Paper-No.-VII-Literary-Criticism-Prosody-Rhetorics-munotes

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सािहय वप , परभाषा और सािहय क े तव
इकाई क पर ेखा :
१.० इकाई का उेय
१.१ तावना
१.२ सािहय : वप और परभाषा
१.३ सािहय क े तव
१.३.१ भावतव
१.३.२ िवचार तव अथवा बी तव
१.३.३ कपना तव
१.३.४ शैली तव
१. ४ सारांश
१. ५ दीघरी
१. ६ लघुरी
१. ७ संदभ पुतके
१.० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अययन स े िवाथ िननिलिखत म ु से अवगत हग े |
सािहय क े वप और परभाषा को जान सक गे |
सािहय क े तव को समझ सक गे |
१.१ तावना
सािहय समाज का दप ण माना जाता ह ै | सािहयकार समाज क े सभी घटक को आ ंतरक
और बा ि से वणत करन े क ताकत राखता ह ै | सािहयकार क ल ेखनी उेयगत
प स े यिद लोक कया णकारी भावना को अ प म रखती ह ै तो समाज को सही िदशा
िमलती ह ै |सािहय का उगम आिदकाल स े ही माना जाता ह ै | सािहय का वप , िविभन munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
2 िवानो क े अनुसार सािहय क परभाषा , सािहय के तव का अययन करना सािहय क
परपाटी क ि स े हमार े िलए अिनवाय हो जाता ह ै |
१.२ सािहय : वप और परभाषा (भारतीय एवं पााय )
वैसे तो सािहय शद दो शद स+िहत से िमलकर बना है, िजसका शािदक अथ सहभाव
यानी िहत का साथ होना है । इस कार सािहय म िनिहत सिहत शद का एक यापक
सामािजक अथ भी है जो उसके उेय और योजन क ओर संकेत करता है | जब कोई
अपने और पराये क संकुिचत सीमा से ऊपर उठकर सामाय मनुयता क भूिम पर पहँच
जाए तो समझना चािहए िक वह सािहय धम का िनवाह कर रहा है | पुराने आचाय अपनी
िवशेष शदावली म इसी को लोकोर और अलौिकक कहते थे | आचाय रामचं शुल ने
इसी को आज क भाषा म दय क मुावथा कहा है | िजस मु अवथा का अनुभव
दय करता है, वह इसी लोक के बीच संभव है | इसे परलोक क कोई अनूठी चीज़ समझना
ठीक नह | इस कार सािहय के संसार म शद और अथ सौदय के िलए आपस म होड़
करते हए लोकम ंगल के ऊँचे आदश क ओर असर होते ह | दुिनया म सबसे पुराना
वािचक सािहय हम आिदवासी भाषाओ ं म िमलता है । इस ि से आिदवासी सािहय सभी
सािहय का मूल ोत है । भारत का संकृत सािहय ऋवेद से आरभ होता है । यास,
वामीिक जैसे पौरािणक ऋिषय ने महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाय क रचना क ।
भाट, कािलदास एवं अय किवय ने संकृत म नाटक िलखे । भि सािहय म अवधी म
गोवामी तुलसीदास , ज भाषा म सूरदास तथा रैदास, मारवाड़ी म मीराबाई , खड़ीबोली म
कबीर, रसखान , मैिथली म िवापित आिद मुख ह । अवधी के मुख किवय म रमई
काका सुिस किव ह । िहदी सािहय म कथा, कहानी और उपयास के लेखन म
ेमचद का महान योगदान है । ीक सािहय म होमर का इिलयड और ऑडसी िव िस
ह । अंेज़ी सािहय म शेिपयर का नाम कौन नह जानता ।
१.२.१ सािहय का वप
भाषा के मायम से अपने अंतरंग क अनुभूित, अिभयि कराने वाली लिलत कला ‘काय’
अथवा ‘सािहय ’ कहलाती है । (लिलत , कला अथवा अँेजी का Fine Art शद उस कला
के िलए यु होता है, िजसका आधार सदय या सुकुमारता है । जैसे- िचकला , नृय,
िशपकला , वातुकला, संगीत आिद । िकतु आधुिनक धारणाओ ं के साथ लिलत कला म
अपेित सौदय भाव, रमणीयता का भाव धीरे-धीरे लु हो रहा है । अत: हर लिलत कला
सदय क िनिमित करनेवाली हो, यह संभव नह । यथाथ के अंकन के साथ ‘सदय ’ इस
शद का बदलता अथ हम देख रहे है ।) सािहय क यूपित को यान म रखकर इस शद
के अनेक अथ तुत िकए गए है । ‘यत’ यय के योग से सािहय शद क िनिमित हई है ।
शद और अथ का सहभाव ही सािहय है । कुछ िवान के अनुसार िहतकारक रचना का
नाम सािहय है ।
सािहय शद का योग ७-८ व शतादी से िमलता है । इससे पूव सािहय शद के िलए
काय शद का योग होता था । भाषािवान का यह िनयम है, िक जब एक ही अथ म दो
शद का योग होता है, तो उनम से एक अथ संकुिचत या परवित त होता है । संकृत म munotes.in

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सािहय वप , परभाषा और सािहय क े तव
3 जब एक ही अथ म सािहय और काय शद का योग होने लगा, तो धीरे-धीरे काय शद
का अथ संकुिचत होने लगा । आज काय का अथ केवल किवता है और सािहय शद को
यापक अथ म िलया जाता है । सािहय का तापय अब किवता , कहानी , उपयास , नाटक ,
आमकथा अथात ग और प क सभी िवधाओ ं से है । काय के वप को लेकर उसे
परभािषत करने का यास इ.स. पूव 200 से अब तक हो रहा है । िविवध िवान ने
सािहय के लण तुत करते हए उसे परभािषत करने का यास िकया । िकंतु इन
यास म कह अितयाि , तो कह अयाि का दोष है । काय को परभािषत करते समय
यह िवान अपने समका लीन सािहय तथा सािहय िवषयक धारणाओ ं से भिवत रहे है ।
१.२.२ सािहय क परभाषा :
सािहय का वप बहत यापक है, इसे िकसी परभाषा के अंतगत बांध पाना मुिकल ही
नह अिपत ु असंभव–सा है । लेिकन अलग-अलग भाषाओ ं के िवान ने समय-समय पर
सािहय को परभािषत करने का यास िकया है । ारंभ म संकृत के िवान ने सािहय
को काय के प म परभािषत िकया है । वह िहदी के िवान ने इसे सािहय के प म
परभािषत िकया है । यहां पर हम भारतीय एवं पााय िवान के अनुसार दी गई
परभाषाओ ं के मायम से सािहय को परभािषत करने का यास करगे ।
१.२.२.१ िहंदी के िवान ारा दी गईं सािहय क परभाषा :
िहंदी के िवान के अनुसार लण ंथ के िनमाण क परंपरा आचाय केशवदास से मानी
जाती है । अतः िहंदी सािहय शा का ारंभ उह से माना जाना उिचत तीत होता है ।
आिदकाल म काय अंग का भले ही गंभीर अययन ना हआ हो, लेिकन किवय ने काय
योजन , काय हेतु, भाषा योग आिद के लण तुत िकए गए ह । भिकाल के किवय
क उिय म भी सािहय के लण ा होती है । जैसे कबीर कहते ह - ‘तुम जीन जानो
गीत है, यह नीज िवचार ।’
वैसे सािहय को परभािषत करने का िवचार रीितकाल म खरता से होने लगा । िकत ु
मयकालीन आचाय ारा तुत परभाषाओ ं म मौिलक िचंतन का अभाव रहा । यिक वे
अिधका ंशतया संकृत के िकसी-न-िकसी आचाय ारा दी गई परभाषा का अनुवाद करते
रहे ह । इनम केशवदास , िचंतामिण िपाठी , कुलपित िम, किव ठाकुर आिद िवशेष प से
उलेखनीय ह ।
संकृत सािहय शा म ा परभाषाओ ं के समान िहंदी िवान ने भी सािहय को िविश
मत या िवचार को सामन े रख कर परभािषत करने का यास िकया है । अपनी परभाषा म
िवान ने सािहय को कह काय तो कह किवता कह कर भी संबोिधत िकया है, िजनम से
कुछ परभाषाए ं िननवत ह -
१) जो भावशाली रचना पाठक और ोता के मन पर आनंददाई भाव डालती है, किवता
कहलाती है । इनके अनुसार काय म िवलणता होती है, िजसम आनंद िनमाण करने
क मता होती है । - आचाय महावीर साद िवेदी munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
4 २) िजस कार आमा क मुावथा ान दशा कहलाती है, उसी कार दय क
मुावथा रस दशा कहलाती है । दय क मुि क साधना के िलए मनुय क वाणी
जो शद िवधान करती आई है, उसे किवता कहते है । - आचाय रामचं शुल
३) I) किवता जीवन और जगत क अिभयि है ।
II) काय वह है जो दय म अलौिकक आनंद या चमकार क सृि कर । -
आचाय यामस ुंदर दास
४) काय आमा क संकपनामक अनुभूित है, िजसका संबंध िवेषण, िवकप या
िवान से नह होता । वह एक रचनामक ानधारा है । - जयशंकर साद
५) सरस शदाथ का नाम काय है । - डॉ. नग
१.२.२.२ पााय िवान ारा दी गईं परभाषाए ं :
पााय सािहय शा का ारंभ लेटो से माना जाता है । तकालीन सािहय और सािहय
िवषयक धारणाओ ं के परेय म इन परभाषाओ ं को समझा जा सकता है । कुछ पााय
िवान ारा दी गईं परभाषाए ं िननवत ह -
१) सािहय अान जय होता है । सािहय जीवन से दूर होता है, यिक भौितक पदाथ
वयं ही सय क अनुकृित है । िफर सािहय तो भौितक पदाथ क अनुकृित होता है ।
अतः वह अनुकरण का अनुकरण होता है । सािहय शू मानवीय वासनाओ ं से उपन
होता है और शू वासनाओ ं को उभारता है । अतः वह हािनकारक होता है । - लेटो
२) Poetry is an imitation of nature through medium of language. अथात
सािहय भाषा के मायम से कृित का अनुकरण है । लेटो के िशय अरत ू ने सािहय
को राजनीित तथा नीितशा क ि से न देख कर सदय शा क ि से उसका
िववेचन िकया है । - अरत ु
अरत ु क इस परभाषा म अनुकरण से तापय मा नकल करना नह; बिक पुनः
सृजन है । इस ि से अरत ु के अनुसार “सािहय जीवन और जगत का कलामक
और भावनामक पुनःसृजन है ।”
३) Poetry is a spontaneous overflow of powerful feeling it takes its origin
from emotion. अथात वछ ंदतावादी किव िविलयस वड्सवथ के अनुसार बल
मनोवेग का सहज उछृंखलन किवता है । अथात भावना का सहज उेक ही
किवता है । वड्सवथ किवता म सहजता को महव देते है । इसम भावनाए ं जब लबालब
भर जाती है, तो उसी आधार पर वह सहज कट होती है । - िविलयम वड्सवथ
४) Poetry is the best word in best order. अथात सवम शद का सवम
िवधान ही किवता है । - सैयुअल टेलर कॉलरज munotes.in

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सािहय वप , परभाषा और सािहय क े तव
5 ५) Poetry is the record of the best and happiest movement of the
happiest and best minds. अथात सुखी और मन को आनंद देने वाले ण म
सुखद मन के आधार पर कट हई रचना किवता है । - पी.वी शैली
६) Poetry is a criticism of life. अथात किवता अपने मूल प म जीवन क
आलोचना है । - मैयू अनाड
उपरो परभाषाओ ं को देखकर यह िनित प से कहा जा सकता है, िक यह सभी
परभाषा एं िविश सािहय , िविश मत तथा मतवाद से ेरत ह ।
१.३ सािहय के तव
सािहय को ठीक से समझन े के िलए लण के साथ-साथ उसके मुख तव क पहचान
भी आवयक है । भारतीय तथा पााय िवान ने सािहय के वप के संबंध म उसके
तव का भी उलेख िकया है । काय बनाने के िलए, उसका अितव िस करने के िलए
जो तव होते ह ; उह ही काय के तव कहा जाता है । काय के यह अिनवाय तव है ।
अतः इह मूलभूत तव भी कहा जाएगा । काय म एक िविश कार का भाव होता है ; इस
भाव को ठीक से परखन े वाला, सोचन े वाला एक िवचार होता है ; इसे सजान े वाला भी एक
तव होता है तथा इसे कट करने वाला भी एक तव होता है । इन सभी का िमला हआ जो
प तैयार होता है, उसे ही काय के तव कहा जाएगा ।
इस आधार पर काय के तव िनन अनुसार है -
१.३.१ भाव तव –
भाव तव सािहय म सबसे अिधक भाव उपन करने वाला सािहय का ाण तव है ।
भाव ही किव क कपना का ेरक है । भाव के आधार पर ही किवता आकार हण करती
है । भाव िजतना अछा होगा, किवता उतनी अछी होती है । इसिलए किवता का भाव ,
उसका महव भाव तव पर िनभर होता है । संकृत आचाय ने काय म भाव को जीवंत
तव माना है भाव ही काय को शि दान करते ह |
भाव तव के कारण सािहय को शा से पृथक माना जाता है । सािहय क सरसता का
आधार भाव तव ही होता है । िच क थायी और अथायी वृिय का नाम भाव है ।
भावतव सािहय क भावामकता और संेषणीयता का आधार है । भाव िवचार क
अपेा अिधक संेषणशील होते है । इसिलए सािहय का िवचार तव भी भाव तव ारा
िनयंित होता है । भाव किवता का आधार , किवता क शि तो है; लेिकन काय को संपूण
प से भावी बनाने के िलए भाव म िविवधता का होना आवयक है । िविवधता के कारण
ही काय एकरस होने से बचता है । इतना ही नह अंत तक काय भावी बनाने के िलए भी
भाव म िविवधता का होना आवयक है ।
िविवधता के साथ ही काय का उदा होना आवय क है । काय के िजतन े भी भाव होते ह,
वह सते मनोरंजन के िलए नह होते । भाव का थाई भाव होना चािहए । इसीिलए भाव
का उदा होना आवयक है । उदाता के कारण ही काय भय-िदय बनता है । भाव म munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
6 िनरंतरता का गुण भी होना चािहए , िजसक े कारण पाठक सािहय को आोपा ंत पढ़े । भाव
िजतन े मौिलक होते ह, काय उतना ही उकृ और भावी होता है । काय को सवे
बनाने के िलए भाव का मौिलक होना आवयक है ।
वैसे भावािभयि चाहे िकतनी ही सश या सुंदर हो, उसी आधार पर वह सािहय नह
कहलाती है । िनरीभावािभयि , िनरंकुश भावािभयि सािहय को असुंदर तथा
अिहतकर बना देती है । तापय यही िक भाव भी बुि ारा िनयंित होते है । प है िक,
भाव क भावामकता तथा संमकता जहां एक ओर उसक ासंिगकता पर अथात
वानुभव पर िनभर है, तो दूसरी ओर उसके बुि ारा िनयंित होने पर भी । भाव तव
सािहय का अिभन तथा अिनवाय तव जर है, लेिकन उसक िथित सािहय क
िविभन िवधाओ ं म समान प से नह है । गीत म यह अयािधक खर प म अिभय
होता है । युगीन परवेश तथा िवशेष मताह का असर भी भाव तव क िथित पर होता है ।
ारंभ से सािहय का योजन मा रसावादन या आनंद नह रहा है । इसिलए आज भाव
तव के साथ िवचार तव क माा पहले से अिधक बढ़ती देखी जा सकती है ।
१.३.२ िवचार तव अथवा बुि तव :
िवचार तव का महव इसी म है िक भाव, कपना आिद का ठीक संयोजन और शद का
योग औिचयप ूण हो । औिचय के िबना िवसनीयता और भाव न हो जाते ह ।
भारतीय तथा पााय िवान ने इस तव को महवप ूण माना है । िवचार तव का संबंध
अनुभूित और अिभयि दोन से है । बुि तव के आधार पर ही काय म िवचार लाए जाते
ह । बुि तव का संबंध िवचार और तव से है । येक सािहय म िकसी न िकसी माा म
तय, िवचार और िसांत का समाव ेश िकया जाता है । बुि तव के आधार पर काय म
िविश िवचार का िनमाण िकया जाता है । इह िवचार के आधार पर यि मन तथा
समाज मन संकारत िकए जाते ह । अतः सािहय म वतुओं और घटनाओ ं का िचण
उसके उिचत प म ही िकया जाता है । मुखतया इसका वप कथा संगठन, चर
िचण और भाव िनपण के े म देखा जा सकता है ।
कथावत ु क सूम रेखाओ ं के िनमाण के िलए अथात घटनाओ ं का चुनाव करना घटनाओ ं
को संिहत करना क उसका यथे भाव पड़े और कम के अनुप फल िदखान े के िलए
बुि तव का योग िकया जाता है । इस तव के कारण भावनाओ ं पर अंकुश रखा जाता
है । बुि तव म ऐसे िवचार क अपेा क जाती है, जो दाशिनक क तरह सय का िनमाण
करने वाला हो । इसी सय के कारण यह िवचार काल क मयादा के परे होते है । िफर भी
इस पर िवचार करना आवयक है िक सािहय म िवचार का या महव है ? िवचार
का िचण उसी सीमा तक ा माना जा सकता है, जहां वे रचना के भाव सदय म बाधक
न बने । भावश ूय िवचार का वणन सािहय को उसक िविश उपािध से वंिचत करके
दशन नीितशा या उपदेश ंथ का प दान कर देता है । िजस तरह िवचार तव भाव
तव को िनरी भावुकता तथा िनरथक लाप होने से बचाता है ; उसे आधारभ ूिम दान कर
उह यविथत बनाकर अिभयिम एवं संेषणीय बनाता है ; उसी कार भाव तव
िवचार तव को शुक बौिक होने से बचा कर उह सहज ा और भावी बनाता है ।
अतः प है िक िनरंकुश भावािभयि मा लाप बन जाती है, सािहय नह । वैसे ही munotes.in

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सािहय वप , परभाषा और सािहय क े तव
7 मा िवचार क अिभयि बोिझल पांिडय दशन मा बन जाती है, सािहय नह । इसी
कारण भाव और िवचार का तादाय सािहय के िलए अिनवाय होता है ।
१.३.३ कपना तव :
सािहय म भावनाओ ं का िचण कपना के ारा ही संभव है । इसी कपना के कारण किव
और के सुख-दुख और दूसर क अनुभूितय का िचण इस कार कर देता है िक वह
हमारा सुख दुख बन जाता है । वह परो क घटना को य प म, अतीत क घटना को
वतमान म और सूम भाव को थूल प म तुत कर देता है । इसका ेय उसक
कपना शि को ही है । काय म सदय और चमकार क सृि भी कपना के ारा ही
संभव है । वतुतः येक युग और येक भाषा का सािहय कपना शि क अपूव
मता , उसके ारा िनिमत वैभाव और अलौिकक चमकार क कहािनय से भरा पड़ा है ।
सािहयकार क मता असय को सय म थूल को सूम म लौिकक को अलौिकक म
परवित त करने क िवशेष शि से संपन होती है । लेखक क कपना िवषय क समुिचत
अवधारणा , तदनुप कथानक एवं घटनाए ं गढ़ती है, पा का चर गढती है, उसका
नामकरण करती है, संवाद के िलए भाषा का चुनाव करती है और अनुप वातावरण बनाती
है । कलाकार इसक सहायता से बा जगत को अिधकप ूण एवं सुंदर बनाकर तुत
करता है।
सािहय का कीय तव भाव है और कपना उसे भावी प दान करती है । परंतु
कपना कभी-कभी भाव से भी अपनी शि को सश बनाकर वतं प म दशन करने
लगती है; तब सािहय का सदय न हो जाता है । भावश ूय कपना से सािहय कोरा
चमकार ही बन कर रह जाता है िबहारी के िवयोग ृंगार से संबंिधत दोहे इसके उदाहरण के
प म तुत िकए जा सकत े ह । वातव म कपना का योग भावना के साथक िचण म
होना चािहए अयथा उसका अपना कोई वतं महव नह है ।
१.३.४ शैली तव :
काय के कला प से संबंिधत इस तव को ‘शद तव’ भी कहा जाता है । रचनाकार िजस
भाषा, िजस प और िजस पित से अपनी अनुभूित को अिभय ंिजत करता है, उसे शैली
कहा जाता है । इसके अंतगत भाषा, शद चयन, अलंकार का योग, शद का उपयोग ,
सािहय वप आिद का समाव ेश होता है । इस तव को अिधका ंश भारतीय िवान शरीर
तव के प म परभािष त करते है । इस तव का आधार भाषा है । अतः इसे भािषक
संरचना भी कहा गया है । शैली काय के बा अंग से संबंिधत होती है । िजस कार शरीर
के अभाव म ाण का अितव नह होता, उसी कार भाषा के अभाव म सािहय क
कपना संभव नह है । सवक ृ सािहय वह है, िजसम भाव प व शैली प दोन म
अुत समवय हो । िकंतु जब किवगण मा शैली पर ही यान कित करता है और भाव
प का िवमरण कर बैठता है, तो कायव ीण हो जाता है ।
उपयु सािहय के तव का सूमता से अययन करने के उपरांत प होता है, िक
सािहय के तव िकसी जड़ वतु के अंग के समान अलग-अलग नह होते; बिक एक
दूसरे के साथ इस तरह िमले हए होते ह िक इनको अलग-अलग करना संभव नह होता । munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
8 भाव, िवचार , कपना , शैली का संगिठत प सािहय होता है । युगीन परवेश और िवशेष
मताह के अनुप इन तव म से िकसी एक तव क याि बढ़ जाती हई िदखाई देती है ।
िवधा िवशेष के अनुप िकसी िवशेष मत क धानता हो जाती है । िफर भी अय तव भी
कम-अिधक माा म येक सािहय म िवमान होते है ।
१.४ सारांश
सािहय पठन और ल ेखन य ितर सािहय या ह ै ? इसका वप और तव कौन -कौन
से है साथ ही सािहय को िवान ारा िविभन कार स े परभािषत िकया गया ह ै यह सभी
जानकारी और इस िवषय क े आतरक और बा ान स े िवाथ सािहय क े सभी घटक
से उ इकाई क े अययन क े मायम स े अवगत हए |
१. ५ दीघरी
१) सािहय क े वप और सािहय क े तव का वण न किजए |
२) सािहय क परभाषा द ेते हए उसक े वप को प किजए |
१. ६ लघुरी
१) संकृत के िवान ने सािहय को िकस प म परभािषत िकया है?
उर : संकृत के िवान ने सािहय को काय के प म परभािषत िकया है
२) होमर का इिलयड और ऑडसी िव िस सािहयकार ने कौनसी भाषा म सािहय
िलखा ह ?
उर : ीक भाषा म होमर, इिलयड और ऑडसी िव िस सािहयकार ने सािहय
िलखा ह ।
३) सािहय शद का योग सव थम कब हआ ?
उर : ७-८ वी शतादी म
४) ‘काय वह है जो दय म अलौिकक आन ंद या चमकार क स ृि कर े |’ सािहय क े
संबंध म यह परभाषा िकस िवान न े दी है ?
उर : याम स ुदर दास
५) आचाय भामह न े िकसे मुख काय ह ेतु माना ह ै |
उर : आचाय भामह न े ितभा को म ुख काय ह ेतु माना ह ै |

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सािहय वप , परभाषा और सािहय क े तव
9 १. ७ संदभ पुतके
१) काय शा - भगीरथ िम िविवालय काशन , वाराणसी .
२) सािहय समीा – रामरतन भटनागर , िकताबमहल , इलाहाबाद 
३) िहदी सािहय समीा – ीमूित सुराय िहदी सािह य सम ेलन, वास 
४) भारतीय काय िवमश – सममूित िपाठी , वाणी काशन , िदली 
५) पााय कायशा – इितहास , िसांत और वाद – डॉ. भगीरथ िमा 



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10 १.१
सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
इकाई क पर ेखा :
१.१.० इकाई का उ ेय
१.१.१ तावना
१.१.२ काय क े हेतू
१.१.२.१ आधुिनक भारतीय िवान क े अनुसार काय क े हेतू
१.१.२.२ पााय िवान क े अनुसार काय क े हेतू
१.१.३ काय (सािहय ) के योजन
१.१.३.१ ाचीन भारतीय िवान ारा त ुत सािहय योजन
१.१.३.२ आधुिनक भारतीय (िहदी क े) िवान क े अनुसार सािहय क े
योजन
१.१.३.३ पााय िवान क े अनुसार सािहय का योजन
१.१.४ सारांश
१.१.५ दीघरी
१.१.६ लघुरी
१.१.७ संदभ पुतके
१.१.० इकाई का उ ेय
 इस इकाई क े अययन स े िवाथ िननिलिखत म ु से अवगत हग े |
 सािहय क े हेतू से अवगत हग े |
 सािहय योजन िवषय क सप ूण जानकारी हािसल कर सक गे |
१.१.१ तावना
सािहय का उगम आिदकाल से ही माना जाता ह ै वेद, उपिनषद , ंथ आिद सािहय क े ही
िनगम ह ै जो आज अपन े िव यापी दीघ वप क े साथ हमार े सामन े त ुत है | सािहय
का वप िविभन िवानो क े अनुसार, सािहय क े हेतू और सािहय योजन का अययन
करना सािहयअययन क परपाटी क ि स े हमार े िलए अिनवाय हो जाता ह ै | munotes.in

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सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
11 १.१.२ काय क े हेतु
मनुय ायः जो भी काय करता ह ै, उसके पीछे कोई न कोई ह ेतु िछपा होता ह ै । हेतु का
तापय यहां कारण स े है । काय स ृजन क े पीछे भी कोई न कोई ह ेतु होता ह ै । योजन और
हेतु म अंतर होता ह ै । हेतु बीज वप म होते है और योजन फल वप म । अथा त
काय िनिम ती के पीछे हेतु को ही म ुख तव क े प म देखा जा सकता ह ै । वे कौन स े हेतु
अथवा कारण ह िक िजनक ेरणा स े किव या ल ेखक नई स ृि क रचना करता ह ै ?
भारतीय एव ं पााय आचाय ने कायह ेतु पर सम प स े िववेचन िकया ह ै । िजस े हम
िनन अन ुसार द ेख सकत े है ।
१.१.२.१ ाचीन भारतीय िवान क े अनुसार काय क े हेतु :
आचाय भामह न े ितभा को म ुख काय ह ेतु मानत े हए कहा ह ै, िक कोई ितभाशाली
यि ही काय रचना कर पाता ह ै । काय स ृजन क े िलए ितभा आवयक ह ै । ितभा एक
शि वप ह ै, जो किव म बीज वप म िवमान होती ह ै। भामह क े अनुसार काय और
शा क े अनवरत अययन स े युपन शि भी काय ह ेतु है । अथा त भामह य ुपि और
अयास को महवप ूण मानत े है । युपि का तापय लोक शा तथा काय का िनरीण
से है; िजसस े ान ा होता ह ै; अनुभव, योयता ा होती ह ै । गु का सािनय ा कर
कायरचना का अयास होता ह ै । गु के मागदशन और स ंशोधन स े कायरचना म िनखार
आता ह ै ।
आचाय दंडी ने केवल ितभा को ही काय ह ेतु के प म वीकार नह िकया , बिक
युपि और अयास को भी अिनवाय माना ह ै। दंडी ितभा को जमजात और आवयक
गुण से यु मानत े है । पर द ंडी के अनुसार ितभा क े अभाव म युपि एव ं अयास ारा
काय स ृजन हो सकता ह ै । सरवती उपासना एव ं अनवरत यन ारा काय स ृजन स ंभव
है । आचाय वामन न े दंडी और भामह क े मत को सामन े रखकर ही अपना मत िनधा रत
िकया ह ै । अययन , मनन, यन , अयास , काय कला क े मम स े ान ा करना ,
अपनी ही रचनाओ ं क आलो चना, समीा करना आिद को काय ह ेतु के प म वीकारा
है। वामन काय ह ेतु को काया ंग कहत े है और मशः लोक , िवधा, कण को काया ंग
मानते है । कण के अंतगत वे छः तव को वीकारत े है ।
आचाय ट न े भी उपरो काय ह ेतुओं को ही माना ह ै । उनके अनुसार ितभा क े बल पर
किव म शद एव ं उनक े अथ के अवलोकन ही मता आती ह ै । युपि क े बल पर
दोषपरहार और काय तव क उपादान शि ा होती ह ै, तो अयास स े काय स ृजन म
िनखार आता ह ै । ट ितभा को ही शि कहत े है । आचाय ट ितभा क े दो भ ेद
मानते है - १. सहजा २. उपाा। जमजात ितभा सहजा ह ै, तो अययन -अयास स े
ा ितभा उपा ह ै ।
आचाय आनंदवधन के िववेचन म काय ह ेतुओं क छाया द ेखी जा सकती ह ै । इहन े दो
काय ह ेतु वीकार िकए ह ै - १. ितभा २. युपि । इनका प मत ह ै िक ितभा किव क े
कम-काय क य ुपि आिद क े अभावजय दोष को भी िछपा ल ेती है । munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
12 आचाय राजश ेखर ितभा और शि को एक ही वीकार न कर शि को एक अलग तव
के प म महव द ेते है । बुि के भी व े मृित, मित और ा यह तीन भ ेद मानत े है । इनक े
अनुसार किवय म ितभा एक तो जमजात होती ह ै और द ूसरी आहाया । किवय क े भी दो
कार उहन े िकए ह ै । एक सहज ब ुिवाल और द ूसरे आचाय बुिवाल े । राजश ेखर ितभा
के दो भेद मानत े है ।
१) कारियी ितभा - किव इस ित भा से काय सज न करत े है। अथा त यह ितभा किव म
होती ह ै ।
२) भावियी ितभा -यह सदय म होती ह ै । िजसक े ारा सदय काय म िछपे भावाथ को
हण करत े है ।
आचाय ममट न े शि , युपि और अयास को काय ह ेतु माना ह ै । काय रचना क
शि म लोक शा आिद का सक ान , काय मम स े ा िशा , उसका अनवरत
अयास आिद को म ूल कारण माना ह ै । इनक े अनुसार स ंकारगत शि ही कायव का
मूल बीज प ह ै । िजसक े अभाव म काय िनन कोिट का बन सकता ह ै । अययन -मनन स े
ा ान युपि ह ै और िनर ंतर उकृ काय रचना क े िलए यनशील रहना
अयास ह ै ।
परवत आचाय म केशव िम , हेमचं, पंिडतराज जगनाथ भी आचाय भामह क तरह ही
ितभा को म ुख काय ह ेतु माना ह ै । हेमचं ितभा क े सहजा और औपािधक यह भ ेद
मानते है । सहजा जमजात होती ह ै, तो औपािधक कई यन स े िस या ा होती ह ै ।
आचाय वाभ भी ितभा को काय का म ूल हेतु तथा श ेष को सहायक -संकारक ह ेतु
मानते है । आचाय जयद ेव ितभा को काय रचना का म ुय ह ेतु और य ुपि, अयास को
उसका सहायक हेतु मानत े है ।
इस िवव ेचन स े तो प ह ै िक काय स ृजन क े िलए स ंकृत के इन आचाय न े ितभा ,
युपि तथा अयास इन तीन क े वप का िवव ेचन िकया ह ै । िजस े हम िननान ुसार
देख सकत े है ।
१.१.२.१.१ ितभा :
काय ह ेतुओं म ितभा को सवा िधक महव पूण माना जाता ह ै । कुछ लोग ितभा को सहज
मानते है । ममट न े इसे शि , बीज वप माना ह ै । अिभनव ग ु ने अपूव वत ुओं के
िनमाण क मता रखन ेवाली शि को ितभा कहा ह ै । इस ितभा को नवोम ेषशिलनी भी
कहा गया ह ै । अथा त वह नवीनता क आही हो ती है । नयी भावनाओ ं क उावना इसी क े
ारा होती ह ै । वाभ और ह ेमचं इस नवनवोम ेषशाली ा को ितभा कहत े है । तो
आचाय अिभनवग ु अप ूव वतुिनमाणम ा को ितभा कहत े है ।
१.१.२.१.२ युपि :
ममट य ुपि को िनप ुणता कहत े है । ‘लोकशा कायाािवणाव ्’ अथात यह स ंसार क े
िनरीण स े, नया काय और शा क े अययन स े ा होती ह ै । कुछ आचाय न े युपि munotes.in

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सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
13 का अथ बहलता स े िलया ह ै । बहलता का तापय यापक ान स े है । इनम शा का
िनरीण , याकरण का अययन , संसार का सयक ान अप ेित ह ै । दंडी य ुपि को
ुत कहते है । लोक िनरीण स े तापय चलाचल स ृि के उपादान तथा ियाकलाप स े
है । शा क े अंतगत सामािजक , धािमक तथा कला िवषयक शा का अययन तथा
कायािद क े अंतगत काय तथा अय कलाओ ं का अययन आता है ।
१.१.२.१.३ अयास :
काय रचना का बार -बार यास करना अयास कहलाता ह ै । िनरंतर अयास काय रचना
के िशपगत सौव म वृि करता ह ै । अयास काय क े बााग को स ुघड़, आकष क तथा
िनदष बनान े म सहायक होता ह ै । अथात कह सकत े ह िक ितभा , युपि और िनप ुणता
का मिणका ंचन स ंयोग काय ह ेतु म सहायक होता ह ै ।
१.१.२.२ आधुिनक भारतीय िवान क े अनुसार काय क े हेतु :
िहंदी के आचाय न े कायह ेतुओं के वणन म कोई िवश ेष यान नह िदया । वे ाय: संकृत
और पा ाय आचाय क े मत क े घेरे म ही सीिमत रह े ह । रीित काल क े आचाय न े संकृत
कायशा को आधार बनाकर अपनी मायताए ं दी ह ै । आचाय िभखारीदास क े अनुसार
ितभा , युपि और अयास ही काय ह ेतु है । इन तीन का सहयोग काय को ‘मन
रोचक ’ बना देता है ।
आधुिनक िह ंदी के िवान म सवथम मत डॉ . भगीरथ िम का िलया जा सकता ह ै । काय
हेतु के पीछे वे दो कारण को वीकार करत े ह - िनिम कारण और उपादान कारण । इह
को ेरक कारण भी कहा गया ह ै। वे कहत े है – “किव क सामािजक , पारवारक या
वैयिक परिथितया ं तो उसक क ृित है । िजसस े उसे कायरचना क ेरणा ा होती
है । िजसक े अभाव म या तो कायरचना िबक ुल नह होती अथवा होती भी ह ै तो िकसी
अय प म ।”
उपादान कारण क े वप पर व े कहत े है – “लोकशा का यापक ान सस ंग, वण,
मनन और अयास क े प म होता ह ै ।”
डॉ. गोिवद िग ुणायत मन ुय क मननशीलता को म ुख काय ह ेतु मानत े है । उनक े
अनुसार – “मननशील मानव मन जब सा ंसारक वत ुओं के संपक म आता ह ै, तब
यिगत क ृित के अनुसार क ुछ वत ुओं को द ेखकर उसम तमय हो जाता है । कुछ
वतुओं के ित उसक े दय म िजासा उपन होती ह और क ुछ के ित वह भयभीत होता
है। तमयधान मननशीलता ही सािहय क जननी ह ै ।”
डॉ. नग भी ितभा , युपित और अयास क े साथ आमािभयि को काय ह ेतु के प
म वीकारत े है ।

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
14 १.१.२.३ पााय िवान क े अनुसार काय क े हेतु :
पााय सािहय एव ं कायशा म कहावत िस ह ै – “Poets are born and not
made.” अथात किव उपन होत े है, बनाये नह जात े। पााय िवान न े भी िकसी न
िकसी प म ितभा , युपित और अ यास को ही सािहय ह ेतु वीकार िकया ह ै ।
इस स ंबंध म सुकरांत ने अपन े मत रखत े हए प िकया ह ै – “किवगण किवता इसिलए नह
रचते िक व े बुिमान हआ करत े है। वे इस कारण किवता रचत े है िक उनम एक िवश ेष
कृित अथवा ितभा रहा करती ह ै । िजसस े उह उसाह िमला करता ह ै ।
लेटो किव दय का होत े हए भी उस े काय और कला क े ित कोई िवश ेष समान नह
था । इसी कारण उसन े काय क उपि मानिसक िविता क िथित म वीकार क ह ै ।
अरत ु लेटो के दैवी ेरणा वाल े िसा ंत को अवीकार कर काय व ृि को मानव
वभाव क े साथ ब करत े है । अनुकरण क व ृि को वह काय का म ुय ह ेतु मानत े ह
और स ंगीत, लय आिद को इसक े उपम ।
नाट्यशा वादी जॉन ाइडन तथा जॉसन न े ितभा को अिधक महव िदया ह ै ।
वछ ंदतावादी िवान न े कपना तथा भाव को अिध क महव िदया ह ै ।
लोकम ंगल वादी िवान न े ान और िवव ेक पर बल िदया ह ै। कलावादी रचनाकार ितभा
को िनर ंकुश काय ह ेतु वीकार करत े है ।
मास वादी मायता क े अनुसार शोषण स े मुि क कामना सािहय क व ृि ह ै।
मनोिवानवादी ायड कला को काम स े ेरत मानत े है । उनक े अनुसार काय स ृजन स े
कामवासना त ृ होती ह ै। ोच े आमािभयि को काय स ृजन क ेरणा मानत े है ।
कॉलरज किव क े िलए ितभा को अिनवाय मानत े है ।
इस तरह भारतीय एव ं पााय िवान ारा बताए गए काय ह ेतुओं को द ेखा जा सकता ह ै ।
१.१.३ काय (सािहय ) के योजन
काय योजन का अथ होता ह ै -काय क े उेय । काय क े आधार पर हम जो ा होता
है, उसे ही सािहय योजन कहा जाता ह ै । हर वत ु का अपना िविश योजन होता ह ै ।
सािहय का स ृजन एव ं पठन-अययन भी व ेय होता है । सृजक तथा पाठक सािहय स े
िविश योजन क अप ेा रखता ह ै । देश-कल और य ुग व ृिय, िचय एव ं
आवयकताओ ं के अनुप यह योजन बदलता रहा ह ै । वैसे सािहय का योजन उसक े
वप , उसक क ृित पर िनभ र करता ह ै । भारतीय तथा पााय िकोण अनुसार इसम
िभनता द ेखी जा सकती ह ै । भारतीय ि आयािमक होन े के कारण इसम
आयािमकता को आधार बनाकर काय योजन प िकए गए ह ै । तो पााय िकोण
भौितकवादी होन े के कारण वह भौितक स ुख को धानता द ेते है । munotes.in

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सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
15 समय-समय पर िवान न े ‘काय योजन ’ को अपनी स ुिवधा स े परभािषत करन े का यास
िकया ह ै । इनम कुछ िवचार जो िवान न े काय क े योजन को ल ेकर िदए ह , वो
िननवत ह –
१) “तुम िजन जानौ गीत ह ै यह िनज िवचार ।” - कबीरदास
२) “औ मन जािन किव अस कहा । मकु यह रह ै जगत ् महँ चीहा ।।
धिन सोई जस करित जास ू । फूल मर ै पै मरै न बास ू ।।”- मिलक म ुहमद जायसी
३) ‘आनद क अन ुभूित’और ‘लोकिहत क भावना ’ को म ुख काय -योजन माना ह ै । -
भारतेदु हर
४) “जस संपि आन ंद अित द ुरतन डार े खोइ । होत किवत त चतुरई जगत राम बस
होइ ।।” - कुलपित िम
५) (i). “किवता का अितम लय जगत म मािम क प का यीकरण करक े उसक े
साथ मन ुय दय का साम ंजय थापन ह ै ।” आचाय रामच श ुल
(ii). “ मन को अन ुरंिजत करना उस े सुख या आनद पह ंचाना ही यिद किवता का
अितम लय माना जाए तो किवता ही िवलास क एक सामी हई । …… काय का
लय ह ै जगत और जीवन क े मािमक प को गोचर प म लाकर सामन े रखना ।” -
आचाय रामच श ुल
६) “रहत घर न वर धाम धन , तवर सरवर क ूप । जस सरीर जग म अमर , भय काय रस
प ।।” - देव
७) “केवल मनोर ंजन न किव का कम होना चािहए । उसम उिचत उपद ेश का भी मम होना
चािहए ।” - मैिथलीशरण ग ु
८) काय-योजन ‘आनदान ुभूित’ होता ह ै । - हरऔध
९) “एक लह , तप-पुंजह क े फल य त ुलसी अ स ूर गोसाई । एक लह बह स ंपि क ेशव,
भूषन य बरवीर बङाई ।।
एकह को जसही स योजन ह ै रसखािन रहीम क नाई । दास किवह क चरचा
बुिधबन को स ुख दै सब ठाई ।।” – िभखारीदास
१०) काय-योजन ‘आमान ुभूित’ होता ह ै । - नंददुलारे वाजप ेयी
११) ‘मानव दय म समाज क े ित िवास उपन करना ’ । - महादेवी वमा
१२) काय-योजन ‘आमािभयि ’ होता ह ै । - डॉ. नग

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
16 १.१.३.१ भारतीय िवान ारा त ुत सािहय योजन :
संकृत के आचाय न े सृजक तथा पाठक दोन को ि म रखत े हए काय योजन पर
िवचार िकया ह ै । इस ि स े सवथम आचाय भरतम ुिन के ‘नाट्यशा ’ का उल ेख होता
है । िकंतु नाट्यशा म नाम क े अनुप ही नाट ्य योजन क चचा क गई ह ै । भरतम ुिन
के अनुसार -
“दुखाताना माता ना शोकता ना तपिवनाम , िवामजनन लोक े नाट्यमेतद भिवयित ।”
अथात दुख, म, शोक स े आत तपिवय क े िवाम क े िलए ही लोक म नाट्य का उव
हआ है । अय एक थल पर काय योजन क ओर इ ंिगत करत े हए व े िलखत े है, िक धम ,
यश, आयु वृि, िहत-साधन , बुि-वधन एव ं लोकोपद ेश ही नाट ्य योजन ह ै । आचाय
भरत क े बाद आचाय भामह कायाल ंकार म दो बात को आधार बनाकर काय योजन क
चचा करत े है - १. किव एव ं पाठक को आधार मानकर २. केवल किव को आधार मानकर ।
किव ओर पाठक को आधार मानकर काय योजन को प करत े हए व े कहत े है -
“धमाथ - काम-मोेषु वैचभय ं कलास ुच, करोित कित ीितच साध ु कायिनव ेषणम ।”
अथात धम , अथ, काम, मो, कलाओ ं म िवलणता पाना , कित और आन ंद क उपलिध
ही काय का योजन ह ै । जहा ं तक किव का काय रचना क े योजन स े संबंध है, आचाय
भामह क े अनुसार सकाय क रचना करक े किव यश क अमरता ा करता ह ै ।
आचाय दडी न े वाणी का महव ितपािदत करत े हए काय रचना क े दो योजन को
वीकारा ह ै - १. ान क ाि और २. यश क ाि ।
आचाय वामन न े कता क ि स े काय योजन पर काश डाला ह ै । इहन े और
अ प म काय क े दो यो जन मान े है । ीित या आन ंद क साधना एव ं कवी को कित
ा कराना आिद को काय योजन माना ह ै ।
आचाय ट न े ‘यश’ को अिधक महव िदया ह ै । साथ ही व े अनथ का नाश और अथ क
ाि को भी काय का योजन मानत े है । अनथ के नाश स े पाठक और ोता स ुख-आनंद
क ाि करता ह ै ।
आचाय आन ंदवधन आन ंद क ाि को काय का योजन मानत े है । दूसरे शद म
रसावादन को व े काय का म ुख योजन मानत े है । आचाय अिभनवग ु,आचाय कुंतक
आिद न े भी काय योजन पर अपन े िवचार य िकए ह ै । इन सभी म आचाय ममट का
िकोण समवयवादी रहा ह ै। वे कहत े है – “काय यशस ेथकृते यवहारिवद े िशवेतरतय े,
सःपरिनव ृये कांतासिमतयोपद ेश युजे ।”
अथात काय का योजन यश , अथ -ाि, यवहार क िशा द ेना और जीवन क े िशव प
क रा करना ह ै । इसक साथ ‘सःपरिनव ृये’ अथात काय पढत े ही शा ंित अथा त
आनंद क ाि होती ह ै। तथा का ंता (पनी) के समान उपद ेश करना भी काय क े
योजन ह ै । munotes.in

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सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
17 भरतम ुिन से लेकर आ .ममट तक क े िवान न े काय योजन को िजस प म वीकारा
है, वे िननान ुसार ह ै -
१.१.३.१.१ चतुवग फलाि :
जीवन क सफलता चार प ुषाथ -धम, अथ, काम, मो म मानी गई ह ै । आिदकालीन
सािहय का योजन अथ ाि रहा ह ै । धम, काम, तथा मो ल ेखक और पाठक दोन क े
िलए ह ै । अथ ाि स ृजक िन योजन ह ै । मयकालीन िह ंदी सािहय क े पूवा अथा त
भिकाल म धम और मो योजन क े प म रहे है । तो उराध अथात रीितकाल अथ के
ित आही रहा ह ै । आध ुिनक कालीन समाज धम और मो क अप ेा अथ और काम क
ओर अिधक झ ुका हआ िदखाई द ेता है । धनोपा जन क इछा स े रीितकालीन किवय न े
राजदरबार म आय हण िकया । कहत े ह िक िबहारी को य ेक दोह क रचना क े िलए
एक अशफ ा होती थी । आध ुिनक य ुग म किव सम ेलन म अनेक किव अपनी
किवताओ ं को गाकर , सुनाकर अछा -खासा धन प ैदा कर रह े ह । इस कार किवता
धनोपाज न का मायम बन गई ह ै । इसीिलए सभवतः ममट न े अथ ाि को काय
योजन म थान िदया ह ै ।
१.१.३.१.२ यशाि :
लगभग सभी स ंकृत आचाय न े यशाि को सािहय का योजन वीकार िकया ह ै ।
आचाय ट न े इस योजन पर िवशेष प स े यान िदया ह ै । यश मन ुय जीवन क उदा
और सवपर कामना ह ै । यश ाि क कामना हर किव म होती ह ै । अयथा य ेक रचना
के साथ किव या ल ेखक अपना नाम न िलखता । आिदकाल , रीितकाल क े रचनाकार यश
ाि क े िलए िलखत े रहे। भिकाल क े किव भी य श कामना स े रिहत नह थ े । आध ुिनक
रचनाकार म भी यश कामना बल प म िवमान ह ै । ा यश , शंसा और अिधक
िलखन े के िलए व ृ करती ह ै । यश ाि को ममट न े काय का म ुख योजन माना ह ै ।
काय रचना करक े अनेक महाकिवय न े अय यश ा िकया ह ै । कािलदास , सूरदास,
तुलसी, िबहारी , साद ज ैसे अनेक किव आज भी अमर ह । तुलसीदास जी न े
रामचरतमानस म िलखा ह ै :
“िनज किव क ेिह लाग न नीका । सरस होह अथवा अित फका ।।
जो बध क ुछ निह ं आदरह । सो म वाद बाल किव करह ।।”
अथात् अपनी किवता िक से अछी नह लगती , चाहे सरस हो या फक , िकतु िजस रचना
को िवान का आदर ा नह होता उस रचनाकार का म यथ ही है ।
इससे यह विनत होता ह ै िक किव क आका ंा होती ह ै िक उसक रचना िवान क े ारा
सराही जाए अथा त् यश ाि क कामना सभी क िवय म होती ह ै ।
जायसी न े भी पावत म यह वीकार िकया ह ै िक म चाहता ह ं िक अपनी किवता क े ारा
संसार म जाना जाऊ ं ।
“औ म जान किवत अस कहा । मकु यह रह ै जगत म ंह चीहा ।।” munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
18 रीितकालीन किव आचाय कुलपित , देव और िभखारीदास न े भी अपन े काय योजन म
यश ाि को िवश ेष थान िदया ह ै । यह भी उल ेखनीय ह ै िक किवय न े िजन राजाओ ं को
अपनी किवता का िवषय बनाया व े भी अमर हो गए। िनकष यह ह ै िक यश ाि काय का
मुख योजन ह ै ।
१.१.३.१.३ यवहार ान :
आचाय भरतम ुिन, आ. भामह, आ. कुंतक तथा आचा य ममट इस योजन का ितपादन
करते है । यह पाठक िन योजन ह ै । यह योजन जीवन क े वातिवक सय को पहचानन े
के िलए एक नई ि दान करता ह ै । अपन े भौितक यथाथ का सााकार भी वह कराता
है । आचाय ममट न े यवहार ान को भी काय का योजन माना ह ै । रामायण आिद
महाकाय क े अनुशीलन स े पाठक को उिचत यवहार क िशा ा होती ह ै । संकृत म
बहत-सा सािहय इसी योजन को यान म रखकर िलखा गया था । पंचत , िहतोपद ेश,
नीितशतक ज ैसे थ यवहार ान क िशा द ेने के िलए िलख े गए । काय क े अनुशीलन
से यह ात होता ह ै िक हम क ैसा यवहार कर । रामचरतमानस यवहार का दप ण है ।
आचाय रामच श ुल न े िचतामिण म यह वीकार िकया ह ै िक काय स े यवहार ान
होता ह ै: “यह धारणा िक काय यवहार का बाधक ह ै, उसके अनुशीलन स े कमयता आती
है, ठीक नह । किवता तो भाव सार ारा कम य के िलए कम े का और िवतार कर
देती है ।”
१.१.३.१.४ अमंगल का नाश :
आचाय ममट न े िशवेतरतय े के प म दैिहक और भौितक अम ंगल क े नाश को सािहय
का योजन माना ह ै । ‘िशवेतर’ का अथ है-अमंगल और ‘तये’ का अथ है-िवनाश । इसका
तापय है िक काय अम ंगल का िवनाश करता ह ै और कयाण का िवधान करता ह ै । अपन े
युग और समाज को अिन स े बचान े के िलए अन ेक किवय न े काय रचनाए ं िलखी ह ।
भिकालीन किव द ैिहक, दैिवक, भौितक अम ंगल क े नाश क े िलए सािहय का सहा रा लेता
है । धािम क ंथ रामचरतमानस भी ंथ पठन क े बाद फल क ल ंबी सूची त ुत करता ह ै ।
वैसे आज क े वैािनक य ुग म इस योजन क कोई िवश ेष ास ंिगकता नह रही ह ै । मा
मनोवैािनक ि स े मानिसक अस ंतुलन स े मुि तथा स ुधारवादी ि स े सामा िजक
अमंगजल का नाश सािहियक योजन कह े जा सकत े है । कहा जाता ह ै िक िदनकर जी न े
यु और शाित क समया को ल ेकर ‘कुे’ क रचना क और सप ूण संसार को
शाित का सद ेश देते हए य ु के अमंगल स े बचाया ह ै । कभी -कभी किव यिगत अम ंगल
को दूर करन े के िलए भी काय रचना करता ह ै । कहते ह िक स ंकृत के मयूर किव न े कु
रोग स े मुि पान े के िलए ‘मयूर शतक ’ िलखा था , इसी कार गोवामी त ुलसीदास न े
‘हनुमान बाहक ’ क रचना बाह रोग स े मुि पान े के िलए क थी । काय स े पठन-पाठन स े
भी ‘अमंगल का िवनाश ’ होता है । अनेक लोग रामचरतमानस , दुगा सशती और ग ु थ
साहब का पाठ अम ंगल के िवनाश क े िलए करवात े ह ।

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सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
19 १.१.३.१.५ आनंदाि :
इसे भी लगभग सभी स ंकृत आचाय न े काय का योजन माना ह ै । कायान ंद ििवध
योजन ह ै । सृजन क िया क े दौरान स ृजक तथा पठन -आवादन क े दौरान पाठक
इसके अिधकारी होत े है । कायान ंद को ही हान ंद सहोदर कहा गया ह ै । सृजनामकता
का आन ंद भौितक स ुखानुभूित से िनता ंत िभन होता ह ै। इसिलए उस े अलौिकक आन ंद भी
कहा जाता ह ै ।
१.१.३.१.६ कांतासिमतयोपद ेशयुजे -
आचाय ममट न े यह ल ेखकिन योजन माना ह ै । पनी क े समान मध ुर उपद ेश देना भी
काय का एक योजन ह ै । मयकालीन एव ं अय स ंत क रचनाए ं भी इसी कोटी म आती
है । िजस कार पनी का उप ेदश सीधा न होकर मध ुर भाषा म तथा छन प म होता
है, उसी कार सािहयकार का भी उपदेश होता ह ै । संेप म भारतीय आचाय आन ंद-
आहाद को सािहय का म ुख योजन मानत े है । तथा अपन े युगीन सािहय तथा परव ेश
के अनुप सािहय क क ृित के अनुकुल अय योजन को भी समािव करन े का यास
हआ ह ै ।
१.१.३.१.७ आमशाित -
काय पढ़न े के साथ ही त ुरत आनद का अन ुभव होता ह ै और परम शाित क ाि होती
है । काय का रसावादन करन े से अलौिकक आनद क अन ुभूित होती ह ै । वत ुतः
आनदोपलिध ही काय का म ुख योजन ह ै । काय का रसावादन करत े समय पाठक
को समािधथ योगी क े समान अलौिकक आन द ा होता ह ै । कुछ समय क े िलए वह
अपनी सा को भ ूलकर काय क े आनद म लीन हो जाता ह ै । इसीिलए कायानद को
‘ानद सहोदर ’ कहा गया ह ै । काय क रचना करक े किव को भी यही आनद िमलता ह ै
और काय का रसावादन करक े पाठक को भी ऐस े ही आनद क अन ुभूित होती ह ै । इस
कार काय का योजन किव और पाठक दोन स े सबिधत ह ै । काय म डूबा हआ मन
साधारणीकरण क िथित म पहंचकर रसमन हो जाता ह ै और यही रसमनता परमशाित
अथात् आनद दान करती ह ै । आचाय न े इसी कारण इस योजन को सवा िधक
महवपूण मानत े हए ‘सकलमौिलभ ूत’ योजन कहा ह ै ।
१.१.३.२ आधुिनक भारतीय (िहंदी के) िवान क े अनुसार सािहय का योजन -
िहंदी के िवान न े भी सािहय क े योजन पर िवतार स े िवचार िकया ह ै । भिकालीन
भ किवय क रचनाओ ं म भी सािहय योजन क ओर स ंकेत िकया गया ह ै । संत कबीर
लोकम ंगल क े समथ क रह े है । तुलसीदास क रचनाय ‘वांत: सुखाय’ रही ह ै । अथा त
आनंद और लोकम ंगल उनका काययोजन रहा ह ै । सूरदास तथा अय क ृण भ किव
आनंद को अिधक महव द ेते है । रीितकालीन किवय न े काय योजन क े संबंध म कोई
मौिलक उावना य नह क ह ै । संकृत के काय शाीय मत को ही उहन े
दोहराया ह ै । munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
20 आधुिनक काल क े िवान पर स ंकृत तथा पााय िवचारक का भाव िदखाई द ेता है ।
आचाय महावीरसाद िव ेदी आन ंद और ान ाि को काय योजन मानत े है । आचाय
रामचं शुल न े सािहय योजन क े प म लोकम ंगल क भावना और आन ंद तथा रस को
माना ह ै । किववर अयोयासाद िस ंह ने सरसता , मुधता, ान, िनयुपदेश और आन ंद को
काय योजन माना ह ै । किववर म ैिथलीशरण ग ु मनोर ंजन और उप ेदश-ान को महव
देते है । जयश ंकार साद मनोर ंजन और िशा का काय योजन मानत े है । छायावादी
किवय न े मनोर ंजन तथा िशा को सािहय योजन माना ह ै । गितशील रचनाकर ेमचंद
के अनुसार सािहय क े तीन लय ह ै - परक ृित, मनोरंचन,उाटन । अय गितशील
रचनाकार गजानन माधव म ुिबोध न े सािहय का उ ेय सा ंकृितक परकार माना ह ै ।
डॉ. हजारीसाद िव ेदी जी न े लोकम ंगल पर बल िदया ह ै ।
१.१.३.३ पााय िवान क े अनुसार सािहय का योजन -
पााय िवान न े काय योजन क चचा वत ुपरक िकोण स े क ह ै । जीवन और
समाज क यावहारकताओ ं पर ि रखकर यह सािहय योजन प िकए गए ह ै ।
सािहय क उपयोिगता और सािहय क कलामकता को यान म रखकर इन योजन को
देखा जा सकता ह ै ।
१) यूनानी दाश िनक ल ेटो लोकम ंगल को सािहय का योजन मानते है । वे सािहय को
उसी सीमा तक ा मानत े है, िजस सीमा तक वह राय और मानव को उपयोगी हो ।
लेटो के िशय अरत ु ने सािहय क े दो योजन वीकार िकए ह ै। १. ानाज न या
िशा २. आनंद
रोमन आ . होरेस का िकोण समवयवादी रहा ह ै । उनक े मतान ुसार किव का उ ेय
या तो उपयोिगतावादी होता ह ै या िफर आहादमयी ।
२) वछ ंदतावादी िवान -रचनाकार न े आनंद दान करना सािहय का म ुख योजन
माना ह ै । इसम कॉलरज , वड्सवथ आिद म ुख है ।
३) वछ ंदतावादी िवचारधारा क े उपरा ंत यूरोप म लोकम ंगलवादी िवचारधा रा का ाबय
रहा । रिकन बा ंड, िलयो, टासटॉय , आनड आिद रचनाकार न े नीित क े उपदेश के
साथ आन ंद को सािहय का योजन माना ह ै । वह िवन बन र, ेडले, ऑकर
वाइड , वॉटर प ेटर काय योजन प करत े हए मानत े है िक काय काय क े िलए
या कला कला के िलए होती ह ै ।
४) मनोिवानवािदय न े सािहय को दिमत वासनाओ ं क अिभयि माना ह ै । इसिलए
उनके अनुसार काय और कला का योजन मानिसक स ंतुलन दान करना ह ै, िजसस े
पाठक को मानिसक वाथ लाभ ा होकार वह स ुखी रह े ।
५) मास वादी यि को महव न द ेकर समाज को महव द ेते है । उनक े िलए सािहय का
मुय योजन समाज कयाण ह ै । उनक ि म े सािहय वही ह ै, जो यि को
नैितक, सामािजक , राजनैितक िशा द ेकर उसक स ु चेतना को जगाकर उस े समाज
का उपय ु अंग बनान े म सहायक हो । munotes.in

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सािहय क े हेतू , सािहय के योजन
21 इसके अितर काय योजन को पााय िवान िनन प स े भी प करन े क च ेा
क है । िजसक े अनुसार - कला जीवन स े पलायन ह ै, कला जीवन म वेश के िलए, कला
सेवा के िलए, कला आमान ुभूित के िलए, कला स ृजन क आवयकता क प ूित के िलए
और कला िवनोद क े िलए आिद । कुल िमलाकर पााय िवान न े आन ंद तथा नीित
उपदेश ारा लोकम ंगल इन दो काय योजन पर अिधक माा म बल िदया ह ै । आन ंद के
संदभ म कुछ िवान ानजय , भावजय तथा क ुछ नीितसाप े आन ंद का योजन
वीकारत े है ।
इस कार उपरो मत क े िनकष प म कहा जा सकता ह ै िक काय का स ृजन
िनयोजन नह होता ।
१.१.४ सारांश
सािहय पठन और लेखन यितर सािहय हेतु या है?
सािहय योजन या है भारतीय और पााय िवानारा िकस कार इसे यायाियत
िकया गया है यह सभी जानकारी और इस िवषय के आतरक और बाान से िवाथ
सािहय के सभी घटक से उ इकाई के अययन के मायम से अवगत हए |
१.१.५ दीघरी
१) सािहय ह ेतु और सािहय योजन क िवत ृत याया किजए |
२) सािहय योजन क े संदभ म भारतीय और पााय िवान के मत का िववरण
दीिजए |
१.१.६ लघुरी
१) काय ह ेतु या ह ै ?
उर : काय ह ेतु िकसी किव क वह शि ह ै, िजसस े वह काय स ृजन करता ह ै |
२) काय ह ेतुओं के नाम िलिखए |
उर : काय ह ेतु चार ह ै – ितभा , युपि, अयास और समािध
३) संत कबीर और तुलसीदास के िलए काय योजन या है ?
उर : संत कबीर और तुलसीदास के िलए आनंद और लोकम ंगल उनका काय योजन
रहा है । उर : ७-८ वी शतादी म
४) यि को महव न देकर समाज को महव देते है । उनके िलए सािहय का मुय
योजन समाज कयाण है । िकसक िवचारधारा है ?
उर : मास वादी munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय
22 ५) लोकम ंगल को सािहय का योजन कौन मानते है ?
उर : यूनानी दाशिनक लेटो लोकम ंगल को सािहय का योजन मानते है |
१.१.७ संदभ पुतके
१) काय शा - भगीरथ िम िविवालय काशन , वाराणसी .
२) सािहय समीा – रामरतन भ टनागर , िकताबमहल , इलाहाबाद 
३) िहदी सािहय समीा – ीमूित सुराय िहदी सािहय सम ेलन, वास 
४) भारतीय काय िवमश – सममूित िपाठी , वाणी काशन , िदली 
५) पााय कायशा – इितहास , िसांत और वाद – डॉ. भगीरथ िमा 






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23 २
कला : वप और परभाषा , कलाओ ं का वगकरण

इकाई क पर ेखा
२.० इकाई का उेय
२.१ तावना
२.२ कला : वप एव ं परभाषा
२.२.१ कला का अथ
२.२.२ कला का वप
२.२.३ कला क परभाषा
२.३ कलाओ ं का वगकरण
२.३.१ दाशिनक िवचारधारा क े अनुसार कलाओ ं का वगकरण
२.३.२ पााय मत के आधार पर कलाओ ं का वगकरण
२.३.३ िवधागत आधार पर कलाओ ं का वगकरण
२.३.४ यवहार आधारत वगकरण
२.३.५ उपयोिगता क े आधार पर कला का वगकरण
२.४ सारांश
२.५ दीघरी
२.६ लघुरीय
२.७ संदभ ंथ
२.० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अययन स े िवाथ िनन िलिखत म ु से अवगत हग े |
कला क े अथ, वप और परभाषा का अययन कर सक गे |
कला क े वगकरण को जान सक गे | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
24 २.१ तावना
ारंिभक दौर स े ही कला मानवीय दय को आकिष त और सन करती ह ै | जो कलामक
िशप, कौशय क िया अन ेक प म हमार े सामन े अिभय करती ह ै जैसे – नृय,
संगीत, िचकारी , मूितकला किवता आिद | इस कार कला य , य और अन ुभािवत
प स े हम आन ंद देती है और हमारी जीवन श ैली को मध ुर रय स ुगम बना ने म अपनी
भागीदारी िनभाती ह ै |
२.२ कला : वप एव ं परभाषा
२.२.१ कला का अथ :
अनािदकाल स े ही कला क े ित मानव क े दय म वाभािवक आकष ण रहा ह ै । कला
संकृित क स ुदरतम ् अनुभूित है, जो स ंकृित िजतनी उदार होती ह ै, उसक कला म
उतना ही स ूम सौ दय सहज साकार होता ह ै । उदाता क ि स े ाचीन भारतीय
संकृित िव म े है । कला क अिभयि म सामायतः तीन तव काय करत े ह -
सौदय के ित मानव का वाभािवक आकष ण और सौदय को वतः उपन करन े क
भावना । संसार क वत ुओं, य एव ं आक ृितय का अन ुकरण और उनक यथाथ
ितकृित करन े क भावना। कलाकार क े ारा अन ुभूित भावनाओ ं को म ूत प म अंिकत
करके दूसर क े िलए य करन े क व ृि । थम कार क कला म सुदर आक ृित ही
सब क ुछ है । कला क े अथ को हम िनन िब ंदुओं के अंतगत समझ सकत े ह |
१) कला म ूलत: संकृत का शद ह ै । कला शद का योग स ंकृत सािहय म अनेक अथ
म हआ ह ै । ‘कल’ धातु से शद करना , बजना , िगनना , कड़् धातु से मदमत करना , सन
करना , ‘क’ अथात आनद लान े वाले अथ म जैसे िभन -िभन धातुओं से युपि वीकार
क है ।
वह अ ंेजी म ‘आट’ कहा जाता ह ै । ‘आट’ का सबध प ुरानी ैच आट और ल ैिटन
‘आटम’ या ‘आस’ से जोड़ा गया , इसके मूल म ‘अर्’ (।त) धातु है, िजसका अथ बनाना , पैदा
करना , या िफट करना होता ह ै, और यह स ंकृत के ‘ईर’ (जाना, फकना, डालना , काम म
लाना) से सबिधत ह ै ।
लैिटन क े आस का अथ संकृत के कला और िशप अथ के समान ह ै, अथात कोई भी
शारीरक या मानिसक कौशल िजसका योग िकसी क ृिम िनमा ण म िकया जाता ह ै, इस
कौशल को “आट” से ही जोड़ा गया ह ै । अंेजी म कला शद का योग १३व शतादी म
शु कौशल क े िलये हआ । १७व शतादी म कला का योग , काय, संगीत, िच, वातु
आिद कलाओ ं के िलये भी होन े लगा ।
२) कला शद ‘कल’ धातु से बना ह । कला का शिदक अथ ह, जो स ुदर यािन जो आन ंद
दान करती हो अथवा िजसक े ारा स ुदरता आती ह , वही कला ह । कला स े तापय रेखा
आकृित, रंग, ताल तथा शद , जैसे-- रेखािच , रंजनकला , मूितकला, नृय, संगीत, किवता
एवं सािहय क े प म मानव क व ृिय का बाहारी अिभयि ह । कला न ान ह , न munotes.in

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कला : वप और
परभाषा , कलाओ ं का
वगकरण
25 िशप ह, न ही िवा ह , बिक िजसक े ारा हमारी आम परमानद का अन ुभव करती ह ,
वही कला ह । कुछ लोग कला शद का अथ ‘सुदर’ ‘कोमल ’ ‘मधुर’ या ‘सुख’ लाने वाला
मानते ह । कुछ इस े ‘कल्’ धातु अथात् (शद करना , गाना-बजना , िगनना स े संबंिधत मानत े
ह । कुछ अय लोग इस े ‘कड्’ धातु (मदमत करना , सन करना स े जोड़न े के प म ह ।
इस कार स े देखे तो कला का अथ एक ऐसी कलामक िशप या कौशल क िया स े
यु अन ुभूित से ह जो स ृजनामक , सुदर एव ं सुख दान करन े वाली हो , वही कला ह ।
३) कला शद से तापय है प अिभयि । ‘कंलाित’ अथात् सुख दान करन े वाली
मधुर कृित भी कहलाती ह ै । कला शद का सव थम योग ऋव ेद के आठव मडल म
“यथा कला ं यथा शफ ं” के प म यु हआ भारत म ाचीन काल म कला क े िलए िशप
शद का भी योग हआ । भरतम ुिन ने अपन े नाट्यशा म िशप और कला दोन शद का
अलग-अलग योग िकया । “न तजान ं न तिछप न सा िवा न साकला ।”
२.२.२ कला का वप :
मानव जीवन क े िलए कला एक द ुलभ उपहार ह ै, कला क ेवल एक आवाज़ , एक य , एक
माा या ितभा नह ह ै, कला वह ह ै जो न क ेवल आपको आन ंद दान करती ह ै, बिक
अपनी िच और स ुझाव को एक आ कार दे आपक कला ही आपको क ुछ भी स ृजन करन े
म मदद करती ह ै, इसके आलावा कला को एक उोग क े प म भी वी कार िकया जा
सकता ह ै । वैसे तो कला को मानव मन क अिभयि को कट करन े का एक मायम माना
गया ह ै, िजसे यि अपनी इछान ुसार िभन - िभन वप द ेता है अथा त कला को
मानवीय भावनाओ ं क सहज अिभयि कहा गया ह ै । कई िवान न े ‘कला को कयाण
क जननी कहा ह ै ।” उनका मानना ह ै, िक “कपना क े सौदया मक अिभयि का नाम ही
कला ह ै । तथा कपना क अिभयि अलग - अलग कार स े एव अलग - अलग मायम
ारा हो सकती ह ै । यह अिभयि िजस भी मायम एव ं िजस भी कार स े हो, वही कला क े
अतग त आती ह ै ।
कुछ कलािवद क े अनुसार, े कलाक ृित का जम अतः मन व च ेतन मन दोन क े
परपर सहयोग स े ही होता ह ै । ऐसी कला कभी अन ैितक नह हो सकती , यिक उस कला
म समाज क े कयाण व परोपकार क भावना समिलत रहती ह ै । दूसरे शद म कह तो
‘कला’ हमारी कपना शि तथा स ृजन शि स े यु है । इसीिलए भारत म कला को ‘योग
- साधना ’ माना जा ता है । सौदय व तीतम ् अनुभूित से आम - िवभोर होकर ही कलाकार
सृजन करता ह ै । इस कार क कला ही वातव म भाव - पूण व रसप ूण होती ह ै ।
अतः कपना क सौदया मक अिभयि का नाम ही कला ह ै । आिदमानव काल स े लेकर
आज तक मानव क इस कला का िवकास म नह का ह ै । अिपत ु यह द ेश, काल तथा
परिथितय क े अनुसार आग े ही बढ़ता गया ह ै । मनुय को जो भी िमला , उसने उसे ही
सृजन का मायम बना िलया । जैसे -ताड़ प , छाल, कपड़ा , गुफाएँ दीवार , चान आिद ।
ाचीन भारतीय मायताओ ं म भी कला क े िलए ‘िशप’ और कलाकार क े िलए ‘िशपी ’
शद का ही अिधक योग िकया जाता था | कहा जाता ह ै ाचीन काल म इस कार का
कोई भी िवभाजन नह था । उस समय ीक और रोमन भाषा का ‘आट’ शद को क ेवल munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
26 िशप क े िलए ही य ु िकया जाता था । उसम ‘कला’ शद क सौदय - गरमा प ृथक प
से समािव नह थी ।
उसके पात १८व शतादी म सौदय - शािय ारा ‘िशप’ और ‘िशप’ का िवभाजन
उपयोगी एव ं लिलत कला क े प म िकया गया और १९व शतादी क े आते - आते ‘िशप’
शद म िछपा हआ सौदय इतना बल हो उठा िक उसन े अपन े पुराने युम ‘लिलत ’ को
हटा द ेने पर भी वह अपन े अथ को प ूण प स े िवयात करन े लगा तथा सामाय तौर पर
लिलत कला क े िलए क ेवल मा कला शद का ही योग िकया जान े लगा ।
ाचीन समयान ुसार भारतीय सािहय म कला क े ित आयािमक िकोण होता था ।
िजस पर क ुछ िवान न े िटपिण क है | आचाय हजारी साद िव ेदी के अनुसार “ाचीन
भारतीय सािहय म कला को महामाया का िचमय -िवलास कहा गया ह ै । उहन े कला को
महािशव क आिदशि स े सब माना ह ै ।” लिलता - तवराज स े ात होता ह ै िक जब -
जब िशव को लीला के योजन क अन ुभूित होती ह ै तब तब महाशि पी महामाया जगत
क स ृि करती ह ै । अतः िशव क लीला सिख होन े के कारण महामाया को ‘लिलता ’ कहा
गया ह ै, और यह माना जाता रहा ह ै िक इह लिलता क े लािलय स े ही लिलत कलाओ ं क
सृि हई ह ै ।
अत: जहाँ कह भी सौदय वृि िवमान ह ै, वह महामाया का यह लीला लिलत प भी
िवमान ह ै । ाचीन मत क े अनुसार- लिलत कलाय आनद क िनिध ह । माया क े “पंच -
कुंचुक काल , िनयित , राग, िवा और कला म ‘कला’ भी एक ह ै । इस कार श ैव
िवचारधारा म कला का दाश िनक अथ म भी योग हआ ह ै ।
कला क े वप को हम उसक े िविभन वप एव ं गुण के आधार पर आसानी स े समझ
सकत े ह । इस बात को यान म रखत े हए कला क क ुछ िविश यायाए ं यहां दी गई है |
१) कला एक िया ह :
कला एक िया ह , िजस कार स े कृित ित ण िविभन ियाए ं करती ह । जैसे--
चमा का घटना -बढ़ना, फूलो का िखलना , सूय का िनकलना , बादल का बरसना , िबजली
का चमकना , इ धन ुष का बनना आिद। इसी कार स े मानव भी अन ेक ियाए ँ करता ह
िजनम े से कुछ िवश ेष काय जो क ुशलता प ूवक िकय े जाते ह दूसर को आकिष त करत े ह ।
इसका प अथ यह हआ िक कला एक यापक शद ह ै िजसका योग क ृित तथा मानव
जीवन क े िविवध े म होता ह । िकत ु कृित तो ईरीय कला ह ै जो मानवीय ियाओ ं से
पृथक ह ै जबिक मानव ारा िनिम त कलामक वत ु या िच क े िनमाण क एक रचना
िया होती ह जो उसक कलामकता को िनित करती ह तो इस िव ेषण स े यह प
होता ह िक, “कला वह मानवीय िया ह ै िजसका िवश ेष लण , यान स े देखना, गणना
अथवा स ंकलन , मनन, िच तन एवं प प स े कट करना ह ।”
२) कला एक त कनीक ह ै :
कोई भी कलाक ृित (चाहे वह िच हो , मूित हो या किवता ) के िनमाण के िलये उसक े िनमाण
म यु एव ं उस सामी क े योग क तकनीक को समझना अिनवाय ह । िबना उस munotes.in

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कला : वप और
परभाषा , कलाओ ं का
वगकरण
27 तकनीक को समझ े उस कलाक ृित का िनमा ण नही िकया जा सकता । िजतना ब ेहतर हम
सामी क े इतेमाल क तकनीक का ान होगा उतनी ही क ुशलता स े हम उसका योग पर
पायगे और उतनी ही उक ृ वह कलाक ृित होगी तो इस िव ेषण स े यह प होता ह ै िक,
“कला एक िवश ेष तकनीक िया ह ै िजसम कलाक ृित के िनमा ण हेतु यु सामी क
योगिविध को समझना अिनवाय ह ।”
३) कला एक िशप ह ै :
िकसी सामी को काट -छांटकर जब कोई प िदया जाता ह उसे िशप कहत े ह । इस
कार वह चाह े मूितकला हो या वत ु िशप , धातु िशप हो या व िशप अथवा
लािटक आट सभी िशप क ेणी म ही आत े ह। इस कार प है िक “येक कार
क कला क े िलये िकसी न िकसी सामी को काट -छांट कर या तराश कर ही उस े कलाक ृित
का प िदया जा सकता ह ै । कलाक ृित िनमा ण हेतु उसक े िलये उपय ु सामी को काटन े-
छांटने या तराशन े क िया एव ं उसक क ुशलता अिनवाय ह ।”
४) कला एक कार का कौशल ह ै :
यह सव िविदत ह ै िक कोई भी क ृित तभी कलाक ृित कही जा सकती ह ै जब वह िवश ेष कौशल
ारा त ैयार क गई हो तथा उसम छद लयामक यवथा हो । कलाकार का कौशल उस े
कहा जाता ह ै िजसम कलाकार िया , िशप एव ं तकनीक क े अितर क ृित को आकिष त
बनाने के िलय े अपन े मानिसक िचतन िया क े ारा नवीनता लान े के िलए अन ेक
युियाँ खोजता ह । इसस े प ह ै िक, “कलाक ृित को भावशाली , नवीन एव ं आकष क
बनाने हेतु मानिसक िचतन -मनन एक अिनवाय िया ह ।”
५) कला एक कपना ह ै :
बु घोष क े अनुसार, “संसार भर क िजतनी कलाक ृितयाँ ह सब कपना क उपज ह ।
लेटो भी यही मानत े है उनक े अनुसार कलाक ृित म दैवीय ेरणा क ही भ ूिमका होती ह ।
कलाकार अन ेक ऐस े कापिनक िच या म ूितय का िनमा ण करता ह ै िजनका अितव ही
संसार म नही होता । देवता, ईरीय अवतार , रास , वग, ये सब कपना ही तो ह ।
यूरोपीय िवान भी यही मानत े थे िक कलाकार नवीन कलाक ृितय का स ृजन करक े अपनी
कपना को सत ु करता ह । लेिकन महान िचकार “िलयानाद द िवची ” (सबसे चिचत
कृित मोनािलसा ) का िवचार था िक कलाकार स ंसार क े अनुभव क े आधार पर ही
कलाक ृितयाँ बनाता ह ै पर वह स ृि नह करता क ेवल प ुनः सृि मा करता ह ै । वह इसी
संसार स े सामी ल ेता है, जो ईर ारा िनिम त ह ।
इस कार कहा जा सकता ह ै िक, “कपना का आधार भी सा ंसारक वत ुएँ ही होती ह ।
कलाकार कपना क े ारा उह पुनः संयोिजत कर नवीन प द ेता ह ।”
६) कला एक ान ह ै :
ाचीन भारतीय भाषाओ ं म चसठ कलाओ ं का वण न िकया गया ह ै । उचतम ान स े भी
िभन इन कलाओ ं के ान क िया को माना गया ह । ान क े अभाव म तकनीक का munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
28 योग भी अस ंभव ह । मन और मितक जब िकसी भी तकनीक , वतु, घटना , िया
आिद को प ूण िवेिषत कर सय मान ल ेता है तभी इन ियाओ ं का ान ा होता ह ।
७) कला एक अिभयि ह ै :
िवान का मानना ह ै िक कला एक कार क भावप ूण भाषा ह ै, जो िकसी िवश ेष मानिसक
िथित को जगान े म सफल होती ह । िलयोनाद द िवसी का कथन ह ै िक कलाकार िजन
आकृितय क रचना करता ह ै वे उसक े आतरक भाव पर आधारत होती ह । इसका प
यह हआ िक कला क े प म कलाकार क े मन क े भाव क अिभयि होती ह । िजस
कार हम भाषा को माय म बनाकर अपन े िवचार द ूसर तक पह ँचाते ह उसी कार
कलाक ृित के ारा भी कलाकार अपन े मन क े िवचार को स ेिषत करता ह । कला एक
कार क भावप ूण भाषा ह जो कलाक ृितय म अिभय होती ह । कला को क ुछ िवान न े
सामािजक वन कहा ह । वत ुतः यह कहा जा सकता ह ै िक, “कला चाह े कापिनक हो या
वातिवक वत ु को साय , उसके पीछे कलाकर क भावनाओ ं क अिभयि ही म ूल
भूिमका का िनवा ह करती ह ।”
८) कला एक ख ेल है :
कई िवान न े कला को ड़ा क स ंा दी ह । इसी स ंदभ म हबट रीड कहत े है िक, “जब
हमारी अन ेक इछाए ँ, अनुभूितयाँ िवचार और स ंवेदनाएँ तकाल अिभय नही हो पाती ह ै
तो तनाव उपन होता ह , खेल ही इस तनाव स े मु होन े का अवसर दान करता ह ।”
इस कार हम कह सकत े ह िक, “कलाकार अपनी स ंवेदनाओ ं एवं तनाव को द ूर करन े के
िलए भी कला को मायम बनाता ह ै और कला ही उस े वय मानिसक जगत क तरफ ल े
जाती ह ।”
प ह ै िक अन ुभूित क सफल अिभय ंजना मा कला नह ह ै । पाशिवक आव ेश म दी गई ं
गािलया ं ोध क सफल अिभयि तो ह ै, परतु उसे कलामक अिभियि नह कहा जा
सकता । िकंतु ‘रामायण ’ के यु स ंग म वामीिक जब राम क े ोध को य करत े ह, तो
यही ोध कलामक बन जाता ह ै । यिक यह ोध पशुतरीय वाथ क सीमा स े ऊपर
उठा हआ ह ै । कलाकार क े िलए पा िक वाथ क सीमा स े ऊपर उठना अय ंत आवयक
है और इसी िब ंदु पर उसम सामािजकता का उदय होता ह ै । कल इसी भावना का प ुरकार
है । कला -सृजन क े मूल म एक महवप ूण तव िवमान रहता ह ै । कलाकार िजस
जीवनान ुभव का अिवकार अपनी कलाक ृित म करवाना चाहता ह ै, उस िवषय म उसक े
अंत:करण म गहरी सह -अनुभूित होनी चािहए । यही नह , अिपत ु कलाक ृित के सृजन क
ती ललक भी उसम िवमान रहनी चािहए । कलामक का उकट अिवकार करन े वाली
कलाओ ं को ही लिलत कला कहा जाता ह ै ।
२.२.३ कला क परभाषा
कला एक दश न है । सबस े बड़ी बात ह ै िक उसम रहय ह ै। रहय क े तव ह । कला म थोड़ा
बोलना ह ै तो थोड़ा च ुप भी रहना ह ै । यानी एक प ेस भी चािहए । इसक े साथ-साथ र ंग का
ामा ह ै । हैरान कर द ेने वाली तासीर ह ै । रंग-संयोजन एव ं आकृित-संयोजन भी ह ैरान करन े munotes.in

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कला : वप और
परभाषा , कलाओ ं का
वगकरण
29 वाली होनी चािहए । अंतत: अंतमन के अनुभव एव ं भावनाओ ं क अिभयि का मायम
कला ह ै । कला क े सौद य म अनेक कलािवद न े अपन े-अपने मत त ुत िकय े है, जो िक
िभन-िभन ह ै । कला को एक िनित परिध म बांधना किठन ही नह नाम ुमिकन भी ह ै ।
कला स ंकृित, मानव जीवन एव ं सािहय तीन क े िलए ब ेहद महवप ूण है । कला क े िबना य े
सभी िनाण स े हो जाए ंगे। कला ही ह ै जो जीवन म सृजन को आधार एव ं आकार दान
करता ह ै । कला का िकसी भी परभाषा क े दायर े म बांधा नह जा सकता । लेिकन िविभन
िवान ारा समय -समय पर कला क अन ेक परभाषाय दी गई ह । उनम से कुछ मुय
परभाषाए ं िननिलिखत ह -
भारतीय िवा न के अनुसार-
१) “कला आमा का ईरीय स ंगीत ह ।” - महामा गा ँधी
२) “कला म मनुय वय ं अपनी अिभय करता ह ।” - रवीनाथ ट ैगोर
३) “ईर क क ृत-शि का मानव ारा शारीरक तथा मानिसक कौशलप ूण िनमाण,
कला ह ै ।” - जयशंकर साद
४) “कला म मनुय अपनी अिभयि करता ह ।” - डॉ. भोला श ंकर ितवारी
५) “िजस अिभय ंजना म आितरक भाव का काशन तथा कपना का योग रहता ह ै,
वह कला ह ै । सभी परिथितय म कलामक िया एक समान ही होती ह ै । केवल
मायम बदल जात े ह ।” - डॉ. याम स ुदर दास
६) “एक ही अन ुभूित को दूसरे तक पह ँचा देना ही कला ह ै ।” - आचाय रामच श ुल
७) “कला आ ंतरक ऊजा है । ईमानदारी स े देख तो कला प ूणत: िनजी और अ ंतरमन क
अिभयि होती ह ै ।” - माधवी पारेख
८) “जीवन -अनुभव एव ं जीवन -दशन का िनचोड़ कला ह ै ।” - अपणा कौर
९) “यह समत िव ही कला है जो क ुछ देखने, सुनने तथा अन ुभव करन े म आता ह ै,
कला ह ै ।” - ी मोहनलाल महतो िवयोगी
१०) “कला सदय मय दश न है । कला आन ंद, सनता और स ुख का ोत ह ै । कला क े
ारा मन ुय के भाव साकार (मूितमान) बन जात े ह । कला यिगत ि स े
कलाकार क पर म देन है । कला िकसी भी जाित क , िकसी खास समय क द ेन है।”
- आनंद कुमार वामी
११) “कला भाव का प ृवी पर अवतार ह ै ।” - वासुदेवशरण अवाल
१२) “कला अिभयि क क ुशल शि ह ै ।” - मैिथलीशरण ग ु

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
30 पााय िवान क े अनुसार-
१) “कला दय म दबी हई वासनाओ ं का य प ह ै” अथात हम िजन बात को
संकोचवश य नह कर पात े ह, उह कला क े मायम स े िन:संकोच य कर द ेते
ह ।” - ायड
२) “कला वही ह ै जैसा हर एक उस े जानता ह ।” - ोचे
३) “कला अन ुकरणीय ह ।” - एरटािटल
४) “कला सय क अन ुकृित ह ।” - लेटो
५) “कला, ईरीय क ृित के ित मानव क े आलाद क अिभयि ह ।” - रिकन
६) “कला एक मानवीय िया ह िजसम एक यि जागक अवथा म वा तीक क े
मायम स े, अपनी उन भावनाओ ं को िजनम वह जी रहा होता ह , दूसर को स ंचारत
करता ह ै तथा द ूसरे यि भी उन भा वनाओ ं से भािवत होत े ह एवं उनका अन ुभव
करते ह ।” - टॉलटाय
७) “सृि एक िदय रचना ह ै और कला पिवता क अिभयि ह ।” - शापेनहावर
८) “सची कलाक ृित िदयता प ूण ितक ृित होती ह ै ।” - माइकेल एज ेलो
९) “योयता ारा सपािदत जीवन क े िकसी भी उस अल ंकरण को िजस े वणनीय प
ा हो ‘कला’ है ।” - मैकिवल ज े. हसकोिवस
१०) “I putall the things, I like in my picture” अथात म अपनी तवीर म उन सभी
का अ ंकन करता ह ँ जो म ुझे पसंद ह, कलाकार अपनी इछा क प ूित म िजस उपाय
का आय ल ेता है, वही कला ह ै। इसी कार कला को मन ुय क इिछत इछाओ ं
क पूित का साधन माना ह ै ।” - िपकासो
११) “Art is the expression of Imagination.” - पी. बी. शैली
- “कला मानव का सािवक ग ुण है । एक सरल भाषा ह ै, जो मानव जीवन क े सय को
सौदया मक एव ं कयाणकारी प म तुत करती है ।” कोिलंगवुड
अय परभाषाए ं -
१) “ाण तव ‘रस’ से परप ूण रचना ही कला ह ।”
२) “कला एक िवश ेष तकनीक िया ह ै िजसम कलाक ृित के िनमाण हेतु यु सामी
क योगिविध को समझना अिनवाय ह ।”
३) “कपना का आधार भी सा ंसारक वत ुएँ ही होती ह । कलाका र कपना क े ारा
उह पुनः संयोिजत कर नवीन प द ेता ह ।”
४) “अिभयि क क ुशल शि क कला ह ै ।” munotes.in

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कला : वप और
परभाषा , कलाओ ं का
वगकरण
31 ५) “Although this isa universal humanactivity, art is one of the hardest
things in the words to define” - ‘इसाइलोपीिडया ऑफ ल ंदन’
६) “कला भाव क उस अिभयि को कहत े ह, जो तीता स े मानव दय को पश कर
सके ।”
७) “कला एक मानवीय च ेा है, िजसम एक मन ुय अपनी अन ुभूितय को व ेछापूवक
कुछ संकेत के ारा द ूसर पर कट करता ह ै ।”
८) “कला एक यि क रचनामक इछा क स ुदर अिभय है। यह कपना क
रचनामक िया क े ारा हम ा होती ह ै । यह उहन े अपनी रिचत प ुतक कला
के िसात म िलखा ह ै |”
९) ‘कला’ कपना क अिभयि ह ै ।
१०) कला शद स े तापय मनुय के मन क सची भावनाओ ं और दय क गहराइय म
िथत भावनाओ क स ुंदर त ुित से है. मन िथित को माननीय ियाओ ं के ारा
दशाना ही कला ह ै |
इन सब परभाषाओ ं से यह िनकष िनकलता ह ै िक कला िशवव क उपलिध क े िलये
सय क स ुदर अिभयि ह ै, इसका सामाय अथ सौदय एवं प क रचना करना ह ै,
इसम िजस सौदय या प क रचना होती ह ै, वही आन ंद का ोत ह ै । आनद सौदय का
सहज फल और उसक अितम परणित ह ै । इस कार कला सौदय क रचना ह ै । सौदय
प का अितशय ह ै, प अिभयि का मायम ह ै, और अिभयि सप ूण सा का
आमिनव ेदन है । इसी तरह िकसी भी कला म प और रच ना दोन एक साथ काय करत े ह
तो कलामक अिभयि उजागर हो पाती ह ै ।
२.३ कलाओ ं का वगकरण
कला मानव जीवन क े िलए न क ेवल मनोर ंजन अिपत ु भावािभिय एव ं अथपाजन का भी
एक महवप ूण साधन ह ै । कलाए ं जहां हमार े जीवन को एक नवीन ऊजा दान करती ह ,
वह कलाकार क े िलए जीवन क मौिलक स ुिवधाए ं उपलध करान े म महवप ूण भूिमका भी
िनभाती ह । हम कला क े अनेक प द ेखने को िमलत े ह, िजह अंक क सीमा म बांधा नह
सकता अथा त कलाओ ं का आ ंिकक िनपण करना स ंभव नह ह ै । हाला ंिक िवान ारा
आम जनमानस क स ुिवधा क े िलए तथा दश न एवं अनुभव क े आधार कला को िविवध
आधार द ेते हए िवभािजत करन े का यास िकया ह ै । िकसी एक िवभाजन को क म रखकर
िविभन कलाओ ं को सही -सही समझ पाना म ुिकल ही नह बिक अस ंभव ह ै । यिक
कलाओ ं के वगकरण म मतैय होना स ंभव नह ह ै । वतमान समय म कला को मानिवक क े
अंतगत रखा जाता है िजसम इितहास , सािहय , दशन और भाषा िवान आिद भी
आते ह ।
इस बात को यान म रखत े हए िवान ारा िकए गए क ुछ म ुख िवभाजन का उल ेख
िकया गया ह ै: munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
32 २.३.१ दाशिनक िवचा रधारा क े अनुसार कलाओ ं का वगकरण -
दाशिनक िवचारधारा क े अनुसार - कला का लय आमा क े वप का सााकार तथा
परम तव क ओर उम ुख होना ह ै ।
इस कार ाचीन भारत क श ैव सािहय स े सब कला - िचतन प ूणतया आयािमक
रही ह ै, लेिकन क ुछ समय पा त् भारतीय परपरा स े कला क यह पिवता जाती रही ह ै
कुछ और समय पात ‘कामशा ’ व ‘कोकशा ’ म ही कला क अिधका ंश चचा क जान े
लगी तथा ाचीन समय म कला क े ित भारतवािसय का जो िकोण था , उसे हम यहा ँ
क िविभन िवत ृत कला - सूिचय क े मायम स े ात कर सकत े ह। जो िनन कार स े है
१) लिलत िव तार – ८६
२) बध कोष – ७२
३) कामस ू (वायायन क ृत) – ६४
४) कािलका - पुराण – ६४
५) कादबरी – ६४
६) काय - शा (आचाय दडीक ृत) – ६४
७) अिनप ुराण – ६४
८) बौ एव ं जैन सदाय क े थ – ६४
वैसे अिधकतर सूिचय म कलाओ ं क स ंया ६४ ही है और यही स ंया सव माय होनी
चािहय े । परत ु यह स ंया िवभाजन अयत िववादापद ह ै ।
२.३.२ पााय मत क े आधार पर कलाओ ं का वगकरण :
पााय जगत म कला के दो भेद िकए गए ह - उपयोगी कलाए ं तथा लिलत
कलाए ं । परंपरागत प स े िननिलिखत सात को कला कहा जाता ह ै ।
१) थापय कला (Architecture)
२) मूितकला (Sculpture)
३) िचकला (Painting)
४) संगीत (Music)
५) काय (Poetry)
६) नृय (Dance)
७) रंगमंच (Theater/ Cinema) munotes.in

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कला : वप और
परभाषा , कलाओ ं का
वगकरण
33 २.३.३ िवधागत आधार पर कलाओ ं का वगकरण :
आधुिनक काल म इनम फोटोाफ , चलिचण , िवापन और कॉिमस भी ज ुड़ गए ह ।
उपरो कलाओ ं को िननिलिखत कार स े भी िवभािजत कर सकत े ह-
१) सािहय : काय, उपयास , लघु कथा, महाकाय आिद .
२) िनपादन कलाए ं (Performing Arts): संगीत, नृय, रंगमंच
३) पाक कला (Culinary Arts) : बेिकंग, चॉकल ेटरंग, मिदरा बना
४) मीिडया कला : फोटोाफ , िसनेमैटोाफ , िवापन
५) य कलाए ं: ॉइंग, िचकला , मूितकला
२.३.४ यवहार आधारत वगकरण :
यवहारक ग ुण के आधार पर कला को म ुयप स े दो भाग म बांटा गया ह ै :
१) य कला
२) य कला
१. य कला (देखने योय कलाए ं) :
वे कलाए ं िजनक अन ुभूित हम द ेख सकत े ह या कर सकत े ह, वैसी क लाओ ं को ‘य
कला’ के अंतगत रखा गया ह ै. य कला अथा त देखने योय कलाओ ं म मुय प स े
नृयुकला, िशपकला , मूितकला एव ं िचकला इयािद ज ैसी कलाओ ं का स मावेश है.
२. य कला (सुनने योय कलाए ं) :
वह कला िजस े देखा नह जा सक े और िसफ सुनकर अन ुभव िकया जा सक े. उसे सुनने
योय कला कहा जाता ह ै. सुनने योय कला क े उदाहरण कायकला , संगीत, गीत, सुरीली-
विनया ं इयािद ह |
२.३.५ उपयोिगता क े आधार पर कला का वग करण
कला को लिलत कला और उपयोगी कला क े अधीन िवभािजत िकया गया ह ै । लिलत
कलाओ ं के अंतगत संगीत, नृय, मूित, िच और वात ुकला ही आती ह ै। कुछ िवान काय
को भी लिलत कला मानत े ह । इस कार कला का े बहत यापक तीत होता ह ै और
वह जीवन दश न के येक े म मुखता स े या ह ै । कला का े यापक और
िवतृत है।
सब क ुछ ही तो कला ह ै, िफर िकसको कला ना कहा जाए ? लेिकन उसक यापकता क े
आधार पर कला का वगकरण पर िवचार करना आवयक ह ै । कला क इतनी अिधक
ेिणयां और स ंयाए ं है िक कला के वगकरण तथा िवभाजन क े प पर िवान भी एकमत
नह ह ै । कला को सामाय प म अनेक िवान तथा िवचारक िवभाय नह मानत े ह, इनम
‘चे’ का नाम म ुख है । munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
34 समानत : कलाओ ं क स ंया ६४ मानी गई ह ै, जो अटल ह ै । लिलत कला को स ंकृत
सािहय म चा कला और उपयोगी कला को का कला का नाम िदया गया ह ै । संकृत
सािहय म िशप शद का योग बहत ाचीन समय स े िकया जा रहा ह ै, और भरतम ुिन से
पहले कला शद क े थान पर िशप शद का ही योग िकया जाता था । िशप क े अंतगत
उपयोगी और लिलत दोन कार क कला एँ आ जाती थी ।
जीवन का ऐसा कोई काय नह था जो िशप क े अंतगत न आ सकता हो । सभी कार क
कलाए ं िशप क े अंतगत ही आती थी । आध ुिनक काल म इन शद का स ूम प स े
अययन एव ं िववेचन िकया गया और अब फाइन आट , ाट और कौशल को अलग -
अलग अथ म यु िकया जाता ह ै । उपयोगी कला को भी कला का एक अ ंश माना गया ह ै ।
अय िवचारक कला क क ेवल दो ेिणयां मानत े ह -
१) उपयोगी कला
२) लिलत कला
१) उपयोगी कला : आजकल ायः िशप एव ं ाट क े काम को कला शद स े भी
संबोिधत िकया जाता ह ै, जैसे चम कला , का कला , पुतक कला इयािद। वातव म
अंेजी सािहय म कला क े जो भ ेद त ुत िकए गए ह उनम कला और उपयोगी कला दो
भेद मान े गए ह । सभी कार क े िशप तथा ाट उपयोगी कला क े अंतगत ही आ जाते
ह । उपयोगी कला का उिचत अथ यह ह ै िक लिलत कला क े योग अथवा भाव स े िकसी
िकसी ाट अथवा िशप को और अिधक आकष क, कापिनक और मौिलक बनाया
जाए, जैसे- सुडौल स ुंदर, अलंकारक बत न बनाना |
लकड़ी , तर , चमड़े या धात ु क आकष क वत ुएं बनाना , सािड़य पर ब ेल बूटी छापना
अथवा कढ़ाई करना , तण तथा कष ण काय करना , आलेखन बनाना , पुतक सजा
करना , मीनाकारी करना आिद। कोई भी कला या लिलत कला जब जीवन - उपयोगी िकसी
भौितक काय म यु होती ह ै तो वह उपयोगी कला बन जाती ह ै और जब इनक े ारा कोई
उपयोगी वत ु बनती ह ै तो कोई भी कला अथवा लिलत कला उपयोगी कला हो जाती ह ै ।
अंेजी भाषा म कौशल क े थान पर ट ेनीक शद का योग उिचत माना जा सकता ह ै ।
येक काय को स ंपन करन े क एक णाली या तरीका अथवा ट ेनीक होती ह ै । जीवन
का सरल स े सरल या साधारण स े साधारण काय हो या रचना , िनमाण, या िवान का काय
हो उन सब म कौशल ट ेिनक क परम आवयकता होती ह ै । िविभन कलाओ , लिलत
कलाओ ं, िशप एव ं करट अथवा उपयोगी कला क े काय म िविभन कार क ट ेनीक या
कौशल क जरत होती ह ै । काय को उिचत कार स े करन े क काय णाली को ट ेनीक
कहा जाता ह ै और इसी को कौशल भी मा ना जाता ह ै ।
२) लिलत कला : कला का े बहत यापक ह ै और उसी कार कलाओ ं क स ंया भी
सीिमत नह ह ै । कला जीवन क य ेक िया स े संबंिधत ह ै परंतु लिलत कला कलाओ ं का
एक िवश ेष वग है िजसम छह िवश ेष कलाए ं िगनी जाती ह ै; जैसे -
१) िचकला २) मूितकला ३) वातुकला ४) संगीत कला ५) काय कला ६) नृय कला . munotes.in

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कला : वप और
परभाषा , कलाओ ं का
वगकरण
35 लिलत कलाओ ं म केवल उन कलाओ ं को ही माना जाता ह ै, िजसक े ारा िकसी जीवन
उपयोगी सामी अथवा वत ु का िनमा ण नह िकया जाता ह ै । लिलत कलाओ ं का एकमा
उेय केवल मानिसक या आिमक आन ंद दान करना होता ह ै ।
२.४ सारांश
उ इकाई म हमन े कला िवषयक सप ूण अययन िकया ह ै | इस इ काई क े अययन स े
िवाथ कला , कला का अथ . वप परभाषा , आिद िवषय क सप ूण जानकारी ा
क है |
२.५ दीघरी
१) कला का अथ , वप एव ं परभाषा को विण त किजए |
२) कलाओ ं का वगकरण िकस कार हआ ह ै सपूण िववरण त ुत किजए |
२.६ लघुरीय
१) कला म ूलत: कौनसी भाषा का शद ह ै ?
उर : संकृत
२) कला शद का सव थम योग कहा ँ िमलता ह ै ?
उर : ऋवेद
३) 'कला वही ह ै जैसा हर एक उस े जानता है |’ कला क े संबंध म उ परभाषा िकस
िवान न े दी है ?
उर : ोचे
४) वह कला िजस े देखा नही जा सक े, िसफ सुनकर अन ुभव िकया जाए ... कौन सी कला
कहलाती ह ै ?
उर : य कला
५) सािहय क े चार महवप ूण तव ह ै ?
उर : िवचार , भाव, कपना और श ैली
२.७ संदभ ंथ
१) कला क जरत - अनुवाद - रमेश उपायाय – राजकमल काशन
२) कला – हंस कुमार ितवारी
३) भारतीय कला का इितहास – डॉ. भगवतशरण उपायाय

munotes.in

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36 २ .१
काय कला क ेता, कला और सािहय का सबध
इकाई क पर ेखा
२.१.० इकाई का उ ेय
२.१.१ तावना
२.१.२ काय कला क ेता
२.१.३ कला और सािहय का सबध
२.१.४ सारांश
२.१.५ दीघरी
२.१.६ लघुरीय
२.१.७ संदभ ंथ
२.१.० इकाई का उ ेय
 इस इकाई क े अययन स े िवाथ िनन िलिखत म ु से अवगत हग े |
 काय कला क ेता को समझ गे |
 कला और सािहय क े सबध क जानकारी हािसल कर गे |
२.१.१ तावना
कला आिद काल िविभन कार से दय को आनंद दान करती रही है | समय के साथ
इसम कई बदला व हए लेिकन कला उेय पूित म कभी पीछे नह रही | कला का संबंध
सािहय के साथ भी जोड़ा गया कई िवान म कला े या सािहय े इस िवषय को
लेकर दीघ अयास हए, कई िवचार क परणीित हई लेिकन कला और सािहय म आपस
म इतना अटूट रता है और दोन का महव िवचार कक तराज ू म समान पलड़े पर है यह
िस हो गया है |
२.१.२ काय कला क ेता
कायकाल वह कला ह ै िजसम े शद का महव होता ह ै | इसम भी भौितक वत ुओ को
महव नह िदया जाता ह ै | जो भाव मन म उभरत े है उह किव अपन े कलम क े ारा िलखत े munotes.in

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काय कला क ेता,
कला और सािहय का सबध
37 है और ोता इन भाव और शद क े सही मायन े समझ कर आन ंद ा करता ह ै | अरत ू
ने यिप अपन े गु ल ेटो क न ैितक एव ं सामािजक धारणा का ख ुले प म खंडन नह
िकया ह ै, साथ ही कला म नैितक त व तथा उपद ेशामकता भी उह अमाय नह िकया ह ै,
तो भी िस कलासमीक ब ूचर के मतान ुसार अरत ु ने ही पहल े पहल कलाशा से
नीितशा को प ृथक िकया और बताया िक परक ृत आन ंदानुभूित ही कायकला अथवा
कला का चरम लय होता ह ै । रोम क े िस िवचा रक िससर न े शलीनता (डेकोरम ) तथा
उदाता (सलाइमन ेस) को कला का म ुख ितपा िनधा रत िकया ह ै। लिगन ुस
(लांजाइनस ) ने अपनी क ृित 'पेरइस ुस' म कला को न क ेवल िशा और मनोर ंजन स े िभन
एवं े माना ह ै बिक उस े संेरणा क े उच धरातल पर िति त करक े, उसके वत ं
मूयांकन का परामश भी िदया ह ै। लिगन ुस के अनुसार काय तथा कला का म ुय तव
उदा (.) है और भावना का उदाीकरण ही उनका धान परणाम होता ह ै िजसका
यि स े भी और समाज स े भी सीधा स ंबंध रहता ह ै। अत: अपने वय और ित पादन म
लिगन ुस िनित ही मयमाग ह । डायोनीिसस तथा िडम ेियस भ ृित अय अन ेक रोमन
िवचारक न े काय तथा कला क े शैलीप पर ही िवश ेष जोर िदया ह ै। वह िहदी म सािहय
क आलोचना का िकोण बदला हआ सा िदखलाई पड़ता ह ै। ाचीन भारतीय सािहय क े
आलोचक क िवचार -धारा िजस े म काम कर रही थी , वह वत मान आलोचनाओ ं के े
से कुछ िभन था। इस य ुग क ानसब ंिधनी अन ुभूित म भारतीय क े दय पर पिम क
िववेचनशैली का यापक भ ुव ियामक प म िदखाई द ेने लगा ह ै; िकतु साथ-ही-साथ
ऐसी िवव ेचनाओ ं म ितिया क े प म भारतीयता क भी द ुहाई स ुनी जाती ह ै। यह मानत े
हए िक ान और सौदय -बोध िवयापी वत ु ह, इनके के देश, काल और परिथितय
से तथा धानतः स ंकृित के कारण िभन -िभन अितव रखत े ह। खगोलवत योित
के क तरह आलोक क े िलए इनका परपर सबध हो सकता ह ै। वही आलोक श ु क
उवलता और शिन क नीिलमा म सौदय बोध क े िलए अपनी अलग -अलग सा बना
लेता है।
भौगोिलक परिथितया ँ और काल क दीघ ता तथा उसक े ारा होन े वाले सौदय -सबधी
िवचार का सतत अयास एक िवश ेष ढंग क िच उपन करता ह ै, और वही िच
सौदय अनुभूित क त ुला बन जाती ह ै, इसीस े हमार े सजातीय िवचार बनत े ह और उह
िनधता िमलती ह ै। इसी क े ारा हम अपन े रहन-सहन, अपनी अिभयि का साम ूिहक
प स े संकृत प म दश न कर सक ते ह। यह स ंकृित िववाद क िवरोिधनी नह ;
यिक इस का उपयोग तो मानव -समाज म , आरिभक ािणव -धम म सीिमत मनोभाव
को सदा शत और िवकासोम ुख बनान े के िलए होता ह ै। संकृित मिदर , िगरजा और
मिज द-िवहीन ात म अतःितित हो कर सौ दय-बोध क बा साओ ं का स ृजन
करती ह ै। संकृित का साम ूिहक च ेतनता स े, मानिसक शील और िशाचार स े, मनोभाव स े
मौिलक सबध ह ै। धम पर भी इस का चमकार -पूण भाव िदखाई द ेता है।
कायमीमा ंसा स े पता चलता ह ै िक भारत क े दो ाचीन महानगर म दो तरह क परीाए ं
अलग-अलग थ। कायकार -परीा उजियनी म और शाकार -परीा पाटिलप ु म होती
थी। इस तरह भारतीय ान दो धान भाग म िवभ था। काय क गणना िवा म थी और
कलाओ ं का वगकरण उपिवा म था। कलाओ ं का कामस ू म जो िववरण िमलता ह ै उसम
संगीत ओर िच तथा अन ेक कार क लिलत कलाओ ं के साथ-साथ कायसमया -पूरण munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय

38 भी एक कला ह ै; िकतु वह समयाप ूित (ोकय समया प ूरणम् ड़ाध म् वादाधम ् च)
कौतुक और वादिववाद क े कौशल क े िलए होती थी। सािहय म वह एक साधारण ेणी का
कौशल मा समझी जाती थी। कला स े जो अथ पााय िवचार म िलया जाता ह ै, वैसा
भारतीय िकोण म नह।
ान क े वगकरण म पूव और पिम का सा ंकृितक िचभ ेद िवलण ह ै। चिलत िशा क े
कारण आज हमारी िचतनधारा क े िवकास म पााय भाव ओतोत है, और इसिलए हम
बाय हो रह े ह अपन े ान-सबधी तीक को उसी ि स े देखने के िलए। यह कहा जा
सकता ह ै िक इस कार क े िववेचन म हम क ेवल िनपाय हो कर ही व ृ नह होत े; िकतु
िवचारिविनमय क े नये साधन क उपिथित क े कारण स ंसार क िवचार -धारा से कोई भी
अपने को अछ ूता नह रख सकता। इस सच ेतनता क े परणाम म हम अपनी स ुिच क ओर
यावत न करना चािहए। यिक हमार े मौिलक ान -तीक द ुबल नह ह ।
िहदी म आलोचना कला क े नाम स े आरभ होती ह ै। और साधारणतः ह ेगेल के मतान ुसार
मू और अम ू िवभाग क े ारा कलाओ ं म लघुव और महव समझा जाता ह ै। इस िवभाग
म सुगमता अवय ह ै; िकतु इसका ऐितहािसक और व ैािनक िवव ेचन होन े क स ंभावना
जैसी पााय सािहय म है वैसी भारतीय सािहय म नह। उनक े पास अरत ू से ले कर
वतमान काल तक क सौद यानुभूित-सबिधनी िवचार -धारा का मिवकास और तीक
के साथ -साथ उनका इितहास तो ह ै ही, सबसे अछा साधन उनक अिविछन
सांकृितक एकता भी ह ै। हमारी भाषा क े सािहय म वैसा सामजय नह ह ै। बीच -बीच म
इतने आभाव था अ ंधकार -काल ह िक उनम िकतनी ही िव स ंकृितयाँ भारतीय र ंगथल
पर अवतीण और लोप होती िदखाई द ेती ह, िजहन े हमारी सौदया नुभूित के तीक को
अनेक कार स े िवकृत करन े का ही उोग िकया ह ै।
य तो पााय वगकरण म भी मतभ ेद िदखलाई पड़ता ह ै। ाचीन काल म ीस का
दाशिनक ल ेटो किवता का स ंगीत क े अतग त वण न करता ह ै; िकतु वतमान िवचार -धारा
मू और अम ू कलाओ ं का भ ेद करत े हए भी किवता को अम ू संगीत कला स े ऊँचा
थान द ेती है। कला क े इस तरह िवभाग करन ेवाल का कहना ह ै िक मानव -सौदय -बोध का
सा का िनदश न तारतय क े ारा दो भाग म िकया जा सकता ह ै। एक थ ूल और बा
तथा भौितक पदाथ के आधार पर िथत होन े के कारण िभन कोिट क , मू होती ह ै।
िजसका चा ुष् य हो सक े वह म ू है। गृह-िनमाण-िवा, मूिकला और िचकारी , ये
कला क े मू िवभाग ह और मशः अपनी कोिट म ही स ूम होत े-होते अपना ेणी-िवभाग
करती ह ।
संगीत-कला और किवता अम ू कलाए ँ ह। संगीत-कला नादामक ह ै और किवता उस स े
उच कोिट क अम ू कला ह ै। कायकला को अम ू मानन े म जो मनोव ृि िदखलाई द ेती
है वह महव उसक परपरा क े कारण ह ै। य तो सािहय कला उह तक क े आधार पर
मू भी मानी जा सकती ह ै; यिक सािहय कला अपनी वण मालाओ ं के ारा य
मूिमती ह ै। वणमाृका क िवशद कपना तशा म बहत िवत ृत प स े क गई ह ै। अ
से आरंभ हो कर ह तक क े ान का ही तीक अह ं है। ये िजतनी अन ुभूितयाँ ह, िजतन े ान
ह, अहं के, आमा क े ह। वे सब वण माला क े भीतर स े ही कट होत े ह। वणमालाओ ं के munotes.in

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काय कला क ेता,
कला और सािहय का सबध
39 सबध म अनेक ाचीन द ेश क आरिभक िलिपय स े यह मािणत ह ै िक वह वातव म
िच-िलिप ह ै। तब तो यह कहना म होगा िक िचकला और वाय िभन -िभन वग क
वतुएँ ह। इसिलए अय स ूमताओ ं और िवश ेषताओ ं का िनदश न न कर क े केवल म ू और
अमू के भेद से सािहयकला क महा थािपत नह क जा सकती।
भारतीय उपिनषद का ाचीन वाद इस म ू िव को स े अलग िनक ृ िथित म
नह मानता। वह िव को का वप बताता ह ै -
ैवेदमृतं पुरताव ् पादिणतोर ेण।
अधोव च स ूतं व ेदं िविमद ं वरम ्॥
आगम म भी िशव को शि िवही मा नते ह। और यही पक अ ैत-भावना कही गई ह ै;
अथात् - पुष का शरीर क ृित है। कदािचत ् अनारीर क स ंि कपना का म ूल भी
यही दाश िनक िवव ेचन ह ै। संभवतः िपछल े काल म मनुय क सा को प ूण मानन े क ेरणा
ही भारतीय अवतारवाद क जननी ह ै।
काय आमा क स ंकपामक अन ुभूित है, िजसका सबध िव ेषण, िवकप या िवान
से नह ह ै। वह एक ेय-मयी ेय रचनामक ान -धारा ह ै। िवेषणामक तक स े और
िवकप क े आरोप स े िमलन न होन े के कारण आमा क मनन िया जो वाङमय प म
अिभय होती ह ै वह िनःसद ेह ाणमयी और सय क े उभय लण ेय और ेय दोन स े
परपूण होती ह ै। इसी कारण हमार े सािहय का आरभ कायमय ह ै। वह एक ा किव का
सुदर दश न है। संकपामक म ूल अन ुभूित कहन े से मेरा जो तापय है उसे भी समझ ल ेना
होगा। आमा क मनन -शि क वह असाधारण अवथा जो ेय सय को उसक े मूल
चाव म सहसा हण कर ल ेती है, काय म संकपामक म ूल अन ुभूित कही जा सकती ह ै।
कोई भी यह कर सकता ह ै िक स ंकपामक मन क सब अन ुभूितयाँ ेय और ेय दोन
ही से पूण होती ह , इसम या माण ह ै? िकंतु इसीिलए साथ ही साथ असाधारण अवथा
का भी उल ेख िकया गया ह ै। यह असाधारण अवथा य ुग क समि अन ुभूितय म
अंतिनिहत रहती ह ै; यिक सय अथवा ेय ान काई यिगत सा नह ; वह एक
शात च ेतनता ह ै, या िचमयी ान -धारा ह ै, जो य िगत थानीय क े क े न हो जान े
पर भी िनिव शेष प स े िवमान रहती ह ै। काश क िकरण क े समान िभनिभन
संकृितय क े दपण म ितफिलत हो कर वह आलोक को स ुदर और ऊज िवत बनाती ह ै।
उपरो िवव ेचना स े प हो जाता ह ै िक अपनी उपयोिगता , भाव एव ं सृजन िया क े
चलते तथा घकािलक उपलधता एव ं यापकता क े कारण काय कला अय कलाओ ं पर
े सािबत होती ह ै।
२.१.३कला और सािहय का स ंबंध
सािहय का उसक े रचियता क े यिव क े घिन स ंबंध होता ह ै. सािहय क े चार तव मान े
जाते ह -िवचार , भाव कपना और श ैली। सािहयकार का यिव इन चार ही तव क े
अंतगत िकसी ना िकसी प म िवमान रहता ह ै। सािहयकार चाह े िकसी पा क
भावनाओ ं एवं अनुभूितय का िचण ए ंव अिभय ंजन कर े, उनम भी उसक े िनजी यिव munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय

40 क छाप िवमान रहती ह ै। इतना ही नह , वह िजन भावनाओ ं को अपन े सािहय क े
मुखता द ेता है, वे वत ुतः उसक े यिव एव ं जीवन क ही म ुख भावनाए ँ होती ह ।
सािहय स ृजन म अय कलाओ ं का भाव हम ेशा देखने को िमलता ह ै। वह अय कलाओ ं
म सािहय का भाव द ेखने को िमलता ह ै। दूसरे शद म कह तो सािहय कला अय
कलाओ ं के साथ ब ेहद गहर े तक ज ुड़ी हई ह ै, िजसे िकसी भी कार स े अलग नह िकया जा
सकता। अथा त हम सािहय कला म अय कलाओ ं का एव ं अय कलाओ ं म सािहय कला
का जो भाव द ेखने को िमलता ह ै, वह कोई स ंयोग नह अिपत ु सृजन क अिनवाय ता है।
वैसे तो सािहय का अय सभी कलाओ ं पर भाव एव ं उनस े संबंध देखने को िमलता ह ै,
लेिकन यह हम िवषय क आवयकता को यान म रखत े हए क ुछ अय िविश कलाओ ं के
साथ सािहय कला क े संबंध को समझ गे |
१) वात ुकला- मूितकला और सािहय कला का स ंबंध:उपकरणगत माािधय क े
िकोण स े पहला थान वात ुकला का ह ै। इस कला स े संबंिधत शा को थापय शा
कहा जाता ह ै। इस शा को अथव वेद का उपव ेद भी कहा जाता ह ै। वात ुकला म लंबाई,
चौड़ाई और गहराई िदशास ंबंधी तीन आयाम होत े ह। माा बहलता के ही कारण यह कला
एकदेशीय कला कही जाती ह ै। इसे समायतया थाना ंतरत नह िकया जा सकता।
उपकरण क ि स े वात ुकला क े बाद म ूितकला का थान ह ै। वात ुकला क े समान ही
यह कला िआयामी कला ह ै। इसे सहजता स े थला ंतरत िकया जा सकता ह ै। इस कला
का आधार पथर , धातु, िमी इयािद होता ह ै, िजसे मूितकार एक िविश आकार दान
करता ह ै। शरीर – सदय का सााकार इस कला का म ुय योजन ह ै। मूितकला म
वातुकला क त ुलना म अिधक मानिसकता क े कारण यह िकसी एक ही ण और क ुछ ही
पदाथ का िददश न करा सकती है। जबिक सािहय कला िभन – िभन थान म
होनेवाली और ण ितण परवत नीय घटनाओ ं एवं परिथतय का िचण करती ह ै।
मूितकला म िविश भावािभयि क स ुंदर अिभयि क जा सकती ह ै। िथितशील प
म ही सदय का अ ंकन करना म ूितकला क िवश ेषता ह ै। यह कला अय ंत ाचीन ह ै। पगत
सदय का िवधान करन े क ेरणा सािहय को यह स े ा हई।
२) िचकला एव ं सािहय कला का स ंबंध: उपकरण क ि स े तीसरा थान िचकला
का है। यह कला उपय ु दो कलाओ ं क त ुलना म अिधक स ूम कला ह ै। इस कला म लंबाई
और चौड़ाई तो होती ह ै, पर गहराई नह हआ करती। सर ंग िचकला क े अिभयि क े
मायम ह । यही र ंग िच को आकष क बनात े ह। इस कला म मायम का कोई िवश ेष महव
नह हआ करता , बिक मरणशि का महव हआ करता ह ै। िचकला म अिधक क ुशलता
क आवयकता होती ह ै। काय क तरह िचकला म भी मन ुय क मन :िथित , धारणा या
सामािजक िकोण ितिब ंिबत होता ह ै। िचकला फोटोाफ क भा ंित पदाथ यथावत
प त ुत नह करती। िच म अंिकत पदाथ का क ेवल स ंवेदनामक महव नह ;
भावामक मह व भी रहता ह ै। अतएव प ह ै िक इस कला म मूतता का अ ंश कम और
मानिसकता का अ ंश अिधक रहता ह ै। सािहय म वतुिचण क े साथ भाव - यंजना िजतनी
तीता स े होती ह ै, उतनी िचकला म संभव नह ह ै। ाचीनकाल क े काय क पा ंडुिलिपय
तथा आध ुिनक किवता स ंह म मुित िच को द ेखकर सािहय कला व िचकला क े
संबंध क घिनता पर यान िटक जाना वाभािवक ह ै। कला का म ूल गुण उच कोिट का
आनंद है। इन दोन कलाओ ं से वह आन ंद ा होता ह ै। दोन चा ुस कलाए ं ह तथा munotes.in

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काय कला क ेता,
कला और सािहय का सबध
41 सािवक आन ंद क अन ुभूित कराती ह । अंतर िसफ इतना ह ै िक दोन क े उपकरण व
मायम िभन -िभन ह । काय म जो काय शद ारा स ंपन होता ह ै, िच म वही काय रंग
और र ेखाओ ं के मायम स े होता ह ै। परत ु सािहय कला अपनी गयामकता क े कारण
अिधक सजीव और प ूण लित होती ह ै। लेिकन यह बात भी िवश ेष प स े उल ेखनीय ह ै
िक सािहय कला स ूम भावनाओ ं को अिभय करन े के िलए िचकला स े सहायता ल ेती
आई ह ै और आग े भी ल ेती रह ेगी।
३) संगीत कला और सािहय कला का स ंबंध:संगीत कला का अय कलाओ ं क त ुलना
म सािहय कला स े बहत घिन स ंबंध है। हमारी सािहियक पर ंपरा का स ुदीघ इितहास इस
तय का साी ह ै। ये दोन कलाए ं काल -सापेय ह । संगीत कला का मायम विन तर ंगे
होती ह , जिबक सािहियगत विन तर ंगे िविश अथ क े िविश कार क े विन स ंकेत के
प म आब होती ह । कामशा क े रचियता वायायन न े संगीत कला को सवक ृ कला
कहा ह ै। लेटो ने मानिसक िवकास क े िलए स ंगीत क े महव को ितपािदत िकया ह ै। संगीत
कला क महा म इसी म है िक भाव क े उमेष इसक क ुशलता अय सभी कलाओ ं से
अिधक ह ै। परंतु संगीत काय क े समान िवष यसंपन कला नह ह ै, लेिकन लिलत कलाओ ं
म वह काय क िनकटमत सखा ह ै। संगीत क े समान सािहय का मायम भी विनया ं है। या
यूँ कह िक सािहय का भी एक िविश स ंगीत हआ करता ह ै, जो छ ंद-िवधान , अलंकार-
िवधान स े उपन होता ह ै। सािहय क विनया ं (शद) साथक विन स ंकेत के प म
अिभय होती ह । लेटो ने तो सािहय को स ंगीत का अ ंग मानकर उसका स ंगीत म ही
समाव ेश कर िदया। ाचीन भारतीय िवचारक न े इन दोन कलाओ ं म अभेद तो नह माना ,
परंतु दोन म ा समानताओ ं पर उहन े बल अवय िदया ह ै। इसिलए उहन े इन दो
कलाओ ं को 'सरवती क े तनय ' के प म देखा है। ये दोन कलाए ं पूणपेण गितय ु
कलाए ं ह। सािहय - कला शािदक स ंकेत के आधार पर अपना अितव दिश त करती
ह। सािहय क भाषा य ंजनापरक हआ करती ह ै। इसिलए वह अय कलाओ ं क त ुलना म
कह अिधक माा म िवषय स ंपन होती ह ै। सािहय म रस, प, गंध आिद सभी स ंवेदनाओ ं
क सम अिभयि हआ करती ह ै। ितभा क े संपश के कारण सािहय म विणत वत ु या
संग इतन े जीवंत व भावी तीत होन े लगे लगत े ह िक िजस े देखकर हम सोच भी सकत े
है िक शेष सभी कलाओ ं क त ुलना म यह कला सवक ृ कला ह ै। हीगेल इसी कारण इस
कला को ेतम कला क े प म वीकार करत े ह।
इस सार े िववेचन यह वयम ेव प हो जाता ह ै िक मायम उपकरण म िभनता क े बावज ूद
भी ये कलाए ं परपर िनध स ुढ़ र ेशमी त ंतुओं से घिन प स े जुड़ी हई ह और
कलासज न व आवाद क े तर पर परपर सहयोिगनी भी बनी हई ह ।
२.१. ४ सारांश
उ इकाई म हमन े कला िवषयक सप ूण अययन िकया ह ै | इस इकाई क े अययन स े
िवाथकाय कला क ेता,कला और सािहय का सबध आिद िवषय क सप ूण
जानकारी ा क ह ै |
munotes.in

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सािहय समीा : वप एवं सामाय
परचय

42 २.१. ५ दीघरी
1.काय कला क ेता को अपन े शद म िलिखए |
2. कला और सािहय म संबंध क िवव ेचना किजए |
२.१. ६ लघुरीय
१) काय काल म िकसे महव नह होता है ?
उर :काय काल म भौितक वतुओको महव नह िदया जाता है |
२) सबसे पहले िकस कला समीकन े कलाशास े नीितशा को पृथक िकया ?
उर :अरत ुनेही पहले पहल कला शास े नीितशा को पृथक िकया
3) कौनस े िवचारकन े काय तथा कलाक े शैली पपर ही िवशेष जोर िदया है ?
उर :रोमन िवचारकन े काय तथा कला के शैली पपर ही िवशेष जोर िदया है।
4) वातुकला- मूितकलाऔरसािहयकलाकास ंबंधकौनस ेशास ेमानाजाताह ै ?
उर :वातुकला- मूितकला और सािहयकला का संबंध थापयशा से माना जाता है|
5) संगीत कला का मायम या है?
उर :संगीत कला का मायम विन तरंगे होती ह
२.१. ७ संदभ ंथ
१) कला क जरत - अनुवाद - रमेश उपायाय – राजकमल काशन
२) कला – हंस कुमार ितवारी
३) भारतीय कला का इितहास – डॉ. भगवतशरण उपायाय

 munotes.in

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43 ३
काय क े प
महाकाय , खंडकाय
इकाई क पर ेखा
३.१ उेय
३.२ तावना
३.३ महाकाय क परभाषा (भारतीय मायताओ ं के अनुसार)
३.४ महाकाय क परभाषा (पााय मायताओ ं के आधार पर )
३.५ खडकाय : वप और िवश ेषताएँ
३.६ सारांश
३.७ दीघरी
३.८ लघुरीय
३.९ संदभ ंथ
३.१ उेय
इस इकाई का उेय है :
 महाकाय क परभाषा को भारतीय एव ं पााय मायताओ ं के अनुसार समझन े हेतु |
 महाकाय क परभाषा (पााय मायताओ ं के अनुसार) समझन े हेतु |
 खंडकाय क े वप और िवश ेषताओ ं को समझन े हेतु |
३.२ तावना
िकसी भी काय को करन े के पीछे उसक े कता का कोई न कोई उ ेय अवय होता ह |
मानव क य ेक व ृि हेतु मूलक होती ह | यही ह ेतु मनुय को काय म वृ करता ह |
काय सज ना के पीछे भी उसक े सजक का कोई उ ेय अवय होता ह | यही उ ेय काय
का योजन कहलाता ह , और इसी योजन स े ेरत होकर वह काय क रचना करता ह |
काय क े परपरागत प स े बंध और म ुक दो म ुख भेद मान े जाते ह | बंध के भी दो
भेद िकए गए ह , महाकाय और खड काय संकृत के आचाय ने ग और प दोन के
प म िमित िवरिचत काय को चप ू काय नाम दान िकया ह | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
44
३.३ महाकाय क परभाषा (भारतीय मायताओ ं के अनुसार)
महाकाय को अ ंेजी म ‘एिपक ’ कहा जाता ह | महाकाय सािहय क ाचीन एव ं बहचिचत
िवधा ह | महाकाय का कल ेवर भी िवशाल होता ह | जैसे रामायण और महाभारत | इसम
मानव जीवन का यापक िचण होता ह | महाकाय महान चर , महान उ ेय और
गरमामय उदा श ैली स े ि व भूिषत होता ह | इसम पूवापर स ंग का परपर स ंबंध एव ं
तारतय रहना भी अयावयक होता ह | महाकाय शद ‘महत’ और ‘काय’ दो शद से
िमलकर बना ह | इसम पहला शद ‘िवशेषण’ और द ूसरा ‘िवशेय’ ह | महाकाय शद म
िवशेय का अिधक महव होता ह | अत: इस शद म भी ‘काय’ ही म ुख ह और दोन
शद का अथ होता ह | बड़ा काय य िक ‘महत’ से िवशाल ‘उकृ’ का भी भाव कट
होता ह | काय क े िलए ‘महत’ शद का योग सव थम ‘वािम िक रामायण ’ म हआ ह | ी
राम न े अपनी कथा का वण न सुनने के बाद लवक ुश से कहा िक इस िवशाल आकार वाल े
काय क े कता कौन ह ;
“िकम माणिम कायम का िता महामन : |
कता कायय महत : वचासौ म ुिनपुंगवः ||
इस ोक म यह तो वत : विनत ह िक इसम िकसी महान यि क े चर क िता
होती ह |
महाकाय का वप : महाकाय क े वप पर भारतीय और पााय दोन ही आचाय ने
िवचार िकया ह |
भारतीय आचाय के अनुसार :
क) आचाय भामह क े अनुसार : भामह ऐस े थम भारतीय आचाय ह िजह ने महाकाय क े
लण पर िवचार िकया ह | उसके अनुसार महाकाय –
१) महाकाय सग ब होना चािहए और महानचरत से संबंध होना चािहए |
२) महाकाय का आकार ब ड़ा होना चािहए |
३) महाकाय ाय शद स े रिहत तथा अथ सौव स ंपन अलंकारयु भी हो |
४) महाकाय सप ुष आित होना चािहए |
५) वह म ंणा, दूत ेषण, अिभयान , यु नायक का अय ुदय, पंच संिध, समिवत हो |
६) महाकाय म चतुवय धम, अथ, काम एव ं मो का वण न होन े पर भी अथ िनपण
क धानता होनी चािहए |
७) महाकाय हम ेशा लौिकक आधार धान एव ं सभी रस से यु होना चािहए | munotes.in

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काय क े प
महाकाय , खंडकाय
45 ८) महाकाय म नायक का थम वण न िकया जाना चािहए , उसके बल, वेग, ान आिद
का भी िवत ृत वणन होना चािहए |
९) महाकाय म ित नायक का वण न बाद म होना चािहए |
१०) इसम नायक का वध िबक ुल नह होना चािहए |
११) महाकाय म यिद नायक को कथा क े आरभ स े अत तक न िदखाया जा सक े या
उसके अय ुदय का वण न न हो तो उस े कभी नायक नह बनाना चािहए |
ख) आचाय दडी ने अपन े चिचत ंथ ‘कायादश ’ म कुछ नवीन तय क ओर जोड िदया
ह | जो इस कार स े ह–
१) महाकाय क े ारभ म आशीवा द, नमकार एव ं वतु िनदश क योजना भी होनी
चािहए |
२) िवरहजय ेम, िववाह , कुमारोप ित, िवचार -िवमश, राजदूतव, अिभयान , यु तथा
नायक क िवजय आिद का वण न अप ेित ह |
३) महाकाय म ाकृितक िचण एव ं सामािजक िविध -िवधान का स ंयोजन भी
अपेित ह |
४) महाकाय म नायक के उकष के िलए ितनायक क े वंश तथा पराम का वण न भी
आवयक ह , यिक नायक का वा तिवक उकष , गुणवान ितपी क ही पराजय म
िनिहत ह |
५) महाकाय म चातुवय का िवधान उसक े संयोजन क े साथ आवयक ह |
६) महाकाय म नायक का उदा और चतुर होना भी आवयक ह ै |
३.४ महाकाय क े लण –(पााय मायताओ ं के आधार पर )
पााय िवा नने भी महाकाय क े लण क ुछ इस तरह िगनाए ह –
१) महाकाय सग ब हो और इसम कम स े कम आठ सग जर होना चािहए | कथा क े
आधार पर ही सग का नामक रण हो और सग के अत म आगामी कथा क स ूचना
होनी चािहए |
२) महाकाय का नायक द ेवता या उचकुल म उपन धीरो दा ग ुण से संपन होना
चािहए |
३) महाकाय का कथानक ऐितहािसक पौरािणक या लोकिस होना चािहए |
४) महाकाय का धान रस ृंगार, वीर और शात होना चािहए | अय रस गौण प म
आना चािहए | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
46 ५) धम, अथ, काम और मो म से िकसी एक या अन ेक का स ंबंध महाकाय के उेय स े
होना चािहए |
६) महाकाय का आरंभ मंगलाचरण या आशवचन स े ही होना चािहए |
७) महाकाय म दु क िनदा और सजन क श ंसा होनी चािहए |
८) महाकाय का नामकरण किव नायक नाियका या व ृ के आधार पर होना चािहए |
९) वणन क िविवधता भी महाकाय म होनी अयावयक ह | यह वण न भी च ं, सूय,
राि, सुबह, काश , अंधकार , पवत, नदी, झरने, पेड़-पौधे, समु नगर , यु, िववाह
आिद अवसर के अनुप ही होना चािहए |
महाकाय क े तव :
महाकाय क े समत लण का समवय करन े पर महाकाय क े कुल सात तव हमार े
सामन े आते ह | िजनका िवव ेचन िनन कार स े िकया गया ह –
१) कथानक : महाकाय का कथानक इितहास , पुराण और लोकिस कथा क े आधार
पर होता ह | इसक कथा जीवन क प ूण झाँक त ुत करती ह | महाकाय क
कथावत ु का ाण कोई घटना होती ह , उसी घटना पर उसक पूरी कथा आधारत
रहती ह ै | महाकाय क कथा आठ स े अिधक सग म संगिठत होती ह | कथा का
आरभ म ंगलाचरण , आशीव चन आिद स े होता ह | सग के अत म आने वाली कथा क
सूचना भी होती ह |
२) चर िचण : महाकाय का नायक द ेवता या उचक ुलीन, धीरोदा , चतुर, वीर
आिद ग ुण से सपन होता ह | इसका नायक धम का िवकास और अधम का नाश
करने वाला होता ह | महाकाय म नायक क े अलावा अय पा का भी िचण होता ह |
नायक क े सामन े समान नाियका को भी सव गुण सपन , आदश और नारी धम का
पालन करन े वाली ही होना चािहए | महाकाय म ितनायक (खलनायक ) भी होता ह |
इसके होने से ही महाकाय म संघष मूलक घटनाओ ं का वण न होता ह , और नायक क े
गौरव शि आिद ग ुण से भी परचय होता ह |
३) युगिचण : महाकाय म युग िवश ेष का सप ूण िच तुत िकया जाता ह | अवातर
कथाओ ं, िविवध वण न, भाग, समारोह आिद क े मायम स े महाकाय म उस य ुग का
सम िच खचा जाता ह | महाकाय म सामािजक , धािमक, राजनीितक , सांकृितक
आिद सभी परिथ ितय और भावनाओ ं का भी अ ंकन होना चािहए | अत: हम यह कह
सकत े ह िक म हाकाय य ुग िवश ेष का दप ण होता ह |
४) रस भाव : महाकाय क े िवशेष कल ेवर म सभी रस का वण न आवयक ह | शृंगार, वीर
और शा ंत रस म से कोई एक रस महाकाय का धान रस होता ह | अय रस क
िथित गौण प म रहती ह | ये अय रस सहायक प म भी य ु होत े ह | महाकाय
म रसभाव क िनर ंतरता पर िवश ेष बल िदया जाता ह | munotes.in

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काय क े प
महाकाय , खंडकाय
47 ५) छद योजना : महाकाय क े येक सग म एक ही छद का योग होता ह , और सग के
अत म छद परवत न होता ह | छद चमकार व ैिवय या अ ुत रस क िनप ि के
िलए एक ही स ग म अनेक छद के योग को नकारा नह जा सकता ह |
६) भाषा श ैली : महाकाय क भाषा श ैली गरगामय और उदा होती ह | संगीतामकता
एवं गेयता स े महाकाय क गरमा म वृि होती ह | महाकाय क भाषा सहज , सरल,
भावान ुकुल और भावोपादक होती ह | कह-कह मुहावरे, लोकोिय के कलामक
योग भी महाकाय को रमणीय बना द ेते ह | महाकाय क श ैली अल ंकृत होत े हए भी
सहज होनी चािहए |
७) उेय :महाकाय का उ ेय महान होता ह | धम, अथ, काम और मो इन चतुवग के
फल क ाि को महाकाय का उ ेय वीकार िकया गया ह | असय पर सय क
िवजय , अधम पर धम क िवजय , राभि , नैितक आदश और मानवतावादी मूय
क थापना को भी महाकाय का उ ेय माना जात ह |
३.५ खड काय का वप और िवश ेषताए ँ
खडकाय, बंधकाय का ही लघ ुप ह | इसम जीवन क े िकसी एक अंग घटना या स ंग
का वण न होता ह | यह वण न अपन े आप म पूण होता ह | खडकाय म महाकाय क तरह
सपूण जीवन क कथा त ुत नह क जाती ह | बिक उसम िकसी एक घटना या िकसी
एक पह लू क मािम क कथा त ुत क जाती ह | खडकाय म जीवन क प ूणता अिभय
नह होती ह | यह ब ंधकाय का ही एक भ ेद माना जाता ह | संकृत आचाय ने
खडकाय पर क ेवल छुटपुट चचा ही क ह | चतुवग म से फल, रसो म से एक रस क े
अपनाए जान े के कारण लघ ुकाय म खड काय क े आंतरक गठन क झलक हम ा होती
ह | आचाय िवनाथ क े अनुसार –
“खडकाय अव ेत कायथ एकद ेशानुसार च |”
अथात खड काय, महाकाय का एकद ेशीय प होता ह | खडकाय शद सािहय जगत
म नया नह ह | इसका अितव स ंकृत काल स े ही ह, िकतु इस िवधा का नामकरण और
इसका वप प प स े आध ुिनक काल म ही अिधक िनित हो पाया ह | िहदी म
उरोर िवकास क े साथ खड काय म बहत परकार होता गया और आग े चलकर
अयािधक सािहियक खड काय रच े जाने लगे | वीरभावाम क खडकाय और आध ुिनक
खडकाय क े कथानक अन ेक घटनाओ ं से भरे िमलते ह, िकतु उनम धान और अ धान
घटना क ओर अिधक यान नह िदया गया | अपने छोटे से कलेवर म ही खड काय क
रोचकता और भी अिधक ब ढ़ जाती ह |
खडकाय क ेरणा क े मूल म अनुभूित का वप एक सप ूण जीवनखड क
भावामक ता से बनता ह | ेरणा क े बल पर जो प होता ह , वही ‘खडकाय’ कहलाता
ह | खडकाय का कथानक कभी बहत छोटा तो कभी बहत ब ड़ा होता ह | छोटे या बड े
आकार स े खड काय क महा नह ठहराई जा सकती , यिक जीवन क े िकसी एक अ ंग
को पश करने वाला खड काय अपनी छोटी सी पर िध म भी चमकता नजर आता ह | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
48 संकृत कायशा म ‘खडकाय’ शद का योग सबस े पहल े आचाय िवनाथ न े अपन े
ंथ ‘सािहय दप ण’ म िकया था | उसस े पूव आचाय के मितक म ‘खडकाय’ क
आकृित बड़ी धुँधली सी थी | आचाय भामह , ट, दडी और आनदवध न ने उसका
वगकरण , काय महाकाय , काय शरीर , बंध काय और , आयाियका , खडकाय,
परकथा , सकलकथा आिद नाम का उल ेख िकया ह | आचाय हेमचद ने भी यकाय
का िवभाजन कथा , कथा आयाियका और चंपूकाय क े प म िकया | इससे यह प हो
जाता ह िक अिधका ंश आचाय के िदमाग म खड काय क कोई परकपना ही नह थी ,
केवल ट और आनदवध न ने कारात र से खड काय क े संकेत अवय िदए ह | आगे
चलकर आचाय िवनाथ न े सही मायन े म इसका व ैािनक वग करण त ुत कर परवत
आचाय के िलए िदशा -िनदशन का काम भी िकया ह | भारतीय सािहयशा म आचाय
िवनाथ मील क े पथर मान े जाते ह | खडकाय को परभािषत करत े हए डॉ . भगीरथ
िम कहते ह िक ‘बंधकाय ’ का दूसरा भ ेद खड काय या खड बंध ह | ाय: जीवन क
एक महवप ूण घटना या य का मािम क उाटन होता ह और अय स ंग संेप म रहते ह,
इसम भी कथा स ंगठन आवयक ह | इसम वतु वणन, भाववण न एवं चर का ही िचण
िकया जाता ह , पर कथा िवत ृत नह होती | जैसे जयथ वध, पावती मंगल, मैिथलीशरण
गु कृत पंचवटी, िनराला क ृत ‘तुलसीदास ’ और रामधारी िस ंह िदनकर क ृय रिमरथी
आिद | डॉ. भगीरथ िम जी क यह परभाषा ‘खडकाय’ के सभी तव से उिचत
परभाषा ह |
खडकाय क े िवषय म आचाय बलद ेव उपायाय जी क परभाषा क ुछ इस कार स े ह–
‘वह काय जो माा म महाकाय स े छोटा परत ु गुण म उसस े कथमिप श ूयन हो
खडकाय कहलाता ह | महाकाय िवषय धान होता ह , परतु खड काय म ुयत: िवषयी
धान होता ह , िजसम े लेखक कथानक क े थूल ढा ँचे म अपन े वैयिक िवचारो का
संगानुसार वण न करता ह |’
डॉ. बलदेव उपायाय जी क खड काय स े संबंिधत उपरो परभाषा , िवषय पर अिधक
भाव डालती ह , खडकाय क े वप पर कम | उनका मानना ह िक महाकाय िवषय
धान होता ह , और खडकाय म ुयत: िवषयी धान , यह सव था िनदष नह , ह, योिक
भाव और िवचार ाधाय क े आधार पर यह वगकरण अयत थ ूल ह | कोई भी
खडकाय एक ही समय म भाव और िवचार दोन को साथ ल ेकर चल सक ता ह, यथा
िदनकर क रचना ‘रिमरथी ’, इसी तरह स े दुयत क ुमार क रचना ‘एक क ंठ िवषपायी ’ भी
मुयत: केवल िवचा र धान खड काय ही ह |
‘खडकाय’ क परभाषा द ेते हए बाब ू गुलाबराय जी िलखत े ह िक ‘खडकाय’ म
‘बंधकाय ’ का सा तारतय तो रहता ह , िकतु महाकाय क अप ेा उसका े सीिमत
होता ह | उसम जीवन क वह अन ेक प ता नह रहती जो िक महाकाय म होती ह | उसम
कहानी और एका ंक क भा ँित घटनाओ ं के िलए सामी ज ुटाई जाती ह |’
डॉ. शकुंतला दुबे ने खड काय क े एक महवप ूण प क ओर स ंकेत िकया ह |
‘खडकाय’ का ‘खड’ शदांश, यह नह बताता ह िक खडकाय िकसी काय प का
खड मा ह | वतुत: यह शद अन ुभूित के उस भाव क ओर स ंकेत करता ह , जो munotes.in

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काय क े प
महाकाय , खंडकाय
49 खडकाय का आधार ह | जीवन क अन ुभूित जब अपन े संपूण प म किव को भािवत
करती ह , तो खड काय क रचना होती ह |
खड काय : िवशेषताए ँ
खडकाय क िवश ेषताएँ या उसक े लण क ुछ इस त रह से ह–
१) कलाप क ि स े महाकाय और खड काय म उतना अतर नह ह , िजतना िक
िवषय क ि स े |
२) खडकाय म नायक क े खड जीवन या उसक े जीवन क े िकसी िवश ेष अवसर का
मबद प म वणन होता ह |
३) खडकाय म देशकाल क घटना का अन ुसरण होता ह |
४) खडकाय म भी सग होते ह, पर उनक स ंया आठ स े कम भी हो सकती ह |
५) येक सग के िलए खड काय म छद का ब ंधन भी वीक ृत होता ह , िकतु सग के
अत म छद का परवत न आवयक नह होता ह |
६) खडकाय म भी क ृित का िच उतारा जाता ह |
७) खडकाय म भी म ंगलाचरण क त ुित क जाती ह ; िकतु इन सबका होना
खडकाय क े िलए आवयक नह ह |
८) खडकाय का अितव स ंकृत काल स े ही ह , िकतु इस िवधा का नामकरण
आधुिनक काल स े ही अिधक िनित माना जाता ह |
९) खडकाय म महाकाय के समान सग बता होती ह , पर आकार एव ं वप क
ि स े उसम िविभनता होती ह |
१०) खडकाय म मनोव ैािनक िचण होता ह , और कथावत ु चर िचण , संवाद,
भावािभय ंजना अथा त रस आिद क ि स े वह महाकाय क े समान होता ह |
११) खडकाय क िवशेषता यह भी ह िक वह यि क े जीवन क घटना िवशेष से संब
होता ह |
१२) खडकाय म िकसी एक घटना परिथ ित अथवा पहल ू का वण न होने के कारण
इतना अवसर नह होता िक जीवन का समता स े वणन िकया जा सक े |
१३) खडकाय क े मुय कथा म भी बहत उतार -चढाव नह होता ह |
१४) खडकाय म कथा स ंगो का धािम क चयन ,कथा स ंगठन,यविथत योजना ,
औस ुय, वाभािवकता , भावािभय ंजना आिद ग ुण अप ेित होत े ह, और इह गुण
से कथावत ु का िनमा ण होता ह |
१५) महाकाय क अप ेा खड काय लघ ु अथात छोटा होता ह |
१६) खडकाय क कथा वतु जीवन क े िकसी एक पीय घटना या परिथ ित से संब
होती ह | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
50 १७) खडकाय म पा क स ंया बहत कम होती ह | उनके चर का यापक िववरण
खडकाय म नह होता ह |
१८) खडकाय म महाकाय क े लण स ंकुिचत प म वीकार िकए जात े ह |
१९) खडकाय म जातीय जीवन का िवत ृत उल ेख नह िमलता ह |
२०) खडकाय का कथानक ऐितहािसक पौरािणक या कापिनक भी हो सकता ह |
२१) खडकाय म जीवन के िकसी एक खड प का िवत ृत वणन होता ह |
२२) खडकाय म अनेक ास ंिगक कथाओ ं क आवयकता नह ह |
२३) खडकाय म एक ही छद का योग होता ह |
२४) खडकाय आकार स े भले ही छोटा होता ह , िकतु उसम भावामक रोचकता को
भी िनिपत िकया जाता ह |
३.६ सारांश
महाकाय म नायक क े सपूण जीवन क गाथा का वण न होता ह , महाकाय का आकार
बड़ा होने के कारण उसम व णन के िवतार ह ेतु अिधक अवकाश रहता ह | इसम क ई
नायको का ावधान होता ह | इसका धान रस ृंगार,वीर व शा ंत होता ह | अय रस भी
रहते ह पर व े धान रस क े अंग प होत े ह | अिधकतम आठ सग और कम स े कम भी आठ
सग का ही िवधान होता ह | येक सग म एक ही छद का ावधान ह , िकतु येक सग
का अ ंितम छद उसस े िभन होता ह | कही-कही तो एक ही सग म नाना छद का योग
होता ह | िजस महाकाय क े सग म िविवध छद का योग होता ह उसे ‘आभा सोपम शि ’
के नाम स े जाना जाता ह | ‘रामचरतमानस ’ जैसे महाकाय म अनेक भावशाली और
अछे नाटकय स ंग, संवाद य आिद िदखाई द ेते ह | रामलीला म तो ‘मानस ’ का ही
अिधकतर योग होता ह | महाकाय क ि स े चवरदायी क ृत ‘पृवीराज रासो ’ और
जायसी कृत ‘पदमावत’ तथा त ुलसीदास कृत ‘रामचरतमानस ’ को िविश थान ा ह |
इसी तरह स े खड काय, बंधकाय का लघ ुप ह , इसम जीवन क े िकसी एक अंग या
घटना स ंगो का िवश ेष वण न होता ह , और यह वण न अपन े आपम पूण होता ह | इसम
जीवन के िकसी एक मािम क प का िचण सीिमत प म होता ह | इसका कथानक भी
संि होता ह | इसम कथा , संगठन का होना अया वयक ह | इसम जीवन क प ूणता
अिभय नह ह | खडकाय म ाय: ासंिगक कथाओ ं का अभाव सा होता ह |
३.७ दीघरी
१) भारतीय मायताओ ं के आधार पर महाका य को परभािषत किजए |
२) महाकाय को पााय मायताओ ं के आधार पर प किजए |
३) खडकाय क े वप को प करत े हए, उसक परभाषा िलिखए |
४) खडकाय क म ुख िवश ेषताओ ं पर काश डािलए | munotes.in

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काय क े प
महाकाय , खंडकाय
51 ३.८ लघुरीय
१) महाकाय को अ ंेजी म या कहा जाता ह ै ?
उर – ‘एिपक ’
२) ‘महत’ शद का सव थम उपयोग कहा हआ ह ै ?
उर – वािमक रामायण
३) महाकाय क े लणो पर सव थम िकस भारतीय आचाय ने महाकाय क े लणो पर
अपने िवचार त ुत िकय े है ?
उर – आचाय भामह
४) आचाय दडी ने अपन े कौन स े ंथ म महाकाय पर चचा क ह ै ?
उर – ंथ – कायादश
५) ‘खडकाय अव ेत कायथ एकद ेशानुसार च ’ | उ परभाषा खड काय क े िवषय क े
िवषय म िकस िवान क ह ै ?
उर – आचाय िवनाथ
३.९ संदभ ंथ
१) काय क े प – बाबू गुलाबराव
२) काय दीप – ी रामबहोरी शुल
३) काय परचय – राजे साद ीवातव
४) काय क े तव – आचाय देवनाथ शमा

 munotes.in

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52 ४
काय क े प - मुक काय , गीित काय
इकाई क पर ेखा
४.१ उेय
४.२ तावना
४.३ मुक काय : वप
४.४ मुक काय : िवशेषताएँ
४.५ गीितकाय : वप
४.६ गीितकाय : िवशेषताएँ
४.७ सारांश
४.८ दीघरी
४.९ लघुरीय
४.१० संदभ ंथ
४.१ उेय
इस इकाई का उेय है :
 मुक काय क े वप को समझन े क ि स े |
 मुक काय क िवश ेषताओ ं को समझन े के िलए |
 गीितकाय क े वप को समझन े म उपयोगी |
 गीितकाय क म ुख िवश ेषताओ ं को समझन े के िलए |
४.२ तावना
मुक काय ब ंध काय स े िबक ुल िवपरीत ह , इसम जीवन क िवत ृत झा ँक नह ,
बिक झलिकया ँ तुत क जा ती ह | इसम िवत ृत कथा स ू नह होता ह , तथा इसका
येक छद अपन े आप म पूण होता ह | इसका िकसी क े साथ प ूवापर संबंध नह होता ह |
आगे पीछे कोई स ंबंध न होन े से ही य े मु या वत ं मान े जाते ह | मु होन े से ही इह munotes.in

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काय क े प - मुक
काय, गीित काय
53 मुक कहत े ह | गीितकाय किव क े दय का प ंदन ह | इसम किव ेम, िवरह, वेदना, हष
तथा िवषाद का वण न करता ह | गीितकाय िवषय धान होता ह | इसम किव अ पने सुख-
दु:ख क तीतम अन ुभूित को स ंगीत धान कोमलका ंत पदावली क े मयम स े य
करता ह |
४.३ मुक काय : वप
बंध क ि स े ाचीन समीक ने यकाय क े दो भ ेद मान े ह, बंध और म ुक | बंध
म कथा होन े से पूवापर संबंध रहता ह , परतु मुक म पूवापर संबंध का िनवा ह आवयक
नह रहता , यिक इसका य ेक छद वत ं रहता ह , और ब ंध काय क ही भा ँित
इसम कोई कथा नह होती , हाँ कुछ मुक ऐस े अवय होत े ह, िजनका य ेक छद वत ं
अथवा अपन े आप म पूण होता ह , और उनम एक कथास ू भी अन ुयूत होता ह | सूरदास
का मरगीत और त ुलसीदास क ‘िवनय पिका ’ एवं ‘किवतावली ’ इसके मुख ंथ ह |
‘मुक शद का अथ ह ‘वतं | मुक काय म येक प वत ं होता ह , अथात एक
प का अ थ जानन े के िलए दूसरे प क आवयकता नह होती | इसम रचना वय ं म ही
वतं और प ूण होती ह | इसे फुट काय भी कहा जाता ह | िजस कार ग ुलदत े म
सजाए गए फ ूल एक -दूसरे पर आित नह ह , और ग ुलदत े से एक फ ूल हटान े पर न तो
फूल का सौद य िबगड़ता ह और न ही ग ुलदत े का सौदय | इसी कार म ुक क े प भी
अपने आप म पूण और वत ं होत े ह | येक प का अथ अपन े आप म पूण होता ह |
कबीर और स ूरदास क े गीत (पद), मीरा क े पद, िबहारी क े दोह तथा आध ुिनक किवय क
फुट किवताओ ं को मुक काय क कोिट म िगना जाता ह | इसम रचना वय ं म पूण और
वतं होती ह | इसे फुट काय भी कहा जाता ह |
बंध काय और म ुक काय का अतर बतात े हए आचाय रामच श ुलजी न े िलखा ह
िक ‘मुक म बंध के समान रस क धारा न ह रहती , िजसम कथा स ंग क परिथ ितय
को भूला हआ पाठक मन हो जाता ह , और दय म ‘एक थायी भाव हण करता ह |
इसम रस क े ऐसे छीटे पडत े ह, िजनस े दय किलका थोडी द ेर के िलए िखल उठती ह |
बंध काय और म ुक काय का अतर एक पक क े ारा इस कार स े प िकया जा
सकता ह ,िक बंध एक माला ह और म ुक काय एक च ुना हआ ग ुलदता | माला क े
िकसी फ ूल को उसस े अलग नह िकया जा सक ता, जबिक ग ुलदत े म लगे फूल वत ं होत े
ह | बंध काय म इसक अिविछन धारा होती ह , जबिक म ुक काय म रस क े छीट
क तीित होती ह |
४.४ मुक काय : िवशेषताए ँ
१) मुक काय क सबस े बड़ी िवशेषता ह िक वह गीितकाय क ही ेणी म आता ह |
२) मुक का य ेक प वत ं होता ह बंधामक नह |
३) ाचीन काय शाीय म ुक को उक ृ नह मानत े थे,जबिक आचाय आनदवध न
ने मु कंठ से शंसा क ह | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
54 ४) मुक का य ेक ोक चमकार प ूण होता ह |
५) मुकका र के पास जीवन का आधार फलक अय ंत सीिमत होता ह |
६) मुक म सजीव प र ेखाओ ं एवं रंगो का होना अिनवाय ह |
७) िजस म ुक का य म परंग िजतना उवल होगा , वह उतना ही सफल होगा |
८) संकृत के ‘अमक शतक एव ं किव वर िबहारी क े दोह म मुक काय क उपरो
िवशेषता अपनी चरम सीमा पर पह ँची हई ह |
९) मुक काय म कपना क समाहार शि और भाषा क समास शि का होना
अिनवाय होता ह |
१०) मुक को अपन े खड य म रस क ऐसी व ेगवती अज धारा वािहत करनी
होती ह जो दय किलका को िवकिसत कर सक े |
११) जो थायी भाव म ु करने म सम हो , वही मुक ह |
१२) जो पाठको को चमक ृत कर द े वही म ुक ह |
१३) िबहारी न े शद का िनप ुण और ब ेजोड योग म ुक म िकया ह |
१४) मुक काय स े तापय ह, ऐसे काय जो िकसी एक स ंगवश िलख े गए ह |
१५) रामायण , महाभारत या रघ ुवंश आिद काय म अनेक स ंग ह, जो कायकथाओ ं से
ओत-ोत ह | िजसम े अनेक भाव तथा अन ेक रस ह |
१६) मुक काय िकसी एक स ंग एक भाव तथा एक ही रस स े िनिहत एक मा प
होता ह |
१७) मुक म एक प अवय होता ह |
१८) मुक काय या किवता का वह कार ह , िजसम े बंधकयता नह होती |
१९) मुक म एक छद म किथत बात का द ूसरे छद म कही गई बात से कोई स ंबंध या
तारतय होना आवयक नह ह |
२०) िहदी क े रीितकाल म अिधका ंश मुक काय क रचना हई ह |
२१) मुक काय क वह िवधा है, िजसम कथा का कोई प ूवापर संबंध नह होता ह |
२२) मुक का य ेक छद अपन े म पूणतः वतं और सप ूण अथ दान करन े वाला
होता ह |
२३) रामायण और महाभारत िजह हम ब ंध काय कहत े ह, उनम भी जन मानस तथा
सभाओ ं म यु होन े वाले मुक काय का वण न ा होता ह | munotes.in

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काय क े प - मुक
काय, गीित काय
55 २४) मुक काय , बंधकाय स े िबक ुल िवपरीत ह |
२५) मुक काय म जीवन क िवत ृत झाँक नह , बिक उसक झल िकयाँ तुत क
जाती ह |
२६) इसम िवत ृत कथास ू तो िबक ुल नह होता ह |
२७) मुक का प ूवापर स ंबंध नह होता ह | आगे-पीछे कोई स ंबंध न होन े से ही य े मु
अथवा वत ं मान े जाते ह |
२८) मुक गीतो क े प म भी पाए जात े ह |
२९) मुक काय ब ंध काय से िबक ुल िवपरीत होता ह |
३०) इसम जीवन का यापक िच नह होता ह |
३१) मुक का वप लघ ु होता ह |
३२) मुक काय का वप ब ड़ा ही सीिमत होता ह |
४.५ गीितकाय : वप
संकृत म गीितकाय क सम ृ परपरा ह | ऋगवेद म तुितपरक म ंो के मायम स े
सवथम गीितया ँ िलखी गई थी ; िजनम ऋिषयो ने अपन े कोमल भाव को कट िकया था |
ऋगवेद म अय स ू म भी हम सुख और द ुख को कट करन े वाले गीत िमलत े ह, िजनम
िहरयगभ आिद ऋिषयो ने यिगत अन ुभव को िनछल भाव स े कट िकया ह |
गीितकाय म गीतो को लोग अवकाश क े समय म या िविश अवसर पर गात े ह | इनम भि
या ृंगार से संबंिधत गीत होत े ह | गीितकाय क रचना ऐस े छदो म होती ह , िजह
सरलताप ूवक गाया जा सक े | सभी लोग इन गीत को स ुनकर भाविवभोर हो उठत े ह |
गीितका य का े बहत यापक ह | इसम ृंगार और भि स े संब बंधामक और
मुक दोन तरह क े काय आत े ह | सभी ोकाय ग ेय होन े से गीितकाय क ेणी म
आते ह | मुक काय म गेयता पाए जान े के कारण उह भी िवान ने गीितकाय क ेणी
म ही रखा ह |
काय और स ंगीत का घिन स ंबंध ह, यह स ंबंध ाचीन य ुग से चला आ रहा ह | गीितकाय
किवता का सवा िधक लोकिय कार ह | इसे गेय, मुक, गीतकाय , गीितकाय तथा
अंेजी म इसे ‘िलरक ’ कहतेह | गीितकाय का म ूल आधार भाव ह | यह भाव िकसी ेरणा
के कारणगीत क े प म फूट िनकलता ह | गीितकाय क रचना उसी समय होती ह , जब
भाव घनीभ ूत होकार आव ेश के साथ कायोिचत भाषा म अिभय होत े ह | गीितकाय
किव क े दय का भी पदन ह | इसम किव, ेम, िवरह-वेदना तथा हष -िवषाद का वण न
करता ह | गीितकाय ाय : िवषय-धान ही होता ह | इसम किव अपन े सुख-दुख क
तीतम अन ुभूित को स ंगीत धान कोमलका ंत पदावली ारा य करता ह | डॉ. गणपित
चग ु गीितकाय क े वप पर िवचार य करत े हए िलखत े ह िक– ‘गीितकाय एक munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
56 ऐसी लघ ु आकार एव ं मुक श ैली म रिचत रचना ह , िजसम किव िनजी अन ुभूितय या
िकसी एक भाव दशा का काशन स ंगीत या लयप ूण कोमल पदावली म करता ह |’
महादेवी वमा ने भी गीितकाय को क ुछ इस तरह स े परभािषत िकया ह – ‘सुख-दुख क
भावाव ेशमयी अवथा िव शेष को िगन े-चुने शद म वर साधना का उपय ु िचण कर द ेना
ही गीत ह |’ अत: िनकष प म भी यह कहा जा सक ता ह िक वैयिक स ुख-दुखामक
अनुभूित ती व ेग म जब शद क े प म कट होती ह तो वह गीत का प धारणकर
लेती ह |
४.६ गीितकाय : िवशेषताए ँ
उपरो िवव ेचन तथा परभाषाओ ं के आधार पार गीितकाय क क ुछ िवश ेषताएँ प होती
ह; जो िक कुछ इस तरह स े ह–
१) गीितकाय म यिगत अन ुभूित क म ुखता रहती ह |
२) गीितकाय का स ंबंध बुि से न होकर दय स े रहता ह |
३) गीितकाय म भावाव ेश क भी बलता रहती ह |
४) इसम गेयता और स ंगीतामकता भी िवमान रहती ह |
५) गीितकाय क भाषा सरल , मधुर और कोमल होती ह |
६) गीितकाय म संिता भी अिधक रहती ह |
७) गीितकाय . यि धान काय माना जाता ह |
८) गीितकाय किव क यिगत स ुख-दुखमयी अिभयि ह |
९) इसम हमेशा यिगत भावनाओ ं का ही काशन होता ह |
१०) गीितकाय क श ैली आमािभय ंजना क अयत उक ृ शैली ह |
११) यह श ैली मुक काय क े िलए अय ंत उपय ु ह |
१२) इस श ैली को भाव क एक –एक ृंखला को ग ुलदत े के प म सजा या जा
सकता ह |
१३) गीितकाय म किव अपनी अ ंतरामा म वेश करता ह |
१४) वह बा जगत को अपने अत :करण म ले जाकर उस े भाव से रंिजत करता ह |
१५) िजस काय म एक तय या एक भाव क े साथ-साथ एक ही िनव ेदन, एक ही रस , एक
ही परपा टी हो वह गीितकाय कहलाता ह | munotes.in

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काय क े प - मुक
काय, गीित काय
57 १६) सुख-दुख क भावाव ेशमयी अवथा िवश ेषकर िगन े-चुने शद म वर-साधना क े
अनुप िचण कर द ेना ही गीितकाय ह |
१७) डॉ. नगे ने आमिनव ेदन और मनोर ंजन को गीितकाय क े दो म ुख तव
माने ह |
गीितकाय क े तव:
i) वैयिकता : गीितकाय यि धान काय माना जाता ह | गीितकाय किव क िनजी
सुख-दुखमयी अिभयि ह | गीितकाय म िनजी भावनाओ का काशन होता ह | लेिकन
इसका मतलब यह नह िक गीत क ेवल व ैयिक स ुख-दुख क अिभयि ह | गीत म
अिभय पराया द ुख भी अपना लगता ह , और अपना पराया लगन े लगता ह |
ii) ती भावाव ेश : तीभावान ुभूित के िबना गीितकाय का िनमा ण तो हो ही नह सकता
ह | किव क ती भावनाए ँ ही गीत बनकर अिभय होती ह |
iii) संगीतामकता : गीितकाय म संगीतामकता और ग ेयता का िव शेष महव ह , इससे
गीत और काय यादा भावी बन जाता ह | गीत म छद एव ं लय का िनवा ह कुछ इस
कार का हो िक उसे कही और कभी भी गाया जा सकता ह |
iv) संिता : गीितकाय म संिता का होना अिनवाय ह | अनुभूित क आव ेशमयी एव ं
तीतम अवथा थोड़े समय तक ही रह सकती ह | अत: अनुभूित क अख ंडता और भाव
के िलए स ंिता बहत ही आवयक ह |
v) कोमलका ंत पदावली : गीितकाय म कोमल भावनाओ ं के अनुप कोमल , सुदर,
वाहप ूण भावशाली एव ं कलामक भाषा श ैली होती ह , िजसक े कारण गीत म रोचकता
का िनमा ण होता ह | गीितकाय म गीतकार को सीिमत आकार म अपन े भाव अिभय
करने अिनवाय होते ह | इसके िलए वह च ुन-चुन कर शद िवधान करता ह | अथवा
िचिवधान करक े अपन े भाव को गहराई तक अिभय करन े का यास करता ह | इसके
िलए किव कोमलकात शदावली , वरम ैी, तथा य ंजनमैी का सायास करता ह |
सूरदास न े इस यास म एक और िवश ेषता जो ड़ दी ह, वह ह- बोलचाल के शद का
योग | उदाहरण द ेिखए –
खेलत म को काको ग ुसैया |
हर हार े जीते सुदामा, बरबस ही कत –करत रस ैया |
जाित-पाित हमत े बड नाही, नाही बसत त ुहारी छवैया |
अित अिधकार जनावत यात ै, जातै अिधक त ुहारी ग ैया |
सूरदास क भाषा ज ही ह | उहने उसे सजाया और स ंवारा ह, तथा सािहियक प
दान िकया ह | इस तरह उपरो िवव ेचन यह मािणत करन े के िलए पया ह िक स ूरदास
गीितका य के अनय कलाकार और अ ुत किव ह | उहने गीितकाय को उसक े िशखर
पर पह ंचा िदया ह ै | munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
58 vi) रागामकता : गीितकाय का ाणतव वातव म राग ह | सूर का काय राग से अटा
पड़ा ह | सूरदास वय ं उच कोिट के गायक थ े | उहने बड़ी सोच-समझ क े बाद िकसी
राग का चयन िकया ह | जहाँ आवयक हआ स ूरदास न े नई राग रागिनय क भी रचना क
ह | एक अय िवश ेषता यह ह िक उहने समय क े अनुसार राग-रागिनय का चयन िकया
ह | जो राग ातः गा ने योय है उसम उह ने दोपहर तथा शाम को गाए जान े वाले पद क
रचना नह क | ी कृण को जगाने के िलए स ूरदास न े राग-लिलत और राग भ ैरव का
योग िकया ह , जो उनक े राग के बारे म ान को मािणत करता ह | इसी तरह राग सार ंग
ातः नौ बज े से दोपहर दो बज े तक गाया जाता ह | ी कृण के खेलने के इस समय को
इसी राग म िनब करके सूरदास न े यह मािणत कर िदया ह िक उह राग गायन ही नह
बिक राग शा का भी अछा ान था |
vii) भावािभयि : गीितकाय क िवश ेषता यह ह िक इसम सदैव एक ही भाव िनिहत
रहता ह | यही कारण ह िक यह िवधा दूसर से िबलक ुल अलग होती ह | सूरदास क े पद म
भी यह ग ुण िदखाई द ेता ह | दूसरे पद म अलग भाव िदखाई द ेता ह | सूरदास न े िविभन
भाव म िविभन पद क रचना क ह | ृंगार और वासय रस उनक े बेहद लोकिय रस
ह, तथा उह ने इह रसो को अिधकतर महव िदया ह | इसी कार ी क ृण क बाल
लीलाओ ं से संबंिधत पद म एक ही भाव पर पद क रचना क गई ह |
मर गीत क े येक पद म एक ही भाव का िवश ेष वण न िकया गया ह | अगर एक पद म
गोिपय के िवरह का वण न िमलता ह तो द ूसरे म िकसी अय भाव का गोिपय क िवरह
वेदना का वण न इस पद म य ह –
उधौ मन न भए दस बीस |
एक हतौ सो गयौ याम स ंग को अवराध ै ईस |
इी िसिथल भई, केसब िबन ु, य देही िबनु सीस |
इस तरह स ूरदास न े पद म एक ही भाव को एक पद म थान िदया ह. िजसस े उनक े ारा
रिचत य ेक पद पाठक को आनद स े भर द ेता ह |
viii) रसामकता : गीितकाय म मुक क अप ेा रस का परपाक कम होता ह , परतु
सूरदास न े अपन े काय कौशय स े अपन े पद को स ुदर बना िदया ह | उदाहरण वप
सूरदास न े अपनी उि वैिचय से ाय: सभी रस को वािहत िकया ह | िफर भी ृंगार
और वासय को उह ने अिधक महव िदया ह | वासय रस का एक उदाहरण द ेिखए –
नीके रिहयो जसुमित मैया |
आवैगै िदन चार पा ंच म हम हलधर दोउ भ ैया |
िवलभ ृंगार भी मरगीत म िमलता ह | यहाँ िवरह क सभी दशाओ ं का सजीव वण न
िकया गया ह |
munotes.in

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काय क े प - मुक
काय, गीित काय
59 ४.७ सारांश
वैिदक काल अथवा उसस े भी प ूव गायन क परपरा िमलती ह | वेद क सारी ही ऋचाए ँ
गेय ह, सामव ेद को गायन का सदभ ंथ कहा जा सकता ह | इससे यह तो िस हो जाता
हिक रचने क व ृि आरभ स े ही भारत म थी | आज भी यह व ृि िदखाई द ेती ह और
भिवय म भी इसक े िनवाध गित स े चलते रहने क सभावना ह | सामव ेद के बाद लौिकक
संकृत सािहय म सवे गीितकार क े प म जयद ेव का नाम आता ह | उनक िस
रचना ‘गीतगोिवद ’ गीितकाय क अ नूठी कृित ह |
गीतगोिवद म ईर क त ुित क गई ह , तथा दूसरी ओर अलौिकक ेम क अिभय ंजना
भी क गई ह | इस रचना म लौिकक ेम को ब ड़े ही सरस एव ं वाभािवक ढ ंग से त ुत
िकया गया ह | यही कारण ह िक अनेक िवान इस पर अीलता का आरोप लगात े ह |
वातिवकता यह नह ह , यिक जयद ेव लौिकक ेम के मायम स े अलौिकक ेम क
अिभय ंजना करना चाहत े थे | इसके उपरात हम यह परपरा आग े बढ़ती हई िदखाई द ेती
ह | वीरगाथा काल क े वीर गीत म इसक े दशन होत े ह | इन वीर गीत म चदबरदाई ज ैसे
किवय ने अपन े आयदाताओ ं के शौय, पराम ऐय तथा ेम आिद का वण न करन े के
िलए गीत को ही मायम बनाया |
उसके बाद मैिथल कोिक ल िवापित का उलेख करना अयावयक ह ै, िजह िहदी म
अिभनव जयद ेव कहा जाता ह ै| िवापित क काय कला उच कोिटक थी | वे भावुक एवं
रसिस किव होन े के साथ-साथ अछ े संगीतकार भी थ े | भाषा पर इनका प ूण अिधकार
था | उनके काय म शद चयन सव था सटीक और भावान ुकुल ह | इनके मुक स ुदर एव ं
गेय कला स े परप ूण ह |
डॉ. गंगा सहाय ेमी िलखत े ह िक इनक े मुक गीत म किवव क े िवशद दश न होत े ह |
इहने काय म जो िच खचा ह वह सजीव ह तथा ग ेय िवश ेषता क े कारण और भी स ुदर
उभर कर सामन े आया ह | उसके उपरात भिकाल म नामद ेव, दादू, नानक , रैदास,
सूरदास, तुलसीदास और मीरा क े नाम िवश ेष प स े उल ेखनीय ह | कबीर क े पद गेयता
क ि स े ायः साध ु-संत म ही अिधक गाय े जाते थे| अय साधारण लोग भी इनक े पद
को गात े थे | कबीर आिद सतो क े पद का िवषय ग ूढ होने के कारण तथा उनम हठयोग
आिद का िमण होन े के कारण अिधक लोकिय नह हए , िफर भी कबीर आिद सतो को
गीित परपरा को अपन े पद के मायम स े आगे बढ़ाने का ेय तो जाता ही ह |
भि काल क े किवय म गीितकाय परपरा म जो थान स ूरदास को ा ह , वह िकसी
अय किव को नह | सूरदास न ेहीन होत े हए भी अपन े पद क वय ं रचना करत े थे |
उनके पद को गात े हए सुनकर लोग क िदनचया बन गई थी | कतन करत े हए स ूरदास
अपने पद को गाकर स ंतोष ा करत े थे | वे उच कोिट क े भावुक तथा रसिस किव थ े |
उनक िस रचना ‘सूरसागर ’ गीितकाय का अन ूठा ंथ ह | सूरदास को िविवध राग -
रागिनय का समुिचत ान था | उहने अनेक राग क रचना भी क थी |
munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
60 आधुिनक िहदी गीितकाय म सदय और उसक अिभयिय के अनेक प िमलत े ह |
आधुिनक िहदी गीितकाय का िवकास ाय : छायावाद स े हआ माना जाता ह , यिक
इससे पूव िवेदी युग म आदश वाद कठोरता क े कारण यि सदय न के बराबर ही था |
परंतु य ही िव ेदी युग का अ ंत और छायावाद का उदय हआ , वैसे ही गीितकाय का
िवकास होता चला गया ह |
४.८ दीघरी
१) मुक काय क े वप को प किजए |
२) मुक काय क म ुख िवश ेषताओ ं को प किजए |
३) गीितकाय को परभािषत करत े हए उसक े वप पर काश डािलए |
४) गीितकाय क म ुख िवश ेषताओ ं पर काश डािलए |
४.९ लघुरीय
१) बंध क ि से ाचीन समीक ने यकाय के िकतन े भेद माने है ,वे भेद कौन से
है ?
उर – दो भेद मान े है – बंध व म ुक
२) तुलसीदास क ‘िवनय पिका ’ कौन स े काय का उदाहरण ह ै ?
उर – मुक काय
३) गीितकाय क ेणी म कौन सा काय आता ह ै ?
उर – मुक काय
४) सवथम गीितया ँ िकस व ेद म है ?
उर – ऋवेद
५) ‘सुख दुख क भावाव ेशमयी यवथा िवशेष को िगने-चुने शद म वर साधना उपयु
िचण कर देना ही गीत है |’ उपयु परभाषा गीितकाय के संबंध म िकस िवान क है ?
उर – महादेवी वमा
४.१० संदभ ंथ
१) काय क े प – बाबू गुलाबराव
२) काय दीप – ी रामबहोरी श ुल
३) काय परचय – राजे साद ीवातव
४) काय क े तव – आचाय देवनाथ शमा

 munotes.in

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61 ५
काय क े प - गजल
इकाई क पर ेखा
५.१ उेय
५.२ तावना
५.३ गजल का वप
५.४ गजल क िवश ेषताएँ
५.५ सारांश
५.६ दीघरी
५.७ लघुरीय
५.८ संदभ ंथ
५.१ उेय
 गजल क े वप को समझन े हेतु |
 गजल क िवश ेषताओ ं को समझन े हेतु |
५.२ तावना
हमारे भारतीय सािहय म गजल क बडी लबी पर ंपरा िवमान ह | गेयता क े कारण यह
िवधा अयत ही लोकिय हई ह | गजल फारसी भाषा क सश कायश ैली भी मानी
जाती ह | उदू म गजल एक म ुख िवधा के प म समािनत ह | अत: ऐसी मुख और
लोकिय िव धा के वप तथा उसक महवप ूण िवशेषताओ ं का परचय ा करना जरी
हो जाता ह |
५.३ गजल का वप
िहदी गजल िव धा फारसी और उद ू से भािवत ह | इसीिलए भाव हण क ि से िहदी
गजल का िवकास फारसी और उद ू सािहय क े परेय म तुत िकया जा रहा ह | गजल
शद अरबी भाषा का ह ै | इस कारण अिधका ंश लोग क यह धारणा ह िक गजल का उव
भी अरबी भाषा स े ही हआ ह ै, िकतु वातव म ऐसी बात नह ह | इस स ंबंध म अयोया
साद गोयलीय िलखत े ह :- इक ही गजल का ाण , मन और शरीर सबक ुछ होन े के कारण
यह ह िक गजल का शािदक अथ ही इिकया अशआर कहन े और औरतो क बात े करन े से munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
62 ह | गजल य ूँतो अरबी भाषा का शद ह | मगर ईरािनय ने इसे िवशेष तौर पर अपनाया ह ै |
वहाँ हजारो वष से यादा गजल का दौर रहा ह | ‘दक ’ जो िक ९१० के लगभग
जनतनशी हआ , गजल का बहत बडा उताद था | इस स ंबंध म डॉ. रोिहता आथाना
िलखत े ह िक “अरबी सािहय म ेम भावना स ंबंध का िनपण अवय हआ ह , िकत ु
इसका वप गजल का न होकर ‘तबीब ’ अथवा ‘नसीब ’ नामक िव धा का ह | यिप इन
िवधाओ ं म भी गजल क भा ँित ेम और यौवन स े संबंिधत भावनाओ ं का िचण िकया जाता
ह, िकतु अपन े मूल प म यह कसीदे का ही अ ँग ह |” इस कार अरबी किवय एवं
सािहयकार के मन म गजल क प कपना अवय थी | िकतु वह अरबी काय का
साकार वप नह बन सक | फारसी भाषा म गजल क े जम क े संबंध म एक अय
मतान ुसार साम ंती युग म वहाँ के बादशाह क श ंसा म जो कसीद े िलख े जाते थे, काय का
एक ट ुकड़ा तबीब क े नाम स े पुकारा जाता था | इस टुकड़े म किव को अपन े मन क बात
कहने क वत ंता रहती थी | इसम वह ाक ृितक सौदय , ेम व िवयोग आिद क भावनाए ँ
य करता था | कसीद े का यह टुकडा ही उसस े अलग होकर गजल बन गया | ‘तबीब ’ के
शेर म अपरा -पर संबंध नह होता था , और अिधकतर श ेर ेमवाता पर आधारत होत े थे |
इसिलए यह शायरी गजल क े नाम स े पहचानी जान े लगी और उसन े अपना अलग अितव
थािपत कर िलया |
‘अरबी म गजल नाम क कोई िवधा नह थी | अरबी काय िवधा कसीद े के ारंिभक भाग
तबीब ’ को फारसी क े शायर ने कसीद े से अलग करक े गजल नाम क एक नई िव धा के
प म परवित त कर िदया | इसिलए भी हम यह कह सकत े ह िक गजल िवधा का जम
अरबी सािहय म न होकर फारसी सािहय म ही हआ ह | जब फारसी क े सािहयकार का
िहंदुतान से संपक थािपत हआ तो गजल िवधा फारसी स े उदू तथा िहदी म अवतरत
हई | ईरान म दसवी शतादी म रौदक नामक एक अंध किव हए , िजह ने सवथम गजल
िवधा को जम िदया | फारसी सािहय म रौदक क े अलावा दकक वािहवी , िनजामी ,
कमाल , बेिदल, फैजी, शेख सादी , अमीर ख ुसरो, हािफज , शीराजी , शाहजहा ँ कालीन
चंभान ाहण आिद न े अपनी अपनी गज ल के मयम स े ही गजल िवधा को समृ
िकया | गजल क े वप क बात कर े तो गजल अरबी भाषा का शद ह , िजसका शािदक
अथ ह, ‘ेिमका स े वातालाप’ | गजल एक ऐसा काय प है, िजसका म ुय िवषय ‘ेम’ या
‘इक’ होता ह | इसमे ‘तिनक भी स ंदेह नह ह िक गजल काय क अय ंत लोकिय िवधा
रही ह | कम स े कम शदो म भावनाओ ं को अिभय करन े का यह एक भावी मयम ह |
गजल को कई िवान ने परभािषत करन े का यास िकया ह | गजल क े वप को समझन े
के िलए िविभन परभाषाओ ं का अययन करना भी अयावायक ह ै | गजल क े संबंध म
नालदा िवशाल शदसागर म यह उल ेख िमलता ह िक – फारसी और उद ू म शृंगार रस
क किवता | ‘उदू िहदी शदकोश ’ क ि स े गजल का अथ ह– ‘ेिमका स े वातालाप’ |
‘उदू फारसी किवता का एक कार िवश ेष िजसम ाय: पाँच से लेकर यारह श ेर मौज ूद
होते ह |”

येक िवधा का अपना एक प होता ह , िजसस े उस िवधा क एक यिगत पहचान
बनती ह | केवल भाव एव ं भाषा स े ही गजल ज ैसी िवधा को नह जाना समझा जा सकता munotes.in

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काय क े प
गजल
63 ह | उसके िविश ढा ँचे को भी जानना समझना जरी ह | गजल क े मुख अंगो म शेर,
िमसरा , कािफया , रदीफ, मतला , मा आिद महवप ूण अंग ह | िहदी सािहय कोश म
गजल का अथ नारय से ेम क बात े करना ही िमलता ह | मौलाना अताफ हाली क े
अनुसार जहा ँ तक गजलो क म ूल क ृित का स ंबंध ह, तो उसका िवषय ेम के अितर
कुछ और नह ह |’ िफराक गोरजप ुरी के अनुसार ‘गजल एक असबध किवता ह |’ गजल
का िमजाज म ूलत: समपणवादी होता ह | ोफेसर कलीम ुिन अहमद न े गजल को नीम
बहशी िसफ स ुखन कहा ह | गजल क े वप और य ुपि िवषयक धारणा को ल ेकर
ाय: गजल मम ो म थोडा-बहत मतातर रहा ह ै, िकतु वे सभी इस बात स े सहमत ह िक
ग़ज़ल ेमािभयि का सश एव ं भावोपादक मायम ह | अनेक िवान ने अपन े –
अपने िकोण स े गजल ज ैसी िवधा को परभािषत िकया ह |
िहदी गजल को परभािषत करत े हए डॉ . कुँवर बेचैन िलखत े ह िक ‘गजल र ेिगतान क े
यासे होठ पर उतरती हई शीतल तर ंग क उम ंग ह |’ गजल घने अंधकार म टहलती हई
िचगारी ह | गजल नद स े पहल े का सपना ह | गजल जागरण क े बाद का उलास ह |
गजल ग ुलाबी पंखुरी के मंच पर ब ैठी हई ख ुशबू का मौन पश ह |’ गोपालदास नीरज क े
अनुसार-‘गजल न तो क ृित क किवता ह न अयाम क , वह हमार े उसी जीवन क
किवता ह , िजसे हम सचम ुच जीत े ह | यिद शु िहदी म गजल का वप िव ेषण पर
गजल िलखनी हो तो पहल े हमे िहदी का वह वप त ैयार करना होगा जो द ैिनक जीवन
क भाषा और किवता क भाषा क द ूरी को िमटा सक े |’ िहदी गजल क े अय सश
हतार डॉ . उिमलेश के िवचार म ‘िहदी गजल स े मेरा अिभाय उद ू किवता स े आयाितत
उस काय िवधा स े ह जो उद ू गजल क शैिपक काया म िहदी क आमा को ितित
करती हई , अपनी ग ेयता को स ुरा द ेती हई , आधुिनक जीवन और परव ेश क स ंगितयो
और िवस ंगितयो को नूतन भावबोध क े साथ थािपत करती हई आग े बढ़ रही ह | िजस
गजल म िहदी क क ृित और याकरण क स ुरा क े साथ नवागत िवबो और तीको का
िवधान ह | मेरी समझ म उसे िहदी गजल मान ल ेने म कोई हज नह ह |’ उदू के किवय ने
िजस तरह अपन े काय म िहदी गीतो को आ मसात कर िलया ह , वैसे ही िहदी किव यिद
गजल को अपनी तरह आमसात कर ल तो सािहियक सादाियकता का म ूलोछ ेद बहत
जदी हो जाएगा |
िहदी सािहय क े िवान , अयेताओ और रचनाकार ने भी समय समय पर गजल क े बारे
म अपन े िवचार य िकए ह | िस किव प ंिडत रामनर ेश िपाठी न े गजल का अथ
‘जवानी का हाल बयान करना या माश ूक क स ंगित और इक का िज बतात े हए िलखा ह
िक एक गजल म ेम के िभन -िभन भाव के शेर लान े का िनयम रखा गया ह | िकसी श ेर म
आिशक अपनी मनोव ेदना कट करता ह , िजसम माशूक पर उसका क ुछ भाव पड े | िकसी
शेर म वह माश ूक क श ंसा करता ह , िजसस े वो सन हो , िकसी श ेर म वह माश ूक क
वफा और जफा का िज करता ह | तापय यह ह िक िजस बात क े कहन े से माशूक के
सन हो ने या और कोई खास नतीजा िमलन े क आशा होती ह , वही बात े गजल म
आती ह |’
मशहर गजलकार द ुयतक ुमार का मानना ह िक गजलो क े भूिमका क जरत नह होनी
चािहए | उदू और िहदी अपन े–अपने िसंहासन स े उतरकर जब आम आदमी क े पास आती munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
64 ह तो उसम फरक कर पाना बड़ा मुिकल होता ह | अदुल िबिमलाह क े अनुसार यह
गजल का वपसव िविदत ह िक गजल अब अपन े शािदक अथ से बाहर आ गई ह | वह
एक ऐसी काय िव धा बन गई ह , िजसम े जीवन क े िविवध पहल ुओं क अिभयि हो रही ह |
गजल का वप िव ेषण करन े वाले डॉ. नरे विश का मत ह िक ‘गजल का म ूले
नारी िवषयक भाव से संबंिधत ह | दरअसल गजलगोई का अिधकार स ंबंध िवरह जय
यथा स े रहा ह | अत: इसम दय को छू लेने क मता को बहत ब ड़ा गुण माना गया ह |’
इस कार िहदी गजल क े संबंध म उपलध परभाषाए ँ अपने अपन े िकोण को त ुत
करती ह , िजनका सम प स े अययन करन े पर हम इस िनकष पर पह ंचते ह िक िहदी
गजल, उदू – फारसी स े आयाितत वह काय िवधा ह , जो पूव िनधारत लघ ुखडो म आब
अनेक शेर के मयम स े तीक एवं िबब के सहार े पढ़े िलखे आम आदमी क भाषा म
आधुिनक जीवन मूय क ितथापना म सहायक िस हई ह | अनुभूित क तीता एव ं
संगीमाकता िहदी गजल क े ाण ह | िहदी गजल एक स ंभावनाशील िकत ु सश
कायप ह | किव मानस क तीान ुभूित को कम स े कम शद म अिधक स े अिधक
भावशाली ढ ंग से अिभय करन े के िलए इसस े उम कोई अय मयम नह ह | चूँिक
िहदी गजल क े िलए उद ू फारसी गजल न े उवर भावभ ूिम तैयार क |
अत: िहदी गजल का वप उद ू-फारसी गजल स े िमलता ज ुलता ह | गजल का य ेक
शेर अपन े आप म वतं एवं सपूण होता ह | इसके येक शेर म एक नवीन िवषय अथवा
िवचार अतिन िहत होता ह | गजलकार को श ेर म शद सौव का िवश ेष यान रखना
पडता ह | यिद एक भी शद हटाकर उसक े थान पर द ूसरा शद योग कर िदया जाए तो
सब क ुछ बेकार हो जाएगा | िहदी गजल म इक मजाजी अथवा इक हकक क अप ेा
इक इ ंसािनयात पर ही अिधक बल िदया गया ह | कहने का तापय यह ह िक गजल म ेम
एवं वासना ज ैसी परपरागत गजल क े तव को नकारत े हए समाज , राजनी ित, धम, शासन
एवं सवहारा वग क समयाओ ं, िवसंगितय तथा िवूपताओ ं का यथाथ वप तीको एव ं
िबबो के मायम म त ुत िकया जाता ह | िहदी म िलखी जान े वाली गजलो म गजल क े
सपूण पाकार िशप यवथा और अिभयि भ ंिगमा को हबह आमसात कर ल ेने के
बावजूद कुछ गजलकार ने गजल को नया नाम द ेने क कोिशश क ह | गोपालदास नीरज न े
गीितका , िवराट न े मुिका , चस ेन, मोहन अवथी न े अनुगीत आिद नाम द ेने क कोिशश
क ह | लेिकन गजल क े अिधका ंश समथ रचनाकार ने इन नामकरण को नकारकर उस े
गजल कहना ही अिधक उिचत समझा ह |
गजल का वप िव ेषण परपरागत और उद ू गजल क बहत सारी बातो को वीकार
करने के बाद भी िहदी गजल क अपनी िनजता और प ृथकता ह | इसम उदू क बहर के
साथ ही िहदी क े छदो क े आधार पर भी गजल िलखी जा रही ह | गजलकार ने एक गजल
म सैकड़ो शेर तक कह े ह | इसी कार उद ू गजल म येक शेर अलग -अलग िवषय से
संब होत े ह, िहदी ग़ज़ल म भी ऐसा ही होता ह | िकतु बहत सारी गजल े ऐसी भी िलखी
जा रही ह , िजनम े सभी श ेर एक ही क ेीय िवषय स े संब ह | उदू और िहदी क े िवान ,
रचनाकार क समत परभाषाओ ं और गजल क कुछ िवश ेषताओ ं पर भी काश डाला
गया ह | munotes.in

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काय क े प
गजल
65 ५.४ गजल क िवश ेषताए ँ
गजल क क ुछ महवप ूण िवशेषताओ ं पर काश डालत े हए डॉ . विश अनूप ने कहा ह िक
‘गजल को परभािषत करना हो तो म ै यह कहना चाह ँगा िक गजल उद ू िहदी शायरी क
सबसे सश और लोकिय िवधा ह | जो अपन े जम क े समय ेम और सौदय से बाबता
थी | वह अरबी और फारसी स े होती हई कई पीिढ़य बाद जब िहदी म पहँची तो उसका
परंग और नाक-नश काफ सीमा तक परवित त हो च ुका था | आज वह प ूरी तरह
भारतीय स ंकृित और सािहय क े रंग म रंगकर जमान े के साथ कदम िमलाकर चल रही ह |
इसक द ुिनया आज बहत बडी हो च ुक ह | गजल क े दामन म आज हर र ंग के फूल ह और
हर फूल क ख ुशबू ह, िमी क सधी ग ंध ह, िकतु इसम जहरील े काँटे भी ह , दहकत े हए
अंगारे भी ह , जनजीवन क यथा -कथा और आ ँसू भी ह | इसम कृण क व ंशी क धुन, मंद
और िशव क े डम का वर ती ह | इसम काम क े बाण िवरल और राम क े बाण अिधक ह |
गजल क कायगत िवश ेषताओं को रेखांिकत करत े हए ी द ेव शमा इ न े िलखा ह िक
‘गजल का कय अब अप ेाकृत बहत िवत ृत हो च ुका ह | सामंती मनोर ंजन करन ेवाली
उेजक सा मी क े थान पर अब उसम आम आदमी , दुख-दद का अभावत , िजदगी क े
तनावो का , भीड म खोए हए यि क अिमता का , मानवी य मूय के िवघटन का
सामािजक अयवथा , शोषण और आत ंक का उपजीय सामी क े प म अिधक योग
िकया जाता ह |
गजल क िवश ेषताओ ं को परभािषत करत े हए िशवओम अ ंबरजी िलखत े ह िक
‘समसामियक िहदी गजल भाषा क े भोजप पर िलखी हई िवलव क अिन ऋचा ह,
गुलाब क पंखुड़ी पर ाित क कारका िलिपब करने का स ंकप ह ै | वर गजलकार
और किव शमशेर बहा दुर िसंह के अनुसार ‘गजल एक िलरक िवधा ह , िजसक क ुछ अपनी
भी शत ह, अपना तीकवाद और अपनी जीव ंत परपरा ह |’ गजल क म ुख िवश ेषताओ ं
को ल ेकर ीमाजदाअसद का कहना ह िक सािहय और समाज म गजल का वही थान ह
जो िकसी भर े-पूरे घर म एक अलब ेली स ुदरी का होता ह | उसके चाहन े वालो म बड़े-बूढ़े,
औरत -मद, सूफ, योय और अयोय ानी और अानी सभी होत े ह | कुछ उसक े
अहड़पन के िदलदार ह , तो कुछ उसक शोिखय पर मरत े ह, कुछ उसक ग ंभीरता -धीरता
और रख -रखाव पर आस ह , तो उसक े हाव -भाव और चाल चोचल े पर नाक-भ
चढ़ाते ह |
ान ने गजल क िवश ेषताएँ बताते हए उसक परभाषा क ुछ इस तरह स े दी ह, गजल एक
छािदक िवधा ह | छािदक रचनाए ँ अय िकसी भी िवधा क रचनाओ ं का वप िव ेषण
अिधक भावशाली होता है | जब तक समकालीन किवता म छािदक भाव रहा , वह बहत
ही गहर े तक वीक ृत हई | िहदी गजल क समकालीन सािहियक िवधा क े प म सामन े
आई | जो जन -सामाय क पी ड़ा के साथ समकालीन कथा को ब ड़ी ही सह जता के साथ
छद म कय क िविवधता को अिभय कर रही ह | आज गजल िवधा वत मान पदचाप क े
साथ भावामक सौदय को ब ड़ी ख़ूबसूरती के साथ परोस रही ह | िहदी गजल अथा त
वैसी गजल िजसम े िहदी शद का योग और िहदी याकरण श ैली का िनवा ह हआ ह |
डॉ. िकशन ितवारी न े गजल क महवप ूण िवशेषता बतात े हए कहा ह िक ‘गजल अब munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
66 राजदरबारो या कोठ के मुजरो स े बतात े हए कहा ह , िक ‘गजल अब राजदरबार या को ठ
के मुजर से उतरकर आम आदमी क े आटे-दाल क िचता स े भी िचितत ह | समकालीन
िहदी गजल न े उन तमाम पहल ुओं को छुआ ह, जो वष स े अछूते रहे ह | गजल क एक
अय िवशेषता म उसका भािषक सौदय , ताजा मखन क कोमलता और महक , केशर का
रंग एवं सुगंध तथा ेम का सप ूण रोमांच िवमान ह | नवीनतम िवषय का िनचोडह |
आकाश का छोर ढूँढने क ललक ह | शद म िनिहत वाद तथा लावय का भी अनोखा
और अ नूठा सुमेल ह |
मानव मन को अिभ ेरत करन े वाले शद का सिवतर कोष गजल म आज भी िवमान ह ,
िजसम भाषा क रंगीन उ ँगली का स ुकोमल पश तथा स ूम समालोचना इसम शदाथ क
यापकता , मुहावर तथा लोकोिय का स ुंघ बजाता हआ जल पात गजल म ह म
िदखाई भी देता ह | कवियी मध ुरमा िस ंह ने गजल क िवश ेषताओ ं को परभािषत करत े
हए िलखा ह िक ‘अपनी हथ ेली पर िझलिमलाता आ ँसू क ब ूँद को उसक तरलता और
पारदिश कता को छुए िबना दूसरे क हथ ेली पर सावधानी स े रख द ेने का ही दूसरा नाम
गजल ह | गजल िजदगी क पलक पर थरथराती हई आ ँसू क ब ूँदे ह, जो सूरज क रोशनी
अपने भीतर सम ेटकर सतर ंगी आभा स े आलोिकत हो जाती ह | गजल ध ूप क नदी म पाँव
छपछपाती हई चा ँदनी ह |’
गजल क म ुख िवश ेषता क े सदभ म डॉ.नरे विश का िवचार ह िक– गजल का म ूल
े नारी िवषयक भावो स े संबंिधत ह , दरअसल गजलगोई का अिधकार स ंबंध िवरह जय
यथा स े रहा ह | अत: इसमे दय को छ ू लेने क मता को बहत ऊ ँचा गुण माना गया ह |
इस कार िहदी गजल क े सदभ म उपलध तमाम िवश ेषताएँ अपने – अपने िकोण को
तुत करती ह , िजनका समय प स े अावत करन े पर हम इस िनकष पर पह ँचते ह िक
िहदी गजल उदू-फारसी स े आयाितत वह काय िव धा ह, जो पूव िनधा रत लघ ुखडो म े
आब अनेक शेरो के मायम स े तीक एवंिबबो क े सहारे पढ़े-िलखे, आम आदमी क
भाषा म आध ुिनक जीवन मूय क ितथापना म सहायक िस हई ह | अनुभूित क
तीता एव ं संगीमाकता िहदी गजल क े ाण ह | िहदी गजल एक स ंभावनाशील िकत ु
सश कायप ह | किव मानस क तीान ुभूित को कम स े कम शद म अिधक स े अिधक
भावशाली ढ ंग से अिभय करन े के िलए इसस े उम कोई अय मायम नह ह | अत:
िहदी गजल का वप उद ू-फारसी ग़जल स े िमलता –जुलता ह | गजल का येक शेर
अपने आप म वत ं एवं सपूण होता ह | इसके येक शेर म एक नवीन िवषय अथवा
िवचार अ ंतिनिहत होता ह | शेर क मा दो पंियाँ जीवन क िकसी वातिवकता िकसी
अनुभूित अथवा परव ेशगत यथाथ क पर ेखा को अपन े म समािहत करन े क मता
रखती ह |
५.५ सारांश
सारांश प म हम यह कह सकत े ह िक गजल क धान िवश ेषता स ंिता होन े के कारण
उनमे दोहा छंद क भा ँित थो ड़े म बहत क ुछ कहन े अथवा गागर म सागर भरन े क सामय
िनिहत होती ह | अत: गजलो म अनुभूित क स ंेषणीयता का महव अस ंिदध ह | वातव
यिद गजल को किव क अन ुभूितय का िवफोट कह तो यह अित योि न होगी | गजलो म munotes.in

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काय क े प
गजल
67 किव अपना द ु:ख–दद, हष, उलास , लािन -ोभ, ायित , उपाल ंभ, देशकाल तथा
परिथ ितय के ित आम -िकोण को त ुत करता ह | गजल क े एक-एक िमसर े म
किव का अतज गत ितिब ंिबत होता ह |
अब तक क े अययन स े हमने देखा क गजल अरबी और फारसी स े होती हई उद ू से पहल े
िहदी म आई और अमीर ख ुसरो न े फारसी, िहदी और लोकभाषाओ ं के िमले-जुले योग
से गजल को एक नया प दान िकया | अमीर ख ुसरो क े बाद कबी र दास , यारेलाल शोक
और िगरीधरदास स े होती हई गजल आध ुिनक काय तक पह ँची | िहदी म भि सािहय
के किवय ारा गीत , चौपाई , दोहा और पद जैसे छद को अपनाए जान े के कारण गजल
जैसे काय प पर उनका यान नह गया | गजल का यविथत ल ेखक िहदी म भारतेू
युग म ही हम े िमलता ह | भारतदु हरं, तापनारायण िम , एवं बदरी नारायण चौधरी
ेमघन ने इस य ुग म अछी गजल े िलखी ह |
िहदी गजल एक स ंभावनाशील िकत ु सश काय प ह | किव मानस क तीान ुभूित को
कम स े कम शद म अिधक स े अिधक भावशाली ढ ंग से अिभय करन े के िलए इसस े
उम कोई अय मयम हो ही नह सकता ह | चूँिक िहदी गजल क े िलए उद ू-फारसी
गजल न े उवर भावभ ूिम तैयार क | अत: िहदी गजल का वप उद ू-फारसी गजल स े
िमलता -जुलता ह | गजल का य ेक शेर अपन े आप म वतं एवं सपूण होता ह | इसके
येक शेर म एक नवीन िवषय अथवा िवचार अ ंतिनिहत होता ह | शेर क दो पंियाँ जीवन
क िकसी वातिवकता , िकसी अन ुभूित अथवा परवेशगत यथाथ क पर ेखा को अपन े म
समािहत करन े क सामय रखती ह | गजल क धान िवश ेषता स ंिता होन े के कारण
उनमे दोहा छद क भा ँित थोड े म बहत क ुछ कहन े अथवा गागर म सागर भरन े क सामय
िनिहत होती ह | अत: गजलो म अनुभूित क स ंेषणीयता का महव भी अस ंिदध ह |
वातव म यिद गजल को किव क अन ुभूितय का िवफोट कह े तो यह अितयोि न
होगी | गजल म किव अपना द ु:ख, दद, हष, उलास , ायित , उपालभ, देश-काल तथा
परिथ ितय के ित आम िकोण को त ुत करता ह | गजल क े एक-एक िमसरे मकिव
का अंतजगत ितिबिबत होता ह | अभी तक क े अययन म हमन े यह द ेखा क गजल
अरबी और फारसी स े होती हई , उदू से पहल े िहदी म आई और अमीर ख ुसरो न े फारसी
िहदी और लोकभाषाओ ं के िमले –जुले योग स े गजल को एक नया प दान िकया |
अमीर ख ुसरो जी क े बाद कबीर दास , यारेलाल शोक और िगरीधरदास स े होती हई गजल
आधुिनक काय तक पहँची | िहदी म भि सािहय क े किवय ारा गीत, चौपाई , दोहा
और पद जैसे छदो को अपनाए जान े के कारण गजल ज ैसे काय प पर उनका यान नह
गया |
रीितकालीन किवय ने दोहा, सवैया, घनारी आिद छदो म रचनाए ँ क | िहदी सािहय म
गजल क े अयेताओ ं ने मीराबाई क े कुछ पद और आचाय केशवदास क रामच ंिका म
गजल क े छदशा क लय लित क ह | िकतु गजल का यविथत ल ेखन भार तेदु युग
म ही िमलता ह | भारतेदु हर , तापनारायण िम , बदरीनारायण चौधरी ‘ेमघन’
आिद न े इस य ुग म अछी गजल िलखी ह | िवेदी युगीन किवय म ीधर पाठक
मैिथलीशरण ग ु, केशव साद िम , मननिव ेदी, सयनारायण किव रन , बदरीनाथ भ , munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
68 ठाकुर गोपाल शरण िस ंह, रायदेवी साद प ूण, रामनर ेश िपाठी ,लाला भगवानदीन इयािद
ने गजल िलख | इन किवय ने उदू लयाधारो और िहदी छदो को भी अपनाया यहा ँ गजल
क अंतवतु मुय प स े भि और द ेश ेम ह |
छायावादोर िहदी गजल क े िवकास म दुयंत कुमार स े पूविजन रचनाकार ने िवशेष
भूिमका िनभाई ह , उनमे जानक बलभ शाीन े काफ बलवीर िस ंह रंग, हंसराज रह बर,
शमशेर बहा दुर िसंह, िलोचना शाी , रामावतार यागी और गोपालदास नीरज का नाम
अयािधक उल ेखनीय जान पडता ह | गजल को लोकियता दान करन े म जानक
बलभ शाी न े काफ रचनामक भ ूिमका अदा क ह | रचनाओ ं के साथ उनका वर भी
बहत अछा था | इसी कार बलवीर िस ंह रंग मूलत: रोमानी भावधारा क े सश गीतकार
एवं गजलकार रह े ह | उनक गजलो म परपरागत गजलो क सारी िवश ेषताएँ लित क
जा सकती ह | नई किवता क े ितित किव शमश ेर बहा दुर िसंह ने भी काफ अछी गजल े
िलखी ह | देखा जाए तो किवताओ ं क रचना म इनक गजल अिधक लोकिय ह , इनक
गजलो म नाजूक याली भी ह | ममपिशनी मता भी और चानी साहस भी ह |
बीसव सदी क े सातव े दशक म िहदी सािहय क े इितहास म एक महवप ूण परवत न और
िवकिसत हआ, जब नई किवता क े अय ंत समथ और ित ित किव , गजलकार , दुयंत
कुमार गजल िवधा क ओर उम ुख हए , दुयंत कुमार क े साथ ही उनक े समकालीन
रचनाकार ने भी गजल को अपनी म ुय िवधा क े प म अपनाया “ यह कोई मा मूली बात
नह, बिक एक य ुगांतकारी घटना थी | िजसक े कारण क तलाश भी आवयक ह | इह
िथितय म नई किवता क े छसे ऊबकर द ुयंत कुमार न े िलखा था िक ‘मै’ यह बराबर
महसूस करता ह ँिक किवता म आधुिनकता का छ, किवता को बराबर पाठक से दूर करता
चला गया ह ै | किवता और पाठक के बीच इतना फासला कभी नह था िजतना आज ह |
इससे भी यादा द ुखद बात यह ह िक किवता धीर े-धीरे अपनी पहचान और किव अपनी
शिसयत खो ता चला जा रहा ह | ऐसा परतीत होता ह , मानो दो दजन किव एक ही श ैली
और शदावली म एक ही किवता िलख रह े ह, और इस किवता क े बारे म यह सामािजक
और राजनीितक ा ंित क भ ूिमका त ैयार कर रही ह |
५.६ दीघरी
१) गजल क े अथ को परभािषत किजए |
२) गजल क े मुख वप पर काश डािलए |
३) गजल क म ुख िवश ेषताओ ं को प किजए |
४) गजल िवधा पर िटपणी िलिखए |
५) मुख गजलकारो का सामाय परचय दीिजए |

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काय क े प
गजल
69 ५.७ लघुरीय
१) िहदी गजल िवधा का िवकास कौ न सी भाषा स े हआ ह ै?
उर - िहदी गजल िवधा का िवकास फारसी और उद ू भाषा स े हआ ह ै |
२) गजल को परभािषत करत े हए िकस िवान न े इसे 'छिदक िवधा ' कहा ह ै ?
उर - ान
३) डॉ. नग विश क े िवचार से गजल का म ूल े िकसस े संबंिधत ह ै ?
उर - नारी िवषयक भावो स े
४) गजल को गीितका नाम िकसन े िदया ?
उर - गोपालदास नीरज न े
५) सामायत : गजल का म ुय िवषय होता ह ै ?
उर - ेम या इक
५.८ संदभ ंथ
१) िहदी गजल और गजलकार – डॉ. मधु खराट े 
२) गजल का काय शा – डॉ. महेश गुा 


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70 ६
छद : सामाय परचय , लण एव ं उदाहरण
मािक छ ंद

इकाई क पर ेखा :
६.१ उेय
६.२ तावना
६.३ मािक छद परभाषा
६.४ मािक छद क े भेद
६.४.१ चौपाई
६.४.२ रोला
६.४.३ दोहा
६.४.४ हरगीितका
६.४.५ उलाला
६.४.६ ताटंक
६.४.७ सोरठा
६.४.८ कुडिलया
६.५ सारांश
६.६ दीघरी
६. ७ लघुरी
६. ८ संदभ ंथ



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छद : सामाय परचय , लण एवं उदाहरण : मािक छ ंद
71 ६.१ उेय
 मािक छद क परभाषा को समझन े म सहायक |
 मािक छद क े भेद को समझन े हेतु |
 चौपाई , रोला, दोहा क समझन े हेतु |
 हरगीित का, उला ला, ताटंक को समझन े हेतु |
 सोरठा , कुडिलया को समझन े हेतु |
६.२ तावना
छद शद ‘चद्’ धातु से बना है, िजसका शािदक अथ होता ह , खुश करना | िहदी
सािहय क े अनुसार अर -अर क स ंया, माा, गणना . यित और गित स े संबंिधत
िकसी िवषय पर रचना को छद कहा जाता ह | अथात िनित , चरण, लय, गित स े संबंिधत
िकसी िवषय पर गण स े िनयोिजत िकसी प रचना को छद कहत े ह | अँेजी म छद को
‘Meta ’ और कभी -कभी ‘Verse ’ भी कहत े ह | एक छद म चार चरण होत े ह, चरण, छद
का चौथा िहसा होता ह , चरण को पाद भी कहा जाता ह | हर पाद म वण या मााओ ं क
संया िनित होती ह | छद के दूसरे और चौथ े चरण को समचरण तथा पहल े और तीसर े
चरण को िवषमचरण कहत े ह | छद क े चरण को वण क गणना क े अनुसार यविथत
िकया जाता ह ै, छद म जो अर य ु होते ह; उह वण कहत े ह | माा क ि स े भी वण
दो कार क े होते ह–लघु या व, गु या दीघ | िजह बोलन े म कम समय लगता ह , उसे
लघुव वण कहत े ह, इनका िचह (|) होता ह | िजह बोलन े म लघु वण से भी यादा
समय लगता ह , उह गु या दीघ वण कहते ह | इसका िच (S) क तरह होता ह |
६.३ मािक छद : परभाषा
माा क गणना क े आधार पर क गई पद क रचना को मािक छद कहत े ह | अथात िजन
छद क रचना मा ाओं क गणना क े आधार पर क जाती ह , उसे भी मािक छद कहत े
ह | िजसम मााओं क स ंया लघ ु, गु, यित, गित क े आधार पर पद रचना क जाती ह ,
उसे मािक छद कहत े ह |
जैसे – बंदऊँ गु पद, पदुम परागा, सुिच स ुवास सरस अन ुरागा |
अिमयमूरमय च ूरन चा , समन सकल भव ज परवा ||
मािक छद क े भी तीन भ ेद िकए गए ह –
i) सममािक छद
ii) अमािक चद munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
72 iii) िवषम मािक चद
i) सममािक छद
जहाँ पर छद म सभी चरण समान होत े ह, उसे सममािक छद कहत े ह |
जैसे - मुझे नह ात िक म ै कहाँ हँ,
भो ! यहाँ हँ अथवा वहा ँ हँ |
ii) अमािक चद
िजसम पहला और तीसरा चरण एक समान होता ह तथा द ूसरा और चौथा चरण उनस े
अलग होत े ह, लेिकन आपस म एक ज ैसे ही होते ह, उसे अमािक छद कहत े ह |
iii) िवषम मािक चद
जहाँ चरण म दो चरण अिधक समान न ह उस े िवषम मािक छद कहत े ह | ऐसे छद
चलन म कम होत े ह |
६.४ मािक छद क े भेद
मािक छद क े कुल सोलह भ ेद ह |
१) दोहा छद
२) सोरठा छद
३) रोला छद
४) गीितका छद
५) हरगीितका छद
६) उला ला छद
७) चौपाई छद
८) बरवै (िवषम) छद
९) छपय छद
१०) कुंडिलया छद
११) िदगपाल छद
१२) आहा या वीरछद
१३) सार छद munotes.in

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छद : सामाय परचय , लण एवं उदाहरण : मािक छ ंद
73 १४) ताटंक छद
१५) पमाला छद
१६) िभंगी छंद
६.४.१ चौपाई :
यह एक मािक छद होता ह , इसमे चार चरण होत े ह | इसके येक चरण म सोलह -
सोलह मााए ँ होती ह | चरण क े अत म गु या लघ ु नह होता ह , िकतु दो गु या दो
लघु हो भी सकत े ह | अंत म गु वण होने से छद म रोचकता आती ह |
जैसे - (i) I I I I S I I I I I I S S
इिह िविध राम स ंबंधी सम ु झावा
गु पद पदुम, हरष िसर ना वा ||
(ii) I I I I I I I I I I I S S I I I I S I I I I I I S S
बदउ ग ु पद पद ुम परागा | सुिच स ुबास सरस अन ुरागा|
अिमय म ूर मय च ूरन चा , समन सकल भव ज परवा ||
६.४.२ रोला छद :
रोला एक मािक छद होता ह | इसके येक चरण ११ और १३ के म से २४ मााए ँ
होती ह | इसके अत म दो गु और दो लघु वण होते ह |
उदाहरण – (i) S S I I I I S I I I I I I I I S I I S
नीलाबर परधान हरत पट पर स ुदर ह |
सूय च य ुग, मुकुट मेघला रनाकर ह |
निदया ँ ेम-वाह फ ूल तार े मंडल ह |
बंदी जन खग व ृद, शेषफन िस ंहासन ह |
(ii) यही सयानो काम , राम को स ुिमरन कज ै |
पर वारथ क े काज, शीश आग े धर दीज ै ||


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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
74 ६.४.३ दोहा छद :
दोहा अध सममािक छद होता ह , यह सोरठा छद के ठीक िवपरीत होता ह | इसम पहल े
और तीसर े चरण म १३-१३ तथा दूसरे और चौथ े चरण म ११-११ मााए ँ होती ह | इसम
चरण क े अत म एक लघ ु का होना जरी होता ह |
उदाहरण – (i) S I I S S S I S S S S I I S I
कारज धीरे होत ह , काहे होत अधीर |
समय पाय तवर फर ै, केतक सचो नीर |
(ii) तेरी मुरली मन हरो , घर अंगना न स ुहाय |
(iii) ी गुचरण सरोज रज, िनज मन म ुकुर सुधार |
बरनऊ ँ रघुबर िवमल जस ु, जो दायकु फल चार |
रां-िदवस , पूनम-अमा, सुख-दुख, छाया-धूप |
यह जीवन बहिपया , बदले िकतन े प ||
६.४.४ हर गीितका छद :
हरगीितका एक मािक छद होता ह | इसम कुल चार चरण होत े ह | इसके येक चरण म
१६ और १२ के म से २८ मााए ँ होती ह | इसके अत म लघु और ग ु का योग
अिधक िस ह |
उदाहरण : (i) S S I I S I I S S S I I I S I S I I S
मेरे इस जीवन क ह तू, सरस साधना किवता |
मेरे त क त ू कुसुिमत, िय कपना लितका |
मधुमय मेरे जीवन क िय , ह तू कल कािमनी |
मेरे कुंज कुटीर ार क , कोमल चरण गािमनी |
६.४.५ उला ला छद :
यह एक मािक छद होता ह | इसके येक चरण म १५ और १३ के म से कुल २८
मााए ँ होती ह |
उदाहरण : I I S I I S I I S I S I I S S I I S I S
करते अिभष ेक पयोद ह , बिल हारी इस व ेश क |
हे मातृभूिम ! तू सय ही , सगुण मूित सवश क ||
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छद : सामाय परचय , लण एवं उदाहरण : मािक छ ंद
75 ६.४.६ ताटंक छद :
ताटंक छद क े येक चरण म १६,१४ क यित स े ३० मााए ँ होती ह |
उदाहरण : फूल क डोली म आई, शमाती बरखा रानी |
इठलाती इतराती आई , कर बैठी कुछ नादानी |
बादल गरज े िबजली चमक , झूम-झूम बरस पानी |
भीग गया गोरी का आ ँचल, िचपक गई च ुनरी धानी |
६.४. ७ सोरठा छद :
यह अ सममािक छद होता ह , और यह दोहा छद के ठीक िवपरीत होता ह | इसके
पहले और तीसर े चरण म ११-११ तथा दूसरे और चौथ े चरण म १३-१३ मााए ँ होती ह |
िवषम चरण क े अत म एक ग ु और एक लघ ु माा का होना अिनवाय होता ह | इसका
तुक थम और त ृतीय चरण म होता ह |
उदाहरण : (i) कह जू पावै कौन, िवा धन उम िबना |
य प ंखे क पौ न, िबना डुलाये न िमल े |
(ii) जो सुिमरत िस िध होय, गन नायक करबर बदन |
करह अन ुह सोय , बुि रािस स ुभ गुण सदन ||
६.४.८ कुडिलया छद :
कुडिलया एक िवषम मािक छद होता ह | इसम कुल ६ चरण होत े ह, आरभ क े दो
चरण दोहा क े और बाद क े चार चरण उला ला छद क े होते ह | इस कार स े येक चरण
म कुल चौबीस मााए ँ होती ह |
उदाहरण : (i) घर का जोगी जोगना , आन गाँव का िस |
बाहर का बक ह ंस ह, हंस घर ेलू िग |
हंस घर ेलू िग, उसे पूछेन कोई |
जो बाहर का होई , समादर याता सोई ||
िच व ृि यह द ूर, कभी न िकसी क होगी |


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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
76 ६.५ सारांश
संकृत सािहय म सामायत : लय को ब ताने के िलए छद शद का योग िकया गया ह |
माार , संया, िनयता , िविश अथ या गीत म वण क स ंया और थान स े संबंिधत
िनयम को छद कहत े ह, िजनस े काय म लय औ र रंजकता आती ह | छोटी, बड़ी,
विनया ँ, लघु-गु उचारण क े म म माा बताती ह , और जब िकसी काय रचना म ये
एक यवथा क े साथ साम ंजय ा करती ह , तब उस े एक शाीय नाम दे िदया जाता ह ,
और लघ ु-गु मााओ ं के अ नुसार वण क यह यव था एक िविश नाम वाला छंद
कहलान े लगताह, जैसे चौपाई , दोहा, सोरठा , कुडिलया छद आिद | इस कार क
यवथा म माा अथवा वण क स ंया, िवराम , गित, लय तथा तुक आिद िनयम को भी
िनधारत िकया गया ह , िजनका पालन किव को करना होता ह |
िहदी सािह य म भी छद क े इन िनयम का पालन करत े हए ही काय रचना क जाती थी ,
और वह िकसी न िकसी छद म ही होती थी | िव क अय कई भाषाओ ं म भी परपरागत
प स े किवता क े िलए छद क े अपन े कुछ िनधा रत िनयम होत े ह | छद क रचना और
गुण–अवगुण के अययन को छदशा कहत े ह | यिद ग क कसौटी याकरण ह , तो
किवता क कसौटी छद ह | परचना का सम ुिचत ान छदशा क जानकारी क े िबना
नह होता | छद स े दय को भी सौदय बोध होता ह , वह हमार े मानवीय भावनाओ ं को भी
झंकृत कर द ेता ह | छद म एकथा ियव होता ह , वह सरस होन े के कारण सभी के मन को
भािवत करता ह | छद क े िनित लय पर आधारत होन े के कारण व े सुगमताप ूवक
कंठथ भी हो जात े ह | छद क े पढ़ने के वाह या लय को गित कहत े ह | गित का महव
विणक छद क अप ेा मािक छ ंद म अिधक ह ै| विणक छंद म तो लघ ु-गु का थान
िनित रहता है, िकतु मािक छद म लघु-गु का थान िनित नह रहता ह , उसम पूरे
चरण क मााओ ं का िनद श भी नह रहता ह | मााओ ं क स ंया ठीक रहन े पर भी चरण
गित अथा त वाह म बाधा पड़ सकतीह | इसिलए मािक छद क े िनदष योग क े िलए
गित का परान भी अयत आवयक ह ै| गित का परान भाषा क क ृित, नाद क े
परान एव ं अयास पर िनभ र करता ह |
छद म िनयिमत वण या माा पर सा ँस लेने के िलए कना पड़ता ह , इसी कन े के थान
को यित या िवराम कहत े ह | छोटे छद म साधारणत : यित चरण क े अत म होती ह , पर
बड़े छद म एक ही चरण म एक स े अिधक यित का िनद श ाय : छद क े लण परभाषा म
ही कर िदया जाता ह , जैसे मािलनी छद म पहली यित ८ वण क े बाद तथा द ूसरी यित ७
वण के बाद पड़ती ह |
६.६ दीघरी
१) मािक छद क े अथ एवं परभाषा को प किजए |
२) मािक छद क े िकतन े भेद ह? प किजए |
३) चौपाई छद को सोदाहरण समझाइए | munotes.in

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छद : सामाय परचय , लण एवं उदाहरण : मािक छ ंद
77 ४) रोला छद को सोदाहरण प किजए |
५) दोहा और हरीगी ितका छद को उदाहरणासिहत स मझाइए |
६) उला ला छद क परभाषा और उदाहरण को प किजए |
७) ताटंक और सोरठा छद को प किजए |
८) कुंडिलया छद को उदाहरण सिहत समझाइए |
६.७ लघुरी
१) मािक छ ंद िकस े कहत े है ?
उर - माा क गणना क े आधार पर क गई रचना को मािक छ ंद कहत े ह |
२) मािक छ ंद िकतन े कार क े होते है?
उर - मािक छ ंद तीन कार क े होते है |
३) चौपाई म िकतन े चरण होत े है ?
उर - चौपाई म चार चरण होत े है |
४) दोहा छ ंद िकस छ ंद के िवपरीत होता ह ै ?
उर - दोहा छ ंद सोर ठा छंद के िवपरीत होता ह ै |
५) कुडिलया कौन स े मािक छ ंद का कार ह ै ?
उर - कुडिलया िवषम मािक छ ंद का कार ह ै |
६.८ संदभ ंथ
१) छंद काश – ी. रघुनंदन शाी





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78 ७
छद : सामाय परचय , लण एव ं उदाहरण
विणक छंद
इकाई क पर ेखा
७.१ उेय
७.२ तावना
७.३ विणक छद परभाषा
७.४ विणक छद क े भेद
७.४.१ इबा
७.४.२ उपे बा
७. ४.३ दुत िवल ंिबत
७. ४.४ वंशथ
७. .४.५ भुजंगी
७. ४.६ तोटक
७ .४.७ बसंतितलका
७ .४.८ घनारी
७.५ सारांश
७. ६ दीघरी
७. ७ लघुरीय
७. ८ संदभ ंथ
७.१ उेय
 विणक छद क परभाषा को समझत े हेतु |
 विणक छद क े भेद को समझन े हेतु | munotes.in

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छद : सामाय परचय , लण एव ं उदाहरण : विणक छंद
79  इ जा , उपे बा को समझन े म सहायक |
 ुतिवलंिबत, वंशथ तथा भुजंगी जैसे छद को समझन े हेतु |
 तोटक , बसंतितलका , घनारी , जैसे मुख छदो को समझन े हेतु |
७.२ तावना
छद क दो म ुख इकाइय म यह दूसरी इकाई ह | सािहय क े अंग म छद का बहत
अिधक महव ह | काय, सािहय क अयािधक महवप ूण िवधा ह ै, और काय क सरलता
का मूल आधार यिद भाव क सरलता ह ै, तो उसका लयम ु होना , उसक स ंगीमाकता
तथा स ुयविथत मबता भी अय ंत आवयक ह | ये सारी िवश ेषताएँ काय को छद -
बता स े ही ा होती ह | लय, वण अथवा मा ाओं के यविथत अन ुपात स े सुिनयोिजत
काय ही अिधक भावशाली , दयाही एव ं थायी िस होता ह | छदो स े ही काय म
रमणीयता तरलता और वाहमयता आती ह | इसी स े काय ग ेय तथा स ंगीतामक भी
बनता ह |
अत: छद िवव ेचन स ंबंधी इस इकाई म हम छद क े अथ, परभाषा तथा उसक े मुख भेद
का िवव ेचन, िवेषण कर सक गे | छद क े कुछ म ुख िनयम का िव ेषण करत े हए छद
के अंगो क समीा भी इस इकाई म कर सक गे | इसम हम छदो के कार का िव ेषण
करते हए लण तथा उदाहरण सिहत उसक समीा भी हम आसानी स े कर सक गे |
७.३ विणक छद क परभाषा
हम यहा ँ िजस प म छद का िवचार करन े जा रह े ह, वह लय िवश ेष म पद का ब ंधन ह |
इस ि स े छद का अथ ह– बंधना, वातव म काय ‘शैली’ क ि स े दो कार का होता
ह - गमय , पमय | छद इतना प ुराना ह क व ेद का नाम भी छादस प ड गया ह | उसम
छद भी ह | पद म वह लौिकक छद स े िभन ह | इसिलए लौिकक काय म यु छद
लौिकक कह े जाते ह | लौिकक छद म भी वण और मा ा के िवचार स े दो कार क े ह,
मािक छ ंद और विण क छद | मािक छद व े छद ह िजनम े अरो या वण क मा ाओं
के अनुसार िनयम िनधा रत होत े ह | इसके पद म वण म यादा हो सकत े ह | पर मा ा
परपर होनी चािहए | अिभाय यह ह िक मािक छद म माा को ही यान म रखकर
िनयम बनाए जात े ह, वण या अर को नह | इसी कार विण क वृ है, िजनम वण या गण
को ि म रखकर िनयम बनाये जाते ह | मुक, दंडक वण वृ म वण िनयत होत े ह, गण
नह, इसिलए उह गणम ु होन े से मुक कहा जाता ह |
कुछ छद म चरण होत े तो चार ही ह , पर उह दो ही प ंिय म िलख िदया जाता ह | वहाँ
येक पंि को दल कहत े ह | िहदी म कुछ छद छः पंिय क े भी होत े ह | ये ाय: दो
छदो के योग स े बनत े ह | एक क े चार चरण , चार प ंिय म और द ूसरे के चारचरण दो
पंिय म | छद शा क े पहल े और तीसर े चरण को िवषम और द ूसरे तथा चौथे चरण को
सम कहा जाता ह | िहदी म मािक िवषम छद नह होत े | इसी कार िहदी म विणक munotes.in

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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
80 अधसम तथा विण क िवषम , ये दोन कार क े छद भी नह होत े| इन सम छदो (विणक
तथा मािक ) के भी दो –दो भेद होत े ह | साधारण और दडक | मािक साधारण व ृ उह
कहा जाता ह ,िजनक े येक चरण म बीस तक या उसस े भी कम मााए ँ हो, यिद इसस े
अिधक माण होती ह , तो उह दंडक कहा जाता ह | विणक साधारण छदो क े येक
चरण म २६ या उसस े कम वण होते ह | इनसे अिधक हो तो उह दंडक क संा िमलती
ह| २३ से २६ वण तक क े वृ ाय: िहदी म सबैया कह े जाते ह |
परभाषा –
िजन छदो क रचना को वण क गणना और म के आधार पर िकया जाता ह , उह
विणक छद कहत े ह | वृ क तरह इसम गु और लघ ु का म िनित नह होता ह , बस
उसक वण संया ही िनित होती ह | ये वण क गणना पर आधारत होत े ह, िजनम वण
क संया, म, गणिवधान , लघु-गु के आधार प र रचना होती ह |
७.४ विणक छद क े भेद
विणक छद क े मुख भेद इस कार ह -
१) इबजा
२) उपे बजा
३) ुतिवल ंिबत
४) वंशथ
५) भुजंगी
६) तोटक
७) बसंतितलका
८) घनारी
७.४.१ इबा :
इबा छद क े येक चरण म ११ वण, दो जगण और बाद म दो गु होत े ह | यह एक
समविण क छद ह |
जैसे – (i) माता यशोदा हर को जगाव ै
यारे उठो मोहन न ैन खोलो |
ारे खड़े गोप ब ुला रह े ह |
गोिवद , दामोदर , माधव ेित ||

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छद : सामाय परचय , लण एव ं उदाहरण : विणक छंद
81 (ii) मै राय क चाह नह क ँगा |
ह जो तुह इ वही क ँगा ||
संतान जो सय वती जन ेगी ||
रायािधकारी वह ही बन ेगी ||
७.४.२ उपेबा :
यह एक सम वण छद ह , इसके भी य ेक चरण म यारह –यारह वण होते ह | साथ य ेक
चरण म एक जगह एक तगण तथा दो ग ु वण होते ह |
जैसे - (i) पखारत े ह पद प कोई
चढ़ा रह े ह फल प ुप कोई |
करा रह े ह, पय पान कोई |
उतारते ीधर आरती ह |
(ii) बड़ा िक छोटा क ुछ काम कज ै |
परतु पूवा पर सोचा लीज ै ||
िबना िवचार े यिद काम होगा |
कभी न अछा परणाम होगा ||
७.४.३ ुतलंिबत :
यह समवण छद होत े ह, इसके चार चरण होत े ह, तथा य ेक चरण म बारह -बारह वण
होते ह | इस छद क े येक चरण म मश: एक नगण , दो भगण तथा रगण होता ह |
जैसे - (i) िदवस का अवसान समीप था |
गगन था क ुछ लोिहत हो चला |
त िशख पर थी अब राजती |
कमिलनी कुल-वलभ क भा ||
७.४.४ वंशथ :
यह समवण छद ह , वंशथ को व ंशथिवल भी कहा जा ता ह | यह छद एक नगण , एक
तगण और एक रगण क े योग स े बनता ह | इसके येक चरण म बारह -बारह वण होते ह |
जैसे – (i) बसंत ने, सौरभ न े, पराग न े,
दान क थी , अिलका ंत भाव स े |
वसुंधरा को , िपक को , िमिलद को ,
मनोयता , मादकता , मदाधता ||
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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
82 (ii) िगरी म या िवलोकनीय थी ,
वनथलीय मय श ंसनीय थी |
अपूव शोभा अवलोकनीय थी |
असेत जबािलनी , कूल जब ुकय ||
७.४.५ भुजंगी छद :
भुजंगी छद क े येक चरण म यारह वण होते ह, िजसम तीन सगण , एक लघ ु और एक
गु होता ह |
जैसे - (i) शिश स े सिखया ँ िबनती करती |
टुक मंगल हो िबनती करती |
हर के पद प ंकज द ेखन द ै |
पिद मोटक मिह िनहार न दै |
७.४.६ तोटक छद :
तोटक छद क े येक चरण म बारह माताए ँऔर चार सगण होत े ह |
जैसे - (i) शिश स े सिखया ँ िबनती करती |
टुक मंगल हो िबनती करती |
हर के पद प ंकज द ेखन द ै |
पिद मोहक मिह िनहारन द ै |
७.४.७ बसंतितलका छद :
बसंतितलका छद म कुल चार चरण होत े ह | इसके येक चरण म कुल चौदह वण होते ह|
इसके येक चरण म एक तगण, एक भगण , दो जगण और दो ग ु होत े ह |
जैसे - (i) कुंजे वही, थल वही , यमुना वही ह ,
बेल वही वन नह , िवटपे वही ह ||
७.४.८ घनारी छद :
घनारी छद क े येक चरण म ८,८,८,८, वण क यित स े कुल बीस वण होते ह |
अत म एक ग ु और लघ ु का म भी होता ह |
जैसे - नगर स े दूर कुछ, गाँव क सी बती एक |
हरे भरे खेत के समीप अित अिभराम |
जहाँपजाल अतराल स े झलकत े है |
लाल खपर ैळे ेत जजो क े सँवारे धाम | munotes.in

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छद : सामाय परचय , लण एव ं उदाहरण : विणक छंद
83 बीचो-बीच वह व ृ खड़ा ह, िवशाल एक |
झूलते ह, बाल कभी िजसक लताए ँ थाम ||
चढ़ी म ंजु मालती लता ह , जहाँ छाई हई |
पथर से पिहय क चौिकया ँ पड़ी ह याम ||
७.५ सारांश
इस कार विण क छद क परभाषा और उसक े भेद के बारे म छद काय क े मायम स े
उसे सुरित रखन े वाला अितीय साधन ह | इससे एक-एक वण और एक -एक शद का
थान एव ं म िनित होन े के कारण , काय म िकसी अनथ कारी अथवा िशिथलता क
संभावना ही नह रहती | यह काय को िनयिमत िनल ंिबत एव ं संयिमत ही नह करता उसम
संगीतामकता तथा मान ुकुल यवथा लाकर वाह एव ं वासयता भी लाता ह | उसे
वाहमय बनाकर भावी तथा दयगा ही बनाता ह | छदो के िनयंण स े ही काय को
पंदन, कंपन एव ं वेग िमलता ह , और उसी स े िनजव अर म भी सजीवता आ जाती ह |
छद और काय का स ंबंध अय ंत घिन संबंध होता ह | वही इस े रमणीय एव ं गेय भी
बनाते ह |
छदो म वण, माा, यित-गित तथा गण और त ुक आिद क िनि त योजना ही काय को
यवथा दान करती ह | छद शा क े अपन े ही कुछ िनयम भी होत े ह, िजनम वण का
व एवं दीघ होना, अनुवारय ु वण का दीघ या ग ु होना , िवसग यु वण का व से
दीघ हो जाना तथा हलत स े पूव वण एवं व वण का दीघ हो जाना ही म ुख ह | छद क
मूल आमा लय और वाह होत े ह | अत: छादन, आछादन , वाह आिद अथ का
सूचकछद अपनी महा क े कारण ही िवत ृत और यापक होता गया और उसक े मािक -
विणक आधार पर भ ेद-उपभेद भी हो गय े ह |
७.६ दीघरी
१) विणक छद को परभािषत किजए |
२) विणक छद क े िकतन े भेद ह? सोदाहरण समझाइए |
३) विणक छद क े अथ को प किजए |
४) इबा छद क े बारे म सोदाहरण समझाइए |
५) उपे बा छद क परभाषा द ेते हए, उसे उदाहरणसिहत प किजए |
६) ुतिबल ंिबत ए वं वंशथ छद को उदाहरणसिहत समझाइए |
७) भुजंगी एव ं तोटक छद को सोदाहरण प किजए |
८) बसंतितलका छद को उदाहरण सिहत प किजए |
९) घनारी छद को सोदाहरण समझाइए |
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सािहय समीा : वप ए वं सामाय
परचय
84 ७.७ लघुरीय
१) इबा छ ंद कौन स े विणक छंद का कार ह ै ?
उर - इं बा एक समविण क छंद है |
२) भूजंगी छंद के हर एक चरण म िकतन े वण होते है ?
उर - भूजंगी छंद के येक चरण म यारह वण होते है |
३) विणक छंद िकस े कहत े है ?
उर - वण या गण को ि म राखाकार क गई रचना को विण क छंद कहत े है |
४) बसंतितलका छ ंद कौन स े छंद का एक कार ह ै ?
उर - बसंतितलका छ ंद विण क छंद का एक कार ह ै |
५) येक चरण म वण क यित स े कुल बीस वण होते है | अत म एक लघ ु एक ग ु का
म होता ह ै | यह िवश ेषता कौन स े छंद क ह ै ?
उर - घनारी छ ंद
७.८ संदभ ंथ
१) छंद काश – ी. रघुनंदन शाी
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