Paper-No.-11-विविध-विमर्श-एवं-साहित्य-munotes

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1 १ झूला नट : मैत्रेयी पुष्पा इकाई की रूपरेखा १.० इकाई का उद्देश्य १.१ प्रस्तावना १.२ मैत्रेयी पुष्पा का लेखकीय व्यक्तित्व १.३ ‘झूला नट’ उपन्यास का कथासार १.४ ‘झूला नट’ उपन्यास में क्तिक्तत्रत समस्याएँ १.५ ‘झूला नट’ में क्तिक्तत्रत ग्रामीण समाज १.६ साराांश १.७ वैकक्तपपक प्रश्न १.८ लघुत्तरीय प्रश्न १.९ बोध प्रश्न १.१० अध्ययन हेतु सहयोगी पुस्तकें १.० इकाई का उद्देश्य प्रस्तुत इकाई एम.ए. (ह िंदी) सेमेस्टर तीन के प्रश्नपत्र ग्यार से सिंबिंहित ै। इस इकाई के अिंतर्गत मैत्रेयी पुष्पा की स्त्री-हवमर्ागत्मक औपन्याहसक कृहत ‘झूला नट’ का अध्ययन सहममहलत ै। ‘झूला नट’ उपन्यास १९९९ में प्रकाहर्त ुआ था। य कृहत मैत्रेयी पुष्पा की प्रहतहनहि औपन्याहसक कृहत ै। इस कृहत में बुिंदेलखिंड के अिंचल में बसे र्ािंव की कथा क ी र्यी ै। बुिंदेलखिंड के ग्रामीण अिंचल में स्त्री जीवन की हवहवि हवसिंर्हतयों का हचत्रण इस कृहत में हकया र्या ै। इस इकाई के अिंतर्गत ‘झूला नट’ उपन्यास के हवहवि सिंदर्भों का अध्ययन हकया र्या ै, जैसे उपन्यास का कथासार, झूला नट उपन्यास में हचहत्रत समस्याएिं एविं उपन्यास में हचहत्रत ग्रामीण समाज आहद। इकाई के अध्ययन के पश्चात छात्र ‘झूला नट’ उपन्यास की सिंवेदना को र्भली-र्भािंहत समझ सकेंर्े। ‘झूला नट’ उपन्यास का समेहकत अध्ययन कई इकाइयों में हवर्भाहजत करके हकया र्या ै। इस इकाई में ज ािं उपन्यास की मुख्य सिंवेदना पर दृहिपात हकया र्या ै व ीं, अन्य इकाइयों में पात्र-योजना, पररवेर्र्त यथाथग, औपन्याहसक हर्ल्प तथा अन्य सिंदर्भों की ओर हवर्ेष ध्यान हदया जाएर्ा । १.१ प्रस्तावना मैत्रेयी पुष्पा ह िंदी की अत्यिंत समथग कथाकार ैं। सन १९९० के बाद आयी साह त्यकारों की पीढी में उनका अन्यतम स्थान ै। उनके सर्भी उपन्यासों में स्त्री जीवन की हवहर्भन्न हवसिंर्हतयों का हचत्रण हकया र्या ै। 'झूला नट' उपन्यास र्ीलो के जीवन की व्यथा-कथा को प्रस्तुत munotes.in

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हवहवि हवमर्ग एविं साह त्य
2 करने वाला उपन्यास ै। बुिंदेलखिंड के ग्रामीण अिंचल पर आिाररत य उपन्यास अपने पररवेर् में स्त्री जीवन की हवहवि हवसिंर्हतयों को तो व्यक्त करता ी ै, साथ ी बदलते समय सिंदर्भों में स्त्री के सर्क्त ोते रूप को र्भी प्रस्तुत करता ै। अनपढ और हनरक्षर ोने के बावजूद र्ीलो अपने जीवन में आयी ुई हवसिंर्हतयों का न केवल सर्क्त ढिंर् से मुकाबला करती ै बहल्क पुरुष सत्तात्मक सोच को कडी चुनौती र्भी देती ै। अपने जीवन की लर्ाम हकसी पिंचायत को न देकर खुद अपने ाथ में रखती ै। अपने जीवन से जुडे ुए फैसले खुद करती ै। और उसके जीवन में हवसिंर्हतयों के हजममेदार उसके पहत सुमेर से व बदला र्भी लेती ै। र्ीलो के रूप में इस उपन्यास में एक ऐसी स्त्री हचहत्रत ै, जो अपने जीवन में आयी ुई हवसिंर्हतयों को र्भाग्य समझकर स्वीकार न ीं करती बहल्क उनसे लडती ै, कडा सिंघषग करती ै और अिंत में हवजयी र्भी ोती ै। उपन्यास में र्ीलो का रूप काल्पहनक न ीं ै बहल्क यथाथग के कठोर िरातल पर आिाररत ै। य बदलते समय का यथाथग ै। य बदलते र्भारत की तस्वीर ै। हस्त्रयािं अब हनणगय लेना जानती ैं। वे हकसी र्भी बात को अकारण स्वीकार करने को तैयार न ीं ै। य उपन्यास एक मानहसकता का खुलासा करता ै, जो अब स्त्री समाज में केंद्र में ै। य उपन्यास ह िंदी के स्त्री-हवमर्ागत्मक साह त्य को एक नई ऊिंचाई देने का काम करता ै। र्ीलो, सरसुती, बालहकर्न और सुमेर जैसे पात्रों पर केंहद्रत झूला नट उपन्यास में केवल एक समस्या को लेकर ी हवचार-हवमर्ग न ीं हकया र्या ै बहल्क य उपन्यास व्यापक अथों में उस पूरे अिंचल हक ग्रामीण सिंस्कृहत को अत्यिंत सिंवेदनर्ील ढिंर् से प्रस्तुत करता ै। ‘झूला नट’ को एक स्त्री हवमर्ागत्मक रचना माना जाता ै, पर रचना को पढते ुए य म सूस ोता ै हक य उपन्यास एक तरफ ज ािं स्त्री सिंदर्भों को सर्क्त ढिंर् से मारे सामने रखता ै व ीं दूसरी तरफ सिंपूणग ग्रामीण जनजीवन र्भी इसके केंद्र में ै। हजसका सूक्ष्म हचत्रण इस उपन्यास में देखने को हमलता ै। उपन्यास को पढते ुए व्यापक जन जीवन के सिंदर्भग में कई तर के प्रश्न मन में उत्पन्न ोते ैं। वास्तव में व्यापक जीवन-बोि को समेटे ुए य एक अत्यिंत म त्वपूणग रचना ै। १.२ मैत्रेयी पुष्पा का लेखकीय व्यक्तित्व मैत्रेयी पुष्पा का जन्म ३० नविंबर १९४४ को अलीर्ढ हजले के हसकुराग नामक र्ािंव में ुआ था। उनकी आरिंहर्भक हर्क्षा हखल्ली (हजला झािंसी, उत्तर प्रदेर्) से ुयी। स्नातक एविं स्नातकोत्तर की हर्क्षा उन् ोंने बुिंदेलखिंड म ाहवद्यालय, झािंसी से पूरी की। उनके जीवन के हनमागण में उनकी मािं का बडा म त्वपूणग योर्दान था, जो चा ती थी हक मैत्रेयी पढ-हलखकर आत्महनर्भगर बने। इनकी मािं ने स्वयिं के प्रयासों से अपने को हनहमगत हकया था। जीवन के कठोर िरातल से उनका सामना ुआ और उसी सब से प्रेरणा लेते ुए मैत्रेयी का पालन-पोषण उन् ोंने अत्यिंत अनुर्ाहसत वातावरण में हकया। उनका अपना जीवन एक पुरुषसत्तात्मक समाज को चुनौती देता था और सिंघषग करने का सिंस्कार मैत्रेयी को उन् ीं से हमला। मैत्रेयी को स्वयिं बचपन में पुरुषसत्तात्मक हवकृत-सोच का जमकर मुकाबला करना पडा परिंतु उन् ोंने ार न ीं मानी और अपने जीवन की इबारत खुद हलखी। मैत्रेयी पुष्पा ह िंदी की ऐसी लेहखकाओिं में सहममहलत ैं हजन् ोंने लर्ातार प्रासिंहर्क लेखन हकया। सन १९९० के बाद सहिय ुई पीढी में सिंर्भवत: वे सवागहिक उवगर और समृद्ध लेहखका ैं। उन् ोंने साह त्य की कई हविाओिं में लेखन कायग हकया ै। उनके कई क ानी-सिंग्र 'हचन् ार' munotes.in

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झूला नट : मैत्रेयी पुष्पा
3 (१९९१), 'ललमहनयााँ' (१९९६), 'र्ोमा िंसती ै' (१९९८) उपन्यास - 'स्मृहतदिंर्' (१९९०), 'बेतवा ब ती र ी' (१९९४), 'इदिंनमम' (१९९४), 'चाक' (१९९७), 'झूला नट' (१९९९), 'अल्मा कबूतरी' (२०००), 'अर्नपाखी' (२००१), 'हवजन' (२००२), 'कस्तूरी कुिंडल बसे' (२००२), 'क ी ईसुरी फार्' (२००४), 'हत्रया ठ' (२००६) आहद प्रकाहर्त ैं। इस तर अपने उपन्यासों और क ानी सिंग्र ों से उन् ोंने ह िंदी कथा-साह त्य को अत्यिंत समृद्ध करने का म त्वपूणग कायग हकया ै। इन दोनों हविाओिं के अहतररक्त उनकी कुछ कहवताएिं, नाटक 'मिंदािािंता' (२००६), लेखसिंग्र 'खुली हखडहकयााँ' (२००३), 'सुनो माहलक सुनो' (२००६) आहद प्रकाहर्त ैं। मैत्रेयी पुष्पा का साह त्य उनके देखे-सुने और र्भोर्े ुए अनुर्भवों पर आिाररत ै। व जीवन के कठोर यथाथग पर आिाररत ै। स्वयिं मैत्रेयी पुष्पा का जीवन र्भी सीिी सरल रेखा में न ीं चला। उन् ोंने अपने जीवन में कई तर की हवपरीत पररहस्थहतयों का सामना हकया। उनकी रचनाएाँ उनके इन् ीं देखे-सुने और र्भोर्े र्ए अनुर्भवों पर आिाररत ैं। उनमें यथाथग एक नए रूप में प्रस्तुत ै। मैत्रेयी पुष्पा के लेखन की सबसे बडी हवर्ेषता य ै हक उन् ोंने अपने कथा-साह त्य में हवपरीत पररहस्थहतयों में सिंघषगरत पात्रों को हचहत्रत हकया ै। उनके स्त्री-पात्र ारे ुए पात्र न ीं ै बहल्क कहठन से कहठन हस्थहतयों को बदलने वाले पात्र ैं। ह िंदी में उपन्यास और क ानी के जन्म के समय से ी स्त्री जीवन की समस्याएिं कथा-साह त्य का म त्वपूणग ह स्सा र ी ैं। प्रेमचिंद, जैनेंद्र, यर्पाल जैसे कथाकारों ने स्त्री और उसके जीवन को आिार बनाकर प्रर्भूत मात्रा में साह त्य रचा ै। इन सर्भी के साह त्य में सामाहजक रूहढयों और परिंपराओिं के पार् में फिंसी ुई स्त्री हचहत्रत ै, जो प्रहतरोि करना न ीं जानती। व यथाहस्थहत के साथ जीने और मरने को हववर् ै। परिंतु मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में हचहत्रत स्त्री पात्र न केवल रूहढयों और परिंपराओिं के षड्यिंत्र को समझते ैं बहल्क उस जाल को काट फेंकने का माद्दा र्भी रखते ैं। 'झूला नट' उपन्यास की नाहयका र्ीलो अनपढ और र्िंवार ै परिंतु व्याव ाररक बुहद्ध से सिंपन्न ै। अपनी ससुराल में ज ािं प ले व असामान्य हस्थहतयों को सामान्य बनाने का यत्न करती हदखाई देती ै व ीं बाद में य समझ जाने पर हक हस्थहतयािं ाथ से हनकल चुकी ै और उसका वैवाह क जीवन अब सामान्य हस्थहत में न ीं आ सकता, व स्वयिं अपने र्भावी जीवन का हनमागण करती ै। अपनी हववर्ता को सबलता में पररवहतगत करती ै। अपनी व्याव ाररक बुहद्ध का प्रयोर् करते ुए व सुमेर से बदला लेती ै। र्ािंव से हबना कुछ ाहसल हकये, सुमेर का पलायन दरअसल पुरुषसत्तात्मक सोच की ार ै और बदलते सिंदर्भों में सर्क्त ोती स्त्री की प चान ै। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में उनके स्त्री पात्र ऐसी ी सर्क्त हस्थहतयों को अहर्भव्यक्त करते ैं। स्त्री के इस रूप को रचना मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों की हवहर्िता ै। मैत्रेयी पुष्पा के कथा साह त्य में बुिंदेली और ब्रज ग्रामीण सिंस्कृहत का यथाथगपूणग हचत्रण ुआ ै। दरअसल इन् ीं सबके बीच उन् ोंने अपने जीवन का ज्यादातर समय व्यतीत हकया था। य ी उनके अनुर्भव प्रमाहणकता पाते थे और जीवन को खट्टे-मीठे अनुर्भव य ीं से हमले थे। यद्यहप उनके जीवन का एक बडा ह स्सा म ानर्र में र्भी बीता ै परिंतु उनके कथा साह त्य में हजतना साथगक और स्वार्भाहवक हचत्रण ग्रामीण सिंस्कृहत से जुडकर ुआ ै, व म त्वपूणग दस्तावेज ै। मैत्रेयी पुष्पा के कथा-साह त्य में स्वातिंत्र्योत्तर बदलते ुए समाज के कई सिंर्त और असिंर्हतपूणग हचत्र देखने को हमलते ैं। जैसा हक प ले उल्लेख हकया र्या ै, स्वयिं लेहखका का जीवन र्भी ऐसे अनेक दृश्यों से र्भरा ुआ ै। उनका अपना अनुर्भव जर्त समाज की कडवी सच्चाई से पररहचत ै। य कडवी सच्चाई हवहर्भन्न रूपों में उनके उपन्यास साह त्य munotes.in

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हवहवि हवमर्ग एविं साह त्य
4 में यथाथगपूरक ढिंर् से उर्भर कर आई ै। मैत्रेयी पुष्पा का लेखन हजस तर से असिंर्हतयों को सामने लाता ै, व पाठकों को चमत्कृत कर देता ै। यथाथग की एक नई तर की अहर्भव्यहक्त उनके साह त्य में देखने को हमलती ै। १.३ ‘झूला नट’ उपन्यास का कथासार 'झूला नट' उपन्यास बुिंदेलखिंड की ग्रामीण सिंस्कृहत को समेटे ुए स्त्री सिंघषग की हवडिंबना की अद्भुत र्ाथा ै। इस उपन्यास में र्ीलो, सरसुती, बालहकर्न, सुमेर आहद पात्रों के माध्यम से उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा ने स्त्री जीवन के जहटल और हवडिंबनापूणग यथाथग का हचत्रण हकया ै। ग्रामीण जीवन के अपनी तर के सरल और जहटल जीवनमूल्य ैं। म जानते ैं हक पररवेर् चा े ग्रामीण ो या र् री, स्त्री, समाज में दोयम दजे में ी पदस्थ ै और उसके जीवन का मान-अपमान, सुख-दुख सर्भी कुछ पुरुषों की इच्छा से ी सिंचाहलत ै। जारों वषों से स्त्री इसी िम का अनुसरण करती चली आयी ै परिंतु समय के साथ इस िम में कुछ व्यहतिम र्भी उत्पन्न ुए ैं, जो िीरे-िीरे स्त्री चेतना के प्रबुद्ध ोते जाने का सिंकेत ैं। इस उपन्यास में र्ीलो के माध्यम से उपन्यास लेहखका ने स्त्री हवमर्ग की एक अद्भुत र्ाथा क ी ै। उपन्यास की मुख्य कथा र्ीलो, सरसुती, बालहकर्न और सुमेर के बीच घटती ै। कथा का सारािंर् य ै हक र्ीलो का हववा सुमेर के साथ सिंपन्न ोता ै और व हवदा ोकर अपनी ससुराल आती ै। ससुराल में आते ी उसके साथ ग्रामीण मान्यताओिं के अनुसार कुछ अहनि घटना र्ुरू ोता ै। दरअसल र्ीलो के एक ाथ में छः उिंर्हलयािं ोती ैं हजसे ग्रामीण मान्यता के अनुसार ठीक न ीं समझा जाता ै। र्लती से र्ीलो के देवर बालहकर्न के द्वारा मुिं -हदखाई की रस्म के दौरान य बात क दी जाती ै। पूरे र्ािंव के लोर् य बात सुनते ैं और र्ीलो की सास, सरसुती इस बात को यों ी टाल देती ै। इसके बाद उपन्यास कुछ इस तर आर्े बढता ै हक सुमेर जो हक पुहलस हवर्भार् में सरकारी नौकरी करता ै और उसकी पोहस्टिंर् र् र में ै, व हववा के बाद र्ीलो को र्ािंव में छोडकर चला जाता ै। वास्तहवकता य ै हक व हववा से सिंतुि ी न ीं ै। उसके हपता ने बचपन में ी य हववा तय हकया था। सुमेर के हपता की मृत्यु के बाद सरसुती अपने पहत के वचन को पूरा करती ै। और दूसरा य र्भी हक सुमेर की नौकरी के हलए र्ीलो के हपता कुछ पैसे र्भी खचग करते ैं। इन सबके चलते दबाववर् सुमेर हववा तो कर लेता ै परिंतु प ले हदन से ी उसे य स्वीकार न ीं ोता। नौकरी पाने के बाद उसे अपने पत्नी के रिंर्-रूप, र चीज में कमी हदखाई देने लर्ती ै और अिंततः हववा ो जाने के बाद र्भी र्ीलो अहववाह त हस्थहत में ी बनी र ती ै। कुछ समय तक हववा के सिंदर्भग में य अहनश्चय की हस्थहत बनी र ती ै और सरसुती, र्ीलो सर्भी को लर्ता ै हक समय के साथ य समस्या सुलझ जाएर्ी। परिंतु ऐसा ोता न ीं ै। सुमेर एक-दो बार र्ािंव तो आता ै परिंतु र्ीलो के पास न ीं जाता और जैसा हक ग्रामीण समाज में ोता ै हक हवपरीत पररहस्थहतयों में देवी-देवताओिं के स ारे अपने को छोड देते ैं, ऐसा ी र्ीलो, सरसुती और बालहकर्न र्भी करते ैं। र्ीलो की पीडा को उसकी सास सरसुती और देवर बालहकर्न पूरी मानवीयता के साथ म सूस करते ैं। वे चा ते ैं हक दोनों पहत-पत्नी का जीवन सामान्य हस्थहतयों में आ जाए और इसके हलए वे र तर का जतन करते ैं। चिंपादास बैद के परामर्ग पर र्ीलो देवी-देवताओिं की र तर की आरािना - व्रत सर्भी कुछ अपनी हदनचयाग में अपना लेती ै। व कहठन से कहठन सािना करके अपने पहत को वापस पाना चा ती ै और सर्भी सािनाएिं पूरी लर्न से करती र्भी ै। चिंपा दास पूरे दावे से सरसुती munotes.in

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झूला नट : मैत्रेयी पुष्पा
5 को समझाते ुए क ता ै, "ब ू से म ामाई के मिंहदर तक और मिंहदर से हर्वाले तक ब्रह्म बेला में पेड र्भरवाओ (पेट के बल लेट-लेटकर प ुिंचना)। पााँच र्ाय, तीन कुत्तों की रोटी हनत हनयम से हनकाली जाएिं। तुलसी का चौरा और पीपल का पेड ढारे। घर में सुिंदरकािंड का पाठ करो। साला सुमेर क्या, सुमेर का बाप चला आएर्ा परलोक से। तप की माया, देवी - देवता का हसिं ासन ह ला दे, आदमी की क्या हबसात ?" परिंतु सुमेर का मन न ीं हफरता। र्ीलो तो र्ीलो, सीिा-सािा बालहकर्न र्भी अपने पररवार पर आए इस सिंकट को स न न ीं कर पाता। व्यहथत र ता ै और चा ता ै हक जल्द से जल्द हस्थहतयािं सामान्य ो जाएाँ और इसके हलए व र्भी तमाम देवी देवताओिं की मनौहतयााँ मानता ै। तमाम सािनाएिं अपनाता ै। परिंतु हस्थहतयािं और बद से बदतर ोती जाती ैं। सुमेर, र्ीलो की तरफ से अनमना ी बना र ता ै। र्ीलो के वैवाह क जीवन में उत्पन्न ुई इन असामान्य हस्थहतयों की हजममेदार व न ीं ै, न ी उसने सुमेर को हववा के हलए हकसी प्रकार र्भी हववर् हकया ै। व इन सारी हस्थहतयों को र्भाग्य समझकर ठीक करने के जतन में जुट जाती ै और ठीक करने में असफल ी र ती ै। दूसरी तरफ उसकी सास सरसुती उसकी व्यथा को समझती ै। व अपने बेटे की मक्कारी को र्भी र्भाप लेती ै, पर उससे मुिं र्भी न ीं फेर पाती, आहखर सुमेर पररवार की र्ान ै। पुहलस हवर्भार् में नौकरी ोने के कारण र्ािंव-खेडे में पररवार की इज्जत का कारण ै। और हफर घर का बडा र्भी ै। सरसुती र्ीलो के साथ पूरी स ानुर्भूहत रखती ै खुद र्भी तमाम मनौहतयााँ मानती ै हक लडका हफर जाए, लौटकर र्ीलो को अपना ले। सरसुती स्वयिं हविवा ै और इसीहलए व र्ीलो का दुख समझती ै। पररवार में जब तक य खबर न ीं ोती हक सुमेर ने दूसरा हववा कर हलया ै, तब तक उममीदें हजिंदा र ती ैं हक र्ायद व र्ीलो को अपना लेर्ा परिंतु जब सुमेर र् र में एक दूसरी स्त्री से हववा कर लेता ै तो सारी उममीदें समाप्त ो जाती ैं। र्ीलो र्भी इस खबर को सुनकर ब ुत दुखी ोती ै परिंतु व अपने आिोर् और दुख को दबा जाती ै। ऐसी हस्थहतयों में सरसुती कोई और रास्ता न पाकर अपने छोटे बेटे बालहकर्न को र्ीलो को समहपगत कर देती ै। बालहकर्न जोहक अपने र्भाई से बेत ार्ा डरता ै, र्ीलो के प्रहत स ानुर्भूहत रखता ै। व अपने मािं के क े को टाल न ीं पाता और जैसा मािं चा ती ै, वैसा ी करता ै। मािं के क ने पर ी उसने अपनी पढाई-हलखाई छोडकर खेती की हजममेदारी उठा ली और अब मािं के क ने पर ी व अपने को र्ीलो को समहपगत कर देता ै। य ीं से उपन्यास एक नए मोड पर आ खडा ोता ै। र्ािंव में बहछया नाम की एक परिंपरा ै हजसका अथग य ै हक कोई हववाह त जोडा यहद टूटता ै और स्त्री हकसी और पुरुष के सिंर् अपना जीवन व्यतीत करना चा ती ै तो र्ािंव और पिंचायत की स महत से र्भोज आहद की औपचाररकता पूरी करने के बाद उनके ररश्ते को वैिता हमल जाती ै। र्ीलो और बालहकर्न सरसुती की अनुमहत से साथ में र ने तो लर्ते ैं और य बात र्ािंव के बडे-बूढों से ज्यादा हदन हछपी र्भी न ीं र पाती, ऐसी हस्थहत में समाज में तर -तर की बातें ोने लर्ती ैं। सरसुती चा ती ै हक बहछया की परिंपरा का हनवग न करके बालहकर्न और र्ीलो के ररश्ते को वैिता हमल जाए। परिंतु र्ीलो बहछया प्रथा का हनवग न करने से इिंकार कर देती ै। य ीं से उसका हवद्रो ी रूप आकार लेना र्ुरू करता ै। बालहकर्न के साथ अपने ररश्ते को स्वीकार कर व सामान्य जीवन जीना र्ुरु कर देती ै। उसके जीवन में सुख की छाया पडती हदखाई देती ै। एक अवसर पर बडी-बूहढयों के द्वारा बातें बनाए जाने पर व जवाब देते ुए क ती ै munotes.in

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हवहवि हवमर्ग एविं साह त्य
6 हक "ऐिं काकी जी, पुहलहसया बेटा की बहछया की पािंत खा ली ? पूछा न ीं हक बरकट्टो (बाल कटी) व्या ी ै या रखैल ? बेटों के चलते रसम-रीत र्भूलकर ब ुओिं की पीठों के हलए कोडे हलए हफरती ो तुम बूढी जनी।" अथागत उसका हवद्रो इस बात पर ै हक सुमेर हजसने हक हबना र्ािंव-खेडे और पिंचायत की अनुमहत के दूसरा हववा कर हलया, उस पर कोई प्रश्नहचन् न ीं लर्ा और न ी हकसी ने उस ररश्ते को वैिता देने के हलए बहछया की पािंत खाने की बात क ी। हफर र्ीलो के हलए ी क्यों ? उसके इस हवद्रो के सामने बडी-बूहढयााँ तो अवाक र ी जाती ैं, साथ ी बालहकर्न र्भी समझाकर ार जाता ै, परिंतु र्ीलो इसके हलए तैयार न ीं ोती। सरसुती लाख जतन करती ै परिंतु असफल र जाती ै। दरअसल य सब अकारण ी न ीं घट र ा था, इसके पीछे एक सुहनयोहजत सोच थी। र्ीलो जानती थी हक जमीन-जायदाद के हलए सुमेर र्ािंव आएर्ा और बहछया प्रथा को स्वीकार करने के बाद र्ीलो का उस पर हकसी र्भी प्रकार का अहिकार समाप्त ो जाएर्ा। र्ीलो बदला लेना चा ती थी। व सुमेर से अपने अपमान का प्रहतकार चा ती थी। हबना हकसी अपराि के सुमेर के द्वारा उसके स्वाहर्भमान को आ त हकया जाना उसे स्वीकार न ीं था। प्रकट रूप में क ीं र्भी व अपना य आिोर् व्यक्त न ीं करती परिंतु जैसे स ी अवसर की तलार् के हलए उसने अपने आिोर् को दबाए रखा था। र् र में घर बनाने के उद्देश्य से सुमेर र्ािंव में अपनी जर् -जमीन बेच देना चा ता ै और इस इरादे से व र्ािंव आता ै। सरसुती उसके र्ािंव लौटने पर र बार इस उममीद में र ती ै हक र्ायद इस बार व मन बदल कर आया ै, र्ायद व र्ीलो को अपना ले। परिंतु सुमेर जब जमीन जायदाद के मसलों को ल करने की बात क ता ै तो सरसुती के पास कोई उत्तर न ीं था। व बेटे का प्रहतरोि न ीं कर सकती थी। 'झूला नट' उपन्यास र्ीलो के मान-अपमान और उससे सिंघषगकर पार हनकलने की र्ाथा ै। स्त्री इस समाज की प्रथम जन्मदात्री ै। समाजर्ास्त्री मानते ैं हक इस समाज की प्रथम जन्मदाता व ी ै। उसी ने हनयमों के सिंजाल को रचकर समाज के हनमागण का प्रथम चरण पूरा हकया परिंतु र्ारीररक अर्क्तता के चलते िीरे-िीरे इस समाज का हनयिंता पुरुष बन र्या। जारों वषों तक पुरुष ी अपने अनुरूप समाज के हनयम और ढािंचे का हनयमन करता र ा। स्त्री अपने सिंवेदनर्ील स्वर्भाव और पररवार को बनाए रखने की आस्था के चलते मेर्ा पुरुष की िूतगता का हर्कार ोती र ी। ज ािं ब लाकर काम हनकल सका, व ािं ब लाया और ज ािं जोर-जबर से काम हनकालना चा ा, व ािं वैसा हकया। परिंतु अब समय बदल र्या ै। स्त्री इस िूतगता को र्भली-र्भािंहत प चान चुकी ै। र्ीलो र्भले ी ग्रामीण पररवेर् में पली सीिे-सरल स्वर्भाव की स्त्री ै। परिंतु हवपरीत पररहस्थहतयों में उसकी स ज बुहद्ध इस िूतगता को प चानने में समथग ै। प ले तो सुमेर उसे छोड देता ै, पर जमीन-जायदाद के हनस्तारण के हलए उसे र्ािंव आना ी पडता ै। व जानता ै हक र्ीलो उसके मार्ग का कािंटा बन सकती ै, इसीहलए उसे ब लाते ुए व क ता ै, "तुम सोचती ो, मैं र्भूल र्या तुम ें ? अरे र्ीलो ! मैं तो इस काहबल र्भी न ीं र ा हक य ािं आकर इस घर का पानी र्भी पी सकूिं। सच्ची बात तो य ै हक घर वसीले के हलए जमीन बेचना तो ब ाना ै, मैं तुम ारी रा का कािंटा बनना न ीं चा ता। तुमने जो हकया, बुहद्ध-हवचार से हकया ै। अकलमिंद कदम।" दरअसल सुमेर अपने िूतग उद्देश्य की पूहतग के हलए र्ीलो को य जताना चा ता था हक बालहकर्न से नाता जोडकर र्ीलो अब उसकी हजममेदारी न ीं र र्ई। परिंतु इसी स्थल पर र्ीलो का दृढ व्यहक्तत्व और दूरदहर्गता सामने आती ै। सुमेर के य क ने पर हक र्ीलो और बालहकर्न अब साथ र ने लर्े ैं तो जमीन पर आिा अहिकार munotes.in

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झूला नट : मैत्रेयी पुष्पा
7 उसका ै, र्ीलो उसे टोंकते ुए क ती ै हक बालहकर्न से उसका कोई ररश्ता न ीं ै। व अर्भी र्भी सुमेर की ी पत्नी ै और सुमेर की आिी जायदाद में उसका र्भी अहिकार ै। व सुमेर से क ती ै, "काये के पहत-पतनी, बाबूजी ? व अबोि मन का अच्छा ै, सो बस.... तुम ारी ब्या ता ोने के बाद र्भी..... पर छोडो उस बात को। बालहकर्न तो ऐसे ी ै मारे हलए, जैसे तुम ारे हलए तुम ारी दूसरी औरत। हबनब्या ी, मनमजी की। सच मानो, बालहकर्न र्भी इससे ज्यादा कुछ न ीं।" य क ने के अहतररक्त जमीन-जायदाद के प्रश्न पर व सुमेर से क ती ै, "जमीन-जायदाद की बात य र ने दो हक य मामला तो अब र्भी मारे-तुम ारे बीच ी ै। बाबूजी, बालहकर्न हसरफ अपने ह स्से का माहलक ै। व कौन ोता ै मारे-तुम ारे ह स्से में टािंर् अडाने वाला ? हबल्कुल ऐसे ी, जैसे तुम ारी व हबचारी कोई न ीं ोती मारे-तुम ारे बीच। ये जर-जोरू के मामले बडे बेडे (कहठन) ैं, बाबूजी।" उसके इस जवाब को सुनकर सरसुती र्भी अवाक र जाती ै और अब उसे समझ में आता ै हक र्ीलो ने बहछया का हनवाग करने से इिंकार क्यों हकया था। न सरस्वती और न ी सुमेर, हकसी को य उममीद न ीं थी हक, र्ीलो इस तर से व्यव ार करेर्ी। उन् ें लर्ा था हक जैसा र्भी करते जाएिंर्े, व र्भाग्य समझकर वैसा स्वीकार करती जाएर्ी। इन सारे जवाबों के बाद सुमेर, सरसुती पर नाराज ोता ै, "सारी र्लती तो तुम ारी ै। बहछया क्यों न ीं कराई बालहकर्न के सिंर्। बहछया करा देतीं, तो य सींर् पैना कर खडी ो आती ? छोटा सा पर्ु ी इसको बेदखल कर देता सारे क़ से। पूरा र्ािंव र्वा ोता..... पर अममा, दो-चार जार का लोर्भ करके तुमने में हचत्त करा हदया। अरे ! मुझसे सवाल करतीं, तो मैं र्भेज देता। अब र्भुर्त लो, लाखों की जायदाद पर दािंत र्ाडे बैठी ै।" सुमेर िोहित ोकर उसी क्षण घर से चला जाता ै। इस तर र्ीलो सुमेर से अपना बदला लेती ै। चररत्रों के हवकास करने की जो र्ैली मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उपन्यासों में अपनायी ै, इस उपन्यास में इसी स्थल से हदखाई देती ै। जो र्ीलो अनपढ और र्िंवार समझी जा र ी थी, आज उसने सुमेर और सरसुती, दोनों के ी पैर उखाड हदए थे। प ले बालहकर्न और अब हफर पूरे घर पर िीरे-िीरे उसने अपने हनणगय काहबज कर हदए थे। र कदम पर सरसुती से उसका टकराव जरूर ोता था, पर अिंत में जीत र्ीलो की ी ोती थी। र्ीलो और सरसुती के रूप में लेहखका ने परिंपरा और नई सोच के अिंतद्वंद को र्भी हवकहसत हकया ै। इस अिंतद्वंद्व में र्ीलो नए युर् की स्त्री-सोच का प्रहतहनहित्व कर र ी ै। झूला नट उपन्यास १९९९ में प्रकाहर्त ुआ था। २१वीं सदी की र्ुरुआत ी ोने वाली थी। नई सदी में नई सोच और स्त्री हवमर्ागत्मक सिंदर्भों को नई हदर्ा अब म त्वपूणग ोना न ीं था बहल्क अपना व्यहक्तर्त हवकास तथा समय को अपने मुताहबक मोड लेने की जद्दोज द थी। अब परिंपराएिं पैरों में बेडी की तर बिंिी न ीं थी, हकसी र्भी क्षण उन् ें झटके से तोडा जा सकता था। ऐसी परिंपराएिं जो जीहवत सिंदर्भों को मृत सिंदर्भग में तब्दील कर दें, उनका कोई मोल न ीं र र्या था। उन परिंपराओिं के पीछे की र्हक्त, सामाहजक अवमानना का डर था और इस डर को छोडकर स्त्री अब आर्े हनकल चुकी थी। र्ीलो के चररत्र के द्वारा लेहखका ने इन् ीं सिंदर्भों को म त्वपूणग ढिंर् से प्रस्तुत हकया ै। सुमेर को एक तरफ परे टाने के बाद र्ीलो ने िीरे-िीरे करके म त्वपूणग हनणगयों में र्भार्ीदारी या क ें हनणगय लेना र्ुरू कर हदया। खेती-बाडी, बात-व्यव ार, र्ािंव-समाज सर्भी में बालहकर्न उसी की बात मानता था। ऐसे ी खेती-बाडी और फसल बोने के सिंदर्भग में सरस्वती को समझाते ुए र्ीलो क ती ै, "अममा जी, र्ुस्सा पी जाओ। बूढे जमाने उखडेंर्े न ीं तो नया बखत आएर्ा कैसे ? अपने इस रेंर्टा को रेत में न ीं, सडक पर चलना सीखने दो। र्ुरू में पािंव हछलेंर्े जरूर, पर मोटर की तर दौडना आ जाएर्ा।" munotes.in

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8 वास्तव में उपन्यास की मुख्य समस्या र्ीलो के जीवन का अव्यवहस्थत पक्ष ै, उसके साथ ुआ अन्याय ै। जोहक सुमेर की आकािंक्षाओिं के पूरा न ो पाने और र्ीलो द्वारा सुमेर के अहर्भमान को आ त हकए जाने से उसका समा ार ोता हदखाई देता ै और उपन्यास का एक उद्देश्य र्भी पूरा ोता ै, परिंतु लेहखका ने उपन्यास को य ीं तक सीहमत न ीं रखा ै। सुमेर के प्रसिंर् के बाद र्ीलो और सरस्वती का आपसी सिंघषग तथा बालहकर्न की दुरावस्था के हचत्रण के साथ लेहखका उपन्यास के समापन की ओर बढती ैं। झूला नट अपने आकार में ब ुत हवर्ाल उपन्यास न ीं ै। इसे लघु उपन्यास की श्रेणी में रखा जा सकता ै। ऐसा लर्ता ै हक लेहखका ने र्ीलो के प्रहतकार के बाद के प्रसिंर्ों को अनावश्यक तरीके से बढाया ै, हजसकी कोई आवश्यकता समझ में न ीं आती। इन बढे ुए प्रसिंर्ों से उपन्यास में हकसी र्भी तर से प्रर्भावोत्पादकता की वृहद्ध र्भी न ीं ोती। सुमेर के अिंहतम रूप से र्ािंव छोड देने के बाद उपन्यास र्ीलो और सरस्वती के आपसी सिंघषग की घटनाओिं के द्वारा आर्े बढता ै। य सिंघषग पररवार में मुख्य स्थान को बनाए रखने या ाहसल करने का सिंघषग था, हजसमें सरसुती िीरे-िीरे ारती ै और र्ीलो पररवार में म त्वपूणग स्थान बनाती चली जाती ै, ज ािं उसके हनणगय ी अिंहतम रूप से स्वीकृहत पाते ैं। र्ीलो और सरस्वती के आपसी सिंघषग में उपन्यास के अिंहतम चरण में बालहकर्न के चररत्र को अिंहतम पररणहत की ओर ले जाने का काम उपन्यास लेहखका के द्वारा हकया र्या ै। बालहकर्न इस उपन्यास का ऐसा पात्र ै जो सरसुती और र्ीलो के बीच घडी के पेंडुलम की तर इिर-उिर र्भटकता र ता ै। व अपनी मािं, सरसुती के मो से र्भी मुक्त न ीं ो पाता और दूसरी तरफ र्ीलो की माया ने र्भी उसे र् रे तक जकड के रखा ै। आपसी हववाद की इन हस्थहतयों में सबसे बुरी दुर्गहत का हर्कार बालहकर्न ी ोता ै। एकाहिकार की आकािंक्षा में चल र ा र्ीलो और सरसुती का सिंघषग अिंततः बालहकर्न के हलए बुरा समय लेकर आता ै। उसके चररत्र की हवसिंर्हत को स्पि करते ुए उपन्यास लेहखका हलखती ैं, "इन दोनों के चलते मुलहजम ूिं, अपरािी ूिं या हक हर्कार....? दोनों के चलते टुकडे-टुकडे काटा र्या बालहकर्न। टुकडों में से बडा ह स्सा झपटने वाली हबहल्लयों की तर दो हस्त्रयािं। चिंपादास बैद ! तुम सच्चे ज्ञानी। बैदहर्री करते-करते जोर्ी ो र्ए ! मैं अिंिेरे में फिंसा जीव, एक हकरन के हलए तरसता ुआ..... तुम ज ािं रम र्ए, व ीं घर-घाट, जो र्ा-बजा हदया, व ी वेद-वाद्य। 'झूठे मात-हपता सुत माई, झूठी ै नातेदारी। झूठा ै सब कुटुम कबीला, झूठी ै प्यारी नारी।।" कल और क्लेर् की हस्थहतयों में बालहकर्न अपने को सिंर्भाल न ीं पाता और पलायन को हववर् ो जाता ै। अथागत व घर छोड देता ै और ओरछा िाम की ओर चल देता ै। ओरछा, राजा रदौल की िरती। राजा रदौल हजसने अपने बडे र्भाई जुझार हसिं के सिंदे को दूर करने के हलए िंसते- िंसते हवष पी हलया था और अपने प्राणों का बहलदान दे हदया था। बालहकर्न कल्पना में अपने को उन् ीं हवकट हस्थहतयों में फिंसा ुआ पाता ै। उसे अपने वजूद से अचानक घृणा म सूस ोने लर्ती ै। र्ीलो, सरस्वती और सुमेर के द्वारा उपजाई र्यी हस्थहतयों में सबसे ज्यादा ध्विंस हजसे देखना पडता ै, व बालहकर्न ी ै। उसका मानहसक सिंतुलन अहस्थर ो जाता ै और इसी स्थल पर उपन्यास समाप्त ो जाता ै। ऊपर से अपने कलेवर में सरल और स ज हदखने वाला 'झूला नट' उपन्यास दरअसल जहटल जीवनबोि की रचना ै। य उपन्यास केवल र्ीलो का आत्मवृत्त बनकर न ीं र जाता बहल्क इस उपन्यास में ग्रामीण अिंचल के एक पररवार की हवसिंर्हतपूणग व्यथा-कथा ै। य अवश्य ै munotes.in

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9 हक र्ीलो इस उपन्यास की एक मुख्य पात्र ै परिंतु हजस ढिंर् से उपन्यास लेहखका ने सरसुती और बालहकर्न के चररत्रों का हवकास हकया ै, व अपने आप में म त्वपूणग ै। उपन्यास में कई तर के जीवन सिंघषों को एक साथ, एक सूत्र में हपरोने का काम उपन्यास लेहखका के द्वारा हकया र्या ै। एक तरफ ज ािं र्ीलो कर अपने जीवन का अिंतद्वगन्द्व ै व ीं दूसरी तरफ सरस्वती का वैचाररक सिंघषग ै। और तीसरी तरफ बालहकर्न ै, जो अपने सीिे-स ज चररत्र के साथ र्ीलो और सरसुती के बीच हपसकर र जाता ै। उपन्यास के अिंत में य सोचने का हवषय ो जाता ै हक क्या इन हस्थहतयों से बचा जा सकता था। तीनों के साथ ुआ अन्याय बािंटने के हलए सरस्वती ने बालहकर्न का स ारा हलया ै। बालहकर्न ने र्भी पूरी आस्था से सरसुती के हवश्वास को हनर्भाया परिंतु एकाहिकार के सिंघषग में बालहकर्न हजस दुर्गहत को प्राप्त करता ै, क्या वास्तव में व उसका कदार ै ? क्या सचमुच उसे पररवार में सिंतुलन स्थाहपत करने का य ी पाररतोहषक हमलना चाह ए था ? दरअसल य ी जहटल जीवनबोि ै, ज ािं समाज की बनी - बनाई व्यवस्था में पररवतगन आने पर कई तर की सिंर्त-असिंर्त हस्थहतयािं उत्पन्न ोती ैं। कुल हमलाकर य उपन्यास आज के समय में इसी जहटल जीवनबोि की साथगक अहर्भव्यहक्त करने वाला म त्वपूणग उपन्यास ै। १.४ ‘झूला नट’ उपन्यास में क्तिक्तत्रत समस्याएँ 'झूला नट' उपन्यास ग्रामीण जीवन को केंद्र में रखकर हलखा र्या उपन्यास ै। इस उपन्यास में ज ािं बुिंदेलखिंड अिंचल की र्भाषा और सिंस्कृहत की झलक ै, व ीं बुिंदेलखिंड के ग्रामीण समाज में स्त्री जीवन का साथगक हचत्रण र्भी हकया र्या ै। मुख्य रूप से देखा जाए तो इस उपन्यास के केंद्र में र्ीलो का जीवन ै। आनुषिंहर्क रूप से जनजीवन की अन्य समस्याएिं र्भी हछटपुट ढिंर् से देखने को हमलती ैं। स्त्री हवमर्ागत्मक सिंदर्भों को लेकर मैत्रेयी पुष्पा का लेखन अत्यिंत प्रौढ और प्रामाहणक लेखन बन चुका ै। उन् ोंने समाज के अलर्-अलर् सिंदर्भग में स्त्री जीवन की वैहवध्यपूणग अहर्भव्यहक्त की ै। उनके उपन्यास और क ानी-सिंग्र 'हचन् ार' (१९९१), 'ललमहनयााँ' (१९९६), 'र्ोमा िंसती ै' (१९९८) उपन्यास - 'स्मृहतदिंर्' (१९९०), 'बेतवा ब ती र ी' (१९९४), 'इदिंनमम' (१९९४), 'चाक' (१९९७), 'झूला नट' (१९९९), 'अल्मा कबूतरी' (२०००), 'अर्नपाखी' (२००१), 'हवजन' (२००२), 'कस्तूरी कुिंडल बसे' (२००२), 'क ी ईसुरी फार्' (२००४), 'हत्रया ठ' (२००६) आहद इस बात का सर्क्त उदा रण ैं। वषग १९९० से वे हनरिंतर लेखन करती चली आ र ी ैं। कई क ानी सिंग्र और उपन्यास प्रकाहर्त ो चुके ैं। इन सर्भी में उन् ोंने आज के ग्रामीण जीवन के जहटल बोि को प्रस्तुत हकया ै। मैत्रेयी पुष्पा का लेखन समस्या-हवर्ेष को तो केंद्र में लेकर चलता ी ै, साथ ी सिंपूणग जीवन का सार र्भी इसमें अहर्भव्यक्त ोता ै। उपन्यास 'झूला नट' में उपन्यास लेहखका ने र्ीलो के जीवन के ब ाने ग्रामीण जीवन में आज र्भी हस्त्रयों के साथ ो र े अन्याय और अत्याचारों का साथगक वणगन हकया ै। आज र्भी मानवीय सरोकारों से क ीं अहिक रूप-रिंर् का म त्व ै। र्ीलो एक सीिी-सरल ग्रामीण युवती ै। सीिे-स ज सिंस्कारों में उसका पालन-पोषण ुआ ै। व पढी-हलखी न ीं ै, परिंतु व्यव ाररक ज्ञान की उसमें कोई कमी न ीं ै। ग्रामीण समाज में आज र्भी हववा पररवार के बडे-बूढों की स महत से सिंपन्न ोता ै। र्ीलो का हववा र्भी सुमेर के साथ पररवार के बडे बुजुर्ों की इच्छा के अनुसार ोता ै। क ीं कोई दबाव न ीं। ऐसे में हववा के पश्चात ी सुमेर का उपेक्षा का बतागव क ािं तक न्यायोहचत ै। इन सारी munotes.in

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10 पररहस्थहतयों में र्ीलो की र्लती क ािं ै ? और उसे हकस अपराि की सजा हमल र ी ोती ै ? दरअसल र्ीलो पुरुषसत्तात्मक समाज की अ िंकारपूणग इच्छा का हर्कार ै। सुमेर पुहलस हवर्भार् में नौकरी पा चुका ोता ै। यद्यहप उसके नौकरी प्राप्त करने में र्ीलो के हपता का म त्वपूणग योर्दान था। सुमेर इस ए सान को र्भूलकर नौकरी पाते ी अपनी इच्छाओिं का र्ुलाम ो जाता ै। अचानक र्ीलो उसे बदसूरत लर्ने लर्ती ै और व र् री रिंर्-ढिंर् की एक युवती से हववा कर लेता ै। इस सारे घटनािम में सोचनीय प्रश्न य ै हक हववा के पश्चात छोडे जाने का अपमान र्ीलो क्यों बदागश्त करे ? लेहखका ने इन सर्भी हस्थहतयों को बडे साथगक ढिंर् से उपन्यास में उर्भारा ै। उपन्यास के केंद्र में हनहश्चत रूप से र्ीलो का जीवन ै परिंतु वतगमान समय में हजस प्रकार जीवन कई प्रकार की जहटलताओिं का हर्कार ो र्या ै, उपन्यास लेहखका ने उन सर्भी को अपने उपन्यास में उतारने का प्रयास हकया ै। र्ीलो के जीवन की हवसिंर्हतयों की हनरथगकता को सरसुती समझती ै। उसका देवर बालहकर्न र्भी समझता ै। इसीहलए सरसुती दो रे अिंतद्वंद में फिंसी र ती ै। न तो व अपने बडे बेटे सुमेर को छोड सकती ै और न ी उससे र्ीलो का दुख देखा जाता ै। इन अिंतद्वंदों में काफी समय तक फिंसे र ने के पश्चात व अिंततः हनणगय लेने में समथग ोती ै। उसके र्भीतर का र् रा दुख य ै हक हजस बेटे से व अपने पररवार की मान-मयागदा और इज्जत को जोडकर देखती ै, उसे कैसे छोड दे। ग्रामीण समाज में वैसे र्भी बडे बेटे का एक अलर् ी दजाग ोता ै। ऐसी हस्थहत में सरसुती अपने छोटे बेटे बालहकर्न को अप्रत्यक्ष रूप से र्ीलो के सामने समहपगत कर देती ै। बालहकर्न स्वयिं सीिा-सरल ग्रामीण युवक ै। पढने हलखने में हचत्त न ीं जमा, तो मािं के क ने पर खेती-बाडी में हदल लर्ा हलया। व र्भी अपनी र्भार्भी र्ीलो के दुख से क ीं न क ीं व्यहथत र ता ै। मािं, सरस्वती के क ने पर व र्ीलो के साथ-सिंर् को स्वीकार कर लेता ै। यद्यहप ऐसा करके उसके जीवन में क ीं न क ीं ा- ाकार ी पैदा ो जाता ै। उपन्यास के अिंत में उसकी हवहक्षप्तता की हस्थहत इस बात को हसद्ध करती ै। अपने सीिे सरल स्वर्भाव के चलते व समाज द्वारा र्ह गत इस ररश्ते को स्वीकार कर लेता ै क्योंहक र्ािंव में बहछया प्रथा के स ारे हकसी युवती के जीवन को सामान्य बनाया जा सकना सिंर्भव ै। व र्ीलो को बहछया प्रथा के हनवग न के हलए क ता ै, परिंतु र्ीलो के मन-महस्तष्क में सुमेर के प्रहत घृणा र्भर चुकी ै और व अब क ीं न क ीं सुमेर से बदला लेना चा ती ै। इसीहलए व बहछया प्रथा के हनवग न से इिंकार कर देती ै। आर्े चलकर एकाहिकार के प्रश्न पर र्ीलो और सरसुती में र्भी आपस में टकराव ोने लर्ता ै और उन दोनों के टकराव में बालहकर्न की हस्थहत और र्भी बुरी ो जाती ै। बालहकर्न सीिा-सादा युवक ै और व र्ािंहतपूणग ढिंर् से जीवन जीना चा ता ै। व र्ीलो के प्रेम को र्भी नकार न ीं सकता और दूसरी तरफ मािं के प्रहत उसका समपगण र्भी कम न ीं ोता। ऐसी हस्थहत में उसके र्भीतर का मानहसक उद्वेर् उसे व्यहथत हकए र ता ै और इन सारी पररहस्थहतयों में अिंततः उसका जीवन बबागद ो जाता ै। इस उपन्यास में समस्याओिं को दो रे स्तर पर देखने की आवश्यकता ै। अपनी प्रकृहत में र्ीलो की समस्या एक व्यहक्तर्त समस्या ै परिंतु इसके सामाहजक प्रर्भाव-दुष्प्रर्भाव अत्यिंत दूरर्ामी ैं। इस उपन्यास में प्रासिंहर्क हवषय को उपन्यास लेहखका ने हजस तर से उठाया ै, उसमें समस्या को हकसी एक सािंचे में डालकर देखा जाना सिंर्भव न ीं ै। इसमें जीवन के म त्वपूणग प्रश्नों का हचत्र खींचा र्या ै और उन् ें समेहकत ढिंर् से देखने की आवश्यकता र्भी munotes.in

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झूला नट : मैत्रेयी पुष्पा
11 ै। र्ीलो और सुमेर के आपसी द्वन्द्व का दुष्प्रर्भाव सवागहिक तो पूरे पररवार पर पडता ै, परिंतु क ीं न क ीं इसकी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष छाया र्ािंव तक र्भी प ुिंचती ै। र्ीलो का एकाकीपन र्भरने का जो प्रयास सरसुती बालहकर्न के माध्यम से करती ै, व हनहश्चत रूप से सरा नीय ै परिंतु जीवन की जहटलता आर्े चलकर बालहकर्न के जीवन को ऐसे मोड पर ला खडा करती ै हजसमें व अपने को ठर्ा ुआ म सूस करता ै। उपन्यास में समस्याओिं के ढािंचे को उपयुगक्त सर्भी तथ्यों को ध्यान में रखते ुए हवश्लेहषत करने की आवश्यकता ै। वास्तव में मैत्रेयी पुष्पा ने इस उपन्यास में हकसी एक समस्या को केंद्र में रखकर हवचार-हवमर्ग न ीं हकया ै। हनहश्चत रूप से स्त्री सिंदर्भों को उन् ोंने म त्वपूणग ढिंर् से सामने रखा ै और य एक स्त्री हवमर्ागत्मक रचना र्भी ै। परिंतु उपन्यास के समेहकत अध्ययन के पश्चात य हनष्कषग र्भी हनकाला जा सकता ै हक लेहखका ने ग्रामीण समाज में हनरिंतर जहटल ोते जा र े जीवन बोि को प्रस्तुत करने में अपनी रुहच हदखाई ै। इसीहलए र्ीलो और सुमेर के प्रसिंर् के बाद र्भी य उपन्यास हनरिंतर जारी र ता ै और इसका अिंत बालहकर्न की हवहक्षप्तता से ोता ै। य उपन्यास सिंपूणग जीवन को केंद्र में रखकर हलखा र्या अत्यिंत साथगक उपन्यास ै। १.५ ‘झूला नट’ में क्तिक्तत्रत ग्रामीण समाज आिुहनक काल में ह िंदी साह त्य के उदय के साथ ी ग्रामीण समाज साह त्य के केंद्र में र ा ै। आरिंर्भ से ी ह िंदी कथा-साह त्य में ग्रामीण जीवन का उसके समस्त हवश्वासों-अिंिहवश्वासों, रूहढयों और जीवन की सरलता-जहटलता का हचत्रण ोता र ा ै। इस दृहि से मुिंर्ी प्रेमचिंद का ह िंदी कथा-साह त्य के क्षेत्र में अहवस्मरणीय योर्दान ै। उन् ोंने ग्राम जीवन का यथाथगपरक हचत्रण अपने कथा साह त्य में हकया ै। उनकी क ाहनयािं ज ािं ग्रामीण जीवन के हवहर्भन्न पक्षों पर प्रकार् डालती ैं, व ी उपन्यास तत्कालीन समय के हचत्र उपहस्थत करते ैं। र्ोदान इस दृहि से उनका सवागहिक उल्लेखनीय उपन्यास ै। साह त्यकारों की समस्या आरिंर्भ से ी ज ािं ग्रामीण जीवन की आहथगक और राजनीहतक समस्याओिं के प्रहत र ी ै, व ीं सामाहजक सुप्तावस्था को लेकर र्भी साह त्यकार जार्रूक र े ैं। र्भारतीय ग्रामीण पररवेर् सदा से ी रूहढयों और अिंिहवश्वासों का हर्कार र ा ै। इसमें कोई सिंदे न ीं ै हक अपनी सीिी-सरल सिंवेदना के कारण ग्रामीण समाज आिुहनक प्रवृहत्तयों को आसानी से स्वीकार न ीं कर सका ै। ग्रामीण समाज अपने पारिंपररक जीवन का अनुसरण करता चला आया ै और इसी का पररणाम र ा हक जाहतप्रथा, हलिंर्र्भेद आहद सिंबिंिी तमाम सामाहजक समस्याएिं ग्रामीण जीवन में म त्वपूणग ढिंर् से हदखाई देती र ी ैं। हजनके हवरुद्ध साह त्यकार युद्ध-उद्घोष करते चले आए ैं। आज का समय सूचना िािंहत का समय ै। मोबाइल और इिंटरनेट ने पूरी दुहनया की सिंचार व्यवस्था को बदलकर रख हदया ै। ग्रामीण क्षेत्र र्भी इसका अपवाद न ीं ै। इिंटरनेट और मोबाइल के द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लोर्ों की प ुिंच आज अत्यािुहनक व्यवस्था तक ो र्ई ै। ग्रामीण समाज र्भी तकनीकी क्षेत्र से पररहचत ो र्या ै। मोबाइल एविं इिंटरनेट के द्वारा व र्भी अपने ह त की र तर की सूचना खिंर्ाल र ा ै। व र्भी इलेक्रॉहनक माध्यम से पैसे के आदान-प्रदान की प्रहिया को समझ चुका ै। अथागत ग्रामीण समाज आज वैहश्वक र्हतहवहियों से पररहचत ोने में समथग ै। परिंतु मैत्रेयी पुष्पा ने जब इस उपन्यास की रचना की थी, व समय ग्रामीण समाज के हलए इतना उन्नत न ीं ो सका था। ऐसे में परिंपरा से चली आ र ी रूहढयों और अिंिहवश्वासों का प्रर्भाव अर्भी र्भी ग्रामीण समाज पर बना ुआ था। उपन्यास में munotes.in

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हवहवि हवमर्ग एविं साह त्य
12 मैत्रेयी पुष्पा ने कई स्थलों पर इस तर के घटनािम का सूत्रपात र्भी हकया ै, जैसे सुमेर के द्वारा र्ीलो को छोड हदए जाने के पश्चात र्ीलो का िाहमगक अिंिहवश्वासों का स ारा लेकर सुमेर को पुनः प्राप्त करने का प्रयास, सरस्वती द्वारा र्भी उसे लर्ातार ऐसे हवहि-हविानों के हलए प्रेररत हकया जाना आहद। उत्तर-र्भारतीय ग्रामीण समाज की सिंरचना अपनी तर की हवहर्ि सिंरचना ै। सामाहजक मान-अपमान के प्रश्न पर पूरा समाज र्ह गत कायों को करने से स मता ै। ग्रामीण समाज में पास-पडोस, पिंचायत और आसपास के पररवेर् को देखकर तथा सामाहजक अवमानना के डर से वे लोर् अनुर्ासन का पालन करते ैं। हकसी र्भी प्रकार के हनहषद्ध कायों का यहद कोई अनुर्मन करता ै, तो पास-पडोस के लोर्ों के द्वारा न केवल उसकी आलोचना की जाती ै बहल्क उसे रोकने का पूरा प्रयास र्भी हकया जाता ै। सरस्वती के पडोस की हस्थहत र्भी कुछ ऐसी ी ै। बडी-बूहढयााँ जब इस बात को समझ जाती ै हक र्ीलो एक पररत्यक्ता की हस्थहत में र र ी ै और उन् ें इस बात का सिंदे ो जाता ै हक क ीं न क ीं बालहकर्न और र्ीलो के बीच कुछ ररश्ता ै तो व सरसुती को टोंकते ुए इस ररश्ते को वैिता प्रदान करने की बात करती ैं। पडोस की काकी के द्वारा बहछया करा लेने का सुझाव सरसुती को हदया जाता ै। मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उपन्यास में बुिंदेलखिंड के ग्रामीण जीवन की सिंरचना का हचत्र अत्यिंत सूक्ष्म र्ैली में प्रस्तुत हकया ै। मारे ग्रामीण समाज में काफी कुछ प्रथाएाँ समाज की समस्याओिं को ध्यान में रखते ुए मानवीय आिार पर हवकहसत ुई ैं। जब र्भी ग्रामीण समाज की बात की जाती ै तो पूवागग्र ों के कारण म केवल हपछडी सभ्यता के रूप में उनके बारे में हचिंतन करते ैं। परिंतु ऐसा न ीं ै। हवश्वासों-अिंिहवश्वासों से अलर् कुछ हवकासर्ील और मानवीय तत्व र्भी इन समाजों में समय के साथ-साथ हवकहसत ोते र े ैं। 'झूला नट' उपन्यास में इनका वणगन र्भी देखने को हमलता ै। बहछया प्रथा ऐसा ी हवकहसत तत्व ै जो ग्रामीण समाज के द्वारा मानवीयता और सामाहजक व्यवस्था को ध्यान में रखते ुए हवकहसत हकया र्या ै। इस प्रथा का म त्वपूणग ढिंर् से हचत्रण और वणगन उपन्यास लेहखका मैत्रेयी पुष्पा के द्वारा हकया र्या ै। ग्रामीण समाज में वैवाह क जीवन नि ो जाने के बाद स्त्री के जीवन को पुनः व्यवहस्थत करने की कोई प्रथा या परिंपरा का उल्लेख प ले के साह त्य में कम ी हमलता र ा ै। मैत्रेयी पुष्पा ने बहछया प्रथा के द्वारा हदखाया ै हक एक स्त्री हजसका वैवाह क जीवन यहद नि ो जाता ै तो उसके पास हवकल्प ोता ै, अथागत बहछया प्रथा का हनवग न करके व अपने जीवन को पुनः व्यवहस्थत कर सकती ै। बहछया प्रथा प्रत्यक्ष रूप से कुछ और न ीं बहल्क पुनहवगवा ेतु सामाहजक अनुमहत ै। इसके द्वारा स्त्री-पुरुष के ररश्ते को वैिता प्रदान की जाती ै। बुिंदेलखिंड के ग्रामीण अिंचल में य प्रथा र्भले ी उच्चवर्ीय समाज में न ीं ै परिंतु हनमनवर्ीय समाज के द्वारा इसका पालन हकया जाता ै। य आश्चयगजनक परिंतु सुखद ै हक ग्रामीण समाज के हनमन वर्ग में इस प्रकार की मानवीय और प्रर्हतर्ील चेतना देखने को हमलती ै। प्राचीन र्भारत में तलाक का तो कोई प्राविान ी न ीं ै परिंतु हविवा ो जाने के पश्चात र्भी कोई हवकल्प हस्त्रयों के जीवन को सिंर्भालने और सुिारने के हलए न ीं था। हजसके हलए हकतने-हकतने आिंदोलन र्भी आिुहनक काल के आरिंहर्भक चरण में देखने को हमलते ैं। ईश्वरचिंद्र हवद्यासार्र ने हविवा पुनहवगवा ेतु हकतना सिंघषग हकया था, य म सर्भी जानते ैं। इसके हवपरीत बुिंदेलखिंड के ग्रामीण अिंचल में इस तर की प्रथा का पाया जाना न केवल उस समाज munotes.in

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झूला नट : मैत्रेयी पुष्पा
13 के मानवीय और प्रर्हतर्ील पक्ष को दर्ागता ै बहल्क इस सिंदर्भग में ग्रामीण ोते ुए र्भी उसमें आिुहनक चेतना का प्रसार हदखाई देता ै। वस्तुतः 'झूला नट' उपन्यास के केंद्र में बुिंदेलखिंड के अिंचल का ग्रामीण समाज ै। मैत्रेयी पुष्पा ने र्ीलो, सरस्वती, बालहकर्न और सुमेर आहद पात्रों के प्रहतहनहित्व में सिंवेदनर्ील ढिंर् से जनजीवन का तो साथगक हचत्रण हकया ी ै साथ ी, ग्रामीण समाज के हवहर्भन्न सकारात्मक एविं नकारात्मक पक्षों का र्भी हचत्रण मुख्यकथा के साथ चलते-चलते ो र्या ै। उपन्यास लेहखका स्वयिं इस पररवेर् से र्भलीर्भािंहत पररहचत र ी ैं। उनका बचपन खुद ऐसे ी ग्रामीण वातावरण में बीता ै। ऐसे समाज की सर्भी प्रकार की सिंवेदनाओिं से वे र्भलीर्भािंहत पररहचत ैं और इसी का पररणाम य र ा ै हक वे झूलानट उपन्यास में इन सर्भी का स ज और प्रर्भावर्ाली हचत्रण कर सकी ै। इस उपन्यास में पूरे पररवेर् का बे द प्रामाहणक हचत्रण देखने को हमलता ै। चा े बात पररवार के स्तर पर ो, या पूरे र्ािंव के सिंदर्भग में, क ीं कोई कृहत्रमता या बनावटीपन देखने को न ीं हमलता ै। १.६ साराांश इस इकाई के अिंतर्गत मैत्रेयी पुष्पा द्वारा हलखे र्ए स्त्री-हवमर्ागत्मक उपन्यास 'झूला नट' का मूल्यािंकन कुछ हवहर्ि र्ीषगकों की दृहि से हकया र्या ै। सबसे प ले तो उपन्यास के कथासार के द्वारा उपन्यास की मुख्य सिंवेदना को हचहन् त करने का प्रयास हकया र्या ै। इसके अिंतर्गत य देखने की कोहर्र् की र्ई ै हक उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा ने हकन हवहर्ि बातों को इस उपन्यास में उर्भारा ै और इनके प्रहत उनके प्रस्तुतीकरण का दृहिकोण क्या र ा ै। दूसरे स्थान पर उपन्यास में प्रस्तुत की र्ई समस्याओिं को लहक्षत करने का प्रयास हकया र्या ै, हजसके अिंतर्गत य देखा र्या हक र्भले ी य एक स्त्री हवमर्ागत्मक उपन्यास ै, परिंतु इस उपन्यास में मैत्रेयी पुष्पा द्वारा बुिंदेलखिंड की ग्रामीण सिंस्कृहत और उसमें जनजीवन की हवहर्िता को देखने का प्रयास हकया र्या ै। इस समाज में ज ािं स्त्री जीवन हवहर्भन्न असिंर्हतयों का हर्कार ै, व ीं इन असिंर्हतयों के कारण ोने वाले हवहर्भन्न दुष्प्रर्भावों की र्भी चचाग उपन्यास के अिंतर्गत की र्ई ै। तीसरे स्थान पर बुिंदेलखिंड के ग्रामीण समाज की वास्तहवक हस्थहत को स्पि करने का प्रयास हकया र्या ै। इस र्ीषगक के अिंतर्गत समाज हवर्ेष में हमलने वाली सर्भी सकारात्मक एविं नकारात्मक प लुओिं को हवर्ेष दृहि से देखने का काम हकया र्या ै। १.७ बहुक्तवकल्पीय प्रश्न १. र्ीलो हकस प्रथा का हनवग न करने से इनकार कर देती ै ? (क) महचया (ख) र्हछया (र्) पहछया (घ) बहछया २. र्ीलो के पहत का क्या नाम ै ? (क) सुहमरन (ख) रघु (र्) बालहकर्न (घ) सुमेर ३. सरसुती के हकतने बेटे ैं ? munotes.in

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हवहवि हवमर्ग एविं साह त्य
14 (क) दो (ख) चार (र्) एक (घ) तीन ४. सुमेर हकस हवर्भार् में नौकरी करता ै ? (क) नर्र पाहलका (ख) हचहकत्सा (र्) हर्क्षा (घ) पुहलस ५. बालहकर्न के र्भाई का क्या नाम ै ? (क) सुहमरन (ख) जर्त (र्) रघु (घ) सुमेर १.८ लघुत्तरीय प्रश्न १. ज़मीन-जायदाद के प्रश्न पर र्ीलो सुमेर से क्या क ती ै ? २. सुमेर र्ीलो से ररश्ता क्यों तोड देता ै ? ३. आरमर्भ में सरसुती र्ीलो के प्रहत हकस तर का व्यव ार करती ै ? ४. वतगमान ग्रामीण समाज मे अिंिहवश्वासों की हस्थहत पर अपने हवचार हलहखए ? १.९ बोध प्रश्न १. उपन्यास ‘झूला नट’ के आिार पर र्ीलो के जीवन की हवसिंर्हतयों का हचत्रण कीहजए ? २. सरस्वती और र्ीलो के आपसी अिंतद्वंद और सिंघषग का हवश्लेषण कीहजए ? ३. ‘झूला नट’ उपन्यास में हकन समस्याओिं का हचत्रण हकया र्या ै ? ४. ‘झूला नट’ उपन्यास में हचहत्रत ग्रामीण समाज की हवर्ेषताओिं का वणगन कीहजए ? १.१० अध्ययन हेतु सहयोगी पुस्तकें १. झूला नट - मैत्रेयी पुष्पा २. स्त्री हचिंतन की चुनौहतयााँ - रेखा कस्तवार ३ . स्वािीनता का स्त्री पक्ष - अनाहमका ४. मह ला सर्हक्तकरण : दर्ा और हदर्ा - योर्ेंद्र र्माग ५. पररहि पर स्री - मृणाल पाण्डेय munotes.in

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15 २ ‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना इकाई कì łपरेखा २.० इकाई का उĥेÔय २.१ ÿÖतावना २.२ ‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना २.२.१ शीलो २.२.२ सुमेर २.२.३ सरसुती २.२.४ बालिकशन २.२.५ अÆय पाý २.३ सारांश २.४ बहòिवकÐपीय ÿij २.५ लघु°रीय ÿij २.६ बोध ÿij २.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ २.० इकाई का उĥेÔय ‘झूला नट’ उपÆयास के अÅययन कì कड़ी म¤ इस इकाई के अंतगªत उपÆयास के ÿमुख चåरýŌ का िवĴेषण िकया गया है। आधुिनक गī िवधाओं म¤ उपÆयास, कहानी, नाटक जैसी िवधाओं म¤ चåरýŌ का अÂयंत महÂवपूणª Öथान होता है। उपÆयास िवधा के अंतगªत मनुÕय के संपूणª जीवन का सांगोपांग िचýण िकया जाता है। ऐसे म¤ यह आवÔयक हो जाता है िक जीवन म¤ िविभÆन तरह कì संवेदनाओं और भूिमकाओं को चåरýŌ के माÅयम से ÿामािणक ढंग से पाठकŌ के सामने ÿÖतुत िकया जाए। िकसी कृित कì यथाथªपरकता को िसĦ करने म¤ इसका अÂयंत महÂवपूणª योगदान होता है। उपÆयास जैसी बृहत कलेवर कì िवधाओं म¤ चåरý िचýण कì सफलता और ÿामािणकता का आधार यह है िक आधुिनक सािहÂय जीवन को यथाथªपरक ढंग से ÿÖतुत करने का लàय रखता है। ऐसे म¤ उसके चåरý इस ÿकार के होने चािहए िक वे जीवन कì ÿामािणक अिभÓयिĉ करने म¤ समथª हŌ, वे अपने पåरवेश से गहरा ताÐलुक रखते हŌ और उनके माÅयम से समÖत पåरवेश सहज एवं Öवाभािवक ढंग से अिभÓयिĉ पाता हो। वे पाý ऐसे िदखने चािहए जैसे वह हमारे बीच के जनजीवन से जुड़े हòए ह§। उनके Ĭारा उपÆयास जैसी िवधाओं म¤ विणªत समÖयाएं ÿामािणक ढंग से आकार पाती हŌ और उनके माÅयम से पाठकŌ को िनणªयकारी िवकÐप भी िमलते हŌ। ‘झूला नट’ उपÆयास एक लघु उपÆयास है परंतु munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
16 उपÆयासकार मैýेयी पुÕपा ने इस कृित म¤ चåरýŌ को महÂवपूणª ढंग से िवकिसत िकया है। इस इकाई के अंतगªत उपÆयास का िवĴेषण चåरýŌ कì ŀिĶ से िकया गया है। २.१ ÿÖतावना ‘झूला नट’ उपÆयास कì रचना सन १९९९ म¤ मैýेयी पुÕपा के Ĭारा कì गई थी। इस उपÆयास म¤ लेिखका ने बुंदेलखंड के úामीण अंचल कì कथा ÿामािणक ढंग से कही है। उपÆयास बेहद रोचक है। इसकì कसावट बहòत अ¸छी है। उपÆयास लेिखका ने िजस ढंग से िवषय को ÿÖतुत िकया है, वह कहé भी भटकाव का िशकार नहé होता। उÆहŌने िजस ढंग से अपनी कृित म¤ पाýŌ का िवकास िकया है, वे पाý उस समÖत पåरवेश और जन-जीवन को साथªक ढंग से अिभÓयĉ करने म¤ समथª ह§। इस उपÆयास के मु´य पाýŌ म¤ शीलो, सरसुती, बालिकशन, सुमेर आिद का नाम िलया जा सकता है। शीलो के चåरý का िवकास लेिखका ने इतने मनोयोगपूणª ढंग से िकया है, िक वह एक कालजयी पाý के łप म¤ पåरवितªत हो गया है। इस इकाई म¤ आगे उपÆयास के सभी चåरýŌ के िवकास का िवĴेषण देखने को िमलेगा। िकसी चåरý का िवĴेषण करते हòए कृित म¤ उसके ÓयिĉÂव कì अिभÓयिĉ, उसके बौिĦक और चाåरिýक गुणŌ कì अिभÓयिĉ आिद को महÂवपूणª ढंग से िवĴेिषत िकया जाता है। यह देखने का ÿयास िकया जाता है िक वे अपने सकाराÂमक या नकाराÂमक łप म¤ िकस ढंग से अपने पåरवेश कì सहज अिभÓयिĉ करने म¤ समथª हो सके ह§। िजस चåरý के Ĭारा यह कायª िजतनी सफलता से हो पाता है, वह उतना ही िवकिसत और सफल चåरý माना जाता है। २.२ ‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना ‘झूला नट’ एक लघु आकार कì औपÆयािसक रचना है परंतु यह कृित अपने लघु आकार होने के बावजूद एक समूचे पåरवेश कì Óयापक संवेदना का वहन करती है, िजसे अिभÓयĉ करने म¤ रचना के पाýŌ का महÂवपूणª योगदान है। उपÆयास लेिखका ने उपÆयास म¤ िजस ढंग से पाý योजना िवकिसत कì है, वह उपÆयास के गठन को अÂयंत सशĉ बनाती है। अÂयंत संतुिलत ढंग से उÆहŌने पाýŌ को इस रचना म¤ िवकिसत िकया है। िकसी भी पाý को हटाकर इस रचना को Æयायपरक और तकªसंगत नहé बनाया जा सकता। इस रचना का मूÐयांकन करते हòए यह ÖपĶ łप से हम¤ पता चलता है िक रचना म¤ सभी पाý अÂयंत तकªसंगत ढंग से िवकिसत िकए गए ह§। िकसी एक को भी यिद हटाने अथवा बढ़ाने का ÿयास िकया जाए तो िनिIJत łप से रचना िवकृत ही होगी। इस तÃय से यह ÖपĶ होता है िक उपÆयास लेिखका ने अÂयंत सावधानीपूवªक रचना कì संवेदना का वहन करने वाले पाýŌ का िवकास िकया है। िनिIJत łप से शीलो इस रचना कì सबसे महÂवपूणª और ÿासंिगक पाý है। लेिखका ने शीलो के चåरý के िवकास म¤ मन-मिÖतÕक से पूरा उīम िकया है। शीलो के अितåरĉ सरसुती, बालिकशन, सुमेर आिद मु´य पाýŌ के अंतगªत रखे जा सकते ह§। इसके अितåरĉ रघु, सुिमरन, रघु के िपता, काकì आिद गौण पाý भी ह§, िजÆहŌने उपÆयास कì संवेदना को आकार देने म¤ महÂवपूणª योगदान िदया है। भले ही ऐसे पाý Öथान कì ŀिĶ से कम ÖथलŌ पर ही िदखाई देते ह§ परंतु उपÆयास कì मु´य संवेदना को िवकिसत करने म¤ इनके महÂव से इनकार नहé िकया जा सकता। इस तरह जहां शीलो, सरसुती, बालिकशन और सुमेर इस उपÆयास के मु´य पाýŌ के łप म¤ िदखाई देते ह§, वहé रघु, रघु के िपता, सुिमरन, काकì आिद पाý गौण पाý के łप म¤ रखे जा सकते ह§। munotes.in

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‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना
17 २.२.१ शीलो ‘झूला नट’ उपÆयास कì सबसे मु´य पाý शीलो ही है। शीलो को क¤þ म¤ रखकर ही समÖत औपÆयािसक िøया-Óयापार का आयोजन उपÆयास म¤ लेिखका के Ĭारा िकया गया है। शीलो के चåरý का िवकास लेिखका ने बड़ी सूझ-बूझ से िकया है। आरंभ म¤ एक सीधी-सादी िकशोर युवती शीलो, पåरिÖथितयŌ के सामने आने पर धीरे-धीरे कैसे समझदार और Óयवहाåरक युवती म¤ तÊदील हो जाती है, यही उसके चåरý के िवकास कì सहजता है। उपÆयास का आरंभ शीलो के जीवन कì असामाÆय िÖथितयŌ से होता है और िफर बालिकशन के पूवª Öमृित संबंधी वणªन उसे आगे बढ़ाने का काम करते ह§। लेिखका ने उपÆयास कì कथावÖतु को ÖपĶ करने के साथ ही शीलो के चåरý को भी िवकिसत िकया है। शीलो का िववाह सुमेर के साथ होता है और शीलो अपनी ससुराल आती है। ससुराल म¤ आने के साथ ही शीलो के जीवन म¤ िनयित कुछ अजीब सा खेल खेलना शुł कर देती है। úामीण समाज म¤ शारीåरक भंिगमाओं और संरचना कì तरफ िवशेष Åयान िदया जाता है। इन सभी से शकुन-अपशकुन, शुभता-अशुभता को जोड़कर देखा जाता है। शीलो के एक हाथ म¤ पांच के Öथान पर छः उंगिलयां ह§। यह बात पता चलते ही अचानक कानाफूसी शुł हो जाती है। मुंह िदखाई का अवसर है और घर म¤ भीड़ लगी हòई है। बालिकशन के मुंह से अचानक यह बात िनकल जाती है और िफर भीड़ भरे घर म¤ खासा तमाशा बन जाता है... "आंगन म¤ बैठी औरतŌ ने ढोलक, मंजीरा, घुंघł एक ओर फ¤के। बीिसयŌ जोड़ी आंख¤ भाभी के सीधे हाथ से जा िचपकé। उनकì हमउă लड़िकयŌ ने धावा बोल िदया। वे टटोल-टटोलकर उंगली को परख रही थé। बहó थी िक उस खोट को बदनुमा दाग समझकर िकसी तरह छुपा लेना चाहती थी, मगर वह लटकती हòई चुगलखोर उंगली..... आिखरकार लड़िकयां जीत गईं। िजस बहó को अपने नाच-गाने िदखा-सुनाकर åरझाने आई थé, खुश करके इस गांव म¤ िमलाने आई थé, वे ही अब उसका तमाशा देख रही थé, हंस रही थé, िचÐला रही थé। पिÊलक के माल कì तरह उंगली को खéच-तान रही थé।" शीलो उस समय कोई ÿितिøया न देते हòए सहजता से इस बात का सामना कर लेती है। यहé से उपÆयासकार उसके जीवन कì असंगितयŌ का संकेत देना आरंभ कर देती ह§। यह तो अभी शुłआत थी परंतु असली समÖया तो उसके जीवन म¤ तब शुł होती है, जब उसका पित सुमेर आरंभ से ही उसे नहé अपनाता और उसके łप-रंग के कारण उसे छोड़कर अपनी नौकरी म¤ वापस शहर चला जाता है। जहां कुछ समय के बाद वह एक शहरी युवती से िववाह कर लेता है। िववािहत शीलो इन सारे घटनाøमŌ से अनजान होती है। उसे लगता है िक शायद इसी वजह से सुमेर उससे दूर है, शायद यह देवी-देवताओं कì माया है और उÆहé को ÿसÆन करके सुमेर को वापस पाया जा सकता है। चंपादास बैद ने िजतने भी उपचार बताए, सब िकए "इसके बाद Ąत-उपवासŌ का िसलिसला। सोलह सोमवार। संतोषी माता के शुøवार। केला पूजन के बृहÖपितवार। शिन úह शांित के शिनवार। भाभी सूख-सूख कर कांटा होती जा रही ह§। उनका रंग बेरौनक हो गया। चेहरा लंबोतरा। सुंदर दांत बाहर िनकल आए।" िसफª इतना ही नहé बिÐक इसके बाद "शीलो भाभी कì लगन सारे ĄतŌ को पार करती हòई सती-कथाओं म¤ ÿवेश कर गई। कथाएं बालिकशन सुनाता - अनुसुइया, लोपामुþा, मदालसा, सािवýी, दमयंती..." परंतु उसका कोई भी सकाराÂमक पåरणाम देखने को नहé िमला। शीलो के जीवन म¤ आयी इस िवसंगित के िलए उसके साथ सरसुती भी अपराध बोध महसूस करती है। शीलो से वह सहानुभूित भी रखती है। तभी तो उसे लगता है, "बेटी, पढ़ा-िलखा लड़का.... कौन से बैरी ने घात धरा दी। मोरे महादेव बुिĦ फेर¤गे तो सही। आज नहé, munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
18 तो कल। सबर का फल मीठा होता है। सुख नहé रहा, तो दुख भी नहé रहेगा।" सुमेर कì अनुपिÖथित म¤ शीलो को िबखरने से सरÖवती और बालिकशन दोनŌ कì सहानुभूित ने ही बचाया परंतु बरस-बरस भर बाद लौटकर आने वाले सुमेर से धीरे-धीरे शीलो कì सारी उÌमीद¤ खÂम हो गईं। वह अनपढ़ थी, गंवार थी परंतु आदमी का मन पढ़ना जानती थी। वह समझ गई कì सुमेर का सुख उसके भाµय म¤ नहé है। लेिखका ने इन सभी ÖथलŌ पर शीलो के चåरý का अÂयंत सहज और Öवाभािवक वणªन िकया है। एक नई िववािहता बहó िजस ढंग से संकोच म¤ रहती है, शीलो भी अपने मन कì बात िकसी से कह नहé सकती। यह अलग बात है िक सुमेर न सही परंतु बालिकशन और सरसुती के łप म¤ उसकì पीड़ा को जानने और समझने वाले सास और देवर तो थे ही, "वह कैसी रात थी। पलंग पर एक ľी िघसटती रही हो जैसे। अÌमा के पास धीरज देने वाली बात खÂम हो गई। पूरी रात जागरण करने के बाद भी वह भाभी कì बाबत कोई हल नहé िनकाल पाया। भोर का तारा िखड़कì से चमकता हòआ िदखाई िदया.... लेिकन उसका िदमाग Łई कì तरह धुना हòआ तार-तार.. जाड़ा-गरमी-बरसात गुजरती रही। शीलो भाभी बेअसर िशला कì तरह पड़ी रही। अÌमा िपघल-िपघलकर रांगे कì तरह िनबटी जा रही थी। घर िदनŌिदन भयानक łप म¤ बदल रहा था।" शीलो के जीवन म¤ एक लंबे समय तक एकाकìपन कì यह िÖथित बनी रही और उसके साथ सरसुती भी घुटती रही, "कौन सा पुरखा सराप गया िक घर कì बंस-बेल म¤ कÐला फूटते िदखाई नहé देते। बेटा-बहó का संग होते-होते रह जाता है। बांझ देहरी.... तेरे िपता को न सुरग िमले, न नरक। िनरबंस आदमी अधबीच लटका रहता है।" यही कारण था िक उसने बालिकशन को शीलो के संग-साथ ही अनुमित दे दी। बालिकशन को शीलो को समिपªत करने से पहले सरÖवती ने ³या-³या जतन नहé िकए। भले समाज म¤ जो ठीक नहé समझा जाता है, उसे वह भी िसखाया पर उसका कोई जतन काम नहé आया। उसे लगता था, शीलो ही सुमेर को åरझा पाने म¤ असफल है, तो उसे समझाते हòए कहती है, "मूरख, अपने आदमी को हाथ म¤ करने कì खाितर जनी को ³या-³या जतन नहé करने पड़ते ? सौ तरह के गुन-ढंग..... तरह तरह से åरझाती है। धनी के आगे बेिडनी का łप धरना पड़ता है। शीलो, मेरे जाने तू सेज पर भी गऊ माता..... अरी िसरêन, जिनयŌ के चलते सतयुग-कलयुग सब बरोबर। सितयŌ के आदमी बेिड़िनयŌ ने छीने है सदा। बदल जाएँ जुग, यह बात नहé बदलने वाली। बेटी, सती का łप तो ऊपर का ढŌग है, बस।" ससुराल से उपेि±त होकर भी ससुराल म¤ बने रहना शीलो कì िववशता भी थी, कारण यह था िक मायके म¤ उसकì अपनी भौिजयŌ के चलते उसका जीवन नकª था। ऐसे म¤ पåरÂयĉा का अपमान सहते हòए भी ससुराल म¤ बने रहना उसे कहé ºयादा ठीक लगा, "अपने चरणŌ से अलग न करना, अÌमा। इस घर म¤ पड़ी रहने दो, म§ खेत कì घास.... बुरी घड़ी म¤ जÆमी, तुÌहारी चाकरनी बनकर रहóंगी। बालू कì दुÐहन कì टहल कłंगी। उनके ब¸चे पालूंगी। łखी-सूखी खाकर घड़ी काट लूंगी। मायके म¤ ³या सवाल-जवाब नहé हŌगे ? िदन-रात कì सूली....." िÖथितयŌ के इस घात - ÿितघात से शीलो ने जÐद ही अपने को उबार िलया। इसम¤ सरसुती और बालिकशन कì सहानुभूित भी काफì काम आई। बालिकशन के साथ जीवन म¤ थोड़ी िÖथरता आने पर शीलो अपने मान-अपमान के ÿित सचेत हòई। उसके भीतर िनिIJत łप से गांव-समाज और सुमेर के ÿित िवþोह भर गया। बालिकशन और उसके åरÔते पर गांव-समाज के बात करने को वह जºब नहé कर पाती और उसका िवþोही तेवर देखने को िमलता है। हमारे समाज म¤ ľी और पुŁष दोनŌ के िलए अलग-अलग मूÐय बन गए ह§। भले ही िकतने भी munotes.in

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‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना
19 आदशª कहे और बखाने जाएं परंतु पुŁषस°ाÂमक समाज, सामािजक िनयमŌ को अपने मन मुतािबक अपनी सुिवधा के अनुसार मोड़ ही लेता है। ऐसे सामािजक िनयमŌ के ÿित भी उसके मन म¤ िवþोह पैदा होता है। इसी का पåरणाम था िक जब बिछया के िनवªहन कì बात सामने आती है तो वह सरसुती से कहती है िक "अÌमा जी, रीत-रसम िलखा हòआ Ł³का तो नहé होती।" उसके मन म¤ और भी बहòत कुछ उमड़-घुमड़ रहा था। स°े कì अÌमा, काकì आिद के Ĭारा बार-बार बिछया के िलए टोके जाने पर भी वह अपने िवþोह के कारण ही तैयार नहé होती। ľी और पुŁष म¤ परंपराओं के अंतर के कारण ही वह काकì से कहती है, "ऐं काकì जी, पुिलिसया बेटा कì बिछया कì पांत खा ली ? पूछा नहé िक बरकĘो (बाल कटी) Óयाही है या रखैल ? बेटŌ के चलते रसम-रीत भूलकर बहòओं कì पीठŌ के िलए कोड़े िलए िफरती हो तुम बूढी जनी।" उपÆयास म¤ शीलो का चåरý यहé से बदलने लगता है। एक सीधी-सादी बहó से एक Óयवहाåरक ľी म¤ तÊदील होने म¤ उसे ºयादा समय नहé लगता। यह पåरवतªन आज के समय का बड़ा पåरवतªन है मैýेयी पुÕपा ने अपनी ľी-िवमशाªÂमक कृितयŌ म¤ ऐसे पåरवतªनŌ को सफलतापूवªक लि±त िकया है। आज कì ľी सब कुछ सहते हòए, आÂमघात कर लेने वाली ľी नहé है बिÐक वह अब अपने वजूद को न केवल बचाने वाली बिÐक समाज कì पुŁषस°ाÂमक माÆयताओं पर ÿijिचÆह खड़ा करने वाली ľी भी है। भले ही शीलो पढ़ी-िलखी नहé थी, भले ही उसे िनयम-कानून कì जानकारी नहé थी, पर मानवीयता के ÿित सामाÆय बुिĦ उसके भीतर अवÔय थी और वह जब एक बार पåरिÖथितयŌ को अपनी तरफ करना शुł करती है तो अपनी इसी सहज बुिĦ से िनणªय भी लेती है। सुमेर के ÿित उसके Ńदय म¤ जो घृणा का भाव है, उसी के कारण वह सुमेर और अपने åरÔते को सामाÆय नहé होने देती। बिछया का िनवªहन भी वह केवल इसिलए नहé करती तािक जमीन जायदाद पर वह सुमेर के साथ बराबर कì हकदार बनी रहे। िनयित उसे यह अवसर भी जÐदी ही देती है और वह सुमेर से अपने अपमान का बदला ले पाती है। इस Öथल पर शीला के ÓयिĉÂव कì ŀढ़ता ÖपĶ होती है, उसकì िनडरता ÿकट होती है। उसे कोई फकª नहé पड़ता िक सुमेर सरकारी कमªचारी है, पुिलस िवभाग म¤ है, अपने साथ हòए अÆयाय के िलए वह उसके सामने खड़ी हो जाती है। एक तरह से जब यह मान िलया जाता है िक शीलो और बालिकशन का åरÔता Öथायी हो चुका है, तब सही अवसर समझकर सुमेर गांव आता है। सरसुती को यह लगता है िक पåरवार कì माया म¤ बार-बार आता है। मां होने के नाते वह बेटे के ÿित दुभाªवना मन म¤ ला ही नहé पाती, परंतु सुमेर जब इस बार आता है तो सरसुती से अपनी जायदाद के बंटवारे कì बात कहता है। सरसुती को यह उÌमीद नहé थी और सुमेर शहर के खचŎ का रोना रोते हòए उसे िकसी तरह तैयार कर लेता है। शीलो के सामने भी घिड़याली आंसू रोता है, इस अपे±ा म¤ िक शीलो उसकì इस योजना म¤ िकसी तरह कì Łकावट न बनकर खड़ी हो जाए। वह शीलो से कहता है, "असल बात ये है शीलो िक शहर म¤ रहना-बसना हमारी मजबूरी हो गया है। मजबूरी के चलते साधन पास म¤ नहé है, िद³कत तो यही है। गृहÖथी को िसर पर लादकर तो घूमा नहé जा सकता। रहवास भी चािहए ही। ...... शीलो म§ने उससे (नई पÂनी से) कहा था िक शीलो जैसी औरत धरती पर बहòत नहé जनमती। रग-रग म¤ Âयाग, दया भरे वह िबरली ही है। िदल बहòत बड़ा।" पहले तो सुमेर इस तरह कì चालाकì से शीलो को अपने प± म¤ करने का ÿयास करता है और िफर आगे कहता है िक "तुमसे सलाह करना चाहता हóँ, ³यŌिक तुम ही इस घर म¤ समझदार हो। अÌमा का ³या, जैसे समझा दो, समझ लेती ह§। बालिकशन बेवकूफ है और munotes.in

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20 बेवकूफ आदमी अ³सर मुसीबत बन जाता है। म§ जानता हóँ, तुम उसे काबू म¤ ले सकती हो। वैसे, बात कुछ भी नहé, अपने िहÖसे कì जमीन का सवाल है, उसे आनाकानी ³यŌ होगी ? बात वही है न, गंवार आदमी हल जोतता है पराई जमीन म¤ और सोचता है िक वह उसी कì है। दूसरे कì जोत से अिधक ÿेम करने लगता है िकसान। बालू िकसानŌ से अलग तो नहé।" परंतु शीलो के इरादे तो कुछ और थे। वह अपने साथ हòए अÆयाय का ÿितकार चाहती थी। िववाह होना और उसके बाद उसे न िनभाना, यह सुमेर कì गलती थी। िववाह के टूटने म¤ शीलो कì कोई गलती नहé थी। łप-रंग शीलो के हाथ कì चीज नहé थी, वह कुदरती था। शीलो के Öवािभमान को िजस ढंग से सुमेर ने आहत िकया था, शीलो ने भी अवसर पाकर सुमेर को उसी कì भाषा म¤ ÿÂयु°र भी िदया। पहले तो उसने, उसके इस Ăम को दूर िकया िक उसके और बालिकशन के åरÔते कì वाÖतिवकता ³या है, "काय के पित-पतनी, बाबूजी ? वह अबोध मन का अ¸छा है, सो बस..... तुÌहारी Êयाहता होने के बाद भी..... पर छोड़ो उस बात को। बालिकशन तो ऐसे ही है हमारे िलए, जैसे तुÌहारे िलए तुÌहारी दूसरी औरत। िबनÊयाही, मनमजê कì। सच मानो, बालिकशन भी इस से ºयादा कुछ नहé।" सुमेर को शीलो से िबÐकुल भी ऐसी उÌमीद नहé थी। उसे लगा था िक वह जैसा चाहता है, वैसा कर लेगा। परंतु शीलो ने तो पूरी बाजी ही पलट दी थी। जायदाद के मसले पर भी वह कहती है, "जमीन-जायदाद कì बात यह रहने दो िक यह मामला तो हम भी हमारे - तुÌहारे बीच ही है। बाबूजी, बालिकशन िसरफ अपने िहÖसे का मािलक है। वह कौन होता है हमारे-तुÌहारे िहÖसे म¤ टांग अड़ाने वाला ? िबÐकुल ऐसे ही, जैसे तुÌहारी वह िबचारी कोई नहé होती हमारे - तुÌहारे बीच। यह जर-जोł के मामले बड़े ब¤ड़े (किठन) ह§ बाबूजी।" इसके बाद सुमेर पर तंज करते हòए वह कहती है, "तुम पढ़े-िलखे हािकम एलकार सब समझ गए हŌगे, इतना तो हम¤ भरोसा है।" शीलो म¤ अब तक अकेले ही अपनी लड़ाई लड़ने का साहस आ चुका था। आरंभ म¤ उसकì िÖथितयŌ को देखकर बालिकशन और सरसुती ने उसे हर तरह से राहत देने का काम िकया। सरसुती का Ćदय, एक मां का Ńदय था। वह िकसी भी सूरत म¤ अपने बेटे को पराÖत होते नहé देख सकती थी। ऐसे ही जब शीलो सुमेर कì इ¸छाओं पर पानी फेर देती है, तो सरसुती भी उसके िवŁĦ हो जाती है। सरसुती के सामने बार-बार गांव म¤ इºजत और सÌमान का कारण सुमेर बना रहता है। वह सुमेर से कहती है, "सुमेर, तू यह सोच िक म§ने अपना अखेल नादान बेटा काए को बांधा था इस हिथनी के पावŌ म¤ ? बस, इसी कारन िक तेरे िहÖसे कì धरती न चर जाए। पर बेटा, इस हिथनी कì देह म¤ चालाक लुखåरया का मगज है, यह पता नहé था। मेरी बुिĦ पर पथरा िगरा िदए महादेव Öवामी ने, नहé समझी िक बिछया के नाम पर िबदकती ³यŌ है ? म§ने तो दुिखया समझकर इस पर भरोसा कर िलया। तब तो दुसमिन रो-रोकर बैन कर रही थी - अÌमाजी सात भाँवर¤, आंिगन सा¸छी और बाराितयŌ के आगे वचन भरकर संगी मुझे Âयाग गया, तो अिछया बिछया का ³या िवĵास कłं ?...... हाय, म§ िसåरªन नहé जानती थी िक सांिपन को दूध िपलाकर िवष भर रही हóं बेटŌ कì िजंदगानी म¤.... एक िदन यही डस लेगी।" परंतु इस तरह कì बातŌ से शीलो पर कोई फकª नहé पड़ा। उसम¤ इतना आÂमिवĵास आ चुका था िक वह जानती थी िक ³या सही और ³या गलत कर रही है और उसे इसम¤ कुछ भी गलत नहé जान पड़ रहा था, जो वह सुमेर के साथ कर रही थी। आिखर उसकì िजंदगी कì बबाªदी का कारण सुमेर ही था। सरÖवती के िवलाप पर वह कहती है, "बड़े बेटे को खेती का िहÖसा। हमसे बात कर¤, तो समझा नहé िक तुÌहारे बेटे ने भाँवरे डालकर हम¤ िजंदगी से munotes.in

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21 बेदखल कर िदया, तब ³या कोरट-कचैरी भी उसके अमले म¤ है िक कानून से खाåरज कर दे? हमने यह जानकारी जुटा ली तो अÌमा अदावत पर उतर आईं।" वाÖतव म¤ शीलो का चåरý उपÆयास म¤ िजस तरह से विणªत है या िजस तरह से घटनाøमŌ से िनकलकर सामने आता है, उसके चåरý म¤ एक दुिवधा बराबर बनी रहती है। वह एक तरफ तो अपने मान-अपमान और ÿितकार को लेकर आøोश म¤ रहती है, वहé दूसरी तरफ बालिकशन को लेकर भी उसम¤ एक अिधकार भावना बराबर देखने को िमलती है। बालिकशन से åरÔता जोड़ने के बाद वह िववािहत न होने के बावजूद अपने उस åरÔते को पूरी आÖथा से िनभाती िदखाई देती है। बालिकशन जो सुमेर और सरसुती दोनŌ कì ही नजरŌ म¤ िसरê और बेवकूफ है, उसी बालिकशन को शीलो Óयावहाåरकता िसखाने का काम करती है। वह उसे पहनने-ओढ़ने के तौर-तरीके और अÆय चीजŌ को लेकर सचेत करती रहती है। खेती-बाड़ी को लेकर भी वह लगातार बालिकशन को सहयोग देती है। इधर-उधर से जानकारी लेकर वह खेती के तरीके भी बदलती है। एक बार जब वह सुमेर से अपने ÿितकार को आमने सामने ÖपĶ कर देती है तो धीरे-धीरे बालिकशन पर अिधकार होने के नाते वह, पåरवार कì बागडोर भी अपने हाथ म¤ ले लेती है। सरसुती से इस पर भी उसका संघषª उपÆयास म¤ िदखाया गया है। यहां भी शीलो के ÓयिĉÂव कì ŀढ़ता देखने को िमलती है। सरÖवती से ऐसे ही िववाद पर वह कहती है, "अÌमा जी, गुÖसा पी जाओ। बूढ़े जमाने उखड़¤गे नहé तो नया बखत आएगा कैसे ? अपने इस र¤गटा को रेत म¤ नहé, सड़क पर चलना सीखने दो। शुł म¤ पांव िछल¤गे जłर, पर मोटर कì तरह दौड़ना आ जाएगा।" 'झूला नट' उपÆयास म¤ शीलो का चåरý िजस ढंग से िवकिसत िकया गया है, वह िहÆदी कथा-सािहÂय के इितहास म¤ एक नए युग का संकेत है। शीलो से पहले िहंदी कथा-सािहÂय म¤ जो ľी पाý महÂवपूणª ढंग से िवकिसत हòए ह§, वे अपनी कमजोåरयŌ और िववशताओं के साथ ही िचिýत हòए ह§। अपवादÖवłप कुछ सािहÂयकारŌ ने इस परंपरा से अलग हटकर िľयŌ के दुÖसाहस को िदखाने का ÿयास िकया था। िľयां अपनी अपने जीवन को अपनी िनयित और भाµय मानकर जीती थé। अÂयंत Ńदयþावक ढंग से कथाकारŌ ने उनकì सामािजक िÖथित का िचýण िकया है। परंतु ‘झूला नट’ उपÆयास कì शीलो सही अथŎ म¤ नए युग कì नारी शिĉ के उभार को अिभÓयĉ करती है। वह अपने जीवन कì िवपरीत पåरिÖथितयŌ को न तो अपनी िनयित मानती है और न भाµय समझकर चुपचाप बैठती है, बिÐक वह अपनी सहज úामीण बुिĦ के अनुसार उन िÖथितयŌ को अपने हक म¤ करने के िलए सदा ÿयÂनशील रहती है। सुमेर के Ĭारा उसका जो अपमान िकया गया था, उसे वह कभी नहé भूलती और अवसर पाते ही वह सुमेर को यह जता देती है िक िजसे वह कमजोर और परवश समझे बैठा था, वह भी बहòत कुछ कर सकती है। अपने जीवन के िलए वह भी फैसले ले सकती है। समाज को दरिकनार करके वह भी सही और गलत का चयन कर सकती है। उपÆयास म¤ शीलो का चåरý अÂयंत यथाथªवादी चåरý है। लेिखका ने िकसी भी तरह के आदशª को िदखाने या थोपने का ÿयास नहé िकया है। एक सामाÆय पाý वाÖतिवक अथŎ म¤ अपनी पåरिÖथितयŌ म¤ िजस ढंग से िदखाई दे सकता है या उन पåरिÖथितयŌ म¤ Öवाभािवक ढंग से वह जो िनणªय कर सकता है, वही शीलो के पाý के Ĭारा िदखाया गया है। शीलो का चåरý िहंदी कथा-सािहÂय के अÂयंत सशĉ और अमर चåरýŌ म¤ से एक है। वह बदलते युग-संदभŎ कì यथाथª अिभÓयिĉ है। munotes.in

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22 २.२.२ सरसुती सरसुती भी 'झूला नट' उपÆयास कì अÂयंत महÂवपूणª पाý है। सरसुती िवधवा है, उसके पित कì मृÂयु हो चुकì है। वह पåरवार म¤ एक तरह से मुिखया कì भूिमका म¤ है, िजसने पित कì मृÂयु के बाद पåरवार को संभाला है। सुमेर और बालिकशन कì मां, सरसुती पूरे उपÆयास म¤ िवकट िवरोधाभासŌ से िघरी िदखाई देती है। वह एक साथ ही परंपरा और परंपरा म¤ बदलाव कì समथªक लगती है। पुिलस िवभाग म¤ सुमेर कì नौकरी लग जाने के बाद उसे पåरवार संभलता हòआ िदखाई देता है और सुमेर के łप म¤ वह घर का नया मुिखया भी देखती है। परंतु सुमेर कì एक गलती के चलते उसके जीवन म¤ समÖयाएं बढ़ जाती ह§। सुमेर अपनी नव-िववाहता पÂनी शीलो के रंग-łप के कारण उसे पÂनी के łप म¤ नहé Öवीकारता और यहé से पåरवार का सामंजÖय और तालमेल िबगड़ना शुł हो जाता है। सरसुती और उसके छोटे बेटे बालिकशन कì सहानुभूित शीलो के साथ है। सरसुती चाहती है िक शीलो और सुमेर का वैवािहक जीवन सामाÆय हो जाए पर अंततः वह नहé होता और इसी एक दुघªटना के चलते पूरे उपÆयास म¤ सरसुती वैयिĉक और सामािजक मान-अपमान का िशकार होती रहती है और उसका जीवन संघषªमय बना रहता है। इसी एक दुघªटना के कारण वह बालिकशन और शीलो के åरÔते को Öवीकार कर लेती है, िजसके कारण न केवल उसके जीवन म¤ बिÐक बालिकशन के िलए भी समÖयाएं खड़ी हो जाती ह§। वह अपने बेटŌ से अÂयिधक मोह रखती है परंतु साथ ही अपनी बहó शीलो के ÿित भी उसके Ńदय म¤ सहानुभूित है। एक ľी होने के नाते वह ľी पीड़ा को भलीभांित जानती है। सुमेर और शीलो का िववाह उसके िलए अÂयंत खुशी का कारण है, ³यŌिक उनका िववाह मृÂयु से पहले सुमेर के िपता ने ही तय िकया था। बड़Ō के कहे को िनभाते हòए सरसुती ने खुशी-खुशी इस िववाह को संपÆन कराया। सुमेर उसका बड़ा बेटा है और úामीण समाज म¤ बड़े बेटे का दजाª घर के मुिखया कì तरह होता है। सुमेर घर का बड़ा बेटा तो है ही साथ ही वह पुिलस महकमे म¤ नौकरी भी करता है और इसीिलए वह पूरे गांव म¤ घर कì इºजत को बढ़ाने वाला है। इस नाते सरसुती भी उसे पåरवार म¤ मुिखया सरीखा महÂव देती है, "रघु और रघुआ का बाप सुमेर के पीठ पीछे बमकते ह§; आने दो आमने-सामने पर, ऐसे बात कर¤गे, जैसे सुमेर उनका हािकम हो। इलम-आसन पाए आदमी का कौन गुलाम नहé हो जाता ? पूरा गांव इºजत करता है।" वह बालिकशन को भी सुमेर के ÿित इसी दज¥ के अनुसार समझाती-बुझाती रहती है, "तेरे िपता के ठौर है तेरा भइया। बेटा, इस घर का मदª वही है। पुिलस म¤ है, तो घर कì इºजत...." सरसुती के चåरý के माÅयम से उपÆयास लेिखका ने सचमुच घर कì मयाªदा कì िचंता करने वाली एक úामीण वृĦा का सहज िचýण िकया है, िजसके िलए अपना घर और इºजत सवōपåर है। पर अपनी संतानŌ के चलते उसे कई िवरोधाभासŌ से गुजरना पड़ता है। एक तरफ सुमेर के Ĭारा िकया गया दूसरा िववाह उसके िलए बहòत सोचनीय हो जाता है। इस संबंध म¤ अपनी संतान होते हòए भी सुमेर के ÿित उसके मन म¤ रोष है और वहé शीलो के ÿित उसके मन म¤ सहानुभूित है। शीलो से सहानुभूित ÿकट करते हòए सरÖवती कहती है, "बेटी, पढ़ा-िलखा लड़का..... कौन से बैरी ने घात धरा दी। मोरे महादेव बुिĦ िफर¤गे तो सही। आज नहé, तो कल। सबर का फल मीठा होता है। सुख नहé रहा, तो दुख भी नहé रहेगा।" अपने úामीण सरल Öवभाव के चलते वह देवी-देवताओं और टोने-टोटके, िकसी भी सहारे सुमेर और शीलो के जीवन को सहज बनाना चाहती है। वह अपने गांव के चंपादास बैद के बताए हर munotes.in

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‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना
23 उपाय को खुद भी अपनाती है और शीलो को भी ÿेåरत करती है "बहó से महामाई के मंिदर तक और मंिदर से िशवाले तक āĺ बेला म¤ पेड़ भरवाओ (पेट के बल लेट-लेटकर पहòंचना)। पाँच गाय, तीन कु°Ō कì रोटी िनत िनयम से िनकाली जाएं। तुलसी का चौरा और पीपल का पेड़ ढारे। घर म¤ सुंदरकांड का पाठ करो। साला सुमेर ³या, सुमेर का बाप चला आएगा परलोक से। तप कì माया, देवी-देवता का िसंहासन िहला दे, आदमी कì ³या िबसात ?" परंतु सारे उपाय िवफल रहते ह§। सुमेर, शीलो से िकसी भी तरह का åरÔता नहé रखता। सरसुती को ऐसा भी लगता है िक शायद शीलो, सुमेर को åरझा नहé पा रही, पितयŌ को वश म¤ रखने के तौर-तरीके उसे नहé आते। इसीिलए ľी जीवन कì बदरंग स¸चाई को बताते हòए सरसुती शीलो को अकेले म¤ समझाती है, "मूरख, अपने आदमी को हाथ म¤ करने कì खाितर जनी को ³या-³या जतन नहé करने पड़ते ? सौ तरह के गुन-ढंग..... तरह-तरह से åरझाती है। धनी के आगे बेड़नी का łप धरना पड़ता है। सीलो, मेरे जाने तू सेज पर भी गऊ माता..... अरी िसåरªन जिनयŌ के चलते सतजुग-कलजुग सब बरोबर। सितयŌ के आदमी बेिड़िनयŌ ने छीने ह§ सदा। बदल जाएँ जुग, यह बात नहé बदलने वाली। बेटी, सती का łप तो ऊपर का ढŌग है, बस।" शीलो से सुमेर कì दूरी सरसुती के िलए भारी िचंता का सबब बनती गई। अकेले म¤ ये उसकì िचंता बड़बड़ाहट म¤ बदल जाती थी, "कौन सा पुरखा सराप गया िक घर कì बंस-बेल म¤ कÐला फूटते िदखाई नहé देते। बेटा-बहó का संग होते-होते रह जाता है। बांझ देहरी..... तेरे िपता को न सुरग िमले, न नरक। िनब«स आदमी अधबीच लटका रहता है।" सुमेर के लगातार नकाराÂमक रवैये के कारण वह शीलो कì पीड़ा को देख नहé पाती। उसका छोटा बेटा बालिकशन Öवभाव से अÂयंत सरल और सीधा है। वह अपनी मां कì कही हòयी िकसी भी बात को पÂथर कì लकìर समझता है। कोई राÖता न पाकर सरसुती बालिकशन को शीलो के साथ रहने के िलए तैयार कर लेती है। सुमेर कì अनुपिÖथित म¤ और बालिकशन के सरल, भोले Öवभाव के चलते वह सहानुभूितवश शीलो और बालिकशन के åरÔते को Öवयं अनुमित देती है। हालांिक इसके िलए वह बार-बार Óयिथत भी होती है और गांववालŌ से बहòत कुछ सुनती भी है। सरसुती यह भी चाहती है िक उसका घर-पåरवार सुख-शांित से रहे और इसके िलए उसे जो मागª ताÂकािलक पåरिÖथितयŌ के अनुसार ठीक समझ म¤ आता है, वह उसे अपनाती भी है। परंतु उपÆयास म¤ अपने ही िकए पर उसे बार-बार Óयिथत होते भी लेिखका ने िचिýत िकया है। सुमेर पूरे पåरवार कì इºजत को दांव पर लगाकर दूसरा िववाह कर लेता है और िफर अपनी जायदाद का बंटवारा करने के िलए गांव आता है। सरसुती को लगता है िक पåरवार-मोह म¤ वह बार-बार गांव आता है, उसे लगता है िक उसका बड़ा बेटा उसे बहòत मानता है, पर वह उसके फरेब को बाद म¤ समझ पाती है। सुमेर कì बंटवारे कì बदनीयत देखकर सरÖवती अपने मरे पित को िवलापते हòए कहती है, "धनी, म§ तो बड़ी अ²ािनन ! हाय तुÌहारी फोटू कì कìल आप-ही-आप कैसे उखड़ कर िगरी रे ? सीसा खील-खील..... असगुन.... बालू के दादा घर म¤ िदरार¤ पड़ने वाली ह§।" वहé दूसरी तरफ शीलो और बालिकशन के åरÔते को सामािजक Łप से वैधता ÿदान करने के िलए वह बिछया ÿथा के अनुसरण हेतु भी शीलो से आúह करती है, िजसे शीलो Öवीकार नहé करती। शीलो और बालिकशन के åरÔते को लेकर पूरा गांव तरह-तरह कì बात¤ बना रहा होता है। चौपालŌ म¤, जहां सरसुती बड़ी-बूिढ़यŌ के बीच िनधड़क हो बैठती थी, वे भी सरसुती को टोकती ह§, "म§ तो कायदे कì बात करती हóं, सरसुती। स°े कì अÌमा कì तरह नहé िक मुंह-सोिहली उड़ाऊँ। काय री, इनकì बिछया कब होगी ?" बड़ी-munotes.in

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24 बूिढ़यŌ का कहना अपनी जगह है, पर सरसुती कì समÖया तो दूसरी ही है। वह एक तरफ शीलो को लेकर िचंितत है और दूसरी तरफ सुमेर ने जो दूसरा िववाह कर िलया है, उस अपराध बोध म¤ वह शीलो से दबाव देकर कुछ भी नहé कह पाती है। उसे शीलो के कुछ उÐटा-सीधा कर देने का डर भी लगा रहता है। भले ही सुमेर ने गलत िकया पर एक मां कì ममता के कारण वह बिछया के िलए शीलो को िववश नहé कर पाती। वह सोचती है, "इÆह¤ अपनी अिछया-बिछया सूझ रही है। यहां बहó दम दे देती, तो फांसी होती सुमेर को। जेल काट रहे होते म§ और बालू। बखत बुरा पड़ रहा है, िबमली के जेठ-िजठानी कì नहé सुनी ? बहó के चलते ही हवालात..... Łपइया चूरन हो रहे ह§।" इसी तरह आगे चलकर घर के मु´य फैसलŌ पर भी शीलो सरसुती को दरिकनार करने लगती है। उसे अपने छोटे बेटे बालिकशन से भी बड़ा ममÂव है। बालिकशन और शीलो के åरÔते कì ÿगाढ़ता बढ़ने पर बालिकशन के सामने अजीब दुिवधा खड़ी हो जाती है। वह अगर शीलो कì बात मानता है तो सरसुती को बुरा लगता है और यिद वह मां कì बात मानता है तो शीलो उस पर तंज कसती है। ऐसी िÖथित म¤ वह Öवयं भी काफì भटका हòआ महसूस करता है। कभी उसे शीलो का संग-साथ ठीक लगता है और कभी वह इस åरÔते से Óयिथत होने लगता है। कलह के कारण जब वह मां को समझाता है तो सरसुती को वह भी हाथ से िफसलता हòआ िदखाई देता है। ऐसे मौकŌ पर वह तंज भी करती है "अरे बालू, तू सो के बता रहा है हम¤, िक बेटा िभरमा रहा है मतारी को ? समझ रहा है िक आंख¤ मूंदे पीछे दुिनया म¤ अंधेरा हो जाएगा। सुन तो रहा होगा लुगाई के बोल ! और समझ भी रहे हŌगे लला िक िकसके दम पर ?" शीलो और सरÖवती के बीच का ĬंĬ पीढ़ीगत ĬंĬ है। िजसे लेिखका ने बड़े Öवाभािवक ढंग से उपÆयास म¤ िचिýत िकया है। वाÖतव म¤ शीलो कì तरह सरसुती भी 'झूला नट' उपÆयास का अÂयंत महÂवपूणª पाý है। उपÆयास म¤ वैयिĉक और सामािजक संघषª और ĬÆĬ को िचिýत करने के िलए मैýेयी पुÕपा ने सरसुती के पाý को िवकिसत िकया है। सरसुती के माÅयम से बदलते समय कì िवडंबनाओं के पीढ़ीगत ĬंĬ को लेिखका ने भली ÿकार से िचिýत िकया है। इसके साथ ही साथ सरÖवती के łप म¤ उÆहŌने समय के साथ समायोजन कì िविभÆन पåरिÖथितयŌ को भी िचिýत िकया है। úामीण समाज म¤ आज के समय म¤ भी ÓयाĮ ľी संबंधी समÖयाओं को लेकर एक िविशĶ ŀिĶकोण का िनमाªण लेिखका ने शीलो और सरसुती के माÅयम से ही िकया है। úामीण समाज को हमेशा से łिढ़वादी और परंपरागत समाज के łप म¤ देखा गया है और िकसी भी तरह के पåरवतªन के िलए अंतहीन संघषª और Ĭंद कì आवÔयकता महसूस कì जाती रही है। सरसुती ऐसे ही ĬंĬ और संघषª से गुजरती हòई िदखाई देती है। एक तरफ उसके सामने पåरवार को बचाने कì समÖया है और दूसरी तरफ पूरे समाज के ÿित जवाबदेही भी। इन सभी िÖथितयŌ के साथ-साथ उसका अपना वचªÖव भी उसके िलए लगातार संघषª का कारण है। सरसुती के माÅयम से मैýेयी पुÕपा ने इन सभी िवडंबनाओं को उपÆयास म¤ सफलतापूवªक िचिýत िकया है। २.२.३ सुमेर शीलो और सरसुती कì तरह सुमेर भी 'झूला नट' उपÆयास का एक मु´य पाý है। उपÆयास म¤ संघषª कì िविभÆन िÖथितयŌ के िनमाªण म¤ सुमेर का ही योगदान है। सुमेर सरसुती का बड़ा बेटा है, िजसे सरसुती पåरवार म¤ बड़ा होने के कारण ºयादा महÂव देती है। सुमेर पुिलस िवभाग म¤ नौकरी पा जाता है और इस नौकरी को ÿाĮ करने म¤ शीलो के िपता का बड़ा योगदान है। munotes.in

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‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना
25 शीलो और सुमेर का िववाह बचपन म¤ ही तय कर िदया जाता है। नौकरी िमल जाने के बाद सुमेर का िववाह शीलो से हो जाता है परंतु अब सुमेर का मन बदल चुका है। शीलो के łप-रंग के कारण सुमेर उसे कभी पित-सुख नहé देता। इन सारी पåरिÖथितयŌ म¤ शीलो कì अपनी कोई गलती नहé है। जमाने कì हवा बदली हòई है और उसी हवा म¤ सुमेर को लगता है िक उसकì बदसूरत पÂनी को देखकर उसके दोÖत उसका मजाक उड़ाएंगे। इसीिलए वह अपनी मां सरसुती से कहता है, "आपे से बाहर मत होओ। ठंडे िदमाग से सोचो, तुÌहारी छः उंगिलयŌ वाली कÐलू बहó मेरे दोÖत को रोटी परोसने ही आ जाती, तो वह कल के िदन मुझे बोलने न देता। काले गोरे दो रंग.... पर तुÌहारी बहó तो नीली है, ब§गनी।" úामीण िवचारŌ और संÖकारŌ कì उसकì मां सरसुती को उसकì बात समझ म¤ ही नहé आती। उसके जाने तो, जो बात बड़Ō ने कह दी, वही सब कुछ है। पित और पÂनी का åरÔता ईĵर कì देन है। वह अपने बेटे पर तंज करते हòए कहती है, "चल नासपरे। तेरी िजंदगानी इतनी क¸ची िनकली िक कåरया-गोरे रंग म¤ ही डूबने लगी। अरे सुमेर, खुद को देख, नासिपटे तू कहाँ का चंदा है, सो िसंघलदीप कì पिĪनी चािहए।" परंतु सुमेर पर मां कì बातŌ का कोई असर नहé होता। वह शीलो को छोड़कर अपनी नौकरी के चलते शहर चला जाता है, जहां कुछ समय के बाद वह एक दूसरी लड़कì से िववाह कर लेता है। काफì समय तक तो यह बात छुपी रहती है परंतु अंततः यह बात सरसुती को पता चल ही जाती है। सुमेर कभी-कभार गांव आता-जाता है। हालांिक गांव आने-जाने के पीछे उसकì नीयत अपने लोगŌ से िमलने और हाल समाचार पाने कì नहé रहती बिÐक उसके कपटी Öवभाव म¤ जायदाद को लेकर एक षड्यंý चलता रहता है। सुमेर अपनी खेती आिद का बंटवारा करके उसे बेचकर शहर म¤ अपने िलए घर बनाना चाहता है। उसके Öवभाव म¤ अजीब िवरोधाभास है। वह गांव जाता है, शीलो से बात भी करता है, परंतु शीलो को अपनाने के िलए िबÐकुल भी तैयार नहé है। सुमेर के जीवन के इस ÿसंग के कारण पूरे उपÆयास म¤ एक ÿवाह बनता है। संघषª और ĬÆĬ कì सारी िÖथितयŌ का िनमाªण िजसके चलते होता है। सुमेर और शीलो के जीवन कì यह समÖया पूरे पåरवार के Åवंस का कारण बनती है। सुमेर को काफì समझाने-बुझाने के बाद भी, देवी-देवताओं का सहारा मांगने के बाद भी जब सुमेर, शीलो को अपनाने को तैयार नहé होता तो सरसुती शीलो से सहानुभूित के कारण अपने छोटे बेटे बालिकशन को समिपªत कर देती है। दरअसल सामािजक åरÔते के अितåरĉ मनुÕय और मनुÕय कì पीड़ा मनुÕयता को समझने का साथªक आधार होती है। एक ľी होने के नाते सरसुती शीलो कì पीड़ा को भली-भांित समझती थी, "वे दोनŌ सास-बहóओं के नाते से िछटककर दो औरतŌ कì तरह रहती थé। उस समय यह ²ान नहé था िक एक िवधवा है, दूसरी पåरÂयĉा। देह के चलते वे एक-दूसरे कì Óयथा समझती ह§।" सुमेर यह सब जानकर Óयिथत नहé होता बिÐक उसे अब अपना राÖता िनÕकंटक िदखाई देता है। वह अब इस बात से बेिफø हो जाता है िक शीलो के ÿित उसकì कोई जवाबदेही है। उसे लगता है िक बालिकशन को अपनाकर शीलो ने इस बात को Öवीकार कर िलया है िक सुमेर और उसका कोई नाता नहé है। परंतु शीलो सारी िÖथितयŌ को यूं ही Öवीकार करने के िलए तैयार नहé थी। सुमेर से िववाह के पीछे शीलो कì िज़द या कोई आúह नहé था। इन सभी िÖथितयŌ के कारण एक ľी के łप म¤ उसका जो अपमान हòआ था, उसकì वह िजÌमेदार नहé थी। सुमेर कì महÂवाकां±ाओं का दरअसल वह िशकार हòई थी। वह भी अंदर ही अंदर इस अपमान को Öवीकार नहé कर पा रही थी और अंितम बार सुमेर जब अपने जायदाद के बंटवारे के संदभª म¤ गांव आता है तो वह सुमेर कì पÂनी के łप म¤ आधी जायदाद पर अपना दावा रखती है। सुमेर इस बात से बहòत Óयिथत होता है और øोध म¤ गांव छोड़कर चला जाता है। munotes.in

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26 उपÆयासकार मैýेयी पुÕपा ने सुमेर के łप म¤ आज के समय के मनचले पुŁषŌ का साथªक िचýण िकया है। बढ़ती हòई दुिनयावी चमक-दमक म¤ कहé न कहé åरÔतो को धूिमल िकया है। लोग åरÔतो कì गंभीरता के बजाय उनकì चमक-दमक को लेकर कहé ºयादा लालाियत रहते ह§। इसी चमक-दमक के चलते सुमेर ने शीलो को छोड़ िदया और सुमेर के कारण ही सरसुती, शीलो और बालिकशन तीनŌ का जीवन ĬÆĬ का िशकार हòआ। सुमेर के łप म¤ लेिखका ने वतªमान समय कì पुŁष मानिसकता को साथªक ढंग से अिभÓयĉ िकया है। २.२.४ बालिकशन 'झूला नट' उपÆयास के क¤þीय पाýŌ म¤ शीलो, सरसुती, सुमेर के अितåरĉ एक अÆय चौथा पाý बालिकशन है। उपÆयास कì संपूणª कथा, घात-ÿितघात, संघषª एवं ĬंĬ इÆहé चारŌ पाýŌ के इदª-िगदª अपना फैलाव िलए रहता है। बालिकशन सरसुती का छोटा बेटा और शीलो का देवर है। उपÆयास म¤ उसे एक सरल úामीण के łप म¤ िचिýत िकया गया है। उसम¤ भी तमाम तरह के धािमªक और सामािजक úामीण अंधिवĵास रचे-बसे ह§, िजनका मैýेयी पुÕपा ने उपÆयास के िविभÆन ÖथलŌ म¤ िचýण िकया है, जैसे "म§ साँग िछदवाऊंगा। शीलो दस सीस बीस भुजा कì हो जाए, तब भी न मानूंगा, कहती है िक िसरê हो गए हो। गाल म¤ बÐलम का फल छेदकर लहóलुहान होना चाहते हो ? िकतनी नादान औरत है। ³या जाने माता का परताप ? महामाई अपने भगत का स° भी चीÆहती - जानती है, नहé तो लोहे का चमकता अनीदार फल गाल के भीतर कì नरम खाल-मांस को पार करता हòआ बाहर िनकल आए और एक बूंद खून न िगरे ! तेरी मिहमा माता ! चमÂकार !" वह अपनी मां से बेहद Öनेह करता है। मां के कहने पर ही उसने पढ़ाई-िलखाई छोड़कर खेती का कामकाज संभाल िलया था। मां के ÿित उसकì आÖथा को उपÆयासकार िविभÆन ÖथलŌ पर भली-भांित अिभÓयĉ करता है "म§ तुÌहारा ताबेदार हóँ माँ। तुÌहारे हòकुम का गुलाम.....याद करो पहली बात¤, तुम नहé कहती, तो शीलो को..... सब तुÌहारी जोड़ी बांधी गांठे..... तुमसे बढ़कर कोई नहé। तुÌहारी बात अंितम बात।" बालिकशन, अपने बड़े भाई सुमेर से बहòत डरता है। जैसा िक úामीण समाजŌ म¤ बड़े भाई के ÿित िपता जैसा िलहाज होता है, ठीक वैसा ही संबंध बालिकशन और सुमेर के बीच भी है। बालिकशन कì गलितयŌ पर सुमेर उसे पीट तक देता है पर िलहाजवश बालिकशन कभी भी सुमेर के ÿित øोिधत नहé होता बिÐक वह उसका सामना करने से भी डरता है, "तुम कहती थé - भइया कì मारपीट का ³या बुरा मानना रे बालू ? गांव का बालक बहादुर होता है, तू भी बहादुर है। मार-पीट का Åयान िकया, तो चल गई िजंदगी। अÌमा, म§ लात-घूंसे और संटीयŌ कì मार खाकर भी बहादुर कì तरह नहé खड़ा रहता था ? अंत म¤ तुम ही न झेल पातé, जैसे चोट तुÌहारे कंधे लहóलुहान कर रही हो। तुम रोने लगतé, मेरे कारण रोने लगतé.... तुम पर बहòत Èयार आता मुझे, और साथ म¤ म§ भी रोने लगता।" बालिकशन मूलतः दया और सरलता से युĉ Óयिĉ है। कुल जमा तीन लोगŌ के पåरवार म¤ जब उसकì भाभी शीलो का आगमन होता है, तब वह भी बहòत खुश और उÂसािहत होता है। परंतु यह खुिशयां ºयादा समय तक बनी नहé रहती। सुमेर और शीलो के åरÔते का तनाव ÖपĶ होते ही पåरवार के साथ-साथ बालिकशन पर भी बोिझलता कì छाया मंडराने लगती है। वह चाहता है िक उसके भाई और भाभी का åरÔता सामाÆय और सहज हो जाए परंतु यह नहé होता। पुŁष अिभमानी मानिसकता के िवपरीत वह अपनी भाभी और भाई के जीवन को सामाÆय देखने के िलए खुद भी देवी-देवताओं कì मान-मनौितयां करता है। परंतु कोई भी munotes.in

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‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना
27 राÖता कारगर नहé होता। बालिकशन के चåरý म¤ उपÆयास लेिखका के Ĭारा एक बड़ा पåरवतªन तब उपिÖथत िकया जाता है, जब बालिकशन कì मां सरÖवती सुमेर के िवकÐप के łप म¤ बालिकशन को शीलो को सŏप देती है। उपÆयास के इसी Öथल से बाल िकशन के जीवन म¤ ĬंĬ और तनाव कì िÖथित पैदा होती है। एक तरफ तो वह इस अवैध åरÔते को समाज से छुपाता है परंतु यह बात ºयादा समय तक छुप नहé पाती और गांव कì बड़ी-बूढ़ीयŌ के बात¤ बनाने के कारण सरसुती जब बिछया के िलए कहती है तो शीलो बिछया का िनवाªह करने से इंकार कर देती है। ऐसे ÿसंगŌ से बार-बार बाल िकशन के जीवन म¤ तनाव पैदा होता है। वह अपनी सरलता म¤ सोचता है िक "शीलो भी एक ही..... बिछया कराने म¤ ³या जाता है उसका ? अÌमा िकस-िकस को जवाब द¤गी ? एक िदन जाित म¤ से डाल िदए जाएंगे। Êयाह-शािदयŌ कì पंगत के िलए बुलावे नहé आएंगे। काज-ÿयोजन म¤ कोई बैठने न देगा। ये सब बात¤ जानती है शीलो, िफर भी मौन है। अÌमा ने ³या िबगाड़ा है इसका ? उनसे िकस बात का बदला ले रही है ?" बालिकशन को लगता है िक शीलो अनावÔयक ही बिछया के िलए मना कर रही है, परंतु शीलो के मन म¤ सुमेर के ÿित बदले कì भावना के कारण वह ऐसा करती है। िजसे न तो बालिकशन समझ पाता है और न ही सरसुती। शीलो और सरसुती के आपसी ĬंĬ म¤ बालिकशन िपस जाता है। शीलो उस पर िľयोिचत अिधकार जताती है। वहé मां होने के नाते सरसुती भी बालिकशन के ÿित अितåरĉ मोह को छोड़ नहé पाती है। शीलो और बालिकशन एक दूसरे के åरÔते को Öवीकार कर चुके ह§। परंतु जब कभी सुमेर गांव आता है तो शीलो के बदले Óयवहार के कारण बालिकशन के पुŁषोिचत अिभमान को ठेस भी लगती है, "सदा 'बालिकशन लला' कहने वाली औरत आज बालू-बालू कर रही है। परी बनकर आई है, तो हòकुम भी चलाएगी ? हम¤ झुकाकर Łतबा बनाएगी ? भीतर ही भीतर भभका-सा उठा। जब-जब खुद को उपेि±त पाता है, उसे अपने बारहवé के नतीजे कì याद आ जाती है। िवफलता आदमी को चाहे जब मार िगराती है। बी.ए. पास कर चुका होता, तो यही शीलो भाभी गरम दूध का िगलास लेकर हािजर हòई होतé। भ§स-बैल के संग जुतने वाले को लोग जानवरŌ से अलग करके देखना भूल जाते ह§।" परंतु जैसा िक सामाÆय गृहÖथ जीवन म¤ होता है, अंततः बालिकशन इन दोनŌ के बीच तालमेल न िबठा पाने के कारण अपना मानिसक संतुलन खो देता है और उपÆयास के अंत म¤ ओरछा कì ओर चला जाता है। जहां उसके अवसाद कì िÖथित को दशाªने के साथ ही उपÆयास समाĮ हो जाता है। इस तरह उपÆयास 'झूला नट' म¤ बालिकशन एक ऐसे पाý के łप म¤ िचिýत है जो सुमेर कì उपजाई हòई समÖयाओं के कारण शीलो और सरसुती के ĬंĬ और संघषª म¤ लगातार िपसता हòआ उपÆयास के अंत म¤ अपना मानिसक संतुलन खो देता है और अवसाद कì अवÖथा म¤ विजªत हरकत¤ करने के कारण लोगŌ के Ĭारा मारा-पीटा भी जाता है। उपÆयास कì सारी पåरिÖथितयŌ म¤ वह सभी पाýŌ म¤ सबसे ºयादा िनदōष पाý है। अपनी सरलता और सहजता के कारण ही उसे अपने जीवन म¤ इन िवसंगितयŌ का सामना करना पड़ता है। वह एक अ¸छा भाई है, बेटा है, देवर है, परंतु अपनी इसी अ¸छाई के कारण ही वह अपने इन सभी åरÔतो म¤ फंसकर दूसरŌ कì इ¸छाओं का िशकार होता है। उसकì सरलता, सहजता और मानवीयता ही उसके शýु बन जाते ह§। munotes.in

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28 २.२.५ अÆय पाý पाýŌ कì ŀिĶ से 'झूला नट' उपÆयास बेहद संतुिलत और साथªक उपÆयास है। उपÆयास म¤ लेिखका ने पाýŌ का िनयोजन अÂयंत सचेत ŀिĶ से िकया है। मु´य पाýŌ कì ŀिĶ से इस उपÆयास म¤ शीलो, सरसुती, सुमेर और बालिकशन का नाम िलया जा सकता है। जबिक कुछ पाý ÿसंगवश उपÆयास म¤ आते-जाते रहे ह§, जो िविशĶ उĥेÔयŌ कì पूितª म¤ सहायक रहे ह§। उससे अिधक उनकì कोई भूिमका नहé रही। जैसे - सुमेर कì दूसरी पÂनी, िजसका वणªन और चचाª उपÆयास म¤ िविभÆन ÖथलŌ म¤ होती है। वह ÿÂय± łप से उपÆयास म¤ कहé भी िदखाई नहé देती, परंतु उपÆयास कì कथावÖतु के गठन म¤ इसका अÂयंत महÂवपूणª योगदान है। इसके अितåरĉ बालिकशन का िमý रघु, रघु का बाप, स°े, स°े कì अÌमा, चंपादास बैद और अÆय इ³का-दु³का पाý। यह सभी उपÆयास म¤ मु´य चåरýŌ को िवÖतार देने कì ŀिĶ से ही आए ह§ और इस łप म¤ इनका भी अÂयंत महÂव है। पाý योजना कì ŀिĶ से मैýेयी पुÕपा का संगठन अÂयंत तकªसंगत और कसा हòआ है। उनके उपÆयासŌ म¤ अनावÔयक पाýŌ कì भीड़ नहé जुटी है बिÐक उपÆयास के उĥेÔय को िसĦ करने म¤ जो सहायक रहे ह§, उÆहé पाýŌ का िनयोजन उÆहŌने ‘झूला नट’ उपÆयास म¤ िकया है। २.३ सारांश 'झूला नट' एक अÂयंत साथªक और कसी हòई औपÆयािसक कृित है। इस कृित का सृजन उपÆयासकार ने अपने युगसंदभŎ को Åयान म¤ रखते हòए िकया है। वतªमान समय म¤ कथा सािहÂय म¤ जहां शहरी चेतना के Óयापक पåरवतªन को मु´य łप से कथा सािहÂय का िहÖसा बनाया जाता है, वहé मैýेयी पुÕपा ने सामािजक पåरवतªनŌ कì ŀिĶ से अÂयंत øांितकारी दौर से गुजर रही úामीण ÓयवÖथा को इस उपÆयास का मु´य िहÖसा बनाया है। इस पåरवतªन कì चेतना को अिभÓयĉ करने के िलए उÆहŌने शीलो, सरसुती, सुमेर और बालिकशन जैसे पाýŌ का सृजन िकया है। यह सभी पाý अÂयंत सहज और यथाथªपरक ढंग से िनिमªत िकए गए ह§। हर úामीण ÓयवÖथा म¤ ऐसे पाý िविभÆन पåरिÖथितयŌ से संघषª और ĬÆĬ करते िदखाई दे जाएंगे। पाý िनयोजन कì ŀिĶ से यह अÂयंत साथªक औपÆयािसक कृित है। २.४ बहòिवकÐपीय ÿij १. सरसुती के संबंध म¤ कौन सा कथन सÂय है ? (क) सरसुती सुहागन है (ख) शीलो सरसुती कì सास है (ग) सरसुती के तीन बेटे ह§ (घ) सुमेर सरसुती का बेटा है २. सरसुती के छोटे बेटे का ³या नाम है ? (क) सुमेर (ख) बालिकशन (ग) रघु (घ) स°े ३. सुमेर कì नौकरी के िलए पैसŌ कì मदद िकसने कì थी ? (क) शीलो के िपता (ख) स°े (ग) रघु (घ) बालिकशन munotes.in

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‘झूला नट’ उपÆयास म¤ पाý-योजना
29 ४. "तुÌहारी बहó तो नीली है, ब§गनी।" यह कथन िकसने कहा ? (क) रघु (ख) स°े (ग) सुमेर (घ) बालिकशन २.५ लघु°रीय ÿij १. शीलो और सुमेर के बीच समÖया के कारणŌ को ÖपĶ कìिजए ? २. बालिकशन के मानिसक संघषª का वणªन कìिजए ? ३. शीलो के ÿित सरÖवती कì सहानुभूित का सोदाहरण वणªन कìिजए ? ४. शीलो और बालिकशन के åरÔते के औिचÂय-अनौिचÂय पर अपने िवचार ÿकट कìिजए? २.६ बोध ÿij १. उपÆयास 'झूला नट' के आधार पर सरसुती के मानिसक ĬंĬ और संघषª का िचýण कìिजए ? २. शीलो के जीवन म¤ िवसंगितयŌ के िलए कौन िजÌमेदार था ? उदाहरण सिहत ÖपĶ कìिजए। ३. उपÆयास 'झूला नट' के आधार पर बालिकशन के चåरý का िवĴेषण कìिजए ? ४. 'उपÆयास 'झूला नट' म¤ शीलो का चåरý úामीण पåरवेश म¤ बदलती ľी संवेदना को अिभÓयĉ करता है।' कथन कì समी±ा कìिजए ? २.७ अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १. झूला नट - मैýेयी पुÕपा munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
30 ३ ‘झूला नट’: पåरवेशगत यथाथª, úामीण ľी-वगª कì नÓय-चेतना, वैचाåरक संघषª और आँचिलक महक इकाई कì łपरेखा ३.० इकाई का उĥेÔय ३.१ ÿÖतावना ३.२ पåरवेशगत यथाथª ३.३ úामीण ľी-वगª कì नÓय-चेतना ३.४ झूला नट म¤ िचिýत वैचाåरक संघषª ३.५ बुÆदेलखÁड कì आँचिलक महक ३.६ सारांश ३.७ वैकिÐपक ÿij ३.८ लघु°रीय ÿij ३.९ बोध ÿij ३.१० अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ ३.० इकाई का उĥेÔय िपछली दो इकाइयŌ म¤ हमने 'झूला नट' कì कÃय-संवेदना और पाý संरचना को समझने का भली-भांित ÿयास िकया। इस इकाई म¤ उपÆयास के अÆय िविभÆन महÂवपूणª प±Ō को ÖपĶ करने का ÿयास िकया जाएगा, जैसे उपÆयास म¤ पåरवेशगत यथाथª को िकस ढंग से साथªक अिभÓयिĉ िमली है, यह उपÆयास úामीण ľी-वगª कì बदलती हòई चेतना को िकस ÿकार अिभÓयĉ करता है तथा मु´य कथा के माÅयम से िकन वैचाåरक संघषŎ को देखने का ÿयास उपÆयास म¤ लेिखका के Ĭारा िकया गया है। िकसी भी उपÆयास या कहानी कì कथा के पीछे कुछ वैचाåरक सरोकार अवÔय होते ह§, िजÆह¤ रचनाकार पाठकŌ तक ÿेिषत करने का ÿयास करता है। कथा आवरण के पीछे के यह वैचाåरक संघषª और ĬंĬ समÖया के मूल łप से तो पåरिचत कराते ही ह§ साथ ही, िनराकरण के कई िवकÐप भी पाठकŌ के सामने उपिÖथत करते ह§। इस ŀिĶ से इÆह¤ समझना अÂयंत आवÔयक है। इसके साथ ही उपÆयास िजस भौगोिलक-सामािजक पृķभूिम पर िलखा गया है, वहां के भाषा और संÖकृित के िविवध प± भी उसम¤ िचिýत होते ह§। उपÆयास 'झूला नट' बुंदेलखंड कì सांÖकृितक िवशेषताओं को हमारे सामने रखता है। इस उपÆयास को पढ़कर बुंदेलखंड कì सामािजक संरचना और िवशेषताओं को समझने म¤ मदद िमलती है। इस इकाई म¤ िवĴेषण मु´य łप से इÆहé िबंदुओं पर आधाåरत रहेगा। munotes.in

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‘झूला नट’ : पåरवेशगत
यथाथª, úामीण ľी-वगª
कì नÓय-चेतना, िचिýत
वैचाåरक संघषª और
बुÆदेलखÁड कì
आँचिलक महक

31 ३.१ ÿÖतावना सािहÂय कì सभी िवधाओं म¤ उपÆयास एक ऐसी िवधा है जो िकसी लेखक को कई तरह कì Öवतंýताएं देती है। उपÆयास के अंतगªत िकसी भी िवषय को लेखक मनचाहे ढंग से विणªत और िवĴेिषत कर सकता है। संवेदना कì अिभÓयिĉ ऐसा िवषय है जो कई बार सूàम और ÿतीकाÂमक ढंग से अिनवायª हो जाता है। ऐसी िÖथित म¤ अिभÓयिĉ के िलए किवता सबसे सटीक िवधा िसĦ होती है। परंतु जहां किवता िविशĶ पाठक वगª के िलए ही ठीक होती है, जो अिभÓयिĉ कì सूàमता और ÿतीकाÂमकता को भलीभांित लि±त कर सके, वहé सामाÆय पाठक वगª के िलए उपÆयास जैसी िवधाएं ही कारगर होती ह§, िजनके Ĭारा िकसी समÖया को िवÖतृत ढंग से घिटत होते हòए िदखाया जाता है। उन घटनाओं के कायª-Óयापार Ĭारा पåरणामŌ के मूÐयांकन का ÿयास भी िकया जाता है। और इस ÿिøया म¤ सामाÆय पाठक वगª समÖया और समाधान को लेकर कृित से कई िवकÐप ÿाĮ करता है। और साथ ही, अपनी सहज बुिĦ से भी वह पåरिÖथित िवशेष म¤ विणªत कì गई समÖयाओं पर अपनी एक िविशĶ समझ िवकिसत करता है। िकसी भी औपÆयािसक कृित का मूÐयांकन उसके िविशĶ संदभŎ कì ŀिĶ से भी अिनवायª होता है। 'झूला नट' उपÆयास के िविशĶ अÅययन को Åयान म¤ रखते हòए इस इकाई के अंतगªत उपÆयास म¤ विणªत पåरवेशगत यथाथª, úामीण ľी-वगª कì नÓय-चेतना, 'झूला नट' म¤ िचिýत वैचाåरक संघषª, बुÆदेलखÁड कì आँचिलक महक आिद िबंदुओं को अÅययन के क¤þ म¤ रखा गया है। िकसी भी रचना के पीछे उसके िविशĶ सामािजक संदभª होते ह§। अपनी ÿकृित म¤ समाज एक अÂयंत जिटल संरचना है। इसके अंतगªत िविभÆन उप-समाजŌ कì अपनी-अपनी सामािजक-सांÖकृितक परंपराएं होती ह§, जो उÆह¤ अÆय समाजŌ से थोड़ा अलग बनाती ह§ और िविशĶ भी। 'झूला नट' उपÆयास बुंदेलखंड कì सामािजक िÖथित को उĤािटत करने वाला उपÆयास है। बुंदेलखंड को जानने और समझने कì ŀिĶ से इस उपÆयास के Ĭारा उसके पåरवेश को समझने म¤ काफì मदद िमलती है। इसके अितåरĉ वहां िľयŌ कì सामािजक िÖथित को लेकर भी काफì खुलासा होता है। ÿाचीन समय से ही भारतीय समाज म¤ धीरे-धीरे िľयŌ कì दशा िनरंतर िगरती गई और आधुिनक काल म¤ जब इस िÖथित को लेकर समाज म¤ िवचार-िवमशª आरंभ हòआ और िľयŌ कì सामािजक दशा को सुधारने के िलए िविशĶ ÿयास आरंभ हòए, उसके बाद भी सैकड़Ō वषª लग गए, जबिक िľयŌ को आÂमिनणªय और आÂमिनभªर बनने का अिधकार िमला। ऐसी िÖथित म¤ इस उपÆयास म¤ शीलो कì िÖथित िवशेष łप से ŀĶÓय है। और साथ ही, बुंदेलखंड के सामािजक पåरŀÔय म¤ उन ÿथाओं और परंपराओं का अÅययन भी, जो िकसी ľी के हक और अिधकार पर मानवीय पहलू से िवचार-िवमशª करते ह§। इन सभी िबंदुओं को इस इकाई के अंतगªत िवĴेिषत करने का कायª िकया गया है, िजससे उपÆयास को संदिभªत िविशĶ िबंदुओं के आधार पर समझा जा सके। ३.२ पåरवेशगत यथाथª आधुिनक िहंदी कथा-सािहÂय का ÿारंभ से ही जोर इस बात को लेकर रहा है िक अपने सामािजक यथाथª को साथªक अिभÓयिĉ िमले। Öवतंýता से पूवª के कथा सािहÂय म¤ अÆय munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
32 (राÕůीय-सामािजक-सांÖकृितक) उĥेÔयŌ पर अÂयिधक बल िदए जाने के कारण यह अिभÓयिĉ उतने ÿामािणक ढंग से नहé हो पा रही थी। परंतु Öवतंýता के साÅय को िसĦ कर लेने के पIJात सािहÂयकारŌ का Åयान मु´य łप से अपने समाज और उसकì िवसंगितयŌ, Óयिĉ और उसकì समÖयाओं कì ओर क¤िþत हòआ और इसका पåरणाम यह हòआ िक कथाकारŌ ने अपने समय के सÂय को अिभÓयĉ करने के िलए पåरवेश को ÿामािणक ढंग से सामने रखकर समाज और Óयिĉ को देखना शुł िकया। पåरवेशगत यथाथª का ताÂपयª िकसी समाज िवशेष के अपने पåरवेश के भीतर के सÂय से है। मैýेयी पुÕपा का सािहÂय अिधकतर úामीण पåरवेश को क¤þ म¤ रखकर िलखा गया है। वाÖतव म¤ उनके सबसे ÿामािणक अनुभव यहé से िनकलकर आए भी ह§। 'झूला नट' उपÆयास म¤ उÆहŌने बुंदेलखंड के úामीण पåरवेश को पृķभूिम म¤ रखते हòए शीलो, सरसुती, बालिकशन और सुमेर के माÅयम से पåरवेश िवशेष को साथªक अिभÓयिĉ दी है। समÖया के क¤þ म¤ यīिप ľी जीवन कì िवसंगितयां ह§ और इनका िचýण करते हòए उÆहŌने पूरे पåरवेश कì िवकृितयŌ और िवसंगितयŌ को साथªक अिभÓयिĉ दी है। उपÆयास म¤ कई Öथल लि±त िकए जा सकते ह§, जहां से िकसी समाज और संÖकृित िवशेष कì स¸चाइयŌ का पता लग जाता है। úामीण समाज आपस म¤ कड़े बंध से बंधा हòआ समाज है। इस समाज म¤ Óयिĉ का Óयवहार शहरŌ कì तरह िनतांत Öवतंý इकाई कì तरह संभव नहé है। गांव म¤ नैितकता का मु´य बंधन यही समाज है, िजसकì अवमानना के भय से बहòत कुछ संतुिलत रहता है। परंतु हर िस³के के दो पहलू होते ह§, जहां सामािजक जीवन म¤ एक दूसरे के िलए गहरा दखल नैितक बंधन का काम करता है। वहé कई बार यह एक-दूसरे के िनतांत िनजी मामलŌ म¤ भी Óयिथत कर देने वाले अवसर पैदा कर देता है। और ऐसे ही समय म¤ एक दूसरे को लि±त करना, एक दूसरे कì सकाराÂमक िÖथितयŌ को नकाराÂमकता म¤ तÊदील करने का ÿयास करना आिद ऐसी ही बात¤ ह§। मनुÕय कì सामाÆय ÿकृित है िक वह दूसरŌ कì उÆनित से कहé न कहé दुखी महसूस करता है, जैसे - "इस गांव के आदमी मĘी का तेल िपए रहते ह§। मेरे सुमेर कì तर³कì सुनते ही कुढ़-फुँक जाते ह§। अरे, इतना तो कोई नादान भी समझ ले िक नौकरी पेसा आदमी के सौ बैरी।" सरÖवती का यह कथन úामीण समाज कì इस संदभª म¤ संकìणªता को ÖपĶ करता है। úामीण समाज म¤ िश±ा-दी±ा को लेकर पहले बहòत ºयादा उÂसुकता नहé थी। कागज-पý संभालने लायक सीख िलया तो सीख िलया, नहé तो अपने पुÔतैनी काम खेती-बाड़ी म¤ लग गए। अपनी जगह - जमीन कì सेवा-खुशामद करना उनके िलए सब कुछ है। आज कì तरह शहरŌ कì ओर भागना कभी úामीण समाज म¤ इतना जłरी नहé था। हां, यह अवÔय है िक हमेशा से शहर उनके आकषªण का मु´य क¤þ रहे ह§। गांवŌ म¤ पåरवारŌ कì ºयादातर कोिशश यही रही है िक अगर एक-दो बेटे गांव से बाहर शहरŌ कì ओर िनकल गए ह§, तो एक-दो गांव कì जगह-जमीन भी संभाल¤। बालिकशन इसी मनोवृित का िशकार होता है और इसीिलए उसे अपनी पढ़ाई-िलखाई कì ितलांजिल भी देनी पड़ती है, "लला छोड़ो अब बÖता-मÖता। बहòत टटोल लé फद¥। खूब मूड़ लड़ा िलया कागदŌ से। बेटा.... अपनी खेती म¤ हाथ-पांव खोलो। िहसाब िकताब लायक आंक सीख िलए ह§, बस। बारहवé भी पास कर लेते, तो सनद िमलती, सीसा म¤ जड़ाकर कोठे म¤ टांग लेते, कौन सी खेत म¤ बोनी थी ? नौकरी तो िकसी हाल म¤ नहé करानी हम¤।" munotes.in

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‘झूला नट’ : पåरवेशगत
यथाथª, úामीण ľी-वगª
कì नÓय-चेतना, िचिýत
वैचाåरक संघषª और
बुÆदेलखÁड कì
आँचिलक महक

33 सुमेर के łप म¤ उपÆयास लेिखका ने अपने समय के अÂयंत कटु यथाथª को लि±त िकया है। लोग िकतने बदलते जा रहे ह§, Öवाथê होते जा रहे ह§, अपनŌ के बीच ही छल-कपट और लालच सबसे ºयादा होता जा रहा है। अपनŌ को धोखा देने से भी बाज नहé आ रहे ह§। सुमेर एक तरफ शीलो को धोखा देने का अपराधी है, इतने ही अपराध से उसका मन नहé भरता, वह और आगे बढ़ता है। उसके इस अपराध का िशकार बालिकशन बनता है और साथ म¤ उसकì मां सरसुती भी िपसती है। सुमेर कì नौकरी और पढ़ाई-िलखाई सबके िलए पूरे घर का Âयाग और बिलदान उसके िलए कोई मायने नहé रखता। अपनी मनमानी करने के िलए वह अपने मां-भाई िकसी को भी धोखा दे सकता है। इसीिलए वह अपनी मां को बहला-फुसलाकर उनसे अपने िहÖसे कì खेती मांगता है, "बालू म§ तो समझ रही थी रे िक सामान मांग रहा है, तो जुड़ रहा है घर से, पर वह देवता तो आदमी कì मोह-माया जानता ही नहé....." सुमेर ने दूसरा िववाह कर िलया ³यŌिक शीलो उसके िलए बदसूरत थी। िफर भी वह गांव आता-जाता रहा। मां से मोह बांधे रहा पर इस मोह के पीछे उसकì दुĶता थी। दरअसल वह अपने िहÖसे कì जमीन बेचना चाहता था तािक वह शहर म¤ घर खरीद सके। इसीिलए जब बालिकशन और शीलो के संबंधŌ कì उसे जानकारी होती है तो उसे कोई फकª नहé पड़ता बिÐक वह सोचता है िक अब शीलो का उस पर कोई अिधकार नहé रहेगा। इस तरह सुमेर कì मानिसकता के Ĭारा लेिखका ने अपने समय संदभŎ को भली-भांित िचिýत िकया है। उपÆयास 'झूला नट' म¤ मैýेयी पुÕपा ने शीलो के चåरý के माÅयम से ľी के परंपरागत और बदलते हòए ÖवłपŌ को सफलतापूवªक िचिýत िकया है। शीलो úामीण समाज म¤ पली-बढ़ी युवती है। उसे जीवन कì सरल सी पåरभाषा मालूम है, जो उसने अपने आसपास के पåरवेश म¤ देखी और समझी है। उसम¤ भी ľी के परंपरागत संÖकार ह§। िववाह के पIJात सुमेर के Ĭारा जब िबना िकसी गलती के उसका अÖवीकार िकया जाता है तो वह समझ नहé पाती कì इस िÖथित को वह िकस ÿकार समझे और सुलझाए। परंपरागत समाज म¤ िववाह के बाद ľी के िलए ससुराल ही एकमाý िवकÐप है। जीवन और मरण केवलमाý वहé संभव है। िÖथितयां चाहे िजतनी भी िवकट हŌ, उÆह¤ वही रहते हòए ही जीवन जीना है। ननंद - भौजाई के åरÔते कì िवकटता के कारण वे मायके से दूर हो जाती ह§ और दूसरी तरफ ससुराल म¤ भी åरÔतो कì िविभÆन तरह कì खéचातानी म¤ उनका जीवन सहज नहé रह पाता है। उपÆयास लेिखका ने शीलो के जीवन म¤ भी इन िÖथितयŌ को सहज łप से िदखाया है। जब शीलो को इस बात का एहसास होता है िक वह सुमेर कì पåरÂयĉा है, तो वह अपनी सास सरÖवती से याचना करते हòए कहती है, "अपने चरणŌ से अलग न करना, अÌमा। इस घर म¤ पड़ी रहने दो, म§ खेत कì घास.... बुरी घड़ी म¤ जÆमी, तुÌहारी चाकरनी बनकर रहóंगी। बालू कì दुÐहन कì टहल कłंगी। उनके ब¸चे पालूंगी। łखी-सूखी खाकर घड़ी काट लूंगी। मायके म¤ ³या सवाल-जवाब नहé हŌगे ? िदन-रात कì सूली....." इस तरह वह भली-भांित जानती है िक ससुराल से इस तरह लांिछत होकर वापस जाने का फल मायके म¤ उसे ³या भोगना पड़ेगा। अकारण िमले हòए इस अपमान के बावजूद भी वह अपने मायके नहé लौटना चाहती। उसे तो ससुराल म¤ रहते हòए ही पåरिÖथितयŌ का सामना करना था। उन पåरिÖथितयŌ के बीच से ही जीने का कोई मागª िनकालना था, जो उसने िकया भी। इस उपÆयास के Ĭारा मैýेयी पुÕपा ने बदलती हòई ľी चेतना को अÂयंत यथाथªपूणª ढंग से िदखाया है। आज से पचास-साठ साल पहले ľी का जीवन बंधे बंधाए ढांचे के अनुसार चलता था। दरअसल हर िकसी कì मनमानी का िशकार उसका जीवन था। उसकì अपनी इ¸छा या munotes.in

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34 मजê का कोई मतलब नहé था। िश±ा-दी±ा को लेकर भी िÖथितयां बहòत ÿितकूल थé। पहले िपता का घर और िफर पित का आ®य और यिद पित के बाद भी जीिवत रहे तो पुý पर िनभªरता, यही पूरे जीवन कì कहानी थी। एक ľी कì आÂमिनभªरता, आÂमिनणªय - यह सब कुछ बड़े दूर कì बात¤ थी। परंतु मैýेयी पुÕपा जब यह उपÆयास िलख रही थé, वह बीसवé सदी का अंत था और नई सदी के आने कì आहट थी। शीलो एक úामीण युवती है। उसकì िश±ा-दी±ा भी न के बराबर है परंतु Óयवहाåरक ŀिĶ से वह बड़ी स±म है। उसकì सास सरसुती उसकì पीड़ा को समझती है। एक ľी होने के नाते िवधवा सास जानती है िक उसकì बहó शीलो के साथ उसके ही बेटे ने िकतना बड़ा अÆयाय िकया है। और इस अÆयाय का ÿितकार वह अपने छोटे बेटे को सŏपकर करना चाहती है। सुमेर इतना बड़ा अÆयाय करके भी बेदाग िनकल गया। गांव म¤ िकसी ने भी उसे लेकर कोई बात न कì। कोई बिहÕकार नहé िकया और न ही कोई पंचायत जोड़ी। सच है, 'समरथ को निहं दोष गुसाईं', दूसरी तरफ शीलो और बालिकशन के åरÔते को लेकर पूरा गांव न केवल तरह-तरह कì बात¤ करता है बिÐक भरी पंचायत म¤ लांिछत भी करता है। बड़ी-बूिढ़याँ तरह-तरह कì बात¤ करती है, पर शीलो के łप म¤ मैýेयी पुÕपा ने एक ऐसी ľी का सा±ाÂकार कराया है जो Æयाय - अÆयाय के तराजू पर िवचार करना जानती है, जो अपने बराबर हक कì लड़ाई लड़ना जानती है। इसीिलए वह कहती है, "ऐं काकì जी, पुिलिसया बेटा कì बिछया कì पांत खा ली ? पूछा नहé िक बरकĘो (बाल कटी) Óयाही है या रखैल ? बेटŌ के चलते रसम-रीत भूलकर बहòओं कì पीठŌ के िलए कोड़े िलए िफरती हो तुम बूढी जनी।" दरअसल गांव के बड़े बुजुगŎ का कहना था िक बिछया रÖम को िनभाकर शीलो और बालिकशन के åरÔते को सामािजक Łप से माÆय बना िदया जाए, मगर शीलो का øोध इस बात पर था िक दूसरा िववाह तो सुमेर ने भी िकया है। वह भी उिचत नहé है। िफर बिछया का िवधान ³या उसके िलए नहé है ? यह कैसी असमानता है और इसी के ÿित शीलो का िवþोह था। उसका िवþोह इस हद तक था िक जब उससे भिवÕय कì बात कì जाती है तो वह इस हद तक पहòंच जाती है िक कहती है, "अपनी िजंदगानी बचाएं या अगली से अगली पीढ़ी कì सोच¤ ? बाल-ब¸चा भी िनकाल ल¤गे गैल।" शीलो का यह कहना एक नई चेतना का ÿÖफुटन है। यह नई चेतना शीलो के िवþोह के łप म¤ उपÆयास लेिखका ने िदखाई है। उपÆयास म¤ कहé-कहé पाठकŌ को शीलो का पाý नकाराÂमक भी लग सकता है परंतु शीलो ने सुमेर को लौटाने के िलए ³या-³या जतन नहé िकए। बालिकशन इसे अिभÓयĉ करते हòए कहता है, "इसके बाद Ąत-उपवासŌ का िसलिसला। सोलह सोमवार। संतोषी माता के शुøवार। केला-पूजन के बृहÖपितवार। शिन úह शांित के शिनवार। भाभी सूख-सूखकर कांटा होती जा रही ह§। उनका रंग बेरौनक हो गया। चेहरा लंबोतरा। सुंदर दांत बाहर िनकल आए।" सरÖवती भी अपराध बोध से बुिझल होकर िजलŌ के सामने नतमÖतक थी िदखाई देती है वह उसे बेटी कì तरह सांÂवना और ढाढा देती है "बेटी, पढ़ा-िलखा लड़का..... कौन से बैरी ने घात धरा दी। मोरे महादेव बुिĦ िफर¤गे तो सही। आज नहé, तो कल। सबर का फल मीठा होता है। सुख नहé रहा, तो दुख भी नहé रहेगा।" परंतु यह सांÂवना केवल सांÂवना ही थी ना तो Ąत उपवास ओं का कोई पåरणाम िनकला नाही सā िकसी काम आया अंितम अंत म¤ राÖता शीलो सरÖवती और बालिकशन से िमलकर ही िनकला परी पर यह राÖता भी एक बड़ी चुनौती था ľी समाज म¤ इस पåरवतªन को िदखाकर लेिखका ने अपने समय के पåरवेश गित यथाथª को munotes.in

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यथाथª, úामीण ľी-वगª
कì नÓय-चेतना, िचिýत
वैचाåरक संघषª और
बुÆदेलखÁड कì
आँचिलक महक

35 अÂयंत साथªक ढंग से अिभÓयĉ िकया है दरअसल यह नई बदलती हòई सोच है जो धरातल म¤ बराबर से सर उठा कर खड़े होने कì िज़द सामने रखती है। उपÆयास 'झूला नट' और लेिखका मैýेयी पुÕपा का सृजन इस ŀिĶ से भी उÐलेखनीय और िविशĶ है िक उपÆयास कì रचना के समय उÆहŌने नायक या नाियका कì सैĦांितक भूिमका को िनिमªत करने या अपनी तरफ से िकसी भी ÿकार के संशोधन या आदशªवािदता को úहण करने का कोई भी ÿयास नहé िकया है। शीलो अपने समय के úामीण समाज के यथाथª को अिभÓयĉ करने वाली एक वाÖतिवक पाý है और उसके चåरý को लेिखका ने पूरे पåरवेश और पåरवेशगत सÂय को Åयान म¤ रखते हòए िवकिसत िकया है। एक ľी और वह भी úामीण ľी अपने जीवन म¤ जब ऐसी िवभीिषका म¤ फंस जाती है तो उसके पास इन िवभीिषकाओं का सामना करने कì ŀिĶ से अÂयंत ÿितकूल पåरिÖथितयां होती ह§। वह इतनी पढ़ी-िलखी नहé होती िक आÂमिनभªरता कì ओर कदम उठा सके, घर से बाहर का जगत उसके िलए बहòत जाना-पहचाना नहé होता। ऐसी िÖथित म¤ जो घटता है या घट सकता है, वही इस उपÆयास म¤ िदखाई देता है। अपनी सारी सकाराÂमकता और नकाराÂमकता के साथ शीलो अपने वजूद को लगातार बचाने का ÿयास कर रही है। िकतनी कड़वी स¸चाई के साथ वह गुजर रही है िक जहां एक तरफ ससुराल म¤ सुमेर उसकì समÖयाओं का कारण बनता है वहé इन समÖयाओं से िनजात पाने के िलए वह मायके का आ®य भी नहé úहण कर सकती। यह उसके जीवन कì िवडंबना है और इसी िवडंबना से लड़ते हòए पूरा उपÆयास घिटत होता है। इस तरह शीलो, सरसुती, सुमेर और बालिकशन के चåरýŌ के आधार पर मैýेयी पुÕपा ने बुंदेलखंड के úामीण अंचल कì िवशेषताओं, िवसंगितयŌ और िवकृितयŌ सभी का साथªक पåरवेशगत यथाथª िचिýत िकया है। उपÆयास कì सहजता इस बात म¤ है िक सभी पाýŌ को एक साथ लेकर चलते हòए लेिखका ने पåरवेश को साकार करने म¤ कहé भी अितरंजना का पåरचय नहé िदया है। वाÖतव म¤ एक गांव अपनी भूिमका म¤ िजस ढंग से Öवयं को अिभÓयĉ कर सकता है, ठीक वैसा ही िचýण देखने को िमलता है। úामीण समाज म¤ एक दूसरे के साथ संबंधŌ का िनवªहन, सामािजक संÖथाओं कì कायªÿणाली, Óयिĉगत समÖयाओं और उन पर सामािजक दबाव आिद सभी को लेकर लेिखका ने अÂयंत संवेदनशील और सहज िचýण िकया है। वाÖतव म¤ पåरवेशगत यथाथª के िचýण कì ŀिĶ से 'झूला नट' अÂयंत ÿभावी उपÆयास है। ३.३ úामीण ľी-वगª कì नÓय-चेतना 'झूला नट' एक ľी-िवमशाªÂमक रचना है। िहंदी म¤ ľी-िवमशª बीसवé शताÊदी के सातव¤-आठव¤ दशक म¤ पूणª łप से िवकिसत हòआ। भारतीय परंपरागत समाज म¤ ľी कì अÂयंत दयनीय दशा रही है। सामािजक ÓयवÖथा म¤ ľी घर कì चौखट तक ही बनी रही है। चाहे िपता का घर हो या पित का, चौखट लांघना उसके िलए िनिषĦ रहा है। और इसी के चलते िश±ा-दी±ा के संÖकारŌ से भी उसे दूर रखा गया। एक कुशल úहणी बनने कì िश±ा के अितåरĉ ľी से अÆय अपे±ाएं नहé थé। इसके अितåरĉ िविभÆन सामािजक परंपराओं और कुÿथाओं के चलते ľी का दैिहक और मानिसक शोषण भी होता रहा है। मÅयकालीन भारतीय समाज म¤ ľी के संबंध म¤ िवकिसत हòयी तमाम कुÿथाएं आधुिनक काल तक भी चलती चली आयé। आधुिनक काल म¤ यूरोपीय िचंतन के ÿभाववश भारतीय समाज म¤ ľी-ÖवातंÞय और उसके िवकास को लेकर munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
36 िविभÆन आंदोलन चले। ईĵरचंþ िवīासागर, ºयोितबा फुले, सािवýीबाई फुले आिद इसका उदाहरण ह§। १९वé शताÊदी म¤ ľी कì जीवन दशा को सुधारने के िलए जो िविभÆन आंदोलन चल रहे थे, उनका Óयावहाåरक सकाराÂमक पåरणाम लगभग न के बराबर था। वषª १९४७ म¤ भारत कì आजादी के बाद भी काफì समय तक संवैधािनक ÿावधानŌ और िविभÆन सरकारी योजनाओं के बावजूद आम भारतीय समाज म¤ िľयŌ को लेकर मानिसकता म¤ बहòत पåरवतªन िदखाई नहé दे रहा था। सािहÂय के ±ेý म¤ भी ÿेमचंद के साथ-साथ अÆय बहòत से सािहÂयकार ľी जीवन कì िवसंगितयŌ और िवकृितयŌ को लेकर लगातार िलख रहे थे और पुŁष-ÿधान समाज म¤ एक नई समरस चेतना को िवकिसत करने कì चेĶा कर रहे थे, परंतु इन ÿयासŌ का पåरणाम काफì नगÆय था। ऐसी िÖथित म¤ ľीवगª कì ÿगितशील और पढ़ी-िलखी, बुिĦजीवी लेिखकाओं और रचनाकारŌ ने ľी िवमशª के Ĭारा ľी जीवन के िविभÆन आयामŌ पर िलखकर ľी मुिĉ के िविभÆन संदभŎ पर गंभीर चचाª आरंभ कì। 'झूला नट' ऐसी ही चचाª कì एक महÂवपूणª कड़ी है। 'झूला नट' के बारे म¤ एक िवशेष तÃय यह है िक यह úामीण पåरवेश पर आधाåरत रचना है और यह सभी पाý úामीण जनजीवन से जुड़े हòए पाý ह§। नई सदी म¤ नारी-मुिĉ का ÿij िकस तरह से úामीण जनजीवन तक Óयापक गया है, यह सकाराÂमक संदेश इस उपÆयास के Ĭारा देखने को िमलता है। यह नहé भूला जाना चािहए िक समाज म¤ बदलाव कì ÿथम बयार नगरŌ कì तरफ से ही आती रही है। दरअसल िकसी भी नवाचार को पलने-पुसने का सही पåरवेश शहरŌ म¤ ही िमलता है। ³यŌिक शहरी जीवन म¤ बदलावŌ के ÿित इतनी ºयादा łिढ़वािदता नहé होती िजतनी िक úामीण जनजीवन म¤ होती है। úामीण समाज अपनी परंपराओं और łिढ़यŌ को लेकर कहé ºयादा सचेत रहता है और इन परंपराओं łिढ़यŌ पर िकसी भी ÿकार का संकट आने पर वह मुखर हो उठता है। ऐसी िÖथित म¤ यह उपÆयास िजस ढंग से úामीण ±ेýŌ म¤ ľी चेतना म¤ पåरवतªन कì िÖथितयŌ को िचिýत करता है, वह अपने आप म¤ उÐलेखनीय है। उपÆयास कì नाियका शीलो िजस ढंग से िवपरीत पåरिÖथितयŌ म¤ फंसती है और िफर उन पåरिÖथितयŌ का िगरते-पड़ते, मुकाबला करते हòए िजस ढंग से वह अपना ÿितकार लेती है, ऐसा चåरý दरअसल नई उभरती हòई चेतना का ही पåरणाम है। łिढ़वादी समाज म¤ ľी के Ĭारा इस तरह के Óयवहार कì कÐपना भी असंभव थी। समाज कì िविभÆन संÖथाओं के Ĭारा इतनी तरह के बंधन िľयŌ के आचार-िवचार पर लगे हòए थे िक इस तरह कì कÐपना भी नहé कì जा सकती। परंतु यह समय के बदलाव को भाँपकर और उसे अिभÓयिĉ देकर उपÆयास लेिखका ने शीलो के माÅयम से गांव म¤ बदलती हòई नव-चेतना का ही संकेत िदया है। इस उपÆयास म¤ शीलो के चåरý का िवकास उपÆयास लेिखका ने इस िबंदु को मूल łप से Åयान रखते हòए ही िकया है। दरअसल कथा सािहÂय म¤ ľी का िचýण पåरिÖथितयŌ को िववशतापूवªक भोगते हòए ही ºयादातर िदखाया गया है। आमूल िवþोह जैसी िÖथितयां कम ही िचिýत कì गई ह§। उपÆयास 'झूला नट' म¤ शीलो के जीवन कì िवडंबना उसके िववाह के साथ आरंभ होती है, िजसे समझने म¤ उसे कुछ समय लगता है। सुमेर का पलायन उसके जीवन म¤ अपमान और खालीपन भर देता है, िजससे उसे िनजात तब िमलती है, जब उसकì सास सरसुती और देवर बालिकशन उसकì िवपरीत पåरिÖथितयŌ और जीवन कì िवसंगितयŌ को बदलने म¤ सहभागी होते ह§। इस आ®य को úहण करने के बाद शीलो का चåरý खुद-ब-खुद इस तरह उपÆयास म¤ िवकिसत होता है िक वह उसके जीवन को अपमान से भर देने वाले munotes.in

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‘झूला नट’ : पåरवेशगत
यथाथª, úामीण ľी-वगª
कì नÓय-चेतना, िचिýत
वैचाåरक संघषª और
बुÆदेलखÁड कì
आँचिलक महक

37 सुमेर से न केवल ÿितकार लेती है बिÐक सुमेर के सामने िजस तरह वह डटकर खड़ी होती है, उससे हमारे समाज म¤ िľयŌ कì मजबूत होती मानिसकता का पåरचय िमलता है। इन समÖत िÖथितयŌ को सफलतापूवªक िचिýत करने म¤ उपÆयास लेिखका को सफलता िमली है। सहज तरीके से उपÆयास इस नÓय चेतना को अिभÓयĉ करने म¤ समथª हòआ है। वाÖतव म¤ शीलो का चåरý कोई साधारण चåरý नहé है। िहंदी कथा सािहÂय के इने-िगने महÂवपूणª चåरýŌ म¤ उसका शुमार िकया जा सकता है। शीलो म¤ सामािजक दबाव को सहन करने कì अपूवª ±मता है, उसम¤ पåरिÖथितयŌ को भाँपकर अपने वजूद कì र±ा करने का माĥा है। वह साहसी है और सही नजåरए से देखा जाए तो उसने कुछ भी अनैितक नहé िकया है। और उपÆयास के आधार पर जो कुछ भी ऐसा समझा जा सकता है, वह िसफª इसिलए ³यŌिक वह अपने जीवन को िबगाड़ने वाले अपराधी सुमेर के ÿित कटु भावना से ÿेåरत और पीिड़त है। बिछया ÿथा का िनवªहन भी वह अपनी इसी भावना के चलते नहé िनभाती ³यŌिक यही वह अľ था िजससे वह सुमेर को मात दे सकती थी। उसे उसकì नजरŌ म¤ झुका सकती थी। और सही अवसर आने पर उसने ऐसा िकया भी। उसके भीतर कì िवþोह भावना िकसी एक िदन का पåरणाम नहé थी या सबकì नजरŌ म¤ सुमेर के कृÂयŌ के कारण लांिछत करना, यह सब उसके लंबे समय कì सोच और योजना का पåरणाम था। सचमुच शीलो का साहसी ÓयिĉÂव नए बदलते हòए समाज म¤ ľी वगª कì चेतना का ÿितिनिधÂव करता है। ३.४ ‘झूला नट’ म¤ िचिýत वैचाåरक संघषª उपÆयास एक ऐसी िवधा है िजसम¤ िकसी भी समÖया पर िवचार करने कì Óयापक संभावनाएं मौजूद होती ह§। इसीिलए ऐसे ÿij जो िवÖतारपूवªक िवचारणीय होते ह§, उÆह¤ इस िवधा म¤ Öथान िदया जाता है। कभी-कभी सूàम संवेदनाएं और ÿतीकाÂमकता समÖया को Óयĉ करने के िलए ठीक उपादान नहé समझे जाते। ऐसी िÖथित म¤ लेखक संभावना के अनुसार कहानी या उपÆयास िवधा का आ®य úहण करते ह§। िहंदी सािहÂय के अिधकतर सामािजक और राजनीितक समÖयाओं पर आधाåरत उपÆयास इसी ÿकृित के ह§, िजनम¤ िवचारशील ढंग से िचंतन कì आवÔयकता के कारण उसम¤ िनिहत वैचाåरक संघषª को अिभÓयिĉ िमली है। मैýेयी पुÕपा ने भी अपने उपÆयासŌ म¤ िविभÆन पåरवेशगत सामािजक समÖयाओं के संदभª म¤ वैचाåरक संघषŎ को महÂवपूणª ढंग से िचिýत िकया है। उपÆयासकार मैýेयी पुÕपा ने 'झूला नट' म¤ कई तरह के ÿijŌ, वैचाåरक ĬंĬ और संघषŎ को क¤þ म¤ रखा है और िविभÆन पाýŌ के माÅयम से इस ĬंĬ एवं संघषª को िचिýत कर नए िवकÐपŌ कì तरफ बढ़ने का ÿयास िकया है। इÆह¤ हम कई ÖतरŌ पर देख सकते ह§। पहले Öथान पर शीलो का Óयिĉगत ĬंĬ; दूसरा, शीलो कì पåरिÖथितयŌ और सुमेर के बीच संघषª कì िÖथित; तीसरा, सरसुती और शीलो के बीच का वैचाåरक ĬंĬ; चौथे Öथान पर बालिकशन कì पåरिÖथितयां और ĬंĬ और सबसे अंत म¤ इन सभी पाýŌ कì अपनी िनजी िÖथितयाँ और सामािजक परंपराओं का ĬंĬ। ये कुछ ऐसी िÖथितयां ह§ िजÆह¤ उपÆयास म¤ संघषª और ĬÆĬ कì िÖथितयŌ के łप म¤ सहज ही लि±त िकया जा सकता है और इन संघषªपूणª िÖथितयŌ के माÅयम से उपÆयास लेिखका ने अपने मंतÓयŌ को िसĦ करने का साथªक ÿयास िकया है। munotes.in

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38 इस उपÆयास म¤ ÿÂयेक चåरý अपने आप म¤ एक वैचाåरक दुिवधा हमारे सामने रखता है। पूरे उपÆयास म¤ घटने वाला शीलो का चåरý हम¤ वैचाåरक łप से न केवल बुरी तरह िझंझोड़ता है बिÐक ऐसी पåरिÖथितयŌ म¤ फंसी एक युवती के ÿित कई तरह के ÿij और समाधान भी उपिÖथत करता है। शीलो िजन पåरिÖथितयŌ से गुजर रही है और गुजरते हòए िजस तरह का घटनाøम उसके जीवन म¤ लगातार आ रहा है, ऐसे म¤ िनिIJत łप से यह माना जा सकता है िक वह सामािजक माÆयताओं के िवŁĦ जाकर िनतांत Öव¸छंद Óयवहार कर रही है। पर उसकì Öव¸छंदता के पीछे ³या है ? उसकì िववशता है या उसका øोध है या उसने Öवयं को िनयित के हाथŌ छोड़ िदया है ? यह नहé भूलना चािहए िक भले ही वह úामीण समाज कì युवती है, वह पढ़ी-िलखी नहé है, परंतु सहज, सरल और Öवाभािवक जीवन जीने का उसका अिधकार उसका अपना मौिलक अिधकार है। शीलो के इस तरह से िनिमªत हो जाने के पीछे यही समाज िजÌमेदार है। ³या सुमेर के Ĭारा उसे पहले िदन ही łप - रंग आिद के कारण छोड़ िदया जाना उसके वजूद का बाकायदा मजाक उड़ाना नहé है। सुमेर या उसके बड़े बुजुगŎ को िववाह के िलए शीलो या उसके पåरवार वालŌ ने िववश तो नहé िकया था। यह िववाह समाज कì परंपराओं का पालन करते हòए हòआ। ऐसे म¤ सुमेर का पलायन कहां तक उिचत था ? शीलो को एकदम िवकÐपहीन िÖथित म¤ छोड़कर, उसके िलए जीिवत नरक कì ÓयवÖथा कर सुमेर का चला जाना मानवीय और सामािजक ŀिĶ से िबÐकुल भी ठीक नहé था। शीलो अपनी संपूणª आशाओं के साथ सुमेर के इस नकाराÂमक Óयवहार को अपनी सहज बुिĦ के अनुसार फेरने का ÿयास करती है। अपने पूरे िवĵास और धािमªक आÖथा के साथ वह किठन से किठन Ąत, उपवास और साधना के Ĭारा सुमेर को लौटा लेना चाहती है। परंतु यह संभव नहé होता। शीलो के सामने िवकट िÖथित है। लंबे अंतराल तक इन िवकट पåरिÖथितयŌ म¤ फंसे होने के बाद भी वह अपने मायके नहé लौटना चाहती। कारण भौिजयŌ वाले घर म¤ वह आÂमसÌमान के साथ नहé रह सकेगी। सचमुच यह सामािजक Óयवहार िक िववाह के पIJात एक ľी पूणª मान सÌमान कì अिधकाåरणी अपनी ससुराल म¤ ही होती है। इस Óयावहाåरक माÆयता के चलते शीलो अपने मायके भी नहé लौट सकती। इन िवकट पåरिÖथितयŌ म¤ उसके सामने ³या िवकÐप थे ? एक अ¸छी बात उसके जीवन म¤ यह शािमल थी िक उसकì सास और उसके देवर बालिकशन को उसके साथ हòए अÆयाय से पूणª सहानुभूित थी इस संबंध म¤ बालिकशन अपने भाई और सरसुती अपने बेटे के िवŁĦ थी। वे शीलो के साथ हòए अÆयाय को ठीक करना चाहते थे परंतु िववश थे। सुमेर को इस बात के िलए सरसुती ने राजी करने का काफì ÿयास िकया परंतु हठबुिĦ सुमेर अपनी मां कì बात मानने को भी तैयार नहé हòआ। ऐसे म¤ ितल-ितलकर घुटता हòआ देख सरसुती ने अपने छोटे बेटे बालिकशन को शीलो के साथ रहने कì अनुमित दे दी। यह अनुमित कहé से Öव¸छंद Óयवहार का ÿतीक नहé थी न ही यह सामािजक परंपराओं के िवŁĦ थी। दरअसल सरसुती बुंदेलखंड के अपने úामीण समाज म¤ ÿचिलत बिछया ÿथा के सहारे शीलो के जीवन को Öवाभािवक बनाने कì चेĶा करती है। सरसुती का सोचना था िक बिछया के Ĭारा पंचायत और समाज के सामने वह बालिकशन और शीलो के संबंध को वैधािनक माÆयता िदला देगी और शीलो का जीवन बच जाएगा। यह समÖत कायª Óयापार उपÆयास म¤ शीलो के जीवन को एक िनिIJत िदशा देने के िलए गढ़ा गया है। परंतु दूसरी तरफ आÂमसÌमान को ठेस लगने से आहत शीलो इतना जÐदी सुमेर को munotes.in

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‘झूला नट’ : पåरवेशगत
यथाथª, úामीण ľी-वगª
कì नÓय-चेतना, िचिýत
वैचाåरक संघषª और
बुÆदेलखÁड कì
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39 छोड़ने के प± म¤ नहé थी। सुमेर ने िजस तरह से उसका अपमान िकया था और वह िजतनी सहजता से यह सोचता था िक वह शीलो से अपना पीछा छुड़ा लेगा, वैसा नहé हòआ। शीलो कì अपनी Óयावहाåरक बुिĦ ने सुमेर कì इस सोच को गलत सािबत िकया। शीलो और सुमेर के åरÔतो म¤ खéचतान के संदभª म¤ ÿij यह उठता है िक वाÖतव म¤ सुमेर िजस दंड का हकदार था, वह उसे नहé िमला। शीलो ने सुमेर के जीवन को लेकर कोई िखलवाड़ तो नहé िकया परंतु सुमेर को इस बात का एहसास िदलाने के िलए िक, पÂनी कोई Óयिĉगत संपि° नहé है। उसका भी अपना वजूद और आÂमसÌमान है और िजसके िलए वह लड़ भी सकती है। वह संपि° के ÿij पर सुमेर कì मनमानी नहé चलने देती। इस ÿij को लेकर सरसुती भी शीलो पर आøामक हो जाती है। परंतु एक लंबे समय तक िवडंबनापूणª पåरिÖथितयŌ का सामना करने के बाद शीलो म¤ इतना साहस पैदा हो जाता है िक वह इस तरह के िनणªय लेने म¤ स±म तो हो ही जाती है, साथ ही अपने उठाए गए कदमŌ पर िटकना भी उसे आ जाता है। इस उपÆयास म¤ एक बड़ा ÿij बालिकशन को लेकर भी खड़ा होता है। एक सीधा-सादा úामीण युवक जो अपनी मां कì इ¸छा को ही सवōपåर मानता है और उसके कहे अनुसार ही हर काम करता है, मां कì इ¸छा का पालन करते हòए ही वह शीलो को िवडंबनापूणª पåरिÖथितयŌ से बाहर िनकालने का ÿयास करता है। शीलो और सुमेर के बीच पैदा हòई िवसंगित के चलते बालिकशन कì सहानुभूित आरंभ से ही शीलो के ÿित है। िपता के दज¥ पर बैठे बड़े भाई से तो वह कोई ÿij नहé पूछ सकता परंतु शीलो के िहत म¤ मां कì इ¸छा अनुसार वह जो कर सकता है, वह करता है। मां कì इ¸छा के अनुसार ही वह शीलो के साथ को Öवीकार कर लेता है। बड़े भाई सुमेर के दूसरा िववाह कर लेने के पIJात बालिकशन का यह कृÂय िनिIJत łप से अित ÿशंसनीय है। ऐसा करके वह एक तरफ शीलो के जीवन को बबाªद होने से तो बचा ही लेता है, साथ ही बड़े भाई के ÿित भी उसकì िनķा का पता चलता है। परंतु यह सब करके अंततः बालिकशन के हाथ ³या आया ? उपÆयास के घटनाøम को देखते हòए पता चलता है िक शीलो, सरसुती और सुमेर कì अपनी िनजी Öवे¸छाचाåरता और महÂवाकां±ाओं के चलते बालिकशन का जीवन बुरी तरह ÿभािवत होता है। इन सभी के बीच वह िपसता हòआ िदखाई देता है और अंत म¤ अवसादपूणª िÖथित म¤ पहòंच जाता है। बालिकशन कì यह िÖथित भी एक नए यथाथª को हमारे सामने रखती है, जहां जनजीवन के मूÐयŌ कì अपनी अिÖमता भी ±åरत होती िदखाई देती है। यह उपÆयास अपने पूरे ÿाłप म¤ कई महÂवपूणª ÿijŌ को हमारे सम± रखता है। िनिIJत łप से इस उपÆयास के मु´य चåरý सामािजक परंपराओं के िवŁĦ िदखाई देते ह§ और उनके चåरý कì नकाराÂमकता िकसी को भी खटक सकती है। परंतु यह देखना अÂयंत महÂवपूणª है िक ऐसा िकन पåरिÖथितयŌ के कारण संभव हòआ है ? वे कौन से कारक िजÌमेदार ह§, िजनके चलते इस तरह कì नकाराÂमकता चåरýŌ म¤ बाहर िनकल कर आयी है। इसके साथ ही एक ľी को देखने का नजåरया भी बदलने कì जłरत यह उपÆयास सामने रखता है। समú ŀिĶ से देख¤ तो िनिIJत łप से शीलो इस उपÆयास कì सबसे महÂवपूणª पाý है, िजसको आधार बनाकर समूचा ताना-बाना रचा गया है। और उपÆयास लेिखका ने शीलो का िचýण िजस तरह से उपÆयास म¤ िकया है, वह िनिIJत łप से आदशªवादी िÖथितयŌ को सामने नहé रखता। ऐसा कोई आúह लेकर उपÆयास लेिखका ने भी रचना का सृजन नहé िकया। उनका उĥेÔय है, ऐसी पåरिÖथितयŌ म¤ फंसी हòई एक ľी को उसके समूचे पåरवेश और पåरिÖथितयŌ को Åयान म¤ रखते हòए देखना। सही ŀिĶकोण से देखना। सही मायने म¤ ľी जीवन कì िववशताओं को munotes.in

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40 इस उपÆयास म¤ ÿÖतुत तो िकया ही है साथ ही इन िववशताओं तथा पåरिÖथितयŌ के चलते वह िकस łप म¤ ढल जाती है, इस यथाथª को भी रचनाकार ने सामने रखा है। अÆय सभी ĬÆĬ और संघषŎ के अितåरĉ समú पåरिÖथितयŌ के मĥेनजर िकसी ľी को देखे जाने कì आवÔयकता पर िनसंदेह यह उपÆयास बल देता है। ३.५ बुÆदेलखÁड कì आँचिलक महक 'झूला नट' उपÆयास कì रचना बुंदेलखंड कì úामीण पृķभूिम को आधार बनाकर कì गई है। उपÆयास म¤ बुंदेलखंड अंचल के एक गांव के पåरवार को आधार बनाकर पाýŌ का िनयोजन कर कथावÖतु का गुÌफन िकया गया है। िनिIJत łप से जब कोई लेखक ±ेý िवशेष को अपनी रचना के क¤þ म¤ रखता है तो वहां कì अपनी कुछ महÂवपूणª िवशेषताएं रचना म¤ सिÌमिलत हो ही जाती ह§। िहंदी म¤ तो अंचल िवशेष को आधार बनाकर आंचिलक उपÆयासŌ कì एक महÂवपूणª परंपरा ही है। और इस तरह के उपÆयासकारŌ म¤ फणीĵरनाथ रेणु, नागाजुªन आिद का नाम ÿमुख łप से िलया जा सकता है। इन सभी लेखकŌ कì तÂसंदिभªत रचनाओं म¤ अंचल िवशेष कì झलक इस तरह िमलती है िक जैसे पाठक रचना को पढ़ न रहा हो बिÐक जी रहा हो। भाषा-बोली, रीित-åरवाज, परंपराओं आिद का महÂवपूणª िचýण रचना के भीतर एक पाý कì तरह अनुÖयूत होता है। िहंदी म¤ इस ढंग से िलखे गए उपÆयासŌ म¤ मैला आंचल सबसे िविशĶ है, िजसकì रचना फणीĵरनाथ रेणु ने कì थी। उपÆयास 'झूला नट' िन:संदेह úामीण पृķभूिम पर आधाåरत उपÆयास है परंतु केवल इस आधार पर ही उसे इस तरह कì रचना परंपरा से जोड़ना या उसका एक अंग मान लेना ठीक नहé होगा। कथा कì पृķभूिम म¤ úामीण पåरवेश है और इस रचना म¤ पåरवेश से कहé ºयादा महÂवपूणª ढंग से समÖया को िचिýत िकया गया है। उपÆयास के गठन म¤ Öवाभािवकता लाने के िलए रचनाकार ने भाषायी ÿयोग अÂयंत सुंदर ढंग से िकए ह§, जो रचना को पåरवेश के अनुłप सहज और Öवाभािवक बनाने म¤ यथासंभव योगदान देते ह§। इस ŀिĶ से भाषा संबंधी कुछ उदाहरण देखे जा सकते ह§ - १. "मूरख, अपने आदमी को हाथ म¤ करने कì खाितर जनी को ³या-³या जतन नहé करने पड़ते ? सौ तरह के गुन-ढंग..... तरह-तरह से åरझाती है। धनी के आगे बेड़नी का łप धरना पड़ता है। सीलो, मेरे जाने तू सेज पर भी गऊ माता..... अरी िसåरªन जिनयŌ के चलते सतजुग-कलजुग सब बरोबर। सितयŌ के आदमी बेिड़िनयŌ ने छीने ह§ सदा। बदल जाएँ जुग, यह बात नहé बदलने वाली। बेटी, सती का łप तो ऊपर का ढŌग है, बस।" २. "बेटी, पढ़ा-िलखा लड़का..... कौन से बैरी ने घात धरा दी। मोरे महादेव बुिĦ िफर¤गे तो सही। आज नहé, तो कल। सबर का फल मीठा होता है। सुख नहé रहा, तो दुख भी नहé रहेगा।" ३. "कौन सा पुरखा सराप गया िक घर कì बंस-बेल म¤ कÐला फूटते िदखाई नहé देते। बेटा-बहó का संग होते-होते रह जाता है। बांझ देहरी..... तेरे िपता को न सुरग िमले, न नरक। िनब«स आदमी अधबीच लटका रहता है।" munotes.in

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‘झूला नट’ : पåरवेशगत
यथाथª, úामीण ľी-वगª
कì नÓय-चेतना, िचिýत
वैचाåरक संघषª और
बुÆदेलखÁड कì
आँचिलक महक

41 ४. "म§ साँग िछदवाऊंगा। शीलो दस सीस बीस भुजा कì हो जाए, तब भी न मानूंगा, कहती है िक िसरê हो गए हो। गाल म¤ बÐलम का फल छेदकर लहóलुहान होना चाहते हो ? िकतनी नादान औरत है। ³या जाने माता का परताप ? महामाई अपने भगत का स° भी चीÆहती - जानती है, नहé तो लोहे का चमकता अनीदार फल गाल के भीतर कì नरम खाल-मांस को पार करता हòआ बाहर िनकल आए और एक बूंद खून न िगरे ! तेरी मिहमा माता ! चमÂकार !" इस तरह के बहòत से उदाहरण उपÆयास के भीतर से िदए जा सकते ह§, िजनम¤ रचनाकार ने कथा को Öवाभािवकता ÿदान करने के उĥेÔय से बुंदेलखंड कì बुंदेली भाषा का सुंदर ÿयोग िकया है। भाषा के इस तरह के ÿयोग से समÖत उपÆयास को यथाथªपरक कलेवर िमला है। इसके अितåरĉ रचनाकार ने बुंदेलखंड के úामीण समाज कì कुछ ÿथाओं और परंपराओं का भी वणªन िकया है, िजनसे उपÆयास म¤ बुंदेलखंड कì आंचिलक महक समा गयी है। बड़ी हैरानी कì बात है िक पढ़े िलखे और सËय, उ¸चवगª तथा मÅयमवगª म¤ इस तरह कì उदार परंपराओं का पुराने समय म¤ िनतांत अभाव था। ऐसी ही एक ÿथा, जो िनÌन वगª म¤ आिथªक ŀिĶ से िनÌन वगª म¤ थी, उसका वणªन लेिखका ने उपÆयास म¤ िकया है। बिछया ÿथा ऐसी ही ÿथा थी। िजसके चलते िľयŌ का जीवन अिभशĮ होने से बच जाता था। पुŁष-ÿधान समाज म¤ ľी को उपभोग कì वÖतु से ºयादा नहé समझा जाता था। एक जीिवत इकाई के łप म¤ उसके जीवन म¤ िवसंगितयां उÂपÆन होने के समय उन िवसंगितयŌ को ठीक करने कì ŀिĶ से बिछया ÿथा अÂयंत मानवीय ÿथा थी। इसका साथªक वणªन रचनाकार ने इस उपÆयास म¤ िकया है। इस तरह बुंदेलखंड के समाज और संÖकृित का यथासंभव Öवाभािवक िचýण इस उपÆयास म¤ देखने को िमलता है। ३.६ सारांश इस इकाई के अंतगªत 'झूला नट' उपÆयास को िविभÆन ŀिĶकोणŌ से देखा गया है। कोई भी कथाकार घटनाओं और कायª-ÓयापारŌ के अितåरĉ कुछ वैचाåरक संदभŎ को पाठकŌ तक ÿेिषत करने का ÿयास करता है। इसके अितåरĉ पåरवेश व अÆय संदभª भी अिनवायª łप से कथा म¤ सिÌमिलत होते ही ह§। इन सभी का िवĴेषण करके ही िकसी रचना को उसके संपूणª संदभŎ के साथ समझा जा सकता है। झूला नट उपÆयास केवल शीलो कì Óयथा-कथा कहने वाला उपÆयास ही नहé है बिÐक इसके Ĭारा समेिकत łप से एक ľी के जीवन म¤ िविभÆन ĬंĬ और दबावŌ को भी देखा जा सकता है। आजादी के बाद बदलते पåरवेश म¤ धीरे-धीरे िľयŌ के संदभª म¤ िकस तरह से पुŁष ÿधान समाज कì मानिसकता म¤ पåरवतªन हòआ है और वह पåरवतªन िकन कारणŌ के चलते हòआ है, यह उपÆयास इन बातŌ का खुलासा भी करता है। ľी मुिĉ का ÿij, ľी के अपने साहस से ही जुड़ा हòआ है। जब वह Öवयं ÿितकार करना सीख जाती है तो समय कì धारा भी बदल जाती है। इस इकाई म¤ पåरवेशगत यथाथª के अंतगªत úामीण समाज कì तÂसंदिभªत स¸चाई को उजागर िकया गया है। इसी तरह बदलते समय के अनुłप बदलती ľी चेतना को भी िवĴेिषत िकया गया है। 'झूला नट' उपÆयास बुंदेलखंड कì úामीण पृķभूिम पर आधाåरत उपÆयास है। इसके चलते बुंदेलखंड के úामीण समाज कì कुछ सांÖकृितक और सामािजक िवशेषताएं Öवत: ही इस उपÆयास म¤ सिÌमिलत हो गई ह§। भाषा कì ŀिĶ से िवशेष łप से इसे िचिÆहत िकया जा सकता है। इस इकाई के अंतगªत इÆहé समÖत संदभŎ को उपÆयास के भीतर देखा गया है। munotes.in

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42 ३.७ वैकिÐपक ÿij १. बिछया ÿथा का िनवªहन करने से कौन इनकार कर देता है ? (क) शीलो (ख) सुमेर (ग) बालिकशन (घ) सरÖवती २. िनÌन म¤ से िकससे शीलो संपि° पर आधा अिधकार मांगती है ? (क) स°े (ख) रघु (ग) सुमेर (घ) बालिकशन ३. िनÌन म¤ से कौन अवसाद कì अवÖथा म¤ पहòंच जाता है ? (क) बालिकशन (ख) सुमेर (ग) शीलो (घ) सरसुती ४. शीलो पहले िकसकì बिछया करने कì बात कहती है ? (क) बालिकशन (ख) सुमेर (ग) सरसुती (घ) स°े ३.८ लघु°रीय ÿij १. शीलो और सुमेर का वैचाåरक ĬंĬ २. सरसुती का मानिसक संघषª ३. बालिकशन कì अवसादपूणª अवÖथा के कारण ३.९ बोध ÿij १. उपÆयास 'झूला नट' म¤ उपÆयासकार ने पåरवेश को साथªक ढंग से िचिýत करने म¤ कहां तक सफलता पायी है ? िवĴेषण कìिजए। २. उपÆयास 'झूला नट' म¤ िविभÆन वैचाåरक ĬÆĬ और संघषŎ को िवĴेिषत कìिजए ? ३. बुंदेलखंड कì सामािजक और सांÖकृितक िवशेषताओं को दशाªने कì ŀिĶ से 'झूला नट' उपÆयास का मूÐयांकन कìिजए ? ४. शीलो के माÅयम से ľी चेतना के बदलते संदभŎ को अिभÓयĉ करने कì ŀिĶ से 'झूला नट' उपÆयास का परी±ण कìिजए ? ५. ³या 'झूला नट' उपÆयास को एक आंचिलक रचना माना जा सकता है ? िवĴेषण कìिजए। ३.१० अÅययन हेतु सहयोगी पुÖतक¤ १. झूला नट - मैýेयी पुÕपा munotes.in

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43 ४ दिलत सािहÂय कì पृķभूिम इकाई कì łपरेखा ४.० इकाई का उĥेÔय ४.१ ÿÖतावना ४.२ दिलत शÊद का अथª ४.३ दिलत शÊद कì पåरभाषा ४.४ ऐितहािसक पåरÿेàय: दिलत आंदोलन ४.५ दिलत सािहÂय कì अवधारणा ४.६ दिलत सािहÂय कì िवकास याýा ४.७ सारांश ४.८ बोध ÿij ४.९ वÖतुिनķ ÿij ४.१० संदभª úंथ ४.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे -  दिलत शÊद का अथª, उसकì पåरभाषा को िवīाथê जान सक¤गे ।  दिलत आंदोलन का ऐितहािसक पåरÿेàय ³या है, उसको जान¤गे ।  दिलत सािहÂय कì अवधारणा से छाýŌ का पåरचय होगा ।  दिलत सािहÂय कì िवकास याýा िकस ÿकार रही, उससे छाý पåरिचत हŌगे । ४.१ ÿÖतावना एक लंबी दुÕचिøय और यंýणा पूणª जĥोजहद को झेलने और उस से लगातार उबरने कì िजजीिवषा ही शायद वो चीज है िजसने सिदयŌ से अिभशĮ दिलतŌ को इस मुकाम तक पहòचायाँ िक वे अपनी अपे±ा, यंýणा और बहò आयामी शोषण के बुिनयादी रहÖयŌ को समझ पाए । उनके िवŁĦ संगिठत हो कर िवþोह कर पाए । िपछली सदी के आखरी चार-पाँच दशकŌ म¤ उठी दिलत चेतना म¤ दिलत समाज म¤ वो कुबत पैदा कì, िक समूची भारतीय ÓयवÖथा Ĭारा िकए जानेवाले अपने शोषण के िवरोध म¤ साहस कì भावना ही उनका बुिनयादी हािथयार बन गई । िवरोध के साहस कì भावना को दिलत समाज म¤ कई łपŌ म¤ अिभÓयिĉ िकया है । दिलत सािहÂय और आंदोलन का ºवार इन ŁपŌ म¤ अिभÓयिĉ िकया है । मगर िवरोध कì अिभÓयिĉ ही दिलत सािहÂय या आंदोलन नही है । परंपरागत जीवन munotes.in

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44 मूÐयŌ कì अिभÓयिĉ ही दिलत आंदोलन का मुलाधार है । सवªÿथम दिलत कौन ? उससे ताÂपयª ³या है इस पर ŀिĶ क¤िþत करते है । ४.२ दिलत शÊद का अथª दिलत शÊद का अथª िविभÆन शÊदकोशŌ म¤ तोड़ना, कुचलना, दबाना, मिदªत, खंिडत होता है । दिलत शÊद कì उÂपि° "संÖकृत के दल् धातु म¤ ÿÂयय जोड़ने से हòई है। िजसका अथª होता है; तोड़ना, िहÖसे करना, कुचलना।" शािÊदक ŀिĶ से यह शÊद िकसी िवशेष वगª के िलए घोतक नहé है परÆतु आधुिनक समय म¤ डॉ. बाबासाहेब आÌबेडकर Ĭारा चलाए गए आÆदोलन के पIJात् दिलत शÊद िनÌन वगŎ के िलए सÌबोिधत िकया जाने लगा । शािÊदक ŀिĶ दे दिलत उसे कहा जाता है िजसका शोषण हòआ हो । दिलत शÊद का संवैधािनक अथª ‘अनुसूिचत जाित’ के łप म¤ िनधाªåरत िकया गया है । आधुिनक समय म¤ शूþ जाितयŌ को िचिýत करने के िलए दिलत शÊद ÿयोग िकया गया, जो दिलत ÓयवÖथा का īोतक है । ÿाचीन काल म¤ दिलत शÊद के Öथान पर सवणª लोग िनÌन जाितयŌ को संबोिधत करने के िलए शूþ, चाÁडाल, भंगी, चमार, डोम आिद शÊदŌ का ÿयोग करते थे । तदुपरांत समय पåरवितªत होता गया और इन शÊदŌ के यथाÖथान पंचम, हåरजन, बिहÕकृत शÊद से संबोिधत करने लगे । इन शÊदŌ के संदभª डॉ.आनंद वाÖकर का कहना है । "गांधी जी ने दिलतŌ को हåरजन कहा, ®ी मगाटे ने अÖपृÔय कहा और डॉ. बाबासाहेब आÌबेडकर जी ने दिलतŌ के िलए बिहÕकृत और अछूत शÊद का ÿयोग िकया है।" इस आधुिनक समय म¤ पंचम, हåरजन, बिहÕकृत तथा अछूत शÊदŌ का ÿयोग िकया जाने लगा और वतªमान समय म¤ िनÌन वगª को संबोिधत करने के िलए ‘दिलत’ शÊद का ÿयोग होने लगा ह§ । अतः दिलत शÊद कोई जाित नहé परंतु दिलत ÓयवÖथा म¤ आया समूह माý है । ४.३ दिलत शÊद कì पåरभाषा दिलत का अथª समाÆयत: दबाना, कुचलना, खंिडत करना आिद है । इस शÊद को िवचारकŌ, सािहÂयकारŌ तथा िवĬानŌ ने अपने मतानुसार Óया´या कì है; जो इस ÿकार है - डॉ. Ôयौराज िसंह बैचेन के अनुसार - “दिलत वह है, िजसे भारतीय संिवधान ने अनुसूिचत जाित का दजाª िदया है।” रामलाल िववेक के मतानुसार - “āाĺण ±िýय, वैÔय के अलावा समÖत िहÆदू समुदाय दिलत वगª के अंतगªत ही माना जाता है । दिलत वगª म¤ इÖलाम धमª अंगीकार करने वाले बौĦ या ईसाई धमª úहण करने वाले दिलत वगª के लोग है ।” कंवल भारती के अनुसार - “दिलत वह है िजस पर अÖपृÔयता के िनयम लागू िकया गया हो िजसे कठोर और गंदे काम करने के िलए बाÅय िकया गया हो िजसे िश±ा úहण और Öवतंý Óयवसाय करने से मना munotes.in

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दिलत सािहÂय कì पृķभूिम
45 िकया गया हो और िजन पर सछुतŌ ने सामािजक िनयोµयताओं कì संिहता लागू कì वही और वही दिलत है ।” ओमÿकाश वाÐमीिक के अनुसार - “दिलत शÊद Óयापक अथªबोध कì Óयंजना देता है, भारतीय सामाज म¤ िजसे अÖपृÔय माना गया है वह दिलत है ।” अिहÆदी भाषीय दिलत सािहÂयकारŌ ने भी दिलत कì Óया´या इस ÿकार कì है - मराठी सािहÂयकार नामदेव ढ़साल के अनुसार - “दिलत Ìहणजे अनुसूिचत जाित जमाती, बौĦ कĶकरी जनता, कामगार, भूिमहीन खेत मजूर गरीब शेतकरी भटक या जमाती आदीवासी ।” गुजराती सािहÂयकार नीरव पटेल के अनुसार - “जे समुदायŌ जाितगत दमन तथा अÖपृÔयता िजवनना दरेक ±ेýे पायमाल तथा हडधूत थता रहóयो अने उवेखाया ते दिलत ।” डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर Ĭारा िक गई पåरभाषा के अनुसार – “िहंदुओं कì गुलामिगरी और जीवन पĦित का सवō°म आिवÕकार अथाªत दिलत है ।” इसके बावजूद िहंदु धमª का सवª®ेķ úंथ मनुÖमृित के अनुसार दिलत कì पåरभाषा – “āाÌहणÖय दुखमािसद । बाहò राजÆय कृत: । उŁ तदÖय यÓदवैÔय । पदËया शूþो अजायता ।” अथाªत āाहमण कì उÂपित मुख से जो सवō¸च है, ±िýय कì उÂपि° भूजाओं से, वैÔय कì उÂपि° जाघŌ से और शूþ कì पैदाईस पैर से हòई है । इस उÂपि° के बावजूद उनके कमª भी उनके अनुसार ही तय िकए गए – (मनुÖमृित) – “āाĸोÖय तपो ²ान । तप: ±िýÖय र±णाम । वैशÖय तू तपो वाताª । तप: शूþÖय र±णाम॥” अथाªत – āाÌहण का कायª ²ानाजªन करना, ±िýय का कायª र±ा करना, वैÔय का Óयापार और शूþ (दिलत) का ऊपर के तीनो वगŎ कì सेवा करना आिद । उपरोĉ िववेचन से यह िनÕकषª िनकाला जा सकता है – ‘दिलत’ शÊद से िहंदु जाित ÓयवÖथा का बोध होता है । इसके अंतगªत चमार, भंगी जैसे उपजाित को यह शÊद अपने िनकटतम कर लेता है । ‘दिलत’ शÊद से िहंदु जाित ÓयवÖथा माÆय िकए हòए लोगŌ के समुह का अथª बोध होता है । ‘दिलत’ शÊद से उपेि±त जाितयŌ का बोध होता है । ‘दिलत’ अÆयाय, अÂयाचार कì िÖथित दशªनेवाला है । munotes.in

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46 ‘दिलत’ िहंदु समाज ÓयवÖथा, जाित ÓयवÖथा कì ओर ले जाता है । ‘दिलत’ अÖपृÔयता को िदखाता है । ‘दिलत’ आज का िवþोही और øांितकारी łप है । ÖपĶ है िक जाितवÖथा, दुरावÖथ, लाचारगी शोषण, दयिनयता, कĶमय जीवन जीनेवाले – ÿभाकर मांडे के शÊदŌ म¤ कहना हो तो – “दिलत ऐसे ÓयिĉयŌ का समूह मनुÕय के नाते जीने का हक छीन िलया है, मानव के नाते िजनका मूÐय आिÖवकृत िकया गया है वह ‘दिलत’ है ।” िहंदी भािषक तथा अिहÆदी भािषक सािहÂयकारŌ Ĭारा दिलत शÊद कì दी गई Óया´या के अनुसार सारांशत: कहा जा सकता है िक दिलत उसे कहा गया है, िजÆह¤ समाज म¤ अछूत कहकर बिहÕकृत िकया गया हो, िजÆह¤ भारतीय संिवधान म¤ अनूसूिचत ®ेणी म¤ रखा और िजनका शोषण हòआ हो चाहे वो मजदूर, आिदवासी, ľी ³यŌ ना हो उÆह¤ दिलत कहा जाना चािहए । ४.४ ऐितहािसक पåरÿेàय :दिलत आंदोलन : भारत म¤ दिलत आंदोलन कì शुłआत महाÂमा फूले Ĭारा शुł कì गई उÆहŌने अपने िवचारŌ से आंदोलन कì जमीन तैयार कì । इसके बाद म¤ संसार का महान िवचारक डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के अËयुदय ने सामािजक, राजनीितक, सांÖकृितक आंदोलन मच गया । आम आदमी एक महान Óयिĉ के łप म¤ जागृत हòआ और अपनी बात संसार के सामने रखने लगा वही दिलत सािहÂय है । फुले जी ने सबसे पहले मिहलाओं को िश±ा देने का िजÌमा उठाया और वह सफल भी हòआ । िजनकì बदौलत आज हमारे देश के ÿधानमंýी, राÕůपित पहल कर चुके है । फूले ने भारतीय समाज और अÆय समाज के लोगŌ ने अपने अिधकार कì लडाई लडी । फूलेजी ने भारतीय दिलत आंदोलन का सूýपात िकया और इसी आंदोलन को मु´य धारा से जोड़ने का ÿयास डॉ. बाबासाहेब आÌबेडकर ने िकया । सामाÆयत: दिलत आंदोलन का इितहास यिद गौर से देखा जाए तो चावाªक को नकारना संभव नही होगा । यīिप चावाªक पर कई तरह के आरोप भी हòए है । इसके बावजूद चावाªक वह पहला श´स था, िजसने लोगŌ को भगवान के भय से मुĉ होना िसख़ाया । भारतीय दशªन म¤ चावाªक ने ही िबना धमª और िशख़र के सुख़ कì कÐपना कì । इस तजª पर देख़ने पर चावाªक सवª ÿथम दिलतŌ के ÿित आवाज उठाता नजर आता है । एक बात और िजसका िजø िकए िबना दिलत आंदोलन कì बात बेमानी होगी । वो है, बौÅद धमª । इसा पूवª ६०० ईसवी म¤ ही बौÅद धमª ने समाज के िनचले तबकŌ के अिधकारŌ के िलए आवाज उठाई। बुĦ ने सबसे पहले सामािजक और राजनीितक øांित कì पहल कì । इसे राजनीितक øांित कहना इसिलए जŁरी है िक उस समय स°ा पर धमª का अिधपÂय और समाज कì िदशा धमª के Ĭारा ही तय कì जाती थी । ऐसे समाज के िनचले तबको को øांित कì जो िदशा बुĦ ने िदख़ाई वह आज भी ÿासंिगक है । बुĦ के बाद िवनाश के कगार पर ख़डी मानव जाित के िलए कबीर एक माý औषिध है । डॉ. द°ाýय मुŁमकर ने अपनी पुÖतक ‘सािहÂय, समय और संवेदना’ म¤ कबीर पर आधारीत munotes.in

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दिलत सािहÂय कì पृķभूिम
47 लेख़ म¤ रजनीश का बहòत ही सुंदर संदभª िदया है - “संत तो हजार हòए है पर कबीर ऐसे है जैसे पूिणªमा का चाँद, अतुलनीय, अिÓदतीय । जैसे अंधेरे म¤ कोई अचानक िदया जला दे ऐसा यह नाम है । जैसे मŁÖथल म¤ अचानक मŁ उīान ÿकट हो जाए, ऐसे अदभूत और Èयारे उनके गीत है । कबीर एक आमंýण है, एक पुकार है, एक आÓहान ! और यह आÓहान कहé बाहर नही है, भीतर है, कबीर का एक एक वचन जैसे हजारŌ शाľŌ का सार है.... कबीर वचन जैसे अनगढ हीरे है, गीता होगी िकतनी ही िकमती लेिकन कबीर के एक शÊद म¤ समा जाए।” ÖपĶ है िक कबीर भारत के सबसे बड़े िवþोही किवयŌ म¤ से है, िजÆहŌने िमÃया, आडÌबर, Łिढ़वाद, जाित-पाित के िवरोध म¤ ख़डा आंदोलन मचाया उनका ŀिĶकोण िवशाल मानवतावादी रहा है । उÆहŌने मुितª-पुजा, माला फेरना, तीथª-याýा, वृ° उपवास, वणª-ÓयवÖथा, अवतारवाद, पोथी-पुराण, पठन आिद पर आघात िकया - “दुिनया ऐसी बावरी,पाथर पूजन जाय्। घर कì चिकया कोई न पुजै, जेिहका िपसा ख़ाय्।” इसके बावजूद वे िलख़ते है – “पंिडत मुÐला जो िलख़ िदया, छािड चले हम कछुना िलया।” अथाªत कबीर का उĥेÔय धमª, जाित, साÌǂदाियक समाज का िनमाªण करना है । कबीर के बाद दिलत आंदोलन म¤ उनके समकालीन किव रैदास का नाम बडे आदर के साथ िलया जाता है। उÆहŌने कहा – “तीरथ बरत न करो अंदेशा । तुÌहारे चरण कमल Ăरोसा । जहाँ तहाँ जाओ तुÌहारी पूजा । तूमसा देव और बही दूजा ।” रैदास ने भी वणªÓयÓÖथा पर सवªÿथम ÿहार िकया । सामािजक िवषमता, जाित-भेद, ऊँच-नीच िवषयक गलत धारणाओं के ÿित अपना रोष ÿकट िकया । दिलत आंदोलन के िलए महाराÕů कì भूिम चिचªत रही है । महाराÕů म¤ चोख़ा मेला, ²ानेĵर, तुकाराम, एकनाथ, तमील म¤ नंदलाल, नारायण धमª, उ°रÿदेश म¤ िहराडोम, अछुतानंद, कनाªटक म¤ महाÂमा बसवेĵर, बंगला म¤ राजाराम मोहनराय, पंजाब म¤ गुłनानक आिद इनके बावजूद सĻाजीराव गायकवाड, रामकृÕण परमहंस, नारायण गुł, िकसन फागु बनसोड, गोपाल बाबू, कनकदास आिद ने भी समतािधिķत समाज का िनमाªण करने म¤ अपना योगदान िदया । इÆहे भी आंदोलन के साथ जोड़ना होगा । इनके बावजूद महाराÕů के महान संत गाड्गे महाराज ने सबसे पहले Öव¸¹ता का महßव दुिनया को समझाया । आज जो Öव¸¹ता अिभयान कì तुतरी बजायी जा रही है । उसके ÿेरक िवचारक गाडगे महाराज है । गाड्गे महाराज ने कहा - ‘मनुÕय के िवचार अÖपृÔय होते है, मनुÕय नही । इसे सुसंÖकृत िवचारŌ कì आवÔयकता है । अÂयंत महनीय कायª गाडगे महाराज ने िकया । इनके बावजूद कुछ लोग होते है िक राजा महाराजओं कì चारदीवारŌ से कुदकर झोपिडयŌ तक जा पहòँचते है और वहाँ ऐसे िदए रोशन करते है िक आनेवाली इितहास कì सैकडŌ और हजारŌ परत¤ भी उस रोशनाई को दबा नही पाती । कोÐहापुर के महाराज राज®ी शाहó महाराज ऐसे ही ÓयिĉÂव के धनी थे । एक Öटेट के शासक होकर उÆहŌने जो कायª िकया, वह नूतन था, अिभनव और अनुकरणीय था । उÆहŌने सवª ÿथम बलात ®म को छेद िदया । उस समय देश के अÆय िहÖसŌ कì तरह कोÐहापुर म¤ भी āाĺणŌ का एक ¹ý राज था । यहाँ एक ÿसंग उधृत करना चाहóँगा जो ÿासंिगक है - ¹ýपित शाहó महाराज हर िदन बड़े सवेरे ही पास के नदी पर Öनान munotes.in

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48 करने म¤ जाया करते थे। परÌपरा से चली आयी ÿथा के अनुसार, इस दौरान āाÌहण पंिडत Ĭारा मंýो¸चार िकया करता था । एक िदन बंबई से पधारे ÿिसÅद समाज सुधारक राजाराम शाľी भागवत भी उनके साथ हो िलए थे । घटना १८९९ कì है । कोÐहापुर के महाराज Öनान के दौरान मंýोचार िकए हòए सुनकर (Ĵोक सुनकर) राजाराम शाľी अचंिभत रह गए। पूछे जाने पर āाÌहण पंिडत ने कहा कì चुँिक महाराजा शूþ है, इसिलए वे वैिदक मंýो¸चार न कर पौरािणक मंýो¸चार करते है । āाÌहण पंिडत कì बाते सुनकर महाराज को अपमान जनक लगा और च¤ल¤ज िकया । ÿिसÅद āाÌहण नारायण भĘ को तैयार कर य²ोपसंÖकार िकया । यह बात सुनकर कोÐहापुर के āाÌहण कुिपत हòए । यह बात लोकमाÆय बाल गंगाधर ितलक को भी पसंद नही आयी उÆहŌने उसकì िनंदा कì । उसके बाद शाहó माहाराज ने राज पुरोिहत को बरखाÖत कर िदया । शाहó महाराज आर±ण के जनक थे । उÆहŌने सवª ÿथम िपछड़ी जन-जाितयŌ के िलए ५०% िफसदी सीट¤ िपछड़ी जाितयŌ के िलए आरि±त कर दी । यह घटना १९०२ कì है । शाहó महाराज इंµलंड गये और उÆहŌने वही से आदेश जारी िकया । १९०३ म¤ शाहó महाराज ने कोÐहापूर िÖथत शंकराचायª के मठ कì सÌपि° जĮ करने का आदेश िदया । राजिषª शाहò महाराज ने यही नहé िकया बिÐक िपछड़ी जाितयŌ समेत समाज के सभी वगŎ मराठे, महार, āाÌहण ±िýय, वैÔय, िùIJन, मुिÖलम और जैन सभी के िलए अलग-अलग सरकारी संÖथाएँ ख़ोलने कì पहल कì । अंत: िनसंदेह यह अनुठी पहल भी उन जाितयŌ को िशि±त करने के िलए जो सिदयŌ से उपेि±त थी । उÆहŌने दिलत-िपछड़ी जाितयŌ के ब¸चŌ कì िश±ा के िलए ख़ास ÿयास िकये थे । उ¸च िश±ा के िलए उÆहŌने आिथªक सहायता उपलÊध कराई थी । शाहò महाराज का कायª अतुलिनय है । इसे इितहास म¤ याद रखा जाएगा । इन सभी महानुभवŌ के उपरांत १४ अÿैल, १८९१ म¤ भारत भूिम से डॉ. बाबासाहब आÌबेडकर जैसे दैिदÈयमान न±ý का उदय हòआ, िजसम¤ अंधरे म¤ डूबे हòये अछूतŌ, दिलतŌ और शोिषतŌ को Öवािभमान और आÂमिवĵास कì रोशनी दी । अछूत कहलाये जानेवाले दिलतŌ कì समÖत आशाय¤ इस सूयªपर केिÆþत हो गई । इसम¤ संदेह नही िक ºयŌ-ºयŌ समय िबतेगा, आंबेडकर का मानवतावादी संदेश अमृतवाणी के łप म¤ देश-िवदेश के मानव Ńदय को अिधकािधक झंकृत करता रहेगा। एक कथन उधृत है – "भारत का अजय अलोक दीप भारत का िलंकन भीमराव िवĬान ®ेķ था भारत का युग पåरवतªन भीमराव।" डॉ. आÌबेडकर जÆमजात िवþोही थे, िकंतु िवþोही होते हòए भी महान सृजक, समाज सुधारक तथा राÕůीय एकता के ÿबल िहमायती थे। उÆहŌने समाज के दुिषत कृितयŌ के िवŁĦ सतत संघषª िकया। और इसम¤ उÆह¤ अिĬतीय सफलता िमली। उÆहŌने जाितवाद, नारी अिश±ा, भेदभाव, दासता का जमकर िवरोध िकया। दिलतŌ कì कानूनी लड़ाई लड़ने munotes.in

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49 का िजÌमा सशĉ łप म¤ डॉ. आÌबेडकर ने उठाया उÆहŌने दिलतŌ के सामािजक, राजनीितक, आिथªक अिधकारŌ कì पैरवी कì। भारतीय संिवधािनक ÿÖतावना से लेकर सभी अनु¸छेद मानवीय कì र±ा करते नजर आते है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारत के दाता थे। उÆहŌने दिलतŌ को Öवािभमान से जीना िसखाया। उÆहŌने कहा “भीक माँगना, āाÌहण का धमª ह§, ±िýय का नही इसीिलए भीक माँगना छोड द¤। ÿकाश का आ®य लो, ³यŌिक तुÌहारे हेतु सफल हŌगे । केवल धमª बुिĦ से कुछ नही होगा, हमारी नीित अÖपृÔय वगŎ अÆयायŌ कì धमª बुिĦ पर आधारीत रहना, उÆहŌने कहा छीने हòए तÂव वापस नही आ सकते। िजसे उसे अपनी बुिĦ से सफल करना चाहीए।” अंत म¤ १४ अÿैल, १९५६ म¤ नागपुर के पिवý दी±ा भूिम पर लाखŌ लोगŌ कì उपिÖथित म¤ धमª पåरवतªन कर एक नयी मानिसकता के, Öवावलंबन के, Öवतंýता के ,समाता के, Æयाय के, ÿ²ा-शील-कŁणा आिद मूÐयŌ कì माला दिलतŌ को पहनाकर उÆह¤ सभी शोषण से मुिĉ कì । इस ÿकार दिलत अपनी मुिĉ के िलए, आÂम-सÌमान के िलए िवþोह कर उठा । सं±ेप म¤ दिलत आंदोलन सिदयŌ से लेकर आज तक बरकरार है। भले ही इसम¤ सनातनी शिĉयाँ रोडा डालते हŌग¤ िकंतु यह मानव मूÐय कì लड़ाई है, लड़ते रहेग¤। आज भले ही Öवतंýता, समता, बंधुÂव िदखाई देता होगा लेिकन तरह-तरह से शोषण आज भी शुŁ है, इसका ÿितकार दिलत आंदोलन का एक माý उĥेÔय है । डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारत के दाता थे। उÆहŌने दिलतŌ को Öवािभमान से जीना िसखाया। उÆहŌने कहा “भीक माँगना, āाÌहण का धमª ह§, ±िýय का नही इसीिलए भीक माँगना छोड द¤। ÿकाश का आ®य लो, ³यŌिक तुÌहारे हेतु सफल हŌगे । केवल धमª बुिĦ से कुछ नही होगा, हमारी नीित अÖपृÔय वगŎ अÆयायŌ कì धमª बुिĦ पर आधारीत रहना, उÆहŌने कहा छीने हòए तÂव वापस नही आ सकते। िजसे उसे अपनी बुिĦ से सफल करना चाहीए।” अंत म¤ १४ अÿैल, १९५६ म¤ नागपुर के पिवý दी±ा भूिम पर लाखŌ लोगŌ कì उपिÖथित म¤ धमª पåरवतªन कर एक नयी मानिसकता के, Öवावलंबन के, Öवतंýता के ,समाता के, Æयाय के, ÿ²ा-शील-कŁणा आिद मूÐयŌ कì माला दिलतŌ को पहनाकर उÆह¤ सभी शोषण से मुिĉ कì । इस ÿकार दिलत अपनी मुिĉ के िलए, आÂम-सÌमान के िलए िवþोह कर उठा । सं±ेप म¤ दिलत आंदोलन सिदयŌ से लेकर आज तक बरकरार है। भले ही इसम¤ सनातनी शिĉयाँ रोडा डालते हŌग¤ िकंतु यह मानव मूÐय कì लड़ाई है, लड़ते रहेग¤। आज भले ही Öवतंýता, समता, बंधुÂव िदखाई देता होगा लेिकन तरह-तरह से शोषण आज भी शुŁ है, इसका ÿितकार दिलत आंदोलन का एक माý उĥेÔय है । ४.५ दिलत सािहÂय कì अवधारणा सािहÂय के माÅयम से हम सामज कì ÓयवÖथाओं का अनुशीलन करते है । िकसी भी देश या काल के तÂकालीन पåरवेश को समझना हो तो हम¤ उस समय के सािहÂय के माÅयम से जान सकते है इसिलए महावीर ÿसाद िĬवेदी कहते है, "िकसी भी काल या देश का िचý यिद हम कहé देख सकते है तो उसके िलए उस देश के सािहÂय म¤ झाँकना होगा ।" अतः munotes.in

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50 सािहÂय के माÅयम से समाज कì दशा और िदशाओं का आंकलन कर सकते है । िहंदी म¤ दिलत सािहÂय का ÿादुभाªव Öवतंýता आÆदोलन के पIJात िवकिसत हòई लेिकन दिलत सािहÂय का बीज बौĦ काल म¤ ही पड़ गए थे । दिलत सािहÂय के संदभª म¤ दो िवचारधाराए ÿÖतुत होती है । िजसम¤ दिलत सािहÂय िकसे कहा जाना चािहए, उसे लेकर दिलत सािहÂयकार और गैरदिलत सािहÂयकारŌ म¤ मतभेद िदखाई देती है । जो िनÌन ÿकार से दिलत सािहÂय के पåरÿेàय म¤ पåरभािषत करते है – ÿेमकुमार मिण के अनुसार दिलत सािहÂय - "दिलतŌ के िलए, दिलतŌ Ĭारा िलखा जा रहा सािहÂय ही दिलत सािहÂय है, यह िवलास का नही आवÔयकता का सािहÂय है सÌपूणª िव²ान उसकì ŀिĶ है और पीिड़त मानवता का उĦार उसका इĶ है। दिलत सािहÂय वह ÿकाश पुंज है। जो अंधेरे म¤ उतरा है।" डॉ. धमªवीर के अनुसार - “दिलत सािहÂय वह है, िजसे दिलत लेखक िलखते है।" मोहनदास नैिमशराय जी के अनुसार - “दिलत सािहÂय यािन बहòजन समाज के सभी मानवीय अिधकारŌ और मुÐयŌ के ÿित उĥेÔयŌ से िलखा गया सािहÂय है, जो संघषª से उपजा है िजसम¤ समता और बंधुता का भाव है और वणª ÓयवÖथा से उपजे जाितभेद का िवरोध है।" माता ÿसाद के अनुसार - "दिलत सािहÂय वह सािहÂय है जो सामािजक, आिथªक, धािमªक, राजनैितक ±ेýो म¤ उÂपीिड़त अपमािनत शोिषत जनŌ कì पीढ़ा को Óयĉ करना है। दिलत सािहÂय कठोर अनुभवŌ पर आधाåरत सािहÂय है। दिलत सािहÂय म¤ आøोश और िवþोह कì भावना ÿमुख है।" पåरभाषाओं से ÖपĶ होता है िक दिलतŌ Ĭारा िलखा गया सािहÂय ही दिलत सािहÂय है। दिलतŌ कì पीड़ा कì अिभÓयिĉ दिलत ही कर सकता है। गैर-दिलत िसफª दिलतŌ के दुख के ÿित संवेदना ÿकट कर सकते है। इस ÿकार ºयोितबा फुले Ĭारा कहे कथन ÖपĶ है िक "यहाँ कì गुलामी कì यातना को जो सहता है वही जानता है वही पूरा सच कह सकता है । सचमुच राख ही जानती है जलने का अनुभव।" अतः दिलत सािहÂय एक मानवीय संवेदनाओं से जुड़कर सामािजक ÿितबĦता Öथािपत करता है। सामािजक पåरवतªन ही दिलत सािहÂय का एकमाý उĥेÔय है। िजसे हम बाबूराव बांगूल के शÊदŌ म¤ कह¤ तो "मनुÕय कì मुिĉ को Öवीकायª करने वाला मनुÕय को महान माननेवाला, वंश, वणª और जाित ®ेķÂव का ÿबल िवरोध करने वाला सािहÂय ही दिलत सािहÂय है।" सािहÂय के िविवध िवधाओं जैसे किवता, नाटक, कहानी, आÂमकथा, उपÆयास आिद के माÅयम से दिलत लेखकŌ ने अपनी समाज कì दाŁण िÖथित का िववरण िकया है । सबसे अिधक आÂमकथा िवधा के माÅयम से दिलत लेखकŌ ने Öवयं कì आपबीती िÖथित, दिलतपन, अÖपृÔयता का दंश, munotes.in

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दिलत सािहÂय कì पृķभूिम
51 सामािजक पåरवेश का सजीव िचýण िकया है। उसके उपरांत कहानी, किवताओं म¤ वेदना, आøोश, ददª, Öवर समाज के ÿित घृणा संवेदना को अिभÓयĉ िकया है। ४.६ दिलत सािहÂय कì िवकास याýा दिलत सािहÂय, िहÆदू समाज के बनाए वणªÓयवÖथा के िवŁĦ का सािहÂय है । ³यŌिक िजस वणª ÓयवÖथा कì Öथापना समाज को सुचाł łप से चलाने के िलए िकये गए थे । उसी कì आड़ म¤ धमª के ठेकेदार āाĺण समाज ने चतुथª वणª को शुþ कहकर उसे सदैव अपने पायदानŌ पर रखा और िनरंतर उसका शोषण िकया । उसे अछूत कहकर समाज म¤ िश±ा, पूजा-पाठ से वंिचत रखा । उनपर अÖपृÔयता के कड़े िनयम लादे गए । ÖवतÆýता के पूवª दिलतŌ कì िÖथित अितशय दयनीय थी । उनकì िÖथित का सुधार अंúेजŌ के राज ÿारÌभ हòआ । अंúेजी शासन म¤ दिलतŌ के अिधकारŌ के िलए उनकì िÖथित म¤ सुधार के िलए कई सामािजक कायªकताª, बुिĦजीवी वगª सामने आये िजसम¤ राजाराम मोहन राय, िववेकानंद, दयानंद सरÖवती, राम मनोहर लोिहया, ईĵरचंद िवīासागर आिद थे । और उसी काल म¤ दिलतŌ के मसीहा के łप म¤ डॉ. बाबासाहेब आÌबेडकर जी ने अÖपृÔयता के िवŁĦ आÆदोलन िकये । दिलत सािहÂय कì बुिनयाद डॉ. बाबासाहेब आÌबेडकर के िवचारŌ पर खड़ी हòई ।आÆदोलन के पIJात सन १९६० से भारतीय िहंदी सािहÂय म¤ ÿÂयेक भाषा म¤ दिलत सािहÂय का सृजन ÿारंभ होने लगा था । समाज के समुख कई चुनौितयाँ खड़ी होने लगी । सबसे पहले दिलत सािहÂय कì शुŁआत मराठी भाषा म¤ शुł हòई । मराठी सािहÂय के ÿमुख दिलत सािहÂयकार किव नामदेव ढसाल, शरण कुमार िलÌबाले, वामन िनÌबालकर, केशव म¤®ात, अजुªन डांगले, जे बी पवार आिद अपने रचनाओं के माÅयम से जनजागृित का कायª िकया । तदुपरांत पंजाबी, तेलगु गुजराती आिद भाषाओं म¤ दिलत सािहÂय िलखे जाने लागा, जो आगे चलकर िवमशª का łप धारण कर िलया । गुजराती सािहÂयकारŌ म¤ जोसेफ म¤कवान, ÿवीन गढ़वी, हरीश मंगलम, राजू सोलंकì, दलपत चौहान, जयंत परमार, मोहन परमार आिद रचनाकारŌ ने दिलतŌ के आवाज को अिधक से अिधक लोगŌ तक पहòँचायाँ। तिमल भाषा म¤ ई.बी. रामाÖवामी नायकर तथा पेåरया जी ने दिलत चेतना को बड़ा आयाम िदया। कÆनड़ भाषा के बड़े लेखक िसĦा िलंगÈपया ने कहािनयŌ के माÅयम से दिलतŌ के आवाज को उठाया। पंजाबी म¤ गुłदयाल िसंह ने गिढ़ का दीवा, उपÆयास और िकरपाल, कजाक, ÿेमगोरखी आिद कì रचनाओ म¤ दिलत सािहÂय कì धारा िनरंतर ÿवािहत हो रही है।" इस ÿकार दिलत सािहÂय िविवध भाषाओं म¤ िलखा जाने लगा पý-पिýका के माÅयम से इसका ÿचार-ÿसार हòआ। दिलत सािहÂय धीरे-धीरे वतªमान समय म¤ अिधक माýा म¤ िलखा जाने लगा िजसके कारण दिलतŌ का आøोश उभर कर सामने आने लगा । सािहÂय के माÅयम से वे पूरानी परÌपराओं, जाितवाद, भेदभाव व शोषण के ÿित िवरोध ÿकट कर समाज म¤ समानता लाने कì एक बदलाव लाने कì पहल कì है। munotes.in

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52 िहंदी सािहÂय म¤ किवता के माÅयम से दिलत सािहÂय का ÿारंभ हòआ । दिलत सािहÂय म¤ सबसे पहली िहराडोम कì किवता ‘अछूत कì िशकायत’ है जो २०१४ म¤ सरÖवती पिýका म¤ ÿकािशत हòई थी । ÿकािशत होने के पIJात् इस किवता ने सािहÂय जगत म¤ हलचल मचा दी । उसके उपराÆत कई किवताएं ÿकािशत हòई, िजसम¤ दिलतŌ कì संवेदना, उनकì मािमªक वेदना का ÿकटीकरण हòआ । समकालीन पåरŀÔय म¤ ÿिसĦ रचनाकारŌ म¤ जयÿकाश कदªम (गूंगा नहé था म¤, आज का रैदास ), ओमÿकाश वाÐमीिक (सिदयŌ का संताप, बÖस! बहòत हो चुका, अब और नहé), िबहारीलाल हåरत (अछूतŌ का पैगÌबर, म§ चमार हóँ), डॉ. धमªवीर (हीरामन) आिद कì ÿिसĥ किवताएं है । िजÆहŌने अपने किवता के माÅयम से अपने अनुभूितयŌ तथा दिलतŌ के Ńदय कì मािमªक सवेदना को अिभÓयĉ िकया है । किवताओं के साथ-साथ कहािनयŌ के माÅयम से भी दिलत जीवन के दशाओं का िचýण िकया जाने लगा, िजसम¤ ओमÿकाश वाÐमीिक तथा मोहनदास नैिमशराय एक मौिलक łप म¤ कथाकार है । उनकì कहािनयां आवाज¤, हमारा जवाब, रीत आिद दजªनभर कहािनयां चिचªत है । इनकì ‘कजª’ पहली कहानी है, िजसम¤ उÆहŌने दिलत जीवन के आिथªक और सामािजक प± पर िवचार िकया है । कहानी का क¤þीय कÃय दिलतŌ के आिथªक और सामािजक तथा मनोवै²ािनकता के इदª-िगदª घूमता है । उनकì ‘आवाज¤’ भी सशĉ कहानी है । िजसके म¤ह°र ठाकुर अवतार िसंह गुलामिगरी करने से साफ मना कर देता है । आवाजे म¤ दिलतŌ कì नई पीढ़ी जातीय चेतना से उभरकर ऐलान करती है । वह ऊंची जाितयŌ के जूठन नहé ल¤गे, ना खाएंगे और ना ही गंदगी साफ कर¤गे । उनकì १९९४ म¤ ÿकािशत ‘दौना’ कहानी िवशेष चिचªत है । इस ÿकार िविभÆन किवता एवं कहािनयाँ हंस, सरÖवती, तĩव तथा युĦरत आदमी जैसे पिýकाओं म¤ ÿकािशत होने लगी । िहंदी सािहÂय कì िविवध िवधा कहानी, किवता, उपÆयास, नाटक आिद िवधाओं के माÅयम से दिलत जीवन कì संवेदना तथा उनका यथाथª जीवन अिभÓयĉ होने लगा । दिलत सािहÂय म¤ सबसे ºयादा ÿभािवत आÂमकथा िवधा के माÅयम से हòआ, जहाँ दिलतŌ Ĭारा रिचत Öवयं कì आप-बीती का िचýण िकया, िजसम¤ वे खुलकर जाितवादी भेदभाव के काले प± को वे बयान करने लगे । दिलत आÂमकथाओं म¤ मोहनदास नैिमशराय कì अपने अपने िपंजरे भाग- १ और २ , ओमÿकाश वाÐमीिक कì जूठन, तूलसीराम कì मुदªिहया, सूरजपाल कì ितŁÖकृत, कौशÐया बैसंýी कì दोहरा अिभशाप तथा माताÿसाद का झोपड़ी से राजभवन तक आिद आÂमकथा ÿकािशत हòए । िजसम¤ दिलत लेखकŌ के पाåरवाåरक जीवन, तÂकालीन सामािजक पåरवेश आिद सभी का ºवलंत दÖतावेज है । दिलत िवमशª को संपूणªता म¤ सम¤टने के िलए िकसी एक Óयिĉ का नाम िलया जाए तो िनIJय ही िहंदी म¤ रमिणका गुĮा का नाम आएगा । रमिणका गुĮा जी िवगत २० वषŎ से िहंदी भाषा और सािहÂय के िलए काम कर रही है । इसे भुलाया नहé जा सकता । उÆहŌने ‘युĦरत आम आदमी’ के माÅयम से अनेक समÖयाओं को उकेरा है । ‘बहò जुठाई’ उनकì बेजोड़ कहािनयŌ म¤ से एक कहानी है । इस कहानी म¤ दिलत समाज ऐसी अमानवीय ÿथा का िशकार है । कथा का भूगोल िबहार के चतरा और हजारीबाग ±ेý का आिदवासी दिलत और मुसहर बहòल गांव है । गांव म¤ जब नई दुÐहन आती है, उसकì पहली डोली ठाकुर के घर पर ही उतरती ह§ । गौने कì पहली रात उसे ठाकुर कì दुÐहन बनकर ही रहना पड़ता है । इस कहानी म¤ लेखक ने ľी के शोषण कì भयानकता को ÿÖतुत िकया है । इन कहानीकारŌ के munotes.in

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दिलत सािहÂय कì पृķभूिम
53 अितåरĉ एन. िसंह कì यातना कì परछाइयां, काले हािशए पर, सÂय ÿकाश कì कहानी रĉबीज, अरिवंद राही कì कहानी ŀिĶकोण, रÂन कुमार सांभåरया कì कहानी हòकुम कì दुµगी आिद कहािनयां भी दिलत समाज के तमाम समÖयाओं को रेखांिकत करती ह§ । इन कहािनयŌ म¤ बेबस, म¤हनतकश, शोिषत, पीिड़त और दिलत कì कŁण चीख¤ अिभÓयĉ होती ह§ । इन कहािनयŌ म¤ दिलतŌ के तमाम कĶŌ, ÿताड़नाओं ,अपे±ाओं, यातनाओं को भोगे हòए यथाथª के आधार पर ÿामािणक एवं मािमªक अिभÓयिĉ िमली है । समúता से कहा जा सकता है िक दिलत सािहÂय कì रचनाएं एक सकाराÂमक पहल है तथा उसके मूल Öवłप दिलतŌ म¤ उÂपÆन हòई आÂम चेतना अपने ‘Öव’ कì तलाश तथा अिÖतÂव कì पहचान इस पहल कì सफलता कì īोतक है । सच है िक दिलत सािहÂय गाली गलौज का सािहÂय नहé है । िजस पåरवेश म¤ दिलत सांस ले रहा है, वे गािलयां उसी पåरवेश कì होती ह§ । दिलत सािहÂय का उĥेÔय सवणŎ को गािलयां देना नहé है । न ही दिलत सािहÂय सवणŎ का िवरोधी है और उनको गािलयां देने का प±धर है । वह तो ÓयवÖथा का िवरोधी है, जो दिलतŌ के दुखŌ और अÆयाय का कारण है और िजसे सवणª अपने कंधŌ पर लेकर ढोते ह§ । इस ÓयवÖथा के अनुयाई Öवणª समाज के सËय लोग िजन असËय शÊदŌ का ÿयोग कर¤ दिलत अिÖमता के अपमान के िलए करते ह§, यिद दिलत लेखक उन शÊदŌ को ºयŌ का ÂयŌ सËय समाज को वािपस देना चाहते ह§, तो वे शÊद गाली कैसे हो गए?” अथाªत उसके ऊपर जłर आÂम िचंतन करना अिनवायª है । वैसे तो दिलत सािहÂय पर कई आरोप लगाए गए ह§ दिलत सािहÂय अĴील भाषा का सािहÂय है, यह जाितवादी सािहÂय है, ऐसे कहé आरोप लगाए जाते ह§ परंतु दिलत सािहÂय अÆयाय और अÂयाचार को नकारने करने वाला सािहÂय है सं±ेप म¤ यह कहना होगा िक समता, Öवतंýता, धमªिनरपे±ता िनमाªण करने वाला यिद कोई सािहÂय है तो वह दिलत सािहÂय है । राहòल सांकृÂयायन के शÊदŌ म¤ कह¤ तो यह ‘ भागो नहé बदलो का सािहÂय है ।’ ४.७ सारांश सारांशता दिलत सािहÂय का जाितगत भेदभाव को िमटा कर और मानवता को Öथापना करना है । दिलत सािहÂय समाज म¤ समता और बंधुÂव कायम करना चाहता है ³यŌिक डॉ. बाबासाहेब अंबडेकर ने दिलतŌ को समाज म¤ समान दजाª, आÂमसÌमान के िलए आंदोलन िकए और समाज म¤ समानता कì भावना को ÿÖथािपत िकया और इसम¤ दिलत लेखकŌ ने भी बढ़-चढ़ कर सािहÂय के माÅयम से सहयोग िदया है। ओमÿकाश जी दिलत सािहÂय के उĥेÔय को बताते हòए कहते है, "दिलत सािहÂय समाज सापे± है। सािहÂय कì मूल संवेदना के साथ-साथ दिलत सािहÂय मनुÕय कì Öवतंýता, समता, बंधुÂव कì भावना को मानता है।" अतः दिलत सािहÂय 'सवªजन िहताय सवªजन सुखाय' कì ŀिĶ म¤ समता एवं एकता का ही मूल केÆþ है। ४.८ िदघō°री ÿij 1. दिलत सािहÂय कì पृķभूिम को ÖपĶ कìिजये । 2. दिलत सािहÂय का ऐितहािसक पåरÿ± उदहारण ÖपĶ कìिजये । munotes.in

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54 3. दिलत सािहÂय कì अवधारणा को ÖपĶ कìिजए । 4. दिलत सािहÂय कì दशा और िदशा का िववेचन कìिजए ४.९ वÖतुिनķ ÿij १) िहंदी दिलत सािहÂय कì पहली आÂमकथा कौन सी है । उ°र : जूठन २) िहंदी दिलत सािहÂय कì शुŁआत िकस िवधा से आरÌभ होती है? उ°र : किवता ३) गांधी जी ने दिलतŌ को ³या कहकर संबोिधत िकया? उ°र : हåरजन ४) आर±ण कì शुŁआत सवªÿथम िकसने कì? उ°र : शाहó महाराज ५ ) मुदªिहया आमकथा िकसके Ĭारा िलखी गई है ? उ°र : तुलसीराम ६) िहंदी कì ÿथम दिलत किवता िकस पिýका म¤ ÿकािशत हòई? उ°र : सरÖवती ७) “दिलत शÊद Óयापक अथªबोध कì Óयंजना देता है, भारतीय सामाज म¤ िजसे अÖपृÔय माना गया है वह दिलत है।” यह िकसके Ĭारा पåरभािषत िकया गया है ? उ°र : ओमÿकाश वाÐमीिक ८) ‘युĦरत आम आदमी’ यह पिýका िकसके Ĭारा संपािदत कì गई है ? उ°र : रमिणका गुĮा ९) ‘आज का रैदास’ िकसकì किवता है ? उ°र : जयÿकाश कदªम १०) मोहनदास नैिमशराय कì ÿथम कहानी कौन सी है ? उ°र : कजª ४.१० संदभª úंथ १. दिलत सािहÂय का सŏदयªशाľ - ओमÿकाश वाÐमीिक २. दिलत सािहÂय : अनुभव संघषª एवं यथाथª - ओमÿकाश वाÐमीिक ३. भारतीय दिलत आंदोलन का इितहास - मोहनदास नैिमशराय  munotes.in

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55 ५ ओमÿकाश वाÐमीिक का ÓयिĉÂव और कृितÂव इकाई कì łपरेखा ५.० इकाई का उĥेÔय ५.१ ÿÖतावना ५.२ ओमÿकाश वाÐमीिक का ÓयिĉÂव ५.२.१ जÆम एवं पåरवार ५.२.२ िश±ा और नौकरी ५.२.३ िवचारधारा का ÿभाव ५.३ ओमÿकाश वाÐमीिक कì सािहÂयसाधना ५.३.१ किवता ५.३.२ आÂमकथा ५.३.३ कहानी ५.३.४ अÆय रचना ५.३.५ पुरÖकार ५.४ सारांश ५.५ बोध ÿij ५.६ वÖतुिनķ ÿij ५.७ संदभª úंथ ५.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे ।  ओमÿकाश वाÐमीिक के ÓयिĉÂव अथाªत जÆम, िश±ा और िवचारधारा का ÿभाव आिद से छाý पåरिचत हो जाय¤गे ।  ओमÿकश वाÐमीिक कì किवता, आÂमकथा, कहानी, अÆय रचना, पुरÖकार आिद सािहÂय को जान¤गे । ५.१ ÿÖतावना ओमÿकाश वाÐमीिक दिलत सािहÂयकार के łप म¤ ÿिसĥ रचनाकार है । दिलत समाज म¤ जÆम होने के कारण इÆह¤ जीवन भर िवषमता मूलक समाज Ĭारा बनाई गई जाितÓयवÖथा, अंधिवĵास एवं सामािजक भेदभाव का सामना करना पड़ा । Öवभाव से इनका ÓयिĉÂव िवþोहाÂमक रहा है । वे Ţड़ी-बड़ी कृित को भी ÿijिचĹ लगाने से िहचिकचाते नहé थे । munotes.in

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56 उÆहŌने, "एक भाषण म¤ ÿेमचंद कì ‘कफन’ कहानी का िववेचन करते समय उसे दिलत िवरोधी कहानी कहा और यह भाषण समकालीन ‘जनमत’ पिýका म¤ छपा िजसम¤ ‘ÿेमचंद’ दिलत िचंतको के िचंतन का ही िवषय बन कर रह गए । उĉ कहानी एक वषª तक िववाद म¤ रही उसके बाद ‘ना¸यौ बहòत गोपाल’ (अमृतलाल नागर) आिद जैसे अनेक कृितयŌ पर दिलत िचंतक के łप म¤ ÿijिचĹ लगाया है।" इस ÿकार लेखक िकसी भी सािहÂय को ÿijिचĹ लगाने से िहचिकचाते नहé थे । अतः इÆहŌने दिलत सािहÂय को आयाम िदया है । ओमÿकाश वाÐमीिक के ÓयिĉÂव कì एक खास बात यह भी थी कì अपने उपनाम (जाित) को बताने म¤ कतराते नहé थे | चाहे वो िकतनी भी मुसीबतŌ का सामना करना पड़े । वह हमेशा सÂय का ही साथ देते । इÆहŌने कभी भी अपने और पराया का भेद नहé िकया है । ओमÿकाश वाÐमीिक पूरी तटÖथता के साथ दिलत लेखकŌ के अंत:िवरोध पर भी ÿहार करते रहे है । उनकì भाषा ÖपĶ, सरल आवेगमयी है । इनका समाज म¤ बदलाव लाने के ŀिĶकोण रखता है किव दिलत सािहÂय कì संवेदना को रेखांिकत करते हòए िलखे है िक, "वणª ÓयवÖथा से उपजी घोर अमानवीय, Öवतंýता-समता िवरोधी सामािजक अलगाव के प±धर सोच को पåरवितªत कर बदलाव कì ÿिøया तेज करना दिलत सािहÂय कì मूलभूत संवेदना है।" अतः वे अपने सािहÂय के माÅयम से सÌपूणª शोषण कì दासता को ÿÖतुत करते है । ५.२ ओमÿकाश वाÐमीिक का ÓयिĉÂव ५.२.१ जÆम एवं पåरवेश ओमÿकाश वाÐमीिक का जÆम ३० जून, १९५० को उ°रÿदेश के मुºजफर नगर, िजला बरला नामक गाँव म¤ हòआ । जाित से वह चमार थे िजसके कारण सवणª समाज उÆह¤ चूहड़े कहकर िचढ़ाते थे । उस जाित को सवणª समाज िनÌन तथा अÖपृÔय मानता है । िजस पåरवेश म¤ उनका जÆम हòआ उन सभी का वणªन उÆहŌन¤ अपनी आÂमकथा 'जूठन' म¤ अिभÓयĉ िकया है । उनका घर वहाँ है जहाँ आस-पास कì सारी गंदिगयाँ फेकì जाती थी और लोग खुले शौच के łप म¤ उपयोग करते थे । ऐसे गंदगी भरे माहौल म¤ वाÐमीिक जी का जीवन गुजरा हòआ । िजसका वणªन लेखक Öवयं करते हòए कहते है, “इस माहौल म¤ यिद वणªÓयवÖथा को आदशª-ÓयवÖथा कहनेवालŌ को दो-चार िदन रहना पड़ जाए तो उनकì राय बदल जाएगी।” इस ÿकार लेखक ने िजस पåरवेश म¤ अपना बचपन Óयतीत िकया वह बहòत ही संघषª पूवªक था । वाÐमीिक जी बचपन से िकशोरावÖथा तक सवणª समाज कì ÿताड़नाओं, अछूतपन को सहते हòए बड़े हòए दिलतपन के जीवन को जी चुके है और उनसे संघषª करते हòए अपने जीवन के लàय को साÅय करने कì चाहत रखते है । ५.२.२ िश±ा और नौकरी िश±ा समाज के िवकास म¤ महÂवपूणª भूिमका िनभाती है | लेखक बचपन से ही पढाई म¤ कुशाú थे | उनकì िश±ा उस माहौल म¤ हòई जहाँ दिलतŌ को पानी छूने पर उÆह¤ अपमािनत िकया जाता था । उनकì ÿाथिमक िश±ा ‘बेिसक ÿाइमरी िवīालय’ जो क±ा पांचवी तक था वहां पूणª होती है | लेिकन वहाँ भी िश±ा ÿाĮ करने कì िलए जाितवादी भेदभाव का सामना करना पड़ता था | वहाँ के माÖटर पढ़ाते कम थे मारते-िपटते और साफ-सफाई अिधक munotes.in

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ओमÿकाश वाÐमीिक का
ÓयिĉÂव और कृितÂव
57 करवाते थे । Öकूल से िमलनेवाली ÿताड़नाओं को सहन करते-करते लेखक के मन म¤ िश±क के ÿित मानिसकता घृिणत हो जाती है | वे अपने शÓदŌ म¤ Öवयं कहते है िक "अÅयापकŌ का आदशª łप जो म§ने देखा वह अभी तक मेरी Öमृित से िमटा नहé है । जब भी कोई आदशª गुŁ कì बात करता है तो मुझे तमाम िश±क याद आ जाते ह§ जो माँ-बहन कì गािलयाँ देते थे । सुंदर लड़कŌ के गाल सहलाते थे और उÆह¤ अपने घर बुलाकर उनसे वािहयातपन करते थे ।” ÿाथिमक िश±ा ÿाĮ करने के दौरान उÆह¤ आिथªक तंगी का सामना करना पड़ता है अपने भाभी के गहने िगरवी रखा कर ‘बरला इंटर कॉलेज’ म¤ दािखला करवाते है | आठवी क±ा म¤ पहóँचने के बाद Öकूल के पुÖतकालय म¤ पुÖतकŌ से लेखक का पåरचय हòआ जहाँ उÆहŌने ÿेमचंद, रवéþनाथ टैगोर के िकताबŌ से होता है | उनके िपताजी ने वाÐमीिक जी को आगे कì पढ़ाई के िलए बड़े भाई जसबीर के पास देहरादून भेज िदये । वहाँ जाकर वाÐमीिक जी ने ‘डी.ए.वी कोलेज’ के बारहवé क±ा म¤ ÿवेश ले िलया । वहाँ का माहौल भी उनके गाँव ‘बरला’ जैसा ही था । लेखक ने Öवयं को उस माहौल म¤ ढाल िलया । वहé से लेखक के जीवन म¤ डॉ. आÌबेडकर जी के िवचारधारा से जुड़े और ÿभािवत हòए वही से उनके जीवन म¤ पåरवतªन होना शुł हो गया । कॉलेज म¤ ही पढ़ाई के दौरान ही वे 'आिडªन¤स फै³टरी' जाकर नौकरी के िलए फामª भर देते है और वहाँ लेखक का चयन हो जाता है । वहाँ उÆह¤ ůेिनंग िदया गया ÿिश±ण के दौरान भ°े के łप म¤ ‘एक सौ सात’ łपया ÿित माह िमलने लगा । वहाँ से लेखक ने नौकरी करना आरंभ कर िदया है। एक वषª के ÿिश±ण के दौरान एक ÿितयोगाÂमक परी±ा हòई िजसम¤ लेखक को चुन िलया गया और उ¸च ÿिश±ण के िलए जबलपुर भेजा गया वहाँ दो वषª तक कायª िकया िफर वहाँ से महाराÕů म¤ ‘आिडªन¤स फै³टरी ÿिश±ण संÖथान’, अंबरनाथ (मुंबई) म¤ ढ़ाई वषª के ůेिनंग के दौरान चंþपूर फै³ůरी मे इनकì िनयुĉì हòई । वहाँ १३ वषō तक कायª करने के उपरांत २२ जून १९८५ को उनका तबादला देहरादून म¤ हो गया । अंत तक वही रहकर उÆहŌने अपना कायªभार संभाला । आिडªन¤स फै³ůरी म¤ कायªरत रहने के दौरान Öवणªलता भाभी कì बहन ‘चंþकला’ उफª चंदा/चंदर से मुलाकात हòई । २७ िदसंबर, १९७३ म¤ िववाह संपÆन हòआ है । ५.२.३ िवचारधारा का ÿभाव इंþेश नगर म¤ एक पुÖतकालय िजसे जाट िमलकर चलाते थे । वहाँ पर पहली बार ‘हेमलाल’ Ĭारा लेखक का पåरचय आÌबेडकर के पुÖतकŌ से होता है | पुÖतक का नाम “डॉ.अÌबेडकर: जीवन-पåरचय”, लेखक - चंिþका ÿसाद िज²ासु कì पुÖतक को पढ़ कर लेखक डॉ.आÌबेडकर जी के िवचारŌ से पåरिचत हòए थे । जब उÆहŌने उस पुÖतक को पढ़ा, मानो कì लेखक को जीवन से जु़ड़ा सभी अÅयाय खुलकर सामने जाते है | उनके िवचारŌ को पढ़ने के बाद कई िदनŌ तक लेखक के मन म¤ दुिवधा तथा भीतर छटपटाहट बढ़ती रही िफर उसके बाद लेखक ने डॉ.आÌबेडकर जी के सभी पुÖतकŌ को पढ़ डाला । सभी पुÖतकŌ को पढ़ने के बाद उनके जीवन म¤ एक नई िवचारधारा का ÿवाह हòआ । डॉ. आÌबेडकर जी कì पुÖतके पढ़ने के बाद गांधी जी के ÿित उनके मन म¤ जो िवचारधारा थी वह बदल जाता है । उस समय िजस ÿकार गांधी जी को हåरजन के िहत के िलए उÆह¤ ÿिसĦ िकया जा रहा था तब उÆह¤ समझ आया िक "गांधी जी ने हåरजन नाम देकर अछूतŌ को राÕůीय धारा से munotes.in

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58 नहé जोड़ा बिÐक िहÆदुओं का अÐपसं´यक होने से बचाया।" इस ÿकार गांधीजी के ÿित उनकì धारणा बदल गयी थी । आÌबेडकर को पढ़न¤ के बाद उनके शÊदकोश म¤ एक नया दिलत शÊद जु़ड़ गया जैसे-जैसे वो उनके सािहÂय से पåरिचत हòए वैसे-वैसे उनमे एक नई िवचारधारा का ÿवाह होने लगा और उनके आवाज म¤ आøोश मुखर होने लगा । मानो कì उÆह¤ जीवन कì एक नई िदशा िमल गई थी । इस ÿकार आÌबेरडकर के िवचारŌ से जु़ड़ कर लेखक ने समाज से जुड़ी जाितवादी ţेदभाव को कम करने के िलए कई आंदोलनŌ म¤ िहÖसा िलया । िशमला जाने के बाद वाÐमीिक जी अपने जीवन के अंितम पढ़ाव म¤ उनकì ÖवाÖथ म¤ िगरावट आनी शुł हो गई इनका वजन िदन-पर-िदन कम होता चला गया परंतु लेखक ने इस बात को गंभीरता से नहé िलया । ÖवाÖथ अिधक ख़राब होने के कारण डॉ³टर के कहने के अनुसार लेखक हॉिÖपटल म¤ एडिमट हो गए और ऑपरेशन का तारीख १० अगÖत दे िदया या था । अÖपताल म¤ एडिमट होने के दौरान कई नामी लेखक और लेिखका उनसे िमलने वहाँ गए और साथ ही कई छाý उनकì सेवा करने के िलए तÂपर हो गये । कई छाý ऐसे थे िजÆहŌने रĉ दान िकया । छाýŌ के सहयोग को देखकर उस पल वाÐमीिक जी भावुक होकर कहते है "आज सोचता हóँ इस ýासदी के घड़ी ने मुझसे बहòत कुछ िछना है वहé मुझे बहòत कुछ ऐसा भी िदया है िजससे मेरे भीतर जीने कì एक गहरी ललक पैदा कर दी है। एक बहòत बड़े पåरवार से मुझे जोड़ िदया, वहाँ न जाित कì िदवारे है ना धमª कì ।" ऑपरेशन के बाद भी उनका ÖवाÖथ िबगड़ते चला गया और पेट म¤ क§सर के कारण उनका १७ नवÌबर २०१३ को िनधन हो गया । ५.३ कृितÂव ओमÿकाश वाÐमीिक कì अपनी ´याित दिलत सािहÂयकार के łप म¤ है । बचपन बाÐयावÖथा से युवावÖथा तक उÆहŌने जाितवाद का दंश झेला । लेखक ने अपने आøोश को सािहÂय के माÅयम से Óयĉ िकया है | सबसे पहले उÆहŌने लेखन कì शुŁआत किवता के माÅयम से करते ह§ । उनकì किवताओं म¤ से सिदयŌ का संताप, ठाकुर का कुआँ, युग चेतना, िवरासत, लावा आिद ÿिसĦ किवताएँ है । उनकì ÿिसिĦ ‘जूठन’ आÂमकथा से होती है | इस आÂमकथा म¤ उÆहŌने जीवन के अपने समÖत अÅयाय पाठकŌ के समłप खोल देते है । आलोचना, नाटक, कहानी के माÅयम से उÆहŌने समाज म¤ दिलतŌ के ददª को संवेदनाÂमक łप म¤ अिभÓयĉ िकया । ५.३.१ किवता-संúह दिलत सािहÂय म¤ किवता का Öवर जाित ÓयवÖथा से पीिड़त दिलत कì वेदना है िजसम¤ उÆहŌने अपनी वेदना, आøोश को किवता के माÅयम से अिभÓयĉ िकया है । किवता के माÅयम से लेखक ने दिलतŌ के आøोश को आवाज दी है । सिदयŌ का संताप, बÖस! बहòत हो चुका,अब और नहé, शÊद झूठ नहé बोलते उनकì चार किवता-संúह ÿकािशत हòई है। 'सिदयŌ का संताप' यह लेखक का पहली किवता-संúह ह§ । इस संúह का ÿकाशन १९८९ म¤ िफलहाल ÿकाशन से हòआ है । इस किवता म¤ उÆहŌने पुरखŌ Ĭारा भोगे गए पीढ़ा कì munotes.in

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ओमÿकाश वाÐमीिक का
ÓयिĉÂव और कृितÂव
59 दाŁण िÖथित को अिभÓयĉ िकया है । यह किवताएँ १९७४ से १९८९ के दरÌयान िलखी गई है । इस संúह म¤ माý १९ किवताएँ है । यह किवता उÆहŌने तब िलखी जब िहÆदी दिलत किवता अपनी पहचान के िलए संघषª कर रही थी । इस संúह के अंतगªत सिदयŌ का संताप, युग चेतना, ठाकुर का कुआँ, तब तुम ³या करोगे, शÌबूक का कटा िसर आिद ÿासंिगक किवताएँ ह§ । इन किवताओं म¤ पूँजीवाद, सामंतवादी ÓयवÖथा के साथ-साथ दिलतŌ से जुड़ी अपमान, ÿताडनाओं को संवेदनशीलता के साथ काÓयाÂमक अिभÓयिĉ दी है । ‘बÖस! बहòत हो चुका’ यह इनका दूसरा किवता-संúह है िजसका ÿकाशन १९९७ म¤ हòआ । इसम¤ संúहीत किवताएँ हंस, नव भारत टाइÌस, आम-आदमी आिद पýिकाओं म¤ छप चुकì थी। इस संúह म¤ कुल पचास किवता है। पेड़, शायद आप जानते हो, मुĜी भर चावल, वह म§ हóँ, जैसी अनेक किवताएँ है, जो सामािजक िवषमताओं पर कटा± करने के िलए िलखी गई ह§ । यह दिलत सािहÂय म¤ चिचªत किवता है । इस किवता संúह म¤ किव के भोगे हòए उनके अनुभव है | ‘अब और नही’ ओमÿकाश वाÐमीिक कì यह तीसरा किवता-संúह ह§ । इसका ÿकाशन २००९ म¤ राधाकृÕण ÿकाशन से हòआ । इस किवता संúह म¤ सभी किवता जाितवाद, धािमªक पाखंडता, øूर ÓयवÖथा म¤ िलपटे समाज के ÿित आøोश है । इस किवता के संदभª म¤ मोहनदास नैिमशराय कहते है "इनकì किवताओं म¤ अ¸छी-खासी टपटाहट देखी जा सकती है। वे आøोश से लबालब होती थी।" नैिमशराय जी का कथन िबलकुल सही है । उनकì किवताओं म¤ दिलत समाज कì छटपटाहट है । ‘शÊद झूठ नहé बोलते’ यह चौथी किवता - संúह है, जो २०१२ म¤ अनािमका ÿकाशन से ÿकािशत हòआ । इस संúह म¤ कुल चालीस किवताएँ है । इस किवता-संúह म¤ भी लेखक सवणª समाज से िमली उपे±ा तथा अपमान को संवेदना के łप से Óयĉ कराती है । ५.३.२ कथाÂमआ ओमÿकाश वाÐमीिक जी कì जूठन बहòचिचªत आÂमकथा है । इसका ÿकाशन १९९७ म¤ हòआ । इसी आÂमकथा से लेखक को ´याित ÿाĮ हòई । लेखक ने इस आÂमकथा म¤ अपने जीवन से जुड़ी यथाथª ÖमृितयŌ एवं अनुभवŌ को शÊदबĦ िकया है । आÂमकथा को िलखने के िलए राजिकशोर जी ने ओमÿकाश जी को खूब ÿेåरत िकया । राजिकशोर जी 'हåरजन से दिलत' पुÖतक बना रहे थे १०-११ पृķŌ म¤ वाÐमीिक जी को आÂमकथाÂमक शैली म¤ िलखने का आúह िकया था । इसके उपरांत लेखक ने िलखना शुł िकया । यह पुÖतक काफì चिचªत म¤ हòई िफर उसके बाद उÆहŌने अपने दिलत पन के अनुभवŌ को िवÖतार पूवªक िलखना शुł िकया िलखते वĉ कई यातनाओं से गूजरते हòए उÆहŌने भूिमका म¤ कहा, "इन अनुभवŌ को िलखने म¤ कई ÿकार के खतरे थे एक लंबी जĥोजहद के बाद म§ने िसलिसलेवार िलखना शुł िकया । तमाम कĶŌ यातनाओं, उपे±ाओं, ÿतानाओं को एक बार िफर जीना पड़ा उस दौरान गहरी मानिसक यंýणाएं म§ने भोगी । Öवयं को दर-परत-दर उधेड़ते हòए कई बार लगा िकतना दुख दायé है यह सब।" आÂमकथा को शीषªक देने के िलए राजेÆþ यादव जी कì बहòत मदद िमली । वाÐमीिक जी कì पांडुिलिप को पढ़ा । िफर जूठन शीषªक का सुझाव िदया । इस आÂमकथा को पढ़ने के बाद आभास होता है िक सवणª समाज दािलतŌ को मनुÕय नहé समझता बिÐक पशुओं कì भांित समझा तथा वणªÓयवÖथा के नाम पर उन munotes.in

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60 पर अÂयाचार िकया उÆह¤ िनÌन से िनÌन कायª करने पर बाÅय िकया, अछूत कहकर हािशए पर जीने के िलए मजबूर िकया । ‘जूठन’ भाग एक का ÿकाशन १९९७ म¤ हो चुका था । िजसके अंतगªत उÆहŌने बाÐयावÖथा स¤ िकशोरावÖथा के जीवन संघषª का वणªन िकया है । जूठन पाठकŌ के बीच अिधक चिचªत हòई । इस खंड म¤ जीवन से जुड़ी िश±ा का संघषª, अपमान दिलतपन का बोध लेखक ने अपने शÊदŌ म¤ अिभÓयĉ िकया है । अब जूठन का दूसरा खंड वाÐमीिक जी के देहांत के बाद ÿकािशत हòआ । िबमारी के कारण मृÂयु हो जाने से वाÐमीिक जी दूसरे खंड कì भूिमका नहé िलख पाए और बाद म¤ भूिमका िलखने के िलए वाÐमीिक जी िक पÂनी ®ीमती चंदा जी ने डॉ. िवमल थोरात को पांडुिलपी देकर िलखने का आúह िकया । इस ÿकार से िवमल थोरात जी भूिमका म¤ िलखती है । वाÐमीिक जी ने िजस जाित के दंश को जीवन भर सहा, जाते-जाते उस ÓयवÖथा के बदलाव कì पहल देखी । बीमार होने के दौरान कई छाý उनके ठीक होने के िलए उनकì सेवा करने लगे कई ÿिसĦ लेखक उनका हाल चाल लेने पहòँचे । यह सब उनके िलए एक धमª-जाित से बढ़कर था । इस ÿकार वÐमीिक दिलत समाज म¤ रहकर तकलीफ, भेदभाव को झेला वह अपनी लेखनी के माÅयम से इस समाज को बदलता हòआ देखना चाहते है । याýा से िमली उपलिÊधयŌ के साथ उनकì सािहिÂयक सफर दूसरे खंड म¤ िवÖतार पूवªक िदया गया है । ५.३.३ कहानी-संúह ओमÿकाश वाÐमीिक जी ने किवता के साथ-साथ एक कथाकार के łप म¤ भी ´याित हािसल कì है। इनके Ĭारा िलखी हòई हर कहानी दिलत जीवन कì वेदना, नकार, आøोश कì तरह है उÆहŌने उă भर िजस नकार को झेला उसकì अिभÓयिĉ लेखक ने कहानी तथा पाýŌ के माÅयम से कì है। वाÐमीिक के कुल तीन कहानी-संúह ÿकािशत हो चुकì ह§ जो 'सलाम', 'घुसपैिठए' और 'छतरी' है । ओमÿकाश वाÐमीिक जी कì 'सलाम' पहली कहानी-संúह ह§, जो २००० म¤ ÿकािशत हòई । इस कहानी-संúह का नाम सलाम एक िहÆदू समाज कì कूÿथा को उजागर करती है । सामाÆयत: सलाम का अथª नमÖते है परंतु यहाँ एक दिलतŌ के िलए एक ÿथा के łप म¤ अिभÓयĉ होता है । जब भी दिलत वगª का दूÐहा अपने दूÐहन को लेकर गाँव आता है तब उसे सवणª लोगŌ कì बÖती मे जाकर अपना व दुÐहन को सर झुका कर लोगŌ को सलाम करना पड़ता है । इस संúह कì पहली कहानी सलाम इसी ÿथा को लेकर लेखक ने िलखी है । इस कहानी कì सभी कहािनयाँ दिलत जीवन से संबंिधत ह§ । इस संúह म¤ कुल चौदह कहािनयाँ है । सलाम, प¸चीस चौका डेढ़ सौ, åरहाई, सपना, बैल कì खाल, गोहÂया, úहण िजÆनावर, अÌमा, खानाबदोश, कुचø, भय, िबरम कì बहó, कहाँ जाए सतीश इन कहानी के संदभª म¤ लेखक का इस ÿकार कहना है "मेरी कहािनयŌ म¤ दिलत पाý अपने Öवािभमान, आÂमिवĵास के िलए संघषª करते ह§ और जाितयता से मुĉ होने कì जĥोजहद करते ह§ ।" ÿÂयेक कहानी जाित ÓयवÖथा, धािमªक पाखंडŌ पर ÿहार करती है। इस संúह कì ÿÂयेक कहािनयŌ म¤ सवणª समाज कì कूÿथा, Łिढ़वादी परÌपराओं, शोषण, ľीयŌ कì समÖया, धािमªक पाखंडो को उजागर करते हòए दिलतŌ कì समÖयाओं पर ÿकाश डाला है । 'घुसपैिठए', सलाम के बाद इनकì दूसरी कहानी-संúह है । इस कहानी-संúह का ÿकाशन २००३ ई. म¤ हòआ । इस संúह म¤ कुल िमलाकर बारह कहािनयाँ संकिलत है । घुसपैिठए, munotes.in

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ओमÿकाश वाÐमीिक का
ÓयिĉÂव और कृितÂव
61 यह अंत नही, ÿमोशन, जंगल कì रानी, शवयाýा, ÿमोशन, कूडाघर, म§ āाĺण नही हóँ, मुंबई काँड, िदनेशपाल जाटव उफª िदµनदशªन, åरहाई, āÌहाľ, हÂयारे आिद कहािनयŌ म¤ दिलत जीवन कì यथाथª से जुडी सभी समÖयाओं का िचýण िकया ह§ । लेखक भूिमका म¤ ही इस कहानी के बारे म¤ कहते है। "इस कहानी के अंतगªत मेरे अनुभव जगत कì ýासिदयŌ और दुखŌ से उपजी सामािजक संवेदनाएँ ह§ िजÆह¤ शÊद-दर-शÊद गहरे अवसादŌ के साथ यंýणाओं से गुजरते हòए िलखा है।" इस ÿकार लेखक अपने जीवन के अनुभव को पुन: जीते हòए कथा के माÅयम से अपनी भावनाओं को कहते है। ओमÿकाश जी कì कहानी कì शैली एक अदभुत है वह सरल और आकिषªत लहजे म¤ दिलत समाज कì सभी समÖयाओं को अिभÓयĉ कर देते है । जहाँ म§ āाहमण हóँ व िदनेशपाल जाटव उफª िदµदशªन कहानी के पाý अपना सर नेम बदल लेते है परंतु िफर भी जाित उनका पीछा नहé छोडती । एक कूड़ाघर कहानी म¤ सरकारी कायाªलयŌ कì दशा को दशाªया गया है । एक सामाÆय ®ेणी के ÓयिĉयŌ को नौकरी िमलने पर तुरंत ºवाईन कराया जाता है परंतु एक आरि±त Óयिĉ को महीनŌ के बाद कराया जाता है । उनके िलए संवैधािनक िनयम का कोई मोल नहé है । åरहाई, जंगल कì रानी आिद सभी कहािनयाँ अदभुत है िजसम¤ दिलत समाज के दुख, ददª, अपमान, उपे±ा, ितरÖकार को संवेदनाÂमक łप से अिभÓयĉ िकया है । ‘छतरी’ तीसरी कहानी-संúह ह§, जो २०१३ म¤ ÿकािशत हòई । इस कहानी- संúह म¤ कुल बारह कहािनयाँ ह§ और दो पåरिशĶ कहानी, इनकì अिधकतर कहािनयाँ पý-पýिकाओं म¤ ÿकािशत चुकì थी। इनकì कहािनयŌ म¤ गहरी मानवीय संवेदना और सामािजक जीवन के सरोकार परÖपर गुथ¤ हòए िदखाई देते है । तरी कहानी-संúह म¤ úामीण जीवन का ऐसा िचý है जहाँ लोग असुिवधाओं म¤ जीते है तोड़ती इ¸छाएँ वेदनाओं का ऐसा संसार है, जहाँ इंसान जीवन जीने के िलए अपनी इ¸छाओं को मार देता है । छतरी, िचड़ीमार, ÿाइवेट वाडª, गौकशी, शाल का प¤ड़, रामेसरी अथकथा, बपितÖमा, बँधुआ लोकतंý, मकड़जाल, कंड³टरी, मंगलवार, आउटसोसª, पåरिशĶ म¤ वे साधारण वे ही िविशĶ, दीपमाला के सवाल । इन कहािनयŌ को िलखते समय लेखक उन तमाम वेदनाओं को पुन: जीते ह§ जो लेखक को इस समाज से िमला था । कहानी कì भूिमका म¤ िलखते हे ,"इस कहािनयŌ को शÊदबĦ करते हòए अकसर म§ Öवयं गहरी वेदना और पी़ड़ा से गूजरा हóँ चाहे वह तरी कहानी हो या शाल का पेड़, या िफर बपितÖमा।" इस ÿकार लेखक ने इस कहािनयŌ म¤ दिलत जीवन के अनुभव, संघषª, िजजीिवषा, को कहािनयŌ के क¤þ म¤ रखा ह§ । ओमÿकाश जी कì तीनŌ कहानी-संúह कì कहािनयाँ इनके जीवन कì तमाम पहलुओं से जुड़ी ह§ जो दिलत जीवन के ददª का िहÖसा है । ÿÖतुत कहािनयŌ के माÅयम से ओमÿकाश जी िहÆदी जगत म¤ चल रहे दिलत-िवमशª और सािहÂय-िवमशª के वैचाåरक िवचलन को भी समझने का ÿयास िकया गया है । लेखक अपने कहािनयŌ के माÅयम से दिलतŌ कì िÖथती म¤ सुधार एवं समाज म¤ बदलाव लाना चाहते ह§ । हमारा समाज िवकास के ±ेý म¤ भले ही आगे बढ़ गया हो लेिकन सोच और िवचारŌ म¤ आज भी पीसा हòआ है, जो हर Óयिĉ अपने जाित के नाम से जाना जाता है लेिकन वह इंसािनयत के संवेदनाओं को नहé समझता । munotes.in

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62 ५.३.४ अÆय रचना दिलत सािहÂय का सौÆदयªशाľ ओमÿकाश वाÐमीिक कì यह आलोचनाÂमक पुÖतक २००१ म¤ िदÐली से ÿकािशत हòई । इनकì यह पुÖतक सािहÂय के सौदयªशाľ को ÖपĶ करने म¤ महÂवपूणª भूिमका िनभाई है । लेखक ने पैनी आलोचनाÂमक ŀिĶ रखकर सŏदयªशाľ कì िववेचना कì है। पुÖतक म¤ इÆहŌने दिलत सािहÂय कì अवधारणा, दिलत चेतना, दिलत सािहÂय कì ÿासंिगकता, दिलत सािहÂय कì धािमªक, सांÖकृितक माÆयताएँ, दिलत सािहÂय का सŏदयªशाľ, दिलत सािहÂय कì वैचाåरकता एंव दाशªिनकता, भाषा, िमथक, िबंÌब, ÿतीक आिद पहलुओं का अनुशीलन िकया है । उÆहŌने एक नई ŀिĶ रख कर दिलत सािहÂय को पåरभािषत िकया है । दिलत सािहÂय और उनकì सोच एवं ŀिĶ को Óया´याियत करने का ÿयास िकया है । सािहÂय के ±ेý म¤ दिलत सािहÂय को समझने के िलए इनकì यह पुÖतक एक महÂवपूणª भूिमका िनभा रही है । मु´यधारा और दिलत सािहÂय मु´यधारा और दिलत सािहÂय यह पुÖतक ओमÿकाश जी कì आलोचनाÂमक पुÖतक है िजसम¤ उÆहŌने दिलत िवमशª के वाद-िववाद संवाद पर िवचार िकया है । इसका ÿकाशन २००८ म¤ हòआ । यह सािहÂय दिलत के संवेदनाओं को अिभÓयĉ करता है । मु´यधारा के यथाथª को उÆहŌने वणªवादी, सामंतवादी तथा पåरवेश से कटी सौÆदयªवादी धारा बताया है । इसम¤ भारतीय जाित ÓयवÖथा और दिलत उÂपीड़न को यथाथªłप से िववेचन िकया है । जाित कì उÂपि° उसकì अवधारणा, पåरभाषा तथा उससे उपजी शोषण ÓयवÖथा को संवेदनाÂमक łप से अिभÓयĉ िकया है । सफाई देवता ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा िलखी गयी पुÖतक है । इसका ÿकाशन २००८ म¤ हòआ । इस पुÖतक का उĥेÔय दिलत समाज को िमली उÂपीड़न, शोषण, दमन का िवĴेषण करना तथा समाज के यथाथª को उजागर करना है । समाज म¤ वाÐमीिक और भंगी को समाज म¤ िकस तरह हीन और अछूत ŀिĶ से देखा जाता है इसका इसम¤ िवÖतार पूवªक वणªन िकया है । दिलत सािहÂय अनुभव, संघषª एवं यथाथª इस पुÖतक का ÿकाशन २०१३ म¤ हòआ । वाÐमीिक जी ने इस पुÖतक म¤ दिलत सािहÂय कì अÆत:चेतना को समझने कì कोिशश कì है । इसम¤ वाÐमीिक जी ने अपनी ही रचना ÿिøया के Ĭारा दिलत सिहÂय को आÆतåरकता कì तलाश के िलए कई ÖतरŌ का संघषª करना पड़ता है उसके बारे म¤ लेखक ने िवÖतार से िलखा है । ‘दो चेहरे’ सन १९८७ म¤ िलखी गई लघु नाटक है इस नाटक का देहरादून तथा अÆय शहरŌ म¤ मंचन करके वाÐमीिक जी ने बहòत शोहरत हािसल कì थी । ६० से अिधक नाटको म¤ अिभनय, मंचन एवं िनद¥शन, अनेक राÕůीय-अंतराÕůीय सेिमनारŌ म¤ भागीदारी । Öफुट सािहÂय म¤ पý-पिýकाओं म¤ लेख, िनबंध, भाषण और सा±ाÂकार ÿकािशत हòए है । रानी दुगाªवती िवĵ िवīालय ,जबलपुर, अलीगढ़ मुिÖलम िवĵ िवīालय,अलीगढ़ म¤ पुनÔयाª म¤ munotes.in

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ओमÿकाश वाÐमीिक का
ÓयिĉÂव और कृितÂव
63 अनेक आ´यान िदए | ÿथम िहÆदी दिलत सािहÂय सÌमेलन १९९३ नागपूर के अÅय± । २८व¤ अिÖमतादशª सािहÂय सÌमेलन, २००८ चंþपुर महाराÕů के अÅय± रहे । भारतीय उ¸च अÅययन संÖथान, राÕůपित िनवास, िशमला सोसाइटी के सदÖय रहे । ५.३.५ पुरÖकार ओमÿकाश वाÐमीिक जी को नाटकŌ म¤ अिभनय, िनद¥शन एंव लेखन के łप म¤ कई सÌमािनत पुरÖकार ÿाĮ हòए है । डॉ. आÌबेडकर पुरÖकार (१९९३), पåरवेश सÌमान (१९९५), जय®ी सÌमान (१९९६), कथाøम सÌमान (२००१), Æयू इंिडया बुक ÿाइज (२००४), आठवाँ िवĵ िहÆदी सÌमेलन सÌमान (२००७) Æयूयाकª,अमेरीका, सािहÂयभूषण सÌमान (२००८) । एक लंबी सािहÂय साधना के उपरांत वाÐमीिक जी को िविभÆन पुरÖकारŌ से सÌमािनत िकया गया और एक दिलत सािहÂयकार के łप म¤ पहचाने गए । िनÕकतªः ओमÿकाश वाÐमीिक के ÓयिĉÂव एवं कृितÂव का सÌपूणª िववेचन के उपरांत वाÐमीिक जी ने अपने जीवन के कमª±ेý म¤ समाज के बनाई इस धािमªक ÓयवÖथा के कारण जीवन भर संघषª करते रहे । जाितवाद का सामना करके िश±ा पूणª िकया । एक दिलत होने के कारण जीवन भर समाज ने उÆह¤ अछूत ही समझा । इस अछूतपन को जीने के कारण उनके सािहÂय म¤ समाज के ÿित आøोश िदखाई देता है । लेखक ने सािहÂय के ±ेý म¤ कई ÿिसĦ रचनाएँ पाठकŌ को दी है िजसम¤ उनकì ÿमुख कृित आÂमकथा ‘जूठन’ है । इसम¤ लेखक ने जीवन के संघषª को िवÖतार पूवªक अिभÓयĉ िकया है उÆहŌने अपने आøोश को किवताओं एवं कहािनयŌ के माÅयम से अिभÓयĉ िकया है । ५.४ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ ओमÿकाश वाÐमीिक के ÓयिĉÂव और कृितÂव को छाý समझ गए हŌगे। ओमÿकाश वाÐमीिक दिलत सािहÂय के एक महÂवपूणª लेखक है। उनके लेखन से दिलत सािहÂय को नई िदशा िमल गई। उÆहŌने डॉ. बाबासाहेब आÌबेडकर के िवचारŌ को úहण करके सािहिÂयक ±ेý म¤ एक मुकाम हािसल िकया । अपने रचनाओं के माÅयम से दिलतŌ कì समÖया, नकार, िवþोह को अिभÓयĉ िकया । वह सािहÂय के जåरए मानवमूÐयŌ को Öथािपत करना उनका ÿमुख उĥेÔय रहा है । उनके आलोचनाÂमक पुÖतकŌ ने भी दिलत सािहÂय के नये ŀिĶकोण को पहचान दी है । अपने जीवन के सािहिÂयक ±ेý म¤ एक लंबी ऊँचाई हािसल कì िजसे एक इंसान को जानने के िलए सािहÂय का लंबा सफर तय करना पड़ता है । ५.५ बोध ÿij 1. ओमÿकाश वाÐमीिक कì सािहÂय याýा और ÓयिĉÂव पर ÿकाश डािलए | 2. ओमÿकाश वाÐमीिक दिलत सािहÂय के ÿमुख हÖता±र कैसे है ? ÖपĶ कìिजये | 3. ओमÿकाश वाÐमीिक के जीवन पर डॉ. आÌबेडकर का ÿभाव िकस ÿकार पड़ा ? ÖपĶ कìिजए | 4. ओमÿकाश वाÐमीिक उÂकृĶ दिलत सािहÂयकार है इसे सौदाहरण समझाये | munotes.in

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64 ५.६ वÖतुिनķ ÿij १) ओमÿकाश वाÐमीिक का जÆम कब हòआ ? उ°र : ३० जून, १९५० २) ओमÿकाश वाÐमीिक जाती से ³या थे ? उ°र : चमार ३) ओमÿकाश वाÐमीिक जी कì अंितम रचना कौन-सी है ? उ°र : छतरी ४) ओमÿकाश वाÐमीिक के िवचारधारा का ÿभाव िकस पुÖतक के माÅयम से हòआ ? उ°र : डॉ. अÌबेडकर: जीवन-पåरचय, लेखक - चंिþका ÿसाद िज²ासु ५) ओमÿकाश वाÐमीिक िकस फे³ůी म¤ काम करते थे ? उ°र : आिडªन¤स फै³टरी ६) ओमÿकाश वाÐमीिक के आÂमकथा का नाम ³या है ? उ°र : जूठन ७ ) ओमÿकाश वाÐमीिक जी कì सफाई देवता पुÖतक कब ÿकािशत हòई ? उ°र : २००८ ५.७ संदभª úंथ १. दिलत सािहÂय का सŏदयªशाľ - ओमÿकाश वाÐमीिक २. दिलत सािहÂय : अनुभव संघषª एवं यथाथª - ओमÿकाश वाÐमीिक ३. भारतीय दिलत आंदोलन का इितहास - मोहनदास नैिमशराय  munotes.in

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65 ६ अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक १. जो मेरा कभी नहé हòआ, २. जाित, ३. अंगूठे का िनशान इकाई कì łपरेखा ६.० इकाई का उĥेÔय ६.१ ÿÖतावना ६.२ जो मेरा कभी नहé हòआ ६.२.१ किवता पåरचय ६.२.२ भावाथª ६.२.३ िनÕकषª ६.२.४ ÖपĶीकरण Óया´या ६.३ जाित ६.३.१ किवता पåरचय ६.३.२ भावाथª ६.३.३ िनÕकषª ६.३.४ ÖपĶीकरण Óया´या ६.४ अंगूठे का िनशान ६.४.१ किवता पåरचय ६.४.२ भावाथª ६.४.३ िनÕकषª ६.४.४ ÖपĶीकरण Óया´या ६.५ सारांश ६.६ बोध ÿij ६.७ वÖतुिनķ ÿij ६.८ संदभª úंथ ६.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का अÅययन कर¤गे -  'जो मेरा कभी नहé हòआ' किवता का पåरचय और उसके भावाथª का छाý अÅययन कर¤गे।  'जाित' किवता का पåरचय और भावाथª को छाý समझ सक¤गे।  'अंगूठे का िनशान' किवता का पåरचय और उसके भावाथª का छाý गहराई से अÅययन कर¤गे। munotes.in

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66 ६.१ ÿÖतावना : दिलत किवता कì िवकास याýा म¤ ओमÿकाश वाÐमीिक कì किवता महÂवपूणª भूिमका िनभाती है | उनकì किवता भारतीय ÓयवÖथा के दोहरे मापदंडŌ, सांÖकृितक ÓयवÖथा के खोखले िवचारŌ और धािमªक अंधिवĵास तथा असमानता के िवŁĦ एक आøोश है| जो संघषª का राÖता चुनती हòई, जाितवादी भेदभाव, अÖपृÔयता, कठमुÐलापन, āाĺणवाद के ÿित िवþोह करती है | इनकì कुल तीन किवता-संúह ÿकािशत है | ओमÿकाश वाÐमीिक कì किवता कÐपना लोक म¤ नहé, बिÐक जीवन के यथाथª कì अनुभूित है | इनकì किवता म¤ वणª-ÓयवÖथा िवरोध और सामािजक िवषमता के ÿित िव±ोभ है | 'अब और नहé' किवता संúह कì समÖत किवता भारतीय ÓयवÖथा के खोखले िवचार और उनकì Öवाथªपण का पोल खोलती है| इस किवता संúह म¤ संकिलत ‘जो मेरा कभी नहé हòआ’, ‘जाित’, ‘अंगूठे का िनशान’ किवता दिलत जीवन के भोगे हòए यथाथª कì अिभÓयिĉ है| इन किवताओं म¤ किव ने पारंपåरक शाľŌ, āाĺण वादी िवचारधाराओं पर कटा± िकया है | जाित किवता के माÅयम से मनुÕयŌ के ÓयवहारŌ पर ÿij उठाया है | उ¸च-नीच के सभी अथª को अिभÓयĉ िकया है | अंगूठे के िनशान म¤ किव ने तमाम, इितहासŌ पर ÿij िचÆह लगाया है, जहाँ दिलतŌ को उपेि±त कर िदया गया है | ६.२ जो मेरा कभी नहé हòआ ६.२.१ किवता पåरचय : ‘जो मेरा कभी नहé हòआ’ किवता म¤ भारतीय सामािजक ÓयवÖथा का øूर चेहरा िदखाया है| िजस धमª, और संÖकृित म¤ इनका जÆम हòआ उस ÓयवÖथा ने कभी उÆह¤ अपनाया ही नहé | सदैव धमªशाľŌ ने नाम पर उपेि±त ही रखा गया| और यह संवेदना माý लेखक कì नहé है सÌपूणª दिलत समाज कì है | भारतीय समाज ÓयवÖथा को सुचाł łप से चलाने के िलए शाľŌ म¤ वणªÓयवÖथा को कमª के अनुसार चार भागŌ म¤ िवभािजत िकया गया है | उसी ÓयवÖथा के उ¸च वगŎ ने मनुÕय के कमª के आधार पर āाÌहण, ±िýय, वैÔय और शूþ इन चार वणŎ म¤ िवभािजत कर िदया है और िनÌन कायª करने वालŌ को शुþ कहकर िनÌन जाित का दजाª दे िदया गया | शाľŌ कì दुहाई देकर उन पर उ¸च जाित के लोगŌ ने अÂयचार िकया और उÆह¤ अपने अधीन रखा | इसिलए किव ने जÆम से िजस ÓयवÖथा को चाहा था, उसके िवपरीत धािमªक भेदभाव, जाितवाद, वणª ÓयवÖथा और अÖपृÔयता जैसे माहौल म¤ जÆम हòआ| किव ने इस किवता के माÅयम से अपने दिलतपन म¤ िजए जीवन के तमाम िवसंगितयŌ को अिभÓयĉ िकया है| किव ने गरीबी के दंश को झेला है | िजस पåरवेश म¤ उनका जÆम हòआ वहा रहना भी मुिÔकल हो जाता है | वे िनÌन वगª के होने के कारण आिथªक łप से अितशय दयनीय थे | जूठन खाकर उÆहŌने कई िदन Óयतीत िकये | अÖपृÔयता का माहोल ऐसा था कì जहाँ वे Öकूल जाते थे सवणª के ब¸चे चूहड़े कहकर िचड़ाते थे | माÖटर साहब उÆह¤ Öकूल म¤ सफाई करने का काम करवाते थे | इस ÿकार जीवन म¤ िमली तमाम यातनाओं और असुिवधाओं को किव ने अपने किवता के माÅयम से दिलत पैन और अपनी संवेदना को इमानदारी के साथ अिभÓयĉ िकया है | munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
1. जो मेरा कभी नहé हòआ,
2. जाित,
3. अंगूठे का िनशान
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67 ६.२.२ किवता का भावाथª : जो मेरा कभी नहé हòआ जÆम के समय/ सब कुछ वैसा ही नहé था जैसा म§ने चाहा था बड़ा होने पर/घर था/ छत नहé थी खिटया थी िबÖतर नहé था / िलपा-पुता चुÐहा था/जो बदलता रहता था अपनी जगह/ मौसम के साथ Öकूल था/ जहां भरी जाती थी नस-नस म¤ /जातीय हीनता शÊदŌ कì घुĘी म¤ घोलकर /नौकरी है /जहाँ पीछा करती नजरे करने लगी खडा कठघरे म¤ /यक़ìनन/बहòत मुिÔकल है समय जब चलना है आगे पीछे /दाए बाए /ऊपर िनचे अपने आपको बचाकर जुटानी है रोटी सीधे चलते हòए /िबना िकसी िसकवे िसकायत काितर गुहार के सब कुछ था मेरे जÆम के पहले भी /और जÆम के बाद भी लेिकन उसे अपने प± म¤ /कर लेने म¤ रहा समथª मेरी इस असमथªता म¤/ बहòत बड़ा रहÖय था मेरा धमª का /जो मुझे बाँध कर तो/ चाहता है रखना लेिकन वह मेरा कभी नहé हòआ भावाथª : ÿÖतुत किवता म¤ किव ने अपने जीवन से जुड़े जाितगत भेदभाव के कटु अनुभवŌ को Óयĉ िकया है| किव िनÌन वगª म¤ जÆम होने के कारण बचपन से ही अÖपृÔयता, भेदभाव, आिथªक अभाव के साथ जीवन को Óयतीत करते आये है | बचपन से िकशोरावÖथा तक के जीवन-संघषª को संवेदनाÂमक łप से किवता के माÅयम से समाज कì िवसंगितयŌ पर ÿहार िकया ह§ | किव Öवयं कहते है, म§ने जÆम िलया अथाªत वह िजस ÿकार मानवता को देखना चाहते थे, वैसा माहोल उÆह¤ कभी नहé िमला | किव का जÆम वहां होता है जहाँ उसे भारतीय सामािजक ÓयवÖथा म¤ चूहड़ा कहकर िचढ़ाया जाता है | वे िजस घर म¤ जÆम िलए वह munotes.in

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68 आिथªक łप से दयनीय था| जो कहने को घर था लेिकन छत नहé थी | खिटया था लेिकन सोने के िलए िबÖतर नहé था | िलपा पुता चुÐहा था लेिकन मौसम के बदलते उसकì जगह िनरंतर बदलती रहती थी | अथाªत मु´यधारा के लोगŌ ने सदैव दिलत समाज को अपने गाँव से उपेि±त ही रखा | न उनके पास कमाने का कोई साधन न रहने का कोई िठकाना ही रहता | किव िजस माहौल म¤ रहते थे जाितवाद, भेदभाव उÆह¤ िनरंतर झेलनी पड़ती थी | जब वह Öकूल जाते थे, सवणª के ब¸चे उÆह¤ चूहड़ा कहकर उनका उपहास करते थे | िनÌन वगª से होने के कारण उÆह¤ पढ़ाई के नाम पर Öकूल म¤ झाडू लगाने का काम िदया जाता था| िश±ा के नाम पर माÖटरŌ से उÆह¤ गािलयाँ ही सुनने को िमलती थी| यह इनकì अवÖथा नहé है, यह समूचे दिलत वगŎ कì यही दशा है| आज भी गाँव के बाहर उÆह¤ रहने का Öथान िदया जाता, पढाई के नाम पर दिलत ब¸चŌ का िसफª शोषण ही िकया जाता | दिलतŌ कì यह िÖथित हमारे भारतीय समाज के øूर ÓयवÖथा को बयान करती है | किव अपने बचपन के Öकूली अनुभवŌ को वे Óयĉ करते हòए कहते है, Öकूल था लेिकन वहाँ भी ब¸चŌ के मन म¤ जातीय ऊँच-नीच का भेदभाव िसखाया जाता था | ब¸चŌ के कोमल मन पर जातीय हीनता का जहर भरा जाता था| इस ÿकार िश±ा म¤ भी उÆह¤ सदैव जाितगत भेदभाव के कटु अनुभव ही ÿाĮ हòए है| यह िसलिसला िसफª Öकूल तक ही नहé थमा जब उÆह¤ नौकरी िमली वहां भी जहाँ िशि±त वगª के लोग थे लेिकन संकुिचत मानिसकता होने के कारण वहां भी किव के साथ जाितगत भेदभाव िकया जाता | किव Öवयं अपने अनुभूितयŌ को Óयĉ करते हòए कहते है, नौकरी िमली लेिकन जातीयता कì नजरे सदैव उनका पीछा करती रही है | जब भी कोई समय िमलता बार-बार उÆह¤ उनकì जाित का बोध कराया जाता| जाित के कठघरे म¤ बार-बार उÆह¤ एक अपराधी के łप म¤ खड़ा कर िदया जाता था| ऐसे िवषमता भरे सामािजक माहौल म¤ जीना बेहद मुिÖकल हो जाता है | अपने आप को बचाकर चलना और दो वĉ कì रोटी कमाना ऐसे जाितगत अÖपृÔयता भरे माहौल म¤ बेहद मुिÔकल हो जाता है| अपने आÂमसमान को बचाना और िबना िकसी िशकायत के सीधे चलना | भारतीय सामािजक ÓयवÖथा म¤ धािमªक भेदभाव, अÖपृÔयता का माहोल यह आज का नहé है बिÐक सिदयŌ पुराना है| किव Öवयं कहते है जाित मेरे जÆम के पहले भी थी और मेरे बाद भी रहेगी | आधुिनक समय म¤ िकतने ही आÆदोलन हòए पर आज भी इस भेदभाव को िमटा नहé पाए | सािहÂय के माÅयम से लेखक ने भी इस भेदभाव को िमटाने के िलए कई भरसक ÿयास िकये| सनातनी ÓयवÖथा धमª के बÆधनŌ म¤ बांधना चाहते है लेिकन संकुिचत मानिसकता के कारण नही बांध पाए | ६.२.३ िनÕकषª : िनÕकषªत: ÿÖतुत किवता के माÅयम से सामािजक वैषÌय तथा दिलत जीवन के हीन दशा का वणªन करते है| जहाँ जाितवादी ÓयवÖथा का िवष बचपन से ही िपलाई जाती है | बचपन से दिलत बालक को िनÌन होने का एहसास कराया जाता है| अÖपृÔयता, जाितवाद, वणªÓयवÖथा कì बेिड़यŌ म¤ बांधकर आजीवन उÆह¤ ÿतािड़त िकया जाता है| मु´यधारा के लोग िकतनी भी िश±ा úिहत कर ले लेिकन वे अपने जाितवादी संकुिचत मानिसकता को कभी नहé िमटा सकते| गाँव हो या शहर आज भी दिलतŌ को अपनी िजजीिवषा के िलए munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
1. जो मेरा कभी नहé हòआ,
2. जाित,
3. अंगूठे का िनशान
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69 भटकना ही पड़ता है| अपने अिधकारŌ के िलए िनरंतर संघषª ही करना पड़ता है| जाितवादी ÓयवÖथा कì यह खाई इतनी गहरी है उÆह¤ कभी एक होने ही नहé देती| सवणª भारतीय सामािजक ÓयवÖथा से दिलतŌ को ना ही िवभĉ करना चाहती है ना ही उसे पूणª łप से Öवीकारना ही चाहती है; िसफª उसे पाना गुलाम बनाकर रखना चाहती है| इस ÿकार किव अपने जीवन के अनुभवŌ को Óयĉ कर दिलत जीवन के यथाथª का वणªन करते है | ६.२.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) “Öकूल था जहां भरी जाती थी नस-नस म¤ जातीय हीनता शÊदŌ क घुĘी म¤ घोलकर” संदभª: ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘जो मेरा कभी नहé हòआ’ है | किव ने इस किवता म¤ जीवन म¤ िमली हòई जातीय हीनता तथा उसके कारण भोगे अछूतपन को अिभÓयĉ िकया है | अथª : भारतीय सामािजक ÓयवÖथा म¤ जाितवादी भेदभाव जÆम से ही िसखाया जाता है | जहाँ ब¸चे समाज, पåरसर और पåरवार Ĭारा सीखता है| इस पंिĉ के माÅयम से किव भेदभाव कì जड़ता पर ÿहार करते है | Öकूल जैसे िश±ा मंिदरŌ म¤ भी िवīािथªयŌ के बीच ऊँच-नीच का भेदभाव वहाँ के माÖटरŌ Ĭारा िसखाया जाता है | ब¸चŌ ने नस-नस म¤ जातीय िवष भरी जाती है| शÊदŌ के माÅयम से उनके मिÖतÕक म¤ जातीय हीनता के शÊद भरे जाते थे | िवशेष : इस पिĉ म¤ किव ने सवणŎ कì मानिसक दशा और भेदभाव फैलाने के जड़ पर ÿहार िकया है | ६.३ जाित ६.३.१ किवता का पåरचय : ओमÿकाश वाÐमीिक Öवयं कहते है “भारतीय समाज म¤ ‘जाित’ एक महÂवपूणª घटक है | ‘जाित’ पैदा होते ही Óयिĉ कì िनयित तय कर देती है | पैदा होना Óयिĉ के अिधकार म¤ नहé होता | यिद होता तो म§ भंगी के घर पैदा ³यŌ होता ? जो Öवयं को इस देश कì महान सांÖकृितक धरोहर के तथाकिथत अलमबरदार कहते ह§, ³या वे अपनी मजê से उन घरŌ म¤ पैदा हòए है ?” अतः जÆम लेना िकसी के भी हाथ म¤ नहé है | िफर भी उ¸च वगŎ ने उसे कमª का नाम दे िदया | यानी जो अ¸छा कमª िकया होगा वो उ¸च जाित म¤ जÆम लेगा और जो िनÌन कमª िकया होगा वो िनÌन जाती म¤ पैदा होगा| इस ÿकार किथत धारणाओं को आधार बताते हòए सवणª दिलतŌ पर अपना अिधकार समझने लगे| किव इस किवता के माÅयम से जाितवादी ÓयवÖथा पर ÿij िचÆह लगाते है | जाितवादी ÓयवÖथा के भूिम पर उपजी दुिनया munotes.in

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70 मानवता को ख़Âम कर रही है | जाितवाद समाज म¤ दीमक कì तरह है, जो अÆदर ही अÆदर मानवीय ÓयवÖथा को खाए जा रहé है | किव इस किवता के माÅयम से जाित पर सवाला उठाते है िक जो िनÌन जाित म¤ जÆम लेने के कारण उÆह¤ जÆम से अछूत कर िदया जाता है| लेिकन सËयता का चोला पहने समाज को ठगने वाले सभी लोग वो िकस वगª के कहे जायेगे उ¸च कì नीच, उनकì जाित ³या है ? ६.३.२ किवता का भावाथª : जाित देखे है यहं हर रोज / अलग-अलग चेहरे रंग łप म¤ अलग /बोली-बानी म¤ अलग नहé पहचानी जा सकती /उनकì जाित िबना पूछे!/मैदान म¤ होगा जब जलसा आदमी से जुड़कर आदमी /जुटेगी भीÁड तब कौन बता पायेगा /भीड़ कì जाित भीड़ कì जाती पूछना /वैसा ही है जैसे नदी के बहाव को रोकना समंदर म¤ जाने से /‘जाित’ आिदम सËयता का नुकìला औजार है /जो सड़क चलते आदमी को कर देता है छलनी एक तुम हो / जो अभी तक िचपके हो जाित से न ... जाने िकस...ने /तुÌहारे गले म¤ दाल िदया है जाती का फंदा /जो न तुÌहे जीने देता है/न हम¤ लुटेरे लुट कर जा चुके है /कुछ लुटाने कì तैयारी म¤ है म§ पूछता हóँ /³या उनकì ‘जाित’ तुमसे ऊँची ह§ ? भावाथª : जाित मूलतः संÖकृत का शÊद है, िजसका सामाÆयत: अथª जÆम या उÂपि° से माना जाता है, िकÆतु समय के साथ-साथ शÊद के अथª पåरवितªत होते गये और इस तरह शÊद अपना मूल अथª छोड़कर दूसरे अथª को पåरभािषत कर रहा है | munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
1. जो मेरा कभी नहé हòआ,
2. जाित,
3. अंगूठे का िनशान
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71 िहंदी सािहÂय के जाने-माने दिलत किव ओमÿकाश वाÐमीिक जी ने अपनी किवता ‘जाित’ म¤ सामाÆयत: समाज म¤ हो रहे िवभेदीकरण को ÖपĶ िकया है | ओमÿकाश वाÐमीिक जी बहòत ही उदार और Öवतंýतावादी िवचारधारा के किव है | उÆहŌने अपनी रचनाओं के माÅयम से समाज म¤ जÆम¤ łिढ़वादी ÿथाओं को सदैव खंिडत िकया है | ओमÿकाश वाÐमीिक जी का मानना है िक इस पृÃवी पर िभÆन-िभÆन ÿकार के लोग रहते है | यहाँ िनवास करने वाले मनुÕय कहé बोिलयŌ कì वजह से िभÆन है तो कहé रंग-łप कì वजह से िभÆन है | इतने िभÆन-िभÆन होने के बावजूद भी हम पूरे समाज म¤ संपृĉ तरीके से रहते है | एक पूरे संपृĉ इस तरह िभÆन-िभÆन होने कì वजह से इनकì जाित का पता हम¤ तब तक नहé चलता, जब तक वे Öवयं अपनी जाित का पåरचय हम¤ न दे | अगर Óयिĉ अपनी जाित न बताये तो शायद ही कोई उसकì जाित को जान पायेगा | ओमÿकाश वाÐमीिक जी आगे कहते है िक एक अकेले Óयिĉ कì जाित का पता लगाना कोई मुिÔकल काम नहé है िकÆतु जब वही Óयिĉ समूह या जुलूस म¤ खड़ा हो तो शायद ही उसकì जाित का पता लगाया जा सकता है ³यŌिक भीड़ कì कोई जाित नहé होती और न ही कोई चेहरा ही होता है | पåरणामत: हम कह सकते है िक भीड़ म¤ खडे लोगŌ कì जाित का पता लगाने का अथª है, रेिगÖतान म¤ सुई ढूँढना जैसा है | इस तरह Óयिĉ जाित के कारण समाज म¤ अलगाव वाद का जÆम होता है और िफर समाज धीरे-धीरे अलग-अलग जाित म¤ बटकर िसमट जाता है | अंत म¤ किव उन लोगŌ को संबोिधत करते है जो समाज म¤ सभी बनकर लोगŌ के मन म¤ जाित का िवष घोलते है | जो हेतेशी मन कर लोगŌ के िवĵास को ठगते है | किव पूछते है उनकì जाित ³या है ? ³या वो तुमसे ऊँचे है | अतः इस किवता के माÅयम से किव ओमÿकाश वाÐमीिक जी ने हम¤ समाज के ऐसी Łिढ़वादी परÌपरा से अवगत करा कर, समाज को नई चेतना और जागृत करने का कायª िकया है | ६.३.३ िनÕकषª : जातीय ÓयवÖथा हमारे भारतीय समाज म¤ कािलक के सामान है| जहाँ मनुÕय को मनुÕय नहé एक पशु समझकर उसके साथ पशुवत जैसा Óयवहार िकया जाता है | इस किवता के माÅयम से िनÕकषªतः कह सकते है कì किव ने जाित ÓयवÖथा पर ÿij िचÆह खड़ा िकया है | जहाँ िभÆन-िभÆन लोगŌ कì भीड़ म¤ जो रंग-łप और बोली से अलग-अलग भीड़ म¤ मनुÕय के जाित को पहचानना मुिÔकल हो जाता है | वहाँ मनुÕय जÆम के आधार पर िनÌन और उ¸च का भेद कैसे पहचान लेता है| जÆम के आधार पर कैसे उसकì िनयित तय कर देती है| समाज म¤ ऐसे लोग भी है सËय बन कर लोगŌ के मन म¤ जाित का िवष घोलते है| सामािजक िहतेषी बनने का ढ़ोग करते है| लोगŌ को लुट कर समाज म¤ उ¸च ÿितिķत ÓयिĉयŌ म¤ शािमल हो जाती है | ³या ऐसे लोग समाज म¤ ऊँचे है| जो इमानदारी से जीवन यापन करते है | जो लोगŌ कì सेवा करते है वे िनÌन है | इस ÿकार समाज कì ÓयवÖथा पर किव Óयंग करते है | ६.३.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) देखे है यहं हर रोज / अलग-अलग चेहरे रंग łप म¤ अलग /बोली-बानी म¤ अलग नहé पहचानी जा सकती /उनकì जाित munotes.in

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72 संदभª : ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक है ‘जाित’ | किव ने इस किवता म¤ किव ने जाितवादी ÓयवÖथा से उपजी भेदभाव और अलगाव वाद को ÿÖतुत करती है | अथª : जाित यानी जÆम, उÂपि° | जहाँ जÆम से ही मनुÕयŌ का भिवÕय बता िदया जाता है| जÆम से कौन ऊँचा है और कौन नीचा है उसका ÿमाण दे िदया जाता है | यह ÓयवÖथा उन चेहरे को कैसे पहचाने जो रंग łप म¤ अलग है | िजनकì भाषा-बोिलयाँ िभÆन है लेिकन उनके कायª िनÌन से भी िनÌन है | जो लोगŌ को ठगने का काम करती है | उनका शोषण करती है और समाज म¤ सËय बने रहते है उनकì जाित कैसे पहचानोगे | िवशेष : इस पिĉ म¤ किव म¤ लेखक ने अलग-अलग चेहरे, रंग-łप, बोली बानी को ÓयंµयाÂमक łप से ÿयोग िकया है| यहाँ पर सामािजक ऐसे लोगŌ पर करारा ÿहार िकया है जो सËय बने रहने कì आड़ म¤ लोगŌ का शोषण करते है | ६.४ अंगूठे का िनशान ६.४.१ किवता का पåरचय : इितहास कì पåरिध म¤ इितहास कारŌ ने हमेशा से उ¸च वगª के ही इितहास को उनके बिलदान को उनके ही शोयª वीरता पर लेखन िकया है | जहाँ मंगल पांडे के वीरता को दशाªया वहé संथाल कì øािÆत का कहé भी उÐलेख नहé िकया गया | ³यŌिक इितहास िलखने वाले भी āाĺणवादी समाज के ही थे | हजारŌ सालŌ से राज करती हòई āाĺणवादी समाज के øूरता को कहé भी लेखन नहé िकया गया | िनÌन वगŎ को तरह-तरह से ÿतािड़त करना | दिलतŌ के ÿताडनाओं तथा उनके ददª को कहé भी इितहास म¤ दजª नहé िकया गया | āाĺणŌ के वचªÖववादी स°ा के कारण दिलत समाज हमेशा िश±ा से वंिचत रहे | िजसके कारण वे अपना इितहास Öवयं नहé िलख पाए | शाľŌ के चोट से उÆह¤ इतना पंगु बना िदया कì वह अपना अिधकार भी नहé समझ पाए | दिलत ÓयवÖथा के दयनीय जीवन के कारण को पहचानते हòए किव दिलतŌ Öवयं अपना इितहास दजª करने का आवाहन करते है | ६.४.२ किवता का भावाथª : अंगूठे का िनशान इितहास कì पåरिधयŌ से बाहर /नहé खड़े हòए अपनी इ¸छा से वृ°ाकार दायरे म¤ भी /च³कर नहé काटे चाँद - तारŌ के िलए /जोर - जबर कì दहशत म¤ नहé भटके शहर - दर - शहर दु¸चे लोगŌ कì ठगी ने /बदल दी चेहरŌ कì रंगत रात और िदन का कभी नहé जाना /सांसŌ म¤ भरकर धूल के गुवार जीये बरसो बरस/उसी तरह जैसे िजये पुरखे इितहास जानना /पहचानता/गढ़ना munotes.in

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1. जो मेरा कभी नहé हòआ,
2. जाित,
3. अंगूठे का िनशान
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73 नहé सीख पाए भूल गए पुरखो कì वे तमाम Öमृितयां/िजÆह¤ रखना जłरी था सहेजकर भिवÕय के अंधेरŌ के िलए/गोल घेरŌ से बाहर खदेड़े गए हम नहé जानते ³यŌ मटमैला है इतना /मौसम का रंग धूप झुलसाती है ³यŌ /हमारी ही Âवचा बहा ले जाती है बाåरश /हमारे ही घर ³यŌ मर जाते ह§ ठंड म¤ /बूढ़े माँ - बाप हमारे ही थोड़ा - थोड़ा जानने लगा हóं /टु¸चे लोगŌ कì असिलयत कानफाडू शाľीयता /और छĪ शÊद जाल का रहÖय सच बोलने से नहé रोक पाय¤गे अब शाितर देवता भी फड़फड़ाय¤गे इितहास पृķ /कह¤गे आओ , दजª कर दो िकसी भी पÆने पर /अपने अंगूठे का िनशान भावाथª : समाज के मु´यधारा के लोगŌ ने ÿारंभ से ही िनÌन वगŎ कì अिÖमता पर ÿij िचĹ लगाते आये है | उÆह¤ अपने ही गाँव से बिहÖकृत कर, उÆह¤ बाहर रहने के िलए िववश िकया | इितहास के पÆनŌ म¤ भी इनके अिÖतÂव को दजª नहé िकया गया, वहाँ भी उÆह¤ उपेि±त ही रखा गया इसिलए किव Öवयं कहते है, इितहास के पåरिधयŌ के बाहर िबना उनकì इ¸छा से उÆह¤ बाहर कर िदया गया | समाज के बनाए दायरे म¤ भी अपने अिधकार और मूÐयŌ को पाने के िलए भी भटकते रहे उÆह¤ सदैव उÆह¤ अपमािनत िकया गया| उÆह¤ उनके ही अिधकारŌ से वंिचत िकया गया | जाितवाद के फैले दहशत के कारण उÆहŌने कभी वे अपना आवाज बुलंद नहé कर पाए | हर समय धािमªक ठेकेदारŌ के āाĺणी समाज के कुछ लोगŌ ने मानवीयता के चहरे ही बदल िदए | िजस ÿकार दिलत समाज म¤ उनके पुरखŌ ने उपे±ाए, ÿताड़ना, दुःख, संघषª, सवणŎ से अपमान ही सहते आये है | आज भी वह समय नहé बदला है, आज भी दिलतŌ को समाज से उपेि±त रखा गया | िजसके कारण उनके बिलदान उनके Öवािभमान और अिÖतÂव को इितहास के पÆने म¤ जगह नहé िमली और धीरे-धीरे उनका वजूद खोता चला गया | इस कारण आज दिलत समाज अपने पूवªजŌ कì ÖमृितयŌ से वंिचत हो गया है; िकंतु अब समाज म¤ जागłकता आई है हम बुिĦवादी चतुर चालाक इितहासकारŌ शाľीय पंिडत के असिलयत को समझने लगे ह§ और अब हम अपने अिÖतÂव के ÿित जागłक हो गए ह§ हमारे पूवªज ही नहé सही लेिकन अपना अिÖतÂव को इितहास के पÆने म¤ जागłक दजª कराएं | किव कहते ह§ इितहास िलखने वालŌ ने भी दिलतŌ के कायª बिलदान उनके वणŎ से िमली ÿताड़ना को अंिकत नहé िकया तािक िजससे पता चल सके िक आिखर ³यŌ वतªमान समय म¤ आज भी हम¤ गांव गांव के बाहर उपेि±त रखा जाता है | आज भी मजदूरी करने के िलए िववश िकया जाता है उनकì आिथªक िÖथित इतनी िवषम है िक बाढ़ से कुछ िदनŌ म¤ उनके munotes.in

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74 क¸चे मकान बह जाते ह§ | दयनीय िÖथित म¤ जब कड़ाके कì ठंड पड़ती है तब उनके पास रखने के िलए तन पर वľ नहé िमल पाते और गरीबी म¤ ठंड के कारण वे दम तोड़ देते ह§ | āाĺणवाद पर अपना िवरोध ÿकट करते हòए कहते ह§ āाĺणŌ ने सदैव शाľŌ के आड़ म¤ दिलतŌ को मजबूर िकया है उÆह¤ उनके अिधकारŌ से वंिचत िकया है और हमेशा अपने सामने अधीन बना कर रखा है | देवी-देवता का आड़ लेकर िसफª दिलतŌ को अपना दास बनाकर रखते है | किव आøोिशत भाव म¤ कहते है िक व°ªमान म¤ आज दिलतŌ को िश±ा से जागृत होने लगे ह§ | अब āाĺण समाज छंद और अपने शÊदŌ के जाल के रहÖय म¤ अब हम¤ बाँध नहé पाय¤गे | सािहÂय के माÅयम से दिलत अब अपना इितहास Öवयं िलख¤गे | ६.४.३ िनÕकषª : िनÕकषªतः इस किवता के माÅयम से किव ने तमाम इितहास के पृķŌ पर ÿijिचÆह लगाये है जहाँ दिलतŌ के पåर®म, बिलदान उनके कायª तथा उनके जीवन को दजª नहé िकया गया है| दिलतŌ को समाज म¤ अछूत तो रखा गया ही अिपतु यहाँ भी उÆह¤ नहé िलखा गया | यह सभी āाĺण वगª कì सािजस है िजसके कारण आज तक दिलतŌ को उनका अिधकार और सÌमान नहé िमला पाया | इसिलए लेखन के माÅयम से तमाम दिलत सािहÂयकारŌ को आवाहन करते है कì हमे खुद ही इितहास के पृķŌ पर अपने अंगूठे के िनशान छोड़ने हŌगे और िलखना होगा हम¤ Öवयं का इितहास | ६.४.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) कानफाडू शाľीयता /और छĪ शÊद जाल का रहÖय सच बोलने से नहé रोक पाय¤गे अब शाितर देवता भी फड़फड़ाय¤गे इितहास पृķ /कह¤गे आओ , दजª कर दो िकसी भी पÆने पर /अपने अंगूठे का िनशान संदभª : ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक है ‘अंगूठे का िनशान’| किव ने इस किवता म¤ दिलतŌ कì अिÖमता को इितहास के पÆनŌ पर भी ÿijिचÆह लगाते हòए, उनके दयनीय िÖथित और अिधकारŌ के बारे म¤ पाठकŌ के सम± ÿÖतुत करते है | अथª : किव कहते है, यह कानफाडू धािमªक शाľीय úÆथ िजसके कारण āाĺणवादी ÓयवÖथा ने उÆह¤ गुलामी का जीवन जीने पर मजबूर िकया | वतªमान म¤ वही शाľŌ के रहÖय दिलतŌ के िवकास कì याýा म¤ बाधक नहé बनने द¤गे | आज का समय ÿायोिगक समय है जहाँ ÿÂयेक Óयिĉ अपने अिधकारŌ के िलए सजग है| आज के समय म¤ वे नहé रोक पाएंगे और उनके देवता भी दिलतŌ के िवकास म¤ बाधक नहé बन पाएंगे वे हमेशा शाľ और देवता कì आड़ म¤ यह दिलतŌ को यातनाये ही देते आये है | अब वे Öवयं िश±ा úहण करके अपने इितहास को दजª कर¤गे | और इितहास के पÆने भी फड़फड़ाकर Öवयं उनका अिÖतÂव दजª करेगी | munotes.in

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1. जो मेरा कभी नहé हòआ,
2. जाित,
3. अंगूठे का िनशान
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75 िवशेष : इस पिĉ म¤ किव ने कानफाडू, जाल, रहÖय, फडफडाना ÿतीकाÂमक शÊदŌ का ÿयोग िकया है | हमारे इितहासकारŌ और इनके इितहास-úंथो पर ÿijिचÆह लगाया है, जहाँ दिलतŌ को वहां भी उपेि±त रखा गया है | ६.५ सारांश ÿÖतुत किवताओं म¤ किव ओमÿकाश वाÐमीिक के जीवन से जुड़े जाितगत भेदभाव और उÆह¤ आये हòए अनुभव को दशाªते है। दिलत पåरवार म¤ जÆम लेने से उÆह¤ कही अभावŌ म¤ जीवनयापन Óयतीत करना पड़ता है। और भारतीय समाज के जाती को लेकर Óयिĉ कì िनयित तय कì जाती है। 'अंगूठे का िनशान' म¤ मु´याधारा के लोग दिलतŌ को बिहÕकृत कर बाहर रहने के िलए िववश करते है। ६.६ बोध ÿij : १. ‘जो कभी नहé हòआ’ किवता म¤ िचिýत दिलत संवेदना को Óयĉ कìिजये | २. ‘जाित’ किवता का भावाथª ÖपĶ कìिजये | ३. ‘अगुठे का िनशान’ किवता का भावबोध ÖपĶ कìिजये | ६.७ वÖतुिनķ ÿij : १) किव के अनुसार ÖकूलŌ म¤ नस-नस म¤ ³या भरी जाती है | उ°र : जातीय हीनता २) पीछा करती नज़ारे किव को कहाँ खड़ा कर देती है | उ°र : जातीय कटखरे म¤ ३) किव के अनुसार ³या उनका कभी नहé हòआ ? उ°र : धमª ४) िकसकì जाती नहé छुपाई जा सकती ? उ°र : भीड़ ५) आिदम सËयता का औजार ³या है ? उ°र : जाित ६) किव को कौन सच बोलने से नहé रोक पाय¤गे उ°र : कानफाडू शाľीयता ७) इितहास कì पåरिधयŌ के बाहर िकसे खड़ा कर िदया गया है | उ°र : दिलत समुदाय को ८) सच बोलने से अब कौन नहé रोक पाय¤गे ? उ°र : शाितर देवता munotes.in

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76 ९) जाित शÊद मूलतः िकस भाषा का शÊद है ? उ°र : संÖकृत १०) किव के अनुसार रहने का Öथान कब बदलता रहता था ? उ°र : हर मौसम ६.८ संदभª úंथ : १. अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक  munotes.in

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77 ७ अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक १. काले िदनŌ म¤, २. िवÖफोट, ३. मकड़जाल, ४. जहर इकाई कì łपरेखा ७.० इकाई का उĥेÔय ७.१ ÿÖतावना ७.२ काले िदनŌ म¤ ७.२.१ किवता पåरचय ७.२.२ भावाथª ७.२.३ िनÕकषª ७.२.४ ÖपĶीकरण Óया´या ७.३ िवÖफोट ७.३.१ किवता पåरचय ७.३.२ भावाथª ७.३.३ िनÕकषª ७.३.४ ÖपĶीकरण Óया´या ७.४ मकड़जाल ७.४.१ किवता पåरचय ७.४.२ भावाथª ७.४.३ िनÕकषª ७.४.४ ÖपĶीकरण Óया´या ७.५ जहर ७.५.१ किवता पåरचय ७.५.२ भावाथª ७.५.३ िनÕकषª ७.५.४ ÖपĶीकरण Óया´या ७.६ सारांश ७.७ बोध ÿij ७.८ वÖतुिनķ ÿij ७.९ संदभª úंथ munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
78 ७.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत किवताओं का अÅययन कर¤गे -  'काले िदनŌ म¤' किवता का पåरचय और उसके भावाथª का छाý अÅययन कर¤गे।  'िवÖफोट' किवता का पåरचय और भावाथª को छाý समझ सक¤गे।  'मकड़जाल' और 'जहर' किवता का पåरचय और उसके भावाथª का छाý गहराई से अÅययन कर¤गे। ७.१ ÿÖतावना : िहंदी दिलत किवता कì िवकास-याýा म¤ ओमÿकाश वाÐमीिक जी कì किवताओं का एक िविशĶ और महßवपूणª Öथान है। आøोशजिनत गÌभीर अिभÓयिĉ म¤ जहाँ अतीत के गहरे दंश ह§, वहé वतªमान कì िवषमतापूणª, मोहभंग कर देनेवाली िÖथितयŌ को इन किवताओं म¤ गहनता और सूàमता के साथ िचिýत िकया गया है। दिलत किवता के आंतåरक भावबोध और दिलत चेतना के Óयापक ÖवŁप को इस संúह कì किवताओं म¤ वैचाåरक ÿितबĦता और ÿभावोÂपादक अिभÓयंजना के साथ देखा जा सकता है। दिलत किव का मानवीय ŀिĶकोण ही दिलत किवता को सामािजकता से जोड़ता है। ‘अब और नहé’ संúह कì किवताओं म¤ ऐितहािसक सÆदभŎ को वतªमान से जोड़कर िमथकŌ को नए अथŎ म¤ ÿÖतुत िकया गया है। दिलत किवता म¤ पारंपåरक ÿतीकŌ, िमथकŌ को नए अथª और संदभō से जोड़कर देखे जाने कì ÿवृि° िदखाई देती है, जो दिलत किवता कì िविशĶ पहचान बनाती है। इस संúह म¤ संúहीत ‘काले िदनŌ म¤’, ‘िवÖफोट’, ‘जहर’, ‘मकड़जाल’ इन किवताओं म¤ किव ने सिदयŌ से िमलने वाले यातनाओं तथा संताप को Óयĉ करते हòए सवणª समाज के जातीय काले प± को िदखाया गया है | ‘िवÖफोट’ किवता म¤ दिलतŌ का आतंåरक आøोश Óयĉ है | िजसम¤ वेदना ,ददª, छटपटाहट, तृÕणा आिद है, जो सिदयŌ से आøोश के łप म¤ िवÖफोट हòआ है | ‘जहर’ किवता म¤ जातीय हीनता का जहर है, जो दिलतŌ के रĉŌ म¤ जमा है| ‘मकड़जाल’ म¤ बौिĦक िशि±त सवणª वगŎ कì संकुिचत मानिसकता को लेकर किवता म¤ उनकì मानिसक घृणा का łप ÿदिशªत करते है| अतः इस संúह कì किवताओं का यथाथª गहरे भावबोध के साथ सामािजक शोषण के िविभÆन आयामŌ से टकराता है और मानवीय मूÐयŌ कì प±धरता म¤ खड़ा िदखाई देता है । ओमÿकाश वाÐमीिक कì ÿवाहमयी भावािभÓयिĉ इस किवतŌ को िविशĶ और बहòआयामी बनाती है । ७.२ काले िदनŌ म¤ ७.२.१ किवता पåरचय : ओमÿकाश वाÐमीिक ने इस किवता म¤ हजारŌ वषŎ कì भोगी यातनाओं को Öमरण करते हòए तथा उसे अपने जीवन से समतुÐय करते हòए दिलत जीवन के यथाथª को अिभÓयĉ िकया है | āाÌहणŌ के सािजशŌ ने उÆह¤ अंधकूप म¤ धकेल िदया है, जहाँ से िनकलने के िलए िनÌन वगª सिदयŌ से छटपटाहट रहा है| किव ने इस किवता म¤ सवणŎ कì शÊदŌ कì चालािकयाँ munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. काले िदनŌ म¤,
२. िवÖफोट ,
३. मकडजाल ,
४. जहर
79 जहाँ मुह म¤ राम बगल म¤ छुरी जैसा Óयवहार कì कटु आलोचना करते है| शाľŌ कì आड़ म¤ सिदयŌ से शुþ कहकर उÆह¤ उÆहé के अिधकारŌ से वंिचत रखा, पानी भी छूना उनके िलए िनिषĦ कर िदया गया| पशुओं के भाित जीने के िलए मजबूर कर िदया | किव काले िदनŌ कì सभी यातनाओं इस किवता म¤ संवेदनाÂमक łप से ÖपĶ करते है | ७.२.२ किवता का भावाथª : काले िदनŌ म¤ िवनाशकारी सािजशŌ के िनशान मौजूद ह§ /मेरे सीने और पीठ पर दे रहे ह§ गवाही/अतीत के Öयाह िदनŌ कì शÊदŌ कì कारीगरी से /िछपाओगे िजतना उघड़¤गे और ºयादा / िदखायी देगी तुÌहारी øूरता तमाम कलाबािजयŌ जाय¤गी Óयथª नहé ढक पाएंगी/अमावÖय - सी काली रातŌ को भयानक श³ल के देवता भी /नहé बचा पाएंगे तुÌहारा वजूद मेरी आंखŌ म¤ बसी दहशत /घृणा म¤ बदल रही है उस धमª úंथ के िवŁĦ /जो राÖते म¤ खड़े है कटीले झाड़ झड़ाह कì तरह /अवरोध बनकर गंदे जजªर पÆनŌ कì इबारत/ म§ नहé पढ़ पाया तुÌहारे पाँव कì आहट¤/ पहचान लेता हóँ अ¸छी तरह अँधेरे म¤ भी /तुÌहारे पदाघात सीने को दरकाते ह§ । नहé रहने देते सही सलामत/मेŁदंड भी टीसता है ददª पसिलयŌ म¤ /एक - एक शÊद का िजसे रचा है तुमने/ मेरे िजÖम पर काले िदनŌ म¤ ! भावाथª : इस किवता म¤ किव ने अतीत के काले िचýŌ को अिभÓयĉ करते है | जहा दिलत समाज को सवणŎ Ĭारा अपमान, ितरÖकार ही िमले है| कवी को अपने बचपन म¤ सवणŎ Ĭारा िमली अपमान को याद करते हòए िलखते है जब वह बचपन म¤ Öकूल जाया करते थे उÆह¤ िश±ा के बदले िसफª पीठ पर मार के िनशान िमलते थे | किव कहते है िजस इितहास को øूरता को िजतना छुपाया जाएगा आज के वतªमान समय म¤ उतने ही इनके काले कारनाम¤ सामने आते जाय¤गे | तमाम कालाबाजरी, भĶाचार भी देवता नहé छुपा पाएंगी | munotes.in

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80 किव कहते है, िनÌन वगª के मन आøोश से भरा हòआ है | मनुÖमृित जैसे धमª úÆथ भी अब उनके अिधकारŌ के आड़े नहé आ सकती है | जो ÿाचीन úÆथ है जो आज के समय म¤ जजªर बन चुके है | म§ उसे नहé पढ़ पाया यानी वो सवणŎ ने हम¤ उपेि±त कर िदया | आज भी āाहमण, सामंत, कठमुÐला पहचान लेती है, अंधेरŌ म¤ थी| उनकì सािजशŌ कì आहाटे| सवणŎ के िकये गए छल-कपट मेरे सीने म¤ आज भी रहा-रह कर दÖतक दे रही है | उनके िकये उए अÂयाचार आज भी खड़े होने नहé देते | आज भी उनके मार के िनशान दिलतŌ के शरीर पर बने हòए है | िजसकì पीढ़ा आज भी ददª बन कर कह रही है | ७.२.३ िनÕकषª : इितहास म¤ दजª दिलत जीवन के काले प±Ō को उजागर करते है | किव इस किवता म¤ āाĺणŌ के काले चेहरे और उनकì जातीय हीनता से भरी मानिसकता को बाया करते है | जहाँ िसफª अपने Öवाथª के िलए āाĺणवादी स°ा शूþŌ का शोषण करती आई है | शाľŌ कì दुहाई देकर सिदयŌ से āाĺणŌ ने िश±ा, पूजा-पाठ, धािमªक िøया से वंिचत रखा | अÖपृÔय कहकर अपने ही गाँव के पानी से अछूत कर िदया| पशुओं कì भांित भटकने पर मजबूर कर िदया | āाĺणŌ Ĭारा िदए सभी ÿताडनाएं मानवता को ताड़-ताड़ कर देती है | इस ÿकार काले िदनŌ म¤ िमले सभी ÿताड़नाओं कì किव संवेदनाÂमक łप से पाठकŌ के सामने अिभÓयĉ करते है | ७.२.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) मेरी आंखŌ म¤ बसी दहशत /घृणा म¤ बदल रही है उस धमª úंथ के िवŁĦ /जो राÖते म¤ खड़े है कटीले झाड़ झड़ाह कì तरह /अवरोध बनकर संदभª : ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘काले िदनŌ म¤’ है | किव ने इस किवता म¤ हजारŌ वषŎ म¤ िमले दिलतŌ के यातना भेरे जीवन को काले िदनŌ म¤ संबोिधत िकया है | िजसम¤ वषŎ से भरी दहशत वतªमान समय म¤ आøोश बनकर उभरी है | अपने सवणŎ के ÿित इसी घृणा, नफरत को अिभयĉ करते है | अथª : ÿÖतुत पिĉ म¤ किवं ने सवणŎ के ÿित आøोश Óयĉ करते हòए कहते है िक सिदयŌ से िजन िनÌन वगŎ को सवणª समाज ने ÿितबंिधयाँ लादकर उनको गुलाम बनाकर रखा है | जो दिलतŌ को तमाम यातनाएँ देकर उनके आँखŌ म¤ दहशत भर िदए है | आज समय बदल गया है वतªमान समय म¤ वही दहशन अब घृणा म¤ बदलती जा रही है| सभी धािमªक úथŌ के ÿित किव के मन म¤ घृणा भर गई है | िजसके कारण सिदयŌ से िनÌन वगŎ को ÿतािड़त िकया गया | कटीले झाड़ बनकर दिलतŌ के मागª को अवŁĦ करते रहे | िवशेष : किव ने इस किवता म¤ कटीले झाड जैसे िबÌबŌ का ÿयोग िकया है | सवणŎ के ÿित अपने Ńदय के आøोश तथा घृणा को Óयĉ िकया है | munotes.in

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१. काले िदनŌ म¤,
२. िवÖफोट ,
३. मकडजाल ,
४. जहर
81 ७.३ िवÖफोट ७.३.१ किवता पåरचय : किव ने यहाँ दिलतŌ के आतंåरक आøोश कì िवषमता को िवÖफोट कहा है| जहाँ आतंåरक øोध ने उनके बौिĦक शिĉ का हनन कर िलया िदया है जहाँ वे सभी मानवीयता भूल जाते है और पुन: उसी अँधेरे रथ को वे भिवÕय खीच लाते है| लेखक ने इस किवता म¤ िवþोह का वीभाÂÖव चेहरा िदखाया है | जहाँ आतंåरक Ĭेष के कारण मानवीयता के सÌबĦ सब टूट जाते है | उस आøोश उस युĦ को नकारते है जहाँ Óयिĉ अपना ही सपना झुलसा देता है उसी आग म¤ | ७.३.२ किवता का भावाथª : िवÖफोट िवÖफोट कì उ°ेजना म¤/ उÂसव मनाते हाथ खéच लाए ह§/भिवÕय कì आग म¤ झुलसा अंधेरे का रथ युĦ उÆमाद म¤/मुिÔकल होता है राÖता ढूंढ पाना/ बेमानी हो जाती है सपनŌ कì तलाश पगडंिडयŌ पर िबखरी िकåरंचे कर देती है/ लहóलुहान तलवŌ को उÐलिसत चेहरे/ जो दे रहे ह§ देश िनकाला तथागत को तथागत जानते ह§/ इस बार घर छोड़ा तो लौट कर आना/संभव नहé होगा भावाथª : िवÖफोट का अथª है िनÌन वगŌ का संिचत आøोश ह§ जो िवÖफोट कì उ°ेजना म¤ धधक रही है| उनका आंतåरक ºवर इतना िवÖफोिटत हो चुका है िक नफरत कì आग म¤ मानवता भी झुलसती जा रही है और भिवÕय के आग म¤ उनके सुनहरे सामने जलते जा रहे है पुन: वही पुरानी िÖथित वतªमान म¤ िदखाई देने लगी है जैसे वे पुनः अँधेरे का रथ वे खीच लाये है | वापस वही आकर खड़े हो गए है जहाँ पहले थे | बदले लेने कì आøोश म¤ हम अपने ही सपने जलाते जा रहे ह§ |आपसी युĦ म¤ सपनो कì तलाश कर पाना बेहद मुिÔकल हो जाता है | आøोश के आग म¤ सÂय का Æयाय नहé पर पाते एक ÿकार से वह बैमानी हो जाती है| िजन सपनŌ के िलए आगे बढ़े उसी सपनो को पूरा करने म¤ बेईमान हो जाती है | सवणŎ ने ÓयवÖथा का अिधकार तो िदया लेिकन उसे अपनी मुढ़ी म¤ रख कर जहा िसफª िनÌन वगª को हर समय हर कदम पर अपनी आजादी के िलए ÿतािड़त ही िकया जाता है | जैसे वह पगडंिडयŌ पर तो चल रहे है लेिकन उसपर कई िकåरच¤ िबखरी है, जो उनके सपनŌ को लहòिलहन कर देता है | munotes.in

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82 हमारे देश के ऐसे चेहरे जो अपने आप को देश िहतेषी बताते है वही आज के तथागत बड़े िवचारक बुĦ को भी िनकाल िदया गया है| आज कì ऐसी ÓयवÖथ म¤ जो वे एक बार िनकल गए है दुबारा उनका इस दलदली माहौल म¤ आना संभव नहé है| ७.३.३ िनÕकषª : किव ने ÿारंिभक िदनŌ के दिलतŌ के साथ घिटत हòए दाŁिनक जीवन को Öमरण करते हòए वतªमान िÖथित को उजागर िकया है | जहाँ मनुÕय अपने ही िवरोह के आतंåरक ºवर म¤ जुलस जाता है और सही गलत का भेद भूल जाता है| मानवता को केिÆþत करते हòए किव यह किवता िलखते है | ७.३.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) िवÖफोट कì उ°ेजना म¤/ उÂसव मनाते हाथ खéच लाए ह§/भिवÕय कì आग म¤ झुलसा अंधेरे का रथ संदभª : ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘िवÖफोट ’ है | किव ने इस किवता म¤ सवणŎ के ÿित घृणा, नफरत को अिभÓयĉ करते है | ÖपĶीकरण : िवÖफोट का अथª है िनÌन वगŎ का संिचत आøोश ह§ जो िवÖफोट कì उ°ेजना म¤ धधक रही है| उनका आंतåरक ºवर इतना िवÖफोिटत हो चुका है िक नफरत कì आग म¤ मानवता भी झुलसती जा रही है और भिवÕय के आग म¤ उनके सुनहरे सामने जलते जा रहे है पुन: वही पुरानी िÖथित वतªमान म¤ िदखाई देने लगी है जैसे वे पुनः अँधेरे का रथ वे खीच लाये है | वापस वही आकर खड़े हो गए है जहाँ पहले थे | िवशेष : इस पंĉì म¤ किव ने िवÖफोट को ÿतीकाÂमक łप से िलया है, ÿÖतुत किवता म¤ किव ने दिलत समाज के संवेदना कÔमकश, बेबसी, सÆýासी और उससे ÿÖफुिटत होता हòआ िवþोह का िवÖफोट है | ७.४ मकड़जाल ७.४.१ किवता का पåरचय : 'मकड़जाल' किवता म¤ किव ने जाितगत हीनभावना से úिसत ÓयिĉयŌ के सोच को मकड़जाल कहा है| िशि±त होने के पIJात भी वे जाितगत हीनभावना से úिसत मानिसकता को बदल नहé सकते | िकसी न िकसी łप ने िनÌन समाज के लोगŌ को फ़सा कर उनपर गलत आरोप लगते है | यह किवता ऐसे संकìणª मानिसकता वालŌ पर कटा± िकया है | munotes.in

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१. काले िदनŌ म¤,
२. िवÖफोट ,
३. मकडजाल ,
४. जहर
83 ७.४.२ किवता का भावाथª : मकड़जाल जानता था/ वह बुलाएंगे मुझे एक िदन म§ गया था/ िनहÂथा ही उनके बुलावे पर अपना डर तकª म¤ लपेट कर/ झूठ बोल रहे थे वे लगा रहे थे/ आरोप मुझ पर उनके शÊद कर रहे थे हमला/ डरी डरी आंखŌ से कतरा रही थी उनकì नजर/ मेरी नजर से अपने प± म¤ मेरा बोलना/ उÆह¤ गवारा नहé था इÆहŌने बुल िलए थे/ मकड़ी के महीन जाले अपने ही इदª-िगदª म§ जानता हóं/ उनका अंत होगा अपने ही बनाए जाल म¤/ मकड़ी कì तरह उतार कर/ फ¤क िदए ह§ म§ने अपना डर | भावाथª : मकड़जाल एक सवणª समाज कì संकुिचत मानिसकता का ÿतीक है | ऐसी मानिसकता जो िशि±त होकर भी समाज के बनाएँ जाितवाद, वणªÓयवÖथा के दलदल से िनकल नहé पाएं | आज के वतªमान समय म¤ जहाँ दिलतŌ को आगे बढ़ने का मौका िदया जा रहा है, जहां बड़े-बड़े अिधकारी पदŌ पर उÆह¤ कायª के िलए िनयुĉ िकए जा रहे ह§ ÿशासिनक सेवाओं म¤ तथा सरकारी संÖथाओं म¤ उÆह¤ आगे बढ़ने का मौका िदया जा रहा है ऐसे माहौल म¤ भी दÉतरŌ म¤ दिलतŌ के ÿित घृणा भाव रखा जाता है| इसिलए उÆह¤ िकसी न िकसी łप म¤ िकसी भी जाल म¤ फंसा कर उÆह¤ हर समय अपमािनत िकया जाता है तािक उÆह¤ हमेशा अपने सर का Åयान रहे| इस किवता म¤ ओम ÿकाश जी ने अपने जीवन म¤ िमले अनुभव को Óयĉ करते हòए िलखते ह§ म§ जानता था यानी सभी अपने आसपास पåर®म से भलीभांित पåरिचत है िफर भी उनके यानी सवणŎ के बुलाने पर िबना िझझक और िबना िकसी तकª के सुर±ा और इन हाथŌ हाथ उनके सामने जाते ह§| उनको नीचा िदखाने के िलए तमन समाज कोई भी मौका नहé छोड़ता िबना कोई तकª के उन पर आरोप लगाते ह§| कभी कहते ह§ उनकì बनाई हòई इस सािजश म¤ मुझ पर बार-बार हमला करते ह§ लेिकन ÿाचीन समय से ÿतािड़त उनके जीवन म¤ बचपन से लेकर ÿताड़ना िमलने के कारण अब उनके मन म¤ डर खÂम हो गया है| समय उनके ऊपर दोष के दोष लगाए जा रहे थे लेिकन लेखक के आंखŌ म¤ डर नहé था | कभी-कभी यही िनडर पर उन को िनदōष सािबत करता है कभी कहते ह§ उनकì मानिसकता पर āाĺण वगª के जाितवाद भेदभाव छाýŌ के मकड़जाल आज भी बने हòए ह§| यानी आधुिनक समय म¤ िकतनी भी समय वै²ािनक आ जाए लेिकन समाज म¤ ऐसे munotes.in

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84 मानिसकता वाले लोग सदैव रह¤गे िजनके बुिĦ एक मकड़ी के जाल कì तरह जाितवाद म¤ फंसी हòई है िजस ÿकार सांच को आंच नहé उसी ÿकार बदलाव कì लहर म¤ किव को िवĵास है िक एक िदन इस अराजकता और जाितवाद के जाल म¤ ÓयÖत अमन āाÌहण लोग खुद फंस जाएंगे| जो ÿितिदन दिलतŌ को फंसाने कì सािजश रखते ह§ एक िदन वह अपने ही बनाए हòए जाल म¤ फस जाएंगे| आशावादी ŀिĶकोण रखते हòए कभी कहते ह§ कभी अपने मन म¤ उनके ÿित डर के भाव उतार िदए ह§ उतार कर फ¤क िदए ह§| ७.४.३ िनÕकषª : इस किवता के माÅयम से कवी ने वतªमान समय के सभी िशि±त वगª के सवणª समाज कì मानिसकता को दशाªया है| ऐसी मानिसकता जहा उÆह¤ िनÌन समाज के ÿित घृणा, ितरÖकार, उपे±ा ही है| ऐसे लोग जो दिलतŌ को आगे बढ़ता हòआ नहé देख सकते | ऐसे लोग हर जगह ÓयाĮ है गाँव म¤, शहर म¤, दÉतरŌ म¤, पंचायतŌ म¤ जहाँ वे िनÌन लोगो को िसफª अपना पायदान समझती है| उनपर संकìणª आरोप लगते है| लेिकन आज दिलत समाज पहले जैसा मजबूर और कमजोर नहé है| वह भी सवणŎ चालािकयŌ, इÐजामŌ का जवाब देने लगा है| वह अपना डर मन से िनकालकर आगे बढ़ने लगा है| ७.४.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) म§ जानता हóं/ उनका अंत होगा अपने ही बनाए जाल म¤/ मकड़ी कì तरह उतार कर/ फ¤क िदए ह§ म§ने अपना डर | संदभª : ÿÖतुत अवतरण ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘मकड़जाल’ है | किव ने इस किवता म¤ जाितवाद हीनता रखनेवाले संकुिचत मानिसकता पर ÿहार करते है | अथª : इस पिĉ म¤ किव ने ÿतीकाÂमक łप मकड़ी के जाल को संबोिधत िकया है| जहा सभी सवणª समाज कì मानिसकता अÖपृÔया, उ¸च-िनÌन के भेदभाव तक सीिमत है| आज भी ऐसे कई लोग है, जो िशि±त होते हòए भी जाितवादी भेदभाव के मानिसकता को बदल नहé पाते है उनकì िÖथित मकड़ी के जले जैसे हो गई है जो अपने ही िवजारŌ म¤ िघरे रहते है और उसी म¤ दम तोड़ देते है | किव को आशा है िक पåरवतªन के समय म¤ ऐसी मानिसकता का भी अंत होना िनिIJत है| अगर वे समयानुसार पåरवतªन नहé हòए तो वे अपने ही जाल म¤ फास कर रह जाय¤गे | इसीिलए किव अपने Ćदय से अब सवणŎ के डर को िनकाल देते है| िवशेष : इस किवता म¤ किव ने मकड़जाल को जाितहीन मानिसकता का ÿतीक माना है| सÌपूणª किवता किव ने ÿतीकाÂमक िलखी है| िजसम¤ किव ने िशि±त सवणª के संकìणª मानिसकता पर केिÆþत िकया है | munotes.in

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१. काले िदनŌ म¤,
२. िवÖफोट ,
३. मकडजाल ,
४. जहर
85 ७.५ जहर ७.५.१ किवता पåरचय : इस किवता म¤ तमाम दिलत लोगŌ को बात करते है जो िकसान, मजदूर आिद łप म¤ है | जो ®म करते-करते उनके हथेिलयŌ म¤ गाठे हो गई है | िफर भी उनका Ćदय दहशत से भरा हòआ है| उनके मन म¤ सवणª समाजŌ के ÿित नफरत, ÿितशोध का जहर नसŌ म¤ जैम गया है| िकसी भी वĉ लावा कì तरह फुट सकता है| कवी उस जहर कì बात करते है जो सवणŎ ने खुद दिलतŌ के मन म¤ भरा है| जब भी वह आøोश बनकर फूटेगा तब कोई भी धमª सूý उनको मयाªदा म¤ नहé बाँध पाय¤गे । ७.५.२ किवता का भावाथª जहर मेरे इदª-िगदª एक भीड़ है/िजसम¤ चेहरे ह§ धूप से झुलसे हòए/ िजनकì हथेिलयŌ म¤ पड़ गई है गांठे/जबान पर िचपकì है दहशत िफर भी/देखते ह§ सपना रात िदन/ िजंदा रहने का उनके भीतर भरा है जहर/िजसे बचा कर रखा है उन िदनŌ के िलए/ जब मना कर देगी रĉ व हािनयां/ जुनून धोने से गमª उबाल का/ तब उस जहर को रĉ िशराओं म¤ उड़ेल कर/ भूल जाएंगे वे धूप से झुलसे/ Âवचा का रंग हथेिलयŌ म¤ उभरी गांठŌ का ददª बाहर कर द¤गे/ शÊदकोश म¤ धमª सूýŌ कì सािजश है/ महान úंथ म¤ रची घृणाए जाना चाहोगे वे/ जीवन के तमाम Öवाद जो कभी नहé आए/िहÖसे म¤ उनके हजार साल से भावाथª : किव कहते ह§ मेरे इदª-िगदª भीड़ खड़ी है वह िनÌन वगª, मजदूर, गरीब िकसान, दिमत वगª का समाज है| िजनके धुल से भरे, धुप म¤ झुलसे चेहरे लेखक को िदखाई देते ह§, िजसम¤ एक मजदूर है, तो कोई िकसान है| िजन का शोषण सामंती समाज, āाĺण समाज करता आया है| उनके धुप म¤ झुलसे हòए चेहरे लेखक को िदखाई देते ह§, जो रात िदन खेतŌ म¤ मजदूरी करते ह§, कारखानŌ के भĉŌ पर ही िनभªर होते ह§| िजसके कारण उनके चेहरे धूप म¤ झुलस munotes.in

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86 चुके ह§, उनकì हथेिलयŌ म¤ हल उठाते-उठाते गांठ पड़ गई है और िफर उनके चेहरे पर āाĺण, जमéदार, ठाकुर तथा सामंत कì दहशत िदखाई देती है किव यहाँ दिलतŌ के उनकì दयनीय िÖथित को तथा आतंåरक वेदना को ÿÖतुत करते ह§| िजसम¤ कठोर पåर®म करने के बावजूद, िनÌन वगª के होने के कारण सामंती समाज के ÿित उनके चेहरे हमेशा दहशत से भरे रहते ह§; िफर भी ऐसे दहशत भरे माहौल म¤ िदन-रात उनका एक ही सपना सजता है िक िकसी तरह उÆह¤ दो वĉ कì रोटी िमल जाए तािक वह भी अपना जीवन चला सके कम से कम िजंदा रह सके| समाज के ऐसे अÖपृÔयता भरे माहौल म¤ रहकर उनके सािजशŌ के िशकार होकर सिदयŌ से सवणŎ के ÿित दिलतŌ के मन म¤ एक जहर भर गया है| सामंती तथा āाĺण ÓयवÖथा के ÿित मन म¤ घृणा भरा हòआ है, िजसे दिलत समाज ने अब तक अपने Ńदय म¤ उस जहर को संिचत कर रखा है| किव कहते ह§, जब भी यह घृणा जहर बनकर बाहर आयेगी, तब उनके मन म¤ उफान उठेगा और उन िदनŌ वे अपने अिधकारŌ के िलए सजªक हो जाएंगे और अÂयाचार के िखलाफ अपनी सारी सीमाएं तोड़ द¤गे| सभी के रĉ म¤ िवþोह कì िचंगारी भड़क उठेगी | यह सभी िनÌन वगª के लोग अपने गुलामी के िदनŌ को भूल कर अपने अिधकारŌ के िलए खड़े हो जाएं | किव अपने िवþोह कì अिµन म¤ तमाम धमª úंथŌ को जलाकर बाहर फ¤क द¤गे | किव उन धमª úंथŌ कì बात कहते ह§, िजसकì आड़ लेकर āाĺण समाज उन पर अिधकार जताते आए ह§ भारतीय वणªÓयवÖथा कì नीव ही िजनपर िटकì हòई है | āाĺण लोग जो महान úंथ के नाम परशूþŌ को पशु जीवन जीने पर मजबूर कर िदए ह§, वह धमª úंथ है, िजसम¤ िसफª और िसफª घृणाए भरी हòई है| दिलत भी अपने अिधकारŌ का Öवाद जानना चाह¤गे जो उनके िहÖसे म¤ कई िदनŌ तक नहé िमली | इस ÿकार किव इस किवता म¤ अिधकारŌ और उनके ÖवतÆýता कì बात करते है| ७.५.३ िनÕकषª : िनÕकषªतः कह सकते है िक हजारŌ वषŎ कì िमली यातना, गुलामी का जहर जब भी आøोश बनकर बहेगा तब तमाम गुलामी कì बेिड़या बह जायेगé | किव यहाँ सवणª समाज को सचेत कहते हòए कì दिलत समाज का िवþोह के आगे उनके सभी धमª सूý खोखले पड जायेगी | उÆह¤ नहé बाँध पाएंगी अपने मयाªदा म¤ और तब अपने अिधकारŌ को Öवयं ल¤ग¤ जो उÆह¤ सिदयŌ तक नहé िमली । ७.५.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) मेरे इदª-िगदª एक भीड़ है/िजसम¤ चेहरे ह§ धूप से झुलसे हòए/ िजनकì हथेिलयŌ म¤ पड़ गई है गांठे/जबान पर िचपकì है दहशत िफर भी/देखते ह§ सपना रात िदन/ िजंदा रहने का munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. काले िदनŌ म¤,
२. िवÖफोट ,
३. मकडजाल ,
४. जहर
87 संदभª : ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय-संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘जहर’ है | किव ने इस किवता म¤ मजदूर, िकसान, िनÌन वगª के आøोश को Óयĉ िकया है, जो आज उनके आँखŌ कì दहशत नस म¤ जहर बनकर उभरने लगी है | अथª : इस पिĉ म¤ किव ने िनÌन कायª करने वाले मजदूर वगª तथा िनÌन समुदाय के िवþोह का वणªन िकया है किव के चारो और िनÌन वगª, मजदूर लोगŌ कì भीड़ खड़ी है| िजनका शोषण सामंती समाज, āाĺण समाज करता आया है| उनके झुके हòए चेहरे लेखक को िदखाई देते ह§, जो रात िदन खेतŌ म¤ मजदूरी करते ह§| कारखानŌ म¤ काम करते ह§ िजसके कारण उनके चेहरे धूप म¤ झुलस चुके ह§ | उनकì हथेिलयŌ म¤ हल उठाते-उठाते गांठ पड़ गई है| अब भी उनके चेहरे पर āाĺण जमéदार, ठाकुर, सामंत कì दहशत िदखाई देती है | किव यहाँ दिलतŌ कì दयनीय िÖथित को ÿÖतुत करते ह§, िजसम¤ कठोर पåर®म करने के बावजूद िनÌन वगª के होने के कारण सामंती समाज के ÿित उनके चेहरे हमेशा दहशत से भरे रहते ह§| िफर भी ऐसे दहशत भरे माहौल म¤ िदन-रात उनका एक ही सपना सजता है| िवशेष : इस काÓय म¤ लेखक ने āाÌहणŌ के िदए ददª और ÿताड़नाओं कì दहशत और आøोश को जहर शÊद से संबोिधत िकया है, जहाँ उनकì यही दहशत धीरे-धीरे नसŌ म¤ ज़हर बन गई है | जो िकसी भी समय उबल बनकर रĉ म¤ फुट सकती है | आøोश बनकर अपना अिधकार के ÿित आवाज बुलंद कर सकते है | ७.६ सारांश िहंदी दिलत किवताओं म¤ किव ओमÿकाश वाÐमीिक के किवताओं का िविशĶ और महÂवपूणª Öथान रहा है। उनकì किवताओ म¤ हजारŌ वषŎ कì भोगी हòई यातनाओं को दशाªते है। साथ ही ÿारंिभक जीवन म¤ दिलतŌ के साथ घिटत हòई घटनाओं को वतªमान िÖथित से उजागर िकया है। दूसरी तरफ मकड़जाल म¤ सवणª समाज कì मानिसकता के ÿितक को िदखाया है। Óयिĉ िशि±त होकर भी जाितवाद, वणªÓयवÖथा के दलदल म¤ फसा हòआ है। अंत म¤ जहर के माÅयम से िकसान, मजदुर आिद कì बात करते है। ७.७ बोध ÿij : १. ‘काले िदनŌ म¤’ किवता म¤ Óयĉ दिलतŌ कì संवेदना को ÖपĶ कìिजये| २. ‘जहर’ किवता का ÿितपाī ÖपĶ कìिजये| ३. ‘िवÖफोट’ किवता म¤ Óयĉ दिलतŌ के आøोश को ÖपĶ कìिजये ४. ‘मकड़जाल’ किवता कì शीषªक कì साथªकता ÖपĶ कìिजये | ७.८ वÖतुिनķ ÿij : १) िवनाशकारी शािजशŌ के िनशान अब भी कहाँ मौजूद है ? उ°र : किव के सीने और पीठ पर २) किव के आँखŌ म¤ ³या बसी है ? munotes.in

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88 उ°र : दहशत ३) किव कì घृणा िकसके ÿित है ? उ°र : धमª úंथŌ के ÿित है ४) दिलतŌ के उÂसव मानते हाथ ³या खéच लाये है ? उ°र : भिवÕय कì आग म¤ झुलसा अँधेरे का रथ ५) पगडंिडयŌ पर िबखरी िकåरचे कर देती है ? उ°र : दिलतŌ के तलवŌ और उनके उÐलािसत चेहरŌ को लहóलुहान कर देती है | ६) देश िनकाला िकसे िदया गया है ? उ°र : तथागत ७) किव िकस ÿकार उनके बुलाने पर गए थे ? उ°र : िनहÂथा ८) किवं ने ³या फेक िदया है ? उ°र : डर ९) जहर किवता म¤ दिलत वगª िदन रात ³या देखते है ? उ°र : िज़ंदा रहने का सपना १०) उनकì जबान पर ³या िचपकì है ? उ°र : दहशत ७.९ संदभª úंथ १. अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक  munotes.in

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89 ८ अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक १. कथावाचक, २. शÊद चुप नहé है, ३. अब और नहé इकाई कì łपरेखा ८.० इकाई का उĥेÔय ८.१ ÿÖतावना ८.२ कथावाचक ८.२.१ किवता पåरचय ८.२.२ भावाथª ८.२.३ िनÕकषª ८.२.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण ८.३ शÊद चुप नहé है ८.३.१ किवता पåरचय ८.३.२ भावाथª ८.३.३ िनÕकषª ८.३.४ संदभªसिहत ÖपĶीकरण ८.४ अब और नहé ८.४.१ किवता पåरचय ८.४.२ भावाथª ८.४.३ िनÕकषª ८.४.४ संदभªसिहत ÖपĶीकरण ८.५ सारांश ८.६ बोध ÿij ८.७ वÖतुिनķ ÿij ८.८ संदभª úंथ ८.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत किवताओं का अÅययन कर¤गे -  'कथावाचक' किवता का पåरचय और उसके भावाथª का छाý अÅययन कर¤गे।  'शÊद चुप नहé है' किवता का पåरचय और भावाथª को छाý समझ सक¤गे।  'अब और नहé' किवता का पåरचय और उसके भावाथª का छाý गहराई से अÅययन कर¤गे। munotes.in

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90 ८.१ ÿÖतावना : किवता जीवन कì अनुभूितयŌ को Óयĉ करती है| ओमÿकाश वाÐमीिक ने भी अपनी किवता म¤ जीवन के सभी यथाथª अनुभूितयŌ को अिभÓयĉ िकया है | किव जाित से चमार होने के कारण आजीवन उÆहŌने दिलतपन को भोगा है| आिथªक łप से दयनीय होने के कारण मजबूरन उÆह¤ वह कायª करने पड़ते िजÆह¤ सवणª समाज घृिणत समझता है| िश±ा म¤ हòिशयार होने के बावजूद उÆह¤ षड्यंýŌ के कारण फेल कर िदया जाता | इस ÿकार आिथªक तंगी, जीवन कì अÓयवÖथता और दिलतपन के दंश को सहन करते हòए जीवन िजया है और दिलत सािहÂयकार के łप म¤ लोकिÿयता हािसल कì| उÆहŌने अपने अिभÓयिĉ कì शुŁआत किवताओं से िकया | िजसम¤ 'अब और नहé' कì किवता संúह म¤ से 'कथावाचक', 'शÊद चुप नहé है' और 'अब और नहé' किवता संकिलत है| यह तीनŌ किवता बहòत ÿशांिगक है| तीनŌ किवता के माÅयम से किव ने अपने जीवन के यथाथª कटु अनुभवŌ को Óयĉ िकया है| āाĺणवादी िवचारधारा पर कटा± िकया है| सभी दिलत समुदाय को अपने अिधकारŌ के ÿित ÿेåरत करते हòए अपने भिवÕय को Öवयं िनिमªत करने के िलए आवाहन करते है| दिलत जीवन के तमाम िवसंगितयŌ और अराजताओं को Óयĉ करते हòए łिढ़वादी िवचारधारŌ के ÿित घृणा ÿकट करते है| अपने किवता के माÅयम से समाज म¤ सामािजक नई िवचारधारा, बंधुÂव मुÐयता और मानवतावाद को Öथािपत करने का ÿयÂन करते है| ८.२ कथा.वाचक ८.२.१ किवता पåरचय : 'कथावाचक' किवता म¤ किव ने अपने गाँव के पुराने सड़कŌ, पगडंिडयŌ और अपने जीवन के ÖमृितयŌ को याद करते हòए, एक कथावाचक कì तरह जीवन ÿसंगŌ कì ÖमृितयŌ को किवता म¤ अिभÓयĉ करते ह§| उनका जीवन दिलतपन कì तमाम यातनाओं से संगृहीत है | इस किवता म¤ यातनाभरी जीवन जीने के कारण और मानवता, अÖपृÔयता तथा उ¸च वगª Ĭारा िदए यातनाओं को लेखक ने अिभÓयĉ िकया है| किव कहते ह§, दिलत जीवन कì और मानवीयता को कोई भी कथावाचक नहé बयान कर सकता ना ही िकसी किवता म¤ उसे अिभÓयĉ िकया जा सकता है| बचपन से लेखक ने जीवन म¤ जूठन खाकर बढ़े हòए िश±ा के नाम पर उन माÖटरŌ कì गाली खाई है िश±ा के नाम पर अछूत उÂपÆन देखा है| यहा तक कì आिथªक तंगी के कारण अपने भाभी के गहनŌ को िबकते देखा है तथा िनÌन कायª करने पर मजबूर होते देखा है| जीवन म¤ िमली वेदनाओं कì अिभÓयिĉ किव इस किवता म¤ करते ह§, जहां पर उनके गांव म¤ बची सभी ÖमृितयŌ को याद करते हòए, कथावाचक कì तरह अपने गाँव के जीवन को अिभÓयĉ करते ह§| ८.२.२ किवता का भावाथª : कथावाचन बहòत कोिशशŌ के बाद नहé सूना सका म§ गाँव देहात के िकÖसे कथा वाचक कì तरह हाÆलािकन अभी भी िज़ंदा है मेरा देहाती पन /खुदा हòआ है munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. कथावाचक,
२. शÊद चुप है,
३. अब और नहé
91 रेशे रेशे पर /गाँव देहात का आड़ा-ितरछा उबड़-खाबड़ न³शा मटमैली लकìरŌ म¤ िजÆह¤ कुदेराते हòए बार बार ज´मी होता हóँ अपने ही नाखूनŌ से /करता हóँ कोिशश भूल जाने कì /जंग खाए िदनŌ कì जो शूल सी गाड़ी ह§ सीने म¤ पसीना और लहóँ /दाहकता भूलकर हो गए है रंगहीन /खेतŌ कì पगडंिडया खो जाती है /रजबाहे कì पुिलया तक पहòँचने से पहले ही /सूरज कì तिपश और आग कì आंच /संग साथ खेलती है मेरे इदª-िगदª /सुखा भी लगता है दुःख ही दुिदªनŌ म¤ /िजनकì परछाई पीछा करती है महानगर कì चौड़ी सड़कŌ पर भी खेत-खिलहानŌ /कल-कारखनŌ गाँव शहरŌ म¤ बहता लहóँ नहé बन सका अभी तक ऐसी किवता जो बता सके सही Öयाह िदनŌ का रंग सूना सके आग म¤ झुलसती बिÖतयŌ कì ददªनाक चीखे /डरा-डरा सा म§ खड़ा हóँ भीड़ के बीच /ितलकधारी और उसका सहयोगी मार देता है डंक िकसी भी ±ण त±क बन कर /सोख लेता है रĉ मेरी उँगिलयŌ से /नहé होगा िवĵास चका चŏध कर देनेवाले /उन असं´य शÊदŌ पर जो अटे पड़े है अलमाåरयŌ म¤ /बड़े-बड़े पुÖतकालयŌ कì इसिलए मांफ करना भाई नहé सूना सकता िकÖसे झूठ बोलकर /कथावाचक कì तरह भावाथª : कथावाचक अथाªत कहानी सुनाने वाला | किव अपने पुराने समय को याद करते हòए अपने िबताए गाँव म¤ उस पल को Öमृित करते हòए कहते ह§, दिलत समाज म¤ िजतना शहरŌ म¤ यातना भोगनी नहé पड़ती उससे दुगना उÆह¤ गांव म¤ अÖपृÔयता अपमान ÿताड़ना जैसे का सामना करना पड़ता है और हमेशा उÆह¤ िनÌन होने का एहसास कराया जाता है| munotes.in

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92 ओमÿकाश वाÐमीिक अपने बालपन म¤ भोगे सभी यातनाओं को जो इतनी भयंकर है िक बहòत कोिशशŌ के बाद भी गाँव देहात के दिलत उÂपीड़न को कथावाचक कì तरह सुना नहé पा रहे ह§| किव कहते ह§ अब यातनाएं उÂपीड़न आज उनके मन म¤ िजंदा है | उनके शरीर के रेशŌ रेशŌ पर देहाती पर अथाªत गांव म¤ िजस ÿकार देहाती जीवन उÆहŌने अिभÓयĉ िकया है| उस गाँव के न³शे बट म¤ लीन लकìर¤ म¤ खुदा हòआ है, जब भी किव सवणª से िमले हòए दिलतपन को याद करते ह§, उनके Ćदय म¤ ऐसे लगता है, मानो बहòत समय बाद िफर से उनके ज´मŌ को कुरेद रहे है | वह िफर से उन सारे ददª और याýाओं से गुजरते ह§| वे बार-बार अपनी आंखŌ से अपने आप को ज´मी होता हòआ पाते ह§| किव बार-बार बीते िदनŌ को भूलने कì कोिशश करते ह§ पर जैसे- माÖटर साहब जो िश±ा के बदले गािलयां उनको सुनाया करते थे, उनको िजस ÿकार बेरहमी से पीटा करते थे, वह रात जो भूख से िबताए थे| वह िदन उनको अÆदर ही अÆदर खाए जा रही ह§| वह िवभÖय याद¤ उनका पीछा नहé छोड़ती | बचपन के िदनŌ म¤ िमली सभी ÿताड़ना उनके सीने म¤ कìल कì भांित गढ़ी हòई है| उनके तन म¤ लहó िवþोह बनकर दहक रहा है| किव गांव म¤ Óयतीत िकए हòए उन पलŌ को याद करते ह§ | वे जब तपती धूप म¤ खेतŌ म¤ काम िकया करते थे, सूरज कì तिपश कì आग कì तरह उनका शरीर जल जाया करती थी| आंखŌ के आगे अंधेरा छा जाया करता था िजसके कारण खेतŌ कì पगडंिडयŌ से पुिलयो तक पहòंचना मुिÔकल हो जाता था| दुख के परछाई बनकर किव का पीछा करते ह§| आज भी किव महानगरीय जैसे ±ेýŌ म¤ रहकर महानगरीय जीवन जीने के पIJात भी वह उनके पुराने िदनŌ कì Öमृितयाँ महानगर के चौड़ी सड़कŌ पर पीछा कर रही ह§| दिलत समाज के ÓयवÖथाओं पर किव कहते ह§, आज तक कोई भी ऐसी किवता नहé बन पाई है ,जो खेत खिलहान म¤ खेती करते िकसानŌ के दुख ददª को बयां कर सके, आज तक कोई ऐसी किवता नहé बन पाए जो कल कारखानŌ म¤ काम करते मजदूरŌ कì ÿताड़ना को बयां कर सके, उनकì संवेदना को बयां कर सके| गांव शहरŌ के िकसान मजदूर के बहते लहó को ठीक से उनको िमले धÊबŌ को बयां कर रही ह§ | दिलत लोगŌ के ददªनाक आज तक कोई किवता उसे बता नहé पाई है| बचपन से िकशोरावÖथा तक किव ने अपने दिलतपन को भोगा है| किव शहरŌ म¤ जीवन जीने के पIJात आज भी āाĺणी ÓयवÖथा से डरे-डरे समाज म¤ खड़े ह§ |जहां िकसी भी ±ण āाĺण के लोग, ितलकधारी लोग उÆह¤ कभी-भी त±क कì भाती डंक मार सकते ह§| वे सभी यादे उÆह¤ दिलत पन का एहसास िदलाता है अमानत करता है वह त±क उनका सारा रĉ सुख भी लेता है, अथाªत उÆह¤ बार-बार अपमािनत करता है बाद म¤ वह दिलत िहतैषी बनकर उनको सहारा देने कì भी बात करते ह§| किव कहते ह§ आज भी उÆह¤ िवĵास नहé है उन तमाम शÊदŌ पर जो समाज सुधारकŌ ने नेताओं ने दिलतŌ के अिधकार कì बात करते ह§, उनकì चकाचŏध कर देने वाले शÊद आज भी लेखक कì अलमारी और पुÖतकालयŌ म¤ सुसिºजत ह§ | इसिलए किव माफì मांगते हòए कहते ह§ िक पुराने अतीत को वह नहé बयां कर सकते| धमाªवलंिबयŌ समाज सुधारकŌ कì भांित झूठ बोलकर कथावाचक कì तरह दिलतŌ के िहतŌ कì बात नहé कर सकते| ८.२.३ िनÕकषª : िनÕकषªतः कह सकते ह§ िक इस किवता म¤ िलखा िक नहé शहरी जीवन के साथ-साथ गांव के जीवन को भी Óयĉ िकया है गांव म¤ बसे भेदभाव अछूत पर तथा िनÌन वगª को िदए गए munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. कथावाचक,
२. शÊद चुप है,
३. अब और नहé
93 ÿताड़ना को अिभÓयĉ िकया है बचपन से लेखक ने गांव के उस पåरसर म¤ िजया जहां पर गंदगी सैलरी रहती थी जहां पर कड़क धूप म¤ अपने शरीर को जलते देखा ऐसे भरे अÖपृÔयता वाले माहौल म¤ उÆहŌने जीवन Óयतीत िकया और साथ-साथ वे शहरी माहौल म¤ भी वही तब महसूस करते ह§ िशि±त होने के बावजूद भी आज तक दिलतŌ को उनका अिधकार उनका सÌमान अब तक नहé ÿाĮ हो पाया िजसके िलए वे संघषªरत है लेखक यही कहते ह§ िक कोई भी कभी दिलतŌ के ददª को अिभÓयĉ नहé कर सकता और म§ भी अपने जीवन के सभी संवेदना ओं को कथावाचक के तरह सुनाने म¤ असमथª हòँ । ८.२.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) बहòत कोिशशŌ के बाद नहé सूना सका म§ गाँव देहात के िकÖसे कथा वाचक कì तरह हाÆलािकन अभी भी िज़ंदा है मेरा देहाती पन /खुदा हòआ है रेशे रेशे पर /गाँव देहात का आड़ा-ितरछा उबड़-खाबड़ न³शा संदभª : ÿÖतुत अवतरण, ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘कथावाचक’ है | किव ने इस किवता म¤ अपने गाँव के ÖमृितयŌ को अिभÓयĉ िकया है | दिलत समाज के होने के कारण किव ने अÖपृÔयता वाले गाँव के पåरवेश म¤ जीवन Óयतीत िकया है | सभी ÖमृितयŌ को याद करते हòए एक कथावाचक कì तरह अपने अनुभूितयŌ को अिभÓयĉ कर रहे है| ÖपĶीकरण : इस अवतरण म¤ किव कहते है अपने गाँव ने जीवन अनुभवŌ को उस याद को एक कथावाचक कì तरह अिभÓयĉ नहé कर सकता ³यŌिक किव िनÌन वगª के होने के कारण असृÔयता, जाितगत भेदभाव, माÖटर साहब कì ÿताडनाओं तथा जीवन भर िमलने वाली जूठन से अपना जीवन िनवाªह िकया है जहाँ िसफª सवणª समाज से सुनने के िलए चूहड़े और भĥी गािलयाँ ही िमलाती थी | अÖपृÔयता का ऐसा भयावह माहौल था कì गाय और भैसŌ को छूने म¤ पाप नहé लगता लेिकन िकसी िनÌन Óयिĉ को छू िलया जाए तो पाप चढ़ जाता था | इन सभी ÿताडनाओं को याद करते हòए किव Öवयं कहते है कì बहòत ÿयÂनŌ के बावजूद म¤ अपने जीवन से ÿसंगŌ को अिभयĉ नहé कर सकता | किव कहते है आज भी मेरे रेशे म¤ यािन मेरे Ćदय म¤ आज भी वह देहाती पण जीिवत है यानी आज भी सभी Öमृितयाँ जीिवत है और गाँव से सभी आड़े-तेडे नØशे याद है| जहाँ उÆहŌने जीवन िजया है | िवशेष : यह किवता किवं ने आÂमकथाÂमक शैली म¤ अिभÓयĉ िकया है| िजसम¤ कवी ने अपने देहातीपन यानी गाँव के जीवन ÿसंगŌ को अिभÓयĉ करते है| इस किवता म¤ देशज शÊदŌ का ÿयोग िकया है| munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
94 ८.३ शÊद चुप नहé है ८.३.१ किवता का पåरचय : ‘शÊद चुप नहé है’ किवता म¤ किव ने शÊद के माÅयम से Óयिĉगत Öवतंýता तथा अपने अिÖतÂव कì बात कहते है| शÊद को ÿतीक के łप म¤ संबोिधत िकया है| िजसम¤ ÿÂयेक शÊद का एक Öवतंý अथª होता है, अपना अिÖतÂव होता है| शÊद को अपना बोध करने के िलए वा³य कì पिĉ म¤ खड़े रहने कì जŁरत नहé है| उसी ÿकार िनÌन वगª के ÿÂयेक Óयिĉ का एक Öवतंý अिÖतव होता है|वे अपना बोध करने के िलए अपनी सामÃयªता को िदखने के िलए उÆह¤ अब िकसी के सहारे कì जŁरत नहé है| उÆह¤ अब िकसी के भी अधीन कायª करने कì जŁरत नहé है | ८.३.२ किवता का भावाथª : शÊद चुप नहé है अखबार कì हर पंिĉ म¤ पसरे शÊद /िनरे शÊद नहé होते न होते है हाथ बांधकर सर झुकाएं पिĉबĦ खड़े लोग ही शÊद िसफª एक खबर भी नहé होते िजसे पढ़ा जाए और दुसरे ही पल भुला िदया जाए छपे शÊद िदख पड़ते है /िजतने खामोश उतने नहé होते /एक दुसरे से सटकर नहé करते गुĮ मंýणा /न फुसफुसाकर कहते ह§ कोई बात शÊद सपनŌ म¤ भी नहé चीखते लांघते भी नहé एक ही झटके म¤ साधना चø कì तमाम सीिढ़याँ शÊदŌ के चेहरŌ पर चढ़ी रहती है अनेक रंगŌ कì परते िजसके पीछे िछपे होते है अनेक अथª बरसो बरस लÌबी याýा पर िनकले शÊद भूल जाते है अपना वंश अपने नाम िफर भी शÊद चुप नहé रहते वे बोलते है /खोलते है भेद भरते है साहस /हाँ का हाँ और ना का ना कहने का | munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. कथावाचक,
२. शÊद चुप है,
३. अब और नहé
95 भावाथª : शÊद एक ÿतीकाÂमक दिलतŌ कì आवाज है| किव कहते ह§, िजस ÿकार अखबार म¤ छपे ÿÂयेक पंिĉ के शÊद िनणªय नहé होते यानी चुप नहé होते| समाज म¤ हो रहे सभी िवसंगितयŌ को उĦृत करते ह§, उसी ÿकार जो लोग सामाÆय वगª के सामने िसर झुका कर मुंह बंद कर पंिĉ म¤ खड़े ह§ | उनके खामोशी भी िनरे नहé होती है| दिलत Óयिĉ जो हर समय काम आता है| यह िसफª जłरत पर काम आने वाली वÖतु नहé है, यानी एक खबर भी नहé िजसे पढ़ा जाए दूसरे ही पल भुला िदया जाए मुखåरत शÊद िदखते नहé है| लेिकन िछपे हòए शÊद िजस तरह से िदख पढ़ते ह§ अथाªत दिलत Óयिĉ भी छपे हòए शÊद कì तरह होते ह§| अंदर ही अंदर सेट कर एक दूसरे कì गुĮ मंýणा नहé करते ना खुद पता कर कोई बात दूसरे के बारे म¤ कहते ह§| इस Óयिĉ को िजतना भी शोषण िकया जाए चुपचाप जीते ह§ जैसे शÊद होते ह§, जो सपनŌ म¤ भी नहé सीखते यानी अपने अिधकारŌ के सपने नहé देखते| िनÌन वगª के अंदर संिचत उºजवल एक झटके म¤ फूटता है वे एक ही झटके म¤ सभी सीमाएं ला देते ह§ साधना चø के तमाम िचिड़या अपने िवकास के राÖते म¤ वगª के मंý Ĭारा एक िनिIJत है िक उनके चेहरे पर कई पीिढ़यŌ के पर चढ़ी हòई है िफर भी उनके संघषª म¤ कोई न कोई अथª छुपा हòआ है| जब बड़े आंदोलन कì याýा तथा अपनी आजादी कì याýा पर जब यह िनकल पड़ते ह§| तब Öवतंýता के िलए अपना वंश और अपना नाम तक भूलकर पåरवितªत होना चाहते ह§| उसके बावजूद भी उनका संघषª कम नहé होता वह लगातार अपने अिधकारŌ के ÿित सजग रहकर बोलते ह§ परंपरा और शाľŌ के सभी भेद खोलते ह§ और वे भी अब हां और ना म¤ जवाब देने के िलए सजग हो उठे ह§| ८.३.३ िनÕकषª : िनÕकषªतः कह सकते है कì यह किवता म¤ लेखक ने शÊद के माÅयम से अपने Öवतंý होने का बोध करते है| शÊद का अपना अलग महßव बताते है| वे कहते है वे िकसी और कì तरह नहé होते िसफª दुसरे के उपर िनभªर नहé रहते | वे Öथान Öथािपत िकये हòए है| िजस ÿकार सवणª के चहरे पर बनावट के आवरण रहते है| शÊद बनावटी आवरण नहé ओढ़ते | वे हमेशा सही को सही और गलत को गलत कहने का दंभ भरने का काम करते है| ८.३.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) शÊदŌ के चेहरŌ पर चढ़ी रहती है अनेक रंगŌ कì परते िजसके पीछे िछपे होते है अनेक अथª बरसो बरस लÌबी याýा पर िनकले शÊद भूल जाते है अपना वंश अपने नाम संदभª : ÿÖतुत अवतरण ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘शÊद चुप नहé है’ है | ओमÿकाश वाÐमीिक दिलत िचंतन धारा के ÿिसĥ सािहÂयकार है| इनकì काÓयधारा āाĺणवादी िवचारधारा पर ÿहार करती है | दिलतŌ को िमलने वाली यातनाओं तथा उनके Ćदय कì संवेदनाओं को Óयĉ करती है| यह किवता भी उसी ÿकार कì किवता है जहाँ किव ने एक शÊद के अिÖतÂव munotes.in

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96 का बोध कराया है| शÊद कì महÂव°ा को बताया है| उसे िनÌन वगª का ÿतीक मानते हòए उनके Öवतंý अिÖतÂव कì बात करते है | ÖपĶीकरण : 'शÊद चुप नहé है' किवता ने शÊद का पिĉ म¤ ³या वजूद होता है और समूह म¤ न हो कर भी उसका जो Öवतंý वजूद है उसपर ÿकाश डालते हòए दिलतŌ के अिÖतÂव का बोध कराती है | इस पिĉ म¤ किव कहते है शÊद का जो Öवतंý अिÖतÂव होता है वह वा³य म¤ ÿयोग होने के बाद अपने ही अिÖतÂव को खो देता है उनके रंग म¤ दुसरे अथª म¤ उनकì पुिĶ हो जाती है| अथाªत दिलतŌ म¤ जो सामथª है वो दूसरŌ कì बेगारी करने म¤, दूसरŌ कì सेवा करने म¤, दूसरŌ के खेत म¤ काम करने म¤ वह अपना Öवयं का रथ अपनी उपयोिगता भूल जाते है इसिलए शÊदŌ के चेहरे पर चढ़ी रहती है अनेक रंगŌ कì परते और वे शÊद उसी अथª के रंग म¤ ढल जाते है जैसे उÆह¤ पेश िकया जाता है| दुसरे अथª म¤ संबोधन देने के कारण शÊद Öवयं अपनी उßपित अपने अथª भूल जाते है| उसी ÿकार िनÌन वगª सवणŎ के सामने अपना अिÖतÂव अपने अिधकार और अपना सामÃयª भी भूल जाता है| िवशेष : यह किवता शÊद के माÅयम से ÿतीकाÂमक łप को ÖपĶ करती है | िजसम¤ शÊद िनÌन वगª का घोतक है| िजसे अपने ही अिÖतÂव का बोध नहé है| सवणŎ के बनाए िनयमŌ के कारण अपने ही अिÖतÂव को खो देता है और जीवन भर उनकì गुलामी करते ह§ जीवन Óयतीत कर देता है| ८.४ अब और नहé ८.४.१ किवता पåरचय : वतªमान समय मे ओमÿकाश वाÐमीिक दिलत सािहÂयकरŌ म¤ अúणी है। जीवन म¤ िमली जाितवादी दंश के कारण वे बाÐयावÖथा से लेकर िकशोरावÖथा तक अÂयाचार को सहन करते आये है। भारतीय असमानता पर खड़ी सामािजक ÓयवÖथा के बीच दिलत किवता का आिवभाªव हòआ। जो दिलतŌ के जीवन संघषª, िवþोह और नकार कì ºवाला लेकर समाज म¤ पåरवतªन लेने के िलए मशाल जलाये हòए है। हजारŌ सालो से िनÌन जाित पर हòकूमत करती हòई यह āाĺणी समाज के ÿित आøोश Óयĉ िकया है। लेखक उन तमाम मजदूर, िकसान, दिमत Óयिĉ, िनÌन जाित का Óयिĉ इन सभी को अपने अिधकारŌ के ÿित आवाज उठाने के िलए ÿेåरत करते है। जीवन म¤ तमाम िमली यातनाओं के िवŁĦ सामािजक ÓयवÖथा से लड़ने के िलए आवाहन हारते है। वतªमान समय म¤ जहाँ िवमशª सािहÂयŌ के माÅयम से िनÌन वगª, शोिषतŌ के मूक आवाज को शÊद दे रही है। ऐसे समय म¤ लेखक उÆह¤ आगे बढ़ने के िलए कहते है। चाहे तमाम नेता साÿदाियक दंगे ³यŌ न कर सके, पुराने जजªर शाľ हमारे िखलाफ ³यŌ न खड़ा हो जाये लेिकन लेखक उÆह¤ अपने अिधकारŌ के िलए आवाज बुलंद करने कì ÿेरणा से रहा है | munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. कथावाचक,
२. शÊद चुप है,
३. अब और नहé
97 ८.४.२ किवता का भावाथª : अब और नहé आँख िमचौली खेलने का समय नहé है यह संभल-संभल कर रखने वाल भी मारे जाय¤गे फजê मुठभेड़Ō म¤ या िफर सांÿदाियक दंगŌ म¤ गÆदगी के ढेर म¤ िकलिकलाते कìड़Ō कì तरह खामोश जी कर भी ³या िमला हŌठŌ कì मुĉ हंसी /और उँगिलयŌ कì सहज िसंµधता कहाँ गयी/आदमी साहस और अपåरिमत धैयª रĉ कì गËदाªर बनकर वह गए बरसाती गंदले पानी कì तरह या िचरायध फेलाकर जल गए अकÖमात लगी आग म¤ हजारŌ साल का मैल /रगड़-रगड़ कर िनकलने म¤ समय जाया मत करो /भीड़ भरी सड़कŌ पर यातायात के बीच अपनी जगह बनाकर łकने का संकेत पाने से पहले लालब°ी का चौराहा पार करना है छĪवेशी शÊदŌ का ÿलाप जारी है सुन चुके अथªहीन तकª भी बहòत िदन जी चुके हताशा और िनराश के बीच कालाबाजाåरयŌ चौर चतुराई भेरे शÊदŌ का खेल हो चुका अब और नहé तह करना होगा कहा खड़े हो तुम साए या धुप म¤ भावाथª : किव आवाहन करते ह§, यह समय अब चुप रह कर एक-दूसरे के ऊपर आरोप लगाने का समय नहé है एक नेता, कायªकताª, समाज सुधारक कì आड़ लेकर जाितवाद का िवष बोलते ह§, जो हर समय संभल कर चलते ह§ | उÆह¤ अब खÂम करने का समय आ चुका है, जो सांÿदाियक दंगे करवाते ह§, जो समाज म¤ अराजकता फैलाते ह§| आज उन सभी को समाज से िमटाने का वĉ आ गया है| किव कहते ह§, उनके अिधकारŌ कì लड़ाई लड़ना है, जो गंदी बÖती म¤ रहने के िलए मजबूर ह§, जो कìड़े मकोड़े िजंदगी जीने के िलए मजबूर ह§| उनको इस तरह ख़ामोशी जीवन जी कर ³या हािसल कर पाए ह§| उनके फोटो कì मुिĉ कहां गई और उनके उंगिलयŌ कì सहज िसंµधता कहां गई ³यŌ वे लोग िनÌन वगª के दैिनक जीवन को नहé िदखा पा रहे ह§ उनके ÿताड़ना को नहé अिभÓयĉ कर पा रहे ह§ उनकì munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
98 अदÌय साहस और Åयान कहां गए उनके रĉ का उबाल कहां गया जो Æयाय और अÆयाय कì बात¤ िकया करते थे गंदगी पानी कì तरह शÊद है बह गए आग कì तरह सभी साहस जल गए | हजारŌ सालŌ से िमलते ÿताड़ना ओं का महल आज हम दिलत सािहÂयकारŌ को िनकालने हŌगे रगड़ रगड़ कर| कवी लेखकŌ को आवाहन करते है कì समय जाया मत करो सड़कŌ पर भीड़ बहòत है हम¤ यातायात के भीड़ म¤ जगह बनाकर जलना है| हम उनके Ĭारा रोके जाए उससे पहले हमे अपने बल से आगे बढना है उस लालब°ी के चौराहे को पार करना है | ८.४.३ िनÕकषª : िनÕकषªतः इस किवता म¤ वणªÓयवÖथा के दोहरे मापदंडो, सामािजक ÓयवÖथा के खोखले पन और āाĺणवाद के िवŁĦ किव ने अपना आøोश Óयĉ िकया है। हजारŌ वषŎ के िमले यातनाओं को झेला है। उÆह¤ øूर ÓयवÖथाओं से लड़ने तथा उनसे कायª के ÿÂयेक ±ेý म¤ आगे बढ़ने के िलए आवाहन कर रहे है। इस किवता के माÅयम से उÆहŌने दिलत अिÖमता कì पहचान का ÿij उठाया है और मानवीय मुÐयो को Öथािपत करने का उĥेÔय रहा है| कवी कहते है कì सिदयŌ से ÿताħाये, अÖपृÔयता, दुÓयªवहार बहòत सहन कर िलया अब और नहé अब अपने अिधकार के ÿित आगे बढ़कर सभी खोखले मापदडŌ को तोड़ना होगा| हम¤ अब खुद तय करना होगा कì हमे कहाँ खड़ा रहना है| धुप म¤ कì छाव म¤ | ८.४.४ संदभª सिहत ÖपĶीकरण : १) बहòत िदन जी चुके हताशा हौर िनराश के बीच कालाबाजाåरयŌ चौर चतुराई भेरे शÊदŌ का खेल हो चुका अब और नहé तह करना होगा कहा खड़े हो तुम साए या धुप म¤ संदभª : ÿÖतुत अवतरण ओमÿकाश वाÐमीिक Ĭारा रिचत काÓय संúह ‘अब और नहé’ नामक पुÖतक से उĦृत है | िजसका शीषªक ‘अब और नहé’ है | ओमÿकाश वाÐमीिक दिलत िचंतन धारा के ÿिसĥ सािहÂयकार है | इनकì काÓयधारा āाĺणवादी िवचारधारा पर ÿहार करती है | दिलतŌ को िमलने वाली यातनाओं तथा उनके Ćदय कì संवेदनाओं को Óयĉ करती है | मु´यधारा Ĭारा िनिमªत कì गई भारतीय सामािजक ÓयवÖथा म¤ ÿाचीन से चली आ रही जाितगत भेदभाव, अÖपृÔयता के कारण दिलतŌ कì आवाज मूक बनी रही | मूक बनकर सिदयŌ से सवणŎ के अÂयाचार को सहन करती रही | वतªमान समय म¤ यही मूक आवाज ददª, पीढ़ा बनकर आøोश के łप म¤ फुट पड़ी है | िजसकì अिभÓयिĉ किव ने इस किवता म¤ कì है | ÖपĶीकरण : अब और नहé शीषªक से ही आøोश तथा वेदना िदखाई देता है| जो सिदयŌ से सहन करता हòआ दिलत समाज के सहन कì हदे पार हो चुकì है| किव इस पिĉ म¤ कहते है कì आज भी सभी जजªन पुराने छंद वेदी úÆथ िजसके कारण दिलतŌ को सदैव ÿताड़नाए ही ÿाĮ हòई है िजसने उÆह¤ िनÌन कायª करने पर मजबूर कर िदया आज भी वे सभी úÆथ दिलतŌ को उनका अिधकार ÿाĮ करने म¤ उनका राÖता रोक रही है| āाहमण और पंिडतŌ को कालाबाजाåरया कहा कर संबोिधत िकया है| जो अपनी चालािकयŌ के सिदयŌ से दिलतŌ munotes.in

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अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक
१. कथावाचक,
२. शÊद चुप है,
३. अब और नहé
99 पर अपना अिधपÂय जमाते हòए आये है| उÆह¤ पायदानŌ पर रखते आये है| किव उन तमाम शोिषतŌ और िनÌन वगª को आवाहन करते हòए कहते है बस अब और नहé हमे उनके अÂयाचारŌ को सहन करना है | अब हम¤ Öवयं अपना अिधकार, अपना भिवÕय कì राह तय करना है | हमे अपने अिÖतÂव को पहचानना है िक आज हम कहाँ खड़े रहना है धुप म¤ कì छाह म¤ | िवशेष : किव ने छĪ शÊद तथा कालाबाजाåरयŌ जैसे ÿितक शÊदŌ का ÿयोग िकया है| यह किवता पुणªतः आøोशाÂमक किवता है| िजसमे किव िनÌन वगŎ को आवाहन करते है उÆह¤ अपने अिधकारŌ के ÿित आवाज उठाने के िलए ÿेåरत करते है | ८.५ सारांश : ओमÿकाश वाÐमीिक ने अपनी किवताओं म¤ जीवन कì अनुभूितयŌ को Óयĉ िकया है। 'कथावाचक' किवता म¤ किव गांव म¤ िबताये पल का याद करते हòए महसूस करते है कì शहरŌ के बदले गांव म¤ ºयादा अÖपृÔयता, अपमान, ÿताड़ना आिद का सामना करना पड़ता है। 'शÊद चुप नहé है' म¤ शÊद के माÅयम से Óयिĉगत Öवतंýता और अिÖतÂव कì बात रखते है। 'अब और नहé' म¤ किव ने वणªÓयवÖथा के दोहरे मापदÁडो, सामािजक ÓयवÖथा के खोखलेपन और āाĺण के िवŁĦ आøोश को Óयĉ िकया है। ८.६ बोध ÿij : १. 'कथावाचक' किवता का भाव बोध ÖपĶ कìिजये | २. 'कथावाचक' किवता म¤ दिलत संवेदना ÖपĶ कìिजये | ३. 'शÊद चुप नहé है' शीषªक कì साथªकता को ÖपĶ कìिजये | ४. 'अब और नहé' किवता म¤ Óयĉ दिलतŌ के िवþोह तथा उनके आøोश को ÖपĶ कìिजये | ८.७ वÖतुिनķ ÿij : १) किव अपने गाँव देहात के िकÖसे िकस ÿकार सुना रहे ह§| उ°र : कथावाचक कì तरह। २) त±क का अथª ³या है ? उ°र : साँप। ३) किव को डंक कौन मार रहा है ? उ°र : ितलकधारी लोग। ४) अखबार कì पंिĉ म¤ पसरे शÊद िकस ÿकार नहé होते ? उ°र : िनरे नहé होते। ५) शÊद एक दुसरे के साथ सटकर ³या नहé करते ? उ°र : गुĮ मंýणा। munotes.in

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100 ६) लÌबी याýा पर िनकले शÊद ³या भूल जाते है ? उ°र : अपना वंश अपने नाम। ७) संभल संभल कर पाँव रखनेवाला भी कहाँ मारा जाएगा ? उ°र : फजê मुठभेड़Ō म¤ और सांÿदाियक दंगŌ म¤। ८) किव कौन सा चौराहा पार करना चाहते है ? उ°र : लालब°ी का चौराहा। ९) िकन शÊदŌ का ÿलाप जारी है ? उ°र : छĥमवेशी शÊदŌ का। १०) िकसका खेल अब बहòत हो चुका ? उ°र : कालाबाजाåरयŌ और चतुराई भरे शÊदŌ का। ८.८ संदभª úंथ : १. अब और नहé - ओमÿकाश वाÐमीिक  munotes.in

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101 ९ धूणी तपे तीर : हåरराम मीणा इकाई कì łपरेखा ९.० इकाई का उĥेÔय ९.१ ÿÖतावना ९.२ लेखक का पåरचय ९.३ ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास का कथासार ९.४ सारांश ९.५ वैकिÐपक ÿij ९.६ लघु°रीय ÿij ९.७ बोध ÿij ९.८ संदभª सूची ९.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं से छाýŌ का पåरचय होगा -  आिदवासी सािहÂय के सुÿिसĦ लेखक हåरराम मीणा जी के ÓयिĉÂव और कृि°Âव से पåरिचत कराना ह§ ।  आिदवासी उपÆयास 'धूणी तपे तीर' के कथावÖतु का छाý अÅययन कर¤गे ।  आिदवािसयŌ कì गåरमा को छाý समझ सक¤गे । ९.१ ÿÖतावना : लेखक हåरराम मीणा ने 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ आिदवासी समाज, संÖकृित, उनकì समÖयाओं, ýासिदयŌ, संघषª और आिदवािसयŌ के सपनŌ को रेखांिकत िकया है । इसम¤ राजÖथान का दि±णांचल, सीमावतê गुजरात और मÅयÿांत का पिIJमी ±ेý के िनवासी भील और मीणा आिदवािसयŌ कì कथा विणªत ह§ । उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कुशलगढ़ åरयासतŌ म¤ भीलŌ कì सं´या Ûयादा थी और दूसरी बड़ी सं´या मीणा आिदवािसयŌ कì । ÿतापगढ़ åरयासत म¤ मु´यतः मीणा आिदवािसयŌ कì आबादी । मानगढ़ के चारŌ ओर पसरा राजपूताना का दि±णांचल था और इस दि±णांचल कì पूवê िदशा म¤ सीमावतê रतलाम, सैलाना व झाबुआ åरयासत¤ तथा पिIJम म¤ झालोद, सूंथ व ईडर कì åरयासत¤ । यह सब आिदवािसयŌ से आबाद था । इस आिदवासी कथा को सािहÂय ±ेý के सामने लाने और आिदवािसयŌ के ऐितहािसक पåरŀÔय को Öथािपत करने के िलए लेखक हåरराम मीणा ने १५ तथा २० साल तक संशोधन िकया उसके बाद मानगढ़ कì घटनाओं को ÿÖतुत िकया है । इस घटना को उजागर करने का munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
102 कायª लेखक ने 'धूणी तपे तीर' उपÆयास से िकया है । लेखक ÿशासकìय पद पर कायª करते हòए आिदवािसयŌ का सािहÂय और इितहास म¤ उनके योगदान को सÌमान देने के िलए घूम-घूम कर मानगढ़ कì घटनाओं को सÂयता के साथ सािहÂय जगत म¤ 'धूणी तपे तीर' को सन् २००८ म¤ सािहÂय उपøम से ÿÖतुत िकया । ९.२ लेखक का पåरचय : िहÆदी के आिदवासी सािहÂयकारŌ म¤ हåरराम मीणा का नाम बहóचिचªत है । सािहÂय म¤ उनका पदाªपण एक किव के łप म¤ हòआ था । उनका जÆम एक साधारण आिदवासी िकसान पåरवार म¤ १ मई १९५२ को ‘कामगार िदन’ के शुभ अवसर पर पूवê राजÖथान के सवाई-माधोपुर िजले म¤ एक छोटासा इलाका बामनवास गांव म¤ हòआ । मीणाजी का पूरा नाम हåरराम िकशोरीलाल मीणा है और उनका आरंिÌभक जीवन मौिलक अभावŌ म¤ बीता । हåरराम मीणा के िपता ®ी. िकशोरीलाल और माता सौ. राजोदेवी थी । उनके िपताजी एक साधारण आिदवासी िकसान थे । आिथªक पåरिÖथित िबकट होने के कारण िपताजी कì िश±ा-दी±ा नहé हो पायी, िफर भी अपने िजंदगी म¤ उपयोग होने तक और काम चला लेने तक का अ±र ²ान उÆहŌने ÿाĮ िकया। माताजी अनपढ़, गवार और गांव म¤ रहनेवाली थी इसिलए वह अपने घर का काम िकया करती थी । मुिÔकल से िपताजी ने हåरराम को िश±ा के िलए ÿेåरत िकया । घर कì आिथªक िÖथती ठीक न होते हóए भी, माता-िपताजी ने कजª लेकर बेटे को िश±ा देने कì सफलता ÿाĮ कì । हåरराम मीणा कì ÿारंिÌभक िश±ा िचÐलास गांव म¤ हòई और पूवê राजÖथान के सवाई-माधोपुर िजला बामनवास गांव म¤ दसवé क±ा तक पढ़ाई हो गयी । µयारहवé और बारहवé कì पढ़ाई कÖबे म¤ हòई और बी. ए. के ÿथम एवं िĬतीय वषª कì पढ़ाई राजÖथान के राजकìय महािवīालय करोली तथा तृतीय वषª कì पढ़ाई राजÖथान काँलेज म¤ िहÆदी, इितहास एवं नागåरकशाľ िवषय लेकर अ¸छे गुणŌ से पदवी ÿाĮ कì । आगे कì पढ़ाई राजÖथान के िवĵिवīालय, जयपुर से एम. ए. म¤ राजनीित िव²ान िवषय लेकर सन १९७५ म¤ उपािध हािसल कì । इसके साथ ही चार साल तक हेवाइन िगटार कì िश±ा लेकर शाľीय संगीत से भी आंतåरक भावŌ के साथ जुड़े । हåरराम मीणा का िववाह ‘बाल िववाह ÿथा‘ के अनुसार जब आठवé क±ा म¤ थे, तभी हòआ था। यह 'बाल िववाह कì ÿथा' उनके समाज और अंचल म¤ परÌपरागत पÅदती से चली आयी हòई थी । उनका िववाह गाँव कì लड़कì रामधनी के साथ हो गया । िफर हåरराम मीणाजी ने अपने घर म¤ पÂनी रामधनी का नाम रमा रखा । पÂनी रमा थेट úामीण पåरवेश से आई थी । वह अनपढ़ थी, लेिकन हåरराम मीणा के साथ रहकर आँठवé क±ा तक िश±ा úहण कì । हåरराम मीणाजी पुिलस कì नौकरी एवं सािहिÂयक सृजन के कारण पåरवार को अपेि±त समय नहé दे पाए, इसका दुःख है, लेिकन एक कहावत है िक “कुछ पाने के िलए कुछ खोना पड़ता है ।” यह कहावत उनके जीवन म¤ उतर आयी और जीवन तÃयाÂमक हòआ । हåरराम मीणाजी पåरवार म¤ पहले िश±ा लेने वाले सदÖय है । पåरवार कì आिथªक िÖथित ठीक नहé थी और पåरवार का गुजारा करने के िलए उनको नौकरी कì श´त जłरत थी, इसिलए एम. ए. कì िश±ा के दौरान नौकरी कì तलाश करते रहे और समाज कÐयाण िवभाग म¤ चतुथª ®ेणी कमªचारी के łप म¤ नौकरी िमल गयी । कुछ मिहनŌ के बाद पंजाब नेशनल बँक, इलाहाबाद बँक, सेÆůल बँक और अÆत म¤ åरज़वª बँक आँफ इंिÁडया म¤ ³लकª के łप म¤ तीन-चार साल munotes.in

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धूणी तपे तीर : हåरराम मीणा
103 नौकरी कì । उनका मकसद एक ही था िक 'िकसी भी तरह, िकसी भी Öतर कì, सरकारी नौकरी िमल जाए?' आिखर राजÖथान पुिलस सेवा म¤ सन १९७९ म¤ भतê हòए । सन १९९६ म¤ आय. पी. एस. का ÿमोशन िमलकर पुिलस अिधकारी के łप म¤ राजÖथान के िजलŌ म¤ कायª करते रहे । उÆहŌने राजÖथान के दस ÿभािवत ±ेýŌ म¤ जैसे भरतपुर, जोधपूर, नागौर आिद िजलŌ म¤ उÐलेखनीय कायª िकया । आंतकवाद िजला ®ीगंगानगर म¤ चार साल पुिलस सेवा का कायª करने के बाद उनको पुिलस िवभाग म¤ उप महािनåर±क के łप म¤ पदोÆनती ÿाĮ हòई। उसके बाद मई २०११ म¤ पुिलस िवभाग म¤ ओर पदोÆनती िमलकर सशľ बटािलयन म¤ पुिलस महािनåर±क सुर±ा (आय. जी.) राजÖथान के पद पर कायª करते रहे । और अब कुछ साल पहले पुिलस महािनरी±क के पद से सेवािनवृ° हòए । संÿित अिखल भारतीय आिदवासी सािहÂय मंच, िदÐली के अÅय± के łप म¤ सिøय ह§। हåरराम मीणाजी का बाहय और आंतåरक ÓयिĉÂव म¤ अलग तरह का आकषªण ह§ ³यŌिक एकांत म¤ 'म§' हóँ इसिलए 'म§' के अितåरĉ म§ अÆय कुछ भी नहé और 'म§' होने का मुझे गवª है । लेिकन 'म§' के सÂय कì खोज म¤ इस 'म§' एवं ŀÕयाŀÕय सृिĶ के िवÖतार म¤ Öवंय को यायावर सा अनुभव करता रहा हóँ । इसस¤ ÖपĶ होता है िक उनका ÓयिĉÂव िनखरकर सामने आता है। वे ÿशासकìय अिधकारी ह§, इसिलए उनका ÓयिĉÂव łबाबदार ह§, उनके बोलचाल का अंदाज अलग ह§, वे हम¤शा अपने काम म¤ तÂपर ह§, उÆह¤ िकसी बात का गवª नहé ह§, वे हर समाज से जुड़े रहते ह§, वे लोकसेवा म¤ सदैव कायªरत ह§ । वे आिदवािसयŌ म¤ सुधार लाना चाहते ह§ इसिलए आिदवािसयŌ से उनका िनरÆतर सÌपकª बना हòआ ह§ । आिदवािसयŌ के ÿित कटू सÂय खोजने का लगाव आिद गुणŌ से उनका ÓयिĉÂव संपÆन ह§ । िहÆदी सािहÂय ±ेý म¤ उÆहŌने एक सफल लेखक के łप म¤ अपना Öथान बनाया ह§ । वे लगातार समाज के नये łप का दशªन करते रहे, सािहÂय बोध एवं सृजनशीलता का उनकì गī और पī रचनाओं म¤ ÖपĶता िनखर उठी ह§ । सािहÂय लेखन कì ÿेरणा के संदभª म¤ हåरराम मीणाजी कहते है, "सािहÂय लेखन कì ÿेरणा संÖकारŌ कì लÌबी ÿेरणा होती है, वह कोई घटना नहé होती, इसिलए ÿेरणा को िचिýत करना किठन काम है ।" उनम¤ पढ़न¤ िलखने कì łची बचपन से ही रही है । Öकुल और कॉलेज के छाý जीवन से ही अÅययन काल म¤ उÆह¤ सािहÂय लेखन और िफलोसोफì पढ़ने का चÖका लगा था । िहÆदी सािहÂय लेखन कì łची उÆह¤ बी. ए. व एम. ए. के अÅययन काल म¤ संगत, िमýमंडली और अÅयापकŌ कì ÿेरणा से िमली । उनकì यही ÿेरणा किवता एवं कथा सािहÂय म¤ फल®ृत हòई । यह ÿेरणा जÆम से या पाåरवाåरक पृķभूिम से जुड़ती है । उनके िपताजी लोकगéतो कì रचना िकया करते थे, खास करके सामुिहक गीत िजस¤ अंचल म¤ कÆह§या कहते ह§, संभव है िक किवता अथवा सािहÂय िलखने कì ÿेरणा वहां से आयी हो । हåरराम मीणाजी जी के जीवन म¤ अनेक संघषª के अनुभव आते गये, िजसकì वजह से ÓयवÖथा के ÿित असंतोष, सामािजक पåरवतªन एवं बेहतर भिवÕय के सपने बनते गये और सािहÂय के माÅयम से अपनी बात को ÿेåरत िकया । "लोकगीतŌ कì मौिखक परÌपरा के संÖकारŌ से समृÅद युवावÖथा म¤ छायावादी किवता से काफì ÿभािवत हòए, लेिकन úामीण पåरवेश के लोकानुभवŌ के कारण अÆततः किवता कì लोकोÆमुखी परÌपरा म¤ ही सािहÂय िलखने का चैन िमला ।" सृजनधमê Óयिĉ कì रचनाÿिøया łकती नहé ह§ इसिलए उÆहŌने काÓयसृजन के साथ-साथ सािहÂय के अÆय िवधाओं म¤ भी अपने अनुभव व िवचारŌ को अिभÓयिĉ दी है । munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
104 सन १९८८ म¤ उÆहŌने भरतपुर नौकरी के दौरान जयपूर म¤ रखा सािहÂय िवशेष łप स¤ वहé मंगा िलया और िनयिमत łप से अÅययन करते रहे । इसी के साथ-साथ अपराध, मनोवै²ािनक एवं समाजशाľीय िवषयŌ पर िहंदी और अंúेजी म¤ आलेख िलखते थे । सािहÂय िलखने म¤ सबस¤ बड़ा सहयोग पÂनी रमाजी से िमला इसी सहयोग के कारण वे सािहÂय का सृजन करते रहे और सािहÂय एवं पुिलस ±ेý म¤ िवशेष पहचान बनायी । लेखक अथवा सािहÂयकार के रचनाकमª को उसके Óयिĉगत जीवन तथा अनुभवŌ से पृथक करक¤ नहé परखा जा सकता है, ³यŌिक रचनाकार के भाव एवं िवचार उसके जीवन और अनुभव से ही िनकलते ह§ । रचनाकार जो कुछ भी देखता है, महसूस करता है, रचना कì पृķभूिम उसी से िनिमªत होती है और वाणी उसे शÊदŌ Ĭारा सािहÂय म¤ बदल देती है । सािहÂय कì िवधा से हåरराम मीणाजी के सृजनता का पåरचय ÿाĮ होता है । उÆहŌने कई िवधाओं म¤ कलम चलाकर सािहÂय का सृजन िकया और अपने अनुभव व िवचारŌ कì अिभÓयिĉ देकर सृजन के केÆþ म¤ दिलत, दिमत, शोिषत मानवता, आिदवासी समाज, ®मसंपÆन Óयापक लोक और अनवरत संघषªरत ÿकृित एवं मानवेतर ÿाणी जगत तथा बहòआयामी उ°र आधूिनक िवłपताएँ ह§ । सािहÂय लेखन कमª के Öतर पर उनकì ŀिĶ, िदशा व लàय काफì हद तक सुÖपĶ और िनभाªÆत है । हåरराम मीणाजी के किवता संúह है, 'हाँ, चाँद मेरा है' (१९९९), 'सुबह के इंतजार म¤' (२००६), ÿबÆध काÓय 'रोया नहé था य±' (२००८) आिद है । उनके याýा वृ°ांत है, 'सायबर िसटी से नंगे आिदवािसयŌ तक' (२००१), 'जंगल-जंगल जिलयांवाला' (२००८) आिद । उनका उपÆयास 'धूणी तपे तीर' (२००८) आिद । आिदवासी िवमशª कì दो पुÖतक¤ तथा समकालीन आिदवासी किवता (संपादन) पर एक पुÖतक ÿकािशत ह§ । इसी के साथ हåरराम मीणाजी को कई पुरÖकार ÿाĮ हो चुके है । उसम¤ से भारतीय पुिलस पदक, राÕůपित पुिलस पदक, वÆयजीव संर±ण के िलए पĪ®ी सांखला अवाडª (१९९९), डॉ. अÌबेडकर राÕůीय पुरÖकार (२०००), राजÖथान सािहÂय अकादमी का सवō¸च 'मीरां पुरÖकार' (२००३), केÆþीय िहंदी संÖथान Ĭारा महापंिडत राहòल सांकृÂयायन सÌमान (२००९), िबड़ला फ़ाउंडेशन के िबहारी पुरÖकार और िवĵ िहंदी सÌमान आिद से िवभूिषत ह§। िनÕकषªतः हåरराम मीणा जी के िविवध आयामŌ कì चचाª करने पर यह बात सामने आती है, िक उनका जीवन गरीबी, शोषण, िवþोह, सामािजक, आिथªक अभावŌ, पीिड़त, वंिचत दिलत और आिदवासी समाज के ÿित आÖथा से उभरकर सामने आता है । समाज कì वेदनाओं से ÓयवÖथा के ÿित िवþोह और अपनी अिÖमता और अिÖतÂव का गहराई से सÌबÆध िदखाई देता है । अतः हåरराम मीणाजी आिदवासी समाज के एक वåरķ बुिĦजीवी, किव, िचंतक, िवचारक के łप म¤ ÿितिķत ह§ । ९.३ ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास का कथासार : सािहÂयकार हåरराम मीणा कì यह ÿथम औपÆयािसक कृित है । इस उपÆयास म¤ औपिनवेिशक अंúेजी शासन एवं देसी सामंती ÿणाली के िवłī गोिवंद गुł के Ĭारा Öथािपत 'सÌप-सभा' संगठन से आिदवासी समाज म¤ जागृती व संघषª और मानगढ़ पवªत पर घिटत हòआ आिदवासी िवþोह का यथाथª िचýण लेखक हåरराम मीणा ने िकया है । उपÆयास म¤ मेवाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, ÿतापगढ़ और कुशलगढ़ सिहत ईडर और संतरामपुर åरयासत munotes.in

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धूणी तपे तीर : हåरराम मीणा
105 तक कì कथा क¤þ म¤ रखी है। उपÆयास म¤ ÿमुख पाý गोिवंद गुł का है और कुåरया, पूंजा धीरा और अÆय कई पाýŌ के साथ देशी åरयासत और अंúेज़ पाý को भी कथा म¤ शािमल िकया है। उपÆयास के ÿारंभ म¤ बनजारा जाित का एक साधारण लड़का चकमक पÂथरŌ से आग िनमाªण करता है । यह आग आिदवािसयŌ म¤ धीरे-धीरे एक Öवतंýता-संघषª का समुह बनाती है । गोिवÆदा लोकनायक के łप म¤ पåरवितªत होकर गोिवÆदा से गोिवÆद, गोिवÆद भगत और अतः गोिवÆद गुł के łप म¤ आिदवासी समाज म¤ ÓयाĮ बुराइयŌ और łिढ़यŌ को खÂम करने का सामुिहक ÿयास करता है । जहाँ तक संभव है, राजकाज के सामंती दमन का अिहंसक तरीके से िवरोध भी करता है । गोिवÆद गुł सामािजक, राजनीितक, धािमªक, आिथªक और शोषन के िवłī आिदवासी समाज म¤ समाजसुधारक तथा समाज को जागृत करने का कायª करता है । गोिवÆदा बचपन से ही आिदवािसयŌ कì सेवा करने कì लालसा मन म¤ पाला हòआ था । भुिखया गाँव म¤ आिदवािसयŌ कì सं´या अिधक थी, वहाँ अनेक हादसे हòए थे, इस गाँव से गोिवÆदा और उसके साथी बांसवाड़ा åरयासत म¤ जागीर का मु´यालय गढ़ी गाँव कì ओर जा रह थे । वहाँ चौक पर इ³कठा हòए लोगŌ को आधार देते हòए ²ान कì बाते करता है िक "करम ÿधान जगत रिच राखा” अथाªत सदकमª ही जीवन का आधार है । यह ²ान कì बाते सुनते ही आिदवासी लोग चिकत हो जाते है और उसे भगत आदमी कहना आरंभ करते ह§ । इस बात से गोिवÆदा को मन ही मन म¤ खुशी होती है और आगे बढ़ता है । गढ़ी गाँव के भीलड़देव Öथान पर łक कर बुजुªगŌ से अिभवादन के साथ कुåरया सभी का पåरचय देते हòऐ कहता है िक हम गाँव-गाँव म¤ Ăमण करके आिदवासी लोगŌ कì सेवा करना चाहते है । तब उसी वĉ गाँव का आिदवासी मोदाना डामोर फसल बबाªद के कारण महòड़ी कì दाł पीकर राÖते मे बड़बड़ता हòआ जाता है । इस ŀÔय को गोिवंद गुŁ देखता है और मुिखयाĬारा गाँव कì पंचायत बुलाकर, वहाँ ÿवचन देने से आिदवासी लोगŌ म¤ सांमतशाही के िवरोध म¤ øोध कì भावना िनमाªण होने लगती है । उधर उदयपुर दरबार के महाराणा सºजन िसंह सुनारी बाजार म¤ हòई चोरी के बारे म¤ िवशेष łप से Åयान रखता है । महाराणा का सिचव िदÐली से भारत सरकार के िवदेश सिचव से िमला सÆदेश पढ़कर सुनाता है । उसके बाद दरबार म¤ आिदवासी समÖया लेकर आते है । लेिकन मेवाड़ का महाराणा भेदभाव का ŀिĶकोन अपनाकर और दबाव डालते हòए, समÖयाओं को न सुलझाते हòए आिदवािसयŌ को भगा देता ह§ । दूसरी तरफ़ बारापाल के थानेदार ने पड़ोना गाँव के गमेती को मारने कì खबर गांव म¤ फैल गई और इस खबर से स§कड़ो आिदवासी अपने पारÌपाåरक हÂयार लेकर हमला करते है । हमले म¤ थानेदार सिहत शराब का ठेकेदार और अÆय लोग मारे जाते है, åरयासत कì इमारत ÅवÖत कर दी जाती है । महाराणा Ĭारा हिथयार बÆद फौज भेजकर गाँव म¤ आग लगाकर ओर आंतक पैदा िकया जाता है । आिदवासी भड़ककर पुिलस चौकì म¤ आग लगा देते है । ऋषबदेव म¤ भी छह-सात हजार आिदवासी ने फौज कì तुकड़ी पर हमला िकया । खैरवाड़ा छावनी पर भी िवþोह ने आøमण करने का ÿयास िकया । इन सभी घटनाओं पर अंúेजŌ कì नज़र थी। िवþोह को शाÆत करने के िलए अंúेजŌने संदेश िदया िक महाराणा उनकì समÖयाओं पर सहानुभूित पूवªक िवचार कर¤गे । महाराणा के सिचव Ôयामलदासने अहम् मुĥŌ के साथ समझौता िकया था, परंतु इस समझौते से अंúेज नाखुश थे । दूसरी तरफ अंúेज अिधकारी ए. जी. जी. ने 'गवनªर जनरल आँफ कŏिसल' को िवþोह का åरपōट भेज चुके थे िक “इतना बड़ा िवþोह शांित वाताª के माÅयम से समाĮ करने म¤ अंगे्रज अफसर सफल रह¤ और आिदवािसंयो कì संभािवत टकराहट टल munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
106 गयी ।” अंúेज अिधकारीयŌ ने ए. जी. जी. Ĭारा महाराणा पर दबाव बढ़ाकर नया संशोिधत समझौता तैयार िकया और अपने िहत के अनुसार åरयासत म¤ ÿशासिनक सुधार व पåरवतªन िकये । डूंगरपुर åरयासत के महारावल उदयिसंह का सहयोगी ठाकूर दलपतिसंह महारावल के ÿित िशकारगाह एवं मोचाª तैयार करने के िलए हर पåरवार से एक आदमी को बेगार के łप म¤ जबरदÖती से काम करवाते है। उसी समय आिदवािसयŌ के खेतŌ कì फसल कŞाई पर थी । गोिवÆद भगत वहाँ जाकर काम बंद करवाता है । इसकì सफलता के बाद ऋषबदेव, बारापाल और पड़ोना म¤ घटी हòई घटनाओं कì जानकारी गोिवंद भगत को िमली थी । सुरांता गाँव के सÌम¤लन म¤ ‘सÌप-सभा’ Öथापन करने कì घोषणा गोिवÆद भगत करते है । ‘सÌप-सभा’ कì Öथापना से कुåरया और पूंजा धीरा जैसे िवĵासु और खंबीर भगत िमलते है । महारावल उदयिसंह के मृÂयू के बाद िकशोरावÖथा म¤ ही िवजयिसंह डुंगरपूर दरबार के महारावल बनते है । दरबार म¤ गोिवÆद गुł को बुलाकर åरयासत के िखलाफ आिदवािसयŌ को भड़काने, उनके हक, अकाल म¤ बेगार, åरयासत के िवरोधी बाते, दाł बÆदी आिद पर चचाª करते वĉ तनाव िनमाªण हो जाता है । महारावल एक तरफ फैसला लेकर गोिवÆद गुł को िगरÉतार करते है । यह िगरÉतारी कì खबर आग कì तरह गांव, जंगल के कोने-कोने तक पहóंच जाती है । इसी समय अंúेजŌ ने टंट्या मामा और जोåरया भगत को फासी दी थी । गुł को छुड़वाने के िलए स§कड़ो आिदवासी कुåरया के नेतृÂव म¤ डूंगरपुर कì ओर बढ़ते है । कुåरया ने एैलान िकया िक "सब भाई डुंगरपूर कì ओर कुच करो । राÖते म¤ जो लोग िमल¤गे उÆहे भी साथ लेना है और गोिवÆद गुł को छुड़वाकर वािपस लाना ह§ ।" गुł को छुड़वाने के िलए खाली पेट, अध«नगे और बुलंद हौसले से डुंगरपूर कì तरफ आिदवासी रवाना हòए । िगरÉतारी के बाद गोिवÆद गुł कोठरी म¤ बैठे थे तब उÆह¤ अकाल का ŀÔय आँखŌ के सामने िदखने लग जाता है । डुंगरपूर दरबार कì तरफ बढ़ रहे लोगŌ को महारावल ने मारने का आदेश िदया परÆतू उनके ऊपर दबाव बढ़ता ही जा रहा था, इसिलए मÅयÖथता के łप म¤ सेठ दलपतराय मेहता कì िनयुिĉ कì जाती है, और वह चालाकì से गोिवÆद गुł के साथ चचाª करते है । अंत म¤ कुåरया के जमानत पर गोिवÆद गुł को छोड़ िदया जाता है। गुł को पुनः अपने बीच देखकरआिदवासी खुश हो जाते और जयकारा के नारे आकाश म¤ गुंज उठते है । इस समय छÈपÆया का भीषण अकाल पड़ा था । लोग अÆन, पानी के िलए तरस रहे थे, भुखे-Èयासे इधर-उधर भटकते हóए मरने लगे । चारŌ तरफ मŏत का øुर तांड़व फ§लने लगा । åरयासत के गैर िजÌमेदारी से आिदवासी भागŌ मे अÆन-जल-चारा पहòँच नहé रहा था । दि±णी के पाँच åरयासतŌ म¤ आिदवािसयŌ कì भारी सं´या म¤ मौत हो गयी थी। अंúेज अिधकारीयŌ ने भारत सरकार को åरपोटª भेजकर कहा िक िजतनी मौत हòई उसस¤ पहाड़ी ±ेýŌ म¤ तीस ÿितशत मौत हòई है । यहाँ िक आिदवािसयŌ कì ®म-±मता अÂयंत कम होकर उनका मनोबल नीचे आया ह§ । इन हालात म¤ आिदवासी िवþोह के िलए आगे नही आयेग¤ । छÈपÆया का भीषण अकाल म¤ गोिवÆद गुł पåरवार को खो देते है और बािसया कì छाणी मगरी śोड़कर गुजरात के संतरामपूर åरयासत के नटवा गांव म¤ बसते है। वहां िवधवा ľी गनी से दुसरी शादी करके खेती व कृिष कमª से जीवन गुजारने लगे । वहाँ गुł को दो पुý पाĮ हòए । एक िदन अचानक अधेड़ उă का साधू आकर गोिवÆद गुł को आिशवाªद देकर चला जाता है और गुł सोचता है िक "यह कोई साधारण साधू नहé लगता । अवÔय ही कोई िदÓय दूत है । ....शायद यह साधु मुझे चेताने आया है ।" इसका गुł पर गहरा असर पड़ता है और munotes.in

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107 िवचार करते हóए गहरी नéद म¤ सो जाता है । इस मीठी नéद म¤ सुरंग का अĩूत सपना देखता है । पÂनी उसे िझझŌड़कर जगाती हòई अधª िनþावÖथा म¤ बड़बड़ाने लगते है । सुबह होते ही गोिवÆद गुł नटवा गांव śोड़कर अपने जÆमभुमी पर पाँच साल बाद वापस लौट आते है। छाणी मगरी पर चल रहे कायª को देखकर गोिवÆद गुł को सुख कì अनुभूित हो जाती है । Öथािनक कायªकताओं ने सीख के अनुसार 'सÌप-सभा' आÆदोलन को आगे बढ़ाया था। åरयासत के महारावल व अंúेज आिदवासी िवरोधी जो षड़यंý रचते थे, उसपर िवचार-िवमशª करते ह§ । गुł के िनद¥श म¤ ÿमुख कायªकताओं कì गोपनीय बैठक पूंजा धीरा के घर आयोिजत कì थी, उसम¤ सÌप-सभा कì गितिविधयŌ का केÆþ मानगढ़ पहाड़ी को बनाया। बैठक म¤ "अ³ल के घोडे पर सवार होकर चेतना आगे बढ़ती है ।" इस चेतना के अनुसार गुł 'सÌप-सभा' का काम करने के िलए कहते है । मानगढ़ के धूणी Öथल पर लगे पुरणमासी मेले म¤ आिदवासी पारÌपाåरक वेश भुषा धारण करके हजारŌ कì सं´या म¤ आये थे। मेले म¤ गुł के ÿवचन के बाद मानगढ़ का वायुमÁडल नारे लगाने से गुंजने लगा और घािटयŌ से ÿितÅविन आने लगी । आिदवािसयŌ के िहत के िलए 'सÌप-सभा' का गठन करने कì बाद सभी सदÖयŌ को मांसाहार, बुरी आदत आिद से विजªत िकया था । कुåरया को दाł बÆदी के अलावा गाँवŌ-गाँव म¤ जागरती का काम करने कì िजÌमेदारी दी जाती है। भĉì, लोककÐयाणकारी कायª एवं Öवर±ा आिद ÿमुख कायª ±ेýŌ का बटवारा िकया। आिदवासी गाँवŌ, इलाकŌ म¤ समय कì राह पर धीरे-धीरे पåरवतªन हो रहा था । मानगढ़ कì मु´य धूणी पर लगनेवाला पुÆयŌ का मेला केवल पÆþह िदन के बाद था। इस मेले हर åरयासत के आिदवासी पुÆयŌ के मेले म¤ पुवª संÅयातक मानगढ़ पहòँच जाते है। आसपास के लोग सुबह आते है और कोई राÖतो पर चल रहे थे । 'सÌप-सभा' के भगत और सदÖय एक िदन पहले वहाँ पहòँच चूके थे । इस मेले के अवसर पर शांती के ÿितक सफेद Åवज लगाये । ®Åदालू लोग धूणी म¤ घी ड़ालकर हवन िøया करते है और गुł के चरण Öपशª करके आशीवाªद लेते थे । हर जगह पर मौज-मÖती, गीत-भजन, जान-पहचान, åरÔतेदारŌ से भेट, नृÂय व अÆय शाåररीक करतबो से गुजरते हóए मेले का िहÖसा बनते जा रहा थे । लोग अपने तरीके से पारÌपाåरक वेश-भुषा व अलंकार पहनकर मेले का आनंद लेते ह§ । भगत व कायªकताª धािमªक तथा सामािजक सुधार के उपदेश से लोगŌ को सÌबोिधत करते ह§ । मेले म¤ 'सÌप-सभा' के िचÆह और भैरव बाबा कì ÿितमा लगायी थी। गुł का उपदेश था िक अंúेजŌ Ĭारा िवलायती कपड़ा व नमक बेचा जाता है, इसीकारण हम िवदेशी वÖतूओं के गुलाम बनते है इसका हम¤ िवरोध करना चािहए। हमारे ऊपर अंúेजो ने जासुस लगा रख¤ है। हम¤ सावधानी से रहना होगा। अंúेजŌ के Ĭारा आयोिजत कŏिसल िक बैठक म¤ गोिवÆद गुł और सÌप-सभा कì गितिविधयाँ, राज-कोष म¤ आय कì कमी, लेवी का असर, आिदवािसयŌ म¤ अंसतोष और शोषण कैसे िकया जाए आिद बातŌ पर सदÖयŌ कì राय लेकर अंकुश लगाने म¤ गंभीरता से िवचार करते है । मÅयÖथता के łप म¤ सेठ दलपतराय मेहता को गोिवÆद गुł के पास भेजने का िनणªय िलया जाता है । सेठ मेहता बािसया गाँव जाकर गोिवÆद गुł से कहते िक संत िशरोमिण मेरे Ńदय म¤ आपके िलए बहòत बड़ा सÆमान है। मुझे माफ करना। कŏिसल कì सदÖयŌ के मन म¤ यह धारणा बैठ गयी है िक सÌप-सभा के कायªकताª राज कì िनितयŌ का खुलकर िवरोध करने लगे ह§ और आिदवािसयŌ को उकसा रह¤ है । कहते है िक गोिवÆद गुł के कहने पर सब कुछ हो रहा है, जो राज-िवरोधी कì गितिविध है । सेठ मेहता ने बहóत ही चतूराई से गुł के सामने कŏिसल के munotes.in

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108 िवचार ÿÖतुत िकये और सुझाव देकर िनकल जाते । छाणी मगरी पर पुजा पाठ होने के बाद गुł अपने ÿवचन का ÿारंभ दोहे से करते है - "दया धमª का मुÐय है, पाप मुÐय अिभमान । तुलसी दया न छोिड़ये, जब लािग घट म¤ ÿाण ।।" इसके साथ ही 'अहòड़ा वाला पाटोड़' सतयुग कì भिवÕय वाणी गुł लोगŌ को सुनाते है । सेठ मेहता के बीच बातचीत के बाद भी åरयासतŌ के ÿित गोिवÆद गुł और भĉŌ का ŀिĶकोन बदला नहé था। åरयासत के Ĭारा नज़र रखने से गोिवंद गुł ईड़र åरयासत के पालपĘा म¤ चले जाते है। वहाँ पर जागीर ठाकूर पृÃवीिसंह भील व गरािसयŌ पर जुÐम, अÂयाचार करता था। इसकì जानकारी सोमा भगत गोिवंद गुł को देते है। गुł ने गांव-गावŌ म¤ जाकर 'संÌप-सभा' के उपदेशो से आिदवािसयŌ म¤ जागरती और भĉì पैदा कì। लोगŌ म¤ नया łप व नेतृÂव उभर कर आने से गांव के गमेती और मुिखया का ÿभाव कम होने लगा था। साम-दाम-दÁड़-भेद कì कुटिनती से ठाकुर पृÃवीिसंह दि±णी राजपुताना व सीमावतê गुजरात के सÌपूणª इलाकŌ म¤ आिदवािसयŌ पर अÂयाचार व शोषन करता है। रोजड़ा गाव म¤ धूणी Öथापना के बाद वहाँ धमª और भĉì ÿचार के िनशान गुł ने लगाये थे । धमाªभाई भगत ‘सÌप-सभा’ के िनयमŌ का ÿचार-ÿसार करता है लेिकन कई गाँवŌ म¤ आिदवासी समाज को जागृत करने के बावजुद खुद के लàमणपूरा गाँव म¤ सौ ÿयासŌ के बाद भी जागरती का काम नहé हòआ । इसिलए भोपा धूणी पर आकर गुł को धमाªभाई भगत म¤ खोट होने कì बात करता है। रोजड़ा गाव के धूणी धाम पालपा जागीर के मु´यालय म¤ ‘सÌप-सभा’ के माÅयम से समÖयाओं का िनराकरण करने के िलए सोमा भगत व कलजी भगत के Ĭारा जागीरदार के पास संदेश भेज िदया जाता है। रोजड़ा गाव म¤ हòई बैठक म¤ लàमणपूरा के आिदवासी गये थे। इसीिलए जागीरदार ठाकुर दड़वाह कì जमीन पर बाबÆदी लगाने का आदेश देता है। इस जमीन को आिदवासीयŌ ने खुन-पसीना बहाकर खेती के लायक बनायी थी। इस संदभª म¤ आिदवािसयŌ का मुिखया अथाªत गमेती पीतरभाई और पटेल समाज का मुिखया जÖसुभाई ने जागीरदार से बातिचत कì लेकìन उसका कुछ नतीज़ा नहé िनकला। बाद म¤ गमेती ने पंचायत बुलाकर फैसला िलया लेिकन गाँव म¤ दो गट तैयार हो जाते ह§। अिधकांश आिदवासी सÌप-सभा के साथ जुड गये। अचानक धमाªभाई के मौत कì खबर गांव के कोने-कोने म¤ पहóंच गयी। गावŌ म¤ आशंका जताई जा रही थी िक जागीरदार व पटेलो ने िमलकर हÂया कì है। इस गमाªये माहोल म¤ गुł लोगŌ को शाÆत करते है। ईड़र के कोतवाल ने काफì मशगत करके हÂयारŌ को पकड़ा लेिकन गुł व लोगŌ के मन मे शंका बनी रहé। गुł ने सÌप-सभा के कायª म¤ तेजी लाने का एैलान िकया और स§कड़ो आिदवासी पालपा जागीरदार व ईड़र åरसासत के िवłī िवþोह के िलए तैयार हòए। इस पåरिÖथती को देखते हòए महारावल ने सÆदेश भेजकर बातचीत करने का आĵासन िदया िक "लàमणपुरा के दड़वाह कì जमीन गांव के आिदवासीयŌ मे बांट दी जायेगी। उÆह¤ Öथायी पैसे भी दे िदये जायेग¤। बशत¥ िक वे िनयमानूसार लेवी देने को राजी हो।" इस सÆदेश से गुł व सÌप-सभा के कायªकताªओं ने जागीरदार से बातिचत करके समझौता िकया। दुसरे िदन गोिवंद गुł बािसया के िलए रवाने हòए। munotes.in

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109 अंúेजŌने िदÐली दरबार के आयोजन म¤ देश के पाँचो नरेशŌ के साथ मेवाड़ का महाराणा को भी आमंिýत िकया था। महाराणा फत¤हिसंह िदÐली के िलए िनकलते है लेिकन आधे राÖते म¤ ‘चेतावणी रा चुंगट्या’ दोहा िमलते ही िदÐली म¤ जाकर दरबार म¤ भाग नहé लेता है। इस दरबार म¤ बांसवाड़ा, डुंगरपूर व ईड़र के महारावलŌ को भी आमिÆýत िकया था। महारावलŌने वायसराय को गोिवÆद गुł व सÌप-सभा के गितिविधयŌ से पåरिचत िकया। उसकì गंभीरता से दखल लेते हòए उसके ऊपर कड़ी िनगराणी के साथ कायªवाही करŌ और िāिटश øाउन के ÿित िनķावान रहने को कहां जाता है। 'सÌप-सभा' के आÆदोलन का केÆþ मानगढ़ पवªत बनाया था। यहाँ हर åरयासत म¤ होनेवाली घटनाओं कì जानकारी आती थी। िपछले पुिणªमा कì मेले म¤ हजारŌ कì सं´या म¤ भाग लेकर जागरती कì भावना िदखाई दी थी। जागीरदार व ठेकेदार Ĭारा धूिणयŌ को नुकसान पहòँचाया जाता है। इस खबर को गंभीरता से लेकर धूणी धामŌ कì होनेवाली śेड़खानी बदाªÔत नहé िक जाएंगी, का आदेश गुł Ĭारा िदया जाता है। छपÆया के अकाल के दौरान åरयासतŌ म¤ जयराम पेशा कानून के तहत आिदवासी और सÌप-सभा के कायªकताªओं का जागीरदार व पुिलस िनदōष लोगŌ पर अÂयाचार और उनका शोषण करते थे। इन एैसी घटनाओं से गोिवÆद गुł िचंितत होकर महाराणा मेवाड़ व महारावलŌ को िवरोध पý िलखकर भेज देते ह§ लेिकन िकसी ने भी पý का जबाब नहé िदया। ऊपर से सÌप-सभा को बदनाम करने और आÆदोलन को कुचलने के िलए åरयासतŌ Ĭारा योजनाबī रणिनती तैयार कì जाती है। गोिवंद गुł ने हर åरयासत म¤ धूिणयŌ कì Öथापना कì और िनशान के łप म¤ सफेद रंग के Åवज लगाये थे। मानगढ़ पवªत पर सÌप-सभा के भगत व कायªकताªओं से िवचार-िवमशª करते हòए धूिणयŌ कì र±ा खुद करने कì घोषणा करते है। पूंजा धीरा गाँवŌ-गाँवŌ म¤ घुमकर युवाओं को सÌप-सभा म¤ शािमल होने के िलए ÿेåरत करते थे, सेवािनवृ° फौजीĬारा बंदूक चलाने और िनशाना लगाने सीखाया जाता है। पूंजा का सहायक थावरा र±ा दल के सदÖयŌ को छापामार कैसी करनी, यह सीखाता है । पूंजा धीरा कì बेटी कमली सहेिलयŌ के साथ गोफन म¤ पÂथर लेकर फेकने का अËयास करती है, तब एक पÂथर का तुकड़ा र±ा दल का सदÖय नंदू को लगता है। नंदू उसे देखकर øुर होता है मगर थोड़ी ही देर म¤ दोनŌ एक-दुजे पर ÿेम करने लगते है। होली म¤ कमली दुÐहन कì तरह सजी हóई थी और नंदू सज-धजकर युवक-युवितयŌ के साथ गेर नृÂय दोनŌ ही एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खुब नाचते है। रात म¤ सोने के िलए कमली को पानŌ व नंदू ने सÌप-सभा के भगत के घर पहòंचाया। उसके बाद नंदू धूणी धाम के िशलाखÁड़ पर बैठकर बासुरी बजाता है। इस बासुरी कì आवाज कमली को मधुर, िमठास लगती है। रात के अंितम पहर म¤ नंदू को िनंद आती है और दोनŌ ही एक जैसा सपना देखते है। वागड़ ÿदेश के जंगलो म¤ सब वृ± गंभीर व शांत िदखाई दे रहे थे। आजू-बाजू का माहौल गरम होता जा रहा था। िāिटश व åरयासतŌ का चेहरा और øुर होने से आिदवासी मजबूर होकर पुरानी िÖथती मे लोट रहे थे। खजानŌ मे घट होने कì वजह से åरयासत, जागीरदार व ठेकेदार िचंितत होने लगे। आिदवािसयŌ को भु-राजÖव, वनोपज, बेगार व आबकारी को लेकर परेशान करना तेज िकया। इन सबकì खबर अंúेज के पास पहòँच जाती थी। इसिलए अंúेज अिधकारी ए.जी.जी. ने भारत सरकार के िवदेश व राजिनितक िवभाग को कोई ठोस िनणªय लेने का सुझाव िदया था। थावरा भगत के नेतृÂव म¤ गुĮचर कì Öथापना कì गयी थी और इन गुĮचर munotes.in

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110 के सदÖयŌ Ĭारा घट रही घटनाओं कì जानकारी मानगढ़ धूणी धाम पर पहòँचा दी जाती थी। धूणी धामŌ कì सुर±ा ÓयवÖथा देखने के िलए गोिवंद गुł मु´य इलाकŌ के गावŌ म¤ जाने का िनणªय लेते है। धूणी धामŌ के ÿवास के दौरान आिदवािसयŌ पर वनोपज पाबंदी, åरयासतŌ के कठोर िनयम आिद लागु िकये हòए बताए जाते है। इसके बदले म¤ जवाबी कायªवाही करके åरयासत ³या कदम उठाती ह§, इसपर सोचना होगा। आिदवािसयŌ को वनोपज लुटने व उकसाने के आरोप गोिवंद गुł, कुåरया, थावरा व कलजी पर लगाये थे। िगरÉतारी संभव होने से गुł ईड़र åरयासत के रोजड़ा गाँव म¤ चले जाते है। गोिवÆद गुł ईड़र åरयासत के ÿवास के दौरान सÌप-सभा के भगतŌ को बुलाकर मागªशीषª के मेले म¤ अिधक से अिधक आिदवािसयŌ को एकिýत करने का सÆदेश गमेितयŌ को देता है। रणनीती के तहत दीपावली के बाद रोग फैलने वाला है, उससे छूटकारा पाने के िलए मानगढ़ म¤ आने का संÆदेश िदया जाता है। ‘हलकारो पाड्यो’ का संदेश दि±णी राजपुताना के पाँच åरयासत व गुजरात के दो åरयासत म¤ जगह-जगह ढोल बजाकर ÿचार िकया जाता है। åरयासतŌ के महारावल िचंितत होकर यह सÌप-सभा आÆदोलन राजपूत शासन के िवłĦ मानते है। यह आिदवासी राज Öथापना का संकेत है। अंúेजŌ के Ĭारा गुł व पूंजाधीरा को िगरÉतार के आदेश िदए जाने के बाद गोिवÆद गुł अिधक सुर±ा ÓयवÖथा म¤ रहने लगे और मानगढ़ पर िदन-रात पहारेकरी लगाये गए। ‘हलकारो पाड्यो’ के सÆदेश से शैकड़ो आिदवासी मानगढ़ कì तरफ रवाना हो चुके थे। राÖतŌ म¤ आिदवासी लोगŌ ने ÿतापनगर दुगª पर हमला िकया और कहé-कही आिदवासी िनयÆýण से बाहर हो गये थे। åरयासतŌ मे चारŌ तरफ आहांकार मचा हòआ था । आिदवासी िवþोह को रोकने के िलए अंúेज अिधकारी ‘चीफ आँफ आमê Öटाफ’ ने िāिटश सरकार के िवदेश व राजनैितक िवभाग से अनुमित लेकर भारतीय पैदल सेना कì एक कÌपनी मिशनगन और १०४ वेÐसले रायफल कì कÌपनी åरझŨª के łप म¤ तैयार कì। ए.जी.जी ने भारत सरकार के राजनैितक िवभाग व िवदेश िवभाग सिचव से अनुमित लेकर दो कÌपनी सामान ठोनेवाले ख¸चरŌ के साथ मानगढ़ कì ओर रवाना िकया। मेवाड़ भील कौर खेरवाड़ा का कमाÁड¤ट जे. पी. Öटो³ले दो शशľ कÌपनीयŌ को लेकर मानगढ़ के िलए रवाना हòए। देशी राºयŌ कì फौज भी मानगढ़ कì तरफ िनकली। इन फौजी दÖतŌ ने धूणी-धामŌ पर पड़ाव करते मांसाहारी खाना पकाया और धूणी धामŌ को अपिवý करने का िसलिसला जारी रखा और मानगढ़ कì ओर जानेवाले लोगŌ को रोका गया। मेले कì तारीख से पहले पुłष, िľयाँ व ब¸चे मानगढ़ पहòँच चुके थे। अंúेज गमेती के माÅयम से संदेश मानगढ़ भेजते है परंतु यह संदेश सकाराÂमक न होने के कारण गुł ने उसे नीचे नहé जाने िदया। इस दरÌयान रेवकांठा के पोिलिटकल एज¤ट का हÖता±र युĉ सÆदेश आया िक अंúेज समझौता करने के िलए तैयार है आपका ÿितिनिध आÌबादरा भेज दीिजए। गुł ने तीन ÿितिनधी सदÖयŌ को समझाकर आÌबादरा के िलए रवाना िकया। वाताª असफल हो गई और िफर से धमकì भरे पý को पाकर िनराश हो गए। आिदवािसयŌ को सÌबोिधत करते हòए गुł कहते है िक "भुरेिटयŌ हमारी मांगे नही मान रहे ह§ और हम¤ मारने कì धमकì दे रहे ह§। उनकì धमिकयŌ से हमे ड़रना नहé ह§। उनकì बÆदुको कì नली से गोिलंयो कì जगह पानी िनकलेगा। इसिलए सभी िनिIJÆत रह¤ और मुकाबले के िलए डटे रह¤।" गोिवÆद गुł ने समझौते के िलए दुसरा संदेश भेज िदया लेिकन इस सÆदेश का अंúेजŌ कì तरफ से कोई जवाब न आने पर गुł ने अंúेजी फौजी का मुकाबला करने कì कायªवाही तेज कर दी। फौज धीरे-धीरे चढ़ाई करते हòए मानगढ़ पहाड़ पर पहòँच चुकì munotes.in

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111 थी। पहाड़ पर दो-तीन सौ सशľ आिदवासी रखे थे। घने जंगल से अंúेजŌ कì फौज उÆह¤ िदखाई नहé दी। सैकड़ो कì सं´या म¤ आये हòऐ लोगŌ का ऊपर-िनचे से सÌपकª तुट चूका था। गोिवÆद गुł तनाव म¤ ही लोगŌ को आशीवाªद दे रहे थे और इस तनाव म¤ भी आिदवासी भजन व िकतªनŌ से जीत कì आशा करते रहे। ®Åदालू आिदवासी धूणी हवन चढ़ाने कì िøया करते रहे। तब मानगढ़ पठार के दि±ण िदशा कì ओर अंúेजी फौज कì खबर आमोिलया का माधोनाई ने िचÐलाते हóए गोिवÆद गुł को देते है। भुरेिटयŌ ने हमारे साथ दगा िकया, उÆह¤ ललकार कर वहé खड़े रहने कì चेतावनी दी जाये। हमारे तरफ से कोई बÆदूक या तीर मत चलाना। धूणी Öथल के पास लोगŌ म¤ हलचल मचने से गुł ने तुरÆत एैलान करके उ°र िदशा कì ओर जाकर िशलाओं व पेड़ो कì ओट म¤ िछप जाने का आदेश िदया। इस आदेश से हड़बड़ाहट व भगदड़ कì पåरिÖथती िनमाªण हòई। सÌप-सभा के सदÖय, कायªकताª और र±ादल के सदÖय परÌपरागत हÂयार लेकर सावधान हो गये। आिदवासी लोग समुह बनाकर धनुष-बाण, गंड़ासा, लाठी आिद हÂयार लेकर मुकाबला करने को तैयार रहे। अंúेज अिधकारी कैÈटीन Öटो³ले ने भीड़ का नजारा एक िशलाखÁड़ पर चढ़कर प¸चीस-तीस हजार का अनुमान लगाया। भीड़ के जयकारे से आभास हो रहा था िक गुł के एक इशारे पर आिदवासी कुछ भी कर सकते है। कैÈटीन Öटो³ले ने दािहने व बाय¤ िशलाखÁड़ो के आसरे म¤ मशीनगन व रायफलŌ के साथ फौजी तुकड़ीयŌ को आदेश िदया, फायर! तड़.... तड़.... तड़ातड़..... गोिलयŌ कì आवाज सुनकर गोिवÆद गुł दौड़े गये। र±ादल के सदÖयŌने जबरदÖती से रोककर घेराबंदी कì और धूणी Öथल के पास झौपड़ी म¤ सुरि±त जगह पर लेकर आये । उस समय एक-दो सदÖयŌ को गोली लग गई । गुł धूणी कì ओर देखते रह¤ और मुँह से गीत के कुछ शÊद िनकलते है - "मानगढ़ मारी धूणी है भूरेिटया नी मानु रे..... नी मानू रे..................." गुł धूणी कì राख अपने ललाट पर लगाते हòए मानगढ़ पठार पर पैदा हòए अÿÂयाि±त ŀÔय को देख रहे थे। "बहòत कलपाया है इन भूरेिटयŌने। नीली छतरी वाले, अपना अदीठ हाथ हमारे माथे पर रखना। जय भोले नाथ! जय भैरव बाबा!!" यह पेट से पैदा हòए शÊदŌ को गुł ने ऊंचे आवाज म¤ बाहर िनकाले, उÆह¤ महसूस हòआ िक उनके भीतर ‘माł’ ढोल बज रहा है और नेपÃय म¤ सुनायी दे रही थी ‘धूमाल’ कì ÿितÅविन। धूणी Öथल पर आिदवासी समुहने एक Öवर म¤ गुł ‘महाराज कì जय’ का नारा िदया। इस जयकारा से मानगढ़ पठार का वातावरण गुंजायमान हो उठा। कैÈटीन Öटो³ले के आदेश से आिदवािसयŌ पर फ़ौज अधाधुÆद गोिलयाँ चला रहे थे। र±ादल के सदÖय एक के बाद एक ढेर होने लगे और कुछ र±ादल के सदÖय पीछे से छुपकर वार करते थे। पठार पर मौत का øुर तांड़व मचा हòआ था। र±ादल के सदÖयŌ म¤ जोश था, मगर लढ़ने के िलए वे िववश हो गये थे। भागते भी कहा, भीड़ म¤ भगदड़ मची हòई थी। आिदवासी मिहलाओं का दल हाथ म¤ कुÐहाड़ी, पÂथर व गोफन लेकर लढ़ाई म¤ आगे बढ़ता रहा। सुगनीने बुलंद आवाज म¤ कहा िक "जब हमारे आदमी ही मर रह¤ है तो हम जी कर ³या munotes.in

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112 कर¤गी। संकट कì इस घड़ी म¤ हम¤ जान कì परवाह नहé। जो बन पड़ेगा वह हम कर¤गी।" मिहलाओं का दल फौिजयŌ से लढ़ता जा रहा था। इसम¤ बहादूर मिहलाओं म¤ सुगनी, कमली, पानŌ, मंगली आिद अंúेज फौिजयŌ का सामना कर रही थी। अंúेज मशीनगन से लगातार गोिलयŌ कì बरसात कर रहे थे उसम¤ बहादूर िľयŌ कì मौत हो जाती ह§। गुł कì नजर धूणी के िदपक ºयोती पर गई, आग म¤ तपे तीरŌ कì तरह अंúेजŌ पर धावा बोल रहे थे। यह सब ŀÔय गुł ने अपने आँखŌ से देखा। "नरभाखी भेिडयो, तुमने बहóत सारे भोले-भाले आदिमयŌ कì हÂया कर दी। िनहÂथŌ, बुजुगō, औरतŌ व नादान बि¸चयŌ पर भी रहम नहé िकया।" कहते हóए हताहतŌ के बीच म¤ दौड़े। गुł अंतĬ«द म¤ फसकर सोचते है "सÌप-सभा के माÅयम से आरÌभ िकये और इस मोड़ पर पहóंचे इतने बड़े और लÌबे आÆदोलन का एैसा ýासद अÆत! भĉŌ, कायªकताªओं व अगिणत अनुयािययŌ का इस कदर सामूिहक नरसंहार!!" गुł ने सोचा भी नहé था िक जागृित कì अखंड ºयोित शोषणकारी व आततायी फौज के सामने कुछ ही घड़ी म¤ यूं बुझ जायेगी। गुł कì आँखे पहली बार अंगारीत हòई और सहज रहने वाला चेहरा तमतमने लगा। "हम इÆसान ह§ इÆसानी हकŌ के िलए मुिहम छेड़ी है िजयेग¤ तो सÆमान से मर¤गे तो सÆमान से! बहादुर भगतो, यह पीिढ़यŌ कì लड़ाई है लड़ाई जारी रहेगी हां, लड़ाई आरपार कì..............।" गोिलयŌ कì बौछारŌ के बावजूद संघषª जारी था । गुł के एैलान के बाद सदÖयŌ और र±ादल म¤ नया जोश आता है । यह हौसला देखते कैिÈटन मिशनगन से और गोिलयाँ चला देता है। कुåरया हताहतŌ के ढेर से होता हòआ कुÁडा घाटी कì तरफ चला गया। धनुÕयबाण लेकर कैिÈटन कì तरफ चलाया लेिकन तीर फौजी को लगा। उनके ऊपर गोिलयाँ चलायी पर कुÁडा घाटी कì ओर िछप गया। बौखलाया हóआ कुåरया भूरेिटयŌ को गािलयाँ दे रहा था। फौज कì मशीनगन अंधाधूÆद गोिलयाँ बरसाकर नर-संहार का ताÁड़व नृÂय करने के बाद थक चुकì थी। फौज ने आिदवासी नायकŌ को पकड़ना शुł िकया। सुबेदार अपनी बहादूरी पर नाज कर रहा था, तब िसंह कì तरह दहाड़ते हòए हåरयाने कुÐहाड़ी से एक ही वार से गदªन काट दी। यह ŀÔय को देखते अंúेज अिधकारी हतÿभ हो गये। हåरया अŀÔय हो गया और नीचे घाटी से बुलÆद आवाज सबको सुनायी दी "दÐली ऽ ऽ ऽ! म¤ई बैर लेइ ली दो!! वह दÐली का बदला लेकर अपना महाभारत जीत गया।" मानगढ़ पठार से िगरÉतार िकए गोिवÆद गुł व आिदवासी लड़ाकुओं को फौजी घेरे म¤ कतार बनाकर नीचे उतारा जा रहा था। बुलÆद आवाज म¤ कुåरया ने ‘हलकार’ िदया और कुÁड़ा कì घाटी मे धूमाल कì ÿितÅविन आने लगी। कुåरया का एैलान सुनकर मन के भीतर ÿवािहत आशा कì नदé म¤ अचानक उफान आया। बंधे हòए दोनŌ हातŌ कì मुåęयां अपने आप िभंजती munotes.in

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धूणी तपे तीर : हåरराम मीणा
113 चली गयी। गुł अपना दािहना हाथ आशीवाªद के िलए उठाना चाहते थे, लेिकन वे िववश हो गये। िफर िसर ऊंचा करके आशीवाªद िदया "हम एक मां के पेट के जाय तो नहé, पर धूणी माता कì गोद म¤ पलकर हम एक-से भगत बने ह§। मुझ जैसी साधू कì साधना का पूÁय-परताप तेरे साथ है। अब तू ही मेरी दािहनी भुजा है। तू लड़ते रहना मेरे बांका भगत! धरम के कुरछे°र म¤ देर-सबेर भोलेनाथ हम¤ जłर िजतायेगा!!" इसतरह से देसी राजे व अंúेज के िवłÅद संघषª का यथाथª िचýण उपÆयास म¤ लेखक हåरराम मीणाजी ने िकया है । ९.४ सारांश : आिदवासी लेखक हåरराम मीणा Ĭारा िलिखत उपÆयास 'धूणी तपे तीर' म¤ आिदवासी पåरवेश के उन अनछुए तÃथŌ को ÿकािशत करता है, िजÆह¤ कभी मु´यधारा के लोगŌ के Ĭारा सामने लाने का ÿयास नहé िकया गया । आिदवासी समाज को सामािजक łप से तो उपेि±त िकया ही गया है, बिÐक Öवाधीनता संúाम म¤ आिदवािसयŌ के योगदान को भी नजरअंदाज कर िदया । हåरराम मीणा ने इस उपÆयास म¤ राजÖथान के आिदवािसयŌ कì सामािजक िÖथितयŌ को सामने लाते हòए Öवतýंता आंदोलन म¤ उनके योगदान और शहादत को उजागर कर महÂवपूणª कायª िकया है । इितहास कì सुरंगŌ म¤ िछपा रहा मानगढ़ पवªत । देश का पहला जिलयावाला कांड अमृतसर सन १९१९ म¤ घिटत होने से पहले दि±ण राजÖथान के बांसवाड़ा म¤ घिटत हो चुका था, िजसम¤ जिलयांवाला बाग से चार गुणा अिधक शहादत हòई ।' १७ नवÌबर १९१३ के िदन अंúेजी हòकूमत और åरयासत के राजा, महाराजा, जांगीरदार आिद ने िमलकर बड़ी बेरहमी से आिदवािसयŌ को कुचल िदया । इसम¤ करीब-करीब १५०० के ऊपर आिदवािसयŌ ने अपने ÿाणŌ कì आहòित दी थी । इस घटना को देश के सवणª इितहास कारŌ ने अपने इितहास úंथŌ म¤ इसे अंिकत करने लायक नहé समझा । ³योिक इस जिलयांवाला कांड के नायक आिदवासी थे । भारतीय समाज-ÓयवÖथा और मु´य धारा से अलग आिदवासी समाज मु´यतः जंगल म¤ रहने वाला समाज है । उनका वनŌ से सदैव घिनķ सÌबÆध रहा है । उनकì जीवनयापन करने कì शैली भी जल, जंगल और जमीन से जुड़ी रही है । ९.५ वैकिÐपक ÿij : १. लेखक हåरराम मीणा 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ कहाँ कì घटना ÿÖतुत करते है? (क) डूंगरपुर (ख) मानगढ़ (ग) िचÐलास (घ) बिछया २. हåरराम मीणाजी का जÆम सवाई माधोपुर िजले के िकस गांव म¤ हòआ? (क) डूंगरपुर (ख) बामनवास गांव (ग) करोली (घ) िचÐलास गांव ३. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ बंजारा जाती का लड़का िकसके आग िनमाªण करता ह§ ? (क) फूलŌ से (ख) पÂथरो से (ग) लकड़ी से (घ) जादुई से munotes.in

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114 ४. गोिवंदा बचपने से ही िकसकì सेवा करना चाहता था? (क) महारावलŌ कì (ख) आिदवािसयŌ कì (ग) अंúेजŌ कì (घ) ठाकुरŌ कì ५. आिदवासी अपनी समÖया दरबार म¤ लेकर जाते है तब कहाँ का महाराणा समÖयाओं पर Åयान नहé देता है? (क) डूंगरपुर दरबार का महाराणा (ख) उदयपुर दरबार का महाराणा (ग) बांसवाड़ा का महाराणा (घ) ईड़र åरयासत के महाराणा ६. रोजड़ा गांव म¤ हòई सÌप-सभा िक बैठक म¤ कहां के आिदवासी शािमल हòए थे? (क) लàमणपूरा गांव (ख) बािसया गांव (ग) पालपĘा गांव (घ) मानगढ़ के ९.६ लघु°रीय ÿij : १. लेखक हåरराम मीणा के ÓयिĉÂव और कृितÂव को संि±Į म¤ ÖपĶ कर¤? २. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ कुåरया के संघषª को ÖपĶ कìिजए? ३. 'धूणी तपे तीर' म¤ मानगढ़ पठार पर िनमाªण हòई पåरिÖथित का वणªन कìिजए? ९.७ बोध ÿij : १. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास के कथानक पर िवÖतार से ÿकाश डािलए? २. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ गोिवंद गुł के कायª को िवÖतार से िलिखए? ३. लेखक हåरराम मीणा का पåरचय देकर 'धूणी तपे तीर' उपÆयास के कथानक को ÖपĶ करŌ? ९.८ संदभª सूची : १. लेखिकय सा±ाÂकार २. सीमा संदेश - (वृ° पý - राजÖथान) ३. धूणी तपे तीर - हåरराम मीणा munotes.in

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115 १० ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤ पाýŌ का चåरý-िचýण इकाई कì łपरेखा १०.० इकाई का उĥेÔय १०.१ ÿÖतावना १०.२ ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास मे पाýŌ का चåरý-िचýण १०.२.१ गोिवंद गुł १०.२.२ कुåरया दनोत १०.२.३ पूंजा धीरा १०.२.४ कमली १०.३ सारांश १०.४ वैकिÐपक ÿij १०.५ लघु°रीय ÿij १०.६ बोध ÿij १०.७ संदभª सूची १०.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत अÅयाय म¤ िनÌनिलिखत िबदुंओं का छाý अÅययन कर¤गे -  ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤ िचिýत पाýŌ का छाý अÅययन कर¤गे ।  उपÆयास के चयिनत पाýŌ के चåरý-िचýण को िवÖतार से जान सक¤गे । १०.१ ÿÖतावना: आज उपÆयास िसफª मनŌरजन का शौक पुरा करने का साधन नहé रहा है, बिÐक उसम¤ मानव जीवन का यथाथªवादी, आदशªवादी या आदशōÆमुख यथाथªवादी िचý बन गया है। जीवन कì जिटलता, यथाथª और उसका असली łप चåरý-िचýण के माÅयम से ही Óयĉ होता है । जीवन के सÌबÆध म¤ बात करत¤ समय कहé न कहé Óयिĉ के अनुभव के सÆदभª म¤ ही बोलना पड़ता है इसिलए उपÆयास म¤ कई बार कथा जिटल, बोझ के पåरपाĵª म¤ चली जाती है और उपÆयास के मु´य कथा नायक ही याद रह जाते है । मु´य पाý वह होता जो आिद से अÆत तक मौजूद रहते हòए कथानक को िवशेष बना देता है । कथानक के केÆþ म¤ मु´य पाý होता है, मु´य पाý के माÅयम से कथानक का िवकास होता है । गौण पाý भी कथानक के िवकास munotes.in

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116 म¤ योगदान देते है, िकÆतू ÿमुख पाý ही उपÆयास म¤ एक िवशेष पहचान बनकर पाठक के Ćदय म¤ अपनी जगह बना लेता है । उपÆयास कì सारी कथावÖतु मु´य पाý के ईदª-िगदª घुमती है । ÿÖतुत उपÆयास म¤ मु´य पाý के łप म¤ गोिवÆद गुł का चåरý-िचýण िकया गया है । १०.२ ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास मे पाýŌ का चåरý-िचýण : १०.२.१ गोिवंद गुł: आिदवासी उपÆयास ‘धूणी तपे तीर’ म¤ लेखक हåरराम मीणाजी ने कई पाýŌ का िचýण िकया है। परंतु नायक के łप म¤ गोिवंद गुł के चåरý-िचýण को बखुबी से िचिýत िकया है और उपÆयास म¤ सबसे अिधक आकषªक, सजीव, ÿभावी एवं जीवÆत चåरý है गोिवंद गुł का । यह उपÆयास का ÿमुख और केिÆþय पाý के łप म¤ रहा है । उपÆयास िक कथावÖतु गोिवंद गुł के इदª-िगदª घूमती हòई नज़र आती है और वे आिदवािसयŌ के गुł और मिसहा के łप म¤ िदखाई देते है । सभी पाý गोिवंद गुł के चåरý से ÿभािवत है । वे एक गितशील चåरý ह§ । गोिवंद गुł आिदवासी नहé थे । वे बंजारा समाज के है । उनके गुł राजिगरी गोसाईं थे । "डुंगरपुर åरयासत के बािसया गाँव म¤ गोवाåरया गोý के एक साधारण बंजारा पåरवार म¤ गोिवंदा का जÆम हòआ था । बाप का नाम बेसर और माँ का नाम लाटकì था । गोिवंदा ने बचपन म¤ अनौपचाåरक िश±ा राजिगरी गोसाईं से úहण कì । राजिगरी गोसाई गाँव के मंिदर म¤ पुजारी था ।.... गुłवत, राजिगरी का गोिवंदा पर इतना ÿभाव पड़ा िक वह Öवंय को गोिवंद िगरी कहलाना पसÆद करने लगा।" गोिवंद गुł बचपन म¤ गोिवÆदा नाम से ÿिसĦ हòए थे और उसके बाद गोिवंदा एक होनहार व ²ानी िकशोर के łप म¤ उभरता है । गोिवंद गुł सेवाभावी पर दुःख भंजक ÓयिĉÂव है । गोिवंदा से गोिवंद भगत बन जाता है । गोिवÆद भगत अपने सािथयŌ के साथ गावŌ-गावŌ म¤ घुमकर दुःख तकलीफŌ से िनजात िदलाने का रात-िदन ÿयास करता है और दाł से होनेवाले नुकसान के बार¤ म¤ लोगŌ को अवगत कराता है । गोिवंद गुł एक समाज सुधारक इंसान के łप म¤ भी कायª करता है । वे िनरंतर आिदवािसयŌ म¤ जागरती का काम अपने चुिनंदा सािथयŌ को लेकर कर रहे थे । चोरी-लूट, बेगार, शराब सेवन, माँसाहार आिद को लेकर अिभयान चला रहे थे । िनरंतर अपने कायª को अंितम कायª समझकर आिदवािसयŌ को समझाता है । लगान, Öवदेशी के साथ-साथ िश±ा को ºयादा महÂव देता था । इसिलए कहते थे "पढ़ाई िलखाई के महÂव को समझो । म§ Öकूल म¤ नहé पढ़ा, लेिकन इधर-उधर से आखर ²ान सीख िलया । तुम भी सीखो । ब¸चŌ को पढ़ाओ। तभी वे समझदार बन¤गे । गाँव-गाँव म¤ जो भी थोड़ा पढ़ा-िलखा हो, उसका धमª है िक अÆय लोगŌ को पढ़ाये । पढ़ाई घर के वातावरण से होती है इसिलए बड़े आदमी भी िश±ा ÿाĮ कर¤ । राजा, जागीरदार, हािकम कì बेगार मत करो । इनम¤ से िकसी का भी अÆयाय मत सहो। अÆयाय का मुकाबला बहादुरी से करो ।" munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤
पाýŌ का चåरý-िचýण
117 गोिवंद गुł िनभªय और नीडर ÓयिĉÂव के थे । डूंगरपूर दरबार म¤ महारावल िवजयिसंह के साथ बातचीत के दौरान गोिवंद गुł के िनभªय ÓयिĉÂव का पåरचय ÿाĮ होता है । वे आिदवािसयŌ के मुिĉदाता के łप म¤ सामने आते है । “मानव सेवा के िलए कोई पद कì जłरत नहé होती महाराज । म§ मेरा काम संतŌ कì परंपरा के अनुसार कर रहा हóं । मुझे ऐसे ही करने दो ।” महारावल को गोिवंद गुł कì बाते चुभी जाती है । साथ ही उनके ÓयिĉÂव कì महानता कì भी एहसास हो रहा था । “गोिवंद! म§ तेरी इºजत करना चाहता था । लेिकन तू तो सर पर चढ़ा जा रहा है । तू जो बोल रहा है वह राजþौह है । आिखरी बार चेता रहा हóं । हमारी बात मानेगा या जंगली व उÂपाती आिदवािसयŌ को उकसाता रहेगा ? म§ अÆयाय के िखलाफ लडूंगा। गोिवंद गुł ने कुछ देर चुप रह कर अÆत म¤ अपना मत ŀढ़ता के साथ गÌभीर मुþा म¤ महारावल के सामने रख िदया ।” गोिवंद गुł आिदवासी लोगŌ के िलए हर पåरिÖथित म¤ मसीहा बनकर खड़े होते है । गोिवंदा से गोिवंद भगत और अब गोिवंद गुł बन चुके थे । गोिवंद गुł का आदेश आिदवासी लोग मानने लगे थे । आिदवासी गोिवंद गुł को मुिĉदायक महान पुłष कì तरह मान रहे थे । उनके एक-एक शÊद को अÂयंत पिवý और आदेशाÂमक मानने लगे थे। गोिवंद गुł नये धमª के संÖथापक थे । गुĮचर हेिमÐटन ने बÌबई सरकार को भेजी अपनी åरपोटª म¤ िलखा है िक “गोिवÆद गुł Ĭारा ÿवितªत नई धािमªक आÖथा राजपूताना, मÅय भारत और गुजरात के आिदवासी अंचलŌ म¤ जंगल कì आग कì तरह फैल रही है । इसकì सफलता वाÖतव म¤ इतनी जबरदÖत है िक िकसी भी Óयिĉ के मन म¤ यह ÿij उठना Öवाभािवक है िक ³या गोिवंद गुł, जो वÖतुतः Öथानीय लोगŌ म¤ एक बनजारा के łप म¤ जाना जाता रहा था और न वह अिधक पढ़ा िलखा है, न ही उसम¤ कोई चमÂकार िफर वह इस नये धमª का संÖथापक-ÿवतªक के łप म¤ कैसे पूजा जाने लगा ? गोिवंद गुł का जैन या ऐसे िकसी धमª से कोई लेना-देना नहé है । उसका Öवयं का धमª है, िजसके मूल िसĦांत धूणी, हवन और सदाचरण है िजसम¤ शांित व अिहंसा ÿमुख तÂव है ।” गोिवंद गुł जो वÖतुतः वहाँ पर Öथानीय लोगŌ म¤ एक बनजारा के łप म¤ जाना जाता था और इसी बनजारा समाज का महान Óयिĉ आिदवािसयŌ का गुł बना । वहé सÌपसभा का सुýधार रहा । सÌपसभा के आंदोलन का क¤þ मानगढ़ पवªत को रखा था । वहé पर धूणी कì Öथापना करके आवास बनाया था । उनका नेतृÂव ÿभावी, कुशल और सवªसामाÆय था । उनका िवराट ÓयिĉÂव बेहद ही आकषªक और एक øांितकारी ÓयिĉÂव के łप म¤ उभरा था । इसी के साथ गोिवंद गुł एक बेहद Öवािभमानी Óयिĉ थे । अंúेजŌ के साथ आर-पार कì लड़ाई के िलए वे अपने योĦाओं को संदेश देते है और लड़ने के िलए तैयार करते है । “हम इÆसान ह§ इÆसानी हकŌ के िलए मुिहम छेड़ी है िजय¤गे तो सÌमान से मर¤गे तो सÌमान से । munotes.in

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118 बहादुर भगतो, यह पीिढ़यŌ कì लड़ाई है लड़ाई जारी रहेगी हाँ, लड़ाई आरपार कì....।” अतः गोिवÆद गुł का चåरý, उस गोिवÆदा से जो उपÆयास के ÿारÌभ म¤ बहòत गौर से अपने पåरवेश को देखता पाया जाता था, अÆत होते-होते अपने कुशल नेतृÂव से एक बड़े मानवीय संघषª को अंजाम देता है । यह ऐितहािसक घटना िवþोह का łप ले लेती है पर गोिवÆद गुł का चåरý सÂय के ÿित आúहवान् नायक सा चåरý ÿÖतुत होता है । गोिवÆद गुł सÂय कì सा±ात मूितª लगती है । सÂय को जीवन म¤ धारण करने के कारण ही गोिवÆद गुł वंदनीय बन गए है । उपÆयासकार ने नायक के चåरý को िवशेष रणनीित के तहत सवारा है । लेखक का आúह तो रहा ही है िक गोिवÆद गुł एक ऐसे łप म¤ उजागर हो जो हमारे देश के समसामियक यथाथª कì धूणी म¤ तपे तीरŌ को अपने लàय तक पहòंचा सके । १०.२.२ कुåरया दनोत: उपÆयास दूसरा महÂवपूणª पाý है कुåरया दनोत। कुåरया एक जीवÆत, सजीव, सशĉ व ÿभावी चåरý है। उपÆयास म¤ आरंभ से लेकर अंत तक बना रहा है। संपसभा के संÖथापकŌ म¤ से एक है। वह शुłआत से लेकर अंत तक संपसभा के आंदोलन को एक िविशĶ Öतर पर ले जाता है। गोिवंद गुł का दािहना हाथ के साथ चेहता भी है। वह बहादुर है, िनडर है, आÂमिवĵासी है और ÖपĶ वĉा भी है। गोिवंद गुł के िगरÉतारी के समय गाँवŌ - गाँवŌ म¤ घुमकर åरयासतŌ के िवłĦ आवाज उठाने के िलए आिदवासी लोगŌ को इकęा िकया था। “कुåरया भगत तेल और तेल कì धार देखने वाला मरद आदमी था। वह पते कì दो टुक बात कहन¤ म¤ भरोसा रखने वाला श´स था। नाटा कद, चेचक के दागŌ से भरा गोल चेहरा, सांवली देह, तांबई आंख¤, चपटी नाक, बेतरतीब दाढ़ी, मगर नैसिगªक łप से बल खाती तनी हòई मुंछ¤। िजस काया को टंकने के िलए कभी पूरा कपड़ा न िमला हो, िजस श´स को सोने के िलए सुरि±त छत न िमली हो - वह कुåरया दनŌत भीड़ को सÌबोिधत कर रहा था और भीड़ म¤ शरीक लोग केवल उसकì ओर मुखाितब थे। कुåरया का हर हाव-भाव उÆह¤ ÿभािवत कर रहा था। नेक, ईमानदार, पहाड़Ō का लाल, बहादुर कुåरया आÂमिवĵास से भरा ÓयिĉÂव बनता जा रहा था।” कुåरया दनोत पढ़ा िलखा नहé था। िफर भी काफì समझदार इंसान था। गोिवंद गुł के नये धमª के ÿित वह बड़ा सशंिकत रहता था। वह अपनी शंका को बेधड़क से गुł के सामने रखता था। कहता था “गोिवÆद गुł आदमी तो भला है, धमª कì बात¤ करता है, आिदवािसयŌ म¤ पड़ी बुरी लतŌ को छुड़ाने कì बात करता है। िफर यह हमारे लोक देवताओं और पुÔतैनी धरम कì सीख कì जगह केवल धूणी वाले धरम कì बात ³यŌ करता है?” कुåरया गमª िमजाजी एवं उú munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤
पाýŌ का चåरý-िचýण
119 Öवभाव का Óयिĉ था। वह अित उÂसाही व साहसी था िकंतु गंभीरता का सदंतर अभाव था। अथाªत वह वीर था िकÆतु धीर नहé था। छोटी-छोटी बातŌ को लेकर न केवल आवेशयुĉ हो जाता था िकंतु अपना आपा भी खो बैठता था। नयी पीढ़ी के युवा वगª म¤ कुåरया काफì लोकिÿय था। इसीकारण उसे आिदवासी भागŌ म¤ संपसभा के सदÖय बनाने कì िजÌमेदारी गोिवंद गुł के Ĭवारा दी जाती है। “गोिवंद गुł को िजतना पूंजा िÿय था, कुåरया उससे कम िÿय नहé था। कुåरया को उÌमीद थी िक उसे र±ा-दलŌ का ÿभारी बनाया जायेगा, लेिकन ऐसा नहé िकया गया। अित उÂसाही होने कì वजह से कुåरया युवावÖथा से ही आिदवािसयŌ कì नयी पीढ़ी म¤ काफì लोकिÿय था और वह युवाओं को र±ा-दलŌ म¤ कुशलता से सिÌमिलत करने म¤ िनपुण था। गोिवंद गुł और पूंजा धीरा ने यह सोचा िक कुåरया थोड़ा गमª Öवभाव का है। कहé िबना बात कोई बखेड़ा खड़ा न कर दे, इसिलए उसे र±ा दल का नेतृÂव न िदया जाकर दूसरा काम सŏपा गया जो उन हालात म¤ उसके िलए भी अिधक महÂवपूणª था।.... यह िकसी को पता नहé था िक कुåरया के भीतर आिदवासी नायक का एक बड़ा चåरý धीरे-धीरे पैदा होता जा रहा था।” अंत म¤ सौपी गई िजÌमेदारी को िÖवकार भी करता है। कुåरया अपार साहसी व जुझाł योĦा था। वह एक øांितकारी को आगे लेकर बढ़ने वाला चåरý था। वह आर-पार कì लड़ाई म¤ िवĵास रखता था। गोिवंद गुł कì ढीले-ढाले नेतृÂव से काफì हद तक नाराज था। इसिलए उपÆयास म¤ बार-बार ‘धूमाल’ कì बात करता है। शýु सेना के पहाड़ पर चढ़ आने से बौखलाकर आवेश म¤ कहता है “गुł महाराज, भूरेिटया छाती पर चढ़ आये ह§। मोचाªबंदी के िलए खड़ी कì गयी पÂथरŌ कì दीवार के उस तरफ फौज¤ आ चुकì ह§। र±ा दल के सदÖय व हमारे अÆय हिथयारबंद आदमी आपके हòकुम का इंतज़ार कर रहे ह§। भूरेिटया कì फौज धावा बोलनेवाली है। धूमाल अब नहé होगा तो कब होगा?” इस तरह से कुåरया के चåरý को लेखक हåरराम मीणा जी एक आøमक, संघषªशील एवं पåरिÖथित के अनुसार िवþोही के łप म¤ उसे िचिýत िकया है। १०.२.३ पूंजा धीरा: ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤ ितसरा महÂवपूणª चåरý है पूंजा धीरा का। वह उपÆयास म¤ अंत तक बना रहता है। पूंजा धीरा धीर और गंभीर ÿकृित का Óयिĉ था। गोिवंद गुł का सवाªिधक िÿय भगत था। डूंगर गाँव के गमेती का बेटा। गोिवंद गुł के उमर से कुछ साल बड़ा था। िफर भी गोिवंद गुł का सÌमान के साथ आदर करता था। “पूंजा धीरा गोिवÆद गुł से तीन साल बड़ा था। उसका िपता धीरा पारगी संतरामपूर åरयासत के डूंगर गाँव का िनवासी था और डूंगर, भावरी व गडरा का गमेती था।” इसकारण åरयासत के आदमी पुिलस घर मे आकर लोगŌ से बैठ बेगार लेते थे और आिदवासी मिहलाओं का अपमान करते थे। इसे देखकर पूंजा धीरा øोिधत हो जाता था। सन् १८७८ म¤ उसने åरयासत के अिधकारी व पुिलसकिमªयŌ के अÆयाय व अÂयाचारŌ का िवरोध करने के िलए संपसभा नामक सामािजक संगठन कì Öथापना कì। अतः पूंजा धीरा ही संप सभा के संÖथापक थे। वह एक िवचारशील Óयिĉ था। संपसभा के munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
120 िकसी भी कायª के िलए उसकì महÂवपूणª भूिमका होती थी और कायªिवभाजन कì ÿिøया को भी सÌमान के साथ िनभाता है। गोिवंद गुł र±ादल के ÿिश±ण कì िजÌमेदारी पूंजा धीरा को सौपते है। ³यŌिक पूंजा धीरा गोिवंद गुł से तीन साल बड़ा था। गोिवंद गुł आयु म¤ बड़े Óयिĉ को सÌमान के साथ Öथान देते थे। िवशेषता पूंजा धीरा गोिवंद गुł का ÿमुख सहयोगी था। पूंजा और कुåरया दोनŌ ही गोिवंद गुł कì भूजाएँ थे। कोई भी फैसला हो तो गोिवंद गुł हमेशा पूंजा धीरा से सÐला-मसलत करते थे। गोिवंद गुł के िगरÉतारी के समय पूंजा धीरा गाँवŌ म¤ Ăमण करके गोिवंद गुł को छुड़वाने कì महÂवपूणª भूिमका िनभाता है। संपसभा से जुड़ने के िलए आिदवासी युवकŌ को अिभÿेत करते थे। “वागड, मेवाड़ व सीमावतê गुजरात के सÌपूणª आिदवासी ±ेý म¤ चल रहे सÌप-सभा के आÆदोलन के सुýधार गोिवंद गुł का ÿभाव, वचªÖव व नेतृÂव सवªमाÆय था। इसके बावजूद आÆदोलन सÌबÆधी जो भी अहम् फैसले करने होते थे, उनपर गोिवंद गुł अपने िवĵसनीय भगत सािथयŌ से सलाह-मशािवरा करते थे। यूं तो सभी भगत और अÆय ÿमुख कायªक°ाª उनके िÿय थे, लेिकन पूंजा धीरा और कुåरया दनोत सवाªिधक िनकट थे। ये दोनŌ गोिवंद गुł के साथ सÌप-सभा के संÖथापक सदÖय थे।” गोिवंद गुł के गीतŌ को सूनने के बाद कई बार पूंजा के मन म¤ आशंका उठती है लेिकन इस गीतŌ के माÅयम से चुनौती के ऊपर िवचार-िवमशª करता है। पूंजा धीरा बहòत गहरा आदमी था। बात को पेट म¤ रखना महÂवपूणª समझता था। इस तरह से उपÆयासकार हåरराम मीणा जी ने पूंजा धीरा को बड़े संयम से सँवारते हòए चåरý के वृिĦ को बड़ी सुÆदरता से िचिýत िकया है। इसके साथ ही मान-सÌमान, सुख-दुख, आशा-िनराशा और समझदार आिद भावनाओं को पुरी िविवधता के साथ इस पाý का िनमाªण उपÆयास म¤ िकया है। १०.२.४ कमली: ÿÖतुत उपÆयास म¤ ľी पाý के łप म¤ 'कमली' नाम का चåरý िचýण ह§। वह सÌप-सभा के भगत पूंजा धीरा कì होनहार बेटी है। उपÆयास कì कथा के उ°राĦª म¤ कमली का बड़ा ÿभावकारी चåरý है। उपÆयास म¤ िगने चुने ľी पाýŌ म¤ कमली का सबसे अिधक आकषªक और øांितकारी चåरý है। वह सुंदर युवती है और संप सभा का सदÖय नÆदू से ÿेम करती है। “छरहरी बदन कì कमली। साँवला रंग। सलौनी सूरत। गोल चेहरा। चमकìली आँख¤। आँखŌ के ऊपर नैसिगªक काली भौह¤। राता रंग के घाघरा व पीली ओढ़नी म¤ कमली वसंत-सुंदरी लग रही थी। कुँआरी लड़िकयाँ माथे पर ओढ़नी नहé रखतé। पीठ तक लÌबे घने व काले केश लटके हòए थे। िसर के ऊपर बालŌ म¤ ललाट के ऊपर चाँदी कì राखड़ी गुँथी हòई थी।” कमली बड़ी ही होनहार और समझदार युवती थी। िपताजी और गोिवÆद गुł के सािनÅय म¤ रहकर सÌप-सभा कì गितिविधयŌ से भलीभाँित वािकफ हो चुकì थी और सहेिलयŌ म¤ जागरती कì भावना जागृत करती रही ह§। गोिवÆद गुł कì पÂनी गनी के साथ रहकर उसे ममता कì छाया िमलती ह§। वह गोफन का अËयास करते वĉ र±ादल कì तरफ इशारा करती हòए सहेिलयŌ को कहती है "छोरे जब बंदुक चलाय¤गे तो हम ³या गोफन नहé चला सकती?" सÌप-सभा जागरती के ÿित सहेिलयŌ को तैयार करती है। munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤
पाýŌ का चåरý-िचýण
121 मासुम कमली पåरप³व होकर नंदु से ÿेम करने लगती है। वह दुÐहन कì तरह सज धजकर गोिवÆद गुł कì सहमती से होली Âयौहार के िलए पानो के साथ आमिलया जाती है। “कमली भी दुÐहन कì तरह सज-संवर कर आमिलया पहòंची थी। उसकì कलाइयŌ म¤ लाख कì चूिड़या व कु³कड़ िवलास के भोåरये थे। चांदी का कंदोरा कमर म¤ पहन रखा था। बाजुओं म¤ झुमकेदार चांदी के बाजूबंद थे। िसर पर चांदी कì राखड़ी गुंथी हòई थी। बालŌ कì चोटी म¤ काला फुंदा कमर तक झूल रहा था। उसने राता घाघरा व लाल छéटŌ वाली पीली ओढनी पहन रखी थी िजसका पÐलू कंधे पर लटका हòआ था।” युवक-युवतीयŌ के साथ गैर नृÂय म¤ कमली नंदु का हाथ पकड़कर खुब नाचती है और रात म¤ सोते के वĉ बासुरी कì मीठास मोहक धून सुनती है। अÆततः नंदु के काÐपिनक Öपशª कì अनुभूित के साथ गहरी नéद आती है और एक सपना देखती ह§। मानगढ़ पठार के पुरणमासी मेले म¤ भुरिटयŌ कì फौज व देसी सामंतशाही कì गितिविधयŌ से मासुम कमली अनजान थी। कमली का गुł महाराज और िपता के ÿित लगाव के साथ ही उसके मन म¤ नंदु भी बसा था, इसिलए वह छोड़कर जाने म¤ अड़ी रही। अंúेजŌ कì गोिलयŌ से आिदवासी नायक ढ़ेर होने लगे। बहादुर कमली र±ादल के झौपिड़यŌ कì औट से सिखयŌ के साथ पÂथर के तुकड़े फ¤कती थी। हताहतŌ और भगदड़ कì माहोल म¤ नंदु को देखने िनकलते ही कमली के पेट म¤ गोली लगी। उसे होश आने से टूटे-फुटे शÊदŌ म¤ बड़बड़ाई ‘नं-दु’। ‘सÌप-सभा’ के आÆदोलन म¤ बहादुर ľी कमली ने ÿाण कì आहòित दे दी। इसी के साथ ľी पाýŌ म¤ गोिवंद गुł कì दुसरी पÂनी गनी, सुगनी, पानो, मंगली आिद ľी पाý उपÆयास कì कथा øम को आगे बढ़ाने म¤ महÂवपूणª पाý रहे है। १०.२.५ गौण पाý: ÿÖतुत उपÆयास म¤ उपयुĉ पाýŌ के अितåरĉ अÆय पाý भी है। इन गौण पाýŌ का भी उतना ही महÂव है िजतना कì ÿमुख पाýŌ का । इसम¤ - आिदवासी पाý ह§ - मेमा भील, थावरा (झाडकड़ा गाँव), दीना डामोर, थावरा (नवागाँव), कलजी, सोमा परमार, जोरजी, लेÌबा भगत, जेता भगत, स¤गाजी साध, भािणया भनात, रामा कटारा, डुंगर परमार, गोमना डामोर, मानजी डामोर, łपाजी, हीरा, भजÆया, दीना, घसीटा कटारा, सोदाना डामोर, मंगÐया डामोर, भांवता कटारा, नानजी गरािसया {गमेती}, सोहना बनजारा, सुंदर बाबा, जोरजी लखजी लेÌबा, नगजी, जोåरया भगत, łपा, नायक गलिलया, गोपी गमेती, सोपत मीणा, भरÂया, सोमा परमार, डूंगर, सगÂया भगत, दीपा गमेती, जेता, बाला, हीरजी, गिलया, लेÌबा भगत, कलुआ नट, नगजी कटारा, पतजी {कलजी का भाई} अणÂया, धमाªभाई बोदर, भोपा गुł, जÖसुभाई पटेल, पीतरभाई भणात, मंगÐया, गोमाजी लालजी िननामा, हािलया भगत, धरजी काका, सु³खा, गºजा, कोदर, खुमा, रामला, बेबåरया, वाला, किलया, मेहा, परतािबया, जाला, भुरा, िबिºजया, कानजी, रणजी, तरािसया, सुÌभा, munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
122 मोती, गमेती भैł, दÐली, पां¸या िननामा, हåरया, लाखा जीवन, मुिनया तेजा गाला, माधो नाई, łकÖया, िहंसÐया, िमसरा आिद है। देसी रीयासती के पाý है - महारावल िवजयिसंह, महाराणा सºजनिसंह, महारावल उदयिसंह, रहमत अली ब´स, Ôयामलदास, ठाकुर दलपत िसंह, िदवान गणेश राम, पूजारी रासिबहारी गोÖवामी, धना िसपाही, तेजा िसपाही, महारावल शÌभुिसंह, ठाकुर पृÃवीिसंह, महारावल दौलतिसंह राठोड, सेठ दलपतराय मेहता आिद है। अंúेज पाý ह§ - कमांडेÁट लेिटन¤ट ए. कानोली, ए.जी.जी. कनªल वाÐटªस जलसे, ए. जी.जी. कैÈटीन सी āाइटल§स, ए.जी.जी. ůेवर, कनªल ए. टी. होम, वायसराय िमÁटो, वायसराय लाडª हािडªµस, ए.जी.जी. कनªल जे. एल, जमादार युसुफ खान, िसपाही गुल मोहमद, जे. पी. Öटो³ले, मेजर वेली, किमijर आर. पी. बोरो, एज¤ड हड़सन, र¤जर िकसन िसंह, सुबेदार िलयाकत खान िकसनिसंह, कैÈटीन पीटरसन, कनªल Êलेयर, कैÈटीन एÆसले आिद पाýŌ का उÐलेख गौण पाý के łप म¤ िचिýत हòआ है। १०.३ सारांश : िनÕकषª łप म¤ कहा जा सकता है िक ‘धूणी तपे तीर’ के चåरý िचýण का सामिúक मूÐयांकन से िविदत होता है िक हåरराम मीणा के औपÆयािसक पाý कथानक को िवकिसत करने म¤ सहायक िसĦ हòए है । उपÆयास म¤ िचिýत पाý अÂयंत सुŀढ़ और कलाÂमक है, वÖतुतः यह उपÆयास का मूल आधार ह§ । उपÆयास के ÿमुख पाý ऐितहािसक होकर गितशील िदखाई देते है। पाýŌ के चåरý कì गितशीलता के िलए अथª और काम कारणीभूत बना ह§ । उपÆयास म¤ पåरिÖथितयŌ के घात ÿितघात से अंतĬªÆĬ का सजीव िचýण हòआ है । नए मोड़ पर आने से पहले ये अनेक मानिसक िÖथितयŌ से गुजरते ह§, जो Óयावहाåरक मनोिव²ान के अनुकूल िचिýत हòआ ह§ । इसके साथ ही उपÆयास म¤ विणªत पाý सजीव एवं ÿभावशाली िदखाई देते है। १०.४ वैकिÐपक ÿij : १. गोिवंद गुł के गुł का नाम ³या था? (क) िवजयिसंग िसंह (ख) दलपतराय मेहता (ग) राजिगरी गोसाई (घ) पुंजा धीरा २. गोिवंद गुł महारावल िवजयिसंह से बातचीत करते है तब िकस ÿकार के ÓयिĉÂव का पåरचय िमलता है? (क) िनभªय ÓयिĉÂव (ख) उú Öवभाव (ग) øोध ÓयिĉÂव (घ) मुिĉदाता का ÓयिĉÂव munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास म¤
पाýŌ का चåरý-िचýण
123 ३. कुåरया दनोत िकसके ÿित बड़ा संशिकत रहता था? (क) गोिवंद गुł के धमª के ÿित (ख) अंúेजŌ के ÿित (ग) महाराणाओं के ÿित (घ) सÌप सभा के भगतŌ के ÿित ४. पूंजा धीरा गोिवंद गुł से िकतने साल बढ़े थे? (क) पांच साल (ख) तीन साल (ग) दो साल (घ) सात साल ५. पूंजा धीरा िकसके बेटे थे? (क) गमेती (ख) ठाकुर (ग) िसपाही (घ) इसम¤ से कोई नहé ६. पूंजा धीरा कì बेटी कमली िकससे ÿेम करती थी? (क) गोिवंद गुł (ख) कुåरया (ग) नÆदू (घ) पानो १०.५ लघु°रीय ÿij : १. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ कुåरया के चåरý िचýण को ÖपĶ कìिजए? २. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì ąी पाý कमली के चåरý-िचýण को अपने शÊदŌ म¤ िलिखए? १०.६ बोध ÿij : १. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ िचिýत ÿमुख पाý और गौण पाý का िवÖतार से चåरý - िचýण कìिजए? २. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ गोिवंद गुł का चåरý िकस तरह से उभरकर आया है, उसे अपने शÊदŌ म¤ िलिखए? १०.७ संदभª úंथ: १. धूणी तपे तीर - हåरराम मीणा २. सृजन संवाद – सं. āजेश ३. युĦरत आम आदमी – सं. रमिणका गुĮा ४. आिदवासी सािहÂय : Öवłप एवं िवĴेषण - डॉ. शेख शहेनाज़ बेगम अहेमद munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
124 ११ 'धूणी तपे तीर' म¤ िचिýत आिदवासी जीवन और समÖया इकाई कì łपरेखा ११.० इकाई का उद्देश्य ११.१ प्रस्तािना ११.२ 'धूणी तपे तीर' उपन्यास में विवित आवििासी जीिन और समस्या ११.२.१ सामावजक जीिन और समस्या ११.२.२ आवथशक जीिन और समस्या ११.२.३ राजकीय जीिन और समस्या ११.२.४ धावमशक जीिन और समस्या ११.२.५ सांस्कृवतक जीिन और समस्या ११.३ सारांर् ११.४ िैकवपपक प्रश्न ११.५ लघुत्तरीय प्रश्न ११.६ बोध प्रश्न ११.७ संिर्श सूिी ११.० इकाई का उĥेÔय : प्रस्तुत इकाई में वनम्नवलवित वबंिुओं का छाि अध्ययन करेंगे -  'धूणी तपे तीर' की समस्याओं से छािों को पररवित करना िैं।  'धूणी तपे तीर' उपन्यास में विवित आवििासी जीिन से संबंवधत समस्याओं का विस्तार से छाि अध्ययन करेंगे।  'धूणी तपे तीर' उपन्यास में आवििावसयों की वस्थवत को छाि समझ सकेंगे। ११.१ ÿÖतावना : आवििासी लेिक िररराम मीणा द्वारा वलवित ‘धूणी तपे तीर’ उपन्यास में १९ िीं और २० िीं र्ताब्िी में आवििावसयों का जीिन और उनके जीिन से जुड़ी समस्याओं की झलक वििाई िेती िै। इसमें राजस्थान का िविणांिल, सीमािती गुजरात और मध्यप्रांत का पविमी munotes.in

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'धूणी तपे तीर' में विवित
आवििासी जीिन और समस्या
125 िेि के वनिासी मीणा और र्ील आवििासी जीिन और समस्याओं को िर्ाशया िै । इसी के साथ उपन्यास में ग्रामीण अंिल और आवििासी समाज तथा पररिेर् को लेकर प्रमुितः सामावजक, आवथशक, धावमशक और राजनीवतक आवि जीिन से संबवधत विविध समस्याओं का वििण वकया िै । ११.२ 'धूणी तपे तीर' म¤ िचिýत आिदवासी जीवन और समÖया : ११.२.१. सामािजक जीवन और समÖया : सामावजक समस्याएँ मनुष्य के जीिन का अवर्न्न अंग िै। संसार का कोई र्ी मनुष्य कर्ी र्ी सामावजक समस्याओं से पूणशतः मुक्त निीं रिा िै और न र्विष्य में रिेगा। सामावजक समस्याएँ मनुष्य के द्वारा वनवमशत िोती िैं और उनका िल र्ी सामूविक प्रयत्नों के द्वारा सम्र्ि िोता िै। ‘धूणी तपे तीर’ उपन्यास में लेिक िररराम मीणा ने सामावजक जीिन और समस्याओं का वििण वकया िै। उपन्यास में र्ील और मीणा आवििावसयों की समाज व्यिस्था परम्परागत रिी िै। इस व्यिस्था के अनुसार गाँि का सबसे अवधक सन्मावनत व्यवक्त गमेती तथा मुविया िोता िै। सामान्यतः आवििावसयों में यि मुविया पि िंर्ानुगत रिता िै। गमेती यि िािता िै वक "राजा का बेटा राजा, मुविया का बेटा मुविया, गमेती का बेटा गमेती।" गमेती अपने बेटे को गमेती िी बनाना िािता था। परंतु गोपी गमेती का एकमाि बेटा सम्पसर्ा में र्ावमल िोता िै। मुविया का सिायक तड़िी िोता िै, जो लगान िसूलेने का काम करता िै। इसके व्यवतररक्त गाँि में र्ोपा, पुजारा आवि प्रवतवित व्यवक्त िोते िै। गाँि में िोने िाले छोटे-बड़े झगड़ों का वनपटारा गाँि की पंिायत करती िै। आवििासी लोगों के जीिन में अनेक उतार-िढ़ाि आते िै। आवििावसयों की िेती बारीर् िोने से बबाशि िो जाती िै। उनके सामने जीिनयापन को आगे बढ़ाने िाले साधन एिं िेती नष्ट िोती िै। इसी िालात में जागीरिार आवििावसयों को बेगार में काम करिाते िै तो उनकी िालत और वबगड़ जाती िैं। "तीन थािर बीत गये.....रात-विन िाड़ तोड़ते िुए। कुत्ते की नाई एकाध टुकड़ा फैंक विया तो क्या.....पेट तो कुन्नाता िी रिा।.....अब बड़ा पाप करंगा। र्ूत बनूंगा र्ूत। वजनकी उधार और बेगारी की िी िै राम जी ने। िोर् संर्ालते िी राज के पािों में पटक विया ऊपर िाले ने। इस िेिबाबा ने र्ी सुध निीं ली। इसे तो क्या कि ं...... यि तो िमारा पुरिा िै। ..... इसने र्ी ऐसी िी वजनगी काटी िोगी। र्ूिा सताया मर गया िोगा.....यि र्ी। यि क्या न्िाल करेगा। वफर र्ी िमारा.... पुरिा िै ना। मैं इसके थान पर निीं िढूंगा।" आवििासी बेगार को लेकर परेर्ान िो जाते िै। उनकी फसल बबाशि िो जाने से र्ील और मीणा आवििावसयों को जीिन में संघर्श करना पड़ता िै। गोविन्ि गुर आवििासी समाज को सुधारना िािता िै। उनके ऊपर िो रिे अन्याय के विलाप आिाज़ को िेसी ररयासत के राजा-मिाराजा और अंग्रेज तक पिुंिाने का प्रयास करता िै। लेवकन िूसरी तरफ से ररयासतों द्वारा लेिी, िनौपज, कृर्ी, उपज से लगान एिं िसुली आवि से आवििासी लोग िस्त िो जाते िै। गाँि का मुविया समस्या लेकर मिाराणा के पास जाते िै तो समस्याओं का वनिारण न करते िुए मुविया को र्गाया जाता िै। गोविंि गुर के प्रििन के द्वारा िजारों आवििासी जागृत िोकर मिाराणा के विरद्ध विद्रोि के वलए उतरते िै। विद्रोि को मिाराणा संम्र्ाल निीं पाता िै, तो उस विद्रोि को संर्ालने के वलए अंग्रेज उसमें र्ावमल िोते िैं। अंग्रेज िेसी ररयासतों के मिाराणाओं को अधीन रिकर आवििावसयों के र्ोर्ण की रणनीवत को अपनाते िैं और जबरिस्ती सें बेगार करने के वलए मजबूर करते िैं। िूसरी तरफ munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
126 से ठाकुर िलपतवसंि आवििावसयों को जबरिस्ती से काम करिाता िै। किता िै "िर पररिार से अच्छी मेिनत कर सकने िाला एक आिमी इस काम में र्ावमल िोगा।" िांगड़ िेि के अंिल में अकाल पड़ता िै तो अनेक आवििावसयों की मौत िोती िैं। लोगों को िाने के वलए अन्न निीं वमलता िै। ररयासत के आिवमयों द्वारा मंजूरी लेकर ऊपर से पैसे िेने पड़ते थे। यि आवििावसयों के वलए घोर संकट का िौर िला रिता िै। आवििासी लोगों को अन्न के वलए तरसना पड़ता िै। "िम किीं इधर उधर काम-धंधा करके बाल-बच्िों का पेट र्रें या र्ूिे बैठ बेगार करें।" गोविन्ि गुर के नेतृत्ि में 'सम्प-सर्ा' द्वारा समाज में पररितशन एिं जागरती का काम वकया जाता िै। लेवकन ररयासत और अंग्रेजों की गठजोड़ी की सत्ता में फसकर आवििावसयों का र्ाग्य ओर जकड़ जाता िै। गोविंि गुर की सीि के कारण आवििासी ररयासतों की सावजर् को समझने लगे। इसीकारण 'सम्प-सर्ा' में अनेक आवििासी जुड़ जाते िै। आवििासी समाज में बुरी आिते और झगड़े-फसाि िोते िैं और बबाशिी के वसिाय उनके िाथों में कुछ निीं आता िैं। समाज को सुधारने का कायश गोविन्ि गुर करता िै। िेसी ररयासत और अंग्रेजों के द्वारा िार की िुकाने िुलिाते िै, तब गोविंि गुर उसका विरोध करते िै वक "िमारा अव्िल काम यि रिेगा वक वफरंवगयों द्वारा िार के ठेकों की जो िुकानें ररयासती अिलकारों से वमलकर िुलिाई जा रिी िैं, िम वमलकर सब जगि इसका विरोध करें। िमारा यि विरोध अविंसक िोगा।" सम्प-सर्ा के माध्यम से गाँि के ठेकों को बंि वकया जाता िै और सामावजक स्तर को सुधारने के प्रयास वकया जाता िै। पुरणमासी के मेले में सम्प-सर्ा के सर्ी र्गत और आवििासी आते िै, तब गोविन्ि गुर प्रसन्नवित मुद्रा में वििाई िेते िैं। इस मेले में आवििासी समुि परम्परागत नृत्य के साथ पेट र्रने के वलए करतब करते िैं। "र्ई, करतब वििाते वििाते जो लड़िड़ गया तो इस पापी पेट का क्या िोगा। पररिार र्ूिा मर जायेगा। वफर कुंिारी बेटी के िाथ र्ी पीले करने िैं।" इस िाताशलाप से आवििासी लोगों की र्ूि अवधक गिरा बना िेती िैं। ईड़र ररयासत में ठाकुर आवििावसयों के ऊपर मनमजी से अत्यािार करता िै, इसी कारण कई आवििासी लोग संपसर्ा में र्ावमल िो जाते िै। ठाकुर के अत्यािार के कारण लक्ष्मणपुरा गांि का एक माि आवििासी सम्प-सर्ा का र्गत बनता िैं। आवििासी सम्प-सर्ा के बैठक में जाते िै तो ठाकुर आवििावसयों को िड़िाि की जमीन से बेििल करता िैं। पंिायत के वनणशय से आवििावसयों के बीि में िो गट तयार िोते िैं। अवधकांर् आवििासी सम्प-सर्ा में र्ावमल िो जाते िैं। "आवििावसयों ने सामूविक रप से यि फैसला वकया वक जब गोविन्ि गुर पालपट्टा जागीर िेि के आवििावसयों की समस्याओं पर ठाकुर से बात किने िाले िैं तो क्यों ना अपनी समस्याओं को लेकर उनसे सम्पकश साधा जाय।" आवििासी लोग अपने र्विष्य को लेकर आर्ा और वनरार्ा के साथ सम्प-सर्ा में जुड़ जाते िै। उसके बाि आवििासी र्गत की ित्या िोती िै। इसीकारण गोविन्ि गुर अपनी गवतविवधयों को ओर तेज करते िुए उसके ऊपर ठोस उपाय करने का प्रयास करता िैं। उपन्यास में िेर् के मिाराजाओं और अंग्रेजों का िेिरा आवििावसयों के वलए घातक बना था। धूणी धामों को ररयासती द्वारा अपविि करने का वसलवसला जारी रिता िै। धूवणयों को अपविि करने से र्गत और आवििासी समाज के लोग गुस्से में आते िैं। वनिोर् लोगों का अपरावधक प्रिृवत्त में और जयराम पेर्ा कानून के तिि र्गत एिं अन्य लोगों को परेर्ान वकया जाता िैं। munotes.in

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'धूणी तपे तीर' में विवित
आवििासी जीिन और समस्या
127 ररयासती द्वारा गोविन्ि गुर के कायश और सम्प-सर्ा के र्गतों पर नजर रिी जाती िैं। ररयासत के लोग और अंग्रेज़ गोविन्ि गुर के वर्िा के विरद्ध प्रिार करके समाज में आतंक फैलाना प्रारंर् करते िैं। 'सम्प-सर्ा' के वनर्ानों को वमटा िेते िैं। अंत में गोविन्ि गुर और आवििासी समाज अपनी रिा के वलए मानगढ़ पठार का आसरा लेते िैं। वित ि रिा के वलए गोविन्ि गुर तीन सिस्यीय कवमटी को संिेर् िेकर सामन्तर्ािी और अंग्रेजों के फौज के यिाँ र्ेज िेते िैं। अंग्रेजों के अवड़यल स्िर्ाि से गोविन्ि गुर तमाम आवििावसयों को सम्बोवधत करते िैं वक "र्ूरेवटया िमारी मांगे निीं मान रिे िैं और िमें मारने की धमकी िे रिे िैं। उनकी धमवकयों से िमें डरना निीं िै। उनकी बन्िूकों की नली से गोवलयों की जगि पानी वनकलेगा। इसवलए सर्ी वनविंत रिें और मुकाबले के वलए डटे रिें।" इस तरि से गोविंि गुर िेर्ी ररयासत और अंग्रेज के विरुद्ध मुकाबले के वलए तैयार करता िैं। ११.२.२. आिथªक जीवन और समÖया : आवििासी समाज की आवथशक वस्थवत ऐवतिावसक काल में जैसी थी, िैसी आज र्ी रिी िै। वकसी र्ी समाज के संगठन एिं उन्नवत का आधार उसकी अथश व्यिस्था पर वनर्शर करती िैं। समय के अनुसार आवथशक वस्थवत में पररितशन िोता रिता िै। आवथशक वस्थवत आज के मनुष्य की वििर्ता का प्रमुि कारण िै और व्यवक्तगत सुि की िोज में अथश प्रावि र्ी एक मित्िपूणश इकाई बनी िुई िै। इस उपन्यास में र्ील और मीणा आवििावसयों का जीिन और उनकी आवथशक समस्या छोटे-बड़े रप में उर्रकर सामने आयी िैं। उपन्यास में ऐवतिावसक पररिेर् िोने से राजे-मिाराजे एिं अंग्रेजों के द्वारा आवििावसयों के वलए आवथशक वस्थवत को िर्ाशया िै। राजे-मिाराजे आवििावसयों से कृवर् कर, आबकारी, व्यापार, िेसी ररयासतों की ििलंिाजी ज्यािा िोने से र्ील और मीणा आवििावसयों की आवथशक वस्थवत बेिि कमज़ोर रिी िै। विर्ेर्तः उनके आय का प्रमुि स्रोत कृवर् िै। उसके अलािा आवथशक व्यिस्था के स्रोत िनोपज, मजिूरी और पर्ुपालन आवि रिा िै। आवििावसयों का प्रमुि व्यिसाय कृवर् अथाशत िेती ऐवतिावसक काल से िै। यि िंर् परम्परागत व्यिसाय िोने से आवििासी लोगों की प्रमुि मिार इसी पर रिी िैं। आवििासी लोगों की िेती में ओला पड़ने िेती बरबाि िो जाती िै। इसवलए आवििासी ररयासत के जागीिार के यिाँ बेगार में काम करते िै। यि काम करने के बाि थोड़ा आराम के वलए िार की नर्ा करना जीिन का विस्सा रिा िै। उनकी मानवसक वस्थवत ठीक न िोने से कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता िै। लेिक किता िै वक "िेि लूंगा िरावमयों को..... कूंए-िािड़ में वगरकर मर जाऊंगा..... र्ूत बनूंगा......र्ूत! वफर एक-एक की टेंटी मरोडूंगा.....। उनके जीि-जायतों को र्ी निीं छोडूंगा......। तीन थािर बीत गये...... रात-विन िाड़ तोडंते ि ए। कुँए की नाई एकाध टुकड़ा फैंक विया तो क्या........ पेट तो कुन्नता िी रिा।" ररयासत एिं जागीरिार के पास बेगार में काम करने से आवििावसयों को अपना जीिनयापन करना मुवश्कल िोता िै। र्ील और मीणा आवििावसयों के पूँजी से ररयासत के मिाराणा अंग्रेजों की मिाराणी विक्टोररया की स्िणश जयन्ती को धूमधाम से मनाते िै। इस अिसर पर अंग्रेजों के साथ मधुर सम्बन्ध रिने के वलए मिाराणा राज कोर् से र्रपूर धन ििश करता िैं। ऊपर से अवधक धन-िौलत उन्िें बिाल र्ी करता िैं। मधुर सम्बन्ध बरकराकर रिने के वलए मिाराणा मनमजी से कारर्ार िलाते रिे, इसी का फायिा उठाकर अंग्रेज धीरे-धीरे सत्ता के साथ-साथ जल, जंगल और जमीन आवििावसयों से छीन लेती िै। साथ िी िनोपज इकट्ठी करने पर पाबंिी लगने से munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
128 र्ील और मीणा आवििावसयों को सामना करना पड़ता िै। "आवििावसयों के वलए सबसे बड़ी समस्या िनोपज पर सरकारी पाबंिी थी। िनोपज पर पाबंिी की नीवत को ररयासती सरकारें कड़ाई से लागू वकए िुए थी। संपसर्ा के वलए यि बड़ी िुनौती थी। गोविंि गुर के वलए वनवित रप से यि विंता का विर्य था।" इस प्रकार की समस्या उन्िें तोड़ कर रि िेती िै। ऐसे िी उपन्यास में विवित पाि मेमा आवथशक वस्थवत से गुजरता िुआ वििाई िेता िै। उसके मां-बाप बिपन में िी गुजर िुके थे, इसवलए िि अपने काका के पास रिकर जीिनयापन करने लगा। यि मेमा वकसी िि तक उनकी सेिा करता रिा, लेवकन काका काले मन का था और िमेर्ा िार के नर्े में रिता िै। इसी के संिर्श में लेिक किते िै वक "लाऔलाि िररवणया ने मेमा से िूब काम कराया। मेमा र्ी र्ूत की नाईं घर-बािर का काम करता गया। अकाल की मार पड़ी। तीन-तीन वमनिों का पेट िि अकेला किां से र्रता।" उनके पास न तो धन था, न िौलत और न िेती थी। अकाल के समय में उनके सामने आवथशक समस्या वनमाशण िोती िै। वफर र्ी आवििासी इस अकाल में "र्ूिे पेट, अधनंगे ि िुबशल र्रीरों िाले इन लोगों के पास और कुछ निीं, मगर बुलंि िौसला था, मंवजल तक पिुंि सकने का पक्का इरािा था, आंिो में बेितरीन विनों की उम्मीि की िमक थी।" इसी िमक के आधार पर जीियापन करते िै। र्ील और मीणा आवििावसयों के वलए ररयासत और अंग्रेजों का िेिरा घातक बनता जाता िैं। वनिोर् लोगों को अपरावधक प्रिृवत्त में और जयराम पेर्ा कानून के तित र्गत एिं अन्य लोगों को परेर्ान वकया जाता िैं। इसी के साथ बेगार की प्रथा र्ी प्रिवलत थी। "िर्ों पिले बनायी गयी िनोपज पर पाबंिी की नीवत को कठोरता से वियावन्ित करने के कारण आवििासी धीरे-धीरे कृवर्-कमश की ओर बढ़ने के वलए मजबूर िो गये थे। बीसिीं सिी के पिले िर्क में सर्ी ररयासतों में र्ूवम-बंिोबस्त का काफी काम सरकार द्वारा वनबटा विया गया था। इसके तित िेती के वलए कुछ र्ूवम आवििावसयों को र्ी िी गयी थी लेवकन लगान की र्तें बिुत र्ारी कर िी गयी विर्ेर् रप से रबी की अच्छी पैिािार को िेिते िुए। इसवलए मेिनत का वजतना लार् उन्िें वमलना िाविए था, उतना उन्िें निीं वमला।" इस प्रथा के तित ररयासत और जागीरिार आवििावसयों को अनवगनत मजिूरी करिाते िै। "इक-िूजे के काम में िाथ बाँटने के वलए मेिनत करने में कोई िजश निीं िै। मेिताना के बिले काम करना बुरा निीं। यि तो िमें करना िी िोता िै। वबना कुछ वलये-विये बेगार करना तो एक तरि से गुलामी िै।" इसी तरि से ररयासत ि अंग्रेजों द्वारा र्ील और मीणा आवििावसयों के ऊपर लगातार आवथशक बोझ बढ़ाते रिे और नए-नये कानून बनाकर िेर्ी ररयासतों में उनकी ििलिांजी मजबूत िोती गई। ११.२.३. राजनीितक जीवन और समÖया: ‘धूणी तपे तीर’ उपन्यास में राजवनवतक जीिन के र्ांवत राजनीवतक समस्याओं का स्िरप र्ी िेिने को वमलता िै। यि उपन्यास ररयासत के राजा, मिाराणा, मिारािल, जागीरिार और अंग्रेजों के राजनीवतक िबाि के रप में एिं सत्ताधाररयों की कूटनीवतक िालों और िाि-पेंिो से र्री राजनीवत का व्यापक फलक प्रस्तुत करता िै। िेर् में स्िातंि पूिश से आवििावसयों का अवस्तत्ि रिा िै। इसी संिर्श में लेिक किते िै "तुम्िें पता निीं वक इस पूरे आवििासी इलाके में पुराने ज़माने में िमारे राजा-मिाराजा िुआ करते थे। कोई िूसरा िम पर राज निीं कर सकता था। बेणेसर धाम के मेले में एक साधू ने बताया था वक डूंगर र्ील ने डूंगरपुर बसाया था। बांस्या र्ील के नाम पर बांसिाड़ा नाम पड़ा िै। इसी तरि बूंिा मीणा के नाम पर बूंिी और कोट्या र्ील के नाम पर कोटा र्िर बसे।" इसी तरि प्रािीनकाल से आवििावसयों की munotes.in

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'धूणी तपे तीर' में विवित
आवििासी जीिन और समस्या
129 र्ासन व्यिस्था स्ितंि रिी िै। आवििावसयों का नायक गोविन्ि गुर लोगों के बीि में समाज सुधार की बाते एिं लोगों को जागृत करने का कायश करता िै तो ररयासत के राजा, मिाराजा के द्वारा िबाि डाला जाता िै। गाँि के मुविया एिं गमेती को िी अपने िावयत्ि में ररयासत रिती िै। गोविन्ि गुर जागीर के मुख्यालय गढी गाँि के यिा प्रििन िेते िै तो गाँि के मुविया को संिेि वनमाशण िोता िै। आवििासी लोग किते िै वक "बेगार िम रोज के रोज थोड़े िी करते िैं। यि तो जब राज का कोई काम पड़ता िै या िमारा ओसरा आता िै तर्ी करते िैं।" आवििासी लोगों को राज के िबाि एिं कूटनीवतक िाल से िी काम करना पड़ता था। उियपूर िरबार में आवििासी मुविया गाँि की समस्या लेकर मिाराणा के पास जाते िै, मिाराणा द्वारा राजनीवतक िाल से आवििासी इलाकों में रेल वनमाशण का कायश वलया जाता िै आवििावसयों की जमीन से रेल वनकाली जाती िै। मिाराणा किता िै वक "धरती पर राजा ईश्वर तुपय िोता िै। ररयाया का रििाला ििी िोता िै। जब तक ररयाया के माथे पर राजा का िाथ िै तब तक ररयाया सुरवित िै। उसके बिले में ररयाया राजा के प्रवत अपनी वनिा बनाये रिती िै। पगड्ंडी की तरि सर के बीि में से बालों को काटने से उस पर राजा का रथ निीं िलता। यि तो राजा के प्रवत प्रजा की वनिा का प्रतीक िै। यि र्ी पुरानी परम्परा िै।" मिाराणा आवििासी मुविया को िास्तविक अथश न समझाकर राजवनवतक स्तर पर िबाि वनमाशण करता िै। उसके बाि आवििासी जनता राज काज की कायशपद्धवत को समझती िुए विद्रोि करते िै। मिाराणा और विद्रोिी तथा आवििावसयों के बीि में समझौता िोता िै तो अंग्रेज़ किते िै वक "यि तो मिाराणा ने िि कर िी। उसने जररत से ज्यािा अपने सावथयों पर विश्वास वकया। समझौते के मजमून से लगता िै वक आवििावसयों ने अपनी सारी तुकी-बेतुकी मांगे िबाि िेकर मनिा ली।" तुरन्त अंग्रेज िस्तिेप करके नया समझौता तैयार करती िै और आवििावसयों को स्िीकार करने के वलए मजबूर करती िैं। र्ील और मीणा आवििावसयों के गुरु गोविंि गुर को मिारािल वगरफ्तार करते िै तो बड़ी समस्या बनती िैं। अन्तः उन्िें विद्रोि िोने के ड़र से ररिा कर विया जाता िै। आविरकार गोविंि गुर को मिारािल ररयासत छोड़कर जाने के वलए मजबूर करते िै। छप्पन्या के अकाल में ररयासत के काररंिे मिि का अवधक विस्सा अपने पास रिते थे। आवििावसयों के गाँि िाली िोने लगते िै, ररयासतों द्वारा आवििावसयों को परेर्ान वकया जाता िै। उपन्यास में विवित पाि सेठ मेिता का व्यवक्तत्ि एक िालाक, धूतश व्यवक्त के रप में सामने आता िै। मन में अलग राजनीवतक कुटनीवत िोने से िि ररयासत में अलग-अलग तरि से बाते करता िैं। संकट के समय गोविन्ि गुर से बातिीत करके सत्ताधाररयों की कुटनीवतक िालों को अिगत कराते िुए अलग तरि की िाणी का प्रयोग करता िै। "संत वर्रोमवण, मेरे हृिय में आपके वलए बिुत बड़ा सम्मान िै। मुझे िमा करना। जो मैं कि रिा ि िि मेरे व्यवक्तगत वििार निीं िै। िरअसल, गत विनों िरबार में कौंवसल की बैठक िुई। मिारािल, सिायक रजीडेंट और कौंवसल के अन्य सिस्यों के मन में यि धारणा बैठ गयी िै वक सम्प-सर्ा के कुछ कायशकताश राज की नीवतयों का िुलकर विरोध करने लगे िैं और इस विरोध के वलए िे जगि-जगि आवििावसयों को उकसा रिे िैं।.... गोविंि गुर की र्ि पर यि सब कुछ िो रिा िै जो राज-विरोधी गवतविवध िै।" पालपा का ठाकुर मनमजी से आवििावसयों पर र्ार डालता िै। सम्प-सर्ा के र्गतों से िि बात िी निीं करता िै केिल मुविया से िी बात करने को राजी िोता िै। यि ठाकुर र्गतों से न बातिीत करके गोविन्ि गुर और 'सम्प - सर्ा' पर िबाि बढ़ाना िािता था। लक्ष्मणपूरा के आवििासी युिक रोजड़ा गाि के बैठक में जाते िै इसवलए आवििावसयों munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
130 को िड़िाि की जमीन से बेििल करते िै। इससे आवििावसयों को सबसे बड़ा झटका लगता िै और िड़िाि की जमीन पटेल समुिाय को िी जाती िै। और ठाकूर पटेलों को साथ में लेकर सम्प-सर्ा के र्गत की ित्या करते िैं। गोविन्ि गुर और आवििावसयों को बिुत बड़ा गिरा धक्का लगता िैं। विद्रोि िोने के ड़र से ठाकुर मिारािल के पास संिेर् र्ेजकर किता िै वक "गोविंि बनजारा के एक िास र्गत का कत्ल िुआ िै। इसीवलए िे कोतिाल को जांि के वलए तुरंत र्ेजें तावक ित्यारों का पता लगाया जा सके। इसमें र्ीघ्रता निीं िुई तो आवििासी विंसा पर उतर सकते िै।" कोतिाल ििाँ पिुँि कर ित्यारों को पकड़ने का आश्वासन िेता िै। गोविन्ि गुर अपने गवतविवधयों को अवधक तेज करते िुए आरपार की लड़ाई करने का फैसला करता िै। धीरे-धीरे यि आन्िोलन राजनीवतक रप धारण करता िै। जो ईडर ररयासत की नीवतयों और आवििावसयों के प्रवत उसके दृवष्टकोण के विलाफ रिता िै। अंग्रेज़ सम्राट जाजश पंिम के सम्मान के वलए विपली िरबार का आयोजन करते िैं। इस आयोजन के वलए िेसी ररयासती के मिाराणाओं को र्ी आमंवित वकया जाता िै। इसमें िेर् के अन्य राजाओं के आलािा मेिाड़ के मिाराणा फतेिवसंि को र्ी आमंवित वकया था। लेवकन उसे आधे रास्ते में केसरीवसंि बारिठ द्वारा वलिा िुआ 'िेतािणी रा िूंगट्या' िोिा वमल जाता िैं। इस िोिे से उसका मन वििवलत िोकर बेिैन िोता िै। "अगर इन िोिों को मैं उियपुर में िी पढ़ लेता तो ििां से रिाना िी निीं िोता। अब तो विपली के वलए िल विया ि ं। विपली की विपली में िेिेंगे।" मिाराणा प्रताप की प्रवतिा बरकराकर रिने के वलए मिाराणा प्रयास करते िैं। िि स्िावर्मानी व्यवक्त था। उसको राज-कायश में अनािश्यक अंग्रेजों का िस्तिेप निीं िाविए था और िूसरी तरफ वबना बात अंग्रेजों से सम्बन्ध वबगाड़ना निीं िािता था। गोविन्ि गुर ने अपने नेतृत्ि का प्रमुि केंन्द्र मानगढ़ पठार बनाकर धूणी धामों में िी आिास बना वलया था। यि उनका राजनीवतक दृवष्ट से सुरवित वठकाणा बना िुआ था। आवििासी िुि और िररद्रता के बािजूि आन्िोलन से आर्ा और उत्साि के साथ जुड़ते रिे। गोविन्ि गुर विरोध पि बनाकर ररयासतों के पास र्ेजता िै लेवकन वकसी र्ी तरि जिाब निीं आता िैं। यि िेिकर गोविन्ि गुर र्गतों के साथ ििाश करते िुए किते िै वक "िमारी अजी का राज पर कोई असर निीं िुआ। यि िमारी बेइज्जती िै। मुझ जैसे साधू की बात पर गौर निीं करने से मुझे िुि पि ंिा िै। वफर र्ी िमें धीरज से काम लेना िै। िम राज की आवििासी-विरोधी नीवतयों का सामूविक विरोध करते िैं। िमारा विरोध आवििावसयों में जागरती पैिा कर अन्याय को सिन निीं करने तक सीवमत रिना िाविए। इस काम में किीं कोई अर्ांवत, विंसा या उपद्रि पैिा न वकया जाय, यि आप सर्ी र्ाइयों को ध्यान में रिना िोगा।" आवििावसयों के वलए सामंतर्ािी और उपवनिेर्िािी ताकतों का िेिरा िूर बनता जा रिा था। र्ील और मीणा आवििावसयों को पुरानी अिस्था पर लौटने के वलए िे मजबुर करने लगे। अतः में इस प्रकार से राजनीवतक जीिन और समस्या का वििण उपन्यास में प्रस्तुत िुआ िै। ११.२.४. धािमªक जीवन और समÖया: प्रस्तुत उपन्यास में र्ील और मीणा आवििावसयों का धावमशक जीिन और उनकी व्यिस्था परम्परागत रिी िै। लेिक िररराम मीणा ने उपन्यास में प्रमुितः र्ील और मीणा आवििावसयों का वििण करते िुए धावमशक जीिन और समस्या का वििण िै। उपन्यास में विवित धावमशक मान्यताओं के अनुसार आवििावसयों की िेिी िेिताओं पर असीम आस्था munotes.in

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'धूणी तपे तीर' में विवित
आवििासी जीिन और समस्या
131 वििाई िेती िै। उपन्यास में र्ील और मीणा आवििावसयों की प्रकृवत से सम्बवन्धत कई िेिता आते िै परन्तु उपन्यास में लेिक ने विरकुपया िेि को िर्ाशया िै। "विरकुवलया िेिता का थान। िो-ढाई फीट ऊँिा, आठ-िस फीट लम्बा-िौड़ा िबूतरा था, जो पत्थरों का बना था। विरकुपया िेि की मूवतश के नाम पर एक पत्थर था वजसे गाढ़ रिा था और यि मूवतश छोटे से वतकोना मंड के नीिे रोपी िुई थी।" इसी के साथ यि आवििासी िेिी-िेिताओं के र्रण र्ी जाते िै। उनके ऊपर कोई संकट आये तो िेिी-िेिताओं को याि करते िै। उपन्यास में ओलािृवष्ट पड़ती िै तो आवििावसयों की फसल बबाशि िो जाती िै तब आवििासी िेिी-िेिताओं को कोर्ते िै। "ओ रे नीली छतरी िाले िगाबाज र्गिान, तूने यि क्या कर विया?" "ओ रे, बाबा मिािेि ! ओ री, माता पािशती !! ओ रे, माला बाबजी !!! यि क्या गजब ढा विया?" गोविन्ि गुर आवििावसयों में समाज सुधारक के रप में कायश करता िै। उन्िोंने नये धमश की स्थापना की थी। वकंतु उनकी धावमशक मान्यताओं में आवििावसयों की परम्परागत धावमशक मान्यताओं में अंतर था। उन्िोंने धावमशक मान्यताओं को आत्मसात निीं वकया था और आवििावसयों के बीि आवििासी बनकर जीिनयापन करते िै। उसने िर तरि के कायश वकए मगर आवििासी धमश के बारे में "गोविंि गुर के मन में पके िुए धावमशक संस्कारों के कारण उनकी दृवष्ट में सब से बड़ा काम था धूणी-धामों की स्थापना करना। िे आवििावसयों के बीि वकतने र्ी घूमे-वफरे िों, उनके र्ौवतक िुि-ििो का उन्िें वकतना र्ी वनकट का अनुर्ि रिा िो, आवििासी परम्परा और मनोविज्ञान का उन्िोंने वकतना र्ी ज्ञान अवजशत वकया िो, लेवकन धावमशक विश्वासों, मान्यताओं ि आस्थाओं के स्तर पर आवििासी मूल-धमश को उन्िोंने आत्मसात् निीं वकया।" गोविंि गुरु आवििावसयों से जुड़े रिने के बािजूि र्ी धमश की समस्या उलझ कर रि जाती िै। गोविंि गुर की समाज सुधार िाली बातें आवििावसयों को समझ में निीं आते िै। कुररया र्गत को धमश से ज्यािा धूमाल की बातों पर ज्यािा विश्वास िैं। उसका मानना िै वक धमश अध्यात्म और नैवतकता की बातों से आवििासी समाज की तकलीफ िूर निीं िोगी। इसवलए िे किते िै "गोविंि गुर.... िि धमश की बात ज्यािा करता िै। धूमाल की बात निीं करता। वबना धूमाल मिाए िमारी तकलीफ राज के कानों तक निीं पिुँिेगी।" आवििासी धमश निीं धूमाल करना िािते िैं, क्योंवक उनके कष्ट के िो कारण िै राम और राज। तब िे धमश कैसे िाि सकते थे। गोविन्ि गुर का प्रर्ाि आवििासी अंिलों में बढ़ जाता िै, इसवलए आवििासी उसे नये धमश के प्रितशक में पूजते िै। गोविंि गुर का जैन या वकसी धमश से उसका कोई लेना-िेना निीं िै। "उसका स्िंय का धमश िै, वजसके मूल वसद्धांत धूणी, ििन और सिािरण िै वजसमें र्ांवत ि अविंसा प्रमुि तत्ि िैं।.........गोविंि गुर द्वारा प्रिवतशत नई धावमशक आस्था राजपूताना, मध्य र्ारत और गुजरात के आवििासी अंिलों में जंगल की आग तरि फैल रिी िै।" उसको िेसी munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
132 ररयासत के राजा और अंग्रेज़ र्ी स्िीकार करते िैं। उसे तोड़ने का काम अथाशत धूवणयों को अपविि अंग्रेजों द्वारा वकया जाता िै। उपन्यास में कलजी के बेटे के सफल उपिार के बाि गोविन्ि गुर की िमत्कारी बाबा के रप में ख्यावत िोती िैं। गोविंि गुर को एक िमत्कारी बाबा माना गया तो ‘सम्प-सर्ा’ के जागरती का क्या िोगा। लोग उसे किते िैं "िम जानते िी निीं, यि तो पिले से िी िमत्कारी संत िैं। इन्िोंने उियपुर प्रिास के िौरान मिाराणा को असाध्य रोग से मुक्त वकया था।" लक्ष्मणपुरा गाँि का एक माि आवििासी व्यवक्त सम्प-सर्ा का र्गत बनता िै। िि गाँि में जागरती का कायश करता था। गाँि में जागीरिार और पटेल समुिाय सम्प-सर्ा को विरोध करते थे। जागीर िेि में सम्प-सर्ा का प्रिार बढ़ने से र्गत की ित्या िोती िै। उसने "कर्ी वकसी का बुरा निीं वकया। धमश के रास्ते पर िलने िाले आिमी की वकसी से क्या रंवजर् िोगी।" आवििासी आपस में वििार-विमर्श करते िै। सम्प-सर्ा के गठन के बाि आवििावसयों में जागरती फैलने लगी थी। िर इलाकों में धूणी-धामों की स्थापना की गई। धूणी-धामों के प्रवत आवििावसयों में धावमशक र्ािना जागृत िुई थी। धूवणयों को नुकसान पिुंिाने से गोविन्ि गुर को विंता सताती िै वक "राज की काररंिों की िरकतों से पैिा िुई विंता और िुसरी तरफ उन्िें आर्ंका थी वक धावमशक र्ािनाओं के र्ड़क जाने से आवििासी विंसा पर न उतर आयें।" लेवकन िुसरी तरफ ररयासतों द्वारा आवििावसयों को र्ड़काने का काम वकया जाता िै। "उसका जो नया धमश िै िि िास्ति में आवििावसयों का परम्परागत धमश िै िी निीं। आवििासी लोग तो र्ंकर र्गिान, पािशती माई और लोक िेिताओं को पूजते आये थे। स्िंय को गुर किलिाने िाले गोविंि बनजारा ने वनराकर ईश्वर का अपना धमश पैिा वकया। यि आवििावसयों के मौवलक धावमशक वििारों के विपरीत िैं। िि स्िंय िुसरी जात का िै। िि इन आवििावसयों का क्या र्ला करेगा।" इस तरि की बातें इलाके में फैलाकर आवििासी लोगों को धमश के नाम पर उलझाते रिते िै। इस तरि से उपन्यास में धावमशक समस्या उर्रकर आती िुई वििाई िेती िै जो आवििावसयों को एक सूि में बँधने के वलए मजबुर करती िैं। आवििासी अपने धमश और िक्क की लड़ाई के वलए मानगढ़ पठार का आसरा लेते िैं। इस तरि से उपन्यास में र्ील और मीणा आवििावसयों के धावमशक जीिन और समस्याओं को विवित वकया िै। ११.२.५. सांÖकृितक जीवन और समÖया : प्रस्तुत उपन्यास में लेिक िररराम मीणा ने आवििासी समाज का जीिन और उनका ग्रामीण अंिल के िास्तव्य का यथाथश के साथ वििण वकया िै। पुरे उपन्यास में आवििावसयों सारा वििण अंिल मे िी वकया िै। इससें आवििावसयों का जीिन ओर फुलता िुआ सामने आता िैं। उनके सांस्कृवतक त्योिार, मेले, उत्सि, लोकगीत, रािणीमान, उनकी र्ार्ा आवि को उपन्यास में विवित वकया िै। आवििासी समाज में त्योिार एक अवनिायश विस्सा बना िुआ िैं। सब एक जूट िोकर त्योिार की तैयारी करते िै। आवििासी िोली के वलए एकवित िोकर तैयारी करते िै। कोई जंगल से थम्म लेकर आते िै तो कोई अन्य तैयारी करते िै इसका अद्भुत वििण वकया िै। "थम्म मजबूती से िड़ा कर विया। थम्म के ऊपरी विस्से पर लाल ि सफेि रंग के कपड़े बांधे और थोड़ी सुिी घास र्ी। मौजूि सर्ी लोगों के ललाट पर िपिी की वतलक लगाया। वतलक लगाने से पिले थम्म के पास घी का िीपक जला विया था।" िोली के अिसर पर सब छोटे बच्िे, औरतें अपने झोपवड़यों के िरिाजों से िेिते िै। यि सब आवििावसयों के बुजुगों आिमी के द्वारा उसकी विवध की जाती िै। गोविन्ि गुर अपने र्गतों और रिािल के munotes.in

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'धूणी तपे तीर' में विवित
आवििासी जीिन और समस्या
133 सिस्यों को िोली के वलए गांि र्ेज िेता िैं। िोली का पुंजन एिं अवग्न की विया र्गत के िेिरेि में वक जाती िैं। यिां आवििासी युिक और युिवत िोली के परीिमा करते िुए िोली के गीत गाते िैं। "िोली बाई िांिो रो रे िोली बाई िांिो रो रे िोली बाई आज के काल िोली बाई बांिो रो रे.........." गीत ि संगीत के साथ युिक-युिवतयां गेर नृत्य करते िैं। सर्ी युिक-युिवतयां इक िुजे का िाथ पकड़ कर िूब आनंि उठाते िैं। आवििावसयों का जीिन ग्रामीण में गिरे सुिों से पकड़ा िुआ रिता िैं। उनका जीिन एक नैसवगशक सिज-सरल और ईमानिारी से जीने की अमुपय धार उनके पास रिती िैं। उनको बिुत सारी जानकारी और अनुर्ि रिने के बािजुि जीिन जवटल बनता िैं। गिरा अनुर्ि िोने से गांि की धरती, जंगल और पिाड़ों की जानकारी एिं जंगली जानिरों ि पिेरओं के व्यििार का अनूर्ि, िनस्पवतयों एिं जड़ी बूवटयों का ज्ञान रिता िैं। लेवकन संकट आने से किते िै वक "ओ रे नीली छतरी िाले िंगाबाज र्गिान, तुने यि क्या कर विया?" आवििासी लोक िेिताओं को मानते िैं। उसके साथ िी र्गिान र्ंकर और पािशती की पूजा करते िैं। गोविन्ि गुर के नेतृत्ि में आवििावसयों के जत्थों के बीि में सुरज की पिली वकरण फुटती िै। सर्ी ररयासतों के आवििासी मेले के वलए मानगढ़ पिुंि जाते िैं। इस मेले में िजारों की संख्या में आये आवििावसयों को िेिकर गोविन्ि गुर आनंिीत िोते िैं। सवच्ििानंि किते िै वक "बाबा नागाजुशन के उपन्यास पढ़कर वजस प्रकार कोई पाठक वबना वबिार प्रिेर्, विर्ेर् रप से वमवथला िेि का भ्रमण वकए ििां की संस्कृवत से पररवित िो जाता िै उसी प्रकार ‘धूणी तपे तीर’ पढ़कर कोई र्ी पाठक राजस्थान विर्ेर् रप से उियपुर, डुँगरपुर, बांसिाड़ा और कुर्लगढ़ के र्ील और मीणा आवििावसयों की संस्कृवत से पररवित िुए वबना निीं रिेगा।" इस मेले में आये िुए लोगों का वििण लेिक करता िै वक "वियों ने िाथों में िांिी के गजरे और िूड़े, नाररयल के कासले, लाि की िूवड़यां, कुकड़ विलास (वगलट) के र्ोररये अथिा कातररये, लाि की कामली, काकणी, िांिी की घूघरीिाली बंगड़ी, और िांिी की कासली पिन रिी थी। अपने बाजू में िांिी का बाजूबंि, लाि का िौड़ा िूड़ा, अंगुली में िांिी की अंगूठी और िांिी या वगलट की बीटी पिने िुए थी। कइयों ने िांिी की घूघरी िाला िथफूल िाथों में पिन रिा था। वसर पर िांिी का बोरला पिने और रािड़ी गुंथे िुए थी।........युिवतयों ने अपनी िोली में िांिी का िेरािाला ऊंविया अथिा बटन लगा रिे थे। सधिा वियों और कुंिारी युिवतयों ने लाल लूगड़ा, लाल िूनरी, राती कापड़ी, राता घाघरा और लाल वछटका की ओढ़नी पिन रिी थी। विधिा मविलाओं ने बाजू के आर्ूर्णों, बोर तथा पांि की कड़ली के अलािा सब प्रकार के गिने पिन रिे थे। पुरर्ों ने अपने िाथों में िांिी के कड़े, बाजू में िांिी की र्ोररया, कमर में िांिी की कन्िोरा, कान में सोने या िांिी की मुरकी, र्र्रकड़ी और झेले तथा गले में आिड़ी पिन रिी थी। कइयों ने अपनी बंड़ी में पतरे या िांिी की ऊंविया अथिा बटन लगा रिे थे।" मेले में िेर् र्ूर्ा और आर्ूर्ण िी निीं, लेिक ने munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
134 आवििासी नृत्यों और िाद्य का एक लम्बा विट्ठा प्रस्तुत वकया िै। "िाथजोवड़या, पगपासवणयाना, जालवणयाना, उड़वणयाना, फिुकिाला, मूररया, गैर, गिरी.....झांझ, मजीरा, िरताल, थाली, मटका, मांिड़, ढोलकी, बांसुरी जैसे िाद्य यन्िों की धुन िातािरण में गुज रिी थी।.......गिरी नृत्य में केिल पुरर् र्ाग ले रिे थे। ऊड़वणयाना नृत्य में केिल युिवतयों समूिों में नाि गा रिी थी। मूररया नृत्य में युिक ि युिवतयां िाथ पकड़ कर सांग वकए िुए िूपिे ि िुपिन को घेरे िुए झूम रिे थे।" उपन्यास में ग्राम्य जीिन का वििण वकया िै वजसमें आवििावसयों का ग्राम्य जीिन जीिंत िो जाता िैं। आवििासी जन जीिन एिं लोकसंस्कृवत की छोटी-छोटी बातें र्ी रिनाकार की दृवष्ट से ओझल निीं िोतीं। उस संस्कृवत में िांि र्ी अपने पररिेर् से जुड़ा वििाई िेता िै "मुझे आज यि िांि बिुत अच्छा लग रिा िैं। धौली ज्िार की फूली िुई रोटी जैसा। िूब वसकी िुई रोटी की पपड़ी पर जो आकरे धब्बे पड़ जाते िैं िैसे िी िांि में धब्बे विि रिे िैं।" मानगढ़ पिशत के तलिटी में बसे आमवलया गांि में धूणी स्थल के यिां वििाली से पिले और बाि में आवििासी लोक गीत गाते िैं। धूणी स्थल के यिां सम्प-सर्ा के र्गत िीड़ा गीत की आलापनुमा र्ुरआत करते िैं - "ि ं......ऐ......िी......ड़ो........ ि ं......ऐ......िी......ड़ो........ ि ं......ऐ......िी......ड़ो........ ि ं......ऐ......िी......ड़ो........" स्िर में आलापनुमा िीड़ा गीत गा-गाकर कथा आवििासी समाज को सुनायी जाती िैं। इसका लेिक सटीकता से वििण करता िैं। आवििासी लोग इस कथा को आगे बढ़ाने के वलए गीत की तान छेड़ते िै और कथा आगे बढ़ती रिती िैं। ११.३ सारांश : 'धूणी तपे तीर' उपन्यास में लेिक िररराम मीणा ने आवििावसयों की संघर्श गाथा को िर्ाशया िैं। आवििावसयों के ऊपर िेर्ी ररयासत के मिाराजा और उनके कांररिे ििशस्ि रिते िै। इसके साथ िी ररयासतों द्वारा आवििावसयों पर कई जुपम, अत्यािार वकए जाते िै। िूसरी तरफ से अंग्रेज़ र्ी ररयासतों के साथ वमलकर आवििावसयों का िून िुस लेते िैं। अंग्रेंज ररयासतों में जो कुछ नीवत अिलंब करते िै, उसकों अपने अधीन रिकर ििशस्ि वनमाशण करती िैं और िाली झोली र्रने लगती िै। लेिक ने उपन्यास में सामावजक, राजनीवतक, आवथशक और धावमशक जीिन के साथ समस्याओं का र्ी वििण करके उपन्यास को ओर मजबुत करने का प्रयास वकया िैं। अतः िररराम मीणा ने आवििासी समाज का विस्तृत िणशन करते िुए उसमें अन्याय, अत्यािार को उजागर वकया िै और पोलाि की तरि उसका विरोध करते िुए गोविन्ि गुर को वििाया िैं। िि आवििावसयों के बीि में 'सम्प-सर्ा' ि 'धूणी' के माध्यम से र्ील और मीणा आवििासी लोगों को एकवित करते िुए अन्याय, अत्यािार, र्ोर्ण munotes.in

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'धूणी तपे तीर' में विवित
आवििासी जीिन और समस्या
135 आवि के विरद्ध लड़ने के वलए प्रेररत करता िै। साथ िी आवििासी समाज को एक नई विर्ा की तरफ मोड़कर उनका उत्कर्श करता िैं। ११.४ वैकिÐपक ÿij : १. 'धूणी तपे तीर' उपन्यास में गांि का गमेती बेटे को क्या बनाना िािता िै? (क) मुविया (ि) राजा (ग) गमेती (घ) सम्प सर्ा का सिस्य २. आवििासी सम्प सर्ा में र्ावमल के बाि ठाकुर किां की जमीन से उन्िें बेििल करता िै? (क) िड़िाि (ि) लक्ष्मणपुरा (ग) सुरांता (घ) रोजड़ा ३. गोविंि गुर की िमत्कारी बाबा के रप में ख्यावत कब िोती िै? (क) कुररया को संर्ालने के बाि (ि) कलजी के बेटे का उपिार करने से (ग) धूणी-धामों की स्थापना से (घ) गांि में ज्ञान िेने से ४. 'िेतािणी रा िूंगटया' िोिा वकसने वलिा? (क) मिाराणा प्रताप (ि) मिाराणा फतेिवसंि (ग) केसरीवसंि बारिठ (घ) मिाराणा विजयवसंि ५. 'धूणी तपे तीर' उपन्यास में धूणी स्थल के यिाँ कौनसा गीत गाया जाता िै? (क) िीडा गीत (ि) र्ील गीत (ग) मीणा गीत (घ) ररयासतों के गीत ११.५ लघु°रीय ÿij : १. 'धूणी तपे तीर' उपन्यास में विवित सामावजक जीिन को संविि में स्पष्ट करें? २. 'धूणी तपे तीर' में राजनीवत वकस तरि से उर्रकर आयी िै, उसे स्पष्ट कीवजए? ३. 'धूणी तपे तीर' में विवित धावमशक जीिन को अपने र्ब्िों में वलविए? ४. 'धूणी तपे तीर' में र्ील और मीणा की आवथशक वस्थवत संविि में वलविए? munotes.in

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विविध विमर्श एिं सावित्य
136 ११.६ बोध ÿij : १. 'धूणी तपे तीर' उपन्यास में विवित जीिन को विस्तार से वलविए? २. 'धूणी तपे तीर' में आवििावसयों की समस्याओं पर विस्तार से प्रकार् डावलए? ११.७ संदभª सूची : १. धूणी तपे तीर - िररराम मीणा २. सृजन संिाि - सं. ब्रजेर् ३. आवििासी िुवनया - िरीराम मीणा ४. आवििासी समाज और सावित्य - सं. रामवणका गुिा ५. स्िातंत्र्योत्तर विन्िी उपन्यासों में आवििासी िेतना - डॉ. सविता िौधरी munotes.in

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137 १२ ‘धूणी तपे तीर’ कì भाषा-शैली इकाई कì łपरेखा १२.० इकाई का उĥेÔय १२.१ ÿÖतावना १२.२ 'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì भाषा - शैली १२.३ सारांश १२.४ वैकिÐपक ÿij १२.५ लघु°रीय ÿij १२.६ बोध ÿij १२.७ संदभª सूची १२.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे।  'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì भाषा को छाý जान सक¤गे।  'धूणी तपे तीर' म¤ देशकाल एवं वातावरण, संवाद योजना को छाý जान सक¤गे।  'धूणी तपे तीर' म¤ शैली का िकस ÿकार से ÿयोग िकया है, उसको छाý जान¤गे।  उपÆयास म¤ मुहावर¤ और लोकोिĉयाँ का लेखक ने िकस ÿकार से ÿयोग िकया है, उसको जान¤गे। १२.१ ÿÖतावना भाषा मनुÕय जीवन कì महÂवपूणª सामािजक उपलिÊध है । सामािजक आदान-ÿदान के िलए अपने Óयिĉगत अनुभवŌ एवं िवचारŌ को समाज तक सÌÿेिषत करने के िलए मनुÕय ने भाषा का आिवÕकार िकया ह§ । सािहÂय कì भाषा जनता कì भाषा से अलग होती है, परÆतु जनता कì भाषा ही वह अखÁड़ ľोत है िजससे सािहिÂयक कì भाषा पोिषत एवं बलवती होती है । इस संदभª म¤ ÿेमचंद कहते है "भाषा बोलचाल कì भी होती है और िलखने कì भी । बोलचाल कì भाषा तो मीर, अÌमन और लÐलूलाल के ज़माने म¤ भी मौजूद थी; पर उÆहŌने िजस भाषा कì दाग बेल डाली, वह िलखने कì भाषा थी और वही सािहÂय है । बोलचाल से हम अपने क़रीब के लोगŌ पर अपने िवचार ÿकट करते ह§ - अपने हषª-शोक के भावŌ का िचý खéचते ह§ । सािहÂयकार वही काम लेखनी Ĭारा करता है ।" औपÆयािसक तÂवŌ म¤ भाषा munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
138 शैली का ÿमुख Öथान है । उपÆयास कì आÂमा उसकì भाषा म¤ ही िनवास करती है । िबना भाषा उपÆयास कì कÐपना करना ही असंभव है । भाषा कì अशुĦी और उसके अनगढ़ ÿयोगŌ से उपÆयास के भाव, अिभÓयिĉ अÂयंत ±ीण और दुबªल हो जाती है । उपÆयास कì भाषा ऐसी होनी चािहए जो कथाकार के भावŌ और िवचारŌ को भली ÿकार से संÿेिषत कर सके । भाषा शैली के िलए मौिलकता अÂयंत आवÔयक है । हर उपÆयासकार कì अिभÓयिĉ िवधा या उसकì अिभÓयंजना शैली अलग होती है । वह एक नई लीक अपनाता है और कÃय को उस लीक पर दौड़ाकर अपनी रचना को सशĉ और सुłिचपूणª बनाता है । सहज, Öवाभािवक शÊदŌ, अलंकारो, कहावतŌ व मुहावरŌ के ÿयोग से भाषा कì साथªक अिभÓयिĉ होती है । इसम¤ िजस कथाकार कì भाषा शैली ÓयिĉÂव के अनुłप होती है उसम¤ उतनी ही नवीनता और िविशĶता होती है । अंतः भाषा शैली लेखक कì िनजी वÖतु होती है । उ¸चतम भाषा शैली के िलए उसम¤ गित तथा ÿवाह भी आवÔयक है। इसके िलए जłरी है िक भाषा म¤ साथªक शÊदŌ का ÿयोग हो । वह सरल और सुबोध हो । िशÐप कì ŀिĶ से वही भाषा शैली सफल ®ेķ और महÂवपूणª होती है जो भावŌ, िवचारŌ व अनुभूितयŌ का सफल िनवªहन करती है तथा पाठकŌ को åरझाती रहती है । १२.२ ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास कì भाषा-शैली िहंदी सािहÂय के उपÆयास िवधा म¤ Öवाभािवकता लाने के िलए पाýानुकूल भाषा अÂयÆत उपयोगी ÿमािणत होती है । Óयिĉपरक पाý अपने Öतर के अनुसार भाषा के ÿयोग का अिधकारी होता है । अतः लेखक वगªगत्, िवशेषताओं से युĉ पाý, देशकाल, समाज और उसकì िवचारधारा को ŀिĶ म¤ रखकर ही भाषा का ÿयोग करता है । एकािधक भाषा ÿयोग से उपÆयास म¤ रोचकता आती है, पर यह ÿयोग अÂयÆत सावधानी कì अपे±ा रखता है । सािहिÂयक भाषा के ÿयोग से सािहÂय िनिIJत वगª के अÅयापन का िवषय बनकर रह जाता है और उसकì जीवÆतता को घुन लग जाता है । अतः भाषा जन-जीवन से जुड़ी रहनी चािहए तािक पाठक उसे पढ़कर उसकì Öवाभािवकता म¤ पूणª आÖथा ÿकट कर सके । इसी के साथ वणªन और िचýण को अÂयिधक यथाथª और िवĵसनीय बनाने के िलए उपÆयासŌ म¤ ±ेýीय बोिलयŌ का ÿयोग आवÔयक है । देशज् शÊदŌ का ÿयोग इस ढंग से िकया जाए िक वह िवशेष अथª कì सृिĶ करने म¤ सहायक िसĦ हो । वÖतुतः उपÆयास म¤ सरल भाषा के साथ-साथ ±ेýीय बोिलयŌ के ÿयोग का भी िवशेष महÂव है । भाषा शैली पर हåरराम मीणा जी का पुणª अिधकार ह§ । उनके उपÆयास म¤ भाषा के Öतर पर आंचिलकता के दशªन होते ह§ । भाषा पाýŌ के अनुकूल चलती है । सारा आिदवासी अंचल जीवंत हो उठता है । उनके मेले ÂयŌहार, वेश भूषा, खान पान, नाच गान, सांÖकृितक उपा´यानŌ के साथ िचिýत होते ह§ । भाषा लोकगीतŌ, लोक मुहावरŌ से सिºजत होकर ओर भी अथªवान बन गई है । 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ देशकाल एवं वातावरण को देखने से पता चलता है कì उपÆयास कì कथा इितहास के अनुकूल लगती है। परंतु िजस तरह से औपÆयािसक कलाकृित को लेखक ने वातारण को िनमाªण करना चािहए था उस तरह से वातावरण िनमाªण नहé कर पाए है। काल कì ŀिĶ से उपÆयास कì कथा को देखा जाये तो १९ वé शताÊदी के उ°राधª से लेकर बीसवé शताÊदी के पूवाªĦª तक समय कì कथा ÿÖतुत कì है। उपÆयासकार ने ऐितहािसकता के साथ-साथ आिदवािसयŌ के आँचिलक वातावरण का भी इसम¤ ÿचुर माýा munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ कì भाषा-शैली
139 म¤ ÿयोग िकया है। इितहास के साथ-साथ Öथानीय वातावरण और भील, मीणा जीवन को दशाªया है। लोक संगीत, लोकगीत, लोक-कथाओं, लोक माÆयताओं, रीती-åरवाज, उÂसव आिद को आँचिलकता से जुड़ा है। इसम¤ ±ेýीय वातावरण िनमाªण करने म¤ लेखक सफल रहा है। जैसे िक भूत-ÿेत, जादू-टोना, डायनÿथा आिद िचýण से ±ेýीय वातावरण को सजीव बनाने का ÿयास लेखक ने िकया है। और कथा के अंत म¤ लेखक ने आिदवासी िसयासत और अंúेजŌ के िवŁĦ िवþोह पुकारते है उसका भी वातावरण सजीव और ÿभावी िदखाई देता है। 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ संवाद योजना को लेखक ने उभारा है। उसकì अपनी अलग िविशĶता है। लेखक ने उपÆयास म¤ िचिýत पाýŌ कì मनिÖथित, संÖकारŌ को Óयंिजत करने के िलए संवादŌ से काफì हद तक मदद ली है। कथा के जहाँ-जहाँ संवाद संि±Į रहे है, वहाँ पर कथा ÿभावािभÓयंजक लगती है। परंतु कथा म¤ ऐसे बहòत कम Öथल आते है। उपÆयास म¤ संवाद कही-कही लÌबे-लÌबे िदखाई देते है। वे संवाद भाषणŌ, ÿवचनŌ, उपदेशŌ, पý के वणªन से अिभÓयĉ हòए है। उपÆयास म¤ लÌबे-लÌबे ÿवचनŌ और भाषणŌ को देखने से पता चलता है कì कथा और चåरý के िवकास कì गित ±åरत हòई है। लÌबे-लÌबे संवाद से उपÆयास कì कथा म¤ Óयाघात उÂपÆन होता है। परंतु कही-कही कथा के संवाद पाýŌ के अनुकूल और उनके Öवभाव तथा संÖकारŌ के अनुकूल संवादŌ कì िविवधता ÿशंसनीय रही है। कुल िमलकर यही कह सकते है कì कथानक म¤ संवाद या कथोपकथन म¤ संवादŌ कì सहायता ली गई है। उसी कारण उपÆयास कì कथा औपÆयािसक कलाकृित म¤ िनखार बहòत कम ÖथलŌ पर आ गया है। अंत म¤ यही कह सकते है कì उपÆयास म¤ संवाद संि±Į, Öवाभािवक और पाýानुकूल िदखाई देते है। 'धूणी तपे तीर' उपÆयास का शीषªक से ²ात होता है िक धूणी तपे तीरŌ कì तरह आिदवासी शýुओं पर धावा करते है। शीषªक से उपÆयास ÿतीकाÂमक और ÓयंजनाÂमक लगता है। कथा म¤ अनेक छोटी-छोटी कथा उभरती हòई नज़र आती है और कहé-कही कथा िवलुĮ होती हòई िदखाई देती है। जैसे कì उपÆयास म¤ कई ÿकार कì कथा िदखाई देती है - िहडा कì कथा, सूरा बावड़ी, टंट्या भील, िदÐली दरबार कì कथा, महारानी िव³टोåरया हीरक जयंती महोÂसव, भीलŌ कì उÂपि° कथा आिद कई ÿकार कì कथा उपÆयास म¤ िचिýत हòई है। लेखक हåरराम मीणा ने इसे खंड िचýŌ म¤ ÿÖतुत िकया है। इसी के साथ उपÆयास म¤ नाटकìय, Éलैशबैक, पýाÂमक और ÖवÈन आिद का भी हåरराम मीणा सहारा िलया है। उपÆयास कì कथा पूरी तरह से धीमी गित से िवकिसत होती है और मÅयभाग म¤ ठहराव ºयादा िदखाई देता है। परंतु कथा कì अंत म¤ गित भी िदखाई देती है और उसम¤ रोचकता भी िदखाई देती है। उपÆयासकार कथा वणªन म¤ घिटत होनेवाली घटनाओं म¤ एक ÿकार से सूचना देता हòआ नज़र आता है। कही-कही ईÖट इंिडया कंपनी और åरयासत के लÌबे-लÌबे वणªन िदखाई देते है, उससे पाठक ऊब जाता है। उपÆयास को पढ़ने म¤ पाठक को धैयª रखना पढ़ता है। मेवाड़., डूंगरपुर, बांसवाड़ा, ÿतापगढ़ और कुशलगढ़ सिहत ईडर और संतरामपुर åरयासत तक कì कथा क¤þ म¤ रखी है। कथा का आरंभ साधारण ढंग से होता है। "कुåरया ने चकमक म¤ से िचनगारी पैदा कì। िचनगारी आग बनी। इसका मतलब पÂथरŌ म¤ आग है। जो पÂथरŌ म¤ आग है तो पहाड़ म¤ आग है और जो पहाड़ म¤ आग है तो िजन पहाड़Ō म¤ आिदवासी रहते ह§ उन आिदवािसयŌ के भीतर भी आग होनी चािहये। उस आग को म§ जलाना चाहता हóँ।" इस तरह से कथा का आरंभ एक साधारण ढंग से होता है। munotes.in

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140 ‘धूणी तपे तीर’ उपÆयास कì भािषक संरचना महÂवपूणª है । इस उपÆयास कì कलाकृित कì भाषा घिटत हòई घटना के अनुłप है । इसका रचाव एकदम साधा-सीधा और पाýŌ के अनुकूल दशाªया है । िवषेशतः लेखक हåरराम मीणा जी ने उपÆयास म¤ Öथािनय भाषा का ÿयोग िकया है । उपÆयास कì भाषा िबÌबŌ, ÿतीकŌ के माÅयम से ÿÖतुत कì है इसी के साथ संकेतŌ का भी ÿयोग िकया है । उसम¤ पाýानुकूल भाषा कì िविवधता को दशाªया है । अंúेज पाý उपÆयास म¤ अंúेजी भाषा का ÿयोग करते हòए नज़र आते है । बिÐक अÆय पाý अपने देहात कì परंपरागत चली आई हòई भाषा का ÿयोग करते है । इस ÿकार से भाषागत ÿयोगŌ म¤ संगित का अभाव िदखाई देता है । उपÆयास म¤ मुहावरŌ का ÿयोग ÿचुर माýा म¤ हòआ है । जैसे - उसने आव देखा न ताव, अपना उÐलू सीधा करना, गुÖसे कì आग सुलगाना, टेढ़ी नजरŌ से घूरना, हòकूम सरमाथे पर होना, हाथ पर हाथ िदये बैठे रहना, एक होकर रहना, मन म¤ उÐटा-सीधा अंदेशा घटना, टेड़ी नजरŌ से देखना, मदत कì गुहार लगाना, मौत के घाट उतार िदया, ढुंढ-ढुंढ कर दबोचना, बूंद-बूंद कर घड़ा भरना, आग म¤ घी का काम करना, िवÖमय के भाव उभरना, दो-टूक बात कहना, घर का जोगी जोग़ना, जैसा राजा वैसी ÿजा, िघµगी बंध गयी, िहÌमत से लड़ना, अमर होना, Åयान लगाते रहना, खराªटे भरना, मन उखड़ना, असफल हो जाना, नéद उड़ जाना, कोई लेना देना नहé होना, भूखा इÆसान कोई भी पाप कर सकता है, ऊंट के मुंह म¤ जीरा ही सािबत होना, गला łंध गया, घाव को हरा कर देना, अपने मन का भेद खोलना, िदल सदमे म¤ डूबना, अ³ल मारी जाना, अपना काम मन से करना, तीखी ÿितिøया Óयĉ करना आिद । अथाªत उपÆयास म¤ जगह-जगह पर कहावत¤ और लोकोिĉयŌ का ÿयोग भी हòआ है । जैसे - जोगी जोगना अर आन गाँव कì िसĦ, करम ÿधान जगत łिच राखा, िब¸छू का कांटा रोवे अर साँप का काटा सोवे, िबरथा जगत हँसायी मत करो आिद । इसी के साथ उपÆयास म¤ लेखक हåरराम मीणा जी ने Öथािनक शÊदŌ का ÿचुर माýा म¤ अवसर के अनुसार ÿयोग िकया है । जैसे - भगती, जागरती, िमनख, थावर, दरसन, ल³खण आिद कई शÊदŌ का ÿयोग िकया है । सािहÂय म¤ शैली से ही कथा संरचना का पता चलता ह§ । कृितकार कì अनुभूितयाँ अिधक जीवंत और ÿभावशाली बनाने का माÅयम शैली है । अपनी रचना म¤ कथा के सुýŌ को जोड़ते हòए उसे अúसर करने के िलए, ÿकरण को सजीव एवं िचýाÂमक बनाने के िलए एवं उसे िविशĶता ÿदान करने के िलए लेखक आवÔयकता नुसार शैिलयŌ का ÿयोग करता है । शैली के ÿयोग से सािहÂयकार कì अिभÓयिĉ सुंदर एवं पूणª बनती है । लेखक के अंतªमन म¤ भावŌ कì जो लहरे उठती है, उनकì अिभÓयिĉ शैली Ĭारा होती ह§ । ÿÂयेक रचनाकार कì अपनी-अपनी अलग पĦत होती ह§, वह िजस अनोखी पÅदित से अपनी कृित को रमणीय बनाता ह§, उस पÅदित को शैली कहा जाता ह§ । शैली के ŀिĶ से देखा जाए ‘धूणी तपे तीर’ म¤ लेखक हåरराम मीणा ने कथानक को ओर रोचक बनाने के िलए कई ÿकार कì शैिलयŌ का ÿयोग िकया है। इसम¤ िवशेषता वणªनाÂमक, ÓयंµयाÂमक, आँचिलक, पýाÂमक, काÓयाÂमक, िवĴेषणाÂमक आिद कई शैिलयŌ का ÿयोग है । वणªनाÂमक शैली बहòत ÿाचीन शैली ह§ । िहÆदी सािहÂय म¤ यह ÿधान शैली के łप म¤ उभरकर आयी है । इस शैली Ĭारा कथानक को संगठीत और िवकिसत करने का कायª िकया जाता है। अथाªत िजस शैली म¤ िकसी िवषय का िवÖतार से वणªन िकया जाता है उसे वणªनाÂमक शैली कहते है । इसम¤ पाýŌ के बाहय तथा आंतåरक Öवłप को अिभÓयिĉ करने के िलए लेखक इस शैली का ÿयोग करता ह§ । उपÆयास म¤ आिदवासी लोग होली उÂसव munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ कì भाषा-शैली
141 मनाने के िलए जंगल से थÌम लेकर आते है । जंगल म¤ बैठी रीśड़ी को देखकर आिदवासी ड़रते है । इसका वणªन करते हòए लेखक कहता है िक "हòआ यूं िक जब आमिलया कì तलहटी म¤ से हमने सेमल कì डाल काट ली थी और उसे छांग कर चलने वाले थे िक पास कì झािड़यŌ कì औट म¤ अपने बेटे ब¸चŌ के साथ रीछड़ी बैठी थी । वह अचानक डर गयी । हम पर धावा बोलती, उससे पहले हम पेड़Ō पर चढ़ गये । वह रीछड़ी ड़ाल छांगते वĉ गोमना के हाथŌ प°Ō सिहत एक टहनी को उसकì ओर फ¤कने से च§कì थी । गोमना को भी यह पता नहé था िक झािड़यŌ के पीछे कोई िजनावर है । रीछड़ी को गुÖसा होते देखते ही हम पेड़Ō पर चढ गये थे । थोड़ी देर रीछड़ी इधर-उधर गुराªयी और धरती पर पड़ी सेमल कì डाल को सूंघती हòई लौट गयी । उसने अपने दोनŌ ब¸चŌ को साथ िलया और पास के नाले म¤ उतर गयी । गोमना अभी ब¸चा है, उसे यह समझ नहé िक जंगली िजनावर िबना बात िकसी पर हमला नहé करते ।" गोिवंद गुł का ÿभाव आिदवासी भागŌ म¤ िनरंतर बढ़ रहा था। आिदवािसयŌ के िलए मागªदशªक, गुł तथा सही राÖतŌ पर लाने के िलए वे एक मसीहा के łप म¤ सामने आता है। उपÆयास म¤ सÌप सभा के गठन करने के बाद आिदवासी लोग इस गठन से जुड़ने लगे थे। दूसरी तरफ से åरयासत और अंúेज़ कì वजह से आिदवासी बेहाल हòए। उनकì लूटमार करने लगे। इससे भील और मीणा आिदवािसयŌ का जीवन अÂयंत दयनीय बन गया। लेखक कहते है "मेवाड़ के पहाड़ी ±ेýŌ म¤ हालात अÂयंत दयनीय है। आिदवािसयŌ म¤ भयंकर असंतोष फैला हòआ है। जगह-जगह उपþव, िहंसा व् लूट कì घटनाएं हòई। ÿतापगढ़, डूंगरपुर, कुशलगढ़ व बांसवाड़ा म¤ िÖथित िनयंýण से बाहर हो चुकì है। " इस तरह से वणªन उपÆयास म¤ िमलता है। िहÆदी उपÆयास म¤ ÓयंµयाÂमक शैली का महÂव अिधक है । इस शैली Ĭारा उपÆयासकार úामीण समाज कì वगªगत िवषमताओं, पीढ़ी-संघषª आिद बातŌ का िचýण करता ह§ । इस ÿकार Óयंग सÌपुणª िहंदी सािहÂय कì एक महÂवपुणª ÿवृि° बन गई ह§ । Óयंµय सदा दूसरŌ को िशकार बनाता है तथा इसकì ÿवृि° सदा दूसरŌ कì आलोचना करने कì होती ह§ । इस तरह से Óयंµय एक एैसी सोदेÔय रचना है, िजसम¤ िकसी Óयिĉ या समाज कì ÿचिलत बुराइयŌ पर सुधार कì भावना से कठोरता के साथ िवरोध करते हòए ÿहार िकया जाता है । लेखक ने परÖपर िवरोधी शÊदŌ को रखकर ही उपÆयास म¤ ÓयंµयाÂमक शैली का िनमाªण िकया ह§ । ‘धूणी तपे तीर’ म¤ हåरराम मीणा ने आिदवािसयŌ कì मानिसकता पर ÿहार िदखाया ह§ । इसिलए उपÆयास कì भाषा म¤ ÓयंµयाÂमकता अिधक ह§ । कुåरया बचपन म¤ चकमक पÂथरŌ से आग िनमाªण करता ह§ । इसे देखकर गोिवंदा कुछ कहना चाहता ह§, तब कुåरया ÓयंµयाÂमक शैली म¤ ÿहार करते हòए कहता है "तू बड़ा सादू आदमी है जो तेरी बात कान लगाकर सुनूं ।" गोिवÆदा दोÖतŌ के साथ िहरकुिलया बाबा कì तरफ िनकलता ह§ । राÖत¤ म¤ ही िब¸छू को कुåरया मार देता ह§ तो गोिवंदा इस तरह का कृÂय करने के िलए मना करता ह§ । इतने म¤ ही पाँच-सात कदम दुर से खरगोश को िबलाव जबड़ो म¤ दबोचता ह§ । इसके बारे म¤ दोÖत पुछते है तो गोिवÆदा कहता है िक "अब म§ कोई पंिडत तो हóं नहé, जो िवधाता कì रचना कì पार पा सकूं ।" इस तरह से Óयंµय कì शैली म¤ उपÆयासकार Óयĉ करता ह§ । गोिवÆद गुł ने पहला सÌम¤लन िलया था । इस सÌम¤लन म¤ समाज के सामने अपने िवचार रखते है और कहते है "अगर हाथ पर हाथ िदये बैठे रहे तो हमारी सुध लेने वाला अÌबर से नहé टपकेगा । हम¤ एकजुट होकर बुराइयŌ का िवरोध करना होगा ।" गोिवÆद गुł कì िगरÉतारी के बाद कुåरया आिदवासी लोगŌ म¤ गुł को छुड़ाने कì बात करता है तो गाँव का munotes.in

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142 गमेती अपने बेटे के मोह एवं दुख को ÓयंµयाÂमक शैली कहता है "तू ³या जाने बीबी-ब¸चŌ का मोह ³या होता है ।...... म§ पांच-सात महीना पागलŌ कì तरह इन घािटयŌ म¤ िकस कदर भटकता रहा था । िजस शेर ने मेरी औरत को खाया था, उसकì दहाड़ और मेरी पÂनी कì अंितम चीख आज भी मेरे कानŌ म¤ गूंजती है और जब थावरा गायब हòआ था तो म§ दुिनया म¤ अकेला रह गया था।" उपÆयास म¤ आदेश एवं ÿाथªना शैली के गुणŌ के समÆवय से भाषण एवं संबोधन शैली का िनमाªण होता है । इस ÿकार कì शैली म¤ ओज एवं ÿसाद दोनŌ ही गुण रहते है । उपÆयास म¤ हåरराम मीणा ने भाषण एवं संबोधनाÂमक शैली का ÿचुर माýा म¤ ÿयोग िकया है । इसम¤ आवेश कì माýा ही अिधक है, अतः इसम¤ भाषण शैली के संबोधन शैली के गुण अिधक रहते है । उपÆयास का नायक गोिवÆद गुł बचपन म¤ दोÖतŌ को ²ान कì बाते कहता है । यह ²ान कì बाते गाँव का मुिखया सुनता है तो उसे भी उसम¤ उसे आनंद आता ह§, तब लेखक नायक के łप म¤ कहता है िक "जो भी हमारे पास है उसम¤ गुजारा करना तो अपनी जगह ठीक है लेिकन ये राज के आदमी हम पर अनेक ÿकार के अÂयाचार करते ह§ और जागीरदार हम से िबना मेहताना बेगार कराते ह§ । इन बातŌ पर सोचने कì बजाय हमारे आदमी दाł पीकर शरीर व माथा खराब करते ह§ । अपनी औरतŌ व ब¸चŌ को आये िदन तंग करते रहते है । यह बुरी आदत है। इनका िवरोध हम¤ करना चािहए ना? अगर ऐसी बात¤ न हो तो ³या हमारा जीवन सुधर नहé जाएगा?" इस तरह कì बाते करके गाँव के मुिखया को संबोिधत करता है । नायक गोिवÆदा दोÖतŌ के साथ गढ़ी गाँव कì ओर जाता ह§ । उस समय आिदवासी लागŌ कì फसल ओलŌ से नĶ हो गयी थी । आिदवासी लोग िचितंत िदखाई देते ह§, गोिवÆदा आिदवािसयŌ को धीर देते हòए संबोिधत करता है िक "मुंह लटकाने से कुछ नहé होगा । भगवान हम¤ बहòत कुछ देता है तो उसे लेने का भी हक होगा । जो कुछ खो जाता है उससे पैदा हòई खाली जगह को भरने कì सीख सीखो । इस फसल के दाने तुÌहारे हाथ म¤ नहé आये । कोई बात नहé । धीरज रखना होगा । जंगल म¤ घास खूब है और दर´तŌ म¤ प°Ō कì कमी नहé । बैल-गाय-बकåरयŌ को चारा िखलाने म¤ कोई िद³कत नहé होगी । रहा सवाल तुÌहारे पेट का, तो इस बार जंगल म¤ दूर तक सही, तुम गŌद इकęा करना, कÂथा इकęा करना, शहद इकęा करना, सुखी लकड़ी इकęी करना और इस बार सबको बिनये को न बेचकर हाट म¤ जाकर बेचोगे तो दो पैसे ºयादा िमल¤गे और महòआ के दर´त काम चलाऊ कुछ ना कुछ देते ही रहते ह§ । भगवान पर भरोसा रखो । रोने-धोने से कुछ नहé होता। मेहनत से अपने बाल ब¸चŌ को पेट भरायी करो ।" िकसी भी तरह के संवाद भाषा को सबल बनाते ह§ । कथानक म¤ नवीनता लाने का काम संवाद ही करते है । संवादो म¤ अनेकłपता तथा पाýानुकूलता होने से पाýŌ के चåरý िवĴेषण म¤ सुिवधा रहती है । ÿÖतुत उपÆयास म¤ हåरराम मीणा ने संवादाÂमक शैली का बहòत अिधक माýा म¤ ÿयोग िकया है । उपÆयास का नायक गोिवÆदा बचपन म¤ िमýŌ के साथ संवाद शैली से बात करते हòए कहता है िक "देख रहा है चकमक के पÂथरŌ म¤ आग छुपी है । थोड़ा रगड़ना है, िचनगारी फुट उठती है । िचनगारी म¤ आग.....। तो ³या पहली बार देख रहा है? इसम¤ ³या नई बात ह§ !" यहाँ उपÆयासकार ने बहòत सिटकता से संवादाÂमक शैली का łप ÿÖतुत िकया है । डुंगरपुर महारावल के ÿित ठाकुर िशकारगाह एवं मोचाª िनमाªण करने के िलए आिदवािसयŌ को बेगार म¤ काम पर लगवाता ह§ । तब गाँव के गमेती एवं मुिखया ठाकुर से संवादाÂमक शैली से कहते है िक "‘मािलक एक सलाह है।’......‘हां बोल, ³या munotes.in

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‘धूणी तपे तीर’ कì भाषा-शैली
143 कहना चाहता है?’.....‘वह यह िक कांगरवा गांव म¤ तो बीस-प¸चीस ही घर है और यह बड़ा काम है । इसिलए मेरी अजª है िक पड़ौसी गांव वीरवाड़ा के लोगŌ को भी शािमल कर िलया जाय तो आपकì इ¸छानुसार यह काम तेजी से ही सकेगा ।’" महारावल गोिवÆद गुł को दरबार म¤ बुलाकर उÆह¤ गाँव, धन दौलत और ठाकुर के अिधकार देने कì बात करता ह§, तब उपÆयासकार कहता है िक "±मा कर¤ महाराज, म§ साधू आदमी हóं ये गांव व जागीर तो ईĵर ने आपको दी है । आप इÆह¤ सÌभाल¤ । मेरा तो आिदवािसयŌ म¤ काम करने से मतलब है। मुझे उÆहé कì सेवा करने द¤।" यहा गोिवÆद गुł के महाÂमा का दशªन होता है और आिदवािसयŌ के ÿित लगाव से काम करने कì ÿबल इ¸छा सामने आती हòई िदखाई देती है। सÌप-सभा के गठन के बाद आिदवासी लोग सÌपसभा म¤ भगत के łप म¤ सामील हो जाते ह§। आिदवािसयŌ के बीच सुधार लाने के िलए इस गठन के माÅयम से भगतŌ को कई कायª कì िजÌमेदारी दी जाती ह§ । संवादाÂमक शैली म¤ वĉÓय ÿÖतुत होता है िक "इस काम के िलए झाड़कड़ा के थावरा को भी कोई िजÌमा सŏपा जाय, इस बारे म¤ ³या कोई फैसला हम¤ नहé लेना चािहए? टंट्या मामा के साथ थावरा ने खूब काम िकया है । वह अ¸छा बÆदूकबाज है और छापामार लड़ाकू भé - .....आप सब राजी हो तो र±ा दलŌ के काम म¤ थावरा को पूंजा का मु´य सहयोगी बना िदया जावे । उसका अनुभव र±ा दलŌ के काम आयेगा ।" सÌप-सभा के माÅयम से आिदवािसयŌ के बीच जागरती हो जाती है । उनके िदल म¤ धूिणयŌ के ÿित आÖथा और धािमªक भावना िनमाªण होने से आिदवासी भड़कने कì आशंका थी । धूिणयŌ को नुकसान पहòँचाने का िसलिसला åरयासतŌ व अंúेजŌ के Ĭारा जारी था । इस धूिणयŌ कì र±ा के िलए संवाद शैली म¤ ÿÖतुत िकया है िक "धूणी-धाम हमारी जागरती के केÆþ ह§ । उन ÖथलŌ पर कì जाने वाली तोड़-फोड़ कì घटनाएँ िचंता-जनक है और खेदजनक भी । इस संबंध म¤ हम¤ डुंगरपुर, बांसवाड़ा व ईड़र नरेशŌ से सीधी बात करनी चािहए ।" इस तरह से लेखक हåरराम मीणा ने 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ कई शैिलयŌ के माÅयम से उपÆयास कì भाषा और शैली को उपयुĉ पÅदित से उभारा है । १२.३ सारांश अंत म¤ िजस ÿकार से सािहÂय के Öवłप कì अिभÓयिĉ का माÅयम कथानक, पाý और उसके चåरý-िचýण होता है । उसी ÿकार से सािहÂय के Öवłप कì अिभÓयिĉ का माÅयम िशÐप होता है और उस माÅयम का Öवłप भाषा शैली होती है । िवचारŌ के अनुकूल भाषा और भाषा के अनुकूल सािहिÂयक िवधा का गठन ही उपÆयास का एक और ÿधान तÂव है । इसम¤ हåरराम मीणा ने आिदवािसयŌ के जीवन के मौिलक łप को दशाªया गया है । उनकì भाषा समाज के अनुłप ही सशĉ एवं सटीक के łप म¤ सामने आती है । लेखक कì भाषा और उनके िशÐप कì िवधा पाठकŌ म¤ कौतूहल जगाती है और उÆह¤ शÊदŌ कì मािमªकता का भी एहसास कराती है । अतः हåरराम मीणा कì भाषा िवचार, भाव के अनुłप ही धारण करती हòई ÿतीत होती है । यही एक कुशल लेखक कì सफलता है और इसम¤ हåरराम मीणा इस ŀिĶ से सफल हòए है । munotes.in

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िविवध िवमशª एवं सािहÂय
144 १२.४ वैकिÐपक ÿij १. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì कथा िकस शताÊदी कì है? (क) १९ वé शताÊदी के उ°राधª (ख) १८ वé शताÊदी के उ°राधª (ग) २१ वé शताÊदी के उ°राधª (घ) २० वé शताÊदी के उ°राधª २. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì कथा म¤ िकस जाितयŌ का वणªन िकया है? (क) भील और मीणा (ख) मीणा और कबूतरी (ग) भील और गŏड (घ) गŏड और बंजारा ३. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ संवाद संि±Į होने से कथा है - (क) अÂयंत दयनीय (ख) ÿभावािभÓयंजक (ग) रोचक (घ) इसम¤ से कोई नहé ४. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास के शीषªक से ³या बोध होता है? (क) धूणी म¤ शािमल होना (ख) धूणी को अलग करना (ग) आग कì तरह जलना (घ) धूणी तपे तीरŌ कì तरह शýुओं पर धावा १२.५ लघु°रीय ÿij १. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास म¤ िबÌब से भाषा को सँवारा गया है, उसे संि±Į म¤ ÖपĶ कर¤? १२.६ बोध ÿij १. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì भाषा ÿतीकाÂमक एवं ÓयंजनाÂमक Ûयादा है, उसे सोदाहरण सिहत ÖपĶ कìिजए? २. 'धूणी तपे तीर' उपÆयास कì भाषा शैली पर िवÖतार से ÿकाश डािलए? १२.७ संदभª सूची १. कुछ िवचार – ÿेमचÆद २. धूणी तपे तीर - हåरराम मीणा ३. िहंदी उपÆयासŌ का िशÐपगत िवकास - डॉ. उषा स³सेना ४. िहÆदी उपÆयास िशÐप : बदलते पåरÿेàय - डॉ. ÿेम भटनागर ५. िहंदी सािहÂय म¤ आिदवासी िवमशª - डॉ. पंिडत बÆने ६. øांितकारी आिदवासी : आजादी के िलए आिदवािसयŌ का संघषª – सं. केदार ÿसाद मीणा ७. आिदवासी लोकगीतŌ कì संÖकृित - डॉ. राम रतन ÿसाद munotes.in