
इकाई कì łपरेखा
१३.० इकाई का उĥेÔय
१३.१ ÿÖतावना
१३.२ ‘जान से Èयारे’ एकांकì कì कथावÖतु
१३.३ ‘जान से Èयारे’ एकांकì के ÿमुख पाý
१३.४ ‘जान से Èयारे’ एकांकì का संदेश
१३.५ सारांश
१३.६ लघु°रीय ÿij
१३.७ दीघō°री ÿij
१३.८ संदभª úंथ
१३.० इकाई का उĥेÔय एकांगी ‘जान से Èयारे’ एक यथाथªवादी एकांगी है । ÿÖतुत इकाई का उĥेÔय इस एकांकì के
सभी प±Ō पर िवचार करना है । यह इकाई ‘जान से Èयारे’ एकांकì के कÃय, पाý, भाषा शैली
व उसके संदेश पर ÿकाश डालती है ।
१३.१ ÿÖतावना एकांकì ‘जान से Èयारे’ ममता कािलया Ĭारा िलिखत यथाथªवादी एकांकì है । इस एकांकì के
माÅयम से लेिखका इस बात कì ओर हमारा Åयान आकृĶ करना चाहती है िक हमारे समाज
के सारे åरÔते अब Öवाथª केिÆþत हो चुके ह§ । संतान¤, बेटे-बहó, पित-पÂनी सभी Öवा थª के
आधार पर ÿेम करते ह§ । ये सभी हमारी संपि° और łपये-पैसे से Èयार करते ह§ । Öवाथª
पूरा हो जाने के बाद ये िकसी भी तरह के संबंध को कोई महÂव नहé देते । जीते जी ये केवल
ÿेम का िदखावा करते ह§ । मरने के बाद इनका सारा ÿेम गायब हो जाता है । एकांकì के
ÿमुख पाý डॉ. कौिशक व उनका सहायक अिवनाश एकांकì के अंत म¤ इसी सच तक
पहòंचते ह§ ।
१३.२ ‘जान से Èयारे’ एकांकì कì कथावÖतु ÿÖतुत एकांकì कì शुŁआत डॉ. कौिशक के एक ÿयोग से होती है । डॉ. कौिशक जो एक
वै²ािनक भी ह§, अपनी ÿयोगशाला म¤ एक ÿयोग लगातार िपछले कई वषŎ से कर रहे थे । वे
एक ऐसा सॉÐयूशन तैयार करने म¤ लगे थे िजससे मृत ÿाणी िफर से जीिवत हो सके और
एक िदन ऐसा चमÂकार हो जाता है । एक मरे हòए øोकोच को जब वे अपने Ĭारा तैयार िकए munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
80 गए सॉÐयूशन म¤ डालते ह§ तो वह उठकर चलने लगता है । अपनी इस सफलता पर डॉ.
कौिशक बहòत खुश हो उठते ह§ और अपनी सफलता वे अपने युवा सहयोगी अिवनाश से
साझा करते ह§ । अिवनाश पहले तो इस पर िवĵास नहé करता पर अंतत: अिन¸छा से
Öवीकार कर लेता है । डॉ. कौिशक अपनी इस सफलता से अब łपये कमाने के बारे म¤
सोचता है । उसे लगता है िक पुनजêवन देनेवाले इस घोल कì मदत से वह थोड़े ही समय म¤
बहòत अिधक धन कमा लेगा और यह िसĦ कर देगा िक उसने मृÂयु पर िवजय पा ली है ।
वह मृÂयु के भय व पीड़ा से कराहती मानवता के िलए जीवन संदेश लाने म¤ सफल िसĦ
हòआ है । अपनी योजना के अनुसार वह अपना सॉ Ðयूशन बेचने िनकलता है, उसके साथ
उसका सहयोगी अिवनाश भी है । ये दोनŌ सबसे पहले 'भावनानगर ’ पहòंचते ह§ ।
भावनानगर म¤ एक सेठ कì मृÂयु हòई है । मृÂयु के शोक म¤ पåरवार िवलाप कर रहा है । उसके
दोनŌ पुý भी िवलाप कर रहे ह§ । बहòएं भी उसे याद करके िवलाप कर रहé ह§ । इस िवलाप से
िवचिलत डॉ. कौिशक सेठ के दोनŌ पुýŌ को बुलाते ह§ और अपने चमÂकारी सॉÐयूशन के
बारे म¤ बताते हòए उनसे यह कहते है कì यिद वे चाह¤ तो वह उनके िपता को िफर से जीिवत
कर सकते ह§ । डॉ. कौिशक के इस ÿÖताव को पहले तो दोनŌ बेटे अिवĵास कì ŀ िĶ से
देखते ह§ िफर वे आपस म¤ चचाª करते ह§ िक वसीयतनामा तो ठीक-ठाक है, लेन देन तो
िपताजी ने िनपटा िदया है । जब वे पाते है िक सबकुछ ठीक से िनपटा िदया गया है तो बड़ा
बेटा आगे आकर डॉ. कौिशक से कहता है िक डॉ. साहब आप इस सब मामले म¤ न पड़¤ ।
हमपर जो पड़ी है उसे हम¤ ही िनपटाने दीिजए । इस ÿकार अÿÂय± तरीके से वे डॉ³टर को
मना कर देते ह§ ।
उपयुªĉ घटना से िनराश डॉ. कौिशक ‘आÖथा नगर’ कì ओर बढ़ते ह§ । ‘आÖथा -नगर’ म¤
एक उăदराज औरत कì मृÂयु हो गई है । उसकì बहó व उसका बेटा शोक मनाने का िदखावा
कर रहे ह§ । बहó हाथ म¤ कई जरी कì साड़ी िलए हòए खड़ी है । सभी औरत¤ िमलकर सलाह
कर रही ह§ िक उन सािड़यŌ म¤ से कौन सी साड़ी मृत सास के पािथªव शरीर पर चढ़ाया जाय,
और अंत म¤ यह िनणªय होता है िक उन सािड़यŌ म¤ से जो सबसे हÐकì और पुरानी जरी कì
साड़ी है, उसे शव पर चढ़ा िदया जाय । दूर खड़े डॉ. कौिशक यह सबकुछ देख रहे थे, इतने
म¤ मृतक का बेटा िदखाई पड़ता है । डॉ. कौिशक उसे इशारे से अपनी ओर बुलाते है और
यह समझाते है िक वे अपने चमÂकारी सॉÐयूशन से उसकì मृत माँ को जीिवत कर सकते ह§
। युवक को इस सूचना से एक आश बंधती है और वह उ°ेिजत हो उठता है िकंतु इसी बीच
उसकì पÂनी िगåरजा आ जाती है और जब उसे इस बात का पता चलता है तो वह डॉ.
कौिशक कì ओर कतरवनेपन से देखती है । िगåरजा डॉ. कौिशक को डांटते हòए कहती है िक
इतनी लंबी बीमारी म¤ तड़पने के बाद अभी तो सासू माँ चैन से सोई ह§ और आप इसम¤ भी
खलल पैदा करना चाहते ह§ । इÆह¤ िफर से जीिवतकर हम अपने िलए और Öवयं उनके िलए
मुिÔकल नहé पैदा करना चाहते, आप मेहरबानी करके यहाँ से चले जाइए । इस ÿकार डॉ.
कौिशक को यहाँ भी िनराशा ही हाथ लगती है ।
आÖथा नगर से िनराश डॉ. कौिशक ‘मुहÊबत नगर’ कì ओर चल देते ह§ । मुहÊबत नगर म¤
कैÈटन शमाª कì मृÂयु ‘एयर-øैश’ से हòई है । उनकì नवयुवती िवधवा सफेद कपड़Ō म¤ बैठी
ऑंसू बहा रही है । उसे देखकर ही डॉ³टर कौिशक को बड़ी दया आती है । डॉ³टर कौिशक
उसे अपने पास बुलाते ह§ और अपनी चमÂकारी दवा के बारे म¤ बताते ह§ । डॉ. शमाª उस munotes.in
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जान से Èयारे
81 िवधवा नवयुवती से कहते ह§ िक म§ आपके पित को नवजीवन दे सकता हóँ । डॉ. कौिशक ने
इस ÿÖताव को वह नवयुवती यह कहते हòए ठुकरा देती है िक वह धूतª लोगŌ पर िवĵास नहé
कर सकती और वह अपने पित कì पिवý काया को अपिवý नहé करवा सक ती । वह
नवयुवती तमतमाकर डॉ³टर और उनके सहयोगी को भगा देती है । युवती को यह िबÐकुल
अ¸छा नहé लगता िक मृत पित के बीमा के ŁपयŌ कì आश टूट जाए और वह िफर से
बरहाली म¤ लौट जाए । डॉ³टर कौिशक महबूबनगर से भी िनराश होकर ‘इबादत नगर’ कì
ओर चल देते ह§ । ‘इबादत न गर’ कì बÖती म¤ एक मकान के बरामद म¤ भीड़ जुटी थी । एक
बहòत कम उă कì नववधू कì मृÂयु हो गई थी । उसका पित बार -बार उसका नाम लेकर
दहाड़े मारकर रो रहा था । हाय कÌमो तू कहां चली गई? तुझे ³या हो गया? पित कì दहाड़Ō
को सुनकर डॉ. कौिशक को पित के िलए सहानुभूित उमड़ आई । उÆहŌने पित से कहा कì
आप िचंता न कर¤ म§ आपकì पÂनी को नया जीवन देने आया हóँ । डॉ. कौिशक के इस
ÿÖताव पर कÌमो का पित आIJयª और िचढ़ के साथ डॉ³टर कì ओर देखता है । उसे लगता
है िक कहाँ यह सनकì डॉ³टर एक नई मुसीबत लेकर आ गया । िफर वह बड़ी दाशªिनक
भाव भंिडमा बना लेता है और कहता है िक कÌमŌ एक हाड़-मांस कì काया का नाम नहé है
डॉ³टर साहब बिÐक वह मेरे िलए एक जºबात है । एक ऐसा जºबात जो मेरी नस-नस म¤
समाया हòआ है । वह मेरे घर के हर कोने म¤ समायी हòई है । सं±ेप म¤ यिद कहा जाय तो वह
अÿÂय± łप से डॉ³टर के ÿÖताव को Öवीकार करने के िलए तैयार नहé था । वह नहé
चाहता था िक कÌमो, पुनªजीिवत हो । उसने तो अखबार म¤ अपनी दूसरी शादी को लेकर
िव²ापन देखने और मनपसंद िव²ापनŌ पर िनशान लगाना भी शुł कर िदया था । डॉ.
कौिशक से बात करते हòए कÌमो का पित उस अखबार से अपना मुँह ढक लेता है िजसम¤
उसने शादी के िव²ापनŌ पर िनशान लगा रखे ह§ । डॉ. कौिशक इसे देखकर समझ जाते ह§
िक कÌमो का पित उनके ÿÖताव म¤ कोई Łिच नहé रखता और कÌमो के ÿित उसका सारा
दुख िदखावटी है ।
अंतत: िनराश होकर डॉ . कौिशक और अिवनाश वहाँ से िनकल लेते ह§ । डॉ. कौिशक को
यह समझ म¤ आ जाता है िक दुिनया का चåरý िदखावटी है । लोग अपने लाभ-लोभ के
कारण िकसी भी मृत Óयिĉ को िफर जीिवत होता हòआ नहé देख सकते । Öवाथª से भरी इस
दुिनया म¤ िनÖवाथª ÿेम व सŃदयता लुĮ हो चुकì है । अिवनाश िनराश डॉ . कौिशक को
समझाता है “मौत जािलम है, मगर िजÆदगी के कायदे उससे भी ºयादा जािलम!” इस ÿकार
िजंदगी कì हकìकत को ºयादा करीब से समझकर डॉ. कौिशक और अिवनाश वापस लौट
जाते ह§ ।
१३.३ ‘जान से Èयारे’ एकांकì के ÿमुख पाý डॉ. कौिशक:
डॉ. कौिशक ‘जान से Èयारे’ एकांकì के केÆþीय पाý ह§ । डॉ. कौिशक एक तेज तराªर
वै²ािनक ह§ । अपनी मेहनत से वे एक ऐसा सॉÐयूशन बनाने म¤ सफल हो जाते ह§ िजसम¤
डालने से कोई भी मृत ÿाणी िफर से जीिवत हो जाता है । इस सफलता पर डॉ. कौिशक बड़े
ÿसÆन होते ह§ और उÆह¤ लगता है िक अब वे दुिनया के सबसे अमीर Óयिĉ बन जाएंगे । इस
सॉÐयूशन म¤ लोग मूँह मांगी कìमत चुका कर भी खरीद¤गे यīिप उनका सहायक इस munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
82 सॉÐयूशन कì मांग को लेकर डॉ. कौिशक कì तरह उÂसािहत नहé है । उसे लगता है िक
जीवन और मृÂयु ÿकृित कì बनायी शाĵत ÓयवÖथाएँ ह§ इÆह¤ चुनौती नहé देना चािहए ।
दूसरे िदन डॉ. कौिशक और अिवनाश इस सॉÐयूशन को लेकर बेचने के उĥेÔय से िनकलते
ह§ । अखबार मे शोक संदेशŌ से मृतकŌ के नाम और पते नोटकर वे उनके घरŌ पर पहòँचते ह§
तािक सॉÐयूशन बेचकर पैसे कमाए जा सके । ‘भावनानगर ’ ‘आÖथानगर ’ ‘मुहÊबतनगर’
‘इबादत नगर’ जैसी तमाम बिÖतयŌ म¤ कई घरŌ पर ये दोनŌ जाते ह§ । कहé िपता कì मृÂयु हòई
ह§, कहé सासू कì तो कहé पित या पÂनी कì मृÂयु हòई है । सभी ऊपर –ऊपर से रो रहे ह§,
शोक संतĮ होने का िदखावा कर रहे ह§ पर अंदर से ये कोई भी नहé चाहते िक उनके मृत
िपता, सास, पित या पÂनी िफर से जीिवत िकए जाय¤ । सभी िकसी न िकसी बहाने डॉ.
कौिशक को टाल देते ह§ या िफर डांट कर भगा देते ह§ । डॉ. कौिशक समझ जाते ह§ िक इस
Öवाथê दुिनया म¤ उनके सॉÐयूशन कì िकसी को कोई जł रत नहé है । उनका सहयोगी
अिवनाश भी, “मौत जािलम है, मगर िजÆदगी के कायदे उससे भी ºयादा जािलम !” कहकर
इस बात को और पुĶ करता है । इस ÿकार दुिनया के वाÖतिवक चåरý को समझकर डॉ.
कौिशक और अिवनाश वापस लौट आते है ।
१३.४ ‘जान से Èयारे’ एकांकì का संदेश: “जान से Èयारे” एकांकì एक यथाथªवादी एकांकì है । इस एकांकì के माÅयम से लेिखका
ममता कािलया दुिनया के वाÖतिवक चåरý का उĤाटन करती ह§ । यīिप शोक म¤ जािलम।
डॉ. कौिशक अपने पुनजêवन देनेवाले फामूªले से बड़ा उÂसािहत है। उसे लगता है उसने
दुिनया कì सबसे बड़ी सफलता पा ली है । उसने ÿकृित पर िवजय पा ली है । अब जीवन
का सÂय बदल गया है । जीवन तो है पर मृÂयु अब नहé रह गई है । मृÂयु को म§ने बदल िदया
है । डॉ. कौिशक को लगता है िक उसने मृÂयु कì पीड़ा और भय पर िवजय ÿाĮ कर िलया है
। मृÂयु कì पीड़ा से कराहती मानवता को वह अब और कराहने नहé देगा । अपने इस
अदभुत सॉÐयूशन से उसे बड़ी, आस बंधती है । उसे लगता है िक इस सॉÐयूशन कì माँग
दुिनया म¤ तेजी से होगी और मुँह मांगे ŁपयŌ म¤ वह इसे बेचकर दुिनया का सबसे अमीर
Óयिĉ बन जाएगा ।
अपने इस सॉÐयूशन को बेचने के िलए वह अपने सहयोगी के साथ िनकलता है । अखबारŌ
के शोक संदेशŌ को पढ़कर वह कई मृतकŌ के घरŌ तक पहòँचता है । वह जहाँ भी पहòँचता है
उसे िनराशा हाथ लगती है । मृत िपता, सास, पित या पÂनी को कोई िफर से जीिवत नहé
करवाना चाहता ³यŌिक उनके सभी के अपने–अपने Öवाथª ह§ । बेटŌ को िपता कì संपि° से
Èयार है, बहó सोचती है िक सास मर गई चलो अ¸छा हòआ अब उसकì ितमयदाती नहé
करनी पड़ेगी । पÂनी, पित से ºयादा उसके मृÂयु के बाद िमलने वाले बीमा के पैसŌ से Èयार
करती है और मृतक पÂनी का पित दूसरी पÂनी को खोज रहा है तािक अपनी िजंदगी िफर
से आबाद कर सके । इस ÿकार कोई भी यह नहé चाहता था िक उनके मृत संबंधी या
पåरवार जन िफर से जीिवत हो, और हर जगह से डॉ. कौिशक व अिवनाश िनराश होकर
लौटते ह§ । अपने कÃय के Ĭारा यह एकांकì इसी संदेश को देता है िक यह दुिनया Öवाथê है
। हर संबंध जीिवत रहते ही मायने रखते ह§ । मृÂयु के बाद सारे संबंध अथªहीन हो जाते ह§ । munotes.in
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जान से Èयारे
83 Öवाथê दुिनया के कायदŌ के आगे मृÂयु कì भयावहता भी कमजोर पड़ जाती है । लालच
और Öवाथª के ÿवाह म¤ पड़कर सारे संबंध व सारी आÂमीयता नĶ हो जाती है ।
१३.५ सारांश 'जान से Èयारे' एकांकì म¤ डॉ. कौिशक एक वै²ािनक है और एक सॉÐयुशन तैयार करता है।
यह सॉÐयुशन लेकर समाज के बीच पहòँचकर काफì Łपये कमाने का मकसद होता है परंतु
उसे समाज Öवीकार नहé करता है। अपने लोभ-लाभ के कारण मृत Óयिĉ को जीिवत होता
हòआ समाज नहé देखना चाहता है। समाज का यह चåरý एक ÿकार का िदखावटी चåरý कì
तरह िदखाई देता है। उसे इस एकांकì के माÅयम से ममता कािलया जी ने ÿÖतुत िकया है।
१३.६ लघु°रीय ÿij १. 'जान से Èयारे' एकांकì के लेखक कौन है?
उ - ममता कािलया।
२. डॉ. कौिशक सवªÿथम सॉÐयुशन का ÿयोग िकस पर करते है?
उ - डॉ. कौिशक सवªÿथम सॉÐयुशन का ÿयोग एक मरे हòए øोकोच पर करते है।
३. डॉ. कौिशक सहयोगी के साथ सबसे पहले सॉÐयुशन लेकर िकस नगर म¤ पहòँचते है?
उ - भावनानगर म¤।
१३.७ दीघō°री ÿij १. ‘जान से Èयारे’ एकांकì म¤ आई अलग–अलग बिÖतयŌ के नामŌ के आधार पर उन
बिÖतयŌ म¤ मृतकŌ के घर पर होनेवाले ÓयवहारŌ पर ÿकाश डािलए ।
२. ‘जान से Èयारे’ एकांकì के कÃय पर ÿकाश डालते हòए, एकांकì के संदेश को
समझाइए ।
३. ‘मौत जािलम है, मगर िजÆदगी के कायदे उससे भी ºयादा जािलम ।’ इस कथ न के
आधार पर ’जान से Èयारे’ एकांकì के कथावÖतु का िवĴेषण कìिजए ।
१३.८ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय , मुंबई
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84 १४
अÆवेषक
इकाई कì łपरेखा
१४.० इकाई का उĥेÔय
१४.१ ÿÖतावना
१४.२ ‘अÆवेषक’ एकांकì कì कथावÖतु
१४.३ ‘अÆवेषक’ एकांकì के महÂवपूणª पाý
१४.४ सारांश
१४.५ लघु°रीय ÿij
१४.६ दीघō°री ÿij
१४.७ संदभª úंथ
१४.० इकाई का उĥेÔय यह इकाई ÿताप सहगल Ĭारा िलिखत एकांकì ‘अÆवेषक’ पर आधाåरत है । इस इकाई के
माÅयम से ‘अÆवेषक’ के सभी प±Ō पर संतुिलत ढंग से िवचार िकया गया है ।
१४.१ ÿÖतावना ÿताप सहगल Ĭारा िलिखत एकांकì ‘अÆवेषक’ कì पृķभुिम ऐितहािसक है । इस एकांकì म¤
गुĮकाल म¤ हòए असाधारण ÿितभा संपÆन आचायª आयªभट के जीवन व उनके संघषŎ व
िवरोधŌ पर ÿकाश डाला गया है । आचायª आयªभट ने पूरी दुिनया को कई महÂवपूणª सÂयŌ
से पåरिचत कराया । शूÆय व दशमलव जैसी गिणतीय संकÐपनाओं के साथ–साथ आचायª
आयªभट ने पूरी दुिनया को यह बताया िक पृÃवी अपने अ± पर घूमते हòए सूयª कì पåरøमा
करती है । इसी पåरøमा के पåरणाम Öवłप िदन व रात होते ह§ । उÆहŌने यह भी बताया िक
सूयªúहण व चÆþúहण एक खगोलीय पåरघटना है । इसके पीछे सूयª–चंþ व पृÃवी कì गितयाँ
कì भूिमका है । यह िकसी दैवीय कृपा या कोप का पåरणाम नहé है । आचायª आयªभट एक
स¸चे अÆवेषक से अपने अÆवेषण व उसकì Öथापनाओं को समाज के सम± रखने पर उÆह¤
चूड़ामिण व िचंतामिण जैसे आचायŎ का िवरोध भी झेलना पड़ा पर वे सारे िवरोधŌ को झेलते
हòए सÂय के साथ साहस के साथ खड़े रहे ।
१४.२ 'अÆवेषक' एकांकì कì कथावÖतु ‘अÆवेषक’ एकांकì म¤ गुĮकालीन आचायª आयªभट के जीवन व उससे जुड़ी घटनाओं का
सुंदर वणªन िकया गया है । एकांकì कì पृķभुिम गुĮकाल कì है । गुĮकाल के ±ीणकाल म¤
जब सăाट बुधगुĮ गुĮ साăाºय कì बागडोर संभाल रहे थे उसी समय पाटिलपुý म¤ उ¸च
मनीषा संपÆन आचायª आयªभट अपने महÂवपूणª खगोल शाľीय अÅययन म¤ लगे थे । munotes.in
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अÆवेषक
85 आचायª आयªभट कì कìितª तब तक समाज म¤ सुिव´यात हो चुकì थी । शूÆय व दशमलव
जैसी गिणतीय संकÐपना व उसके संयोग कì वै²ािनकता ने आचायª आयªभट कì ÿितभा व
उ¸च मेधा कì झलक गुĮ साăाºय के िवĬत समाज को िदखा दी थी । सăाट बुधगुĮ समेत
साăाºय म¤ उनके अनेक ÿशंसक व िवरोधी पैदा हो चुके थे । जहाँ एक ओर वै²ािनक ŀिĶ
रखनेवाले िववेकवान लोग आचायª के ÿशंसक थे । वहé दूसरी तरफ चूड़ामिण व िचÆतामिण
जैसे परंपरावादी व लालची िवĬान आचायª के घोर िनंदक व िवरोधी भी बन चुके थे ।
आचायª आयªभट कì उ¸च ÿितभा व मेधा से ÿभािवत सăाट बुधगुĮ उÆह¤ नालंदा
िवĵिवīालय म¤ कुलपित पद को Öवीकार करने का ÿÖताव देते ह§ परंतु पद लोलुपता से
सवªथा दूर व अपने अÆवेषण म¤ िनरंतर लगे आचायª इस ÿÖताव को िवʼnमता से अÖवीकार
कर देते ह§ । आचायª आयªभट िनरंतर अपने अÅययन व अÆवेषण म¤ लगे रहते ह§ । रात–रात
भर जगकर वे अपने वेधशाला म¤ न±ýŌ का अÅययन करते ह§ और अंतत: इस िनÕकषª पर
पहòंचते ह§ िक परंपरागत अवधारणाएं जो पृÃवी कì िÖथरता से व सूयª तथा चÆþúहण से
जुड़ी ह§ वे गलत ह§ । वे िसĦ करते ह§ िक पृÃवी िÖथर नहé है । अÆय खगोलीय िपडŌ कì तरह
वह भी गितमान है । पृÃवी अपने अ± पर भी घूमती है और अपने अ± पर घूमते हòए वह सूयª
कì भी पåरøमा करती है । अपने अ± पर घूमते हòए वह २३ घंटे ५६ पल और ४.१ ±ण का
समय लेकर पूवª कì ओर का एक च³कर पूरा करती है । इस ÿकार वह वषª भर म¤ ३६५
च³कर लगाती ह§ । ठीक इसी तरह वे सूयªúहण व चÆþúहण से संबंिधत माÆयताओं को
खाåरज़ करते हòए एक नई वै²ािनक Öथापना देते है । आचायª कहते है िक सूयªúहण व
चÆþúहण िकसी दैवीय कृपा या कोप के कारण नहé होते बिÐक वे खगोलीय िÖथितयŌ व
गितयŌ के कारण होते ह§ ।
आचायª कì इन वै²ािनक Öथापनाओं को तÂकालीन परंपरावादी व लालची िवĬत समाज
Öवीकार नहé कर पाता है । चूड़ामिण व िचंतामिण जैसे आचायª इसी परंपरावादी व लोलुप
िवĬत समाज के ÿितिनिध ह§ । वे जानते थे िक यिद आचायª आयªभट कì Öथापनाएं Öवीकृत
हो जाती ह§ तो जनता वाÖतिवकता जान जाएगी और धमª के नाम पर जो दान–धमª कì
परंपराएं चल रही ह§ वे बंद हो जाय¤गी । Óयिĉगत łप से भी वे आचायª आयªभट कì मनीषा व
ÿिसिĦ से इÕयाª करते थे । इसीिलए वे राजदरबार म¤ सăाट बुधगुĮ के सामने आचायª
आयªभट कì Öथापनाओं का िवरोध करते ह§ । उÆह¤ अतािकªक व िमÃया ²ान का ÿचारक
कहते ह§ । वेद व ऋिष परंपरा का िवरोधी बताते ह§ । िकंतु आचायª के वै²ािनक तकŎ व
ÿमाणŌ को वे काट नहé पाते । आचायª के अनेक िसĦांतो को सăाट बुधगुĮ उनके िशÕयŌ के
Ĭारा अ¸छी तरह समझ लेते ह§ और अपनी सहज ÿ²ा से समझ जाते ह§ िक आचायª कì
Öथापनाएं पूरी तरह वै²ािनक व मौिलक ह§ । सăाट आचायª कì इन महÂवपूणª Öथापनाओं
के úंथ आयªभटीय को Óयापक łप से ÿचाåरत-ÿसाåरत करने का आदेश देते ह§ तािक ²ान
कì इस नयी ŀिĶ से जनता पåरिचत हो सके और गुĮ साăाºय कì शै±िणक व सांÖकृितक
ŀिĶ िवरासत आगे बढ़ती रहे । इस ÿकार अÆवेषण एकांकì के माÅयम से ÿताप सहगल
आचायª आयªभट के अÆवेषक चåरý व उनके जीवनसंघषª का उĤाटन करते हòए यह बताने
कì कोिशश करते ह§ िक हर स¸चे अÆवेषक के राÖते सरल नहé होते । अÆवेषण के पåर®म
के साथ–साथ उÆह¤ सÂय कì Öथापना के िलए िवरोध झेलने व संघषª करने के िलए भी
तैयार रहना चािहए । munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
86 १४.३ ‘अÆवेषक’ एकांकì के महÂवपूणª पाý आचायª आयªभट:
‘अÆवेषक’ एकांकì के कई पाýŌ म¤ आचायª आयªभट का चåरý केÆþीय चåरý है । आचायª
आयªभट गुĮ सामाƶय के ±ीणकाल म¤ हòए । उस समय गुĮ साăाºय के सăाट बुधगुĮ थे
और पाटिलपुý उनकì राजधानी थी । आचायª आयªभट अĩुत ÿितभा के धनी थे । केवल
२३ वषª कì आयु म¤ ही आचायª आयªभट शूÆय व दशमलव के ÿयोग व महÂव को बड़ी
आसानी से लोगŌ को समझा देते ह§ । उनकì ÿितभा से ÿभािवत होकर सăाट बुधगुĮ उÆह¤
नालंदा िवĵिवīालय का कुलपित बनाना चाहते थे िकंतु आचायª िवनăता पूवªक इस ÿÖताव
को अÖवीकार कर देते ह§ ³यŌिक इससे उनके अÆवेषण कायª म¤ बाधा पड़ती ।
आचायª आयªभट िनरंतर अपने अÆवेषणो म¤ लगे रहे । िनरंतर न±ýŌ का अÅययन रात–
रातभर जागकर करते रहे और अंतत: उÆहŌने कई महÂवपूणª खगोलीय Öथापनाओं को
Öथािपत िकया । आचायª ने सबसे पहले यह िसĦ िकया िक पृÃवी िÖथर नहé है बिÐक वह
भी अÆय खगोलीय िपंडŌ कì तरह गितशील है । पृÃवी अपने अ± पर घूमते हòए सूयª कì
पåरøमा करती है । पृÃवी पिIJम से पूवª कì ओर गित करती है । और इस तरह से उसे एक
च³कर लगाने म¤ २३ घंटे ५६ पल और ४.१ ±ण लगते ह§ । पृÃवी एक वषª म¤ इस ÿकार के
३६५ च³कर लगाती है । आचायª ने यह भी िसĦ िकया िक सूयª व चÆþúहण िकसी दैवीय
इ¸छा का पåरणाम नहé है बिÐक वे पूरी तरह से खगोलीय गित व िÖथित के पåरणाम ह§ ।
आचायª कì इन Öथापनाओं को यथािÖथितवािदयŌ ने चुनौती दी और बलपूवªक उसका
िवरोध िकया । चूड़ामिण व िचंतामिण जैसे आचायª इसी ÿकार के लालची व िववेकĂĶ
आचायª थे । ये दोनŌ आचायª कì Öथापनाओं का िवरोध करते हòए उÆह¤ िमÃया ²ान का
ÿचारक बताते ह§ । इस सारे िवरोध का आचायª शांितपूवªक उ°र देते ह§ । अंतत: सăाट
बुधगुĮ इस बात को समझ लेते है िक आचायª आयªभट कì Öथापनाएं सÂय व वै²ािनक ह§
और वे सारे आ±ेपŌ व िवरोधŌ का समझकर आयªभटीय के महÂव को Öवीकार करते हòए
उसके Óयापक ÿचार–ÿसार का आदेश देते ह§ । इस ÿकार आचायª आयªभट का चåरý हर
स¸चे अÆवेषक के िलए एक आदशª चåरý है ।
चूड़ामिण व िचंतामिण:
चूड़ामिण व िचंतामिण आचायª आयªभट के िवरोधी व िनंदक है । ये दोनŌ लोलूप व
यथािÖथितवादी आचायª ह§ । आचायª आयªभट कì मेधा व उनकì कìितª से जलते ह§ । इÆह¤
तब और भी जलन होती है जब ये इस बात से पåरिचत होते है िक आचायª आयªभट को
नालंदा िवĵिवīालय का कुलपित सăाट बुधगुĮ बनाना चाहते थे िकंतु आचायª ने
िवनăतापूवªक मना कर िदया ।
चूड़ामिण और िचंतामिण आचायª कì खगोलीय Öथापना का भी राजदरबार म¤ िवरोध करते ह§
और आचायª कì पृÃवी के अपने अ± पर व सूयª के पåरøमा के िसĦांत को चुनौती देते हòए
उÆह¤ िमÃया ²ान का ÿचारक बताते ह§ । िकंतु आचायª के तकō का वे वै²ािनक łप से
खंडन नहé कर पाते । अंतत: सăाट बुधगुĮ समझ जाते ह§ िक आचायª आयªभट सÂय का
उĤाटन कर रहे ह§ जबिक चूड़ामिण व िचंतामिण असÂय व लोलुपता का दामन थाम¤ हòए है munotes.in
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अÆवेषक
87 और वे आचायª कì ÿशंसा करते हòए आयªभटीय के Óयापक ÿचार–ÿसार का आदेश देते ह§
तािक जनता म¤ सÂय कì ÿितķा हो सके ।
१४.४ सारांश ÿÖतुत एकांकì 'अÆवेषक' म¤ लेखक ÿताप सहगल ने आचायª आयªभट के वै²ािनक ŀिĶ को
ÿÖतुत िकया है। शुÆय व दशमलव जैसी गिणतीय संकÐपना को समाज के सामने रखकर
उसके महÂव को दशाªया है। साथ ही सूयªúहण और चंþúहण को भी वै²ािनक तौर पर
ÿÖतुत िकया है।
१४.५ लघु°रीय ÿij १. सăाट बुधगुĮ आचायª आयªभट को कौनसा ÿÖताव देता है?
उ - सăाट बुधगुĮ आचायª आयªभट को नालंदा िवĵिवīालय म¤ कुलपित पद Öवीकार
करने का ÿÖताव देता है।
२. आचायª आयªभट ने सूयªúहण और चंþúहण को ³या बताया है?
उ - आचायª आयªभट ने सूयªúहण और चंþúहण को एक खगोिलय पåरघटना बताया है।
३. आचायª आयªभट के घोर िनंदक और िवरोधी कौन थे?
उ - चुड़ामिण और िचंतामिण जैसे परÌपरावादी लालची िवĬान आचायª आयªभट के घोर
िनंदक और िवरोधी थे।
१४.६ दीघō°री ÿij १. ‘अÆवेषक’ एकांकì के आधार पर आचायª आयªभट के जीवनसंघषª पर ÿकाश डािलए।
२. ‘अÆवेषक’ एकांकì के कÃय पर ÿकाश डालते हòए उसके संदेश को समझाइए ।
३. ‘अÆवेषक’ एकांकì के आधार पर चूड़ामिण व िचंतामिण का चåरý िचýण कìिजए ।
१४.७ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय, मुंबई
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88 १५
नो एडिमशन
इकाई कì łपरेखा
१५.० इकाई का उĥेÔय
१५.१ ÿÖतावना
१५.२ 'नो एडिमशन' एकांकì कì कथावÖतु
१५.३ ‘नो एडिमशन’ एकांकì के ÿमुख पाý
१५.४ सारांश
१५.५ लघु°रीय ÿij
१५.६ दीघō°री ÿij
१५.७ संदभª úंथ
१५.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई संजीव िनगम Ĭारा िलिखत एकांकì 'नो एडिमशन' पर आधाåरत है। इस इकाई
म¤ एकांकì के सभी प±Ō पर िवचार िकया गया है और कोिशश कì गई है िक एकांकì के कÃय
व उĥेÔय को सरल भाषा म¤ िवīािथªयŌ तक पहòंचाया जा सके ।
१५.१ ÿÖतावना संजीव िनगम Ĭारा िलिखत ‘नो एडिमशन’ एक यथाथªवादी एकांकì है । इस एकांकì म¤
संजीव िनगम भारतीय िश±ा ÓयवÖथा कì पोल खोलते हòए िश±ा के बाजारीकरण पर रोशनी
डालते ह§ । एकांकì िदखाता है िक िकस तरह आज Öकूल एडिमशन के नाम पर तरह–तरह
कì गड़बड़ीयाँ कर रहे ह§ और अिभभावकŌ के मन म¤ एडिमशन के भय को पैदा कर उससे
पैसे बना रहे ह§ । जैसे एडिमशन के नाम पर माता–िपता को लुटा जा रहा है और कैसे पैसे
लेकर एडिमशन िदया जा रहा है । एडिमशन कì पूरी ÿिøया एक भयंकर ýासदायक िÖथित
का िनमाªण अिभभावकŌ व ब¸चŌ के िलए कर रही है । आज िश±ा Óय वÖथा बाजार कì
शिĉयŌ के हाथŌ म¤ है और उÆहŌने इसे केवल धन कमाने का माÅयम बना िलया है ।
१५.२ 'नो एडिमशन' एकांकì कì कथावÖतु संजीव िनगम Ĭारा िलिखत एकांकì ‘नो एडिमशन’ एक यथाथªवादी एकांकì है । यह एकांकì
िश±ा के बाजारीकरण पर ÿकाश डालती है । रेखा और िवनीत अपने बेटे सोनू का
एडिमशन एक ‘हाई–फाई’ पिÊलक Öकूल म¤ करवाना चाहते थे । इसके िलए िवनीत रात से
ही लाईन म¤ लग जाता है । बहòत मेहनत करने के बाद जब सुबह जाते एडिमशन फ़ामª िमल
जाता है तो उसे ऐसा लगता है िक उसने एक बहòत बड़ी लड़ाई जीत कì है । घर लौटते हòए munotes.in
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नो एडिमशन
89 वह एडिमशन फ़ामª के साथ–साथ जनरल साइंस व जनरल नॉलेज कì दो िकताब¤ भी साथ
ले आता है तािक Öकूल के सा±ाÂकार के िलए पित–पÂनी अ¸छी तरह से तैयारी कर सक¤ ।
िजस िदन ब¸चे के एडिमशन के िलए सा±ाÂकार होना है वे दोनŌ अ¸छी तरह से तैयार
होकर Öकूल जाते ह§ । Öकूल कì िÿंिसपल उनसे तरह–तरह के ÿij पूछती है और इस बात
पर जोर देती है कì उनके पास अपनी कार होनी चािहए । वे कार खरीद कर उसके
कागजात Öकूल म¤ जमा करा द¤ तभी उनके बेटे का एडिमशन हो पायेगा । िबना कारवाले
अिभभावकŌ के कारण Öकूल का Öतर िगरता है । वे रेखा और िवनीत से पोयम सुनाने के
िलए कहती है । जब ये िहंदी किवता सुनते ह§ तो वे िबगड़ उठती ह§ और डांटते हòए बगल के
कमरे म¤ जाकर इंिµलश पोयम याद कर उसे िफर से सुनाने का फरमान जारी करती ह§ ।
इसी बीच लाला बनारसी दास आ धमकते ह§ । लाला िबना इजाजत िलए ही िÿंिसपल कì
केिबन म¤ आ धमके थे और आते ही अपने फैि³ůयŌ, सुपरÖटोरŌ बंगलŌ व गािड़यŌ का Êयौरा
िÿंिसपल को देने लगते ह§ । पहले तो िÿंिसपल को लाला का Óयवहार अटपटा व भĥा लगता
है िकंतु जैसे ही वह एडिमशन कì एवज म¤ पांच लाख łपये के चेक देने कì बात करता है तो
िÿंिसपल का रवैया एकदम से बदल जाता है । अभी तक जो िÿंिसपल लाला पर िबगड़ रही
थी वह लाला से हँस–हँसकर बात करने लगती है और लाला को आĵÖत करती है कì
उसके पोते लÐलू को ही Öकूल कì एक माý खाली सीट पर एडिमशन िमलेगा । लÐलू अब
लाला का लÐलू नहé रह गया था वह अब Öकूल का भी लÐलू हो गया था ।
दूसरी तरफ अब तक आस लगाए रेखा व िवनीत को वह मना कर देती है और अगले वषª
सारी पोयÌस याद करके आने के िलए कहती है । इस ÿकार मÅयम वगª के अिभभावक पैसŌ
कì खनक के चलते अपने ब¸चे के एडिमशन से वंिचत कर िदए जाते है और लाला
बनारसीदास जैसे धनपित बड़ी आसानी से बाजी मार ले जाते ह§ ।
इस ÿकार एकांकì बताता है िक िकस ÿकार आज सूची िश±ा ÓयवÖथा बाजार केिÆþत हो
चुकì है । आम आदमी और उसकì मजबूåरयाँ िश±ा ÓयवÖथा के िलए कोई मायने नहé
रखतé ।
१५.३ ‘नो एडिमशन’ एकांकì के ÿमुख पाý रेखा व िवनीत:
रेखा व िवनीत ‘नो एडिमशन’ एकांकì के केÆþीय पाý ह§ । मÅयम वगêय पåरवार के ÿितिनिध
पाý के łप म¤ भी इन दोनŌ को देखा जा सकता है । अपने बेटे के एडिमशन कì िचंता इÆह¤
िनरंतर परेशान करती रहती है । शहर के हाई–फाई Öकूल म¤ एडिमशन करने के िलए िवनीत
रात से ही Öकूल म¤ जाकर लाईन लगाता है । एडिमशन फ़ामª िमल जाने पर दोनŌ को बड़ी
खुशी होती ह§ । दोनŌ िमलकर रात िदन इंटरÓयू कì तैयारी करते ह§ । इंटरÓयू के िदन दोनŌ
समय से िÿंिसपल के केिबन म¤ पहòँच जाते ह§ और िÿंिसपल के अनाप–शनाप ÿijŌ का
सामना करते ह§ । िÿंिसपल सामाÆय ²ान के नाम पर अनेक बेतुके ÿij करती है और अंतत:
पोयम सुनाने के िलए कहती है । जब ये दोनŌ पोयम कì जगह िहंदी किवता सुनाते है तब
िÿंिसपल िबगड़ जाती ह§ और इÆह¤ इंिµलश पोयम याद करने का आदेश देती ह§ । इसी बीच munotes.in
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ÖवातंÞयो°र िहंदी सािहÂय
90 लाला बनारसीदास अपने नाती लÐलू के एडिमशन के िलए आ जाते है और पांच लाख
łपये का चेक देकर एकमाý बची सीट खरीद लेते ह§ । पांच लाख का चेक देखते ही
िÿंिसपल अपनी भूिमका बदल देती ह§ । वे लाला बनारसीदास से कोई ÿij नहé करतé ।
लाला का लÐलू Öकूल का लÐलू बन जाता है । रेखा और िवनीत इस सौदे का िवरोध करते
ह§ पर िÿंिसपल के आगे उनकì एक भी नहé चलती । िÿंिसपल अगले वषª और भी ºयादा
तैयारी करके आने के िलए कहकर रेखा और िवनीत को चलता कर देती ह§ ।
लाला बनारसीदास:
लाला बनारसीदास एकांकì के एक और महÂवपूणª पाý ह§ । लाला को अमीर वगª का
ÿितिनिध पाý भी माना जा सकता है । लाला अपने पोते लÐलू के एडिमशन के िलए आते ह§
। वे िÿंिसपल कì केिबन म¤ िबना िकसी इजाजत म¤ ही आ जाते ह§ और आते ही अपनी
फैि³ůयŌ, सुपर ÖटोरŌ बंगलो व कारŌ के बारे म¤ िÿंिसपल को बताता है । वह अपने पोते के
एडिमशन िलए पांच लाख का चेक भी लेकर आया है । पहले िÿंिसपल को उसके Óयवहार से
िचढ़ होती है पर जब पांच लाख का चेक देखती है तब उसका Óयवहार बदल जाता है । वह
लाला से कोई ÿij नहé पूछती, लाला का कोई इंटरÓयू नहé होता । दूसरे अिभभावकŌ से
सीधे मुँह बात न करनेवाली िÿंिसपल लाला से हँस–हँसकर बात करने लगती है । इस
ÿकार लाला पैसे देकर िÿंिसपल को अपने पोते लÐलू के िलए एडिमशन खरीद लेता है और
बेचारे रेखा व िवनीत इस अÆयाय को देखते रह जाते है ।
१५.४ सारांश 'नो एड्िमशन' एकांकì म¤ मÅयम वगêय पåरवार के पाý रेखा और िवनीत बेटे का एडिमशन
हाई-फाई पिÊलक Öकुल म¤ करवाना चाहते है परंतु मÅयम वगêय पåरवार िश±ा के
बाजारीकरण से बेटे का एडिमशन नहé ले पाते है। दूसरी तरफ िजसके पास धन कì कमी
नहé अथाªत उ¸चवगêय Óयिĉ को तुरंत एडिमशन िमल जाता है। इस भेद को एकांकì के
माÅयम से ÿÖतुत िकया है।
१५.५ लघु°रीय ÿij १. 'नो एडिमशन' एकांकì म¤ Öकुल के एडिमशन कì एकमाý सीट कौन खरीद लेता है?
उ - लाला बनारसीदास।
२. 'नो एडिमशन' एकांकì म¤ िकस ÿकार कì ÓयवÖथा को ÿÖतुत िकया है?
उ - 'नो एडिमशन' एकांकì िश±ा ÓयवÖथा के बाजारीकरण को ÿÖतुत करती है।
३. 'नो एडिमशन' एकांकì म¤ िनÌनमÅयम वगêय के पाý कौनसे है?
उ - रेखा और िवनीत।
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नो एडिमशन
91 ४. रेखा और िवनीत सोनू का एडिमशन कहाँ करवाना चाहते है?
उ - रेखा और िवनीत सोनू का एडिमशन हाई-फाई पिÊलक Öकुल म¤ करवाना चाहते है।
१५.६ दीघō°री ÿij १. ‘नो एडिमशन’ एकांकì के आधार पर मÅयमवगêय पåरवार Ĭारा एडिमशन के िलए
उठाए जानेवाले कĶŌ पर रोशनी डालीए ।
२. रेखा व राकेश एडिमशन के िलए िकन–िकन िÖथितयŌ से होकर गुजरते ह§? एकांकì
के आधार पर ÖपĶ कìिजए ।
३. ‘नो एडिमशन’ एकांकì के आधार पर िÿंिसपल का चåरý–िचýण कìिजए ।
४. ‘नो एडिमशन’ एकांकì के आधार पर लाला बनारसीदास का चåरý–िचýण कìिजए ।
१५.७ संदभª úंथ १. एकांकì - सुमन (एकांकì संúह) - सं. िहंदी अÅययन मंडल, मुंबई िवĵिवīालय, मुंबई
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