M.A.-Sem-IV-हिंदी-प्रकल्प-लेखन-munotes

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संचार प्रक्रिया
ककसी भी कायय के व्यवकथथत क्रम एवं थवरूप को सुचारू रूप से लागू करने के ढंग को
प्रकक्रया कहा जाता है । संचार के ऄंतगयत एक पक्ष दूसरे पक्ष को सूचनाओं, कवचारों, एवं
भावनाओं के अदान करने को संचार प्रकक्रया कहते है । संचार व्यकियों और समूहों का
वाहक एवं कवचार ऄकभव्यकि का माध्यम है । संचार प्रकक्रया में संप्रेषक संदेश के प्रवाह के
माध्यम का प्रयोग करता है । माध्यम कलकखत, मौकखक, दृश्य, श्रव्य अकद रूप में होता है ।
माध्यम का चयन संचार का ईद्देश्य गकत एवं प्राप्तकताय की पररकथथकतयों के ऄनुरूप ककया
जाता है । संचार माध्यम का चयन करते समय संप्रेषक यह ध्यान रखता है कक कब क्या
संचाररत करना है ? प्रापक संदेश को प्राप्त करता है । कववेचन करता है, ऄपने दृकिकोण से
ईसे ग्रहण करता है तथा वांकित प्रकत ईत्तर प्राप्त करता है ।
संचार की प्रक्रिया के संबंध में प्रारंक्रभक रूप में तीन धारणाएं सर्वप्रथम हमारे सामने
आती है:
(१) पहली धारणा संचार एक सरला रेखा के रूप में (Commu nicatio n as a line
arprocess) - आस रूप में संचार को एक सरल रेखा में बढ़ता हुअ माना जाता है ।
ऄथायत "A" कोइ संदेश भेज रहा है कजसे "B" ग्रहण कर रहा है । Sender M essag e-
Receiver
२) दूसरी धारणा - संचार एक ऄंतःकक्रया के रूप में । (Comuncation on as a
interaction) आस धारणा के ऄनुसार संसार एक सरल रेखा में नहीं होता, बककक
संचार संप्रेषक और प्राप्तकताय के बीच एक ऄंतः कक्रया है ।
Sender to Receiv er Receiver to Sendev
(३) तीसरी धारणा संचार परथपर अदान प्रदान के रूप में । (Communication as a -
transaction) आस धारणा के ऄनुसार संचार कसर्य ऄंतकक्रया ही नहीं, बककक परथपर
अदान-प्रदान है । ऐसा नहीं है कक 'A' बोले तो 'B' चुपचाप सुने और 'B' बोले तो 'A'
चुपचाप सुने । दरऄसल 'A' जैसे ही बोलना शुरू करता है, 'B' से ईसे प्रकतकक्रया
कमलने लगती है । आसकलए जब 'B' संचार करता है, तो ईसी वि वह प्राप्त कताय भी हो
जाता है । आसी तरह 'B' जब संदेश ग्रहण कर रहा होता है, ईसी समय वह संचारक भी
हो जाता है । आस तरह संचार वृत्त रेखा में होता है । munotes.in

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जनसंचार माध्यम
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आसको आस रूप में भी समझा जा सकता है ।

आस तरह संचार की प्रकक्रया परथपर लेन-देन है संचारक तथा प्रापक की भूकमकाएँ आसमें
बदलती रहती है । तथा एक कुशल संचारक सहजता के साथ दूसरी भूकमका में भी रहता है ।
यहाँ पर ध्यान देने योग्य है कक संचारक ऄपने ऄथक प्रयत्नों से संदेश को कचन्हों तथा
संकेत द्वारा कूट (Fncode) करता है और चैनल के माध्यम से प्रापक को भेजता है । प्रापक
ऄपनी पढ़ने की क्षमता के अधार पर संदेश को पढ़ता (decode) है । आस तरह संचार पूरा
हो जाएगा । कर्र प्रापक र्ीडबैक भेज सकता है । संचार के क्रम में भी भूकमका होती है, जो
संदेश को कवकृत करती है । जैसे रेकडयों प्रसारण में अने वाली बाधा । संचार प्रकक्रया की आस
ऄवधारणा के तहत यह जरूरी है कक प्रापक ईसी ऄथय के ऄनुरूप कडकाडे की, जो ऄथय
संचारक ने कूट ककया है, तभी संचार की प्रकक्रया सर्ल होगी । कर्र प्रापक ऄपनी
प्रकतकक्रया आसी तरह कूट करके भेजेगा, कजसे संचारक कडकोड करेगा । आस पूरी प्रकक्रया में
बाधा (Noise) यानी शोर की भी भूकमका होती है, जो संदेश को कवकृत करती है ।

संचार की प्रकक्रया के संबंध में कवकभन्न कवद्वानों ने ऄलग ऄलग मॉडल प्रथतुत ककया है ।
कजनमें शैनन, वीबर ला सवेला, सी. इ. अस गुड, वैथतले और मेक्लीन, लीगन, कबलवर
श्राम, गबयनर आत्याकद के मॉडल प्रमुख है । munotes.in

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संचार प्रकक्रया
3 संचार प्रक्रिया के तत्र्:
संचार की प्रकक्रया में कनम्न तत्व हमारे सामने अते है-
संप्रेषक या संचारक या स्रोत:
संचारक की भूकमका ककसी भी संचार प्रकक्रया में सबसे महत्त्वपूणय मानी जाती है । संचारक ही
ककसी संदेश का स्रोत होता है, वही ईसका प्रेषक है । संचारक वह है, जो संचार प्रकक्रया का
अरंभ करता है । ऄतः प्रथम संचार तत्व के रूप में संप्रेषक या संचारक या स्रोत का
ईकलेख ककया जाता है । आस रूप में विा, काययकताय, नेता, ऄकधकारी, कवशेषज्ञ, संबंधी
कमत्र, पडोसी की भूकमका संप्रेषक या संचारक के रूप में देखे जा सकते है । संप्रेषक को
संदेश की पूणय जानकारी होती है । संचारक संदेश के पररणाम और ईसके मूकयांकन, संचार
प्रकक्रया और संचार माध्यमों के प्रकत सतकय रहता है ।
डेक्रर्ड के बनी के अनुसार संप्रेषक या संचारक में चार प्रकार के गुण होते है:
 संचार कनपुणता
 मनोवृकत्त
 ज्ञान का थतर
 सामाकजक सांथकृकतक अचरण
पहला संप्रेषक गुण के रूप में संचार कनपुणता या कौशकय अवश्यक है । ऄथायत कलखना
और बोलना (एन कोकडंग) पढ़ना और सुनना (डीकोकडंग) तथा तकय करना । आसके ऄकतररि
रंग - कचत्र बनाना, संकेत करना अकद भी संचार कौशकय के ऄंग है ।
संचारक का दूसरा गुण ईसकी मनोवृकत्त है । यह मनोवृकत्त संचार पर तीन प्रकार से प्रभाव
डालती है ।
१) ईसका ऄपने प्रकत व्यवहार, जैसे सावयजकनक भाषण के समय भय के कारण पैरों का
कॉपना ।
२) कवषय वथतु के प्रकत ईसकी चारणा जैसे एक बहुत ही सर्ल कवक्रेता माल नहीं बेच
सकता यकद वह थवयं ईसमें कवश्वास नहीं करता ।
प्रापक के प्रकत ईसका अकार व्यवहार जैसे बोलने वाला गुण, जो सुनने वालो को अककषयत
करे ।
संप्रेषक का तीसरा गुण ईसके ज्ञान का कवथतार है । संप्रेषक के ज्ञान का प्रभाव ईसके संचार
संबंधी व्यवहार पर पडता है । आस प्रकार संप्रेषक को कवषय वथतु की ऄच्िी समझ, सही
मनोवृकत्त, ईकचत माध्यम का चुनाव तथा प्रापक की कवशेषता की जानकारी संचार को
प्रभावी बनाता है । munotes.in

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जनसंचार माध्यम
4 संप्रेषक का चौथा गुण ईसका सामाकजक एवं सांथकृकतक अचरण है । कोइ भी संप्रेषक
सामाकजक सांथकृकतक व्यवथथा में ऄपनी कथथकत से प्रभाकवत हुए कबना थवतंत्रता से संचारण
नहीं कर सकता है । कभन्न सांथकृकतक पृष्ठभूकम से अये हुए ऄलग-ऄलग ढंग से अचरण
करते है । भारतीय और चीनी एकही संदेश की ऄकभव्यकि कभन्न प्रयोजन को ऄकभव्यि
करने के कलए करते है कजसका पररणाम संप्रेषक के संदेश के प्रकत ऄनुकूल प्रकतकक्रया के रूप
में सामने अता है ।
संदेश ककसी संप्रेषक द्वारा ककसी संचार प्रकक्रया के ऄंतगयत ककसी भी माध्यम से कजन
सूचनाओं, कवचारों एवं ऄकभवृकत्तयों को संचाररत ककया जाता है, ईन्हें संदेश करते है । आसे
संप्रेषक मौकखक या ऄमौकखक तरीके से, शब्दों या कचत्रों के जररए या कर्र संकेत द्वारा
प्रापक के पास संप्रेकषत करता है । जन संचार की भाषा में आसे कंटेंट्स कहा जाता है । कोइ
भी संदेश संचार के क्रम में कजस रूप में तैयार ककया जाता है, जरूरी नही कक ईसी रूप में
ईसे जन संचार के कलए संप्रेकषत कर कदया जाय । वथतुतः एकही संदेश को ऄलग-ऄलग
श्रोताओं तक ऄलग-ऄलग माध्यमों से संप्रेररत करने में कभन्न-कभन्न रूपों में प्रथतुत करना
पड सकता है ।
संदेश में क्रनम्नक्रिक्रित क्रर्शेषताएँ अक्रनर्ायव मानी जाती है:
१) संदेश ईद्देश्यपूणय होना चाकहए ।
२) संदेश में सही संतुकलत वैज्ञाकनक दृकिकोण का समावेश होना चाकहए ।
३) प्रापक या संग्राहक की अवश्यकताओं, क्षमताओं और मान्यताओं के ऄनुरूप होना
चाकहए ।
४) संदेश समयानुसार होना चाकहए ।
५) संदेश व्यावहाररक हो ताकक प्रापक ईसका प्रयोग कर लाभाकन्वत हो सके ।
माध्यम:
संचार की प्रकक्रया में माध्यम का भी बहुत महत्त्व होता है । कोइ संदेश ककस तरह के ककतने
श्रोताओं तक ककस गकत से तथा ककस रूप में पहुँचेगा, ककतना प्रभावोत्पादक होगा , ऐसी
समथत चीजें आस बात पर कनभयर करती है कक ईसका माध्यम क्या है । संचार के माध्यमों में
ऄंतवैयकिक संचार के दौरान ऄगर कोइ यांकत्रक चीज मौजूद नहीं होती तो जन संचार के
कलए कप्रंट मीकडया, रेकडयो, टी.वी. आत्याकद माध्यमों की अवश्यकता होती है । ककसी भी
संदेश की सर्लता आस बात पर कनभयर करती है कक माध्यम का चुनाव सही ककया है या नहीं
। ऄलग-ऄलग जरूरत के कलए ऄलग-ऄलग माध्यम का ईपयोग ककया जाता है ।
संदेश को प्रापक तक पहुँचाने के कलए माध्यम का चयन करते समय संप्रेषक को यह ध्यान
रखना चाकहए कक:
(१) संदेश के तत्व और ईसके थवभाव को ध्यान में रखकर संचार माध्यम का चयन करना
चाकहए । munotes.in

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संचार प्रकक्रया
5 २) दशयक, श्रोता, पाठक तक सरलता से पहुँचने वाले माध्यम को सवयप्रथम वरीयता देनी
चाकहए ।
३) दशयक, श्रोता, पाठक को एक से ऄकधक ज्ञानेंकियों के प्रयोग करने के कलए बाध्य करने
वाला माध्यम होना चाकहए ।
४) संप्रेषक को ईकचत समय पर माध्यम की ईपलब्धता
संचार के माध्यम संप्रेषक और प्रापक के मध्य माध्यम पुल का कायय करता है । माध्यम कुि
भी हो सकता है कजसे संप्रेषक ऄपने को भावी प्रापक से जोडने के कलए प्रयोग करता है; जैसे
अपसी बातचीत , व्यकिगत संपकय पत्राचार, सभाएँ या बैठके, टेलीर्ोन, टैलीकवजन, रेकडयो,
समाचार पत्र, पुथतकें, बुलेकटन, वीकडयों कर्कम , इ-मेल, आंटर नेट चैकटंग, टेंली मैसेज,
साकहत्य अकद । ये सभी माध्यम संदेश को प्रापक तक पहुँचाने में सहायक होते है ।
प्रापक या प्राप्तकताव:
ककसी भी संचार प्रकक्रया में कजस व्यकि या कजन व्यकियों को लक्ष्य करके कोइ भी संदेश
कनकमयत एवं संप्रेकषत ककया जाता है, वह प्राप्त कताय है । ऄथायत संदेश प्राप्त करने वाले को
प्रापक, प्राप्तकताय, ररसीवर डेकथटलेशन, कडकोडर, गंतव्य आत्याकद भी कहा जाता है । प्राप्त
कताय कोइ भी एक व्यकि हो सकता है । एक समूह या कर्र एक बडा जन समूह भी हो सकता
है । प्रापक सवयज्ञ ऄथवा ऄकपज्ञ हो सकता है । वह धैययपूवयक सुननेवाला ऄथवा थपि रूप
से सोचने समझने वाला ऄथवा भ्रकमत दशयक, श्रोता, पाठक हो सकता है ।
संप्रेषक का संदेश पाने वाला यह प्रापक या प्राप्तकताय संचार की प्रकक्रया के ऄंकतम िोर पर
होता है । प्राप्तकताय कजतना ही संप्रेषक के समरूप होता है, संचार ईतना ही प्रभावी होता है ।
संचार की प्रकक्रया मे प्राप्तकताय का महत्त्वपूणय थथान होता है क्योंकक ईसी को केन्ि में रखकर
संदेश का कनमायण ककया जाता है ।
प्रक्रतक्रिया (फीडबैक):
र्ीडबैक ऄथायत प्राप्तकताय द्वारा संदेश पर प्रकतकक्रया जाकहर करना । प्राप्तकताय जब संदेश
प्राप्त करता है, तब संदेश पर आसकी प्रकतकक्रया ककसी न ककसी रूप में होती है । ईसकी
ऄकभव्यकि ही प्रकतकक्रया प्रकतपुकि या र्ीडबैक कहलाता है । सुचारु संचार व्यवथथा के कलए
प्रकतकक्रया या र्ीड बैक का बहुत महत्त्व हैं, क्योंकक संचार की गकत आससे कनयंकत्रत होती हैं,
वह सही संकेतों को सही रूप में संप्रेकषत करके अगे भेजता है । कइ बार संप्रेषक को प्रापक
से प्रकतकक्रया कमलने से पूवय ही ऄन्य स्रोतों से प्रकतकक्रया कमल जाती है । जैसे संदेश भेजा
जाने लगे और वाक्य पूरा होने से पहले ही संप्रेषक को लग जाये कक मैंने सही शब्दों का
प्रयोग नहीं ककया , या मेरा ईच्चारण सही नहीं है, तो ईसे खुद संदेश से ही प्रकतकक्रया कमल
सकती है । आस प्रकार संप्रेषक खुद ऄपने ले दी र्ीडबैक प्राप्तकर लेता है ।
संचार बाधा या शोर (नॉइज):
संदेश के थतर पर जनसंचार माध्यमों में शोर या बाधा की संभावनाएँ ऄकधक है, जो मात्र
माध्यम में ही नहीं संचार प्रकक्रया में ककसी भी कबंदु पर प्रकट हो सकती है । संदेश जब munotes.in

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जनसंचार माध्यम
6 ककंन्ही ऄडचनों, बाधाओं, ऄवरोधों के कारण ऄभीि प्राप्तकताय तक नहीं पहुँचता ऄथवा
ईसमें ककसी प्रकार व्यवधान अ जाता है । तो संचार प्रकक्रया कवकवध कारणों से बाकधत होती
है तो वह संचार बाधा कहलाती है । ईदाहरण- रेकडयों, टी.वी. के प्रसारण में ककसी प्रकार की
ऄकतररि ध्वकन । आससे भ्रम एवं ऄकनकितता की कथथकत ईत्पन्न हो जाती है । टेलीर्ोन पर
वातायलाप के दौरान असपास के शोरगुल से कुि ऄकतररि ऄनावश्यक ध्वकनयाँ भी हमारे
संदेश के साथ जुड जाती है, जो बाधा ईत्पन्न करती है ।
ये बाधाएँ कई तरह की हो सकती है:
१) शारीररक बाधा, जैसे जो बात कही जा रही है, वह सुनाइ न पडे ।
२) ईच्चारण के तरीके में गडबडी के कारण गलत ऄथय कनकल जाए ।
३) कम रोशनी के कारण सही पढ़ना न हो पाये ।
४) खराब कप्रंट क्वाकलटी ।
५) मनोवैज्ञाकनक कारण- प्राप्त कताय पर कोइ पूवायग्रह या पूवयधारणा हो तो वह संदेश को
आसी रूप में नहीं लेगा या गलत लेगा ।
आसकलए कहा जाता है कक संदेश का ऄथय क्या कनकलेगा यह प्राप्तकताय के मकथतष्क पर कनभयर
करता है । संचार की प्रककया सीधी नही होती है । आसमें संचार के ऄनेक घटक तत्व कायय
करते हैं । आस प्रकक्रया को समझने के कलए ऄनेक कवद्वानों ने ऄलग-ऄलग कसद्ांतों के द्वारा
आसकी व्याख्या की है । कुि प्रमुख कसद्ांतों की चचाय आस प्रकार है:
हैराल्ड िासर्ेि का मॉडि १९४८:
ऄमेररकी राजनीकतक शास्त्री हैराकड Sr. लासवेल ने १९४८ में एक ऐसा र्ामुयला बनाया,
कजसका संचार और संचार शोध में सवायकधक प्रचकलत मुहावरें के रूप में प्रयोग ककया जाता
है । यह संचार प्रकक्रया के कइ महत्त्वपूणय तत्त्वों को समाकहत ककए हुए है । आसे संचार का
प्रथम व्यवकथथत मॉडल माना जाता है । ईनका मानना है कक ककसी संचार की प्रकक्रया को
समझने का सबसे बेहतर तरीका आन प्रश्नों का जबाब दूढ़ना है:
 Who? कौन कहता है ?
 Say What? क्या कहता है ?
 In which channal ककस माध्यम में ?
 to whom? ककसकों ?
 With what effect? क्या प्रभाव है ?
आस प्रकार संचार प्रकक्रया का लासवेला मॉडल पांच प्रकारों पर अधाररत है । ईनके ऄनुसार
आन पांच प्रकारों से संचार को समझा जा सकता है । आस मॉडल के अधार पर संचार शोध
के पांच क्षेत्र थपि रूप से सामने अते है: munotes.in

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संचार प्रकक्रया
7 १. Who-Communicator Analysis - संचार कताय का कवश्लेषण
२. Says What Contents Analysis - कवषयवथतु का कवश्लेषण
३. In whic h channel - Media Analysis माध्यम कवश्लेषण
४. To whom - Audience Analysis -star factur
५. With what effect - Impact Analysis प्रभाव कवश्लेषण
लासवेल प्रेषक ऄथायत 'कौन' पर संचार में संदेश ऄथायत 'क्या' में प्रवेश कराता है और
'ककसको' यानी ग्रहीता पर जो संदेश ग्रहण करता है जो कदया है । ईनके ऄनुसार संचार
प्रकक्रया में स्रोत (प्रेषक) की - प्रकृकत तथा ग्रकहता या ररसीवर की प्रकृकत एक महत्वपूणय
ईपकरण है । ऄंत में लासवेल ने प्रभाव तत्व को ऄपने मॉडल में समाकहत ककया है जो
ऄथयपूणय संचार की रचना करता है तथा वह ग्रकहता के मकथतष्क पर प्रभाव डालने के कलए ही
की जाती है । वथतुतः यही संचार है ।

क्रर्िबर श्राम का संचार मॉडि:
कवलबर श्राम ने ऄपनी पुथतक 'द प्रोसेस एंड इफैक्ट्स ऑफ मास कम्युक्रनकेशन' में
ईन्होंने संचार प्रकक्रया संबंधी मॉडल को प्रथतुत ककया । ईनके ऄनुसार कोइ मीकडया संगठन
जब संदेश प्रसाररत करता है, तो ईसे ग्रहण करने के बाद श्रोता थवयं ईसकी ऄपने ढंग से
व्याख्या करते है । साथ ही वे पुनः ऄपने तरीके से ईस संदेश की एन कोकडंग करके ऄन्य
लोगो तक भेजते है । ऄन्य लोग भी ऄपने कहसाब से ईसकी पुनः ररकोकडंग तथा एनकोकडंग
करके दूसरों तक भेजते है । यह प्रकक्रया चलती रहती है । आसमें ऄनकगनत ररसीवर ऄथायत
ग्रकहता है तथा हर एक द्वारा संदेश की व्याख्या तथा पुनयव्याख्या की जाती है ।'
आस मॉडल के ऄनुसार मास मीकडया का संदेश जब ककसी को कमलता है, तो वह ईसे ऄपने
समूह के दूसरे लोगों के साथ शेयर करता है । प्रत्येक व्यकि एक साथ कइ समूहों का सदथय
हो सकता है । हर िोटे या बडे समूह के ऄंदर ऄन्य बहुत से समूह होते है । आस तरह संदेश
आन समूहों तथा समाज में यात्रा करता है । आस प्रकक्रया में कोइ अवश्यक नहीं है कक मीकडया
ने जो प्रारंभ में संदेश भेजा, ईसका ठीक वैसा ही प्रभाव हो | समूहों के अपसी कवचार कवमशय munotes.in

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जनसंचार माध्यम
8 के जररए ईस संदेश का प्रभाव बदल भी सकता है । दूसरी ओर मीकडया संगठन को
जनसमूह तथा ऄपने समाचार स्रोतो से र्ीड बैंक प्राप्त होता है, कजसके अधार पर वह तय
करता है कक ऄब ईसे ककस प्रकार का संदेश प्रेकषत करना ईकचत होगा । (कवलंबर- श्राम का
जनसंचार मॉडल)

संचार प्रकक्रया का हब मॉडल - तीन प्रकसद् कवद्वान ही बटय, ऄंगुरेट और बॉन ने कमलकर
बनाया है । यह एक नया संचार प्रकक्रया संबंकधत मॉडल कवककसत ककया. आसे ईनके नाम के
पहले ऄक्षरों से (एच., यू और बी.) से कमलकर बने शब्द 'HUB' ऄथायत 'हब' के नाम से
जाना जाता है । आस मॉडल में तालाब में ईठने वाली तरंगों की भाँकत कवकभन्न कारकों में
कनरंतर कक्रया प्रकतकक्रया की ककपना की गइ है । माना लीकजए यकद हम ककसी तालाब में एक
पत्थर या टुकडा र्ेंके तो पानी में चारों और गोला तरंगें ईठती है । ये तरंगे पहले तो केन्ि
ककनारे की ओर जाती है और पुनः ककनारे से टकराकर केन्ि की ओर लौटती है । आसी
प्रकार संचार की प्रकक्रया में ऄनेक कारक है जो संदेश को दशयक / श्रोता / पाठक तक भेजने
और प्रकतकक्रया थवरूप लौटने तक ईसे प्रभाकवत करते है । आस मॉडल में संचार माध्यम
केंन्ि में है क्योंकक आन्हीं के द्वारा संदेश दशयक/ श्रोता पाठक तक प्रसाररत होता है । कबना
माध्यम के संचार संभव नहीं है ।
'हब' मॉडल की संचार प्रकक्रया में कजन कारकों का ईकलेख है ईनपर संक्षेप में चचाय करना
अवश्यक है:
संप्रेषक:
संचार प्रकक्रया में संप्रेषक की भूकमका ऄत्यंत महत्त्वपूणय होती है । एक कवशेषज्ञ समूह आस
कायय को पूरा करता है । समाचार पत्रों में मुिण कवशेषज्ञों और संपादकों / लेखकों /
संवाददाताओं द्वारा ककया जाता है । सभी कमला जुला कर संदेश या समाचार तैयार करते है
। रेकडयों और टेलीकवजन में भी ऄकभयांकत्रकी कवशेषज्ञों के साथ-साथ काययक्रम कनमायण के
कवशेषज्ञ आस भूकमका का दाकयत्व कनभाते है । वे ही संदेश को ईपयुि ढंग से प्रेकषत करते है ।
सांकेक्रतक भाषा:
संचार या जन संचार की एक ऄलग भाषा होती है । यह दृश्य-श्रव्य रूप में हो सकती है ।
ध्वकन प्रभावों की सहायता से रेकडयों में कबंब पैदा ककए जाते है । कर्कमों में या टेलीकवजन में
कैमरे के आथतेमाल से प्रभावी संप्रेषण संभव है । सांकेकतक भाषा संदेश को और भी
प्रभावशाली बना देती है । munotes.in

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संचार प्रकक्रया
9 द्वारपाि:
संचार में संपादक प्रथतुतकताय और कनमायता संदेशों के संपादन में महत्त्वपूणय भूकमका कनभाते
है । वे द्वारपाल की भांकत तथ्यों की िानबीन कर संदेश को प्रसाररत करते है । द्वारपाल एक
प्रकार की सकारात्मक शकि है जो संदेश को प्रभावी बनाने के कलए सामग्री में कॉट-िॉट
करता है, पूरक साम्रगी जोडने, तथ्यों को प्रमुखता देने या न देने का कायय भाषागत, सौंदयय,
सामाकजक दबावों ऄथवा अचार संकहताओं के पालनाथय अवश्यक कदम ईठाती है ।.
संचार माध्यम:
समाचार पत्र, रेकडयो, टेलीकवजन, कर्कम, कम््यूटर, आंटरनेट अकद जनसंचार के प्रमुख
माध्यम है । माध्यम ईन्नत तकनीकी का प्रयोग कर संदेशों को त्वररत गकत से बडे पैमाने पर
दूर-दूर तक भेजने का कायय करते है ।
क्रनयामक:
संचार को कनयमबद् रूप में चलाने के कलए कुि शकियाँ कायय करती है । जैसे न्यायालय,
शासकीय अयोग , व्यावसाकयक संगठन और जन दबाब, समूह अकद । ये शकियाँ संचार
माध्यमों को प्रभाकवत कर ने की ताकत रखती है ।
दशवक / श्रोता / पाठक:
संचार में संप्रेषक की भांकत दशयक / श्रोता / पाठक भी महत्त्वपूणय है । क्योंकक ककसी भी संदेश
का कनमायण व संप्रेषण आन्हीं के कलए होता है ।
प्रभार्:
संचार का प्रभाव दो प्रकार का होता है कवकशि प्रभाव, जो संचार की कवषय वथतु की कवकशि
दशयक / श्रोता / पाठक वगय पर होता है । और सामान्य प्रभाव ; जो संचार के कारण समाज
पर पडता है ।
माध्यमी तोड-मरोड और शोर या बाधा ( Noise) संचार प्रकक्रया में तकनीकी कारणों से
बाधा अ सकती है । ईदाहरण थवरूप रेकडयों में खरखराहट, टेलीकवजन में ऄथपि कचत्र
ऄथवा अवाज और समाचार पत्रों में ऄथपि मुिण के कारण संदेश प्रभाकवत होता है । आसे
'शोर' या बाधा कहा जाता है । कभी-कभी ना समझी और गलत र्हमी तथा सामाकजक,
सांथकृकतक कवषमताओं के कारण भी संदेश में कविूपता का खतरा रहता है ।
प्रक्रतक्रिया:
दशयक / श्रोता / पाठक पर संदेश का क्या ऄसर हुअ है, आसे जानने के कलए प्रकतकक्रया
(र्ीडबैक) का ऄभ्यास संचार में ककया जाता है । परथपर या अमने सामाने के संप्रेषण में
प्रकतकक्रया हाव भाव के - माध्यम से तुरंत कमल जाती है । जन संचार में प्रकतकक्रया प्राप्त करने
के कलए दशयक / पाठक श्रोता ऄनुसंधान का सहारा कलया जाता है । सवेक्षण आसमें कार्ी हद
तक सहायक होता है । munotes.in

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जनसंचार माध्यम
10 आस प्रकार कनष्कषयतः कहा जा सकता है कक संचार प्रकक्रया में सामान्यतः एक कसरे पर विा
होता है, जो संदेश का स्रोत है, दूसरे कसरे पर प्राप्तकताय होता है, जो सूचना का लक्ष्य है ।
बीच में माध्यम होता है । आसी के द्वारा सूचना या संदेश प्राप्तकताय तक पहुँचता है । प्राप्तकताय
की प्रकतकक्रया के कबना संचार की प्रकक्रया ऄधूरी कही जाती है । आस प्रकतकक्रया को र्ीडबैक
कहा जाता है ।


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11 २
जनसंचार का Öवłपगत िवĴेषण
जनसंचार अथाªत 'Mass Communication' एक Óयापक अवधारण है । भूमंडलीकरण के
दौर म¤ यह एक महßवपूणª ÿौīोिगक के łप म¤ उभरी है । और समूची दुिनया को बदलकर
रख िदया । जनसंचार के मूल म¤ 'संचार' शÊद है । संचार का अथª है- सूचना या जानकारी
को दूसरŌ तक पहòँचाना । संचार यह शÊद Communication का िहंदी ÿितशÊद है । अंúेजी
का Communication लैिटल के Commun is शÊद बना है । िजसका अथª to share to
impart, to transnil अथाªत आपस म¤ बॉटना या देना अथवा एक Öथान से दूसरे Öथान
पर भेजना । मराठी म¤ संचार का अथª आवाजाही या आवागमन होता है । कÉयूª के िलए
मराठी ÿितशÊद है संचार बंदी । पर यहाँ संचार शÊद का ÿयोग अंúेजी के
Communication के अथª म¤ ही कर¤गे । संचार के िलए कम से कम दो लोगŌ का होना
जłरी है । संचार अकेले संभव नहé, अगर हम इसके मूल अथª को भी ले तो संचार म¤ 'चर'
धातु से बना है िजससे चलना, चरना चरण जैसे शÊद िवकिसत हòए इसम¤ भी एक Öथान से
दूसरे Öथान तक या दो िबंदुओं के बीच गित का आभास होता है । संचार के भी दो छोर होते
ह§ । एक कहने वाला होता है तथा दूसरा सुननेवाला पर इसका तीसरा तÂव भी कम
महßवपूणª नहé है और वह है भाषा संचार ÿिøया पूरी होने के िलए इन दो छोरŌ को जोडने
वाली भाषा ऐसी होनी चािहए जो दोनŌ कì समझ म¤ आती हो । यिद इनम¤ से िकसी एक को
भी उस भाषा का ²ान नहé रहा तो संचार कì ÿिøया पूरी नहé हो पाएगी । लेिकन जब हम
भाषा का िजø करते है तो भाषा के उन आयामŌ का भी िजø होना चािहए जो मौिखक
भाषा से अलग होते है । ůािफक िसµनल का िसपाही अपने िविशĶ हÖत संचालन से ůािफक
िनयमŌ को वाहन चालकŌ तक भलीभाँित संÿेिषत कर देता है । दो गूंगे Óयिĉ आपस म¤
िविशĶ संकेतŌ Ĭारा अपने भावŌ को संÿेिषत करते है । इसी तरह संÿेषण के अनेक माÅयम
हो सकते है पर यह जłरी है िक िजन दो ÓयिĉयŌ के बीच यह संÿेषण हो रहा हो उनके
बीच के माÅयम एक समान होने चािहए ।
इस तरह संचार या संÿेषण के िलए एक सामाÆय माÅयम (Commen Medium) होना
जłरी है, और आम तोर पर यह माÅयम एक सवª सामाÆय भाषा या उसका िलिखत łप हो
सकता है । एक िविशĶ भािषक समुदाय के भीतर दो ÓयिĉयŌ के बीच सूचानाओं,
भावनाओं, संदेशŌ आिद के आदान ÿदान को हम संचार कह सकते है ।
जनसंचार (Mass Communicat ion):
जनसंचार शÊद ÓयुÂपि° कì ŀिĶ से संचार म¤ जन के योग से बना है । संचार शÊद एक
बारगी सीिमत अथª का वाचक हो सकता है, परंतु इसम¤ जन 'अथाªत' 'Mass' जुड़कर
इसको Óयापकता ÿदान कर देता है । इस ÿकार जन संचार िवशाल जन समुदाय तक
संदेशŌ को संÿेिषत करता है । इस शÊद का ÿयोग १९३० के दशक के अंितम दौर से ÿारंभ
हòआ । वषª १९३९ म¤ हबªटª Êलूमर ने 'मास' (Mass) या जन शÊद को भीड़ समूह और
जनता से िभÆन मानकर कहा िक जन (Mass) इन सबसे िभÆन अथª रखता है जन का अथª munotes.in

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जनसंचार माÅयम
12 उस अथª से अथाªत उस ŀिĶ से वह बृहत जन समुदाय है । िजसे संदेश ÿेिषत िकया जाता है
जो िकसी भी łप म¤ एकý न होकर िबखरा हòआ होता है ।
जनसंचार को समझने के िलए सबसे पहले कुछ बुिनयादी चीज¤ ÖपĶ कर लेते है । रंगमंच पर
होने वाला नाटक और उसके दशªक एक िनिIJत समय और िनिIJत Öथान म¤ उसका
आÖवाद लेते है या घर म¤ या संसद होने वाली बहस जन संचार का िहÖसा नहé बनती
³यŌिक उसके बोलने व सुनने वाले उसी िविशĶ Öथान और समय म§ उसे देख-सुन रहे होते
है । दूरदशªन के ÖटुिडयŌ या िसनेमा के सेट पर चल रही सुिटंग को वहé बैठ कर मॉिनटर या
कैमरे कì Öøìन देखना जन संचार नहé कहलाएगा । लेिकन संसद म¤ होने वाली वहस या
घर म¤ चल रही बातचीत या दूरदशªन के ÖटुिडयŌ म¤ होनेवाली शुिटंग यिद उसी समय पर
उस Öथान से अलग कहé और िकसी ओर माÅयम से देखी सुनी या पढ़ी जा सके तो यह
जन संचार कहलाएगा और िजस माÅयम से वह उस Öथान िवशेष से बाहर िनकल कर अÆय
लोगŌ तक पहòँचेगा उसे उसे जनसंचार माÅयम कहा जाएगा । इतना ही नहé िजस जगह पर
वह घटना हो रही है यिद उसी जगह पर उस घटना के घट जाने के बाद िकसी और माÅयम
से उस घटना को दुबारा देखा सुना या पढ़ाया सके तो उसे भी जन संचार कहा जाएगा ।
थोड़े पाåरभािषक शÊद तो कोई भी Óयिĉ, वÖतु, घटना, अपने देशकाल को अितøिमक
करके िजस िकसी माÅयम से जीिवत रहती है, संÿेिषत होती है, उस माÅयम को जन संचार
माÅयम और उस ÿिøया को जन संसार कहा जाता है । कोई गायक िकसी सभागृह म¤ गåरहे
होतो सभागृह के ®ोताओं के िलए भले ही ®ोýा हजारŌ म¤ हो, वह जनसंचार नहé माना
जाएगा । लेिकन वही गायन रेिडयŌ पर ÿसाåरत होता हòआ वहाँ से दूर कहé िसफª एक
Óयिĉ तक भी पहòँच रहा हो तो उसे जन संचार कहा जाएगा । यहाँ यह बात Åयान देने योµय
है िक जन संचार म¤ जन का अथª बहòत सारे लोग नहé होते बिÐक बहòत सारे लोगŌ तक
पहòँचाने वाले माÅयम के Ĭारा पहòँचना होता है ।
(जनसंचार का Öवłप गत िवĴेषण) जनसंचार का ÿारंभ मानव के िवकास के साथ माना
जाता है । परंतु आधुिनक जनसंचार को हम िÿंट मीिडया के उदय से जोड़ते है । जनसंचार
कì आवÔयताओं के िवकास के साथ ही जनसंचार के Öवłप का भी िवकास होता गया ।
िÿंट िलिप िवकास के पहले जलसंचार हम¤ परंपरागत łपŌ म¤ मौजूद िदखाई देता है । जैसे-
जैसे हमने िवकास िकया, वैसे वैसे जनसंचार के Öवłप म¤ पåरवतªन होते गए । सामाÆय
वाताªलाप और पý से लेकर समाचार पýŌ, रेिडओ, टेलीिवजन, टेलीफोन, मोबाइल फोन,
कÌÈयूटर, इंटरनेट आिद जनसंचार के माÅयम है । इनका Öवłपगत िवĴेषण िकया जा
सकता है ।
परंपरागत जनसंचार:
परंपरागत जनसंचार वे होते है िजसका उपयोग मानव समाज आिद काल से करता आया है
। इसका मानव जाित के िवकास से गहरा संबंध है । िवशेष समूह कì सामूिहक अिभÓयिĉ
इनका ±ेý है । इसम¤ सूचना या संदेश से अिधक िश±ा एवं मनोरंजन का भाव होता है ।
लोक परंपरा जनसंचार के Öतर पर िजतने सहज और Öवीकायª है उतने ही जन सामाÆय के
िनकट है । इस łप म¤ परंपरागत जनसंचार जनसमुदाय के िवशालतम łप तक जुड़ा है ।
परंपरागत जन संचार के łप म¤ लोकगीत, लोकनाट्य, लोकनृÂय, वाताª, तमाशा, भवाई, munotes.in

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जनसंचार का Öवłपगत िवĴेषण
13 नौटंकì, कठपुतली, ´याता, जýा, कथा, गायन आिद कì अबाध परंपरा उपलÊध है । ये
सभी जाित, ±ेý, भाषा, संÖकृित कì िभÆनता और भौगोिलक सीमाओं म¤ रहते हòए भी जन
संचार का सशĉ एवं स±म माÅयम है । वै²ािनक साधनŌ के िवकास होने पर भी पारंपाåरक
जन संचार िशिथल नहé हो सके है स¸चाई यह है िक पारंपाåरक जनसंचार लोक संÖकृित
कì देन है । दुिनया के िकसी भी कोने म¤ चले जाएँ चाहे वह िकतना ही समृĦ और वै²ािनक
łप से समृĦ ³यŌ न हो उसकì अपनी लोक परंपरा होती है जो जनसंचार का काम करती
है ।
परंपरागत जनसंचार माÅयम के łप म¤ वाताª को िलया जा सकता है । इसम¤ वाताªकार और
®ोता दो प± होते है । िजनम¤ परÖपर 'फìडब§क' कì ÿिøया Óयĉ होती थी । जैसे महाभारत
युĦ के समय ®ीकृÕण Ĭारा अजुªन को िदया गया गीता का उपदेश इसका बहòत अ¸छा
उदाहरण है ।
डॉ. Ôयाम परमार एवं एच. के. रंगनाथ ने परंपरागत जन संचार कì िनÌन िवशेषताओं को
लàय िकया है ।
१) यह Öथािनय एवं बेहद करीबी है और देश के हर ±ेý के जन समूह के साथ एकदम
तालमेल बना लेते है ।
२) इनका ÿाथिमक संबंध भावनाओं से होता है, न िक बुिĦम°ा से और इनम¤ ÿेरक
संचार तुरंत ÿितिøया कì ºयादा संभावनाएँ होती है ।
३) यह एक समुदाय से संबंध रखते है न िक िकसी Óयिĉ िवशेष या सावªजिनक उīोग से
। इनकì गुणव°ा तथा माýा पर िनयंýण के िलए कोई संगिठत संÖथा, ÓयवÖथा या
Óयिĉ नहé है ।
४) इनम¤ जनता कì भाषा, मुहावरŌ और संकेतो का ÿयोग होता है । इसके कारण इनम¤
अिधक भागीदारी िमलती है और ये सामुदाियक अनुķानŌ के łप म¤ आयोिजत होते है।
५) पारंपåरक जनसंचार अपे±ाकृत सÖते होते है इÆह¤ आसानी से úहण िकया जा सकता
है ।
आधुिनक जनसंचार:
आधुिनक जनसंचार वै²ािनक ÿगित और टे³नोलॉजी कì देन है । ÿाचीन काल म¤ मनुÕय
छोटे-छोटे जन समूहŌ म¤ िनवास करते थे । उस समय वे आमने सामने के संपकª म¤ रह सकते
थे । इसिलए उस - समय परंपरागत जन संचार Ĭारा काम चल जाता था । वतªमान समय म¤
अÂयाधुिनक ÿौīोिगकì ÿगित ने दुिनया को एक गांव के łप म¤ पåरवितªत कर िदया है । ऐसे
म¤ लाखŌ िकलोमीटर दूर रहने वाले िविभÆन जाित, वगª, संÿदाय और भाषाओं के लोग एक
साथ संचार करने म¤ समथª हो गए है । इस ÿकार ÿौīोिगकì øांित ने आधुिनक जन संचार
को जÆम िदया है । आधुिनक जनसंचार के उपकरणŌ कì मदद से सूचना संदेश को एक
साथ ही Óयापक समाज तक पहòँचाया जा सकता है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
14 जॉन गुटेनबगª Ĭारा १४४५ म¤ मुनेबल टाइप अ±रŌ के आिवÕकार िवचारŌ और सूचनाओं को
मुिþत łप म¤ एक साथ Óयापक लŌगŌ तक ÿसाåरत करना संभव हो गया । इसने जनसंचार
को वाÖतिवक łप म¤ संभव बनाया । साथ ही १९२० के दौर म¤ रेिडयŌ तथा १९४० के
आसपास टेलीिवजन या दूरदशªन के िवकास ने इले³ůािनक जन संचार के łप म¤ मानव
समाज को 'जबरदÖत उपकरण ÿदान िकया । इससे पहले िफÐम के łप म¤ एक महßवपूणª
जनसंचार माÅयम िवकिसत िकया जा चुका था । इस ÿकार रेिडयŌ टी.वी. तथा िफÐमŌ ने
मुिþत माÅयम कì सभी सीमाओं को तोड़ते हòए Óयापक लोगŌ तक ÿभावी एवं शीŅ पहòँच
बनाने तथा पूरी दुिनया म¤ संदेश के ÿसार कì अपनी ±मताओं के जåरए जनसंचार का
Öवłप ही पåरवितªत कर िदया ।
आधुिनक जनसंचार का Öवłप:
मुिþत जनसंचार:
मुिþत जनसंचार वे है, िजनके Ĭारा सूचना का संचार मुिþत łप म¤ होता है । आम बोलचाल
कì भाषा म¤ इसे िÿंट मीिडया कहा जाता है । मुिþत जन संचार का िवकास मुþण कला के
आिवÕकार से संबंिधत है । मुþण के आिवÕकार के साथ ही समाचारपýŌ का ÿादुभाªव हòआ ।
इसके Ĭारा िवचारŌ और सूचनाओं को मुिþत łप म¤ एक साथ Óयापक लोगŌ तक ÿसाåरत
करना संभव हो पाया । इसम¤ हर एक Óयिĉ के पास एक समानłप म¤ संचार पहòँचता है ।
मुिþत जनसंचार म¤ समाचार, प§फलेट्स, पोÖटर आिद को मुिþत करके लोगŌ तक सूचनाओं
को पहòँचाया जाता है । समाचार पý पिýकाएँ स¸चे अथŎ म¤ मुिþत जनमाÅयम है, जो आज
भी २१ वé शताÊदी म¤ सवाªिधक िवĵसनीय जनसंचार का łप है ³यŌिक इसम¤ समाचारŌ
अथाªत सूचनाओं का िवĴेषण, िववेचन और उनके ÿभाव के साथ ही भिवÕय कì िदशाएँ भी
िनिIJत करती है ।
सामािजक एवं राजनीितक जागłकता लाने म¤ भी मुिþत जनसंचार कì भूिमका असंिदµध है
। मुिþत सामúी को पाठक अपनी सुिवधा के अनुसार पढ़ सकता है । हर Óयिĉ का अपना
मानिसक Öतर होता है । अतएव मुिþत सामúी को पाठक अपने मानिसक Öतर के साथ
पढ़ने कì गित पर अपना िनयंýण भी रख सकता है । मुिþत सामúी म¤ िचंतन - मनन के
भरपूर अवसर कì संभावना है । परंपरागत जन संचार कì तुलना म¤ मुिþत माÅयम कì पहòँच
का ±ेý अÂयिधक Óयापक है ।
इलै³ůॉिनक जनसंचार का Öवłप:
आधुिनक युग म¤ वै²ािनक ÿगित ने संचार के ±ेý म¤ १९२० के लगभग रेिडयो तथा १९४०
के आसपास टेलीिवजन के िवकास ने इले³ůािनक जनसंचार माÅयम के łप म¤ øांित ला
दी । अब घर बैठे ही सूचना का आदान ÿदान संभव हो गया । रेिडयो पहला जनसंचार का
माÅयम है िजसम¤ इले³ůॉिनक टे³नोलॉजी का ÿयोग हòआ । यह एक ®Óय माÅयम है । इसम¤
Åविन तरंगŌ के Ĭारा आकाशवाणी से हजारŌ मील दूर बैठे ®ोता अपने रेिडयŌ सेट पर सूचना
समाचारŌ का संÿेषण सुन सकते है । इस माÅयम ने जन संचार के ±ेý म¤ नयी øांित कर दी
। ³यŌिक मुिþत माÅयमŌ कì पहòँच सीिमत ±ेýŌ तक ही थी । और यह िसफª सा±र या पढ़े
िलखे लोगŌ का माÅयम भर था जबिक रेिडयŌ के Ĭारा सा±र और िनर±र दोनŌ ही munotes.in

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जनसंचार का Öवłपगत िवĴेषण
15 लाभांिवत होने लगे । इसके Ĭारा कम समय म¤ अिधक से अिधक लोगŌ तक सूचनाओं कì
पहòँच संभव हो सकì । मैकāाइड के अनुसार, "िवकासशील देशŌ म¤ रेिडयŌ ही असली
जनसंचार का माÅयम है और जन सं´या के बड़े भूभाग तक इसकì पकड़ है । दूसरा कोई
ऐसा माÅयम नहé है जो सूचना िश±ा, संÖकृित और मनोरंजन के łप म¤ उस कुशलता के
साथ पहòँचने कì ±मता रखता हो ।" -
भारत म¤ लगभग ९ वे दशक तक आकाशवाणी सरकारी िलपण म¤ पूणªतः था । उदारीकरण
के बाद अब िविभÆन गैर सरकारी F.M. चैनलŌ के माÅयम से मनोरंजन तथा सूचना का
ÿसारण करते है ।
रेिडयŌ, इले³ůॉिनक जनसंचार का ®Óय माÅयम है जबिक िफÐम और टेलीिवजन, वीिड़यŌ
कैसेट, सीड़ी आिद ŀÔय - ®Óय जनसंचार के अंतगªत आते है । इन जनसंचार माÅयमŌ म¤
Åविन के साथ-साथ िचýŌ के Ĭारा सूचना समाचार संदेश ÿेिषत िकए जाते है । जन संचार
का यह Öवłप आधुिनक िव²ान ÿौīोिगकì के िवकास Ĭारा संभव हòआ । एक समय िफÐम
केवल मनोरंजन का ही माÅयम नहé था, बिÐक इसके Ĭारा समाज म¤ िश±ा का ÿसार भी
िकया जाता था । जड़ łिढ़यŌ के िवłĦ चेतना का ÿसार भी िकया जाता था जाित -पाित,
छुआछूत, अंधिवĵास, दहेज ÿथा जैसी कुरीितयŌ शोषण और मानव अिधकारŌ के िवŁĦ
जागłकता जैसे अिभयानŌ म¤ िफÐम कì महßवपूणª भूिमका रही है ।
सÂयजीत रे कì िफÐम¤, मुंशी ÿेमचंद कì कहािनयाँ पर बनी िफÐम¤ समाज म¤ नयी चेतना
जागृत करने का ÿमुख साधन रही । लेिकन समय के साथ यह जनसंचार का माÅयम आज
ÿमुख łप से मनोरंजन का माÅयम बनकर रह गया है ।
टेलीिवजन के आिवÕकार ने िफÐमŌ कì लोकिÿयता म¤ जबरदÖत स¤ध लगाई और समय के
साथ जनसंचार का एक सशĉ माÅयम बनकर उभरा । इसम¤ घर बैठे, सूचना समाचार,
िश±ा मनोरंजन से भी कुछ एक ही जगह िमला जाता है । इसकì लोकिÿयता का एक कारण
यह भी है िक यह काफì सÖता है और इसम¤ कायøमŌ कì िविवधता भी अपने पूवªवितªयŌ से
अिधक है ।
२० वé शताÊदी म¤ बीिडयŌ काÈकै³ट िडÖक ने टेलीिवजन से िमलकर एक नयी सामािजक
लोकिÿयता ÿाĮ करता है । छोटे से ÈलािÖटक से िनिमªत िडÖक पर अिधक और Óयापक
सामúी का भंडार संभव होना ही इसकì ÿधान िवशेषता है । इसके Ĭारा कोई भी सूचना
अिधक से अिधक माýा म¤ एक Öथान से लाखŌ मील दूरी तक आसानी से ले जाया जा
सकता है ।
नव इले³ůािनक जनसंचार:
नव इले³ůािनक जनसंचार उ°र आधुिनक युग कì मह°म उपलिÊध व मनुÕय को िव²ान
के Ĭारा िदया गया ®ेķतम उपहार है । इसम¤ उÆनत टे³नŌलॉजी और नवीनतम ÿौīोिगकì
का ÿयोग िकया जाता है । कÌÈयुटर नेटवकª और उसे जोड़ने वाली इंटरनेट सेवा व
इले³ůॉिनक जनसंचार के łप है । इनके Ĭारा आज संपूणª दुिनयाँ को एक गांव के łप म¤
संøिमत िकया जा चुका है । आज पूरी दुिनया के िकसी भी कोने म¤ बैठ कर आप िकसी भी
Óयिĉ से जैसे वह आपके सामने बैठा है वैसे बात कर सकते है और उसे देख भी सकते है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
16 सच तो यह है िक इंटरनेट ने हमारे आधुिनक जन संचार माÅयमŌ को और भी ÿगत कर
िदया है । उपúह तथा कÌÈयूटर ÿणाली ने समाचार पýŌ का लेखा - जोखा ही बदला िदया है
। शÊद संसाधन (Word - Prossesing) ने समाचार पý कायाªलयŌ म¤ अपना महßवपूणª
Öथान बना िलया है । आज इनकì सहायता से मुिþत माÅयम का भी Öवłप बदल गया है ।
अब Âवåरत गित से एवं सुंदर łप म¤ समाचार पý छपने लगे है । बस आपके िसफª ि³लक
बटन कì दबने भर कì देरी है । दुिनया भर कì जानकारी, सूचना आपके सामने उपिÖथत हो
जाती है ।
जनसंचार के Öवłप को माशªल मैक लूहान के शÊदŌ म¤ ÖपĶ łप से इस ÿकार समझा जा
सकता है । जनसंचार तकनीकì उÂपादन तथा मनुÕय के शरीर का िवÖतार है । जैसे जूता
पैर का िवÖतार है । संचार माÅयम मनुÕय का िवÖतार करते है । यह अनेक ÿकार से होता है
। जैसे बोलकर, िलखकर, सड़क, वľ, अथª, मुþण, फोटो, समाचार पý, टेलीफोन, रेिडयŌ,
िफÐम एवं टेलीिवजन आिद । उनके अनुसार सामािजक पåरवतªन के िलए संचार माÅयम
उ°रदायी है ।
अतः कहा जा सकता है िक िनत - नवीन टेकनोलॉजी के िवकास के चलाते दुिनया म¤
जनसंचार का Öवłप िदन व िदन बदल रहा है । साथ ही इन जन संचार माÅयमŌ ने समाज
कì िदशा बदल दी है । ये माÅयम ही एक ÿकार से समाज िदशा भी बदल रहे है । हम िनरंतर
सूचनाओं ²ान और समाचारŌ कì एक िविवधता पूणª; आकषªक एवं मनोरंजनमयी दुिनया कì
ओर ले जा रहे है । यह सही अथō म¤ मनुÕय का िवÖतार ही है ।


*****

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जनसंचार कì अवधारणा
जनसंचार कì अवधारणा भूमंडलीकरण कì देन है आधुिनक औīोिगक और तकनीकì
िवकास ने इसे सुŀढ़ आधार ÿदान िकया है । ÿाचीन काल म¤ जब लोग छोटे-छोटे समूहŌ म¤
रहा करते थे, तब आमने सामने के संपकª से लोग एक दूसरे से जुड़ते थे परंतु आज िÖथती
बदल गई है । लाखŌ -करोड़ो लोगŌ तक सूचनाएँ एक साथ और अÂयंत शीŅता से जनसंचार
माÅयमŌ कì सहायता से पहòँच जाती है ।
जनसंचार कì अवधारणा को समझने के िलए जनसंचार को सं±ेप म¤ ÖपĶ करना आवÔयक
है । 'जनसंचार' शÊद 'जन' और 'संचार' के योग से िनिमªत है । जन अथाªत (Mass) और
संचार अथाªत (Communication) - जन से यहाँ आशय िवशाल जन समूह से है । और
संसार का आशय सूचना या जानकारी का संÿेषण इस ÿकार जनसंचार का सामाÆय अथª
िवशाल जन समुदाय तक सूचना या जानकारी को संÿेिषत करना है । हटª Êलूमर ने जन
"Mass" शÊद को भीड़ समूह से िभÆन मानकर कहा िक जन “Mass" इन सबसे अलग
अथª रखता है यहाँ जन का अथª उस ŀिĶ से वृहत जन समुदाय के िलए ÿमुख िकया जाता
है िजसे संदेश संÿेिषत िकया जाता है ।
'संचार' ÿÂयेक ÿाणी कì बुिनयादी व Öवाभािवक ÿकृित व ÿवृि° है । इसके माÅयम से वह
अपनी जानकारी , भावना, िवचारŌ आिद का आदान -ÿदान करते है । इसम¤ भाषा का भूिमका
अÂयंत महßवपूणª होती है । भाषा का चाहे जो łप हो मौिखक या िलिखत इस ÿकार सूचना
िवचारŌ, भावनाओं को एक ÿाणी से दूसरे ÿाणी तक संÿेिषत करना ही संचार है । ÿारंभ म¤
संचार का ÿमुख साधन सांकेितक तथा मौिखक भाषा भी जो बाद म¤ िलिप के आिवÕकार के
साथ िलिखत हो गई ।
जनसंचार शÊद का ÿयोग १९३० के आसपास होना शुł हòआ । उस समय िकसी यंý का
जनमाÅयम के Ĭारा संदेश या सूचना को एक िवशाल जन समूह तक भेजे जाने का
जनसंचार कहा गया । जैसे समाचारपý, रेिडयŌ, टी.वी. आिद । आम तौर पर जनसंचार
तथा जन माÅयम को एक ही समझा जाता है । परंतु जन संचार एक ÿिøया है, जबिक जन
माÅयम इसका साधन है ।
ले³सीकॉन युिनवसªल इनसाइ³लोिपडीया म¤ जनसंचार कì Óया´या इस ÿकार है "कोई भी
संचार, जो लोगŌ के महßवपूणª łप से Óयापक जन समूह तक पहòँचता हो जनसंचार है ।"
वाकªर ने जनसंचार को इन शÊदŌ म¤ पåरभािषत िकया है - "जंनसंचार ®ोताओं के िलए
अपे±ा कृत कम खचª म¤ पुनªउÂपादन तथा िवतरण के िविभÆन साधनŌ का इÖतेमाल करके
िकसी संदेश को Óयापक लोगŌ तक, दूर - दूर तक फैले हòए ®ोता तक रेिडयŌ, टी.वी.
अखबार जैसे िकसी माÅयम Ĭारा पहòँचाया जाता है ।"
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जनसंचार माÅयम
18 डेिनस मै³वेल ने जनसंचार कì िवशेषताएँ इस ÿकार बताई है:
(१) जनसंचार के िलए औपचाåरक एवं ÓयविÖथत संगठन का होना जłरी ह§, ³यŌिक
संदेश को िकसी माÅयम Ĭारा िवशाल जनसमूह तक पहòँचना होता है ।
(२) यह संचार िवशाल अपåरिचत जनसमूह के िलए िकया जाता है ।
(३) जन संचार के माÅयम सावªजिनक होते है इनम¤ भाषा अथवा वगª के िलए कोई भेदभाव
नहé होता ।
(४) ®ोताओं कì संरचना िवजातीय होती है । वे िविभÆन तरह के संÖकृित वगª एवं भाषा से
संबंिधत होते है ।
(५) इस संचार Ĭारा दूर - दराज के ±ेýŌ म¤ एक ही समय पर संपकª संभव है ।
जनसंचार कì अवधारणा मूलतः संचार से ही मूतª łपाकार úहण करती है । अतः संचार वह
ÿिøया है जो एक से अिधक समूह के लोगŌ को सूचना या जानकारी दी जाती है । संचार कì
ÿिøया म¤ शािमल लोगŌ अथवा सं´या के िलहाज से जनसंचार के िनÌनिलिखत ÿकार माने
जा सकते है ।
 वैयिĉक या आंतरवैयिĉक संचार
 अंतवैयिĉक संचार समूह संचार
 जनसंचार
अंतªवैयिĉक संचार वैयिĉक Öतर कì संचार ÿिøया है । अंत वैयिĉक संचार म¤ सूचना का
आदान ÿदान ÿÂय± एवं तÂकाल होता है । समूह संचार म¤ एक ही Öथान पर एकिýत समूह
से वाताªलाप अथवा संवाद के माÅयम से संचार होता है । जबिक जन संचार म¤ एक से
अिधक िविभÆन समूहŌ, ÓयिĉयŌ को िविभÆन Öथान पर सूचना या जानकारी ÿदान कì
जाती है ।
(१) वैयिĉक संचार या अंतªवैयिĉक संचार:
इस ÿकार का संचार एक ही Óयिĉ अपने आप म¤ या आपसे करता है । यह Öवयं मनुÕय के
भीतर का संचार है । इसे मनुÕय का Óयिĉगत िचंतन मनन भी कहते है । मनोिव²ान म¤ ऐसा
माना जाता िक सभी ÿकार के संचार म¤ मिÖतÕक का संबंध शरीर के समÖत अंगŌ से होता
है । ²ानेिþयŌ के जåरए वह उनम¤ संचार करता है । मिÖतÕक ही नही बिÐक अंगŌ से भी
संदेश úहण करता है; बिÐक संदेश ÿेिषत भी करता है । यहाँ यह भी कहा जा सकता है िक
यिद अंतªवैयिĉक संचार न हो तो िकसी भी ÿकार का संचार संभव न हो पाएगा ।
मैिथली शरण गुĮ ने 'पंचवटी' म¤ लàमण के मन म¤ उमड़-घुमड़ रहे िवचारŌ का वणªन करते
हòए िलखा है- कोई पास न रहने पर भी जन मन मौन नहé रहता , आप आप से कहता है,
आप आप कì ही सुनता है । munotes.in

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जनसंचार कì अवधारणा
19 ÿÖतुत उदाहरण अंतªवैयिĉक संचार का उदाहरण है । हर Óयिĉ आÂमिचंतन के दौरान
अपने आपसे िवचार िवमशª करता है; अकेले म¤, दूसरŌ के बीच, बाजारŌ म¤, कायाªलयŌ म¤ हर
समय यह ÿिøया चलती रहती है । यह ÿिøया आÂमसंतोष देने के अितåरĉ हम¤ अपने
िवचारŌ कì सुिनयोिजत ढंग से ÿÖतुत करने म¤ भी सहायता देता है ।
(२) अंतªवैयिĉक संचार:
Óयिĉ-Óयिĉ के बीच संपकª, बातचीत टेलीफोन वाताª, अथवा िकसी एक Óयिĉ Ĭारा कुछ
लोगŌ के बीच िवचार िवमशª अंतªवैयिĉक संचार कहलाता है । कुł±ेý के मैदान म¤ कौरवŌ
और पांडवŌ कì सेना के बीच खड़े अजुªन कृÕण के बीच हòए संवाद को परÖपर संÿेषण का
आदशª उदाहरण कहा जा सकता है । अंतªवैयिĉक संचार म¤ दो या तीन ÓयिĉयŌ के बीच
सीधा (संवाद) संचार होता है । घर म¤ माँ - बाप, भाई - बहन, नौकर - चाकर और दोÖत
यारŌ से आपसी िवचार िवमशª रोज ही करते है । यह संचार कì दो तरफा ÿिøया है । इसम¤
फìडब§क तुरंत िमलता है । इसम¤ संचारक चचाª ÿारंभ होते ही फìडब§क ÿाĮ करते हòए अपनी
बात आगे बढ़ाता है ।
यह पारÖपåरक अंतिøªया को ÿेåरत करता है । इसम¤ संचारक और ÿाĮ करता एक दूसरे के
आमने- सामने होते ह§ । न िसफª शरीर से बिÐक भावनाओं से भी ।
 इसकì अपील भावनाÂमक होती है और इसम¤ ÿाĮ कताª को ÿभािवत करने का काफì
अवसर होता है ।
 इसम¤ िफडबैक तुरंत और बेहतर िमलता है ।
 इसम¤ बाधा कì संभावना कम होती है ।
 यह अनौपचाåरक होता है, इसम¤ कोई िनयम नहé होते है, कोई बना बनाया ढांचा नहé
होता है । इसिलए यह Öवाभािवक और सहज संचार है ।
 इसम¤ संचारक ÿाĮ कताª के िवषय म¤ काफì कुछ जानता है । अतः उसकì िÖथित के
अनुसार संचार करके उसे समगत िकया जा सकता है ।
अंतªवैयिĉक संचार का यह लाभ है िक संचारक तुरंत यह जान जाता है िक ÿाĮकताª:
 उसकì बात समझ रहा है या नही, वह उसकì बात का सही अथª लगा पा रहा है या
नहé ।
 संचार कताª कì बात पर ÿाĮकताª कì ³या ÿितिøया है ? (फìडबैक) -
समूह संचार:
"जब ÓयिĉयŌ का एक समूह आमने सामने िवचार िवमशª, गोĶी, भाषण, सभा आिद Ĭारा
िवचारŌ का - आदान-ÿदान करता है तो उसे समूह संचार कहा जाता है । इसम¤ ÿाĮकताª कì
ÿितिøया िमलती है पर उतनी ÖपĶ नहé िजतनी कì अंतªवैयिĉक संचार म¤ । इसम¤ ÿायः
औपचाåरक एवं संÖथाबĦ संचार होता है । इसम¤ ÓयिĉÂव महßवपूणª ढंग से खुलकर सामने munotes.in

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जनसंचार माÅयम
20 आता है । जन सभा, संगोķी, वाद िववाद, पाåरचचाª नृÂय-नाट्य, भाषण कायाªलयी बैठक
आिद इसके उदाहरण है ।
समूह संचार कì िवशेषताएँ:
(१) समूह संचार म¤ सीिमत माýा म¤ ÓयिĉयŌ कì भागीदारी होती है ।
 समूह के सदÖयŌ के बीच िवचारŌ एवं अनुभवŌ के परÖपर आदान ÿदान का अवसर
िमलता है । उनम¤ िनकटता के अवसर के साथ अपने प± का अनुभव संभव है ।
 समूह संचार म¤ संचार ÿिøया ÿÂय± होती है । - समूह संचार म¤ समूह के सदÖय कì
समÖया के मूल उĥेÔयŌ के अनुłप संदेश ÿेिषत करते है ।
इस ÿकार समूह संचार म¤ संचारक और ÿाĮकताª के मÅय आमने सामने संचार ÿिøया
होती है । पूरा का पूरा ÿाĮकताª समूह पूवª िनIJय या सूचना के आधार पर एकिýत होता है
या समूह अपने मंतÓय के िलए िवशेष संÿेषक तक जाता है । समूह संचार का ÿÂयेक सदÖय
संÿेषक से ÿÂय± अथवा परो± łप से अवगत होता है । अतः इसम¤ सूचना का संदेश
एकिýत जन स मूह के िलए ÿेिषत िकया जाता है ।
(३) जनसंचार:
जब कोई भी सूचना या जानकारी को Óयापक जन समूह तक पहòँचाया जाता है तो उसे
जनसंचार कहते है । इसके अंतगªत दुिनया भर म¤ फैले दूर-दूर तक िबखरे तमाम तरह के
समाज के लोगŌ तक सूचना या संदेश को पहòँचाया जाता है । अंतªवैयिĉक, व¨यिĉक तथा
समूह संचार के िलए माÅयम महßवपूणª नहé था परंतु जन संचार के िलए िकसी न िकसी
माÅयम या साधन कì अिनवायªता होती है । जैसे िकसी एक Öथान पर िøकेट खेल खेला
जाता है उस खेल को उसी समय पूरी दुिनया म¤ रेिडयŌ, टेलीिवजन, इंटरनेट आिद संचार
के माÅयम Ĭारा ®ोता या दशªक सुन रहे हो या देख रहे है । जनसंचार म¤ मुिþत माÅयम, जैसे
समाचार पý, पिýकाएँ, रेिडयŌ, टेलीिवजन, िफÐम, कÌÈयूटर, इंटरनेट आिद माÅयम
के łप म¤ कायª करते है ।
जनसंचार कì िवशेषताएँ:
 जनसंचार म¤ संचारक िकसी माÅयम का उपयोग कर िवशाल और िवषम ÿकृित के
समुदाय तक अपना संदेश ÿेिषत करता है ।
 संदेश या सूचना का सावªजिनक ÿसारण इसम¤ गोपनीयता संभव नहé ।
 फìडबैक अÿÂय± तथा देर से ।
 आम तौर पर एक तरफा संचार
 मीिडया इसम¤ अपनी जłरत के अनुसार ®ोता का चुनाव करता है । उदा. िशि±तŌ के
िलए अखबार ।
 ®ोता अपनी आवÔयकता के अनुसार माÅयम का चुनाव करता है । munotes.in

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जनसंचार कì अवधारणा
21  इसम¤ संदेश का संÿेषण समाज के ÿित िजÌमेदार लोगो Ĭारा िकया जाता है ।
 ÿभावशाली जनसंचार के िलए उसम¤ िनÌनिलिखत तÂवŌ का होना अिनवायª माना
जाता है ।
ÖपĶता:
जनसंचार म¤ सूचना, संदेश के िलए िवचारŌ म¤ ÖपĶता अिनवायªतः होनी चािहए । उसम¤
िकसी ÿकार कì शंका नहé होनी चािहए । कभी - कभी अÖपĶता के चलते सूचना जानकारी
Ăामक हो जाती है ।
पूणªता:
जनसंचार म¤ जानकारी या सूचना का पूणª होना जłरी माना जाता है । यिद सूचना या
जानकारी पूणª नही होगी तो उसे Öवीकार करने म¤ किठनाई होती है । ऐसे म¤ सही जानकारी
®ोताओं या दशªकŌ को तक नहé पहòँच सकती है । रोचकता जनसंचार म¤ सूचना अथवा
जानकारी का ÿÖतुतीकरण रोचक आकषªक, सरल भाषा म¤ एवं सुबोध शैली म¤ िकया जाना
चािहए, िजससे उसम¤ रोचकता बनी रहती है ।
संि±Įता:
जनसंचार म¤ सूचनाओं का संि±Į होना आवÔयक माना जाता है ³यŌिक यिद सूचना या
जानकारी संि±Į होती है तो वह पाठकŌ को अिधक समय तक याद रहती है तथा उसका
सही उपयोग होता है ।
िनरंतरता:
जनसंचार म¤ सूचना या जानकारी को बार-बार दुहराया जाता है । पåरणामÖवłप ®ोता ,
दशªक या पाठक पर उसका गहरा ÿभाव पड़ता है ।
उĥेÔय पूणª जनसंचार म¤ सूचना या संदेश समूह िवशेष के कÐयाण से संबंिधत तथा
उĥेÔयपूणª होना चािहए । ³यŌिक जनसमूह का मनोिव²ान ऐसा होता है िक वह उÆहé चीजŌ
म¤ ÿÂय± या परो± łप से िदलचÖपी लेता है िजसम¤ उसका लाभ संबंिधत होता है ।
जागłकता:
जनसंचार से संबंिधत Óयिĉ को जनसमूह कì ÿितिøया के ÿित जागłक एवं सजग रहना
जनसंचार कì आवÔयक शतª मानी जाती है ।
इस ÿकार जन संचार अÂयंत ÿभावशाली होता है; जो समूह के बीच सीधा संपकª Öथािपत
कर जन आकां±ाओं को पूणª करता है तथा जन समूह के कÐयाण के िलए अúेिसत होता है।
जनसंचार कì ÿिøया समूह संचार कì भाँित आमने सामने या ÿÂय± łप म¤ नहé घटती है ।
इसके कुछ घटक तÂव होते है िजसके माÅयम से यह घिटत होती है । ÿथम संÿेषक अथाªत
(Communication) दूसरा संदेश (Massage) तथा तीसरा संदेश ÿाĮ करने वाला या
úिहता िजसे (Receiver) कहते है । जनसंचार कì ÿिøया म¤ सामाÆयतः दो छोर होते है munotes.in

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जनसंचार माÅयम
22 एक छोर पर वĉा होता है जो सूचना का ąोत है । दूसरे छोर पर सूचना को ÿाĮ करने वाला
होता है, तो सूचना का लàय है । बीच म¤ होता है माÅयम इस माÅयम के Ĭारा ही सूचना या
संदेश को úहीता या (Receiver) तक पहòंचाता है । इस पूरी ÿिøयाम¤ गृहीता कì ÿितिøया
या (Feedback) कì भी महßवपूणª भूिमका होती है । यही फìडबैक जन संचार को ÿभावी
बनाता है ।
जनसंचार कì यह ÿिøया आधुिनक युग म¤ अनेकानेक माÅयमŌ Ĭारा संपÆन होती है । जैसे-
जैसे हमने वै²ािनक ÿगित कì है िव²ान ने हम¤ िनत - नवीन सुिवकिसत संचार माÅयम
ÿदान िकए है । सामाÆय वाताªलाप से लेकर टेिलफोन, रेिडयŌ, टेलीिवजन, िफÐम,
कÌÈयूटर, इंटरनेट आिद संचार के माÅयम है जो सूचना के ÿसार का कायª करते है । इस
łप म¤ जनसंचार एक गितशील ÿिøया है जो संबंधŌ पर आधाåरत होती है । वह संबंध और
ÓयिĉयŌ को जोड़ने का एक हिथयार है एक Óयिĉ को दूसरे से - एक Óयिĉ को एक समूह
से, एक समूह को दूसरे से और एक देश को दूसरे देशŌ से जोड़ने का काम भी कर करता है ।
अतः हम कह सकते है िक जनसंचार कì अवधारणा वÖतुतः आधुिनक युग कì देन है ।
वतªमान औīोिगक एवं तकनीकì िवकास ने इसे सुŀढ़ आधार ÿदान िकया है । ÿाचीन समय
म¤ जब लोग छोटे- छोटे समूहŌ म¤ िनवास करते थे, तब आमने सामने के संपकª से एक दूसरे
से जुड़े रहते थे । वतªमान समय म¤ िÖथित िबÐकुल बदल गई है लाखŌ करोड़ो तक सूचनाएं
एक साथ और Âवåरत गित जनसंचार माÅयमŌ Ĭारा पहòँचायी जाती है । यह तकनीकì øांित
का पåरणाम है ।

*****

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23 ४
जनसंचार माÅयम के िविवध łप
जनसंचार माÅयम वे साधन है िजनकì सहायता से संदेश बृहत जनसमूह तक ÿेिषत िकए
जाते है । संचार कì ÿिøया िविभÆन ÿकार के माÅयमŌ Ĭारा संपÆन होती है । जैसे-जैसे
हमने औīोिगक ÿगित कì है, िव²ान ने हम¤ िनत - नवीन सुिवकिसत संचार माÅयम ÿदान
िकए है । हर नया आिवÕकार संचार और ÿचार के नए - नए आयामŌ का ÿवतªन कर रहा है ।
टेलीफोन, रेिडयŌ िसनेमा, टेलीिवजन तथा कंÈयूटर के आिवÕकार ने संचार के साधनŌ म¤
आमूल - चूल पåरवतªन ला िदया है । इनम¤ भी टेलीिवजन और इंटरनेट के आिवÕकार ने सो
व संभव कर िदया िजसकì केवल एक शताÊदी पूवª कÐपना भी नहé कì जा सकती थी । पý-
पिýकाएँ और पुÖतक¤, रेिडयŌ, िसनेमा, टी.वी. जनसंचार के ÿमुख माÅयम आज िकतना
िवराट łप धारण कर चुके है, इसकì जानकारी कम रोचक नहé है ।
मुिþत माÅयम:
जनसंचार के माÅयमŌ एक माÅयम मुिþत माÅयम है । यह वह जनसंचार माÅयम है िजसने
संचार को कल,आज और कल कì सीमाओं का अितøमण करने कì ±मता ÿदान कì ।
मुिþत माÅयम वÖतुतः िलिखत भाषा का यांिýक िवÖतार है । िलिखत भाषा के दो िविशĶ
łप अतीत म¤ िवकिसत हòए जो आज भी बदÖतूर कायम है । पहला łप तो अंतªवैयिĉक
संÿेषण म¤ बोली हòई भाषा का Öथान लेकर सामने आया । इसम¤ Óयिĉगत पý आिद आते है
। दूसरा łप समूह संचार म¤ ÿयुĉ होनेवाली भाषा कì जगह Öथािपत हòआ, जहाँ लेखन के
माÅयम से ही कही जा सकने वाली बात को समय और Öथान कì सीमाओं के पार पहòँचाने
कì अिभलाषा ÿमुख थी । इसीके दूसरे łप के िवÖतार के łप म¤ हम¤ मुिþत माÅयम ÿाĮ
हòआ है ।
पुÖतक:
मुिþत माÅयम का सबसे ÿाचीन, सबसे Öथायी और सबसे Óयापक ÿकार पुÖतक है ।
पुÖतक का अिÖतÂव मोटे तौर पर १५ वी शताÊदी म¤ गुहनबगª कì यांिýक मुþण ÓयवÖथा के
समय से ही माना जा सकता है । इसके पहले भी पुÖतकŌ का अिÖतÂव था लेिकन उन
पुÖतकŌ को हम पांडुिलिपयाँ कहते थे ³यŌिक ये पुÖतक¤ हाथ से िलखी जाती थé ।
१९ वé शताÊदी म¤ पुÖतक ÿकाशन म¤ कई पåरवतªन हòए। फोटो úाफì के आिवÕकार के
कारण पुÖतकŌ कì łप सºजा म¤ भी øांितकारी पåरवतªन हòए । फोटो टाइप सेिटंग और
कालांतर म¤ डेÖकटॉप पिÊलिशंग के कारण से पुÖतकŌ को आकषªक ले आउट और फŌट
ÿजाितयाँ िमली िजनसे उनको और भी आकषªक ढंग से ÿकािशत करना संभव हो पाया ।
भारत म¤ मुþण कला का आरंभ गोवा म¤ १५५६ म¤ हòआ और उसके बाद यह ÿौīोिगकì
तटीय शहरŌ से होती हòई कलक°ा पहòँची । भारतीय भाषा म¤ छपने वाली पहली पुतक बंµला
भाषा कì Óयाकरण कì पुÖतक थी । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
24 समाचार पý:
समाचार पý मुिþत माÅयम के एक सशĉ माÅयम के łप म¤ अिÖतÂव आया । इसका ÿसार
सं´या पुÖतकŌ से अिधक है । मुþण ÿौīोिगक का सबसे ºयादा उपयोग समाचार पý छापने
के िलए होता है । समाचार पýŌ म¤ ÿयुĉ होनेवाले कागज को तकरीबन ५६३८ समाचार पý
छपते है और कुछ समाचार पýŌ के तो १०-१५ संÖकरण तक छपते ह§ । भारत म¤ सबसे
पहला समाचार पý बंगाल गजट को माना जाता है िजसे १७८० म¤ जेÌस ऑगÖट िह³कì ने
िनकाला था । िकसी भारतीय भाषा म¤ िनकलने वाला समाचार पý १८१६ म¤ बंµला म¤
ÿकािशत हòआ था । लेिकन बहòत समय तक नहé चल पाया । पुÖतकŌ कì तरह फोटोúाफì
के आिवÕकार ने अखबारŌ के पÆनŌ को भी आकषªक बनाया ।
पिýकाएँ:
पिýकाएँ मुिþत माÅयम का वह ÿकार है जो समास म¤ पुÖतकŌ और समाचार पýŌ के बीच
कì संचार आवÔयकताओं कì पूितª करती है । पिýकाएँ गंभीर िचंतन, सामािजक राजनीितक
घटनाओं के िवÖतृत िवĴेषण कì सशĉ माÅयम है ।
Öवतंýता पूवª िहंदी म¤ सरÖवती, हंस जैसी पिýकाओं ने िशि±त जनमानस म¤ चेतना जागृत
करने का कायª िकया । Öवतंýता के बाद अनेक ÿकार कì पिýकाओं का उदय हòआ ।
साĮािहक िहंदुÖतान, धमªयुग जैसी पिýकाओं ने पाåरवाåरक व बहò िवषयक पिýकाओं कì
भूिमका िनभाई तो नंदन और पराग ब¸चŌ कì, साåरका, वामा, सहेली जैसी पिýकाएं
मिहलाओं कì ओर उÆमुख हòई । साĮािहक िदनमान और रिववार ने समाचार पिýकाओं कì
आवÔयकताओं को पूरा िकया । आज भी अनेक पिýकाएँ जैसे इंिडया टुडे, आऊट लुक,
तहलका आिद ने समाचार िवĴेषण आिद से सुसिºजत है ।
परचे (हैड िबल), पोÖटर और िव²ापन :
मुिþत माÅयमŌ म¤ पुÖतक, समाचार पý और पिýकाओं के साथ-साथ परचे (हैड िबल)
पोÖटर और िव²ापनŌ भी आते है । दीवारŌ पर लगाए जाने वाले पोÖटर और भीड़ से बॉटे
जाने वाले परचे जहाँ मुþण का इÖतेमाल कर बोले हòए शÊदŌ का Öथान लेने है वहé अखबारŌ
और पिýकाओं म¤ ÿकािशत होने वाले िव²ापन मुिþत माÅयम कì सशĉ ÿयुिĉ बनकर
उभरे है । परचŌ का ÿयोग सबसे ºयादा राजनीितक ÿचार के िलए होता है । लेिकन समय-
समय पर िविभÆन वािणिºयक संÖथाएँ और अÆय संÖथान भी लोगŌ तक िवशेष
जानकाåरयाँ पहòँचाने िलए इसका इÖतेमाल करते है । हैडिबल िकसी नए उÂपाद के बाजार
म¤ आने कì घोषणा या िकसी दुकान के खुलने या कìमतŌ म¤ िवशेष छूट कì घोषणा करने के
िलए िवतåरत िकए जाते ह§ । आजकल अकसर समाचार पýŌ के बीच से ऐसे हैडिबल रखकर
िवतåरत करने का ÿचलन बढ़ा है ।
िव²ापन कì शुłआत मुिþत माÅयम से ही मानी जाती है । सबसे पहले िव²ापन पिýकाओं
और समाचार पýŌ म¤ छपे और आज भी िव²ापन पर होने वाले खचª का सबसे बड़ा िहÖसा
समाचार पý और पिýकाओं को ही जाता है ।
munotes.in

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जनसंचार माÅयम के िविवध łप
25 मुिþत माÅयम का उĩव और िवकास:
मुþण का उĩव चीन से माना जाता है जहाँ ८३८ ई म¤ पहली पुÖतक छपकर सामने आई ।
यह पुÖतक चीनी िमĘी से बने अ±रŌ कì मदद से छापी गई थी । मुþण के िलए Êलॉक बनाने
कì पĦित का ÿयोग भी पहली बार (७१२ ई) म¤ चीन म¤ हòआ । दुिनया का पहला छापाखाना
Öथािपत करने का ®ेय इंµल§ड को जाता है जहाँ १४७६ म¤ पहला छापाखाना लगाया गया ।
इसके बाद से मुिþत माÅयम संचार के एक सशĉ माÅयम के łप म¤ उभरा और िपछली
पांच शतािÊदयŌ से लगातार सशĉ होता गया । आज भूमंडलीयकरण और साइबर संचार के
युग म¤ भी मुिþत माÅयम का महßव कम नहé हòआ है ।
सीसे के टुकड़Ō पर छपाई योµय अ±रŌ को बनाने का ®ेय जमªनी के गुटेनबगª को जाता है ।
उÆहŌने १४४५ ई म¤ इस पĦित से बाइिबल का ÿकाशन िकया । यह एक ऐसा øांितकारी
कदम था िजसने दुिनया म¤ संÿेषण और संचार कì श³ल ही बदल दी । कुछ ही दशकŌ म¤
पिIJमी देशŌ म¤ िकताबŌ कì सं´या तेजी से बढ़ी । उदाहरण के िलए इंµलैड को ही ल¤ तो हम
पाते िक १५१० म¤ वहाँ िकताबŌ के १३ नए संÖकरण िनकले । १५३१ म¤ इनकì सं´या
बढ़कर २१९ हो गई और िफर १८०० म¤ ६०० और आज लगभग १९,००० ÿितवषª हो
गई है । इतना ही नहé इन संÖकरणŌ कì ÿितयŌ कì सं´या भी लगातार बढ़ रही है ।
भारत म¤ मुिþत माÅयम का िवकास:
भारत म¤ १५५६ म¤ गोवा म¤ पहला छापखाना खोला गया । इसे ईसाई िमशनåरयŌ म¤ अपने
धमª ÿचार के िलए खोला था । भारत दुिनया के उन दस देशŌ म¤ से है जहाँ सबसे अिधक
समाचार पý छपते है । और सबसे अिधक पुÖतकŌ का ÿकाशन होता है । जहाँ तक अँúेजी
कì पुÖतकŌ के ÿकाशन का सवाल है भारत का िवĵ म¤ तीसरा Öथान है । २००१ के
आँकड़ो के अनुसार हमारे यहाँ ५६३८ दैिनक समाचार पý , १८५८२ साĮािहक, ६८८१
पाि±क और १४६३४ मािसक पý िनकलते है । इसके अलावा, िमले-जुले ३५९० गैर-
समाचार ÿकाशन होते ह§।
आज भारत के हर ÿदेश और क¤þ शािसत राºय से समाचार पý और पिýकाएँ ÿकािशत
होते है । उ°र ÿदेश म¤ सबसे ºयादा (८३९७) ÿकाशन होते है । इसके बाद िदÐली
(६९२७), महाराÕů (६६१८), पिIJम बंगाल (३७३८) का नंबर आता है ।
भारतीय ÿेस कì िवशेषता यह भी है िक हमारे यहाँ १०१ भाषाओं म¤ पý पिýकाएँ ÿकािशत
होती है । १८ ÿमुख भाषाओं म¤ िहंदी म¤ सबसे अिधक २०.५८९, अंúेजी म¤ ७५९६ बंµला
म¤ २७४१, उदूª म¤ (२९०६), मराठी म¤ (२९४३), तािमल म¤ (२११९), मलमालय और
तेलगु (१२८९) म¤ १५०५ पý-पिýकाओं का ÿकाशान होता है । इसके अलावा देश कì
लगभग सभी छोटी - बड़ी भाषाओं समाचार - पý, पिýकाएँ और पुÖतक¤ ÿकािशत होती है ।
मुिþत माÅयम कì िवशेषताएँ:
मुिþत माÅयम िलिखत भाषा का ही िवÖतार है । इसिलए यह िलिखत भाषा कì तकरीबन
सभी िवशेषताओं को आÂमसात करता है । िलिखत और मुिþत माÅयम कì एक िवशेषता
यह है िक इसम¤ संवेदनाओं के िलए कम जगह होती है । इसिलए यह िवचार और िचंतन का munotes.in

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जनसंचार माÅयम
26 ÿमुख माÅयम है । िलिखत माÅयम म¤ भाषा का इÖतेमाल उतना ताÂकािलक नहé होता
िजतना बोली हòई भाषा म¤ होता है और यही वजह है िक यह ºयादा संÖकार युĉ भाषा का
ÿयोग करता है और मुिþत माÅयम म¤ तो िलखी हòई भाषा पर और भी अिधक िवचार करने
कì गुंजाइश है । इतनी सुिवचाåरत भाषा से चलनेवाले इन माÅयमŌ कì यह शिĉ रही है िक
वह ²ान और िवचार के सशĉ साधन रहे है ।
मुिþत माÅयमŌ कì ÿमुख िवशेषता यह है िक इनके कारण मठŌ और महलŌ म¤ जंजीरŌ म¤
जकड़ी िकताबे मुĉ हòईं । पुÖतकालयŌ का जमाना आया । साथ ही छपाई मशीन के
आिवÕकार ने जनसंचार के नए तरीके भी ईजाद िकए । समाचार पýŌ का ÿकाशन ऐसा ही
एक नया तरीका बना िजसने एक िवकिसत और संगिठत समाचार बनाने म¤ मदद कì । इसी
कारण Āांसीसी øांित के बाद नेपोिलयन ने ÿेस को लोकतंý का चौथा Öतंभ घोिषत िकया।
मुिþत माÅयमŌ ने न केवल राजनीितक जागłकता के िलए काम िकया बिÐक उसने िश±ा
के ±ेý म¤ भी øांितकारी पåरवतªन िकए, औīोिगकìकरण को ÿिøया को तेज िकया और
िजस सूचना øांती को हम देख रहे है उसकì नéव भी रखी । मुिþत माÅयम ने लोगŌ को
िकसी देश कì सीमा म¤ ही एक जुट होने और एकता कायम रखने के गुण िसखाए । साथ ही
उसने िविभÆन जाितयŌ, वगŎ और संÖकृितयŌ को भी यह अवसर िदया िक वह अपनी
अिÖमता को मजबूत कर¤ ।
मुिþत माÅयम को सा±रता कì संÖकृित का जनक कहा जाता है। यूँ तो अ±र ²ान मुिþत
माÅयम से बहòत पहले से समाज म¤ स°ा का सूचक रहा है, लेिकन मुिþत माÅयम ने अ±र
को और अिधक गåरमा ÿदान कì और इसके बाद सा±रता सामािजक स°ा के एक सशĉ
ÿकायª के łप म¤ उभरी । िश±ा और िवशेषकर आधुिनक िश±ा को भी मुिþत माÅयम और
सा±रता न¤ एक मजबूत आधार िदया । धीरे धीरे सा±रता हमारे जीवन म¤ ऐसे रच बस गई
िक लोग बोलने से पहले अपने िवचारŌ को िलखने लगे सा±रता कì ही एक और देन है
मानकìकरण इसको समाज और राÕů के िनमाªण का आवÔयक अंग माना गया है । यही
कारण है िक आज भी भारत म¤ मानकìकरण कì आवÔयकता केवल उन लोगŌ को है जो
मुिþत माÅयम का Óयवहार म¤ लाते है ।
सा±रता का िवकिसत समाजŌ म¤ िकतना गहरा ÿभाव पड़ता है इसकì िमसाल यही है िक
जहाँ-जहाँ मुिþत माÅयम के लंबे ÿचलन के बाद रेिडयŌ आया वहाँ वहाँ रेिडयो का कान से
संबंध होने और उसके मौिखक माÅयम होने को बार बार दुहराया गया तािक इन माÅयमŌ म¤
काम करने वाले अपने िलिखत भाषा के संÖकारŌ से उबर कर रेिडयŌ के योµय भाषा िलख
सक¤ ।
(आकाशवाणी) रेिडयŌ:
आकाशवाणी अथाªत रेिडयŌ एक ®Óय माÅयम है । यह एक ऐसा संचार माÅयम है; िजसके
Ĭारा कोई भी संदेश Óयापक जन समुदाय तक एक साथ पहòँचाया जा सकता है । िकसी
रेिडयŌ Öटेशन अथाªत आकाशवाणी से िजस समय संदेश ÿसाåरत होता है ठीक उसी समय
हजारŌ मील दूर बैठे लोग वह संदेश अपने रेिडयŌ सेट पर सुन सकते है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम के िविवध łप
27 रेिडयŌ का आिवÕकार १९ वé शताÊदी म¤ हòआ । वषª १९९६ म¤ इटली के इंजीिनयर
मारकोनी Ĭारा रेिडयो िसµनल भेजने का ÿदशªन िकया गया था । रेिडयŌ पर मनुÕय कì
आवाज पहली बार १९०६ ई म¤ सुनाई दी । इसके उपरांत जनसंचार का यह एक उपयोगी
माÅयम बना ³यŌिक ®Óय होने के कारण अिशि±त लोगŌ म¤ इसकì पकड़ अिधक है ।
भारत वषª म¤ रेिडयŌ का ÿसारण १९२६ ई से शुł होता है । बंबई, कलक°ा तथा मþास म¤
Óयिĉगत रेिडयŌ ³लब Öथािपत िकए गए । इसके बाद १९२७ म¤ ÿसारण सेवा का गठना
हòआ। सन १९३६ म¤ इसे आकाशवाणी (ऑल इंिडया रेिडयो) नाम िदया गया । Öवतंýता के
समय यानी सन् १९४७ म¤ भारत म¤ आकाशवाणी के छह क¤þ और अठारह ůांसमीटर थे ।
इनका ÿसारण कवरेज ±ेý कì ŀिĶ से २.५ ÿितशत और जन सं´या के िलहाज से माý
११ ÿितशत था । वषª २००२ तक आकाशवाणी नेटवकª म¤ २०८ क¤þ है, िजसका कवरेज
९० ÿितशत ±ेý तक है । भारत जैसे िविवधता वाले देश म¤ आकाशवाणी Ĭारा २४ भाषाओं
और १४६ बोिलयŌ म¤ ÿसारण हो रहा है । इसके अंतगªत १४९ मीिडयम वेव Āì³व¤सी
ůॉसमीटर, ५५ हाई Āì³वंसी शाटªवेव ůांसमीटर और १३० Āì³व¤सी मॉड्यूलेशन
(एफ.एम.) ůांस मीटर है ।
आकाशवाणी कायªøम का उĥेÔय 'बहòजन िहताय बहò जन सुखाय' पर क¤िþत रहता है ।
तािक सूचना, िश±ा और मनोरंजन के माÅयम से जन जन कì खुशहाली और उनकì
कÐयाण को ÿोÂसाहन िमले। अपने लàयŌ कì ÿािĮ के िलए आकाशवाणी राÕůीय, ±ेýीय
और Öथानीक तीन Öतरीय ÿसारण उपलÊध कराता है; देश भर म¤ फैले अपने िविवध केÆþो
के जåरए Öथानीय संगीत- िविवध कायªøम समाचार इÂयािद कायªøमŌ Ĭारा लोगŌ कì
जनसंचार संबंधी माँगे पूरी करता है ।
जनसंचार माÅयम के łप म¤ रेिडयो:
िनÖसंदेह आज रेिडयो जनसंचार का एक सशĉ माÅयम है । टेलीिवजन के आगमन के बाद
भी रेिडयो जनसंचार माÅयम के łप म¤ सवाªिधक सशĉ हािथयार है । खासकर भारत के
संदभª म¤ इसका सबसे पहला कारण है िक - रेिडयो का सÖता और सुलभ होना और इसकì
खािसयत यह है िक रेिडयŌ के माÅयम से आसानी से ®ोताओं तक संदेश पहòँचाया जा
सकता है । वÖतुतः जो जनसंचार माÅयम संदेश का िजतना Óयापक ÿसारण करता है, वह
उतना ही कारगर होता है । इस ŀिĶ से रेिडयŌ का कोई जोड़ नहé है ।
जनसंचार माÅयमŌ कì िवशेषता होती है िक वह शीŅ और त±ण संदेशŌ का ÿसारण करता
है । इस ŀिĶ से भी रेिडयो बेजोड़ है । समाचार पýŌ म¤ खबरे छपती है, परंतु छपते-छपते कम
से कम १०- १२ घंटे तो लग ही जाते है और पाठकŌ तक पहòँचते पहòँचते और भी देर हो
जाती है ।तÂकालीन समय म¤ टेलीिवजन म¤ खबरे रेिडयो के साथ आ सकती थी , परंतु उस
घटना के िचý उस समय नहé आ सकते थे । अतः हमेशा िकसी महßवपूणª सूचना या संदेश
के िलए लोग रेिडयŌ कì ओर दौड़ते थे | लेिकन समय के साथ बदलाव होना तय है
तकनीकì ±ेý म¤ अमुलाµन बदलाव ने आज के युग म¤ Öमाटª टीवी या मोबाइल फोन के
जåरये भी िकसी खबर को तुरंत पढ़ा या सुना जा सकता है | लेिकन कुछ िवशेष पåरिÖथित
और िवशेष ÓयिĉयŌ के िलए रेिडओ आज भी महÂवपूणª है | munotes.in

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जनसंचार माÅयम
28 जनसंचार माÅयमŌ म¤ ÿसारण और ÿकाशन कì िनयिमतता होती है । इस कसौटी पर भी -
रेिडयो खरा उतरता है । इसके कायªøम कì घोषणा एक िदन पहले या उसी िदन सुबह कर
दी जाती है । कुछ कायªøमŌ, मसलन समाचार का समय और अविध तो हमेशा एक जैसी
होती है । कुछ िवशेष अवसरŌ पर ही इसे बढ़ाया या पåरवितªत िकया जाता है ।
ŀिĶहीन ÓयिĉयŌ के िलए रेिडयो एक वरदान है । जो पढ़ नहé सकते, देख नहé सकते उनके
िलए अखबार और टेलीिवजन जैसे जनसंचार के माÅयम Óयथª है । उÆह¤ तो केवल रेिडयो
का सहारा है । िनर±र लोगŌ के बीच भी रेिडयो खूब लोकिÿय है । आप गांव म¤ या शहर कì
झुµगी झोपिड़यŌ म¤ रेिडयो से उठती धुन का आनंद ले सकते है ।
®Óय माÅयम के łप म¤ रेिडयŌ कì िवशेषताएँ:
रेिडयŌ कì दुिनया आवाज कì दुिनया है । इसका अपना अनूठा और आकषªक संसार है, इस
दुिनया का अपना सÌमोहन है । रेिडयो के दीवानŌ और दीवानगी कì एक लÌबी परंपरा है ।
रेिडयŌ कì 'आवाज कì दुिनया' म¤ हम एक ही पल म¤ न जाने कहाँ से कहाँ तक पहòँच जाते है
। ®ोता को पूरी छूट होती है िक वह संगीत का रसाÖवादन करे, ²ान ÿाĮ कर¤, नवीनतम
सूचना úहण कर¤ या िकसी िवदेशी Öटेशन से वहाँ के समाज और संÖकृित से जुड़े ।
रेिडयŌ पूरी तरह से ®Óय माÅयम है । ®Óय माÅयम होने के कारण इसकì कुछ िविशĶताएँ
भी ह§ और सीमाएं भी । रेिडयŌ माÅयम कì सबसे बड़ी िवशेषता है िक यह ®ोताओं को साथ
लेकर चलता है । ®ोता अपनी कÐपना शिĉ का इÖतेमाल करते है और 'आवाज कì
दुिनया' म¤ खो जाते है । इसम¤ आवाज के माÅयम से कायªøम ®ोताओं तक पहòँचता है और
®ोताओं को कÐपना कì उड़ान कì पूरी छूट िमल जाती है । वह अपनी कÐपना शिĉ के
सहारे ŀÔय जुटाता है और कई बार वह अनोखे संसार म¤ पहòँच जाता है । कई बार ®ोता
रेिडयŌ कायªøम के ÿÖतुत कताªओं कì भी एक मनचाही तÖवीर बना लेता है । अतः ÿÂयेक
®ोता के िदमाग म¤ ÿÖतुतकताª कì अलग-अलग तÖवीर बनी होती है; इसी कारण हजारŌ
मील दूर बैठे उĤोषक से वे करीबी åरÔता जोड़ लेते है । रेिडयŌ के कई उĤोषक इतने
लोकिÿय हòए िक घरŌ म¤ पåरवार के सदÖय जैसे बन गए है । पटना क¤Æþ से एक धारावािहक
आता था - 'लोहािसंह' यह पाý घर-घर का सदÖय बन गया था । इस तरह रेिडयो लखनऊ
से एक धारावािहक का 'बहरे बाबा' जैसा पाý ऐसा ही एक उदाहरण है । िविवध भारती के
िसबाका गीत माला के उĤोषक अमीन सायानी को कौन भूल सकता है ।
रेिडयŌ से जुड़ी कÐपना और अÆय माÅयमŌ से जुडी कÐपना म¤ एक महßवपूणª अंतर है ।
ŀÔय माÅयम म¤ अ³सर यह आरोप लगाया जाता है िक वे दशªकŌ कì िवचार शिĉ को कुंिठत
कर देते है और मौिलक सोच को ÿभािवत करते है । परंतु रेिडयŌ के साथ बात उÐटी है ।
यह ®ोताओं कì कÐपना शिĉ और िवचार शिĉ को उÆमुĉ उड़ान भरने का पूरा मौका
देता है । वÖतुतः यह माÅयम ®ोताओं कì कÐपना शिĉ को आंदोिलत भी करता है ।
रेिडयो पर सब कुछ आवाज के माÅयम से िनरंतर ÿसाåरत होता रहता है । इस िनरंतरता के
कारण समसामाियकता और वतªमान का बोध होता है । ®ोता महसूस करता है िक ÖटूिडयŌ
से सीधा ÿसारण हो रहा है और वह उसका आÖवादन कर रहा है । इस बात का आभास
होते ही ®ोता कायªøम से जुड़ जाता है । इसका एक अ¸छा उदाहरण रेणु के उपÆयास 'मैला munotes.in

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जनसंचार माÅयम के िविवध łप
29 आंचल' म¤ िमलता है । उस समय रेिडयŌ भारत के लोगŌ खासकर देहात के लोगŌ के िलए
नयी चीज थी । उपÆयास का एक पाý रेिडयŌ का िबÐकुल मानवीकरण कर देता है । वह पाý
उपÆयास म¤ कहता है "रेिडयो डांट भी सकता है, रेिडयो िकसी समÖया को सुलझा भी
सकता है आिद आिद । " कहने का ताÂपयª यह है िक रेिडयŌ 'वतªमान' और 'जीवंत' होने का
बोध कराता है ।
रेिडयŌ जन संचार का एक ऐसा माÅयम है, िजसे जब, जैसे और जहाँ चाहे वहाँ सुना जा
सकता है । आप इसे बाथłम म¤ भी सुन सकते है और खेत-खिलहान म¤ भी, आप पढ़ते वĉ
भी इसे सुन सकते है और खाना बनाते वĉ भी । वÖतुतः रेिडयो के इस लचीलेपन के दो
कारण है:
१) ŀÔय हीनता
२) ůांिजÖटर øांित
रेिडयो हम¤ कुछ िदखाता नहé, बिÐक सुनाता है, अतः इसम¤ अपे±ाकृत कम एकाúिच° होने
कì आवÔयकता पड़ती है । टेलीिवजन देखते समय हमे आँख और कान दोनŌ को सिøय
रखना पड़ता है । हम टेलीिवजन देखते समय दूसरा काम नहé सकते है । परंतु रेिडयो के
साथ यह सुिवधा है िक आप कोई काम करते समय भी रेिडओ के कायªøम सुन सकते है ।
मसलन नहाते समय कम¤ůी सुन सकते है; फसल काटते समय गाना सुन सकते है;
'चौपाल' सुन सकते है । आवाज का माÅयम होने के कारण अÆय जन संचार कì तुलना म¤
रेिडयो को यह सुिवधा अपने आप िमल गई है ।
रेिडयो पर समाचार और सूचनाएँ तेजी से अथाªत कम से कम समय म¤ ÿसाåरत कì जा
सकती है । ®Óय माÅयम होने के कारण रेिडयो के साथ यह िविशĶता जुड़ जाती है । कहé
घटना घटी, संवाददाता ने फोन से Öथानीय रेिडयŌ Öटेशन को खबर भेजी संवाददाता ने
फोन से Öथानीय रेिडयो Öटेशन को खबर भेजी और वहाँ से आकाशवाणी को खबर पहòँचाई
तथा िफर खबर चारŌ ओर फैल जाती है । अपने कायªøमŌ कì ÓयवÖथा के अनुसार तÂकाल
खबर हजारŌ हजार ®ोताओं तक पहòँच जाती है । समाचार म¤ यह खबर दूसरे िदन आती थी
। या िफर अगर कोई िदन या शाम को ÿकािशत होनेवाला समाचार पý (िमड-डे या सांÅय
टाइम) भी हो तो भी लोगŌ तक खबर पहòँचाने म¤ कुछ घंटे तो लगते ही है अतः तÂपरता कì
ŀिĶ से रेिडयो बेजोड़ माÅयम है ।
नवीन ÿौīोिगकì व वै²ािनक ÿगित ने रेिडयŌ या आकाशवाणी म¤ भी नवीन पåरवतªन िकए है
। िजसके पåरणाम Öवłप एम. एम. रेिडयो एवं वेव रेिडयो, वÐडª ÖपेसरेिडयŌ का भी ÿचलन
बढ़ गया है |
एफ. एम. रेिडयो का उदय सवªÿथम अमेरीका और युरोप म¤ १९८० के दशक म¤ हो गया था
। परंतु भारत म¤ इसका आगमन १९९० के बाद हòआ । टेलीिवजन के आने के बाद रेिडयŌ
का जीवन खतरे म¤ पड़ गया था ³यŌिक टेलीिवजन (अथाªत) दूरदशªन Åविन- ŀÔय माÅयम
होने के कारण हर वगª म¤ लोकिÿय हो गया । वहé रेिडयŌ कì पुरानी ÿसारण िविध के कारण
इसका ÿभाव ®ोताओं पर खÂम होता गया । परंतु एफ. एम. रेिडयŌ के आगमन से ®ोता न munotes.in

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जनसंचार माÅयम
30 िसफª िडजीटल तकनीक म¤ मनमोहक कायªøम सुन सके बिÐक इसकì दूर-दराज के गांवŌ म¤
पहòँच ने दोबारा अपना ®ोता वगª तैयार कर िलया ।
सूचना एवं ÿसारण मंýालय Ĭारा िनजी एवं सरकारी संÖथाओं को ५०० से अिधक एफ.
एम. रेिडयो Öटेशन चलाने कì अनुमित िमलने के बाद अब शहर और गांव म¤ एफ.एम.
रेिडयŌ कì धूम है । अब वह चाहे ए. आई. आर का एफ. एम रेिडयो हो या िफर ९८.३
MHZ पर रेिडयŌ िमचê रेिडयŌ सीटी या रेड एफ.एम ।
वेब रेिडयŌ और वÐडª Öपेस रेिडयŌ वतªमान म¤ देश म¤ १०० से अिधक वेब रेिडयŌ एवं वÐडª
Öपेश रेिडयŌ Öटेशन है िजनसे िवĵ के अनेक देशŌ के मनमोहक कायªøम ÿसाåरत होते है
जो पहले संभव नहé थी ।
(दूरदशªन) टेलीिवजन:
दूरदशªन या टेलीिवजन जनसंचार का एक सशĉ माÅयम है । इस माÅयम म¤ ŀÔय-®Óय
दोनŌ का समावेश होता है । अÆय माÅयमŌ कì अपे±ा यह अिधक ÿभावशाली व इसका
अपना महßव है । दूरदशªन तरंगŌ के माÅयम से एक साथ ŀÔय और Åविन को सुदूर ÖथानŌ
तक उसी गित से भेजने म¤ सफल हòआ है, िजस तीĄ गित से रेिडयŌ Ĭारा तरंगे भेजी और
úहण कì जाती है । दूरदशªन Ĭारा जनसंचार के ±ेý म¤ बहòत बड़ा पåरवतªन हòआ है । रेिडयो
कì यह सीमा थी िक वह माÅयम पूरी तरह आवाज पर िनभªर था जबिक समाचार पý मुिþत
शÊदŌ पर । इसिलए इन दोनŌ माÅयमŌ से जो छूट जाता था, वह दूरदशªन अथाªत टेलीिवजन
ने पूरा कर िदया । रेिडयŌ व समाचार पý के माÅयम से जो कहा जाता था, उसकì ŀिĶ के
िलए जीवंत ÿमाण सामने नहé आ पाते थे। लगता था िक यथाथª का आधार इनके पास नहé
है । दूरदशªन ते जीवंत ŀÔय िदखाकर लोगŌ का िवĵास जीत िलया इसके साथ ही मनोरंजन
का िविवधतापूणª खजाना घर और रेिडयो कì तुलना म¤ बहòत महंगा है, लेिकन इसके ÿभाव
सभी वगª आ चुके है और िवशाल जन समूह के िसर पर इसका जादू चढ़ा हòआ है । इसने
िवĵ कì दूåरयŌ को िमटा िदया है । आज समाचार पý का पाठक भी उसम¤ दूरदशªन या
टेलीिवजन के कायªøमŌ कì सूचना पढ़ना नहé भूलाता ।
दूरदशªन या टेलीिवजन ÿौīोिगक का िवकास:
टेलीिवजन िवगत तीन-चार दशकŌ कì ही उपलिÊध है । यŌ दूर तक तÖवीरŌ को ÿसाåरत
करने कì युिĉ १८९० म¤ ही ²ात हो चुकì थी और १९३० के अंत म¤ िāटेन म¤ टेलीिवजन
एक घरेलु शÊद बन चुका था । जबिक संसार का पहला िनयिमत टेलीिवजन या दूरदशªन
ÿसारण सावªजिनक Öतर पर १९३६ म¤ हòआ ।
जॉन लॉगी बेयडª पहले वै²ािनक थे िजÆहŌने िāटेन म¤ १९२६ म¤ टेलीिवजन का पहला
ÿदशªन िकया । इसके बाद १९२७ म¤ िफलो फॉÆसªवथª ने इले³ůॉिनक टेलीिवजन संकेत
ÿवािहत कर टेलीिवजन कì Öøìन पर छिव को साकार िकया । कुछ वषª पहले १९२३ म¤
बलादीमीर ºवोरिकन ने भी ऐसा ÿयास िकया था मगर उÆह¤ भारी सफलता तब िमली जब
उÆहŌने पहली िप³चर ट्यूब (आयकोनोÖकोप) का आिवÕकार िकया । वह पहली तकनीक
थी िजससे िबजली धारा को छिव के łप म¤ पåरवितªत िकया जा सकता था । munotes.in

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जनसंचार माÅयम के िविवध łप
31 टेलीिवजन ने अपना अलग चरण १९३० ई के आसपास बढ़ाया । नये इले³ůॉिनक कैमरा
एवं åरसीिवंग ट्यूब ने तÖवीर कì गुणव°ा को बढ़ा िदया । साथ ही इसम¤ ŀÔय के साथ Åविन
को भी जोड़ा जा चुका था । ऐसा करने के िलए रेिडयो ůांसमीटर म¤ मामूली सा पåरवतªन कर
िदया गया था । अब आवाज वाले टेलीिवजन का पहला सावªजिनक ÿसारण िāटेन म¤
१९३० म¤ हòआ ।
धीरे-धीरे टेलीिवजन सारी दुिनया म¤ तेजी से फैलने लगा । लेिकन अभी वह जनसंचार कì
अवधारणा से दूर था । िāटन म¤ ही माý ३०० Óयिĉगत åरसीवर थे जो १९३० से १९३८
के बीच ४००० हो गए । सन् १९३९ म¤ तो केवल दो मिहने म¤ ही ७००० सेट िबके । Āांस
म¤ िनयिमत दूरदशªन ÿसारण १९३८ म¤ शुł हòआ तथा अमेåरका म¤ १९४१ म¤ िĬतीय िवĵ
युĦ के दौरान युरोप म¤ टेलीिवजन ÿसारण बंद हो गए । िĬतीय िवĵ युĦ के बाद ÿसारण
सेवाएँ िफर शुł हòई । १९५३ म¤ संयुĉ राºय ने िवĵ म¤ सवªÿथम रंगीन टेलीिवजन ÿसारण
शुł िकया । जबिक १९५२ म¤ इंµल§ड, Āांस, नीदर ल§द तथा पिIJमी जमªनी के बीच
सफलता पूवªक पुनः ÿसारण संभव हòआ । १९६२ म¤ सेटेलाईट के जåरये पहले जीवंत
(live) कायªøम का आदान ÿदान युरोप तथा अमेåरका के बीच हòआ ।
भारत म¤ टेलीिवजन माÅयम कì शुłआत १५ िसतंबर १९५९ से हòई जब युनेÖको कì
िवशेष पåरयोजना के तहत तÂकालीन राÕůपित डॉ. राजेÆþ ÿसाद ने भारत के पहले पहले
दूरदशªन केÆþ का उĤाटन िदÐली म¤ िकया । वषª १९७२ म¤ दूरदशªन के ÿसारण को Öथायी
łप िदया गया । इसके पूवªतक यह आकाशवाणी के अंग के łप म¤ कायª करता था । १९७६
म¤ इसे दूरदशªन नाम से एक Öवतंý इकाई बनाया गया । १९८२ म¤ जब भारत म¤ एिशयाई
खेलŌ का आयोजन िकया गया, तब दूरदशªन ने पहली बार रंगीन ÿसारण कì शुłआत कì ।
लगभग इसी समय िविभÆन शहरŌ म¤ टेलीिवजन के िलए ůांसमीटर लगाए गए और सन्
१९८४ तक भारत के लगभग सभी ÿमुख शहरŌ तक 'दूरदशªन' का ÿसारण पहòँच चुका था ।
आज भारत का कोई ऐसा ±ेý नहé है जो दूरदशªन ÿसारण के बाहर हो यही नहé भारत म¤
एक अनुमान के अनुसार १० करोड घरŌ म¤ टेलीिवजन सेट लगे हòए है । और पचास करोड
आबादी दूरदशªन ÿसारण देखती है । केवल ÿसारण सुिवधा के चलते अब भारत म¤
टेलीिवजन पर १०० से अिधक चैनल उपलÊध है।
तकनीक के साथ-साथ टेलीिवजन के łप रंग, कायªøम िनमाªण िवĵसनीयता गुणव°ा
इÂयािद म¤ जो पåरवतªन हòए है, उससे 'दूरदशªन' के ÿाथिमक उĥेÔयŌ म¤ भी पåरवतªन आया है
। भारत म¤ दूरदशªन कì शुłआत करते समय कुछ खास उĥेÔय रखे गए थे । ये उĥेÔय इस
ÿकार है -
१. सामािजक कÐयाण , और राÕůीय एकता म¤ अहम भूिमका िनभाना
२. जनता म¤ वै²ािनक चेतना का िवकास करना
३. कला व संÖकृित के ÿित लोगŌ को जागłक बनाना
४. खेल कूद, पåरवार कÐयाण , पयाªवरण, संतुलन और संर±ण के िलए जानकारी देना ।
५. कृिष को ÿोÂसािहत करना munotes.in

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जनसंचार माÅयम
32 ६. लोगŌ को सूचना, िश±ा और मनोरंजन ÿदान करना जनसंचार माÅयम के łप म¤
दूरदशªन या टेलीिवजन कì िवशेषताएँ
आकाशवाणी या रेिडयŌ ने केवल आवाज के माÅयम से संÿेषण होता है । दूरदशªन या
टेलीिवजन म¤ आवाज के साथ-साथ ŀÔय भी होते है । यिद रेिडयŌ कì भाषा म¤ Öवर है,
Åविनयाँ है तो दूरदशªन कì भाषा ŀÔय और ®Óय के िम®ण से बनती है िजसके ŀÔयŌ म¤ िचý
और चलिचý का समावेश होता है और ®Óय भाषा, भाषेतर Åविनयाँ और संगीत आिद का
पुट होता है । रेिडयŌ पर बोलने वाले को केवल सुना जा सकता है इसिलए रेिडयŌ पर बोली
हòई, भाषा का िवÆयास और शैली ऐसी होनी चािहए िक कही गई बात ®ोता तुरंत समझ ल¤ ।
टेलीिवजन म¤ बोलने वाला Óयिĉ दशªक को िदखलाई भी देता है - बहòत कुछ शÊद कहते है
तो बहòत कुछ भंिगमाएँ और हाव-भाव जैसे Óयिĉ यिद सामने न भी हो और ŀÔय है तो भी
कई बार शÊद कì आवÔयकता नहé पड़ती । ŀÔय ही काफì होता है । उदाहरण Öवłप बफª
से ढकì पहाड़ कì चोिटयŌ के वणªन के िलए रेिडयŌ म¤ शÊद और ÅविनयŌ के जåरए ऐसा
वणªन होना चािहए जो ®ोता के मन म¤ उनका िचý बना सके, लेिकन टेलीिवजन म¤ शÊद न
हŌ, आवाज न हो तो भी ŀÔय अथª संÿेिषत का देता है । अथाªत जो िचý आकाशवाणी म¤
शÊदŌ और ÅविनयŌ के माÅयम से बनता है । वही िचý टेलीिवजन पर सा±ात िदखता है ।
यही टेलीिवजन कì सबसे िनबड़ी िवशेषता है ।
ŀÔय ®Óय माÅयम :
टेलीिवजन जनसंचार का ऐसा माÅयम है िजसम¤ शÊद भी है Åविनयाँ भी है और ŀÔय भी है ।
टेलीिवजन चलते-िफरते ŀÔयŌ का माÅयम है । टेलीिवजन जो जैसा है उसे वैसा ही िदखाता
है । नाटक, लोककृÂय, गाथाएँ, लोक संगीत जैसे जनसंचार के पारंपाåरक माÅयम भी अगर
सशĉ रहे है तो इसिलए िक वहाँ भी कलाकारŌ और दशªकŌ या ®ोताओं के बीच जो ŀÔय
संपकª होता है वह रसिनÕपित म¤ सहायक होता है । रेिडयŌ म¤ ŀÔय का िनमाªण शÊदŌ Ĭारा
िदया जाता है अतः ®ोता को शÊदŌ को सुनकर ही ŀÔय कì कÐपना करनी होती है । जबिक
टेलीिवजन ŀÔय ®Óय माÅयम होने के कारण इसम¤ दशªक ŀÔय को देखता भी है और सुनता
भी है ।
Óयापक पहòँच और िवĵसनीयता का आभास लगभग पूरी दुिनया को समेट űाइंग łम
(बैठक) म¤ लाने का काम दूरदशªन ने बखूबी िकया है । उपúह ÿौīोिगकì के Ĭारा हम दुिनया
के िकसी भी कोने से आँखो देखा हाल ÿाĮ कर सकते है । पलक झपकते ही दुिनया के
िकसी भी कोने म¤ पहòँच सकते है वहाँ भी जा सकते है जहाँ जाने कì कÐपना भी न कì हो ।
उन हिÖतयŌ के दशªन भी कर सकते है, उÆह¤ अपने सामने चलते-िफरते, बोलते हòए देख
सकते है, िजनसे शायद कभी िमलने का ÖवÈन भी न देखा हो । यह अनोखा संचार माÅयम
सामाÆय Óयिĉ से लेकर िविशĶ Óयिĉ कì पहòँच के भीतर है ।
इस ÿकार दुिनया कì सभी सूचनाओं को बड़ी आसानी से ÿेिषत करने का काम दूरदशªन
माÅयम कì एक महßवपूणª िवशेषता है । कला, संÖकृित, िव²ान, टे³नोलॉजी, राजनीित खेल
कूद, पयाªवरण इÂयािद जैसे तमाम िवषयŌ कì जानकारी एक शहर से दूसरे शहर तक, एक
देश से दूसरे देश तक पहòँचाकर जहाँ दूरदशªन ने दुिनया को एक आंगन के łप म¤ तÊदील
कर िदया है वहé अपना दायरा भी बहòत बढ़ा िलया । munotes.in

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जनसंचार माÅयम के िविवध łप
33 दूरदशªन एक िवĵसनीय संचार माÅयम है ³यŌिक लोग सुनी सुनाई बातŌ कì तुलना म¤
आँखŌ देखी पर ºयादा भरोसा करते है । ऐसी कई बाते होती है । िजन पर लोग िवĵास नहé
करते है लेिकन दूरदशªन के माÅयम से टेलीिवजन के परदे पर उÆहé बातŌ को देखकर उÆह¤
सहज ही Öवीकार कर लेते है ।
ताÂकािलकता का माÅयम :
दूरदशªन अथाªत टेलीिवजन सूचनाओं को तुरंत (तÂकाल) लोगŌ तक ŀÔयŌ के माÅयम से
पहòँचाता है । २६ नवंबर २००८ को मुंबई म¤ हòए आतंकवादी हमले के कुछ ही िमनटŌ म¤
सारी दुिनया ने इस हमले के ŀÔय अपने अपने टेलीिवजन सेट पर देखा । टेलीिवजन कì
यह ±मता अभूतपूवª है । समारोह, अंितम याýा, कोई अंतराªÕůीय सÌमेलन हो, चुनावी
सरगमê का माहौल , १५ अगÖत का कायªøम, २६ जनवरी या िøकेट म¤ इनके सीधे
ÿसारण के माÅयम से ŀÔय को करीब ला देना दूरदशªन कì महßवपूणª िवशेषता है ।
टेलीिवजन के छोटे परदे कì चमक दमक ऐसी होती है िक दशªक इसके ÿलोभन के सामने
अपने आपको रोक नहé पाता। इस कारण कई दूसरी बाते भी सामने आई है जैसे पढ़ने के
बजाए लोग देखना ही पसंद करते है । ³यŌिक वह आसानी से उपलÊध है और समय कम
लेता है । इससे लोगŌ म¤ पढ़ने िलखने कì ÿवृि° कम होती जा रही है । परंतु एक ही Öथान
पर सभी सूचनाओं को ÿाĮ कर लेना िनIJय ही एक बड़ी उपलिÊध है । लेिकन यह इस बात
कì गारंटी नहé है िक लोग अिधक ²ानवान हŌगे और बेहतर िनणªयŌ पर पहòँचेगी । बहòत
अिधक सूचनाएँ लोगŌ को िदµĂिमत भी कर सकती है ।
चमक दमक और ³लोज अप का माÅयम :
टेलीिवजन ³लोज अप का माÅयम है । परदे (Öøìन) का छोटा होना ही इसे ऐसा बनाना है
। लंबे लंबे और दूर-दूर तक के शॉटस् टेलीिवजन के छोटे परदे के िलए उपयुĉ नही है?
लांग शॉट्स म¤ ³या िदखाया जा रहा है यानी िवषय वÖतु ³या है यह ÖपĶ नहé हो पाता ।
³लोज अप म¤ िदखाई गई िवषय वÖतु ÖपĶ िदखती है और दशªक पर अपना ÿभाव भी
छोड़ती है । दशªक के िलए ³लोज अप अथाªत पाý का चेहरा और उसकì भाव-भंिगमाएँ
महßवपूणª हो जाती है । टेलीिवजन कैमरे कì एक िवशेषता यह होती है िक वह चेहरे के छोटे
से छोटे भाव को बढ़ा-चढ़ा कर ÿÖतुत करता है । साथ ही इस माÅयम को लगातार नए चेहरे
कì आवÔयकता प ड़ती है ³यŌिक दशªक एक ही चेहरे कì समÖत रेखाओं को देखते-देखते
उकता जाता है और उसे नए चेहरे और उस चेहरे कì रेखाओं कì आवÔयकता पड़ती है।
िव²ापन का माÅयम :
दूरदशªन का उपयोग Óयावसाियक िहतो के िलए भी िकया जाता है । िव²ापन Ĭारा कंपिनयाँ
अपने उÂपादŌ को दूरदशªन के दशªकŌ तक पहòँचाती है । दूरदशªन के दशªक िजतने ºयादा
होगे िव²ापन उतने ही ºयादा लोगो तक पहòँचेगा । भारत म¤ एक अनुमान के तहत लगभग
५० करोड़ लोगŌ के बीच दूरदशªन कì पहòँच है इसिलए इसके जåरए उÂपादŌ को भी इतने ही
लोगŌ तक पहòँचाया जा सकता है । िव²ापन टेलीिवजन पर ŀÔय łप म¤ आते है और ŀÔयŌ
का ÿभाव शÊदŌ से अिधक पड़ता है इसिलए उÂपादŌ के िव²ापनŌ को ŀÔयŌ के łप ÿÖतुत
करना अिधक ÿभावकारी माना जाता है । िव²ापन दाता कंपिनयŌ का ÿयÂन रहता है िक वे munotes.in

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जनसंचार माÅयम
34 अपने उÂपाद के िलए ऐसे तरीके अपनाएँ िजससे अिधक से अिधक दशªक ÿभािवत हŌ और
उनके उÂपादŌ को खरीदने के इ¸छुक हŌ ।
लोकतंý का सशĉ माÅयम:
अपनी Óयापक पहòँच के कारण दूरदशªन अथाªत टेलीिवजन जनसंचार का एक लोकतांिýक
माÅयम भी है । यह अपनी बात एक समान तरीके से जन जन तक पहòँचाता है चाहे वह झुµगी
झोपड़ी म¤ रहते हो या िकसी आलीशान महल म¤ । इस ÿकार दूरदशªन िविशĶ ÓयिĉयŌ कì
बात¤ सामाÆय जन तक और सामाÆय जन के दुख-ददª, उनकì समÖयाएँ, िविशĶ वगª तक
पहòँचाता है । तिमलनाडु का तिमल बोलने वाला Óयिĉ पंजाब के पंजाबी या कÔमीर के
कÔमीरी से एक सांÖकृितक, वैचाåरक और सामािजक åरÔता बना सकता है । िविभÆन
भाषाओं और जातीय अिÖमताओं के ÿसारण कì बाÅयता इस माÅयम को लोकतांिýक
बनाती है और समाज म¤ एकłपता या बहòसांÖकृितक समाज म¤ आवÔयक सिहÕणुता पैदा
करने म¤ सहायक होती है ।



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35 ५
'जनसंचार माÅयम के िविवध łप - िसनेमा (फìचर िफÐम)
और इंटरनेट'
आधुिनक संचार माÅयमŌ म¤ ŀÔय-®Óय माÅयम म¤ िफÐम एक लोकिÿय माÅयम है । इसम¤
Åविन के साथ ŀÔयŌ या िचýŌ का भी समावेश होता है । िफÐमŌ को देखते-सुनते समय
हमारी सभी इंिþयाँ सिøय रहती है और इसके Ĭारा भेजा गया संदेश या सूचना हम आसानी
से úहण करते है । यही कारण है िक इसका ÿभाव ±मता अÆय संचार माÅयमŌ कì तुलना म¤
कहé अिधक होती है । िफÐमŌ के सुंदर एवं आकषªक ŀÔय, ÿभावपूवªक Åविनयाँ, संगीत और
गित रोचकता और कÐपनाशीलता दशªकŌ को अपने आप जकड़ लेती है ।
िफÐम या िसनेमा मु´यतः मनोरंजन का माÅयम रहा लेिकन वृतिचý और Æयुज शैली के
Ĭारा वह सूचना एवं िश±ा के ÿचार और ÿसार का भी माÅयम बना | टेलीिवजन के आगमन
के पहले तक िफÐमŌ ही मÅयवगª और िनÌनवगª के मनोरंजन का लोकिÿय माÅयम था भारत
म¤ तो आज भी यह काफì लोकिÿय माÅयम है । ÿो. जवरीमÐल पारख के अनुसार िफÐमŌ
म¤ परंपरागत कला łपŌ के साथ आधुिनक कलाओं का भी समावेश होता है । कथा, संवाद,
अिभनय, फोटोúाफì, संगीत, नृÂय आिद कई िवधाओं और कलाओं कì सवō°म
अिभÓयिĉ इस माÅयम म¤ संभव है ।
िफÐम (िसनेमा) का उदय (िफÐम तकनीक कì खोज) एक शताÊदी पहले िजस मूवी कैमरे
के कारण िसनेमा का आिवभाªव हòआ उसने देखते ही देखते अपने मायावी संसार म¤ सारी
दुिनया को जकड़ िलया । Āांस के जब दो भाइयŌ लुई और अगÖत Ðयुिमए ने पहली बार
मूवी कैमरे का ÿयोग िकया तब कोई नहé जानता था िक कुछ ही सालŌ म¤ यह आिवÕकार
जनसंचार के ±ेý म¤ øांित का वाहक बनेगा । िफÐमŌ का आगमन कोई आकिÖमक घटना
नहé थी । िफÐमŌ कì तकनीक का संबंध फोटोúाफì कì खोज और िवकास से है ।
फोटोúाफì म¤ िÖथर छायािचý होते है । िÖथर छाया िचýŌ के संयोजन से गितशील िचý का
िवकास १८९० के दशक म¤ हòआ । गितशील िचýŌ के आिवÕकार का ®ेय थामस एिडसन
को िदया जाता है । इस तरह का पहला ÿयास एडवडª मुइिāज ने १८७२ और १८७७ के
बीच िकया था, जब उÆहŌने कई गितशील िचýŌ का िनमाªण िकया । मुइिāज ने घुड़दौड़ के
मैदान म¤ कई सारे तार बांध िदए और ÿÂयेक तार को एक िÖथर कैमरे के शहर से जोड़ िदया
। दौड़ता हòआ घोड़ा तारŌ को िगरा देता था िजससे कई सारे िचý लगातार कैमरे Ĭारा िलए
गए । इन िÖथर िचýŌ को एक िडÖक पर लगाकर उन पर लालटेन कì रोशनी डालकर दौड़ते
हòए घोड़े का िबंब ÿदिशªत िकया गया । मुइिāज के कायª से ÿेåरत होकर Āांस के वै²ािनक
E. J. Mareyot ने १८८२ म¤ एक ही कैमरे से बहòत से िचýŌ कì शूिटंग करने वाले उपकरण
कì खोज कì ।
१८८८ म¤ एिडसन ने डÊÐयू. के. एल. िड³सन के िनद¥शक म¤ गितशील िचýŌ का ÿयोग
िकया और वे³स िसल¤डर पर फोटोúाफì को åरकाडª करने का ÿयास करने का ÿयास िकया munotes.in

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जनसंचार माÅयम
36 । १८८९ म¤ िडकसन ने इस ±ेý म¤ सफलता ÿाĮ कì जब उसने जाजª ईÖटमैन कì
सैÐयुलारड िफÐम का इÖतेमाल करने का िनIJय िकया । सैÐयुलाइड िफÐम बाद म¤
गितशील छायांकन का ®ेķ माÅयम बन गई । ³यŌिक इसे रोल िकया जा सकता था और
मन चाही लंबाई दी जा सकती थी । २८ िडस¤बर १८९५ को िफÐमŌ के इितहास कì
वाÖतिवक शुłआत हòई । जब Ðयुिमए बंधुओं ने पेåरस कैफे के बेसम¤ट म¤ दशªकŌ से पैसे
लेकर गितशील तÖवीरŌ का संि±Į सा ÿदशªन िकया । उÆनीसवé शताÊदी के अंत तक आते
आते दुिनया के कई िहÖसŌ म¤ मूवी कैमरे का ÿयोग होने लगा था । इनके Ĭारा िदखाई
जानेवाली तÖवीरे ÿायः ३५ िममी कì होती थी और ÿित सेक¤ड १६ Āेम (िÖथर िचý) होते
थे ।
सवाक िफÐमŌ का आरंभ (बोलती िफÐम का आरंभ):
लगभग तीन दशक तक िसनेमा मूक बना रहा । १९२७ के उ°राĦª म¤ वानªर āदसª का
आंिशक सवाक िफÐम 'जाज िसंगर' ने अपार सफलता अिजªत कì । १९२८ म¤ संपूणª
सवारक (बोलती) लाइट्स और Æयूयाकª का िनमाªण िकया हòआ । एक दो साल म¤ ही मूक
िफÐमŌ का िनमाªण ÿायः बंद हो गया । हालाँिक िचý और Åविन के संयोजन कì कोिशश¤
िफÐमŌ के िनमाªण के साथ शुł ही गई थी । परंतु बोलती िफÐमŌ कì संभावना तभी साकार
हो पायी जब वानªर āदसª ने बीटाफोन ÿणाली का ÿयोग सुł िकया िजसने पृथक
फोनोúािफक िडÖक के साथ िचý का संयोजन िकया । इस ÿकार िचýŌ के साथ संवादŌ
और संगीत का िम®ण आरंभ हòआ ।
िफÐमŌ म¤ ŀÔयŌ के साथ संवादŌ और ÅविनयŌ के ÿयोग ने उसे जीवन के करीब ला िदया ।
अब िफÐम जीवन कì पुनरªचना नजर आने लगी । यथाथª से इतनी िमलती जुलती पुनरªचना
िकसी अÆय माÅयम म¤ संभव नहé था । लेिकन इस माÅयम ने यथाथª, अमूतª और पूणªत
काÐपिनक सोच को भी यथाथª कì तरह ÿÖतुत करने कì संभावना पैदा कर दी । िफÐम ने
इस ÿकार एक साथ ही यथाथª और अयथाथª, सÂय और कÐपना का सिÌम®ण करने का
Ĭार खोल िदया ।
िफÐम कì खोज म¤ धीरे- धीरे कई चीज¤ जुड़ती चली गई । आरंभ म¤ िफÐमŌ म¤ िसफª गित थी,
बाद म¤ आवाज को भी åरकाडª िकया जाना संभव हो सका । इस तरह पहले िफÐम¤ ĵेत-
Ôयाम होती थé, बाद म¤ रंगीन िफÐम¤ बनना संभव हो पाया । िफÐमŌ के तकनीकì िवकास से
आज चार ÿकार कì िफÐम¤ बनाई जा सकती है-
१) कथा आधाåरत वणªनाÂमक िफÐम¤ इनम¤ कोई कहानी ÿÖतुत कì जाती है ।
२) गैर कथाÂमक वृ° िचý इनम¤ दुिनया के वाÖतिवकता को ÿÖतुत िकया जाता है।
३) एिनमेशन िफÐम¤, िजनम¤ कृिýम łप से बनाए गए िचýŌ को इस łप से पेश िकया जाता
है । मानŌ उनम¤ गित हो और वे बोल सकते हŌ
४) ÿयोगाÂमक िफÐम¤ इनम¤ िफÐम तकनीक कì अिधकतम संभावनाओं का इÖतेमाल
करके अयथाथª और अमूतª का सृजन िकया जाता है । munotes.in

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'जनसंचार माÅयम के िविवध łप - िसनेमा (फìचर िफÐम) और इंटरनेट'
37 िफÐम अÆय कई कला łपŌ कì अपे±ा अभी नई है । िसफª सौ साल का इितहास है ।
टेलीिवजन जो तकनीकì ŀिĶ से इसी का िवÖतार है, तकनीक को शािमल करले तो यह
दुिनया का सवाªिधक लोकिÿय माÅयम है । इस कला माÅयम म¤ कई कलाओं कì
िवशेषताओं को एक साथ देखा जा सकता है । उपÆयास कì भाँित इसम¤ कहािनयाँ कही जा
सकती है, नाटक कì तरह इसम¤ जीिवत चåरýŌ के ĬंĬŌ का िचýण िकया जा सकता है,
िचýकला कì तरह यह ÿकाश , रंग, छाया, आकृित और गठन को संयोिजत कर सकती है ।
संगीत कì तरह यह लय और सुर के िसĦांतŌ के अनुसार गितशील हो सकती है । नृÂय कì
तरह इसम¤ आकृितयŌ कì गितशीलता को संगीत कì Öवर लहåरयŌ के साथ ÿÖतुत कर
सकता है, और फोटोúाफì कì तरह यह जो सामने िदखाई देता है, उन िĬआयानी ŀÔयŌ को
िýआयामी यथाथª होने का आभास दे सकता है । िफÐम कì इस अभूतपूवª ±मता ने ही इसे
इतना Óयापक और लोकिÿय बना िदया है ।
िफÐम तकनीक का िवकास अÆय आधुिनक संचार माÅयमŌ के समान िफÐम म¤ भी संकेतŌ
और िबंबो कì भाषा का ÿयोग होता है । िफÐम Ĭारा Óयĉ संदेश को समझने के िलए इसकì
तकनीक कì सामाÆय जानकारी आवÔयक है । यह गितशील ŀÔयŌ कì अिभÓयिĉ का
माÅयम है ।
िफÐम म¤ ŀÔयŌ को वÖतुतः फोटोúाफì कì भाँित िÖथर छायांकन के łप म¤ ही शूट िकया
जाता है । अथाªत जो ŀÔय हम¤ गितशील नजर आते है, वे मूलतः कुछ िÖथर िचý है िजÆह¤
øम से एक सेक¤ड के अंदर चौबीस कì गित से हमारी आँखŌ के आगे से गुजर जाता है ।
उनकì यह गित हम¤ आभास देती है िक हमारी आखŌ से गुजरने वाले िचý वÖतुतः िचý नहé
गितशील ŀÔय है । लेिकन िफÐमांकन के िलए ŀÔयŌ से पूवª इन िÖथर िचýŌ को Åयान म¤
रखा जाता है । िजÆह¤ िफÐम कì भाषा म¤ 'Āेम' कहा जाता है । िफÐम िनद¥शक इन ĀेमŌ कì
®ृंखला के łप म¤ ŀÔयŌ कì कÐपना करता है और िफर ŀÔयŌ के संयोजन के िविभÆन समूहŌ
के योग से िफÐम का िनमाªण करते है ।
िफÐम म¤ िकसी ŀÔय कì पåरकÐपना 'Āेम' के łप म¤ होती है और ÿÂयेक Āेम को कैसे
िफÐमाया जाएगा इसी से कैमरे कì भूिमका तय होती है । िफÐम म¤ कैमरे कì भूिमका दो
łप म¤ होती है । एक तो वह उस वÖतु से िकतना दूर है िजसे िफÐमाया जाता है, दूसरे वह
उस वÖतु से िकस कोण पर है । दूरी के आधार पर जो शॉट िलए जाते है, वे वÖतु से या तो
काफì दूर होते है, या नजदीक या िफर न दूर न नजदीक इसे िफÐम कì भाषा म¤ लांग शाट
³लोज अप शाट और मीिडयम शाट कहते है ।
कोण कì ŀिĶ से वÖतु का िफÐमांकन वÖतु के उपर से वÖतु के सामने से या वÖतु के नीचे
कì ओर से िकया जाता है । िजसे øमश: हाई एंगल, Öůेट एंगल और लो एंगल कहा जाता है
। एक और कोण से भी िफÐमांकन होता है । िजसे 'ओवर िद सोÐडर शाट ' यानी कंधे कì
ओर से िफÐमांकन कह सकते है ।
संपादन:
िफÐम म¤ ŀÔयŌ का ÿभाव शॉट बढ़ाते है । इन शॉट का उपयुĉ संपादन उस ÿभाव को और
अिधक बढ़ा देता है । संपादन कì कुछ महßवपणª िविधयŌ का संि±Į उÐलेख यहाँ ÿÖतुत है: munotes.in

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जनसंचार माÅयम
38 १) वाÖतिवक समय का इÖतेमाल करना है, यानी ŀÔय म¤ िजतने समय कì गितिविध का
अंकन हòआ है, उतने समय को यथावत िदखा द¤ ।
२) दूसरा तरीका मŌटाज का िनमाªण है अथाªत िविभÆन ŀÔयŌ को कट Ĭारा परÖपर
जोड़कर अथª उÂपÆन करना । महान łसी िफÐमकार आइÆसटाइन मŌटाज Ĭारा
मनचाहा अथª सृिजत करने म¤ द± थे ।
३) समांतर संपादन Ĭारा िवरोधी शॉट का ÿयोग करना तािक िविभÆन ÖथानŌ पर चलने
वाली घटनाओं को एक साथ िदखाया जा सके ।
४) समय और िøया म¤ बदलाब िदखाने के िलए फेड इन और फेड आउट पĦित का
ÿयोग िकया जाता है । िडजाÐव का ÿयोग वहाँ िकया जाता है जहाँ फेड आउट पर
फेड इन को सुपर इंपोज िकया जाना हो |
५) जब कहानी को अतीत कì ओर मोड़ा जाता हो । Öमृित के łप म¤ और िकसी łप म¤
तो Éलैशबैक पĦित का ÿयोग िकया जाता है । Éलैशबैक ÿायः िकसी पाý कì Öमृित
के łप म¤ ÿयुĉ होते है । इसिलए Éलैशबैक म¤ उस पाý के जåरए िकया जाता है ।
ÿकाश और संगीत:
िफÐम म¤ ÿकाश का ÿयोग संकेतो के िलए िकया जाता है । िकसी ŀÔय म¤ कहाँ, िकतनी
रोशनी चािहए यह ŀÔय को जीवंत बनाने म¤ महÂवपूणª भूिमका िनभाती है । िफÐम 'Èयासा' म¤
गुłद° ने लाईट का ऐसा ही सृजनाÂमक ÿयोग िकया है ।
िफÐम म¤ ÿकाश कì भांित संगीत अथाªत पाĵª संगीत, ÅविनयŌ आिद का ÿयोग िकया जाता
है । उदाहरण Öवłप हॉरर िफÐम म¤ सÖप¤स िøयेट (िनमाªण) करने के िलए, उÂसुकता और
तनाव के िलए हलका सा ÿकाश, पूणª सÆनाटा और उनम¤ कभी उÐलू कì आवाज, या
चमगादड़ का फड़फड़ाना था िकसी अजनबी के महज पदचाप सारे माहौल को खास ढंग से
संकेितत कर देते है ।
संकेत और अथª संÿेषण:
िफÐम म¤ िजन संकेतŌ का ÿयोग िकया जाता है । उÆह¤ समझना ÿायः बहòत मुिÔकल नहé
होता है । यिद िफÐम म¤ ÿयुĉ संकेत दशªको के िलए सहज हो और वह उनसे पूवª पåरिचत
हो तो वह उनम¤ Óयĉ अथª को सरलता से úहण कर लेता है । िफÐमकार ÿायः ऐसे संकेत
ÿयुĉ करते है जो िविभÆन सांÖकृितक पåरवेशŌ म¤ भी एक से अथª को Åविनत कर¤ । लेिकन
जब िफÐमकार िकसी खास संÖकृित से संबĦ संकेतŌ का इÖतेमाल करता है । तो कई बार
उनके संÿेषण म¤ किठनाई महसूस होती है । अतः िफÐमŌ म¤ ऐसे रोजमराª के शािÊदक और
अशािÊदक संकेतŌ का अिधक ÿयोग हो जो आसानी से संÿेिषत हŌ ।
िफÐम और समाज :
िफÐमŌ कì शुłआत से ही िफÐम और समाज के संबंधŌ कì Óया´या अलग-अलग ढंग से
होती रही है । ³या िफÐम¤ समाज पर कोई ÿभाव डालती है ? ³या िफÐमŌ Ĭारा लोगŌ कì munotes.in

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'जनसंचार माÅयम के िविवध łप - िसनेमा (फìचर िफÐम) और इंटरनेट'
39 चेतना और सोच म¤ बदलाव लाया जा सकता है ? िफÐमŌ के ÿित लोगŌ म¤ नशे कì हद तक
आकषªक ³यŌ होता है ? िफÐम लोगŌ कì िकन भावनाओं और इ¸छाओं का ÿितिनिधÂव
करती है ? मा³सªवादी िवचारक वाÐटर ब¤जािमन ने िवचार करते हòए िलखा है िक पूँजीवादी
समाज से पूवª के समाज म¤ कला और जनता के बीच एक दूरी थी। कला का एक ÿभामंडल
ÓयाĮ होता था । लेिकन आज जनता म¤ यह इ¸छा रहती है । िक वÖतुएँ आपके ºयादा
नजदीक और अिधक मानवीय हŌ । उÆहŌने अपनी इस इ¸छा पर इस बात से िवजय ÿाĮ कì
है िक कला का यांिýक पुनłÂपादन संभव है । यह पुनŁÂपादन अब पूजा कì वÖतु नहé रह
गए है, वरन् बाजार म¤ बेची और खरीदी जाने वाली वÖतुए है । कला अब अपने दशªकŌ
आÂमसात करने कì जगह Öवयं अपने, दशªकŌ Ĭारा आÂमसात कì जा रही है । वाÖतव म¤
िफÐम¤ राजनीितक आंदोलनŌ कì शिĉशाली वाहक बन गई है, यहाँ जनता Öवयं अपने
सामने खड़ी नजर आती है ।
इंटरनेट:
बीसवी शताÊदी के अंितम दशक म¤ जनसंचार के ±ेý म¤ िजस नवीनतम माÅयम ने øांित
उपिÖथत कì है वह है इंटरनेट इस शताÊदी का मनुÕयता को िदया गया यह एक सवª®ेķ
उपहार है । आज के इस सूचना युग (Age of information) का सवाªिधक तेज एवं सशĉ
माÅयम है । इसने जन संचार के सभी माÅयमŌ चाहे मुिþत माÅयम समाचार पý पिýकाएँ
पुÖतके आिद हो या रेिडयŌ (आकाशवाणी, दूरदशªन (टेलीिवजन) या िफÐम आिद सभी को
अपने म¤ समािहत कर िलया । यह जनसंचार का एक हाई टेक łप और सूचना øांित का
संवाहक सही अथŎ म¤ इसने पूरी दुिनया को एक गांव के łप म¤ बदल िदया है । इसके महßव
के िवषय म¤ िगरीĵर िम® ने कहा है िक "इंटरनेट - ने लोगŌ को वह सामÃयª दी है िक वे खुद
इस दुिनया म¤ अपने िलए बोल¤ । वÖतुतः इंटरनेट ने सूचना और िवषयवÖतु के साथ एक
सजªनाÂमक संबंध कì िदशा िदखाई है । इससे पूवªवतê जनसंचार माÅयम केवल िवषय-वÖतु
या सूचना देते थे, िनिÕøय और संवादहीन इंटरनेट Óयिĉ को उसकì सीधी भागीदारी का
सशĉ माÅयम उपलÊध करता है । "
इंटरनेट कÌÈयूटरŌ का एक िवराट नेटवकª है जो दुिनयाभर म¤ फैले छोटे-बड़े कÌÈयूटरŌ को
आपस म¤ जोड़ता है । यह एक संजाल (जाल) है जो टेलीफोन लाइनŌ तथा केबल के माÅयम
से एक Óयिĉ को दूसरे Óयिĉ से संपकª करता है । यह िवĵ का सबसे बड़ा तथा लोकिÿय
नेटवकª है । इसके माÅयम से हम िवĵ के िकसी भी Óयिĉ से संपकª कर सकते है । िवĵ के
लगभग सभी नेटवकª इंटरनेट से जुड़े है । यह िवĵ से िकसी भी कÌÈयूटर या साइट से युजर
को जोड़ देता है । जैसे दो Óयिĉ टेलीफोन पर बातचीत कर रहे हŌ । िजस तरह दुिनया भर
म¤ टेलीफोन का जाल िबछा है और हम दुिनया म¤ िकसी से भी फोन पर बात कर सकते है,
ठीक उसी तरह इंटरनेट भी दुिनया भर के कÌÈयुटरŌ को जोड़कर बनाया गया जाता है ।
इसको www अथाªत world wide web भी कहते है । यह टेलीफोन लाइनŌ के माÅयम से
दूर-दूर ÖथानŌ और देशŌ के कÌÈयूटरŌ को जोड़कर बनाया गया नेटवकª है, जो िक -
१) आपस म¤ अंत: संबंिधत या इंटरकने³टेड है ।
२) सूचनाओं के आदान-ÿदान और डाटा म¤ साझीदारी कì सुिवधा देते है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
40 ३) एक िसंगल नेटवकª कì तरह काम करते है ।
इंटरनेट का िवकास गत दशक म¤ हòआ है िजसके माÅयम से उपभोगता शÊदŌ, िचýŌ, Åविन,
कì सहायता से िकसी Óयिĉ, संÖथा अथवा िवषय कì सूचनाएँ ले दे सकता है और ÿयोग
आसानी से कर सकता है ।
इंटरनेट का िवकास:
इंटरनेट का िवकास संयुĉ राÕů अमेåरका के र±ा िवभाग कì एडवांस åरसचª ÿोजे³ट के
Ĭारा १९६० म¤ हòआ । तÂकालीन łस और अमेåरका म¤ शीतशुĦ (Cold war) चल रहा था
ऐसे म¤ अमेåरका को संदेश भेजने के िलए ऐसे माÅयम कì जłरत पड़ी िजसके माÅयम से
łस Ĭारा हमले कì िÖथती म¤ आमê, नेवी और एयर फोसª के बीच तालमेल बना रहे और
वह माÅयम इलै³टॉिनक टे³Öट आधाåरत इंटरनेट था । यह उस समय िसफª सेना के
अधीन था ।
इंटरनेट के ÿथम सवªदेशीय नेटवकª कì शुłआत १९६२ म¤ अमेåरका कì मैसाचुसेट्स
इंÖटीट्यूट ऑफ टे³नोलॉज़ी (MIT) के जे. सी. आर. िलकिलंडर ने कì । सन १९६२ के
ही िदसÌबर महीने म¤ िडफ¤स एडवांस ÿोजे³ट एजेÆसी ने इसके िवÖतार के िलए कदम
उठाया । सन् १९६९ म¤ एडवांस åरसचª ÿोजे³ट ऐज¤सी ने संयुĉ राºय अमेåरका के चार
िवĵिवīालयŌ के कÌयूटरŌ कì नेटविक«ग करके बाकायदा इंटरनेट कì शुłआत कì । इसका
एक अÆय उĥेÔय था, आपात िÖथित म¤ जबिक संपकª के सभी माÅयम फेल हो चुके हŌ, तब
आपस म¤ इसके Ĭारा संपकª Öथािपत िकया जा सके ।
आठव¤ दशक तक आते आते इंटरनेट दो कÌÈयूटरŌ के बीच संचार का ÿमुख माÅयम बन -
गया । समय के साथ इसम¤ अÆय टे³नोलॉजी का ÿयोग होता रहा और यह अिधक उÆनत
łप म¤ आज संचार का ÿमुख माÅयम बनकर उभरा है । यह कह सकते है िक २१ वी
शताÊदी कì संचार कì सबसे मह°म उपलिÊध है । यह सूचना आदान-ÿदान करने कì
संसार कì सबसे बड़ी ÓयवÖथा है । यह न तो ÿोúाम है नाही सॉÉटवेअर वह एक ऐसा
Èलेटफॉमª या Öथल है जहाँ से लोग िविभÆन सूचनाएँ मुÉत म¤ ÿाĮ कर सकते है ।
संचार øांित के औिचÂय तथा भिवÕय का आकलन करते हòए 'राÕůीय सहारा' समाचार पý
के हÖत±ेप पåरिशĶ म¤ िवचार से आकलन िकया गया है िक िकस गित से इंटरनेट आज इस
संचार - øांित को दुिनया म¤ नए आयामŌ को बना रहा है । िजस सूचना महामागª कì इन
िदनŌ दौड़ मची है, वह इंटरनेट के असीिमत उवªर गभª से ही पैदा हòआ है । िवĵ म¤ इस समय
िजतने कÌÈयूटर नेट सिøय है, उनम¤ इंटरनेट सबसे बड़ा है । हॉलािक दुिनया भर म¤ अभी
तक िकतने कÌÈयूटर इससे जुड़े है या िकतने लोग इस महा तंý का लाभ उठा रहे है इसकì
िनिIJत सं´या बता पाना बहòत किठन है । - इंटरनेट पर िकसी का भी एकमाý िनयंýण नहé
है । दुिनया के िकसी कोने म¤ बैठकर आप अपने िकसी पåरिचत से इंटरनेट के माÅयम से
बात¤ कर सकते है, जłरी सूचनाएँ ले व सकते है, बाजारŌ- दुकानŌ पर नजर रख सकते है
आिद आिद । -
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'जनसंचार माÅयम के िविवध łप - िसनेमा (फìचर िफÐम) और इंटरनेट'
41 भारत म¤ इंटरनेट:
भारत म¤ इंटरनेट कì शुłआत १९८७ म¤ एन.सी.एस.टी. और आइ.आइ.टी. बाÌब¤ के बीच
डायल अप ई-मेल सेवा Ĭारा हòई। इसके पIJात िवदेश संचार िनगम िलिमटेड (VSNI) ने
१५ ऑगÖत १९९५ म¤ कामिशªयल इंटरनेट ए³सेस सेवा कì शुłआत कì । अपने ÿारंिभक
łप म¤ यह सेवा िदÐली, मुंबई, कलक°ा और चेÆनई महानगरŌ तक सीिमत थी । इसके ÿित
उÂसुकता को देखते हòए १९९५ के अंत तक बंगलौर और पुणे म¤ भी इस सेवा का िवÖतार
कर िदया गया । बाद के वषŎ म¤ सरकार ने अपने ÖवािमÂव को समाĮ करते हòए ÿाइवेट
कÌपिनयाँ को भी इंटरनेट सिवªस चलाने कì माÆयता ÿदान कì । पåरणाम Öवłप िविभÆन
उÂपादŌ के िडÖůीÊयुटसª, बैक व िव°ीय संÖथान ÿितķान पýकार और छाýŌ ने इसे हाथŌ
हाथ अपना िलया ।
आजकल इंटरनेट केवल संदेशŌ के भेजने या ÿाĮ करने का माÅयम माý पर नहé रह गया है
। यह Óयापार करने और वÖतुओं के बेचने खरीदने का भी सवō°म माÅयम बन गया है ।
इतना ही नहé - सभी भारतीय भाषाओं को इंटरनेट के माÅयम से ÿयोग करने कì ±मता का
िवकास िकया जा रहा है । आज भारत म¤ कई ऐसे इंटरनेट सिवªस ÿोवाइडर (ÿदाता) है जो
अंúेजी के अलावा िहंदी, ऊदूª, तािमल, तेलगु, कÆनड़, मलयालम, बांµला और पंजाबी जैसी
भारतीय भाषाओं म¤ संदेश भेजने व ÿाĮ करने कì सुिवधा ÿदान कर रहे है ।
जनसंचार माÅयम के łपम¤ इंटरनेट:
वÖतुत: इंटरनेट कÌÈयूटरŌ के संजाल का नाम है । िजसम¤ वह भागीदारी कर सकता है
िजसके पास कÌÈयूटर है । इस िलए इसे एक िवशेष वगª का संजाल भी कह सकते है । परंतु
आजकल शहरŌ म¤ अनेक ÿकार के सायबर कैफे है जहाँ पर आप कुछ łप म¤ खचª करके
नेट सिफ«ग कर सकते है और देश-दुिनया कì खबरे से łबł हो सकते है । इंटरनेट समाचार
पýŌ के एकािधकार से अलग एक िभÆन ÿकार का एकािधकार बनाता है । ³यŌिक इसका
कोई भी मािलक नहé होता है । मीिडया का मािलक पूंजीपित वगª हो सकता है जबिक
बेबसाईड का मािलक मामूली Óयिĉ भी बन सकता है । इंटरनेट पर यह सुिवधा होता है िक
कोई भी अपनी वेबसाईट खोल सकता है । इस काम के िलए माý एक कÌÈयूटर, एक
टेलीफोन कने³शन के साथ इंटरनेट कने³शन लेने भर कì दरकार होती है । मोबाइल
धारकŌ को अब टेलीफोन कने³शन कì आवÔयकता भी नहé होती है । मामूली łपए खचª
करके कोई भी अपनी वेबसाइट खोल सकता है जो बड़ी से बड़ी वेबसाइट कì भाँित पूरी
दुिनया म¤ देखी जा सकती है ।
इंटरनेट वÖतुतः जनसंचार का एक नया माÅयम है । इस माÅयम म¤ भी संचार के मूल तÂवŌ
का Öवłप वही रहता है जो िÿंट या मुिþत माÅयम, ®Óय या रेिडयŌ अथवा ŀÔय ®Óय
माÅयमŌ म¤ होता है । बस यहाँ उÆनत िकÖम कì तकनीक का ÿयोग होता है । इंटरनेट म¤
संचार कì तकनीक एक दूसरे से िभÆन हो सकती है । लेिकन संचार कì गित और उसकì
कìमत, लोगŌ तक उसकì पहòँच, संúहण शिĉ और सुिवधा िजससे सूचनाएँ एकिýत कì जा
सक¤, सूचना का महÂव और बुिĦम°ा कभी भी ÖथानाÆतåरत नहé कì जा सकती । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
42 ÿिसĦ ई-पýकार Öनेहलता दूबे का मानना है िक आनेवाले समय म¤ वेब पýकारŌ कì -
िजÌमेदारी और अिधक बढ़ जाएगी । उÆह¤ इस बात पर Åयान देना होगा िक कोई भी
महßवपूणª समाचार छूट न जाय और अथªहीन समाचार साइट पर न चला जाए ³यŌिक यहाँ
खबरŌ का ÿवाह अबाध गित से होता है ऐसे म¤ समाचारŌ कì मह°ा को पहचानकर उसे
ऑनलाइन करना एक बहòत बड़ी िजÌमेदारी होगी ।
एसे म¤ एक वेबपýकार को काफì सजगता और कुशलता से काम करना होगा और उसे साथ
ही दुिनया भर के वेब समाचारŌ पर भी अपनी आँखे जमाए रखना होगा िक वे लोग िकन
खबरŌ को ÿमुखता दे रहे है ।
२१ वी शताÊदी इंटरनेट जनसंचार के माÅयम का एक ऐसा Èलेटफॉमª बनकर उभरा है जहाँ
पर एक ही जगह पर पूरी दुिनया कì सूचनाओं का आदान-ÿदान संभव है । जनसंचार के
िकसी भी माÅयम म¤ अभी तक संभव नहé हो पाया है । इसके िलए कोई भी भौगोिलक दूरी
मायने नहé रखती है । इस माÅयम के Ĭारा कोई भी Óयिĉ या पýकार कई वषŎ से आिफसŌ
म¤ ÓयाĮ ĂĶाचार और अिनयिमतताओं को उजागर कर सकता है । इसके िलए इंटरनेट एक
अचूक हिथयार बनकर उभरा है ।
भारत जैसे ÿजातंý म¤ ÓयाĮ ĂĶाचार घोटालŌ को भी आसानी से कोई भी पýकार उजागर
कर सकता है । ³यŌिक इंटरनेट पर सूचना को खुले तौर पर आसानी से ÿाĮ िकया जा
सकता है । कोई भी सूचना बस एक ि³लक करने भर कì देरी म¤ आपके सम± उपलÊध हो
जाती है । इस तरह देखा जाय तो इंटरनेट सच का पदाªफाश करने का भी एक सशĉ
माÅयम है । इंटरनेट के इस łप से हमारी सÂयं िशवं सुंदरम् कì उिĉ भी चåरताथª होती है ।

*****

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43 ६
जनसंचार माÅयम और िव²ापन
वतªमान समय म¤ जनसंचार माÅयम के कई Öवłप हमारे सम± आये है जो िनरंतर आम
जनता तक अपनी बात पहòँचाने व जनसंपकª म¤ सबसे ºयादा सफल ह§- रेिडयो, टेलीिवजन,
दूरदशªन, समाचार पý, पिýकाएँ, िसनेमा, मोबाईल, इंटरनेट, पैÌपेÐट, होिड«ग इÂयादी इÆहé
जनसंपकª व जनसंचार माÅयमŌ के Ĭारा िविभÆन कंपनीयाँ, उīोगपित, सरकार, िभÆन -
िभÆन िव²ापन , ÿÖतुत करके आम जनता तक अपने माल िवøì के िलए आसानी से पहòँच
पाते है, साथ जनिहत म¤ जारी कई ÿकार कì सूचनाएँ व अिधकारŌ कì जानकारी भी इस
माÅयम Ĭारा दी जाती है ।
हमारे अÅययन कì पहला पढ़ाव यह है िक हम जाने िव²ापन ³या है, िव²ापन का दीघª łपी
अÅययन हम इसके अथª व पåरभाषा के अÅययन Ĭारा कर सकते है ।
िव²ापन का अथª:
िव²ापन शÊद अंúेजी शÊद 'Advertisement' का िहÆदी łपांतर है । Advertisement
लैिटन भाषा के 'एडवटªर' से बना है । िजसका अथª है 'to turn to' या मोड देना ।
इस ÿकार िव²ापन का आशय उस िøया से है जो "िकसी Óयिĉ को िकसी िवशेष तÂव कì
और मुड़ने पर िववश कर देती है ।"
िव²ापन कì पåरभाषाएँ:
१) द Æयू एÆसाइ³लोपीिडया िāटािनका के अनुसार:
"िव²ापन संÿेषण का वह ÿकार है जो िक उÂपादक अथवा कायª को उÆनत करने, जनमत
को ÿभािवत करने, राजनीितक सहयोग ÿाĮ करने, एक िविशĶ कारण को आगे बढ़ाने
अथवा िव²ापनदाता Ĭारा कुछ इि¸छत ÿितिøयाओं को ÿकािशत करने का उĥेश रखता
है।"
२) शेÐडन के अनुसार:
"िव²ापन वह Óयावसाियक शिĉ है िजसके अतंगªत मुिþत शÊदŌ Ĭारा िवøय वृिĦ म¤
सहायता िमलती है, ´याित िनमाªण होती है एवं साख बढ़ती है ।"
३) बी. एस. राठौर के अनुसार:
"िव²ापन सूचनाओं को सावªजिनक भुगतान ÿाĮ साधनŌ Ĭारा ÿचाåरत करता है । िजसका
उģम ÖपĶतः सौजÆय ÿाĮ संगठन के łप म¤ पहचाना जाता है ।"
उपयुĉ पåरभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है िक िव²ापन शÊदŌ िचýŌ, आलेखŌ
आिद के सहयोग से तैयार कì गई ऐसी सूचना ÿद िव²िĮ है, जो उपभोĉाओं को ÿभािवत munotes.in

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जनसंचार माÅयम
44 कर अपने उÂपादन को खरीदने के िलए तैयार करती है । वह िज²ासाएँ पैदा करती है और
उनका समाधान भी सूझाती है । इसिलए आज िव²ापन िकसी भी Óयवसाय कì अिनवायª
शिĉ बनकर सामने आया है ।
िव²ापन के गुण:
१) िव²ापन म¤ Åयान आकिषªत करने कì ±मता हो
२) अिभनव एवं मौिलक साज-सºजा हो
३) िव²ािपत वÖतु कì मु´य िवशेषता पर बल हो
४) सा±र और िवĬान सभी के िलए िव²ापन सुबोध हो
५) तÃयŌ कì तकªपूणª ÿÖतुित हो ।
६) िव²ापन म¤ गितशीलता हो ।
७) िचý, िलिखत तÃय, ůेडमाकª और शीषªक आिद सभी म¤ समिÆवत हो । सबका
िमलाजुला ÿभाव दशªक और पाठक पर पड़े ।
८) िव²ापन इस कौशÐय से ÿÖतुत हो िक वह łिचकर हो, मनोरम लगे, बार-बार Öमृित
को ÿभािवत करे एवं खरीदने अथवा अपनाने हेतु सबको िववश कर द¤ ।
िव²ापनो का वगêकरण :
१) उĥेश के आधार पर वगêकरण:
अ) वÖतुओं या सेवाओं के िव²ापन: ये िव²ापन िकसी वÖतु या सेवा कì ÿितķा या
िबøì बढ़ाने के िलए बनाये और जारी िकए जाते है । आज बाजार म¤ जो िव²ापन
देखने को िमलते है उनम¤ अिधकांश इस ®ेणी म¤ आते है ।
ब) संÖथानीय िव²ापन: इन िव²ापनŌ का उĥेÔय िकसी वÖतु या सेवा कì बजाए कÌपनी
के िलए ÿितķा और सĩावना अिजªत करना होता है । जैसे- नेýहीन ÓयिĉयŌ के िलए
आँख का दान माँगने का िवषय है ।
२) माँग के ÿभाव Öतर के आधार पर िव²ापनŌ का वगêकरण:
अ) ÿाथिमक माँग पैदा करने वाले िव²ापन: इन िव²ापनŌ म¤ िकसी एक āांड कì बजाए
समूचे वÖतु वगª के िलए माँग बढ़ाने पर जोर िदया जाता है । उदा. "अंडा उÂपादक
समÆवय सिमती का िव²ापन संडे हो या मंडे रोज खाएँ अंडे ।" नेशनल एग को
ऑडêनेशन कमेटी का वह िव²ापन िजसका उĥेÔय अंडो कì ÿाथिमक माँग को बढ़ाना
है ।
ब) चुिनंदा माँग को उÂÿेåरत करने वाले िव²ापन: इन िव²ापनŌ म¤ िकसी वÖतु का
सामूिहक या सामाÆय िव²ापन न होकर एक āाÁड िवशेष का िव²ापन होता है । इन munotes.in

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जनसंचार माÅयम और िव²ापन
45 िव²ापनŌ का उĥेÔय बाजार म¤ एक āांड िवशेष कì ÿितķा बनाना होता है । ये िव²ापन
ÿितÖपधाªÂमक होते है और इनम¤ वÖतुओं के गुणŌ का लंबा चौड़ा बखान होता है ।
उदा. "पेट का मोटापा घटाने का आसान और असरदार साधन" "टमी िůमर" ।
इस ÿकार से िव²ापन के अÆयÿकार भी है ।
१) ÿÂय± कायªवाही वाले िव²ापन:
िजनम¤ उपभोĉा को तुरंत कायªवाही के िलए कहा जाता है, उदा. 'तुरंत संपकª कर¤ १५%
कì छूट Öटॉक रहने तक, बजट से पहले कार खरीदे ।'
२) अÿÂय± कायªवाही वाले िव²ापन:
इन िव²ापनŌ का ÿयास उपभोĉाओं म¤ िव²ापन कताª और उसके Ĭारा िनिमªत वÖतुओं के
बारे म¤ एक अनुकूल वातावरण पैदा करना होता है । उदा. राÕůीय िनमाªताओं के अिधकांश
िव²ापन अिभयान अÿÂय± कायªवाही वाले होते है ।
३) Óयिĉगत िव²ापन :
उदा. "शुø है घर म¤ डेटॉल साबुन रहता है ।" इसका ÿयोग Óयिĉ Öवंय करते है ।
४) सहकारी िव²ापन :
उदा. "बीमारी, िश±ा, जÆम, या हो घर म¤ Êयाह 'सरकारी ब§क म¤ जाइए, ब§क ही करे िनबाह।"
इस ÿकार से औīोिगक िव²ापन, वगêकृत िव²ापन, सजावटी िव²ापन , िव°ीयिव²ापन ,
राजनीितक िव²ापन इÂयादी ÿकार है ।
िव²ापन कानून और संिहताएँ:
िव²ापनकताª को मौजूदा कानूनŌ के बारे म¤ यथेķ जानकारी होनी चािहए । भारत म¤ अनेक
उपभोĉा संर±ण और िव²ापन से संबंिधत अनेक अिधिनयम लागू है । िजनकì अवहेलना
करना दंडनीय है । इन अिधिनयमŌ का Êयौरा नीचे ÿÖतुत है ।
१) Óयापार एवं Óयापाåरक माल िचĹ अिधिनयम (१९५८):
यह अिधिनयम Óया पाåरक िचĹŌ को सुर±ा ÿदान करता है । एक Óयापाåरक िचĹ पर इसके
िनमाªता का ÖवािमÂव होता है और उसे केवल उसके Ĭारा ही ÿयोग िकया जा सकता है ।
अÆय िकसी Ĭारा उसका दुłपयोग करना अपराध है ।
२) उपभोĉा संर±ण अिधिनयम (१९८६):
उपभोĉा संर±ण अिधिनयम, १९८६ उपभोĉाओं के िहतŌ के बेहतर संर±ण के िलए है
और इस ÿयोजन के िलए उपभोĉा िववादŌ िनपटारे के िलए उपभोĉा पåरषदŌ और अÆय
ÿािधकरणŌ कì Öथापना और उनसे संबंिधत िवषयŌ को उपलÊध कराने के िलए है । जैसे- munotes.in

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जनसंचार माÅयम
46 क) ऐसे माल के िवपणन के िवłĦ संरि±त िकए जाने का अिधकार जो जीवन और संपि°
के िलए पåरसंकटमय है ।
ख) जहाँ भी संभव हो वहाँ ÿितÖपधाª मूÐयŌ पर माल तक पहòँच का आĵासन िदए जाने का
अिधकार ।
ग) अनुिचत Óयापाåरक Óयवहार वा उपभोĉाओं के अनुिचत शोषण के िवŁĦ ÿिततोष का
अिधकार
घ) उपभोĉा िश±ा का अिधकार ।
३) औषिध एवं ÿसाधन साăगी अिधिनयम १९४०:
यह एक उपभोĉा संर±ण िवधान है, िजसका मु´य संबंध देश म¤ िविनिमªत औषिधयŌ के
मानकŌ और शुĦता से तथा औषिधयŌ के िविनमाªण, िवøय और िवतरण के िनयंýण से है ।
सरकार िकसी भी ऐसी औषिध या ÿसा धन साăगी के आयात, उसके उÂपादन और उसके
िवतरण आिद पर रोक लगा सकती है यिद वह उ°म Öतर कì नहé है । इस अिधिनयम म¤
यह भी ÿावधान है िक िव²ापनŌ म¤ सरकारी िवĴेषक कì åरपोटª का इÖतेमाल करना
अपराध है।
४) एकािधकार तथा अवरोधक Óयापाåरक Óयवहार (संशोधन) अिधिनयम १९६९:
इस अिधिनयम के दो मु´य उĥेÔय है । एक आिथªक शिĉ के सघनीकरण को रोकना तािक
एकािधकार वाले Óयापाåरक Óयवहार पर अंकुश लगाया जा सके और राÕůीय लàयŌ के
अनुłप िवकासŌ को बढ़ावा िमले । दो, ऐसे गलत Óयापाåरक ÓयवहारŌ पर रोक लगाना जो
उपभोĉाओं के िहतŌ के िवŁĦ है ।
५) बाट और माप मानक अिधिनयम १९७६:
यह अिधिनयम वािणिºयक ÓयवहारŌ , औīोिगक मापŌ और जनता तथा मानव सुर±ा के
िलए आवÔयक मापŌ म¤ मैिůक शुĦता सुिनिIJत करके उपभोĉाओं को बेहतर सुर±ा ÿदान
करने के िलए पåरकिÐपत है । गैर मानकìय, बाटŌ मापŌ के Ĭारा वÖतुओं के िवøय या
पåरदान जैसे गंभीर अपराधŌ के िलए दंड का ÿावधान है ।
६) पंजाब आबकारी अिधिनयम १९१४:
इस अिधिनयम के अधीन ऐसे आवेदनŌ पर ÿितबंध है जो मिदरा के ÿयोग को ÿचाåरत
करते है । अÆय राºयŌ म¤ भी ऐसे ही कानून लागू है िजनम¤ मिदरा और नशीली वÖतुओं के
ÿचार पर ÿितबंध लगे हòए है ।
इसी ÿकार से िचĹ एवं नाम (अनुपयुĉ ÿयोग परशेक) अिधिनयम, १९५०, खाī
अपिम®ण िनवारण (संशोधन) अिधिनयम, १९८६ ľी अिशĶ łपण (ÿितषेध) अिधिनयम
१९८६ इÂयादी भी है ।
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जनसंचार माÅयम और िव²ापन
47 िविभÆन जनसंचार माÅयमŌ म¤ िव²ापन:
िव²ापन का जादू आज चतुिदªक ÓयाĮ है । िव²ापन केवल िबøì के िलए ही नहé होता ।
इससे छिव िनमाªण का कायª िलया जाता है । जनसंचार पý पिýकाओं से लेकर राजमागª,
रेÐवे Öटेशन, बस - Öट§ड, िसनेमाघर, चौराहा, यातायात, वाले सभी ±ेý िव²ापन के क¤þ
िबंदु है । िव²ापनŌ के माÅयम से संदेश अÂयंत कलाÂमक ढंग से ÿÖतुत िकया जाता है । तो
िविभÆन जनसंचार माÅयमŌ म¤ िव²ापन को िनÌन Öवłप से ÖपĶ िकया जा सकता है -
१) समाचार पý:
भारत म¤ सा±रता, शहरीकरण और आय म¤ वृिĦ पåरणामÖवłप समाचार पý के पाठकŌ कì
सं´या म¤ लगातार वृिĦ हòई है । समाचार पýŌ कì आय के दो ąोत ह§ एक िव²ापन से होने
वाली आय और - दूसरे मुिþत ÿितयŌ कì िāकì से होने वाली आय आमतौर पर समाचार
पýŌ कì कुल आय का लगभग आधा िहÖसा िव²ापनŌ से ÿाĮ होता है जबिक वे समाचार
पýŌ म¤ माý २८ से ३५ ÿितशत जगह घेरते है । कुछ ऐसे समाचार पý भी है जो ५०
ÿितशत से अिधक Öथान िव²ापनŌ को देते है ।
समाचार पýŌ म¤ लगभग हर िकÖम के िव²ापन ÿकािशत होते है और वे समाज के एक बड़े
वगª कì िविवध जłरतŌ को पूरा करते है ।
गुण / लाभ:
१) समाचार पýŌ म¤ िव²ापन þुतगित से ÿकािशत कराए जा सकते है । िव²ापन कताª
अपने िव²ापन अगली सुबह समाचार पýŌ म¤ छपवा सकते है । इतना ही नहé, यिद
िव²ापन म¤ अंितम समय म¤ भी कोई रĥŌ बदल िकया जाना है, तो ऐसा करना संभव है

२) दैिनक समाचार पý म¤ ÿकािशत िव²ापन ÿित पाठक औसत खच¥ कì ŀिĶ से सÖता है
। िव²ापन तैयार करने म¤ भी कम खचª आता है ।
३) अिधकांश पढ़ी-िलखी जनता समाचार पýŌ कì पाठक है । समाचार पýŌ म¤ ऐसी सामúी
होती है ।
जो सब के िलए ²ानवधªक और łिचकर है ।
सीमाएँ:
१) समाचारपýŌ का जीवन बहòत छोटा होता है । अगले िदन नया समाचार पý आ जाने के
कारण बीते िदन का समाचार पý बासी हो जाता है ।
२) शहरी नागåरकŌ को जीवन इतना ÓयÖत हो गया है िक समाचार-पýŌ को तÆमयता और
गंभीरता से पढ़ना संभव नहé रह गया है ।
३) कुछ समाचार पýŌ को छोड़कर अिधकांश का मुþण Öतर घिटयाँ है और इसिलए
समाचार पýŌ म¤ ÿकािशत िव²ापन पाठकŌ को आकिषªत नहé करते । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
48 ४) समाचार पýŌ म¤ िजन पृķŌ पर िव²ापन भरे होते है उÆह¤ अनेक लोग आदतवश या
समय के अभाव के कारण यूँ ही बड़ी लापरवाही से पलट जाते है ।
२) पिýकाएँ:
आज देश म¤ पिýकाओं कì खूब भरमार है । िपछले कुछ वषŎ के दौरान, सामािजक, आिथªक,
राजनीितक, सांÖकृितक आिद से संबंिधत पýŌ म¤ लोगŌ कì łिच के जागरण और नई मुþण
तकनीको के आ जाने के पåरणाम Öवłप पिýका ÿकाशन म¤ िव²ापन म¤ भी अभूतपूवª
िवकास हòआ है ।
पिýकाएँ अनेक ÿकार कì होती है- साĮािहक, पाि±क, मािसक, ýैमािसक, एवं वािषªक । हर
पिýका का अपना िवशेष पाठक वगª होता है ।
पिýकाओं म¤ िव²ापन हेतु पृķ के िहसाब से Öथान खरीदा जाता है । रंगीन िव²ापन वाले
पृķ का मूÐय ĵेत व Ôयाम पृķ से कई गुणा अिधक होता है । दूसरे, तीसरे और चौथे कवर
पर ÿकािशत होने वाले िव²ापनŌ कì दरे सबसे अिधक होती है । िव²ापन को भीतर के २
पृķŌ पर एक साथ (double spread) ÿकािशत कराया जा सकता है । यिद एक िव²ापन
को कई अंकŌ म¤ दोहराया जाना है तो पिýकाएँ िव²ापन कताªओं को एक िनिIJत छूट देती है

गुण / लाभ:
१) अिधकांश पिýकाओं म¤ कागज और छपाई उ°म िकÖम का होती है, इसिलए इनम¤
िव²ापन आकषªक ढंग से, िविवध रंगŌ और सुंदर टाइपो म¤ ÿकािशत कराये जा सकते
है ।
२) समाचार पýŌ कì अपे±ा पिýकाओं का जीवन लंबा होता है ।
३) पिýकाएँ मिहनŌ और वषō तक रखी जा सकती है । इनम¤ छपी सामúी को बाद म¤ भी
पढ़ा जा सकता है।
सीमाएँ:
१) पिýकाओं के िलए िव²ापन तैयार करने पर काफì खचª आता है और इसे बनाने म¤ कई
किठनाइयाँ िवīमान है ।
२) पिýकाएँ छोटे िव²ापनकताª के िलए लाभदायी नहé है ³यŌिक िव²ापन कì दर¤ बहòत
महंगी होती है ।
३) पिýकाएँ, िनÌन आय वगŎ तक नहé पहòँच पाती, वे कम पढ़े िलखे होते है और उनके
पास - पयाªĮ धन नही होता ।
३) रेिडयो (आकाशवाणी):
रेिडयŌ माÅयम संचार का नेýरिहत तथा अंधा माÅयम भी कहा जाने लगा है ³यŌिक इसम¤
संचार और सूचना ÿाĮकताª एक दूसरे को देख नहé सकता है । यह Åविन के Ĭारा ®ोताओं munotes.in

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जनसंचार माÅयम और िव²ापन
49 के कानŌ को Öपशª करता है । इसिलए इसे िनतांत ®Óय माÅयम भी कहा जाता है । रेिडयŌ
कì सभवानाएँ बहòत अिधक है । बशत¥ कì कायªøम łिचकर हो । पåर®म लगने और नये
अनुसंधान कì नई तकनीकŌ को अपनाकर रेिडयŌ कायªøमŌ को व िव²ापन को ÿभावी
बनाया जा सकता है ।
रेिडयŌ पर िव²ापनŌ का िसलिसला िविवध भारती कायªøम के अंतगªत १ नवंबर १९६७ से
शुł हòआ जो अब िविवध भारती के २९ क¤þŌ पर व E.M. के सभी चैनलो पर जारी है ।
रेिडयŌ पर होने वाले िव²ापनŌ से आकाशवाणी को ÿित वषª लगभग ३० करोड़ łपये कì
आय होती है ।
यīिप दूरदशªन के आ जाने से रेिडयŌ माÅयम को काफì आघात पहòँचा है । लेिकन ³यŌिक
रेिडयो माÅयम दूरदशªन कì अपे±ा कहé ºयादा सÖता है व आम जनता म¤ आसानी से
उपलÊध हो जाता है ।
रेिडयŌ पर दो िकÖम के िव²ापन ÿसाåरत होते है:
१) Öपाट िव²ापन :
Öपाट िव²ापन छोटी अ विध के होते है ७, १०, १५, २०, ३० सेक¤ड के । इÆह¤ िकसी
िनिIJत समय पर ÿसाåरत िकया जाता है ।
२) ÿायोिजत कायªøम िव²ापन
'िचýलोक िमले जुले गाने', 'संगम', 'सबरस', 'जयमाला', 'छायागीत', आिद मनोरंजन
कायªøमŌ के अंतगªत ÿयोिजत िव²ापन ÿसाåरत कराए जा सकते है । इनम¤ एक
िव²ापनकताª के िलए ६० सेक¤ड से लेकर दो िमनट तक का समय िमलता है ।
गुण / लाभ:
१) रेिडयŌ संदेशŌ को बहòत थोड़े समय म¤ तैयार िकया जा सकता है और इनम¤ यिद
आवÔयकता हो तो आिखरी समय तक संशोधन या पåरवतªन संभव है ।
२) रेिडयŌ के माÅयम से िवशाल भौगोिलक ±ेý को संबोिधत िकया जा सकता है ।
३) संदेशŌ को राÕůभर म¤ ÿसाåरत करना आसान है । िनÂय ÿसारण के कारण संदेशŌ म¤
िनरतंरता भी रखी जा सकती है ।
४) दूसरे माÅयमŌ कì तुलना म¤ रेिडयो सÖता है और इस तक Öथािनय व छोटे िव²ापन
कताªओं कì पहòँच मुमिकन है ।
सीमाएँ:
१) रेिडयो पर िव²ापन देखा नहé जा सकता है, पढ़ा भी नहé जा सकता और अ³सर
इतना संि±Į होता है िक इसे भूल जाना संभव है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
50 २) यिद िकसी ने एक बार िव²ापन नहé सुना या िकसी कारण वश रेिडयो चालू नहé हो
तो उस ®ोता तक संदेश पहòँचाने के िलए पुनः ÿयÂन करने पड़ेग¤ ।
३) रेिडयो पर िदए गए बहòत सारे संदेश बरबाद जाते है ³यŌिक रेिडयŌ संदेशŌ के तÆमयता
से नहé सुना जाता ।
४) दूरदशªन टेलीिवजन:
दूरदशªन का मानव ÓयिĉÂव पर ÿÂय± ÿभाव पड़ता है । यह एक हक-®Óय माÅयम है ।
आज यह एक लोकिÿय माÅयम बन गया है । जन संचार का एक सशĉ माÅयम तो दूरदशªन
बन ही गया है और भिवÕय म¤ भी इस माÅयम से अपार संभावनाएँ उजागर होगी ।
दूरदशªन पर उन सब वÖतुओं का िव²ापन होता है जो दैिनक उपभोग कì है । दूरदशªन पर
Óयावसाियक िव ²ापनŌ कì शुłआत जनवरी १९७६ को हòई और तब से लेकर आज तक
वषª दर वषª िव²ापन कताªओं कì सं´या म¤ बढ़ो°री होती रही है । और दूरदशªन कì आय म¤
भी वृिĦ हो रही है । देश म¤ िव²ापनŌ पर होनेवाले कुल Óयय का लगभग २० ÿितशत
दूरदशªन िव²ापनŌ पर होता है । टेलीिवजन (दूरदशªन) िव²ापनŌ कì दो िकÖम¤ है।
१) Öपॉट िव²ापन :
Öपॉट छोटी अविध के िव²ापन होते है। १० सेक¤ड / १५ सेक¤ड आिद / ये टेलीिवजन के
िविभÆन क¤þŌ या नेशनल नेटवकª पर िदए जा सकते है। उदा. 'सुपर एक Öपेशल' समय वगª म¤
िहÆदी फìचर िफÐम और िचýकार शािमल है। 'सुपर ऐ म¤ रािý ९.०० बजे से ९.३० का
समय शािमल है।' 'ए Öपेशल म¤ रिववार को ÿातः ÿसाåरत होनेवाले कायªøम।'
२) ÿयोिजत कायªøम िव²ापन:
राÕůीय नेटवकª और ±ेिýय ÖटेशनŌ से ÿयोिजत कायªøमŌ के िलए िव²ापनŌ का ÿायोजन
Öवीकार िकया जाता है ३० िमनट के िकसी कायªøम के िलए ४० और ६० (why फìट)
अविध के िव²ापन टेप टेलीकाÖट कराये जा सकते है ।
ये िव²ापन एक ही कंपनी के हो सकते ह§ बशतª कपंनी िनधाªåरत मूÐय देने को तैयार हो ।
दो-तीन कंपिनयां िमलकर भी ÿायोजन कर सकती है ।
गुण / लाभ:
१) यह माÅयम बेहद चुिनंदा और लचीला है और इसीिलए इसे आवÔयकता अनुसार
इÖतेमाल िकया जा सकता है ।
२) िव²ापन िकसी कायªøम िवशेष म¤ िदया जा सकता है या एक िनिIJत समय पर ।
३) इस माÅयम कì पहòँच बड़ी Óयापक है । सभी धमō, वगō, जाितयŌ, ÿांतो और आयु के
लोग टेलीिवजन कायªøमŌ के दशªक है ।
४) टेलीिवजन अिधक ÿितķा वाला माÅयम है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम और िव²ापन
51 सीमाएँ:
१) टेलीिवजन िव²ापन का जीवन बहòत छोटा होता है । यिद िकसी ने एक बार इसे 'िमस'
कर िदया तो उसे दोबारा सुनना और देखना तभी संभव होगा जब दोबारा उसे
टेलीिवजन िकया जाए ।
२) अनेक टेलीिवजन िव²ापन ऐसे होते है जो िव²ापनŌ कì भीड़ म¤ अपना असर खो देते
है ।
३) िकसी िकसी कायªøम म¤ एक ही वÖतु के ÿितÖपधाªÂमक िव²ापन भी देखने को िमलते
है जो - वांिछत ÿभाव के Öथान पर दशªकŌ म¤ Ăम ही पैदा करते है ।
बाĻ:
इस ÿकार से जनसंचार माÅयम के कई अÆय ÿकार है िजनम¤ भी िव²ापन आसानी से
िदखाएँ जाते है । (बाĻ जनसंचार माÅयम म¤ िव²ापन)
१) होिड«ग (ÿकाशन):
यह एक तरह का बड़े आकार का ÿदशªन बोडª होता है । िजसे ऐसे ÖथानŌ पर लगाया जाता
है जहाँ जन-जन का Åयान सहज म¤ आकृĶ िकया जा सके । इस बोडª म¤ िव²ापन का संदेश
आकषªक िचý बनाकर Óयĉ िकया जाता है । आजकल बसŌ, टेनŌ, रेÐवे ÖटेशनŌ, रेÐवे
øािसंग पर भी होिड«ग लगाए जाते है ।
२) धातु के मुिþत इिÖतहार:
ये इिÖतहार रंगदार होते है और उÆह¤ टीन एÐयूमीिनयम कì चादरŌ पर िचिýत िकया जाता है
। इन संदेश वाहक इÖतेहारŌ को डाकघरŌ ब§को और सरकारी कायाªलयŌ म¤ ÿदिशªत िकया
जाता है ।
३) Æयून साइन:
यह भी एक ÿकार कì होिड«ग ही होती है । िजसम¤ िबजली का उपयोग करके िव²ापन का
ÿदशªन िदन रात िकया जाता है । अब कहé कहé Æयून साइन Ĭारा ताजा समाचार भी यदा-
कदा ऐसे ÖथानŌ पर िदखाए जाते है, यहाँ लोगो कì आवाजाही बनी रहती है । िशमला नगर
म¤ िहमाचल टाइÌस के संपादक '®ीदेव पांदी' ने िहमाचल कì राजधानी िशमला और िशमला
नगर के सवाªिधक भीड़-भाड़ वाली माल रोड पर यह तकनीक अपनाकर िवंडŌ जनªिलºम
का सफल ÿयोग िकया है ।
४) िसनेमा Öलाइड तथा िव²ापन िफÐम¤:
िसनेमा घरŌ म¤ Öलाइड का कुछ ±णŌ तक पद¥ पर ÿदिशªत िकया जाता है। िजसम¤ संि±Į
संदेश ही ÿचाåरत िकया जाता है। इसी तरह संदेश तथा ÿचार कायª कì ŀिĶ से िव²ापन
िफÐम¤ िदखाई जाती है। बड़े 'आिवÕकार और नई ' ÿगित को ÿदशªिनयŌ Ĭारा ÿदिशªत िकया
जाता है। आजतक मेलŌ और उÂसवŌ म¤ ÿदशªिनयŌ लगाई जाती है। बड़े राÕůीय तथा अंतª munotes.in

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जनसंचार माÅयम
52 राÕůीय मेलै आधुिनक संचार साधनŌ कì देन है। िवĵसनीयता तथा सहयोग कì भावना को
ÿेिषत करने के िलए ÿदशªिनयाँ एक कारगर साधन है। उदाहरणाथª पंचवािषªय योजना कì
उपलिÊधयŌ को भी ÿदशªिनयŌ के माÅयम से दशाªया जाने लगा है। इन सभी बाĻ ÿकार कì
ÿभावशाली तकनीकŌ का महßव इस बात पर होता है, िक इनके माÅयम से संदेश को िकस
कारगर ढंग से ÿदिशªत िकया गया है।
६) िफÐम वीिडयŌ कैसेट åरकाडªर:
जनसंचार म¤ िफÐम¤ एवं वीिडयŌ कैसेट åरकाडªर भी सशĉ माÅयम बन गए है । यह अब
Óयिĉ िवशेष पर िनभªर करता है िक वह इन माÅयमŌ का िकस ÿकार सफल व लाभकारी
ÿयोग करता है । िफÐमŌ से जनमानस पर गहरा ÿभाव पड़ता है । जłरत है ऐसी िव²ापन
िफÐम¤ बनाने कì जो िक िश±ापद एवं ÿेरक हो ।
७) इंटरनेट:
वतªमान तकनीकì युग म¤ िविभÆन ÿकार कì वेबसाइटŌ Yahoo, Gogle, MNS इÂयादी के
वेब-पेज को खोलने ही िविभÆन ÿकार के िव²ापन िश±ा मनोरंजन Óयवसाय इÂयादी से
संबंिधत उपलÊध होते है ।
इस ÿकार जनसंचार के िविभÆन माÅयमŌ म¤ कई ÿकार से िव²ापन िकया जाता है । जो िक
मानव के िहताथª ही है और इनका ÿयोग साथªक ढंग से िकया जाना अपेि±त है ।

*****


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53 ७
संचार माÅयमŌ कì भाषा
आज वतªमान समय म¤ संचार के कई माÅयम हमारे सम± उपिÖथत है, रेिडयŌ, टेलीिवजन,
िफÐम, इंटरनेट, समाचारपý पिýकाएँ, मोबाईल इÂयािद । परंतु यिद हम इन सभी संचार
माÅयमŌ - कì भाषा पर Åयान क¤िþत करे तो सभी माÅयमŌ कì भाषा म¤ हम¤ िभÆनता नजर
आती है । ®Óय माÅयमŌ के अंतगªत मु´य łप से रेिडयो, टेपåरकाडªर, úामोफोन और
लाउडÖपीकर आिद को सिÌमिलत िकया जाता है । ®Óय माÅयमŌ कì ÿÖतुित म¤ वĉा कì
श³ल िदखाई नहé देती है । केवल वĉा कì आवाज सुनाई देती है । इसके अितåरĉ इन
माÅयमŌ म¤ मनोरंजनाÂमक कायªøमŌ म¤ संगीत का भी पुट होता है ।
®Óय भाषा कì ÿकृित के अंतगªत हम मु´य łप म¤:
१) रेिडयŌ कì भाषा
२) रेिडयŌ समाचार कì भाषा और
३) रेिडयŌ िव²ापन कì भाषा पर िवचार कर¤गे ।
१) रेिडयो कì भाषा:
रेिडयो 'उ¸चाåरत' माÅयम है, इसिलए इसकì सफलता का मूल आधार भाषा है, यŌ तो
भाषा का उपयोग सभी जनसंचार माÅयमŌ म¤ िकया जाता है, िकंतु रेिडयŌ कì तो यह आÂमा
ही है । सभी ÿसारण िवशेष² इस संबंध म¤ एकमत है िक Óयापक जन समुदाय तक संदेश
पहòँचाने के िलए ÿसारण कì भाषा ऐसी होनी चािहए िजससे ®ोतावगª आसानी से समझ सके
। एक बार जो वा³य, उिĉ अथवा शÊद ÿसाåरत हो गया, वह हवा के झŌके कì भाँित आगे
िनकल जाता है, इसिलए सफल ÿसारण कì बुिनयादी आवÔयकता है - भाषा कì सरलता
रेिडयŌ कì भाषा पर िवचार करते समय िनÌन िबंदुओं पर पर Åयान देना जłरी है -
(१) भाषा कì पहली शतª - सरलता,
(२) वा³य रचना जिटल न हो,
(३) तकनीकì शÊद और
(४) रेिडयŌ जन-माÅयम ।
(१) भाषा कì पहली शतª सरलता:
रेिडयो कायªøमŌ म¤ भाषा को सरल और सुबोध बनाना वाÖतव म¤ िनरंतर चलती रहने वाली
ÿिøया है । िश±ा के ÿसार के साथ 'लोगŌ म¤ सा±रता बढ़ी है, िजससे उनके भाषा²ान का
Öवर भी ऊँचा उठा है । उसी के अनुłप आकाशवाणी म¤ कायªøमŌ कì भाषा म¤ भी पåरÕकार
हòआ है । बिÐक देश कì जनता तक बात पहòँचाना है । िजस भाषा को जन सामाÆय समझ munotes.in

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जनसंचार माÅयम
54 सकता है, वही ÿसारण कì भाषा ह§, इसिलए आकाशवाणी सब ÿकार के आúहŌ और
िववादŌ से मुĉ रह कर अÆय भाषाओं के उन शÊदŌ को सहज और Öवाभािवक ढंग से ÿयोग
करने म¤ िवĵास रखता है ।
आकाशवाणी म¤ अँúेजी शÊदŌ को लेकर ÿायः समÖया पैदा होती है । कसौटी अँúेजी शÊदŌ
के बारे म¤ वही है िक अिधक से अिधक लोग समझ सके तथा भाषा कì आÂमा भी नĶ न हो
। कई बार अंúेजी शÊदŌ के दुłह तथा अनुवाद के कारण भाषा बोिझल हो जाती है ।
टेलीफोन, इंजीिनयर, डॉ³टर, मशीन, कÌÈयूटर, कांÖटेबल, फोटोúाफर, बजट, कÉयूª,
गोल, कंपनी, टीम इÂयािद अनेक शÊद है । िजनके ÿयोग से आकाशवाणी को कोई परहेज
नहé है और ये शÊद आप अकसर रेिडयŌ पर सुनते होग¤ । ये शÊद बोल चाल म¤ िहÆदी के
अपने शÊद बन चुके है, दूसरी और ऐसे शÊद भी है, जो अंúेजी तथा िहÆदी शÊद को
िमलाकर बने है, न वे पूरी तरह अंúेजी शÊद है और न ही तÂसम या तĩव, वे है रेलगाड़ी
टेलीफोन क¤þ, बसअड्डा, डाक िटकट आिद । ÿसारण धमê तो यही देखते है िक कौन-सा
शÊद या शैली उन लोगŌ कì समझ म¤ आते है, िजनके िलए समाचार या अÆय कायªøम
ÿसाåरत िकए जा रहे है ।
(२) वा³य रचना जिटल न हो:
शÊद भाषा कì मूल ईकाई है, परंतु वा³यŌ से पृथक उनका अपना कोई अिÖतÂव नहé,
इसिलए रेिडयŌ म¤ वा³य ऐसे बोले जाएँ, िजनका अथª िनकालने के िलए ®ोता को बौिĦक
कसरत न करनी पड़े । रेिडयो कì पहली आवÔयकता है िक वा³य छोटे हो । कई बार वा³य
छोटे तो होते है, िकंतु उनकì रचना इतनी जिटल होती है िक उसे समझने के िलए मिÖतÕक
पर दबाव डालना पड़ता है ।
रेिडयो कì भाषा म¤ शÊद सं´या कम तथा वा³य सरल और संबोध होने चािहए । मौिखक
माÅयम होने के कारण आकाशवाणी म¤ अिभÓयिĉ कì एक माँग यह भी है िक शÊद और
वा³य म¤ ऐसे ÿयोग िकए जाए. िजÆह¤ बोलने म¤ सुिवधा हो, दूसरे शÊदŌ म¤ कहा जा सकता है
िक मुख के सुख को Åयान म¤ रखकर शÊदŌ का चयन िकया जाए । यह सही है िक अनेक
बार भाव को आलंकाåरक शैली म¤ ÿÖतुत करना तथा भाषा को अितåरĉ łप से
ÿभावशाली बनाना आवÔयक हो जाता है, िकंतु मुख सुख तथा वाचन सुिवधा कì
आवÔयकता कì अनदेखी नहé कì जानी चािहए । उ¸छृंखल, Öखलन, ÿ¸छÆन,
अÿÂयािशत, पारÖपåरक, पतनोÆमुख, िवतृÕणा, संलµनता, ÿगलभता, अÆयोÆयाि®त,
मुकरªर, मासूिमयत, जमीदोत आिद ऐसे असं´य शÊद है, जो भाषा को ÿभावशाली तथा
अिधक अथªवान बनाने कì ±मता रखने के साथ 'कणªिÿय भी हो सकते है, िकंतु इनके
उ¸चारण म¤ किठनाई हो सकती है ।' कई बार वाचक गलत पढ़कर अथª का अनथª कर
डालते है ऐसे शÊदŌ से बचना चािहए । किठन शÊदŌ का उ¸चारण करते हòए वाचक को कई
बार łकना भी पड़ जाता है िजससे कायªøम के ÿवाह और रोचकता म¤ कमी आ जाती है
तथा ®ोता का तारतÌय भंग हो जाती है ।

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संचार माÅयमŌ कì भाषा
55 (३) शÊद:
आकाशवाणी का िवषय संसार बहòत Óयापक है । समाचारŌ से लेकर संगीत और छाýŌ से
लेकर मजदूरŌ के िलए िविवध ÿकार के कायªøम ÿसाåरत होते है, जो कायªøम िविशĶ तथा
िशि±त वगō के िलए है उनम¤ सािहिÂयक अथवा पåरिनिķत भाषा का ÿयोग िकया जा सकता
है । टे³नोलॉजी, िव²ान िवषय है िजनकì चचाª करते समय संबंिधत िवषय म¤ सीिमत łप से
ÿयोग होने वाले शÊद अथवा वा³यावली का ÿयोग करना आवÔयक हो जाता है ।
हम जब िकसी वै²ािनक, डॉ³टर अथवा आधुिनक िवषयŌ के िवशेष²Ō से सा±ाÂकार करते
है, तो उनम¤ वे अनेक तकनीकì शÊदŌ का ÿयोग करते है जो बहòधा अंúेजी म¤ होते है, ³यŌिक
आमतौर पर उनकì िश±ा-िदशा अँúेजी म¤ ही हòई होती है । इससे बच पाना िफलहाल संभव
नहé है, इसिलए तकनीकì शÊदŌ को ºयŌ-का-ÂयŌ ले लेने म¤ संकोच नहé करना चािहए ।
(४) रेिडयŌ जन माÅयम:
रेिडयŌ जन माÅयम है । इस देश के कोने कोने म¤ सुना जाता है । हर भाषा एवं बोली के लोग
इसे सुनते है इसिलए जन साधारण कायªøमŌ म¤ उन शÊदŌ का ÿयोग करना चािहए, जो
सामाÆय बोलचाल म¤ ÿÖतुत होते है । किठन शÊदŌ से सदैव बचना चािहए । रेिडयŌ के वा³य
सरल हो, छोटे-छोटे हŌ, शुĦ तथा रोचक है । अिधक जिटल िम®, वा³यŌ से बचना चािहए ।
शÊदŌ तथा वा³यŌ म¤ िवषय के अनुłप ÿभाव कì ±मता होनी चािहए । भारी भरकम
शÊदावली, शÊदभंडार और उलझे हòए वा³य सफल - रेिडयŌ लेखन के िलए अ¸छे नही है ।
रेिडयो लेखन के िलए समय सीमा का Åयान रखना जłरी है । रेिडयो लेखन रेिडयो िवधा
के अनुłप होनी चािहए । िनÕकषª łप म¤ ÿिसĦ किव Öव. भवानी ÿसाद िम® कì एक
किवता कì िनÌन पंिĉयाँ उĦत कì जा सकती है -
िजस तरह हम बोलत¤ है
उसी तरह तू िलख
और इसके बाद भी
हमसे बड़ा तू िदख
२) रेिडयŌ समाचार कì भाषा:
आकाशवाणी से ÿसाåरत कायªøमŌ म¤ संगीत के बाद जो कायªøम सबसे अिधक सुने जाते है
- वे है, समाचार और िवचार रेिडयŌ पर ÿसाåरत समाचार, रेिडयŌ कì भाषा म¤ 'बुलेिटन'
कहलाते है। बुलेिटन म¤ समाचारŌ को उनकì मह° के आधार पर øमबĦ करके ÿÖतुत
िकया जाता है । बुलेिटन दो ÿकार के होती है ।
१. देशी ®ोताओं के िलए: सावªदेिशक बुलेिटन (राÕůीय) ÿादेिशक बुलेिटन
(राºयÖतरीय)
२. िवदेशी ®ोताओं के िलए िवशुĦ िवदेशी ®ोताओं के िलए: ÿवासी भारतीयŌ के िलए
बुलेिटन munotes.in

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जनसंचार माÅयम
56 समाचार दशªन (Æयूजरील):
इसम¤ समाचारŌ को अिधक रोचकता के साथ ÿÖतुत िकया जाता है । िकसी खेल
ÿितयोिगता या - दुघªटना Öथल से आँखो देखा हाल, सा±ाÂकार के अंश, Óया´यान और
रोचक घटनाओं का वणªन, समाचार दशªन' कì िवषयवÖतु हो सकते है । समाचार बुलेिटन
एक ही समाचार वाचक कì आवाज म¤ ÿसाåरत होता है, जबिक समाचार दशªन म¤ åरकािड«ग
के अंश भी ÿसाåरत िकए जाते है ।
®Óय माÅयमŌ (रेिडयŌ) के समाचारŌ कì भाषा, िलिखत माÅयमŌ (समाचार पý पिýका) के
समाचारŌ के िवÖतार के समान न होकर उनके आमुख के समान होती है ³यŌिक िजस
ÿकार िलिखत समाचारŌ के आमुख (इंटो) म¤ सारी कì सारी आवÔयक सूचनाएँ देनी होती है
उसी ÿकार ®Óय माÅयमŌ के समाचारŌ म¤ िवÖतार से समÖत आवÔयक सूचनाएँ देनी होती
है । रेिडयŌ या आकाशवाणी के िलए समाचार िलखते समय इस बात का Åयान रखना
चािहए िक इन समाचारŌ को िनर±र, अनपढ़ Óयिĉ भी सुनते है | अतः आपके Ĭारा चुने गए,
शÊद बहòत आसान होने चािहए । लंबे वा³यŌ का ÿयोग नहé करना चािहए । समाचार के
सभी वा³य परÖपर अ¸छी तरह से सबंĦ होने चािहए । वे टूटे फूटे या अलग अलग नहé
लगने चािहए । शÊद Öतर पर यिद पयाªय का चयन करना पड़े तो सवª ÿचिलत या,
बहòÿचिलत पयाªय का चयन करना चािहए । रेिडयŌ के िलए इस ÿकार कì भाषा का चयन
करना चािहए िक वणªन सुनकर सजीव वणªन जैसा लगे। समाचार म¤ ÿयुĉ वा³य सरल होने
चािहए और इतने लंबे हो िक वह एक ही सॉस म¤ पढ़े जा सक¤। मुहावरे और सािहिÂयक भाषा
का समाचारŌ म¤ ÿयोग नहé करना चािहए। समाचार म¤ ÿयुĉ शÊद इस तरह होने चािहए िक
वे कणªúाĻ भी हो। रेिडयŌ समाचारŌ म¤ ÿायः ऐसा ÿयास करना चािहए िक समाचार सदैव
ताजे लगे, अतः भूतकाल का ÿयोग नहé करना चािहए ।
यही सारी बाते पý-पिýकाओं के समाचार पýो म¤ भी लागू होती है।
रेिडयŌ िव²ापन कì भाषा रेिडयŌ िव²ापन अÂयंत सीिमत अविध का ÿसारण है । इसम¤
भूिमका कì कोई गुजाइंश नहé रहती है । मु´य िबंदु बहòत सीधे एवं Âवåरत गित से सामने
आने चािहए । आरंभ के छह-सात सेकंड का समय रेिडयŌ िव²ापन के िलए अÂयंत
महßवपूणª होता है । इसम¤ कोई ऐसी बात जłर सामने आनी चािहए, जो वÖतु के िवषय म¤
उपभोĉा कì उÂसुकता या łिच पैदा करे ।
रेिडयो िव²ापन ®Óय माÅयम है, यह सुनने के िलए िलखा जाता है । इस ŀिĶ से भाषा एवं
ÿÖतुित को Åयान म¤ रखना चािहए । भाषा म¤ बहòत उलझाव नहé होना चािहए । सरल एवं
आम बोलचाल के शÊद होने चािहए, उ¸चारण म¤ सरलता होनी चािहए । िव²ापन का संदेश
सीधा संÿेिषत होना चािहए तथा सूचना होनी चािहए । कई तरह कì सूचनाएँ भरने का
ÿयास नहé करना चािहए ।
रेिडयो िव²ापन को ÿभावी बनाने के िलए नाटकìयता, लघु ŀÔय या चåरýŌ का सहारा
िलया जा सकता है । Åविन ÿभाव भी िव²ापन को जीवंत बनाते है । Óयिĉ उस वातावरण म¤
पहòँच जाता है, िजसकì सृिĶ िव²ापनदाता करना चाहता है । िव²ापन लेखक को इस बात
का Åयान रखना चािहए िक िव²ापन कì शैली इस ÿकार कì हो िक ÿÂयेक Óयिĉ को यह munotes.in

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संचार माÅयमŌ कì भाषा
57 भास हो िक िव²ापन उसी से संबंिधत है । िव²ापन अपील करने वाली भाषा एवं शैली म¤
लेना चािहए । उसम¤ ऐसी कोई बात जłर हो िक ®ोता उस पर Åयान देने को बाÅय हो जाए।
३) िव²ापन कì भाषा:
िव²ापन कì भाषा िव²ापन एक कला है जो उपभोĉाओं को इतना ÿभािवत कर देती है िक
वे िव²ापन वÖतु को खरीदने के िलए बाÅय हो जाते है । यह िव²ापन ही है, जो बहòत बड़े
समाज म¤ िकसी भी उÂपादन कì साख जमा देता है और उसके िवøय म¤ वृिĦ कर देता है ।
जैसा 'लीच' ने कहा है िक िव²ापन कì पåरभाषा म¤ चार तßवŌ का समावेश होना आवÔयक है
१. उÂपािदत वÖतु २. माÅयम ३. ®ोता, दशªक या पाठक और ४. लàय |
एक टेलीिवजन िव²ापन म¤ मु´यतः पाँच ÿकायª होते है:
(अ) िकसी उÂपाद कì ओर दशªको - का Åयान आकिषªत करना ।,
(ब) उस उÂपादन के खरीद का ÿितदान मागँना,
(स) दशªकŌ म¤ उस उÂपाद के ÿित इ¸छा जागृत करना,
(द) उÂपाद कì पूितª को िनयिमत रखना,
(य) आमंिýत करना ।
इन कायŎ को पूरा करने के िलए िव²ापनŌ कì भाषा पर िवशेष Åयान िदया जाता है ।
माÅयम कì ŀिĶ से िव²ापन मु´य łप से तीन ÿकार के होते है ।
१) मुिþत माÅयम के िव²ापन, जैसे- समाचार पý, पिýकाएँ आिद के िव²ापन ।
२) ®Óय माÅयम के िव²ापन, जैसे रेिडयŌ या लाउडÖपीकर के िव²ापन ।
३) ®Óय ŀÔय माÅयम के िव²ापन, जैसे िफÐम और टेलीिवजन के िव²ापन ।
टेलीिवजन (दूरदशªन) के िलए जब िव²ापन तैयार िकए जाते है, तब िचýŌ या ŀÔयŌ के
साथ- साथ संगित तो रहता ही है । भाषा भी अपने रोचक और नाटकìय łप म¤ काम करती
है । उसम¤ कई तरह के अथª िछपे रहते है । अलग-अलग तरह से वो िव²ापनŌ को अपने
लहजे के अनुसार अलग तरह कì भाषा का इÖतेमाल िकया जाता है ।
िजन िव²ापनŌ कì हम देखते या पढ़ते है । उनके कई ÿकार हम¤ िदखाई पडते है । कुछ
िव²ापन ऐसे होते है जो सावªजिनक सेवा ÿÖतुत करनेवाले होते है । कुछ ऐसे होते ह§ ।
िजनम¤ सरकारी या अĦª -सरकारी सूचनाएँ होती है । जैसे इनकम टै³स संबंधी जानकारी या
सरकारी कì उपलिÊधयŌ कì - - सूचना आिद । कुछ िव²ापन ऐसे होते है, िजनम¤ Óयिĉगत
सूचनाएँ हो सकती है । (जै कुछ खो जाने या िमल जाने कì जानकारी वाले िव²ापन) कुछ
िव²ापन ऐसे होते है जो वैवािहत ®ेणी के होते है या ट¤डर नोिटस, नौकरी कì िव²िĮयŌ,
सावªजिनक सूचनाऐं देने वाले होते है । इन सबसे अलग Óयावसाियक ®ेणी के िव²ापन होते
है । जो िवशुĦ łप से उÂपादन के ÿचार ÿसार के िलए होते है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
58 इन सभी तरह के िव²ापनŌ कì भाषा तथा उनकì ÿÖतुित म¤ अंतर रहता है । यह अंतर इन
िव²ापनŌ के उĥेÔय के कारण आ जाता है । साथ ही भाषा और िव²ापन के लàय समूह
(Target Group) के कारण भी होती है अथाªत यह देखा जाता है िक यह िव²ापन िकन
लोगŌ के िलए है । ब¸चŌ के िलए घरेलू मिहलाओं के िलए, वृĦŌ के िलए या नौकरीपेशा लोगŌ
के िलए, िकसानŌ के िलए, ®िमकŌ के िलए, ůक मािलक को के िलए या अÆय लोगŌ के िलए।
इस िवचार से िव²ापनŌ को दो वगŎ म¤ बाँटना ठीक रहेगा।
१) औपचाåरक तथा
२) अनौपचाåरक
तदनुसार उनम¤ से मु´य łप से, औपचाåरक तथा अनौपचाåरक दो तरह कì भाषा ÿयोग
कì जाती है ।
१) औपचाåरक िव²ापनŌ कì भाषा:
औपचाåरक िव²ापनŌ कì भाषा Óयावसाियक या अनौपचाåरक ÿकार के िव²ापनŌ कì भाषा
से िभÆन होती है । इस तरह के िव²ापनŌ का उĥेÔय िकसी तरह का माल बेचना नही होता,
बिÐक िवचारŌ या सेवाओं कì सूचना समाज के तरह-तरह के वगŎ तक पहòचाना होता है ।
इन िव²ापनŌ का मु´य उĥेÔय होता है । अिधक से अिधक लोगŌ तक सही और ÿामािणक
सूचनाएँ पहòँचाना उनम¤ जागłकता पैदा करना, िवĵासनीयता पैदा करना, उनके िहतŌ कì
ओर Åयान आकिषªत करना । कई िव²ापन ऐसे होते है । िजनम¤ िलखा रहता है-
------- Ĭारा जनिहत म¤ जारी
उदा. पूरब से सूयª उगा, फैला उिजयारा । जागी हर िदशा-िदशा, जागा जग सारा । चलो
पढ़ाय¤ । कुछ कर िदखाये
- राÕůीय सा±रता िमशन -
इस तरह के िव²ापनŌ कì भाषा औपचाåरक, संÖकृतिनķ सरल सीधी अथाªत अधायुĉ
होती है । टेलीिवजन पर ऐसे िव²ापन िदखाते समय आवÔयकता के अनुसार ŀÔय जोड
िदए जाते है ।
जैसे सूयōदय का ŀÔय, िचिडयŌ कì चहचहाट ब¸चŌ को अपने माता िपता या दादा-दादी कì
ऊँगली थामकर Öकूल जाते हòए िदखाया जा सकता है ।
इस तरह के िव²ापनŌ का उĥेÔय समान है । नागåरको म¤ जागłकता पैदा करना Öवािभमान
पैदा करना, उÆह¤ उनके िहत कì सूचना देना आिद
२) अनौपचाåरक िव²ापनŌ कì भाषा:
औपचाåरक िव²ापनŌ से अलग अनौपचाåरक िव²ापन है । इनम¤ मु´य लàय ÿायः
उपभोĉाओं को अपना माल बेचना होता है । उÆह¤ आकिषªत और ÿेåरत करना होता है िक
वे अमुक āाड के माल को ही खरीदे । ऐसे िव²ापन तकª देते है । भावनाओं को उभारते है munotes.in

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संचार माÅयमŌ कì भाषा
59 µलैमर पैदा करते है । तħुसार उनकì भाषा भी रोचक, आकषªक, नाटकìय ŀÔय और भावŌ
के अनुसार कोमल कठोर कामुक या िववाद कłणा या हाÖयपूणª शÊदावाली से युĉ िकसी
भी ÿकार कì हो सकती है । Óयंग- िवनोदपूणª शÊदावली का ÿयोग तथा रोचक संवाद ऐसे
िव²ापनŌ कì आÂम होती है । इनका ŀÔयŌ और संगीत के साथ सामजÖय िबठाया जाता है,
ऐसे िव²ापनŌ म¤ संÖकृत िनķ शÊदावली के साथ-साथ अÆय भाषाओं के शÊदŌ का समावेश
भी रहता है । िवशेष łप म¤ अंúेजी कì आम बोलचाल कì शÊदावली का धडÐले से ÿयोग
िकया जाता है । ऐसे ÿयोग सजीवता लाते है । नाटकìयता और रोचकता कì भी सृिĶ करते
है ।
अनौपचाåरक िव²ापन के कुछ उदाहरण इस ÿकार है ।
उदा. १) खुिशयŌ का ऑफर... िदल से... सारे के सारे ÿोड³शन पर, " वारंटी पर वारंटी है।
रेिĀजेटर और टेलीिवजन पर बिढ़या से बिढ़या ए³सच¤ज ऑफर, जीरो परस¤ट फाइनेÆस
Öकìम है। आिखरी िदन है । साथ म¤ सूटकेस और ůाली Āì है... जÐदी से जÐदी... करे
िदल से । इन दो उदाहरणŌ म¤ भाषा का ÿयोग Åयान देने योµय है अंúेजी के बहòत से शÊदŌ
का सहज łप म¤ - ÿयोग िकया गया है । कुल मासूिमयत िदन भर रह¤ कैसे.....
कुल िमलाकर हम यह पाते है िक अनौपचाåरक िव²ापनŌ कì भाषा म¤ मु´य łप से
िनÌनिलिखत िवशेषताएँ िमलती है ।'
१) ÿायः सभी तरह के शÊदŌ का ÿयोग ये शÊद शुĦ संÖकृतिनķ तÂसम भी हो सकते है ।
तĩव भी और देशज भी । साथ ही इनम¤ अंúेजी तथा उदूª फारसी के शÊदŌ का भी मेल
रहता है । यह आIJयª कì बात है िक िहÆदी के अितåरĉ भारतीय भाषाओं के शÊदŌ का
ÿयोग बहòत कम िमलता है ।
२) भाषा म¤ ÿवाह होता है । लयाÂमकता िव²ापन म¤ जान डाल देती है ।
३) रोचकता, चमÂकारपूणªता, नाटकìयता, चटपटापन, ल±णा और Óयंजना शिĉ से
पåरपूणª वा³यŌ का ÿयोग भी िकया जाता है । भाषा म¤ Åविनमूलकता रहती है ।
Åविनमूलक वौिचÞय से आशय है । Åविन का बार बार ÿयोग इससे िव²ापन सुनने म¤
भी अ¸छा लगता है और वह याद हो जाता है । कह¤ िक जुबान पर चढ़ जाता है ।
४) तुकबंदी और काÓयाÂमकता का ÿयोग िव²ापन कì भाषा का महßवपूणª गुण है ।
५) तुलनाÂमकता िव²ापन कì िवĵसिनयता बढ़ाती है । इसिलए ऐसे िव²ापनŌ कì भाषा
म¤ पारदिशªता और सरलता होती है ।
६) अितशयोिĉ का ÿयोग
७) मुहावरŌ तथा लोकोिĉयŌ का ÿयोग munotes.in

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जनसंचार माÅयम
60 ८) िĴĶ पदŌ का ÿयोग तािक िव²ापन म¤ कम से कम शÊदŌ म¤ अिधक से अिधक अथªपूणª
बात¤ कही जा सके ।
९) संवाद योजना, ÿijसूचकता िवÖमयबोधकता , अनौपचाåरक िव²ापनŌ कì भाषा के सवª
ÿमुख गुण है ।
इस ÿकार हम यह भी पाते है िक औपचाåरक िव²ापनŌ कì भाषा सीधी अिभधामूलक,
पåरभािषक शÊदावली के ÿयोग से युĉ ÿायः नीरस हो सकती है । िकंतु अनौपचाåरक
िव²ापनŌ कì भाषा सदैव सरल सरस, जीवंत, ÿवाह या लय युĉ तथा कोमल होती है ।
३) टेलीिवजन कì भाषा:
टेलीिवजन कì भाषा पर Åयान देना जłरी है । ³यŌिक टेलीिवजन यह ŀÔय ®Óय माÅयम है
। िजसका लोगो पर बहòत गहरा ÿभाव होता है । हर माÅयम कì अपनी भाषा होती है ।
टेलीिवजन व िफÐम कì भी अपनी भाषा है । यहाँ शÊद भी बोलते है, रंग भी, चेहरे भी, मौन
भी, संगीत भी मु´य łप िनÌन मुĥŌ पर Åयान देना आवÔयक है ।
(भाषासंबंधी) िवशेषताएँ ।
१) भाषा सरल और सवªúाĻ (अिधक से अिधक लोगŌ कì समझ म¤ आनेवाली) होनी
चािहए ।
२) वा³य छोटे व पाýŌ के अनुकूल, सरल हो ।
३) ऐसा ÿयास रहे िक एक बात, एक ही वा³य म¤ सरलता से ÖपĶ हो जाये ।
४) बोलचाल के शÊद और मुहावरŌ ऐसे होने चािहए जो जन - मानस म¤ रच-बस गए है ।
किठन शÊदŌ से िजतना बचा जा सके, उतना ही अ¸छा रहता है । ऐसा होने पर दशªक
को भी सुिवधा रहती है ।
५) अÆय भाषाओं के ÿचिलत शÊदŌ के आवÔयकतानुसार अपनाने म¤ िहचक नहé होनी
चािहए । शतª यही है िक उÆह¤ अिधक से अिधक लोग समझ सक¤ ।
इस ÿकार अÆय कायªøमŌ के पटकथा कì भाषा म¤ Åयान रखना चािहए । साथ ही उनम¤
ŀÔय योजना बनाकर कई खंडो म¤ पटकथा िलखी जा सकती है ।
टेलीिवजन के कायªøम के िलए िजस भी भाषा का ÿयोग िकया जाए परंतु सबसे पहले
आवÔयक है िक पहले शोधकायª कर िलया जाए, तब िलखने बैठे तािक भाषा का Öवłप
ठीक हो । पूरे कथानक को, घटनाचøŌ, ŀÔय को अपने भीतर रचा-बसा लेना ही भाषा का
गुण होता है, इसिलए ऐसी शÊदावली सिहत भाषा का ÿयोग िकया जाए । कÐपना शिĉ से
भी काम िलया जाता है, साथ ही भाषा के बीच संगीत ÿभाव के िबंदु सोचे जाते है ।

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जनसंचार माÅयमŌ म¤ िहÆदी का ÿयोग सामÃयª एवं सीमाएँ
संचार माÅयमŌ म¤ िहÆदी के ÿयोग कì दशा:
संचार म¤ लोगŌ के बीच संÿेषण के िलए शÊद ही माÅयम होते है । अनेकानेक भाषाओं के
शÊद भंडार इसके मूलाधार होते है । सािहिÂयक ±ेý कì िहÆदी पåरिनिķत होती है और
जनसंचार कì िहÆदी उससे कुछ सहज बोÅय होती है ।
िहÆदी का अब तो केवल किवता नाटक, उपÆयास, कहानी म¤ ही नहé बिÐक देश के सभी
सरकारी, गैर सरकारी आिद िविभÆन ±ेýŌ म¤ ÿयोग होने लगा है । अब िहÆदी अनेक ±ेýŌ कì
अिभÓयिĉ का माÅयम बन गई है । यह िहÆदी अब Óयाकरण कì समÖयाओं और कुछ
िवधाओं तक सीिमत परंपरागत अथª को लांघ कर बाहर आ चुकì है । आज िहÆदी ÿशासन ,
िविध, िचिकÂसा, Æयाय िश±ा, तकनीकì एवं ऐसे अनेक ±ेýŌ म¤ पýकाåरता म¤ सशĉ माÅयम
बन गई है । जीिवको- पाजªन, Óयवसाय, खेल जगत आिद ±ेýŌ म¤ इसका वचªÖव देखा जा
सकता है । िसनेमा, िव²ापन, दूरदशªन आिद माÅयमŌ के Ĭारा संचार पर िहÆदी छा गई है ।
हम यह कह सकते है िक िहÆदी अब केवल सािहÂय कì भाषा नहé है बिÐक जनसंचार के
एक सशĉ माÅयम के łप म¤ िहÆदी लोकजीवन म¤ छा गई है । संÖकृत, िहÆदी, उदूª तथा
भारतीय संिवधान म¤ माÆयता ÿाĮ अÆय ÿादेिशक भाषाएँ इस देश कì सामािजक संÖकृित
के िवकास के िलए महßवपूणª है, इन सभी भाषाओं म¤ िहÆदी का राÕů Óयापी łप है राÕůीय
आंदोलनŌ म¤ Öवतंýता के पूवª िहÆदी एक अिखल भारतीय भाषा के łप म¤ इस देश को
जोड़ने का कायª करती रही है । डॉ. सुनीित कुमार चटजê ने तो िहÆदी को ईĵर के आशêवाद
Öवłप माना है ।
िहÆदी म¤ तकनीक शÊदावली के िवकास से िविध शÊदावली कì एकłपता से ÿशासिनक
शÊदावली आिद कì एकłपता से जनसंचार को और समृĦ िकया है ।
िहÆदी कì सरल भाषा तथा लोक ÿचिलत ÿयोगŌ के महßव के कारण जनसंचार म¤ तेजी
आई है । जनसंचार को िहÆदी म¤ मशीन, चेक, बैक, űाÉट, डायरी, बस, कार, रेिडयŌ,
िसनेमा, काडª, िबल, कमीशन आिद शÊद बहòत ही लोकिÿय łप म¤ चल रहे है । बोलचाल
कì भाषा का ÿयोग जनसंचार के सभी माÅयमŌ म¤ हो रहा है ।
समाचार पý, आकाशवाणी, दूरदशªन, टेलीिवजन आिद म¤ ही नही बिÐक डाक, तार, ब§कŌ,
िचिकÂसालयŌ, महािवīालयŌ म¤ भी सरल िहÆदी का ÿयोग धडÐले से चल रहा है । पý,
पिýकाओं, पुÖतकŌ समाचारŌ, एवं अÆय संचार ÿणाली म¤ संचार के अनेक भाषाओं के शÊद
अनुिदत होकर आ रहे है । अनुवाद कला ने इस िदशा म¤ बड़ा काम िकया है । िहÆदी का
ÿयोजन मूलक संदभª भाषा कì जिटलता को दूर कर रहा है ।
आज का जनसंचार बहòआयामी हो गया है । इससे आज सभी लाभ उठा रहे है । इसके उĩव
को øम से बतलाया गया है िक आदम एवं हौवा ने परÖपर संदेशŌ का आदान-ÿदान करके munotes.in

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जनसंचार माÅयम
62 जनसंचार कì िनरंतर चलने वाली ®ृखंला कì पहली कड़ी संचार को ÿदान कì है । आज तो
मुþण, पý, डाक, दूरभाष, टेलीफोन, रेिडयो, दूरदशªन आिद संचार के ŀÔय एवं ®Óय कई
माÅयम हो गए है । सभी उपकरण िव²ान के िवकास के पåरणाम है । Öमरण कराने के िलए
पहले िचýŌ, िचý - िलिपयŌ को ÿयोग म¤ लाया गया िफर भाषा िलिखत एवं मौिखक łप म¤
आयी । सरकार ने भी और जनता ने भी इसके िवकास म¤ भूिमका िनभाई ।
जनसंचार के माÅयमŌ म¤ ®Óय - ŀÔय साधनŌ और ÿदिशªनी का िविशĶ महßव है । इसका
अिभÿाय है िक मॉडलŌ, तÖवीरŌ और िविभÆन ÿदशªिनयŌ म¤ रखने योµय उपकरण अनेक
ÿकार के नमूने और िडजाइन आिद वतªमान है । ÿचार के मुĥŌ पर क¤िþत नृÂय, नाटक,
संगीत के ÿदशªन एवं आयोजन भी इस ÿसंग म¤ सिÌमिलत िकए जा सकते है । जनसंचार के
सभी माÅयमŌ म¤ कुछ िनयम, कानून, नीितयाँ एवं िविशĶताएँ है । िजनकì जानकारी के िबना
संचालक सफल नहé हो पात¤ । हमारे काÓय माÅयम है जो वाणी के सुंदर ÿयोग से संबĦ है ।
हमारे यहाँ शीत म¤ वाणी के तप के बारे म¤ कहा गया है ।
अथाªत जो भाषण उĬेग न करने वाला िÿय एवं िहतकर और यथाथª है और जो वेदशाľŌ के
पढ़ने का एवं परमेĵर का नाम जपने का अËयास है वही िनÖसंदेह वाणी का तप है । हमारे
भारत वषª म¤ तो बोलने कì संÖकृित रही है िजसम¤ कहा गया है िक 'सÂयं āुयात िÿयं āुयात,
न āुयात सÂयंिÿय' अथाªत सÂय तो बोलना ही चािहए लेिकन वह भी िÿय हो कटु न हो ।
अगर कड़वे सÂय बोलने कì अिनवायªता ही हो तो उसे मधुर शÊदŌ म¤ ÿकट कर¤ । हमारे úंथŌ
म¤ तो कहा गया है िक िशकायत अगर हमारी िजहवा छोड़ दे तो संसार वश म¤ हो सकता है ।
िÿयवािदयŌ के िलए सभी अपने होते है । उनके िलए कोई पराया नहé है । इसिलए हमारे
काÓय 'सÂयं िशवम् सुंदरम्' का उĤोष करते है । ®Óय-काÓय एवं ŀÔय-काÓय म¤ जो वाणी या
शÊदŌ के ÿयोग कì बात कì गई है उसे सÿयुĉ करके ही कहने का िवधान है ।
िवĵ म¤ भाषाओं कì होड़ म¤ हमारी िहÆदी भी एक है भले ही इसे राÕů संघ म¤ भाषा के łप म¤
माÆयता नहé िमली है लेिकन संचार के कई िवĵिवīालयŌ म¤ िहÆदी पढ़ाई जा रही है ।
वैिĵक Öतर पर िहÆदी भाषा को लाने कì चेĶा भारत सरकार एवं हमारे संचार माÅयम कर
रहे है । यह एक अ¸छा ÿयास कहा जाएगा । हमारी भारतीय संÖकृित, संÖकृत म¤ Óयĉ है
िजसके अनेकŌ úंथ है, लेिकन िहÆदी अनुवाद के माÅयम से इनका ÿचार-ÿसार आज तक
बहòत हòआ है । हमारे देश का नेतृÂव ने एक बार िहÆदी को अंतराªÕůीय मंच पर ÿÖतुत कर
सब को चिकत तो कर िदया था , आज के समय म¤ हमारी िहÆदी भाषा का गौरव भी बढ़ा है ।
जनसंचार माÅयमŌ म¤ िहÆदी के ÿयोग कì सीमाएँ:
आज सूचना का युग है । सूचना तकनीकì के इस युग म¤ हर चीज तेजी से बदल रही है ।
³या भाषा, ³या संÖकृित ³या िवचार, ³या फैशन | िनIJय ही िहÆदी का ±ेý बहòत बड़ा है
भारत के उ°र ÿदेश, िबहार, मÅयÿदेश आिद ÿदेश िहÆदी भाषी है लेिकन अब एक बात
कì ओर Åयान दे । इन सब राºयŌ म¤ जो िहÆदी बोली जाती है । ³या वह एक जैसी है ?
इसका उ°र होगा जी नहé । अब उदूª को ले लेते है । भािषक ŀिĶ से उदूª कोई अलग भाषा
नहé है । उदूª और िहÆदुÖतानी को साथ जोड़ ल¤ तो िहÆदी का ±ेý भी Óयापक हो जाता है ।
यह भी उÐलेखनीय है िक भारत कì राºय भाषा िहÆदी है और पािकÖतान कì राºय भाषा
उदूª है । इसिलए इन दोनŌ म¤ िहÆदी तथा उदूª संपकª भाषा łप म¤ Óयवहार म¤ आती है । munotes.in

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जनसंचार माÅयमŌ म¤ िहÆदी का ÿयोग सामÃयª एवं सीमाएँ
63 हमने िहÆदी के इस Óयापक ±ेý पर िवचार इसिलए िकया है ता िक यह समझने म¤ सुिवधा
रहे िक िफÐम टेलीिवजन, उपúह, चैनलŌ और इंटरनेट आिद जनसंचार माÅयमŌ म¤ िहÆदी
का इतना Óयापक ÿयोग ³यŌ हो रहा है और यहé से सवाल पैदा हो जाता है भाषा का ।
यािन ये जनसंचार माÅयम आज िजस भाषा का ÿयोग िहÆदी के łप म¤ कर रहे है ³या वह
अ¸छी िहÆदी है ? उदाहरण "एक नया टूथपेÖट ůॉई िकया । " शुł म¤ यह और ऐसे ही ÿयोग
चौकाते थे, िचढ़ाते भी थे लेिकन शायद अब नहé । िहÆदी के इस नए अवतार इंिµलश के
ÿयोग के कारणŌ पर बाद म¤ िवचार कर¤गे ।
पहले हम इन आधुिनक जनसंचार माÅयमŌ कì ÿकृित को देख ल¤ टेलीिवजन आज सबसे
शिĉशाली जन माÅयम है । टेलीिवजन कì इस शिĉ लोकिÿयता और सफलता को देखते
हòए िवĵ के अÆय देशŌ कì हमारे यहाँ भी अनेक उīोगपित घरानŌ एंव इकाईयŌ ने इस ±ेý म¤
पदापªण िकया है । दूरदशªन (१) दूरदशªन (२) दूरदशªन Öपोटªस्, इ. एस.पी.एन इÂयािद । यही
कारण है िक टेलीिवजन पर िदखाए जानेवाले कायªøम बहò आयामी है । हम मनोरंजन ÿधान
कायªøम म¤ ÿयोग हो रही िहÆदी पर िवचार कर¤ । िहÆदी िफÐमŌ म¤ पहले से ही िहÆदी के
±ेýीय łपŌ का ÿयोग होता चला आ रहा था ।
िफÐमी संवादŌ म¤ और गीतŌ म¤ Öथानीयता अथवा ±ेýीयता के रंग के अलावा उनम¤ अँúेजी
िम®ण भी धीरे बढ़ने लगा। सारांश यह है िक िहÆदी िफÐमŌ म¤ भाषा कì Óयापक शैिलयाँ
ÿयुĉ हòई है । और आज भी हो रही है । िफÐमŌ कì भाँित ही टेलीिवजन के धारावािहकŌ म¤
िहÆदी के िविवध łप िमलते है । एक ®ेणी और है बाल धारावािहकŌ कì, यह धारावािहक
िश±ा एवं मनोरंजन के उĥेÔय से तैयार िकए जाते है ।
पौरािणक सामािजक और हाÖय ÿधान धारावािहकŌ कì भाषा का łप देखा । जब हम देखते
है िक िफÐमी गीतŌ पर आधाåरत कायªøमŌ कì िहÆदी का जैसा हमने पीछे उÐलेख िकया |
कुछ गाने ÿयोग के तौर पर अंúेजी शÊदावली िमि®त कर बनाए गए । वे रोचक थे और
लोकिÿय भी हòए ।
िव²ापनŌ म¤ िहÆदी का रोचक ढंग से अपने उÂपाद के ÿित úाहकŌ का Åयान आकिषªत
करना । उदा. łखापन No िचपिचपाहट टेलीिवजन के िनजी चैनलŌ पर िव²ापन समाचारŌ
का िजÌमा िजन लोगŌ को सŏपा गया वे इसी काÆव¤टी पीढ़ी के लोग थे । ये वे लोग थे जो
पहले अँúेजी म¤ पýकाåरता कर रहे थे । मु´यतः टेलीिवजन पर इंिµलश के अवतरण और
बहòÿचलन कì जड़ यही है । इससे यह भी बात िनकलकर सामने आती है िक टेलीिवजन
और केबल टी.वी. मु´य łप से उ¸च वगª, उ¸च मÅय वगª और बहòत हòआ तो मÅयम वगª के
मनोरंजन का एक माý साधन है ।
अब बात यह आती है िक ³या िहÆदी का इससे कुछ भला हो रहा है ? उ°र हो सकता है हाँ
। िहÆदी को इससे बचना चािहए ऐसे ÿयोग होते रहने चािहए । यह ÿij िववाद को जÆम दे
सकता है । िव²ापन का प± अÂयंत महßवपूणª िव²ापन और बड़ी úाहक सं´या ये दो
लालच जब सामने हŌ तो इस बात से ³या फकª पड़ता है ।
*****
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64 ९
माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
१. समाचार:
समाचारŌ से ही समाचार पý बनता है । जहाँ समाचार-पý म¤ अÆय पाठ्य सामúी,
िटÈपिणयाँ, िव²ापन, सÌपादक के नाम पý, सािहिÂयक पåरिशĶ इÂयादी होते है, वहाँ
समाचार तो िनÖसÆदेह समाचार पý का एक अिभÆन अंग और उसकì आÂमा है । समाचार
कì अú¤जी म¤ कुछ पåरभाषाएँ िनÌनिलिखत है ।
News is history in a Hurry. -Goerge H. Morris
It is the honest and unbiased and complete account of events of interest
and concern to the public. - Duane Bradely
I have six honest serving men. They taught me all knew,
Their names are where and what and when,
And How and why and who.
-Rudyard Kipling.
पýकाåरता का ÿाण तÂव समाचार है । मानव कì ²ान-िपपासा तब शांत होती है जब वह
समाचार सुन लेता है अथवा पढ़ लेता है । ÿातः कालीन िनÂयिøया का एक अिभÆन अंग
नये-नये समाचारŌ कì जानकारी ÿाĮ करना है ³योिक यह आधुिनक जीवन कì एक
अिनवायªता है िजसम¤ सभी कì łची रहती है । पहले जब दो चार Óयिĉ जुटते थे तो धािमªक
एवं पाåरवाåरक चचाª होती थी । अब तो आसपास, राÕů और िवदेश सÌबंधी समाचारŌ पर
टीका िटÈपणी ÿारÌभ हो जाती है । -
समाचार कì ÈयुÂपि°:
समाचार को अँúेजी म¤ News ( Æयूज) कहते है जो New ( Æयू) का बहòवचन है । यह लैिटन
का 'नोवा' संÖकृत के 'नव' से बना है । ताÂपयª यह है िक जो िनÂय नूतन हो वही समाचार है।
१. हेडन के कोश के अनुसार 'सब िदशाओं कì घटना को समाचार कहते है ।' 'Æयूज' के
चार अ±र
चार िदशाओं के आīा±र है:
 N-North ( उ°र)
 E-East ( पूवª) munotes.in

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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
65  W-West ( पिIJम)
 S-South ( दि±ण)
उ°र पूवª, पिIJम, दि±ण कì घटनाओं को समाचार समझना चािहए ।
वृ°ांत, 'खबर', 'संवाद', 'िववरण' और 'सूचना' समाचार के पयाªय है । अमरकोश म¤ 'वाताª',
'वृित' तथा 'उदÆत' चार शÊद समाचार हेतु ÿयुĉ हòए है । सभी शÊदŌ से िकसी घटना कì
पूरी जानकारी देने का भाव ÖपĶ होता है । १५०० ई. पूवª 'टाइिडंग (Tyding) शÊद का
ÿचलन 'समकालीन घटनाओं कì सूचना' के łप म¤ था । बाद म¤ मुþणकला के िवकास के
साथ 'Æयूज', शÊद का ÿयोग होने लगा िजसका ताÂपयª है सूचनाओं के संकलन और
ÿसारण Ĭारा लाभ अिजªत करना जैसा िक एडिवन एमरी का िवचार है । सूचनाओं का
यदाकदा ÿसारण 'टाइिडंग' है जबिक सुिनयोिजत ढंग से शोधपूणª समाचारŌ का संकलन
तथा ÿसार ही 'Æयूज' है ।
®ी. रा. र. खािडलकर के अनुसार 'दुिनया म¤ कहé भी िकसी भी समय कोई छोटी-मोटी
घटना या पåरवतªन हो उसका शÊदŌ म¤ जो वणªन होगा, उसे समाचार या खबर कहते है।'
समाचार कì कुछ पåरभाषाएँ िनÌनिलिखत है- "अनेक ÓयिĉयŌ कì अिभłिच िजस
सामियक बात म¤ हो वह समाचार है । सवª®ेķ समाचार वह है िजसम¤ बहòसं´यकŌ कì
अिधकतम łिच हो । ” - ÿोफेसर िविलयम जी. Êलेयर
"समाचार िकसी वतªमान िवचार घटना या िववाद का ऐसा िववरण है जो उपभोĉाओं को
आकिषªत करे ।"
वूÐसले और कैÌपवेल
“समाचार सामाÆयतः वह उ°ेजक सूचना है िजससे कोई Óयिĉ संतोष या उ°ेजना ÿाĮ
करता है ।"
- ÿो. िचÐटनबरा
"समाचार कोई ऐसी चीज है िजसे आप कल (बीते हòए) तक नहé जानते थे ।"
- टनªर केटिलज
उपयुªĉ पåरभाषाओं के अितåरĉ अनेक िवĬानŌ ने अपनी ŀिĶ के अनुłप समाचार को
Óया´याियत िकया है िजसम¤ से कुछ ůĶÓय है ।
"िजसे कहé कोई दबाना चाह रहा है, वही समाचार है, शेष िव²ापन है।"
"समाचार कोई वह बात है जो सामाÆय से परे हो ।"
लेखक के अनुसार अकÖमात जो घटे वही समाचार है । कुछ हो जाना, कुछ पाना, कुछ खो
जाना, अचानक पहचान बनाना ही समाचार है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
66 "एक योµय पýकार जो िलखता है वही समाचार है ।"
"पाठक िजÆह¤ जानना चाहते है, वह समाचार है ।"
"िजस बात के छपने से पý कì िबøì बढ़ती है, वही समाचार है ।"
इन सभी पåरभाषाओं पर Åयान िदया जाय तो यही िनÕकषª िनकाला जाएगा िक सरस ,
सामियक और सÂय सूचना ही समाचार है ।
समाचार के तÂव:
१) नूतनता:
नूतनता समाचार का ÿमुख तÂव है । 'ÿकृित के यौवन का ®ृंगार कर¤गे कभी न बासी फूल'
ÿसाद कì इस उिĉ के अनुसार बासी समाचार पýŌ को गौरवािÆवत नही कर सकते । दैिनक
पýŌ म¤ २४ घंटे एवं साĮािहक पýŌ म¤ एक सĮाह के बाद समाचार छापने पर समाचारÂव
नहé रह जाता । मÆतÓय यही है िक ताजा से ताजा समाचार पाठकŌ को आकिषªत करता है,
िवलÌब होने पर वह िनÖतेज, िनरथªक हो जाता है ।
२) सÂयता:
िकसी घटना का सÂयासÂय , पåरशुĦ एवं संतुिलत िवतरण समाचार को मूÐयवान बनाता है
जैसा िक कहा गया है िक 'whole truth and nothing but the truth', वÖतुतः सÂय को
ठेस पहòँचाना समाचार कì आÂमा को नĶ करना है । 'सव¥ सÂय ÿितिķतम्' उसका मूल मÆý
है ।
३) सामीÈय:
पाठकŌ कì łिच को ÿभािवत करने वाले समाचार अिधक पठनीय होते है ³यŌिक 'यदेव
रोचते यÖमै भवे°Öय सुÆदरम कì ही जनता म¤ माÆयता है ।'
४) सामीÈय:
िनकटÖथ घिटत घटना दूरÖथ कì बड़ी दुघªटना से अिधक महßवपूणª होती है ।
५) वैयिĉकता:
उ¸च पदÖथ ÓयिĉयŌ का भाषण समाचार बन जाता है । सामाÆय नागåरक कì यिद
अÿÂयािशत उपलिÊध हो तो वह भी समाचार है जैसे िक एक िभखारी को एक लाख कì
लाटरी का िमलना ।
६) सं´या और आकार:
अिधक सं´या म¤ मृत और घायल यािýयŌ से सÌबृĦ भयंकर रेल दुघªटना महßवपूणª होगी
जब िक मामूली चोट वाली घटना समाचार कì ŀिĶ से गौण है ।
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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
67 ७) संशय और रहÖय:
संशय और रहÖय से पåरपूणª समाचारŌ कì ओर पाठकŌ कì अिधक िज²ासा होती है।
उपयुªĉ तÂवŌ के अितåरĉ संघषª, Öपधाª, उ°ेजना, रोमांस, वैिशĶ्य पåरणाम, कामे¸छा
कुकृÂय, नाटकìयता, मानवीय गुणŌ का उþेक, असाधरणता, आिथªक सामािजक पåरवतªन
तथा उĩावना समाचार के ऐसे तÂव है िजनसे समाचार के ÿित आकषªण उÂपÆन होता है ।
समाचार के ÿकार:
समाचार दो ÿकार के बतलाये गये है:
क) सीधा समाचार ( straight News)
ख) Óया´याÂमक समाचार ( Interpretative News)
सीधा समाचार सरल तथा सुÖपĶ िविध से घटनाओं का सही सही तÃयाÂमक िववरण है ।
इसम¤ तÃयŌ को तोड़ा मरोड़ नहé जाता तथा ऐसे समाचारŌ म¤ आरोप लगाने, िनÕकषª
िनकालने एवं सÌमित देने का ÿयास नहé होता । Óया´याÂमक समाचारŌ म¤ घटना कì गहरी
छानबीन कì जाती है, उसे समú łप म¤ उदघािटत िकया जाता है । घटना के पåरवेश,
पूवाªपर सÌबÆध तथा उसके वैिशĶ्य पåरणाम को िलखा जाता है तािक पाठक सरलता से
सभी बात¤ समझ जाये ।
आजकल के अित ÓयÖत पाठकŌ के पास समाचार कì जिटलता और रहÖयमयता से जूझने
कì फुसªत नहé है, अतः समú तÃयŌ कì Óया´या Ĭारा समाचार को सुúाĻ बना िदया गया
जाता है ।
घटना के महßव कì ŀिĶ से समाचार के दो łप होते है:
१. ताÂकािलक िविशĶ समाचार (Spot News) पूवाªभासरिहत अकÖमात ही जब
घटना घट जाती है तो उससे सÌबĦ समाचार का िवशेष महßव होता है । वे गरमागरम
अघतन होते है । अपनी िविशĶता के कारण ऐसे समाचार मु´य पृķ पर ÿमुख Öथान
पा जाते है । कोई बड़ी दुघªटना अथवा िवĵिव®ुत नेता के असामाियक िनधन सÌबÆधी
समाचार इस कोिट म¤ आते है ।
२. Óयापी समाचार (Spread News) अिधक समय तक अिधकािधक ÓयिĉयŌ को
ÿभािवत करने वाला समाचार Óयापी कहा जा सकता है । अपने महßव तथा िवÖतृत
ÿभाव के चलते ऐसे समाचार पूरे पृķ पर छाए रहत¤ है िजनका िवÖतार बड़ा होता है ।
Óयापी समाचार के खÁडन- मÁडन हेतु अÆय समाचारŌ को भी Öथान िदया जाता है ।
२) भ¤टवाताª:
भ¤टवाताª (press interview) अपने म¤ ही एक हòनर है । समाचार संकलन के सभी तरीकŌ
म¤ इसे अÂयÆत ÿभावकारी माना जाता है । इसे पýकाåरता का अÂयु°म एवं समुÆनत अंश
कहना अितरंिजत नहé होगा । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
68 'ÿेस इÆटरÓयू' के कई अवसर संवाददाता के सामने आते है । नये मंिýमÁडल कì Öथापना
हòई, मु´यमÆýी ने शपथ ली, उनके सहयोिगयŌ ने भी पदúहण के औपचाåरक उपøम पूरे
िकये, िक ÿेस ÿितिनिधयŌ ने उÆह¤ घेर िलया । इस तरह उनके कायाªलय आिद के बारे म¤
एक 'ÿेस इÆटरÓयू' कì अ¸छी खासी खबर तैयार हो गई ।
आपके शहर म¤ िवदेशी पयªटकŌ का एक दल आया , उÆहŌने इदª-िगदª के मु´य ÖथलŌ और
एितहािसक खÁडहरŌ कì सैर कì । आपके समाचार पý के पाठक यह जानना चाह¤गे िक वे
अपने देश म¤ हमारे बारे म¤ ³या िवचार लेकर जा रहे है या हमारे नगर और देश के इितहास
एवं संÖकृित ने उनको ÿभािवत िकया है तो कैसे और िकतना, यह भी भ¤टवाताª का एक
िवषय हो सकता है ।
®ी. 'क.ख.ग.' रेल िवभाग म¤ तारबाबू है । वे एक साधारण से गृहÖथ है । Öवभाव से कुछ
शिमªले, या डरपोक समाÆयतः उनके बारे म¤ कुछ जानने कì या समाचार बनाने कì न तो
पýकारŌ को कोई आवÔयकता है और न ही कोई अÆय िवशेष आकषªण । इसिलए िकसी भी
संवाददाता ने उनसे िमलने या भ¤ट करने का कभी िवचार ही नहé िकया । लेिकन अचानक
उसकì काया पलट गई । यानी उनकì पचास लाख łपय कì लाटरी िनकल आई । सब
कोई जानना चाहेगा िक लàमी के इस नये कृपापाý कì श³ल व सूरत कैसी है? जब उÆह¤
लाटरी जीतने का समाचार िमला तो उÆहŌने ³या कहा ? उन पचास लाख łपये का कैसे
उपयोग कर¤गे । लाटरी के पåरणाम कì घोषणा होने के तुरÆत बाद कोई न कोई ÿेस åरपोटªर
कैमरा लेकर ®ी क. ख.ग. के घर पहòच जायेगा । उनकì अकेले या सपÂनीक तÖवीर लेगा
और अपने समाचार पý के िलये ®ी. क. ख. ग. का इÆटरÓयू उसी तरह लेगा मानŌ वे एक
साधारण तारबाबू नहé रहे, वरन् वे िकसी मÆýीमÁडल के सदÖय हो गये हो या उÆह¤ कोई
उ¸च पद िमल गया हो ।
हåरयाणा म¤ करनाल िजला के एक अÅयवसायी िकसान को "कृिष पंिडत" कì उपािध िमली ,
- इसका समाचार या सा±Âकार बन सकता है िक उसे यह उपािध िकस सफलता या
उपलिÊध के पुरÖकार के łप म¤ दी गयी है । कृिष के जो साधन उसने अपनाये है उसके
अनुभवŌ से दूसरे लोग भी ³या लाभ उठा सकते है ?
कई बार संवाददाता इंटरÓयू करके ही ऐसे लोगŌ से समाचार बना लेते है िजÆह¤ आभास भी
नहé होता िक उनके पास कुछ ऐसी सूचना या जानकारी है िजससे समाचार बन सकता है ।
सभी लोग अपने -अपने धंधे म¤ ÓयÖत होते है, उÆह¤ अपना काम पूरा करने कì धुन समायी
होती है । सिचवालय म¤ सरकारी अिधकारी फाइलŌ पर कई महßवपूणª फैसल¤ करते है
इÆजीिनयर लोग बड़ी बड़ी - पåरयोजनाओं पर काम करते है, वै²ािनक नये नये अनुसंधानŌ
और अिवÕकारŌ से समाज को समृĦ बनाते है, उīोगपितयŌ कì अपने अपने ±ेýŌ म¤ कुछ न
कुछ ऐसी बाते होती है, िजनसे समाचार बन सकते है । इस तरह सबके पास ÿेस को देने के
िलये कुछ न कुछ होता है । लेिकन ÿेस को ³या देना है, और कैसे देना है, इस उलझन को
संवाददाता उनसे भ¤ट करके दूर कर देते है ।

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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
69 ३) लेख और फìयर:
गूढ़ अÅययन पर आधाåरत गÌभीर िवĬ°ापूणª ÿमािणक रचना ही लेख है । जबिक पाठकŌ के
łिच के अनुłप नाटकìयता से पåरपूणª हÐकì-फुÐकì पाठ्य वÖतु फìचर है । एक का
सÌबÆध मिÖतÕक से है तो दूसरे का Ńदय से फìचर एक ÿकार का गī गीत है ±िणक मुþा
का अलंकरण है । लेख - बहòआयामी, गÌभीर, उ¸च और Óयंµयपूणª कृित है । लेख अनेक
कमरŌ वाला बहòमंिजल िवशाल भवन है । जबिक फìचर साफ सुथरा तथा मनोरम एक क±
वाली कुटी है । भारत म¤ दहेज ÿथा पर लेख िलखते समय दहेज कì पåरभाषा, िविवध काल
म¤ इसके िविवध łप, दहेज से अिभशĮ आँकडे, सरकार तथा Öवयंसेवी संÖथाओं Ĭारा
दहेज के िनराकरण हेतु िविभÆन कदमŌ का गÌभीर िववेचन होगा । फìचर म¤ तो दहेज से
पीिडत एक अबला कì कŁण कहानी सिचý ÿÖतुत कì जा सकती है । एक ही समाचार,
समाचार पýŌ म¤ िकतने िविवध łप से छप सकता है इसका उदाहरण þĶÓय है ।
पािकÖतान के ÿधानमंýी कì भारत याýा से सÌबिÆधत समाचार म¤ उनके आगमन कì ितिथ
एवं िविभÆन कायªøमŌ का िववरण ÿÖतुत होगा । भारत-पाक संबंधŌ एवं आगमन से Ăातृ-
भाव बढ़ने या घटने सÌबÆधी सÌपादकìय िटÈपणी भी िलखी जा सकती है । एक Öतंभ
लेखक इस याýा के संबंध म¤ अपना Óयिĉगत िवचार दे सकता है । एक िवशेष² भारत पाक
के राजनीितक, आिथªक, सामािजक और सांÖकृितक सÌबÆधŌ के भूत और भिवÕय पर
सÿभाण गवेषणाÂमक लेख िलख सकता है । फìचर लेखक सं±ेप म¤ आगÆतुक के ÓयिĉÂव
तथा कृितÂव का िववेचन कर सकता है एवं उसके Ĭारा भारत म¤ आितÃय सÌबÆधी िविवध
कायªøमŌ कì मनोरम झाँकì ÿÖतुत हो सकती है । लेख और फìचर के अÆतर को ®ी. पी.
डी. टÁडन के शÊदŌ म¤ सरलता से समझा जा सकता है - -
िकताब पढ़कर, आँकड़े जमा करके, लेख िलखे जा सकते है लेिकन 'फìचर' िलखने के िलए
अपने आँख, कान, भावŌ, अनुभूितयŌ, मनोवेगŌ और अÆवेÕण का सहारा लेना पड़ता है ।
लेख लÌबा, अłिचकर और भारी भी हो सकता है लेिकन ये बात¤ फìचर कì मौत है । फìचर
को मजेदार, िदलचÖप और िदलपकड़ होना पड़ेगा... फìचर एक ÿकार का गī गीत है जो
नीरस, लÌबा, गÌभीर, नहé हो सकता। वह मनोरंजक और तडपदार होना चािहए िजससे
लोगŌ के िदल िहले, िच° ÿसÆन हो तथा पढ़कर िद ल म¤ गम का दåरया बहे ।
®ी टÁडन जी ने िलखा है िक उÆहŌने अपनी सूàम ŀिĶ के बल पर एक हºजाम कì दुकान
पर जहाँ गाँधी जी के केश बनाने का िचý था, उसे बहòचिचªत फìचर तैयार कर िदया ।
आजकल के पý नेताओं के वĉÓयŌ से भरे होते है । छोटी छोटी बातŌ तथा समाज के
दिलतŌ पर फìचर छापने का ÿयास पý नहé करते ।
फìचर (łपक) :
रंगीन वृ°ाÂमक रचना łपक है । मानवीय अिभłची के साथ िमि®त समाचार जब चटपटा
लेख बन जाता है तो (फìचर) łपक के łप म¤ जाना जाता है ।
समसामाियक घटनाओं एवं िविवध ±ेý के अīतन पåरवतªन के सिचý और मनोरम िववरण
को फìचर या łपक कहा जा सकता है । िमÖटर āेन िनकोलस ने łपक को समाचार पý munotes.in

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जनसंचार माÅयम
70 कì आÂमा - के łप म¤ विणªत िकया है । ®ी. डी. एस. मेहता Ĭारा उĦत फìचर कì
पåरभाषाओं का सार तÂव ÿÖतुत है ।
" समाचार तÃयŌ का िववरण तथा िवचार देकर सÆतुĶ हो जाता है जबिक łपक म¤ घटना
के पåरवेश िविवध ÿितिøयाँए एवं इसके दूरगामी पåरणाम का संकेत ÿाĮ होता है । łपक
लेखक घटना के सÌबंÆध म¤ अपनी ÿितिøया पाठकŌ को बतलाता है । तथा उसकì कÐपना
शिĉ को ÿभािवत करता है । तÃयŌ के ÿÖतुतीकरण के अितåरĉ łपक घटनाओं से
सÌबÆध उन सभी महßवपूणª और गूढ़ बातŌ को बतलाता है िजनकì ओर सामाÆय पाठकŌ कì
ŀिĶ नही जाती । 'कब', '³यŌ', 'कैसे', 'कहाँ', 'कौन' को सुÖपĶ करने वाले समाचारŌ से आगे
बढ़कर कÐपना सÌपृĉ ÿÖतुित Ĭारा łपक अपना िवशेष ÿभाव छोड़ता है । ÅयातÂय यह है
िक सÂय से िवरत होकर कÐपना जगत कì बातŌ म¤ खो जाने कì अपे±ा गहराई म¤ जाकर
घटना कì स¸चाई को ढूँढ िनकालना फìचर का ÿमुख गुण है तािक पाठकŌ म¤ िज²ासा,
सहानुभूित, हाÖय और आIJयª का संचार हो ।
फìचर का वगêकरण :
िवषयŌ कì िविवधता और िवÖतार को देखते हòए फìचर को िनÌनिलखत वगŎ म¤ रखा जा
सकता है ।
१. समाचार फìचर :
अिधकांश फìचर समाचार पर आधाåरत होते है । इÆह¤ 'Æयूज फìचर', 'Æयूज फालोअप',
'Æयूज इन - डेÈथ' और 'Æयूज िबहाइÆड Æयूज भी कहते है ।' समाचारपरक फìचर
मनोरंजनाÂमक और सूचनाÂमक फìचर म¤ वगêकृत है ।
२. िवशेष घटना जैसे:
अकाल, दंगा और युĦ पर आधाåरत फìचर
३. Óयिĉपरक फìचर :
िकसी महßवपूणª Óयिĉ के कृितÂव और उसके सामाियक उपलिÊध पर ÿÖतुत फìचर ।
४. लोकłिच पर आधाåरत फìचर सामाÆय जन जैस िसपाही, माली, सफाई कमªचारी,
िभ±ुक, åर³शावाला और कुली आिद के जीवनयापन पर आधाåरत फìचर ।
५. अनुभव और पुछताछ पर आधाåरत फìचर रेल या हवाई जहाज म¤ घटी दुघªटनाओं से
सÌबĦ फìचर। खाīाÆन के अभाव, दवा कì चोर बाजारी , िनयिÆýत मूÐय कì दुकानŌ
पर लगी लÌबी कतार , िकरायादारी और राहजनी , आिद कì समÖयाओं कì गहराई म¤
जाकर िवĴेषणाÂमक फìचर कì ÿÖतृित ।
६. मेला, मनोरंजन, सभा, खेल तथा सांÖकृितक कायªøमŌ से संबंिधत फìचर।
७. फोटŌ फìचर िजसम¤ िचýŌ कì अिधकता होती है ।
८. संÖथा और िव²ापन कì उपलिÊध सÌबÆधी फìचर ।
९. सो ĥेÔय फìचर munotes.in

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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
71 संवाद (Dialogue) :
'संवाद' शÊद संÖकृत भाषा का शÊद है । अú¤जी म¤ 'संवाद' के िलए 'डायलॉग' (Dialogue)
शÊद ÿचिलत है । संÖकृत कोश के अनुसार संवाद का अथª है "िमलकर बोलना - बातचीत,
कòोपकथन, चचाª, वाद-िववाद, समाचार देना, सूचना, समाचार, Öवीकृित, सहमित,
समानुłपता, मेल-जोल, समानता, साŀÔय सं±ेप म¤ कहा जा सकता है िक जहाँ भी
कथोपकथन अथवा वाताªलाप Ĭारा कुछ भी संÿेिषत िकया जाता है; वह 'संवाद' होता है ।
िफÐम एवं टेलीिवजन के िनमाªण म¤ संवाद लेखक का महßवपूणª Öथान होता है । वह िफÐम
के कथानक के अनुसार संवाद िलखता है । आमतौर पर िफÐमŌ या टेलीिवजन म¤ पटकथा
कोई िलखता है और संवाद कोई Öव. राही मासूम रजा, कमलेĵर, जैसे कुछ लेखक ऐसे रहे
है, िजÆहŌने संवाद लेखन म¤ िवशेष ´याित ÿाĮ कì है । सलीम जावेद के बारे म¤ कहा जाता
है िक सलीम Öøìन Èले और जावेद संवादŌ के िवषय म¤ िवशेष² रहे है । वैसे अिधकांश
पटकथा लेखक संवाद और पटकथा दोनŌ ही िलखते है ।
असगर वजाहत ने िफÐम एवं टेलीिवजन के संवाद के महßव एवं लेखन को इस ÿकार
रेखांिकत िकया है सबसे पहले यह Åयान रखना चािहए िक संवाद पाýानुकूल हो। जैसा पाý
हो - संवाद वैसा ही होना चािहए । संवाद म¤ कम-से-कम शÊदŌ का ÿयोग करना चािहए ।
संवाद छोटे-छोटे िलखे जाने चािहए । वणªनाÂमक संवादŌ से बचना चािहए । िफÐमŌ म¤ तो
नायक नाियकाओं िवशेषकर - खलनायकŌ को िविशĶता ÿदान करने के िलए इसका
इÖतेमाल िकया जाता है । उदाहरणतः िफÐम 'िमÖटर इंिडया' म¤ खलनायक बात बात म¤
कहता है "मोग¤बो खुश हòआ।" या "øांित" म¤ ÿेम - चोपड़ा कहता है "शंभू का िदमाग दोधारी
तलवार है ।" वह कोई जुमला भी हो सकता है या कोई आदत भी हो सकती है । मसलन
आपके नायक कì आदत यह हो िक वह बात बात म¤ शेर सुनाता हो; - या अमेåरकन अंदाज
म¤ हेलो कहता है । Åयान रिखए िक इस तरह संवाद आप एक पाý म¤ भरेग¤ तो वह खूब
चलेगा; दो पाýŌ म¤ द¤गे तो भी चलेगा, पर अगर सभी पाýŌ म¤ भर¤गे, तो िबÐकुल नहé चलेगा ।
संवाद िलखते समय उÆहé बोिलयŌ का ÿयोग कåरए जो िक िफÐमŌ म¤ चलती है ।
उदाहरणतः अगर िफÐम िबहारी िहंदी का łप है िक "हम बोला हóँ। तो वही िलिखए, न िक
उसका शुĦ łप "हम बोले है।" अगर आप ऐसा िलख¤गे तो िबहाåरयŌ को छोड़कर बाकì
दशªक वगª के िलए वह एक नई भाषा हो जाएगी । ÿकाश झा कì िफÐम 'मृÂयुदंड' के नहé
चलने का एक कारण यह भी माना जाता है िक उसकì िबहारी िहंदी शुĦ थी, जो िक बाकì
दशªकŌ को समझ म¤ नहé आई । िहंदी के ÿिसĦ उपÆयासकार अमृतलाल नागर का मत है
"भाषा पढ़कर नहé सुनकर आती है, इसिलए जब भी आप लोगŌ को बातचीत करते देख¤ तो
उनकì भाषा को Åयान से सुिनए । िजतना आप लोगŌ को सुनेग¤, अलग अलग वगª के लोगŌ
को सुनेग¤, आपके संवादŌ कì भाषा उतनी अ¸छी होगी ।"
संवाद लेखन के महÂवपूणª िबंदु:
िफÐम एवं टेलीिवजन के संवाद, लेखन म¤ िनÌन िबंदुओं को Åयान म¤ रखना आवÔयक है ।
१. संवाद लेखन म¤ ÿसंग, पåरिÖथती, िÖथित, आयु, पाý तथा पåरवेश पर िवशेष Åयान
देना चािहए जैसे कोई िफÐमŌ या टेलीिवजन का कथानक पौरािणक कथा पर munotes.in

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जनसंचार माÅयम
72 आधाåरत है तो उसके संवाद संÖकृतिनķ हŌगे । पाýŌ कì भाषा म¤ संÖकृत ĴोकŌ का
उ¸चारण होगा । साथ ही साथ उसका पåरवेश पौरािणक संÖकृित एवं मूÐयŌ को लेकर
होगा । उदाहरणाथª बी. आर. चौपड़ा का "महाभारत" एवं रामानंद सागर का "रामायण"
धारावािहक ।
२. संवादŌ कì भाषा, कथानक पाýŌ के अनुłप होनी चािहए । संवाद म¤ िहंदी, उदूª, फारसी
एवं अÆय िकसी भी भाषा का ÿयोग िकया जा सकता है ।
३. सवांद वणªनाÂमक नहé होने चािहए । वणªनाÂमक संवाद सािहिÂयकता को जÆम देते है ।
४. संवाद ऐसे होने चािहए िक उनसे यथाथª का Ăम पैदा हो न िक वे यथाथª हो ।
यथाªथवादी संवाद बोåरयत पैदा करते है ।
५. संवाद आधे-अधूर¤ नहé होने चािहए ।
६. संवादŌ म¤ बोिलयŌ का ÿयोग वहé कर¤, जहाँ उनकì आवÔयकता हो । अनावÔयक łप
से बोिलयŌ का ÿयोग न कर¤ ।
७. संवाद म¤ एक ही पंिĉ को बार-बार दोहराना नही चािहए ।
८. संवाद म¤ ऐसे वा³य न हो िक जहाँ पाý Öवयं ही ÿij कर रहा हो उसका उ°र दे रहा
हो ।
९. संवाद म¤ नाटकìयता होना जłरी है । संवाद िजतने नाटकìय हŌग¤, उतने ही दशªको का
Åयान अपनी ओर खीचने कì कोिशश कर¤गे ।
१०. पटकथा लेखक को िफÐम एवं टेलीिवजन तकनीक कì जानकारी जłरी है, िवशेषकर
³लोजअप शॉट कì ।
åरपोताªज (Report) :
åरपोताªज मीिडया एवं सािहÂय कì एक लोकिÿय िवīा है । आज åरपोताªज मीिडया के
इले³ůॉिनक माÅयम रेिडयŌ, टेलीिवजन, िफÐम म¤ भी अपना महßवपूणª Öथान बना चुकì है ।
इसका ÿमुख कारण है िक åरपोताªज समसामाियक घटनाओं पर िलखे जाते है और वे
पाठकŌ के िलए रोचक होते है । åरपोताªज मानवीय संवेदनाओं से संबंिधत होता है, अतः
पाठक सदैव उÆह¤ पढ़ना चाहता है। åरपोताªज न समाचार है और न संÖमरण और न वह
डायरी है, न याýा वृताÆत वह घटना तथा िकसी िÖथती का तÃयाÂमक आकलन है, िजसम¤
आकलनकताª कì हािदªक संवेदना, ममªÖपिशªता और ÿÖतुतीकरण कì भावमय कलाÂमकता
िवīमान रहती है ।
संवाददाताओं को कई बार िकसी महßवपूणª Óयिĉ कì सभा को 'कवर' करने को कहा जाता
है. या िकसी समाचारदाता (åरपोटªर) को 'कवरेज' के िलए लगाया जाता है, जो वह 'कवर' या
'कवरेज' करके लाता है उसे रपट या 'åरपोटª' कहा जाता है । åरपोटª का िहंदी पयाªय 'रपट'
कई अथŎ से सवाªिधक उपयुĉ शÊद है, पर यह मूल łप से ही समाचार युĉ है और इसम¤ munotes.in

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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
73 समाचार संकलन के छः ककारŌ (³या, कहाँ, कौन, कब, ³यŌ और कैसे ) कì पूितª होना
आवÔयक होता है ।
åरपोताªज अथª एवं Öवłप:
सामाÆयतः åरपोताªज का संबंध åरपोटª अथवा 'रपट' से िलया जाता है । िहंदी सािहÂय
कोशकार के अनुसार 'åरपोटª का ही कलाÂमक łप åरपोताªज है ।' मूल łप से 'åरपोताªज'
Ā§च भाषा का शÊद है । िजसके मूल म¤ पýकाåरता से संबंिधत "åरपोिट«ग" भाव िनिहत है ।
Ā§च का "åरपोताªज" शÊद िहंदी म¤ यथाłप "åरपोताªज" के łप म¤ अपना िलया गया है और
इसका िहंदी म¤ आयात अंúेजी भाषा ÿयोग के Öतर पर ही हòआ है । िहÆदी म¤ इसे 'सूचिनका'
भी कहा गया। लेिकन यह इतना कृिýम है िक सही भावाथª नहé ÿकट करता है । डॉ.
कैलाशचंþ भािटया मानते है िक "वह अंúेजी शÊद 'åरपोटª' से नहé, उसके समानाथê
Āांसीसी शÊद 'åरपोताªज' से िवकिसत है िजसम¤ िकसी घटना का यथा तÃय वणªन िकया
जाता है । घटना का यथा तÃय िववरण कलाÂमक तथा रस संवेīाÂमक łप म¤ िदया जाता
है । शैली कथाÂमक अवÔय होती है, पर यह कथा नहé । '
िवĬानŌ ने åरपोताªज कì पåरभाषाएँ दी है ।
१. आचायª भागीरथ िम® ने 'सूचिनका' कहा लेिकन वह सवªúाĻ नहé हो सका ।
२. डॉ. जीवन ÿकाश जोशी के अनुसार "संवाददाता कì åरपोटª जब अपनी शैली म¤ कुछ
सािहिÂयकता का समावेश कर लेती है, तब वह åरपोताªज कहलाती है ।"
३. डॉ. रामगोपाल िसंह चौहान का मत है "िकसी घटना का अपने सÂय łप म¤ वणªन जो
पाठक के सÌमुख घटना का िचý सजीव łप म¤ उपिÖथत कर उसे ÿभािवत कर सके
åरपोताªज कहलाता है ।"
åरपोताªज के तÂव:
डॉ. सÂय¤þ ने åरपोताªज के पाँच तÂव माने है । जो इस ÿकार है:
१. वÖतुिनķता
२. संलµनता
३. संवेदनशीलता
४. समसामाियकता और
५. कलाÂमक ÿÖतुित
एक अ¸छे åरपोताªज के िलए उĉ तÂवŌ का समावेश आवÔयक है ।
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जनसंचार माÅयम
74 åरपोताªज कì िवशेषताएँ:
åरपोताªज लेखन कì अपनी कुछ िवशेषताएँ है-
१. यथातÃयता
२. जीवÆतता
३. कथाÂमकता
४. नाटकìयता
५. रोचकता
६. रसाÂमकता
७. ममªÖपिशªता एवं
८. कलाÂमकता
उपयुªĉ तÂव åरपोताªज म¤ चार चाँद लगा सकते है । रेिडयŌ एवं टेलीिवजन म¤ भी åरपोताªज
को महßव िदया जाता है ।
यथातÃयता åरपोताªज कì ÿमुख िवशेषता है । åरपोताªज एक ÿकार से आँखŌ देखी घटना
का आधार िलए हòए होता है । जीवंतता åरपोताªज कì दूसरी िवशेषता है । यह पाठक म¤
Öफूितª एवं उÂसाह का संचार करती है । åरपोताªज म¤ एक ही या अनेक घटनाएँ गुँथी रहती है
। नाटकìयता åरपोताªज कì अÆय िवशेषता है । रोचकता एवं रसाÂमकता फìचर कì
लोकिÿयता ÿदान करते है । åरपोताªज लेखक अनेक ÖथलŌ पर मािमªक कथन ÿÖतुत कर
åरपोताªज को मािमªकता ÿदान करता है । िकसी भी वÖतु को उसके सवō°म łप म¤ ÿÖतुत
करना ही कलाÂमकता है । åरपोताªज म¤ लेखक के शÊद और शैली घटनाøम कì ÿभावी
ÿÖतुती ही उसकì कलाÂमकता है ।
वृ°िचý (Documentary) :
"डा³यूम¤ůी लेखन" (Documentary writing):
टेलीिवजन कì िविभÆन िवधाओं म¤ से एक महßवपूणª िवधा है । अंúेजी म¤ 'वृ°िचý' को
'डा³यूम¤ůी' (Documentary) कहा जाता है। वृ°िचý का उĥेÔय होता है सूचना देना या
ÿिशि±त करना । वृ°िचý वह िवधा है; जो िकसी सÂय घटना , तÃय, सूचना, ÓयिĉÂव और
पåरिÖथती पर आधाåरत होती है । इसका उĥेÔय मनोरंजन कì अपे±ा िश±ा और सूचना
देना अिधक होता है । जब यह कायª ŀÔयŌ Ĭारा िकया जाता है वह ÿिøया 'टेलीिवजन
वृ°िचý ' कहलाती है ।
िहंदी शÊदकोश म¤ वृ°िचý के िनÌनािकत अथª िमलते है - िशला लेख, िविशĶ घटना या
कायª कì जानकारी के िलए िदखाया जाने वाला 'समाचार िचý' (News Reel) - अंúेजी
शÊदकोश म¤ डा³युम¤ट (Document) को इस ÿकार पåरभािषत िकया गया है िलिखत या munotes.in

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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
75 मुिþत सामúी, जो - ÿमाण या ÿलेख के łप म¤ ÿयुĉ होती है, जैसे ÿलेख के łप म¤ ÿयुĉ
होती है, जैसे कागजात, दÖतावेज ।
ए. आर. फुÐटन के शÊदŌ म¤ 'वृतिचý' न केवल जीवन के बधाथª ÿितपादन से ऊपर है,
बिÐक यह उसकì शुĦ Óया´या भी करता है । एक वृ°िचý उस समय तक कथाÂमक िचý
कì भाँित ही है, जब तक वह मानव जीवन कì Óया´या करता है । वाÖतव म¤ वृ°िचý िकसी
िवषय का एक समिÆवत łप है । ÿो. रमेश जैन के अनुसार, "वृ°िचýŌ का संबंध दÖतावेजŌ
(Documents) से होता है । िकसी एक िवषय को अंितम तह तक जाने का ÿयास िकया
जाता है । वृ°िचý िवषय पर और अिधक अनुसंधान कì गुंजाइश नही छोड़ते । ये वे
कायªøम है, जो िकसी भी िवषय का वृ° पूरा करते है ।"
वृ°िचý के ÿकार:
वृ°िचý के िविभÆन ÿकार (łप) िदखाई पड़ते है, अतः िवशेष िवषयŌ को आधार बनाकर
वृ°िचý को
िनÌन ÿकारŌ म¤ बाटाँ जाता है ।
१. सूचनाÂमक वृ°िचý
२. समाचार वृ°िचý
३. याýावृतांत वृ°िचý
४. कहानी वृ°िचý
५. सामािजक वृ°िचý
६. अÆवेषणाÂमक वृ°िचý
७. ऐितहािसक वृ°िचý
१. सूचनाÂमक वृ°िचý (Informatic Documentary) :
आज सूचनाÂमक वृ°िचý लोकिÿय है और अिधक सं´या म¤ इÆहé वृ°िचýŌ का िनमाªण हो
रहा है । सूचनाÂमक वृ°िचý को िकसी एक िवशेष तÃय के Ĭारा ÿÖतुत िकया जाता है और
उÆही तÃयŌ को साàयŌ कì सहायता से आगे बढ़ाया जाता है । इन वृ°िचýŌ का उĥेÔय
दशªकŌ को समुिचत जानकारी देना और उसके साथ कुछ सीखने का अवसर ÿदान करना
है । ये वृ°िचý जहाँ दशªकŌ का ²ान बढ़ाते है, वहाँ उनका आÂमिवĵास भी बढ़ाते है ।
सारांश म¤ कहा जा सकता है िक िकÆहé तÃयŌ Ĭारा दशªकŌ को कुछ सीखने का अवसर देने
वाले वृ°िचý 'सूचनाÂमक वृ°िचý' कहे जाते है ।
२. समाचार वृ°िचý (New Documentary) :
समाचार वृ°िचý का ÿचलन िदन-पर-िदन बढ़ता जा रहा है । िकसी िवशेष समसामाियक
समाचार को लेकर ये वृ°िचý बनाये जाते है । इसम¤ समाचार से संबĦ घटनाओं, कारणŌ,
ÿभाव और ÿितिøयाओं को यथावत् ÿÖतुत िकया जाता है । munotes.in

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जनसंचार माÅयम
76 ३. याýावृ°ांत वृ°िचý (Travels Documents) :
याýावृ°ांत वृ°िचý अÆय वृ°िचýŌ से िभÆन होते है । इन वृ°िचýŌ म¤ तÃयŌ के संकलन
पहले नहé िकए जाते; बिÐक कोई िवशेष Öथान या लàय तय िकया जाता है । कैमरामेन एवं
उसके सहयोगी िवषय के अनुकूल सामúी, ŀÔय घटनाएँ, सा±ाÂकार आिद कì कैमर¤ शूिटंग
करते है । वृ°िचý के पटकथा लेखक इÆह¤ देखकर वृ°िचý के िलए आलेख िलखता है ।
याýा वृ°ांत म¤ याýा, उसम¤ आने वाली किठनाइयाँ, िविशĶता, मौसम, िविभÆन ÿकार के
पयªटक एवं ऐितहािसक Öथान, िनवािसयŌ का रहन सहन , खान-पान आिद को िचýŌ संगीत
एवं Åविन के माÅयम से िदखाया जाता है ।
४. कहानी वृ°िचý (Story Documentary):
कहानी वृ°िचý का ÿचलन अिधक नहé है ³यŌिक इसका Öवłप फìचर से िमलता जुलता
है । इस - िवधा म¤ एक चåरý के Ĭारा ही कहानी को दशाªया जाता है । कहानी उसी चåरý के
चारŌ ओर घूमती नजर आती है । मु´य चåरý को अÆय सहायक चåरýŌ तथा तÃयŌ Ĭारा
अिभÓयĉ एवं िवकिसत िकया जाता है ।
५. सामािजक वृ°िचý (Social Documentary) :
सामािजक वृ°िचý का ÿमुख उĥेÔय समाज कì िवचार धारा, िचंतन एवं उसके िनÕकषª
ÿÖतुत करना है, िजससे दशªकŌ म¤ मानवीय भावनाएँ, िश±ा, जनजागłकता , देशÿेम आ
सक¤ । इन वृ°िचýŌ को िदखाये जाने का उĥेÔय सामािजक पåरवतªन लाना है।
६. अÆवेषणाÂमक वृ°िचý (Investigative Documantary) :
अÆवेषणाÂमक वृ°िचý लोकिÿय है तथा इनकì माँग िनरंतर बढ़ती जा रही है । इन वृ°िचýŌ
का उĥेÔय िकसी िवषयवÖतु को लेकर उसका अÆवेषण (खोज) करना तथा अंत म¤ सÂय
तÃय को उजागर करना है । 'डीÖकवरी' के अÆवेषणाÂमक वृ°िचý इधर अिधक लोकिÿय
हो रहे है ।
७. ऐितहािसक वृ°िचý (Historical Documentary) :
इस ÿकार के वृ°िचýŌ कì िवषयवÖतु ऐितहािसक होती है । इसम¤ ऐितहािसक तÃयŌ को
शत- ÿितशत दशाªया जाता है । ÿेमािसक तÃयŌ म¤ पाý वेशभूषा, घटनाÖथल, सामािजक
एवं सांÖकृितक चेतना को उसी संदभª म¤ िदखाया जाता है । एतेहािसक वृ°िचý लोकिÿय है

सारांश म¤ कहा जा सकता है िक टेलीिवजन वृ°िचý का ±ेý अÂयंत Óयापक है । इसम¤
कैåरयर कì अनेक संभावनाएँ है । वृ°िचý िकसी भी िवषय अथवा िबंदु को बनाकर िलखा
जा सकता है । वृ°िचý लेखक म¤ कÐपना शीलता, सजªनाÂमकता, टी.वी. लेखन कì
जानकारी और समयबĦता आिद गुण होने चािहए । पं. जवाहर लाल नेहł Ĭारा िलिखत
पुÖतक 'िडÖकवरी ऑफ इंिडया' को "भारत एक खोज ' शीषªक से ÿसाåरत टी.वी.
धारावािहक कì एक अित सफल डा³यूम¤ůी मानी जा सकती है, िजसम¤ Ôयाम बेनेगल ने munotes.in

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माÅयमोपयोगी लेखन का Öवłप
77 तÃयŌ कì ÿमािणकता के साथ नाट्यशैली का सहारा लेकर कÐपना शिĉ से रोचकता के
साथ ÿÖतुत िकया है ।
टी.वी. वृ°िचý के िलए िकसी भी िवषय का चयन िकया जा सकता है । सामािजक,
राजनीितक, सांÖकृितक, आिथªक िवकास संबंधी योजना, पåरयोजना अथवा औīोिगक
संÖथान, Óयिĉ िवशेष, ऐितहािसक, ÖवाÖÃय, पयाªवरण आिद से जुड़ा कोई भी िवषय या
इनका एक पहलू िलया जा सकता है, िकंतु िकसी भी िवषय को लेने से पूवª उस पर शोध
कर लेना जłरी है ।
ÿijŌ°री:
एक ÿijकताª के माÅयम से राÕůीय और अंतराÕůीय Öतर के आिथªक, राजनैितक, खेल,
िव²ान, कला तथा संÖकृित से सÌबिÆधत ÿij पूछे जाते है । दो या तीन ÓयिĉयŌ के समूहŌ
के साथ दशªक के ÿितिनिध इन कायªøमŌ म¤ भाग लेते है । सही उ°र देने पर पुरÖकार भी
िदये जाते है । कायªøम को łिचकर बनाने के िलए ŀÔयŌ तथा िचýŌ (Visuals) का उपयोग
भी िकया जाता है । इन कायªøमŌ का उĥेÔय दशªकŌ कì ²ान-वृिĦ करना होता है ।

*****

munotes.in

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78 १०
मुिþत माÅयमापयोगी लेखन
१. समाचार:
समाचारŌ से ही समाचार पý बनता है । जहाँ समाचार-पý म¤ अÆय पाठ्य सामúी,
िटÈपिणयाँ, िव²ापन, सÌपादक के नाम पý, सािहिÂयक पåरिशĶ इÂयादी होते है, वहाँ
समाचार तो िनÖसÆदेह समाचार पý का एक अिभÆन अंग और उसकì आÂमा है । समाचार
कì अú¤जी म¤ कुछ पåरभाषाएँ िनÌनिलिखत है ।
News is history in a Hurry. -Goerge H. Morris
It is the honest and unbiased and complete account of events of interest
and concern to the public. - Duane Bradely
I have six honest serving men. They taught me all knew,
Their names are where and what and when,
And How and why and who.
-Rudyard Kipling.
पýकाåरता का ÿाण तÂव समाचार है । मानव कì ²ान-िपपासा तब शांत होती है जब वह
समाचार सुन लेता है अथवा पढ़ लेता है । ÿातः कालीन िनÂयिøया का एक अिभÆन अंग
नये-नये समाचारŌ कì जानकारी ÿाĮ करना है ³योिक यह आधुिनक जीवन कì एक
अिनवायªता है िजसम¤ सभी कì łची रहती है । पहले जब दो चार Óयिĉ जुटते थे तो धािमªक
एवं पाåरवाåरक चचाª होती थी । अब तो आसपास, राÕů और िवदेश सÌबंधी समाचारŌ पर
टीका िटÈपणी ÿारÌभ हो जाती है । -
समाचार कì ÈयुÂपि°
समाचार को अँúेजी म¤ News ( Æयूज) कहते है जो New ( Æयू) का बहòवचन है । यह लैिटन
का 'नोवा' संÖकृत के 'नव' से बना है । ताÂपयª यह है िक जो िनÂय नूतन हो वही समाचार है

१. हेडन के कोश के अनुसार 'सब िदशाओं कì घटना को समाचार कहते है ।' 'Æयूज' के
चार अ±र
चार िदशाओं के आīा±र है:
 N-North ( उ°र) munotes.in

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मुिþत माÅयमापयोगी लेखन
79  E-East ( पूवª)
 W-West ( पिIJम)
 S-South ( दि±ण)
उ°र पूवª, पिIJम, दि±ण कì घटनाओं को समाचार समझना चािहए ।
वृ°ांत, 'खबर', 'संवाद', 'िववरण' और 'सूचना' समाचार के पयाªय है । अमरकोश म¤ 'वाताª',
'वृित' तथा 'उदÆत' चार शÊद समाचार हेतु ÿयुĉ हòए है । सभी शÊदŌ से िकसी घटना कì
पूरी जानकारी देने का भाव ÖपĶ होता है । १५०० ई. पूवª 'टाइिडंग (Tyding) शÊद का
ÿचलन 'समकालीन घटनाओं कì सूचना' के łप म¤ था । बाद म¤ मुþणकला के िवकास के
साथ 'Æयूज', शÊद का ÿयोग होने लगा िजसका ताÂपयª है सूचनाओं के संकलन और
ÿसारण Ĭारा लाभ अिजªत करना जैसा िक एडिवन एमरी का िवचार है । सूचनाओं का
यदाकदा ÿसारण 'टाइिडंग' है जबिक सुिनयोिजत ढंग से शोधपूणª समाचारŌ का संकलन
तथा ÿसार ही 'Æयूज' है ।
®ी. रा. र. खािडलकर के अनुसार 'दुिनया म¤ कहé भी िकसी भी समय कोई छोटी-मोटी
घटना या पåरवतªन हो उसका शÊदŌ म¤ जो वणªन होगा, उसे समाचार या खबर कहते है।'
समाचार कì कुछ पåरभाषाएँ िनÌनिलिखत है- "अनेक ÓयिĉयŌ कì अिभłिच िजस
सामियक बात म¤ हो वह समाचार है । सवª®ेķ समाचार वह है िजसम¤ बहòसं´यकŌ कì
अिधकतम łिच हो । ” - ÿोफेसर िविलयम जी. Êलेयर
"समाचार िकसी वतªमान िवचार घटना या िववाद का ऐसा िववरण है जो उपभोĉाओं को
आकिषªत करे ।"
वूÐसले और कैÌपवेल
“समाचार सामाÆय तः वह उ°ेजक सूचना है िजससे कोई Óयिĉ संतोष या उ°ेजना ÿाĮ
करता है ।"
- ÿो. िचÐटनबरा
"समाचार कोई ऐसी चीज है िजसे आप कल (बीते हòए) तक नहé जानते थे ।"
- टनªर केटिलज
उपयुªĉ पåरभाषाओं के अितåरĉ अनेक िवĬानŌ ने अपनी ŀिĶ के अनुłप समाचार को
Óया´याियत िकया है िजसम¤ से कुछ ůĶÓय है ।
"िजसे कहé कोई दबाना चाह रहा है, वही समाचार है, शेष िव²ापन है।"
"समाचार कोई वह बात है जो सामाÆय से परे हो ।" munotes.in

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जनसंचार माÅयम
80 लेखक के अनुसार अकÖमात जो घटे वही समाचार है । कुछ हो जाना, कुछ पाना, कुछ खो
जाना, अचानक पहचा न बनाना ही समाचार है ।
"एक योµय पýकार जो िलखता है वही समाचार है ।"
"पाठक िजÆह¤ जानना चाहते है, वह समाचार है ।"
"िजस बात के छपने से पý कì िबøì बढ़ती है, वही समाचार है ।"
इन सभी पåरभाषाओं पर Åयान िदया जाय तो यही िनÕकषª िनकाला जाएगा िक सरस,
सामियक और सÂय सूचना ही समाचार है ।
समाचार के तÂव:
१) नूतनता:
नूतनता समाचार का ÿमुख तÂव है । 'ÿकृित के यौवन का ®ृंगार कर¤गे कभी न बासी फूल'
ÿसाद कì इस उिĉ के अनुसार बासी समाचार पýŌ को गौरवािÆवत नही कर सकते । दैिनक
पýŌ म¤ २४ घंटे एवं साĮािहक पýŌ म¤ एक सĮाह के बाद समाचार छापने पर समाचारÂव
नहé रह जाता । मÆतÓय यही है िक ताजा से ताजा समाचार पाठकŌ को आकिषªत करता है,
िवलÌब होने पर वह िनÖतेज, िनरथªक हो जाता है ।
२) सÂयता:
िकसी घटना का सÂयासÂय , पåरशुĦ एवं संतुिलत िवतरण समाचार को मूÐयवान बनाता है
जैसा िक कहा गया है िक 'whole truth and nothing but the truth', वÖतुतः सÂय को
ठेस पहòँचाना समाचार कì आÂमा को नĶ करना है । 'सव¥ सÂय ÿितिķतम्' उसका मूल मÆý
है ।
३) सामीÈय:
पाठकŌ कì łिच को ÿभािवत करने वाले समाचार अिधक पठनीय होते है ³यŌिक 'यदेव
रोचते यÖमै भवे°Öय सुÆदरम कì ही जनता म¤ माÆयता है ।'
४) सामीÈय:
िनकटÖथ घिटत घटना दूरÖथ कì बड़ी दुघªटना से अिधक महßवपूणª होती है ।
५) वैयिĉकता:
उ¸च पदÖथ ÓयिĉयŌ का भाषण समाचार बन जाता है । सामाÆय नागåरक कì यिद
अÿÂयािशत उपलिÊध हो तो वह भी समाचार है जैसे िक एक िभखारी को एक लाख कì
लाटरी का िमलना ।
६) सं´या और आकार:
अिधक सं´या म¤ मृत और घायल यािýयŌ से सÌबृĦ भयंकर रेल दुघªटना महßवपूणª होगी
जब िक मामूली चोट वाली घटना समाचार कì ŀिĶ से गौण है । munotes.in

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मुिþत माÅयमापयोगी लेखन
81 ७) संशय और रहÖय:
संशय और रहÖय से पåरपूणª समाचारŌ कì ओर पाठकŌ कì अिधक िज²ासा होती है।
उपयुªĉ तÂवŌ के अितåरĉ संघषª, Öपधाª, उ°ेजना, रोमांस, वैिशĶ्य पåरणाम, कामे¸छा
कुकृÂय, नाटकìयता, मानवीय गुणŌ का उþेक, असाधरणता, आिथªक सामािजक पåरवतªन
तथा उĩावना समाचार के ऐसे तÂव है िजनसे समाचार के ÿित आकषªण उÂपÆन होता है ।
समाचार के ÿकार:
समाचार दो ÿकार के बतलाये गये है:
क) सीधा समाचार ( straight News)
ख) Óया´याÂमक समाचार ( Interpretative News)
सीधा समाचार सरल तथा सुÖपĶ िविध से घटनाओं का सही सही तÃयाÂमक िववरण है ।
इसम¤ तÃयŌ को तोड़ा मरोड़ नहé जाता तथा ऐसे समाचारŌ म¤ आरोप लगाने, िनÕकषª
िनकालने एवं सÌमित देने का ÿयास नहé होता । Óया´याÂमक समाचारŌ म¤ घटना कì गहरी
छानबीन कì जाती है, उसे समú łप म¤ उदघािटत िकया जाता है । घटना के पåरवेश,
पूवाªपर सÌबÆध तथा उसके वैिशĶ्य पåरणाम को िलखा जाता है तािक पाठक सरलता से
सभी बात¤ समझ जाये ।
आजकल के अित ÓयÖत पाठकŌ के पास समाचार कì जिटलता और रहÖयमयता से जूझने
कì फुसªत नहé है, अतः समú तÃयŌ कì Óया´या Ĭारा समाचार को सुúाĻ बना िदया गया
जाता है ।
घटना के महßव कì ŀिĶ से समाचार के दो łप होते है:
१) ताÂकािलक िविशĶ समाचार ( Spot News) पूवाªभासरिहत अकÖमात ही जब घटना
घट जाती है तो उससे सÌबĦ समाचार का िवशेष महßव होता है । वे गरमागरम
अघतन होते है । अपनी िविशĶता के कारण ऐसे समाचार मु´य पृķ पर ÿमुख Öथान
पा जाते है । कोई बड़ी दुघªटना अथवा िवĵिव®ुत नेता के असामाियक िनधन सÌबÆधी
समाचार इस कोिट म¤ आते है ।
२) Óयापी समाचार ( Spread News) अिधक समय तक अिधकािधक ÓयिĉयŌ को
ÿभािवत करने वाला समाचार Óयापी कहा जा सकता है । अपने महßव तथा िवÖतृत
ÿभाव के चलते ऐसे समाचार पूरे पृķ पर छाए रहत¤ है िजनका िवÖतार बड़ा होता है ।
Óयापी समाचार के खÁडन- मÁडन हेतु अÆय समाचारŌ को भी Öथान िदया जाता है ।
संपादकìय (सÌपादक):
सÌपादक वह सचेत संÖथा है तो पý के िविवध ±ेýŌ के संचालन, िनयमन, नयन, ÿोÂसाहन
एवं िनमाªण हेतु सचेĶ रहता है । संÖथा के अवयव åरपोटªर, संवाददाता, भेटकताª,
समालोचक, उपसÌपादक, ÿसार ÓयवÖथापक एवं िव²ापन ÿबÆधक के बीच समÆवयवादी munotes.in

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जनसंचार माÅयम
82 शिĉ सÌपादक ही है जो पýłपी शरीर के अगÿÂयंग म¤ गितशीलता का संवाहक होता है ।
पý कì नीित के िनधाªरण और पåरपालन Ĭारा सÌपादक जन-चेतना, जन-आकां±ा और
जनिहत का संर±क होता है ।
सन् १८६७ ई. के ÿेस एÁड रिजÖůेशन ऑफ बु³स ए³ट के अनुसार समाचारपý म¤ जो
कुछ छपता है उसका िनIJय करने वाला Óयिĉ सÌपादक कहलाता है । सÌपादन शÊद 'पद'
धाला से उĩूत है िजसका अथª 'िकसी िवषय म¤ सÌयक् गित होना है । िकसी अनुķान को
योµयतापूवªक पूणª करने वाली िøया को सÌपादन कहा जाता है । ÿÖतुत अंश का øम
बैठाकर शुिĦ के साथ ÿकाशन योµय बनाने वाला Óयिĉ सÌपादक कहलाता है । ताÂपयª यह
है िक पý का सÌपादन संचालन करने वाला िविशĶ गुणŌ से युĉ बुिĦजीवी ही सÌपादक है
जो पý कì आÂमा होता है । सजग सÌपादक सामािजक चेतना कì ºयोित लहर फैलाने
वाला होता है । वह वैचाåरक तरंगŌ के बीच समाजłपी नौका को खेने वाला कुशल एवं
िववेकì नािवक होता है ।
कानून कì ŀिĶ म¤ सÌपादक वही है िजसका नाम पý म¤ छपता है परंतु वाÖतव म¤ अ¸छा
सÌपादक आस पास कì पåरिÖथितयŌ का बोध कराता है तथा जन सामाÆय कì अनुभूितयŌ
एवं िवचारŌ को वाणी देता है । वह अपने Óयवसाय के साथ सावªजिनक ±ेý म¤ भी नैितक
मूÐयŌ कì Öथापना करता है जैसा िक एच. वाइ. शारदा ÿसाद ने िलखा है- सारांश यही िक
सÌपादक पाठकŌ का साथी , उपदेशक और पथ-ÿदशªक होता है ।
सÂयिनķा, ÿेस कì Öवतंýता, यथाथªता, सÌयक् Óयवहार, नेतृÂव और उ°रदाियÂव इन छः
नीित िनद¥शक का िसĦाÆतŌ के पालन Ĭारा आदशª सÌपादक कालाªइल के शÊदŌ म¤ 'स¸चे
सăाट और धमōपदेशक' कì भूिमका िनभा सकता है । इसी सÆदभª म¤ महिषª Óयास को ÿथम
सÌपादक माना गया है । पिÁडत माखनलाल चतुªवेदी ने सÌपादक के कायª को 'अयािचत' या
'Öवयं Öवीकृत सेवा' कì सं²ा दी है ³यŌिक वह अपने नीर ±ीर िववेक, स¸चåरýता
Æयायिÿयता, सहानुभूित तथा दाियÂव बोध के सÌबल पर कतªÓय कì बिलवेदी पर चढ़ जाता
है । ÿलोभन, भय, दबाव से मुĉ सÌपादक यशÖवी होता है ।
मु´य उपसÌपादक:
मु´य सÌपादक अपनी पाली का ÿधान होता है । उसके कायŎ का वगêकरण ®ी ÿेमनाथ
चतुव¥दी ने िनÌनिलिखत ढंग से िकया है ।
१. रचनाÂमक कायª:
(क) समाचार संशोधन एवं उसके ÿÖतुतीकरण के Öवłप का िनणªय
(ख) समाचारŌ का संगठन
(ग) शीषªकŌ कì रचना
२. ÓयवÖथा सÌबÆधी कायª:
(क) िनिIJत Öथान कì पूितª हेतु समाचार कì काया का िनणªय
(ख) कÌपोिजटर तथा मुþक कì कायª±मता पर Åयान । munotes.in

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मुिþत माÅयमापयोगी लेखन
83 ३. िनरी±ण सÌबंधी कायª:
(क) तÃय एवं भाषा सÌबंधी ĂािÆत न रह जाय ।
(ख) कानूनी उलझन न उपिÖथत हो ।
(ग) समाचार कì Öप Ķता तथा साथªकता पर सतत ŀिĶ मु´य सÌपादकŌ को सदैव
िनÌनांिकत िबÆदुओं पर Åयान क¤िþत करना पड़ता है ।
१. िवचारŌ का दबाव
२. पुनरावृित
३. आवÔयक बातŌ कì छूट।
४. तालमेल हीनता
५. छĪ िव²ापन
६. धोखाधड़ी
७. बासी समाचार
८. ÿितĬंिĬता
ठीक ही कहा गया है िक “समाचारपý रथ है तो समाचार उसे उड़ा ले जाने वाले अंधे घोड़े
और पýकार िववेक का धनी चतुर सारथी यह सारथी समाचार łपी घोड़Ō को अनुशासन म¤
रखकर पý - रथ को गतंÓय कì ओर ले जाता है ।" वÖतुतः मु´य उपसÌपादक भगवान्
®ीकृÕण सŀश कुशल सारथी होता है ।
उपसÌपादक:
'उप' समीपता, लघुता तथा गौणता का īोतक / योतक है । उपसÌपादक म¤ तीनŌ भावŌ का
बोध होता है । यह सÌपादक के समीप रहकर उसके िनद¥शानुसार कायª करता है, लघुता
इसम¤ होती ही है तथा सÌपादक से अपे±ाकृत कम महßवपूणª तो होता ही है ।
सÌपादक पý कì नीित का िनधाªरक है तो उपसÌपादक िनधाªåरत नीित के अनुłप पý का
सÌपादन, ÿकाशन करने वाला Óयिĉ है । एक का कायª ÓयवÖथा देना है तो दूसरे का कायª
उसका अनुपालन है । एक शाľ है तो दूसरा शाľŌ का अनुयायी । सÌपादकìय ÖतÌभŌ का
उ°रदाियÂव सÌपादक पर है तो समाचारपý के अवशेष भाग कì िजÌमेदारी उपसÌपादक
को वहन करना है ।
उपसÌपादक को िवĵकमाª, वाÖतुकार और िशÐपकार भी कहते है जो समाचारपý का łप
संवारता है वह ऐसा माली है जो कायाªलय म¤ पड़े संवादŌ के जंगल को मनोरम पुÕप उīान
का łप देता है । सरल शÊदŌ म¤, उपसÌपादक वह Óयिĉ है, जो समाचारŌ के सभी िववरणŌ
को ÿाĮ करता है, सÌपादन करता है और उनके शीषªक देता है । वह सब या इनम¤ से कुछ munotes.in

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जनसंचार माÅयम
84 कायª कर सकता है । उपसÌपादक को Öटेनले वाकर ने 'अनसंग हीरो' कहा है तथा
िनÌनिलिखत शÊदŌ म¤ उÆहŌने उसके दाियÂव का बोध कराया है ।
"This workman, who edits, corrects and manicures the copy which flows
across the desk from the reporters, rewritemen correspondents and
News Services and then writes Headlines, is the unsung of the fourth
state."
ताÂपयª यह है िक पýकाåरता जगत कì नéव का पÂथर उपसÌपादक होता है जो सÌपादन,
संशोधन, शीषªक - सरंचना तथा संवाद - संकलन के साथ सÌबĦ ÓयिĉयŌ के बीच समÆवय
Öथािपत करता है।
फìचर और सा±ाÂकार :
१. फìचर:
रंगीन वृ°ाÂमक रचना łपक है । मानवीय अिभłिच के साथ िमि®त समाचार जब चटपटा
लेख बन जाता है तो फìचर (łपक) के łप म¤ माना जाता है ।
सम-सामियक घटनाओं एवं िविवध ±ेý म¤ अīतन पåरवतªन के सिचý और मनोरम िववरण
को फìचर या łपक कहा जा सकता है । िमÖटर āेन िनकोलस ने łपक को समाचार पý
कì आÂमा के łप म¤ विणªत िकया है । ®ी डी. एस. मेहता Ĭारा उĦत फìचर कì पåरभाषाओं
का सार तÂव ÿÖतुत है ।
"समाचार तÃयŌ का िववरण तथा िवचार देखकर संतुĶ हो जाता है जबिक łपक म¤ घटना
के िवशेष पåरवेश, िविवध ÿितिøयाएं एवं इसके दूरगामी पåरणाम का संकेत ÿाĮ होता है ।
łपक लेखक घटना के संबंध म¤ अपनी ÿितिøया पाठकŌ को बतलाता है तथा उसकì
कÐपना शिĉ को ÿभािवत करता है । तÃयŌ के ÿÖतुतीकरण के अितåरĉ łपक घटनाओं
से सÌबĦ उन सभी महßवपूणª और गूढ़ बातŌ को बतलाता है िजनकì ओर सामाÆय पाठकŌ
कì ŀिĶ नहé जाती । "
'कब', '³यŌ', 'कैसे', 'कहाँ', 'कौन' से सुÖपĶ करने वाले समाचारŌ से आगे बढ़कर कÐपना
सÌपृĉ ÿÖतृित Ĭारा łपक अपना िवशेष ÿभाव छोड़ता है | ÅयातÓय यह है िक सÂय से
िवरत होकर कÐपना जगत कì बातŌ म¤ खो जाने कì अपे±ा गहराई म¤ जाकर घटना कì
स¸चाई कì ढूँढ िनकालना फìचर का ÿमुख गुण है तािक पाठकŌ म¤ िज²ासा, सहानुभूित,
हाÖय और आIJयª का संचार हो ।
फìचर का वगêकरण :
िवषयŌ कì िविवधता और िवÖतार को देखते हòए फìचर को िनÌनिलिखत वगŎ म¤ रखा जा
सकता है । munotes.in

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मुिþत माÅयमापयोगी लेखन
85 १. समाचार फìचर: अिधकांश फìचर समाचार पर आधाåरत होते है । इÆह¤ 'Æयूज फìचर','
'Æयूज ÉलोअÈस', 'Æयूज' भी कहते है । समाचारपरक फìचर मनोरंजनाÂमक और
सूचनाÂमक फìचर म¤ वगêकृत है ।
२. िवशेष घटना जैसे अकाल, दंगा और युĦ पर आधाåरत फìचर ।
३. Óयिĉपरक फìचर िकसी महÂवपूणª Óयिĉ के कृितÂव और उसके सामाियक उपलिÊध
पर : ÿÖतुत फìचर ।
४. लोकłिच पर आधाåरत फìचर सामाÆय जÆय जैसे िसपाही, माली, सफाई
कमªचारी,िभ±ुक, åर³शावाला और कुली आिद के जीवनयापन पर आधाåरत फìचर ।
५. अनुभव और पूछ-ताछ पर आधाåरत फìचर : रेल या हवाई जहाज म¤ घटी दुघªटनाओं
से समबĦ फìचर । खाīाÆन के आभाव, दवा कì चोर बाजारी , िनयिÆýत मूÐय कì
दुकानŌ पर लगी लÌबी कतार, िकरायदारी और राहजनी आिद कì समÖयाओ कì
गहराई म¤ जाकर िवĴेषणाÂमक फìचर कì ÿÖतुित
६. मेला, मनोरंजन, सभा, खेल, तथा सांÖकृितक कायªøमŌ से सÌबिÆधत फìचर ।
७. फोटो फìचर िजसम¤ िचýŌ कì अिधकता होती है ।
८. संÖथा और िव²ापन कì उपलिÊध संबंधी फìचर ।
९. सोĥेÔय फìचर ।
सा±Âकार (Interview) :
ÿकाशनोपयोगी तÃयŌ को ÿाĮ करने कì कला ही सा±ाÂकार है। सा±ाÂकार और Óयिĉगत
सÌपकª Ĭारा समाचार कì िवशद जानकारी ÿाĮ कì जाती है। देखा जाता है िक सरकारी
वĉÓय सावªजिनक घोषणाएँ, िव²िĮयाँ तथा मंचीय भाषणŌ Ĭारा ÿायः एक प±ीय तÂवŌ का
िववरण ÿÖतुत िकया जाता है। सा±ाÂकार Ĭारा पýकार समाचारŌ से सÌबĦ अिधकारी से
प±-िवप±, गुण-दोष एवं जनमत के ÿभाव के ठोस बाते ²ात करता है । दूसरे शÊदŌ म¤ भ¤ट
वाताª, समालाप या सा±ाÂकार Ĭारा समाचार के '³यŌ' और 'कैसे कì गहरी जानकारी
िमलती है । समाचार पूणªता को ÿाĮ होता है । पýकाåरता कì एक अमेåरकì संÖथा ने
सा±ाÂकार तकनीक के िलए अपने छाýŌ को िनÌनिलिखत िसĦाÆत बतलाया िजसे ®ी. के.
पी. नारायणन ने 'सÌपादन कला' म¤ उĦत िकया है- -
"िजस Óयिĉ से आपको सा±ाÂकार करना हो उस Óयिĉ के बारे म¤ िकसी ऐसे Óयिĉ से, जो
उसे जानता हो; िजतनी भी िमल सके उतनी जानकारी हािसल कर िलिजए। उसका नाम
ठीक से उताåरये और उसका उ¸चारण ठीक से कìिजए । िफर िजस िवषय के िसलिसले म¤
आप सा±ाÂकार म¤ िजतनी हो सके उतनी जानकारी हािसल कìिजए इस िवषय के सÌबंध म¤
िकसी ऐसे Óयिĉ से पूिछए जो उसका जानकार हो और िफर िकसी सÆदभª úंथ म¤ उस
िवषय पर जो िलखा हो उसे पढ़ िलिजए । - इससे आप ठीक ठीक ÿij पूछ सक¤ग¤ और कोई
बात छूट नहé पायेगी । - munotes.in

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जनसंचार माÅयम
86 आप Öवयं अिधक न बोल¤ आप का ÿयोजन यह होना चािहए िक िजस Óयिĉ से आप ÿij
पूछते है, वह उनम¤ िदलचÖपी ले और बेिझझक उनके उ°र द¤ । आप का काम सोचने का है,
बोलने का नहé । िफर चतुराई से ÿijं पूछते जाइये । पूरी कथा Êयौरा और नाटकìय
घटनाओं सिहत मालूम कìिजए । सामािĮ से पूवª तÃयŌ का सरसरी तौर पर सÂयापन कर
लीिजए ।
सा±ाÂकार का लेखन:
सा±ाÂकार िलखते समय समालाÈय Óयिĉ का पूरा पåरचय, वाताª का पåरवेश तथा
समालापक कì ÿितिøया का उÐलेख होता है । इसे िनबÆध और ÿijो°र के łप म¤ िलखा
जाता है । कई बार भ¤टवाताª 'फìचर' का łप धारण कर लेती है । ऐसी भ¤टवाताª म¤ चåरý-
िचýण, वातावरण का िववरण तथा शÊद - िशÐप का कौशल िदखा या जाता है जो िफÐमी
पिýका म¤ ÿाÈय है।

*****
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87 ११
रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
रेिडयो नाटक:
(अ) भूिमका:
भारत म¤ रेिडयो से नाटकŌ का ÿसारण सन १९२८ ई म¤ कलक°ा से शुł हòआ था। बंगाल
म¤ रंगमंच परपंरा के ÿभाव के अंतगªत रेिडयो पर जो साĮािहक नाटक हर शिनवार को
ÿसाåरत होता था उसकì अव िध तीन घंटे कì होती थी और उन नाटकŌ म¤ सभी रंगमंच
युिĉयाँ ÿयुĉ होती थé। रेिडयो पर पहला िहÆदी नाटक १९३६ ई म¤ ÿसाåरत िकया गया
था।
भारत म¤ 'नल दयमंती' से लेकर िजतने भी नाटक ÿसाåरत हòए उनम¤ अिधकांश पौरािणक,
(१९४७) ऐितहािसक अथवा łमानी होते थे। िजनका उĥेÔय मनोरंजन था। िवषय कì ŀिĶ
से िहÆदी रेिडयो नाटको म¤ १९४७ के पIJात् िविवधता आने लगी तथा ÖवातंÞयोपरांत
रेिडयो नाटक ने एक नई तकनीक िवकिसत कì जो शÊद, संगीत तथा Åविन ÿभाव पर
आधाåरत थी।
डॉ. िसĦनाथ कुमार के अनुसार “रेिडयो नाटक मूलतः अंधेरे का ही नाटक है। अŀÔय
अंधकार ही इसका रंगमंच है। दशªक नाटक को नही देख सकता, केवल सुन सकता है।
रेिडयो नाटक ÿÂय±ता के बंधन से मुिĉ का नाटक है łप, रंग, ŀÔयबंध, ÿकाश योजना
आिद के बंधनो से यह पूणªतः मुĉ - होता है।"
आकाशवाणी के पूवª चीफ ÿोड्यूसर (नाटक) सÂय¤þ शरत के अनुसार रेिडयो नाटक
“ÿÂयेक ®ोता के मानािसक मंच पर अलग- अलग ढंग से अिभनीत होता है। रेिडयो नाटक
अपने ®ोताओं कì कÐपना के अनुसार ही उनके मानसपटल पर जीिवत होता है, इसिलए
रेिडयो नाटक को मिÖतÕक का रंगमंच (द िथयेटर ऑफ द माइंड) कहा जाता है। रेिडयो
नाटक ÿÂयेक कÐपनाशील ®ोता के मिÖतÕक म¤ उसकì कÐपना के अनुसार साकार łप
लेता है, इस कारण यह अÆय िकसी माÅयम कì अपे±ा मानव के अंतमªन के सूàम से सूàम
मनोभावŌ और संघषō को बहòत कुशलता और द±ता के साथ िचिýत कर सकता है।"
अथाªत िजतना िवÖतार ®ोता के मन का होगा उतना ही िवÖतार इस (रेिडयो नाटक)
माÅयम का होता है। मन का िवÖतार अपने तौर पर होता है। उदाहरणाथª यिद एक शÊद ले
चाँदनी। टेलीिवजन पर जो ŀÔय आपको कैमरा िदखायेगा चाँदनी का उसम¤ और मंच पर
लाइट के माÅयम से, ÿोजे³टर के माÅयम िदखाये गये चांदनी के ŀÔय म¤ अंतर होगा िकंतु
रेिडयो पर जैसे ही आप 'चाँदनी' शÊद सुनते तब जैसी जैसी चाँदनी हमने देखी है, या जो
आपकì यादो से जुड़ी है, आप वैसी ही चाँदनी अपनी कÐपना म¤ संजो लेगे। यह आवÔयक
नहé िक वह चांदनी लेखक Ĭारा सोची हòई चांदनी हो। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
88 अतः जैसा जैसा िवÖतार ®ोताओं के मन का होगा, वह वैसा ही िवÖतार úहण करेगा। अब
ÿij यह उठता है िक यिद रेिडयो नाटक माý सुना जा सकता है देखा नहé जा सकता तो
उसकì आÂमा कहाँ है ? तो इसका उ°र होगा िक सवांद ही रेिडयो नाटक कì आÂमा है।
रेिडयो नाटक कì पत¥ सवांद से ही िखलती है। पाýŌ का पåरचय संवाद से ही िमलता है।
परंतु एकांकì कì तरह रेिडयो नाटक भी आधुिनक युग कì िवधा होने के कारण पाIJाÂय
ÿभाव अिधक लि±त होता है। यह ÿभाव िशÐपगत नहé िवषयगत है, ³यŌिक इससे पहले
िजतने भी नाटक िलखे गए ÿसाåरत नहé होते थे ³यŌिक िशÐप का िवकास नहé हòआ था।
िवकास के ÿथम चरण म¤ नाटक के िवषय और िशÐप दोनो रंगमंचीय नाटक के समान थे।
इन रेिडयो नाटको म¤ लंबे कथानक ढीले-ढीले संवाद और कथन म¤ िÖथरता थी। बाद म¤ यह
अनुभव हòआ िक ®Óय माÅयम को Åयान म¤ रखकर ऐसी रचना होनी चािहए िजसकì ÿतीती
माý ®ुित से करायी जा सके। रेिडयो माÅयम कì पåरिÖथितयŌ को तथा Åविन िविशĶताओं
को Åयान म¤ रखकर रेिडयŌ नाटक तैयार हòए।
(ब) ÖवातंÞयपूवª नाटक कì िवशेषताएँ:
१) रेिडयो नाटक ÿसारण का उĥेÔय शुĦ मनोरंजन था।
२) कथानक , चåरý िचýण , कथोपकथन पर नाटककार कì ŀिĶ न के बराबर थी।
३) बाĻ िचýण कì अिधकता थी तथा वणªनाÂमकता कì ÿधानता थी।
४) ऐितहािसक , जाजूसी, łमानी तथा पौरािणक िवषय तो िलए गए लेिकन तÂकालीन
समÖयाओं का िचýण नहé हòआ।
५) िहÆदी नाट ककारŌ का रेिडयŌ से सीधा संबंध नहé था।
६) आरंभ म¤ रंगमंचीय नाटक रंगमंचीय िशÐप म¤ ÿसाåरत िकए गए तथा बाद म¤ रेिडयो
िशÐप को Åयान म¤ रखकर नाटक रचे गए।
पåरणाम सुगिठत कथानक, सफल संवाद, सरल भाषा , मनोवै²ािनक िवĴेषण तथा
अंतरĬंĬ ÿकाशन संभव हòआ।
(क) रेिडयो नाटक लेखन:
रेिडयो नाटक एक आधुिनक िवधा है, िजसके Ĭारा िविभÆन िवषयŌ, घटनाओं, ÓयिĉयŌ ,
भावŌ एवं वातावरण को ÿÖतुत िकया जाता है। यह ®Óय माÅयम है, इस कारण इसे ®Óय
नाटक भी कहा जा सकता है। रेिडयो नाटक लेखन के िलए लेखक को िनÌनिलिखत िबंदुओं
पर िवचार करना चािहए व िनÌन आवÔयक तÂवŌ को अपनाना चािहए।
१) नाटक का बीज :
नाटक के बीज कहé से भी िमल सकते है, जैसे- अÅययन से, अनुभव से, समाज से, संपकª
म¤ आए ÓयिĉयŌ से या आस-पास के जीवन से। इसके आधार पर लेखक अपनी लेखनी से munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
89 उÆह¤ कथानक, चåरý, संवाद आिद के माÅयम से नाटक के łप म¤ समाज के सामने ÿÖतुत
करता है। इसके िलए लेखक म¤ संवेदनशीलता का होना आवÔयक है।
२) ÖथापÂय और कथानक :
इसम¤ नाटक कì घटनाओं, ÿसंगो, कायª ÓयापारŌ और कथानक से संबĦ सभी बात¤ आती
है। नाटक के ÿारंभ, िवकास और अंत के िविभÆन चरण, संघषª, ŀÔय और सू¸य ÿसंगो का
अनुपात, घटनाओं और पाýŌ का तथा पाýŌ और संवादो का संबंध, ÿभाव कì ŀिĶ से जुड़ी
सभी बात¤ ÖथापÂय के अंतगªत आती है।
कथानक घटनाओं तथा कायª ÓयापारŌ का वह संगठन है िजस पर नाटक कì रचना होती है।
इसिल ए - नाटक का कथानक ऐसा होना चािहए जो ®ोताओं कì िज²ासा को अंत तक
बनाए रखे।
अ) कथानक का िनमाªण:
नाटकŌ के कथानक िकसी न िकसी ÿित²ा सूý पर आधाåरत होते है। इसे समी±कŌ ने
बीज, थीम, - मु´यिवचार, लàय उĥेÔय आिद कहा है। ÿित²ा सूý लेखक कì माÆयताओं
और िवĵास से जÆम - लेता है और कथानक कì łपरेखा को िनिदªĶ करता है। इसके तीन
खंड होते है पहला खंड नाटक के चåरý और ÿारंभ को संकेत करता है, दूसरा खंड नाटक
के अंत को और तीसरा कथानक म¤ िनिहत संघषª को इस तरह कथानक म¤ गितशीलता बनी
रहती है। और आरंभ कì िÖथित अंत तक बदल जाती है।
ब) कथानक िनमाªण के बाद:
कथानक के िनमाªण के बाद लेखक ÿसंगो का ŀÔयŌ के अनुसार िवभाजन का उÐलेख
करता है िक िकस "ŀÔय म¤ कौन-कौन से पाý रह¤गे, िकस िबंदु से उनका सवांद ÿारंभ होगा
और िकस िबंदु तक चलेगा तथा उसे िकतने िमनट का समय देना होगा।
३) चåरý:
चåरý ही नाटक को जीवंत बनाते है। ये चåरý सजीव होने चािहए। सजीव पाý ही िवĵसनीय
होते है। रेिडयो नाटक म¤ पाýŌ कì सं´या अधोरेिखत रखी जाती है। िजससे वह आसानी से
पहचाने जा सके। इस ŀिĶ से रेिडयो नाटक का पाýŌ के मन कì गहराई म¤ उतरना सरल
होता है।
४) ŀÔय संयोजन और ŀÔयांतर:
रेिडयो नाटक म¤ ŀÔयŌ कì सं´या का कोई बंधन नहé है। इसम¤ एक भी ŀÔय हो सकता है
और सौ भी। ŀÔय छोटे भी हो सकते है और बड़े भी ŀÔय, संवाद और समय नाटकìय
ÿयोजन और कथावÖतु के Ĭारा िनद¥िशत होते है।
रेिडयो नाटक म¤ ŀÔयांतर के िलए िवशेष अवरोध नहé होता। ŀÔयांतर तभी होता है जब
वातावरण िनिमªत हो चुका हो, पाý अपनी बात कह चुके हŌ और नाटकìय ÿयोजन िसĦ हो munotes.in

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जनसंचार माÅयम
90 चुका हो। ŀÔयांतर १०-१५ सेकंड का होता है। रेिडयो नाटक म¤ ŀÔयातर करने के ढंग है
चुÈपी, øमागत लोप (फ¤िडंग), ÿवĉा , - Åविन ÿभाव , संगीत और ÿितÅविन
५) आरंभ, िवकास और अंतः रेिडयो नाटक का ÿारंभ अ¸छे संगीत से िकया जाता है।
इसके बाद नाटक आरंभ होता है और यित पकड़ता है। रेिडयो नाटक म¤ गित एक
महßवपूणª तÂव है। ÿारंभ का संगीत और नाटक का आरंभ आøमक न होकर
संवेदनापूणª होना चािहए तथा उसकì गित म¤ कोमलता हो। बीच-बीच म¤ िज²ासा,
रहÖयमयता , कणªिÿय संगीत, वातावरण और कथाÂमकता का समावेश िकया जाना
चािहए। रेिडयो नाटक के आरंभ के कई िबंदु हो सकते है:
(१) कोई नाटक ठीक उस िबंदु से आरंभ होता है जब कोई ĬंĬ सøांित को जÆम देता है।
(२) कोई नाटक ठीक उस िबंदु से आरंभ होता है जहाँ कम से कम एक पाý अपने जीवन
के नए मोड़पर होता है।
(३) नाटक िकसी ऐसे िनणªय से शुł हो सकता है जो संघषª को जÆम देने वाला हो। ४)
नाटक इस िबंदु से आरंभ हो सकता है, जब िकसी का कोई मूÐयवान और महßवपूणª
िवकास दाँव पर होता है।
ऐसे ÿारंभ से नाटक को Öवतः िदशा िमलती है। एक घटना से दूसरी घटना, एक सवांद से
दूसरा सवांद िनकलता है। नाटककार को यह देखना होता िक नाटक म¤ हमेशा तनाव बना
रहे। जहाँ तनाव ढीला होगा, नाटक म¤ िशिथलता आएगी और उसम¤ ®ोताओं को बाँध रखने
कì ±मता कम होगी। ®ोताओं कì łिच और िज²ासा को बनाए रखना जłरी है। नाटक का
अंत समाधान के łप म¤ भी हो सकता है और ÿij के łप म¤ भी। यह नाटककार के उĥेÔय
पर िनभªर करता है िक वह ³या चाहता है और नाटक म¤ कैसा ÿभाव उÂपÆन करना चाहता
है। िजतना महßव नाटक के ÿारंभ का है, उतना ही अंत का और इस ŀिĶ से नाटक का अंत
नाटककार से बड़ी सूझ-बूझ कì अपे±ा करता है।
६) रेिडयो नाटक के उपकरण रेिडयो नाटक के उपकरण इस ÿकार है:
अ) भाषा:
रेिडयो नाटक कì भाषा , सरल, Öवाभािवक , ŀÔयłपाÂमक और अिभनेताओं Ĭारा बोली
जाने वाली भाषा होनी चािहए। रेिडयो नाटक के ®ोता सभी समुदाय के सभी वगª के और
िविभÆन आयु वगª के होते है। इसिलए भाषा म¤ अĴील शÊदŌ का ÿयोग न हो, संÿदाय िवशेष
कì भावनाओं को भड़काने वाले वा³यŌ का ÿयोग न हो, इसका लेखक को Åयान रखना
चािहए। रेिडयो नाटक ®ोताओं को भाव-बोध, Öथान - बोध, फलबोध और मंचन सामúी का
बोध करा सके। संवाद के माÅयम से ®ोताओं को जानकारी िमल उसके िक नाटक म¤ िजस
Öथान का वणªन है वह कहाँ है? पहाड़ है, सागर है या झील है।
रेिडयो नाटक कì भाषा का ÿमुख गुण है िचýाÂमकता । शÊदŌ से िचýŌ का िनमाªण होता है
और łप -रंग कì झाँकì भी ÿÖतुत कì जा सकती है िजससे ®ोता अपनी कÐपना के माÅयम
से नाटक को सुनकर समझ सके। सामúी का बोध करा सके। संवाद के माÅयम से ®ोताओं munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
91 को जानकारी िमल सके िक नाटक म¤ िजस Öथान का वणªन है वह कहाँ है ? पहाड़ है, सागर
है या झील है।
रेिडयो नाटक कì भाषा का ÿमुख गुण है िचýाÂमकता शÊदŌ से िचýŌ का िनमाªण होता है
और łप -रंग कì झाँकì भी ÿÖतुत कì जा सकती है िजससे ®ोता अपनी कÐपना के माÅयम
से नाटक को सुनकर समझ सके।
ब) संवाद रेिडयो नाटक म¤ संवादŌ का ÿयोग तीन łपŌ म¤ होता है:
१) भाषा
२) Åविन ÿभाव तथा
३) संगीत / िविलयम ऐश का कहना है िक "संवाद के अितåरĉ रेिडयो नाटक म¤ थोड़ा-
बहòत Åविन ÿभाव , संगीत आिद सहायता कर देते है, िकंतु संवाद के िबना रेिडयो
नाटक ÿाणहीन हो जाता है।"
रेिडयो नाटक के संवादो म¤ िनÌन िवशेषताओं का होना आवÔयक है:
१) संवाद म¤ कोई न कोई नाटकìय ÿयोजन अवÔय ही िसĦ होना चािहए।
२) संवाद पाýŌ के अनुłप या पåरवेश के अनुłप होने चािहए।
३) संवाद छोटे-छोटे या बड़े-बड़े िकसी ÿकार के हŌ, पर उनका संबंध िÖथितयŌ और
चåरýो आवÔय बना रहना चािहए।
४) संवाद, सरल और Öवाभािवक होने चािहए।
५) संवादŌ के बीच म¤ ÿijŌ का समावेश नाटक के आकषªण म¤ वृिĦ करता है।
६) ÖवगतŌ का ÿयोग रेिडयŌ नाटकŌ के संवादŌ को ÿभावपूणª बनाता है। ÿारंभ म¤ छोटे
ÖवगतŌ का ÿयोग िकया जा सकता है। नाटक के अंत म¤ Öवगत का ÿयोग देर तक नहé
करना चािहए।
७) ÿÂयेक संवाद तÃयपरक होना चािहए।
८) पाýŌ कì गितिविधयŌ सूचना, ŀÔय पåरवतªन का आभास आिद कì सूचना संवादो के
माÅयम से होनी चािहए।
स) नैरेशान:
रेिडयो नाटक म¤ नैरेशन कì िÖथती नाटक िवशेष एवं उसके ÿकार पर िनभªर करती है।
रेिडयो नाटक म¤ नैरेशन दो ÿकार के होते है।
१) वे नैरेशन िजनके Óयिĉगत जीवन का नाटक कì घटनाओं से कोई संबंध नहé होता। वे
नाटक के िøयाकला प के तटÖथ दशªक एवं ÿवĉा होते है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
92 २) वे नैरेशन जो नाटक के पाý होते है और िजनके जीवन कì घटनाएँ नाटक से ÿÂय±
संबंध रखती है। ऐसे नैरेशन को पाý नैरेशन भी कहते है।
द) Åविन ÿभाव :
रेिडयो नाटक म¤ Åविन सूचना और िववरण का काम करती है। अनेक ÿकार कì ÅविनयŌ से
नाटक को िविशĶ आकार ÿाĮ होता है और संवेदनाओं से संबĦ अथªवृ° ®ोताओं के
मानस पटल पर अंिकत हो जाते है। वाī संगीत कì आवÔयकता, Åविन ÿभाव पाýŌ के
कायŎ, ÿवाह कì र±ा , मानिसकता कì तैयारी, देशकाल, ŀÔयांतर, िचýमयता , उÂसुकता
कì र±ा के िलए होती है।
य) संगीत:
रेिडयो नाटक म¤ संगीत का ÿयोग तीन ÿकार से िकया जाता है;
१) Öवतंý łप म¤,
२) संलाप कì पृķभूिम म¤,
३) Åविन ÿभाव के साथ िमि®त łप म¤ नाटक को सशĉ बनाने का नाटककार के पास
एक शľ है।
पृķभूिम का संगीत:
संगीत Ĭारा जहाँ नाटक के ÿभाव म¤ तीĄता लाई जाती है, वहाँ ŀÔय िवशेष को संगीत कì
सहायता से िचिýत िकया जाता है। रेिडयो नाटक म¤ पाý कì भावनाओं एवं मानिसकता का
उĤाटन भी संगीत कì सहायता से िकया जाता है।
७) उĥेÔय:
रेिडयŌ नाटक का उĥेÔय मनोरंजन के साथ-साथ मनुÕय के अंतजêवन को भी िचिýत करना
है। अपने आसपास कì समÖयाओं को रेखांिकत करने और उनके ÿित लोगŌ म¤ जागłकता
उÂपÆन करने के िलए नाटक कì रचना कì जाती है।
८) शीषªक:
नाटककार िकसी भी िवषय को आधार बनाकर नाटक िलख सकता है चाहे वह ऐितहािसक
हो, पौरािणक हो , सामािजक हो या पाåरवाåरक नाटक हो। नाटक का शीषªक िवषय से संबĦ
होना चािहए। नाटककार को िवषय का चुनाव करते समय ®Óय ÅविनयŌ कì संभावनाओं का
Åयान रखना आवÔयक है।
रेिडयो नाटक िविभÆन łिचयŌ के िलए िविभÆन ÖथानŌ पर सुनते है। अतः नाटककार को
ऐसा िवषय लेना चािहए जो ®ोताओं कì łिच के अनुłप हो। उÐलेखनीय है िक िवषय से
अिधक महßव िवषयवÖतु और उसकì ÿÖतुित का है। munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
93 इस ŀिĶकोण से नाटककार को िवषयवÖतु कì ÿÖतुित उस धरातल पर करनी होगी, जहाँ
सभी Óयिĉ समान है। यह धरातील रागाÂमकता का हो सकता है, बौिĦकता का नहé।
रेिडयो नाटक कì तीसरी सीमा ÿसारण संÖथा कì नीितयŌ से िनधाªåरत होती है। जहाँ
रेिडयो शासन Ĭारा िनयंिýत है, वहाँ ÓयवÖथा िवरोधी िकसी िवषय, िवषयवÖतु या
िवचारधारा के िलए अवकाश नहé बचता।
(ख) रेिडयो वाताª:
"वाताª" शÊद का अथª है- वृतांत, बातचीत और ²ानवधªक बातचीत (टॉक)। िजसे अँúेजी म¤
'Öपोकन वडª' कहते है। वैसे "वाताª" शÊद अँúेजी "टॉक" का अनुवाद है। "वाताª" शÊद
आमतौर से रेिडयो के िलए łढ़ होकर एक िवशेष अथª का भी बोध कराता है। रेिडयो से
ÿसाåरत होने वाली वाताª वही नहé , जो वाताª हमारे जीवन म¤ हòआ करती है। बोलचाल के
Óयवहार म¤ जो वाताª होती है उसम¤ दो या दो से अिधक Óयिĉ आपस म¤ बातचीत करते है।
रेिडयŌ वाताª का अथª कुछ िविशĶ होता है। इसम¤ दो प± होते है वĉा और ®ोता। वाताª म¤
संवाद कì - संभावना नहé रहती। यह एक प±ीय होती है। ÿÂय± łप से संवाद न होते हòए
भी अ¸छी वाताª म¤ संवादी ÿवृि°यŌ का ÿितिनिधÂव आवÔयक है। इसके िलए वाताª म¤
वाताªकार को दो चार वा³य के बाद एक ऐसा - वा³य या भाव लाना चािहए , िजससे यह
ÿतीत हो िक वह और ®ो ता आमने सामने है।
रेिडयो वाताª म¤ ®ोता प± कì संवादी ÿवृि° कì िजÌमेदारी वाताªकार कì ही होती है। अथाªत
अपनी वाताª म¤ वाताªकार यह समझ ले िक ®ोता उसकì वाताª के साथ अपनी मानिसकता
को बाँधे हòए है। और उसकì अिभÓयिĉयŌ के साथ ®ोताओं का भावबोध जुड़ा होता है।
रेिडयो के अिधकांश ÿसारणŌ म¤ आलेख कì अिनवायªता होती है इसिलए वाताª के िलए भी
आलेख आवÔयक हो जाता है। लेिकन इस ±ेý म¤ कुछ िववाद भी है। लेखन पĦित
(आलेख) के िवप± म¤ मत रखने वालो के िवचार है िक सजग वाताªकार ÿाकृितक łप म¤
वाताª नहé िलख सकता; ³यŌिक वाताª अपने स¸चे łप म¤ तभी संभव है, जब वĉा अनायास
बोले। लोग सामाÆय łप से तभी Öवाभािवक रह सकते है, जब िबना आलेख के बातचीत
कì जाए। ऐसे वाताªकारŌ म¤ एक पिIJमी िवĬान ®ीमती łजवेÐट का नाम बहòचिचªत है,
®ीमती łजवेÐट िबना आलेख के रेिडयŌ पर अपनी वाताª ÿसाåरत करती थी। िलिखत न
होते हòए भी उनकì वाताª म¤ एक अ¸छी वाताª कì संपूणª िवशेषताएँ समािहत रहती थé। इस
तरह के वाताªकारŌ म¤ भारत के ®ी किपलदेव िसंह का नाम भी चिचªत है।
रेिडयो के िलए कैसी वाताª िलखी जाये; जो ®ेķ और Öवाभािवक हो ? ³या Öवाभािवक और
रोचक बनाने के िलये यह आवÔयक है िक हम जैसे बोलते ह§; वैसे ही िलख¤ ? बातचीत नुमा
वाताª के बारे म¤ अंúेजी लेखक ®ी डनवर ने कहा "वाताª के िलए आलेख तैयार करने म¤
बातचीत कì अÆतधाªरा को पकड़ना चािहए। अगर आप लोगŌ को गौर से बाते करते हòए
देख¤गे, तो पाय¤गे िक बातचीत का अपना एक खास ढराª होता है लेिकन पुÖतकŌ कì तरह
लंबे-लंबे वा³य और िवशेषण भरे वा³य खंड का Óयवहार नही करते वे मुहावरŌ म¤ और
अ¸छे वा³यŌ म¤ बात¤ करते है।"
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जनसंचार माÅयम
94 अ¸छी रेिडयो वाताª के िलए िनÌन बातŌ पर Åयान देना चािहए:
१) ®ोता का ±ेý बाँधा नहé जा सकता:
वाताª िवषय के आधार पर यह आवÔयक नहé िक उसे केवल वही वगª सुन रहा है िजससे
वाताª संबंिधत है। ®ोता का ±ेý बाँधा नहé जा सकता; पर ®ोता को अपनी वाताª के Ĭारा
बाँधने का ÿÂयन करना चािहये। इसके िलये आवÔयक होगा िक बड़े रोचक और ऐसी
चुंबकìय शिĉ से ÿÖतुत कर¤ तािक ऐसे ®ोता जो हमारे िवषय ±ेý से अलग के है वे भी
हमारे अपने हो जाये।
२) लेखन योजनाबĦ हो:
रेिडयो वाताªलेखक के िलए यह आवÔयक है िक वह जो भी िलखे वह योजनाबĦ łप म¤
अथाªत् िवषय और उसके िवÖतार को अ¸छी तरह समझना अिनवायª है। वाताª
िवĴेषणाÂमक ढंग से िलखी जानी चािहये। ऐसा न करने पर वाताª के समÖत उपादानŌ का
िववेचन नहé हो पाता। उदा. 'सािहÂय कì ÿासंिगकता नामक वाताª म¤ यिद सािहÂय कì ही
िववेचना आधे से अिधक समय कì जाये तो वाताª कì समािĮ तक उसके अवयवŌ कì
संतुिलत Óया´या नहé हो पायेगी। इसिलए वाताª म¤ संतुलन बनाये रखना आवÔयक है।
(३) समय का िवशेष Åयान रखे:
वाताªलेखन म¤ समय का िवशेष Åयान रखना चािहये। वाताª कोई भी हो उसका िनधाªåरत
समय होता है; उसी के भीतर ÿसाåरत कì जाती है इसिलए िनधाªåरत समय के भीतर अपनी
बातŌ को पूणªता और ÿभावोÂपादक ढंग से कह देना भी वाताª और वाताªकार कì सफलता
है।
४) शÊदŌ कì पुनरावृि° न हो:
कभी वाताªकार कुछ ऐसे शÊदŌ कì पुनरावृि° बार बार करता है जो आवÔयक नहé है। वाताª
म¤ शÊद - पुनरावृि° नहé होनी चािहए। उदा. "हम तमाम लोग जब खुश होते है - तो हँसते है,
दुःखी होते है - तो रोते है, खुश होते है - तो चीखते-िचÐलाते है, और उदास होते है - तो
चुप रह जाते है।" यहाँ इस वाताª म¤ होते है। कई बार ÿयोग हòआ है जो साथªक होते हòए भी
उिचत नहé। वाताª म¤ िनरथªक शÊद ÿयोग भी विजªत है।
५) शÊदŌ म¤ Åविन साÌय न हो:
वाताª म¤ Åविन साÌय शÊदŌ को साथ नहé िलखना चािहए ³यŌिक ऐसे शÊदŌ के उ¸चारण म¤
थोड़ी सी चूक होने पर अथª का अनथª संभािवत है। उदा. "हम सब सभय समय को िनहारते
है।" यहाँ 'समय' और 'समय' सभी सभय सभय अथवा समय समय अथवा समय सभय
उ¸चाåरत हो सकते है। इसिलए - ऐसे शÊदŌ के ÿयोग से बचना चािहए।
६) वाताª के िवषय म¤ उतार - चढ़ाव हो:
®ेķ वाताª के िलए िवषय म¤ उतार-चढ़ाव और '³लाइमे³स' का समावेश होना चािहए। ऐसी
वाताª म¤ ®ोता को कोई तनाव नहé होता। इसम¤ ®ोता वाताª के साथ चलता हòआ आनंद का munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
95 अनुभव करता है, ³यŌिक ऐसी वाताª से उसे कुछ िमलता है। वाताª म¤ िबÌब, हाÖय - Óयंµय
और हािजर जवाबी का समावेश आवÔयक है।
७) तारतÌय:
तारतÌय अ¸छी वाताª कì सवª ÿमुख िवशेषता है। तारतÌय और िवषय का संबंध अटूट होता
है। िवषय से जब कोई ®ोता जुड़ जाता है तो वह िवषय के साथ चलना चाहता है। तारतÌय
समाĮ होते ही ®ोता ÖवÈन भंग कì िÖथती म¤ पहòँच कर ®ावण से अपने को अलग कर लेता
है।
इसी ÿकार वाताª के अंतगªत सूýाÂमक वा³यŌ का ÿयोग भी विजªत है और वाताªकार को
वाताª के आरंिभक Öवłप को काफì सुÓयविÖथत, मनोरंजक एवं ÿभावोÂपादक łप म¤
ÿÖतुत करना चािहए। भाषा और शÊद के पिडÁता łप को कभी वाताª म¤ शािमल नहé करना
चािहए। और रेिडयो वाताª का वाचक शुĦ होना चािहए।
रेिडयो वाताª के भेद:
वाताª के कुछ भेद कायªøम िवशेष के आधार पर िकए जाते है जैसे औरतŌ के िलए, ब¸चŌ के
िलए, युवावगª के िलए और िवīाथê के िलए आिद। इनके अलावा और भी अनेक ÿकार कì
वाताªएं होती है- समाचार , समाचार समी±ा , पåरचचाª, Óयंµय िवनोद, खेती गृहÖथी और
उĤोषणाएँ आिद। कुछ - वाताªएँ ऐसी होती है िजनम¤ वाताª संबंधी समÖत िवशेषताएँ लागू
होकर भी अपनी एक अलग पहचान बनाती है उदाहरणाथª तÃयपरक वाताª, सÖमरणाÂमक
वाताª, आÂमकथाÂमक वाताª, वैयिĉकवाताª और िववादाÖपद वाताª आिद ।
१) तÃयपरक वाताª:
तÃयपरक वाताª को तÃयŌ से बोिझल नहé होना चािहए। तÃयŌ का समावेश
आवÔयकतानुसार हो। इसम¤ तÃय संबंधी सूचना कदािप गलत न हो। जैसे भूल से भी अगर
कोई वाताªकार यह कह गया- "लाल िकला मुंबई म¤ समुþ के िकनारे मुगल बादशाहत का
अनोखा नमूना है।" ऐसी भूल के िलए वाताªकार के साथ ÿोड्यूसर एवं रेिडयŌ अिधकाåरयŌ
कì भी कायªकुशलता पर ÿij िचĹ लग जायेगा।
२) संÖमरणाÂमक वाताª:
संÖमरण ÿधान वाताªएँ रेिडयो के िलए बहòत उपयोगी है। इस तरह कì वाताª म¤ कहé न कहé
कथा तÂव का समावेश अवÔय रहता है, जो ®ोता को वाताª से अलग नहé होने देता। वÁयª
िवषय के आधार पर ही वाताªकार संÖमरणाÂमक वाताª म¤ उस Óयिĉ, घटना Öथान आिद से
संबंिधत बात¤ करेगा। ऐसी वाताª म¤ "म§" का वाचन पूणªतया विजªत है।
३) आÂमकथाÂमक वाताª:
आÂमकथाÂमक वाताª का िसĦांत संÖमरणाÂमक वाताª के िवपरीत होता है। ³यŌिक इसम¤
वाताªकार के िलए अपने बारे म¤ कहने कì काफì छूट रहती है। ऐसी वाताªओं का िवषय िकसी munotes.in

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जनसंचार माÅयम
96 ´याित लÊध और ÿमुख ÓयिĉÂव से सÌबिधत हो या एक साधारण आदमी, जो कुछ ऐसी
बातŌ को बतला रहा हो िजससे ®ोता चमÂकृत हो जाये।
४) वैयिĉक वाताª:
वैयिĉक वाताª म¤ भी काफì गुंजाईश होती है । इनम¤ वाताª िकसी Óयिĉ से सÌबंिधत होती
है, पर उसका आधार Óयिĉ न होकर कोई दूसरा िवषय होता है। 'आÂमा ' पर यिद कोई आम
नागåरक अपने वैयिĉ िवचार दे तो उसके िवचार और यिद 'आÂमा ' पर कोई वै²ािनक अपने
िवचार दे तो दोनŌ के अपने वैयिĉक िवचार ही वाताª म¤ खुलकर सामने आय¤गे।
(ग) रेिडयो नाट्य łपांतर:
रेिडयो ®Óय माÅयम है। इसके िलए िवशेष łप से िलिखत नाटकŌ के अितåरĉ उपÆयास,
कहानी तथा रंग नाटक को łपांतåरत कर ÿसाåरत िकया जाता है। रंग नाटक ÿे±ागृह म¤ बैठे
दशªकŌ के सÌमुख ÿÖतुत करने के िलए रचा गया होता है जबिक कहानी था उपÆयास पढ़ने
के िलए िलखे जाते है। ऐसी रचनाओं का łपांतåरत łप उÆह¤ रेिडयो ÿसारण के उपयुĉ
बना देता है।
अतः जब िकसी कहानी का łपांतर होता है, तो उसम¤ से वणªनाÂमक अंश िनकालकर
संघषª, कौतूहल तथा नाटकìय तÂवŌ वालो अंश शािमल िकए जाते है। साथ ही यह भी Åयान
रखा जाता है िक मूल कृित का िवचार नĶ न हो।
रंगनाटक ÿायः दो या तीन घंटे कì अविध का होता है। िकंतु इसका रेिडयŌ łपांतर या तो
३० िमनट या िफर एक घंटे कì अविध तक का होता है। मूल नाटक म¤ कई ÿसंग होते है।
िकसको छोड़ा जाए और िकसको रखा जाए , यह एक समÖया होती है। इसिलए उपकथाओं
को छोड़कर केवल मु´य ÿसंग को ही łपांतåरत नाट्य आलेख म¤ रखा जाता है।
उदा. (ŀÔय पåरवतªन संगीत)
िबयांका : केथरीन ! मेरी अ¸छी बहन, अब मुझे और मत सताओ। मुझे नौकरानी
बनाकर रखना तुÌह¤ शोभा नहé देता। मेरे हाथ खोलो केथरीन म§ ये चमक
दमक वाले कपड़े खुद ही उतार दूँगी। िफर जैसा तुम कहोगी वैसा ही कłंगी।
केथरीन : िबयांका, जरा ये बताओं िक तुÌहारा हाथ माँगने आए सारे लोगŌ म¤ से तुÌह¤
सबसे अ¸छा कौन लगा ? देखो, स¸चाई िछपाने कì कोिशश मत करना।
िबयांका : मेरा िवĵास करो बहन। उनम¤ से शायद ही िकसी कì सूरत मुझे पसंद हो।
केथरीन : अरी, झूठी ³यŌ, वे हॉरटेिÆसयो नहé है जो तुझे......
िबयांका : अगर उसने तुÌह¤ ÿभािवत िकया है कैथरीन, तो म§ कसम खाती हóँ, म§ खूद
उसके िलए तुÌहारी वकालत कłँगी।
केथरीन : तो िफर तुÌह¤ िकसी दौलत ने åरझाया है। यानी तुÌह¤ úेिमयो ही पसंद आया। munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
97 िबयांका : ³या, तुम उसी के कारण मुझसे ईÕयाª करने लगी हो ? बहन, म§ ÿाथªना करती
हóँ, मेरे हाथ खोल दो ।
केथरीन : हाथ खोल दो ।
Åविन ÿभाव:
(ध³का देने कì Åविन िबयांका कराहती है।)
बेपिटÖटा : (आते हòए) केथरीन! जाओ अपना काम करो। िबयांका से मत उलझो। न जाने
कौन-सा शैतान िछपा बैठा है तुÌहारे अंदर। हर समय इसे परेशान करती
रहती हो। कभी इसने तुÌह¤ बुरा भला कहा ? बताओं ।
केथरीन : इसकì चुÈपी िकसी ितरÖकार से कम है ³या ? इसका बदला म§ जłर लूँगी।
बेपिटÖटा : अरे, मेरे सामने भी छोटी बहन पर हाथ उठाने लगी ? िबयांका तुम अंदर
जाओ ।
Åविन ÿभाव:
(जाते हòए कदमŌ कì Åविन) कैथरीन हाँ, हाँ यह तो तुÌहारी सब कुछ है उसकì तो शादी भी
होनी चािहए और म§? म§ उसकì शादी के िदन नंगे पाँव नाचूँ ? (जाते हòए) तुÌहारी छोटी बेटी
के Èयार कì खाितर म§ जहÆनुम म¤ ....... बेपािटÖटा (लंबी साँस भरकर) ओह... ³या कोई
आदमी मेरे जैसा दु:खी होगा ? : Åविन ÿभाव (कुछ ÓयिĉयŌ के आने कì आहट)
(आकाशवाणी से नाटकŌ के अिखल भारतीय कायªøम म¤ िवĵ रंगमंच िदवस के उपलàय म¤
ÿसाåरत शे³सपीयर के 'टेिमंग ऑफ द Ňु' का िहÆदी रेिडयो नाट्य łपांतर ÿसारण ितिथ :
२३ माचª - १९९५)
कहé कहé रंग नाटकŌ के łपांतåरत łप म¤ मु´य ÿसंगो को जोड़ने के िलए सूýधार अथवा
नैरेटर को भी रखा जाता है। परंतु जब नाटक के अंशŌ, ŀÔयŌ अथवा घटनाओं को नैरेटर
Ĭारा जोड़ा जाता है। तो नाटक कì गित म¤ अंतर आता है। फìचर या आलेख łपक म¤ तो
नैरेटर का होना िनतांत आवÔयक है िकंतु रंग नाटक के łपांतåरत łप म¤ इसका इÖतेमाल
बहòत कम होता है।
कहािनयाँ, पुÖतकŌ म¤ ÿकािशत होने के अितåरĉ पिýकाओं म¤ भी छपती है। कई कहािनयाँ
पाठकŌ म¤ लोकिÿय भी होती है। ऐसे कथा सािहÂय का ®Óय माÅयम के िलए łपांतर करते
समय भी किठनाई आती है। ³यŌिक अिधकतर कहािनयŌ म¤ नाटकìय तÂव नहé होते है,
घटनाएँ कम होती है, और कुछ कहािनयŌ के कथानक सशĉ नहé होते। ऐसी रचनाओं को
३० िमनट के नाटक म¤ पåरवितªत करने के िलए नये ÿसंगŌ व नए पाýŌ को भी जोड़ा जाता
है। िजन कहािनयŌ के मूल म¤ कोई ĬंĬ नहé होता उनका łपांतरण और भी किठन होता है।
अतः ऐसी कहािनयŌ के कथावÖतु को आधार बनाकर नया नाटक िलखा जाता है तथा
कहानी पर आधाåरत नए नाटक म¤ नए पाýŌ का सृजन िकया जाता है। िकंतु ऐसा łपांतर
एक ÿितभाशाली नाटककार ही कर पाता है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
98 उपÆयासŌ म¤ कई उपकथानक होते है। उपÆयासŌ म¤ पाýŌ कì सं´या भी अिधक होती है। इस
कारण रचनाकì आवÔयक घटनाओं तथा अंगŌ को आधार बनाकर łपांतर िकया जाता है
और आवÔयक घटनाओं तथा अंगŌ को आधार बनाकर łपांतर िकया जाता है और
अनावÔयक ÿसंग व पाý िनकाल िदए जाते है। संवादŌ को सरल बनाया जाता है। कहé कहé
पूवª Öमृित कì तकनीक से पूवª ÿसंगŌ को - - जोड़कर सीिमत समय म¤ ÿसाåरत होनेवाली
रचना के łप म¤, एक उपÆयास को łपांतåरत िकया जाता है।
(घ) रेिडयŌ आलेख łपक (डा³यूम¤ůी फìचर):
रेिडयŌ łपक:
रेिडयो पर ÿसाåरत łपक नाटकŌ म¤ इतनी िविभÆनता िविवधता (िवषय और łप दोनŌ ढंग
से) है िक पåरभाषा देना अÂयंत किठन कायª है। इस नाट्य िवधा म¤ इतने िशÐपगत ÿयोग हòए
है िक शायद ही सािहÂय कì िकसी अÆय िवधा म¤ हòए हŌ। कुछ िवĬानŌ ने समÖत रेिडयŌ
ÿसाåरत नाटकŌ को łपक माना है िकंतु łपक शÊद अँúेजी के (Feature) फìचर का
अनुवाद है। िहÆदी म¤ łपक शÊद “łप” शÊद म¤ "क" ÿÂयय लगाकर बनाया गया है। "क" का
अथª करनेवाला होता है। (जैसे Ăम से Ăामका) अतः łपक का अथª हòआ łपवाला रेिडयŌ
łपक लेखन एक Öवतंý कला है। िजसकì िशÐप िविध का िनमाªण रेिडयŌ ने Öवंय िकया।
इसम¤ वाÖतिवक जीवन का िचýण होता है। रेिडयŌ नाट्य िशÐप को Åयान म¤ रखकर िकसी
नाट्येतर रचना को łपांतåरत कर देना ही रेिडयो łपक है।
"िफचर " एक ऐसा आलेख होता है िजसम¤ सÂय एवं तÃय का उĤाटन सÿमाण रोचक ढंग से
ÿÖतुत िकया जाता है। उसम¤ सÂय एवं तÃय के िनłपण म¤ कÐपना शीलता एवं
ÿÂयुÂपÆनमित से पुĶ सृजनाÂमक कौशÐय िनिहत रहता है। इस ÿकार रेिडयŌ łपक के बारे
म¤ िभÆन-िभÆन िवĬानŌ का िभÆन मत है-
१) काँ दशरथ ओझा के अनुसार रेिडयो łपक म¤ कथाकार नामक एक Óयिĉ वणªन Ĭारा
पूवाª पर घटनाओं को संयुĉ करता चलता है।
२) डॉ. रामचरण महेÆþ: रेिडयो łपक वह रचना है िजसम¤ एक ÿवĉा वातावरण का
पåरचय देते चलता है। मÅय म¤ आनेवाले ÿसंगो को नाटकìय अिभनव Ĭारा Óयĉ िकया
जाता है।
३) पं. उदय शंकर भĘ: रेिडयŌ łपक म¤ घटनाओं का संकलन एवं िवकास सूýाधार Ĭारा
होता है।
४) िशलनाथ łपक को वाÖतिवकता का नाटकìयकृत łप माना जाता है।
उपयुĉ पåरभाषाओं पर िवचार करने से िनÌन तीन बात¤ रेिडयŌ, łपक के िलए अिनवायª है।
१) वह वाÖतिवक घटना पर आधाåरत हो।
२) उसम¤ नाटकìयता है।
३) उसम¤ एक कथाकार नैरेटर कì उपिÖथती अिनवाªय हो। munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
99 इस ÿकार कह सकते है िक रेिडयŌ łपक वाÖतिवक तÃयŌ पर आधाåरत सािहÂय कì वह
अधªनाटकìय िवधा या नाटकìय िवधा है िजसम¤ एक या अनेक कथाकार घटना सूýŌ को
संबंध करते चलते है। इसम¤ कथाकार के अितåरĉ अÆय पाý भी होते है।
रेिडयŌ łपक का रचना िवधान कैसे बनाएँ:
इसका रचना िवधान वृ° łपक जैसा ही है। इसकì रचना के पूवª łपक के िवषय वÖतु का
चयन करने के िलए रचना कì एक łपरेखा का िनमाªण करता है। िफर वह सामúी का चयन
करता है। इसके बाद एक िविशĶ िशÐपिवधी को िनिIJत करता है तथा चयिनत सामúी का
अÅययन करता है तथा रचना कì सृिĶ करता है। इसके िनÌनिलिखत चरण है-
१) łपरेखा िनमाªण और िशÐप का िनधाªरण
२) सामúी चयन
३) सामúी का अÅययन
४) रचना का िनमाªण सफल
रेिडयो łपक कì िवशेषताएँ:
१) वतªमान के समÖत िशÐप और ÿाचीनकाल कì कथा कहने कì कला अिनवायª है
³यŌिक वे सुनने के िलए िलखे जाते है। अतः सुनने वाल¤ म¤ अफसाना िनगारी का गुंज
(कथा कहने का गुण) होना अिनवायª है।
२) łपक के िलए यह अिनवायª है िक वह रचना िशÐप और रचनाकार के मौिलक
कारियýी ÿितभा के साथ सुंदर सामंजÖय Öथािपत करे।
३) तÃय पूणªता के साथ उसम¤ मनोरंजकता का संिÌम®ण अिनवायª है।
४) ®ोता को संपूणª िवषय कì संपूणª जानकारी करा देना आवÔयक है।
सफल रेिडयŌ łपककार के कायª:
१) ÿÖतुतीकरण का आरंभ ÿभावशाली होना चािहए।
२) मनोरंजकता का समावेश करे।
३) नाटकìयता और अिभनेयता का समुिचत समावेश होना चािहए।
४) अपने उĥेÔय को ÖपĶ जानता हो।
५) भाषा म¤ यथा संभव ÿसाद गुण संपÆनता का समावेश हो।
रेिडयŌ łपक का वगêकरण :
१) कÐपना ÿधान munotes.in

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जनसंचार माÅयम
100 २) वÖतु ÿधान
३) हाÖय ÿधान
रेिडयŌ łपक और रेिडयŌ नाटक म¤ भेद:
१) łपक ÿायः तÃयŌ पर आधाåरत होता है। उसम¤ कÐपना के िलए Öथान नहé होता
िकंतु रेिडयŌ नाटक कÐपना के सहारे चलता है। (अथाªत उसम¤ कÐपना कì ÿधानता
होती है। और तÃय सीिमत होते है।)
२) łपक म¤ ÿायः सूýाधार या नैरेटर कì आवÔयकता होती है। नाटक म¤ नैरेटर नहé
होता।
३) नाटक अिभनय और नाटकìयता से पूणª होता है। िकंतु łपक को कभी कथाकार या
नैरेटर भी ÿÖतुत करते है। इसम¤ नाटकìयता या अिभनेयता कì िÖथित आती ही नहé
है। संपूणª łपक नैरेटर के िववरण म¤ ही समाĮ हो जाता है।
४) łपक कथा (नैरेशन) ÿधान होता है तथा नाटक संवाद ÿधान होता है।
५) नाटक का ए³य कथानक पर िनभªर करता है और łपक का ए³य िवचार पर िनभªर
करता है। नाटक म¤ एक घटना िवकिसत होती है, łपक म¤ िवचार आगे बढ़ते है।
६) नाटक म¤ चåरý िचýण पर बल िदया जाता है । łपक म¤ तÃयŌ के ÿÖतुतीकरण पर
जोर िदया जाता है ।
७) नाटक म¤ मनोरंजक तÃय कì ÿधानता रहती है। łपक म¤ सूचक तÃय कì ÿधानता
रहती है।
वृ° łपक (वृ° िफÐम) डा³यूम¤टरी:
लोरेÆस िवलीयम का १९३४ म¤ ÿथम वृ°łपक ÿÖतुत हòआ था।
भारत का ÿथम वृ° łपक रेिडयŌ पर ÿसाåरत हòआ था।
गोपालदास खýी का ÿथम वृ° łपक (िहÆदी) १९५९ म¤ 'कुŁ±ेý शरणाथê' कैÌप िदÐली म¤
ÿÖतुत िकया गया था।
सन १९५१ िदÐली म¤ दूसरा िहÆदी वृ° łपक हरीशचंþ शरणाथê जीने नीलोखेड़ी (नील
कì खेती) बनाया। इलाहाबाद से िगåरजाकुमार माथुर कì 'दामोदर घाटी ' १९५३ म¤ ÿÖतुत
हòई ।
'लखनऊ चौक ' मोहÌमद हसन ने १९३४ म¤ वृ°łपक बनाया ।
मोहÌमद हसन ने 'उसª बाजा गरीब िनवाज' łपक बनाया। िवजय देवनारायण शाही ने
'िमरजापुर' का कालीन उīोग यह वृ°łपक बनाया था ।
राजा ºयोितष ने 'नारस का जरी उīोग ' नामक डा³यूम¤ůी बनायी। munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
101 वृ° łपककार को जीवन कì वतªमान गंभीर समÖयाओं के ÿित सजग और सामािजक
कतªÓयŌ के ÿित जागłक रहना चािहए। िजसम¤ िचिýत वÖतु कì सुंदरता ÿभावोÂपादक और
भÓयता के साथ ही वृ° łपककार को जीवन कì सÂयता और जनता के िलए उसकì
उपयोिगता का Åयान रखना चािहए अथाªत् वृ° łपक को जनकता म¤ बदलना चािहए।
वृ° łपक के ÿकार:
१) ÿासंिगक वृ° łपक (समय के अनुसार)
२) सृजनाÂमक वृ° łपक (पåरपूणªता)
łपक आलेखन म¤ सावधािनयाँ:
१) िलिखत सामúी का अिध³य न हो।
२) तÃयपूणª यथाथª जीवन म¤ úहण कì गई सामúी कì अिधकता हो ।
३) उसम¤ वणªन, िववरण और नाटकìय ŀÔय यथा संभव कम हो।
४) अिधकांश कथावÖतु मूल पाýŌ Ĭारा ÿकट कì गयी हो।
५) इसम¤ मूल पाý अपनी Öवाभािवक िøयाओं Ĭारा ÿकट हो, दूसरŌ के भाषणŌ या
Óया´यानŌ Ĭारा नहé।
वृ° łपक ( डा³यूम¤टरी) बनाने के िलए आवÔयक सामúी:
१) łपरेखा
२) सामúी चयन
३) सा±ाÂकार
४) ÿij उ°र Ĭारा
५) भाषण आिद åरका डª Ĭारा
६) Åविनÿभाव या वा³य संगीत åरकाडª Ĭारा
७) सामúी संगुफन संपादन।
डा³यूम¤ůी लेखन िविध:
टेलीिवजन के िलए डा³युम¤ůी िलखने के िलए सबसे पहले िवषय का िनधाªरण आवÔयक है।
तÂपIJात् डा³यूम¤ůी के उĥेÔय पर िवचार करना होगा। उĥेÔय का िनधाªरण दशªक वगª पर
िनधाªåरत होता है। इसके बाद सबसे आवÔयक पहलू है अविध, िवषय कì ÿÖतुित के िलए
लेखक कì Öवतंýता । िनमाªता कì आिथªक िÖथती के साथ ÿÖतुतकताª िवशेष आिद से
िमलकर िकया गया िवमशª िनणाªयक होता है। िवचार िवमशª Ĭारा कायª के साथ िकया जाने
वाले Óयवहार (ůीटम¤ट) का िनधाªरण करना होता है। अथाªत यह िनिIJत िकया जाता है िक munotes.in

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जनसंचार माÅयम
102 ÿÖतुत डा³यूम¤ůी शैली म¤ होगी या कम¤ůी Ĭारा अथवा एनीमेशन Ĭारा कभी ऐसे भी ±ण
आते है जब िवषय िवशेष अथवा Öथान को लàय बनाकर कैमरा टीम भेज दी जाती है और
जब ŀÔय कैमरे म¤ बंद होकर Öटूिडयो म¤ आ जाता है। जब िवषय िवशेष अथवा Öथान को
लàय बनाकर योµय बनाया जाता है।
कैमरा टीम भेज दी जाती है और जब ŀÔय कैमर¤ म¤ बंद होकर ÖटूिडयŌ म¤ आ जाता है तो
उसे देखकर लेखक आवÔयकता अनुसार लेखन करता है और िफर उन एकिýत ŀÔयŌ को
øमबĦ करके ÿÖतुित, िवषय अविध , तÃयŌ का संकलन अÂयंत गंभीर शोध कì माँग करते
है ³यŌिक डा³यूम¤ůी म¤ सÂयता का तÂव अिनवायª है। तÃय एकिýत करने के बाद उÆह¤ एक
आलेख म¤ उपिÖथत िकया।
शॉट का िववरण :
१) िविभÆन फुटबॉल मैचŌ के ŀÔय (पूवª के फुटबाल मैच के िवषय)
२) āाजील के िखलाड़ी और उसके समथªक इटली के िखलाड़ी और उसके समथªक
३) Āांस का नगर जहाँ मैच होने वाली है ।
४) úाउंड पर ÿैि³टस करते िखलाड़ी
ŀÔयबंधीकरण:
१) फाइल से
२) एक लॉगशॉट तथा एक िमडशॉट और एक िमड शॉट और उसके साथ एक ³लास łम
शॉट
३) लॉग शॉट Öटेिडयम का ŀÔय
४) लॉग शॉट िमड शॉट
समय:
१) ३० सेक¤ड
२) १० सेक¤ड
३) १० सेक¤ड
४) ५ सेकेÁड
५) ४ सेकेÁड
६) ३ सेकेÁड
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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
103 Åविन:
१) मैदानी खेलो म¤ एक महßवपूणª खेल है फुटबॉल यह ताकत का खेल है ।
२) यह खेल िवĵÖतर का लोकिÿय खेल है āाजील, रोम, जमªनी आिद का एक राÕůीय
खेल है ।
३) इस वषª फुटबॉल िवĵकप आयोिजत हो रहा है, जो Āांस म¤ खेला जाएगा।
उदाहरणाथ« आपकŌ फुटबॉल पर एक वृ°िचý बनाना है । इस वृ°िचý को बनाने के िलए
अविध को Åयान म¤ रखकर िविभÆन पहलुओं पर आपको िवचार करना होगा। सबसे पहले
फुटबॉल का महßव, लोक ÿचलन का उÐलेख करने के िलए सामúी जुटानी पड़ेगी, फुटबाल
खेलने वाले राÕůŌ, िखलािड़यŌ का उÐलेख करना पड़ेगा ÿमुख समारोहŌ को िगनाना पड़ेगा
इतनाही नहé िवषयानुकूल और समयानुकूल फुटबॉल बनाने कì अनुिøया। बनाने कì
साăगी , उसका बाजार , कारीगरŌ कì िÖथती आिद का उÐलेख भी करना उिचत होगा।
इसके बाद पटकथा लेखक, कैमरामैन, अिभनेता, Åविन, ÓयवÖथापक आिद कì
आवÔयकता नुसार संकेतŌ का उÐलेख करते हòए उÐलेख को पटकथा म¤ पåरवितªत करना
पड़ेगा।
१) लॉग शॉट:
यह शॉट अिभनय कì ÿÖतुित म¤ िवशेष सहायक होता है। टीम के आगमन और गमन के
समय इसका ÿयोग महßवपूणª होता है। इसम¤ मानवाकृित िदखाई जाती है।
२) िमड शॉट:
यह िकसी मानवाकृित के बैठने अथवा खड़े होने कì िÖथती म¤ कोहनी तक Āेम िकया जाए
तो यह शॉट िमड शॉट कहलाता है।
३) ³लास łम शॉट:
इसे Öथापन शॉट भी कहा जाता है। यह वातावरण तथा क±ा या क± के उपकरण साज
सºजा आिद के साथ पाýŌ के ŀÔय संबंधŌ को Öथािपत करता है।
उपयुªĉ िववरण से ²ात होता है िक पटकथा लेखक को दूरदशªन ÿणाली का ²ाता तथा
कÐपनाशील होना अितआवÔयक है। ³यŌिक मिÖतÕक म¤ ŀÔयŌ कì काÐपिनक संरचना
करते हòए संबंिधत ÓयिĉयŌ के संकेत देने पड़ते है। जैसे चåरý कैसा होगा। उसकì वेशभूषा,
हाव-भाव आिद कì जानकारी होगी। उसे कैमरामैन को संकेत देना होगा िक उसे कब
³लोसअप लेना है, कब िबंग ³लोस अप लेना है, कब िमड शॉट लेना है, कब लॉग शॉट
लेना है। यहाँ तक कì अिभनेता से अपेि±त कायª Óयवहार आिद का संकेत भी पटकथा
लेखक से अपेि±त है। साथ ही Åविन ÓयवÖथापक को कैसी Åविन देनी है िकस समय शूिटंग
करनी है कौन-कौन से ŀÔय हŌगे आिद संकेत करने होते है। पटकथा लेखक को यिद कोई
िवशेष जानकारी होतो भी सदÖयŌ को पåरिचत करा द¤ तो अ¸छा होगा।
munotes.in

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जनसंचार माÅयम
104 डा³यूम¤ůी के ÿकार:
डा³यूम¤ůी के िविभÆन łप ÿचलन और तकनीक के आधार पर ÿचिलत है।
१) सूचनाÂमक डा³यूम¤ůी (इÆफोरमेिटव):
इस ÿकार के वृ°िचýŌ का अिधक ÿचलन है। इसे तÃयŌ Ĭारा ÿÖतुत िकया जाता है। िकसी
िवषय पर आधाåरत तÃयŌ को चुनकर और अúणी मानकर साàयŌ कì सहायता से
(िसपोिट«ग ) डेटा आगे बढ़ाया जाता है जैसे तÃय रखे जाते है वैसे डा³यूम¤ůी का ÿभाव
लोगŌ पर पड़ता जाता है। इस ÿकार डा³यूम¤ůी का उĥेÔय लोगो का मानिसक Óयायाम करने
के साथ-साथ आÂमिवĵास को बढ़ाने वाला भी होता है।
२) कहानी डा³युम¤ůी (Öटोरी):
कहानी डा³यूम¤ůी कÃय ÿÖतुत करने कì सबसे स±म िवधा है इसी का ÿयोग फìचर
िफÐमŌ म¤ िकया जाता है। इस िवधा म§ एक चåरý के माÅयम से कहानी को दशाªया जाता है
तथा सहायक चåरýŌ तथा तÃयŌ Ĭारा िवकिसत िकया जाता है। दशªक इन चåरýŌ को अपने
से िभÆन नहé मानते ³यŌिक ये चåरý काÐपिनक होते हòए भी वाÖतिवकता से भरे होते है।
यह कÐपना अĩुत िवषयŌ पर बनाई जाती है।
३) Æयूज डा³यूम¤ůी:
इस ÿकार कì िवधा Ĭारा िवशेष िवषयŌ, नामŌ को गंभीरता और गहराई से िदखाया जाता है
इसम¤ िवशेष² संबंिधत कारणŌ से होनेवाले ÿभावŌ और घटनाओं को जैसे का तैसा ÿÖतुत
िकया जाता है।
४) याýा वृ°ांत डा³यूम¤ůी:
इसम¤ तÃय पहले से संúिहत नहé िकए जाते बिÐक Öथान या लàय िनधाªåरत होने के पIJात्
िवशेष² कैमरामैन आिद को लेकर िनकल पड़ता है। िनिIJत िवषय के अनुकूल उसे जो भी
सामúी , ŀÔय, घटनाएँ, सा±ाÂकार आिद उपयोगी लगते है वह उÆह¤ संकिÐपत करके
ÖटूिडयŌ ले जाता है। जहाँ पटकथा लेखक संकिलत सामúी को देखकर वृ°िचý के िलए
कम¤ůी िलख देते है। जैसे मान लीिजए आप एक गोताखोर है समुþ के अंदर गहराई म¤ जाकर
गोताखोर को जो जीवन कì जानकारी िमलेगी। उसे वह अपनी आँखŌ से देखेगा और कैमरे
के माÅयम से उसे कैद कर लेगा। इसी ÿकार याýा उसम¤ आनेवाली किठनाइयाँ ŀÔय
मौसम , Öथान , लोगŌ का चåरý (यह सब वृ°ांत म¤ आ जाएंगे।) वहाँ का खानपान, िनवािसयŌ
कì बोली , भाषा आिद को िचýŌ संगीतŌ 'एवं ÅविनयŌ' के माÅयम से िदखाई जाने वाली
िचýकथा इस िवधा म¤ आती है।
५) सामािजक डा³यूम¤ůी:
इसम¤ समाज म¤ होने वाले उतार चढ़ाव एवं लोगŌ कì मानिसकता दशाªई जाती है। गहन
िवचार एवं यथाथª पर िवशेष Åयान रखा जाता है। इस िवधा के Ĭारा लोगŌ कì सहभािगता
सामूिहक एवं राÕůीय łप म¤ िदखाई जाती है। इतना ही नहé सामािजकŌ कì िवचारधारा एवं munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
105 सुख दुःख को तÃयŌ के साथ कृिýम ŀÔयŌ के Ĭारा भी ÿÖतुत िकया जाता है। िजसम¤ दशªकŌ
म¤ मानवीय भावनाएँ, देशÿेम, िश±ा, जनआंदोलन जागłकता आ सके ऐसे वृ°िचýŌ का
उĥेÔय सामािजक पåरवतªन हेतु उÂसािहत करना होता है।
६) शोधपरक डा³यूम¤ůी:
(इÆवेिÖटगेिटव) इस ®ेणी कì डॉ³यूम¤ůी का उĥेÔय िकसी िवषय वÖतु को लेकर उसकì
खोज करना तथा अंतम¤ स¸चाई को उजागर करना तथा दशªकŌ को सही गलत का अहसास
कराना। कभी चåरýŌ Ĭारा अिभनय कराकर वाÖतिवक िÖथती को काÐपिनक ढंग से दशाªया
जाता है तािक वही वातावरण ÿÖतुत िकया जा सके।
७) ऐितहािसक डॉ³यूम¤ůी:
इसम¤ तÃयŌ को शत ÿितशत ऐितहािसक łप म¤ िदखाया जाता है। िकसी भी बात को कृिýम
पाýŌ और काÐपिनक िवशेषणŌ से नहé िदखाया जाता ऐितहािसक तÃयŌ म¤ ÓयिĉÂव एवं
सामािजक चेतना और संÖकृित एवं सामािजक आिथªक घटनाओं को भी इसी संदभª म¤
ÿÖतुत िकया जाता है।
रंगमंच नाटक और रेिडयो नाटक म¤ अंतर:
रंगमंच नाटक:
१) रंगमंच नाटक ÿे±ागृह हम¤ बैठे दशªकŌ के सामने िदखाए जाने के िलए रचा जाता है।
२) रंगमंच नाटक म¤ कायª संकलन, काल संकलन तथा Öथान संकलन को Åयान म¤ रखा
जाता है।
३) रंगमंच नाटक कì कथा को अंकŌ म¤ कहा जाता है।
४) ŀÔयŌ का पåरवेश ÿÖतुत करने के िलए मंच सामúी तथा सेट कì आवÔयकता ŀÔयŌ
को ÿभावपूणª बनाने के िलए ÿकाश- वृ°Ō तथा िवशेष ÿकाश ÓयवÖथा का आयोजन
करना पड़ता है।
५) पाýŌ को उनकì श³ल -सूरत तथा उनकì वेशभूषा से जाना जाता है।
६) पाýŌ कì सं´या अिधक होती है।
रेिडयो नाटक:
१) रेिडयो नाटक, असं´य एवं अŀÔय ®ोताओं को सुनाने के िलए िलखा जाता है।
२) रेिडयो नाटक, संकलन के बंधनŌ से मुĉ होता है।
३) रेिडयŌ नाटक कì कथा को ŀÔयŌ म¤ कहा जाता है।
४) पåरवेश कì Öथापना Åविन ÿभावŌ Ĭारा संभव होती है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
106 ५) ŀÔयŌ को ÿभावपूणª बनाने के िलए संगीत / पाĵª संगीत का ÿयोग होता है।
६) पाýŌ को अिभनेता / अिभनेिýयŌ के Öवर तथा बोलने के अंदाज से पहचाना जाता है।
७) पाýŌ कì सं´या कम होती है।
रेिडयो नाटक के ÿकार:
रेिडयो नाटक इस युग का िनताÆत अिभनव आिवÕकार है। रेिडयŌ और रेिडयो नाटक पिIJम
कì देन है।
पिIJम म¤ रेिडयो नाटक कुछ पहले से िलखे जा रहे है और ÿगितशील देशŌ म¤ इनकì
नाट्यकला िनधाªåरत होती जा रही है। हमारे देश पर भी उन नाटकŌ का ÿभाव पड़ा है।
मÁडन िशÐप के अनुसार रेिडयो नाटक के भेद कुछ इस ÿकार िकए जा सकते है:
१) रेिडयो łपक:
नाटक कì यह एक ऐसी शैली है िजससे नाटक वैिदक काल से ÿारंभ करके आधुिनक काल
तक के ÿिसĦ सांÖकृितक, राजनीितक , धािमªक उथल -पुथल का łप ÿदिशªत कर सकता
है। वह संकलन - ýय के बंधन को भंग कर सकता है और रंगमंच कì Öवगत नाटक ÿणाली
को पूणª Öवाभािवक बना सकता है। उस पर उनको अÆय ŀÔयŌ का कोई बंधन नहé रहता।
२) रेिडयŌ फìचर:
ÿिसĦ उपÆयासŌ को नाटक łप म¤ उपिÖथत करके रसाÖवादन करने कì रेिडयŌ कì इस
शैली को िफचर कहा जाता है। सर ए. टी. िकलर काउच के हाथŌ रेिडयो कì यह शैली
िवकिसत म¤ łपांतåरत हòआ। रेिडयŌ कì यह शैली सूचनाÂमक और ÿचाराÂमक दोनŌ होती
है। इसम¤ शुÐक िवषय पर ÿकाश डालने के िलए उससे संबंिधत बातŌ का नाट्य सा िकया
जाता है।
३) Åविन नाटक:
वािचक अिभनय इसका आधार है। इसम¤ कथोपकथन कì ÿधानता रहती है। इसे अÆधŌ का
िसनेमा कहते है। िवÕणु ÿभाकर का 'बीमार ' इसका उपयुĉ उदाहरण है।
४) Öवेिĉ:
एक पािýय नाटक है। इसका łप रंगमंच के एकांकì से िभÆन होता है। रंगमंच पर कथा
सुसंबĦ होनी चािहए। इसका उदाहरण िवÕणु ÿभाकर का सड़क है।
५) भाव नाट्य:
इसम¤ भावाÂमक घटना एवं अनुभूित को Öव¸छÆद रीित से िचिýत िकया जाता है। इसम¤
मानिसक िचंतन का सतत ÿदशªन रहता है। िवÕणु ÿभाकर के दो नाटक 'अĦªनारीĵर' और
'शलभ और ºयोित ' उ°म भावनाट्य है। munotes.in

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रेिडयोलेखन- रेिडयो लेखन के अिनवायª तßव
107 ६) Åविन गीितłपक :
इसका माÅयम किवता है। आधुिनक आÆतåरक संघषª कì ÿधानता रहती है। कायª कì अपे±ा
भाव का महßव अिधक होता है। वृĦ कथा को संि±Į करने के िलए वाचक वािचका का
ÿयोग होता है। भगवती चरण वमाª का 'कणª' सुिमýा नंदन पंत का 'िशÐपी शुĂपुłष' इसके
उदाहरण है।
७) åरपोताªज:
यह नाटक कì अिभनव पĦित है जो िवगत युĦकाल म¤ अिवÕकृत एवं िवकिसत हòई। िĬतीय
महायुĦ म¤ महßवपूणª घटनाओं, उनके कारणŌ और पåरणामŌ को समीप से जानने के िलए
जनता ±ण -±ण Óयú ³यŌ िक उसके पåरणामŌ से कोई बचा नहé था।
८) जननाटक:
रेिडयो Ĭारा जननाटक को ÿोÂसाहन िमला है। úामीण जनता के िवनोद के िलए भी नाटक
ÿÖतुत िकये जाते है। वेही जननाटक है, जैसे रास, Öवांग, ढोलामाł , िनलालेद, नौरंगी ।
९) Óयंग नाटक:
इस नाटक म¤ वाµवैदµī कटा± एवं चुभेत Óयंµय Ĭारा समाज कì कुरीितयŌ कुÿवृि°यŌ और
आडंबरमय िविध िवधानŌ का उपहास िकया जाता है।



*****
munotes.in

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108 १२
टेलीिवजन के िलए लेखन
ÿÖतावना:
अमेåरका के डÊÐयू. ई. सायर और Āांस के मैåरस ल§ब ने सन् १८८० म¤ एक सुझाव िदया
िक एक िचý को बहòत छोटे छोटे टुकडŌ म¤ बाँटकर एक टुकड़े को ÿोिषत िकया जा सकता
है। सन् १८९७ म¤ कैथोड रे ट्यूब को टेलीिवजन िनमाªण म¤ ÿयोग िकया जा सकता है।
आåरवर २६ जनवरी, १९२६ को जॉन लोगी बेअडª ने िवĵ का सफल टेलीिवजन ÿदशªन
िāटेन म¤ करके िदखाया।
भारत म¤ १५ िसतÌबर, १८५९ को सबसे पहले िदÐली म¤ टेलीिवजन सेवा का आरंभ हòआ।
इसका उदघाटक तÂकालीन राÕůपित डॉ. राजेÆþ ÿसाद ने िकया। आरंभ म¤ इसका ÿसारण
२४ िकलोिमटर कì पåरिध म¤ केवल िदÐली के इदª-िगदª ३० गाँव तक सीिमत था और
इसका उĥेÔय केवल जनसंचार Ĭारा सामािजक िश±ा देना था। सन् १९७४ म¤ अमेåरका
Ĭारा छोड़े गए उपúह कì मदद से इसका िवÖतार हòआ। टी.वी. ÿसारण को आरंभ म¤
आकाशवाणी कì सेवाओं के अधीन म¤ आकाशवाणी कì सेवाओं के अधीन रखा गया, िकंतु
एक अÿैल, १९७६ को दूरदशªन के नाम से एक नया संगठन Öथािपत िकया गया १५
अगÖत, १९८२ से भारतीय दूरदशªन पर िविधवत् रंगीन ÿसारण भी शुł हòआ नवÌबर,
१९८२ म¤ िदÐली म¤ हòए एिशयाई खेलŌ का सफल अिजªत कì। सन् १९८७ से दूरदशªन
ÿातःकालीन ÿसारण भी शुł हòआ। आज देश म¤ दूरदशªन ůांसमीटरŌ कì सं´या २०० से
भी अिधक है।
टेलीिवजन लेखन:
टेलीिवजन úीक भाषा के शÊद टेली (दूरी) और लैिटन भाषा म¤ िवजन (म§ देखता हóँ) को
िमलाकर बन है। हजारŌ मील कì दूरी पर ³या घिटत हो रहा है उसे हम पद¥ पर देख सकते
ह§, उसके ÿÂय±दशê हो सकते है। अलब°ा हम¤ टेलीिवजन के पद¥ पर ही िदखाई देता है, जो
कैमरा िदखाना चाहता है। घटनाओं और समाचारŌ के अलावा अनेक ÿकार के कायªøम
टेलीिवजन पर आते है- नाटक, धारावािहक, वृ°िचý, संगीत कायªøम, िफÐम, भ¤टवाताªएं
ÿijो°र और पहेिलयाँ आिद टेलीिवजन, कैमरा, ůांसमीटर, और कमरे म¤ रखे टेलीिवजन
यंý कì सहायता से संÿेिषत ŀÔय या कायªøम Öटूिडयो या घटनाÖथल से हम तक पहòँचते
है। िजन यंýŌ, उपकरणŌ और उपÖकरŌ कì सहायता से कायªøम संÿेषण संभव होता है, उसे
हाडªवेयर कहते है, जैसे- कैमरा, ÿकाशीय उपÖकर, माइøोफोन, कनसोल, Öपेशल इफे³ट
जेनरेटर आिद।
जो ŀÔय, संदेश कायªøम संÿेिषत िकए जाते है उÆह¤ साÉटेवयर कì सं²ा दी जाती है। यह
बौिĦ का प± है। उĥेÔयपरक संÿेिषत कायªøमŌ का सृजनाÂमक पहलू होता है। लेखक,
िनद¥शक, संगीतकार, संपादक आिद के लेखक, िनद¥शक, संगीतकार, संपादक आिद के
सहयोग से कायªøमŌ कì ÿÖतुित होती है। जैसे मनोरंजन के िलए सामािजक धारावािहक munotes.in

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टेलीिवजन के िलए लेखन
109 संगीत, कायªøम तैयार िकए जाते ह§, िफÐमŌ का ÿसारण , ²ानवधªन के िलए िडÖकवरी
चैनल, खेलकूद कायªøमŌ का ÿसारण आिद। ŀÔयं यīिप माÅयम होने के बावजूद
टेलीिवजन म¤ शÊद संयोजन और लेखन का महßव कम नहé है और कुछ नहé तो कायªøम
कì अवधारणा, उदघोषणा, कैमरामैन और िनद¥शक के िलए िनद¥श ये सब िलिपबĦ िकए ही
जाते है।
वृ°िचý, धारावािहक, नाटक आिद के िलए िनद¥श आलेख अिनवायª होते है। कथानक,
संवाद, Öøìन Èले और शूिटंग िÖøÈट के िलए अलग-अलग Óयिĉ अनुबंिधत िकए जा सकते
है। छायांकन और संपादन के दौरान पटकथा म¤ अवÔयकतानुसार पåरवतªन होते रहते है,
इसिलए इस माÅयम म¤ लेखन समूह-लेखक का łप úहण कर लेता है। लेखक को माÅयम
कì तकनीकì कì बारीिकयŌ भाषागत आवÔयकताओं और िवशेषताओं कì जानकारी होनी
चािहए।
टेलीिवजन समाचार अथª एवं Öवłप:
टेलीिवजन िकसी समाचार, घटना, ŀÔय या ÿसंग का एक िववरणाÂमक िचý है। सी.वी.एस.
हैडबुक म¤ टेलीिवजन समाचार कì समी±ा इन शÊदŌ म¤ कì गई है "यह समाचारŌ का
िचýाÂमक ÿÖतुतीकरण है, - िजसम¤ तÃयाÂमक संि±Į और वाÖतिवक समाचारŌ को ÿÖतुत
करने कì अदभुत ±मता है।" दूरदशªन समाचारŌ का मु´य ľोत संवाद सिमितयाँ है। इसके
अितåरĉ दूरदशªन ऐसी सिमितयŌ से भी समाचार ÿाĮ करता है, जो केवल िवजुअल अथाªत्
िचýाÂमकता समाचार ÿेिषत करती है। सरकारी िवभाग और गैर सरकारी एवं सावªजिनक
±ेý के संÖथान भी अपनी ओर से िचý तथा शÊद के łप म¤ अपने समाचार उपलÊध कराते
है। िविभÆन ÖथानŌ पर भी दूरदशªन के अपने संवादता िनयुĉ है। दूरदशªन समाचार एवं
घटनाओं के कवरेज के िलए भी संवाददाता िनयुĉ है। दूरदशªन समाचार एवं घटनाओं के
कवरेज के िलए भी संवाददाता भेजते है। दूरदशªन समाचार संपादक इन सभी ľोतŌ से ÿाĮ
सामúी से ही बुलेिटन िवशेष कì आवÔयकता, समाचार के महßव तथा दूरदशªन कì नीित एवं
िनद¥शनŌ को Åयान म¤ रखते हòए समाचारŌ का चयन एवं संपादन करते है।
टेलीिवजन समाचार लेखन:
टेलीिवजन समाचार लेखन का ±ेý बहòत Óयापक है। यह टीम वकª है िजसम¤ कैमरामेन,
संवाददाता, ÿÖतुतकताª, तकनीकì कमªचारी, संवाददाता, ÿÖतुतकताª, तकनीकì कमªचारी,
संपादक आिद शािमल है। इन सबके मÅय समÆवय आवÔयक है। वåरķ जनसंचारकमê
सुभाष सेितया ने टेलीिवजन कì संरचना म¤ छह तÂवŌ को अिनवायª माना है, ये है -
१) घटनाøम
२) िचýाÂमकता
३) संि±Įता
४) संभाषणशीलता
५) åरपोटª एवं
६) पूरक कॉपी munotes.in

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जनसंचार माÅयम
110 रेिडयो समाचार लेखन और टेलीिवजन समाचार लेखन का तरीका लगभग एक सा है, िफर
भी टेलीिवजन समाचार लेखन के समय िनÌनिलिखत बातŌ का Åयान रखना आवÔयक है:
१) टेलीिवजन लेखन संि±Į तथा पठनीय हो, िजससे वह बातचीत कì तरह लगे।
२) टी.वी. समाचार सÂयता पर आधाåरत हो। समाचार के तÃय और शÊद इस ÿकार
ÿÖतुत िकए जाएँ, िजससे इÆह¤ आसानी से समझा जा सके।
३) टी.वी. के िचý पाठकŌ को आकिषªत करने चािहए न िक शÊद। िचý Öवयं बोले तो
िकसी दूसरे को अिधक बोलने कì आवÔयकता नही है, इसिलए कहा गया है (The
picures draws attention, words must be subordinated. Ideally words
supplementary, ex - plaining, blending with the mood of the film and
rich writing is almost certain to conflict with the stark fact to the
picture, which is at the centre of the viwer's attention.) (Mass Media )
४) टेलीिवजन समाचार लेखक को टी.वी. समाचार के िचýŌ के साथ सांमजÖय बैठाना
होता है। चाटª, न³शŌ और चल -अचल िचýŌ के साथ पढ़ा जाने वाला आलेख तैयार
करना होता है। यह ÿिøया वाइस ओवर (V.O.) कहलाती है। इसम¤ शÊद और िचý
एक दूसरे के पूरक होते है।
५) टेलीिवजन समाचार लेखक को िचý Ĭारा कही गई कहानी कहने कì कला आनी
चािहए। िचý के मौन को िलखना, शÊदŌ को िलखने के समान ही महßवपूणª है। िवशेष
łप से जब चलिचý Öवयं पूरा समाचार बताने म¤ स±म हो
६) समाचार लेखन के समय शÊदŌ और िचýŌ के मÅय आपसी तालमेल के ÿित
संवदेनशील होना चािहए। आलेख ऐसा हो जो समाचार म¤ और शिĉ पैदा करे उसे
समझा सके और ऐसे ÖथानŌ पर łके जहाँ िचýŌ को शÊदŌ कì आवÔयकता नहé है।
िचý और शÊद एक -दूसरे से मेल खानेवाले होने चािहए।
िचý िकसी अÆय वÖतु का है और समाचार िकसी अलग का इस ÿकार कì िÖथती बहòत ही
हाÖयाÖपद होती है।
७) समाचार आँखŌ से पढ़ा जाता है, रेिडयो कानŌ से सुना जाता है, लेिकन टेलीिवजन म¤
आँख और कान दोनŌ का ही उपयोग होता है, अतः टेलीिवजन समाचार आँख और
कान दोनŌ के िलए ही बनाए जाते है।
८) टेलीिवजन के समाचार के ÿÂयेक वा³य म¤ एक ही िवचार या िचý होना चािहए। ÿÂयेक
वा³य संि±Į होना चािहए। आँकड़ो और तÃयŌ को एक साथ नहé िदया जाना चािहए।
आँकड¤ िजतने कम हŌ उतना ही अ¸छा है।
९) समाचार म¤ कोई भी बात अÖपĶ नहé होनी चािहए यिद कोई शÊद काटा जाए तो उसे
पूरी तरह ही काट िदया जाय। अगर शÊद का वा³य िवÆयास या रचना सुधारना हो तो
पूरा शÊद ही दुबारा िलखा जाना चािहए। munotes.in

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टेलीिवजन के िलए लेखन
111 िविडयो ÿोÌपटर का उपयोग िकया जा रहा हो तो पृķ के मÅय म¤ बाउंűी लाइनŌ के मÅय
समाचार िलखे ÿÂयेक समाचार पर øम सं´या िलखी जानी चािहए और उसी øम म¤ पृķ
रखे जाने चािहए। ÿÂयेक समाचार अलग-अलग पृķ पर िलखना चािहए। यिद समाचार एक
पृķ से दूसरे पृķ पर ले जाना हो तो पृķ के नीचे इसका संकेत होना चािहए, अगर दूसरे पृķ
कì आवÔयकता हो तो पहले पृķ के आिखरी वा³य को उसी पृķ का पूरा िकया जाना
जłरी है। संभव हो तो पूरा पैरा भी पूणª करना चािहए। समाचार पूरा करने के िलए एक ही
पंिĉ कì और आवÔयकता हो तो उसके िलए दूसरा पृķ नहé लेकर वह पंिĉ उसी पृķ के
अंत म¤ िलख दी जाए।
१०. टेलीिवजन समाचार कì भाषा म¤ ऐसा कोई शÊद न हो िजससे िकसी कì भावना को
ठेस पहòँचे, अतः भाषा और शÊद का चयन सोच -समझकर करना चािहए।
११. समाचार लेखक को यह जानना आवÔयक है िक समाचार कì िफÐम िकतने समय तक
चलेगी जब उसे इस बात का पता हो चला है िक िकतने स¤टीमीटर िफÐम को चलने के
िलए िकतना समय लगता है उतनी लंबी िफÐम म¤ िकतने शÊदŌ कì आवÔयकता है तो
वह सरलता से उसका आलेख तैयार कर सकता है।
१२. टेलीिवजन समाचार को िचýाÂमक बनाने के िलए फोटो. सी. जी. (कैरे³टर जेनेरेशन)
मानिचý, úािफ³स, लोगो (ÿतीक िचÆह) , वी. सी. आर का ÿयोग िकया जा सकता है।
इस तकनीक से समाचार के महßवपूणª अंश िवशेष łप से सं´याओं एवं आँकड़ो को
Öøìन पर सुपर िकया जाता है।
टेलीिवजन नाटक लेखन:
नाटक नाटक होता है, चाहे वह मंच का नाटक हो, िफÐम का हो टी.वी. का हो अथवा
रेिडयो का हो। पåरभाषा के Öतर पर नाटक मूलतः एक ही है। िविभÆन माÅयमŌ कì तकनीकì
आवÔयकताओं के आधार पर ÿÖतुतीकरण कì िविवधता को Åयान म¤ रखते हòए हम उनम¤
भेद कर सकते है। इसी आधार पर हम¤ टी.वी. नाटक को अÆय ÖवłपŌ से अलग करना
होगा। वतªमान म¤ नाटक के िजन चार ÿकारŌ तथा िफÐम, टी.वी. रंगमंच और रेिडयो से हम
पåरिचत है, उनम¤ रेिडयŌ नाटक को छोड़कर और संवादो का माÅयम है। शेष तीनŌ łप
Åविन तक ŀÔय के िमि®त माÅयम है।
दूरदशªन िफÐम नहé है, लेिकन िफÐम कì ही भाँित इसम¤ भी कैमरे कì ÿयोग होता है और
छायाकृितयाँ Öøìन पर िदखाई देती है। दूरदशªन रंगमंच भी नहé है लेिकन रंगमंच का ही
भांित िकसी नाटक कì िनरÆतरता उसम¤ बनी रहती है। इसे हम यŌ भी कह सकते है िक
िसनेमा और रंगमंच के कुछ महßवपूणª तßवŌ के सिÌमलन से नाटक के इस तीसरे Öवłप का
जÆम हòआ है।
टी. वी. नाटक मु´य łप से ÖटूिडयŌ म¤ वही के साधनŌ से तैयार िकया जाता है, जबिक
िफÐम के िलए यह बिÆदश कतई नहé है। िफÐम िनमाªण म¤ उ°म तौर से और मु´य łप से
एक ही कॅमरे का ÿयोग होता है, जबिक टी.वी म¤ कम से कम दो या तीन या आवÔयकता
अनुसार और सुिवधा होने पर पाँच से सात कैमरे तक एक साथ इÖतेमाल िकये जाते है।
िफÐम कì शूिटंग और ÿोसेिसंग के बाद सÌपादक उसे काटकर जोड़कर िविभÆन शॉटस् का munotes.in

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जनसंचार माÅयम
112 øम बनाकर िफÐम को गित िनरÆतरता और अथª ÿदान करता है। जबिक टी.वी. नाटक का
सÌपादन ÿोड्यूसर के िनद¥श पर ÿॉड³शन पैनल से लगातार िकया जाता रहता है िजसे
"िवजन िमि³संग" कहते है। टी. वी. नाटक ÿसारण या åरकािड«ग के समय िनद¥शक -
कलाकारŌ या कैमरा मैनŌ के साथ सैट पर नहé रहता, जैसा िक िफलम कì शूिटंग म¤ होता है
बिÐक वह ÿॉड³शन पैनल के सभी कैमरŌ का संचालन, सÌपादन, Åविन ÿभाव या संगीत
के ÿयोग के िलए लगातार िनद¥श देता रहता है ³यŌिक टी.वी. नाटक म¤ यह सभी कायª एक
साथ चलते है।
अब टी. वी. नाटक कì ÿिøया पर िवचार करना है। जैसा िक सुिविदत है िक नाटक चाहे
टी.वी. का हो या मंच का या िफÐम अथवा रेिडयŌ का, सबका मूल आधार एक ही है कहानी।
केवल माÅयम के - अनुłप कहानी कहने का तरीका अलग अलग होता है और कहानी
कहने का अंदाज ही उसे रोचक - या ऊबाऊ बना सकता है।
कहानी ³या है ? यह ÿij उठाकर हम कोई सािहिÂयक बहस नही छेड़ना चाहते। नाटक
िलखने के िलए या नाटक Ĭारा कोई िवचार या िवषय सÌÿेिषत करने के िलए हम केवल एक
िवषय या थीम का चुनाव करते है। यह िवषय या थीम कहाँ से आती है ?
नाटक के िलए िवषयवÖतु का चुनाव इसी आधार पर करना आवÔयक है िक वह सवª úाĻ
हो। ÖवाÆतः सुरवाय या आÂमतुिĶ के िलए नाटक िलखने को म§ अहिमयम नहé देता। नाटक
वह जो खेला जाय, और जब खेला जाये तो देखा भी जाये, यानी नाटककार , अपने Öतर पर
ही नाटक को दशªक से जोड़ने कì बात लेकर चले। टी.वी. नाटक कì बात करते हòए यह
िजø करना अÿासंिगक नहé होगा िक टी.वी. नाटक के दशªकŌ कì सं´या बहòत बड़ी है।
Öथािनक ÿसारण से िदखाये जाने वाले नाटक कì ही दशªक सं´या अब ÿदेश Óयापी और
लगभग ३०-४० लाख तक पहòँचती है।
िवषय वÖतु के साथ दूसरे चरण म¤ पाýŌ का समावेश है। यŌ तो िकसी भी कथावÖतु या
घटना के साथ ÿÂय± अथवा परो± łप म¤ िकसी न िकसी मनुÕय का हाथ रहता ही है। इस
ÿकार आरंिभक माý हम¤ साथ ही िमल जात¤ है और इस ÿकार एक कहानी तो बन ही जाती
है, जो सुनाई जा सके, लेिकन वह आमतौर पर एक सपाट सडक के समान होती है, िजस
पर सहजता से जा सकता है, लेिकन याद रिखये- सहज चलना नाटक नहé है। दशªक कì
शारीåरक और मानिसक तमाशबीनी के िलए वहाँ कुछ भी नहé है। इसिलए इस सपाट
समतल सडक पर कुछ गड्डे खोदने कì जłरत है, तािक चलने वाले िगरे तो देखने वालŌ
को आनÆद आये। यह करने के िलए कथानक को पाýŌ समेत िकसी समÖया से जोड़
दीिजये।
कथानक के िवकास के साथ टी. वी. नाटककार कì दूसरी बड़ी िजÌमेदारी बड़ी है -
िवजुअलाइलेशन। यहाँ िपता ®ी से ÿाĮ एक सूý बताना चाहóँगा मत भूलो तुम Öøìन के िलए
िलख रहे हो और कान - आँखŌ से चार अंगुल पीछे है।
'अगर सारा नाटक संवादŌ Ĭारा ही सुना और समझा जा सकता है तो उसे देखने कì ³या
जłरत है। और वह रेिडयो नाटक ही होकर रह जाता है।'
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टेलीिवजन के िलए लेखन
113 मीिडया नाट्य िवशेष² पॉल लूसी का सुझाव नाटक के बार¤ म¤ इस ÿकार है:
"Write complex magnified characters and simple plots, because the char -
acters make the story interesting and Dramat ic not the plot."
एक अ¸छी तरह सोच समझकर िलखा गया नाटक न केवल अिभनेताओं को चåरý जीने
और अिभनय ±मता िदखाने का अवसर देता है बिÐक िनद¥शक, कैमरा मैन तथा नाट्य
िशÐप से जुड़े हòए सभी लोगŌ को नाटक सफल बनाने कì ÿेरणा एवं शिĉ देता है। अगर
नाट्यालेख खराब है तो ये सारे िवशेष² िमलकर भी उसे असफल होने से नहé रोक सकते।
टेलीिवजन धारावािहक लेखन:
ÿÖतावना:
टेलीिवजन ÿसारणŌ म¤ 'धारावािहक' (serial) एक ऐसी िवधा है, िजसके दशªकŌ कì सं´या
कभी भी घिटत नहé है। धारावािहक का िवषय चाहे जो भी हो लेिकन कमोबेश सभी
धारावािहकŌ को दशªक िमलते रहे है। दूरदशªन ने धारावािहकŌ को शुłआती दौर म¤ देश के
लगभग सुÿिसĦ सािहÂयकारŌ, लेखकŌ कì कृितयŌ पर आधाåरत धारावािहकŌ का ÿसारण
िकया था। लेिकन 'मैला आँचल', '®ीकांत', 'भारत एक खोज ' को उतना बड़ा दशªक वगª नहé
िमला िजतना 'तारा' को िमला था। ७ जुलाई, १९८४ को दूरदशªन धारावािहक 'हमलोग'
ÿारंभ हòआ। इसके लेखक मनोहर Ôयाम जोशी और िनद¥शक पी. कुमार वासुदेव थे।
'हमलोग' को आम दशªकŌ ने िवशेष łप से पंसद िकया और यह लोकिÿय हòआ। हमलोग के
ÿसारण ने भारतीय लेखकŌ को एक नई राह िदखाई। धीरे-धीरे धारावािहत लेखकŌ कì माँग
होने लगी और उनकì सं´या बढ़ने लगी। 'हमलोग' से जहाँ 'सोप आपेरा' शÊद का ÿचलन
हòआ तो 'ये जो है िजÆदगी', 'क³काजी किहन ' के साथ 'िसरकाम' शÊद का ÿचलन हòआ।
'करमचंद' के ÿसारण ने जासूसी धारावािहक का मागª ÿशÖत िकया।
'तमस' और 'मालगुडी डेज' ने भी धारावािहकŌ कì ®ृंखला म¤ सफलता ÿाĮ कì। उ¸च और
उ¸च मÅयवगª समाज पर आधाåरत 'Öवािभमान' के दूरदशªन पर ÿसारण ने एक नया राÖता
िदखाया। सन् १९९७ म¤ दूरदशªन पर 'िहंदुÖतानी', 'युग', 'म§ िदÐली हóँ' जैसे धारावािहक
ÿसाåरत हòए। सबसे महँगा धारावािहक 'गाथा' Öटार Èलॅस ने ÿसाåरत िकया िजसके लेखक
मनोहर Ôयाम जोशी और िनद¥शक थे रमेश िसÈपी। िफर बीच एक दौर आया 'रामायण' और
'महाभारत' के बाद कुछ पौरािणक युग का '®ीकृÕण' 'ॐ नमः िशवाय ' पौरािणक धारावािहकŌ
ने िवशेष सफलता ÿाĮ कì। इसी बीच 'चाण³य' के बाद ऐितहािसक धारावािहकŌ का दौर
शुł हòआ। 'टीपू सुलतान’, अकबर द úेट', 'झाँसी कì रानी' आिद धारावािहकŌ ने
लोकिÿयता अिजªत कì। चंþकांता से ऐयारी ितलÖमी धारावािहक शुł हòआ। 'िवराट',
'बेताल' आिद धारावािहकŌ ने इस धारा को अपनाया।
Öटार चैनल के ÿिसĥ धारावािहक 'कहानी घर घर कì ', 'कसौटी िजÆदगी कì ', '³यŌिक
सास भी कभी बहó थी ', 'देश म¤ िनकला होगा चाँद', 'सारा आकाश', 'कहé िकसी रोज ',
'कुमकुम', 'भाभी', 'सोन परी' िवशेष लोकिÿय रहे है।
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जनसंचार माÅयम
114 टेलीिवजन पटकथा लेखन:
टेलीिवजन पटकथा लेखन (टेलीिवजन धारावािहक लेखक) म¤ कुछ मौिलक तÂवŌ को Åयान
म¤ रखना जłरी है। इन मौिलक तÂवŌ का ÿभाव धारावािहक लेखन कì गुणव°ा पर भी
पड़ता है। ये मौिलक तÂव है।
१. आइिडया / िवचार
२. िवषयवÖतु,
३. कांसेÈट नोट,
४. कथासार,
५. Öथान एवं चåरý िचýण,
६. ůीटम¤ट,
७. संवाद
पटकथा को अú¤जी म¤ 'Öøìन Èले' (Screen Play) कहा जाता है।
१. आइिडया / िवचार :
टेलीिवजन पटकथा लेखन म¤ सबसे पहला तÂव है आइिडया (Idea) या िवचार टेलीिवजन
या िफÐम के िलए आपने अगर कुछ िलखा है तो उसका कोई मूल िवचार होना चािहए। जब
आप िनमाªता से िमलते है तो उसे आपका आइिडया या िवचार एक िमनट म¤ बताना होता है;
³यŌिक िनमाªता के पास इतना समय नहé होता है िक वह हर लेखक कì पूरी कहानी सुने।
इसिलए आप उसे आइिडया बताते है और उसे वह आइिडया पसंद आता है तो वह आपकì
कहानी सुनने म¤ िदलचÖपी िदखलाएगा अÆयथा यह कह देगा िक आपका यह आइिडया मेरे
िकसी काम का नहé।
बतौर लेखक आप इस बात का Åयान रख¤ िक आपके आइिडया म¤ कुछ नयापन हो और
बाजार कì शतŎ के मुतािबक भी हो। अब सवाल यह उठता है िक िवचार कहाँ से िमल¤ ? तो
साहब िवचार तो आपके आसपास ही होते है आप जो पढ़ते है, देखते है, जो सुनते है
आपकì कहािनयाँ उसी से पैदा होती है। अशोक चøधर ने 'आइिडया िवचार ' पर िलखा है
“पटकथाकार का जमीन से जुड़ा होना और उसका Óयापक अनुभव ²ान से संपÆन होना
जłरी है। जो Óयिĉ िजतने लोगŌ से िमला होगा और जीवन म¤ सामािजक संबंधŌ का िजतना
गहरा अनुभव उसे होगा और उन अनुभवŌ का सूàम िवशलेषण वह कर सकता होगा उतना
ही बड़ा पटकथाकार वह बन सकता है।"
२. िवषयवÖतु:
वैसे ही जब से 'तारा', 'शांित', 'खानदान' और 'सास भी कभी बहò थी ' जैसे धारावािहकŌ ने
रखैल ÿथा कì वकालत कì है। आज दूरदशªन या िनजी चैनलŌ Ĭारा ÿसाåरत धारावािहकŌ
कì कथा वÖतु एक जैसी ही नजर आती है। इसिलए यथाथªवादी या भारतीय समाज कì munotes.in

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टेलीिवजन के िलए लेखन
115 वाÖतिवक समÖयाओं से जुड़े धारावािहकŌ का एकदम आकाल सा िदखाई पड़ता है। यिद
आइिडया या िवचार के बाद िवषय (Plot) कì ŀिĶ से देखे तो ८० ÿितशत धारावािहकŌ के
िवषय ľी पुłष के अवैध सÌबÆधŌ को सामािजक Öवीकृित िदलाने के øम म¤ नए मूÐयŌ कì
Öथापना है। धारावािहक िनमाªता इस तÃय से पåरिचत हो गए है िक विजªत मूÐयŌ के ÿदशªन
से दशªकŌ कì िदलचÖपी ºयादा ही बढ़ जाती है। इसिलये वे अपने धारावािहकŌ म¤ ऐसे गंभीर
िवषय को नहé लाते। इनके साथ-साथ हाÖय धारावािहकŌ को देख¤ तो वहाँ भी समाज के
आपसी åरÔतŌ के मधुर संबंधŌ के बावजूद फूहड़ िकया जाता है, िजसम¤ सास-बहò ससुर -
दामाद या पित-पिÂन जैसे åरÔत¤ होते है।
३. कांसेÈट नोट:
िवचार और िवचार तय कर लेने के बाद लेखक एक छोटी-सी कथा का Öवłप देखकर
उसकì संभावनाओं पर िवचार करता है। िजसे 'कासेपट नोट' (concept Note) भी कह
सकते है। यह धारावािहक कì संभावनाओं कì एक कुंजी कì तरह होता है। तो या यह कहा
जाए, िक इस छोटे से नोट म¤ १३ से लेकर ५०४ किड़यŌ कì लÌबी ®ृंखला का मंच होता है
तो अÂयुिĉ नहé होगी। आज कì भाग- दौड़ म¤ मूल मंý सुनने के अलावा इसकì Óया´या
सुनने कì जłरत नही है। इस मंý - नुमा नोट से लेखक के मिÖतÕक म¤ धारावािहक कì
ÖपĶ łपरेखा का पåरचय भी िमल जाता है। जैसे पूरे हांडी के चावल के उबलने का अंदाजा
दो-चार दानŌ को देखकर हो जाता है वैसे ही लेखक कì एक िमनट कì कहानी या वन लाइन
Öटोरी बड़ी काम आती है।
४. कथासार:
इस 'वन लाइन Öटोरी ' को जब दूसरे łप म¤ łपांतåरत करते है तब वह कथासार ( Short
Story ) का łप ले लेता है। इसम¤ धारावािहक बनने वाली कथा का 'आिद, मÅय एवं अंत
िजसे ³लाइमे³स कहते है, उसका संकेत होता है। इस कथासार म¤ जहाँ धारावािहकŌ के
मु´य पाýŌ से पåरचय होता है, वहाँ इसके तकनीक का Öवłप भी सामने आता है। जो
लगभग तीन ÖतरŌ पर िवभािजत िकया जाता है। इसम¤ धारावािहक लेखक के तीन Öवłप
के दशªन होते है।
१. कहानी
२. आलेख
३. संवाद।
पहला Öवłप कहानी का है, दूसरा है आलेख, इसे पटकथा भी कहते है, िकंतु पट शÊद का
अथª बड़ा परदा है और यह सीधे िफÐम से उठा िलया गया है, जबिक टी.वी. धारावािहकŌ
का कैमरा एंगल िफÐम कì तरह बहòआयामी नहé होता है। इसिलए पटकथा का कोई मतलब
नहé रह जाता, जबिक आलेख का िवÖतार Óयापक है चाहे तो इसके संवाद कैमरा को एक
Āेम म¤ िफ³Öड करके बोले जाएँ, जबिक पटकथा कैमरे एवं संवाद के बीच तालमेल और
उसके आपसी संबंधो के मĥे नजर िलखी जाती है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
116 कथासार का तीसरा महßवपूणª प± है संवाद जैसा कहा गया है िक जैसे इसकì पटकथा
कैमरे को Åयान म¤ रखकर नहé िलखी जाती वैसे ही इसके संवाद भी Öवतंý łप से
नाटकìयता के साथ गढ़े जाते है। Öवतंý łप से नाटकìयता के साथ गढ़े जाते है।
५. Öथान एवं चåरý िचýण:
धारावािहकŌ का Öथान , चåरý, (Place and Charact er) और कैमरŌ का मूवम¤ट िनिIJत
होता है। इसिलए आप देख¤गे िक िफÐम कì शूिटंग म¤ िजतना खचª और अÆय
औपचाåरकताओं के संपÆन होने म¤ िजतना समय लगता है उससे कहé कम समय म¤ एक
धारावािहक, जो घंटŌ, म¤ समाĮ होता है, åरकाडª हो जाता है। दूसरे शÊदŌ म¤ यह कह¤ िक एक
धारावािहक कì åरकािड«ग पूरे एक िदन म¤ २-३ एिपसोड, िजसका आऊटपुट एक घंटे से डेढ़
घंटे होता है, आसानी से िनकल आता है, जबिक माý- दो सवा दो घंटे कì िफÐम शूिटंग म¤
लगभग पूरे ३६५ िदन तो लग ही जाते है। गरज यह िक यिद िफÐम शूिटंग के िहसाब
धारावािहकŌ को åरकािड«ग म¤ कथा, पटकथा एवं संवाद कì बारीिकयŌ पर Åयान िदया जाए
तो पूरे िदन भर म¤ शायद ही एकाध एिपसोड कì åरकािड«ग संभव हो सके।
मनोहर Ôयाम जोशी का मत है िक 'चåरý िचýण' के िलए हम¤ कहानी के अनुसार सभी ÿमुख
एवं पाýŌ का "बायोडाटा" पाýŌ के बारे म¤ एक-एक छोटी जानकारी िलख ल¤। इसके अितåरĉ
लेखक का अपनी कहानी म¤ कोई ऐसा Èवाइंट जłर रखना चािहए िजसके इदª-िगदª उसके
पाýŌ कì इ¸छाएँ टकराएँ। कहानी म¤ नायक िजतना सशĉ होना चािहए। आपके चåरý म¤
कुछ ऐसी इ¸छाएँ भी होनी चािहए िजनके वशीभूत होकर वह कायª करे। इसी तरह कई तरह
के पाý या चåरý होने चािहए।
६. ůीटम¤ट:
ůीटम¤ट (Treatment) का मतलब है ŀÔयानुसार कथा। इसे हालीवुड कì भाषा म¤ 'Öटेप
बाय Öटेप ůीटम¤ट' भी कहा जाता है। िकंतु आप देख¤गे िक धारावािहक चाहे िकसी भी देश
का या िकसी भी भाषा का हो, ŀÔय नहé बदलते। पाýŌ का आना-जाना बदलता रहता है।
'यस ÿाइम िमिनÖटर ' या 'िहयर इज लूसी' या भारतीय धारावािहक को ले ल¤ आमतौर पर
कैमरा कलाकारŌ एवं उनके संवाद अदायगी पर िटका रहता है अनावÔयक łप म¤ मूवम¤ट
नहé करता। धारावािहकŌ कì åरकािड«ग इधर िकसी िवषय को लेकर डा³यूमेÆůी या अÆय
दूसरे कायªøमŌ के िलए संभव है िक आपको ůीटम¤ट िलखने कì जłरत पड़े, िकंतु
धारावािहकŌ तो कलाकारŌ के मूवम¤ट इतने नाटकìय एवं Öवतः Öफूतª होते है िक ůीटम¤ट
एक फैशनेबल शÊद जैसा लगता है।
िफÐम या टेलीिवजन जैसे ŀÔय माÅयमŌ के िलए आइिडया, िवचार के अनुłप िलखी गई
कहानी महÂवपूणª नहé मानी जाती है ³यŌिक हर कहानी एक जैसी होती है। ŀÔय माÅयम के
िलए महßवपूणª होता है। ůीटम¤ट म¤ एक ÿकार से पाýŌ, कहानी कì घटनाओं उसके संवादŌ
कì झलक देनी पड़ती है। ůीटम¤ट से ही िनमाªता िनद¥शक यह समझ लेते है, िक आपकì
कहानी म¤ िकतना दम है और आपके लेखक के łप म¤ उसकì पहचान भी होती है। इसिलए
ůीटम¤ट नोट का दमदार होना अनावÔयक है। आमतौर पर १०-१५ पेजŌ का ůीटम¤ट नोट
आदशª माना जाता है। ůीटम¤ट नोट के साथ एिपसोड के आधार पर कहानी का िवभाजन भी munotes.in

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टेलीिवजन के िलए लेखन
117 ůीटम¤ट का एक महßवपूणª िहÖसा होता है। इसे हालीवुड म¤ 'वन लाइनर' कहा जाता है। 'वन
लाइनर' यानी एक पंिĉ म¤ ŀÔय कहानी कहना।
७. संवाद:
संवाद लेखन (Dialogue) के बार¤ म¤ यह कहा जाता है िक अ¸छा संवाद वह है जो िक वह
बताए जो आपके चåरý म¤ नजर नहé आ रहा हो। Åयान रखे िक आप कोई उपÆयास, कहानी
या नाटक नहé िलख रहे है जहाँ कì अपने पाý कì ºयादातर जानकाåरयाँ आपको अपने
संवादŌ के माÅयम से दे देनी होती है। इसिलए धारावािहक कì गित को बनाए रखने के िलए
छोटे से छोटे संवाद िलखे जाने चािहए। याद िकिजए 'Öवािभमान' के पहले ढाई और
एिपसोड इसिलए बहòत लोकिÿय हòए , ³यŌिक उनकì गित बहòत तेज थी।
िहंदी के ÿिसĦ उपÆयासकार अमृतलाल नागर का मत है िक भाषा पढ़कर नहé सुनकर
आती है। इसिलए जब कभी आप लोगŌ को बातचीत करते देखे तो उनकì भाषा को Åयान मे
रिखए और सुिनए । िजतना आप लोगŌ को सुन¤ग¤, अलग-अलग वगª के लोगŌ को सुन¤ग¤,
आपके संवादŌ कì भाषा उतनी अ¸छी होगी। िफÐमŌ म¤ नायक नाियकाओं, िवशेषकर
खलनायकŌ को िविशĶता ÿदा न करते हòए इसका ÿयोग होता है। उदाहरणतः िफÐम 'िमÖटर
इंिडया म¤ खलनायक बात-बात म¤ कहता है, 'मोगंबो खुश हòआ।' या 'øांित' म¤ ÿेम चोपड़ा
कहता है 'शंभू का िदमाग दोधारी तलवार है' वह कोई जुमला भी हो सकता है। या कोई
आदत भी हो सकती है।'
टेलीिफÐम लेखन:
'टेलीिफÐम ' भी टेलीिवजन कì िविभÆन िवधाओं म¤ से एक महßवपूणª िवधा है। अú¤जी म¤
'टेलीिफÐम' को Documentary का एक łप कहा जाता है। टेलीिफÐम का उĥेÔय होता है,
सूचना देना या ÿिशि±त करना। टेलीिफÐम वह िवधा है, जो िकसी सÂय घटना, तÃय,
सूचना, ÓयिĉÂव और पåरिÖथित पर आधाåरत होती है। इसका उĥेÔय मनोरंजन कì अपे±ा
िश±ा और सूचना देना अिधक होता है। जब यह कायª ŀÔयŌ Ĭारा िकया जाता है, वह
ÿिøया 'टेलीिफÐम' कहलाती है।
िहंदी शÊदकोश म¤ वृ°िचý के िनÌनांिकत अथª िमलते है िशला, लेख, िविशĶ घटना या कायª
कì जानकारी के िलए िदखाया जाने वाला 'समाचार िचý' (News Reel)
टेलीिफÐम का उĥेÔय दशªकŌ को समुिचत जानकारी देना और उसके साथ कुछ सीखने का
अवसर ÿदान करना है। ये टेलीिफÐम जहाँ दशªकŌ का ²ान बढ़ाते है वहाँ उनका
आÂमिवĵास भी बढ़ाते है।

*****
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118 १३
फìचर िफÐम लेखन
१. फìचर िफÐम लेखन:
िफÐम और टी.वी. मोटे तौर पर एक ही जैसे लगते है। पर एक जैसे लगते हòए भी काफì
िभÆनता रखते है। आरंभ म¤ इसी अंतर को समझना होगा। दूरदशªन िफÐम नहé है, लेिकन
िफÐम कì ही भाँित इसम¤ भी कैमरे का ÿयोग होता है और छायाकृितयाँ Öøìन पर िदखाई
देती है। टी. वी. नाटक मु´य łप से ÖटूिडयŌ म¤ वहé के साधनŌ से तैयार िकया जाता है,
जबिक िफÐम के िलए यह बिÆदश कतई नहé है। िफÐम िनमाªण म¤ उ°म तौर से और मु´य
łप से एक ही कैमरे का ÿयोग होता है। िफÐम कì शूिटंग और ÿोसेिसंग के बाद सÌपादक
उसे काटकर जोड़कर िविभÆन शॉटस् का øम बनाकर िफÐम को गित िनरÆतरता और अथª
ÿदान करता है।
टी.वी. नाटक ÿसारण या åरकािड«ग के समय िनद¥शन, कलाकारŌ या कैमरा मैनŌ के साथ
सैट पर नहé रहता, जैसा िक िफÐम कì शूिटंग म¤ होता है, बिÐक वह ÿॉड³शन पैनल से
सभी कैमरŌ का संचालन, सÌपादन, Åविन ÿभाव या संगीत के ÿयोग के िलए लगातार
िनद¥श देता रहता है ³यŌिक टी.वी. नाटक म¤ यह सभी कायª एक साथ चलते है।
िफÐम का Öøìन िवशालकाय होने के कारण उसे लाँग शॉटस् अपना अथª और सुÆदरता
दशªक तक पहòँचाने म¤ स±म है। िफÐम म¤ काम करने वाले लेखक एवं िनद¥शक हाथ म¤ हाथ
डालकर काम करने वाले होते है। दोनŌ एक दूसरे के पूरक है।
अब िफÐम कì ÿिøया पर Åयान देते है उस पर िवचार करते है। जैसा िक सुिविदत है िक
नाटक चाहे टी.वी. का हो या मंच का या िफÐम अथवा रेिडयŌ का सबका मूल आधार है-
कहानी केवल माÅयम के अनुłप कहानी कहने का तरीका अलग-अलग होता है और
कहानी कहने का अÆदाज ही उसे रोचक या ऊबाऊ बना सकता है।
कहानी ³या है ? यह ÿij उठाकर हम कोई सािहिÂयक बहस नहé छेडना चाहते। नाटक या
िफÐम िलखने के िलए िवचार एवं िवषय पर बातचीत करते है। िवचार या िवषय सÌÿेिषत
करने के िलए हम केवल एक िवषय - या थीम का चुनाव करते है।
पटकथा लेखन हेतु आवÔयक तÂव पटकथा लेखनः
पटकथा िकसी भी कायªøम कì पहली आवÔयकता है। कायªøम कì सफलता असफलता
बहòत कुछ पटकथा पर िनभªर करती है। टेलीिवजन के िलए समाचार िलखना अÆय समाचार
माÅयमŌ के िलए समाचार िलखने से बहòत िभÆन है। इसी तरह अÆय टी.वी. कायªøमŌ कì
पटकथा लेखन का कायª अलग तरह का है। इसके िलए अितåरĉ सजगता और योµयता कì
माँग रहती है। लेखक को टेलीिवजन कायªøम के िनमाªण कì पĦित का भी ²ान होना
चािहए। कुछ िसĦांत का भी पता होना चािहए। munotes.in

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फìचर िफÐम लेखन
119 टेलीिवजन के िलए िविवध तरह के कायªøम तैयार होते है। समाचारŌ के लेखन का काम
अÆय कायªøमŌ के िलए आलेख या पटकथा लेखन से कुछ िभÆन तरह का होता है। बेशक
टेलीिवजन माÅयम कì भाषा के मूल तÂव समान होते है। सं±ेप म¤ कह¤ तो यह िक समाचार
के अितåरĉ अÆय कायªøमŌ के पटकथा, लेखन म¤ भाषा कì शत¦ अलग हो सकती है। साथ
ही उनम¤ ŀÔय योजना बनाकर कई खंडŌ म¤ पटकथा िलखी जाती है। पटकथा का कंकाल
(उसका Öटेप आऊट लाइन) बहòत िवÖतृत और अंग-उपंगो म¤ बँटा हòआ रहता है। उसम¤
ÿायः तीन 'अंक' होते है। पहले अंक म¤ सेट अप, दूसरे म¤ टकराहट, ĬंĬ या संघषª कì योजना
रहती है और तीसरे अंक म¤ चरमोÂकषª या समाधान। ŀÔय लेखन के िलए िबंबो कì सृिĶ कì
जाती है और एक तरह से ŀÔय कì Óया´या कì जाती ह§।
िकसी भी टेलीिवजन कायªøम के िलए यह आवÔयक है िक पहले शोधकायª कर िलया जाए,
जब िलखने बैठा जाए। पूरे कथानक को, घटनाचø को, ŀÔयŌ को अपने भीतर रचा बसा
लेना होता है। कÐपनाशिĉ से भी काम िलया जाता है। संगीत ÿभाव के िबंदु सोचे जाते है।
आवÔयक तÂव :
पटकथा लेखन के तीन आवÔयक तÂव है।:
१. ŀÔय
२. देशकाल
३. Öथान
१. ŀÔय:
पटकथा कì इकाई 'ŀÔय' हòआ करता है। पटकथा िकसी नाटक कì तरह कथानक को ŀÔयŌ
म¤ तोड़कर ÿÖतुत करती है। जहाँ घटनाÖथल बढता है, वहé ŀÔय भी बदल जाता है। कहने
का अथª यह हैिक एक खास जगह पर और एक खास अविध म¤ लगातार जो कुछ होता है,
वह एक ŀÔय कहलाता है। दूसरी महßवपूणª बात यह है िक दो ŀÔयŌ के बीच 'कट टू' िलखा
िदया जाता है। 'कट टू' का मतलब है िक इस ŀÔय को यहé काट कर हम एक अÆय
घटनाÖथल वाले ŀÔय म¤ जोड़ रहे है। जब कायªøम को शूट कर िलया जाता है। 'कट टू'
कहने का अथª यह िलया जाता है िक यहाँ से काट कर वहाँ जोड दीिजए।
२. देश काल:
इससे आगे देश-काल पर ŀÔय के ऊपर यह िलखना होता है, िक वह ŀÔय कहाँ और कब
घिटत हो रहा है? जैसे कोई ŀÔय िकसी घर के भीतर का है, तो हम िलख¤गे 'भीतर' या
'INTR ' अथाªत् - 'इंटीåरयर' और यिद ŀÔय बाहर का है। जहाँ मैदान हो सकता है, सड़क हो
सकती है, भीड़ हो सकती है, बाजार हो सकता है तŌ िलख¤गे 'बाहर' या ENTR अथाªत्
'ए³सटीåरयर इसके साथ - ही हम¤ समय का उÐलेख भी करना चािहए। ŀÔय िदन का है,
रात का है, या शाम का है ? हाँ यह नाहé िकया जाता िक शाम के चार बजे है, या बारह बजे
है, या दस बज¤ है। यह काम लेखक का नहé होता यिद िकसी ŀÔय म¤ समय को ठीक-ठीक munotes.in

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जनसंचार माÅयम
120 बताना जłरी हो , तो ŀÔय म¤ घड़ी का शॉट डालना पड़ेगा अथवा िकसी संवाद के माÅयम
से यह काम करना होगा।'
३. Öथान:
इससे जुड़ा एक और तÂव है, वह है Öथान जैसे नदी का िकनारा समुþ तट, झोपडी बाजार
आिद इससे तुरंत पता चलता है िक कौन-सा ŀÔय कहाँ का है और ŀÔय िदन का है या रात
का है ? इससे शूिटंग करने वालŌ को सुिवधा रहती है। वे अपनी सुिवधा से एक ही Öथान के
िदन- िदन के ŀÔय एक साथ शूट कर लेत¤ है और रात के ŀÔय एक साथ। बाद म¤ उÆह¤
संपािदत करके अपनी-अपनी जगह पर जोड़ िदया जाता है- इसके अितåरĉ पåर®म, समय
और पैसे कì बचत हो जाती है। कहने का अथª यह है िक िकसी भी पटकथा म¤ एक ही
घटनाÖथल के कई ŀÔय हो सकते है। शूिटंग करने वाले लोग उÆह¤ सुिवधानुसार एक साथ
एक-एक कर शूट कर सकते है। बाद म¤ जहाँ जłरत होती है, वहé िफट कर िदए जाते है।
शूिटंग करने वालŌ के िलए भल¤ ही एक ही Öथान पर अलग-अलग समय पर घटे ŀÔय एक
ही माला के मनके होते है, जो अलग अलग ÖथानŌ पर घटने के बावजूद øमशः एक के बाद
एक करके आते है और एक िविशĶ ÿसंग से जुड़ पाते है। इसे कुछ-कुछ ऐसे समझा जा
सकता है. जैसे उपÆयास म¤ पåर¸छेद होते है, पटकथा म¤ ŀÔयŌ कì ®ृंखला होती है।
पटकथा लेखन के ÿाłप:
सवª ÿथम उदाहरणाथª पटकथा अंश देखे। यह अंश मुंशी ÿेमचंद कì कहानी 'पूस कì रात'
पर आधाåरत है।-
ŀÔय १ - बाहर / झोपड़ी का दरवाजा / िदन :
हम िदखाते है िक एक रगड़-सा गरीब अधेड़ आदमी हÐकू दरवाजे पर दÖतक दे रहा है।
और उससे थोड़ी दूर एक अÆय Óयिĉ हाथ म¤ लाठी िलए मूँछ¤ ऐठता खड़ा है। दरवाजा
आवाज करते हòए खुलता है। झाडू हाथ म¤ िलए अधेड मुÆनी नजर आती है। हÐकू भीतर
जाता है। लठैत Óयिĉ दरवाजे पर खड़ा हो जाता है।
ŀÔय २ - िदन / भीतर / झोपड़ी के अंदर:
हम देखते है िक िजस ľी ने दरवाजा खोला था वह झाडू लगाने लगी थी। हÐकू एक ±ण
िहचिकचाता हòआ खड़ा रहता है, िफर कहता ह§।
हÐकू - मुÆनी सुनती हो, सहना आया है, लाओ जो łपए रखे है, उसे दे दूँ िकसी तरह
गला तो -- छूटे मुÆनी झाडू लगाना रोककर पोछे मुड़ कर बोलती है -
मुÆनी - तीन ही łपए तो ह§ ये दोगे तो कंबल कहां से आएगा ?
माघ पूस ही रात हाट म¤ कैसे कटेगी ? उससे कहो फसल पर łपए दे द¤गे। अभी नहé है।
हÐकू कुछ देर सर खुजलाता है िफर पÂनी के पास जाता है और लगभग खुशामदी आवाज
म¤ बोलता है ।
हÐकू - अरी दे देना, गला तो छूटे। कंबल के िलए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा। munotes.in

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फìचर िफÐम लेखन
121 पटकथा लेखन कì िविभÆन शैिलयाँ:
पटकथा िकसी भी कायªøम कì पिहली आवÔयकता है। कायªøम कì सफलता असफलता
बहòत कुछ पटकथा पर िनभªर करती है। टेलीिवजन के िलए समाचार िलखना अÆय समाचार
माÅयमŌ के िलए समाचार िलखने से बहòत िभÆन है। इसी तरह अÆय टी.वी. कायªøमŌ कì
पटकथा लेखन कायª अलग तरह का है। इसके िलए अितåरĉ सजगता और योµयता कì माँग
रहती है। लेखक को टेलीिवजन कायªøम के िनमाªण कì पĦित का भी ²ान होना चािहए।
कुछ िसĦांत का पता होना चािहए।
'पटकथा लेखन कì िविभÆन शैिलयाँ इस ÿकार से है:
१. फìचर िफÐम शैली
२. टेलीिफÐम शैली
३. िव²ापन / Óयवसाियक शैली
१. फìचर िफÐम शैली:
रंगीन वृ°ाÂमक रचना फìचर (łपक) है। मानवीय अिभłिच के साथ िमि®त समाचार जब
चटपटा लेख बन जाता है तो फìचर के łप म¤ माना जाता है। सम-सामियक घटनाओं एवं
िविवध ±ेý के अīतन पåरवतªन के सिचý और मनोरम िववरण को फìचर कहा जा सकता
है। िफचर िफÐम िदखाने या उसे बनाने का उĥेÔय होता है जनता को हर ÿकार से ÿिशि±त
करना हो चाहे वह राजनीितक पहलू का हो चाहे वह दहेज ÿथा का पहलू हो सभी के उĥेÔय
को Åयान म¤ रख कर फìचर िफÐम¤ बनाई जाती है। यह एक िववराणाÂमक शैली है। इसमे
सारे पहलुओं को Åयान म¤ रखकर जनता को एक सÆदेश या कहल¤ एक सूचना दी जाती है।
२. टेलीिफÐम शैली:
टेलीिफÐम कì शैली भी अÂयÆत रोचक है। टेलीिफÐम अÂयंत छोटी होती है। टेली िफÐम म¤
कहानी सबसे ºयादा महßव रखती है। इस िवधा म¤ एक चåरý के Ĭारा ही कहानी उसी चåरý
के चारŌ और घूमती नजर आती है। मु´य चåरý को अÆय सहायक चåरýŌ तथा तÃयŌ Ĭारा
अिभÓयĉ एवं िवकिसत िकया जाता है। िफÐम के लेखक म¤ कÐपनाशीलता, सजªनाÂमकता,
टी.वी. लेखन कì जानकारी और समयबĦता आिद गुण होने चािहए।
३. िव²ापन / Óयवसाियक शैली:
आज औīोिगक øािÆत के फलÖवłप उपभोµय वÖतुओं का उÂपादन बड़ी माýा म¤ हो रहा
है, िजनके िवपणन हेतु िव²ापन ही सहारा है। िफÐम रेिडयो टेलीिवजन, पोÖटसª, हँडिमल,
साइनबोडª, िसनेमा, Öलाइड और बैलून आिद अनेक माÅयमŌ से िव²ापन होता है परÆतु
समाचार पý ही सवाªिधक स±म एवं उपयोगी िसĦ होता है। अú¤जी म¤ िव²ापन के िलए
'Advertising' शÊद ÿयुĉ होता है जो लैिटन के 'Adverstere' से बना है िजसका अथª
'मिÖतÕक का केÆþी भूत होना है। िव²ापन कई ÿकार के होते है- Öथानीय िव²ापन , राÕůीय
िव²ापन, Óयवसाियक वगêकृत िव²ापन आिद।' 'Öथानीय िव²ापन ' जहाँ पý का ÿकाशन munotes.in

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जनसंचार माÅयम
122 होता है उस Öथल के आस-पास के नागåरकŌ को Öथानीय िव²ापन Ĭारा संदेश पहòचाया
जाता है। िसनेमा, होटल, नाटक, मनोरंजन, रेÖतराँ, और Öटोसª सÌबधी जानकारी इसम¤
समावेश रहता है। वगêकृत िव²ापन म¤ ट¤डर नोिटस, कÌपनी कì सूचनाए, िवīालयŌ के
ÿवेश सÌबÆधी िव²ापन और नौकरी पेशे कì सूचनाँए वगêकृत िव²ापनŌ के अÆतगªत - आती
है। 'ÿदशªन िव²ापन' िकसी िसĦांत नीित, कायªøम, संÖथा एवं संगठन के ÿचार का संदेश
ऐसे िव²ापनŌ Ĭारा ÿसाåरत होते है। राÕů कì भावाÂमक एकता, अÐप बचत, पåरवार
िनयोजन, Öव¸छता अिभयान आिद िव²ापन , Öव¸छता अिभयान आिद िव²ापन ÿायः पýŌ
म¤ छपते है।
वृतिचý लेखन:
टेलीिवजन वृ°िचý अिधकांश िचý, Åविन, संगीत और संवाद का िम®ण है, लेिकन यह
आवÔयक नहé है। आवÔयकता के आधार पर वृ°िचý को मूक łप से भी ÿÖतुत िकया जा
सकता है। वृ°िचý लेखन के चरणŌ को सुिवधा कì ŀिĶ से िनÌनांिकत भागŌ म¤ िवभĉ िकया
जा सकता है।
१. वृ°िचý िवषय का िनधाªरण
२. वृ°िचý म¤ सÂयता का तÂव,
३. वृ°िचý कì भाषा।
१. वृ°िचý िवषय का िनधाªरण:
वृ°िचý लेखन के समय सबसे पहले िवषय का िनधाªरण आवÔयक है। इसके बाद वृ°िचý
का उĥेÔय ³या होना चािहए, इस पर िवचार िकया जाना चािहए। वृ°िचý का उĥेÔय दशªक
वगª से िवशेष संबंध रखता है। यह देख लेना चािहए िक वृ°िचý का िनमाªण िकस दशªक वगª
के िलए िकया जा रहा है। इसके बाद वृ°िचý कì अविध पर िवचार िकया जाता है।
वृ°िचý के सभी िनणªयŌ को लेने के िलए लेखक Öवतंý नहé होता है, बिÐक िनमाªता कì
सहमती भी आवÔयक है। लेखक एवं िनमाªता आपस म¤ िवचार-िवमशª कर वृ°िचý का
िवषय, उĥेÔय एवं अविध िनिIJत करते ह§। इसी िवचार-िवमशª म¤ वृ°िचý कì ÿÖतुित भी
िनधाªåरत कì जाती है िक ÿÖतुित वृ°िचýाÂमक शैली म¤ होगी या कम¤ůी शैली म¤ या
ŀÔयाÂमक शैली म¤।
२. वृ°िचý म¤ सÂयता:
वृतिचý म¤ सÂयता यही कारण है िक वृ°िचý लेखन से पूवª िवषय से संबंिधत तÃयŌ का
संकलन और अÆवेषणाÂमक शोध कì माँग करता है जब वृ°िचý के तÃयŌ कì सÂयता कì
पृिĶ हो जाती है, तब ही उसे आलेख के łप म¤ ÿÖतुत िकया जाता है। वृ°िचý लेखक को
टेलीिवजन तकनीक कì जानकारी जłरी है। इस संदभª म¤ िनÌनािकत िबंदुओं पर Åयान देना
जłरी है:
munotes.in

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फìचर िफÐम लेखन
123 १. ÖपĶ पåरकÐपना
२. Åविन ÿभाव
३. वृ°िचý का ³लाइमे³स
४. वृ°िचý का ŀÔय øम
५. शÊद, चयन और
६. भाषा एवं शैली।
३. वृ°िचý कì भाषा:
आिद मुĥे महßवपूणª होते है। कहा जा सकता है िक वृ°िचý कì भाषा 'गागर म¤ सागर' भरने
वाली होती है। टेलीिवजन म¤ ŀÔय का महßव अिधक होता है, शÊद का कम। अतः शÊद ŀÔय
के अहवतê होने चािहए। वृ°िचý लेखन म¤ इस बात का Åयान रखना चािहए िक भाषा ऐसी
हो, िजसका उ¸चारण आसानी से िकया जा सके, अथाªत, आम बोलचाल कì भाषा का ही
ÿयोग करना चािहए , तािक वाचक को असुिवधा न हो।

*****

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124 १४
जनसंचार माÅयमŌ का दाियÂव
जनसंचार माÅयम एक सामािजक अवधारणा है। िजसका िøयाÆवयन पूरी तरह समाज के
बीच ही होता है। समाज से हटकर या कटकर जनसंचार िन°ांत असंभव है। जनसंचार का
अÅययन िजस शैि±क अनुशासन के तहत िकया जाता है उसे सामािजक नृतÂवशाľ कहा
जाता है। अतः जनसंचार समाजशाľ कì ही एक शाखा है।
दाियÂव शÊद के मूल म¤ 'दाय' शÊद है। मनुÕय होने के नाते हम अपने समाज से िनरंतर बहòत
कुछ लेते रहते है। बदले म¤ हम¤ जो समाज को देना होता है वही दाम कहलाता है। इसीसे
िवकिसत हòआ है दाियÂव चूिक जनसंचार का संबंध मनुÕय माý से होता है अतः िजतने भी
मानिसक िवकास के आयाम हो सकते है उतने ही जनसंचार माÅयमŌ के दाियÂव भी हŌगे।
सं±ेप म¤ हम इन दाियÂवŌ को सामािजक राजनैितक, आिथªक, सांÖकृितक, शै±िणक तथा
नैितक आयामŌ म¤ वगêकृत कर सकते है।
जनसंचार माÅयमŌ का सामािजक दाियÂव:
जनसंचार कì ÿिøया अपने सभी माÅयमŌ म¤ समाज के बीच ही संपÆन होती है अतः
अिनवायª łप से उसका कुछ सामािजक दाियÂव बनता है। अखबार जैसे मुिþत माÅयम से
लेकर इंटरनेट तक का एक सामािजक प± होता है। यू तो जनसंचार माÅयमŌ का उĥेÔय
सहé जानकाåरयŌ को पूरी सहजता और ÿामािणकता से जन सामाÆय तक पहòँचाना होता है
पर िवषय वÖतु के चुनाव और उसके ÿित एक सामािजक ŀिĶकोण जन संचार माÅयम को
दाियÂव पूणª बनाता है। भारत जैसे लोकतांिýक देश म¤ अनेक ÿकार कì िवषमताएँ,
अंधिवĵास कुरीितयाँ तथा समÖयाएँ है। इन सबके ÿित सजग जागृत करने म¤ जनसंचार
माÅयमŌ कì महßवपूणª भूिमका हो सकती है। राजा राममोहन राय से लेकर लगभग सभी
Öवाधीनता सेनािनयŌ ने अपने अपने अखबारŌ के माÅयम से सतीÿथा, अछुत, िवधवा -
िववाह, बालिववाह, जाित ÿथा आिद सामािजक िवषयŌ के ÿित न िसफª चेतना फूँकì बिÐक
कई कानूनŌ - के भी ÿेरणा बने। गाँधीजी कì 'हåरजन' और 'नवजीवन' इसी ÿकार के
अखबार थे। आजादी के बाद भी अखबारŌ ने कमोवेश अपने इन दाियÂवŌ का िववाªद िकया।
भारत म¤ रेिडयŌ कì शुłआत ही जनजागरण से हòई रेिडयŌ के कायªøमŌ के माÅयम से ÿारंभ
म¤ अखबारŌ के ही सामािजक उĥेÔय को आगे बढ़ाया गया। खासतौर पर बीमाåरयŌ और कृिष
संबंधी समÖयाओं के समाधान को रेिडयŌ के जåरए ही िवराट जन मानस तक पहòचाया गया।
अपने तमाम मनोरंजन ÿधान कायªøमŌ के बावजूद आज भी रेिडयŌ कम से कम शहरŌ म¤
अपनी सामािजक िजÌमेदाåरयाँ िनभा रहा है।
िसनेमा भले ही मनोरंजन का माÅयम रहा हो पर मनोरंजन के साथ- साथ ही इसने
सामािजक जागłकता का दाियÂव िनभाया। वी. शांताराम, वीर. आर. चोपड़ा , हेमाशु राय,
सÂयजीत राय से लेकर िवमल रॉय, गुłद°, मृणाल सेन, Ôयाम बेनेगल, गौतम घोष, गोिवंद
िनहलानी, केतन मेहता, जÊबार पटेल जैसे िफÐम िनमाªताओं ने अपनी िफÐमŌ के माÅयम munotes.in

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जनसंचार माÅयमŌ का दाियÂव
125 से कई सामािजक समÖयाओं कì पूरी संवदेनशीलता से अपने दशªकŌ तक न िसफª पहòंचाया
बिÐक उÆह¤ संवेदनशील भी बनाया। आदमी , दुिनया न माने अछुत कÆया, साधना, सुबह,
सदगित आिद िफÐम¤ िसनेमा के सामािजक दाियÂव का ºवलंत उदाहरण है।
टेलीिवजन म¤ दूरदशªन अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद बड़े पैमाने पर अपनी सामािजक
िजÌमेदारी िनभा रहा है। पåरचयाª, बहस, फìचर, डा³यूम¤ůी, टेलीिफÐम िव²ापन आिद के
माÅयम से यह िनरंतर अपने सामािजक दाियÂव का िनवाªह कर रहा है।
जनसंचार माÅयमŌ का राजनीितक दाियÂव:
राजनीित Óयिĉ समाज , स°ा, शासन के अंतः संबंधŌ का शाľ है जहाँ भी एक से अिधक
Óयिĉ मौजूद होते है। वहाँ अपने आप राजनीित का आिवभाªव हो जाता है। भारत जैसे
लोकतांिýक देश म¤ राजनीित का उĥेÔय ऐसी शासन ÓयवÖथा कì Öथापना है जो
जनकÐयाण, सामािजक Æयाय और धमª िनरपे±ता पर अवलंिबत हो। इस देश म¤ जनसंचार
माÅयमŌ का िवकास साăाºयवादी दौर म¤ उपिनवेश काल के दौरान हòआ। यह दौर मुिþत
माÅयमŌ का था। एक ओर यह सरकारी Öतर हòकुमत के ÿचार-ÿसार म¤ लगा था तो दूसरी
ओर समाज सुधारकŌ, Öवाधीनता सेनािनयŌ और øांितकाåरयŌ के Ĭारा इसका अÂयंत
ÿखर उपयोग िकया जा रहा था। यिद कहा जाय िक भारत कì आजादी म¤ सबसे बड़ी
भूिमका अखबारŌ कì रही तो अितशयोिĉ न होगा। भारतीय जनता को राजनीितक łप से
िशि±त और जागłक करने म¤ अखबारŌ का बेहद महßवपूणª योगदान रहा। केशरी, मराठा,
यंग इंिडया, ÿताप, देश, आज, कमªवीर जैसे पý - पिýकाओं ने भारतीय िशि±त जनŌ म¤
राजनीितक चेतना का शंख फूंका।
आजादी के बाद भी कई ऐसे अखबार थे जो लगातार राजनीित पर अंकुश का काम करते
रहे। अखबारŌ कì राजनीितक एहिमयत इसी बात से पता लग सकती है िक एमरज¤सी के
दौरान तÂकालीन ÿधानमंýी ®ीमती इंिदरा गांधी ने ÿेस कì Öवतंýता समाĮ कर दी थी।
ऐसा ही काम िपछली सदी म¤ अंúेजŌ ने भी िकया। ितलक पर राजþोह का मुकदमा हो या
महाÂमा गांधी पर चलने वाला मुकदमा सभी म¤ अखबारŌ म¤ छपे उनके लेखŌ कì भूिमका ही
ÿधान थी।
आज भी हमारे देश म¤ सा±रता का ÿितशत ८० से अिधक नहé है लगभग ३० करोड़ लोग
पूरी तरह िनर±र है िजÆह¤ राजनीितक łप से स°ा ÿािĮ का जåरया बनाया जाता है ऐसे म¤
मुिþत माÅयमŌ का दाियÂव बनता है िक वे शेष सा±र जनसं´या को राजनीितक łप से इस
ÿकार िशि±त कर¤ िक देश म¤ सही अथŎ म¤ लोकतंý िक Öथापना हो सके । लोकतंý म¤
संचार माÅयमŌ का महßव इसी बात पता चलता है िक इसे लोकतंý का चौथा Öतंभ
(Fourth State) कहा जाता है।
®Óय माÅयम म¤ रेिडयŌ एक बड़े ही आकषªक िदलचÖप और सशĉ माÅयम के łप म¤ २०
वी सदी के ÿारंभ म¤ िवकिसत हòआ। िāिटश āाडकािÖटंग कापोरेशन कì मदद से भारत म¤
इसका ÿवेश हòआ। आगे चलकर All India radio के łप म¤ इसका िवकास हòआ। यह पूरी
तरह से सरकार िनयंिýत माÅयम था। िवĵयुĦŌ के दौरान इसने बेहद महßवपूणª भूिमका
िनभायी। लेिकन इस सरकार िनयंिýत माÅयम के समानांतर भारतीय Öवाधीनता सेनािनयŌ munotes.in

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जनसंचार माÅयम
126 ने अपने ÿाइवेट रेिडयŌ ÿसारण भी िवकिसत िकये। सन १९४२ के आंदोलन म¤ उषा बेन
मेहता, अŁणा आसफ अली , अ¸युत पटवधªन जैसे सेनािनयŌ ने अंडर úाउÁड रेिडयŌ से
आजादी कì मशाल जलाए रखी। नेताजी सुभाषचंþ बोस के रोमांिचत कर देनेवाले
Óया´यान रेिडयŌ के माÅयम से ही भारतीय जनमानस तक पहòँचे। रेिडयŌ ने सा±र और
िनर±र के भेद िमटा िदए। इसकì पहòँच का दौर बड़ी तेजी से फैलाता गया। आजादी के बाद
सूचना एवं ÿसारण मंýालय के आधीन रेिडयŌ ने स°ाधारी दलŌ कì सुिवधा के अनुłप देश
को राजनीितक łप से िशि±त िकया। खास तौर पर लोगŌ को मतदान कì और ÿवृ° करने
म¤ रेिडयŌ कì भूिमका असंिदµध रही है। पर सरकारी िनयंýण कì वजह से कहé न कहé इन
माÅयमŌ का उपयोग स°ाधारी दल अपने िहत के िलए करने लगा था। इसी के चलते रेिडयŌ
और दूरदशªन को Öवायत°ा ÿदान करने के िलए ÿसार भारती िवधेयक का आिवभाªव हòआ।
उदारीकरण के दौर म¤ जहाँ एक ओर सरकारी िनयंýण के अलावा ढेर सारे ÿाइवेट रेिडयŌ
चैनल अिÖतÂव म¤ आए, वहé इनके राजनीितक दाियÂव भी अपे±ाकृत बड़े ÿाइवेट रेिडयो
चैनल मु´यतः Óयावसाियक ŀिĶ से इस ±ेý म¤ उतरे है िफर भी काफì हद तक वे
लोकýांितक मूÐयŌ के िवकास म¤ सहयोग कर रहे है।
जो हाल रेिडयŌ का है वही हाल दूरदशªन का भी है। लेिकन दूरदशªन के गैर सरकारी चैनलŌ
म¤ कई चैनल पूरी तरह राजनीितक कारणŌ से अिÖतÂव म¤ आए है। चैनल राजनीितक दलŌ
अथवा ÓयिĉयŌ Ĭारा संचािलत है। दि±ण म¤ सन (Sun) टी.वी. और सूयाª टी.वी. तो उ°र
म¤ सहारा, आजतक, लोकमत आिद चैनल िकसी न िकसी राजनीितक ÿितबĦताओं से जुड़े
है। भूमंडलीकरण के दौरान िवकिसत चैनल सीधे-सीधे स°ा और िवप± के दो ňुवŌ म¤ बंट
गए है। तो कुछ इनके बीच संतुलन साधे रहते है। 'टी.वी. चैनलŌ के असर के रहते भी कई
बार राजनेताओं को अपनी कुिसªयŌ छोड़नी पड़ जाती है राजनीितक ±ेýŌ म¤ िÖटंग
आपरेशन' इले³ůॉिनक माÅयमो का एक ऐसा सशĉ हिथयार है िजसने कई बार राÕůीय
राजनीित को िहलाकर रख िदया। जाजª फना«िडस से लेकर नारायण द° िýवारी तक इसके
िशकार हòए है। 'जनमत' लोकतांिýक राजनीित का एक अहम् तÂव है। और इस जनमत के
िनमाªण म¤ संचार माÅयमŌ कì भूिमका असंिदµध łप से महßवपूणª है।
िफÐम माÅयम भी राजनीितक दाियÂवŌ कì ŀिĶ से भारत जैसे अथª सा±र देश म¤ अÂयंत
महßवपूणª सािबत हòआ है। भारतीय िफÐमकारŌ ने कई तरह से िफÐमŌ का ÿयोग राजनीितक
उĥेÔय के िलए िकया। आजादी के ठीक पहले बनी िफÐम 'िकÖमत' म¤ पंिडत ÿदीप के एक
गीत -
'आज िहमालय कì चोटी से दुÔमन ने ललकारा है दूर हटो ऐ दुिनया वालŌ िहंदुÖतान हमारा
है।' ने भारतीय जनमानस म¤ राजनीितक चेतना जमाने का काम िकया । आजादी के बाद
हमारे िफÐमकारŌ का Åयान नए भारत के िनमाªण कì ओर लगा पर पहले ही चुनाव ने भावी
भारत कì łपरेखा ÖपĶ कर दी। और कई िफÐमकारŌ का झुकाव राजनीित कì ओर होने
लगा। एक ओर सरकार Ĭारा बनवाए गए वृ°िचý और लघु िफÐमŌ लोगŌ को राजनीितक
łप से िशि±त करने का काम कर रही थी। तो कुछ िफÐम कारŌ ने िफÐमŌ का उपयोग
अपनी छिव के िनमाªण म¤ िकया। और उसके आधार पर बने जनमत को बोटो के łप म¤
उपयोगकर राजनीित म¤ पदापªण िकया एम. जी. रामचंþन, जय लिलता, एन.टी. रामाराव,
एस. बंगारÈपा, सुनील द°, जया ब¸चन, जयाÿदा, राजबÊबर, शýु¶न िसÆहा आिद इसके munotes.in

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जनसंचार माÅयमŌ का दाियÂव
127 सशĉ उदाहरण है। िफÐमŌ से आनेवाले राजनेता ने भारतीय राजनीितक ढाँचे को या
लोकतांिýक मूÐयŌ को भले ही मजबूत न िकया हो पर इससे राजनीितक दलŌ को अवÔय
लाभ िमला है। इसके साथ ही सन् ७० के आसपास मनोरंजन से हटकर साथªक व सौदेÔय
िसनेमा ने काफì हद तक राजनीित को ÿभािवत िकया और अपने राजनीितक दाियÂवŌ का
िनवाªह िकया। इन िफÐमकारŌ म¤ गौतम घोष, Ôयाम बेनेगल, गोिवÆद िनहलानी , ÿकाश झा,
जÊबार पटेल, सहद िमजाª आिद ÿमुख है। सन १९८० के बाद राजनीित म¤ बढ़ते अपराधी
करण तथा िनरंकुश राजनेताओं पर िहंदी िसनेमा ने साथªक िटÈपणी कì िपछली सदी के
आिखरी दशक म¤ पथĂĶ राजनीित और ĂĶ नेता भारतीय िसनेमा के केÆþ म¤ रह¤ इस तरह
शुĦ मनोरंजन का यह Óयावसाियक माÅयम अपने राजनीितक दाियÂवŌ के ÿित सजग तो है
पर जैसी उससे अपे±ा कì जाती है। उतना योगदान वह दे नहé पाता।
सांÖकृितक एवं दाियÂव:
संÖकृित वÖतुतः पशु के इंसान बनने कì कहानी है। िनरंतर शुĦ व पåरÕकृत होते रहने कì
ÿिøया है संÖकृित जो िक िनतांत सामािजक अवधारणा है। जनसंचार भी मानव को
सुसंÖकृत करने का एक महßवपूणª माÅयम है। दरअसल संÖकृित Öवयं म¤ एक संचार ÿिøया
है और संचार म¤ संÖकृित महßवपूणª अंग है। मानव ºयŌ-ºयŌ सËय होता गया ÂयŌ ÂयŌ संचार
के माÅयमŌ का - उ°ररो°र िवकास करता गया। भले वह जन संचार का मुिþत माÅयम हो
या अÂयाधुिनक नेटविक«ग हो। ये सभी मानव के भौितक िवकास का ºवलंत ÿमाण है। जब
यह ÿगित भौितक और आिÂमक दोनŌ ÖतरŌ पर एक समान अúसर होती है तो संÖकृित
कहलाती है। लेखन कला मुþण कला, छपाई, रेिडयŌ, दूरदशªन, िसनेमा आिद तकनीकì
िवकास के साथ साथ सांÖकृितक िवकास के - भी घोतक है। मुिþत माÅयम आज भी मनुÕय
कì बौिĦक खुराक को पूरा करने का अहम् माÅयम है। इन माÅयमŌ से न िसफª मनुÕय के
बौिĦक ि±ितज का िवÖतार होता है बिÐक उसे आिÂमक आनंद कì भी अनुभूित होती है।
अखबार आज िसफª सूचना माÅयम पर नहé बिÐक हमारे बौिĦक अिÖतÂव व सांÖकृितक
ÓयिĉÂव का अिभÆन अंग बन चुके है। अखबारŌ का सांÖकृितक महßव जानना हो तो हम दो
िभÆन अखबार पढ़ने वालŌ को देखकर जान सकते है। देश आनंद बाजार पिýका, िहंदू,
लोकस°ा, महाराÕů टाइÌस , सरीखे अखबार पढ़ने वाले लोग िनIJय ही िमड डे संÅयाकाळ,
चौफेर, सामना, नवभारत टाइÌस के पाठकŌ से सांÖकृितक Öतर पर बेहतर ही होगे।
अखबारŌ का दाियÂव बनता है िक वे अपने पाठक को सांÖकृितक łप से पåरÕकृत, सजग व
समृĦ बनाए िसफª राजनीित अपराध अथªशाľ ही नहé सांÖकृितक खबरŌ व गितिविधयŌ
को भी ÿमुखतासे ÿकािशत कŌ और पाठकŌ का łिच िनमाªण कर¤।
रेिडयŌ ने इस दाियÂव को ÿारंभ से ही बखूबी िनभाया सूचना एवं मनोरंजन के साथ-साथ
कला, संगीत और लोकगीतŌ को जनसामाÆय तक पहòँचाने का काम रेिडयŌ ने दाियÂव पूणª
ढंग से िकया ÿारंभ म¤ रेिडयŌ का लàय úामीण भारत ही हòआ करता था। इसिलए
लोकसंÖकृित का सवाªिधक ÿचार ÿसार आजादी के बाद रेिडयŌ से ही हòआ। आगे चलकर
दूरदशªन ने भी इसम¤ अहम भूिमका िनभाई दूरदशªन के Öथािनक क¤ÆþŌ ने Öथािनय
संÖकृितका खुलाकर उपयोग िकया। लोक नाट्यपवª, उÂसव आिद को दूरदशªन ने काफì
महßव िदया तो दूसरी ओर िसनेमा ने भी सांÖकृितक िश±ण दाियÂव िनभाया। पािकजा, munotes.in

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जनसंचार माÅयम
128 मुगले आजम, मदर इंिडया जैसी िफÐम¤ भारतीय संÖकृित कì अिभÓयिĉ का सावªजिनक
नमूना है। हÖतकला, िचýकला, नृÂय, संगीत, खान-पान वेशभूषा, पवª Âयोहार, आिद के
िचýण का िजतना अवसर ŀÔय -®Óय माÅयमŌ कì उपलÊध है उतना अÆय माÅयमŌ से नहé
यिद हम दूरदशªन के सांÖकृितक कायªøमŌ और िफÐमŌ का ही आधार ले तो भी भारतीय
संÖकृित के सभी łपŌ को भली भाँित अिभÓयĉ कर सकते है। सांÖकृितक Öतरपर एक
भारतीय समÖया है। िविभÆन संÖकृितयŌ के सामंजÖय कì खास तौर पर िहंदू और मुिÖलम
संÖकृित कì। िसनेमा और दूरदशªन ने इस िदशा म¤ िकसी अÆय संÖथा से कहé अिधक
महßवपूणª भूिमका िनभायी है।
जनसंचार माÅयमŌ का आिथªक दाियÂव:
आिथªक दाियÂव का संबंध मु´यतः मानव जीवन को बेहतर बनाने के िलए आवÔयक
उÂपादन, िवतरण तथा इनसे संबंĦ अÆय अिभकरणŌ के अंतःसंबंधŌ कì एक िविशĶ ÿिøया
से है। उÂपादन म¤ उÂपादन कì ÓयवÖथा उसके समÖत संसाधन, उÂपादक और उपभोĉा
कì ÓयवÖथा उसके समÖत संसाधन, उÂपादन और उपभोĉा के अंतः संबंĦ तथा िवतरण
म¤ उसके भंडारण - पåरवहन तथा माक¥िटंग कì सारी ÓयवÖथाएँ समािहत हो जाती है। जहाँ
तक जनसंचार माÅयमŌ का ÿij है यह िविशĶ अथª ÓयवÖथा से आज अÂयंत िविशĶ अथª
तंý है। यिद इस देश म¤ साăाºयवाद के चरण न पड़े होते तो हमारे संचार माÅयमŌ का
ÖवÖथ कुछ और ही होता। जहाँ तक इले³ůॉिनक माÅयमŌ का ÿij है खास तौर से दूरदशªन
और िसनेमा ये पूरी तरह से पूँजीवादी अथªÓयवÖथा कì संताने है सो कÌÈयूटर, मोबाईल
और इंटरनेट पूँजी कì उ°र आधुिनक ÓयवÖथाएँ है। संचार माÅयमŌ के आिथªक दाियÂव को
हम दो आयामŌ म¤ िवĴेषण कर सकते है। एक है संचार माÅयमŌ का अथª तंý उसम¤ लगने
वाली पूँजी उससे होने वाला मुनाफा और मुनाफे कì इस ÓयवÖथा को बनाए रखने के िलए
राजनीितक अथª ÓयवÖथा से िलए जाने वाले समझौते। इसका सीधा संबंध उनसे है िजनका
जनसंचार माÅयमŌ पर आिथªक िनयंýण है। दूसरे वे लोग है जो इन माÅयमŌ के उपभोĉा,
पाठक, ®ोता, दशªक, या ÿेषक है। जन संचार माÅयमŌ के अथªतंý म¤ इनका भी महßवपूणª
योगदान है। आज िसफª िहंदी िसनेमा का सालाना बाजार कई हजार करोड़ -अरबŌ łपए से
उपर है तो वह िसफª अपने दशªकŌ के बल पर ही है। यिद दूरदशªन पर लाखŌ łपए ÿित
िमनट कì दर से िव²ापन िदखाए जाते है तो उसकì वजह उस िटिकट बा³स के सामने बैठा
हòआ उपभोĉा ही है। अतः एक लोकतांिýक देश म¤ माÅयमŌ का पहला दाियÂव अपने
पाठकŌ एवं दशªकŌ के ÿित होना चािहए न िक स°ा एवं शिĉ के क¤Æþो के ÿित। पर हम
पहले ही िजø कर चुके है िक इस देश म¤ सही िश±ा के अभाव म¤ दाियÂव िनवाªह कì ÿिøया
शायद ही िकसी ±ेý म¤ पूरी हो जाती हो। जब अखबार जÆम¤ ही थे तभी से शेअर बाजार कì
खबर¤ और आिथªक समाचार खास तौर पर सोने-चांदी के भाव अखबारŌ म¤ छपने लगे थे।
अखबारŌ ने ही उÆनीसवé सदी के आिखर म¤ हम¤ बताया िक अंúेज िकस बुरी तरह से हमारा
आिथªक शोषण कर रहे है।
आजादी के बाद देश के अिथªक िवकास एवं चुनौितयŌ को अखबारŌ म¤ महßवपूणª Öथान
िमलने लगा। बढ़ती हòई आबादी घटता हòआ कृिष उÂपाद, अिश±ा, ĂĶाचार, बेरोजगारी
आिद हमारी ÿमुख आिथªक समÖयाएँ थी िजनके ÿित अखबारŌ ने पूरी इमानदारी से अपना
दाियÂव िनभाया रेिडयŌ ने भी úामीण अथª ÓयवÖथा के िवकास म¤ अहम भूिमका िनभायी, munotes.in

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जनसंचार माÅयमŌ का दाियÂव
129 वीजŌ को उÆनित िकÖम¤ िसचाई के साधन, उबªरकŌ के उपयोग कìटनाशको का उपयोग,
फसलŌ कì सुर±ा, फसलŌ का मूÐय िनधाªरण आिद पर ÿितिदन ÿसाåरत होने वाले रेिडयŌ
कायªøमŌ ने सा±र दर कम होने के बावजूद िकसानŌ को आिथªक łप से िशि±त िकया।
उÂपादन के ±ेý म¤ मिहलाओं को सािमल करने के ŀिĶ से भी इनकì महßवपूणª भूिमका रही।
आगे चलकर दूरदशªन ने भी इस कतªÓय को बखूबी अंजाम िदया। िसफª िसनेमा इस दाियÂव
म¤ कुछ इस तरह िपछड़ गया। ³यŌिक ÿÂय± या अÿÂय± łप से उप पर यह दाियÂव लागू
नहé होता था। पर िव²ापनŌ के माÅयम से उसने बाजारी करण कì ÿिøया म¤ अवÔय
योगदान िकया। इंटरनेट के आने से आिथªक ±ेýम¤ कई मूल भूत पåरवªतन हòए। ई-ब§िकंग,
टेलीमाक¥िटंग, ए.टी.एम. आिद ने आिथªक ±ेý म¤ लगभग øांित कर दी। िकंतु इस समÖत
टे³नोलॉजी को ÿकृित पूँजीवादी होने के नाते इसका लाभ जन सामाÆय तक नहé पहòँच
सका। आज संचार माÅयम अपने मु´य उ°र दाियÂव को भले उस तरह नहé िनभा पा रहे
हŌ जैसा िक इस िवकासशील लोकतंý म¤ िनभाना चािहए था पर आज वे खुद आिथªक
िवकास के महßवपूणª उपादान बन चुके है इसम¤ संदेश नहé है।
नैितक दाियÂव:
नैितकता िवषय िनķ अवधारणा है। यह समाज सापे± और Óयिĉ सापे± होती है। इसके
अलावा यह देशकाल सापे± भी होती है। सावªभौिमक तथा संपूणª (absolute) नैितकता
जैसी कोई चीज नहé होती। अभी बीस साल पहले िजस तरह के िसनेमा को A सिटªिफकेट
िदया जाता था वे आज के ब¸चŌ को भी बचकाने लगते है। िजस तरह के अध नंगे और
अĴील िचý आजकल के अखबारŌ और पिýकाओं म¤ छप रहे है, अभी १५ साल पहले
उनकì कÐपना भी नहé कì जा सकती थी। यानी अभी २५-३० साल पहले हम अपने
नैितक ÿितमानŌ को इतना पीछे छोड़ आये है िक वे गुजरे जमा ने कì बाते लगती है तब
जबिक हम आज भी िवकिसत देशŌ से कम से कम २५ साल पीछे चल रहे है। नैितकता का
दूसरा संबंध इितहास परंपरा और संÖकृित से भी होता है। और ये तीनŌ ही तÂव बहò
आयामी और िवकसनशील होते है पर यहाँ भी सही िश±ा के अभाव म¤ हमने जड़ता को ही
Öवीकार िकया। आज भी हम अखबारŌ म¤ पढ़ते है। टी.वी. पर देखते है िक समान गोý म¤
िववाह करने पर वर-वधु को पंचायत ने सजाए मौत दे दी। अ±य तृतीया के िदन दो-दो तीन-
तीन साल के िशशुओं का िववाह सीधे ÿसाåरत िकया जाता है। रेÌप पर चलती सुंदरी के
वľ िमट जाते है वयोवृĦ नेता अपनी बेटी कì उă कì लड़िकयŌ से रंगरेिलयाँ मनाता
िदखता है। बेटी कì उă कì लड़कì से छेड़खानी करने वाला नौकरशाह मुÖकराते हòए
आदालत से बाहर आता है ये सब हमारे आज कì नैितकता के ŀÔय है।
जन संचार माÅयमŌ के नैितक दाियÂव म¤ हम¤ दोष साफ-साफ देख रहे है िक एक और
माÅयम लोगŌ को नैितक łप से िशि±त कर रहे है तो दूसरी ओर इन माÅयमŌ म¤ ही
नैितकता कì धिºजयाँ उड़ायी जा रही है। आज का हमारा िसनेमा अĴीलता कì तमाम हद¤
लांघ चुकì है। भाषा ही नहé ŀÔयŌ के Öतर पर भी अब यह ÖवÖथ नहé रहा । िव²ापनŌ कì
दुिनयाँ म¤ अĴीलता का कारोबार बड़ी तेजी से फलफूल रहा है। यिद सच को छुपाना, झूठ
को ÿदाय देना, लोगŌ को बेवकुफ बनाना, बहला फुसलाकर आ जुलूला चीजे बेचना और
µलोफ मेला करना अनैितक है तो मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है िक हमारा िव²ापन
जगत आज पूरी तरह से अनैितक हो चुका है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
130 मुिþत माÅयमŌ म¤ अखबारŌ म¤ अभी भी नैितकता बची हòई है। ³यŌिक इसे हर रोज अपने
पाठक के पåरवार के बीच हािजर होना पड़ता है जहाँ दूरदशªन के िव²ापन दशªकŌ कì
मजबूरी होते है। वही अखबार मजबूरी नहé होते ³यŌिक वे बदले जा सकते है। िफर भी
अखबारŌ के भी िव²ापनŌ म¤ अĴीलता का क§सर फैला हòआ है। िसफª रेिडयŌ अभी इस
बीमारी से पूरी तरह मुĉ है। लेिकन इसके Óयावसाियक चैनल खुद को अनैितक होने से बचा
पाने म¤ सफल नहé हो पा रहे है। इस संदभª म¤ एक और बात कही जा सकती है िक सारे के
सारे माÅयम आज अपने पाठक और दशªक बनाने म¤ लगे हòए है और ऐसी चीज¤ परोसना
चाहते ह§ िजससे वे ºयादा से ºयादा लागŌ को अपनी ओर खीच सके जबिक नैितकता म¤
इतना आकषªण नहé है िजतना अनैितकता म¤ है। अतः एक हद तक यह Öवीकार िकया जा
सकता है िक हमारे जनसंचार माÅयम अपने नैितक दाियÂवŌ को पूरी इमानदारी से नहé
िनभा पा रहे है।
शै±िणक दाियÂव:
संचार माÅयमŌ का जÆम ही जनिश±ण के िलए हòआ यह लोगŌ को बड़े पैमाने पर िशि±त
करने का ÿमुख माÅयम रहा। ÿारंभ म¤ यह उÆहé तक सीिमत रहा जो लोग सा±र थे और
िजनकì पहòँच मुिþत माÅयमŌ तक थी पर वे लोग जो अखबारो पý-पिýकाओं तक नहé पहòँच
पाते थे वे भी अÿÂय± łप से िशि±त तो हो ही जाते थे। यहाँ िश±ा का अथª ²ान ÿदान
करना नहé, सूचना ÿदान करना है। िविभÆन िवषयŌ कì जानकारी और जानकाåरयŌ के
िविवध आयामŌ का िववेचन अखबारŌ और पý - पिýकाओं म¤ होता रहा। यह आIJयª कì बात
है िक िजस माýा म¤ आजादी के पहले जन संचार माÅयमŌ ने आम जनमानस को सजग व
सचेत िकया। उस माýा म¤ आजादी के बाद नहé कर पाया हालाँिक माÅयमŌ के बहòत ÿचार-
ÿसार ÿभाव के चलते लोग इनफामª तो हòए पर सचेत नहé हो पाए मेरे ´याल से इसकì
वजह तब के और अब के माÅयमŌ के संचालकŌ के ŀिĶकोण म¤ अंतर है। जो भी हो आज
िश±ा के िलए माÅयमŌ का बड़े पैमाने पर और पूरी िवशेष²ता से उपयोग हो रहा है। समाचार
पý सामािजक, राजनीितक व सांÖकृितक ŀिĶ से िशि±त करने म¤ लगे ह§ साथ ही वे
परंपरागत िश±ा म¤ िश±क और मागªदशªन को भूिमका भी िनभा रहे है।
संपादकìय लोगŌ, समाचार िवĴेषणŌ और पाठको को वहस के िलए मंच ÿदान करके
अखबार और पý -पिýका अपने शैि±क दाियÂवŌ को पूरा करने म¤ लगे है। आधुिनक जीवन
का शायद ही कोई ऐसा प± हो जो आज माÅयमŌ से अछूता रह पाया हो । िश±ा, सेहत,
ÖवाÖÃय से सÌबिÆधत यौन समÖयाओं पर तक मागªदशªक बने हòए है आजकल के माÅयम
रेिडयŌ वाताª, बहस, फìचर आिद के माÅयम से रेिडयŌ भी अपने इस दाियÂव को िनभा रहा
है। U.G.C. और इµनू के शै±िणक कायªøम दूरदशªन Ĭारा घर-घर मे पहòँच ही रहे है। साथ
ही जीवन के सभी पहलुओं पर िफर वो जो चाह¤ खेल हो पाक िव²ान हो ÖवाÖÃय हो या
सŏदयª सभी के बार¤ म¤ अपने दशªकŌ को िशि±त करने का कायª दूरदशªन और उसके िविभÆन
चैनल अपनी अपनी तरह से अपने अपने दायरे म¤ कर रहे है।
इंटरनेट आधुिनक िश±ा का एक महßवपूणª साधन बन चुका है। कई िश±ा संÖथानŌ म¤ यह
क¤þीय भूिमका िनभा रहा है। दुिनया भर के तमाम जानकाåरयŌ से भरे पड़े है इंटरनेट के
अलग-अलग बेव साइटस्, िसनेमा भी अपना Óयवसाय करते हòए िजतनी िश±ा दे सकता है munotes.in

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जनसंचार माÅयमŌ का दाियÂव
131 देने का ÿयास करता ह§। यह सच है िक आज के Óयावसाियक युग म¤ मुनाफा िकसी भी
ÿिøया का क¤þीय तÂव होता है। ऐसे म¤ अपने मुनाफे पर Åयान क¤िþत करते हòए आज का
जन संचार माÅयम अपने शै±िणक दाियÂव का बखूबी िनवाªह कर रहा है।


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munotes.in

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132 १५
सािहिÂयक िवधाओं कì ŀÔय ®Óय łपांतरण कला
कहािनयŌ , उपÆयासŌ और लघु-कथाओं को ŀÔय-®Óय माÅयम के िलए िनरंतर łपांतåरत
िकया ... जा रहा है; जहाँ उपÆयासŌ को धारावािहक म¤ łपांतåरत िकया गया है वहé
कहािनयŌ को रेिडयो नाटकŌ व टेलीनाटकŌ म¤ बदल िदया गया है। ऐसे म¤ यिद िकसी
उपÆयास को रेिडयŌ अथवा टेलीिवजन म¤ łपांतåरत िकया जाता है तो मूल कÃय को
बरकरार रखते हòए अÿासंिगक घटनाओं और उपकथाओं को िनकाल िदया जाता है।...
łपांतåरत के कई कारण होते है। एक तो यह है िक जो रचना एक सािहिÂयक िवधा के łप
म¤ ÿिसिĦ पा चुकì होती है। दशªक व ®ोता उसे देखने सुनने के िलए उÂसुक होते है। दूसरा
यह िक ŀÔय -®Óय माÅयमŌ के ÿÖतुत कताª एवं िनद¥शक सदा ही अ¸छी रचनाओं को
ÿÖतुत करने के िलए तैयार होते है!... कहानी या उपÆयास म¤ जहाँ भूत, वतªमान और
भिवÕय कì बात होती है वहé ŀÔय ®Óय कृित म¤ केवल वतªमान कì ही बात होती है
łपांतरकार को ऐसे तरीके खोजने पड़ते है िजनम¤ भूत कì घटनाएँ, वतªमान म¤ उĤािटत हो
सक¤। टेलीनाटक या रेिडयो नाटक म¤ पूरी कथा एक आधे घंटे म¤ कहानी होती है। िजस
ÿकार एक पाठक पुÖतक को अपनी सुिवधा के अनुसार रचना बार-बार पढ़ सकता है उस
ÿकार के पुनः पठन का यहाँ कोई तरीका नहé। पाठक पाýŌ को अपनी कÐपना अवÖथा के
आधार पर अपने मन म¤ देख लेता है, िकंतु एक दशªक ऐसा नहé कर सकता। इस कारण
łपांतåरत ŀÔय और उनकì पुनरªचना चुनौती पूणª हो जाती है। इसिलए मूल कथा को नाटक
के ÿाłप म¤ ढालना कभी-कभी असंभव सा लगने लगता है ³यŌिक पाýŌ और कथानक म¤
जो पåरवतªन आवÔयक - होते है उनसे कÃय को बरकरार रखने म¤ बड़ी किठनाई आती है
िक कहé कथा िब गड़ न जाए। उपÆयास और कहानी वणªनाÂमक होते है जबिक नाटक कायª
Óयापार तथा घटनाओं Ĭारा ही आगे बढ़ता है। łपांतåरत आलेख म¤ नाटकìयता लाने के
िलए पाýŌ को नए धरातल पर नए łप म¤ ÿÖतुत िकया जाता है, और आरंभ, मÅय तथा
अंत कì अवÖथाएँ उÂपÆन कì जाती है। तीन अंकŌ वाले इस िसĦांत के अंतगªत पाýŌ के
िवचारŌ म¤ टकराव, उनके संघषª, उनके पथ म¤ आनेवाली बाधाओं आिद Ĭारा पुनः रचना
होती है। ..... ÿथम अवÖथा म¤ नायक व मु´य पाý ÿकट होते है। कथानक का पåरचय ÿाĮ
होता है और पाýŌ के संघषª कì भूिमका बंध जाती है। नायक कì समÖया से दशªक व भूिमका
बंध जाती है। नायक कì समÖया से दशªक व ®ोता पåरिचत हो जाते है। दूसरी अवÖथा म¤
मु´य पाý अपनी मंिजल के करीब नजर आने लगता है मगर भाµय या आकिÖमक बाधाएँ
समÖया को और भी उलझा देती है। चरमोÂकषª कì ओर बढ़ते है तो कई ÿij िसर उठाते है।
³या नायक समÖया का समाधान ढूँढ़ पाएगा ? ³या भाµय उसका साथ देगा ? ³या वह
अपना िनणªय बदल लेगा ? ³या वह बच जाएगा ? ³या वह अपने शýुओं पर िवजय पा
सकेगा ? कई ÿij ®ोता व दशªक के मन म¤ होते है? िकंतु कभी-कभी मूल सािहिÂयक कृित
म¤ एक अÖपĶ अंत होता है इसिलए łपांतरकार कभी घटनाएँ बदलता है तो कभी नए ŀÔय
जोड़ देता है और एक सुखांत नाटक ÿÖतुत करता है ³यŌिक दशªक और ®ोता सकाराÂमक
नाटक ही पसंद करते है। munotes.in

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सािहिÂयक िवधाओं कì ŀÔय ®Óय łपांतरण कला
133 दूरदशªन के िलए ÿारंभ से ही सािहिÂयक कृितयŌ कŌ łपांतåरत िकया जाता रहा है। जैसे बंद
गली का अिखरी मकान (मूल कहानी - डॉ. धमªवीर भारती, łपांतरण शैल¤þ) उधार कì
िजंदगी ÿेमचंद कì कहानी का रघुवीर सहाय Ĭारा łपांतरण) 'अकेली' (मÆनू भंडारी कì
कहानी का देव¤þ राज अंकुर Ĭारा łपांतरण), मान अपमान (शरतचंद कì कहानी का
ÿभाकर िĬवेदी Ĭारा űाइवर ने कार का दरवाजा बंद िकया और वहé łका रहा जबिक
उसका अिधपुłष सामने के ³वाटªर कì ओर जाने लगा। लॉन के बीचŌबीच चलते हòए जब
वह सामने के सरकारी मकान म¤ कदम रखने ही वाला था, तभी महरी , भारी-सी िचलमची
िलए हòए बाहर आई - "कौन ? िकस से िमलना है साब ?"
"बलकृÕण जी घर म¤ है ³या ?" तŁण ने पूछा। पास म¤ टँगी अलगनी पर कपड़े फैलाते हòए
महरी अंदर आवाज देने लगी। "ओ बेबी जी! कोई साहब आए है।" भीतर से िकसी अनुिøया
के अभाव म¤ महरी ने गीला लबादा एक तरफ को झटकते हòए कहा, "अंदर म¤ सभी लोग है
ना। आप जाब ना साहब जी । " "थ§³यू।"
चलने को तैयार था िक तभी िकसी ने उÂसाह से बाहòपाश म¤ जकड़ िलया। देखा तो
बालकृÕण ही था, उसका Èयारा 'भाईजान ' पर यह ³या! वह जीवंत चेहरा आज एक दम
जजªरा।
'भाईजान , यह ³या ? इतने कमजोर ? सब ठीक तो है ना ?" 'अरे भाई ऐसे ³यŌ बदहवास
हòए जा रह¤ हो ? बुढ़ापे का पदापªण है चलो भीतर चलो।'
...हाँ हाँ चिलए। -
अधेड़ अवÖथा के बालकृÕण; उसके मौसेरे भाई ने लॉंबी म¤ पहòँचते ही उÂसाह के साथ
पåरवार के सदÖयŌ को बुलाना शुł िकया "अरे देखो तो कौन आया है ?"
आनन फानन अĜारह वषê य "बेबी, बीस वषêय बेटा पÈपू और पÂनी 'शीला' सामने हािजर
हो - गए।" "नमÖकार , रमेश भैया! घर पर सब कैसे है।"
"अरे शीला, तुम भी कमाल हो! भला इसे घर कì सुध कहाँ ? आए िदन तो दूर पर रहता है।
कभी िसंगापूर तो कभी तोिकया ³यŌ रमेश ?"
"हाँ भाईजान, आप ठीक कहते है। मगर भाभी, घर के साथ पूरा संपकª बनाए रखता हóँ। हर
दूसरे िदन फोन करता हóँ।"
"अब आप यही इनसे बात¤ करते रह¤गे ³या ? चिलए भैया जी, अंदर चिलए।" ऐसा कहते ही
शीला ने बेबी को भी इशारे से रसोई कì ओर भेजा। रमेश अपने मौसेरे भाई के साथ उसके
सजे - सजाए űाइंगłम म¤ चला आया। वही, बड़ी सी िखड़कìवाला कमरा , पर िकतना
बदला -बदला सा। रमेश इस कमरे म¤ आज कई वषŎ बाद आया था। लालाजी के रहते यहाँ
अलग ही रौनक होती थी। िखड़कì के पास रखे दीवान पर वह बड़ी शान से बैठे रहते थे।
धवल Öव¸छ कुताª- पाजामा पहने, गीता ÿेस कì कोई धािमªक पुÖतक िलए िखड़कì से टेक
लगाकर बैठे रहना उनकì िदनचयाª का एक िहÖसा था। जीिवत होते तो पूरा घर िसर पर
उठा िलया होता रमेश के िलए इलायची और बादाम वाला हलवा अब तक ³यŌ नहé आया ? munotes.in

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जनसंचार माÅयम
134 “लीिजए अंकल ।"
"हóँ...।" रमेश ने देखा िक सामने बेबी पानी का िगलास िलए खड़ी है। ůे म¤ से िगलास उठाते
हòए जब उसने पूछा िक वह आजकल ³या कर रही है तो बेबी ने मुÖकुराते हòए जवाब िदया।
"बी. कॉम. फाइनल " तभी पÈपू भी चारा और िबÖकुट आिद िलए भीतर आया।
"तुम चाय पीयो, म§ अभी आया।" यह कहकर भाई जान बरामदे कì ओर जाने लगा। ब¸चे भी
ůे और खाली िगलास लेकर बाहर चले गए। रमेश को अपने मौसेरे भाई का इस ÿकार उठ
खड़े होना और िफर चले जाना अटपटा सा लगा। पर Öवजन का यह आचरण उपे±णीय
था। रमेश űाइंगłम कì दीवारŌ म¤ न जाने ³या तलाशने लगा बेबी कì बनाई हòई प¤िटंग,
कÔमीर से पहले कभी लाई हòई रंगीन कागज और शीशŌ से सजी काँगडी लालाजी का
ऍनलाजª िकया हòआ फोटो, टी.वी. , पÈपू के Öकूल मैडल, पहलगाँव म¤ शीला और भाईजान
का भĘे खाते हòए खéचा गया फोटो: पÈपू का इजीिनयåरंग कॉलेज म¤ अपने िमýŌ के साथ
िलया गया फोटो...।
ब¸चŌ के बड़े होने और समय गुजरने साथ-साथ िकतना पåरवतªन आया है इस űाइंगłम म¤।
एक िकतना पåरवतªन आया है इस űाइंगłम म¤ एक समय था जब इस कमरे म¤ केवल एक-
दो कैल¤डर झूल रहे होते थे और एक कोने म¤ होता था लालाजी का हò³का उस हò³के को
लेकर बाप-बेटे म¤ आए िदन हाय-तौबा मची रहती थी। िज तना ही भाईजान , लालाजी को
तंबाकू पीने से रोकते थे, उतना ही वे ºयादा पीने लगते; शीला भी उस हò³के को लेकर दूध
का दूध और पानी का पानी करना चाहती थी, मगर दोनŌ कì एक न चलती। तंबाकू कì गंध
सारे ³वाटªर म¤ सुबह- शाम तैरा करती। यह गंध, लालाजी कì मौजूदगी और उसके शासन
का आभास करारी। इसका ®ेय लालाजी कì पÂनी शोभावती को भी जाता है। जो िनķापूवªक
अपने पित कì सेवा करती और उसकì सुख-सुिवधा का Åयान रखती। इसिलए हò³का Öटूल
पर िवरािजत रहता और लालाजी दीवार पर लालाजी के इस कमर¤ म¤ शोभावती हर रोज
िशव के कैल¤डर के सामने बैठ अपने इĶदेव आ आÓहान करती... पर वह आज घर म¤ नजर
³यŌ नहé आ रही ? हो सकता है मािकªट गई हो। लेिकन बाजार जाने कì तो उसकì कभी
आदत ही नहé रही। घर म¤ भी तो नहé लगती। घर म¤ होती तो Óयú हो इस समय या तो मेरा
माथा चूम रही होती या मुझे बहòत बड़ा आदमी बनने कì दुआएँ देती।
"अंकलजी, आपने चाय नहé ली ?" सामने खड़ी थी। "हóँ..."
"जी आप चाय पी ले, पापा अभी आते ही हŌगे।"
"पर वह है कहाँ ?" "दूसरे कमरे म¤ दादीजी के पास।"
इसके पIJात लड़कì ने ³या कुछ कहा, वह सब रमेश ने सुना ही नहé। िबना िवलंब, लॉबी
को पार करता हòआ वह सामने के बेडłम कì ओर लपका। बेडłम म¤ पहòँचते ही उसके पैरŌ
कì गित अवłĦ हòई। देखा तो उसकì चहेती मौसी िनÖपंद, िकसी ÿाण -रिहत प±ी जैसी
रोगशैÍया पर पड़ी थी। µलूकोस कì बोतल Öट§ड से टंग रही थी। शोभावती के जजªर जीणª
अवÖथा म¤ पड़े रहते, साफ मौसम हो रहा था िक उसे अब तक कई िűप लग चुक¤ है। ³या
आप यह वही मौसी है जो बारामुला के गाँव म¤ साल भर का धान अकेली कूटती थी और
थकने का नाम तक नहé लेती थी ? कड़ाके कì ठंड म¤ बफêली सड़कŌ पर मीलŌ का सफर munotes.in

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सािहिÂयक िवधाओं कì ŀÔय ®Óय łपांतरण कला
135 पैदल तए करती थी। रमेश को लगा िक वह सुÆन होता जा रहा है और पसीने से तर-ब-तर
उसकì काया काँपने लगी है।
रमेश कì वृि° का अनुमान करते हòए भाईजान ने तुरंत कुसê दी और उसे बैठने को कहा।
अन मना -सा झ¤पते हòए रमेश बैठा, मगर शोभावती के चेहरे को एकटक िनहारता रहा।
उसकì मौसी के माथे पर आज न तो चंदन का ितलक ही था और न ही गले म¤ लĘाखी
मोितयŌ कì माला । वेसुध सी पड़ी, वह वृĦा काश खुद बोलती। इसकì कभी न खÂम
होनेवाली बाते िवÖमृित म¤ तो - नहé खो सकती - "अरे, रमेश न जाने युिनविसªटी म¤ ³या
करता है, जÐदी से पढ़ाई खÂम कर।"
"मेरी अ¸छी बाली - मौसी। तुम यह ³यŌ नहé समझती िक कोसª अपने समय पर ही पूरा
होता है और इÌतहान भी िकसी कायदे-कानून के तहत होत¤ है।" ...." वो तो ठीक है। पर देख,
लालाजी अभी सिवªस म¤ है। कल को वह åरटायर हो गए तो िकससे तुÌहारी नौकरी कì बात
कłँगी ? प¤शन पर जाने के बाद भला िकसी मुलािजम कì पूछ होती है |
रमेश ने पास म¤ बैठे अपने मौसेरे भाई से उपचार आिद के बारे म¤ एक भी बात नहé पूछी। वह
भी इसकì मनोदशा से अनिभ² नहé था। वह जानता था िक रमेश कì माँ कì असमय मृÂयु
के बाद उसकì माँ ने रमेश को पाला पोसा था। वह जानता था िक रमेश कì िकसी सफलता
पर उसकì माँ कैसे उÂसाह और उÆमाद म¤ झूमने लगती थी, मानŌ उसकì कई बरसŌ कì
साध पूरी हòई थी। जब रमेश एम. ए. पास करने कì खबर लेकर आया था, तब भी ऐसा ही
हòआ था। मृदुल नेहा अिवराम बरसने लगी थी। लालाजी अपनी पÂनी के Öवभाव और ममÂव
कì भाना को समझते थे। उÆहŌने कुछ ही िदनŌ म¤ रमेश कì िनयुिĉ एक ए³सपोटª हाउस म¤
कारवाई कì थी , जबिक उनका अपना बेटा बालकृÕण अभी भी रोजगार दÉतर के च³कर
काट रहा था। अपनी माँ का रमेश के ÿित अनुराग देख बालकृÕण उन िदनŌ अपने मौसेरे
भाई से ईÕयाª करता था, ³यŌिक माँ कì ममता और Öनेह, जो उसे िमलना चािहए था वह
रमेश को नसीब हो रहा था।
रमेश उठ खड़ा हòआ और अपनी मौसी माँ के िसरहाने जा बैठा। िबÖतर पर पड़ी बेसुध जाने
- के माथे को सहलाने के उĥेÔय से छुआ िक पूरे शरीर म¤ कँपकँपी दौड़ गई। मन और ÿाण
को झकझोरने वाला यह कैसा उĬेग था? उसे बोडª łम होटल का कमरा, मौसी माँ का
दुलार और िफर वह खामोश बेडłम ±िणक ŀÔयŌ कì तरह एक िÖथती से िनकाल दूसरी
अवÖथा म¤ ले जाते रहे । िनÖतÊधता के उन ±णŌ म¤ åरĉता का आभास बढ़ने लगा। वह
बैचेन होने लगा इस शहर म¤ आए उसे तीन मिहने हो गए थे, पर ³या नÊबे से ºयादा िदनŌ
कì अविध म¤ पंþह िमनट िनकाल पाना किठन था ? इन बूढ़ी आँखŌ ने िकतना खोज होगा ?
³या म¤ आँखे रमेश को िफर से देख पाएँगी। ÿijŌ का िसलिसला और यह खामोशी िनःशÊद
रमेश उठ खड़ा हòआ। हालाँिक उसके माथे पर िचंता कì रेखाएँ साफ नजर आ रही थी, पर
वह एकदम से ³यŌ चलने लगा यह उसका - भाईजान समझ न सका कुछ पूछे या न पूछे,
इसी उधेड़बुन म¤ रमेश के साथ चलते चलते उसका मौसेरा भाई भी ³वाटªर के दरवाजे तक
आ गया। रमेश łका और उसने जेब से अपना िबिजिटंग काडª िनकाला। उस पर कोई फोन
नंबर िलखने लगा। अब तक बेवी, शीला और पÈपू भी वहाँ आ चुके थे। शीला कुछ कहने
लगी। शायद यह िक रमेश को रात के खाने के बाद ही जाने देना चािहए लेिकन भाईजान के munotes.in

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जनसंचार माÅयम
136 संकेत ने उसे चुप कराया। रमेश ने अपना फोन नंबर िफर दोहराया। भाईजान ने काडª को
सँभालते हòए अपने बटुए म¤ रखा और दोनŌ गले िमले। ŀढ़ता से बड़े भाई ने छोटे का हाथ
पकड़ा और कुछ कहे िबना ही सब कुछ कहते हòए िवदा करने लगा। बालकृÕण के पåरवार से
łकसत होकर रमेश बाहर लॉन कì तरफ चल पड़ा।
अँधेरा गहराने लगा था। अब कहé कोई ब¸चा नजर नहé आ रहा था। रमेश को देखते ही
शोफर के बदन म¤ िफर से फूतê आई। उसने कार का दरवाजा खोला और अपने साहब कì
हािजरी बजाने लगा। रमेश कार के पास आया, लेिकन उसम¤ बैठा नहé।
"सर आपको लेने कब आउँ ?"
"म§ अपने आप आउँगा।"
"लेिकन सर, अभी तो आपको कई जगह जाना होगा ?" "अब कहé नहé जाना। जाओं, गाड़ी
होटल ले जाओ।""
"अ¸छा सर। "
űाइवर कार ले गया। रमेश ने ³वाटªर को एक बार िफर देखा और आगे बढ़ने लगा। Öůीट
लाइटस् िटमिटमा रही थी। मौसम म¤ नमी और दूर-दूर तक चुÈपी खाली सड़क पर रमेश के
कदमŌ कì आहट तीĄ होती गई। उसने अपनी टाई कì नॉट ढीली कì कमीज के ऊपरी दो
बटन भी खोल िदए फुटपाथ पर बैठे िकसी िभखारी ने आवाज लगाई। रमेश ने कनिखयŌ से
उसे देखा और चलता रहा। कोट पोछने लगा। हवा कुछ तेज बहने लगी? हाथ का łमाल
एक झŌके के साथ िकसी झाड़ी म¤ उलझ गया। उस तरफ कोई Åयान िदए िबना ही रमेश
बढ़ता रहा। उसे अपनी ÿितķा, अपना पद सब बेमानी लग रहा था। िबना िकसी लàय के
वह चलता रहा। अब वह बाहर हाइवे पर आ गया था। लंबा-चौड़ा राजमागª बेमकसद मंिजल¤।
उसने बाएँ देखा न दाएँ, बस अपने सीध म¤ चलना रही... न जाने कब तक।
इस ÿकार से िजन सािहिÂयक िवधाओं का ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतरण सफलतापूवªक िकया
जा सकता है और िकया जाता रहा है, उसम¤ से मु´य है उपÆयास, कहानी और नाटक । इस
ÿकार कुछ महाकाÓयŌ के भी łपांतरण हòए है, जैसे रामायण, रामचåरý मानस और
महाभारत । -
ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतåरत और कुछ सािहिÂयक रचनाएँ इस ÿकार है:
१) कहािनयŌ का नाट्य łपांतरण तथा उनकì ŀÔय माÅयमŌ पर ÿÖतृित:
ÿेमचंद कì कहानी 'शतरंज के िखलाड़ी' इस पर िफÐम भी बनी थी उÆहé कì कहानी "ठाकुर
का कुआँ, यह टेलीिवजन पर भी िदखाई गई थी। उनकì एक और कहानी 'नमक का दारोगा '
भी दूरदशªन पर ÿÖतुत हòई। जयशंकर ÿसाद कì कहानी 'मधुआ', धमªवीर भारती कì 'बंद
गली का आिखरी मकान , मालती जोशी कì 'मÅयातंर', उषा िÿयवंदा कì पैरेÌबुलेटर, "
®वण कुमार कì 'खंडहर पर बैठा आदमी' तथा कमलेĵर कì कई कहािनयŌ के łपांतरण
सफलतापूवªक हòए है। munotes.in

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सािहिÂयक िवधाओं कì ŀÔय ®Óय łपांतरण कला
137 २) उपÆयासŌ का नाट्य łपांतरण तथा उनकì ŀÔय माÅयमŌ पर ÿÖतुित:
ÿेमचंद के उपÆयास 'गोदान ', 'िनमªला' और 'गबन' पर िफÐम¤ बनी थी 'जैनेÆþ कुमार' का
उपÆयास 'Âयागपý ' तथा 'मÆनू भंडारी के उपÆयास 'महाभोज ' का नाट्य łपातरण हòआ
और टेलीिवजन पर भी िदखाया गया।' 'देवकìनंदन खýी' के उपÆयास 'चंþकाता' तथा
'वृदावनलाल वमाª' के उपÆयास 'मृगनयनी' के नाट्य łपांतरण, टेलीिवजन पर लोकिÿय
हòए। '®ीलाल शु³ल' का 'राग दरबारी और भीÕम साहनी ' का 'तमस' टेलीिवजन पर बहòत
लोकिÿय हòए।
'अमृतलाल नागर' के 'बूँद और समुþ', 'मानस का हंस' तथा 'खंजन नयन' उपÆयास भी
टेलीिवजन पर ÿसाåरत हòए। 'भगवती चरण वमाª' का 'भूले िबसरे िचý', धमªवीर भारती का
'गुनाह का देवता', '®ीकांत वमाª का', 'दूसरी बार', 'िĬजेÆþनाथ िम®ा', 'िनगुªण' का 'एक
बदनाम आदमी ' आिद कई उपÆयास ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतåरत हòए है और सफलतापूवªक
ÿÖतुत िकए गए है।
३) महाकाÓयŌ के नाट्य łपांतरण तथा उनकì ŀÔय माÅयमŌ पर ÿÖतुित:
रामायण , रामचåरतमानस महाभारत कई िफÐम¤ ऐसी है जो पौरािणक कथाओं को लेकर
तैयार कì गई है, जैसे- 'सती अनुसुइया, ' 'सÂयĄत हåरIJÆþ ', 'भĉ ÿहलाद ' आिद ।
४) सािहिÂयक नाटकŌ के ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतरण एवं ÿÖतुती:
Öवणªरेखा, अपराध कì छाया , सुनÆदा (िवÕणु ÿभाकर) किबरा खड़ा बजार म¤ (भीÕम
साहनी) लहरŌ के राजहंस, आषाढ़ का एक िदन , आधे अधुरे (मोहन राकेश), िमÖटर
अिभमÆयु, दपªण काफì हाउस म¤ इंतजार लोग वहé, आइना , हाय अंकल
(लàमीनारायणलाल) सूखी डाली, अंजोदीदी ( उपेÆþनाथ अÔक'), लड़ाई (सव¥ĵरदयाल
स³सेना। पेपरवेट, मृÂयुदंड (रमेश उपाÅयाय) आिद
ऐसे कई नाटककार है जो सािहिÂयक िवधाओं के साथ ही ŀÔय माÅयमŌ के िलए भी नाटक
िलखते रहे है जैसे रेवतीसदन शमाª, िचरंजीत, दयानंद अनंत, शैलेÆþिýपुरारी शमाª आिद।
यहाँ यह बताना भी आवÔयक है िक दूरदशªन तथा अÆय चैनलŌ पर ÿसाåरत होनेवाले बहòत
से धारावािहक सािहिÂयक कृितयŌ पर भी आधाåरत है।
सािहिÂयक िवधाओं के ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतरण कì िवशेषताएँ: जब कोई सािहिÂयक
रचना ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतåरत कì जाती है तो उसम¤ अनेक ऐसी िवशेषताओं का समावेश
हो जाता है, जो उसके मुिþत łप म¤ संभव नहé होती। ये िवशेषताएँ ŀÔय माÅयम के अपने
गुणŌ के कारण आ जाती है। ऐसी ÿमुख िवशेषताएँ इस ÿकार है:
१) ŀÔय माÅयम म¤ łपांतåरत होकर मुिþत सािहÂय कì रचनाओं म¤ ŀÔयाÂमकता कì
ÿधानता हो जाती है। इसिलए उसका रसाÖवादन करने वाले दशªक उस रचना को
ŀÔयŌ म¤ देखकर आसानी से úहण करने लगते है।
२) ये ŀÔय तकनीकì उपकरणŌ, कंÈयूटर, कैमरे तथा Åविन एवं ŀÔय (ऑिडयो वीिडयŌ)
उपकरणŌ के कारण बहòत ही आकषªक एवं ÿभावपूणª होते है। munotes.in

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जनसंचार माÅयम
138 ३) इÆहé उपकरणŌ के इÖतेमाल से लेखक कì कÐपना Ĭारा िलखे गए असंभव से असंभव
ŀÔयŌ को भी ÿÖतुत िकया जा सकता है। इसे हम ऐसे भी कह सकते है िक लेखक कì
कÐपनाओं को पद¥ या मॉनीटर पर साकार िकया जा सकता है।
४) इन ŀÔयŌ म¤ िविवधता पैदा कì जा सकती है। यह िविवधता ÿाकृितक ŀÔयŌ, पहाड़ो ,
झरनŌ, युĦ, ÿाकृितक िवभीिषका आिद ŀÔयŌ, पशुओं, सुंदर पि±यŌ, सधन वनŌ ,
महलŌ से लेकर िहंसा, हÂया, वध, Öथान आिद के ऐसे ŀÔयŌ म¤ भी देखी जा सकती है,
िजन ŀÔयŌ को िल खना या नाटकŌ Ĭारा Öटेज पर िदखाना विजªत होता है या संभव
नहé होता।
५) ŀÔयŌ का आकषªण उनके रंगŌ और अनुपात म¤ होता है। ŀÔय माÅयमŌ, िवशेष łप से
टेलीिवजन म¤ यह सुिवधा है िक अ¸छे से अ¸छे उपकरण उपलÊध है, कंÈयूटर
तकनीक उपलÊध है। अनेक तरह के ÿभाव पैदा करके एक से एक आकषªक ŀÔय
तैयार िकए जा सकते है और उÆह¤ रचना के साथ िदखाया जा सकता है।
६) िकसी सािहिÂयक रचना के मुिþत łप म¤ हम पाýŌ के हाव-भाव गितिविधयŌ आिद का
माý िचýण ही कर पाते है। उÆह¤ पाठक अपनी कÐपना से úहण करता है। लेिकन ŀÔय
माÅयम उन पाýŌ को सामने लाकर उनके चेहरे कì एक एक रेखा को उभार देता है,
उनके हाव-भाव, िøयाकलापŌ , गितिविधयŌ आिद को जीवंत कर देता है। िमड शॉट,
मीिडयम शॉट , ³लोज अप मीिडयम ³लोज -अप, िबग ³लोज अप ÿोफाइल शॉट
आिद के Ĭारा इन भावŌ और मुþाओं को टेलीिवजन या िफÐम म¤ बहòत आसानी से
िदखाया जा सकता है।
७) मुिþत सािहिÂयक रचनाओं कì भाषा किठन हो सकती है। वह सामाÆय पाठक Ĭारा
उस रचना के रसाÖवादन म¤ बाधा पैदा कर सकती है। इसके िलए उसे सािहिÂयक
भाषा का ²ान होना चािहए। लेिकन ŀÔय माÅयमŌ म¤ ÿायः भाषा सरल , सरल और
अिधक से अिधक लोगŌ Ĭारा úहण करने योµय रखी जाती है। यहाँ सािहिÂयकता का
उतना Åयान नहé रखा जाता , िजतना इस बातपर िक सभी तरह के दशªक इस
कायªøम को आसानी से समझ सक¤ और आनंद उठा सके।
८) ŀÔय माÅयमŌ के कायªøमŌ म¤ Åविन, संगीत आिद पर िवशेष Åयान िदया जाता है।
इसिलए अिभनेताओं कì आवाज, उनके संवाद बोलने का ढंग ÿभावशाली होना
चािहए। उपकरणŌ कì सहायता से हम िकसी अिभनेता कì खराब आवाज को भी डब
करके ÿभावशाली बना देते है। इससे łपांतåरत सािहिÂयक रचना का ÿभाव बढ़ जाता
है।
अंत म¤ हम सािहिÂयक िवधाओं के ŀÔय माÅयमŌ म¤ łपांतरण पर इस िदशा म¤ संलµन
रचनाकार ®ी रेवतीसरन शमाª का यह कथन, उद्ňत करना चाह¤गे "दूरदशªन ÿÖतुित
सलीके से सजाया गया दÖतरखान है। सŏदयªबोध अिनवायª है, कहाँ से रंग ला सकते है, यह
दाियÂव नाटक कार का है..... इसके िलए तकनीकì ²ान, ŀÔयबोध म¤ तकनीक का अनुभव
होना चािहए। "
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संदभª úंथ
१. आधुिनक संचार माÅयम और िहÆदी - डॉ. हåरमोहन
२. रेिडयो और दूरदशªन पýकाåरता - डॉ. हåरमोहन
३. कÌÈयूटर के भािषक अनुÿयोग - डॉ. िवजय कुमार मÐहोýा
४. समकालीन पýकाåरता : मूÐयांकन और मुĥे - राजिकशोर
५. जनसंचार माÅयमŌ का सामािजक चåरý - जावरी मÐल पारख
६. मीिडया और सािहÂय - डॉ. सुधीश पŚौरी
७. संपकª भाषा िहÆदी और आकाशवाणी - डॉ. पबूर शशीÆþन
८. इले³ůॉिनक माÅयम रेिडयो एवं दूरदशªन - डॉ. राममोहन पाठक
९. कÌÈयूटर और सूचना तकनीक - डॉ. शंकर िसंह
१०. िहÆदी पýकाåरता : दूरदशªन और टेलीिफÐम¤ - सिवता चड्ढा
११. आजादी के पचास वषª और िहÆदी पýकाåरता - सिवता चड्ढा
१२. जनमाÅयम और मास कÐचर - जगदीĵर चतुव¥दी
१३. कÌपूटर और िहÆदी - डॉ. हåरमोहन
१४. पýकार और पýकाåरता - डॉ. रमेश जैन
१५. िमिडया लेखन - िवजय कुल®ेķ
१६. िमिडया लेखन - डॉ. चंþÿकाश िम®
१७. िमिडया लेखन - सं. डॉ. रमेश चंþ िýपाठी
- डॉ. पवन अúवाल
१८. समाचार, लेखन और संपादन कला - डॉ. हåरमोहन
१९. समाचार-लेखन - नवीनचंþ पंत
२०. संचार माÅयम लेखन - गौरीशंकर रैणा
२१. संÿेषण और रेिडयो िशÐप - िवĵनाथ पाÁडेय
२२. कथा-पटकथा - मÆनू भÁडारी
२३. मीिडया लेखन - सुिमत मोहन
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