Paper-No.-9-आधुनिक-गद्य-munotes

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प्रेमचंद कृत गोदान : कथावस्तु
इकाई की रूपरेखा
१.० इकाई का उद्देश्य
१.१ प्रस्तावना
१.२ लेखक पररचय
१.३ गोदान : कथाव स्तु
१.४ साराांश
१.५ वैकल्पपक प्रश्न
१.६ लघूत्तरीय प्रश्न
१.७ बोध प्रश्न
१.८ अध्ययन हेतु सहयोगी पुस्तकें
१.० इकाई का उद्देश्य ‘गोदान ’ प्रेमचांद का सववश्रेष् ठ उप्‍ या स है इ इस उप्‍ यास में रारतीय रामामीण वीवन का ासा
यथाथव और प्रामाल्ण क ल्चत्रण हुआ है ल्क इसकी सरी ने सववत्र सराहना की है इ रामाम् य वीवन
का सवीव ल्चत्रण प्रस् तुत करने की ष्ल्ष् से यह उप्‍ यास ल्वश् व साल्ह्‍ य में अपनी तरह की
अकेली रचना है इ यही कारण है ल्क ‘गोदान ’ को रामामीण वीवन का महाकाव् य कहा वाता है इ
इस इकाई के माध् यम से ल्व्ाल्थ यों को उप्‍ या स कथावस् तु की वानकारी दी वाीगी इ
इसके साथ ही साथ कथावस् तु के माध् यम से ल्व्ाल्थव यों में यह समझ ल्वकल्सत करने की
चेष् ा होगी ल्क आल्ख रकार यह उप्‍ या स ल्वश् व साल्ह्‍ य में कैसे और ्‍ यों सल्म् म ल्लत है इ इसे
्‍ यों सववश्रेष् ठ उप्‍ या सों की कोल् में रखा गया है इ इस इकाई का यही मु‍ य उद्देश् य है इ
१.१ प्रस्तावना ‘गोदान ’ प्रेमचांद का अांल्तम पूणव उप्‍ यास है ल्वसका प्रकाशन सन् १९३६ में हुआ था इ यह
उप्‍ या स प्रेमचांद की सव््‍ कृष् रचना है इ इस उप्‍ यास में इ्‍ हे ल्कसान ीवां मवदूर वीवन
को बहुत सूक्ष् मता सें अांल्कत करने में पूरी सललता ल्मली है इ गोदान उप्‍ यास में आरम् र से
लेकर अ्‍ त तक रारतीय ल्कसान की दूदवशा को अ्‍ य्‍ त सवीवता , वीव्‍ त ता और
यथाथवपरक शैली में उठाया गया है इ उप्‍ यास का मु‍ य कथानायक या पात्र होरी पूरी तरह
से रारतीय ल्कसानों का प्रल्तल्नल्ध्‍ व करता है इ यह उप्‍ यास ‘गोदान ’ महज़ होरी वैसे पात्र
की व् य था कथा नह है बल्प क यह सांपूणव रारतीय ल्कसान की त्रासदपूणव पररल्स् थ ल्तयों,
मनोदशाओां, वववर आल्थवक-सामाल्वक झांझावातों का वीता-वागता , सवीव दस् ता वेज़ है वो
यह प्र्‍ य क्ष ूपप से दशावया है ल्क रारत का कृषक ऋण में ही पैदा होता है, ऋण में ही
आवीवन वीवन व् य तीत करता है और वृ्ावस् था तक वब तक वह वील्वत रहता है कवव munotes.in

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2 का रोर या बोझ उठाी काल (मौत) के मुुँह में समा वाता है, यही नह अपने बच् चों के ल्ली
ल्वरासत के ूपप में री रारी-र्‍ कम कवव ोो़ वाता है इ इस प्रकार रारतीय ल्कसान
अरावों ीवां सांघषों का सामना वीवन रर करते हुी अपनी साधारण-सी इच् ोा -आकाांश को
री पूरी नह कर पाता, अपनी अधूरी इच् ोा ल्ली शरीर ोो़ देता है इ इस उप्‍ यास का
मु‍ य पात्र होरी अपने सारे गुण-अवगुण और शल््‍ त के साथ रारत देश का ल्कसान है इ होरी
की ीक ोो ी -सी इच् ोा -आकाांक्ष ा थी ल्क वह ीक गाय पाले इ गरीबी से त्रस् त वह ल्कसान
अपनी इस अल्र लाषा (इच् ोा ) की पूल्त व करने के ल्ली अनेक य्‍ न करता है, झूठ री बोलता
है, अनेक-अनेक परेशाल्नयों से री ल्घर वाता है पर्‍ तु ल्लर री अपनी इच् ोा का शव अपनी
मृ्‍ यु तक ढाता रहता है इ इस उप्‍ यास में इ्‍ ह तय यों को बहुत सांवीदगी ीवां माल्मवकता से
दशावया गया है इ
१.२ लेखक पररचय मुांशी प्रेमचांद ल्ह्‍ दी के सववश्रेष् ठ उप्‍ या सकार , कहानीकार थे इ इनका व्‍ म बनारस के
ल्नक लमही नामक रामाुँव, उ्‍ तरप्रदेश में ३१ वुलाई सन् १८८० में हुआ था इ इनका
वास् तल्वक नाम धनपत राय था और लोग इ्‍ हें नवाब राय के नाम से पुकारते थे इ इनके
ल्पता का नाम अवा यब राय और माता का नाम आन्‍ दी देवी था इ पररवार की आल्थव क
ल्स् थ ल्त मध् य वगव-सी थी इ अत: उनका वीवन अराव और गरीबी में ही बीता इ अपनी माता
की मृ्‍ यु के पश् चात सौतेली माता के रूरूर व् यवहार से सांघषव करते प्रेमचांद के र से ल्पता
का साया री उठ गया इ सौतेली माुँ, उनके सौतेले राई-बहनों और प्‍ नी समेत सबकी
ल्वम् मेदारी असमय ही उनके कांधों पर आ गई थी, ल्वसका ल्नवहवन करते हुी उ्‍ होंने ल्कसी
री तरह से सांघषव करते हुी, वववर आल्थवक ल्स्थल्त से गुवरते हुी अपनी पढाई पूरी की इ
यही कारण है ल्क उनके साल्ह्‍ य में रारतीय गरीबों-मवदूरों की ममाव्‍ तक पी़ ा और त्रासदी
को रली -राुँल्त अ्‍ य्‍ त सूक्ष् मता से दशावया है इ
उनका पहला ल्ववाह अनमेल था वो ल्क ल्कसी मवबूरी के कारण सांप्‍ न हुआ था इ प्‍ नी का
व् यवहार उनके ्रददय को वेधने वाला ल्बप कुल असांतोषवनक था इ पहली प्‍ नी को ्‍ या गने
के पश् चात उनका ल्ववाह सन् १९०५ में ल्श वरानी देवी के साथ सांप्‍ न हुआ वो ल्क उस
व्‍ त महव ्‍ या रह वषव की थ इ ल्श वरानी देवी अध् ययनशील प्रवृल््‍ त की थ , पल्त के साथ
रहकर लेखन कला में री ल्नपूण हो गई थ इ उ्‍ होंने सन् १९४४ में ‘प्रेमचांद घर में’ नामक
पुस् तक प्रका ल्शत करायी थी ल्वसका अध् य यन करके प्रेमचांद के व् यल््‍ त ्‍ व को और अल्धक
ल्नक से वाना वा सकता है इ
मुांशी प्रेमचांद अपने लेखन के आरांल्रक ल्दनों में नवाब राय के नाम से उदूव में खा करते थे इ
इनकी पहली कहानी ‘सांसार का सबसे अनमोल र्‍ न’ कानपूर से ल्नकलने वाली पल्त्रका
‘वमाना ’ में प्रकाल्शत हुई थी इ त्‍पश् चात इनकी अनेक कहाल्नयाुँ उदूव में ही ‘सोवेवतन’
शीषवक कहानी सांरामह के रुप में प्रकाल्शत हुई इ इ्‍ हों ने उदूव राषा में कुल ल्मलाकर लगरग
१७८ कहाल्नयाुँ ल्लख ल्वनका बाद के ल्दनों में ल्ह्‍ दी समेत अ्‍ य देशी-ल्वदेशी राषाओां में
अनुवाद हुआ इ इन कहाल्नयों में खाके परवाना, प्रेम पचीसी, प्रेम ब्‍ तीसी, प्रेम चालीसा,
ल्लरदोसये ‍ याल, वादेराह, दूध की कीमत, वारदात , नवात वैसी कहाल्नयाुँ शाल्मल हैं munotes.in

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प्रेमचांद कृत गोदान : कथाव
3 ल्वनमें त्‍ कालीन सामाल्वक पररवेश, रामाम्य वीवन और वहाुँ की अनेक-अनेक मुद्दों पर
आधाररत पररस् ल्थ ल्तयों को अ्‍ य ्‍ त यथाथवपरक ूपप में ल्द खाया गया है इ
प्रेमचांद ने महावीर प्रसाद ल्िवेदी की प्रेर से सन् १९१६ में ल्ह्‍ दी साल्ह्‍ य वगत में
पदापवण ल्कया और इसके बाद अनवरत ल्ह्‍ दी में ही आवीवन ल्लखते रहे इ
प्रेमचांद के सांबांध में ीक और तय य वानना आवश् यक है ल्क उदूव में ल्लल्खत उनके कहानी
सांरामह ‘सोवेवतन’ को वो ल्क सन् १९०७ में प्रकाल्श त हुआ था , उसे अांरामेवों ने ज़ब् त कर
ल्लया था ्‍ यों ल्क इस कहानी सांकलन की कहाल्नयाुँ रारत की स् वात्‍ ्य रावना , देश प्रेम
से ओतप्रोत थ इ कहाल्नयों में स् वाधीनता की रावना की अल्तशयता होने के कारण ही उसे
अांरामेवों ने वब् त ल्कया था इ काला्‍ त र में प्रेमचांद ल्ह्‍ दी में ‘प्रेमचांद’ उपनाम से ल्लखने लगे
और उनका यह उपनाम ही ्‍ दी कथा साल्ह्‍ य में अवर-अमर हो गया , वो ल्क अनाल्द
काल तक चलता रहेगा इ
इनकी पहली कहानी ‘पांच परमेश् वर’ सन् १९१ ६ में प्रकाल्श त हुई थी और अांल्तम कहानी
‘कलन ’ सन् १९३६ में प्रकाल्श त हुई थी इ इन बीस वषों में प्रेमचांद ने लगरग ३०० से
अल्ध क कहाल्नयों की रचना की , वो ल्क ‘मान सरोवर ’ के आठ खांडों में सांकल्लत हुई हैं इ
प्रेमचांद ल्वतने उ्‍ कृष् कहानीकार हैं उतने ही महान उप्‍ यास कार री हैं इ इनके ल्वषय में
ीक स् था न पर आचायव हवारी प्रसाद ल्िवेदी ने इनके साल्ह्‍ य का मूप याांकन करते हुी ल्लखा
है – ‘प्रेमचांद शताल्ब् द यों से पददल्लत, अपमाल्नत और उपेल्क्ष त कृषकों की आवाव थे इ अगर
आप उ्‍ त र रारत की समस् त वनता के आचार-ल्वचार , राषा-राव, रहन-सहन, आशा-
आकाांक्ष ा, दुख-सुख और सूझ-बूझ वानना चाहते हैं तो प्रेमचांद से उ्‍ तम पररचायक आपको
नह ल्मल सकता इ ’
प्रेमचांद अपने युग में अपनी महान प्रल्तरा के कारण युग प्रवतवक के ूपप में वाने वाते हैं इ
ासा पहली बार हुआ था ल्क उनके उप्‍ यासों में आम वन मानस की पी़ ा, त्रासदी और
यथाथव को अ्‍ य्‍ त प्रामाल्ण क और वास् त ल्वक ूपप में दशावया गया था, आम वनता की
अांतहीन समस् याओां को व् यापक ूपप में कला्‍ मक अल्रव् य ल््‍ त प्रदान ल्कया गया था इ
वास् तव में सच् चे अथों में प्रेमचांद ने ही ल्हांदी उप्‍ यास ल्शप प को ल्वकल्सत ल्कया था इ इनके
उप्‍ या स अनमेल ल्ववाह, ल्वधवा ल्ववाह , दहेव प्रथा, ल्कसान समस् या , राष् रीय आ्‍ दो लन,
वगव वैषम् यता, वम दारी प्रथा , शोषण , रारतीय सांस् कृल्त, मानवतावाद , वाल्तगत -वगवगत
रेदराव वैसी तमाम सामाल्वक ल्वसांगल्तयों, ल्वडांबनाओां और ल्वकृल्तयों पर आधाररत हैं इ
इनके िारा रल्चत मु‍ य उप्‍ या स हैं – सेवासदन (१९१८ ई.), प्रेमाश्रम (१९२२ ई.),
रांगरूल्म (१९२५ ई.), कायाकप प (१९२६ ई.), ल्नमवला (१९२७ ई.), गबन (१९३१ ई.),
कमवरूल्म (१९३३ ई.), और गोदान (१९३ ६ ई.) इ
प्रेमचांद ने ल्ह्‍ दी कथा साल्ह्‍ य को मनोरांवन के स् तर से ऊपर वीवन-वगत से वो़ ने का
कायव ल्कया इ इ्‍ होंने ‘सेवासदन’ उप्‍ या स में शादी-ब् याह से सांबांल्ध त समस् या ओां मसलन
दहेव प्रथा, कुलीनता का प्रश् न, प्‍ नी का स् था न आल्द को अ्‍ य ्‍ त अलग ढांग से उठाया है इ
‘ल्नमवला’ उप्‍ या स में इ्‍ होंने दहेव प्रथा, अनमेल ल्ववाह से वु़ ी समस् या ओां को उठाया है इ
‘कायाकप प ’ उप्‍ या स पुनवव्‍ म पर आधाररत है, ‘गबन’ में ल्स् त्र यों के आरूषण प्रेम के munotes.in

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4 दुष् पररणामों का ल्चत्रण है, ‘रांगरूल्म’ उप्‍ या स में शासक वगव के अ्‍ याचारों का ल्चत्रण है तो
वह ‘ मवरूल्म’ उप्‍ या स में स् वतांत्रता सांरामाम की ीक झलक है इ रामामीण कृषक वीवन की
समस् या ओां का यथाथव ल्चत्रण इ्‍ होंने ‘प्रेमाश्रम’ और ‘गोदान ’ में ल्कया है इ गोदान इनका
सववश्रेष् ठ उप्‍ या स है इ प्रेमचांद के उप्‍ यासों में रामामीण वीवन में व् याप् त सूक्ष् म से सूक्ष् मतम
समस् या ओां वैसे ल्क समाव में व् याप् त ोुआोूत, वाल्तगत -वगवगत रेदराव, साप्रदा कता,
ल्ववाह से वु़ ी समस् याीुँ आल्द अनेक मुद्दों को अ्‍ य्‍ त वीव्‍ त और सवीवता से
अल्र व् य्‍ त ल्कया गया है इ ल्वषयवस् तू और ल्शप प गत दोनों ही ष्ल्ष् से प्रेमचांद के समकक्ष
ल्ह्‍ दी का अ्‍ य कोई उप्‍ या सकार ख़ ा नह ल्क या वा सकता है इ ल्वरले ही यदा-कदा कोई
साल्ह्‍ य कार ही प्रेमचांद वैसे व्‍ म लेते हैं इ यही कारण है ल्क प्रेमचांद को ‘उप्‍ या स सरा ’
की उपाल्ध से सम् माल्नत ल्कया वाता है इ उ्‍ होंने अपनी अदम् य लेखनी से ल्ह्‍ दी उप्‍ या स
में ीक नये युग का सूत्रपात ही नह ल्कया, वरन् उसे ल्वकल्सत करने में री सलल हुी हैं इ
यही कारण है ल्क प्रेमचांद के नाम पर ही ीक अवीध को ‘प्रेमचांदयुगीन ल्ह्‍ दी उप्‍ या स’ या
‘प्रेमचांदयुगीन ल्ह्‍ दी कहानी ’ ‘प्रेमचांदयुगीन साल्ह्‍ य’, ‘प्रेमचांदो्‍ तर साल्ह्‍ य ’ आल्द कह कर
सांबोल्धत ल्कया वाता है इ प्रेमचांद का ल्नधन ८ अ बर, १९३६ में हुआ था इ
इस प्रकार प्रेमचांद की गणना ल्वश्वस् तरीय कथाकारों , उप्‍ या सकारों गोकी , ॉलस् ॉ य,
ल्डके्‍ स, चेखव, मोपासाुँ तथा ओ’हेनरी वैसे अ्‍ तरराष् री य साल्ह्‍ य कारों से होती है इ
१.३ गोदान : कथावस्तु रामाम् य वीवन का सवीव ल्चत्रण प्रस् तुत करने की ष्ल्ष् से प्रेमच्‍ द िारा रल्चत उप्‍ या स
‘गोदान ’ ल्वश् व साल्ह्‍ य में अपना ीक मह्‍ ्‍ वपूणव स् थान रखता है इ इस उप्‍ यास की
कथावस् तु या वस् तु योवना सांल्क्ष प् त में कुो इस प्रकार है:
इस उप्‍ या स का कथानायक होरी अवध प्रा्‍ त के बेलारी गाुँव का ीक ल्कसान है ल्वसके
पररवार में उसकी प्‍ नी धल्नया , सोलह वषीय बे ा गोबर और दो पुल्त्रयाुँ सोना और ूपपा हैं इ
हालाुँल्क होरी और धल्नया की कुो ोह: स्‍ तानें हुईां थ लेल्कन उनमें से तीन बच् चे अ्‍ य ्‍ त
अप प समय में ही इलाव के अराव में गुवर गी इ होरी के दो राई री हैं वो अपने-अपने
पररवार के साथ रहते हैं इ राइयों के साथ वब से बुँ वारा हुआ था, तब से होरी की आल्थवक
दशा और अल्धक वववर हो गई थी ्‍ योंल्क बुँ वारे में राईयों की बईमानी का ल्शकार बन
चुका होरी इसे अपनी ल्नयत समझकर पररल्स् थ ल्तयों से वूझता रहता है इ
होरी के प़ ोस में रहने वाला पररवार रोला का है ल्वसके साथ उसकी ल्वधवा बे ी रहती है
झुल्नया और रहती है ीक सु्‍ दर सी गाय इ होरी के मन में ीक गाय रखने की खूब लालसा
हैइ होरी वब-वब रोला की गाय को देखता है उसकी इच् ोा और अल्ध क बलवती हो वा
है इ वह रोला से बात त करके ल्कसी तर ह से सौदा प ाता है और पररणामत: अपने ल्पता
के ल्नदेश पर गोबर रोला के घर उससे गाय ले आने के ल्ली पहुुँचता है इ वहाुँ वह रोला की
वैधव् यता का ती युवती बे ी झुल्नया को देखता है इ रोला और झुल्नया दोनों ीक दूसरे को
देखकर पहली नज़र में ही ीक दूसरे के प्रेमपाश में बुँध वाते हैं इ munotes.in

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प्रेमचांद कृत गोदान : कथाव
5 गोबर वब गाय को लेकर घर आता है तो उसे देखने के ल्ली उसके सरी राई ब्‍ धु, प़ ोसी
और अ्‍ य गाुँव वाले आते हैं लेल्कन उसका ीक सगा राई हीरा और उसकी प्‍ नी पुल्नया
दोनों नह आते ्‍ योंल्क वे ईष् यावल््‍ न में वलते रहते हैं इ
दरअसल होरी ने रोला से इस आश् वासन पर इस गाय का सौदा प ाया था ल्क होरी , अधे़
उर के रोला का ल्ववाह करवाीगा और रोला उस बदले में अपनी गाय दे देगा इ धीरे-धीरे
होरी उस गाय के ८० ूप. रोला को चुका देगा इ इस तरह से दोनों की इच् ोाीुँ-लालसाीुँ पूरी
हो वाीुँगी इ होरी अपने खूुँ े पर गाय बाुँधने, उसकी सेवा करने की तीव्र इच् ोा की पूल्तव के
ल्ली ीक स् त्री को आधार बनाता है इ हालाुँल्क इस समाव में ीक स् त्री की तूलना गाय से ही
की गई है ल्वसे ल्वसां खूुँ े पर बाुँध ल्दया वाी, वह वह प़ ी रहेगी इ गाय की री यही ल्स् थल्त
है इ दोनों को वहाुँ बाुँध ल्दया वाी वे कुो प्रल्तरोध नह कर सकत , उ्‍ हें मवबूरी में वह
रहना ही प़ ता है इ
होरी के घर पर वब से यह गाय आयी है तब से गाुँव वालों के मन में उसके प्रल्त ईष् याव की
रावना बढ वाती है इ होरी के मन की इच् ोा इतनी आसानी से कैसे पूरी हो गई, यह बात
गाुँव वालों को हवम नह होती है इ आषाढ के महीने में बरसात शुूप होने के बाद वम दार
का यह सांदेशा आता है ल्क वब तक लगान की बकाया रकम नह चुक वाीगी तब तक कोई
री ल्कसान खेत में हल लेकर नह वाीगा, कोई खेत वोतने नह वाीगा इ वम दार के इस
फ़रमान को सुनने के बाद होरी लगान चुकाने के ल्ली महावन गरी ल्सांह के पास कवव लेने
पहुुँचता है इ गाुँव के इस सा कार ल्झांगुरी ल्सांह की री ल्ग् ष्ल्ष् होरी की गाय पर रहती है इ
तब होरी उससे कवव माुँगने वाता है तो गुरी महावन उसके सामने गाय उसे देने का
प्रस् ताव रखता है इ होरी का पररवार काली ल्वचार मांथन करने के बाद यह ल्नणवय लेता है ल्क
वे लोग इस गाय को गुरी ल्सांह को कदाल्प नह देंगे इ इसी बीच होरी के राई हीरा की
धल्नया के साथ ल्कसी बात पर कहा-सुनी हो वाती है इ रूरोध िेष और ईष् याव से धधकता
हीरा उस रात होरी की गाय को वहर ल्खलाकर गाुँव से राग वाता है इ धल्नया और होरी
अ्‍ य्‍ त क्ष ुब् ध दुखी व चोल् ल होते हैं इ होरी के गाय पालन का स् वप् न, स् वप् न ही रह वाता हैइ
होरी अपने राई के ल्वूप् ीक शब् द री बोलना उल्चांत नह समझता पर्‍ तु धल्नया शा्‍ त
नह होती इ वह हांगामा ख़ ा कर देती है इ गाय की सांल्द्‍ ध मृ्‍ यु की सूचना थानेदार को
ल्मलती है और थानेदार वाुँच-प़ ताल करने के ल्ली आता है इ होरी धल्नया की बातों को
बहुत मह्‍ ्‍ व करी नह देता है इ उसे लगता है ल्क थानेदार के इस तरह से वाुँच प़ ताल
करने से उसके अपने पररवार और कुल खानदान की इज् वत ल्म्ी में ल्मल रही है इ महावन
ल्झांगुरी ल्सांह री होरी को सलाह देता है ल्क वह पुल्लस को ररश् वत वगैरह देकर इस मामले
को ल्नप ा दे इ गुरी ल्सांह के इस परामशव के पीोे कारण यह री था ल्क गाय की ह्‍ या
करने के ल्ली उ्‍ हें री क घरे में रखा वा सकता था इ महावन की सलाह से प्रराल्वत होरी
गाय की मृ्‍ यु के मामले को रला-दला करने का प्रय्‍ न करता है इ लेल्कन धल्नया इस प्रपांच
का घोर ल्वरोध करते हुी थानेदार समेत गाुँव के अ्‍ य लोगों को बहुत खरी -खो ी सुनाती है,
उनकी बेइज् वत करती है इ गाुँव के शोषक वगव के लोगों के मन में यह बात गाुँठ बुँध वाती है
और वे होरी से बदला लेने की योवना बनाने लगते हैं इ और मौके की तलाश में वु वाते हैंइ
इधर गोबर और रोला की ल्वधवा नवयुवती बे ी झुल्नया का प्रेम-प्रांसग परवान चढता है इ
गाुँववालों में इसकी च ीुँ होने लगती हैं इ गोबर पर झूठे लाांोन लगने लगते हैं इ गोबर के munotes.in

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6 ल्पता होरी को वाल्हर है ल्क ये बातें अच् ोी नह लगती इ ीक तरल असय आ आल्थवक वववरता,
तो दूसरी तरल सामाल्वक ूपप से आरोप-प्र्‍ यारोप और लाांोन इ
इसी बीच लसल पकती है इ खेत-खल्लहान अ्‍ न से रर वाने पर कुो ल्दनों के ल्ली सारी
ल्च्‍ ता ीुँ माना गायब हो वाती हैं, सबका मन खुल्शयों से रर उठता है इ लेल्कन होनी को कुो
और ही मांवूर होता है इ उनकी सारी खुल्शयाुँ कालूर हो वाती है इ झुल्नया गरववती हो वाती
है इ गोबर उसे अपने घर ले आता है इ होरी इसका प्रल्तरोध करता है लेल्कन प्‍ नी धल्नया ,
झुल्नया की ल्स् थ ल्त से अवगत होने के बाद; ल्वसका हाथ उसके बे े ने पक़ ा है, उसे बहू के
ूपप में स् वीकार करती है इ धल्नया बाद में होरी को री झुल्नया को अपनाने के ल्ली रावी
करती है इ
झुल्नया ल्वधवा युवती थी वह री दूसरे वा की इ गाुँव में ल्वधवा ल्ववाह और अ्‍ तवावतीय
ल्ववाह के ल्ख लाफ़ आवाव उठती है इ होरी से बदला लेने की तलाश में बैठे लोगों को मौका
ल्मल वाता है इ इस मुद्दे को और अल्धक उोाल कर पांचायत बैठायी वाती है इ ल्वसमें गाुँव
के शोषकों और धल्नया के बीच वमकर पुन: तकव-ल्वतकव होता है इ वह अपने साथ हो रहे
अ्‍ या य-अ्‍ या चार का खुला ल्वरोध करती है इ लेल्कन उसकी बातों का ल्कसी पर कोई लकव
नह होता इ गरववती ल्वधवा झुल्नया को अपनाने के कारण होरी पर गाुँव की पांचायत
वबरदस् त वुमावना लगाती है – सौ ूपपये नकद और तीस मन अनाव इ इतना वुमावना होरी
रला देगा री तो कैसे देगा ? तीन मन अनाव दे देगा तो पररवार को ल्खलाीगा ्‍ या ? सौ
ूपपये कहाुँ से ले आीगा ?
इस दांड को ररने के ल्ली गरीब होरी अपना सारा अनाव ल्झांगुरी ल्सांह की चौपाल पर रख
आता है और सौ ूपपये नकद वुमावना को ररने के ल्ली अपना मकान री ल्गरवी रख देता हैइ
इन तमाम ल्वषम पररल्स् थ ल्तयों से पररवार को सांघषव करते देखकर गोबर मवदूरी करने
लखनऊ चला वाता है इ होरी की आल्थव क वववरता अपनी सारी पराकाष् ठाीुँ पार कर वाती
हैं इ इधर रोला री ल्वससे उसने गाय खरीदी थी, ूपपयों के ल्ली तकादा करता रहता है इ
गाय पालने की लालसा में होरी इस कदर लुँस चुका था ल्क लाख प्रयास करके री वह
चरूरव् यूह से बाहर नह ल्नकल पा रहा था इ रोला, गाय की कीमत के बदले होरी के उन बैलों
को ल्वनसे वह अपना खेत वोतता था, उसको खोलकर ले वाता है इ लाचार और मवबूर
होकर होरी वो पहले खुद खेती करता था, अब दातादीन पांल्डत उसके समक्ष आधी लसल
की शतव पर खेतों की बुवाई-वोताई करवाने का प्रस् ताव रखता है इ होरी इस शोषण के प्रल्त
ल्वद्रोह करना तो चाहता है पर्‍ तु बेदखली के डर से वह प्रस् ताव स् वी कार कर लेता है
ल्वससे वह और अल्ध क दयनीय दशा , कष् दायक दशा में पहुुँच वाता है इ पांल्डत दातादीन
के साथ साझे में ब ाई खेतों से उसका गुवारा कैसे होगा, वह समझ नह पाता इ साझे की
इस खेती में उसके ल्हस् से में री वो ईख की लसल आती है उसे री साहूकार और लेनदार
ह़ प लेते हैं इ होरी के रा्‍य की ासी ल्व़ म् बना ही है ल्क वह देखते-देखते ीक ल्कसान से
बां ाईदार और बां ाईदार से ीक मवदूर बन वाता है इ घर चलाने के ल्ली, प्‍ नी बच् चों को
ल्व्‍ दा रखने के ल्ली गाुँव के अनेक लोगों से कुो-न-कुो ूपपये-पैसे उधार लेता रहता है इ
मूल र्‍ कम पर सूद की क ल्दन-पर-ल्दन चढती वाती हैं इ ीक ऋण को चुकता र नह
ल्कया ल्क उसे ल्कसी न ल्कसी कारण वश ीक नया ऋण लेना प़ ता है इ पांल्डत दातादीन के munotes.in

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प्रेमचांद कृत गोदान : कथाव
7 यहाुँ नौकरी करने लगता है इ यही नह , उसकी प्‍ नी धल्नया और बेल् याुँ सोना और ूपपा
री मवदूरी करने पर ल्ववश हो वाती हैं इ
गोबर मेहनत-मवदूरी करने शहर तो गया है पर्‍ तु वह इतना नह कमाता ल्क अपनी प
झुल्नया और बच् चे को साथ रखकर , अपनी गृहस् थी की गा़ ी ख च कर अपने दीन-हीन
ल्पता को कुो आल्थवक सहयोग कर सके इ अपने घर को इस ल्वक तम ल्स्थल्त से ल्नकाल
सके इ इस पर दो बेल् यों के ब् याह की ल्वम् मेदाररयाुँ अलग से थी इ
होरी अपनी ब़ ी बे ी सोना का ल्ववाह पैसे वाले ल्कसान मथुरा नामक व् यल््‍ त के साथ तय
करता है इ वह गाुँव की सहुवाइन से २०० ूपपी कवव लेता है और ल्ववाह करता है इ अपनी
ोो ी बे ी ूपपा का ल्ववाह अमीर लेल्कन बूढे रामसेवक से कर देता है और बदले में अपना
खेत बचाने के ल्ली रामसेवक से दौ सो ूपपये पुन: उधार लेता है इ अपनी बे ी के इन
अनमेल ब् याह से वह अ्‍ य्‍ त क्ष ुब् ध था इ इस ल्ववाह ने उसे ल्कसी तरह की कोई खुशी नह
दी, बल्प क वह मानल्सक कष् की पराकाष् ठा तक पहुुँच वाता है इ इस तरह की आल्थवक
वववरता की त्रासदपूणव ल्स् थल्त के सामने वह धमव, मयावदा की मवबूरीवश ्‍ या ग देता है
ल्वसके कारण वह बहुत कष् दायी दौर से गुवरता है इ अपनी अपार दररद्रता के कारण
उसके सोचने समझने की क्ष मता री प्रराल्वत होती है इ
दोनों बेल् यों को ब् याहने के बाद होरी अपना वीवन ल्कसी तरह से मेहनत मवदूरी करके
ल्बताने लगता है इ उसका शरीर अ्‍ य्‍ त दुबवल-क्ष ीण हो चुका है ल्वसके कारण वह अल्धक
पररश्रम करने में असक्ष म है इ
गमी के नों में मवदूरी करते होरी को लू लग वाती है इ खेत से लाद कर उसे घर लाया
वाता है इ वह स् तर पर अलस् त प़ वाता है इ गाुँव-देहात में लू लगने के ल्ली इलाव कराने
का प्रश्न तो तब उठता है न, वब इलाव के ल्ली पैसे हों इ वैसे री गाुँव में इस बीमारी का लोग
देसी घरेलू उपचार ही करते हैं इ होरी की तल्बयत बद से बदतर होती वाती हैं इ पास-प़ ोस
के लोग, गाुँववाले, उसके राई-ब्‍ धु इकठे े हों वाते हैं इ प्‍ नी धल्नया का हाल रो -रोकर
बेहाल है इ वह कुो समझ नह पाती ल्क ्‍ या करे इ तर होरी का राई हीरा रोते हुी अपनी
रारी से कहता है ल्क होरी दादा अब सब को ोो़ कर वा रहे हैं, वप दी से उनका ‘गोदान ’
करवा दो इ
धल्नया राव -ल्वहवल अवस् था में कुो समझ नह पाती ल्क वह होरी का ‘गोदान ’ कराी री
तो कैसे ? उसके घर में री कुो नह है इ उस ल्दन उसे मवदूरी में बीस आने (सवा ूपपये)
ल्मले थे इ वह ये सवा ूपपये अपने पल्त होरी के हाथ पर रखकर पांल्डत दाताहीन से कहती है
ल्क "घर में न गाय है, न बल्ध या, न पैसा इ महाराव यह वो कुो है, यही इनका गोदान है इ"
धल्नया की यह उ ल््‍ त याुँ अ्‍ य्‍ त ममाव्‍ त ूपप से अल्रव् यल््‍ त पाकर ‘गोदान ’ पुस् तक के
शीषवक की साथवकता, प्रासां ता को प्रामाल्णक करती हैं इ
गोदान में रामाम् य वीवन की प्रधानता प्रचुरता और व् यापकता तो है ही ले न इसके साथ-
साथ नगर वीवन से री सांबांल्धत ीक समाना्‍ तर कथा उपलब् ध है इ प्रेमचांद ने यहाुँ दशावया
है ल्क शहरी वीवन में मध् यवगव अपनी वृल्् शीलता का अनावश् य क प्रदशवन करता है इ झूठे
खोखले खावापन से मध् यवगव को बहुत लगाव है वो ल्क उनके पतन का ही कारण है इ श्री munotes.in

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8 मान कौल वो ल्क मालती के ल्पता हैं अपनी सामाल्वक प्रल्तष् ठा का झांडा गा़ ने और अपनी
उदारता को वगवाल्हर करने के ी वे अपनी बेल् यों को पढने के ल्ली इां्‍ लैड रेवते हैं इ
इधर अथाह खचव, अल्नयांल्त्रत शराब की लत और अल्तशय ल्दखावा करने के कारण कवव में
डूबते चले वाते हैं इ वे बढते कवव के साथ-साथ बढती तनाव -रामस् तता के कारण लकवा-रामस् त
हो वाते हैं और शारीररक ूपप से पूरी तरह अश्‍ त, असक्ष म होकर कष् कारी ल्व्‍ द गी वीने
पर मज़बूर हो वाते हैं इ उस दौरान वब वे लकवे के ल्श कार हुी थे तो उनकी बे ी मालती
इां ड में ही पढ रही थी इ उप्‍ यास में मालती की कथा वैसे-वैसे आगे बढती है वैसे शहरी
वीवन से वु़ े अनेक मुद्दों का साक्ष ा्‍ कार होता है इ उदाहरण स् वूपप स् त्री -स् वत्‍ त्रता, स् त्री-
पुूपष के समान अल्धकार, प्रेम ल्ववाह, पल्त-प्‍ नी की ल्वम् मेदाररयाुँ, राष् रीय चेतना,
पाश् चा ्‍ य अनुकरण के दुष् प्रराव, धाल्म वक ीवां आध् याल््‍ म क रावनाीुँ आल्द का ल्चत्रण प्रेमचांद
ने अ्‍ य्‍ त सललता से ल्कया है इ इस प्रकार, उप्‍ या स की कथा वस् तु यह समाप् त होती है इ
१.४ सारांश ‘गोदान ’ प्रेमचांद की महानतम उपलल्ब् ध है इ इस उप्‍ यास में इ्‍होंने उस समय के त्‍ कालीन
समाव के सरी वगों का सवीव ल्चत्राांकन ल्कया है इ गोदान का मु‍ य पात्र होरी और पात्रा
धल्नया वहाुँ ीक तरल ल्कसान-मवदूर वगव का प्रल्तल्नल्ध्‍ व करते हैं तो वह वे अपनी
व् यल््‍ त गत स्‍ ता को री बनाी हुी हैं इ प्रेमचांद इन पात्रों की अभुतुत सांरचना से वहाुँ उन गरीब
ल्कसानों -श्रल्मकों -बांधुवा मवदूरों के साथ होने वाले शोषण का सवीव ल्चत्र उतारने में सलल
हुी हैं तो वह तमाम शोषकों वम दारों, ल्मल मा ल्लकों , सूदखोर साहूकारों, पुल्लस, प वारी ,
धाल्मवक ठेकेदारों को ल्चत्राांल्कत करने में री उतने ही सलल हुी है इ
इस उप्‍ या स में प्रेमचांद ने दशावया है ल्क गोदान का होरी मन से उदार है पर्‍ तु वहाुँ पुराने
सांस् कारों ने उसे ीक तरल धमव रीूप बना ल्दया है तो वह वम दारी प्रथा -महावनी सभ् य ता
ने उसे अ्‍ य्‍ त दररद्र , कमवोर , सववहारा, बनाने के साथ ही साथ झूठा, बेईमान, बे ी बेचने
वाला नीच और सांकीणव बनने पर मवबूर कर ल्दया है इ अपनी ीक ोो ी-सी इच् ोा पूरी करने
के ीवव में उसे पूरी ल्व्‍ दगी रारी कीमत चुकानी प़ ती है इ वह ल्वषमतम-ल्वक तम
पररल्स् थ ल्तयों के आगे अपना सबकुो हार वाता है, मवबूररयों की मार से ू अवश् य वाता
है पर्‍ तु झुकता नह है इ वह अांत तक अ्‍ तहीन असय आ अ्‍ या य अ्‍ या चार सहते हुी
पररश्रम के यज्ञ में अपने सांघषवमय वीवन की आहुल्त चढा देता है इ लेल्कन अपनी सामा्‍ य-
सी इ पूरी नह कर पाता इ
ल्नष् कषवत: कहा वा सकता है गोदान में रारतीय वन-वीवन की यथाथव झाुँकी अपनी तमाम
दुबवलताओां-सबलताओां के साथ ल्चल्त्रत है इ इस उप्‍ यास में त्‍ कालीन समाव में व्याप्त
ल्वसांगल्तयों-ल्वडांबनाओां और ल्वकृल्तयों का यथाथव ल्चत्रण हुआ है इ


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प्रेमचांद कृत गोदान : कथाव
9 १.५ वैकल्पपक प्रश्न प्रश् न.१) ‘गोदान ’ उप्‍ या स का प्रकाशन कब हुआ था ?
(क) १९३२ (ख) १९४३
(ग) १९१४ (घ) १९३६
उ्‍ तर: १९३६
प्रश् न.२) ‘गोदान ’ का प्रमुख पात्र कौन है?
(क) हीरा (ख) शोरा
(ग) होरी (घ) मालती
उ्‍ तर: होरी
प्रश् न.३) ‘गोदान ’ उप्‍ या स की मु‍ य स् त्री पात्र कौन है?
(क) धल्नया (ख) झुल्नया
(ग) मालती (घ) सोना
उ्‍ तर: धल्नया
प्रश् न.४) ‘गोदान ’ का होरी उप्‍ या स में ल्कसका प्रल्तल्नल्ध ्‍ व करता है?
(क) ल्कसान -मवदूर (ख) पूांवीपल्त
(ग) प वारी (घ) साहूकार
उ्‍ तर: ल्कसान -मवदूर
प्रश् न.५) होरी के मन में आवीवन कैसी लालसा बनी रहती है?
(क) वम दार बनने की (ख) अपने खूुँ े पर गाय पालने की
(ग) अमीर बनने की (घ) शादी करने की
उ्‍ तर: अपने खूुँ े पर गाय पालने की इ
प्रश् न.६) रामामीण वीवन का महाकाव् य ल्कस उप्‍ या स को कहा वाता है?
(क) गबन (ख) गोदान
(ग) कमवरूल्म (घ) रांगरूल्म
उ्‍ तर: गोदान munotes.in

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10 प्रश् न.७) गोबर घर की आल्थव क दशा को सुधारने के ल्ली मेहनत-मवदूरी करने कहाुँ वाता
है?
(क) लखनऊ (ख) बनारस
(ग) कलक्‍ ता (घ) मुांबई
उ्‍ तर: लखनऊ
प्रश् न.८) होरी दौ सौ ूपपये देकर ल्कससे अपनी बे ी ूपपा का ल्ववाह करता है?
(क) रोला (ख) रामसेवक
(ग) ल्झांगुरी (घ) मथुरा
उ्‍ तर: रामसेवक
प्रश् न.९) प्रेमचांद उदूव में ल्कस उपनाम से ल्लखते थे?
(क) नवाब राय (ख) प्रेमच्‍ द
(ग) अवायब राय (घ) धनपत राय
उ्‍ तर: नवाब राय
प्रश् न.१०) प्रेमचांद का अांल्तम पूणव उप्‍ यास कौन -सा है?
(क) गबन (ख) सेवासदन
(ग) रांगरूल्म (घ) गोदान
उ्‍ तर: गोदान
प्रश् न.११) प्रेमचांद की अांल्तम कहानी कौन-सी है?
(क) कफ़न (ख) ब़ े राई साहब
(ग) ईदगाह (घ) बूढी काकी
उ्‍ तर: कफ़न
प्रश् न.१२) प्रेमचांद के वीवन काल की अवल्ध कब से कब है?
(क) १८८० -१९३६ (ख) १८६० -१९४६
(ग) १८९० -१९३० (घ) १८७० -१९७०
उ्‍ तर: १८८० -१९३६
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प्रेमचांद कृत गोदान : कथाव
11 १.६ लघूत्तरीय प्रश्न प्र.१) प्रेमचांद की गणना ल्वश् व के ल्कन महान साल्ह्‍ यकारों से हुई है?
उ. प्रेमचांद की नती/गणना गोकी , ॉलस् ॉ य ल्ड के्‍ स, चेखव, मोंपासाुँ तथा ओ ’हेनरी
वैसे ल्वश् व स् तरीय साल्ह्‍ य कारों से हुई है इ
प्र.२) प्रेमचांद की ल्वश् वस् तरीय कुो कहाल्नयों के नाम बताइी इ
उ. शतरांव के ल्ख ला़ ी, ईदगाह , बूढीकाकी, नशा, लॉ री , ब़ े राई साहब, नमक का
दारोगा , पांच परमेश् वर, पररक्ष ा , मांत्र, ब़ े घर की बे ी इ्‍याल्द इ
प्र.३) प्रेमचांद के प्रमुख उप्‍ यासों के नाम ल्ख ी इ
उ. सेवासदन, गोदान , ल्नमवला, रांगरूल्म, कमवरूल्म, गबन, प्रल्तज्ञा , ूपठी रानी , प्रेमाश्रम,
कायाकप प , मांगलसूत्र आल्द इ
प्र.४) ‘गोदान ’ उप्‍ या स के मु‍ य पात्रों के नाम ल्लल्ख ी इ
उ. होरी, धल्नया , गोबर इ
प्र.५) ‘गोदान ’ का गोबर ल्कससे प्रेम सांबांध स् थाल्पत कर बाद में उससे ल्ववाह करता है?
उ. रोला की ल्वधवा नवयुवती बे ी झुल्नया से प्रेम करता है वो ल्क ल्कसी अ्‍ य वा
की रहती है इ गोबर के प्रेमसांबांध में वह गरववती हो वाती है, ल्वसके बाद गोबर उससे
ल्ववाह करता है इ
प्र.६) रोला ल्कस प्रवृल््‍ त का नवयुवक है?
उ. गोबर वम दारों , साहूकारों की सारी चालों , षडयत्रों को रली -राुँल्त समझता है इ वह
अपने ल्पता होरी की तरह रोला नह है इ इसल्ली अपने प्रल्तरोध को व् य्‍ त करता
हैइ वह व् य वस् था के प्रल्त ल्वद्रोह करने वाला या ल्वद्रोही प्रवृल््‍ त का है इ
प्र.७) रोला होरी िारा गाय की कीमत नह चुकाने पर ्‍ या करता है?
उ. रोला होरी के दरवावे से गाय की कीमत के बवाय उसके बैलों को खोलकर लेकर
वाता है इ ल्वससे वह खेती करता है, खेत वोतता है इ
प्र.८) होरी की गाय को कौन ज़हर देकर शहर राग वाता है?
उ. होरी का सगा राई हीरा गाय को ज़हर देकर शहर राग वाता है इ
प्र.९) रोला िारा बैल खोलकर ले वाने के बाद होरी ल्कसके साथ ब ाई पर खेती करना
शुूप करता है?
उ. बैल के न रहने पर होरी पां त दाता दीन के साथ साझे में ब ाई पर खेती करना शुरु
करता है इ munotes.in

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12 प्र.१०) ‘गोदान ’ उप्‍ या स की मालती ल्कस प्रवृल््‍ त की मल्हला है?
उ. मालती स् त्री -स् वतांत्रता को मानने वाली, खुले ल्वचारों की स् त्री है इ
१.७ बोध प्रश्न प्र.१) ‘गोदान ’ उप्‍ या स की कथावस् तु अपने शब् दों में ल्लल्खी इ
प्र.२) ‘गोदान ’ की वस् तु-योवना पर प्रकाश डाल्ली इ
प्र.३) ‘गोदान ’ को ल्कसानों का महाकाव् य ्‍ यों कहा वाता है? कहानी के आधार पर
ल्लल्खी इ
प्र.४) ‘गोदान ’ के मूल कय य की ल्ववेचना कील्वी इ
प्र.५) ‘गोदान ’ की ल्वषय -वस् तु पर प्रकाश डाल्ली इ
१.८ अध्ययन हेतु सहयोगी पुस्तकें १. प्रेमचांद और उनका युग – राम ल्वलास शमाव
२. साल्ह्‍ य का उद्देश् य – प्रेमचांद
३. प्रेमचांद – डॉ. स्‍ ये्‍ द्र (सां.)
४. प्रेमचांद का सांघषव – श्री नारायण पाांडेय
५. कलम का मवदूर – मदन गोपाल
६. कलम का पाही - अमृतराय
७. कलम का मवदूर: प्रेमचांद – रावेश् वर गुूप
८. कलाकार प्रेमचांद – रामरतन र नागर
९. कुो ल्वचार – प्रेमचांद
१०. गोदान : ीक पुनल्ववचार – परमानांद श्रीवास् तव
११. गोदान : नया पररप्रेक्ष् य – गोपाल राय
१२. साल्ह्‍ य का राषा ल्च्‍ त न – सां. वीणा श्रीवास् तव
१३. प्रेमचांद – सां. स्‍ ये्‍ द्र (‘प्रेमचांद’ में सांकल्लत डॉ. ल्त्र रुवन ल्सांह का ल्नबांध ‘आदश््‍ मुख
यथाथववाद’)
१४. प्रेमाश्रम – प्रेमचांद
१५. प्रल्तज्ञा – मुांशी प्रेमचांद
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13 २
ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
इकाई कì łपरेखा
२.० इकाई का उĥेÔय
२.१ ÿÖतावना
२.२ गोदान : चåरý िचýण
२.३ सारांश
२.४ वैकिÐपक ÿij
२.५ लघूÂ तरीय ÿij
२.६ बोध ÿij
२.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
२.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई का मु´य उĥेÔय है ‘गोदान’ उपÆयास के सभी पाýŌ के संबंध म¤ िवīािथª यŌ को
संपूणª जानकारी देना । कथा सािहÂय को सफलता के चरम तक पहòँचाने म¤ उसके पाýŌ का
चåरý अÂयÆत महßवपूणª होता है । ये पाý ही अपने समÖत गुणŌ-अवगुणŌ, िøया-कलापŌ,
कमō-कतÓयŌ, आदशŎ-िसĦांतŌ समेत सभी मानवीय ÿवृि°यŌ से कथा बुनते ह§ । उनकì
बुनावट, उनकì रचना िजतनी Óयापक, भÓय, उदार और उदा° होगी, वह कथा उतनी ही
ÿभावशाली बनेगी पठनीय, सुúाहय बनेगी । इसिलए उपÆयास के मु´य तÂवŌ म¤ एक
महßवपूणª तÂव है पाýŌ का चåरý–िचýण; िजनपर ÿकाश डालना इस इकाई का मु´य
उĥेÔय है ।
२.१ ÿÖतावना ÿेमचंद कृत ‘गोदान’ १९३६ म¤ ÿकािशत कृषक जीवन का महाकाÓय है । इस उपÆयास का
मु´य पाý होरी है िजसकì Óयथा-कथा यह दशाªती है कì वह िकस ÿकार एक िकसान से
मजदूर बन जाता है । होरी नाम का यह पाý उन तमाम वगŎ का ÿितिनिध Â व करता है जो
िवकटतम पåरिÖ थ ितयŌ का सामना करते हòए, असहय शोषण को सहते हòए िकसान से
मजदूर बनने के िलए िववश लाचार हो जाते ह§ । ‘गोदान’ उपÆयास म¤ मु´य पाý होरी के
अितåरĉ उसकì पÂनी धुिनया, उसका पुý गोबर, उसकì दो बेिटयाँ सोना और łपा, सोना
का पित मधुरा और łपा का पित रामसेवक है । इसके अितåरĉ होरी के दो भाई शोभा और
हीरा-पुिनया, हीरा का पåरवार, भोला, झुिनया, पंिडत दाता दीन, मातादीन, िझंगुरी िसंह,
िसिलया, खÆना, मालती, िमÖटर मेहता, गोिवÆ दी, सहòआइन, रायसाहब, िमÖटर मेहरा,
िमजाª खुश¥द, ओंकार नाथ, िमÖटर तंखा, खÆना साहब, पुिलस, अÆय गाँववाले इस
उपÆयास के ऐसे पाý ह§ जो अपनी-अपनी भूिमका से उपÆयास łपी नदी को िनरंतर munotes.in

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आधुिनक गī
14 गितशीलता, ÿवाहमयता ÿदान करते ह§ । इनम¤ कथा के ÿसंगानुसार कुछ पाý úामीण
पåरवेश से जुड¤ ह§ तो वहé कुछ शहरी आबोहवा म¤ रहते ह§ । िकसी भी रचना के िलए सफल
पाý योजना अÂयÆत आवÔयक ह§ । उनम¤ इन तÂवŌ का होना आवÔयक ह§ –
१) कथा के पाý यथाथª जगत से संबंिधत ह§ ।
२) उपÆयासकार को चåरý िचýण के दौरान िनÕप±, तटÖथ रहना अिधक आवÔयक है
तािक वह िकसी भी पाý के साथ प±पात न कर सके ।
३) पाý / चåरý–िचýण म¤ सुसंगित रहनी चािहए ।
४) पाýŌ कì गितशीलता आवÔयक है ।
५) पाýŌ का सजीव, Öवाभािवक और पाýानुकूल होना आवÔयक ह§ ।
६) चåरý – िचýण म¤ सुसंगित तालमेल सामÆजÖय होना आवÔयक ह§ ।
७) पाý अितमानवीय नहé होने चािहए या अमानवीय भी नहé होने चािहए ।
‘गोदान’ उपÆयास के पाý इन िसĦाÆतŌ और आवÔयकताओं के अनुłप ह§ । वे अÂयÆत
आदशªवादी, महज उदाý गुणŌ से युĉ नहé ह§ बिÐक उनम¤ अनेक किमयाँ या बुराइयाँ भी है
³यŌिक िबना िकसी दोष के अवगुण या कमी के मनुÕय कì कÐपना ही नहé हो सकती है ।
इस िवषय म¤ एक Öथान पर ÿेमचंद ने Öवयं कहा था – “चåरý को उÂकृĶ और आदशª बनाने
के िलए यह जłरी नहé है िक वह िनदōष हो । महान से महान पुłषŌ म¤ भी कुछ कमजोåरयाँ
होती ह§ । चåरý को सजीव बनाने के िलए उसकì कमजोåरयŌ का िदµदशªन कराने म¤ कोई
हािन नहé होगी । बिÐक यही कमजोåरयाँ चåरý को मनुÕय बना द¤गी । िनदōष चåरý तो देवता
हो जाएगा और हम उसे समझ ही न सक¤गे । ऐसे चåरý का हमारे ऊपर कोई ÿभाव नहé पड
सकता ।”
ÿेमचंद ने अपने पाýŌ कŌ गढ़ते समय मानवीय मूÐयŌ को एवं यथाथª पåरिÖथितयŌ के केÆþ
म¤ रखा । वे अपने पाýŌ को देवता नहé, बिÐक मनुÕय के łप म¤ दशाªते ह§ िजनम¤ गुणŌ के
साथ-साथ अनेक किमयŌ या दुगुªणŌ का भी समावेश है ।
उपÆयास म¤ मु´य पाý होरी िकसानŌ का ÿितिनिधÂव करता है । जो गुण-दोष एक सामाÆय
िकसान के अंदर होते ह§, होरी उन सभी गुण-दोषŌ से युĉ है । जैसे एक Óयिĉ अपनी करनी
का फल ही भुगतता है वैसे ही होरी समेत अÆय पाý भी अपने कमŎ का फल भोगते ह§ ।
उपÆयास म¤ राय साहब, जमéदार वगª का ÿितिनिधÂव करते ह§, िमÖटर मेहता बुिĦजीवी वगª
का ÿितिनिधÂव करते ह§, िमस मालती सुिशि±त, Öवतंý िवचारŌ वाली ľी वगª का
ÿितिनिधÂव करती ह§ तो वहé होरी का पुý गोबर ÿगितशील चेतना से युĉ नवयुवक वगª का
ÿितिनिधÂव करता है । झुिनया वैधÓ यता झेलती नवयुवितयŌ का ÿितिनिधÂ व करती है,
सूदखोर साहóकार का ÿितिनिधÂ व करता है िझंगुरी िसंह । ÿेमचंद गोदान समेत अपने अÆय
उपÆयासŌ म¤ छोटे-से-छोटे पाý को नजर अÆदाज नहé करते, अवहेलना नहé करते ह§ ।
हकìकत तो यह है िक ये सभी पाý अपनी िविशĶताओं के साथ हमारे सम± ÿÖतुत होते ह§।
गोदान के पाý हर ±ेý, हर वगª से संबंिधत ह§ जैसे िक पीिड़ त, शोिषत, शोषक वगª, जमéदार,
सेठ-साहóकार एवं महाजन, सरकारी अिधकारी, राजनीितक कायªकताª, पाखंडी पंडे-पुरोिहत,
िसपाही दारोगा, चौकìदार, हåरजन, दÖतकार, ³लकª, जमéदार के कमªचारी बुिĦजीवी वगª, munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
15 चाटु कåरता करने वाले चमचे सभी इस उपÆयास को िहÆदी का सुÿिसĦ उपÆयास बनाते
ह§।
ÿेमचंद के उपÆयास गोदान के खलपाý शोषक वगª के लोग ह§, जो अपने-अपने वगाªनुसार
अपनी भूिमका िनभाते ह§ । उनकì रचना ÿेमचÆद कुछ इस ÿकार करते ह§ िक पाठक चाहकर
भी उससे नफरत नहé कर पाता है । जैसे िक जमéदार राससाहब अमरपाल िसंह िकसानŌ
का शोषण करते ह§ । लेिकन देश कì पåरिÖथितयŌ को देखते हòए िकसानŌ के प± म¤ अपनी
राय रखते हòए कहते ह§ - ‘‘बहòत जÐद हमारे वगª कì हÖती िमट जाने वाली है । म§ उस िदन
का Öवागत करने को तैयार बैठा हॅूं । ईĵर वह िदन जÐद लाए । वह हमारे उĦार का िदन
होगा । हम पåरिÖथितयŌ का िशकार बने हòए ह§ ।’’
ÿेमचंद कì सबसे बड़ी िवशेषता है िक वे अपने पाýŌ कì वैयिĉक िवशेषताओं को गहराई से
समझते हòए पåरिÖथितनुसार उनका उÂथान-पतन िदखाते ह§ । मानव सुलभ कायª Óयापार
को अÂयÆ त Öवाभािवकता ÿदान करते ह§ ।
अंतत: कहा जा सकता है िक ÿेमचंद के सभी पाý मानवीय गुणŌ से संपृĉ (जुड़े हòए),
मनोवै²ािनक Öतर पर सुŀढ़, गितशील, सजीव, ÿभावशील, संघषªशील एवं सशĉ ह§ तथा
अपने-अपने वगª का ÿितिनिधÂव करते ह§ ।
२.२ गोदन : चåरý-िचýण ‘गोदान’ उपÆयास के ÿमुख पाýŌ का िचýण:
१) होरी का चåरý-िचýण:
‘गोदान’ उपÆयास का मु´य पाý होरी है । वह अवध ÿांत के एक छोटे से गाँव बेलारी का
रहने वाला है । इस उपÆयास म¤ वह भारतवषª के समÖत िकसानŌ का ÿितिनिधÂव करता है ।
वह गाँव का सीधा-सादा, िनहायत ईमानदार, गरीबी-भुखमरी कì िÖथित म¤ भी घोर ŀढ़
इ¸छा शिĉ रखने वाला इंसान है । होरी के पास कुल िमलाकर पाँच बीघा जमीन है, िजस
पर खेती करके िकसी तरह वह अपने पåरवार का गुजर-बसर करता है । होरी आिथªक
अभाव से बुरी तरह से úÖत होने के कारण कजª के बोझ तले इस कदर जकड़ चुका है, कजª
के चøÓयूह म¤ ऐसे फँस चुका है कì चाह कर भी वहाँ से नहé िनकाल पाता और कजª का
बोझ िलए हòए ही वह यह संसार छोड़ देता है । भारत के हर िकसान कì तरह उसकì भी एक
चाहत होती है िक वह अपने दरवाजे के खॅूंटे पर गाय पाले, लेिकन वह इतनी ईमानदारी
और कमªठता से काम करने के बावजूद एक गाय खरीदने कì हैिसयत नहé जुटा पाता है।
होरी के चåरý कì दो खािसयत है - वह अपनी भयावह गरीबी म¤ भी ŀढ़, इ¸छाशिĉ और
कमª के ÿित अपने जुनून को कम नहé होने देता और िनरंतर जी जान से ÿाणाÆ तक पåर®म
करता है । उसके जीवन कì िवपरीत पåरिÖथितयाँ उसे एक िकसान से मजदूर बना कर रख
देती ह§ िफर भी वह िहÌमत नहé हारता है । उसके Öवभाव म¤ कुछ दुगुªण भी ह§ िक वह Öवाथê
है, अपने फायदे के िलए झूठ बोलता है । मसलन, अÆय िकसानŌ कì तरह Łई म¤ बमैले
िमला देना, सन को गीला कर देना, बांस बेचते समय कुछ पैसŌ के िलए अपने भाई के िहÖसे
को मारने के िलए बंसोर से सौदा करना, अपनी छोटी पुýी łपा का िववाह बूढ़े Óयिĉ munotes.in

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आधुिनक गī
16 रामसेवक से करना तािक अमीर दामाद से Łपए लेकर अपनी जमीन बचा सके । इस तरह
के कुछ उदाहरण उसके Öवभाव कì दुगुªणता को दशाªते तो ह§, लेिकन कहé न कहé उसकì ये
बुराइयाँ उसके आिथªक मजबूåरयŌ के कारण वश ही ह§ । अगर वह आिथªक जजªरता का
िशकार नहé होता तो शायद यह दुगुªण उसके ÓयिĉÂव से नहé जुड़े होते ।
होरी भाµयवादी धमªभीŁ, Óयवहार कुशल, पुरानी परंपराओं, माÆयताओं, संÖकारŌ और
łिढ़यŌ म¤ भी जकड़ा हòआ है । वह समाज और िबरादरी के िनयमŌ से भी डरता है तभी तो
जब झुिनया के ÿसंग म¤ पंचायत उसको दंिडत करती है तो वह हò³का पानी न बंद हो,
इसिलए वह अपने आपको घोर संकट म¤ डाल कर भी पंच का जुमाªना भरता है लेिकन
िबरादरी और पंचŌ के िवŁĦ म¤ कुछ नहé करता । वह जहाँ पंचŌ गांव-िबरादरी के लोगŌ कì
हर माँग को अपनी सामािजक ÿितķा बचाने के िलए िसर - आंखŌ पर ले लेता है । वहé
अपने बेटे गोबर और झुिनया के अÆ तजाªतीय िववाह को Öवीकृित देता है तािक झुिनया और
उसके ब¸चे कì जान बच सके । यिद गभªवती झुिनया को होरी नहé बचाता तो झुिनया तमाम
दबावŌ के कारण आÂमहÂया कर लेती । यही नहé उसने िनराि®त िसिलया को भी अपने घर
म¤ शरण दी । हालाँिक झुिनया और िसिलया को अपनाने के िलए होरी कì पÂनी ने उसको
बहòत समझा-बुझाकर उसपर दबाव बनाया था । परÆतु होरी पुŁष ÿधान समाज से संबंध
रखता है, वह चाहता तो पÂनी धिनया कì बात को पुणªत: नकार सकता था।
होरी के जीवन कì एकमाý अिभलाषा थी िक वह एक गाय अपने िलए खरीदे । दरवाजे पर
गाय का खॅूंटे पर बॅंधे रहना उसके िलए बहòत ÿितķा कì बात थी । अपनी इस आकां±ा को
पूरी करने के िलए वह भोला को बहला-फुसलाकर उसकì गाय अपने दरवाजे पर बांधने
लगता है । पÂनी झुिनया इसका िवरोध करती है, परÆ तु इस मामले म¤ वह िकसी कì परवाह
नहé करता । उसका सगा भाई हीरा इÕयाªवश गाय को जहर देकर मार देता है और होरी के
जीवन कì सबसे बड़ी इ¸छा, इ¸छा बनकर ही रह जाती है । यह उसके जीवन कì सबसे
बड़ी ýासदी है िजसके बाद वह न शािÆत से जी पाता है, और न ही चैन से मर पाता है । वह
आजीवन गाय पालने कì अिभलाषा पूरी नहé कर पाता और उसकì मृÂयु के समय उसका
वही भाई हीरा, धिनया को होरी से गोदान करवाने के िलए कहता है िजसने कभी ईÕयावश
उसके दरवाजे पर बॅंधी गाय को जहर देकर मारा था और खुद फरार हो गया था । अपने
भाई के फरार होने के बाद होरी पुिनया-भाई के पåरवार को पुिलस से बचाता है, उनके
खेती-बाड़ी कì देखभाल करता है और अपनी िÖथित कì परवाह न करते हòए भी भाई के
पåरवार के इºजत-आबŁ, मान मयाªदा का ´याल रखता है । उनको भूखŌ मरने -
िबलिबलाने से बचाता है । इन ŀĶाÆतो से यह शत-ÿितशत समझा जा सकता है िक होरी कì
मनुÕयता का ÿमाण देने वाली अनेक घटनाएं गोदान म¤ घिटत होती ह§, जो उसके चåरý के
िवषय म¤ यह बताती है िक वह धीरोदाý गुणŌ से संपÆन कोई नायक नहé है बिÐक वह
भारतीय िकसानŌ कì साधारण छिव से युĉ उनका ÿितिनिधÂव करने वाला पाý ह§, िजनकì
समाज म¤ एक अलग पहचान है, अलग-अिÖतÂव है।
िनÕकषªत: कहा जा सकता है िक असीम धैयªवान, ŀढ़ इ¸छाशिĉ संपÆन होरी एक ऐसा पाý
है जो खुद संकट से िघरा होने के बावजूद िनराि®तŌ, असहायो को शरण देता है, उÆह¤
संभालता है । िÖथतÿ² होकर सभी िवकटतम पåरिÖथितयŌ का सामना करता है । अपने
जीवन म¤ वह जो गलितयाँ करता है, उसे Öवीकार करता है और उनको सुधारने के िलए munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
17 ÿाणÆ तक ÿयÂनशील रहता है, जी तोड़ मेहनत करता है । यही कारण है िक वह एक
साधारण िकसान होकर भी गोदान उपÆयास का अमर पाý बन जाता है । इस संदभª म¤ डॉ.
रामिवलास शमाª ने होरी के बारे म¤ िलखा है - ‘‘उपÆयास का ÿमुख पाý होरी उपÆयासकार
कì अमर सृिĶ है। यह पहला अवसर है जबिक िहÆदी कथा सािहÂय म¤ िकसान का िचýण
एक Óयिĉ के łप म¤ िकया गया है ।…. होरी पेशे और Óयिĉ दोनŌ ŀिĶयŌ से िकसान है ।
उसके चåरý का िचýण करने म¤ ÿेमचंद ने अपनी समÖत कला उड़ेल दी है ।’’ इस तरह डॉ.
रामिवलास शमाª कì ये उिĉयाँ दशाªती है िक होरी ÿेमचंद कì अमर सृिĶ है, ÿेमचंद के नाम
के साथ-साथ होरी का Öमरण भी सदैव िकया जाएगा ।
२) धिनया का चåरý िचýण:
धिनया उपÆयास ‘गोदान’ कì मु´य ľी पाý है जो कथा के आरंभ से अंत तक एक गरीब
जुझाŁ संघषªशील िकसान कì पÂनी कì भूिमका का िनवाªहन बखूबी करती है । इसके साथ
ही साथ वह भारतीय úामीण ľी का ÿितिनिधÂव करते हòए अपने उ°रदाियÂव को बखूबी
िनभाती है । धिनया भी अपने पित होरी के समान अÂयÆत संघषªशील, पåरिÖथितयŌ का
सामना डटकर करने वाली, आजीवन िनधªनता कì च³कì म¤ खुद को पीसने वाली औरत
है। वाÖतव म¤ होरी उसके िबना िबÐकुल अधूरा है ³यŌिक वह Öनेहमयी, कतªÓयपरायण पÂनी
और एक ममतामयी माँ कì सभी िजÌमेदाåरयŌ का पालन भली-भांित करती है ।
आजीवन संघषŎ और दीनता-दåरþता के झेलते-झेलते धिनया अपने छ°ीस वषª कì उă म¤
ही बहòत बुढ़ीया नजर आने लगती ह§ । चेहरे पर झुåरªयां पड़ चुकì ह§, बाल पक गए ह§, शरीर
ढल चुका ह§ । गेहòआ रंग साँवला हो चुका ह§, आंखŌ कì रोशनी कमजोर पड़ चुकì है । शरीर
म¤ कमजोरी का एहसास होने लगा है ।
वह अपने पित के सुख-दुख म¤ सदैव उसके साथ रहती है । लेिकन यिद उसे होरी के सीधे
पन पर गुÖसा आता है तो वह उसे कुछ नहé समझती और उसे खूब खरी-खोटी सुनाती है ।
वह अपने हक म¤, अपने पåरवार कì सुर±ा Æयाय और अिधकारŌ के हक म¤ अ³सर होरी से
या समाज एवं पंचŌ से कभी झुिनया के प± म¤ अपने तकª से मुĥŌ को इस तरह उठाता है ऐसे
तकª िवतकª करती है िक सामने वाला पराÖत हो जाता है । हालॉंिक यथाथª के धरातल पर
उसके तकª बेबुिनयाद नहé होते ह§ िफर भी गाँववाले उसे झगड़ालू ľी मानते ह§ ।
धिनया Öवभाव से कठोर नहé, कोमल Ćदया ľी है परंतु इस सच को हम¤ अवÔय Öवीकार
करना होगा िक उसके जीवन कì िवपरीत पåरिÖथितयŌ ने उसे कठोरता, कटुता कì और
अúसåरत िकया है । उसका पित होरी इतना ŀढ़ िनIJयी नहé है िक वह समाज, पंचो कì
परवाह िकए बगैर दुिनया और िसिलया को अपने घर म¤ पनाह दे सके । यह सब धिनया कì
वजह से ही होता है । जब धिनया को झुिनया कì गभाªवÖथा के बारे म¤ पता चलता है तो वह
गाँव-िबरादरी-पंचŌ कì अवहेलना कì परवाह िकए बगैर अपने बेटे Ĭारा गभªवती हòई िवधवा
यौवना को अपनी बहó के łप म¤ Öवीकार करती है । अपने पित को समझा-बुझाकर भी अपने
इस िनणªय म¤ साथ ले आती है । यही नहé पूरी ŀढ़ता से पंचायत का सामना करती है और
उÆह¤ भी उनकì औकात बताती है । वह पंचायत हो या पुिलस या िफर गाँव के सूदखोर
महाजन िकसी से डर कर नहé जीती है । िनडरता उसके Öवाभािवक गुण कì पहचान है । munotes.in

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आधुिनक गī
18 धिनया एक भारतीय ľी के समÖत मानवीय गुणŌ से युĉ है । वह धमªिनķ, कतªÓयिनķ,
सÂयवािदनी, पतीपरायण, मातृÂव भाव से ओत-ÿोत, तेजिÖवनी और साहसी है । उसकì
िनडरता, िनभêकता और ÖपĶवािदता के कारण सभी उसे झगड़ालू भले समझते हŌ, परंतु
ऐसी िľयŌ को यह समाज लड़ाकू औरत से अिधक कुछ समझ भी नहé सकता है । पुŁष
ÿधान समाज म¤ िľयŌ के गुण जÐदी से Öवीकार नहé िकए जाते ह§ ।
होरी जब धिनया को पूरे गांव के सामने मारता है तो वह उससे से बहòत नाराज होती है
लेिकन पित के बीमार होते ही अपनी सरेआम हòई बेइºजती को भूलकर उसकì सेवा सु®ुषा
म¤ जुट जाती है ।
वह अपने देवर हीरा के Óयवहार से बहòत ±ुÊध होकर उसे देखना तक नहé चाहती है परंतु
जब हीरा घर छोड़ कर भाग जाता है और उसका पåरवार दुख म¤ होता है तब अपने पित
होरी Ĭारा उनकì मदद करने, उÆह¤ सÌहालने म¤ कोई बाधा उÂपÆन नहé करती, बिÐक
उसका साथ देती है । धिनया बाहर से इÖपात जैसी कठोर पर भीतर से मौम जैसी मुलायम
है ।
इस ÿकार धिनया के संपूणª Óयवहार और उसके आचार -िवचार को देखकर िनÕकषªत: यह
कहा जा सकता है िक ÿेमचंद ने धिनया के चåरý को अÂयÆत कुशलता से गढ़ा है जो
उपÆयास को और अिधक जीवÆतता, सजीवता और यथाथªता ÿदान करती है । यही नहé
ÿेमचंद के साथ-साथ जैसे होरी अमर हो गया है वह ठीक वैसे ही धिनया भी इसी उपÆयास
कì एक कभी न िवÖमृत होने वाली अमर पाý है ।
३) गोबर का चåरý िचýण:
गोबर होरी और धिनया का एकलौता पुý है । वह उपÆयास म¤ नई पीढ़ी के ÿगितशील
चेतनायुĉ िकसानŌ का ÿितिनिधÂव करता है । उसे अपने िपता का जमéदार रायसाहब कì
खुशामद करने बार-बार जाना अ¸छा नहé लगता है ³यŌिक वह शोषक जमéदारŌ पॅूंजीपितयŌ
कì शोषण ÿवृ°ी को भली-भाँती समझता है । शोषकŌ कì चालाकì, धूतªता और Öवाथê
िनयत के रग-रग से वािकफ है गोबर । वह अ¸छी तरह से जानता है िक कौन िकतना
धमाªÂमा और पुÁयाÂमा है ।
उसके अÆदर िवþोह कì आग है, ÓयवÖथा के ÿित असंतोष है । वह ÓयवÖथा बदलना
चाहता है, लेिकन वह यह नहé समझ पाता िक कैसे बदलना है । जमéदार, साहóकार और
उनके गुगŎ Ĭारा िकए जाने वाले शोषण, अÂयाचार का ÿितकार िकस ÿकार कर¤ िक इन
तमाम दीमकŌ, जोकŌ को ÓयवÖथा से समूल नĶ कर सक¤, वह इसे नहé समझ पाता है । वह
अनेक बार अपने सीधे-सादे, दÊबू िपता को इस बाबत समझाता भी है, उÆह¤ सजग जागłक
करता है, शोषकŌ के सच से िपता को आगाह करता है । गोबर झुिनया से ÿेम करता है तो
उसे बखूबी िनभाता भी है । झुिनया एक िवधवा लड़कì है, ऊपर से वह दूसरी जाित -
िबरादरी कì । िफर भी उसके गभªधारण कì खबर सुनने के बाद गोबर िकसी कì परवाह िकए
बगैर उसे अपने घर ले आता है, लेिकन वह अपने माता-िपता का िलहाज करने के कारण
उनका सामना करने कì िहÌमत नहé जुटा पाता है । वह घर के बाहर खड़े रहकर अपनी माँ
और झुिनया कì बातचीत सुनता है और माँ Ĭारा उसे अपना िलए जाने पर वह आĵÖत munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
19 होता है । झुिनया को अपनाने के बाद उसका पåरवार िबरादरी और पंचायत के दंड से इस
तरह जजªर हो जाता है िक गोबर यह सोचने पर िववश हो उठता है िक गाँव म¤ रात-िदन
खेतŌ म¤ काम करने के बावजूद दो जून कì रोटी शािÆत से मयÖसर नहé, गाँव कì खेती-
बाड़ी से उसका मोहभंग होता है और वह शहर जाकर मेहनत मजदूरी करने, धन कमाने,
पåरवार कì िÖथित सुधारने के उĥेÔय से गाँव से पलायन करता है । गोबर कì यह आपबीती
भारतदेश के अिधकांश युवाओं कì आपबीती है । गोबर देश के अÆय युवाओं कì तरह पैसे
वाला बनना चाहता है । शहर म¤ नौकरी िमलने के बाद वह अपनी झुिनया को अपनी माँ से
तकª-िवतकª करके अपने पास ले आता है । हालाँिक वह शहर आकर बुरी लत का िशकार
होता है, ताड़ी के नशे म¤ पÂनी झुिनया को पीटता है, गभाªवÖथा म¤ उसके ÖवाÖÃय को
िबÐकुल नजरअंदाज करता है । झुिनया को गोबर का यह łप िबÐकुल नहé पसंद है िफर
भी वह एक पÂनी कì भूिमका को भली-भाँित िनभाती है । गोबर जब िमल कì हड़ताल म¤
लाठी खाने के कारण बुरी तरह घायल होता है तो झुिनया इस कदर इतनी तÂपरता से
उसकì सेवा सु्Ăुषा करती है िक उसके बाद गोबर कì सोच म¤ काफì पåरवतªन आता है । वह
झुिनया के ÿित िवनă हो जाता है ।
गोबर शहर म¤ आने के बाद थोड़ा Öवाथê बन जाता है । शायद शहर ने उसे ऐसा बनने पर
िववश कर िदया है । वह अपने माता-िपता को एक पैसे का आिथªक सहयोग नहé कर पाता ।
िपता दो-दो बेिटयŌ के Êयाह और कजª से िसर तक डूबे हòए ह§, लेिकन वह अपनी ही समÖया
म¤ िघरा है । यह बात पाठक वगª को थोड़ी खटकती है । हालाँिक मेहनत मजदूरी करके शहर
म¤ पåरवार का िकसी तरह गुजारा कर के गोबर Ĭारा अपने िपता को सहयोग कर पाना भी
संभव नहé था, लेिकन बाद के िदनŌ म¤ वह पåरवार गांव छोड़कर जाता है और घर कì
िÖथित को संभालने का ÿयÂन भी करता है ।
िनÕकषªत: कहा जा सकता है िक गोबर आधुिनक युग के युवा िकसानŌ, ®िमकŌ का
ÿितिनिधÂव करने वाला ÿगितशील िवचारŌ वाला नवयुवक है ।
४) ÿोफेसर मेहता का चåरý िचýण:
ÿोफ़ेसर मेहता के चåरý के संबंध म¤ डॉ. रामिवलास शमाª का िवचार है िक यिद होरी और
ÿो. मेहता के चåरý को िमला िदया जाए तो ÿेमचंद का अपना ÓयिĉÂव बन जाएगा ।
ÿोफ़ेसर मेहता को ÿेमचंद ने अपने िवचारŌ का ÿवĉा बनाया है । आलोचकŌ समी±कŌ ने
उनमे Öवयं ÿेमचंद के ÓयिĉÂव कì झलक पाई है ³यŌिक ‘गोदान’ उपÆयास म¤ ÿेमचंद अपने
िवचारŌ Ĭारा जो कुछ कहना चाहते थे, उसे उÆहŌने ÿो. मेहता के माÅयम से अिभÓयĉ
िकया है । मेहता ÿेमचंद के िवचारŌ के संवाहक ह§ ।
ÿोफेसर मेहता उपÆयास म¤ बुिĦजीवी वगª का ÿितिनिधÂव करते ह§ । वे दशªनशाľ के
ÿोफेसर ह§ । वे अिववािहत ह§ । जमéदार रायसाहब अमरपाल िसंह के िमýŌ म¤ से एक है ।
हालाँिक मेहता जी का चåरý राय साहब के चåरý से िबÐकुल िवपरीत है । इसके पीछे का
कारण यह है िक रायसाहब कì कथनी और करनी म¤ र°ी भर भी समानता नहé है । वे कहते
कुछ ह§ और करते कुछ और ह§ परंतु मेहता जी ठीक इसके उलट ह§ । वे कथनी और करने
कì समानता-एकłपता म¤ िवĵास करने वाले ह§ । munotes.in

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आधुिनक गī
20 मेहता जी िकसी भी तरह के शोषण के घोर िवरोधी ह§, गरीबŌ के ÿित सहानुभूित रखने वाले
Óयĉì ह§ । वे समाजिहत म¤ बहòत तÂपरता-तÐलीनता से कायª करते ह§ । उनकì उदारता और
सĆदयता के कारण ही अनेक िनधªन िवīाथê उÆहé के पैसŌ से िश±ा ÿाĮ करते ह§ । वे सदैव
समाज कÐयाण के िलए तÂपर रहने वाले, सेवाभाव रखने वाले स¸चे आदशªवादी इंसान ह§ ।
ÿो. मेहता का मानना है िक इस समाज के तमाम छोटे-बड़े के भेद को कदािप समाĮ नहé
िकया जा सकता है, कारण यह है िक यह अंतर िसफª आिथªक आधार पर नहé है अिपतु
बुिĦ, łप, चåरý, शिĉ, ÿितभा आिद अनेक ऐसे कारण ह§ िजससे समाज से दो वगŎ के भेद
को समाĮ नही िकया जा सकता है । वे यह मानते ह§ िक हमेशा से बुिĦ राज करती आई है
इसिलए इन अंतरŌ को िमटा पाना संभव नहé ।
िम. मेहता आकषªक ÓयिĉÂव के धनी ह§ । Öवभाव से िजंदािदल, ÖपĶ वĉा, हँसी-मजाक
करने वाले, ÿÂयेक मुĥे पर अपनी बेवाक ÖपĶ राय-परामशª रखने वाले, अÂयंत िनभêक
Óय³ ती ह§ । िľयŌ के िवषय म¤ उनकì धारणा यह है िक िľयŌ को पिIJमी अंधानुकरण
कदािप नहé करना चािहए बिÐक उÆह¤ भारतीय संÖकृित म¤ विणªत आदशª गुणŌ को
आÂमसात करना चािहए ³यŌिक इसी से भारतीय जीवन मूÐयŌ कì र±ा हो सकती है ।
पिIJमी अंधानुकरण से भारतीय जीवन मूÐय, भारतीय संÖकृित ÅवÖत होकर धराशायी हो
जाएगा ।
इस ÿकार ÿोफेसर मेहता एक आदशªवादी चåरý ह§, बुिĦजीवी वगª के पाý ह§, ÿÂयेक मुĥे पर
अपनी Öवतंý धारणा, Öवतंý िवचार रखते ह§ । िľयŌ के िवषय म¤ उनके िवचार परÌपरावादी
है । जीवन म¤ िदखावेबाजी, नुमाइशी के िवरोधी ह§, नकली िजÆदगी के िवरोधी है । इसिलए वे
राय साहब जैसे लोग जो िगरिगट कì तरह रंग बदलते ह§, रंग िसयार ह§, उनको बखूबी
फटकारते ह§ । मेहता जी के ÓयिĉÂव कì एक खािसयत और है िक उनके Öवभाव से सभी
लोग ÿभािवत होते ह§ । डॉ. मालती का Ćदय पåरवतªन, जीवन पåरवतªन, ÿो. मेहता के
ÓयिĉÂव के ÿभाव से ही संभव हो सका, िजसने िमस मालती के जीवन के उĥेÔय को ही
बदल कर रख िदया है । इस ÿकार ÿो. मेहता िनिIJत łप से ‘गोदान’ उपÆयास के एक
आदशªवादी पाý के łप म¤ पाठकŌ पर अपनी अिमट छाप छोड़ते ह§ ।
५) रायसाहब अमरपाल िसंह का चåरý-िचýण:
‘गोदान’ उपÆयास म¤ रायसाहब अमरपाल िसंह जमéदार वगª अथाªत शोषक वगª का
ÿितिनिधÂव करते ह§ । वे अवध ÿांत म¤ सेमरी úाम के जमéदार ह§, कŏिसल के सदÖय ह§,
कुशल वĉा ह§, सभा चतुर होने के साथ-साथ राÕůवािदयŌ से भी संपकª रखते ह§ और अंúेज
हò³मशनŌ और अंúेज अिधकाåरयŌ को भी ÿसÆन रखते ह§ । रायसाहब खुद को िकसानŌ का
शुभे¸छुक मानते ह§ परÆतु उन पर लैसमाý भी åरयासत नहé करते । वे अपने अनाप-शनाप
खचŎ कì भरपाई करने के िलए िनरंतर िकसानŌ का शोषण करते ह§, नजराने लेते ह§, बेगार
लेते ह§, इजाफा लगान वसूल करते ह§, उÆह¤ कोड़े से िपटवाने कì धमकì देते ह§ । वे वाÖतव
म¤ एक øूर, िनदªय, Öवाथê जमéदार है । वह कÌयूिनÖटŌ कì तरह बात¤ तो करते ह§, परंतु
उनका जीवन भोग-िवलास से युĉ, Öवाथª से भरा हòआ है । राय साहब कì कथनी और
करनी म¤ तिनक भी एकłपता व समानता नहé । वे कहते कुछ ह§, करते कुछ और ह§ । वे munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
21 िवचारŌ से ÿगितशील िदखाई देते ह§, परंतु कायª से ÿितिøयावादी ह§ । राय साहब के िसĦांत
और Óयवहार म¤ भी भारी अंतर है ।
गोदान के राय साहब उपÆयास म¤ दो तरह कì भूिमका िनभाते ह§ । एक तरफ वे जमéदारŌ का
ÿितिनिधÂव करते ह§, पतनोÆमुख हो चुकì सामंती ÓयवÖथा का ÿितिनिधÂव करते ह§ तो वहé
दूसरी तरफ वे गोदान कì दोनŌ कथाओं - úामीण कथा और शहरी कथा को जोड़ने वाले
सेतु कì भूिमका का िनवाªहन भी करते ह§ । रायसाहब मीठा -मीठा बोल कर अपना काम
िनकालने म¤ मािहर ह§ । उपÆयास का मु´य पाý होरी उनका ÿशंसक है परÆतु उसका बेटा
गोबर चुँिक रायसाहब का असली łप पहचानता है इसिलए वह उनसे घृणा करता है ।
रायसाहब धमाªÂमा, पुÁयाÂमा बनने कì खाितर घंटो पूजा पाठ करते ह§ परंतु गरीबŌ -
िकसानŌ – ®िमकŌ का खून चूसने के बाद सब कुछ Óयथª है । रामनामी चादर ओड़कर
जनता का शोषण करना , मुÉतखोरी कì आदत¤, भोग-िवलास का नशा ये तमाम वे मुĥे ह§ जो
रायसाहब के पुŁषाथª को नĶ करते ह§ । हालाँिक रायसाहब अनेक ÖथानŌ पर अनेक पाýŌ से
बतौर जमéदार अपनी लाचारी-मजबूरी-िववशता का राग अलाप चुके ह§, रोना रो चुके ह§ और
अपनी यह इ¸छा बता चुके ह§ िक अब जमीदारी ÿथा का अंत होना चािहए । उÆह¤ जमीदारी
ÿथा का अवसान समीप ही िदख रहा है । समय के बदलते दौर को देखकर वे समझ चुके ह§
िक अब यह जमéदरी अिधक िदनŌ तक नहé चलने वाली है ।
समúत: यह कह सकते ह§ िक राय साहब ÿेमचंद के अमर पाýŌ म¤ से एक ÿभावशाली पाý
है । उपÆयासकार ÿेमचंद ने रायसाहब के चåरý को इस łप म¤ हमारे सम± ÿÖतुत िकया है
िक वे उपÆयास के खल पाý होते हòए भी खलपाý ÿतीत नहé होते ह§ ।
६) मालती का चåरý:
मालती ‘गोदान’ म¤ िशि±त ľी वगª का ÿितिनिधÂव करने वाली आधुिनक िवचारŌ वाली
नवयुवती है । वह इंµल§ड से मेिडकल कì पढ़ाई पढ़ कर डॉ³टर बन कर आई है । उ¸च वगª
के उँचे घर-घरानŌ, लोगŌ के बीच उसका उठना बैठना अिधक है, गरीबŌ से आमना-सामना
न के बराबर होता है ।
मालती अÂयंत सुंदर होने के साथ-साथ बहòत बुिĦमती भी है । उसकì तािकªकता अकाट्य
है । वह अपने पाåरवाåरक दाियÂवŌ का िनवहªन बखुबी करती है । िपता के अपािहज हो जाने
के बाद दो छोटी बहनŌ, सरोज और वरदा के भरण-पोषण, िश±ा-दी±ा से संबंिधत
िजÌमेदाåरयाँ अपने कंधे पर लेती है । यही नहé पता िक रईसŌ जैसी शराब कबाब कì िबगड़ी
आदतŌ पर झुझलाते हòए भी उÆह¤ सहन करके संभालती है ।
धनाढ्य उīोगपित खÆना साहब मालती को अपनाना चाहते ह§, परÆतु वह Óयिĉ के धन को
नगÁय समझते हòए उसके चाåरिýक गुणŌ को अिधक महÂव देती है । यही कारण है िक वह
उīोगपित खÆना के ऑफर को ठुकरा देती है । वह ÿो. मेहता के ÓयिĉÂव के ÿित आकृĶ
होती है । ÿो. मेहता के संपकª म¤ आने के बाद उसके जीवन कì दशा, िदशा एवं उĥेÔय ही
बदल जाता है । वह सेवा, Âयाग कì ÿितमूितª बन जाती है । अब जब ÿो. मेहता उसके सम±
िववाह ÿÖताव रखते ह§ तो वह उसे Öवीकार नहé करती बिÐक आजीवन उनकì िमý बनकर
रहती है । munotes.in

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आधुिनक गī
22 उपÆयास ‘गोदान’ म¤ हम¤ मालती के तीन łप िदखाई देते ह§ - िततली łप, मानवी łप और
देवी के łप म¤ । एक िततली के łप म¤ वह पाIJाÂय रंग म¤ रंगी हòई, मनोरंजन भोग - िवलास
– आमोद - ÿमोद म¤ डूबी रहने वाली, रिसक पुŁषŌ के बीच बैठकर शराब पीने-िपलाने वाली
और अपने łप-रंग कì ÿभा िबखेरने वाली अÂयाधुिनक िवचारŌ वाली नवयौवना है । वह
पुŁष - मनोिव²ान कì अ¸छी जानकार, मेकअप म¤ ÿवीण, गजब कì हािजर जवाब, लुभाने-
åरझाने कì कला म¤ िनपुण लड़कì है ।
ÿो. मेहता के संपकª म¤ आने के बाद उसका िततली łप ितरोिहत हो जाता है और वह मधु
संिचत करने वाली मधुम³खी बनती जा रही है । वह उÆह¤ चाहती है उनके और अपने बीच
िकसी और कì उपिÖथित उसे Öवीकार नहé । वह मेहता जी से िववाह करना चाहती है,
परÆतु उनके साथ रहते-रहते उनके िवचारŌ से ÿभािवत होकर उसके िवचारŌ म¤, जीवन म¤
आमूल-चूल पåरवतªन होता है । वह úामीणŌ, गरीबŌ, जłरतमंदŌ कì सेवा-सहायता करने म¤
पूरी तÐलीनता के साथ डूबती चली जाती है । मेहता जी के िववाह ÿÖताव को अÖवीकार
करके परमाथª को ही अपने जीवन का उĥेÔय बना लेती है । यहां मालती के सम± ÿो. मेहता
का चåरý बौना नजर आता है । ÿेमचंद ने िततली सी िवलािसनी मालती के ÓयिĉÂव का
मानवीयता के ऐसे चरण िशखर तक पहòँचा िदया ह§, जहाँ पहòँचने के बाद यह समÖत संसार
के अÆयाय, शोषण, अÂयाचार, आतंक, भय, अंधिवĵास जैसे अनिगनत समÖयाओं के
समाधान हेतु आÂमÂसगª कर देती है, समाज िहत म¤ अपना सब कुछ अिपªत कर देती है ।
मालती का Ćदय पåरवतªन एवं चाåरिýक िवकास अनायास एक िदन म¤ ही नहé हòआ ह§
बिÐक यह उ°रो°र धीरे-धीरे िवकिसत हòआ है । इसिलए यह िवĵसनीय है । इस ÿकार
कह सकते ह§ िक मालती का चåरý एक गÂयाÂमक चåरý है । ÿेमचंद ने इस चåरý को यथाथª
से आदशª कì ओर उÆमुख िकया है ।
२.३ सारांश सारांश के łप म¤ कहा जा सकता है िक ‘गोदान’ उपÆयास के ये मु´य पाý अपने-अपने वगª
का ÿितिनिधÂव करते ह§ । इनके चाåरिýक गुण-दोषŌ का िचýण करते समय ÿेमचंद ने इनके
वगª-िवशेष कì सुàम से सुàमतम बातŌ को भी अÂयÆत उÂकृĶता से Óयĉ िकया है । अपने
पाýŌ कì योजना करते समय उपÆयासकार के मानवीय मूÐयŌ, जीवन मूÐयŌ, नैितक मूÐयŌ
को सदैव Åयान म¤ रखा है । िकसानŌ-®िमकŌ के ÿित इनके Ćदय म¤ गहरी संवेदना,
सहानुभूित और स×दयता कì भावना िवīमान रही, जो उनके इस उपÆयास म¤ þĶÂय है ।
वे अपने पाýŌ को एक मनुÕय के समÖत मानवीय गुण-दोषŌ के साथ ÿÖतुत करते ह§ ।
खलपाý के गुणŌ को उताना ही महßव देते ह§, िजतना िक मु´य पाý के गुणŌ को िचýांिकत
करते ह§ । वे उपÆयास म¤ छोटे-से-छोटे पाý के संपूणª ÓयिĉÂव को भी बड़े Åयान से, सुàमता
से दशाªते ह§ तािक ये सभी पाý अपनी समÖत िविशĶताओं के साथ हमारे सम± ÿÖतुत हो
सक¤ ।
िनÕकषªता: कहा जा सकता है िक उपÆयास म¤ लगभग ७० पाý है । गोदान के ÿाय:
अिधकांश पाý अपने-अपने वगª का ÿितिनिधÂव करते ह§ । वे Óयिĉ चåरý होते हòए भी समुह
चåरý लगते ह§ । गोदान उपÆयास के इन सभी पाýŌ का गहन अÅययन करने के उपरांत यह
बहòत सहजता से कहा जा सकता है िक ÿेमचंद मानव-Öवभाव के स¸चे पारखी ह§, वे munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
23 मनोिव²ान कì गहरी समझ रखते ह§ । अपनी लेखनी से उÆहŌने गोदान के सभी पाýŌ को
अमरता ÿदान कì है ।
२.४ वैकिÐपक ÿij ÿ.१ गोदान का मु´य पाý कौन है?
क) होरी ख) हीरा
ग) दातादीन घ) खÆना साहब
उ. क) होरी
ÿ.२ होरी िकसका Êयाह अधेड़ उă के Óयिĉ से करता है?
क) सोना ख) łपा
ग) झुिनया घ) िसिलया
उ. ख) łपा
ÿ.३ यह िकस समी±क का मानना है िक ÿेमचंद के साथ-साथ होरी भी अमर हो चुका
है?
क) पं. महावीर ÿसाद िĬवेदी ख) प. हजारी ÿसाद िĬवेदी
ग) डॉ. रामिवलास शमाª घ) डॉ. नगेÆþ
उ. ग) डॉ. रामिवलास शमाª
ÿ.४ गोदान का होरी िकस वगª का ÿितिनिधÂव करता है?
क) पुँजीपित ख) िकसान
ग) बुिĦजीवी घ) जमéदार
उ. ख) िकसान
ÿ.५ गोदान के ÿोफेसर मेहता िकस वगª का ÿितिनिधÂव करते है?
क) पुँजीपित ख) िकसान
ग) बुिĦजीवी घ) जमéदार
उ. ग) बुिĦजीवी
ÿ.६ गोदान के रायसाहब अमरपाल िसंह िकस वगª का ÿितिनिधÂव करते है?
क) पुँजीपित ख) िकसान
ग) बुिÅदजीवी घ) जमéदार
उ. घ) जमéदार munotes.in

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आधुिनक गī
24 ÿ.७ गोदान कì डॉ³टर मालती िकस वगª का ÿितिनिधÂव करती है?
क) आधुिनक िशि±त ľी ख) उīोगपित
ग) परÌपरावादी ľी घ) नेता
उ. क) आधुिनक िशि±त ľी
ÿ.८ मेहता जी िकस िवषय के ÿोफेसर है?
क) गिणत ख) इितहास
ग) भूगोल घ) दशªनशाľ
उ. घ) दशªनशाľ
ÿ.९ राय साहब, अमरपाल िसंह िकस गाँव के जमéदार है?
क) सेमरी और बेलारी ख) ददरा
ग) नगवां घ) बेलहरी
उ. क) सेमरी और बेलारी
ÿ.१० मालती कहाँ से डॉ³टर कì पढ़ाई करती है?
क) िदÐली ख) कोलकाता
ग) अमेåरका घ) इंµल§ड
उ. घ) इंµल§ड
२.५ लघु उ°रीय ÿij ÿ.१ ÿेमचंद ने ÿोफ़ेसर मेहता के चåरý को िकस łप म¤ हमारे सम± रखा है?
उ°र: ÿेमचंद ने ÿोफ़ेसर मेहता का आदशªवादी łप हमारे सम± रखा है।
ÿ.२ होरी और धुिनया के ब¸चŌ का नाम ³या है?
उ°र: गोबर ,सोना और łपा उसके तीन ब¸चे ह§ ।
ÿ.३ धुिनया कì ÖपĶवादीता और तािकªकता के कारण गांव वाले उसे ³या समझते ह§?
उ°र: गांव वाले धुिनया को लड़ाकू या झगड़ालू समझते ह§ ।
ÿ.४ गोबर िकस तरह कì लड़कì से ÿेम करता है?
उ°र: गोबर झुिनया से, जो िक वह दूसरी जाित कì एक िवधवा लड़कì है, ÿेम करता है । munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : चåरý-िचýण
25 ÿ.५ उपÆयास गोदान म¤ शोभा और हीरा कौन है?
उ°र: शोभा और हीरा दोनŌ होरी के सगे भाई ह§ ।
ÿ.६ गोबर िकससे और ³यŌ घृणा करता है?
उ°र: गोबर राय साहब जैसे शोषको अÂयाचाåरयŌ कì शोषण करने कì ÿवृि° से भली
भांित पåरिचत है, इसिलए वह उनसे घृणा करता है ।
ÿ.७ गोबर शहर म¤ घायल ³यŌ होता है?
उ°र: गोबर िमल हड़ताल म¤ लाठी खाने के कारण बुरी तरह घायल होता है ।
ÿ.८ उपÆयास ‘गोदान’ म¤ मालती का Öवłप बाद के िदनŌ म¤ िकस łप म¤ िदखाई देता है?
उ°र: िमस मालती बाद के िदनŌ म¤ देवी łप म¤ िदखाई देती है । उनका जीवन जłरतमंदŌ
गरीबŌ कì िदनŌ कì सहायताथª समिपªत हो चुका है ।
ÿ.९ िमस मालती िकस के ÓयिĉÂव से ÿभािवत होती है?
उ°र: वह ÿोफ़ेसर मेहता के ÓयिĉÂव से ÿभािवत होती है ।
ÿ.१० गोदान कì कथा म¤ úामीण पåरवेश और शहरी पåरवेश कì कथा को जोड़ने वाला सेतू
कौन है?
उ°र: रायसाहब अमरपाल िसंह और गोबर शहर और गांव कì कथा को जोड़ने वाले सेतु
के łप म¤ उभर कर आते ह§ ।
२.६ बोध ÿij ÿ.१ ‘गोदान’ का मु´य पाý कौन है? उसके चåरý पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.२ ‘गोदान’ कì मु´य ľी पाý कौन है । उसके चåरý को अपने शÊदŌ म¤ िलिखए ।
ÿ.३ ÿोफ़ेसर मेहता के चåरý पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.४ ‘गोदान’ उपÆयास कì िमस मालती का चåरý िचýण कìिजए ।
ÿ.५ होरी और धिनया के चåरý पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.६ होरी और गोबर के चåरý म¤ ³या अंतर है? उदाहरण सिहत िलिखए ।
ÿ.७ धिनया कì सदाशयता व उदारता को रेखांिकत कìिजए ।
ÿ.८ राय साहब का चåरý-िचýण कìिजए ।
ÿ.९ गोबर के ÓयिĉÂव पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.१० गोदान उपÆयास कì पाý-योजना पर ÿकाश डािलए । munotes.in

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आधुिनक गī
26 २.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १. ÿेमचंद और उनका युग - रामिवलास शमाª
२. सािहÂय का उĥेÔय – ÿेमचंþ
३. ÿेमचंþ - डॉ. सÂय¤þ (सं.)
४. ÿेमचंद का संघषª - ®ी नारायण पांडेय
५. कलम का मजदूर - मदन गोपाल
६. कलम का िसपाही - अमृतराय
७. कलम का मजदूर : ÿेमचंþ - राजेĵर गुł
८. कलाकार ÿेमचंद - रामरतन भटनागर
९. कुछ िवचार - ÿेमचंद
१०. गोदान : एक पुनिवªचार - परमानंद ®ीवाÖतव
११. गोदान, नया पåरÿेàय - गोपाल राय
१२. सािहÂय का भाषा िचंतन – सं. वीणा ®ीवाÖतव
१३. ÿेमचंद – सं. सÂय¤þ (‘ÿेमचंद म¤ संकिलत डॉ. िýभुवन िसंह का िनबंध आदशōÆमुख
यथाथªवाद’)
१४. ÿेमा®म – ÿेमचंद
१५. ÿित²ा - मुंशी ÿेमचंद
*****
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27 ३
ÿेमचंद कृत गोदान : कथोपकथन / संवाद
इकाई कì łपरेखा
३.० इकाई का उĥेÔय
३.१ ÿÖतावना
३.२ गोदान: कथोपकथन / संवाद
३.३ सारांश
३.४ वैकिÐपक ÿÔ न
३.५ लघू°रीय ÿÔ न
३.६ बोध ÿÔ न
३.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
३.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई का मु´य उĥेÔय है उपÆयास म¤ िनिहत कथोपकथन अथाªत् संवाद के िवषय म¤
िवÖतृत łप से बताना । उपÆयास म¤ कथोपकथन के माÅयम से ही पाý अपने भावŌ,
िवचारŌ, संवेदनाओं ओैर अपने मन कì बातŌ को एक दूसरे के सम± ÿकट करते ह§ । िवचारŌ
का आदान-ÿदान करते ह§ िजससे कथानक को गित ÿाĮ होता है, नाटकìयता आती है और
वह रचना रोचक हो जाती है । इस इकाई म¤ इन तÂवŌ कì िवÖतृत चचाª कì गई है ।
३.१ ÿÖतावना कथोपकथन वह माÅयम है िजससे िकसी भी रचना म¤ नाटकìयता का ŀÔय तैयार होता है,
उपÆयास को कथावÖतु को गित िमलती है, िभÆन-िभÆन चåरýŌ क¤ मन कì भावŌ को वाणी
िमलती है िजससे उनका चåरý उĤािटत होता है । िबना संवाद के पाýŌ के भावŌ-िवचारŌ
और संवेदनाओं कì अिभÓयि³ त कदािप संभव नहé है । इसिलए इस इकाई के अÆतगªत यह
बताने कì कोिशश है िक उपÆयास के िलए संवाद या कथोपकथन का ³या महßव है और
गोदान म¤ संवाद या कथोपकथन को िकस ÿकार समायोिजत िकया गया है ।
हम इस तÃय से वािकफ ह§ िक उपÆयास कì कथा úामीण और शहरी पåरवेश दोनŌ धरातल
पर समानाÆतर गित से चलती है । अत: दोनŌ पåरवशŌ के पाýŌ का संवाद िभÆन-िभÆन शैली
म¤ होगा । िवषयानुकूल, ÿसंगानुकूल, पाýानुकूल, Öथानानुकूल भाषाशैली के माÅयम से
उपÆयास का कथोपकथन गोदान को िशखर तक ले गया है ।

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गī
28 ३.२ गोदान : कथोपकथन / संवाद ‘गोदान’ उपÆयास ÿेमचंद कृत एक वृÅद उपÆयास है । इस वÁयª िवषय अÂयÆत िवÖतृत
है। इसकì Óयापकता को Åयान म¤ रखते हòए इसे कृषक जीवन का महाकाÓय कहा गया है ।
डॉ. गोपाल राय कì माÆयता है िक ‚गोदान úाम जीवन और कृिष संÖकृित को उसकì
संपूणªता म¤ ÿÖतुत करने वाला अĩुत उपÆयास है अत: इसे úाम जीवन और कृिष संÖकृित
का महाकाÓय कहा जा सकता है ।
जब िकसी भी रचना को महाकाÓय कì सं²ा से िवभूिषत िकया जाता है तो जािहर-सी बात
है िक वह रचना ÿÂयेक ŀिĶ से ®ेķ होगी । कथावÖतु, पाý-योजना, देशकाल वातावरण,
समÖया एवं उĥेÔय, कथोपकथन एंव िशÐप और भाषा शैली सभी ŀिÕ ट यŌ से रचना कì
उÂकृĶता ही उसे सवª®ेķ बनाती है ।
‘गोदान’ उपÆयास का कथोपकथन इसे िशखरÂव ÿदान करता है । ‚गोदान म¤ अनेक िकसान
पाýŌ को उभारकर रखने के बदले ÿेमचंद का Åयान केवल होरी पर क¤िþत रहा है । उसके
चåरý म¤ उन तमाम िकसानŌ कì िवशेषताएँ मौजूद ह§ जो जमéदारŌ और महाजनŌ कì
धीमे-धीमे िकÆतु िबना łके चलनेवाली च³कì म¤ िपसने के िलए अिभशĮ ह§ ।‛ (गोदान
उपÆयास के Éलैप से अवतåरत)
उपÆयास म¤ िकसानŌ का शोषण अÂयंÆत चालाकì भरे अंदाज म¤ होता है िजसम¤ सामंतवाद
एवं पॅूंजीवाद आपसी समझौते से िमलजुल कर कृषकŌ का ÿाणाÆतक शोषण करते है और
भोले-भाले होरी जैसे िकसान सामंतŌ और पूँजीपितयŌ कì इस मनोवृि° को समझ ही नहé
पाते है । उपÆयास म¤ इसका िचýण बखूबी हòआ है ।
उपÆयास का ÿारÌभ उपÆयास के मु´य कथानायक होरी और कथानाियका धिनया कì
गृहÖथ जीवन कì मीठी नŌक-झŌक से होता है िजसम¤ होरी जमéदार रायसाहब से िमलने
जाने कì बात¤ अपनी पÂनी से करता है । पÂनी को होरी Ĭारा रायसाहब कì जी-हòłरी
िबÐकुल रास नहé आती । इसी बात को लेकर दोनŌ पित-पÂनी म¤ मीठी नŌक-झŌक होती है
और धिनया, होरी कì लाठी, िमरजई, जुते, पगडी और तमाखू का बटुआ øमश: पटकते हòए
देती है । तब होरी आँख¤ तरेरते हòए कहता है –‘³या ससुराल जाना है, जो पाँचŌ पोसाक
लायी है? ससुराल म¤ भी तो कोई जवान साली-सलहज नहé बैठी है, िजसे जाकर िदखाऊँ ।
धिनया लजाते हòए जवाब देती है – ऐसे ही तो बडे सजीले जवान हो िक साली – सलहज¤
तुÌह¤ देखकर रीझ जाएँगी ।
होरी कहता है – तो ³या तू समझती है, म§ बूढ़ा हो गया हॅू? अभी तो चालीस भी नहé हòए ।
मदª साठे पर पाठे होते ह§ । धिनया कहती है – जाकर सीसे म¤ मॅुंह देखो । तुम जैसे मदª साठे
पर पाठे नहé होते । दूध-घी अंजन लगाने तक को तो िमलता नहé, पाठे हŌग¤ । तुÌहारी दशा
देख-देखकर तो म§ और भी सूख जाती हॅूं िक भगवान् यह बुढ़ापा कैसे कटेगा? िकसके Ĭार
पर भीख माँग¤गे?
होरी कहता है – साठ तक पहॅुचने कì नौबत न आने पाएगी धिनया । इसके पहले ही चल
द¤गे । munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : कथोपकथन / संवाद
29 धिनया कहती है – अ¸छा रहने दो, मत असुभ मुँह से िनकालो । तुमसे कोई अ¸छी बात भी
कहे तो लगते हो कोसने ।‛
होरी और धिनया को ये मीठी नŌक-झŌक, िगले-िशकवे उनके गृहÖथ जीवन के आÂमीय
Öनेह से लेकर उनके संघषŎ को भी बखूबी दशाªते ह§ । जैसा िक आमजीवन म¤ होता है िक
छोटी-छोटी बातŌ म¤ अनेक बड़ी-बड़ी बात¤ कहसुना दी जाती ह§, िøया-ÿितिøया जािहर कर
दी जाती है । इसी तरह के अनेक ŀĶाÆत होरी और धिनया के बीच लेखक ने िदखाया है ।
होरी कì गाय को जब उसका भाई हीरा जहर िखला कर मार डालता है तब पूरा घर-गाँव
Óयú हो उठता है िक रात के अँधेरे म¤ इतना कायरतापूणª कदम भला कौन उठा सक है,
इस तरह तो गाँव म¤ िकसी के पालतू जानवर सुरि±त नहé रह सकते ह§ । इस गाय से घर
वाले, दोनŌ बेिटयाँ सोना और łपा भी िकतनी घुल िमल गई थी । गाय को जहर देकर मारने
के पीछे िकसका हाथ हो सकता है? इस संदभª म¤ होरी अपनी पÂनी धिनया से कहता है िक
उसकां पूरा शक उसके भाई हीरा पर ही है ³यŌिक रात म¤ उसने उसे गाय कì नाद के पास
खड़े हòए देखा था और उसके बाद से वह गायब है । होरी धिनया से यह बात िकसी को नहé
बताने कì िजĥ करता है लेिकन धिनया उसे छुपाना नहé चाहती बिÐक मुजåरम को सजा
िदलवाना चाहती है जबिक होरी पूरी तरह से अपने भाई हीरा के बचाव म¤ उतर जाता है ।
धिनया और होरी दोनŌ अपनी-अपनी िजĥ पर अड़ जाते ह§ । होरी, धिनया को गाँव-घर
वालŌ के सम± खूब पीटता है, अपशÊदŌ कì बौछार करता है । उसके तीनŌ ब¸चे बीच-बचाव
करते ह§ । पं. दा दीन भी इस मार-पीट को रोकने कì कोिशश करते ह§ । गाँववाले इकęे
होकर तमाशा देखते ह§ । हीरा धिनया से कहता है ‚िफर वही बात मॅुंह से िनकाली । तूने देखा
था हीरा को माहòर िखलाते ।‛
‘तू कसम खा जा िक तू ने
हीरा को गाय कì नाँद के पास खडे नहé देखा?’
‘हाँ, म§ने नहé देखा, कसम खाता हóँ ।’
‘बेटे के माथे पर हाथ रखके कसम खा ।’
होरी ने गोबर के माथे पर काँपता हòआ हाथ रखकर काँपते हòए Öवर म¤ कहा – ‘म§ बेटे कì
कसम खाता हóँ िक म§ने हीरा को नाद के पास नहé देखा ।’
धिनया ने जमीन पर थूककर कहा – ‘थूड़ी है तेरी झुठाई पर ।’ तूने खुद मुझसे कहा िक हीरा
चोरŌ कì तरह नाँद के पास खड़ा था । और अब भाई के प± म¤ झूठ बोलता है । थूड़ी है ।
अगर मेरे बेटे का बाल भी बाँका हòआ तो घर म¤ आग लगा दूँगी । सारी गृहÖथी म¤ आग लगा
दॅूंगी । भगवान, आदमी मॅुंह से बात कहकर इतनी बेसरमी से मुकुर जाता है ।’
होरी पाँव पटककर बोला - ‘धिनया, गुÖसा मत िदला, नहé बुरा होगा ।’
‘मार तो रहा है, और मार ले । जा, तू अपने बाप का बेटा होगा तो आज मुझे मारकर तब
पानी िपएगा । पापी ने मारते-मारते मेरा भुरकस िनकाल िलया, िफर भी इसका जी नहé भरा। munotes.in

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गī
30 मुझे मारकर समझता है, म§ बड़ा वीर हॅूं । भाइयŌ के सामने भीगी िबÐली बन जाता है, पापी
कहé का, हÂयारा !’
होरी और धिनया के बीच का िहंसाÂमक ÿितरोध यह दशाªता है िक पुŁषÿधान समाज म¤
पåरवार के िवŁÅद जाकर सÂय उजागर करने और Æयाय पाने कì उÌमीद करने का ³या
पåरणाम होता है । पित होरी Ĭारा पÂनी कì सरेआम िपटाई िसफª इसिलए होती ह§ ³यŌिक
वह गाय के हÂ यारे को सामने लाना चाहती है और चूँिक वह हÂ यारा हीरा, होरी का सगा
भाई है इसिलए वह उसे बचाना चाहता है । ÿेमचंद ने इस पूरे ÿसंग हो इतनी जीवतंता,
सजीवता और Óयावहाåरकता से हमारे सम± रखा है िक यह पूरा ŀÔय कहé से भी
काÐपिनक नहé लगाता है । जैसा मनुÕय के साधारणत: दाÌपÂय जीवन म¤ होता है िक
पितयŌ का झुकाव ÿाय: अपने भाई-बहनŌ-माता-िपता के साथ होता है, वैसा ही यहाँ भी
हòआ है । हालाँिक धिनया ने हीरा को पाल-पोसकर बडा िकया है । वह पहले-पहले तो इस
बात पर िवĵास ही नहé करती िक इस गाय को हीरा ने मारा है । परÆतु होरी Ĭारा उसे
िवĵास िदलाये जाने के बाद वह अपराधी को सजा िदलवाना चाहती है । वह िदल कì बुरी
कदािप नहé । इस पूरे ŀÔय का ŀÔयांकन ÿेमचंद ने अÂयÆत Öवाभािवक ढंग स¤ िकया है ।
उपÆयास म¤ लेखक ने यह दशाªया है िक आजीवन जजªर आिथªक दशा और िवकटतम
पåरिÖथितयŌ कì िशकार धिनया भूख-Èयास, रोगी-िबमारी और अथाªभाव के कारण िबना
इलाज के अपने तीन-तीन ब¸चŌ को अपनी आँखŌ के सामने मरते देखकर, तमाम तरह के
सामािजक, पाåरवाåरक, मानिसक, शोषण सहते-सहते Öवभाव से िबÐकुल łखी और
मुँहफट होतé चली गई है । शोषण कì चरम पराकाķा ने उसे ऐसा बनने पर िववश कर िदया
है । पूरे उपÆयास म¤ उसके संवादŌ कì सजीवता-जीवतंता, और Ö वाभािवकता देखते ही
बनती है । उपÆ यास के अंत म¤ जब होरी मरणासÆन अवÖथा म¤ है और हीरा के साथ-साथ
धमª के ठेकेदार धिनया को होरी से गोदान कराने को कहते है उस व³ त उसकì ये पंि³ त याँ
उनके जीवन कì संपूणª ýासदी को बयान कर देती है- ‚महाराज, घर म¤ न गाय है, न बिछया,
न पैसा । यही पैसे ह§, यही इनका गोदान है ।‛ उसे िदन भर मेहनत करके सुतली बेचने के
बाद बीस आने पैसे िमले थे, िजÆह¤ वह अपने पित के गोदान कराने हेतु या यॅूं कह ल¤ अंितम
संÖकार करवाने हेतु समिपªत करती है और यहé उपÆयास गोदान का मािमªक दुखाÆत होता
है ।
उनके उपÆयास म¤ दो पीढ़ी के बीच कì अंतराल को, सोच-िवचार और समझ म¤ आए
पåरवतªनŌ को भी ÿेमचÆद ने बहòत ÿभावोÂपादक अंदाज म¤ उठाया है । Ńदय से सीधे िकÖम
के दÊबू होरी को रायसाहब कì बात¤ ÿभािवत करती ह§ । वह उनकì नुमाÆदगी करते हòए,
रायसाहब कì समÖयाओं का िजø जब अपने ÿगितशील सोच-िवचार वाले बेटे गोबर से
करता है तो वह िबफर कर ÿितवाद करता है – ‚यह सब कहने कì बात¤ है । हम लोग
दाने-दाने को मुहताज ह§, देह पर सािबत कपड़े नहé ह§, चोटी का पसीना एड़ी तक आता है,
तब भी गुजर नहé होता । उÆह¤ ³या, मजे से गĥी-मसनद लगाए बैठे ह§, सैकड़Ō नौकर चाकर
ह§, हजारŌ आदिमयŌ पर हòकूमत है । Łपए न जमा होते हŌ, पर सुख तो सभी तरह का भोगते
ह§ । धन लेकर आदमी और ³या करता है?‛
‘तुÌहारी समझ म¤ हम और वह बराबर है?’ munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : कथोपकथन / संवाद
31 ‘भगवान ने तो सबको बराबर ही बनाया ह§ ।’
‘यह बात नहé है बेटा, छोटे-बड़े भगवान के घर से बनकर आते ह§ । संपि° बडी तपÖया स¤
िमलती है । उÆहŌने पूवªजÆम म¤ जैसे कमª िकए ह§, उनका आनÆद भोग रहे ह§ । हमने कुछ नहé
संचा तो भोग¤ ³या?’
‘यह सब मन को समझाने वाली बात¤ ह§ । भगवान सबको बराबर बनाते ह§ । यहाँ िजसके हाथ
म¤ लाठी है, वह गरीबŌ को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता ह§ ।’
‘यह तुÌहारा भरम है । मािलका आज भी चार घंटे रोज भगवान का भजन करते ह§ ।’
‘िकसके बल पर यह भजन भाव और दान-धमª होता है?’
‘अपने बल पर ।’
‘नहé िकसानŌ के बल पर और मजदूरŌ के बल पर । यह पाप का धन पचे कैसे? इसी ए
दान-धमª करना पडता है, भगवान का भजन भी इसीिलए होता है । भूखे-नंगे रहकर भगवान
का भजन कर¤ तो हम भी देख¤ । हम¤ कोई दोनŌ जून खाने को दे, तो हम आठŌ पहर भगवान
का जाप ही करते रह¤ । एक िदन खेत म¤ ऊँख गोड़ना पड़े तो सारी भि³ त भूल जाय ।’’
इस ÿकार होरी और गोबर, िपता और पुý कì यह तािकªकता पूणª बात¤ यह दशाªती ह§ िक
उनके जीवन का यथाथª ³या है । आदशª को िसफª आदशª मान लेने से वह आदशª िसĦ नहé
हो सकता, बिÐक उसे सÂयािपत करना पड़ता है िक वह आदशª िकस तरह से है । ÿेमचंद न¤
गोबर के माÅयम से इस तÃय पर ÿकाश डाला है िक जीवन म¤ भूख और दो जून कì रोटी से
बढ़कर कुछ नहé, न मािलक, न ईÔ वर कì भि³ त , न ही इनसे संबंिधत अÆय वाĆयाडंबर
िवसंगितयाँ और िवडंबनाएँ । साथ ही यह तÃय भी उतना ही ÿमािणत होता है िक संसार म¤
िकसानŌ, मजदूरŌ, दीन-दुिखयŌ के शोषण से बढ़कर दूसरा कोई दुÕकमª, दुराचार, दुÓयªवहार
नहé हो सकता है । िपता-पुý के बीच का यह संवाद सामंतवादी ÿथा और साÌयवादी
िवचारधारा कì आपसी टकराहट है । यहाँ ÿेमचंद गोबर के माÅयम से वगª वैषÌय, वगª-संघषª,
वगª चेतना के ÿित, शोषण कì िविभÆ न पĦितयŌ के ÿित अपने पाठकŌ म¤ जन जागृित लाना
चाहते ह§ ।
ÿेमचंद कृषक समाज कì दुखती रग से भली-भाँती पåरिचत ह§ । वे जानते ह§ िक शोषण के
पहाड़ के नीचे दबे िकसानŌ कì ³या मन: िÖथित है, अब तो वह खुद को इंसान मानने से भी
इंकार करने लगे ह§ । अन तमाम मुĥŌ पर, अपने अतीत, वतªमान, भिवÕय कì बातचीत करते-
करते भोला एक Öथान पर होरी से कहता है – ‚कौन कहता है िक हम तुम आदमी ह§ । हमम¤
आदिमयत कहाँ? आदमी वह है, िजनके पास धन है, अि´तयार है, इÐम है । हम लोग तो
बैल ह§ और जुतने के िलए पैदा हòए ह§ । उस पर एक-दूसरे को देख नहé सकता । एका का
नाम नहé । एक िकसान दूसरे के खेत पर न चढ़े तो कोई जाफा कैसे करे, ÿेम तो संसार से
उठ गया ।
भोला कì यह पीड़ा समú िकसानŌ कì पीड़ा है जो खुद को उदार मानने वाले जमéदार
रायसाहब, उनके कारकूनŌ, सूदखोर साहóकारŌ के शोषण कì अिवÖमरणीय गाथा को कहती munotes.in

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गī
32 है । भोला के संवाद म¤ एक तरह कì बेचारगी, लाचारगी, Ńदय को बेधने वाली पीड़ा þĶÓय
है।
गोदान म¤ कथोपकथन या संवाद łपी नही इतनी अिवरलता से िनरंतर ÿवािहत होती रहती
है िक पाठक वगª को इस बात कì अनुभूित ही नहé होती िक वे कोई उपÆयास पढ़ रहे ह§
बिÐक उÆह¤ ऐसा ÿतीत होता है िक वे पूरे ŀÔय का आँखŌ देखा हाल देख रहे ह§ या इस तरह
कì घटनाएँ उनके आस-पास ही कहé घिटत हो रही ह§ । संवादŌ कì तरलता, सरलता,
सरसता और ÿवाहमयता उपÆयास को सवōÂकृĶ Öतर पर ले जाती है ।
गोदान म¤ नगरीय पåरवेश से जुडे अनेक ऐसे संवाद ह§ जो यह दशाªते ह§ िक गाँव कì कथा,
गाँव के िकसान, िकसान से मजदूर बने ®िमकŌ का तार शहर से िकस ÿकार जुड़ा है,
úामीण पåरवेश और शहरी पåरवेश का तारतÌय बैठाकर दोनŌ पåरवेशŌ के बीच के पाथª³य
और समानताओं को पाठकŌ के सम± रखा गया है ।
उपÆयास म¤ रायसाहब जब Öवंय को िकसानŌ का शुभे¸छु कहते हòए अपने आपको सÂवहीन,
दुबªल, पुŁषाथªहीन और समय और पåरिÖथितयŌ का मोहताज मानते ह§, अपनी जमéदारी
को मजबूरी कì जमéदारी कहते ह§ और इस ÿथा के समाÈ त हो जाने कì कामना करते ह§ तो
ÿो. मेहता जी ताली बजाते हòए कहते ह§ – ‚िहयर िहयर । आपकì जबान म¤ िजतनी बुिĦ है,
काश उसकì आधी भी मिÖतÕक म¤ होती । खेद यहé है िक सब कुछ समझते हòए भी आप
अपने िवचारŌ को Óयवहार म¤ नहé लाते ।’’
ÿो. मेहता राय साहब से पुन: कहते ह§ – ‘भाई, म§ ÿÔ नŌ का कायल नहé । म§ चाहता हóँ,
हमारा जीवन हमारे िसĦाÆतŌ के अनुकूल हो । आप कृषकŌ के शुभे¸छु ह§, उÆह¤ तरह-तरह
कì åरयायत देना चाहते ह§, जमéदारŌ के अिधकार छीन लेना चाहते ह§, बिÐक उÆह¤ आप
समाज का ®ाप कहते ह§ िफर भी आप जमéदार ह§, वैसे ही जमéदार जैसे हजारŌ और
जमéदार ह§ । अगर आपकì धारणा है िक कृषकŌ के साथ åरयायत होनी चािहए, तो पहले
खुद से शुł कर¤ – काÔतकारŌ को बगैर नजराने िलए पĘे िलख द¤, बेगार बंद कर द¤, इजाफा
लगान को ितलांजिल दे द¤, बराबर जमीन छोड़ द¤, मुझे उन लोगŌ से जरा भी हमददê नहé है,
जो बात¤ तो करते ह§ कÌयुिनÖटŌ कì – सी मगर जीवन है रईसŌ का सा, उतना ही
िवलासमय, उतना ही Öवाथª से भरा हòआ ।’
ÿो. मेहता के ये संवाद दशाªते ह§ िक एक बुिĦजीवी के Łप म¤ वे िकस ÿकार जमéदार
रायसाहब के िमý होते हòए भी उÆह¤ खरी-खरी सुनाते ह§ और ÓयवÖथा के इस तÃय का
पदाªफाश करते ह§ िक िसफª आदशªवादी बात¤ करन¤, कÌयूिनÖटो जैसी बात¤ करने से िकसी
भी समÖया का हल नहé िनकाला जा सकता है । कथनी और करनी म¤ समानता-एकłपता
होनी चािहए । ÿोफेसर मेहता अपनी बात¤ िबÐकुल दशªन के एक अÅयापक के अंदाज म¤
करते ह§ ।
ÿेमचंद मानव मनोिव²ान म¤ िसĦÖत ह§ । वे पाýŌ कì योµयता, पåरवेश, वगª, समाज आिद
बातŌ पर अपना Åयान रखते हòए पूरे उपÆयास म¤ संवादशीलता को बनाए हòए ह§ । वे बाल-
मनोिव²ान के गहरे ममª² ह§ । बाल चपल बातŌ पर उनकì गहरी पकड़ ह§ । इसकì एक munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : कथोपकथन / संवाद
33 बानगी उस वĉ देखने को िमलती है जब होरी के घर गाय आ गई है और वह अपनी छोटी
बेटी Łपा को दुलारते हòए अपने दोनŌ भाइयŌ सोभा और हीरा को बुला लाने को कहता है –
‚जरा जाकर देख, हीरा काका आ गए िक नहé । सोभा काका को भी देखती आना । कहना,
दादा ने तुÌह¤ बुलाया है । न आये, हाथ पकडकर खéच लाना ।
łपा ठुनककर बोली – छोटी काकì मुझे डाँटती ह§ ।
काकì के पास ³या करने जाएगी । िफर सोभा बहó तो तुझे, Èयार करती है?
‘सोभा काका मुझे िचढाते ह§ _ _ _ म§ न कहॅूगी ।’
‘³या कहते ह§, बता?’
‘िचढाते ह§ ।’
‘³या कहकर िचढ़ाते ह§ ?’
‘कहते ह§, तेरे िलए मूस पकड़ रखा है । ले जा, भूनकर खाले ।’
‘तू कहती नहé, पहले तुम खा लो, तो म§ खाऊँगी ।’
‘अÌमा मना करती ह§ । कहती ह§, उन लोगŌ के घर न जाया करो ।’
‘तू अÌमाँ कì बेटी है िक दादा कì?
łपा ने उसके गले म¤ हाथ डालकर कहा – ‘अÌमा कì’ और हँसने लगी ।
‘तो िफर मेरी गोद से उतर जा । आज म§ तुझे अपनी थाली म¤ न िखलाऊँगा ।’ - - - - - -
‘अ¸छा तुÌहारी ।’
‘तो िफर मेरा कहना मानेगी िक अÌमा का?’
‘तुÌहारा’
इस तरह होरी और łपा कì बातचीत के माÅयम से एक साधारण पåरवार म¤ होने वाली बात¤
ÖपĶत: नजर आती ह§ िजसम¤ माता-िपता छल से ब¸चŌ को अपने प± म¤ करना चाहते ह§
और बालसुलभ भोले-भाले ब¸चे जहाँ अपना फायदा देखते ह§ उÆहé के प± म¤ चले जाते ह§ ।
लेखक ने गंभीर से गंभीर बौिĦक बातŌ से लेकर ब¸चŌ-सी सरल वाताªलाप को इतने
मनोहारी łप म¤ हमारे सम± रखा है िक पाठक उÆह¤ बार-बार पढना चाहता है ।
इस ÿकार ‘गोदान’ उपÆयास म¤ िविभÆन पाýŌ के संवादŌ से संपÆन ऐसे अनेक ŀĶांत ह§, जो
कथोपकथन कì ŀिĶ से इस कृित को समृĦ बनाते ह§ । गोदान के आिद से लेकर अÆत तक
पाýŌ कì भरमार है । इन पाýŌ के बीच संवादशीलता इतनी रोचक है िक पाठक को कहé
ऊबने नहé देती । कथोपकथन िबÐकुल नदी कì अिवरल धारा के समान सतत ÿवाहमान
है। नदी कì मु´य धारा म¤ िजस ÿकार छोटी-छोटी सहायक निदयाँ आकर िमलती जाती ह§ munotes.in

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गī
34 और नदी कì मु´य धारा को और अिधक चौड़ी, गहरी और ÿवािहत करती ह§, ठीक उसी
ÿकार होरी और धिनया कì कथा और उनके बीच होने वाले संवादो के साथ-साथ गौण
कथानकŌ के पाýŌ कì संवादशीलता, उनकì आपसी Öवाभािवक बातचीत गोदान को और
अिधक ÿभावोÂपादक, समृĦ और रोचक बनाते ह§ । उपÆयास म¤ िनिहत कथोपकथन या
संवादŌ का अÅययन करने के उपराÆत यह कहा जा सकता है िक संपूणª कथोपकथन या
संवाद Öथानानुकूल, िवषयानुकूल, पाýानुकूल, समयानुकूल, भावानुकूल, ÿसंगानुकूल है ।
लेखक ने संवाद लेखन करते समय नÆह¤ ब¸चŌ से लेकर बुजुगŎ के मनोभावŌ और िवचारŌ
का, उनके मनोिव²ान का िवशेष Åयान रखा है । उपÆयास म¤ पÂनी-पित के बीच कì
बातचीत, िपता - पुý, िपता - पुýी, सास - बहó, भाई - भाई, भाई - बहन, ÿेमी - िमका,
जमीदार - िकसान, सूदखोर, महाजन - िकसान, जमéदार – ÿोफेसर – पूँजीपित - संपादक,
उīोगपित मािलक - नौकर, आदशªवादी - यथाथªवादी, पंचायत – जाित – धमª - समाज के
ठेकेदार और गरीब शोिषत िकसान, मजदूर वगª, अÂ याधुिनक युवती - परÌ परागत युवती,
जमीदार के कारकून, लोग - पटवारी आिद के बीच होने वाले अनेक - अनेक संवादŌ से यह
उपÆयास संपृĉ है, समृĦ है िजसकì वजह से कहé बोिझलता और ऊबन का अहसास नहé
होता है । लेखक से úामीण पåरवेश के पाýŌ के संवादŌ और नगरीय ±ेýŌ के पाýŌ के संवादŌ
को िलखते समय उनकì शै±िणक योµयता, आंचिलकता, औपचाåरक - अनौपचाåरक तरीके
से कì गई वाकपटुता, हािजरजवाबी, समरसता, जी-हòजूरी, ÿितरोधाÂमकता , बौिĦक Öतर
पर कì गई तािकªकता आिद का िवशेष Åयान रखा है । िनÕकषªत: कथोपकथन या संवाद कì
ŀिĶ से गोदान अÂयÆत सफल समृĦ और साथ«क उपÆयास है ।
३.३ सारांश गोदान उपÆयास का कथोपकथन या संवाद इसे िशखरÂव ÿदान करता है । उपÆयास म¤ दो
पåरवेशŌ कì कथाएँ øमश: úामीण पåरवेश और शहरी पåरवेश कì कथा समानाÆतर धरातल
पर ÿवािहत होती है । úामीण पåरवेश कì कथा िकसानŌ के साथ होने वाले शोषण का अहम्
दÖतावेज ÿÖतुत करती है िजसके केÆþ म¤ है होरी और धिनया का दुदाªÆत संघषªमय जीवन ।
नगरीय पåरवेश से जुडी कहानी म¤ अनेक गौण पाý ह§ जो िनहायत Öवाथª िसिĦ म¤ िलĮ होते
हòए बड़े-बड़े िसĦाÆतो, उसूलŌ व आदशō कì बात करते ह§ । हालाँिक úाम समाज हो या
शहरी समाज, सवªý िकसानŌ, मजदूरŌ, दीन-दुिख और हर तरह से लाचार लोगŌ के साथ
शोषण ही होता आया है । इन सभी पåरिÖथितयŌ, पåरवेशŌ, समÖयाओं, उĥेÔयŌ को ÿेमचंद
ने संवादŌ के माÅयम से इतनी सहजता, सरलता, सरसता, सजीवता, जीवÆतता,
ÿभावोÂ पादकता के साथ हमारे सम± रखा है िक गोदान एक िवस् तृत फलक का उपÆयास
होने के बावजूद, पाýŌ कì गुंफन होने के बावजूद कहé से भी िशिथल, ऊबाऊ और नीरस
नहé लगता । उपÆयास म¤ अंिकत संवादŌ म¤ अĩुत तारतÌयता, ÿवाहमयता, िवषयानुकूलता,
Öथानानुकूलता, समयानुकूल, पाýानुकूलता एवं ÿसंगानुकूलता िवīमान ह§ । उपÆयास म¤
िजतने पाý ह§ सब के सब िभÆन-िभÆन ह§, अपने अलग-अलग वगª का ÿितिनिधÂव करते ह§ ।
सबकì अपनी-अपनी मानिसकता है, सोच-िवचार है, िचÆ तन है । वे अपने वगª िवशेष से
संयु³ त ह§ । ये पाý हर उă के, हर अवÖथा से संबंिधत ह§ । ÿेमचंद इन सभी के मनोिव²ान
कì गहरी समझ रखते ह§ और इतनी सहजता, Öवाभािवकता से उनके मन:िÖथित को,
उनके िवचारŌ को संवादŌ के माÅयम से पाठकŌ के बीच रखते ह§ िक पाठक अिभभूत हो munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : कथोपकथन / संवाद
35 जाता है । िनÕकषªत: कथोपकथन या संवाद तÂव कì ŀिĶ से गोदान एक सवōÂकृĶ उपÆयास
है ।
३.४ वैकिÐपक ÿÔ न ÿ.१ उपÆयास म¤ िकसके माÅयम से रचना म¤ नाटकìयता का ŀÔय तैयार होता है?
( ) कथा वÖतु, (ख) वÖतु योजना,
(ग) उĥेÔय, (घ) कथोपकथन
उ. (घ) कथोपकथन
ÿ.२ कथोपकथन का मु´य गुण ³या नहé है?
( ) Öवाभािवकता, (ख) ि³लĶता,
(ग) पाýानुकूलता, (घ) ÿसंगानुकूलता
उ. (ख) ि³लĶता
ÿ.३ गोदान म¤ अनेक िकसानŌ कì समÖयाओं को उभारने के बजाय ÿेमचंद का Åयान
िकस पाý पर केिÆþत है?
(क) महाजन, (ख) दातादीन,
(ग) मातादीन, (घ) होरी
उ. (घ) होरी
ÿ.४ जमéदारŌ और महाजनŌ कì धीमे-धीमे, िबना łके चलने वाली च³कì म¤ िपसने के
िलए कौन अिभशĮ है?
(क) िकसान, (ख) दाता दीन,
(ग) ÿो. मेहता, (घ) Öवयं महाजन
उ. (क) िकसान
ÿ.५ यह संवाद िकसका है – ‘यह सब मन के समझाने वाली बात¤ ह§ । भगवान सबको
बराबर बनाते ह§ । यहाँ िजसके हाथ म¤ लाठी है, वह गरीबŌ को कुचलकर बड़ा आदमी
बन जाता है ।’
(क) होरी, (ख) गोबर,
(ग) हीरा, (घ) सोभा
उ. (ख) गोबर munotes.in

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गī
36 ÿ.६ िकसान और मजदूर आजीवन िकस पहाड़ के दबे नजर आते ह§?
(क) शोषण, (ख) अनैितकता,
(ग) कुसंÖकार, (घ) अपसंÖकृती
उ. (क) शोषण
ÿ. ७ यह कथन िकसका है – ‘महाराज, घर म¤ न गाय है, न ब या, न पैसा । यही पैसे ह§,
यही इनका गोदान ह§ ।’
(क) झूिनया, (ख) िसिलया,
(ग) धिनया, (घ) सहòआइन
उ. (ग) धिनया
ÿ. ८ ‘तुम जानते हो, तुमसे ºयादा िनकट संसार म¤ मेरा कोई दूसरा नहé है । म§ने बहòत
िदन हòए, अपने को तुÌहारे चरणŌ म¤ समिपªत कर िदया । तुम मेरे पथ-ÿदशªक हो, मेरे
देवता हो, मेरे गुŁ हो ।’ – यह कथन गोदान के िकस पाý का है?
(क) िसिलया, (ख) झुिनया,
(ग) गोिवÆदी, (घ) मालती
उ. (घ) मालती
ÿ.९ यह कथन िकसका है – ‘यह तुम रोज-रोज मािलकŌ कì खुशामद करने ³यŌ जाते
हो? बाकì न चुके तो Èयादा आकर गािलयाँ सुनाता है, बेगार देनी ही पड़ती है, नजर
नजराना सब तो हम से भराया जाता है । िफर िकसी कì ³यŌ सलामी करो ।’
(क) गोबर, (ख) होरी,
(ग) हीरा, (घ) सोभा
उ. (क) गोबर
ÿ.१० कथोपकथन से उपÆयास म¤ ³या उÂपÆन होता है ?
(क) सजीवता-जीवंतता (ख) ि³लĶता,
(ग) ऊब, (घ) िनराशा
उ. (क) सजीवता-जीवंतता

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ÿेमचंद कृत गोदान : कथोपकथन / संवाद
37 ३.५ लघु°रीय ÿÔ न ÿ.१ कथोपकथन को हम अÆय िकस नाम से जानते ह§?
उ. संवाद, वाताªलाप और बातचीत कथोपकथन के अÆय अथª ह§ ।
ÿ.२ गोदान म¤ िकन िकन पåरवेश कì कथा िचिýत है?
उ. गोदान म¤ úामीण पåरवेश और शहरी पåरवेश कì दो कथाएँ समानाÆतर Łप से
ÿवािहत होती ह§ ।
ÿ.३ गोदान के आरÌभ म¤ िकनके बीच संवाद होता है?
उ. होरी और धिनया जो िक उपÆयास के मु´य कथानायक और नाियका ह§, उनके बीच
संवाद होता है ।
ÿ.४ शहरी पåरवेश कì कथा का मु´य नायक कौन है ?
उ. ÿोफेसर मेहता ह§ ।
ÿ.५ शहरी पåरवेश कì मू´य कथानाियका कौन है ?
उ. डॉ³टर मालती ह§ ।
ÿ.६ गोदान के कथोपकथन कì िवशेषता ³या है ?
उ. ÿसंगानुकूलता, पाýानुकूलता, िवषयानुकूलता और Öवाभािवकता आिद ह§ ।
ÿ.७ उपÆयास गोदान म¤ धिनया के संवादŌ से उसके Öवभाव के िवषय म¤ ³या पता चलता
है?
उ. वह जुझाŁ, मुँहजोर लगती है, वह भावुक संवदेनशील, दयालु और िनडर-िनभêक है।
वह समाज कì या िकसी कì परवाह नहé करती । स¸ची बात¤, Æयाय-अिधकार कì
बात¤ तकª-िवतकª िबÐकुल िनधड़क और आøोश कì मुþा म¤ कहने के कारण सभी
उसे झगड़ालू भी समझते ह§ ।
ÿ.८ कथोपकथन के माÅयम से गोदान म¤ ³या खुलकर हमारे सामने आता है?
उ. सभी पाýŌ का चåरý उनकì िवचारधारा उभर कर सामने आता है ।
ÿ.९ गोदान म¤ कथोपकथन कì ³या भूिमका है?
उ. गोदान म¤ संवादहीनता कì िÖथित म¤ यह उपÆयास सवōÂकृĶ रचना कì ®ेणी म¤
शािमल नहé हो पाता, इतना रोचक इतना ÿासंिगक नहé बन पाता । कथोपकथन
इसे िशखरÂव ÿदान करता है ।
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गī
38 ÿ.१० गोदान म¤ कथोपकथन के माÅयम से मालती के िवषय म¤ ³या जानकारी िमलती है?
उ. डॉ³टर मालती के कई łपŌ के िवषय म¤ जानकारी िमलती है । आरÌभ म¤ उनके
तामसी łप, अÂयाधुिनक Łप से लेकर उ°रो°र िन:Öवाथª सेवा-धमª के कारण देवी
Łप के िवषय म¤ जानकारी िमलती है ।
३.६ बोध ÿÔ न १. गोदान के कथोपकथन पर ÿकाश डािलए ।
२. गोदान म¤ िनिहत संवादŌ कì िववेचना कìिजए ।
३. कथोपकथन कì ŀिĶ से गोदान उपÆयास के महßव पर ÿकाश डािलए ।
४. गोदान का कथोपकथन तÂव उÂकृĶ कोिट का कैसे है? समझाकर िलिखए ।
५. गोदान के úामीण और शहरी पåरवेश के कथोपकथन पर ÿकाश डािलए ।
३.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १. ÿेमचंद और उनका युग – राम िवलास शमाª
२. सािहÂय का उĥेÔय – ÿेमचंद
३. ÿेमचंद – डाँ. सÂयेÆþ (सं.)
४. ÿेमचंद का संघषª – ®ी नारायण पांडेय
५. कलम का मजदूर – मदन गोपाल
६. कलम का िसपाही – अमृतराय
७. कलम का मजदूर : ÿेमचंद – राजेÔ वर गुł
८. कलाकार ÿेमचंद – रामरतन भटनागर
९. कुछ िवचार – ÿेमचंद
१०. गोदान : एक पुनिवªचार – परमानंद ®ीवाÖतव
११. गोदान : नया पåरÿेàय – गोपाल राय
१२. सािहÂय का भाषा िचÆतन – सं. वीणा ®ीवाÖतव
१३. ÿेमचंद – सं. सÂयेÆþ (‘ÿेमचंद’ म¤ संकिलत डॉ. िýभुवन िसंह का िनबंध
‘आदशōÆमुख यथाथªवाद’)
१४. ÿेमा®म – ÿेमचंद
१५. ÿित²ा – मुंशी ÿेमचंद
***** munotes.in

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39 ४
ÿेमचंद कृत गोदान : िशÐप और भाषा शैली
इकाई कì łपरेखा
४.० इकाई का उĥेÔय
४.१ ÿÖतावना
४.२ गोदान : िशÐप और भाषा-शैली
४.३ सारांश
४.४ वैकिÐपक ÿij
४.५ लघू°रीय ÿij
४.६ बोध ÿij
४.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
४.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई का उĥेÔय गोदान के िशÐप और भाषा शैली पर ÿकाश डालना है । िकसी भी
सािहÂय कì संरचना करने कì एक शैली होती है िजसके िलए उपयुĉ भाषा कì आवÔयकता
होती है । िबना ÿसंगानुकूल, पाýानुकूल भाषा के कोई भी रचना अपने लàय कì ÿािĮ नहé
कर सकती है । इस इकाई म¤ इसी बात कì चचाª कì गई है ।
४.१ ÿÖतावना गोदान िशÐप कì ŀिĶ से एक सशĉ बेजोड़ उपÆयास है । इसका कथानक अÂयÆत िवÖतृत
है, इसिलए ÿसंग के अनुसार उनका िशÐप भी पåरवितªत होता रहता है । पाýŌ के मनोभावŌ
के अनुłप भाषा-शैली बदलती रहती है मसलन कहé ÿेमचंद पाýŌ का िववरण देते समय वे
रेखािचý शैली का ÿयोग करते ह§ तो कहé िवषयवÖतु का िवĴेषण करते वĉ िववरणाÂमक
शैली का ÿयोग करते ह§ । कहé भावनाÂमक शैली का ÿयोग करते ह§ तो अनेक ÖथानŌ पर
अलंकाåरक शैली का ÿयोग अÂयंत संजीदगी से करते ह§ । इस इकाई म¤ इन पर और िवÖतृत
िववेचना कì गई है ।
४.२ गोदान : िशÐप और भाषा-शैली िकसी भी सािहÂय के सÌयक अÅययन हेतु उसके िशÐप और भाषा-शैली को जानना -
समझना अित आवÔयक है । िजस तरह से कोई भी सािहÂयकार अपने सािहÂय को सृिजत
करता है, िजस ŀिĶ, भाव और तकनीक से अपने सािहÂय कì बुनावट करता है और हमारे
सम± उसे ÿÖतुत करता है उसे ही रचना का िशÐप िवधान कहते ह§ । ÿेमचंद एक ऐसे
उपÆयासकार है िजनके उपÆयासŌ के िशÐप का मु´य उĥेश पाठक वगª को अपनी कथा को
ÖपĶ łप से समझाना, अपने पाýŌ से सीधा सा±ाÂकार करवाना है । munotes.in

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आधुिनक गī
40 ÿेमचंद के सवª®ेķ उपÆयास ‘गोदान’ के िशÐप का मु´य उĥेÔय पाठक वगª को úामीण कथा
और शहरी कथा से तÂकालीन सामािजक, राजनीितक, आिथªक, पाåरवाåरक पåरिÖथितयŌ
से सा±ाÂकार करवाना है । उपÆयास म¤ दो कथाएँ समानाÆतर łप से ÿवािहत होती ह§ । एक
कथा úामीण जीवन के पाýŌ कì कथा है और दूसरी नगरीय जीवन को Óयĉ करती है । दोनŌ
को जोड़ने वाले सेतू ह§ जमéदार रायसाहब, अमरपाल िसंह और होरी का पुý गोबर ।
रायसाहब जमéदार होने के कारण जहां एक तरफ गाँव के िकसानŌ से, úामीण लोगŌ से जुड़े
ह§ तो वहé दूसरी तरफ रईस–धनाढ्य होने के कारण शहर के बुिĦजीिवयŌ, उīोगपितयŌ
और शासन ÿशासन से जुड़े लोगŌ के साथ भी उनका उठना-बैठना है । वे úामीण िकसानŌ
का शोषण करते हòए अपने नगरीय िमýŌ के बीच िकसानŌ के बहòत बड़े शुभे¸छु, हमददª बनते
ह§ । गोबर युवा úामीण िकसान है, मु´य कथानायक होरी का पुý है । गांव म¤ खेती करते-
करते गांव के भयावह शोषण से तंग आकर काम कì तलाश म¤ मेहनत-मजूरी करने शहर कì
ओर पलायन करता है । वहाँ भी शोषण होने के कारण पुँजीपितयŌ से टकराता है । अंत म¤
उपÆयास म¤ शहरी जीवन िक मु´य नाियका डॉ. मालती के यहां काम करता है । वहé रहता
है । इस ÿकार, रायसाहब और गोबर ऐसे पाý ह§ जो उपÆयास के दोनŌ पåरवेशŌ कì कथा को
आपस म¤ जोड़ते ह§।
लेखक ने गोदान म¤ मु´य कथा जो िक कथानायक होरी के कृषक जीवन कì संघषª गाथा है,
के साथ-साथ कई गौण कथाओं का समावेश िकया है । ये कथाएं, घटनाएं होरी कì मु´य
कथा के साथ ऐसे िमल जाती ह§ जैसे िक िकसी भी बड़ी नदी म¤ छोटी-छोटी सहायक निदयां
आकर इस ÿकार िमल जाती है िक उसके बाद उनके जल म¤ अंतर Öथािपत नहé हो पाता ।
ठीक इसी ÿकार होरी-धिनया के ÿाणाÆ तक संघषª के साथ-साथ अÆय पाýŌ कì कहािनयां
गोदान कì कथावÖतु को सशĉ बनाती ह§ ।
हालाँिक गोदान के िशÐप को लेकर िविभÆन िवĬानŌ, आलोचकŌ, समी±कŌ के िभÆन िवचार
ह§ । िहंदी सािहÂय के ममª² नंददुलारे बाजपेयी, रामिवलास शमाª एवं गुलाब राय जैसे
आलोचक गोदान के कथानक के िबखराव को उपÆयास का िशÐपगत दोष मानते ह§ । इस
संबंध म¤ शांित िÿय िĬवेदी का मानना है - “नगर कì कथा से जुड़े कई अंश यिद उपÆयास से
िनकाल िदए जाएँ तो उपÆयास का आकार भी संतुिलत हो जाएगा और कथानक म¤ कसावट
भी आ जाएगी।” उदाहरण Öवłप - यिद ओंकारनाथ को शराब िपलाने का मुĥा, िशकार व
िपकिनक पाटê, कबड्डी ÿितयोिगता, िमजाª से जुड़े ÿसंग, खÆना-गोिविÆद का वैवािहक
जीवन, खÆना कì उ¸घृंखलता, िľयŌ पर िदए जाने वाले भाषण यिद नहé होते तो भी
उपÆयास ‘गोदान’ का जो महÂव है, वही रहता । ये सभी ÿसंग अनावÔयक लगते ह§ । इसके
साथ ही मालती जी और ÿो. मेहता का ÿसंग भी गोदान कì कहानी का िहÖसा नहé लगता ।
यिद ÿेमचंद िसफª ‘िकसानŌ के शोषण’ कì कहानी तक भी यिद िवषय को सीिमत रखते
तथा शहरी ÿसंगŌ से जुड़े मुĥŌ को िलखकर अिभÓयĉ करने नहé करते, Öवयं को संयिमत
कर लेते, इनका Âयाग कर लेते, तो गोदान कì कथा म¤ अिधक कसावट आ सकती थी ।
इसी संबंध म¤ आलोचक नंददुलारे बाजपेयी िलखते ह§ - ‘गोदान के नागåरक और úामीण पाý
एक बड़े मकान के दो खंडŌ म¤ रहने वाले दो पåरवारŌ के समान है, िजनका एक दूसरे के
जीवन से बहòत कम संपकª है । वे कभी-कभी आते-जाते िमल लेते ह§, और कभी-कभी िकसी
बात पर झगड़ा भी कर लेते ह§, परÆतु न तो उनके िमलने म¤ न झगड़े म¤ ही कोई ऐसा संबंध
Öथािपत होता है िजसे Öथायी कहा जा सके ।” munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : िशÐप और भाषा शैली
41 कितपय िवĬानŌ का मानना िबलकुल िभÆन है । कुछ िवĬान आलोचक कहते ह§ िक ÿेमचंद
कì रचना गोदान कì बुनावट, उसकì संरचना इसिलए ऐसी है ³यŌिक वे भारतीय जीवन-
दशªन, भारतीय जीवन मूÐय समेत समú भारतीय समाज को गोदान म¤ अिभÓयĉ करना
चाहते थे । वे तÂकालीन समय म¤ ÿचिलत औपÆयािसक ÖथापÂय शैिलयŌ के माÅयम से
रंगभूमी, कमªभूिम, ÿेमा®म आिद उपÆयासŌ कì संरचना कर चुके थे । आलोचक निलन
िवलोचन शमाª ने अपनी पुÖतक 'गोदान: नया पåरपेàय' म¤ िलखा है - “उनकì (ÿेमचंद) यह
उपलिÊध गोदान का ÖथापÂय है िजसम¤ एक साथ ही एक दूसरे से िवि¸छÆन úाम-भारत
और नगर-भारत और बलात úिथत भी हो जाते ह§ और िवकलांग भी नहé होते ।” निलन
िवलोचन शमाª ने गोदान के िशÐप को एक नयी ŀिĶ और नयी िदशा दी है । उनका मानना है
िक ÿेमचंद साăाºयवादी-सामंतवादी ÓयवÖथा म¤ िकसानो-मजदूरŌ के शोषण का सवा«गीण
łप हमारे सम± रखा है और इसके िलए úामीण जीवन के साथ शहरी जीवन-जगत को
िचिýत करना आवÔयक है । इसे इसी łप समझना चािहए । निलन िवलोचन शमाª के
िवचारŌ से अनेक िवĬान् सहमत ह§ ।
वाÖतव म¤ 'गोदान' उपÆयास भारतीय जीवन को समúता म¤ ÿÖतुत करने का एक साथªक,
सफल और उĥेÔयपरक उपÆयास है । उपÆयास म¤ ÿेमचंद ने दशाªया है िक गाँव के सामंती
ÓयवÖथा के शोषण से ýÖत होकर िकसान, दूसरŌ कì मजदूरी करने पर मजबूर हो जाते ह§ ।
िहरा-धिनया उनकì दोनŌ बेिटयाँ गाँव म¤ मजदूरी करती है, तो वहé गोबर का गाँव से मोह भंग
होता है और वह शहर म¤ मजदूरी करने के िलए पलायन करता है । यिद शहर जाने के बाद
वह पुँजीवादी ÓयवÖथा-औīोिगक ÓयवÖथा को नहé जानेगा-समझेगा, अपने नगरीय
कमªभूिम के सÂय से वािकफ नहé होगा तो उपÆयास कì कथा अवÔय ÿभािवत हो सकती
थी । इसिलए ÿेमचंद ने úामीण समाज के साथ-साथ शहरी समाज के अनेक मुĥŌ को
उपÆयास म¤ उठाया है, िनÌन मÅय वगª, मÅय वगª और पुँजीपितयŌ कì चाåरिýक दुबªलता को,
कृषकŌ-मजदूरŌ के शोषण म¤ ÿÂय±-अÿÂय± łप से िलĮ लोगŌ कì िहÖसेदारी को, शोषक
और शोिषत दोनŌ वगŎ के जीवनमूÐयŌ, नैितक मूÐयŌ, चाåरिýक किमयŌ और िवशेषताओं
का दशाªया है ।
ÿेमचंद ने 'गोदान' उपÆयास कì संरचना के िलए परंपरागत शैली, कथा शैली, रेखािचý
शैली, ŀÔय शैली, Éलैशबैक शैली, भावाÂमक, िवचाराÂमक शैली, िकÖसागोई शैली, ÖवÈन
शैली, पाýŌ के अÆतमªन म¤ ÿवेश करने हेतु या अÆय िवÖतारीकरण के िलए िववरणाÂमक
शैली, वणाªÂमक शैली, उपदेशाÂमक शैली, आÂम-िवĴेषणाÂमक शैली और िववेचनाÂमक
शैली आिद तकनीक व ÿिविध का उपयोग इतनी सूàमता से िकया है िक कई औपÆयािसक
िशÐप कì ÿिविधयाँ या तकनीक एक साथ ÿवािहत होती ह§, साथ चलती है । सभी शैिलयाँ
िमि®त łप से हमारे सम± ऐसे आती ह§ िक हम¤ पता ही नहé चलता िक ये शैिलयाँ
पåरवितªत हो चुकì ह§ । लेखक ÿेमचंद ÿसंगानुसार इन शैिलयŌ म¤ पåरवतªन इस ÿकार से
इतनी सहजता से करते ह§ िक पाठकŌ को पता ही नहé चलता ।
ÿेमचंद एक ÿिसĦ िकÖसागो ह§ और परंपरागत कथा शैली के माÅयम से बारÌबार अपने
पाठकŌ से बितयाते ह§ । गोदान उपÆयास म¤ भी वे बार-बार ÿÂय± łप अपने पाठकŌ को
संबोिधत करते ह§, अपनी धारणा, िवचार और भावािभÓयिĉ से पाठकŌ तक अपनी बात
पहòँचाते ह§ । वे एक कथाकार कì तरह नेपÃय म¤ न रहकर अपने पाýŌ के माÅयम से अपनी munotes.in

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आधुिनक गī
42 बात, अपने िवचार या टीका-िटÈपणी रखते ह§ । वे इस बात का ´याल रखते ह§ िक अपनी
बात रखते समय उनकì मु´य कथा ÿभािवत न हो ।
इस ÿकार कह सकते ह§ िक गोदान का िशÐप अनेक ÿिविधयŌ से संरिचत और संगिठत है।
िशÐप कì समÆवयाÂमकता अĩुत है । उपÆयास का िशÐप इसके उĥेÔय को संपूणªता ÿदान
करने म¤, अपने लàय तक पहòँचने सौ िफसदी अपनी सिøय भूिमका िनभाता है ।
गोदान उपÆयास कì भाषा शैली अपने आप म¤ अनूठी, अिĬतीय है । गोदान एक वृĦाकार
उपÆयास है िजसम¤ पाýŌ कì सं´या ७० (स°र) के आस-पास है । इन पाýŌ म¤ कुछ úामीण
पåरवेश के ह§ तो कुछ पाýŌ का संबंध शहर से है । गाँव और शहर म¤ रहने वालŌ कì जीवन
शैली, भाषा शैली िभÆन-िभÆन होती है । ÿेमचंद ने दोनŌ पåरवेश म¤ रहने वाले पाýŌ कì
भाषा-शैली को इतनी सहजता, सरलता, सरसता और Öवाभािवकता से हमारे सम± रखा है
िक ÿÂयेक वगª को ये पाý अपने सरीखे ही ÿतीत होते ह§ । ÿेमचंद अपनी भाषा को स±म
और ÿवाहपूणª बनाने के िलए अनेक अÿÖतुत ŀÔयŌ, ŀĶाÆतŌ, िबÌबŌ, ÿतीकŌ आिद को
आधार बनाकर ÿसंगानुकूल Óयĉ करते ह§ । इसके साथ ही पाýŌ को Åयान म¤ रखते हòए वे
गंवई भाषा, उदूª, अंúेजी के शÊदŌ का यथोिचत ÿयोग करते है ।
गोदान म¤ लगभग ७० पाýŌ म¤ ÿेमचंद ने ÿाय: ÿÂयेक पाý कì बाहरी Łपरेखा, कदकाठी
और उसके आंतåरक गुणŌ का बखान बहòत संजीदगी से, बड़े मनोवेग से िकया है । जैसे िक -
१) रायसाहब रंगे िसयार ह§ ।
२) धिनया बहार से इÖपात जैसी कठोर पर भीतर से मोम जैसी मुलायम है ।
३) मालती बाहर से िततली पर भीतर से मधुम³खी है ।
४) नाटे, मोटे, खÐवाट, काले, लÌबी, नाक और बड़ी-बड़ी मूंछŌ वाले आदमी थे, िबÐकुल
िवदूषक जैसे और थे भी बड़े हँसोड़ (गाँव के इंगुरी िसंह के बारे म¤)
५) मालती के िवषय म¤ ÿेमचंद का कथन - "गात कोमल, पर चपलता कूट-कूटकर भरी
हòई । िझझक या संकोच का कहé नाम नहé, मेक-अप म¤ ÿवीण, बला कì हािजर-जवाब,
पुŁष-मनोिव²ान कì अ¸छी जानकर, आमोद-ÿमोद को जीवन का तÂव समझनेवाली,
लुभाने और åरझाने कì कला म¤ िनपुण । जहाँ आÂमा का Öथान है, वहाँ ÿदशªन ; जहाँ
Ńदय का Öथान ह§, वहाँ हाव-भाव, मनोदगारŌ पर कठोर िनúह, िजसम¤ इ¸छा या
अिभलाषा का लोप-सा हो गया।" यँहा ÿेमचंद पाठकŌ से ÿÂय± łप से िमस मालती
का सवा«गीण पåरचय Öवत: करवाते है । इसी तरह वे अनेक पाýŌ का सा±ाÂकार
करवाते ह§ । ÿÂयेक पाý का बाहय और आतंåरक łप िवĴेिषत करते है।
गोदान म¤ सभी पाýŌ कì भाषा उनके चåरý के िबÐकुल अनुकूल है, उनकì मानिसकता के
अनुकूल है । जैसे होरी और धिनया, िहरा और पुिनया, गोबर और झुिनया, दाÌपÂय जीवन म¤
होने वाले खĘे-मीठे नŏक-झŌक करते रहते ह§, जीवन संघषª से जूझते हòए, मुलभुत
आवÔयकताओं के िलए िनरंतर मेहनत करते हòए अनेक बार बुरी तरह लड़ पड़ते ह§ । पित,
पÂनी कì जमकर िपटाई करते ह§ तो पिÂनयाँ भी अपने Óयंµयवाण, कटा±, जीवन सÂय को munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : िशÐप और भाषा शैली
43 øोधावेश म¤ सुनाती जाती ह§ । øोध के आवेश म¤ उनका संयम टूट जाता है और गाली -
गलौच भी जमकर होती है । ÿेमचंद ने इन तमाम मुĥŌ को इतनी सहजता और Öवाभािवकता
से पाठकŌ के सम± रखा है िक पाठकŌ को यह िबÐकुल आँखŌ देखा हाल जैसा ÿतीत होता
है । उदहारण Öवłप जब गोबर अपनी पÂनी झुिनया को शहर ले जाने कì बात कहता है तो
धिनया को लगता है िक ब¸चा अभी छोटा है उसे परेशानी हो सकती है लेिकन यही बात
इतनी टूल पकड़ लेती है िक गोबर अपने माँ-बाप के परवåरश पर ÿij िचÆह लगाता है और
धिनया यािन िक उसकì माँ जमकर उसका ÿितरोध करती है । वह अपने बेटे के नीयत को
बदल जाने म¤ अपनी बहò को दोषी मानती है । इस पुरे संúाम म¤ ताने-मेहने, गली-गलौच,
धु³का-फजीहत, डंक जैसी कोई बात नहé बची । यह ÿसंग तब से लेकर आजतक, शायद
भिवÕय तक घर-घर कì कहानी है । ऐसे अनेक ÿसंग अनेक संवाद ऐसे ह§ िजनसे पाठक
Öवयं को जोड़कर देखता है, आÂमानुभूितयाँ करता है ।
गोदान कì भाषागत िवशेषताओं म¤ इसम¤ ÿयुĉ मुहावरे और लोकोिĉयाँ चार-चाँद लगा देते
देते ह§ । ÿेमचंद कì रचनाएँ Öवयं म¤ मुहावरे-लोकोिĉयŌ और सूिĉयŌ का खजाना ह§ । कुछ
लोकोिĉ, मुहावरे कì बानगी - साठे म¤ पाठा होना, पाँव तले गदªन दबी होना, मुँह म¤ कािलख
लगाना, मुँह म¤ ताला पड़ा होना, ईंट का जवाब पÂथर से देना, नाक पर म³खी न बैठने देना,
िबन घरनी घर भूत का डेरा, मन भाय मुड़ी िहलाय, काठ का कलेजा होना, िबÐली के भागो
छéका टूटा, नमक हराम होना, मूँड़ी काटना, मुँह लगाना, हाथ-पैर तोड़कर बैठना, नमक
िमचª लगाना, उÐलू बनाना, उंगिलओं पर नचाना इÂयािद ।
उपÆयास म¤ सूिĉयŌ कì कुछ बानगी:
१) कजª वह मेहमान है एक बार आकर िफर जाने का नाम नहé लेता ।
२) जो कुछ अपने से नही बन पड़ा उसी के दुख का नाम तो मोह है ।
३) रोिटयाँ ढाल बनकर अधमª से हमारी र±ा करती ह§ ।
गोदान के संवांदो म¤ संि±Įता भी þĶÓय है जैसे िक गोबर और झुिनया जब पहले िमलते ह§ ।
तो बितयाते ह§ -
'तुम मेरे हो चुके, कैसे जानूँ ?'
'तुम जान भी चाहो, तो दे दूँ ।'
'जान देने का अरथ भी समजते हो ?'
'तुम समझा दो न ।'
'जान देने का अरथ है, साथ रहकर िनबाह करना । एक बार हाथ पकड़कर उिमर-भर िनबाह
करते रहना ; ……….'
इस ÿकार गोदान कì भाषा संि±Įता, पाýानुकूलता, ममªÖपिशªता, भावाÂमकता और
नाटकìयता के गुणŌ से युĉ है । अनेक ÖथानŌ पर लÌबे-लÌबे संवाद भी आए ह§ परÆतु वे
गंभीर और िवषयानुकूल ह§ । उपÆयास कì भाषा शैली म¤ दाशªिनकता का भाव, अĩुत munotes.in

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आधुिनक गī
44 तािकªक ±मता, ýासदी कì यथाथª ÿÖतुित, बौिĦक चचाª - पåरचचाª आिद के कारण भाषा
और अिधक समृĦ और संपÆन हòई है । यह दशाªता है ÿेमचंद भाषा पर अपनी गहरी पकड़
रखते ह§ । इनकì भाषा गूढ़, गहन, गंभीर, ÿौढ़, पåरमािजªत, ÿभावोÂपादक और अÂयÆत
स±म व समथª है ।
ÿेमचंद के गाँव म¤ रहनेवाले पाý इन गंवई और तĩव शÊदŌ का ÿयोग करते ह§ - असुभ,
बरखा, अरथ, िनबाह, उिमर, जैजात, सुभ, साइत, जैजात, परमेसर, जतन, सोभा, परेम,
सांसत, िहÖट-पुÖट, िपंिसन, िभनसार, गोड़ना, घामड़, अढ़ौना, चंगेरी, िटकौना, उटॅंगी,
पगिहया, असीम, िटकाय, मरजाद, सवªस, रा¸छिसन, मूंडी, मरदूमी, इलम, लालिचन,
परसाद, सीसा इÂयािद ।
इसी ÿकार ÿेमचंद कì इस कृित म¤ तÂसम शÊदŌ कì भी भरमार है, मसलन - शुभे¸छु,
यौवन, िवधुर, उÆमाद, पराकाķा, धेÍय, ÖवािदĶ, क°ªÓय, पåरÂयाग, िवकृित, िनĬªÆĬ,
िनÔशंक, आसिĉ, मनÖवी, ÿाणी, वृि°, गभªवती, अंत:करण, दुवाªसना, षोडशी, िनवृ°,
कुँवर, आÂमीय, भाµयोदय इÂयािद ।
इसी ÿकार पाýा नुसार गोदान म¤ अंúेजी शÊदŌ कì भी बहòलता है यथा - डायरे³टर,
िफलॉसफर, हानª, एले³शन, कÌयूिनÖट, युिनविसªटी, इÔयोरेÆस, ब§क, मेडल, शेयर, ůेजेडी,
पॉिलसी, फेवर, िविजट, कŏिसल, िमिनÖटर, लाडª, कमीशन, अÐटी मेटम, मैनीफेÖटो,
Ìयूिनसपैिलटी, िमÖटर, िहज, ए³सेल¤सी, Busines is business , Three cheers for
Rai Sahib, Hip Hip Hurrah! लेडी, फादर इÂयािद ।
उपÆयास गोदान म¤ उदूª शÊदŌ का ÿयोग बहòतायत से िकया गया है जैसे िक - जवाब, हसीन,
बेमुरÊवती, खुशामद, åरआयत, åरयायत, िखलाफ, इÐम, तारीफ, मुआमला, िसफाåरश,
दÉतर, बे-तरह, हािजरी, पुरजा, शौक, शािगªद, बेकþी, अफ़सोस, िजø, साहब, शरीक,
परवाह, बेिफøì, बेइºजती, रकम, बदनाम, हैिसयत, अि´तयार, अरदब, खुदा, दराज़,
खुशिमजाज, बÆदोबÖत, काåरÆदा, वसूल, जवाँमरदी, हò³काम, फåरयाद, नमाज,
ताÐलुकेदार, तहकìकात, मुरौबत, मुलािजम, जुमाªना, हक़, परवाह, मुलाहजे, नाहक जैसे
अनिगनत शÊदŌ कì भरमार है ।
इस ÿकार िनÕकषªत: कहा जा सकता है गोदान िशÐपगत, भाषा-शैली गत ŀिĶ से एक
सशĉ, समृĦ और समथª उपÆयास है । लेखक के िवचारŌ-भावनाओं को अिभÓयिĉ ÿदान
करने म¤ भाषा-शैली और िशÐप कì महßवपूणª भूिमका है, जो िक गोदान के उĥेÔय को पूणªत:
सफल बनाती है । िशÐप कì िविवध ÿिविधयाँ, शैली कì वैिवÅयता, भाषा कì वाµवैिदµधता
गोदान को सवōÂकृĶ उपÆयासŌ म¤ सिÆनिहत करने म¤ पूरी तरह से सफल है ।
४.३ सारांश 'गोदान' उपÆयास िशÐपगत, भाषा-शैली गत ŀĶी से एक अÂयÆत समृदध, समथª और रोचक
उपÆयास है जो लेखक ÿेमचंद के उĥेÔय को पूणªत: सफलता ÿदान करती है ।
उपÆयास 'गोदान' म¤ लेखक ने एकािधक ÿिविधयŌ का, िविभÆन शैलीयŌ का इतना सुÆदर
समायोजन िकया है िक पाठकŌ को यह अहसास ही नहé होता िक ÿसंगानुकूल लेखक ने munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : िशÐप और भाषा शैली
45 कब ÿिविधयŌ व शैिलयŌ म¤ बदलाव कर िदया है । चाहे शहरी समाज हो या िफर úामीण
समाज, सामंत ÓयवÖथा हो या िफर पूंजीवादी ÓयवÖथा ÿेमचंद िविभÆन कथानकŌ के
माÅयम से तÂकालीन जीवन सÂय को उĤािटत करते ह§, जमéदार ÿथा के उÆमूलन पर जोर
डालते ह§ और अपनी लोकतांिýक ŀिĶ को पाठकŌ के सम± रखते ह§ । हालाँिक गोदान के
िशÐप पर िवĬानŌ के मत भी िभÆन-िभÆन है लेिकन इसके काट्य तकª भी हमारे सम± पूरी
तािकªकता के साथ उपलÊध ह§ । िजनका िववेचन इस इकाई म¤ िवÖतृत łप से िकया गया
है।
उपÆयास 'गोदान' म¤ भारतीय कृषक कì संघषª गाथा को यथाथª परक शैली म¤ ÿÖतुत करता
है । उपÆयास म¤ मु´यत: दो पåरवेश कì कथाएँ समानाÆतर चलती ह§, इसके अितåरĉ अÆय
कहािनयाँ भी होरी-धिनया कì मु´य कथा के साथ-साथ चलती ह§ । िजस ÿकार गंगा कì
छोटी-छोटी सहायक निदयाँ गंगा को और समृĦ करती ह§ और गंगा नदी भी अपनी छोटी
छोटी सहायक निदयŌ को समृĦ बना देती ह§ ठीक उसी ÿकार होरी-धिनया कì संघषª गाथा
उपÆयास कì सभी कमजोर किड़यŌ पर हावी पड़ती ह§, भारी पड़ती ह§ ।
गोदान म¤ ÿेमचंद ने रेखािचý शैली िकÖसागो शैली, िववरणाÂमक शैली, आÂमिवĴेषण
शैली, िववेचनाÂमक शैली, Éलैशबैक शैली, ŀÔयाÂमक शैली, ÖवÈन शैली, उपदेशाÂमक
शैली आिद का ÿयोग अÂयंत सहजता से ÿसंगानुसार िकया है ।
भाषा-शैली सहज, सरल, सरस, ÿभावोÂपादक है । भाषा ÿसंगानुकूल, पाýानुकूल,
पåरवेशानुकूल, समयानुकूल है । कथानक के कथोपकथन या संवादŌ म¤ सजीवता, संि±Įता,
ÿवाहमयता जैसे गुण भी िवīमान है ।
गोदान कì भाषा म¤ संÖकृत के तÂसम शÊदŌ, अंúेजी शÊदŌ, उदूª के शÊदŌ, मुहावरŌ,
लोकोिĉयŌ और सूिĉयŌ कì बहòलता भाषा को और अिधक समृĦ बनाती ह§ ।
अंततोगÂवा, यह कहा जा सकता है िक गोदान िशÐप और भाषा शैलीगत ŀिĶ से एक सशĉ
उपÆयास है ।
४.४ वैकिÐपक ÿij ÿ.०१ उपÆयास गोदान का कथानक कैसा है ?
क) वृहद ख) लघु
ग) संि±Į घ) काÐपिनक
उ. क) वृहद
ÿ.०२ िजस तकनीक, ŀिĶ और भावानुभूितयŌ से सािहÂय कì संरचना कì जाती है उसे
³या कहते ह§?
क) कथावÖतु ख) िशÐप
ग) भाषा घ) समÖया munotes.in

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आधुिनक गī
46 उ. ख) िशÐप

ÿ.०३ गोदान म¤ पाýŌ कì सं´या लगभग िकतनी है ?
क) २५ ख) २८
ग) ४५ घ) ७०
उ. घ) ७०
ÿ.०४ गोबर िकसका पुý है ?
क) हीरा ख) सोभा
ग) धिनया घ) िसिलया
उ. ग) धिनया
ÿ.०५ कितपय िवĬान आलोचकŌ कì ŀिĶ म¤ गोदान म¤ ³या िशÐपगत दोष है ?
क) िबखराव ख) अरोचकता
ग) भाषा घ) उĥेÔय हीनता
उ. क) िबखराव
ÿ.०६ कितपय िवĬान आलोचकŌ के अनुसार गोदान म¤ कौन-सा ÿसंग रहना चािहए।
क) िमजाª से जुड़े ÿसंग ख)खÆना का Óयिĉगत जीवन
ग) होरी-धिनया से संबंिधत कथा घ) मेहता के िľयŌ पर भाषण
उ. ग) होरी-धिनया से संबंिधत कथा
ÿ. ०७ कुछ आलोचकŌ के अनुसार गोदान का कौन-सा ÿसंग अनावÔयक है ?
क) होरी-धिनया का ÿसंग ख) गोबर-झुिनया ÿसंग
ग) खÆना और िमजाª खुश¥द का ÿसंग घ) होरी-भोला ÿसंग
उ. ग) खÆना और िमजाª खुश¥द का ÿसंग
ÿ. ०८ गोदान म¤ 'रंगे -िसयार ' िकसे कहा गया है ?
क) होरी ख) मेहता
ग) धिनया घ) रायसाहब
उ. घ) रायसाहब munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : िशÐप और भाषा शैली
47 ÿ. ०९ गोदान म¤ 'बहार से इÖपात जैसी कठोर पर भीतर से मोम जैसी मुलायम' िकसे कहा
गया है?
क) धिनया ख) झुिनया
ग) पुिनया घ) िसिलया
उ. क) धिनया
ÿ. १० गोदान म¤ बहार से िततली पर भीतर से मधुम³खी िकसे कहा गया है?
क) मालती ख) गोिवÆदी
ग) झुिनया घ) िसिलया
उ. क) मालती
४.५ लघु°रीय ÿij ÿ.०१ िशÐप कì ŀिĶ से गोदान िकस तरह का उपÆयास है ?
उ. िशÐप कì ŀिĶ से गोदान एक सशĉ और बेजोड़ उपÆयास है ।
ÿ.०२ ÿेमचंद गोदान म¤ अपनी भाषा को कैसे स±म बनाते है?
उ. ÿेमचंद भाषा को स±म बनाने के िलए अÿÖतुत ŀÔयाÂमकता, ŀĶाÆतŌ, ÿतीकŌ,
िबÌबŌ को आधार बनाते है ।
ÿ.०३ गोदान कì भाषा-शैली कैसी है?
उ. गोदान कì भाषा शैली पाýानुकूल, ÿसंगानुकूल, सरल, सहज, ÿभावोÂपादक और
पाýŌ के मन:िÖथित के अनुकूल है ।
ÿ.०४ गोदान म¤ पाýŌ का िचýण ÿेमचंद ने कैसे िकया है ?
उ. ÿेमचंद ने गोदान म¤ ÿÂयेक पाý कì बाĻ Łपरेखा और आंतåरक गुणŌ-दुगुªणŌ का
िचýण बहòत मनोवेग से िकया है ।
ÿ.०५ ÿेमचंद ने गोदान म¤ कजª कì उपमा िकससे दी ह§?
उ. ÿेमचंद के अनुसार कजª वह मेहमान है जो एकबार आकर िफर जाने का नाम नहé
लेता ।
ÿ.०६ होरी जैसे पाý आजीवन िकससे úिसत थे ?
उ. होरी जैसे पाý जमéदारŌ और सूदखोर साहóकारŌ महाजनŌ के शोषण, कज¥, उनके
अÆयाय, अÂयाचार से úिसत थे । munotes.in

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आधुिनक गī
48 प.०७ गोदान म¤ िकसकì गाथा का िचýण हòआ है?
उ. िकसानŌ के शोषण कì गाथा का िचýण हòआ है ।
ÿ.०८ गोदान म¤ िकन शैिलयŌ का ÿयोग हòआ है ?
उ. ŀÔयाÂमक, िकÖसागो, रेखािचý, िववरणाÂमक, आÂमिचंतन, िवचाराÂमक,
भावनाÂमक शैली आिद का ÿयोग हòआ है ।
ÿ.०९ ÿेमचंद के िकस उपÆयास को गोदान कì पूवª पीिठका कहा जाता है?
उ. ÿेमा®म को गोदान कì पूवª पीिठका कहा जाता है ।
ÿ.१० गोदान के केÆþ म¤ कौन-सा गाँव है?
उ. बेलारी और सेमरी जो िक अवध ±ेý म¤ है, िवशेषत: बेलारी है ।
ÿ.११ िकस िहंदी कथाकार ने कथा सािहÂय को मनोरंजन जगत के Öतर से ऊपर
उठाकर जीवन से जोड़ने का काम िकया है?
उ. यह ®ेय पूरी तरह से ÿेमचंद को है ।
४.६ बोध ÿij ÿ.०१ 'गोदान' उपÆयास के िशÐप िवधान पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.०२ गोदान कì भाषा-शैली पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.०३ गोदान के िशÐप और भाषा-शैली को रेखांिकत कìिजए ।
ÿ.०४ गोदान के िशÐप पर िविभÆन िवĬानŌ के िवचारŌ को ÖपĶ कìिजए ।
ÿ.०५ सोदाहरण ÖपĶ कìिजए िक िशÐप और भाषा शैली कì ŀिĶ से गोदान एक सशĉ
और सवōÂकृĶ उपÆयास है ।
४.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतके १. ÿेमचंद और उनका युग - रामिवलास शमाª
२. सािहÂय का उĥेÔय - ÿेमचंद
३. ÿेमचंद - डॉ. सÂयेÆþ (सं.)
४. ÿेमचंद का संघषª - ®ी नारायण पांडेय
५. कलम था मजदूर - मदन गोपाल
६. कलम का िसपाही - अमृतराय munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : िशÐप और भाषा शैली
49 ७. कलम का मजदूर : ÿेमचंद - राजेĵर गुŁ
८. कलाकार ÿेमचंद - रामरतन भटनागर
९. कुछ िवचार - ÿेमचंद
१०. गोदान : एक पुनिवªचार - परमानंद ®ीवाÖतव
११. गोदान : नया पåरपेàय - गोपाल राय
१२. सािहÂय का भाषा िचÆतन - सं. वीणा ®ीवाÖतव
१३. ÿेमचंद - सं. सÂयेÆþ ('ÿेमचंद 'म¤ संकिलत डॉ. िýभुवन िसंह का िनबंध 'आदशōÆमुख
यथाथªवाद)
१४. ÿेमा®म - ÿेमचंद
१५. ÿित²ा - मुंशी ÿेमचंद
**** *
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50 ५
ÿेमचंद कृत गोदान : देशकाल - वातावरण
इकाई कì łपरेखा
५.० इकाई का उĥेÔ य
५.१ ÿÖ तावना
५.२ गोदान : देशकाल - वातावरण
५.३ सारांश
५.४ वैकिÐ प क ÿÔ न
५.५ लघूÂ तरीय ÿÔ न
५.६ बोध ÿÔ न
५.७ अÅ ययन हेतु सहयोगी पुÖ तक¤
५.० इकाई का उĥेÔ य इस कहानी का उĥेÔ य है गोदान म¤ िचिý त देशकाल-वातावरण-पåरवेश का िचýण करना ।
उपÆ यास म¤ िचिý त समÖ याएँ, घटनाएँ िकसी-न-िकसी पåरवेश म¤, देशकाल म¤ घिटत होती
ह§, जैसे िक úामीण पåरवेश, शहरी पåरवेश, कÖ बाई पåरवेश आिद । ‘गोदान’ उपÆ यास कì
कथा भी úामीण प åरवेश और शहरी पåरवेश के इदª-िगदª घूमती है । इस इकाई म¤ उपÆ यास के
इÆ हé पåरवेशŌ और देशकाल का िचýण हòआ है ।
५.१ ÿÖ तावना ÿेमचंद के लेखन का सरोकार अिधकांशत: úामीण जीवन िवशेषकर कृषक वगª से था, कृषक
वगª के साथ होने वाले अÆ याय, अÂ याचार, शोषण को उÆ हŌ ने अपने उपÆ यास ‘गोदान’ म¤
ÿमुखता से उठाया है िजसे कृषक जीवन का महाकाÓ य कहा जा सकता है । गोदान कì कथा
के केÆ þ म¤ है गाँव का पåरवेश और गाँव के जीवन कì ýासदी को और अिधक ÿौढ़ता ÿदान
करती है उपÆ यास म¤ विणªत शहर कì कथा ³ यŌिक ÿेमचÆ द का Ö वयं यह मानना है िक
िकसानŌ के शोषण का पूरा िचý तब तक नहé उभरता जब तक उसम¤ नगर कì कथा न हो ।
देशकाल-पåरिÖ थितयाँ चाहे शहरी हŌ या िफर úामीण सवªý आम-आदमी कì दशा ýासदपूणª
ही है । शोषक और शोिषतŌ के बीच का पाथª³ य जब तक नहé िमटेगा, तब तक इन पåरवेशŌ
म¤ िकसी तरह का कोई सुधार संभव नहé ह§ । इस इकाई म¤ इसी तÃ य का िववेचन अÂ यÆ त
िवÖ तार से िकया गया है ।

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ÿेमचंद कृत गोदान : देशकाल - वातावरण
51 ५.२ गोदान : देशकाल - वातावरण ÿेमचंद कृत ‘गोदान’ म¤ दो कथाएँ साथ-साथ चलती है । इनम¤ से एक कथा िकसानŌ के
जीवन से संबंिधत है तो दूसरी कथा नगरीय जीवन कì कथा है । उपÆ यास म¤ िकसानŌ कì
कथा का केÆ þ है अवध ±ेý का बेलारी गाँव, िजसम¤ कथा का मु´ य नायक होरी जो िक पाँच
बीघे जमीन का मािलक है, अपनी पÂ नी धिनया, पुý गोबर और दो पुिýयाँ सोना व łपा के
साथ रहता है । होरी Ö वभाव से िवøम और दÊ बू िकÖ म का होने के साथ-साथ कमªठ,
ईमानदार, धमª भीł और संÖ कारŌ से यु³ त है । पåरणामत: जमéदार, पटवारी, सूदखोर
महाजन, पुिलस, िबरादरी, धमª तथा समाज के ठेकेदार सब िमलकर उसका शोषण करते ह§।
होरी िजÆ दगी भर शोषण के िभÆ न-िभÆ न तौर-तरीकŌ से ýÖत रहता है । उसे संतोष िसफª
इसी बात का है िक गाँव म¤ िसफª उसी कì दशा ऐसी नहé है बिÐ क गाँव के ÿाय: सभी
िकसानŌ कì िÖथित एक जैसी ही है । सब एक ही नाव पर सवार ह§ । सबके मन म¤ इन
शोषकŌ ÿित खौफ है, नफरत है, घृणा है, परÆ तु चाह कर भी इÆ ह¤ रोका नहé जा सकता ,
³ यŌिक शोषक वगª के ये सभी लोग एक जूट ह§ और संगिठत łप से गरीबŌ-दीनŌ-िकसानŌ
का शोषण करते ह§ ।
देश म¤ अंúेजŌ का शासन है उनका भारतवािसयŌ पर दमनचø तीĄ गित से जारी है । उनके
िवŁĦ आवाज उठाने वालŌ कì खैर नहé । इधर गाँवŌ म¤ जमéदारी ÿथा का कहर जारी है ।
देश के ÿायः सभी जमéदारी का यही उĥेÔय है िक िकस ÿकार अपना खजाना भरने, अपनी
उ¸ छृखंलताओं, ऐशो-आराम, भोग-िवलास और वासनाओं कì पूितª हेतू िकसानŌ का, दीन-
दुिखयŌ का शोषण कर¤ । िकसानŌ से जमéदारी को लगान वसूल करने का जायज अिधकार
है । िकसानŌ कì पैदावार अ¸ छी हòई है तब तो ठीक है, लेिकन िजनकì फसल अ¸ छी नहé
हòई या िफर सारे िकसानŌ कì फसल बरबाद हो गई, तब वे लगान कैसे द¤गे? ऐसी पåरिÖथती
म¤ भी िकसानŌ पर जमéदारŌ का इतना आतंक और भय है िक उÆह¤ सूदखोर महाजन से
मनमाने Êयाजदर पर कजª लेकर जमéदारŌ को चुकाना पड़ता है । उनके ऊपर इतना
Ê याजदर बढ़ता जाता है िक वे िजÆ दगी भर कजªमु³ त नहé हो पाते ह§ । िकसानŌ से लगान
वसूल करने के अितåर³ त जमéदार उनसे नाजायज łप से नजराना लेते ह§, जुमाªना वसूल
करते ह§, इजाफा लगान लेते ह§, िकसानŌ से बेगार कराते ह§, काÔतकारŌ को बगैर नजराना
िलए पĘे नहé िलखते, समय पर िकसानŌ को खेती नहé करने देते, उनके और उनके पåरवार
कì बहó - बेिटयŌ के साथ अपशÊद बोलते ह§, गाली - गलौच, मार - पीट जैसे बताªव करके
यह दशाªते ह§ िक इन लोगŌ कì िजंदगी जानवरŌ से भी बदतर है । इस तरह ‘गोदान’ उपÆ यास
म¤ úामीण पåरवेश के अÆ तगªत गाँव के िकसानŌ कì शोषण कì कथा लगभग दो सौ पृÕ ठŌ म¤
समािहत है ।
‘गोदान’ म¤ देशकाल कì पåरिÖ थ ितयŌ पर ÿकाश डाल ती है रायसाहब अमरपाल िसंह कì
बात¤ जब वे कहते ह§ िक वे एक ऐसे िपता के पुý ह§ िजनके िपता िन:Ö वाथª भाव से असािमयŌ
पर दया ŀिÕ ट रखते हòए कभी-कभी आधा तो कभी-कभी पूरा कजª माफ कर देते थे । घर के
गहने तक बेचकर असािमयŌ कì कÆ याओं के िववाह म¤ मदद करते थे । ÿजा का पालन
िन:Ö वाथª भाव से करना उनके िलए सनातन धमª था । कुछ जमéदार, कुछ राजा तÂ कालीन
समाज म¤ ऐसे थे भी, जो मानव धमª से बड़ा कुछ नहé मानते थे । रायसाहब हालाँिक िवचारŌ
से Ö वयं को उदारवादी मानते ह§, खुद को िकसानŌ का िहतैषी मानते ह§ । वे चाहते है िक munotes.in

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आधुिनक गī
52 जमéदारी ÿथा सदा के िलए समाÈ त हो जाए परÆ तु उनकì कथनी और करनी म¤ कोई
एकłपता नहé । उनम¤ जमीन-आसमान का अंतर है । वे एक Ö थान पर Ö वयं कहते ह§ – "म¤
इसे Ö वीकार करता हóँ िक िकसी को भी दूसरे के ®म पर मोटे होने का अिध कार नहé है ।
उपजीवी होना घोर लº जा कì बात है । कमª करना ÿािणमाý का धमª है । समाज म¤ ऐसी
Ó यवÖ था, िजसम¤ कुछ लोग मौज कर¤ और अिधक लोग िपस¤ और खप¤, कभी सुखद नहé हो
सकती । पूँजी और िश±ा, िजसे म§ पूँजी ही का एक łप समझता हóँ, इनका िकला िजतनी
जÐ दी टूट जाए, उतना ही अ¸ छा है । िजÆ ह¤ पेट कì रोटी मयÖ सर नहé, उनके अफसर और
िनयोजक दस-दस, पाँच-पाँच हजार फटकार¤, यह हाÖ याÖ पद है और लº जाÖ पद भी । इस
Ó यवस् था ने हम जमéदारŌ म¤ िकतनी िवलािसता, िकतना दुराचार, िकतनी पराधीनता और
िकतनी िनलªº जता भर दी है, यह म§ खूब जानता हóँ, लेिकन म§ इन कारणŌ से इस Ó यवÖ था
का िवरोध नहé करता । " रायसाहब यह भी Ö वी कार करते ह§ िक वे असािमयŌ को लूटने के
िलए िववश ह§ ³ यŌिक अंúेज अफसरŌ को कìमती-कìमती डािलयाँ पहóँचानी पड़ती ह§ ।
रायसाहब से ÿो. मे हता बार-बार कहते ह§ िक साÌयवाद के िजन आदशŎ को रायसाहब ओढ़
कर एक आदशª जमéदार बनने कì चेÕ टाएँ करते ह§ वे बंद कर¤ । यिद साÌ यवादी है तो उसे
Ó यवहार म¤ लेकर आएँ और यिद नहé ह§ तो फालतू कì बकवास बंद कर¤, ऐसा करना
कायरता है, धूतªता है । वे उनसे कहते ह§ – "आपकì जबान म¤ िजतनी बुिĦ है, काश उसकì
आधी भी मिÖ त Õ क म¤ होती । खेद यही है िक सब कुछ समझते हòए भी आप अपने िवचारŌ
को Ó यवहार म¤ नहé लाते ।" ÿोफेसर मेहता कì ये उि³ त याँ तÂ कालीन पåरवेश का, जमéदारŌ
के दोहरे चåरý का पदाªफाश करती ह§ ।
उपÆ यास ‘गोदान’ म¤ फागुन के महीने और होली के Â योहार का बहòत सुÆ दर िचýण है । एक
बानगी – "फागुन अपनी झोली म¤ नवजीवन कì िवभूती लेकर आ पहòँचा था । आम के पेड़
दोनŌ हाथŌ से बौर के सुंगध बाँट रहे थे, और कोयल आम कì डािलयŌ म¤ िछपी हòई संगीत
का गुÈ त दान कर रही थी । गाँवो म¤ ऊँख कì बोआई लग रही थी ।" फागुन का यह ŀÔ य युग-
युगाÆ तर से जन-मानस म¤ एक नयी Ö फूितª, एक नई ताजगी , एक नई रवानगी भर देता है
िजसम¤ हँसी-िठठोली-मÖ ती-मजाक रंग-अबीर-गुलाल का Â योहार होली सबके उÆ माद और
अिधक बढ़ा देता है । होरी के घर होली का माहौल व योजना कुछ इस ÿकार है – "खूब भंग
घुटे, दुिधया भी, नमकìन भी, और रंगŌ के साथ कािलख भी बने और मुिखयŌ के मुँख पर
कािलख ही पोती जाय । होली म¤ कोई बोल ही ³या सकता है । िफर Ö वाँग िनकले और पंचŌ
कì भĥ उड़ाई जाय । łपए पैसे कì कोई िचÆ ता नहé ।" होली का यह रंग घर-घर जमा रहता
है । ÿेमचंद ने होली के Â योहार को अपनी रचनाओं म¤ िवशेषत: गोदान म¤ अÂ यÆ त तÐ लीनता
से, िवÖ तार से उठाया है । अÅ याय इ³ कìस के आरÌ भ म¤ ही वे िलखते ह§ – "दहातŌ म¤ साल
के छ: महीने िकसी न िकसी उÂ सव म¤ ढोल-मजीरा बजता रहता है । होली के एक महीना
पहले से एक महीना बाद तक फाग उड़ती है, आषाढ़ लगते ही आÐ हा शुł हो जाता है और
सावन भादŌ म¤ कजिलयाँ होती है । कजिलयŌ के बाद रामायण गान होने लगता है । सेमरी
भी अपवाद नहé है । महाजन कì धमिकयाँ और काåरÆ दे कì बोिलयाँ इस समारोह म¤ बाधा
नहé डाल सकतé । घर म¤ अनाज नहé है, देह पर कपड़े नहé ह§, गाँठ म¤ पैसे नहé ह§, कोई
परवाह नहé । जीवन कì आनंदवृि° तो दबाई नहé जा सकती , हँसे िबना तो िजया नहé जा
सकता ।" ÿेमचंद कì ये उि³ त याँ भारत के ÿाय: सभी गाँवो कì सांÖ कृितक पåरŀÔ यŌ को
हमारे सम± रखती ह§ िजनम¤ िकसानŌ के जीवन कì मूलभूत समÖ याओं दो व³ त कì ह§, munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : देशकाल - वातावरण
53 सारा जĥोजहद ÿाथिमक जłरतो को भी पूितª नहé कर पाता परÆ तु तीज-Â योहार, धमª-कमª,
पूजा-पाठ, होली-िदवाली के बहाने ही गाँव कì सामाÆ य जनता अपने मनोरंजन का साधन
बना ही लेती ह§ । अपने िमý मंडली के साथ बैठकì, फाग-चैता-आÐ हा का अलाप उनके
भीषण से भीषण कÕ ट से भी कुछ देर के िलए सही पर िनजात दे देता है । इस ÿकार शोिषत
वगª िवसंगितयŌ से भरे पåरवेश म¤ भी अपनी खुिशयŌ के कुछ पल चुरा लेते ह§ ।
गोदान म¤ úामीण पåरवेश के साथ-साथ शहरी या नगरीय पåरवेश कì कथा भी लगभग एक
सौ आठ पृÕ ठŌ म¤ िलखी गई है । ÿेमचंद कì माÆयता थी िक गाँव के िकसानŌ के शोषण का
पूरा िचý तब तक नहé उभर सकता जब तक उसम¤ नगर कì कथा न हो । कारण य ह है
िकसानŌ के उपजाए अÆ न पर ऐशो आराम करने वाले लोगŌ के तार शहर से ही जुड़े ह§, जहाँ
बड़े-बड़े रईस रईसी िजÆ दगी जीते हòए गरीबी-भुखमारी-िकसानŌ कì लाचारी -बेबसी पर घंटो
चचाªएँ, बहसबाजी करते ह§ परÆ तु धरातल Ö तर पर कुछ नजर नहé आता है ।
‘गोदान’ उपÆ यास म¤ नगरीय पåरवेश म¤ रहने वाले पाýŌ म¤ ÿोफेसर मेहता, डॉ³ टर मालती,
उīोगपित खÆ ना, िमजाª खुश¥द, वकìल Ô याम िबहारी तंखा, िमÖ टर खÆ ना कì पÂ नी गोिवंदी
खÆ ना, मालती कì बहन सरोज , सÌ पादक पंिडत ओंकारनाथ आिद का नाम उÐ लेखनीय
है। रायसाहब अमरपाल िसंह úामीण और शह री पåरवेश कì दोनŌ कथाओं को जोड़ने वाले
सेतु ह§ ³ यŌिक जहाँ एक तरफ जमéदार होने के कारण उनका संबंध úामीण जनŌ से है तो
दूसरी ओर शहर के उ³ त लोग उनके िमý ह§ िजनके साथ शहर म¤ उनका उठना बैठना है ।
रायसाहब सेमरी गाँव म¤ रहते ह§, उपÆ यास का मु´ य नायक होरी बेलारी म¤ रहता है । दोनŌ
गाँवो म¤ केवल पाँच मील का अंतर है । रायसाहब जमéदार ह§ अत: आस-पास के गाँवŌ के
िकसान होरी कì तरह उनकì जी -हòजूरी करने जाते ह§ ³ यŌिक उनका अपने जमéदार से
सीधा सरोकार है । रायसाहब का ÿाय: शहर आना जाना लगा रहता है । िकसी िवशेष
अवसर पर या िकसी उÂ स व िवशेष के आयोजन म¤ उनके सभी नगर िनवासी िमý रायसाहब
के िनमंýण पर सेमरी आते ह§, कई बार इन अवसरŌ पर हीरा जैसे úामीणŌ का आना-जाना
भी पåरवेश और नगरीय पåरवेश को जोड़ने वाले सेतु का कायª करते ह§ ।
उपÆ यास सăाट ÿेमचंद गोदान कì úामीण कथा के साथ-साथ शहरी कथा के सÆ दभª म¤ यह
बताना चाहते ह§ िक देशकाल चाहे úामीण हो या नगरीय, सवªý दीन-हीनŌ, िकसानŌ,
मजदूरŌ, गरीबŌ का शोषण होता है । िसफª शोषण करने का Ö वłप बदल जाता है, लेिकन
शोषण नहé łकता । िकसानŌ -मजदूरŌ कì िÖ थित बद से बदतर होती जा रही ह§, उनके
अिधकारŌ का हनन अपने चरम पर है अमानवीयता कì पराकाÕ ठा पार हो चुकì है । पूँजीपित
िमÖ टर खÆ ना कì हैवािनयत कì कोई सीमा नहé । वे अपने चीनी िमल म¤ काम करने वाले
मजदूरŌ कì मजदूरी घटा देते ह§, अनेक तरीके से उनका शोषण करते ह§, मजदूरŌ को
िहंसाÂ मक łख अपनाने पर िववश करते ह§, उनपर लाठी बरसवाते ह§ । मजदूर बुरी तरह
गंभीर łप से घायल होते ह§ । यही िÖ थित तÂ कालीन समय म¤ लगभग पूरे देश म¤ थी ।
औīोिगक अशांित का माहौल लगभग सवªý था । िमलŌ के मािलकŌ के ÿित मजदूरŌ म¤
असÆ तोष ही असंतोष था । बाजारवाद अपना पाँव पसारता जा रहा था । देश के लगभग
सभी िहÖ से म¤ औīोिगक अशािÆ त , बाजारवाद और भौितकवाद का दौर था , िजससे गरीब
मजदूर कì िजÆ दगी ýासदी पूणª थी । ÿेमचंद अपनी इस रचना म¤ दशाªते ह§ िक पूँजीवादी munotes.in

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आधुिनक गī
54 मानिसकता वाले Ó यि³ त शोषक, उÂ पीड़क, चåरýहीन एवं अमानवीय होते थे । धन के बल
पर वे िÖ ý यŌ के चåरý का हनन करने से न हé कतराते थे ।
गोदान म¤ गोबर गाँव के शोषण का िवरोध करता है । वह शोषण के उस दमन चø से मुि³ त
पाने के शहर म¤ मजदूरी करने के िलए पलायन करता है । वहाँ भी शोषण का िसलिसला बंद
नहé होता, उसका वह िवरोध करता है लाठी चाजª म¤ गंभीर łप से घायल होता है ।
जैसे गाँव के अÆ य युवा शहरŌ म¤ आकर कुछेक नगरीकरण कì बुराइयŌ के िश कार हो जाते है
वैसे गोबर भी नशे म¤ आकर पÂनी के साथ दुÓ यªवहार करता है । पåरिÖ थ ितवश वह सुधर भी
जाता है । इसी तरह का पåरवेश शहर का भी उपÆ यास म¤ िचिýत है िजसम¤ शहर म¤ मजदूर
के आवास-िनवास, उनकì आबोहवा , पास-पड़ोस से खĘे-मीठे संबंध, उÂ सव-Â योहार,
उनके सुखम्-दुखम् आिद को उपÆ यास म¤ अÂ यÆ त सूà मता से दशाªया गया है ।
गोदान उपÆ यास का पाý गोबर भी गाँव कì कथा को शहर से जोड़ता है । गाँव के लड़के
गोबर को ‘हीरो’ समझते ह§ । वे चाहते ह§ िक उसके साथ शहर जाएँ, धन कमाएँ और ऐश
कर¤। यह बहòत अजीब से िवडंबना है िक वे पलायन कì कड़वी स¸ चाई से वािकफ नहé होते
ह§ । स¸ चाई यह ह§ िक गाँव के िकसानŌ के समान शहर के मजदूर भी शोषण के िशकार ह§
िकंतु वे एक दूसरे कì तकलीफ से पåरिचत नहé ह§ और न ही उनम¤ िकसी ÿकार का संपकª-
सहयोग है । िकसान हŌ या िफर मजदूर उनम¤ आपसी सहयोग, संपकª, संगठन, एक जूटता
का सवªथा अभाव है जबिक इसके िवपरीत शोषक वगª के दोनŌ पाý गाँव के जमéदार
रायसाहब अमरपाल िसंह और शहर के पूँजीवादी िमÖ टर खÆ ना साहब दोनŌ एक दूसरे के
िमý और सहयोगी ह§ । दोनŌ िमलकर शोषण करते ह§ । यही नहé, गाँव के िकसानŌ म¤
िबÐ कुल एकता नहé है जबिक गाँव के सभी सूदखोर महाजनŌ म¤ एकता है । ÿेमचंद यह
बताना चाहते ह§ िक जब तक िकसान और मजदूर एक साथ मंच पर आकर एकजूट होकर
संघषª नहé कर¤गे तब तक इसी ÿकार शोषण का िश कार बनते रह¤गे । एकता म¤ बल है ।
अलग-अलग और अकेले लड़ने से उनकì लड़ाई कदािप सफल नहé हो सकती । यहाँ
ÿेमचंद मा³ सªवादी चेतना से ÿभािवत और ÿगितशील जीवन ŀिÕ ट के समथªन म¤ खड़े
िदखाई देते ह§ ।
गोदान म¤ िवधवाओं के ÿित समाज के नकाराÂमक भाव को दशाªया गया है िजसम¤ वैधÓय
काटती िľ यŌ का जीवन काँटŌ से भरा है । उसे िकसी से ÿेम करने, अपने जीवन सफर को
पुनः शुł करने का कोई ह³क नहé । इस मुĥे के साथ ही अनमेल िववाह, दाÌपÂय जीवन
कì कड़वाहट, घर गृहÖथी से जुड़ी अनेक समÖयाएँ पलायनवाद जैसे अनेक ऐसे मुददे ह§,
जो तÂकालीन समाज कì िविभÆन पåरिÖथितयŌ को दशाªते ह§ ।
उĉ िववेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है िक गोदान उपÆयास म¤ गाँव और शहर
दोनŌ कì कथाएँ समानाÆतर चलती है जो िक उपÆयास को और रोचक बनाती है । उपÆयास
म¤ दशाªया गया है िक तÂकालीन देशकाल के संबंध म¤ बुिĦजीिवयŌ म¤ बात¤ बड़ी गंभीरतापूणª
होती ह§ । परÆतु वह धरातल पर कुछ नजर नहé आता ³यŌिक शोषक और शोिषत के बीच
जो इतनी बड़ी खाई है उसे िकसी तरह से नहé पाटा जा सकता, ³यŌिक मजदूरŌ-िकसानŌ म¤
एक जुटता का अभाव है । पहली बात मजदूर-िकसान िसफª अपने हाथŌ से काम कर रहे ह§
जब िक शोषक वगª बुिĦ, ÿितभा, ²ान, िश±ा और तमाम Öůेटेजी बनाकर काम करते ह§ । munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : देशकाल - वातावरण
55 ऐसे म¤ िकसानŌ और ®िमकŌ कì जीत कैसे संभव है । िकसानŌ और मजदूरŌ को भी हर Öतर
पर अनुभवी होना होगा । उपÆयास म¤ úामीण और शहरी पåरवेश दोनŌ कì कथाएं आपस म¤
जुड़ी ह§ और अपना-अपना Óयापक महÂव रखती ह§ । देशकाल पåरवेश कì पåरिÖथितयŌ का
गहनतम िवĴेषण गोदान म¤ िमलता है ।
५.३ सारांश ÿेमचंद Ĭारा रिचत उपÆ यास ‘गोदान’ म¤ दो कहािनयाँ एक साथ समानाÆ तर गित से ÿवािहत
होती ह§ । पहली कथा गाँव कì है और दूसरी कथा शहर कì । पहली कथा म¤ úामीण पåरवेश
म¤ िकसानŌ के साथ होने वाले दुÓ यªवहार, शोषण, अÆ याय, अÂ याचार को िदखाया गया है ।
úामीण समाज म¤ Ó याÈ त तमाम िवसंगितयŌ, िवकृितयŌ, िवडंबनाओं को लेखक ने बहòत
संजीदगी से उकेरा है । होरी, धिनया, गोबर और उसकì दो बेिटयाँ, झुिनया िसिलया जैसे न
जाने िकतने ऐसे िकसान ह§ िजÆहŌने आजीवन ÿताड़ना-शोषण के दंश को झेला है । उनके
पाँच बीघे कì जमीन, घर सब कुछ इस शोषण म¤ Ö वाहा हो चुका है िफर भी शोषकŌ का मन
नहé भरा है ।
गाँव के úामीण पåरवेश म¤ चारŌ ओर गरीबी, भुखमरी, शोषण, अÆ याय, िवधवा कì ýासदपूणª
िजंदगी, अनमेल िववाह, भयंकर दीनता के कारण उÂ पÆ न अनेक मानिसक, शारीåरक,
आिथª क, सामािजक यातनाएँ, पंचायत का खौफ, समाज और धमª के ठेकेदारŌ का दंश,
जमéदार और उनके काåरÆ दŌ का खौफ, जैसी अनेक ऐसी समÖ याएँ ह§ तो तÂ कालीन समाज
म¤ Ó याÈ त थé ।
शहरी पåरवेश कì िÖ थित भी ऐसी थी बस शोषण करने का तौर तरीका बदल गया था ।
शहरी पåरवेश म¤ उīोगपितयŌ, पूँजीपितयŌ का बोलबाला था । इनसे मजदूर वगª पूरी तरह से
असंतुÕ ट था । सवªý औīोिग क øािÆ त और औīोिग क अशािÆ त का माहौल था । देश के
लगभग सभी िह Ö से म¤ बाजारवाद, भौितकतावाद और औ īोिगक अशािÆ त का वातावरण
था। पूँजीवादी मानिसकता वाले Ó यि³ त शोषक, उÂ पीड़क, चåरýहीन एवं अमानवीय होते थे।
शोषण का दमनचø मजदूरŌ कì िजÆ दगी को जनावरŌ से भी बदतर बना रहा था । उपÆ यास
म¤ गोबर एक ऐसी कड़ी है जो िक गाँव के एक िकसान से शहर का एक मजदूर बना है । गाँव
के लड़के भले ही उससे ÿेरणा लेते हो परÆ तु उÆ ह¤ शहरी जीवन कì कड़वी स¸ चा ई का
आभास तक नहé है । िकसानŌ-®िमकŌ म¤ एकजुटता का सवªथा अभाव ह§ जब िक सारे
शोषक वगª Ö वाथê होते हòए भी शोषण करने के मुĥे पर एक जूट हो जाते ह§ । सारे साहóकार
एकजूट हो जाते ह§ ।
इस ÿकार सारांश के łप म¤ कहा जा सकता है िक उपÆ यास ‘गोदान’ का देशकाल
वातावरण तÂ का लीन समाज को मानŌ आँखो देखा हाल ÿकट करता है । ÿेमचंद ने úामीण
समाज और शहरी जीवन का समÆ व य इस ÿकार िकया है िक उस दौर म¤ घिटत होने वाली
सारी घटनाएँ, सभी तरह के पåरवतªन, िनत पåरवितªत होते पåरवेश, िÖ ýयŌ कì Ö व¸ छंदता,
िÖ ý यŌ के ÿित सामािजक सोच, िकसान से मजदूर बनने पर िववश होते िकसानŌ कì
लाचारी को बहòत संजीदगी और सूà मता से दशाªया गया है । इस ŀिÕ ट से ÿेमचंद को पूरी
सफलता िमली है । munotes.in

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आधुिनक गī
56 ५.४ वैकिÐ प क ÿÔ न ÿ.१ गोदान म¤ िकतनी पåरवेशŌ कì कथाएँ साथ-साथ चलती ह§?
(क) एक (ख) दो
(ग) तीन (घ) चार
उ. (ख) दो
ÿ.२ गोदान म¤ िकसानŌ कì कथा के केÆ þ म¤ कौन सा गाँव है?
(क) बेलारी (ख) ददरा
(ग) नगवा (घ) हÐ दी
उ. (ख) बेलारी
ÿ.३ होरी के पास पहले कुल िकतने बीघे जमीन थी?
(क) दो बीघा (ख) चार बीघा
(ग) पाँच बीघा (घ) छह: बीघा
उ. (ग) पाँच बीघा
ÿ.४ बेलारी और सेमरी गाँव िकस ±ेý म¤ िÖ थत था?
(क) अवध (ख) āज
(ग) कÆ नौज (घ) सीतापुर
उ. (क) अवध
ÿ.५ िकस उपÆ यास को कृषक जीवन का महाकाÓ य कहा गया है?
(क) सेवासदन (ख) ÿेमा®य
(ग) गोदान (घ) गबन
उ. (ग) गोदान
ÿ.६ जमéदारŌ को िकसानŌ से ³ या लेने का जायज अिध कार था?
(क) नजराना लेने का (ख) बेगार कराने का
(ग) लगान लेने का (घ) जुमाªना वसूल करने का
उ. (ग) लगान लेने का munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : देशकाल - वातावरण
57 ÿ.७ गोदान म¤ गाँव के िकसानŌ कì कथा लगभग िकतने पृÕ ठŌ म¤ समािहत है?
(क) लगभग एक सौ (ख) लगभग दो सौ
(ग) लगभग तीन सौ (घ) लगभग तीन सौ प¸ चा स
उ. (ख) लगभग दो सौ
ÿ.८ गोदान म¤ नगरीय जीवन कì कथा िकतने पृÕ ठŌ म¤ समािहत है?
(क) एक सौ आठ (ख) दो सौ
(ग) दो सौ आठ (घ) तीन सौ
उ. (क) एक सौ आठ
ÿ.९ गोदान म¤ Ö वयं को िकसानŌ शुभे¸ छु कौन कहता है?
(क) राय साहब (ख) मेहता जी
(ग) मालती (घ) खÆ ना साहब
उ. (क) राय साहब
ÿ.१० यह कथन िकसका है – ‘आपकì जबान म¤ िजतनी बुिĦ है, काश उसकì आधी भी
मिÖ त Õ क म¤ होती । खेद यही है िक सबकुछ समझते हòए भी आप अपने िवचारŌ को
Ó यवहार म¤ नहé लाते ।’
(क) रायसाहब (ख) ÿोफेसर मेहता
(ग) मालती जी (घ) खÆ ना साहब
उ. (क) रायसाहब
५.५ लघूÂ तरीय ÿÔ न ÿ.१ रायसाहब िकस गाँव म¤ रहते थे?
उ. सेमरी गाँव म¤ रहते थे ।
ÿ.२ होरी िकस गाँव का िनवासी था?
उ. बेलारी गाँव का िनवासी था ।
ÿ.३ गोदान म¤ िकस महीने के िकस Â योहार का िवÖ तृत िचýण हòआ है?
उ. फागुन के मिहने म¤ हाली के Â योहार का िवÖ तृत िचýण हòआ है ।
ÿ.४ गोबर गाँव के शोषण से तंग आकर ³ या करता है?
उ. शहर (लखनऊ) कì ओर पलायन करता है । munotes.in

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आधुिनक गī
58 ÿ.५ गोदान उपÆ यास म¤ गाँव कì कथा से शहर कì कथा को कौन जोड़ता है?
उ. रायसाहब अमरपाल िसंह और गोबर दोनŌ जोड़ते ह§ ।
ÿ.६ गोदान म¤ िचिýत नगरीय पåरवेश िकनसे बहòत अिधक ÿभािवत हो रहा था?
उ. औīोिगक अंशािÆ त , बाजारवाद और भौितकतावाद से ÿभािवत हो रहा था ।
ÿ.७ गोदान म¤ चीनी िमल के मैनेिजंग डायरे³ टर िमÖ टर खÆ ना ने मजदूरŌ के साथ ³ या
िकया था?
उ. िमÖ टर खÆ ना ने मजदूरŌ का बहòत शोषण िकया था, उनकì तन´ वा ह घटा दी थी ।
ÿ.८ नगर म¤ िमलŌ के मािलकŌ के ÿित मजदूरŌ कì ³ या मन:िÖ थित थी?
उ. िमलŌ के मािलकŌ के ÿित िकसानŌ म¤ Ó यापक असंतोष था ।
ÿ.९ साल के छह: महीने िकसी न िकसी उÂ सव म¤ ढोल-मजीरा कहाँ बजता रहता है?
उ. गाँव-देहात म¤ बजता रहता है ।
ÿ.१० ‘गोदान’ उपÆ यास के अनुसार गाँव हो या शहर दोनŌ Ö थानŌ पर दीनŌ-गरीबŌ के साथ
³ या होता है?
उ. गाँव हो या शहर सवªý दीन-दुिखयŌ के साथ शोषण, अÆ याय, अÂ याचार ही होता है ।
५.६ बोध ÿÔ न १) ‘गोदान’ उपÆ यास म¤ िचिýत देशकाल वातावरण कì पåरिÖ थितयŌ का िचýण कìिजए ।
२) ‘गोदान’ उपÆ यास के पåरवेश का िचýण कìिजए ।
३) ‘गोदान’ उपÆ यास म¤ िचिýत पåरिÖ थ ितयŌ का वणªन कìिजए ।
४) ‘गोदान’ उपÆ यास म¤ गाँव और शहर दोनŌ के पåरवेशŌ का सुÆ दर समÆ वय हòआ है ।’
सोदाहरण िलिखए ।
५) ‘गोदान’ उपÆ यास के देशकाल पर ÿकाश डािलए ।
५.७ अÅ ययन हेतु सहयोगी पुÖ तक¤ १) ÿेमचंद और उनका युग – रामिवलास शमाª
२) सािहÂ य का उĥेÔ य – ÿेमचंद
३) ÿेमचंद – डॉ. सत् येÆ þ (सं.)
४) ÿेमचंद का संघषª – ®ी नारायण पांडेय munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : देशकाल - वातावरण
59 ५) कलम का मजदूर – मदन गोपाल
६) कलम का िसपाई – अमृतराय
७) कलम का मजदूर : ÿेमचंद – राजेÔ वर गुł
८) कलाकार ÿेमचंद – रामरतन भटनागर
९) कुछ िवचार – ÿेमचंद
१०) गोदान : एक पुनिवªचार – परमानंद ®ीवाÖ तव
११) गोदान : नया पåरÿेà य – गोपाल राय
१२) सािहÂ य का भाषा िचÆ त न – सं. वीणा ®ीवाÖ तव
१३) ÿेमचंद – सं. सÂ येÆ þ (‘ÿेमचंद’ म¤ संकिलत डॉ. िýभुवन िसंह का िनबंध
‘आदशōÆ मुख यथाथªवाद)
१४) ÿेमा®म – ÿेमचंद
१५) ÿित²ा – मुंशी ÿेमचंद
*****
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60 ६
ÿेमचंद कृत गोदान : समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
इकाई कì łपरेखा
६.० इकाई का उĥेÔ य
६.१ ÿÖतावना
६.२ गोदान कì समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
६.३ सारांश
६.४ वैकिÐपक ÿÔ न
६.५ लघूÂ तरीय ÿÔ न
६.६ बोध ÿÔ न
६.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
६.० इकाई का उĥेÔ य ‘ÿेमचंद कृत गोदान: समÖयाएँ एवं उĥेÔ य' इकाई का मु´य लàय यह है िक इस इकाई के
अÆतगªत गोदान म¤ िचýांिकत समÖयाओं पर गंभीरता से िवचार िकया जाय, साथ ही
उपÆयास के मूल उĥेÔय कì भी िवÖतृत łप से गहन चचाª कì जा सके ।
६.१ ÿÖतावना मनुÕय एक सामािजक ÿाणी है । वह िजस समाज म¤ रहता है, िजस पåरवेश से जुड़ा होता है
उससे संबंिधत बाĻ और आंतåरक समÖयाओं से भी िघरा रहता है । संसार म¤ शायद िवरले
ही कोई ऐसा Ó यि³ त िवशेष हो िजसके जीवन म¤ िकसी तरह कì कोई समÖया न हो । जब
तक जीवन है तब तक तमाम तरह कì समÖयाएँ ह§, अनेक-अनेक चुनौितयाँ है, संघषª ह§ ।
इन समÖयाओं म¤ जकड़ने वाला, जूझने वाला Ó यि³ त हर वगª, हर जाित, हर सÌÿदाय हर
समुदाय का है, जो िनरंतर इस चøÓयूह से िनकलने कì कोिशश म¤ जुटा रहता है । इन
चुनौितयŌ को पार करने, इन समÖयाओं से िनकलने के बाद वह सुखानुभूित करता है,
परÆतु यह आवÔयक नहé है िक वह अपने जीवन म¤ ÓयाĮ तमाम कĶŌ से िनजात पा ही ले ।
िजÆदगी म¤ इÆहé खĘे-मीठे अनुभवŌ के आधार पर जीवन कì सफलता-असफलता पर
िवचार िकया जाता है, जीवन के उĥेÔय कì पूितª-आपूितª पर िवचार िकया जाता है । ÿÖतुत
उपÆयास 'गोदान' के सÆदभª म¤ भी इसे देखा जा सकता है । उपÆयास के ÿÂयेक वगª के पाý
अपनी - अपनी समÖयाओं से जूझते नजर आते ह§ खास तौर पर िकसान, Ăिमक वगª के
पाý, अितशय दीनता और दåरþता से संघषª करते जूझते पाý, िजÆदगी म¤ अपनी
छोटी-छोटी इ¸छाओं-आकां±ाओं को पूरा करने हेतु िजÆदगी भर िनरंतर संघषª करते,
मेहनत-मजूरी करते पाý और इन छोटी-छोटी इ¸छाओं को अपने मन म¤ ही िलए मर जाते
पाý । कुछ ऐसे पाý भी िजÆहŌने परमाथª के िलए दीन-दुिखयŌ कì सेवा के िलए अपनी संपूणª munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
61 िजÆदगी समिपªत कर दी, तो ऐसे भी पाý िजÆहŌने अपनी Öवाथªपरता कì सारी पराकाķाएँ,
सारी हद¤ पार कर दé, इन तमाम पाýŌ के जीवन से जुड़ी समÖयाओं को उपÆयास गोदान म¤
उभारना ही ÿेमचंद का उĥेÔय है । úामीण-शहरी पåरवेश से जुड़ी इस तरह कì अनेकानेक
समÖयाओं को इस उपÆयास म¤ अÂयÆत जीवÆतता से उठाया गया है । इसी म¤ उपÆयास कì
साथªकता है । यही उपÆयास का उĥेÔय है ।
६.२ गोदान कì समÖयाएँ एवं उĥेÔय गोदान सन् १९३६ म¤ ÿकािशत ÿेमचंद का कृषक समÖया पर आधाåरत उपÆयास है ।
िकसानŌ का शोषण िकतने मुहानŌ पर, िकन-िकन łपŌ म¤ िकस ÿकार से होता है, इसका
िचýण 'गोदान' म¤ होरी कì कथा के माÅयम से होता है । चाहे वे जमéदार, पटवारी, कारकून,
महाजन हŌ या िफर पुिलस, समाज एवं धमª के ठेकेदार हŌ - ये सब के सब िकसानŌ का
शोषण करते ह§, उÆह¤ असहाय, िनŁपाय बना कर छोड़ देते ह§ ।
गोदान उपÆयास म¤ कथाएँ समानाÆतर चलती ह§ | úामीण और शहरी और कथाओं के सेतु ह§
जमéदार रायसाहब अमरपाल िसंह । ÿेमचÆद ने úामीण और शहरी दोनŌ जीवन कì
समÖयाओं के साथ - साथ जमéदारŌ कì िफजूलखचê-ऐयाशी से उÂपÆन समÖयाएँ, पुिलस
के अÂयाचार, संयुĉ पåरवार के िवघटन, जाित ÿथा से उÂपÆन समÖयाएँ, ľी-िवषयक
समÖयाएँ, अनमेल Êयाह, अÆतजाªतीय िववाह, जीवन मूÐयŌ से संबंिधत समÖयाओं को
मुखåरत िकया गया है ।
ÿेमचंद एक ऐसे भारतीय उपÆयास कार ह§ िजÆहŌने समाज और जीवन कì आलोचना हेतु
सािहÂय सृजन िकया । उÆहŌने तÂकालीन जीवन-जगत से जुड़ी अनेक समÖयाओं को अपने
उपÆयास म¤ िचिýत िकया है । ÿेमचÆþ वाÖतव म¤ एक ऐसे समाज कì संरचना करते ह§,
पåरकÐपना करते ह§ िजसम¤ िकसी तरह का कोई भेदभाव-अÆतर न हो, कोई िकसी का
शोषण न करे, समाज समानता का पथगामी हो, जाितगत-वगªगत-िलंगगत जैसे तमाम तरह
के भेदभाव समाĮ हो जाएँ । गोदान, वे इÆहé ÿसंगŌ को उकेरने के उĥेÔय से िलखते ह§ िजसे
उनकì सबसे ÿौढ़ रचना कहा गया है ।
'गोदान' उपÆयास का मु´य उĥेÔय िकसानŌ के जीवन कì समÖयाओं, उनके शोषण से
संबंिधत समÖयाओं और उनकì अितशय दीनता-हीनता से सबको पåरिचत कराना है ।
उपÆयास केवल मनोरंजन कì वÖतु नहé है अिपतु वह जीवन कì स¸चाइयŌ को उजागर कर
हम¤ सोचने-िवचारने के िलए िववश करता है । अपने उपÆयासŌ के उĥेÔय के संदभª म¤
ÿेमचÆद िलखते ह§ "हम सािहÂय को मनोरंजन और िवलािसता कì वÖतु नहé समझते ।
हमारी कसौटी पर वही सािहÂय खरा उतरेगा िजसम¤ िचýण कì Öवाधीनता का भाव हो,
सौÆदयª का तार हो, सृजन कì आÂमा हो, जीवन कì स¸चाई का ÿकाश हो, जो हमम¤ गित,
संघषª और बेचैनी पैदा करे, सुलावे नहé ।” गोदान कì समÖयाओं एवं उĥेÔयŌ को
िनÌनिलिखत शीषªकŌ के अÆतगªत देखा जा सकता है ।

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आधुिनक गī
62 १) िकसानŌ के जीवन म¤ ÓयाĮ िवसंगितयŌ एवं िवडÌबनाओं का यथाथª िचýण:
हमारे देश का िकसान रात-दीन जी-तोड़ पåर®म करके अÆन उपजाता है, सबको अÆन देता
है लेिकन खुद दाने-दाने को तरसता है, कजª के बोझ तले दबा रहता है, िफर भी अपनी
मूलभूत आवÔयकताओं को पूरा करने म¤ असमथª रहता है, इससे बड़ी िवडंबना भला और
³या हो सकती है । गोदान का होरी, समÖत कृषक वगª का ÿितिनिधÂव करता है। उसके
जीवन कì ýासदी समú कृषकŌ कì ýासदी है । देश कì जमéदारी ÿथा के समय िकसानŌ कì
िÖथती बद् से बद्तर थी । गाँव के जमéदार एक तरह से आदमखोर जानवर से कम नहé थे ।
गाँव के जमéदार, पटवारी, कारकून, सूदखोर महाजन समेत पुिलस, Óयापारी, िबचौिलये,
धमª और समाज के ठेकेदार सभी लोग िकसानŌ कì मानिसक- शारीåरक-आिथªक शोषण कì
सारी पराकाķाएँ पार कर चुके थे । ÿेमचंद ने गोदान म¤ शोषण के इन सभी हथकंडŌ को
हमारे सामने खोल कर रख िदया है । उपÆयास का मु´य नायक होरी सीधा सादा-दÊबू
िकÖम का िकसान है िजसे ÿाणाÆतक इतना दबाया जाता है िक वह अपने जीवन म¤ एक
छोटी-सी गाय पालने कì इ¸छा तक पूरी नहé कर पाता । गाय उसके िलए ÿितķासूचक है,
सजीव संपि° है, इसिलए उसे अपने दरवाजे पर रखने कì लालच म¤ पड़ोसी भोला से एक
गाय उधार म¤ ले आता है यह सोचकर िक भिवÕय म¤ वह मेहनत मजूरी करके भोला को गाय
कì कìमत चुका देगा, भोला का दूसरा Êयाह भी करवा देगा परÆतु उसका ये ÖवÈन पूरा नहé
होता । हीरा, होरी का भाई ईÕयाªवश गाय को जहर देकर मार डालता है, घर म¤ पुिलस आती
है, पुिलस को åरÔ वत देना पड़ता है, अपने और हीरा के पåरवार के पालन पोषण के िलए
कजª पर कजª, सूद पर सूद का िसलिसला कभी Łकता नहé, गोबर-झुिनया के Êयाह मे घर
पूरे पåरवार को समाज के कोपभाजन का िशकार बनना पड़ा, होरी कì सारी जमीन, घर
सबकुछ शोषकŌ के हाथŌ बंधक हो गया और होरी एक िकसान से मजदूर बनने के िकए
िववश हो गया । वृĦावÖथा म¤ अिधक पåर®मशीलता के कारण मरणासÆन िÖथित म¤ होरी
को घर लाया गया, जहाँ धमª के ठेकेदारŌ ने होरी को परलोक सुधारने के उĥेÔय से उसकì
पÂनी Ĭारा उसे गोदान करवाने को कहा । िजस गाय को रखने कì अिभलाषा वह इस जीवन
म¤ पूरी नहé कर पाया और िजसके कारण उसकì िजÆदगी तमाम झंझावातŌ से गुजरी, अब
उसी गाय का दान करवा कर उसका परलोक सुधारने का ÿसंग उभरता है, यह उसके
जीवन कì सबसे बड़ी िवडंबना नहé, तो और ³या है?
होरी का पुý गोबर जमéदारŌ, सूदखोर महाजनŌ कì िफतरत को, उनके कुकमŎ को अपने
ÿित होने वाले अÆयायŌ अÂयाचारŌ को भली भाँित समझता है, बार-बार उनका ÿितरोध
करता है, अपने िपता होरी को भी समझाता है परÆतु वह चाह कर भी इस ÓयवÖथा को
बदल नहé सकता ³यŌकì िकसानŌ म¤ संगठन का सवªथा अभाव है । वे Łिढ़वादी और
संÖ कारयु³ त है, अंधिवÔ वासी और धमªभीŁ ह§, इसिलए वे अपना शोषण करने वालŌ के
िवरोध म¤ भी कुछ नहé बोलते | इस संदभª म¤ होरी से भोला कहता है – “कौन कहता ह§ िक
हम तुम आदमी है । हमम¤ आदिमयत कहाँ । आदमी वह है िजसके पास धन है, अि´तयार
है, इÐम है । हमलोग तो बैल ह§ और जुतने के िलए पैदा हòए ह§ । उस पर एक दूसरे को देख
नहé सकते । एक का नाम नहé । एक िकसान दूसरे के खेत पर न चढ़े तो कोई जाफा कैसे
करे, ÿेम तो संसार से उठ गया ।" munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
63 गाँव के जमéदार रायसाहब अमरपाल िसंह िकसानŌ के शुभे¸छु बनते ह§, जमéदारी ÿथा
समाĮ करने पर बड़ी-बड़ी बात¤ करते ह§ परÆतु अपना Öवाथª कभी नहé छोड़ते, लगान लेने
के साथ साथ नजराना लेना, जुमाªना वसूलना, इजाफा लगान लेना, बेगारी करवाना कभी
नहé भूलते ह§ । रायसाहब कì कथनी और करनी का पोल खोलते हòए ÿोफेसर मेहता उनसे
कहते ह§ - “यिद आप कृषकŌ के शुभे¸छु ह§ और आप कì धारणा है िक कृषकŌ के साथ
åरयायत होनी चािहए तो पहले आप खुद शुł कर¤, काÔतकारŌ को बगैर नजराने िलए पĘे
िलख¤, बेगार बंद कर¤, इजाफा लगान कì ितलांजिल दे द¤, बराबर जमीन छोड़ द¤ ।’
ÿो. मेहता कì ये बात¤ दशाªती ह§ िक रायसाहब कì स¸चाई ³या है, वाÖतव म¤ िकसानŌ कì
िजÆदगी िकतनी िवसंगितयŌ से भरी हòई है ।
२) शोषण के अनेक ÖवłपŌ का िचýण:
िकसानŌ का शोषण जमéदार के साथ-साथ उसके कमªचारी, कारकून, काåरÆदा, सरकार के
पटवारी, पुिलस वाले सभी िमलकर करते ह§ । गाँव के सूदखोर महाजन का शोषण चø
इतना दमनकारी है िक वे िकसानŌ कì लाचारी-मजबूरी का लाभ उठाकर ऊँचे से ऊँचे दर
पर Êयाज वसूल करते ह§ । साहóकार के Êयाज कì दर एक आना Łपया से लेकर दो आना
Łपया तक है जो िक पचह°र ÿितशत वािषªक से लेकर एक सौ पचास ÿितशत तक पहòँचती
है लेिकन िकसानŌ के पास कजª लेने के अलावा और कोई चारा नहé है । िकसानŌ को खेत
जोतने, खाद डालने, बीज बोने के िलए, बैल के िलए, लगान चुकाने के िलए, ब¸चŌ कì
शादी-Êयाह के िलए या अÆय िकसी उĥेÔय कì पूितª के िलए कजª लेना ही पड़ता है ।
उपÆयास के होरी के साथ भी यही होता है िजसकì भरपाई वह आजीवन नहé कर पाता,
अपने ब¸चŌ के िलए िवरासत म¤ वही कजª देकर मर जाता है । होरी कì ये बात¤ उसके ददª को
दशाªती ह§ जब वह कहता है - ‘िकतना चाहता हóँ िक िकसी से एक पैसा कजª न लूँ लेिकन,
हर तरह का कĶ उठाने पर भी गला नहé छूटता ।’ होरी यह अनुभव करता है िक इसी ÿकार
यिद कज¥ पर Êयाज पर Ê याज चढ़ता रहा तो एक िदन उसका घर-Ĭार सब नीलाम हो
जाएगा और ब¸चे आ®यहीन होकर मजबूरन भीक माँग¤गे । उसे संतोष बस इस बात का है
िक यह िवप°ी, यह खौफनाक िÖथती िसफª उसी कì नहé है अिपतु उसकì तरह ÿाय: सभी
िकसान कजª और सूद कì ýासदी से úिसत ह§, सभी कì िजÆदगी बद् से बद्तर हो रही है ।
होरी अनुभव करता है िक जो सबके साथ हो रहा है वही उसके साथ हो रहा है । कानून के
र±क पुिलसवाले, थानेदार भी उÆ हé को कमजोर समझकर सताते ह§, वसूली करते ह§,
कानून का धŏस जमाकर åरÔ वत लेते ह§ । समाज और धमª के ठेकेदार गभªवती िवधवा को
अपने घर म¤ शरण देने, मानव धमª िनभाने के बावजूद होरी और उसके पåरवार पर इतना
स´त जुमाªना लगाता है िक उन सबकì िजÆदगी िबखर जाती है । इस ÿकार सवªहारा वगª जो
िक हर तरह से कमजोर है, उनपर हर ताकतवर Ó यि³ त अपना जोर अपनाकर उनका
शोषण करता रहता है, उपÆयास म¤ इस समÖया कì अÂयÆत सजगता और सजीवता से
अिभÓ य³ त करना लेखक का मु´य उĥेश है ।
३) पूँजीवादी ÓयवÖथा को समूल िमटाने का संकÐप:
‘गोदान’ उपÆयास म¤ ÿेमचंद पूंजीवादी ÓयवÖथा को अÂयÆत सूàमता से दशाªते ह§ । शहर म¤
िमल का मािलक खÆना ‘गोदान’ म¤ पूँजीपित वगª का ÿितिनिधÂव करता है । खÆना अपने munotes.in

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आधुिनक गī
64 ऐÔ वयª के दपª म¤ इतना अहंकारी बन जाता है िक मजदूरी कर उिचत माँग को भी ठुकरा देता
है, उनके साथ अÂयÆत øूर Óयवहार करता है । पåरणाम Öवłप सभी मजदूर खÆना कì
िमल म¤ आग लगा देते ह§ । आिखरकार वे िमल म¤ मेहनत-मजूरी करके भी िकतने िदन खाली
पेट रह¤गे । उनकì सबसे बड़ी जłरत ह§ रोटी, िजसकì खाितर उनका गाँव घर-पåरवार
सबकुछ छूट जाता है इसके बावजूद भी वे अपने पåरवार को दो वĉ कì रोटी नहé िखला
सकते ह§ । ऐसे म¤ उÆह¤ संगिठत होकर अपने अिधकारŌ के िलए िवþोह के राÖते पर उतरना
ही पड़ता है िहंसाÂमक łख अपनाना ही पड़ता है । जीवन के इस पड़ाव पर पहòँचते पहॅुंचते
शायद ÿेमचंद को भी यह आभास हो गया था िक गाँधीवादी अिहंसाÂमक राÖते पर चलकर
शोषण के इस चलन को या परÌपरा को समाĮ नहé िकया जा सकता है । इसको समूल
िमटाने के िलए िवþोही तेवर, िहंसाÂमक तेवर अपनाने ही हŌगे । िबना अपने अिधकारŌ कì
लड़ाई लड़े दो व³ त कì रोटी िमलनी मुिÔकल है । गोबर एक ऐसा पाý है जो ÿगितशील
िवचारŌवाला है और शोषक कì िनयत से अ¸ छी तरह वािकफ है । गाँव म¤ वह जमéदारी ÿथा
समाĮ करना चाहता है तो वही वह शहर कì पॅूंजीवादी ÓयवÖथा को जड़ से उखाड़ फ¤कना
चाहता है उसके िलए लाठी खाकर गÌ भीर łप से घायल भी हो जाता है परÆ तु इस संघषª
को नहé Â यागता ।
इस ÿकार उपÆ या स का उĥेÔ य है िक समाज को पूँजीवादी Ó यवÖथा को समूल नĶ करने
हेतु सजग-सतकª रहने, संघषª करने के िलए ÿेåरत करना है ।
४) संगिठत समाज कì पåरकÐपना:
ÿेमचंद का मानना है िक समाज म¤ हर तरह के शोषण का िवरोध करने के िलए उस पूरे वगª
को एकजूट होकर, संगिठत होकर संघषª करना होगा तभी समाज कì िÖथित म¤ पåरवतªन
होगा, चाहे वह गाँव हो या िफर शहर । ÿÂयेक Ó यि³ त को, ÿÂयेक समाज को अपना संघषª
Öवयं करना होगा । कुछ लोग अपने तु¸छ ÖवाथŎ कì पूितª हेतु समाज कì एकता को भंग
करते ह§ इस ÿवृि° पर अंकुश लगनी चािहए ।
कोई भी संगिठत वगª, संगिठत समाज बड़े से बड़े संघषª पर िवजय ÿाĮ कर सकता है,
अकेला चना भाड़ नहé फोड़ सकता ।
ÿेमचंद एक ऐसे राÕů कì पåरकÐपना करते ह§ जो एकता के सूý म¤, समानता के सूý म¤,
अखÁडता के सूý म¤ बँधे हòए हŌ, जहाँ रामराºय कì Öथापना हो, कहé िकसी तरह कì
असमानता, अÆयाय, अÂयाचार, शोषण, आतंक, अंधिवÔ वास न हो । कथनी - करनी म¤
समानता हो । देश का संगिठत वगª अपने भिवÕय के साथ-साथ भारत देश कì तÖवीर बदल
सकते ह§ | उपÆयास ‘गोदान’ का गो़बर, भोला और ÿोफेसर मेहता इस तÃय से भली-भाँित
अवगत ह§ ।
५) सामािजक øािÆत म¤ िľयŌ कì भूिमका:
गोदान कì धिनया एक ऐसी ľी पाý है िजसम¤ अदÌय ŀढ़ता, साहस, कमªठता है । वह
ÖपĶवादी, िनडर और अिडग औरत है । वह एक साथ सामािजक अÆयाय, अÂयाचार से,
Łिढ़यŌ से, शोषण से जूझती है । वह बाहर से िजतनी कठोर नजर आती है अÆदर से उतनी
ही कोमल कŁणाशील है । वह उपÆयास म¤ अनेक ÖथानŌ पर िकसानŌ कì दशा के बारे म¤, munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
65 अपने ÿित होने वाले शोषण के िवषय म¤ िवþोह कर चुकì है, िवरोध कर चुकì है । ÿेमचंद का
मानना है िक समाज म¤ पåरवतªन लाने के िलए िľयŌ कì भूिमका का िनवाªह सही ढंग से
करना होगा । िľयŌ कì सहायता िलए सामािजक øािÆत कदािप संभव नहé ह§ । उपÆयास म¤
ÿेमचंद ÿोफसर मेहता जी के माÅयम से कहवाते है - “नारी का कायª±ेý बहòत िवÖतृत है वह
यिद पुŁषŌ का अंधानुकरण करेगी तो उससे समाज का कोई कÐयाण नहé होगा । नारी कì
िवīा और अिधकार िहंसा और िवÅवंस म¤ नहé अिपतु सृिĶ और पालन म¤ है ।” मेहता जी
का यह भी मानना है िक िľयŌ को खुद को िमटाने से कुछ काम नहé होने वाला है, कोई
पåरवतªन नहé होने वाला है, िľयŌ को समाजकÐयाण के िलए अपने अिधकारŌ कì र±ा
करनी पड़ेगी ।
६) सेवा का आदशª:
ÿेमचंद म¤ गोदान के पाýŌ के माÅयम से सेवा के महÂ Â व को ÿितपािदत िकया है । मेहताजी
मानवता, परोपकार, Âयाग, सेवा म¤ ŀढ़ िवĵास रखते ह§ । उनकì ÿेरणा से ÿभािवत होकर
डॉ. मालती अपने जीवन कì िदशा ही बदल देती है । Âयाग, सेवा, परमाथª, परोपकार,
दीन-हीनŌ का कÐयाण ही उसके जीवन का परम उĥेÔय बन जाता है । úामवािसयŌ, गरीबŌ
को िबना फìस िलए इलाज करती ह§, दवा देती है, अपने आÂमसुख को Âयागकर जन
कÐयाण को ही अपने जीवन का उĥेÔ य बना लेती ह§ ।
समúतः इन तÃयŌ के आधार पर यह कहा जा सकता है िक गोदान म¤ ÿेमचंद कì ŀिĶ
अÂयÆत Óयापक और ÿौढ़ है िजसम¤ इÆहŌने िकसानŌ के जीवन कì ýासदी को िजतनी
तÐलीनता से Óयापक łप म¤ अिभ Ó य³ त िकया है, उनके जीवन के ÿÂयेक कोनलŌ को
अÂयÆत बारीकì से, सूàमता से अिभ Ó यि³ त ÿदान कì है उतनी ही सुàमता से इÆहŌने
समाज कì अÆय समÖयाओं को भी उकेरा है ।
úामीण समाज कì समÖयाएँ िभÆन ह§, शहरी समाज कì समÖयाएँ अलग ह§ औरे
िभÆन - िभÆन łपŌ म¤ हमारे úामीण और शहरी पåरवेश को दीमक के łप म¤ खा रही है । इन
तमाम मुĥŌ कì ओर, समÖयाओं कì ओर समाज का Åयान आकृĶ करना, पाठकŌ को
सजग, जागŁक बनाना लेखक का मु´य उĥेÔय है ।
६.३ सारांश सारांशतः ÿेमचंद एक ऐसे उपÆयासकार ह§ जो अपने उपÆयासŌ के माÅयम से
िकसानŌ-®िमकŌ के जीवन कì एक-एक समÖयाओं कì परत-दर-परत को उधारते ह§, उनके
साथ सिदयŌ से हो रहे अनवरत शोषण कì ýासदी को यथाथªपरक शैली म¤ इस ÿकार हमारे
सम± रखते ह§ िक उनके एक-एक चåरý कì तÖवीर, शोषण का पूरा ŀÔय हमारे सामने
उपिÖथत हो जाता है । पाठक उन तÂकालीन समÖयाओं के साथ आज के युग कì
समÖयाओं को जोड़कर देखने लगता है ।
ÿेमचंद समाज के भेद-भाव के अिभशाप को हमेशा-हमेशा के िलए िमटाकर समानता के
धरातल पर एक ÖवÖथ समाज का िनमाªण करना चाहते थे, जहाँ जाितगत, वगªगत, धमªगत
भेदभाव न हो, कोई िकसी का शोषण न कर सके, समाज के अंितम Óयि³ त के साथ भी munotes.in

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आधुिनक गī
66 िकसी तरह का कोई अÆयाय, अÂयाचार, दुÓयªवहार न हो । लेिकन ऐसा आज तक कभी
संभव नहé हो सका और न ही कभी संभव हो सकता है । तभी तो उपÆयास म¤ ÿगितशील
चेतना का ÿतीक गोबर कहता है – “भगवान तो सबको बराबर बनाते ह§ । यहाँ िजसके हाथ
म¤ लाठी है वह गरीबŌ को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता है । शहर के ÿोफेसर मेहता जी
भी यही मानते ह§ िक मनुÕय कì बुिĦ हमेशा से राज करती आयी है और करेगी भी ।
छोटे-बड़े का भेद हमेशा से है और रहेगा भी ³यŌिक यह भेद िसफª धन के कारण नहé है,
बिÐक बुिĦ, łप, चåरý, शि³ त, ÿितभा आिद अनेक ऐसे कारण ह§ िजसकì वजह से समाज
से इस असमानता को नहé िमटाया जा सकता है ।”
असमनता, वगª भेद के कारण Óयि³ त मानिसक, शारीåरक, आिथªक शोषण का िशकार होता
है । साधारण जनमानस अपनी łि़ढ़गत परÌपराओं, संÖकारŌ सामािजक मयाªदा, बंधनो म¤
बँधे होने के कारण, अपनी दÊबू ÿवृि° के कारण भी ÿितरोध नहé करता, िजसके कारण
शोषक वगª उनका और अिधक शोषण करते ह§ । इस उपÆयास म¤ दशाªया गया है िक िकसानŌ
का शोषण कौन करता है, िकतने łपŌ म¤ उनका शोषण हो रहा है और उस शोषण के िलए
समाज के कौन-कौन से लोग िजÌमेदार है, उस शोषका का शोिषत वगª पर ³या ÿभाव पड़ता
है इन तमाम जीवन-सÂय को उĤािटत करता है गोदान । ÿेमचÆद के अनुसार उपÆयास का
उĥेÔय केवल पाठकŌ का मनोरंजन करना या आनंिदत करना नहé है । ÿेमचंद कì कसौटी
पर वही सािहÂय खरा उतरेगा, िजसम¤ जीवन-सÂय उĤािटत हòआ हो, सृजन कì आÂमा हो,
Öवाधीनता का भाव एवं सौÆदयª का सार हो, िजनम¤ गित, संघषª और बेचैनी पैदा करने कì
±मता हो । इसी म¤ सािहÂय का, उपÆयास का उĥेÔय िनिहत है ।
गोदान उपÆयास म¤ िकसानŌ के जीवन म¤ Óयाहा अनिगनत िवसंगितयŌ, िवडंबनाओं
िवþूपताओं और िवकृितयŌ को लेखक ने दशाªया है, शोषण करने के िविभÆन ÖवłपŌ पर
ÿकाश डाला है । पीिड़त वगª कì भयावह जजªर आिथªक दशा का आँखŌ देखा हाल ÿÖतुत
िकया है । यही नहé जमéदारी ÿथा के साथ-साथ पूँजीवादी ÓयवÖथा को समाĮ करने पर
बल िदया है । इसके िलए वगª समूह को संगिठत होकर ÓयवÖथा के िवरोध म¤ आवाज उठाने,
िवþोह करने और अपने िलए Æयाय और अिधकारŌ कì लड़ाई लड़ने पर बल िदया गया है ।
संगिठत होकर संघषª करके ही अपने अिधकारŌ कì ÿािĮ संभव है िजसम¤ िľयŌ कì भूिमका
होना, सामािजक øािÆत म¤ िľयŌ कì भूिमका होना अित आवÔयक है । इस तरह ÿेमचंद के
इन िवचारŌ को देखकर यह अनुभव होता है िक गोदान तक आते-आते वे यह समज चुके थे
िक अब गाँधी जी के अिहंसाÂमक आंदोलनŌ से समाज म¤ कुछ कुछ बड़ा िवशेष पåरवतªन
होने वाला नहé है । िकसानŌ, मजदूरŌ के साथ जैसा शोषण हो रहा है उसे रोकने के िलए
यिद िहंसाÂमक रवैया अपनाना पड़े तो कोई फकª नहé पड़ता है ।
ÿेमचंद इस उपÆयास म¤ सवªहारा वगª कì समÖयाओं को िजतनी संजीदगी से दशाªते ह§ वे
उतनी ही संवेदना के साथ उनके जीवन Öतर को ऊँचा उठाने के िलए समाज-कÐयाण
जनिहत म¤ परमाथª करने पर भी बल देते ह§ । वे मानते है िक दौलत से Ó यि³ त के मन म¤
अहंकार कì भावना उÂपÆन होती है और Ńदय से Âयाग, सेवा, कŁणा, दया जैसी सĬृि°याँ
समाĮ हो जाती है । अत: आवÔयक है िक धन दौलत के बजाय मानवीय सģुणŌ को
अपनाया जाए, तभी समाज म¤ पåरवतªन संभव होगा । munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
67 िनÕकषªतः कहा जा सकता है िक गोदान एक समÖया ÿधान उपÆयास है । इस समÖयाओं
से परत-दर-परत उघारना, समÖया कì जड़ तक, तह तक पहòँचना और उनके समाधान का
िवÖतृत िववेचन-िवÔ लेषण करना, समाज म¤ आदशª कì Öथापना करना ही उपÆयास का
मु´य उĥेÔय है ।
६.४ वैकिÐपक ÿÔ न ÿ.१) ÿेमचंद समाज से ³या समूल नĶ करना चाहते थे?
(क) असमानता (ख) एकता
(ग) अखÁडता (घ) Öवतंýता
उ. (क) असमानता
ÿ.२) गोदान म¤ िकनकì समÖयाओं को ÿमुखता से दशाªया गया है?
(क) ब¸चŌ कì (ख) बूढ़Ō कì
(ग) िश±कŌ कì (घ) िकसानŌ कì
उ. (घ) िकसानŌ कì
ÿ.३) ÿेमचंद के अनुसार सािहÂय का उĥेÔय इनम¤ से ³या नहé है?
(क) मनोरंजन और िवलािसता (ख) जनकÐयाण
(ग) परमाथª (घ) समाजिहत
उ. (क) मनोरंजन और िवलािसता
ÿ.४) गोदान उपÆयास म¤ यह कथन िकसका है - ‘िकतना चाहता हóँ िक िकसी से एक
पैसा कजª न लूँ लेिकन, हर तरह का कĶ उठाने पर भी गला नहé छूटता ।’
(क) राजसाहब (ख) गोवर
(ग) होरी (घ) हीरा
उ. (ग) होरी
ÿ.५) होरी गाय को िकससे उधार माँग कर ले आता है?
(क) शोभा (ख) हीरा
(ग) भोला (घ) मातादीन
उ. (ग) भोला
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आधुिनक गī
68 ÿ.६) शहर म¤ िमल का मािलक कौन है?
(क) खÆना (ख) रायसाहब
(ग) मेहता जी (घ) मेहरा जी
उ. (क) खÆना
ÿ.७) गोदान म¤ कौन अपनी सेवा से समाज कÐयाण करता है?
(क) होरी (ख) िसिलया
(ग) मालती जी (घ) गोिवÆदी खÆना
उ. (ग) मालती जी
ÿ.८) ÿेमचंद के अनुसार पूँजी का अहंकार ठीक नहé है ³यŌिक यह हमेशा ³या होती है?
(क) शाÔ वत (ख) िचरÖथायी
(ग) िचरकािलक (घ) ±णभंगुर
उ. (घ) ±णभंगुर
ÿ.९) “यिद आप कृषकŌ के शुभे¸छु ह§ और आपकì धारणा है िक कृषकŌ के साथ
åरयायत होनी चािहए तो पहले आप खुद शुł कर¤, काÔतकारŌ को वगैर नजराने
िलए पĘे िलख¤, बेगार बंद कर दे, इजाफा लगान कì ितलांजिल दे द¤, बराबर जमीन
छोड़ द¤ ।” यह कथन कौन िकससे कहता है?
(क) ÿोफेसर मेहता रायसाहब से (ख) ÿो. मेहता खÆना से
(ग) गोबर रायसाहब से (घ) होरी रायसाहब से
उ. (क) ÿोफेसर मेहता रायसाहब से
ÿ.१०) झुिनया का अपराध ³या है?
(क) चोरी करना (ख) गहने छुपाना
(ग) अनपढ़ होना (घ) िवधवा होकर दूसरी जाित के लड़के से ÿेम करना
उ. (घ) िवधवा होकर दूसरी जाित के लड़के से ÿेम करना
६.५ लघू°रीय ÿÔ न ÿ.१) गोदान का मु´य उĥेÔय ³या है?
उ. कृषक जीवन कì समÖयाओं, उनके साथ हो रहे शोषण का िचýण करना मु´य
उĥेÔय है । munotes.in

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ÿेमचंद कृत गोदान : समÖयाएँ एवं उĥेÔ य
69 ÿ.२) होरी को झुिनया को आ®य देने के कारण समाज के कठोर दंड के łप म¤ जुमाªना
³यŌ देना पड़ता है?
उ. कारण यह है िक झुिनया दूसरी जाित कì एक िवधवा लड़कì है और वह गोबर से
ÿेम करती है, उसके ब¸चे कì माँ बनने वाली है । उसे आ®य देने के कारण होरी
को कठोर दंड का सामना करना पड़ा ।
ÿ.३) िम. खÆना अपने िकस िमल म¤ कायªरत मजदूरŌ का शोषण करते ह§?
उ. िम. खÆना चीनी िमल के मैनेिजंग डायरे³टर ह§, मजदूरŌ का खून चूसते ह§ ।
ÿ.४) यह कथन िकसका है – “भगवान तो सबको बराबर बनाते ह§ । यहाँ िजसके हाथ म¤
लाठी है वह गरीबŌ को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता है ।”
उ. यह कथन गाँव के ÿगितशील युवक होरी के बेटे गोबर का है ।
ÿ.५) गोदान म¤ कौन बार-बार Öवयं को िकसानŌ का शुभे¸छु मानता है?
उ. रायसाहब अमरपाल िसंह मानते ह§ ।
ÿ.६) ÿेमचंद के अनुसार रायसाहब अमरपाल िसंह का चåरý कैसा है?
उ. रँगे िसयारŌ कì तरह रायसाहब का चåरý है ।
ÿ.७) ÿो. मेहता के अनुसार िकसकì कथनी और करनी म¤ कोई म¤ एकłपता नहé है?
उ. रायसाहब अमरपाल िसंह कì कथनी-करनी म¤ एकłपता नहé है ।
ÿ.८) ÿेमचंद के अनुसार शोषण का िवरोध िकस ÿकार िकया जा सकता है?
उ. शोषण का िवरोध संगिठत होकर िकया जा सकता है ।
ÿ.९) ÿेमचंद रंगा िसयार िकसे कहते ह§?
उ. राय साहब अमर पाल िसंह को कहते ह§ ।
ÿ.१०) उपÆयास ‘गोदान' म¤ कौन बाहर से इÖपात जैसी कठोर पर भीतर से मोम जैसी
मुलायम ह§?
उ. धिनया का Ó यि³ त Â व ऐसा ही है ।
ÿ.११) िहÆदी सािहÂय म¤ िकस उपÆयास को भारतीय úामीण जीवन का दपªण कहा जा
सकता है?
उ. गोदान को कहा जा सकता है ।
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आधुिनक गī
70 ६.६ बोध ÿij ÿ.१) 'गोदान' उपÆयास म¤ िनिहत समÖयाओं पर ÿकाश डािलए ।
ÿ.२) 'गोदान' उपÆयास का उĥेÔय िलिखए ।
ÿ.३) ‘गोदान’ उपÆयास के माÅयम से लेखक ÿेमचंद ³या कहना चाहते ह§? सोदाहरण
िलिखए ।
ÿ.४) गोदान कì समÖयाओं पर ÿकाश डालते हòए ÖपĶ कìिजए िक लेखक को अपने
उĥेÔय म¤ पूरी सफलता ÿाÈ त हòई है?
ÿ.५) 'गोदान' शीषªक कì साथªकता पर ÿकाश डािलए ।
६.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १. ÿेमचंद और उनका युग - रामिवलास शमाª
२. सािहÂय का उĥेÔय - ÿेमचंद
३. ÿेमचंद - डॉ. सÂयेÆþ (सं.)
४. ÿेमचंद का संघषª - ®ी नारायण पांडेय
५. कलम था मजदूर - मदन गोपाल
६. कलम का िसपाही - अमृतराय
७. कलम का मजदूर : ÿेमचंद - राजेĵर गुŁ
८. कलाकार ÿेमचंद - रामरतन भटनागर
९. कुछ िवचार - ÿेमचंद
१०. गोदान : एक पुनिवªचार - परमानंद ®ीवाÖतव
११. गोदान : नया पåरÿेàय - गोपाल राय
१२. सािहÂय का भाषा िचÆतन - सं. वीणा ®ीवाÖतव
१३. ÿेमचंद - सं. सÂयेÆþ ( ‘ÿेमचंद’म¤ संकिलत डॉ. िýभुवन िसंह का िनबंध ‘आदशōÆमुख
यथाथªवाद’)
१४. ÿेमा®म - ÿेमचंद
१५. ÿित²ा - मुंशी ÿेमचंद
***** munotes.in

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कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ !
इकाई कì łपरेखा
७.० इकाई का उĥेÔय
७.१ ÿÖतावना
७.२ िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ !
७.२.१ नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ ! िनबÆध कì अÆतवªÖतु
७.२.२ नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ ! िनबÆध का ÿितपाī
७.३ सारांश
७.४ उदाहरण – Óया´या
७.५ वैकिÐपक ÿij
७.६ लघु°रीय ÿij
७.७ बोध ÿij
७.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
७.० इकाई का उĥेÔय  पाठ्यøम के अÆतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता ' म¤
संúहीत िनबÆधŌ म¤ से पहले दस िनबंधŌ का अÅययन सिÌमिलत है । ये िनबंध ह§ -
'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§', 'आम िफर बौरा गए ', 'िशरीष के फूल', 'भगवान महाकाल का
कुंठ नृÂय', 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद', 'ठाकुरजी कì बटोर', 'संÖकृितयŌ का
संगम', 'समालोचक कì डाक ', 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ' और 'केतुदशªन' ।
 इन िनबंधŌ का अÅययन करने के बाद आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के संपूणª ÓयिĉÂव
का मूÐयांकन भी िकया जायेगा ।
 इस इकाई के अंतगªत 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध का अÅययन सिÌमिलत है ।
 संपूणª इकाई का अÅययन करने के बाद छाý आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िनबंध-
लेखन संबंधी िवशेषताओं को समझने और समझाने म¤ स±म हŌगे ।
७.१ ÿÖतावना आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िहंदी के समथª िनबंधकार ह§ । वे िहंदी के ऐसे िगने-चुने
िनबंधकारŌ म¤ से एक ह§, िजनम¤ िवषय-वैिवÅयता के साथ-साथ अिभÓयिĉ कì अĩुत शिĉ
भी थी । उनके िनबंध उनकì वैयिĉक िवशेषताओं से गहरे तक संपृĉ ह§ । उनके िनबंधŌ म¤ munotes.in

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आधुिनक गī
72 इितहास -चेतना और िविशĶ संÖकृित दशªन देखने को िमलता है । आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी का ÓयिĉÂव, उदारचेता सािहÂयकार का ÓयिĉÂव है और इसम¤ सामंजÖय कì अĩुत
भावना देखने को िमलती है । उनकì इसी भावना के कारण उनके िवचार अÆय िनबंधकारŌ
से िविशĶ हो जाते ह§ । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì कुछ िवशेषताएं उनके िनबंधŌ के
आधार पर िचिÆहत कì जा सकती ह§ जैसे, उनकì इितहास के ÿित िवशेष łिच उनके
िनबंधŌ म¤ देखने को िमलती है, धमª और संÖकृित के संबंध म¤ उनके मौिलक िवचार उनके
िनबंधŌ म¤ िदखाई देते ह§, पौरािणक एवं संÖकृत-सािहÂय के ÿित एक सÌमान का भाव देखने
को िमलता है । मानवतावाद के ÿित उनके िवचार अपने समय कì सबसे खास Óया´या के
łप म¤ देखे जा सकते ह§ । उनके िलए सािहÂय कì रचना केवल वाµवैदµÅय नहé है बिÐक
उसका एक िविशĶ उĥेÔय है और वह उĥेÔय है - लोक कÐयाण । ऐसा सािहÂय ही ®ेयÖकर
है जो सामािजक मनुÕय के मंगल िवधान को सुिनिIJत करता है । 'अशोक के फूल', 'िवचार
और िवतकª', 'कÐपलता ', 'कुटज', 'आलोकपवª' एवं 'िवचार ÿवाह ' आिद उनके ÿिसĦ
िनबंध संúह ह§, िजनम¤ उनके संपूणª मानिसक जगत कì तकªसंगत अिभÓयिĉ देखने और
समझने को िमलती है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने कई उपÆयासŌ कì भी रचना कì जैसे, 'बाणभĘ कì
आÂमकथा ', 'चाŁचंþलेख', 'पुननªवा', 'अनामदास का पोथा ' । शोध और आलोचना संबंधी
उनके कई úंथ ÿकािशत हòए िजनम¤, 'सूर सािहÂय', 'िहंदी सािहÂय कì भूिमका', 'कबीर',
'िहंदी सािहÂय का आिदकाल', 'िहंदी सािहÂय : उĩव और िवकास', 'मÅयकालीन बोध का
Öवłप ', 'सहज साधना ', 'मÅयकालीन धमª साधना', 'नाथ संÿदाय', 'िसख गुŁओं का पुÁय
Öमरण ', 'मेघदूत एक पुरानी कहानी', 'कािलदास कì लािलÂय योजना ', 'मृÂयुंजय रवीÆþ',
'लािलÂय तÂव ', 'सािहÂय का ममª', 'सािहÂय का साथी ', 'ÿाचीन भारत के कलाÂमक िवनोद'
आिद उÐलेखनीय ह§ । उनके Ĭारा सृिजत इस तािलका म¤ जो िवषय सिÌमिलत ह§, उनसे
हम उनकì łिच का अंदाजा सहज ही लगा सकते ह§ । एक सजªक Óयिĉ िकतनी ही िवधाओं
म¤ रचना करे परंतु उसका अपना एक ÓयिĉÂव उन सभी म¤ अनुÖयूत रहता है । इन úंथŌ से
इितहास और परंपरा के ÿित उनके एक खास लगाव का अंदाजा हम सहज ही लगा सकते
ह§ । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने िहंदी सािहÂय को वैचाåरक łप से नई िदशाओं से
संपÆन बनाया । उÆहŌने िहंदी सािहÂय के इितहास कì कई भूलŌ को संशोिधत िकया ।
तÂकालीन वैचाåरक अवधारणाओं को भारतीय इितहास और परंपरा के अनुłप िवĴेिषत
िकया। िजन िवषयŌ को वे अपने शोधúंथŌ म¤ उठा सकते थे या िजन िवषयŌ पर िवÖतृत और
Óयापक गंभीर िचंतन कì आवÔयकता थी, वहां तो हम¤ अलग úंथ ही िमलते ह§, पर असं´य
छोटे-छोटे वैचाåरक सूý िसĦ करने के िलए उÆहŌने िनबंधŌ का सहारा िलया । इसीिलए
उनके िनबंध हम¤ उनकì पूरी िवचार-सरिण का सहज अिभÓयिĉ -करण ÿतीत होते ह§ ।
७.२ िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ ! ७.२.१ नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ ! िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध लेखन कì एक िविशĶ शैली है । वे िजस भी िवषय
पर िनबंध िलखते ह§, उस िवषय को अपने वैिवÅयपूणª ÓयिĉÂव के अनुłप शोध कì
गंभीरता, िवĬता कì आभा और हाÖय कì उमंग से सजाते ह§ । िवषय िकतना भी जिटल ³यŌ munotes.in

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कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ !
73 न हो पर वे अपनी अिभÓयिĉ शैली से उसे सरल और सरस łप म¤ ÿÖतुत करते ह§। 'नाखून
³यŌ ब ढ़ते ह§' िनबंध उनकì इÆहé िवशेषताओं का उदाहरण है । यह िनबंध एक तरह से पूरे
मानवीय इितहास म¤ मानवीयता का मूÐयांकन करता िदखाई देता है।
'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध म¤ आचायª िĬवेदी ने नाखूनŌ को मनुÕय कì पाशिवक ÿवृि° का
ÿतीक बनाकर पूरे इितहास म¤ इस ÿवृि° के मूÐयांकन का ÿयास िकया है। बेहद हÐके
फुÐके तरीके से वे एक छोटी बािलका के ÿij से अपनी बात आरंभ करते ह§ िक 'आदमी के
नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ ?' बािलका के इस िज²ासापूणª ÿij का समाधान वह अÆय तरीके से
भी कर सकते थे पर दरअसल यह एक अवसर था। इस बहाने पूरी मनुÕयता के मूÐयांकन
हेतु बािलका के इस ÿij के साथ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì कÐपना सचेत हो जाती
है और इस कÐपना के सहारे वे लाखŌ वषŎ के पåरवेश म¤ गमन करने लगते ह§ । नाखून जैसे
तु¸छ िवषय पर वे अपनी कÐपना शिĉ से लोक-कÐयाण के िवषय कì एक इमारत खड़ी
कर देते ह§। आचायª अपनी बात को आरंभ करते हòए कहते ह§ िक "कुछ लाख ही वषŎ कì
बात है, जब मनुÕय जंगली था; वनमानुष जैसा । उसे नाखून कì जłरत थी । उसकì जीवन
र±ा के िलए नाखून बहòत जłरी थे। असल म¤ वही उसके अľ थे। दांत भी थे, पर नाखून
के बाद ही उनका Öथान था ।" इस तरह वे यह ÖपĶ कर देते ह§ िक अपने िवकास के
आरंिभक दौर म¤ मनुÕय आÂमर±ा के िलए नाखूनŌ का ÿयोग करता था । इस तरह उस
समय मनुÕय के िलए नाखून अÂयंत महÂव का िवषय थे। इसीिलए वह हाÖयपरक उÂसुकता
से कहते ह§, "म§ हैरान होकर सोचता हóँ िक मनुÕय आज अपने ब¸चŌ को नाखून कटने के
िलए डांटता है। िकसी िदन -कुछ थोड़े लाख वषª पूवª - वह अपने ब¸चŌ को नाखून नĶ करने
पर डांटता होगा ।"
नाखून आÂमर±ा का िवषय थे, इसी संदभª से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने शोध
अनुłप Öवभाव के कारण मानव इितहास म¤ आÂमर±ा के अÆय उपकरणŌ कì जानकारी
Óयंजनापूणª अथŎ म¤ देने म¤ संलµन हो जाते ह§। जैसे-जैसे सËयता का िवकास हòआ, मनुÕय के
आÂमर±ा के उपकरण भी बदलते गए । जैसे-जैसे मनुÕय म¤ चेतना का िवकास हòआ, मनुÕय
नाखूनŌ के अितåरĉ कुछ बाहरी साधनŌ का ÿयोग भी अपनी आÂमर±ा के िलए करने
लगा। जैसे उनके अनुसार रामचंþजी कì वानरी सेना के पास पÂथर के ढेले और पेड़ कì
डाल¤ आिद हिथयार के łप म¤ उपलÊध थे। अपनी िवकिसत होती चेतना के øम म¤ मनुÕय ने
हड्िडयŌ के भी हिथयार बनाए । महिषª दधीिच कì कथा से हम सभी पåरिचत ह§, िजनकì
हड्िडयŌ से बनाए गए वû का ÿयोग इंþ के Ĭारा िकया गया था। इसके बाद धािÂवक
हिथयारŌ कì बारी आती है और लोहे के शľ और अľ िनिमªत िकए गए । उस समय इनका
महÂव िकतना अिधक था , इसका अंदाजा हम आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के इस िववरण
से लगा सकते ह§ िक "देवताओं के राजा तक को मनुÕय के राजा से इसिलए सहायता लेनी
पड़ती थी िक मनुÕयŌ के राजा के पास लोहे के अľ थे ।" नाखूनŌ के बहाने वे अपने अभीĶ
कì खोज म¤ लगे हòए ह§ और इसी øम म¤ वे आयŎ और असुरŌ के संघषª म¤ अľŌ और शľŌ
के महÂव को िवĴेिषत करते हòए यह िनÕकषª िनकालते ह§ िक ³यŌिक आयŎ के पास लोहे के
अľ-शľ एवं घोड़े दोनŌ थे, इसीिलए वे नाग, सुपणª, य±, गंधवª, असुर, रा±स आिद सभी
से जीतते गए। उनके साăाºय पर िवजय पाते गए। munotes.in

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आधुिनक गī
74 आगे के िवकास øम म¤ मनुÕय ने पलीते वाली बंदूकŌ, कारतूस और तोपŌ, बम, बमवषªक
वायुयानŌ आिद का िवकास िकया और साथ ही एटम बम भी, िजसकì िवÅवंसक िवभीिषका
िĬतीय िवĵयुĦ म¤ देखी गई थी, जब ६ अगÖत १९४५ को जापान के शहर िहरोिशमा और
९ अगÖत १९४५ को नागासाकì म¤ परमाणु बमŌ से हमला िकया गया। वह िवभीिषका
मानवता कभी भूल नहé सकती । इस अिúम िवकास को आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िकस
नजåरए से देखते ह§, उÆहé के शÊदŌ म¤ "इितहास आगे बढ़ा। पलीते वाली बंदूकŌ ने, कारतूसŌ
ने, तोपŌ ने, बमŌ ने, बमवषªक वायुयानŌ ने इितहास को िकस कìचड़-भरे घाट तक घसीटा
है, यह सबको मालूम है । नख-धर मनुÕय अब एटम-बम पर भरोसा करके आगे कì ओर चल
पड़ा है। पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे ह§ । अब भी ÿकृित मनुÕय को उसके भीतर वाले
अľ से वंिचत नहé कर रही है, अब भी वह याद िदला देती है िक तुÌहारे नाखून को भुलाया
नहé जा सकता । तुम वही लाख वषª पहले के नख-दंतावलंबी जीव हो - पशु के साथ एक ही
सतह पर िवचरने वाले और चरने वाले ।"
यही वह िबंदु है जहां आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िनबंध के मंतÓय को ÖपĶ łप से िचिÆहत
करते ह§। दरअसल उनके मन म¤ यह ÖपĶ है िक िजसे हम िवकास समझते ह§, वाÖतव म¤ वह
हमारी बबªरता का øमबĦ िवकास है । आÂमर±ा के अÆय उपादानŌ का िवकास हो जाने से
नाखून इस संदभª म¤ अपनी मह°ा को खो चुके ह§। और मनुÕय के िलए उसका उपयोग भी
बदल गया है । अब वे सŏदयª को बढ़ाने वाले कारक के łप म¤ जाने जाते ह§। परंतु नाखूनŌ
जैसी मनुÕय के भीतर कì जो पाशिवक वृित है, उसका ³या ? इसीिलए वे कहते ह§ िक,
"लेिकन यह भी कैसे कहóँ, नाखून काटने से ³या होता है ? मनुÕय कì बबªरता घटी कहाँ है,
वह तो बढ़ती जा रही है । मनुÕय के इितहास म¤ िहरोिशमा का हÂयाकांड बार-बार थोड़े ही
हòआ है। यह तो उसका नवीनतम łप है। म§ मनुÕय के नाखून कì ओर देखता हóँ, तो कभी
कभी िनराश हो जाता हóँ । ये उसकì भयंकर पाशिवक वृि° के जीवंत ÿतीक है। मनुÕय कì
पशुता को िजतनी बार भी काट दो, वह मरना नहé जानती ।" इÆहé सब के चलते उनके मन
म¤ ÖपĶ łप से कुछ ÿij उÂपÆन होते ह§ िक मनुÕय आिखर िकस ओर बढ़ रहा है ? पशुता
कì ओर या मनुÕयता कì ओर ? अľ बढ़ाने कì ओर या अľ काटने कì ओर ? उनके
अनुसार नाखून हमारी पशुता के अवशेष ह§ और दूसरी ओर यह बढ़ते हòए अľ-शľ हमारी
पशुता कì िनशानी ह§।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िलए मानवता कì ÿितķा एक सािहिÂयक मूÐय है । उनके
िलए मानवीयता एक ऐसा तÂव है जो हमारे िवकास का Öवाभािवक मानदंड है । मनुÕय
अपनी ऐितहािसक बुराइयŌ को धीरे-धीरे छोड़कर ही सही मायने म¤ मनुÕय बन सकता है।
िजस ÿकार जाित - वणª का दुराúह, िलंगभेद और रंगभेद का दुराúह आिद जैसी ÿवृि°यŌ
को छोड़कर हमने आधुिनकता कì ओर कदम बढ़ाए ह§, तो ³या अľŌ -शľŌ कì इस होड़
को समाĮ करके हम मनुÕयता कì एक नई पåरभाषा िलखने म¤ स±म नहé हो सकते ?
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िलए मानवता एक मूÐय कì तरह है और सािहÂय का एक
उĥेÔय जनसमूह के बीच इस ÿवृि° का Óयापक ÿसार भी है । यह िनबंध न केवल हम¤
आईना िदखाने का काम करता है, बिÐक झूठे िवकास का जो इंþजाल है, उसे भी
वाÖतिवक łप म¤ हमारे सामने खोल कर रख देता है । आचायª कì ŀिĶ म¤ वाÖतिवक
िवकास सही अथŎ म¤ मानवता कì ÿवृि° का ÿसार है । इसीिलए वे परंपरा से इसका ÿमाण
देते हòए कहते ह§, "गौतम ने ठीक ही कहा था िक मनुÕय कì मनुÕयता यही है िक वह सबके munotes.in

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कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ !
75 दुख-सुख को सहानुभूित के साथ देखता है। यह आÂम िनिमªत बंधन ही मनुÕय को मनुÕय
बनाता है। अिहंसा, सÂय और अøोधमूलक धमª का मूल उÂस यही है ।"
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया िनबंध संúह 'कÐपलता ' सन् १९५१ म¤
ÿकािशत हòआ था । अथाªत इस िनबंध संúह म¤ संकिलत सभी िनबंध सन १९५१ के पहले
िलखे गए थे। इस िवषय पर िनबंध िलखने का िवचार उÆह¤ ³यŌ आया, यह उस समय के
पåरवेश को देखते हòए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । वह दौर िĬतीय िवĵयुĦ का
दौर था , जहाँ िहंसक अľŌ और शľŌ का न केवल िनमाªण हो रहा था बिÐक उनका
संचयन भी बड़ी तेजी से िकया जा रहा था। ºयादा से ºयादा शिĉ हािसल करना और
दूसरŌ को नĶ करना, िवकास का एक मानदंड समझा जा रहा था। मानवीय मूÐय मरणांतक
िÖथित म¤ पड़े हòए थे। ऐसी िÖथित म¤ यह िवषय अÂयंत ÿासंिगक था। आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी ने परंपरा और िव²ान के िविभÆन उदाहरणŌ से इस बात को सÂयािपत करने का
ÿयास िकया िक मनुÕय कì चåरताथªता ÿेम म¤ है, मैýी म¤ है, Âयाग म¤ है, अपने को सबके
मंगल के िलए िन:शेष भाव से दे देने म¤ है । उनका मानना था िक नई पीढ़ी को यह िसखा
देना अÂयंत आवÔयक है िक नाखून का बढ़ना मनुÕय के भीतर कì पशुता कì िनशानी है,
इसी ÿ कार वृह°र जीवन म¤ अľ-शľŌ का बढ़ने देना मनुÕय कì पशुता कì िनशानी है और
उसकì बाढ़ को रोकने कì अÂयंत आवÔयकता है। यह तÃय इस िनबंध कì समसामियक
ÿासंिगकता को ÖपĶ करता है। आज के समय म¤ भी यह िनबंध अÂयंत ÿासंिगक ही है।
७.२.२ नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ ! िनबÆध का ÿितपाī:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया िनबंध 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' एक तरह से
अपने युगीन पåरवेश के मूÐयांकन का साथªक ÿयास है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने
अपने समसामियक वृह°र पåरवेश म¤ अÿासंिगक होते जा रहे मानवीय मूÐयŌ कì साथªकता
को समझाने के िलए इस िनबंध कì रचना कì थी। इस िनबंध के Ĭारा अिहंसा, ÿेम,
मानवीयता आिद के संदभª म¤ उनके उºजवल िवचारŌ का पता चलता है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी, महाÂमा गांधी के Ĭारा Öथािपत जीवन-आदशŎ के प³के
समथªक थे। उनके कई िनबंधŌ म¤ अनायास ही उÆहŌने महाÂमा गांधी और उनकì िवचारधारा
के ÿित अपनी ®Ħा को ÿकट िकया है । 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध म¤ मनुÕय कì पाशिवक
वृि° कì चचाª करते हòए वे कहते ह§, "एक बूढ़ा था। उसने कहा था - बाहर नहé , भीतर कì
ओर देखो। िहंसा को मन से दूर करो, िमÃया को हटाओ , øोध और Ĭेष को दूर करो, लोक
के िलए कĶ सहो, आराम कì बात मत सोचो , ÿेम कì बात सोचो; आÂम-तोषण कì बात
सोचो, काम करने कì बात सोचो। उसने कहा - ÿेम ही बड़ी चीज है, ³यŌिक वह हमारे भीतर
है। उ¸छृखलता पशु कì ÿवृि° है, 'Öव' का बंधन मनुÕय का Öवभाव है।"
यह Öव का बंधन आिखर ³या है ? इस िनबंध म¤ बड़े ही साथªक तरीके से इस बात को
समझाते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अंúेजी और िहंदी के शÊद 'इंिडप¤ड¤स' और
'Öवाधीनता ' कì चचाª कì है। अंúेजी भाषा के शÊद इंिडप¤ड¤स का अथª है - अनधीनता ,
जबिक Öवाधीनता का अथª है - Öव कì अधीनता , Öव यानी कì हमारा अंतमªन। Öवाधीनता
शÊद का अथª है, Öवयं कì अधीनता या Öवयं का नैितक बंधन, जो िक हमारे भीतर मानवीय
तÂव को ÿºविलत और ÿकािशत करता है । इस Öव के बंधन को आचायª हजारी ÿसाद munotes.in

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आधुिनक गī
76 िĬवेदी भारतीय परंपरा कì अĩुत देन मानते ह§। इसीिलए वे कहते ह§, "भारतीय िच° जो
आज भी 'अनधीनता ' के łप म¤ न सोच कर 'Öवाधीनता ' के łप म¤ सोचता है, वह हमारे
दीघªकालीन संÖकारŌ का फल है । वह Öव के बंधन को आसानी से नहé छोड़ सकता ।
अपने-आप पर अपने-आप के Ĭारा लगाया हòआ बंधन हमारी संÖकृित कì बड़ी भारी
िवशेषता है ।"
इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अÂयंत सरल और सहज ढंग से पूरी
ऐितहािसक परंपरा का िवĴेषण िकया है। िजसम¤ उÆहŌने अľŌ - शľŌ के चरणबĦ िवकास
के Ĭारा मनुÕय के भीतर बढ़ती हòई पाशिवक वृि° को समझाने का ÿयास िकया है। सËयता
के आरंभ म¤ जब बौिĦक Öतर पर मनुÕय िबÐकुल धरातल पर था और उसके पास
आÂमर±ा के िलए कोई बाहरी साधन नहé था, तब वह नाखूनŌ के माÅयम से ही यह काम
पूरा करता था । पर जैसे-जैसे उसका बौिĦक िवकास होता गया और वह अÆय चीजŌ के
उपयोग को समझता गया , वैसे-वैसे उसने पेड़ कì डालŌ, ढेलŌ, बड़े पÂथरŌ, धनुष-बाण,
भाले, तलवार और इसी तरह øमशः पलीते वाली बंदूकŌ, बमŌ, बमवषªक वायुयानŌ,
मशीनगनŌ और परमाणु बम के िवकास के Ĭारा अपने भीतर कì पाशिवक वृि° को संतुĶ
करने का ÿयास िकया। पर Åवंस के िलए जुटाए गए यह सभी साधन ³या इस धरा को
जीवनदाियनी के łप म¤ शेष रहने द¤गे। इस पृÃवी के सभी देश इस ÿितयोिगता म¤ सिÌमिलत
ह§, तो ³या इसका यह अथª है िक जब संहार होगा, तो सब कुछ नĶ होगा। ³या सही मायने
म¤ यह Åवंस हमारे िवकास का īोतक है ? यिद नहé तो िफर वाÖतिवकता ³या है ?
'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध इस ŀिĶ से अÂयंत िविशĶ है िक इसम¤ भारतीय परंपरा और
तÂकालीन पåरवेश के साथªक तÂवŌ का िववेचन और िवĴेषण करते हòए आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी ने मानवीय मूÐयŌ कì पुनः ÿितķा का साथªक ÿयास िकया है। शिĉ कì
ÿितयोिगता मनुÕयता को नĶ होने कì तरफ ले जाएगी, जबिक हमारी परंपरा म¤ मौजूद ÿेम,
मैýी तथा अिहंसा जैसे तÂव मनुÕयता को िवकास कì साथªक ऊंचाई कì ओर ले जाएंगे।
हजारŌ वषŎ से भारतीय सािहÂय और मेधा इन तÂवŌ का ÿचार और ÿसार करती चली आ
रही है। आधुिनक काल म¤ महाÂमा गांधी ने इÆहé मूÐयŌ कì Óयवहाåरक पåरणित का उदाहरण
पूरे िवĵ के सÌमुख रखा था। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ÖपĶ धारणा है िक इÆहé
मूÐयŌ को पुनः अपनाकर ही मानवता ऊÅवªगामी हो सकती है । उनके संपूणª िवĴेषण का
यही िनÕकषª है और यही इस िनबंध कì देन है।
७.३ सारांश इस इकाई के अंतगªत 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध का अÅययन िकया गया। 'नाखून ³यŌ
बढ़ते ह§' िनबंध मनुÕय कì पाशिवक वृि°यŌ का िवĴेषण करने वाला िनबंध है । आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध लेखन कला अÂयंत गंभीर िवषयŌ के साथ गंभीर हो जाती है
और कहé मÖती कì लहर के समान ÿतीत होती है । इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी कì िविवध संवेदनाओं को लि±त िकया जा सकता है । उनके मानवतावादी िवचार
भारतीय संÖकृित को लेकर उनका ŀिĶकोण तथा गुŁ-गंभीर िवĬता इन िनबंधŌ का
ÿाणतÂव है । munotes.in

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कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ !
77 ७.४ उदाहरण – Óया´या Óया´या -अंश (१):
'इंिडप¤ड¤स' का अथª है अनधीनता या िकसी कì अधीनता का अभाव, पर 'Öवाधीनता ' शÊद
का अथª है अपने ही अधीन रहना। अंúेजी म¤ कहना हो, तो 'सेÐफिडप¤ड¤स' कह सकते ह§। म§
कभी-कभी सोचता हóँ िक इतने िदनŌ तक अंúेजी कì अनुवितªता करने के बाद भी भारतवषª
'इंिडप¤ड¤स' को अनधीनता ³यŌ नहé कह सका ? उसने अपनी आजादी के िजतने भी
नामकरण िकए - Öवतंýता, Öवराºय , Öवाधीनता - उन सबम¤ 'Öव' का बंधन अवÔय रखा।
यह ³या संयोग कì बात है या हमारी समूची परंपरा ही अनजान म¤, हमारी भाषा के Ĭारा
ÿकट होती रही है ?
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'नाखून ³यŌ
बढ़ते ह§' िनबंध से उधृत है ।
ÿसंग: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने िनबंध 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' म¤ मनुÕय के भीतर
बढ़ती पाशिवक ÿवृि° का िवचारपूणª ढंग से िवĴेषण िकया है । इसी िवĴेषण के øम म¤ वे
िविभÆन संÖकृितयŌ का भाषा आिद के संदभª म¤ मूÐयांकन भी करते ह§। इस उधृत अंश म¤
अंúेजी और िहंदी भाषा के बहाने वे इन संÖकृितयŌ के आंतåरक तÂवŌ का िवĴेषण करते ह§ ।
Óया´या : आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने िनबंध 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' म¤ मनुÕय के
भीतर बढ़ती िहंसावृि° को लि±त िकया है। यह उĦरण उसी िनबंध का अंश है। इस उĦरण
म¤ भाषा और संÖकृित के बीच मूÐयपरक संबंध को लि±त िकया गया है । अंúेजी भाषा के
शÊद 'इंिडप¤ड¤स' का अथª है, िकसी भी ÿकार कì अधीनता का अभाव , जो एक तरह से
अराजकता म¤ भी पåरवितªत हो सकता है । परंतु भारतीय संदभŎ म¤ एवं िहंदी भाषा म¤ इस
शÊद के जो अथª ÓयवŃत होते ह§, वे ह§ - Öवतंýता एवं Öवाधीनता। इन सभी शÊदŌ म¤ 'Öव'
शÊद जुड़ा हòआ है, िजससे यह अथª संकेितत होता है िक Öवयं कì अधीनता या Öवयं का
बंधन। यह 'Öव' का बंधन हम¤ अपसंÖकृित कì ओर ले जाने से बचाता है। यह Öव का बंधन
हम¤ मानव-धमª के िवŁĦ कायª करने से रोकता है । यह ल±ण हजारŌ वषŎ से भारतीय
संÖकृित का अिनवायª अंग रहा है ।
इस िनबंध म¤ मानवता कì चचाª करने के øम म¤ लेखक इस ÿij का उ°र ढूंढने का ÿयास
करते िदखाई देते ह§ िक आज के मनुÕय म¤ लगातार बढ़ती पाशिवक वृि° का कारण ³या है
और इसके पीछे वे कहé न कहé बढ़ती वैचाåरक अराजकता को भी िजÌमेदार समझते ह§ ।
भारतीय संÖकृित म¤ ÿेम, मैýी और अिहंसा जैसे मूÐय घुले-िमले ह§ और भारतीय जनमानस
इन मूÐयŌ से गहरे तक ÿभािवत है । 'Öव' का नैितक बंधन, िजसे वह अपने जीवन के आरंभ
से देखता और जीता है, Öवाभािवक łप से वह उसके कमª-®ंखला का एक अिनवायª अंग
बन जाता है और इसी के चलते दया, ममता , मानवता आिद भावनाएं भारतीय जनमानस
का चेतन-अंश बनी रहती ह§। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस उĦरण म¤ शÊद ÿयोग के
माÅयम से भारतीय संÖकृित कì इसी िवशेषता को रेखांिकत करने का अĩुत ÿयास िकया
है। munotes.in

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आधुिनक गī
78 िवशेष:
१. भाषा के ÿित लेखक कì सूàमतÂव अÆवेषणी ±मता का पåरचय िमलता है ।
२. भारतीय संÖकृित कì िवशेषता का वणªन िकया है ।
Óया´या: अंश २:
एक बूढ़ा था । उसने कहा था - बाहर नहé , भीतर कì ओर देखो । िहंसा को मन से दूर करो,
िमÃया को हटाओ , øोध और Ĭेष को दूर करो, लोक के िलए कĶ सहो, आराम कì बात मत
सोचो, ÿेम कì बात सोचो; आÂम-तोषण कì बात सोचो , काम करने कì बात सोचो । उसने
कहा - ÿेम ही बड़ी चीज है, ³यŌिक वह हमारे भीतर है । उ¸छृखलता पशु कì ÿवृि° है, 'Öव'
का बंधन मनुÕय का Öवभाव है।
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'नाखून ³यŌ
बढ़ते ह§' िनबंध से उधृत है ।
ÿसंग: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी पर महाÂमा गांधी के ÓयिĉÂव और गांधीवाद का ÖपĶ
ÿभाव था। सÂय , अिहंसा और ÿेम के िसĦांतŌ से आपूåरत गांधीवाद उनके भीतर एक आशा
का संचार करता था । िजस समय पूरा िवĵ युĦ के आतंक से आøांत था, उÆह¤ एकमाý
गांधीवाद से ही मानवता के बचने कì आशा िदखाई देती थी। िनबंध 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' म¤
मनुÕय कì िहंसावृि° का िवĴेषण करने के øम म¤ वे महाÂमा गांधी के इसी महÂव को ÿकट
करते ह§ ।
Óया´या : 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध के इस उĦृत अंश म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने
महाÂमा गांधी के मानवता के ÿित िकए गए साथªक ÿयासŌ को याद िकया है । महाÂमा गांधी
ने जनमानस को लगातार नैितक होने कì ÿेरणा दी । उÆहŌने ÿेम, अिहंसा और सÂय के
मूÐयŌ पर अÂयंत िवĵास करते हòए जनमानस को इÆह¤ अपनाने पर बल िदया । यह सब कुछ
उÆहŌने केवल सैĦांितक łप से कहकर ही नहé िकया बिÐक उनके आंदोलनŌ म¤ इसका
Óयावहाåरक फलन भी पूरे िवĵ ने देखा । महाÂमा गांधी ने दि±ण अĀìका म¤ िāिटश सरकार
के िवŁĦ इन उपकरणŌ का ÿयोग सवªÿथम िकया था और अपने आंदोलनŌ म¤ उÆह¤ भारी
सफलता भी िमली थी । वहां भारतीयŌ के अिधकारŌ के िलए लड़ते हòए अंúेज सरकार को
उÆहŌने झुकने के िलए और रंगभेद कì नीित Âयागने के िलए िववश िकया था ।
पूरी तरह से सन १९१५ म¤ भारत लौटने के बाद महाÂमा गांधी ने यहां भी अपने उÆहé
ÿयासŌ को Óयवहाåरक Łप से लागू िकया और िāिटश सरकार को पुनः सोचने पर िववश
कर िदया । यह उस समय पूरे िवĵ के िलए बड़े आIJयª का िवषय था िक दो कपड़Ō म¤ अपना
तन ढके हòए और हाथ म¤ लाठी पकड़े हòए एक Óयिĉ पूरे िवĵ को अपने औपिनवेिशक
शासन के अंतगªत िलए हòए इंµल§ड कì सरकार को पीछे हटने पर मजबूर िकए था । महाÂमा
गांधी कì इस सफलता पर पूरा िवĵ आशा भरी िनगाहŌ से उनकì तरफ देख रहा था ।
दरअसल अपने आंदोलनŌ म¤ महाÂमा गांधी ने भारतीय परंपरागत मूÐयŌ का ÿयोग करते हòए
एक तरफ भारतीय जनमानस को नैितकता कì ÿेरणा दी, वहé दूसरी तरफ उÆह¤ सÂय के
िलए लड़ना िसखाया और उनकì पूरी लड़ाई िन:शľ लड़ाई थी । munotes.in

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कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबÆध : नाखून ³यŌ बढ़ते ह§ !
79 महाÂमा गांधी का दशªन नैितक दशªन है । वे वाĻ बंधनŌ कì अपे±ा Öव के बंधन को ºयादा
महÂवपूणª समझते थे। Öव' के बंधन को मानने वाला Óयिĉ कभी भी अराजकता का समथªन
नहé करेगा। वह अकेले भी होगा, तो िकसी भी ÿकार के आपरािधक कृÂय को अंजाम नहé
देगा ³यŌिक वह नैितकता कì Öवत:Öफूतª भावना से ÿेåरत है । वह न केवल Öवयं को ऐसी
बातŌ से दूर रखेगा बिÐक दूसरŌ को भी ऐसी ÿेरणा देने का काम करेगा। इसीिलए महाÂमा
गांधी भी 'Öव' के बंधन का समथªन करते थे और इसे मानवीय जीवन के िलए अिनवायª
समझते थे। महाÂमा गांधी का दशªन सािÂवक कमª का दशªन है, आÂमसंतोष का दशªन है, Öव
के बंधन का दशªन है। इÆहé अथŎ म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने िनबंध 'नाखून
³यŌ बढ़ते ह§' म¤ महाÂमा गांधी का उÐलेख िकया है ।
िवशेष:
१. गांधीवाद और महाÂमा गांधी के ÿित आचायª िĬवेदी के ŀिĶकोण का पåरचय िमलता
है।
२. आज के समय म¤ भी Öव के बंधन का महÂव Öथािपत होता है ।
७.५ वैकिÐपक ÿij १. 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§', िनबंध म¤ बूढ़े के łप म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने िकसका
उÐलेख िकया है ?
(क) लोकमाÆय बालगंगाधर ितलक (ख) गोपालकृÕण गोखले
(ग) महाÂमा गांधी (घ) दादाभाई नौरोजी
२. आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अनुसार 'इंिडप¤ड¤स' शÊद का शुĦ अथª है ?
(क) Öवतंýता (ख) Öवाधीनता
(ग) अनधीनता (घ) अधीनता
३. िस³थक का अथª है ?
(क) मोम (ख) शहद
(ग) आलता (घ) नाखून
७.६ लघु°रीय ÿij १) 'Öव' के बंधन से ³या ताÂपयª है ?
२) 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध का उĥेÔय ÖपĶ कìिजए ?
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आधुिनक गī
80 ७.७ बोध ÿij १) 'भारतीय िच° आज भी अनधीनता के łप म¤ न सोच कर Öवाधीनता के łप म¤
सोचता है।' इस कथन कì Óया´या कìिजए ?
२) 'नाखून ³यŌ बढ़ते ह§' िनबंध कì अंतवªÖतु को ÖपĶ कìिजए ?
७.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****

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81 81 ७.१
िनबÆध : आम िफर बौरा गये
इकाई कì Łपरेखा
७.१.० इकाई का उĥेÔय
७.१.१ ÿÖतावना
७.१.२ िनबÆध : आम िफर बौरा गये
७.१.२.१ आम िफर बौरा गये िनबÆध कì अÆतवªÖतु
७.१.२.२ आम िफर बौरा गये िनबÆध का ÿितपाī
७.१.३ सारांश
७.१.४ उदाहरण-Óया´या
७.१.५ वैकिÐपक ÿij
७.१.६ लघु°रीय ÿij
७.१.७ बोध ÿij
७.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
७.१.० इकाई का उĥेÔय  पाठ्यøम के अÆतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' म¤
संúहीत िनबÆधŌ म¤ से 'आम िफर बौरा गए ' िनबंध का अÅययन सिÌमिलत है ।
 इस िनबंध म¤ छाý िनबंध कì अÆतवªÖतु और ÿितपाī को समझ सक¤गे ।
 इन िनबंध के अÅययन से छाý न केवल आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िविभÆन
संदभŎ म¤ िविशĶ ŀिĶ से पåरिचत हŌगे, बिÐक खुद उनके समसामियक िचंतन के सही
आधारŌ का चयन करने कì योµयता उनम¤ उÂपÆन होगी ।
 संपूणª इकाई का अÅययन करने के बाद छाý आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िनबंध-
लेखन संबंधी िवशेषताओं को समझने और समझाने म¤ स±म हŌगे ।
७.१.१ ÿÖतावना 'आम िफर बौरा गये' िनबंध आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Óयिĉ-Óयंजक िनबंधŌ म¤ से एक
®ेķ िनबंध है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì लेखन ÿवृि° के अनुłप इस िनबंध म¤
उनकì इितहास चेतना, सूàम शोध-ŀिĶ, पुराणŌ के ÿित उनका िवशेष िचंतन एवं संÖकृत
लौिकक सािहÂय का गहन अÅययन आिद सभी कì झलक िमलती है। उनका सूàम िवĴेषण
कभी भी पाठकŌ को चमÂकृत कर देता है। ÿाचीन सािहÂय से ऐसे-ऐसे तÃय और Óया´याएँ
वे पाठकŌ के सामने रखते ह§ िक पाठक चमÂकृत हो जाता है। 'आम िफर बौरा गये' िनबंध म¤ munotes.in

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आधुिनक गī
82 इÆहé ÿवृि°यŌ का दशªन होता है। इसी के साथ समसामियक संदभŎ को भी वे अपने िनबंधŌ
म¤ सिÌमिलत करना नहé भूलते, वह भी इस िनबंध म¤ देखा जा सकता है।
७.१.२ िनबÆध : आम िफर बौरा गये ७.१.२.१ आम िफर बौरा गये िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
'आम िफर बौरा गये' इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने आIJयª िमि®त उÂकंठा से
मनुÕय कì अपराजेय शिĉ कì भूåर-भूåर ÿशंसा कì है। इस सृिĶ म¤ सËयता के आरंभ से
मनुÕय धीरे-धीरे अपने ÿयासŌ से और अपनी बुिĦ कौशल के ÿयोग से इस धरा को अपने
अनुकूल बनाता चला आया है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी पुराणŌ और संÖकृत-सािहÂय
के तमाम उदाहरणŌ से इस बात को पुĶ करते हòए आăमंजरी और उसके संबंध म¤ िविभÆन
धारणाओं कì चचाª करते चलते ह§। साथ ही इस धरा म¤ मनुÕय के दुज¥य संघषª कì कहानी भी
साथ-साथ चलती िदखाई देती है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंधŌ म¤ एक तरह कì
बौिĦक मÖती देखने को िमलती है। वे किठन पौरािणक और ऐितहािसक ÿसंगŌ से खेलते
हòए चलते ह§। यह िनबंध इÆहé सब ÿवृि°यŌ का ®ेķ उदाहरण है। उनकì बौिĦक मÖती म¤
तमाम लोक-िवĵास, शाľीय आ´यान , इितहास के अनु°åरत ÿijŌ से संघषª, सभी कुछ
एक साथ चलता रहता है। इससे यह पता चलता है िक उनका अÅययन िकतना गुŁ-गंभीर
है। और ÿाचीन सािहÂय पर उनका ऐसा अिधकार है िक वे सवªथा नवीन ŀिĶ से उसकì
Óया´या भी करते चलते ह§।
िनबंध कì शुŁआत वे एक लोक-िवĵास से करते हòए कहते ह§, "बसंत पंचमी के पहले अगर
आăमंजरी िदख जाए तो उसे हथेली पर रगड़ लेना चािहए। ³यŌिक ऐसी हथेली साल भर
तक िब¸छू के जहर को आसानी से उतार देती है।" और इस शुŁआत के बाद उनका
वायवीय-िवचरण आरंभ हो जाता है। वे एक साथ जीविव²ान, इितहास, समाजशाľ,
सािहÂय आिद िवषयŌ म¤ तैरना आरंभ कर देते ह§। आम और आăमंजरी को लेकर वे तमाम
शाľीय ÿमाण , माÆयताएं देते हòये इसी के साथ-साथ अÆय िवĴेषण आरंभ कर देते ह§। इन
िवĴेषणŌ म¤ वे तमाम िवरोधाभासŌ को भी खोजते ह§, जैसे िजस आăमंजरी को हथेली पर
रगड़ने से िब¸छू का जहर आसानी से उतर जाता है, वह आăमंजरी मदन देवता का अमोघ
बाण है। जबिक िब¸छू मदन देवता का िवÅवंस करने वाले महादेव का अľ है। महादेव ने
कामदेव को नĶ िकया पर उÆहé का अľ िब¸छू, मदन देवता के अľ से परािजत है। यह
सचमुच िकतना िवरोधाभासी है।
आăमंजरी के सŏदयª का संÖकृत म¤ कािलदास जैसे सािहÂयकारŌ ने वणªन िकया है।
आăमंजरी और उसकì महक सदा से जनमानस को िवभोर करती आई है आम कì बौर
वसंत म¤ अपनी उभार पर होती है और उसकì महक सारे वातावरण को महका देती है।
आăमंजरी कì बात करते-करते कब वे कामदेव और ®ीकृÕण कì अिभÆनता पर िचंतन
आरंभ कर देते ह§, यह पता ही नहé चलता। वे अपने ऐसे ÿijŌ के पीछे के कारणŌ का उÐलेख
भी करते चलते ह§ जैसे, धमªशाľ कì पोिथयŌ के अनुसार बसंत पंचमी के िदन मदन देवता
कì पूजा करने से Öवयं ®ी कृÕणचंþ जी ÿसÆन होते ह§, दूसरी तरफ तांिýक आचायŎ म¤
िवÕणु भजन करने वालŌ के अनुसार कामगायýी ही ®ी कृÕणगायýी ह§। और ऐसी ही munotes.in

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िनबÆध : आम िफर बौरा गये
83 माÆयताओं से उनके मन म¤ यह ÿij उÂपÆन होता है िक कामदेव और ®ी कृÕण ³या अिभÆन
देवता ह§ ? दरअसल जहां भी पौरािणक इितहास म¤ ऐसे िवरोधाभास आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी को िदखाई देते ह§, वह सÿमाण ऐसी धारणाओं को ठीक करने या इनकì
वाÖतिवकता को जानने का ÿयास आरंभ कर देते ह§। इसीिलए वे िलखते ह§ िक "मेरा मन
अधभूले इितहास के आकाश म¤ चील कì तरह मंडरा रहा है, कहé कुछ चमकती चीज नजर
आई नहé िक झपाटा मारा। पर कुछ िदख नहé रहा है। सुदूर इितहास के कुºझिटका¸छÆन
नभोमंडल म¤ कुछ देख लेने कì आशा पोसना ही मूखªता है।" यह कथन भारतीय इितहास
लेखन कì एक िववशता कì ओर भी संकेत करता है, िजसम¤ तÃय और बात¤ अÖपĶ ढंग से
संकेितत ह§ और उनसे सही तÃयŌ को िनकाल पाना बड़ा असंभव सा कायª है। सचमुच वह
ऐितहािसक तÃय कोहरे के आवरण म¤ ढके हòए ह§, िजÆह¤ देख पाना अÂयंत दुÕकर कायª है।
आă मंजरी के बहाने तमाम पौरािणक धारणाओं कì चचाª करते-करते कब वे इितहास कì
ओर मुड़ जाते ह§, पता भी नहé चलता और उसकì Óया´या करते हòए मनुÕय कì दुज¥य शिĉ
के ÿित िवĵास ÿकट करते ह§। वे िलखते ह§, "आयŎ के साथ असुरŌ, दानवŌ और दैÂयŌ के
संघषŎ से हमारा सािहÂय भरा पड़ा है। रह-रहकर मेरा Åयान मनुÕय कì इस अĩुत िवजय
याýा कì ओर िखंच जाता है। िकतना भयंकर संघषª वह रहा होगा जब घर म¤ पालने पर सोए
हòए लड़के तक चुरा िलए जाते हŌगे और समुþ म¤ फ¤क िदए जाते हŌगे।" अपने ऐितहािसक
अÅययन के अनुसार जो समझ उÆहŌने िवकिसत कì उस आधार पर वे कहते ह§ िक आयŎ
को इस देश म¤ सबसे अिधक संघषª असुरŌ से ही करना पड़ा था। दैÂय, दानव और रा±सŌ से
भी उनकì बजी थी पर असुरŌ से िनपटने म¤ उÆह¤ बड़ी शिĉ लगानी पड़ी थी। उनके अनुसार
असुर हर तरह से सËय थे। उनका तकनीकì ²ान बहòत उÆनत था। उÆहŌने बड़े-बड़े नगर
बसाए थे। महल बनाए थे। उनकì अपे±ा गंधवª, य± और िकÆनर शांितिÿय जाितयाँ थé,
िजनम¤ िवलािसता कì माýा कुछ अिधक थी। अपनी इस इितहास धारणा को बताते-बताते
वह अचानक संÖकृित के एक अĩुत तÃय को पाठकŌ के सामने ÿकट करते ह§ िक काम
देवता या कंदपª वÖतुतः गंधवª ही ह§, केवल उ¸चारण बदल गया है। यह तÃय भारत के
सांÖकृितक िवकास कì ÿिøया को हमारे सामने ÖपĶ करता है। िकस तरह िविभÆन जाितयŌ
के िमलने से, उनके आपसी सांÖकृितक-धािमªक िवĵास भी िमलजुल कर एक नए łप म¤
हमारे सामने ÿकट होते ह§। यह तÃय एक तरह से भारत के सांÖकृितक िवकास कì ÿिøया
को सूý łप म¤ हमारे सामने ÿकट करता है।
ऐसी ही चचाªओं के øम म¤ वे अपने समसामियक पåरवेश कì भी Óया´या करते िदखाई देते
ह§, जब वे आयª और असुरŌ के संघषª कì चचाª करते-करते अचानक यह तÃय उĤािटत
करते ह§ िक "आज इस देश म¤ िहंदू और मुसलमान इसी ÿकार के लºजाजनक संघषª म¤
ÓयाĮ ह§। ब¸चŌ और िľयŌ को मार डालना , चलती गाड़ी से फ¤क देना, मनोहर घरŌ म¤ आग
लगा देना, मामूली बात¤ हो गई ह§।" आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का यह कथन उनके समय
के समाज कì भयंकर दशा से उपजा है। जैसा िक हम जानते ह§ 'कÐपलता' संúह के सभी
िनबंध १९५१ के पहले ÿकािशत हòए थे। आजादी के समय िहंदू-मुिÖलम दंगŌ का इितहास,
उसकì भयावहता और øूरता से हम सभी पåरिचत ह§। दो अलग-अलग धमª और
संÖकृितयाँ, जो सैकड़Ō वषō से साथ रहना सीख गई थé, उÆह¤ अंúेजी शासकŌ ने अपने
Öवाथª कì पूितª के िलए िकस तरह ±त-िव±त कर िदया । उÆह¤ आपस म¤ लड़ाकर इस देश
कì जड़Ō को उÆहŌने कमजोर कर िदया और हम भारतीय मूखŎ कì तरह एक-दूसरे को नĶ munotes.in

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आधुिनक गī
84 करने म¤ संलµन हो गए। मानव इितहास म¤ ऐसी दुĶता का उदाहरण कहé और दुलªभ है।
भारत िवभाजन के बाद िजतनी बड़ी आबादी अपने-अपने ÖथानŌ को छोड़कर अजनबी
जगहŌ पर जाने को िववश हòई, वह भी इितहास कì एक दुलªभ घटना है। इस तरह के
नकाराÂमक संघषª के ÿित आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì पीड़ा उनके कई िनबंधŌ म¤ हम¤
देखने को िमलती है।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी भाषा के ÿित अÂयंत सतकª सािहÂयकार ह§। अपने िनबंधŌ म¤ वे
लगातार इसका पåरचय देते ह§। उनके अिधकतर िनबंधŌ म¤ शÊदŌ कì उÂपि° और उनके
अथª कì Óयापकता या संि±Įता पर हम¤ नई जानकारी िमलती है। उदाहरण Öवłप इस
िनबंध म¤ 'आम' शÊद का िवĴेषण करते हòए वे कहते ह§ िक, "पंिडत लोग कहते ह§ िक 'आă'
शÊद 'अă' या 'अÌल' शÊद का łपांतर है। अă अथाªत खĘा।" इसी ÿकार जादू शÊद के
संदभª म¤ उनका िवĴेषण देखने योµय है, "यह इंþजाल या जादू िवīा का आचायª माना
जाता है अथाªत 'यातुधान' है। यातु और जादू शÊद एक ही शÊद के िभÆन-िभÆन łप ह§। एक
भारतवषª का है, दूसरा ईरान का। ऐसे अनेक शÊद ह§। ईरान म¤ थोड़ा बदल गए ह§ और हम
लोग उÆह¤ िवदेशी समझने लगे ह§। 'खुदा' शÊद असल म¤ वैिदक 'Öवधा' शÊद का भाई है।
'नमाज' भी संÖकृत 'नमस्' का सगा संबंधी है। 'यातुधान' को ठीक-ठीक फारसी वेश म¤ सजा
द¤ तो 'जादूदाँ' हो जाएगा।" आचायª जी के इस िवĴेषण से यह संकेत भी िमलता है िक िवĵ
कì बहòत सारी भाषाओं म¤ इसी तरह के पारÖपåरक सगे संबंध ह§। भौगोिलक दूåरयŌ और
पåरवेशगत कारणŌ से धीरे-धीरे शÊद ÅविनयŌ म¤ पåरवतªन आ गया और वे िबÐकुल अलग
ÿतीत होने लगे। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंधŌ म¤ कई ÖथलŌ पर इस तरह के
िवĴेषण पाठकŌ को आIJयªचिकत कर देते ह§।
'आम िफर बौरा गए ' िनबंध, आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì एक और िवशेषता को
महÂवपूणª ढंग से पाठकŌ के सामने रखता है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी पौरािणक
इितहास के ऐसे-ऐसे चåरýŌ को अपने िनबंध म¤ Öथान देते ह§, िजनसे और कहé िमल पाना
सामाÆय लोगŌ के िलए बड़ा मुिÔकल है। और वे िजस ढंग से इनका वणªन करते ह§, वे चåरý
अपनी पूरी चाåरिýक िवशेषताओं के साथ हमारे सामने ÿकट होते ह§। जैसे, इस िनबंध म¤ ही
उÆहŌने भागवत पुराण के एक चåरý शÌबर असुर का उÐलेख िकया है, िजसका नाम सÌबर ,
सांबर या साबर के नाम से भी कहé-कहé िजø िमलता है। शÌबर इंþजाल या जादू िवīा का
आचायª माना जाता है। ÿाचीन भारतीय संÖकृित म¤ िविभÆन उÂसवŌ का भी वणªन इस िनबंध
म¤ है, िजससे ÿाचीन संÖकृित के बारे म¤ हम¤ जानकारी िमलती है। उÆहŌने अपने इस िनबंध
म¤ सुबसंतक नामक महोÂसव कì चचाª कì है।
आम िफर बौरा गए िनबंध आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ºयादातर िनबंध लेखन
िवशेषताओं को समेटे हòए एक महÂवपूणª िनबंध है। इस िनबंध म¤ िजस तरह से वे लोक-
िवĵास, पुराण, इितहास, सािहÂय और समकालीन पåरवेश तक कì याýा करते ह§, यह
उÆहé के ÓयिĉÂव के वश कì बात है। ऐसा लािलÂय िहंदी के अÆय िनबंधकारŌ म¤ कम ही
देखने को िमलता है। ऐसी Óयिĉ-Óयंजकता िहंदी िनबंध के इितहास म¤ दुलªभ है। िनबंध
िलखते हòए वे जब अपने मन कì रौ के अनुसार झूम रहे होते ह§ तो उनकì अिभÓयिĉ देखते
ही बनती है। उनकì अिभÓयिĉ म¤ जबरदÖत उÂसाह का अितरेक देखने को िमलता है और
यह उÂसाह पाठक को भी एक सजग मनोदशा और सहज मनोवृि° से संपÆन बनाता है। munotes.in

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िनबÆध : आम िफर बौरा गये
85 पाठक इस िनबंध को पढ़ते हòए संÖकृित कì सूàमताओं को देखकर आनंिदत भी होता है
और उÂसािहत भी। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंधŌ म¤ यह अÂयंत महÂवपूणª और
िविशĶ िनबंध है।
७.१.२.२ आम िफर बौरा गये िनबÆध का ÿितपाī :
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अिधकतर िनबंध लिलत िनबंधŌ कì ®ेणी म¤ आते ह§। िजनम¤
ÿधान łप से Óयिĉ Óयंजकता का तÂव हम¤ देखने को िमलता है। 'आम िफर बौरा गए ' िनबंध
इस ŀिĶ से अÂयंत उÐलेखनीय िनबंध है। यह िनबंध आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì शैली
से पहचाना जाने वाला िनबंध है। इस िनबंध म¤ उÆहŌने अÂयंत रोचक शैली म¤ आम और
आăमंजरी के बहाने भारतीय संÖकृित और सािहÂय के िविशĶ प±Ō पर साथªक चचाª कì है।
जैसा िक हम जानते ह§, एक िवषय पर चलते-चलते िवषयाÆतर करके अपनी बात को और
Óयापक बनाने का जो उनका तरीका है, वह इस िनबंध म¤ भी उÐलेखनीय ढंग से देखने को
िमलता है। वे बात आरंभ करते ह§ वसंतपंचमी के समय म¤ आăमंजरी और िब¸छू से जुड़े हòए
लोकिवĵास को लेकर और इसके बाद आăमंजरी के िविभÆन संदभŎ कì चचाª करते हòए वे
अपने मनपसंद िवषय भारतीय संÖकृित पर भी आ जाते ह§। इितहास का वह अनदेखा सÂय
जो ÿामािणक ढंग से हम¤ नहé िमलता पर सािहिÂयक ÿमाणŌ से उसे पुĶ करते हòए सा±ात
अपने िनबंधŌ म¤ आचायª जी उपिÖथत कर देते ह§।
आयª-असुर संघषª भारतीय संÖकृित का ऐसा ही िविशĶ प± है जो उनके कई िनबंधŌ म¤ हम¤
देखने को िमलता है। इसी संघषª कì चचाª करते-करते वे िनबंध को समसामियक संदभŎ से
भी जोड़ देते ह§ और तÂकालीन समय म¤ घटी सांÿदाियक संघषª कì वीभÂस घटना को भी
िनबंध म¤ सिÌमिलत कर लेते ह§। वह घटना भारतीय इितहास का सवाªिधक काला पृķ है,
जहां िबना िकसी गलती के करोड़Ō कì आबादी को राजनीितक और कूटनीितक
महÂवाकां±ाओं के चलते िहंसा और øूरता कì आग के हवाले कर िदया गया था।
भारतीय इितहास और संÖकृित, आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के मनपसंद िवषय ह§ िजन पर
उनका अÅययन भी अÂयंत गहरा है और उसकì Óया´या भी वे अÂयंत िविशĶ तरीके से
करते ह§। उनके वणªन कì शैली ऐसी है िक अनदेखा सÂय भी सÂय łप म¤ आंखŌ के सामने
सा±ात उपिÖथत हो जाता है। इस तरह यह िनबंध भारतीय संÖकृित के कुछ िविशĶ संदभŎ
और महÂवपूणª ताÂकािलक सÂय से हम¤ łबł कराता है।
७.१.३ सारांश इस इकाई के अंतगªत 'आम िफर बौरा गए' िनबंध का अÅययन िकया गया। यह िनबंध 'आम
िफर बौरा गए' Óयिĉ Óयंजकता कì ŀिĶ से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का अÂयंत ®ेķ
िनबंध है िजसम¤ उÆहŌने अपनी िविशĶ छाप छोड़ी है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध
लेखन कला कभी अÂयंत गंभीर िवषयŌ के साथ गंभीर हो जाती है तो कहé 'आम िफर बौरा
गए' जैसे िनबंधŌ म¤ मÖती कì लहर के समान ÿतीत होती है। इस इकाई म¤ आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी कì िविवध संवेदनाओं को लि±त िकया जा सकता है। उनके मानवतावादी munotes.in

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आधुिनक गī
86 िवचार भारतीय संÖकृित को लेकर उनका ŀिĶकोण तथा गुŁ-गंभीर िवĬता इन िनबंधŌ का
ÿाणतÂव है।
७.१.४ उदाहरण Óया´या Óया´या अंश (१):
आज इस देश म¤ िहंदू और मुसलमान इसी ÿकार के लºजाजनक संघषª म¤ ÓयाĮ ह§। ब¸चŌ
और िľयŌ को मार डालना , चलती गाड़ी से फ¤क देना, मनोहर घरŌ म¤ आग लगा देना,
मामूली बात¤ हो गई ह§। मेरा मन कहता है िक यह सब बात¤ भुला दी जाएंगी। दोनŌ दलŌ कì
अ¸छी बात¤ ले ली जाएंगी। बुरी बात¤ छोड़ दी जाएंगी। पुराने इितहास कì ओर ŀिĶ ले जाता
हóं तो वतªमान इितहास िनराशाजनक नहé मालूम होता।
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'आम िफर
बौरा गये' िनबंध से उधृत है।
ÿसंग: अपनी लेखन िवशेषता के अनुłप आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने िनबंधŌ म¤
वणªन के øम म¤ समसामियक समÖयाओं कì तरफ भी अपनी ŀिĶ को क¤िþत करते ह§।
उÆहŌने इस िनबंध म¤ आयª जाित के साथ असुर, दानव, दैÂय आिद के संघषª का वणªन करते
हòए और उसकì िवÅवंसकता को Åयान म¤ रखते हòए वे अपने पåरवेश पर भी चले जाते ह§
और तÂकालीन समय म¤ जो िहंदू-मुिÖलम संघषª चल रहा था, उसका मूÐयांकन करने लगते
ह§।
Óया´या: िहंदुÖतान कì आजादी ने सबसे बड़ी जो कìमत चुकाई थी वह थी, भारत और
पािकÖतान का बंटवारा। यह बंटवारा िजतना अंúेजी शासकŌ कì कूटनीित²ता का पåरणाम
था, उतना ही यह हमारे राÕůीय नेताओं कì महÂवाकां±ा से भी पैदा हòआ था। लगभग सात-
आठ सौ वषŎ से एक साथ िनवास कर रही िहंदू और मुिÖलम संÖकृितयŌ म¤ अंúेजी शासन
के पूवª एक समायोजन कì िÖथित म¤ आ चुकì थी। परंतु अंúेजŌ ने 'फूट डालो और राज
करो' कì रणनीित अपनाते हòए न केवल िहंदू-मुिÖलम िववाद को बढ़ावा िदया बिÐक इसके
साथ-साथ िहंदू जाित ÓयवÖथा कì िवसंगितयŌ का फायदा उठाते हòए िहंदुओं म¤ भी आपसी
फूट डाल दी।
पåरणामÖवłप आपसी िवĬेष लगातार बढ़ता गया और अंततः जब िहंदुÖतान का बंटवारा
हòआ और भारत एवं पािकÖतान नामक दो देश अिÖतÂव म¤ आए तो उसका खािमयाजा
आम जनता को बेवजह भुगतना पड़ा। घोिषत पािकÖतान म¤ रहने वाले िहंदुओं पर जमकर
अÂयाचार हòए। उनके घरŌ को जला िदया गया। उनकì अÆय संपि°यां भी आगजनी का
िशकार हòईं। मिहलाएं और बेिटयां या तो बेइºजत कì गयé या इस डर से उÆहŌने Öवयं ही
कुएं म¤ कूदकर या अÆय साधनŌ से आÂमहÂया का िवकÐप चुना। भारत म¤ भी दोनŌ संÿदायŌ
म¤ जमकर संघषª हòआ। सावªजिनक संपि°यŌ का भयंकर नुकसान हòआ। जान-माल कì भारी
हािन हòई और यह सब कुछ िजन लोगŌ कì वजह से हòआ, वे अपने-अपने देश म¤ सरकार
िनमाªण और िवकास कì नई-नई इबारत¤ िलखने म¤ मशगूल हो गए। munotes.in

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िनबÆध : आम िफर बौरा गये
87 आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध म¤ अपने समय कì इस पीड़ा का वणªन िकया है।
³यŌिक वह एक आशावादी सािहÂयकार ह§, अतः उÆह¤ यह उÌमीद है िक दोनŌ संÿदाय
आपसी समझदारी से इस संघषª को समाĮ कर¤गे और दोनŌ संÿदाय पुनः सामंजÖय के मागª
पर चल पड़¤गे।
िवशेष:
१. आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने समसामियक संदभª को िनबंध का िवषय न होते हòए भी
Öथान िदया है।
२. समसामियक संदभŎ को ŀिĶ म¤ बनाए रखना और अवसर िमलते ही पाठकŌ के सम±
रखना उनके लेखन कì महÂवपूणª िवशेषता है।
Óया´या अंश (२):
मेरा अनुमान है िक आम पहले इतना खĘा होता था और इसका फल इतना छोटा होता था
िक इसके फल को कोई Óयवहार म¤ नहé लाता था। संभवत: यह भी िहमालय के पावªÂय देश
का जंगली वृ± था। इसके मनोहर कोरक और िदगंत को मूिछªत कर देने वाला आमोद ही
लोकिच° को मोिहत करते थे। धीरे-धीरे यह फल मैदान म¤ आया। मनुÕय के हाथ łपी
पारस से छूकर यह लोहा भी सोना बन गया।
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'आम िफर
बौरा गये' िनबंध से उधृत है।
ÿसंग: 'आम िफर बौरा गए ' िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस Öथल पर आम के
ऐितहािसक िवĴेषण को हमारे सामने रखा है। मनुÕय ने खान-पान कì आदतŌ का धीरे-धीरे
िवकास िकया और फलŌ आिद का उपयोग कर ना धीरे-धीरे सीखा। इसी संदभª म¤ आम का
िवĴेषण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने यहां पर िकया है।
Óया´या: मानव का इितहास हजारŌ वषª ÿाचीन है। हमारे पास पाIJाÂय अवधारणाओं के
अनुसार िपछले लगभग ढाई हजार वषŎ का इितहास ऐसा इितहास है, िजसके बारे म¤ हम
काफì कुछ जानते ह§। परंतु उसके पहले के बारे म¤ हम केवल अनुमान ही लगा सकते ह§।
मनुÕय ने ÿागैितहािसक काल म¤ अपने यायावर जीवन को छोड़कर कभी बिÖतयां बनाना
सीखा होगा, खेती आिद का ²ान हािसल िकया होगा और इसम¤ उसे हजारŌ वषŎ का समय
लग गया होगा। ÿकृित ने वरदान-ÖवŁप मनुÕय को जीवन जीने कì हर िÖथित दी है और
यह सब कुछ समय के साथ मनुÕय ने जाना समझा और उसका उपयोग करना सीखा।
आम का उपयोग भी बहòत ÿाचीन काल म¤ नहé होता था। यīिप बसंत उÂसव के आसपास
आăमंजरी कì महक पूरे वातावरण को सुवािसत करती थी, पर खाī फल के łप म¤ आम
का वह महÂव नहé था , जो आज है। वैिदक काल म¤ आम से कहé ºयादा महÂवपूणª गूलर का
फल था। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने िनबंधŌ म¤ अपनी कÐपना से बहòत सारे
अनु°åरत ÿijŌ का उ°र साथªक तरीके से देने का ÿयास करते ह§। आम के संबंध म¤ भी munotes.in

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आधुिनक गī
88 उनकì कÐपना कुछ ऐसा ही काम कर रही थी। इसीिलए वे अनुमान लगाते हòए आम के
उपयोग पर अपनी बात कहते ह§।
आज कì तरह संभव था, पहले आम का फल इतना िवकिसत और मधुरता से भरा हòआ
नहé होता था और न ही यह मैदानी ±ेý कì पैदाइश है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का
अनुमान है िक यह भी िहमालय के पवªतीय ±ेý म¤ िमलने वाला एक जंगली वृ± था। लोग इसे
इसकì मोहक महक के कारण जानते पहचानते थे। धीरे-धीरे समय के साथ जब इसके फलŌ
का िवकास हòआ , तब लोगŌ ने इसके उपयोग को जाना और समझा और यह फ़ल पवªतीय
±ेý से मनुÕय के Ĭारा मैदानी ±ेýŌ म¤ भी लाया गया। यहां भी बाग-बागवानी म¤ उसे Öथान
िदया गया। øमश: िवकास का आज यह पåरणाम है िक शायद ही कोई ऐसा Óयिĉ हो जो
आम के फल को पसंद न करता हो, आम कì मधुरता उसे न ललचा देती हो। आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस उĦरण म¤ आम के संबंध म¤ यही बताने का ÿयास िकया है।
िवशेष:
१. मानव के चरणबĦ िवकास को लि±त िकया है।
२. इस उĦरण से यह संकेत भी िमलता है िक मनुÕय िकस तरह समय के साथ चीजŌ के
उपयोग को सीख सका है।
७.१.५ वैकिÐपक ÿij १. 'औिचÂय िवचार चचाª' नामक पोथी के रचियता िनÌन म¤ से कौन ह§ ?
(क) दंडी (ख) ±ेम¤þ
(ग) भामह (घ) कुंतक
२. इंþजाल या जादू िवīा का आचायª िनÌन म¤ से िकसे माना जाता है ?
(क) कामदेवता (ख) कृÕणगायýी
(ग) ±ेम¤þ (घ) शÌबर
३. आă मंजरी िकस देवता का अमोघ बाण है ?
(क) Łþ (ख) महादेव
(ग) मदन (घ) राम
४. 'उदुÌबर' का अथªसाÌय िनÌन म¤ से िकस शÊद से है ?
(क) गूलर (ख) सफरी
(ग) आă (घ) अमृत
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िनबÆध : आम िफर बौरा गये
89 ७.१.६ लघु°रीय ÿij १) 'सुवसंतक' उÂसव के संदभª म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने ³या शाľीय ÿमाण
िदए ह§ ?
२) िनबंध के आधार पर शÌबर असुर का वणªन कìिजए ?
३) िनबंध के आधार पर आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी Ĭारा िदए गए तÂकालीन संदभŎ का
उÐलेख कìिजए ?
७.१.७ बोध ÿij १) 'आम िफर बौरा गए' िनबंध कì अंतवªÖतु का िवĴेषण कìिजए?
२) 'आम िफर बौरा गए ' िनबंध के आधार पर भारतीय संÖकृित कì िविशĶता का उÐलेख
कìिजए?
३) 'आम िफर बौरा गए ' िनबंध का उĥेÔय ÖपĶ कìिजए?
७.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****

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90 ८
िनबÆध : िशरीष के फूल
इकाई कì łपरेखा
८.० इकाई का उĥेÔय
८.१ ÿÖतावना
८.२ िनबÆध : िशरीष के फूल
८.२.१ िशरीष के फूल िनबÆध कì अÆतवªÖतु
८.२.२ िशरीष के फूल िनबÆध का ÿितपाī
८.३ सारांश
८.४ उदाहरण-Óया´या
८.५ वैकिÐपक ÿij
८.६ लघु°रीय ÿij
८.७ बोध ÿij
८.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
८.० इकाई का उĥेÔय पाठ्यøम के अÆतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' म¤ संúहीत
िनबÆधŌ म¤ से पहले दस िनबंधŌ का अÅययन सिÌमिलत है। ये िनबंध ह§ - 'नाखून ³यŌ बढ़ते
ह§', 'आम िफर बौरा गए ', 'िशरीष के फूल', 'भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय', 'महाÂमा के
महाÿयाण के बाद', 'ठाकुरजी कì बटोर', 'संÖकृितयŌ का संगम', 'समालोचक कì डाक ',
'मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ' और 'केतुदशªन'। इन िनबंधŌ का अÅययन करने के बाद
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के संपूणª ÓयिĉÂव का मूÐयांकन भी िकया जायेगा। इस इकाई
के अंतगªत 'िशरीष के फूल' िनबंध का अÅययन सिÌमिलत है। इन िनबंध के अÅययन से
छाý न केवल आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िविभÆन संदभŎ म¤ िविशĶ ŀिĶ से पåरिचत
हŌगे, बिÐक खुद उनके समसामियक िचंतन के सही आधारŌ का चयन करने कì योµयता
उनम¤ उÂपÆन होगी। संपूणª इकाई का अÅययन करने के बाद छाý आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी कì िनबंध-लेखन संबंधी िवशेषताओं को समझने और समझाने म¤ स±म हŌगे।
८.१ ÿÖतावना आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िहंदी के समथª िनबंधकार ह§। वे िहंदी के ऐसे िगने-चुने
िनबंधकारŌ म¤ से एक ह§, िजनम¤ िवषय-वैिवÅयता के साथ-साथ अिभÓयिĉ कì अĩुत शिĉ
भी थी। उनके िनबंध उनकì वैयिĉक िवशेषताओं से गहरे तक संपृĉ ह§। उनके िनबंधŌ म¤
इितहास-चेतना और िविशĶ संÖकृित दशªन देखने को िमलता है। आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी का ÓयिĉÂव, उदारचेता सािहÂयकार का ÓयिĉÂव है और इसम¤ सामंजÖय कì अĩुत munotes.in

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िनबÆध : िशरीष के फूल
91 भावना देखने को िमलती है। उनकì इसी भावना के कारण उनके िवचार अÆय िनबंधकारŌ से
िविशĶ हो जाते ह§। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì कुछ िवशेषताएं उनके िनबंधŌ के आधार
पर िचिÆहत कì जा सकती ह§ जैसे, उनकì इितहास के ÿित िवशेष łिच उनके िनबंधŌ म¤
देखने को िमलती है, धमª और संÖकृित के संबंध म¤ उनके मौिलक िवचार उनके िनबंधŌ म¤
िदखाई देते ह§, पौरािणक एवं संÖकृत-सािहÂय के ÿित एक सÌमान का भाव देखने को
िमलता है। मानवतावाद के ÿित उनके िवचार अपने समय कì सबसे खास Óया´या के łप
म¤ देखे जा सकते ह§। उनके िलए सािहÂय कì रचना केवल वाµवैदµÅय नहé है बिÐक उसका
एक िविशĶ उĥेÔय है और वह उĥेÔय है - लोक कÐयाण। ऐसा सािहÂय ही ®ेयÖकर है जो
सामािजक मनुÕय के मंगल िवधान को सुिनिIJत करता है। 'अशोक के फूल', 'िवचार और
िवतकª', 'कÐपलता', 'कुटज', 'आलोकपवª' एवं 'िवचार ÿवाह' आिद उनके ÿिसĦ िनबंध
संúह ह§, िजनम¤ उनके संपूणª मानिसक जगत कì तकªसंगत अिभÓयिĉ देखने और समझने
को िमलती है।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने कई उपÆयासŌ कì भी रचना कì जैसे, 'बाणभĘ कì
आÂमकथा', 'चाŁचंþलेख', 'पुननªवा', 'अनामदास का पोथा '। शोध और आलोचना संबंधी
उनके कई úंथ ÿकािशत हòए िजनम¤, 'सूर सािहÂय', 'िहंदी सािहÂय कì भूिमका', 'कबीर',
'िहंदी सािहÂय का आिदकाल', 'िहंदी सािहÂय : उĩव और िवकास ', 'मÅयकालीन बोध का
Öवłप', 'सहज साधना', 'मÅयकालीन धमª साधना', 'नाथ संÿदाय', 'िसख गुŁओं का पुÁय
Öमरण', 'मेघदूत एक पुरानी कहानी', 'कािलदास कì लािलÂय योजना ', 'मृÂयुंजय रवीÆþ',
'लािलÂय तÂव', 'सािहÂय का ममª', 'सािहÂय का साथी ', 'ÿाचीन भारत के कलाÂमक िवनोद'
आिद उÐलेखनीय ह§। उनके Ĭारा सृिजत इस तािलका म¤ जो िवषय सिÌमिलत ह§, उनसे हम
उनकì łिच का अंदाजा सहज ही लगा सकते ह§। एक सजªक Óयिĉ िकतनी ही िवधाओं म¤
रचना करे परंतु उसका अपना एक ÓयिĉÂव उन सभी म¤ अनुÖयूत रहता है। इन úंथŌ से
इितहास और परंपरा के ÿित उनके एक खास लगाव का अंदाजा हम सहज ही लगा सकते
ह§। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने िहंदी सािहÂय को वैचाåरक łप से नई िदशाओं से संपÆन
बनाया। उÆहŌने िहंदी सािहÂय के इितहास कì कई भूलŌ को संशोिधत िकया। तÂकालीन
वैचाåरक अवधारणाओं को भारतीय इितहास और परंपरा के अनुłप िवĴेिषत िकया। िजन
िवषयŌ को वे अपने शोधúंथŌ म¤ उठा सकते थे या िजन िवषयŌ पर िवÖतृत और Óयापक
गंभीर िचंतन कì आवÔयकता थी, वहां तो हम¤ अलग úंथ ही िमलते ह§, पर असं´य छोटे-
छोटे वैचाåरक सूý िसĦ करने के िलए उÆहŌने िनबंधŌ का सहारा िलया। इसीिलए उनके
िनबंध हम¤ उनकì पूरी िवचार-सरिण का सहज अिभÓयिĉ -करण ÿतीत होते ह§।
८.२ िनबÆध : िशरीष के फूल ८.२.१ िशरीष के फूल िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
'िशरीष के फूल' आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का अÂयंत ÿिसĦ लिलत िनबंध है। उनकì
अिभÓयिĉ शैली कì सुंदरता इस िनबंध म¤ देखते ही बनती है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
कì संवेदना अतीत कì सामúी से अपने समय के ÿijŌ का उ°र देती है। यह िनबंध भी इसी
शैली म¤ अपने समय कì कुछ समÖयाओं का समाधान ढूंढने का और उनका िवĴेषण करने
का ÿयास है। िवषय-वÖतु कì ŀिĶ से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध ÓयंजनाÂमकता munotes.in

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आधुिनक गī
92 का उÂकृĶ उदाहरण िसĦ होते ह§। इस िनबंध म¤ आचायª ने िशरीष के संपूणª Öवłप कì
िवशेषताओं को िचिÆहत करते हòए उÆह¤ आज के पåरवेश से जोड़कर - कहé वणªन, कहé
िवĴेषण, कहé Óयंग और कहé हाÖय-पूणª ढंग से अपने उĥेÔय को िसĦ िकया है।
िनबंध का आरंभ वे अÂयंत उÆमुĉ ढंग से िशरीष कì िवशेषताओं को बताते हòए करते ह§,
साथ ही उसके महÂव को Öथािपत करने के िलए अÆय ÿजाितयŌ से उसकì तुलना भी करते
चलते ह§। अपनी बात आरंभ करते हòए वे कहते ह§, "जेठ कì जलती धूप म¤, जबिक धाåरýी
िनधूªम अिµनकुंड बनी हòई थी, िशरीष नीचे से ऊपर तक फूलŌ से लद गया था। कम फूल इस
ÿकार कì गमê म¤ फूल सकने कì िहÌमत करते ह§। किणªकार और आरµवध (अमलतास) कì
बात म§ भूल नहé रहा हóं।.... िशरीष के साथ आरµवध कì तुलना नहé कì जा सकती। वह
पÆþह-बीस िदन के िलए फूलता है।..... कबीरदास को इस तरह पÆþह िदन के िलए लहक
उठना पसंद नहé था।...... ' दस िदन फूला फूिल के खंखड़ भया पलास'! ऐसे दुमदारŌ से तो
लंडूरे भले। फूल है िशरीष। वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक तो
िनिIJत łप से मÖत बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादो म¤ भी िनघाªत फूलता रहता है
जब उमस से ÿाण उबलता रहता है और लू से Ńदय सूखता रहता है एकमाý िशरीष
कालजयी अवधूत कì भांित जीवन कì अजेयता का मंý ÿचार करता रहता है।" इस तरह
िशरीष के Öवłप वणªन के साथ वह अपनी बात आरंभ करते ह§। िशरीष कì कोमलता,
उसकì कठोरता , िवपरीत पåरिÖथितयŌ म¤ उसकì जीिवत रहने कì ±मता आिद सभी
िवशेषताओं के कारण वे उसे अवधूत कì सं²ा देते ह§।
दरअसल िशरीष कì इन िवशेषताओं के बहाने, वे जीवन म¤ िवपरीत पåरिÖथितयŌ म¤ संघषª
करने और अपने को जीवन कì ÿितयोिगता म¤ बनाए रखने कì जĥोजहद कì वे ÿशंसा करते
ह§। यह िवशेषताएं और गुण जो िक उÆह¤ एक पौधे म¤ िदखाई दे रही ह§, मानव जीवन के िलए
भी अÂयंत उपयोगी और महÂवपूणª ह§। ये ऐसी िवशेषताएं ह§, ऐसे गुण ह§, िजनसे िकसी Óयिĉ
का ÓयिĉÂव न केवल िनखरता है बिÐक जीवन के सुख-दुख, धूप-छांव आिद से गुजरते हòए
वह Óयिĉ अपने समूचे पåरवेश कì संवेदना को मानवीय आþªता से महसूस करता है और
समाज के िलए अपना ÿदेय ÿदान करता है। िशरीष के इन गुणŌ को वे अÂयंत ÿफुिÐलत ढंग
से Óयĉ करते ह§। उनके वणªन म¤ इितहास Öवत: सिÌमिलत हो जाता है, जो िक उनके
लेखन कì एक महÂवपूणª िवशेषता भी है। िशरीष का वणªन करते हòए वे आगे कहते ह§,
"िशरीष के वृ± बड़े और छायादार होते ह§। पुराने भारत का रईस िजन मंगल-जनक वृ±Ō को
अपनी वृ±-वािटका कì चहारदीवारी के पास लगाया करता था, उनम¤ एक िशरीष भी है।
अशोक, अåरĶ, पुÆनाग और िशरीष के छायादार और घनमसृण हरीितमा से पåरवेिĶत वृ±-
वािटका जłर बड़ी मनोहर िदखती होगी। ...... िशरीष का फूल संÖकृत-सािहÂय म¤ बहòत
कोमल माना गया है। मेरा अनुमान है िक कािलदास ने यह बात शुł-शुł म¤ ÿचार कì होगी।
उनका कुछ इस पुÕप पर प±पात था (मेरा भी है।)। कह गए ह§, िशरीष पुÕप केवल भŏरŌ के
पदŌ का कोमल दबाव सहन कर सकता है।........ िशरीष के फूलŌ कì कोमलता देखकर
परवतê किवयŌ ने समझा िक उसका सब-कुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने
मजबूत होते ह§ िक नए फूलŌ के िनकल आने पर भी Öथान नहé छोड़ते। जब तक नए फल-
प°े िमलकर धिकयाकर उÆह¤ बाहर नहé कर देते तब तक वे डटे रहते ह§। munotes.in

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िनबÆध : िशरीष के फूल
93 आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िशरीष वृ± कì इन िवरोधाभासी िवशेषताओं का वणªन
केवल िशरीष का वणªन करने के िलए ही नहé िकया जा रहा, बिÐक वे अपनी सृजनाÂमकता
से कैसे इसका संबंध अपने समय-संदभŎ से जोड़ देते ह§, यह उनकì अÂयंत महÂवपूणª
कलाÂमक िवशेषता है। इन िवशेषताओं को देकर, इन सभी का साÌय वे अपने समय के
राजनीितक नेतृÂव से जोड़ देते ह§। िजस ÿकार िशरीष के फल सूख जाने के बावजूद िबना
धिकयाए अपने Öथान को नहé छोड़ते, उसी ÿकार राजनीित से जुड़े हòए लोग भले ही वे उă
अिधक हो जाने के कारण या अÆय और कारणŌ से सेवा के योµय नहé रह जाते परंतु अपनी
अनुिचत महÂवाकां±ाओं के कारण वे अपने Öथान को छोड़ने के िलए तÂपर नहé होते। पद
और अिधकार कì महÂवाकां±ा उÆह¤ कुछ भी करने के िलए ÿेåरत करती है। वे सही - गलत
कुछ भी करके अपने पद और अिधकार से िचपके रहना चाहते ह§। इसे Óयĉ करते हòए
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कहते ह§, "िशरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते ह§।
मुझे इनको देखकर उन नेताओं कì बात याद आती है, जो िकसी ÿकार जमाने का Łख नहé
पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उÆह¤ ध³का मारकर िनकाल नहé देते तब तक जमे
रहते ह§। म§ सोचता हóं िक पुराने कì यह अिधकार-िलÈसा ³यŌ नहé समय रहते सावधान हो
जाती।"
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िशरीष वृ± को अवधूत कì सं²ा से सुशोिभत करते ह§। िशरीष
अवधूत ³यŌ है ? ³यŌिक जीवन कì िकतनी भी िवषम पåरिÖथितयाँ हŌ, उसम¤ डटकर संघषª
करने कì शिĉ है। वह बाहरी ÿभावŌ से िनिवªकार रहते हòए, अपने ही आनंद म¤ मµन रहता है।
अथाªत धूप हो, गमê हो, चाहे िकतनी भी किठन िवषम पåरिÖथितयां हŌ, िशरीष अपने जीवन
का रस वायुमंडल से भी खéच लेता है। उसकì इस िवकट संघषª शिĉ का ही पåरणाम है िक
वह िनिवªकार रहते हòए भी इतने कोमल तंतुजाल और सुकुमार केसर को उगा लेता है।
जीवन संघषª कì कड़वाहट उसके फूलŌ म¤ कहé भी िदखाई नहé देती। जो Óयिĉ िनिवªकार
रहते हòए, जीवन संघषª करते हòए और जीवन कì िवसंगितयŌ से पैदा हòआ गरल पीते हòए भी
इस धरा को अपने Öनेह से िसĉ रखता है, अपने सŏदयª से सुशोिभत करता है, वही सही
मायने म¤ अवधूत कì ®ेणी म¤ होता है। इसीिलए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िशरीष वृ± को
अवधूत कì सं²ा देते ह§ और िशरीष के गुणŌ का वणªन करते-करते उÆह¤ कबीर और
कािलदास याद आ ते ह§। उÆह¤ कबीर और िशरीष म¤ समानता िदखाई देती है। दोनŌ मÖत
और बेपरवाह ह§, पर सरस और मादक ह§। कहने का अथª यह िक कबीर भी जीवन भर
सामािजक िवसंगितयŌ से लड़ते रहे, संघषª करते रहे पर उÆहŌने उन संघषŎ से कड़वाहट
नहé इकęी कé बिÐक बाहरी कठोर आव रण के बावजूद भीतर से वे सरस और िनमªल बने
रहे और समाज को वही सरसता और िनमªलता उÆहŌने ÿदान कì। इसी तरह कािलदास भी
अवधूत या अनासĉ योगी के समान आचायª िĬवेदी को नजर आते ह§। िजस ÿकार िशरीष
के फूल फ³कड़ाना मÖती म¤ पनप सकते ह§, उसी ÿकार आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी को
लगता है िक मेघदूत का काÓय भी अनासĉ - अनािवल उÆमुĉ Ćदय म¤ ही उभर सकता है।
उनके अनुसार, "जो किव अनासĉ नहé रह सका , जो फ³कड़ नहé बन सका , जो िकये -
कराये का लेखा-जोखा िमलाने म¤ उलझ गया, वह भी ³या किव है।"
इस िवĴेषण का मूल भाव यह है िक आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह मानते ह§ िक केवल
कÐपना कì उड़ान भरकर ही कोई किव जीवन से और जन से नहé जुड़ सकता है । जब
तक उसने अपने पåरवेश कì िवसंगितयŌ और िवपरीत पåरिÖथितयŌ को नहé देखा और munotes.in

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आधुिनक गī
94 भोगा होगा, वह जनपीड़ा को समझने म¤ स±म नहé होगा और न ही वह इस संदभª म¤ कोई
मागª िदखा सकेगा। जो किवता जीवन को ÿशÖत नहé कर सकती । वह किवता भी ³या
किवता है? स¸चा Óयिĉ, स¸चा अवधूत वही है जो गरल पीकर भी अमृत ÿदान करता है।
यह िवशेषता उÆह¤ कबीर म¤ िदखाई पड़ती है । कबीर पर िकया गया उनका अÅययन
जगजािहर है। वाÖतव म¤ कबीर आज िजतने बड़े िवराट łप म¤ हमारे सामने ह§, आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी के ÿयÂनŌ का ही फल है । आचायª िĬवेदी ऐसे गुणŌ के सदैव ÿशंसक
रहे ह§ और उनके कई िनबंधŌ म¤ इस तरह के जीवट िवचार हम¤ देखने को िमलते ह§ ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अनुसार जीवनसÂय को उĤािटत करने के िलए ही अवधूत
होना आवÔयक नहé है बिÐक जीवन-सŏदयª को समझने और अिभÓयĉ करने के िलए भी
यह अÂयंत आवÔयक है । कािलदास म¤ वे इसी िवशेषता को पाते ह§ । कािलदास अपने
सािहÂय म¤ सŏदयª कì अिभÓयिĉ िजस ढंग से कर सके ह§, उसम¤ उनके अनासĉ योगी जैसी
िÖथरÿ²ता और िवदµधता का ही योगदान है, इसीिलए वे िलखते ह§, "कािलदास वजन
ठीक रख सकते थे ³यŌिक वे अनासĉ योगी कì िÖथरÿ²ता और िवदµध ÿेमी का Ńदय पा
चुके थे। किव होने से ³या होता है ? म§ भी छÆद बना लेता हóं तुक जोड़ लेता हóं और
कािलदास भी छंद बना लेते थे, तुक भी जोड़ ही सकते हŌगे। इसीिलए हम दोनŌ एक ®ेणी
के नहé हो जाते।" सŏदयª कì अिभÓयिĉ के िलए िसफª इतना ही पयाªĮ नहé है। एक किव
सŏदयª कì अिभÓयिĉ करने म¤ स±म तब हो पाता है जब वह अनासĉ भाव से उस सŏदयª
को महसूस करता है। इसीिलए वे कहते ह§, "शकुंतला बहòत सुंदर थी। सुंदर ³या होने से कोई
हो जाता है। देखना चािहए िक िकतने सुंदर Ńदय से वह सŏदयª डुबकì लगाकर िनकला है।
शकुंतला कािलदास के Ńदय से िनकली थी ।..... कािलदास सŏदयª के आवरण को भेद कर
उसके भीतर तक पहòंच सकते थे, दुख हो िक सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासĉ
कृषीवल कì भांित खéच लेते थे जो िनदªिलत इ±ुदÁड से रस िनकाल लेता है । कािलदास
महान थे, ³यŌिक वे अनासĉ रह सके थे।" और कािलदास के वणªन के øम म¤ वह इसी
समानता के दशªन आधुिनक किवयŌ म¤ से सुिमýानंदन पंत म¤ करते ह§ । सुिमýानंदन पंत के
सŏदयª िचýण म¤ भी उÆह¤ यही अनासĉ भाव िदखाई देता है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंधŌ म¤ वणªन एक बवंडर कì तरह आते ह§, िजनम¤ उड़ा
लेने कì ÿवृि° होती है और वह िकस िदशा कì ओर चले जाएंगे, यह पता नहé चलता।
उनके लगभग सभी िनबंधŌ म¤ ऐसी ÿवृि° देखने को िमल जाती है । इसी ÿवृि° के कारण वे
इितहास, शाľ, ÿाचीन सािहÂय आिद कì चचाª करते-करते कब आधुिनक पåरवेश म¤ ÿिवĶ
हो जाते ह§, पता ही नहé चलता। इस िनबंध म¤ भी वे िशरीष कì चचाª करते-करते, उसके
गुणŌ को बताते-बताते कब उनका तारतÌय इितहास के िविभÆन संदभŎ से करने लगते ह§
और कब उसे अपने समय-संदभŎ से जोड़ देते ह§, पता नहé चलता । िशरीष उÆह¤ आIJयª से
भर देता है। उसका अनासĉ योगी कì भांित इस जगत म¤ िÖथर बने रहना उÆह¤ बेहद
ÿेरणादायी लगता है । धूप, वषाª, आंधी, लू आिद जैसे बाĻ पåरवतªनŌ से वह कैसे अपने को
सुरि±त रख लेता है और उनके ÿित तटÖथ रहते हòए कैसे इतने सुंदर फूल उपजा लेता है,
यह उÆह¤ बेहद आIJयªचिकत करने वाला और दुलªभ ŀÔय लगता है। यह दुलªभता उÆह¤ कबीर
म¤ िदखती है, कािलदास म¤ िदखती है, सुिमýानंदन पंत म¤ िदखती है और अंत म¤ महाÂमा
गांधी म¤ िदखती है। िनबंध के अंत म¤ वे इस िवषय को अपने समय-संदभŎ से जोड़ते हòए
कहते ह§, "हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अिµनदाह, लूट-पाट, खून-ख¸चर का munotes.in

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िनबÆध : िशरीष के फूल
95 बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी ³या िÖथर रहा जा सकता है ? िशरीष रह सका है।
अपने देश का एक बूढा रह सका था। ³यŌ मेरा मन पूछता है िक ऐसा ³यŌ संभव हòआ ?
³यŌिक िशरीष भी अवधूत है। िशरीष वायुमंडल से रस खéचकर इतना कोमल और इतना
कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खéचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था।
म§ जब-जब िशरीष कì ओर देखता हóं तब तब हóक उठती है - हाय, वह अवधूत आज कहां
है!" और इस तरह से वे िनबंध का समापन करते ह§ ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì सृजनाÂमक चेतना उनके अपने अÅयवसाय और गुŁ-
गंभीर अÅययन का पåरणाम है । उनका शाľ²ान , उनकì इितहास -चेतना, उनका सािहÂय
ÿेम, उÆह¤ ²ान से लबरेज और जीवंत बनाता है। एक बवंडर कì तरह चलने वाले उनके
िवचार, जो हम¤ उनके िनबंधŌ म¤ िदखाई देते ह§, वे उनकì इसी ÿवृि° का पåरणाम ह§ । िशरीष
कì अनासिĉ इस समाज के िलए िकस तरह ÿेरणादायी है, समाज को सŏदयªयुĉ करने के
िलए िकतनी उपयोगी और आवÔयक है, यह इस िनबंध को पढ़कर समझा जा सकता है।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने समय-संदभŎ से बेहद Óयिथत थे । Öवतंýता के समय का
अिÖथर वातावरण और िहंसा का अितरेक जीवन भर उÆह¤ सालता रहा। यही िहंसा उनके
समय के सबसे बड़े ÿेरणादायी ÓयिĉÂव महाÂमा गांधी को भी लील गई। उनकì यह संवेदना
उनके कई िनबंधŌ म¤ अिभÓयĉ हòई है ।
८.२.२ िशरीष के फूल िनबÆध का ÿितपाī:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंधŌ म¤ मनुÕय कì िविभÆन ÿवृि°यŌ का िनदशªन हम¤
होता है । उÆहŌने इितहास, संÖकृित, सािहÂय आिद के बहाने अलग-अलग शैिलयŌ म¤ मनुÕय
के अमर इितहास का मूÐयांकन िकया है। इसीिलए उनके िनबंधŌ म¤ हम¤ सुख-दुख के सफेद-
Öयाह ŀÔय िमलते ह§ । िशरीष के फूल िनबंध कÐपलता के ®ेķ िनबंधŌ म¤ से एक है, िजसम¤
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने Óयंजनापूणª ढंग से इितहास के साथ-साथ अपने समय-
संदभŎ का साथªक िवĴेषण िकया है, इसके साथ ही एक िविशĶ मानवतावादी ŀिĶ जो
उनके सािहÂय का ÿाणतÂव है, वह भी हम¤ देखने को िमलती है।
आज का युग Öवाथª का युग है और मनुÕय का लगातार नैितक पतन होता जा रहा है। मनुÕय
महानता के तÂवŌ को छोड़कर िनकृĶता कì ओर बढ़ रहा है । Óयिĉ ही अपने समाज का
चेहरा होता है । उसी के समूह से िमलकर समाज का िनमाªण होता है । 'जैसा Óयिĉ, वैसा
समाज', इसीिलए आज समाज हम¤ िनरंतर गतª कì ओर जाता िदखाई दे रहा है। कौन से
ल±ण ह§ जो Óयिĉ और समाज को उÅवªमुखी बनाते ह§, इस िनबंध म¤ उनका साथªक
िवĴेषण िकया गया है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के सािहÂय म¤ मनुÕय और उसकì
ÿवृि°याँ िनरंतर शोध का िवषय रही ह§ और जीवन के उदा° मूÐयŌ म¤ उनकì गहरी आÖथा
रही है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िलए सािहÂय का उĥेÔय ही है - मनुÕय का आिÂमक
और नैितक िवकास। और यह िजस तरह भी संभव हो सकता है वह ÿयास उनके लेखन म¤
हम¤ िदखाई देता है ।
िशरीष के फूल िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपनी शैली के अनुłप ÿतीकाÂमक
ढंग से अपनी बात कहते ह§। वह िशरीष वृ± के Öवłप का वणªन करते ह§, उसके गुणŌ-
अवगुणŌ को पाठकŌ के सामने रखते ह§, उसकì समी±ा करते ह§, गुणŌ कì ÿशंसा करते ह§ munotes.in

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आधुिनक गī
96 और ÿतीकाÂमक ढंग से यह सब करते हòए वे अंत म¤ अपने उĥेÔय कì ओर आ जाते ह§।
उनका अंितम उĥेÔय है - लोककÐयाण और अपनी बात कहते हòए वे िशरीष के गुणŌ का
साÌय-संयोग मनुÕय से Öथािपत करते हòए वे एक नया समाजोपयोगी ŀिĶकोण हमारे सामने
रखते ह§।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ŀिĶ म¤ िशरीष अवधूत कì भांित फ³कड़ाना मÖती म¤
जीिवत रहने वाला वृ± है । जो अÂयंत िवपरीत पåरिÖथितयŌ म¤ भी अपने को न केवल
जीिवत रखता है बिÐक अपने सģुणŌ से समाज को लाभािÆवत करता है। ठीक उसी ÿकार
का ŀिĶकोण हमारे समाज के राजनेताओं और सािहÂयकारŌ म¤ भी आवÔयक है।
राजनेताओं को अपनी अिधकार-िलÈसा और Öवाथªवृि° पर अंकुश लगाकर यह कायª करना
होगा। उÆह¤ सचमुच िनिवªकार रहकर समाज सेवा का संकÐप लेना होगा, तभी वे समाज के
िलए उपयोगी हो सकते ह§ और समाज को कुछ दे सकते ह§। इसके साथ ही उÆह¤ नई चली
आती पीढ़ी को भी अवसर देना होगा। यह सब कुछ तभी संभव हो सकेगा, जब वे िनिवªकार
भाव से एक अवधूत कì भांित अपने कायŎ को िसĦ कर¤गे। ठीक ऐसे ही किव और
सािहÂयकार को भी िनिवªकार रहकर एक अवधूत कì भांित समाज के सुंदर-असुंदर का
िचýण करना चािहए। इसी म¤ उनके सािहÂय और उनकì किवता कì साथªकता है। अपनी
बात को िसĦ करने के िलए वे कबीर और कािलदास का Óयावहाåरक उदाहरण भी ÿÖतुत
करते ह§। वÖतुतः आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का लेखन और िचंतन पूरी तरह से समाज
और मनुÕयता को समिपªत है। उनके समÖत लेखन म¤ इÆहé के ÿित िचंताएं देखने को
िमलती ह§। यह िनबंध भी इÆहé समÖत ÿवृि°यŌ से युĉ है, ÿेåरत और ÿभािवत है ।
८.३ सारांश 'कÐपल°ा' िनबंध संúह से 'िशरीष के फूल' िनबंध का वणªन और िवĴेषण िकया गया है।
इन िनबंध के आधार पर हम कह सकते ह§ िक आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ŀिĶ
इितहास ÿेåरत सांÖकृितक ŀिĶ है, िजसके अंतगªत वे समसामियक ÿijŌ पर भी िवचार करते
ह§। मानवीयता उनके िलए ऐसा ÿÂयय है, जो सािहÂय के मूल म¤ है और इसका अंितम
उĥेÔय लोक-कÐयाण है । ऊपर उिÐलिखत िनबंध इस ŀिĶ से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
के अÂयंत महÂवपूणª िनबंध है ।
८.४ उदाहरण Óया´या Óया´या : अंश (१):
म§ सोचता हóं िक पुराने कì यह अिधकार-िलÈसा ³यŌ नहé समय रहते सावधान हो जाती ?
जरा और मृÂयु यह दोनŌ ही जगत के अितपåरिचत और अितÿमािणक सÂय ह§। तुलसीदास
ने अफसोस के साथ इनकì स¸चाई पर मोहर लगाई थी - 'धरा को ÿमान यही तुलसी जो
फरा सो झरा जो बरा सो बुताना !' म§ िशरीष के फलŌ को देख कर कहता हóं िक ³यŌ नहé
फ़लते ही समझ लेते बाबा कì झड़ना िनिIJत है !
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'िशरीष के
फूल' िनबंध से उधृत है। munotes.in

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िनबÆध : िशरीष के फूल
97 ÿसंग: उĉ उĦरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने मनुÕय कì लालची ÿवृि°यŌ कì
आलोचना कì है । जबिक जीवन कì अिनÂयता भारतीय दशªन म¤ हमेशा से विणªत है और
इस सÂय से सभी पåरिचत ह§। िफर भी अिधकार िलÈसा और लालच के कारण मनुÕय
अपनी नैितकता से लगातार समझौता करता रहता है । इस अवतरण म¤ आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी ने इसी का िवĴेषण िकया है ।
Óया´या: िशरीष के फूल िनबंध से िलया गया यह अवतरण हमारे जीवन के नैितक प± से
संबंिधत है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने समय-संदभŎ को सामने रखकर यह िवचार
करते ह§ िक इस समय लोग अिधकार ÿाĮ करने के िलए बेहद इ¸छुक ह§ और िजन लोगŌ को
अिधकार िमल जाते ह§ अथाªत वे ऐसे पदŌ पर िनयुĉ हो जाते ह§ जहां िजसका वह अनुिचत
लाभ अपने िलए उठाते ह§, उन पदŌ और अिधकारŌ को छोड़ने म¤ उÆह¤ बेहद तकलीफ होती
है। वह इÆह¤ बनाए रखने के िलए िकसी भी तरह का अनैितक समझौता खुद से करते ह§
अथाªत उनका नैितक Öतर बहòत िगर जाता है। यह बात िवशेष łप से उÆहŌने अपने समय
कì राजनीित को Åयान म¤ रखते हòए कही है ।
जबिक हमारे जीवन का अंितम सÂय है - लगातार जीवन का ±रण और अंततः मृÂयु।
अथाªत हम इस धरा से कुछ भी लेकर अंितम łप से नहé जा सकते, िफर भी अिधकार और
संचय के ÿित इतने उÂसुक रहते ह§ । जबिक हम¤ अनासĉ भाव से अपने कमŎ को अंजाम
देना चािहए। भारतीय पौरािणक सािहÂय म¤ भी जीवन के िविभÆन प±Ō म¤ मनुÕय के िविभÆन
कायª-धमŎ का िववरण िदया गया है और एक समय के बाद मनुÕय को यह िनद¥श िदया गया
है िक वह इस भौितक जगत के समÖत लालच और इ¸छाओं को Âयाग कर अनासĉ भाव
से अपना जीवन Óयतीत कर¤ । परंतु हमारे समय म¤ मनुÕय का नैितक Öतर इतना िगर गया है
िक वे Öथायी łप से अपनी सभी भौितक इ¸छाओं को बनाए रखना चाहते ह§, जो िक संभव
नहé है। इसके ÿमाण म¤ उÆहŌने किव तुलसीदास कì उिĉ भी उधृत कì है िक, इस धरती के
िलये ÿामािणक तÃय तो यही है िक जो फल लगे ह§ वह एक िदन झड़ जाएंगे और जो आज
बहòत दीĮ हो रहा है, जाना जा रहा है, ÿिसĦ है, एक िदन यह ÿिसिĦ उसे छोड़ जाएगी।
िजस िदन वह अपनी शारीåरक सामÃयª के अनुसार कमजोर होता जाएगा, उसकì ±मताएं
कम होती रह¤गी अथाªत वह वृĦ होता जाएगा, उस िदन अशĉ होकर उसे यह सब कुछ
Âयागना ही होगा। यिद वह इ¸छा से नहé भी Âयागेगा तो पीछे से आने वाले लोग उसे धकेल
कर हािशए पर डाल द¤गे । इसिलए समय रहते अपनी ±मताओं को समझते हòए Óयिĉ को
नई आने वाली पीढ़ी को अिधकार देते रहना चािहए, सŏपते रहना चािहए ।
वÖतुतः आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इस अवतरण के माÅयम से यह संकेत करते ह§ िक
ÿकृित का यह अटल िनयम है िक एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी लगातार आती रहती है
और पहली पीढ़ी को अपने पीछे आने वाली दूसरी पीढ़ी को समय रहते अनासĉ भाव से
अपनी लालसाओं का शमन करते हòए पद - अिधकार इÂयािद Öवे¸छा से सŏप देना चािहए।
िवशेष:
१. िनबंधकार ने अपने समय के कटु सÂय को अिभÓयĉ िकया है ।
२. िनबंधकार ने जीवन कì अिनÂयता का संकेत िकया है ।
३. िनबंधकार ने अनासĉ भाव से जीवन जीने कì ÿेरणा दी है । munotes.in

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आधुिनक गī
98 Óया´या : अंश (२):
अवधूतŌ के मुंह से ही संसार कì सबसे सरस रचनाएं िनकली ह§ । कबीर बहòत-कुछ इस
िशरीष के समान ही थे, मÖत और बेपरवाह, पर सरस और मादक। कािलदास भी जłर
अनासĉ योगी रहे हŌगे । िशरीष के फूल फ³कड़ाना मÖती से ही ऊपज सकते ह§ और
मेघदूत का काÓय उसी ÿकार के अनासĉ अनािवल उÆमुĉ Ńदय म¤ उमड़ सकता है । जो
किव अनासĉ नहé रह सका , जो फ³कड़ नहé बन सका , जो िकए - कराए का लेखा-जोखा
िमलाने म¤ उलझ गया, वह भी ³या किव है ?
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'िशरीष के
फूल' िनबंध से उधृत है ।
ÿसंग: यह अवधारणा िशरीष के फूल िनबंध से उĦृत है िजसम¤ आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी ने यह बताने का ÿयास िकया है िक एक किव िकस łप म¤ ºयादा साथªक तरीके से
अपने कÃय को कह सकता है कभी समाज कì संपि° होता है और उसकì किवता समाज
िहत के गहरे उĥेÔयŌ से जुड़ी होती है उसम¤ खास सŏदयª बोध होता है जो उसके अनासĉ
भाव से उÂपÆन होता है इसी संदभª म¤ इस म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने कुछ उपयोगी
तÃयŌ कì चचाª कì है ।
Óया´या: अवधूत कौन है ? अवधूत वह है, िजसने इस धरा के वाÖतिवक सÂय को जान
िलया है, जो जीवन के साथªक उĥेÔय को समझ गया है और जो िनिवªकार भाव से कमªरत
रहते हòए समाज को अपना साथªक योगदान ÿदान करता है, िजसे भौितक इ¸छाएं और
आकां±ाएं उसके कमªपथ से िवचिलत नहé कर पाते ह§, वही अवधूत है । आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी िशरीष के फूल िनबंध म¤ िशरीष को अवधूत कì सं²ा देते ह§ और िशरीष के
गुणŌ को बताते - बताते, इन गुणŌ कì साÌयता किवयŌ से भी Öथािपत करते ह§ ।
उनकì ŀिĶ म¤ कबीर, कािलदास और सुिमýानंदन पंत ऐसे किव ह§, जो इन गुणŌ का धारण
कर सके ह§ अथाªत यह भी अवधूत ओं के समान ह§ । इनम¤ जीवन के ÿित यथाथª ŀिĶकोण
देखने को िमलता है । इनकì किवता समाज के Óयापक िहतŌ को लेकर चली है। इनमे जीवन
और जगत को देखने का एक िनिवªकार नजåरया रहा है, इसीिलए कबीर समाज के Óयापक
िहतŌ को आवाज दे सके ह§ और अवधूत जैसी फ³कड़ाना मÖती के चलते ही कािलदास
सŏदयª के ÿित िनिवªकार ŀिĶ रख सके ह§। सŏदयª कì अिभÓयिĉ िविभÆन किवयŌ म¤ अलग-
अलग तरीके से देखने को िमलती है । कोई सŏदयª को अिधकार-िलÈसा से देखता है, उसे
ÿाĮ करना चाहता है । और िकसी कì ŀिĶ उस को तटÖथ भाव से पूजने और विणªत करने
कì होती है । कािलदास सŏदयª को तटÖथ भाव से देखने वाले किव थे । इसीिलए आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी यह मानते ह§ िक वे अपने सािहÂय म¤ इतना साथªक वणªन कर सके ह§।
अपने वणªन के øम म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कहते ह§ िक सुंदर होने भर से कोई सुंदर
नहé हो जाता। बिÐक किवयŌ के संदभª म¤ वे यह कहते ह§ िक िकसी किव का सŏदयª वणªन
तब महÂवपूणª बनता है, जब वह अÂयंत सुंदर Ńदय से उस सŏदयª को देखता और परखता
है, अथाªत Ńदय म¤ आÂमसात कर िफर वणªन करता है। इसीिलए कािलदास शकुंतला का
इतना सुंदर वणªन कर सके। समाज को भी िदशा देने का काम एक सुंदर Ćदय Óयिĉ ही कर munotes.in

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िनबÆध : िशरीष के फूल
99 सकता है। कबीर म¤ यह सुंदरता थी। वे समाज के स¸चे सŏदयª को देख और परख सके थे। वे
जानते थे िक िवसंगितयां और िवकृितयां ³या ह§ । और सबकुछ िबना िकसी िवकार के
तटÖथ भाव से उÆहŌने देखा था, Ńदयंगम िकया था। इसीिलए उसी अनुłप वे समाज का
िचý अपने काÓय म¤ उपिÖथत कर सके। वÖतुतः आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह मानते ह§
िक किवयŌ के िलए यह आवÔयक है िक वे तटÖथ भाव से िवषयवÖतु का िनरी±ण कर¤ और
िफर अवधूत कì भांित उसका वणªन कर¤, जैसा िक कािलदास और कबीर ने िकया।
िवशेष :
१. वाÖतिवक सŏदयªबोध का वणªन िकया है ।
२. कािलदास और कबीर के सŏदयª बोध कì िवशेषताओं का अंकन िकया है ।
८.५ वैकिÐपक ÿij १. िशरीष का फूल संÖकृत सािहÂय म¤ िकस ÿकार का माना गया है ?
(क) कोमल (ख) कठोर
(ग) बेनूर (घ) बदरंग
२. ÿ¤खा दोला का अथª है ?
(क) कुसê (ख) झूला
(ग) चारपाई (घ) ितपाई
३. आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अनुसार िनÌन म¤ से कौन सा वृ± अवधूत के समान
है?
(क) अमलतास (ख) अåरĶ
(ग) पुÆनाग (घ) िशरीष
४. शकुंतला का िचý िनÌन म¤ से िकसने बनाया था ?
(क) कािलदास (ख) दुÕयंत
(ग) तुलसीदास (घ) कबीर
८.६ लघु°रीय ÿij १) िनबंध 'िशरीष के फूल' का उĥेÔय ।
२) िनबंध 'िशरीष के फूल' और कािलदास का ÓयिĉÂव ।
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आधुिनक गī
100 ३) िनबंध 'िशरीष के फूल' और कबीर का ÓयिĉÂव ।
४) िशरीष वृ± कì िवशेषताएँ ।
८.७ बोध ÿij १) िनबंध 'िशरीष के फूल' कì िवषयवÖतु का िवĴेषण कìिजए ?
२) िनबंध 'िशरीष के फूल' के आधार पर आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िवशेषताओं कì
चचाª कìिजए ?
३) िनबंध 'िशरीष के फूल' के ÿितपाī का िवÖतार से िवĴेषण कìिजए ?
८.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****


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101 ८.१
िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय
इकाई कì łपरेखा
८.१.० इकाई का उĥेÔय
८.१.१ ÿÖतावना
८.१.२ िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय
८.१.२.१ भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय िनबÆध कì अÆतवªÖतु
८.१.२.२ भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय िनबÆध का ÿितपाī
८.१.३ सारांश
८.१.४ उदाहरण-Óया´या
८.१.५ वैकिÐपक ÿij
८.१.६ लघु°रीय ÿij
८.१.७ बोध ÿij
८.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
८.१.० इकाई का उĥेÔय  ‘भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु को छाý जान¤गे।
 ‘भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय’ िनबÆध का ÿितपाī ³या है उससे छाýŌ को पåरचय
होगा।
८.१.१ ÿÖतावना 'भगवान महाकाल का कुÁठ नृÂय' आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया ऐसा
िनबंध है जो देश को आजादी िमलने के बाद कì चुनौितयŌ और मुिÔकलŌ को सामने रखता
है। १५ अगÖत १९४७ से पूवª देश का घटनाøम इस लàय के ÿित िवशेष łप से समिपªत
था िक कैसे देश कì आजादी के लàय को ÿाĮ िकया जाए । यह अÂयंत दुÕकर था पर
जीवट संघषª कì बदौलत भारतीय जनसमूह अंततः इस लàय को ÿाĮ कर सका। आजादी
िमलने के बाद कì िÖथितयां िकंकतªÓयिवमूढ़ कर देने वाली थé । यह तय करना िक अब देश
कì जो ÿासंिगक समÖयाएँ ह§, उनसे कैसे िनपटा जाए, बड़ा किठन कायª था। सामूिहक
िचंतन के अितåरĉ सामूिहक िøयाÆवयन कì अÂयंत आवÔयकता थी । इÆहé समÖत
ÿाथिमक चुनौितयŌ को लेकर और िवकास के पथ पर आगे बढ़ने के िलए आवÔयक
सतकªताओं को Åयान म¤ रखते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध कì रचना कì
है ।
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आधुिनक गī
102 ८.१.२ िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय ८.१.२.१ भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
'भगवान महाकाल का कुÁठ नृÂय' आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया ऐसा
िनबंध है जो देश को आजादी िमलने के बाद कì चुनौितयŌ और मुिÔकलŌ को सामने रखता
है। १५ अगÖत १९४७ से पूवª देश का घटनाøम इस लàय के ÿित िवशेष łप से समिपªत
था िक कैसे देश कì आजादी के लàय को ÿाĮ िकया जाए । यह अÂयंत दुÕकर था पर
जीवट संघषª कì बदौलत भारतीय जनसमूह अंततः इस लàय को ÿाĮ कर सका। आजादी
िमलने के बाद कì िÖथितयां िकंकतªÓयिवमूढ़ कर देने वाली थé। यह तय करना िक अब देश
कì जो ÿासंिगक समÖयाएँ ह§, उनसे कैसे िनपटा जाए, बड़ा किठन कायª था । सामूिहक
िचंतन के अितåरĉ सामूिहक िøयाÆवयन कì अÂयंत आवÔयकता थी। इÆहé समÖत
ÿाथिमक चुनौितयŌ को लेकर और िवकास के पथ पर आगे बढ़ने के िलए आवÔयक
सतकªताओं को Åयान म¤ रखते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध कì रचना कì
है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया 'कÐपल°ा' िनबंध संúह म¤ से 'भगवान
महाकाल का कुÁठ नृÂय' िनबंध म¤ देश कì आजादी के बाद सबसे बड़ी समÖया
साÌÿदाियकता कì थी । साÌÿदाियक िहंसा के बाद अिÖथर हो चुकì सामािजक और
राजनीितक िÖथित कì थी । भारतीय संÖकृित नैितकता को लेकर अÂयंत आúही रही है।
हजारŌ वषŎ म¤ इसम¤ कई बार अÆय संÖकृितयŌ का ÿभाव पड़ने के बावजूद भी जो धीरता,
नैितकता और मानवीयता का तÂव रहा है, वह कभी भी कुंिठत नहé हो सका। इसी नैितकता
और धीरता के गुणŌ के कारण ही भारतीय जनसमूह आजादी के लàय को सफलतापूवªक
हािसल कर सका है। इसे ÖपĶ करते हòए वे िलखते ह§, "अपनी पराधीनता और बेबसी के
िदनŌ म¤ भी एक बात म¤ हम बराबर िवरोिधयŌ से बीस रहे ह§। हम म¤ उनकì अपे±ा कहé
अिधक नैितक बल रहा है। घोर िवपि° के ±णŌ म¤ भी हमने अÆयाय का प± कभी नहé िलया
है। िजस बात को हम सÂय समझ रहे ह§, उसके िलए बड़ा-से-बड़ा बिलदान देने को तैयार भी
रहे ह§।" आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इन िÖथितयŌ के िलए भारतीय संÖकृित के Óयापक
ÿभाव को महÂवपूणª Öथान देते ह§ । वे इस बात का महÂव भी भली-भांित समझते ह§ िक
भारतीय संÖकृित के इन संÖकारŌ का Óयापक ÿभाव अÆय परतंý देशŌ कì जनता पर भी
Óयापक łप से पड़ा है। उस समय एिशया और अĀìका का बहòत बड़ा भाग यूरोपीय
उपिनवेशवाद का िशकार था। Āांस, िāटेन आिद के ÿभाव म¤ इन महाĬीपŌ का एक बड़ा भू-
भाग था। महाÂमा गांधी ने तो दि±ण अĀìका के संघषª म¤ नेतृÂव भी िकया था और अंúेजी
शासकŌ को झुकाने म¤ सफलता भी हािसल कì थी । बाद म¤ भारतीय राÕůीय आंदोलन का
उÆहŌने िजस तरह से नेतृÂव िकया, पूरे भारत को राजनीितक ŀिĶ से एकìकृत िÖथित म¤
लेकर आये, भारतीय जनसमूह को उसकì शिĉ का एहसास िदलाया और अपने अिहंसक
आंदोलनŌ के Ĭारा जो चमÂकारी ÿभाव उÂपÆन िकया, उसका अंúेजŌ ने भी लोहा माना
और अÆय देशŌ पर भी इसका अÂयंत सकाराÂमक ÿभाव पड़ा। इन सभी के पीछे भारतीयŌ
कì वह नैितक शिĉ थी, जो भारतीय संÖकृित का Öथायी ÿभाव थी । munotes.in

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िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय
103 Öवतंýता के बाद भारत म¤ जो भी उथल-पुथल हòई, वह राÕůीय शमª का िवषय बनी। पूरा देश
इससे आहत था। भारतीय संÖकृित म¤ यह दुलªभ उदाहरण था िक भारतीय इस तरह से
आपस म¤ लड़ रहे थे । घोर अमानवीयता देखने को िमल रही थी । यह हमारी संÖकृित के
िबÐकुल भी अनुकूल नहé था। ऐसी िÖथित म¤ सÂय, ÿेम, अिहंसा जैसे मूÐय अपनी
मूÐयवĉा को िकतना बनाए रख सकते थे ? आजादी के बाद राजनीित म¤ िजस तरह के दो-
मुँहेपन और दोगलेपन कì िÖथितयां बनé, उनम¤ सÂय लगभग परािजत ही था। इन िÖथितयŌ
को सामने रखकर ही आचायª जी िलखते ह§, "िनÂय समाचार पýŌ म¤ हम अपने नंगे िवरोिधयŌ
को देखते ह§ जो झूठ बोलने म¤ जरा भी संकुिचत नहé होते और पाप करके दूसरŌ पर
िनलªºजतापूवªक दोषारोपण करते ह§। सुनकर हमारा खून खौल जाता है । हम सोचते ह§ िक
ऐसा भी बेहया कोई हो सकता है। कभी-कभी हम झुंझलाते ह§, अपने नेताओं के सदुपदेशŌ से
िचढ़ जाते ह§, कह उठते ह§, बेहया लोगŌ के सामने इन सदुपदेशŌ का ³या मूÐय है।" दरअसल
िनबंधकार उन ताÂकािलक पåरिÖथितयŌ म¤ जैसे नैितक मूÐयŌ का पुनपªरी±ण कर रहा है।
राजनीित, वह चाहे अंतरराÕůीय Öतर पर हो या राÕůीय Öतर पर , िजस अधोपतन का
िशकार थी, वहां पर इस तरह का ÿij उÂपÆन होना Öवाभािवक ही था । िवभाजन के
बावजूद पािकÖतान िजस तरह से िवभाजनकारी ÿवृि°यŌ को भारतीय भूभाग पर बढ़ावा दे
रहा था, ऐसी िÖथितयŌ म¤ सचमुच राजनीितक आदशª अÿासंिगक हो उठे थे। िकसी भी
बुिĦजीवी का इन िÖथितयŌ म¤ Óयिथत हो जाना कोई असंभव बात नहé थी ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ŀिĶ एकदम िनĂा«त और ÖपĶ थी । वह िजस िनķा से
भारतीय संÖकृित कì ÿशंसा करते थे, उतनी ही ईमानदारी से वे अपनी किमयŌ को Öवीकार
भी करते थे । बजाय के िछपाने के वे कभी भी पुनमूªÐयांकन और आÂमसुधार कì
आवÔयकता पर जोर देते थे। इस िनबंध म¤ इस तरह कì बात करते हòए वे कहते ह§, "चुटकì
बजा के हजारŌ वषª कì संÖकृित को उड़ाया नहé जा सकता। हम यह नहé कह सकते िक
हमम¤ दोष नहé है। दोष एक-दो ह§? हमने कम पाप िकए ह§ । करोड़Ō को हमने अनजान म¤ नीच
बना रखा है, करोड़Ō को जानबूझकर पैरŌ-तले दबा रखा है और करोड़Ō को हमने उपे±ा से
महान संदेशŌ के अयोµय समझ रखा है। नतीजा यह होता है िक जब हम आगे बढ़ने लगते ह§
तब कुछ लोग नीचे कì ओर खéचते ह§ - िजÆह¤ पैरŌ तले दबाया है वह कैसे आगे बढ़ने द¤गे ?"
भारतीय सामािजक संरचना पर यह आचायª जी कì अÂयंत मािमªक िटÈपणी है। वे जानते ह§
िक भारत कì एक बड़ी आबादी जाित एवं वणª आिद के कारण हजारŌ वषŎ से शोषण का
िशकार रही है और उसके साथ सामािजक ईमानदारी नहé बरती गई है। आज कì िÖथितयŌ
म¤ वे इस बात को महसूस करते ह§ िक जब समेिकत भारतीय िहतŌ कì बात कì जाती है तो
भारतीय संÖकृित कì ऐसी ही िवसंगितयŌ के कारण भारतीय समाज पूणª-एकता कì िÖथित
म¤ नहé आ पाता है। इस तरह का संकेत केवल एक िÖथित का वणªन ही नहé है, दरअसल
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इस नासूर पर उंगली इसिलए रख रहे ह§ िक बदलते हòए समय
म¤ अब भारतीय लोगŌ को अपनी इन ÿथाओं और परंपराओं के पुनमूªÐयांकन कì
आवÔयकता है । आधुिनक काल म¤ दिकयानूसी - łिढ़वादी बातŌ कì अब कोई उपयोिगता
नहé बची है। Öवतंýता, समानता और सामािजक Æयाय के इस युग म¤ हर Óयिĉ समान है
और दुिनया के सबसे बड़े लोकतांिýक समाज म¤ हर िकसी को समानता का अिधकार ÿाĮ
है। यिद भारत को िवĵ म¤ शिĉशाली राÕů के łप म¤ Öवयं को Öथािपत करना है तो उसे इन
िÖथितयŌ को बदलने के िलए तैयार रहना होगा । munotes.in

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आधुिनक गī
104 आजादी के बाद कì जो पåरिÖथितयां िनबंधकार को बेहद Óयिथत करती ह§, उनम¤ से एक
यह है िक आजादी के पहले हम¤ अपने शýु का पता था िक वह कौन है, उसकì ÿकृित ³या
है, वह ³या कर सकता है, आिद-आिद । िजसके कारण लड़ने कì िदशाएं हम¤ मालूम थé
परंतु आजादी के बाद कì जो िÖथितयां बनé, उनम¤ एक दूसरी तरह का शýु सामने खड़ा
नजर आया और वह शýु था भारतीय जनसमूह म¤ ही मौजूद ऐसे लोग जो लाज-शमª से दूर
थे, झूठ बोलना िजनकì िफतरत थी। ऐसे लोगŌ का ही वणªन करते हòए िनबंधकार िलखता है,
"मुिĉ का संúाम समाĮ होते ही हम¤ दूसरे ÿकार के शýुओं से पाला पड़ा है। कुछ तो ऐसे लंगे
ह§ िक राम-राम कहने के िसवा कुछ दूसरा सूझता ही नहé। कुछ ऐसे काइयां है िक बस मुंह म¤
राम बगल म¤ छुरी।.... भारतवषª का सबसे िनकट शýु वह है जो लाज-हया का नाम नहé
जानता, जो झूठ बोलकर गवª करता है, जो छुरा भŌक कर हंसा करता है । िजसे धमª-कमª से
कोई वाÖता नहé । उससे उलझना हमारे िलए बड़ा किठन होगा। रĉ म¤ बेहयाई न हो तो
उधार मांगने से थोड़े ही िमलेगी ? और यहé इस वीरÿसू भूिम म¤ महाकाल का कुंठनृÂय शुł
होता है।" दरअसल िनबंधकार के इस मंतÓय के पीछे के आधार यथाथª ÿेåरत ह§ । उस समय
देश का एक बड़ा वगª ऐसा था जो शांित कì Öथापना म¤ अड़ंगे लगा रहा था । बार-बार
आपसी भाईचारे म¤ Óयवधान उÂपÆन करना, सांÿदाियक घटनाओं के Ĭारा िहंसा पैदा
करना, यह उसका Öवभाव था । और ऐसे तÂवŌ से िनपटने के िलए आदशŎ कì नहé बिÐक
दंड कì आवÔयकता थी । िसĦांत ऐसे लोगŌ के िलए नहé होते, िजनम¤ मानवीयता नहé
होती। सÂय, अिहंसा, ÿेम ऐसे लोगŌ के िलए नहé है जो इनका मूÐय नहé समझते। ऐसी
िÖथितयŌ म¤ सारा तंý-मंý और आदशª िकसी काम के नहé िसĦ होते । परंतु इस
अितरंिजता को समाĮ करने म¤ दÁड कì उपयोिगता ÖवतःिसĦ है ।
'महाकाल के कुÁठ नृÂय' से आिखर ³या ताÂपयª है ? आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस
िनबंध म¤ जो ÿतीकाÂमक अथª िदया है, वह यह है िक राजनीितक तंý म¤ अब नैितक आदशª
संभवत: अÿासंिगक हो चले ह§ । बदले पåरवेश म¤ समÖयाओं का Öवłप बदल गया है। ऐसे म¤
अब अÆय साधनŌ का उपयोग आवÔयक हो गया है । िजÆह¤ धमª और नीित समझ म¤ नहé
आते, उÆह¤ दंड कì भाषा म¤ समझाना आवÔयक हो गया है। भारतीय संÖकृित को अब इस
पåरवतªन कì अÂयंत आवÔयकता है। महाकाल के कुंठ नृÂय कì यही ÿासंिगकता है । इस
बात के महÂव को समझाने के िलए ही वे एक Óयवहाåरक उदाहरण भी देते ह§ िक यिद कोई
जंगली सूअर आंख मूंदकर आøमण करता है तब ³या उसे सदुपदेशŌ से शांत िकया जा
सकता है ? ³या मंý बल से िहंसक पशुओं को बांधा जा सकता है ? ऐसा संभव ही नहé है।
ऐसे िहंसक पशुओं से िनपटने के िलए अľ ही उपयोगी है। समाज म¤ भी जब इस तरह कì
िहंसक ÿवृि°यां पैदा होती ह§ तो उÆह¤ तंý-मंý और अÅयाÂम कì नहé बिÐक अľ - शľ
और कठोर दंड कì आवÔयकता होती है।
इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अÂयंत Óयावहाåरक ŀिĶ से समÖया को देखा,
जांचा और परखा है और उसके Óयावहाåरक समाधान देने के ÿयास भी िकए ह§। आडंबर के
इस युग म¤ सचमुच सÂय-अिहंसा-अÅयाÂम जैसे तÂव नए संदभŎ म¤ अÿासंिगक हो गए ह§।
आज का युग झूठ का युग है। Öवाथª और िलÈसा का युग है। ऐसे म¤ सभी से िजनके ऊपर
करोड़Ō कì र±ा का भार है, उनसे ऐसे नैितक-आÅयािÂमक िसĦांतŌ कì आशा नहé कì जा
सकती। ÓयवÖथा को िनयोिजत करने वाले हमारे स°ा तंý के लोगŌ को भी आज के युग के
अनुłप अपने को बदलना होगा। यिद ऐसा नहé होगा तो हमारी ÓयवÖथा कई तरह के छĪ-munotes.in

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िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय
105 युĦ का िशकार हो जाएगी । इसीिलए वे कहते ह§, "झूठी बातŌ को सुनकर चुप हो रहना ही
भले आदमी कì चाल है। परंतु इस Öवाथª और िलÈसा के जगत म¤ िजन लोगŌ ने करोड़Ō के
जीवन मरण का भार कंधे पर िलया है वे उपे±ा भी नहé कर सकते । जरा-सी गफलत हòयी
िक सारे संसार म¤ आप के िवŁĦ जहरीला वातावरण तैयार हो जाएगा ।" आचायª जी के इस
कथन से हम आज के युग म¤ संवेदनशीलता का अंदाजा लगा सकते ह§। आज के समय म¤
जबिक मीिडया इतना शिĉशाली हो गया है, Óयथª के ÿलाप फैलना बड़ी आम सी बात हो
गई है । और बड़ी बड़ी घटनाएं ऐसे दुÕÿचार के कारण हो जाती ह§ । इसीिलए वे कहते ह§,
"आधुिनक युग का एक बड़ा भारी अिभशाप है िक गलत बात¤ बड़ी तेजी से फैल जाती ह§।
समाचारŌ के शीŅ आदान-ÿदान के साधन इस युग म¤ बड़े ÿबल ह§ और धैयª और शांित से
मनुÕय कì भलाई के सोचने के साधन अब भी बहòत दुबªल ह§। सो, जहां हम¤ चुप होना चािहए
वहां चुप रह सकना खतरनाक हो गया है ।"
दरअसल युग संदभŎ के अनुłप जीवन आदशŎ म¤ बदलाव कì मांग इस िनबंध कì अÂयंत
महÂवपूणª िवशेषता है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी Öवयं भी भारतीय संÖकृित के बड़े
प±धर और मानवतावादी सािहÂयकार ह§ । मानवतावाद पर उनकì गहरी आÖथा , उनके
सािहÂय म¤ सवªý और सभी िवधाओं म¤ िदखाई देती है । उनके अिधकतर िनबंधŌ म¤ उÆहŌने
ÖपĶ łप से अपने ŀिĶकोण को Óयĉ िकया है । परंतु िजस अनुłप पåरवेश म¤ पåरवतªन
हòआ है, उसम¤ हाथ बांधकर खड़े रहना और िसफª घटनाओं को देखना उÆह¤ उिचत नहé
जान पड़ता। वह कमª और Öवभाव - दोनŌ म¤ पåरवतªन कì आवÔयकता महसूस करते ह§ और
इसी तÃय को उÆहŌने इस िनबंध म¤ महÂवपूणª और Óयवहाåरक ढंग से सामने रखा है ।
८.१.२.२ भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय िनबÆध का ÿितपाī:
'भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय' सामियक िÖथितयŌ का मूÐयांकन करने वाला िनबंध है।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी जब संÖकृित और इितहास पर िलखते ह§ तब वे समसामियक
संदभŎ को जोड़ना िबÐकुल नहé भूलते। यह िनबंध तो पूणªतया सामियक िÖथितयŌ पर और
उन िÖथितयŌ के मूÐयांकन पर आधाåरत िनबंध है ।
देश कì आजादी के समय िजस तरह से घटनाएं घट रही थé, उनम¤ मूÐयŌ का भारी
पåरवतªन देखने को िमल रहा था। राÕůीय - अंतरराÕůीय राजनीित म¤ वैसे पåरवतªन उसके
पहले नहé देखे गए थे। इतने Óयापक संदभŎ म¤ भी मूÐयहीनता कì िÖथित डरा देने वाली थी।
Öवयं नव-Öवतंý भारत कì िÖथित भी अÂयंत ýासद थी। सांÿदाियकता से ±त-िव±त
भारत कì िÖथित अÂयंत अिÖथर थी। Óयिĉगत łप म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का
नैितक मूÐयŌ पर बड़ा िवĵास और गहरी आÖथा रही है। उनका समÖत सािहÂय मानवीयता
के संदभª म¤ इÆहé कì उĤोषणा रहा है ।
वाÖतव म¤ यह अंितम सÂय है िक िबना नैितकता के समाज कभी भी संतुलन कì िÖथित म¤
खड़ा नहé हो सकता और उस पर भारत जैसा बहòभाषी और बहòसांÖकृितक देश तो िबÐकुल
भी नहé । मुĥा यह नहé है िक नैितक मूÐय घट रहे ह§, पåरिÖथितयां िबगड़ रही ह§, आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी के िलए इस िनबंध को रचने म¤ बड़ा मुĥा यह है िक उÆहŌने अÂयंत
Óयावहाåरक ŀिĶकोण से इन समÖत िÖथितयŌ का मूÐयांकन करते हòए यह माÆयता रखी है munotes.in

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आधुिनक गī
106 िक समयानुकूल अपनी धारणाओं िवĵासŌ और मूÐयŌ म¤ पåरवतªन कर लेना ही समझदारी
है। िजससे समाज और राÕů को अिÖथरता के संकट से बचाया जा सके ।
परंतु जैसा िक हमने देखा नैितक मूÐयŌ के ÿित आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì गहरी
आÖथा है। इन िवपरीत पåरिÖथितयŌ म¤ भी उनकì यह आÖथा िडगती नहé है । उनके सामने
महाÂमा गांधी का आदशª है, िजÆहŌने अपने सÂय, अिहंसा के Óयवहाåरक ÿयोगŌ से पूरी
दुिनया को एक नया राÖता िदखाने का काम िकया। उसी अनुसार आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी को अभी यह िवĵास है िक नैितक आदशŎ कì र±ा कì जा सकती है । इसीिलए वे
िलखते ह§, "हम¤ महान संयोग िमला है । हमारे पूºय नेता ने िदखा िदया है िक बड़े से बड़े
सÂय का Óयवहार से कोई िवरोध नहé है । िनिÕøय रहकर सÂय कì बात¤ बघारना आसान है।
कायª±ेý म¤ - ÖवाथŎ कì संघषª Öथली म¤ - महान आदशŎ कì र±ा करना किठन काम है ।
और हम¤ वही करना है ।"
८.१.३ सारांश इस इकाई म¤ 'भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय' िनबंध का आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने
वणªन और िवĴेषण िकया है । इन िनबंध से हम कह सकते ह§ िक आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी कì ŀिĶ इितहास ÿेåरत सांÖकृितक ŀिĶ है, िजसके अंतगªत वे समसामियक ÿijŌ पर
भी िवचार करते ह§ । मानवीयता उनके िलए ऐसा ÿÂयय है, जो सािहÂय के मूल म¤ है और
इसका अंितम उĥेÔय लोक-कÐयाण है। उĉ िनबंध इस ŀिĶ से अÂयंत महÂवपूणª है ।
८.१.४ उदाहरण - Óया´या Óया´या अंश (१):
चुटकì बजा के हजारŌ वषª कì संÖकृित को उड़ाया नहé जा सकता। हम यह नहé कह सकते
िक हमम¤ दोष नहé है। दोष एक-दो ह§? हमने कम पाप िकए ह§। करोड़Ō को हमने अनजान म¤
नीच बना रखा है, करोड़Ō को जानबूझकर पैरŌ-तले दबा रखा है और करोड़Ō को हमने उपे±ा
से महान संदेशŌ के अयोµय समझ रखा है। नतीजा यह होता है िक जब हम आगे बढ़ने लगते
ह§ तब कुछ लोग नीचे कì ओर खéचते ह§ - िजÆह¤ पैरŌ तले दबाया है, वह कैसे आगे बढ़ने
द¤गे?
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'भगवान
महाकाल का कुÁठ नृÂय' िनबंध से उधृत है ।
ÿसंग: इस उĦरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने आÂम-मूÐयांकन के łप म¤ हमारे
समाज और संÖकृित कì िवकृितयŌ और िवसंगितयŌ को कहकर पूरे समाज को आईना
िदखाने का ÿयास िकया है । िहंदू समाज म¤ जाित और वणª के आधार पर जो कुिÂसत
षड्यंý हजारŌ वषŎ तक िकए गए ह§, उÆहé कì ओर संकेत िकया गया है ।
Óया´या: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी भारतीय संÖकृित के ÿित अपनी एक िविशĶ
अवधारणा रखते ह§। उनके िलए भारतीय संÖकृित से ताÂपयª केवल सनातन संÖकृित से
नहé है बिÐक उनकì ŀिĶ म¤ हजारŌ वषŎ के इितहास म¤ िविभÆन संÖकृितयŌ के मेलजोल से munotes.in

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िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय
107 िजस एक समेिकत ÿभाव वाली संÖकृित का िवकास हòआ है, वह भारतीय संÖकृित है। और
इस भारतीय संÖकृित पर उÆह¤ गवª भी महसूस होता है। िजसे उनके िनबंधŌ म¤ ÖपĶ łप से
देखा जा सकता है ।
परंतु हमारे सांÖकृितक िवकास म¤ कई Öथल ऐसे ह§ िजÆह¤ देखकर वे भी संकुिचत हो जाते
ह§। ऐसा ही एक Öथल है - जाित ÓयवÖथा और वणª ÓयवÖथा के कारण एक बड़ी आबादी के
शोषण का िशकार होना। इस िबंदु पर उÆह¤ ±åरत हो रहे मानवीय तÂवŌ को लेकर शिम«दगी
भी महसूस होती है। और इसे भी देश के िवकास म¤ अÂयंत बाधक मानते ह§ । इसी संदभª म¤
भारत कì आजादी के बाद जब एकìकृत शिĉ िनमाªण कì आवÔयकता महसूस होती है तो
उÆह¤ इन ÿवृि°यŌ के कारण समाज िवभािजत िदखाई देता है, िजसके ÿित उनके मन म¤
आøोश है । इितहास कì इन भूलŌ को वे समाĮ करना चाहते ह§। आज का युग नए िवचारŌ
का युग है । ÿाचीन और मÅयकालीन युग कì बहòत सारी अवधारणाएं आधुिनक काल म¤
एकदम बदल चुकì ह§ । ऐसे म¤ यह आवÔयक है िक अब इस तरह कì सामािजक बुराइयŌ को
बदलने के िलए शिĉ संपÆन वगª को Öवयं आगे आना चािहए और ऐसी परंपराओं को
बदलकर समाज को एक नई मजबूती देने का ÿयास करना चािहए ।
िवशेष:
१. भारतीय संÖकृित कì िवसंगितयŌ कì ओर Åयान आकिषªत िकया है ।
२. भारत कì एकता के िवकास म¤ बाधक तÂवŌ का वणªन िकया है ।
Óया´या अंश (२):
आधुिनक युग का यह एक बड़ा भारी अिभशाप है िक गलत बात¤ बड़ी तेजी से फैल जाती ह§।
समाचारŌ के शीŅ आदान-ÿदान के साधन इस युग म¤ बड़े ÿबल ह§ और धैयª और शांित से
मनुÕय कì भलाई के सोचने के साधन अभी बहòत दुबªल ह§ । सो, जहां हम¤ चुप होना चािहए
वहां चुप रह सकना खतरनाक हो गया है। हमारा सारा सािहÂय नीित और स¸चाई का
सािहÂय है। भारतवषª कì आÂमा कभी दंगा-फसाद और टंटे को पसंद नहé करती परंतु
इतनी तेजी से कूटनीित और िमÃया का चø चलाया जा रहा है िक हम चुप नहé बैठ सकते।
अगर लाखŌ-करोड़Ō को हÂया से बचना है तो हम¤ टंटे म¤ पढ़ना ही होगा ।
संदभª: यह उĦरण आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी के िनबंध-संúह कÐपलता के 'भगवान
महाकाल का कुÁठ नृÂय' िनबंध से उधृत है ।
ÿसंग: आधुिनक काल म¤ तकनीकì िवकास ने जहां एक ओर मनुÕय के िलए वरदान का
कायª िकया है, वहé कुछ ÖथानŌ पर इसके कारण मूÐयहीनता कì िÖथित भी उÂपÆन हòई है।
मीिडया के बढ़ते ÿभाव म¤ सच और झूठ का फैसला करना धीरे-धीरे मुिÔकल हो गया है।
Óयथª ÿलाप का ÿकोप बहòत ºयादा बढ़ गया है । यहां अब सच को सािबत करने कì
िÖथितयां उÂपÆन हो गई ह§। इÆहé का संकेत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस अवतरण म¤
िकया है । munotes.in

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आधुिनक गī
108 Óया´या: आधुिनक युग म¤ जैसे-जैसे संचार के तकनीकì साधनŌ का िवकास हòआ है, वैसे-
वैसे इस समाज म¤ कई तरह कì समÖयाएं भी सिÌमिलत हòई है । मीिडया के िवकास के
कारण ÿचार-दुÕÿचार का दौर बड़ी तेजी से िवकिसत हòआ है । ÿोपेग¤डावाद आज के
मीिडया युग कì ही देन है, िजसम¤ अवांिछत ढंग से िकसी िवषय को गलत तरीके से उठाकर
उस पर भी सहमित ÿा Į करने का ÿयास िकया जाता है। इससे कई बार झूठ जीतता है और
सÂय कì पराजय होती है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस अवतरण म¤ हमारा Åयान इसी िदशा म¤ आकिषªत िकया
है। इसी Óयथा को समझते हòए उÆहŌने यह बताने का ÿयास िकया है िक भले ही हम िकतने
भी मूÐयपरक ह§ और हमारा समÖत सािहÂय, नीित और स¸चाई का सािहÂय है परंतु आज
के समय म¤ Óयथª ÿलाप कì जो िÖथितयां उÂपÆन होती ह§, उनसे बचने के िलए यह
आवÔयक है िक इस िमÃया चø का िवरोध करने के िलए हम भी अपना प± रख¤। इन
िÖथितयŌ म¤ चुप रहने का अथª Öवयं को अपराधी बना देना है ।
अंतरराÕůीय जगत म¤ िजस ÿकार एक देश दूसरे देश को लांिछत कर उसकì ÿितķा को
हािन पहòंचाता है, ऐसी िÖथित म¤ सही और नैितक प± को सही होने के बावजूद भी अपना
प± रखना ही पड़ता है । आज के समय कì इसी िवसंगित कì ओर आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी ने इस Öथल पर संकेत िकया है ।
िवशेष:
१. तÂकालीन समय के मीिडया कì िÖथित कì ओर संकेत िकया है ।
८.१.५ वैकिÐपक ÿij १. हमने एिशया और अĀìका के करोड़Ō अिधवािसयŌ म¤ आशा और उÂसाह का संचार
िकस ÿकार िकया है ?
(क) øोध से (ख) आचरण से
(ग) लालच से (घ) माया से
२. अंúेजŌ म¤ हजार दोष है। पर एक बड़ा भारी गुण भी है। वह ³या है ?
(क) ईमानदारी (ख) िनķा
(ग) कŁणा (घ) लाज शमª
३. चुटकì बजा के हजारŌ वषª कì संÖकृित को ³या नहé िकया जा सकता ?
(क) भुलाया (ख) िगराया
(ग) उड़ाया (घ) उठाया
४. अपनी िवशाल सांÖकृितक मिहमा के ÿभाव के कारण हम अÆयाय करके ³या होते ह§ ?
(क) लिºजत (ख) मूिछªत
(ग) øोिधत (घ) पीिड़त munotes.in

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िनबÆध : भगवान महाकाल का कुÁठनृÂय
109 ८.१.६ लघु°रीय ÿij १) भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय िनबंध का सार ।
२) भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय िनबंध का ÿितपाī ।
३) भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय िनबंध कì भाषा ।
८.१.७ बोध ÿij १) भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय िनबंध का आधुिनक संदभŎ म¤ पåरÿेàय ÖपĶ कìिजए?
२) भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय िनबंध का उĥेÔय अपने शÊदŌ म¤ िलिखए ?
३) भगवान महाकाल का कुंठ नृÂय िनबंध कì िवषयवÖतु का िवÖतार से वणªन कìिजए ?
८.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****


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110 ९
िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद
इकाई कì łपरेखा
९.० इकाई का उĥेÔय
९.१ ÿÖतावना
९.२ िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद
९.२.१ ‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु
९.२.२ ‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबÆध का ÿितपाī
९.३ सारांश
९.४ उदाहरण-Óया´या
९.५ वैकिÐपक ÿij
९.६ लघु°रीय ÿij
९.७ बोध ÿij
९.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
९.० इकाई का उĥेÔय  पाठ्यøम के अÆतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' म¤
संúहीत िनबंध म¤ से 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद' का अÅययन िकया जाएगा ।
 ÿÖतुत िनबंध म¤ िवषयवÖतु के łप म¤ उÆहŌने िकस तरह के िवचार Óयĉ िकए ह§, इस
िवĴेषण के साथ ही उनकì अिभÓयिĉ शैली और उनके िवचारŌ कì ÿासंिगकता पर
भी चचाª कì जाएगी ।
 ‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबंध कì अÆतवªÖतु को छाý जान¤गे ।
 ‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबंध के ÿितपाī को छाý समझ सक¤गे ।
९.१ ÿÖतावना आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िहंदी के ऐसे लिलत िनबंधकार ह§, िजनम¤ िवषय-वैिवÅयता और
अिभÓयिĉ सामÃयª अपने अĩुत łप म¤ मौजूद है। उनके िनबंधŌ म¤ इितहास और संÖकृित
जैसे िवषय सवªथा नवीन उदभावनाओं से युĉ िमलते ह§ । ÿाचीन भारतीय सािहÂय के ÿित
नवीन आÖथा वादी Öवर िमलता है । िवचार úहण कर ने और िफर उÆह¤ अिभÓयिĉ देने कì
ŀिĶ से आचायª िĬवेदी अÂयंत उदार ÿकृित के रहे ह§। िकसी भी ÿकार कì वैचाåरक कुंठाएँ
या दुराúह हम¤ उनके सािहÂय म¤ देखने को नहé िमलते ह§ । वे ÿाचीन संÖकृत सािहÂय और
ºयोितष के ÿकांड िवĬान थे, परंतु ÿाचीनता के ÿित अÂयिधक मोह उनम¤ नहé िमलता। munotes.in

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िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद
111 उनका ÓयिĉÂव आधुिनक चेतना से संपÆन ÓयिĉÂव है । उÆहŌने नए और पुराने के बीच
िजस तकªपूणª ढंग से सामंजÖय Öथािपत िकया है, वह उनके गहरे अÅययन और शोध का
पåरणाम है। वे अपने िवचारŌ म¤ एकदम ÖपĶ ह§। कहé कोई Ăांित नहé। भारतीय संÖकृित का
िजस तरह से उÆहŌने िवĴेषण िकया है, या आधुिनक ÿवृि°यŌ का जैसा िवĴेषण उनके
िनबंधŌ म¤ िमलता है, वह उनकì िनĂा«त ŀिĶ का ही पåरणाम है । अित गंभीर िवषयŌ का
चयन करने के बाद भी उनके िनबंध वैचाåरकता के बोध से कभी जिटल नहé हो पाते।
िवषयŌ के ÿित उनकì Óया´या और िवĴेषण इतने सरल और सहज ढंग से होते ह§ िक
सामाÆय से सामाÆय पाठक भी उनके मंतÓय को आसानी से समझ सकता है । इस इकाई के
अंतगªत हम 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद' िनबंध का अÅययन कर रहे ह§ । उपरोĉ तÃयŌ
के आलोक म¤ इन िनबंध को भी देखने का ÿयास िकया जाएगा।
९.२ िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद ९.२.१ ‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबंध एक िवशेष मन:िÖथित म¤ िलखा गया िनबंध है और
इस िनबंध के क¤þ म¤ महाÂमा गांधी ह§। महाÂमा गांधी का भारतीय राजनीित और जनसमूह म¤
अÂयंत ÿभाव रहा है । सन १९१५ के बाद भारतीय राÕůीय आंदोलन का उÆहŌने नेतृÂव
िकया था । सÂय, अिहंसा आिद जैसे नैितक िसĦांतŌ पर आधाåरत उनके िवचारŌ का एवं
Óयवहार के Öतर पर जनसमूह के बीच ÿचाåरत िकए उनके नैितक दशªन का जबरदÖत
ÿभाव भारतीय जनसमाज पर पड़ा । साथ ही उस समय कì िāिटश सरकार भी उनसे
घबराती थी । महाÂमा गांधी के िवराट ÓयिĉÂव का ÿभाव भारत कì ÿÂयेक भाषा के
सािहÂय पर देखने को िमलता है। उनकì िवचारधारा तÂकालीन समय म¤ आIJयª म¤ डाल देने
वाली िवचारधारा थी, िजसका अपने समय-संदभŎ म¤ ÿयोग एक असंभव सी घटना ÿतीत
होती है, पर इसी असंभव को महाÂमा गांधी ने संभव कर िदखाया था । देश कì आजादी का
अÅयाय अंितम समय म¤ महाÂमा गांधी के िलए बड़ा दुखद रहा। बहòत सारे ऐसे िनणªय िलए
गए िजसम¤ संभवत उनकì सहमित नहé थी, पर ताÂकािलक कारणŌ से यह िनणªय िलए गए।
िजससे गांधीजी बहòत आहत भी हòए। अंततः ३० जनवरी सन १९४८ को िदÐली के िबरला
हाउस म¤ नाथूराम गोडसे के Ĭारा उनकì हÂया कर दी गयी । महाÂमा गांधी कì हÂया के बाद
िकंकतªÓयिवमूढ़ िÖथित म¤ भावपूणª ढंग से इस िनबंध म¤ इस िवराट ÓयिĉÂव को याद िकया
गया है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने उनके ÓयिĉÂव के साथ-साथ उनकì वैचाåरकता पर
भी अपने भाव ÿकट िकए ह§ ।
सन १९१५ म¤ पूरी तरह से भारत लौटने के बाद महाÂमा गांधी ने अपना सारा जीवन
भारतीय समाज को समिपªत कर िदया । जीवन -भर सेवा कमª करते हòए उÆहŌने बेहद सादा
जीवन Óयतीत िकया । तÂकालीन समय म¤ िāिटश सरकार का सूरज कभी डूबता नहé था
और वह सरकार एक धोती और लंगोटी म¤ रहने वाले इस संत नेता से के नैितक आदशŎ के
कारण उनसे घबराती थी। ऐसे Óयिĉ कì कोई ऐसे िनमªमता से हÂया कर देगा, यह कÐपना
से परे बात लगती है । इस ÿथम अनुभूित को अिभÓयĉ करते हòए िनबंधकार िलखता है िक
"महाÂमा जी को एक पढ़े-िलखे िहंदू युवक ने गोली मार दी - यह समाचार कुछ ऐसा िविचý
और अÿÂयािशत था िक शायद ही िकसी ने सुनते ही िवĵास कर िलया हो । मुझे भी शुł म¤ munotes.in

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आधुिनक गī
112 िवĵास नहé हòआ, परंतु बहòत शीŅ इसकì स¸चाई का ÿमाण िमल गया । महाÂमाजी को
सचमुच ही िकसी ने गोली मार दी थी, सचमुच ही वे सदा के िलए हम¤ छोड़ कर चले गए थे,
सचमुच ही पशुता ने अमर पौधे को चर डाला था ।" महाÂमा गांधी जैसे ÓयिĉÂव के इस तरह
चले जाने के बाद एक लेखक कì जो मानिसकता है, उसकì अनुभूितयां ह§, उन सभी का
वणªन इस िनबंध म¤ िमलता है ।
यह िनबंध इस ŀिĶ से भी अÂयंत महÂवपूणª है िक राÕůिपता कहे जाने वाले महाÂमा गांधी
का इस तरह से जाना हर िकसी को िकंकतªÓयिवमूढ़ कर रहा था । उसका वणªन भी इस
िनबंध म¤ िवÖतार से िमलता है । उस समय का युग आज कì तरह सूचनाओं के तेजी से
ÿसाåरत होने का युग नहé था । एकमाý रेिडयो और समाचार पý, जनसंचार के साधनŌ के
łप म¤ हमारे पास मौजूद थे । इस तरह कì घटनाएं घट जाने के बाद जो अफरा-तफरी कì
िÖथित बनती है, उसका वणªन करते हòए आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी जी िलखते ह§, "िकसी
को ठीक से पता नहé था िक षड्यंý का ³या और कैसा łप है, पर सब समझते थे िक है
वह बहòत Óयापक । िकसी ने इस दल को डांटा िकसी ने उस दल को। शोक, øोध और घृणा
एक के बाद एक आती रही और जाती रही । आज भी मन मुĉ नहé हòआ है । महाÂमा जी को
खोकर हमने सचमुच ³या खो िदया है यह आज भी ठीक-ठीक समझ म¤ नहé आ रहा है।
इतना भर िनिIJत है िक हम अनाथ हो गए ह§। हम संसार कì ŀिĶ म¤ िगर गए ह§ और कहé भी
सहारा नहé खोज पा रहे ह§ ।" यह केवल लेखक के शÊद नहé है बिÐक यह उस समय कì
समú मानिस कता है । और इस कथन से हम अंदाजा लगा सकते ह§ िक महाÂमा गांधी कì
हÂया के बाद लोग िकस िÖथित म¤ थे, ³या सोच रहे थे । जैसा िक लेखक कहता है, हम
संसार कì ŀिĶ म¤ िगर गए ह§ और कहé भी सहारा नहé खोज पा रहे, सचमुच महाÂमा गांधी
का ÓयिĉÂव ऐसा था िक पूरा िवĵ उनका सÌमान करता था । यहां तक कì शýु होने के
बावजूद महाÂमा गांधी के नैितक आदशŎ के सामने िāिटश सरकार भी नतमÖतक थी और
ऐसे िवĵÓयापी समिथªत Óयिĉ को उसके अपने ही घर म¤ हÂया का िशकार होना पड़ा । यह
सचमुच बेहद शिम«दगी का िवषय था, जो इन शÊदŌ म¤ Óयĉ हòआ है ।
महाÂमा गांधी कì इस देश म¤ िÖथित कुछ ऐसी थी जैसे एक पåरवार म¤ िपता या मुिखया कì
होती है। पåरवार का हर सदÖय उसकì छýछाया म¤ अपने को सुरि±त महसूस करता है।
कुछ यही हाल देश का भी था । िबना िकसी भाषाई और सांÖकृितक आúह के पूरा देश एक
Öवर म¤ उÆह¤ राÕůिपता के łप म¤ Öवीकार करता था। िविभÆन िवचारधाराओं से जुड़े हòए
अलग-अलग दल भी उनके महÂव और उनकì छýछाया के महÂव को समझते थे । इसीिलए
वैचाåरक िवरोधाभासŌ के बावजूद जब महाÂमा गांधी कोई बात अंितम łप से कहते थे तो
िकसी भी दल के लोग उसे अÖवीकार नहé कर पाते थे । इस तरह महाÂमा गांधी कì िÖथित
इस देश कì राजनीित म¤ एक िपता कì तरह थी । इस संदभª म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
कहते ह§, "शोक भी कैसा पावक-धमª है । िजन लोगŌ के मुंह से हम कभी ÿेम और सÂय कì
बात सुनने कì आशा नहé कर रहे थे, वे भी िĬधाहीन कंठ से इनकì मिहमा घोिषत कर रहे
ह§। िजन कूटनीित-िवशारदŌ के मुख से कभी उ¸¹वास और आवेग का एक भी शÊद नहé
सुना गया, उÆहŌने भी अपना मौन भंग िकया है । िकसी-िकसी के गले म¤ िनिIJत łप से
आवेग, िप¸छल भाषा सुनी गई है । महाÂमा ने जीकर जो आIJयª िदखाया था - मरकर उसके
कई गुना आIJयª िदखाया । यह सब कैसे संभव हòआ ? ³या सचमुच आÅयािÂमक शिĉ कì
िवजय हòई है ?" आम जनता िकसी भी समÖया के िलए उनकì तरफ देखती थी िक इस munotes.in

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िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद
113 संदभª म¤ बापू ³या कहते ह§ और गांधी जी के िदशा-िनद¥श देने पर जनता पूणª िवĵास के
साथ उनका अनुसरण भी करती थी । यह िवĵास महाÂमा गांधी ने अपनी जीवन भर कì
सेवा से अिजªत िकया था । इसीिलए जब उनकì हÂया हòई तो लोग िकंकतªÓयिवमूढ़ िÖथित म¤
और हताश िÖथित म¤ थे, उÆह¤ ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच उनके घर का मुिखया, उनका
िपता अब नहé रहा ।
महाÂमा गांधी कì शि´सयत सचमुच अÂयंत िवराट थी और वह देश कì सीमाओं को
लांघकर पूरी पृÃवी को अपने दायरे म¤ ले चुकì थी । महाÂमा गांधी के आदशª, Âयाग और
बिलदान कì अपे±ा रखते थे। पूरी दुिनया उनके िवचारŌ का समथªन करती थी परंतु यथाथª
यह था िक मुंह से समथªन करने के बावजूद दुिनया अलग-अलग तरह के साăाºयवादी
िवचारŌ और शोषण के िविभÆन तरीकŌ से भरी पड़ी थी । लेखक को बड़ा आIJयª होता है िक
जब उनकì Öवीकारोिĉ इतनी ºयादा थी, उनके िवचारŌ कì Öवीकायªता इतनी अिधक थी,
तब ³यŌ नहé लोग उन िवचारŌ को अमल म¤ लाते ह§। इसीिलए वे िलखते ह§, "तप और Âयाग
कì मिहमा यिद सबको मालूम है तो ³यŌ नहé लोग उÆह¤ अपनाते ? यिद सचमुच ही लोग
अिहंसा को बड़ी वÖतु मानते ह§ तो ³या कारण है िक महाÂमाजी के ÿित शोक ÿकट करने
के साथ ही साथ तलवार को सान पर चढ़ाते जा रहे ह§ ? लोग यिद बराबरी और भाईचारे के
िलए मर -िमटने वाले कì ÿशंसा करते ह§, तो ³यŌ नहé साăाºय और शोषण के मोह को छोड़
देते ।" दरअसल लेखक कì इस तरह कì अिभÓयिĉ का कारण हमारे समाज का दोगलापन
है । हमारे समाज के भीतर ही िकतने सेठ और सामंत थे, िजÆहŌने महाÂमा गांधी के
आंदोलनŌ के िलए भारी आिथªक योगदान िदए परंतु उÆहŌने अपना Óयवसाय और अपना
मागª नहé बदला। शोषणकारी ÓयवÖथा का अंग वे बने ही रहे । यह एक बड़ा िवरोधाभास है,
जो लेखक के साथ-साथ पाठकŌ को भी आIJयªचिकत करता है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी शोक के इस वातावरण म¤ भी िचंतनमµन ह§ िक वे ³या कारण
ह§, जो महाÂमा गांधी के िवचारŌ के अमल कì राह म¤ रोड़ा बनते ह§ । उÆह¤ यह देखकर अित
±ुÊधता होती है िक समाज कì कथनी और करनी म¤ िकतना बड़ा फकª है । वे कहते ह§,
"कूटनीित² के मुंह से सÂय कì ÿशंसा सुनकर मन म¤ µलािन होती है, सेनापितयŌ के मुंह से
अिहंसा कì Öतुित सुनता हóं, तो øोध होता है; सेठŌ और सामंतŌ के मुंह से Âयाग और तप
कì चचाª सुनता हóं तो झुंझलाहट पैदा होती है; और साăाºयवािदयŌ के मुंह से तो गांधी का
नाम सुनकर ही घृणा हो आती है ।" वाÖतव म¤ लेखक का ŀिĶकोण यह है िक जब इतनी
Óयापक Öवीकारोिĉ है, तब यह सभी लोग महाÂमा गांधी के िवचारŌ को ³यŌ नहé Öवीकार
कर पाते। इस संबंध म¤ लेखक का मत है िक Âयाग, तपÖया और दया को Öवीकार करने के
िलए िजस कठोर संयम और मानिसक अनुशासन कì आवÔयकता होती है, वह दरअसल
बहòत कम लोगŌ म¤ होता है । Öवयं लेखक भी यह Öवीकार करता है िक महाÂमा जी के गुणŌ
को अपनाने म¤ उसे िकस तरह Óयवहाåरक समÖयाओं का सामना करना पड़ा और वह Öवयं
भी इस पथ से िवचिलत हो गया । महाÂमा जी के आदशŎ पर चलने के िलए िजस संयम
अनुशासन और िजस चåरý बल कì आवÔयकता है, वह संभवत: न होने कì वजह से यह
कथनी और करनी का अंतर िदखाई देता है ।
महाÂमा गांधी एक आदशª ÓयिĉÂव थे और आदशª का अनुसरण कर सकना सबके बस कì
बात नहé होती । लेखक इस सÂय को समझते ह§ इसीिलए वे महाÂमा गांधी पर िचंतन के øम munotes.in

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आधुिनक गī
114 म¤ इन िÖथितयŌ को भी रखने कì चेĶा करते ह§ । महाÂमा गांधी संयमी और िजत¤िþय थे और
उनके जैसा हो सकना सबके िलए संभव भी नहé है। अपने िनबंध के अंत म¤ लेखक ऐसी
Óयवहाåरक िÖथित कì तलाश पर भी जोर देते ह§ । लेखक को ऐसा लगता है िक जो
इंिþयदमन है, मनोिवकारŌ को रोकने का अËयास है, यह भी अभावाÂमक वÖतु है । लेखक
को लगता है िक इतने भर से कोई महाÂमाजी जैसा शिĉपुंज नहé बन सकता । इन साधनŌ
के अितåरĉ भी कोई भीतरी महान वÖतु है, िजसके होने से ही मनुÕय को िजत¤िþयता ÿाĮ
होती है । महाÂमा गांधी के ÓयिĉÂव के सामने लेखक अपने को सदा अ±म ही पाता रहा। वे
कहते भी ह§ िक "िजस ÿकार म§ उनका अनुगमन करने म¤ असफल रहा हóँ उसी ÿकार उनका
िवरोध करने म¤ भी ! म§ िनयिमत łप से चरखा नहé चला सका, उसकì संपूणª उपयोिगता भी
नहé समझ सका । म§ सÂयवादी नहé बन सका । ÿाणी माý के ÿित मानिसक मैýी का आदशª
पालन म§ने करने का ÿयÂन िकया, लेिकन Óयवहार म¤ कई बार िवपरीत कमª करना पड़ा।"
परंतु इस सबके बावजूद लेखक को लगता है िक भले ही उनके जैसी शिĉ और सामÃयª
हमारे जैसे आम लोगŌ म¤ नहé है, िफर भी हमारा ÿयास यह होना चािहए िक हम अपने
साथªक कमŎ के Ĭारा खुद को इितहास िवधाता कì योजना म¤ अपने आप को खपा द¤।
महाÂमा गांधी अब हमारे बीच नहé रहे पर ³या ऐसा है जो उनकì अमर देन के łप म¤ हमारे
साथ मौजूद है। भले ही उनका नĵर शरीर नĶ हो गया पर उनकì वाणी, उनके िवचार,
उनके उपदेश, उनका मागªदशªन - ये सब हमारे बीच सदा मौजूद रह¤गे और भिवÕय कì राह
िदखाते रह¤गे ।
लेखक कì ŀिĶ म¤ महाÂमा गांधी का एक और बड़ा कायª है जो भिवÕय म¤ समझा जाएगा और
वह यह है िक परमसÂय को समझने वाले बड़े िवĬान जीवन Óयापार से उस परमसÂय
अथाªत वृि° का िवरोधाभास मानते ह§ । परंतु महाÂमा गांधी ने इस धारणा को बदला ।
लेखक के अनुसार, "महाÂमा जी ने केवल वाणी से नहé, अपने संपूणª जीवन से यह िदखा
िदया है िक मनुÕय के छोटे ÖवाथŎ का ĬंĬ बड़े सÂय का िवरोधी नहé है । इन छोटे ÖवाथŎ को
ÓयाĮ करके, इनको अपना अंग बनाकर ही Ńदय िÖथत महासÂय िवराज रहा है । इनके
भीतर से वह सेतु तैयार िकया जा सकता है जो मनुÕय को मनुÕय से िवि¸छÆन होने से
बचाए। छोटे Öवाथª िनIJय ही मनुÕय को िभÆन-िभÆन दलŌ म¤ टुकड़े-टुकड़े कर रहे ह§, परंतु
यिद मनुÕय चाहे तो एक ऐसा महासेतु िनमाªण कर सकता है, िजससे समÖत िवि¸छÆनता
का अंतराल भर जाए । महाÂमाजी ने उस महान सेतु के िनमाªता सÂय को देखा था और
धमª, अथª और Óयवहार को एक करने म¤ सफलता ÿाĮ कì थी ।" इस तरह आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी, महाÂमा गांधी और उनके योगदान को याद करते ह§। सचमुच अÅयाÂम और
Óयवहार को अलग -अलग Öवीकार करने वाले और िवरोधाभासी मानने वाले लोगŌ के िलए
महाÂमा गांधी का उदाहरण अÂयंत अĩुत उदाहरण है, िजÆहŌने अÅयाÂम और Óयवहार के
दाियÂव को एक समीकरण के दायरे म¤ रखने म¤ सफलता ÿाĮ कì थी ।
यह िनबंध वाÖतव म¤ महाÂमा गांधी कì मृÂयु के बाद Óयिथत परंतु संतुिलत मन:िÖथित म¤
उनके कायŎ और योगदानŌ को याद करने का ÿयास है । शरीर नĵर है । इसका नĶ होना
तय है, परंतु Óयिĉ के िवचार और कमª उसे अमर बनाने म¤ बड़ी भूिमका अदा करते ह§ ।
महाÂमा गांधी के ÓयिĉÂव म¤ अÅयाÂम और Óयवहार का अÂयंत सुंदर समÆवय था और यह
समÆवय उनके पूरे जीवन म¤ िदखाई देता है । उÆह¤ साबरमती का संत यूं ही नहé कहा जाता।
सचमुच उÆहŌने अपना अिधकांश जीवन एक संत के łप म¤ Âयागपूणª ढंग से Óयतीत िकया। munotes.in

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िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद
115 उनकì अपनी जłर त¤ बहòत कम थé । उनके जीवन और िवचारŌ म¤ मानवीयता का उÂकृĶ
उदाहरण हम¤ िमलता है । सÂय, ÿेम और अिहंसा हजारŌ वषŎ से भारतीय संÖकृित का
अिभÆन अंग रहे ह§, शाľ पढ़े और पढ़ाए जाते रहे ह§ पर उÆहŌने आधुिनक युग म¤ िजस तरह
Óयवहाåरक ढंग से भौितक जीवन म¤ इÆह¤ सिÌमिलत िकया, वह अपने आप म¤ अÂयंत दुलªभ
उदाहरण है । महाÂमा गांधी ने िकसी नए िवचार को जÆम नहé िदया बिÐक शाľ²ान कì जो
पूंजी है, उसम¤ से अपने समय के मुतािबक उÆहŌने िसĦांतŌ और आदशŎ का चयन िकया
और उÆह¤ Óयवहाåरक जीवन म¤ उदाहरण के łप म¤ ÿÖतुत िकया । यह उनकì सबसे बड़ी
देन थी । लेखक के अनुसार उनके समÆवय शील ÓयिĉÂव ने ²ान का िजस नए तरीके से
िनयोजन ÿÖतुत िकया, वह समाज का सिदयŌ तक मागªदशªन करता रहेगा ।
९.२.२ महाÂमा के महाÿयाण के बाद िनबÆध का ÿितपाī:
‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबंध भारत के राÕůिपता महाÂमा गांधी कì िनमªम हÂया के
बाद एक िविशĶ मनोदशा म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया िनबंध है । इस
िनबंध म¤ उÆहŌने महाÂमा गांधी के ÿित अपनी आÖथाएं एवं भावनाएं Óयĉ कì ह§, साथ ही
महाÂमा गांधी के आदशŎ पर िवचारपूणª ढंग से िचंतन िकया है। और आज के समय म¤ उनकì
आवÔयकता को भी Óयĉ िकया है । िकसी कì हÂया कर देने से उसके शरीर को तो नĶ
िकया जा सकता है, पर उसके िवचारŌ को नĶ नहé िकया जा सकता । महाÂमा गांधी अपने
िवचार और कमª से अमरता से पåरपूणª ÓयिĉÂव ह§। वे समÖत भारतवािसयŌ के Ńदय म¤ सदा
के िलए िवराजमान ह§ ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी महाÂमा गांधी को एक ऐसे ÓयिĉÂव के łप म¤ देखते ह§, जो
असंभव समझी जाने वाली िवशेषताओं से युĉ है । िजसका चåरý -बल िहमालय से भी ऊंचा
है। िजसने सÂय, अिहंसा जैसे आदशŎ को अपनाकर राÕůीय आंदोलन के संदभª म¤ अपना
पूरा संघषª जीवंत िकया है । और संपूणª िवĵ के सामने एक आदशª उदाहरण सामने रखा है।
आज के युग म¤ जबिक 'मुंह म¤ राम बगल म¤ छुरी' कहावत हर जगह चåरताथª होती है, ऐसे
िनķòर समय म¤ महाÂमा गांधी ने आदशŎ को अपने आचरण म¤ ढालकर अपने Óयवहाåरक
जीवन म¤ संभव िकया है । अपने दि±ण अĀìका ÿवास के दौरान िāिटश सरकार के
अमानवीय कृÂयŌ के िवŁĦ उÆहŌने पहली बार आवाज उठाई थी । सÂय और अिहंसा के
उनके िसĦांतŌ का ÿथम ÿयोग दि±ण अĀìका म¤ ही उÆहŌने िकया था, जहां िāिटश
सरकार िन:शľ और िन:शÊद रह गई तथा उसे अपना आचरण बदलना पड़ा । महाÂमा
गांधी के िसĦांतŌ कì यह पहली जीत थी ।
भारत आने के बाद यहां भी कमोवेश िÖथित दि±ण अĀìका जैसी ही थी । यहां भी भारत
िāिटश उपिनवेश था और अंúेजी सरकार मनमाने ढंग से भारतीयŌ पर शासन कर रही थी।
उसका उĥेÔय केवल भारत कì संपि° लूटना था जो िक वह लगातार कर रही थी।
भारतीयŌ कì जीवन दशा के सुधार कì तरफ उसका कोई Åयान नहé था । भारतीय कìड़े-
मकोड़Ō कì तरह जीवन जीने को िववश थे। िकसानŌ -मजदूरŌ कì दशा अÂयंत खराब थी ।
ऐसे म¤ महाÂमा गांधी ने यहां के आंदोलन कì बागडोर संभाली और सन १९१५ के बाद
धीरे-धीरे राजनीितक नेतृÂव उनके हाथ म¤ आ गया । उÆहé के नेतृÂव म¤ भारत आजादी ÿाĮ
कर सका । munotes.in

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आधुिनक गī
116 आज के समय म¤ वाÖतिवक िÖथित यह है िक सģुणŌ कì ÿशंसा तो हर कोई करता है परंतु
अपने जीवन म¤ उÆह¤ अपनाने म¤ सभी असफल रहते ह§ । संसार के बड़े-बड़े नामवर लोग
बात¤ तो बड़े-बड़े िसĦांतŌ कì करते ह§ पर जब सही वĉ आता है, वे िसĦांतŌ को छोड़कर
ÖवाथŎ के साथ खड़े हो जाते ह§ । अब कì राजनीित कूटनीित²Ō कì राजनीित है ।
तÂकालीन युग Óयापाåरक युग था । सेठ और सामंत, बात¤ तो बड़ी Âयागपूणª ढंग से करते थे
परंतु अंदर खाते उनके कमª जगजािहर थे । महाÂमा गांधी एक स¸चे भĉ थे । मानवीयता
उनम¤ कूट-कूट कर भरी थी। महाÂमा गांधी के जाने के बाद सबसे स¸ची ®Ħांजिल उनके
िलए ³या होगी ? शायद महाÂमा गांधी के आदशō को अपनाकर समाज जब आगे बढ़ेगा और
महाÂमा गांधी कì पåरकÐपना के अनुसार राम-राºय कì Öथापना होगी, तभी स¸चे अथŎ म¤
उÆह¤ ®Ħांजिल अिपªत होगी । समाज म¤ कथनी और करनी के अंतर को बांटना होगा।
आिÂमक शुĦता के साथ समाज के िनÌन वगª को ऊपर उठाने का कायª करना होगा । अपने
भीतर आÂमबल पैदा करना होगा । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध म¤ महाÂमा
गांधी के जाने के बाद उनकì इसी िवरासत कì ओर संकेत िकया है और िवĴेषण के øम म¤
इसे बनाए रखने पर जोर िदया है ।
९.३ सारांश इस इकाई के अंतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद'
का अÅययन िकया गया । 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद' िनबंध महाÂमा गांधी को ®Ħांजिल
अिपªत करते हòए, उनके आदशŎ का िववेचन और िवĴेषण करने से संबंिधत है । आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अÂयंत Óयावहाåरक ŀिĶ से महाÂमा गांधी के िवचारŌ और िसĦांतŌ
का िवĴेषण िकया है । गांधीवाद पर उनकì आÖथाएं, उनका मानवतावादी ŀिĶकोण,
उनकì इितहास चेतना और धमª तथा संÖकृित के संबंध म¤ उनका Óयवहाåरक ŀिĶकोण -
यह सभी इन िनबंध म¤ हम¤ देखने को िमलता है ।
९.४ उदाहरण-Óया´या Óया´या-अंश (१):
म§ने महाÂमा जी के अनेक गुणŌ को अपने भीतर ले आने का संकÐप कई बार िकया है।
संकÐपŌ कì स¸चाई के बारे म¤ मुझे र°ीभर भी संदेह नहé है । पर बड़ी जÐदी म§ िवचिलत हो
गया हóँ। मेरे जैसे और लोग भी दुिनया म¤ हŌगे । म§ने अनुभव िकया है िक बड़ी बातŌ का जीवन
म¤ उतार लेना भी तप:साÅय है । केवल संकÐप माý से कुछ नहé होता । कठोर संयम और
मानिसक अनुशासन के िबना मनुÕय िकसी भी सģुण को नहé अपना सकता ।
संदभª: ÿÖतुत अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' म¤ संúहीत
'महाÂमा के महाÿयाण के बाद' िनबंध से िलया गया है ।
ÿसंग: इस अवतरण म¤ महाÂमा गांधी के जीवन जीने के तरीकŌ और आदशŎ पर आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी ने ÿकाश डाला है । महाÂमा गांधी एक ऐसी शि´सयत ह§, िजनकì
करनी और कथनी म¤ कोई अंतर नहé था । उÆहŌने उ¸च आदशŎ को अपनाते हòए अपना munotes.in

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िनबÆध : महाÂमा के महाÿयाण के बाद
117 जीवन Óयतीत िकया और यही ÿेरणा पूरे समाज को भी दी। इÆहé संदभŎ कì चचाª इस
अवतरण म¤ िनबंधकार ने कì है ।
Óया´या: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी महाÂमा गांधी के ÓयिĉÂव से खासे ÿभािवत थे।
महाÂमा गांधी उस समय भारत कì राजनीित के ऐसे आÅयािÂमक नेता थे, िजनसे भारत का
हर Óयिĉ, हर बुिĦजीवी ÿेरणा úहण करता था । उनके बताए आदशō पर चलना चाहता
था। इसी संबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपनी अनुभूितयŌ को पाठकŌ से साझा
करते हòए यह Óयĉ कर रहे ह§ िक महाÂमा गांधी के िवचारŌ और आदशŎ पर बात कर लेना
आसान है, परंतु उनका अनुसरण करना अÂयंत किठन है । उसके िलए Óयिĉ को कठोर
संयम और मानिसक अनुशासन के िनयमŌ को अपनाना होगा । एक िÖथतÿ² कì दशा को
ÿाĮ करना होगा । सकाराÂमक कमŎ कì अĩुत ÿेरणा úहण करनी होगी और यह िसफª
संकÐप लेने भर से नहé होगा बिÐक जीवन म¤ इन बातŌ को उतारना भी होगा ।
महाÂमा गांधी ने अपने जीवन से संपूणª िवĵ के िलए एक ऐसा उदाहरण ÿÖतुत िकया।
िजÆहŌने सÂय, ÿेम और अिहंसा के आदशŎ पर आजीवन चलते हòए िदखाया । महाÂमा गांधी
कोई िकसान या Óयापारी नहé थे और न ही उनके सामने संघषª करने के िलए साधु - संत
बैठे हòए थे । दुिनया कì सबसे बड़ी साăाºयवादी सरकार - िāिटश सरकार के िवरोध म¤ भी
खड़े थे और िजस सरकार के िलए यह कहा जाता था िक उसके साăाºय का सूयª कभी
अÖत नहé होता, इस पृÃवी का एक बड़ा भूभाग उसके अिधकार म¤ था, ऐसी शिĉ
शिĉशाली सरकार के सÌमुख िनहÂथे और िन:शľ होकर एक Óयिĉ अपने नैितक बल के
अनुसार ŀढ़ होकर खड़ा था । संसार कì वह सबसे शिĉशाली सरकार भी उनके नैितक
बल के सÌमुख झुकने को िववश हो गयी । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इस कौतुक से
आIJयªचिकत ह§ और वे भी महाÂमा गांधी के आदशŎ को ÿाĮ कर उनका अनुसरण करना
चाहते ह§ पर यह भी भली -भांित समझते ह§ िक िबना आÂमबल के, िबना मानिसक
अनुशासन के इस लàय को हािसल करना किठन ही नहé, बिÐक असंभव है ।
िवशेष:
१. कठोर संयम और आिÂमक बल के सराहना कì है।
२. महाÂमा गांधी के आदशŎ का बखान िकया है।
९.५ वैकिÐपक ÿij १. मनुÕयता आज भी िकस वृि° से ®ेķ मानी जाती है ?
(क) दैवीय (ख) बेसुरी
(ग) ईĵरीय (घ) आसुरी

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आधुिनक गī
118 २. कूटनीित² के मुंह से िकसकì ÿशंसा सुनकर मन म¤ µलािन होती है ?
(क) सÂय (ख) ÿेम
(ग) आÖतेय (घ) अिहंसा
३. सेनापितयŌ के मुंह से िकसकì Öतुित सुनकर िनबंधकार को øोध होता है ?
(क) युĦ (ख) अशांित
(ग) अिहंसा (घ) संघषª
४. िकसके मुंह से गांधी का नाम सुनकर िनबंधकार को घृणा हो आती है ?
(क) साăाºयवादी (ख) उदारवादी
(ग) साÌयवादी (घ) लोकतंýवादी
९.६ लघु°रीय ÿij १) लेखक महाÂमा गांधी के िकन गुणŌ को भीतर ले आने का संकÐप करता है ?
२) िजत¤िþयता और चåरý बल पर िटÈपणी िलिख ए ?
९.७ बोध ÿij १) 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद' िनबंध कì अंतवªÖतु का िवĴेषण कìिजए ?
२) 'महाÂमा के महाÿयाण के बाद' िनबंध म¤ लेखक ने महाÂमा गांधी के चåरý कì
िवशेषताओं को िकस ÿकार रेखांिकत िकया है ?
३) ‘महाÂमा के महाÿयाण के बाद’ िनबंध के ÿितपाī को ÖपĶ कìिजए ?
९.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
***** munotes.in

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119 ९.१
िनबंध : ठाकुरजी कì बटोर
इकाई कì łपरेखा
९.१.० इकाई का उĥेÔय
९.१.१ ÿÖतावना
९.१.२ िनबंध : ठाकुरजी कì बटोर
९.१.२.१ ‘ठाकुरजी कì बटोर ’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु
९.१.२.२ ‘ठाकुरजी कì बटोर ’ िनबÆध का ÿितपाī
९.१.३ सारांश
९.१.४ उदाहरण-Óया´या
९.१.५ वैकिÐपक ÿij
९.१.६ लघु°रीय ÿij
९.१.७ बोध ÿij
९.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
९.१.० इकाई का उĥेÔय  'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध कì अÆतवªÖतु को छाý जान¤गे।
 'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध का ÿितपाī ³या है, उसका छाý अÅययन कर¤गे।
९.१.१ ÿÖतावना आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िहंदी के ऐसे लिलत िनबंधकार ह§, िजनम¤ िवषय-वैिवÅयता और
अिभÓयिĉ सामÃयª अपने अĩुत łप म¤ मौजूद है। उनके िनबंधŌ म¤ इितहास और संÖकृित
जैसे िवषय सवªथा नवीन उदभावनाओं से युĉ िमलते ह§। ÿाचीन भारतीय सािहÂय के ÿित
नवीन आÖथा वादी Öवर िमलता है। िवचार úहण कर ने और िफर उÆह¤ अिभÓयिĉ देने कì
ŀिĶ से आचायª िĬवेदी अÂयंत उदार ÿकृित के रहे ह§। िकसी भी ÿकार कì वैचाåरक कुंठाएँ
या दुराúह हम¤ उनके सािहÂय म¤ देखने को नहé िमलते ह§। वे ÿाचीन संÖकृत सािहÂय और
ºयोितष के ÿकांड िवĬान थे, परंतु ÿाचीनता के ÿित अÂयिधक मोह उनम¤ नहé िमलता।
उनका ÓयिĉÂव आधुिनक चेतना से संपÆन ÓयिĉÂव है। उÆहŌने नए और पुराने के बीच
िजस तकªपूणª ढंग से सामंजÖय Öथािपत िकया है, वह उनके गहरे अÅययन और शोध का
पåरणाम है। वे अपने िवचारŌ म¤ एकदम ÖपĶ ह§। कहé कोई Ăांित नहé। भारतीय संÖकृित का
िजस तरह से उÆहŌने िवĴेषण िकया है, या आधुिनक ÿवृि°यŌ का जैसा िवĴेषण उनके
िनबंधŌ म¤ िमलता है, वह उनकì िनĂा«त ŀिĶ का ही पåरणाम है। अित गंभीर िवषयŌ का चयन
करने के बाद भी उनके िनबंध वैचाåरकता के बोध से कभी जिटल नहé हो पाते। िवषयŌ के
ÿित उनकì Óया´या और िवĴेषण इतने सरल और सहज ढंग से होते ह§ िक सामाÆय से munotes.in

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आधुिनक गī
120 सामाÆय पाठक भी उनके मंतÓय को आसानी से समझ सकता है। इस इकाई के अंतगªत हम
'ठाकुर जी कì बटोर' िनबंध का अÅययन कर रहे ह§। उपरोĉ तÃयŌ के आलोक म¤ इस
िनबंध को भी देखने का ÿयास िकया जाएगा।
९.१.२ िनबÆध : ठाकुरजी कì बटोर ९.१.२.१ ठाकुरजी कì बटोर िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का िनबंध 'ठाकुरजी कì बटोर' एक ऐसा िनबंध है, िजसम¤ कई
तरह कì संवेदनाएं एक साथ िमली-जुली िÖथित म¤ िदखाई देती ह§ परÆतु क¤þ म¤
साÌÿदाियक सौहादª है िजसकì उनके समय म¤ बहòत आवÔयकता थी। इस िनबंध म¤ आचायª
िĬवेदी जी के इितहास-ÿेम, धमª के ÿित उनकì िविशĶ समझ, संÖकृित के संबंध म¤ उनके
मौिलक िवचार और नव -मानवतावाद के दशªन होते ह§। इस िनबंध म¤ आचायª िĬवेदी का
भाविवĽल ÓयिĉÂव िनखर कर सामने आया है। धमª और संÖकृित के ÿित उनका ³या
ŀिĶकोण है या आज के समय म¤ धमª और संÖकृित कì उपयोिगता और महÂव ³या है, यह
इस िनबंध से भलीभांित जाना और समझा जा सकता है।
िनबंध का आरंभ एक िनराश मन:िÖथित से होता है। सौ िहंदू घरŌ एवं पÆþह मुिÖलम घरŌ से
िमलजुल कर बने एक गांव म¤ ठाकुरजी के मंिदर कì दुदªशा का वणªन करने से आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी िनबंध का आरंभ करते ह§। धमª के ÿित एक उदासीनता के भाव को महसूस
कर अचानक उनका मन उस िवराट शिĉ के ÿित सोचने पर िववश हो जाता है और वे
वैÕणव धमª के ऐितहािसक संदभŎ, िविभÆन कालखÁडŌ म¤ उसके उÂथान-पतन कì दशाओं
और उसकì िचरंजीिवता के िवĴेषण म¤ तÐलीन हो जाते ह§। वे िलखते ह§, "िसंधु उपÂयका म¤
िकसी अधªदेवÂव ÿाĮ अनायª वीर ने या उ°री ÿांतŌ के उपाÖय िकसी बाल देवता ने युग
ÿितिķत भागवत धमª म¤ परम देवता का Öथान ÿाĮ िकया। तब से सैकड़Ō बबªर अनायª
जाितयां उसके पावन नाम से उसी ÿकार हद-दपª होकर शांत जीवन िबताने लगी िजस
ÿकार मंýौषिध के ÿयोग से उपगत-ºवर महासपª।" यह िवचार आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
कì इस माÆयता के बारे म¤ संकेत देता है िक सनातन धमª का िवकास मानव कì शांितपूणª
जीवन िबताने कì इ¸छा से उपजा है। ठाकुर जी अथाªत ®ी कृÕण उनके अनुसार सनातन
धमª के िवकास के िकसी चरण म¤ अनायª सËयताओं के बीच ÿिसĦ बाल देवता का
िवकिसत łप है, जो भागवत धमª म¤ आकर भिĉ का अवलंब बनकर ठाकुरजी के łप म¤
ÿितिķत हòए।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी जब इितहास कì तरफ देखते ह§, उÆह¤ बड़ा आIJयª होता है िक
पंजाब कì ओर से आने वाली आøामक जाितयां, जो हजारŌ वषª पहले से चली आ रही ह§।
भयंकर लूट-पाट, मार-काट के बाद वे इसी धरा पर रहने के øम म¤ कुछ दशकŌ म¤ ही इसी
धािमªक संÖकृित को अपना ले रही ह§। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी को अपनी बौिĦक
कÐपना म¤ Åवंस और िवकास दोनŌ िदख रहे ह§। पहले वह आøामक आøांताओं को Åवंस
करते देखते ह§ और िफर आIJयªजनक łप से उÆह¤ इसी चली आती सनातन संÖकृित का
अंग बनते हòए भी देखते ह§। वे कहते ह§ िक, "सारा उ°री भारत ±ण भर के िलए शमशान कì
तरह हो जाता है। िफर म§ने देखा, यही जाितयाँ यहé बस जाती ह§ और पचास वषª बाद अपने munotes.in

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िनबंध : ठाकुर जी कì बटोर
121 िस³कŌ पर अपने को परम भागवत कहने म¤ गवª अनुभव करती ह§। इतना शीŅ इतना िवकट
पåरवतªन। सचमुच उस देवता के सामÃयª का अंदाजा लगाना मुिÔकल है, िजसने एक नहé,
दो नहé बीिसयŌ आय¥°र बबªर जाितयŌ को आचार -िनķ, शांत भĉ बना िदया।" यह माý
कÐपना नहé है। इस वĉÓय से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì एक ऐितहािसक धारणा भी
ÖपĶ होती है िक िजसे हम भारतीय संÖकृित कहते ह§ उसका दरअसल सनातन संÖकृित से
संबंध तो है परंतु वह एक ऐितहािसक ÿिøया का पåरणाम है और यह ऐितहािसक ÿिøया
सीधे तौर पर भारत म¤ ÿिवĶ होने वाले बाहरी आøमणŌ से जुड़ी हòई है। बाहरी आøांता इस
देश म¤ िविभÆन उĥेÔयŌ से ÿिवĶ होते थे और उĥेÔय पूितª के बाद म¤ यहé Łक भी जाते थे।
दशकŌ तक राजकाज करने के बाद वे इसी संÖकृित का एक िहÖसा बन जाते थे। उनकì
संÖकृित भी पुरानी संÖकृित से घुलिमल कर एक नया रंग ले लेती थी और यह सब कुछ एक
बार नहé बिÐक कई -कई बार घटा। इस तरह भारतीय संÖकृित एक ऐितहािसक ÿिøया का
Öवाभािवक पåरणाम है और इसी कारण एक समय अफगािनÖतान, ईरान आिद देशŌ कì
सीमाओं तक इसी सनातन-धमê देवता महािवÕणु का ÿचार और ÿसार था।
िवĴेषण को आगे बढ़ाते हòए इसी ऐितहािसक øम म¤ इÖलाम के उदय कì भी चचाª करते ह§।
वे िलखते ह§, "पिIJम म¤ एक Öवतः संबुĦ धमª-भावना का अवतार हòआ िजसके हाथ म¤ ŀढ़-
मुिĶ कठोर कृपाण थी, और दूसरे म¤ समानता के आĵासन का अमृत वरदान।...... इसी
इÖलाम ने पिIJम म¤ इस महावीयª देवता को उखाड़ फ¤का। िवजय गवª से Öफìत-व± इÖलाम
िनभêक भाव से आगे बढ़ता गया। िजसने उसे आÂमसमपªण िकया वही उसके रंग म¤ रंग गया।
अरब से लेकर गांधार तक एक ही िवजय Åवजा बार -बार ÿकिÌपत होकर धåरýी का Ńदय
किÌपत करने लगी।" परंतु िनबंधकार यह भी देखता है िक इस िवजय याýा के बावजूद भी,
उस संÖकृित के इÖलाम कì दुĶता के Ĭारा नĶ िकए जाने के बाद भी; और उस महावीयª
देवता के परािजत हो जाने के बाद भी, आज भी करोड़Ō िहंदू अनाडंबर भाव से गंभीर
िवĵास के साथ ठाकुर जी को ÿणाम करके शांित पाते ह§। "कौन कहता है िक वह महावीयª
देवता तेजोहत हो गया है। इÖलाम उसको कुचल नहé सकता। इÖलाम के आने के पहले
िवīा और ²ान का महापीठ गांधार आज मुसलमान होकर बदल गया है। पािणिन और
याÖक कì संतान¤ आज भारतवषª म¤ हéग ब¤चती िफरती है। इÖलाम का इससे भयंकर पराजय
और ³या हो सकता है ?" इस तरह िनबंधकार इÖलाम कì आøामकता, øूरता और
भयंकरता कì अÿÂय± आलोचना करते ह§ साथ ही भारतीय संÖकृित के अपने अिÖतÂव को
बचाने के सफल संघषª और जी वटता को भी याद करते ह§। यिद सूàम ŀिĶ से देखा जाए तो
धािमªक िवकास का िवĴेषण करते - करते वे आज कì समÖयाओं पर भी कटा± करते
चलते ह§।
तÂकालीन भारतीय पåरवेश म¤ िजस तरह असमानता का वातावरण ÓयाĮ था , उसको लेकर
भी उनके मन म¤ कुछ आøोश था। इÖलाम के िववेचन øम म¤ ही वे इसे ÖपĶ करते ह§।
इÖलाम के Ĭारा वे कहलवाते ह§, "म§ संÖकृित फैलाने नहé आया, म§ कुछ तोड़ने आया हóं।
हजारŌ को दास बनाकर , लाखŌ को दिलत और अÖपृÔय बनाकर िजस संÖकृित का जÆम
होता है वहां कुĀ का ÿाबÐय होता है। म§ उसे साफ करने आया हóं। इस असम ÓयवÖथा से
मेरा समझौता नहé हो सकता।" जब िनबंधकार इÖलाम के Ĭारा यह संबोधन देता है, तब
दरअसल वह तÂकालीन पåरवेश म¤ Öवयं कì सामािजक ÓयवÖथा का मूÐयांकन कर रहा
होता है। कहé न कहé इÖलाम के समानतावादी ŀिĶकोण से वह ÿभािवत ह§। दरअसल बार -munotes.in

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आधुिनक गī
122 बार इस महा वीयª देवता के तेजोहत होने का कारण ³या था, इस उĦरण से समझा जा
सकता है। वाÖतव म¤ िहंदू धमª म¤ एकता का अभाव एक ऐसा कारण था िजसके चलते बाहरी
आøांता आसानी से इस देश को नĶ करने का अवसर पा जाते थे। इितहास म¤ ऐसे एक नहé
कई उदाहरण मौजूद ह§। आंभीक के Ĭारा िसकंदर को िकया गया सहयोग, पृÃवीराज कì
असफलता के िलए िजÌमेदार अÆय राजपूत शासक, राणा सांगा के Ĭारा बाबर को आमंýण
आिद इसी ÿकार कì घटनाएं ह§, िजनसे भारतीय शासकŌ म¤ पहला तो आपसी तालमेल
नहé था, दूसरा सामािजक Öतर पर जाित - वणª जैसी संÖथाओं के कारण आम जनता म¤ भी
भयंकर िवभाजन था। जाित और वणª के कारण जनसमाज कई िहÖसŌ म¤ िवभĉ था।
Öवाथê वृि°यŌ के चलते उनम¤ आपस म¤ िवĵास का वातावरण नहé था, िजसके चलते वे बड़े
लàयŌ कì तरफ देख ही नहé पाते थे। सामािजक असमानता का दंश आज भी यह देश
िकसी न िकसी łप म¤ झेल ही रहा है।
आज के समय म¤ इÖलाम के जो भी उĥेÔय ह§, वह सभी के सामने ÖपĶ ह§। परंतु यह बात
महÂवपूणª है िक आचायª िĬवेदी ने उसकì Óया´या बेहद ÿासंिगक łप म¤ कì है। यह माना
जाता है िक इÖलाम सभी धमŎ म¤ बेहद आøामक धमª है। परंतु आचायª िĬवेदी इसके मूल म¤
कुछ और देखते ह§। इÖलाम के Ĭारा वे कहलवाते ह§, "म§ कभी नहé कहता िक गुलाब और
चमेली को एक कर िदया जाए। म§ कहता हóं गुलाब और चमेली हŌ - या आम और धतूरे,
सबको एक ही समान खुला आसमान, एक ही समान खाद और पानी कì सुिवधा, एक ही
समान यÂन और उपचार ÿाĮ होने चािहए।" अपने इन मंतÓयŌ के Ĭारा दरअसल आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी तÂकालीन समाज के असमानतावादी माहौल पर कुठाराघात करते
िदखाई देते ह§। िनबंधकार कì मौिलक कÐपना यही नहé ठहरती संÖकृित के िवकास øम म¤
वे और आगे बढ़ते ह§। वैिदक युग कì संÖकृित, उपिनषद कालीन संÖकृित, बौĦ-धमª कालीन
संÖकृित और इÖलाम Ĭारा आतंिकत िकए जाने के बाद के øम म¤ वे भिĉकालीन पåरवेश
कì Óया´या और िवĴेषण करते ह§। इस Öथल पर आकर वे उस गंगा - जमुनी तहजीब कì
संÖकृित कì ओर संकेत करते ह§, जो आगे भारत कì राÕůीय एकता के िलए सेतु बनी।
वैिदक युग का वह देवता अभी भी अपने अिÖतÂव के साथ उपिÖथत था इÖलाम ने उसे
हत-दपª िकया, परंतु िमटा नहé सका। इÖलाम के आøमण से कमजोर हòए इस देवता को
पुनःशिĉ भिĉ-आंदोलन से िमली। िजसका उÐलेख वे इन शÊदŌ म¤ करते ह§, "इसी समय
दि±णी आसमान से कई तेजपुंज ºवलंत ºयोितयां उ°र कì ओर बड़े वेग से दौड़ती हòई
नजर आयé। िदशाएं ितिमरा¸छÆन थé, आसमान धूल से भरा हòआ था, धåरýी रĉ से तर
थी। दि±ण आकाश से आई हòई इन ºयोितयŌ ने कोई बाधा नहé मानी, िकसी कì परवाह न
कì। वे बढ़ती ही गयé। अचानक ÿकाश कì िकरण म¤ ÖपĶ मालूम हòआ, इस कुचली हòई
संÖकृित-लता को एक सहारा िमला है। यह सहारा था वैÕणव धमª - भिĉ मतवाद।"
दरअसल भिĉ आंदोलन भारत म¤ उपजा एक ऐसा आंदोलन था, िजसने एक नई तरह कì
समÆवयवादी धािमªक संÖकृित का िवकास िकया। इस आंदोलन म¤ कई तरह के मत और
मताÆतर चल रहे थे। िहंदी म¤ संतकाÓय, सूफìकाÓय, रामकाÓय, कृÕणकाÓय आिद एक समान
गित से िवकास कì ओर उÆमुख थे और इसी भिĉ के भावमयी वातावरण म¤ िहंदू धमª और
इÖलाम धमª िनकट भी आ रहे थे। उनके बीच सेतु Öथािपत करने का काम कबीर जैसे संत
किवयŌ और कई सूफì संतŌ के Ĭारा िकया गया। भिĉ के Ćदयþावक ÿभाव से धािमªक
कĘरता िशिथल भी हो रही थी । पुरोिहतवाद और कठमुÐलावाद इसके आड़े आ रहे थे। munotes.in

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िनबंध : ठाकुर जी कì बटोर
123 हåरदास जैसे संत जो मुिÖलम पåरवार म¤ पैदा हòए थे, वह हåर नाम का कìतªन गाते थे।
मÅयकाल के कĘरपंथी युग म¤ मीरा जैसी िवþोिहणी कृÕण-गान करती राÖतŌ-राÖतŌ भटक
रही थी। वैिदक काल म¤ उपजे उस बाल देवता कì छिव अब भी ºयोितमाªन थी। िनबंधकार
के सामने यह दुिवधा बार-बार उपिÖथत होती है िक इतने बड़े-बड़े संकट इस देवता का
कुछ नहé िबगाड़ सके। इतनी मिहमाशािलनी िजसकì दीिĮ है, वह ठाकुर जी का मंिदर आज
इतना उपेि±त ³यŌ है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी भिĉ मतवाद से बेहद ÿेåरत और
ÿभािवत ह§। इसे वे ÖपĶ करते हòए कहते ह§, "āाĺण संÖकृित नहé थी, ®मण संÖकृित नहé
थी, राजÆय संÖकृित नहé थी, शाľीय संÖकृित भी नहé थी। वह संपूणª िहंदू जाित कì
एकक¤þा संÖकृित थी - अपने आप म¤ पåरपूणª, तेजोमयी, जीवंत।"
दरअसल ठाकुर जी का मंिदर उपेि±त इसिलए है, ³यŌिक वहां भिĉ नहé आपसी Öवाथª का
झगड़ा है। वहां बैठे एक पंिडत जी का िवरोध इस बात से है िक ठाकुर जी के मंिदर का पूजन
एक अāाĺण के Ĭारा िकया जाता है और पंिडत जी आIJयªजनक िवĴेषण सामने रखते ह§
िक 'ठाकुर जी कì पूजा अब तक शाľ-िनिषĦ िविध से होती रही है। जो साधु इस समय
पूजा कर रहे ह§, वह āाĺण नहé ह§ और शाľ के मत से ठाकुर उसी जाित के होकर पूजा
úहण करते ह§ िजस जाित म¤ पुजारी का जÆम हòआ रहता है। इसके पूवªवतê पुजारी भी
अāाĺण थे। िपछले तीन वषŎ से ठाकुर जी अāाĺण होकर ही पूजा úहण कर रहे ह§।
इसिलए यह अÂयंत ÖपĶ बात है िक āाĺण ऐसे ठाकुर जी को पूºय नहé समझ सकता।
āाĺण धमª का यथोिचत पालन किठन Ąत है।' इस मूखªतापूणª िवĴेषण पर आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी को अपनी भिĉकाल कì Óयापक और समृĦ परंपरा िदखाई देती है, िजसम¤
कोई जाित क¤þ म¤ नहé थी बिÐक वह पूरी िहंदू जाित का आंदोलन था। इसके िलए आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी भिĉ काल के कई ऐसे उदाहरण सामने रखते ह§ जो āाĺण न होने के
बावजूद बड़े संत थे। Öवामी हåरदास , रामानुज के िशÕय परंपरा म¤ कई संत, वÐलभाचायª के
शूþ िशÕय कृÕणदास अिधकारी आिद। िनबंधकार को आIJयª होता है िक जब इतने
´याितलÊध संत शूþ िशÕयŌ को संत का दजाª िदला सकते थे और देवता को कोई आपि°
नहé थी, तो धमª के इन ठेकेदारŌ को ³या अिधकार है अपनी परंपरा से þोह करने का। िकसी
भी तरह के जाितगत आúह से िनबंधकार का वैचाåरक मतभेद है। सही मायने म¤ ईĵरीय
भावना ³या है इसे Óयĉ करते हòए आचायª जी िलखते ह§ "जो ठाकुर जाित िवशेष कì पूजा
úहण करके ही पिवý रह सकते ह§, जो दूसरी जाित कì पूजा úहण करके अúाĻ-चरणोदक
हो जाते ह§, वे मेरी पूजा नहé úहण कर सकते। मेरे भगवान हीन और पिततŌ के भगवान ह§;
जाित और वणª से परे के भगवान ह§, धमª और संÿदाय के ऊपर के भगवान ह§। वे सबकì
पूजा úहण कर सकते ह§ और पूजा úहण करके अāाĺण-चांडाल सबको पूºय बना सकते
ह§।" यह िनबंधकार के Ĭारा कì गई साथªक उपासना पĦित है, जो समाज कì आवÔयकता
भी है।
देश के सांÖकृितक इितहास म¤ भिĉ आंदोलन के दौरान ऐसा पहली बार हòआ, जब भारत
के सांÖकृितक एकìकरण का इतना Óयापक ÿयास आम जनजीवन के Öतर पर हòआ। दि±ण
के संत किवयŌ कì ÿेरणा से शुł हòई लौ उ°र भारत म¤ जब आई तो जाित एवं वणª ÓयवÖथा
कì िवसंगितयŌ से आøांत समाज को बदलाव कì ÿेरणा िमली। इस दौरान हòए ÿयासŌ के
कारण सचमुच वातावरण एक संøमण के बाद बदलने लगा परंतु इसके बाद हमारे देश म¤
यूरोपीय जाितयŌ का आगमन हòआ। जो Óयापार के उĥेÔय से भारत आयé थé। थोड़ा समय munotes.in

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आधुिनक गī
124 Óयतीत करने के बाद उनको समझ म¤ आ गया िक इस देश कì सामािजक ÓयवÖथा म¤ कई
दरार¤ ह§ िजनका वह अपने िहत म¤ ÿयोग कर सकते ह§। और यही करते हòए वे Óयापारी से कब
इस देश के शासक बन बैठे, पता ही नहé चला। िहंदू और मुिÖलम सांÖकृितक-एकìकरण के
जो ÿयास भिĉकाल म¤ हòए थे, उनकì कूटनीित के कारण िछÆन-िभÆन हो गए । इन दोनŌ ही
जाितयŌ ने यूरोपीय जाितयŌ के षड्यंý को नहé समझा और उनके हाथŌ का िखलौना बन
गए। इस िÖथित को लि±त करते हòए वे िलखते ह§, "हाय िहंदू और हाय मुसलमान ! आठ सौ
वषŎ के िनरंतर संघषª के बाद, एक दूसरे के इतने नजदीक रहकर भी, तुमने अपनी एक
संÖकृित न बनायी।...... वजªन पारायण िहंदू-भाव सबको धो-पŌछ डालना चाहता है,
अिभमानी मुसलमान-भाव कुछ भी úहण करना नहé चाहता।" यही वह सÂय है िजसे िहंदू-
मुिÖलम संदभŎ म¤ आचायª िĬवेदी बताना चाहते ह§। दरअसल तÂकालीन समय कì यह एक
महÂवपूणª आवÔयकता थी िक दोनŌ संÿदायŌ म¤ सौहादª कì भावना को बढ़ावा िदया जाए।
अंúेजŌ Ĭारा डाली गई फूट के कारण इस देश म¤ आजादी और उसके बाद भी øूर और
वीभÂस दंगŌ का दौर देखा था। हजारŌ -लाखŌ लोग ऐसे दंगŌ कì भ¤ट चढ़े ह§। सचमुच यह बड़ा
आIJयªजनक है िक एक नजåरया िवकिसत करने कì जो आवÔयकता थी, वह िपछले सात-
आठ सौ वषŎ म¤ कभी िवकिसत करने कì कोिशश नहé कì गयी। भिĉकाल के दौरान जłर
यह ÿयास हòआ परंतु यह ºयादा समय तक चला नहé और नदी के एक िकनारे िहंदू चलते
रहे और दूसरे िकनारे मुिÖलम। कभी कोई सेतु िनिमªत करने कì कोिशश नहé कì गयी और
इसके िलए सबसे ºयादा यिद कोई िजÌमेदार है, तो वह पुरोिहतवाद और कठमुÐलावाद है।
अपने िहतŌ के िलए इस वगª ने कभी आम जनमानस कì चेतना को बदलने का ÿयास नहé
िकया।
किठन से किठन पåरिÖथितयŌ म¤ भी एक राÖता देने का काम सािहÂयकार करता है। आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध जीवन के ÿित एक नई उÌमीद जगाने का काम करते ह§,
समÖयाओं के ÿित एक नया नजåरया देने का काम करते ह§। उनके िनबंधŌ म¤ उपसंहार एक
आशा के łप म¤ ही होता है। इस िनबंध म¤ भी वे इसी आशामूलक Öवर के साथ समापन
करते ह§। वे कहते ह§, " वे िहंदू धमª के उÂकषª से भीत ह§। दूसरी तरफ िहंदू धमª जłरत से
ºयादा आÂमिवĵा सी हो गया है। मुसलमान अपनी बची-खुची सारी शिĉ समेटकर
मुसलमािनयत का ÿदशªन कर रहे ह§। यह अवÖथा बहòत िदनŌ तक नहé चलने कì। वह
आगंतुक उÂसाह भी समाĮ हो जाएगा और यह अÂयिधक आÂमबोध-मूलक शैिथÐय तो
समाĮ हो ही चला है। जब दोनŌ समाĮ हो जाएंगे तभी राÖता सूझेगा। तभी शांित आएगी।"
और इस तरह, एक उÌमीद के साथ वह िनबंध का समापन करते ह§। वÖतुतः सांÿदाियकता
कì समÖया आज भी हमारे समाज कì एक ÿमुख समÖया बनी हòई है। िकसी सािहÂयकार
का सािहÂय िकतना जीवंत और िटकाऊ है, यह उसकì िवषयवÖतु और उसके मूÐयांकन से
पता चलता है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध म¤ िजस तरह से भारतीय
संÖकृित का मूÐयांकन िकया है, वह उनकì दूरदिशªता का पåरचायक है।
९.१.२.२ ठाकुरजी कì बटोर िनबÆध का ÿितपाī
'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध, आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì अĩुत कÐपना शिĉ को
ÿÖतुत करने वाला ®ेķ िनबंध है। इस िनबंध म¤ एक साथ हम¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
कì कई िवशेषताएं देखने को िमलती ह§। संवेदनाÂमक łप से मानवता के ÿित उनकì गहरी munotes.in

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िनबंध : ठाकुर जी कì बटोर
125 िनķा इस िनबंध म¤ हम¤ िदखाई देती है, उनकì िविशĶ इितहास ŀिĶ - िजसका अिधकतर
िनबंधŌ म¤ हम¤ पåरचय िमलता है - इस िनबंध म¤ िवशेष Łप से देखने को िमलती है। इसके
साथ ही उÆहŌने सामियक संदभŎ को भी इस िनबंध म¤ Öथान िदया है। आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी के मन म¤ एक ऐसे भारतीय समाज कì संकÐपना है िजसम¤ सभी धमŎ और
संÖकृितयŌ के लोग एक साथ समरस भाव से िनवास करते ह§। यह उस बगीचे के समान है,
जहां अलग-अलग रंग और सुगंध के फूल एक साथ िखलते और मुरझाते ह§। इस िनबंध म¤
उÆहŌने भारत म¤ ÿाचीन काल म¤ धमª के िवकास और øमश: उसम¤ घटते-बढ़ते मानवीय
तÂवŌ और आÖथाओं का िवĴेषण िकया है।
'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध इस समÖया से आरंभ होता है िक एक जीणª - शीणª मंिदर म¤
Öथािपत ठाकुर जी कì ÿितमा उपेि±त है। लोग मंिदर म¤ न तो एकिýत होते ह§ और न ही
साज-संभाल का कोई ÿयास करते ह§। जबिक िजस गांव म¤ यह मंिदर है, वह लगभग सौ िहंदू
घरŌ से समृĦ है। वहé दूसरी तरफ, िसफª पंþह मुसलमानŌ के घर होते हòए भी उस गांव कì
मिÖजद अÂयंत अ¸छी िÖथित म¤ है। यह तो एक बहाना है, अपनी बात शुł करने का और
इस बहाने से उÆहŌने भारत कì पूरी धािमªक परंपरा का मूÐयांकन कर िदया है। भारतीय
सामािजक ÓयवÖथा म¤ जाित और वणŎ का आúह िकस कदर है, यह िकसी से छुपा नहé है।
मंिदरŌ म¤ पुरोिहत के łप म¤ उपिÖथित का अिधकार āाĺणŌ का माना जाता है। अÆय िकसी
जाित के संत के िलए यह िनिषĦ माना जाता है। आम लोगŌ कì इस धारणा म¤ िकतना बल
है, आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपनी धािमªक परंपरा का मूÐयांकन करते हòए इस तÃय को
भी तराजू म¤ तोलते ह§।
वैÕणव धमª अÂयंत ÿाचीन धमª है और इसकì स°ा वतªमान भारत कì सीमाओं के बाहर भी
थी। िनबंध के अनुसार िहंदू धमª ईरान कì सीमाओं तक, मÅय एिशया के ±ेý को अपने म¤
सिÌमिलत िकए था । िजसके बाद इÖलाम का उदय हòआ और इÖलाम कì िवजयŌ के
फलÖवŁप िहंदू धमª कì उ°री-पिIJमी सीमा पंजाब तक सीिमत हो गयी। अंततः इÖलाम
भारत आया अपने समानतावादी आदशŎ के कारण यह ÿचिलत भी हòआ। इÖलाम के
आगमन के बाद भारत म¤ सूफì और संत परंपरा का समय आरंभ हòआ। संत परंपरा दि±ण
के भिĉ मत वाद कì देन थी। भिĉ मत ने धमª म¤ जाितगत दुराúहŌ को उपेि±त िकया और
कई िनÌन वणª के संत अपनी साधना के बल पर ÿिसĦ हòए। संत काÓय परंपरा, राम काÓय
परंपरा एवं कृÕणकाÓय परंपरा म¤ ऐसे कई किवयŌ का नाम और वणªन आता है जो िनÌनवणª
या अÆय ध मŎ के थे। जैसे संत हåरदास, कृÕणदास आिद। भिĉ के ÿभाव म¤ जाितगत आúह
समाज म¤ कम हòए परंतु अंúेजŌ के आगमन के बाद समाज म¤ िवभाजन का नया दौर शुł
हòआ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इस पूरी परंपरा का मूÐयांकन करते हòए इस तÃय पर आते ह§
िक भारतीय समाज कì िजतनी हािन जाित गत दुराúहŌ के कारण हòई है, संभवत: उतनी
अÆय िकसी कारण से नहé। इसीिलए वे इस िनबंध म¤ पूणª मानवीय ŀिĶकोण से िवचार करते
हòए उÆहŌने ऐसे देवता को ही िनिषĦ कर िदया जो केवल जाित िवशेष कì पूजा úहण करके
ही ÿसÆन होते ह§। दरअसल वे यह बताना चाहते ह§ िक ईĵर मानवीयता से ओतÿोत है, वहां
जाित और वणª का नहé बिÐक कमŎ का महÂव है। ÿाचीन भारतीय वणª ÓयवÖथा का आधार
भी जÆम नहé बिÐक कमª ही था। िकसी को जÆम से िमली जाित के आधार पर उपेि±त munotes.in

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आधुिनक गī
126 करना मानवीय मूÐयŌ के िवŁĦ है। इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने
मानवीय ŀिĶकोण का पåरचय देते हòए जाितगत एवं धािमªक दुराúहŌ कì तीखी आलोचना
कì है और इस संदभª म¤ हम¤ सवªथा सकाराÂमक ŀिĶकोण देने का काम िकया है।
९.१.३ सारांश इस इकाई के अंतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध 'ठाकुरजी कì बटोर' का
अÅययन िकया गया। िनबंध 'ठाकुरजी कì बटोर' धमª कì संकìणª मनोवृि° पर कुठाराघात
करने वाला िनबंध है । इन िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì कई संवेदनाÂमक
िवशेषताएं देखने को िमलती है ।
९.१.४ उदाहरण-Óया´या Óया´या-अंश (१):
रामानुज के दादा गुŁओं कì परंपरा के सभी अलवार भĉ अāाĺण ही नहé थे, शूþ से भी
िनÌन कुल म¤ अवतåरत हòए थे। महाÿभु वÐलभाचायª ने अपने शूþ िशÕय कृÕणदास
अिधकारी (अĶछाप के एक किव) को ®ीनाथजी के मंिदर का ÿधान अिधकारी बनाया था।
महाÿभु के गोलोकवास के अनंतर एक बार उÆहŌने महाÿभु के एकमाý गुŁ ®ी गोकुलनाथ
गोसाई को भी मंिदर म¤ जाना िनिषĦ कर िदया था। पंिडतजी अāाĺणीभूत ठाकुर का
चरणŌदक तक लेने म¤ िहचकते ह§। गौड़ीय वैÕणव संÿदाय के ÿाण-ÿितķा ता महाÿभु चैतÆय
देव ने मुसलमान भĉ हåरदास का चरणŌदक हठ के साथ छककर िपया था ।
संदभª: उĉ अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह कÐपलता म¤ संúहीत
िनबंध 'ठाकुर जी कì बटोर' से िलया गया है।
ÿसंग: इस अवतरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने धमª म¤ जाितगत दुराúहŌ कì
िनरथªकता को Óयĉ िकया है। उÆहŌने ऐितहािसक िवĴेषण के Ĭारा इस तÃय को Öथािपत
िकया है िक जाितगत दुराúह Öथािपत करने का ®ेय हमारे समाज के कुिÂसत मानिसकता
के कुछ लोगŌ को है, िजÆहŌने पूरी समृĦ परंपरा को दूिषत करने का कायª िकया है। उÆहŌने
ÿाचीन काल के कुछ उदाहरणŌ के Ĭारा अपनी बात को समझाया है।
Óया´या: भिĉ आंदोलन को उसके शुŁआती दौर म¤ उभारने और गित देने म¤ रामानुज और
वÐलभाचायª जैसे संतŌ का अÂयंत महÂवपूणª योगदान था। भिĉ आंदोलन केवल एक
धािमªक आंदोलन ही नहé था बिÐक उसकì भूिमका उससे कहé ºयादा, सामािजक
आंदोलन के łप म¤ थी। तÂकालीन समय म¤ समाज म¤ फैली हòई łिढ़यां, जाितगत दुराúह
और धािमªक आडंबरŌ ने जनसमाज का जीवन ýÖत कर िदया था । एक वगª धमª कì आड़ म¤
अÆय वगō को शोषण का िशकार बनाने का उīम तो करता ही था, साथ ही धािमªक िविध-
िवधानŌ म¤ िनÌन वगª कì कोई भूिमका नहé थी। इसके कारण भारतीय समाज िवशेष łप म¤
उ°र भारतीय समाज िवभािजत समाज था । इन संतो ने समाज कì इन समÖयाओं को
समझा और बदलाव लाने कì øांितकारी ÿिøया शुł कì। इनका ÿभाव इ तना Óयापक था
िक इÆहŌने जो िकया, समाज के िनÌन वगª ने उसे िहÌमत के साथ अपनाया। munotes.in

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िनबंध : ठाकुर जी कì बटोर
127 ऐसा नहé है िक इस øांितकारी ÿिøया के दौरान संतो को िवþोह और िवरोध का सामना
नहé करना पड़ा । उÆह¤ परंपरागत पुरोिहत वगª से खासी अवमानना सहनी पड़ी। परंतु इस
सब के बावजूद भी वे अपने अिभयान म¤ लगे रहे और इसी का पåरणाम था िक कबीर, रहीम,
धÆना, पीपा जैसे िनÌनवगêय समाज से संत किवयŌ का आगमन हòआ। कृÕण भिĉ धारा म¤
भी वÐलभाचायª जी ने भिĉ के मागª से जाितगत दुराúहŌ को बिहÕकृत कर िदया और
रामानुज कì परंपरा म¤ Öवामी रामानंद के समान सबके िलए भिĉ के Ĭार खोल िदए। भिĉ
का संबंध आचरण नहé बिÐक Ńदय से था। जो Ńदय म¤ ईĵर को धार सकता था, वह भिĉ
ÿािĮ का अिधकारी था । इसीिलए भिĉ कालीन िहंदी किवयŌ कì परंपरा म¤ हम¤ गैर āाĺण
किवयŌ कì भी एक लंबी ®ृंखला देखने को िमलती है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने भिĉ
काल का अÂयंत Óयापक अÅययन िकया था और उसकì दूरदिशªता को लि±त िकया था।
भिĉ कालीन परंपरा का उनके ऊपर भी अÂयंत ÿभाव था। उनके मानवतावादी संबंधी
िवचार कहé न कहé भिĉ काल से भी ÿेरणा पाते रहे ह§।
िवशेष:
१. धमª के वाÖतिवक Öवłप को Óयĉ िकया है।
२. जाितगत दुराúहŌ का िनषेध िकया है।
३. ÿाचीन उदार धािमªक परंपरा का उÐलेख िकया है।
Óया´या-अंश (२):
म§ने उ°ेिजत भाव से कहा - 'जो ठाकुर जाित िवशेष कì पूजा úहण करके ही पिवý रह
सकते ह§, जो दूसरी जाित कì पूजा úहण करके अúाĻ-चरणोदक हो जाते ह§, वे मेरी पूजा
नहé úहण कर सकते। मेरे भगवान हीन और पिततŌ के भगवान ह§; जाित और वणª से परे के
भगवान ह§, धमª और संÿदाय के ऊपर के भगवान ह§। वे सबकì पूजा úहण कर सकते ह§ और
पूजा úहण करके अāाĺण-चांडाल सबको पूºय बना सकते ह§।
संदभª: उĉ अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह कÐपलता म¤ संúहीत
िनबंध 'ठाकुर जी कì बटोर' से िलया गया है।
ÿसंग: इस अवतरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने धमª कì वाÖतिवक भावना को
अिभÓयĉ िकया है। धमª िहंदू धमª के भीतर जाित के अिÖतÂव के कारण एक बड़ी आबादी
हमेशा उपेि±त समझी गयी। उनके साथ अÂयंत अमानवीय Óयवहार िकया गया। वगª िवशेष
कì ऐसी धृĶता के कारण िनÌन वगª के लोगŌ का जीवन अÂयंत अपमानजनक और उपेि±त
था। िनबंधकार ने इस अवतरण म¤ धमª कì वाÖतिवक भावना को अिभÓयिĉ दी है, साथ ही
धमª और मानवता के आपसी संबंध को भी ÖपĶ िकया है।
Óया´या: इस ÿकरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के धमª और ईĵर के संदभª म¤ िवचारŌ
का ÖपĶ łप से संकेत िमलता है। 'ठाकुर जी कì बटोर' िनबंध धािमªक संकìणªता के संदभª म¤
िलखा गया िनबंध है। अपनी ÿवृि° के अनुłप आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने ऐितहािसक
संदभª म¤ भारत कì धािमªक परंपरा और संÖकृित का िवĴेषण िकया है। उÆहŌने धमª म¤ ÓयाĮ munotes.in

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आधुिनक गī
128 उन कारणŌ कì खोजबीन कì है जो सामािजक एकता म¤ बाधक बनते ह§। िहंदू धमª म¤ जाित
और वणª के कारण समाज कì िÖथित अÂयंत िवþूप और असंगत थी और इसके चलते
भारत को अनेक समÖयाओं का सामना करना पड़ा। एकता के अभाव म¤ हमारा देश कई बार
बाहरी आøांताओं का िशकार हòआ। इस धािमªक िवþूपता को पैदा करने म¤ पुरोिहतŌ और
मौलवी वगª का बड़ा हाथ रहा है। तथाकिथत उ¸च जाित के लोग िनÌन वगª के लोगŌ को
ÿाचीन काल म¤ मंिदरŌ म¤ भी पूजा-अचªना के िलए जाने कì अनुमित नहé देते थे, िफर िकसी
मंिदर म¤ पुजारी बनने कì बात तो कोई सोच भी नहé सकता। इस िनबंध म¤ ÿसंग: ठाकुर जी
के मंिदर कì िÖथित केवल इसिलए बहòत बुरी दशा को ÿाĮ है िक उसका पुजारी एक
अāाĺण Óयिĉ है। इसके चलते गांव के सभी लोगŌ ने उस मंिदर का बिहÕकार कर रखा है।
मंिदर कì ऐसी दशा देखकर िनबंधकार का मन Óयिथत है और इसी संदभª म¤ वे ऐसे लोगŌ
कì भÂसªना करते हòए यह बात िलखते ह§।
धमª के संबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का ŀिĶकोण पूणª मानवीय है। उनके िÿय किव
कबीर ह§, जो Öवयं िनÌन जाित के थे और िजÆहŌने धािमªक दुराúहŌ के िवŁĦ मÅयकाल म¤
सबसे बड़ा िवþोह िकया था। धमª कì मूल भावना लोक -कÐयाण है, ऊंच-नीच आिद
असमानताएं मनुÕय ने पैदा कì ह§। ऐसे लोग जो धमª कì आड़ म¤ अपने Öवाथª कì पूितª करते
ह§, वे कभी भी समाज को एक समान Öतर पर रखने को तैयार नहé होते ह§। ऐसे लोगŌ कì
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने भयंकर आलोचना कì है उनके अनुसार मेरा ईĵर सबकì
पूजा úहण करने वाला ईĵर है और यिद ईĵर भी जाित िवशेष कì पूजा से ही ÿसÆन होते ह§
तो म§ उÆह¤ ईĵर मानने को तैयार नहé हóं। वाÖतव म¤, उनके अनुसार मेरे भगवान दीन दुिखयŌ
के भगवान ह§, उनकì नजर म¤ सभी मनुÕय समान ह§। वे सभी कì पूजा úहण करके सभी को
एक समान ŀिĶ से देखते ह§। ऊंच-नीच के झगड़े Öवाथê लोगŌ कì Öवाथª पूितª का साधन
माý ह§। इस तरह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस अवतरण म¤ ईĵर के संबंध म¤ अपनी
धारणा को ÖपĶ िकया है।
िवशेष:
१. समाज के ÿÂयेक वगª कì समानता का समथªन िकया है।
२. ईĵर और धमª कì िवशुĦ मानवीय Óया´या कì है।
९.१.५ वैकिÐपक ÿij १. िनÌन म¤ से कौन वÐलभाचायª जी के शूþ िशÕय थे ?
(क) नरहåरदास (ख) कृÕणदास
(ग) कबीरदास (घ) रहीमदास
२. महाÿभु चैतÆय ने िकस मुसलमान भĉ का चरणोदक िपया था ?
(क) रहीम (ख) रसखान
(ग) अúदास (घ) हåरदास munotes.in

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िनबंध : ठाकुर जी कì बटोर
129 ३. ®ीनाथजी के मंिदर का ÿधान अिधकारी िनÌन म¤ से कौन था ?
(क) कृÕणदास (ख) हåरदास
(ग) अúदास (घ) नंददास
४. मÅयकाल म¤ कुचली हòई संÖकृित लता को िनÌन म¤ से िकस का सहारा िमला ?
(क) उपिनषद (ख) वेद
(ग) भिĉ मतवाद (घ) इÖलाम
९.१.६ लघु°रीय ÿij १) िनबंध म¤ इÖलाम Öवयं को िकस łप म¤ Óयĉ करता है ?
२) भिĉ मतवाद के संबंध म¤ िनबंध म¤ Óयĉ धारणाएं ?
३) आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िनबंध म¤ Óयĉ ईĵर का वाÖतिवक łप ?
९.१.७ बोध ÿij १) 'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध का संवेदनाÂमक िवĴेषण कìिजए ?
२) 'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध के माÅयम से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने िकन तÃयŌ
का िवĴेषण िकया है ? िवÖतार से िलिखए।
३) 'ठाकुरजी कì बटोर' िनबंध का ÿितपाī ÖपĶ कìिजए ?
९.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
***** munotes.in

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130 १०
िनबंध : संÖकृितयŌ का संगम
इकाई कì łपरेखा
१०.० इकाई का उĥेÔय
१०.१ ÿÖतावना
१०.२ िनबÆध : संÖकृितयŌ का संगम
१०.२.१ संÖकृितयŌ का संगम िनबÆध कì अÆतवªÖतु
१०.२.२ संÖकृितयŌ का संगम िनबÆध का ÿितपाī
१०.३ सारांश
१०.४ उदाहरण-Óया´या
१०.५ वैकिÐपक ÿij
१०.६ लघु°रीय ÿij
१०.७ बोध ÿij
१०.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
१०.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई का उĥेÔय आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के 'संÖकृितयŌ का संगम' कì
अंतवªÖतु से पåरिचत कराना और इन िनबंधŌ म¤ िदए गए संदिभªत िवषयŌ पर सवªथा नवीन
ŀिĶ का उĤाटन करना है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का मौिलक िचंतन िविभÆन िवषयŌ
के ÿित नवीन ÿेरणा और ŀिĶ देता है । िचंतन कì सवªथा नई िदशाएं ÿाĮ होती ह§ । इन
िनबंध के अÅययन से संÖकृित के संबंध म¤ उनकì िविशĶ समझ और सािहÂय के ÿदेय को
लेकर उनके िवचारŌ का पåरचय िमलेगा ।
१०.१ ÿÖतावना आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का िचंतन अपने आप म¤ अÂयंत मौिलक है । उनका अÅययन
अÂयंत Óयापक है । उÆहŌने पौरािणक सािहÂय, इितहास और आधुिनक सािहÂय का गहरा
अÅययन िकया था और िविभÆन िवषयŌ पर उÆहŌने जो राय कायम कì, वह उनके िनबंधŌ म¤
देखने को िमलती है। संÖकृित के संबंध म¤ उनके िवचारŌ से उनका संपूणª सृजनाÂमक
सािहÂय भरा पड़ा है । इस इकाई म¤ िदए गए 'संÖकृितयŌ का संगम' िनबंध म¤ भारतीय
संÖकृित के संबंध म¤ उनके मौिलक िवचार देखने को िमलते ह§। उनकì ŀिĶ म¤ भारतीय
संÖकृित समय के साथ िविभÆन संÖकृितयŌ के मेल से उÂपÆन हòई सतरंगी संÖकृित है ।
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कÐपलता : आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबंध : संÖकृितयŌ का संगम
131 १०.२ िनबÆध : संÖकृितयŌ का संगम १०.२.१ ‘संÖकृितयŌ का संगम’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
'संÖकृितयŌ का संगम' िनबंध, ÿाचीन काल से भारत कì समेिकत संÖकृित के िवकास को
हमारे सामने ÖपĶ करने वाला िनबंध है । जैसा िक आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के बहòत से
िनबंधŌ म¤ देखा जा सकता है िक भारतीय इितहास और संÖकृित के िवĴेषण म¤ उÆह¤ िवशेष
आनंद आता है। ये उनकì Łिच के िवषय ह§ । भारत म¤ िāिटश शासन कì Öथापना के बाद
भारतीय संÖकृित के संबंध म¤ बहòत ही गलत धारणाओं का ÿचार और ÿसार हòआ । िāिटश
इितहासकारŌ के Ĭारा इस संबंध म¤ िकया गया िवĴेषण कहé-कहé एकांगी हो जाता है । यह
िहंदी के िवĬानŌ के सामने एक तरह कì चुनौती थी िक वे अपने इितहास और संÖकृित के
संबंध म¤ सही और ÿामािणक धारणाओं को िवĴेषण म¤ Öथान द¤ । भारतीय इितहास को
िवदेशी सािहÂयकारŌ के Ĭारा अÂयंत िपछड़ी जाित के इितहास के łप म¤ िदखाया गया है।
दरअसल उनम¤ यह धारणा इसिलए िवकिसत हòई ³यŌिक इितहास लेखन के ÿित भारतीयŌ
म¤ वैसा Łझान नहé था जैसा पिIJमी देशŌ म¤ िवकिसत हòआ । िजसके चलते भारतीय
इितहास उस तरह के ÿामािणक ढंग से ÿाĮ नहé होता, िजस तरह पिIJमी देशŌ का इितहास
िमलता है और इसीिलए भारतीय इितहास और संÖकृित के संबंध म¤ तमाम ऐसी धारणाएं
ÿचिलत हो गयé, िजनका वाÖतिवकता से कोई संबंध नहé था । संभवतः इÆहé िÖथितयŌ के
चलते आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì Łिच Öवाभािवक łप से इस िदशा म¤ िवकिसत हòई
और िजसकì अिभÓयिĉ हम उनके िनबंधŌ म¤ पाते ह§ ।
'संÖकृितयŌ का संगम' िनबंध भारतीय संÖकृित के øमबĦ िवकास को िचिÆहत करने का
आचायª िĬवेदी का ÿयास है। सामाÆय धारणा के अनुसार यह मान िलया जाता है िक वैिदक
संÖकृित और भारतीय संÖकृित एक दूसरे के पयाªय ह§ । परंतु वाÖतव म¤ यह धारणा अपने
आप म¤ एकांगी धारणा है। वैिदक संÖकृित, एक संÖकृित िवशेष जाित से जुड़ा हòआ शÊदबÆध
है। जबिक भारतीय संÖकृित कई सांÖकृितक ÿजाितयŌ के सिÌमलन और उसके पåरणाम
Öवłप िवकिसत हòए, लगातार बदलते हòए सांÖकृितक Öवłप का नाम है । यह धारणा
िनबंधकार आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ÖपĶ धारणा है और इस धारणा को भी अपने
कई िनबंधŌ म¤ Óयĉ भी कर चुके ह§। उनकì इस धारणा का आधार एकमाý उनका कथन
नहé है बिÐक अपनी इस धारणा के सÂयापन के िलए उनके पास ÿमाणŌ कì एक लंबी
®ृंखला है। उनके इस िनबंध को पढ़कर जहां एक तरफ भारत के सांÖकृितक िवकास कì
गौरव गाथा को समझा जा सकता है, वहé दूसरी तरफ भारतीय संÖकृित के संदभª म¤ तमाम
ĂांितयŌ से भी बचा जा सकता है ।
इस िनबंध का आरंभ वे लाखो वषª पहले के महाĬीपीय पåरवतªन के इितहास कì संभािवत
Óया´या करते हòए करते ह§ । वे िलखते ह§, "भौगोिलक-ÿÂन-तÂव के पंिडतŌ का अनुमान है
िक इस देश का मÅय और दि±णी भाग पुराना है, िहमालय और राजपूताना अपे±ाकृत नए
भूखंड ह§ िजनम¤ एक भूगभª के आकिÖमक उÂपाद से समुþ म¤ से उÆनत हो आया और दूसरा
ÿकृित के सहज øम म¤ सूखकर मłभूिम बन गया है । इस पर से यह समझा जा सकता है
िक यिद इस देश म¤ ÿथम मनुÕय का वास कहé हòआ होगा तो वह िवंÅयपवªत के दि±ण म¤ ही
कहé रहा होगा। यह भूभाग कभी ऑÖůेिलया के िवशाल Ĭीप के साथ Öथल मागª से संबंध munotes.in

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आधुिनक गī
132 था और िनकोबार और मल³का के Ĭीप भी इस भूभाग के ही संलµन अंश थे। इस भूखंड म¤
कभी मुंडा या कोल ®ेणी कì जाितयŌ कì बÖती थी । ये जाितयां अब भी वतªमान है और
अपनी पुरानी परंपरा को कथंिचत िजला रखने म¤ समथª ह§ ।" इस तरह इस िनबंध कì
शुŁआत वे अÂयंत ÿाचीन भौगोिलक िवकास संबंधी िवĴेषण से करते ह§, िजसका उĥेÔय
यह िदखाना है िक िकस ÿकार एक बड़े भू-भाग पर भौगोिलक िवकास के कारण मनुÕय
धीरे-धीरे अलग होता चला गया । आचायª िĬवेदी के अनुसार पूवª धारणा के अनुसार ऐसा
माना जाता था िक कोल व मुंडा जाितयŌ कì संÖकृित का भारतीय संÖकृित के िवकास म¤
कोई योगदान नहé है, जबिक ऐसा समझा जाना गलत है । इसके िलए वे ÿमाण के łप म¤
ÿोफेसर िसलवां लेवी एवं उनके िशÕय ÿोफ़ेसर ºयूलुÖकì के भाषा संबंधी अÅययनŌ को
आधार बनाते ह§ और उन ÿामािणक आधारŌ के Ĭारा यह िनÕकषª िनकालते ह§ । यह समझना
गलत है िक यह जाितयां हमारी सËयता म¤ कुछ भी नहé दे सकé। उनके अनुसार अनेक वृ±Ō
के नाम, खेती-बाड़ी के औजारŌ और अÆय पाåरभािषक शÊदŌ के नाम इनकì भाषाओं म¤
आए ह§। मुंडा एवं कोल जाितयŌ से संभवतः वृ±-पूजा, िलंग पूजा या लांगुरधर देवता कì
पूजा आिद िहंदू धमª म¤ आयी ।
भौगोिलक और भाषाई िÖथितयŌ के आधार पर आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह मानते ह§
िक िहंदू समाज के िनचले Öतर म¤ खेती-बाड़ी करने वाली बहòत सी जाितयां, इÆहé जाितयŌ
(कोल और मुंडा) का आयªभाषी संÖकरण ह§ । इसीिलए इन जाितयŌ कì परंपरा के अÅययन
से भारतीय धमª-जीवन कì परंपरा के िवÖतृत अÅययन म¤ काफì सहायता िमल सकती है ।
ऐसा उÆह¤ िवĵास है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने शोधपूणª िनबंधŌ म¤ इस तरह कì
िज²ासाएं और इस तरह के Öथल िचिÆहत करते चलते ह§, जहां से कुछ नए िनÕकषª और
कुछ उपयोगी जानकारी िमल सकती है। जो हमारे ²ान के ®ीवृिĦ म¤ सहायक हो सकती ह§।
रामायण कì कथा के आधार पर रामायण-काल के संदभª म¤ भी उÆहŌने यथाथª ढंग से िचंतन
िकया है और िमथक कì तरह ÿयोग िकए गए रामायण के कुछ ÿसंगŌ के बारे म¤ अÂयंत
ÿामािणक तकŎ के साथ उÆहŌने कुछ बात¤ इस िनबंध म¤ कहé ह§ । रामायण कì कथा के
आधार पर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है िक ®ीराम को दि±ण गमन के दौरान
बहòत ही ऐसी जाितयŌ का सहयोग िमला था, िजÆह¤ कृिष-कमª कì जानकारी नहé थी ।
िजनके पास आयª सËयता कì तरह उÆनत अľ और शľ नहé थे। इÆह¤ वानर कहा गया।
रामायण से िमली इस जानकारी के आधार पर यह माना जा सकता है िक कोल, मुंडा आिद
जाितयŌ के अितåरĉ वानर आिद जाितयŌ कì संÖकृित का ÿभाव भी िनिIJत łप से आयª
सËयता पर पड़ा और अंततः भारतीय संÖकृित के पåरवितªत या िवकिसत होने म¤ इनका भी
हाथ है ।
इितहास म¤ िनरंतर हो रही नई - नई खोजŌ के ÿित आचायª िĬवेदी अÂयंत उÂसुक रहा करते
थे। उÆह¤ इस तरह कì जानकाåरयां अपने िनÕकषŎ म¤ ÿयोग करने म¤ अÂयिधक आनंद आता
था। हड़Èपा सËयता के बारे म¤ जानकारी होने पर उÆहŌने अपना Åयान उधर भी क¤िþत
िकया। सन १९२४ म¤ डॉ० राखालदास बनजê ने मोहनजोदड़ो म¤ और पंिडत दयाराम
साहनी ने हड़Èपा म¤ खुदाई के दौरान एक अÂयंत समृĦ सËयता का पता लगाया, जो
भारतीय भूखंड म¤ आयŎ से पहले से िनवास करती आ रही थी । खुदाई म¤ अÂयंत िवकिसत
भवन, राÖते, अÆनागार, मुþाएं और उÂकìणª िलिप भी िमली । यह िलिप यīिप अभी तक
पढ़ी नहé जा सकì है। इितहास के और ÿमाणŌ से यह पता चलता है िक मोहनजोदड़ो-munotes.in

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कÐपलता : आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबंध : संÖकृितयŌ का संगम
133 हड़Èपा सËयता के दौरान िमली वÖतुएं, ईसा पूवª तीसरी सहąाÊदी म¤ मौजूद सुमेåरयन
सËयता कì वÖतुओं से बहòत िमलती-जुलती थé । इससे यह िनÕकषª िनकाला जा सकता है
िक हड़Èपा सËयता एवं सुमेåरया सËयता के बीच िनिIJत łप से संबंध रहे हŌगे।
इितहास के जो पंिडत ईसा के जÆम के बाद ही समÖत िवकास को आगे बढ़ा हòआ मानते ह§,
उÆह¤ यह तÃय जानकर आIJयª होगा कì िविभÆन ऐितहािसक ÿमाणŌ से यह पता चलता है
िक ईसामसीह के हजारŌ वषª पहले ही हड़Èपा सËयता का मेसोपोटािमया, िमą, बेिबलोिनया
आिद सËयताओं से अÂयंत घिनĶ संबंध था। बलूिचÖतान म¤ āाहòई नामक þिवड़ भाषा का
अनुसंधान भी इितहासकारŌ के Ĭारा िकया जा चुका है । इस संबंध को ÿामािणकता देते हòए
आचायª िĬवेदी िलखते ह§, "सुमेåरयन लोगŌ कì एक पौरािणक गाथा यह है िक औनस नामक
मÂÖय łपधारी पुŁष ईरान कì खाड़ी तैरकर आया था और सुमेåरयन लोगŌ को ²ान का
उपदेश िदया था। इससे यह अनुमान पुĶ होता है िक िसंधु उपÂयका के लोगŌ ने ही सËयता
का संदेश सुमेरवािसयŌ को सुनाया था। इस तरह आचायª िĬवेदी के अनुसार इस तÃय से
यह ÿमाण िमलते ह§ िक िसंधु घाटी के लोग ही समुþ मागª से सुमेर कì ओर गए थे और
इÆहŌने ही सुमेर के लोगŌ को सËयता का पाठ पढ़ाया ।
अपने इन तÃयŌ से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह ÿमािणत करना चाहते ह§ िक भारतीय
सËयता और संÖकृित का आरंभ आयŎ से ही नहé हòआ है बिÐक उसके पहले भी एक
अÂयंत समृĦ þिवड़ सËयता थी । वाÖतव म¤ आचायª िĬवेदी जहां तक के संदभª म¤ बात कह
रहे ह§, उससे आगे कì खोजŌ पर भी अगर हम बात कर¤ तो हम¤ पता चलेगा िक िजसे आज
हम हड़Èपा और मोहनजोदड़ो कì सËयता के नाम से जानते ह§, उसके बहòत से Öथल
पािकÖतान से लेकर महाराÕů तक फैले हòए थे । इस तरह आज तक के शोध लगातार यह
ÿमािणत करते जा रहे ह§ िक भारत म¤ आयª सËयता के िवकास के पहले से ही एक अÂयंत
समृĦ सËयता मौजूद थी और यह मानना िक ®ीरामचंþ ने समूचे दि±ण को सËय बनाया,
बहòत तकªसंगत नहé जान पड़ता है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का ÖपĶ मत है कì
ऐितहािसक ÿमाण से पुĶ जो तÃय ह§, वे िनिIJत łप से हमारे इितहास के सुिनिIJत करने म¤
अÂयंत महÂवपूणª भूिमका रखते ह§ । परंतु हमारे देश का बहòतायत इितहास सािहिÂयक łप
म¤ हमारे पास मौजूद है, भले ही पुरातािÂवक साàय उसकì ÿामािणकता को अभी तक पुĶ
नहé कर पाए ह§, तो भी उसे पूरी तरह से छोड़ देना ठीक नहé होगा । अंततः वह नई-नई
खोज और शोध कì ÿेरणा तो दे ही रहा है ।
अपने इस िनबंध म¤ þिवड़ जाित के संदभª म¤ वे एक और ĂािÆत का िनराकरण करते िदखाई
देते ह§। ÖपĶ łप से वे यह ÿij करते ह§ िक, þिवड़ जाित कौन है ? दरअसल आरंिभक
इितहासकार आयŎ के अितåरĉ अÆय सभी जाितयŌ को Ăमवश þिवड़ कì सं²ा देते थे।
िजनके अंतगªत रावण, बाणासुर, ÿहलाद, बाली जैसे पौरािणक पाý सिÌमिलत थे। उनके
अनुसार þिवड़ जाित का ÿij अÂयंत उलझा हòआ ÿij है। वह कहते ह§, "þिवड़ भाषाओं को
बोलने वाली जाितयŌ को भी þिवड़ नहé कहा जा सकता । रावण का जÆम िजस जाित म¤
हòआ था, उसका आधुिनक नाम ³या है ? यह भी अिनिIJत ही है। कुछ लोगŌ ने गŌड जाित
को उस जाित का आधुिनक जीिवत łप बताया है । गŌड राजाओं कì ÿशिÖतयŌ से भी पता
चलता है िक वह अपने को पुलÖÂय वंशी समझते थे । गŌड शÊद के साथ संÖकृत के कŌडप
(रा±स) आिद शÊदŌ कì समानता से भी इस तÃय को पुĶ करने का ÿयÂन िकया गया है। munotes.in

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आधुिनक गī
134 पौरािणक परंपरा इस िवषय म¤ बहòत उलझी हòई है । रावण को पुलÖÂय मुिन कì संतान भी
बताया गया है, य±पित कुबेर से उसका åरÔता भी जोड़ा गया है और उसे ÖपĶ łप म¤
'āाĺण' भी कहा गया है । उसके आचार म¤ िशव कì पूजा भी है, वेद का पाठ भी है और मī-
मांस का सेवन भी है ।" इस तरह इस उदाहरण के Ĭारा वे यह संकेत देना चाहते ह§ िक
हजारŌ वषŎ के øम म¤ तÃय पौरािणक सािहÂय म¤ कुछ इस कदर उलझ गए ह§ िक उनसे कुछ
िनÕकषª िनकाल पाना काफì किठन ÿतीत होता है परंतु यह ÿमाण िनरा कÐपना भी नहé
माने जा सकते । जब तक तÃय पूरी तरह से ÿमािणत न हो जाए, तब तक कुछ भी कहना
ठीक नहé है । यह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì शोधपरक ŀिĶ का एक अ¸छा उदाहरण
है। एक शोधकताª कभी भी अपनी उÌमीद¤ छोड़ता नहé है, जब तक ÖपĶ łप से तÃय उसके
सामने नहé आ जाते वह उÆह¤ अपने ÿयोग कì शाला म¤ बनाए रखता है ।
आचायª जी के समय म¤ हो रहे ऐितहािसक शोध पåरणामŌ के आधार पर वे यह िनÕकषª
िनकालते ह§ िक, "वृ±-पूजा, नर-बिल, जीव-बिल, मī-मांस कì बिल, ÿेत-पूजा आिद
आचारŌ के मूल उÂस मुंडा या कोल जाितयां ह§ और मूितª-पूजा, Åयान, जप, गुŁ-पूजा,
अवतारवाद आिद के मूल ÿेरणा-ąोत ऐसी जाितयां ह§ जो इन कोल मुंडा आिद ®ेणी कì
जाितयŌ से अिधक सËय और समृĦ थé। एक शÊद म¤ इनका नाम þिवड़ रख िदया गया है।"
भारतीय संÖकृित के समेिकत Óयवहार को समझते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इन
िनÕकषŎ और माÆयताओं को और आगे बढ़ाते हòए मानते ह§ िक, "परवतê काल का वह
तंýवाद, िजसम¤ ľी-तÂव कì ÿधानता थी और शरीर को ही समÖत िसिĦयŌ का ®ेķ
साधन माना जाता था, य±, गंधवª आिद िकरात जाितयŌ कì देन रहा होगा । इसके अितåरĉ
उ°र से ही कापािलक और वाम मागŎ का आगमन हòआ होगा । बंगाल म¤ इन लोगŌ के साथ
þिवड़ जाितयŌ के िम®ण से एक नई जाित का जÆम हòआ है । आगे चल आयªरĉ का भी इस
जाित म¤ िम®ण हòआ। वÖतुतः आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì शोधŀिĶ अÂयंत Óयापक है।
उसम¤ इितहास, पुरातÂव, संÖकृित, नृ-तÂवशाľ, भूगोल, भाषा िव²ान आिद जैसे िकतने ही
िवषय सिÌमिलत ह§ । उनका एकदम ÖपĶ ŀिĶकोण है िक िजस भी िवषय से, िजस भी बात
से शोध पåरणामŌ को पुĶ करने म¤ सफलता िमले, उसे Öवीकार कर लेना चािहए ।
इन सभी के िवĴेषण के बाद आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह मानते ह§ िक िविभÆन
जाितयŌ और ÿजाितयŌ के इस महासमुþ म¤ सबसे अिधक ÿभावशाली जाित, आयª-जाित है।
िजनका वैिदक सािहÂय अÆय सभी जाितयŌ पर अपना जबरदÖत ÿभाव छोड़ सका। भारत
म¤ आयª जाित का आगमन कैसे और कहां से हòआ, इसका िवĴेषण भी वह करते ह§ और
िनिवªवाद łप से यह बात Öवीकार करते ह§ िक उ°र पिIJम कì ओर से ही आयŎ का
आगमन भारत म¤ हòआ परंतु वे मूलतः िकस Öथान से आए यह अवÔय तय नहé है। परंतु
इसके संबंध म¤ भी वे कुछ ÿमाणŌ कì चचाª करते ह§। जैसे वे कहते ह§, "यूĀेट्स के उपरले
िहÖसे के िमतानी राºय ने १४२० ई० पूवª म¤ िहटाइट के राºय से संिध करते समय उन
देवताओं के नाम सा±ीłप म¤ िलए ह§ जो भारतीय वैिदक सािहÂय के िवīाथê के िनकट
अÂयिधक पåरिचत ह§। ये देवता ह§ - िमý, वŁण, इंþ और नासÂय ।" वÖतुतः अपनी इस
खोजबीन कì ÿवृि° के चलते िनबंधकार इन तÃयŌ के माÅयम से िकसी एक िनÕकषª तक
पहòंचने का ÿयास करता िदखाई देता है । यह बात इितहास के गहरे अंधकार म¤ है िक आयŎ
का ÿसार कहां से होना शुł हòआ परंतु िनबंधकार अनुमान लगाते हòए कहते ह§, "ऐसा जान
पड़ता है िक मÅय एिशया के िकसी Öथान से आयª नाना िदशाओं म¤ फैले थे। इनका एक munotes.in

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कÐपलता : आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबंध : संÖकृितयŌ का संगम
135 िहÖसा ईरान होकर भारत आया था और दूसरा खािÐदया और एिशया माइनर कì ओर
चला गया था। जो हो, इन आयŎ का ÿभाव भारतवषª कì िविभÆन जाितयŌ पर बहòत अिधक
पड़ा ।"
संÖकृितयŌ का संगम िनबंध कì सारी खोजबीन और जांच-पड़ताल, सारी जĥोजहद
भारतीय संÖकृित के िवकास को िचिÆहत करने का काम करती है । आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी ने इस िनबंध म¤ भारत म¤ आयŎ के आगमन के पूवª के अनुमानŌ और ÿमाणŌ से इस
संÖकृित के लगातार आगे िवकिसत होने के संबंध का तÃयपूणª वणªन िकया है। पहले यह
इितहास िकतना पीछे तक जाता है यह तो अब केवल अनुमान का िवषय है । भिवÕय म¤ नई-
नई खोज¤ होती रह¤गी और नए-नए िनÕकषª आते रह¤गे परंतु वे अपना मूÐयांकन आयª और
आय¥°र जाितयŌ के संबंध म¤ करते िदखाई देते ह§ और आयŎ के पहले कì समृĦ सËयता का
िवĴेषण करते हòए यह मानते ह§ िक आयª सËयता, þिवड़ सËयता एवं अÆय सËयताओं का
भारतीय संÖकृित के िवकास म¤ बड़ा अहम और महÂवपूणª योगदान रहा है । आज िÖथित
यह है िक बहòत सारे िवचार हमारे úंथŌ म¤ ऐसे ह§, िजनके बारे म¤ ÿामािणक ढंग से यह कहना
बड़ा किठन है िक यह िवचार आयª है या þिवड़। यही समेिकत भारतीय संÖकृित का सŏदयª
है। इन सभी के सिÌमिलत ÿयासŌ से भारत कì महान संÖकृित उÂपÆन हòई है । संÖकृित के
इस Öवłप को समझ कर तु¸छ िहतŌ के िलए परÖपर टकराने वाले भारतीय समाज को यह
समझना चािहए िक साझा संÖकृित कì हजारŌ वषª कì भारतीय परंपरा म¤ सब-कुछ सभी का
है । एकता का एक िविशĶ भाव पूरे भारतीय समाज के भीतर पैदा होना चािहए । आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी इस िनबंध के माÅयम से इसी तरह कì Öथापना करना चाहते ह§ ।
१०.२.२ संÖकृितयŌ का संगम िनबÆध का ÿितपाī:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी मानवीय मूÐयŌ को समिपªत सािहÂयकार ह§ । उनके लेखन म¤
भारतीय और भारतीयता कì अपनी िविशĶ समझ और Óया´या है । भारतीय संÖकृित
उनके लेखन के िÿय िवषयŌ म¤ से एक रहा है । भारतीय इितहास के ÿित उनकì समझ के
सभी कायल ह§ । उÆहŌने अपने शोधपूणª उīम से िहंदी सािहÂय को कई नवीन उĩावनाओं
से समृĦ िकया है । संÖकृितयŌ का संगम िनबंध केवल माý संÖकृित के िवĴेषण तक ही
सीिमत नहé है, बिÐक इसके लेखन के पीछे अपनी तरह के सामियक कारण भी मौजूद ह§ ।
आधुिनक काल म¤ िविभÆन कारणŌ के चलते भारतीय समाज म¤ टूट-फूट और लगातार
िवभाजन दिशªत होता है । और यह िविभÆनता अपने दुराúही łप म¤ हम सभी को िदखाई
देती है। यह िनबंध वाÖतव म¤ हम¤ आईना िदखाने का काम करता है िक िकस तरह से
भारतीय संÖकृित का िवकास हòआ है । वह एक समेिकत संÖकृित है, िजसम¤ हर वगª, हर
सËयता का िविशĶ योगदान है । भारतीय संÖकृित, भारतीय समाज कì एकता को
अिभÓयĉ करने वाली संÖकृित है । अपने इÆहé उĥेÔयŌ के िलए आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी भारतीय संÖकृित का ऐितहािसक िवĴेषण करते िदखाई देते ह§ और िजस भारतीय
संÖकृित को आयª संÖकृित के łप म¤ ÿचाåरत और ÿसाåरत िकया जाता है, उसके बारे म¤
तकªपूणª ढंग से अपनी बात रखते हòए वे हमारी धारणाओं को संशोिधत करने का काम करते
ह§ । munotes.in

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आधुिनक गī
136 भारत बहòभाषी और िविभÆन ÿकार कì संÖकृितयŌ से समृĦ देश है और इसका इितहास
हजारŌ वषª पुराना है । ÿÂयेक संÖकृित म¤ िवकिसत हòई ÿथाएं और परंपराएं हजारŌ वषª
पुरानी ह§ और इन सभी से िमलकर भारतीय संÖकृित का िवकास हòआ है। आज तो हम यह
बता पाने म¤ भी स±म नहé ह§ िक कौन सी ÿथा या परंपरा िकस िविशĶ जातीय संÖकृित से
उदभूत ह§ । यही भारतीय समेिकत संÖकृित का वाÖतिवक सŏदयª भी है । इस िनबंध म¤
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने भारतीय संÖकृित के आरंिभक िवकास से अपनी बात
आरंभ करते हòए øमश: उसम¤ जुड़ते गए िविभÆन सांÖकृितक ÿभावŌ का शोधपूणª ढंग से
िवĴेषण िकया है । भारतीय संÖकृित के िवकास म¤ आयª संÖकृित से पहले िवīमान समृĦ
þिवड़ संÖकृित का अिÖतÂव था। इसके बाद भारत म¤ आयŎ का आगमन हòआ । अपने
िवकिसत हिथयारŌ और तकनीिकयŌ के चलते आयŎ ने संपूणª भारत पर धीरे-धीरे
राजनीितक िवजय हािसल कì । परंतु यहां उपिÖथत अÆय जाितयŌ और समूहŌ कì
संÖकृितयŌ का ÿभाव उनकì संÖकृित पर भी पड़ा। यह ÿभाव Öवाभािवक łप से आयª
संÖकृित म¤ सिÌमिलत होते गए। मनुÕय अपनी आवÔयकता के अनुłप इÆह¤ िनयोिजत करता
चला गया। आयŎ के बाद उ°र-पिIJम कì िदशा से ही अÆय बहòत सी जाितयां भी भारत
आती रहé और अपने सांÖकृितक ÿभावŌ से भारतीय संÖकृित को आगे बढ़ाने का काम
करती रहé। इसी øम म¤ इÖलाम भी भारत म¤ आया और उसकì िविशĶ संÖकृित का ÿभाव
भी भारतीय संÖकृित पर पड़ा। आगे चलकर यूरोपीय जाितयां भी भारत म¤ आयé । अंúेज,
Āांसीसी, डच, पुतªगाली आिद कम या ºयादा समय के िलए यहां रहे । अंúेज जहां सबसे
बड़ी राजनीितक शिĉ के łप म¤ भारत को लंबे समय तक ÿभािवत करते रहे, वहé पुतªगाली
ऐसी यूरोपीय जाित के łप म¤ जाने जाते ह§, जो सबसे पहले भारत आए और सबसे अंत म¤
गए । इन सभी यूरोपीय जाितयŌ म¤ अंúेजी जाित का ÿभाव संपूणª भारत पर Öथाई łप से
पड़ा और लेन-देन कì ÿिøया म¤ भारतीय संÖकृित का łप पुनः बदला। इस तरह भारतीय
संÖकृित समय-समय पर इस देश म¤ िविभÆन मानव ÿजाितयŌ के िमलने और साथ रहने के
कारण िवकिसत हòई िविशĶ संÖकृित है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने शोध और अÅययन म¤ इस तÃय पर िवशेष बल देते ह§
और उनके इस आúह को सकाराÂमक ढंग से हम समझ भी सकते ह§ । दरअसल यह देश
अलग-अलग जाितयŌ और संÖकृितयŌ से िमलकर िनिमªत हòआ है और उन सभी से िमलकर
हमारी एक साझा संÖकृित िवकिसत हòई है । वे िलखते ह§, "जैसा िक रवéþनाथ ने कहा है,
यह भारतवषª महामानव - समुþ है। केवल आयª, þिवड़, कोल और मुंडा तथा िकरात
जाितयां ही इसम¤ नहé आयी ह§ । िकतनी ही ऐसी जाितयां यहां आयी ह§ िजÆह¤ िनिIJत łप से
िकसी खास ®ेणी म¤ नहé रखा जा सकता। िफर उ°र-पिIJम से नाना जाितयां राजनीितक
और आिथªक कारणŌ से आती रही ह§। उन सबके सिÌमिलत ÿयÂन से वह मिहमाशािलनी
संÖकृित उÂपÆन हòई है िजसे हम भारतीय संÖकृित कहते ह§ ।" इस तरह वे भारतीय संÖकृित
कì साथªक और सकाराÂमक Óया´या करते ह§ ।
१०.३ सारांश इस इकाई म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का ‘संÖकृितयŌ का संगम’ िनबंध ÿाचीन काल से
भारतीय संÖकृित के िवकास को ÖपĶ करता है । िāिटश शासन के बाद भारतीय संÖकृित के munotes.in

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कÐपलता : आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबंध : संÖकृितयŌ का संगम
137 संबंध म¤ गलत धारणाओं का ÿसार-ÿचार हòआ था । उसके øम बĦ िवकास को इस िनबंध
के माÅयम से ÖपĶ िकया है ।
१०.४ उदाहरण-Óया´या Óया´या अंश (१):
आज केवल अनुमान के बल पर ही कहा जा सकता है िक अमुक ÿकार का आचार आयª है,
अमुक ÿकार का िवचार þिवड़ है। पर इसम¤ संदेह नहé िक अनेक आयª-अनायª जाितयŌ ने
इस देश के धमªिवĵास को नाना भाव से समृĦ िकया है । आज भी उन जाितयŌ कì थोड़ी -
बहòत परंपरा बच रही है। उनके अÅययन से हम िनिIJत łप से इस नतीजे पर पहòंच सकते ह§
िक हमारे धमªिवĵास को सभी जाितयŌ ने िकसी-न-िकसी łप म¤ ÿभािवत अवÔय िकया है।
संदभª: ÿÖतुत अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' के िनबंध
संÖकृितयŌ का संगम से उĦृत है ।
ÿसंग: इस अवतरण म¤ भारतीय संÖकृित के िवकास म¤ þिवड़ संÖकृित, आयª संÖकृित एवं
अÆय जाितयŌ कì संÖकृितयŌ का िकस तरह िमला-जुला योगदान है, इसे िनबंधकार ने
अिभÓयĉ िकया है ।
Óया´या: इस अवतरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने भारतीय संÖकृित के िवकास म¤
घुल-िमल गए िविभÆन तÂवŌ कì चचाª कì है । भारत म¤ आयŎ के आगमन से पहले मुंडा,
कोल, þिवड़ एवं अÆय जाितयŌ का िनवास था। मुंडा और कोल जाितयां अित ÿाचीन काल
कì ह§ । िजसके बारे म¤ वे कहते ह§ िक "इस देश म¤ ÿथम मनुÕय का वास कहé हòआ होगा तो
वह िवंÅयपवªत के दि±ण म¤ ही कहé रहा होगा। यह भूभाग कभी ऑÖůेिलया के िवशाल Ĭीप
के साथ Öथल मागª से सÌबĦ था और िनकोबार और मल³का के Ĭीप भी इस भूभाग के ही
संलµन अंश थे। इस भूखंड म¤ कभी मुंडा या कोल ®ेणी कì जाितयŌ कì बÖती थी ।" इस
तरह ²ात इितहास म¤ सबसे पहले मुंडा, कोल जैसी जाितयŌ का ÿवास यहां Öवीकार िकया
जाता है। इसके बाद कभी þिवड़ जाित का िवकास हòआ । सन १९२४ म¤ राखालदास
बनजê एवं दयाराम साहनी के ÿयासŌ से हड़Èपा एवं मोहनजोदड़ो के पुरातािÂवक ÖथलŌ कì
खुदाई म¤ बहòत सारे साàय ऐसे िमले, िजनका संबंध þिवड़ जाित से था। यह दोनŌ ही Öथल
अÂयंत िवकिसत अवÖथा म¤ िमले। þिवड़ सËयता एक नगरीय सËयता थी, जबिक आयª
सËयता का संबंध úामीण सËयता से था। िनिIJत łप से इन दोनŌ संÖकृितयŌ के िमलने से
एक नई संÖकृित का उĩव हòआ । मुंडा, कोल जैसी जाितयां, þिवड़ सËयता एवं अÆय गौड़,
छोटी-छोटी जाितयŌ कì बहòत सी सांÖकृितक िवशेषताएं धीरे-धीरे भारतीय संÖकृित म¤ इस
कदर घुल-िमल गयé िक आज उÆह¤ अलग-अलग कर पाना संभव नहé है। यही भारतीय
संÖकृित का समेिकत िवकास है । िजसका िकसी एक जाित या धमª से संबंध नहé है, बिÐक
वह िविभÆन जाितयŌ के सांÖकृितक िवĵासŌ का िमला-जुला łप है ।

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आधुिनक गī
138 िवशेष:
१. भारतीय संÖकृित के िवकास को िचिÆहत िकया है ।
२. भारतीय संÖकृित म¤ एकता के तÂवŌ का उÐलेख िकया है ।
Óया´या अंश (२):
यहां ÿकृत िवषय यह है िक आयŎ के आने के पहले इस देश म¤ एक अÂयंत समृĦ þिवड़
सËयता थी। यह कहना िक ®ी रामचंþ ने समूचे दि±ण को सËय बनाया, िवशेष युिĉसंगत
नहé जान पड़ता ³यŌिक रावण और उसके राºय के लोग रामायण कì अपनी गवाही पर ही
कम समृĦ नहé जान पड़ते। यह हो सकता है िक लोहे का पåरचय þिवड़Ō को आयŎ से हòआ
हो, पर यह इतने से अिधक और कुछ भी नहé िसĦ करता िक दि±ण कì पयाªĮ समृĦ
सËयता म¤ लोहे का अभाव था। आयŎ के पास लोहे के अľ थे िजससे वे िवजयी हòए। एक
दूसरी बात भी उनके िवजय का कारण रही होगी – घोड़े ।
संदभª: ÿÖतुत अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता 'के िनबंध
संÖकृितयŌ का संगम से उĦृत है ।
ÿसंग: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने भारतीय संÖकृित का िवĴेषण करते हòए
रामायणकालीन इितहास के संबंध म¤ कुछ पूवª धारणाओं का यहां िवĴेषण िकया है और
शोधपूणª तÃयŌ के आधार पर एक िनÕकषª तक पहòंचने का ÿयास िकया है ।
Óया´या: यह एक सामाÆय धारणा है िक भारत म¤ संÖकृित का िवकास आयª सËयता के
आगमन के पIJात हòआ। वैिदक सािहÂय म¤ चार युगŌ का वणªन है - सतयुग, ýेतायुग, Ĭापरयुग
और कलयुग। ®ीराम का जÆम ýेतायुग म¤ माना जाता है । ®ीराम के चåरý को महान łप म¤
ÿÖतुत करने का पहला ®ेय वाÐमीिक कृत रामायण úंथ को है । रामायण से तÂकालीन
भारतीय संÖकृित और उसके िवकास के संदभª म¤ बहòत से संकेत ÿाĮ होते ह§ । ऐसा माना
जाता है िक ®ीराम को िपता राजा दशरथ के Ĭारा वनवास िदए जाने के बाद राम ने
अयोÅया Âयाग दी और िचýकूट होते हòए दि±ण कì ओर गमन िकया। जहां नािसक म¤ सीता
हरण कì घटना हòई और उसके बाद राम उनकì तलाश म¤ धुर दि±ण कì ओर गए । अंततः
®ीलंका नरेश रावण से उनका युĦ हòआ इस युĦ म¤ उनका साथ दि±ण कì कई जाितयŌ ने
िदया, जो सांÖकृितक łप से िभÆन थé। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इÆह¤ िभÆन माना है
परंतु इनकì समृĦता के िवषय म¤ उÆह¤ कोई संदेह नहé है । इसीिलए वे मानते ह§ िक रामायण
के साàयŌ के आधार पर भी देखा जाए तो रावण िजस भी जाित से संबंध रखता था, वह
संÖकृित अÂयंत समृĦ थी। लंका को Öवणª िनिमªत बताया गया है । पुÕपक िवमान का िजø
िकया गया है । इसके अलावा और भी बहòत सी शिĉयां रावण के पास थé । राम-रावण युĦ
म¤ राम का सहयोग करने वाली वानर जाित थी। जो अपनी एक अलग सांÖकृितक पहचान
िलए िविशĶ जाित थी । इससे आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह िनÕकषª िनकालते ह§ िक यह
माना जाना िक राम के दि±ण गमन के पIJात ही वहां सËयता का िवकास हòआ, ठीक नहé
है। उन जाितयŌ कì अपनी िविशĶ संÖकृित थी और आयª संÖकृित पर उनका पयाªĮ ÿभाव
पड़ा। इन समय के ÿभावŌ से ही आगे बढ़ते हòए आज कì भारतीय संÖकृित िवकिसत हòयी।
इस ÿकार भारतीय संÖकृित आयª संÖकृित का पयाªय नहé है बिÐक आयª जाित के munotes.in

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कÐपलता : आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी िनबंध : संÖकृितयŌ का संगम
139 अितåरĉ, उनके भारत आगमन से पहले और बाद म¤ यहां िनवास करती अÆय दूसरी
जाितयŌ के आपसी संसगª और मेलजोल का समेिकत पåरणाम है ।
िवशेष:
१. रावण के सÌबंध म¤ ÿामािणक जानकारी िमलती है ।
२. िनबंधकार के िवशेष इितहास ²ान का पåरचय िमलता है ।
१०.५ वैकिÐपक ÿij १. मोहनजोदड़ो और हड़Èपा कì लुĮ िनिधयŌ का आिवÕकार िनÌन म¤ से कब हòआ ?
(क) १९२० (ख) १९२२
(ग) १९२४ (घ) १९२६
२. रावण को िनÌन म¤ से िकस मुिन कì संतान कहा गया है ?
(क) विशķ (ख) अगÖÂय
(ग) शुøाचायª (घ) पुलÖÂय
३. गŌड राजाओं ने अपनी ÿशिÖतयŌ म¤ अपने को िकसका वंशज माना है ?
(क) पुलÖÂय (ख) शुøाचायª
(ग) गुŁ बृहÖपित (घ) नारद
४. िनÌन म¤ से िकसे िवंÅय पवªत को पार करके दि±ण जाने वाला सवªÿथम मुिन माना
जाता है ?
(क) पुलÖÂय (ख) अगÖÂय
(ग) विशķ (घ) िवĵािमý
१०.६ लघु°रीय ÿij १) þिवड़ संÖकृित का पåरचय दीिजए ?
२) ÿाचीन सुमेåरया एवं भारत के संबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ³या जानकारी
देते ह§ ?
३) मुंडा और कोल जाितयां ।

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आधुिनक गī
140 १०.७ बोध ÿij १) 'भारतीय संÖकृित वÖतुतः कई जाितयŌ के Ĭारा िवकिसत समेिकत संÖकृित है', कथन
कì समी±ा कìिजए?
२) भारतीय संÖकृित के संबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì माÆयताओं का
िवĴेषण कìिजए ?
३) िनबंध के आधार पर भारतीय संÖकृित के øमबĦ िवकास को रेखांिकत कìिजए ?
१०.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****
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141 १०.१
िनबÆध : समालोचक कì डाक
इकाई कì łपरेखा
१०.१.० इकाई का उĥेÔय
१०.१.१ ÿÖतावना
१०.१.२ िनबÆध : समालोचक कì डाक
१०.१.२.१ ‘समालोचक कì डाक’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु
१०.१.२.२ ‘समालोचक कì डाक’ िनबÆध का ÿितपाī
१०.१.३ सारांश
१०.१.४ उदाहरण -Óया´या
१०.१.५ वैकिÐपक ÿij
१०.१.६ लघु°रीय ÿij
१०.१.७ बोध ÿij
१०.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
१०.१.० इकाई का उĥेÔय  ÿÖतुत इकाई म¤ छाý 'समालोचक कì डाक ' िनबंध कì अÆतवªÖतु को जान¤गे ।
 'समालोचक कì डाक ' िनबंध के ÿितपाī को छाý समझ सक¤गे ।
१०.१.१ ÿÖतावना आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी एक समथª िनबंधकार है । वे अनेक िवषयŌ कì अिभÓयिĉ
िनबंधो के माÅयम से ÿÖतुत करते है । ऐसे ही 'समालोचक कì डाक' िनबंध म¤ उनकì
सामािजक सोच को दशाªती है और साथ ही समाज के ÿित उनकì आÖथाओ को भी
दशाªती है । इसे िनबंध के अÆतगªत देखा जा सकता है ।
१०.१.२ िनबÆध : समालोचक कì डाक १०.१.२.१ ‘समालोचक कì डाक’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
'समालोचक कì डाक' आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के हाÖय-बोध को ÖपĶ करने वाला
उÂकृĶ िनबंध है। िचंतन और िवचार के भार से मुĉ यह िनबंध अपने समय कì ÿेम-ÿवृि°
पर आधाåरत काÓय कì समी±ा पर आधाåरत है । िहंदी किवता म¤ या कह ल¤, संपूणª िवĵ के
काÓय म¤ ÿेम एक ऐसा िवषय रहा है िजस पर किवयŌ का Åयान सबसे ºयादा गया है।
दरअसल यह रागाÂमक-बोध जहां एक ओर िकसी को भावनाओं के ºवार कì ओर ले जाता munotes.in

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आधुिनक गī
142 है वहé दूसरी ओर इस ºवार को सृजनाÂमक ÿवृि° के लोग काÓय के माÅयम से अिभÓयĉ
करके संभवतः वे मुĉ हो जाना चाहते ह§ । इसीिलए ÿेम कì ÿवृि° संसार कì सभी भाषाओं
कì किवता म¤ सबसे ºयादा तÐलीन होकर Óयĉ कì गई है । यही कारण है िक हमारा
िनबंधकार भी अपने समय कì इस ÿवृि° को दरिकनार नहé कर पाता और अपने गुŁ-गंभीर
िचंतन से मुĉ होकर इस ÿवृि° के िवĴेषण म¤ भी ÓयÖत िदखाई देता है ।
ÿÂयेक नए पुराने किव कì एक लालसा होती है िक उसके सृजन को कोई सुधी आलोचक
देखे, समझे और सराहे । इससे उसे अपनी रचना के ÿित एक िवशेष संतोष िमलता है । यह
िनबंध आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Óयिĉगत अनुभव का िवषय ÿतीत होता है । अपने
लेखन के आरंभ से ही वे एक सुधी-समी±क के łप म¤ ´याित ÿाĮ कर चुके थे । ऐसे म¤
तमाम नए - पुराने सािहÂय कार उनके पास अपनी रचनाओं को भेजते रहते थे और एक
समी±क होने के नाते आचायª िĬवेदी कभी नैितक दबाव के कारण और कभी Öवत:Öफूतª
ÿेरणा के कारण इस तरह कì समी±ा कì ओर ÿवृ° हो जाते थे । परंतु आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी कì Öवाभािवक वृि° सामािजक और लोक-कÐयाणकारी िवषयŌ कì ओर
अिधक रही है। ऐसे म¤ लगातार ÿेमपरक-काÓयŌ कì समी±ा िलखना उनके िलए िकतना
बोिझल रहा होगा, यह समझा जा सकता है और यह भावना इस िनबंध म¤ ÖपĶ łप से
ÿकट भी होती है । जब हमारे पास कई अÆय तरह के सामािजक दबाव और दाियÂव मुंह
बाए खड़े हŌ, ऐसे म¤ ÿेम कì Óयंजना का ³या और िकतना अथª है ? आधुिनक सािहÂय म¤
इस िनबंध के िलखे जाने के पूवª ही भारत¤दु हåरIJंþ, आचायª महावीर ÿसाद िĬवेदी जैसे
संपादक-आलोचक -सािहÂयकार नए युग के अनुłप लेखकŌ से नए िवषयŌ के चयन कì बात
कह चुके थे और यह अपने सामियक समय म¤ सÂय भी था। इसी अनुłप आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी कì ŁिचयŌ का पåरÕकार हòआ । उनके िलए सामािजक ÿij, Óयिĉगत ÿेम-
Óयंजना से कहé ºयादा महÂवपूणª थे ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì लेखन शैली गुŁ-गंभीर और िचंतनपरक शैली है । इस
िवशेषता के साथ-साथ वे अपने िनबंधŌ म¤ ÓयंµयाÂमकता और हाÖयपर कता से एक हÐका -
फुÐका रसमय वातावरण िनिमªत िकए रहते ह§, जो पाठक को गुदगुदाता भी रहता है । यह
गुदगुदाहट पाठक को पुÖतक से अलग नहé होने देती । उनके िनबंधŌ म¤ एक साथ िवĴेषण
कì गाÌभीयªता और हाÖय-ÿवणता के कारण उनके िनबंध उनकì अपनी शैली के िविशĶ
िनबंध बन जाते ह§। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने समय कì इस किवता ÿवृि° का
गंभीर िवĴेषण करते िदखाई देते ह§। साथ ही उन किवयŌ पर कì गई उनकì िटÈपिणयां
अÂयंत साथªक िटÈपिण यां ह§, जो उन किवयŌ कì िवशेषताओं को ÿदिशªत करती ह§ । इस
िनबंध म¤ एक समालोचक के łप म¤ िजÌमेदाåरयŌ के साथ-साथ हाÖयपूणª ढंग से उन खतरŌ
कì भी चचाª करते आचायª िदखाई पड़ते ह§, िजनका समालोचक को अपनी समी±ा िलखते
हòए सामना करना पड़ता है। िनबंध के आरंभ से ही वे पाठक को भाषायी वैभव से गुदगुदाना
आरंभ कर देते ह§ । वे िलखते ह§, "समालोचक िलफाफा देखकर खत का मजमून भांपने
लगता है। लाल और नीले रेशमी फìतŌ से बंधे हòए पैकेट म¤ िकसी युवक किव कì ÿेम-कथा
बंधी हòई है। उसकì कÐपना -जगत कì ÿेयसी िनIJय ही अप-टू-डेट फैशन कì पåरपाटी िविहत
सºजा से सिºजत होगी, उसका मुख चांद-सा गोल और आंख¤ आम कì फांक-सी बड़ी
हŌगी। काजल वह जłर लगाती होगी, केश म¤ एकाध फूल िनIJय ही रहते हŌगे । - वे
काÐपिनक रजनीगंधा के भी हो सकते ह§, जूही-चमेली के भी हो सकते ह§ - और पुÖतक का munotes.in

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िनबÆध : समालोचक कì डाक
143 िशरोभाग जो साफ खुला हòआ िदख रहा है और उस सुंदर बंधाई के भीतर से लापरवाही से
फटे हòए जो पÆने दीख रहे ह§, वे इस बात के सबूत ह§ िक उस किÐपत ÿेयसी के गुलाबी
कपोलŌ पर उसके अÖत-ÓयÖत िचकुर भी िहल रहे हŌगे । किव के ÿेम म¤ उतावलापन नहé
है, धीरता से भरी हòई Óयाकुलता है - यह बात तो सारा पैकेट ही कह रहा है ।" तो इस शैली
म¤ िनबंधकार अपनी बात आरÌभ करता है, िजसके शÊद-शÊद से हाÖय कì एक िÖमत रेखा
ÿकट होती िदखाई देती है ।
इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने रामेĵर शु³ल 'अंचल' के काÓय-संúह
'मधूिलका', िगरीश जी के काÓय-संúह 'मंदार', भगवतीचरण वमाª के 'ÿेम-संगीत', देवराज के
'ÿणय गीत', डॉ. नग¤þ के 'वनमाला', उप¤þनाथ अÔक के 'ÿात-ÿदीप', आर.सी. ÿसाद िसंह
का 'कलापी ', होमवती देवी का 'अधª' आिद काÓय संúहŌ कì चचाª कì है । यह चचाª करते हòए
िनरंतर उनकì गंभीरता से कही जाने वाली बात¤ भी हाÖय के पुट से मुĉ नहé हो सकì ह§।
दरअसल िवषय का चयन करना किव का अिधकार है । उसकì अपनी Łिच Öवाभािवक ढंग
से िकस ओर है, वह अपनी रचना िकस िवषय पर करना चाहता है, इस पर कोई बंधन नहé
हो सकता । परंतु िनबंध पढ़ते हòए यह बार-बार ÿतीत होता है िक िनबंधकार अपने सामियक
पåरवेश को लेकर िचंतायुĉ है । ऐसा लगता है जैसे वह अपने समय के किवयŌ से यह कहना
चाहता है िक अभी ÿेमदान करने का समय नहé है । हमारे समय कì समÖयाएं और ÿij,
गंभीर सामािजक समÖयाओं से जुड़े हòए ÿij ह§ । अपनी कलम को उस ओर मोड़ देना हमारा
सामािजक दाियÂव है । िनबंध के अंत म¤ लेखक अपने इस मंतÓय को ÖपĶ करता भी िदखाई
देता है ।
अपनी सामियक िचंताओं को महसूस करते हòए भी िनबंधकार इन ÿेम-काÓयŌ और किवयŌ
के बारे म¤ जो िटÈपिणयां करता है, वे बड़ी साथªक और अथªवान िटÈपिणयाँ ह§, िजनसे उन
किवयŌ कì िवशेषताओं का पता चलता है । 'मधूिलका' और 'मंदार' के किवयŌ पर िटÈपणी
करते हòए िनबंधकार िलखता है, "मधूिलका' और 'मंदार' दोनŌ ही ÿेम-काÓय ह§ । दोनŌ ही
कÐपना के खेत म¤ उपजे ह§; पर दोनŌ म¤ एक मौिलक अंतर है । मधूिलका के किव कì इ¸छा
केवल ÿेमी बनने कì है; पर मंदार का किव ÿेमी भी बनना चाहता है और िÿय भी । इसीिलए
एक ÿेम-पाý कì ओर से लापरवाह होने के कारण अबाध भाव से अपना गान गाए जाता है,
उसे अपनी मÖती का ही भरोसा है, सुनने वाले ने सुन िलया तो ठीक है, न सुना तो उसी का
नुकसान है ।........ पर मंदार का किव केवल लालसा कì धारा म¤ बह जाना नहé चाहता । वह
ÿितदान भी चाहता है ।" यह ऐसी िटÈपिणयां करते हòए वे काÓय-संúह से उदाहरण भी देते
चलते ह§। इसी तरह भगवतीचरण वमाª और उनके काÓय-संúह 'ÿेम-संगीत' पर िटÈपणी
करते हòए वे कहते ह§, "ÿेम-संगीत के किव कì मÖती सचमुच कì मÖती है । वह दुिनया के
िकसी पदाथª को िÖथर नहé मानता , ÿेम को भी नहé, घृणा को भी नहé । इस ±णभंगुरता के
अटूट ÿवाह म¤ वह केवल एक वÖतु को िÖथर समझता है - जैसे नदी कì ÿÂयेक चंचल बूंद
के भीतर से उसका ÿवाह अÓयाहत रहता है, उसी ÿकार । यह वÖतु जीवन नहé है, जैसा िक
वह समझना चाहता है। यह वÖतु है उसका अपना ÓयिĉÂव । अनंत ÿवाह के भीतर बहती
हòई भी उसकì स°ा शाĵत है । ÿेम-पाý आते ह§ और चले जाते ह§, कुछ हंस जाते ह§, कुछ
हंसा जाते ह§ । कुछ रो जाते ह§, कुछ Łला जाते ह§, और मÖत ÓयिĉÂव आगे बढ़ता है ।.......
इसी को वह जीवन कहता है ।" आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì इस तरह कì िटÈपिणयां munotes.in

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आधुिनक गī
144 िनबंध के हाÖयपर क ÿवृि° के चलते Óयंग कì तरह लेना ठीक नहé होगा । यह अÂयंत गुŁ-
गंभीर िटÈपिणयां ह§, िजनसे उन किवयŌ के काÓय ÓयिĉÂव का पता चलता है ।
इसी तरह कì साथªक िटÈपिणयां आचायª जी ने डॉ. नग¤þ, उप¤þनाथ अÔक और
आरसीÿसाद िसंह के बारे म¤ भी कì ह§, िजनम¤ उनके किव ÓयिĉÂव का अंकन िदखाई देता
है। डॉ. नग¤þ पर कì गई उनकì िटÈपणी अÂयंत साथªक िटÈपणी है, िजसम¤ आचायª िĬवेदी
कì सूàम-ŀिĶ और गहन िवĴेषण देखने को िमलता है । वे िलखते ह§, "वनमाला का किव
िनराला ÿेमी है। ÿेम उसकì ŀिĶ है, ŀĶÓय भी नहé, ŀĶा भी नहé। इसीिलए उसकì ŀिĶ
संसार को इतना कोमल , इतना मंजुल देख सकì है। पर शायद किव को अभी टकराना
बाकì है। कहते ह§, ÿेम अंधा होता है । वनमाला के किव का ÿेम अंधा नहé है, पर ®ी नग¤þ
कì तरह वह 'िøिटक ' नहé है, इतना तो िनिIJत है। संसार कì युĦÖथल कì कÐपना करके
िøिटक लोग िजस मतवाद -महासमर का मजा िलया करते ह§, वह वनमाला म¤ ÖपĶ नहé
हòआ है। किव िजतना ही सामंजÖयÿवण होता है, िøिटक उतना ही िवĴेषणÿवण। नगेÆþ
दोनŌ ह§।" इस तरह अपनी इस िटÈपणी म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने डॉ. नग¤þ के किव
और आलो चक ÓयिĉÂव का साथªक अंकन िकया है । डॉ. नग¤þ कì दो अलग-अलग
सृजनाÂमक ±मताओं का यह साथªक िवĴेषण है ।
'समालोचक कì डाक' िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने ÿेम-काÓय-संúहŌ के बहाने
इसी तरह कì िटÈपिणयŌ से उप¤þनाथ अÔक, आरसी ÿसाद िसंह और होमवती देवी - इन
सभी का िवĴेषण िकया है। िनबंधकार जब इस तरह कì िटÈपिणयां िलखता है तो उसका
समी±क łप ÿभावशाली ढंग से िदखाई देता है। वहé दूसरी तरफ िनबंध के अÆय िहÖसŌ म¤
उनका Öवत:Öफूतª हाÖय से पåरपूणª ÓयिĉÂव देखने को िमलता है । जैसा िक पूवª म¤ ही कह
चुके ह§ िक आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì आÖथाएँ सामािजक दाियÂव कì ओर अिधक
थé। ऐसे म¤ ÿेम-Óयंजना से पåरपूणª काÓय और वह भी लगभग ºयादातर किवयŌ के Ĭारा
िलखा जाना और िफर समी±ा के िलए उन तक भेजा जाना, उÆह¤ एक बोिझल कायª कì
तरह लगने लगा। इसी बात से Óयिथत होकर वे Óयंµयपूणª ढंग से िलखते ह§ िक, "ÿेम का यह
बीहड़ अब भी पार नहé हòआ। 'मधूिलका' के अपåरú हेÂसु ÿेमी, 'मंदार' के िÿय बनने म¤
सयÂन ÿेिमक, 'वनबाला ' के ÿेम कì आंखŌ से देखने वाले ÿेिमक, 'ÿात ÿदीप' के अनुभवी
और लापरवाह ÿेिमक, 'कलापी ' के अ²ात लोक के मादक और अ²ेय ÿेिमक और 'अधª' के
शांताकां± ÿेिमक कì चचाª करने के बाद कोई समालोचक िवराम úहण करने कì सोच
सकता है। केवल ÿेम कì बातŌ का कोई कहां तक िववेचन करे। ÿÂयेक Óयिĉ अपनी िÖथित
के अनुसार ÿेम का दांव-पेच बदलता रहता है । समालोचक िवĴेषण करके कहां तक िसर
खपावे।" उनके इस कथन से सहज ही हम यह अंदाजा लगा सकते ह§ िक यह उनके िलए
िकतना बोिझल हो चुका था । सही मायनŌ म¤ वे ऐसे काÓय कì अÿासंिगकता को समझ रहे
थे ।
दरअसल अपने युगीन संदभŎ से टकराना हर लेखक का धमª और दाियÂव है । अपने समय
से आंख¤ चुराकर कभी भी बड़ा सािहÂयकार -किव-लेखक नहé बना जा सकता । ÿेम और
वह भी Óयिĉगत ÿेम, कभी भी उदा° भावनाओं का वाहक नहé हो सकता । आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी कì आÖथा सामािजक ÿijŌ को हल करने म¤ थी । अपने समय के सािहिÂयक
वातावरण कì इस दशा के बावजूद हम जानते ह§ िक वे आशावाद से पåरपूणª लेखक ह§। munotes.in

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िनबÆध : समालोचक कì डाक
145 िवपरीत से िवपरीत िÖथितयŌ म¤ भी वे अपने आशावाद कì लौ धीमी नहé पड़ने देते ह§ । यह
हम¤ उनके कई िनबंधŌ म¤ देखने को िमलता है । इस िनबंध म¤ भी वे इसी आशा के साथ
ÿÖथान करते ह§। नए किवयŌ कì भावनापर क िववशता को समझते भी ह§। इसीिलए िलखते
ह§ िक, "ÿेम का बीहड़ ! ठीक है, ÿेम के ये काÓय अनÆत शिĉ के ÿतीक ह§, िजसे मानव
अपनी युवावÖथा म¤ संिचत कर रहा है। ÿौढ़ होते ही जवानी का यह खेल काम म¤, कÐपना
बुिĦ म¤, कला उīोग म¤, आशावाद समÂववाद म¤, साहस दूरदिशªता म¤, उĥंडता मयाªदा म¤
बदल जाएंगे - यह िनिIJत है । ऐसा ही होता है । जहां ऐसा नहé होता, वहé सोचने कì बात
है।" इस तरह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इसी आशावाद के साथ िक युवावÖथा का
भावनाÂमक ºवार जब िवराम ले लेगा, तब नए किव और लेखक जीवन और समाज के
अनुभवŌ से ÿेåरत होकर अपने सामािजक दाियÂवŌ को समझते हòए, रचना के ÿाłप को
बदल¤गे। उनकì संवेदना म¤ पåरवतªन होगा । जीवन के कठोर धरातल से टकराकर उनकì
संवेदना बदलेगी ।
१०.१.२.२ ‘समालोचक कì डाक’ िनबÆध का ÿितपाī:
'समालोचक कì डाक' िनबंध आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का Óयंµयपूणª िनबंध है। इस
िनबंध म¤ उÆहŌने अपने समय के सािहÂय कì ÿवृि°यŌ कì चचाª करते हòए उसका मूÐयांकन
िकया है। इस िनबंध को पढ़ते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì रचनाÂमक ÿितबĦताओं
का पåरचय भी िमलता है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी को एक उदार परंपरावादी बौिĦक ,
इितहास -ÿेमी, संÖकृित-²ाता और सही अथŎ म¤ मानवतावादी के łप म¤ जाना जाता है।
उनके िनबंध अलग-अलग ÿसंगŌ म¤ इÆहé ÿवृि°यŌ को दशाªते िदखाई देते ह§ । उनकì
सािहिÂयक ÿितबĦताएँ ÖपĶ łप से इस िनबंध म¤ उनकì सामािजक सोच को दशाªती ह§,
समाज के ÿित उनकì आÖथाओं को दशाªती ह§ ।
यह िनबंध इस तÃय का ÖपĶ łप से िवĴेिषत करता िदखाई देता है िक सािहÂय का
वाÖतिवक उĥेÔय ³या है ? आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अÆय िनबंधŌ और समी±ाओं म¤
यह बात भली-भांित ÖपĶ है िक सािहÂय का अंितम उĥेÔय है - लोक कÐयाण और इÆहé
अथŎ म¤ वे सािहÂय म¤ संवेदना के ÿवेश को उिचत या अनुिचत समझते ह§। िहंदी किवता के
इितहास म¤ छायावाद के अंितम चरण एवं उ°र छायावादी युग म¤ किवता म¤ Óयिĉगत
संवेदना के अिभÓयĉ करने का चलन तेजी से बढ़ा । इसम¤ भी ÿेम कì पृķभूिम पर किवता
िलखने कì ÿवृि° तेजी से बढ़ी ³यŌिक आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी आरंभ से ही एक
समी±क के łप म¤ समाĮ हो चुके थे । अतः इन किवयŌ कì यह लालसा होती थी िक कोई
बड़ा समी±ा क या आलोचक उनकì किवता कì समी±ा करे । वह समी±ा पý-पिýकाओं म¤
छपती है, िजससे उÆह¤ भी आदर - सÌमान का संतोष ÿाĮ हो सके। आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी सृजनाÂमकता का मान रखते हòए ऐसी समी±ाएं िलख भी देते रहे हŌगे, पर उÆह¤
अपने इस कृÂय से संतोष नहé ÿाĮ होता था । कहé न कहé वैयिĉक ÿेम कì अिभÓयिĉ को
वे सािहÂय म¤ सÌमानपूणª ŀिĶ से नहé देखते थे । इसीिलए इस िनबंध म¤ उÆहŌने एक िववश -
िवþोह भी दशाªया है ।
आचायª िĬवेदी जीवन के वृह°र जगत को सािहÂय के अंतगªत łपाियत होते देखना चाहते
थे। ऐसे सािहÂय को पढ़ना, उसका मूÐयांकन करना , इसम¤ उनकì łिच बैठती थी। नए या munotes.in

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आधुिनक गī
146 पुराने किवयŌ के आúह को टाल न सकने कì िÖथित म¤ वे ÿेमािभÓयिĉपरक काÓय कì
समी±ाएं िलख तो देते थे, परंतु उÆह¤ लगता था िक सािहÂयकारŌ को अपने सामािजक
दाियÂव को समझना चािहए । अपने युगीन सामािजक - राजनीितक ÿijŌ को देखना चािहए ।
सािहÂय का उĥेÔय यिद मानव-कÐयाण है तो उÆह¤ सािहÂय कì रचना म¤ ऐसे िवषयŌ का
चयन करना चािहए , िजनसे समाज और मानवता को अपने अनु°åरत ÿijŌ का उ°र िमल
सके। इसीिलए वे वैयिĉक भावनाओं कì अिभÓयिĉ करने वाले काÓय कì रचना को
िवनăतापूवªक हतोÂसािहत करने का ÿयास करते ह§ और इन किवयŌ कì ÿितभा को सही
िदशा और ŀिĶ देने कì शुभकामना Óयĉ करते ह§ । यह िनबंध सािहÂय के उĥेÔयŌ को सही
अथŎ म¤ हमारे सामने ÿकट करता है ।
१०.१.३ सारांश ÿÖतुत िनबंध म¤ आ. हजारी ÿसाद िĬवेदी जी ने हाÖय-बोध को ÖपĶ िकया है । इस
Óयंगपूणª िनबंध म¤ अपने समय के सािहÂय कì ÿवृि°यŌ कì चचाª कì है । और इसम¤
रचनाÂमक ÿितबĦताओं का पåरचय भी िमलता है ।
१०.१.४ उदाहरण-Óया´या Óया´या अंश (१):
ÿेम का बीहड़ ! ठीक है, ÿेम के ये काÓय अनÆत शिĉ के ÿतीक ह§, िजसे मानव अपनी
युवावÖथा म¤ संिचत कर रहा है। ÿौढ़ होते ही जवानी का यह खेल काम म¤ कÐपना बुिĦ म¤
कला उīोग म¤, आशावाद समÂववाद म¤, साहस दूरदिशªता म¤ उĥंडता मयाªदा म¤ बदल जाएंगे
- यह िनिIJत है। ऐसा ही होता है । जहां ऐसा नहé होता, वहé सोचने कì बात है । 'मधूिलका',
'मंदार' और 'कलापी ' म¤ जो खेल है, जो कÐपना है, जो वािµमता है; 'ÿणय गीत ' म¤ जो
िचंतनाÂमक आशावाद है; 'वनबाला ' म¤ जो मंजुल कÐपना है; 'ÿात ÿदीप ' म¤ जो साहस और
ÖपĶता है, वह दुदªमनीय युवाशिĉ का पåरचायक है। वे भिवÕय म¤ केवल कÐपना के शूÆय म¤
नहé घूम सक¤गे। जब वे धरती पर जमकर खड़े हŌगे, जब वे समाज कì समÖया ओं के आमने
- सामने खड़े हŌगे, तो समालोचक को कुछ भी पछताना नहé पड़ेगा ।
संदभª: ÿÖतुत अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह ' कÐपलता ' के िनबंध
समालोचक कì डाक' से उĦृत है ।
ÿसंग: उĉ "म¤ िनबंधकार सािहÂय कì ÿवृि°यŌ कì ÿासंिगकता पर अपनी बात कह रहे ह§
ÿेम कì अिभÓयिĉ सामािजक यथाथª का िचýण आिद सािहÂय ÿवृि°यŌ म¤ कौन सी ÿवृि°
ÿासंिगक है और कौन सी अÿासंिगक इस संदभª म¤ िवचार पूणª ढंग से िनबंधकार अपनी बात
रख रहे ह§
Óया´या: समालोचक कì डाक िनबंध हाÖयपर क शैली म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के
Ĭारा िलखा गया रोचक िनबंध है । इस िनबंध कì शैली हाÖयपर क अवÔय है परंतु िनबंधकार
ने इस संदभª म¤ अÂयंत गंभीर िवषय पर िचंतन िकया है । वाÖतव म¤ तÂकालीन समय के
उ°र-छायावादी युग म¤ ÿेम और मÖती के काÓय कì एक लहर सी चल पड़ी थी और बहòत munotes.in

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िनबÆध : समालोचक कì डाक
147 से किव ÿेम कì अलग-अलग Óयंजनाएँ अपने काÓय संúहŌ म¤ ÿÖतुत कर रहे थे । आधुिनक
सािहÂय गहरे सामािजक सरोकारŌ से संबंिधत सािहÂय है । उसी समय ÿगितशील काÓय
सामािजक प±धरता को लेकर अलग तरह से सामािजक यथाथª को सबके सामने रख रहा
था ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी Öवयं सामािजक ÿितबĦता से जुड़े रचनाकार ह§ । उÆहŌने
अपने िनबंधŌ म¤ Óयापक मानवीय सरोकारŌ को पाठकŌ के सामने रखा है । इस िनबंध म¤
उÆहŌने अपने समय के कई ÿेम - ÿवृि° मूलक काÓय-संúहŌ कì चचाª करते हòए इस बात पर
±ोभ ÿकट िकया है िक ÿेम कì िकतनी तरह कì Óयंजनाएं कì जाएंगी और इन पर िकतनी
समी±ा िलखी जाएगी ? किवता कì साथªकता, ÿेम कì अिभÓयिĉ से कहé ºयादा अपने
समय के यथाथª कì अिभÓयिĉ म¤ है। किवयŌ को सामािजक यथाथª को अपनी किवता का
िवषय बनाना चािहए , िजससे किवता लोक कÐयाण का एक महÂवपूणª उपकरण बनकर
समाज सेवा का कायª कर सके । इस अवतरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी आशावादी
Öवर म¤ यह उÌमीद Óयĉ कर रहे ह§ िक युवा-मन ÿेम कì अिभÓयिĉ से जब थक जाएगा ,
अनुभव उसे कुछ पåरप³व बनाएगा , तब यह किव अपने सामािजक उ°रदाियÂव को
समझ¤गे और इनकì किवता का Öवर बदल जाएगा ।
िवशेष:
१. िनबंधकार ने ÿेम-ÿवृि° मूलक काÓय कì Óयथªता को िचिÆहत िकया है ।
२. िनबंधकार ने किव के उ°रदाियÂव को गहरे सामािजक सरोकारŌ से जोड़ कर िदखाया
है ।
१०.१.५ वैकिÐपक ÿij १. "अÔक कì रचनाओं म¤ आंसू कì बूंदŌ म¤ भी वाणी आ गई है।" यह िकसका कथन है ?
(क) रामकुमार वमाª (ख) िगरीश
(ग) हजारीÿसाद िĬवेदी (घ) होमवती देवी
२. 'ÿात ÿदीप' िनÌन म¤ से िकसका काÓय-संúह है ?
(क) िगरीश (ख) आरसी ÿसाद
(ग) उप¤þनाथ अÔक (घ) डॉ. नगेÆþ
३. 'वनबाला ' का किव िकस किव का ÿेमी है ?
(क) अंचल (ख) िनराला
(ग) िगरीश (घ) हेमवती देवी
munotes.in

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आधुिनक गī
148 ४. िनÌन म¤ से कौन सा काÓय-संúह रामेĵर शु³ल 'अंचल' के Ĭारा रचा गया है ?
(क) ÿणय गीत (ख) कलापी
(ग) मंदार (घ) मधूिलका
१०.१.६ लघु°रीय ÿij १) 'मधूिलका' और 'मंदार' काÓय म¤ ³या अंतर है ?
२) डॉ नग¤þ कì काÓय िवशेषताएँ ।
३) आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने उप¤þनाथ अÔक के संबंध म¤ ³या कहा है ?
१०.१.७ बोध ÿij १) 'समालोचक ' कì डाक िनबंध के माÅयम से आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने ³या संदेश
ÿेिषत करने का ÿयास िकया है
२) 'समालोचक कì डाक' िनबंध कì िवषयवÖतु का िवĴेषण कìिजए ?
३) 'समालोचक कì डाक' िनबंध के आधार पर आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िचंतन का
मूÐयांकन कìिजए ?
१०.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****
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149 ११
िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
इकाई कì łपरेखा
११.० इकाई का उĥेÔय
११.१ ÿÖतावना
११.२ िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
११.२.१ मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ िनबÆध कì अÆतवªÖतु
११.२.२ मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ िनबÆध का ÿितपाī
११.३ सारांश
११.४ उदाहरण-Óया´या
११.५ वैकिÐपक ÿij
११.६ लघु°रीय ÿij
११.७ बोध ÿij
११.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
११.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई के अंतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां'
िनबÆध का वÖतुगत िवĴेषण िकया गया है । 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां' तÂकालीन
समय कì मिहला लेिखकाओं कì कहािनयŌ का वÖतुगत मूÐयांकन है एवं इसम¤ लेिखकाओं
के दूरगामी उĥेÔयŌ कì भी जांच-पड़ताल िनबंधकार के Ĭारा कì गई है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी बहòिवषयी लेखक के łप म¤ जाने जाते ह§। उनके िनबंधŌ म¤
उÆहŌने िजन भी िवषयŌ को उठाया है, उनिवषयŌ कì ÿकृित अÂयंत Óयापक है । देश,
समाज, शाľ, संÖकृित, इितहास, समसामियक ÿij आिद सभी कुछ उनके िनबंधŌ म¤
समािवĶ है । किठन से किठन िवषय को अÂयंत Óयावहाåरक शैली म¤ उÆहŌने पाठकŌ के
सामने रखा है।
११.१ ÿÖतावना आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी जिटल ±मताओं से युĉ सरल सािहÂयकार ह§ । ऐसे
सािहÂयकार िहंदी म¤ बहòत ही कम हòए ह§। उनका सािहÂय हमारी सािहिÂयक िवरासत को
समृिĦ ÿदान करता है । उनके िवषय छोटे से लेकर राÕůीय-अंतरराÕůीय जगत के Óयापक
ÿसारयुĉ पåरŀÔय को अपने म¤ समेटे हòए ह§ । उÆहŌने िजस भी िवषय को उठाया है, उसका
ÓयविÖथत िचýण िकया है । यह िचýण शैली आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì अपनी तरह
कì मौिलक शैली है, िजसम¤ गुŁता, गंभीरता, हाÖयपरकता सभी कुछ एक साथ सिÌमिलत munotes.in

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आधुिनक गī
150 िमल जाता है। साधारण से साधारण पाठक भी उनके Ĭारा ÿÖतुत िकए गए किठन से किठन
िवषय को अÂयंत सहजता से समझ सकता है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ŀिĶ अपने समय के हर िवषय को आवृत िकए रहती थी।
इस इकाई म¤ उनके Ĭारा िलखा गया िनबंध 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां' इस ŀिĶ से
महÂवपूणª है िक उÆहŌने अपने समय म¤ ľी-लेखन को िकतनी सूàमŀिĶ से देखा और
िवĴेिषत िकया था । ľी-लेखन कì सही िदशाएं ³या होनी चािहए ? उÆहŌने अपने िनबंध म¤
इसकì भी Óयापक चचाª कì है। यह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िवशेषता है िक वह
बोिझल से बोिझल िवषय को भी अÂयंत Łिचकर बना देते ह§। पाठक कì िज²ासा को
जगाकर उसम¤ Łिच उÂपÆन कर देते ह§। िफर पाठक उस िवषय म¤ सहज ही संलµन िदखाई
पड़ता है। इÆहé ŀिĶयŌ से इस इकाई म¤ सिÌमिलत िनबÆध का अÅययन िकया गया है।
११.२ िनबÆध : ‘मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ’ ११.२.१ ‘मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
एक िनबंधकार के łप म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì अपनी Łिचयां िजतनी इितहास
और संÖकृित से जुड़ती ह§, उससे कम अपने समसामियक संदभŎ से भी नहé जुड़ती ह§।
उनके ÓयिĉÂव म¤ परंपरा बोध के साथ आधुिनकता का अÂयंत उÂकृĶ समÆवय है । उनकì
दूरदशê ŀिĶ अपने समय के महÂवपूणª संदभŎ को पहचानने म¤ सदा स±म रही है । युगीन
संदभŎ और समÖयाओं को अपने िनबंधŌ म¤ उÆहŌने िजस ढंग से सामने रखा है उसम¤ कोई
संदेह नहé रह जाता िक आचायª िĬवेदी बहòमुखी ÿितभा के धनी सािहÂयकार थे।
समसामियक संदभŎ को लेकर उनकì चेतना गजब बलवती थी। सांÿदाियकता, राजनीित
आिद के िविवध संदभª िजस ढंग से उनके िनबंधŌ म¤ आए ह§, उससे उनकì Öव¸छ धवल ŀिĶ
और मानवीय मूÐयŌ के ÿित अगाध आÖथा का पåरचय िमलता है। समकालीन संदभŎ म¤
मिहला लेखन कì िÖथित पर भी उÆहŌने कुछ इसी ŀिĶ से िवचार िकया है । जैसा िक हम
जानते ह§, 'कÐपलता' संúह का ÿकाशन सन १९५१-५२ म¤ हòआ था। 'मिहलाओं कì िलखी
कहािनयां' िनबÆध इसी संúहम¤ ÿकािशत महÂवपूणª िनबंध है । िहंदी ने जब Óयापक łप म¤
ľी लेखन के ÿित सकाराÂमक ŀिĶकोण अपनाया और िहंदी सािहÂय म¤ ľी िवमशª एक
महÂवपूणª अवधारणा के łप म¤ उभरी, यह इस िनबंध कì रचना के काफì बाद कì घटना है।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì दूरदिशªता इसी से भांपी जा सकती है िक उÆहŌने अपने
इस िनबंध म¤ िवशुĦ इसी ŀिĶ से कुछ महÂवपूणª लेिखकाओं का मूÐयांकन िकया है।
समकालीन दौर म¤ िहंदी सािहÂय म¤ ľी िवमशª, दिलत िवमशª, आिदवासी िवमशª जैसे और
भी िकतने ही िवमशª भाव और िवचार-िवमशª कì ŀिĶ से अपने संदभŎ के ÿित अÂयंत
क¤þीभूत रहे। िहंदी को ľी लेिखकाओं के łप म¤ सन १९७५ के बाद के दौर म¤ मÆनू
भंडारी, नािसरा शमाª, अनािमका, काÂयायनी, ÿभा खेतान, मृदुला गगª, मृणाल पांडे, मैýेयी
पुÕपा जैसी सशĉ लेिखकाएँ िमलé। इसी ÿकार दिलत िवमशª से गहरा सरोकार रखने वाली
लेिखकाओं म¤ कौशÐया वैसÆýी, सुशीला टाकभौरे जैसी महÂवपूणª सािहÂयकार भी आयé
और अपनी िविशĶ पहचान बनायी। इनम¤ से कई लेिखकाएँ ऐसी ह§ िजनकì ŀिĶ कुछ
आøामक है, और कुछ कì ŀिĶ बेहद संतुिलत है । िनबंध 'मिहलाओं पर िलखी कहािनयां' munotes.in

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िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
151 ³यŌिक मिहला लेिखकाओं पर क¤िþत है अतः इÆहé संदभŎ म¤ आगे कì चचाª होगी । इस
िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने तÂकालीन मिहला लेिखकाओं के रचना कमª को
आधार बनाया है और अÂयंत संतुिलत ŀिĶ से उनके सृजन कमª का मूÐयांकन िकया है।
और इस øम म¤ अपनी मेधा के अनुसार उÆहŌने इस रचना कमª का उĥेÔयपूणª मूÐयांकन
िकया है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का िवĵास समायोजन कì ÿवृि° पर है । वह अपने िनबंध कì
शुŁआत इस माÆयता के खंडन से करते ह§ िक एक ľी को ľी ही ठीक से समझ सकती है
और ľी संवेदना को वही ठीक से अिभÓयĉ भी कर सकती है । िहंदी सािहÂय ही नहé वरन
समÖत वैिĵक सािहÂय म¤ जहां-जहां ľी िवमशª कì ÿिøया जारी है, वहां यह धारणा मूल
धारणा के łप म¤ Öथािपत है िक एक ľी ही ľी को ठीक से समझ और अिभÓयĉ कर
सकती है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इस Öथािपत धारणा के ÿित अपना समथªन नहé
देते। उनका मानना है िक, "यह िवचार िक ľी ही ľी को समझ सकती है और पुŁष ľी
को नहé समझ सकता , िकसी बहके िदमाग कì कÐपनामाý है । वÖतु िÖथित कुछ और है।
उसका कारण पुŁष और ľी के सहयोग के िवकास से समझा जा सकता है।" इस तरह ľी
संदभŎ को अÆय सामािजक संदभŎ से अलग करके देखना वे ठीक नहé समझते । यह सृिĶ
ľी और पुŁष के संतुिलत ŀिĶकोण और समायोजन पर आधाåरत है और इसी ÿिøया को
वे समú संदभŎ के अनुłप देखना पसंद करते ह§ ।
इस िनबंध म¤ ľी लेिखकाओं पर चचाª करने के पूवª वे इस अवधारणा कì पृķभूिम और
िसĦांत पर भी कुछ िवचार रखते ह§ । सृिĶ के िवकास म¤ िľयŌ के महÂव कì वाÖतिवकता
को समझते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी इस बात कì चचाª करते ह§ िक संभवतः
सËयता का आरंभ ľी ने िकया था। मनुÕय का यायावर जीवन समाĮ करने म¤ उसकì बड़ी
भूिमका थी। उसी ने पुŁषŌ को बंधन म¤ बांधकर सामािजक जीवन आरंभ िकया । झोपड़ी
उसने बनाई, अिµन का आिवÕकार भी उसने िकया, कृिष आरंभ भी उसने िकया और इस
øम म¤ ľी पुŁष को गृह कì ओर खéचने का ÿयÂन करती रही और पुŁष बंधन तोड़कर
भागने का ÿयÂन करता रहा । इसी अनुłप सृिĶ चलती रही । इसी øम म¤ ľी का Öवłप
रहÖय आवृत होता गया। आधुिनक काल का आरंभ औīोिगक और Óयावसाियक øांित से
हòआ। कृिष-मूलक सËयता िपछड़ती चली गई। भारी सामािजक पåरवतªन िदखाई िदए।
पåरवार और वगª कì भावना िपछड़ने लगी । नगर बढ़ने लगे और Óयिĉवाद कì ÿवृि° जोर
मारने लगी। इन पåरिÖथितयŌ म¤ सब कुछ अनावृत होने लगा । ľी भी इसका अपवाद नहé
रही। अपने रहÖयावरण को हटाने के िलए Öवयं ľी आगे बढ़ी और इस øम म¤ जहां एक
तरफ पुŁषŌ ने िľयŌ को समझने का ÿयास िकया वहé दूसरी तरफ ľी ने भी अपने को
अनावृत कर पुŁषŌ को सहयोग िकया और इन सब िÖथितयŌ का असर सािहÂय और
संÖकृित पर ÖपĶ łप से िदखाई िदया । ľी िवमशª कì पृķभूिम म¤ यह समÖत िÖथितयां
अपनी तरह से योगदान करती ह§ ।
इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने पृķभूिम कì चचाª करते हòए िľयŌ के महती
योगदान पर भी ÿकाश डाला है । सृिĶ के िलए उनका योगदान िकतना संबंध िहतकारी रहा
है। इसे उनके इस कथन से समझा जा सकता है, "पुŁष लेखक म¤ जब वैयिĉकता का जोर
पूरी माýा म¤ होता है तब वह दूसरी ÿवृि° को बुरी तरह मसल देता है पर ľी सदा संयत munotes.in

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आधुिनक गī
152 रही है । ľी-सािहÂय का सबसे बड़ा दान आधुिनक सािहÂय म¤ यही है । उसने वैयिĉकता
के मुंहजोर घोड़े को सामािजकता कì कठोर लगाम से संयत िकया है ।"आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी, ľी जीवन कì समÖयाओं पर भी एक नवीन ŀिĶ रखते ह§। उनके अनुसार
ľी सािहÂयकारŌ के Ĭारािचिýत ľी जीवन का दुख, हताशा और िनराशा यह सभी कुछ
उनके अपने कारणŌ से संभव नहé है बिÐक उसकì िÖथित का कारण वाĻ कारक ह§ । इन
वाĻ कारकŌ म¤ महÂवपूणª ढंग से हमारी अपनी सामािजक ÓयवÖथा है, िजसने ľी के Ĭारा
सृिजत समÖत ÓयवÖथा को न केवल हÖतगत कर िलया बिÐक उसे दासी माý बना कर
छोड़ िदया। इसीिलए उनका मानना है िक यिद लेिखकाओं कì कÐपना िकसी और
सामािजक ÓयवÖथा का सजªन कर सके तो िनिIJत है िक ľी पाý कभी दुखी नहé हŌगे । इस
तरह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी उन संदभŎ कì पृķभूिम पर बात करने के पIJात
तÂकालीन समय कì कुछ लेिखकाओं कì कहािनयŌ का मूÐयांकन करने कì ओर ÿवृ° होते
ह§ ।
तÂकालीन ľी-लेिखकाओं के लेखन पर ŀिĶपात करने के øम म¤ वे िशवरानी देवी, सुभþा
देवी, कमला देवी एवं होमवती देवी कì कहािनयŌ पर अपना िवĴेषण देते हòए अपनी बात
कहते ह§। अपने अÅययन का आधार उÆहŌने सुभþा देवी के 'िबखरे मोती', िशवरानी देवी कì
'कौमुदी', कमला देवी के 'िपकिनक' और होमवती देवी के 'िनसगª' कहानी-संúहŌ को आधार
łप म¤ सामने रखा है । सभी लेिखकाओं म¤ वे िशवरानी देवी के लेखन को बेहद संतुिलत
लेखन के łप म¤ Öवीकार करते ह§ । सुभþा देवी कì कहािनयŌ को क¤þ म¤ रखते हòए वे यह
िनÕकषª िनकालते ह§, िक इनकì कहािनयŌ म¤ सास, जेठानी और पित के अÂयाचार; ľी कì
पराधीनता, उसे पढ़ने-िलखने एवं दूसरŌ से बात करने म¤ बाधा आिद बात¤ ही नाना-भावŌ
और नाना-łपŌ म¤ कही गई ह§ । और इन सभी कहािनयŌ म¤ चåरý के भीतरी िवकास को
Åयान म¤ उतना नहé रखा गया िजतना िक सामािजक व पåरिÖथितयŌ के िचýण को महÂव
िदया गया। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी यह तो मानते ह§ िक सुभþा देवी ने िकताबी ²ान के
आधार पर या सुनी-सुनायी बातŌ के आधार पर कहािनयां नहé िलखी बिÐक अपने अनुभवŌ
को ही कहानी म¤ łपांतåरत िकया है और उÆहŌने समाज ÓयवÖथा के ÿित एक नकाराÂमक
घृणा को Óयĉ िकया है पर ³या इतने भर से िकसी लेखक का दाियÂव समाĮ हो जाता है।
यहé आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी अपनी मंशा दजª कराते हòए कहते ह§ िक "उनकì कहािनयŌ
म¤ समाज ÓयवÖथा के ÿित एक नकाराÂमक घृणा ही Óयंµय होती है। पाठक यह तो सोचता
रहता है िक समाज युवितयŌ के ÿित िकतना िनणªय और कठोर है पर उनके चåरý म¤ ऐसी
भीतरी शिĉ या िवþोह भावना नहé पायी जाती है जो समाज कì इस िनदªयतापूणª ÓयवÖथा
को अÖवीकार कर सके। उनके पाठक-पािठकाएँ इस कुचø से छूटने का कोई राÖता नहé
पाती।.......... सुभþा जी के पाýŌ कì सहज बुिĦ िवहार कì अपे±ा पåरहार कì ओर, जूझने
कì अपे±ा भागने कì ओर, िøया कì अपे±ा िनिÕøयता कì ओर अिधक झुकì हòई ह§।"
सुभþा देवी के लेखन म¤ इस पलायन ÿवृि° को आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने भली-भांित
लि±त िकया और इस पलायन से ही उÆह¤ गुरेज भी है।
िशवरानी देवी कì कहािनयŌ के ÿित िनबंधकार थोड़ा आĵÖत है, ³यŌिक वे एक ÿितरोध
भावना से आøांत ह§ । उनकì कहािनयŌ और पाýŌ म¤ संघषª ±मता कहé अिधक है जो
अपेि±त बदलाव को लाने कì िदशा म¤ बढ़ती है । िशवरानी देवी कì कहािनयां और उनके
पाý पåरिÖथितयŌ से समझौता करके पलायन करने वाले या चुप होकर बैठ जाने वाले पाý munotes.in

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िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
153 नहé ह§ । वे िवकÐपŌ कì तलाश करते ह§, नए राÖते ढूंढते ह§ और बजाए कì दुखपूणª ढंग से
जीवन को िनयित के हाथŌ छोड़¤, वे अपने मागª पर आगे बढ़ जाते ह§ । अपनी बात को
उदाहरण के साथ ÿÖतुत करते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कहते ह§ िक, "आंसू कì दो
बूंदे' एक िटिपकल उदाहरण है। सुरेश कì बेवफाई कनक के िवनाश का कारण नहé हो जाती।
वह अपने िलए दूसरा राÖता खोज िनकलती है। वह राÖता सेवा का है । अगर उसका ÿेम
नकाराÂमक होता अथाªत उसम¤ लोभ कì जगह है िवराग होता, øोध के Öथान पर भय का
ÿादुभाªव होता, आIJयª कì जगह संदेह का उदय होता, सामािजकता कì अपे±ा एकांत-िनķा
का ÿाबÐय होता। संगमे¸छा कì जगह āीड़ा का ÿाबÐय होता तो शायद आÂमघातकर लेती।
ÖपĶ ही भारतीय ľी नामक पदाथª उसम¤ कम है । भारतीय ľी आदशª के अनुकूल चåरý म¤
वही गुण होने चािहए जो कनक म¤ नहé पाए जाते। इसिलए कनक भारतीय ľी समाज कì
ÿितिनिध हो या नहो , उस आधुिनक आदशª कì ÿितिनिध जłर है, जो Óयिĉ-Öवाधीनता
और सामािजक -मंगलबोध के सामंजÖय म¤ से अपना राÖता िनकालता है ।" इस तरह
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के इस कथन से हम उनकì मंशा को भलीभांित समझ सकते
ह§। दरअसल इस संदभª म¤ वे िकसी भी तरह का यथा िÖथितवाद ठीक नहé समझते।
सािहÂय, समय के अनुकूल ÿेरणा देने का काम करता है। सािहÂय का धमª है िक वह जीवन
के ÿित कोई राह तो सुझाए ही और यिद वह ऐसा कर पाने म¤ स±म नहé है तो िफर उसका
कोई सामािजक मूÐय भी नहé है। सुभþा देवी कì कहािनयŌ म¤ जहां आचायª हजारी ÿसाद
िĬवेदी को पलायन और पराजय कì ÿवृि° िदखती है, वहé िशवरानी देवी कì कहािनयां
उÆह¤ िवþोह और संघषª कì कहािनयां िदखाई पड़ती ह§ । वÖतुतः िकसी भी तरह कì पृķभूिम
म¤ संघषª कì भूिमका एक आशावाद को रचती है, जो आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के लेखन
कì महÂवपूणª िवशेषता है ।
लेिखकाओं कì चचाª करते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी, सुभþा देवी एवं िशवरानी देवी
का िवĴेषण करने के बाद कमला देवी और होमवती देवी कì कहािनयŌ का मूÐयांकन भी
ÿÖतुत करते ह§। इÆह¤ वे सुभþा देवी कì संवेदना शैली और िशवरानी देवी कì संवेदना शैली
के बीच कì चीज मानते ह§ । इनके लेखन कì िवशेषताओं पर बात करते हòए आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी िलखते ह§, "कमला देवी अपने चåरýŌ, उनकì िøयाओं और उनकì पåरणित
और िजतनी सयÂन ह§ उतनी उन łढ़िविधयŌ कì ओर नहé जो इन चåरýŌ, िøयाओं और
पåरणितयŌ का िनयमन करती ह§। 'िनसगª' म¤ होमवती देवी इस ओर अिधक झुकì ह§। इसिलए
कमलादेवी म¤ जहां वैयिĉक Öवाधीनता के ÿित प±ाघात का Öवर ÿधान हो उठा है वहां
होमवती देवी म¤ łिढ़यŌ कì ÿधानता का Öवर। शायद यही कारण है िक कमलादेवी अपने
चåरýŌ म¤ अनुभव के Ĭारा काट-छांट (िवĴेषण) करती ह§ और होमवती देवी कÐपना के Ĭारा
उÆह¤ मांसल करने कì चेĶा करती ह§।" इस तरह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने समय
कì चार ľी-लेिखकाओं कì कहािनयŌ का मूÐयांकन अपने इस िनबंध म¤ पाठकŌ के सामने
रखा है। कहािनयŌ पर चचाª करने के बाद वे उन युिĉयŌ पर भी अपनी बात रखते ह§, जो इन
कहािनयŌ के मूÐय को कम या ºयादा करती है ।
इन चारŌ ही लेिखकाओं म¤ िशवरानी देवी के लेखन और ÿेषणीयता के ÿित लेखक कुछ
ºयादा आĵÖत है । िशवरानी देवी कì कहािनयां एक िवकÐप उपिÖथत करने वाली
कहािनयां ह§। दरअसल आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी सािहÂय को िवकÐपहीन िÖथित देने
वाला नहé मानते ह§ । सािहÂय का सही मायनŌ म¤ महÂवपूणª दाियÂव, समाज को, Óयिĉ को munotes.in

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आधुिनक गī
154 िवकÐप के साथ एक राÖता सुझाता है, उसका मागªदशªन करता है । इन अथŎ म¤ अÆय
लेिखकाओं कì कहािनयाँ जहां िवकÐपहीन िÖथित म¤ बनी रहती ह§, वही िशवरानी देवी
िवþोह और संघषª के Ĭारा चåरýŌ को नए पथ कì ओर ढकेलती िदखाई देती ह§ । आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी िलखते ह§, िक "कौमुदी म¤ मनुÕय के ÓयिĉÂव कì ÿधानता Öवीकार कì
गई है। यह ÓयिĉÂव पåरिÖथितयŌ को आÂमसमपªण नहé करता। ÿितकूल पåरिÖथितयŌ म¤
अपना राÖता िनकाल लेता है । काल और समाज के ÿभाव से ÿितहत नहé होता। इस
ÿकार इस िवशेष ŀिĶकोण कì ÿबलता के कारण िशवरानी देवी कì कहािनयŌ म¤ सामािजक
और पाåरवाåरक अवÖथा के कारण जो लोग जीवन को सदा ³लाÆत-ि³लĶ देखते ह§ उनका
ÿितवाद बड़े कौशल से हो गया है ।" इन िवशेषताओं को िचिÆहत करने के अितåरĉ आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी ने एक महÂवपूणª कमी कì ओर भी Åयान आकिषªत िकया है िजसे पुĶ
करते हòए वे िलखते ह§, "आधुिनक सËयता का सवाªिधक कठोर वûपात ľी पर हòआ है ।
उसने ľी को न केवल Öथान¸युत िकया है, उसको क¤þ से दूर फ¤क िदया है बिÐक उसम¤
िवकट मानिसक ĬंĬ भी ला िदया है । हमारी आलो¸य कहािनयŌ म¤ क¤þ¸युित कì ओर से
कोई िशकायत नहé कì गई है, ÖपĶ ही हमारी देिवयŌ ने इस महान अनथª को महसूस नहé
िकया है ।"
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने इस िनबंध म¤ ľी लेखन के भटके हòए सरोकारŌ को
साथªक िदशा देने का ÿयास िकया है । इस मूÐयांकन म¤ उÆहŌने उन िवसंगितयŌ पर बात कì
है, िजसके कारण ľी-लेखन एक लीक का िशकार होता जा रहा है । उसे इस मागª से
िनकालकर साथªक िदशा कì ओर धकेलना होगा, इसका िवĴेषण भी वे अपने इस िनबंध म¤
करते ह§। उनका मानना है िक सही मायनŌ म¤ ľी जो िक इस बंधनयुĉ समाज कì जÆमदाता
है - ने समाज िनमाªण कर इसकì लगाम पुŁषŌ के हाथ म¤ दे दी और उसे इस समाज के
िवधायक के Łप म¤ Öवीकार कर िलया । परंतु आÂमक¤िþत पुŁष िनरंतर शिĉपूजा म¤ लीन
रहा। वह समय के साथ ľी-जाित को दबाता रहा और िजस समाज का िनमाªण ľी ने ही
िकया था, उसी समाज के मकड़जाल म¤ वह िनरंतर उसे जकड़ता चला गया । इस िÖथित म¤
ľी एक ĬंĬ का िशकार होती चली गयी । एक तरफ वह इस मकड़जाल से मुĉ भी होना
चाहती है और दूसरी तरफ वह समाज को टूटने भी नहé देना चाहती। इन िÖथितयŌ म¤ ľी
कì अपे±ाएं यह ह§ िक वह वतªमान पåरिÖथितयŌ के साथ समाज का सामंजÖय चाहती है,
इस मकड़जाल को तोड़ना चाहती है । वह इस समाज को एक नए łप म¤ ढलते हòए देखना
चाहती है। जो ľी कì महÂवाकां±ा का िवरोधी न हो। इस संवेदना को िनबंधकार अपने
समय कì ľी लेिखकाओं के लेखन म¤ नहé देख पाता, िजससे उसे िनराशा होती है । अतः
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का मानना है िक ľी लेिखकाओं के लेखन के Ĭारा इसी
संवेदना को आगे बढ़ाने कì जłरत है । इसी म¤ ľी-लेखन कì साथªकता है।
११.२.२ मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ िनबÆध का ÿितपाī:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी का िनबंधकार łप िजतना मौजीला है, उतना ही गंभीर भी है।
उनके िनबंध लेखन म¤ एक साथ ही कई ÿवृि°यŌ का घालमेल देखने को िमलता है। भले ही
हास-पåरहास के मूड म¤ हŌ परंतु गंभीर िवषयŌ पर लेखन के दौरान उनकì सहज बुिĦ िजस
मागª कì ओर बढ़ती है, वहसचमुच अनंितम होता है। िनबंध 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां'
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के Ĭारा िलखा गया ऐसा िनबंध है, िजसम¤ वे िनबंधकार के munotes.in

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िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
155 साथ-साथ अपने समय के उ°रदाियÂव को िनभाने वाले एक समी±ककेłपम¤ भी िदखाई
देते ह§। इस िनबंध म¤ उÆहŌने अपने समय के ľी लेखन और उसके सरोकारŌ पर ŀिĶ
डालते हòए न केवल संवेदनाÂमक ŀिĶ से इनका मूÐयांकन िकया है बिÐक लेखन म¤ िदख
रही िवसंगितयŌ कì ओर भी Åयान आकिषªत करते हòए नए िवकÐप भी लेिखकाओं के सामने
रखे ह§। िजससे ľी-लेखन और साथªक तथा Óयापक बन सके ।
अपने समय कì चार लेिखकाओं के लेखन को उÆहŌने अपने इस िनबंध कì सामúी बनाया
है। िशवरानी देवी, कमला देवी, सुभþा देवी और होमवती देवी उनके समय कì चार
महÂवपूणª कथा-लेिखकाएँ ह§ । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िलए सािहÂय का अंितम
उĥेÔय है - समाज को सुंदर बनाना। समाज म¤ जो कुछ भी असंगत और कुłप है, उसे ठीक
िकया जा सकता है, ऐसी उनकì धारणा है। समाज को नĶ करना या सिदयŌ म¤ िवकिसत हòई
िविधयŌ को ितलांजिल दे देना, वे ठीक नहé समझते । रोग को ठीक करना उनकì ŀिĶ म¤
सही तरीका है बजाय के रोगी को नĶ करना। इसी ŀिĶ से उÆहŌने इन कहानीकारŌ कì
संवेदना का मूÐयांकन िकया है। िशवरानी देवी के अितåरĉ अÆय सभी कथा-लेिखकाएँ
दुखपूणª संवेदना का िचýण करती ह§ और कोई भी मागª िविध-िनषेध के राÖते ही सुझा पाती
ह§। उनके पाý संघषªशील पाý नहé है । या तो Öवयं पर घात करते ह§, या पलायन करते ह§।
पर उन चåरýŌ म¤ इतनी शिĉ नहé है िक वे संघषª के माÅयम से िÖथितयŌ को अपने प± म¤
कर ल¤। पलायन का सािहÂय अंततः पलायन कì ही ÿेरणा देगा, ऐसा उनका मानना है।
इसीिलए वे िशवरानी देवी के कथा-लेखन को उस समय कì कथा लेिखकाओं म¤ सवाªिधक
उपयुĉ मानते ह§।
िशवरानी देवी के कथा-संúह 'कौमुदी' को उÆहŌने अपने मूÐयांकन म¤ Öथान िदया है। कौमुदी
के चåरýŌ पर िलखते हòए िनबंधकार कहता है, "कौमुदी म¤ मनुÕय के ÓयिĉÂव कì ÿधानता
Öवीकार कì गई है। यह ÓयिĉÂव पåरिÖथितयŌ को आÂमसमपªण नहé करता, ÿितकूल
पåरिÖथितयŌ म¤ अपना राÖता िनकाल लेता है, काल और समाज के ÿभाव से ÿितहत नहé
होता। इस ÿकार इस िवशेष ŀिĶकोण कì ÿबलता के कारण िशवरानी देवी कì कहािनयŌ म¤
सामािजक और पाåरवाåरक अवÖथा के कारण जो लोग जीवन को सदा ³लाÆत-ि³लĶ
देखते ह§। उनका ÿितवाद बड़े कौशल से हो गया है ।" इस कथन से सहज अंदाजा लगाया
जा सकता है िक आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ľी-लेखन म¤ िकन सरोकारŌ कì तलाश कर
रहे थे और इनको वे वहां आवÔयक ³यŌ समझते थे । सािहÂय बदलाव कì ÿेरणा देने का
काम करता है। सािहÂय न तो पलायन कì भूिमका उपिÖथत करता है और न आÂमघाती।
बिÐक सािहÂय , संघषª के माÅयम से बदलाव कì ÿेरणा देने कì भूिमका उपिÖथत करता है
और यह साथªक बात उÆह¤ िशवरानी देवी कì कहािनयŌ और चåरýŌ म¤ िदखाई देती है ।
इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने समय के ľी लेखन का सूàम ŀिĶ से
मूÐयांकन िकया है । यह मूÐयांकन आवÔयक भी था । सािहÂय केवल भावनाओं के ºवार
का ही नाम नहé है बिÐक बदलाव कì साथªक भूिमका उपिÖथत करना उसका उ°रदाियÂव
है। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी को अपने समय के ľी-लेखन म¤ यह िवसंगित ÖपĶ łप से
िदखाई पड़ी, इसीिलए उÆहŌने इस िनबंध के माÅयम से अपनी बात कही । ľी लेिखकाओं
को इस भूिमका को समझते हòए ही लेखन को आगे बढ़ाना होगा, तभी सही मायनŌ म¤ ľी
अपने अिÖमता-संघषª को सफल बना सकेगी । munotes.in

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आधुिनक गī
156 ११.३ सारांश ÿÖतुत इकाई के अंतगªत 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ' िनबंध का िवĴेषण िकया गया है।
'मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ' िनबंध म¤ जहां तÂकालीन समय के मिहला लेखन पर एक
सकाराÂमक ŀिĶ डाली गई है और उसका दूरगामी उĥेÔयŌ कì ŀिĶ से मूÐयांकन िकया गया
है। अपने समय के ľी लेखन पर बात करते हòए भी वे इसे केवल संवेदनाÂमक वेदना के
िचýण तक ही सीिमत नहé रखना चाहते बिÐक ľी लेखन को वे ऐसी सािहÂय धारा के łप
म¤ देखना चाहते ह§ जो संपूणª ľी जाित को नए िवकÐपŌ कì ओर ले जाने का काम करे। उसे
समÖयाओं म¤ फंसा हòआ िदखाने के बजाय समÖयाओं के ÿित िवþोह करते हòए िदखाए और
यह िवरोध केवल अंत तक ही सीिमत न हो बिÐक िवþोह के बाद कì साथªक सृजनाÂमक
राह भी नजर आए । इस िनबंध म¤ उÆहŌने इसी ढंग कì आशा Óयĉ करते हòए अपने समय
कì चार महÂवपूणª कथा लेिखकाओं- िशवरानी देवी, सुभþा देवी, कमला देवी और होमवती
देवी कì कहािनयŌ का मूÐयांकन िकया है ।
११.४ उदाहरण-Óया´या Óया´या-अंश (१):
समाज को ľी ने जÆम िदया था । दलबĦ भाव से रहने के ÿित िनķा होने के कारण वह
उसी (समाज) कì अनुचरी हो गयी । पुŁष यहां भी आगे िनकल गया । वह समाज से भागना
चाहता था। ľी ने अपना हक Âयागकर उसे समाज म¤ रखा, उसके हाथ म¤ समाज कì नकेल
दे दी। पुŁष समाज का िवधायक हो गया । इितहास उलट गया । जमाने के साथ गलितयŌ
कì माýा बढ़ती गयी ; पुŁष अकड़ता गया । ľी दबती गयी । आज वह देखती है िक उसी के
बुने हòए जाल ने उसे बुरी तरह जकड़ डाला है । वह उसे Èयार भी करती है, वह उससे मुĉ
भी होना चाहती है। यही ĬंĬ है । यही तपÖया है । यही िवरोधाभास है । वह िफर एक बार इसे
अपने हाथŌ खोलकर िफर से बुनेगी ? उिचत तो यही था , पर हमारी देिवयां इस िवषय म¤
मौन ह§ ।
संदभª: उĉ अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' के िनबंध
'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां' से िलया गया है ।
ÿसंग: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने उपयुªĉ अवतरण म¤ ľी कì ऐितहािसक िÖथित को
दिशªत िकया है । िकस ÿकार से ľी समाज कì जÆमदाता होकर भी पुŁष वचªÖव का
िशकार होती गई , इसका संकेत यहां पर िकया गया है । आज पुनः ľी को उसी
सृजनाÂमकता कì आवÔयकता है, िजससे वह अपने अिÖतÂव और आÂमसÌमान को ÿाĮ
कर सके ।
Óया´या: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने युग म¤ हो रहे ľी-लेखन को आधार बनाकर
िनबंध 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां' कì रचना कì थी। इस िनबंध म¤ उÆहŌने िशवरानी
देवी, सुभþा देवी, कमला देवी और होमवती देवी के कहानी-संúह को अपने िनबंध का
आधार बनाया था । उÆहŌने इन लेिखकाओं कì कहािनयŌ कì संवेदना को Óयापक ढंग से
देखा और उसकì समी±ा कì। इस अवतरण म¤ उÆहŌने जैसे पूरे इितहास म¤ ľी के साथ हòए munotes.in

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िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
157 Óयवहार को सा±ात क र िदया है । भावपूणª ढंग से यह Öवीकार करते ह§ िक इस समाज का
वाÖतिवक जÆमदाता ľी ही है । ľी का मूल Öवभाव है- बांधना और उसने समूह म¤ रहने
कì इ¸छाशिĉ के कारण समाज को जÆम िदया। पुŁष जो िक उ¸Ůंखल ÿकृित का था और
Öवतंý रहना उसकì ÿवृि° थी, ľी ने उसे न केवल समाज के दायरे म¤ बांधने का काम
िकया बिÐक समाज को ÓयविÖथत करने, सहेजने और संभालने कì िजÌमेदारी का
उ°रदाियÂव पुŁषŌ को ही सŏप िदया। इस तरह पुŁष ने ľी से सामािजक संगठन दान म¤
पाया। परंतु आगे चलकर यही पुŁष िľयŌ पर सामािजक बंधनŌ कì लगाम कसता चला
गया। ľी समाज को बांधे रहने कì आशा म¤ दबती चली गई और समाज को बनाए रखने कì
िजजीिवषा के कारण उसने पुŁष वचªÖववादी मानिसकता को अपने Öवािभमान का दमन
करते रहने िदया। हजारŌ वषŎ कì यह मानिसक गुलामी आधुिनक काल म¤ ÖवातंÞय चेतना
के कारण िवþोह म¤ पåरवितªत हो गई और ľी-लेखन का जÆम हòआ, िजसम¤ ľी लेिखकाओं
ने अपने-अपने संवेदना बोध के अनुłप ľी के जीवन कì िवसंगितयŌ और िवडंबनाओं को
िचिýत िकया। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी सहानुभूित कì ŀिĶ से नहé वरन बेहद
Óयावहाåरक ŀिĶ से इन कहािनयŌ का मूÐयांकन करते ह§ । इन कहािनयŌ को पढ़ते हòए उÆह¤
बार-बार लगता है िक दुख कì िविभÆन िÖथितयŌ के िचýण के साथ-साथ जोिक, इन
कहािनयŌ कì ÿमुख संवेदना है, कहानी लेिखकाओं को पåरवतªन कì भूिमका ÿÖतुत करने
कì ओर भी Åयान देने कì आवÔयकता है । यथािÖथित का वणªन कर देना माý ही उĥेÔयŌ
कì पूितª संभव नहé करेगा बिÐक लेिखकाओं को एक िवकÐप भी देना होगा । िजस पर
समाज सोचने और बदलने को िववश हो । िजस समाज को ľी ने एक बार िनिमªत िकया है,
वह दोबारा उसम¤ पåरवतªन कì भूिमका भी उपिÖथत कर सकती है । सही मायनŌ म¤ जब ľी
लेिखकाएँ ऐसा कर¤गी, तभी ľी लेखन का वाÖतिवक उĥेÔय पूरा होगा । इस तरह आचायª
हजारी ÿसाद िĬवेदी अपने समय के ľी लेखन का मूÐयांकन करते ह§ और यह अपे±ा
करते ह§ िक वह एक पåरवतªनकारी उपकरण के łप म¤ तÊदील हो । इसी म¤ उसकì साथªकता
है ।
िवशेष:
१. ľी लेखन के मूल सरोकारŌ पर साथªक सुझाव िदए ह§ ।
२. समाज म¤ ľी के महÂव को रेखांिकत िकया है ।
Óया´या: अंश (२):
ÿायः सभी कहािनयŌ म¤ जीवन को समझने का ÿयÂन िकया गया है, पर राÖता सवªý ÿायः
एक ही है । यह राÖता सामािजक िविध -िनषेधŌ के भीतर से होकर िनकाला गया है । ÿÂयेक
चåरý कì पåरणित और ÿÂयेक घटना का सूýपात िकसी सामािजक िविध-िनषेध के भीतर
से होता िदखाया गया है । संभवतः यही हमारी बहनŌ का िवशेष ŀिĶकोण हो । परंतु
उपहास¸छल से, आनुषंिगक łप से या ÿितषेÅय łप म¤ भी जीवन तक पहòंचने कì त°द
िविभÆन ŀिĶयŌ कì कोई चचाª होने से यह संदेह हो सकता है िक उÆहŌने या तो जान-बूझकर
या अनजान म¤ जीवन को सांगोपांग łप म¤ और सब पहलुओं से देखने कì उपे±ा कì है ।
इस िवशेष बात म¤ भी िशवरानी देवी कì कौमुदी कुछ-कुछ अपवाद है । munotes.in

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आधुिनक गī
158 संदभª: उĉ अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' के िनबंध
'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां' से िलया गया है ।
ÿसंग: उĉ अवतरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने समय के ľी लेखन का
सूàम मूÐयांकन करते हòए यह मत Óयĉ िकया है िक अिधकतर ľी लेिखकाएँ अपने िचýण
म¤ िविध-िनषेध को दिशªत करके ही कोई राÖता िनकालने म¤ स±म हो पाती ह§ । उनके Ĭारा
िविध-िनषेध को िदए जा रहे महÂव के ÿित वे अपनी िचंता और कहानी संवेदना कì
एकांिगता को Óयĉ करते ह§ और सही िवकÐप कì ओर बढ़ने का सुझाव देते ह§ ।
Óया´या: आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी Ĭारा िलखा गया 'मिहलाओं कì िलखी कहािनयां'
िनबंध मिहला लेखन पर एक साथªक िटÈपणी है । यह िनबंध ľी लेखन म¤ अिभÓयĉ ľी
संवेदना का आलोचनाÂमक ŀिĶ से िकया गया मूÐयांकन है। अपने दौर कì चार ľी
कथाकार - िशवरानी देवी, सुभþा देवी, कमला देवी और होमवती देवी कì कहािनयŌ का
मूÐयांकन करते हòए िनबंधकार उन कहािनयŌ म¤ अिभÓयĉ संवेदना का इस ŀिĶ से
मूÐयांकन करता है िक उनम¤ ÿितरोध शिĉ िकतनी है। या वे िजस समÖया का संवेदनाÂमक
िचýण कर रही ह§, वह समÖया एकांगी łप म¤ तो नहé ÿÖतुत कì गई है । जीवन, घटनाओं
कì एक पूरी लड़ी है और उसे समझने के िलए संपूणªता म¤ समझने कì आवÔयकता भी है।
इस अवतरण म¤ िनबंधकार ने इसी बात पर बल िदया है िक तÂकालीन ľी लेिखकाएँ, जो
भी िलख रही है और अपने लेखन के माÅयम से ľी जगत को जो िवकÐप सुझा रही ह§, वह
िवþोह दरअसल िविध िनषेध को वैधता देता िदखाई देता है । िजस समाज कì जÆमदाता
ľी है, उसी समाज कì िविधयŌ का हरण उसी के Ĭारा िकया जाए, यह िनबंधकार को
उपयुĉ बात नहé जान पड़ती है । इसीिलए िनबंधकार इस लेखन को सजªनाÂमक या
वाÖतिवकता रचनाÂमकता कì ओर मोड़ते हòए यह सुझाव देता है िक ľी लेखन को माý
िवसंगितयŌ के िचýण तक ही सीिमत नहé रहना चािहए बिÐक उÆह¤ िविधवत कोई िवकÐप
भी सामने रखना चािहए । समÖयाओं को जीवन से अलग करके देखना ठीक ŀिĶ नहé है।
संपूणª जीवन के संदभª म¤ ही िकसी समÖया का मूÐयांकन होना चािहए । िजस समाज कì
रचनाकार Öवयं ľी है, उस समाज को बनाए रखने कì िजÌमेदारी आज भी उसी कì है।
अपने समय कì चारŌ कहानीकारŌ पर बात करते हòए आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी को यह
िवशेषता िशवरानी देवी कì कहािनयŌ म¤ िवशेष łप से िदखाई देती है। इस अवतरण म¤
िनबंधकार ने इसी मंतÓय को Óयĉ िकया है ।
िवशेष:
१. अपने समय के ľी लेखन का सूàम ŀिĶ से मूÐयांकन िकया है ।
२. ľी लेखन कì किमयŌ को उजागर िकया है ।


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िनबÆध : मिहलाओं कì िलखी कहािनयाँ
159 ११.५ वैकिÐपक ÿij १. कहानी संúह 'कौमुदी' के रचनाकार ह§ ?
(क) सुभþादेवी (ख) होमवतीदेवी
(ग) कमलादेवी (घ) िशवरानी देवी
२. आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अनुसार समाज को िकसने जÆम िदया था ?
(क) पुŁष (ख) ľी
(ग) āĺा (घ) िवÕणु
३. िनÌन म¤ से कौन सा कहानी संúह कहानीकार सुभþा देवी के Ĭारा िलखा गया है ?
(क) िबखरे मोती (ख) िनसगª
(ग) िपकिनक (घ) कौमुदी
११.६ लघु°रीय ÿij १) आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अनुसार तÂकालीन मिहला लेखन कì कमजोåरयां ।
२) िशवरानी देवी कì लेखन कुशलता ।
३) सुभþा देवी कì कहािनयŌ कì संवेदना ।
११.७ बोध ÿij १) आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने अपने समय के ľी-कहानी-लेखन को िकस ŀिĶ से
देखा है ? िवÖतार से मूÐयांकन कìिजए ।
२) मिहलाओं पर िलखी कहािनयां िनबंध कì अंतवªÖतु का िवĴेषण कìिजए ?
३) मिहलाओं पर िलखी कहािनयां िनबंध के ÿितपाī का वणªन कìिजए ?
११.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
***** munotes.in

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160 ११.१
िनबÆध : केतुदशªन
इकाई कì łपरेखा
११.१.० इकाई का उĥेÔय
११.१.१ ÿÖतावना
११.१.२ िनबÆध : केतुदशªन
११.१.२.१ ‘केतुदशªन’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु
११.१.२.२ ‘केतुदशªन’ िनबÆध का ÿितपाī
११.१.३ सारांश
११.१.४ उदाहरण-Óया´या
११.१.५ वैकिÐपक ÿij
११.१.६ लघु°रीय ÿij
११.१.७ बोध ÿij
११.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤
११.१.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई के अंतगªत आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के 'केतुदशªन' िनबÆध का वÖतुगत
िवĴेषण िकया गया है। 'केतुदशªन', खगोलशाľ एवं ºयोितष पर आधाåरत िनबंध है।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी बहòिवषयी लेखक के łप म¤ जाने जाते ह§। उनके िनबंध म¤
उÆहŌने िजन भी िवषयŌ को उठाया है, उन िवषयŌ कì ÿकृित अÂयंत Óयापक है। देश,
समाज, शाľ, संÖकृित, इितहास, समसामियक ÿij आिद सभी कुछ उनके िनबंधŌ म¤
समािवĶ है। किठन से किठन िवषय को अÂयंत Óयावहाåरक शैली म¤ उÆहŌने पाठकŌ के
सामने रखा है। 'केतुदशªन' िनबंध खगोलशाľ एवं ºयोितष जैसे जिटल िवषयŌ पर आधाåरत
होने के बावजूद उÆहŌने अÂयंत ही Óयवहाåरक ढंग से पाठकŌ को Åयान म¤ रखते हòए िलखा
है। इस इकाई के अंतगªत ‘केतुदशªन’ िनबंध कì अंतवªÖतु और उसके ÿितपाī का िवĴेषण
सिÌमिलत है ।
११.१.१ ÿÖतावना आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी जिटल ±मताओं से युĉ सरल सािहÂयकार ह§ । ऐसे
सािहÂयकार िहंदी म¤ बहòत ही कम हòए ह§। उनका सािहÂय हमारी सािहिÂयक िवरासत को
समृिĦ ÿदान करता है। उनके िवषय छोटे से लेकर राÕůीय-अंतरराÕůीय जगत के Óयापक
ÿसार युĉ पåरŀÔय को अपने म¤ समेटे हòए ह§। उÆहŌने िजस भी िवषय को उठाया है, उसका
ÓयविÖथत िचýण िकया है । यह िचýण शैली आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì अपनी तरह
कì मौिलक शैली है, िजसम¤ गुŁता, गंभीरता, हाÖयपरकता सभी कुछ एक साथ सिÌमिलत munotes.in

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िनबÆध : केतुदशªन
161 िमल जाता है। साधारण से साधारण पाठक भी उनके Ĭारा ÿÖतुत िकए गए किठन से किठन
िवषय को अÂयंत सहजता से समझ सकता है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ŀिĶ अपने समय के हर िवषय को आवृत िकए रहती थी।
इस इकाई म¤ उनके Ĭारा िलखा गया िनबंध 'केतुदशªन' नामक िनबंध खगोल िव²ान एवं
ºयोितष के ÿित उनकì Łिच और Óयापक समझ को हमारे सामने रखता है। इस किठन
िवषय को भी उÆहŌने अÂयंत सरल, सहज और ÿफुिÐलत łप म¤ पाठकŌ के सामने रखा है।
यह आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì िवशेषता है िक वह बोिझल से बोिझल िवषय को भी
अÂयंत Łिचकर बना देते ह§। पाठक कì िज²ासा को जगाकर उसम¤ Łिच उÂपÆन कर देते ह§।
िफर पाठक उस िवषय म¤ सहज ही संलµन िदखाई पड़ता है ।
११.१.२ िनबÆध : केतुदशªन ११.१.२.१ ‘केतुदशªन’ िनबÆध कì अÆतवªÖतु:
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी Łिच-वैिवÅयता से संपÆन सािहÂयकार थे। उÆहŌने जो िनबंध
िलखे ह§, उनकì िवषयवÖतु देखते हòए हम सहज ही अंदाजा लगा सकते ह§ िक उनकì łिच
िकतनी Óयापक और िवÖतृत थी । ²ान-िव²ान और जीव न के ÿÂयेक ±ेý से जुड़ा हòआ
िवषय उनकì िज²ासा म¤ सिÌमिलत होता था । आधुिनक िवषयŌ के अितåरĉ ºयोितष जैसे
गूढ़ िवषयŌ कì भी उÆह¤ गहरी जानकारी थी। ºयोितष और खगोल िव²ान म¤ गहरा संबंध है।
ºयोितष म¤ अपनी ŁिचयŌ के चलते वे आधुिनक खगोल िव²ान म¤ भी काफì łिच लेते थे।
िनबंध 'केतुदशªन' उनकì इसी अिभŁिच का दशªन कराने वाला िनबंध है। ²ानÿािĮ कì ऐसी
िपपासा जÐद िकसी और म¤ िमलना दुलªभ है। ऐसा लगता है, जैसे वह िदन और रात बस
इसी एक उīम म¤ लगे रहते थे। इन किठन िवषयŌ को वे िजस अिधकार भाव से सहज शैली
म¤ िलखते ह§, उससे इन िवषयŌ पर उनके अिधकार का पता चलता है। इस िनबंध म¤ भी
उनका Öवयं का ÓयिĉÂव उभर कर सामने आता है। एक िवषय से दूसरे िवषय म¤ छलांग
लगाने कìÿवृि°, संदभª अनुकूल हाÖयपरक भाषा और चलते-चलते अपने समसामियक
जीवन कì समÖयाओं पर भी चोट करते जाना - उनकì अिभÓयिĉ शैली के ÿमुख ल±ण ह§।
और इस िनबंध म¤ भी इन ल±णŌ को अÂयंत आसानी से लि±त िकया जा सकता है ।
हमारे āĺांड जगत म¤ जाने-अनजाने कई िपंड ऐसे ह§ जो अिनयंिýत łप से अिनिIJत
क±ाओं म¤ िवचरण कर रहे ह§। इÆह¤ हम पु¸छल तारा, धूमकेतु आिद कई नामŌ से जानते ह§।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध म¤ ऐसी ही एक घटना का िववरण िदया है । परंतु
यह िववरण एक वणªन माý नहé है, इसके साथ-साथ उÆहŌने āĺांडीय जगत कì कई
महÂवपूणª सूचनाएं भी पाठकŌ तक ÿेिषत कì ह§। यह सूचनाएं जहां आधुिनक खगोल िव²ान
से गहरा तादाÂÌय रखती ह§, वही ÿाचीन भारतीय ºयोितष एवं खगोल िव²ान कì
अवधारणा को भी आIJयªजनक ढंग से पाठकŌ तक पहòंचाती ह§। अपनी शैली के अनुłप
संवाद करते-करते कब वे इनजिटल िवषयŌ को बताते चले जाते ह§, पता भी नहé चलता।
िनबंध के आरंभ म¤ ही वे कहते ह§, "आज नए धूमकेतु आए ह§, पåरĄाजक जाित के िपÁड ह§,
कौन जाने िफर कभी पधार¤गे या नहé, देख ही लेना चािहए । पुराने जमाने के धुरंधर
ºयोितषी वाराहिमिहर ने साफ शÊदŌ म¤ इन लोगŌ कì चाल-ढाल का पता लगाने म¤ अपनी munotes.in

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आधुिनक गī
162 हार मान ली थी। वृहÂसंिहता म¤ कह गए ह§, इन भले मानसŌ कì गित और उदय-अÖत का
पता गिणत िविध से नहé चलता।....... आधुिनक ºयोितषी इतना नहé कहते, मगर उनके भी
कहने का कुछ अथª इसी के आस-पास पहòंचता है। सो केतुदशªन दुलªभ सौभाµय है।" इस
िनबंध म¤ इस तरह के िववरण Öथान-Öथान पर िदए गए ह§ । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने
ÿाचीन शाľीय ÿमाण तो िदए ही ह§, साथ ही आधुिनक खगोल िव²ान कì अवधारणाओं
और तÂवŌ का भी यथाÖथान वणªन िकया है। जैसे आकाशीय िपंडŌ कì दूåरयŌ को लेकर
उनके मन म¤ एक आIJयª का भाव है । इस संबंध म¤ वे िलखते ह§, "िवराट शूÆय को अगर
समुþ समझ¤ तो उसम¤ कोिट-कोिट न±ý पुंज कई Ĭीप-पुंजŌ के समान ह§। हमारा यह न±ý
जगत एक Ĭीपपुंज है । दूसरा जो हमारे सबसे िनकट का पड़ोसी Ĭीपपुंज है वह भरणी न±ý
के समीपवतê इस एंűोमीडा के ही पास कì एक नीहाåरका है। इस िवराट āĺांड के
अरायजनवीश - ºयोितषी - लोगŌ ने िहसाब लगाकर बताया है िक इस पड़ोसी न±ýपुंज का,
जो हमारा सबसे िनकटवतê न±ý है, उसका ÿकाश पृÃवी तक िसफª नौलाख वषŎ म¤ ही
पहòंच जाता है, और जो हमसे बहòत दूर है, उसके ÿकाश के आने म¤ कुछ ºयादा समय जłर
लग जाता है - िसफª तीन अरब वषª।" इस तरह वे जब इस तरह के वणªन देते ह§, तो इस
āĺांड कì िवराटता और ÿकृित कì अजेयता के ÿित एक िवĵास उनकì वाणी म¤ िदखाई
देता है। ÿकृित के इस अĩुत सŏदयª पर उनका मन सदा अिभभूत रहता है ।
िनबंधकार िजस धूमकेतु को देखना चाहता था, रािý म¤ हीउसे देखने के िलए वह िनकल
पड़ता है। रािý का अĩुत सŏदयª उसे आकिषªत करता है। जैसे-जैसे सËयता आगे बढ़ती गई
है, वैसे-वैसे लोग ÿकृित से दूर होते चले गए ह§ । आज के शहरी जीवन म¤ कृिýमता का
समावेश लगातार बढ़ता जा रहा है । Óयिĉ ÿकृित से दूर होकर अपने आिÂमक सुख को
खोता जा रहा है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने इस िनबंध म¤ कई ÖथलŌ पर ÿकृित से
Öवयं के गहरे जुड़ाव को ÿदिशªत िकया है। सुबह आकाश म¤ भोर के तारे का वणªन करते हòए
वे िलखते ह§, "पूवê आकाश का मुख उºजवल हो गया जैसे ÿाची िदµवधू ने हंस िदया हो।
शुø देवता या वीनस देवी- यवन देिवयŌ म¤ सवाªिधक सुंदरी - उदय होने वाली ह§ ।"या एक
Öथल पर रािý सŏदयª के आकषªण से मुµध होकर वे कहते ह§, "जो लोग दीवारŌ म¤ िघरे और
छत से ढके कमरŌ म¤ रात काटने के अËयÖत ह§, उनसे यिद कहóं िक रात जीवÆत वÖतु है,
तो न जाने ³या कह¤गे । लेिकन जो कोई भी आंख-कान रखने वाला भला आदमी तारा-
खिचत आसमान के नीचे घंटे-आधघंटे के िलए आखड़ा होगा, वह अनुभव करेगा िक रात
सचमुच ही जीवÆत पदाथª है । वह सांस लेती हòई जान पड़ती है, उसके अंग-अंग म¤ कंपन
होता रहता है, वह ÿसÆन होती है, उदास होती है, धुÆधुआ जाती है, िखल उठती है । धीरे-
धीरे, लेिकन िनसंदेह, वह करवट बदलती रहती है, सो जाती है, जाग उठती है । हर िकसान
रात के िबहंसने का अनुभव िकए होता है । "िनबंध म¤ बीच-बीच म¤ इस तरह के ÿकृित के
रागमय िचýण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì ÿकृित के ÿित आÖथा को ÿकट करते ह§।
यही उनकì शैली कì िवशेषता है िक मनकì झŌक के मुतािबक वे शांत, िÖनµध हवा कì तरह
इधर-उधर िवचरण करने लगते ह§ ।
िनबंध म¤ उÆहŌने धूमकेतु कì संरचना और उसकì वै²ािनक अवधारणा का संि±Į परंतु
सांगोपांग िचýण िकया है और साथ ही इस संदभª म¤ लोक म¤ ÿचिलत िवĵास भी वणªन म¤
चले आए ह§। धूमकेतु के उदय का वणªन करते हòए वे िलखते ह§, "सो धीरे-धीरे हÖत न±ý के munotes.in

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िनबÆध : केतुदशªन
163 पास धूमकेतु का उदय हòआ। आहा, ³या सुंदर पताका (केतु) है। ĵेतपताका शांित का संदेश
वाहक है। कम लोग जानते हŌगे िक धूमकेतु कभी-कभी शुभ फल भी देते ह§ । "²ान का
अथाह भंडार िलए होने के साथ-साथ आचायª लोक कì आÂमा म¤ भी पैठे हòए ह§ । इसीिलए
उनके वणªन इतने सरस और मनोहर हो जाते ह§ । ÿÂय±-²ान, लोक-िवĵास और िव²ान
का अनोखा और अĩुत तालमेल उनके लेखन म¤ िदखायी देता है । बात करते-करते धूमकेतु
के संबंध म¤ वै²ािनक धारणाओं कì चचाª भी आरंभ हो जाती है। वे िलखते ह§, "यह हÖत
न±ý उिदत हòआ। पांचŌ अंगुिलयां साफ िदख रही ह§ । इसके पास ही कुहासे-सा िदखायी
िदया। धूमकेतु कì यह पूँछ थी । िहंदी म¤ इसे पु¸छल तारा कहा जाता है। इसीिलए म§ भी इस
झाड़ñनुमा पताका को पूँछ कह रहा हóँ। असल म¤ यह पूँछ नहé है । ÿाचीन आचायŎ ने
'पु¸छलतारा' को केतु (पताका), धूमकेतु (धुएँ कì पताका) और िशखी (चोटीवाला) कहा है।
यही उिचत भी है ³यŌिक आधुिनक शोधŌ से ÿमािणत हो गया है िक िजसे पूँछ कहा जाता है
वह वाÖतव म¤ िशखाया छोटी है । जब धूमकेतु सूयª के पास पहòंचता है, तो उसके भीतर के
लघुभार गैसीय पदाथª सूयª कì ओर उसी ÿकार आकृĶ होते ह§, िजस ÿकार धारायंý
(फÓवारे) से उÅवªमुख धाराएं िनकलती ह§।" इस तरह उनका वणªन एक साथ ÿÂय±-²ान,
पौरािणकता, ÿाचीन भारतीय शाľ, आधुिनक िव²ान और लोक िवĵासŌ के धरातल पर
िवचरण करता है ।
िवषय कैसा भी हो, उसे जीवन और जगत से जोड़ने कì जैसी सामÃयª आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी के लेखन और उनके िनबंधŌ म¤ है, वैसी सामÃयª जÐदी अÆयý कहé िदखती
नहé है । धूमकेतु कì ÿवृि° पर बात करते हòए जब वे बताते ह§ िक पहले के ºयोितषी लोग
धूमकेतुओं को तीन जाित का मानते थे अथाªत तीन ÿकार का मानते थे- िदÓय, अंतåर±
और भौम। उसी अनुłप आज के ºयोितषी भी तीन ÿकार के धूमकेतु ही मानते ह§- दीघªवृ°
म¤ घूमने वाले, परवलय म¤ भी िवचरने वाले और अितपरवलय मागª म¤ रहने वाले। इसी संदभª
म¤ वह धूमकेतु कì चचाª करते हòए िलखते ह§, "सुना है िक ºयोितिषयŌ ने अपना मत बदल
िदया है । वे मानने लगे ह§ िक वÖतुतः सभी केतु दीघªवृ° म¤ ही घूमते ह§। कोई देर आता है,
कोई सवेर, लेिकन आते सब ह§।सब माया म¤ फंसे ह§, बैरागी कोई नहé ।" भाषा और
अिभÓयिĉ का ऐसा उदाहरण दुलªभ है। मनुÕय कì ÿवृि° से धूमकेतु कì ÿवृि° कì तुलना
के Ĭारा िकतनी सहजता से वे अपने मंतÓय को पाठकŌ तक पहòंचा देते ह§। आचायª हजारी
ÿसाद िĬवेदी कì अिभÓयिĉ शैली कì िवशेषता किठन-से-किठन िवषय को अितसरल łप
म¤ संÿेिषत करती है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी को इितहास से िवशेष ÿेम है। वे िनबंध िकसी भी िवषय पर
िलख रहे हŌ, अिनवायª łप से इितहास म¤ ÿवेश करने कì कला उÆह¤ िवषय म¤ इितहास को
सिÌमिलत होने से रोक नहé पाती । उनके लगभग सभी िनबंधŌ म¤ यह बात देखी जा सकती
है । वे जब आधुिनक समÖयाओं पर बात करते ह§ (नाखून ³यŌ बढ़ते ह§), सांÿदाियकता पर
बात करते ह§ (ठाकुर जी कì बटोर), संÖकृित पर बात करते ह§ (संÖकृितयŌ का संगम), या
देश कì समसामियक िÖथितयŌ पर बात करते ह§ (भगवान महाकाल का कुंठनृÂय) - इितहास
अिनवायª łप से हर जगह सिÌमिलत हो जाता है। दरअसल इितहास के संबंध म¤ उनकì
ÖपĶ धारणा है िक इितहास भिवÕय कì राह िदखाने वाला िवषय है । इितहास से मनुÕय
बहòत कुछ सीख सकता है । सबसे बड़ी बात तो यह है िक हम िपछली घटनाओं से सबक munotes.in

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आधुिनक गī
164 लेकर कम से कम आगे उस तरह कì गलितयां तो नहé दोहराएंगे । इस Óयवहाåरक उपयोग
के अलावा अपनी परंपरा और िवरासत को समझने के िलए भी इितहास को समझना
अÂयंत आवÔयक है । उनका लेखन इस बात का गवाह है िक उÆहŌने भारत के संपूणª
इितहास को एक परंपरा के łप म¤ विणªत िकया है । इितहास को देखने कì यही सूàम ŀिĶ
उनके लेखन कì िवशेषता है।इस िनबंध म¤ भी वे न±ý और धूमकेतु कì चचाª करते-करते
इितहास म¤ ÿिवĶ हो जाते ह§ । लोक िवĵास है िक 'हÖत न±ý वाला केतु दंडकारÁय के
राजा का नाश कर डालता है' - बस यहé वे इितहास म¤ ÿिवĶ होने का अवसर खोज लेते ह§
और कुछ पंिĉयां दंडकारÁय कì पहचान को समिपªत कर देते ह§, "यह दंडकारÁय कहां है ?
भंडारकर ने बताया था िक नागपुर समेत समूचा महाराÕů ही दंडकारÁय है । पािजªटर ने
कहा था िक बुंदेलखंड से लेकर कृÕणा नदी के तट का सारा देश दंडकारÁय कहा जाता
था।.......... मुझे आशंका हòई िक दंडकारÁय कहé हैदराबाद कì åरयासत तो नहé है । बुरा म§
िकसी का नहé सोचना चाहता। भगवान कर¤, दंडकारÁय भूलोक म¤ कहé हो ही नहé ।" यही
उनकì िविशĶ शैली है। इस उदाहरण म¤ एक साथ हम देख सकते ह§ िक कैसे वे इितहास म¤
िवचरण करते हòए अपनी समसामियक िÖथितयŌ पर भी आ जाते ह§ और एक खास तरह कì
वøता उनकì भाषा म¤ पैदा हो जाती है, जो अपने Óयंग से पाठकŌ को अिभभूत भी करती है ।
अपने समसामियक संदभŎ और सावªभौिमक मानवीय मूÐयŌ को कभी भी वे अपनी नजर से
दूर नहé रखते । उनके हर िनबंध म¤ हम¤ इस तरह के उदाहरण िमल ही जाते ह§, िजनसे
उनकì सचेतता का ÿमाण िमलता है । इस िनबंध म¤ भी ÿसंगश: बहाने से उÆहŌने हैदराबाद
के िनजाम का िजø िकया है । १९४७ के बाद भारत म¤ Öवत: सिÌमिलत हòई åरयासतŌ म¤
यह åरयासत सिÌमिलत नहé थी । सरदार वÐलभ भाई पटेल के कड़े िनणªय के बाद
हैदराबाद के िनजाम को िववश होकर अपना िवलय भारत म¤ Öवीकार करना पड़ा था । यहां
ÿसंग को िकस तरह से उÆहŌने गूंथकर सामाÆय िवषय कì तरह बना िदया , यह उÆहé के
लेखन के बस कì बात है । इसी तरह एक अÆय Öथल पर बार -बार यह आशंका जताई जाती
है िक पृÃवी से यिद कभी कोई धूमकेतु टकरा गया तो जीवन नĶ होने कì संभावना भी है।
पुरातÂवशाľी कई करोड़ वषª पहले धरती से डायनासोर के लुĮ होने का कारण इसी घटना
को मानते ह§ । तो एक संभावना बनती है िक अगर पृÃवी पर दोबारा ऐसा कुछ घटता है तो
संभवतः यह पृÃवी एक बड़े Ôमशान म¤ तÊदील हो जाएगी और मानव सËयता नĶ हो जाएगी।
इसी संदभª म¤ वे िलखते ह§ िक, "१९१० ई. म¤ पृÃवी बच गई, और उÌमीद कì जानी चािह ए
िक १९८६ ई. भी बच ही जाएगी। अगर नहé बच सकì तो उसका कारण धूमकेतु नहé होगा,
मनुÕय के बनाए हòए मरणाľ हŌगे ।"
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì मनुÕय कì बौिĦक शिĉ पर गहरी आÖथा है । समाज म¤
नकाराÂमकता के बावजूद उनका आशावाद उÆह¤ एक ऐसे सािहÂयकार म¤ बदल देता है, जो
मनुÕय को इस धरा पर िवजेता के łप म¤ देखना चाहता है । उनकì कÐपना का मनुÕय
मानवतावाद से पåरपूणª मनुÕय है, जो समानता और सामािजक Æयाय के आदशŎ पर चलते
हòए इस धरा को सुंदर बनाने का काम कर रहा है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के अपने
संपूणª जीवन म¤ दो महायुĦ लंबे समय तक चले, राÕůीय आंदोलन, सांÿदाियक दंगे, िāिटश
सरकार का भीषण दमन और न जाने ³या-³या उÆहŌने अपने समय म¤ देखा था परंतु इतनी
िवकटता भी मानवतावाद पर उनकì आÖथा को िडगा नहé सकì । उनका िवĵास है कì munotes.in

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िनबÆध : केतुदशªन
165 अंितम िवजय मानवतावाद कì ही होगी । उÆह¤ अपनी परम शिĉ पर िवĵास है। यह िवĵास
उनके ÿÂयेक िनबंध म¤ Óयĉ होते हòए हम देख सकते ह§। धूमकेतु, िजसे मनुÕय अनजाने म¤
आपदा कì तरह लेकर बार-बार भयभीत होता है, इसके संदभª म¤ िलखते हòए वे पुनः अपना
आशावाद अिभÓयĉ करते ह§। वे कहते ह§, "म§ इस ÿभातकÐपा शवªरी के उपाÆÂयभाग म¤
आIJयª के साथ धूमकेतु को देख रहा हóँ । मनुÕय िकतना जानता है । इस िवपुल āĺांड
िनकाय म¤ वह कैसा ±ुþ जीव है, िफर भी िकतनी शिĉ का ąोत है वह। वह धूमकेतु से पहले
डरा था। िफर घबरा या था, लेिकन अब उसने इसका भी रहÖय बहòत कुछ जान िलया है,
और भी जानने के िलए हाथ-पैर मार रहा है । मनुÕय हारेगा नहé । िनराश होने कì कोई बात
नहé है। जो लोग केतु को देखकर ही घबरा गए ह§, उÆह¤ समझना चािहए िक मनुÕय कì बुिĦ
को िजस शिĉ ने इतनी मिहमा दी है, वह उसे केतु से हारने नहé देगी ।" इस तरह
मानवतावाद, मनुÕय कì संघषªशीलता और जीवटता कì ÿेरणा देते हòए इस िनबंध को वे
समाĮ कर देते ह§ ।
११.१.२.२ केतुदशªन िनबÆध का ÿितपाī:
केतु दशªन िनबंध ºयोितष और खगोल िव²ान िवषय पर आधाåरत िनबंध है । यह िवषय भी
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी िक Łिच का िवषय है । िजस तरह उÆहŌने इितहास, संÖकृित
और ÿाचीन भारतीय वैिदक एवं पौरािणक सािहÂय को आधार बनाकर कई िनबंध िलखे ह§,
उसी तरह इस िवषय पर भी उÆहŌने कई िनबंधŌ कì रचना कì है। उÆहé म¤ से एक िनबंध है-
'केतुदशªन', िजसम¤ उÆहŌने धूमकेतु के संबंध म¤ िवÖतृत जानकारी देते हòए कई तरह कì
िज²ासाओं का संबंध िकया है । इस िनबंध को पढ़ते हòए हम आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
के संतुिलत ÓयिĉÂव को सहज ही लि±त कर लेते ह§ । िकस तरह से वे ÿाचीन ²ानरािश
का समÆवय आधुिनक िव²ान से करते ह§, यह इस िनबंध कì िविशĶ बात है । साथ ही वे हर
िवषय को जीवन - जगत के महÂवपूणª ÿijŌ से जोड़कर उसका मूÐयांकन करते ह§, यह भी
इस िनबंध कì िविशĶता है ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी सैĦांितक और Óयावहाåरक जीवन के िकसी भी ±ेý को ²ान
कì ŀिĶ से उपेि±त नहé समझते ह§ । िजतना वे अपने िवĴेषण और िनÕकषŎ म¤ शाľ आिद
का आ®य लेते ह§, उतना ही वे लोकिवĵासŌ का भी मूÐयांकन करते हòए उनका सहज
उपयोग कर लेते ह§ । उनका परंपरा आि®त आधुिनकतावादी ŀिĶकोण उनके अलग ही
ÓयिĉÂव का िनमाªण करता है । इस िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी धूमकेतु के संबंध
म¤ शाľŌ, लोकिवĵासŌ और आधुिनक िव²ान का सहारा लेते हòए कई तरह कì
अवधारणाओं का वणªन और िवĴेषण करते हòए आगे बढ़ते ह§ और एक िनÕकषª तक पहòंचने
का ÿयास करते ह§ ।
उनकì शैली कì यह अĩुत िवशेषता है िक िनतांत सैĦांितक ÿijŌ पर िवचार करते हòए भी वे
उनका ÿयोग Óयावहाåरक और समसामियक जीवन के संदभª म¤ करते हòए उससे गहरा संबंध
जोड़ देते ह§। इस िनबंध म¤ भी सहज ही धूमकेतुओं कì चचाª करते-करते कभी वे इितहास के
माÅयम से दंडकारÁय के ÿij को हल करने कì चेĶा करते िदखाई देते ह§ और कभी
धूमकेतुओं से भी ºयादा खतरनाक मानव के Ĭारा िवकिसत िकए जा रहे मरणाľŌ पर Óयंग
करते िदखाई देते ह§ । आज के समय म¤ मनुÕय के िलए धूमकेतु से इतना खतरा नहé है, munotes.in

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आधुिनक गī
166 िजतना िक मनुÕय कì अपनी महÂवाकां±ाओं से है। अपने समय म¤ िजस तरह का दावानल
उÆहŌने देखा था, उससे उनका आशावाद िहला तो नहé परंतु मनुÕय कì नकाराÂमकता से वे
भलीभांित पåरिचत हो गए ह§ । तÂकालीन िवĵ म¤ िवकास का अथª घातक अľŌ-शľŌ के
िनमाªण और शिĉ के दुŁपयोग पर आधाåरत हो गया था। समÖत िवĵ दो ňुवŌ म¤ बंट चुका
था और मनुÕय शिĉपूजा म¤ लीन था ।
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी कì यह िवशेषता है िक वे न तो मानवतावाद पर अपनी आÖथा
को नĶ होने देते ह§ और नही मनुÕय कì ÿगित का उनका अटल िवĵास आहत होता है । वे
आशावाद से पåरपूणª रचनाकार ह§ और उनका मानना है िक िजस ÿकार मनुÕय अपने जीवन
म¤ आने वाले जिटल से जिटल ÿijŌ को हल कर लेता है, उसी तरह वह मनुÕयता कì राह म¤
आने वाले खतरŌ को भी समाĮ कर लेगा । मनुÕय कì यह दुज¥य शिĉ उसे कभी नĶ नहé
होने देगी । यह आशावाद आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के संपूणª सािहÂय कì ÿाणशिĉ है
और इस िनबंध म¤ भी वे इस आशा को पूरी आÖथा से Óयĉ करते िदखाई देते ह§ । यह
िनबंध जहां एक तरफ ÿाचीन संिचत ²ानरािश से पåरिचत कराता है, वहé धूमकेतु के संबंध
म¤ आधुिनक वै²ािनक अवधारणाओं कì भी जानकारी देता है । और साथ-ही-साथ जीवन-
जगत के ÿित एक आशावादी ŀिĶकोण का िनमाªण करता है । यह इस िनबंध कì सबसे बड़ी
देन है ।
११.१.३ सारांश ÿÖतुत इकाई के अंतगªत 'केतुदशªन' िनबंधŌ का िवĴेषण िकया गया है । िनबंध केतुदशªन,
िबÐकुल िभÆन संवेदना पर आधाåरत िनबंध है। यह िनबंध खगोलशाľीय एवं ºयोितषीय
ŀिĶ से अÂयंत महÂवपूणª माने जाने वाले धूमकेतु पर आधाåरत है । इस िनबंध म¤ आचायª जी
ने ÿाचीन भारतीय शाľŌ एवं आधुिनक वै²ािनक अवधारणाओं के अनुसार धूमकेतुओं का
सरल और सहज िचýण िकया है । उनके बारे म¤ बहòत से महÂवपूणª तÃय और आंकड़े इस
िनबंध म¤ उÆहŌने रखे ह§ । धूमकेतु के संदभª म¤ कई तरह के लोकिवĵासŌ कì भी चचाª उÆहŌने
कì है। इस मु´य िवषय वÖतु के अितåरĉ उÆहŌने जीवन और जगत से जुड़े हòए ÿijŌ कì
चचाª भी ÿसंगवश कì है ।
११.१.४ उदाहरण-Óया´या Óया´या अंश १:
एक हैली धूमकेतु है, जो सन १९१० ईÖवी म¤ अंितम बार िदखा था। हैली नाम के ºयोितषी
ने पहले-पहल िहसाब लगाकर देखा था िक यह ७६ वषª म¤ लौटता है, और इसका मागª
दीघªवृ°ाकार है। तब से यह कई बार देखा गया है और इसका नाम ही 'हैली धूमकेतु' पड़
गया है। १९१० ईÖवी कì १९वé मई को यह सूयª और पृÃवी के बीच म¤ आ गया था । २०
मई को तो यह पृÃवी के बहòत नजदीक आ गया। सूयª के सामने आने पर यह और भी
तेजÖवी बना । इसकì पूँछ- अथाªत िशखा - उदयिगåर से अÖतिगåर तक पहòंचती थी ।
उसचौड़ी उºजवल िशखा को देखकर एक किव ने आकाश सुंदरी कì उºजवल सीमांत
रेखा का सŏदयª अनुभव िकया था । एक िदन तो हमारी यह पृÃवी उसकì पूँछ के भीतर से munotes.in

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िनबÆध : केतुदशªन
167 िनकल गयी । पढ़े-िलखे - अथाªत समझदार समझे जाने वाले - लोग घबरा गए थे । ÿित±ण
कुछ घट-पड़ने कì आशंका थी । ýािह-ýािह मच गई थी । लेिकन बाद म¤ मालूम हòआ िक
िवधाता ने पृÃवी को काफì मजबूत बनाया है, धूमकेतु इसका कुछ िबगाड़ नहé सकते -
उनकì पूँछ तो िबÐकुल नहé । १९१० ईÖवी म¤ पृÃवी बच गई, और उÌमीद कì जानी चािहए
िक १९८६ ईÖवी भी बच ही जाएगी । अगर नहé बच सकì , तो उसका कारण धूमकेतु नहé
होगा, मनुÕय के बनाए हòए मरणाľ हŌगे। खैर।
संदभª: उĉ अवतरण आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध संúह 'कÐपलता' के केतुदशªन
िनबंध से िलया गया है।
ÿसंग: इस अवतरण म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने धूमकेतु के संदभª म¤ ÿचिलत
िविभÆन लोकिवĵासŌ और वै²ािनक कÐपनाओं का वणªन िकया है, िजनके अनुसार धूमकेतु
के कारण पृÃवी नĶ हो जाएगी । उÆहŌने यह िवĵास जताया है िक पृÃवी धूमकेतु के कारण
नĶ हो या न हो , परंतु मनुÕय के Ĭारा बनाए जा रहे अľŌ और शľŌ से जłर नĶ हो
जाएगी। धूमकेतुओं के बहाने वे इस अवतरण म¤ अपनी समसामियक समÖयाओं कì ओर
Åयान आकृĶ कराते िदखाई देते ह§ ।
Óया´या: हैली धूमकेतु एक ऐसा धूमकेतु है, िजसके बारे म¤ हमारे पास अब सारी ÿामािणक
जानकारी है। इस धूमकेतु का पता हैली नामक खगोलशाľी ने लगाया था। हैली का पूरा
नाम एडमंड हैली था । और वे ÿिसĦ गिणत² और भौितकशाľी Æयूटन के समकालीन थे।
उनकì खगोलशाľ म¤ गहरी िज²ासा थी और इसी िज²ासा के चलते वे लगातार अÅययन
भी करते रहते थे । हैली धूमकेतु के बारे म¤ पहली बार ÿामािणक जानकारी उÆहŌने ही दी
थी। उनका कहना था िक जो धूमकेतु सन १६८२ म¤ िदखाई िदया था, यह वही धूमकेतु है,
जो सन १५३१, १६०७ तथा संभवतः सन १४६५ म¤ भी िदखाई पड़ा था । उÆहŌने गणना
Ĭारा भिवÕयवाणी कì िक यह सन १७५८ के अंत के समय पुनः िदखाई देगा और ऐसा हòआ
भी । तब से इस धूमकेतु का नाम हेली धूमकेतु पड़ गया। आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने
इÆहé संदभŎ कì चचाª करते हòए इस धूमकेतु के १९१० ईÖवी म¤ िदखाई देने के समय का
वणªन िकया है । िजन िÖथितयŌ म¤ यह धूमकेतु पृÃवी से गुजरा था, उसम¤ सभी लोग काफì
घबरा गए थे और सभी को कुछ अिनĶ घटने कì आशंका थी परंतु जब यह घटना बीत गई
और पृÃवी सुरि±त रही, तब लोग संयत हòए । इसी संदभª म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी
पृÃवी कì अजेयता के ÿित आĵÖत करते हòए यह मानते ह§ िक ऐसे धूमकेतुओं से पृÃवी नĶ
नहé हो सकती परंतु ऐसी संभावनाओं से इनकार भी नहé िकया जा सकता । मनुÕय और
पृÃवी कì अजेयता को लेकर पूरा िवĵास Óयĉ करते ह§ िक १९८६ म¤ जब यह धूमकेतु पुनः
िदखाई देगा तो भी पृÃवी बच जाएगी। पर इसी संदभª का आ®य लेते हòए वे हमारा Åयान
मानवता कì िहंसक ÿवृि° कì ओर िदलाते हòए यह संकेत करते ह§ िक िजस तरह कì अľŌ-
शľŌ कì होड़ इस समय पूरे िवĵ को आøांत िकए हòए ह§, ऐसे म¤ पृÃवी, धूमकेतु के कारण
नĶ हो या न हो परंतु महाशिĉयŌ कì महÂवाकां±ा के कारण अवÔय नĶ हो जाएगी । इस
तरह वे यह संदेश देना चाहते ह§ िक मनुÕय को अपनी िहंसक वृि° पर लगाम लगाना होगा।
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आधुिनक गī
168 िवशेष:
१. हेली धूमकेतु के बारे म¤ ÿमािणक जानकारी िमलती है ।
२. मनुÕय कì दुज¥य शिĉ का पåरचय िमलता है ।
११.१.५ वैकिÐपक ÿij १. गगª ने केतुओं कì सं´या िकतनी बताई थी?
(क) १०१ (ख) २०१
(ग) ३०१ (घ) ४०१
२. पराशर नामक ºयोितषी ने हेली धूमकेतु को ³या नाम िदया था ?
(क) तारा (ख) चलकेतु
(ग) धूमकेतु (घ) िनधूªम
३. वै²ािनकŌ के अनुसार हेली धूमकेतु िकतने वषŎ के बाद लौटता है ?
(क) ४६ वषª (ख) ५६ वषª
(ग) ६६ वषª (घ) ७६ वषª
४. िनÌन म¤ से िकसके अनुसार बुंदेलखंड से लेकर कृÕणा नदी के तट का सारा देश
दंडकारÁय कहा जाता था ?
(क) िविलयम (ख) जŌस
(ग) पािजªटर (घ) ³लाइव
११.१.६ लघु°रीय ÿij िनÌन पर िटÈपणी िलिखए :
१) हेली धूमकेतु ।
२) दंडकारÁय ।
११.१.७ बोध ÿij १) केतुदशªन िनबंध कì अंतवªÖतु का िवĴेषण कìिजए ? munotes.in

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िनबÆध : केतुदशªन
169 २) केतुदशªन िनबंध म¤ आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी ने िकन शाľीय माÆयताओं का
उÐलेख िकया है। िवÖतार से िलिखए?
३) 'आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी के िनबंध ÿाचीन और आधुिनक ²ान का सुंदर सिम®ण
ह§।' केतुदशªन िनबंध के माÅयम से कथन कì समी±ा कìिजए?
११.१.८ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १) कÐपलता - आचायª हजारीÿसाद िĬवेदी
*****
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170 १२
कथा मंजरी - सं. मह¤þ कुल®ेķ
कफन - ÿेमचंद
इकाई कì łपरेखा
१२.० इकाई का उĥेÔ य
१२.१ ÿÖतावना
१२.२ कथानक
१२.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१२.४ कफन का उĥेÔ य
१२.५ सारांश
१२.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न
१२.७ लघुÂ तरी ÿÔ न
१२.८ वÖतुिनķ ÿij
१२.० इकाई का उĥेÔ य  इस इकाई के माÅ यम से हम ‘कफन’ कहानी के कथानक को समझ पाएँगे ।
 इस इकाई के माÅ यम से हम ‘कफन’ कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण का अÅययन
कर¤गे ।
 इस इकाई के माÅ यम से हम ‘कफन’ कहानी के उĥेÔ य को भी आसानी से समझ
पाएँगे।
१२.१ ÿÖतावना ‘कफन’ कहानी िसफª मुंशी ÿेमचंद कì ही नहé, बिÐक सÌ पूणª िहÆ दी सािहÂ य कì भी चिचªत
कहानी है । सन् १९३६ म¤ रची गई यह कहानी िहÆ दी सािहÂ य कì ऐसी पहली रचना है, जो
अपने केÆþीय पाýŌ को न तो औदाÂ य ÿदान करती है, और न ही अितåर³ त संवेदना।
िनिĵत łप से ÿेमचंद जी कì यह कहानी लेखकìय तटÖ थता का उÂ कृÕ ट उदाहरण है ।
जहाँ लेखकìय हÖ त±ेप और पूवाªúहŌ को दर-िकनार करते हòए पाýŌ को उनकì Ö वाभािवक
िकÆ तु संिĴÕ ट रंग रेखाओं म¤ ही रचा गया है । दरअसल यही वह िबÆ दु भी है ज हाँ इस
कहानी का िवरोध भी हòआ है, और इसे दिलत िवरोधी रचना कहकर खाåरज करने का
ÿयास भी िकया है ।
‘कफन’ कहानी का शीषªक इितवृÂ ताÂ मक न होकर सूà म भावŌ को अिभ Ó य³ त करने वाला
है। इसम¤ केवल बुिध या के कफन पर ही Ó यंµ य नहé िकया गया है, बिÐ क मानव कì
मूलÿवृिÂ त कì असहायता पर भी तीखा Ó यंµ य िकया गया है । बुिध या घर पर मृतक पड़ी है, munotes.in

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कथा मंजरी - सं. मह¤þ कुल®ेķ कफन - ÿेमचंद
171 उसके कफन के िलए एकý िकए गए पैसे कì शराब पी ली जाती है, ³ यŌिक दु:ख सहते-
सहते घीसू और माधव म¤ उिचतानुिचत का िववेक नÕ ट हो गया ह§ । वे बुिध या का कफन
नहé, अपना ही कफन मानो तैयार करते ह§ । राजेÆ þ यादव के शÊ दŌ म¤ कफन अपने गहन
अथŎ म¤ बुिध या के कफन कì कहानी नहé, मानवता और मृत नैितक बोध के कफन कì
कहानी है । यह उस हताशा कì कहानी है, जो मनुÕ य के आिदÂ य को आिदम Ö त र पर ले
जाती है, जहाँ पर अ¸ छे-बुरे का लोप हो जाता है ।
१२.२ कथानक मुंशी ÿेमचंद कì आरंिभक कहािनयŌ के कथानक लÌ बे और इितवृÂ ताÂ मक होते थे, पर
उÂ कषª काल कì कहािनयŌ के कथानक और इसिलए ‘कफन’ का कथानक कलाÂ म क,
संि±È तता पर सुगिठत है । इनके ये कथानक या तो िकसी Ó यिĉ या समÖ या के एक प± का
िनłपण करते ह§, अथवा िकसी मनोवै²ािनक अनुभूित पर आधाåरत होते ह§ । इस कफन
कहानी का कथानक संि±È त तो है िकÆ तु सुगिठत भी है । डॉ. लà मीनारायण लाल का
कथन है िक इस कहानी म¤ जैसे कोई मनोवै²ािनक िबÆ दु ही कहानी भर म¤ कथानक के नाम
पर सूà म रेखा बन गई हो । कफन कहानी म¤ सवªहारा वगª के दो Ó यि³ त घीसू और माधव के
Ĭारा नैितक पतन का बोध कराया गया है । दुख सहते-सहते बाप-बेटे दोनŌ ही पूणª łप से
अकमªÁ य बन गए ह§ । इसीिलए वे मेहनती न होकर उपजीवी हो गए ह§ । घर पर माधव कì
पÂ नी बुिध या ÿसव पीड़ा से छटपटाकर मरी पड़ी है, पर उन दोनŌ को ही उसकì कोई
िचनता नहé, कफन के िलए एकý िकए गए łपयŌ से पहले वे पूरी-कचौड़ी खाते ह§, िफर
उÆ हé पैसŌ से शराब भी पीते ह§ । जीवन म¤ पहली बार िमलने वाली तृिÈ त को वे िब Ð कुल भी
छोड़ नहé पाते ह§, अत: वे सब कुछ भूलकर वतªमान म¤ ही रमते हòए जीवन जीने कì कोिश श
करते ह§ ।
इसिलए मुंशी ÿेमचंद कहानी को उसकì चरम सीमा पर पहòँचाकर वहé उसका अÆ त भी कर
देते ह§ । इससे कłणा का और साथ ही उसके मािमªक जीवन का स हज ही Ö पÕ ट िचý
कफन कहानी के माÅ यम से अंिकत हो जाता है । कफन ÿथम ŀÕ टया घीसू, माधव, िपता
पुý कì संवेदनहीनता और भावनाÂ मक øूरता कì कहानी कही जा सकती है । जाड़े कì रात
कì घनघोर िनÖ त बधता म¤ अकेले अपने झोपड़े म¤ ÿसव वेदना से छटपटाती बुिध या के
समानाÆ तर उसके घर के दोनŌ पुłष सदÖ य पित एवं Ô वसुर उसके कÕ ट से बेपरवाह आग
म¤ आलू भूनकर खा रहे ह§ । कहानी के आरÌ भ म¤ ही इस Ćदय िवदारक ŀÔ य कì िनयोजना
कर ÿेमचÆ द मानŌ पाठकŌ से संवेदनशील ढंग से िवचार ±ेý म¤ उतरने कì माँग करते ह§ ।
उÆ ह¤ यह अपे±ा है िक पाठक उनकì अÆ य कहािनयŌ कì तरह यहाँ भावना और कतªÓ य
परायणता के बीच आदशª और यथाथª कì मुठभेड़ के माÅ यम से चåरý-िचýण के पारंपाåरक
सूýŌ कì उÌ मीद न कर¤ । बिÐ क एक ऐसी øूर स¸ चाई के सा±ाÂ कार के िलए ÿÖ तुत रह¤, जो
भावनाएँ कतªÓ य और तकª कì हर धार काटकर अपने इदª-िगदª िनिवड़तम अंधकार कì ही
सृिÕ ट करती है ।
ऊपरी तौर पर यह कहानी अित संि±È त है, बुिधया कì ददªनाक मौत के बाद घीसू-माधव
Ĭारा कफन के िलए अनुनय-िवनय से जमा िकए गए पाँच łपयŌ को शराब और पूड़ी,
कचौड़ी म¤ उड़ा देने कì योजना बनती है । लेिकन भीतरी तहŌ म¤ संिÔ ल Õ ट से संिÔ ल Õ टतर munotes.in

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आधुिनक गī
172 होती चलती यह कहानी पाýŌ के मनोिव²ान, अÅ ययन से आगे के समाज, Ó यवÖ था के
िवÔ लेषण का आधार बन जाती है । भारतीय सामंती समाज कì मनोरचना से पåरिचत
पाठक यह जानता है िक संपÆन वगª िजस अिधकार से हािशए कì अिÖ म ताओं का शोषण
करता है, उतने ही कृपा भाव से खैरात łप म¤ कुछ िस³ के भी उनकì ओर उछाल देता है ।
यह कृपा दयाªþ होकर उनकì िÖ थित सुधारने कì चेतना का पåरणाम नहé, बिÐ क अपनी
ÿजा को उतना भर देने कì सुिनयोिजत युि³ त है, िजससे वे दुसाÅ य कमª करने के िलए
िजÆ दा रह सक¤ । Ó यि³ त गत तौर पर अपनी िजÆ द गी का सुख न भोग पाएँ । इसिलए पाठक
भी घीसू, माधव कì तरह अÆ त स से िनकली गहरी इ¸ छा कì Ó यथªता समझता है, ³ यŌिक
वह जानता है िक जीिवत बुिधया के इलाज के िलए कोई भी धनकुबेर अपनी दानवीरता का
ÿदशªन नहé करता है ।
साँझ के धुँधलके म¤ िपता-पुý के पैर जब मिदरालय कì ओर िखंचे चले जाते ह§, तब वह
सतही तौर पर भले ही उनकì गैर िजÌ मेदारी पर ±ुÊ ध होता हो, वह भली-भाँित जानता है
िक, वे दोनŌ इस समय भीतर ही भीतर आøोश कì आग म¤ कैसे झुलस रहे ह§ । चमार
Ö वभावत: वैसे भी आलसी एवं अकमªÁ य होते ह§, घीसू तथा माधव तो उसम¤ भी सरनाम थे ।
घीसू एक िदन काम करता था तो तीन िदन आराम । माधव, घीसू का जो लड़का था वह भी
इतना कामचोर िक आधे घंटे काम करता, और घÁ टा भर बैठकर िचलम पीता । इसिलए
उसे कहé मजदूरी नहé िमलती थी । गाँव म¤ काम कì तो कमी नहé थी, पर कामचोरŌ को
काम कौन दे? उसे कोई काम तभी देता था, जब िकसी को मजदूर नहé िमलता था । वे
दूसरŌ के खेतŌ से मटर आलू चुराकर लाते और उसे भूनकर खाते थे । घीसू ने तो अपने
जीवन के साठ वषª इसी तरह गुजार िदए थे और माधव भी अपने िपता के ही कदमŌ पर चल
रहा था । या यŌ भी कहा जा सकता है िक माधव, घीसू का नाम और भी अिधक उजागर कर
रहा था । उसका िववाह भी न जाने कैसे हो गया, लड़कì भली थी उसने उस खानदान कì
Ó यवÖ था कì, िपसाई करके या घास छीलकर वह दो जून कì रोटी के िलए आटे का जुगाड़
करती और उन दोनŌ के पेट भरती थी । तब से वे दोनŌ और भी अिधक आराम तलब हो गए
थे, कहé वे काम पर ही नहé जाते थे ।
साल भर बाद माधव कì पÂ नी बुिधया ÿसव वेदना से कराहने लगी । एक िदन उसे ÿसव कì
अपार वेदना हो रही थी, पर उनम¤ इतना आलÖ य भरा हòआ था िक वे उसे देखने भी नहé
गए, दाई आिद का ÿबंध तो दूर, लेटे-लेटे ही वे बुिधया के ÿसव पीड़ा कì कराह सुनते रहे ।
न बाप उठा न बेटा । दोनŌ कहé से आलू चुराकर लाए थे और उÆ ह¤ आग म¤ भून रहे थे ।
माधव का भय था िक अगर वह उठकर बुिधया को देखने गया तो उसका बाप घीसू काफì
अिध क आलू अकेले ही खा जाएगा । उÆ ह¤ यह भी उÌ मीद थी िक वेदना से कहé वह मर न
जाए, पर इसकì भी उÆ ह¤ कोई िचÆ ता नहé थी । यिद एक और खाने वाला आ गया तो ³ या
होगा, इससे तो अ¸ छा है िक दोनŌ ही मर जाएँ । आलू खा कर दोनŌ ने पानी पीया और वहé
अलाव के पास अपनी धोितयाँ ओढ़कर पाँव पेट म¤ ड़ाले सो गए । बुिध या के कराहने कì
ओर उÆ हŌने Å यान ही नहé िदया , और इसी ÿसव वेदना म¤ तड़पते हòए उसके ÿाण भी
िनकल गए ।
सुबह देखा तो यह पाया िक बुिध या के मुँह पर म³ खी िभनक रही थी , और ब¸ चा तो उसके
पेट म¤ ही मर गया था । सारा शरीर लहó से सना हòआ था । माधव और घीसू दोनŌ हाय-हाय munotes.in

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कथा मंजरी - सं. मह¤þ कुल®ेķ कफन - ÿेमचंद
173 कर छाती पीटने लगे । पड़ोिसयŌ ने सुना तो दौड़कर आए और उन दोनŌ को समझाने लगे
और तब वे दोनŌ बुिध या के कफन और लकड़ी के बारे म¤ सोचने लगे । घर म¤ एक पैसा भी न
था, दोनŌ जमéदार के पास गए, हालाँिक वह उनसे घृणा करता था, पर दीनता, रोना और
िगड़िगड़ाना देखकर दो łपए उनकì ओर फ¤क िदए, िफर तो दोनŌ ने जमéदार के नाम कì
दुहाई दे कर गाँव के बिनए महाजनŌ से भी कुछ पैसे ले िलए । जब जमéदार साहब ने पैसे
िदए तो भला वे कैसे मना कर सकते थे? थोड़ी ही देर म¤ घीसू और माधव कì जेब म¤ पाँच
łपए इकęा हो गए, कहé से अनाज िमला तो कहé से लकड़ी ।
दोपहर को दोनŌ बाजार से कफन लाने चल िदए, परÆ तु बाजार पहòँचकर घीसू कì नीयत
बदल गई । उसने अपने बेटे माधव को सुझाव िदया िक, जो मर गया उस पर अच् छा कफन
ड़ालने से ³ या फायदा? इसिलए कोई घिटया सा कपड़ा ही देख िलया जाए । पर शाम तक
घूमते-टहलते रहने के बाद भी उÆ ह¤ कुछ पसंद न आया । वाÖ तव म¤ वे दोनŌ łपए हजम कर
जाना चाहते थे, और इसी ÿेरणा से वे एक शराब कì दुकान के सामने जा खड़े हòए । घीसू ने
हĘी के सामने जा कर एक बोतल शराब का ऑडªर िदया । थोड़ी देर बाद िचखौना भी आया,
तली हòई मछिलयाँ आई, दोनŌ कुिº ज यŌ म¤ डाल-डालकर शराब पीने लगे और जोश म¤
आकर बकने भी लगे । मृतक बुिधया को आशीवाªद देते हòए कहने लगे िक आज उसी के
कारण यह खाना िमला है, इसिलए उसे भी Ö वगª िमलेगा । वह बड़ी पुÁ याÂ मा है, लेिकन िफर
उसके सामने िचंता थी िक लोगŌ से ³ या कह¤गे िक कफन ³ यŌ नहé लाए? सारे पैसे तो
समाÈ त हो गए थे ।
माधव कì बात पर घीसू बड़ी ही बेकार हँसी हँसा, और उसने ही सुझाया िक कह द¤गे पैसे
जेब से िखसक गए । उÆ हé को खोजने म¤ इतनी देर भी लग गई । उसकì यह तरकìब सुनकर
माधव भी िदल खोलकर खूब हँसा, उसने सोचा िक बुिधया तो मर गई, पर उसी के बहाने
आज खाने को भी खूब िमला । आधी बोतल समाÈ त हो जाने पर माधव सामने कì दुकान से
गरमा गरम पूåरयाँ, चटनी, आचार और कचौिडयाँ ले आया, दोनŌ दो सेर पूåरयाँ खा गए ।
उÆ हŌने सोच िलया था िक पड़ोसी कफन का ÿबंध तो कर¤गे ही, हाँ पर अब उÆ ह¤ पैसे नहé
िमल¤गे । मरे को कौन ऐसे छोड़ देता है भला? भरपेट खाकर माधव ने बची हòई पूåरयŌ कì
पÂ हल उठाकर एक िभखा री को दे दी, जो काफì देर से वहé खड़ा उसकì ओर भूखी आँखŌ
से देख रहा था । उसने इस देने का आनÆ द और उÐ लास का अनुभव जीवन म¤ पहली बार
ही िकया ।
खा-पीकर दोनŌ खूब बकने लगे, घीसू तो दाशªिनकŌ जैसी बाते करने लगा । ÿलाप और
उÆ माद दोनŌ ही उन पर छा रहे थे । पहले तो बुिधया कì दयालुता और सĆदयता का वणªन
करते हóए उसे सीधे वैकुÁठ को पहòँचाते रहे और नशे कì हालत म¤ उसके दुख कì कÐ पना
करके दोनŌ आँखŌ पर हाथ रखकर रोने का अभिनय कर रहे थे ।
१२.३ पाý एवं चåरý-िचýण ‘कफन’ कहानी म¤ मुंशी ÿेमचंद ने मानवीय दुबªलताओं का सफल एवं बड़ा ही यथाथª िचýण
िकया है । इसके सभी पाý Ö वाभािवक ह§, और उनका आधार मनोवै²ािनक है । घीसू और
माधव समाज कì आिथªक िवषमता म¤ शोिषत वगª के ÿितिनिध ह§ । उनके चåरýŌ म¤ शोिषत munotes.in

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आधुिनक गī
174 वगª कì िवपÆ नता और उपजीिवता साकार हो उठी है । इसम¤ तीन ÿमुख और उपयोगी पाý
ह§ – बुिधया, माधव और घीसू | इनम¤ से घीसू का चåरý ही अिध क महÂ वपूणª है । बुिधया,
घीसू और माधव का चåरý िवकिसत करने के िलए ही कहानी म¤ ÿÖ तुत िकया गया है ।
³ यŌिक बुिधया के िनधन से ही उनके चåरý का िनखार होता है । ÿेमचंद ने इन दोनŌ का
चåरý Ó या´ याÂ मक शैली म¤ न देकर Å वÆ याÂ मक łप म¤ देने का ÿयास िकया है । दोनŌ ही
कफन के िलए िमले łपयŌ से पहले पेट भर खाना चाहते ह§, पर एक दूसरे से कह भी नहé
सकते ह§। इसकì िचý कुशलता इस तरह से Ó य³ त कì गई है -
‘माधव बोला-लकड़ी तो बहòत है, अब कफन लेना चािहए ।
तो चलो कोई हलका सा कफन ले ल¤ ।
हाँ और ³या? लाश ढोते-ढोते रात हो जाएगी रात को कफन कौन देखता है ।
कैसा बुरा åरवाज है िक िजसे जीते जी तन ढँकने को चीथड़ा भी न िमले, उसे मरने पर नया
कफन चािहए ।’
दोनŌ ही एक-दूसरे के मन कì बात ताड़ रहे थे, बाजार म¤ इधर-उधर घूमते रहे । कभी इस
बजाज कì दुकान पर गए, कभी उस बजाज कì दु कान पर, मगर कुछ जँचा नहé, यहाँ तक
िक शाम हो गई , दोनŌ न जाने िकस ÿेरणा से एक मधुशाला के सामने जा पहòँचे और जैसे
िकसी पूवª िनिÔ च त योजना से अÆ दर चले गए । पाýŌ के इस मन: िÖ थित कì सूà म िववेचना
ÿेमचÆ द के कुशल लेखन कला का सवōÂ तम पåरचायक है । कफन कहानी के पाýŌ के मÅ य
संवाद एक लड़ी कì भाँित ह§, जो पाýŌ कì मन:िÖ थ ित का बोध कराने के साथ-साथ
कथानक को भी गित ÿदान करते ह§ । पाठकŌ म¤ उÂ साह और उÂ सुकता उÂ पÆ न करते ह§ ।
और कहानीकार ÿेमचंद कì कलाÂ मकता, वा³पटुता, सूà मता तथा सÌ ब Ħता का भी
पåरचय देते ह§ ।
‘कफन’ कहानी के संवाद, पाýŌ कì मानिस क िÖ थित और उनके आंतåरक िवचारŌ का
सÌ यक पåरचय देते ह§ । य ह िचýण भी केवल संवादŌ के माध् यम से ही हो सकता है । घीसू
और माधव कì मनोÓ य था और अकमªÁयता पर ÿकाश ड़ालने वाले संवाद कुछ इस तरह से
ह§ -
‘घीसू ने कहा मालूम होता है, बचेगी नहé । सारा िदन दौड़ते हो गया । जा देख तो आ ।
माधव िचढ़कर बोला -मरना ही है तो जÐ दी मर ³ यŌ नहé जाती, देखकर ³ या कłँ ?
‘तू बड़ा बेददª है बे । साल भर िजसके साथ सुख, चैन से रहा उसी के साथ इतनी बेवफाई ।’
‘तो मुझसे तो उसका तड़पना, हाथ-पाँव पटकना नहé देखा जाता ।’
इस कहानी के संवादŌ म¤ पाýŌ का Ó यि³ त Â व भी है, और चåरý िचýण के माÅ यम से
कथानक कì गित भी ।
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कथा मंजरी - सं. मह¤þ कुल®ेķ कफन - ÿेमचंद
175 १२.४ ‘कफन’ कहानी का उĥेÔ य ‘कफन’ कहानी मुंशी ÿेमचंद कì एक यथाथªवादी कहानी है, मनोवै²ािनक यथाथª कì रचना
होने के कारण इसका उĥेÔ य है, शोषण और गरी बी से उ पÆ न अकमªÁ यता और लापरवाही -
उपजीिवका का वाÖ त िवक िचýण । ÿेमचÆ द यहाँ शोषण और अÆ याय के िवłĦ ह§ । वे कहते
है िक – ‘िजतने धनी ह§, वे सबके सब लुटेरे ह§, प³ के लुटेरे डाकू । कल मेरे पास łपए हो
जाएँ और म§ एक धमªशाला बनवा दूँ, तो देिखए मेरी िकतनी वाहवाही होती है । कौन पूछता
है िक मुझे दौलत कहाँ से िमली? मानवता का यही शाश् वत ÿÔ न ‘कफन’ कहानी म¤ Ó य³ त
हòआ है ।
१२.५ सारांश ‘कफन’ कहानी ÿेमचंद कì कहानी कला का उÂ कृÕ ट नमूना होते हòए भी कुछ सवाल मन म¤
उठाती है, िवशेषकर कहानी कì बुिनयादी घटना को लेकर िक सच म¤ ³ या कोई Ó यि³ त
इतना संवेदनहीन हो सकता है िक घर कì गाड़ी खéचने वाली Ö ýी अथवा िकसी भी ÿाणी
कì ददªनाक मौत को यूँ ही िनिवªकार होकर देखता रहे ?, दूसरे भारतीय पåरवारŌ और
समाज कì जैसी संरचना है, उसम¤ सामुदाियक भावना कì ÿबलता है । पåरवार म¤ िÖ ýयाँ न
हŌ तो आस-पड़ोस कì िÖ ý याँ बीमारी या ÿसूित म¤ िबना बुलाए ही मदद को आ जाती है ।
ऐसे म¤ इस कहानी म¤ बुिधया का अकेले तड़प-तड़प कर दम तो ड़ना, िनतांत अिवÔ वसनीय
लगता है। अपनी आतंåरक संरचना म¤ यह एक लाश को कफन मुहैया कराने कì कहानी भर
नहé है, बिÐ क इस कटु सÂ य कì ओर हमारी बेपरवाही का संकेत करती है िक हमारी समाज
Ó यवÖ था मर कर भी सड़ाँध फैला रही है, और अपने ही ´ यालŌ म¤ जीते हòए हम न उसकì
मौत के वÖ तु सÂ य को Ö वीकार कर पा रहे ह§, और न उसके अंितम संÖ कार कì Ó यवÖ था
कर रहे ह§, और नहé उनके Ö थान पर िकसी बेहतर वैकिÐ प क Ó यवÖ था पर िवचार ही कर
रहे ह§? इस ÿकार यह कहानी अपनी पåरिध का िवÖ तार करते हòए िकसी एक Ó यि³ त कì
मौत कì कहानी नहé , Ó यवÖ था कì मौत का खतरनाक अफसाना बन जाती है ।
१२.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न i. ‘कफन’ कहानी के कथानक को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘कफन’ कहानी के पाý-योजना को िवÖ ता रपूवªक समझाइए ।
iii. ‘कफन’ कहानी कì संवाद-योजना को सं±ेप म¤ Ö पÕ ट कìिजए ।
१२.७ लघुÂ तरी ÿÔ न i. घीसू का चåरý-िचýण कìिजए ।
ii. माधव का चåरý -िचýण कìिजए ।
iii. बुिधया के चåरý कì िवशेषताएँ िलिखए ।
iv. ‘कफन’ कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए । munotes.in

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आधुिनक गī
176 १२.८ वÖतुिनķ ÿij i. कफ़न कहानी के रचनकार कौन ह§?
ii. कफ़न कहानी के ÿमुख पाý कौन-कौन से ह§?
iii. कफ़न कहानी म¤ िकस समाज का िचýण िकया गया है?
iv. घीसू और माधव कफ़न के पैसŌ का ³या करते है?
v. बुिधया और माधव के बीच ³या åरÔता है?
*****
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177 १२.१
पुरÖ कार - जयशंकर ÿसाद
इकाई कì łपरेखा
१२.१.० इकाई का उĥेÔय
१२.१.१ ÿÖ तावना
१२.१.२ कथानक
१२.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१२.१.४ 'पुरÖकार' कहानी का उĥेÔ य
१२.१.५ सारांश
१२.१.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न
१२.१.७ लघुÂ तरी ÿÔ न
१२.१.८ वÖतुिनķ ÿij
१२.१.० इकाई का उĥेÔय  इस इकाई के माÅ यम से हम ‘पुरÖकार’ कहानी के कथानक को समझ पाएँगे ।
 इस इकाई के माÅ यम से हम ‘पुरÖकार’ कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण का अÅययन
कर¤गे ।
 इस इकाई के माÅ यम से हम ‘पुरÖकार’ कहानी के उĥेÔ य को भी आसानी से समझ
पाएँगे ।
१२.१.१ ÿÖ तावना जयशंकर ÿसाद कì कहानी कला उनकì ÿकृित कì स हचरी है, जो सदैव उनके साथ
समरसता कì िÖ थ ित म¤ बनी है । इसीिलए ÿसाद के कहािनयŌ कì कला म¤ एकłपता और
समरसता पाई जाती है । ÿसाद के कहानी कì िवशेषता यह भी है िक उनकì कहािनयाँ ÿाय:
ऐितहािसक वातावरण कì सृिÕ ट म¤ ही रची गई ह§ । इनकì कहािनयाँ अतीत कì पुकार भी ह§ ।
वे अपनी ‘पुरÖ कार’ शीषªक कहानी म¤ िजस युग का िचý खéचना चाहते ह§, उसकì साकार
तÖ वीर हमारी आँखŌ के सामने Ö वत: िखंच जाती है । ÿसाद कì ऐितहािसक चेतना भी
अĩुत है । इस कला म¤ उनकì बराबरी करने वाला कोई अÆ य लेखक नजर नहé आता । इस
युग के राजनीितक, सामािजक, सांÖ कृितक तथा वैयि³ त क जीवन मूतª िचý आँकने म¤ उÆ ह¤
आशातीत सफलता िमली है । ÿसाद जी कì ‘पुरÖ कार’ शीषªक कहानी Ó यि³ त चåरý के
मानिसक ĬÆ ĬŌ कì अवधारणा भी है । उनकì इस कहानी के पाý या कथानक िकसी समाज
या वगª का ÿितिनिधÂ व नहé करते ह§ । उनके माý िसफª मानव ह§ जो आÆ तåरक अभाव से
पीिड़त रहते ह§ । उनम¤ राग-िवराग, पाप-पुÁ य, सुख-दुख का घात-ÿितघात होता रहता है । munotes.in

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आधुिनक गī
178 उनके अÆ तĬªÆ Ĭ भी Ö वाभािवक ही है । जीवन कì कठोर पåरिÖ थ ितयाँ उÆ ह¤ उ तेिजत करती
ह§ ।
१२.१.२ कथानक ‘पुरÖ कार’ कहानी कथाकार जयशंकर ÿसाद Ĭारा िलखी गई ÿिसĦ कहािनयŌ म¤ से एक है ।
इस कहानी म¤ लेखक ने मधूिलका के अÆ तĬªÆ Ĭ का बड़ा ही सुÆ दर और यथाथª िचýण िकया
है । महाराज कì सवारी आ रही है । सारी जनता उनके Ö वागत के िलए खड़ी है । महाराज
हाथी पर से उतरते ह§, जनता ने उनका Ö वागत िकया । वह िदन कोशल के ÿिसĦ उÂ सव
का िदन था । इस उÂसव म¤ महाराज को एक िदन के िलए कृषक बनना पड़ता था| इंþ कì
पूजा कì जाती तथा नगर िनवासी खूब आनÆ द मनाते थे । हर साल यह उÂ सव मनाया जाता
था । अनेक राº यŌ के राजकुमार भी इस उÂ सव म¤ भाग लेते थे । आज इस उÂ सव के िलए
मधूिलका भी चुनी गई थी । मधूिलका बीजŌ का एक थाल लेकर महाराज के साथ-साथ चल
रही थी । महाराज उसी थाल म¤ से बीज लेकर खेत म¤ ड़ाल रहे थे । मगध का एक राजकुमार
अłण भी अपने रथ पर सवार होकर यह ŀÔ य देख रहा था । उÂ सव समाÈ त होने के पÔ चात
महाराज ने मधूिलका को कुछ Ö वणª मुþाएँ पुरÖ कार के łप म¤ दé । åरवाज के अनुसार
मधूिलका कì भूिम अब राजा कì हो चुकì थी, परÆ तु मधूिलका ने राजा पर Æ यौछावर करके
वे Ö वणª मुþाएँ दान कर दé । यह देखकर राजा को øोध आ गया । तभी मधूिलका ने कहा
िक यह मेरे पूवªजŌ कì भूिम है, म§ इसे बेच नहé सकती । तभी मंिýयŌ ने महाराज को बताया
िक मधूिलका वाराणसी युĦ के अÆयतम वीर िसंहिमý कì एकमाý कÆ या है । उसके िपता ने
मगध के िवłĦ उस युĦ म¤ कोशल को िवजय िदलाई थी । भूिम तो अब महाराज कì हो ही
चुकì थी । महाराज चुपचाप वहाँ से चले गए । मधूिलका ने िफर उÂ सव म¤ भाग नहé िलया ।
वह अपने खेत कì सीमा पर मधूक वृ± के नीचे चुपचाप बैठी रही ।
राजकुमार अłण ने भी रात के उÂ सव म¤ भाग नहé िलया । उसे नéद भी नहé आ रही थी ।
अपने घोड़े पर सवार होकर वह नगर Ĭार कì ओर चल पड़ा । नगर म¤ ÿवेश करने के पÔ चात
वह इधर-उधर घूमता रहा और अÆ त म¤ उसी मधूक वृ± के नीचे जा पहòँचा, ज हाँ मधूिलका
सो रही थी । तभी कोयल के बोलने से मधूिलका कì नéद खुल गई और अपने सामने एक
अपåरिचत युवक को देखकर उठ गई ।
ÿÖ तुत कहानी का कथानक कुछ-कुछ ऐितहािसक लगता है । परÆ तु इस म¤ कÐ पना का
अिध क िम®ण है । यही जयशंकर ÿसाद कì िनजी िवशेषता है । इस कहानी म¤ कोशल के
वीर देशभ³ त िसंहिमý कì पुýी मधूिलका और दूसरे राº य मगध के राजकुमार अłण कì
ÿेमकथा का वणªन है । मधूिलका राजकुमार अłण के ÿणय िनमंýण Ö वीकार करके उसकì
इ¸ छानुसार अपने राº य के िवłĦ एक बार तो भागीदार हो जाती है, परÆ तु उसकì
अÆ तमाªÂ मा उसे िध³ कारती है । और अÆ तत: वह षड़यंý का उĤाटन करके राº य कì र±ा
करती है । जब राजा उसे पुरÖ कार माँगने कì बात करते ह§, तो वह ÿाणदÁ ड पाने वाले
राजकुमार के साथ, अपने िलए भी ÿाणदÁ ड कì ही माँग करती है । यहाँ लेखक ने ÿेम पर
कतªÓय कì िवजय का बड़ा ही मािमªक एवं ĆदयÖ पशê वणªन िकया है । कहानी का अंत तो
बड़ा ही नाटकìय बन गया है । इस कहानी का कथानक (कथावÖ तु) संि±È त होते हòए भी
भावपूणª एवं सरल है । इस कथानक के माÅ यम से लेखक जयशंकर ÿसाद ने ÿेम एवं कतªÓ य munotes.in

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पुरÖ कार - जयशंकर ÿसाद
179 के ĬÆ Ĭ को िदखाकर अंतत: ÿेम पर कतªÓ य कì िवजय को उĤोिषत िकया है । सुगिठतता,
संभाÓ यता, रोचकता, भावुकता, Ö वाभािवकता तथा काÓ यमयता ही इस कथानक के
उÐ लेखनीय गुण ह§ । कथानक का अंत तो बड़ा ही ÿसादाÂ मक है । मधूिलका का कथन ‘तो
मुझे भी ÿाणदÁ ड िमले ।’ काफì देर तक पाठकŌ के Ćदय पटल पर गूँजता रहता है ।
१२.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण ÿÖ तुत कहानी ‘पुरÖ कार’ वीर बाला मधूिलका कì कहानी है । कहानीकार ने उसके
चाåरिýक मािमªक ĬंĬ का मािमªक उदघाटन िकया है| मधूिलका ही इस कहानी कì नाियका
है । वह देश-भि³ त एवं स¸ चे ÿेम कì सा±ात ÿितमूितª है । उसम¤ जहाँ एक तरफ ÿेिमका का
कोमल Ćदय धडकता है, वहé दूसरी तरफ देशÿेम कì भावना भी उसके भीतर बलवती हòई
है । अपनी जÆमभूिम कोशल कì र±ा म¤ वीरगित ÿाÈ त करने वाले अपने िपता िसंहिमý के
उ¸ च मानवीय संÖ कार भी मधूिलका को ÿाÈ त ह§ । कतªÓ य और ÿेम से उ पÆ न अंतĬªÆĬ म¤
मधूिलका का िवराट Ó यि³ त Â व और चåरý िवकिसत होता है । उसके मिहमामयी चåरý कì
यह सबसे महÂ वपूणª और उÐ लेखनीय िवशेषता है । वह एक Ö वÿेåरत एवं Ö वत: संचािलत
चåरý भी है । कहानी का नायक अłण है जो िक मगधराº य का राजकुमार है । उसे भी यहाँ
एक स¸ चे ÿेमी के łप म¤ िचिýत िकया गया है । एक ÿकार से ‘पुरÖ कार’ कहानी चåरý
ÿधान कहानी भी है । इनके अितåर³ त कोशल के महाराजा तथा मंिýयŌ के चåरý गौण होने
पर भी बड़े ही ÿभावशाली जान पड़ते ह§ ।
मधूिलका:
‘पुरÖ कार’ कहानी का केÆ þीय नारी पाý मधूिलका ही है । उसी के चåरý के चारो तरफ
सÌ पूणª कथानक च³ कर लगाता रहता है । कहानीकार ÿसाद ने मधूिलका के चåरý के
माÅ यम से अपने उĥेश् य को भी Ó यंिजत िकया है । यīिप इस कहानी म¤ मधूिलका के खेत
को ही महा कृिष महोÂ सव के िलए चुना गया है । परÆ तु वह अपनी भूिम से अलग नहé होना
चाहती । महाराज ने Ö वणª मुþाओं से भरा हòआ एक थाल खेत के पुरÖ कार के łप म¤ िदया
था । मधूिलका ने थाल को िसर से लगाया और Ö वणª मुþाओं को महाराज पर Æ यौछावर
करके िवखेर िदया । महाराज को øोध भी आया, परÆ तु मधूिलका ने िनवेदन िकया, ‘देव’,
यह मेरे िपतृ-िपतामहŌ कì भूिम है । इसे बेचना अपराध है, इसीिलए मूÐ य Ö वीकार करना
मेरी सामÃ यª से बाहर है । अÆ तत: वह भूिम का मूÐ य Ö वीकार नहé करती है ।
इस कहानी म¤ मधूिलका के चåरý के माÅ यम से ÿेम और कतªÓ य के िविचý अंतĬ«Ĭ को
िचिýत िकया गया है । मधूिलका के मन म¤ एक ओर मगध के राजकुमार अłण के ÿित ÿेम
है, वह उसे Ćदय से चाहती है । राजकुमार भी उसे अपनी महारानी बनाना चाहता है,
राजकुमार अŁण जब उसे आÔ वासन देता है तो वह उसके षड़ंयý म¤ भागीदार बनने को
तैयार हो जाती है, परÆ तु कतªÓ य भावना अचानक उसे झकझोरती है और वह सेनापित को
षड़यý से अवगत कराती है । वह बहòत लÌ बे समय तक ĬÆ Ĭ úÖ त रहती है । अÆ तत: वह देश
के ÿित कतªÓ य भावना पर िवजय ÿाÈ त करती है ।
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आधुिनक गī
180 अłण:
अłण ‘पुरÖ कार’ कहानी का ÿमुख पुłष पाý है । वह मगध राº य का राजकुमार है, और
कोशल राº य म¤ पूजा उÂ सव देखने आया था । वह ÿथम ŀिÕ ट म¤ ही मधूिलका के अपूवª
सौÆ दयª के ÿित आकिषª त हो जाता है । वह उसे अपनी महारानी बनाने के सपने भी देखने
लगता है| अŁण ÿेम के ÿित संपूणª łप से समिपªत है । वह एक िकसान बाला को अपनी
जीवनसंिगनी बनाना चाहता है| वह अपने È यार कì र±ा हेतु अपने ÿाणŌ कì बाजी भी लगा
सकता है । अłण एक साहसी तथा िनडर युवक भी है, उसे अपने युĦ कौशल और शि³ त
का पूरा भरोसा है । वह मधूिलका से कहता भी है िक तुम मेरी खड्ग का आतंक युĦ म¤
देखना । अłण एक महÂ वाकां±ी युवक भी है । उसे मगध से िवþोही घोिष त करके िनकाल
िदया गया था, वह कोशल म¤ मधूिलका कì शरण लेता है और कोशल का सăाट बनने कì
आकांशा रखता है तथा उसके िलए ÿयास भी करता है, िकÆ तु इसम¤ वह असफल हो जाता
है ।
वैसे तो राजकुमार अłण स¸ चा ÿेमी और वीर पुłष भी है, िकÆ तु वह षड्यंý रचकर
कोशल के नरेश को परािजत करना चाहता है । इसम¤ वह मधूिलका से स हायता चाहता है ।
वह कोशल नरेश के दूर चले जाने पर षड्यंý करना चाहता है, िकÆ तु उसका यह षड्यंý
मधूिलका समझ जाती है, और उसे पकड़वाकर Ö वयं को देश ÿेमी भी िसĦ करती है ।
१२.१.४ 'पुरÖकार' कहानी का उĥेÔ य महाकिव जयशंकर ÿसाद ÿाय: अतीत के वणªनŌ Ĭारा वतªमान का भी िचýण बड़े ही उĥेÔ य
परक ढंग से करते ह§ । ÿÖ तुत कहानी के उĥेÔ य के सÆ दभª म¤ कोशल और मगध के पुराने
इितहास को कहानी का आधार बनाया गया है । इस कहानी का ÿमुख उĥेÔ य ÿेम और
कतªÓ य के अंतĬ«Ĭ को िचिýत करते हòए देशभि³ त के ÿित अपनी भावनाओं को अिभ Ó य³ त
करता रहा है । कहानीकार ÿसाद ने इस कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण के माÅ यम से
अपने उĥेÔयŌ को भी Ó यंिजत िकया है । ÿसाद जी कì कहािनयाँ ऐितहािसकता िलए हòए
ÿाय: भावना ÿधान होती है। उनकì पृÕ ठभूिम ÿागैितहािसक, ऐितहािसक, धािमªक,
सामािजक या िवशाल भारत के िनमाªण पर भी आधाåरत होती ह§ । भावŌ को कहानी के łप
म¤ ढालने के िलए वे िवराट कथा का ही आ®य लेते ह§ । पुन: अपनी उस कÐ पना को
सािहिÂयक łप ÿ दान करने हेतु ÿचुर अिभ Óयंजना एवं िवÆ यास शि³ त ÿयोग भी िकया है ।
पुरÖ कार कहानी वैसे तो घटना ÿधान है, परंतु इस कहानी का ÿमुख उĥेÔ य ÿेम और
कतªÓ य का ĬÆ Ĭ िदखलाकर अंतत: ÿेम पर कतªÓ य कì िवजय का िदµ द शªन करना ही है ।
१२.१.५ सारांश जयशंकर ÿसाद कì ‘पुरÖ कार’ कहानी के सारांश łप म¤ यह कहा जा सकता है िक इसम¤
कथाकार/रचनाकार जयशंकर ÿसाद जी ने Óयिĉ-चåरýŌ के मानिसक ĬÆ ĬŌ कì अवधारणा
को Óयĉ िकया है । उनकì इस कहानी का कोई भी पाý िकसी समाज या सÌ ÿ दाय या वगª
िवशेष का ÿितिनिधÂ व नहé करते ह§ । ÿसाद जी पहले किव थे और बाद म¤ कहानीकार,
इसिलए उनकì ‘पुरÖ कार’ शीषªक कहानी म¤ कहé-कहé भाव ÿवणता भी िदखाई देती है । munotes.in

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पुरÖ कार - जयशंकर ÿसाद
181 काÓ य का कÐ पना एवं भावुकता का ÿयोग भी ÿसाद कì इस चिचªत कहानी म¤ िदखाई देता
है । जहाँ-जहाँ लेखक ने भावुकता तथा कÐ पना को Ó यावहाåरक łप िदया है, वहाँ का गī
िÖ न µ ध और काÓ यमय है, इससे जयशंकर ÿसाद कì ÿितभा कì गहराई का भी Ö पÕ ट पता
चलता है । इसम¤ कहानीकार जयशंकर ÿसाद ने सरल, सहज और ÿवाहमयी भाषा का
ÿयोग िकया है । लेिकन उनकì यह भाषा संÖकृतिनķ सािहिÂयक िहÆदी भाषा है | इसे
काÓयमयी भाषा भी कहा जा सकता है । तÂ सम शÊ दŌ कì अिधकता के कारण कुछ Ö थलŌ
पर कहानी ि³लÕ ट हो गई है, िफर भी कहानीकार ने सहजता और सरलता को बनाए रखा
है । कुछ जगहŌ पर उदूª तथा फारसी के शÊ दŌ का भी साथªक ÿयोग हòआ है । इस कहानी म¤
वणªनाÂ मक संवाद तथा अलंकृत शैिलयŌ का ÿयोग भी िदखाई देता है ।
१२.१.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न i. ‘पुरÖ कार’ कहानी के कथानक को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. कहानी के तÂ वŌ के आधार पर पुरस् कार कहानी कì िववेचना कìिजए ।
iii. पुरÖ कार कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए ।
iv. पुरÖ कार कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
१२.१.७ लघुÂ तरी ÿÔ न i. मधूिलका का चåरý-िचýण कìिजए ।
ii. अłण का चåरý -िचýण कìिजए ।
iii. पुरÖ कार कहानी का सारांश अपने शÊ दŌ म¤ िलिखए ।
१२.१.८ वÖतुिनķ ÿij i. पुरÖकार िकसकì कहानी है?
ii. कहानी का नायक अŁण िकस देश का राजकुमार है?
iii. पुरÖकार कहानी िकस िवषय पर केिÆþत है?
iv. मधुिलका िकस कहानी कì नाियका है?
v. मधुिलका के िपता िकस राºय के सăाट थे?
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182 १३
सच बोलने कì भूल - यशपाल
इकाई कì łपरेखा
१३.० इकाई का उĥेÔ य
१३.१ ÿÖ तावना
१३.२ कथानक
१३.३ पाý एवं चåरý िचýण
१३.४ 'सच बोलने कì भूल' कहानी का उĥेÔ य
१३.५ सारांश
१३.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न
१३.७ लघुÂ तरी ÿÔ न
१३.८ वÖतुिनķ ÿij
१३.० इकाई का उĥेÔ य  इस इकाई के माÅ यम से हम यशपाल कì कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ को समझ
पाएँगे।
 इसके माÅ यम से कहानी के कथानक को भी अ¸छी तरह समझा जा सकता है।
 इस इकाई के माÅ यम से ही ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी म¤ आए उÂ कृÕ ट पाýŌ एवं
उनके चåरý िचýण को भी देखा समझा जा सकता है ।
१३.१ ÿÖ तावना यशपाल के लेखकìय सरोकारŌ का उÂ स सामािजक पåरवतªन कì उनकì आकां±ा, वैचाåरक
ÿितबĦता और पåरÕकृत Æ याय बुिĦ भी है । यह आधारभूत ÿÖ थान िबÆ दु उन कì रचनाओं
म¤ िजतनी Ö पÕ टता के साथ अिभ Ó य³ त हòए ह§, उसकì अपे±ा उनकì कहािनयŌ म¤ व ह
º यादा तरल łप म¤, º यादा गहराई के साथ कथानक कì िशÐ प और शैली म¤ Óयĉ होकर
आते ह§ । उनकì कहािनयŌ का रचनाकाल चालीस वषŎ म¤ फैला हòआ है । ÿेमचÆ द के
जीवनकाल म¤ ही वे अपनी कथा याýा को आरÌ भ कर चुके थे, यह अलग बात है िक उनकì
कहािनयŌ का ÿकाशन थोड़ा देरी से हòआ ।
एक कहानीकार के łप म¤ कथाकार यशपाल कì िविशÕ टता यह है िक उÆ हŌने ÿेमचÆ द के
ÿभाव से मु³ त और अछूते रहते हòए अपनी कहानी कला का िवकास िकया | उन कì
क हािनयŌ म¤ संÖ कारगत जड़ता और नए िवचारŌ का ĬÆ Ĭ िजतनी ÿखरता के साथ उभरकर
आता है, उसने आने वाली पीढ़ी के कथाकारŌ के िलए एक नई राह बनाई है, जो आज तक
चली आ रही है । वैचाåरक िनÕ ठा, िनषेधŌ और वजªनाओ से मु³ त Æ याय तथा तकª कì munotes.in

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सच बोलने कì भूल - यशपाल
183 कसौिटयŌ पर खरा जीवन इÂ या िद कुछ ऐसे जीवन मूÐ य है, िजनके िलए िहÆ दी कहानी
यशपाल कì सदा ऋणी रहेगी ।
१३.२ कथानक ‘सच बोलने कì भूल’ यशपाल कì एक महÂ व पूणª और संवेदना के धरातल पर बड़ी कहानी
मानी जाती है । यशपाल जी कì इस कहानी म¤ सच बोलने के पÔ चाताप को ही केिÆ þत
िकया गया है । इसम¤ साधारण मनुÕ य कì मनोदशा जैसे भय, आतंक, कौतुहल इÂ यािद का
बड़ा ही यथाथª िचýण कथाकार Ĭारा िकया गया है । पहाड़ पर सूयाªÖ त का िचý देखने हेतु
लालाियत लेखक अपनी सात साल कì बेटी के साथ अनजानी जगह और अनजाने राÖ तŌ
पर बगैर सोचे समझे िनकल पड़ता है । रात म¤ वह इन दुगªम पहाड़ी राÖ तŌ म¤ भटक जाता है।
बफêली अंधेरी रात म¤ मीलŌ तक चलते रहने के बाद उसे दूर-दूर तक कहé łकने का
िठकाना नजर नहé आता है, और अÆ त म¤ वह एक झोपड़े को देखकर राहत महसूस करता
है । परÆ तु उस झोपड़े के मािलक के øूर और ककªश Ó यवहार से वह काफì आह त होता है ।
शरण िमलने पर रात भर वह डरा और सहमा सा रहता है । झोपड़ी का मािलक ब¸ ची के
गले म¤ पहनी कंठी पाने के लालच म¤ ही उÆ ह¤ शरण देता है, परÆ तु जब लेखक उÆ ह¤ उस
कंठी कì स¸ चाई के बारे म¤ बताता है तो उस झोपड़े के मािलक और मालिकन का Ó यवहार
भी बदल जाता है । वे लेखक से कहते भी ह§ िक तुम शहरी लोगŌ का कोई भरोसा नहé है,
तुÌ हारे ऊपर िबÐ कुल भरोसा नहé िकया जा सकता । इस कहानी के कथानक से ही Ö पÕ ट
हो जाता है िक लेखक ने इसम¤ सच बोलने कì भूल जैसे अपराध को Ö वीकार कर िलया है ।
१३.३ पाý एवं चåरý िचýण ÿÖ तुत कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ म¤ िकसी पाý िवशेष का चåरý-िचýण नहé िकया गया
है, बिÐ क लेखक यशपाल जी ने Ö वयं अपने, अपनी पÂ नी तथा अपनी सात वषêय िबिटया
के माÅ यम से पहाड़ी ÿदेश म¤ होने वाली याýाओं का ही संि± È त िववरण ÿÖ तुत िकया है ।
िजस ÿदेश िवशेष कì याýा लेखक यहाँ ÿÖ तुत करता है, उसम¤ बहòत छोटे-छोटे पड़ाव भी
ह§, उÆ हŌने अपने Ö वाÖ थ सुधार हेतु पहाड़ी ÿदेशŌ म¤ कुछ िदनŌ कì छुåĘ याँ Ó यतीत करने कì
योजना बनाई थी । एक ख¸ च र उÆ हŌने भाड़े पर ले िलया था, िजस पर उनकì गृहÖ थी के
कुछ सामान लादे गए थे । जो जगह लेखक को अिध क पसÆ द आ जाती, वहाँ वे अपनी पÂ नी
और ब¸ ची के साथ दो िदनŌ तक ठहर जाया करते थे । लेखक पहािडयŌ पर िकसी ड़ाक
बँगले म¤ ठहरा हòआ था । अगले िदन लेखक सूयाªÖ त से तीन घÁ टे पूवª ही चोटी कì ओर बढ़
गया, और अपनी सुिवधा के िलए उसने टाचª भी हाथ म¤ ले िलया था । उÆ ह¤ बँगले के
चौकìदार ने बताया- “साहब लोग आते ह§ तो चोटी से सूयाªÖ त का ŀÔ य जłर देखते ह§ ।”
लेखक अपने ही चåरý-िचýण के माÅ यम से यह बताता है िक पहाड़ कì चोटी पर पहòँकर
पिÔ च म कì ओर बफाªनी पहाड़Ō कì ®ृंखलाएँ अनेक इÆ þधनुषŌ के समान िझलिमलाने लगé ।
िहम के Ö फिटक कणŌ कì चादरŌ पर रंगŌ के िख लवाड़ के मन उमग-उमग उठता था । ब¸ ची
उÐ लास से िकलक-िकलक उठती थी ।
इस कहानी म¤ लेखक, जो िक पाý के łप म¤ Ö वयं पहाड़ी ŀÔ यŌ का तथा सूयाªÖ त का िचýण
अपने मनोगत भावŌ के माÅ यम से वह Ö वयं करता है । लेखक को उस पहाड़ी से सूयª आग munotes.in

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आधुिनक गī
184 कì बड़ी थाली जैसा ÿतीत हो रहा था, और वह थाली भी बरफ कì शूली पर, अपने िकनारे
पर खड़ी वेग से घूम रही थी । लेखक उसका िचýण भी कुछ इस तरह से करता ह§- “आग
कì थाली का शनै: शनै: बरफ के कंगूरे कì ओट म¤ सरकते जाना बहòत ही मनोहारी लग रहा
था । िहम के असम िवÖ तार पर ÿित±ण रंग बदल रहे थे । ब¸ ची उस ŀÔ य को िवÖ मय से
मुँह खोले अपलक देख रही थी । दुलार से समझाने पर भी वह पूरे सूयª के पहाड़ी कì ओट
म¤ हो जाने से पहले लौटने के िलए तैयार नहé हòई ।”
इस कहानी म¤ लेखक कì सात वषêय ब¸ ची भी एक चåरý का ही ÿितिनिधÂ व करती है ।
राÖ ता भूल जाने के बाद उसे भी अपने मन म¤ घर तक न पहòँच पाने का भय कहé न कहé
सताता रहता है । लेखक भी ब¸ ची से अपने मन कì घबराहट को िछपाए हòए था, िसफª
इसिलए िक क हé वह ब¸ ची भी भयभीत न हो जाए , इसिलए उसे बहलाने के िलए और उसे
थकावट का अनुभव न हो, इसके िलए वह ब¸ ची को कहािनयाँ सुनाने कì कोिशश करता है।
िकÆ तु लेखक भी यह जानता है िक º यादा देर तक िछपाया या भुलाए रखना किठन है,
³ यŌिक वह ब¸ ची भी बहòत बुरी तरह से थक चुकì थी । वह तो चल भी नहé पा रही थी,
लेखक ने उसे जÐ द से जÐ द बँगले पर पहòँच जाने का आÔ वासन देकर उÂ सािहत िकया,
और िफर उसे अपनी पीठ पर उठा लेता है । ब¸ ची को कहानी सुनाकर भी बहलाना अब
संभव न रह गया, ³ यŌिक वह भी बेतरह थक कर चूर हो गया था । लेखक ने इस कहानी म¤
यह भी Ö पÕ ट कर िदया है, िक आज हमारी मानवीय संवेदना इस कदर मर चुकì है िक हम
िकसी के साथ भी अपनी सहानुभूित ÿकट करने म¤ संकोच का अनुभव करते ह§ ।
लेखक या पाý कì िवशेषता यह है िक वह अपने चåरý को Ö वयं ही गढ़ने का ÿयÂ न करता
है । इस कहानी म¤ झोपड़ी म¤ रहने वाले एक िकसान पित-पÂनी से भी संवाद करता है| “मै
झोपडी के बाड़े के मोहरे पर पहòँचा तो कुÂ ता मािलक को चेताने के िलए बहòत जोर से भौका।
झोपड़ी का दरवाजा और िखड़कì बÆ द थे । मेरे कई बार पुकारने और कुÂ ते के बहòत
ऊतेजना से भŏकने पर झोपड़ी के ऊपर के भागŌ म¤ छोटी सी िखड़कì खुली और झुँझलाहट
कì ललकार सुनाई दी, ‘कौन है, इतनी रात गए कौन आया है?’
झोपड़ी के भीतर अँधेरे म¤ से आती ललकार को उÂ त र िदया- “मुसािफर हóँ, राÖ ता भटक
गया हóँ, छोटी ब¸ ची साथ है । पड़ाव के डाक बँगले पर जाना चाहता हóँ ।”
िखड़कì म¤ से िकसान ने िसर बाहर िनकाला और øोध से फटकार िदया – “तुम शहरी हो
न! तुम आवारा लोगŌ का देहात म¤ ³ या काम? चोरी चकारी करने आए हो । भाग जाओ नहé
तो काटकर दो टुकडे कर द¤गे, और कुÂ तŌ को िख ला द¤गे ।”
झोपड़ी वाले िकसान से ÿाथªना करते हòए लेखक पुन: कहता है – “भाई दया करो, म§
अकेला होता तो जैसे-तैसे जाड़े और ओस म¤ भी रात काट लेता, परÆ तु इस ब¸ ची का ³ या
होगा? हम पर दया करो , हम¤ कहé भीतर बैठ जाने भर कì जगह दे दो । उजाला होते ही हम
चले जाएँगे ।”
इस ÿकार का िचýण करना यशपाल जैसे कहानीकार के कहानी कला कì िविशÕ ट ता का ही
ÿमाण है । उÆ हŌने अपनी इस कहानी म¤ छोटे-छोटे पाýŌ से कहानी को जीवंत बनाने का
ÿयास िकया है । इस कहानी के माÅ यम से कथाकार यशपाल को कहानी का È लॉ ट गढ़ने म¤
असाधारण सफलता िमली है । उÆ ह¤ कोई भी बात करनी होती है तो वे उसी के अनुकूल munotes.in

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सच बोलने कì भूल - यशपाल
185 पाý, उनके चåरýŌ और पåरिÖ थ ितयŌ का िनमाªण कर लेते ह§ । वे बताते ह§ िक कहानी का
मु´ य आधार घटनाओं के वणªन म¤ नहé, बिÐ क घटना के चुनाव और øिमक िवकास म¤
होता है । यशपाल कì कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ का कथानक घटना ÿधान है, अथाªत
कहé-कहé पर तो घटनाएँ उĥेÔ य के अनुकूल हòई ह§, और कहé-कहé ऐसा नहé हो पायी है ।
ऐसे Ö थलŌ पर िबना कोई गहरा ÿभाव छोड़े ही यह कहानी समाÈ त हो जाती है । उनकì कई
कहािनयाँ उĥेÔ य ÿधान ह§ अपने इन उĥेÔ यŌ कì पूितª के िलए िजस तरह कì पåरिÖ थ ितयŌ
का िनमाªण यशपाल करते ह§, वे यथाथª न होने के बाद भी यथाथªपरक लगती ह§ । ‘सच
बोलने कì भूल’ जैसे उनकì कहानी भी इसी कोिट म¤ आती है । यशपाल ने अपनी इस
कहानी म¤ अपने वैयिĉक जीवन का Öपशª करते हòए ‘मै’ शैली का ÿयोग करते ह§| कहानी के
दो-तीन पाýŌ म¤ िकसी एक कì भूिमका तो वे Öवंय करने को तैयार हो जाते ह§ । ऐसा ÿतीत
होता है िक इसी वैयि³ त क Ö पशª के कारण यशपाल जैसे कथाकार कì कहािनयाँ अिध क
ĆदयÖ पशê और सरस बन जाती ह§ । इस ŀिÕ ट से यशपाल कì रचना-ÿिø या पर बात करते
हòए डॉ. ब¸चन िसंह ने कहा है िक यशपाल कì रचना ÿिøया, ÿेमचÆ द कì रचना ÿिøया से
िमलती जुलती है ।’
१३.४ 'सच बोलने कì भूल' कहानी का उĥेÔ य यशपाल जी कì लगभग सभी कहािनयाँ उĥेÔ य ÿधान ही होती ह§ । अपने उĥेÔ यŌ कì पूितª के
िलए िजस तरह कì पåरिÖ थ ितयŌ का िनमाªण वे करते ह§, वे यथाथª न होकर भी यथाथªपर क
ही लगती ह§ । उनकì चिचªत कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ भी कुछ-कुछ इसी कोिट म¤ आती
ह§| यशपाल अपनी कहािनयŌ म¤ अपने वैयिĉक जीवन का Öपशª करते हòए ‘म§’ शैली का
ÿयोग करते ह§| कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ के तीन-चार पाýŌ म¤ से एक ÿमुख पाý के łप
म¤ वे Öवंय तैयार रहते ह§, ऐसा ÿतीत होता है िक मानŌ वे कहानी को Ö वतंý छोड़ना ही न
चाहते हŌ । इसी वैयि³ त क Ö पशª के कारण उनकì कहािनयŌ का उĥेÔ य अिध क ĆदयÖ पशê
और सरस बन जाता है । यशपाल कì कहानी कला के उĥेÔ य पर िवचार करते हòए
सुरेशचÆ द ितवारी ने कहा है िक “यशपाल कì कहािनयŌ का आिद अÆ त बहòत ही कलाÂ म क
ढंग से होता है, और इस ŀिÕ ट से वे समसामियक कथाकारŌ म¤ सवाªिधक सफल ह§ । पाठक
Ćदय िकसी पåरणाम को सो चता रहता है । िकÆ तु इस आकां±ा के ÿितकूल, वह दूसरा अÆ त
देखकर चŏक उठता है । यशपाल अपनी कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ का पूरा मोह अÆ त
तक कì पंि³ त यŌ के िलए सुरि±त रखते ह§ ।”
१३.५ सारांश यशपाल कì कहािनयŌ म¤ कहé न कहé बौिĦकता के दशªन भी हम¤ होते ह§ । िजसे वे आगे
चलकर कथा का łप देते ह§ । डॉ. ब¸ चन िसंह ने कहा है िक “यशपाल कì रचना ÿिøया
ÿेमचÆ द कì रचना-ÿिøया से िमलती जुलती है । दोनŌ के मन म¤ पहले कोई िवचार उठता है,
िफर पाý, िÖ थित, घटना आिद को अÆवेिषत कर िलया जाता है, परÆ तु यशपाल कì
कहािनयŌ म¤ कथा रस सवªý िमलता है । वगª संघषª, मनोिवÔ लेषण और पैना Ó यंµ य उनकì
कहािनयŌ कì अÆ य िवशेषताएँ ह§ । िकसी सामािजक अथवा नैितक łिढ़ यŌ पर ÿहार करते
हòए वे पाठकŌ के łढ़ से संÖ कारŌ पर गहरा आघात करते ह§ । ‘शॉक ůीटमेÁ ट’ का यह
तरीका ÿाय: उनकì ÿÂ येक कहानी म¤ िमलेगा ।" munotes.in

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आधुिनक गī
186 यशपाल कì चिचªत कहानी म¤ सारांश के तौर पर यह कहा जा सकता है, ‘सच बोलने कì
भूल’ जैसी कहानी म¤ साधारण मनुÕ य कì मनोदशा, यथा आतंक, भय, कौतुहल आिद का
बड़ा ही यथाथª िचýण यशपाल ने िकया है । पहाड़ पर सूयाªÖ त देखने को लालाियत लेखक
अपनी सात वषêय बेटी के साथ िनकल पड़ता है, जो बड़ा ही किठन कायª ÿतीत होता है ।
रािý म¤ वह दुगªम पहाड़ी राÖ ते पर भटक जाता है । बफêली अँधेरी रात म¤ मीलŌ चलते रहने
के बाद भी उसे गंतÓ य क हé िदखाई नहé देता । अÆ त म¤ एक झोपड़े को देखकर वह राहत
महसूस करता है । इस बात को कहानी म¤ कथाकार यशपाल जी ने बड़ी ही सुगमता और
कुशलतापूवªक िचिýत िकया है ।
१३.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न i. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी कì कथावÖतु या कथानक िलिखए ।
ii. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. यशपाल कì कहानी ‘सच बोलने कì भूल’ का मनोगत िवÔ लेषण कìिजए ।
iv. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी के ÿमुख पाýŌ का चåरý िचýण कìिजए ।
v. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी कì कहानी कला को Ö प Õ ट कìिजए ।
१३.७ लघुÂ तरी ÿÔ न i. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी का सारांश िलिखए ।
iii. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी कì समी±ा कìिजए ।
iv. कहानी म¤ आए लेखक का चåरý िचýण Ö प Õ ट कìिजए ।
v. ‘सच बोलने कì भूल’ कहानी पर िटÈ प णी िलिखए ।
१३.८ वÖतुिनķ ÿij i. सच बोलने कì भूल िकसकì कहानी है?
ii. सूयाªÖत का ŀÔय देखने लेखक कहाँ जाता है?
iii. बारह घंटे िकसकì रचना है?
iv. परदा कहानी के लेखक कौन ह§?
v. आदमी का ब¸चा िकसकì कहानी है?
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187 १३.१
मलबे का मािलक - मोहन राकेश
इकाई कì łपरेखा
१३.१.० इकाई का उĥेÔ य
१३.१.१ ÿÖ तावना
१३.१.२ कथानक
१३.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१३.१.४ 'मलबे का मािलक' कहानी का उĥेÔ य
१३.१.५ सारांश
१३.१.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न
१३.१.७ लघुÂ तरी ÿÔ न
१३.१.८ वÖतुिनķ ÿij
१३.१.० इकाई का उĥेÔ य  ÿÖतुत इकाई के माÅ यम से हम 'मलबे का मािलक' कहानी के कथानक को समझ
पाएँगे ।
 ÿÖतुत इकाई के माÅ यम से हम 'मलबे का मािलक' कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण
का अÅययन कर¤गे ।
 ÿÖतुत इकाई के माÅ यम से हम 'मलबे का मािलक' कहानी के उĥेÔ य को भी आसानी
से समझ पाएँगे ।
१३.१.१ ÿÖ तावना आजादी कì खुशी के साथ देश के बँटवारे ने ए क बड़ी ýासदी का सामना करने कì िववशता
उÂ पÆ न कर दी । धमª के आधार पर पािकÖ तान का िनमाªण हòआ । िवभाजन कì इस घटना
का जीवन के तमाम ±ेýŌ पर ÿभाव पड़ा है । देश िवभाजन के समय इस घटना को देखने
परखने के ŀिÕ ट कोण म¤ और आज के ŀिÕ ट कोण म¤ इस कारण भी अंतर है, ³ यŌिक आज
हम उस सुदूर अतीत कì घटना को तटÖ थ होकर भी देख सकते ह§ । िकÆ तु िवचारधारा कì
ÿितबĦता के कारण उसे यहाँ भी नहé हािसल िकया जा सकता है । िफर भी इतना तो
िनिÔ चत है िक िवभाजन कì यह घटना िकसी एक कारण माý से नहé घटी है, अिपतु कई
कारणŌ कì िमली -जुली ÿितिøया के łप म¤ िवभाजन कì ýासदी को देश को ही भोगना पड़ा
है । मोहन राकेश Ĭारा रिचत कहानी ‘मलबे का मािलक’ के अÆ तगªत सामािजक और राÕ ůीय
पåरÿेà य कì आड़ म¤ Ó यि³ त गत Ö वाथª कì वृिÂ त िकस ÿकार बसे हòए घर को तहस-नहस
कर मलबे म¤ पåरवितªत कर देती है, यही बताया गया है| मोहन राकेश जी कì कहानी ‘मलवे munotes.in

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आधुिनक गī
188 का मािलक’ िजसम¤ िवभाजन कालीन पåरवेश से उÂ पÆ न ýासद िÖ थितयŌ का यथाथªपरक
िचýण है । इस कहानी म¤ िवभाजन के अमानवीय पåरवेश के िशकार गनी िमयाँ का
Ó यि³ त गत िवभाजन कì ýासदी को साकार कर देता है । कहानीकार ने पåरवेश के दबाव से
उÂ पÆ न नई िÖ थितयŌ को ÿामािणकता के साथ अिभ Ó यि³ त दी है ।
मोहन राकेश उस समय के रचनाकारŌ कì युवा पीिढ़यŌ के सदÖ य थे । उनकì पीढ़ी कì
मानिसकता का िनमाªण चौथे-पाँचव¤ दशक म¤ हòआ था । िवÔ व म¤ वह िĬ तीय महायुĦ कì
समािÈ त के बाद एक िवराट िवभीिषका के मुकाबले के बाद कì अवसÆनता का दौर था, और
भारत म¤ Ö वाधीनता संúाम के उतार का काल, िजसम¤ सन बयालीस के युवा आÆ दोलन का
दमन, बंगाल का अकाल, पंजाब और नौआखाली का नरसंहार घिटत हòआ था । मोहन
राकेश कì कहािनयाँ Ö वतंý भारत के मÅ यवगêय Ó यि³ त के जीवन के काले-उजले िविवध
रंग ÿÖ तुत करती है । देश िवभाजन, आंतक और असुर±ा, अथª तंý, िश±ा तंý म¤ शोषण,
पीिढ़यŌ का फासला , ĂÕ ट राजनीित और नौकरशाही आिद अनेक िवषय उÆ हŌने उठाए ह§ ।
‘मलबे का मािलक’ जैसे कुछ अÆ य िविशÕ ट कहािनयाँ है, लेिकन बड़े पैमाने पर उÆ हŌने
संबंधŌ के बदलते हòए समीकरणŌ कì , उनम¤ भी Ö ýी-पुłष संबंध कì िवशेषत: पड़ताल कì
है, और वही कहािनयाँ उनकì ÿिसिĦ का आधार भी है । Ö ýी-पुłष संबंध, पाåरवाåरक-
सामािजक अिÖ त Â व मÂ ता का बीज िबÆ दु है । नयी कहानी आÆ दोलन के िजन लेखकŌ को
केवल Ó यि³ त िनÕ ठ संवेदना कì कलावादी अिभÓ य ि³ त का ठÈ पा लगाकर Łफा-दफा कर
िदया जाता है, उनम¤ मोहन राकेश का नाम भी शािमल है ।
१३.१.२ कथानक पािकÖ तान का ÿभाव देश के सामने तीस के दशक म¤ ही सामने आ गया था, और चालीस
के दशक म¤ िवभाजन के िलए दबाव बढ़ता जा रहा था, िफर भी १९४७ म¤ िवभाजन कì
वाÖ तिवक घटना को देश ने बड़े ध³ के कì तरह महसूस िकया, अखÁ ड भारत का बहòभाषी ,
बहòधमê, संÖ कृित-बहòल, भूगोल सिदयŌ से संिचत सामंजÖ य और Ö थाियÂ व से मंिडत था ।
एक सामाÆ य भारतीय के िलए देश का िवभाजन चाहे िकतना भी अकÐ पनीय और
अिचंÆ तनीय रहा हो, एक राजनीितक िनणªय ने आम आदमी कì ÿाथªनाओं और
शुभकामनाओं को Å वÖ त कर िदया । िवभाजन से सीधे ÿभािवत ÿदेशो कì भाषाओं से इस
संघात के ताÂ कािलक अनुभव ने रचनाÂ मक अिभ Ó यि³ त पाई । िहÆ दी ÿदेश िवभाजन के
उपराÆ त िवभाजन के ÿभावŌ से गहराई से सÌ पृ³ त था । िहÆ दी ÿदेश के अनेक महÂ वपूणª
और ÿिसĦ लेखकŌ कì मातृभाषा पंजाबी है, अ²ेय, यशपाल, मोहन राकेश आिद अनेक
माÅ यम से िवभाजन कì कथावÖ तु िहÆ दी म¤ भी आई । ‘मलबे का मािलक’ इसी कथानक के
िवषयवÖ तु कì कहानी है ।
‘मलबे का मािलक’ मोहन राकेश कì एक िविशÕ ट कहानी है । मूल िवचारसूý कì तरह देखा
जाए तो ‘लंदन कì एक रात’ (िनमªल वमाª) तथा ‘अमृतसर आ गया है’ (भीÕ म साहनी) के
समान यह कहानी भी इस बात कì पहचान है िक, राजनीित Ĭारा खéची गई दीवारŌ के आर-
पार िवरोधी प±Ō म¤ जबदªÖ ती काँट िदए गए आम -आदमी कì पीड़ाएँ एक जैसी ह§ । ‘लंदन कì
एक रात’ म¤ कथा सÆ दभª िवÔ व युĦŌ कì उपराÆ त छाया म¤ यूरोप, इंµलैड, साउथ अĀìका
कì रंगभेद राजनीित से तथा ‘अमृतसर आ गया है’ म¤ देश के िवभाजन कì पूवª संÅ या के munotes.in

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मलबे का मािलक - मोहन राकेश
189 साÌ ÿदाियक वातावरण से िलया गया । ‘मलबे का मािलक’ म¤ िचिýत काल सÆ दभª आजादी
के साढ़े सात साल बाद का है । मलबे का मािलक कì कथावÖ तु ÿथम पृÕ ठ से अंितम पृÕ ठ
के बीच तय कì गई याýा के दौरान Ó यि³ त िनÕ ठता के माÅ यम से दोनŌ ÿमुख पाýŌ कì
मंशाओं कì छान-बीन करते हòए Ö थूल वÖ तुगत यथाथª कì भीतरी परतŌ म¤ उतार ले जाती
है, और अÆ त म¤ एक कायाकÐ प कì ÿिøया कì शुłआत के साथ वापस उभरकर उस मंशा
को एक नया आकार दे देती है । कहानी का आरÌ भ इस सूचना से होता है िक िवभाजन के
साढ़े सात साल बाद हॉकì मैच देखने के बहाने लोगŌ कì एक टोली लाहौर से अमृतसर आई
है । सीमाÆ त के दोनŌ तरफ इस िव¸ छ¤द का र³ तÖ ýाव महसूस िकया जाता है, ³ यŌिक
Ö मूितयŌ और लगावŌ का देश िसफª न³ शा नहé िजसे काटकर दो अलग-अलग िहÖ सŌ म¤
बाँटा जा सकता हो । ‘मलबे का मािलक’ के बाजार म¤ एक ýासदी कì कसक और कचोट का
अहसास है, िजसकì िनचली परत म¤ एक ‘सब टे³ Ö ट’ कì तरह जीवन के उÐ लास कì
धड़कन कì याद उस कचोट को और भी गहरा करती है ।
िसफª इतना ही नहé इÆ हé आगंतुकŌ के सहारे लाहौर के बाजारŌ कì याद भी इधर आ
िनकलती है, और सीमाÆ त के दोनŌ तरफ एक ही भावना कì मौजूदगी का अहसास कराती
है । इनहé बाजारŌ म¤ एक बाजार बाँसा भी है, जो इस कहानी का ÿ मुख घटना Ö थल है । यहाँ
तक पहòंचने के िलए एक सामूिहक िचý है । यहाँ तक लगता है िक ‘लाहौर एक शहर नहé ’
हजारŌ लोगŌ का सगा संबंधी है, िजसका हाल जानने के िलए वे उÂ सुक ह§ । लाहौर से लोग
आए उस िदन शहर भर के मेहमान थे, िजनसे िमलकर और बात¤ करके लोगŌ को बहòत
खुशी हो रही थी । इस िवहंगम ŀÔ य के बाद कहानी बाजार बाँसाँ कì ओर łख करके
‘फोकस मोड’ म¤ आ जाती है, और सा±ात उपिÖ थ त ŀÔ य कì तरह पाठक को अपने भीतर
ले जाकर घिटत होती है । िवभाजन के दौरान बाजार बाँसाँ म¤ लगी अमृतसर कì सबसे
अिधक भयानक आग ने िहÆ दू-मुिÖ ल म समेत सारे इलाके को जलाया था, और अब बन
चुकì या बन रही नई इमारतŌ के बीच-बीच म¤ मलबे के ढ़ेर अभी तक बाकì थे । इस बाजार
म¤ आज भी चहल-पहल नहé, ³ यŌिक यहाँ कोई याद करने वाला या लौटकर आने वाला
कोई नहé एक गनी िमयाँ के िसवाय । º यादातर लोग या तो अपने मकानŌ के साथ ही शहीद
हो गए थे, या लौटकर आने का साहस ही नहé रखते थे ।
जािहर है िक वह अमृतसर का एक बदहाल िवपÆन इलाका है । कहानी इसी गनी िमयाँ और
मलबे के इÆ हé ढ़ेरो म¤ से एक ढ़ेर के बारे म¤ है, जो कभी उसका अपना भी घर था । ग नी िमयाँ
एक बूढा बदहाल मुसलमान है, जो संयोगवश िवभाजन के काफì पहले शहर के बाहर चला
गया था । इसिलए वह अकेला बचा रहा, उसका बाकì पåरवार दंगŌ म¤ मारा गया । वह बुढ़ापे
म¤ अकेला इस संघात को जैसे-तैसे सहता हòआ मानो आिखरी बार आिखरी इ¸ छा कì पूितª
कì तरह अपना घर देखने आया है । लेिकन शुł म¤ वह एक अजनबी है, िजसे गली म¤ दौड़
गयी अफवाह और आशंका के तहत, ब¸ चे उठाने वाला भी समझ िलया जाता है, लेिकन
िफर वह गली के वािशÆ दे िचरागदीन दजê के िपता गनी िमयाँ कì तरह पहचाना जाता है ।
गली के पास एक रहÖ य है, उसके नये घर पर मुहÐ ले के गुÁ डे र³ खा पहलवान कì नजर थी
और गनी िमयाँ के बेटे कì सपåरवार हÂ या के िलए वही िजÌ मेदार भी है । यह अलग बात है
िक उसके हाथ आने के पहले ही मकान को िकसी ने आग लगा दी और वह आग लगाने
वाले को िजÆ दा जमीन म¤ गाड़ देने का इरादा िलए बैठा रह गया । िपछले साढ़े सात सालŌ से munotes.in

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आधुिनक गī
190 वही अपनी दादािगरी के बल पर Ö वयं को इस मलबे का मािलक मानता है, और बाकì गली
के लागŌ से भी यही मनवाता चला आ रहा है । इस रहÖ य को गनी िमयाँ भी नहé जानता है।
वह पहले अपने घर कì चौखट से, और िफर उसी हÂ या रे र³ खा पहलवान से गले िमलकर
रोता है, ³ यŌिक गनी कì Ö मृित म¤ र³ खा पहलवान ही सबसे सगा था, उसका बेटा
िचरागदीन इसी भरोसे अमृतसर म¤ िटका रह गया था िक र³ खा पहलवान के रहते उसे कुछ
नहé हो सकता है । गनी िमयाँ के इस भरोसे और आÂ मीयता कì अिभÓ य ि³ त से र³ खा
पहलवान के भीतर ऐसा होता है िक उसे पसीने छूट जाते ह§, मुँह सूख जाता है, ओर रीढ़
कì हड्डी को सहारे कì जłरत महसूस होने लगती है । कुछ घटनाøम इस तरह का ही था
िक गनी िमयाँ आया था, रोया था और वापस चला गया था , लेिकन इतने भर के बीच ऐसा
कुछ हòआ है िक गली म¤ पास-पड़ोस के åरÔ तŌ के समीकरण ही बदल गए ह§ । गनी िमयाँ के
कातर łदन म¤ गली ने र³ खा पहलवान कì ऐसी तÖ वी र देखी है, िजसने थोड़ी देर के िलए
ही सही, उसका रोब, दबदबा खÂ म सा कर िदया है । उसके भय और आतंक को उसके
ÿित रोष और असिहÕ णुता म¤ बदल िदया है । उसको िनड़र कर िदया है । र³ खा पहलवान
के भीतर कुछ बदल सा गया है । मुहÐ ले के साथ-साथ खुद र³खे ने भी अपनी तÖ वीर के
ऐसे łख से पåरचय पाया है, िजसके िलए वह शायद शिमªÆ दा है ।
लोगŌ को सĘे के गुण और सेहत के नुÖ खे बताने वाले रोज के सांÅ य कायªøम कì बजाय
आज वह अपने शािगªद ल¸ छे को अपनी पÆ þ ह साल पहले कì वैÕ णŌ देवी याýा के िकÖ से
सुना रहा है । लेिकन िफर भी यह Ćदय पåरवतªन कì आदशªवादी कहानी नहé, यथाथª के
Ö वाभािवक िनłपण कì कहानी ही है ।
१३.१.३ पाý एवं चåरý िचýण िकसी भी कहानी के चåरý पåरकÐ पना कì दो कोिटयाँ होती है, पहली कोिट म¤ िविशÕ ट,
िवल±ण चåरý िजसे आचायª रामचÆ þ शु³ ल ने िकंिचत असिहÕ णुतापूवªक Ó यि³ त
वैिचÞयवाद के खाते म¤ रखा था और दूसरी कोिट म¤ ÿितिनिध चåरý िजनके अिÖ त Â व म¤ एक
पूरे समुदाय का जीवन, िवÔ वास, संÖ कार पĦित, ÿथाएँ ÿितÅ विनत होती ह§ । लेिकन
ÿितिनिध चåरý भी कोई बेनाम, बेचेहरा, िनव¨यिĉक अिÖ त Âव नहé होते । लेखक सूà म
िनरी±ण से सािहÂ य से िमलने वाला ²ान साधारणीकरण अथवा तादाÂ Ì य कì िविध से
िमलता है । तादाÂ Ì य िकसी मूतª, जीिवत Ó यि³ त सÂ ता के साथ ही संभव है । Ó यि³ त के
पास अपनी एक िनजी कथा , अपनी आदत¤ और Ö वभाव, संबंधŌ के ताने-बाने, Öमृितकोष
और िनयित होती है, िजनके कारण वह अÆ यŌ से िविशÕ ट होता है, और लेखक के Ó यंजना
कौशल तथा अिभ Ó यि³ त ±मता के Ĭारा ÿÖ तुत होकर िनिवªिशÕ ट तथा अÆ यŌ के समान भी
हो जाता है ।
‘मलबे का मािलक’ कहानी का मु´ य िकरदार गनी िमयाँ लाहौर से आयी टोली का सदÖ य
है, लेिकन बाजार बाँसाँ कì इस गली तक पहòँचने वाला वह अकेला ही है । वह उस अłप
अनाम अनुपिÖ थ त समुदाय का उपिÖ थ त चेहरा है, जो यहé मर-खप गए, बच कर जा नहé
सके, या बचे तो वापस आने कì िहÌ मत या साधन नहé जुटा सके । उसकì याýा का गंतÓ य
टोली के बाकì लोगŌ कì याýा से अलग है । उसके िलए Ö मृित मानो एक िवनोद याýा है, munotes.in

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मलबे का मािलक - मोहन राकेश
191 आितÃ य और सÂ कार का एक मौका । गनी िम याँ के िलए यह याýा अपनी अंतहीन पीड़ा के
उÂ स तक लौटकर साÆ Â व ना कì तलाश का ÿयास है । दंगŌ म¤ अपना पूरा पåरवार गँवा बैठने
के बाद भी मन म¤ कहé असंभव सी उÌ मीद है िक घर वहé, वैसा ही बाकì होगा । र³ खा
पहलवान के सवाल के जवाब म¤ वह कहता है – “³ या हाल बताऊँ र³ खे, मेरा हाल तो मेरा
खुदा ही जानता है ।”
इन बचे-खुचे भिवÕ यहीन िदनŌ म¤ उसके िहÖ से के सारे नाते-åरÔ ते इसी गली म¤ पीछे छूट गए
ह§ । जहाँ वह आया तो सही लेिकन जहाँ से उसे वापस जाना ही है, जहाँ उसका घर एक
मलबे का ढेर है, लेिकन र³ खे पहलवान से वह कहता है – “तू सच पूछे तो मेरा यह िमĘी भी
छोड़कर जाने का मन नहé करता ।” कहानी कì घटनाÂ म क संरचना इतनी ही है िक गली के
मुहाने पर अजनबी सा खड़ा गनी ब¸ चा उठाने वाला सम± िलया जाता है, िफर Ö मृित कì
तह¤ और पहचान कì परते खुलती ह§, गली के भीतर ÿवेश और मलबे के ढेर तक कì याýा म¤
वह अपनी समूची िजÆ दगी कì आशाओं, आका±ाओं, नाते-åरÔ तŌ के अवशेष का सा±ाÂ कार
करता है, और िनयित को Ö वीकार करने कì िÖ थित म¤ पहòँच जाता है ।
र³ खा पहलवान जैसे पाý का चåरý खéचने म¤ लेखक ने उसके कहे बोले से कम, उसकì
देह भाषा और गली वालŌ कì, दरअसल घरŌ म¤ जा िछपी, िखड़िकयŌ पर खड़ी औरतŌ कì
चेहमे गोइयŌ से अिधक काम िलया है । “वह ठ¤ठ गुÁ डागदª, लुटेरे, दादा का िचý ह§ । ......
र³ खा आदमी नहé साँड है, िदन भर साँड कì तरह गली म¤ घूमता है..... र³ खे मरदूद का
घर न घाट..... इसे िकसी कì माँ ‘बहन का िलहाज था ?” उसके चåरý-िचýण म¤ यह
अÐ पभािषत कहानी को शोर , Öफìित और हाहाकार के आडÌ बर से बचाती है, गली कì
Ö मृित म¤ िचरागदीन कì सपåरवार हÂ या के ÿसंग को भी ठÁ डे, िनरावेग, िकंिचत Ó यंµ यपूणª
टोन म¤ Æ यूनतम तफसीलŌ म¤ बयान करती है, और मलबे से मुलाकात वाले ±ण के आवेग
कì तीĄता के िचýण म¤ नाजुक सÆ तुलन को साधते हòए संवेदनशीलता के Ö तर को कायम
रखती है । इस कथा का सबसे मािमªक Ö थल गनी िमयाँ और र³ खे पहलवान का आमना -
सामना है । गली भर के लोगŌ कì यह उÌ मीद और तमÆ ना है िक साढे-सात साल पहले कì
सपåरवार हÂ या और बलाÂ का र कì वह घटना िकसी न िकसी तरह जłर गनी तक पहòँच
जाएगी, जैसे मलबे को देखकर ही गनी को अपने आप सारी घटना का पता चल जाएगा,
हालाँिक पता चल जाने से भी गनी ³ या कर लेगा ? इस बात कì तरफ कोई Å यान या
टीका-िटÈ पणी इन चेहमेगोइयŌ म¤ नहé है । उनके भय, आøोश और िवतृÕ णा का पाý र³ खा
पहलवान है जो “बड़ा मलबे का मािलक बनता था । असल म¤ मलबान इसका है, न गनी का,
मलबा तो सरकार कì िमिÐ क यत है । सरदूर िकसी को वहाँ गाय का खूँटा तक नहé लगाने
देता ।”
कहानी म¤ इस उÌ मीद का पहला ±ण आशंका का है, र³ खे पहलवान के शािगदª ल¸ छे के
शÊ दŌ म¤ “अगर मनोरी ने उसे कुछ बता िदया तो?” दूसरा ±ण उत् तेजना का गली वालŌ को
चेहमेगाइयŌ म¤, “अब दोनŌ आमने-सामने आ गए ह§ तो बात जłर खुलेगी, िफर हो सकता है
दोनŌ म¤ गाली-गलौज भी हो.... अब र³ खा गनी को हाथ भी नहé ल गा सकता । अब वे िदन
नहé रहे.. ।” तीसरा ±ण थोड़ी िनराशा का ‘मनोरी भी डरपोक है । इसने गनी को बता ³ यŌ
नहé िदया िक मनोरी ने गली से िनकल कर गनी को जłर सबकुछ बता िदया होगा – र³ खा
अब िकस मुँह से लोगŌ को मलबे पर गाय बाँधने से रोकेगा? इÆ हé गली वालŌ म¤ साढ़े सात munotes.in

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आधुिनक गī
192 साल पहले कì उस रात के सा±ी भी ह§, िजÆ हŌने अपने दरवाजे बÆ द करके अपने को उस
घटना के उÂ तरदाियÂ व से मु³ त कर िलया था । अपने भय और आतंक से अश³ त लोग
आज गनी के आने और चले जाने के बीच िजस िकसी तरह से उसको असिलयत जता देने
कì कामना म¤ वÖ तुत: ³ या अिभÓ य³ त करना चाहते है? लेिकन गनी को असिलयत आिखर
तक पता न चलने के बावजूद या शायद इसी वजह से र³ खा पहलवान के भीतर कुछ होता
है । गनी उसके सामने बैठा है, एक बेदखल बूढ़ा, असहाय िबना िकसी अिधकार या
अिधकार के दावे या तेवर के, महज आÂ मीयता और भरोसे म¤ िनहÂ था और िनरीह । “खुदा
नेक कì नेकì बनाए रखे, बदे कì बदी माफ करे । म§ने आकर तुम लोगŌ को देख िलया, सो
समझूँगा िक िचराग को देख िलया । अÐ लाह तुÌ ह¤ सेहतमÆ द बनाए रखे ।”
इस नेकì और िनरीहता के साथ र³ खे पहलवान का यह आमना -सामना अपने आवेग कì
तीĄता से दैिहक और ऐिÆ þ य संवेī, अनुभव ÿÂ य± वाÖ तिवक और ÿामािणक होकर
साकार बनता है, “र³ खे ने सीधा होने कì चेÕ टा कì, ³ यŌिक उसकì रीढ़ कì हड्डी बहòत
ददª कर रही थी । अपनी कमर और जाँघ के जोड़Ō पर उसे स´ त दबाव महसूस हो रहा था ।
पेट कì अंतिड़यŌ के पास से जैसे कोई चीज उसके तलुओं म¤ चुनचुनाहट हो रही थी ।
उसका सारा िजÖ म पसीने से भीग रहा था, बीच-बीच म¤ नीली फुलझिड़याँ सी ऊपर सी
उतरती और तैरती हòई उसकì आँखŌ के सामने से िनकल जातé । उसे अपनी जबान और
होठŌ के बीच एक फासला सा महसूस हो रहा था । उसने अँगोĥे से होठŌ के कोनŌ को साफ
िकया । साथ ही उसके मुँह से िनकला ‘’हे ÿभू तू ही है, तू ही है, तू ही है ।”
१३.१.४ 'मलबे का मािलक' कहानी का उĥेÔ य मोहन राकेश ने यथाथª को सामािजक Ö तर पर ÿÖ तुत करने के िलए अपनी कहािनयो म¤
ÿाय: समÖ याओं का जीवÆ त łप Ó यि³ त गत कुंठाओं, दÌ पितयŌ के बदलते हòए संबंध, संघषª
करने वाले Ö ýी-पुłषŌ का वणªन, अमानवीय अÂ या चारŌ का वणªन, माँ-बाप कì अÿित बĦता
से उÂ पÆ न बालकŌ कì िवþोही ÿवृिÂ त का िनłपण िकया गया है । यह भी िनिवªवाद सÂ य है
िक मोहन राकेश कì कहािनयŌ म¤ उĥेÔ य कì िविवधता के होते हòए भी सामािजक जीवन कì
यथाथªता का िचýण सजीवता के साथ हòआ है । ‘मलबे का मािलक’ कहानी का उĥेÔ य
भारत-पाक के िवभाजन से उÂ पÆ न øूरता का िचýण करते हòए लेखक का उĥेÔ य यह है िक
पाठकŌ को तÂ का लीन पåरिÖ थ ितयŌ का यथाथª िचý देकर, उनके Ćदय म¤ संवेदना एवं
सहानुभूित को तीĄ łप म¤ जागृत करना है, और साÌ पदाियकता के भयंकर अिभशाप से
जनता को मु³ त करने कì कोिशश कì है ।
१३.१.५ सारांश कहानीकार मोहन राकेश नयी कहानी के महÂ वपूणª कथाकार होने के अलावा उसके
िसĦाÆ तकार तथा उसे आÆ दोलन म¤ बदलने वाली ितकड़ी के सदÖ य भी ह§ । उनकì
कहािनयŌ के सिÌ म िलत आकलन से नयी कहानी आÆ दोलन के रचनाÂ मक सरोकारो का
जायजा िलया जा सकता है । वे मÅ यवगêय जीवन तथा शहरी संवेदना के ÿितिनिध
रचनाकार है । आजादी के तुरÆ त बाद वाले दशक कì युवा रचनाकार मानिसकता का
ÿितिनिधÂ व करने वाले लेखकŌ म¤ उनका नाम अúणी है । इस पीढ़ी ने मृत मूÐ यŌ और जड़ munotes.in

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मलबे का मािलक - मोहन राकेश
193 मयाªदाओं को चुनौती देने और बने बनाए सÂ यŌ को अनुभव कì ÿामािणकता से जाँचने का
बीड़ा उठाया था । उसम¤ बहòत कुछ जłरी तौर पर Å वंसाÂ मक था । बदले हòए पåरवेश म¤
असुरि±त मÅ यमवगª के युवा कì कुंठाएँ और लà यहीनता, संबंधŌ के बदले हòए समीकरण
िवशेषकर Ö ýी-पुłष संबंध, तथा आंिशक łप से अÆ य राजनीितक सामािजक , आिथªक
समÖ याएँ उनकì कहािनयŌ म¤ उभर कर सामने आई है । ‘मलबे का मािलक’ मोहन राकेश
कì एक िविशÕ ट कहानी है । िवभाजन कì ýासदी के मानवीय आयामŌ को उकेरती हòई वह
एक राजनीितक िवषयवÖ तु के सामािजक प± को Ó यि³ त परक अिभÓ यि³ त म¤ पकड़ती है ।
‘मलबे का मािलक’ मोहन राकेश के रचना कौशल का ÿितिनिध उदाहरण है । इसके सहारे
भावुकता और संवेदनशीलता का अÆ तर, अनुभव कì ÿामािणकता का अथª, उसे अिजªत
करने म¤ भाषा कì भूिमका को समझा जा सकता है । लीक से हटकर चलने वाले रचनाकार
के िलए अनुभव कì ÿामािणकता जान पर जोिखम जैसा मामला है, ³ यŌिक उनके कÃ य के
सÂ यापन का सारा दारो मदार उसी पर है । मोहन राकेश कì कहानी ‘मलबे का मािलक’ इस
ÿामािणकता का सवōÂ तम उदाहरण कही जा सकती है ।
१३.१.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न i. ‘मलबे का मािलक’ कहानी कì कथावÖ तु पर ÿकाश डािलए ।
ii. ‘मलबे का मािलक’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
iii. मोहन राकेश का सािहिÂयक पåरचय िलिखए ।
iv. ‘मलबे का मािलक’ कहानी म¤ अिभÓ यंिजत िवभाजन कì ýासदी को Ö प Õ ट कìिजए ।
१३.१.७ लघुÂ तरी ÿÔ न i. ‘मलबे का मािलक’ कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘मलबे का मािलक’ कहानी का सारांश िलिखए ।
iii. गनी का चåरý-िचýण कìिजए ।
iv. र³ खे का चåरý-िचýण कìिजए ।
v. ‘मलबे का मािलक’ कहानी कì समी±ा कìिजए ।
१३.१.८ वÖतुिनķ ÿij i. ‘मलबे का मािलक’ िकसकì कहानी है?
ii. गनी िमयाँ िकस कहानी के पाý ह§?
iii. गनी िमयाँ के बेटे का ³या नाम था?
iv. र³खा पहलवान से गनी िमयाँ का ³या संबंध है?
v. मनोरी िकस कहानी का पाý है?
***** munotes.in

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194 १४
दु:ख भरी दुिनया - कमलेÔ वर
इकाई कì łपरेखा
१४.० इकाई का उĥेÔ य
१४.१ ÿÖतावना
१४.२ कथानक
१४.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१४.४ 'दुःख भरी दुिनया' कहानी का उĥेÔ य
१४.५ सारांश
१४.६ दीघōÂ त री ÿÔ न
१४.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न
१४.८ वÖतुिनķ ÿij
१४.० इकाई का उĥेÔ य  इस कहानी के माÅ यम से हम ‘दुःख भरी दुिनया’ कहानी कì ÿÖ ता वना को समझ
सकते ह§ ।
 ‘दुःख भरी दुिनया’ कहानी के माÅयम से उसके उĥेÔय को समझा जा सकता है ।
 इस कहानी के कथानक को भी Ö पÕ ट łप से समझ सकते ह§ ।
 इसके माÅयम से कहानी म¤ आए ÿमुख पाýŌ के चåरý-िचýण को भी देखा और समझा
जा सकता है ।
१४.१ ÿÖतावना िहÆ दी सािहÂ य कारŌ म¤ कमलेÔ वर ने अपना एक िविशÕ ट Ö थान बनाया है । इनका नाम नई
कहानी आÆ दो लन से जुड़े आगे के कथाकारŌ म¤ आता है । पाåरवाåरक पåरिÖ थित ठीक न
होने के बावजूद इÆ हŌने अपनी िश±ा कì गित को łकने नहé िदया । समाज म¤ फैले
अÆ धिवÔ वा सी, जाितवाद आिद पर अपनी कहािनयŌ के माÅ यम से करारा ÿहार िकया है ।
जीवन म¤ कभी łके नहé और लगातार अलग-अलग िवषयŌ पर गंभीर िवचार िकया, तथा
उसे सािहिÂ य क łप भी ÿदान िकया । लगातार संघषō और ÿयÂ नशील Ö व भाव के कारण वे
सफल सािहÂ य कार के łप म¤ ÿिसĦ हòए । कमलेÔ वर जैसे कथाकार कì कहािनयŌ म¤
आिथª क, सामािजक और राजनीितक समÖ या ओं से जूझते हòए मÅ यवगêय पåरवारŌ का
िच ýण िकया गया है । उनकì कहानी ‘दुख भरी दुिनया’ भी एक मÅ य वगêय पåरवार कì ही
कहानी है । मÅ यवगêय पåरवार कì मानिसकता का बड़ा ही यथाथª िचýण कहानीकार
कमलेÔ वर जी ने ‘दुःख भरी दुिनया’ शीषªक कहानी म¤ िकया है । munotes.in

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दु:ख भरी दुिनया - कमलेÔ वर
195 १४.२ कथानक ‘दुःख भरी दुिनया’ कथाकार/कहानीकार कमलेÔ वर कì कहािन यŌ म¤ से एक ®ेÕ ठ कहानी
मानी गयी है । इस कहानी म¤ मÅ यवगêय पåरवारŌ म¤ आए िदन होने वाली जĥोजहद को ही
लेखक कमलेÔ वर ने ÿितिबिÌ ब त िकया है । सुबह से देर शाम तक रोजी -रोटी के िलए
मश³कत करने वाले िबहारी बाबू यह कभी नही चाहते ह§ िक उनका बेटा भी उनकì तरह
यांिý क मानव बनकर ही जीवन भर खटे । इसीिलए िबहारी बाबू यह चाहते ह§ िक वह पढ़-
िलखकर बड़ा आदमी बने और ऐशो-आराम कì िजÆ द गी जीने कì कोिशश करे । जब भी
िबहारी बाबू को फुसªत का कोई ±ण िमलता है, वे अपने बेटे के पढ़ाई-िलखाई कì खबर लेते
रहते ह§ । िकÆतु बेटे को पढ़ाने-िलखाने के नाम पर वे अपनी झुँझलाहट, अपना øोध सब
उसी पर िनकालते ह§ । कमलेÔ वर कì यह कहानी िकसी पåरवार िवशेष कì कहानी न होकर,
अिपतु समÖ त मÅ यवगª कì कहानी है । लेखक कमलेÔ वर इस कहानी का आरÌ भ ही कुछ
इस तरह से करते ह§ “एक बेहद उदास शहर मेरी आँखŌ के सामने उभर रहा है । उस शहर
कì वीरानी म¤ से िससिकयो कì आवाज हवा पर तैरती हòई आ रही है । म§ नहé जानता यह
शहर कौन सा है, मेरे देश का है, या िवदेशी का । कोई ब¸ चा िससक रहा है । एक माँ है जो
दूध का È याला िलए बैठी है, और ब¸ चे का बाप नéद म¤ डूबा हòआ है ।”
इस कहानी म¤ आठ बरस का दीपू अपने िपता िबहारी बाबू के आतंक से घबरा उठता है ।
िबहारी बाबू का आतंक, भय, पूरे घर म¤ समाया हòआ है । दीपू को भी समझ म¤ नहé आता है
िक वह आिख र करे भी तो ³ या करे? िबहारी बाबू दीपू को आवाज लगाते ह§, और क हते ह§
िक “दीपू ³ या कर रहा है कामचोर? िबहारी बाबू कì आवाज िफर गूँजती है । दीपू कì
कनपिटयाँ झनझाने लगती ह§, और दीपू वहé से आवाज देता है िक अभी आया बाबू जी ।”
जैसे ही घर म¤ िबहारी बाबू कì आवाज सुनायी देती है, पूरे घर म¤ ही सÆ नाटा पसर जाता है,
बाकì ती नŌ ब¸ चे भी अप नी-अपनी बारी का इंतजार करने लगते है । रसोई म¤ काम करती
िवमला का िदल भी िबहारी बाबू कì आवाज सुनकर धड़कने लगता है । सवालŌ के िलए दीपू
को िबहारी बाबू कहते ह§ िक दो सवाल ³ यŌ गलत कर िदया ? इस पर दीपू का गला भी बुरी
तरह से सूख जाता है । दीपू कì भोली आँखŌ म¤ पानी तैरने लगता है, और वह बोल भी नहé
पाता है ।
कहानीकार कमलेÔ वर ने अपनी इस कहानी म¤ एक बालक कì पåरिÖ थ ितयŌ का बड़ा ही
यथाथª िचýण िकया है, उÆ हŌने इसम¤ यह बताया है िक िकस तरह से दीपू जैसा आठ वषª का
बालक अपने िपता से डरा-डरा और सहमा सा रहता है । उस ब¸ चे कì मनोÓ य था को
अिभ Óयि³ त देने म¤ कहानीकार कमलेĵर को सफलता ÿाÈ त हòई है । जब िबहारी बाबू दीपू से
कहते ह§ िक बोलता ³ यŌ नहé? िबहारी बाबू कड़ककर कहते ह§ और दीपू के कान पर उनका
हाथ जाता है । दीपू मुँह भéचकर कान पर जलते हòए अंगारे को बदाªÔ त करता है । उसकì
गदªन भी मुड़ती चली जाती है, और नस¤ झलकती आती ह§ । मुलायम रोएँदार कनपिटयाँ
नाड़ी कì तरह टपकने लगती ह§ । मासूम गालŌ से खून कì लाली िनचुड़ सी जाती है ।
इस कहानी के कथानक म¤ ही कमलेÔ वर ने इस तरह के Ćदय िवदारक िचý खéचकर अपनी
कहानी कला का पåरचय बखूबी िदया है । वे अपनी कहािन यŌ मे इस तरह कì मानवीय
संवेदनाओं को िचिýत करने वाले एक िसĦहÖ त कहानीकार ह§ । आगे भी वे दीपू के सÆ दभª munotes.in

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आधुिनक गī
196 म¤ िलखते ह§ िक “बाएँ हाथ से अपना कान सहलाते हòए दीपू दािहने हाथ से कापी के पÆ ने
पलटता है, और गलत सवाल देखकर िबहारी बाबू आँख¤ िनकालकर पूछते ह§ ‘यह सवाल
³ यŌ गलत हòआ ? ³ यŌ गलत हòआ ?’ दीपू के पास इसका कोई भी जवाब नहé होता है ।
िकसी के पास कोई जवाब नहé है । िवमला रसोई घर से िनकलकर दरवाजे के पास िठठक
जाती है, और बाप -बेटे को देखती है, दुिनया कì मार से िपटा हòआ एक बाप और बाप कì
मार से काँपता हòआ एक बेटा ।”
इस तरह कì पåरिÖ थ ितयŌ का बड़ा ही यथाथª अंकन कहानीकार कमलेÔ वर ने बड़ी ही
सहजता के साथ अपनी इस लोकिÿय कहानी ‘दु:ख भरी दुिनया’ म¤ िकया है ।
१४.३ पाý एवं चåरý-िचýण िकसी भी कहानी के पीछे सबसे महÂ वपूणª भाग उस कहानी के पाý एवं चåरý-िचýण का
होता है । कमलेÔ वर कì कहािन यŌ के पाý भी बड़े ही सुलझे हòए और गढ़े हòए ह§ । कमलेÔ वर
कì कहािनयŌ म¤ भोगे हòए जीवन का बड़ा ही यथाथª िचýण हòआ है । वैचाåरक धरातल पर
कमलेÔ वर कì कहािनयŌ के पाý मानवीय तथा सामािजक मूÐ यŌ से संबंिध त नजर आते ह§ ।
उÆ होने अपनी इस कहानी म¤ िबहारी बाबू, दीपू और िवमला के माÅ यम से आज के अभाव
úÖ त टूटते, बोिझल तथा आिथª क िवषमताओं से जुझते हòए पाýŌ का कुशल चåरý-िचýण
िकया है । आधुिनक युग के Óयि³ त कì टूटन, जनजीवन म¤ अलगाव, ऊब तथा िबखराव कì
िÖ थ ितयŌ को अपनी इस कहानी के माÅ यम से ÿÖतुत िकया है । कहानीकार कमलेÔ वर
मूलत: कÖ बाई बोध के कथाकार ह§ । Ö वतंýता के पÔ चात कÖ बा ई पåरवंश म¤ भी जीवन
मूÐ य बदलते रहते ह§ । इसका िचýण भी कमलेĵर ने कहé पाýŌ, वÖतुओं एवं Ö थानŌ के
माÅ यम से िकया है, तो कहé -कहé उपहास एवं Ó यंµ य के łप म¤ भी िकया है । इस काल म¤
ठोस कथानक को लेकर िलखी गई कहािनयŌ म¤ पाýŌ के चåरý-िचýण कì पुरानी पĦितयाँ,
नाटकì य िवÔ लेषणाÂ म क, अिभ नयाÂ म क तथा वणªनाÂ मक अंकन हòआ है । इस ŀिÕ ट से पाýŌ
कì पåरिÖ थ ित के अनुकूल िचिýत करने के कारण नयी कहानी म¤ Ö वाभािवकता Ö प Õ ट łप
से पåरलि± त होती है । नई कहानी के ÿवतªक होने के कारण कमलेÔ वर जी कÃ य के
अनुसार Ó यि³ त को łपाियत करने म¤ अिधक तÂ पर रह¤ ह§ । मÅ यवगêय औस त आदमी को
उसकì सभी किमयŌ के साथ और तनावŌ से ÿÖ तुत करके उÆ हŌने अपनी इस कहानी को
एक नया मोड़ िदया है ।
पाýŌ के चåरý-िचýण के łप म¤ इस कहानी म¤ कमलेÔ वर ने तीन ÿमुख चåरýŌ यथा िबहारी
बाबू, िवमला और दीपू के łप म¤ उनका सफल चåरý-िचýण िकया है । िबहारी बाबू के चåरý
पर ÿकाश डालते हòए कमलेÔ वर िलखते ह§ िक “सदê कì भीगती हòई रात है, घÁ टाघर ने
अभी-अभी दो का घÁ टा खड़काया है । िबहारी बाबू नéद म¤ डूबे हòए ह§ । वह िबजली कंपनी म¤
³ लकª ह§ । उनके िसरहाने कई फाइल¤ पड़ी ह§ । लाल-नीली प¤िसल¤ भी ह§, और लाइने खéचने
वाला łल फाइलŌ के बीच म¤ झाँक रहा है । उनकì बीबी अभी सोई नहé ह§ । वह छोटे दीपू
के िसरहाने दूध का एक È याला िलए बैठी ह§, और दीपू सोते-सोते िससक रहा है ।”
िबहारी बाबू पुकारते ह§ – दीपू िकताबे लाओ । munotes.in

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दु:ख भरी दुिनया - कमलेÔ वर
197 या कुछ इस तरह से िक “दीपू ³ या कर रहा है काम चोर? िबहारी बाबू कì आवाज िफर
गूँजती है । दीपू कì कनपिटयाँ झनझनाने लगती ह§, वहé से आवाज देता है, अभी आया बाबू
जी । जैसे ही िबहारी बाबू कì आवाज सुनाई पड़ती है, घर म¤ सÆ नाटा छा जाता है ।”
इसी ÿकार िबहारी बाबू का इस कहानी म¤ िचýण कमलेÔ वर कुछ स´ त अंदाज म¤ करते ह§-
“िबहारी बाबू लाइन¤ खéचना रोककर दीपू कì तरफ देखते ह§, और पूछते ह§, िहसाब का टेÖ ट
हो गया । जब दीपू बताता है िक उसके दो सवाल गलत हो गए , तब िबहारी बाबू कì आवाज
कुछ स´ त हो जाती है िक ³ यŌ दो गलत हòए ?”
“दीपू का गला बुरी तरह सूख जाता है, उसकì भोली आँखŌ म¤ पानी तैर आता है ।”
“बोलता ³ यŌ नहé? िबहारी बाबू कुछ कड़ककर कहते ह§ और दीपू के कान पर उनका हाथ
जाता है । काफì िदखलाओ, िबहारी बाबू कहते ह§ । बाएँ हाथ से अपना कान सहलाते हòए
दीपू दािहने से कापी के पÆ ने पलटता है, और गलत सवाल देखकर िबहारी बाबू आँख¤
िनकालकर पूछते ह§, यह सवाल ³ यŌ गलत हòआ ? ³ यŌ गलत हòआ ?”
इस ÿकार कमलेÔ वर ने ‘दु:ख भरी दुिनया’ कहानी के माÅ यम से िबहारी बाबू और दीपू के
माÅ यम से यथाथª को िचिýत िकया है । एक िपता अपने बेटे को आगे बढ़ते हòए देखने के
िलए ³ या -³ या िनयम और नी ितयाँ उसे दंिडत करने के िलए अपनाता है, इसे इस कहानी
के माÅ यम से जाना-समझा जा सकता है । कमलेÔ वर आगे भी िलखते ह§ िक, “िवमला रसोई
घर से िनकलकर दरवाजे के पास िठठक जाती है, और बाप बेटे को देखती है । दुिनया के
मार से िपटा हòआ बाप, और बाप कì मार से काँपता हòआ एक बेटा ।”
“िहसाब नहé पढ़ेगा तो जूितयाँ गाँठेगा । िबहारी बाबू कì आवाज कमरे म¤ गूँजती है, ³ या
करता रहा शाम से? िबहारी िवमला से पूछते ह§ ।”
‘यही कुछ िलख रहा था, िवमला बचाव करती है ।’
űाइंग बना रहा होगा, ³ यŌ? िबहारी बाबू जलती आँखŌ से दीपू को ताकते ह§ । “पता नहé
³ यŌ इतनी िचढ़ है िबहारी बाबू को űाइंग से ? उनकì आँखŌ म¤ िबजली कंपनी के इंजीिनयर
बसे हòए ह§, जो उनके अफसर ह§, जो कारŌ म¤ आते-जाते ह§ । िजनके नौकर दोपहर का खाना
लेकर आते ह§ । िजनकì बीिवयाँ उÆ ह¤ सुबह दÉतर छोड़ने और शाम को लेने आती ह§ ।”
और एक वह ह§ िक सुबह आठ बजे खाने का िडÊ बा लेकर कंपनी कì ओर चल देते ह§, और
शाम सात बजे फाइलŌ का पुिलÆ दा दबाकर लौटते ह§ । कभी जब वह अ¸ छे मूड़ म¤ थे तो
उÆहŌने िवमला से कहा था “िवमला म§ चाहता हóँ िक दीपू इंजीिनयर बने । घर का एक लड़का
भी इंजीिनयर बन गया तो सुधर जाएगा । िजÆ दगी बदल जाएगी । मेरे बेटे मेरी तरह ही
बदनसीबी का िश कार हŌ , यह म§ नहé चाहता िवमला !”
कमलेÔ वर कì िव शेषता यह है िक वे पाýŌ के भीतरी तह तक जाते ह§ और उनकì फटेहाल
िजÆ दगी का िचýण भी बड़ी ही बारीकì से करते ह§ । इस कहानी म¤ भी वे िबहारी बाबू और
िवमला के घर कì परेशािनयŌ, उनकì आिथªक िÖ थितयŌ का िचýण बड़ी कुशलता और
मािमªक ढंग से करते ह§ । इस कहानी म¤ ही वे िलखते ह§ िक- “अपना दीपू पढ़ने म¤ तेज ह§, munotes.in

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आधुिनक गī
198 िवमला ने गवª से कहा था और अपनी फटी हòई साड़ी का आँचल कमर म¤ खŌस िलया था ।
िफर बहòत धीरे से कहा था, ब¸ चो के िलए रजाई नहé है, जाड़े िसर पर ह§...”
“अब इस मही ने तो मुिÔ क ल है । एक अगले म¤ बनवा लेना और दूसरी, दूसरे महीने म¤,
िबहारी बाबू ने खच¥ का िहसाब लगाकर कहा था, और रोज -बरोज चीजŌ कì जłरत¤ और
उÆ ह¤ इकęा करने के बीच उÆ ह¤ हर ±ण यही लगता था िक इस दुख भरी दुिनया म¤ उबरने
का एक ही राÖ ता है, दीपू का इंजीिनयर बनना ।”
“और रात म¤ एक ही रजाई म¤ सबको दुबकाकर जब िवमला लेटती है तो दीपू उससे पूछता
ह§, माँ िफर उस परी का ³ या हòआ? राजकुमार कहाँ चला गया? तो िवमला उनके वालŌ म¤
अँगुिलयाँ िफराते हòए बताती ह§ । आसमान के उस पार एक देश है – नीलम देश, पåरयाँ वहाँ
रहती ह§ । वे पåरयाँ अपने पंख फैलाकर नीलम देश म¤ चली गई.... राजकुमार भी वहाँ पहòँच
गया ।”
“हóँ दीपू हòँकारी भरता है, नीलम देश कैसा है माँ? वहाँ िचिड़याँ ह§ न, और फूल माँ ‘बहòत
सुÆ दर है नीलम देश ।’ िवमला È या र से कहानी सुनाती जाती है, और दीपू उनéदी आँखŌ से
आसमा न के पार वाले नीलम देश कì कÐ पना करता -करता सो जाता है ।”
‘सुबह चारो ब¸ चे जागकर एक ही रजाई म¤ कुलबुलाते रहते ह§ । दीपू के कानŌ कì लव¤ नीली
होती ह§, नाक नीली पड़ जाती है, और सदª ईंटो के फशª पर वह पंजŌ के बल दौड़ता हòआ
नल कì पिटया पर पहòँचता है ।’ ठीक इसी तरह का िचýण गरीबी और िनरीह िÖ थ ितयŌ के
बारे म¤ भी कमलेÔ वर ने दुख भरी दुिनया म¤ िकया है - “िवमला भुने हòए आलू या शकर कÆ द
िनकालती है तो हँगामा मच जाता है, और कमरे से िबहारी बाबू कì कड़कती हòई आवाज
आती है । उस आवाज से सÆ नाटा छा जाता है ।”
इस ÿकार यह देखा जा सकता है िक कमलेÔ वर के पाý संवेदना के पाý मालूम पड़ते ह§ ।
लेखक समाज के साथ जुड़कर सभी ÿकार के Ó यि³ त यŌ के मन कì थाह लेता है, और इसी
थाह को ही कहानी कì अिनवायªता घोिषत करता है । कमलेÔ वर कì कहािनयŌ के Ö ýी एवं
पुłष पाý अपनी पूणª गåरमा, वाÖ तिवकता एवं आÂ म सÌ मा न कì भावना के साथ उपिÖ थत
हòए ह§ ।
१४.४ 'दुःख भरी दुिनया' कहानी का उĥेÔ य कमलेÔ वर कì कहािनयŌ म¤ िवशदता है, िवराटता का बोध है, जीवन के िविवध प±Ō का
संÖ पशª कर यथाथª अिभ Ó यि³ त देने का आúह है, और आधुिनकता के बारीक रेशŌ को
पåरवितªत सामािजक सÆ दभŎ म¤ ही अिभ Ó य³ त कर उÆ हŌ ने समकालीन और सामािजक
दाियÂ व का िनवाªह करने कì सायास कोिश श कì है । कमलेÔ वर कì कहािनयŌ का
पåरचयाÂ म क अनुशीलन को समझने के øम म¤ इसी उĥेÔ य को ÿÖ तुत िकया गया है ।
कहानीकार के łप म¤ कमलेÔ वर का िहÆ दी कहानी के ±ेý म¤ िविश Õ ट योगदान रहा है ।
इनकì कहानी लेखन कì याýा अंितम दौर तक चलती रही है, न तो वे कभी łके ह§ और न
ही उनके लेखन म¤ ठहराव आया है । हर दशक म¤ उÆ हŌने अ¸ छी रचनाएँ िलखकर Ö वयं को
आधुिनकता से भी जोड़ा है, जब िक नए -नए कहानी आÆ दो लन के बाढ़ म¤ कई ÿÖ थािपत munotes.in

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दु:ख भरी दुिनया - कमलेÔ वर
199 रचनाकार उखड़ से गए, जबिक कमलेÔ वर अÆ त तक कहािनयाँ िलखते रहे । इस ÿकार
कमलेÔ वर कì कहािनयŌ का उĥेÔ य समाज या समय के दपªण के ÿितिबÌ ब को िदखाना है ।
और उनकì इस कहानी म¤ समाज अपने पूणª पåरवेश के साथ यथाथª łप म¤ िचिýत हòआ है ।
१४.५ सारांश कमलेÔ वर के पाýŌ के चåरý-िचýण एवं कथानक के आधार पर यह कहा जा सकता है िक
युग पåरवतªन के साथ-साथ Ó य ि³ त कì आÖ था एँ और िवचार बदल रहे ह§, िजससे मूÐ य
पåरवतªन हो रहे ह§ । Ö वतंýता के पाÔ चात सामािजक , राजनीितक , धािमªक, आिथª क एवं
सांÖ कृितक मूÐ यŌ मे पåरवतªन हòआ है, िजसका ÿभाव सािहÂ य पर पड़ा । कमलेÔ वर ने
मानव Ó य ि³ त Â व को आधुिनकता से संबĦ करते हòए बढ़ती आकुलता, संýास, नैराÔ य एवं
भावनाओं से कटकर आÂ मकेिÆ þ त िकया है । इस कहानी के माÅ यम से कमलेÔ वर ने यह
बताने का ÿयास िकया है िक भय एवं संýास कì यह िÖ थित आज के जीवन का सच है ।
आज हर Ó य ि³ त वैयि³ त क, सामािजक , राज नी ितक एवं आिथªक सभी Ö तरŌ पर संýास कì
अनुभूित कर रहा है । हमारा मन िजस बेगानेपन और अकेलेपन को भोगता है, उससे संýास
का सजीव िचýण िक या गया है ।
कहानीकार कमलेÔ वर कì कहािनयाँ बाĻ पहचानŌ को नकारती हòई मानवतावादी ŀिÕ ट कोण
से मानवीय संबंधŌ को िवÔ लेिषत करती है । कłणा, Ö नेह और सौहा दª जैसे मानवीय मूÐ यŌ
कì ÿितÕ ठा पना भी करती है । इन िववेचनो से यह Ö पÕ ट हो जाता है िक कमलेÔ वर ऐसे
कहानीकार ह§, जो पुरानी तथा नयी पीढ़ी दोनŌ से जुड़े िदखाई पड़ते ह§ । िविशÕ टता यह है
िक सामािजक चेतना कì ÿÖ तुित कì ÿिøया भी वैयि³ त क धरातल पर िटकì है । लेखक ने
मनुÕ य का मनुÕ य के ÿित कपटपूणª Ó यवहार, िनधªनता का नµ न łप, Ö ýी-पुłष संबंध,
बेकारी, बेरोजगारी कì समÖ या, वेÔ यावृिÂ त , सामािजक कुरीितयाँ, असंतोष और िवþोह कì
भावना तथा पाåरवाåरक जीवन के िविवध łपŌ और संबंधŌ आिद िवषयŌ को अपने
वैयि³ त क अनुभवŌ व जीवन ŀिÕ ट के आधार पर सश³ त वाणी ÿदान कì है । वतªमान
सÆ दभŎ म¤ कमलेÔ वर कì कहानी आधुिनक पåरवेश के सूà मतम यथाथª के ÿसंगŌ से जोड़ती
है । िजतना वैिवÅ यपूणª मानव संसार है, उतना ही वैिवÅ यपूणª कमलेÔ वर का रचना संसार भी
है ।
१४.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न i. ‘दु:ख भरी दुिनया’ कहानी कì कथावÖ तु िलिखए ।
ii. ‘दु:ख भरी दुिनया’ कहानी कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. ‘दु:ख भरी दुिनया’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
iv. ‘दु:ख भरी दुिनया’ कहानी के माÅ यम से कहानी कì समी±ा कìिजए ।

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आधुिनक गī
200 १४.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न i. कमलेĵर कì कहानी ‘दु:ख भरी दुिनया’ का उĥेÔ य Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘दु:ख भरी दुिनया’ कहानी का सारांश िलिखए ।
iii. कमलेĵर कì कहानी ‘दु:ख भरी दुिनया’ के ÿमुख पाý िबहारी बाबू का िचýण कìिजए।
iv. ‘दीपू’ का चåरý-िचýण सं±ेप म¤ िलिखए ।
१४.८ वÖतुिनķ ÿij i. िवमला िकस कहानी कì नाियका है?
ii. दुःख भरी दुिनया कहानी के रचनाकार कौन ह§?
iii. िबहारी बाबू िकस कहानी के केÆþीय पाý ह§?
iv. दीपू को िबहारी बाबू ³या बनाना चाहते ह§?
v. दीपू िकस कहानी का नायक है?
*****
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201 १४.१
दहलीज़ - िनमªल वमाª
इकाई कì Łपरेखा
१४.१.० इकाई का उĥेÔय
१४.१.१ ÿÖ तावना
१४.१.२ कथानक
१४.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१४.१.४ कहानी का उĥेÔ य
१४.१.५ सारांश
१४.१.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न
१४.१.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न
१४.१.८ वÖतुिनķ ÿij
१४.१.० इकाई का उĥेÔय  ÿÖतुत इकाई के माÅ यम से हम 'दहलीज़' कहानी के कथानक को समझ पाएँगे ।
 ÿÖतुत इकाई के माÅ यम से हम 'दहलीज़' कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण का
अÅययन कर¤गे ।
 ÿÖतुत इकाई के माÅ यम से 'दहलीज़' कहानी के उĥेÔ य को भी आसानी से समझ
पाएँगे ।
१४.१.१ ÿÖ तावना िहÆ दी कथा सािहÂ य म¤ तरल, łमानी भावुकता, यथाथªता, अिÖ त Â ववािदता तथा पूवª और
पिÔ च म का अĩुत सामंजÖ य Ö थािपत करने वालŌ म¤ िनमªल वमाª अúणी कहानीकार के łप
म¤ सामने आए ह§ । उनकì कहािनयाँ आधुिनक पåरवेश म¤ Ó याÈ त माहौल कì देन ह§ । उनकì
कहािनयाँ कोई िवशेष चåरý या उĥेÔ य को लेकर नहé चलती है, वरन् वे Ó यि³ त के आंतåरक
यथाथª, संघषª उसकì संवेदना को लेकर ही आगे बढ़ती ह§ । आज के िचÆतन ÿधान युग म¤
जहाँ Ó यि³ त अपनी ÿाचीन माÆ य ताओं को छोड़ आधुिनक पåरवेश म¤ रच बस गया है, उसी
के अनुłप ही वह ढ़लना भी चाहता है, यह कहना चािहए िक अपनी अिÖ म ता कì खोज म¤
ºयŌ-ºयŌ वह आगे बढ़ता जा रहा है, ÂयŌ-Â यŌ भीड़ म¤ अपने को सवªý अलग-थलग पा रहा
है । िजसके पåरणाम Ö वłप वह िदशाहीन होता जा रहा है । इसे ही वह अपनी िनयित
Ö वीकार कर रहा है। िनमªल वमाª जैसे बड़े कहानीकार ने Ó यि³ त कì इसी िनयित का गहन
अÅ ययन कर मानव म¤ छुपी संवेदना को सामने रखकर कहािनयाँ िलखी ह§ । िनमªल वमाª कì
कहािनयाँ इसी िनयित और अकेलेपन म¤ जी रहे Ó यि³ त के अÆ तमªन कì अनुभूितयŌ को
इंिगत करता है। िनमªल वमाª कì कहािनयŌ म¤ अकेलेपन, रŌमांिटिसº म और काÓ याÂ मक munotes.in

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आधुिनक गī
202 संवेदना से भरी पड़ी है । िनमªल वमाª कì कहानी ‘दहलीज़’ म¤ जीवन कì उन अनुभूितयŌ को
अिभ Ó यि³ त दी गई है, िजÆ ह¤ एकांितक अनुभूितयाँ भी कहा जाता है । जो अÆ तमुªखी और
Ó यि³ त परक दोनŌ होती है । उनका ÿकाश बाĻ नहé आंतåरक होता है । समाज के Ö थूल
एवं बाĻ यथाथª कì ठोस वाÖ तिवकताओं के िचýण के िवपरीत िनमªल वमाª कì अÆ त: चेतना
आधुिनक सÆ दभŎ म¤ Ó याÈ त माहौल व उसकì अनुभूितयŌ को ही सामने लाती है । िनमªल
वमाª कì इस कहानी म¤ िचिýत कथानक का िवÔ लेषण भी कुछ इस तरह से िकया गया है ।
१४.१.२ कथानक िनमªल वमाª कì कहानी ‘दहलीज़’ म¤ िकशोरावÖ था कì मÖ ती और िख लंदड़ेपन को बड़ी ही
बेबाकì से िदखाया गया है । जब Óयि³ त हर तरफ से बेिफकर होकर िस फª अपनी ही धुन म¤
जीने कì कोिश श करता है । łनी, जेली और शÌ मी को हÉते भर केवल शिनवार का
इÆ तजार र हता है, ³यŌिक उसी िदन श Ì मी भाई हॉÖ टल से घर आते ह§, और तीनŌ िमलकर
घूमते-िफरते और मौज-मÖ ती भी करते ह§ । िफर वह चाहे शाम को घर के आँगन म¤ बैठकर
चाय पीते हòए भाई से हॉÖ टल के िकÖ से सुनना हो या åरजवायªर पर घूमने जाना हो, सभी म¤
िवशेष खुशी-आनÆ द और रोमांच िमलता था ।
‘दहलीज़’ शीषªक कहानी िनमªल वमाª जी के उपÆ यास ‘लालटीन कì छत ’ से काफì िमलती-
जुलती है । इस कहानी कì मु´ य केÆ þ िबÆ दु पाý ‘łनी’ कì चåरý काया जो िक िनमªल वमाª
के उपÆ यास ‘लालटीन कì छत ’ कì ही पाý है, से काफì िमलता-जुलता है । łनी भी अभी
िकशोर उă कì लड़कì है । जो उă कì ऐसी दहलीज़ पर खड़ी है, जहाँ बचपन पीछे छूट
जाता है, और आने वाला समय अनेक संकेतŌ से भरा पड़ा है । łमी वय: संिध कì दहलीज़
पर खड़ी एक लड़कì है । जो अपनी उă के िहसाब से अकेली है । सािथन के łप म¤ उसकì
बड़ी बहन जेली भी है, जो उससे काफì बड़ी है । यहाँ भी बहनŌ-बहनŌ के बीच कई तरह के
सÆ देह भी है, उă का अÆ तराल है तथा साथ ही एक सूनापन भी है । यहाँ łनी कì िवड़बना
है िक वह अपनी ही बहन के ÿेमी शÌ मी भाई से मूक ÿेम करने लगती है, उÆह¤ िमलते हòए
देखती है, उÆह¤ साथ म¤ घुमते हòए देखती है, िजससे उसका अपना मन भी भटकता रहता है।
łनी उă कì उस लकìर पर खड़ी एक ऐसी लड़कì भी है, जहाँ ढेरŌ सपने होते ह§, सपनीला
आकाश होता है, जहाँ वह उमंगŌ के साथ उड़ना चाहती है । łनी भी उÆ हé लड़िकयŌ म¤ से
एक ह§, वह घर पर अकेली पड़ गई ह§ । अपने सपनŌ के साथ उसका क¸ चा िकशोर मन
शÌ मी भाई को अपना मान लेता है, लेिकन वह अथाªत शÌ मी भाई तो जेली के कायल ह§ ।
इस कारण łनी बहòत दुखी होती ह§ । उसे ऐसा लगता है िक अगर वह मर भी जाए तो िकसी
को कोई फकª नहé पड़ने वाला है ।
१४.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण कहानीकार िनमªल वमाª कì कहािनयŌ म¤ एक वे-आवाज शोर भी सुनाई पड़ता है, जो जीवन
के अनचीÆ ह¤, अनपहचाने ड़र कì आहट से उÂ पÆ न होता है, इनकì कहािनयाँ आज के
पåरवेश के अलगाव, अजनबीयत, संशय, अिवÔ वास, संýास, कुÁ ठा और जीवन म¤ गहराते
सूनेपन को Ó यंिजत करती है । िनमªल वमाª के लेखन म¤ मृÂ युबोध कì गहन छाया भी है । घोर
िनराशा, अकेलापन तथा अन् य हवा देने वाली िÖ थ ितयाँ िज नसे जीवन िनÖ सार सा लगने munotes.in

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दहलीज़ - िनमªल वमाª
203 लगता है, वह यथाथª बोध िनमªल कì कहािनयŌ म¤ सवªý िमलता है । उनकì कहािनयŌ के पाý
िनतांत अकेले ह§ । वह जो अनुभूत करता है, भोगता है, उसे º यŌ का Â यŌ सÂ यािनÕ ठा और
ईमानदारी से Ó य³ त भी करता है । इनकì कहानी एक िवशेष ÿकार कì łमानी भूिम पर
घिटत होती है । िनमªल वमाª कì कहािनयŌ के पाý अपने अकेलेपन का चुनाव खुद करते ह§,
जैसे िजÆ दगी म¤ अकेला होना ही उनकì अिनवायª जłरत बन गई है । वाÖ तव म¤ यह पाýŌ के
माÅ यम से लेखकìय मानिसकता का भी चुनाव है । इसी तरह से िनमªल वमाª ने अपनी
चिचªत कहानी ‘दहलीज़’ के माÅ यम से अपने पाýŌ का िचýण बड़ी ही सावधानी पूवªक िकया
है । उनकì इस कहानी के पाý łनी, जेली और शÌ मी भाई अपने अिÖ त Â व के ÿित िवशेष
ÿकार का मोह तथा वैयि³ त क सजगता है । हालाँिक अकेलेपन से ऊब कर इनके पाý
³ लबŌ, रेÖ तरां और पबŌ म¤ भी भटकते ह§ । उनके ये पाý Ö वयं से ही संघषª करते रहते ह§,
और अपनी ही अÆ तस कì गुिÂ थयŌ को उलझाते-सुलझाते रहते ह§ । इनकì यह कहानी
यथाथª के सूàम Ö तरŌ का भी उĤाटन करती ह§ ।
िनमªल वमाª कì कई कहािनयŌ म¤ बड़े ही łµ ण पाý भी िमलते ह§, जो अश³ तता एवं
दयनीयता कì मूितª बनकर हमारी संवेदनाओं को जगाने के साथ-साथ कथा के िवकास म¤
भी अपनी महÂ व पूणª भूिमका िनभाते ह§ । इनकì ‘दहलीज़’ जैसी कहानी के पाý भी
अजनबीयत एवं िनयित के ÿित अ²ात भय को झेलते कहानी के पाý बोिझल एवं
िववशतापूणª िजÆ दगी जीने को अिभशÈ त ह§ । िनमªल वमाª कì कहािनयŌ के सभी पाý łना,
और जेली इस कथन के सबसे सश³ त ÿमाण ह§ । िन:सÆ देह िनमªल वमाª अपने इन पाýŌ कì
वैयि³ त कता एवं वैिशÕ ट्य को उभारने म¤ सजग एवं जागłक कहानीकार भी है । इनकì
कहािनयŌ म¤ Óय³ त िवदेशीपन एवं सवªथा िभ Æ न िकÖ म कह łमािनयत के कारण उÆ ह¤
समझने के िलए अितåर³ त ÿयासŌ कì भी अपे±ा होती है।
िनमªल वमाª कì चिचªत कहानी ‘दहलीज़’ के ÿमुख पाýŌ łना, जेली और शÌ मी म¤
िकशोरवÖ था कì मÖ ती और उनके िखलंदड़ेपन को लेखक ने बड़ी ही बेबाकì के साथ
ÿÖ तुत िकया है । इन सभी पाýŌ म¤ खुशी और रोमांच का पल हमेशा बना रहता है । तीनŌ
पाý पूरी कहानी म¤ आरंभ से लेकर अंत मौज-मÖती करते रहते ह§| इस ÿकार िनमªल वमाª ने
इन पाýŌ के माÅ यम से ‘दहलीज़’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण बड़े ही मनोरंजक ढंग से
िकया है ।
१४.१.४ ‘दहलीज़’ कहानी का उĥेÔ य अपनी गंभीर, भावपूणª एवं अवसाद से भरी कहािनयŌ के सृजन हेतु जाने-माने कहानीकार
िनमªल वमाª को आधुिनक िहÆ दी कहानी का सबसे लोकिÿय कहानीकार के łप म¤ जाना
जाता है । िनमªल वमाª कì कहािनयŌ का ÿमुख उĥेÔ य आज के आधुिनक पåरवेश म¤ Ó याप् त
माहौल को उजागर करना रहा है । उनकì इस कहानी म¤ भी संवेदना के िविभÆ न ल±ण
उनके तीनŌ ÿमुख पाýŌ म¤ भी नजर आते ह§ । łनी का मौन भी इस कहानी को संवेदनाÂ मक
łप से भी झकझोर देता है । इसके अलावा, ÿकृित, संगीत, रहÖ य, łमािनयत तथा
अिÖ त Â ववादी दशªन उनकì कहािनयŌ म¤ उĥेÔ यपरक ढंग से पåरलि±त होता है ।
१४.१.५ सारांश munotes.in

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आधुिनक गī
204 सारांशत: यह कहा जा सकता है िक िनमªल वमाª कì कहािनयाँ आज के आधुिनक से
आधुिनकतम माहौल म¤ Ó याÈ त संýास को उजागर करती ह§, उनकì कहािनयŌ म¤ एक अजीब
िकÖ म कì बेचैनी भी िदखाई देती है । परÆ तु साथ ही कहé -कहé मौन कì Ö वी कायªता भी
‘दहलीज़’ कहानी कì तरह नजर आने लगती है । िनमªल वमाª कì कहािनयŌ म¤ Ó यि³ त
ÿवासी होते हòए भी भारतीय ही नजर आता है । जहाँ एक ओर उसम¤ असुर±ा कì भावना है
तो दूसरी ओर अपने अिÖ त त् व और अिÖ म ता के ÿित मोह भी िदखाई देता है । उनकì
कहािनयŌ के कुछ पाý समाचार पýŌ के रािश फल म¤ भी िवÔ वास करने वाले पाý ह§ । वहé वे
कहé-कहé िवसंगितयो के िश कार भी होते ह§ । इन सबके अलावा िनमªल वमाª कì कहािनयŌ
के पाýŌ म¤ जीवन को साथªक बनाने के कुछ महÂ वपूणª उĥेÔ य भी नजर आते ह§ । अगर
Ó यि³ त पुराने संसार म¤ लौटना नहé चाहता तो वह कुछ नया करने का ÿयास करता नजर
आता है । िनÕ कषªत: यह कहना होगा िक युग के यथाथª एवं उससे जूझते मनुÕ य का िचýण
करना ही िनमªल वमाª जैसे लोकिÿय कहानीकार कì कहािनयŌ का उĥेÔ य यही रहा है िक
यही आधुिनक युग के हर Ó यि³ त कì माँग भी है| िनमªल वमाª अपनी कहािनयŌ म¤ Óयिĉ के
मन कì भीतरी तहŌ तक पहòँचकर उसकì िनयित का भी सा±ात पåरचय देते ह§ । साथ ही
उन पाýŌ के मन म¤ छुपी संवेदना को भी बड़े ही Ö पÕ ट łप म¤ उजागर करते ह§ ।
१४.१.६ दीघōÂ तरी ÿÔ न i. िनमªल वमाª कì कहानी ‘दहलीज़’ कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. िनमªल वमाª कì ‘दहलीज़’ कहानी के कथानक को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. िनमªल वमाª कì ‘दहलीज़’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
iv. िनमªल वमाª आधुिनक कहानीकारŌ म¤ बड़े कहानीकार ह§ । िसĦ कìिजए ।
१४.१.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न i. ‘दहलीज़’ कहानी का सारांश िलिखए ।
ii. िनमªल वमाª कì ‘दहलीज़’ कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. łनी का चåरý-िचýण कìिजए ।
iv. ‘दहलीज़’ कहानी के पाýŌ पर िटÈ पणी िलिखए ।
१४.१.८ वÖतुिनķ ÿij i. दहलीज़ कहानी के रचनाकार कौन ह§?
ii. पåरंदे िकसका कहानी संúह है ?
iii. अंितम अरÁय के रचनाकार कौन ह§?
iv. łनी िकस कहानी कì ÿमुख पाý है?
v. जेली िकस कहानी कì पाý है?
***** munotes.in

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205 १५
वापसी - उषा िÿयंवदा
इकाई कì łपरेखा
१५.० इकाई का उĥेÔ य
१५.१ ÿÖ तावना
१५.२ कथानक
१५.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१५.४ 'वापसी' कहानी का उĥेÔ य
१५.५ सारांश
१५.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न
१५.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न
१५.८ वÖतुिनķ ÿij
१५.० इकाई का उĥेÔ य  इस इकाई के उĥेÔ य के माÅ यम से उषा िÿयंवदा कì कहानी ‘वापसी’ के कथानक को
समझा जा सकता है ।
 इस इकाई के माÅ यम से ‘वापसी’ कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण को भी समझा जा
सकता है ।
 इन कहानी के माÅ यम से ही कहानी के उĥेÔ य को भी हम सरलता पूवªक समझ सकते
ह§ ।
 इन कहानी के माÅ यम से इकाई के सारांश को भी समझ सकते ह§ ।
१५.१ ÿÖ तावना इस इकाई म¤ नयी कहानी से जुड़ी ÿ´यात कथाकार/रचनाकार उषा िÿयंवदा कì कहानी
वापसी का अÅ य यन िकया जाएगा । उषा िÿयंवदा जी नई कहानी आÆ दोलन कì महÂ वपूणª
लेिखकाओं म¤ से एक ह§ । नई कहानी आÆ दोलन म¤ कई कहानी लेिख काओं का भी महÂ वपूणª
योगदान रहा है । उषा िÿयंवदा के साथ-साथ कृÕ णा सोबती और मÆ नू भंडारी का नाम भी
िवशेष łप से उÐ लेखनीय है । उषा िÿयंवदा का जÆ म कानपुर म¤ हòआ था । इÆ हŌने अंúेजी
सािहÂ य म¤ एम. ए. और पी. एच. डी. कì उपािध ÿाÈ त कì । िदÐ ली के लेडी ®ी राम कॉलेज
और इलाहाबाद िवÔ व िवīालय म¤ अÅ यापन भी िकया । उषा िÿयंवदा ने कहानी के अलावा
कई उपÆ यास भी िलखे ह§, िजनम¤ पचपन खंभे लाल दीवार¤, बनवास और łकोगी नहé
रािधका, िवशेष łप से उÐ लेखनीय ह§ । इनके कई कहानी संúह भी ÿकािशत हòए ह§ । उषा
िÿयंवदा का अिध क°र लेखन शहरी मÅ यवगêय जीवन से जुड़ा है । िवशेष łप से munotes.in

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आधुिनक गī
206 मÅ यवगêय पåरवारŌ म¤ संबंधŌ म¤ आने वाले तनाव और संघषª को अÂ यंत ही संवेदनशील ढंग
से पेश करने म¤ उनको महारत हािसल रही है ।
१५.२ कथानक िकसी भी कहानी के कथानक या उसकì कथावÖ तु को समझने के िलए यह समझना भी
जłरी है िक कहानी कì रचना िकसिलए कì गई है । इस कहानी के माÅ यम से रचनाकार
³ या कहना चाहता है, और जो कहना चाहता है, उसे कहने के िलए उसके कथानक को
िकस तरह िवकिसत िक या है । इस ŀिÕ ट से िवचार करने पर ‘वापसी’ जैसी कहानी के
केÆ þीय भाव को भी समझा जा सकता है । उषा िÿयंवदा कì कहानी ‘वापसी’ एक सेवा
िनवृÂ त रेÐ वे कमªचारी गजाधर बाबू कì कहानी है । कहानी म¤ इस बात का उÐ लेख नहé है
िक गजाधर बाबू रेÐ वे म¤ िकस पद पर थे, और िकस तरह का काम करते थे । लेिकन कहानी
म¤ यह बताया गया है िक उनकì पोिÖ टंग आम तौर पर छोटे Ö टेशनŌ पर ही होती थी । ऐसा
ÿतीत होता है िक वे Ö टेशन माÖ टर पद पर कायª करते रहे हŌगे । Ö टेशन माÖटर का पद
ऐसा है, िजसम¤ रेलवे कमªचाåरयŌ को छोटे-छोटे Ö टेशनŌ पर रहना पड़ता है । उन छोटी
जगहŌ पर वे अपने ब¸ चŌ कì पढाई का उिचत ÿबंध नहé कर सकते थे, और न ही वे अपनी
पÂ नी और ब¸ चŌ को अÆ य सुिवधाएँ ही ÿदान कर सकते थे । यही सोचकर उÆ हŌने शहर म¤
एक मकान बनवा िलया था , जहाँ उनकì पÂ नी ब¸ चŌ के साथ रहती थé । गजाधर बाबू के
कुल चार ब¸ चे थे, दो बेटे, दो बेिटयाँ एक बेटा और एक बेटी कì शादी हो गई थी । बेटी
शादी के बाद ससुराल चली गयी थी, लेिकन बेटा उसी मकान म¤ अपनी माँ, पÂ नी और छोटे
भाई और बहन के साथ रह रहा था । छोटे भाई-बहन अभी पढ़ रहे थे । गजाधर बाबू लौटकर
अपने इसी घर पåरवार म¤ आते ह§ । उनम¤ घर लौटने कì खुशी है । अपनी पÂ नी का साथ
दुबारा पाने कì इ¸ छा है, िजनके साथ िबताए कई सुखद अनुभव उनकì यादŌ म¤ बसे ह§।
पÂ नी कì सुÆ दर और Ö नेह भरी छिब उनकì Ö मृितयŌ म¤ बनी हòई है ।
गजाधर बाबू के मन म¤ यह भी िवषाद है िक इतने वषŎ तक िजस संसार म¤ रहे, वह भी उनसे
छूट रहा है । यहाँ उÆ ह¤ आदर भी िमला है, और Ö नेह भी । लेिकन जहाँ वे जा रहे ह§ वह
उनका अपना घर संसार है । गजाधर बाबू के उस समय कì मानिसकता को कहानीकार
उषा िÿयंवदा ने कुछ इन शÊ दŌ म¤ Ó य³ त िकया है – “गजाधर बाबू खुश थे, बहòत खुश ।
प§तीस साल कì उă के बाद वह åरटायर होकर जा रहे थे । इन वषŎ म¤ अिध कांश समय
उÆ हŌने अकेले ही रहकर काटा था । उन अकेले ±णŌ म¤ उÆ हŌने इसी समय कì कÐ प ना कì
थी, जब वह अपने पåरवार के साथ रह सक¤गे ।” कहानी का केÆ þीय मुĥा यह है िक घर
पहòँचने पर ³ या उÆ ह¤ वही संसार िमलता है जो उनकì यादŌ म¤ बसा था, और िजसके िमलने
कì उÆहŌने उÌ मीद कì थी । गजाधर बाबू को वह दुिनया नहé िमलती, िजसकì उÆ हŌने
उÌ मीद कì थी । जल् दी ही उÆ ह¤ एहसास हो जाता है िक वे अपने ही घर म¤ िबन बुलाए
मेहमान कì तरह ह§ । उनके आने से जैसे घर कì बनी बनायी Ó यवÖ था म¤ Ó यवधान पैदा हो
गया है । कहानी म¤ कुछ ऐसे ÿसंगो का उÐ लेख है जो उÆ ह¤ धीरे-धीरे अपने घर वालŌ से दूर
ले जाती है । यहाँ तक िक उÆ ह¤ लगता है िक उनकì पÂ नी भी अब उनके करीब नहé रह गई
ह§ । वे हर घटना के बाद घर से दूर छोटे Ö टेशनŌ पर िबताई अपनी िजÆ द गी को याद करने
लगते ह§ । कहानी के आरÌ भ म¤ ही विणª त एक घटना के उÐलेख से इसे समझा जा सकता
है । munotes.in

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वापसी - उषा िÿयंवदा
207 लौटने के बाद पहली बार गजाधर बाबू अपने ब¸ चŌ के बीच जाते ह§,जो उनकì अनुपिÖ थित
म¤ चाय पीते हòए हँसी-मजाक कर रहे होते ह§ । लेिकन उनको देखकर सब चुप हो जाते ह§ ।
बहó अपने िसर पर पÐ ला रखकर चली जाती ह§ । बेटा चाय का आिख री घूँट भरकर वहाँ से
िखसक जाता है । बेटी बसंती िपता के िलए चुपचाप कप म¤ चाय उडेलती है, और कप उनके
हाथ म¤ पकड़ा देती है । िपता चाय का घूँट लेते ह§ और कहते है – ‘िबĘी चाय तो फìकì है ।’
यह छोटी सी घटना इस बात को बताती है िक िपता कì पसÆ द या नापसंद के बारे म¤ ब¸ चŌ
को कोई जानकारी नहé है । गजाधर बाबू को ऐसा लगने लगता है िक उनकì मौजूदगी ने घर
म¤ कोई उÂ साह पैदा नहé िकया है । ऐसे समय उÆ ह¤ रेलवे Ö टेशन के अपने नौकर गनेशी कì
याद आती है । गजाधर बाबू अपने घर वालŌ से गनेशी से º यादा कì अपे±ा करते थे, लेिकन
उÆ ह¤ गनेशी जैसी सेवा और आदर घर म¤ नहé िमल रहा था । इसका भी एहसास उÆ ह¤ होने
लगा था । बाद कì घटनाओं से यह एहसास बढ़ता जाता है । घर म¤ उनके रहने कì Ó यवÖ था
कुछ इस तरह कì जाती है जैसे िकसी मेहमान के िलए कुछ अÖ थायी ÿबंध कर िदया जाता
है । पÂ नी ब¸ चŌ के बारे म¤ बहòत सी िशकायत¤ करती ह§ । लेिकन जब उन िशकायतŌ पर वे
ब¸ चŌ को कुछ कहते ह§ तो न ब¸ चŌ को ही अ¸ छा लगता है और न ही उनकì पÂ नी को ।
अपने ÿित अपनी पÂ नी और ब¸ चŌ का Ó यवहार उÆ ह¤ अÆ दर तक आहत कर देता है । पÂ नी
कì जो सुÆ दर और Ö नेह भरी छिव देखने कì उÌ मीद उन् हŌने कì थी, उÆ ह¤ लगता है िक वह
कहé खो गई ह§ । गजाधर बाबू का पूरा Ó यवहार घर के मुिखया सा है, जो मानता है िक घर म¤
ÓयवÖ था और अनुशसान लाने कì िजÌ मेदारी उनकì है । इसके िलए वे जो भी ÿयÂ न करते
ह§, वे ब¸ चŌ को अपनी िजÆ द गी म¤ दखल लगते ह§, और इस बात को वे िकसी न िकसी łप
म¤ Ó य³ त भी कर देते ह§ । इससे गजाधर बाबू और अिधक दुखी हो जाते ह§ । उनका
अकेलापन और अिधक बढ़ जाता है । लेिकन जब उनकì पÂ नी बताती ह§ िक उनका बड़ा
बेटा अमर अलग होना चाहता है तो वे समझ जाते ह§ िक इस घर म¤ अब उनके िलए कोई
जगह नहé है ।
Ö पÕ ट ही गजाधर बाबू ने जाने-अनजाने ही सही घर के अÆ य सदÖ यŌ कì Ö वतंýता छीन ली
थी । यहाँ यह ÿÔ न जłर उठता है िक उस घर-पåरवार म¤ उनकì पÂ नी ने अपने आपको
ढाल िलया है । लेिकन गजाधर बाबू ³ यŌ न कर सके ? ‘वापसी’ कहानी छोटे ÿसंगŌ से ही
िनिमªत हòई है । इसम¤ कोई ऐसा ÿसंग नहé है जो असामाÆ य हो । लेिकन इन सामाÆ य ÿसंगŌ
से ही कहानी म¤ गजाधर बाबू का अकेलापन बहòत ही तीĄता से उभरकर आता है । कहानी
भी गजाधर बाबू के नजåरए से ही िलखी गई है । इसिलए शेष पाýŌ का प± उÆ हé के नजåरए
से ही सामने आता है, और वे सभी िकसी न िकसी łप म¤ गजाधर बाबू को घर छोड़ने के
िलए मजबूर करते नजर आते ह§ । इन तमाम ÿसंगŌ के माÅ यम से गजाधर बाबू का अपने ही
पåरवार से होने वाले मोहभंग का अपे±ाकृत िवÖ तार से वणªन िकया है । इस तरह गजाधर
बाबू कì नौकरी से पहली वापसी और घर से दूसरी वापसी म¤ ही समाÈ त हो जाती है ।
१५.३ पाý एवं चåरý-िचýण ‘वापसी’ कहानी गजाधर बाबू को केÆ þ म¤ रखकर िलखी गयी है इसिलए कहानी म¤ मु´ य
चåरý भी वही ह§, और उÆ हé का चåरý सबसे अिधक मुखर होकर सामने आता है । इनके
अलावा उनकì पÂ नी का चåरý दूसरे पाýŌ कì तुलना म¤ º यादा उभरकर आता है । शेष सभी munotes.in

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आधुिनक गī
208 पाý कहानी कì जłरत के अनुसार आते-जाते ह§, और उनका चåरý बहòत उभरकर नहé
आता । लेिकन उनसे जुड़े जो भी ÿसंग सामने आते ह§, उनसे उनके चåरý कì केÆ þीय
िवशेषताओं कì पहचान हो जाती है । अपने सीिमत कलेवर के कारण कहानी म¤ बहòत
अिधक पाý हो भी नहé स कते । यह कहानी लेिखका के िशÐ प कì िवशेषता है िक उÆ हŌने
कथानक का गठन इस तरह िकया है िक पाýŌ कì चाåरिýक िवशेषताएँ Ö वत: ही उभर आती
ह§ । गजाधर बाबू को इस कहानी का केÆ þीय पाý या नायक कहा जा सकता है । पूरी कहानी
ही गजाधर बाबू के आस-पास ही घूमती है । गजाधर बाबू पर केिÆþत होने के बावजूद इसे
चåरý ÿधान कहानी कहना कतई उिचत नहé होगा , ³ यŌिक कहानी का मकसद गजाधर बाबू
के चåरý को उभारना नहé है, बिÐ क उनके माÅ यम से पåरवारŌ म¤ वृĦ लोगो कì बदलती
िÖ थित को दशाªना है । गजाधर बाबू वैसे तो घर के मुिख या है, और परÖ परागत ŀिÕ ट से
देखने पर उनकì इ¸ छा और आदेश ही पूरे पåरवार के िलए सवªसामाÆ य होने चािहए। वह
इसका ÿयÂ न भी करते ह§ िक घर के सभी सदÖ य उनके कहे अनुसार चल¤, लेिकन ऐसा
होता ही नहé है । उनके इस आदेश देने कì कोिश शŌ को घर के दूसरे सदÖ य बहòत पसÆ द
नहé करते, बिÐ क अपने-अपने ढंग से उसका िवरोध ही करते ह§ ।
िसफª इतना ही नहé, उनका घर म¤ मौजूद रहना भी शेष सदÖ यŌ को अखरने लगता है ।
कहानी यह भी Ö प Õ ट नहé करती िक पÂ नी और ब¸ चŌ का बदला हòआ Ó य वहार िकस कारण
से ह§, अपने पåरवार से दूर रहने के कारण या पåरवार के बदलते ढाँचे के कारण ऐसा हो रहा
है ।
इसका यह अथª तो िबÐ कुल भी नहé लगाया जाना चािहए िक गजाधर बाबू कठोर ÿवृिÂ त के
Ó यि³ त ह§ । अपने घर-पåरवार के सदÖ यŌ के ÿित भी वे Ö नेह का भाव रखते ह§ । गनेशी का
उदाहरण कहानी म¤ सबके सामने है, िजसको वे बहòत ही ÿेमपूवªक याद करते ह§ । अपनी
पÂ नी के ÿित भी उनके मन म¤ गहरा लगाव है, और नौकरी से åरटायर होने के बाद जÐ दी से
जÐ दी घर पहòँचने कì इ¸ छा के पीछे अपनी पÂनी के ÿित उनका यह लगाव भी है । पÂ नी को
लेकर कई मधुर Ö मृितयाँ उनके मन म¤ बसी हòई ह§ । अपने ब¸ चŌ के ÿित भी Ö नेह का भाव
उनके मन म¤ सदैव भरा रहता है । उनम¤ अपने घर पåरवार के ÿित िजÌ मेदारी का बोध भी है।
इसी वजह से वे अपने ब¸ चŌ को टोकते भी ह§, लेिकन उनकì इस भावना को ब¸ चे समझ
नहé पाते और यह लगता है िक िपता उन पर शासन चलाने कì कोिश श कर रहे ह§ ।
माता-िपता और ब¸ चŌ म¤ िजस तरह का संवाद होना चािहए, उसका अभाव भी यहाँ नजर
आता है । माँ कì नजरŌ म¤ बसंती का काम से जी चुराने के पीछे मु´ य कारण अपनी सहेली
शीला के यहाँ जाना है, उÆ हé के अनुसार वहाँ बड़े-बड़े लड़के ह§ । एक िपता के िलए यह
कथन िनÔ चय ही िचÆ ता का िवषय है । एक कुंवारी लड़कì ऐसे घर म¤ बार-बार आए-जाए
जहाँ जवान लड़के हो तो उसका िचिÆतत होना Ö वाभािवक है, और इसी वजह से वह जब
एक िदन बसंती को शीला के घर जाते हòए देखते ह§, तो उसे जाने से रोक देते ह§ । बेटी
नाराज हो जाती है और वह खाना-पीना छोड़ देती है । बेटी के इस तरह łठ जाने से माँ भी
दुखी हो जाती है, और वह इसके िलए अपने पित को ही दोषी मानती ह§ । यह पूरा का पूरा
घटना øम गजाधर बाबू के Ó यि³ त Â व कì दो कमजोåर यŌ कì ओर इशारा करता है । गजाधार
बाबू का जीवन संबंधी नजåरया िबÐ कुल परÌ परावादी है । उनका मानना है िक िÖ ý यŌ का
कतªÓ य घर म¤ रहना और घर के काम म¤ हाथ बँटाना है । पढ़ाई उनके िलए इतनी जłरी नहé munotes.in

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वापसी - उषा िÿयंवदा
209 है । उनको º यादा Ö वतंýता देना भी उिचत नहé है । गजाधर बाबू के अलावा अÆ य िजन
पाýŌ का उÐ लेख कहानी म¤ आता है वे सभी गजाधर बाबू के माÅ यम से ही हमारे सामने
ÿकट होते ह§ । उनकì पÂ नी, उनके ब¸ चे और उनका नौकर ये सब के सब कहानी कì
पåरिध म¤ ही च³ कर लगाते रहते ह§ । कहानी के केÆ þ म¤ तो गजाधर बाबू ही बने रहते ह§ ।
गजाधर बाबू कì तरह उनकì पÂ नी भी परÌ परावादी ह§, लेिकन पित से अलग अपने ब¸ चŌ के
साथ रहने कì उनकì लÌ बी आदतŌ ने उÆ ह¤ अपने पित से कुछ हद तक उदासीन भी बना
िदया है । ऐसा होना भी बहòत Ö वाभािवक ÿतीत नहé होता ह§ ।
इसी ÿकार वापसी कहानी म¤ ब¸ चŌ Ĭारा िपता को एक आवांिछत मेहमान कì तरह देखना
भी अितरंजनापूणª लगता है । ऐसा मालूम पड़ता है िक कहानीकार कì सहानुभूित िसफª
गजाधर बाबू के ÿित है, शेष पाýŌ को समझने का ÿयास नहé िदखाई देता है । शेष पाýŌ कì
चåरिýक िवशेषताएँ कहानी म¤ इसी łप म¤ आती ह§ िक Ö वयं गजाधर बाबू उÆ ह¤ िकन पाýŌ म¤
देखने कì कोिश श करते ह§ ।
१५.४ 'वापसी' कहानी का उĥेÔ य ‘वापसी’ नयी कहानी दौर कì एक महÂ वपूणª कहानी है । यह कहानी लेिखका उषा िÿयंवदा
कì संभवत: सबसे चिचªत कहानी भी मानी जाती है । कहानी का उĥेÔ य एक सेवािनवृÂ त
Ó यि³ त गजाधर बाबू को केÆ þ म¤ रखकर उसे िवÔ लेिषत करने का ही है । अपनी रेलवे कì
प§तीस साल कì नौकरी से åरटायर होकर वे अपने घर आते ह§ । ब¸ चे जो अब जवान हो गये
ह§ । बड़े-बेटे और बड़ी बेटी कì शादी हो गई है । इस कहानी म¤ गजाधर बाबू कì मौजूदगी
ब¸ चŌ के सहज जीवन म¤ अवरोध बन जाती है । इसीिलए वे अपनी माँ से अपने िपता कì
आलोचना करते ह§, और उÆ ह¤ ³ या करना चािहए ³ या नहé यह भी बताते ह§ ? यही वजह है
िक गजाधर बाबू यह नहé सोच पाते िक दुिनया बहòत बदल गई है । इस उĥेÔ य से तो गजाधर
बाबू अपनी पÂ नी से भी संवाद करने म¤ नाकामयाब रहते ह§ । यह कहानी पाठकŌ पर भी
गहरा असर ड़ालती है ।
१५.५ सारांश ‘वापसी’ जैसी चिचªत कहानी एक वृĦ Ó यि³ त के अकेलेपन, अपने ही घर पåरवार से
अलगाव और उसकì आÆ त åरक पीड़ा को Ó य³ त करने म¤ काफì हद तक सफल हòई है ।
‘वापसी’ कहानी आधुिनक पåरवारŌ म¤ वृĦ माता-िपता के ÿित ब¸ चŌ के बदलते रवैये का
अÂ यंत ही मािमªक िचýण करती है । कहानी यह बताती है िक, माता-िपता के िलए अपने ही
ब¸ चŌ के साथ घुल-िमलकर रहना काफì मुिÔकल हो सकता है । यिद वे ब¸ चŌ कì
भावनाओं और इ¸ छाओं को नहé समझते ह§, तो कहानी के मु´ य पाý गजाधर बाबू का
िचýण इस ŀिĶ से बेहद ÿभावशाली है । पूरी कì पूरी कहानी उÆ हé के आस-पास घूमती है ।
अÆ य पाýŌ का िचýण भी बड़े यथाथªपरक ढंग से िकया गया है । कहानी म¤ मÅ यवगêय
पåरवार का यथाथª िचý भी ÿÖ तुत हòआ है । भाषा कहानी के अनुłप संवेदनाÂ मक और
सहज है । कहानीकार कì सहानुभूित यīािप गजाधर बाबू के साथ है, लेिकन अÆ य पाýŌ को
खलनायक कì तरह ÿÖ तुत नहé िकया गया है । munotes.in

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आधुिनक गī
210 १५.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न i. ‘वापसी’ कहानी के कथानक को Å यान म¤ रखकर उसका मूÐ यांकन कìिजए ।
ii. ‘वापसी’ कहानी के संरचना िशÐ प को सोदाहरण समझाइए ।
iii. ‘वापसी’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
iv. ‘वापसी’ कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए ।
१५.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न i. ‘वापसी’ कहानी का सारांश सं±ेप म¤ िलिखए ।
ii. गजाधर बाबू का चåरý-िचýण कìिजए ।
iii. ‘वापसी’ कहानी म¤ िकस समÖ या को उठाया गया है? Ö पÕ ट कìिजए ।
१५.८ वÖतुिनķ ÿij i. वापसी कहानी कì लेिखका कौन ह§?
ii. गजाधर बाबू िकस कहानी के केÆþीय पाý है?
iii. गणेशी िकस कहानी का पाý है?
iv. बासंती िकस कहानी कì नाियका है?
v. Łकोगी नहé रािधका िकसकì रचना है?
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211 १५.१
चीफ कì दावत - भीÕ म साहनी
इकाई कì łपरेखा
१५.१.० इकाई का उĥेÔय
१५.१.१ ÿÖ तावना
१५.१.२ कथानक
१५.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१५.१.४ 'चीफ कì दावत' कहानी का उĥेÔ य
१५.१.५ सारांश
१५.१.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न
१५.१.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न
१५.१.८ वÖतुिनķ ÿij
१५.१.० इकाई का उĥेÔ य  इस इकाई के माÅ यम से भीÕ म साहनी कì कहानी ‘चीफ कì दावत ’ के कथानक या
कथावÖ तु को भी समझा जा सकता है ।
 इस इकाई के माÅ यम से ‘चीफ कì दावत ’ कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण को भी
समझा जा सकता है ।
 ‘चीफ कì दावत ’ कहानी के माÅ यम से इकाई के सारांश को भी समझ सकते ह§ ।
१५.१.१ ÿÖ तावना भीÕ म साहनी का समÖ त सािहÂ य ही भारतीय जीवन के सुख-दु:ख म¤ शािमल अनुभव है ।
ÿगितशील िवचारŌ से ÿभािवत वे सदा मेहनत करने वाले वगª एवं शोषण कì िश कार जनता
के साथ खड़े होते है । वे उन तमाम लोगŌ से जुड़े हòए ह§, जो जीवन म¤ संघषª करते हòए जी रहे
ह§ । उÆ हŌने जीवन म¤ मनुÕ य और चीजŌ के बीच उपिÖ थ त ĬÆ Ĭ को समझने कì कोिश श कì
है । मÅ यवगª और िनÌ नवगª कì जनता के जीवन को, उसके संघषª और यातना को समझने
कì चेतना भीÕ म साहनी कì कहािनयŌ म¤ झलकती है । भीÕ म साहनी अपने युग के एक ऐसे
रचनाकार रहे है, िजनका समाज के ÿित ŀिÕ ट कोण बड़ा ही ÖवÖÃय और Ö पÕ ट रहा है ।
मूलत: समाजवादी चेतना से जुड़े रहने के कारण समाज के ÿित उनकì ŀिÕ ट ÿगितशील
रही है । यही कारण है िक समाजवाद कì समिÕ ट िचÆ तनधारा के ÿभुÂ व कहानीकार के łप
म¤ उभरता है । उनकì कहािनयŌ म¤ जन सामाÆ य का जीवन और अंतिवªरोध बड़े सश³ त łप
म¤ अिभ Ó य³ त हòआ है । िकसी भी िवचार, दशªन या िचÆ तन के ÿभाव को एक िविश Õ ट सीमा
तक ही भीÕ म जी ने úहण िकया है । यह सच है िक ÿगितशील िवचारधारा के ÿमुख
कहानीकारŌ म¤ उनका नाम िलया जाता है, पर गौर से उनके सािहÂ य का अवलोकन करने munotes.in

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आधुिनक गī
212 से Ö पÕ ट होगा िक मूलत: वे मानवतावादी है । इनका मानवतावाद, मा³ सªवादी िचÆ तन और
समाजवादी दशªन से ÿभािवत है ।
१५.१.२ कथानक भीÕ म सहानी कì कहािनयŌ का मु´ य ÿितपाī इस देश का मÅ य और िनÌ न मÅ यवगêय
समाज है । भारतीय दशªन और िचÆ तन का ÿभाव कहé -कहé उनकì कहािनयŌ पर Ö प Õ ट
लि±त होता है । िहÆ दी के िजन कहानीकारŌ ने ÿेमचÆ द कì परÌ परा को Ö वीकारा है, या
आÂ मसात िकया है, उनम¤ भीÕ म साहनी जी अलग से पहचाने जाते ह§ । इनकì कहािनयŌ म¤
आधुिनकता बोध, और यथाथªवादी िवचारधारा के अÆ तिवªरोधŌ को सामािजक और
पाåरवाåरक ÿसंगŌ म¤ Ó य³ त िकया है । कहानी के कथानक का चुनाव भी भीÕ म साहनी जी
बड़े ही धीरज से करते है । साधारण लोगŌ के जीवन कì छोटी-छोटी बात¤ वह खुद अपनी
आँखŌ से देखता है । उन लोगŌ कì सामािजक और Ó यि³ त गत ÿितिøयाओं का अÅ ययन
करता है । पाýŌ को कÐ पना से नहé जीवन से खोजता है, और उसे चुनता भी है । िलखते
समय भी वह यथाथª म¤ º यादा और अपनी कÐ प ना से कम काम लेता है ।
‘चीफ कì दावत’ शीषªक कहानी म¤ िम. शामनाथ नाम का एक Ó य ि³ त है, िजसके घर शाम के
व³ त चीफ कì पाटê है । शामनाथ कì माँ बहòत ही बूढ़ी है, बेडौल शरीर कì िनर±र देशी
औरत है । यīिप िम. शामनाथ को पढ़ाने-िलखाने और ओहदेदार बनाने म¤ वे अपना सवªÖ व
Æ यौछावर कर देती है । शामनाथ और उसकì पÂ नी इस बात से परेशान ह§ िक चीफ कì
दावत के समय माँ को कहाँ िकया जाए, तािक उनकì नजर से माँ को बचाया जा सके, और
भĥगी न हो पाए । परÆ तु िजस बात से शामनाथ सबसे º यादा परेशान था, अÆ त म¤ वहé
होता है । चीफ को उस पाटê म¤ यिद कोई पसÆ द आता है तो वह है माँ के हाथŌ Ĭारा बनाई
गई फुलकारी । बेटे के Ó यवहार से तंग माँ हåरĬार जाने का िनÔ चय कर लेती है, परÆ तु इस
पाटê कì सफलता का सबसे बड़ा कारण माँ को पाकर, शामनाथ अपने आिलंगन म¤ भर
लेता है । लेिकन जब माँ को यह पता चलता है िक एक नई फुलकारी बनाकर चीफ को भ¤ट
कर देने से मेरे बेटे कì पदोÆ नित हो जाएगी, तो हåरĬार जाने का िवचार Âयाग कर वे एक
बार पुन: बेटे के भिवÕ य के िलए अपनी रोशनी कì अंितम िकरण भी उस पर समिपªत कर
देती है।
मÅ यवगêय जीवन का यथाथª जो आजादी के बाद देश म¤ िवकिसत हòआ, उसम¤ इस जीवन
कì आÆ तåरक एवं बाĻ िÖ थित, िवसंगितयŌ, िविचýताओं और अमानवीयता से लथपथ हो
गई है । ‘चीफ कì दावत ’ कहानी म¤ यह Ó य³ त िकया गया है – “और माँ, आज जÐ दी सो
नहé जाना । तुÌ हारी खराªटŌ कì आवाज दूर तक जाती है । माँ लिº ज त सी आवाज म¤ बोली,
³ या कłँ बेटा, मेरे बस कì बात नहé है । जब से बीमारी म¤ उठी हóँ, नाक से साँस नहé ले
सकती ।” ‘चीफ कì दावत ’ कहानी का मूल Ö वर इसी िवडंबना को उĤािटत करना है िक
‘शामनाथ’ जैसे चåरý हमारे मÅ यवगª कì देन है । इस कहानी म¤ शामनाथ आिथªक मोह म¤
इतना तÐ लीन हो चुका है िक वह अब åरÔ तŌ कì िमठास और माँ के वाÂ सÐ य ÿेम को भी
भूल चुका है । वाÂ सÐ य कì ÿितमूितª माँ शामनाथ के िलए एक वÖ तु बन जाती है, इसिलए
बूढ़ी माँ को और वÖतुओं कì भाँित सजाने-सवाँरने म¤ पित-पÂ नी िचिÆतत िदखाई देते ह§ ।
शामनाथ िजस कंपनी म¤ काम कर रहा है वह अमेåरकन कंपनी है । जो भारत से मुनाफा munotes.in

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चीफ कì दावत - भीÕ म साहनी
213 कमाकार िवदेश ले जा रही है । भीÕ म साहनी कì इस कहानी म¤ शामनाथ ऐसी ही कंपनी म¤
ÿमोशन के िलए अपने बॉस को दावत देकर उसे खुश करने कì जुगत म¤ है । “आिखर पाँच
बजते-रजते तैयारी मुकÌ मल होने लगी, कुिसªयाँ, मेज, ितपाइयाँ, नैपकìन, फूल सब बरामदे
म¤ पहòँच गये । िűंक का इÆ तजाम बैठक म¤ कर िदया गया । अब घर का फालतू सामान
आÐ माåरयŌ को पीछे और पलँगो के नीचे िछपाया जाने लगा । तभी शामनाथ के सामने
सहसा एक अड़चन खड़ी हो गयी , माँ का ³ या होगा?”
शामनाथ तर³ कì एवं पैसे के पीछे इतना अÆ धा हो चुका है िक माँ का Ó यवहार ही उसे
पसÆ द नहé आता है । बेटे कì ही बेłखी को देखकर माँ हåरĬार जाने का िनणªय लेती है ।
चीफ के िलए फुलकारी बना देने को वह माँ को मजबूर करता है – “माँ तुम मुझे धोखा देके
यूँ चली जाओगी । मेरा बनता काम िबगाड़ोगी? जानती नहé, साहब खुश होगा तो मुझे
तर³ कì िमलेगी ।” इस कहानी के माÅ यम से ही लेखक भीÕ म साहनी ने यह Ö पÕ ट िकया है
िक, हमारे समाज म¤ एक ऐसा भी वगª है, जो åरÔ तŌ को जीता है, इÆ ह¤ िनभाने के िलए हर
संघषª का सामना करता है । जैसे बेटे कì तर³ कì कì खाितर नजर¤ कमजोर होते हòए भी माँ
फुलकारी बनाने का संकÐ प लेती है । वहé दूसरा वगª हमारे समाज का पढ़ा-िलखा मÅ यवगª
है, जो तर³ कì और पैसे कì मजबूती के िलए åरÔ तŌ को भी बाजार म¤ लाकर खड़ा कर देता
है ।
इस कहानी म¤ िम. शामनाथ कì ए क समÖ या जहाँ हल होती ह§, वहé दूसरी समÖ या कì
गठरी खुल भी जाती है । वह सÌ पÆ नता ÿदशªन के Ĭारा चीफ पर अपनी धाक जमाना
चाहता है । इसिलए वह माँ को सफेद सलवार, कमीज ओर चूिड़याँ पहनने को मजबूर करता
है । माँ, बेटे का संवाद, पुý कì बुिĦ मÂ ता और माँ कì िÖ थित कì मािमªकता को यह कहानी
अ¸ छी तरह से दशाªती है – “चूिड़याँ कहाँ से लाऊँ बेटा, तुम तो जानते हो, सब जेवर
तुÌ हारी पढ़ाई म¤ िबक गए ।” यह वा³ य शामनाथ को तीर कì भाँित चुभा । वह उÂ तर म¤
कहता है – “िजतना िदया था, उससे दुगना ले लेना ।” भौितकता कì इस आँधी के थपेड़Ō से
माँ łपी परंपरा ज´मी हो रही है । यहाँ संवेदनशीलता के साथ-साथ लेखक भीÕ म साहनी
जी ने परÌपरा के महÂ व को भी Ö थािपत िकया है । शामनाथ कì इस चीफ कì दावत म¤
उपहास का माÅ य म माँ ही बनती है ।
१५.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण भीÕ म साहनी कì कहानी ‘चीफ कì दावत ’ म¤ शामनाथ मु´ य पाý के łप म¤ उभरता है ।
शामनाथ एक ऐसा पाý है, जो सामािजक तथा आिथªक िबडंबनाओं से जूझ रहा है । वह
Ö वयं को आिथªक ŀिÕ ट से सुÓ यविÖ थ त करने के िलए कुछ भी कर सकता है । ‘चीफ को
दावत’ पर बुलाना उसे उÂ कृÕ ट कोिट का भोजन िखलाकर ÿमोशन के िलए अवसर पाने कì
इ¸ छा उसके चåरý के लालचीपन को दशाªती है । अपनी इस लौिकक उÆ नित कì इ¸ छा कì
पूितª हेतु वह हर बंधन को तोड़ सकता है । घर के फालतू सामान Ö ýी माँ को कैसे ŀिÕ ट से
ओझल िकया जाए , इसकì हर संभावना शामनाथ के मन म¤ कŏधती रहती है । सहेली के घर
भेजा जाए, दरवाजा बÆ द करके उस पर ताला लगा िदया जाए, या िफर कुछ और िकया
जाए, यह ÿÔ न उसे कई तरह से िवचिलत करते रहते ह§ । अÆ तत: वह िनणªय लेता है िक “माँ
हम लोग पहले बैठक म¤ बैठ§गे । उतनी देर तुम यहाँ बरामदे म¤ बैठना । िफर जब हम यहाँ आ munotes.in

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आधुिनक गī
214 जाएँ, तो तुम गुसलखाने के राÖ ते बैठक म¤ चली जाना ।” इस सÆ दभª म¤ यह Ö पÕ ट होता है
िक शामनाथ तर³ कì हेतु संवेदनहीन होता है, और अपनी बूढ़ी माँ को फालतू वÖ तु के łप
म¤ आंकता है । शामनाथ पूणªत: Ö वाथê Ó यि³ त है । Ö वाथª साधने के िलए वह िकसी भी
ÿकार का घृिणत कायª कर सकता है । जब माँ चीफ के आकषªण का कारण बनती है, तो वह
उसे गाना गाने और फुलकारी बनाकर देने के िलए िववश करता है । शामनाथ के कहे शÊ द
– “तुम चली जाओगी तो फुलकारी कौन बनाएगा, साहब से तुÌ हारे सामने ही फुलकारी देने
का इकरार िकया है ।” शामनाथ अथª एवं तर³ कì कì लोलुपता म¤ इतना संि±È त हो जाता है
िक वह हर सही और गलत कì िदशा ही भूल जाता है ।
इस कहानी म¤ शामनाथ एक िदखावटी, बनावटी पाý के łप म¤ उभरता है । वह बाहरी
तामझाम म¤ िवÔ वास रखता है, इसिलए चीफ को दावत पर आमंिýत करने पर वह उसे
अपने बड़े होने का अहसास कराना चाहता है । वह चीफ को िदखाना चाहता है िक वह
िकसी से भी कमजोर नहé है । वह Ö वयं को सË य और पूँजीपित दशाªने हेतु घर का
वातावरण ही बदल देता है – “आिख र पाँच बजते-बजते तैयारी मुकÌ मल होने लगी ।
कुिसªयाँ, मेज, ितपाइयाँ, नैपकìन, फूल, सब बरामदे म¤ पहòँच गये । िűंक का इÆ तजाम बैठक
म¤ िकया गया । अब घर का फालतू सामान आलमाåरयŌ के पीछे और पलंगो के नीचे िछपाया
जाने लगा । तभी शामनाथ के सामने माँ को कहé रखने कì समÖ या खड़ी हो गई । शामनाथ
का चåरý ऐसा है िक वह परÌ परा के ÿित आदरभाव न रखकर उसके ÿित नकार का भाव
रखता है । कहने का ताÂ पयª यह है िक परÌ परा उसके िलए एक फालतू वÖ तु कì तरह है,
िजसका समय के उपरांत उपयोग खÂ म हो जाता है, इसिलए ममता से भरी माँ भी फालतू
लगने लगती है ।”
शामनाथ मौका पररÖ त है, जहाँ भी उसे फायदा िमलता है, वह िकसी भी तरह का समझौता
उस िÖ थ ित से नहé करता है । अपनी इसी ÿवृिÂ त और ÿकृित के कारण वह मूÐ यहीन
बनता जाता है । आधुिनक समय कì दौड़ म¤ वह इतना संलµ न हो जाता है िक वह अपने
दाियßवŌ के ÿित िबÐकुल भी सचेत नहé रह जाता| इसिलए मेहमानŌ के सामने भी वह
अपनी माँ को हाÖ याÖ पद बनाता है । माँ कì घुटन को समझने के बजाय वह मौके कì
िफ राक म¤ रहता है िक, ऐसी कौन सी िÖ थ ित आए िक चीफ साहब उस पर ÿसÆ न हो जाएँ
और उसे ÿमोशन िमल जाए । माँ कì हाÖ याÖ पद िÖ थ ित का मािमªक िचý इस तरह से
दशाªया गया है – “माँ हाथ िमलाओ” पर हाथ कैसे िमलाती दाएँ हाथ म¤ तो माला थी ।
घबराहट म¤ माँ ने बायाँ हाथ ही साहब के दाएँ हाथ म¤ रख िदया । शामनाथ िदल ही िदल म¤
जल उठे । देसी अफसरŌ कì िľयाँ िख लिख लाकर हँस पड़é ।
इससे यह तो Ö पÕ ट हो जाता है िक शामनाथ मध् यवगêय समाज का ÿितिनिध Â व करने
वाला पाý है । वह Ö वाथê, मौकापरÖ त एवं िदखावटी तरह का है । वह आधुिनकता के
पåरवेश म¤ अंधा Ó यि³ त है, इसिलए जीवन मूÐ यŌ के ÿित कोई भी दाियÂ व नहé समझता है ।
१५.१.४ 'चीफ कì दावत' कहानी का उĥेÔ य भीÕ म साहनी जी कì कहानी ‘चीफ कì दावत ’ मÅ यवगêय समाज के पåरवेश और
मानिसकता को वाÖ त िवकता के साथ अिभÓ य³ त करती कहानी है । इस कहानी का ÿमुख munotes.in

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चीफ कì दावत - भीÕ म साहनी
215 उĥेÔ य यह है िक इसम¤ लेखक साहनी जी ने बुजुगŎ कì पीड़ा को अिभ Ó य³ त िकया है ।
आधुिनक दौर के मÅ यवगª का Ó यि³ त आगे बढ़ने कì चाह म¤ दौड़ता ही जा रहा है, तथा आगे
बढ़ने कì होड़ म¤ पाåरवाåरक एवं सामािजक संबंधो कì बिल चढ़ाता जा रहा है । अथª कì
लालसा म¤ Ó यि³ त संवेदनहीन बनता जा रहा है । मशीन और िबजनेस के इस युग म¤ Ó यि³ त
भी मशीन बन चुका है । नगरŌ-महानगरŌ के लोग पाåरवाåरक मूÐ यŌ कì िख Ð ली उड़ाते नजर
आते ह§ । ऐसे म¤ ÿाय: वे यह भूल जाते ह§ िक जीवन िकतना खोखला होता जा रहा है ।
बुजुगŎ एवं परÌ परा के ÿित असंवेदनशीलता से उनके जीवन म¤ ममता, दया, कłणा,
सहानुभूित जैसे मूलभूत तÂ व लुÈ त होते जा रहे ह§ ।
इस कहानी का ÿमुख उĥेÔ य शामनाथ जैसे पाý के माÅ यम से इस समाज के सभी
Ó यि³ त यŌ के िवचारŌ को दशाªया गया है । मÅ यवगêय जीवन का एक िविचý अंतिवªरोध है िक
वह परÌ पराओं का Â याग नहé कर पाता है, और आधुिनक बनने कì तरफ ललचाई नजरŌ से
िनहारता रहता है । बड़े-बूढ़ो के ÿित असंवेदनशीलता, ममता, दया, कłणा के लुÈ त हो
जाने से जीवन का वाÖ तिवक अथª ही अथªहीनं होता जा रहा है । अथª को जीवन का शगल
मानने वाले शामनाथ कì उस मानिसकता का अथª Ó या´ याियत िकया गया है, िजसम¤ पुý
माँ को पहले तो अथªहीन समझकर अपने खाँचे म¤ Ö थािपत करना चाहता है, परÆ तु बॉस जब
उसे माँ का अथª समझाता है तो शामनाथ माँ का महÂ व अपने Öवाथª कì कसौटी पर ही
समझ पाता है । शामनाथ के िलए माँ ÿमोशन कì सीढ़ी माý ही है । िन: सÆ देह वह अभी
तक माँ के अथª को नहé समझ पाया था ।
१५.१.५ सारांश सारांश łप म¤ यह कहा जा सकता है िक इस कहानी का केÆ þिबंदु शामनाथ कì समÖ या
तर³ कì कì नहé, बिÐ क तर³ कì के आगे आने वाली समÖ या माँ है । उसकì यह िचÆ ता है
िक ÿदशªन के अयोµ य माँ को ÿदशªन कì वÖतु कैसे बनाया जाए ? शामनाथ का Ó य वहार इस
बात का īोतक है िक वह संÖ कारŌ कì भी ÿदशªनी लगाने म¤ िवÔ वास रखता है । शामनाथ
के िलए माँ कठपुतली बन चुकì थी । िजसे वह अपने िहसाब से बैठाना, सॅवारना और
बुलवाना चाहता था । शामनाथ का अपनी माँ के ÿित Ó यवहार Ćदय को þिवत करने वाला
है। िजसे माँ ने अपने जेवर बेचकर शामनाथ को इतनी दूर पहòँचाया, आज उसी बेटे के िलए
वही माँ महÂ वहीन बन चुकì है । वतªमान समय म¤ संबंधŌ को Ö वाथª के तराजू पर तौला जाता
है, चाहे वह िफर माँ ही ³ यŌ न हो ? मूलत: भीÕ म साहनी कì इस कहानी के माÅ यम से यह
Ö पÕ ट होता है िक उÆ हŌने अपने युग कì पåरिÖ थ ितयŌ को समझा है । कहानीकार का
ŀिÕ ट कोण भी मानवतावादी है । वह भारतीय समाज के मÅ यवगêय समाज के अÆ तिवªरोधŌ
को Ó य³ त करता है । लेखक भीÕ म साहनी जी ने इसम¤ मÅ यवगêय समाज के बदलते जीवन
मूÐ यŌ को अिभ Ó य³ त िकया है, और साथ ही आिथª क मोह म¤ िलÈ त होने के कारण अपने
दाियÂ वŌ को भूलते जा रहे मÅ यवगêय समाज के ÿित गहरी िचÆ ता जताई है ।

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आधुिनक गī
216 १५.१.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न i. भीÕ म साहनी एक िचÆ त नपरक कहानीकार है, िसĦ कìिजए ।
ii. ‘चीफ कì दावत ’ कहानी के कथानक (कथावÖ तु) को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. ‘चीफ कì दावत ’ कहानी कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
iv. भीÕ म साहनी कì चिचªत कहानी ‘चीफ कì दावत ’ के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
१५.१.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न i. भीÕ म साहनी कì संवेदनशीलता को समझाइए ।
ii. कहानी के पाý ‘शामनाथ’ पर िटÈपणी कìिजए ।
iii. ‘चीफ कì दावत ’ कहानी का सारांश िल िखए ।
iv. ‘चीफ कì दावत ’ कहानी म¤ ‘माँ’ का चåरý-िचýण कìिजए ।
१५.१.८ वÖतुिनķ ÿij i. चीफ कì दावत िकसकì कहानी है?
ii. चीफ कì दावत म¤ शामनाथ कì माँ कहाँ जाना चाहती है?
iii. िम. शामनाथ अपनी माँ से ³या बनाने के िलए कहते ह§?
iv. चीफ के आने पर शामनाथ माँ को कहाँ छुपाना चाहते ह§?
v. चीफ कì दावत कहानी का केÆþीय पाý कौन है?
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217 १६
लड़िकयाँ – ममता कािलया
इकाई कì łपरेखा
१६.० इकाई का उĥेÔय
१६.१ ÿÖतावना
१६.२ कथानक
१६.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१६.४ 'लड़िकयाँ' कहानी का उĥेÔय
१६.५ सारांश
१६.६ दीघō°रीय ÿij
१६.७ लघु°रीय ÿij
१६.८ वÖतुिनķ ÿij
१६.० इकाई का उĥेÔय  इस कहानी के उĥेÔय के माÅयम से ‘लड़िकयाँ’ कहानी के कथानक को समझा जा
सकता है ।
 इस कहानी का उĥेÔय पाýŌ के चåरý का िचýण करना है, िजससे पाýŌ को समझने म¤
सुिवधा होगी ।
 इस इकाई म¤ कहानी के उĥेÔय और उनके सारांश को भी आसानी से समझा जा
सकता है ।
१६.१ ÿÖतावना िहÆदी कहानी के धरातल पर ममता कािलया कì उपिÖथित सातव¤ दशक से िनरंतर बनी हòई
है । लगभग आधी सदी के कालखÁड म¤ ममता कािलया ने दो सौ से भी अिधक कहािनयŌ
का सृजन िकया है । ÖवातंÞयो°र भारत के िशि±त, संघषªरत और पåरवतªनशील समाज का
सजीव िचý ममता कािलया कì कुछ ÿमुख कहािनयŌ म¤ अपने िविवध आयामŌ म¤ िदखाई
देता है । िहÆदी कथा सािहÂय म¤ ममता कािलया कì तरह िलखने वाले रचनाकार िवरले ही
ह§, जो गहरी आÂमीयता, आवेग और उÆमेष के साथ जीवन के धड़कते ±णŌ तक समाज
और पाठकŌ तक पहòँचा सक¤ । ममता कािलया के लेखन म¤ अनुमित कì ऊÕमा, अनुभव कì
ऊजाª के साथ रची-वसी है । ‘लड़िकयाँ’, ‘उसका यौवन’, ‘लड़के’, ‘आपकì छोटी लड़कì ’
आिद ऐसी कहािनयाँ है, जो जीवन को एक नया मोड़ और नयी िदशा ÿदान करती ह§ ।
ममता कािलया कì कहािनयŌ म¤ िजस संवेदनशील, संतुिलत, समझदार िकÆतु चुलबुले,
मानवीय सहानुभूित से आलोिकत ÓयिĉÂव कì झलक िमलती है, वह उनके ŀिĶकोण कì munotes.in

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आधुिनक गī
218 मौिलकता से और भी अिधक दमक ÿाĮ करती है । ममता कािलया जी कì कहािनयŌ म¤
कलावादी, कसीदाकारी न होकर जीवनवादी यथाथª का सौÆदयª बोध भी है ।
ममता कािलया ने अपने समय और समाज को पुनपªåरभािषत करने का सृजनाÂमक जोिखम
लगभग उÆहोने अपनी ÿÂयेक कहािनयŌ म¤ उठाया है । कभी वे समूचे पåरवेश म¤ नया
सरोकार ढूँढती ह§, तो कभी वे वतªमान पåरवेश म¤ नयी नारी कì अिÖमता और संघषª को
वाणी ÿदान करती ह§ ।
१६.२ कथानक अपनी ‘लड़िकयाँ’ शीषªक कहानी म¤ कहानीकार ममता कािलया ने यह संदेश देने का ÿयास
िकया है िक लड़िकयŌ के दमन के िखलाफ हम¤ Öवयं आवाज उठानी होगी, तभी वे अपने
अिÖतÂव को बचा भी सक¤गी । इस कहानी म¤ ममता कािलया ने लड़िकयŌ के ÿित समाज म¤
दिकयानूसी नजåरए पर बड़ा ही तीखा कटा± िकया है । आशा और सुधा को रात को देर से
घर पहòँचने और दुघªटना से बाल-बाल बचने पर भी घरवालŌ के असफल आøोश और
लांछन को झेलना पड़ता है । घर म¤ ही नहé कॉलेज म¤ भी लोगŌ के कटा±Ō को सहने के बाद
वे Öवयं साहस िदखाकर िÖथित को सामाÆय बनाने का ÿयास करती ह§ ।
‘लड़िकयाँ’ कहानी म¤ एक बात ÖपĶ łप से दशाªयी गई है िक सुधा और आशा दोनŌ
सहेिलयाँ ÿायः एक साथ ही र हती ह§ । ये दोनŌ एक िदन घूमने जाती ह§, लेिकन वहé वे
अपना राÖता भी भूल जाती ह§, और जंगल म¤ फँस जाती ह§ । यहाँ पर ये दोनŌ सहेिलयाँ एक
साधु को असामाÆय अवÖथा म¤ देखकर डर के मारे भागती हòई कँटीले राÖतŌ से आते हòए
अपने घर पहòँचती ह§, और उन कँटीले राÖतŌ से आते हòए उनके कपड़े फट जाते ह§ । जब
उनके पåरवार वाले उÆह¤ ऐसे ही हालत म¤ देखते ह§, तो घर के सभी लोग संशंिकत होकर
उÆह¤ देखने लगते ह§ । आशा कì माँ उÆह¤ बुरा भला भी कहती ह§, ‘हाय-हाय यह तुझे ³या हो
गया? सुधा ने हाँफते हòए कहा, ‘कुछ नहé चाची जी हम ºयादा दूर िनकल गई थé, बातŌ-
बातŌ म¤ ।’ उन लोगŌ को पता चलेगा तो ³या सोच¤गे । रख दी न इºजत धूल म¤ िमलाकर ।
सुधा डर, आतंक और आँखŌ से काँपने लगी, चाचा जी आपकì कोई इºजत धूल म¤ नहé
िमली है । हमारे साथ कुछ भी नही हòआ है । हम िकसी को मुँह िदखाने के कािबल नहé रहे ।’
आशा – पर अÌमा कुछ हòआ भी तो हो, माँ कहती है – अब और ³या होने को बाकì है ।
हमारा मुँह काला करा िदया, अपना मुँह काला करा िलया, जÆमी कì औलाद ।
लड़िकयŌ के बारे म¤ तो लोगŌ कì धारणा पहले ही ठीक नहé होती और िफर बाद म¤ उसकì
जरा सी गलती पर लोग उस पर इÐजाम लगाने को तैयार हो जाते ह§ । हमारे समाज और
पåरवार म¤ लड़िकयŌ को एक अलग ही ŀिĶ से देखा जाता है । इस बात का यथाथª िचýण भी
इस कहानी म¤ िकया गया है । ľी हमेशा घर कì चारदीवारी के भीतर व बाहर हमेशा िहंसा
का िशकार होती हòई अपना जीवन Óयतीत करती ह§ ।

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लड़िकयाँ – ममता कािलया
219 १६.३ पाý एवं चåरý-िचýण कहानी लेिखका ममता कािलया कì कहानी ‘लड़िकयाँ’ दो ÿमुख पाýŌ आशा और सुधा के
इदª-िगदª घूमती है । दोनŌ लड़िकया बड़ी ही तेज-तराªर और पढ़ने िलखने म¤ भी बड़ी होनहार
ह§ । वे दोनŌ जब भी साथ होती ह§ तो दुिनया जहान कì बात¤ करती रहती ह§ । उनका मन न
तो ले³चर म¤ लगता है और न ही लाइāेरी म¤ । वे दोनŌ तब पढ़ाई शुł करती है जब उन
दोनŌ को पूरा घर नéद कì आगोश म¤ होता है । सोने से पूवª सुधा, आशा के घर कì िखड़कì
कì ओर झाँक कर देखती है, यिद आशा के घर के कमरे कì ब°ी बÆद होती तो वह भी ब°ी
गुल करके सो जाती है । अÆयथा वह तब तक पढ़ती ही रहती जब तक आशा के कमरे कì
ब°ी बंद न हो जाती । सुधा कì बात करे तो, एक बार आशा कì ब°ी बÆद होने का इंतजार
के च³कर म¤ सारी रात पढ़ती रही थी ।
सुबह सुधा उनéदी आँखो से कॉलेज आई, और आशा पर बरस पड़ी, “तेरी वजह से मुझे
सारी रात पढ़ना पड़ा , तूने ब°ी बंद ³यŌ नहé कì ?”
‘अरे पढ़ते-पढ़ते मेरी आँख लग गई थी । म§ तो सबेरे उठी हóँ, ब°ी बÆद करने का होश िकसे
था ?’
इसी तरह के उनके चåरý का िचýण लेिखका ने अÆय जगहŌ पर भी बड़ी ही बारीकì और
कुशलता पूवªक िकया है । वे बताती ह§ िक शाम को दोनŌ घूमने िनकलतé । टहलती-टहलती
खूब दूर िनकल जातé । उन दोनŌ कì आपस कì दोÖती इतनी घनी िक िकसी तीसरे का
साथ वे िबÐकुल भी बदाªÔत नहé कर पाती थé । अपने सगे भाई-बहनŌ का भी । वे साथ-साथ
गÈप¤ करतé, सािहÂय पढ़तé, किवता िलखतé, űाम¤ म¤ भाग लेतé, तथा िडबेट म¤ बोलते-
बोलते वे अिभÆन होती गयी थी । कॉलेज के ÿोफेसरŌ कì सराहना व छाý-छाýाओं कì
ईÕयाª ने उÆह¤ एक दल का संगठन दे डाला । जब उनके ÿोफेसर कहते – ‘इन दो के आगे
लड़के भी भागे ।’ इस बात पर आशा और सुधा गवª से फूल जातé । परो± Łप से
आÂमिनभªरता का, लड़िकयŌ का यह पहला पाठ है ।
लेिखका ममता कािलया ने इन दोनŌ पाýŌ के चåरý-िचýण के माÅयम से दोनŌ चåरýŌ कì
सराहना खुले िदल से कì है । उनका िचýण करती हòई वे िलखती ह§ िक- ‘िफलहाल आशा -
सुधा ने यह तय िकया था िक एम.ए के बाद न तो उÆह¤ शादी करना है, न घर बैठना है । वे
आई.ए.एस कì तैयारी कर¤गी और साथ ही साथ åरसचª । उनकì महÂवाकां±ाएँ सपनŌ का
łप िलए जा रही थé । उनके बेहतरीन ±ण वही होते जब वे इन सपनŌ म¤ मशगूल होतé । इन
सपनŌ का अÆवेषण Öवयं उÆहŌने िकया था, अपनी िश±ा के बूते । अतः इन पर उÆह¤ बहòत
नाज था । इन सपनŌ म¤ घर-पåरवार का कोई योगदान नहé था । घर -पåरवार, घर-पåरवार कì
तरह ही नागवार था, वहाँ सुर±ा के िसवा और कोई सुकून नहé था ।’
अचानक लेिखका कì इस कहानी के ÿमुख पाýŌ के बीच भूचाल सा आ जाता है, जब वे
टहलते-टहलते जंगल म¤ राÖता भटकने के दौरान पहòँच जाती ह§ । इसका भी बड़ा ही यथाथª
िचýण लेिखका ममता कािलया ने ‘लड़िकयाँ’ शीषªक कहानी म¤ िकया है । ‘चलते-चलते वे
एक बार िफर झाड़ -झंखाड़ म¤ पहòँच गयी ।’ अÆततः वह जगह आयी, िजसे झािड़यŌ कì वाड़
से घेरा हòआ था । झािड़याँ काफì घनी थé और काँटेदार । लड़िकयŌ ने वाड़े कì दूसरी िदशा munotes.in

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आधुिनक गī
220 ढूँढनी चाही पर सफल नहé हòई । तभी भयानक मुखाकृित वाला एक साधु न जाने कहाँ से
ÿगट हòआ । उसके एक हाथ म¤ िचलम, दूसरे म¤ तमंचा था । िनतांत िनवªľ तांिýक सा लगने
वाला वह साधु चरम िचड़िचड़ाहट से उÆह¤ घूर रहा था, मानो ŀिĶ ही ŀिĶ म¤ उÆह¤ भÖम कर
डालेगा । कुछ कड़कती हòई आवाज म¤ वह गरजा, कौन हो तुम यहाँ ³यŌ आई?’
आगे ममता कािलया उन दोनŌ को केिÆþत करती हòई कहती ह§ िक ‘आतंक से लड़िकयŌ कì
जुबान जड़ हो गई । øोध से कांपता हòआ साधु उनकì ओर बढ़ा । लड़िकयŌ ने उसकì
लाल-लाल आँखे देखé, और देखी उसकì िनवªÖतता । उसके बदन पर लंगोट तक भी नहé
था । आतंक से चीख कर वे भागé । लंबा-तगड़ा, दाढ़ी वाला साधु दाँत िकटिकटाते हòए
उनके पीछे भागा, ठहर जाओ दुĶाओं, म§ अभी तुÌहे दंिडत करता हóँ । गोपाल Öवामी, ये
कÆयाएँ अÆदर कैसे आई?’ िफर पीछे भागता छोड़ वह जोरŌ से िचÐलाया- ‘ÿाणŌ कì िचÆता
है तो भाग जाओ दुĶाओं, खबरदार कभी इस ±ेý म¤ िफर कभी ÿवेश िकया ।’ आगे चलकर
इन दोनŌ लड़िकयŌ , सुधा और आशा को अपने-अपने घर म¤ भी माँ-बाप Ĭारा काफì कुछ
सुनना पड़ता है । उन दोनŌ कì िÖथित कुछ ऐसी थी िक “िगरती-पड़ती आशा-सुधा भागé,
भागती गई । उÆह¤ पूरा होश भी नहé उÆहŌने कैसे बंद फाटक, फलांदा, काँटो वाली झािड़याँ
पार कé, हड्िडयŌ कì ढेåरयŌ से टकराती, लड़खड़ाती कैसे मु´य सड़क तक पहòँची । दोनŌ
को एक दूसरे के कलेजे कì धड़धड़ाहट तक साफ सुनाई दे रही थी । पसीने से सरावोर
चेहरा, बाह¤ खरŌचो से भरी थé । आशा का दुपĘा काँटŌ म¤ उलझकर तार-तार हो गया था ।
सुधा के गले म¤ दुपĘा ही न था, बदहवासी म¤ कहé िखसक गया था । कूदने-फाँदने म¤
सलवारŌ कì सीवन भी जगह -बे जगह से उघड़ गई । झाड़-झंखाड़ कì ही तरह ही िबखरे
बाल, कुचले हाल, लगभग भागते-भागते उÆहŌने घर कì राह पकड़ी । कटरा बाजार इस वĉ
भी रौशन था । फटेहाल िबखरे बाल और पसीने से नहाए चेहरे िलए जब आशा और सुधा
दोनŌ आशा के ही घर म¤ दािखल हòई तो, उÆह¤ देखकर सबसे पहले आशा कì माँ ने ही चीख
मारी ‘हाय-हाय, यह तुझे ³या हो गया? माँ कì चीख के साथ-साथ सारा पåरवार इकęा हो
गया । ऊपरी मंिजल के िकराएदार भी छ°े से झाँकने के बाद इधर-उधर दुबक कर
िदलचÖपी लेने लगे ।’
सुधा ने हाँफते हòए कहा, नहé चाची जी हम ºयादा दूर िनकल गई थé, बातŌ-बातŌ म¤ अपने
घर-पåरवार कì गंध पाकर घबराई हòई आशा कì łलाई फूट पड़ी ।
यह ³या हालत बनाई है? दुपĘे कì दशा देखो, इतनी बड़ी हो गई, कपड़े सँभालने तक का
शऊर नहé । ‘अÌमा उस आदमी को देखते ही हम इस कदर ड़र कर भागé िक अपनी सुध-
बुध ही भूल गई.....’
कौन आदमी? इस बार आशा के िपता गरजे, बता कौन आदमी? बता कहाँ से आ रही है?
िफर Öवयं ही लिºजत होकर िपता परे हट गए । लेिकन जÐदी ही वे øोध म¤ वापस आए
और ÿचंड़ Öवर म¤ चीखे, मानो दूसरे कमरे म¤ अभी-अभी उÆहŌने अपने गले म¤ बैटरी का नया
सेल डाला हो । बता कहा गई थी? तुझे िकतनी बार मना िकया है, जान-अनजान जगहŌ म¤
न जाया कर । उन लोगŌ को पता चलेगा तो ³या सोच¤गे । रख दी ना इºजत धूल म¤
िमलाकर । इस तरह का सीधा -सपाट िचýण ममता कािलया ने इस कहानी के पाýŌ के
माÅयम से िकया है । आगे भी वे कुछ इस तरह से वणªन करती ह§ िक – munotes.in

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लड़िकयाँ – ममता कािलया
221 ‘सुधा डर, आतंक और आøोश से काँपने लगी । चाचा जी, आपकì इºजत कोई धूल म¤
नहé िमली है, हमारे साथ कुछ नहé हòआ ।’
‘तुम चुप रहो, तुÌही ने इसे चौपट िकया है । आशा कì माँ गरजी, हम िकसी को मुँह िदखाने
के कािबल नहé रहे ।’
पर अÌमा कुछ हòआ भी तो हो, तुम ³यŌ हाय तौबा मचा रही हो, आशा ने Łआँसी होकर
कहा ।
इस कहानी के पाýŌ के संवाद के माÅयम से ममता कािलया ने यह भी िदखाया है िक िकस
तरह से आशा और सुधा के घर वाले दोनŌ को िमलने-जुलने पर भी ÿितबंध लगा देते ह§ ।
इस कì भी एक बानगी लेिखका ने यहाँ ÿÖतुत कì है - ‘रात भर आशा और सुधा अपमान से
छटपटाती रहé । दोनŌ को स´त ताकìद कर दी गई िक एक -दूसरे से बात कì तो अ¸छा न
होगा ।’ इस ÿकार ममता कािलया जी ने ‘लड़िकयाँ’ कहानी कì ÿमुख पाýŌ का चåरý-िचýण
बड़ी ही यथाथªता के साथ मनोयोग पूवªक िकया है ।
१६.४ 'लड़िकयाँ' कहानी का उĥेÔय लेिखका ममता कािलया जी कì इस कहानी का ÿमुख उĥेÔय समाज म¤ लड़िकयŌ को लेकर
हमारे मन-मिÖतÕक म¤ िजस तरह के भाव उजागर होते ह§, उसी को िदखाना रहा है ।
लड़िकयŌ को आज भी समाज म¤ वह Öथान ÿाĮ नहé है, जो हमारे पåरवार और समाज म¤
लड़कŌ को िदया जाता है । लेिखका ने इन लड़िकयŌ को िचिýत करने के उĥेÔय से यह
बताया है िक वे कुछ भी कर सकती ह§, बशत¥ उÆह¤ अपने पåरवार म¤ माँ-बाप, भाई सभी का
खुला समथªन िमलना चािहए । इसी उĥेÔय को लेकर लेिखका ने इस कहानी का
यथाथªपरक सृजन िकया है । जीवन कì तमाम िवसंगितयŌ और उतार-चढ़ाव को ही इसम¤
िचिýत िकया गया ह§ ।
१६.५ सारांश सारांशतः यह कहा जा सकता है िक लड़िकयŌ के बारे म¤ तो लोगŌ कì धारणा पहले ही ठीक
नहé होती, और िफर बाद म¤ उसकì छोटी सी गलती पर भी लोग उस पर आरोप लगाने के
िलए तैयार बैठे ह§ । समाज म¤ पåरवार म¤ लड़कì को एक अलग ही ŀिĶ से देखा जाता है, इस
बात का वणªन भी इसी कहानी म¤ िकया गया है । औरत हमेशा से ही घर कì चारदीवारी के
भीतर व बाहर िहंसा का िशकार होती हòई अपना जीवन Óयतीत करती है । इसके िवłĦ
यिद वह अपनी आवाज उठाने कì कोिशश करती है तो, समाज और कुछ पåरवार के
सदÖयŌ Ĭारा भी उसे कुलटा, चåरýहीन आिद सं²ाएँ देकर घर-पåरवार और समाज से
बिहÕकृत कर िदया जाता है । एक औरत शारीåरक िहंसा के साथ-साथ मानिसक िहंसा और
यौन शोषण का भी िशकार होती रही है । समाज Ĭारा उÆह¤ कई तरह कì ÿताड़नाएँ एवं
उÂपीड़न िदया जाता है । समाज ही है जो औरतŌ कì िÖथितयŌ को, उनके हक और
अिधकारŌ को Öथान भी िदला सकता है ।
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आधुिनक गī
222 १६.६ दीघō°रीय ÿij i ‘लड़िकयाँ’ कहानी कì ÿमुख कथावÖतु को अिभÓयĉ कìिजए ।
ii. ‘लड़िकयाँ’ कहानी कì मूल संवेदना को ÖपĶ कìिजए ।
iii. ‘लड़िकयाँ’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
iv. ‘लड़िकयाँ’ शीषªक कहानी कì ÿÖतावना देते हòए कहानी के कथानक को ÖपĶ कìिजए ।
१६.७ लघु°रीय ÿij i. ‘लड़िकयाँ’ कहानी के मूल उĥेÔय को ÖपĶ कìिजए ।
ii. ‘लड़िकयाँ’ कहानी कì नाियका सुधा का चåरý िनłिपत कìिजए ।
iii. ‘लड़िकयाँ’ कहानी का सारांश अपने शÊदŌ म¤ िलिखए ।
१६.८ वÖतुिनķ ÿij i. लडिकयाँ िकसकì कहानी है?
ii. सुधा िकस कहानी कì नाियका है?
iii. आशा िकस कहानी कì ÿमुख पाý है?
iv. शीट नÌबर छः िकसकì रचना है?
v. दौड़ कì लेिखका कौन ह§?
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223 १६.१
काला बाप, गोरा बाप – महीप िसंह
इकाई कì łपरेखा
१६.१.० इकाई का उĥेÔय
१६.१.१ ÿÖतावना
१६.१.२ कथानक
१६.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१६.१.४ 'काला बाप, गोरा बाप' कहानी का उĥेÔय
१६.१.५ सारांश
१६.१.६ दीघō°रीय ÿij
१६.१.७ लघु°रीय ÿij
१६.१.८ वÖतुिनķ ÿij
१६.१.० इकाई का उĥेÔय  इस कहानी के माÅयम से ‘काला बाप, गोरा बाप ’ कहानी के कथानक को समझा जा
सकता है ।
 इस कहानी का उĥेÔय पाýŌ के चåरý का िचýण करना है, िजससे पाýŌ को समझने म¤
सुिवधा होगी ।
 इस इकाई के माÅयम से कहानी के उĥेÔय और उनके सारांश को भी आसानी से
समझा जा सकता है ।
१६.१.१ ÿÖतावना सुÿिसĦ सािहÂयकार, कथाकार महीप िसंह कì लेखनी से िनःसृत कहािनयŌ ने मानवीय
संवेदना, सामािजक सरोकार, जातीय संघषª, पारÖपåरक संबंधŌ का ताना-बाना ÿÖतुत
िकया है । पठनीयता से भरपूर महीप िसंह कì कहािनयŌ म¤ वगª-संघषª और सामािजक
कुरीितयŌ का खुलकर और जमकर िवरोध िकया है । महीप िसंह का जÆम उ°र ÿदेश के
उÆनाव िजले के एक गाँव म¤ हòआ था । उनके िपता कुछ वषª पहले ही सराय आलमगीर
िजला गुजरात पिIJमी पािकÖतान से आकर उÆनाव म¤ बस गए थे । खालसा कॉलेज मुंबई,
तथा िदÐली म¤ अÅयापन सिहत कंसाई िवĵिवīालय हीराकेत जापान म¤ िविजिटंग ÿोफेसर
के łप म¤ महीप िसंह जी अपनी सेवाएँ दे चुके ह§ । िश±ा मंýालय, िहÆदी संÖथान, िहÆदी व
पंजाबी अकादमी भाषा िवभाग आिद कई संÖथाओं से सÌमािनत िकया गया है ।
munotes.in

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आधुिनक गī
224 १६.१.२ कथानक ‘काला बाप गोरा बाप ’ शीषªक कहानी एक ऐसी युवती कì कहानी है, िजसे उसका पित
उसकì तीन बेिटयŌ के साथ िजÆ दगी के दोराहे पर उÆ ह¤ बेसहारा छोड़ जाता है । जमीला
नाम कì युवती इस तरह कì असहाय िÖ थितयŌ म¤ भी तिनक िवचिलत नहé होती है, बिÐ क
वह एक सË य सुÆ दर युवक का हाथ थाम लेती है, और वह न केवल अपना जीवन सँवार
लेती है, बिÐक व ह अपनी दोनŌ खूबसूरत बेिटयŌ को भी सही मुकाम तक पहòँचाने म¤
कामयाबी हािसल कर लेती है । इतना ही नहé िकसी िदन जब उसके पहले पित से उसकì
मुलाकात होती है, तो वह जमीला को देखकर अचंिभत रह जाता है । उसे लगता है िक अब
उस पåरवार म¤ उसका कोई भी वजूद नहé रह गया है । इस कहानी के कथानक के माÅ यम
से लेखक महीप िसंह जी ने कहानी कì नाियका जमीला का बड़ा ही मािमªक िचýण भी
ÿÖ तुत िकया है । इस कहानी का आरÌ भ एक स् ýी पाý जमीला के खत पढ़ने से शुł होता
है । इसम¤ कहानी के पाýŌ का Ńदय पåरवतªन होने के साथ-साथ उनके मुिÖ ल म नामŌ का
पåरवतªन करके िहÆ दू नामकरण ‘शीरी’ से बदल कर कािमनी बोस िकया जाता है । इसम¤ यह
भी बताया गया है िक अब तो नाम के साथ-साथ जाित भी लगाना अिनवायª हो गया है ।
अÂ यािधक लोकिÿयता हािसल करने के िलए आज हमारे समाज म¤ कोई भी Ó यि³ त िकसी
भी िÖथित म¤ पहòँचकर कुछ भी करने के िलए तैयार हो जाता है ।
१६.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण ‘काला बाप गोरा बाप ’ शीषªक चिचªत कहानी कì रचना लोकिÿ य कहानीकार महीप िसंह
Ĭारा कì गई है, िजसम¤ रचनाकार ने अपनी उÂ कृÕ ट लेखनी का अĩुत पåरचय अपने पाýŌ
के चåरý-िचýण के माÅ यम से िकया है । इस कहानी के ÿमुख पाýŌ म¤ कहानी कì नाियका
जमीला और उसकì दोनŌ बेिटयाँ शीरी और शाहनाज ही कहानी के केÆ þ म¤ ह§ । इनके
अलावा दो पुłष पाýŌ का बड़ा ही यथाथª िचýण इस कहानी म¤ Ó य³ त िकया गया है । दो
पुłष पाýŌ म¤ एक िसरताज और दूसरा अनवर है, िजसने िसरताज Ĭारा छोड़ दी गई
जमीला और उनकì बेिटयŌ कì परवåरश करता है । कहानी के पाýŌ ने कहानी म¤ जान भरने
कì पूरी कोिशश कì है । जमीला पý Ó यवहार के माÅ यम से अपने पहले सौहर िसरताज के
बारे म¤ खुलासा करती हòई कहती है िक – “समझ म¤ नहé आता तुÌ ह¤ ³ या कर खत िलखूँ,
तुमने मेरी जमीला िलखा है । एक जमाना था जब तुम मेरी ज मीला िलखते थे, और म§ जवाब
म¤ मेरे ‘िसरताज’ िलखा करती थी । पर आज मेरी ‘जमीला’ िलखने का हक न तुÌ हारे पास
है, न मेरे ‘िसरताज’ िलखने का हक मेरे पास । खैर! िबना िकसी संबोधन के यह खत तुÌ ह¤
िलख रही हóँ ।”
इस कहानी म¤ जमीला का चåरý खुĥाåरयŌ से भरा हòआ और जीवंत हो उठा है । अपने पहले
पित से संबंध खÂ म हो जाने के पÔ चात जमीला अपनी दोनŌ बेिटयŌ के साथ िकतना संघषª
करती है, उसका यथाथª łप भी इस कहानी म¤ िचिýत िकया गया है । अपनी जीवन
िÖ थ ितयŌ का िचýण करती हòई वह अपने पहले शौहर से िकतना कुछ बता डालती है,
उसकì संवेदना को इस कहानी के माÅ यम से बखूबी जाना-समझा जा सकता है । वह अपनी
बातŌ को आगे बताती हòई कहती है िक – “और रही मेरी बात । मुझे देखकर तो तुम पहचान
भी नहé पाओगे । तुÌ हारी वह जमीला जो पराए मदª कì छाया भी नहé देखती थी, बुक¥ के munotes.in

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काला बाप, गोरा बाप – महीप िसंह
225 बगैर घर से बाहर पाँव भी नहé रखती थी । और उसके मुँह म¤ जुबान है, यह तो तुम भी नहé
जानते थे – आज ऐसा बनाव िसंगार करती है िक उसकì ढलती हòई उमर भी धोका खा
जाती है । वह शीरी के साथ Ö टूिडयो जाती है । परदा उसके िलए गुजरे जमाने कì बात बन
चुकì है । तुम शायद जानते नहé, िफÐ म लाइन म¤ बड़े-बड़े घाघ ह§, पर तुÌ हारी बेजुबान
‘जमीला’ अब बड़े-बड़े घाघ ÿोड्यूसरो के भी कान काट लेती है ।”
आगे अनवर के वारे म¤ भी जमीला अपने पहले पित युनूस से बताती हòई कहती है िक “और
आिखर म¤ तुÌ ह¤ अनवर कì भी बात बताती हóँ । मासूम जमीला को जब तुम दुिनया कì ठोकरे
खाने के िलए छोड़ गए, तब यही अनवर उसका सहारा बना । वह एक गोरा खूबसूरत
नौजवान था, पर िजÆ दगी से ना-उÌ मीद । कई साल से वह बÌ बई कì िफÐ म लाइन म¤ अपनी
िकÖ मत आजमा रहा था । लेिकन कामयाबी उससे कोसो दूर रही, उन िदनŌ वह िकसी काम
से िदÐ ली आया, मेरी उससे मुलाकात हो गई । मेरा हाल जानकर उसने मुझसे शादी कì
पेशकश कì । उस व³ त मुझे ताº जुब हòआ था िक ऐसा खूबसूरत नौजवान भला मुझ जैसी
बेसहारा दो बेिटयŌ वाली औरत से िनकाह करने को ³ यŌ तैयार है? मगर आिहÖ ता -
आिहÖ ता म§ सब समझ गई । िहÆ दुÖ तान म¤ लोग लड़िकयŌ को मुसीबत समझते ह§ ।
खासतौर से वे-बाप कì लड़िकयाँ तो फूटी आँख भी नहé सुहाती ।”
महीप िसंह ने इस कहानी को पýाÂ मक शैली म¤ िलखा है, और इसी माÅ य म से उÆ हŌने अपने
पाýŌ का यथाथª िचýण भी िकया है । कहानीकार महीप िसंह ने जमीला के पूवª पित युनूस
का भी चåरý-िचýण पूरे मनोयोग से िकया है । वे िलखते ह§ – “नहा धोकर युनूस बैठक म¤ आ
बैठा । उसकì िनगाह ने एक-एक कर के कमरे कì हर चीज को नापा सोफा-सेट, रेशमी परदे,
रेिडयो, फूलदान, और तरह-तरह कì चीज¤, िजÆ ह¤ उसने बड़े लोगŌ कì दुिनया का अंग
मानकर कभी अपनी कÐ प ना म¤ घुसने नहé िदया था । िफर उठकर व ह दीवारŌ पर लगे िचýŌ
को देखने लगा । एक बड़ी खूबसूरत सी लगने वाली लड़कì कì कई तÖ वीर¤ वहाँ लगी हòई
थé। एक तÖ वीर म¤ उसके बाल काली घटा के łप म¤ िबखरे थे । उस लड़कì का चेहरा
सचमुच चाँद सा िदखाई दे रहा था ।”
“पहचानते हो ये िकस कì तÖ वीर¤ ह§? जमीला ने पीछे से मेज पर चाय रखते हòए पूछा ।
युनूस ने उसकì ओर देखा और चुप रहा । शायद उसने चुÈ पी से यह जताया िक ये तÖ वीर¤
िकसकì ह§, यह जानकर उसे अिध क आÔ चयª नहé होगा ।”
इस तरह से कहानीकार महीप िसंह ने अपनी चिचªत कहानी ‘काला बाप गोरा बाप ’ के
माÅ यम से पाýŌ के चåरý का यथाथª परक िचýण करते हòए अपनी कहानी कला का बड़ा ही
शानदार पåरचय िदया है । इस ŀिÕ ट से उनकì यह कहानी भी एक उÂ कृÕ ट कहानी मानी जा
सकती है ।
१६.१.४ 'काला बाप, गोरा बाप' कहानी का उĥेÔय कहानीकार महीप िसं ह कì इस कहानी का ÿमुख उĥेÔ य उसके कथानक के माÅ यम से
कहानी के सारांश को ÿÖ तुत करते हòए पाýŌ का चåरý-िचýण करना है । इस कहानी का एक
महÂ वपूणª उĥेÔ य हमारे समाज म¤ िवशेषकर मुिÖ ल म समाज कì िÖ ý यŌ को िनकाह करके,
दूसरी औरत से संबंध बनाकर पहली को तलाक देने कì जो परÌ परा है, उसी का पदाªफाश munotes.in

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आधुिनक गī
226 यहाँ महीप िसंह ने ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी म¤ िकया है । इसका उĥेÔ य यह भी है िक
हमारे समाज म¤ जो औरतŌ के साथ जाित-पाित से संबंिध त भेदभाव िकया जाता है, वह
िबÐ कुल नहé होना चािहए ।
१६.१.५ सारांश सारांशत: यह कहा जा सकता है िक ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी म¤ लेखक महीप िसंह ने
समाज म¤ फैलने वाली बुराइयŌ, रीितयŌ-कुरीितयŌ पर ÿकाश डाला है । उÆ हŌने इस कहानी
कì मूल संवेदना कì नÊ ज को टटोलते हòए उसके पाýŌ का चुनाव बड़ी ही समझदारी और
कुशलतापूवªक िकया है । इस कहानी के सभी पाý अपनी-अपनी भूिमका को िन भाने म¤ और
उसका िनवाªह करने म¤ बड़े ही िसĦहÖ त रहे ह§ ।
१६.१.६ दीघō°रीय ÿij i. ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी के कथानक को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी कì समी±ा कìिजए ।
iii. ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
१६.१.७ लघु°रीय ÿij i. ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी कì पाý ‘जमीला’ का चåरý-िचýण कìिजए ।
ii. ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी का ÿमुख उĥेÔ य Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. ‘काला बाप गोरा बाप ’ कहानी का सारांश िलिखए ।
१६.१.८ वÖतुिनķ ÿij i. ‘काला बाप गोरा बाप’ कहानी के रचनाकार कौन ह§?
ii. जमीला के पहले पित का ³या नाम था?
iii. जमीला के दूसरा पित कौन था?
iv. जमीला िकस कहानी कì ÿमुख नाियका है?
v. जमीला कì बेिटयŌ का ³या नाम है?
***** munotes.in

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227 १७
अपराध – उदय ÿकाश
इकाई का łपरेखा
१७.० इकाई का उĥेÔ य
१७.१ ÿÖ तावना
१७.२ कथानक
१७.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१७.४ 'अपराध' कहानी का उĥेÔ य
१७.५ सारांश
१७.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न
१७.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न
१७.८ वÖतुिनķ ÿij
१७.० इकाई का उĥेÔ य  इस इकाई का उĥेÔ य उदय ÿकाश कì कहानी ‘अपराध’ कì ÿÖ तावना को समझने म¤
सहायक होगा ।
 इस कहानी म¤ ‘अपराध’ कहानी के कथानक को समझा जा सकता है ।
 इस इकाई का उĥेÔ य ‘अपराध’ कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण को भी समझा जा
सकता है ।
१७.१ ÿÖ तावना सािहÂ य के इितहास म¤ कहानी का Ö थान महÂ वपूणª माना जाता है । आलोचना और
िवचारधारा कì दुिनया के लोगŌ ने इसे जीवन को समझने कì कला और िवधा के łप म¤
िलया है । इसिलए जब भी सािहÂ य के इितहास पर िवचार होता है, उसम¤ कहानी और
उसके इितहास एवं उसम¤ अिभÓ य³ त मानव जीवन के यथाथª को बुिनयादी तौर पर अलग
से समझने कì कोिशश होती रही ह§, चाहे वह ÿेमचंद युगीन कहानी का मसला हो, अथवा
नयी कहानी या समकालीन कहानी का सािहÂ य भी अÆ य िवधाओं के समानांतर कहानी म¤
मनुÕ य के मन एवं समाज म¤ उसकì उपिÖ थित का कलाÂ मक आ´ यान देखने को िमलता है।
यह आ´ यान इतना आकषªक होता है िक ब¸ चे से लेकर बूढ़े तक उसम¤ िदलचÖ पी लेते
िदखाई देते ह§ । इसीिलए सािहिÂ य क िवधाओं के िकसी िवशेष कालखÁ ड का वÖ तुपरक
अÅ ययन हम¤ यह अवसर ÿदान करता है िक रचनाओं अथवा कहानी म¤ Ó य³ त जीवन और
समाज के साथ उसके यथाथª संबंध को हम समकालीन सÆ दभŎ म¤ िकस łप म¤ देखे और
िवचार कर¤ । उनम¤ मनुÕ य माý के िलए िनिमªत Ö थान कì खोज कì जानी चािहए । कथा
सािहÂ य के इितहास म¤ समकालीन कहानी का अÅ ययन भी हम¤ इसी ÿकार का अवसर
ÿदान करता है । munotes.in

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आधुिनक गī
228 वाÖ तव म¤ िकसी रचना या िवचारधारा कì दुिनया म¤ कथा-कहानी जो शाÖ ý है, उसका गहरा
संबंध कहानी कहने, कथा के चुनने और कहने के समय से है । समकालीन िहÆ दी क हानी
पर िवचार करते हòए यह बात और भी साफ हो जाती है िक इस दौर के कहानीकारŌ ने
समकालीन समय, समाज, पåरवतªन एवं िवकास कì ÿिøयाओं को Å यान म¤ रखते हòए
कहानी कì दुिनया रची है । इसीिलए इस दौर कì कहािनयŌ कì जो दुिनया है, वहाँ कहानी
के रचने अथवा सजªनाÂमकता कì ये ÿिøयाएँ इतनी जिटल और िविवधतापूणª ह§ िक उन
पर िवचार एवं उनका आकलन करना अÂ यंत किठन कायª है । समकालीन िहÆ दी कहानी
िसफª वÖ तु और कला कì ŀिÕ ट से ही महÂ वपूणª नहé ह§, बिÐ क यहाँ इितहास, सामािजक
िवमशª, वैचाåरकताओं कì टकराहट, राजनीितक संघषª, अनुभव आिद कì ऐसी अनेक
िनिमªितयाँ िदखलाई पड़ती ह§ , िजसे माý पारÌ पåरक ढंग से ही नहé समझा जा सकता है ।
उसे समझने के िलए, इितहास, समाजशाÖ ý, राजनीित िव²ान , अथªशाÖ ý, धमªशाÖ ý,
मनोिव²ान आिद कì समझ के साथ-साथ मानव Ö व भाव के सजªनाÂ मक प± कì समझ भी
होनी जłरी है । कारण यह है िक िहÆ दी कहानी कì दुिनया म¤ इतनी तरह कì िविवधताएँ ह§
िक पाठकŌ का जब उनसे सामना होता है तब वे यह तय न हé कर पाते ह§ िक वे कोई कहानी
पढ़ रहे ह§ अथवा सामािजक संघषŎ म¤ Ö ýी और दिलत जीवन का इितहास देख रहे ह§ ।
१७.२ कथानक ‘अपराध’ शीषªक कहानी लेखक/कथाकार उदय ÿकाश कì सवª®ेÕ ठ कहािनयŌ म¤ से एक
महÂ वपूणª कहानी है । िजसके अÆ तगªत उदय ÿकाश जी ने बचपन कì एक अिवÖ मरणीय
घटना को ही आधार बनाया है । इस कहानी का पाý भी Ö वयं लेखक उदय ÿकाश जी ही
ह§। उदय ÿकाश जी खेल-खेल म¤ अपनी गलती से िसर पर लगी चोट का दोषारोपण अपने
बड़े भाई पर लगाकर उसे अपने िपता Ĭारा बड़ी ही बेरहमी से िपटवाते ह§ । उस समय
लेखक को इसके िलए तिनक भी मलाल नहé होता परÆ तु बाद म¤ इसके िलए उसे बड़ी
आÂ मµ लािन भी होती है । इस घटना के िलए वह आजÆ म इस अपराध बोध से úÖ त रहते ह§।
उदय ÿकाश कì ‘अपराध’ कहानी के कथानक कì ŀिÕ ट से अगर देखा जाए तो इस कहानी
के दो मु´ य पाýŌ म¤ से एक बड़ा भाई है, िजसके बचपन म¤ ही एक पैर म¤ पोिलयो हो जाने से
बड़ा भाई अपािहज था । अपािहज होने के बावजूद खेल-कूद म¤ बड़ा भाई अÂ यािधक
तÂ परता िदखाता था । वह एक अच् छा तैराक भी था, हाथ के पंजो कì लड़ाई म¤ भी वह बड़ा
ही िनपूण था । खडÂ वल जैसे खेलŌ म¤ वह ÿाय: डूब सा जाता था । खेल म¤ िवजयी होते
समय अित ÿसÆ न होना बड़े भाई के Ö वभाव म¤ शािमल था ।
छोटे भाई कì ओर बड़े भाई के िदल म¤ बड़ी हमददê और वÂ सलता भी भरी रहती थी । बड़े
भाई के चåरý पर भाईचारे का गुण ÿकट करते हòए उदय ÿकाश जी िलखते ह§, ‘छोटे भाई के
ÿित उसका łख एक संर±क कì िजÌ मेदारी जैसा था ।’ बड़े भाई के चåरý पर दया,
उदारता, सहायक Ö वभाव वाले गुणŌ को हम देख सकते ह§ । वह बड़ा ±माशील भी था, भाई
चारे म¤ उसकì ईमानदारी कािबले ताåरफ ह§ । शÖ ýुता का मनोभाव उसके चåरý म¤ दूर-दूर
तक भी नजर नहé आता है । वे देवता कì तरह सुÆ दर थे । उनकì सुÆ दरता िसफª शरीर म¤ ही
नहé मन म¤ भी िवīमान थी । Â याग, ±मा, संयम, मौन-सहन आिद िविशÕ ट गुणŌ से बड़े भाई munotes.in

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अपराध – उदय ÿकाश
229 का चåरý अलंकृत है । दोÖ ताना सहानुभूित आिद चाåरिýक िविशÕ टताओं से भी बड़ा भाई
हम¤ अिधक आकृÕ ट करता है ।
कहानी के कथानक कì ŀिÕ ट से यह कहा जा सकता है िक बड़े भाई चåरý दूसरŌ म¤ ईÕ याª
और आÂ महीनता जगाने तक उदाÂ त और उÂ कृÕ ट था । छोटे भाई ने बड़े भाई के सामने
अपनी अवÖ था के बारे म¤ खुद कहा है – ‘म¤ ईÕ याª, आÂ महीनता कì आँच म¤ झुलस रहा था ।’
इस ŀिÕ ट से उदय ÿकाश कì यह कहानी अपनी बुनावट म¤ िहÆ दी कहािनयŌ म¤ अब वह
³ लॅिसक का दजाª पा चुकì है । उनकì कहानी के माÅ यम से समय और समाज के साथ-
साथ पाåरवाåरक åरÔ तŌ को भी बखूबी देखा जा सकता है । इन संबंधŌ कì बड़ी ही गहन
िववेचना उदय ÿकाश के ‘अपराध’ कहानी मे भी देखा जा सकता है ।
१७.३ पाý एवं चåरý-िचýण कहानीकार/कथाकार उदय ÿकाश के लेखन म¤ एक ब¸ चे कì उपिÖ थित इतनी गहरी है िक
उनकì कहानी उस ब¸ चे कì मानिसकता से ही रची गई है । जो बेहद संवेदनशील ह§ । दो
भाइयŌ को लेकर िहÆ दी म¤ बहòत सी कहािनयाँ िलखी गई है, पर ÿेमचÆ द कì बड़े भाई साहब
तो अĩुत है ही लेिकन उदय ÿकाश जी कì चिचªत कहानी अपराध मेरे ´ याल से दो भाइयŌ
के आपसी ÿेम कì सबसे मािमªक कहािनयŌ म¤ से एक है । ऐसी कोई दूसरी कहानी मुझे
समझ म¤ नहé आई । पोिलयो úÖ त अपािहज और ६ साल बड़े भाई के साथ ĂातृÂ व भाव कì
यह संवेदनशील कहानी छोटे भाई के माÅ यम से बहòत बड़ा बयान ÿÖ तुत करती है । चåरý-
िचýण कì ŀिÕ ट से देखा जाए तो इसम¤ बड़े भाई का चåरý ऐसा है िक वह हमेशा अपने छोटे
भाई के साथ रहता है, और उससे बड़ा Ö नेह भी रखता है । लेिकन एक िदन खेल-खेल म¤
बड़े ने छोटे कì थोड़ी सी उपे±ा कर दी, िजसका पåरणाम य ह हòआ िक छोटे ने गलती से
खुद के िसर म¤ चोट लगा ली और घर पर माँ को बताया िक बड़े भाईने मारा है । इस पर
िपता बड़े भाई कì बड़ी बुरी तरह से िपटाई कर देते ह§, और बड़ा भाई िपट ते हòए भी अपे±ा
करता है िक छोटा भाई सच बोल दे ।
लेिकन ऐसा कभी नहé होता है । बरसŌ पुरानी बचपन कì इस घटना के अपराध बोध से
úÖ त छोटा भाई सजा भुगतना चाहता है, माफì भी माँगना चाहता है, लेिकन बड़े भाई को तो
यह याद ही नहé है िक कभी ऐसा कुछ हòआ भी था । इस कहानी कì अंितम पंि³ त याँ बड़ी ही
मािमªक जान पड़ती ह§ – “तो इस अपराध के िलए मुझै ±मा कौन कर सकता है? ³ या यह
ऐसा अपराध नहé है िजसके बारे म¤ िलया गया जो िनणªय था, वह गलत और अÆ या यपूणª
था, लेिकन िजसे अब बदला नहé जा सकता? और ³ या यह ऐसा अपराध नहé है, िजसे
कभी भी ±मा नहé िकया जा सकता ? ³ यŌकì इससे मुि³ त अब असंभव हो चुकì है । उदय
ÿकाश कì संवेदनाए इस कहानी म¤ िजतनी पाåरवाåरक और िनजी आÂ मीय ढंग से Ó य³ त
हòई ह§, वह उनके समूचे रचनाकार Ó यि³ तÂ व का कदािचत मूलसूý है । िवÖ थापन एक ऐसी
िबकट स¸ चाई है िक वह उदय ÿकाश कì कहानी म¤ िनरंतर िवīमान रहती है । हम संबंधŌ
म¤ भी िवÖ थािपत होते ह§, ³ यŌिक बहòत से कारणŌ से हमे नए संबंध बनाने होते ह§ और समय
के साथ पुराने संबंध बदलते जाते ह§ । लेिकन पाåरवाåरक संबंध हमे अिÆ त म समय तक याद
रहते ह§ । और उनका िवÖ थापन हमे लगातार कचोटता रहता है । इसीिलए ‘अपराध’ कहानी
कì अंितम पंि³ त याँ हम¤ यह बताती ह§ िक संबंधŌ से मुि³ त असंभव से चुकì है । munotes.in

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आधुिनक गī
230 १७.४ 'अपराध' कहानी का उĥेÔ य उĥेÔ य कì ŀिÕ ट से उदय ÿकाश कì कहािनयŌ के बारे म¤ यह कहा जा सकता है िक सन
१९८० के बाद के उपिनवेशवादी दौर कì पृÕ ठभूिम पर रहकर देश कì आिथªक, सामािजक,
सांÖ कृितक िÖ थित को कई मापनŌ से Ó य³ त करने कì कोिशश ह§ । उदय ÿकाश कì
कहािनयŌ का ÿमुख उĥेÔ य संबंधŌ के ममª और उसके महÂ व को उजागर करना भी रहा है ।
उनकì कहािनयŌ म¤ माँ-िपता, भाई-बहन, दादा-दादी आिद अÆ य åरÔ तŌ का बड़ा ही गहरा
अनुराग िमलता है । इस उĥेÔ य से उदय ÿकाश कì अपराध कहानी भी संबंधो कì गहरी
और संवेदनशील मािमªकता को उजागर करने वाली एक संवेदनशील कहानी है । उदय
ÿकाश कì संवेदनाएँ ‘अपराध’ कहानी कì ŀिÕ ट से िजतना पाåरवाåरक और िनजी आÂ मीय
ढंग से अिभ Ó य³ त हòई है, वह उनके लेखन कौशल कì पारदिशª ता को भी Ö पÕ ट करता है ।
१७.५ सारांश सारांशत: यह कहा जा सकता है िक ‘अपराध’ उदय ÿकाश कì सवª®ेÕ ठ कहािनयŌ म¤ से
एक है, िजसके अÆ तगªत उदय ÿकाश के बचपन कì एक अिवÖ मरणीय घटना को ही आधार
बनाया गया है । पोिलयो úÖ त अपािहज और छह साल बड़े भाई और लेखक के भाई के
अनोखे åरÔ ते को इस उÂ कृÕ ट कहानी के माÅ यम से देखा जा सकता है । बड़ा भाई हमेशा ही
छोटे के साथ रहकर अपना Ö नेह िनरÆ तर उस पर बरसाता रहता है । पूरे गाँव के सभी
लडके लेखक उदय ÿकाश से छह साल बड़े थे । इसिलए सभी लड़के खेलते व³ त लेखक
हमेशा ही अकेला पड़ता था । लेखक के बड़े भाई बचपन से ही अपािहज थे, उसके एक पैर
म¤ पोिलयो हो गया था, िफ र भी वे देखने म¤ बड़े सुÆ दर थे । वे आस-पास के कई गाँवŌ म¤
सबसे अ¸ छे, तैराक थे । और उनको हाथ के पंजो कì लड़ाई म¤ कोई भी नहé हरा सकता
था। इसके िवपरीत लेखक दुबला-पतला कमजोर था । कमजोर होने के साथ-साथ वह
िचड़िचड़ा भी था । भाई के बहòत सारे दोÖ त होने के कारण लेखक को भाई मे ईÕ याª होती
थी।
बड़े भाई के िलए लेखक एक उÂ तरदाियÂ व कì तरह था, ³ यŌिक वह सबसे छोटा था, और
वे लेखक से अगाध Ö नेह भी करते थे । खेलते वĉ लेखक को कोई भी अपनी पाली म¤ हार
कì डर से नही लेते थे । लेिकन भाई लेखक को अपनी पाली म¤ शािमल करते थे और
लेखक कì वजह से ही वे अ³ सर हारते भी थे, िफर भी भाई उनसे कभी कुछ नहé कहते थे ।
जहाँ तक लेखक उदय ÿकाश को याद है, बड़े भाई ने कभी भी लेखक को नहé मारा । िकÆ तु
लेखक िजस घटना के बारे म¤ बता रहा है, िजसका अपराध बोध आज भी लेखक उदय
ÿकाश के मन म¤ अंगारे कì तरह सुलगने लगती है । घटना इस ÿकार है – उस िदन भी
लड़के खड़Â वल खेल रहे थे । इस खेल म¤ कोई पाली नहé होती थी, अकेले ही खेलना
पड़ता है । भाई भी उसी खेल म¤ डूब गए थे । वे अपने खेल म¤ इतना अिध क डूब गए थे िक वे
लेखक को भूल चुके थे । भाई कì तरफ से अपनी उपे±ा पाकर लेखक को बहòत गुÖ सा आ
गया । गुÖ से म¤ आकर लेखक एक खडÂ वल को पत् थर पर पटक रहा था , तभी अचानक वह
खडÂ वल नीचे लेखक के माथे पर आकर लगा । लेखक को गहरी चोट लगी, और खून बहने
लगा । उÆ हŌने घर जाकर माँ को बताया िक उÆ ह¤ भाई ने खडÂ वल से मारा, इस पर िपता जी
ने बड़े भाई को बहòत मारा । बड़े भाई कłणा और कातरता से लेखक को देख रहे थे । जैसे munotes.in

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अपराध – उदय ÿकाश
231 वक लेखक अथाªत अपने छोटे भाई से याचना कर रहे थे िक वे सच बोल द¤ । लेिकन सच
जानकर िपता जी उÐ टा लेखक को मार¤गे यही सोच कर वे चुप रह गए । यह घटना तो वषŎ
पुरानी है, लेिकन आज भी लेखक इस घटना को भूल नहé सके ह§ । वे अपने उस ‘अपराध’
के िलए आज भी ±मा माँगना तो चाहते ह§, लेिकन अब तो माँ-िपता जी दोनŌ नहé रहे । भाई
से जब इस घटना के बारे म¤ बात िकया तो उÆ ह¤ वह इतनी पुरानी घटना तो याद ही नहé है ।
लेखक पूछ रहा है िक अब इस अपराध के िलए आिख र उÆ ह¤ ±मा कौन करेगा? लेखक को
अब इस अपराध बो ध से मुि³ त तो िबÐ कुल भी असंभव हो चुकì है ।
१७.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न i. ‘अपराध’ कहानी के कथानक को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘अपराध’ कहानी कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. लेखक को ऐसा ³ यŌ लगता है िक उनके अपराध बोध से मुि³ त अब असंभव है, िसĦ
कìिजए ।
iv. ‘अपराध’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण कìिजए ।
१७.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न i. ‘अपराध’ कहानी के उĥेÔ य को Ö पÕ ट कìिजए ।
ii. ‘अपराध’ कहानी का सारांश िलिखए ।
iii. बड़े भाई का चåरý िनłिपत कìिजए ।
१७.८ वÖतुिनķ ÿij i. 'अपराध' कहानी म¤ बड़े भाई को ³या होने से अपािहज हòए थे?
ii. 'अपराध' कहानी के लेखक का नाम िलिखए?
iii. अपराध' कहानी म¤ कहानीकार ने कब कì घटना को आधार बनाकर ÿÖतुत िकया है?
iv. 'अपराध' कहानी म¤ बड़े भाई लेखक से िकतने साल बड़े थे?

***** munotes.in

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232 १७.१
ला±ाúह – िचýा मुģल
इकाई कì Łपरेखा
१७.१.० इकाई का उĥेÔय
१७.१.१ ÿÖ तावना
१७.१.२ कथानक
१७.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण
१७.१.४ 'ला±ागृह' कहानी का उĥेÔ य
१७.१.५ सारांश
१७.१.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न
१७.१.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न
१७.१.८ वÖतुिनķ ÿij
१७.१.० इकाई का उĥेÔ य  इस इकाई का उĥेÔ य िचýा मुģल कì कहानी ‘ला±ागृह’ कì ÿÖ तावना को समझने म¤
सहायक होगा ।
 इस कहानी के उĥेÔ य के माÅ यम से ‘ला±ागृह’ कहानी के कथानक को भी समझा जा
सकता है ।
 इस इकाई का उĥेÔ य ‘ला±ागृह’ कहानी के पाýŌ के चåरý-िचýण को समझने म¤
उपयोगी है ।
 इस इकाई का उĥेÔ य ‘ला±ागृह’ कहानी के उĥेÔ य को भी समझा जा सकता है ।
१७.१.१ ÿÖ तावना िचýा मुģल अपने लेखन से जहाँ एक ओर िनरंतर रीतती जा रही, मानवीय संवेदना को
रेखािकत करते हòए लगभग िनÌ न वगª के पाýŌ को, उनकì िजÆ दगी के समूचे दायरे म¤ घुसकर
अÅ ययन करती नजर आती ह§, वहé दूसरी ओर नए जमाने कì रÉतार म¤ फँसी िजÆ दगी कì
मजबूåरयŌ के तहत अपसंÖ कृित कì गतª म¤ धँसते जा रहे आधुिनक मानवीय मूÐ यŌ कì
Ö तÊ ध कर देने वाली तÖ वीर भी गहरी संवेदना से उकेरती ह§ । िचýा मुģल कì कहािनयाँ एक
बार िफर कहानी म¤ भरे-पूरे पåरवार को केÆ þ म¤ रखकर चलने पर जोर देती िदखाई देती ह§ ।
िचýा मुģल ने मÅ यवगêय पाåरवाåरक जीवन के बाहर जाकर भी कहािनयाँ अवÔ य िलखी ह§,
खास तौर से ‘ला±ागृह’ म¤ संकिलत मामला आगे बढ़ेगा और िýशंकु जैसी कहािनयाँ िजनमे
उÆ हŌने झोपडपĘी से आए िकशोरो कì मानिसकता, ĬÆ ĬŌ और बदलते तेवरो को पयाªÈ त
आÔ वÖ तकारी ढंग से िचिýत िकया है, लेिकन िचýा मुģल कì कहािनयŌ का वाÖ तिवक और
केÆ þीय सरोकार िनिÔ च त ही नहé है । िचýा मुģल कì कहािनयाँ नौकरीपेशा, कामकाजी munotes.in

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ला±ाúह – िचýा मुģल
233 मिहलाओं के साथ अपनी गृहÖ थी म¤ रची-बसी मिहलाओं के पåरवेशगत तनावŌ को बहòत
बारीकì और संवेदनशीलता के साथ िचिýत करती ह§ । अपनी इन कहािनयŌ म¤ जो पĦित वे
अपनाती ह§, वह पाýŌ और ÿसंगो को िवचारŌ म¤ पåरवितªत कर देने वाली पĦित से िभ Æ न
पåरवेश के सारे जłरी ÊयोरŌ और ÿसंगŌ को रचना कì झीनी बुनावट म¤ उतार देने वाली
पĦित है । यही कारण है िक लेिख का िचýा मुģल कì कहािनयाँ अपने मांसल अिÖ त Â व का
एक ऐसा वृÂ त हमारे चारŌ ओर बनाए रखती ह§, िजसका आवेग और ताप हम¤ हर समय
पकड़ के अंदर और छूता हòआ सा महसूस होता है । िचýा मुģल कì कहािनयŌ के तेवर अÆ य
कथाकारŌ से थोड़ा सा िभ Æ न होते हòए भी नयी कहानी कì धारा को लगातार फुट करती ह§ ।
१७.१.२ कथानक िचýा मुģल कì कहानी ‘ला±ागृह’ एक कामकाजी युवती पर केिÆ þ त कहानी है । पाåरवाåरक
दाियÂ वो को िनभाते-िनभाते उसकì िववाह योµ य उă भी िनकल जाती है । अचानक उसे
अपने दÉतर के एक सहकमê से िववाह का ÿÖ ताव िमलता है । अपने िववाह को लेकर वह
काफì उÂ सािहत होती है िक अचानक उसे पता चलता है िक उसका तथा किथ त सहकमê
नौकरी के कारण ही उससे िववाह करना चाहता है । सच जानकर वह आøोश से भर उठती
है, और वह न केवल नौकरी से Â यागपý देती है, वरन् वह िववाह से भी इनकार कर देती है ।
‘ला±ागृह’ नामक चिचªत कहानी म¤ सुÆ नी नामक कामकाजी मिहला कì िववशताओं का बड़ा
ही यथाथª िचýण िकया गया है, खूबसूरत न हो पाने के कारण सुÆ नी का िववाह नहé हो पाता
है, उसके िलए जब भी कभी लड़का देखा जाता है तो वह इसकì छोटी बहनŌ के िलए ऑफर
करता है । इस ÿकार दोनŌ छोटी बहनŌ का िववाह हो जाता है, और सुÆ नी अिववािहत ही
रह जाती है । सुÆ नी के दÉतर म¤ िसÆ हा तबादला होकर आता है, और उसके माँ-बाप नहé
ह§। वह पåरवार के खच¥ म¤ से सहयोग कì ŀिÕ ट से सुÆ नी से शादी करने के िलए तैयार हो
जाता है । ³ यŌिक सुÆ नी भी आठ सौ łपए महीने कमा रही है । सुÆ नी को जब इस स¸ चा ई
का पता चलता है तो वह सबसे पहले दÉतर से इÖ तीफा दे देती है, और देवेÆ þ नामक एक
लंगड़े दुकानदार से अपने िववाह के िलए सहमित ÿदान करती है, िकÆ तु तब तक देर हो
जाती है, और देवेÆ þ कì भी सगाई कहé और हो चुकì होती है । सुÆ नी इस ÿकार ‘ला±ागृह’
म¤ जलती रहती है । यह कहानी वåरÕ ठ लेिखका िचýा मुģल जी Ĭारा Éलॅश बॅक म¤ िलखी
गई है ।
आजादी के बाद देश म¤ पाÔ चाÂ य िश±ा और पाÔ चा Â य सË यता का िवकास बड़ी ही ती Ą
गित से हòआ । इसके पåरणाम Öवłप पाÔ चाÂ य भौितक माÆ यताएँ यहाँ भी महÂ वपूणª हो गई
और परÌ परागत सांÖ कृितक माÆ यताओं पर गहरा आघात होने लगा । इस ŀिÕ ट से िचýा
मुģल कì ‘ला±ागृह’ कहानी म¤ पुłष ÿधान समाज म¤ कामकाजी मिहला कì िÖ थ ित का
यथाथª िचýण िकया गया है । कैसे वह बफêले िशलाखÁ ड कì ढलान पर अल साती गित से
दौड़ने का ÿयास कर रही थी । वजह शायद या पूणª łप से पुłष सहवास से अÖ पिशªत
बावली हो उठी ÿौढ़ता जो अपने ही कगार को दहा º वार से उतराई िवÅ वंसकारी मोड़ पर
मुड़ने लगी थी । मकान के पीछे उसने अपना बँक बैल¤स खÂ म कर िदया । ÿौवीडंÁ ट फंड़ से
भी सारा पैसा िनकाल िलया । पॉिलसी के िवłĦ अलग से कजª भी ले िलया । िफर भी
िसÆ हा ने जब सोसाइटी म¤ मेÌ बर िशप ली तो िसफª अपने ही नाम से, और वह माँ के munotes.in

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आधुिनक गī
234 हÖ त±ेप के बावजूद भी चुप ही रही । माँ कहती है िक ‘मकान तेरे नाम लेने म¤ हजª? तू मुझे
एक छोटा कारण दे?
१७.१.३ पाý एवं चåरý-िचýण समकालीन मिहला कथाकार िचýा मुģल ने सामािजक जीवन के यथाथª पर सािध कार
लेखन िकया है । कहानी िवधा म¤ अपनी सिøयता िदखाते हòए िचýा मुģल ने आरÌ भ म¤
पाåरवाåरक जीवन पर केिÆ þ त कहािनयाँ िलखना शुł कì थé । उनकì कहािनयŌ के नए पन
और ताजगी ने पाठकŌ को अपनी ओर आकिषªत िकया । उनकì कहािनयŌ के अÅ ययन से
यह ÿतीत होता है िक उÆ ह¤ कभी भी अनुभवŌ कì सीमा का संकट महसूस नहé हòआ है ।
मिहला रचनाकारŌ कì अनुभवŌ कì सीिमत दुिनया पर आलोचना करते हòए कहा जाता है िक
लेिखकाएँ कुछ रचनाओं के बाद या तो शांत हो जाती ह§, या Ö ýी-पुłष संबंधŌ के अपने
सुरि±त ±ेý म¤ पहòँचकर राहत महसूस करती ह§ । िकÆ तु िचýा मुģल जी के कहानी सािहÂ य
पर नजर डालने से यह Ö पÕ ट हो जाता है िक उÆ हŌने पाåरवाåरक जीवन के सÆ दभŎ के
अलावा अÆ य सामािजक राजनीितक एवं आिथª क पहलुओं पर भी कहािनयाँ िलखी ह§ ।
उनकì रचना धिमªता का ±ेý और लेखन का दायरा िवÖतृत है । उÆ हŌने Ö ýी संघषŎ के
िचýण के साथ-साथ मानव जीवन के िविभÆ न प±Ō को िविभÆ न कोणŌ से छुआ है, और
िहÆ दी सािहÂ य को कुछ उÐ लेखनीय कहािनयाँ दी ह§ । नारी का दमन एवं शोषŠ, उसम¤
Óयिĉ ÖवातंÞय कì छटपटाहट, सामािजक असमानता, आिथªक िवषमता, गरीबी, भूख़ आम
आदमी कì िवषमता आिद पर भी कहािनयाँ िलखकर िचýा मुģल जी ने अपना रचना धमª
अ¸छी तरह से िनभाया है। उÆहŌने अपनी लेखकìय जागłकता का पåरचय भी िदया है ।
उनकì कहािनयाँ अपने समय कì धडकनŌ और सामािजक सरोकारŌ से भरपूर तथा गहरी
संवेदना एवं सजªनाÂमकता कì स¸ची िमसाले ह§ । इस ŀिĶ से उनकì कहानी ‘ला±ागृह’ को
देखा जा सकता है ।
िचýा जी ने ‘ला±ागृह’ कहानी के पाýŌ का चåरý-िचýण बडी ही बारीकì एवं कुशलता से
िकया है । ‘ला±ागृह’ म¤ पाýŌ कì ǹृिĶ से यिद देखा जाए तो बदसूरती के कारण समाज म¤
और पåरवारŌ म¤ åरÔतेदारŌ से उपे±ा एवं घृणा रखने वाली लडकì सुÆनी कì Óयथा-कथा है ।
शादी के बाजार म¤ सरकारी नौकरी होने के बावजूद अपनी बदसूरती के कारण कोई उससे
शादी ही नहé करना चाहता है ‘से³स वकª’ करने वाले औरतŌ के ब¸चे सचमुच अनाथ जैसे
ह§ । ऐसे ब¸चŌ को िश±ा देकर उÆहे नौकरी िदलवाकर बाद म¤ उनकì शादी के िलए परेशान
होना, िकसी भी माँ-बाप के िलए बडा ही दुखद है । इस कहानी म¤ िचýा जी ने असुंदर होने
के कारण घर वालŌ से और हमारे सËय पढे-िलखे समाज से घृणा कì पाý सुÆनी नामक
युवती के जीवन को बडे ही संवेदना के साथ िचिýत िकया है । अपनी बदसुरती के कारण ही
सुÆनी नामक युवती के जीवन को छीन िलया जाता है । वह हर चीज से वंिचत रह जाती है ।
माँ-बाप उसका हाथ पीला करने के िलए गँवार, अनपढ, लंगडे-Óयापारी से उसकì शादी तय
कर देते है । लेिकन सुÆनी इस शादी से इनकार कर देती है ।
इसी बीच ऑिफस म¤ आए नये कमªचारी िसÆहा, सुÆनी से बडे ही Èयार से Óयवहार करने
लगा । िसÆहा बहòत ही चालाक Óयिĉ है । वह जानता था िक आज एक भरे-पूरे पåरवार को
एक ही Óयिĉ कì आमदनी से चलाना किठन काम है । इसीिलए कुŁप होने पर भी कमाऊ munotes.in

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ला±ाúह – िचýा मुģल
235 लडकì से वह शादी करने का िनणªय लेता है । सुÆनी जब यह जानती है िक िसÆहा का Èयार
उससे नहé, बिÐक उसके धन से है, तो सुÆनी, िसÆहा से अपने सारे संबध ही समाĮ कर
देती है । साथ ही वह अपनी नौकरी से भी Âयागपý दे देती है । आिखर म¤ वह अपने माँ-बाप
Ĭारा Óयापारी से तय शादी करने का िनणªय सुनाती है, िकÆतु तब तक Óयापारी कì भी शादी
िकसी दूसरी लडकì से तय हो जाती है । आज का समय Óयावहाåरकता पर िटका हòआ है ।
इसिलए िसÆहा, सुÆनी से शादी करने को तैयार होता है िक वह महीने म¤ आठ सौ łपए
कमाती है । पाåरवाåरक संबंधŌ म¤ अथª कì इस Óयवहाåरकता को िचýा जी ने इस कहानी म¤
िचिýत िकया है । सुनीता कामकाजी युवती होने के साथ-साथ वह रेलवे म¤ िकसी अ¸छे पद
पर कायª करती है । परÆतु उसका दुभाªµय िक वह खूबसूरत नहé है । उसकì छोटी बहनŌ कì
शादी तो हो जाती है, परÆतु सुनीता कुआँरी ही रह जाती है । वह शादी करके घर बसाना
चाहती है, जैसी िक सभी िľयŌ कì लालसा होती है । परÆतु सुनीता को कोई भी पसÆद
नहé करता है । ‘ला±ागृह’ कहानी के पाýŌ का िनिहताथª यह ह§ िक ľी आज भी पुłषŌ कì
नजर से ऊपर नहé उठ पाई है । इū, िलहाज से िचýा जी ने दोनŌ पाýŌ सुनीता उफª सुÆनी
एवं िसÆहा का चåरý-िचýण बडी ही बारीकì और कुशलतापूवªक िकया है ।
१७.१.४ 'ला±ागृह' कहानी का उĥेÔ य िचýा मुģल जी कì कहािनयŌ का उĥेÔ य परंपरागत माÆ यताओं और Łिढ़गत संÖ कारŌ कì
परख एवं पहचान करना रहा है । वे अपनी ‘ला±ागृह’ जैसी कहानी म¤ बेिडयŌ म¤ जकड़े
समाज को Ö व तंý करके नए मूÐ यŌ कì ÿितÕ ठा कì प±धर िचýा जी जैसी खुलेमन कì
लेिखका होने के कारण िवचारŌ के Ö तर पर तमाम º व लंत मुĥŌ को चुनौती देती ह§, और
आज के नारी िवमशª को आयाम देती ह§ । िÖ ý यŌ का दमन एवं शोषण, उनम¤ Ó यि³ त
Ö वातंÞय कì छटपटाहट, सामािजक असमानता , आिथªक िवषमता, गरीबी, भूख, आम
आदमी कì िववशता को लेकर अपनी कहािनयŌ का सृजन करना ही लेिखका िचýा मुģल
जी का ÿमुख उĥेÔ य रहा है । िचýा जी ने अपनी कहािनयŌ म¤ मु´ यत: मÅ यवगª और िनÌ न
वगª के जीवन को ही ÿÖ तुत िकया है । ऐसा भी कहा जा सकता है िक िचýा मुģल जैसी
वåरÕ ठ लेिखका कì कहािनयŌ म¤ समाज का िनŁपण ÿेम, से³ स कì कुंठाओं का
Ö पÕ टीकरण, वतªमान युवा पीढ़ी के तनाव और उनके आøोश कì अिभÓ यि³ त आिद को
सामािजक मूÐ यŌ के पåरपेà य म¤ ÿÖ तुत िकया है । उनकì रचनाएँ शहर से गाँव और गाँव से
शहर का च³ क र लगाते हòए Ó यि³ त कì संघषª गाथा को समाज के सामने ÿÖ तुत करती है ।
१७.१.५ सारांश सारांशत: यह कहा जा सकता है िक िचýा मुģल ने अपनी कहानी ‘ला±ागृह’ का बड़ा ही
मािमªक और यथाथª िचýण िकया है । कथानक से लेकर पाý योजना एवं उनके चåरý-िचýण
का िनवाªह बड़ी ही कुशलता और सादगी से िकया है । उनकì इस कहानी के पाý जीवन
संघषª म¤ भी अकेले जूझकर खड़े रहने के िलए हर ±ण तैयार रहते ह§, और अपने जीवन कì
हर घटनाओं पर अपने आÂ मबल से सामना करते ह§ । अपनी इस कहानी के माÅ यम से
िचýा जी ने शोिषत, पीिडत समाज और उनकì सुर±ा के ÿित उनका मन बेबस बना रहता
है । munotes.in

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आधुिनक गī
236 १७.१.६ दीघōÂ तरीय ÿÔ न i. ‘ला±ागृह’ कहानी कì कथावÖ तु िल िख ए ।
ii. ‘ला±ागृह’ कहानी कì मूल संवेदना को Ö पÕ ट कìिजए ।
iii. कहानी ‘ला±ागृह’ के माÅ यम से सुनीता उफª सुÆ नी का चåरý-िचýण कìिजए ।
१७.१.७ लघुÂ तरीय ÿÔ न i. ‘ला±ागृह’ कहानी के उĥेÔ य िलिखए
ii. ‘ला±ागृह’ कहानी के पाý िसÆ हा पर िटÈ पणी िलिखए ।
iii. ‘ला±ागृह’ कहानी का सारांश िलिखए ।
iv. ‘ला±ागृह’ के अथª को Ö पÕ ट कìिजए ।
१७.१.८ वÖतुिनķ ÿij i. ला±ागृह कहानी कì लेिखका कौन ह§?
ii. सुÆनी िकस कहानी कì नाियका है?
iii. सुनीता कì मािसक पगार िकतनी थी?
iv. िसÆहा िकस कहानी का पाý है?
v. सुÆनी िकस िवभाग म¤ नौकरी करती है?
***** munotes.in