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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय आयय भाषा
इकाई की रुपरेखा
१.० आकाइ का ईद्देश्य
१.१. प्रस्तावना
१.२ प्राचीन भारतीय अयय भाषा का सामान्य पररचय
१.२.१ वैिदक संस्कृत
१.२.२ लौिकक संस्कृत
१.३ मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा का सामान्य पररचय
१.३.१ पािल
१.३.२ प्राकृत
१.३.३ ऄपभ्रंश
१.४ सारांश
१.५ दीघोत्तरी प्रश्न
१.६ िटप्पिणयााँ
१.७ संदभय ग्रंथ
१.०. इकाई का उद्देश्य प्रस्तुत आकाइ में छात्र िनम्निलिखत ि ंदुओं से पररिचत हो जायेंगे -
 प्राचीन भारतीय अयय भाषा का ऄध्ययन करेंगे |
 मध्यकालीन भारतीय अयय भाषाओं को जान सकेंगे |
 प्राचीन में वैिदक संस्कृत, लौिकक संस्कृत का पररचय प्राप्त हो जायेगा |
 मध्यकालीन अयय भाषाओं में पािल, प्राकृत और ऄपभ्रंश को िवस्तार से जानेगें |
१.१ प्रस्तावना भारत देश में अयों का अगमन होने के ाद से ही भारतीय अयय भाषा का आितहास शुरू
होता हैं | ये अयय करी न १५०० इ. पू. पििमी और पििमोत्तरी सीमा से भारत में प्रिवष्ट हुए
थे | आसी से हम यह कह सकते है िक भारत में अययभाषा का प्रारम्भ १५०० इ. पू. के munotes.in

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
2 असपास से हुअ है। त से अज तक भारतीय अययभाषा की अयु साढे तीन हजार वषों
की हो चुकी है। भािषक िवशेषताओं के अधार पर भारतीय अययभाषा की आस लम् ी अयु
को तीन कालखण्ड में िवभािजत िकया गया है | भारतीय अययभाषा का िवभाजन आस प्रकार
से हैं -
(१) प्राचीन भारतीय अययभाषा (प्रा.भा.अ.) १५०० इ. पू. - ५०० इ. पू.
(२) मध्यकालीन भारतीय अययभाषा (म.भा.अ.) ५०० इ. पू. - १००० इ.
(३) अधुिनक भारतीय अययभाषा (अ.भा. अ.) १००० इ. से ऄ तक
यहााँ पर प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भषाओं को िवस्तार से जान लेते हैं |
१.२ प्राचीन भारतीय आयय भाषा : (१५०० ई. पू. - ५०० ई. पू.) भारत में अयों का अगमन हुअ , त यहााँ िवशेषतः अयेतर लोगों के िमश्रण से भाषा में
पररवतयन होने लगा था | और वह ऄपनी भिगनी -भाषा इरानी से कइ ातों में ऄलग हो गइ।
भारतीय अययभाषा का प्राचीनतम रूप हमें वैिदक संिहताओं में देखने को िमलता है । वैिदक
संिहताओं का कालखण्ड १२०० इ. पू. से ९०० इ. पू. के लगभग है । वैिदक संिहताओं की
भाषा में भी एकरूपता नहीं थी । कुछ की भाषा हुत पूवयवती है, तो कुछ की परवती | ऊग्वेद
में ही प्रथम और दसवें मण्डलों की भाषा तो ाद की है, और शेष की पुरानी हैं | यही पुरानी
भाषा कहीं-ना-कहीं हमें ऄवेस्ता के िनकट िदखाइ देती है। ऄन्य संिहताएं (यजुः, साम,
ऄथवय) और ाद की हैं। तत्कालीन ोलचाल की भाषा से वैिदक संिहताओं की भाषा िभन्न
रही हैं, क्योंिक यह काव्य -भाषा है। ब्राह्मणों-ईपिनषदों की भाषा कुछ ऄपवादों को छोड़कर
संिहताओं के ाद की है। गद्य भाग की भाषा तत्कालीन ोलचाल की भाषा के हुत िनकट
की है। आस समय तक अयों का केन्र मध्यदेश हो चुका था, यहााँ की भाषा ईत्तरी िजतनी
शुद्ध नहीं थी। भाषा का और िवकिसत रूप हमें सूत्रों में िमलता है। संस्कृत पािणनीय संस्कृत
के काफ़ी पास पहुाँच गइ है, यद्यिप ईसमें पािणनीय संस्कृत की एकरूपता नहीं है। आसी काल
के ऄन्त में लगभग ५ वीं सदी में, पािणिन ने ऄपने व्याकरण में, ईदांच्य में प्रयुक्त संस्कृत के
रूप से, ऄपेक्षाकृत ऄिधक पररिनिित एवं पिण्डतों में मान्य रूप को िनयम द्ध िकया, जो
सदा-सवयदा के िलए लौिकक या क्लैिसकल संस्कृत का सवयमान्य अदशय न गया। पािणिन
की रचना के ाद पािल, प्राकृत, ऄपभ्रंश, अधुिनक भाषाओं के रूप में िवकिसत हुइ है,
परंतु संस्कृत में सािहत्य-रचना भी आसके समानान्तर ही होती चली अ रही है, जो मूलतः
पािणनीय संस्कृत होने पर भी हर युग की ोलचाल की भाषा का ऄनेक दृिष्टयों से कुछ
प्रभाव िलये हुए है, और यही का रण है िक ोलचाल की भाषा न होने पर भी ईस सािहित्यक
संस्कृत में भी िवकास होता अया है। भाषा िवद्वानों के ऄनुसार रामायण - महाभारत की
भाषा पािणिन के ाद की है। कािलदास से होते क्लैिसक संस्कृत, िहतोपदेश तक तथा और
अगे तक अइ है।
प्राचीन भारतीय आययभाषा के वनम्नवलवखत दो रूप हैं:
१. वैिदक संस्कृत munotes.in

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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
3 २. लौिकक संस्कृत
१.२.१ वैवदक संस्कृत : (१५०० ई. पू. से ८०० ई. पू.) वैिदक संस्कृत का कालखण्ड १५०० इ. पू. से ८०० इ. पू. तक है | वैिदक संस्कृत को
―वैिदक भाषा’, वैिदकी’, ―छन्दस‖, ―छान्दस,’ तथा ―प्राचीन संस्कृत‖ अिद नाम से भी पुकारते
हैं | भारतीय अयय भाषा समूह का प्राचीन रूप ―ऊग्वेद‖ में देखने को िमलता है। ऊग्वेद का
समय ऄिनिित है। ऊग्वेद के मंत्रों को देखने से स्पष्टतः ज्ञात होता है िक ईसकी रचना न
एक समय में हुइ है और न एक स्थान में । वह कइ शतािददयों और कइ स्थानों की रचना है
जैसा ईसमें िवद्यमान भाषा-भेद के िलए जाना जाता है । यह भाषा-भेद देश और काल के
भेद के कारण है। ऊग्वेद के दस मंडलों में प्रथम और दशम मंडल ाद की रचना माने जाते
हैं। वैिदक सािहत्य के ऄन्तगयत संिहता, ब्राह्मण, अरण्यक और ईपिनषद् अिद चार रूपों की
गणना होती है। संिहता से ईपिनषद् तक का िवकास भाव-धारा की दृिष्ट से ही नहीं, भाषा की
दृिष्ट से भी महत्वपूणय है। यह ऄन्तर शतािददयों में ही सम्भव हुअ होगा। आसे िनम्निलिखत
ईदाहरणों से देख सकते है -
ईप त्वाग्ने िदवेिदवे दोषावस्तिधया वयम्।
नमो भरन्त एमिस ॥
- ऊग्वेद; १-१-७
- हे ऄिग्न ! हम प्रितिदन प्रातः सायं ुिद्धपूवयक प्रणाम करते हुए तुम्हारे पास अते हैं।
यतो वाचो िनवतयन्ते ऄप्राप्य मनसा सह ।
अनन्द ब्रह्मणो िवद्वान् न ि भेित कुतिन ॥
- तैित्तरीयोपिनषद् ; नवम ऄनुवाक
यहााँ पर प्रथम ईदाहरण ऊग्वेद का है और दूसरा तैित्तरीयोपिनषद् का | ऊग्वेद के ईदाहरण
की भािषक प्राचीनता ि ना कहे भी स्पष्ट है। ऊग्वेद को छन्दस् भी कहा गया है, क्योंिक
ईसकी रचना छन्दो द्ध है। वेदों की तुलना में ब्राह्मण ग्रन्थों की महत्ता कइ दृिष्टयों से है
िजनमें एक यह भी है िक ब्राह्मण-ग्रन्थ मुख्यतः गद्य में हैं, आसिलए ईनसे वाक्य-रचना की
प्रणाली को जानने में सहायता िमलती है। वह सुिवधा छन्द में सम्भव नहीं, क्योंिक ईसमें
छन्द के ऄनुरोध से शददों का क्रम पररवितयत हो जाया करता है।
ऊग्वेद के संदभय में िवद्वानों की यह धारणा नी हुइ है िक िजस भाषा में ऊग्वेद की रचना हुइ
है, वह ोल-चाल की भाषा न होकर ईस समय की पररिनिित , सािहित्यक भाषा थी। परन्तु
िलिखत सािहत्य ईपलदध न होने से ईसे जानने का अज कोइ साधन नहीं है। वैिदक भाषा
से ही संस्कृत का िवकास हुअ है। संस्कृत का िवकास वैिदक के दले तद्युगीन िकसी ोली
से हुअ है जो ऄनेक कारणों से महत्वपूणय न गयी। आस िस्थित को समझने के िलए
खड़ी ोली का ईदाहरण ले सकते हैं। खड़ी ोली मेरठ के अस-पास के कुछ िजलों में ोली
जाती है, परंतु यहााँ राजनीितक, अिथयक, व्यापाररक अिद कारणों से वह ऄन्य ोिलयों की munotes.in

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
4 तुलना में अगे िनकल गयी और अज सम्पूणय भारत की रा्ट्रभभाषा न गयी है। खड़ी ोली के
रा्ट्रभभाषा या सािहित्यक भाषा होने का ऄथय यह नहीं होता है िक दूसरी ोली या भाषाएाँ
नहीं हैं । ोिलयााँ तो ऄनेक हैं, लेिकन िजस प्रकार से महत्ता खड़ी ोली को िमली है वह
ऄन्यों भाषा को प्राप्त नहीं हुइ । आसी तरह संस्कृत भी समसामियक आतर भाषाओं की तुलना
में अगे िनकल गयी और भारत की सांस्कृितक भाषा न गयी | संस्कृत शदद से वैिदक का
भी ोध होता है। संस्कृत ईस समय की िशष्ट भाषा थी जो ोलचाल के ऄितररक्त सािहत्य-
रचना का भी माध्यम थी। ईसमें ऄिभ-व्यंजना की ऐसी िवशेषताएाँ अ गइ िक हजारों वषों के
ाद भी वह ऄपना स्थान नाए रखी हुइ हैं ।
वैिदक संिहताओं, ब्राह्मणों, अरण्यकों तथा प्राचीन ईपिनषदों अिद में संस्कृत का यह रूप
िमलता है। आनमें भाषा को लेकर एक सुिनिित रूप िदखाइ नहीं देता है। िजस तरह से वैिदक
सािहत्य में आस भाषा का िवकास होता िदखाइ पड़ता है, ििर भी यहााँ पर कुछ ध्वन्यात्मक
एवं व्याकरिणक ातें ऐसी हैं िजसे वैिदक की सामान्य िवशेषताएं मान सकते है। तत्कालीन
ोलचाल की भाषा आसके समीप रही होगी, िकन्तु आसका यह अशय नहीं िक ोलचाल की
भाषा के सभी रूप आसमें सुरिक्षत हैं। संस्कृत की िविभन्न रूप प्रचिलत हुए हैं | पािणिन ने
आसको ―प्राचाम्‖ (पूवी), ―ईिदचाम्‖ (ईत्तरी) अिद कहकर भी स्पष्ट िकया हैं |
वैिदक संस्कृत में िनम्निलिखत ध्विनयााँ िवकिसत हो चुकी हैं -
मूल स्वर : ऄ, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऊ, लृ |
संयुक्त स्वर: ए, ऐ, ओ, औ |
व्यंजन : क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, ि, , भ,
म, य, र, ल, व, स, श, ष, ह, ळ्, ळ्ह । िवसगय, िजह्वा- मूलीय तथा ईपध्मानीय ह के
ईपस्विनम थे। ऄ, व, य अिद कइ ऄन्य के भी कइ ईपस्विनम थे। ळ्, ळ्ह मूधयन्य पाििक
प्रितवेिित थे।
स्वराघात: आसका मूल भारोपीय भाषा में महत्त्वपूणय स्थान हैं । अरम्भ में वह लात्मक था
िजसके कारण माित्रक ऄपश्रुित िवकिसत हुइ, िकन्तु ाद में वह संगीतात्मक हो गया िजसने
गुिणक ऄपधुित को जन्म िदया। आस भाषा पररवार के िवघटन के समय स्वराघात केवल
ईदात्त तथा स्वररत था। भारत-इरानी िस्थित में ऄनुदात्त भी िवकिसत हो गया। आस प्रकार
वैिदक संस्कृत को परम्परागत रूप से ऄनुदात्त, ईदात्त एवं स्वररत तीन प्रकार के स्वराघात
(संगीतात्मक) प्राप्त हुए थे। स्वराघात का आतना ऄिधक महत्त्व था िक सभी संिहताओं, कुछ
ब्राह्मणों एवं अरण्यकों तथा ृहदारण्यक अिद कुछ ईपिनषदों की पाण्डुिलिप स्वराघात-
िचिित िमलती है और ि ना स्वराघात के वैिदक छन्दों को पढना ऄशुद्ध माना जाता है ।
स्वराघात के कारण शदद का ऄथय भी दल जाता था। स्वराघात में पररवतयन से कभी-कभी
िलंग में भी पररवतयन हो जाता था। स्वराघात के संदभय में टनयर का कथन हैं िक ‗वैिदक
संस्कृत में संगीतात्मक एवं लात्मक दोनों ही स्वराघात था ।‘
रूप-रचना: रूप - रचना की दृिष्ट से वैिदक संस्कृत तथा वैिदक भाषा में तीन िलंग -
पुि्लंग, स्त्रीिलंग, नपुंसकिलंग और वचन भी तीन थे - एक वचन, िद्व. वचन , हु. वचन |
कारक-िवभिक्तयााँ - कताय, सम् ोधन, कमय, करण, सम्प्रदान, ऄपादान, सम् न्ध , ऄिधकरण munotes.in

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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
5 अिद अठ रही हैं | मूल भारोपीय में सवयनाम के मूल या प्राितपिदक हुत ऄिधक थे।
िविभन्न ोिलयों में कदािचत् िविभन्न मूलों के रूप चलते थे। पहले सभी मूलों से सभी रूप
नते थे, ाद में िमश्रण हुअ और ऄनेक मूलों के ऄनेक रूप लुप्त हो गए । ऄनेक मूलों से
ने रूप एक ही मूल के रूप माने जाने लगे ।
वैिदक भाषा में ईत्तम पुरुष में ही यद्यिप प्राचीन पंिडतों ने 'ऄस्मद्' को सभी रूपों का मूल
माना है, परन्तु ध्यान से देखा जाय तो ऄह - (ऄहम्), म - (माम्, मया, मम, मिय), अव -
(अवम्, अवाम्, ाम्, अवयोः), वय - (वयं), ऄरम - (ऄस्मािभः ऄस्मभ्यम्, ऄस्मे अिद)
आन पांच मूलों पर अधाररत रूप हैं। मध्यम अिद ऄन्य सवयनामों में भी एकािधक मूल हैं।
वैिदक भाषा में धातुओं के रूप अत्मने तथा परस्मै, दो पदों में चलते थे। कुछ धातुएाँ
अत्मनेपदी, कुछ परस्मैपदी एवं कुछ ईभयपदी थीं। अत्मनेपदी रूपों का प्रयोग केवल
ऄपने िलए होता था तथा परस्मै का प्रयोग दूसरों के िलए। िक्रयारूप तीनों वचनों (एक, िद्व,
हु) एवं तीनों पुरुषों (ईत्तम, मध्यम, ऄन्य) में होते थे | काल तथा िक्रयाथय िमलाकर िक्रया
के कुल ११ प्रकार के रूपों का प्रयोग िमलता है : लट्, लङ, िलट्, लुङ, लुट्, िनियाथय,
सम्भावनाथं (लेट्), िवध्यथय, अदराथय, अज्ञाथय, तथा अज्ञाथय (लोट्) ।
ऊग्वेद तथा ऄथवयवेद में लेट् का प्रयोग हुत िमलता है, िकन्तु धीरे-धीरे आसका प्रयोग कम
होता गया और ऄन्त में लौिकक संस्कृत में पूणयतः समाप्त हो गया । वैिदक में भिव्य के रूप
हुत कम हैं। ईसके स्थान पर प्रायः सम्भावनाथं या िनवायय का प्रयोग िमलता है।
समास: मूल भारोपीय एवं भारत-इरानी में आस रचना की प्रवृित्त थी । ईधर से ही यह
परम्परा वैिदक संस्कृत में अ गइ । वैिदक समस्तपद प्रायः दो शददों के ही िमलते हैं। आससे
ऄिधक शददों के समास ऄत्यन्त िवरल हैं | जहााँ तक समास के रूपों का प्रश्न है, वैिदक में
केवल तत्पुरुष, कमयधारय, हुब्रीिह एवं द्वन्द्व अिद चार समास िमलते हैं। लौिकक संस्कृत
के शेष दो समास ाद में िवकिसत हुए हैं।
शब्द: शददों की दृिष्ट से यहााँ पर दो ातें ई्लेखनीय है। एक तो यह िक ऄनेक तथाकिथत
तद्भव या मूल शदद से िवकिसत शदद प्रयुक्त होने लगे । वेद पे 'आह' (यहााँ) आसी प्रकार का है।
आसका मूल शदद ―आध‖ है । पािल 'आधों' और ऄवेस्ता 'आद' आसी ात के प्रमाण हैं िक महाप्राण
व्यंजन के स्थान पर 'ह' के िवकास से 'आध' से ही 'आह्' ना है। शददों की दृिष्ट से आस काल में
ऄनेक अयेतर शददों का अगमन होने लगा था । जैसे - वैिदक भाषा में ऄणु, ऄरिण, किप,
काल, गण, नाना, पु्कर, पु्प, मयूर, ऄटवी, तंडूल, मकयट अिद शदद एक ओर यिद रिवड़
से अए हैं, तो वार, कं ल, ाण, कोसल (स्थानवाची नाम), ऄंग (स्थानवाची नाम) अिद
अाँिस्ट्रभक भाषा से अए हैं |
बोवलयााँ: वैिदक काल में प्राचीन अययभाषा के कम-से-कम पििमोत्तरी, मध्यवती, पूवी अिद
तीन रूप या तीन ोिलयां थी । आसमें यिद र्-ल् ध्विनयों को ही अधार मानें तो कह सकते
हैं िक पििमोत्तरी ोली र्-प्रधान थी, मध्यवती में र्-ल् दोनों थे, और पूवी ल-प्रधान थी।
ऊग्वेद में पििमोत्तरी ोली का ही प्रितिनिधत्व हुअ है। पििमोत्तरी ोली में स्थानीय प्रभाव
प्रायः हुत कम पड़ा था , क्योंिक स्थानीय अयेतर जाितयााँ कुछ ऄपवादों को छोड़कर वहााँ
से भाग कर दिक्षण तथा पूर चली गइ थीं। आसी कारण पििमोत्तरी ोली को अदशय माना
गया। ईसे ईस समय 'ईदीच्य' भी कहते थे । munotes.in

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
6 १.२.२ संस्कृत या लौवकक संस्कृत : (८०० ई. पू. से ५०० ई. पू. तक) लौिकक संस्कृत को प्राय: ―संस्कृत’ ही कहा जाता है | आसका कालखण्ड हैं ८०० इ. पू. से
५०० इ. पू. तक हैं | भाषा के ऄथय में 'संस्कृत' शदद का प्रथम प्रयोग वा्मीिक रामायण में
िमलता है। संस्कृत या लौिकक संस्कृत महाभारत, पुराण, काव्य, नाटक अिद ग्रंथों में अज
तक ऄपना गौरव स्थािपत िकए हुइ हैं | यास्क, कात्यायन, पंतजिल अिद के लेखों से िसद्ध
हो जाता है की इसा पूवय तक संस्कृत एक लोक-व्यवहार की भाषा थी | वैिदक काल में भाषा
के तीन भौगोिलक रूपों का ऄथायत ईत्तरी, मध्यदेशी, पूवी का ई्लेख िकया जा चुका है।
लौिकक संस्कृत का मूल अधार ईत्तरी ोली थी, क्योंिक वही एक प्रामािणक मानी जाती
थी । पािणिन ने ऄन्यों के भी कुछ रूप िलये हैं और ईन्हें वैकि्पक कहा है। आस प्रकार
मध्यदेशी तथा पूवी का भी संस्कृत पर कुछ प्रभाव है ।
संस्कृत सािहत्य अयय - जाती का प्राण रहा हैं | आसी संस्कृत में प्राचीन ज्ञान, िवज्ञान
ईपलदध हैं | आसीिलए संस्कृत ने भारतीय भाषाओं को ऄनुप्रािणत न करते हुए िवि की
भाषाओं को भी प्रभािवत िकया हैं | लौिकक या क्लैिसकल संस्कृत सािहित्यक भाषा है।
िजस प्रकार से प्रसाद जी की भाषा का अधार मानक खड़ी ोली िहन्दी है जो ोलचाल की
भाषा है, ईसी प्रकार पािणनीय संस्कृत भी तत्कालीन पिण्डत-समाज की ोलचाल की
भाषा पर ही अधाररत है। पािणिन द्वारा ईसके िलए 'भाषा' शदद का प्रयोग , सूत्र
'प्रत्यिभवादेऽशूरे' का ईनके द्वारा ई्लेख, ोलचाल के कारण िवकिसत संस्कृत को
व्याकरण की पररिध में ााँधने के िलए कात्यायन द्वारा वाितयकों की रचना, ये ातें यह िसद्ध
करती हैं िक संस्कृत कभी ोलचाल की भाषा ऄवश्य थी। ऄतः हानयले, वे र तथा िग्रययसन
अिद पििमी िवद्वानों का यह कथन हैं िक संस्कृत ोलचाल की भाषा नहीं थी, िनराधार है।
यहााँ पर वैवदक और लौवकक संस्कृत में क्या अंतर हैं उसे देख लेते हैं :
(१) वैिदक भाषा का, लौिकक की तरह मानकीकरण ( standardization) नहीं हुअ था ,
आसी कारण लौिकक , िजस रूप में एकरूप एवं सािहित्यक है, वैिदक नहीं है।
(२) वैिदक में जहााँ मानकीकरण एवं िनयमन न होने से रूप की जिटलताएाँ है,
ऄनेकरूपताओं एवं ऄपवादों का अिधक्य है, लौिकक में वे या तो हैं ही नहीं, या हैं
भी तो वैिदक की तुलना में हुत ही कम ।
(३) वैिदक में 'लू' 'ऊ' ' ऊृ' के ईच्चारण स्वरवत् होते थे। संस्कृत में अकर ये कदािचत्
'िल', 'रर', 'री' जैसे ईच्चररत होने लगी थीं ।
(४) ऐ, औ के ईच्चारण वैिदक में अआ, अई थे, िकन्तु लौिकक संस्कृत में ये 'ऄआ', 'ऄई'
हो गए।
(५) ए, ओ का ईच्चारण वैिदक में 'ऄआ', 'ऄई' था, ऄथायत् ये संयुक्त स्वर थे, िकन्तु
संस्कृत ये मूल स्वर हो गए।
(६) लेखन में ळ् ळ्ह ऄक्षर समाप्त हो गए, और आनके स्थान पर ड, ढ प्रयुक्त होने लगे । munotes.in

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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
7 (७) कइ ध्विनयों के ईच्चारण-स्थान में ऄन्तर अ गया। ईदाहरणाथय, प्राितशाख्यों से
पता ललता है िक वैिदक त वगय ल्, स् दंतमूलीय थे, िकन्तु संस्कृत में
(लतुलसानांदन्ताः) ये दंत्य हो गए।
(८) वैिदक में संगीतात्मक स्वराघात था । आसके िवरुद्ध लौिकक संस्कृत में संगीतात्मक
स्वराघात के स्थान पर कदािचत् लात्मक स्वराघात िवकिसत हो गया। अधुिनक
भारतीय अययभाषाओं के लात्मक स्वराघात के ीज यहीं िमलने लगते हैं ।
(९) िक्रयारूपों में कुछ प्रमुख ऄन्तर ये हैं :
(क) वैिदक में लकारों में िवशेष प्रित न्ध नहीं है। लुङ, लङ, िलट में परोक्षािद का
भेद नहीं है। यहााँ तक िक कभी-कभी आनका कालेतर प्रयोग भी िमलता है। िकंतु
संस्कृत में ऐसा नहीं है। वैिदक का लेट् लौिकक में नहीं है, यद्यिप ईसके ईत्तम
पुरुष के तीन रूप लौिकक के लोट् में अ गए हैं। वैिदक में लङ, लुड़, लृड़ में
भूतकरण (augment) ऄ- नहीं िमलता , यद्यिप लौिक क में यह अवश्यक है।
(ङ) वैिदक में िलट् वतयमान के ऄथय में था, िकन्तु लौिकक में वह परोक्ष भूत के िलए
अता है ।
(१०) समासों में स से ड़ा ऄन्तर तो यह अया िक वैिदक में हुत ड़े- ड़े समास नाने
की प्रवृित्त नहीं थी, क्योंिक ईस भाषा में कृित्रमता नहीं है, िकन्तु संस्कृत में कृित्रमता
के िवकास के कारण ड़े- ड़े समस्तपद भी नने लगे । ऐसे ही वैिदक में केवल चार
समासों – तत्पुरुष, कमयधारय, हुब्रीिह, द्वन्द्व का ही प्रयोग प्रायः िमलता है, िकन्तु
लौिकक में िद्वगु और ऄव्ययीभाव भी प्रयुक्त होते हैं ।
(११) मूल भारोपीय भाषा में ईपसगय वाक्य में कहीं भी अ सकता था, िक्रया के साथ अना
ईसके िलए अवश्यक नहीं था । वैिदक में भी यह स्वच्छन्दता पयायप्त मात्रा में िमलती
है। जैसे 'यिच्चिद्ध ते िवशो यथा प्र देव वरुण व्रतम् िमनीमिस द्यिवद्यिव' । यहााँ 'प्र'
ईपसगय 'िमनीमिस' से सम् िन्धत है। िकन्तु आन दोनों के ीच तीन शदद अए हैं।
लौिकक संस्कृत में ईपसगय की यह स्वच्छन्दता नहीं िमलती ।
(१२) वैिदक में िवजातीय शदद अए थे- िवशेषतः रिवड़ एवं ऑिस्ट्रभक से, िकन्तु लौिकक
संस्कृत में ईनकी संख्या हुत ढ गइ (लगभग २ हजार) ।
बोवलयााँ - वैिदक भाषा के प्रसंग में पििमोत्तरी, मध्यदेशी तथा पूवी, आन तीन ोिलयों का
ई्लेख िकया जा चुका है | संस्कृत-काल में अयय भाषा-भाषी प्रदेश में कदािचत एक दिक्षणी
रूप भी जन्म ले चुका था |
१.३ मध्यकालीन भारतीय आयय भाषा : (५०० ई. पू. - १००० ई.) मध्यकालीन भा रतीय अययभाषा में यह संकेत िकया जा चुका है िक प्राचीन भारतीय
अययभाषा काल में जनभाषा पर अधाररत 'वैिदक' एवं 'लौिकक संस्कृत' भाषा के ये दो रूप
सािहत्य में प्रयुक्त हुए। दूसरे रूप ऄथायत लौिकक संस्कृत को पािणिन ने ऄपने व्याकरण में
जकड़कर ईसे सदा-सवयदा के िलए एक स्थायी रूप दे िदया हैं और वह ऄ ाध गित से munotes.in

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
8 पररवितयत होती हुइ ढती रही । आस जनभाषा के मध्यकालीन रूप को ही 'मध्यकालीन
भारतीय अययभाषा' की संज्ञा दी गइ है। आसका कालखण्ड ५०० इ. पू. से १००० इ. तक
ऄथायत् डेढ हजार वषों का है ।
मध्यकालीन अययभाषा को प्राकृत भी कहा गया है। 'प्राकृत' शदद के सम् न्ध में दो मत हैं :
(क) कुछ िवद्वान आसकी व्युत्पित्त 'प्राक् + कृत' ऄथायत् (संस्कृत से) ―पहले की नी हुइ'
या 'पहले की की हुइ‖ मानते हैं। दूसरे शददों में प्राकृत ―नैसिगयक‖ 'प्रकृत या ऄकृित्रम'
भाषा है, और आसके िवपरीत संस्कृत कृित्रम या संस्कार की हुइ भाषा है ।
निम साधु ने 'काव्यालंकार' की टीका में िलखा है: ‗प्राकृतेित सकल-जगज्जन्तूनां
व्याकरणािदिभरनाहतसंस्कारः सहजो वचन-व्यापारः प्रकृितः प्रकृित त भवः सेव
वा प्राकृतम् ।‘ आस रूप में प्राकृत पुरानी भाषा है, और संस्कृत ईसका संस्कार करके
नाइ हुइ ाद की भाषा ।
िग्रयसयन ने आसी को प्राआमरी प्राकृत कहा है। आसका ऄथय यह है िक आस ऄथय में
'प्राकृत' शदद का प्रयोग ईस जनभाषा के िलए है, जो वैिदक एवं संस्कृत-काल में
जनभाषा थी और िजसका कुछ पररिनिित एवं पंिडतों द्वारा मान्य रूप वैिदक है, एवं
परवती काल में िजसका सुसंस्कृत सािहित्यक रूप 'संस्कृत' है । ऄथायत् वह वैिदक
की भी जननी है, और ईसी का कुछ परवती रूप संस्कृत की जननी है।
(ख) प्राकृत की ईत्पित्त के संदभय में माकयण्डेय कहते है िक ‗प्रकृितः संस्कृतं तत्र भव
प्राकृतमुच्यते |‘ ऄथायत प्रकृित या मूल संस्कृत है, ईससे जन्मी भाषा को प्राकृत
कहते हैं । हेमचन्र कहते है की ‗प्रकृितः संस्कृतम् । तत्र भवं तदागतं वा प्राकृतम्|‘
ऄथायत प्रकृित या मूल संस्कृत है, और संस्कृत से जो अइ है, प्राकृत है।
ये दोनों मत एक-दूसरे के िवरोधी हैं। यिद ईस जनभाषा को प्राकृत कहते हैं िजसका
पररिनिित सािहित्यक रूप संस्कृत है, दूसरे शददों में िजससे संस्कृत ईत्पन्न है तो पहला
मत ठीक है, ऄथायत् प्राकृत संस्कृत की जननी है, िकन्तु यिद हम संस्कृत-कालीन जनभाषा
को भी संस्कृत ही कहें जो मूलतः वही था, केवल संस्कृत सािहित्यक भाषा थी और वह
जनभाषा तो दूसरा मत सही है, क्योंिक ५०० इ. पू. से १००० इ. तक ोली जानेवाली
प्राकृत भाषा ईसी का िवकिसत रूप है, ऄथायत् ईसी से िनकली है। ऄ प्रायः आस दूसरी
भाषा को प्राकृत कहते हैं, ऄतः आसे, ऄथायत् प्राकृत को हम 'संस्कृत से ईत्पन्न' मान सकते
हैं। यह प्राकृत भाषा वैिदक या लौिकक संस्कृत से ईद्भूत नहीं है, तत्कालीन जनभाषा से
ईद्भुत है या ईसका िवकिसत रूप है । आन १५०० वषों की प्राकृत भाषा को तीन कालों में
िवभािजत िकया गया है :
(१) प्रथम प्राकृत (५०० इ. पू. से १ इ. तक) ।
(२) िद्वतीय प्राकृत (१ इ. से ५०० इ. तक)
(३) तृतीय प्राकृत (५०० इ. से १००० इ. तक) ।
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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
9 १.३.१ पावल : (प्रथम प्राकृत) ुद्ध ने िजस भाषा में ईपदेश िदया था, ईसी भाषा को पािल कहा जाता हैं ऄथायत पािल ौद्ध
धमं की भाषा है। आसका काल ५वीं सदी इ. पू. से पहली सदी तक है। 'पािल' आस शदद की
व्युत्पित्त को लेकर िवद्वानों में मतभेद है। आसका प्राचीनतम प्रयोग ४थीं सदी में लंका में
िलिखत 'दीप ंस' ग्रंथ में हुअ है । लंका में आसका ऄथय ' ुद्धवचन' है। प्रिसद्ध अचायय ुद्ध-
घोष ने भी आसका प्रयोग लगभग आसी ऄथय में िकया है। त से लेकर 'पािल' शदद का प्रयोग
पािल सािहत्य में हुअ है, िकन्तु कभी भी भाषा के ऄथय में न होते हुए मगध भाषा, मागधी,
मागिधक भाषा अिद का प्रयोग हुअ है । भाषा के ऄथय में 'पािल' का प्रयोग ऄत्या धुिनक है
और यूरोप के लोगों द्वारा हुअ है।
यहााँ ―पािल‖ के संदभय में कुछ प्रमुख मतों का ई्लेख करते है:
I. अचायय ुद्धघोष (चतुथय शदी इ.) और अचायय धम्मपाल (छठी शती इ.) ने ‘पािल’ शदद
का प्रयोग ुद्धवचन या मूल ित्रिपटक के िलए िकया था | ईससे यह शदद ‘पािल’ भाषा
के िलए अया हैं |
II. 'पािल' शदद की व्युत्पित्त श्री िवधुशेखर भट्टाचायय के ऄनुसार संस्कृत ‘पंिक्त’ से पािल
की ईत्पित्त आस प्रकार से ताइ हैं - (पंिक्त > पिन्त > पित्त > परि > पि्ल > पािल)
III. एक मत के ऄनुसार वैिदक और संस्कृत अिद की तुलना में यह 'पि्ल' या 'गााँव' की
भाषा थी और 'पािल' शदद 'पि्ल' का ही िवकास है, ऄथायत् आसका ऄथय है 'गााँव की
भाषा' ।
IV. भण्डारकर तथा वाकरनागल के ऄनुसार 'पािल' शदद प्राकृत > पाकट > पाऄड >
पाऄल > पािल का ही िवकिसत रूप है। वस्तुतः ये ध्वन्त्यात्मक िवकास हुत
तकयसम्मत नहीं हैं।
V. कोसाम् ी नामक ौद्ध िवद्वान् के ऄनुसार, आसका सम् न्ध 'पाल्' ऄथायत् 'रक्षा करना'
से है। आसने ुद्ध के ईपदेशों को सुरिक्षत रक्खा है, आसीिलए यह नाम पड़ा है 'पा
पालेित रक्खतीित' रूप में भी कुछ लोगों ने 'पा' में 'िल' प्रत्यय लगाकर आसकी व्युत्पित्त
दी है। ऄथायत् यह ऄथों की रक्षा करती है, ऄतः पािल है। िकंतु यह भी क्पना की दौड़
मात्र है।
VI. डॉ. मैक्स-वेलेसर ने 'पािल' को 'पाटिल' (पाटिलपुत्र की भाषा) से व्युत्पन्न माना है ।
(पाटिल > पाडिल > पािल )
VII. िभक्षु जगदीश कश्यप द्वारा 'पािल' का सम् न्ध 'पररयाय' (सं. पयायय) से िदया है ।
'धम्म-पररयाय' या 'पररयाय' का प्रयोग प्राचीन ौद्ध सािहत्य में ुद्ध के ईपदेश के िलए
िमलता है । आनकी िवकास - परम्परा पररयाय > पिलयाय > पािलयाय पािल है ।

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
10 पािल भाषा के प्रवेश को लेकर कइ िवद्वानो ने ऄपने-ऄपने मत को दशायया हैं :
I. श्रीलंका के ौद्धों तथा चाआ्डसय अिद की यह धारणा है िक यह मगध की ोली थी ।
िकन्तु भाषा की िववेचना करने पर यह ात ऄशुद्ध ठहरती है। ध्विन और व्याकरण की
दृिष्ट से आसका मागधी से साम्य नहीं है।
II. वेस्टरगाडय तथा स्टेनकोनो अिद पािल को ईज्जियनी या िवध्यप्रदेश की ोली पर
अधाररत मानते हैं।
III. िग्रयसयन ने आसे मागधी माना था, यद्यिप आस पर पैशाची का भी प्रभाव स्वीकार िकया
था ।
IV. ओ्डेन गय ने पािल को किलंग की भाषा कहा था। रीज डैिवड्ज ने आसे कोसल की
ोली कहा है।
V. ्युडजय यूट पािन को पुरानी ऄधयमागधी से सं द्ध मानते थे।
आन मतों से एक ात यह स्पष्ट होती है िक पािल में िविभन्न प्रदेशों की ोिलयों के तत्त्व हैं,
आसी कारण िविभन्न लोगों ने आसे िविभन्न स्थानों से सं द्ध िकया है। वस्तुतः मूल में पािल
मध्यप्रदेश की भाषा है । ईस समय वह पूरे भारत में एक ऄंतःप्रांतीय भाषा जैसी थी, आसी
कारण ईसमें ऄनेक प्रादेिशक ोिलयों, िवशेषतः ुद्ध की भाषा होने से मागधी के भी कुछ
तत्त्व िमल गए। आस प्रकार से मूल रूप में पािल को शौरसेनी प्राकृत का पूवयरूप मान सकते
हैं।
सावहत्य: पािल सािहत्य का रचना -काल ४८३ इ.पू. से लेकर अधुिनक काल तक लगभग
ढाइ हजार वषों का रहा है। यहााँ पािल सािहत्य का सम् न्ध प्रमुखतः भगवान् ुद्ध से है, यो
कोष, छन्दशास्त्र तथा व्याकरण की भी कुछ पुस्तकें िलखी गइ हैं। परम्परागत रूप से पािल
सािहत्य को िपटक और ऄनुिपटक दो वगों में ांटते हैं, िजनमें जातक, धम्मपद, िमिलन्द
पन्हों, ुद्धघोष की ऄिकथा तथा महावंश अिद प्रमुख हैं।
ध्ववनयााँ: पािल के प्रिसद्ध वैय्याकरण कच्चायन के ऄनुसार पािल में ४१ ध्विनयां थी -
ऄखरापादयो एकचत्तालीस दूसरे प्रिसद्ध वैयाकरण मोग्गलान के ऄनुसार ४३ ध्विनयााँ थीं-
'ऄभावयो िततािलस वण्णा ' ।
ध्विन-िवषयक आसकी मुख्य ातें है:
(१) स्वरों में ह्रस्व ऍ, ओ दो नए िवकिसत हो गये।
(२) स्वर पूणयतः समाप्त हो गये | ऐ औ स्वर नहीं रहे।
(३) व्यंजनों में वैिदक की तरह ही, पािन में भी छ, ध्विनयााँ थीं।
(४) िवसगय, िजह्वामूलीय, ईपध्मानीय भी नहीं रहे।
(५) वैिदक तथा संस्कृत में श्, प्, स् तीन थे। पािल में तीनों के स्थान में सु हो गया। munotes.in

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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
11 (६) ऄनुस्वार पािल में स्वतन्त्र ध्विन है, िजसे पािल वैयाकरण के िनहीत नाम से
ऄिभिहत िकया है।
(७) ध्विन-पररवतयन की दृिष्ट से घोषीकरण, ऄघोषीकरण , महाप्राणीकरण , समीकरण आ-
―ल‖ का अपसी पररवतयन, महाप्राण का ―ह‖ हो जाना अिद की प्रवृित्त िमलती है।
स्वराघात - यहााँ स्वराघात की िस्थित िववादास्पद है। टनयर के ऄनुसार, पािल में वैिदकी की
भााँित ही संगीतात्मक एवं लात्मक, दोनों स्वराघात था । िग्रयसयन पािल में केवल लात्मक
स्वराघात मानते हैं। जल दलाक को पािल में िकसी भी स्वराघात के होने के ारे में सन्देह है।
ऄंतः पािल में मुख्यतः लात्मक स्वराघात ही था, यद्यिप संगीतात्मक के भी कुछ ऄवशेष
रहने की सम्भावना है ।
व्याकरण - पािल भाषा व्याकरिणक दृिष्ट से वैिदक संस्कृत की भााँित ही स्वच्छंद एवं िविवध
रूपोंवाली है िकन्तु साथ ही वैिदक या संस्कृत की तुलना में ईसमें पयायप्त सरलीकरण भी
हुअ है। यह सरलीकरण ईच्चारण में समीकरण अिद के रूप में तो हुअ ही है, साथ ही
सादृश्य के अधार पर िवकास के कारण व्याकरण के क्षेत्र में भी हुअ है।
(१) व्यंजनांत प्राितपिदक प्रायः नहीं है। ऄंत्य व्यंजन- लोप के सामान्य िनयम के कारण
या तो ऄंत्य व्यंजन लुप्त हो गये हैं (िवद्युत > िवज्जु) या ऄंत्य स्वरागम के कारण
शदद - स्वरांत (शरत्-सरद) हो गए हैं।
(२) सादृश्य के कारण िभन्न-िभन्न स्वरांत शददों के हुत से रूप भी समान हो गए हैं।
आस िदशा में ऄकारांत शददों ने ऄपने प्रयोग- ाहु्य के कारण ऄन्यों को प्रभािवत
िकया है। ईदाहरणाथय, आकारांत (ऄिग्ग), ईकारांत (िभक्खु) के सम्प्रदान एवं सम् न्ध
के रूप ऄकारांत के समान (ऄिग्गस्स, िभक्खुस्स) िमलते हैं।
(३) िलंग तीन हैं। यों ऄपने हुप्रयोग के कारण पुि्लंग ने नपुंसकिलंग को प्रभािवत िकया
है जैसे 'सुख' के िलए 'सुखो' ।
(४) द्वे, ईभो जैसे दो-एक रूपों को छोड़कर पािल में िद्ववचन नहीं है।
(५) वैिदक की तरह रूपािधक्य भी पािल में है । ईदाहरणाथय, धमय का सं. में सप्तमी एक. में
केवल 'धमे' होगा, िकन्तु पािल में धम्मे के ऄितररक्त धम्मिस्म तथा धम्मिम्ह भी है।
(६) पािल सवयनाम प्राय: पूवयवती सवयनाम रूपों के ही ध्विन िनयमों के ऄनुकूल िवकिसत
हैं। आनमें एक ही ऄन्तर है, और वह मामूली नहीं है िक वैिदक तथा लौिकक संस्कृत
में, सारे के सारे मध्यम पुरुष हुवचन के रूप 'य' से शुरू होते हैं, िकन्तु पािल में सारे
के सारे 'त' से शुरू होते हैं। जैसे यु्मे - तुम्हें, यु्माकम् —तुम्हाकं, अिद।
(७) िक्रयारूपों में ३ पुरुष तथा २ वचन (िद्व नहीं है) हैं। पद केवल परस्मै है । अत्मने
कुछ ऄपवादों को छोड़कर नहीं है । धातुओं के दसों गण है, यद्यिप संस्कृत की
तुलना में कुछ िमश्रण हो गया है। एक ही धातु के कुछ रूप एक गण के समान हैं तो
कुछ दूसरे के। आससे पता चलता है। िक जन-मिस्त्क में गणों की सत्ता धीरे-धीरे
समाप्त हो रही थी । munotes.in

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
12 बोवलयााँ एवं भाषा का रूप: पािल के समय अययभाषी भारत में चार ोिलयााँ थीं, िजनका
ई्लेख लौिकक संस्कृत में िकया जा चुका है - पििमोत्तरी, दिक्षणी, मध्यवती तथा पूवी ।
संस्कृत-काल की तुलना में ईनके ऄंतर कुछ और ईभर अए थे ।
प्रथम प्राकृत के ऄन्तगयत पािल के ऄितररक्त ऄिभलेखी प्राकृत भी अती है । आसके
ऄिधकांश लेख िशला पर हैं, ऄतः आसकी एक संज्ञा िशलालेखी प्राकृत भी है। आसकी सामग्री
है - (१) ऄशोकी ऄिभलेख, (२) ऄशोकेतर ऄिभलेख | ऄशोकी ऄिभलेखों से ३ सदी इ.
पू. में एवं ऄशोकेतर से इ. पु. की ऄंितम तीन सिदयों में भाषा की िस्थित तथा स्वरूप का
पता चलता है। साथ ही ईस काल में मानक भाषा की कम-से-कम चार ोिलयााँ थीं -
पििमोत्तरी, दिक्षणी-पििमी, मध्यपूवी, पूवी ।
१.३.२ प्राकृत - (१ ई. - ५०० ई. तक) ―प्राकृत’ शदद की ईत्पित्त के संदभय में िवचार करने पर यह ज्ञात होता हैं िक जनभाषा का
संस्कार करके ज ईसे 'संस्कृत' संज्ञा से िवभूिषत िकया गया तो वह जनभाषा, जो ईसकी
तुलना में ऄसंस्कृत थी, और पिण्डतों में प्रचिलत आस भाषा के िवरुद्ध, जो 'प्रकृत' या
सामान्य लोगों में ोली जाती थी, वह 'प्राकृत' नाम की ऄिधकाररणी न ैठी।
'प्राकृत' शदद के दो ऄथय हो जाते हैं - पहले ऄथय में यह ५ वीं सदी इ. पू. से १००० इ. तक
की भाषा है, िजसमें प्रथम प्राकृत में 'पािल' और 'ऄिभलेखी प्राकृत' है; िद्वतीय प्राकृत में
भारत एवं भारत के ाहर प्रयुक्त िविभन्न धािमयक, सािहित्यक और ऄन्य प्राकृत है, तृतीय
प्राकृत में ऄपभ्रंश (ऄवहि) अती हैं। दूसरे, केवल िद्वतीय प्राकृत के िलए भी प्राकृत नाम का
प्रयोग होता है। यहााँ, 'प्राकृत' शदद आसी दूसरे ऄथय में प्रयोग िकया जाता हैं ।
प्राकृतों के भेद:
यहााँ पर लेखन अधार, प्रदेश, धमय और प्रयोग अिद के अधार पर प्राकृतों के भेद िकए हैं
िजनमें से मुख्य शौरसेनी, पैशाची, माहारा्ट्रभी, ऄधयमागधी, मागधी, अिद हैं। आनकी संिक्षप्त
जानकारी नीचे दी गइ हैं ।
१. शौरसेनी:
यह प्राकृत का क्षेत्र शूरसेन प्रदेश याने मथुरा के असपास की ोली की थी । आसका िवकास
पािलकालीन स्थानीय भाषा से हुअ । यह मध्यदेश की भाषा थी | और मध्यदेश संस्कृत का
ही केन्र था, आसी कारण शौरसेनी ईससे हुत प्रभािवत रही है । आस प्रभाव के कारण
शौरसेनी में ऄपेक्षाकृत प्राचीनता है तथा यह कुछ कृित्रम है। संस्कृत नाटकों की गद्य की
भाषा शौरसेनी ही है। आसीकारण संस्कृत के नाटकों में आसका ऄिधक प्रयोग िमलाता हैं |
राज शेखर कृत ―कपूयरमंजरी‖ का गद्य भाग शौरसेनी में ही प्रस्तुत है। भास, कािलदास अिद
के नाटको में गद्य शौरसेनी में ही हैं | आसका प्राचीनतम रूप ऄिघोष के नाटकों में िमलता है।
जैनों (िदगम् र सम्प्रदाय) ने ऄपने साम्प्रदाियक ग्रन्थों के लेखन में भी आसका प्रयोग िकया
है। शौरसेनी में तत्सम शदद ऄपेक्षाकृत ऄिधक हैं।
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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
13 इसकी प्रमुख ववशेषताएाँ :
(१) शौरसेनी में दो स्वरों के ीच में अनेवाला संस्कृत के ―त्‖ को ―द्‖ हो गया है और ―थ्‖
का ―ध्‖ (गच्छित > गच्छिद, कथं > कधं) ।
(२) ―क्ष्‖ का िवकास ―क्ख्‖ में हुअ है (आक्षु > आक्खु, कुिक्ष > कुिक्ख)| यह ई्लेख्य है िक
माहारा्ट्रभी में यह ―च्छ्‖ (आक्षु > ईच्छु) हो जाता है।
(३) ॠ का िवकास आ है : (गृद्ध > िगद्ध) ।
(४) संयुक्त व्यंजनों के सरलीकरण की प्रवृित्त है, िकन्तु ऄद्धयमागधी या माहारा्ट्रभी अिद
से कम (कतुयम > कादु, ईत्सव > ईस्स व > उसव) । यह भी ई्लेख्य है िक ऐसी
िस्थित में क्षितपूरक दीघीकरण (ऄ > अ, ई > उ) की प्रवृित्त भी है।
(५) मध्यगत महाप्राण ख , घ, थ, ध, ि, भ, को ―ह‖ हो जाता हैं | (मुख > मुह, मेघ > मेह,
वधू > वहू, ऄिभनव > ऄिहणव) |
(६) ―न‖ को ―ण‖ हो जाता हैं | (नाथ > णाध, भिगनी > िहणी) |
(७) केवल परस्मैपद का प्रयोग िमलता है, अत्मनेपद का प्रायः नहीं ।
(८) रूपों की दृिष्ट से यह कुछ ातों में संस्कृत की ओर झुकी है, जो मध्यदेश में रहने का
प्रभाव है, िकन्तु साथ ही, माहारा्ट्रभी का भी आससे काफ़ी साम्य है ।
२. पैशाची:
महाभारत में कश्मीर के पास रहनेवािल 'िपशाच' जाित का ई्लेख है। पैशाची के संदभय में
िवद्वान कहते हैं िक िग्रयसयन पैशाची को वहीं की 'दरद' से प्रभािवत भाषा मानते हैं । हानयले
आसे रिवड़ों द्वारा प्रयुक्त प्राकृत मानते हैं। पुरुषोत्तम देव ने ऄपने प्राकृतानुशासन में संस्कृत
और शौरसेनी का आसे िवकृत रूप माना है। आस प्रकार आसको लेकर काफ़ी िववाद है। पैशाची
में आस समय सािहत्य नगण्य है । गुणाढ्य का ― ृहत्कथा‖ संग्रह मूलतः आसी में था। आसके ऄ
केवल दो संस्कृत रूपांतर ही - ― ृहत्कथामंजरी‖, ―कथासररत्सागर ‖ शेष हैं। हम्मीरमदयन
नाटक तथा कुछ ऄन्य नाटकों में कुछ पात्रों ने आसका प्रयोग िकया है।
इसकी मुख्य ववशेषता है:
(१) दो स्वरों के ीच में अने वाले स्पशय वगों के तीसरे और चौथे घोष व्यंजनों का क्रमश:
पहला और दूसरा ऄथायत् ऄघोष हो जाना - गगन > गकन , मेघ: > मेखो, दामोदर >
तामोतर, राजा > राचा। िकसी भी भाषा में ऄघोषीकरण के कुछ ईदाहरण तो िमलते
हैं, िकन्तु ऐसी सामान्य प्रवृित्त नहीं िमलती।
(२) पैशाची में पंचम वणय केवल ―न’ हैं |
(३) माध्यमगत व्यंजनों का लोप नहीं होता | (मधुरं > मथुरं, गाढं > कांठ)|
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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
14 ३. माहाराष्ट्री:
प्राकृत के सभी प्राचीन व्याकरणौं में महारा्ट्रभी को ही प्राकृत माना हैं | महारा्ट्रभी नाम से
ज्ञात हो जाता हैं िक ऄपने समय में यह महान रा्ट्रभ की रा्ट्रभीय भाषा थी | आस प्राकृत का
मूल स्थान महारा्ट्रभ है। और शुद्ध शदद महारा्ट्रभी हैं | आससे मराठी भाषा का िवकास हुअ
हैं| जूल दलाक ने भी मराठी का िवकास आसी के ोलचाल से माना है। कुछ लोग आसे केवल
महारा्ट्रभ तक सीिमत न मानकर महारा्ट्रभ , ऄथायत् पूरे भारत की भाषा मानने के पक्ष में हैं।
कुछ लोग आसे काव्य की कृित्रम भाषा मानते रहे हैं। माहारा्ट्रभी प्राकृत सािहत्य की दृिष्ट से
हुत धनी है । यह काव्य भाषा रही है। हाल कृत ―गाहा सत्तसइ ‖, प्रवरसेन कृत ―रावणवहो‖
तथा जयव्लभ कृत ―वज्जालग्ग‖ अिद आसकी ऄमर कृितयााँ हैं।
माहाराष्ट्री की प्रमुख ववशेषताएाँ:
(१) दो स्वरों के ीच अनेवाले ऄ्पप्राण स्पशय (क्, त्, प, द्, ग्, अिद प्रायः लुप्त हो गए
हैं (प्राकृत > पाईऄ, गच्छित > गच्छआ) |
(२) ईसी िस्थित में महाप्राण स्पशय (ख्, थ्, ि्, ध्, घ्, भ्) का केवल 'ह' रह गया है (क्रोध:
> कोहो, कथयित > कहेआ, मुख > मुह) |
(३) उ्म ध्विनयों (स श) का प्रायः 'ह' हो गया है (तस्य > ताह, पाषाण > पाहाण) ।
(४) महारा्ट्रभी प्राकृत की ई्लेखनीय िवशेषता है - स्वर ाहु्य | मध्यगत व्यंजनों के
लोप से स्वरों की प्रधानता रही हैं | ऄतएव आसमें संगीतात्मकता हैं |
(५) माध्यमगत ―य’ का सदा लोप होता हैं | (िप्रय > िपऄ, िवयोग > िवओऄ)|
४. अधयमागधी:
ऄधयमागधी का क्षेत्र मागधी और शौरसेनी के मध्य में है | ऄथायत यह प्राचीन कोसल के
असपास की भाषा है। आसमें मागधी के ऄिधक गुण िमलते हैं | साथ ही शौरसेनी के भी गुण
हैं | आसीिलए आसे ऄधयमागधी कहा जाता हैं | आस भाषा को ॠिषयों की भाषा या अययभाषा
भी कहा जाता हैं | भगवान महावीर सारे धमोपदेश आसी भाषा में रहे हैं | आसमें प्रचुर मात्रा में
जैन सािहत्य िमलता हैं | आसका प्रयोग प्रमुखतः जैन सािहत्य में हुअ है। आसीकारण
ऄधयमागधी का महत्व जैन-सािहत्य के कारण ऄिधक हुअ हैं |
इसकी ववशेषताएं है:
(१) ―ष‖, ―श‖ के स्थान पर प्राय: ―स‖ ( श्रावक > सावग , वषय > वास) का प्रयोग ।
(२) ऄनेक स्थलों पर दंत्य ध्विनयों का मूधयन्य हो जाना (िस्थत - िठय, कृत्वा - कट्टु) ।
यह प्रवृित्त ऄन्य प्राकृतों की तुलना में आसमें ऄिधक है।
(३) ―च‖ वगय के स्थान पर कहीं-कहीं ―त‖ वगय िमलता है (िचिकत्सा > तेहच्छा) |
(४) जहााँ कुछ ऄन्य प्राकृतों में स्वरों के ीच स्पशय का लोप िमलता है, वहााँ आसमें 'य'
श्रुित िमलती हैं | जैसे - सागर > सायर, िस्थत > िठय । munotes.in

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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
15 (५) गद्य और पद्य की भाषा के रूपों में ऄन्तर है । गद्य में मागधी की तरह 'ए' का प्रयोग
हुअ है, और प्रायः पद्य में शौरसेनी के समान 'ओ' का होता हैं |
५. मागधी:
मागधी का मूल अधार मगध के असपास की भाषा है। ऄथायत यह मगध की भाषा हैं |
लास्सन माहारा्ट्रभी एवं मागधी को एक मानते थे। कुछ िवद्वान आसका सम् न्ध महारा्ट्रभ से
मानते हैं। मागधी में कोइ स्वतन्त्र रचना नहीं िमलती । संस्कृत नाटकों में िनम्न श्रेणी के पात्र
आसका प्रयोग करते हैं । आसका प्राचीनतम रूप ऄिघोष में िमलता है। लंका में पािल को
―मागधी’ कहते हैं, क्यौिक पािल मगध से वहा गइ थी | आसके तीन प्रकार िमलते हैं -
शाकारी, चाण्डाली, शा री | मागधी से ही भोजपुरी, मैिथिल, ंगला, ईिड़या और ऄस मी
िवकिसत हुइ हैं |
इसकी प्रमुख ववशेषताएाँ है:
(१) आसमें ―स्‖, ―ष्‖ के स्थान पर 'श्' िमलता है | जैसे - सप्त > शत, पुरुष > पुिलश
(२) आसमें 'र' का सवयत्र 'ल' हो जाता है | जैसे - राजा > लाजा |
(३) प्रथमा एकवचन में संस्कृत ―ऄ:‖ के स्थान पर यहााँ ―ए‖ िमलता है | जैसे - देवः > देवे,
सः > शे।
(४) मध्यगत ―च्छ‖ को ―ि‖ होता हैं | जैसे - गच्छित > गििद |
आस तरह से प्राकृत के भेद हैं |
१.३.३ अपभ्रंश : तृतीय प्राकृत - (५०० ई. से १००० ई.): ऄपभ्रंश ऄथायत तृतीय प्राकृत का कालखण्ड ५०० इ. से १००० इ. तक रहा हैं | आसका
ऄथय है 'िगरा हुअ', 'ि गड़ा हुअ '। प्राकृत की तुलना में भी िजस भाषा में ध्वन्यात्मक तथा
व्याकरिणक पररवतयन हो गया था, ईसे पंिडतों ने 'ऄपभ्रंश' या 'ऄवहट्ट' ('ऄपभ्रष्ट') नाम िदया
हैं । ऄपभ्रंश प्राकृत तथा अधुिनक भारतीय अयय भाषाओं के ीच की कड़ी है। परंतु कुछ
िवद्वान यह मानते है िक ऄपभ्रंश प्राकृत और अधुिनक भाषाओं के ीच की कड़ी नहीं है,
प्राकृतकालीन ही एक क्षेत्रीय भाषा है, या एक प्राकृत है। ऄपभ्रंश प्राकृत और अधुिनक
भाषाओं के ीच की कड़ी है तथा हर अधुिनक भारतीय अययभाषा का जन्म िकसी-न-िकसी
ऄपभ्रंश से हुअ है। भाषा के ऄथय में ―ऄपभ्रंश‖ नाम का प्रयोग छठी सदी से िमलने लगता है ।
―ऄपभ्रंश‖ शदद का प्रयोग स से पहले ―महाभा्य‖ में िमलता हैं | ईसेक ाद भामह, दंडी
अिद ने काव्य-भाषाओं में ऄपभ्रंश का ई्लेख िकया हैं | माकयण्डेय ने नागर, ब्राचड़ और
ईपनागर - तीन ही ऄपभ्रंशों की चचाय की है । आनमें नागर की गुजरात में, ब्राचड़ की िसन्ध में
और ईपनागर की दोनों के ीच में िस्थित तायी गयी है। यहााँ पर माकयण्डेय ने केवल पििम
के सीिमत भू-भाग के ऄपभ्रंशों को प्रस्तुत िकया हैं । ईनके समानान्तर भारत के ऄन्य भागों
में भी िकसी-न-िकसी ऄपभ्रंश का व्यवहार होता होगा । आसिलए अधुिनक िवद्वानों ने प्रत्येक
प्राकृत से ऄपभ्रंश का ईद्भव माना है । आन िविभन्न ऄपभ्रंशों से ही अधुिनक भारतीय munotes.in

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भाषा ववज्ञान: वहंदी भाषा और व्याकरण
16 अययभाषाओं का ईद्भव हुअ है। आसिलए ऄपभ्रंश प्राकृतों और अधुिनक भारतीय भाषाओं
के ीच में सं ध जोड़नेवाला रहा है ।
बोवलयााँ: ोिलयों के संदभय में ―प्राकृत-सवयस्व‖ ग्रंथ में ऄपभ्रंश के कुल २७ भेद स्वीकार िकए
गए हैं | परंतु यहााँ मुख्य ऄपभ्रंश केकय, टक्क, व्राचड, शौरसेनी, माहारा्ट्रभी, ऄधयमागधी,
मागधी मानी जा सकती हैं, िजनका ई्लेख पीछे प्राकृतों के प्रसंग में िकया गया है। डॉ.
चटजी ने खस नाम की एक ऄपभ्रंश की भी क्पना की है िजसका स्थान पवयतीय क्षेत्रों में
माना है। याको ी ने ऄपभ्रंश के चार भेद, तगारे ने तीन भेद तथा नामवर िसंह ने दो भेद िकए
हैं, लेिकन ये भेद सािहत्य में प्रयुक्त भाषा के अधार पर िकए गए हैं। प्राकृतों और अधुिनक
भारतीय भाषाओं के ीच की कड़ी के रूप में ऄपभ्रंश के ६-७ भेद माने जाते हैं ।
अपभ्रंशों की सामान्य ववशेषताएाँ:
(१) 'ऄ' का पूवी तथा पििमी ऄपभ्रंशो में संवृत-िववृत का भेद था।
(२) ―ऊ‖ का िलखने में प्रयोग था, िकन्तु ईसका ईच्चारण 'रर' होता था ।
(३) ―श्‖ का प्रचार केवल मागधी में था।
(४) ―ल्‖ माहारा्ट्रभी के साथ-साथ ईड़ीसा में ोली जाने वाली मागधी एवं गुजरात,
राजस्थान, ांगड, पहाड़ी में ोली जाने वाली शौरसेनी में भी था। ळ्ह का भी प्रयोग
होता था।
(५) स्वरों का ऄनुनािसक रूप (ऊ का नहीं) प्रयुक्त होने लगा था।
(६) संगीतात्मक स्वराघात समाप्त हो चुका था। लात्मक स्वराघात िवकिसत हो चुका
था।
(७) ऄपभ्रंश एक ईकार- हुला भाषा थी। 'प्राकृत धम्मपद' ग्रंथ में भी आसकी प्रवृित्त
िमलती हैं। ऄपभ्रंश में यह हुत ऄिधक है, जहााँ से यह ब्रजभाषा या ऄवधी अिद को
िमली है | जैसे - एक्कु, कारणु, िपयासु, ऄगु, मूलु और जगु अिद ।
(८) ध्विन-पररवतयन की दृिष्ट से जो प्रवृित्तयााँ पािल में शुरू होकर प्राकृत में िवकिसत हुइ
थीं, ईन्हीं का यहााँ पर अकर िवकास हो गया ।
(९) ―य‖ का ―ज‖, ―म‖ का ―वें‖, ―व‖ का ― ‖; ―्ण‖ का ―न्ह‖, ―क्ष‖ का ―क्ख‖ या ―च्छ‖ अिद रूपों
में ध्विन-िवकास की हुत -सी प्रवृित्तयााँ िमलती हैं।
(१०) भाषा काफ़ी िवयोगात्मक हो गइ।
(११) नपुंसकिलंग समाप्त हो गया ।
(१२) रूपों की संख्या कम हो गइ। ईदाहरण के िलए, संस्कृत में एक संज्ञा के कारकीय रूप
लगभग २० होते थे, ऄ ५-६ ही रह गए।
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प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा
17 १.४ सारांश प्रस्तुत आकाइ में प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय अयय भाषाओं का िवस्तार से ऄध्ययन
िकया गया हैं | यहााँ पर अयय का भारत में अगमन होने के ाद ईनकी भाषा तत्कालीन
इरानी भाषा से ऄलग होने से भारतीय क्षेत्र में भाषाओं का पररवतयन होने लगा था | और यह
पररवतयन अयय लोगों के िमश्रण से ही हो रहा था | आसका प्राचीनतम रूप वैिदक सिहंताओं में
िमल जाता हैं | परंतु वैिदक सिहंताओं की भाषा काव्य की भाषा होने से तत्कालीन
ोलचाल की भाषा से िभन्न थी | आसी के साथ वैिदक संस्कृत, लौिकक संस्कृत, पािल,
प्राकृत और ऄपभ्रंश अिद का िवस्तार से छात्रों ने ऄध्ययन िकया हैं |
१.५ दीघोत्तरी प्रश्न १. प्राचीन भारतीय अयय भाषाओं पर िवस्तार से प्रकाश डािलए |
२. मध्यकालीन भारतीय अयय भाषा को तीन कालों में िवभािजत िकया हैं ईस पर
प्रकाश डािलए |
३. वैिदक संस्कृत और लौिकक संस्कृत को रेखांिकत कीिजए |
१.६ विप्पवणयााँ १. वैिदक संस्कृत २. लौिकक संस्कृत ३. पािल
४. ऄपभ्रंश ५. प्राकृत
१.७. संदभय ग्रंथ १. भाषा िवज्ञान एवं भाषा शास्त्र - डॉ. किपलदेव िद्ववेदी
२. िहंदी भाषा - डॉ. भोलानाथ ितवारी
३. भाषा िवज्ञान - डॉ. दान हादुर पाठक ―वर’, डॉ. मनहर गोपाल भागयव
४. िहंदी भाषा का आितहास - धीरेंर वमाय
५. भाषा िवज्ञान की भूिमका - अचायय देवेन्रनाथ शमाय


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18 २
आधुिनक भारतीय आयª भाषा
इकाई कì Łपरेखा
२.० इकाई का उĥेÔय
२.१ ÿÖतावना
२.२ आधुिनक भारतीय आयª भाषा
२.२.१ िसÆधी
२.२.२ मराठी
२.२.३ पंजाबी
२.२.४ गुजराती
२.२.५ बांµला
२.३ सारांश
२.४ दीघō°री ÿij
२.५ िटÈपिणयाँ
२.६ संदभª úंथ
२.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओ का छाý अÅययन कर¤ग¤ -
 आधुिनक भारतीय भाषा को िवÖतार जान सक¤गे |
 िसÆधी, मराठी, पंजाबी, गुजराती और बांµला आिद भाषाओं का पåरचय ÿाĮ होगा |
२.१ ÿÖतावना भाषा िव²ान का सीधा अथª होता है ‘भाषा का िव²ान ’ और िव²ान का अथª है ‘िविशĶ
²ान|’ इस ÿकार से “भाषा का िविशĶ ²ान भाषािव²ान कहा जाता ह§ |” मानव अपने भावŌ
को Óयĉ करने या अपनी अिभÓयिĉ को ÿÖतुत करने के िलए िजस साथªक मौिखक साधन
का ÿयोग करता है और उससे एक नई शैली िनकलती है, वही भाषा ह§ | मनुÕय अपने भावŌ
को सूàम और ÖपĶ łप म¤ Óयĉ करने के िलए इस साधन का ÿयोग करता है | इसी के
साथ मनुÕय मनन, िचंतन और िवचार करता ह§ वह भी एक ÿकार का साधन भी भाषा ही ह§|
२.२ आधुिनक भारतीय आयª भाषा : (१००० ई. से अब तक) आधुिनक भारतीय आयªभाषा का काल सन १००० ई. से वतªमान समय तक का रहा है |
इनम¤ ÿमुखतः भारत कì वतªमान आयª भाषाओं कì गणना कì गई है। इनकì उÂपि° ÿाकृत munotes.in

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आधुिनक भारतीय आयª भाषा
19 भाषाओं से न होकर अपĂंशŌ से हòई थी । शौरसेनी अपĂंश से िहंदी, राजÖथानी, पंजाबी,
गुजराती और पहाड़ी भाषाओं का संबंध रहा है। इनम¤ गुजराती और राजÖथानी का संपकª
िवशेषतः शौरसेनी के नागर अपĂंश के łप से है। िबहारी, बंगाली, आसामी और उिड़या का
संबंध मागध अपĂंश से है । पूवê िहंदी का अधª-मागधी अपĂंश से तथा मराठी का महाराÕůी
अपĂंश से संबंध है। वतªमान पिIJमो°री भाषाओं का समूह शेष रह गया । भारत के इस
िवभाग के िलए ÿाकृतŌ का कोई सािहिÂयक łप नहé िमलता। िसंधी के िलए वैयाकरणŌ को
āाचड अपĂंश का सहारा अवÔय है। लहंदा के िलए एक केकय अपĂंश कì कÐपना कì जा
सकती है। यह āाचड अपĂंश से िमलती-जुलती रही होगी। पंजाबी का संबंध भी केकय
अपĂंश से होना चािहए, िकंतु बाद को इस पर शौरसेनी अपĂंश का ÿभाव बहòत पड़ा है।
पहाड़ी भाषाओं के िलए खस अपĂंश कì कÐपना कì गई है, परंतु बाद म¤ ये राजÖथानी से
बहòत ÿभािवत हो गई थé। वतªमान भारतीय आयª भाषाओं का सािहÂय म¤ ÿयोग कम से कम
१३ वी शताÊदी ईसवी के आिद से ÿारंभ हो गया था | अपĂंश का Óयवहार १४ वé शताÊदी
तक सािहÂय म¤ होता रहा था। िकसी भाषा के सािहÂय म¤ ÓयवŃत होने के योµय बनने म¤ कुछ
समय लगता है। मÅयकालीन भारतीय आयª भाषाओं के अंितम łप अपĂंशŌ से तृतीय काल
कì आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं का आिवभाªव १० वé शताÊदी ईसवी के लगभग हòआ
होगा। इसी समय एक घटना हòई थी, १००० ईसवी के लगभग ही महमूद ग़ज़नवी ने भारत
पर ÿथम आøमण िकया था। आधुिनक भारतीय आयª-भाषाओं म¤ हमारी िहंदी भाषा भी
सिÌमिलत थी, उसका जÆमकाल भी दसवé शताÊदी ईसवी के लगभग माना जा सकता ह§ ।
आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं का सामाÆय पåरचय नीचे िदया गया है -
२.२.१ िसÆधी :
Öवतंýता के पूवª यह भाषा भारत म¤ िसÆध ÿाÆत कì भाषा थी | इस भाषा कì उÂपि° āांचड
अपĂंश से हòई ह§ | िसंध ÿांत म¤ िसंधु नदी के िकनारŌ पर िसंधी भाषा बोली जाती है । इस
भाषा के बोलनेवाले ÿायः मुसलमान ह§, इसिलए फ़ारसी शÊदŌ का ÿयोग बड़ी Öवतंýता से
होता है। िसंधी भाषा फ़ारसी िलिप के एक िवकृत łप म¤ िलखी जाती है, यīिप िनज के
िहसाब-िकताब म¤ देवनागरी िलिप का एक िबगड़ा हòआ łप ÓयवŃत होता है । यह कभी-कभी
गुŁमुखी म¤ भी िलखी जाती है। िसंधी भाषा कì पाँच मु´य बोिलयां ह§ - िबचौली, िसरैकì,
लाड़ी, थरेली, क¸छी। इनम¤ िबचौली मु´य है। िजनम¤ से मÅय-भाग कì 'िबचौली' बोली
सािहÂय कì भाषा का Öथान िलए हòए है। िसंध ÿदेश म¤ ही पूवªकाल म¤ āाचड देश था, जहां
कì ÿाकृत और अपĂंश इस देश के अनुसार āाचडी नाम से ÿिसĦ थé। िसंध के दि±ण म¤
क¸छ Ĭीप म¤ क¸छी बोली जाती है। यह िसंधी और गुजराती का िमि®त łप है, यīिप इसम¤
कुछ सुधार अवÔय कर िलए गए ह§। इसम¤ सािहÂय नाममाý का है। उÐलेखनीय úÆथ
'शाहजी åरसालो ' है।
२.२.२ मराठी :
मराठी महाराÕů कì ÿमुख भाषा ह§ | इस भाषा कì उÂपि° महाराÕůी अपĂंश से हòई ह§
अथाªत दि±ण म¤ महाराÕůी अपĂंश कì पुýी मराठी भाषा है। मराठी भाषा म¤ िशलालेख तथा
ताăपý ९८३ ई. से िमलने लगते ह§ | इसका आिवÕकार महाराज िशवाजी के समय munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
20 (१६२७-८० ई.) के सुÿिसĦ मंýी बालाजी अवाजी ने िकया था। मराठी का सािहÂय
िवÖतीणª, लोकिÿय तथा ÿाचीन है । इसकì चार बोिलयाँ मु´य ह§ –
(क) देशी - दि±णी भाग म¤ बोली जाती है । इसको दि±णी भी कहते ह§ ।
(ख) कŌकणी - समुþी िकनारे कì बोली है ।
(ग) नागपुरी - नागपुर के समीप कì बोली है ।
(घ) बरारी - बरार कì बोली है ।
मराठी ÿायः देवनागरी िलिप म¤ िलखी और छापी जाती है । इसे ‘बालबोध’ भी कहा जाता ह§|
िनÂय Óयवहार म¤ 'मोड़ी' िलिप का Óयवहार होता है। इसका शÊद भंडार म¤ तÂसम, तĩव,
फ़ासê तथा þिवड़ शÊदŌ कì अिधकता िदखाई देती ह§ | मराठी सािहÂय उ¸चकोिट का होने
से इसम¤ मुकुंदराज, ²ानेĵर, रामदास, तुकाराम, नामदेव आिद कì रचनाएँ महÂवपूणª ह§ |
इसम¤ संत सािहÂय का िवशाल भÁडार िमलता ह§ |
२.२.३ पंजाबी :
इस भाषा कì उÂपि° पैशाची या कैकेय अपĂंश से हòई है और शौरसेनी का भी ÿभाव
िदखाई देता ह§ | पंजाबी भाषा का अिधक°र भाग िहंदी के ठीक पिIJमो°र म¤ है। यह
पािकÖतानी पंजाब के पूवª भाग तथा पिIJमी पंजाब म¤ बोली जाती है। पंजाब के पूवê भाग म¤
िहंदी का ±ेý है । पंजाबी भाषा ‘लहंदा’ से ऐसी िमली हòई है िक दोनŌ को अलग करना किठन
है, िकंतु पिIJमी िहंदी से इसका भेद ÖपĶ है। पंजाबी कì अपनी िलिप ‘लंडा’ ही है। यह
राजपूताने कì महाजनी और काÔमीर कì शारदा िलिप से िमलती-जुलती ह§ । यह िलिप बहòत
अपूणª है और इसके पढ़ने म¤ बहòत किठनता होती है। िस³खŌ के ‘गुŁ अंगद’ (१५३८-५२
ई.) ने देवनागरी कì सहायता से इस िलिप म¤ सुधार िकया था। ‘लंडा’ का नया łप 'गुŁमुखी'
कहलाया । आजकल पंजाबी भाषा कì पुÖतक¤ इसी िलिप म¤ छपती ह§। इस इलाके म¤
मुसलमानŌ कì सं´या अिधक होने के कारण पंजाब म¤ उदूª भाषा का ÿचार बहòत था |
पंजाबी भाषा का शुĦ łप अमृतसर के िनकट बोला जाता है | इस भाषा म¤ सािहÂय अिधक
नहé ह§ | िस³खŌ के úंथ साहब कì भाषा ÿाय: मÅयकालीन िहंदी (āज) है, यīिप वह
गुŁमुखी अ±रŌ म¤ िलखा गया ह§ | पंजाबी भाषा म¤ बोिलयŌ का भेद अिधक ह§ | इसम¤
उÐलेखनीय एक माý केवल बोली ‘डŌúी’ ह§ | यह जÌमू राºय म¤ बोली जाती है | ‘त³करी’
या ‘टाकरी’ नाम कì इस कì िलिप िभ Æन है |
२.२.४ गुजराती :
यह गुजरात ÿाÆत कì भाषा है। शौरसेनी अपĂंश के नागर łप से गुजराती भाषा का िवकास
हòआ है। गुजराती भाषा गुजरात, बड़ोदा और िनकटवतê अÆय देशी राºयŌ म¤ बोली जाती है।
गुजराती म¤ चोिलयŌ का ÖपĶ भेद अिधक नहé है। पारिसयŌ Ĭारा अपनाई जाने के कारण
गुजराती पिIJम भारत म¤ Óयवसाय कì भाषा हो गई है। भीली और खानदेशी बोिलयŌ का
गुजराती से बहòत संपकª है। गुजराती का सािहÂय बहòत िवÖतीणª तो नहé है, िफर भी उ°म
अवÖथा म¤ है। गुजराती के आिद किव नरिसंह मेहता का (जÆम १४१३ ई.) गुजरात म¤ अब munotes.in

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आधुिनक भारतीय आयª भाषा
21 भी बहòत आदर है। ÿिसĦ ÿाकृत वैयाकरण हेमचंþ भी गुजराती ही थे। यह १२ वé शताÊदी
ई. म¤ हòए थे । इÆहŌने अपने Óयाकरण म¤ गुजरात कì नागर अपĂंश का वणªन िकया है। ÿाचीन
काल म¤ अब तक कì भाषा के øम-पूवª उदाहरण केवल गुजरात म¤ ही िमलते ह§ । अÆय
ÖथानŌ कì आयªभाषाýŌ म¤ यह øम िकसी न िकसी काल म¤ टूट गया है। गुजराती पहले
देवनारी िलिप म¤ िलखी जाती थी, िकÆतु अब गुजरात म¤ क§थी से िमलते-जुलते देवनागरी के
िबगड़े हòए łप का ÿचार हो गया ह§ जो गुजराती िलिप कहलाती ह§ | गुजरात का ÿाचीन नाम
'लाट' था। यहाँ कì भाषा 'लाटी' थी। संÖकृत म¤ 'लाटी' शैली ÿिसĦ है। यहाँ अरब, पारसी,
तुकª आिद बड़ी सं´या म¤ बाहर से आकर बसे ह§। अतः िवदेशी तßव भाषा म¤ अिधक ह§।
गुजराती कì ÖवतÆý िलिप है। यह देवनागरी से िवकिसत हòई है। इसम¤ उ¸चकोिट का
सािहÂय िमलता है।
२.२.५ बांµला :
बंगाली (बांµला) यह बंगाल ÿाÆत कì भाषा है। मागधी अपĂंश के पूवê łप से इसका िवकास
हòआ है। बंगाली भाषा गंगा के मुहाने अथाªत उसके उ°र और पिIJम के मैदानŌ म¤ बोली
जाती है। गाँव तथा नगर के बंगािलयŌ कì बोली म¤ बहòत अंतर है। इसकì सािहिÂयक भाषा
को 'साधु भाषा' कहते ह§। इसम¤ संÖकृत के शÊदŌ का बाहòÐय है। बंगला भाषा कì दो शाखाएँ
है -
१. पूवê बंगला - िजसका ±ेý वतªमान बंगलादेश है और िजसका क¤þ ढाका ह§ |
२. पिIJमी बंगला - िजसका ±ेý पिIJमी बंगाल है तथा िजसका क¤þ कलक°ा है |
कलक°ा कì ही भाषा टकसाली ह§| बंगला सािहÂय बहòत ÿाचीन नहé ह§ परंतु इस भाषा पर
अंúेजी और संÖकृत सािहÂय का ÿभाव िदखाई देता है | हòगली के िनकट बोली जानेवाली
पिIJमी बंगाली का ही एक łप वतªमान सािहिÂयक भाषा हो गया है। बंगाली उ¸चारण कì
िवशेषता 'अ' का 'ओ' तथा 'स' का 'श' कर देना ÿिसĦ ही है । इस भाषा का सािहÂय उ°म
अवÖथा म¤ है । बंगला कì िलिप अलग है। यह ÿाचीन देवनागरी से िवकिसत है | यह
सािहिÂयक ŀिĶ से अÂयÆत समृĦ है। इसके ÿमुख सािहÂयकार ह§ - चंडीदास, कृि°वास
(रामायण), िवजयगुĮ (पĪपुराण), रवीÆþनाथ ठाकुर, बंिकमचÆþ, शरÂचÆþ आिद । बंगाली
का ÿामािणक भाषाशाľीय अÅययन डॉ . सुनीितकुमार चटजê ने 'बंगाली का उĩव और
िवकास' úÆथ म¤ िकया है।
२.३ सारांश सारांशतः ÿÖतुत इकाई म¤ आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं का छाýŌ ने अÅययन िकया ह§ |
आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं का िवकास अपĂंश तथा तृतीय ÿाकृत से हòआ ह§ | इसे
छाýŌ ने जाना ह§ और आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं का पåरचय को देखा ह§ | यहाँ पर
आधुिनक भारतीय आयªभाषाएँ (१००० से अब तक) १००० ई. के आसपास अपĂंश के
िविभÆन łपŌ से उपयुªĉ आधुिनक भारतीय आयªभाषाओं का िवकास हòआ, उसे देखा गया
है | वÖतुतः कोई भी भाषा जÆम लेते ही सािहÂय कì भाषा नहé बनती। पैदा होने के सौ-डेढ़ munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
22 सौ वषª बाद Öवीकृित िमलने पर तथा उसका Öवłप कुछ िनिIJत होने पर ही लोग उसे
सािहÂय-रचना के िलए अपनाते ह§।
यहाँ सभी आधुिनक भारतीय आयªभाषाओं का पåरचय िदया गया है।
२.४ दीघō°री ÿij १. आधुिनक आयª भाषाओं का िवÖतार से वणªन कìिजए |
२. आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं म¤ कौन-कौन सी भाषा आती ह§, उसका िववेचन
कìिजए |
२.५ िटÈपिणयाँ १. िसÆधी भाषा २. मराठी भाषा
३. गुजराती भाषा ४. पंजाबी भाषा
५. बांगला भाषा
२.६ संदभª úंथ १. भाषा िव²ान एवं भाषा शाľ - डॉ. किपलदेव िĬवेदी
२. िहंदी भाषा - डॉ. भोलानाथ ितवारी
३. भाषा िव²ान - डॉ. दानबहादुर पाठक ‘वर’, डॉ. मनहर गोपाल भागªव
४. िहंदी भाषा का इितहास - धीर¤þ वमाª
५. भाषा िव²ान कì भूिमका - आचायª देवेÆþनाथ शमाª


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23 ३
िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास
इकाई कì Łपरेखा
३.० इकाई का उĥेÔय
३.१ ÿÖतावना
३.२ िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास
३.३ सारांश
३.४ दीघō°री ÿij
३.५ िटÈपिणयाँ
३.६ संदभª úंथ
३.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का अÅययन कर¤गे -
 िहंदी भाषा कì उÂपि° के बारे म¤ जान सक¤गे |
 िहंदी भाषा का िवकास िकस तरह से हòआ उसे जान¤गे |
३.१ ÿÖतावना सन १००० ई. तक िहंदी भाषा सािहिÂयक łप धारण कर चुकì थी | १००० ईसवी के
बाद मÅयकालीन भारतीय आयª भाषा के अंितम łप अपĂंश भाषाओं ने धीरे-धीरे बदलकर
आधुिनक भारतीय आयª भाषाओं का łप úहण का िलया था | िहंदी ने एकाएक सािहिÂयक
łप धारण नहé िकया था | ³यौिक पहले वह साधारण बोल-चाल कì भाषा रही होगी | बाद
म¤ िफर से धीरे-धीरे उसका सािहÂय म¤ ÿयोग हòआ होगा और तब कालांतर म¤ यथासंभव वह
सािहÂय कì भाषा बन गई होगी |
३.२ िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास िहंदी भाषा कì उÂपि° एवं िवकास के संदभª म¤ सबसे पहले तीन मु´यŌ कालŌ म¤ िवभािजत
िकया जाता ह§ -
(क) ÿाचीन काल
(ख) मÅयकाल
(ग) आधुिनक काल munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
24 इन तीनŌ कालŌ को øम से लेकर तÂकालीन पåरिÖथित, भाषा-सामúी तथा भाषा के łप
पर िवÖतार से िवचार िकया गया ह§ -
३.२.१ ÿाचीन काल : (१५०० ई. तक)
१० वी शताÊदी से पूवª म¤ रिचत ऐसे कई úंथ है िजसका उÐलेख िमलता है परंतु उनके
नमूने उपलÊध नहé ह§ | िहंदी का ÿाचीनतम उपलÊध úंथ चंद बरदाई कृत ‘पृÃवीराज रासो’
ह§ | इस úंथ म¤ िहंदी भाषा का दशªन हो जाता है | परंतु úंथ कì ÿमािणकता को लेकर कई
िवĬानŌ म¤ मतभेद िदखाई देते ह§ | इस úंथ का ÖवŁप इतना िमि®त तथा वैिवÅयपूणª है कì
उसके मूल łप का प°ा लगाना बहòत ही मुिÔकल तथा अÂयÆत किठन हो रहा ह§ |
िहंदी भाषा का इितहास िजस समय ÿारंभ होता है, उस समय िहंदी ÿदेश तीन राºयŌ म¤
िवभĉ था:
i. िदÐली अजमेर का चौहान वंश |,
ii. कÆनौज का राठोर वंश |
iii. महोबा का परमार वंश |
ये तीन राºय िहंदू राºय थे | तीन क¤þŌ से हम¤ िहंदी भाषा संबंधी सामúी पाने कì आशा ह§।
पिIJम म¤ चौहान-वंश कì राजधानी िदÐली थी। पृÃवीराज के समय म¤ अजमेर का राºय भी
इसम¤ सिÌमिलत हो गया था। िदÐली राºय कì सीमाएं पिIJम म¤ पंजाब के मुसलमानी राºय
से िमली हòई थé। दि±ण-पिIJम म¤ राजÖथान के राजपूत राºयŌ से इस कì घिनĶता थी, िकंतु
पूरब कì सीमा पर सदा घरेलू युĦ होते रहते थे । नरपित नाÐह तथा चंद किव का संबंध
øम से अजमेर और िदÐली से था । चौहान राºय के पूवª म¤ राठौर वंश कì राजधानी
कÆनौज थी और इस राºय कì सीमाएं अयोÅया तथा काशी तक चली गई थé। कÆनौज के
अंितम सăाट् जयचंद का दरबार सािहÂय-चचाª का मु´य क¤þ था िकंतु यहां 'भाषा' कì
अपे±ा 'संÖकृत' तथा 'ÿाकृत' का कदािचत् िवशेष आदर था। संÖकृत के अंितम महाकाÓय
‘नैषधीय चåरत’ के लेखक ®ीहषª जयचंद के दरबार म¤ ही राजकिव थे । कÆनौज के दरबार म¤
भाषा-सािहÂय को चचाª भी रही होगी िकंतु ÿाचीन कÆनौज नगर के पूणª-łप से नĶ हो जाने
के कारण इस क¤þ कì सामúी अब िबÐकुल भी उपलÊध नहé है। इन दो राºयŌ के दि±ण म¤
महोबा का ÿिसĦ राºय था । महोबा के राजकिव जगनायक या जगिनक का नाम तो आज
तक ÿिसĦ है, परंतु इसकì मूल कृित का पता अब तक नहé चला । सन ११६१ ई. तक
मÅयदेश के तीनŌ अंितम िहंदू राºय मौजूद थे और दस-बारह वषª के अंदर ही ये तीनŌ राºय
नĶ हो गए। सन ११६१ म¤ मुहÌमद गोरी ने पानीपत के िनकट पृÃवीराज को हरा कर िदÐली
पर अिधकार कर िलया । अगले वष« इटावा के िनकट जयचंद कì हार हòई और कÆनौज से
लेकर काशी तक का ÿदेश िवदेिशयŌ के हाथŌ म¤ चला गया। शीŅ ही महोबा पर भी
मुसलमानŌ ने कÊज़ा कर िलया । इस तरह समÖत िहंदी ÿदेश पर िवदेशी शासकŌ का
आिधपÂय हो गया । इन िवदेशी शासको कì łिच िहंदी के ÿित िबलकुल नहé थी | इसीिलए
िवकिसत होती हòई नवीन भाषा के िलए यह बड़ा भारी ध³का था िजसके ÿभाव से िहंदी अब
तक भी मुĉ नहé हो सकì है। munotes.in

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िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास
25 िहंदी भाषा के इितहास के संपूणª ÿाचीन काल म¤ मÅयदेश पर तथा उसके बाहर शेष उ°र-
भारत पर भी तुकê मुसलमानŌ का साăाºय कायम रहा (१२०६-१५३६ ई.) इन सăाटŌ
कì मातृभाषा तुकê थी तथा दरबार कì भाषा फ़ारसी थी । इन िवदेशी शासकŌ कì Łिच
जनता कì भाषा तथा संÖकृत के अÅययन करने कì ओर िबÐकुल भी न थी अतः तीन सौ
वषª से अिधक इस साăाºय के क़ायम रहने पर भी िदÐली के राजनीितक क¤þ से िहंदी भाषा
कì उÆनित म¤ िबÐकुल भी सहायता नहé िमल सकì। इस काल म¤ िदÐली म¤ केवल अमीर
खुसरो ने मनोरंजन के िलए भाषा से कुछ ÿेम िदखलाया था। इस काल के अंितम िदनŌ म¤
पूवê िहंदुÖतान म¤ धािमªक आंदोलनŌ के कारण भाषा म¤ कुछ काम हòआ, िकंतु इसका संबंध
तÂकालीन राºय से िबÐकुल भी न था। राºय कì ओर से सहायता कì अपे±ा कदािचत्
बाधा ही िवशेष िमली। इस ÿकार के आंदोलन म¤ गोरखनाथ, रामानंद तथा उनके ÿमुख
िशÕय कबीर के संÿदाय उÐलेखनीय ह§।
िहंदी भाषा के इस ÿाचीन काल कì सामúी को चार भागŌ म¤ िवभĉ िकया जा सकता ह§ -
i. िशलालेख, ताăपý तथा ÿाचीन पý आिद;
ii. अपĂंश काÓय;
iii. चारण-काÓय, िजनका आरंभ गंगा कì घाटी म¤ हòआ था और उसका िवकास राजÖथान
म¤ हòआ था तथा धािमªक úंथ व अÆय काÓय-úंथ |
iv. िहंदवी अथवा पुरानी खड़ीबोली म¤ िलखा सािहÂय |
िवदेशी शासन होने के कारण इस काल म¤ िहंदी भाषा म¤ िलखे िशलालेखŌ तथा ताăपýŌ
आिद के अिधक सं´या म¤ पाए जाने कì संभावना बहòत कम है। इस संबंध म¤ िवशेष खोज भी
नहé कì गई है, नहé तो कुछ सामúी अवÔय ही उपलÊध होती । िहंदी के सý से ÿाचीन नमूने
पृÃवीराज तथा समरिसंह के दरबारŌ से संबंध रखनेवाले पýŌ के łप म¤ समझे जाते थे,
िजनको नागरी ÿचाåरणी सभा ने ÿकािशत िकया था, िकंतु ये ÿामािणक िसĦ हòए ।
डा. पीताÌबरदत बथªवाल और ®ी राहòल सांकृÂयायन ने नाथपंथ तथा वûयानी िसĦ
सािहÂय को ओर िहंदी पाठकŌ का Åयान पहले-पहल आकिषªत िकया तथा बहòत सी नवीन
सामúी भी ये िव²ान ÿकाश म¤ लाए। इस सामúी कì ÿाचीनता तथा ÿामािणकता कì अभी
पूणª परी±ा नहé हो पाई है। इन किवयŌ का समय ७०० ई. से १३०० ई. के बीच माना जाता
है इनकì रचनाओं का वतªमान łप भी उसी समय का है । ÿारंिभक िसĦŌ कì कृितयŌ कì
भाषा ÖपĶतया अपĂंश (मागधी) है। इस सािहिÂयक धारा का ÿथम पåरचय िवĬानŌ को
हरÿसाद शाľी के "बौĦगान ओ दोहा" के ÿकाशन के फलÖवłप हòआ था ।
पं. चंþधर शमाª गुलेरी ने 'नागरी ÿचाåरणी पिýका', भाग २, अंक ४ म¤ 'पुरानी िहंदी' शीषªक
लेख म¤ जो नमूने िदए ह§ वे ÿायः गंगा कì घाटी के बाहर के ÿदेशŌ म¤ बने úंथŌ के ह§, अतः इन
म¤ िहंदी के ÿाचीन łपŌ का कम पाया जाना Öवाभािवक है । अिधकांश उदाहरणŌ म¤ ÿाचीन
राजÖथानी के नमूने िमलते ह§। इस के अितåरĉ इन उदाहरणŌ कì भाषा म¤ अपĂंश का
ÿभाव इतना अिधक है िक इन úंथŌ को इस काल के अपĂंश सािहÂय के अंतगªत रखना
अिधक उिचत मालूम होता ह§ । पंिडत रामचंþ शु³ल ने अपने 'िहंदी सािहÂय के इितहास' म¤ munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
26 ऐसा िकया भी है। तो भी इन नमूनŌ से अपनी भाषा कì पुरानी पåरिÖथित पर बहòत कुछ
ÿकाश पड़ता है ।
इस काल कì भाषा के नमूनŌ का तीसरा समूह चारण, धािमªक तथा लौिकक काÓय-úंथŌ म¤
िमलता है । भाषाशाľ कì ŀिĶ से इन úंथŌ कì भाषा के नमूने अÂयंत संिदµध ह§ । इन म¤ से
िकसी भी úंथ कì इस काल कì िलखी ÿामािणक हÖत-िलिखत ÿित उपलÊध नहé है। बहòत
िदनŌ मौिखक łप म¤ रहने के बाद िलखे जाने पर भाषा म¤ पåरवतªन का हो जाना Öवाभािवक
है, अतः िहंदी भाषा के इितहास कì ŀिĶ से इन úंथŌ के नमूने बहòत माÆय नहé हो सकते ।
इस काल कì भाषा के अÅययन के िलए या तो पुराने लेखŌ से सहायता लेना उपयुĉ होगा
या ऐसी हÖतिलिखत ÿितयŌ से जो १५०० ईसवी से पहले कì िलखी हŌ ।
दि±ण भारत म¤ िवकिसत िहंदवी अथवा दिकनी उदूª सािहÂय का ÿारंभ १३२६ ई. म¤
मोहÌमद तुगलक के दि±ण आøमण के बाद हòआ। िहंदवी के ÿारंिभक किव मुसलमान सूफ़ì
फ़क़ìर थे िजÆहŌ ने अपने धािमªक िवचारŌ के ÿचार कì ŀिĶ से ये रचनाएं िलखी थé। यह
सािहÂय देवनागरी िलिप म¤ ÿकािशत नहé हòआ है यīिप इसकì भाषा पुरानी खड़ी बोली है।
इन लेखकŌ म¤ सबसे ÿिसĦ ´वाजा बंदािनवाज (१३२१-१४५२ ई.) थे । िहंदवी म¤
ÿारंिभक सािहिÂयक रचनाएं बीजापुर तथा गोलकुंडा के शासकŌ के Ĭारा तथा उनकì
संåर±ता म¤ १७वé शताÊदी म¤ िलखी गई । इस ÿाचीन काल म¤ िहंदी भाषा िविभÆन ÿभावŌ
कì शिĉ úहण करके िवकिसत हो रही थी | और आदान-ÿदान के Ĭारा वह िनरंतर िवकास
को ÿाĮ हो रही थी |
३.२.२ मÅयकाल : (१५००-१८०० ई.):
मÅयकाल तक आते - आते अथाªत १५०० ई. के बाद देश कì पåरिÖथित म¤ एक बार िफर
से पåरवतªन हòआ। तुकê सăाटŌ का महÂव कम होकर मुगल शासकŌ के हाथ म¤ स°ा चली
गई। इस पåरवतªन काल म¤ राजपूत राजाओं ने गंगा कì घाटी पर अपना अिधकार जमाना
चाहा, परंतु वे इसम¤ सफल नहé हòए । मुगल तथा सूरवंश के सăाटŌ कì सहानुभूित जनता
कì सËयता को समझने कì ओर तुकŎ कì अपे±ा कुछ अिधक थी। देश म¤ शांित बनाए रहने
तथा राºय कì ओर से कम उपे±ा होने के कारण इस काल के सािहÂय कì चचाª भी हòई। डॉ.
धीरेÆþ वमाª ने कहते है िक “वाÖतव म¤ यह काल िहंदी सािहÂय का Öवणªयुग कहा जा सकता
है।”
āजभाषा के साथ साथ अवधी का भी सािहिÂयक िवकास सोलहवé सदी म¤ ही ÿारंभ हòआ ।
āजभाषा तो समÖत िहंदी ÿदेश कì सािहिÂयक भाषा के łप म¤ Öथािपत हो गई, और
अवधी म¤ िलखा गया úंथ 'रामचåरतमानस ' का िहंदी जनता म¤ सबसे अिधक ÿचार होने पर
भी सािहÂय के ±ेý म¤ अवधी भाषा का āजभाषा के जैसा ÿचार-ÿसार नहé हो सका । मÅय-
काल म¤ अवधी म¤ िलखे गए úंथŌ म¤ दो मु´य ह§ –
I. जायसी कृत 'पĪावत' (१५४० ई.) úंथ है जो शेरशाह सूर के शासन काल म¤ िलखा
गया था | और दूसरा munotes.in

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िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास
27 II. अकबर के शासनकाल काल म¤ िलखा गया तुलसी कृत 'रामचåरतमानस ' (१५७५ ई.)
úंथ रहा है ।
इन दोनŌ úंथŌ कì बहòत सी ÿाचीन हÖतिलिखत ÿितयाँ िमली ह§। और नागरी ÿचाåरणी सभा
Ĭारा ÿकािशत संÖकरण बहòत अंश म¤ माÆय है। सोलहवé सदी के बाद इसतरह का अवधी म¤
कोई भी ÿिसĦ úंथ नहé िलखा गया ।
सोलहवé सदी के पूवाªĦª म¤ वÐलभाचायª के ÿोÂसाहन से āजभाषा म¤ सािहÂय िलखने तथा
रचना का ÿारंभ हòआ | िहंदी सािहÂय कì इस शाखा का क¤þ पिIJम मÅयदेश म¤ था अतः
āजभाषा सािहÂय को धमª के साथ-साथ िवदेशी तथा देशी राºयŌ का समथªन भी िमल चुका
था । उस समय सूरदास के úंथ कदािचत् १५५० ई. तक रचे जा चुके थे । तुलसीदास ने भी
'िवनयपिýका' तथा 'गीतावली' आिद कुछ काÓयŌ म¤ āजभाषा का ÿयोग िकया है। अĶछाप -
समुदाय के दूसरे महाकिव नंददास के úंथ भी सािहिÂयक āजभाषा म¤ उपलÊध है । सýहवé
शताÊदी म¤ ÿायः समÖत िहंदी सािहÂय āजभाषा म¤ िलखा गया है । āजभाषा का łप िदन-
ब-िदन सािहिÂयक, पåरÕकृत तथा संÖकृत होता चला गया है। िबहारी और सूरदास कì
āजभाषा म¤ बहòत-भेद है। बुंदेलखंड तथा राजÖथान के देशी राºयŌ से संपकª म¤ आने के
कारण इस काल के बहòत से किवयŌ कì भाषा म¤ जहां-तहां बुंदेली तथा राजÖथानी बोिलयŌ
का ÿभाव आ गया है।
ÿाचीनकाल तथा मÅयकाल के úंथŌ म¤ जहां-तहां खड़ीबोली के łप भी िबखर पड़े ह§। रासो,
कबीर, भूषण आिद म¤ बराबर खड़ीबोली के ÿयोग वतªमान है। इससे यह तो ÖपĶ है िक
खड़ीबोली का अिÖतÂव ÿारंभ ही से था, यīिप इस बोली का ÿयोग िहंदू किव और लेखक
सािहÂय म¤ िवशेष नहé करते थे। यह मुसलमानी बोली समझी जाती थी। जैसा िक ऊपर
उÐलेख िकया जा चुका है दि±ण म¤ िहंदवी अथवा पुरानी खड़ीबोली का ÿयोग चौदहवé
शताÊदी से ÿारंभ हो गया था। िकंतु उ°र-भारत म¤ मुसलमान शासकŌ कì संरि±ता म¤
इसका सािहÂय म¤ ÿयोग अठारहवé सदी से िवशेष हòआ। इससे पहले मुसलमान किव भी
यिद भाषा म¤ किवता करते थे तो अवधी या āज भाषा का Óयवहार करते थे। जायसी, रहीम
आिद इसके ÖपĶ उदाहरण है। खड़ीबोली उदूª के ÿथम ÿिसĦ किव हैदराबाद (दि³खन) के
वली माने जाते ह§। इनका किवताकाल अठारहवé सदी के ÿारंभ म¤ पढ़ता है। अठारहवé और
उÆनीसवé सदी म¤ बहòत से मुसलमान किवयŌ ने काÓय-रचना करके खड़ीबोली उदूª को
पåरमािजªत सािहिÂयक łप िदया। इन किवयŌ म¤ मौर, सौदा, इंशा, गािलब, जौक और दाग
उÐलेखनीय है। सारांशतः मÅयकाल के ÿथम भाग म¤ िहंदी कì पुरानी बोिलयŌ ने िवकिसत
होकर āज, अवधी और खड़ीबोली का łप धारण कर चुकì थी | इस काल म¤ मुसलमान
तथा िहंदू के अनेक किव हòए | यह āज, अवधी और खड़ीबोली म¤ ही इसका िवकास होता
गया |
३.२.३ आधुिनक काल : (१८०० ई. से अब तक)
आधुिनक काल म¤ अथाªत अठारहवé सदी के अंत से ही देश म¤ काफì पåरवतªन हòआ | मुगल
साăाºय िनबªल होने से अठारह सदी के उ°राĦª म¤ मराठा, अफगान और अंúेज आिद तीन
बाहर कì शिĉयŌ Ĭारा िहंदी ÿदेश पर अिधकार Öथािपत करने का ÿयास िकया गया |
१७६१ म¤ मÅयदेश कì पिIJमी सरहद पर पानीपत के तीसरे युĦ म¤ अफगानŌ के हाथ से munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
28 मराठŌ को ऐसा भारी ध³का पहòंचा िक वे िफर से अपनी शिĉ को िदखा नहé सके | परंतु
अफगान इस िवजय का लाभ नहé उठा पाए | तीन वषª बाद १७६४ ई. म¤ िहंदी ÿदेश कì
पूवê सीमा पर ब³सर के िनकट अंúेजŌ तथा अवध और िदÐली के मुसलमान शासकŌ के
बीच युĦ हòआ िजसके फल-Öवłप अंúेजŌ के िलए गंगा कì घाटी का पिIJमी भाग खुल गया।
१८०२ ई. के लगभग आगरा उपÿांत अंúेजŌ के हाथ म¤ चला गया तथा १८५६ ई. म¤ अवध
पर भी अंúेजŌ का पूणª अिधकार हो गया ।
इस तरह कì राजनीितक पåरवतªनŌ के कारण १६वé सदी के आरंभ से ही मÅयदेश कì भाषा
िहंदी पर भारी ÿभाव पड़ना Öवाभािवक था। अठारहवé सदी म¤ āजभाषा कì शिĉ ±ीण हो
चुकì थी, साथ ही मुसलमानŌ के बीच खड़ीबोली उदूª ज़ोर पकड़ चुकì थी। उÆनीसवé सदी
के ÿारंभ म¤ अंúेजŌ ने िहंदुओं के िलए खड़ीबोली गī के संबंध म¤ कुछ ÿयोग िकए ह§ िजनके
फलÖवłप फोटª िविलयम कालेज म¤ लÐलूलाल ने 'ÿेमसागर' तथा सदल िम® ने
'नािसकेतोपा´यान' कì रचना म¤ । ÿारंभ के इन खड़ीबोली के úंथŌ पर āजभाषा का ÿभाव
रहना Öवाभािवक है। 'ÿेमसागर' म¤ तो āजभाषा के ÿयोग बहòत अिधक पाए जाते है।
खड़ीबोली िहंदी का गī सािहÂय म¤ ÿचार उÆनीसव सदी के उ°राĦª म¤ हòआ, और इसका
®ेय सािहÂय के ±ेý म¤ भारत¤दु हåरIJंþ तथा धमª के ±ेý म¤ Öवामी दयानंद सरÖवती को है।
मुþण कला के साथ-साथ खड़ीबोली िहंदी का ÿचार बहòत तेज़ी से बढ़ा | उÆनीसवé सदी
तक āजभाषा का ÿयोग होता रहा, िकंतु बीसवé सदी म¤ आते-आते खड़ीबोली िहंदी संपूणª
मÅयदेश कì, गī और पī दोनŌ कì एकमाý सािहिÂयक भाषा बन गई । āजभाषा म¤ किवता
करने कì शैली अभी तक पूणª łप से लुĮ नहé हòई है, िकंतु इसके िदन इने-िगने ह§।
खड़ीबोली - पī के ÿारंभ के किवयŌ कì भाषा म¤ भी लÐलूलाल आिद ÿथम गī - लेखकŌ
के समान āजभाषा कì झलक पयाªĮ है। ®ीधर पाठक कì खड़ीबोली किवता कì िमठास का
कारण बहòत कुछ āजभाषा के łपŌ का Óयवहार है, यह पåरवतªन काल शीŅ ही दूर हो गया
और अब तो खांचोली किवता कì भाषा से भी āजभाषा कì छाप िबÐकुल हट गई है। गत
डेढ़-दो सौ वषŎ से सािहिÂयक खडी-बोली, आधुिनक िहंदी और उदूª मेरठ-िबजनौर कì
जनता कì खड़ीबोली से Öवतंý होकर अपने-अपने ढंग से िवकास को ÿाĮ कर रही है।
Öवाभािवक बोली के ÿभाव से पृथक हो जाने के कारण इस के Óयाकरण का ढाँचा तथा
शÊदसमूह िनराला होता जाता है। तो भी अभी तक आधुिनक िहंदी-उदूª के Óयाकरण का
Öवłप मेरठ-िबजनौर कì खड़ीबोली से बहòत अिधक िभÆन नहé हो पाया है | भेद कì अपे±ा
साÌय कì माýा िवशेष है ।
सािहÂय के ±ेý म¤ खड़ीबोली िहंदी के Óयापक ÿभाव के रहते हòए भी िहंदी कì अÆय
ÿादेिशक बोिलयां अपने-अपने ÿदेशŌ म¤ आज भी पूणª łप से जीिवतावÖथा म¤ ह§। मÅयदेश
के गाँवŌ कì समÖत जनता अब भी खड़ीबोली के अितåरĉ āज, अवधी, बुंदेली, भोजपुरी,
छ°ीसगढ़ी आिद बोिलयŌ के आधुिनक łपŌ का Óयवहार कर रही है। गाँव के अनपढ़ लोग
बोलचाल कì आधुिनक सािहिÂयक िहंदी को समझ बराबर लेते ह§, िकंतु ठीक-ठीक बोल
नहé पाते । गाँव कì बोिलयŌ म¤ भी धीरे-धीरे पåरवतªन हो रहा ह§ | जायसी कì अवधी तथा
आजकल कì अवधी म¤ पयाªĮ भेद हो गया है । इसी तरह सूरदास कì āजभाषा से आजकल
कì āज कì बोली कुछ िभÆन हो गई है। इन पåरवतªनŌ को ÿारंभ हòए सौ- सवा सौ वषª अवÔय munotes.in

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िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास
29 बीत चुके ह§, इसी िलए लगभग १८०० ई० से िहंदी भाषा के इितहास के तीसरे काल का
ÿारंभ माना जा सकता है । यīिप अभी भेदŌ कì माýा अिधक नहé हो पाई है, िकंतु
संभावना यही है िक ये भेद बढ़ते ही जाव¤गे, और सौ दो सौ वषª के अंदर ही ऐसी पåरिÖथित
आ सकती है जब तुलसी सूर आिद कì भाषा को Öवाभािवक ढंग से समझ लेना अवध और
āज के लोगŌ के िलए किठन हो जावेगा । इस ÿगित का ÿारंभ हो गया है ।
३.३ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ छाýŌ ने िहंदी भाषा कì उÂपि° और उसका िवकास िकस तरह से हòआ है
उसका िवÖतार से अÅययन िकया है | िहंदी भाषा एक ÿवाहमान रही ह§ | वह अपने
आतंåरक शिĉ को िवकिसत करेने के िलए बाĻ ÿभावŌ एवं पåरिÖथितयŌ से शिĉ-संचय
करती हòई िनरंतर िवकासशील रही ह§ |
३.४ दीघō°री ÿij १. िहंदी भाषा कì उÂपि° और उसके िवकास को ÖपĶ कìिजए |
२. िहंदी भाषा कì उÂपि° के िलए ÿाचीन, मÅयकाल और आधुिनक काल ³या महÂव ह§,
उसे िवÖतार से ÖपĶ कìिजए |
२. िहंदी भाषा कì उÂपि° और िवकास को रेखांिकत कìिजए |
३.५ िटÈपिणयाँ १. ÿाचीन काल, २. मÅयकाल, ३. आधुिनक काल
३.६ संदभª úंथ १. भाषा िव²ान एवं भाषा शाľ - डॉ. किपलदेव िĬवेदी
२. िहंदी भाषा - डॉ. भोलानाथ ितवारी
३. भाषा िव²ान - डॉ. दानबहादुर पाठक ‘वर’, डॉ. मनहर गोपाल भागªव
४. िहंदी भाषा का इितहास - धीर¤þ वमाª
५. भाषा िव²ान कì भूिमका - आचायª देवेÆþनाथ शमाª


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30 ४
िहंदी कì ÿमुख बोिलयाँ
इकाई कì Łपरेखा
४.० इकाई का उĥेÔय
४.१ ÿÖतावना
४.२ िहंदी कì ÿमुख बोिलयाँ
४.२.१ āजभाषा
४.२.२ अवधी
४.२.३ भोजपुरी
४.२.४ खड़ीबोली
४.४ सारांश
४.५ दीघō°री ÿij
४.६ िटÈपिणयाँ
४.७ संदभª úंथ
४.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे |
 िहंदी कì ÿमुख बोिलयŌ को जान सक¤गे |
 āजभाषा, अवधी, भोजपुरी, खड़ीबोली आिद का िवÖतार से अÅययन कर¤गे|
४.१ ÿÖतावना िहंदी कì चार मु´य बोिलयŌ म¤ से āजभाषा, अवधी, भोजपुरी और खड़ीबोली आिद बोली ह§|
अथाªत् मेरठ-िबजनौर कì खड़ीबोली, मथुरा आगरा कì āजभाषा, लखनऊ - फ़ैज़ाबाद कì
अवधी तथा बनारस-गोरखपुर कì भोजपुरी । इन भाषाओं कì बोिलयŌ को भी एक ÿकार से
िहंदी के अंतगªत ही माना जा सकता है।
४.२ िहंदी कì ÿमुख बोिलयाँ िहंदी कì ÿमुख बोिलयŌ का सामाÆय पåरचय िनÌनिलिखत है -
४.२.१ āजभाषा:
‘āजभाषा’ का िवकास शौरसेनी अपĂंश के मÅयवतê łप म¤ हòआ ह§ | इसका जÆम १०००
ई. के आस-पास माना जा सकता ह§ | āजभाषा के इितहास को तीन कालो म¤ िवभािजत munotes.in

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िहंदी कì ÿमुख बोिलयाँ
31 िकया जा सकता ह§ - आिदकाल, मÅयकाल और आधुिनक काल | ‘āज’ का पुराना अथª है
‘पशुओं’ या ‘गौओं का समूह’ या ‘चारागाह’ आिद ह§ | पशुपालन के ÿाधाÆय के कारण यह
±ेý āज कहलाया ह§ | और इसी आधार पर इसे āज या āजभाषा कहा जाता ह§ | ÿाचीन
िहंदी सािहÂय कì ŀिĶ से āज कì बोली कì िगनती सािहिÂयक भाषाओं म¤ होने से उसे
āजभाषा के łप पहचान ÿाĮ हòई । िवशुĦ łप म¤ यह बोली अब भी मथुरा, आगरा, अलीगढ़
तथा धौलपुर म¤ बोली जाती है। गुड़गाँव, भरतपुर, करौली तथा µवािलयर के पिIJमो°र भाग
म¤ इसम¤ राजÖथानी और बुंदेली कì कुछ-कुछ झलक िदखने को िमलती है। बुलंदशहर,
बदायूं और नैनीताल कì तराई म¤ खड़ीबोली का ÿभाव शुł हो जाता है तथा एटा, मैनपुरी
और बरेली िजलŌ म¤ कुछ कनौजीपन आने लगता है। वाÖतव म¤ पीलीभीत तथा इटावा कì
बोली भी कनौजी कì अपे±ा āजभाषा के अिधक िनकट है । हेमचÆþ के Óयाकरण म¤ जो
उदाहरण के łप म¤ ÿÖतुत िकया ह§ वहा पर āजभाषा का पूवªłप सुरि±त ह§ | संदेशरासक,
ÿाकृतप§गलम आिद रचनाओं म¤ āज के łप देखने को िमलते ह§ | जब से गोकुल बÐलभ
संÿदाय का क¤þ हòआ तब से āजभाषा म¤ कृÕण-सािहÂय िलखा जाने लगा। धीरे-धीरे यह
बोली समÖत िहंदी ÿदेश कì सािहिÂयक भाषा हो गई। १६वé शताÊदी म¤ सािहÂय के ±ेý म¤
खड़ीबोली āजभाषा कì ÖथानापÆन हòई ।
४.२.२ अवधी:
‘अवध’ शÊद का संबंध ‘अयोÅया’ से ह§ | अवधी भाषी ÿदेश का नाम ‘अवध’ ह§, इसी के
आधार पर इस भाषा को ‘अवधी’ नाम दे िदया गया ह§ | अवधी नाम का भाषा के अथª म¤
ÿाचीनतम ÿयोग अमीर खुसरŌ ने अपने ‘नुहिसपुर’ म¤ िकया | इसी के साथ ‘आईने अकबरी’
म¤ भी यह शÊद िमलता ह§ | ‘अवधी’ एक महÂवपूणª बोली है िजसका िवकास पिIJम म¤ िÖथत
कनौजी, āज आिद बोिलयŌ के शौरसेनी से उĩूत ह§ तथा पूवª कì भोजपुरी मागधी से | इसी
के आधार पर िúयªसन ने अवधी या पूवê िहंदी को शौरसेनी एवं मागधी के बीच कì
अधªमागधी से उÂपÆन हòई है ऐसा माना ह§ | बाबुराव स³सेना कहते है िक “अधªमागधी का
जो łप जैन úंथŌ म¤ उपलÊध है, उसकì तुलना म¤ अवधी पािल से अिधक समानताए रखता
है |” अवधी कì उÂपित अÆय भारतीय भाषाओं कì तरह १००० या ११०० ई. के आस-
पास हòई ह§ | इसके िवकास øम को िनिÌलिखत कालŌ म¤ बांटा जा सकता है -
१. ÿारंभ से १४०० तक |
२. १४०० से १७०० तक |
३. १७०० से अब तक |
यह अवधी बोली लखनऊ, उÆनाव, रायबरेली, सीतापुर, खीरी, फ़ैज़ाबाद, गŌडा, बहराइच,
सुÐतानपुर, ÿतापगढ़, बाराबंकì म¤ तो बोली ही जाती है, िकंतु इन िजलŌ के अितåरĉ दि±ण
म¤ गंगापार, इलाहाबाद, फ़तेहपुर, कानपुर और िमज़ाªपुर म¤ तथा जौनपुर के कुछ िहÖसŌ म¤
भी बोली जाती है। िबहार के मुसलमान भी अवधी बोलते ह§। इस िमि®त अवधी का िवÖतार
मुज़Éफ़रपुर तक है। āजभाषा के साथ अवधी म¤ भी सािहÂय िलखा गया था | उसम¤ से
'पĪावत', 'रामचåरतमानस ' तथा 'कृÕणायन' अवधी के सुÿिसĦ úंथरÂन ह§ ।
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
32 ४.२.३ भोजपुरी:
भोजपुरी कì उÂपि° पिIJमी मागधी या मागधी अपĂंश के पिIJमी łप से मानी जाती ह§ |
‘भोजपुरी’ यह ÿाचीन काशी जनपद कì बोली है। िबहार के शाहाबाद िजले म¤ भोजपुर एक
छोटा-सा क़Öबा है। इस बोली का नाम इसी Öथान से पड़ा है, यīिप यह दूर-दूर तक बोली
जाती है। ÿाचीन काल म¤ भोजपुर इसी नाम के राºय कì राजधानी होने के कारण अÂयÆत
ÿिसĦ रहा था | भाषा के अथª म¤ ‘भोजपुरी’ शÊद का सवªÿथम ÿयोग १७८९ म¤ िमलता ह§ |
यह ÿयोग रेमंड के ‘शेर मुताखरीन’ के अनुवाद कì भूिमका म¤ ह§ | भोजपुरी को ‘पूरबी’ भी
कहा जाता ह§ | और इसी के साथ ‘भोजपुåरया’ भी कहा जाता ह§ | āजभाषा तथा खड़ीबोली
±ेý के लोग ‘अवधी’ का भी ÿयोग ‘भोजपुरी’ के िलए िकया करते थे | िúयªसन ने मगही और
मैिथिल के साथ भोजपुरी को िबहारी के प± म¤ रखा था | परंतु डॉ. सुनीितकुमार चटजê ने
इसका िवरोध िकया और भोजपुरी को मगही, मैिथिल से इतना िभÆन मानते है कì इन तीनŌ
को एक वगª म¤ रखना ठीक नहé मानते | इसकì ÿधान चार बोिलयाँ है उ°री भोजपुरी,
पिIJमी भोजपुरी, दि±णी भोजपुरी और नागपुåरया |
यह भोजपुरी बोली बनारस, िमज़ाªपुर, जौनपुर, गाजीपुर, बिलया, गोरखपुर, बÖती,
आज़मगढ़, शाहाबाद, चंपारन, सारन तथा छोटा नागपुर तक फैली पड़ी है। भोजपुरी म¤
सािहÂय कुछ भी नहé है। संÖकृत का क¤þ होने के अितåरĉ काशी िहंदी सािहÂय का भी
ÿाचीन क¤þ रहा है, िकंतु भोजपुरी बोली से िघरे रहने पर भी इस बोली का ÿयोग सािहÂय म¤
कभी नहé िकया गया। काशी म¤ रहते हòए भी किवगण ÿाचीन काल म¤ āज तथा अवधी म¤
और आधुिनक काल म¤ सािहिÂयक खड़ीबोली िहंदी म¤ िलखते रहे ह§। भाषा संबंधी कुछ
साÌयŌ को छोड़कर भोजपुरी ÿदेश िबहार कì अपे±ा िहंदी ÿदेश के अिधक िनकट रहा है।
४.२.४ खड़ीबोली:
‘खड़ीबोली’ का अथª ह§ ‘खड़ी’ मूलतः ‘खरी’ ह§ और इसका अथª है ‘शुĦ’ | इसका सािहÂय म¤
ÿयोग करते समय जब अरबी-फ़ारसी शÊदŌ को िनकाल कर इसे शुĦ łप म¤ ÿयुĉ करने
का यÂन िकया जाए तो इसे ‘खरी बोली’ कहा गया ह§ | जो बाद म¤ ‘खड़ीबोली’ हो गया |
‘खड़ीबोली’ शÊद का ÿयोग दो अथō म¤ होता है - एक तो ‘मानक िहंदी’ और िजसकì तीन
शैिलयाँ ह§ वे ‘िहÆदी’, ‘उदूª’ और ‘िहÆदुÖतानी’ आिद | और दूसरे म¤ यह कह सकते है िक
उस लोकबोली के िलए जो िदÐली-मेरठ तथा आस-पास बोली म¤ जाती ह§ | यहाँ पर
खड़ीबोली नाम का ÿयोग दूसरे अथª म¤ िकया जाता ह§ | इसी अथª म¤ ‘कौरवी’ नाम भी ÿयोग
होता ह§ | यह ±ेý पुराना ‘कुŁ’ जनपद ह§ | इसी के आधार पर राहòल सांकृÂयायन ने इस
बोली को नाम ‘कौरवी’ िदया था | खड़ीबोली के संदभª िवĬान कहते ह§ -
१. कामताÿसाद गुŁ के अनुसार ‘खड़ी’ का अथª है ‘ककªश’ | यह बोली āज कì तुलना म¤
ककªश है | इसिलए इसका यह नाम पड़ा |
२. िकशोरीदास वाजपेयी के अनुसार ‘आकारांतता’ कì ‘खड़ी’ पाई ने ही इसे यह नाम
िदया ह§ |
३. िगल øाइÖट ने ‘खड़ी’ का अथª ‘मानक’ या ‘पåरिनिķत’ िकया ह§ | munotes.in

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िहंदी कì ÿमुख बोिलयाँ
33 खड़ीबोली जनसाधारण कì बोलचाल कì भाषा रही ह§ | इसकì उÂपि° शौरसेनी अपĂंश के
उ°री łप से मान सकते ह§ | और खड़ीबोली म¤ ÿयुĉ łपŌ के बीज हम¤ ÿाकृत काल म¤ ही
िमलने लगते ह§ | आधुिनक युग म¤ िजसे िहंदी कहा जाता है वही खड़ीबोली का िवकिसत
łप ह§ | इसका दशªन १२ वé शताÊदी म¤ ही होता ह§ | उīोतन सुåर का úंथ ‘कुवलयमाला’ म¤
इसकì ÿथम झाकì िमलती ह§ | आधुिनक काल म¤ खड़ीबोली कì िवशेष उÆनित हòई ह§ |
आधुिनक काल के खड़ीबोली के लेखक है लÐलू लाल, इंशाअÐला खाँ, सदल िम®,
सदासुखलाल, राजा लàमण िसंह, राजा िशवÿसाद िसतारे ‘िहÆद’| खड़ीबोली िनÌनिलिखत
ÖथानŌ म¤ बोली जाती है रामपुर, मुरादाबाद, िबजनौर, मेरठ, मुज़Éफ़रनगर, सहारनपुर,
देहरादून के मैदानी भाग, अंबाला तथा कलिसया और पिटयाला åरयासत के पूवê भाग |
४.३ सारांश सारांशतः यह कह सकते ह§ िक इस इकाई म¤ āज भाषा, अवधी, भोजपुरी और खड़ीबोली
यह िहंदी कì चार मु´य बोिलयां मानी जाती ह§ | भाषाओं कì बोिलयŌ को भी एक ÿकार से
िहंदी के अंतगªत ही माना जा सकता है। इसका छाýŌ ने इसका अÅययन िकया ह§ |
४.४ दीघō°री ÿij १. िहंदी कì ÿमुख बोली कौन-कौन सी है उसे िवÖतार से रेखांिकत कìिजए |
२. िहंदी कì ÿमुख बोिलयŌ म¤ से खड़ीबोली और भोजपुरी कì िवÖतार से चचाª कìिजए |
४.५ िटÈपिणयाँ १. अवधी २. भोजपुरी ३. āजभाषा ४. खड़ीबोली
४.६ संदभª úंथ  भाषा िव²ान एवं भाषा शाľ - डॉ. किपलदेव िĬवेदी
 िहंदी भाषा - डॉ. भोलानाथ ितवारी
 भाषा िव²ान - डॉ. दानबहादुर पाठक ‘वर’, डॉ. मनहर गोपाल भागªव
 िहंदी भाषा का इितहास - धीर¤þ वमाª
 भाषा िव²ान कì भूिमका - आचायª देवेÆþनाथ शमाª

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34 ५
खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप
इकाई कì Łपरेखा
५.० इकाई का उĥेÔय
५.१ ÿÖतावना
५.२ खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप
५.२.१ िहंदी
५.२.२ िहंदुÖतानी
५.२.३ उदूª
५.२.४ दि³खनी
५.३ सारांश
५.४ दीघō°री ÿij
५.५ िटÈपिणयाँ
५.६ संदभª úंथ
५.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤ग¤ -
 खड़ीबोली िहंदी का िवÖतार से अÅययन कर¤गे |
 खड़ीबोली के िविवध łप कौन-कौनसे है उसे देख¤गे |
५.१. ÿÖतावना खड़ीबोली का अथª उस बोली से िलया जाता है कì जो मेरठ, मुरादाबाद, िāजनौर,
देहरादून, अÌबला, सहारनपुर, पिटयाला के पूवê भागŌ म¤ या आस-पास बोली जाती हो |
और दूसरे अथª म¤ इसे यह कहा जा सकता है िक वह भाषा िजस पर आधुिनक पåरिनिķत
िहंदी, उदूª आिद पर आधाåरत ह§ | यहाँ पर इसी अथª म¤ खड़ीबोली नाम का ÿयोग िकया गया
ह§ | सािहिÂयक ŀिĶ से िहंदी, उदूª, िहÆदुÖतानी, दि³खनी आिद इसके िविभÆन łप रहे ह§ |
५.२ खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप खड़ीबोली के सािहिÂयक łप का िवकास आधुिनक काल म¤ हòआ ह§ | परÆतु उसके दशªन
करीबन १२ वé शताÊदी म¤ ही हो जाते ह§ | और खड़ीबोली जनसाधारण कì बोलचाल कì
भाषा बहòत िदनŌ से रही ह§ | इसीिलए खड़ी बोली िहंदी के िविवध łप कौन-कौनसे ह§ उसे
जानना महÂवपूणª है - munotes.in

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खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप
35 ५.२.१ िहंदी :
भाषाशािľयŌ के अनुसार ‘िहंदी’ का सÌबÆध मूलतः सं. शÊद ‘िसंधु’ से माना है | यह शÊद
मूलतः संÖकृत का नहé है, बिÐक आयŎ के आने के पूवª से यह शÊद ÿचिलत रहा है, और
उसका मूल þिवड़ शÊद 'िसद्' या 'िसत्' जो उस नदी तथा उसके आसपास के ÿदेश का
आयªपूवª नाम था। 'िसÆधु' नाम उसी का संÖकृत बनाया हòआ łप है। ईरान म¤ जाकर यह
'िसंधु' शÊद Åविन-पåरवतªन से 'िहंदु' (स > ह, ध > द) हो गया और पहले तो यह िसंध ÿदेश
का नाम था, िफर ईरानी भारत के िजतने भी भाग से पåरिचत होते गए, उसे इसी नाम से
अिभिहत करते गए, तथा धीरे-धीरे यह पूरे भारत का वाचक हो गया ।
'िहंदु' शÊद आगे चलकर पुरानी फ़ारसी आिद म¤ 'िहंद' बना और उसका भी अथª ‘भारत था।’
इसी म¤ 'ईक' ÿÂयय लगने से 'िहंदीक' बना जो úीक म¤ जाकर 'इंदीक', 'इंिदका' तथा अंúेजी
म¤ 'इंिडया' बन गया | 'िहंदीक' म¤ ही 'क' के लोप से 'िहंदी' शÊद बना िजसका मूल अथª है
'भारत का'। इसी आधार पर 'जबान-ए-िहÆदी' का अथª हòआ ‘भारत कì भाषा ' और इसका
ÿयोग समय-समय पर संÖकृत, ÿाकृत तथा आधुिनक भाषाओं के िलए हòआ। धीरे-धीरे
'जबान ए' लुĮ हो गया और केवल 'िहंदी' बचा तथा यह शÊद भारत कì केÆþीय भाषा के
िलए ÿयुĉ होने लगा । इस अथª म¤ 'िहंदी' शÊद का ÿाचीनतम ÿयोग शरफुĥीन यºदी के
'जफ़रनामा' (१४२४ ई.) म¤ िमलता है। १९वé सदी के ÿारंभ तक 'िहंदी' नाम 'उदूª' के िलए
भी आता था। हाितम , नािसख, सौदा, मीर तथा ग़ािलब आिद ने अपनी भाषा के िलए इस
नाम का भी ÿयोग िकया है । १८०० ई. म¤ कलक°े म¤ फोटª िविलयम कोलेज कì Öथापना
होने के बाद अँúेजŌ ने िहंदू-मुसलमान म¤ फूट डालने कì नीित को अपनाया था | उÆहŌने मूल
भाषा के संÖकृतिनķ łप के िलए 'िहंदी' तथा अरबी-फ़ारसी-िनķ łप के िलए 'उदूª' को łढ़
कर िदया और इस बात कì कोिशश भी कì गई िक 'िहंदुओं' के साथ 'िहंदी' और
'मुसलमानŌ' के साथ 'उदूª' का संबĦ हो जाए | इसम¤ अंúेज एक सीमा तक सफल भी हो
जाते ह§ ।
वÖतुतः शÊदŌ म¤ अरबी-फ़ारसी तथा संÖकृत के आिध³य कì बात छोड़ देते है तो िहÆदी
और उदूª म¤ कोई खास अंतर नहé है िदखाई देता ह§ । इसीिलए यहाँ पर यह कह सकते है िक
ÿारÌभ म¤ 'िहÆदी' शÊद का ÿयोग िहÆदी और उदूª दोनŌ के िलए होता था । तûिकरा
मखजन-उल-गरायब म¤ आता है 'दर जबाने िहÆदी िक मुराद उदूª अÖत ।’ इस उदाहरण से
िहÆदी उदूª का समानाथê है तो दूसरी तरफ़ िहÆदी सूफ़ì किव नूर मुहÌमद ने कहा है -
िहÆदू मग पर पाँव न रा´यौ ।
का बहòतै जो िहÆदी भा´यŏ ||
यहाँ इस शÊद का ÿयोग िहÆदी के िलए है। वÖतुतः यिद अंúेज बीच म¤ न पड़े होते तो आज
ये दोनŌ एक भाषाएँ होती| आज भी भाषा िव²ान के िवĬान इन दोनŌ को एक ही भाषा कì दो
शैिलयाँ मानते ह§ ।

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
36 'िहÆदी' शÊद का ÿयोग आज मु´य łप से तीन अथŎ म¤ हो रहा है -
(क) 'िहÆदी' शÊद अपने िवÖतृततम अथª म¤ िहÆदी - ÿदेश म¤ बोली जाने बाली १७ बोिलयŌ
का īोतक है। ‘िहÆदी सािहÂय के इितहास' म¤ 'िहÆदी' शÊद का ÿयोग इसी अथª म¤ होता
है, जहाँ āज, अवधी, िडंगल, मैिथली, खड़ीबोली आिद ÿायः सभी म¤ िलिखत सािहÂय
का िववेचन िहÆदी के अंतगªत िकया जाता है ।
(ख) 'पिIJमी िहंदी' और 'पूवê िहÆदी' को िहÆदी ही माना जाता ह§ । िúयसªन ने इसी को
आधार मानकर िहÆदी-ÿदेश कì उपभाषाओं को राजÖथानी, पहाड़ी, िबहारी कहा था ,
िजनम¤ 'िहंदी' शÊद का ÿयोग नहé है, िकÆतु अÆय दो को िहÆदी मानने के कारण
'पिIJमी िहÆदी' तथा 'पूवê िहÆदी' नाम िदया था । इस ÿकार से इस अथª म¤ 'िहÆदी' कì
आठ बोिलयाँ रही है - āज, खड़ीबोली, बुÆदेली, हåरयाणी, कनौजी, अवधी, बघेली,
छ°ीसगढ़ी आिद का सामूिहक नाम है ।
(ग) 'िहÆदी' शÊद का अथª है 'खड़ीबोली िहÆदी |' जो आज िहÆदी ÿदेशŌ कì सरकारी भाषा
है, पूरे भारत कì राजभाषा है, समाचार-पýŌ, िफ़ÐमŌ म¤ िजसका ÿयोग होता है तथा
जो िहÆदी ÿदेश के िश±ा का माÅयम है और िजसे 'पåरिनिķत िहÆदी ' या 'मानक
िहÆदी' आिद नामŌ से भी पुकारते ह§ । उदूª भी इसी का एक शैलीय łपांतर है ।
५.२.२ िहÆदुÖतानी :
िहÆदुÖतानी यह शÊद मूलतः िवशेषण (िहÆदुÖतान + ई) है, और इसका अथª है 'िहÆदुÖतान
का' या 'भारतीय' । भाषा के अथª म¤ 'िहÆदुÖतानी' शÊद का ÿयोग िहÆदी के एक łप के िलए
होता है। िúयसªन, धीरेÆþ वमाª आिद िवĬानŌ ने यह नाम यूरोिपयŌ कì देन है ऐसा माना ह§,
परंतु यह नाम कहé अिधक पुराना रहा है । 'तुजुके बाबरी' म¤ आता है “म§ने उसे (दौलत खाँ
लोदी को) अपने सामने िबठलाकर एक Óयिĉ Ĭारा जो िहÆदुÖतानी भाषा भली-भाँित
जानता था, अपनी हर बात उसे समझाने का आदेश िदया।” इस ÿकार कम-से-कम बाबर के
समय से तो यह ÿयोग म¤ है ही । यह शÊद भाषा के अथª म¤ बाबर से भी पहले कदािचत् १५
वé सदी का है। आगे यह बाबर (१६ वé सदी), फ़åरÔता (१७ वé सदी), टेरी (१६१६),
अमादुºजी (१७०४), केटिलयर (१७१५), लेिबदोफ़ (१७९५) तथा वजही (१९३५)
आिद म¤ 'िहÆदुÖतानी' एवं 'इÆदोÖतान' आिद łपŌ म¤ िमलता है ।
भाषा के अथª म¤ यह शÊद 'िहÆदी' या 'िहÆदवी' का पयाªय था, िकÆतु बाद म¤ १८वé सदी म¤
इसका ÿयोग मुसलमानŌ कì भाषा के िलए होने लगा । इस łप म¤ यह शÊद 'उदूª' का पयाªय
हो गया । १९वé सदी म¤ यह बात ÖपĶतः िदखाई पड़ती है । गासाª-द-तासी के इितहास के
नाम 'इÖÂवार द ला िलýेतुर ऐदुई ए ऐंदुÖतानी' से भी इस बात का संकेत िमलता है। इसम¤
'ऐंदुई' तो 'िहंदुवी' है और ऐंदुÖतानी' अथाªत् 'िहÆदुÖतानी', 'उदूª' | हेनरी यूल तथा बन¥ल ने
अपने ÿिसĦ कोश ‘होÊसन - जॉÊसन’ (१८८६) म¤ ÖपĶतः इसे उदूª कहा है तथा यह भी
बतलाया है िक उसे पुराने ऐंµलो-इंिडयन 'मूसª' कहा करते थे।
सन १९०० के आसपास 'िहÆदुÖतानी' का ÿयोग कभी तो उदूª के िलए और कभी-कभी
िहÆदी-उदूª के बीच कì भाषा, अथाªत् 'सरल िहÆदी' या 'सरल उदूª' के िलए िमलता है। इसी
आधार पर िúयªसन ने 'कौरवी' को 'वनाª³यूलर िहÆदुÖतानी' कहा है। अंúेजŌ ने राÕůीयता के munotes.in

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खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप
37 जागरण को दबाने के िलए िहÆदू-मुसलमानŌ म¤ िवरोध उÂपÆन करने कì नीित १९वé सदी म¤
ही अपना ली थी, और 'िहÆदुÖतानी' नाम कì आड़ म¤ वे अÐपसं´यकŌ कì भाषा उदूª को
ÿोÂसािहत कर रहे थे। अÆय कारणŌ के अितåरĉ इसका सामना करने के िलए भी, १८९३
ई. म¤ 'नागरी ÿचाåरणी सभा, काशी' कì, तथा १९१० म¤ 'िहÆदी सािहÂय सÌमेलन, ÿयाग'
कì Öथापना हòई। िदनŌिदन िहÆदी-उदूª म¤ िवरोध बढ़ने लगा जो राÕůीय आÆदोलन के िलए
घातक िसĦ होने लगा । कांúेस के नेताओं ने इसका अनुभव िकया, अतः १९२६ के कांúेस
अिधवेशन (कानपुर) म¤ राजिषª पुŁषो°मदास टÁडन ने यह ÿÖताव रखा िक आगे से कांúेस
कì कायªवाही 'िहÆदुÖतानी' म¤ हो । िहÆदुÖतानी से उनका अथª िहÆदी-उदूª के बीच कì सरल
भाषा था। िहÆदी-उदूª के झगड़े को दूर करने के िलए, दोनŌ को छोड़ इस नाम का ÿयोग
िकया गया था। यह सब गांधीजी कì ÿेरणा से हòआ था। इस ÿकार इस सदी के दूसरे चरण
के आरÌभ म¤ गांधीजी ने 'िहÆदुÖतानी' शÊद म¤ यह अथª सदा-सवªदा के िलए िनिIJत कर
िदया। आज भी 'िहÆदुÖतानी' नाम ÿायः इसी अथª म¤ ÿयुĉ होता है । यŌ बीच-बीच म¤ अÊदुल
हक़, सैयद सुलेमान नदवी, डॉ. ताराचÆद, पं. सुÆदरलाल तथा कुछ अÆय लोगŌ ने
'िहÆदुÖतानी' नाम का ÿयोग 'उदूª कì ओर झुकì हòई भाषा' के िलए भी िकया, परंतु जनता
उसे Öवीकार नहé करती ह§ |
५.२.३ उदूª :
भाषा शािľयŌ ने 'उदूª' शÊद को मूलतः तुकê भाषा का माना है और इसका मूल अथª 'शाही
िशिबर' या 'खेमा' आिद है । यह शÊद मूलतः चीनी भाषा का भी हो सकता है। चीन से
चलकर मंगोिलया और तुकê होते तुकŌ के साथ भारत म¤ आया। हॉÊसन-जॉÊसन के अनुसार
यह शÊद बाबर के समय म¤ भारत म¤ आया, परंतु बाबर से पूवª ही तुकŎ के साथ यह शÊद
भारत म¤ आ चुका था । उस समय इसके अथª 'खेमा', 'तÌबू', 'फ़ौजी पढ़ाव' आिद थे तथा
उसका łप ‘ओदूª' से 'उदूª' हो चुका था । 'ऊ' पर अितåरĉ बलाघात के कारण 'ओ' कोमल
होकर 'उ' हो गया । यहाँ इसका अथª 'छावनी या लÔकर का बाजार' या 'वह बाजार जहाँ सब
तरह कì चीज¤ िमलती हŌ' आिद भी हो गया। आøमणकारी मुसलमान फ़ौजी पढ़ावŌ म¤ रहते
थे तथा वहाँ उनका जłरी चीजŌ के िलए बाजार भी होता था। 'सेना के बाजार' अथª म¤ ही
भारत के िदÐली, गोरखपुर, गाजीपुर आिद कई नगरŌ म¤ 'उदूª बाजार' नाम िमलता है।
मुगल बादशाहŌ के 'फ़ौजी पड़ावŌ' के िलए भी 'उदूª' शÊद का ÿयोग िकया जाता था । इन
बादशाहŌ के िस³के कभी-कभी पड़ावŌ म¤ ही डालने पड़ते थे, इसीिलए िस³कŌ पर टकसाल
का नाम ÿायः 'उदूª' म¤ िलखा िमलता है। बाबर के कुछ िस³कŌ पर 'उदूª' िलखा है। इसी
ÿकार अकबर के भी कुछ िस³कŌ पर 'उदूª-ए-जफ़र करीन' या 'उदूª' िलखा है। जहाँगीर ने
कभी दि±ण जाते समय राÖते म¤ अपने शाही पड़ाव म¤ िस³के डलवाये थे। उसका एक
िस³का ऐसा िमला है, िजस पर टकसाल का नाम 'उदूª-दर-राहे-द³कन' (अथाªत् दि±ण के
राह म¤ का पड़ाव) िलखा है | शाहजहाँ ने कदािचत अकबर के अनुकरण पर अपने टकसाल
का नाम ही 'उदूª'-ए-ज़फ़र करीन' रख िलया था। इस तरह बाबर से लेकर शाहजहाँ तक 'उदूª'
शÊद 'शाही पड़ाव' या ‘शाही फ़ौजी पड़ाव’ आिद के अथŎ म¤ ÿयुĉ होता रहा। इन पढ़ावी
सैिनकŌ ने, बाबर के काल म¤, िदÐली के आसपास ÿचिलत कौरवी-बांगł-पूवê पंजाबी-āज
िमि®त लोकभाषा को अपनाया। बाद म¤ जब राजधानी आगरे से चली गई तो शाही फौजी
पड़ाव वहाँ गया और इन फौिजयŌ कì भाषा पर āजभाषा का अितåरĉ रंग चढ़ गया। इस munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
38 ÿकार मुगल बादशाहŌ के साथ रहने वालŌ कì भाषा वह थी, िजसके शÊद समूह म¤ अरबी-
फारसी-तुकê शÊद काफ़ì थे, िकÆतु िजसका Óयाकरण मूलतः कौरवी का था, िकÆतु साथ ही
पंजाबी, बांगł, āज आिद के तßव भी उसम¤ थे ।
शाहजहाँ ने अपनी राजधानी िफर आगरा से िदÐली बदल ली और अपने नाम पर
'शाहजहानाबाद ' आबाद िकया। यहां उसने लाल िक़ला बनवाया। यह भी उसका एक ÿकार
से शाही फ़ौजी पड़ाव ही था । Öथायी, बड़ा तथा सुÆदर होने के कारण, इसका नाम माý
'उदूª' न होकर 'उदूª'-ए-मुअÐला' हो गया । 'मुअÐला' अरबी भाषा का शÊद है और इसका
अथª है '®ेķ' । अथाªत्, यह '®ेķ शाही पड़ाव’ था । िकला होने के कारण कुछ लोग इसे
'िक़ला - मुअÐला' तथा लाल पÂथर का बना होने के कारण सामाÆय लोग इसे 'लाल िक़ला'
भी कहते थे । इस समय तक शाही पड़ाव कì भाषा कदािचत् एक िनिIJत łप ले चुकì थी,
अतः इस भाषा को 'जबान-ए-उदूª-ए-मुअÐला' (अथाªत् '®ेķ शाही पड़ाव कì भाषा') कहा
गया। इस तरह शाहजहाँ और उसके शाहजहांनाबाद (जहाँ 'उदूª-ए-मुअÐला' या 'लाल िक़ला'
है) से उदूª भाषा का सÌबÆध माना गया है। इसीिलए उदूª को कभी-कभी 'शाहजहाँनी उदूª' भी
कहते ह§। यहाँ पर यह िनIJय के साथ कहना किठन है िक शाहजहाँ के समय म¤ उदूª का यह
नाम चल पड़ा था या नहé। इंशा अÐला खाँ आिद ÿाचीन लेखकŌ को भी इस बात म¤ सÆदेह
रहा है। भाषा के नाम के łप म¤ 'जबान-ए-उदूª-ए-मुअÐला' शÊद बड़ा था, इसिलए धीरे-धीरे
ÿयोग म¤ आने पर यह छोटा होने लगा। पहले 'मुअÐला' शÊद हटा और यह 'जबान-ए-उदूª' ही
कही जाने लगी। इसी का अनुवाद 'उदूª' कì जबान या 'ल§िµवज ऑव् उदूª' िकया । कुछ िदन
और बीतने पर 'जबान' शÊद भी छूट गया और ‘जबान-ए-उदूª-ए-मुअÐला' केवल 'उदूª' रह
गई।
'उदूª' भाषा के मूल िवकास कì ŀिĶ से देखा जाए तो इसका बीज िकसी-न-िकसी łप म¤
उसी समय पड़ा, जब १२०७ ई. म¤ कुतुबुĥीन ऐबक ने िदÐली को राजधानी बनाया। िदÐली
कì लोकभाषा को अपने शÊद-समूह कì छौक के साथ मुसलमान िसपािहयŌ ने उसी समय
सबसे पहले अपनाया होगा। बाबर के आगमन तक िÖथरता कì कमी के कारण इसका िवशेष
िवकास नहé हòआ। बाबर और शाहजहाँ के बीच इसने पयाªĮ उÆनित कर ली। इतनी उÆनित
कर ली िक शाहजहाँ के शासन कì समािĮ के लगभग ५० वषª बाद ही इसम¤ काÓय-रचना
का ÿारंभ हो गया। उस समय इस भाषा को 'िहÆद' कì होने के कारण 'िहÆदी' या अरबी-
फारसी शÊदŌ से िमि®त होने के कारण 'रेÖता' कहते थे।
'िहÆदुÖतानी', 'िहÆदवी', 'रे´ता', 'िहÆदी' तथा "िहÆदवी उदूª' आिद नामŌ का ÿयोग िविभÆन
कालŌ म¤ ‘उदूª’ के िलए हòआ है। 'रे´ता' नाम मोटे तौर पर १८ वé सदी के ÿारÌभ से, लगभग
१९ वé के मÅय तक, िवशेषतः उदूª के िलए चलता रहा है। 'िहÆदुÖतानी' नाम फोटª िविलयम
कॉलेज के åरकाडŎ म¤ ही 'उदूª' के िलए सवªÿथम ÿयुĉ हòआ। आगे चल कर इस सदी म¤
ÿायः िहÆदी-उदूª के बीच कì शैली के िलए 'िहÆदुÖतानी' नाम का ÿयोग हòआ है। अब भी
कभी-कभी 'िहÆदुÖतानी' नाम से िलखी जाने वाली भाषा 'िहÆदुÖतानी' न होकर 'उदूª' होती
है। उदूª के उÂपि°-काल से लेकर, ÿायः १९ वé सदी के ÿथम चरण तक, 'िहÆदी' नाम 'उदूª'
के िलए भी चलता रहा। उदूª के मीर, ग़ािलब आिद अनेक किवयŌ ने 'िहÆदी' शÊद का 'उदूª' के
िलए ÿयोग िकया है। अÆय नामŌ का ÿयोग Óयापक łप से अिधक िदनŌ तक लगातार न
होकर कभी-कभार ही हòआ है । munotes.in

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खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप
39 वÖतुतः खड़ीबोली या आधुिनक पåरिनिķत िहÆदी कì तरह ही उदूª भी मूलतः िदÐली के
आसपास कì खड़ीबोली पर आधाåरत है, िजसम¤ मूल या िवकिसत łप म¤ पूवê पंजाबी,
बांगł तथा āज भी ह§। पुरानी िहÆदी कì तरह, पुरानी उदूª म¤ कुछ łप अवधी के भी िमलते
ह§। इस ÿकार Óयाकरिणक ŀिĶ से िहÆदी-उदूª, कुछ अपवादŌ को छोड़कर, ÿायः पूणªतः एक
ह§। मूल अÆतर केवल शÊदावली का है। सािहिÂयक उदूª म¤ अरबी-फारसी शÊद अिधक होते
ह§, िकÆतु यह अÆतर सािहÂय के Öतर पर ही अिधक है । सामाÆय, Óयावहाåरक या बोलचाल
के Öतर पर िहÆदी-उदूª दोनŌ ही, अपने किठन संÖकृत या अरबी-फ़ारसी शÊदŌ को छोड़कर
ÿायः एक हो जाती ह§, िजसे गांधी जी िहÆदुÖतानी कहा करते थे। इधर िहÆदी तथा उदूª दोनŌ
का कुछ सािहÂय भी उस भाषा म¤ िलखा गया है। इसीिलए उदूª को िहÆदी कì फ़ारसी - अरबी
शÊदावली से युĉ शैली कहना अिधक समीचीन है। दोनŌ का Óयाकरण ÿायः पूणªतः एक
होने पर, इÆह¤ अलग भाषाएँ मानना न तो Óयावहाåरक है और न वै²ािनक ।
उदूª भाषा कैसे बनी, इस बात को लेकर इंशा ने कहा है िक उस काल कì ÿचिलत भाषा म¤
से कुछ भाषाओं के शÊदŌ को िनकाल कर और उनके Öथान पर कुछ शÊद रखकर तथा
कुछ हेर-फेर करके उदूª भाषा बनाई गई। इस संदभª म¤ 'दåरया-ए-लता-फ़त' म¤ िलखते ह§
“यहाँ के खुशबयानŌ ने मु°िफ़क होकर मुतािĥद जबानŌ से अ¸छे-अ¸छे लÜज िनकाले,
और बाजी इबारतŌ और अÐफाज म¤ तसłªफ़ करके और जबानŌ से अलग एक नई जबान
पैदा कì, िजसका नाम उदूª र³खा।” इसी आधार पर ®ी. चÆþबली पांडेय ने अपनी कई
पुÖतकŌ म¤ यह मत ÿकट िकया है िक “िहÆदी शÊदŌ को िनकालकर तथा उनके Öथान पर
अरबी-फ़ारसी आिद के शÊदŌ को रखकर उदूª भाषा बनाई गई।” डॉ. उदयनारायण ितवारी
भी चÆþबली पांडेय से सहमत ह§ । वÖतुतः उदूª वैसे ही बनी, जैसा िक संकेत िकया जा चुका
है। अथाªत्, तÂकालीन 'िहÆदवी' जब मुसलमानŌ Ĭारा ÿयुĉ हòई, तो सहज ही उसका
Óयाकरण अपना कर भी उसके सारे के सारे शÊद मुसलमान नहé अपना सके । सं²ा,
िवशेषण तथा िøयािवशेषण आिद फ़ारसी के हो ÿयुĉ होते रहे, िजनका वे फ़ारसी आिद
बोलने म¤ ÿयोग करते थे। इस ÿकार से अÆतर केवल यह है िक इंशा और उनके साथ पांडेय
जी तथा डॉ. उदयनारायण ितवारी कहते ह§ िक उदूª बनाई गई, कुछ लोगŌ Ĭारा िमलकर।
िकÆतु पåरिÖथितयाँ यह कहती ह§ िक उदूª बन गई। आज तो भाषा बनाई जा सकती है, िकÆतु
उस काल म¤ जब भाषा के ÿित वतªमान जागłकता नहé थी, भाषा बनाए जाने कì बात गले
से नीचे नहé उतरती। इसीिलए यहाँ पर उदूª के बन जाने कì बात ही मानी जा सकती है,
बनाए जाने कì नहé।
उदूª भाषा के सािहÂय के संदभª म¤ उदूª सािहÂय के अÅयेताओं Ĭारा िवरोधी मत ÿकट िकए
गए ह§। एक ओर तो उदूª का आरÌभ खुसरो आिद से माना गया है तथा 'दि³खनी' को
'दि³खनी उदूª' कहकर उसके पूरे सािहÂय को उदूª कì सÌपि° माना गया है, और दूसरी ओर
वली को, जो 'दि³खनी' के अिÆतम किव है, उदूª का ÿथम किव माना गया है । वÖतुतः उदूª
नाम तथा उसके वतªमान Öवłप को यिद ŀिĶ म¤ रखा जाय तो इसके सािहÂय का ÿारÌभ
१७०० के आसपास से ही माना जाना चािहए, िकÆतु भाषा वै²ािनक ŀिĶ से उसकì
पूवªवतê भाषा को उदूª से अलग नहé रखा जा सकता । वाÖतिवकता यह है िक उदूª, िहÆदी
कì ही एक शैली है, अतः अपने मूल म¤ उदूª उतनी ही पुरानी है, िजतनी पुरानी िक िहÆदी ।
हाँ, Öवतंý शैली के łप म¤ इसका जÆम मुसलमानŌ के भारत म¤ जमने के बाद हòआ, तथा
सािहÂय म¤ इसका ÿयोग १७०० के आस-पास हòआ है और तबसे इसके इितहास या munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
40 िवकास को दो कालŌ म¤ बाँटा जा सकता है। ÿथम काल लगभग १८०० के पूवª का है और
दूसरा इसके बाद का। ÿथम काल के ÿमुख किव वली, आबł, हाितम, ददª, सौदा, मीर
आिद है तथा दूसरे काल के मोिमन, जौक, ग़ािलब, दाग़, हाली, िजगर, इक़बाल, िफ़राक़
आिद । ÿथम काल म¤ उदूª भाषा म¤ āज, अवधी तथा दि³खनी का भी ÿभाव था, िकÆतु
परवतê उदूª ÿभावŌ से मुĉ हो गई । इधर पािकÖतान के बनने के बाद, उदूª पािकÖतान कì
राÕůभाषा घोिषत हो गई है, और इस ÿकार उसम¤, अब सािहÂय-रचना पािकÖतान तथा
िहÆदुÖतान, दोनŌ ही देशŌ म¤ हो रही है। अभी तक दोनŌ देशŌ कì उदूª म¤ कोई अÆतर नहé है,
िकÆतु सÌभावना यह है िक आगे चलकर एक ओर पािकÖतान कì उदूª, जहाँ िसंधी-पिIJमी
पंजाबी शÊदŌ से कुछ युĉ होगी, तो भारतीय उदूª म¤ संÖकृत के कुछ तÂसम-तĩव शÊद आ
जाएँगे । पािकÖतान के बनने के पूवª भारत म¤ उदूª के िदÐली, रामपुर, लखनऊ, हैदराबाद
आिद ये चार केÆþ थे । इन चारŌ, ÿमुखतः िदÐली और लखनऊ कì उदूª म¤ मुहावरा आिद
कì ŀिĶ से कुछ अÆतर था । अब यह अÆतर ÿायः समाĮ हो गया है ।
५.२.४ दि³खनी :
‘दि³खनी’ िहÆदी का ही एक łप है। उसके 'िहÆदी', 'िहÆदवी', 'दकनी', 'दखनी', 'देहलवी',
'गुजरी', 'िहÆदुÖतानी', 'जबाने िहÆदुÖतान', 'दि³खनी िहÆदी', 'दि³खनी उदूª', 'मुसलमानी',
'दि³खनी िहÆदुÖतानी' आिद दि³खनी के नाम ह§। इसका मूल आधार िदÐली के आसपास
ÿचिलत १४ वé १५ वé सदी कì 'खड़ीबोली' है। मुसलमानŌ ने भारत म¤ आने पर इस बोली
को अपनाया था । मसऊद इÊनसाद, खुसरो तथा फ़रीदुĥीन शकरगंजी आिद ने अपनी
िहÆदी किवताएँ इसी म¤ िलखी थé। १५ वé १६ वé सदी म¤ फ़ोज, फ़कìरŌ तथा दरवेशŌ के
साथ यह भाषा दि±ण भारत म¤ पहòंची और वहां ÿमुखतः मुसलमानŌ म¤, तथा कुछ िहÆदुओं
म¤ जो उ°र-भारत के थे, ÿचिलत हो गई। इसके ±ेý ÿमुखतः दि±ण भारत (बीजापुर,
गोलकुÁडा, अहमदनगर आिद), बरार, बÌबई तथा मÅयÿदेश आिद ह§। िúयसªन इसे
िहÆदुÖतानी का िबगड़ा łप न मानकर उ°र भारत कì 'सािहिÂयक िहÆदुÖतानी' को ही
इसका िबगड़ा łप मानते ह§। डॉ. चटजê इसे िहÆदुÖतानी नहé, तो उसकì सहोदरा भाषा
अवÔय मानते ह§। भाषा वै²ािनक ŀिĶ से दि³खनी को 'ÿाचीन खड़ी-बोली' मानना चािहए,
िजसम¤ पंजाबी, हåरयानी, āज, मेवाती तथा कुछ अवधी के łप भी ह§। दि±ण म¤ जाने के
बाद इस पर कुछ गुजराती-मराठी का भी ÿभाव पड़ा है। यह ÅयातÓय है िक उ°री भारत कì
पंजाबी, हåरयानी, āज, अवधी आिद भाषाओं के łपŌ के िमलने का यह अथª कदािप नहé है
िक इन सब का इस पर केवल ÿभाव है । वÖतुिÖथित यह है िक उस काल कì भाषा कुछ
इस ÿकार कì िमि®त थी ही। सभी बोिलयŌ का ÖपĶ अलग-अलग िवकास नहé हòआ था।
कबीर ने भी इसी िमि®त भाषा का ÿयोग िकया है। िúयसªन के भाषा-सव¥±ण के अनुसार,
दि³खनी बोलने वालŌ कì सं´या लगभग साढ़े छ°ीस लाख थी। आज भी उस ±ेý म¤,
दि³खनी (उदूª नाम से) बोली जाती है, यīिप यह भाषा कई ŀिĶयŌ से बदल गई है। पåरवतªन
कì ŀिĶ से तीन बात¤ उÐलेखनीय ह§ -
(१) उदूª भाषा का उस पर पयाªĮ ÿभाव पड़ गया है।
(२) कुछ पुराने łप िवकिसत होकर कुछ-के-कुछ हो गए ह§।
(३) शÊद-समूह म¤ ±ेýानुसार तिमल, तेलुगु, कÆनड़ आिद भाषाओं का ÿभाव पड़ा है । munotes.in

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खड़ीबोली िहÆदी के िविवध łप
41 भाषा तथा सािहिÂयक ŀिĶकोण से इस शÊद का ÿयोग उस भाषा के िलए िकया जाता है,
िजसका ÿयोग दि±ण के बहमनी वंश तथा पुर गोलकुंडा और अहमदनगर से संबंिधत
मुसलमान सािहÂयकारŌ ने सािहÂय के ±ेý म¤ िकया था | खड़ीबोली गī का ÿाचीन
ÿामािणक úÆथ दि³खनी म¤ ही िमलता है। इस गī-úÆथ का नाम 'िमराजुल आिशकìन' है,
िजसके लेखक ´वाजा बÆदानवाज (१३१८ -१४३०) ह§। दि³खनी के सािहÂयकारŌ म¤
अÊदुला, वजही, िनजामी, गवासी, गुलामअली तथा बेलूरी आिद ÿमुख ह§। उदूª सािहÂय का
आरÌभ भी वÖतुतः दि³खनी से ही हòआ है। उदूª के ÿथम किव वली ही दि³खनी के अिÆतम
किव वली औरंगाबादी है। इस ÿकार दि³खनी को एक ÿकार से उदूª कì जननी कह सकते
ह§, यīिप भाषा और भाव दोनŌ ही ŀिĶयŌ से दोनŌ म¤ आकाश-पाताल का अÆतर है।
दि³खनी कì केवल िलिप ही फ़ारसी (या ÿचिलत शÊदावली म¤ उदूª) है, अÆयथा इसकì
भाषा म¤ समाÆय िहÆदी कì भाँित ही, भारतीय परÌपरा के शÊद पयाªĮ है। अरबी-फारसी शÊद
उदूª कì तुलना म¤ बहòत ही कम ह§। इसका ±ेý दि±ण म¤ होने के कारण ही इसका नाम
दि³खनी है। आज िहÆदीवाले, इसे 'िहÆदी' या 'दि³खनी िहÆदी' कहकर इसे अपनी भाषा
और इसके सािहÂय को अपने सािहÂय का अंग मान रहे ह§, और उदूª वाले 'कदीम उदूª' या
‘दि³खनी उदूª’ कहकर इसे अपना अंग मान रहे ह§। वÖतुतः न केवल दि³खनी भाषा, अिपतु
उसका सािहÂय भी िहÆदी के िनकट है। कुछ अपवादŌ को छोड़कर उदूª के िवŁĦ, दि³खनी
भाषा और सािहÂय कì आÂमा पूणªतया भारतीय है। ऐसी िÖथित म¤ 'दि³खनी िहÆदी' िहÆदी
ही है। िकसी भी दि³खनी गī-लेखक या किव ने उसके िलए 'उदूª' शÊद का ÿयोग नहé
िकया है। उदूª नाम का ÿयोग उसके िलए उिचत नहé ह§ |
'दि³खनी' के िलए ÿाचीन नाम 'िहÆदी', 'देहलवी' और 'िहÆदवी' से िमलते ह§, िजसका
आशय यह है िक उ°र भारत से, भाषा के साथ ये नाम भी गए थे। बाद म¤ सýहवé सदी के
अिÆतम चरण म¤ 'दि³खनी' नाम ÿचिलत हòआ। इसका ÿथम ÿामािणक ÿयोग कदािचत्
'वजही' म¤ हòआ है। वे ‘कुतुबमुÔतरी’ (१६३८ ई.) म¤ िलखते ह§ “दिखन म¤ जो दिखनी मीठी
बात का।” कुछ उदूª लेखकŌ ने िलखा है िक दि³खनी को बाद म¤ 'रे´ता' भी कहा जाता था |
परंतु बात ऐसी नहé है। दि³खनी के अिÆतम काल के किवयŌ ने काÓय कì एक िवशेष शैली
के िलए ही 'रे´ता' का ÿयोग िकया है।
इस ÿकार से िहंदी, िहÆदुÖतानी, उदूª और दि³खनी खड़ीबोली िहंदी के िविवध łप रहे ह§ |
५.३ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ िहंदी, उदूª, िहÆदुÖतानी और दि³खनी का छाýŌ ने िवÖतार से अÅययन
िकया ह§ | इसम¤ िहंदी, उदूª, िहÆदुÖतानी और दि³खनी का िवकास िकस तरह से होता गया,
तथा ÿाचीन काल म¤ खड़ीबोली का िकस तरह से संबंध रहा इसे देखा ह§ | साथ ही
खड़ीबोली के सािहिÂयक łप का िवकास िकस तरह से हòआ ह§ | और खड़ीबोली
जनसाधारण कì बोलचाल कì भाषा रही है इसे िवÖतार से जाना ह§ |
५.४ दीघō°री ÿij १. खड़ीबोली िहंदी के िविवध łपŌ को सं±ेप म¤ िलिखए | munotes.in

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भाषा िव²ान: िहंदी भाषा और Óयाकरण
42 २. खड़ीबोली िहंदी म¤ उदूª का ³या Öथान है उसे िवÖतार से िलिखए |
३. खड़ीबोली िहंदी म¤ िहंदी और िहÆदुÖतानी का िवकास िकस तरह से हòआ उसे
समझाइए|
५.५ िटÈपिणयाँ १. िहंदी २. िहंदुÖतानी
३. उदूª ४. दि³खनी
५.६. संदभª úंथ १. भाषा िव²ान एवं भाषा शाľ - डॉ. किपलदेव िĬवेदी
२. िहंदी भाषा - डॉ. भोलानाथ ितवारी
३. भाषा िव²ान - डॉ. दानबहादुर पाठक ‘वर’, डॉ. मनहर गोपाल भागªव
४. िहंदी भाषा का इितहास - धीर¤þ वमाª
५. भाषा िव²ान कì भूिमका - आचायª देवेÆþनाथ शमाª

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िहÆदी का शÊद समूह
इकाई कì Łपरेखा
६.० इकाई का उĥेÔय
६.१ ÿÖतावना
६.२ िहÆदी का शÊद समूह
६.३ िहÆदी शÊद समूह के ÿेरणा या मूल ľोत
६.४ भारतीय आयª भाषा
६.५ भारतीय þिवड़ भाषा
६.६ देशज भाषा
६.७ िवदेशी भाषा
६.८ सारांश
६.९ दीघō°री ÿij
६.१० वÖतुिनķ ÿij
६.११ संदभª úंथ
६.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ छाý िनÌनिलिखत िबंदुओ का अÅययन कर¤गे -
 इस इकाई को पढ़कर छाý िहÆदी भाषा के शÊद भंडार के बारे म¤ जान पायेगा ।
 िवīाथê िहÆदी शÊदŌ के मूल ľोत का पता लगा सकता है ।
 संÖकृत भाषा से आये शÊदŌ के łपŌ कì जानकारी पा सकेगा । साथ ही वह तÂसम्
और तĩव शÊदŌ म¤ अÆतर कर सकेगा ।
 िहÆदी म¤ भारतीय आयª भाषाओं से आये शÊदŌ को भी जान सकेगा ।
 िहÆदी म¤ िवदेशी भाषाओं से आये हòए शÊदŌ के बारे म¤ जान पायेगा ।
६.१ ÿÖतावना छाý िहंदी के शÊदŌ से वािकफ है । मगर उÆह¤ यह पता नहé होता िक ये िहÆदी शÊद समूह के
शÊद कहाँ से आये है । उनके मन म¤ जागłकता आती है िक िहÆदी के शÊद िकन-िकन
भाषाओं से िहÆदी म¤ आये है । िहÆदी म¤ संÖकृत, आयª भाषा, þिवड़ भाषा और िवदेशी भाषा munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
44 के अनेक शÊद है । देशज भाषाओं से भी अनेक शÊद िहÆदी भाषा आते ह§ | और देशज
भाषाओं से भी अनेक शÊद िहÆदी भाषा म¤ ÿचिलत है । इन सब कì जानकारी हम¤ िमलेगी ।
६.२ िहÆदी का शÊद समूह साथªक शÊदŌ के समूह को वा³य कहते ह§ । ये वणŎ के साथªक समूह ही शÊद कहलाता है ।
शÊद भाषा कì Öवतंý इकाई है । ÿÂयेक भाषा म¤ असीिमत शÊद होते ह§ जो िकसी-न-िकसी
भाव या िवचार को Óयĉ करते ह§ । हर भाषा इन शÊदŌ का भंडार होती है लेिकन ये सभी
शÊद एक ही ÿकार के नहé होते । कुछ शÊद िकसी Óयिĉ , वÖतू या Öथान का नाम बताते ह§
तो कुछ शÊद िøयाओं – घटनाओं को Óयĉ करते ह§, जबिक कुछ शÊद दूसरे शÊदŌ कì
िवशेषता बताते ह§ । इस ÿकार से भाषा म¤ ÿयुĉ होने वाले इन िविभÆन ÿकार के शÊदŌ के
समुदाय को ही शÊद भंडार कहते ह§ । शÊद असं´य होते ह§ तथा इसके नए-नए शÊद हर िदन
जुड़ते रहते है ।
िहÆदी भाषा का शÊद भंडार मु´य łप से संÖकृत ÿधान है ³यŌिक िहंदी उस ÿदेश कì भाषा
है जहाँ पहले संÖकृत िफर ÿाकृत और बाद म¤ अपĂंश भाषाएँ ÿचिलत थी । अपĂंश भाषा
के एक भेद शौरसेनी अपĂंश से िहÆदी कì उÂप°ी हòई है । इस ÿकार संÖकृत और िहÆदी
का अÂयिधक घिनķ संबंध है । अतः िहÆदी भाषा म¤ संÖकृत के शÊदŌ का अÂयािधक माýा
म¤ होना Öवाभािवक है ।
जब कोई जाित िकसी अÆय जाित के सÌपकª म¤ आती है, तब वह अपने साथ अपनी भाषा
को भी लाती है तथा अपने सÌपकª म¤ आने वाली जाित कì भाषा को अपनी भाषाĬारा
ÿभािवत करती है और उसकì भाषाĬारा अपनी भाषा को भी ÿभािवत होने का अवसर
ÿदान करती है । इस ÿकार ÿÂयेक भाषा म¤ दूसरी भाषा के शÊद भी बेरोक-टोक आते रहते
ह§ । इस ÿकार दूसरी भाषा से आये हòए शÊद धीरे-धीरे उस भाषा के अपने अंग बन जाते ह§ ।
कालांतर से दूसरी भाषा से आये शÊद कì पहचान पाना मुिÔकल हो जाता है । िहÆदी म¤
दूसरी भाषा से आये हòए शÊदŌ म¤ अिधक सं´या फारसी, तुकê, अरबी तथा अúेजी शÊदŌ कì
है ।
अतः कह सकते है िक अÆय समÖत भाषाओं के समान िहÆदी भाषा के शÊद-समूह म¤ भी
अनेक देशी, िवदेशी, जीिवत और मृत भाषाओं के शÊदŌ का समाहार पाया जाता है । िहÆदी
एक संरचनाÂमक भाषा है । इसम¤ संÖकृत, िविभÆन देशी भाषाओं एवं बोिलयŌ तथा िवदेशी
भाषाओं के शÊद पयाªĮ माýा म¤ समािहत है ।
६.३ िहÆदी शÊद समूह के ÿेरणा या मूल ľोत ÿÂयेक भाषा म¤ शÊदŌ कì सं´या असीिमत होती है । शÊदŌ के अÅययन म¤ सरलता लाने के
िलए इनको िभÆन -िभÆन आधारŌ पर िविभÆन वगŎ म¤ बाँट िलया जाता है । जो िनÌनिलिखत
है -
१) भारतीय आयª भाषाओं से आये हòए शÊद
२) भारतीय þिवड़ भाषाओं से आये हòए शÊदॉ munotes.in

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िहÆदी का शÊद समूह
45 ३) देशज् शÊद
४) िवदेशज् शÊद
६.४ भारतीय आयª भाषाओं से आये हòए शÊद भारतीय आयª भाषाओं से आये हòए शÊदŌ म¤ संÖकृत, मराठी, बंगाली, गुजराती आिद मु´य
है ।
१) संÖकृत भाषा के शÊद:
िहंदी म¤ संÖकृत शÊदŌ कì सं´या बहòत है । संÖकृत और िहÆदी का संबंध माँ-बेटी जैसा है ।
इसम¤ संÖकृत के शÊदŌ कì सं´या सदा से अिधक बनी रहती है । अब तो नवीन
आवÔयकताओं के कारण उनकì सं´या म¤ िनरÆतर वृिĦ होती जा रही है । ये शÊद ÿायः दो
łप म¤ पाये जाते ह§ –
i) तÂसम शÊद:
तÂसम शÊद दŌ शÊदŌ के योग से बना है – तत् + सम । ‘तत्’ का अथª है ‘उसके’ और ‘सम’
का अथª है ‘समान’ । इस ÿकार तÂसम शÊद का अथª है उसके (संÖकृत) समान । अतः कह
सकते ह§ संÖकृत के वे शÊद जो िहंदी भाषा म¤ िबना िकसी बदलाव के ÿयोग म¤ लाए जाते है,
उÆह¤ तÂसम शÊद कहते ह§ । जैसे – ±ेý, úाम, पý, चंद, िदवस आिद ।
ii) तĩव शÊद:
तĩव शÊद दो शÊदŌ के योग से बना है – तत् + भव । ‘तत्’ का अथª है, उससे और ‘भव’ का
अथª ‘उÂपÆन’ अथाªत् वे शÊद जो संÖकृत शÊदŌ से उÂपÆन हòए ह§ । अतः हम कह सकते ह§
िक वे शÊद जो िहंदी भाषा म¤ पåरवितªत łप म¤ ÿयोग िकए जाते ह§, उÆह¤ तĩव शÊद कहते ह§।
जैसे – खेत, गाँव, प°ा, चाँद, िदन आिद ।
यहाँ कुछ तÂसम और तĩव शÊदŌ उदाहरण िदए गए ह§ – तÂसम तĩव ±ेý खेत िदवस िदन आă आम िनþा नéद सूयª सूरज मयूर मोर Ăमर भŏरा भातृ भाई सĮ सात munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
46 सूý सूत गृह घर उलूक उÐलू
२) मराठी से िहÆदी म¤ आए शÊद:
िहÆदी और मराठी दोनŌ ही संÖकृत से िनकल कर आती है । अतः िहÆदी और मराठी म¤
बहन-बहन का संबंध है । अतः कई शÊद मराठी के िहÆदी म¤ इस ÿकार ÿयोग िकये जाते ह§,
िजÆहे कह पाना मुिÔकल है िक ये िकस भाषा के शÊद ह§ । जैसे-
खोली, पावती, भाड़ा, लागू, चालू, पगार, ÿगित, बड़ा, बाजू, कंटाला, घोटाला आिद ।
३) बंगाल से िहंदी म¤ आए शÊद:
Óयापार, गला, उपÆयास, गÐप, रसगुÐला, नेह, भþलोक, छाता, आग, पैठ, टाट ।
४) गुजराती भाषा से िहÆदी म¤ आए शÊद:
हड़ताल, गरबा, कुनबी ।
५) पंजाबी भाषा से िहÆदी म¤ आए शÊद:
िस³ख, सरदार, तÆदूर ।
६.५ भारतीय þिवड़ भाषाओं से आए हòए शÊद समय के ÿवाह के साथ िहÆदी म¤ अनायª भाषाओं के अनेक शÊद ÿयुĉ होने लगे ह§ । िहंदी म¤
बहòत से ऐसे शÊद ÿयुĉ होते ह§ जो ÿाचीन काल म¤ þिवड़ भाषाओं से तÂकालीन आयª
भाषाओं म¤ ले िलए गए थे ।
i) मÐयालम से िहÆदी म¤ आये शÊद:
पूजा, साधु, पाÈपड़म, काक, िचÐलर, भंगी, तोिफ, सरवतु ।
ii) तेलगु से आए शÊद:
अंबार, औंसरा, उड़द, कोठरी, गुंडा, चंदा, झंडा, िपÐला, क¸चा, प³का, आसरा आिद ।
iii) तिमल से आए शÊद:
बीस, झूठ, अिभमान, अमावसी, उपवास, कृिý, नीर, मित, कोड़ी, मुसीबत, उपहास, मीर ।
६.६ देशज भाषाओं से आए हòए शÊद िहंदी म¤ िहंदी ÿदेश म¤ बोली जानेवाली बोिलयाँ एवं उपभाषाओं के अनेक शÊद आ गये है,
िजनकì ÓयुÂपि° का पता नहé चलता है । ये िसफª हालचाल म¤ ÿयोग िकए जाते ह§ । munotes.in

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िहÆदी का शÊद समूह
47 जैसे – िचिड़याँ, जूता, धड़ाम, कलाई, कटोरा, ठेस, िखड़कì, झुĜी, पेट, लात, थैला, होली,
रोटी, बाजरा, अ टकल, घाघरा, भŌपू, खराªटा आिद ।
६.७ िवदेशी भाषाओं से आए हòए शÊद िहंदी भाषा ÿांत अनेक िवदेिशयŌ के संपकª म¤ सैकड़Ō वषŎ तक रहा है । मुगल और अंúेज
शासन के कारण तुकê, अरबी, फारसी और युरोपीय भाषाओं का इस पर Óयापक ÿभाव
पड़ा है और उन भाषाओं के अनेक शÊद िहंदी म¤ लोकिÿय हो गए ह§ । वो शÊद जो िवदेशी
भाषाओं से िहंदी म¤ आए ह§ उÆह¤ िवदेशज कहते ह§ । इÆह¤ दो भागŌ म¤ बाँटा जा सकता है -
१) एिशयाई देशŌ से आये शÊद
२) यूरोपीय देशŌ से आये शÊद
१) एिशयाई देशŌ से आये शÊद:
मुिÖलम शासन काल म¤ अरबी, फ़ारसी आिद भाषाओं के शÊदŌ का गहरा ÿभाव भारतीय
भाषाओं पर पड़ा । मुसलमानी शासन म¤ सदैव ही फ़ारसी को दरबारी एवं सािहÂय भाषा के
łप म¤ अपनाया । तुकê, अरबी आिद अÆय मुसलमानी भाषाओं के शÊद भी ÿायः फ़ारसी के
ही माÅयम से ही होकर िहÆदी म¤ आये ह§ ।
i) अरबी भाषा से आए शÊद:
अरबी भाषा के लगभग २५०० शÊद िहंदी ने ºयŌ के ÂयŌ úहण कर िलए है । जैसे - अमीर,
अ³ल, अ³लमंद, अ³स, आवाज, आदत, आदमी, औरत, इमारत, कसूर, कसरत, कानून,
िकताब, खबर, खैर, जनाब, जुलूस, तहसील, तक़दीर, मुÐला, नशा, िहसाब, मजहब आिद ।
ii) फारसी भाषा से आए शÊद:
िहंदी म¤ करीब ३५०० शÊद ÿचिलत है । जैसे – अमłद, आमदनी, आसानी, आईना,
आराम, आवारगी, जुलाहा, जोश, कमीना, िजगर, दÉतर, दजê, गवाह, चादर, पाजामा,
बुखार, बेकार, बेरहम, बुकाª, सौदागर, मुगाª, शादी, िसतारा, हÉता, मुदाª, सूद आिद ।
iii) तुकê भाषा से आए शÊद:
तुकê भाषा कì सं´या अरबी-फारसी कì अपे±ा बहòत कम है । लगभग १५० शÊद आज
िहÆदी म¤ ÿयोग िकए जाते ह§ । जैसे – आका, तोप, तमगा, तमाशा, कालीन, बेगम, बहादुर,
मुगल, लफंगा, चेचक, चाकू, बाłद, बÆदूक, सौगात, बीबी, खंजर, लाश, चमचा, सराय
आिद ।
२) यूरोपीय देशŌ से आये शÊद:
यूरोप के िनवासी लगभग सन् १५०० ई. से भारत म¤ आन-जाने लगे थे । सन् १८०० ई. से
यूरोप वािसयŌ का िहÆदी ÿदेश के साथ िनकता बढ़ी । १८०० ई. से लेकर १९४७ ई. तक
अंúेजŌ ने शासन िकया और अंúेजी को राºय भाषा बनाया । कहने का ताÂपयª यह है िक munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
48 िपछले देढ़ दो सौ वषŎ म¤ िहÆदी के ऊपर यूरोपीय भाषाओं का िवशेषकर अंúेजी का बहòत
ºयादा ÿभाव पड़ा है ।
i) अंúेजी भाषा से आए शÊद:
आज करीब ३००० से अिधक अंúेजी के शÊद िहंदी म¤ ÿयुĉ है । िहÆदी शÊद समूह म¤
अंúेजी शÊदŌ कì गहरी पैठ पड़ गई है । यहाँ तक िक हमारे अिशि±त úामवासी भी अंúेजी के
अनेक शÊदŌ का ÿयोग करते ह§ । जैसे – अपील, इंजन, कÌपनी, कमीशन, कार, कॉलेज,
कमेटी, कालोनी, कले³टर, कोट, िकøेट, ³लब, िगलास, गैस, चाकलेट, पेन, पंप, पाईप,
पाउडर, पुिलस, साईिकल, ůेन, Èलेट, ÿेस, मéिटग आिद ।
ii) पुतªगाली भाषा से आए शÊद:
भारत के कुछ ±ेýŌ पर पुतªगािलयŌ का शासन था । इस तरह कुछ पुतªगामी शÊद िहंदी म¤
आए । जैसे – अनÆनास, अलमारी, आलपीन, अचार, कमीज, कमरा, पीपा, सÆतरा,
तौिलया, बाÐटी, चाभी, पेड़, फìता आिद ।
iii) डच भाषा से आए शÊद:
िहÆदी भाषा म¤ डच भाषा के शÊदŌ का कम ÿयोग होता है । जैसे – तłप, बम ।
िवशेष:
कभी-कभी दो भाषाओं के मेल से सयुंĉ शÊद बन जाते है । जैसे – डाकखाना (डाक-िहंदी,
खाना-फारसी) रेलमंýी (रेल-अंúेजी, मंýी-िहंदी), शेयरबाजार (शेयर-अंúेजी, बाजार-िहंदी)
आिद |
६.८ सारांश िहÆदी शÊद समुह म¤ आये þिवड़, देशी, मुसलमानी तथा यूरोपीय सभी भाषाओं के शÊद पाये
जाते ह§ । िहंदी म¤ संÖकृत के ही नहé, अÆय अनेक देशी-िवदेशी भाषाओं के शÊद एकदम घुल
िमल गये ह§, उनका ÿयोग ऐसा Öवाभािवक हो गया है िक िवदेशी लगते ही नहé है । अतः कह
सकते ह§ िक शÊद-समूह कì ŀिĶ से िहÆदी एक ÿकार कì िखचड़ी भाषा ही है ।
६.९ दीघō°री ÿij ÿ.१ िहÆदी शÊद समूह से आप ³या समझते है ? िहÆदी शÊद समूह के मूल ľोत के बारे म¤
िलिखए ।
ÿ.२ िहÆदी शÊद समूह म¤ भारतीय आयª भाषाओं से आए शÊदŌ कì सिवÖतर जानकारी द¤।
ÿ.३ िहÆदी शÊद समूह म¤ þिवड़ और देशज भाषाओं के बारे म¤ िलखे ।
ÿ.४ िहÆदी शÊद समूह म¤ िवदेशी भाषाओं के बारे म¤ िलिखए ।
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िहÆदी का शÊद समूह
49 ६.१० वÖतुिनķ ÿij ÿ.१ वणŎ के साथªक समूह को ³या कहते है ?
उ. शÊद कहते है ।
ÿ.२ संÖकृत के वे शÊद जो िहंदी भाषा म¤ िबना िकसी बदलाव के ÿयोग म¤ लाए ह§, उÆह¤
³या कहते है ?
उ. तÂसम शÊद ।
ÿ.३ िहÆदी भाषा म¤ संÖकृत भाषा के िकतने łप देखने को िमलते है ? उनके नाम
िलिखए।
उ. दो - तÂसम शÊद, तĦव शÊद ।
ÿ.४ तÂसम शÊद कì पåरभाषा िदिजए ।
उ. संÖकृत के शÊद जो िबना िकसी बदलाव के िहÆदी भाषा म¤ ÿयोग होते ह§, उÆह¤
तÂसम शÊद कहते ह§ ।
ÿ.५ देशज शÊद से आप ³या समझते ह§?
उ. वे शÊद िजनकì ÓयुÂपि° का पता नहé चलता है, वे देशज शÊद कहलाते है ।
ÿ.६ ‘कणª’ शÊद का तĦव łप िलिखए ।
उ. कान
ÿ.७ ‘सात’ शÊद का तÂसम łप िलिखए ।
उ. सĮ ।
ÿ.८ ‘रेल’ शÊद िकस भाषा का शÊद है ।
उ. अंúेजी भाषा का ।
ÿ.९ संÖकृत के पåरवितªत łप को ³या कहते है ?
उ. तĩव शÊद ।
ÿ.१० ‘घोटाला’ शÊद िकस भाषा का शÊद है ।
उ. मराठी भाषा का ।
६.११ संदभª úंथ १) िहंदी भाषा कì रचना – डॉ. भोलानाथ ितवारी munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
50 २) िहंदी Óयाकरण – कामता ÿसाद गुŁ
३) िहंदी Óयाकरण ÿकाश – डॉ. मह¤þ कुमार राना
४) Óयाकरण दिशªका – डॉ. मनीषा शमाª
५) िहंदी Óयाकरण एवं रचना – शिश शमाª
*****
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51 ७
देवनागरी िलिप : िवशेषताएँ एवं महßव
इकाई कì Łपरेखा
७.० इकाई का उĥेÔय
७.१ ÿÖतावना
७.२ देवनागरी िलिप
७.२.१ देवनागरी िलिप का िवकास
७.२.२ देवनागरी िलिप का नामकरण
७.२.३ देवनागरी िलिप कì िवशेषताएँ
७.२.४ देवनागरी िलिप कì ýुटीयाँ
७.३ सारांश
७.४ दीघō°रीय ÿij
७.५ वÖतुिनķ ÿij
७.६ संदभª úंथ
७.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे -
 इस इकाई को पढ़कर िवīाथê िलिप के बारे म¤ अ¸छे ÿकार से समझ सक¤गे ।
 िवīाथê देवनागरी िलिप के बारे म¤ समझ सक¤गे ।
 िवīाथê देवनागरी िलिप के िवकास और नामकरण के बारे म¤ जानकारी ÿाĮ कर
सक¤गे|
 िवīाथê देवनागरी िलिप कì िवशेषताएँ एवं महßव के बारे म¤ सिवÖतृत जानकारी पाएँगे।
७.१ ÿÖतावना मनुÕय ने जब भाषा का िवकास आरंभ िकया, तब उसे ÅविनयŌ को िनिIJत łप देने कì
जŁरत महसूस हòई । िफर उसने ÅविनयŌ को िचÆहŌ के łप शुł कर िदए, जो िलिप
कहलाती है । दूसरे शÊदŌ म¤ कह सकते ह§ िक भाषा के िलखने के िचÆहŌ का ÓयविÖथत łप
ही िलिप कहलाती है । ÿÂयेक भाषा के िलखने कì ÓयवÖथा या िलिप अलग-अलग होती है ।
जैसे िहंदी कì िलिप देवनागरी है, अंúेजी कì रोमन, उदूª कì फारसी, पंजाबी कì गुłमुखी है ।
देवनागरी िलिप भारत कì कई भाषाओं म¤ िहंदी, संÖकृत, कŌकणी, नेपाली, मराठी, मैिथली,
वोड़ो आिद ÿयोग कì जाती ह§ । munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
52 देवनागरी िलिप का िवकास āाहमी िलिप से हòआ है । āाहमी एक ÿाचीन िलिप है, िजससे
िहंदी, बांµला, गुजराती आिद िलिपयŌ का िवकास हòआ है । देवनागरी िलिप बाई से दाई ओर
को िलखी जाती है । केवल उदूª भाषा जो फारसी िलिप है दाई ओर से बाई ओर िलखी जाती
है । देवनागरी िलिप कì पहचान है एक ±ैितज रेखा से है, िजसे िशरोरेखा कहते है । गुजराती
भाषा म¤ िशरोरेखा का ÿयोग नहé करते है, यह एक िशरोरेखा िवहीन िलिप है ।
७.२ देवनागरी िलिप इस घटक के अÆदर हम िलिप के उĩव और िवकास, नामकरण, िवशेषताएँ एवं महßव के
साथ-साथ देवनागरी िलिप कì ýुिटयŌ पर चचाª कर¤गे ।
७.२.१ देवनागरी िलिप का िवकास:
डॉ³टर Ĭाåरका ÿसाद स³सेना के अनुसार, देवनागरी िलिप का सवªÿथम ÿयोग गुजरात के
नरेश जयभĘ (७००-८०० ई.) के एक िशलालेख म¤ िमलता है । ÿाचीन िलिप āाĺी ५ वé
सदी ई. पू. से ३५० ई. तक ÿयुĉ होती रही । इसकì दो शैिलयाँ - उ°री तथा दि±णी
िवकिसत हòई । उ°री शैली से ४ वé सदी म¤ 'गुĮ िलिप' िवकिसत हòई । गुĮ िलिप से ६ वé
सदी म¤ 'कुिटल िलिप' िवकिसत हòई । गुĮ िलिप से ही ९ वé सदी के लगभग 'नागरी' के
ÿाचीन łप या 'ÿाचीन नागरी' का िवकास हòआ । इस ÿाचीन नागरी का ±ेý उ°री भारत
है, लेिकन दि±णी भारत के कुछ ±ेýŌ म¤ भी देखने को िमलती है । दि±णी भारत म¤ इसे
'निÆदनागरी' कहते ह§ । ÿाचीन नागरी से ही आधुिनक नागरी, गुजराती, महाजनी,
राजÖथानी, कैथी, मैिथिल, असिमयाँ, बांµला आिद िलिपयाँ िवकिसत हòई । ÿाचीन नागरी से
१५-१६ वé सदी म¤ आधुिनक नागरी का िवकास हòआ ।
अतः कहा जा सकता है िक देवनागरी िलिप का िवकास āाĺी िलिप कì उ°री शैली से हòआ
है । देवनागरी का िवकास ७ वé सदी से ही आरंभ हो चूका था । इसका उदाहरण हम¤ उस
समय के िशलालेखŌ से िमलता है ।
७.२.२ देवनागरी िलिप का नामकरण:
वतªमान देवनागरी िलिप का िवकास āाहमी िलिप कì उ°री शैली से हòआ ह§ । नागरी िलिप
को ‘नागरी’ और ‘देवनागरी’ दोनŌ नामŌ से संबोिधत िकया जाता है । िवĬानŌ ने ‘नागरी’
शÊदाथª म¤ पयाªĮ मतभेद ह§ | देवनागरी िलिप के नागर, नागरी या देवनागरी नाम पड़ने के
अनेक कारण बताएँ गए ह§ । देवनागरी के नामकरण पर िविभÆन मत ÿचिलत है । ये कुछ मत
है -
१) गुजरात के नागर āाĺणŌ Ĭारा सवाªिधक ÿयोग म¤ लाए जाने के कारण इसका नाम
‘नागरी’ पड़ा ।
२) ÿमुख łप से नगरŌ म¤ ÿचिलत होने के कारण इसका नाम ‘नागरी’ पड़ा ।
३) कुछ िवĬानŌ का मानना ह§ िक बौĦ úÆथ लिलत-िवÖतर म¤ उÐलेिखत नाम ‘नाग-िलिप’
ही नागरी है । परÆतु डॉ. बान¥ट का मत है िक नाग िलिप एवं नागरी िलिप दोनŌ सवªथा
िभÆन िलिपयाँ ह§ । munotes.in

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देवनागरी िलिप : िवशेषताएँ एवं महßव
53 ४) पं. आर. Ôयाम शाľी का मत है िक देवताओं कì ÿितमाओं के िनमाªण से पहले उनकì
उपासना सांकेितक िचĹŌ Ĭारा होती थी, जो कई ÿकार के िýकोणािद यंýŌ के बीच म¤
अंिकत िकये जाते थे । इन यंýŌ को ‘देवनार’ और उन िचĹŌ को देवनागर कहा जाता
था । इन िचĹŌ से ही िवकिसत होने के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा ।
५) एक मत यह भी है िक पाटिलपुý को पहले ‘नागर’ और ‘चÆþगुĮ’ िĬतीय को ‘देव’
कहते थे । उÆहé के नाम पर इस िलिप को ‘देवनागरी’ नाम िदया गया ।
६) देवनगर अथाªत ‘काशी’ म¤ ÿचार के कारण यह देवनागरी कहलाई ।
७) देवभाषा संÖकृत के िलखने के िलए भी इसका ÿयोग िकया गया, अतः उसका नाम
देवनागरी पड़ा ।
८) एक मतानुसार मÅययुग म¤ ÖथापÂय कì एक शैली नागरी थी, िजसम¤ चतुभªजी
आकृितयाँ होती थी । नागरी िलिप म¤ चतुभªजी अ±रŌ (प, भ, म) के कारण इसे नागरी
कहा गया ।
९) देवनगर Öथान से उÂपÆन होने के कारण देवनागरी नाम पड़ा ।
इसम¤ से कोई भी मत बहòत ÿामािणक नहé ह§ । नागरी िलिप नाम कì ÓयुÂपि° का ÿij अभी
तक अिनणêत है ।
७.२.३ देवनागरी िलिप कì िवशेषताएँ:
देवनागरी िलिप भारत कì ÿमुख िलिप है । देवनागरी पयाªĮ काल से भारतीय आयª-भाषाओं
कì िलिप रही ह§ । आज भी िहÆदी, मराठी, नेपाली तथा समÖत िहÆदी बोिलयŌ कì यही
िलिप है । देवनागरी अनेक आयª भाषाओं कì िलिप है । भारतीय संिवधान ने इसे राजिलिप,
राÕůिलिप के पद पर ÿितिķत िकया है । िवĵ भर कì िलिपयŌ म¤ तुलनाÂमक आधार पर
देवनागरी िलिप को सबसे अिधक शुĦ, सरल और ÖपĶ माना जाता रहा है । वै²ािनकता
कì ŀिĶ से देवनागरी िलिप कì ट³कर संसार कì कोई दूसरी िलिप नहé ले सकती है । जब
हम देवनागरी िलिप कì तुलना संसार कì अÆय िलिपयŌ रोमन, अरबी, फारसी आिद से
करते ह§, तो पाते ह§ िक उन िलिपयŌ कì अपे±ा देवनागरी म¤ कुछ ऐसे गुण या िवशेषताएँ है
जो उसे आदशª िलिप बना देती है । आदशª िलिप उसे ही कहते है जो वै²ािनकता के आधार
पर खरा उतरती ह§ । देवनागरी िलिप म¤ िनÌनिलिखत िवशेषताएँ या गुण िदखाई पड़ते ह§ –
१) देवनागरी िलिप म¤ ÿÂयेक Åविन, माýा, सुर और बलाघात के िलए अलग-अलग
िचÆह है । इसम¤ जो बोला जाता ह§ वही िलखा जाता ह§ | जबिक अÆय िलिपयŌ म¤ एक
Åविन के िलए कई-कई िचĹ देखे जाते ह§ । जैसे फारसी िलिप म¤ ‘स’ Åविन के िलए
‘सीन’, ‘Öवाद’ आिद शÊदŌ का ÿयोग होता है, तो रोमन िलिप म¤ ‘स’ के िलए ‘S’ और
‘C’ ‘क’ Åविन के िलए ‘C’, ‘K’, ‘Q’ का ÿयोग होता है । ‘क’ के िलए – Chemistry,
Queen, Kolkata.
२) इस िलिप म¤ ÿÂयेक वणª का उ¸चारण होता है, जब कì संसार के अÆय िलिपयŌ म¤
कभी-कभी िलिखत वणŎ का उ¸चारण नहé िकया जाता है । munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
54 जैसे - Knife म¤ ‘क’ का उ¸चारण नहé होता है । उसी तरह Night म¤ ‘G’, ‘H’ का
उ¸चारण नहé होता है ।
३) देवनागरी िलिप म¤ वणŎ के उ¸चारण िनिIJत है, जबकì अÆय िलिपयŌ म¤ कोई अ±र
कहé कुछ बोला जाता है, तो कहé कुछ ।
जैसे – ‘But’ का उ¸चारण ‘बट’ जबकì ‘Put’ का उ¸चारण ‘पुट’ होता है ।
४) देवनागरी िलिप म¤ जो बोला जाता है वही िलखा जाता है, जो िलखा जाता है वही
उ¸चåरत िकया जाता है, अथाªत् उ¸चारण के अनुसार लेखन करते ह§ । फारसी िलिप
म¤ ‘जीम’, ‘दाल’ वणª ह§, जबकì इनका उ¸चारण ‘ज’ और ‘द’ होता है । रोमन िलिप म¤
H (एच), टी (T), एस (S) का उ¸चारण ‘ह’, ‘स’, ‘ट’ घेता है ।
५) देवनागरी िलिप के वणª अÂयंत कलाÂमक सुंदर एवं सुगिठत ढंग से िलखे जाते ह§
और इस िलिप म¤ अपे±ाकृत Öथान भी कम घेरते ह§ ।
जैसे – कमल - Kamal a, महेĵर-Maheshwara.
६) देवनागरी िलिप के अ±रŌ का वगêकरण म¤ Öवर और Óयंजन के नाम से अलग-अलग
ह§ जब िक अÆय िलिपयŌ म¤ Öवर और Óयंजन एक ही साथ पाये जाते ह§ । देवनागरी
िलिप म¤ ‘अ’ को छोड़कर शेष सभी ÖवरŌ का ŃÖव और दीघª का िवभाजन अÂयंत
वै²ािनक है । ÓयंजनŌ के उ¸चारण के अनुसार वगêकरण देवनागरी कì सबसे बड़ी
उपलिÊध है ।
७) देवनागरी िलिप म¤ वणª ÅविनयŌ के उ¸चारण Öथान को Åयान म¤ रखकर पंिĉबĦ
िकये गये है । जैसे ÅविनयŌ का उ¸चारण कंठ्य से शुł होकर ओķŌ तक संपÆन होती
है ।
८) देवनागरी िलिप म¤ छोटे-बड़े वणŎ कì उलझन नहé है जब िक रोमन वणŎ म¤ यह
समÖया बनी रही है ।
जैसे- AB/ab, CH/ch.
९) देवनागरी िलिप अÂयंत गÂयाÂमक और Óयावहाåरक िलिप है । इसम¤
आवÔयकतानुसार अनेक Åविन-िचĹŌ का समावेश होता रहा है । पहले इसम¤ िजĽा
मूल ÅविनयŌ (क़, ख़, ग़, ज़, फ़) के िलए िचĹ थे, परÆतु आवÔयकतानुसार बाद म¤
अपना िलया गया ।
१०) देवनागरी िलिप अÆय भाषाओं को सरलता से úहण कर लेती है । देवनागरी िलिप कì
सबसे बड़ी िवशेषता यह है िक लेखन तथा उ¸चारण शुĦता के िलए अÆय िलिपयŌ
को बोहचक अपना लेती है ।
उदाहरण:
i. फारसी िलिप के ÿभाव से नागरी िलिप म¤ नुĉा अथाªत िबÆदु का ÿयोग होने लगा । munotes.in

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देवनागरी िलिप : िवशेषताएँ एवं महßव
55 जैसे- क़, ख़, ग़, ज़, फ़ ।
ii. मराठी िलिप से ‘®’ के Öथान पर ‘अ’, ‘ऌ’ के जगह पर ल/क का ÿचलन शुł हòआ।
११) देवनागरी िलिप Öवर और Óयंजन आिद ÅविनयŌ का øम वै²ािनक ढंग से िनधाªåरत
िकया गया है । इसके पीछे एक सुिनिIJत िसĦांत या िनयम है । ŃÖव और दीघª ÖवरŌ
का अंतर उनकì आकृित म¤ थोड़ा पåरवतªन करके िकया जाता है ।
१२) अंúेजी िलिप म¤ एक Åविन के िलए दो िचĹŌ का योग करना पड़ता है । जैसे ‘ख’ के
िलए KH, ‘घ’ के िलए GH मगर देवनागरी िलिप म¤ इस ÿकार कì कोई अवÖथा नहé
ह§ ।
१३) देवनागरी िलिप कì सबसे खास बात है िक यह िलिप सुपाठ्य और संदेह रिहत है ।
१४) देवनागरी िलिप अ±राÂमक एवं वणªनाÂमक दोनŌ है । भाषा म¤ ÿयुĉ हर Óयंजन और
हर Öवर के िलए अलग-अलग िचĹ होने चािहए । नागरी म¤ ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ आिद
Óयंजन और Öवर िमले हòए ह§ । इसी कारण इसे अ±राÂमक िलिप मानते है । यिद
Óयंजन के पूणª łप म¤ कोई और Öवर न लगा हो, तो ŃÖव ‘अ’ जुड़ा रहता है । ‘अ’ के
कारण आ±åरक मान िलया जाता है । जब िक देवनागरी िलिप वणाªÂमक है । अतः
कह सकते है िक देवनागरी िलिप अ±राÂमक और वणªनाÂमक दोनŌ के łप होते ह§ ।
१५) इस िलिप म¤ ‘अ’ को छोड़कर शेष सभी ÖवरŌ कì ŃÖव एवं दीघª माýाएँ िवīमान ह§,
िजससे Óयंजन के साथ उनका ÿयोग बड़ी सरलता से हो सकता है ।
१६) कोई भी िलिप टंकन म¤ सरल और कम खचêली होनी चािहए । यह िवशेषता या गुण
देवनागरी म¤ है । थोड़ा सा पåरवतªन करके िकसी टाइपराइटर म¤ देवनागरी िलिप म¤
टाइिपंग कर सकते ह§ ।
१७) िलखने म¤ Âवरा भी िलिप का एक आवÔयक तथा महßवपूणª गुण है । आशुलेखन कì
ŀिĶ से भी िलिप अनुकूल होनी चािहए । देवनागरी म¤ Âवरा और आशुलेखन कì
±मता है ।
१८) अंúेजी भाषा का अिधक ÿभाव होने के कारण ÅविनयŌ या उ¸चारण कì शुĦता के
कारण िहÆदी म¤ एक नई Åविन ‘ऑ’ का ÿयोग शुł िकया गया ।
जैसे- कॉलेज, डॉ³टर, ऑिफस आिद । जब अÆय भाषाओं म¤ इस ÿकार के बदलाव
कì सुिवधा न के बराबर है ।
अतः कह सकते ह§ िक देवनागरी िलिप अपनी इन िवशेषताओं के कारण सरल और
वै²ािनक िलिप है ।
७.२.४ देवनागरी िलिप कì ýुटीयाँ:
देवनागरी िलिप एक ®ेķ और वै²ािनक िलिप होने के साथ-साथ इसम¤ कुछ दोष और
ýुिटयाँ भी पाई जाती है । जो िनÌनिलिखत है: munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
56 १. देवनागरी िलिप म¤ एक ही Åविन के िलए अलग-अलग िचĹ होते ह§ ।
i. ‘र’ के िलए ‘
’ (कª) और ‘
’ (ø), ‘
’ (ů) आिद िचĹŌ का ÿयोग होता है ।
ii. ‘ल’ के िलए
और ल िचĹ का ÿयोग ।
iii. ‘अ’ के िलए ऋ और अ िचĹ का ÿयोग ।
iv. ‘ण’ के िलए
और ण िचĹ का ÿयोग ।
v. ‘झ’ के िलए

vi. ‘श’ के िलए

२) इस िलिप म¤ माýाओं के ÿयोग कì कोई एक ÓयवÖथा नहé है । कहé कोई माýा ऊपर
लगती है, कहé नीच¤ लगती है, कहé आगे लगती, कहé पीछे लगती है ।
जैसे- के, कू, िक, कì |
३) सयुĉ ÓयंजनŌ के िलखने के ढंग समान नहé है ।
i. कहé पहला Óयंजन आधा िलखा जाता है- गुĮ, अÌब ।
ii. कहé दूसरा Óयंजन आधा िलखा जाता है- űामा, øम, Ăम ।
iii. कहé तो नया łप हो जाता है- क्+ष=±
त्+र=ý
ज्+ञ=²
४) अनुनािसक वणŎ: ङ, ञ का कायª केवल (.) अनुÖवार िचĹ से ही चल सकता है ।
अतएवं िलिप म¤ उनका Óयवहार Óयथª ही ÿतीत होता है ।
५) संयुĉ Óयंजन ‘²’ उ¸चारण अब ‘µय’ हो गया है । अत एवं इसके अनुसार िलिप िचĹ म¤
भी पåरवतªन होना चािहए ।
६) ‘ख’ िलिप िचĹ पढ़ने म¤ ÿायः Ăांित होती है । खाना को रवाना भी पड़ा जा सकता है ।
७) िशरोरेखा कì गड़बड़ी से भी कई बार गलितयाँ हो जाती है । जैसे ‘म’ के ऊपर शीŅता
म¤ पूरी िशरोरेखा हो गई तो तो म पढ़ा जायेगा । उदा -
‘भरा’ का ‘मरा’ पढ़ा जायेगा ।
‘धड़ा’ का ‘घड़ा’ पढ़ा जाएगा ।
८) देवनागरी िलिप म¤ अनेक शÊदŌ के लेखन म¤ ÅविनयŌ का ÿयोग होता है और उ¸चारण
म¤ कुछ और । जैसे ममª शÊद म¤ पाँच Åविनयाँ ह§ = म्+अ+र्+म्+अ िकंतु लेखन म¤
केवल तीन रह जाता है । munotes.in

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देवनागरी िलिप : िवशेषताएँ एवं महßव
57 ९) कुछ ÅविनयŌ का मूल उ¸चारण अब यथावत नहé रह गया ह§, िकंतु उनका ÿाचीन िचĹ
ºयŌ का ÂयŌ Óयवहार म¤ ला रहे ह§ । जैसे- ऋ । ऋ का उ¸चारण åर होता है, िकÆतु
ऋिष, ऋतु आिद शÊदŌ म¤ िलखे वही पुराने िचĹ जा रहे है । लगभग यह िÖथित ‘ष’ कì
है । इसका उ¸चारण भी ‘स’ या ‘श’ हो गया है ।
१०) अनुÖवार और चंþिबंदु के ÿयोग म¤ मन-मानी चल रही है । कभी चंþिबंदु लगा देते है
कभी नहé लगाते है । जैसे ‘नहé’ म¤ चÆþिबÆदु अब लगाने कì रीित उठ गई है ।
११) नागरी म¤ वणŎ कì सं´या अिधक है, इसिलए उसे सीखने म¤ तथा उसके टंकण मुþण
आिद म¤ किठनाई होती है ।
इन किमओं को दूर कर देवनागरी िलिप एक ®ेķ आिद िलिप बन सकती है ।
७.३ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ देवनागरी िलिप का िवकास और देवनागरी िलिप के नामकरण कì चचाª हòई।
इसी के साथ देवनागरी िलिप कì िवशेषता एवं महßव कì जानकारी दी गई । िकन
िवशेषताओं के कारण देवनागरी िलिप वै²ािनक िलिप मानी जाती है । देवनागरी िलिप कì
खािमओं पर भी ÿकाश ड़ाला गया । इन किमयŌ को दूर कर आदशª िलिप कì ®ेणी म¤ कैसे
बनी रह सकती है । इस पर भी चचाª हòई है ।
७.४ दीघō°रीय ÿij ÿ.१ देवनागरी िलिप के िवकास और नामकरण पर ÿकाश ड़ािलए ।
ÿ.२ देवनागरी िलिप के िवशेषताओं एवं महßव कì चचाª कìिजए ।
ÿ.३ देवनागरी िलिप िकस तरह वै²ािनक एवं एक आदशª िलिप है ? इस बात पर अपने मत
िलिखए ।
ÿ.४ देवनागरी िलिप कì ýुिटयŌ पर चचाª कìिजए ।
७.५ वÖतुिनķ ÿij ÿ.१) देवनागरी िलिप का िवकास िकस िलिप से हòआ है ?
उ. āाĺी िलिप के उ°री शैली से ।
ÿ.२) देवनागरी िलिप का िवकास िकस सदी से माना जाता है ?
उ. सातवé सदी से ।
ÿ.३) दि±णी भारत म¤ नागरी िलिप को िकस नाम से जाना जाता है ?
उ. ‘निÆद नागरी’ के नाम से । munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
58 ÿ.४) देवनागरी िलिप का सवªÿथम ÿयोग िकस राजा ने िकया ?
उ. गुजरात के राजा नरेश जय भĘ ने ÿयोग िकया था ।
ÿ.५) िýकोण यंýŌ को ³या कहते ह§ ?
उ. देवनागर कहते ह§ ।
ÿ.६) भारतीय संिवधान म¤ देवनागरी िलिप को िकस पद पर ÿितिķत िकया है ?
उ. राज िलिप, राÕů िलिप के पद पर ।
ÿ.७) पंजाबी भाषा कì िलिप ³या है ?
उ. गुłमुखी ।
ÿ.८) उदूª भाषा कì िलिप ³या है ?
उ. फारसी िलिप ।
ÿ.९) िशरोरेखा िवहीन िलिप िकसकì है ?
उ. गुजराती भाषा कì ।
ÿ.१०) पािटलपुý को पहले के समय म¤ िकस नाम से जाना जाता था ?
उ. ‘नागर’ के नाम से ।
७.६ संदभª úंथ १) िहंदी भाषा कì रचना – डॉ. भोलानाथ ितवारी
२) िहंदी Óयाकरण – कामता ÿसाद गुŁ
३) िहंदी Óयाकरण ÿकाश – डॉ. मह¤þ कुमार राना
४) Óयाकरण दिशªका – डॉ. मनीषा शमाª
५) िहंदी Óयाकरण एवं रचना – शिश शमाª
*****
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59 ८
संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
इकाई कì łपरेखा
८.० इकाई का उĥेÔय
८.१ ÿÖतावना
८.२ संिध : अथª एवं Öवłप
८.३ संिध के ÿमुख भेद
८.४ Öवर संिध और उसके भेद
८.५ Óयंजन संिध और उसके पåरवतªन के िनयम
८.६ िवसगª संिध और उसके पåरवतªन के िनयम
८.७ दीघō°रीय ÿij
८.९ वÖतुिनķ ÿij
८.१० संदभª úंथ
८.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ छाý िनÌनिलिखत िबंदुओं का अÅययन कर¤गे -
 इस इकाई को पढ़कर िवīाथê संिध के बारे म¤ अ¸छे ÿकार से समझ सक¤गे ।
 िवīाथê संिध के भेद के बारे म¤ समझ सक¤गे ।
 िवīाथê Öवर संिध और उसके भेद के बारे म¤ समझ सक¤गे ।
 िवīाथê Óयंजन संिध तथा Óयंजन संिध के िनयम के बारे म¤ समझ सक¤गे ।
 िवīाथê िवसगª संिध तथा उसके िनयम के बारे म¤ समझ सक¤गे ।
८.१ ÿÖतावना शÊद का िनमाªण ÅविनयŌ के मेल से होता है । मु´य łप से वणŎ के मेल या जोड़ को ही
संिध कहते है । वणŎ के मेल के कुछ िनयम होते है । कभी-कभी दो Öवर आपस म¤ िमलकर
कुछ पåरवतªन करते ह§, तो कभी Öवर और Óयंजन भी आपस म¤ िमलकर पåरवतªन लाते ह§ ।
इसी ÿकार िवसगª और Öवर या Óयंजन के आपस म¤ िमलने पर भी पåरवतªन होता है । इÆही
सभी पåरवतªनŌ को हम इस इकाई म¤ सिवÖतार से चचाª होगी ।
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
60 ८.२ संिध : अथª एवं Öवłप संिध का सामाÆय अथª है, जोड़ या मेल । संिध शÊद दो शÊदŌ के मेल से बना है, सम + िध ।
िजसका अथª है मेल । मु´य łप से वणŎ के मेल या जोड़ ही संिध कहते है | जैसे-
देव + आलय = देवालय
उल् + लास = उÐलास
दूः + जन = दुजªन
जब दो Åविनयाँ िनकट होने पर आपस म¤ िमल जाती ह§ और एक नया łप धारण कर लेती
ह§, तो वहाँ ÅविनयŌ कì संिध होती है ।
पåरभाषा:
दो समीपवतê वणŎ के पास-पास आने के कारण उनम¤ जो िवकार सिहत मेल होता है, उसे
‘संिध’ कहते ह§ ।
संिध-िव¸छेद:
िव¸छेद का अथª है अलग करना । यिद संिध के िनयमŌ के अनुसार िमले हòए वणŎ को अलग-
अलग करके संिध से पहले कì िÖथित म¤ पहóँचा िदया जाए तो इसे ‘संिध-िव¸छेद’ कहा जाता
है । संिध म¤ दो ÅविनयŌ का मेल होता है, तो िव¸छेद म¤ उसे अलग-अलग करके िदखाया
जाता है | जैसे -
संिध – िव¸छेद
महेश = महा + ईश
Öवागत = सु + आगत
िनषेध = िनः + सेध
संयोग और संिध म¤ अंतर:
संयोग के वणŎ का मेल होता है, उनम¤ पåरवतªन नहé होता । पर संिध के कारण वणŎ म¤
पåरवतªन हो जाता है । जैसे- संयोग संिध मनुÕय + ता जगत् + नाथ = जगÆनाथ पशु + ता दुः + गम = दुगªम munotes.in

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
61 ८.३ संिध के ÿमुख भेद संिध के तीन भेद होते है:
१) Öवर संिध
२) Óयंजन संिध
३) िवसगª संिध
१) Öवर संिध:
दो ÖवरŌ के िमलने से होने वाले िवकार या पåरवतªन को Öवर संिध कहते है । जैसे- पुÖतक + आलय = पुÖतकालय अ + आ आ महा + आÂमा = महाÂमा आ + आ आ २) Óयंजन संिध:
Óयंजन के बाद Öवर या Óयंजन के आने से जो पåरवतªन होता है, उसे Óयंजन संिध कहते है ।
जैसे-
वाक् + ईश = वागीश
क् + ई = गी
जगत् + नाथ = जगÆनाथ
त् + न = Æन
३) िवसगª संिध:
िकसी भी शÊद को अंत म¤ लगे िवसगª के बाद Öवर या Óयंजन आने पर िवसगª म¤ पåरवतªन
होता है, उसे िवसगª संिध कहते है । जैसे-
तपः + भूिम = तपोभूिम
िनः + आशा = िनराशा
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
62 ८.४ Öवर संिध और उसके भेद १) Öवर संिध:
Öवर के बाद Öवर के मेल से उनम¤ जो िवकार-सिहत पåरवतªन होता है, उसे ‘Öवर संिध’
कहते ह§ । जैसे-
परम + अणु = परमाणु
देव + आलय = देवालय
Öवर संिध के पाँच भेद होते है:
क) दीघª संिध
ख) गुण संिध
ग) वृिĦ संिध
घ) यण संिध
ड़) अयािद संिध
क) दीघª संिध:
जब दो सवणª Öवर पास आकर तथा परÖपर िमलकर उसी वणª का दीघª Öवर बन जाते ह§ तो
उसे दीघª संिध कहते है । जैसे-
पåरवतªन िनयम:
अ + अ = आ
१) परम + अणु = परमाणु
२) परम + अथª = परमाथª
३) राम + अवतार = रामावतार
अ + आ = आ
१) िहम + आलय = िहमालय
२) देव + आलय = देवालय
३) नील + आकाश = नीलाकाश
आ + अ = आ
१) सीमा + अंत = सीमांत munotes.in

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
63 २) यथा + अवसर = यथावसर
३) परा + अÖत = पराÖत
आ + आ = आ
१) िवīा + आलय = िवīालय
२) महा + आÂमा = महाÂमा
३) कारा + आवास = कारावास
इ + इ = ई
१) रिव + इंþ = रवéþ
२) किव + इंþ = कवéþ
३) अित + इव = अतीव
इ + ई = ई
१) किव + ईश = कवीश
२) किप + ईश = कपीश
३) ÿित + ईश = ÿती±ा
ई + इ = ई
१) नारी + इंþ = नारéþ
२) मही + इंþ = महéþ
३) देवी + इ¸छा = देवी¸छा
ई + ई = ई
१) मही + ईश = महीश
२) नारी + ईĵर = नारीĵर
३) नदी + ईश = नदीश
उ + उ = ऊ
१) गुŁ + उपदेश = गुłपदेश
२) लघु + उ°र = लघु°र munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
64 ३) भानु + उदय = भानुदय
उ + ऊ = ऊ
१) लघु + ऊिमª = लघुिमª
२) िसंधु + ऊिमª = िसंधुिमª
३) लघु + ऊजाª = लघुजाª
ऊ + उ = ऊ
१) वधू + उÂसव = वधूÂसव
२) भू + उÆनित = भूÆनित
३) भू + उĦार = भूĦार
ऊ + ऊ = ऊ
१) वधू + ऊिमª = वधूिमª
२) भू + ऊÅवª = भूÅवª
ख) गुण संिध:
जब अ या आ के बाद इ या ई हो तो दोनŌ के Öथान पर ‘ए’, यिद ‘उ’ या ‘ऊ’ हो ते दोनŌ के
Öथान पर ‘ओ’ और यिद ‘ऋ’ हो तो ‘अर्’ हो जातो है ।
पåरवतªन िनयम:
१) अ या आ के बाद इ या ई िनलकर ‘ए’ होता है ।
अ + इ = ए
१) नर + इंþ = नर¤þ
२) देव + इंþ = देव¤þ
३) भारत + इंþ = भारत¤दु
४) Öव + इ¸छा = Öवे¸छा
अ + ई = ए
१) गण + ईश = गणेश
२) नर + ईश = नरेश
३) परम + ईĵर = परमेĵर munotes.in

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
65 आ + इ = ए
१) महा + इंþ = मह¤þ
२) यथा + इĶ = यथेĶ
३) राजा + इंþ = राज¤þ
आ + ई = ए
१) महा + ईश = महेश
२) महा + ईĵर = महेĵर
३) लंका + ईश = लंकेश
२) अ या आ के बाद उ या ऊ िमलकर 'ओ' होता है ।
अ + उ = ओ
१) नर + उ°म = नरो°म
२) ÿij + उ°र = ÿijो°र
३) सवª + उ°र = सवō°म
अ + ऊ = ओ
१) नव + ऊढा = नवोढा
२) सागर + ऊिमª = सागरोिमª
३) जल + ऊिमª = जलोिमª
आ + उ = ओ
१) महा + उदय = महोदय
२) महा + उÂसव = महोÂसव
३) गंगा + उदक = गंगोदक
आ + ऊ = ओ
१) गंगा + ऊमê = गंगोिमª
२) रंभा + ऊŁ = रंभोł
३) दया + ऊमê = दयोिमª munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
66 ३) अ या आ के बाद ऋ िमलकर 'अर्' होता है ।
अ + ऋ = अर्
१) देव + ऋषी = देविषª
२) सĮ + ऋषी = सĮिषª
३) āĺ + ऋषी = āĺिषª
आ + ऋ = अर्
१) महा + ऋषी = महिषª
२) राजा + ऋषी = राजिषª
३) āĺा + ऋषी = āĺािषª
ग) वृिĦ संिध:
जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ए या ऐ हो तो दोनŌ के Öथान पर ‘ऐ’, यिद ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो दोनŌ
के Öथान पर ‘औ’ हो जाता है ।
पåरवतªन िनयम:
१) अ या आ के बाद ए या ऐ िमलकर ‘ऐ’ होता है ।
अ + ए = ऐ
१) एक + एक = एकैक
२) लोक + एषण = लोकैषण
अ + ऐ = ऐ
१) मत + ऐ³य = मतै³य
२) राज + ऐĵयª = राजैĵयª
आ + ए = ऐ
१) तथा + एव = तथैव
२) सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ
१) महा + ऐĵयª = महैĵयª
२) राजा + ऐĵयª = राजैĵयª munotes.in

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
67 २) अ या आ के बाद ओ या औ िमलकर 'औ' होता है ।
अ + ओ = औ
१) जल + ओध = जलौध
२) परम + ओज = परमौज
आ + ओ = औ
१) महा + ओज = महौज
२) महा + औध = महौध
अ + औ = औ
१) जल + औध = जलौध
२) वन + औषध = वनौषध
आ + औ = औ
१) महा + औदायª = महौदायª
२) महा + औषध = महौषध
घ) यण संिध:
जब इ या ई के बाद इ वणª के अितåरĉ कोई अÆय Öवर आता है तो इ - ई के Öथान पर 'य'
हो जाता है । यिद उ या ऊ के बाद उ वणª के अितåरĉ कोई अÆय Öवर आता है तो, उ या
ऊ का व् तथा ऋ के बाद ऋ के अितåरĉ कोई िभÆन Öवर आता है तो ऋ का र् हो जाता है।
पåरवतªन िनयम:
१) इ या ई के बाद इ वणª के अितåरĉ अÆय Öवर आए तो इ या ई का य् हो जाता है ।
इ + अ = य्
१) यिद + अिप = यīिप
२) अित + अिधक = अÂयािधक
इ + आ = या
१) पåर + आवण = पयाªवरण
२) अित + आचार = अÂयाचार
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
68 ई + अ = य्
१) नदी + अपªण = नīपªण
२) देवी + अपªण = देÁयपªण
ई + आ = या
१) देवी + आलय = देÓयालय
२) सखी + आगमन = स´यागमन
इ + उ = यु
१) अिभ + उदय = अËयुदय
२) ÿित + उ°र = ÿÂयु°र
इ + ऊ = यू
१) िन + ऊन = Æयून
२) िव + ऊह = Óयूह
ई + उ = यु
१) सखी + उिचत = स´युिचत
२) नदी + उīगम = नīुģम
इ + ए = ये
१) ÿित + एक = ÿÂयेक
२) अिध + एषणा = अÅयेषणा
ई + ऐ = यै
१) नदी + ऐĵयª = नīैĵयª
२) सखी + ऐĵयª = स´यैĵयª
इ + अं = यं
१) ÿित + अंग = ÿÂयंग
२) ÿित + अंचा = ÿÂयंचा
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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
69 २) उ या ऊ के बाद उ वणª के अितåरĉ अÆय Öवर आए तो उ या ऊ का व् हो जाता है।
उ + अ = व्
१) सु + अ¸छ = Öव¸छ
२) अनु + अय = अÆवय
उ + आ = वा
१) गुŁ + आदेश = गुवाªदेश
२) सु + आगत = Öवागत
ऊ + आ = वा
१) वधू + आगमन = वÅयागमन
उ + इ = िव
१) अनु + इत = अिÆवत
२) अनु + इित = अिÆवित
उ + ई = वी
१) अनु + ई±ण = अÆवी±ण
२) अनु + ई±क = अÆवी±क
उ + ए = वे
१) अनु + एषण = अÆवेषण
२) अनु + ऐषक = अÆवेषक
३) ऋ के बाद ऋ के अितåरĉ कोई अÆय Öवर आने पर ऋ का ‘र्’ हो जाता है ।
ऋ + अ = र्
१) िपतृ + अनुमित = िपýानुमित
२) मातृ + अनुमित = माýानुमित
ऋ + आ = रा
१) िपतृ + आदेश = िपýादेश
२) िपतृ + आलय = िपýालय munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
70 ऋ + उ = ł
१) िपतृ + उपदेश = िपýुपदेश
२) मातृ + उपदेश = माýुपदेश
ऋ + इ = åर
१) मातृ + इ¸छा = मािý¸छा
२) िपतृ + इ¸छा = िपिý¸छा
ड़) अयािद संिध:
‘ए’ या ‘ऐ’ के बाद ‘ए’ वणª के अितåरĉ कोई अÆय Öवर आता है तो ‘ए’ का ‘अय्’ तथा ‘ऐ’ का
‘आय्’ हो जाता है । यिद ‘ओ’ या ‘औ’ के बाद ‘ओ’ Ąण के अितåरĉ कोई अÆय Öवर आता
है तो ओ का ‘अव्’ तथा औ का ‘आव्’ हो जाता है । इसे ‘अयािद संिध’ के नाम से जाना
जाता है ।
पåरवतªन िनयम:
१) ‘ए’ के बाद अ आए तो ‘अय्’ बन जाता है:
ए + अ = अय्
१) चे + अन = चयन
२) ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय्
१) नै + अक = नायक
२) गै + अक = गायक
ऐ + इ = आिय
१) नै + इका = नाियका
२) गै + इका = गाियका
ओ + अ = अव्
१) भो + अन = भवन
२) पो + अन = पवन
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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
71 ओ + इ = अिव
१) भो + इÕय = भिवÕय
२) पो + इý = पिवý
औ + अ = आव्
१) पौ + अक = पावक
२) पौ + अन = पावन
औ + इक = अिव
१) नौ + इक = नािवक
औ + उ = आवु
१) भौ + उक = भावुक
८.५ Óयंजन संिध और उसके पåरवतªन के िनयम Óयंजन संिध:
Óयंजन के बाद Öवर या Óयंजन के आने से जो पåरवतªन होता है, उसे Óयंजन संिध कहते ह§ ।
जैसे-
 वाक् + ईश = वागीश
 जगत् + नाथ = जगÆनाथ
Óयंजन संिध के िनयम इस ÿकार है:
१) क्, च्, ट्, प् के पIJात यिद िकसी वगª का तीसरा या चौथा वणª (ग, ध, ज, झ, ढ, द,
ध, ब, भ) य, र, ल, व, ह या कोई Öवर आ जाए तो वह अपने वगª का तीसरा वणª हो जाता है
अथाªत क् का ग्, च् का ज्, ट् का ड्, त् का द् और प् का ब् हो जाता है, जैसे-
क् का ग् -
१) िदक् + दशªन = िदµदशªन
२) वाक् + ईश = वागीश
च् का ज् -
१) अच् + अंत = अजंत
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
72 ट् का ड् -
१) षट् + आनन = षडानन
प् का ब् -
१) अप् + ज = अÊज
त् का द् -
१) सत् + वाणी = सĬाणी
२) जगत् + ईश = जगदीश
३) सत् + उपयोग = सदुपयोग
२) वगª के पहले वणª का पाँचवे वणª म¤ पåरवतªन:
िकसी वगª के पहले या तीसरे Óयंजन के बाद यिद कोई नािस³य Óयंजन (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्)
आ जाता है तो पहले / तीसरे Óयंजन के Öथान पर अपने ही वगª का नािस³य Óयंजन आ
जाता है अथाªत क् का ङ्, च् का ञ्, ट् का ण्, त् का न् और प् का म् हो जाता है । जैसे-
क् का ङ् -
१) वाक् + मय = वाđय
ट् का ण् -
१) षट् + मुख = षÁमुख
त् का न् -
१) सत् + मागª = सÆमागª
२) तत् + मय = तÆमय
३) उत् + नित = उÆनित
३) ‘त’ संबंधी िवशेष िनयम:
i. यिद ‘त्’ Óयंजन के बाद च या छ हो तो ‘च’, ज या झ होने पर ‘ज’, ट या ठ होने पर ‘ट’, ड
या ढ होने ‘ड़’ और ल हो तो ‘ल्’ हो जाता है । जैसे-
१) उत् + चåरý = उ¸चåरत
२) उत् + िछÆन = उि¸छत
३) सत् + जन = सºजन munotes.in

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
73 ४) उत् + ºवल = उºवल
५) तत् + टीका = तĘीका
६) उत् + ड़यन = उड्डयन
७) उत् + लेख = उÐलेख
८) तत् + लीन = तÐलीन
ii. यिद ‘त्’ के बाग ‘श’ आए तो ‘त्’ का ‘च्’ तथा ‘श’ का ‘छ’ हो जाता है । जैसे-
१) उत् + ĵास = उ¸छवास
२) तत् + शंकर = त¸छंकर
३) सत् + शाľ = स¸छाľ
iii. यिद ‘त्’ के बाद ‘ह’ Óयंजन आए तो ‘त्’ का ‘द्’ तथा ‘ह’ का ‘ध’ हो जाता है । जैसे-
१) उत् + हार = उĦार
२) उत् + हरण = उĦरण
३) पद् + हित = पĦित
४) ‘छ’ संबंधी िनयम:
यिद िकसी Öवर के बाद ‘छ’ वणª आए तो छ से पहले च् वणª जुड़ जाता है । जैसे-
१) Öव + छंद = Öव¸छंद
२) पåर + छेद = पåर¸छेद
३) अनु + छेद = अनु¸छेद
५) ‘म’ संबंधी िनयम:
i. ‘म्’ के बाद िजस वगª का Óयंजन आता है, अनुÖवार उसी के वगª का नािस³य (ड्, ञ, ण्,
न्, म्) अथवा अनुÖवार बन जाता है । जैसे-
१) अहम् + कार = अहंकार (अहङ्कार)
२) सम् + भव = संभव (सÌभंव)
३) सम् + चय = संचय (स¼चय)
४) सम् + तोष = संतोष (सÆतोष)
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
74 ii. ‘म्’ के बाद यिद य, र, ल, व, श, ह Óयंजन हो तो ‘म्’ का अनुÖवार हो जाता है । जैसे-
१) सम् + हार = संहार
२) सम् + योग = संयोग
३) सम् + रचना = संरचना
iii. ‘म्’ से परे यिद म वणª आए तो म् का िĬÂव हो जाता है । जैसे-
१) सम् + मान = सÌमान
२) सम् + मुख= सÌमुख
६) न् का ण् का िनयम:
यिद ‘ऋ’ ‘र’ तथा ‘ष’ के बाद ‘न’ Óयंजन आता है, तो उसका ‘ण’ म¤ पåरवतªन हो जाता है ।
भले ही बीच म¤ क – वगª, प – वगª, अनुÖवार ‘य’, ‘व’, ‘ह’ आिद म¤ से कोई वणª ³यŌ न आ
जाए । जैसे-
१) पåर + मान = पåरमाण
२) ऋ + न = ऋण
३) पåर + नाम = पåरणाम
४) वर् + न = वणª
५) कृष् + न = कृÕण
६) शोष् + अन = शोषण
७) स् का ष् का िनयम:
यिद ‘स’ Óयंजन से पूवª अ, आ से िभÆन कोई भी Öवर आ जाता है, तो ‘स’ का पåरवतªन ‘ष’
म¤ हो जाता है । जैसे-
१) अिभ + सेक = अिभषेक
२) िन + सेध = िनषेध
३) िव + सम = िवषम
४) िन + िसĦ = िनिषĦ
८.६ िवसगª संिध और उसके पåरवतªन के िनयम िवसगª संिध: munotes.in

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
75 िकसी भी शÊद के अंत म¤ लगे िवसगª के बाद Öवर या Óयंजन आने पर िवसगª म¤ पåरवतªन
होता है उसे िवसगª संिध कहते है । जैसे-
 तपः + भूिम = तपोभूिम
 िनः + ठुर = िनķòर
िवसगª संिध के िनयम िनÌन ÿकार है:
१) िवसगª का श्, ष्, स:
यिद िवसगª के बाग ‘च’, ‘छ’ Óयंजन हो तो िवसगª का ‘श्’ म¤ ‘ट’, ‘ठ’ Óयंजन हो तो ‘ष्’ तथा
‘त’, ‘थ’ Óयंजन हो तो ‘स’ हो जाता है । जैसे -
१) िनः + चल = िनIJय
२) िनः + ठुर = िनķòर
३) धनुः + टंकार = धनुĶंकार
४) िनः + छल = िनÔछल
५) मनः + ताप = मनÖताप
६) नमः + ते = नमÖते
२) िवसगª म¤ कोई पåरवतªन न होना –
i) यिद िवसगª के बाद ‘श’ / ‘ष’ / ‘स’ म¤ से कोई Óयंजन आए तो िवसगª म¤ कोई पåरवतªन नहé
होता है अथवा िवसगª आगे के Óयंजन का łप ले लेता है | जैसे –
१) िन: + संदेह = िन:संदेह / िनÖसंदेह
२) दु: + सह = दुÖसह
३) िन: + संतान = िनÖसंतान
४) दु: + साहस = दुÖसाहस
ii) िवसगª के बाद यिद ‘क’ / ‘ख’ अथवा ‘प’ / ‘फ’ Óयंजन आए तो िवसगª म¤ कोई पåरवतªन
नहé होता है । जैसे -
१) अंतः + करण = अंतःकरण
२) ÿातः + काल = ÿातःकाल
लेिकन यिद िवसगª के पहले ‘इ / उ’ Öवर हो तो िवसगª का ‘ष्’ हो जाता है । जैसे-
१) िनः + कपट = िनÕकपट munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
76 २) िनः + फल = िनÕफल
३) दुः + कमª = दुÕकमª
४) िनः + पाप = िनÕपाप
३) िवसगª का र्:
यिद िवसगª से पहले ‘अ/आ’ से िभÆन कोई Öवर आए और िवसगª के बाद िकसी Öवर, िकसी
वगª का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वणª या य, र, ल, व, ह म¤ से कोई वणª हो तो िवसगª का र् म¤
पåरवतªन हो जाता है । जैसे-
१) दुः + उपयोग = दुłपयोग
२) दुः + लभ = दुलªभ
३) िनः + आशा = िनराशा
४) दुः + गुण = दुगªण
५) िनः + जन = िनजªन
६) िनः + बल = िनबªल
७) िनः + आिमष = िनरािमष
८) आशीः + वाद = आशीवाªद
४) ‘अ’, ‘अः’ के Öथान पर ओ:
यिद िवसगª के पहले ‘अ’ Öवर और आगे ‘अ’ अथवा कोई सघोष Óयंजन (िकसी वगª का
तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वणª) अथवा य, र, ल, व, ह म¤ से कोई वणª हो तो ‘अ’ और िवसगª
(अः) के बदले ‘ओ’ हो जाता है । जैसे-
१) मनः + योग = मनोयोग
२) मनः + हर = मनोहर
३) तपः + बल = तपोबल
४) मनः + रंजन = मनोरंजन
५) यशः + दा = यशोदा
६) पयः + द = पयोद

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संिध : अथª, Öवłप तथा ÿमुख भेद
77 ५) िवसगª का लोप और पूवª Öवर दीघª:
i) यिद िवसगª ‘के’ आगे ‘र’ Óयंजन हो तो िवसगª का लोप हो जाता है और पहले का ĆÖव
Öवर दीघª हो जाता है । जैसे -
१) िनः + रोग = िनरोग
२) िनः + रज = नीरज
ii) यिद िवसगª के पहले ‘अ’ या ‘आ’ Öवर हो और बाद म¤ कोई िभÆन Öवर आए तो िवसगª का
लोप हो जाता है । जैसे -
१) अतः + एव = अतएव
iii) कुछ शÊदŌ म¤ िवसगª का ‘स्’ हो जाता है । जैसे -
१) नमः + कार = नमÖकार
२) भाः + कर = भाÖकर
३) पुरः + कार = पुरÖकार
८.७ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ संिध का अÅययन िकया गया ह§ | यहाँ संिध का अथª, उसका ÖवŁप ³या है
और उसके ÿमुख भेद कौनसे है उसे देखा ह§ | यहाँ पर शÊद का िनमाªण ÅविनयŌ के मेल से
हो जाता ह§ और मु´य łप से वणŎ के मेल या जोड़ को ही संिध कहा जाता ह§ | उसका
अÅययन िकया गया ह§ |
८.८ दीघō°रीय ÿij ÿ.१ संिध िकसे कहते ह§? संिध के िकतने भेद होते है? उनके नाम िलिखए ।
ÿ.२ संिध िकसे कहते ह§? संिध के भेदŌ कì सिवÖतर चचाª कìिजए ।
ÿ.३ संिध िव¸छेद से ³या ताÂपयª है? संिध के िकतने भेद होते है? Óयंजन तथा िवसगª
संिध के िनयमŌ को उदाहरण सिहत िलिखए ।
ÿ.४ संिध से आप ³या समझते ह§? Öवर संिध के िकतने भेद है? उदाहरण सिहत
सिवÖतर िलिखए ।
८.९ वÖतुिनķ ÿij ÿ.१ सामाÆय अथª म¤ संिध का ³या अथª होता है?
उ. जोड़ या मेल । munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
78 ÿ.२ दो िनकट वणŎ के परÖपर मेल से जो िवकार उÂपÆन होता है, उसे ³या कहते है?
उ. संिध कहते ह§ ।
ÿ.३ संिध के िकतने भेद होते ह§?
उ. तीन भेद होते ह§ ।
ÿ.४ Öवर संिध के िकतने भेद होते ह§?
उ. पाँच भेद होते ह§ ।
ÿ.५ ÖवरŌ के मेल से होने वाली संिध को ³या कहते ह§?
उ. Öवर संिध कहते ह§ ।
ÿ.६ जब Óयंजन के बाद Öवर या Óयंजन के आने से जो पåरवतªन होता है, उसे कौन-सी
संिध कहते ह§?
उ. Óयंजन संिध कहते ह§ ।
ÿ.७ िवसगª संिध िकसे कहते ह§?
उ. िकसी भी शÊद के अंत म¤ लगे िवसगª के बाद Öवर या Óयंजन आने पर िवसगª म¤
पåरवतªन होता है, उसे िवसगª संिध कहते है?
ÿ.८ ‘योगाËयास’ का संिध-िव¸छेद िकिजए ।
उ. योगाËयास = योग + अËयास ।
ÿ.९ ‘दुः + उपयोग’ का संिध बनाए ।
उ. दुः + उपयोग = दुłपयोग ।
८.१० संदभª úंथ १) िहंदी भाषा कì रचना – डॉ. भोलानाथ ितवारी
२) िहंदी Óयाकरण – कामता ÿसाद गुŁ
३) िहंदी Óयाकरण ÿकाश – डॉ. मह¤þ कुमार राना
४) Óयाकरण दिशªका – डॉ. मनीषा शमाª
५) िहंदी Óयाकरण एवं रचना – शिश शमाª

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79 ९
वा³य रचना
इकाई कì łपरेखा
९.० इकाई का उĥेÔय
९.१ ÿÖतावना
९.२ वा³य कì पåरभाषा
९.३ वा³य के महÂवपूणª अंग
९.४ अथª के आधार पर वा³य के ÿकार
९.५ रचना कì ŀिĶ से वा³य के ÿकार
९.६ सारांश
९.७ संभािवत ÿij
९.८ वÖतुिनķ ÿij
९.९ संदभª úंथ
९.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत पाठ के अÅययन से िवīाथê Óयाकरण के िनÌनिलिखत मुĥŌ से पåरिचत हŌगे -
 वा³य ³या है? उसके अंग कौन से होते है?
 वा³य के भेदो से पåरिचत होगे।
 अथª के आधार पर वा³य के भेद ÖपĶ हŌगे।
 रचना के आधार पर वा³य के भेद ÖपĶ हŌगे।
९.१ ÿÖतावना Óयाकरण वह िवदया है िजसके Ĭारा िकसी भाषा को शुĦ बोला, पढ़ा और शुĦ िलखा जाता
है। इसम¤ वा³य रचना का महÂवपूणª योगदान होता है। वा³यŌ को शुĦ łप से िलखना और
उसका अथª जानना आवÔयक है। ऐसे म¤ कुछ िनयमŌ का पालन करके हम शुĦ वा³य बना
सकते ह§। वा³य का अÅययन हम¤ Óयाकरण के कुछ िनयमŌ से हमारा पåरचय होगा।
९.२ वा³य कì पåरभाषा जब भी हम¤ अपने मन कì बात दूसरŌ तक पहòँचानी होती है या िकसी से बातचीत करनी
होती है तो हम वा³यŌ का सहारा लेकर ही बोलते है। यदयिप वा³य िविभÆन शÊदŌ (पदŌ) के
योग से बनता है और हर शÊद का अपना अलग–अलग अथª भी होता है, पर वा³य म¤ आए munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
80 सभी घटक परÖपर िमलकर एक पूरा िवचार या संदेश ÿकट करते ह§। वा³य छोटा हो या
बड़ा िकसी –न–िकसी िवचार या भाव को पूणªत: Óयĉ करने कì ±मता रखता है। अत: “ऐसा
साथªक शÊद–समूह, जो ÓयविÖथत हो तथा पूरा आशय ÿकट कर सके, वा³य कहलाता
है।”
भाषा कì सबसे छोटी इकाई वणª ह§। वणŎ के साथªक समूह से शÊद बनते ह§। केवल शÊदŌ के
समूह से ही वा³य नहé बनते, बिÐक शÊदŌ का øमबĦ होना भी आवÔयक होता है। जैसे–
आकर खा गई घास गाय।
उपयुªĉ वा³य का अथª ÖपĶ नहé हो रहा है, ³यŌिक वा³य बनते समय øम को Åयान म¤
नहé रखा गया। शÊद तो वा³य के ठीक है, परÆतु शÊदŌ का øम ठीक नहé ह§। जबिक शÊदŌ
के साथªक मेल होने पर ही वा³य बनते ह§। इस ÿकार से– ‘गाय आकर घास खा गई। ’ ही
सही वा³य हòआ , ³यŌिक वा³य म¤ शÊद øमबĦ है। हम कह सकते ह§ िक – “शÊदŌ के
साथªक समूक को ही वा³य कहते ह§।”
‘वा³य’ म¤ िनÌनिलिखत बात¤ होती ह§ -
१) वा³य कì रचना शÊदŌ के योग से होती है।
२) वा³य अपने आप म¤ पूणª तथा Öवतंý होता है।
३) वा³य िकसी न िकसी भाव या िवचार को पूणªत: ÿकट कर पाने म¤ स±म होता है।
४) वा³य म¤ शÊदŌ का øमबĦ हो ना जłरी है।
५) ÿाय: भाषा म¤ एक से अिधक शÊद होते ह§, िकÆतु बातचीत म¤ ÿाय: एक वा³य एक
शÊद के भी होते है, िविशĶ संदभª म¤ ‘हाँ, ‘जाओ ’, ‘बैठो’ ‘नहé’ वा³य ही है।
पåरभाषा:
वा³य कì पåरभाषा अÂयÆत िववादाÖपद है। भारत के आचायŎ, दाशªिनकŌ और सािहÂयकारŌ
ने वा³य कì पåरभाषा अलग–अलग दी है।
१) “ऐसा साथªक शÊद–समूह, जो ÓयविÖथत हो तथा पूरा आशय ÿकट कर¤, वा³य
कहलाता है।”
२) कामता ÿसाद गुŁ के अनुसार–“एक पूणª िवचार Óयĉ करने वाला शÊद–समूह वा³य
कहलाता है।”
३) बþीनाथ कपूर के अनुसार “भाषा कì Æयूनतम पूणª साथªक इकाई है िजसके Ĭारा कोई
बात कही गई है।”
४) डॉ. देवेÆþनाथ शमाª के अनुसार “भाषा कì Æयूनतम पूणª साथªक इकाई वा³य है।”
५) आचायª पंतजिल के अनुसार “पूणª अथª कì ÿतीित कराने वाले शÊद–समूह को वा³य
कहते है।” munotes.in

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वा³य रचना-वा³य कì पåरभाषा, अथª और रचना कì ŀिĶ से वा³य के ÿकार
81 ९.३ वा³य के महÂवपूणª अंग वा³य के दो अंग होते ह§ -
१) उĥेÔय (subject)
२) िवधेय (Predicate)
१) उĥेÔय:
वा³य म¤ िजसके संबंध म¤ कुछ कहा जाये, उसे उĥेÔय कहा जाता है। उĥेÔय ÿाय: कताª को
कहा जाता है। जैसे-
(१) राधा गाना गाती है।
(२) माली पौधŌ को पानी दे रही है।
(३) ब¸चे खेल रहे ह§।
इन वा³यŌ म¤ ‘राधा’, ‘माली’ और ‘ब¸चे’ उĥेÔय ह§, ³यŌिक उपयुªĉ वा³यŌ म¤ ‘राधा’, ‘माली’
तथा ‘ब¸चे’ के बारे म¤ बात कì जा रही ह§।
उĥेÔय कभी Öवतंý होता है और कभी–कभी उसके साथ दूसरे शÊद भी जुड़े रहते है।
उĥेÔय के अथª म¤ िवशेषता ÿकट करने कì िलए को शÊद या वा³यांश उसके साथ जोड़े
जाते ह§, वे उĥेÔय–िवÖतारक कहला ते है। जैसे:–
(१) काली गाय घास चरती है।
(२) पड़ोस म¤ रहने वाले शमाª जी िवदेश चले गए।
(३) कमल का भाई चा लाक है।
उपयुªĉ वा³यŌ म¤ ‘गाय’, ‘शमाª जी’, ‘भाई’ उĥेÔय है तथा ‘काली’, ‘पड़ोस म¤ रहनेवाले’ तथा
‘कमल का ’ यह तीनŌ उĥेÔय िवÖतारक ह§।
२) िवधेय:
वा³यŌ म¤ उĥेÔय के िवषय म¤ जो कुछ भी कहा जाए उसे िवधेय कहते ह§। िवधेय ÿाय: िøया
होती है। जैसे–
(१) सीता गाना गाती है।
(२) मोहन बाजार जा रहा है।
इन वा³यŌ म¤ ‘गाना गाती है।’ तथा ‘बाजार जा रहा है।’ िवधेय है। कुछ अÆय उदाहरण िनÌन
ÿकार ह§:
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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
82 उĥेÔय िवधेय शीला गाना गा रही है। महाÂमा गांधी हमारे िÿय नेता थे। हमारे िÿय नेता राजीव गांधी चुनाव म¤ जीत गये ह§। िवधेय के अथª म¤ िवशेषता लाने वाले शÊद िवधेय: िवÖतारक कहलाते है। जैसे –
(१) घोड़ा तेज दौड़ रहा है।
(२) राघव खाकर सो जाएगा।
(३) िवदेिशयŌ ने भारत पर आøमण कर िदया।
उपयुªĉ वा³यŌ म¤ ‘दौड़ रहा है’, तथा ‘कर िदया ’ ये सभी िवधेय ह§ तथा ‘तेज’, ‘खाकर ’ तथा
‘आøमण ’ िवधेय िवÖतारक ह§।
९.४ अथª के आधार पर वा³य के भेद वा³य म¤ कोई सूचना दी जा रही है, या नकाराÂमकता का भाव है, ÿij पूछा जा रहा है या
िवÖमय ÿकट िकया जा रहा है, काम करने का आदेश िदया जा रहा। या इ¸छा ÿकट कì जा
रही हो या संकेत िदया जा रहा हो आिद का अथª बोध होता है।
अथª के आधार पर वा³य के आठ भेद होते ह§:
१) िवधानवाचक वा³य
२) िनषेधवाचक वा³य
३) ÿijवाचक वा³य
४) संदेहवाचक वा³य
५) इ¸छावाचक वा³य
६) आ²ावाचक वा³य
७) संकेतवाचक वा³य
८) िवÖमयािदबोधक वा³य
१) िवधानवाचक वा³य:
िजन वा³यŌ के Ĭारा िøया के होने या करने का बोध हो या इस ÿकार का सामाÆय कथन
हो, उसे िवधानवाचक वा³य कहा जाता है। जैसे–
(१) म¤ कल िशमला जाऊँगा । munotes.in

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वा³य रचना-वा³य कì पåरभाषा, अथª और रचना कì ŀिĶ से वा³य के ÿकार
83 (२) पृÃवी अपनी धुरी पर घूमती है ।
(३) नदी म¤ बाढ़ आई है ।
िवधानवाचक वा³य को सकाराÂमक वा³य भी कहा जाता है ³यŌिक इस वा³यŌ म¤ जो बात
कहé जाती है, उसे ºयŌ का ÂयŌ मान िलया जाता है।
२) िनषेधवाचक वा³य:
िजन वा³यŌ म¤ काम के न होने का पता चले, उÆह¤ िनषेधवाचक वा³य कहते ह§| जैसे –
(१) म§ मुÌबई नहé जाऊँगा ।
(२) मेले म¤ कोई नहé गया ।
(३) आज िशि±का ने क±ा म¤ नहé पढ़ाया |
३) ÿijवाचक वा³य:
िजन वा³यŌ म¤ ÿij पूछा जाय और कुछ उ°र पाने कì िज²ासा रहती है, उसे ÿijवाचक
वा³य कहते है। इस ÿकार के वा³यŌ म¤ ³यŌ, ³या, कब, कहाँ, कौन, िकसे आिद शÊद आते
ह§ और वा³य के अंत म¤ ÿijवाचक िचĹ (?) लगा होता है। जैसे–
(१) राधा कहाँ रहती है?
(२) तुम िदÐली कब जाओगे?
(३) तुÌहारा नाम ³या है?
४) सÆदेहवाचक वा³य:
िजन वा³यŌ म¤ िकसी िøया के पूणª होने म¤ संदेह अथवा संभावना का बोध है, उÆह¤
संदेहवाचक वा³य कहते ह§। इस ÿकार के वा³यŌ म¤ शायद, संभवत: जैसे शÊदŌ का ÿयोग
देखने को िमलता है तथा वा³य के अंत म¤ ‘होगा’, ‘होगी’ ‘हŌगे’ देखने को िमलते ह§। जैसे–
(१) शायद वह पास हो जाए।
(२) अब तक वह चला गया होगा।
(३) रमा खाना पका चुकì होगी।
५) इ¸छावाचक वा³य:
िजन वा³यŌ Ĭारा वĉ कì आशा , इ¸छा, कामना , आशीवाªद का बोध हो उÆह¤ इ¸छावाचक
वा³य कहते ह§। जैसे–
(१) ईĵर कर¤, आप खूब उÆनित कर¤।
(२) भगवान करे सब कुशल हो। munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
84 (३) भगवान तुÌह¤ दीघाªयु कर¤।
६) आ²ावाचक वा³य:
िजन वा³यŌ म¤ आ²ा या अनुमित लेने–देने का भाव ÿकट होता है, उसे आ²ावाचक वा³य
कहते ह§। इस ÿकार के वा³यŌ म¤ आ²ा, अनुमित, िनवेदन, आदेश का भाव िनिहत रहता है।
जैसे:–
(१) आप अÆदर आ सकते है। (अनुमित)
(२) कृपया मुझे एक िगलास पानी दीिजए। (िनवेदन)
(३) शांित से बैठकर पढ़ो। (आदेश)
७) संकेतवाचक वा³य:
िजन वा³यŌ से एक िकया के दूसरी िøया पर िनभªर होने का बोध हो, उÆह¤ संकेत–वाचक
वा³य कहते ह§। इस ÿकार के वा³यŌ म¤ काम पूरा होने के िलए शतª–सी लगी होती है। जैसे–
(१) यिद वषाª łकती तो म§ घर जाता।
(२) अगर पåर®म करोगे, तो अवÔय सफल होगे।
(३) नौकरी िमले तो घर का खचª चले।
८) िवÖमयािदवाचक वा³य:
िजन वा³यŌ म¤ हषª, शोक, िवÖमय , घृणा, आIJयª, दुख आिद भाव Óयĉ हŌ अथवा वĉा
अपने िवचार या भाव ÿकट करने के िलए अचानक बोल उठता है, उÆह¤ िवÖमयािदबोधक
कहते ह§। जैसे–
(१) अरे! यह ³या कह िदया ?
(२) अहा! िकतना सुंदर मौसम है ।
(३) िछ: िछ: ! यह गली िकतनी गंदी है ।
(४) वाह! सुरेश ने तो कमाल कर िदया ।
९.५ रचना ŀिĶ से वा³य के ÿकार रचना के अनुसार वा³य के मु´य तीन भेद ह§ -
१) सरल या साधारण वा³य
२) संयुĉ या यौिगक वा³य
३) िमि®त या जिटल वा³य munotes.in

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वा³य रचना-वा³य कì पåरभाषा, अथª और रचना कì ŀिĶ से वा³य के ÿकार
85 १) सरल या साधारण वा³य:
िजस वा³य म¤ एक ही उĥेÔय तथा एक ही िवधेय होता है, उसे साधारण या सरल वा³य
कहते ह§।
(१) सुभाष पढ़ा रहा है।
(२) राम बाजार जा रहा है।
(३) वह पुÖतक पढ़ रहा है।
इन वा³यŌ म¤ ‘सुभाष’, ‘राम’ तथा ‘वह’ उĥेÔय या कताª है तथा ‘पढ़ा रहा है’, ‘जा रहा है’
तथा ‘पढ़ रहा है’ िøया है। अत: इन वा³यŌ म¤ एक ही उĥेÔय और एक ही िवधेय है, इसिलए
ये सरल वा³य ह§।
सरल वा³य म¤ कताª और िøया के अलावा कमª तथा उनके पूरक भी सिÌमिलत िकए जा
सकते ह§।
१) रमेश खेला (कताª–िøया)
२) रमेश खेल रहा है (कताª–िøया िवÖतार)
३) िदनेश का बेटा रमेश खेल रहा है। (िवÖतारकताª–िøया िवÖता र)
४) रमेश फुटबाल खेल रहा है। (कताª कमª–िøया िवÖतार)
५) रमेश ने राहòल को पुÖतक दी। (कताª–कमª–कमª िøया)
६) रमेश ने अपने िÿय िमý को कहानी कì पुÖतक दी। (कताª–कमª का िवÖतार, कमª–
कमª का िवÖतार–कमª–िøया | )
२) संयुĉ या यौिगक वा³य:
िजस वा³य म¤ दो या दो से अिधक वा³य समु¸चबोधक कì सहायता से जुड़े हो, उसे संयुĉ
वा³य कहते ह§, उसे संयुĉ या यौिगक वा³य कहते ह§। संयोजक Ĭारा जुड़े रहने पर भी
ÿÂयेक वा³य अपना Öवतंý अिÖतÂव रखता है और एक–दूसरे पर आि®त नहé रहता। अत:
संयुĉ वा³य म¤ ÿयुĉ सरल वा³यŌ का ÿयोग ÖवतÆý łप से भी हो सकता है। जैसे -
(१) म§ िलख रहा हóँ और तुम पढ़ रहे हो।
(२) ईशा बाजार गई और जÐदी से लौट आई।
(३) उसने बहòत मेहनत कì थी इसिलए वह क±ा म¤ ÿथम आया।
(४) आप पहले आराम कर¤गे या आपके िलए खाना ले आऊँ।
संयुĉ वा³य म¤ ‘िकंतु’ ‘और’, ‘या’, ‘इसिलए ’ आिद अÓयय शÊदŌ का ÿयोग होता है। munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
86 ३) िमि®त या जिटल वा³य:
िजस वा³य म¤ एक ÿधान उपवा³य के साथ एक या एक से अिधक आि®त उपवा³य जुड़े
हŌ, तो उसे ‘जिटल या िम® वा³य ’ कहा जाता ह§। संयुĉ वा³य म¤ ÿयुĉ उपवा³यŌ म¤
समानता का संबंध नहé होता वरन आ®य–आि®त का संबंध होता है। इसम¤ एक ÿधान
उपवा³य होता है, िजसम¤ मु´य कथन होता है और िजसका िवÖतार दूसरा उपवा³य करता
है। इनम¤ से कोई भी उपवा³य Öवतंý नहé होता है। जैसे–
(१) राम ने कहा िक वह कल िदÐली जाएगा।
(२) चूँिक आज मूसलाधार वषाª हòई अत: बाढ़ आ गई।
(३) जब वह मुंबई गया तब उसने वहाँ नया Óयापार शुł िकया।
(४) िजन छाýŌ ने पåर®म िकया वे उ°ीणª हो गए।
इन वा³यŌ म¤ ‘राम ने कहा’, चूँिक आज मूसलाधार वषाª हòई’, ‘जब वह मुंबई गया ’ तथा ‘िजन
छाýŌ ने पåर®म िकया’ ÿधान उपवा³य है और ’वह कल िदÐली जाएगा ’, ‘बाढ़ आ गई ’,
‘नया Óयापार शुł िकया’ तथा ‘वे उ°ीणª हो गए’ आि®त उपवा³य है।
९.६ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ वा³य रचना म¤ वा³य कì पåरभाषा, अथª और रचना कì ŀिĶ से वा³य के
ÿकारŌ का अÅययन िकया गया ह§ | इसमे एक से अिधक पद होते है िजसे शÊद भी कहा
जाता ह§ | कभी-कभी गौण शÊदŌ को छोड़कर केवल उस एक शÊद या कुछ शÊदŌ के वा³य
भी िमलते है जो िक िवषय से सीधे संबिधत होते ह§ | और उसके आधार पर पुरे वा³य कì
कÐपना ®ोता या पाठक सहज कर लेता ह§ | इस तरह से अÅयाय के अंतगªत देखा गया ह§ |
९.७ संभािवत ÿij ÿ.१ वा³य कì पåरभाषा देते हòए इसके अंगŌ पर अपने िवचार िलिखए।
ÿ.२ अथª के आधार पर वा³य के िकतने भेद ह§? ÖपĶ कìिजए।
ÿ.३ रचना के अनुसार वा³य के भेदŌ का वणªन कìिजए।
९.८ वÖतुिनķ ÿij ÿ.१ साथªक शÊदŌ के øमबĦ समूह को कहते है?
उ. वा³य।
ÿ.२ वा³य के िकतने अंग होते ह§?
उ. दो अंग होते ह§। munotes.in

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वा³य रचना-वा³य कì पåरभाषा, अथª और रचना कì ŀिĶ से वा³य के ÿकार
87 ÿ.३ वा³य म¤ िजसके संबंध म¤ कुछ कहा जाता है, उसे ³या कहते ह§?
उ. उĥेÔय कहते ह§।
ÿ.४ अथª के आधार पर वा³य के िकतने भेद होते ह§?
उ. आठ भेद होते ह§।
ÿ.५ रचना के आधार पर वा³य के िकतने भेद ह§?
उ. तीन भेद |
ÿ.६ िजन वा³यŌ म¤ िøया के न होने का बोध होता है इसे ³या कहते ह§?
उ. िनषेधवाचक वा³य।
ÿ.७ िजन वा³यŌ से एक िøया के दूसरी िøया पर िनभªर होने का बोध हो, उसे कौन सा
वा³य कहते है?
उ. संकेतवाचक वा³य |
ÿ.८ साधारण वा³य म¤ िकतने उĥेÔय और िवधेय होत¤ है?
उ. एक उĥेÔय और एक िवधेय होता है।
ÿ.९ संयुĉ वा³य आपस म¤ िकसके Ĭारा जुड़े रहते है?
उ. समु¸चबोधक को सहायता से जुड़े होते ह§।
ÿ.१० िमि®त वा³य म¤ एक ÿधान उपवा³य होता है तो दूसरा उपवा³य ³या होता है?
उ. दूसरा उपवा³य आि®त वा³य होता है।
९.९ संदभª úंथ १) िहंदी भाषा कì रचना – डॉ. भोलानाथ ितवारी
२) िहंदी Óयाकरण – कामता ÿसाद गुŁ
३) िहंदी Óयाकरण ÿकाश – डॉ. मह¤þ कुमार राना
४) Óयाकरण दिशªका – डॉ. मनीषा शमाª
५) िहंदी Óयाकरण एवं रचना – शिश शमाª

*****
munotes.in

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88 १०
िहÆदी वा³य रचना म¤ अÅयाहार और
पदøम संबंधी सामाÆय िनयम
इकाई कì łपरेखा
१०.० इकाई का उĥेÔय
१०.१ ÿÖतावना
१०.२ अÅयाहार
१०.३ पदŌ का øम एवं िनयम
१०.४ पदŌ का अÆवय एवं िनयम
१०.५ सारांश
१०.६ संभािवत ÿij
१०.७ वÖतुिनķ ÿij
१०.८ संदभª úंथ
१०.० इकाई का उĥेÔय छाý इस इकाई के माÅयम से सही वा³य–रचना करना सीख¤गे।
 अÅयाहार िकस तरह से होता ह§ उसे जान सक¤गे |
 छाý वा³य म¤ øम के आधार को समझ पाय¤गे। पहले कताª, िफर कमª और िफर अÆत
म¤ िøया आती है।
 छाý पदŌ के अÆवय के बारे म¤ जानकारी ÿाĮ कर¤गे।
 इस ÿकार छाý शुĦ वा³य िलखन¤ कì ±मता ÿाĮ कर¤गे।
१०.१ ÿÖतावना छाý वा³य कì रचना से पåरिचत है। िकसी िवचार का पूणª और ÖपĶ łप से ÿकट
करनेवाला ÓयविÖथत तथा साथªक शÊद समूह को ‘वा³य’ कहा जाता है। ‘शÊद’ ÖवतÆý
होते ह§ जब यही शÊद वा³य म¤ ÿयोग होते है तो पद बन जाते ह§। इÆहé पदŌ के øम का
आधार होता ³या है? पदŌ का अÆवय कैसे होता है। इÆहé सबके बारे म¤ हम यहाँ पर पढ़¤गे।
१०.२ अÅयाहार अÅयाहार का अथª ह§ वा³य का अथª करते समय कुछ ऐसे शÊदŌ को लाना िजÆह¤ वा³य
बनाते समय छोड़ा िदया गया ह§ ³यौकì उनके न रहने पर भी उस ÿसंग वा³य को समझने munotes.in

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िहÆदी वा³य रचना म¤ अÅयाहार और पदøम संबंधी सामाÆय िनयम
89 म¤ बाधा नहé पड़ती | ‘राम जा रहा है और मोहन भी’, वा³य मूलतः है ‘राम जा रहा है और
मोहन भी जा रहा ह§ |’ परंतु अंितम वा³य ‘जा रहा है’ का अÅयाहार करके वा³य को यह
संि±Į łप दे िदया ह§ |
अÅयाहार कई ÿकार का होता है –
(क) क°ाª का अÅयाहार – जैसे
‘सुना है राजा साहब के घर चोरी हो गई ह§ |’
(ख) िøया का अÅयाहार – जैसे
‘राम जा रहा है और मोहन |’ यहाँ ‘जा रहा है’ का अÅयाहार ह§ |
(ग) वा³यांश का अÅयाहार – जैसे
१. ÿijो°र म¤ : ÿij – तुÌहारा नाम ³या ह§?,
उ°र – ‘राम’ (मेरा नाम’ तथा ‘ह§’ का अÅयाहार) |
२. अÓयय : वह ऐसा सीधा है जैसे गाय | (‘सीधी होती ह§’ का अÅयाहार) |
१०.३ पदŌ का øम एवं िनयम अथª तथा परÖपर संबÆध के िवचार म¤ शÊदŌ को उिचत Öथान पर रखने को पद øम कहते
ह§। िहÆदी के वा³य म¤ पदøम के िनÌनिलिखत िनयम ह§ -
१) सामाÆय वा³य म¤ पहले कताª और अंत म¤ िøया होती है। जैसे– राम गया। रामा सोती
है। इन वा³यŌ म¤ राम, रामा कताª (पहले शÊद) है और गया, सोती है िøया (अंितम
शÊद) है।
२) िøया का कमª या उसका पूरक िøया से पहले आता है तथा िøया कताª के बाद।
जैसे–
(१) राम ने सेब खाया।
(२) िपता ने पुý को पैसे िदए।
इन वा³यŌ म¤ ‘सेब’, ‘पुý’ तथा ‘पैसे’ कमª ह§। ‘खाया’ और ‘िदए’ िøया तथा राम और िपता
कताª ।
३) यिद दो कमª हŌ तो गौण कमª पहले तथा मु´य कमª बाद म¤ आता है। जैसे–
(१) सीता ने रमेश को पुÖतक दी।
(२) िपता ने पुý को पैसे िदए।
इसम¤ ‘रमेश’ और ‘पुý’ गौण कमª ह§ तथा ‘पुÖतक’ और ‘पैसे’ मु´य कमª है। munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
90 ४) सÌबोधन तथा िवÖमयािदबोधक शÊद ÿाय: वा³य के ÿारंभ म¤ आता है। जैसे– वÂस!
िचरंजीवी हो + ओ।
५) कताª, कमª तथा िøया के िवशेषक (िवशेषण या िøयािवशेषण) अपने–अपने िवशेÕय से
पहले आता ह§। जैसे– मेधावी छाý मन लगाकर पढ़ रहा है।
इस वा³य म¤ मेधावी (िवशेषण) तथा मन लगाकर (िøयािवशेषण) øमश: अपने–अपने
िवशेÕय छाý (सं²ा) तथा िøया (पढ़ रहा है) से पहले आए है।
६) िवशेषण सवªनाम के पहले नहé आ सकता, वह सवªनाम के बाद ही आएगा। जैसे –
(१) वह अ¸छा है।
(२) यह काला कपड़ा है।
यहाँ सवªनाम ‘वह’ और ‘यह’ के बाद ही िवशेषण ‘काला’ और ‘अ¸छा ’ आए ह§।
७) Öथानवाचक या कालवाचक िøयािवशेषण कताª के पहले या ठीक पीछे रखे जाते ह§।
जैसे–
(१) आज मुझे जाना है।
(२) तुम कल आ जाना।
इन वा³यŌ म¤ कालवाचक िøयािवशेषण ‘आज’ और ‘कल’ अपने कताª ‘मुझे’ और ‘तुम’ के
øमश: पहले तथा ठीक बाद म¤ आए ह§।
८) िनषेधाथªक िøयािवशेषण िøया से पहले आते ह§। जैसे–
(१) तुम वहाँ मत जाओ।
(२) मुझे यह काम नहé करना।
इन वा³यŌ म¤ िनषेधाथªक िøयािवशेषण ‘मत’ तथा ‘नहé’ øमश: अपनी िøया ‘जाओ ’ तथा
‘करना ’ से पहले आए ह§।
९) ÿijवाचक सवªनाम या िøयािवशेषण ÿाय: िøया से पहले आते ह§। जैसे–
(१) आप कौन हो ?
(२) तुÌहारा घर कहाँ ह§?
इन वा³यŌ म¤ ÿijवाचक सवªनाम ‘कौन’ तथा िøयािवशेषण ‘कहाँ’ िøया से पहले आए ह§।
िकंतु िजस ‘³या’ का उ°र ‘हाँ’ या ‘ना’ म¤ हो वह वा³य के ÿारंभ म¤ आते ह§। जैसे–
(१) ³या तुम जाओगे।
(२) ³या तुÌह¤ खाना खाना है? munotes.in

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िहÆदी वा³य रचना म¤ अÅयाहार और पदøम संबंधी सामाÆय िनयम
91 १०) ÿijवाचक या कोई अÆय सवªनाम जब िवशेषण के łप म¤ ÿयुĉ हो, तो सं²ा से पहले
आएगा। जैसे–
(१) यहाँ िकतनी िकताब¤ है?
(२) कौन आदमी आया है?
इन वा³यŌ म¤ ‘यहाँ’ तथा ‘कौन’ ÿijवाचक सवªनाम िवशेषण के łप म¤ ÿयुĉ होकर øमश:
‘िकताब¤’ तथा आदमी (सं²ा) से पहले आए है।
११) संबंधबोधक अÓयय तथा परसगª सं²ा और सवªनाम के बाद आते ह§। जैसे–
(१) राम को जाना है।
(२) वह बाज़ार कì ओर घूमने गया है।
उपयुĉ वा³यŌ म¤ ‘को’ ‘कì ओर ’, राम तथा वह के बाद आए ह§।
१२) साधारण तथा , मु´यत:, केवल, ÿधानत: आिद अनेक शÊद ठीक उनके पहले ÿयुĉ
होते ह§। िजनके िवषय म¤ िनIJय ÿकट िकया जाता है। जैसे–
(१) केवल राम ही खेल रहा है।
१३) पुवªकािलक ‘कर’ धातु के ‘पीछे’ जुड़ता है। जैसे– छोड़+ कर = छोड़कर।
इसके अलावा पुवªकािलक िøया, मु´य िøया से पहले आती है। जैसे–
(१) वह खाकर सो गया।
(२) वह आकर पढ़ेगा।
इन वा³यŌ म¤ ‘खाकर ’ तथा ‘आकर ’ (पूवªकािलक) ‘सो गया ’ तथा ‘पढ़ेगा’ से पहले आए ह§।
१४) भी, तो, ही, भर तक आिद अÓय य उÆहé शÊदŌ के पीछे लगाते ह§, िजनके िवषय म¤ वे
िनIJय ÿकट करते ह§। जैसे–
(१) म§ तो (भी, ही) घर गया था।
(२) म§ घर भी (ही) गया था।
इन दोनŌ वा³यŌ म¤ अÓयय ‘तŌ’ ‘भी’ तथा ‘ही’ øमश: ‘म§’ और ‘घर’ के िवषय म¤ िनIJय ÿकट
कर रहे ह§, इसिलए उ नके पीछे लगे हòए ह§।
१५) यिद……. तो, जब……. तब, जहाँ…… वहाँ, ºयŌिह…… ÂयŌह आिद िनÂय संबंधी
अÓययŌ म¤ ÿथम ÿधान वा³य के पहले तथा दूसरा आि®त वा³य के पहले लगता है।
जैसे –
(१) जहाँ चाहते हो, वहाँ जाओ। munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
92 (२) जब आप आएँगे, तब वह जा चुका होगा।
इन वा³यŌ म¤ ‘जहाँ’ और जब ÿथम ÿधान वा³य के पहले तथा ‘वहाँ’ और ‘तब’ दूसरे
आि®त उपवा³य के पहले लगे ह§।
१६) समु¸चबोधक अÓयय दो शÊदŌ या वा³यŌ के बीच म¤ आता है। तीन समान शÊद या
वा³य हŌ तो ‘और’ अंितम से पहले आता है। जैसे–
(१) िदनेश तो जा रहा है, लेिकन रमेश नहé।
(२) सीता, गीता और रमा तीनŌ ही आएँगी।
पहले वा³य म¤ समु¸चयबोधक अÓयय ‘लेिकन’ दो वा³यŌ के बीच म¤ आया है तथा दूसरे
वा³य म¤ समु¸चयबोधक अÓयय ‘और’ तीन शÊद होने के कारण से अंितम से पहले आया है।
१७) वा³य म¤ िविवध अंगŌ म¤ तकª संगत िनकटता होनी चािहए। जैसे– एक पानी का
िगलास लाओ। इस वा³य म¤ ‘एक पानी ’ िनरथªक है। ‘पानी का एक िगलास लाओ ’ साथªक
वा³य है।
१८) योजक अÓयय िजन शÊदŌ अथवा वा³यŌ को जोड़ते ह§ उनके मÅय म¤ आते है। जैसे–
राधा और सीता , खेलो या पढ़ो।
१९) संबंध के पIJात् संबंधी, िवशेषण के बाद िवशेÕय, िøया – िवशेषण के बाद िøया का
ÿयोग िकया जाता है। जैसे–
(१) यह लीना कì गुिड़या है।
(२) तुमने मुझे Óयवहार कुशल बनाया।
१०.४ पदŌ का अÆवय एवं िनयम अÆवय का अथª है ‘मेल’। वा³य म¤ पुŁष, वचन, िलंग, कारक आिद आने पर पदŌ म¤ परÖपर
मेल होना चािहए। वा³य कì शुĦता के िलए अÆवय का ²ान होना आवÔयक है। अत: शुĦ
वा³य कì रचना के िलए अÆवय का ²ान होना अित आवÔयक है। अÆवय के कुछ िवशेष
िनयम यहाँ िदए जा रहे ह§ –
१) कताª, कमª और िøया का अÆवय:
i) यिद कताª िवभिĉ िचĹ या परसगª न हो, तो िøया , िलंग, वचन और पुŁष कताª के
अनुसार होगा। जैसे–
(१) राधा गाना गाती है।
(२) शीला खाना बनाती है। munotes.in

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िहÆदी वा³य रचना म¤ अÅयाहार और पदøम संबंधी सामाÆय िनयम
93 ii) यिद कताª के साथ परसगª हो, तो िøया का िलंग, वचन और पुŁष कमª के अनुसार होगा।
जैसे–
(१) राम ने पुÖतक पढ़ी।
(२) रमा ने भोजन पकाया।
iii) यिद कताª और कमª दोनŌ के साथ परसगª हो, तो िøया सदा पुिÐलंग, अÆय पुŁष,
एक वचन म¤ रहती है। जैसे–
(१) पुिलस ने चोर को पीटा।
iv) एक ही तरह का अथª देने वाले अनेक कताª एकवचन म¤ और पर सगª रिहत हŌ, तो िøया
एकवचन म¤ होगी। जैसे–
(१) आज म§ने नाÖते म¤ पूड़ी, सÊजी , खीर, अचार और पापड़ खाया।
v) यिद एक से अिधक िभÆन कताª िलंगŌ म¤ हो, तो िøया अंितम कताª के िलंग के अनुसार
होगी। जैसे–
(१) उसके पास एक पायजामा और दो कमीज¤ थé।
vi) यिद एक से अिधक िभÆन–िभÆन कताª, परसगª रिहत हŌ , तो िøया बहòवचन म¤ होगी।
जैसे–
(१) सीता और गीता पढ़ रही थé।
(२) रमेश और मोहन पढ़ रहे ह§।
vii) सÌमान ÿकट करने के िलए एक Óयिĉ के िलए भी कताª म¤ बहòवचन का ÿयोग िकया
जाता है। जैसे–
(१) मेरे िपताजी कायाªलय जाते ह§।
viii) वा³य म¤ अनेक िøयाओं का कताª एक ही बार ÿयुĉ होता है। जैसे–
(१) रमन सवेरे उठता है, ÿाथªना करता है, नाÔता करता है तथा िवīालय जाता है।
ix) उ°म पुŁष तथा मÅयम पुŁष, उ°म पुŁष और अÆय पुŁष एवं तीनŌ पुŁषŌ के मेल म¤
िøया उ°म पुŁष म¤ ÿयुĉ होती है। जैसे–
(१) हम, तुम आए सीमा इसी िवīालय म¤ ÿवेश ल¤गे।
२) संबंध और संबंधी का अÆÓयय:
i) का, के, कì संबंधवाची िवशेषण परसगª ह§। इनका िलंग, वचन और कारकìय łप वही
होता है, जो उ°र पद (संबंधी) का होता है। जैसे– munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
94 (१) शीला कì घड़ी |
(२) राजू का łमाल |
(३) रमा के कपड़े |
ii) यिद संबंधी पद अनेक हŌ, तो संबंधवाची िवशेषण परसगª पहले संबंधी के अनुसार होता
है। जैसे–
(१) शीला के बहन और भाई जा रहे थे।
iii) ऐसे म¤ परसगō को दोहराया भी जा सकता है। जैसे–
(१) शीला कì बहन और भाई जा रहे थे।
३) सं²ा और सवªनाम का अÆवय:
i) सवªनाम का वचन और पुŁष उस सं²ा के अनुłप होना चािहए, िजसके Öथान पर
उसका ÿयोग हो रहा है। जैसे–
(१) राधा ने कहा िक वह अवÔय आएगी।
(२) अÅयापक आए तो उनके हाथ म¤ पुÖतक¤ थी।
ii) हम, तुम, आप, वे, ये आिद का अथª कì ŀिĶ से एक वचन के िलए भी ÿयोग होता है,
िकंतु इनका łप बहòवचन ही रहता है। जैसे–
(१) आप कहाँ जा रहे हो।
४) िवशेषण और िवशेÕय का अÆÓयय:
i) िवशेषण का िलंग और वचन, िवशेÕय के अनुसार होता है। जैसे –
अ¸छी साड़ी , छोटा ब¸चा , काला घोड़ा , काली गाय , काले घोड़े आिद।
ii) यिद अनेक िवशेÕयŌ का एक िवशेषण हो, तो उस िवशेषण के िलंग, वचन और
कारकìय łप तुरंत बाद म¤ आने वाले िवशेÕय के अनुसार हŌगे। जैसे –
(१) पुराने पलंग और चारपाई बेच दी।
(२) अ¸छी कहािनयाँ और उपÆयास म§ने पढ़¤।
(३) अ¸छे उपÆयास और कहािनयां म§ने पढ़é।
iii) यिद एक िवशेÕय के अनेक िवशेषण हŌ, तो वे सभी िवशेÕय के अनुसार हŌगे। जैसे –
(१) सÖती और अ¸छी िकताब¤।
(२) गंदे और मैले–कुचैले कपड़े। munotes.in

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िहÆदी वा³य रचना म¤ अÅयाहार और पदøम संबंधी सामाÆय िनयम
95 १०.५ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ वा³य रचना म¤ अÅयाहार और पदøम संबधी सामाÆय िनयमŌ को देखा ह§ |
इसम¤ ‘पदøम ’ का अथª ‘वा³य म¤ पदŌ के रखे जाने का øम |’ ‘पद’ को ‘शÊद’ कहने के
कारण कुछ लोग ‘पदøम ’ को ‘शÊद्øम’ भी कहते है | हर भाषा के वा³य म¤ पदŌ या शÊदŌ के
अपने-अपने øम होते है | इसे िवÖतार से देखा ह§ |
१०.६ संभािवत ÿij ÿ.१ अÆवय से ³या ताÂपयª है? अÆवय के ÿमुख िनयमŌ पर ÿकाश डािलए।
ÿ.२ पद से ³या ताÂपयª है? पदŌ के øम एवं िनयम को ÖपĶ कìिजए।
ÿ.३ कताª, कमª और िøया के अÆवय पर ÿकाश डािलए।
१०.७ वÖतुिनķ ÿij ÿ.१ वा³य म¤ øम का आधार ³या है?
उ. पहले कताª, िफर कमª और अÆत म¤ िøया आती है।
ÿ.२ पद से ³या समझते ह§?
उ. जब कोई शÊद Óयाक रिणक िनयम के अनुसार वा³य म¤ ÿयोग होता है तो पद
कहलाता है।
ÿ.३ अÆवय का अथª ³या है।
उ. मेल है।
ÿ.४ यिद दो कमª हो तो गौण कमª वा³य म¤ कहाँ आता है।
उ. वा³य म¤ गौण कमª पहले आता है।
ÿ.५ वा³य म¤ मु´य कमª कहाँ आता है?
उ. वा³य म¤ मु´य कमª बाद म¤ आता है या कह सकते है िøया के पहले आता है।
ÿ.६ ÿijवाचक सवªनाम या िøयािवशेषण ÿाय: कहाँ आते है?
उ. िøया के पहले।
ÿ.७ वा³य म¤ िवशेषण िकसके पहले आते है?
उ. अपने िवशेÕय के।
ÿ.८ िवशेषण का िलंग और वचन िकसके अनुसार होता है? munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
96 उ. अपने िवशेÕय के अनुसार |
ÿ.९ संबोधन शÊद ÿाय: वा³य म¤ कहाँ आते ह§?
उ. आरंभ म¤ आते ह§।
ÿ.१० ‘शीला पुÖतक पढ़ती है।’ इसम¤ कमª कौन–सा है?
उ. पुÖतक
१०.८ संदभª úंथ १) िहंदी भाषा कì रचना – डॉ. भोलानाथ ितवारी
२) िहंदी Óयाकरण – कामता ÿसाद गुŁ
३) िहंदी Óयाकरण ÿकाश – डॉ. मह¤þ कुमार राना
४) Óयाकरण दिशªका – डॉ. मनीषा शमाª
५) िहंदी Óयाकरण एवं रचना – शिश शमाª

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97 ११
समास :अथª, Öवłप तथा ÿमुख ±ेý

इकाई कì łपरेखा
११.० इकाई का उĥेÔय
११.१ ÿÖतावना
११.२ समास अथª, Öवłप
११.३ समास के ÿमुख भेद
११.४ िविभÆन समासŌ म¤ अंतर
११.५ संिध और समास म¤ अंतर
११.६ सारांश
११.७ दीघō°रीय ÿij
११.८ वÖतुिनķ ÿij
११.९ संदभª पुÖतके
११.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के माÅयम से छाý िनÌनिलिखत िबंदुओं का अÅययन कर¤गे |
 समास तथा समÖतपद के बारे म¤ जानकारी ÿाĮ कर¤गे।
 छाý समास िवúह करना सीख सक¤गे।
 छाý समास के ÿमुख भेदŌ कì जानकारी ÿाĮ कर स क¤गे।
 छाý िविभÆन समासŌ के अंतर को समझकर उनके अलग-अलग łपŌ को जान सक¤गे।
 साथ ही छाý संिध और समाज के अंतर को भी अ¸छे ÿकार से समझ सक¤गे।
११.१ ÿÖतावना िहंदी कì łप रचना के अÆतगªत हम उपसगª, ÿÂयय और समास के बारे म¤ पढ़ते ह§। समास
म¤ परÖपर संबंध रखने वाले दो या दो से अिधक शÊदŌ को िमलाकर नया शÊद बनाने कì
ÿिøया चलती है। यह ÿिøया ही समास कहलाती है। दूसरे अथŎ म¤ कह सकते है िक दो
शÊदŌ के सं±ेपण ÿिøया ही समास है। समास के छह भेदŌ से पåरिचत हŌगे। समास िवúह
करना सीख पा य¤गे। इस इकाई म¤ समास कì समÖत जानकारी पाकर छाý ²ान कì वृिĦ
कर सक¤गे। munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
98 ११.२ समास अथª और Öवłप पåरभाषा:
“परÖपर संबंध रखने वाले दो या दो से अिधक शÊदŌ को िमलाकर जब नया साथªक शÊद
बनाया जाता है तो, उस मेल को समास कहते है।”
समास का ताÂपयª है, सं±ेप अथाªत दो या दो से अिधक शÊदŌ को िमलाकर एक करना।
संÖकृत धातु ‘अस्’ म¤ सम् उपसगª जोड़कर समास शÊद िनÕपÆन हòआ है, िजसका अथª है
समाहार या िमलाप । इस ÿकार हम पाते है कì वाÖतव म¤ समास का अथª सं±ेपीकरण हòआ।
जैसे - 'हवन के िलए सामúी’ म¤ शेष सभी शÊदŌ या पदŌ का लोप करके 'हवन सामúी' नया
पद िनिमªत कर िलया जाता है। उसी ÿकार चंþ के समान मुख को हम 'चंþमुख’ नया शÊद
िनिमªत होता है ।
समास रचना म¤ दो पद होते है:
१) पूवªपद: पहले पद को पूवªपद कहते ह§।
२) उ°र पद: दूसरे पद को उ°र पद कहते ह§।
इन दोनŌ पदŌ से बना नया शÊद 'समÖत पद’ कहलाता है।
पूवª पद + उ°र पद = समÖतपद
१) राजा + का पुý = राजपुý
२) घोड़ा + सवार (घोड़े पर सवार) = घुड़ सवार
३) दश + आनन (ह§ िजसके) = दशानन
समास िवúह:
जब समÖत के सभी पद अलग-अलग िकए जाते है, तब इस ÿिøया को समास िवúह कहते
ह§। जैसे:
१) ‘सीता-राम’, इस समÖतपद का िवúह होगा - सीता और राम।
२) ‘माखनचोर’ समÖतपद का िवúह होगा - माखन को चुराने वाला’।
११.३ समास के ÿमुख भेद समास के छह ÿमुख भेद होते ह§ जो िनÌन ह§:
१) तÂपुŁष समास
२) कमªधारय समास munotes.in

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समास: अथª, Öवłप तथा ÿमुख ±ेý
99 ३) िĬगु समास
४) Ĭंवदव समास
५) अÓययीभाव समास
६) बहòĄीिह समास
१) तÂपुŁष समास:
समÖत पद बनाते समय बीच कì िवभिĉयŌ का लोप हो जाता है। जैसे-
१) य²शाला का िवúह है: य² के िलए शाला।
२) सुखÿाĮ का िवúह है: सुख को ÿाĮ।
तÂपुŁष समास के िनÌमिलिखत भेद ह§:
i) कमª तÂपुŁष:
जहां कमª कारक कì िवभिĉ 'को’ का लोप हो। जैसे:- समÖतपद िवúह यशÿाĮ यश को ÿाĮ Öवगªगत Öवगª को आगत परलोगमन परलोक को गमन úामगत úाम को गत शरणागत शरण को आगत जेब कतरा जेब को कतरनेवाला। ii) करण तÂपुŁष:
जहाँ करण कारक कì िवभिĉ ' से’ का लोप हो। जैसे- समÖतपद िवúह तुलसीकृत हÖत से िलिखत हÖतिलिखत Öवगª को आगत रेखांिकत रेखा से अंिकत भुखमरा भूख से मरा munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
100 सुररिचत सूर Ĭारा रिचत ÿेमातुर ÿेम से आतुर अकाल पीिड़त अकाल से पीिड़त दयाªþ दया से आþª iii) संÿदायन तÂपुŁष:
जहाँ संÿदायन कारक कì िवभिĉ 'के िलए’ का लोप हो। जैसे- समÖतपद िवúह िवīालय िवīा के िलए आलम युĦभूिम युĦ के िलए भूिम रसोईघर रसोइ के िलए घर डाकगाडी डाक के िलए गाड़ी मागªÓय मागª के िलए Óयय सÂयाúह सÂय के िलए आúह देशापªण देश के िलए अपªण देशभिĉ देश के िलए भिĉ iv) अपादान तÂपुŁष:
जहाँ अपादान कारक कì िवभिĉ ‘से’ का लोप है। जैसे– समÖतपद िवúह धन हीन धन से हीन रोग मुĉ रोग से मुĉ िवīा हीन िवदया से हीन जÆमांध जÆम से अंधा पद¸युत पद से ¸युत धमाªिवमुख धमª से िवमुख munotes.in

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समास: अथª, Öवłप तथा ÿमुख ±ेý
101 v) संबंध तÂपुŁष:
जहाँ संबंध कारक कì िवभिĉ ‘का’, ‘कì’, ‘के’, ‘का’ लोप हो। जैसे: समÖतपद िवúह देवदास देव का दास आ²ानुसार आ²ा के अनुसार परिनंदा पर कì िनंदा िवīासागर िवīा का सागर ÿसंगानुसार ÿसंग के अनुसार जीवनसाथी जीवन का साथी लखपित लाखŌ का पित देशवासी देश का वासी vi) अिधकरण तÂपुŁष:
जहाँ अिधकरण कारक कì िवभिĉ ‘म¤’, ‘पर’ का लोप हो। जैसे: समÖतपद िवúह युĦिनपुण युĦ म¤ िनपुण úामवासी úाम म¤ वासी घुड़सवार घोड़े पर सवार िसरददª िसर म¤ ददª पुŁषो°म पुłषŌ म¤ उ°म आपबीती आप पर बीती कुल®ेķ कुल म¤ ®ेķ vii) नý समास:
जहाँ िनषेध के अथª म¤ ‘न’, ‘अ’ या अन का ÿयोग हो। जैसे: समÖतपद िवúह अÆयाय न Æयाय munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
102 असफल न सफल अनपढ़ न पढ़ा िलखा नािÖतक न आिÖतक अपिठत न पिठत अिन¸छा न इ¸छा अनंत न अंत अनहोनी न होनी २) कमªधारय समास:
िजसका पहला पद िवशेषण और दूसरा पद िवशेÕय हो या एक पद उपमान तथा दूसरा पद
उपमेय हो तो उसे ‘कमªधारण समास’ कहते ह§।
i) िवशेषण – िवशेÕय: समÖतपद िवúह नीलकमल नीला है जो कमल पुŁषो°म पुłषŌ म¤ है जो उ°म महाराज महान है जो राजा अधपका आधा है जो पका ÿधानाÅयपक ÿधान है को अÅयापक का पुłष कायर है जो पुŁष ii) उपमान – उपमेय: समÖतपद िवúह चंþमुख चंþ के समान मुख ľीधन ľी łपी धन कर कमल कर łपी कमल मृगलोचन मृग के समान लोचन भुजदंड दंड के समान भुजा देहलता देह łपीलता munotes.in

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समास: अथª, Öवłप तथा ÿमुख ±ेý
103 िवशेष:
१) नील गाय: नीली है जो गाय | यहाँ ‘नीली’ िवशेषण और ‘गाय’ िवशेÕय है।
२) कमलनयन: यहाँ ‘नयन’ कì तुलना ‘कमल’ से कì गइ है। यहाँ ‘नयन’ उपमेय
(िजसकì तुलना कì जाय) तथा ‘कमल’ उपमान (िजससे तुलना कì जाए) है।
३) कमªधारय समास म¤ उपमेय–उपमान ÿयुĉ समÖतपदŌ का िवúह करते समय ‘łपी,
समान, जो’ आिद तुलनाÂमक शÊदŌ का ÿयोग िकया जाता है।
३) िĬगु समास:
िजस शÊद का पहला पद सं´यावाचक िवशेषण होता है और िकसी समूह िवशेष का बोध
कराता है जैसे:– समÖतपद िवúह पंचतÂव पांच तÂवŌ का समूह चौराहा चार राहŌ का समाहार िýभुज तीन भुजाओं का समाहार नवराý नौ रािýयŌ का समाहार सĮाह सात िदनŌ का समूह सतसई सात सŏ (दोहŌ) का समाहार अठÆनी आठ आनŌ का समूह ितरंगा तीन रंगŌ का समाहार ४) ĬंĬ समास:
िजस समÖतपद म¤ दोनŌ पद ÿधान हो । तथा िवúह करने पर दोनŌ पदŌ के बीच ‘और’ ‘या’,
‘अथवा’ जैसे योजक शÊदŌ का ÿयोग हो तो, उसे ‘ĬंĬ समास’ कहते ह§। ĬंĬ का अथª दो या
दो से अिधक वÖतुओं का युµम अथाªत जोड़ा होता है। जैसे:– समÖतपद िवúह माँ–बाप माँ और बाप उतार–चढ़ाव उतार या चढ़ाव हार–जीत हार या जीत अपना–पराया अपना या पराया munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
104 जल–थल जल और थल पाप–पुÁय पाप और पुÁय भला–बुरा भला और बुरा देश–िवदेश देश और िवदेश ५) अÓययीभाव समास:
इसम¤ पहला पद अÓयय तथा ÿधान होता है। इस ÿिøया Ĭारा बना समÖतपद भी अÓयय
कì भाँित कायª करता है, इसी कारण इस समास का नाम अÓययीभाव समास पड़ा है।
संÖकृत म¤ अÓययीभाव समास म¤ पूवªपद अÓयय होता है और उ°रपद सं²ा या िवशेषण,
जैसे भरपेट, यथासंभव, यथासÌमान, यथायोµय आिद। लेिकन िहंदी समासŌ म¤ इसके
अपवाद Öवłप पहला पद सं²ा तथा िवशेषण भी देखा गया है, जैसे: हाथŌ–हाथ (हाथ
सं²ा), हर घड़ी (हर िवशेषण)। समÖतपद िवúह आमरण मरण तक आजÆम जÆम से लेकर यथाशिĉ शिĉ के अनुसार यथा शीŅ िजतना शीŅ हो सके भरपेट पेट भरकर भरपूर पूरा भरा हòआ हाथŌ–हाथ हाथŌ ही हाथ म¤ गाँव–गाँव ÿÂयेक गाँव ÿितिदन ÿÂयेक िदन सादर आदर सिहत ६) बहòāीिह समास:
िजस पद के दोनŌ पद ÿधान न हŌ और समÖतपद अपने पदŌ से िभÆन िकसी अÆय सं²ा का
बोध करवाते हŌ, तो उसे बहòāीिह समास कहते ह§। इनका िवúह करने पर िवशेष łप से
‘वाला’, ‘वाली’, ‘िजसका’, ‘िजसकì’, ‘िजससे’ आिद शÊद पाए जाते ह§। जैसे–

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समास: अथª, Öवłप तथा ÿमुख ±ेý
105 समÖतपद िवúह िýलोचन तीन ह§ लोचन िजसके अथाªत िशव। चøपिण चø है हाथ म¤ िजसके अथाªत िवÕणु। दशानन दस ह§ मुख िजसके अथाªत रावण। महावीर महान वीर ह§ हो अथाªत हनुमानजी। लंबोदर लंबा है उदर िजसका अथाªत गणेश जी। गजानन गज के समान मुखवाला अथाªत् गणेश जी। घनÔयाम घन के समान Ôयाम है जो अथाªत् कृÕण पंकज पंक (कìचड़) म¤ पैदा होनेवाला अथाªत कमल। ÿधानमंýी मंिýयŌ म¤ ÿधान है जो अथाªत् पद–िवशेष। कुłप असुंदर łप वाला अथाªत् Óयिĉ–िवशेष। अÐपबुिĦ अÐप है बुिĦ िजसकì अथाªत् Óयिĉ–िवशेष। ितरंगा तीन रंगŌ वाला अथाªत भारत का राÕůÅवज। चतुभुªज सुंदर केश (िकरण¤) ह§ िजसके अथाªत् चाँद ११.४ िविभÆन समासŌ म¤ अंतर कुछ शÊद कई बार दो–दो समासŌ के अÆतगªत आते है, इसका मु´य कारण है िक हम संिध
िवúह करते समय िकस बात का Åयान रखते ह§। इस तरह कì समÖया बहòāीिह तथा
कमªधारय या िĬगु समास म¤ होता ह§।
१) कमªधारय और बहòāीिह समास म¤ अंतर:
कमªधारय और बहòāीिह समास म¤ सूàम अंतर पाया जाता है। कमªधारय समास म¤ पूवªपद–
उ°रपद म¤ िवशेषण–िवशेÕय या उपमेय–उपमान का संबंध होता है, जबिक बहòāीिह समास
म¤ दोनŌ पद िमलकर िकसी तीसरे पद, िकसी सं²ा के िलए िवशेषण का कायª करता है।
जैसे:–
१) नीलकंठ: नीला है कंठ (कमªधारय)
नीला है कंठ, िजसका अथाªत् िशव (बहòāीिह)
२) पीतांबर: पीत के समान अंबर (कमªधारय)
पीत है अंबर िजसका अथाªत् ®ीकृÕण (बहòāीिह) munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
106 ३) मृगनयन: मृग के नयन के समान नयन (कमªधारय)
मृग के नयन के समान नयन है िजसके अथाªत् ľी–िवशेष (बहòāीिह)
२) िĬगु और बहòāीिह समास के अंतर:
कुछ शÊद बहòāीिह तथा िĬगु दोनŌ समासŌ के अंतगªत रखे जा सकते ह§। दोनŌ म¤ केवल अंतर
इतना है िक िĬगु समास का ÿथम पद सं´यावाचक िवशेषण होता है और शेष पद उसका
िवशेÕय जबिक बहòāीिह समास म¤ समÖत पद िकसी सं²ा के िलए िवशेषण का कायª करता है
जैसे:–
१) िýनेý: तीन नेýŌ का समूह (िĬगु समास) |
तीन है नेý िजसके अथाªत् िशव (बहòāीिह) |
२) ितरंगा: तीन रंगŌ का समाहार (िĬगु) |
तीन रंगŌ वाला अथाªत् भारत का राÕůÅवज (बहòāीिह) |
३) चारपाई: चार पायŌ का समूह (िĬगु) |
चार ह§ पाय िजसके अथाªत् चारपाई (बहòāीिह) |
११.५ संिध और समास म¤ अंतर संिध तथा समास देखने म¤ परÖपर िमली–जुली ÿिøया ही लगती है, परÆतु दोनŌ म¤ अÆतर
हम िनÌन ÿकार समझ सकते ह§: संिध समास १) संिध म¤ शÊदŌ के मेल होता है। १) समास म¤ पदŌ का मेल होता है। २) संिध का अथª जोड़ है। २) समास का अथª है संि±Į। ३) संिध दो शÊदŌ म¤ होती है। ३) समास दो या अिधक शÊदŌ का मेल होता है। ४) संिध तोड़ने को िव¸छेद कहा जाता ह§। ४) समास अलग करने को िवúह कहा जाता है। ५) दो िनरथªक शÊदŌ के वगª म¤ संिध हो सकती ह§। ५) समास केवल साथªक शÊदŌ म¤ ही हो सकता ह§। ६) संिध म¤ शÊदŌ के योग का मूल अथª पåरवितªत नहé होता। ६) जबिक समास म¤ मूल अथª सुरि±त रह भी सकता है और पåरवितªत भी हो सकता है। ७) संिध ÿिøया म¤ दो वगŎ म¤ िवकार ७) समास म¤ दो शÊदŌ के मÅय समास िचĹ (–munotes.in

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समास: अथª, Öवłप तथा ÿमुख ±ेý
107 उÂपÆन होता है। ) लुĮ हो जाता है। ८) संिध म¤ िजन शÊदŌ का योग होता है, उनका मूल अथª पåरवितªत नहé होता। जैसे–िवīालय म¤ िवīा और आलय दोनŌ शÊदŌ का मूल अथª सुरि±त ह§। ८) जबिक समास से बने शÊदŌ का मूल अथª सुरि±त रह भी सकता है (जैसे: देशभिĉ, सेना पित) और नहé भी (जैसे जलपान)। जलपान का अथª जल का पान नहé, अिपतु नाÔता है।
११.६ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ समास िकसे कहते है, उसका ÖवŁप तथा ÿ मुख भेदŌ का सामाÆय पåरचय
का अÅययन िकया ह§ | यहाँ पर ‘समास’ उस ÿिøया हो कहते है िजसम¤ दो या अिधक शÊद
िमलाकर उनके बीच के संबधसुचक आिद शÊदŌ का लोप करके नया शÊद बनाते ह§ | इसे
देखा गया ह§ |
११.७ दीघō°रीय ÿij ÿ.१ समास िकसे कहते ह§? समास के िकतने भेद ह§? उदाहरण सिहत िलिखए।
ÿ.२ समास िकसे कहते ह§। समास िवúह से ³या समझते ह§ | उदाहरण देते हòए िलिखए।
Ĭवीगु तथा बहòāीिह समास म¤ अंतर को उदाहरण सिहत िलिखए।
ÿ.३ समास से आप ³या समझते है? कमªधारण और बहòāीिह समास म¤ उदाहरण सिहत
अंतर समझाए।
ÿ.४ समास तथा संिध म¤ अंतर ÖपĶ कìिजए।
११.८ वÖतुिनķ ÿij ÿ.१ दो शÊदŌ के सं±ेपण ÿिøया ³या कहलाती है?
उ. समास।
ÿ.२ समास रचना म¤ िकतने पद होते ह§?
उ. दो पद होते ह§।
ÿ.३ दोनŌ पदŌ से बने नए शÊद को ³या कहते ह§?
उ. समÖत पद कहते ह§।
ÿ.४ समÖत के सभी पद को अलग–अलग करने कì ÿिøया को ³या कहते ह§?
उ. समास िवúह कहते ह§। munotes.in

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भाषा िव²ान : िहंदी भाषा और Óयाकरण
108 ÿ.५ समास के िकतने भेद होते ह§?
उ. छः भेद।
ÿ.६ जहाँ िनषेध के अथª म¤ ‘न’, ‘अ’, या अन का ÿयोग होता है, उसे ³या कहते है?
उ. नý समास कहते ह§।
ÿ.७ िजस शÊद का पहला पद सं´यावाचक िवशेषण होता है, उसे कौन सा समास कहते
ह§?
उ. िĬगु समास (िĬग समास) |
ÿ.८ िजस समÖतपद म¤ दोनŌ पद ÿधान हŌ और िवúह करते समय पदŌ के बीच ‘और’, या
का ÿयोग होता है, कौन सा समास कहलाता है?
उ. ĬंĬ समास |
ÿ.९ िकस समास म¤ कोई पद ÿधान नहé होते ह§?
उ. बहòāीिह समास |
ÿ.१० िकस समास म¤ समÖत पद अÓयय कì भाँित काम करता है?
उ. अÓययी भाव समास ।
११.९ संदभª पुÖतक¤ १) िहंदी भाषा कì रचना – डॉ. भोलानाथ ितवारी
२) िहंदी Óयाकरण – कामता ÿसाद गुŁ
३) िहंदी Óयाकरण ÿकाश – डॉ. मह¤þ कुमार राना
४) Óयाकरण दिशªका – डॉ. मनीषा शमाª
५) िहंदी Óयाकरण एवं रचना – शिश शमाª

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