MA-HINDI-III-PAPER-12.3-munotes

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सत नामद ेव
इकाई क पर ेखा
इकाई का उ ेश
१.0 तावना
१.१ सत नामद ेव का यिव
१.१.१ सत नामद ेव क जमितथी
१.१.२ सत नामद ेव का जम थान
१.१.३ सत नामद ेव के माता-िपता एव ं परवार
१.१.४ सत नामद ेव क जाित तथा यवसाय
१.१.५ सत नामद ेव का बाय काल
१.१.६ सत नामद ेव के गु
१.१.७ सत नामद ेव क यााए ँ
१.१.८ सत नामद ेव क समािध
१.२ सत नामद ेव क रचनाए ँ
१.३ सारांश
१.४ दीघरी
१.५ लघुरीय
१.६ सदभ थ
इकाई का उेय
इस इकाई के अतग त सिमिलत क गई िवषय वतु के अययन से अययन कता को
िननिलिखत जमकारया ँ देने का उेय िनिहत ह|
अ) सत नामदेव के यिव क जानकारी देना |
आ) सत नामदेव क रचनाओ ं से परचय करना |
१.0 तावना
हमारा भारत देश संतो एवं भ क भूिम रहा ह | मयकाली न अिधकतर संतो, भ या
सािहयाकार के सबध म हमारी जानकारी अयत सीिमत ह | इसके मूल म कई कारण
बताये जाते ह | एक तो इनका वैरायभाव , या सांसारक उदािसनता , िवनता से उपजा munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
2 आमाघा का अभाव तकालीन िशाचार का अंग था | फलत : ऐसी िथती म इन संतो
क जानकारी का मयािदत रहना वाभािवक ह | फलत : संतो क जीवनगाथा (चरत) के
परान का ोत लोकजीवन म चिलत जन ुितया और िकवद ितया ँ रही ह|
यही कारण है िक अिधकतर संतो के जम और मृयू के समय और थान सबधी
(ऐितहािसक और भौगोिलक अिनितता ा सूचनाओ ं क पूवाहदुिषतता या िनपता
वैािनक िनकष का अभाव , कापिनक अनुमान एवं सांदाियक तथा यिगत बल आिद
से सय का त-िवत पीकरण िमलता ह | ऐसा होते हए भी सत किवय के यिव
और कृितव के िवषय म कई िवान ारा शोधपरक एवं िवेषणामक ि से पया काय
हआ ह |
१.१ सत नामद ेव का यिव
जन ुितयाँ, िविभन िवान ारा हए शोध एवं िवेषणामक लेख के सहारे सत नामदेव
के यिव पर काश डाला जा सकता ह |
नामदेव के समका लीन संतो ने उनका जो परचय िदया ह | उनको कहाँ तक ा अथवा
अा समझा जाय यह भी एक समया ह | अत: नामदेव िवषयक उपलध सभी सामी
का अययन और िवेषणकर उनका जीवन चर तुत करने का हमारा िवन
यास ह |
१.१.१ सत नामद ेव क जम -ितथी
सत नामदेव के जमकाल के सबध म अनेक मत चिलत ह | कुछ लोग इनका जम
तेरह शतादी म मानते ह, तो कुछ लोग चौदहवी शतादी म | वयं नामदेव रिचत अभंग के
अनुसार इनका जम शके ११९२ काितक शुल प रिववार के िदन (२६ अूबर ई.स.
१२७० म) हआ था | इस मत का समथन डॉ. रानडे, ी. पांगावकर तथा डॉ. तुलपुले भी
करते ह | जो मराठी के िस िवान ह | िहंदी के िवान आ. रामचं शुल, िमब ंधु , डॉ.
िपतांबरद बडवाल , डॉ. िवनयमोहन शमा, डॉ. भगीरथ िम एवं डॉ. राजनारायण मौय,
डॉ. भाकर पंिडत, डॉ. श.के आडकर , भी नामदेव जम शके 1992 अथात ई.स. १२७०
वीकार करते ह| डॉ. मोहनिस ंह दीवान के अनुसार नामदेव का जमकाल सन १३९० ह |
डॉ. मोहनिस ंह, ो. वासुदेव बळवंत पटवध न आिद िवान ने भाषा के आधार पर नामदेव
का काल लगभग ई.स. १३७० से १४५० माना ह | गास द तासी ने नामदेव का जमकाल
सन १२७८ माना जो आधार हीन ह | पंजाबी परपरा म नामदेव के जमकाल क दो
ितिथया ँ दी ह – सन १३६३ एवं सन १३७० ह िजसका कोई ठोस आधार नह ह |
मराठी म सत नामदेव के चर से सबिधत सबसे सटीक ामािणक और तक संगत
रचना डॉ. शा. गो. तुलपूले क ह | इनक यह रचना पाँच सत किव नाम से कािशत ह,
िजसम े ानेर, नामदेव, एकनाथ , तुकाराम और रामदास के िवषय म िलखा गया ह |
िवान लेखक ने नामदेव के चर सबधी सभी वाद पर संेप म िवेषणामक िनणय
उपिथत िकया ह | यह िनणय ामािणक ंथ तक एवं संदभ पर आधारत ह | उहोन munotes.in

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सत नामद ेव
3 नामदेव क जमितथी सन १२७० ई वीकार क ह | जो लगभग सभी िवान ारा
वीकृत ह |
१.१.२ सत नामद ेव का जम -थान
जमकाल क ही तरह नामद ेव के जमथान क े सबध म भी िवान म एकमत नही ह |
नामदेव के जमथान क े सबध म जो मत चिलत ह वो इस कार ह –
अ) िहदी म नामदेव का सवथम चर िलखन ेवाले परचयकार अनंतदास ने अपने
िस थ म ी. नामदेव का जमथान पंढरपुर माना ह | मराठी भ िवजय के लेखक
मिहपित ने प प से पंढरपूर का नाम नही िदया ह | परंतु प म िलखा है क चभागा
नदी म नान कर दामास ेठ और गोणाई पंढरी क पुजा करने जाते थे | इससे यह प होता
ह िक वे पंढरपूर म ही रहते थे |
आ) नामदेव ने वयं अपने एक अभंग म अपने िपता को नरसी बामनी गाँव का दज
बतलाया ह| पर यह नरसी बामनी गाँव महारा म कहाँ ह इस पर िवान म मतैय नह
ह | डॉ. भ. आरकार नरसी बामनी गाँव कोसातारा िजले म कराड के समीप िथत बतलात े
ह जो अब भये नरिसंगपूर या कोले नरिसंगपूर के नाम से जाना जाता ह | मराठी के कुछ
िवान ी. माधवराव अपाजी मुले पांडुरंग शमा तथा िहदी के लगभग सभी लेखक – आ.
रामचं शुल डॉ,रामकुमार वमा, आचाय िवनयमोहन शमा, ी. परशुराम चतुवदी, डॉ.
भगीरथ िम एवं राजनाराय ण मौय आिद तथा अंेजी िवान ी. मेकॉिलक भी इसी मत से
सहमत ह | पंजाबी परंपरा म भी यही जमथान चिलत ह |
इ) मराठी के अिधकतर िवान नरसी बामनी गाँव मराठवाडा के परभणी िजले म ह |
ई.स.१९२६ तक नरसी बामनी सातारा िजले म माना जाता था | १९२६ ई.म. भारत
इितहास संशोधन मंडल पिका म ी केशव राम कोरटकर का लेख छपा उसम नरसी
बामनी परभणी म ह तब से लगभग सभी िवान परभणी के नरसी बामनी को नामदेव का
जमथान मानते ह | ी. ज.र.आजगावकर , ी. पारगावकर , ी. भावे तथा ी तुलपुले
आिद िवान इसी मत को मानते ह |
ई) डॉ.भगीरथ िम जी ने पत : िलखा है िक नामदेव का जम कराड के नरसी बामणी
गाँव म हआ था उनके जम के कुछ ही िदन पात उनके माँ-बाप पंढरपूर जाकर रहने लगे
थे | डॉ. आनद काश दीित भी नरसी बामणी गाँव को कराड के पास मानने के प म ह|
वे पत : िलखत े ह- य तो कराड के पास नरसी बामणी म उनके पूवज क समािध भी ह
और इससे उनका मूलथान वहाँ अिधक िस हो सकता है | अत: इससे िनित होता है
िक नामदेव का जम कराड के नरसी बामणी गाँव म ही हआ था और कुछ ही िदन पात
उनके माँ-बाप पंढरपूर जा कर रहने लगे थे |
१.१.३ सत नामद ेव के माता -िपता एव ं परवार
१) िहदी मराठी तथा अंेजी के लगभग सभी िवान यही मानत े ह िक नामदेव क माता
का नाम गौणाई और िपता का नाम दामा सेठ था | पंजाबी परपरा के अनुसार भी नामदेव
के माता-िपता यही ह | जनाबाई के अभंग म यह प उलेख ह िक गौणाई और दामास ेठ ने munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
4 एक पु के िलये भू से याचना क तदनंतर उनक ाथना फलवती हई और नामदेव का
जम हआ | नामदेव को एक बहन भी थी िजसका नाम आऊबाई था | नामदेव का िववाह नौ
वष क अवथा म राजाई नामक ी से हआ था | नामदेव के चार पु और एक पुी थी |
जनाबाई के अनुसार नामदेव के परवार म कुल पंह सदय थे –
१ ) दामा सेठ - नामदेव के िपता
२ ) गोणाई - नामदेव क माता
३ ) आऊताई - नामदेव क बहन
४ ) नामदेव - दामा सेठ एवं गोणाई का बेटा
५ ) राजाई - नामदेव क पनी
६ ) नारा - नामदेव का ये पु
७ ) लाडाई - नारा क पनी
८ ) िवठा - नामदेव का दूसरा पु
९ ) गोड़ाई - िवठा क पनी
१० ) गदा - नामदेव का ितसरा बेटा
११) येसाई (िवसाई ) - गदा क पनी
१२) महादा - नामदेव का चौथा बेटा
१३) साखराई – महादा क पनी
१४) िलबाई - नामदेव क बेटी
१५) जनाबाई – नामदेव के घर क दासी
१.१.४ सत नामद ेव क जाित तथा यवसाय
ाचीन वण यवथा के अतग त हर एक यि का यवसाय उसक जाित पर ही िनभर
होता था | नामदेव के माता - िपता कपडे बेचने का यापार करते थे | ारभ म वे कपडे
सीते थे अथात दज का काम करते थे | इसीिलए वे दज (िशंपी) कहे जाते थे | मराठी
अभंगो और िहदी पद म कई थान पर उहन े अपनी जाित तथा यवसाय का वणन भी
िकया ह |
'िशिपयाच े कुली जम मज झाला|' अथात दज के कुल म मेरा जम हआ | ारभ म इनके
माँ-बाप इहे घर के यवसाय म लगाना चाहते थे पर नामदेव का मन नह लगा | माता
गोणाई को आपि थी िक नामदेव अपने पैतृक यवसाय क ओर यान नही देता –
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सत नामद ेव
5 “िशवया िटपया वां घातल े पाणी|
न पाहसी परतोिन घराकड े||”
उहन े िवल के सम आकर कई बार नामदेव क िशकायत े क पर िवल के रंग म रंगा
हआ नामदेव का मन संसार म नह रमा | वे िवल के सम करताल बजाकर नाचत े हए
अभंग गाते थे –
“मन मेरे गजू िजहा म ेरी काती |
मिप मिप काटअ जम क फाँसी||”
अथात मेरा मन गज ह और िजहा क ची| दोन क सहायता स े म यम का बधन काटता ह ँ|
१.१.५ सत नामद ेव का बाय काल –
सत नामद ेव क बायावथा क े सबध म अनेक चमकारक तथा असाधारण घटनाए ँ
िस ह | कोई उह उव का अवतार मानता ह , कोई िव भगवान का और कोई
सतक ुमार का | नामदेव जब दो वष के हए तभी उनक े मुख से िवल का नाम बार बार
उचारत होने लगा | पाँच वष क अवथा म दामा सेठ ने नामद ेव को िवालय म िव
करा िदया | पर वहा ँ िलखन े पढने के बदल े वे ‘ी िवल ी िव ल’ करते रहे| सात वष क
अवथा स े ही व े पथर क े टुकड क म ंजीरा बना कर उस े बजान े और िवल का भजन
करने लगे | कभी कभी ी प ंढरीनाथ िवल वय ं नामद ेव के साथ भजन करत े थे | कहा
जाता ह िक नामदेव ने अपन े हाथ स े िवल को द ूध िपलाया था और न ैवे (भोग) िखलाया
था | तब नामद ेव क आय ु आठ व ष क थी | नौ वष क अवथा म नामद ेव का िववाह
राजाई नामक लडक स े हआ था , िकतु नामद ेव का मन ग ृहथी क े काय म िबलक ुल नह
लगता था | वे रात िदन िवल मूित के सामन े भजन करत े थे | उह भावव ेश म जाने और
नाचने म अुत आनद ा होता था |
१.१.६ सत नामद ेव के गु
नामदेव के गु कौन थ े एस सबध म भी िवान म मतभ ेद ह | इनके गु के प म तीन
यिय का उल ेख िमलता ह | सत ान ेर, िवसोबा ख ेचर और सोपानद ेव | यह िनण य
लेने से पूव क स त नामद ेव क वातिवक ग ु इनम े से कौन ह यहाँ उनक े गु करन े के
सबध म िस घटना का उल ेख करना आवयक ह | ानेर और उनक े भाई बहन
नामदेव क भि क े िवषय म सून चुके थे | और ान ेर क कत भी नामद ेव के कानो तक
पहँची थी | एक बार आल ंदी म नामद ेव क ान ेर तथा उनक े भाई बहन स े भेट हई |
पंढरी म भावूक भ नामद ेव को द ेखकर ान ेर और िनव ृिनाथ उनक े चरण पर िगर
पडे, लेिकन नामद ेव भि के अहंकार म वैसे ही खड े रहे | उहोन े उनक व ंदना भी नह क |
यह बात म ुाई क े यान म आई| मुाबाई प वा थी | उहोन े कहा नामद ेव तुझे िवल
का समोच अख ंड प स े ा ह , परह क े साथ त ु खेल खेलता ह , पर तेरा अिभमान
नह गया , ान क आ ँख नह ख ुली | “तद नंतर’ सतो म ये गोरोबा काका को कहा –
“काका! जरा इनक परीा करो क यह घ डा कचा ह या पका |” गोरोबा न े अपने दुलार munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
6 से नामद ेव के िसर पर हाथ फ ेर कर कहा – “यह कचा घडा ह | िनगुरा कही पका हो
सकता ह |” यह स ुनकर नामद ेव को बहत ला िन हई और व े तुरंत पंढरपूर चल े गये |
इस स ंग से नामद ेव के दय को बहत बडा आघात हआ | उनके मन म गु करण े क
भावना ढ हो गई | वे गु क खोज म िनकाल पड े | अवंढा नागनाथ क े मंिदर म इनक भ ेट
िवसोबा ख ेचर स े हई| िवसोबा ख ेचर वहा ँ िशविल ंग के ऊपर अपना क ुयु पैर रखकर ल ेटे
हए थ े| यह द ेखकर नामद ेव को बहत ोध हआ और उसन े िवसोबा स े कहा – ‘मूख! तु
िशवजी क े ऊपर अपना पैर रखकर सो रहा ह ?” िवसोबा ख ेचर ने कहा – “भाई मै तो बीमार
हँ| मेरे पैर को उठाकर जरा वहा ँ पर रख दो , जहाँ िशविल ंग नह ह |” नामदेव ने उनका प ैर
उठाकर द ुसरी तरफ िदया ल ेकन नामद ेव को यह द ेखकर बडा आय हआ क वहा ँ भी
उनके पैर के नीचे िशविल ंग ह| इस कार जहा ँ जहाँ नामद ेव उनका प ैर रखत े वहाँ-वहाँ
िशविल ंग रहता | यह चमकार द ेखकर नामद ेव ने िवसोबा ख ेचर के पैर पर िगरकर मा
माँगी और उह अपना ग ु बनाया | अत: इस घटना स े प ह क िवसोबा ख ेचर ही
नामदेव के गु थे|
कुछ लोग सत ान ेर को नामद ेव का ग ु कहत े ह, यिक सत नामद ेव ने ानेर का
नाम बडी ा क े साथ िलया ह | परतु ानेर इनक े दीा ग ु नही थे | यह बात अवय
ह िक ानेर के सपक से नामद ेव म बहत बडा परवत न हआ था | अत: जीवन म इतना
बडा ा ंितकारी परवत न कर ने वाले सत ान ेर को यिद नामद ेव ने गु क भा ँित ही
ा दान क हो तो यह कोई अवाभािवक बात नह ह |
नामदेव क समसामाियक कवियी सत जनाबाई एक थान पर सोपान द ेव का नामद ेव के
गु होने का उल ेख िकया ह | पर यह क ेवल जनाबाई क ा क वाणी ह , इसमे तय
नह ह | अत: नामदेव के दीा ग ु िवसोबा ख ेचर ही थ े, इसमे कोई सद ेह नह ह |
१.१.७ सत नामद ेव क यााए ँ
एक िवल भि क े प म नामद ेव िक कित दुर तक फ ैली हई थी | उनका यश एव ं कित
सुनकर आल ंदीके ानेर उनक े पास आय े और याा पर चलन े का उनस े अनुरोध िकया |
नामदेव पंढरपूर छोडना नह चाहत े थे िकत ु सत ान ेर के सहवास का लाभ उठान े के
िलये वे उनके साथ जान े के िलये तैयार हए | उहोन े सत ान ेर के साथ उर भारत क े
तीथ थान क याा क | यह उनक पहली याा थी , िजसका बडा ही दयाही वण न
सत नामद ेव ने अपन े ‘तीथवली क े अभंगो म िकया ह |
इस याा स े लौटकर आन े के पात सत ान ेर न े ई.स.१२६९ म (शके १२१८ )
आलंदी म समािध ले ली | अपने गु तुय परम िम क े िवयोग का नामद ेव को अपार द ु:ख
हआ| वे पंढरपूर म गये लेिकन उनका मन प ंढरपूर से कुछ उचट सा गया | वे अकेले ही
पंढरपूर से िनकल े और घ ुमते घुमते पंजाब पह ँचे यह उनक द ुसरी याा थी | पंजाब क े
गुदास पुर िजल े के भटकल गाँव म एक तालाब क े िकनार े वे रहने लगे | उनके िशय लाधा
और जला न े वही इनस े दीा ली | भटकल का वह तालाब आज भी नािमयाना नाम स े
िस ह | कुछ िदनो क े पात व े एक रकाना थान पर चल े गये| और वही भजन कर ने munotes.in

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सत नामद ेव
7 लगे, िकतु वहाँ धीरे धीरे लोग आन े लगे | कुछ िदनो म वहाँ एक गा ँव बस गया जो घ ुमान
कहलाता ह | यही पर नामद ेव ने िहदी पद क रचना क ह |
१.१.८ सत नामद ेव क समािध
सवसाधारण मन ुय क तरह उमर प ुरी होन े पर वाभािवक री ित से नामद ेव क म ृयू हो
गयी थी , ऐसा िकसी नह कहा ह | नामदेव – भ का िवास ह िक िजस कार सत
ानेर ने समािध ली उसी कार नामद ेव भी समािधथ हए |
नामदेव क समािध को ल ेकर तीन थल का उल ेख िकया जाता ह – घुमान क समािध
नरसी क समािध और प ंढरपूर क समािध पंजाब क े घुमान म िथत नामद ेव क समािध क े
बारे म एक िविच कथा चिलत ह | नामदेव अपना भौितक शरीर घ ुमान म छोडकर स ुरत
वप प ंढरपूर चल े गये और वहा ँ समािधथ हए | घुमान क े मंिदर म उनके शरीर पर चादर
डाल दी गई थी | उहन े अपन े िशय स े कहा था क यह भ ेद िकसी को ात न हो | तीन
िदन क े पात िशय न े देखा िक वे पहल े ही कालवश हो गय े थे | उहन े उनक अ ंय
िया क और समािध भी बनवाई |
केशवराव कोरटकर नामद ेव क समािध नरसी म मानत े ह | नरसी मराठवाडा क े परभणी
िजले म ह | नरसी गा ँव से दो छला ंग क द ूरी पर कयाध नदी क े िकनार े नामद ेव क समािध
ह | वहाँ एक छोटा सा म ंिदर भी ह जहाँ फाग ुन व एकादशी (यारहव िदन) को मेला
लगता ह | लेिकन वय ं कोरटकर को अपनी जानकारी क े िवसनीय होन े म सदेह ह |
नामदेव के िशय परा भागवत क े एक अभ ंग के आधार पर सन १३५० ई.स. पंढरपूर म
ही नामद ेव क समािध ल ेने क बात प ु होती ह | अभंग इस कार ह –
‘आषाढ श ुल एकादशी | नामा िवनवी िवलासी |
आा हावी ही मजसी | समािध िवा ंित जागी ||’
ििसपल श ं. वा. दाडेकर के अनुसार नामद ेव क समािध प ंढरपूर म िवल क े महाार क े
पास ह | उहन े आषाढ व १३ शके १२७२ को समािध ली | नामदेव ने अपन े एक अभ ंग
म वयं को सीढी का पथर कहा ह | इस सीढी क े पथर को संतो के चरण का पश होने
सेव उनका उार होगा –
“नामा हण े आही पायरच े िचरे| सत पाय िहर े देती बरी | ी दावड ेकर का मत ह िक
नामदेव ने सपरवार समािध ली | उनक प ुवधू लाडाई गभ वती होन े के कारण मायक े गई
थी| वह अक ेली पीछ े रह गई |
नामदेव के समािध थान क े बारे म अपना िनकष देते हए, डॉ. भगीरथ िम न े िलखा ह -
‘उ थान (नरसी और प ंढरपूर) और घटनाओ ं म से िकसी एक हक को भी सय मानन े
के िलये ऐितहािसक माण नह ह | पर यह बात ठीक लगती ह िक उहन े समािध घ ुमान म
ली होगी | इसके िलये पहली बात यह ह िक महारा म सत नामद ेव के अंितम काल का
िववरण नह ा होता | दूसरी बात यह ह िक जब नामद ेव अपन े जीवन क े अंितम िदन म
लगभग वीस वष तक घ ुमान म रहे तो समािध ल ेने के िलये पंढरपूर म आये हो यह बात munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
8 संगत नह लगती | अिधक स ंभव ह िक नामदेव ने घुमान म ही समािध ली थी | उनका कोई
िशय अथी या फ ूल लेकर प ंढरपूर आया होगा और नामद ेव क भि क े अनुसार िवल
मिदर क े महाार पर रख िदया होगा | उस थान पर बाद म समािध बनाई गायी ह | हमे भी
डॉ. िम जी का िनकष समीचीन लगता ह |
१.२ सत नामद ेव क रचनाए ँ
सत नामद ेव अयत स ंवेदनशील दय ल ेकर इस स ंसार म अवतारत हए थ े | उहने
अपने जीवन म सौ करोड रचना करन े क िता क थी |
‘शत कोटी त ुझे करीन अभ ंग| हणे पांडुरंग ऐक नाया ||’
यह अितश योि जान पडती ह , पर िनय ही नामद ेव के अभंगो (पद) क संया पया रही
होगी ल ेिकन समय क े वाह म अिधकतर त ृ हो गयी होगी | इनके शत कोटी का अथ खर
माा म लेना ही समीचीत ह | आज नामद ेव के अभंगो के संह गाथा क े प म उपलध ह
िजनक स ंया कम ह | इनमे लगभग हजार पा ँच सौ अभ ंग इनक े नाम पर िमलती ह , परंतु ये
सभी अभ ंग सत नामद ेव ारा ही रिचत ह , इसमे िवानो को स देह ह | कुछ िवान का
मानना ह िक इन रचनाओ ं म से सात सौ अभ ंग ही ामािणक हग े शेष ि | डॉ.शं. गो.
तुलपुले ने कहा ह िक “नामदेव क गाथा म िवण ूदास नामा क े अभंगो क च ुर माा म
िमलावट हई ह | उनमे से नामद ेव के अभंगो को अलग करन े क कोई तरकब नही ह |” डॉ.
धमपाल म ेी न े गु ंथसािहबा (मुखबानी ) म ा स ंतो क वािनयो का वगकरण अपन े
शोध ंथ म त ुत िकया ह | िहदी सािहय का ब ृहत इितहास क े लेखक क े अनुसार “गु
थ साह ेब” म पद क ामािणकता ाचीनता क राशी स े अिधक ह | मराठी स ंह स े ा
िहदी पद को िमलकर और मराठी िहदी दोन स ंहो म से समान पद को िनकाल द ेने पर
नामदेव के संपूण िहदी पद क स ंया १२० होती ह |
डॉ. भगीरथ िम तथा डॉ . राजनारायण मौय ने नामद ेव के ा सभी िहदी रचनाओ ं का
एक स ंह ‘सत नामद ेव क िहदी पदावली ’ के नाम स े संपािदत कर सन १९६४ म पूना
िविवालय प ूना, से कािशत करवाया ह | िजसम े नामद ेव के २३० पद और १३
सािखय का समाव ेश ह| इस थ म नामद ेव क रचनाओ ं का उल ेख करत े हए बताया
गया ह िक नामदेव को िहदी पद बहत अिधक नह ह | गु ंथ सािहब म नामद ेव के नाम
पर संिहत ६१ पद ह| पर इनम े से सभी नामद ेव के नह ह | िविभन हतिलिखत ितय
म ा क ुल २३४ के लगभग िहदी क े पद नामद ेव के नाम पर ह | जो एस स ंह म िदये गये
ह| इनमे से एक दो पद गोरखनाथ क े नाम पर िस ह | एक दो कबीर क े नाम पर और एक
दो अय स ंतो के नाम पर इन पद म से लगभग १७०-१७५ पद अवय ही नामद ेव के ह,
योिक उन पर प प स े मराठी क छाप ह |
डॉ. राजनारायण मौय ने प िलखा ह िक, “मुझे िविभन कािशत और हतिलिखत
ितय स े कुल ३०० पद नामद ेव के ा हए ह |
उधर क ृ.गो.वानख ेडे गुजी न े नामद ेव क उपलध सभी िहदी रचनाओ ं का स ंह सा
नामदेव शीष क से काशन िवभाग नई िदली स े सन १९७० म कािशत िकया ह , िजसन े munotes.in

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सत नामद ेव
9 नामदेव के ३०१ पद एवं १५ साशी (दोहा) का समाव ेश ह | इन िहदी पद म सा नामद ेव
सवामबाह और अ ैत दोह क े अनुसार िवचार रखत े हए जान पडत े ह और उनक भि
का वप भी श ु िनग ुण भि का ात होता ह |
१.३ सारांश
महारा क े ही नही बिक अिखल भारतीय सा परपरा म नामद ेव का थान अितिविश
एवं अयत साधारण ह | वे मानवताबाह क े महान चारक थ े िजहन े जनमानस क े
संहारक क महवप ूण भूिमका बडी इमानदारी स े िनभाई | ‘नाचू कतनाचे रंगी ानदीप लाव ू
जागी अथा त कत न के मायम स े जग म ान दीपक विलत करन े का काय नामद ेव ने
िकया| अती उकटता , भाववेश तथा तमयता का चरमोकष नामद ेव के कतन क म ुख
िवशेषताएँ थी | िकवदंती ह िक नामदेव के कतन क माध ुय शि स े वयं िवल भी इनक े
साथ न ृय करत े थे | नामदेव के कतन म इतनी सामय थी िक उहन े औंढा के नागनाथ
मिदर को अपनी और घुमाया था –
‘देवल क े पीछे नाया अलक प ुसारे |
िजदरिजदर नामा उदर द ेऊळहीिफर े ||
भारतीय समाज म नह उजा तथा च ेतना वािहत करण े का काय नामद ेव ने िकया |
१.४ दीघरी
१. सत नामद ेव के यिव ए वं कृितव पर काश डालीए |
१.५ लघुरी
१) सत नामद ेव का जम कब हआ था ?
२) सत नामद ेव का जमथल कहा ँ ह ?
३) सत नामद ेव क माता का नाम या था ?
४) सत नामद ेव के िपता का नाम या था ?
५) सत नामद ेव क पनी का नाम या था ?
६) सत नामद ेव के गु का नाम या था ?
७) नामदेव ने अपन े िहंदी पढो क रचना कहा ँ क ?
८) नामदेव ने िकतन े अभंग रचन े क िता क थी ?
९) गु थ सािह ब म नामद ेव के िकतन े िहदी पद सिमिलत ह?
१०) सत नामद ेव क िहदी प दावली म िकतन े पद का समाव ेश ह?
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मराठी संत का िहंदी काय
10 १.६ सदभ थ
१) सत नामद ेव क िह ंदी पदावली, सं. भगीरथ िम राजनारायण मौय , पुजा
िविवालय , पुजा, १९८४
२) सत नामद ेव, कृ. गो. वानख ेडे गुजी काशन िवभाग , नई िदली , ी. सं. १९८३
३) िहंदी िनग ुण काय का ारभ और नामद ेव क िहदी किवता डॉ . श.के.आडकर
४) िहदी क े महली स ंतो क देन, िवनयमोहन शमा , िवहार , राभाषा परषद , पटना-३
माच, १९५७ .
५) पांच सत कवी डॉ . श.को.तुलपुले, हीनस काशन , पुणे, सन १९६२ .
६) िहदी और मराठी का िनग ुण सत काय , भाकर माचवे चौखंबा िवा भवन
वाराणसी स ं. १९६२ ई.
७) िहदी सािहय म ित िबिबत िच तन वाह , डॉ.गोगावकर , डॉ.कुलकण .
८) उतरी भारत क सत परपरा , परशुराम, चतुवदी, लोकभारती काशन , यागराज ,
पुनमुण – २०२०
९) सत काय प ं. परशुराम चत ुवदी, िकताब म हंत, इलाहाबाद , पेपर बँक सं. २०१७
१०) सत नामद ेव और िह ंदी पद सािहय डॉ . रामचं िम , शैले सािहय सदन ,
फाखाबाद (उ..) सं. १९६९ ई.
११) िहंदी सािहय का आलोचनामक इितहास , डॉ. रामकुमार वमा लोकभारती काशन ,
इलाहाबाद -१ आठवा स ंकरण २०१०
१२) सत नामद ेवांची साथ िहंदी पद े , माधव गोिवद बारटक े, ी नामद ेव अभ ंग,
काशन सिमती , पुण सन १९६८
१३) मराठी स ंतो क िहदी वाणी स े आनदकाश दीित , पंचशील काशन , जयपूर,
०३, .सं. १९८३ .
१४) महारा क े संतो का िहदी काय भाकर सदािशव प ंिडत, उर द ेश संथान ,
लखनऊ , .सं.१९९१ .
 munotes.in

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11 २
वारकरी सदाय : अवधारणा एव ं वप
इकाई क पर ेखा
इकाई का उ ेय
२.० तावना
२.१ वारकरी सदाय क अवधारणा
२.१.१ वारकरी सदाय का अथ
२.१.२ िवल भि क परपरा
२.२ वारकरी सदाय का वप
२.२.१ वारकरय के आराय
२.२.२ सगुण िनग ुण उपासना का समवय
२.२.३ भि क धानता
२.२.४ तुलसी माला का महव
२.२.५ नाममरण तथा क कत न क महव
२.२.६ भि सदाय नह भि आदोलन
२.२.७ वारकरी सदाय का काय
२.३ सारांश
२.४ दीघरी
२.५ लघुरी
२.६ सदभ थ
इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अतग त सिमिलत िकए गए िवषय क े अययन स े अययन कता को
िननिलिखत जानकारी द ेने का उ ेय िनिहत ह |
अ) वारकरी सदाय का अथ एवं अवधारणा क जानकारी
आ) वारकरी सदाय क े वप स े परचय कराना |
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मराठी संत का िहंदी काय
12 २.० तावना
सामायत : जनता म संसारकता स े िवर परमतवाव ेषक को ‘सत’ कहने क
परपाटी ह | परतु िहदी सािहय क े इितहासकार म िनगुण होपासक को ‘सत’
और सग ुण होपासको को भ क े नाम स े अिभिहत िकया जाता ह ै | सगुण और िनग ुण
म िवभाजन र ेखा खच कर एक ‘भ’ और द ुसरे को ‘सत’ कहने से इितहास ल ेखन म
सुिवधा हो सकती ह | तय-हण म नह | मराठी सािहय म ‘सत’ शद यापक अथ म
यवत होता ह | वहाँ िवण ू के अवतार ‘राम’ के उपासक त ुलसीदास सत ह और ह
उपासना म ‘राम’ का नाममरण करन ेवाले िनगुिणया कबीर भी सत ह | वहाँ भ और
सत क े बीच कोई भ ेद नह माना गया ह |
महारा म समय समय पर िजन सदाय न े जनता को अिधक भािवत िकया व े पाँच
सदाय ह | नाथ सदाय , महानुभाव सदाय , द स दाय, वारकरी सदाय और
समथ सदाय | इनमे वारकरी सदाय का भाव सव यापक ह | इस सदाय न े
पूववत नाथ सदाय को अपन े म समािहत कर िलया और परवित य को इतना अिधक
भािवत िकया ह िक उनम तािवक भ ेद-ायः बहत ही कम रह गया ह |
२.१ वारकरी सदाय क अवधारणा
महारा ात म मुख पाँच सदाय मान े जाते ह | इनमे सवे वारकरी सदाय ह |
हजारो वष स े वािहत वारकरी ध ुरा िदन -ितिदन बल होती जा रही ह | इसे महारा
का भिधम कहता भी अन ुिचत न होगा | यह सदाय प ूण प स े वैिदक ह | पंढरपूर
को पिव थल म इस सदाय का ाद ुभाव हआ | यह यह पनपा और यह स े इनक
शाखाओ ं का प ूरे देश म िवतार हआ | महारा क े ाय: सभी मायवर सत इसी मत
मत के अनुयायी ह |
इस सदाय का उ दय कब हआ यह िनित प स े कहना किठन ह | इस िवषय ल ेकर
िवान म मतभ ेद ह | परतु सत ान ेर, नामदेव, तुकाराम आिद वारकरी स ंत क
उिय स े पता चलता ह िक ाचीन काल म महारा म पुंडिलक नामक एक भ (सन
११२८ ) महामा प ंढरपूर म तपया करत े थे | उनक भि स े सन होकर जब भगवान
ीकृण बालक का मनोरथ प धारण कर उनक े सामन े गये तब प ुंडिलक न े उनके बैठने
के िलये सामन े पडी ईट रख दी | उसी ईट पर भगवान ीक ृण खड़ े हो गय े | वारकरी
सदाय क े अनुयाियय का िवास ह िक भगवान ीक ृण इसी प म मूितमान हो गय े |
जो आज भी प ंढरपूर म िवमान ह | अत: यह वीकार िकया जाता ह िक पंढरपूर
िनवासी भगवान िवल क े अिवभा व का सबध भ प ुंडिलक स े मानत े ह |
२.१.१ वारकरी सदाय का अथ
‘वारी’ का अथ ह याा और करी का अथ ह करनेवाला | जो याा करता ह वह वारकरी
कहलाता ह | धािमक ि स े उसे वारकरी कहा जाता ह , जो पंढरपूर िथत िवल क
मूित का उपासक ह और आषाढ तथा काित क शुल एकादशी को िनयिमत प स े munotes.in

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वारकरी सदाय : अवधारणा एव ं वप
13 पंढरपूर क याा करता ह एवं मूित के दशन का लाभ उठाता ह | पंढरपूर म ईट पर खड़ े
भगवान िवल क भय म ूित ह | पास क े मिदर म भगवान क धम पनी िमणी जी
क मूित ह| भगवान ीक ृण का बालप िवल माना ह | महारा क काशी , ी े
पंढरपूर म आषाढ और काित क को श ुल एकादशी को लाख वारकरी इका होकर
भगवन भजन म तलीन हो जात े ह | ितवष िनयमप ूवक पंढरपूर क याा करन ेवाला
वारकरी कहलाता ह | वारकरय क े उपाय ी प ंढरीनाथ , पांडुरंग, िवल ह | मिदर म
भगवान िवल अक ेले ही ईट पर खड े ह | धमपनी िमणी का मिद र अलग ह | इस
सदाय म उर भारत क तरह रािधकाजी का उतना महव नह ह , िजतना िमणी
जी का ह | महारा म वारकरी िनयिमत प स े आषाढी काित क क वारी तो करत े ही
ह, माघी और च ै क भी याा करत े ह | इनक यााओ ं के अितर हर मिहन े क
एकादशी को भी िवल दश न करन े पंढरपूर जात े ह | आजक ल कना टक ात स े भी
वारकरय क िद ंडीया (वारकरय का सम ूह) बड़ी मा म पंढरपूर आती ह | यहा िभन
िभन ात , जाितय एव ं धम क े भ अपनी जाित तथा धम का अिभमान छोडकर
िवल क े नामस ंकतन म तलीन हो जात े ह | इस सदाय म वारकरी पा ंडुरंग को िय
(तुलसी) क माला गल े म धारण करत े ह, इसीिलए यह माळकरी (गले म तुलसी क माला
पहनन े वाले ) सदाय भी कहलाता ह | इसमे भगवान को सव व अिप त िकया जाता
ह | इसीिलए इस े भागवत स दाय भी कहत े ह |
२.१.२ िवल भि क पर ंपरा
पंढरपूर (महारा ) म िवल -भि क ाचीन परपरा िवमान ह | कहते ह िक इसक े
आवत क भराज प ुंडिलक िवल क े अयत िय भ थ े | साथ ही अपन े माता -
िपता क े वो बड े सेवक थ े | उनक भि पर सन होकर वय ं भगवान उनस े िमलन े
पंढरपूर आए | पुंडिलक अपन े माता िपता क स ेवा म रत थ े, अत: माता िपता क स ेवा
पूण होने तक भगवान को खड़ा होन े के िलये ईट द े दी | भगवान कटी पर हाथ रखकर
ईट पर खड़ े हो गय े | पुंडिलक अपनी स ेवा पूण करके भगवान क े पास आ गये | उहोन े
भगवान क त ुित क | भगवान न े वर मा ँगने के िलये कहा | तब पुंडिलक न े वर मा ँगा िक
आप भ क े िलये इसी प म यह रिहए | तब स े िवल भगवान कटी पर हाथ रखकर
पंढरपूर म ईट पर खड े ह –
‘युगे अावीस िवट ेवरी उभा | कर किटवरी ठ ेवूिनया |
वारकरी सदाय म कतन के ारभ स ंगोपरात और अत म ‘पुंडिलक वर द े हर
िवल ’ क घोषणा क जाती ह ै िजसस े यह तीत होता ह ै िक प ुंडिलक को वर द ेनेवाले
हरी िवल ही ह जो िवण ू के कृणावतार का बालप ह |
िवल भि का सबध प ंढरपूर क िवल मूित से ह | अत: यह जान ल ेना जरी ह िक
यह प ंढरपूर म कहाँ से आयी | नामदेव ने वय ं वीकार िकया ह िक हमार े पहल े भी
अनेक भ हो गय े ह – ‘ पूव अनत झाल े | अतएव ानद ेव एवं नामद ेव से पूव यह
परपरा महारा म चिलत ह | कई थान प र इसे कनड स े आई हई कहा गया ह |
नामदेव कहत े ह क कानड़ा का िवल प ंढरपूर म ह – ‘कानड़ा राजा प ंढरीचा |’ munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
14 सत एकनाथ तलीन होकर गात े ह –
‘कानड़ा िवल , कानड़ा िवल ,
'कानड़ा िवल िवट ेवरी ||
कानड़ा िवल , कानड़ा बोल े,
कानड ्या िवल े, मन वेिधयल े |'
संत अयासक राजवाड े िवल को िवल स े उपन बतलात े ह | िवल का अथ होता ह
दूर | जो देवता द ूर रहता ह , वह ह िवल | इसका अथ यह हआ िक िवल - मत पंढरपूर
म दूर से लाया गया ह | डॉ. भंडारकर इसक य ुतपि िवण ू से मानत े ह | िवणू का
कानड़ा प िवी ह | अतएव ग . भंडारकर का यह मत समीचीन जान पड़ता ह िक िवल
कानड़ी ह |
िन:सदेह िवल का सार ान ेर के पूव भी या सादाियक मत क े अनुसार इस भि
के आ वत क पुंडिलक ह , परतु सच े अथ म इस िवल भि को अ पने अितीय
यिव स े सुगिठत तथा स ंगिठत प दान करन ेवाले ानेर महाराज ही ह | इस
भागवत धम के िवकास क े सबध म वयं तुकाराम न े कहा ह –
“संतकृपा झाली | इमारत फळा आली |
ानद ेवे रिचला पाया | उभारल े देवालया |
नामा तयाचा िक ंकर| तेणे केला हा िवतार |
जनाद न एकनाथ | खांब िदला भागवत |
तुका झालास े कळस | भजन करा सावकाश |”
अथात सतो क क ृपा से यह भागवत धम का भवन बना | ानद ेव ने नीव डालकर
मिदर बनाया | नामदेव ने उसका िवतार िकया | एकनाथ न े खब का आधार िदया
और त ुकाराम न े मिदर का कलश िबठाक र उस े पूणता दी|
२.२ वारकरी सदाय का वप
वारकरी सदाय क य ुतपि भागवत क े उपद ेश से होने के कारण वारकरी सदाय
भागवत धम का अन ुयायी कहलाता ह | ाणीमा म भगवान को द ेखना भागवत धम ह |
वारकरी सदाय क े आचाय न े भगवत ाि का सरल उपाय सग ुण प क भि
बताया ह | उहोन े भि क े नाना कार म नारायण तथा कत न को सबस े महवप ूण
और भावशाली माना ह | सत त ुकाराम जी का कहना ह ‘बीज आिण फल 'हर च े ते
नाम’ अथात हर का नाम ही बीज ह और हर का नाम ही फल ह | साधन और साय munotes.in

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वारकरी सदाय : अवधारणा एव ं वप
15 दोनो हर का नाम ह | सत ान ेर कहत े ह – “जे जे भेटे भूत| ते ते मािनज े भगव ंत|”
वारकरी सदाय क े वप को िननकार स े िवेिषत िकया जा सकता ह –
२.२.१ वारकरी सदाय क े आराय
वारकरय क े आराय द ेवता प ंढरपूर के िवल भगवा न ह | िवल क ृणप ह |
वारकरय म िवल अथा त कृण का बालप िय ह | िवल शद क य ुपि क े
सबध म िवान म एकमत नह ह | कुछ लोग इस े िवण ु का अप ंश प मानत े ह, तो
कुछ लोग िवण ुवाचक कनड प बतात े ह | पंढरपूर म िवल क म ूित कमर पर हाथ
धरे हए ईट पर खडी ह | िवल क ितमा हाथ म िवण ू च और कमल िलए हए ह |
वारकरी िवल को िवण ु का क ृणावतार मान कर प ूजते ह | ितमा क े मतक पर
‘िशविल ंग’ का िचह समझकर क ुछ लोग उस े शैव मत का तीक भी मानत े ह | यिद हम
णभर को यह भी मान ल े तो भी म ूित के मतक पर िशविल ंग ह, तब भी कोई आपि
नह होती ह | रामान ुजाचाय के िविश ्यैत मत क े चार स े दिण म वैणव और श ैव
म जो स ंघष आरभ हो गया था , वह ‘िवणू’ क िवल म ूित पर ‘िशव’ क थापना स े
समा हो गया होगा | वारकरी सतो न े िवण ू और िशव को एक कर जनता क े दय स े
सांदाियक कल ेश धोन े का िवन यास िकया ह |
िवल मिदर क े िनकट द ूसरे मिदर म िवल जी क धम पनी िमणी िवराजमान ह |
यान द ेने योय बात यह ह ै िक क ृण के साथ यहा ँ िमणी ह , राधा नह | वारकरी अपन े
आराय को माता क े प म भी मानत े ह| वे िवल को ‘िवठाई माऊली ’ कहकर भी
पुकारत े ह |
वारकरी सदाय क े अनुयायी राम और क ृण को अिभन मानत े ह | उनका म ं ह –
‘जय जय रामक ृण हर |’ यिप इस स दाय म गीता और भागवत का बड़ा आदर ह |
परतु रामायण क भी उप ेा नह क ह | सत एकनाथ न े भावाथ रामायण क रचना क
ह | िफर भी धानता क ृण प क ही िगोचर होती ह |
२.२.२ सगुण-िनगुण उपासना का समवय
वारकरी सदाय को भगवान क े दोन प सग ुण तथा िनग ुण माय ह | पूण सगुणोपासक
होने पर यह परमामा को यापक एव ं िनगुण िनराकार भी मानता ह | परमामा यापक
िनगुण िनराकार होत े हए भी सग ुण साकार ह यह इनक मायता ह | सत त ुकाराम कहत े
ह – ‘दोही िटपरी एकिच नाद |’ इस िनराकार ह क ाि का साधन सग ुणोपासना
नाममरण तथा भजन ह | वारकरी सतो न े ान तथा भि क े समवय का िवश ेष
आह रखा ह | एकनाथ महाराज न े भ तथा ान क े परपर सबध को बड े ही रोचक
उदाहरण ारा त ुत िकया ह | वे भि को म ूल, ान को फल तथा व ैराय को फ ूल
बतालात े ह | िबना फ ूल के फल उपन नह हो सकता और िबना म ूल के मल अस ंभव
ह, इसीकार िबना भि और व ैराय क े ान का उदय नह हो सकता | भि क े उदर स े
ही ान उपन होता ह | भि न े ही ान को उसका गौरव दान िकया ह | एकनाथ
महाराज कहत े ह – munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
16 ‘भि उदरी जमल े ान,
भित े ानासी िदधल े मिहमान |
भि त े मूळ, ान त े फळ|
वैराय क ेवल त ेथीचे फूल||’
२.२.३ भि क धानता
वारकरी सदाय अ ैतवादी होत े हए भी भि धान ह | वेदात स े सची भि का
ोत झरता ह | हर क यापकता सत त ुकाराम न े भी अन ुभव क ह | अपने एक अभ ंग
म वे कहत े ह –
‘िवी िव ंभर | बोले वेदांतीचे सार |’
अैतानुभूती क सबस े ऊँची चोटी ेम भि ह | सृि के ािणय म परमामा को
अनुभव करना भागवत धम ही ह | सत ान ेर कहत े ह – ‘जे जे भेटे भूत | ते ते मािनज े
भगवंत|’ भगवान ेमवप ह और ेम ही जगत और मानव जीवन का आधार ह |
परमामा यापक िनग ुण और िनराकार होत े हए भी सग ुण साकार प धारण करता ह ,
ऐसा सदाय का ढ िवास ह | इस सदाय म साधारण म ुमुुओं के िलये सगुण पूजा
या भि कही गयी ह और िसी क े िलये िनगुण भि का ावधान बताया गया ह |
भगवान क े ित प ूण अनुराग क े साथ उसक े नाम का कत न तथा भजन करना ही भि
का म ुय साधन ह | सत नामद ेव नाम स ंकतन तथा भजन का मह व बतात े हए
कहते ह –
‘अपने राम क ूँ भज ल ै आलसीया | राम िबना जय जाल िसया |’
२.२.४ तुलसी माला का महव
बालवप भगवान ीिवल अथा त पांडुरंग बहत िय ह | िवल क े भ वारकरी गल े
म तुलसी क माला धारण करत े ह,यह बहत स े सदा य म ह िकत ु बहत स े सदाय
के अनुयायी जप करन े के बाद उस े िनकाल कर भी रख द ेते ह | िकतु वारकरय म ऐसा
नह ह वे १०८ तुलसी(मिणय ) क माला पहनत े ह | माला क े बीच म मे मिण रहती
ह | एक बार माला धारण करन े पर वह अत समय तक गल े म रहती ह | िजस कार
योपवीत क े िबना ाहण क कपना असभव ह , उसी कार क ृण क िय त ुलसी
क माला धारण िकय े िबना क ृण भ वारकरी को सा अिस ह | तुलसी क माला का
इस सदाय म अयिधक महव ह | ीमागवत म परम ेर को सव व अिप त
करनेवाले भ को भागवत कहा गया ह | वारकरी ीिवल को सव व अप ण करता ह ,
अत: वह भागवत कहलाता ह | इसी कारण इस सदाय का द ुसरा नाम भागवत
सदाय भी ह |
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वारकरी सदाय : अवधारणा एव ं वप
17
२.२.५ नाममरण तथा कत न का महव
वारकरी सदाय प ूणतया व ैिदक ह | भि के नौ कार सदाय को माय ह , परतु
उन सब म नाममरण तथा कत न को अिधक महव िदया गया ह | िवल नाम का
उचारण , कठ म तुलसीमाला , एकादशी का त , ये तीन िनयम इस सदाय क े माय
िसांत ह | एकादशी का त रखकर भगवान का मरण तथा कत न करन े का िवधान
येक वारकरी को ह | वारकरी सदाय म गृहथाम छोड द ेने का आद ेश नह ह |
वारकरी अपन े व ण और आम क े अनुप काय करत े समय नाममरण करत े ह |
किलय ुग म यह सहज साधना मानी गई ह | यही कारण ह िक सतो क े नाम स ंकतन को
जीवन का य बना िलया था | सत नामद ेव ने नामसाधना को आधार महव िदया था |
वे कहत े ह – हर का नाम सार े संसार का नाम ह , मैने हरनाम पी नाव स े भवसागर को
पार िकया |’
“हर ना ँव एकल भ ुवन तत सारा |
हर नाव नामद ेव उतर े पारा ||”
यह हरीनाम किलय ुग म भवसागर को पार करने का सबस े बडा साधन ह –
“साचा त ुहारा ना ँव ह, झूठा सब स ंसार|
मनसा वाचा कम ना कली क ेवल नाव आधार ||”
वणयवथा और आमयवथा भि म बाधक नह ह | भि म वण तथा जाित क
उँच - नीच का भी महव नह ह | यहाँ आचरण क श ुता को अयिधक माना जाता ह |
सयभाषण करना , पर ी को मा ँ-बहन क े समान मानना , परधन क इछा न करना ,
मपान स े दूर रहना , परोपकार म रत रहना और म ृदू भाषण करना आिद िनयम इस
सदाय म आवयक माना गय े ह |
२.२.६ भि सदाय नह ‘भि आदोलन ’
वतुत: वारकरी पंथ को सदाय कहन े क अप ेा भि आदोलन कहना उिचत होगा |
िवल भि त ुलसी माला तथा प ंढरपूर क याा को छोडकर इसम और कोई
सांदाियकता नही ह | िवल को म ुखता द ेकर अय िकसी भी द ेवता क उपासना
वारकरी कर सकता ह | यह उदारता उस समवयामक ीकोन म ह, जो ानद ेव से
लेकर सभी म ुख वारकरी सतो म पायी जाती ह | इसे सभी म ुख वारकरी सतो न े
चारत िकया ह | िवणू के साथ िशव का समवय भि क े साथ ान का समवय
सगुण के साथ िनग ुण का समवय , वणाम क े साथ समता का समवय , वेद के साथ
भागवत भि का समवय करक े वारकरी आदोलन न े उस शि एव ं भाव का स ंचयन
िकया ह िक काल क े थपेडे सहकर भी शतादीय क े बाद आज भी यह सदाय
पलिवत ह और शन ै शनै िवकासमान भी ह | munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
18 वारकरी भि आदोलन को भारतीय भि क े िवकास म बीच क कडी के प म
वीकार करना चािहय े | इतना िनित ह क वारकरय को िवलभि न े भारतीय भि
भावना को एक नया प द ेने का सफल यास िकया ह | समवयामक ि को अपना
कर सार े भारतीय समाज म अयािमक च ेतना भरन े का काय , आदोलन क प ृ भूिम
बनाने का काय वारकरी भि -आदोलन न े िकया ह |
२.२.७ वारकरी सदाय का काय
वारकरी सदाय का काय तीन भाग म िवभािजत ह | थम सामािजक द ूसरा ह धािमक
और ितसरा ह सािहियक | सामािजक काय के बारे म वारकरी सदाय न े वैिदक
परपरा म कुछ सुधार करक े उसे भारतीय समाज म ढ करन े का काम िकया | वारकरी
सदाय क े सतो न े अपन े उदाहरण स े यह िस कर िदया िक ग ृहथी म रहते हए भी
पिव आचरण एव ं भि क े बल पर परमामा क ाि हो सकती ह | गृहथाम को
अिधक महव द ेने के कारण मानव जीव न सुखमय बना और समाज म िय का थान
भी महवप ूण माना गया | योग साधना अन ुान, ानाज न आिद साधन का महव कम
करके नामस ंकतन जैसे सवसुलभ साधन का महव बढ गया | ‘नाचू कतनाचे रंगी |
ानदीप लाव ू लावू जगी |’ क उोषणा स े सारा माहौल ग ुँजने लगा | दीन-हीन जाित क े
दुबल िहद ुओं का स ंगठन करक े उनम े ईर, धम, भाषा. संकृित आिद क े ित िना
पैदा करन े का महान काय वारकरी सदाय न े िकया | सदाचरण पर अयिधक जोर
देकर समाज म सुण का स ंवधन करन े का यास िकया | यि क ेता उसके
सदाचरण पर िनभ र होती ह , न िक उसक जाित पर इस िसा ंत को वारकरी प ंथ ने
यावहारक प िदया | ाहण सत हरजन सतो क े चरण छ ुते थे, उनके साथ
नामस ंकतन करन े म आनंदिवभोर होत े थे | वारकरी सतो न े इस तरह जाित िनरप े
एक नई जमात को ही जम िद या |
वारकरी सदाय म अनमोल सािहय क रचना करक े मराठी वाड ्मय क व ृि क ह |
यह सािहय क ेवल सामािजक ही नह बिक मानव जीवन क े िनय , नैितक, धािमक और
सामािजक म ुय स े ओतोत रहा ह | िजस समय इस सदाय का उदय हआ था , उस
समय साधारण जनता धम के ित उदासीन थी | उचवण के लोग सािहय रचना
देववाणी स ंकृत म करक े जनाभाषा को त ुछ समझत े थे | वारकरी सतो न े अ प न े
दयगत भाषा को य करन े के िलये यथा भि क े ार सभी क े िलये खोलकर लोक
भाषा को अपनाया | वारकरी सदाय क े सतो न े संकृत भाषा म काय स ृजन करन े
क ढी को तोडकर बहजन समाज क े लाभ क ि स े ओवी , अभंग, पद आिद छ ंदो म
मराठी तथा िहदी भाषा म (जनभाषा ) युर रचना क | इसी कारण यह सािहय अप
समय म अिधक लोकिय हआ | जनता म काय क े ित िच प ैदा हो गई | सत काय
महारा म जनता क े कंठ म गूँजने लगा | सामािजक उनित क े साथ आिमक उनित
करना भी इस सदाय का परम उ ेय था | सत सािहय न े परमाथ िवषयक ामक
कपना , ढी और अयाचार क ब ेड़ी आलोचना करक े शु सरल भि का माग
जनसामाय को बताया | यह सत सािहय िजतना यापक , शुद, सरल और सम ृ ह, munotes.in

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वारकरी सदाय : अवधारणा एव ं वप
19 उतना ही रसभरा भी | इस तरह महारा का यह वारकरी व ैणव सदाय िनता ंत
लोकस ंही और लोकोपकारी ह |
२.३ सारांश
िहदी सािहय क े भिकाल म महारा म िजस सदाय न े सवािधक लोकियता और
िता अिज त क वह वारकरी सदाय ह | यह सदाय व ैणव भि का प ुरकार
करता ह | भगवान क ृण के िवल प क उपासना वारकरय क े दय का हार ह |
महारा क े वारकरी सतो न े कृण के ाय: बाल और मया िदत प को अपनाया ह |
उहोन े उर क े भागवत सादायी भ क तरह क ृण का राधा और गोपी का
ृंगारमूलक भिरस का िवश ेष पान नह िकया | इसीिलए पंढरपूर म िवल (कृण) क
मूित के िनकट राधा रानी न होकर िमणी द ेवी ितिन ह | पंढरपूर िथत अपन े
उपाय द ैवत िवल क िनयिम त याा (वारी) करनेवाला वारकरी कहलाता ह | वारकरी
सदाय म जाित -पाित, ऊंच-नीच, धम सदाय आिद क े िलये कोई थान नह ह |
इस तरह िहदी सािहय को भािवत करन ेवाले मत क े प म तथा िहदी म भि
सािहय का िनमा ण करन ेवाले भि आदोलन क े प म महारा क े इस िवल भि
माग का महवप ूण थान ह |
२.४ दीघरी
अ) वारकरी सदाय क अवधारणा एव ं वप पर काश डािलय े |
आ) वारकरी सदाय क े वप को प करत े हए उसक े काय को िवशद िकिजय े |
२.५ लघुरी
1) भिकालीन िकस सदाय न े जनमानस को सवा िधक भािवत िकया ह ?
2) महारा म िकतन े मुख सदाय मान े जाते ह?
3) वारकरी सदाय का ाद ूभाव िकस थान स े माना जाता ह ?
4) िवल क े आिवभा व का सबध िकस भ ह ?
5) वारकरी का अथ या ह ?
6) िवल िकस भगवान का बालप ह ?
7) वारकरी कब लाख क स ंया म एकित होकर भगवदभजन म तलीन हो जात े
ह? वारकरय के उपाय कौन ह ?
8) वारकरी सदाय को भगवान क े कौन-से दो प माय ह ?
9) िवल भ वारकरी गल े म या पहनत े ह?
10) वारकरी सदाय का द ूसरा नाम या ह ? munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
20 11) वारकरी सदाय क े तीन सव माय िसा ंत कौन स े ह?
12) वारकरी सदाय क े अनुसार किलय ुग म भवसागर को पार करन े का सबस े बडा
साधन या ह ?
13) वारकरी सतो न े सािहय रचना क े िलये िकस भाषा का अपनाया ह ?
२.६ संदभ थ
1) सत नामद ेव क िहदी पदावली , सं. भगीरथ िम , राजनारायण मौय पूना
िविवालय प ूना, १९६४ .
2) िहदी को मराठी सतो क द ेन, िवनयमोहन शमा , िवरार राभाषा परषद , पटना
ड. माच, १९५७ .
3) िहदी िनग ुण काय का ारभ और नामद ेव क िहदी किवताडॉ . शां. के. आडकर ,
रचना काशन , इलाहाबाद -१, .सं. १९७२ .
4) उरी भारत क सत परपरा परश ुराम चत ुवदी, लोकमत काशन , यागराज , ग.
पुनमुण २०२० .
5) िहदी सािहय म ितिबिबत िचतन वाह , डॉ. गोगावकर , डॉ. कुलकण , फडके
काशन , कोहाप ूर, .स.१९७८ .
6) िहदी और मराठी का िनग ुण सत काय , डॉ. भाकर माचव े, चौखंबा िवाभवन ,
वाराणसी , सं. १९६२ ई.
7) सत नामद ेव और िहदी पद सािहय डॉ . रामच िम , शैले सािहय सदन ,
फखाबाद (३.५.) स. १९६९ ई.
8) सत काय प ं. परशुराम चत ुवदी िकताब महल , इलाहाबाद , सं. २०१७ .
9) ी सत नाम देवांची साथ िहदी पद , माधव गोिव ंद बारटक े, ी. नामदेव अभ ंग
काशन सिमती , पुणे. सन १९६८ .
10) पाच सत कवी , डॉ. श. गो. तुलपुले, हीनस काशन , पुणे, सन १९६२ .
11) महारा क े सतो का िहदी काय भाकर सदािशव प ंिडत, उर द ेश िहदी
संथान , लखनऊ , . सं. १९९१ .
12) मराठी सतो क िहदी वाणी , सं. आनदकाश दीित , पंचशील काशन जयप ूर,
०३, .सं. १९८३ .


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21 ३
सत नामद ेव क सामािजक च ेतना (समाज दश न)
इकाई क पर ेखा
३.० इकाई का उ ेय
३.१ तावना
३. २ सत नामद ेव क सामािजक च ेतना
३.२.१ मूित पूजा का िवरोध
३. २.२ बााचार एव ं िमयाड ंबर का िवरोध
३. २.३ एकेरवाद का ितपादन
३.२.४ कथनी तथा करनी म एकपता
३. २.५ भि और ऐिह क काय म एकता
३. २.६ ससंग क धानता
३. २.७ सतगु को महव
३. २.८ सहज अवथा पर िवास
३. ३ सारांश
३. ४ दीघरी
३. ५ लघुरी
३. ६ सदभ थ
३.० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अतग त सिमिलत क गई िवषयवत ू के अययन से अययनकता
िननिलिखत जानकारया ँ देने का उ ेय िनिहत ह –
अ) नामदेव सामािजक च ेतना का परचय कराना
आ) नामदेव के सामािजक दश न क जानकारी द ेना |
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मराठी संत का िहंदी काय
22 ३.१ तावना
सािहय और समाज का मानव जीवन क े साथ गहरा सबध होता ह | यिक मानव क
सोच, िवचार, िया - कलाप उसक िच ंतनशीलता आिद सभी समाज स े जडी होती ह और
समाज क सभी घटनाओ ं को सािहय कार अपन े सािहय क े मयम स े य करता ह |
सािहयकार ारा विण त कोई भी घटना अपनी घटना नह होती ह , अिपत ु उस घटना का
य या परो अन ुभव स े समाज से ही सबध होता ह | समाज स े अलग सािहय कार
का कोई अितव नह होता | इसीिलय े सािहयकार जीवन क े येक कदम पर समाज स े
भािवत होता रहता ह | सामािजक परिथतीया ँ ही सािहय कार क े यिव का िनमा ण
करती ह |
नामदेव के सम जीवन का उेय तकालीन समाज को जागृत कर उसका संवधन एवं
वधन करना रहा ह | संकतन के रंग म रंग कर ान दीपक से अील िव को दैिदयमान
करने का संकप करने वाले नामदेव केजीवन का अंितम लय समाज म उदामानवी
मुय क ितापना करना या उनक सम यिव परतकालीन महारा क
सामािजक , धािमक, राजनैितक, आिथक तथा सांकृितक परिथती का प भाव
िदखाई देता ह | नामदेव अयत संवेदनशील कृित के यि थे | अपने परवेश क
समयाओ ं से वे िवचिलत हो उठते थे | िवशेष प से धािमक कमकांड तथा सामािजक
िवसंगितय पर वे अपनी कड़ी आपि य करते थे | वणवादी यवथा के िशकार नामदेव
को शु के प म मािणत िकया गया था, उनके िलये यह अस था | उनक यह
सामािजक चेतना िवोह के प म य हई ह |
३. २ सत नामद ेव क सामािज क चेतना
नामदेव का समाज दश न यि एव ं समाज क े उकष के साथक यास क महवप ूण कड़ी
ह | उनके लोक -जागरण काय का पर े अय ंत यापक ह | समाज म या िवषमता ,
शोषण , ढी-परपराए ँ, अध िवास ी का सामािजक थान , अानता वश िन माण
हआ | सामािजक िवक ृितय क े िवरोध म नामद ेव ने जनमानस को जगाया | धम सुधार क े
प म धािमक ऐय का ितपादन करत े हए उहोन े धम के नाम पर हो रह े कमकांडो का
कड़ा िवरोध िकया | मानवधम का आह करत े हए धािम क शोषण का िनष ेध िकया | उहोन े
समाज म हए धन क े साथक योग का उपद ेश िदया | राजनैितक च ेतना क े अतग त नामद ेव
ने सदैव जनत ं का समथ न िकया | जाता ंिक जीवन म ुय का चार सार व े अजीवन
करते रहे |
३.२.१ मूित पूजा का िवरोध
नामदेव का सम सामािजक िचतन धम तथा धािम कता स े सबिधत रहा ह | ारभ म
नामदेव क िवचारधारा अयत स ंकण तथा स ंकुिचत थी | लेिकन जीवन क े अनुभव तथा
उनक ान क त ृणा स े नामद ेव का ीकोण अयत यापक हो गया | अयािमक
आलोचक क शदावली म वे िनगुण वादी हो गय े | नामदेव के समय म िहदू धम म
मूितपूजा का बोलबाला था | यिप ार ंभ म नामद ेव िवल म ूित के उपासक थ े, परतु बाद
म अपन े दीा ग ु िवसोबा ख ेचर स े िनगुण िनराकार ह का उपद ेश पाकर व े गदगद हो munotes.in

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सत नामद ेव क सामािजक च ेतना
(समाज दश न)
23 गये | उनक भि म जो आ भाव था | वह दूर हो गया | सत नामद ेव के िहदी पद म
उनका िनग ुण भि का प प िदखाई द ेता ह | अपने मराठी क े एक अभ ंग म मूित पुजा
का िवरोध करत े हए व े कहत े ह िक - पथर क म ूित अपन े भ क े साथ बात करती ह
ऐसा कहन े वाले तथा स ुननेवाले दोन भी म ूख ह – “पाषाणाचा द ेव बोला भात |
सांगते ऐकत े मूख दोघे ||”
नामदेव के अनुसार भ ैरव, भूत तथा शीतला क उपासना और प ुजा यथ ह | वे कहत े हिक–
“भैरवू भूत शीतला धाव ै | खर वाहन कह कर उडाव ै ||
हऊ तऊ एक रमईआ ल ेअऊ | आन द ेव तदलाविन द ेहऊ ||”
मूित पुजा का ख ंडन करत े हए सत नामदेव कहत े ह - एक पथर प ुजा जाता ह
और द ुसरा ठ ुकराया जाता ह | एक म देवव क अन ुभूती ह तो दुसरे म य नह ? –
“एकै पाथर कज ै भाउ | इजे पाथर धरए पाउ ||
जै ओह द ेउ ट ओह भी द ेखा | कर नाम द ेवू हम हर क स ेवा ||”
सत नामद ेव का यह तािक क मंयय सहज भि क मायता और आड ंबर पूण मूित पुजा
क यथ ता ितपािदत करता ह |
३.२.२ बााचार एव ं िमयाड ंबर का िवरोध –
ाय: सभी िनग ुणवादी सत किवय न े धािम क आडबर तथा कम कांडो पर करारा हार
िकया ह | डॉ. िशवकुमार िम क े अनुसार ‘िनगुण संतो’ ने सबस े कड़ी चोट िहद ू और
इलाम धम मत क े ाहाचार पर क उनक स ंकण तथा स ंकुिचत आथाओ ं पर क |
सत नामद ेव ने भी अपन े समय क े समाज म चिलत बााचार और िमयाडबर का घोर
िवरोध िकया ह | वे अपन े मन को स ंबोिधत करत े हए कहत े ह िक, हे मन ! अमध तुला
दान याग म संगम म नान , गंगा म िपंड दान आिद सभी बााचार एकिन भि क े सम
देय ह | हे मन ! तू सभी भ ेद का याग कर और िनरतर गोिवद का मरण कर त ु िनय ही
संसार सागर स े तर जाएगा | इसम सदेह नह |”
असुमध जग न े| तुला पुरख दान े| ाग एना न े|
तऊ न प ुजरी हर कत नामा ||
अतुने रामही भज र े मन आलिसआ |
िसमर िसमर गोिवद ू| भजू नामा तसिस भव िस ंध||
सत नामद ेव के मतान ुसार भगवान क प ूजा के िलये जल, पुप माला , नैवे, दूध आिद का
बध आडबर प ूण ह | भले ही पुजारी इह िवशु और पिव समझ े | कट, मर, आिद
के ारा य े पहल े ही ज ुठला िदय े गए ह ै |अतः यह पहल े ही अपिव और अश ु ह | िफर य े
पूजा क सामी क ैसे हो सकत े ह? munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
24 “आिणल े पुरप गुँिथले माला कल गोिवद ही हार रच ूँ|
पहली बा ंस जूँ भवरे लीनो , जुठिण म ैला काई क ँ||
आिणल ै तंदुल राँिधले पीरा बाल गोिवद ही भोग रच ूँ|
पहली द ूध जु बहन िबटाया ज ूणिण म ैला काई क ँ||”
करोड़ तीथ यााए ँ िपंड दान तथा अय सभी कार क े दान यथ ह |नामदेव का मानना ह
िक योग , य, तप, होम, नेम, त आ िद बााडबर िकसी काम क े नह ह | अपने लोग को
बोिधत करत े हए नामद ेव कहत े ह िक – हे भ त ुम मापारय को छोड िनय राम नाम
को लेते रहो|
‘भा कोई त ूलै हे राम नाय |
जोग िजग तय होय न ेम त ए सब कौन े काम||”
नामदेव के समय म धम के नाम बिल च ढ़ाने क परपरा थी | मूित पूजा और बिल चढान े क
था का ख ंडन करत े हए नामद ेव कहत े ह –
‘पाहन आग ै देव बाटीला | बाक ाण नहबाक प ूजा रिचला ||
िनरजीव आग े सरजीव मार ै| देषत जनम अपनौ राह ||”
३.२.३ एकेरवाद का ितपादन
िजन परिथतीय न े िनगुण पंथ को जम िदया , एकेरवाद उनक सबस े बड़ी आवयकता
थी | वेदात क े अैतवादी िसा ंतो को मानन े पर भी िहद ु बहदेववाद क े चकर म बूरी
तरह फ ँस गय े थे और एक ही अलाह को मानन ेवाले मुसलमान भी वय ं एक तरह स े
बहदेववादी ही थ े | ऐसी परिथतीय म िनगुणवादी संतो ने िहद ु और म ुसलमान को
एकेरवाद का सद ेश िदया तथा बहद ेववाद का िवरोध िकया |
वारकरी सदाय म एक द ेवोपासना का ही महव ह | सत नामद ेव ने बहदेववाद िवरोध
करते हए एक ेरवाद का ितपादन िकया ह | अपने ‘गोिवंद’ का परचय द ेते हए नामद ेव
कहते ह – “वह(ईर) एक और अनेक भी ह, वह यापक ह और पूरक भी ह | मै जहाँ देखता
हँ वहाँ पर िसफ वही िदखाई देता ह | माया क िच िविच बात ारा मुध होने के कारण
सभी कोई इस रहय को समझ नाही पाते | सव गोिवद ही गोिवद ह, उसके अितर
अय कोई भी नह ह | वह सदय मािनय के भीतर ओतोत धागे क भाँित इस िव म
सव िवमान ह | नामदेव का कहना ह िक इस बात को अपने दय म भिलभा ँित समझ लो
क मुरारी ही एकमा घटघट म और सव एक रसभाव से या ह |
“एक अन ेक ि यापक प ूरव जात द ेखऊ तत खोई ||
माया िच िविच िवमोिहत िबरला ब ूझै कोई||
सभु गोिवद ह सभु गोिवद ह गोिवद िबन ु नह कोई || munotes.in

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सत नामद ेव क सामािजक च ेतना
(समाज दश न)
25 सूत एक मिण सत सह ज ैसे उितपोती भ ु सोई||
जलतर ंग अ फ ेन बुुदा जलत े िभन न कोई ||
इह परप ंचू पारह क लीला िव चरत आन न होई ||
िमथीआ भरम ू अ स ुपनू मनोरथ सित पदारत ु जिनआ ||
मुि मनसा ग ु उपद ेसी जागत ही मन ू मािनआ ||
कहत नामद ेव हर सी रचना द ेखऊ रद ै िवचारी ||
पट पट अ ंतर सरब िनर ंतर क ेवल हक म ुरारी||
इसीिलय े उहन े उस एक ही देव अथात िवल क भि को ही अपनाया और अय दैवी
देवताओ ं क पूजा को यथ बतलाया | उनका कहना ह िकजो लोग भैरव का यान करते ह
वे ही हगे और जो शीलता का यान करते ह, गधा उनका वाहन होगा और वे िनरंतर धूल
उड़ाय गे | अब रहा मै | मै तो मा भगवान क भि करता हँ | भगवान क तुलना म अय
देवताओ ं क उपेा करताह ँ |
“भैरवू भूत सीतला धाव ै| खर वहन अह छार उडाव ै||
हक तक एक रमईया त ेअ| आन द ेव बदलाविन द ेह||
उस एक के ित अपनी अनय भावना कट करते हए सत नामदेव कहते ह िक “एक राम
क वदना करने पर मै और िकसी देवता क वदना नह कँगा | राम रसायन ाशन करने
के बाद मै िकसी अय देवता के सामन े नह िविधयाऊ ँगा | नामदेव कहते ह िक एकमा राम
मरे जीवन म रम हए है | अत: अय देवता मेरे िलये िकसी काम के नह है |
“राम ज ुहारी न और ज ुहारौ| जीविन जाई जनम कत हारौ
आन द ेव सौ दीन न भा ष| राम रसाइन रसना चाष ||
यावर ज ंगम कट पत ंगा| सय राम सब िहत क े संग||
भनत नामद ेव जीविन रामा ” आनद ेव फोकट व ेकामा||
३.२.४ कथनी तथा करनी म एकपता
सांसारक यािय क सामाय वृि होती है िक वे कहते कुछ और ह करते कुछ और है|
संतो के अनुसार मनुय को वैसा ही आचरण करना चािहय े जैसा वह कहते है | यही कारण
ह िक संतो के सािहय म िकसी भी कार क अितयोि क गध नह िमलती | यवहार
और आदश के साथ ही इन संतो ने िवचार और आचरण म भी सामंजय लाने पर जोर
िदया है | उहन े जो कुछ भी िलखा ह वह अपने अनुभव के आधार पर तथा अपने उपदेशो
पर आचरण करते हए िलखा है | सत नामदेव ने भी करनी के िबना कथनी का िवरोध िकया
है | उनके अनुसार भ और परमामा म कोई अंतर नही है | जो इस कार का अतर munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
26 मानता है वह नर पशु है | जो परमामा को छोडकर वेद िविध से काय करता है, वह जल
भुन कर मर जाता है | यि बाते तो बहत बढचढ कर कहता ह |
भगवंत भगता नह अ ंतरा|
ह कर जात े पशुवा नरा || टेक||
छांडी भागवत व ेद िविध कर ै|
दाझे भूजै जाम परै||१||
सथनी बदनी सब कोई कह |
करनी जन कोई िबरला रह ||२||
सत नामदेव के मतानुसार जब तक अतकरण शु नह है तब तक यान,जप आिद के
करने से या लाभ होगा ? जैसे - साँप कचुली छोड देता ह, परतु िवष नह छोडता |
‘काह कू कजै यान जपना | जो मन नाही स ुध अपना ||
साँप काँचली छा ंडै िवष नह छा ंडे| उिदफ म बह यान मा ंडे||
नाचन े गाने तथा िपस िपस कर चंदन लगान े से या लाभ होगा? यिद तुने वयं को ही नह
पहचाना तो तुझे समझना होगा िक म म पड़ा हआ तेरा मन चार ओर भटकता रहेगा –
‘का नाचीला का गाईला | का घािस घािस च ंदन लाईला ||
आपा पर नही चीिधला | तो िचत िचता र ै इीला ||
जब तक अत: करण शु न हो तबतक नहाने धोने से कुछ नह होगा | गले म तो तुलसी
क माला ह और अत: करण कोयल े सा काला ह, ऐसे बगुला भ क आलोचना करते हए
नामदेव कहते ह –
“हावै धोवे करै सनान | िहरदे आिचन माथ े लान||
गिल गिल िहर ै तुलसी क माला | अंतरगित कोई ला काला ||”
३.२.५ भि और ऐिहक काय म एकता -
वारकरी सदाय के सभी संतो ने भि और सांसारक काय को कभी अलग अलग नह
समझा | भि और जीिवका काय म कोई िवरोध नह माना यिक भि दय से होती है
और कम हाथो से इसीिलय े संतो ने कम और भि दोन को एक-दूसरे का पूरक माना है |
म से भि सहज होती ह और भि म म सहज हो जाता है | संतो ने नाममरण (भि)
और म (कम) का साथ योग िकया | इस कार नाममरण और कम का समवय िनगुण
सतकाय क अितीय िवशेषता मानी गयी है | कबीर भजन और बुनकरी का काम,
नामदेव भजन और दज का काम, रैदास भजन और मोची का काम, सेना भजन और नाई
का काम, गोरा भजन और कडे बनाने का काम साथ साथ करते थे | munotes.in

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सत नामद ेव क सामािजक च ेतना
(समाज दश न)
27 सत नामदेव ने भी भि तथा ऐिहक काय क एकता पर बल िदया ह | उनके अनुसार
येक यि को अपनी आजीिवका के अनुसार काम करते समय हर भजन या
नाममरण भी करते रहना चािहय े | सत नामदेव कहते ह िक मे राम न गज ह और िजहा
कची ह | मै मन पी गज और िजहा पी कची क सहायता से यम का बधन काटता हँ |
मै कपडा रँगने और िसलन े का काम करता हँ लेिकन घडी भर के िलये भी भगवान का नाम
िवमृत नह करता हँ –
“मन मरो गज ु िजहा म री काती |
मिप मिप काटऊ जम क फासी ||१||
रागिन रागऊ िसवनी सीवऊ |
राम नाम िबन ु धरोय न जीवऊत शा ||
सत नामदेव का मानना ह िक राम का यान संसार म सभी आवयक काय करते हए भी
करना चािहय े | वे कहते ह – म राम न राम नाम से इस कार बँधा हआ है जैसे वण तौलत े
समय सुवण कार का यान तुला क ओर बना रहता है | िजस कार युवितया ँ के िसर पर
पानी से भरे घडे होते है और वे आपस म मनो िवनोद करती हई चलती ह िकतु उनका
यान सदा घडो पर ही रहता है, िजस कार माता काम न घरेलू झंझट म फँसा रहने पर
भी पालन े म लेटे हए अपने बालक क ओर रहता ह, उसी कार मेरा मन राम नाम म लगा
रहता है |
“ऐसे मन राम नाम ै वेिधला| जैसे कनक त ुला िचत रिचला ||१||
आिनल ै कुंभू भूरारले उिदक | राजकुँवरी त ुलहर म ै|
हसत िवनोद द ेत करताली , िच ख ूँ घागरी रिचला ||२||
भणत नामद ेव सुनौ ितलोचन , बालक पालिन व ेिढला|
अपने मिदर काज करती , िच स ू बालक रिचला ||४||
३.२.६ ससंग क धानता
ससंगित को भि का मुख साधन माना जाता है | आयाम रामायण म तो इसे थम
साधन कहा गया है | इस साधन क सा को नामदेव ने िवशेष महव िदया है | उहोन े
अपनी रचनाओ ं म उसके आदश का ितपादन िकया है | संतो के सहवास के िलये नामदेव
हमशा आतुर रहते है | वे अपनी आंतरक अिभलाषा य करते हए कहते है – आज मुझे
कोई हर का दास िमले तो परम सुख होगा वह मेरे मन म भाव-भि जागृत करेगा, मेरे मन
क बुराइया ँ दूर करेगा तभी आमान का काश फैलेगा | नामदेव कहते है िक जब मेरा मन
उदास रहता है तब सत समागम से मुझे अपार सुख क ाि होती है –
“आज कोई िमलसी मन ै राम सन ेही|
तब स ुष पाव ै हमारी द ेही|| munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
28 भगित मन म उपजाव ै| ेम ीती हर अ ंतरी आव ै ||१||
आपा पर द ुिवधा सवनास ै| सरजै आतम यान पकास ै ||२||
जन नामा ,मन परा उदास | तब स ूप पाव ै िमलै हरदास ||३||
िनगुण मत जाित यवथा का उमूलन करते हए अलगाव क थाओ ं का खंडन करता है |
बा आडबरो के िनराकरण क अपील करता है और अंत म भि पूण कथनी करनी और
रहनी क यवथा करता है | इन सब धारणाओ ं से उहोन े एक नया समाज बनाया जो
‘ससंग’ के नाम से िस है |संत नामदेव ने जाित-पाित से उपन ऊँच-नीच के भेदभाव
को झेला था, लेिकन दज के घर म जम लेकर भी गु के उपदेश एवं साधू संगित के साद
से भगवान का दशन िकया वे कहते है –
“छीपे के घर जनम म ैला|
संतान क े परसादी नामा हर भ ेटुला||
हीन जाित म पैदा होन े क बात नामद ेव को हम शा खटकती थी –
“हीन दीन जात गोरी प ंढरी क े राया|
ऐसा त ुमने नामा दाराजी कार े क बनाया ||”
परतु सत स ंगित क े कारण नामद ेव का िच भगवान म लग गया और जाित ाि का
िवषाद िमट गया
“का करौ जाित का करौ पाित | राजाराम स ेऊँ िदन राती |
सु इने हई प े का धागा | नाम का िच ंतू हरस ु लागा |
३.२.७ सतगु का महव
िनगुण सदाय म गु का थान सवपरी है | नवीन साधनो के िलये तो परमर से भी बडा
गु होता है, यिक गु कृपा ारा ही िशय भगवान कृपा क ओर उमुख होना सीख लेता
है | िजस कार सपूण सत सािहय म गु को सवे माना गया है – उसी कार नामदेव
ने भी जीवन म गु का थान सवपरी माना ह| सय का अवेषण और ान क ाि िबना
गुकृपा के संभव नह है | नामदेव के िलये गु का शद वैकुंठ क सीढी के समान ह –
“गु को शद व ैकुंठ िनसरनी |”
अंतः नामदेव सतगु क शरण म जाने से या लाभ होगा यह समझात े हए अपने मन को
चेतावनी देते है तथा दुख का कारण भी प करते हए कहते है – ‘तूने अनेक बार पशु और
मानव देह धारण िकया | चौरासी लाख योनी म मण कर तार हा परतु कही भी तुझे शांित
नह िमली योिक सतगु क शरण म जाकर तूने रामनाम का उचार ण ह िकया | –
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सत नामद ेव क सामािजक च ेतना
(समाज दश न)
29 अनेक बार धस ू ह अवतनौ |
लष चौरासी भरमत िफयौ ||१||
पायौ नह कही िवाम
सतगु सरित कौ नह राय ||२||
नामदेव का मानना ह क िबना गुसाद के कुछ ा नह होता | सतगु क कृपा से ही
उहोन े साधु का जीवन हण िकया है | वे कहते है िक गुकृपा से ही जी के सभी संकट
िमट जाएंगे, वह यम यातना से मु हो जायेगा | उसे िनवाण पद ा होगा | गु को छोडकर
वह कह अय नह जायेगा | नामदेव कहते है क मै तो केवल गु ही क शरण म जाऊँगा
िजसस े सभी कार का िहत संभव ह” –
“जऊ ग ुरदेउ त स ंसा टूटै|
जम ग ूरदेउ भऊजल तर ै|
जमगुरदेउ अवर नह जाई |
िबनु गुदेउ अवर नह जाई |
नामदेव गूर क सरणाई ||”
सत नामदेव ने अपने गु िवसोबा खेचर का बडी ा से मरण करते हए कहा है िक
उनक कृपा साद से ही मैने तुलसी क माला पाई | उहोन े सु होकर मुझे परमतव का
सााकार कराया –
‘खेचर भूचर तुलसी माला हार परसादी पाया ,
नामा णव ै परमतत ु, ह सितग ु होई लखाया ||”
३.२.८ सहज अवथा पर िवास
सत नामदेव ने कई बार अपनी रचनाओ ं म ‘सहज’ शद का योग िकया है | उनके
अनुसार बा कम कांडो से कोई लाभ नह | िबना भू पर िवास िकये तीथत, आिद
यथ है | अत: लोगो के आडबर पर वे महीन हार करते है और सहज कम करने म
िवास रखते थे | संत नामदेव सहज साधना कोई र ाि का सबसे उम माग मानते है |
सहज से उनका अिभाय उस िनकाम भि से है जो िबना िकसी साधना और कम के
तय िबना िकसी साधना और कम के तथा िबना पाखंड के सचे और सरल दय से क
जाती ह | दय म ईर ेम क सची अनुभूित क साधना क सहज अवथा म खो
जाती ह |
सभी कार क समािधय म सहज समािध को सवम एवं उकृ कहा गया है, यिक
इसम साधक को आसन , मुा, ाणायाम , यान, धारणा आिद िल साधना करने क
आवयकता नह होती | नामदेव बााडबर पूण साधना का िवरोध करते हए ‘सहज munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
30 साधना पर बल देते हए कहते ह िक “मै फूलो तथा पिय से हर क पूजा नह कंगा
यिक वह मिदर म नही है | मैने हर के चरणो पर अपने आपको समिपत कर िदया ह,
अब मेरा पुनजम ह होगा –
“पािततोडी न प ूजूँ देवा| देविल द ेव न होई |
नामा कह मै हर क सरा ंना| पुनरिव जम न होई ||
इसीिलय े नामद ेव िनकाम हो कर सदा सहज समािध म मन रहत े ह–
“भगत नामद ेव सेिविनर ंजन सहज समािध लगाइ र े|”
३.३ सारांश
सत नामद ेवकालीन समाज अपनी अ ंध संकणता के कारण उनित -गित स े दूर था |
तकालीन समाज म अनेक सामािजक िवक ृितयाँ यापक प स े िवमान थी | जाित-भेद,
ऊँच-नीच, पृय-अपृय, ाहण -शु, दिलत -सवण आिद भ ेद के कारण समाज म प
िवभाजन था | वणाम यवथा क चरम सीमा इस कालख ंड म देखी जा सकती ह | शू
का समाज म कोई थान नह था | ाहण का थान समाज म सवे माना जाता था |
ाहण धम के ठेकेदार बनकर सामाय जनता क धािम क आथा का भावनामक शोषण
कर रह े थे | नामदेव ने इस था का घोर िवरोध िकया |
अपने समय क े परव ेश को समत िवपताओ ं : कुपताओ ं का िवव ेचन नामद ेव ने अपन े
काय म िकया ह | मराठी क अप ेा उनक िहदी पदावली सा मािजक -राजनीितक ि स े
अयत स ंवेदनशील ह | नामदेव को िच ंता और िचतन का क े समाज और परव ेश
ढ़अन ुभवहै | आयािमक एव ंधािमक आथा क े े म उहोन े पुरोिहत क े वचव का
िवरोध िकया | आचरण क श ुता पर बल िदया और धािम क कम कांडो का िवरो ध करत े हए
एक वथ समाज को थािपत करन े का यास िकया |
३.४ दीघरी
अ) सत नामद ेव क सामािजक च ेतना पर काश डािलय े |
आ) “नामदेव ने अपन े समय म चिलत धािम क पाख ंड एव ं सामािजक क ुरीितय को द ूर
करने का सफल यास िकया ” इस कथन क समीा िकिज ये |
३.५ लघुरी
1) ारभ म नामदेव िकसक े उपासक थे?
2) नामदेव को िनगुण िनराकार ह का उपदेश िकसन े िदया?
3) िनगुण वादी संतो ने िहंदू और मुसलमान दोन को िकसका सदेश िदया?
4) नामदेव का मुरारी कहाँ या ह? munotes.in

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सत नामद ेव क सामािजक च ेतना
(समाज दश न)
31 5) नामदेव के जीवन म कौन रमा हआ है ?
6) िकसन े करनी के िबना कथनी का िवरोध िकया है ?
7) संतो ने िकसे एक दुसरे के पूरक माना है ?
8) नामदेव का मन और िजहा या है ?
9) आयाम रामायण म िक से भि का थम साधन कहा गया है ?
10) नामदेव के उदास मन को िकसस े अपार सुख क ाि होती है ?
11) नामदेव के िलये या वैकुंठ क सीढ़ी के समान है ?
12) िकसक कृपा से नामदेव ने साधू का जीवन हण िकया है ?
३.६ सदभ थ
1) सत नामद ेव क िहदी पदावली , सं. भगीरथ िम राजनारायण मौय , पूना
िविवालय , पूना, .स. १९६४ .
2) िहदी िनग ुण काय का ारभ और नामद ेव क िहदी किवता , डॉ. शं. के. आडकर
रचना काशन , इलाहाबाद , .सं. १९७२ .
3) उरी भारत क सत परपरा , परशुराम चत ुवदी, लोकभारती काशन , यागराज ,
पुनमुण, २०२० .
4) िहदी और मराठी का िनग ुण सत काय , डॉ.भाकर माचव े, चौखंदा िवाभवन ,
वाराणसी , सं. १९६२ ई.
5) िहदी को मराठी स ंतो क द ेन, िवनयमोहन शमा , िवहार राभाषा परषद , पटना इ .
१९५७ .
6) सत काय परश ुराम चत ुवदी, िकताब महल , इलाहाबाद , पै.सं. २०१७ .

munotes.in

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32 ४
सत नामद ेव क दाशिनक िवचारधारा (दशन)
इकाई क परेखा
४.० इकाई का उेय
४.१ तावना
४ २ सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
४. २.१ सत नामदेव का ह वणन
४ .२.२ सत नामदेव का जीवामा वणन
४ .२.३ सत नामदेव का माया दशन
४ .२.४ सत नामदेव का जगत वणन
४ .२.५ सत नामदेव का लौिकक जीवन िवषयक िकोण
४ .३ सारांश
४. ४ दीघरी
४.५ लघुरी
४. ६ सदभ ंथ
४.० इकाई का उेय
इस इकाई के अतग त सिमिलत क गई िवषयवत ू के अययन से अययन कता को
िननिल िखत जानकारया ँ देने का उेय िनिहत है –
1) सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा का परचय कराना एवं
2) नामदेव के आयािमक िवचार क जानकारी देना |

४.१ तावना
दशन का सबध िकसी साधक या कलाकार क उस ि से वीकार िकया जाता है जो
ाय: आयािमक होती है | उस ि का सीधा सबध ह, जीव, जगत, माया आिद
परो चेतनाओ ं के साथ होता है | उह चेतनाओ का यिकरण उस साधक या कलाकार
के सृजन म पाियत होकर जगत जीवन को भािवत करता है | यहाँ यह सब पप से munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
33 समझ लेना चािहए िक दशन का सबध ाय: सूम के साथ रहता है, जबिक जीवन -दशन
का सबध य जगत के ित िकोण के साथ |
वारकरी सदाय म पायी जानेवाली समवय भावना और बुिवािदता , यावहारक
सहजता , मानवीयता के कारण महारा म इसका खूब चार सार हआ | इस सदाय म
या समवय ि का भी एक प एवं य कारण था और वह यह िक नामदेव समेत
ाय: अिधका ंश सत साधक ाय: िनन जाित वग से आए थे | िवसोबा खेचर पे नामदेव
दज थे, सावता माली थे, नरहर सुनार थे | इहन े िविभन सदाय के सजनो , सतो
साधूओं के सपक म आकर , उनसे ससंग कर, जो कुछ भी सुना, उसस े सारतव हण
कर अपने मत एवं दाशिनक चेतनाओ ं का िनधारण िकया | यही कारण है िक इनक
दाशिनक चेतना म पुराण पंिथय जैसी करता कह नह िदखाई देती |
४. २ सत नामद ेव क दाशिनक िवचारधारा
महाराीय सतो क परपरा का उदय यिप सत ानेर से माना जाता है | वारकरी
अथात वैणव सदाय के धान वतक इहे माना जाता है | परतु उर भारत म भागवत
धम क पताका लहरान े वाले पहले सत नामदेव ही है | सत – दशन म ाय: ह, जीव,
जगत इन तीन वप के साथ-साथ पारपरक सबधो पर ही मुय प से िवचार
िकया जाता है | और साथ ही दाशिनक चेतना के अतग त ‘माया’ नाम से एक चौथा तव
भी वीकार िकया जाता है | कह-कह पर मो सबधी िवचार क दाशिनक चेतना कारक
वप म उभर कर हमारे सामन े आते है | अत: नामदेव क दाशिनक चेतना के अतग त
इन तव पर िवचार करना आवयक है|
४. २.१ सत नामद ेव का ह वणन
सत नामदेव महारा के िस वारकरी सदाय के अनुयािययो म से मुख संत थे | इस
कारण वारकरी सदाय के दाशिनक िसात का ित पालन उनक रचनाओ ं म पाया
जाना वाभािवक है | इस सदाय के सतो म िनगुण सवाम –वप अैत ह के ित
पूरी िना पायी जाती है, िकतु सगुण मूित के सम वे कतन कर भि का सवागीण
वप को आयाम देते है |
उपिनषद म ह क पूण िता है | तैतीरीयोपिनषद म इस सपूण िव क उपि , गित,
पालन और िथित तथा इस सपूण जगत के लाभ के कारण को हा कहा गया है |
“ईशोपिनष ेद के शांितपाठ म कहा गया है िक ‘ह ही पूण है, सब कुछ वही है, | शंकराचाय
का कथन है – “िजसका वप सदा सवदा अखड प म एक सा बना रहे वही
पारमािथ क सा हो सकती है |”
हा के इस सव शिमान तथा सवयापक प के पया माण नामदेव के िहदी पद म
िमलत े है | नामदेव के मतान ुसार ‘ईर एक है जो सवयापक और सपूण है | िजधर भी
देखो वही िदखाई देता है | माया के िविच िच म संसार मुध है,और उसस े दूर है जो
उसम नीिहत है वह उसे जान पाता है | –
munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
34 “एक अनेक िवआपक पूरन, जत देखऊ तत सोई|
माइआ िच िविच िवमोिहत िबरला बुझै कोई||”
ईर क सवयापकता का वणन करते हए नामदेव कहते है – हे भगवान ! पृवी के जल,
थल आिद सभी थान म तुम या हो –
इभै िवठल ु उभै िवठल ु िबनु संसा नह|
पान अनंतर नामा णवे पुर रिहउ तू सरब मही||”
अपने इस सवयापी ह: का गुणगान करते हए सत नामदेव कहते है ‘हे वैकुठनाथ ! तेरी
लीला अगाध है | मै िजधर जाता हँ उधर तुझे देखता हँ जल म, थल म, नभ म, पाषाण म तू
ही है | आगम , िनगम, वेद, पुराण सब तेरा ही गुणगान करते है” –
तू अगाध वैकुठता था| तेरे चरन मेरा माथा|
सेरवे भूत नाना वेषु| जज जाऊ त तू ही देषु ||१||
जलधल महीथल का पाशाना ं|
आगम िनगम सब वेद पुराना ||२||
मै मनीषा जनम िनबध वाला |
नामा का ठाकूर दीन दयाला ||३||
येक जीव के दय म भगवान है | हाथी और चीटी एक ही िमी के जने है | ये सब उसी
भगवान के अंश मा है | जड-जंगम आिद सभी म ह समान प से या है
“एकल माटी कुंजर चीटी, भाजन बह नाना|
भावर जंगम कट पतंगा सब घटीराम समाना ||”
इस चराचर सृि का िनमाण ह के ारा हआ है | नामदेव कहते है ‘जब माँ, िपता, कम,
काया, हम , तुम कोई न था | तब चराचर क सृि कैसे िनिमत हई ? िकसन े इसक रचना
क ? इस िवषय म नामदेव ने प कहा है िक वह परम तव ही ह है िजसस े सृि क
युपि हई’ –
माइन होती, बापु न होता करमु न शेती काझआ |
नामा णवे परम ततू है सितग ुर होई लक ाइआ ||”
नामदेव का मानना है िक िजस से सकल जीव क सृि हई है और जो हर जीव म िवमान
है, घट घट म या है, उसी हा को माया मोह के म म आकर संसार ने भुला िदया है
जा मै सकल जीव क उपती | सकल जीव म आप जी |
माया मोह करी जगात भुलाया घटी घटी यापक बापजी ||
munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
35 ४ .२.२ सत नामद ेव का जीवामा वणन
मनुय के शरीर के भीतर एवं बाहर िजस तव का काश है, उसे जानन े का यास सदा से
होता आया है | ाचीन काल से ही मनुय का यन रहा है िक यह आमा या है? उसका
वप या है? उसक गित-गित आिद या है? इसका परचय ा करे |
जीवामा के वप का परचय ऋवेद के िस मं ‘ासप ुणा म है | जो इस कार है –
“सदा साथ रहनेवाले, परपर समान भाषा रखने वाले दो पी एक ही वृ का आय
लेकर रहते है | उनम एक जीवामा उस वृ के फलो का उपभोग करता है, िकतु दुसरा
फल का उपभोग न कर उसे साय प म केवल देखता रहता है |”उपिनषदो म आम तव
क पूण िता है | यहाँ ह और आमा को ही विनत िकया जाता है | यह आमा ह है,
सबका अनुभव करने वाला है | आचाय शंकराचाय ने कहा है िक “कोई भी यि अपने
अित व से इकार नह कर सकता | मै हँ , यह वृि सभी म होती है | वही ाता और वही
ेय है | उसे जानन े के िलए िकसी ान क आवयकता नह है | वह वयं िस है | आमा
आस है, अभोा है और दुख से परे है | सुख दुख क समत ितिया ँ, अंतकरण ,
शरीर आिद उपािधय के संबधो के कारण है, वे आमा के िनजी वप म नह है | वप
लण म आमा िनय, मु, आजम , िनराकार , अमर, अनय , सवयापी तथा चैतय
वप है |
तटथ लण अथवा आमा क यावहारक तीित जीव होती है | अिवध जीव का अान
है | पूरी आमा जब नाम-प क उपािध से यु होती है, तब वह जीव कहलाती है | िजसे
मानव कहा जाता है | जीव वह है जो अतकरण आमा को नाम प क उपािध से िसिमत
कर देता है, वह चैतय का साय होता है, और जब वह अतकरण यिव का िनमाण
करता है, तो उसे जीव कहा जाता है | जीव का सबध शुभ-अशुभ कम के फल से
होता है |
सत नामदेव जीवामा को ह का अंश मानते है | वे कहते है िक हे माधव ! तुम ही बताओ
िक तुमम और मुझमे या अंतर है ? भगवान से भ और भ से भगवान है | अैत का
यही खेल भ और भगवान के बीच चल रहा है | तुही देवता हो, तुही मिदर हो और
तुही पुजारी हो | जल से ही लहरे और लहरो से ही जल होता है, दोन अिभन है | कहने
सुनने म दोनो भले ही अलग हो | हे भगवान ! तुम ही गाते हो, नाचत े हो और वा बजात े हो
| नामदेव कहते है, हे भगवन तुम मेरे वामी हो | तुहारा भ अपूण है, तुम उसे पूण करोगे |
“बहए कोन होड माधऊ मोिसक |
ठाकूर ने जनुजन ते ठाक खेलू परऊ है तोिसऊ ||
आपन देऊ देहरा आपन आप लगा वै पुजा|
जल ते तरंग तरंग ते जल है, कहन सुनन मऊ दुजा ||
आपही गावै आपिह नाचै आप बजाव ै तूरा|
कहत नामदेऊ तू मेरे ठाकूर जनु ऊरा तू पुरा ||” munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
36 सत नामदेव के अनुसार सभी जीवो म समाया हआ है | यह माया ही है िजसन े सारे
संसार को मोह िलया है, अयथा यह ह घट-घट म बसा है-
जा मै सकल जीव क उतपित | सकल जीव म आप जी |
माया मोह कही जगत भुलाया| घटी घटी यापक यापक बाप जी||”
जीवामा और ह क एकता एवं अैतता को नामदेव कई पद म य करते ह | अपने
और वामी के सबध को प करते हए नामदेव कहते है – हे जीव – मेरी गित तु जनता
है | मै उसका या वणन कँ ? जैसे नमक (लवण) पानी म िवत होने पर अलग नह िकया
जा सकता उसी कार का मेरा और मेरे वामी का सबध है | ससंग से मुझे ईर क
ाि हई | मेरे णवत ईर क वदना करता हँ –
तेरी गित तू ही जानै | अप जीव गित कहा नै ||टेक||
जैसा तू किहए तैसा तू नाह | जैसा तू है तैसा आिद गुसाई ||१||
लुण नीर ना है यारा | ठाकूर सािहब ाण हमारा ||२||
साध क संगती सत लू भेट णवंत नामा राम सहेटा ||३||
४ .२.३ सत नामद ेव का माया दशन
भारतीय दशन म मायावाद का िविश थान माना जाता है | यजुवद म कहा गया है िक
इ अपनी शि से अनेक कार के प धारण कर लेता है | वेद म प बदलन े क िया
को माया कहा गया है | उपिनषद म नाम प के अथ म माया शद का योग हआ है |
कंठोपिनषद म िलखा है, ‘आमा – वप परम पुष सब ािणय म रहता हआ भी माया
के पद म िछपा रहने के कारण सब को य नह िदखाई देता | केवल सूम तव को
समझन े वाले पुष ारा ही सूम तथा तीणब ुी से उसे देखा जाता है | ेताेतर
उपिनषद म कहा गया है िक सपूण जगत को माया का अिधपित परमेर पांच महाभूतादी
से रचता है तथा दूसरा जीवामा उस पंच म माया के ारा भिलभा ंित बंध हआ है | अय
उपिनषदो म नानापामक जगत, अिवधा , म तथा कृित को माया कहा गया है |
गीता म माया को कृण क शि कहा गया है | गीता का कथन है – “मेरी यह गुणमयी और
िदय माया दुतर है | इस माया को वे ही पार कर पाते है: जो मेरी शरण म आते है | गीता म
माया को अिवधा , म तथा कृित प कहा गया है |
माया का शाीय ढंग से िववेचन आचाय शंकराचाय ने िकया | कालातर म मायावाद
मयकालीन दशनशाीय के िलए एक आवयक तव हो गया | माया का अथ है ईर क
िविचताथ संगकरी (अुतिवषय क सृी करनेवाली शि| ैत, ैताैत तथा शुाैत आिद
सभी दशनो ने मायावाद को वीकार करते हए ह क शि के प वीकारा है |
सत नामदेव ने भी अपनी रचनाओ ं म माया का वणन िकया है | उनके मतान ुसार माया ही
जीव को ह से िवमुख करती है | कोई िवान यि गु उपदेश ारा माया के भाव से
बचकर ह तक पहँच सकता है | नामदेव कहते है – “हे िवल ! तेरी माया बहत ही बल munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
37 है| पहले से ही वह भ को भृिमत करती आयी है | पयाय यह है िक माया के बल हो
जाने पर ह तथा ह के बल हो जाने पर माया िगोचर नह होती –
“कहौ कहौ तेरी सबळ माया| आगै इित अनेक भरमाया ||
माया अंतर ह न दी सै| ह के अंतर माया नह ही तै सेत||”
माया के दो प है | एक अिवधा माया तथा दूसरा िवधा माया | अिवधा माया के वशीभ ूत
होकर जीव संसार के मोहजाल म फँस जाता है | अिवधा माया, सब गुण िजस के वश म है
और जो ईर क ेरणा से ही संसार क रचना करते है, जीव को संसार के मोहजाल से
छुडा कर ह क भि क ओर ले जाते है | संत नामदेव का मानना है िक जीव का
गभयोिन म आना ही माया है, यिद वह छूट सके तो परमामा के दशन हो सकत े है | नामदेव
कहते है िक अब यह माया मुझसे नह िलपट ेगी, मै इस संसार से मु हो जाऊँगा –
“इह संसार ते सब ही छुटउ नउ माइया नह लपटावउ |
माइआ नामू गरभ जोिन का ितह तिज दरसन पालउ ||”
माया के वश म होनेवाला ाणी ईर को भूल जाता है और अपने ही अान म रहता है |
नामदेव कहते है िक माया वतुत: जीव मा को मुध कर देती है | इससे उसका रहय जान
सकना किठन है | इसी कारण माया को अिनव चनीय कहा जाता है –
“माइआ िच िविच िवमोहीत िवरला बूझै कोई|
सभी सतो ने माया को भि म बाधक माना है | सत नामदेव कहते है – “हे माधव ! यह
माया तुहारी भि म बाधा डालती है | वह भ को तुमसे िमलन े नह देती –
माधीजी माया िमलन न देई | जन जीवै तो करै सनेही |”
नर संसार क िनसा रता और माया जाल के धोखे म पडे लोग को सचेत करते हए
नामदेव कहते – यह संसार धोखे और मायाजाल से भरा है | धन,यौवन, पु तथा ी को तु
अपना समझ | ये रेत के मंिदर के समान न हो जाएँगे” –
“यह मिमता अपिन िजनी जानौ| धन जोबन सूट ारा|
बालू के मंिदर िबनसी जािहंगे| झुठे बरह पसारा |
४ .२.४ सत नामद ेव का जगत वणन
सभी कार क तीितय का नाम जगत या संसार है | समत जगत या इसके येक िवषय
को एक-या अितम सय या पारमािथ क सय नह कह सकत े | जगत जब नाम पामक
ही िकया जाता है तब वह केवल यावहा रक ि से सय है या य कहे िक ितभािसक
सा क अपेा अिधक सय है और पारमािथ क सा क अपेा कम सय|
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मराठी संत का िहंदी काय
38 यावहारक ान के िलए जगत वातिवक है | मनुय जब इसी म उलझ जाता है और माया
म फँसकर पारमािथ क सय को भूल जाता है, िक यह जगत दु:खमय है, और असय भी है |
अपरा िवा क ि से जीव और जड पदाथ अनेक िदखाई पडते है | इनके िबना संसार का
चलना किठन है | यही यावहारक ान है | यावहारक ान अथवा जगत यवहार के िलए
जगत यवहार के िलए जगत वातिवक है, िकंतु इसे हम पारमािथ क सय नह मान
सकत े | पारमािथ क सय तो ह ही है | जगत परवत नशील तथा िवनाशशील है, इस का
नाश हो जाता है, अत: यह अबािधत तव नह है और इसीिलए उसे सय नह कहा जा
सकता , िकंतु इंियाँ अयारोप के सहारे उसम अपने िवषय का आरोप कर लेती है, अत:
वह अयत आकिष त तीत होणे लगता है” यिप तािवक ि से यह असय है,
िमया है |
ह वप जगत (िव) का वणन करते हए नामदेव कहते है “माधव पी माली सयाना है |
वह आप ही बगीचा है तथा आप ही माली है | वह आप ही पानी है और आप ही पवन है |
वह वयं से ेम करता है | वह वयं ही च तथा वयं ही सूरज है, आप ही धरती तथा
आकाश है, िजस सृिकता ने इस कार सृि क रचना क, नामदेव उसका दास है |”-
“माधौ माली एक सयाना | अंतरगत रहैलुकानां ||टेक||
आपै सडी आपै माली कली कली कर जोडै |
पाके, काचे, काचे पाके, मिन मानै ते तोडे ||१||
आपै पवन आप ही पानी, आपै करषै मेहा |
आपै पुरष चर पुिन आपै, आपै नेह सनेहा ||२||
आपै चंद सूर पुिन आपै, आपै धरिन अकासा |
रचना हार िविध ऐसी रची है, ण मै नामदेव दासा ||३||
यह संसार हा क लीला है | नामदेव ह और जगत क अभेदता का वणन इस कार
करते है – ‘तरंग, फेन और बुदबुदा जैसे जल से िभन नह है, वैसे ही यह पंच (संसार)
ह क लीला है और उसस े अिभन है | इस संसार म जीव के प म ईर के अितर
कोई अय िवचरण नह करता है |
“जल तरंग अ फेन बुदबुदा जल ते िभन न कोई |
इह परपंचू पारह क लीला िवचरत आन न होई ||”
४.२.५ सत नामद ेव का लौिकक जीवन िवषयक िकोण
मनुय को अपना ऐिहक जीवन िकस कार यतीत करना चािहए , इस िवषय म सत
नामदेव ने जो िवचार य िकये है, उह एक पारमािथ क यि का कट िचतन समझना
समीचीन होगा | उसम भौितक जीवन का केवल सुखोपभोग प य नह हआ है | नामदेव munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
39 का यह ऐिहक तव िवचार अंधेरे म टटोलन े वाले साधक के िलए मानो उनके ारा लगाया
ानदीप है | अत: नामदेव के ऐिहक तव िचतन म अतभ ूत उपदेश का िवशेष महव है |
सत नामदेव मनुय जम को मो ाि के िलए दुलभ जम मानते है | उनका कथन है –
जम-जमातर के बाद नर-देह िमला है | दुलभ मनुय जम पाकर भी यिद तूने ईर भि
नह क तो तुझे पुन: माया से परे रहना होगा | अत: सुखोपभो ग के िवषय का याग कर
आमाराम म मन लगाओ | यह काय गृहथी को सँभालत े हए भी हम कर सकत े है िनरंतर
नाम-मरण करके ईर क भि का माग सुगम बना सकत े है |” –
“शेवटीली पाली तेहा मनुय जम| चुकिलया वम फेरा पडे ||
एक जमी ओळखी करा आमाराम | संसार सुगम भोगू नका ||
संसारी असाव े असोनी नसाव े | कतन करा रे वेळोवेळी ||
यह संसार नाशवान है | इस जीवन का अत एक न एक िदन होने वाला है, इसिलए इस
भवसागर को पार करना आवयक है | संत नामदेव कहते है िक इस नर संसार से मेरा
मन उब गया है | काल (मृयू का यमराज) मेरे सामन े उपिथत है और वह मुझे अपना
िनवाला (ास) बनाना चाहता है –
नामा हणे थोर उबगलो संसारा |
काल बैरी पुढारा ास पाहे ||
इस दु:खपुण संसार से ऊब कर नामदेव अपने आराय िवल से अनुरोध करते है िक –
“हे िवल ! तूने मुझे भवसागर म ढकेल तो िदया अथात जममरण के फेरे म फँसा तो िदया
लेिकन अब इस भवसागर से पार करा दे अथात जम-मृयू के बीज अान को जड से न
कर दे |
“नामा हणे नको पाहो माझी याज |
संसाराच े बीज मूल खुडी ||
४ .३ सारांश
यिप हम नामदेव को दाशिनक के प म नह देखते िकंतु िफर भी दशन के े क अनेक
ऐसी बात पर उहन े िवचार िकया है और अपना मत भी प िकया है | इसीिलए उनके
दशन के सदभ म भी सोचना आवयक हो जाता है | उहन े कभी दाशिनक बनने क चेा
नह क थी, िकतु उनक अयाम ियता ने उह दाशिनक बना िदया है | नामदेव ने सय
का पूण अनुभव िकया था | उनका दशन उसी वानुभूितमूलक सय क अिभयि है |
उहन े िहंदूधम के अैत िसात , वैणव सदाय क भिमयी उपासना , कमवाद,
जमातरवाद , अिहंसा, मयम माग, इलाम धम से एकेरवाद, मातृभाव आिद को लेकर
एक सारही सवा पंथ चलान े का यास िकया था | नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
को पहले से चली आ रही िविभन मायता के संकण घेरे म नह रखा जा सकता | उसम munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
40 उनके िवचार म नवीनता है और अनेक भाव को वीकार करते हए उसक एक िनजी
सा है, एक पृथक अितव है |
सत नामदेव मानव ेमी और मानवता ेमी महापुष थे | िवल म अटूट िवास के कारण
नर म नारायण क वृि ने उहे मानवतावाद क ओर उमुख िकया था, इसीिलए कभी
िकसी मानव से उहन े घृणा या ेष का यवहार नह िकया | नर म नारायण को देखने के
कारण ही उनक ि सची आितक भावना से ओतोत हो गई थी | संि म हम कह
सकत े है िक नामदेव का ह िनगुण ह है, जीवामा उसका अंश है जो माया के िवकार म
जब फँस जाता है, तब नर, असार , िमया जगत को भी सचा समझन े लगता है, वैसा वह
वयं होता है, मामक यह म मायावश ही होता है | अयथा जीव म परमामा का अंश
शु प म होता है और उसी म िमल जाता है, जब वह आमा को पहचान लेता है |
४. ४ दीघरी
1) सत नामदेव के दाशिनक िवचार पर काश डािलए |
2) नामदेव ने कभी भी दाशिनक बनने क चेा नह क थी, िकतु उनक
अयामियता ने उह दाशिनक बना िदया है, इस कथन का िवेषण किजए |
3) नामदेव के ह, जीव, माया और जगत सबधी िवचार को सोदाहरण प
किजए |

४.५ लघुरी
1) दशन का सबध ाय: िकसक े साथ रहा करता है ?
2) वारकरी सदाय के धान वतक िकसे माना जाता है ?
3) उर भारत म भागवत धम क पताका फहरान े का ेय िकसे िदया जाता है ?
4) नामदेव के अनुसार संसार ने िकसक े कारण ह को भुला िदया है ?
5) जीवामा के वप का परचय िकस वेद म िदया गया है ?
6) उपिनषद म िकसक पूण िता है ?
7) आमा कब जीव कहलाता है ?
8) सत नामदेव जीवामा को िकसका अंश मानते है ?
9) गीता म िकसको कृण क शि कहा गया है ?
10) माया का शाीय ढंग से िववेचन िकसन े िकया ?
11) नामदेव के अनुसार कौन जीव को ह से िवमुख करता है ?
12) माया के दो प कौन से है ?
13) नामदेव ह और जगत क अभेदता का वणन कैसे करते है ?
14) नामदेव मो ाि के िलए या करने का उपदेश देते है ?
15) नामदेव अपने आराय िवल से या अनुरोध करते है ?



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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
41 ४.६ सदभ ंथ
1) सत नामदेव क िहदी पदावली , सं. भगीरथ िम, राजनारायण मौय, पूना
िविवालय , पूना, .सं. १९६४
2) िहदी को मराठी सतो क देन, िवनय मोहन शमा, िबहार राभाषा परषद , पटना,
३,माच १९५७
3) िहदी और मराठी का िनगुण सत काय, डॉ.भाकर माचवे, चौखबा िवधाभवन ,
वाराणसी , . सं. १९६२
4) उरी भारत क सत परपरा , परशुराम चतुवदी, लोकभारती काशन , याग राज-
०१, पुनमुण २०२०
5) िहदी िनगुण काय का ारभ और नामदेव क िहदी किवता , डॉ. शं.के.आडकर
रचना काशन , इलाहाबाद -१, .सं.१९७२
6) मराठी सतो क िहदी वाणी, सं. आनद काश दीित , पंचशील काशन , जयपूर-
०३, १९८३ .
7) महारा के सतो का िहदी काय, भाकर सदािशव पिडत , उर देश, िहदी
संथान , लखनऊ , .सं. १९९१
8) सत काय पं. परशुराम चतुवदी, िकताब महल, इलाहाबाद , सं. २०१७ .
9) सत नामदेव, कृ.गो.वानख ेडे (गुजी, काशन िवभाग , भारत सरकार , नई िदली ,
.सं. १९७० .
10) पांच संत किव, डॉ. श.गो.तुलपुले, हीनस काशन , पुणे, .सं. १९६२ .

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42 ५
सत नामद ेव क भि भावना
इकाई क पर ेखा
५. ० इकाई का उ ेय
५. १ तावना
५.२ नामदेव क भि भावना
५.२.१ िनगुण सग ुण क एकता
५.२.२ अैत पूरक भि भावना
५.२.३ ानोर भि
५.२.४ नाम ेम क पराकाा
५.२.५ गु कृपा का महव
५.२.६ ससंगित का महव
५.२.७ वासय भाव क धानता
५. ३ सारांश
५. ४ दीघरी
५. ५ लघुरीय
५. ६ सदभ थ
५. ० इकाई का उ ेय
इस इकाई क े अतग त सिमिलत क गई िवषयवत ू के अययन स े अययनकता को
िननिलिखत जानकारया ँ देने का उ ेय है –
अ) सत नामद ेव क भि भावना का परचय कराना एव ं
आ) सत नामद ेव के िवल भि िवषयक िवचारो क जानकारी द ेना|
५.१ तावना
भिमाग का म ुख सदाय भागवत धम है, िजनका अिवभा व साल १४०० ई.पु. के
आसपास माना जाता ह ै | सवथम महाभारत क े शांितपव म एकांितक अथवा भागवत धम
क उपि क था िमलती ह ै | नर और नारायण नामक दो ऋिषय का मानना ह ै िक उर
भारत म पलिवत हई इस िवचारधारा म बौ तथा उनस े िवकिसत वयान , सहजयान
आिद क े ारा जब अवरोध उपन हआ तो भागवत धम के चारक दिण भारत क े munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
43 राजाओ क े आय म चले ग ये | दिण म अलवार भ क े गीतो म इसी भावना क
सािहियक अिभयि ह ै | इनके भावप ूण गीत बधक म संिहत ह ै | नवी-दसवी शतादी
से तिमल द ेश म ही भि का शाीय ितपादन करन ेवाले आचाय का भी उदय होन े
लगा | कारण यह था िक आचाय शंकर न े अैतवाद का उपथापन ऐस े तक क े आधार पर
िकया िजनस े भि का प ूण सामंजय नह हो पाता था | आचाय क इसी परपरा म
यामुनाचाय (आलव ंारा हए िजहोन े शंकर क े मायाबाद का खडन कर िविश ैत
िसांत और िवण ू क ेता का समथ न िकया और भागवत धम क ामािणकता क
थापना क िकत ु इस िदशा म सवािधक महवप ूण यास ी रामान ुजाचाय (यारहवी
शतादी का ह ै िजहोन े हस ू पार ीभाय क रचना कर भि तथा ाि (शरणागती )
भावना सो हम शाीय आधार िदया |
जो भी हो बारहवी , तेरहवी शतादी तक भि आदोलन दिण म पूण ौढ होकर प ुन:
उर क और असर हआ | महारा म आकर ान ेर, नामदेव, तुकाराम आिद क े
मायम स े इसका स ंघटन गोरखनाथी योग धारा स े हआ िजसको इसन े आम सात िकया |
भि या ह ै?
युपि क ि कोशाकारो न े भि क े अनेक अथ बताय है – सेवा, आराधना , ा
अनुराग, िवभाव आिद | िकतु भि क े शाीय ंथो तथा प ुराणो म इसका पया य एक
िविश अथ म होता ह ै | भि क े ाचीन ंथो म ीमगवतगीता , महाभारत शा ंितपव,
पांचराज स ंिहता, शांिडय भिस ू, नारद भिस ू, भागवत प ुराण, हरवंश पुराण तथा
रामान ुजाचाय आिद क े थ म ुख है | इनमे ीमागवत प ुराण का थान बहत ऊ ँचा है,
यिक अिधका ंश आचाय न े माण वप इसका बार -बार उल ेख िकया ह ै | भागवत म
एक थान पर ऋिष यास न े किपल क े मुख से भि क सारगिभ त याया सराई ह ै| उनके
अनुसार व ेदिविहत काय म लगे हए जनो क भागवत क े ित अनय भावप ूवक वाभािवक
सािवक व ृि का नाम भि ह ै | िजस कार ग ंगा क धारा अखड प स े समु क ओर
बहती ह ै उसी कार सवा तयामी भगवान क े गुणवण मा स े ादुभूत उनक े ित
अिविछत मनोगित को भि कहत े है | (भागवत ३/२५/३२ तथा ३/२९/११-१२)
शांिडय न े अपन े भिस ू म भि का शाीय और स ंि िवव ेचन त ुत िकया है | वे
ईर िवषयक परान ुरा को भि मानत े है – “सा परान ुरािरीर े |” उनके टीकाकार
नारायण तीथ ने बतलाया ह ै िक ीती और भि म कोई भ ेद नह | पराकाा पर पह ँची हई
भागवत ीित ही भि ह ै | नारद क े अनुसार भी ईर क े ित परम ेम ही भि ह ै – सा-
तिमन परम ेम पा | उपिनषदो और महाभारत का माण द ेते हए ी रामान ुजाचाय ने
भि क े वप क दाश िनक याया त ुत क ह ै िजसक े अनुसार न ेहपूवक िकया गया
अनवरत यान भि ह ै – नेहपूव अनुयानं भिरथ ुयते बुवै: | उहने भि को ान
से उचतर ितित िकया |
इस कार हम द ेखते है, िक सभी न े भि क े ेमप तथा शरणागित या ाि पर िवश ेष
बल िदया ह ै | अत: पूण िना क े साथ भगवान क शरणागित , िबना शत भगवान क े ित
आमसमप ण का भाव – यही भि क पहली और आितक शत है | munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
44 ५.२ नामद ेव क भि भावना
महारा क े सतो क वातिवक साधना िनग ुण भि क तीत होती ह ै | परंतु उनक
रचनाओ ं म जो क ुछ उदाहरण सग ुण भि क े िमलत े है वे इसक े िलए िकय े गये ारिभक
योगो ज ैसे जान पड़त े है तथा क ेवल उसी ि स े उसका अपना महव भी हो सकता ह ै |
संत नामद ेव सप ूण के काय का अययन करन े के पात यह बात प हो जाती ह ै िक
उनके िहदी पदो म उनका िनग ुण उपासक भ का प िदखाई द ेता है तो मराठी अभ ंगो से
यह प होता ह ै िक सग ुणोपासना को भी उहोन े अपनाया था | परमामा ही एकमा
सबकुछ है और यही सबक े भीतर तथा बाहर सव या ह ै, तथा उसी क े ित एकातिन
होकर रहना चािहय े इसी को व े अपन े जीवन का परमाथ मानत े थे |
५.२.१ िनगुण-सगुण क एकता
वारकरी सदाय को भगवान क े दोन प सग ुण तथा िनग ुण माय ह ै | पूण सगुणोपासक
होने पर भी यह िचर परमामा को यापक एव ं िनगुण िनराकार भी मानता ह ै | िनगुण-सगुण
क एकता को सत नामद ेव सुवण तथा स ुवण से बनी अशरफ क े ांत ारा मािणत
करते है | वे कहत े है िक “जो सग ुण तथा िनग ुण दोनो स े परे है, िजसका कोई आकार नह
वही साकार होकर ा होता ह ै | जल स े जैसे बफ बनी ह ै उसी कार िनराकार पा ंडुरंग
(ह) साकार होता ह ै| िजस कार स ुवण तथा उसस े बनी अशरफ अिभन होत े है, उसी
कार िनग ुण तथा सग ुण एक ही ह क े दो प ह ै | पांडुरंग (िवल ) ही संसार ह ै और
संसार ही पा ंडुरंग है |” –
‘िनगुण सग ुण नाही या आकार | होऊनी साकार तोिच ठ ेठा |
जली जलगार िदस े जैसा परी | तैसा िनराकारी साकार हा |
सुवण क घन , घन क स ुवण| िनगुणो सग ुण ययापरी ||
पांडुरंगी अंगे सव भासे जग | िननवी सवा ग नामा हण े ||
आकार क े कारण म ूल वतू से िभन कोई अय वत ू िनिमत हई ह ै ऐसा आभास होता ह ै |
इसे दूर करन े के िलए नामद ेव िकत नवाद का ा ंत देते हए कहत े है – एक ही तव एकाकार
प स े सारे संसार म या ह ै | वही सार े संसार का स ंचालन करता ह ै | इस एकमा ह
क हम े ा करनी चािहय े | उसस े िभन आभासमान होन े वाला स ंसार माया स े या ह ै,
अत: िमया ह ै | -
एक तव एकाकार सव देखी | एक तो न ेमेसी सकल जगी ||
ऐसे ह पहा आह े सव एक | न लग े िववेक करण े काही ||
िमया ह े डंबर माया मिमताथ | हर हािच वाथ वेगी करी ||
नामा हण े समथ बोलीला तो व ेद | नाही भ ेदाभेद हपणी ||
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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
45 वेदो म भी कहा गया ह ै िक सव खािव ंद ह या एक े सत िवा बहधा वदित | सत नामद ेव
ने अैत सबधी इन व ैिदक िसा ंत का उाटन अपनी भि म िकया ह ै | िनगुण – सगुण
के अैत िसा ंत को म ृगजल क े ांत ारा प ु करत े हए नामद ेव कहत े है – ह म ह क े
अितर और क ुछ नह ह ै | िचमय परमामा स े िभन आभासमान होन ेवाला स ंसार
माियक ह ै | मृगजल का ज ैसे वातव म कुछ अितव नह होता , उसी कार जड िव का
भी वा तव म अितव नह ह ै | ह वप अ ैत क बात वण करो और उसी आम
वप म तलीन हो जाओ |
भ म ानी भ े होता ह ै | नामदेव ानी भ थ े, इसीिलए वे भ िशरोमिण हो गय े |
यिद व े केवल आत भ होत े तो उनको यह उपािध कतई न िमलती | िवल क े सगुण प
क भि करत े हए भी उसक े मूल िनग ुण प स े उनका मन यिक ंिचत भी िवचिलत नह
हआ | पंढरपूर के पांडुरंग क म ूित क यह िवश ेषता ह ै िक वह परापर िनग ुण ह क तीक
है, िकसी एक सादाियक द ेवव क नह |
५.२.२ अैतपरक भि भावना
महाराीयन सतो क यह िवश ेषता ह ै िक व े ैतभाव को नह मानत े थे और अ ैत भाव
क भि म लीन रहत े थे | आचाय परश ुराम चत ुवदी के अनुसार अ ैत मत का भाव
सवािधक व ैणव सदाय म वारकरी सदाय पर अिधक रहा ह ै | अपने इस मत क े
सदभ म वे कहत े है – ‘ईरायवाद क इस अप ूव अैतपरक भि का ही भाव कदािचत
उस व ैणव सदाय पर िकसी न िकसी कार पड़ता था जो प ंढरपूर नामक थान क े
आसपास िवम क १३ वी शतादी म चिलत हआ था , िजसक े वत क ान ेर मान े
जाते है और जो आज वारकरी सदाय क े नाम स े िस ह ै |
सगुणोपासक नामद ेव को अ ैत क अिनव चनीय चीित होन े पर आप -पर भाव (मै – तू का
भाव) िवन हो गया | अपनी इस अन ुभूित का वण न नामद ेव इस कार करत े है – ‘यिद त ू
िलंग है तो मै सालुंका हँ | यिद त ु तुलसी ह ै तो मंजरी हँ | वातव म वयं दोनो ही अथा त तू
और म ै (इ देव और भ ) दोनो म तू ही िवराजमान ह ै |
तू अवकाश मी भ ूिमका | तू िलंग मी साल ुंका ||
तू समु मी ारका | वये दोह ||१||
तू वृदावन मी िचरी | तू तुलसी मी म ंिजरी |
तू पावा मी मोहरी | वये दोही ||२||
नामदेव को अपन े गु िवसोबा ख ेचर स े अैत भेद होन े पर सव नारायण हर िदस े’ क
तीित य ेक ण होन े लगी | इसी अन ुभूित के बल पर व े अैतिन भि योग का
सांगोपांग अिवकार (वणन) अपने अभंगो से करन े लगे | वे कहत े है िक भि क े बहान े
िनगुण ने िवल क े प म सगुण प धारण कर िलया ह ै | िवल का यह प नामपाियत
है | यह ह ानप ह ै , सगुण तथा िनग ुण दोनो स े परे है | उनका वण न करत े हए व ेद भी
मौन हो जात े है जो ुितय क े िलए भी द ुबध ह ै, पुराणो स े भी इसका वण न नह हो सकता | munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
46 गु िवसोबा ख ेचर ने नामद ेव को िनग ुण क अन ुभूित िदलाकर िनग ुण परह ही क े िव प
म सगुण होन े का अवयामक ान िदया | उहोन े नामद ेव से कहा िक अवयामक िवचार
से तु ऐसे थान स े मुझे गैर रख जहा ँ परमामा नह ह ै –
“जेथे देव नस े तेथे माझे पाय | देवी वा अवय ‘िवचारोनी ’ | यह अवयामक ान होन े पर
नामदेव को अन ुभूित हई िक कोई थान परमाथ से र नही ह ै | वह सार े संसार म समाया
हआ ह ै |-
“नामा पाह े अवघा िजकड े ितकड े देव |
रोटे रता मा न िठस ेिच ||”
“सभु िविवद ु है सभु िविवद ु िवतु नह कोई |
सुतु हाक मिण सत साहस ज ैसे उित पोित भ ू सोई |
कहत नामद ेउ हर क रचना द ेखउ िहह ै बीचारी |
घट घट अ ंतर सर िनर ंतर क ेवल एक म ुरारी ||
५.२.३ ानोर भि
गीता म कहा गया ह ै िक ‘ानी सबक े आम वप िनग ुण परह का सााकार होन े पर
भी भाव ुकताप ूण अंत:करण स े तथा िनकाम ब ुि से ईर क े सगुण प क भि करत े है |
सत नामद ेव ने अमरण इस ानोर भि जीवन म योग िकया और उसका चार भी
िकया | उनके दीा ग ु िवसोबा ख ेचर ने उनको यही उपद ेश िदया था | नामदेव कहत े है –
चभागा नदी क े िकनार े बसा प ंढरपूर ही म ेरा तीथ थान ह ै, यिक यहा ँ अय , अय ,
िनगुण परह का िनधान िवल क े प म सदैव मेरे सामन े रहता ह ै | पहले भी महान भ
ने यहाँ ;िनधान ा िकया था ” िवसोबा ख ेचर ने नामद ेव को िनग ुण ह क अन ुभूित कराई
थी | िनगुण क अन ुभूित होन े पर िवसोबा ख ेचर ने नामद ेव के सगुण प िवल क भि
करने का उपद ेश िदया था | इसका कारण यही ह ै िक िवल परह क े तीक ह ै |
परमामा ान क ाि क े कारण नामद ेव को म ुि तो िमल गई थी ल ेिकन “ानाद ेवतु
कैवयम ” अथात केवल ान क े कारण ा होन ेवाली (केवल परह प होकर रहन े क)
कैवय म ुि को व े नह चाहत े थे | यिक म ुि ा होन े पर भी नामद ेव भि – सरता म
अवगाहन करना चाहत े थे |
नामदेव ने अपन े अनेक अभ ंगो म परमामा क े िनगुण परक ान स े मुि का तथा उसक े
साथ सग ुण – वप भि का वरदान मा ँगा है | नामदेव यह वीकार करत े है िक
“अत:करण म तेरा िनग ुण, िनराकार तथा अय प और त ेरा सग ुण साकार या प
देखकर म ेरा मन उम हआ | सतो क क ृपा से तेरी आ ंतबा यापकता म ुझे तीत ह ई
और म ुझम परवत न हआ |
भो म ानी भ सव े होता ह ै | वह अपन े यिव क े साथ अपना सव व परमामा
को समप ण करन े के कारण ईर प हो जाता ह ै, उसस े िभन नह रहता | भि क यह munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
47 चरम सीमा ह ै | एकपता का यह आनद अन ुभूित से सबध रखता है, उसका वण न नह
िकया जा सकता | नामदेव इस िथित का वण न करत े हए कहत े है – ‘मै अब उस अवथा
को पह ँच गया ह ँ, जहाँ पहँच कर म ेरी भि का आलबन प ंढरीनाथ िवल हआ ह ै | मै ही
अपना भ हो गया ह ँ | बधन और मो क ेवल मायाजाल ह ै ,कपना ह ै | पंढरीनाथ क
कृपा से मुझे इस सय का सााकार हआ | अब म ै हर का दास हो गया ह ँ | हर का दास
होने का अिभाय ह ै, भिव हर क े यिव म िवलीन कर द ेना | इस अवथा म ईर
और भ का ैत नह रहता | यही ानोर भि ह ै |
५.२.४ नाम – ेम क पराकाा
वारकरी सदाय प ूणत: वैिदक ह ै | नारद भि स ू म िदए गय े भि क े नौ कार इस
सदाय को माय ह ै | परंतु उन सब म नाममरण तथा कत न को अिधक महव िदया गया
है | मुख से िवल नाम का उचारण , कंठ म तुलसीमाला और एकादशी का त य े तीन इस
सदाय क े माय िसा ंत है | एकादशी का त रखकर भगवान का मरण तथा कत न
करने का िवधान य ेक वारकरी को ह ै | भि म नाम साधना का बड़ा महव ह ै | तुलसी न े
राम नाम क याया इस कार क ह ै - "राम एक तामस तीय तारी | नाम कोटी खल
कुमती स ुधरी ||" कहकर इसका महव ितपािदत िकया ह ै | लेिकन नाम महामा क े सगुण
भि स ंकरण क े पहल े सत नामद ेव ने इसक भ ूमी तैयार कर दी थी | नामदेव ने नाम-
साधना को बहत अिधक महव िदया था |
हरीनाम क मिहमा अपार ह ै | यही तो इस िव म एक तव ह ै | नामदेव कहत े है – हर का
नाम सार े संसार का सार ह ै | मैने हरीनाम पी नाव स े भवसागर को पार िकया –
हर नाव सकल भ ुवन तत सारा |
हर नाव नामद ेव उतर े पारा ||
हरनाम न े संसार म असाधारण नाम िलया ह ै | नामदेव कहा ह ै – हर का नाममरण करन े
से कमला ी िवण ू क दासी हो गई , शंकर अिव नाशी हए , ुव को अटल थान ा हआ
और हाद का उार हआ |
“हर नाव म िनज कवला दासी | हर नाव े संसार अिवनासी ||
हर नाव म िनल करया | हर नाव म हाद उघरया ||हर का नाम ल ेने से सबका
कलंक दूर हो जाता ह ै | मुख से राम कहत े ही उसक े मरण मा स े ाणी मा का उार हो
जाता ह ै | नाम क े महव को द ेखकर नामद ेव कहत े है िक राम नाम पी प ुंजी म मैने अपना
सब क ुछ लगा िदया | मुझे रामनाम क लगन लगी | मै उसस े अनु हआ –
रामनाम म ेरी पुँजी धना | ता मुंजी मेरौ लागौ मना ||
नामदेव ने अपन े मन को पूणत: नाम पर क ेित िकया था | वे रामनाम क ख ेती म लगे थे |
इस धन को न कोई चोर ल े जा सकता था न इस े काई इस पर अपना अिधकार जता सकता
है | नामदेव कहत े है – munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
48 राम नाम घ ेती राम नाम बारी | रमारै धन दावा बनवारी ||
या घन क द ेषऊ अिधकाई | तसकर रह े न लाग ै काई ||
५.२.५ गु कृपा का महव
िनगुण सदाय क तरह वारकरी सदाय म भी गु का थान सवपरी ह ै | नवीन साधको
के िलए तो ग ु ईर स े भी बड़ा होता ह ै, यिक ग ु कृपा ारा ही िशय भागवत क ृपा क
ओर उम ुख होना सीख पाता ह ै | िजस कार स ंपूण सत सािहय म गु को सव े माना
गया ह ै, उसी कार नामद ेव ने जीवन एव ं संसार म गु का थान सवपरी माना ह ै | सय
का अव ेषण और ान क ाि ,और िबना ग ु कृपा के भि समवय नह हो सकता ह ै |
नामदेव के िलए ग ु का श ु वैकुठ िसढी क े समान ह ै – गु को शद व ैकुंठ िनसरनी |
नामदेव का िवास ह ै क िबना ग ु साद क े कुछ ा नह होता | संत नामद ेव मानत े है िक
िबना ग ुकृपा के कुछ ा नह होता . सतगु क क ृपा से ही नामद ेव ने साधू का जीवन
हण िकया ह ै |संत नामद ेव को प ुरा िवास है िक अब उह िनवाण माग अवय ा हो
जाएगा | वे गु को छोडकर अय कह नह जाय गे |
नामदेव कहत े है िक म ै तो क ेवल ग ु क ही शरण म जाऊंगा िजसस े मेरा सभी कार का
िहत स ंबंध है –
जऊ ग ुदेऊ त स ंसा टूटै |
जऊ ग ुदेऊ त भऊ जल तर ै |
जऊ ग ुदेऊ न जनिम न मर ै |
िबनु गुदेऊ अवर नह जाई |
नामदेऊ गु क सरणाई ||
ईरोम ुखता क े कारण नामद ेव का जीवन सफल हो गया | दु:ख के थान पर उह सुख क
अनुभूित होन े लगी | गु ने नामद ेव को िनवा ण पद का माग बताया | नामदेव अपन े गु
िवसोबा ख ेचर का बड़ी ा से मरण करत े है | वे कहत े है िक उनक े कृपा साद स े ही मैने
तुलसी सी माता पायी | उहोन े सतग ु बनकर म ुझे परम तव का सााकार कराया |
खचर भ ूचर तुलसी माला ग ूर परसादी पाइआ |
नामा ण व ै परम तत ह ै सित ग ुर होई लखाइया ||
अपने सत कम से नर िकस कार ना रायण बन जाता ह ै यह बात म ुझे सतग ु ने बताई – '
'नर ते सूर होई जात िनमख म ै सतग ु बुी िसखला ह ँ||'

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
49 ५.२.६ ससंगित का महव
वारकरी सदाय जाित - यवथा का उम ूलन करता ह ै | अलगाव क थाओ का खडन
करता ह ै | बा आडबरो क े िनराकरण क अपील करता ह ै और अत म भि प ूण कथनी
- करनी और रहनी क यवथा करता ह ै | इससे उसन े एक नया समाज बनाया जो सस ंग
के नाम स े िस ह ै | यह सदाय एक समताम ूलक भिम ूलक तथा िनजी आिथ क
यवथा वाला सदाय एक समताम ूलक, भिम ूलक तथा िनजी आिथ क यवथा वाला
संगठन ह ै | यह िवर साध ुओ क जमात नह ग ृहथ भ का स ंगठन ह ै | वारकरी
सदाय क े सभी जीवन पय त अपना प ेशेवर काय करत े है |
ससंगित को सभी सतो न े भि का म ुख साधन माना ह ै | नामदेव हम ेशा सतो क े
सहवास क े िलए आत ुर रहत े है | वे अपनी आ ंतरक अिभलाषा य करत े हए कहत े है –
आज कोई िमलसी म ुनै राम सन ेही |
तब स ुष पाव ै हमारी द ेही ||टेक||
भाव भगित मन म उपजाव ै | ेम िती हर अ ंतरी आव ै ||१||
आपा पार द ुिवधा सबना स ै | सहजै आतम यान कास ै ||२||
जन नामा मन धारा उदास | तब स ुष पाव ै िमलै हरदास ||३||
अथात आज म ुझे कोई हर का दास िमल जाए तो म ुझे परम स ुख होगा , यिक वह म ेरे मन
म भाव भि को जाग ृत कर ेगा | मेरे मन क द ुिवधा को द ूर करेगा तभी म ुझम आमान का
काश फ ैलेगा | नामदेव कहत े है िक जब म ेरा उदास रहता ह ै तब सत स ंगित स े मुझे अपार
सुख िमलता ह ै |
जो यि िजतना हर क े भो स े दूर रहेगा वह हर अथा त परमामा स े भी उतना ही द ूर
रहेगा | नामदेव कहत े है िक हर क े अभाव म उस यि को म ुि कैसे िमलेगी ?
“जोता अ ंतर भगत स ू तेता हर स े होई |
नामा कह े ता दास क म ुि कहा ँ तै होई ||
नामदेव सस ंगित क े महव को प करत े हए कहत े है िक म ैने छीपे के घर म जम िलया |
मुझे िवसोबा ख ेचर ज ैसे गु का उपद ेश िमला तथा साध ू सतो क े सार स े मुझे भगवान क े
दशन सुलभ हो गय े –
छीपे के घरी जनम ु दैला गूर उपद ेशु भैला ||
सत क े परसादी ना मा हर भ ेटुला ||

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मराठी संत का िहंदी काय
50 ५.२. ७ वासय भाव क धानता
महारा म अय सदाय क अप ेा वारकरी सदाय का थान असाधारण ह ै |
वारकरय क िवल भि पावन ग ंगा है, िजसम े सभी जाित , धम, सदाय क े लोग ड ुबक
लगाकर म ुि के अिधकारी बन जात े है | वारकरयो क धारणा ह ै – िवल माऊली ेम
पाहा पाहावली अथा त िवल पी माता अपन े भ पी बालक को तनपान कराती ह ै |
सत नामद ेव ने भी अपन े मराठी अभ ंगो म इस वासय भाव का अिवकार िकया ह ै | वे
कहते है – िवल माऊली क म ुझ पर क ृपा ि ह ै | मरण करत े ही वह म ुझे तन -पान
कराती ह ै | मेरी भूख-यास िबना बताय े ही वह जान जात े है | घडी भर क े िलए भी वह म ुझे
छोड़न े के िलए त ैयार नह ह ै –
िवल माऊली क ृपेिच सावली | आठिवता घाली ेम पाहा |
न सांगता जाण े ताहा भ ूख | जवली यापक न िवसव े ||
नामदेव क िहदी रचनाओ म भी भ क भगवान क े ित िमलन – उकृा क मध ुर
अिभयि हई ह ै | इसे वे तालाब ेली शद स े परिचत करात े है िजसका अथ है –
याकुलता िजसम े तीता ह ै आतुरता ह ै नामद ेव कहत े है – हे भगवान ! तुमसे िमलन े के िलए
मै इतना आत ुर हँ, याकुल हँ, जैसे एक बछडा अपनी गो माता स े िमलन े के िलए याक ुल
होता ह ै | जैसे मछली पानी क े िबना तड़पती ह ै, ठीक व ैसे ही राम नाम क े िबना ब ेचारा
नामदेव याक ुल है –
'पािणया िबन मीन तलफ़ ै | ऐसे राम नाम िबन बाप ुरो नामा |
तन लािगल े ताला ब ेली | बछा िबन गाई अक ेली ||
५.३ सारांश
सत नामद ेव का भिभाव अजीब तरह का ह ै | भगवान िवल क भि म लीन यह सत
अपने िनय यवहार क वत ूओ के पक बा ंधता ह ै | दज क े घर क ैची और कपडा तो
िनय क वत ू है | इही का पक बा ंधकर नामद ेव ने मन को गज बनाया | िजहा क क ैची
बनाई और यमरा ज के भवपाश स े मु होन े क िया श ु क | कमकाड , बााडबर ,
जप, तप क े झमेले म न पडत े हए अपना यवसाय करत े हए, ईर क े नाम का उचारण
करते-करते सहज स े संसार सागर पार करना , नामदेव का परम िसा ंत है |
नामदेव सत थ े, वे सभी को समान प स े उपद ेश करत े थे | चाहे िहंदू हो चाह े मुसलमान ,
चाहे व र ंगानेवाला हो , चाहे िसलाई करन े वाला -
' रांगिन र ंग िसवनी िसवऊ | राम नाम िबन घडी न जीवऊ ||
भगित करत हर क े गुण गावऊ | आठ हर अपना खसम िधआवउ ||'
िवल का नाममरण करत े समय नामद ेव को लोह े क स ुई सोन े जैसी तीत होती ह ै और
कपास का धागा चा ंदी जैसा | munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
51 सोने क स ुई प े का धागा | नामे का िचत हरस ंग लागा |”
िवल क े सगुण िनग ुण प म समवय करक े, नाममरण क महा को नामद ेव ने
ितपािदत िकया एव ं गु क क ृपा तथा सस ंगित का होना भि क े िलए अिनवाय माना |
५. ४ दीघरी
1) सत नामद ेव क भि भावना को सोदाहरण प किजए ?
2) सत नामद ेव क भि म सगुण – िनगुण दोनो का समवय हआ ह ै इस कथन पर
काश डािलए |
५. ५ लघुरीय
१) भागवत धम के उपथापक िकस े कहा जाता ह ै ?
२) भागवत धम क उपि कथा कहा ँ िमलती ह ै ?
३) बधम म िकसक े गीत स ंिहत ह ै ?
४) भागवत म यास िकसक े मुख से भि क सारगिभ त याया कराई ह ै ?
५) नारद क े अनुसार भि या ह ै ?
६) िनगुण-सगुण क एकता को नामद ेव िकस ा ंत ारा मािणत करत े है ?
७) नामदेव िनगुण – सगुण के अैत को िकस ा ंत ारा प ु करत े है?
८) नामदेव के गु का नाम या था ?
९) ानोर भि िकस े कहत े है ?
१०) वारकरी सदाय क े तीन माय िसा ंत या ह ै ?
११) नामदेव िकसक ख ेती म लगे थे ?
१२) नामदेव के िलए ग ु का शद िक सके समान ह ै ?
१३) तालाब ेली का या अथ है ?
१४) नामदेव के वल िकसक े तीक ह ै ?


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मराठी संत का िहंदी काय
52 ५. ६ सदभ थ
1) सत नामद ेव क िहदी पदावली , सं. भगीरथ िम , राजनारायण मौय , पूना,
िविवालय प ूना, . सं. १९६४
2) उरी भारत क सत परपरा , परशुराम चत ुवदी, लोकभारती काशन , याग, राज
०१, पुनमुण २०२० .
3) सत काय , पं. परशुराम चत ुवदी, िकताब महल , इलाहाबाद , सं. २०१७ ,
4) सत नामद ेव क . गो. वावरण े गुजी, काशन िवभाग , भारत सरकार , नईिदली .
5) िहदी और मराठी का िनग ुण सत भाकर माचव े, चौखाबा िवाभ वन वाराणसी डॉ .
भाकर माचव े, चौखबा िवाभवन , वाराणसी , .सं. १९६२
6) िहदी िनग ुण काय का ारभ और नामद ेव क िहदी किवता , डॉ. शं. के. आडकर
रचना काशन , इलाहाबाद , . सं. १९७२
7) मराठी सतो क िहदी वाणी , सं. आनद काश दीित , पंचशील काशन , जयपूर,
०३, . सं. १९०३
8) महारा क े सतो का िहदी काय , भाकर सदािशव प ंिडत, उर द ेश िहदी
संथान , लखनऊ , .सं. १९९१
9) िहदी को मराठी स ंतो क द ेन, िवनयमोहन शमा , िबहार राभाषा परषद , पटना,
०३, माच १९५७
10) पांच सत किव डॉ . श. गो. तुलपुले, हीनस काशन प ुणे, सन १९६२ .



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53 ६
संत तुकाराम यिव और क ृितव
इकाई क परेखा
६.० इकाई का उेय
६.१ तावना
६.२ संत तुकाराम का जम और बालकाल
६.३ िववाह
६.४ ककाल
६.५ भि क और उमुख
६.६ गाथाल ेखन क ेरणा
६.७ गु का सााकार
६.८ भि क चीित और िशवाजी महाराज भट
६.९ वैकुंठ गमन
६.१० सारांश
६.११ दीघरी
६.१२ लघुरी
६.० इकाई का उेय
महारा राय म संत ानेर से लेकर संत तुकाराम तक एक बड़ी ंखला म संत परंपरा
चली और आगे चलकर इस परंपरा का िनवहन आज भी वारकरी संदाय बड़ी ही भि
भावना के साथ कर रहा है |
६.१ तावना
भारत द ेश म भि पर ंपरा सिदय स े चली आ रही ह ै | भि भाव हर एक दय को स ुख
और शा ंित दान करता ह ै इसीिलए भि काल स ंबंधी कायधारा सािहय का वण युग
कहलाती ह ै संपूण भारत द ेश कई राय म बँटा हआ ह ै वहाँ क भाषा - बोली, रहन - सहन,
रीित - रवाज , परंपराएँ सब एक द ूसरे से अलग ह वह ईर एक होत े हए भी हर राय म
उसके एक अलग प क उपासना क जाती ह ै भि क जाती ह ै और वह भि भावना भी
अपना एक अलग प िलए होती है उह म मुख है | महारा राय क संत परंपरा और
वारकरी संदाय |
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मराठी संत का िहंदी काय
54 संत तुकाराम यिव और क ृितव
मराठी संत काय का ारंभ 13 व सदी से 18 व सदी तक माना जाता है | इस कार 600
वष के दीघ काल तक महारा संत परंपरा सवम प म रही । इस दीघ काल म
संतकाय के अययन ारा तकालीन समय क सामािजक आिथक, राजनीितक और
सांकृितक आिद परिथित को हम आसानी से जान सकत े ह, समझ सकत े ह और इन
सभी परिथितय को समझन े के पात हम ात होता है िक जो मुख सा महारा म
थी वह थी संतो क सा उनक वाणी क सा यिक संत क भाषा और उनका चर
और उनके काय म भरी िमठास और सुणी वाणी लोक मन पर अपना राय करती है |
महारा म संत िवचार धारा का ारंभ संत ानेर ारा माना जाता है सवथम संत
ानेर ने ही आयािमक िवचारधारा क नीव महारा म रखी और इसी िवचारधारा को
आगे भाई भ, संत नामदेव, ानद ेव और 17 व शतादी म संत तुकाराम के ारा वारकरी
संदाय को एक नविवचार िमला िविवध संदाय क थापना हई और भि का योय माग
िदखान े के िलए कई महानुभावपंथ और वारकरी संदाय ने यथे काय िकए ।
६.२ संत तुकाराम का जम और बालकाल :-
संत तुकाराम महाराज का जम देह ाम माना जाता है | देह आज एक बड़े तीथ े के
प म याित ा है | देह ाम महारा म पुणे महानगर से 30 िकलोमीटर दूरी पर बसा है
इसी गांव से थोड़ी दूरी पर आलंदी तीथ े है जो संत ानेर क जमभ ूिम और कम भूिम
मानी जाती है ।
देह ाम के िवषय म एक िकवद ंती है जो इस ाम को तीथ े बनाती है - तुकाराम महाराज
िवशंभर बाबा के आठव े वंशज है कहा जाता है िक इनके घर म भि परंपरा का िनवास
सिदय से चल रहा था िवशंभर बाबा पंढरपुर म बसे पांडुरंग िवल भगवान के एक िन भ
थे िनत, िनयम से हर साल पंढरपुर क वारी करत े थे लेिकन ब ुढ़ापा और हाथ प ैर का ना
चलना उनक े पंढरपुर जाने म कावट बनने लगा लेिकन उनको एक पल भी चैन नह
िमलता पल पल यही लगता िक कब म पंढरपुर पहंच जाऊं उनक इस मनोयथा को
जानकर समझकर वयं भगवान िवल उनके सपने म आए और उनसे कहा आप मेरे पास
ना आइए म ही आपक े पास आजाऊ ंगा | देह के पास एक आंबलवन है वहाँ जाकर मुझे ले
आओ , िवशंभर बाबा ने जब दूसरे िदन अपना यह सपना सभी गांव वाल को सुनाया तो
सभी गांव वाले उनक भि और एक िना को जानत े थे इसीिलए उनके साथ आंबलवन
चल िदए वहां जाकर उह भास हआ िक अभीर ओर चंदन क खुशबू से वन महक रहा है
वही एक जगह उहे तुलसीप और बुका िदखा तुलसीप और बुका देखकर िवशंभर बाबा
को भास हो गया िक मेरे पांडुरंग मुझे यही िमलगे जैसे जैसे वह उस जगह को खोदत े
तुलसीप और बुका िनकलता ही जाता जब उहन े अपना खोदना जारी रखा तब उह
िवल और मणी क सुंदर मूित िमली उन मूितय को देखकर उनका आनंद िगिणत हो
गया | उहन े मन ही मन िवल का यान कर आनंद से भजन गाते हए उस मूित को अपने
घर ले आए और षोडोपचार से मूित क थापना क उसी जगह देह ाम म िवल मणी
का मंिदर आज भी है इसी जगह पर बैठकर तुकाराम महाराज िवल के भजन गाया करते थे munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
55 आगे चलकर तुकाराम महाराज के पु नारायण बाबा ने सन 1704 म इसी जगह मंिदर क
थापना क ।
संत तुकाराम महाराज के जम के िवषय म कई िवान म मतभेद ह तुकाराम महाराज के
पहले चर लेखन करने वाले िवान मिहपित बुवा ने तुकाराम महाराज का जम संवत
1530 माना है | िवान वी. का. राजवाड़ े के अनुसार तुकाराम महाराज का जम संवत
1490 है, िवनायक कडे ओक के मतान ुसार तुकाराम महाराज का जम 1510 माना गया है
परंतु इन सभी िवान से उच तय तुकाराम महाराज के जम के िवषय म वयं तुकाराम
गाथा म हम िमलता है तुकाराम गाथा म संत तुकाराम का जम संवत 1608 माना गया है |
संत तुकाराम का घर गा ंव म ितित और खानदानी माना जाता था | उनके य ह ां
साहकारक चलती थी उनक े यहां बहत बड़ े खेत भी थ े घर क परिथित आिथ क ि स े
बहत अछी थी और िवल भि का भाव उह अपने परवार म पूवज स े िमला | संत
तुकाराम क े िपता का नाम बोहोबा था | बोहोबा सयवादी , परोपकारी यिव के धनी थे
| िनय पंढरपुर क वारी जैसे सािवक कम करने वाले थे उह 3 पु हए सावजी , तुकाराम
और काहोबा । उनके घर म िनय ित कतन, वचन , गीता भागवत आिद के पाठ होते
रहते और इह संकार म संत तुकाराम का पालन पोषण हो रहा था | घर म साहकारी का
काय होने के कारण तुकाराम बचपन म ही िलखना और पढ़ना सीख गए थे । घर क
आिथक परिथित सुढ़ होने के कारण उनका बचपन खेलते - कुदते, सुख और आराम म
यतीत हआ इस िवषय म वयं तुकाराम महाराज ने तुकाराम गाथा म िलखा भी है िक िकस
कार उहन े अपनी 12 वष क आयु िम के साथ खेलने म िबताई |
"बाळपण े ऐस वष गेल बारा।ख ेलतां या पोरा नानामत ।।१।।
६.३ िववाह :-
उनके सर पर कोई जवाबदारी नह थी माता िपता का अपार ेम उह िमल िमल रहा
था।उ के 13 वष म संत तुकाराम का िववाह रखुमाई से हआ तुकाराम महाराज ने वैवािहक
जीवन और गृहथी क जवाबदारी बहत अछे से संभाली उह संतुजी नामक एक पु भी
था | उनक गृहथी सुख और आराम के साथ चल रही थी तभी तुकाराम क पनी
रखमाबाई को दमे का गंभीर बीमारी हई िजसका कोई इलाज नह था इस परिथित को
देख उनके माता-िपता बोहोबा और कंकाई ने उनका दूसरा िववाह जीजाबाई से कर िदया
उस समय तुकाराम क उ 17 वष क थी पहली पनी रखुमाई ने यह सब वखुशी से
वीकार िकया था इसीिलए उनक घर गृहथी दूसरे िववाह के पात भी बड़े आनंद से
यतीत हो रही थी माता-िपता का ेम और आशीवा द से उनका घर खुशहाली से भरा था
यापार और यवसाय भी उनित पर था |
६.४ ककाल :-
संत तुकाराम क े जीवन म यह सब सुख यादा िदन िटकन े वाला नह था | उनके िपता का
देहांत हो गया और थोड़ े ही समय म उनक माता भी चल बसी | िजस कार स ंत तुकाराम
ने सुख वैभव का त ुकाराम गाथा म वणन िकया ह ै उसी कार इन द ुख का भी वण न
तुकाराम गाथा म िमलता ह ै अपन े माता-िपता क े जाने से दुखी होकर व े िलखत े ह munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
56 "संवसारे जालो अित द ुःखे - दुःखी।
माय-बाप स ेखी िमिलया ँ ||
इस कार इस पद स े प ह ै िक उनक े माता -िपता का द ेहांत एक क े उपरा ंत एक शी ही
हो गया था | माता - िपता क े देहांत के पात यापार क जवाबदारी बड़ े भाई सावजी को
लेना चािहए था ल ेिकन सावजी िवर वभाव क े थे और उसी समय काल म तपात
सावजी क पनी का भी िनधन हो गया सावजी िनराश होकर तीथ याा को चल े गए तो
वापस लौट े ही नह घर क स ंपूण जवाबदारी स ंत तुकाराम पर आ गई और उनका ह ंसता
खेलता घर परवार , समृ आिथ क परिथित दो-तीन साल म िनधन और िनब ल हो गई |
इतनी बड़ी कौट ुिबक आपदा स े संत तुकाराम हतबल हो गए यह सब इतना अचानक हआ
िक ईर न े इस परिथित स े संवरने का मौका ही नह िदया इतन े बड़े दुख का वण न उनक े
इस अभ ंग से हम ात होता ह ै ।
सावजी "बाईल म ेली मु झाली , देवे माया सोडिवली ।। १।।
िवठो त ुझे माझे राय ,नाही द ुसयाच े काज ।।ध ृ ।।
पोर म ेले बरे झाले ।देवे माया िवरिहत क ेले ।।२।।
माता म ेली मज द ेखता । त ुका हण े हरली िच ंता ।।३।। ७७८

संत तुकाराम पर आयी मुसीबत यही थमने वाली नह थी अभी तो कृित ने कहर ढाना
बाक था | सन 1629 - 30 म पूरे महारा राय म भयंकर सूखा क परिथित िनमाण
हो गई थी | िकसी के पास अन - पानी नह था, कई पशु-पी भी िबन पानी के तड़प तड़प
कर मर गए, नदी,नाले, तालाब , झरना आिद का पानी भी सूख गया दो साल बारश ना होने
के कारण खेत म कुछ उपज नह हई महंगाई बढ़ गई और संत तुकाराम का यवसाय भी
बंद हो गया | वह बैल के ऊपर नमक ढोने का और बेचने का काय करने लगे । और इससे
जो पैसे उह िमले वह भी उहन े गरीब को दान कर िदए इसी बीच आिथक दुदशा के
कारण उनक पहली पनी का देहांत हो गया और तपात उनका बेटा भी वग सुधार गया
ऐसी परिथित म संत तुकाराम के दुख का कोई पारावार ही नह रहा बस गृहथ जीवन
के दो चार साल ही वे सुख से बीता पाए अपनी आप बीती को उहन े इस पद के ारा य
िकया है।
दुकाळे आिटल े ये नेला मान । ी एक एक अन अन करता म ेली ।।३।।
लजा वाट े जीव ासलो या द ुःखे । वेवसाय द ेखे तुटीयेतां ।।४।।१३३३

संत तुकाराम के इस पद से हम अंदाज लगा सकत े ह िक तकालीन समय म अनिगनत
लोग अन जल के िबना चल बसे जब िकमत खराब होती है तो मुसीबत चार ओर से
आती ह ऐसा ही संत तुकारामजी के साथ हआ जब वह जानवर पर ढोकर सामान बेचते थे
लेिकन सुखा क भयावह परिथित के कारण जानवर भी मर गए और अब संत तुकाराम
पीठ पर ढोकर सामान बेचने लगे उनके सरल वभाव के कारण उनके साथ एक दो बार
ठग ने उनका सामान और पैसे चुरा िलए इस परिथित से उनके जीवन म अमूयपरवत न
आया सांसारक सुख उह िणक लगने लगा और यह सुख णभंगुर है ऐसा उह ात
होने लगा उनका मन घर गृहथी से िवरल होने लगा और धीरे-धीरे भागवत भि क ओर munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
57 जुड़ने लगा इस संबंध म उनके एक पद म उहन े वयं को दयनीय बताया है | वह
सांसारक जीवन को बोझ समझन े लगे और इस का बोझ ढोते-ढोते थक गए |
"संवसारताप े तापलो मी द ेवा । करता ं सेवा या क ुटुंबा ची ।। १।।
वािडय ेली चोरी अ ंत ायाकारी । कणव ना करी कोणी माझी ।। ३।।
बह पा ंगिवल बह नागिवल ।बह िदवस झालो कासावीस ।।४।।" ९१

६.५ भि क ओर उम ुख :-
इस कार इन अपार क को भोगने के बाद संत तुकाराम गृहथ जीवन से अवथ हो
िवल भि क ओर उमुख हए | अयंत ासदी और गृहथ जीवन म दुख - पीड़ा के
अितर और कुछ नह था | आिथक परिथित इतनी खराब हो गई थी िक सर पर कज
बढ़ गया था उनक पनी जीजाबाई चाहती थी िक संत तुकाराम घर संसार क बागडोर
अछे से संभाले लेिकन तुकाराम काम न तो िवल भि के माग पर चल पड़ा था और यहां
से पीछे मुड़ना अब ना मुमिकन था | तुकाराम अब अपने आराय िवल को पाना चाहते थे
यही उनके जीवन का एकमा उेय था घर गृहथी का याग उहन े कर िदया और संसार
से दुखी होकर लोक िनंदा क ासदी से बेचैन होकर देहाम के पास धामिगरी नामक पवत
पर जाकर हर भि का िचंतन मनन अथात तपया करने लगे। परमाथ क ओर संत
तुकाराम इतने आकृ हो चुके थे िक उनका आठ हर भगवत भि म ही लीन होता था
उहन े ानेरी, एकनाथी भागवत का अछी तरह से अययन िकया सुबह जदी उठकर
िवल मंिदर म पूजा अचना करते, िदनभर एकांत वास म नाममरण करते, ंथ का वाचन
करते और राी के समय भगवान क भि और कतन सुनने म अपना समय िबतात े उनके
परमाथ म इतना आयाम आ चुका था िक उहन े परमाथ लीन होकर यह पद िलखा।
"बरे झाले देवा िनघाल े िदवाळ े । बरी या द ुकाळे पीडा क ेली ।।१।।
अनुताप तुझे रािहल े िचंतन ।जाला हा वमन स ंवसार ।। ु. ।।" १३३५

भि म लीन तुकाराम क वाणी अब परम - परमाथ साधकर ऐसा मानने लगी थी िक जो
हआ वह अछा हआ | अछा हआ िक घर गृहथी यवसाय म मेरा िदवाला िनकल गया
और यह जो सूखे क परिथित आई वह भी अछा हआ यिक इस परिथित के कारण
ही तो म जीवन का सार समझ पाया और घर गृहथी को छोड़कर भगवान क भि म लग
गया | संत तुकाराम का कहने का पयाय है यिद मेरी गृहथी सुख समाधान से चल रही
होती और आिथक परिथित भी सुढ़ होती तो म गृहथ जीवन छोड़कर भगवत भि क
ओर कभी आही नह पाता यिक इन िवकट अनुभव से तो उहन े यह ान पाया था िक
जीवन नर है, संसार नर है और इस संसार म दुख के िसवा और कुछ नह िमलेगा सुख
को पाना है तो वैराय क और आना पड़ेगा इस कार उनके पूवज िवशंभर नाथजी ने जो
मंिदर बनाया था वह उसी म बैठकर भगवान िवल का नाममरण और जप करने लगे और
उनका जीवन िवल मय हो गया सोते उठते जागत े बैठते िसफ िवल नाम का यास ही
उनके तन और मन म रहता उहन े एक पद म कहा भी है | munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
58 'बोलावा िवल , पहावा िवल । करावा िवल जीव भाव ।।
येणे सोसोमन जाल े हावभरी।परती माघारी य ेत नाही ।। "

इस कार संत तुकाराम का तन–मन-धन िवल भि म लीन हो गया लेिकन अभी तक
कोई गु उह नह िमले थे| जीवन के हर पथ पर गु का मागदशन मुख माना जाता है|
संत तुकाराम ंथ के अययन और मनन म ही इस संदभ म सब कार जानकारी से वयं
को आलािवत कर रहे थे भगवान क िनय पूजा करना एकादशी का उपवास करना ,
कतन करना , नाममरण करना , ानेरी, एकनाथी भागवत और रामायण जैसे ंथ का
अययन करना उनका िदन म बन चुका था लेिकन जब सु का िवचार उनके मन म
आया तो वयं िवल भगवान को ही उहन े अपना गु मान िलया और िवल भगवान को
ही माता - िपता, गु - बंधु सब वीकार कर िलया और परमाथ क ओर गित का माग
असर हो उठा यिक सु के प म वयं िवल क कृपा ि उनपर थी |
६.६ गाथा ल ेखन क ेरणा
तुकाराम गाथा लेखन के संदभ म कहा जाता है िक सतस ंग गु अथात िवल और
संतनामद ेव ने उह काय क ेरणादी | एक िकवद ंती के अनुसार एक रात संत नामदेव
और भगवान िवल उनके सपने म आए और उनसे कहा अब कतन भजन बहत हो चुका
अपनी वाणी को एक थान दो उसे ऐसे यथ ना जाने दो इस कार वयं भगवन और संत
नामदेव के कहने पर उहन े काय रचना ारंभ क इस िवषय म एक पद म उहन े कहा है।
"आपया बळ े नाही मी बोलत । सखा भगवत वाचा याची ।। १।।"२९५०
"नामदेव केले वना माजी जाण ।सव पांडुरंगे येऊिनया ं ।।
सांिगतल े काम कराव े किवव ।वाऊग े िनिमय बोलो नको ।। "१३२०

इस कार संत तुकाराम का प लेखन का काय ारंभ हो गया और उनक आयािम कता
क ओढ़ बढ़ने लगी, उनका मन समाधानी और शांित क ओर लगने लगा, संसार से वे दूर
और अयाम के पास आने लगे अब उनक िच वृि म और यान म उनके सामन े िसफ
िवल ही थे ।
६.७ गु का सााकार
संत तुकाराम महाराज भगवान िवल को ही अपना गु मानते थे लेिकन जब गुमं क
बात आती है तो जब गु िशय के कान म गु मं कहता है वही साथक गु िशय परंपरा
मानी जाती है | कहा जाता है िक भगवान िवल का सााकार संत तुकाराम को हआ
वयं संत तुकाराम ने इस घटना का वणन तुकाराम गाथा म िकया है उनके एक पद म
िलखा है िक माघ शु दशमी गुवार क राि एक सपना आया और उस सपने म तुकाराम
महाराज गंगानान के िलए जाते ह राते म उह सपुष िमलत े ह उहन े अपना नाम
बाबाजी बताया और वह सपुष महाराज के सर पर हाथ रखकर रामकृण हरनामक मं
का ान उह देते ह और राघव चैतय केशव चैतय गु परंपरा का पाठ पढ़ाकर उनसे
भोजन के िलए पाव भर घी मांगते ह महाराज घी लाने के िलए जाते ह और आकर देखते ह munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
59 तो वहां कोई नह है महाराज दुखी हो जाते ह िक वह गु क कोई सेवा नह कर पाए इस
घटना का वणन उहन े इस कार िकया है |
"सगुराये कृपा मज क ेली | पर नाही घड़ली स ेवा काही || १||
सापंडिवल े वाट जाता ग ंगा नाना | मतक तो जाना ठ ेिवला कर || ु ||
भोजन मागती त ूप पावश ेर | पिडला िवसर वनामाजी ||३ ||
काय कळ े उपजला अ ंतराय । हणोिनया ं काय वरा झाली ।। ४।।
राघवच ैतय, केशवचैतय ।सा ंिगतली ख ूण माळीक ेची ।।५।।
बाबाजी आप ुले सांिगतल े नाम ।म िदला राम क ृण हर ।। ६।।
माहो श ु दशमी पाहिन ग ुवार ।केला अ ंगीकार त ुका हण े।।७।।" ८

६.८ भि क चीित और िशवाजी महाराज भ ट
संत तुकाराम को िमलन े वाली सांसारक पीड़ाओ ं का अभी िवराम नह हआ था उनक
भगवत भि क पराकाा जानकर भी अंबाजी और सालू मालू जैसे ढगी उनका ेष करते
रहे नाना कार का छल उनके साथ हआ परंतु तुकाराम महाराज क भगवत भि का
ताप उनके ोध को ितलांजिल दे चुका था इसीिलए िकसी भी गैरवतन क परवाह िकए
िबना वे अपनी िवल भि म लीन रहे और हर क परेशानी से उह वयं भगवान िवल
उनको तारते रहे ऐसे अनेक संग तुकाराम गाथा म है जब भगवान ने वयं आकर उनके
और उनके परवार क रा क है | रामेर भ ने संत तुकाराम के पद पर आपि जताई
और उह बुलाया और कहा िक तुम जाित के शू हो इस कार क काय रचना या
भगवान भि का पाठ - पठन तुहारा काय नह है अपनी सभी काय कृितयां जाकर नदी
म फक आओ | तुकाराम महाराज ने उनक आा मानकर अपना संपूण रचना काय नदी
म िवसिज त कर िदया और उदास होकर आंख म आंसू िलए िदन रात िवल िवल नाम
का जप करने लगे कहा जाता है िक भगवान िवल ने उह ांत िदया और कहा िक जाओ
नदी म से अपनी सभी का कृितयां ले आओ वह सुखी क सूखी है िबकुल गीली नह हई
है | कहा जाता है िक रामेर भ का शरीर वाला के समान जलन े लगा यह दाह िकसी भी
उपचार से कम ना हई जब ानेर महाराज ने उह ांत देकर कहा िक तुम तुकाराम के
चरण म जाओ तभी तुहारी यह दाह कम होगी तब रामेर भ तुकाराम महाराज के चरण
म जा िगरे और उनक सभी यािध समा हो गई | वे बाद म आजीवन तुकाराम महाराज के
िशय बनकर रहे इस कार क अनेक कथाओ ं से और भगवत भि से भरी पद लीलाओ ं
से संत तुकाराम महाराज क मिहमा शी ही अलौिकक हो गई , उनक कित इतनी फैल
गई क वयं िशवाजी महाराज भी उनके कतन भजन सुनने आया करते थे उनके एक
अभंग म इस बात क पुि इस कार हई है |
"पाईक तो जा राखोिनया ं कुळ ।पारिखया म ूळ छेदी दुा ।।१।।
तो एक पाईक पाईका ं नाईक ।भा व सकळीक वािमकाज ।। ु ।।"


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मराठी संत का िहंदी काय
60 ६.९ वैकुंठगमन
संत तुकाराम महाराज ने अपने जीवन काल म सामािजक , आिथक, धािमक सभी धरातल
पर अहम भूिमका िनभाई उनका सािहय समाज के िलए एक आदश प म आज भी
ासंिगक है | जीवन के हर पहलू को एक िनवाण और भि के िको ण को थािपत करते
हए उजवल जीवन क कामना से भरा हआ तुकाराम गाथा ंथ एक आदश प है भि
का और भि क शि का | गृहथ जीवन जीते हए िकस कार धािमक भावना का बोध
हर यि दोन म समतोल बनाकर सावना से अपना जीवन जी सकता है यह तुकाराम का
सािहय हम बताता है |
संत तुकाराम क अंतरामा को इस बात का यान हो जाता है िक अब भु से िमलन क
घिटका बहत पास है उह भु िमलन क आतुरता होने लगती है इससे संबंिधत कई पद
तुकाराम गाथा म िगत होते है |
"आतां कशा साठी द ुरी अंतर उरी रािखली ।। १।।
--------------------------------------------------
तुका हण े वेग हावा ।ऐसी िजवा उतक ंठा ।। ४।।" १७

इस कार का प संत तुकाराम भगवान को भेजते ह और उनसे िमलन े क उकंठा प म
य करते ह और भगवान के घर को वे मायका मानते ह और मायके जाने के िलए अयंत
आतुर हो इस कार अपनी आतुरता य करते ह |
“आपला माह ेरा जाईन मी आता ।िनरोप या स ंतां हाती आला ।। १।।
--–------------- /-------------------- /--------------------- /---------
तुका हण े आता य ेतील यावया ।अ ंगे आपुिलया माय बाप ।। ५।।" १८

संत तुकाराम के संबंध म ऐसी मायता है िक वयं भगवान िवल उह लेने आए तब संत
तुकाराम आनंिदत होकर उह अपने घर ले गए और खाना िखलाया | उनक पनी िजजाऊ
ने भगवान के िलए अनाज के दाने उबालकर िखलाए भगवान ने आनंद से वह दाने खाए इस
संग का वणन संत तुकाराम ने बहत ही सुंदर शद म िकया है |
"पाहणे घराशी आज आल े षीक ेशी ।।१।।
काय क उपचार ।कोप मोडक जज र ।।२।।
दरीदरत पाया -।मांजी रांिधयेया कया ।। ३।।
घरी मोडकया वाजा ।वरी वाकड ्यांया श ेजा ।।४।।
मुख शुि तुळसी दळ ।त ुका हण े मी दुरबळ ।। ५।।"२०

और अंत म फाग ुन ितिथ ितीय को ातः काल के समय संत तुकाराम महाराज ने
जीजाबाई से अंितम भट क और उह आशीवा द िदया के वे अपने पु नारायण से सह
सुख ा करगी और अंत म समाधान य करते हए मंिदर क ओर िनकल पड़े | मंिदर म
बहत बड़ा जम घट भजन-कतन म लगा था | तुकाराम महाराज उह उपदेश देते हए कहते munotes.in

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सत नामदेव क दाशिनक िवचारधारा
(दशन)
61 ह िक म अपने गांव जाता हँ और आप लोग को आिखरी राम-राम करता हँ यह से मेरी
जम लीला समा होती है मुझसे कुछ ुिट हई हो तो मा करना यहां रहकर आप लोग
िवल क भि करना , रामकृण का जप करना और इस कार के उपदेशगत वचन देकर
वे वैकुंठ गमन करते ह उनके आिखरी वचन इस कार शदगत हए ह |
"आही जातो तुही कृपा असू ावी ।सकळा ं सांगावी िवंनती माझी।। १।।
वाड वेळ झाला उभा पांडुरंग। वैकुंठा ी रंग बोलिवतो।। २।।
अंतकाळी िवठो आहा ंसी पावला। कुडी सिहत झाला गु तुका। ।३।।"२४
६.१० सारांश
उ इकाई म संत तुकाराम के जम, जीवन के िवषय म अययन िकया | संतो का चर
उवल उनका जीवन वास खडतर होता है | वे अिन के समान तप कर संसार को
रौशनी देते है | उनका देह सुख भोग के िलए नह वरन मानव जीवन के ान परमाज न िलए
है | ऐसे संत के जीवन और कृतव का अययन करना हमारे िवचारशीलता और िकोण
को सही िदशा क ओर असर करना है | इस इकाई के अययन से िवाथ संत तुकाराम
महाराज के जीवन और उह िमले क का अपार सागर को जान सके है साथ ही क दायी
जीवन को ईर भि म लीन कर जम क साथकता का ान िदया है |
६.११ दीघरी
१. संत तुकाराम महाराज के यिव और कृितव पर काश डािलए |
२. संत तुकाराम महाराज के जीवन वृतांत का वणन किजए |
६.१२ लघुरी
१. संत तुकाराम महाराज का जम थान कौनसा ह ै ?
उर - देह ाम
२. िवान वी . का. राजवाड़ े के अनुसार त ुकाराम महाराज का जम स ंवत ह ै
उर - संवत १४९०
३. सावजी और काहोबा स ंत तुकाराम क े साथ या रता था ?
उर - भाई का
४. संत तुकाराम महाराज िकस था न पर जाकर हर भि का िच ंतन मनन अथा त तपया
करने लगे।
उर - धाम िगरी नामक पव त
५. संत तुकाराम महाराज क े गु ने उह कौनसा म ं िदया ?
उर - राम क ृण हर म ं


munotes.in

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६२ ७
सत त ुकाराम क िवल भि
इकाई क पर ेखा
७.० इकाई का उ ेय
७.१ तावना
७.२ ी िवल भगवान
७.३ भ पुंडिलक और पंढरपुर
७.४ संत तुकाराम महाराज क े काय म सगुण और िनग ुण भि भाव
७. ५ भि का िनग ुण माग
७. ६ नवधा भि
७. ७ सारांश
७. ८ दीघरी
७. ९ लघुरी
७.० इकाई का उ ेय:-
संत तुकाराम क भि भावना सवा गीण प स े परप ूण और भि क पराकाा को य
करता ह ै | ईर क भ ट उनक े साात ् वप क े दशन उनक े भि माग के अययन क
ओर हम आकिष त करते है | इस इकाई म हम त ुकाराम महाराज क भि क े सभी मायम
और सभी माग का िवत ृत अययन कर गे
७.१ तावना :-
महारा राय म वारकरी स ंदाय और स ंत भि भावना को कौन नह जानता | भगवान
िवल वारकरी और स ंत के आराय द ेव िजह भागवत धम म भ न े शीष थान पर रखा
है और उनक भि तन - मन - धन स े क ह ै | हम स ंत तुकाराम महाराज क बात कर तो
उनका जम एक स ुख संपन भर े परवार म हआ ल ेिकन अपन े आधे जीवन म सुख भोगन े
के बाद जब आगामी जीवन म ुसीबत और स ंकट स े भर गया सभी धन - जायदा द तबाह हो
गई, कज सर पर चढ़ गया , जो मान मरातब समाज म उनक े परवार क थी वह भी ध ुंधली
हो चली | लोग म ुंह पर ही उनका अपमान करन े लगे ऐसी िवकट परिथित म उहन े
उनके परवार म कुल स े चली आ रही भागवत भि का सहारा उहन े िलया यह िवल
भि या भाग वत भि उनक े िलए नवीन नह थी यिक यह तो प ुत स े उनके परवार क े
संकार थ े जो उनम रचे बसे थे इसी म ूल को उहन े अंतयान कर इस मोह माया भर े
जंजाल पी स ंसार को छोड़ िवल को आराय बना उसक शोध म िनकल पड़ े उनक
भि भावना परमोकष ता का अ यंग गुण तुकाराम गाथा क े अययन स े हम ात होता ह ै । munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
63 ७.२ ी िवल भगवान :-
संत तुकाराम क भि भावना को जानन े से पूव उनके आराय ी िवल भगवान क े िवषय
म सवथम जान गे। महारा राय म िवल भगवान को सभी स ंत संदाय का और
वारकरी संदाय का ेरणा ोत माना जाता ह ै | पंढरपुर े म िवल म ंिदर म िवरािजत ी
िवल भगवान क म ूित बहत ही स ुंदर और शोभनीय ह ै | यहाँ क भि भावना व ैणव भि
कहलाती ह ै और िवल भगवान को अन ेक नाम स े पुकारा जाता ह ै जैसे- पंढरीनाथ ,
पंढरीराय, िवलनाथ , िवठाई , िवठोबा , माऊली , पांडुरंग आिद अन ेक नाम ह ै जो मराठी
संकृित से जुड़े हए ह और स ंत तुकाराम ारा रिचत पद इतनी याित नाम और स ुंदर ह
िक िवल भि का महारा राय म कतन भजन आिद हर प का वण न इनक े पद ारा
होताह ै|

"सुंदर ते यान उभ े िवटेवरी, कर कट ेवरी ठेऊिनया ं।।१।।
तुलसी हार गळा कास े िपतांबर ,आवड े िनरंतर हेिच प।। ु।।
मकर क ुंडले तळपती वणी ।क ंठी कौत ुभ मिण िवरािजत।। २।।
तुका हण े माझे हेिच सव सुख ।पाहीन ी म ुख आवडीन े ।।३।।"(शा. गा. २)

तुकाराम महाराज ा रा िलिखत उ पद िवल भगवान क स ंपूण प उनक े ारा धारण
िकए हए आभ ूषण व आिद जानकारी हम भली -भांित दे देता है | िकस कार िवल
भगवान एक ईट पर खड़ े हए ह कमर पर दोन हाथ रख े हए ह गले म तुलसी क माला पहनी
है पीतांबर व कमर स े लपेटे हए ह, गले म तुलसी हार भी धारण िकया ह ै, कान म मछली
के आकार क क ुंडल शोभायमान ह ै और इस पहनाव े से उनका प स ुंदरी क ितम ूित है,
अनुपम है और िवल भगवान साात िवण ु भगवान क े अवतार ह और बालक ृण का प
है तुकाराम महाराज और सभी स ंत संदाय इ सी प म अपन े आराय को प ूजता ह ै और
उनक भि म लीन रहता ह ै।
७.३ भ पुंडिलक और पंढरपुर
संत तुकाराम क भि भावना को जानन े के पूव यह जानना आवयक ह ै िक महारा म
वारकरी स ंदाय और स ंतो क भ ूिम उनक े आराय िवल और िवल क े अनय भ ी
पुंडिलक क े िवषय म भी हम ान ा कर यिक इन सभी िवषय पर अनिभ रहकर हम
संत तुकाराम क े भि म पद का अययन आधा अध ूरा ही कर पाए ंगे इसीिलए उनक भि
पराकाा क े अययन क े पूव उसक े मुख ोत को जानना अित आवयक ह ै
ी े पंढरपुर:- पंढरपुर को ी े पंढरपुर ऐसा कहकर वारकरी स ंदाय स ंबोिधत
करता ह ै | सभी मराठी भ किवय न े पंढरपुर क मिहमा का वण न उनक े काय म
अिनवाय तः िकया ह ै | पंढरपुर महारा का म ुख तीथ े माना जाता ह ै यह भीमा नदी क े
िकनार े चंाकार आ जान े के कारण नदी क े उस भाग को च ंभागा कहा गया और इसी
चंभागा नदी क े तीर प ंढरपुर े बसता ह ै इसक ाचीनता क ओर यिद हम द ेख तो इस
े को पा ंडुरंग पुर और प ंढरपुर े के नाम स े भी जाना जाता ह ै | इस े का नाम भ
पुंडिलक क े नाम प र पड़ा ह ै | भ प ुंडिलक पा ंडुरंग के या िवल क े थम भ गण े जाते munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
64 ह | मराठी अयासक डॉटर भ ंडारकर न े इस िवषय म मराठी तक िदया ह ै इसका म
आपको िह ंदी अन ुकरण समझा रही ह ं ।" :- पंढरपुर े को स ंतो ने अपना मायका माना ह ै |
मायके के सबोधन क े कारण इस े के ित उनका लगाव और उनक गहरी अन ुभूित है |
िजस कार य ेक ी को मायक े से लगाव हम ेशा लगा रहता ह ै जब भी उसक े मायक े क
चचा, संवाद या नाम मा स े उसक आ ंख स े आनंद अ ु आ जात े ह मायक े क याद म
उसका तन - मन आत ुर हो जाता ह ै िबक ुल वैसे ही भावना स ंतो के मन म ी प ंढरपुर े
का नाम ल ेने पर होती ह ै यही अन ुभूितपरक िचण स ंत तुकाराम गाथा म भी हम िमलता ह ै
"पंढरये माहे साजणी | ओिवय े कांडनी गाउ ँ गीत || १ ||
राही रख ुमाबाई सयभामा माता | पांडुरंग िपता मािहय ेर ।।"(शा.गा. १५६८ तुकाराम )

इस कार का वण न ी प ंढरपुर े के िवषय म यह अिभमत िसफ संत तुकाराम का ही
नह ह ै वरण सभी स ंत किव ज ैसे संत नामद ेव, संत ान ेर, संत चोखा म ेला आिद स ंत का
भी इसी क े समप मत ह ै । वैसे तो भि िच वप होती ह ै कहा जाता ह ै िक ईर क
ाि मनः शि ारा भी हो सकती ह ै इसीिलए मराठी स ंत ने पंढरपुर को मायक े क उपमा
दी है यिक एक ी जो आन ंद मायक े जाकर ा करती ह ै उस आन ंद क अन ुभूित कह
नह हो सकती िकसी परमाथ म नह यहा ं तक िक वग म भी नह इसीिलए मायक े का
महव वहा ं जाकर ही ा होता ह ै उसक े िसवा कह नह उसी कार प ंढरपुर जाकर ही
संतो को िवल दश न मा स े उनका अ ंतर अ ंतः बा मन त ृ हो जाता ह ै उनके जीवन का
सवानंद पंढरपुर े म जाकर उह िमल जाता ह ै इसीिलए इस े क िवश ेष महती का
गान स ंत भ करत े ह ।
िवल भ प ुंडिलक :- िवल भ स ंदाय का वत क भ प ुंडिलक को माना जाता ह ै
एक पौरािणक कथा क े अनुसार प ुंडिलक उनक पिन को बहत अिधक चाहत े थे और अपन े
माता - िपता को बहत त ुछ समझत े थे और उनक े साथ द ुयवहार करत े थे इस अवथा स े
परेशान होकर उनक े माता-िपता काशी याा क े िलए िनकल पड़त े ह और क ुछ समय पात
अपने पिन क े आह पर प ुंडिलक भी पिन को क ंधे पर उठाकर काशी याा क े िलए
िनकल पड़त े ह रात े म उनक भ ट कुकुट नामक ऋिष स े होती ह ै पुंडिलक ऋिष स े माता
- िपता क स ेवा का फल या होता ह ै यह प ूछते ह वे उसे पु धम िवषयी ान द ेते ह और
इसके पात प ुंडिलक माता - िपता क स ेवा मनोभाव स े करत े ह इस स ेवा से सन हो ी
कृण वय ं उनस े िमलन े के िलए आत े ह लेिकन प ुंडिलक उस समय अपन े माता िपता क
सेवा म तन - मन - धन स े यत रहत े ह | ीकृण क ओर कोई यान नह द ेते यिक
वह अपन े माता िपता क स ेवा म कोई भी िवन नह चाहत े और पास म रखी ह ै आगे क
ओर सरका द ेते ह और कहत े ह इस पर खड़ े हो जाइए भगवान ी क ृण उस ईट पर खड़ े
हो जात े ह और ईट पर खड़ े होने के कारण उह िवल कहा जाता ह ै यिक ईट को मराठी
म वीट कहत े ह ी क ृणा अथा त िवल आन ंिदत होकर दोन हाथ कमर पर रख कुंडिलक
क माता िपता क े िलए क जान े वाली स ेवा देखते रहते ह और उसस े खुश होकर उनस े
वरदान मा ंगने को क हते ह तब क ुंडिलक वरदान मा ंगते ह िक िवल इसी प म ऐसे ही रह े
अािनय को ान द े, उनका उार कर और प ुंडिलक वरद प ुंडिलक प ुर नाम स े िसि
ा कर | उपरांत भगवान उह तथात ु कहत े ह और इस वरदान क े अनुसार प ंढरपुर नगरी munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
65 म पांडुरंग के मंिदर स े 15 सो फुट के अंतर पर प ुंडिलक वामी का म ंिदर ह ै वहां भ
कुंडिलक क समािध ह ै आज भी भगण पा ंडुरंग के दशन के पूव कुंडिलक क े दशन करत े ह
और सभी स ंत क वाणी म कुंडिलक क मिहमा को विण त िकया गया ह ै ।

"वैकुंठीचा द ेव आिणला भ ुतळा । धय तो आगळा प ुंडिलक ।। १।।"(शा. गा. ४३०७ )

इस पद का तापय है वैकुंठ धाम स े साात द ेव प प ृवी पर पधार े ह भ प ुंडिलक क े
कारण धय ह ै भ प ुंडिलक सव े पुयवान ह ै इस कार क वाणी भ प ुंडिलक को
धयवाद द ेती है यिक उनक े मायम स े आज प ंढरीनाथ क ाि स ंतो को , भ को
सुख, ऐय, आनंद दे रही ह ै।
भ िशरोमिण स ंत तुकाराम :- जैसा िक हमन े संत तुकाराम क े संपूण जीवन व ृतांत का
अययन िकया और उसम देखा िक िकस कार एक ितित और आिथ क संपनता भर े
परवार म संत तुकाराम का जम हआ उनके परवार म महाजनी , साहकारी और बिनया
यवसाय बहत अछ े से चल रहा था और साथ ही भजन , पूजन, कतन आिद पर ंपरा
पीिढ़य स े उनक े परवार म संजोए हए थ े ऐसे परवार म तुकाराम बचपन स े ही िलखना
पढ़ना और उसक े साथ भगवान क भि - भावना आिद स ंकार स े पूरत हो रह े थे |
उनके दो िववाह हए और उनका सा ंसारक जीवन स ुख से चल रहा था | परंतु भीषण स ूखा
परिथित म उनके सुखी जीवन को झकझोर क े रख िदया और उनक े यवसाय , धंधे, सुख
- संपनता को भी न कर िदया | िकसी परिथित म उनक े अपन े भी उनका साथ छोड़
परलोक िसधार चुके थे ऐसे नैराय भर े जीवन स े संत तुकाराम प ूरी तरह स े टूट चुके थे
लेिकन उनक इस ट ूटन का और िबखरन े का भाव एक अलग ही िच ंतन क ओर उह खच
रहा था वह मनः शा ंित के माग को खोज रह े थे और इसी माग का िच ंतन करत े हए, खोजत े
हए अपनी पीढ़ी स े चली आ रही वारकरी संदाय और प ंढरपुर क वारी का माग अिबल ंब
करके आगे बढ़त े ह उनक े जीवन का लय और यान अब क ेवल िवल ह ै और कोई नह
अब उह एकांतवास क ओड़ लग च ुक थी और िवल यान म मगन रहना उनका िनय
कम हो गया था स ंत तुकाराम एका ंत म हर पल हर समय िवल का यान करत े | िवल
भेट के िलए याक ुल हो जात े वह चाहत े थे उह भगवान क े दशन हग े तभी उनक सब
िचंता दूर होगी उनस े भट हए िबना वह ऐस े िचंितत ही रह गे | तुकाराम मन ही मन सोचत े
म कहां भि म कम कातर हआ जा रहा ह ं िक भगवान म ुझे नह िमल र हे | वह भि क े
अधीन भगवान िवल स े लड़त े उनस े भट क याक ुलता को दशा ते कभी उनस े कलह
करते इस कार उनक े मन क नाना उक ंठाएँ उनक े पद ारा य होती ह
"संसारताप े तापलो मी द ेवा । करता स ेवा या क ुटुंबाची ।। १।।
हणऊणी त ुझे आठिवल े पाय ।य े वो मा झे माय पा ंडुरंगे ।।ु ।।"(शा. गा. अ. . ९१ )

उ अभ ंग के मायम स े संत तुकाराम कहत े ह िक इस ग ृहथी,सांसारकता स े अब ऊब
गया ह ँ | हे ! भु अब म िदन रात हर समय आपका िच ंतन करता ह ँ , आपका यान करता
हँ, आपक शरण म आया ह ँ मेरी माँ पांडुरंग अब म ेरा अंत ना द ेखो मुझे िमलन े आ जाओ
इस कार स ंत तुकाराम अपन े भु से िमलन े के िलए आत ुर ह उहन े कई नाम स े अपन े munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
66 आराय को स ंबोिधत िकया ह कभी भ ु को मा ँ कहत े ह, कभी िपता , कभी ब ंधु - ाता और
सवव उह मानत े ह यह और ऐस े अनेक पद म िवल क े प का नाना कार स े उनक े
साथ स ंबंध जोड़ कर उनक भि म डूब जान े का वण न संत तुकाराम न े िकया ह ै ।
"तुझे पाय माझ े भाळ ।एकता सव काळ ।। १।।
हेिच देई िवठा बाई ।पा ंडुरंगे माझे आई ।। २।।
नाही मो म ुि चाड ।त ुझी सेवा लाग े गोड ।। ३।।
सदा स ंग सज नांचा ।नको िवयोग प ंढरीचा ।। ४।।
िनय च ंभागे नान करी े पदण ।। ५।।
पुंडिलक पाहोिन ि ।हष नाचो वाळवटी ।। ६।।
तुका हण े पांडुरंगा ।तुझे वप च ंभागा ।। ७।।"(तु. गा. ८८)

इस कार इस पद म भी स ंत तुकाराम भगवान को भाई कहत े ह, आई (माँ ) कहते ह िक
उनक स ेवा करन े से म सदा सजन क े साथ रहता ह ँ सदआचरण करन े वाल क े साथ
रहता ह ँ | मुझे पंढरपुर म ही रहना अछा लगता ह ै वहां से दूर होना अछा नह लगता हर
रोज च ंभागा नदी म नान , मंिदर क परमा और भ प ुंडिलक को द ेखता ह ँ, हर रोज
उन पर ि पढ़ती ह ै जब म पंढरपुर म होता ह ँ पंढरपुर म जो च ंभागा नदी क े पास र ेत भरी
जमीन ह ै वहां म हषलास क े साथ भगवान क े भजन को गा गा कर नाचता ह ँ संत तुकाराम
कहते ह िक ऐसा करन े से उस पिव च ंभागा नदी म मुझे िवल आपका व प िदखाई
देता है। इस कार िवल भगवान स े िमलन े क बार ंबार आत ुरता स ंत तुकाराम क े पद म
या ह ै।
तुझे पाय माझ े भाळ ।एकता सव काळ ।। १।।
हेिच देई िवठा बाई ।पा ंडुरंगे माझे आई ।। २।।
नाही मो म ुि चाड ।त ुझी सेवा लाग े गोड ।। ३।।
सदा स ंग सजना ंचा ।नको िवयोग प ंढरीचा ।। ४।।
िनय च ंभागे नान करी े पदण ।। ५।।
पुंडिलक पाहोिन ि ।हष नाचो वाळवटी ।। ६।।
तुका हण े पांडुरंगा ।तुझे वप च ंभागा ।। ७।।(तु. गा. ८८)

इस पद म ईर क मिहमा का वण न करत े हए स ंत तुकाराम कहत े ह िक ई र कोई जात -
पात - धम नह द ेखते वह तो िसफ भ क भि को द ेखकर ही उसक े कम को द ेखकर
उस पर आक ृ हो जात े ह | और उस े साात प म दशन देते ह या वय ं के वहां होने का
आभास िदलात े ह वह भ क हर पर ेशानी म उसका साथ द ेते ह और उसक भि
भावना स े खुश जर होत े ह और उस े उसका फल भी जर द ेते ह जैसे उहन े िवदुर जो
िक दासी प ु थे उनके घर का अितय हण िकया , राज महल को छोड़कर रास क ुल म
जमे हलाद का रण िकया , रोिहदास क े चमड़ े को र ंग िदया , कबीर क े घर शाल क
बुनाई क स जन कसाई क े यहां मांस बेचा, सावता माली क े यहां पर ख ेत क रखवाली का
काम िकया , नरहरी सोनार क े घर उनक े साथ ज ेवर बनान े का काम िकया ,चौिकया माली क े
साथ उसक े मरे हए जानवर क अतः िविध करवाई , अजुन के सारथी बन े, सुदामा क े पोहे munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
67 खाए, गोप गोिपय क े घर गाय क रखवाली क , इस कार सभी भ क समय -समय पर
रा क ह ै उनक भि का फल उह िदया ह ै और भ प ुंडिलक क े कहन े पर वह आज भी
वैसे ही खड़ े ह | हे !भगवान त ुहारी माया अपर ंपार ह ै, तुम धय हो इस कार यहा ं संत
तुकाराम क ेवल वय ं क भि का वण न ना कर ते हए नाना कार क े भ क े ारा उनक
भािसत िचि क े ारा यह समझान े का यास कर रह े ह िक ईर भ क े िलए जर
दौड़े आते ह लेिकन भि वछ िनछल और एकाम भाव क हो ।
तुकाराम महाराज ईर म इतन े िदन हो गए थ े क वह अपन े आराय िव ल द ेव के साथ
कभी-कभी लड़ाई झगड़ े पर भी उतर आत े थे यह लड़ाई झगड़ा उनक े अंतमन का था
एकामक िच स े भंडारा नामक पहाड़ पर चढ़कर िदन रात एका ंतवास म िवल क
आराधना करत े उनका ही नाम मरण करत े ह उनका यह जब तक िबना िवन पड़ े िदन-
रात चलता रहता अमन उनका मन िकसी और काम म लगता ही नह ल ेिकन इधर ईर स े
िमलन भी नह हो रहा था इस उक ंठा म कई बार वह अपन े आराय पर खीज उठत े उनस े
लड पढ़त े उह कभी कभी ईर क भी िचढ़ आने लगती िक म इतने सवव भाव स े उनक
भि कर रहा ह ं सब क ुछ मने याग िदया ह ै बस ईर का ही नाम मरण बाक ह ै जीवन म
अब तो म ेरे संयम क परीा हो रही ह ै और म अपना धीर खो रहा ह ं मेरा िवास डगमगा
रहा ह ै इस कार ईर पर भी नाराज हो जात े ह यह वण न उनके एक पद म इस कार
विणत है।
"माझी मज जाती आवरली द ेवा ।नहता या गोवा इंियांचा ।।१।।
कासया मी त ुझा हणिवतो दास ।असतो उदास सव भाव ।।२।।
भयािचय े भेण धरयली कास ।नप ुरतां आस काय थोरी ।। ३।।
तुका हण े आपआप ुली जतन ।क ैचे थोरपण मग त ुहां ।।४।।"

संत तुकाराम इस पद क े मायम स े भगवान स े कह रह े ह िक म ने तेरी मोह माया म पढ़कर
इजत क मोह माया छोड़ दी अपनी सभी इ ंिय पर िवजय हािसल कर ली और म िवजयी
हं तो त ेरा दास क ैसे लेिकन त ेरे दशन ना द ेने के कारण म ुझे इस स ंसार स े भय लगन े लगा ह ै
और इस भय के कारण म ने तेरा हाथ थाम े रखा ह ै अब तो त ुम मेरी इछा प ूरी करो म ुझे
दशन दे दो और यिद नह द े सकत े तो बड़पन िदखान े का त ुह कोई अिधकार नह ह ै खुद
को ऊंचा मानन े का भी त ुह कोई अिधकार नह ह ै इस कार स ंत तुकाराम नाना भा ंित से
बड़े अिधकार स े ईर को भी भला ब ुरा कह द ेते ह और उनस े भी लड़ झगड़ ल ेते ह लेिकन
उनक यह लड़ा ई उनक े मन का अ ंतद है, िवलाप ह ै, तड़प ह ै, बस ईर क े दीदार क े िलए
उसके भास मा क े िलए |
ईर का सााकार :- सचे भ क भि आिखर ईर को उसस े िमलन े के िलए मजब ूर
कर द ेती है या ईर भी अपन े सच े भ स े िमले िबना नह रह सकत े संत तुकाराम
महाराज क े साथ भी यही हआ वह िदन आ गया जब व ैकुंठ नायक का सााकार होन े लगा
उहन े िवल भगवान स े सााकार क े िलए अभी तक जो उक ंठा और िवफलता दशा ई
वह अब खम हो च ुक थी जब ईर वय ं सामन े आते ह संत तुकाराम को लगता ह ै उनक े
जीवन क स ंपूण इछा आका ंा खम हो गई ह ै ना भ ूख ना या स और ना कोई स ुख दुख है munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
68 यिक अब उनक े ईर उनक े सामन े ह वह अपन े इस आन ंद का वण न करत े हए कहत े
ह िक
"आनंदाचे डोही आन ंदतरंग ।आनद ची अंग आनदाच े ।।१।।
काय सा ंगो जाल े कािहिचयाबाही । प ुढे चाली नाही आवडीन े।।ु ।।
गवाचे आवडी मात ेचा डोहाळा । त ेथचा िजहाडा त ेथे िबंबे ।।२।।
तुका हण े तसा ओतलास े ठसा ।अन ुभव सरसा ऊत आला ।। ३।।"

इस पद क े वचन स े ही आप समझ गए हग े िक प ूरे पद म आनंद आन ंद शद क आव ृि
बहत बार हई ह ै भु को सामन े देख संत तुकाराम का आन ंद उमड़ उमड़ कर बाहर िनकल
रहा ह ै | उनको क ुछ सूझ नह रहा ह ै आनंद क उर ऊपर भी आन ंद तरंग उठन े क बात
संत िशरोमिण कह रह े ह और आन ंद के शरीर पर भी आन ंद ही होता ह ै ऐसा उनका मानना
है | आनंिदत तर ंग के कारण उह इतना स ुख िमल रहा ह ै और ऐसा तीत हो रहा ह ै िक
हमेशा यही िथित बनी रह े इस ण और परिथित म कोई भी बदल ना हो उह य ह
परिथित क ैसी लग रही ह ै जैसे एक गभ वती ी क सभी खानपान अय इछाए ं उसक े
परवार वाल े पूण करत े ह उसी कार पा ंडुरंग मेरी सभी इछाओ ं को प ूरा कर रह े ह इस
िमलन स े मेरे जीवन क सभी इछाए ं पूण हो गई , मेरा जीवन सफल हो गया , म कृताथ हो
गया इस िमलन स े भवसागर पार कर गया म ेरे मन क े अंदर क सभी आशा - तृणा अब न
हो गई ह यिक म ुझे मेरे ईर िमल गए ह अब म ेरे िव क े सभी स ुख मुझे िमल च ुके ह इस
कार उनक े ारा िमलन का अथाह यास सफल हो गया और एक सामाय मानव स े संत
और स ंत से एक सााकार ई का जो भि प ंथ था वह अब उह ईर िमलन क े पात
बहत आसान जान पड़ा उहन े अपन े आसपास क े समाज को द ेखा तब उह अनुभव हआ
िक जो भि जनसामाय कर रहा ह वह गलत माग अपनाकर कर रह े ह इसीिलए उह
उनक भि का फल नह िमलता त ुकाराम का काय एक समाज स ुधारक का काय था |
समाज क े लोग क े ित उनक े मन म आथा थी , ेम था और उह अपन े ईर िमलन योग
क िचती हो च ुक है उनका अपना जीवन साथ क हो गया ह ै लेिकन अपन े साथ समाज का
भी उार होना चािहए और इसीिलए जनिहत को यान म रखत े हए उहन े भि रस क े
और भि माग के सभी माग को अपनाकर सभी तव को अपनाकर ईर भि का पाठ
समाज क े लोग को पढ़ाया |
७.४ संत तुकाराम महाराज क े काय म सगुण और िनग ुण भि भाव :-
सगुण भि भाव :- संत तुकाराम महाराज ज ैसा िक हम जानत े ह अपन े ईर िवल क े
िमलन ह ेतु इतने आतुर थे उनक वह उक ंठा हमन े जानी ह ै उसस े हम यह ात होता ह ै िक
उह उनक भि सग ुण भाव क भि थी उहन े ईर क े रंग प का वण न िकया ह ै उनस े
िमलन े पंढरपुर जान े का वण न िकया ह ै देव के सुंदर वप और उनक े नाम मरण ,वण
पर अिधक बल िदया ह ै उहन े अपन े इंिय को अपन े इर ी िवल स े एक प कर
िलया इस कार उनक भि भावना और पद म सगुण भाव इस कार विण त हआ ह ै | munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
69 "अवया दशा य ेण साधती ।म ुय उपासना सग ुण भि ।गट े दयची म ूित ।भाव श ुि
जाणोिनया ं ।।१।।
बीज आिण फळ हरीच े नाम ।सकळ प ुय सकळ धम ।सकळा ं कळांचे ह वम ।
िनवारी म सकळही।। २।।"(सा.तु.गा.४०९८ )

उ पद क े ारा स ंत तुकाराम ी हर क सग ुण प क भि को ही उपासना का म ुख
मायम मानत े ह यिक सग ुण उपासना भि क सव अवथाओ ं को साय करती ह ै
मानव क े मन म साव को जाग ृत करती ह ै और हर घड़ी दय म ी हर क म ूित थैय
करती ह ै ी हर का नाम ही भि का बीज ह ै और इसका फल भी सव सुख से शोभायमान
होता ह ै | यही वम जीवन म ृयु का िनवारण करता ह ै ी हर क े यशव ंत से, उनके नाम
मरण स े नवरस हम ा होत े ह इस कार सग ुण भि को म ुख मानकर स ंत तुकाराम
सगुण भि िवषयक भाव को भ क े सामन े इस पद क े मायम स े तुत करत े ह |
इस सग ुण भि भाव म संत तुकाराम का एक बहत ही िस और स ुंदर पद ह ै जो िवल
भगवान क े रंग - प उनक े ंगार का वण न करत े ह जो उनक सग ुण भाव क ढ़ता को
य करता ह ै ।
"सुंदर ते यान उभ े िवटेवरी ।कर कटावरी ठ ेउिनया ं ।।१।।
तुळसीहार गळा कास े िपतांबर ।आवड े िनरंतर तेिच प ।।२।।
मकर क ुंडले तळपित वणी । क ंठी कौत ुभमणी िवरािजत ।। ३।।
तुका हण े माझे हे िच सव सुख ।पाहीन ी म ुख आवडीन े ।।४।।"(सा. तु. गा. पद -१)

इस कार इस पद म संत तुकाराम िवल क े प का वण न करत े ह िकस कार उहन े
कमर पर हाथ रख े हए ह मूित अितशय शोभनीय ह ै, गले म तुलसी क माला पहन े हए ह ,
कमर पर पीता ंबर व लप ेटे हए ह और कान म मछली क े आकार क े कुंडल चमक रह े ह,
गले म कौत ुभ मिण ह ै इस कार क े नाना भा ंित सुंदर और शील वत ुओं के वणन ी क
मूित को िकतना स ुशोिभत कर िदया ह ै इस मनोहारी प क े दशन कर कोई भी धय हो
जाए इस कार यह और इस कार क े अनेक पद त ुकाराम गाथा म ह जो सग ुण भि भाव
के पथ दश क है ।
७. ५ भि का िनग ुण माग :-
संत तुकाराम गाथा म ी िवल क े सगुण प सदय का िजतना स ुंदर वण न िमलता है
उतना ही िनग ुण भाव भी त ुकाराम गाथा म यु है उहन े िनगुण धारा क ओर भी
उपासना भि माग को अवल ंिबत िकया ह ै वे कहत े है िक -
"यापूिन वेगळे रािहल ेसे दूरी । सकळी अ ंतरी िनिव कार ।। १।।
प नाही र ेखा नाम ही जयासी ।आप ुया मानसी िशव याय ।। "(शा. ग. अ. ७०४)

इस पद क े अनुसार स ंत कहत े ह िक िवल क याि मन और अ ंतःकरण म है अंतः करण
म उसका कोई र ेखा िच नह ह ै, शारीरक आकार कार नह ह ै और कोई नाम भी नह ह ै munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
70 यिद ह ै तो पर का यान | वे यह भी कहत े ह ईर क कोई जात नह ह ै कोई धम नह ह ै
कोई वण कुल जाित नह ह ै और उसका कोई शारीरक मापद ंड भी नह ह ै वह तो िनराकार
पर ह ै और उनक साकार म ूित भ को मा आकार द ेने के िलए या हई ह ै िजस
कार िवान म व पदाथ का कोई आकार नह होता उस े िजस बत न म डालो वह उसी
आकार का बन जाता ह ै वैसे ही यह भि ह ै जो भ क े दय म भि भाव को द ेख ईर
उसी आकार म ढल जात े ह ।
संत तुकाराम न े िनगुण उपासना को मा ं क ममता क े समान माना ह ै िजस कार एक मा ं का
ेम हम िदखा नह सकत े उसक गणना नह कर सकत े उसी कार िनग ुण भि का वप
है िजसक याया शद म नह क जा सकती उसक े िलए तो मानिसकता का गभ होना
आवयक है|
मां का ेम हम िदखा नह सकत े उसक गणना नह कर सकत े उसी कार िनग ुण भि का
वप ह ै िजसक याया शद म नह क जा सकती उसके िलए तो मानिसकता का
गभ होना आवयक ह ै ।
७.६ नवधा भि
तुकाराम गाथा म यु नवधा भि त ुकाराम महाराज क भि का लय एक ही था वह
था पंढरीनाथ क भ ट, उनका सााकार और इस सााकार ह ेतु उहन े सभी कार क े
भि का माग अपनाया उ नम नाम मरण , जप, भजन, कतन, सगुण भि , िनगुण भि
और नवधा भि क े 9 कार के साथ सभी भि भाव क े कार त ुकाराम गाथा ंथ के
अययन स े हम ात होत े ह | ाचीन शा म नवधा भि क े नाम क े अनुसार ही नो
कार बताए गए ह | कहा जाता है िक जब भ इन नो कार स े भगवान क भि प ूरे मनो
भाव क े साथ करता ह ै तो उस े ईर क ाि हो जाती ह ै | ाचीन ंथ, उपिनषद , पुराण म
नवधा भि को इस कार विण त िकया गया ह ै |
"वणं कतनं िवणोः मरण ं पादस ेवनम्।
अचनं वदन ं दाय ं सयमामिनव ेदनम् ॥"

संत तुकाराम महाराजा क भि क अिनवाय ता ईर स े सााकार था | इसीिलए उहन े
नवधा भि माग को अवल ंिबत िकया और भि क इन कसौटी ओं को उहन े अपन े
समपण भाव ारा भगवान का दास बन शी ही पार कर िलया | उनके एक पद म नवधा
भि का वण न इस कार उहन े िकया ह ै |
"अचनं वदन ं नविवधा भि दया मा शा ंित तय े ठायी ।। १।।
तये गावी नाही द ुःखाची वसती ।अवघािच भ ुित नारायण ।। ३।।"

संत तुकाराम क े अनुसार वण , कतन, पाद, सेवन, अचन, वंदन, दाय, सय और
आमा िनव ेदन यह नौ कार नवधा भि क े माने गए ह इस कार क े भि भाव स े दया,
मा, शांित आिद ग ुण ा होत े ह दुख का नाश होता ह ै यह नौ कार क भि करत े हए munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
71 संत तुकाराम न े वय ं को पा ंडुरंग का दास माना और अ ंतःकरण स े ेम क व ृि स े
भगवान स े एकप ह ए ।
१. वण भि :- वण का अथ होता ह ै परीित यह भि भाव क पहली सीढ़ी मानी
जाती ह ै इस भि भाव क े ारा ईर क लीला ,उनसे जुडी कथा , उनके महव , शि आिद
भाव को स ंपूण ा स े िनरंतर स ुनना वण भि कहलाती ह ै इस भि को करन े के िलए
भ के पास ा और िवास क अित आवयकता होती ह ै | संत तुकाराम महाराज
कहते ह िक
"आरंभी कत न करी एकादशी। नहत े आयासी िच आधी ।। ६।।
काही पाठ क ेली संतांची उर े ।िवास आदर े करोिनया ।। ७।।"(शा. गा. १३३३ )

इस पद क े ारा स ंत तुकाराम वय ं का अनुभव विण त करत े ह िक जब म ने िवल भि
ारंभ क उस समय म महाराज (भगवान क े िवषय म कथन करन े वाले ) के कतन सुनता
था, एकादशी का त रखता था ल ेिकन उस कार क भि अयास गत नह थी और
उसम िच भी नह लगता था म ने कई स ंत के उर याद िकए ल ेिकन उस काय के िलए
भी िवास और ा क जरत थी तब म ुझे समझ म आया भि भाव मन स े आना
चािहए द ेखावा िकसी काम का नह ह ै | जब हम ईर क कोई कथा स ुन रहे होते ह तो िच
और ा िवास उसी म लगा होना | चािहए जब मन और िच स े सुनगे तभी हमार े अंदर
क भि भावना जाग ृत होगी |
2. कतन भि :- कतन का अथ होता ह ै शुकदेव इस कार क भि म ईर क े गुण,
चर, नाम, पराम आिद का उसाह क े साथ कत न करना कत न भि कहलाती ह ै |
महाराज त ुकाराम को तो कत न भि का साट कहा जा ता है कतन का जनक नारद म ुिन
को माना जाता ह ै | पुरातन काल म इस भि धारा का योग नारद जी न े समाज क जाग ृित
हेतु िकया तभी स े यह कत न क था चलती आ रही ह ै | संत तुकाराम कहत े ह िक मानव
जीवन क शा ंित हेतु कतन के समान कोई द ूसरा माग नह ह ै उनके अनुसार-
"सोपे वम आहा सा ंिगतल े संती ।टाळ िद ंडी हाती घ ेऊिन नाचा ।। १।।
समाधीच े सुखे सांडा ओवाळ ून ।ऐस े ही कत न रस ।। २।।"(शा.गा.१३०४ )

तुकाराम का सोप े वम से तापय सबस े आसान और सरलता स े है | संत कहत े ह िक कत न
के ारा हम समाधान िमलता है | मन को िवा ंित िमलती ह ै और हमार े मितक क े सभी
ताप, शंकाएं इसस े न हो जाती ह इसीिलए स ंत कत न को े मानत े ह, सरल मानत े ह
और इसका आयािमक परमािथ क महव बार ंबार अपन े पद ारा हम बतात े ह ।
३. मरण :- िनरंतर ईर का यान कर ने को मरण कहा जाता ह ै ईर क महा और
शि का मरण कर उस े मुखता द ेना ही मरण भि कहलाती ह ै | तुकाराम गाथा म हम
नाम, संकतन अथा त मरण क े महव क िचि भी िदखती ह ै का यह कार यि
िकसी भी समय िकसी भी थान पर कर सकता ह ै बस म रण अ ंतर भाव स े हो ऐसा
तुकाराम महाराज कहत े ह । munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
72 "नामस ंकतन साधन प ै सोपे। जळतील पाप े जमातर े ।।१।।
----------------------------------------------------------------
ठायच ब ैसोिन करा एक िच ।आवडी अ ंनत आळवावा ।। ३।।
रामकृण हर िवल क ेशवा ।म हा जपावा सव काळ।। ४।।"

भि िनमा ण हेतु यह भाव सबस े सरल माना ह ै ईर न े मानव को ऐसी वाणी दी ह ै िजसक
सहायता स े वह ईर का नाम मरण कर इसस े हर भि का िनमा ण होगा यिक भि
करने के िलए िकसी वत ु या साधन क आवयकता नह ह ै िसफ साधना क
आवयकता ह ै।
'एक रे जणा विहताचा ख ुणा।
पंढरीचा राणा मनामाजी मरावा ||"

मरण भि को स ंत तुकाराम भ क े िहत क भि मानत े है | मन के एकांतवास और
एकाता स े इस भि का फल हम िमलता ह ै उनके अनुसार मन म हमेशा पांडुरंग का भाव
रहे उह का मरण रह े उसी स े मानव जीवन तर सकता ह ै ।
पाद स ेवन भि :- पाद स ेवन भि स े तापय आिद ी लमी जी स े माना जाता ह ै इस
भि म ईर क े चरण का आय ल ेना उह को अपना सव व मानना म ुखता स े संत
क स ेवा, सतगु क स ेवा और ईर क स ेवा पाद स ेवन भि कहलाती ह ै इस भि क े
अंतगत तुकाराम महाराज क अपन े ईर क े ित यिगत स ेवा िना हम देखने को
िमलती ह ै | वण, कतन, मरण स े उह तृि नह िमली तो व े ईर क चरण स ेवा करन े
लगे इस स ंदभ म उहन े कहा ह ै ।
"जाण न ेण काय िची ध त ुझे पाय |"

अचन भि :- अचन भि स े तापय मन, वचन और कम ारा पिव सामी स े ईर क े
चरण क प ूजा करना ह ै | इस भि म मनोभाव स े ईर क प ूजा कर करना यह प ूजा दो
कार क होती ह ै | एक तीक प ूजा और द ूसरा मानस प ूजा | पूजा म ईर क े प द ेखने
का एक भ ारा यन होता ह ै |वह पथर , धातु िमी आिद क म ूित म ईर प को
देखता ह ै और उसक प ूजा करता ह ै | वह मानस प ूजा म मन क े भाव ारा ईर का अच न
िकया जाता ह ै और यही भावना ईर तक पह ंच जाती ह ै | तुकाराम गाथा म अचन भि का
वणन इस कार ह ै ।
"वािमकाज ग ु भि | िपतृ वचन स ेवापित ||१||
ह िच िवण ुची महाप ूजा | अनुभाव नाही द ूजा |ु||"

संत तुकाराम न े अचन भि का बहत स ुंदर वण न िकया ह ै उनक े अनुसार वामी क स ेवा,
सदगु क भि और िपता क आा , पित क स ेवा यह सभी काय अवय प स े करना
चािहए | इन सभी काय को करन े से िवण ुजी क महा प ूजा का प ुय मानव को िमलता ह ै |
यिक यह स ंपूण जग ही िवण ु मय ह ै वह द ूसरी ओर क ुछ पद म अलौिकक प ूजा को munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
73 आडंबर भी माना ह ै और मा नस प ूजा को उम थान िदया ह ै उनक े अनुसार अछ े कम
का फल अछा होता ह ै और ब ुरे कम का फल ब ुरा होता ह ै इसिलए व े कहत े ह िक सही
समाधान तो ईर क भि म है, उसक प ूजा म है इस ह ेतु कोई आड ंबर क आवयकता
नह ह ै यह प ूजा मनोभाव स े भी हो सकती ह ै कोई िदखावा करन े क आवयकता नह ह ै
एक पद म कहत े ह -
"करावी त े पूजा मन ची उम ।लौिककाच े काम काय अस े।।१।।"
वंदन भि :- वंदन स े तापय है न भाव स े नमकार करना या स ेवा करना ईर को
नमकार करना मतलब ईर भि और ग ु - माता - िपता अपन े से बड़ को नमकार
करना उनक े ित सदयता और आदर क भावना को य करता ह ै | तुकाराम महाराज न े
संतो के चरण पश करना उनक े चरण पर मतक ट ेकना या साा ंग नमकार को भी व ंदन
भि माना ह ै ।
"वंदीन मी भ ूते ।आता अविघची समत े ।।१।।
तुमची करीन भावना ।पदो प दी नारायणा ।। २।।
गाळुिनयां भेद माण तो ऐसा व ेद ।।३।।
तुका ह णे मग नह े दुिजयाचा स ंग ।।४।।"
इस पद क े ारा स ंत तुकाराम महाराज व ंदन भि क े भाव को इस कार त ुत कर रह े ह
िक वह स ंसार म सभी ाणी मा को व ंदन कर गे | यिक ईर तो घट घट म िवरािजत ह ै
सव या ह ै यह माण व ेद - पुराण न े भी प िकया ह ै | इस िवषय क अन ुभूित तुकाराम
महाराज को हो जाती ह ै तब ऊ ंच-नीच का भ ेदभाव यहा ं िकसी भी कार क व ैमनयता को
मन म ना लाकर स ंसार म सभी ाणी साात पा ंडुरंग के प ह |इस िजजीिव षा से सभी को
वंदन करना सभी का आदर करना और सभी को समान द ेना स ंत तुकाराम जी क े
मतान ुसार व ंदन भि ह ै | इस भि स े यि अपन े काम ोध को शा ंत कर सकता ह ै ।
और अपन े मनोभाव साव स े ईर को वय ं म समािहत कर सकता ह ै ।
दाय भि :- दाय भि स े तापय ईर को वामी और वय ं को दास मानकर परम ा
के साथ ईर क स ेवा करना |दाय भि कहलाता ह ै नवधा भि म दाय भि को बहत
महव दान ह ै | यिक यह भि अितशय न और समप ण भाव क होती ह ै | संत
तुकाराम जी ईर क े सााकार ह ेतु भि क े सभी माग का अवल ंब िकया जब उह लगा
िक और म या कर सकता ह ँ | उस समय उहन े अपन े वामी पा ंडुरंग का दायव
वीकार िकया और भगवान पा ंडुरंग क स ेवा करन े से वे वयं को धय मानत े ह, आनंिदत
होते ह | इसी कारण दाय भि उह बहत ि य है इस बात का माण उनक े एक पद ारा
हम होता ह ै।
"तुमिचय े दासया दास किन ठ ेवा ।आशीवा द ावा हा िच मज ।। १।।
नविवधा काय बोिलली ज े भि ।ावी माया हाती स ंतजनी ।। २।।
तुका हण े तुमया पाया ंया आधार े उतरेन खर भवनदी ।।३।।"
संत तुकाराम ई र के सााकार ह ेतु उनक दािसय क े दास बनन े को भी त ैयार ह | वह
कहते ह िक ईर पा ंडुरंग आप म ेरी सेवा वीकार कर यिक आपक स ेवा करक े ही म munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
74 नवधा भि प ूण कर सकता ह ँ और इस जीवन क े भवसागर को पार कर सकता ह ँ | इस
कार क भि करन े से मुझे आनंद क ाि होती ह ै | संत तुकाराम यह भी कहत े ह िक
मुझम दास होन े के सभी ग ुण िवमान ह ै ।
सय भि :- ईर को अपना परम िम मान सव व समप ण कर द ेना सय भाव ् क भि
है | संत तुकाराम क भि बहत िनराल े भाव क थी हर कार स े उहन े भगवान िवल को
सन करन े का उनक े सााकार का यन िकया ह ै लेिकन उनक जो मन क भि
लालसा ह ै वह अभी भी अप ूण है | अनेक कार स े भि तव को आजमा कर भी व े अभी
तृ नह हो पाए और उहन े सय भि का सहारा िलया तािक ेम नेह और आमीयता
से ईर को पा सक े | सय भि म संत तुकाराम िवल क े िम हो गए और अब उनका
यवहार पा ंडुरंग के साथ लड़कपन का ह ै | अब वह िमता क े नाते से बड़े सौहा भाव स े
ईर स े आराधना करत े ह और कहत े ह ।
"कोण आहा प ुसे िसणल भागल े । तुजिवण उगल े पांडुरंग ।।१।।
कोणापाशी आही सा ंगावे सुख दुःख ।कोण तहान भ ूख िनवारील ।। ु ।।
कोण या तापाचा करील परहार उरील पार कोण द ूजा ।।२।।"
संत तुकाराम महाराज त ुझ िबन शद का योग करत े ह इसका अथ है तेरे िबना त ू तेरे
आिद शद अपन े िय अपन े सखा िम आिद क े िलए योग म लाये जात े है | तुकाराम
कहते ह िक ह े पंढरीनाथ हम इस स ंसारक मोह - माया म िदन हो च ुके ह और अब यह सब
करते करत े हम थक गए ह यहाँ हम पूछने वाला कोई नह | हम हमार े सुख-दुख िकसक े
साथ बा ंटे हमारी भ ूख - यास कौन द ूर कर ेगा, हम लाड यार कौन द ेगा, आप तो सब
जानत े हो आपस े यादा िजवलग और कोई नह ह ै आप तो म ेरे जीवलग िम हो | सखा हो
और इसी सय भाव स े, बड़े अिधकार स े आपस े यह सब कह रहा ह ँ | संत तुकाराम को
सय भि स े जो आन ंद िमला उसस े यादा आन ंिदत पहल े कभी नह िदख े उनक े सुख
के पारावार क कोई सीमा नह रही उहन े अपन े सांसारकता क प ूण शि छोड़ वय ं को
िवल को समिप त कर िदया अपन े सुख दुख सब उनस े एक प कर िलए यही उनक
सय भि ह ै ।
आम िनव ेदन भि :- वयं को ईर क े चरण म सदा क े िलए समप ण कर द ेना कुछ भी
अपनी वत ं सा ना रखन े क सबस े उम अवथा आम िनव ेदन भि मानी गई ह ै |
यह भि नवधा भि का आिखरी पड़ाव ह ै िनवेदन स े तापय समप ण से है सवव अप ण
कर द ेना ही आम िनव ेदन कहलाता ह ै | इस कार क भि म वयं का अितव श ूय हो
जाता ह ै भ म ुि के माग को चयिनत करता ह ै ऐसा करत े समय ईर और भ समप हो
जाते ह नीत - िच - िदन क े आठ हर िसफ ईर और ईर ही िवराजमान रहत े ह संसार
से कोई भी स ंपक या ल ेन देन नह होता स ंत तुकाराम महाराज न े बहत ही स ुंदर शद म
इस बात को य िकया है।
"िवल गीती िवल िची ।िवल िवा ंती भोग जया ।। १।।
िवल आसनी िवल शयनी ।िवल भोजन ासोास ।। ु ।।
िवल जाग ृित वनस ुषुि ।आ न दुजे नेणती िवल िवण ।। २।।"
इस पद म हम त ुकाराम क े अथाह भि भाव को जान सकत े ह वह अपन े मुख, िच, शयन
और जाग ृत, यहां तक क भोजन क े येक िनवाल े म िसफ िवल ह ै और कोई नह | munotes.in

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सत त ुकाराम क िवल भि
75 िवल उनक े वण अलंकार ह ै, सुख ह इस कार िवल स ंत तुकाराम क े हर सा ंस म हर
संकप म समािहत हो च ुके ह इस कार भि क यह चरमोकष अवथा म भ सहज
ईर स े समप हो जाता ह ै इस कार नवधा भि क े सभी प त ुकाराम गाथा म अययन
के पात िगत होत े िदखत े ह l
७. ७ सारांश :-
संत तुकाराम क भि भावना तन - मन - धन स े िवल क ओर समिप त थी इसीिलए उस े
नवधा भि म समा ल ेना बहत किठन न ह था | उनक भि इन नौ प म बनी नह रही
वरन इससे कह आग े पहंच चुक थी त ुकाराम गाथा म माधुय भाव स े ंगार भावना उ ृत
होती ह ै अनय भाव क भि स े भि क पराकाा को स ंत तुकाराम न े िच और मन ईर
को समिप त कर िदया | इस कार त ुकाराम क भि िकसी प म , तव म या िनयम म
समािहत हो ऐसी नह थी उनक भि का अथाह सागर असीम था िनसार था और अ ुत
था इसीिलए उनक े आराय भगवान िवल न े उह साात दश न िदए और उनका हाथ
थाम उह वैकुंठ धाम क ओर ल े गए |
७. ८ दीघरी :-
१. संत तुकाराम महाराज क भि भाव का वण न किजए |
२. संत तुकाराम महाराज क भि क े िनगुण और सग ुण भाव को उदाहरण सिहत
समझाइए |
३. संत तुकाराम क े काय म नवधा भि क परप ूण चीित होती ह ै प किजए |
७. ९ लघुरी :-
१. संत तुकाराम महाराज क े आराय ईर कौन ह ै और उनका म ुख थान ह ै ?
उर - ईर -िवल ,थान - पंढरपुर
२. पंढरपुर को ी े पंढरपुर कहकर कौन स ंबोिधत करता ह ै ?
उर - पंढरपुर को ी े पंढरपुर ऐसा कहकर वारकरी स ंदाय स ंबोिधत करता ह ै |
३. िवल भ संदाय क े वतक मान े जाते है ?
उर - िवल भ स ंदाय क े वत क भ प ुंडिलक को मान े जात े है |
४. संत तुकाराम को कहा ँ रहना अछा लगता ह ै ?
उर - संत तुकाराम को प ंढरपुर म ही रहना अछा लगता ह ै |
५. वयं को ईर क े चरण म सदा क े िलए समप ण कर द ेना कुछ भी अपनी वत ं सा ना
रखने का भि भाव कौनस े कार क भि ह ै ?
उर - आम िनव ेदन भि
 munotes.in

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७6 ८
संत तुकाराम के काय म सामािजक बोध
इकाई क पर ेखा
८.० इकाई का उ ेय
८.१ तावना
८.२ लोक गीत व लोक कथाए ं
८.३ ी जीवन
८.४ तीज योहार का वण न
८.५ खेती िकसानी व िनसग पयावरण
८.६ जाित यवथा
८.७ तुकाराम गाथा म तकालीन सम य के खेल
८.८ सारांश
८.९ दीघरी
८.१० लघुरी
८.० इकाई का उ ेय
संत तुकाराम क े समय क छोटी -छोटी बात लोकगीत , लोक कथा , उसव , यौहार छोट े
बच क े खेल, ी जीवन व िय क े रोजमरा िकए जान े वाले काय, खेती से संबंिधत सभी
काय, धािमक काय िविध , मंिदर प ूजा -पाठ , शकुन - अपशक ुन आिद का वण न हम े
तुकाराम गाथा म िमलता ह ै | साथ ही समाज का वग िवभाजन और उसस े उपजी जाती -
पाती था उनक े यवसाय , कुटुंब यवथा , रते - नाते आिद तय का वण न हमार े सामन े
तकालीन जीवन का साात य उपिथत कर द ेता है |इसीिलए त ुकाराम क वाणी को
लोकवाणी कहा जाता ह ै और उह लोग ा किव माना जाता ह ै | यिक उनका काय एक
संपूण समाज क े सामािजक परव ेश का आ ंकलन करता ह ै | आिद म ु का अययन हम इस
इकाई म करगे |
८.१ तावना
जैसा िक हम जानत े ह संत तुकाराम न े तुकाराम गाथा क रचना िकसी योजन स े न करक े
वयं िना और भि क भाव लालसा क िचि स े हई थी |संत तुकाराम महाराज क े munotes.in

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संततुकाराम के काय म सामािजक बोध
77 संपूण जीवन का हमन े अययन िकया और इस अययन स े यह िगोचर होता ह ै िक
ारंिभक जीवन जन सा माय रहा व े अपन े यवसाय ख ेती और घर ग ृहथी म तलीन थ े |
वह द ूसरी ओर उनक े घर म पंढरीनाथ क भि भावना पीिढ़य स े चली आ रही थी |
इसीिलए आयािमक स ंकार भी उह जम क े साथ ही िमल े थे उनका जीवन सा ंसारक
और आयािमक दोन पहल ुओं से फला फ ूला है | इसीिलए उनका काय आमीयता और
आयािमकता स े जुड़ा है जो सीध े ईर का सााकार प को मनो भािवत करता ह ै वह
सांसारक जीवन पहल े संपनता क ओर िफर क , गरीबी स े गुजरा | उनके जीवन म इतने
उतार-चढ़ाव आय े लेिकन परवार स े िमली आयािमकता धरोहर क नाल इस सबका
संगिठत प त ुकाराम गाथा ह ै | यह सव े ंथ समाज क े सभी स ंदभ स े हम ात कराता
है इस ंथ म तकालीन समय क सामािजक , आिथक, सांकृितक, आयािमक
परिथित का बोध ह ै | तुकाराम गाथा क े अययन स े तकालीन समय क े समाज का दप ण
हमारे सामन े मुखरत हो उठता ह ै |
८.२ लोक गीत व लोक कथाए ं
ाचीन समाज म मनोर ंजन क े साधन क े प म ,मन क भावनाओ ं को य करन े हेतु या
िकसी काय म तलीन होन े के उेय स े लोकगीत का बहत महव था | लोक गीत िकसी
शुभ समय पर उसव योहार आिद क े समय या िकसी काय को करत े समय ज ैसे खेत म
धान कटाई ,औरत का चक पर धान िपसाई करना आिद अन ेक काय ह | जब एक
िविश स ुर - लय म गीत गाए जात े थे यह गीत वग िवशेष क बोली वाणी क े अनुप होत े थे
| इस क महा का वण न तुकाराम गाथा म ह आ ह ै | महारा म वासुदेव जोगी , मुंडा,
गधल , वाघा आिद ऐस े िविश स ंदाय ह जो गीत गाकर अपनी रोजी -रोटी कमात े ह इह
जनजाितय ारा गीत का वण न तुकाराम गाथा म हआ ह ै जो इस कार ह ै |
जोगी- जग जोगी जग जोगी। जाग े जागे बोलती ।।
वासुदेव- मनु राजा एक द ेहपुरी। अस े नांद तू यासी दोही नारी ।।
ऐसे अनेक संदाय ह जो लोक कथा और लोकगीत क े मायम स े अपनी रोजी -रोटी कमात े
थे यह स ंदाय अब ल ु होन े क कगार पर ह कह-कह इका -दुका नजर आ जात े ह ।
कुटुंब यवथा :- संत तुकाराम वयं एक क ुटुंब पित स े आयाम क ओर आय े
इसीिलए उनक े काय म कुटुंब यवथा पर परप ूण चचा हई ह ै तकालीन समय म एक
कुटुंब यवथा थी उसम माता - िपता, भाई - बहन उनक े परवार सभी एक िमलज ुल कर
रहते थे | तुकाराम गाथा म कई पद ऐस े ह जो कुटुंब के सभी यिय को इ ंिगत करत े ह
जैसे माता - िपता, पित - पिन, काका - काक, बाल - बचे इयािद ईर क भि म डूबे
संत तुकाराम िवल को अपना माय - बाप मानत े ह और वय ं को नहा सा बालक उनक
यह भाव धारा पद म इस कार य हई ह ै |
"नलगे मायेसी बाळ िनरवाव ।आपया वभाव ओढ़े यासी।। १।।
मज का ं लागला करण िवचार । याचा जार भार याच े माथा ं ।।ु।। munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
78 इस कार क ुटुंब यवथा क े अंतगत आन े वाले िविभन रत े - नाते का वण न भी त ुकाराम
गाथा म हम िमलता ह ै | रतो म मुखतः माता - िपता, बहन - भाई, पित - पिन, काका -
काक आिद रतो का वण न है
"न घड़ े मायबाप घात ।आपणाद ेखत होऊ ं नेदी।।१।।"
"बाळ बापा हण े काका।तरी तो का ं िनपराध।। १।।"

"बाळ काय जाण े जीवन उपाय माय बाप वाह े सव िचंता।।१।।
आइत भोजन ख ेळते अंतरी । अंिकता या िशरी भारी नाही ।। ु ।।
आपुले शरीर रिता न कळ े ।सभाळुनी लळ े पाळी माय ।। ३।।
तुका हण े माझा िवल जिनता ।आम ुिच ती सा तयावरी ।। ४।।"

पद के मायम स े संत तुकाराम कहत े ह िक मा ं - बाप क छछाया म िजस कार बच े
िबन िच ंता के बड़े हो जात े ह वैसे ही ईर क छछाया म भी आसानी स े पल बढ़ जात े ह।
"कया सास ूयािस जाय े । माग े परतोिन पाह े ।।१।।
तैसे झाल े माया िजवा । क ेहां भेटसी क ेशवा ।। ु ।।
उ पद म मां - बेटी के सुंदर रत े का वण न संत तुकाराम जी न े िकया है िवल भि म
उनक हालत ऐसी ह ै जैसे बेटी मां को छोड़कर सस ुराल जाती ह ै पीछे मुड़कर द ेखती ह ै और
सोचती ह ै िक अब कब िमलना होगा उसी कार स ंत तुकाराम प ंढरपुर म अपन े ईर िवल
जी के दशन करत े ह और िनकलत े समय पीछ े मुड़के देखते ह और सोचत े ह अब कब
िमलना होगा ।
सास बह क े सुंदर रत े का वण न भी त ुकाराम गाथा म है वह सौतन का वण न भी
तुकाराम गाथा म हआ ह ै जो इस कार ह ै:-
"परस गे सुनेबाई नको व ेचूं दूध दह ।।१।।
"सवती च े चाले खोटे।यां जावेसे इला वाट े ।।११।।"

८.३ ी जीवन
भारतीय स ंकृित पुष धान रही ह ै लेिकन समाज यवथा और क ुटुंब यवथा म ी
का थान महवप ूण माना जाता ह ै | संत तुकाराम गाथा म ी जीवन क िविवध पहल ुओं
पर िवतार स े वणन हआ ह ै | तुकाराम गाथा म विणत ी क ुटुंब वसल , सब का आदर
करने वाली , गृहथी स ंभालन े वाली , रते - नात का आदर कर उह संजोने वाली , दो
कुल का उार करन े वाली महवप ूण घटक मानी गई ह ै | तुकाराम गाथा म पितता ी
का वण न है वही परया िवधवा क परिथित का भी वण न हआ ह ै | संत तुकाराम गा था
म ी जीवन का वण न उसक े ारा घर ग ृहथी म िकए जान े वाले छोटे-छोटे काय का
वणन भी बड़ी क ुशलता स े िकया ह ै इन काय म धान साफ करना , मसाला त ैयार करना ,
कूटना, कृिष संबंिधत सभी काय म पित का साथ द ेना, आदर - आितय ज ैसे काय का
वणन कर उसको समाज और घर क े ित जवाबदार माना गया ह ै | munotes.in

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संततुकाराम के काय म सामािजक बोध
79 पितता - "वामी स ेवा गोड मात े बालकाच कोड ।। १।।"
िवधवा नारी वण न - "िवधवेस एक स ुत अहिन शी तेथे िच ।। १।।"
गृहकाय - "शुि चे सरोनी भरय ेली पाळी ।भारडोनी वगळी नाश क ेला ।।१।।"
"सुपी तोिच आहे तुज ते आधीन ।दिळिलया ज ेवण ज ैसे तैसे ।।४।।" ''
"शु याचा पाक श ु िच चा ंगला ।अिवट याला नाश नाही ।। ४।।"
'कांिडता का ंडण नह े भाग शीण ।त ुज मज पण िनवड े तो ।।४।।'
गहने परधान व साज श ृंगार का वण न - "वाजती का ंकणे अनुहात गजर े ।छद मािहय ेर
गाऊ गीती ।। ३।।"

तुकाराम गाथा म ी का वण न और उसक े ारा िकए जान े वाले काय का वण न भली -भांित
िवतार क े साथ हआ ह ै | संत तुकाराम न े उसक े ारा िकए जान े वाले सभी काय का
वणन िकया ह ै साथ ही उसक े ंगार का भी वण न कुछ पद म िमलता ह ै जैसे चूड़ी पहनना ,
गजरा लगाना आिद।
इस कार तकालीन ी क े ृंगार वण न के साथ उसक े ारा िकए जान े वाले िनय काय
का भी वण न तुकाराम गाथा म हआ ह ै | तकालीन समय म परिथित अन ुसार घर क
औरत हर रोज धान साफ करन े का उस े पीसन े का काय करती थी इस काय का वण न
तुकाराम महाराज न े ईर आराधना स े जोड़कर िकया ह ै िजस कार घर क औरत जब
धान क सफाई करती ह तो उसम से भूसा, िमी, कंकड़ - पथर आिद को अलग कर द ेती
ह उसी कार हमार े जीवन स े मोह -माया और ब ुरी आदत को हम बाहर कर ईर म लीन
होना चािहए यही जीवन का सदमाग है | तकालीन समय क िया ँ अपन े हाथ स े पथर
क चक स े जब धान पीसती थी उस समय व े अपन े मायक े क याद म गीत गाती थी और
गीत गात े समय उनक च ूिड़य क खनक उस गीत म धुन का काम करती थी और उसी
लय म उनक े काय को िवतार िम लता था इन शद म संत तुकाराम न े इस स ंग को अथ
िदया ह ै।
"सावडी का ंडण ओवी नारायण ।िनवड े आपण भ ूस सार ।। १।।
मुसळ आधारी आवड ूिन धरी ।सा ंवरोिन थोरी घाव घाल ।।ध ृ।।" १

"करीत श ु दळणाच े सुख सा ंगो काई ।मानवत अस े सईबाई ।। १।।
शु ते वळण लवकरी पाव े ।डोलिव तां िनवे अांग ते ।।२।।"

पालना गीत :- महारा राय म पालना गीत क पर ंपरा सिदय स े चली आ रही ह ै यह
गीत बच े के नामकरण क े समय और हर रोज उस े पालन े म सुलाते समय मा ँ गीत गाती
है| तुकाराम गाथा म इन गीत का वण न िवतार स े हआ ह ै वह त ुकाराम एक भ किव थ े
इसीिलए उहन े पालना गीत म ी क ृण को स ंबोिधत िकया ह ै | उनके पालना गीत वण न
भी अयाम स े जुड़े हए ह पालना | गीत वण न म उनका आशय माता स ंत पी जीवामा ह ै
और प ंचतव द ेह पी पालना ह ै और मां अपन े छोटे लाड़ल े को जब झ ूला देती है तो
तुकाराम उस बालक को उ ेय करत े हए आम वप माया का वण न करत े ह िक त ु इस
बा जगत स े ड़ा करन े म तलीन हो गया ह ै और यह काल त ुझे ऐसे ही आकर ल े munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
80 जाएगा त ुझे इस बात का पता भी नह चलन े देगा और त ेरा देह जैसे-जैसे बढ़ेगा यह मोह
माया त ुझे अपना ास बना ल ेगी इसीिलए त ू ीहर का यान कर सावधानी स े रहकर
अपना जीवन पार कर ।
"जननीया ं बाळका रे । घातल े पाळणा ।
पंचतवी जडीय ेला ।वारतीया चह ं कोणा ।।
अखंड जिडय ेला।तया ढाळ अ ंगणां ।
वैखर धिन हाती ।भाव दावी ख ेळणा ।।"

८.४ तीज योहार का वण न
भारतीय लोकजीवन म तीज - योहार का महव बहत अिधक ह ै रोजमरा के काम स े कुछ
अलग करना और इस काय म मन को रमा ल ेना योहार मनान े का उ ेय होता ह ै तुकाराम
गाथा म िदवाली और दशहर े के यौहार का म ुखता स े उल ेख िमलता ह ै | िदवाली का
यौहार भारतीय स ंकृित म सवच माना जाता ह ै और दशहर े के यौहार का महव िवजय
और म ुहत क ि स े सवम ह ै | तुकाराम महाराज क भि भावना म संत क भ ट ही
उह दीपावली और दशहर े का भास कराती ह | िजस कार हर यौ हार पर मिहलाए ं अपन े
मायके जाना चाहती ह उसी कार स ंत तुकाराम भी िवल भगवान क े दशन करना चाहत े
ह | और प ंढरपुर जाना चाहत े ह | इस बात का वण न अपन े पद म वे इस कार करत े ह |
"दसरा िदवाळी तो िच आहा ं सण । सख े संत जण भ ेटतील ।। "
"पिव स ुिदन उम िदवस दसरा ।

सापडला तो सादा आिज मुहत बरा ।। १।।"
गौरव गाथा म तीज -योहार क े साथ िविभन कार क े जयंती मनान े, त - उपवास करन े
िवशेष तौर पर एकादशी क े त का वण न म ुखता स े िकया ह ै | मंिदर, पूजा, अचना, पोथी -
पुरान, गांव म भरने वाले मेले आिद का वण न भी सामािजक ि स े िकतना महवप ूण है यह
दशाया गया ह ै।
८.५ खेती िकसानी व िनसग पयावरण
तुकाराम महाराज क े समय क समाज यवथा म अिधका ंश वग क आजीिवका ख ेती
िकसानी पर आधारत थी इसक े अितर पालत ू पशुओं का पालन पोषण ख ेती िकसानी क े
काय के िलए महवप ूण माना जाता था | पयावरण भी ख ेती िकसानी यवथा स े ही
संबंिधत ह ै तुकाराम महाराज एक यवसायी क े साथ एक िकसान भी थ े इसीिलए त ुकाराम
गाथा म खेती िकसानी का दीघ वणन हम िमलता ह ै | खेती का काम िकतना क दायी था
इस बात का वण न भी त ुकाराम गाथा म है | संत तुकाराम एक सज नशील िकसान थ े उसक े
साथ ख ेती से संबंिधत सभी तव का वण न तुकाराम गाथा म है जैसे धूप, हवा, बारश , वृ,
पालत ू - जानवर और िनसग , खेती के कार क अछी जानकारी स ंत तुकाराम को थी
इसीिलए उह ने जमीन और ख ेती से संबंिधत अन ेक कार का वण न गाथा म िकया ह ै | munotes.in

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संततुकाराम के काय म सामािजक बोध
81
"पजय पडाव आपया वभाव ।आप ुयाला द ैव िपके भूिम ।।१।।
बीज त ेिच फळ य ेईल श ेवट ।लाभ हािन त ुटी याची दया ।। २।।"
"वृ वली आहा ं सोयर वनचर ।पी ही स ुवर आळिवती ।। १।।
येणे सुखे चे एकांताचा वास ।नाह ग ुण दोष अ ंगा येत ।।२।।"
"िसंचन करता ं मूळ ।वृ ओलाव े सकळ ।। १।।
नको प ृथकाच े भरी । पड एक म ूळ धर ।। ु।।"
"बीज प ेरी सेती । मग गाड़ े वरी वाहाती।। "
तुकाराम गाथा म िकसानी क े यवसाय म िमी, जमीन आिद क े वणन के साथ िस ंचाई क े
महव को भी दशा या गया ह ै वही थोड़ े से बीज डालन े पर गाड़ी भर उपज होती ह ै इसका
वणन भी गाथा म आयािमकता क े मायम स े तुत हआ ह ै यहाँ अयाम मानव क े शु
आचरण स े जोड़ा गया ह ै तुकाराम महाराज कहत े ह िक हमारी थो ड़ी सी भि और श ु
आचरण हमार े जीवन को अपार स ंपि द े सकत े ह इस स ंबंध म कई पद त ुकाराम गाथा म
विणत ह और सभी कार क े वणन संत तुकाराम क भि पराकाा को दशा ते ह |
८.६ जाित यवथा
तुकाराम गाथा क े पद म िविवध जाित वग का उल ेख िमलता ह ै और जाितय क े जो कम
िविश ह वह भी उहन े आयािमक भावाथ ारा हमार े सामन े त ुत िकए ह | संत
तुकाराम क े समय क तकालीन परिथित का िच बहत ही िवदारक ह ै वह भी जाितगत
मायम स े इस कार का जाितगत वण न अिधका ंशतः ामीण भाग स े और ामीण भाग क
यवथा स े जुड़ा हआ ह ै और उहन े इस जाित यवथा का मािम क िच तो हमार े सामन े
तुत िकया ही ह ै साथ म बड़े ही मािम क शदावली ारा उस े घातक भी माना ह ै |
तकालीन समय क समाज यवथा म ाण , िय , वैय, शू यह चार वण माने जाते
थे | ाण उच दजा ा वग है | धािमक कम कांड इसी वग ारा िकए जात े ह | इह
बुिमानी समझा जाता ह ै और यह ब ुिमान अह ंकार को थान द ेता है इनक स ंकुिचत
वृि को उपन करता ह ै | संत तुकाराम म इनके ारा िकए जा रह े कमकांड से हो रही
हािन का वण न िकया ह ै और श ू वण और उनक े काय को भी िनचला दजा देना इस बात
का िवरोध भी हम तुकाराम गाथा म िमलता ह ै | इसी कार िय वण का स ंबंध राय
शासन स े होता था इह े सा धारी समझा जाता था और राज क स ुयवथा यही वण
चलाता था | तीसर े मांक पर व ैय वण िजनका आजीिवका का साधन यवसाय करना
होता था जो समाज म जन सम ुदाय क े भरण पोषण का दाियव िनभात े थे | इस कार
चार वण और उनक े ारा िकए जान े वाले काय का वण न तुकाराम गाथा म हम बहत ही
िवता र से िमलता ह ै इन सभी वण क े िवषय म तुकाराम महाराज अपन े मत बहत ही
खरता क े साथ रखत े ह वही समाज यवथा म िविभन जाितय का योगदान िकस कार
है उन जाितय का वण न भी त ुकाराम गाथा म है | munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
82 संत तुकाराम गाथा म समाज यवथा म िनिहत िविभन जाितय का उल ेख हम िमलता
है उनम मुखता क ुणबी, सुनार, दरवेशी, दाडी , जोगी, कोहाटी , इयािद जाितय का
वणन है संत तुकाराम महाराज वय ं कुणबी जाित क े थे इसीिलए उनक े काय म कुणबी
जाित का और उनक े ारा िकए जान े वाले यवसाय का वण न िवत ृत िदया गया ह ै |
"कम अिभमान े वण अिभमान | नाडल े ाण कलय ुगी ||३ ||
तैसा नह े तुका वाणी यवसायी | भाव याचा पाय िवठोबाच े || ४ ||"
चारी वण झाले एकिच े अंगी | पाप प ुय भागी िवभािगल े ||

तुका हण े बरी जाित सवे भेटी | नवनीत पोटी साठिवल े || ४ ||

तुका कुणिबयाचा न ेणे शामत ।एक प ंढरीनाथ िवसबव ेना ।।

८.७ तुकाराम गाथा म तकालीन समय क े खेल
यह तो हम जानत े ही ह तुकाराम महाराज सामािजक जीवन स े पूरी तरह ज ुड़े हए थ े |
उनके काय म सभी सामािजक स ंदभ का हमन े अययन िकया ह ै इस सभी अययन क े
साथ तकालीन समय म बच और बड़ ारा ख ेले जाने वाले खेल का वण न भी गाथा म
िवतृत प म िमलता ह ै इन ख ेल म मुख है गुली - डंडा, फुगड़ी, िपपरी , गद खेलना
आिद |
चडू चैगुना खेळती वाळव ंटी ।चला चला हणती पाह ी वो ।।४।।
सारा िवटीदाड ू।आणीक का ंही खेळ मांडू ।।४।।
फुगड़ी ग े अवघ े मोड़ी ग े। तरीच गडी ग े संसार तोडी ग े।।२।।
८.८ सारांश
इस कार हमन े अययन िकया िक स ंत तुकाराम वाणी लोकवाणी ह ै और हमार े जीवन स े
समाज स े पूरी तरह अवगत ह ै संत तुकाराम क े उपदेश हम समाज म रहने का सदाचरण का
उपदेश देते ह इनके पद म अवण नीय प ता है जो जीवन क े महव का और आचरण का
ान हम देती है |
८.९ दीघरी
१. संत तुकाराम क े काय म तकालीन समय क े समाज क े दशन होत े है उदाहरण सिहत
समझाइए |
२. संत तुकाराम का का य समाज स ुधार का काय ह ै प किजए |

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संततुकाराम के काय म सामािजक बोध
83 ८.१० लघुरी
१. संत तुकाराम न े वयं को िकस जाित का कहा ह ै ?
उर – कुणबी

२. संत तुकाराम क े समय क समाज यवथा म समाज जाितगत आधार पर िकतन े वण म
बंटा था ?
उर - ाण , िय , वैय, शू यह चार वण म |

३. संत तुकाराम क े समय म बचो ारा ख ेले जाने वाले खेल म तुकाराम कौनस े खेल का
वणन िकया ह ै ?
उर - गुली - डंडा, फुगड़ी, िपपरी , गद खेल आिद

४. "िसंचन करता ं मूळ ।वृ ओलाव े सकळ ।। १।।
नको प ृथकाच े भरी । पड एक म ूळ धर ।।ु।।" उ दोह े का वण न िकस े से है ?
उर- खेती – िकसानी

५. पालना गीत वण न म संत तुकाराम का माता और पालना स े आशय या ह ै ?
उर - उनका आशय माता स ंत पी जीवामा ह ै और प ंचतव द ेह पी पालना ह ै




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84 ९
तुकाराम गाथा ेरणादायी ोत
इकाई क पर ेखा
९.० इकाई का उ ेय
९.१ तावना
९.२ समाज म समानता
९.३ जाितथा का िवरोध
९.४ रीित रीवाज , कमकाड का िवरोध
९.५ संसार क नरता का वण न
९.६ नीित म ूय
९.७ ी के ित उदार िको ण
९.८ दहेज था पर हार
९.९ रा भि
९.१० पयावरण स ंवधन
९.११ लोकस ंया व ृि पर िवचार
९.१२ सत त ुकाराम महाराज का व ैािनक िकोण
९.१३ सारांश
९.१४ दीघरी
९.१५ लघुरी
९.१६ संदभ पुतक
९. ० इकाई का उ ेय :-
मराठी सत किवयो म अणी सत त ुकाराम न े भागवत भि स े परम इ क े िमलाप करन े
तक का अथक यास अपनी गाथा क े मायम स े य िकया ह ै | साथ ही उनक े सुसपन
जीवन स े लेकर खडतर जीवन वास म सभी कार क े अनुभव उह े िमल े और उन
अनुभवो क िणती उ नके काय म िगोचर होती ह ै, िजसक े मायम स े तकालीन समय
क अवधारणा तो हमार े सामन े त ुत है ही साथ ही सामािजक , आिथक, राजनीितक
अवथा क ैसे सुचा प स े चल सकती ह ै इन े म या कमीय को नजर अ ंदाज munotes.in

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तुकाराम गाथा ेरणादायी ोत
85 करना हम े भिवय म या परणाम द ेगा इस कार क िवलण द ूर ि का भी गाथा म
वणन हआ ह ै | और इस कार क े िदए गए स ंदेश आज सय प िलए हमार े सामन े त ुत
है | इस कार क भिवयवाणी सत त ुकाराम महाराज क े वभाव क े सव ानी ,
बुिमानी और उनक गाढ अययन , दूरदिशत यिव को दशा ती है –
९.१ तावना :-
सािहय ल ेखन म संपूण संत सािहय परपरा का दीघ अययन िकया जाए तो हम ात
होता ह ै िक यही समाज स ुधार का सािहय था ” सभी सत अलग -अलग परव ेश से आये
और अपन े जीवनान ुभव स े उहोन े अपनी रचनाओ ं को सरसता क े साथ साथ ान वध क,
सिहण ू, एकता का परचायक और रा क े ित िहत और द ेशेम क भावना थी इसक े
अितर उनक े आधार पर उहन े भिवय क े िवषय म भाय कर और आज उसक सय
परणीती स े सभी को आय म डाल िदया ह ै | सत काय क मिहमा ही िनरा ली थी जो धम
के साथ समाज को स ुधारने म एक यायिय समाज बनान े क ओर बल द े रही थी |
९.२ समाज म समानता :
सत किवयो न े समाज म भागवत भि का सार िकया साथ ही हर मानव क े भीतर ईर
का अ ंश माना इसी एक मत न े उनके समाज क े ित, िकोन को हमार े सामने त ुत कर
िदया | सत त ुकाराम गाथा म कहा ह ै िक सामािजक समानता ही समाज को स ुचा प स े
आगे ले जा सकती ह ै, यिक समानता िनसग ारा ा ह ै और असमानता उस े अनैसिगक
बनाती ह ै, अथात यह मन ुय क ही द ेन है | इस स ंदभ म उहोन े शा , पुराणो और व ेद का
सहारा िलया ह ै | उनका मानना ह ै िक सभी ंथो म ाहण , िय , शु और व ैय को
समान अिधकार ा ह ै | इनमे सामािजक और आयािमक सभी कार क समानताओ
का समाव ेश है |
ऐसा हा िनवाडा जालास े पुराणी, नहे माझी वाणी पदरीची ||२||
तुका हण े आगी लागो थोरपणा | ि या द ुजनान पदो माझी ||३||
९. ३ जाितथा का िवरोध :
सत त ुकाराम न े जाित को न मानकर मन ुय के गुण ओर सद ्कम को अिधक महव िदया
है | समाज म फैली इस जाित -गत िवषमता स े तुकाराम द ु:खी थ े | इसे उहोन े समाज म
वाथ लोगो ा रा िकया गया षड ्यं माना ह ै, गाथा म उहोन े कहा ह ै अप ृयता मानन े
वाले ाहण का ायित द ेह याग करन े पर भी नह हो सकता | जात-पात यह मानव क े
वाथ वभाव क िनपि ह ै | परमेर तो सय कम , सदभाव , सदाचार और सची भि
का भूखा है, उसक नजर म सब समान ह ै, इसीिलए गाथा म उहोन े ईर न े मानव क जात
देखकर नह उसक सची भि द ेखकर भ पर क ृपा क ह ै | इसके कई उदाहरण स ंत
तुकाराम न े त ुत िकय े है |-
उंचनीच न ेणे काही भगव ंत | िने भाव भ द ेखोिनया ||१|| munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
86 चम रंगू लागे रोिहदासा स ंगी | किबराच े मागी िवणी श ेले ||२||
इस कार स ंत कहत े है िक दासी प ु िवद ुर के घर क ृण का आितय वीकारना , हाद
क रा करना , रोिहदास क े साथ चमडा र ंगने का काय और कबीर दासजी क े घर कपड े
रंगने का काय ईर करत े है, उनक जाित क े आधार पर नह वरन उन क सय , िना,
भि स े सन हो | ऐसे अनेक उदाहरण गाथा म है िजसक े मायम स े तुकाराम न े जाित
िवषमता क अवह ेलना क ह ै |
९.४ रीित रीवाज , कमकाड का िवरोध :
तकालीन समाज म फैली अ ंधा , कमकाड , जादूटोना, दहेज था , यसन त
समाज , जप-माला आिद अन ेक पहल ु जो समाज को गतोम ुखी बना रह े थे | इस सब स े
तुकाराम समाज को बाहर िनकालना चाहत े थे |
उहोन े सची भि को ही सही माना और अतग त बातो को ढग माना | कमकाड ारा
अंधा म जकड़ े जाना ा का नह वय ं ईर का अपमान करना ह ै | ितलक लगाना ,
जटा बढाकर लोगो फ ंसाने वालो को त ुकाराम क े अनुसार कड़ी स े कड़ी सजा होना चािहए
मुखे सांगे हान | जन लोकाची मान ||१||
ान सा ंगतो जनासी | नाही अन ुभव आपणासी ||धृ||
कथा करतो द ेवाची | अंतरी आशा बह लोभाची ||२||
तुका हण े तोिच व ेडा | याचे हावूिन थोबाड फोडा ||३||
सत त ुकाराम न े तीथ – याा, वृत, अनुान आिद बात का भी ती िवरोध िकया ह ै | और
नाम - मिहमा को सवपरी माना ह ै | सची भि और मन स े ईर को प ुकारा जाय े तो ईर
जर आत े है |
९.५ संसार क नरता का वण न :
सत त ुकाराम का मानना ह ै िजसन े जम िलया ह ै, उसका मरना अटल ह ै िजस कार
िबली च ुहे को खा ल ेती है | उसी कार काल , मानव को हर ल ेता है | सत त ुकाराम
नीितान द ेते हए कहत े है िक हम इस स ंसार म आकर सा ंसारकता स े जुड जात े है | पंच,
घर, गृहथी म वयं को भ ुला देते है और ईर को भी | इस सा ंसारकता म सुख पी शहद
है जो हम े फूलो म जकड े हए रखता ह ै | संसार क मोहकता हम े हमेशा आकिष त करती ह ै,
लेिकन यह सय ह ै िक स ंसार नाशव ंत है :
लिटका तो प ंच | एक हरनाम साच |
हरिवण आहाच | सव इंिये ||१||
लिटक े ते मोन | माच े वन | munotes.in

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तुकाराम गाथा ेरणादायी ोत
87 हरिवण यान | नर आह े ||२||
९.६ नीित म ूय
सामाय जन मानस लोकरीित , लोकमत व परिथतीन ुसार चलता ह ै, इसीिलए उसक े
जीवन म योय स ंगित और न ैितक िशा क आवयकता होती ह ै | सत त ुकाराम कहत े है
िक मानव को मन सन रखना चािहए , इसी स े सुख, समाधान , इछा प ूित, मो ाि
होगी |
मानव म कृत भाव हमार े अदर होना चािहए हम पिम स ंकृित म बहते जा रह े अंधे बन
कर उसका वीकार कर रह े है लेिकन यह सब नौट ंक है | यह स ुंदर देह ईर न े हमे िदया,
खाने को अन , रहने को घर िमला इसिलए हमे ईर क े ित क ृतता य करनी चािहए |
कारे नाठिवसी क ृपाळू देवांिस | पोिशतो जगा ंिस ऐकला तो ||१||
मानव क े पास आज जो क ुछ भी ह ै उसका अह ंकार ल ेकर वह चल रहा ह ै, मानव क े िवचारो
से वाणी स े यिद अह ंकार क ग ंध आ जाती ह ै तो लोग उस े टालन े लगत े है, सत त ुकाराम
कहते है िक यिद समाज म समान क े साथ रहना ह ै तो अह ंकार को याग दो और जो क ुछ
है वह ईर क क ृपा से है इस सय को समझ लो | तभी जीवन अह ंकार म ु और न होगा ,
जो िनवा ण के माग पर ल े जायगा |
कोिडयाच े गोरेपण | तैसे अहंकारी ान ||१||
यािस अ ंतरी रझ े कोण | जवळी जाता िचसवाण ||धृ||
सत त ुकाराम न े सकम य म सहनशीलता क े गुण को आवयक माना ह ै, यिद एक
अछे समाज का िनमा ण करना ह ै तो ार ंिभक दौर म उसे समाज क अवह ेलना झ ेलनी
पडेगी | और उस े अपन े कम पर अिड ंग चलना होगा तभी वह य ेय पूित कर सकेगा |
‘मोहरी तोिच अ ंगे | सूत न जल े याया स ंगे ||३||
तुका हण े तोिच सत | सोसी जगाच े आघात ||४||
सत त ुकाराम का मानना ह ै, संसार सभी कार क े यिय से बना ह ै – अमीर , गरीब,
िवाव ंत, कलाव ंत, िवचारशील आिद ल ेिकन नता िजसक े आचरणो म है वही सव
समान पाता ह ै |
येत िसंधुया लहरी | न होता जाित वर ||२||
तुका हण े कळ | पाय धरया न चल े बळ ||३||
अछाई क यह ग ुण सय साधक और िच को श ु रखन े का ग ुण है | इसमे
िकसी भी कार का ेष नह होता | यिद कोई अन ुिचत घटना हई भी ह ै तो वह
िनराश नह करती | शांित से वीकार कर ईर क इछा मान जीवन को आग े भी
सदमाग क ओर ल े जाती ह ै | munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
88 सवागी िनम ळ | िच ज ैसे गंगाजळ ||२||
तुका हन े जाित | ताप दश ने िवा ंती ||३||
९.७ ी क े ित उदार िकोण
सत त ुकाराम का मान ंना था ी भोग क वत ू नह ह ै और समाज म जो इस धारणा स े
जीते है वे समाज को पतन क ओर ल े जाने म सहायक बनत े है | तुकाराम गाथा म दहेज
था, शादी-िववाह म अिधक खच करना , वर प क आवभगत करना आिद िशाचारो का
िवरोध हआ ह ै, इस िवषय म उहोन े कहा ह ै|
‘परय परनारी | अिभळास ूती नक धरी ||१||
जलो तयाचा आचार | यथ भर वाह े सर ||धृ||
सोहोयाची िथती | ोधे िवटाळला िची ||
तुका हण े सग | दावी बा ह ेरील र ंग ||३||
तुकाराम गाथा २२४५
९.८ दहेज था पर हार :-
जगतग ु तुकाराम महाराज न े अपन े पद म यह भी कहा ह ै िक कया दान को प ृवीदान क े समान
माना ह ै िजस कार प ृवी हवा ,धूप ,वारश क चप ेट सहन कर भी तटथ रहती ह ै | मां के समान
अपने बच पर हम ेशा दुलारती ह ै उसी कार एक कया भी अपन े सभी कत य िनभाती ह ै सामन े
वाला क ैसा भी वता व कर े पर वह शीलता नह छोड़ती इसी कारण प ृवी दान और कयादान एक
समान ह ै |
९.९ रा भि
सत सािहय समाज स ुधार का सािहय ह ै, समाज स ुधार क े साथ उनक े सािहय म
रािहत भी िगोचर होता ह ै, उनके ारा विण त धमा चरण, सदाचार और नीित स ंबंधी
िवचार समाज रण क े नाम पर हो रह े ढग पाख ंड, अनाचार धम और द ेश पर आन ेवाले
संकट का अद ेशा उनक तीण ब ुी ने जान िलया था | संत तुकाराम क धारणा थी रा
के रण ह ेतू अिधक स े अिधक स ैिनको का िनमा ण होना चािहए | तुकाराम महारा ज के
अभंग (पद) से ात होता ह ै िक समाज म िसफ सामािजक , धािमक और राजनीितक
आदोलन न हो वरन रा क े िहत म जनजाग ृित के आंदोलन होना चािहए | यिक सत
तुकाराम क े समय म ुगल सााय और म ुगल राजाओ ं के अयाचार स े जन जन त ृत था |
इसीिलए इहोन े पाईक क रचना क जो िशवाजी महाराज व उनक े सौ स ैिनको क े िलए थी |

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तुकाराम गाथा ेरणादायी ोत
89 ९.१० पयावरण स ंवधन
आज का समाज तकनीिक गित का समाज ह ै | इसके मायम स े मानव न े िदन द ुगुनी रात
चौगुनी गित क ह ै | ऐसे म पयावरण क े साथ समतोल रखना बहत जरी ह ै, यक मानव
क गित पया वरण और िनसग को अनद ेखा कर रही ह ै | पयावरण का बदलता ख
इसान क गित ण म न करन े क ताकत रखता ह ै | यिद हम पया वरण क े सािनय म
रहगे तो श ु, सुढ, सुखी, आरोयदायी और आन ंिदत रह गे यह धारणा त ुकाराम गाथा म
य हई ह ै :
वृवली आहा सोयर े वनचरी | पीही स ुतरे आळिवती |
इस कार पया वरण रण व ृ तोडन े से पी - पशु - ाणी न होत े जा रह े है, मानव जीवन
के भौितक आयािमक स ुख हेतु िनसग का महव को स ंत तुकाराम न े शदो क े मायम स े
अिभय कर हम सीख दी ह ै
९.११ लोकस ंया व ृि पर िवचार :
आज हमार े देश म कई िवकट ह ै तो वह ह ै जनस ंया व ृि तुकाराम गाथा म इस महव
पूण िवषय पर भाय कर भिवय क समया को पहल े ही भा ँप िलया था |
जनसंया िजस िहसाब स े बढ रही ह ै, वह आग े चलकर जमीन , उोग ध ंदे, खा पदाथ
आिद ेो म हलचल मचा द ेगी और यह वजह य ु का कारण बन ेगी वे कहत े है :
काय पौर े जाली फार | िकंवा न साह े करकर |
तुकाराम महाराज कहत े है िक घर म अिधक बच े होने से अिधका ंश समय आपस म लडन े,
मारामारी और िकरिकर म बीतता ह ै वह अिधक बच े होने से खान -पान, व, िनवारा
आिद स ुिवधाओ म भी कमतरता बनी रहती ह ै |
९.१२ सत त ुकाराम महाराज का व ैािनक िकोण
आज िवान का य ुग है सभी द ेशो ने नये नये शोध लगा िलए ह ै सुिवधाए और भी स ुलभ
करने के िलए शोध मोिहम जारी ह ै | चीन, जापान आिद द ेश शोध काय के िलए थम
मांक पर ह ै, वही हमार े देश म शोध काय नगय क े बराबर ह ै | सत त ुकाराम तवान क े
ारा कहना चाहत े है िक िवान चमकार नह ह ै | वह हमार े अथक यासो क फल ुित
होता ह ै | हमारे यन इस े म होना चािहए |
दीमाजी लोणी जावती स काळ | ते काढी िनराळ े जाणे मथन ||
अथात दूध से दही त ैयार होता ह ै और दही म मखन होता ह ै | यह सभी को ात ह ै,
लेकन दही स े मखन बनान े क िया िकसी को पता नह होती | यह िया िजसन े
देखी है | वही यह काय कर सकता ह ै | एक और उदाहरण द ेते हए स ंत कहते है िक -
लकडी स े अिन का िनमा ण होता ह ै यह सभी को ात ह ै लेिकन अिन िनमा ण के िलए munotes.in

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मराठी संत का िहंदी काय
90 घषण क िकया का ान सभी को नह होता और यह ान यिद ह ै भी तो यन करना
अिनवाय है |
९.१३ सारांश :-
संत तुकाराम का सािहय वा ंत सुखाय और परात स ुखाय दोन उ ेय क प ूित करन े के
साथ समाज क भीषणता को द ेखकर उस िवषय म भी स ुधार क ओर हमारा यान
आकिष त करता ह ै | उनक िववतता क चीित आज उनक े भो को हो रही ह ै जब उनक े
ारा िदए गए उपद ेश और भिवय क े िवषय म उदगार सही सािबत हो रह े है | जो सभी के
िहत म है | इन सभी म ु का अययन हमन े इस इकाई म िकया ह ै |
९.१४ दीघरी :-
१. संत तुकाराम का काय समाज क े िलए और मानव मा क े िलए ेरणा ोत ह ै िववरण
सिहत समझाइए |
२. तुकाराम गाथा म समाज िहत और रा िहत नीिहत ह ै | समझाइए |
९. १५ लघुरी :-
१. संत तुकाराम गाथा म शा , पुराणो और व ेद आिद सभी ंथो म ाहण , िय , शु
और व ैय वण को क ैसा अिधकार ा ह ै ?
उर - शा, पुराणो और व ेद आिद सभी ंथो म ाहण , िय , शु और व ैय को
समान अिधकार ा ह ै |
२. सत त ुकाराम न े तीथ – याा, वृत, अनुान आिद बात का ती िवरोध कर िकस
कार क भि को े माना ह ै ?
उर - सत त ुकाराम न े तीथ – याा, वृत, अनुान आिद बात का ती िवरोध कर नाम -
मिहमा को सवपरी माना ह ै | सची भि और मन स े ईर को प ुकारा जाय े तो ईर जर
आते है |
३. सत त ुकाराम क े अनुसार यिद समाज म समान क े साथ रहना ह ै तो या करना
होगा ?
उर - सत त ुकाराम कहत े है िक यिद समाज म समान क े साथ रहना ह ै तो अह ंकार को
याग दो और जो क ुछ है वह ईर क क ृपा से है इस सय को समझ ना होगा |
४. सत त ुकाराम क े अनुसार स ंसार क ैसे यिय स े बना ह ै ?
उर - सत त ुकाराम का मानना ह ै, संसार सभी कार क े यिय स े बना ह ै ?
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तुकाराम गाथा ेरणादायी ोत
91 ५. संत तुकाराम न े रा क े रण ह ेतू िकसक िनिम ित आवयक मानी ?
उर - संत तुकाराम क धारणा थी रा क े रण ह ेतू अिधक स े अिधक स ैिनको का
िनमाण होना चािहए |
९.१६ संदभ पुतक
१) साथ ी त ुकारामाची गाथा |
२) मराठी का भि सािहय - डॉ. भी गो. देशपांडे |
३) मराठी संतो क िहदी वाणी - डॉ. आनंद काश दीित |
४) पाँच संत किव - ी. शं. गो. तुलपुले.


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