M.A-2-Sem-III-Paper-No.-10-munotes

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कामायनी क कथावत ु
जयश ंकर साद क ृत कामायनी
इकाई : 04 ेयांक : 02
इकाई क पर ेखा :
१.० उेय
१.१ तावना
१.२ जयशंकर साद जीवन परषद
१.३ कामायनी : संि कथानक
१.३.१ थम सग (िचंता)
१.३.२ ितीय सग (आशा)
१.३.३ तृतीय सग (ा)
१.३.४ चतुथ सग (काम)
१.३.५ पाँचवा सग (वासना )
१.३.६ छठवा ँ सग (लजा )
१.३.७ सातवा ँ सग (कम)
१.३.८ आठवा ँ सग (ईया)
१.३.९ नौवां सग (इड़ा)
१.३.१० दसवा ँ सग (वन)
१.१.११ यारहवा ँ सग (संघष)
१.३.१२ बारहवा ँ सग (िनवद)
१.३.१३ तेरहवाँ सग (दशन)
१.३.१४ चौदहवा ँ सग (रहय )
१.३.१५ पंहवाँ सग (आनद )
१.४ सारांश munotes.in

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2 १.५ दीघरी
१.६ लघुरी
१.७ संदभ पुतके
१.० उेय
इस इकाई का म ूल उ ेय छायावाद क े मुख किव जयश ंकर साद क े जीवन और उनक
िस रचना ‘कामायनी ’ क कथावत ु से परिचत हो सक गे | कामायनी म कुल पंह सग ह
– िचंता, आशा, ा, काम, वासना , लजा , कम, ईया, इड़ा, वन, संघष, िनवद, दशन,
रहय और आन ंद यहा ँ उन सभी सग क स ंि क थावत ु त ुत क गई ह | इसके
अययन क े बाद छा कामायनी क े कथानक को अछी तरह समझ सक गे |
१.१ तावना
आधुिनक िहदी सािहय म जयश ंकर साद का महवप ूण थान ह | किवता , नाटक ,
कहानी , िनबध और उपयास आिद इन सभी महवप ूण िवधाओ ं को अ पनी ल ेखनी का
पावन पश देकर उहन े िहदी सािहय को सम ृ बनाया | इस इकाई क े अंतगत छायावाद
के वत क किवय म मुख जयश ंकर साद क े जीवन परचय और उनक म ुख कृित
कामायनी क कथावत ु के सबध म चचा क जाय ेगी | इस इकाई क े अंतगत िवाथ
साद जी क े महाकाय क कथावत ु से परिचत हो सक गे |
१.२ जीवन परचय
जयशंकर साद का जम ३० जनवरी ,सन १८८९ म काशी क े िस व ैय परवार म हआ
था | इनके िपता का नाम ी द ेवीसाद और माता का नाम ीमती म ुनी द ेवी था | इनका
घराना काशी म सुंघनी साह क े नाम स े िस था | माता-िपता, पनी और भाई सिहत
परवार म अनेक सदय क एक क े बाद एक म ृयु से साद जी बहत द ुखी हो उठ े थे |
बहत कम उ म ही उनको परवार क िजम ेदारया ं संभालनी पड | जीवन क े अंत म
साद जी को आिथ क संकट स े भी गुजरना पडा िफर भी उहन े अपना ल ेखन काय
िनरंतर जारी रखा | बहत कम उ म ही १५ नवबर , सन १९३७ को िहदी सािहय का
यह देदीयमान न सदा -सदा क े िलए हमार े बीच स े अत हो गया |
मुख रचनाए ं : साद जी न े िहदी क सभी महवप ूण िवधाओ ं म लेखन काय िकया |
उनक क ुछ म ुख रचनाए ं िननवत ह :
नाटक : रायी , िवशाख , अजातश ु, जमेजय का नागय , कामना , कंदगु, चग ु,
और ुववािमनी |
कहानीस ंह: छाया, ितविन , आकाशदीप , आंधी, और इ ंजाल munotes.in

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कामायनी क कथावत ु
3 कायस ंह: ेमराय , कानन क ुसुम, ेमपिथक , महाराणा का महव , झरना, आंसू, लहर
और कामायनी | इनके अितर उपयास और िनब ंध आिद िवधाओ ं म भी उनक रचनाए ं
देखी जा सकती ह |
१.३ कामायनी : संि कथानक
साद जी कामायनी महाकाय कुल पंह सग म िवभ ह | यहाँ पर उन सभी सग क
संि चचा तुत क गई ह :
१.३.१ थम सग (िचंता)
कामायनी का थम सग ‘िचंता’ ह| ारंभ म िहमालय क एक बहत ऊ ँची चोटी पर िकसी
चान क छाया म बैठा एक यि चुपचाप लय क जलधारा को द ेख रहा था , उसका
शरीर स ुढ़ था , भुजाओ ं और प ैर क धमिनया ं और नस फूली हई िदखाई द े रही थ , पास
म दो-चार द ेवदा क े वृ खड़ े थे जो िक बफ के जमन े से ेत हो रह े थे | कुछ दूरी पर एक
बहत बड़ा बड़ का प ेड़ था िजसम वह नावब ंधी हई थी िजसस े उहन े आमरा क थी ।
बाढ़ का पानी अब उतर च ुका था । चार ओर सुनसान था । वह यि लय क उस भीषण
घटना को मरण कर रहा था िक ऊपर स े वषा हो रही थी , चार ओर अ ंधेरा था । िजस
नौका का सहारा िलया था , वह पानी म डोल रही थी । उसम डांड क पतवार भी न थी
िजसस े िक उसको िनय ंित िकया जा सकता । सब ओर पानी ही पा नी था । कह भी
िकनारा नह िदखाई द ेता था । सहसा एक बड़ े मछली से नाव टकराई , लगा िक नौका अभी
उलटेगी, पर उस झटक ेने नाव को िहमालय क उस चोटी पर पह ँचा िदया था ।
उस उच िशला पर ब ैठा वह यि मरण कर रहा था िक लय स े पूव उसक जाित क े
देव लोग अपार व ैभव औ र िवलािसता म डूबे थे । उह अमर होन े और अपार शिया ं अपन े
पास होने का अिभमान था परत ु उस लय न े सहसा उनका नाम - िनशान िमटा िदया ।
उस द ेव जाित का एक मा अवश ेष वही बचा हआ था । वह समझ रहा था िक वातव म
देवताओ ं का अिभमान दभ मा था । िनयित सव पर ह । उसक े भाव स े कोई नह बच
सकता । यहाँ भी िनयित क े सम सभी लाचार हो उठ े थे |
१.३.२ ितीय सग (आशा )
कुछ समय पात वह भ ंयकर लय क रात कट गई । लय कालीन वषा के मेघ भी छंट
गये । आकाश म पुनः अणोदय हआ । शरद ् ऋतु का सा आगमन हो गया । वृ लता आिद
पानी स े िनकलकर िफर स े लहलहान े लगे थे । कृित का रय वातावरण प ुनः छा गया , भूिम
पानी से बाहर िनकल तो आई थी पर उसक सीमा क ुछ संकुिचत सी लग रही थी । वह
एकांक यि और कोई नह , वयं वैववत मन ु थे जो िक अक ेले उस लय वाह म बच
गये थे । उहन े यान स े चार ओर द ेखा तो क ृित मानो म ुकरा रही थी । तृण, त, लता
हरे-भरे हवा म झूम रहे थे । िहमालय का वह िशखर जहा ँ पर मन ु पहँचे थे, सुनसान था ।
उस िनतध वातावरण म मनु के दय म पुनः जीवन क आशा जागी । वहाँ एक स ुदर सी
गुफा देख मनु ने उसम अपन े िनवास क यवथा क । यहा ँ यािक स ंकृित के पुराने
संकार जाग े, जो अिन नौका म साथ ल े आये थे, उसे िफर स े विलत िकया और पहल े munotes.in

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4 क भा ँित अिनहो (होम)करने लगे, और क ुछ िवकप न द ेखकर उहन े अपना जीवन तप
म लगा िदया । इस का र कमकाड म वृ हो गये । जब क ुछ िदन म उनका मन आत
हो गया तो उहन े पाक य करन े का िनय िकया | िजसक े िनिम धान क बाल बीनी,
पेड़ क स ूखी डािलय स े सिमधा का काम िलया । धान क बाल कूटकर चावल िनकाल े ।
उनका भात बनाकर अिन म होम िकया। उसक स ुगध सार े वन म फैल गई । य श ेष कुछ
खाने के काम आता और क ुछ बिल क े प म अपनी ग ुफा स े कुछ दूरी पर इस उ ेय स े
रख आत े थे िक यिद कोई और यि उनक ही भा ंित लय म शेष रह गया हो तो वह इस े
खाकर अपनी ुधा शात कर ल ेगा । लय काल म सवनाश क े कारण जो क उहन े
अनुभव िकया था , उसस े अब उनक े दय म दूसर क े ित भी सव ेदना जाग उठी थी । इस
कार उनका एकाक जीवन बीतन े लगा । िदन और रात म स े आते और बीत जात े थे ।
एक िदन चा ँदनी रात को उहन े कृित का मादक य द ेखा तो म ुध हो उठ े । उनक े दय
म सु वासना जाग उठी । तपया क े कारण उहन े जो स ंयम स ंिचत िकया था , अब िडगन े
लगा । अपना एकाक जीवन उह खलन े लगा । सोचन े लगे िक इस कार अक ेले कब तक
जीवन िबताना पड़ ेगा ।
१.३.२ तृतीय सग (ा)
इसी बीच उधर एक स ुदर य ुवती आ ग ई । उसन े शरीर पर गाधार द ेश क नील े रंग क
भेड़ क खाल का व पहना हआ था । शरीर लबा और छरहरा था । कंध तक काल े
घुँघराल े बाल लटक रह े थे । उसक े मुख पर मद -मद िनम ल मुकान थी । उसन े मनु से
उनका परचय पूछा िक - वे कौन ह और स ृि से दूर एका ंत म िनवास य कर रह े ह? मनु
ने अपन े िवषादभर े वर म कहा िक - म अपना परचय या द ूँ, म इस जगत म अकेला,
असहाय भटकन े वाला एक ु जीव ह ँ । अपन े सुखमय िपछल े जीवन को भ ुलाने का यन
करता हआ िकसी कार िनराशा भरा जीवन िबता रहा ह ँ । परत ु, तुम भी अपना परचय
दो- आप कौन हो और यहा ँ कैसे पहँची हो ।
उस युवती न े बताया िक - म गधव देश क रहन े वाली ह ँ और अपन े िपता क लाड़ली ब ेटी
हँ । संगीत, नृय आिद लिलत कलाओ ं को सीखन े क चाव और पय टन क आदत होन े से
िहमालय के िवषय म कुतूहल होन े पर उस े देखने घर स े िनकल पड़ी । सहसा एक िदन सम ु
उमड़ पड़ा । चार ओर पानी ही पानी होन े से सृि डूब गई । उस िदन स े म बेसहारा अक ेली
भटकती रही । इधर आई और बिल का अन रखा द ेखकर अन ुमान िकया कोई यि
जीिवत अवथा म यहाँ पर ह । इसी का अ ंदाजा लगाती हई इधर आ ग ई हँ |
इस कार अपना परचय द ेकर ा न े मनु को समझाया िक वह इतना िनराश और िखन
य ह । लगता ह िक उनक े मन म अब जीन े क कामना ही नह रही ह । असफलता , दुख
और म ृयु के भय स े वह आग े कुछ कम ही नह करना चाहत े । भला भिवय को िकसन े देखा
ह, उसके डर स े वतमान को भी ग ंवाना या ब ुिमानी ह? इस िवराट िव म यापक महा
चेतना जात हई सी अपना िवलास िदखा रही ह । उसक े परणामवप इस स ुदर िवराट
िव का उदय हआ ह उसम काम कयाण का माग ह उस िच क इछा शि का फल ही
यह स ृि ह | इसको ठ ुकरान े से यह स ंसार ही असफल -यथ हो जायगा । काम स ृि के
िवकास म सहायक होता ह । दुख के अत म सुख का उदय होता ह । संसार म दुख को munotes.in

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कामायनी क कथावत ु
5 अिभशाप नह समझना चािहय े | उसी स े सुख का जम होता ह । इस कार द ुख और स ुख
जीवन क े दो पहल ू ह इन दोन म एक सा रहना चािहए । तुम जो य सश कम कर रह े हो
उसे अकेले सपन नह कर सकत े । तुह सहार े क आवयकता ह । म तुहारा साथी
बनकर सहायक बनन े को त ैयार ह ँ । म आज स े अपन े आपको तुह सपती ह ँ । मेरी कणा ,
मोह और ममता त ुहारी भ ट ह । तुम कम करो िजसस े यह स ृि पुनः सार और िवकास
करे । देवताओ ं क असफलता क नव पर मानवी स ंकृित पुनः जीिवत हो उठ े ।
१.३.४ चतुथ सग (काम)
उस िदन स े ा मन ु के साथ रहन े लगी । परत ु दोन म कोई सबध न था । ा
अितिथ क े प म ही रह ती थी । परत ु एक स ुदरी तणी प ुष क े साथ रह े, कृित के
िनयम के अनुसार परपर आकष ण होना ही था । मनु पहल े ही अपन े एकांक जीवन स े तंग
आ गय े थे । संयम उनक े िलए भार होन े लगा था । दय म जीवनसाथी क अिभलाषा जाग
उठी थी । संयोगवश उनक े साथ अब ा रह र ही थी इसिलए उनक े मन म वासना जोर
मारने लगी थी । एक िदन राि को जब मन ु कृित के रमणीय य को द ेख रह े थे, सहसा
अतीत क म ृित उनक े मितक म कध गयी । उधर ा का असाधरण सौदय उह
लालाियत कर रहा था । अपन े मन म वे उधेड़बुन म लगे हए थ े तभी सोचत े-सोचत े उह
नद आ गई | उह लगा ज ैसे उनस े कोई कह रहा हो म काम ह ँ | इस लय स े पूव म देव
क िवलास लीला म साथी रहता था । मेरी िया रित जो िक अनािद वासना का प थी
आकष ण का काम करती थी । इस कार हम दोन क े सहयोग से ही इस स ृि का सार
होता ह । लय क े जल लावन स े देव समाज तो ल ु हो गया परत ु मेरी यास नह ब ुझी ह।
िपछल े सग म हम दोन ही आका ंा और त ृि के प म देव और देवांगनाओ ं के दय म
वास करत े थे । म उनम िवलास लालसा जगाता था और रित द ेवांगनाओ ं क साथी बनकर
उह तृि देती थी । हम दोन क े मेल से ेम कला का जम हआ जो िक जीवन म वासना
क आग जगान े पर शीतलता और शाित पान े के िलए यिद उस ेमकला को पाना चाहत े हो
तो पहल े पा बनो । यह कहकर विन आनी बद हो गयी । मनु सहसा बोल उठ े िक उस
ेमकला तक पह ँचने का माग तो बताइय े । परत ु वा अब अय हो चुका था । मनु का
सपना ट ूटा और व े िनय ियाकम म लग गए |
१.३.५ पाँचवाँ सग (वासना )
अब तक मन ु और ा उस ग ुफा म दो सािथय क भा ँित रह रह े थे । एक घर का वामी
था दूसरा अितिथ था । दोन के मन एक -दूसरे क ओर आकिष त हो रह े थे परत ु उनम से
कोई भी अपन े मनक बात ख ुलकर नह कह पा रहा था । कृित अब दोन को िमलाना
चाहती थी । ा न े थम िमलन वाल े िदन ही अपन े आपको मन ु को समिप त कर िदया था
परतु उहन े िविधवत उस े अपनाया नह था । पास रहत े हए भी अभी दोन म कुछ दूरी
थी । मनु को जो काम का सद ेश िमला था व े उसी पर िवचार कर रह े थे । साँझ हो गयी थी ।
सूय भी अत हो गया था । चोदय होने लगा था । मनु यान म ही बैठे थे।
अब मनु के गृहपित होन े के साथ-साथ घर म गृहथी का सारा सा मान ज ुट गया था । अन ,
धन, तृण और पश ु सभी का स ंचय हो गया था । अितिथ का इशारा िजस वत ु के िलए होता
वही घर म उपिथत हो जाती थी । सारी यवथा चल रही थी तभी अपनी अिनशाला स े munotes.in

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6 मनु ने देखा िक ा एक पश ु के साथ आ रही ह । वह पश ु क पीठ पर यार स े हाथ फेर
रही थी और बदल े म पशु ने भी अपनी गद न लबी क हई थी , पूँछ ऊपर उठाई हई थी ,
मानो ा क े ऊपर च ंवर कर रहा हो । मनु के मन म यह द ेखकर ईया का भाव जागा ।
सोचन े लगे, ये दोन िकतन े कृतन ह । मेरी ही कमाई खा रह े ह और म ेरी ही उपेा करत े ह
जैसे म कुछ हँ ही नह । अपन े आप म मत ह । इह तो अपना सारा न ेह मुझपर ल ुटाना
चािहए इस कार ही म ेरे उपकार का बदला च ुका सकत े ह ।
वे ये सब सोच ही रहे थे िक ा पास आ गयी और प ूछने लगी िक या कारण ह जो अभी
तक आसन पर ब ैठे ही हो । तुहारा मन कह ह, देख कह रह े हो । या बात ह ? यह
कहकर यार से अपना हाथ मन ु के शरीर पर फ ेरने लगी । उसक े ऐसा करन े से मनु के मन
क ईया बुझ गयी । वे ा स े पूछने लगे िक आज त ुम अब तक इतनी द ेर कहा ँ रही हो ।
यह पश ु भी त ुमसे पुरानी पहचान जता रहा ह । तुम सचमुच बताओ िक त ुम कौन हो और
मुझे अपनी ओर य खचती हो और वय ं दूर भी हो जाती हो । ा न े हँसकर उर
िदया िक म अितिथ ह ँ यही परचय पया ह । यह जानन े के िलए इतन े बेचैन हो | उठो,
बाहर चलकर द ेखो, कैसी सुहावनी चा ँदनी रात ह । यह कहकर मन ु का हा थ पकड़कर बाहर
ले चली । बाहर चार ओर चाँदनी िछटक हई थी । िवकिसत क ुसुम का पराग चार ओर
उड़ रहा था । वहाँ के वृ लताक ुज और ग ुहा आिद सभी थल चा ँदनी म नहा रह े थे ।
माधवी लता क भीनी -भीनी ग ंध आ रही थी । सारा वातावरण नीरव था । मन म भीतर ही
भीतर एक मधुर भावधारा जोर मार रही थी । तभी मन ु ने कहा, “आज त ुम बहत अिधक
सुदर िदख रही हो और म ेरा मन त ुह पहचान सा रहा ह । आज तक म नह पहचान पाया
था । यह प ूवजम क या िपछल े सुखमय िदन क बात ह मेरी जीवन सहचरी , जो काम क
पुी थी और उसका नाम ा था, अब त ुम मेरे इस णय को वीकार कर लो । 'ा मन ु
के इन ेम भर े वचन को स ुनकर लजा स े झुक गयी ।अदर स े वह सन थी । धीरे से
उसने कहा िक आपका यह दय समप ण या सदा क े िलए मेरे दय को बाँधे रखेगा ?
१.३.६ छठवा ँ सग (लजा )
पुष का ेममय यवहार पाकर ा न े अपन े-आपको मन ु के ित समिप त तो कर िदया
पर उसक े दय म एक हलचल मच रही थी । वह प ुष क त ुलना म अपन े-आपको द ुबल पा
रही थी । वह मन म संभलने का साहस ज ुटाती पर सामन े जाते ही क ुछ कहन े-सुनने म
असमथ पाती थी । वह सोचती थी िक या पुष को अपन े-आपको सपकर म ेरा पृथक्
अितव बना रह ेगा ? इस अप ण के बदल े मुझे पुष स े या िमल सकता ह ? तभी उस े एक
छाया ितमा अपनी ओर आती िदखाई दी । ा न े उसे देखकर कौत ूहल स े उसका
परचय प ूछा तो उसन े कहा िक म ुझे देखकर इतनी न चको । म देवी जगत क रानी रित
अपने वामी काम स े ठगी जाकर आकष ण शि का प धारण कर उसी क ितमा लजा
हँ । म नारी को िशता क सीख द ेती हँ । म नारी क े कपोल पर लािलमा क े प म िदखाई
देती हँ । आंख म सुरमे क भा ँित तीत होती ह ँ । म नारी क े सौद य क रा करती ह ँ ।
ा न े यह स ुनकर कहा यह तो ठीक ह िक तुम नारी क स ुदरता क रा करती हो और
शील क िशा द ेती हो । परत ु इस मयी िथित म मेरा माग दशन करो । मने नारीव क
दुबलता को समझ िलया ह । शरीर क स ुकुमारता क े साथ मेरा मन भी द ुबल य होता ह । munotes.in

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कामायनी क कथावत ु
7 पुष पर िवास करक े जो म ने अपन े-आपको सपा ह, बदले म उसस े कुछ पान े का साहस
नह होता । या नारीव इसी का नाम ह िक दो और बदल े म कुछ न लो ।
लजा न े उर िदया िक त ुमने ेमाुजल स े संकप करक े अपनी सारी अिभ लाषा और
कामनाए ँ आमसमप ण के साथ प ुष को सप दी ह । अब त ुह कुछ लेने या पान े क
लालसा नह रखनी चािहए । तुम नारी हो । िजस िवास को ल ेकर त ुमने आमसमप ण
िकया ह, उस पर आथा रखो और प ुष के जीवन म अमृत-रस का स ंचार करो । जीवन म
सुख-दुख सब क ुछ आते ह । अछाई और ब ुराई जो भी सामन े आय , उनको ह ंसते हए
अपनाती जाओ । इस कार क परिथितय स े समझौता करना ही पड़ ेगा ।
१.३.७ सातवा ँ सग (कम)
मनु लय स े पूव यािक संकृित के वातावरण म रहे थे । य म सोमपान िकया जाता
था । कुछ म पशु बिल भी होती थी । यह कम बधन द ेव संकृित को बा ँधे हए था । लय म
सवनाश होन े पर मन ु एक बार उन य क असारता को मन ही मन मान च ुके थे । परत ु
अब ा क े साथ दापय स ू म बंधने के साथ-साथ उनक सोम पान क ललक िफर स े
जाग उठी | काम न े और ा न े मनु को जो ेरणा दी थी , उहन े उसका गलत अथ
लगाया । कम का अथ उहन े यािक कम काड समझा और उसम वृ हो गय े । उधर
आकुिल और िकलात नामक दो अस ुर पुरोिहत िकसी कार लय स े बच गये थे, वे इधर-
उधर भटकत े हए स ंयोगवश उधर आ िनकल े । बहत िदन स े वे दोन फलम ूल और कद
आिद खाकर िनवा ह कर रह े थे । आिमष भोजी होन े के कारण उनस े उनक त ृि नह होती
थी । उनक ि मन ु के पशु पर पड़ी और म ुँह म पानी आ गया । उसे खाने के िलए उहन े
एक षड्य रचा । मनु अपन े मन म मैा वण य करन े क सोच रह े थे पर य करान े
वाला पुरोिहत कोई नह िमल रहा था । मनु ा स े कह ही रह े थे िक म य करक े पुय का
अजन करना चाहता ह ँ परतु इसक े िलए प ुरोिहत क आवयकता ह । उसका थान कौन
लेगा ? ये शद स ुनते ही झट अस ुर पुरोिहत मन ु क य शाला क े ार पर पह ँच गय े और
बोले, 'िजन देवताओ ं को सन करन े के िलए त ुम य करना चाहत े हो हम दोन को उह
ने भेजा ह । मनु सन हो गय े । िम और वण को सन करन े के िलए य करन े लगे ।
पशु क बिल दी गयी । सोम पान भी करना था । परत ु य तो िबना प नी क े साहचय के
नह होता । ा ठकर गुफा म चली गयी थी । वह मन ु क वाथ व ृि स े दुखी थ ।
उहन े ा क भावना को ठुकराया था , उसक इछा क े िव पश ु क बिल दी थी । वह
सोच रही थी िकतनी व ंचना हई ह । िकस यि को उसन े अपना दय िद या । तभी मन ु
सोमपा ल ेकर उस े खोजत े हए आ पहँचे । उसे मनात े हए बोल े िक ठकर इस कार म ेरे
सुखमय स ंसार को द ुखमय न बनाओ । इस यश ेष का पान करो और जीवन का आन ंद
लो । ा न े मान भर े वर म कहा िक इस समय त ुम ेम क बात कर रह े हो पर उस समय
या हआ था जब उन सािथय क े कहन े से तुमने मेरी उप ेा करक े य का प ंच रचा और
यार स े पाले उस पश ु क जान ल े ली । भिवय म पुनः साथी िमल जायगा , िफर वही बात
हगी । तुहारा या भरोसा ? मनु ने उर िदया िक अपने सुख क उप ेा दूसर क े िहत क े
िलए करना बुिमा नह ह । यिद हम दोन ही इस िणक जीवन म सुखी नह हए तो िफर
इतने परम का या लाभ ? ा न े इसक े उर म कहा िक क ृित ने लय का ख ेल
िदखाकर यह सदबुि दी ह िक आमस ुख परायणता का परणाम अछा नह होता । यि munotes.in

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8 िसफ अपने सुख म सीिमत रहकर स ंसार क गित क ैसे देख सकता ह । दूसर को स ुखी
करके ही मन ुय को वातिवक स ुख ा होता ह । संसार एक य ह । उसम हमारा भाग
दूसर क स ेवा करना ह । दूसर को समा करक े एकाक कोई स ुखी नह हो सकता वह
उसका वाथ भाव ह ।
मनु ने कहा, तुम जो कहती हो , वही सय ह तो म वैसा ही क ँगा । य अक ेले का स ुख,
सुख नह होता । 'इस सोमरस को पी लो ', यह कहकर छलमयी वाणी स े अपना णय
िदखाकर ा को मना िलया और उसक े मुख का च ुबन िलया िजसस े उसका रोष शात
हो गया ।
१.३.८ आठवा ँ सग (ईया)
इसके पात मन ु िशकार ख ेलने म मन रहन े लगे, इनके अितर ा क े ित भी उनका
आकष ण समा हो गया था । अब उह मन लगान े के िलए और िकसी आय क
आवयकता थी । यिक ा क े ेम म अब पहल े वाली ऊणता नह थी । या तो धान
चुनने म लगी रहती या बीज एकित करती और खाली समय म उहे कातन े लगती थी ।
मनु को लगा , ा क ि म उनका अब कोई अितव नह रहा ह । एक िदन िशकार
खेलकर वे ार पर पह ँचे पर भीतर जान े को मन न िकया। मारा हआ म ृग वह डाल िदया
वयं भी थक े-मांदे वह बैठ गये ।
ा अदर तीा कर रही थी । वह गभ वती थी । सोच रही थी िक सा ँझ गयी ह पर वे
िशकार स े अभी तक य नह लौट े । वह ऊन क पी ब ुन रही थी । कमर म उसन े
नीलाव कसकर बाधा हआ था । गभ क हक -हक पीड़ा हो रही थी । मुँह पीला पड़
गया था ।मनु ने ा को उस िथित म देखा, उसक आ ँख म अपनी इछा का िवरोध
िदखाई िदया । ा को द ेखकर भी उहन े कुछ नह कहा च ुपचाप र हा । ा उनका
मनोभाव समझ गयी । मुसकराकर ेम से बोली , 'िक सार े िदन त ुम कहा ँ –कहाँ घूमते रहे, म
तीा कर ती थक ग यी । पी अपन े-अपने घसल म आ गय े ह पर त ुम नह लौट े । तुह
िकस वत ु क कमी लग रही ह जो इधर -उधर जात े हो ।'
मनु ने कहा िक भल े ही त ुह कुछ नह िदखता पर म ुझे तो खटकता ह । तुम अब पहल े क
भांित ेम से बात भी नह करती हो । रात-िदन तक ली चलान े म लगी रहती हो । जब व
के िलए म मृग-चम लाने वाला ह ं तो इस म क या आवयकता ह ? म िशकार करक े
लाता ही हँ तो बीज बीनन े क म ेहनत य करती हो ? तुहारी आक ृित पीली य पड़ गयी
ह? ये तैयारी िकसक े िलए कर रही हो ? ा न े कहा िक मुझे िहंसा वृि पसद नह ।
आमरा क े िलए भल े ही श चलाओ पर काम आन े वाले जीव का िशकार करना या
उिचत ह? उनक ऊन स े व का योजन िस हो सकता ह । उनक े -पु रहन े से हम
दूध क ाि हो सकती ह । तब उह य मारा जाए ?
मनु ने उर िदया िक म अपन े सुख को नह छोड़ सकता यिक य े न माल ूम कब िछन
जाये । इसिलए िजतना इह भोगा जा सक े, भोग िलया जाय । दूसरे, तुम अपना यह ेम मुझे
छोड़कर द ूसरे को द ेना चाहती हो , यह मुझे सहन नह ह । मेरा यार म ुझे लौटा दो , म चाहता
हँ तुम केवल म ेरी िचता करो बस । ा न े यह स ुनकर भी उनक बात का उर नह िदया munotes.in

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कामायनी क कथावत ु
9 और उनका हाथ पकड़कर भावी बच े के िलए जो झ ूला बनाया था , वह िदखान े ले गई ।
गुफा के पास पुआल का छपर डालकर एक छोटी सी क ुिटया बनाई थी , पतली -पतली
डािलय स े कुंज सा बन गया था । चार ओर प क दीवार थी , बीच म झरोख े भी थ े िक
हवा आय े और सीधी चली जाय । उसक े बीच ब त का झ ूला डाला हआ था । भूिम पर फ ूल
का पराग िबखरा था । यह सब सुिच पूण यवथा मन ु ने िवमय स े देखी पर सन होन े
के थान पर उह ईया ही हई । वह कुछ बोले नह । ा न े िफर कहा -यह तो बन गयी ह
पर उसम रहन े वाला म ेहमान अभी नह आया ह । तुहारी अन ुपिथित म म तकली
कातकर उसक े व क े िलए ऊन कातती ह ँ तािक वह न ंगा न रह े और उसक े आने से मेरा
एकाकपन समा हो जायगा । इस पर कुढ़कर मन ु ने कहा िक उस बच े के आने पर त ुम तो
सन होकर उसक े लालन -पालन म मत रहोगी और म उपेित सा इधर -उधर भटक ूँगा ।
यह मुझे सहन नह होगा । इसिलए यिद इसी म सुख समझती हो तो ठीक ह तुम सुखी रहो ।
म जाता ह ँ जहाँ मुझे सुख-शाित िमल ेगी । यह कहकर व े चल िदय े । ा-"अरे िनमोही ,
ठहर एक बात तो स ुन", यह कहती हई वह रह गई ।
१.३.९ नौवां सग (इड़ा)
वहाँ से िनकलकर मन ु इधर-उधर अशात िथित म भटकत े रहे । वे अपन े मन म सोचत े थे
िक स ंसार म जीवन िकतना स ंघषपूण ह । इसम उमुता ही परम स ुख ह । म उसी क
खोज म घूम रहा ह ँ । इस जीवन म कह शाित और िवाम नह ह । चलत े-चलते वे
सरवती नदी के तट पर बस े सारवत द ेश म पहँचे । वह थान स ुनसान और उजड़ा
हआ पड़ा था । कभी द ेवराज इ न े वह वृासुर का वध िकया था । मनु अब द ेवासुर
संाम क े सबध म सोचन े लगे । देव और अस ुर इन दो जाितय म संघष का या कारण
था? असुर जाित अपन े शरीर को प ूजती थी । िकसी अय को अपन े भय म से देना न
जानती थी । अन को ही मानकर अपनी उपलिध म दूसरे का भाग न मानकर वय ं
को ही प ु करती थी । दूसरी ओर द ेव थे जो अपन े-आपको सवपर समझ बैठे थे | इसिलए
अपने-अपने प क प ुि के िलए दोन प न े श का आय िलया । म भी द ेव जाित स े
ही सब ह ँ पर लय काल म आमरा म वृ हआ | मुझम अपन े ित ममता ह तथा
और क े ित िनर ंकुशता ह । आस ुरी और द ेवी वृि का पारपरक म ुझम छा गया ह,
इससे म दुखी हो गया ह ँ । म सय ही आथा स े रिहत हो गया ह ँ । मनु ऐसा सोच रह े थे तभी
उह काम क े शद स ुनाई पड़ े-
"हे मनु तुम भूल गय े । िना वप उस नारी को त ुमने तुछ समझा । जीवन को अिनय
मानकर िजतना हो सक े उतना स ुख भोगना और वासना -तृि ही त ुमने अपना लय समझा
पुष होने के अहं के वश म तुमने नारी का महव वीकार नह िकया , उसके देह को क ेवल
भोग क सामी समझा । वत ुतः अिधकार और अिधकारी क े बीच समरसता होती ह, इस
सय क तुमने उपेा क। "
ये वचन मन ु के दय म चुभ गय े । उहन े उर िदया िक ा को पान े क ेरणा त ुमने दी,
वैसा ही म ने िकया । उसन े भी म ुझे ेमपूण दय िदया । परत ु इसस े मेरी तृि न हई । मुझे
या िमला ? काम न े कहा िक उस ब ेचारी न े तो अपना ेम भरा दय त ुह िदया । पर त ुमने
उस ेम का म ूय या समझा ? तुम उसक े शरीर को ही महव द ेते थे । केवल उस े भोय munotes.in

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10 समझा । िववाह स े जो वातिवक लाभ होता ह, दो दय और ाण का ऐय उसको त ुमने
न होन े िदया । तुम उम ु और व ेछाचारी बनन े के िलए सारा दोष द ूसरे पर डालकर
अपनी यवथा अलग चलाना चाहत े हो । केवल वासना को महव द ेते हो । इसिलए म तुह
शाप द ेता हँ, िक तुहारा जो आग े जा का शासन चल े वह अिभशाप बन जाय । उसम िनय
भेदभाव रह े, नये-नये वण, वग जाित आिद बनत े रह, परपर झगड़ े बढ़, नयी-नयी समयाय
उनके सामन े आय, सदा असतोष मन म भरा रह े । मन म सदा लालसाए ं भरी रह जो कभी
पूरी न ह । सब परपर सश ंक और भयभीत रह । ि स ंकुिचत हो । सदा स ंघष करत े रह
पर शाित ा न हो । तुमने ा से छल िकया ह । इसक े फलव प तुम वत मान स े
असंतु रहकर भिवय क े िलए ही ज ूझते रहोगे । तुहारी सतान ा स े िवहीन होकर यह
न जान पाय े िक यही लोक कयाणमय ह । वह वग आिद क े िलए भटकती रह े । अिभशाप
का यह वर जब ल ु हआ हो मन ु एक बार िफर अशात हो गय े िक म ेरा भिवय अब सदा
के िलए स ंकटमय हो गया ह । वे सरवती नदी के तीर पर ब ैठे सोच रह े थे । रात बीती और
ातःकाल होन े पर एक स ुदरी क े दशन हए । िजसका नाम इड़ा था । उसन े मनु को अपना
नाम बताया और उनका परचय प ूछा । मनु ने बताया िक म ेरा नाम मन ु ह । म संसार भर म
इधर-उधर भटक रहा ह ँ। अनेक कार क े क सहता आ रहा ह ँ । इड़ा न े वागत करत े हए
उस उजड़ े सारवत द ेश को बसान े और यविथत करने के िलए आमित िकया । मनु
ने सनताप ूवक इस उरदाियव को वीकार िकया ।
१.३.१० दसवा ँ सग (वन )
ा न े मनु से िबछड़ ने के पात िनयित का ख ेल समझत े हए सामन े आयी परथित को
वीकार िकया और अक ेली रहन े लगी । इसी बीच उसन े एक प ु को जम िदया । उसक े
लालन -पालन म उसका समय बीतन े लगा । परत ु रह-रहकर बीत े िदन क याद आ जाती
थी । एक रात उस े वन आया िक इड़ा नामक एक स ुदरी मन ु का ेरणा-ोत बनकर उह
गित क े माग पर ल े जा रही ह । मनु का एक सम ृ नगर बसा ह । िजसक े चार ओर पर
कोट ह, ऊँचे-ऊँचे भवन बन े हए ह । नगर म भूषण और भा ँित-भाँित के अ-श, िवलास
क सामी बनती ह । समाज म नयी-नयी ेिणयाँ बनी थ जो परम करती थ और नगर
क समृि बढ़ रही थी । पुनः एक बड़ े ासाद म उसन े वेश िकया , वहाँ ऊँच –ऊंचे भवन
और स ुदर उान थ े । बीच म एक मडप क े मय िस ंहासन रखा था । आसपास अन ेक
मोढ़े रखे थे । िसंहासन पर मन ु बैठे थे । उनक े हाथ म याला था । इड़ा उसम म डाल रही
थी और मन ु पी रहे थे । तदनतर मन ु ने अपनी अत ृि कट करत े हए इड़ा स े अपना णय
वीकार करन े को कहा । इड़ा के न मानन े पर उहन े बलपूवक उसका आिल ंगन कर
िलया । ऐसा करन े पर वह भय क े मारे चीख उठी । उसस े मानो प ृवी का ँप गई । उस नारी
पर अयाचार होन े से अतर म का ोधमय वर ग ूँजा िक जा तो अपनी सतान
होती ह, उसस े ऐसा यवहार ! आकाश म दैवी शिया ँ ु थ । शंकर का तीसरा न े खुल
गया था , उहन े ताडव न ृय करना आरभ कर िदया । लय क स ंभावना स े सब जीव
भयभीत थ े । इड़ा ोध और लजा स े बाहर आयी । जा और हरी ु होकर िवोह क े
िलए उत थ े । मनु महल क े ार बद करवाकर िछपकर ब ैठे सोच रह े थे । उहन े हरय
को आद ेश िदया िक ासाद क े ार बद कर दो और िकसी को भीतर न आन े दो । म सोने
जा रहा ह ँ । यह कहकर व े मन म त होकर शयन क म चले गये । munotes.in

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कामायनी क कथावत ु
11 ा यह वन द ेखकर का ँप उठी । उसक नद ख ुल गई । सोचन े लगी िक मन ु ऐसी
िवपरीत व ृि के कैसे हो गय े । डर क े मारे मनु के ित मन आश ंकाओ ं से भर गया |
१.३.११ यारहवा ँ सग (संघष)
यिप ा न े वन भाव द ेखा था परत ु वह सचा था । सारवत द ेश म सचम ुच ही
िथित अशात थी । मनु वहाँ जापित या बन े िक उनक उछ ृखलता और बढ़ गई । वे
िनरंकुश हो गय े थे । यिप उहन े अपनी योयता और शासन -िनपुणता स े उस द ेश क
काया पलट दी थी । जनता सब कार स े समृ हो गई थी । अन ेक कल -कारखान क े
खुलने से िविवध कार क भौितक उपभोग सामी और शा का िनमा ण हो रहा था ।
अन आिद क य ूनता नह थी । इड़ा जनता क ितिनिध और न ेी थी । समाज म
अशाित और िवलव क े कारण जनता राजासाद क े िसंहार पर मन ु से रा क ाथ ना
करने के िलए खड़ी थी और भीतर जान े क अनुमित क तीा म भी । इड़ा उनक ओर स े
जापित क े पास गई थी परत ु अपमािनत होकर लौटी थी । मनु उसे भी अपनी वासना का
िशकार बनाना चाहत े थे । जनता उसक दशा देखकर भड़क उठी थी । ारपाल न े ासाद
के फाटक बद िकय े थे । बाहर ाक ृितक उपात हो रह े थे । मनु अपन े िबतर पर ल ेटे सोच
रहे थे िक म ने इन लोग को उनित का माग िदखाकर स ुखी बनाया परत ु बदल े म मुझे या
िमला जो िवधान सबक े िलए बनाया य े लोग म ुझे भी उसी म बाँधना चाहते ह। इड़ा इस
कार म ुझे िनयम क े अधीन करना चाहती ह । परत ु म सदा वत और िनर ंकुश रहँगा ।
तभी वहा ँ पर इड़ा खड़ी द ेखी वो कह रही थी िक िनयम सभी क े िलए होत े ह । िनयम बनान े
वाले को वय ं उनके अनुसार चलना चािहए अयथा सारी यवथा न हो जाती ह । िकसी
का भी िनर ंकुश पर अिधकार नह होता ह । मनु ने कहा िक यिद जापित होन े का अथ यही
ह िक उसक लालसा भी अप ूण रहे तो लाभ या हआ । मुझे शासन या आिधकार कुछ नह
चािहए । म केवल त ुह पाना चाहता ह ँ । इड़ा न े बहत क ुछ समझान े क च ेा क िक ार पर
जा ुध खड़ी ह और त ुमसे रा पान े क आशा म ह । मने तुमको इस द ेश का वामी
बनाकर सारी सा सपी । पर यह म ेरा अपराध बन गया । अब भी च ेतो और जा क पुकार
सुनो । यह कहकर वह ार क ओर बढ़ी । तभी मन ु ने बांह फैला दी और उसको आिल ंगन
म भर िलया िक त ुम य नह जा सकती हो । इड़ा क चीख स ुनकर जनता न े ोध म
भड़ककर िस ंह ार तोड़ िदया और भीतर घ ुस आयी । मनु ने उह देखा तो ोध म भरकर
अपना राजदड उठा िलया और कहा िक म ने तुम लोग को गित का माग िदखा कर स ुख
के साधन बताय े । समाज को िविभन वग म बाँटकर अलग-अलग कम बाँटे । पहल े लोग
ाकृितक िवपिय को च ुपचाप सहत े थे पर अब उनका उपाय करत े ह। अब सब सय बन
गये ह पर मेरे उपकार का यही बदला ह या? इस पर जनता न े भड़ककर कहा िक त ूने हम
आवयक ता से अिधक स ंचय करना िसखाकर लालच िदया । य का आिवकार करक े
हमारी कम करन े क वाभािवक शि छीन ली । ऊपर स े हमारी रानी इड़ा पर य े अयाचार
िकया ह । अब तुहारे हाथ स े नह बच सकता । यह स ुनकर मन ु ने भी कहा , तो अछा त ुम
सब एक ओर हो , एक तरफ म हँ । यह कहकर व े राजदड ल ेकर जनता पर ट ूट पड़े । उधर
से धनुष-बाण चल रहे थे । उनक े नेता आक ुिल और िकलात अस ुर पुरोिहत थ े । मनु के
हार स े वे दोन मार े गये । जनता म असीम रोष था । इड़ा इस य ु को रोकन े को कह रही
थी । पर वहा ँ उसक कौन स ुनता था ! इसी बीच द ैवी शिया ँ अतर म गरज उठ । munotes.in

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12 का बाण िजसम अिन थी , छूटा । अय दैवी श भी चल े और सब मन ु पर िगर गय े । मनु
घायल होकर भ ूिम पर िगर पड़ े । अब चार ओर िधर बह रहा था ।
१.३.१२ बारहवा ँ सग (िनवद)
यह य ु थल र क धारा , मृत यिय क देह आिद स े चारो तरफ वीभस य
उपन हो गया था | नगर शात और ुध था । घायल क िससिकय क े अितर क ुछ
सुनाई न द ेता था । चार ओर अधकार था । घनी रात थी । इड़ा अक ेली मडप म बैठी थी
और ोभ तथा िचता स े भरी थी , उसके मन म एक ओर मन क े ित घ ृणा थी । दूसरी ओर
मोह-ममता भी सता रही थी । वह मन म सोच रही थी िक िकस कार मन ु एक परदेशी के
प म यहाँ असहाय आया था पर वही बाद म यहाँ का शासक बन गया । जो इतना साहसी
और मानी था , आज अधमरा होकर पड़ा ह । उसन े मुझसे ेम िकया पर मया दा से बाहर
जाने के कारण वही ेम अपराध बन गया । उसन े मेरे साथ अपराध भी िकया पर उपकार भी
बहत िकया था । इस कार भलाई और ब ुराई दोन क । कहा ँ तो उस अपराध क े िलए दड
देना था पर आज म इसक इस दशा म देखभाल कर रही ह ँ ।
वह ऐसा सोच रही थी तभी उसक े कान म एक क ण पुकार पड़ी । िकसी नारी का वर था
जो कह रही थी िक कोई दया करक े यह बता दो िक म ेरा वासी कहा ँ ह । वह म ुझसे ठकर
चला आया था ।
यह स ुनकर इड़ा न े अधकार पूण राजपथ क ओर गौर स े देखा िक िकसी आती हई नारी
क ध ुंधली छाया िदखाई दी । साथ म एक िकशोर अवथा का बालक था । उसका शरीर
थकान स े ढीला हो रहा था । कपड़ े अत -यत थ े । चोटी ख ुली हई थी । वे दोन घायल
मनु को खोज रह े थे । इड़ा को उह देखकर दया आ गई । जाकर उह पूछने लगी िक त ुम
िकसे खोज रही हो ? इस रात म कहाँ जाओगी ? यह ठहरो । यह स ुनकर ा क गयी ।
बालक भी थका हआ था । वह इड़ा क े साथ मडप म उस व ेदी के पास आयी जहा ँ आग
जल रही थी । उनक े आने पर सहसा व ेदी क आग धधक उठी । उसक े काश म नीचे पड़े
घायल मन ु िदखाई द े गये ।ा चककर बोल उठी ह , या म ेरा सपना सचा था । और
रोती हई मन ु के पास बैठ गई और उसका शरीर सहलान े लगी । इड़ा च ुपचाप यह सब द ेख
रही थी । वह हरान हो गई । ा क े पश से मनु क म ूछा टूट गई । उहन े ा को
देखकर पहचान िलया , दोन क आ ंख म आँसू भर आय े । ा न े कुमार को प ुकारकर
कहा िक आकर द ेख, ये तेरे िपताजी घायल पड़ े ह । वह भी पुलिकत होकर “िपता जी , म आ
गया" यह कहकर वहा ँ पहँच गया । देखकर माता स े बोला-माँ, इनको यास लगी होगी क ुछ
पानी िपला । इस बात को स ुनकर वहा ँ एक पारवारक वातावरण सा बन गया और बरबस
ा क े मुख से एक गीत िनकल पड़ा । धीरे-धीरे रात ख ुल गयी । मनु ने आँख खोल । ा
ने सहारा द ेकर उह ऊपर उठाया । उहन े यार स े कहा-"ा, तू आ गयी ? या म इसी
थान पर पड़ा था ?" अरे यह तो वही सभा भवन, खभे और चबूतरा ह । इड़ा को द ेखकर
उहन े घृणापूवक कहा िक द ूर हो, मुझे न छ ूना । िफर ा को कहा िक त ुम मेरे पास
आओ। क ुछ पानी पीकर उह कुछ आराम िमला । आत होकर ा स े कहन े लगे, िक
मुझे कह द ूर ले चल, यहाँ म एक ण भी नह ठहरना चाहता । इस पर ा न े कहा िक
ठहरो, शरीर म कुछ शि आन े दो, तब चल गे । इतनी द ेर ठहरन े से हम कोई नह रोक ेगा । munotes.in

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कामायनी क कथावत ु
13 इड़ा यह स ुनकर क ुछ न बोली । उसन े कोई िवरोध नह िकया । मनु िपछल े समय को मरण
करके अपन े दुयवहार क े िलए पााप करन े लगे और कहा िक म ुझे छोड़ दो । म तुहारा
अपराधी ह ँ । इसी कार क बात करत े िदन बीत गया । रात आ गई । ा और कुमार ल ेटे
हए थ े । मनु चुपचाप सोच रह े थे िक ा को म ुख कैसे िदखाऊ ँ । बाक इड़ा आिद तो
कृतन ह । ये मेरे शु ह । इसिलए यहा ँ रहना ठीक नह ह । यह सोचकर जब सबको सोता
देखा तो च ुपचाप वहा ँ से चले गये ।
सुबह जब सब लोग सोकर उठ े तो वहा ँ मनु न थे । िपता जी कहा ँ ह, यह कहता हआ बालक
उह खोज रहा था । इड़ा अपन े-आपको अपराधी मान रही थी । ा च ुपचाप सोच रही थी
िक अब या क ँ |
१.३.१३ तेरहवाँ सग (दशन)
अततः वह क ुमार को ल ेकर पुनः मन ु को खोजन े चली । राि का समय था , दोन सरवती
के तट पर खड़ े थे । कुमार ा को कह रहा था , िक अब कहा ँ जा रही ह, चल, लौटकर घर
चल । ा न े कहा, “बेटा, मेरा घर तो यह ख ुला संसार ह जो िनय परवत नशील ह । इसम
बारी-बारी स े सुख और द ुख आत े रहते ह ।" उसक यह बात स ुनकर इड़ा न े कहा िकमाता ,
यिद ऐसी बात ह तो तुह मुझसे घृणा य हो गई , तुम यहा ँ से जाने लग | ा न े उसक
ओर म ुड़कर द ेखा और कहा िक भला त ुमसे मुझे घृणा कैसे हो सकती ह । तुमने मेरे ठे हए
ियतम को अपन े पास सहारा िदया था । भला इस उपकार को म कैसे भूल सकती ह ँ । एक
िदन वह तेरा सुदर चेहरा द ेखकर त ुझ पर म ुध हो गया था । तू माया और ममता क ितमा
नारी ह । उसने तुहारे साथ अपराध िकया था, इसिलए म इसके िलए तुझसे मा
माँगती ह ँ |
इड़ा न े सुनकर कहा िक भला व े ही अपराधी क ैसे ह। मेरा भी अपराध कम नह ह ।मने
समाज म म का िवभाजन करन े के िलए वग बनाय े थे । उेय यह था िक सब लोग क े
कम िवभ हो जाय गे तो उनम िकसी कार का स ंघष नह होगा । सब अपना -अपना काम
करगे । परत ु बात उटी हो गई पर अब लोग म फूट पड़ रही ह । िजह म का भाग िमल
गया वे अिभमानी हो गय े । अिधकार पाकर िनयम का उल ंघन करन े लगे । सबक िलसा
बहत बढ़ी हई ह । म इस द ेश के िलए कयाणमय समझी जाती थी पर आज अवनित क े
कारण िनदनीय बन गयी ह ँ । मेरे िकये हए िवभाग अब ट ूट रहे ह । नये-नये िनयम और
कानून बन रह े ह जो िक िवपि क े कारण बन रह े ह । म शायद म म थी । िजस कम माग
को व म को समाज का स ुख साधन समझ रही थी , वही िवनाश का कारण बन गया ह ।
मेरा अय अपराध यह ह िक मने तुहारा सौभाय स ुख छीना ह इस अपराध क े िलए म ुझे
मा कर दो , मुझसे ठो नह । ा न े कहा िक तेरा अपराध इतना ही ह िक तू सबक े
ऊपर रहकर शासन तो चलाती रही परतु माया , ममता क भावना त ुझम नह थी । अब
दुखी होन े का नाटक रच रही ह, यह यथ ह । जीवन एक नदी क धारा क े तुय ह िजसे
वछद बहन े देना चािहए । जीवन म बारी-बारी से सुख-दुख आत े ही रहते ह । तू मा न
करके बदल े म कुछ चाहती ह । लगता ह, तेरी ितशोधक भावना शात नह हई ह । म
भला या द े सकती ह ँ । मेरा सव व खजाना यह बालक ही ह । म इसको त ुझे सपती ह ँ।
इसे यहाँ छोड़कर अपना माग पकड़ती ह ँ। यह कहकर उसन े बालक को कहा-बेटा, तू यह munotes.in

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14 इनके पास रह । उम काय करक े इस द ेश को स ुखी और स ुदर बनाना । तुम दोन
िमलकर रा -यवथा का माग संचालन करो पर द ेखना, तुहारा शासन जा के िलए
मंगलकारी हो , दुखदायी न बन जाय े । म अपन े िय को खोजन े के िलए जाती ह ँ । बालक
मेरा जीवन -वृ बन जाय ेगा । तू मुझको यिद यहा ँ छोड़कर जा रही ह तो ने कहा-“माँ मुझसे
न ठ और म ुझे छोड़कर न जा । म सदा त ेरी आा का पालन क ँगा |’ ा न े कहा,
“इड़ा स े तुझे जो न ेह िमल ेगा, उसस े तेरा मुझसे िबछुड़ने का दुख दूर हो जाय ेगा । यह तक
धान ह, तू ा िवास धान ह । दोन का स ंयोग लोक कयाणकारी होगा । तू उम
कम करके इसक यथा को हर ल ेना । मानवता क े भाय जाग । सव समरसता का चार
करना ।” इस पर इड़ा न े ा क े पैर क ध ूल िसर पर लगाई और कहा िक माता , आपक
ये बात मुझे सदा मरण रह । आपका ेम सदा हमारा सहारा बनकर कयाणकारी हो । यह
कहकर उसन े कुमार का हाथ पकड़ा और दोन नगर क ओर चल िदये । ा अपन े माग
पर चल दी।
अंधेरी रात थी , सब ओर स ुनसान था । ा सरवती क े तट पर आयी । उसन े चार ओर
घूमकर देखा तो पा स म एक ग ुफा थी िजसका ार लताओ ं से ढका था । उसम दो आ ँख
खुली चमक रही थ । लगा िक यहा ँ कोई जीिवत यि िवमान ह । वह पास पह ँची, मनुने
ा को पहचाना िक वह िकतनी ममता पूण ह । वे उसका याग द ेखकर िविमत हो गय े ।
कहने लगे िक तु िकतनी उदार ह । म तुझे छोड़कर यहा ँ चला आया । यहा ँ भी िजनस े
घबराकर भाग आया था , तूने उनको भी अपना प ु सा सव व दे िदया । इड़ा न े तुझे अब भी
ठग िलया । ा ने कहा िक आप िकसी कार क श ंका न कर । तुमने जो अपराध िकया
था, वह अब इड़ा क े िलए बधन बन गया , तुहारी मुि हो गई । तब मन ु ने कहा, िक मुझे
तुहारे साथ िकय े यवहार क े िलए बहत पााप ह । म लािनवश वहा ँ से चला आया ,
िकतन े िदन भ ूख-यास सहता रहा । अब त ुम मुझे मा कर दो । ा न े कहा, यह स ुनसान
रात उस रात का मरण करा रही ह िजस िदन म ने अपने-आपको त ुह सपा था । इसक े
बीतने पर हम ातःकाल वहा ँ के िलए चल गे जहाँ पूणतः शाित रहती ह ।
उस समय घोर अधकार था िजसक े कारण िकसी भी वत ु का अितव नह िदख रहा था।
सहसा सारी स ृि म एक पदन का सा अन ुभव हआ । चार ओर चा ँदनी का का श फैल
गया । दय पर पड़ े अान क े पद खुल गय े । चार ओर काश छा गया । चाँदी के समान
शु वण का काशमय एक पुष कट हआ जो िक कयाणमय च ेतन था । अधकार
उसका केशपाश बन गया था , िच शि उस श ूय को चीरकर कट हई थी । वह आलोक
पुष और कोई नह वयं नटराज िशव आनद म नृय कर रह े थे । सात वर लय बनकर
ताल द े रहे थे । उस समय द ेश और काल का ान नह हो रहा था चार ओर च ेतना क
काश रािश िबखर रही थी । िचत शि क वह लीला आनदमयी थी । ताडव करत े समय
नटराज क े वेद िबद ु िगरकर तार े, च, सूय बनत े थे । उनक े पाँव के भूिम पर पड़न े म
संहार और स ृि थी । नटराज क े उस न ृय को द ेखकर मन ु िविम त हो गए | वे पुकार उठ े
ा, मुझे उन चरण तक अपना सहारा द ेकर पह ँचा दो जहा ँ पहँचने पर पाप और प ुय सब
भम हो जात े ह । केवल समरसता अखड आनद क े प म रह जाती ह ।
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कामायनी क कथावत ु
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१.३.१४ चौदहवा ँ सग (रहय )
ा और मन ु उसी िदशा म बढ़े चले जा रह े थे । पवतराज क ऊ ँचाई बहत थी । चार ओर
बफ जमी हई थी । ऊपर चढ़त े-चढ़ते थक गय े थे । आग े-आगे ा जा रही थी , पीछे-पीछे
मनु थे । वहाँ हवा बड़ी त ेज चल रही थी । उस ऊ ँचाई म भी बीच -बीच म गड्ढे और खाइया ँ
थ । चलत े-चलते मनु थक गय े । ा स े कहन े लगे िक म अब आग े चल नह सकता
इसिलए लौट चलो ।
ा न े मुसकराकर मन ु को सहारा द ेकर आग े बढ़ाया िक हम बहत द ूर आ गय े ह । अब
लौटना भी आसान नह ह । उसन े कहा िक हम इस समय जहा ँ पर ह यहाँ देश काल क
सीमा तीत नह हो रही ह । पैर के नीचे पवत भी नह लग रहा ह । हम िनराधार ह । आज
हम यह िटक गे । यह समतल भ ूिम आ गई ह । मनु ने वहाँ कुछ गम का अन ुभव िकया । वहाँ
पर ह, तारे न आिद क ुछ नह िदख रहे थे । वहाँ ऋतुओं का भी ान नह हो रहा था , न
भूमंडल क रेखा िदखती थी । वहाँ नयी सी च ेतना का अन ुभव हो रहा था । संसार तीन
िदशाओ ं म बंटा लगता था , वहाँ तीन काश िबद ु भी िदखाई िदय े । जो अलग -अलग िदख
रहे थे और तीन लोक के ितिनिध थ े । मनु ने ा से पूछा िक य े कौन स े नये ह िदखाई
दे रहे ह, हम िकस लोक म पहँच गये ह । ा न े उर िदया िक इस िकोण क े बीच म ये
जो तीन िबद ु िदखाई द े रहे ह, ये इछा , ान और िया प ह । इनक शि अपार ह ।
उनम जो लाल वण का ह, वह इछा लोक ह । शद , पश, प, रस और गध क प ुतिलया ँ
इसके चार ओर नाच रही ह । यह जीवन क मय भ ूिम ह । यह भावच को चलाती ह, यहाँ
लालसाओ ं क लहर उठती ह । पाप और प ुय क भावनाए ं इसी लोक क वत ु ह । सुख
और द ुख, अमृत और िवष परपर ज ुड़े हए ह ।
दूसरा िबद ु याम वण का कम लोक का ितिनिध ह वह िया ह । यह िनयित क ेरणा स े
िनरतर घ ूमता रहता ह । यह म मय और कोलाहल स े भरा ह । यहाँ कभी िवाम नह ह,
पचभ ूत क उपासना होती ह । िनरतर आका ंा बढ़ती ह । सतोष का अ भाव ह । सदा
संघष चलता ह और कोलाहल रहता ह ।
मनु ने कहा, यह कम लोक तो भय ंकर ह । पर यह तीसरा काशमय लोक कौन -सा ह । ा
ने बताया िक यह ानलोक ह ; यहाँ सुख-दुख क िचता करक े केवल ब ुिच चलता ह ।
यहाँ केवल याय का शासन ह । यहां केवल अिभलिषत वत ु तो िमलती ह परत ु सतोष
नह होता । यहां धम के आधार पर अिधकार क याया होती ह । यहाँ सामजय करन े
के नाम पर व ैषय फ ैलाते ह । इस कार तीन प ृथक्-पृथक् होने से समरसता नह ला
सकत े । ान और िया म परपर म ेल होन े से मन क इछा कभी प ूरी नह होती । इछा,
ान और िया य े ही िप ुर कहलात े ह । इन तीन का म ेल हो जान े पर ही जीवन क
सफलता होती ह ।
ऐसा कहत े-कहते ा क म ुकान क र ेखा काश पुज सी उन तीन म संचरत हई ।
िजसस े वे तीन एक साथ िमल गय े । उनम एक लौ सी कट हई । उस समय जात , वन
और स ुषुि क अवथा भम हो गई । इछा , िया और ान िमलकर एक हो गय े थे । munotes.in

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१.३.१५ पंहवाँ सग (आनद )
पहाड़ी माग से कुछ याी धीर े-धीरे जा रह े थे । ये इड़ा और क ुमार थ े । साथ म सोम लता स े
छका सफ ेद रंग का सा ंड था जो धम का तीक था । उसक े गले म घंटा बंधा हआ था ।
मानव क े बाय हाथ म बैल क नाथ थी और दाय हाथ म िशूल था, दूसरी ओर ग ेए कपड़ े
पहने इड़ा भी च ुपचाप चल रही थी । साथ म कुछ और याी भी थ े िजनम माताए ं और बच े
थे । िया ँ मंगल गीत गा रही थ । बालक न े माता स े पूछा िक अभी िकतनी द ूर चलना ह ?
माता ने उर िदया िक आग े देवदा क े जंगल वाला म ैदान पार करक े वह तीथ आ जाय ेगा ।
इड़ा न े बालक क े कहन े पर कथा स ुनाई िक कोई मनवी स ंसार क े सत उस तपोवन म
आया था । उसके संताप स े पवत म आग लग गई थी । तब उसक पनी उस े खोजती हई
वहाँ आई । उसक े आँसुओं से वह आग ब ुझ गई । उसन े कहा िक हम सारवत नगर क े वासी
यहाँ तीथ याा करन े आये ह । इस व ृष का वहा ं उसग कर द गे तािक यह वहा ं वतता स े
िवचरण कर सक ेगा ।
वे बात करत े-करते आग े बढ़े तो ढलान आ गया | वहाँ समतल भ ूिम थी । चार ओर
हरयाली थी । सामन े कैलाश पव त था । वहाँ पर सुदर मानसरोवर था । उसक े िकनार े मनु
यान लगाय े बैठे थे, पास म हाथ म फूल िलय े ा खड़ी थी । यािय न े दोन को
पहचाना और उह णाम िकया । बालक ा क गोद म बैठ गया । इड़ा न े ा क े चरण
म िसर झ ुकाकर कहा िक ममता न े हम खचा ह । उस समय म ुझे कुछ भी ान न था । हम
एक परवार क े प म इस तीथ क याा करन े आये ह । तािक हमार े पाप द ूर हो जाय । मनु
ने मुसकराकर क ैलाश क ओर स ंकेत िकया । कहा िक यहा ँ कोई पराया नह ह न कुटुबी ह
हम सब एक ह । यहाँ कोई पापी या अिभश नह ह । जीवन समरस ह । यहाँ एकमा िचित
समु क भा ँित फैली ह िजसम यि ब ुलबुले क भा ँित कुछ समय क े िलए अलग िदखाई
देते ह । यह सारा िवमहासा िच का शरीर ही ह । यहा ँ सबको अपन े से अिभन
समझकर उनक स ेवा करन े म ही सुख ह । मानव सार े भेद भुलाकर यिद यह कह द े िक यह
म ही हँ, दूसरा कोई नह तो सार े जगत म एकता थािपत हो जाय े ।
मनु के इन ान भर े वचन को स ुनकर ा क े होठ पर म ुकान छा गई । िजस समरसता
पर वह जोर िदया करती थी , मनु उसी क िता कर रह े थे । इस कार उस समरसता क
भावना स े एक अखड आनद क अन ुभूित हो रही थी ।

१.४ सारांश
कामायनी महाकाय एक काय प ह जो प ंह सग म िवभािजत ह | कामायनी महाकाय म
किव न े िवशाल ज लाकाय प ृवी पर मन ुय जीवन का आर ंभ और ेम क उपि स े लेकर
तीन म ुख पा ारा िचता , आशा, काम, वासना , लजा , कम, ईया, वन, संघष,
िनवद, दशन, रहय . आनद आिदभावनाओ ं को िवचार और काय म सिमिलत कर इस
काय को प ूणता दी ह , िवाथ सभी सग के अययन स े कथानक को समझ गय े हगे |
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कामायनी क कथावत ु
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१.५ दीघरी
१) सगानुसार कामायनी अपन े शद म िलिखए |
२) कामायनी क कथावत ु का वण न किजए |
१.६ लघुरी
१) कामायनी महाकाय म कुल िकतन े सग ह?
उर - पंह सग
२) कामायनी क था का ार ंभ िकस सग से होता ह ?
उर - िचंता सग
३) कामायनी का अ ंितम सग कौन सा ह ?
उर - आनंद
४) इड़ा का आगमन िकस सग म होता ह ?
उर - नौवां सग (इड़ा)
५) मनु लय क े पूव कौन स े वातावरण म रह रह े थे?
उर - यािक स ंकृती के वाताव रण म

१.७ संदभ पुतक
१) किव साद – डॉ. आचाय दुगाशंकर िम , काशन क , लखनऊ
२) कामायनी म काय , संकृित और दश न – डॉ. ारका साद सस ेना, िवनोद प ुतक
मंिदर, आगरा , चतुथ संकरण – 1971
३) कामायनी क काय – वृि – डॉ. कामेर िस ंह, पुतक स ंथान , कानप ुर, वष- 1973
४) साद का काय - डॉ. ेमशंकर, भारती भडार , इलाहाबाद , वष- 1970
५) कामायनी ेरणा और परपाक – डॉ. रमाशंकर ितवारी , थम , कानप ुर, थम स ंकरण –
1973
६) कामायनी एक िवव ेचन- डॉ.देशराज िस ंह एव ं सुरेश अवाल , अशोक काशन , िदली ,
संकरण – 2015
७) िहदी सािहय : युग और व ृियाँ – डॉ. िशवकुमार शमा , अशोक काशन , िदली ,
संकरण - 2021 – 2022
८) आधुिनक िहदी किवता म काय िच ंतन, डॉ. कणाश ंकर पाड ेय, वािलटी ब ुक पिलशस
एवं िडीय ूटस, कानप ुर
९) हमारे िय किव और लेखक, डॉ. राजेर साद चत ुवदी एव ं राकेश, काशन क ,
लखनऊ
 munotes.in

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18 २
कामायनी म पक तव , भाषाश ैली और
सदया नुभूित व क ृित िचण
इकाई क पर ेखा
२.० उेय
२.१ तावना
२.२ कामायनी म पक तव
२.३ कामायनी म सदया नुभूित और क ृित-िचण
२.४ कामायनी क भाषा – शैली
२.५ सारांश
२.६ दीघरी
२.७ लघुरीय
२.८ संदभ पुतके

२.० उेय
इस इकाई क े अंतगत छायावाद क े वत क किवय म मुख जयश ंकर साद क े िस
काय स ंह कामायनी क े पक तव पर िवचार -िवमश िकया जाएगा | कामायनी म पक
तव का िवश ेष महव ह | इस इकाई क े अंतगत िवाथसाद जी क े महाकाय कामायनी
के पक तव , उसके कृित िचण और सौदया नुभूित स े परिचत हो सक गे |
२.१ तावना
कामायनी म पक तव का िवश ेष महव ह | यह मन ुयता का एक मनोव ैािनक इितहास
ह आधुिनक िहदी सािहय म जयश ंकर सादक े काय म पक तव क अपनी िविश
पहचान ह |
२.२ कामायनी म पक तव
सािहयालोचक ारा सािहयशा म पक क े मुय तीन अथ वीकार िकय े जाते ह-(१)
य काय या नाटक क े प म (२) अलंकार िवश ेष के प म और (३) पिम क े एलीगरी
(allegory) के प म । इनम से एिलगरी ही अपेाकृत अध ुनातन ह और एिलगरी उस
कार क रचना को कहत े ह जो िअथ क होती ह और िजसका एक अथ य तथा द ूसरा
गूढ़ होता ह । डॉ.नगे का मानना ह िक 'इस िविश अथ म पक स े तापय एक ऐसी munotes.in

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कामायनी म पक तव , भाषाश ैली और सदया नुभूित व क ृित िचण
19 िअथ क कथा स े ह, िजसम िकसी स ैांितक अत ुताथ अथवा वयाथ का त ुत अथ
पर अभ ेद आरोप रहता ह ।' कहने का अिभाय यह ह िक कथा प और सामाय अथ के
अितर एक और सा ंकेितक अथ अवय होना चािहए तथा पक लय स े हमारा अिभाय
यहाँ इसी अथ से ह ।
इस सबध म जयश ंकर साद जी न े 'कामायनी ' के आमुख म िलखा ह िक' यिद ा और
मनु अथा त् मनन क े सहयोग स े मानवता का िवकास पक ह, तो भी बड़ा भावमय और
ाय ह । यह मन ुयता का मनो वैािनक इितहास बनाने म समथ ह । यह आयान इतना
ाचीन ह िक इितहास म पक का अ ुत िमण हो गया ह । इसिलए मन ु, ा और इड़ा
इयािद अपना ऐितहािसक अितव रखते हए, सांकेितक अथ क भी अिभयि कर तो
मुझे कोई आपि नह । मनु अथा त मन क े दोन प दय और मितक का सबध
मशः ा और इड़ा स े भी सरलता स े लग जाता ह’। इस कार कामायनी कार न े ही यह
मान िलया ह िक कामायनी म पक तव भी िवमान ह | यह बात इस तय स े भी िस
हो जाती ह िक यिद कामायनी क े पा तीक मय सा ंकेितक यि व से यु ह तो उसक
मुख घटनाओ ं का ेषिभत ग ूढाथ भी ह।
इस बात पर एक बार िवचार िकया जा ए तो प ह िक 'कामायनी ' क सप ूण कथा
िअथ क ह, यिक इसम एक ओर तो ा और मन ु के संयोग स े मानवता क े िवकास का
वणन ह और द ूसरी ओर मन , बुि और दय का िमक िवकास त ुत कर के जीव का
िचरंतन और अखड आनद क ाि क े िलए अह ंकार क ेषमयी िथित स े समरसता
क आनदमयी िथित तक पह ँचने का यास विण त ह । सामायतया 'कामायनी ' क कथा
पर िवचार करत े समय हमार े सम सवथम 'देव' आते ह, िजनक सीमाहीन िवलािसता क े
कारण जललय हआ | अतः हम द ेव को इिय का तीक कह सकत े ह और िनबा ध
आम-तुि के कारण इिय का पतन होना वाभािवक ह । य तो जल -लावन का हमारे
धम ंथ म भी सा ंकेितक या तीकामक योग िमलता ह पर 'कामायनी ' म इसका
तीकामक अथ ह, मन, मनुय या च ेतना का सा ंसारकता क े जल म पूणतः डूब जाना
और 'कामायनी ' म जललावन क े संग म जो वण न ह उसम अयवथा का प प स े
िचण िकया गया ह । इसी कार 'कामायनी ' के मुख पा मन ु, ा और इड़ा मशः मन ,
दय और ब ुि के तीक ह तथा वयं साद न े मनु को मन का -मनोमय कोश िथत जीव
का-तीक कहा ह । मन का य ुपि मूलक अथ ह िजसक े ारा मनन िकया जाय ' और
उसका मुख लण 'अहंकार' माना गया ह | यहाँ कामायनी क े मनु ारभ स े ही अह ंकार
क भावना से अिभभ ूत जान पड़त े ह-

म हँ यह वरदान सश य लगा ग ूँजनेकान म ,
म भी कहन े लगा, म रहँ शात नभ क े गान म ।
कामायनी का द ूसरा धान पा ह ा और वह दय क रागामक भावनाओ ं से यु होन े
के कारण दय क तीक ह | आचाय रामच ं शुल न े उसे ‘िवासमयी रागािमका व ृि’
कहा ह । किव क े अपन े शद म ा का वप यह ह 'दय क अन ुवृि बा उदार ,
एक लबी काया उम ु'और वय ं ा मनु से कहती ह-
munotes.in

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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
20 दया, माया, ममता लो आज मध ुरमा लो अगाध िवास ,
हमारा दय रन िनिध वछ , तुहारे िलये खुला ह पास
इस कार यहा ँ उिलिखत दया , माया, ममता, मधुरमा और अगाध िवास आिद दय क
ही व ृियाँ ह तथा दय स े सबध रखती ह | साथ ही इड़ा क े सांकेितक अथ म तो कोई
संदेह ही नह ह और वह ब ुिवाद क अित को जम द ेने वाली तक मयी ब ुि का तीक ह
तथा 'िबखरी अलक य तक जाल--|' म किव न े उसक े तीकामक वप का िच
अंिकत भी िकया ह । वय ं इड़ा मन ु से कहती ह 'जो बुि कह े, उसको न मानकर िफर
िकसकनर शरण जाय ' और मन ु भी उसक ओर स े सारवत द ेश क प ुनयवथा को
वीकार कर कहत े ह--
अवलब छोड़कर और का जब ब ुिवाद को अपनाया ,
म बढ़ा सहज , तो वय ं बुि को मानो आज यहा ँ पाया।
उ म ुख पा क े साथ-साथ गौण पा और घटनाओ ं म भी तीकामकता ह | यहाँ मनु
पु मानव नवीन मानवता का तीक ह और आक ुिलत िकलात आसुरी वृिय क े तीक ह ।
ा का पश ु अयंत िनरीह व शोिषत ाणी ह और व ृषभ को धम का ितिनिध कहा गया ह,
पर भोग क तीक सोमलता स े यु होन े के कारण व ृषभ को भोग यु धम का ितिनिध
मानना चािहए । सारवत नगर ाणमय कोप का तीक ह और सारवत नगर िनवासी मन ु
के अितचार पर उनका िवरोध करत े ह | अतः उह मन क सहकारी अय इिय का
तीक समझना चािहए । पशु य म कपट पूण यवहार होन े के कारण वह 'पाप' का तीक
ह और िलोक या िपुर का तीकाथ भाव लोक , कम लोकतथा ान लोक अथा त चेतना
क तीन व ृिय-भाववृि, कम वृि और ानव ृि स े ह । कामायनीकार न े यह भी प
कर िदया ह िक जब तक य े तीन अलग-अलग ह , अथात् मनुय क इछाए ँ कह ह , ान
कह और कम कह तब तक वह असफल और द ुखी रहता ह-
ान द ूर कुछिया िभन ह, इछा य हो प ूरी मन क
एक द ूसरे से न िमल सक े, यह िवडबना ह जीवन क
अत म िजस क ैलाश का उल ेख ह, उसे समरसता और उसस े सब उच भाव का
तीक माना जा सकता ह। मनु का कहना ह-
शािपत न यहा ँ ह कोई, तािपत पापी न यहा ँ ह ।
जीवन वस ुधा समतल ह, समरस ह जो िक जहा ँ ह ।
इस भावभ ूिम क ाि क े बाद मन ुय पूण हो जाता ह और अख ंड आनद क ाि होन े पर
मन भी स ंतु हो जाता ह । साद जी इस सबध म िलखत े ह िक-
वन वाय जागरण भम हो ,
इछा िया ान िमल लय थ े।
िदय अनाहत पर िननाद म ,
ाय ु मन ु बस तमय थ े ।
उ िव ेषण क े पात ् हम कामायनी क कथा स ंेप म इस कार द े सकत े ह- 'अबाध
संतुि से इिया ँ सांसारकता क े पंक म डूब जाती ह । पतन क े बाद मन को क ुछ होश
आता ह, िफर दय (ा) के संयोग स े उसम उसाह , िवास आिद आता ह, पर उसक munotes.in

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कामायनी म पक तव , भाषाश ैली और सदया नुभूित व क ृित िचण
21 आसुरी वृियाँ उसे िफर िगरान े क ताक म रहती ह । यिद उनक े सामन े वह झ ुका तो
अंततः दय क े उच भाव के मूय को वह पहचान नह पाता और उह छोड़कर ब ुि का
सहारा ल ेता ह । यहाँ उसका और भी पतन होता ह और िजन आस ुरी भाव न े उसको पितत
बनाने म ोसािहत िकया था , वे उसक े सवनाश क े िलए त ुत होकर सामन े आते ह ।वह
बहत द ुःखी होता ह, पर दय क े उचभाव िफर उसक सहायता करत े ह और अत म
आसुरी व ृिय एव ं सांसारकता म िल ब ुि आिद स े दूर हटकर दय (ा) के सहार े
वह जीवन क े यथाथ रहय को समझता ह और समरसता क उच भावभ ूिम पर पह ँचकर
आनद क ाि करता ह.... किव कुमार के प म यह भी कहना चाहता ह िक मनन
शीलता , दय और ब ुि के सामंजय स े मनुय पूण हो सकता ह । अथा त् साद जी क
ि म कुमार प ूण और आदश मानव ह ।
उपयु बात स े प ह िक सादजी न े भारतीय िकोण स े आज क े संत मानव क े िलए
इस प म रामबाण औषिध दान क ह । आज का मनोिव ान भी लगभग इसी िनकष पर
पहँचता िदखाई पड़ रहा ह । उसक े अनुसार आज का मानव 'वरित ' के रोग स े पीिड़त ह ।
उसे केवल यि का यान ह । वाथ अपनी सीमा को पार कर रहा ह । ऐसी िथित म जब
तक उसस े 'व'के भाव िनकल गे नह और जब तक वह अपना मनो वैािनक िवतार करक े
'पर' क ओर आक ृ न हग े, उसे मानिसक शा ंित न िमल ेगी।

२.३ कामायनी म सौदया नुभूित और क ृित-िचण
िवान न े सौदय को किवता का धान अ ंग माना ह | और, सय कहा जाय तो किवता
सौदय का ही म ूितमान प ह । कला का धान ग ुण सौदय ही माना जाता ह और वह
नूतन सौदय क स ृि भी करती ह । सौदय बा जगत और आय ंतरक जगत दोन म
पाया जाता ह । बा जगत वह जगत ह, जो ने आिद बाहरी इिय क े ारा जाना जा
सकता ह । िवचारप ूवक देखा जाय तो बा जगत का अनुभूत ान ही किव क े अंतजगत का
मूल आधार ह । किव जहाँ नारी क े अंग-यंग का बा सौदय वणन करत े ह, वहाँ उसक े
मानस क ेम एवं कणा आिद आय ंतरक भावनाओ ं का भी वण न करत े ह । एकमा
बा सौदय का ही वण न करन े वाले भी किव कह े जाते ह, परतु वे किव जो िक मनुय के
मानिसक सौदय का भी वण न करत े ह, उनसे कह अिधक े महाकिव मान े जाते ह ।
वातव म मानिसक सौदय भाव जगत का ही िवषय ह और 'कामायनी ' का भाव प
िनिववाद प स े पु ह । इस कार बा जगत का सौदय वणन करते समय म ुय तया
प सौदय को ही िवश ेष महव िदया जाता ह | पसौदय को भी दो वग म िवभ िकया
जाता ह—१-मानवीय प सौदय और २-ाकृितक प सौदय | इसम कोई स ंदेह नह
िक साद जी न े 'कामायनी ' म नारी और प ुष दोन क े प सौ दय का अ ंकन िकया ह पर,
नारी क े प सौदय के िचण म उह िवशेष सफलता ा हई ह । हम यहा ँ यह भी द ेख
सकत े ह िक साद जी ने प सौदय का िचण करत े समय सव था नवीन उपमान को
अपनाया ह । यही कारण ह िक उनक े प िचण म हम नवीनता क े ही दश न होत े ह:

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22 उदाहरणाथ -
िबखरी अलक य तक जाल
वह िव म ुकुट सा उवलतम शिश ख ंड सश था प भाल
दो प पलाश चषक स े ग द ेते अनुराग िवराग ढाल
गुंजरत मध ुप से मुकुल सश वह आनन िजसम भरा गान
वःथल पर एकधर े संसृित के सब िव ान- ान
था एक हाथ म कम-कलश वस ुधा जीवन रस सारिलए
दूसरा िवचार क े नभ को था मध ुर अभयअवलब िदए
िबली थी िग ुण तर ंगमयो , आलोक वसन िलपटा अराल
चरण म धी गित भरी ताल
इस सबध म डॉ. रामशंकर रसाल न े िलखा ह िक 'काय का सबध यिद रह सकता ह
और हो सकता ह तो क ृित से । काय म या तो बा क ृित का िचण रह ेगा अथवा मानव
कृित का ।' अतःय ेक ब ंधकार से यह आशा क जाती ह िक वह न क ेवल अपनी
अंति क स ूमता का परचय देता हआ बधगत पा क शील य ंजना व उनक अ ंतः
वृिय का िददश न कराए अिपत ु उसे कृित के िविवध प क े साथ मानव दय क े
रागामक सबध का भी िवत ृत िववरण द ेना चािहए ।
साद जी क 'कामायनी ' म भी क ृित िच क बहलता एव ं भयता ह और हम देखते ह िक
कामायनी क कथा का अिधका ंश यापार कृित ा ंगण म घिटत िगोचर होता ह तथा
कामायनी क े पाो का अिधका ंश जीवन क ृित क गोद म ही िवकिसत हआ ह । यहाँ हम
देखते ह िक 'कामायनी ' म कृित िचण क िविभन णािलय ज ैसे - आलंबन,उीपन ,
अलंकार, रहय भावना क अिभयि , मानवी करण, नीित और उपद ेश का मायम तथा
तीक आिद का सफल योग भी हआ ह | पर, इन परपरागत णािलय को अपनात े हए
भी साद जी के कृित िचण म नवीनता क े दशन होत े ह । उदाहरणाथ , यहाँ कृित के
उीपन प का यह िच दश नीय ह -
मधुमय बस ंत जीवन के वह अ ंतर क लहर म
कब आय े थे तुम चुपके से, रजनी क े िपछल े पहर म
जब िलखत े थे तुम सरस ह ँसी, अपनी फ ूल के अंचल म
अपना कलक ंठ िमलात े थे, झरन क े कोमल कलकल म
िनित आह ! वह था िकतना उलास कली क े वर म
आनद ितविन ग ूँजरही , जीवन िदगत के अबर म
लितका घ ूँघटसे िचतवन क वह क ुसुम दुध सी मध ु धारा
लािवत करती अिजर रही , था तुछ िव व ैभव सारा ।।

उ संग म साद जी क उिय म कह भी ऊहामकता नह ह । साथ ही कामायनी क े
कृित िचण म यापकता भी ह और कामायनीकार न े कृित के दुहरे वप का भी िचण
िकया ह । इस कार कामायनी म एक ओर तो क ृित के सुदर, वैभवशाली और ेरक िच
ह तो द ूसरी ओर क ृित के महािवनाशकारी भय ंकर प का भी दश न हम होता ह पर दोन
ही प म वाभािवकता ह । उदाहरणाथ ; िननिलिखत पंियाँ हमार े सम क ृित का
लंयकारी वप उपिथत करती ह -- munotes.in

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कामायनी म पक तव , भाषाश ैली और सदया नुभूित व क ृित िचण
23 हाहाकार ह आ दनमय , किठन क ुिलश होत े थे चूर
हये िदगंत विधर भीषण रव , बार-बार होता था ूर
िददाह स े धूम उठ े या जलधर उठ े िितज तट क े
सघन गगन म भीम कपन , झंझा के चलते झटक े
पंचभूत का भ ैरव िमण , शंपाओ ं के शकल िनपात
उका ल ेकर अमर शिया ं, खोज रही य सोया ात
उधर गरजती िसध ु लहरया ँ, कुिटल काल क े जाल सी
चली आ रही फ ेन उगलती , फन फ ैलाये याल सी
धंसती धरा धधकती वाला , वालाम ुिखय क े िनास
और स ंकुिचत मशः उसके अवयव का होता था ास
सबल तर ंगाघात स े उस, ु िसध ु के िवचिलत सी
यत महाकछप सी धरणी , ऊभ च ूभ थी िवकिसत सी
दूसरी ओर 'कामायनी ' म कृित हमार े सम जीवन क अिमट म ुकान का भी य
उपिथत हआ ह | कृित के इस स ुदर प को द ेख कर पाठक का मन म ुध हो उठता ह-
ऊषा स ुनहले तीरबरसती , जय लमी सी उिदत ह ई
उधर परािजत काल राि भी , जल म अतिनिहत ह ई
वह िववण मुख त क ृित का , आज लगा ह ँसने िफर स े
वषा बीती ह आ स ृि म शरद िवकास नय े िसर से
नव कोमल आलोक िबखरता , िहम स ंसृित पर भर अन ुराग
िसत सरोज पर ड़ाकरता , जैसे मधुमय िप ंग पराग
धीरे-धीरे िहम आछादन , हटने लगा धरातलस े
जगवनपितया ँ अलसाई म ुख धोती शीतल जल स े
ने िनमीलन करतीमानो क ृित ब ु लगी होन े
जलिध लहरय क अ ंगड़ाई , बार बार जाती सोन े
इससे प ह िक कामायनी म कृित के लय ंकारी और दयाही दोन ही प का सफल
िचण हआ ह | सचाई तो यह ह िक कामायनी का क ृित वण न सभी िय स े पूण सफल
ह । उसम कृित क े िभन -िभन प क े अितर साद जी क क ुछ िविश
िवचारधाराओ ं के दशन भी होते ह िजनक े कारण ही उसम इतनी सजीवता ह, इतना
आकष ण ह । यहाँ कृित िव स ुदरी क े प म हमार े समुख उपिथत होकर अपन े हाव-
भाव कट करती हई अपन े सौदय से हम मोिहत करती ह पर उस सौदय म कह भी
भौितकता क गध नह ह वरन् उसम हम उसके महानता क े दशन होत े ह | कृित के नाना
प का ऐसा भय िचण , उसके लय ंकारी य का इतना सजीव वण न शायद अय
दुलभ ह |
२.४ कामायनी क भाषा-शैली
कामायनी िनिव वाद प स े किव साद क ौढ़त म और सव े रचना ह तथा उसम किव
क कला का चरमोकष ह । आचाय नदद ुलारे बाजप ेयी का मानना ह िक 'सादजी क
काय शैली म नवीनता और उनक भाषा योग म पया यंजकता और काया नुपता ह | munotes.in

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24 थम बार कायोपय ु पदावली का योग कामाय नी म िकया गया ह ।' इस कार भाव प
क भा ँित कामायनी का कलाप भी यथ े सम ृ, उदा , गरमामय और भावशाली ह |
कामायनी क भाषा सरस , भावपूण एवं ांजल ह । वह भाव -भार-वािहनी ह । कामायनी को
काय क सवक ृ सीमा तक ल े जाने म समथ ह । भाव िचण क े िलए किव न े भावान ुप
यही शद चयन िकया ह । ऐसे शद क े चयन म सादजी न े ौढ़ता का परचय द ेकर
सुसंगिठत शद योजना का िवधान िकया ह । लजा सग तो इसका उक ृ उदाहरण ह ।
इसम कामायनीकार न े भावान ुकूल सरस , सरल एव ं सश शद का योग िकया ह, इन
शद म भाव को मूितमान करन े क अप ूव मता ह -
कोमल िकसलय क े अंचल म नह किलका य िछपती सी
गोधूली के धूिमल पट म दीपक क े वर म िदपती सी।
मंजुल वन को िवम ृित म मन का उमाद िनखरता य
सुरिभत लहर क छाया म बुले का िवभव िबखरता य
वैसी ही माया िलपटी अधर पर उ ंगली धर े हए।
माधव क े सरस क ुतूहल का आ ँख म पानी भर े हए ।
'कामायनी ' का शद िवधान भी उल ेखनीय ह और उसम शद का स ंह तसम , तव
और द ेशज-तीन ही तर पर िकया गया ह पर संया तसम शद क ही अिधक ह । यह
तसम शदावली भी तीन कार क ह | थम ह, दाशिनक तथा समरस , िचित, चेतन,
आनद , लीला, कला, उमीलन , काम, इछा, ेय, िवषमता , यत , पंिदत, भूमा,
िनयित , िनय, काल, नटराज विनप ुर आिद ऐस े ही शद ह । ितीय कार क े शद म
िवकंभक, अिभनय , अंक, अघम पा , रंगथल , य, दशक, िवदूषक आिद सािहय
शाीय शद ह जो कामायनी म यु हए ह । इसी कार कामायनी म तृतीय कार क े वे
तसम शद ह जो िहदी म अचिलत ह और ितिमगलो , योितरग ंग, या, ापद,
आवज नाएवम ् अलब ुषा आिद ऐस े ही शद ह । इस कार क े तसम शद कह -कही िल
भी जान पड़त े ह पर इनक स ंया बहत कम ह और साद जी न े ायः ऐस े ही तसम शद
का योग िकया ह जो सव चिलत ह ।
कामायानी म तव शद का भी बहत अिधक योग हआ ह । जैसे-िनबल (िनबल), सपना
(वन), नखत (न), रात(राि), तीखा(तीण ), पीर (पीड़ा), ान (ाण) परस (पश),
सांझ (संया) आिद । साथ ही 'कामायनी ' म पग, िठठोली , बुला, डीह, गेल, िझटका ,
ढोकर , मचल, सुआ, पुआल, अटका व, झीमना , बकना , बयार, दाँव, िहचक , बावला आिद
देशज शद का योग भी हआ ह और मध ुर, मधु, महा, िचर, िचित आिद शद को अय
शद क े आगे पीछे जोड़कर कामायनीकार न े चुर माा म नये शद य ुम का िनमा ण भी
िकया ह । इतना अवय ह िक कामायनी म 'अपप ' जैसा एकाध शद ब ंगला और दाग ,
घायल आिद क ुछ इन े िगने शद अरबी -फारसी क े िमल जात े ह पर कामायनी म िवदेशी
भाव नह क े समान ह । यहाँ यह मरणीय ह िक पूण एवम् अपूण पुन शद क योजना
भी कामायनी क भाषा को गितशील एवम ् भावी बनाने म सम िस हई ह और
'कामायनी ' म कहत े-कहते, दूर-दूर, धीरे-धीरे, ण-ण, हरी-भरी, ऊभच ूभ, आस-पास,
नक-झक, चहल-पहल आिद शद का योग च ुर माा म हआ ह । इसी कार कामायनी munotes.in

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कामायनी म पक तव , भाषाश ैली और सदया नुभूित व क ृित िचण
25 क भाषा को सरस जीव ंत और स ंवेदनशील बनान े म लोकोिय तथा म ुहावर का भी बहत
अिधक योग ह ।
सचाई तो यह िक 'कामायनी छायावाद का सव थम महाकाय ह और उसम छायावादी
काय क समत िवश ेषताय िवमान ह । सामाय तया छायावादी किवता म लािणकता ,
िचमयता , वयामकता और तीकामकता आिद िवश ेषताय आवयक मानी जाती ह
तथा य े सभी कामायनी म दशनीय ह । िचमयता तो कामायनी क भाषा म थान -थान पर
झलक उठती ह और शद िच तथा भाविच क े सुदर उदाहरण स े भरी पड़ी ह |
उदाहरण क े िलए िननिलिखत प ंिय को द ेख सकत े ह :
वोिचता क पहली र ेखा, अरी िव बन क याली
वाला म ुखी फोट क े भीषण थम कप सी मतवाली
हे अभाव क चपल बािलक े री ललाट कखलल ेखा
हरी भरी सी दौड़ ध ूप और जल साया कचल र ेखा
इस ह का क हलचल री तरल गरल क लघ ु लहरी
जरा अमर जीवन क और न , कुछ सुनने वाली बहरी
कामायनी म नाद धान या वयामक शद का भी च ुर माा म योग हआ ह और
कामायनी क वयामकता न े उसक े भाषा सौदय को िगुिणत कर िदया ह । इसी कार
कामायनी क भाषा म े सांकेितकता अथा त लािणकता भी ह और सप ूण लजा सग
कामायनी क भाषा क लािण कता का परचायक ह; उदाहरणाथ -
नीरव िनशीथ म लितका सी , तुम कौन आ रही हो बढ़ती
कोमल बाह फैलाये सी आिल ंगन का जाद ू पढ़ती।
िकन इजाल क े फूल स े लेकर स ुहाग कण राग भर े
िसर नीचा कर हो ग ूंथ रही , माला िजसस े मधुधार ढर े
कामायनी क भाषा म तीकामकता भी ह और किव साद न े तीक क सहायता स े कई
थल पर सजीव िच त ुत िकए ह । उदाहरणाथ ; कामसग क आरिभक प ंिय म
वसत यौवन का , रजनी का िपछला पहर क ै शौय का, मतवाली कोयल सौदय का और
किलया ँ ेम का तीक बन कर आय े ह । साथ ही 'िचता ' सग म आये हए क ुछ शद और
ेमािलंगन का िवलीन होना अथात् कुंज का ेमीजन स े शूय हो जाना , मूिछततान का
मौन होना अथा त गायक क े साथ-साथ स ंगीत विन का समा हो जाना आिद लयाथ क
तीित करात े ह । इसी कार कामायनी ' म अनेक ऐस े शद िमलत े ह जो िक एक द ूसरे के
तीक प म यु हए ह , जैसे यौवन क े िवकास क े िवकास क े िलए उषा क लाली , ेमी
के िलए मध ुप, िवरह यिथत क ृशगात क े िलए पतझड़ क स ूनी डाली और आपिय क े
िलए अ ंधकार क आ ँधी आिद । साथ ही कामायनी भाषा म मादकता , रमणीयता और
रागामकता नामक ग ुण भी ह तथा अिभधा , लणा एव ं यंजना नामक तीन शद शिय म
से लणा एव ं यंजना क धानता होत े हए भी कही -कह अिभधा का स ुदर योग होन े से
उि म सरलता और स ुबोधता क े दशन होत े ह ; जैसे-


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26 और सोचकर अपन े मन म जैसे हम ह बचे हए,
या आय और कोई हो जीवन लीला रच े हए
अिनहो अविश अन क ुछ कह द ूर रख आत े थे
होगा इसस े तृ अपरिचत समझ सहज स ुख पात े थे
भाषा क े तीन धान ग ुण क अिधकता सी ह पर कितपय था न म ओज क भी सा ह ।
अतः कामायनी क भाषा अ यत कोमल एव ं सुदर ही जान पड़ती ह । 'उसम कह भी ुित
कट शद का योग नह ह । सव एक मध ुरमा सी छाई रहती ह । कह तो वह चपल
नतक क भा ँित िथरकती हई आग े बढ़ती ह, तो कह बालक क त ुतले बोल क मधुरता
िलये िगोचर होता ह । इसी कार कामायानी म सहज रीित स े अलंकार का भी योग
हआ ह और किव साद न े अनुास, यमक, ेप, वीसा , उपमा, उेा, पक ,
पकाितशयोि , संदेह, िवरोधाभास , समासोि , उलेख, अथातरयास और ात
आिद िविवध अल ंकार क सम ुित योजना क े ारा कामायनी क े काय सौदय को
समृिशाली बना िदया यहा ँ यह मरणीय ह िक कामायनी म अलंकार क ेवल बा सौदय
क ही व ृि नह करत े बिक भावािभयि म भी सहायक हए ह और किव न े उनक े ारा
अनेक सूम एव ं भावप ूण िच को त ुत िकया ह । इस कार कार एक ओर तो उहन े
मूत के िलए अम ूत उपमान का योग िकया ह -
नव कोमल अवल ंब साथ म ॅ वय िकशोर उ ंगली पकड़ े
चला आ र हा मौन ध ैय सा अपनी माता को जकड़ े
तो दूसरी ओर अम ूत के िलए म ूत साय का चयन िकया ह -
मधुर चाँदनी सी ता जब फ ैली मूिछत मानस पर
तब अिभन ेमापद उसम अपना िच बना जाता
यिप कामायनी म अतीतव , युत संकृित, ायव , शद वायव , यथ पदव ,
किथतपदव , अमव और समा प ुनरात दोष आिद क ुछ दोष के भी दश न होत े ह पर
समवेत प स े िवचार करन े पर हम इसी िनकष प र पहँचते ह िक 'कामायनी ' क भाषा
अपने पूण उकष प म ही िदख पड़ती ह । इस कार कामायनी क भाषा अयत ौढ़
और सजग ह तथा एक महाकाय के उपय ु िजस कार क भाषा क अप ेा ह, कामायनी
क भाषा उसी कार क ह ।
िवषयवत ु के अनुप कामायनी म अनेक कार क श ैिलय का भी योग हआ ह; और
वणनामक , वगत कथन या आम आमसंपानमक नाटकय या स ंवादामक , भावामक ,
पदामक , िवचारामक , तीकामक एव ं आल ंकारक आिद शैिलय का शोभन प
'कामायनी ' म देखा जा सकता ह । इसम कोई स ंदेह नह िक य े सभी श ैिलयाँ पा क
मनःिथितया ँ, चारिक गरमा और वातावरण क समत िवश ेषताओ ं से संयु ह । यहाँ
यह भी यान म रखना होगा िक 'कामायनी ' म बध श ैली और गीत श ैली का भी सफल
एवं सुदर समवय भी िदख पड़ता ह और 'कामायनी ' का छद िवधान भी सराहनीय ह ।
इस कार कामायनी म एक ओर तो ताट ंक, वीर, पादाक ुलक, ृंगार, पमाला , रोला, सार
और सरस आिद परपरागत छद का सफल योग हआ ह, तो दूसरी ओर किव साद न े
इड़ा, ताटंक और आनद या आ ँसू आिद विनिम त छद का भी योग िकया ह । साथ ही munotes.in

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कामायनी म पक तव , भाषाश ैली और सदया नुभूित व क ृित िचण
27 कामायनीकार न े कुछ शा समत छद क े चरण को परपर िमलाकर नय े छद का भी
िनमाण िकया ह और इह िमित छद कहा जा सकता ह । उदाहरणाथ , ईया सग म
पादाक ुलक और पित छद का सिमित प िवमान ह तथा दश न सग म पित
छद का सिमण ह । उ िवव ेचन के आधार पर िनकष प म यहाँ यह कहा जा सकता
ह िक भाषा श ैली क ि स े कामायनी िनिव वाद प स े उकृ कायक ृित ह और िवचारक
उसके सबध म यही मत य करत े ह । 'कामायनी ' म कलाप क े अतगत अन ेक कार
क सफल श ैिलय का योग िकया गया ह, शद िवधान का सार समकालीन अय सभी
काय क ृितय स े कह ऊ ँचा ह, औदाय म ंिडत ह, तीक पित क एक तार योजना इसम
क गई ह, दयाही िबब का अत ुलकोष इसम िछपा पड़ा ह, भाषा का सम ंिजत प म
गरमामय सौदय उािटत िकया गया ह और मनोिवान एव ं दशन के सहयोग स े एक
महान वात ु िशप तुत िकया गया ह |

२.५ सारांश
कामायनी महाकाय ह और महाकाय म पक तव िविश होत े ह वह सदया नुभूित और
कृित िचण का वण न कर पाठक क िच को सवा गीण प स े बढाना किव का कत य
बन जाता ह | जयशंकर साद भाषा क े महारथी थ े उनक े काय म भाषा स ुसंगठीत, सरल
और सश शद क े साथ ग ुँथी गई ह जो भाषा म ुितमान बनात े ह, इन सभी िवश ेषताओ ं को
िवाथ आसानी स े इस इकाई क े अय यन स े समझ सक गे|

२.६ दीघरी
१) कामायनी म पक तव का क ुशल वण न हआ ह िस किजए |
२) कामायनी क भाषा श ैली पार अपन े िवचार त ुत किजए |
३) कामायनी क सदया भूित और क ृित िचण पर अपन े िवचार िलिखए |
२.७ लघुरी
१) कामायनी महाकाय म बुी का तीक कौन ह ?
उर – इड़ा
२) कामायनी म सांड िकसका तीक ह |
उर - धम
३) सािहय शा म पक क े िकतन े अथ वीकार िकय े गये ह?
उर - तीन अथ
४) ा दय क रागामक भावनाओ ं से यु होन े के कारण िकसका तीक मनी गयी
ह?
उर - दय का
५) कामायनी म प सदय को िकतन े भागो म िवभ िकया गया ह ?
उर - दो-एक मानवीय प सदय , दो-ाकृितक प सदय munotes.in

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28
२.८ संदभ पुतके
१) किव साद – डॉ. आचाय दुगाशंकर िम , काशन क , लखनऊ
२) कामायनी म काय , संकृित और दश न – डॉ. ारका साद सस ेना, िवनोद प ुतक
मंिदर, आगरा , चतुथ संकरण – 1971
३) कामायनी क काय – वृि – डॉ. कामेर िस ंह, पुतक स ंथान , कानप ुर, वष-
1973
४) साद का काय - डॉ. ेमशंकर, भारती भडार , इलाहाबाद , वष- 1970
५) कामायनी ेरणा और परपाक – डॉ. रमाशंकर ितवारी , थम , कानप ुर, थम
संकरण – 1973
६) कामायनी एक िवव ेचन- डॉ.देशराज िस ंह एवं सुरेश अवाल , अशोक काशन , िदली ,
संकरण – 2015
७) िहदी सािहय : युग और व ृियाँ – डॉ. िशवकुमार शमा , अशोक काशन , िदली ,
संकरण - 2021 – 2022
८) आधुिनक िहदी किवता म काय िच ंतन, डॉ. कणाश ंकर पाड ेय, वािलटी ब ुक
पिलशस एवं िडीय ूटस, कानप ुर
९) हमारे िय किव और ल ेखक, डॉ. राजेर साद चत ुवदी एव ं राकेश, काशन क ,
लखनऊ

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29 ३
‘कामायनी ’ के मुख पा
इकाई क पर ेखा :
३.० उेय
३.१ तावना
३.२ कामायनी क े मुख पा
३.२.१ मनु
३.२.२ ा
३.२.३ इड़ा
३.२.४ मानव
३.३ सारांश
३.४ दीघरी
३.५ लघुरीय
३.६ संदभ पुतक

३.० उेय
इस इकाई का म ूल उ ेय छायावाद क े मुख किव जयश ंकर साद क े महाकाय क े मुख
पा क े चर स े छा को अवगत कराना ह | इस इकाई क े अंतगत छा कामायनी क े
मुख पा मनु, ा, इडा. और मानव के सबध म िवत ृत जानकारी ा कर सक गे |

३.१ तावना
कामायनी क े चर िचण म साद जी न े इितहास ,दशन और मनोिवान का सहारा िलया
ह | इस महाकाय म अपन े पा को एक यापक धरातल पर रख कर उहन े उनम े अपने
िचंतन को समािहत कर िदया | िकसी भी रचना क े पा िकसी आदश तक जान े के िलए एक
मायम का काय करत े ह | यहाँ हम कामायनी क े मुख पा मन ु, ा, इड़ा और मानव क े
चर का स ंि अययन कर गे |

३.२ कामायनी के मुख पा
इस इकाई क े अंतगत छायावाद किवय म मुख कवी जयश ंकर साद क े महाकाय
कामायनी क े मुख पा के चर और उनक े मनोिवािनक प पर काश डाला गया ह |
इन पा म मनु, ा, इडा, और मानव मुख ह |



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30 ३.२.१ मनु
'कामायनी ' क समत कथा मन ु के चार ओर घ ूमती िदखाई द ेती ह । वे इस महाकाय क े
के िवदु तीत होत े ह । काय का आरभ और अत उह क े ारा होता ह । मनु क
चर-सृि म साद न े यथाथ को अिधक अपनाया ह | मनु एक साधारण मानव ह, जो
जीवन क े समत स ंघष को झ ेलता हआ अत म आनद तक पह ँच जाता ह । वह वासना ,
ईया क वाभािवक द ुबलताओ ं से िसत ह, िकतु आगे बढ़न े क उसक आका ंा कभी
नह मरती । काय म नायक क े चर -िचण क चली आती हई प रपरा म ायः आदश
और महान ता का ही हण अिधक हआ ह । संकृत के आचाय न े नायक को िवश ेष महव
िदया ह । आचाय िवनाथ न े 'सािहय -दपण' म नायक क े िलए िकसी स ुर, कुलीन िय का
होना अिनवाय माना , िजसम धीरोदा क े समत ग ुण ह । नायक को अिधकािधक आदश
और महानप म िचित करन े वाली इस णाली को 'कामायनी ' म नह वीकार िकया
गया ।
कामायनी ' का मनु सािहय म बढ़ती हई मा नवीय भावना स े अनुािणत ह । छायावादी
किवय न े पृवी और मानव क े वाभािवक प को अपन े काय म थान िदया िजसम
अछी , बुरी सभी भावनाओ ं का समाव ेश ह । जीवन क े सपूण सय का हण उसन े िकया
जो बदलत े हए य ुग के अनुप ह, और िजसम वाभािवक उथा न-पतन समािव ह ।
कामायनी म मानवता का तीक मन ु आध ुिनक स ंघषशील यि का तीक ह । अपनी
आतरक भावनाओ ं से लेकर जीवन क भौितक समयाओ ं तक स े वह य ु करता ह ।
मानव जीवन के लगभग सभी उसके सामन े आत े ह येक उसक े सम ुख
आता ह । एक ओर यिद मन म काम, वासना और ईया के भाव उठत े ह, तो साथ ही वह
जीवन क पहेली को भी स ुलझान े म यनशील ह । मानव क सप ूण िजासा स े वह
रहयमय स ंसार को द ेखता ह । आतरक द ुबलताओ ं को ल ेकर भी वह ऊपर उठना
चाहता ह । मनोव ैािनक आधार पर िचित मन ु का मानिसक जीवन का शात सय
ह । इस ि से मनु अपन े ऐितहािसक कल ेवर म भी िनतात आध ुिनक और नवीन ह । एक
ि स े मनु को काय का िनतात उछ ृंखल नायक कहा जा सकता ह, िकतु साद न े
मानवीयकरण क े साथ ही उसका उदाीक रण भी कर िलया ह । संकृत के बधकाय म
वा जगत म देव दानव स ंघष का िचण िकया जाता था । देव क िवजय और दानव क
पराजय िदखाकर आदश क थापना सभी काय म क गयी ह । संकृत का यह वा
वप 'कामायनी ' के किव न े अतम ुखी कर िदया ह । देव-दानव स ंघष वयम ् मनु के
अतरद ेश म चल रहा ह ।
मनु के मन म एक चलता रहता ह और अत म ा क े ारा उसका समवय ही
आनद का स ृजन करता ह । मानव का प ूण ितप होन े के कारण उसम एक सामाय
यि क समत वृियाँ िनिहत ह । 'िचता ' से िनराश मन ु से लेकर आनद क े अितम
उेय तक पह ँचने वाले मनु का िया यापार मानव क े अनुप ह । जीवन क े थम चरण
म लय को द ेखकर नायक मन ु को भारी िनराशा होती ह । वे अतीत क मृितय म उलझत े
ह । धीर े-धीरे जीवन क कामना बल होती ह । नारी का वेश काम , वासना का उदय
करता ह । ईया , संघष आिद क भावनाए ँ भी वाभािवक ह । अत म वह मानव क े चरम
लय आनद को पाता ह । मानव -मन म उठन े वाले भाव और िवचार का अ ंकन मन ु क
चर सृि ारा साद न े ि कया ह । अपन े ेमी प म वह सौदय वादी ह । ा क munotes.in

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‘कामायनी ’ के मुख प
31 परािश पर वह थम बार ही आकिष त हो गया था । उसन े उसी ण अपना दय खोलकर
रख िदया । िनराश यि को साधारण न ेह सबल िमलत े ही नवजीवन होता ह । केवल
वासना और त ृि तक सीिमत रह जान े वाला म नु सुख और शाित क खोज म भागता ह ।
िकतु वातिवक शाित पलायन म नह, संघष म ह । इड़ा क े प पर आक ृ हो जान ेवाला
सौदय वादी मन ु अपनी त ृि चाहता ह । पराजय उस े वातिवकता का बोध कराती ह । िफर
वह ा का अनय उपासक बन जाता ह । अपनी द ुबलता का ान उस े रहता ह । यह
आमबोध और पााप उस े उच भाव -भूिम पर ल े जाने म सहायक होत े ह । इड़ा स े वह
कहता ह :
देश बसाया पर उजड़ा ह सूना मानस द ेश यहा ँ
िनयामक प म मनु एक ण क े िलए अपना उरदाियव भ ूल जात े ह । उनक
उछृंखलता और भौितक व ृि के फलवप स ंघष होता ह । पौष के मद और अह ंकार
से वे परािजत होत े ह । आरभ स े ही उनक आका ंाएँ ऊपर उठन े को तीत होती ह ,
िकतु परिथितया ँ माग म यवधान बनकर आती ह । कामायनी का मनु वग क कामना
नह करता , वह पृवी पर ही समरसता और आनद को ा करता ह । देवव क अप ूणता
को जान ल ेने वाला यि अब उस भोगिवलास क कामना नह करता । उसक े दय म
जीवन क े ित आरभ स े ही िजासा क भावना थी ।
ा स े थम िमलन क े समय वह अयिधक िनराश था , यिक उसे अपने का उर
न िमला था । उसक जड़ता के मूल म हेिलकाए ँ थ । 'जीवन ' ही उसक े समुख था ।
ा स े जीवन का सय जानकर मनु कम म वृ हए । ईया के कारण उहन े उसका
परयाग िकया । इस अवसर पर भी 'सुख नभ ' म िवचरन े क उनक काम ना बनी हई थी ।
इड़ा से भी उहन े 'जीवन ' का मोल ' पूछा था । जीवन क ह ेिलका को स ुलझान े म वे सदा
यनशील िदखाई द ेते ह । अपन े इस यास म उह अनेक क हए और अत म उहन े
समरसता का महाम भावी मानवता को बताया । ाण म रहने वाली अ तृि मन ु को बड़ी
दूर तक ल े गयी । जीवन क े िजस महान सय को उहन े किठन साधना क े पात ् ा
िकया, उसे मानवता क े कयाण म िनयोिजत कर िदया । नायक क महानता इसी म िनिहत
ह िक अत म सपूण सारवत द ेश उनक े दशनाथ कैलास क घाटी म पहँचता ह, और
केवल दश नमा स े ही आनिदत हो उठता ह । उनका अितम वप भारतीय ऋिष तथा
धीरोदा नायक क भा ँित ह ।
मनु क चर -सृि म उनक े ऐितहािसक और पौरािणक वप का भी यान र खा गया ।
वेद-पुराण क े मनु ऋिष, यकता , थम मानव क े प म ितित ह । वे देवता त ुय मान े
गये ह । 'कामायनी ' म मनु के ऐितहािसक वप क भी रा हई ह । िकंिचत कपना के
अितर किव न े उनक े समत प को हण कर िलया । मनु के मन का िवेषण तथा
उनक वाभािवक व ृिय का िनपण साद जी क कपना ह िजसस े उनका प
अिधक मानवीय हो गया । 'कामायनी ' के मनु आदश क अपेा उदा अिधक ह । उनका
नायकव मानवीय ह । उनक े अतरतम क भावना , कामना और वासना येक मानव म
उठती ह । उनका अितम लय आनद भी अिधका ंश का उेय होता ह । साद न े मनु का
उदाीकरण िकया ह । ेय, ेय; आदश यथाथ के समवय स े उनक चर स ृि हई ।
कामायनी मनु म िया -शि ह जो उह गितमान करती रहती ह। यह शि कभी -कभी munotes.in

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32 अनुिचत काय म लग जाती ह, िकतु अत म समीकरण उिचत िदशा म होता ह । उनक
इधर-उधर िबखरी हई शिया ँ आनद म िनयोिजत हो जाती ह । मनु के चर -िनमाण म
साद क ि बहम ुखी थी ।
कामायनी म मनु के प का अ ंकन करन े म साद जी क ि यापक रही ह । भारतीय
परपरा म कृितपा नारी प ुष के पीछे भागती ह । िकतु 'कामायनी ' का मन ु एक सच े
मानव क भा ँित ा क े ित अपनी सप ूण कृतता कट करता ह । देिव, मंगलमिय
आिद अन ेक सबोधन उसक े िलए य ु करता ह और एक बार उस े पाकर प ुनः भयावन े
अधकार म खो नह द ेना चाहता । मनु के चर म साद अन ेक व प को सिनिहत कर
िदया ह भावुक, िजास ु, अहेरी, यकता , णयी , िवलासी , ईयालु, िनयामक , योा आिद
अनेक प म कामायनी क े मनु आत े ह । सप ूण मानव का िचण उनक े ारा करना
'कामायनी ' का लय ह । मनु क आरिभक कामनाओ ं से ही वाभािव कता का आभास
िमलन े लगता । चार ओर िबखरी हई जलरािश द ेखकर उसका मन िचता और शोक स े भर
जाता ह । अभी -अभी वह द ेवव का िवनाश द ेख चुका ह, उसक भी याद आ जाती ह ।
जीवन क े ित मोह होत े ही िकसी साथी क इछा जाग ृत हो जाती ह
कब तक और अक ेले? कह दो
हे मेरे जीवन बोलो ?
िकसे सुनाऊँ कथा ? कहो मत ,
अपनी िनिध न यथ खोलो।
मनु क समयाओ ं म आधुिनकता ह । अनेक सामियक का समाहार उनके ारा त ुत
िकया गया । अपन े एकाक जीवन स े लेकर पनी , कुटुब, राय, सृि तक क े प मन ु के
समुख मशः आत े ह । एक नेता क भा ँित वे सावभौिमकता का स ंदेश अत म समत
सारवत िनवािसय को द ेते ह । वाभािवक द ुबलताओ ं के साथ ही साद न े उनम पौष
और शि को सिनिहत कर िदया , िजसस े वे आकष ण का के बन जात े ह । ा न े
थम परचय के समय उह 'तरंग से फक मिण ' कहकर सबोिधत िकया था | वह
आजीवन उह िनकट रखने का यन करती रही । इड़ा अपनी ब ुिवादी व ृिय क े होते
हए भी मन ु पर न ेह रखती ह । आकष क यिव क े अितर मन ु क महानता का
परचायक ह, उनका । यह पााप ही उह सतत उ कष क ओर ल े जाने म सहायक
हआ। 'कामायनी ' के पृ मन ु के चर को पग -पग पर खोलत े रहते ह । सव उनक छाया
डोलती रहती ह । मनु के यिव का िनमा ण करन े म साद न े एक यापक आधार को
हण िकया । उनका िचा ंकन अन ेक रेखाओ ं से हआ ह । मनु के यिव म समि ,
सामाय का िनपण िकया गया । मनु मानव जीवन क सप ूण इकाई बनकर 'कामायनी ' म
तुत होत े ह । शि -समिवत होन े के कारण ही जब वह अपन े मत का ितपादन करन े
लगते ह तब उनक े िलए सय क अवह ेलना करना किठन हो जाता ह । ईया के उदय होन े
पर वह ा से कहत े ह :
देखा या त ुमने कभी नह
वगय स ुख पर लय न ृय?
िफर नाश और िचरिना ह
तब इतना य िवास सय ? munotes.in

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‘कामायनी ’ के मुख प
33 मनु क द ुबलताए ँ भी उह िनन ेणी म नह पह ँचात ह बिक उह सीिढ़य पर चढ़ कर
वे आगे बढ़ते ह | वतुतः कामायनी क े मनु आधुिनक मानव ह |
३.२.२ ा
कामायनी म ा क चर -सृि नारी क े सवक ृ वप म क गयी ह । ऐितहािसक एव ं
पौरािणक ि स े भारतीय थ म भी ा अयत भय और कयाणकारी प ा
होता ह । काम क प ुी होन े के कारण वह कामायनी नाम स े अिभिहत ह । उसन े मनु को जो
अपना परचय िदया , उसी स े ात होता ह िक वह गधव देश क िनवािसनी ह और उस े
लिलत कलाओ ं म िच ह । इसी अवसर पर 'दय सा क े सुदर, सय' को खोजन े का
उसका क ुतूहल भी कट हो जाता ह । कामायनी को साद जी ने समत आतरक ग ुण
से िवभूिषत कर िदया । वह उनक सव म नारी कपना ह । इसका एक उदाहरण वहा ँ भी
देख सकत े ह जब आमसमप ण के समय ा मन ु से कहती ह :
दया, माया, समता लो आज
मधुरमा लो , अगाध िवास
हमारा दय रन िनिध वछ
तुहारे िलये खुला ह पास।
एक साथ इतन े मानवीय ग ुण स े समिवत नारी आिद स े अत तक मन ु का पथ दश न
करती ह । दया और ममता क े कारण ही उसन े वयं को मन ु के सम समिप त िकया था ।
इस समप ण म यिगत ेम क अप ेा एक लोक मंगल, सावभौिमक कयाण क भावना
थी । सृि से िवकास क भावना से ेरत होकर कामायनी न े मनु को वरण िकया । इसक े
बाद मानवता क े तीक मन ु क समत जड़ता और िनराशा को वह हर ल ेती ह । जीवन क े
िजस जाग ृत आशावाद और कम का सद ेश उसन े उह िदया वह गीता क े कमवाद क भाँित
तीत होता ह । ा अपना सव व समिप त कर मन ु से कहती ह –
और यह या त ुम सुनते नह
िवधाता का म ंगल वरदान
शिशाली हो िवजयी बनो
िव म गूंज रहा जय गान।
सृि और जीवन का रहयोाटन करत े हए उसन े कहा : "केवल तप ही जीवन का सय
नह, वह तो एक कण , ीण, दीन अवसाद मा ह । नूतनता म ही आनद ह । कृित के
वैभव स े परप ूण समत भ ूखंड भोग क े िलए ह ।"
साद जी ारा रिचत 'कामायनी ' क ा एक महान ् चेतना तथा शिप ह । सप ूण
कथानक को वही गितमान करती ह, तथा समत स ुख और आनद का स ृजन उसी क े ारा
हआ ह | आरभ म वह मन ु को कम म िनयोिजत करक े काम क े अवसर पर उनक
िहंसामक व ृिय को रोकन े का भरसक यन करती ह । मानवता क े आिदप ुष को सदा
उच आदश क ओर ल े जाना उसका लय ह । अत म अपनी पिवता और िना क े
कारण वह िवजय भी ा करती ह । इस सफलता क े मूल म िनकाम कम तथा याग क
भावना िनिहत ह । केवल अपन े सुख और त ृि के िलए नह , वरन् दया और कणा स े ेरत
होकर वह काय करती ह । वह स ंसृित क ब ेिल को िवकिसत , पलिवत और पुिपत करन े munotes.in

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34 क कामना रखती ह । उसक े ेम म यापकव अिधक ह । पशु-पी तक को वह िकसी
कार का क नह द ेना चाहती । मनु के मन म इसी कारण ईया का उदय होता ह िक
कामायनी क े ेम पर उनका एकािधपय नह रहा । ा सदा अपन े यिव का िवकास
करती चली जाती ह । अतम सारवत नगर क े िनवासी उसक े अपन े हो जात े ह । इड़ा स े
िकसी कार क ईया उसे नह होती । यही नह , वह वयम ् अपन े पु मानव को उसक े
संरण म छोड़ जाती ह ।
ा क े अभाव म मनु का जीवन क ेवल श ूय रह जाता ह । कम-माग म मानवता क े िवकास
के िलए िनयोिजत कर , िकलात -आकुिल से उह बचान े का यन करती ह । ईया वश जब
मनु उसे छोड़कर चल े जाते ह, तब वह िनराश नह होती बिक एक बार उह पुनः खोजन े
का यास करती ह । सारवत द ेश म मुमूष मनु को पाकर उस े अयिधक आा द होता
ह। मनु जब पुनः अपन े मानिसक झ ंझावात म उसे छोड़कर चल द ेते ह, तब भी वह व यं पर
िवास नह खो द ेती । िततली क भा ँित उस े अपन े ेम म आथा ह । वह इड़ा स े कहती ह :
म अपन े मनु को खोज चली
सरता म नग या क ुंज गली
वह भोला इतना नह छली
िमल जायेगा, हँ ेम पली।
ा क ि अयत यापक ह । वह 'सवमंगला' ह । मनु के यिगत ेम म पागल हो
जाने पर उसका ेम साधारण रोमािटक कोिट का हो जाता , िकतु उसका न ेह आदश
प म अंिकत ह । िमलन क े ण म केवल भोगिवलास क कामना नह रहती और न ही
िवयोग क कातरता म पराजय मानन े को त ैयार होती ह । उसका चर सव संतुिलत ह,
जो उस े दुःख म भी दन स े नह भर द ेता । यावहारक जगत म वह एक क ुशल ग ृिहणी क े
प म िचित ह । आन े वाले भावी मानव क े िलए वह ब ेतसी लता का झ ूला डाल द ेती ह ।
एक स ुदर क ुटीर का उसन े िनमाण िकया और तकली कातकर ऊनी पया ँ भी बनाय ।
गृहलमी ' के इस ग ृहिवधान पर वयम ् मनु आय चिकत रह जाते ह । भारतीय नारी जीवन
क पूणता मात ृव म मानी गई ह जब िक वह ग ृहलमी पद को साथ क करती ह । साद
'कामायनी ' क ा को अत म इसी उदा वप स े समिवत कर द ेते ह । भावी
मानवता का िवकास करन े वाला मानव उसी क न ेह-छाया म िवकिसत होता ह । उसका
मातृव ही उसक प ूणता ह । मनु वयं कहते ह :
तुम देिव! आह िकतनीउदार
यह मात ृ मूितह िनिवकार
अपनी वा सय भावना को ा पश ु-पी तक सारत कर द ेती ह । एक ण क े िलए भी
उसक मनोव ृि संकुिचत नह होती । इड़ा, मनु सभी उसक े क का कारण होकर भी न ेह
क वत ु बने रहते ह । वह इड़ा क े वातिवक मूय को जानकर ही उसस े रानीित का
संचालन करन े के िलए कहती ह । राजनीित क े े म वह शासक बनकर िकसी को भी क
न देने के िलए कह जाती ह । सप ूण मानवता क े ित उसक ममतामयी , समान ि बनी
रहती ह । साधारण क ुटुब स े लेकर राय और सम स ृि तक उसका सार द ेखा जा
सकता ह । इछा , ान और िया क पर ेखा समझाकर अत म उनका समवयकर munotes.in

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‘कामायनी ’ के मुख प
35 कामायनी अपन े जीवन दश न के सवोक ृ वप को कट कर देती ह । जीवन क े चरम
उेय आनद का स ृजन वही करती ह ।
आतरक ग ुण स े िवभूिषत होन े के साथ ही कामायनी अपन े शारीरक सौदय म भी
अितीय ह । उसक परािश मन को इजाल क भा ँित तीत हई । उसक े वर म मरी
का मध ुर गुंजन ह । वह िनय नवयौवना ह। । साद जी ने कामायनी म सौदय को साकार
कर िदया ह । उसक इस छिव क े थम दश न म ही मन ु उसक े भ बन गए । वासना के
अवसर पर इसी 'छिवभार ' से दबकर वह बरबस समपण कर द ेता ह । िवरानी ', सुदरी
नारी, जगत क मान , कामायनी उस े सुकुमारता को रय म ूित तीत होन े लगती ह । ा
का प -यौवन लजा क े अवसर पर समत म ृदुता और स ूमता को ल ेकर त ुत होता ह ।
भारती य सौदया कन म लजा का िवश ेष महव ह । लजा नारी के सौदय का आभ ूषण
ह । ा क े लजागत सौदया कन म साद जी ने कपना का सहारा िलया ह | थम
परचय क े समय उसक े अधर पर हास क एक ीण र ेखा आकर रह जाती ह । वासना म
पलक िगर जाती ह ; नािसका क नोक झ ुक जाती ह । मधुर ड़ा से उसका मन भर जाता
ह । लजा स े कण, कपोल भी लिलत हो उठते ह । इस अवसर पर वय ं अपनी मनोदशा
का िचण करती हई कामायनी कहती ह, िक 'मेरा अंग-यंग रोमा ंिचत हो उठता ह । मेरा
मन अनायास ढीला हो जाता ह । मेरी आ ँख म नेह क ब ूंद छलक आती ह । म बरबस
िकसी क े बाहपाश म उलझ जाती ह ँ ।' लजा सौदय क रा करती ह । उसके चर -
िचण म साद जी का िकोण अिधक उदा रहा ह । लजावती नारी क स ुदरता
लेकर भी वह क ेवल नाियका बनकर नह रह गयी । कामायनी क े शारीरक सौदय का
िचण करत े हए साद न े उदा उपमाओ ं का योग िकया , िजसस े उसका आतरक व ैभव
भी कट हो जाता ह । उसका प कयाणकारी ह:
िनय यौवन छिव स े ही दी
िव क कण कामना म ूित
पश के आकष णसे पूण
कट करती य जड़ म फूित
साद क कामायनी जीवन क सप ूण शोभा से समिवत ह । उसक े पास अपार ‘सौदय
जलिध ' ह । इसम से केवल अपना गरल पा भरन े के कारण ही मन ु को अन ेक क हए ।
आतरक और वा दोन ि स े ा अयत स ुदर ह । उसक े दया, मा, शील आिद
गुण उसे काय क े सवक ृ चर प म त ुत करत े ह । मनु अितम समय म ा क
सहायता स े उच भाव भ ूिम पर पह ँच जात े ह । वह समत कथानक क याया -सी करती
चलती ह।
कामायनी क चर-सृि म साद जी ने समरसता और आनद क पर ेखा का यान
रखा ह । वातव म ा समरसता और आनद का ही उदा वप ह । जीवन म सदा
वह समवय और सत ुलन ि को ल ेकर आग े बढ़ती ह। एक ओर यिद वह मन ु को कम का
संदेश देती ह, तो साथ ही िहंसामक कम क े िलए रो कती भी ह । कम के िवषय म उसक
धारणा िनतात यापक ह। यिगत सुख के िलए अय को क द ेना उिचत नह । वह
'बहजन िहताय , बहजन सुखाय' का िसात मानती ह :
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36 और को ह ँसते देखो मन ु
हँसो और स ुख पाओ
अपने सुख को िवत ृत कर लो
सब को स ुखी बनाओ
िजस याग और दया का स ंदेश वह सभी को द ेती ह, उसी का पालन भी जीवन म उसन े
िकया । आजीवन वह याग करती रही । वह बिलदान स े ही दूसर का िहत करती ह । सुख,
दुख; आशा, िनराशा ; जय, पराजय म सव उसक सतुिलत ि रहती ह । समरसता
उसका म ूल म ह । आनद वाद क अिधाी प म वह व ेद क 'ानाम ऋिषका ' के
समीप आ जाती ह । मानव क े पूरक प म वह आध ुिनक नारी क भा ँित तीत होती ह ।
साद न े कामायनी का चर -िचण अयत उदा और आदश वप म त ुत िकया ।
ा 'पूण आमिवासमयी ' ह । िनवद के अवसर पर मन ु कृतता स े भर जात े ह । वे ा
से कहते ह :
दय बन रहा था सीपी सा
तुम वाती क ब ूंद बनी
मानस शतदल झ ूम उठा जब
तुम उसम मकरद बनी।
जीवन क े सूखे पतझर म ा न े हरयाली भर दी थी । ा क े संगीत म जग-मंगल का
वर ह । वह आशा क े आलोक िकरण क भा ँित ह । मनु ने उसी स े हँस-हँस कर िव का
खेल खेलना सीखा । साद न े मानवता क े तीक क े समत पौष को कामायनी क े चरण
पर िवनत कर िदया ह -
िकतना ह उपकार त ुहारा
आित म ेरा णय ह आ
िकतना आभारी ह ँ इतना
संवेदनमय दय ह आ
अपार मध ु से भरी ा क े समुख मन ु झुक जात े ह। काय का नायक नाियका क े आय म
पलता ह । जब कामायनी मन ु को द ूसरी बार खोजन े के िलए चलती ह तब भी उसक े दय म
अमर िवास ह । इस बार ा को पाकर मन ु उसे 'िनिवकार', 'मातृमूित' और 'सवमंगले' से
सबोिधत करत े ह । मनु क भा ँित इड़ा भी उसक े महव को वीकार कर ल ेती ह । वह
मायाचना करन े लगती ह । काय म ा का यिव सभी क े आकष ण का के बना
हआ ह । कामायनी क ा 'कयाण -भूिम', 'अमृतधाम ' ह ।
अपने उदा प क े आधार पर ा 'कामायनी ' क म ुख नाियका प म आयी ह, जो
नायक को भी अपनी महानता स े दबा देती ह । उसक े यिव क े समुख नायक मन ु कुछ
धूिमल पड़ जात े ह । उनक े जीवन क समत स ुख-शाित का म ूलाधार ही नाियका
कामायनी बन गयी ह । कथानक और नायक सभी पर उसक े महान ् यिव क छाया ह ।
िहदी क सािहियक परपरा म कामायनी का यह उदा , महान् िचांकन एक नवीन योग
ह । नायक क सहचरी बनकर आन े वाली नाियका स े ा का वप िभन ह । वह नायक
के उदा प को व यं पा गयी ह । साद जी ने ा क चर -सृि म भारतीय मात ृव
कपना तथा बौ दशन क कणामयी नारी स े भी ेरणा हण क । उस े अयिधक munotes.in

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‘कामायनी ’ के मुख प
37 समान और आदर किव न े िदया और काय का नामकरण भी उसी क े नाम पर िकया ।
दय क समत उदार व ृियाँ उसम संहीत ह । यि -समाज , अहं-इदं, जड़-चेतन का
वह समवय करती चलती ह । वयम ् काम गोजा होन े के कारण काम का वातिवक
वप भी वही तुत कर सकती ह । साद क े सपूण सािहय म ा सवक ृ प म
िचित हई ह ।
३.२.३ इड़ा
कामायनी म ‘इड़ा’ का चरा ंकन ब ुिवािदनी के प म हआ ह । आरभ म इड़ा का जो
िच 'कामायनी ' म त ुत िकया गया , उसस े उसक े बुिवादी वप का आभास िमलता
ह । तकजाल क भा ँित िबखरी अलक े, शिशख ंड-सा प भाल खर बुि के परचायक ह
। थम परचय क े समय ही वह मन ु से कह द ेती ह िक बुि क बात न मानकर मन ुय और
िकसक शरण जाय ेगा । सप ूण ऐय से भरी क ृित के रहय को खोलकर उसका उपभोग
करना ही ेयकर ह । िवान स े जड़ता म चेतनता भरी जा सकती ह । उसक ब ुिजीवी
वृियाँ 'चलने क झक ' म रहती ह, उन पर िकसी कार का िनयण नह । वह स ुदर
आलोक िकरण क भा ँित िजधर भी द ेखती ह, तम स े बद पथ ख ुल जाते ह । मनु के सपूण
िनयमन क े पीछे उसक ब ुि काय करती ह । सारवत देश क भौितक सम ृि उसक े
मितक क उपज ह । चार ओर ान -िवान का िवकास हो रहा ह । धात ु गलाकर नय े
आभूषण और अ बनाय े जाते ह । नवीन साधन स े नगर सपन होता जाता ह । यवसाय
क वृि हो रही ह । सारवत द ेश वैािनक सयता का तीक बन गया ह । वह व यं
वीकार करती ह :
कृित संग संघष िसखा या तुमको म ने
वातव म अतृ और िवलासी मन ु अपन े जापित प म इड़ा क े अनुगामी मा ह । समत
संचालन वह व यं करती ह । इस भौितकता क ' अितशयता , िवान क े बाहय स े ही स ंघष
होता ह । इड़ा का ब ुिवाद वयम ् अपनी अप ूणता का परणाम द ेख लेता ह । इसक े पूव
परचय क े समय उसन े मनु के सामन े वीकार िकया था िक 'भौितक हलचल ' से ही म ेरा
देश चंचल हो उठा था । वह मन ु को रानीित समझाती ह । उसक ब ुि परिथित क े
अनुकूल काय करना जानती ह । जा भी ‘मेरी रानी ' कह कर चीकार मचाती ह । वह उस
पर िकय े गये अयाचार को कदािप सहन नह कर सकती । बुिवाद स े इड़ा येक काय
सपन नह कर पाती । वह भौितक स ुख से तो सारवत द ेश को भर द ेती ह, िकतु
िवोह और स ंघष को रोक द ेना उसक सामय के बाहर ह । िवान एक स ुदर स ेवक ह,
िकतु एक अनाचारी , िनरंकुश वामी ! उसक ब ुिवाद क अप ूणता पर मन ु कह उठत े ह :
देश बसाया पर उजड़ा ह, सूना मानस द ेश यहा ँ
इड़ा सप ूण सारवत द ेश क रानी होकर भी मन ु के दय पर शासन न कर सक । वह
अपने ेम से उन पर िवजय न ा कर पायी , केवल अपन े नगर का स ंचालक बना सक ।
दय क भ ूख और यास को शात कर द ेने क शि उसम नह । उसम बुि प का
ाबय ह । वह आसव ढालती चली जाती ह, पर यास नह ब ुझती । मनु के जीवन क
अतृि अत म जा स े संघष करती ह । इड़ा अपन े अभाव को नताप ूवक ा क े समुख
वीकार कर ल ेती ह । उसे अपनी अप ूणता, अानता का बोध हो जाता ह। संघष के पात ् munotes.in

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38 वह लािन तथा पााप स े भर जाती ह । उसे अपनी वातिवक िथित का ान हो जाता
ह । वह अपनी द ुबलताए ँ मान ल ेती ह । अपन े अनुशासन और भय क उपास ना पर उस े
वयं ोभ होता ह । इड़ा अपनी एकांगी बौिक व ृिय क े होते हए भी मानवीय ग ुण से
सपन ह । िनराश और उिन मन ु को उसन े आय िदया । जीवन क अत ृि लेकर
भटकन े वाले ाणी को नगर का वामी बना िदया । अितम समय तक वह उह समझाती
रही । जापित क े समत क य उह बताती ह । मनु के ित वह सदय रहती ह -
आह न समझोग े या म ेरी अछी बात
तुम उ ेिजत होकर अपना ाय न पात े।
इड़ा वयम ् को 'शुभाकांिणी' कहकर मन ु को समझान े लगती ह । वह िवास करन े क
ाथना करती ह । भीषण रण क े समय वह जन -संहार रोक देने के िलए अन ुनय-िवनय करती
ह । बुिजीिवनी होत े हए भी वह िकसी रौप म 'कामायनी ' म नह त ुत क गयी । संघष
के समा होन े पर िनव द के कारण इड़ा क मानिसक िथित सजल हो उठती ह । उसे एक-
एक कर सभी बात याद आती जाती ह िक क ैसे उस िदन एक द ुखी परद ेशी आया था । वह
ा, मानव को द ेखकर वीभ ूत हो उठती ह । नेह और ममव स े वह ा को रोककर
उसका द ुःख पूछने लगती ह । उसे आशा , साहस द ेती ह िक जीवन क लबी याा म खोये
भी िमल जात े ह । जीवन म कभी-न-कभी िमलन अवय होता ह, और द ुःख क रात भी कट
जाती ह । ा , मनु के िमलन -अवसर पर वह क ेवल स ंकोच और लािन स े गड़ जाती ह ।
मनु के पुनःभाग जान े पर तो वह मिलन छिब क र ेखा-सी लगती ह, जैसे शिश को राह ने
त कर िलया हो । अयिधक िवषाद म भर कर वह अपनी पराजय ा के समुख
वीकार करती ह । जनपदकयाणी और सारवत द ेश क रानी होकर भी वह अप ूण ह ।
वयम ् को अवनित का कारण बतात े हए वह कहती ह:
मेरे सुिवभाजन ह ए िवषम
टूटते, िनय बन रह े िनयम
नाना क े म जलधर सम
िचर हट , बरसे ये उपलो पम।
वह बारबार मा याचना करती ह, यिक उसन े सुहाग छीनन े क भ ूल क । वह अपनी
अिकंचनता ल ेकर नतमतक हो जाती ह ।
इड़ा अपनी बौिकता म भी 'कामायनी ' का उछ ृंखल पा नह ह । सामािजक , राजनीितक
यवथा म वह िनप ुण ह । राजनीितक िनयामक क े प म वह जापित मन ु से अिधक
सफल हई । सप ूण सारवत द ेश क जनता उस े 'रानी' कहकर प ुकारती ह, उस पर न ेह
करती ह और उस पर िक ंिचत अयाचार द ेखकर िवोह कर उठती ह । भौितक उकष के
साथ ही वह मन ु से 'रा क काया म ाण सश ' रमने के िलए कहती ह, तािक समत
जा न ेह छाया म िवाम कर सके । वह यह भी बता द ेती ह िक िनयामक यिद वयम ्
िनयम न मान ेगा तो िवनाश हो जायगा । िववादी वर स े समत स ुख-शाित िवलीन हो
जाती ह ।
राजनीित के े म इड़ा क सफलता को द ेखकर ही ा अपन े मानव को उस क छाया म
छोड़ जाती ह । 'तकमय क े पास रा का भावी िनयामक रायनीित क िशा ा करता
ह ! वातव म ा इड़ा का वातिवक म ूयांकन करती ह । उसे 'तकमयी' के 'शुिच दुलार' munotes.in

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‘कामायनी ’ के मुख प
39 पर िवास ह, जो उसक े पु का समत यथा -भार हर लेगा । अित म प म इड़ा सारवत
देश के िनवािसय का न ेतृव करती िदखायी देती ह । वह कहती ह िक 'जगती क वाला
से िवकल एक मनवी िकसी िदन आया । उसक अधा िगनी उस े खोजती हई आयी और
उसी क कणा न े जगती क े ताप को शात कर िदया । अब व े दोन मन ु-ा संसृित क
सेवा करत े ह । वहाँ मन क यास ब ुझ जाती ह । इस कार अपन े अितम वप म इड़ा
क बुि म ा का भी समाव ेश हो जाता ह । वह जीवन क स ुख और शाित क े िलए मन ु,
ा क े पथ का अन ुसरण करती ह । वह यथ र जीवन -घट को पीय ूष-सिलल स े भर
लेना चाहती ह । ा , मनु के िनकट पह ँचकर वह वयम ् को धय समझती ह । उन दोन
को देखकर मन -ही-मन अपन े ने को , सौभाय को सराहती ह । इस कार इड़ा का अितम
वप िवन हो गया ह । वातव म बुि का अवलब हण करती हए भी वह अमानवीय ,
असिहणु तथा िनम म नह ह । बुि प म वह एक शि ह, िजसका उिचत योग मन ु न
कर सक े । नारी क े प म वह कण , िवन तथा मामयी ह ।
३.२.४ मानव
'कामायनी ' का अितम चर मानव ह । उसक े चारिक िवकास का प ूण अवसर काय म
नह िमला । केवल भावी मानवता क े ितिनिध प म वह आया ह । मनु मानवता के
जमदाता ह और मानव उरािधकारी प म संसार का िनयमन , संचालन करगे । आरभ
म वह एक च ंचल िशश ु के प म त ुत होता ह । वह मा ँ कहकर ा स े िलपट जाता ह ।
ा उस े 'िपता का ितिनिध ' कहकर प ुकारती ह । वह च ंचल बनचर म ृग क भा ँित चौकड़ी
भरता िफरता ह । सरल बाय वभाव क े अनुसार कहता ह िक मा ँ म ठूं तुम मनाओ |
िपता को पाकर वह अपनी ब ुि के अनुसार उह जल िपलान े के िलए कहता ह, यिक व े
यासे हगे । मनु उसे अपन े जीवन का 'उच अ ंश', 'कयाणकला ' मानते ह । बढ़ता हआ
बालक ितभा सपन तीत होता ह । सया क े समय वह मा ँ से कहता ह िक इस िनज न
म या सौदय ह ? साँझ हो गयी , अब घर चल। ' ा क उदासी उस े अछी नह लगती ।
वह कहता ह--माँ, म तेरे पास ह ँ, िफर भी त ू दुखी य ह ? अपनी मा ँ क व ेदना स े उसे दुख
होता ह ; भोला बालक अपनी िजासा क शाित चाहता ह । माँ के िवदा ल ेने पर वह
आदश पु क भा ँित कहता ह:
तेरी आा का कर पालन
वह न ेह सदा करता लालन
म मं िजऊँ पर छ ुटे न ण
वरदान बन े मेरा जीवन।
मानव क े चर -िनपण क े दो-चार थल ही उसक े यिव का परचय दे देते ह । बालक
क चपलता , सारय क े साथ ही उसम आाकारता और ममव क भावना ह । वह मर -
कर भी अपनी मा ँ क आा का पालन करन े क बात करता ह । 'आनद ' तक पह ँचते-
पहँचते मानव यौवन को ा कर ल ेता ह । इस अवसर पर उसका पौष मन ु को भा ँित
तीत होता ह । उसक े मुख पर 'अपरिमतत ेज' था । किव न े उसक े भावी उकष क ओर
संकेत कर िदया ह |
इस कार यह कहना उिचत होगा िक 'कामायनी ' म थोड़े-से पा क े ारा कथावत ु का
िवतार कर िलया गया ह । समत पा अपनी यिगत भावनाओ ं का परयाग कर अत munotes.in

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40 म एक क े-िबदु पर पह ँचते ह । यह समीकरण , सामंजय ही रस अथवा आनद का
सृजन करता ह । कोई चर अत म धानता पाकर सप ूण कथानक का समाहार नह
करता । सभी चर एक थ ल पर एक होकर आनद लाभ करत े ह । बुिजीिवनी इड़ा भी
अपने बुिवाद का परयाग कर द ेती ह । ा इछा , ान, कम के समवय क े पात ् मनु
को स ूधार बना द ेती ह । वय ं मनु भी अपनी यिगत स ुख-दुख क भावनाओ ं का
परयाग कर द ेते ह । उनका मानिसक झ ंझावात समा हो जाता ह । समत सारवत द ेश
के नगर िनवासी उह 'आमवत ्' तीत होन े लगत े ह । इस कार 'कामायनी ' का चर -
िचण काय म रस और जीवन म आनद तक पह ँचने के िलए किव न े िकया ह । अितम
वप म सभी चर का क ुछ-न-कुछ सहयोग इसम अवय रहता ह । यिद ा का थान
सवपर ह, तो इड़ा क भी प ूणतया अवह ेलना नह क जा सकती । वह भावी िनयामक को
रानीित क िशा द ेकर अत म सारवतनगर िनवािसय क पथ -दिशका बन
मानसरोवर पह ँचती ह । वह साम ूिहक आनद का का रण बनती ह । उथान -पतन स े भरा
मनु अत म एक आदश प म तुत होता ह । वह साव भौिमकता , िव बधुव का सद ेश
देता ह । इस कार 'कामायनी ' के सभी चर अपन े थान पर महवप ूण ह, तथा काय क
रस-िनपि , जीवन क े आनद म सहायक ह । 'कामायनी क े चर िचण क णाली किव
क अपनी ह । 'कामायनी ' म देव-दानव संघष अतम ुखी हो गया ह । वह मन ु के मन म
िनरतर चलता रहता ह । उसम समवय थािपत हो जात े ही आनद का स ृजन होता ह ।
वा प म जब मनु और सारवत द ेश क जा म संघष होता ह तब अवय ही वह
ाचीन देवासुर संाम का एक आभास द े देता ह, यिक उसका न ेतृव इितहास -िस
िकलात और आक ुिल अस ुर कर रह े थे । साद न े 'कामायनी ' के चरा ंकन म एक समवय
ि रखी ह । 'कामायनी ' काचर -िचण नवीन परपरा पर िनिम त ह और ऐितहािसकता
का पालन करत े हए भी वह ाणवान और आध ुिनक ह |

३.३ सारांश
कामायनी क े सभी पा अपन े थान पर महवप ूण ह| और साद सभी पा को समिवत
करने म सफल हए ह | तो ऐितहािसकता को दशा ने के साथ आध ुिनकता का बोध करात े ह|

३.४ दीघरी
१) कामायनी क े मुख पा का चर प किजए |
२) कामायनी क े पा ऐितहािसक होण े के साथ आध ुिनकता का बोध करात े ह िववरण
किजए |
३) कामायनी क े मुख पा मन ु महाकाय क े नायक ह िववरण ारा प किजए |





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‘कामायनी ’ के मुख प
41 ३.५ लघुरी
१) कामायनी महाकाय क े नायक कौन ह ?
उर - मनु
२) ा िकस द ेश क िनवासी ह ?
उर - गधव देश क
३) कामायनी क सप ूण कथा िकस पा ारा गितमान होती ह ?
उर - ा
४) मनु िकस भाव क े कारण ा को छोडकर चल े जाते ह?
उर - ईया भाव क े कारण
५) कामायनी म इड़ा का िचा ंकन िकस प म हआ ह ?
उर - बुिवािहनी
६) कामायनी म मानव कौन ह ?
उर - मनु और ा का प ु

३.६ संदभ पुतके
१) किव साद – डॉ. आचाय दुगाशंकर िम , काशन क , लखनऊ
२) कामायनी म काय , संकृित और दश न – डॉ. ारका साद सस ेना, िवनोद प ुतक
मंिदर, आगरा , चतुथ संकरण – 1971
३) कामायनी क काय – वृि – डॉ. कामेर िस ंह, पुतक स ंथान , कानप ुर, वष-
1973
४) साद का काय - डॉ. ेमशंकर, भारती भडार , इलाहाबाद , वष- 1970
५) कामायनी ेरणा और पर पाक – डॉ. रमाशंकर ितवारी , थम , कानप ुर, थम
संकरण – 1973
६) कामायनी एक िवव ेचन- डॉ.देशराज िस ंह एवं सुरेश अवाल , अशोक काशन , िदली ,
संकरण – 2015
७) िहदी सािहय : युग और व ृियाँ – डॉ. िशवकुमार शमा , अशोक काशन , िदली ,
संकरण - 2021 – 2022
८) आधुिनक िहदी किवता म काय िच ंतन, डॉ. कणाश ंकर पाड ेय, वािलटी ब ुक
पिलशस एवं िडीय ूटस, कानप ुर
९) हमारे िय किव और ल ेखक, डॉ. राजेर साद चत ुवदी एव ं राकेश, काशन क ,
लखनऊ


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42 ४
कामायनी का महाकायव
इकाई क पर ेखा :
४.० उेय
४.१ तावना
४.२ कामायनी का महाकायव
४.३ कामायनी का स ंदेश
४.४ दाशिनक िकोन
४.५ सारांश
४.६ दीघरी
४.७ लघुरी
४.८ संदभ पुतके

४.० उेय
इस इकाई के अंतगत छायावाद क े अिमट हतार जयश ंकर साद जी क िस रचना
‘कामायनी ’ के महाकायव , कामायनी क े सद ेश और उसक े दाशिनक प पर िवचार -
िवमश िकया गया ह | इस इकाई क े अंतगत छा कामायनी क े महाकायव , उसके उेय
और उसक दाश िनकता से परिचत हो सक गे |
४.१ तावना
आधुिनक िहदी सािहय म जयश ंकर साद का महवप ूण थान ह | कामायनी उनका
महाकाय ह | महाकाय के अपन े कुछ लण होत े ह िजनक े आधार पर िकसी भी रचना को
महाकाय का ेणी थान िमलता ह | यहाँ कामायनी क े उह लण का िव ेषण िकया
गया ह |
४.२ कामायनी का महाकायव
जयशंकर साद ारा रिचत ‘कामायनी ’ छायावाद का थम महाकाय ह और वह
महाकाय क परपरा म एक न ूतन अयाय भी जोड़ती ह | लेिकन, पूव चिलत महाकाय
से अनेक बात म िभन हो ने के कारण आचाय ारा िनिम त महाकाय क कसौटी
कामायनी क परख करन े म असमथ रही ह । सच तो यह ह िक कामायनी म सादजी न े
नवीन पित का अन ुसरण िकया ह और उहन े भारतीय आदश क सीमा म रहते हए भी
पया वछ ंदता स े काम िकया ह यिक वह सदैव ही परवत न के पपाती रह े ह । इस
कार साद जी ने कामायनी म भारतीय आचाय ारा िगनाय े गये लण एव ं िनयम क
ओर उतना यान नह िदया िजतना िवषय क े अनुप अपनी ितभा और िवचारधारा को
िदया ह । munotes.in

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कामायनी का महाकायव
43 इस सबध म आचाय नदद ुलारे बाजप ेयी जी का मानना ह िक - कामायनी म य
वतुओं का व ैिवय और उसस े उपन औदाय नह ह, इसिलए क ुछ लोग 'कामायनी ' को
महाकाय नह मानत े । कामायनी म रामायण जैसा परपरागत द ेव-दानव स ंघष भी नह
िदखाया गया । इसस े वीर रस स ंभूत जो गरमा रामायण म ह, कामायनी म नह ह ।
कामायनी म यु और स ंघष का वणन ही कदािचत सबसे अिधक भावहीन ह । जा क े
साथ मन ु का य ु वातिवक य ु क अप ेा छायामक अथवा तीकामक ह परतु इस
बा स ंघष के थान पर मन क े आतरक स ंघष का, बुि और ा के बीच मन क
भटक िथित का मािम क और गभीर िचण कामायनी म अवय ह ।' सामायतया स ंकृत
के ाचीन आचाय न े महाकाय क े आवयक लण िननिलिखत मान े ह-
(१) महाकाय का नायक द ेवता या उम क ुल का वह िय हो सकता ह, िजसम
धीरोदा नायक क े गुण ह । आवयकतान ुसार एक द ेश के कई राजा भी इन ग ुण से समान
प म यु होन े पर नाय क हो सकत े ह ।
(२) महाकाय का सग ब होना आवयक ह, िकतु ये सग न तो अयिधक दीघ ह और न
अयत लघ ु ।
(३) कथावत ु इितहास िस हो या सजनाि त । साथ ही उसका सुसंगिठत होना भी
आवयक ह ।
(४) इसम कम स े कम आठ सग अवय होन े चािहए तथा एक सग म एक ही छद रहना
चािहए - येक सग के अत म छद बदल भी िदया जाता ह । वाह क एकता भी िवश ेष
आवयक ह ।
(५) ृंगार, वीर और शात रस म िकसी एक क िनपि धान प से क जानी चािहए ।
अय रस क भी गौण प स े अिभयि क जानी उिचत ह ।
(६) आवयकतान ुसार स ंया, सूय, च, दोष, अधकार , िदन, भात , मयाह , मृगया,
पवत, ऋतुओं, वन , समु, संाम , याा आिद िवषय का भी वणन होना चािहए ।
(७) ारभ म मंगलाचरण और वत ु िनदश भी आवयक मान े जाते ह ?
आधुिनक समीक न े भारतीय और पााय िवचारक ारा िनिद महाकाय क े लण
का तुलनामक एव ं िव ेषण अययन कर आवयक बात को छोड़कर महाकाय क े िलए
िननिल िखत तव आवयक मान े ह- (१)सुगिठत िस गभीर तथा िवत ृत कथानक ,
(२) पा क उदाता , (३)अिधकािधक भाव , वतुओं तथा मानव जीवन क अवथाओ ं
का िचण , (४)उेय क महानता एव ं (५) कला क ि स े गरमा। इन िबद ुओं के आधार
पर हम यह परखन े का यास कर गे िक कामायनी महाकायव क ि स े कहाँ तक खरी
उतरती ह :
कामायनी क कथा का आधार यात और उपा दोन ही कार क घटनाए ँ ह |
पौरािणक एव ं कुछ िस यिय और घटनाओ ं को लेकर किव न े अपनी कपना का
आधार ल ेकर कथानक क रचना क ह पर कामायनी क कथा म कह भी अन ैितहािसक
एवं असभव घटनाओ ं क योजना नह क गई ह | सचाई तो यह ह िक कामायनी का
कथानक प ूणतया स ुगिठत और सुगुिफत ह तथा भारतीय ि स े िजन स ंिधय एव ं
कायावथाओ ं आिद क आवयकता कथावत ु म मानी गई ह ाय: वे सभी कामायनी क munotes.in

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आधुिनक काय
44 कथा म ह । इस कार सप ूण कथा वाभािवक गित स े आगे बढ़कर 'आनद ' सग के के
िबदु पर पह ँचती ह और उसम अनावयक घटनाय िबक ुल नह ह ।
सचाई यह ह िक कामायनी का कथानक उदा ह और उसम मानव च ेतना म घिटत होन े
वाली अनेक सूम घटनाओ ं का िनपण िकया गया ह । अतएव 'मानव मन क े अहंकार का
पराभव , नरनारी का थम िमलन और उनक े णय स े संकृित का िवकास , पुष क
िनबाध अिधकार भावना , अनाचार , बुि पर अिधकार करन े का द ुदम यन ,
परणामवप मानव च ेतना क पराजय , इछा, िया, ान क े समवयारा सच े आनद
क उपलिध आिद घटनाय इसी कार क ह ।' कामायनी के कथानक क उदाता इस
बात स े भी िस होती ह िक इसम सपूण मानव जाित क िवकास गाथा त ुत क गई ह |
अत: 'कामायनी ' क कथा का िवकास भले ही थोड़ा हो पर सा ंकेितक प म उसम सपूण
मानव जीवन या स ृि के इितहास क े प म कई करोड़ वष क े मानवीय उथान -पतन को
इसम अंिकत िकया गया ह ।
उदा कथानक क े साथ -साथ 'कामायनी ' म पा क उदाता भी उचकोिट क ह ।
िनयमान ुसार महाकाय क े नायक का धीरोदा होना आवयक माना गया ह और कामायनी
के नायक मन ु का चर िवकसनशील ही ह | वे अहंकार, वाथ, कामासि एव ं चांचय
आिद हीन व ृिय स े िघरे हए भी ह पर 'कामायनी ' नाियका धान महाकाय ह । इसम कोई
संदेह नह िक 'ा' ही 'कामायनी ' क कथा का केिबद ु और म ेदड ह तथा नायक क े
चर म जो धीरोदाता अप ेित ह, वह ा म पूणपेण ह | यहाँ यह भी मरणीय ह िक
मनु भी अपने िववेक के बल पर धीर े-धीरे दुगुण को छोड़कर अ ंततः अखड आनद क
ाि करत े ह और उनका चर कामा यनी क े अत म महान बन जाता ह । कामायनी क े
अय म ुख पा म से इड़ा और मानव का यिव भी पया उच ह तथा इड़ा तो भटकत े
हए मन ु को सपथ पर ल े चलन े वाली बुि क तीक ह ।
कामायनी म मानिसक भाव क े िव ेषण क ही धानता ह और बह त से सग भी भाव पर
ही आधारत ह अतः भाव -िवतार क ि स े कामायनी को असपन नह कहा जा
सकता | साथ ही कामायनी म भाव क े िचण क िवश ेषता यह भी ह िक वे न केवल इतन े
सजीव ह िक पाठक को रस िस करन े क अप ूव मता रखत े ह अिपत ु किव न े गहराई म
उतरकर उह देखा ह | इसी कार उ ेय क ि स े तो कामायनी सभवतः िव सािहय
म अितीय ह | इस सबध म िवचार क का मानना ह िक 'कामायनी का उ ेय मानव -मन
म संचरत होन े वाली परपरिवरोधी व ृिय म सामंजय क थाप ना करना ह । इस
उदा उ ेय ारा मानव को स ंघषशील स ंसार क िविभन समयाओ ं से िवरत कर शाित
क ओर ल े जाया गया ह । आज क े भौितक य ुग म संकृित, राजनीित और िवान अथात्
भाव, िया, ान क िदशाए ं परपर िवरोधी ह | परणाम वप अशाित का वातावरण
छाया हआ ह | कामायनी म मानवता क े ित अट ूट ा रखते हए जीवन म इन तीन
वृिय म सामरय का िवधान कराकर अखड आनद क िसि क गई ह ।'
'कामायनी ' अपने बा या कलाप क ि स े भी भय ह और उसक कला क
महाकायोिचत गरमा भी अस ंिदध ह । डॉ. नगे के शद म 'उसम अुत ऐय एवं
अलंकार िवलास ह, लणा -यंजना का िविच चमकार कपना तथा भावना क े अपूव
वैभव के कारण इस श ैली म मूित िवधान एव ं िबब -योजना क अ ुत सम ृि िमलती ह । ---munotes.in

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कामायनी का महाकायव
45 कामायनी क श ैली सा माय क अप ेा असाधारण और उदा ह तथा छद योजना भी
िनस ंदेह सराहनीय ह ।
िवचारप ूवक देखा जाय तो 'कामायनी ' म महाकाय िवषयक कई परपरागत लण का भी
िनवाह हआ ह और कामायनी क रस य ंजना भी श ंसनीय ह । यिप कामायनी क े पूवा
म ृंगार और उरा म शांत रस को म ुखता ा हई ह पर हाय क े अितर अय
सभी रस क भी कामायनी म योजना हई ह । 'सग िवभाजन ' सबधी लण का भी
कामायनी म सफलताप ूवक िनवा ह हआ ह और किव साद न े कामायनी म पंह सग रखे ह
और लगभग सभी सग म कथा का अयत स ुदर रीित स े िवकास भी िकया ह । साथ ही
कामायनी म कृित के अनेक उक ृ िच भी उपलध होत े ह | यहाँ युगधम का िनवा ह भी
िकया गया ह तथा धम , अथ, काम और मो आिद चार वग म से कामायनी म काम क
धानता ह । समीक कामायनी क े ारिभक छद को म ंगलाचरण सबधी ही मानत े ह
और 'कामायनी ' म खल िनदा एव ं सजन त ुित को भी थान िदया गया ह ।
इससे प हो जाता ह िक 'कामायनी ' िनिववाद प स े महाकाय ह और िवचारक उसक े
सबध म यही कह ते ह िक'रामचरतमानस क े बाद यही एक ऐसा महाकाय ह जो िहदी
को िव सािहय म थान िदला सकता ह’ ।
४.३ कामायनी का सद ेश
जयशंकरसाद जी ने कामायनी म एका ऋिष क भा ँित मानव जीवन को आिद स े अंत
तक हतामलकवत ् देखकर उनक े मूल रहय , आमा क अ नुभूित का , उसके सम प म
उाटन िकया ह । इस सबध म डॉ.ारकासाद जी का मानना ह िक कामायनी
महाकाय इस िनराशा , भयत , िमत एव ं िचरदध द ुखी वस ुधा को शा ंित और स ुख क
आशा ब ंधाता हआ अखंड आनद ाि का म ंगलमय स ंदेश दे रहा ह |’
अपने महाकाय 'कामायनी ' के ारा किव साद न े जो स ंदेश सारत िकया ह वह युग-
युगातर तक ग ूंजता रह ेगा यिक कामायनी वय ं किव क े जीवन का िनचोड़ और उसक े
समत आ ंतरक पदन का य ि करण ह तथा कामायनी आज क े बुिवादी य ुग म
भीषण ता ंडव करत े हए मानव क म ुि का अमर स ंदेश दान करती ह । 'कामायनी ' क
ा किव क े यिगत िवचार क ितिनिध ह और वह भटक हई मानव जाित को यह
संदेश देती ह िक वह ब ुिवाद के आकष ण एवं िनयंण को िछन -िभन कर अपन े कयाण
का पथ शत कर े । यहाँ यह मर णीय ह िक 'कामायनी ' म बुि का सव था िवरोध नह
िकया गया और कामायनी कार तो क ेवल ब ुि क अित का ही िवरोध करता ह तथा उसक
ि म ा नमिवत ब ुि ही ेयकर होती ह तथा वह हमारी समयाओ ं को स ुलझान े म
समथ भी होती ह ।
'कामायनी ' समरस ता का स ंदेश भी दान करती ह और यह समरसता ही िचर ंतन आनद
का म ूल ह | अतः इस समरसता क भावना क े ारा ही किव साद न े अपन े िय
आनदवाद क े िसात क प ुि क ह । कामायनीकार का कहना ह िक स ंसार म जब तक
भेद वृि का नाश नह होगा और स ुख व दुख म ऐय नह होगा तथा ी और प ुष क े
पारपरक सबध म समरसता उपन नह होगी और शासक व शािसत क े मय क
खाई नह भरी जायगी तब तक स ंसार और मानव जाित क गित अस ंभव ह । साथ ही munotes.in

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आधुिनक काय
46 इछा, ान और िया का सामरय ही आनद लोक क े ारा उम ु करता ह और
मानवता क गित भी दय और ब ुि के समवय ारा ही सभव ह ।
कामायनी क ा भारतीय नारी जाित क ितिनिध और आदश के प म उपिथत क
गयी ह | उसके चर -िचण क े ारा कामायनीकार न े यह प करना चाहा ह िक ा का
आदश हण कर ही , आज क नारी वातिवक उनित कर सकती ह । इसी कार
कामायनी म िनियता का बिहकार िकया गया ह और कम को धानता दी गयी ह तथा
कतय का स ंदेश कामायनी म वतमान का वर भी ह और ी गजानन माधव म ुिबोध का
कहना ह िक छायावादी काय म कामायनी ही एक ऐसा ंथ ह जो समाज नीित और
राजनीित क े े म नये साहस यास को ल ेकर िन प स े आगे बढ़ता ह ।' अनेक
िवचारक यह भी कहत े ह िक 'कामायनी िनस ंदेह अपन े समय का िच त ुत करन े वाला
महाकाय ह, िजसम युग क च ेतना एव ं वाणी ितविनत ह । उसक कहानी पौरािणक एव ं
पकामक होती हई भी आज क कहानी ह । उसम पुराण िस पा को बीसव शतादी
क भावना एव ं कपना का साकार प बनाकर उपिथत िकया गया ह ।
इस कार कामायनी अपन े युग क प ूण ितिनिध क ृित ह और यिद हम कामायनी क
अंतरामा म वेश कर तो हम उसम वतमान का स ंघष, उसका परणाम , मानव जाित क े
पतन क े मुय कारण एव ं इस िवलव , इस स ंघष और इस पतन स े मानव जाित को बचान े
के उपय ु यन िनिहत िमल गे । इसीिलए िवान कामायनी को मानव जाित क े पतन और
उथान का इितहास मानत े ह तथा कामायनीकार का यही मत ह िक युग के अनुप चलन े
वाला यि और युग के अनुसार परवित त समाज ही आज िहतकर हो सकता ह ।
'कामायनी ' म प तया कहा गया ह-
पुरातनता का यह िनमोक , सहन करती न क ृित पल एक
िनय न ूतनता का आनद , िकये ह परवत न म टेक
कृित के यौवन का िस ंगार, करगे कभी न बासी फ ूल
िमलगे वे जाकर अित शी आह उस ुक ह उनक ध ूल
युग क चान पर स ृि, डाल पद िचह चली गभीर
देव, गधव असुर क प ंि अन ुसरण करती उस े अधीर

हम यहा ँ िनकष प म यह कह सकत े ह िक कामायनी हमारी कायधारा का एक थायी
आलोक तभ ह | कामायनी म मनु ा क े समरसताप ूण सववप स े परिचत होन े के
उपरात ा क े समरसतामय जीवन क श ंसा करत े ह और उसक े जीवन स े उूत होत े
हए समरस ता के सदेश एवं िशा को वीकार करत े ह –
तुमनेहँस –हँस मुझे िसखाया , िव ख ेल ह खेल चलो
तुमने िमलकर म ुझे बताया , सबस े करत े मेल चलो |
वह ा मन ु को व ृि का भी सद ेश देती ह | वह उह शि -संचय कर जीवन म
सफलता ा करन े को ेरत करती रही | जीवन क े कम-े क सफलता ही मानव -चेतन
क सफलता ह | मानवक सप ूण गित एव ं िवतार कम ारा ही स ंभव ह | ा मन ु से
कहती ह – munotes.in

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कामायनी का महाकायव
47 और यह या त ुम सुनते नह, िवधाता का म ंगल वरदान
शिशाली हो , िवजय बनो , िव म गूँज रहा जयगान |
इस कार हम कह सकत े ह िक कामायनी का सद ेश आयािमक एव ं यावहारक जीवन
और ान , इछा एव ं िया क े बीच साम ंजय थािपत करना और इसी कार मानव -
मानव क े मय क द ूरी को िमटाकर सम मानवता क िता करना ह | इस महाकाय क े
मायम स े कवी मानवता को यही स ंदेश देना चाहता ह िक हम उस व ेद वाणी को याद कर
िजसम उसे ‘अमृतय प ुा’ कहा गया ह |
४.४ दाशिनक िकोण : समरसता और आनदवाद
जयशंकर साद न े सभी भारतीय दश न का सयक ् अययन िकया था पर िकसी भी दश न
को उहन े कामायनी म पूणपेण नह अपनाया | लेिकन, िजसका िजतना भी अ ंश
अपनाया उस े इतना यावहारक बनान े का यास िकया िक जीवन म उसका उपयोग हो
सके । इस कार साद दश न को क ेवल तक और प ुतकय ान तक सीिमत न रखकर
जीवन दश न के प म देखने के पपाती थ े । िवचारप ूवक देखा जाय तो साद पर
सवािधक भाव श ैव दश न का ह और उनका यिभा दश न से, िजसे िक कामीर श ैव
दशन भी कहा जाता ह, इससे िवशेष सबध रहा ह । इस दशन के वतक आचाय वसु गु
कहे जाते ह और इसक े अनुसार आमा च ैतय वप ह तथा वही िव का कारण ह और
और वही स ृि, िथित , संहार, िवलय एव ं अनुह करती ह, िजसस े संसार क परपरा
चलती रहती ह । साद जी क कामायनी म भी आमा को 'महािचित ' और 'लीलामय ' आिद
इसी आधार पर कहा गया ह तथा 'यिभा दश न' म उिलिखत माया तव को भी
कामायनी म थान िमला ह-
यहाँ मनोमय िव कर रहा रागाण च ेतन उपासना ।
माया राय यही परपाटी पास िबछाकर जीव फा ँसना ।।
शैव दश न से ही साद न े समरसता शद और समरसता का िसा ंत भी हण िकया ह |
िशव तव और शितव का सामरय श ैवदशन क आधारभ ूत माय ताओ ं म ह ।
साधक जब इस बात क अन ुभूित करता ह िक न तो म हँ और न कोई अय तो उसका मन
आनद म लीन हो जाता ह तथा यही समरसता ह अथात् ैत का िमट जाना ही समरसता
ह। इस िथित म आनद ही आनद रहता ह, और इसका िवरोधी शद िवषमता ह तथा
मल, कचुक या मौत आिद म लीन यि इसी व ैषय क वाला म जलता ह । 'कामायनी म
किव न े वतमान व ैािनक युग के बुिवादी भाव को अपन े मन म धारण करक े उसक े ारा
उपन सामािजक संघष और िवनाश का िचण िकया ह । कदािचत इसी कारण समरसता
के ितपाद न म उसन े कृित और प ुष को आयाम परक समरसता तक अपन े को
सीिमत नह रखा । यि और समाज क समरसता का भी िवशद प स े वणन और
समथन िकया ह | इसीिलय े लौिकक प म भी इस समरसता को अिधकािधक यवहाय
बनाने का यन थान -थान पर िदखाई द ेता ह |
किव साद क काय क ृितय म समरसता क ही थापना क गयी ह | कामायनी म सुख
दुःखामक जगत ् को भ ूमा का मध ुमय दान कहा गया ह । साथ ही किव स ुख दुःख क े munotes.in

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आधुिनक काय
48 अितर व ैयिक जीवन म दय और ब ुि म समवय करन े या समरसता थािपत करन े
का संदेश देता ह : यह तक मयी त ू ामय , तू मननशील कर कम अभय।
सबक समरसता का कर चार , मेरे सुत सुन माँ क प ुकार।।
वैयिक जीवन म इछा , ान और कम के एक द ूसरे से दूर या िवषम होन े के कारण ही
अशांित फैलती ह अतः साद उनका भी समवय या उनक भी समरसता चाहत े ह-
ान द ूर कुछ ियािभन ह, इछा य हो प ूरी मन क ।
एक द ूसरे से न िमल सक े यह िवडबना ह जीवन क ।।
वैयिक जीवन क भा ँित ही सामािजक जीवन म समरसता का अभाव साद को खटका
और उहन े शासक और शािसत म समरसता थािपत करन ेके प म इस ओर स ंकेत भी
िकया ह -
समरसता ह सबध बनी अिधकार और अिधकारी क।
इस कार साद जी यही चाहत े ह िक िविभन कार क े वग (शोषक , शोिषत , अिधकारी
अिधक ृत, पुष, ी आिद ) म भी समरसता होनी चािहए | कामायनी म साद जी क
समरसता का ऊव िबदु जड़ तथा च ेतन के सामरय का ह । उहन े कहा भी ह -
समरस थ े जड़ या च ेतन, सुदर साकार बना था ।
सामरय क यह िथित जीव क े मु होकर िशवव क अन ुभूित क ह और हम देखते ह
िक साद क समरसता लोक पर लोक दोन को रस िस करती ह | यहाँ उनका यही मत
ह िक समरसता से मनुय दोन लोक क शा ंित ा कर प ूण बन सकता ह और समरसता
क ाि क े पात ् ही यि आनद क अनुभूित कर सकता ह |
वतुतः कामायनी म आनदवाद क िता सव अस ंिदध ह । डॉ. िवजय े नातक क े
कथनान ुसार 'कामायनी ' का आधारभ ूत िसात आनदवाद ह । मन क े सामरय दशा म
अविथत होन े पर ही आनद ाि होता ह । मानवमन का परम य ेय ह शात
आनदोपलिध । आनद ाि क े साधन म पया मतभ ेद होन े पर भी आनदोपलिध
पलय क े िवषय म आितक -नाितक दश न म अिवरोध पाया जाता ह । सादजी न े
कामायनी म आनद को साय मानकर िजस साधना को ाथिमकता दी ह, वह ह ा
और इड़ा क समवय भावना । ा और इड़ा म समवय उपन होने पर ही इछा , िया
और ान म सामरय उपन होता ह और यह सामरय ही दुःखनाश क े उपरात अनत
आनद का पथ शत करता ह । इसीिलए साद जी िलखत े ह :
समरथ थ े जड़ या च ेतन स ुदर साकार बना था।
चेतनता एक िवकसती आनद अखड घना था ।

अय दाश िनक भाव :
शैव दश न को म ुय आधार क े प म हण करन े के अितर किव साद ने अय
दाशिनक मत और िवचारधाराओ ं का भी आय िलया ह पर इह गौण ही कहना चािहए
तथा इनम से कुछ तो परपरा प म ह और क ुछ युग क मा ँग के कारण। इनम शूयवाद ,
िणकवाद , दुःखवाद , कणा , िवकासवाद , परमाण ुशि पधा वाद, भौितकवाद और
बुिवाद आिद म ुय ह । इसी कार आधुिनक व ैािनक आिवकार स े सब अन ेक munotes.in

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कामायनी का महाकायव
49 िसात क ितछाया भी कामायनी म देखी जा सकती ह | गुवाकष ण से सब क ुछ
पंियाँ तुत ह -
महानील इस परम योम म अंतर म योितमा न ?
ह, न और िव ुकण िकसका करत े ह संधान ;
िछप जात े ह और िनकलत े आकष ण म िखच े हए!
तृण, वीध लहलह हो रह े िकसक े रस स े िसंचेहए

४.५ सारांश

कामायनी छायावाद का थम महाकाय ह िजसम साद जी न े नवीन पित का अन ुसरण
िकया ह , इसके कारण भारतीय आचाय न े जो लण महाकाय क े िलए अिभिहत िकय े ह
क उनका प ुरी तरह पालन नह हो पाया ह | बहत मािम क और गभीर िचण कामायनी म
हए ह सामयात : यही लण आचाय न े महाकाय म मुख मान े ह | इन सभी म ुो का
वणन इस इकाई म हआ म हआ ह जो कामायनी महाकाय ह या नह | इस स ंदभ म
िवािथ य का ान गाढ कर ेगी |

४.६ दीघरी
१) कामायनी क े महाकायव पर काश डािलए |
२) कामायनी महाकाय क े संदेश को उल ेिखत किजए |
३) कामायनी क े दाशिनक िकोन पर काश डािलए |
४.७ लघुरी
१) शैवदशन क आधारभ ूत मायताओ ं म ह?
उर - िशवतव
२) कामायनी _________ धान महाकाय ह ?
उर - नाियका
३) समीक कामायनी क े ारंिभक छ ंद को कौन स े छंद से संबोिधत करता ह ?
उर - बुिवाद क े आकष ण एवं िनयंण को िभन -िभन कर अपन े कयाण का पथ
शत कर े|
४.८ सदभ थ
१) किव साद – डॉ. आचाय दुगाशंकर िम , काशन क , लखनऊ
२) कामायनी म काय , संकृित और दश न – डॉ. ारका साद सस ेना, िवनोद प ुतक
मंिदर, आगरा , चतुथ संकरण – 1971
३) कामायनी क काय – वृि – डॉ. कामेर िस ंह, पुतक स ंथान , कानप ुर, वष-
1973 munotes.in

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आधुिनक काय
50 ४) साद का काय - डॉ. ेमशंकर, भारती भडार , इलाहाबाद , वष- 1970
५) कामायनी ेरणा और परपाक – डॉ. रमाशंकर ितवारी , थम , कानप ुर, थम
संकरण – 1973
६) कामायनी एक िवव ेचन- डॉ.देशराज िस ंह एवं सुरेश अवाल , अशोक काशन , िदली ,
संकरण – 2015
७) िहदी सािहय : युग और व ृियाँ – डॉ. िशवकुमार शमा , अशोक काशन , िदली ,
संकरण - 2021 – 2022
८) आधुिनक िहदी किवता म काय िच ंतन, डॉ. कणाश ंकर पाड ेय, वािलटी ब ुक
पिलशस एवं िडीय ूटस, कानप ुर
९) हमारे िय किव और ल ेखक, डॉ. राजेर साद चत ुवदी एव ं राकेश, काशन क ,
लखनऊ



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51 ५
अेय जीवन परचय और बना द े िचतेरे किवता

इकाई िक प र ेखा
५.० इकाई का उ ेय
५.१ तावना
५.२ किव अ ेय का जीवन परचय
५.३ बना द े िचतेरे किवता का भावाथ
५.४ सारांश
५.५ दीघरी
५.६ लघुरी
५.७ संदभ पुतक

५.० इकाई का उ ेय

इस इकाई क े अंतगत िवाथ पाठ ्यम म सिमिलत अ ेय के काय स ंह 'आंगन के पार
ार' काय स ंह िक बना द े िचतेरे किवता का अययन कर गे | साथ ही किवता क े रिचयता
अेय के जीवन िवषयक जानकारी भी हािसल कर गे |

५.१ तावना

िहंदी सािहय का आध ुिनक काल किवय का काय म नव नवीन योग क े िलए जाना जाता
ह | नवीन योग िक किवता क े िलए अ ेय का नाम सव थम आता ह | अेय िक किवता
मानव क े साथ साथ क ृित से भी गहरा स ंबंध रखती ह | जो केवल बाहरी न होकर भीतरी
दशाओ ं का परचय सािहय को आधार बनाकर हमस े एकप कर द ेती ह |

५.२ किव अ ेय का जीवन परचय

िहदी सािहय क े आध ुिनक काल क े मुख किव , कथाकार , शैलीकार , लिलत -िनबंधकार ,
कुशलस ंपादक , कुशल अयापक और अन ेक ख ुिबय स े यु महान सािहयकार अ ेय
इनका प ुरा नाम सिच दानंद िहरान ंद वायायन ह | इनका जम ७ माच १९११ को उर
देश के कसया क ुशनगर म पुरातन-खुदाई िशबीर म हआ | अेय के िपता का नाम प ंिडत
िहरान ंद शाी था | वे भारत क े िस प ुरातव व ेा था | िपता क े ताबादल क े कारण
अेयजी का बचपन िकसी एक थान पर यतीत नह हआ उनका जीवन म कई थान
से होकर ग ुजरा उनका वातय लखनऊ , नालंदा, पटना, उमरकक , कमीर , मास आिद
अनेक थान पर बीता | अेय के परवार म दो बहन और सात भाई थ े अेय भाईय म े
तीसर े मांक पर थ े | इनिक माता का नाम ीमती वय ंती देवी था | अेय िक ारंिभक
िशा-दीा घर पर िपता िक देख-रेख म हई इहोन े िविभन भाषा व सािहय का अययन munotes.in

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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
52 िकया िह ंदी भाषा क े साथ -साथ स ंकृत, फारसी , अंेजी, बांला, तिमल भाषा म इहे
ािवय ा था | अेय ने सन १९२५ म पंजाब स े मेीक िक परीा पास िक उसके
उपरांत मास क े िियन कॉल ेज म इंटर िमडीएट क े िलये वेश लेकर सन १९२७ म
इर परीा थम ेणी म उीण िक| इसके बाद लाहौर क े फॉरमन कॉल ेज से बी. एस. सी.
थम ेणी म ा क यह समय सन १९२९ का था आग े के अययन क े िलय े सन
१९३० म लाहौर गये वहाँ एम.ए. थम वष िवषय अ ंेजी थम ेणी म उीण िक लेिकन
इसके बाद य े एम. ए. ितीय वष िक परीा न द े सके यिक अ ेय इस समय कई
ांितकारी स ंगठनो और इनस े जुड़ी गितिविधय म तलीन हो च ुके थे |

सन १९३० से सन १९३६ का काल इनका ज ेल म कटा | इसके बाद इहोन े १९३७ म
सैिनक और िवशाल भारत नामक दो पिकाओ ं का स ंपादन िकया | सन १९४६ म ििटश
सेना म कायरत रह े इस दरयान आसाम , वमा सीमा पर य ु समा हो जान े पर प ंजाब िक
पिम सीमा पर साधारण सैिनक क े प म े काय िकया | सन १९५२ से १९५५ तक
आकाशवाणी म े भाषा सलाहकार का काम िकया उसक े बाद क ुछ वष क े िलय े इनिक
िनयुि केिलफोिन या िव िवालय म े भारतीय स ंकृती और सािहय िवषय क े अययन
के िलये हई | वहाँ से लोटन े के बाद जोधप ुर िव िवालय म तुलनामक सािहय िवषय
अयापन ह ेतू ोफेसर पद पर िनयु हय े |

सन १९६५ मे अेय िक अगयता स े 'िदनमान ' का काशन हआ | सन १९७३ म
एवरीम ैस का स ंपादक काय वीकार िकया ल ेिकन ११ मिहने इस काय को करन े के
उपरात यागप द े िदया और 'तीक स ंक' नामक सािह ियक मािसक पिका का आर ंभ
िकया | सन १९७७ म 'दैिनक नवभारत टाइस ' का पद भार स ंभाला | इतने पदभार और
संपादन काय म इनके ारा िकया गया सबस े महवप ूण काय 'तारसक ' का स ंपादन व
काशन ह | सन १९८३ मे युगा (युगोलािहया ) के अतराी य काय समारोह म अेय
का वण माल प ुरकार ह ेतु चयन िकया गया इस दरयान इहोन े युगोलािहया िक याा
िक |

सन १९८० म उहोन े 'वसलिनधी ' नामक यास िक थापना िक | इसके अंतगत
सािहय और स ंकृती िवषय पर कई यायान आयोजन िकए भारतीय ा नपीठ स े िमली
धन राशी को अेयजी न े वसल िनधी स े जुड़े काय मे लगा िदया |

अेय वैसे तो परिथतीवश एक जगह स े दुसरी जगह घ ुमते रहे और इस कार
परिथतीवश घ ुमना उनका वभाव बन गया था बचपन स े ही कृित के सािनय म पले
बडे हए अ ेय को प ेड़-पौधो, जीव-जंतूओ स े िवशेष लगाव था | ऐितहािसक वात ू , खंडहर,
जंगल, वीरान े आिद को बहत करीब स े देखा और यही वजह थी उन िक किवताओ ं म मानव
सृी के अनुठे दशन होत े ह | वही कृित से गहरा लगाव उन िक किवताओ ं म हम द ेख
सकत े ह | इंनके वभाव म या घ ूमकड व ृी के कारण इहोन े कई िवद ेश यााए ँ िक
और वहॉ िक संकृती सयता को अपन े काय म परीलित िकया |इस कार िक जीवन
शैली ने उहे एक सािहयकार क े अितर एक अछा फोटोाफर और सयाव ेशी पय टक
भी बना िदया था | munotes.in

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अेय जीवन परचय और
बना द े िचतेरे किवता
53 मुख कृतीयॉ–
किवता स ंह – भन द ूत १९३३ , िचंता १९४२ ,इयलम १९४६ , हरी घास पर ण भर
१९४९ ,बाबरा अह ेरी १९५४ , इं धन ुष रद े हए थ े १९५७ , अरी ओ कणा भामय
१९५९ , आँगन के पार ार १९६७ , िकतनी नाव म िकतनी बार १९६७ , यिक मै उसे
जानता हँ १९७० , सागर म ुा १९७० , पहले मै सनाटा ब ुनता हँ १९७४ , महावृ के नीचे
१९७७ , नदी िक बॉक पर छाया १९८१ , िजन ड ेज एड अदर पोय ंस (अंेजी
१९४६ )

कहानी – िवपथगा १९३७ , परंपरा १९४४ , कोठरी िक बात १९४५ , शरणाथ
१९४८ ,जयदोल १९५१ , ये तेरे ितप (१९६१ )

उपयास – शेखर एक जीवनी थम भाग –(उथान ) १९४१ , ितीय भाग (संघष)
१९४४ ,नदी क े िप १९५१ , अपने अपन े अजनबी १९५१ |

याा व ृतांत - अरे यायावर रह ेगा याद १९५३ , एक ब ुंद सहसा उछली १९६० |
िनबंध संह - सबरंग, िशंकू, आमन ेपद, आधुिनक परय आलवाल |
आलोचना - िशंकू १९४५ , आमन ेपद १९६० , भवती १९७१ , अतन १९७१ ई |
संमरण - मृित लेखा
डायरया ँ - भवती , अतरा और शाती
िवचार ग – संवसर
नाटक – उर ियदश (१९६७ )
जीवनी – राम कमल राय ारा िलिखत िशखर स े सागर तक

संपादन काय – अेयजी क े जीवन िवषयक अययन म हम यह जान च ुके ह िक उहोन े
कई प – पिका का स ंपादन काय िकया ह | इसके अितर सािहय े म उनक े ारा
संपािदत ंथ इस कार ह | आधुिनक िह ंदी सािहय (िनबंध संह) १९४२ , तार सक
(किवता स ंह)१९४३ , दुसरा सक (किवता स ंह) १९५१ , तीसरा सक (किवता संह)
१९५९ , नये एकांिक १९५२ , पांबरा १९६० | वसल िनधी क े मायम स े लगभग छह
िनबंध संह को स ंपािदत िकया |

इस कार उनक े अतुलनीय सहयोग स े या ल ेखनी स े उहोन े आध ुिनक य ुग का वत न
िकया | इसीिलय े भारत दू हर ं के बाद अ ेय का योगदान सािहय पटल पर उल ेखनीय
माना जाता ह |

अेयजी को उनक े सािहियक खरता क े िलये सािहय अकादमी और भारतीय ानपीठ
पुरकार स े नवाजा गया ह |

सन १९५६ को अ ेय का िववाह हआ इन िक धम पनी का नाम किपला था |
मृयु – ४ एिल १९८७ को इस सािहय िदपक को म ृयू ने अपनी चप ेट म ले िलया | munotes.in

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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
54 उपािधयाँ – िहंदी सािहय स ंमेलन याग ारा अ ेय को सन १९६८ म ‘वाचपती ’ िक
उपािध स े समािनत िकया गया , िवम िविवालय उज ैन ारा १९७१ मे डी.िलट. िक
उपािध दान हई |

५. ३ बना द े िचतेरे किवता का भावाथ

बना द े िचतेरे
मेरे िलये एक िच बना द े |
पहले सागर आ ँक :
िवतीण गाढ़ नीला ;
ऊपर हलचल स े भरा,
पवन क े थपेड़ो से आंहत,
शत-शत तरंगो से उेिलत
फेनोिमया से टूटा हआ,
िकत ु येक टूटन म ,
अपार शोभा िलय े हए,
चंचल उस ृ |
जैसे जीवन |
इस किवता म मुखतः सम ु का वण न किव न े िकया ह | साथ ही सम ु म रहने वाली
मछली का वण न िकया ह | जो अपना जीवन पानी म िबताती ह | पर वह मछली उस पा नी म
अपने संपूण बल स े ऊपर उछलती ह | और उसक उछलन क े साथ जो पानी िक एक ब ूँद
सबसे ऊपर िदखाई द े रही ह | उस ब ूँद िक ललक म मछली जल स े ऊपर छला ंग लगाती ह
| और िदन – रात जल म रहने वाली मछली उस एक ब ूँद को पान े के िलए बैचेन ह | वह एक
बूँद उस अथाह सागर स े भी िकमती उस मछली को लग र ही ह | मछली क े उछलन स े किव
अेय कहना चाहत े ह िक मछली का जीवन जल ह लेिकन वह उस ब ूँद को पान े िक ललक
रखती ह | यह ललक उस े अपन े सामन े िदखन े वाली कृित और उसस े जुड़े भाव स े जोड़
रही ह | कृित उस े (मछली ) को अपनी और आकिष त कर रही ह |

बना द े िचतेरे से तापय ह | यह स ुंदर िच बनान े वाले तुम मेरे िलए एक िच बना दो िचतेरा
से तापय ह | जो िच बनाता ह लेिकन क ैसा िच भाव िक अिभयि करन े वाला िच
जो सब क ूछ जानता ह, समजता ह, ानी ह, ाता ह | उसस े किव िच बनान े के िलए कह
रहे ह | लेिकन किव जो िच बनवाना चाहत े ह उसक कुछ शत ह | कुछ िनयमावली ह |
उसी क े अनुसार किव िच बनवाना चाहत े ह | वह िनयमावली या ह | सव थम उस
अथाह िवतारत नील े सागर को मापना होगा जो उपरी तौर पर हलचल उथल -पुथल
करता िदखाई द ेता ह | जो हवा क े झको स े परेशान ह | जो अपनी हजार लहर स े उछलता
– कुदता हँ | और दौडती लहरो म जो झाग या ब ुंद – बूंदे उठत े ह | उनसे टूटना भी उसक े
अपार सदय के दशन हम कराता ह | यिक वह लहर चंचल ह | जैसे हमारा जीवन ह |
इस कार किव अ ेय ने समु और उसक े ियाओ ं को मानव जीवन स े जोडकर दशा या ह|
उनके अनुसार जीवन भी सागर ज ैसा िवतीण ागाढ नीला अथा त सुंदरता स े भर हो ना munotes.in

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अेय जीवन परचय और
बना द े िचतेरे किवता
55 चािहय े | यह पेड़ो से तापय जीवन म िकतनी ही आप ियाँ आये लेिकन उसाह पी लहर े
सदा लहराती रह े आती रह े वो लहर े टूँटेगी भी िबखर ेगी, न होगी ल ेिकन बार बार उपन
होकर वो अपना सदय बनाय े रखगी या वह लगातार चलन े के िलए जीवन को आग े बढान े
के िलये यासरत रह गी, अपने कम िनःवाथ भाव स े करती रह ेगी | और अपना जीवन
अथमय बनाऐ ंगी इसे सुंदर और गहन अययनशील ब नायगी | वभाव व श जीवन का कोई
अथ नह होता ह, लेिकन मानव क े कम उसे अथमय और सार गिभ त बनात े ह | अपने म,
परम , इछा, आका ंा और वन प ूत करक े वह जीवन म आई आपदाओ ं से नह डर ेगा,
वरना अपन े अथक यासो स े उन क िठनाइय पर मात कर ेगा और म ेहनत म करक े अपन े
जीवन को तीक बना एगा | किव न े यहाँ सागर को जीवन का तीक बना िदया ह | सागर
और जीवन को एक कर िदया ह | इसीिलए उहोन े िच बनान े वाले से सागर को द ेखकर
उसके कम, म को भिल भा ँित जानकर व ैसा जीवन द ेने िक आशा य क ह |
हा पहल े सागर आ ँक,
नीचे अगाध, अथाह ,
असंय दबाव , तनाव, खचो और मरोड़ को
अपनी व एक पता म समेटे हए
असंय गितय और वाह को
अपने अखड थैय म सामाही त िकये हए
वायत
अचंचल
-जैसे जीवन

इन पंियो म िफर एक बार सागर स े जीवन को जो ड़ रहे ह | लेिकन उसक े अलग वभाव
गुण और व ृितय से | सागर अथाह ह उसी कार स ंपूण जीवन म भी दबाव , तनाव िक
अिधकता ह | लेिकन इस अिधकता क े बावज ुद भी और कठोर और िनिय हो जाय गे तो
इस दबाव और तनाव को सहना नाम ुमिकन हो जाय ेगा लेिकन सागर भी अपार तनाव और
दबाव स े गृिसत ह लेिकन वह अपन े तरल प क े कारण व वृि के कारण सभी क िठनाईय
को नील जाता ह | इसी कार हम भी अपना जीवन सागर क े समान व तरल करना ह
तािक हम तनाव , परेशािनय, दबावो स े घबराय े नही उह े समािहत कर और उसाह स े
आगे बढे समय परिथ ित के साथ तालमय बनाकर आग े बढे जीवन म सामंजय बनान े िक
कोिशश करत े रहे | गंभीर और एकािचत य दबाव तनाव स े घबराता नह ह | इहे
अपने म संहीत कर ल ेता ह | और अपनी एक अलग पहचान बनाता ह | उसक गंभीरता ही
उसक शि होती ह | इसीिलए वह क िठनाइय क े वाह म नह बहता बक उन सब को
अपने अंदर समाकार आग े बढन े का संकप लेता ह | किव इसी कार क े जीवन िक बात
कर र हे ह | पहले पंियो न े किव न े सागर िक चंचलता का वण न िकया ह | वहाँ दुसरी
पंयाँ सागर क े गंभीर भाव को य करती ह | और मानव जीवन म भी इन दोनो ग ुण का
होना आवयक ह | तभी मानव अपन े जीवन म हर क िठनाई से जूझ सक ेगा और तपरता स े
आगे बढेगा |

सागर आ ंक कर िफर आ ंक एक उछली हई मछली अधर ऊपर म
जहाँ ऊपर भी अगाध नीिलमा ह| munotes.in

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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
56 तरंगोिमयाँ ह, हलचल और ट ूटन ह |
व ह ,दबाव ह |
और उस े घेरे हए वह अिवकल स ूमता है |
िजस म सब आ ंदोलन िथर और समािहत होत े ह !
उपर अधर म
हवा का एक ब ुलबुला भर िपन े को उछली
हई मछली िजस िक मरोडी हई द ेह - वली म उस िक िजजीिवषा िक उकट आत ुरता
मुखर ह |
जैसे तिडलता म दो बादलो क े बीच क े िखंचाव
सब कध जात े ह |

किव अ ेय ने पहली और द ुसरी प ंियो म सागर क े आंतरक और बा हरी वभाव का वण न
िकया ह | और अब ितसरी , पंयो म सागर म रहने वाली मछली क े मायम स े जीवन िक
कुशलता बतान े का यास कर रह े ह | सागर म रह रही वह एक मछली जो उछल रही ह |
और जब वह उछलकर सम ु के ऊपर अधर म ह तो देखती ह िक वह िजस सागर म ह वह
भी नीला ह | और उपर आकाश भी नीला ह | जब वह मछली उपर उछलती ह | अपने
जीवन िक उजा बढान े के िलए | उसके उछलन े िक ताकत स े ही हम उस मछली क े जीवन
जीने िक उकंठा को अन ुमािनत कर सकत े ह | िक तमाम क िठनाईयो को झ ेलकर अथक
परम कर क े वह उछल रही ह | इसी स े उसक े जीवन जीन े िक लालस का हम अ ंदाज
लगा सकत े ह | किव कहत े ह िक उस मछली िक भाँित ललक हमार े जीवन म आगे बढने िक
| वह हवा म उछली अपनी प ूरी देह को मरोड कर उस ब ुलबुले म पानी िक एक ब ूँद को पान े
के िलये आतुर ह | लेिकन जब वह उछलकर नीला आकाश द ेख रही ह और साथ म नीला
सागर दोनो का एक प द ेखकर वह अच ंिभत ह, लेिकन बादल म िबजली क े चमक स े
अिधक अथा त बादल होन े का भास हो रहा ह , इसी कारण कठोरता , उ और तीता ज ैसे
भाव वातवहीन हो गय े, िमट गय े सभी न हो गय े |
व अनजान े, असूत, असंधीत सब
गल जात े ह|
उस ाण का एक ब ुलबुला – भर पी ल ेने को
उस अनत नीिलमा पर छाय े राहत े ही
िजस म वह जनमी ह , िजयी ह , पली ह , िजयेगी
उस द ुसरी अनत गाढ नीिलमा िक ओर
िवुलता िक कध िक तऱह
अपनी इया िक सारी आक ुल तड़प क े साथ उछली ह ई
एक अकेली मछली |

इन पंिय म किव आयाम िच ंतन करत े हए कहत े ह, िक हमारा इस स ंसार म जम हआ
ह अपना जीवन जीते ह और जीवन जीत े समय हम कई क िठनाईय का , संघष का सामना
करना पड़ता ह इन किठना ईय को मात द ेकर िह हम जीवन म एक पहचान बना पात े ह |
संघष करक े ही हम आग े बढत े ह और आग े बढन े के िलये जो शि हम े चािहए , जो उजा
चािहए उस उजा का ोत या ह ? िजसके ारा हम आग े बढते ह | किठना ईय को मात द ेते munotes.in

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अेय जीवन परचय और
बना द े िचतेरे किवता
57 ह | हम सोचन े पर मजब ूर हो जात े ह, िक िजसक े ारा हम े शि िमलती और िजसन े इस
जगत का िनमा ण िकया ह | जो इस स ृि को चला रहा ह | आगे बढा रहा ह | वह परम िपता
परमामा कौन ह ? और कहा ँ ह? ये सभी उस परमामा स े िमलने उसे पाने िक ललक
हमारे मन म जाग उठती ह और हम सारी सा ंसारक चीजो स े ऊपर उठ जात े ह | किव
कहते ह ठीक इसी कार मछली जब सागर स े ऊपर िक ओर उछलती ह तो सम ु म जो
नीिलमा ह वह नीिलमा आसमान िक नीिलमा स े आयी ह | और आकाश िक नीिलमा सम ु
से उसी कार ज ैसे कृित भी ईर का एक प ह और जब हम ईर िक चाह म उसे पाने
के िलये आगे बढते ह | उस समय ईर को पान े िक ललक -तड़प हम े उजा देती ह और उसी
उजा से पुन: हम इस स ंसार म जीवन िवतार करन े के िलये आगे-बढने के िलये ेरत ह |
हमारा मानना ह िक सभी नर -नारी सभी क े साथ समान यवहार करत े ह ए ेम, दया,
कणा स े रहना चािहए यह समझ हम े ईर िक आराधना स े आती ह | उसे पाने िक लालसा
से आती ह | यिद स ंसार िक मोह -माया म फँस कर रह गय े तो, ऐसे उच िवचार हमार े
मितक म कभी नही आ सकत े ह | किव आग े कहत े ह िक संसार िक सम परिथतीय
को आ ँकने के बाद अथा त सागर को आँकने के पात जब ऊपर उठ गे तो अपना जीवन
सुफल स ंपूणम िक भावना स े जी सक गे अथात उचकोटी का जीवन जी सक गे |
बना द े िचतेरे,
यह िच म ेरे िलये आँक दे|
िमी िक बनी स े सची , ाणाका श िक यासी
उस अ ंतहीन उिदषा को
तु अंतहीन काल क े िलये फलक पर टा ँक दे
यिक यह मा ँग मेरी, मेरी, मेरी ह िक ाण क े
एक िजस ब ुलबुले िक ओर म ै हआ उद , वह
अंतहीन काल तक म ुझे खचता रह े:
मै उद िह बना र हँ िक
-जाने कब-
वह म ुझे सोख ल े |

परमेर यिद आप िचकार ह , तो यह िच म ेरे िलये बना दो | ऐसा िच िक म इस जगत म
रहँ, संघष कर जीऊ ँ, अपने जीवन को अथ दे सकूँ, और जब भी इस जीवन म मुझे कोई
किठना ई आए तो म ै परमिपता परमामा स े अपन े सबध को थािपत करत े हए आग े बढूँ,
मुझे ईर स े बल िमल े और उस शि के संचारन स े मै वापस इस स ंसार म अिधक सफल
तरीके से अपन े जीवन को अथ पूण बना सक ूँ | इस कार का िच अप म ेरे िलए बना दो |
इस कार प ंचतव स े बना हआ यह शरीर ह | अथात िमी स े बना हआ पानी स े सचा
हआ जीवयोत िक यास िलए हए इस उिदशा को त ुम फलक पर टा ँक सको तो टा ंक दो
यही मेरी माँग ह | और म ेरी माँग ह िक िजस एक ब ूँद के िलए म ै इस स ंसार स े ऊपर उठा हँ |
संसार म रहकर भी स ंसार स े ऊपर उठन े िक बात कर रहा हँ | ( संसार िक मोह-माया का
याग कर परमामा का यान ) वह आराधना , उजा जीवन काल तक म ेरे अंदर बनी रहे | यह
भास हमारे मन म हमेशा रह े िक हम या ह | हम इस िवतीण सा का एक अ ंश ह | यह
हमे हमेशा ात रह े और उस शि को स ंिचत करन े के िलए समझन े योय बनाय े रखन े के
िलए ण ब हो तभी इस स ंसार को हम और अछी तऱह स े समझ सक गे | यिक संसार munotes.in

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58 से ऊपर उठकर स ंसार को जीना ही जीवन ह | यास को अगर त ुम बनाय े रखो तो हम ेशा
बनाये रखना यही म ेरी इछा ह | मै उस परमामा को पान े के िलए हम ेशा आत ुर रहे |
उसस े उजा लेती रहँ| उसक कृपा ि म रहँ | और अ ंत म कब म उसम लीन हो जाऊ ँ
(आमा स े परमामा का िमलन ) मुझे ात नाही ह लेिकन उसस े ,िमलन े िक आतुरता म ेरे
अंदर हम ेशा बनी रह े | यह यास म ेरे अंदर रह ेगी तो म ै और अिधक परमी बन ुँगा, वयं को
मानवीय बनाय े रखुंगा | इस स ंसार स े जुडे रहकर स ंसार िक सेवा कर सक ुँगा | इस स ेवा के
सुख से मुझे शि िमलेगी | इस शि से मै अपन े परमिपता िक और ए क कदम आग े बढ
सकुँगी |

५. ४ सारांश

उ इकाई क े अययन स े िवाथ किव अ ेय के जीवन और उनक े रचना स ंसार स े
अवगत हए | पाठ्यम म शािमल चार किवताओ ं म से एक किवता 'बना द े िचतेरे' का अथ
और भावाथ को समझ सक े |

५. ५ दीघरी
१) किव अेय के यिव और क ृितव पर काश डािलए |
२) "बना द े िचतेरे' किवता क े भावाथ को प िकिजए |
३) "बना द े िचतेरे' किवता म िनिहत आयािमक िकोण िक समीा िकिजए |
४) "बना द े िचतेरे' किवता क े भावाथ को सोदाहरण समझाइए |

५. ६ लघुरी

१) किव अ ेय का प ूरा नाम या ह ?
उर - सिचदान ंद हीरान ंद वायायन 'अेय'
२) सिचदान ंद हीरान ंद वायायन 'अेय' को अ ेय नाम िकसन े िदया ?
उर - मुंशी ेमचंद
३) "बना द े िचतेरे' किवता अ ेय के कौनस े काय स ंह स े ली गई ह ?
उर - आंगन के पार ार
४) "बना द े िचतेरे' किवता म किव न े िचतेरे िकसे कहा ह ?
उर - िचकार को
५) "बना द े िचतेरे' किवता म जीवन म कैसे आगे बढ़ने िक बात कही गई ह ?
उर - संघष करके

५. ७ संदभ पुतक

१) अेय क किवता एक म ूयांकन – डॉ. चंकांत बांिदवडेकर
२) अेय क काय िततीषा – डॉ. नंदिकशोर आचाय
३) अेय क किवता परपरा और योग – रमेश ऋिषकप
४) अेय, िचंतन और सािहय – ेम धन
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59 ६
िचिड़या न े ही कहा और अतः सिलला
इकाई िक प र ेखा
६.० इकाई का उ ेय
६.१ तावना
६.२ 'िचिड़या न े ही कहा ' किवता का भावाथ
६.३ 'अतः सलीला ' किवता का भावाथ
६.४ सारांश
६.५ दीघरी
६.६ लघुरी
६.७ संदभ ंथ

६.० इकाई का उ ेय

इस इकाई क े अंतगत िवाथ पाठ ्यम म सिमिलत अ ेय के काय स ंह 'आंगन के पार
ार' काय स ंह िक 'िचिड़या न े ही कहा' और 'अतः सलीला ' किवता का अययन कर गे |
इन किवता ओं के भावाथ को जान गे |

६ .१ तावना

िहंदी सािहय का आधुिनक काल क े किवय म अेय ने अपनी हर एक किवता म पाठक
का परचय मानव क े नवीन प स े कराया ह उसके जीवन िक महा स े उसे अवगत कराया
ह | मानवी जीवन क े साथ क ृित और पश ु -पिय िक और भी उहन े सवागीण ि डाली
ह | िजसस े उनके सामािजक सव ण और पया वरण क े ित िना भाव हम िदखता ह |

किव अ ेय ने 'िचिड़या न े ही कहा ' किवता क े पूव भी िचिड़या पर एक किवता िलखी
िजसका नाम था | ‘िचिड़या िक कहानी ’ इस किवता म िचिड़या क ेवल िचिड़या क े अथ म
नही थी | वरन् उसके साथ कई अन कह े अथ जुड़ गये थे | वह साधारण सी िचिड़या िज ंदगी
का अथ िसखा रही थी | उसका मौन वभाव िनल कम का तीक था | िचिड़या जीवन
िक कृित ह, कम ह और फल ह , योगवादी किवयो िक यही म ुख व ृि रही ह िक उहोन े
िकसी भी योग को साथ क िस करन े म संपूण भाषाव को उ ंडेल िदया और इन
किवताओ ं को िबब तीक क े खर योग स े अिभय ंिजत कर किवता म िनखार लान े के
साथ-साथ किवता को अयामपरक ि स े जोड़ िदया ह | जैिवक तव को भाव , कम और
संघष से ांिकत कर परमतव स े जोड़न े म योगवादी किवयो का जवाब नह ह | इस
ेणी म किव अ ेय का नाम म ुखता स े िलया जाता ह |

अेय ारा रिचत किवता ‘िचिड़या न े ही कहा ’ किवता म किव न े िचिड़या िक ओर पाठक
का सप ूण यान क ेित िकया ह और िचिड़या क े प म न होकर या िचिड़या िचिड़या न munotes.in

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60 होकर एक अन ुभूित ह और उसी अन ुभूित को किव इस किवता क े मयम स े अिभय
करते ह |
मैने कहा
िक िचिडया
म देखता रहा –
िचिड़या िचिड़या ही रही |
िफर िफर द ेखा
िफर िफर बोला ,
िचिडया |
िचिड़या ही रही
जो यि सािहय स े जुडा ह और यिद वह किव ह तो जीवन का हर लहा हर ण अपनी
किवता म समेट लेता ह | समय, परिथ ित, कालान ुप किव काय रचना करता ह | उसी
कार किव अ ेय ने उड़ती हई एक िचिड़या द ेखी और उस पर किवता िलख डाली |
लेिकन िचिड़या िसफ मायम थी | किव क े अंतमन िवचारो िक और उनके मन म चल रह े
मानव जीवन क े अथ िक किव कहत े ह िक म ै आसमान िक तरफ द ेख रहा था | जो िचिड़या
उड रही थी | मै उसक और एक टक द ेखता रहा | मुझे वह िचिड़या बार बार व ैसे ही िदखी
िजतनी बार म ेरी नजर उस िचिड़या पर थी | वह िचिड़या म ुझे हर बार िचिड़या ही नजर
आयी | जैसा िक हम जानत े ह – िचिड़या का अथ किव अेय ने अंतबध माना ह , इसीिलय े
इन काय प ंि के मायम स े किव कहना चाहत े ह िक जब अपनी अ ंतआमा स े जुडा रहता
हँ | तब म वयं िक संवेदना अहसास कर पाता हँ | वयं को िथर और एक िदशा म सुचा
प स े चला सकता हँ | यिक मै एक –एक ण उ ससे जुडा हँ | तो हर बार वह स ंवेदना
मुझे एक ज ैसी लग रही ह | और म ै जगत समाज , मानव जीवन स े वयं को जोड़ सका हँ |
िफर जान े कब
मैने देखा नह
भूल गया था म ै ण भर को तकना
मै कुछ बोला नह –
खो गयी थी ण भर को तध चिकत -सी वाणी
शद गय े थे िबखर फटी छीमी स े जैसे
फट कर खो जात े है बीज
अनयना रवहीना धरती म
होने को अ ंकुरत अ जाने -
तब जान े कब –
िचिड़या न े ही कहा
िक िचिड़या |
वह िचिड़या थी |
िचिड़या
िचिड़या नही रही ह तब स े
मै भी नही रहा म ै |
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िचिड़या न े ही कहा और
अतः सिलला
61 आगे किव कहत े ह िक मुझे पता ही न चला िक मै उस उड़ती हई िचिड़या को द ेखना भूल
गया | वह जान े कहाँ चली गई | अब म ुझे देखने से भी नजर नही आ रही ह | उस िचिड़या के
न िदखन े से मै अब बोल नह पा रहा हँ | अपनी स ुद-बुध खो ब ैठ हँ | या बोल ू शद म ेरी
जुबान पर नह आ रह े ह, जैसे एक पौध े या बेल म फली होती ह | उसके अंदर जो बीज होत े
ह, वह एक सरी म एक ज ैसे जमे होते ह | एक ही म म आते ह, और बढत े ह | किव कहत े
ह िक मेरे शद भी ऐसी ही संवेदनाओ ं से भरे हए अन ुभूित के अंतबध म समाय े एक समान
जो मेरी जुबान पर आन े वालो शदो िक ेरणा थ े | सुंदर और एक लय म वतारत होत े
जाते थे | लेिकन म ेरी संवेदनाओ ं से जब स े मेरा नाता ट ूटा ह, मै भटक गया हँ | जीवन और
समाज स े परे हो गया हँ | इसका म ुझे पछतावा ह लेिकन जो उस फली क े बीज जमीन पर
िबखर े ह वह जमीन ब ंजर ह | वहाँ िकसी िक नजर नह जाती ह | वह बीज इस अ नजानी
धरती पर कब अ ंकुरत होग े यह भी हम े पता नह चल ेगा और ऐस े संकोच भरी मन :िथती म
वह िचिड़या ही वापस आकर हमस े कह रही ह | हमे देख रही ह | उस िचिड़या क े देखने भर
का एहसास या ह? हम अछी त रह जान गय े ह लेिकन उस िचिड़या क े न होन े से हम भी
नह रह गे | हमारा भी अितव नह रह ेगा | जग अथ हीन हो जाएगा |

किव अ ेय इन प ंिय का भावाथ मानव क े अंतमन िक संवेदनाओ ं से जोड़ रह े ह | िपछली
पंिय म संवेदना को आमसात करन े पर मानवी जीवन और समाज िक उनि िक िदशा
िक ओर किव न े संकेत िकया ह | वही इन प ंियो म किव उड़ती हई िचिड़या को देखना
भूल जात े ह और यह भ ुलना अपन े अंतबध और अ ंतमन से नाता तोड़ कर भौितक जीवन
िक ओर असर होना ह , उसस े अपना स ंबंध घिन करन े िक ओर किव न े संकेत िकया ह ,
लेिकन इस भोग िवलास भर े जीवन म पदाप ण करन े से किव इसके दुपरणाम िक ओर
संकेत करत े हए कहत े ह िक मेरा जीवन स ंवेदनाओ ं के खो जान े से िबखर िबखर गया ह ,
मुझे कुछ नह सूझ रहा िक मै या क , मै टूट गया हँ, िबखर गया हँ और इस ट ूटने
िबखरन े के फलवप जो उपन होगा वह अपनी द ुकम का फल होगा | यिक उसका
पालन पोषण अछ े से नह हआ ह | उनका उगम ोत ही गित हीन ह | ऐसे म यि
अनुभूित हीन हो जाएगा | समाज स े कम से िविश होकर उसका जीवन अिधक काल तक
सुकर नह हो सकता , यिक मानव जीवन िणक ह , उसे अमर बनान े के िलये अंतमन
और अ ंतबध हो ना बहत जरी ह | इसके अभाव म मानव – मानव नह रह जाएगा | वह
समाज जन और वय ं को गत िक ओर ढक ेल रहा ह | खो रहा ह , अजनबी हो रहा ह ,
अंतरामा स े ईर स े और वय ं से
‘किव हँ|
कहना सब , सुनना ह , वर क ेवल सनाटा |
कही बड े गहरे म|
सभी व ैर ह िनयम ,
सभी सज न केवल
आंचल पसार कर ल ेना|’

आगे किव कहत े ह िक, मै किव हँ, मेरा काम या ह | कहना और स ुनना ल ेिकन ासदी म
संवेदना हीन हो जान े पर म ेरे वर भी स ुनसान सनाट े म खो जाय गे | िकसी को स ुनाई नह
दगे उड़ती हई िचिड़या िक तरफ द ेखना अथात अपनी अन ुभूित संवेदनाओ को अ ंतिनिहत munotes.in

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62 करके आगे बढना िजसस े आमिवास म वृी होगी | हम परमामा स े जुडे रहगे लेिकन
इसके िवपरीत विन म िचिड़या को उड़त े देखना भ ूल गया अथा त म भौितक स ुख,
भोगिवलास म तलीन हो गया | इससे संवेदनहीनता और परमामा से दूर होने का बोध
होता ह | जो जीवन को नक बना द ेता ह| और ग त क ओर ढकेलता है ऐसे म किव क े वर
भी सनाट े म लीन हो गय े | िकसी को स ुनाई नह द े रहे ह | किव कहत े ह िक मै भी स ंवेदना
हीन हो गया हँ और सभी कृित के िनयमो को तोड़ कर मनमा नी कम करन े लग गया हँ |
िसफ सब क ुछ पान े िक आस म ुझे ह िकसी को क ुछ देना तो मेरे कुकम न े भुला िदया ह |
अब िजतना भी म ुझे िमल रहा ह वह म ुझे कम ही ल ग रहा ह | मुझम पाने िक आस क ुछ
िमलन े िक आस इतनी बढ गई ह िक मै बस ल ेना ही लेना जानता हँ |

किव किवता म िचिड़या क े मायम स े हमारी मन :िथती का वण न कर रह े ह | हमारा मन
जब तक हमार े िनयंण म रहेगा | वह स ंवेदना और अन ुभूित से जुडा रह ेगा लेिकन जब उस
मन स े हमारा यान िवि होगा | टूटेगा तो वह स ंवेदनशील और अ ंतरामा स े अलग हो
जायगा और भोगिवलास , भौितक स ंसाधनो क े अधीन चला जाएगा | ऐसे म मानव न अपने
बोली पर िनय ंण रख ेगा और नही कम पर ऐस े म सब क ुछ िबखर जायगा , टूट जायगा और
समाज म आने वाली अगली िपढी भी कमजोर मनोबल स े उपन होगी | वह भी भौितक
सुख – साधनो को अपनी ताकत मान कर खोखल े वप को लेकर आग े बढेगी | ऐसे म
कम करन े िक चाह स े अिधक आलय बढ ेगा और आल य के बढन े पर अन ुभूित अथ हीन
हो जाय ेगी | आस रह ेगी िसफ पाने िक और पान े िक चाह इतनी अिधक रह ेगी िक िजतना
िमले उतना कम ही लगेगा, लेना भी ह तो ढेर सारा जो प ुरे आँचल म समा सक े |

६.३ 'अतः सलीला ' किवता का भावाथ

अतः सिलला नामक किवता आ ँगन के पार ार नामक काय स ंह स े ली गई ह | इस
काय स ंह म १९५९ से १९६१ तक रिचत किवताओ ं का स ंचयन त ुत हआ ह |
'आँगन के पार ार ' किवता को १९६१ म सािहय अकादमी प ुरकार स े समािनत िकया
गया यह काय स ंह अयाम बोध क े साथ जीवन क े यथाथ दशन और सामािजक िहताय
को त ुत करता ह | अतः सिलला किवता क े िवषय म िवानो का मानना ह िक यह
किवता िट .एस. इिलयट क े िसा ंत का अन ुसरण करती ह |

अतः सिलला शीष क से तापय वह नदी िजस िक धारा आ ंतरक िवतार करती जाती ह
और बाहर स े इस धारा को न कोई द ेख सकता ह न ही इसका अन ुमान लगा सकता ह |
इस कार अतः सिलला क े भाव को किव मानव क े मन क े उेग से जोडत े ह तुत
किवता म नदी मानव िक अंतसचेतना का तीक मानी गई ह और र ेत उसक े भौितक
आस िक ओर स ंकेत करती ह |

यह किवता किव अ ेय जी न े इलाहाबाद स े िदली र ेल म वास करत े समय २० फरवरी
१९५९ को िलखी | इस किवता का ार ंभ करत े हए किव अ ेय कहत े ह |

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िचिड़या न े ही कहा और
अतः सिलला
63 रेत का िवतार
नदी िजस म खो गयी
कृश – धार |
झरा म ेरे आँसुओं का भार
मेरा दुःख धन,
मेरे समीप अगाध पारावार –
उसने सोख सहसा िलया

अतः सिलला नदी को मायम बनाकर किव कहत े ह िक मानव जीवन भौितकता स े
जकड़ा हआ ह इस भौितकता को हम अितव हीन मानत े ह लेिकन यही भौितक स ुख
सुिवधाय आज मानव जीवन का अितव और य ेय बन च ुिक ह | अेय कहते ह िक नदी
के चारो ओर र ेत का िवतार ह | और यह िवतार इतना अिधक ह िक इसम े जो नदी िक
पतली सी धारा ह वह खो च ुिक ह इस धारा िक तुलना किव अपन े आँसुओं से करत े ह और
कहते ह मेरी आ ँख स े जो आ ँसुओं िक धारा वह र ही थी वह म ेरा दु:ख पी धन था म ेरी
धरोहर थी उस धरोहर को म ेरे पास क े अगाध सम ु ने सोख िलया ह | यहाँ किव का तापय
पानी या जल स े भरे समु से न होकर र ेत से भरे समु से ह जहाँ किव क े आँसू खो गय े ह |

जैसे लुट ले बटमार |
और िफर अिितज
लहरीला मगर ब ेटूट
सुखी रेत का िवतार -
नदी िज स म खो गयी
कृश - धार |

किव कहत े ह िक मेरे आँसुओं को उस र ेत ने सोख िलया उसी कार ज ैसे कोई ल ुटेरा पूरी
धन दौलत ल ूट लेता ह और इ ंसान को धन हीन खोखला बना द ेता ह उसका सव व छीनन े
को असर हो उठता ह | आगे किव कहत े ह इस छोर स े उस छोर जहा ँ तक नज र जाती ह
वहाँ तक क ेवल र ेत ही नजर आती ह और इस र ेत का िवतार भी पानी िक तरह लहरीला
ह इतना अगाध ह िक न क े न टूटे लहरा रहा ह इसमे असीम िवतारत र ेत के कारण नदी
के पानी िक पतली सी धारा नजर हीन हो गई ह खो गई ह |

िकंतु जब जब जहा ँ भी िजसन े कुरेदा
नमी पायी और खोदा -
हआ रस –संचार
रसता हआ गड ्ढा भर गया |

आगे किव कहत े ह िक पानी िक धारा को र ेत ने छुपा िलया था ल ेिकन पानी िक चाह म
िजसन े भी उस र ेत को क ुरेदा अपनी जगह स े उसे हटाया और खोदा उसक पानी पान े िक
चाह प ुरी हई ह अथात क करन े वाले का कोई भी कम जो वह प ूरे तन मन स े करता ह वह
कभी यथ नह जाता उसको फल जर िमलता ह उसक सभी इछा आका ंा पूण होती
ह |
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64 यो अजाना प ंथ
जो भी का ंत आया का ल े कर आस ,
वपायास स े ही शात
अपनी यास
इस स े कर गया
खच ल ंबी सा ंस
पार उतर गया |

एक अ ंजान पिथक जो इस रात े से गुजर रहा था वह थका हआ था उस े यास लगी थी वह
बड़ी आशा क े साथ पानी िक आस िलय े यहाँ ठहरता ह वह इस थोड़ े अप पानी स े ही
अपनी यास शा ंत कर बड़ े ही सा ंवन भाव स े यहाँ से िनकलता ह |
अरे अतः सिलल ह रेत :
अनिग ंनत पैरो तल े रदी हई अिवराम
िफर भी घाव अपन े आप भरती
पड़ी सजाहीन
धूसर-गौर
िनरीह और उदार |

आगे किव कहत े ह यह जो र ेत का िवतार चार ओर र ेत ही र ेत िदखाई द े रही ह यह रेत
और इस र ेत म िछपी नदी िक धारा जो हम िदखाई नह द े रही ह वह धारा न जान े िकतन े
पैर तले रौ ँ दी जा रही ह और लगातार रौ ँ दी जा रही ह िकतन े ही घाव इस र ेत को लगत े ह
लेिकन इन घाव को वह वय ं ही बड़ी आसानी स े भर ल ेती ह उसके घाव भरन े कोई द ुसरा
यि नह आता वह वय ं ही अपन े घाव भर ल ेती ह | यह रेत जो साधारण ह िकसी भी
कार का आकष ण इसमे नह ह रंग प म भी यह मट म ैली ह लेिकन ग ुण म िनपुण ह जो
नदी िक धारा को छ ुपा सकती ह मेहनत करन े वालो िक यास ब ुझा सकती ह और िकतन े
ही पैरो तल े ंदकर अपन े जम आप भरन े िक ताकद भी र ेत मे ह |

भावाथ :
अतः सिलला किवता म े किव न े जीवन म या द ु:ख को एक स ूखी नदी क े मायम स े
य िकया ह कृश - धार स े किव का तापय आँसुओं िक धारा स े ह और यह क ृश - धारा
को रेत ने छुपा िदया अथा त दु:ख को य कर ने का मायम जो यह आ ँसू ह वह आ ँसू भी
उसस े छीन िलय े गए और उसक े दु:ख का नामो -िनशान िमटा िदया |

िकतु वयं से िमटकर नदी न े यह तो जान िलया िक द ु:ख या ह ? इनिक वेदना या ह?
इसीिलय े वह िकसी को द ु:खी नह द ेख सकती | यह जो र ेत मे डूबी हई नदी ह वह उप ेिता
ह, परया ह, परिथितय स े हताश ह लेिकन िफर भी सब िक इछा आशाओ ं का
यान रखती ह उनिक पीड़ा का िनवारण करती ह | लेिकन िकसी को उसक परवाह नह
ह, उसे जो घाव लग े ह उसक तरफ िकसी का यान नह ह | इस कार किव मानव िक
कुठा और उसक े अंदर के दद को इस किवता क े मयम स े वाणी द ेते ह और इसी भाव प
को इस किवता क े मायम स े किव त ुत ह | munotes.in

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िचिड़या न े ही कहा और
अतः सिलला
65
मानव िक अंतरामा बा र ेत अथा त भौितक स ुख-सुिवधाओ ं के आधीन हो च ुिक ह ऐसी
परिथित म िजसन े भी परमामा का यान िकया उस े परमग ित िमली वह िनराश नह
हआ | आमा िकतन े ही घाव को सहती ह और वय ं उन घाव को भर लेती ह यह घाव
मानव क े दुकम पी घाव ह िजहे आमा सहती ह वह बाहरी जीवन िक चोट को सहती ह
लेिकन वय ं उन घावो को भरती ह | पडी सजा हीन घ ुसर-गौर, अथात आमा िजसका
कोई र ंग प , आकार -कार नह ह लेिकन वह उदार ह सव-सवा ह , िनकलंक ह वह
अतः सिलला ह | बाहरी चोट स े न घबरकार उन जम का िनवारण करक े आंतरक प
से सुसज परप ूण बने रहकर जीवन को स ुचा प स े आगे बढाती ह | दुसरा अथ यिद
इस किवता का द ेख तो अतः सिलला सरवती नदी ह जो िव ेणी संगम म समािहत ह |
गंगा, यमुना नदी हम िदखाई द ेती ह परंतु सरवती नदी पर र ेत का आवरण ह | वह प
नजर नह आती यह अतः सिलला अथा त सरवती नदी किव िक सजनामक च ेतना को
उजागर करती ह | जो बाहरी जीवन क े भौितक अ ंधकार म कृश हो गई ल ेिकन मानव यिद
चाहे तो अपन े आिमक ब ल से इस अ ंधकार को क ुरेद सकता ह और ऐसा करन े से उसे
िवा पी रस िक ाि होगी जो उसक े जीवन को जाग ृत कर ेगी, सफल कर ेगी इसका र ंग-
प, आकार नजर नह आय ेगा लेिकन इसका स ंचार जीवन म उजाला कर द ेगा चमक भर
देगा जीवन को सफलता दान कर ेगा |

६.४ सारांश

उ इकाई क े अययन स े िवाथ किव अ ेय के आंगन के पार ार नामक काय स ंह स े
पाठ्यम म शािमल चार किवताओ ं म से दो किवता िचिड़या न े ही कहा और अतः
सलीला का अथ और भावाथ को समझ सक े |
६.५ दीघरी

१) िचिड़या न े ही कहा किवता क े मायम स े किव का पया वरण क े ित िकोण को अपन े
शद म िवतारत िकिजए |
२) िचिड़या न े ही कहा किवता का भावाथ प िकिजए
३) अतः सलीला किवता का भावाथ अपन े शद म िलिखए |
४) अतः सलीला किवता क े मायम स े किव िकस और पाठक का यान इ ंिगत करना
चाहते ह सिवतार समझाइए |

६.६ लघुरी

१) िचिड़या न े ही कहा किवता म िचिड़या या ह ?
उर - जीवन िक कृित
२) िचिड़या न े ही कहा किवता िक रचना किव न े कौनस े संग से भािवत होकर िक ह?
उर - आसमान म उड़ती िचिड़या को द ेखकर
३) िचिड़या न े ही कहा किवता म िचिड़या का अथ किव न े माना ह | munotes.in

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66 उर - अंतबध
४) अतः सलीला किवता म रेत के िवतार न े या छ ुपा िदया ?
उर - नदी िक पतली धारा
५) अतः सलीला किवता म किव जीवन क े दुःख को िकस मायम स े विणत करत े ह?
उर - सूखी नदी क े मायम स े

६. ७ संदभ ंथ

१) अेय क किवता एक म ूयांकन – डॉ. चंकांत बांिदवडेकर
२) अेय क काय िततीषा – डॉ. नंदिकशोर आचाय
३) अेय क किवता परपरा और योग – रमेश ऋिषकप
४) अेय, िचंतन और सािहय – ेम धन




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67 ७
असायवीणा
इकाई िक प र ेखा
७.० इकाई का उ ेय
७.१ तावना
७.२ असायावीणा किवता का परचय
७.३ असायवीणा किवता का भावाथ
७.४ सारांश
७.५ दीघरी
७.६ लघुरी
७.७ संदभ ंथ

७.० इकाई का उ ेय

अेय िक किवताए ँ अपनी िवशेष शैली के िलए जानी जाती ह | उनके ारा रिचत एक मा
लबी किवता ह 'असायवीणा ' यह किवता अथ ,भाषा ,शैली और ऐितहािसक ि से
महवप ूण मानी जाती ह | इस अयाय म िवाथ असायवीणा किवता के अथ ,भावाथ को
समझ सकगे और किवता के सभी महवपूण मु से अवगत हगे |

७.१ तावना

िहंदी सािहय क े आधुिनक काल म योगवाद और नई किवता का उदगम किव अ ेय ारा
माना जाता ह | वह जापानी सािहय म िस ‘हायकु’ (छोटी किवता ) का सव थम िह ंदी
सािहय म योग अ ेय ने ही िकया | उनके जीवन परचय म हम उनक े बहआयामी
यिव का अययन कर च ूके ह | वे एक क ुशल किव , कथाकार , आलोचक , संपादक ,
फोटोाफर , पवतारोही , पयटक आिद कई ेो म अपनी ची और कौशयता दज करात े
रहे ह और इसी बहआयामी यिव क े कारण ही उन िक किवता ओं म कई अनछ ुये
पहलुओं और कई अ ंत और बा मन क े भावो का सााकार अनायास ही हो जाता ह |
अेय िक किवताए ँ िबब और तीक िक अिभयि क ुशलता स े करती ह | उनिक
अिधका ंश किवताए ँ आकार म छोटी ह | जहाँ तक लबी किवता िक बात िक जाए तो एक
मा लबी किवता अ ेय ारा रिचत ह वह ह – ‘असायवीणा ’




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68 ७.२ असायवीणा किवता का परचय

‘असायवीणा ’ किवता का रचना काल सन १९५७ -५८ माना जाता ह िजसे उहोन े जापान
दौरे के बाद रचा ह | 'आँगन के पार ार ' नामक काय स ंह म यह किवता स ंकिलत ह
िजसका काशन १९६१ म हआ |

जैसा िक हम जानत े ह किव अ ेय भटक ंती के शौिकन थे जहाँ भी जात े वहाँ िक संकृित,
समाज यवथा को जानन े िक ललक उनम रहती थी इसी लालसा िक उपज ‘असाय
वीणा’ लबी किवता मानी जाती ह | यह किवता एक िकवदती स े जुडी हई ह जो एक चीनी
– जापानी द ेश िक लोक – कथा ह | इस किवता िक मूल कहानी ‘आकोक ुरा’ िक पुतक ‘द
बुक ऑफ टी ’ म ‘टेिमंग ऑफ द हाप ’शीषक नाम स े संकिलत ह | इस कथा का वण न इस
कार ह – ‘लुंगािमन एक घाटी थी िजसम े एक िवशाल व ृ था इस व ृ का नाम था ‘िकरी
वृ’| इस िवशा ल वृ म एक जाद ुगर ने वीणा का िनमा ण िकया | अनेक वा य ंकारो ,
कलाकारो न े वीणा को बजान े िक पूरजोर कोिशश िक लेिकन वीणा बजान े म असमथ रहे
यही कारण ह िक वीणा का नाम असायवीणा रख िदया गया | बाद म “बीन करो ” जो िक
एक सम ुदाय ह उनका राजक ुमार िपवो इस वीणा को साय ल ेता ह | उसके ारा जब वीणा
से िविभन कार क े वर िनकलत े ह कभी ेम के, कभी ोध क े, कभी वीणा िक मधुर
वाणी आपािवत करती ह तो कभी य ु का राग स ुनाती ह | इस कार यह कथा बौ धम
के झेन संदाय िजस े यान स ंदाय भी क हा जाता ह और तावो वािसय म बहत
चिलत ह |

‘असाय वीणा ‘ यह नाम अ ेय जी न े बड़ी आमीयता और गहन िवचार म ंथन क े बाद िदया
ह | अपने भटक ंती जीवन िक लालसा और ची क े चलत े जापान दौर े से आने के पात
यह किवता रची जो वहा ँ िक पौरािणक क हानी स े सरोकार ल ेकर किव न े कथा का
भारतीयकरण कर िदया यहा ँ तक िक किवता क े पा भी और स ंरचना को भी अपना सा
करना ल ेखक न े महवप ूण माना यह किवता किव अ ेय िक अय किवताओ ं िक तऱह
भावाथ िनिहत ह | जो य क े अतः मन क े सय का उसस े सााकार कराती ह |

७.३ असायवीणा किवता का भावाथ

अेयजी न े असायवीणा िक िनिमित ाचीन िवशाल , महाकाय िकरीटी व ृ से मानी ह |
इस व ृ से वीणा का िनमा ण व िकित नामक साधक न े िकया था | वीणा का िनमा ण होत े ही
विकित िक जीवन लीला भी समा हो जाती ह | उनके पात वीणा को कोई नह बजा
पाता और यह वीणा असायवीणा बन जाती ह | अनेक कुशल वादक अपन े अथक यन
को अिज त करक े भी वीणा का तान नह भेद पात े |

आ गये ियंवद ! केशकंबली ! गुफा गेह !
राजा ने आसन िदया ! कहा :
कृत कृय हआ मै तात ! पधारे आप | munotes.in

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असायावीणा
69 भरोसा ह अब मुझ को
साध आज मेरे जीवन िक पूरी होगी |

किवता का ार ंभ राज दरबार स े होता ह | जहाँ भरे दरबार म ियंवद केश कबली का
आगमन होता ह | ियंवद केश कबली महान साधक , तपवी ह | िजहोन अपनी साधना
से समाज म ानी बह ुत होन े का मा न पाया | दरबार म आगमन क े पात राजा न े ियंवद
को असाय वीणा िक संपूण जानकारी दी | राजा का स ंकेत पाकर दरबार म उपिथत
सेवक जन वीणा को दरबार म ले आते ह |

लघु संकेत समझ राजा का
गण दौड़े ! लाये असायवीणा ,
साधक के आगे रख उसको , हट गये |
सभा िक उसुक आँखे
एकबार वीणा को लख, िटक गयी
ियवंद के चेहरे पर |

यह वह वीणा िजस े कई साधक अन ुभवी ानी जो अब तक वीणा को साधन े म असफल रह े
इसी कारणवश वीणा का नाम असाय वीणा रखा गया | आज यह असाय वीणा िय ंवद
के समुख रख दी सभाग ृह म उपिथत सभी जन त ध, चिकत और आ ँखो म उस ुकता
का भाव िलय े एक नजर वीणा िक ओर द ेखते वही अगल े ण उन िक आँखे ियंवद के चेहरे
पर िटक जाती ह|

"यह वीणा उराख ंड के िगर-ातर से
--घने वन म जहाँ त करते ह तचारी --
बहत समय पहले आयी थी ।
पूरा तो इितहास न जान सके हम :
िकतु सुना ह
विकित ने मंपूत िजस
अित ाचीन िकरीटी -त से इसे गढा़ था --
उसके कान म िहम-िशखर रहय कहा करते थे अपने,
कंध पर बादल सोते थे,
उसक कर-शुंड सी डाल

आगे राजा महान साधक क ेशकबली को वीणा का इितहास और उसक उपि िक
जानकारी द ेते हए कहत े ह िक यह वीणा उराख ंड के घने वन द ेश से आयी ह | जहाँ बड़े
बड़े तपवी तपया करत े ह हम इसक े पूण इितहास िक जानकारी नह ह परंतु इतना पता
ह िक व िकित नामक साधक न े अित ाचीन िकरीटी – त नामक व ृ से इस वीणा का
िनमाण िकया और म ंोचारण क े ारा इस वीणा को पिव बनाया | उस व ृ िक िवराटता
का वण न करत े हए राजा कहत े ह ,वृ िक उँचाई आकाश स े भी उ ँची थी स ुना ह बादल
इसके कध पर सोया करत े थे | इसिक कोटर म भालूओं का वास था | इस व ृ िक जड़े
पाताल लोक तक फ ैली हई थी |
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70 िहम-वषा से पूरे वन-यूथ का कर लेती थ पराण ,
कोटर म भालू बसते थे,
केहर उसके वकल से कंधे खुजलान े आते थे।
और --सुना ह-- जड़ उसक जा पँहची थी पाताल -लोक,
उसक गंध-वण शीतलता से फण िटका नाग वासुिक सोता था ।
उसी िकरीटी -त से विकित ने
सारा जीवन इसे गढा़ :
हठ-साधना यही थी उस साधक िक --
वीणा पूरी हई, साथ साधना , साथ ही जीवन -लीला

कहा जाता ह िक वास ुिक नाग इस पर अपना फन टीका कर सोया करता था | ऐसे अूत
और िवराट व ृ से विकित ने इस वीणा का िनमा ण िकया यही उस साधक क े जीवन िक
अपूव साधना ह और इस साधना क े पूण होने के साथ उसक जीवन लीला भी समा हो
गई वह इस े बजा नह पाया | इस वीणा का िनमा ण व िकित के संपूण जीवन िक हठ साधना
थी |
राजा के साँस लबी लेकर िफर बोले :
"मेरे हार गये सब जाने-माने कलावत ,
सबिक िवा हो गई अकारथ , दप चूर,
कोई ानी गुणी आज तक इसे न साध सका ।
अब यह असाय वीणा ही यात हो गयी ।
पर मेरा अब भी ह िवास
कृछ-तप विकित का यथ नह था ।
वीणा बोलेगी अवय , पर तभी।
इसे जब सचा वर-िस गोद म लेगा ।
तात ! ियंवद ! लो, यह समुख रही तुहारे
विकित िक वीणा,
यह म, यह रानी, भरी सभा यह :
सब उद, पयुसुक,
जन मा तीमाण !"

इस कार राजा आग े बहत ही आािसत होकर कहत े ह िक व िकित का यह तप यथ
नह जाय ेगा | एक िदन सय वर िस वादक इस वीणा को जर साय कर सक ेगा और
यह वीणा व िकित जैसे साधक िक साधना ह जो एक तपवी ,एकािच ानी , साधक ,
सयशोधक ारा जर वरत होगी |

आगे राजा िय ंवद स े कहत े ह विकित िक यह वीणा आज त ुहारे सामन े रखी ह और
आज इस भरी सभा म रानी और सभी म ंीगण, जन मानस इस वीणा क े नाद का इ ंतजार
कर रह े ह ,सभी उस ुक ह वीणा िक झंकार स ुनने के िलये |

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असायावीणा
71 केश-कबली गुफा-गेह ने खोला कबल ।
धरती पर चुपचाप िबछाया ।
वीणा उस पर रख, पलक मूँद कर ाण खच,
करके णाम ,
अपश छुअन से छुए तार ।

राजा क े आासन भर े वय को स ुनकर क ेशकबली न े कबल िनकाला और जमीन पर
िबछा िदया , वीणा बड़ े ही आदर िना क े साथ उस कबल पर रखी और अपन े संपूण जीवन
िक साधना को णाम कर आ ँखो को ब ंद कर िच को यान म लीन कर वीणा को णाम
िकया और इस वीणा िक महान िकित सुनकर अधीर हए |

धीरे बोला : "राजन! पर म तो
कलावत हँ नह, िशय, साधक हँ--
जीवन के अनकह े सय का साी ।
विकित !
ाचीन िकरीटी -त !
अिभमित वीणा !
यान-मा इनका तो गदगद कर देने वाला ह ।"

केशकबली स ंकोच भर े वर म राजा स े कहत े ह- म कला को सीखन े वाला साधारण िशय
हँ, गु नह हँ,साधक हँ साय नह | सय पथ का अभी राही मा हँ, शीष पर अभी नह
पहँच पाया हँ | अभी आपन े विकत जैसे महान साधक क े बारे म बताया अित ाचीन
िकरीटी व ृ िक िवशालता का वण न सुनाया यह असाय वीणा जो म ंोचारण स े अिभिहत
हई ह इस िवषय म आपन े मुझे जानकारी दी इस स ंपूण जानकारी स े मेरा रोम –रोम फ ूल
गया, म भाव िवभोर हो गया हँ | म आगे कूछ कर भी पाऊ ँगा या नह इसी स े संदेिहत हँ,

संकोिचत हँ |
चुप हो गया ियंवद ।
सभा भी मौन हो रही ।

वा उठा साधक ने गोद रख िलया ।
धीरे-धीरे झुक उस पर, तार पर मतक टेक िदया ।
सभा चिकत थी -- अरे, ियंवद या सोता ह ?
केशकबली अथवा होकर पराभूत
झुक गया तार पर ?
वीणा सचमुच या ह असाय ?
पर उस पिदत सनाट े म
मौन ियंवद साध रहा था वीणा--
नह, अपने को शोध रहा था ।
सघन िनिवड़ म वह अपने को
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72 यह कह कर िय ंवद शा ंत हो जात े ह और स ंपूण सभा म मौन छा जाता ह | इस शा ंत और
शील वातावरण म ियंवद बड े आदर क े साथ वीणा को गोद म रखत े ह और वीणा पर
नत–मतक हो जात े ह | यही अवथा म बहत समय रहन े के कारण सभा म उपिथत
सभीजन आय चिकत हो जात े ह और मन ही मन सोचत े ह या िय ंवद सो गया ह या
वयं को परािजत मानकर वीणा पर झ ुक गया ह | सभा म उपिथत जन क े मन यह
सोचकर भी अधीर हो जात े ह िक या इस वीणा को कोई नही साय कर सक ेगा | यह वीणा
असाय ही रह ेगी |
लेिकन ऐसा नह ह ियंवद वीणा पर झ ुका हआ ह, वह आमिच ंतन कर रहा ह, वयं का
अवलोकन कर रहा ह

सप रहा था उसी िकरीटी -त को
कौन ियंवद ह िक दंभ कर
इस अिभमित कावा के समुख आवे?
कौन बजाव े
यह वीणा जो वंय एक जीवन -भर िक साधना रही?
भूल गया था केश-कबली राज-सभा को :
कबल पर अिभमित एक अकेलेपन म डूब गया था
िजसम साी के आगे था
जीिवत रही िकरीटी -त
िजसिक जड़ वासुिक के फण पर थी आधारत ,
िजसक े कध पर बादल सोते थे
और कान म िजसक े िहमिगरी कहते थे अपने रहय ।
सबोिधत कर उस त को, करता था
नीरव एकालाप ियंवद ।

यिक ियंवद जानता ह यह वीणा व िकित िक जीवन साधना ह जो िवशाल िकरीटी त
से बनी अिभम ंित हई | यह वीणा कोई साधारण वीणा नही ह | इस वीणा को कोई भी वह
यि नह साय पाय ेगा िजसक े मन म अिभमान हो ऐसा य इस े साधन े िक कोिशश भी
नह कर पाय ेगा | यिक यह वीणा एक मा वा य ं न हो कर तपवी क े जीवन िक
साधना ह | यदी हम इस वीणा को साधन े का यास मा भी करना ह | तो सव थम अपन े
मन को वछ करना होगा , अिभमान को जड़ स े िमटाना होगा | इन सभी बात का िनधा र
कर क ेश कबली िय ंवद वीणा बजान े का यास करन े पूव देश- काल, वातावरण , परवेश
सभा म उपिथत जन -मांनस स े िनरालिबत हो गया उह े, भूल गया और उसन े वयं को
आमिच ंतन और आम अव ेषण म लीन कर िलया |

आगे किव अ ेय कह ते ह ियंवद कबल पर रखी उस अिभम ंित वीणा म डूब जाता ह
वयं को वीणा म समिप त कर द ेता ह अब यही वीणा िय ंवद का सव व ह, संसार ह | यह
वीणा िजस िकरीटी त स े िनिमत हई ह वह िकरीटी व ृ कृित के उपादन स े परपूण
था | उस व ृ िक िवशालता का बखान अितश योि लगता ह | परंतु सय ह िक उसक जडे
वासुिक नाग क े फन पर िवराजमान थी | उस िवशाल व ृ के कंधो पर बादल सोत े थे और
वफ से लधे हए पव त िजनका असली प िकसी को नह िदखता | वे पवत, िहमिगरी अपना munotes.in

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असायावीणा
73 रहय एक मा करटी व ृ से कहते थे | इस कार वीणा म और उसक े इितहास म वयं
को पूरत कर द ेना ही िय ंवद का नीरव एकालाप ह |

"ओ िवशाल त!
शत सह पलवन -पतझर ने िजसका िनत प सँवारा,
िकतनी बरसात िकतन े खोत ने आरती उतारी ,
िदन भरे कर गये गुंजरत ,
रात म िझली ने
अनथक मंगल-गान सुनाये,
साँझ सवेरे अनिगन
अनचीह े खग-कुल िक मोद-भरी ड़ा काकिल
डाली-डाली को कँपा गयी--
वृ िक िवशालता को स ंबोिधत करत े हए िय ंवद कहत े ह िकरीटी व ृ िक िवशालता और
ाचीनता इतनी गहरी ह िक इस व ृ ने न जान े िकतन े सह हजारो प तझड़ और सावन
देख ह और इन सावन - पतझड़ न े कईय बार इस व ृ को सजाया ह, संवारा ह | अनिगत
जुगनूऒं ने िकरीटी व ृ िक आरती उतारी होगी िकतन े ही भवर िक गुंजन स े िकरीटी व ृ
िखल उठा होगा | हर रात म िझंगरीयन े न थक े सुंदर मन को ल ुभाने वाले मंगल गान गाय े
हगे | कई पीय क े घर इस व ृ म हगे िकतन क े ही जम थान और कईय का जीवन

यापन, खेल-कुद आिद साधन िकरीटी व ृ रहा होगा |
ओ दीघकाय !
ओ पूरे झारख ंड के अज,
तात, सखा, गु, आय ,
ाता महछाय ,
ओ याकुल मुखरत वन-विनय के
वृदगान के मूत प,
म तुझे सुनूँ,
देखूँ, याऊँ
अिनम ेष, तध , संयत, संयुत, िनवाक :
कहाँ साहस पाऊँ
छू सकूँ तुझे !
तेरी काया को छेद, बाँध कर रची गयी वीणा को
िकस पधा से
हाथ कर आघात
छीनन े को तार से
एक चोट म वह संिचत संगीत िजसे रचने म
वंय न जाने िकतन के पिदत ाण रचे गये।

"नह, नह ! वीणा यह मेरी गोद रही ह, रहे,
िकतु म ही तो
तेरी गोदी बैठा मोद-भरा बालक हँ, munotes.in

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74 तो त-तात ! सँभाल मुझे,
मेरी हर िकलक
पुलक म डूब जाय :

इसका अन ुमान हम इस व ृ क िवशाल काया स े लगा सकत े ह | यह वृ संपूण झारख ंड
राय क े सभी व ृ का आिद ह, नायक ह ,ो ह | और इस िवराट व ृ िक देन यह वीणा
ह | इस वीणा क े तार छ ेड़ने का इस े साधन े का यास क ैसे क मन का यही स ंकोच बार
बार िय ंवद को रोक रहा ह | तभी अचानक उनका यान गोद म रखी वीणा िक ओर गया |
वीणा को द ेख वे कहत े ह यह वीणा म ेरे गोद म रखी ह वह ऐस े ही रखी रह े यिक म ुझे ऐसा
तीत हो रहा ह िक म तेरी (वीणा) गोद म बैठा हआ , नादान सा बालक हँ | और त ेरी गोद
म बैठकर बहत आन ंिदत महस ूस कर रहा हँ | (ियंवद ने यहाँ वयं को बालक मान िलया
यिक नहे बालक म अहं भाव नही होता न वह साधक होता ह | और नह सय , असय ,
भाव-दुभाव म अंतर जानता ह |) इस कार िय ंवद ने वृ को ता त कहकर स ंबोिधत करत े
हए कहा िक अब त ु मुझे संभाल, मेरी रा कर तािक म तेरे तार से झंकार उपन कर
सकूँ | जब तक त ु ऐसा नह कर ेगा तब तक म इस सभा म राजा –रानी अय म ंी व
उपिथत जन सम ुदाय को स ंतु नह कर पाऊ ँगा इसीिलए म चाहता हँ िक म तुमसे
अिभन हो जाऊ ँ तुम म लीन हो जाऊ ँ यदी ऐसा हो सक ेगा तो म तेरी गोद म बालक
बनकर िककारी ल ुँगा, मचलूँगा, रोऊँगा, हसुंगा और सभी कार िक बाल डाओ ं से तुझे
भाव िवभोर कर सक ुंगा |
म सुनूँ,
गुनूँ,
िवमय से भर आँकू
तेरे अनुभव का एक-एक अत:वर
तेरे दोलन िक लोरी पर झूमूँ म तमय --
गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँस
भर, पुर, रीत, िवाित पाय।
"गा तू !
यह वीणा रखी ह : तेरा अंग -- अपंग।
िकतु अंगी, तू अत , आम-भरत,
रस-िवद,
तू गा :
मेरे अंिधयार े अंतस म आलोक जगा
मृित का
ुित का --
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !

वही द ुसरी बात वीणा स े कहत े ह िक म तेरी अंतवाणी स ुनकर उसम े जो िवचार ह मनो–
कामनाए ँ ह जो िक अब तक दबी हई थी | उहे सुन सक ुंगा | तेरे अनुभव िक जानकारी
मुझे िमलगी और उही अन ुभवो स े म मेरे जीवन स ँवार सक ुंगा उसक समीा कर सक ुंगा
ियंवद वीणा स े कहत े ह िजस कार मा ँ पालन े म नहे बालक को लोरी गाकर स ुलाती ह munotes.in

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असायावीणा
75 और बचा उस लोरी िक धुन से झूम कर ख ेलकर आन ंद से सो जाता ह | उसी कार त ू भी
मीठी लोरीया ँ सुना म भी त ेरी वर लहरो स े झुमना चाहता हँ | आनंिदत होना चाहता हँ |
तेरी लय क े उठन े िगरन े के साथ ही म ेरी साँस ऊँठेगी - िगरेगी तेरी धुन को सुनकर ही म पूण
िवांती का आन ंद क ंगा | बस त ु गा अपनी झ ंकार म ुझे दे दे | म तेरी लय क े साथ एक
राग हो जाऊ ँगा | अपने इसी अन ुमोदन क े िलए िय ंवद िकरीटी त स े बनी वीणा पर
नतमतक ह | उस व ृ और वीणा क े ित आमीय व समप ण भाव को य कर रहा ह |
यिक वह जानता ह जब तक उसक े मन का अहम भाव नह िमट जाता तब तक परम
सय को पाना अस ंभव ह | इस कार िय ंवद आमिच ंतन और आम म ंथन कर रहा ह |
यिक सयाव ेषक को यह कम करना अिनवाय ह | हे वीणा त ु गा म तेरी हर एक लय क े
साथ एक तान हो जाना चाहता हँ | तेरी हर एक लय क े साथ एक तान हो जाना चाहता हँ |
तु अपन े वर स े मेरे अंतआमा क े अंधकार को िमटा द े | मेरी आमा क े अान को िमटा द े
तािक म सय िक खोज कर सक ूँ | इसीिलए त ु गा त ेरा गाना बहत आवयक ह तु गा |

हाँ मुझे मरण ह :
बदली -कध – पिय पर वषा –बुंदो िक पट पट |
घनी रात म महए का च ुपचाप टपकना
चौके खग-शावक िक िचहँक|
िशलाओ ं को द ुलरात े वन-झरने के
ुत लहरील े जल का कल –िननाद |

इस कार आग े िक प ंियाँ ियंवद के मरणाथ म िलखी गई ह | ियंवद याद करत े हए
कहते ह उरी भाग म जब वषा होती ह तो वहा ँ िक कृित कैसी होती ह वन-झरनो स े
टपकत े पानी का वर पिय पर टपकती ब ुंदो का वर खग -शावक व अय पिय का
चहकना वहा ँ के गांव का जन जीवन भी इस मायम स े किव अ ेय जी न े विणत िकया ह -
वषा ऋतु के आगमन िक ख़ुशी म गाँव म ढोल-ताशे बजत े थे, बाँसुरी का वर ग ूँजता था |
वषा ऋतू िक भाँित पव तीय द ेश िक शीत ऋत ू का वण न भी किव करत े ह | इसका वण न
किव न े िय ंवद के मायम स े िकया ह | शीत ऋत ू वणन म ठंडी हवाओ ं िक सरसर व िन,
कुंज लताओ ं का बढना ,हंसो का प ंख फैलाकर सन होना , घने वनो म वनपतीय िक
सुंदर स ुगंध का मन मोह ल ेना, प का आपस म टकराना , झरने के पाणी का एक लय म
बहना, पिय िक झंकार (कोिकल , चातक , दादुर, मोर, झगुर) से संपूण वन झ ंकृत हो
जाता था | इस कार किव िय ंवद के मायम स े उर द ेश िक शीत और वषा ऋतू का
वणन करत े ह |

आगे ियंवद मरण करत े हए कहत े ह | मुझे याद ह दूर पहाड़ीय स े काल े बादल िक बाढ़
आ रही ह और उसक आवाज ऐसी ह जैसे हाथीय का झ ुंड िचंघाड रहा हो , छोटी निदय
िक जलधारा घर घराट िक आवाज कर रही ह | रेतीले ढेर छप छप कर िगर रह े ह | पेड टूट
रहे ह और ट ूटते समय प ेड़ो. म अररा िक आवाज आ रही ह | ओले कर कर करक े िगर रह े
ह | जमी हई पिय क े ढेर और वह तनी हई स ूखी घास भी ट ूकडे टूकडे हो, टूट रही ह |
िमी क े जमा ढ ेर धीर े धीरे रस रह े ह ,ऐसा लग रहा ह वे घावो को सहला रह े ह | घाटीय munotes.in

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76 का भरना और चानो क े टूटने िक आवाज स े गुँजने िक आवाज भी का ँपने लगती ह और
उससे उपन विन म साँस डूब जाती ह | धीरे धीरे लीन हो जाती ह |

मुझे मरण ह
हरी तलहटी म छोटे पेड िक ओट, ताल पर
बंधे समय वन पश ुओं िक नाना िवध आत ुर तृ पुकार
गजन, घुघुर, चीखं, भूँक, हका , िचिचयाहट |
कमल -कुमुद प पर चोर प ैर ुत धािवत
जल प ंछी िक चाप |

उ प ंियो म ियंवद प ुरानी बात को याद करत े ह ए क ृित क े उपादानो का आय
य करत े ह | जो वय ं परमामा ारा रिचत ह | किव अ ेय कृित वणन के महारथी मान े
जाते ह उ प ंियो म किव न े वय-पशु पिय का िविभन कार क े वर का वण न िकया
ह | पहाड़ िक हरयाली म जमीन पर प े छोटे छोटे पेड़ सुंदर सा वातावरण वहा ँ और वन
म बसे पशु-पिय िक आवाज े िविभन कार िक ह कोई गज ना कर रहा ह तो कोई घ ुरा
रहा ह, कोई चीख रहा ह, तो कोई भ ूँख रहा ह, चीिडय िक चहचहाहट ह | वह जल म
िवचरण करन े वाले पी कमल प पर चोरी छ ुपे पैर रखकर भाग रह े ह और चोरी स े पो
पर पैर िक चप चप िक आवाज आ रही ह | मढक क े छलांग मारन े िक आवाज ,घोड़े िक टप
–टप िक आवाज और भ सो िक भारी आवाज भी स ुनाई द ेती ह | इस कार सभी पश ु-
पीय क े कलरव स े वन द ेश गूँज उठा ह |

ियंवद अब पव तीय द ेश के भौर काल अथा त ातः काल को याद करत े ह | मुझे याद ह
जब आकाश स े सुरज िक पहली िकरण ओस िक बूँद प पर स े चमकती ह | तो वह चमक
हम चौकान े वाली होती ह | वह य द ेखकर हम िसहरन सी उठती ह | और दोपहर क े
समय घा ँस पर र ंग िबर ंगे, फूल िखल जात े ह | उस पर अनिगनत मध ु मखीया ँ झूमती हई
गुंजार करती ह | किव कहत े ह वैसे तो दोपहर का समय आलय स े भरा होता ह | िदन क े
ठहराव का यह समय होता ह | साँझ के समय तार का आसमान म िझल -िमलात े यह तार े
चंचल स े तीत होत े ह| मानो तारो वाली माता अपनी तरल न जर स े एक जगह िक हई
और अपनी अस ंय स ंतानो को आशीवा द दे रही ह | सांझ का समय िदन और रात क े
िमलन का समय होता ह | यह समय भी िय ंवद महस ूस करता ह और कहता ह मुझे याद ह
कृित का एक एक िच तध , जड़वत करता ह | मै सब क ुछ म सब क ुछ सुनता हँ | परंतु
कृित के वर म जो क ंपन ह उसने मुझको म ुझसे ही अलग कर िदया ह | मेरे अितव
को मुझसे छीन िलया ह | म उस वर को स ुनकर पवन क े समान िवचरण करता हँ और
ऐसी िथती म मै वयं को भ ूल गया हँ | ऐसी अवथा म ियंवद वय ं को भ ूलकर िकरीटी
वृ म लीन हो गय े ह | कृित और िकरीटी वृ म ियंवद समािहत हो च ुके ह |

म नह नह | म कह नह |
ओ रे त | ओ वन |
ओ वर -संभार |
नाद-मय स ंसृित | munotes.in

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असायावीणा
77 ओ रस लावन |
मुझे मा कर –भूल अिक ंचनता को म ेरी –
मुझे ओर द े –ढंक ले – छा ले –
ओ शरय

ियंवद उ प ंिय म कह रहा ह | म अब कह नह चारो ओर त ुम ही त ुम हो, तुम वन हो ,
वरो क े भंडार हो त ुम संगीत िक संपूण सृि हो , अथाह सागर हो त ुम, िवशालता िक
पराकाा म ेरी गलितय को मा करो म ेरे तुछ कम को भ ूल जाओ ं, मुझे अपनी शर ण म
जगह दो म ेरा यिव त ुम बन जाओ अपन े आँचल स े मेरा सर ढ ंक लो |

मेरे गूँगेपन को त ेरे सोये वर – सागर का वार ड ुबा ळे !
आ, मुझे भला,
तु उतर बीन क े तारे म,
अपने से गा
अपने को गा
अपने खग क ुल को म ुरत कर
अपनी छायातप , वृि पवन , पलव -कुसुमनक लय पर
अपने जीवन -संचय को कर छ ंद यु .
अपनी ा को वाणी द े
तू गा, तू गा ...
तू सिनिध पा ... तू खो
तू आ...तू हो ... तू गा ! तू गा !

मेरे इस ग ूँगेपन को अपन े वरो म लीन कर दो , डूबो दो यिक म पूरी तऱह असमथ हँ |
यहाँ आकर इन तार म उतरकर म ेरी मदद करो और इस स ंगीत म उतर कर म ेरा जीवन
सफल कर दो ,मुझे मुखरत करो , मुझे आज बोलता कर दो | तुहारी आय िक छाया म
पले बड़े हए िहरणो िक दौड को आज ताल स े बांध लो त ुमने (िकरीट व ृ) जो सभी ऋत ूएँ
देखी ह | पतझड म प का िगरना , सिदय िक िठठुरन, वषा का भीगा पन वह आज य
करो उस े वर द े दो अपन े संपूण जीवन क े सार को छ ंद यु करक े अपन े भाव को वाणी
देकर आज गाओ इस कार िय ंवद उस िकरीटी व ृ से उस वीणा स े आवाहन कर रह े ह
तुम आज वर स े जुड़ जाओ ं गाओ ं गाओ ं गाओ ं | यह वीणा त ुहारा अितव ह वह
अितव त ुम आज िदखा दो त ुम आज यहा ँ आकर गाओ |

राजा आग े
समािधथ स ंगीतकार का हाथ उठा था ...
कॉपी थी उ ँगिलया ँ |
अलस अ ँगडाई ल ेकर मानो जाग उठी थी वीणा :
िकलक उठ े थे वर िशश ु |
नीरव पद रखता जािलक मायावी
सखे करो स े धीरे धीरे धीरे munotes.in

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78 डाल रहा था जाल ह ेम तार -का
सहसा वीणा झन झना उठी ...
संगीतकार क आ ँखो म ठंडी िपघली वाला -सी झलक गयी ...
रोमांच एक िबजली -सा सबक े तन म दौड़ गया |
अवतरत हआ स ंगीत
वयभ ू
िजसम सीत ह ै अखंड
हा का मौन
अशेष भामय

उस भरी सभा म राजा अचानक जाग जात े ह | और अब तक ऐसा तीत हो रहा था िक
ियंवद यान मन मानो समाधी ल े ली हो वह स ंगीतकार उसका हाथ अचानक उठता ह |
उंगिलया ँ काँपने लगती ह और ऐसा लगता ह जैसे सह वष िक नद प ुरी कर आलस
अंगड़ाई ल ेते हए वीणा जाग गई ह और उस वीणा म वर पी िशशु िकलकारी भर रहा ह |
अथात वीणा अब धीर े धीरे बजन े लगती ह | अब िय ंवद जाद ुगर िक भाँित लग रह े ह और
वीणा क े वरो को अपन े िहसाब स े बजा रह े ह अब वीणा क े वर पी तार का जाल उस
सभा म िवतारत होन े लगा था वीणा झन -झणा उठी और बजन े लगी | इस समय ियंवद
िक आँखो म ठंडी और िपघली सी वाला जल रही थी | आज उनक े यिव का नया
प सभा म य हो रहा था | सभा म उपिथत जन -जन क े शरीर म िबजली सी चमक
दौड़ गई सभी आय चिकत थ े | यह वय ंभू वर जो अपन े आप य हआ ह | इसिक
याि चार ओर फ ैल गयी थी | यह वर अख ंड था इसम हा का मौन ईर का
काशमान आलोक भी िवमान था |

डूब गये सब एक साथ |
सब अलग अलग एका िक पार ितर े |
राजा न े अलग स ुना
जय द ेवी यशः काय
वरमाल िलय े
गाती थी म ंगल-गीत
दुदुभी दूर कह बजती थी
राज-मुकुट सहसा हलका हो आया था
मानो हो फ ूल िसरस का |
ईया, महदाका ंा, ेष, चाटुता
सभी प ुराने लुगड़े से झड़ गये, िनखर आय था जीवन का ंचन
धमभाव स े िजसे िनछावर वह कर द ेगा |

सभा म उपिथत जन -जन स ंगीत म डूब गया ह | वहाँ उपिथत य ेक यि अपन े तरीक े
से अपन े भाव से अलग अलग उस स ंगीत को स ून रहा ह | उसका आन ंद ले रहा ह | राजा
ने इस स ंगीत को अपन े तरीक े से सुना िजसम िवजय िक देवी जो यश और िकत दान
करने वाली ह | उसके हाथ म वरमाला ह | वह मंगल गीत गा रही ह| िवजय का अवसर ह |
दूर कह स े नगाड िक आवाज आ रही ह | यह सब महस ूस कर राजा क े िसर क े मुकुट का munotes.in

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असायावीणा
79 बोझ हलका हो गया ह | मानो कोई भारी बोझ उतर गया हो यह म ुकुट िशरीष क े फूल समान
ह| जो ईया , ेष, महवका ंा, चाटूता (खुशांमद करना ) यह सभी भाव राजा क े मन क े
पुराने कपड े िक तऱह झड़ गय े थे | और उनका जीवन का ँच िक तऱह िनखर उठा था | अब
राजा अपना जीवन धम भाव स े समाज पर योछावर करन े का िनय कर ल ेता ह | इस
कार राजा पर उस वीणा क े संगीत का असर हआ |

रानी न े अलग स ुना :
छँटती बदली म एक कध कह गयी ...
तुहारे यह मािणक , कंठहार, पट-व,
मेखला िकंिकणी...
सब अ ंधकार क े कण ह ै ये | आलोक एक ह ै
यार अनय ! उसी क
िवुलता घ ेरती रहती ह ै इस भार म ेघ को,
िथरक उसी क छाती पर उसम िछपकर सो जाती ह ै
आत , सहज िवास भरी |
रानी
उस एक यार को साध ेगी |
सबने भी अलग - अलग संगीत स ुना
इसको
वह कृपा वाय था भ ूओं का ...
उसक
आतंक मुि का आासन
इसको
वह भरी ितजोरी म सोने क खनक ...
उसे
बटुली म बहत िदन के बाद अन क सधी ख ुशबू |
िकसी एक को नव वध ु क सहमी -सी पायाल -वनी |
िकसी द ूसरे को िशश ु क िकलकारी |
एक िकसी को जाल -फँसी मछली क त ड़पन...
एक अपर को चहक म ु नभ म उड़ती िच िड़या क |
एक तीसर े को म ंडी क ढ ेल-मेल, ाहक क अपधा -भरी बोिलया ँ |
रानी को जो स ंगीत स ुनाई द े रहा था वह राजा को स ुनाई द ेने वाले संगीत क े भाव स े अलग
था | िजसम रानी अपन े मोह और अान स े दूर हो रही ह | उनके पास जो मािणक , मोती,
हार व ेश - िकमती जवाहरात ,मेखला (करधनी ), पाजेब, सुंदर व , आिद सभी ऐय
अंधकार क े मम लगत े ह अथात इन सभी आभ ूषणो क े ित कोई मोह अब उनक े मन म नह
रहा ह | उनके जीवन म एक ही काश ह वह ह ेम का | यह ेम इतना अनय था िक ेम
पी िव ुत लता एक ओर अपन े उजाल े से घेर रही ह | वह यार पी िबजली आन ंद िक
छाती पर िछप कर सो जाती ह | वह यार िक िबजली आज सहजता स े िनि ंत होकर
िवास स े भर जाती जाती ह | रांनी उस ेम पी िबजली को अपन े जीवन म साध ल ेती ह |
उसे अपन े जीवन म अहं थान द ेती ह | और उसक े मन क े बुरे भाव िवचार , यार क े भाव munotes.in

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80 म परवित त हो जात े ह | उस वीणा का स ंगीत सभा म उपिथत सभी न े अलग अलग स ुना
था िकसी को वह स ंगीत अपन े भू िक कृपा वाणी सा लग रहा था , िकसी को भय स े मु
होने का आास न लग रहा था | िकसी धन क े लालची य को धन स े भरी ितजोरी म
सोने िक खनक सा महस ूस हो रहा था | िकसी भ ूखे यि को वह स ंगीत, वािद भोजन
िक सुगंध दे रहा था | िकसी क ुँवारे को अपनी नयी -नवेली दुहन क े पायल िक खनक तीत
हो रही थी | िकसी को अपन े बचे िक िकलकारी स ुनाई द े रही थी | िकसी को वह स ंगीत
जाल म फँसी मछली िक जकड़न या झटपटाहट सा महस ूस हो रहा था | वही वछ ंद
िवचार वाल े यि को आकाश म उड़ती िचिड़या िक चहक सा महस ूस हो रहा था | उस
सभा म जो यापारी थ े उहे संगीत का अहसास म ंडी म भीड़ िक धका बुक सा लग रहा
था | ऐसी तीत हो रहा था | यापारी एक क े बाद एक बोली लगा रह े हो िकसका सामान
िकतन े अिधक िकमत म िबके यह पधा लगी हई ह |

चौथे को म ंिदर क ताल य ु घंटा विन |
और पा ँचवे को लोह े पर सध े हथौड़े क राम चोट े
और छठ को लंगर पर कस मसा रही नौका पर लहर क अिवरामथपक
बिटया पार चमरौध े क सँधी चाप सातव के िलए ..
और आठव े को क ुिलया क कटी भ ेड़ से बहते जल क छ ुल-छुल
इसे गमक नी न क ए ड़ी के घुँघ क
उसे यु हा ढाल :

सभा म उपिथत िकसी चौथ े यि को म ंिदर म बज रही घ ंटी िक आवाज स ुनाई द ेती ह |
पाँचवे को लोह े पर सध े हथोड को चोट िक विन सुनाई द े रही थी | छठे यि को ल ंगर
डालकर खडी याक ूल नौका पर लगातार लहरॉ िक थपक पड़ रही हो ऐ ंसा महस ूस हो रहा
था | सातव े को चमड़ े से बने जूते िक चाप स ुनाई द े रही थी | आठवा िकसान ह उसे अपन े
खेत म जाते पानी िक छुल छुल आवाज आ रही थी | िकसी को नत िक के पैर िक घुंग िक
आवाज आ रही थी | तो कोई य ु म बजन े वाले ढोल िक आवाज स ुन रहा था |

इसे सजा गोध ुली क लघ ु टुन-टुन...
उसे लय का डम – नाद |
इसको क पहली अ ँगडाई
पर उसको महाज ृभ िवकराल काल !

सभा म उपिथत कोई जन स ंया िक गो धुली बेला के समय घर लौटती गाय क े गले म
घंटी िक टुनटुन आवाज स ुन रहा था | िकसी को स ंया आरती म बजन े वाली घ ंटी िक
मधुर विन स ुनाई द े रही ह | कोई लय क े समय हो रही िशवश ंकर क े डम िक आवाज
सून रहा ह | िकसी को यह स ंगीत जीवन िक पहली अ ंगड़ाई सा लग रहा ह | िकसी को यह
िवाल भय ंकर म ृयू के देवता िक आहट लग रही ह |

सब डूबे, ितरे, िझपे, जागे...
ओ रह े वंशवद, तध :
इया सबक अलग अलग जागी , munotes.in

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असायावीणा
81 संघीत हई ,
पा गयी िवलय |

इस कार सभा म उपिथत सभी जन स ंगीत म डूब गये यह य ऐसा तीत ह मान सभा
म उपिथत सभी जन वीणा क े वर म तेर रहे ह |वर क े मायम स े सभी जन वय ं से
परे हो गय े ह इस तऱह सबक े मन क े भाव और भावनाए ँ इस स ंगीत स े वह गई थी | सभी जन
संगीत क े वशीभ ूत तध हो गय े थे | सभी का यि व अपन े भाव म अलग अलग तरीक े
से िनखर गया था | सबका यिव स ंगीत क े साथ ज ुडकर उसम े लीन हो गया था |

वीणा िफर म ूक हो गयी
साधू ! साधू !!
राजा िस ंहासन स े उतरे –
रानी न े अिपत िक सतलड़ी माल
जनता िवल कह उठी “धय ”|
हे वरिजत धय ! धय !

आगे कुछ ही णो म संगीत स े झंकृत वीणा शा ंत हो जाती ह | िजसन े उपिथत सभी को
मं मुध कर िदया | राजा , साधू, साधू का उचारण कर अपन े िसहा ंसन स े उतर जाता ह |
रानी अपनी अम ूय रन जिटत सतलड़ीय वाली , माला अिप त कर द ेती ह | सभा म
उपिथत जन अपनी भावनाओ ं म खोकर िय ंवद को धय हो वर को जीतन वाले आप
धय ह का गजर सभा म गुंज उठता ह |

संगीतकार
वीणा को धीर े से नीचे रख, ढंक-मानो
गोदी म सोये िशशु को पालन े डालकर म ुधा मा ँ
हट जाय , दीठ स े डुलारती ...

ियंवद धीर े से वीणा को उठाकर नीच े रख द ेते ह | जैसे एक मा ँ बहत समय स े अपन े नहे
बालक को गोद म ले लाड़ - दुलार कर रही थी | दुलार स े अब बालक िक आँख लग गई
और मा ँ ने बालक को धीर े से पालन े म डाल िदया ह और यार स े एक टक उस े िनहारती
हई वहा ँ से हट जाती ह |

उठ ख ड़ा हआ |
बढ़ते राजा का हाथ उ ठा करता आवज न,
बोला :
“ेय कुछ नह म ेरा
मै तो डूब गया था वय ं शूय म
वीणा क े मायम स े अपन े को म ैने
सब क ुछ को स प िदया था
सुना आपन े जो वह म ेरा नह munotes.in

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82 न वीणा का था :
वह तो सब क ुछ क तथता थी
महा श ूय
वह महा मौन
अिवभाय , अना , अिवत , अमेय
जो शदहीन
सबम गाता ह ै |”

ियंवद उठ खड़ े हो जात े ह और वीणा िक ओर हाथ करत े हए कहत े ह िक, इस वीणा को
बजान े म मेरा कुछ योगदान नह ह| म तो वय ं ईर िक भि म एक अ ंजान शि म लीन
हो गया था | इस वीणा क े ारा म ैने वयं को परम स य को ईर को समिप त कर िदया था |
आप सभी न े जो भी स ंगीत स ुना ह | वह मेरा अपना नह ह मेरे कारण उपन नह हआ ह
और यह स ंगीत इस वीणा स े उपन स ंगीत भी नह था वह तो ईर िक शि थी िजसम
वयं को अिप त करक े कुछ पाया जा सकता ह यह भाव था वही संगीत स ंपूणता िक
पराकाा ह | जो महामौन िक भाँित ह| जो हम ेशा शा ंत रहता ह | कभी िवभािजत नह हो
सकता , सरलता स े उपलध नह हो सकता , जो चंचल नह ह | िजसका माप नह िकया जा
सकता जो शद हीन होकर स ृि के कण-कण को वरत करता ह |

नमकार कर म ुड़ा ियंवद केशकबली |
लेकर कबली ग ेह गुफा को चला गया |
उठ गयी सभा \ सब अपन े काम लग े |
युग पलट गया |
िय पाठक ! य मेरी वीणा भी
मौन थी

ियंवद राज सभा म उपिथत सभी को सादर नमकार करता ह | और अपना कबल
लेकर ग ुफ घर िक ओर िनकल पड़ता ह| ियंवद के जाते ही सभा म उपिथत सभी जन
खड़े हो जाती ह | सब अपन े अपन े काम म लग जात े ह अब सभी का यिव स ंगीत क े
कारण बदल च ुका ह | इिसिलए अब य ुग-काल भी बदल च ुका ह | किव अ ेय कहत े ह िक
मेरी वाणी भी अब शा ंत मौन - नीरव हो गई ह|

७. ३ सारांश

उ इकाई के अययन से िवाथ अेय ारा रिचत एक मा किवता असायवीणा के
अथ, कथानक और इस किवता से जुडी ऐितहािसकता से अवगत हए ह | असायवीणा
किवता के संदभ से जुड़े सभी के उर िवाथ आसानी से दे सकगे |



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असायावीणा
83 ७.४ दीघरी

१) असायवीणा किवता का कथानक अपने शद म िलिखए |
२) असायवीणा किवता िक ऐितहािसकता का वणन िकिजए |
३) असायवीणा किवता म अयामवादी िकोण मुख ह उदाहरण सिहत समझाइए |
४) असायवीणा किवता का भावाथ िक उदाहरण सिहत समीा कर |

७.५ लघुरी

१) ‘असायवीणा ’ किवता का रचना काल माना जाता ह
उर - सन १९५७ -५८
२) ‘असायवीणा ’ किवता 'आँगन के पार ार' नामक काय संह म संकिलत ह
िजसका काशन हआ |
उर - १९६१ म
३) असायवीणा किवता का संबंध कौनस े देश से ह ?
उर - जापान
४) असायवीणा किवता म वीणा िकस देश से आयी ह ?
उर - वीणा उराख ंड के घने वन देश से आयी ह |
५) विकित नामक साधक ने िकस वृ से इस वीणा का िनमाण िकया ?
उर - अित ाचीन िकरीटी – त नामक वृ

७ .६ संदभ ंथ

१) अेय क किवता एक म ूयांकन – डॉ. चंकांत बांिदवडेकर
२) अेय क काय िततीषा – डॉ. नंदिकशोर आचाय
३) अेय क किवता परपरा और योग – रमेश ऋिषकप
४) अेय, िचंतन और सािहय – ेम धन

 munotes.in

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84 ८
असायवीणा किवता का भावबोध
असायवीणा म नवरहयवाद
असायवीणा म काय िशप

इकाई िक प रेखा
८.० इकाई का उेय
८.१ तावना
८.२ असायवीणा किवता का भावबोध
८.३ असायवीणा म नवरहयवाद
८.४ असायवीणा म काय िशप '
८.४.१ भाषा
८.४.२ तीक योजना
८.४.३ िबब – िवधान
८.५ सारांश
८.६ दीघरी
८.७ लघुरी
८.८ संदभ ंथ

८.० इकाई का उेय

असायवीणा किवता िहंदी सािहय िक लबी किवताओ ं िक ेणी म मुख थान रखती
ह | अथ के साथ किवता के भाव भी उच कोिट के ह और सािहय म नवरवाद िक
उतपि भी अेय ारा ही मानी जाती ह साथ ही असायवीणा किवता म कायिशप िक
अनुशंसा भी सािहियक को नया अनुभव कराती ह | किवता के साथ उ सभी मु के
अययन से ही असायवीणा को िवाथ परपूण समझ सकगे |

८.१ तावना

असायवीणा किवता अेय िक लबी किवताओ ं िक ेणी मे मुख थान रखती ह |
किवता म हके-फुके शदाथ किवता का सदय चार गुणा कर देते ह | अेय िक किवताए ँ
िबब और तीक िक अिभयि कुशलता से करती ह | इस किवता िक कथा ऐितहािसक
वप को दिशत करती ह वह किवता म या एकाम और अयाम का जोड़ रवाद
िक अिभयि को मुखता देता ह | munotes.in

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असायवीणा किवता का भावबोध
असायवीणा म नवरहयवाद
असायवीणा म काय िशप
85 ८.२ असायवीणा किवता का भावबोध

इस किवता क कथा ऐितहािसक वप को दिश त करती ह िजसम े केश कबली और
विकित जैसे नायको स े कथा आर ंभ होती ह | राजा क ेश कबली िय ंवद को वीणा बजान े
या साधन े का आम ंण द ेते ह | ियंवद आम ंण वीकार कर राजसभा म पधार े ह | राजा
केश कबली वीणा का सप ूण इितहास िवतार प ूवक िय ंवद को बतात े ह | िकस कार
उराख ंड के िगरी ा ंत से बहत समय प ूव यह वीणा आयी थी इसका िनमा ण िकरीटी
नामक िवशाल व ृ से विकित नामक साधक न े अपन े अथक परम स े िकया था | और
वीणा प ूण िनिमत होत े ही व िकित िक जीवन लीला समा हो गई और उस साधक िक
वीणा बजान े िक अिभलाषा भी उसी समय धाराशायी हो गई | उसके बाद अन ेक संगीत
साधक इस वीणा को बजान े आय े लेिकन िनराश हो लौट यही कारण ह यह वीणा
असायवीणा नाम स े याती ा हई | राजा आग े कहत े ह िक मेरा िवास ह विकित िक
मेहनत िवफल न होगी इस वीणा को साधन े वाला सचा साधक जर आय ेगा और आज
ियंवद आप यहा ँ इस राजक म आये हो त ुहारी साधना , सयास , ान क े बारे म जो
सुना ह उसस े मुझे पुरा िवास ह िक आप इस वीणा को साय कर सक गे |

अेय िक असायवीणा किवता म वीणा का साय होना प ूणतः आमसमप ण और एका
िच भाव को िस करता ह | यह साधना ईर िक ाि ह | आमा का परमामा म लीन
होने िक िया ह | वीणा का झण -झनाना ही असाय स े साय हो जाना ह | असायवीणा
किवता क े मायम स े अेय एक सा ंकृितक, पौरािणक , ऐितहािसक यास िक बात करत े
ह | असायवीणा य िक आम च ेतना क े रीित का िवतार ह िजसम सभी शद शिया ँ,
अिभधा , लणा , यंजना अथ जय काय िक आवयकता ही नह जान पड़ती |
असायवीणा ज ैसे सजनामक िबन िक माला सी ग ुँथी हई जान पड़ती ह | यह सज ना
साधना िक अपता को सवपरी मानती ह | असायावीणा म िवषय स े अिधक वत ु िक
मौिलकता ाधाय ह | अेय रागामक स ंबंधो पर अिधक भावी ह | यह सब ंध का
सााकार जब होता ह तब राजा असायवीणा िय ंवद के हाथ म सपत े ह और िय ंवद
वीणा को कट लय मान कबल िबछाकर बढ े ही आदर सकार स े वीणा को िवराजत े ह
और णाम करत े ह | उस समय स ंपूण सभा आय चिकत एक टक हो शा ंती भर इस ण
को िनहार रही थी और इस शा ंितभर ण को िनहार रही थी और शा ंित औिचय वातावरण
म ियंवद वीणा साधन े िक तयारी म थे साथ ही वय ं के शोध और परीण िक भी तैयारी
कर रह े थे | वयं परण िक पहली सीढी थी वय ं को िकरीटी त को समप ण कर द ेना
इस समय िय ंवद राज सभा को भ ूल चुके थे | उसके बाद िय ंवद तन – मन – धन स े वय
जीवन , वय क ृित िक ओर आक ृ होत े ह अय वय जी व, जंतु, पेड़ - पौधे, नदी ,पहाड़,
पवत, िशखर , धरती, आसमान , माटी, पानी, झरने, चान े, रेत आिद वातावरण म वयं को
समा ल ेते ह | वय क ृित िक सुंदरता, जीव, जंतुओं से मानो वय ं को सााकार कर ल ेते
ह | ियंवद एक सच े िचंतन, मनन और यान क े बाद साधक स ंगीतकार का हाथ वीणा स े
लगा और ऊ ँगलीय न े वीणा क े तार को पश िकया और अचानक तार बज उठ े ,जैसे ही
वीणा बजी सभा न े उपिथत सभी जन म ं मुध हो उठ े सभी न े वीणा को अपन े अंदाज म
सुना | राजा न े वर माला िलय े हए जयद ेवी का गीत स ुना,रानी न े अपार ेम का वर , सभा म munotes.in

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आधुिनक काय
86 उपिथत यिय न े अपन े वभाव क े अनुसार िकसी न े आतंक मुि का आासन ,िकसी
ने भि का वर , िकसी न े ितजोरी म रख सोने, िहरे, जवहारात िक खनक , िकसी न े खेत म
ऊगे फसल िक खुशबू, िकसी न े नव वध ू िक पायल िक झणकार , िकसे ने छोटे बचे िक
िकलकारी आिद अन ेक भाव को सभी न े अपन े कम और धम के अनुसार स ुना | यह विन
सभी िक अपनी अपनी पस ंद िक थी | राजा न े साधु –साधु कह िय ंवद िक श ंसा िक |
रानी न े अपन े गले म पहनी िकमती सतलड़ी माला िय ंवद को भ ेट िक | सभा म उपिथत
सभी जन धय धय कह ि यंवद िक श ंसा म लीन हो गए लेिकन िय ंवद ज ैसे स च े
साधक न े वीणा क े साय होन े को वय ं का नह वरन ईर का य ेय को ितािपत होना
बताया और िय ंवद ने वीणा क े मायम स े वयं को समिप त कर िदया |

वीणा का अथाह मौन भाव ऐसा था जो िनः शद होकर भी सबक े दय म वरा ंजली अप ण
करता ह जो जैसा ह वैसा ही उस वीणा का वर म ुखर हो उठता ह और अपन े वर स े सभी
जन - जन को तन - मन स े वर शा ंती दान करता ह | इही भाव को अपन े साथ िलय े
ियंवद अपनी ग ुफा म चला जाता ह और सभी जन अपन े िनय कम म लग जात े ह इस
कार अ ेय िक यह किवता अपन े दय और आमा म असीम ईर क े येय िक पुी
करता ह | उस ईर िक भि एकािचता िक आवयकता और साधना िक पराकाा स े
आनंदानुभूती म लीन हो जाती ह |

८.३ असायवीणा म नवरहयवाद

नवरहयवा द िजस े सृजनामक रहयवाद भी कहत े ह | रहयवाद िक याया दश न शा
से िक जाती ह | जब कोई यि अपन े ई या परमतव क े साथ एकव अन ुभूित करता ह |
उसे रहयवाद कहत े ह यह अन ुभूित यि िक भगवान क े ित हो सकती ह | ेमी िक
ेिमका क े ित, पु अपनी मा ँ के ित, िवाथ िक अपने गु के ित | इस कार एकव
िक हम कबीर क े िनगुण ईर म भी द ेखने को िमलती ह और स ूर के सगुण प ी क ृण म
भी देखने को िमलती ह | इसी अख ंड एकव िक अनुभूित को रहयवाद कहत े ह |

रहयवा द के कई प ह हम यहा ँ अेय के काय पर चचा कर रह े ह | अेय का रहयवाद
सृजनामक रहयवाद या नवरहयवाद कहलाता ह | इसे रहयवाद का अ ुत प भी कहा
गया ह | असायवीणा किवता म सृजनामक रहयवाद िक पुि संगीत क े मायम स े हई ह |
किवता म कथा क े अययन म हमने जाना िक उस असायवीणा को िय ंवद बजाता ह और
ियंवद के एका िच , िचंतन और साधना स े वीणा झ ंकृत हो उठती ह | उस वीणा स े जो
संगीत स ृिजत होता ह | उस स ृजन स े एकव िक अनुभूित िय ंवद को होती ह | यही एकव
रहयवाद ह |

अेय के सप ूण सािहय स ृजन म यिद ार ंिभक काय रचना द ेखे तो उनम अेय के
िवचार अनीरवादी रह े ह| लेिकन बाद िक किवताओ ं म रहयवाद का भाव िदखाई द ेता
ह| उनिक ारंिभक रहयवाद िक अवधारणा रवनाथ ट ॅगोर क े रहयवादी अवधारणा स े
मेल खाती ह | जो मौिलक रहयवाद को अिभय करत े ह | िवान क े अनुसार munotes.in

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असायवीणा किवता का भावबोध
असायवीणा म नवरहयवाद
असायवीणा म काय िशप
87 असायवीणा रहयवाद को चरमोकष अिभयि कहत े ह | िजसे सृजनामक या
नवरहयवाद कहत े ह | रहयवाद क े संबंध म अेय कहत े ह िक – मै भी रहयवाद क े
वाह म हँ, उस असीम शि स े जुडना चाहता हँ, अिभभ ूत होना चाहता हँ जो मेरे भीतर
ह|” इस कार यिद अ ेय का रहयवाद िकसी दश न से भािवत ह तो वह बौ दश न के
शूयवाद म परमतव िक खोज स े जो बाहरी स ुख साधन को याय घोिषत करता ह |
उसके अनुसार परमतव मानव क े दय म ही िवमान ह | उसक उपलिध िच ंतन, मनन
और एकाता स े हो सकती ह | और अ ेय िक असायवीणा क े किवता म बौ दश न के
शूयवाद िक यापकता नजर आती ह | अेय के रहयवाद म एक कार िक वैचारकता
और तटथता का फ ुटन ह | संयम िक अिभयि ह | इस स ंबंध म रामवप चत ुवदी
ने िलखा ह - "परपवता क े साथ किव न े िजस स ृजनामक रहयवाद िक तावना िक
वह रिव ठाक ूर को भी प ृहनीय होता |” चतुवदीजी भी अ ेय का रहयवाद किव रिव को
भािवत करन े िक आकष कता रखता ह |

असायवीणा म जब िय ंवद ारा अथाह परम , िचंतन, मनन और साधना स े वीणा
बजती ह | तब उस असीम ईर और भ का भ ेद समा हो जाता ह | ियंवद िक साधना
से असायवीणा का साय हो जाना िय ंवद साधक स े साधन िक ाि, आमा स े
परमामा का िमलना यही रहयवाद ह िजसे ियंवद ारा असायवीणा किवता म किव न े
य िकया ह |
मुझे मरण ह ,
मुझको म ै भूल गया हँ ,
सुनता हँ म
पर मै मुझ से परे
शद म लीयमान |”

इन प ंिय म उसी कार क े एकव का अन ुभव िय ंवद कर रह े ह, जो कबीर का
िनगुणवादी ईर के साथ ह | सूर का क ृण के साथ, तुलसी का उनक े आराय राम क े साथ
ह | नवरहयवाद िक अनुभूित को यिद असायवीणा किवता क े मायम स े देखे तो वीणा क े
साय होन े पर उसक े संगीत म हर जन ड ूब गया ह | लेिकन उसस े बाहर िनकलन े का
तरीका सबका अलग अलग ह |

असायवी णा का साय होना ही स ृजन शि का अवतरत होना ह | वीणा क े संगीत म वर
म हर एक यि मोिहत हो गया | डूब गया ल ेिकन म ुि सबको अपन े कम और िवचारधारा
के आधार पर हई | इस कार असायवीणा म सृजनामक था | नव रहयवाद िक
अिभयि हई ह | यह आध ुिनक काल िक सवपरी धरोहर ह |

८.४ असायवीणा म काय िशप

योगवार और नई किवता िक वृीय िक परणी ित अेय िक असायवीणा क े मायम स े
होती ह | अेय िक किवताए ँ काय िशप िक ि से परंपरागत काय िवधान स े हटकर munotes.in

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आधुिनक काय
88 नई काय श ैली को काय म अंिकत करत े ह | अेय के काय िक भाषा, िबब, तीक , छंद
िवधान और अल ंकार का योग िविशता स े हआ ह | यिद हम असायवीणा का परप ूण
अययन कर े तो अ ेय िक अय किवताओ िक भाँित यह किवता भी कायागत सदय से
परपव ह और सािहय िशखर पर अपना थान तय करती ह |

८.४.१ भाषा :
अेय का भाषा पर िवश ेष अिधकार था और उह कई भाषाओ ं का ान था उनक े भटक ंती
वभाव और स ृजनशील यिव क े कारण जहा ँ भी जात े वहाँ के भाषा, संकृती, कृित से
एक िन हो जात े यही वभाव उनक े काय िक भाषािनता को ामािणकता स े िनभाता ह |
अेय के बचपन स े उह घर म िमले संकार और स ंकृत ंथो के िनय पाठ क े कारण
तसम शद िक अिधकता उनक े काय म ह | असायवीणा किवता का कथानक पौरािणक
होने के कारण भाषायी ि से अेय ने तसम शदो का बहलता योग िकया ह जैसे
ओ िदघ काय |
ओ पूरे झारख ंड के अज ,
तात, सखा, गु आय ,
ाता मछाय
इस कार उ प ंियो म दीघकाय अज , तात, गु, सखा, आय , ाता, महछाय आ िद
शद ह | असायवीणा किवता िक सभी प ंियो म कथान ुप भाषा को अ ेय ने शीष
थान िदया ह |

तव शद :
अेय िक सािहय कला हम ेशा कुछ नया ल ेकर उभरी ह इसीिलए किवताओ ं म िकसी एक
कार िक भाषा और शद प का योग कर ने िक बजाय काल और िवषयान ुप भाषा यी
िविवधता और िविभन शदावली का योग िकया ह . अेय कोमलकात पदावली क े योग
म िसंह हत ह जैसे साँस- (ास), अनकह े (कभी न कहन े वाला ), िकलक (िकलकारी ),
संभार (संभाल) अिलक (जाल िबछान े वाला ), अलस (आलस ), िसरस (िशरश ),
िवुलता (आसमान म िबजली चमकना ) आिद अन ेक उदाहरण असायवीणा किवता म
जो हक े-फुके शदाथ के साथ किवता का सदय चार ग ुणा कर द ेते ह |
उदाहरण :
‘राजा जाग े|
समािधथ स ंगीतकर का हाथ उठा था –
काँपी ठी उ ंगिलया ँ|
अलस अ ँगडाई ल ेकर मानो जाग उठी ठी वीणा :
िकलक उठ े थे वर िशश ु
नीरव पद राखता जािलक मायावी |

ियामक पद क भाषा :
अेय के सािहय ल ेखन िक नयी श ैली म िया पद भी नय े तरीक े से योग हय े ह | किवता
को लयामक बनाय े राखने के िलए शद को तोडा मरोडा नही गया न ही शदाथ के साथ munotes.in

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असायवीणा किवता का भावबोध
असायवीणा म नवरहयवाद
असायवीणा म काय िशप
89 किव न े समझौता िकया ह | उहोने बोलचाल िक भाषा को काय भाषा बनाकर उस े
आकष ण भर े वर म तुत िकया ह | उदाहरण –
“गा वीणा रखी ह | तेरा अंग-अपंग |
िकतु अंगी तू अत आम भरत ,
रस-िवद् ,
तू गा :
मेरे अँिधयार े अतस म आलोक जगा म ृती का |
ुित का –
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा |

८.४.२ तीक योजना :
अेय को तीत बहत िय थ े, यिक सुधारणा वाय या शद को तीक क े मायम स े
आकिष त प िदया जा सकता ह उसे सुंदर काय रचा जा सकता ह , यह योग शील
अेय जानत े थे | असायवीणा किवता म वीणा िक िनिमत िकरीटी वृ से हई ह लेिकन
िकरीटी व ृ का वण न करत े हए अ ेय ने इस वण न को स ंपूण वन ा ंत और वहा ँ िक कृित,
जीव-जतु, पशु-पी, पेड-पधे, नदी-तालाव , पवत, पवत, झरने, आिद सभी घटक को
तीकमान बनाकर किवता को स ुंदर और िनरीह बना िदया ह |
‘जीिवत वही िकरीटी -त
िजस िक जड वास ुिक के फण पर थी आधारत ,
िजस क े कधो पर बादल सोत े थे
और कान म िजस क े िहमिगरी कहत े थे अपन े रहय
संबोिधत कर उस त को करता था
नीरव एकालाप िय ंवद |
इस कार किव न े असायवीणा क े इितहास को िकरीटी व ृ से जोडकर उस व ृ का वीणा
से तीकामक स ंबंध थािपत िकया ह , जो किवता को सश और सटीक प दान
करता ह |

८.४.३ िबब – िवधान :
काय म िबब का योग अित ाचीनकाल स े आचाय न े माय िकया ह | पााय िवान न े
भी िबब स ंबंधी मायताओ ं को उिचत ठहराया ह | आचाय शुल, डॉ. नग जैसे आधुिनक
कालीन सािहयाचाय न े िबब िक मौिलकता को सािहय म अिनवाय माना | डॉ. नग ने
अपनी प ुतक ‘काय िबब म पाँच कार क े िबबो का उल ेख िकया ह , - य, विन,
पश, गध, आवाद | असाय वीणा किव ता म एन सभी िबबो का अधोर ेिखत योग किव
अेय ने िकया ह |

य िबब :
वही काय े माना जाता ह , िजसे पढकर या सुनकर हमारी आ ँखो के सामन े वह सभी
य प म िचित हो जाय े | असायवीणा प ुरी किवता िबब िवधान स े ओत-ोत ह य
िबब िक धानता स ंपूण किवता िक अिभयि ह | यह अवतरण य िबब का स ुंदर
उदाहरण ह – munotes.in

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आधुिनक काय
90 ‘लघु संकेत समझ राजा का
गण दौड े| लाये असायवीणा ,
साधक क े आगे राख उस को , हट गय े|
सभी िक उसुक आ ँखे
एक बार वीणा को लख , िटक गयी
ियंवद के चेहरे पर |’

पश िबब :
पश िबब का स ंबध वचा स े होता ह | इसम अिधका ंश कोमल वत ूओं का िबब स ृजन
संरिचत होता ह असाय वीणा किवता म वीणा परम परमामा प म अवत रत हई ह ,
साधक िय ंवद वीणा क े ित समप ण भाव िदखाकर उसम लीन होकर उसक े तारो को
छेडना चाहत े ह | किव अ ेय िक असायवीणा किवता म पश िबब क े अनेक उदाहरण ह
उनम से एक ह /-
छू सकू तुझे|
तेरी काया को छ ेद, बाँध कर राची गयी वीणा को
िकस पश से
हाथ कर े आघात
छीनन े को तार स े
एक चा ँद म वह स ंिचत स ंगीत िजस े रचने म
वयं न जान े िकतनो के पिदत ाण रच गय े|

आवा िबब :
िकसी वत ू या िथती िवश ेष के िचण ारा आवा िबब िक रचना किव करता ह |
असाय वीणा किवता म किव अ ेय ने आवा िबब का योग इस कार िकया ह |
“बटूली म बहत िदन क े बाद अन िक सधी ख ुदबुदाई|

विन िबब :
विन िबब का योग किव अ ेय ने कृित के िचण को अिधक स ुंदर और भावशाली
बनाने के िलये िकया ह | पिय िक चह-चहाहट पानी का कल -कल िगरना आिद कृित
संबंधी वण न अलौिकक बन पड े ह | वही असाय वीणा किवता म वीणा का वर बह भा ँित
सुनाया गया ह , उसम िकसी को नव वध ु िक पायल िक विन, िकसी को िशश ु िक िकलकारी
िकसी को उडती िचिडया िक चहक तो िकसी को लोह े के हथोड े पर पडी चोट इस कार
असायवीणा किवता म विन िनन िक धानता ह , इस किवता म विन कृित वणन को
सँवारती ह और सामाय जीवन म हर एक यि क े कमानुसार स ंगीत का वर उसम ढल
जन विन का सवम उदाहरण ह | जैसे
‘बदली -कध- पियो वषा -बुँडो िक पट पट |
घनी रात म महए का च ूपचाप टपकना |
चके वग-शावक िक िचहँक |
िशलाओ ं को ड ूलरात े वन-झरने के
ुत लहरील े जल का कल -िननाद | munotes.in

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असायवीणा किवता का भावबोध
असायवीणा म नवरहयवाद
असायवीणा म काय िशप
91 कुहरे म छन कर आती
पवती गाँव के उसव ढोलक िक थाप |’

गध िबब :
गध िबब का योग काय बहत कम होता ह लेिकन अ ेय योगवादी किव य े उहोन े
िबब और तीको स े ही काय को सदय मान बनाया ह | असायवीणा किव ता काय िशप
िक ि से सवच मानी जाती ह | इस किवता म कुछ पंियाँ गध िबब का पीकरण
देती ह | जैसे –
‘पंख यु सायकसी हस -बलाका |
चीड-वनो म गध-अध उमद पत ंग िक जहाँ-तहाँ टकराहट
जल-पात का ल ुत एक वर |
इस कार असायवीणा किवता क े सभी कार क े योग स े सदय शील बनी ह ँ, इसी
कारण यह किवता भावान ुप और भावशाली ह |

छंद िवधान :
अेय छंदो के ाता थ े और बरब ै छंद उनका पस ंदीदा छ ंद था | छंद योग म भी अ ेय नय े
वाह को ल ेकर आय े ह | असायवीणा किवता म िवषम मांिक छ ंद य ु हआ ह |
असायवीणा किवता म सोलह माा बाला छ ंद ह चौपाई म भी सोलह मााए ँ होती ह ,
लेिकन अ ेय ने असायवीणा म चौपाई छ ंद का नह पर छ ंद का योग िकया ह | इस
छंद म और चौपाई छ ंद म इतना ही अंतर होता ह , िक चौपाई म लघु-गु आता ह और
पर छ ंद के अंत म गु-लघु | असायवीणा म किव न े लय को कही भी ट ूटने नह िदया ह ,
आवयकता पढन े पर िवराम िचह का योग कर असायवीणा किवता को ग और प
दोनो री ित से सदय दान िकया ह जैसे –
“मुझे मरण ह :
हरी तलहटी म , छोटे पेड िक ओढ ताल पर
बंधे समय वन -पशुओं िक नानािवध आत ुर – तृ पुकारे
गजन – घुघुर, चीख, भूँक, हका . िचचीयाहट |
कमल – कुमुद – प पर चोर -पैर ुत धािवत
जल – पंछी िक चाप |”

इस कार एन प ंिय म लयामकता लान े के िलये िवराम िच ह कोमा का योग िकया ह ,
िजसम े अप ठहराव क े साथ किवता िया प म चालती रह े और शद अथ दोनो ही ह
हेतू को आकष क बनाकर भाव प ैदा कर सक े |

८.५ सारांश

उ इकाई के अययन से िवाथ अेय ारा रिचत एक मा किवता असायवीणा के
भावबोध , असायवीणा किवता म नवरहयवाद और असायवीणा किवता म काय munotes.in

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आधुिनक काय
92 िशपगत सदय ता का अययन करगे | इन मु के अययन से िवाथ असायवीणा
किवता के संदभ से जुड़े सभी के उर िवाथ आसानी से दे सकगे |

८.६ दीघरी

१) असाय वीणा म भावबोध का वणन अपने शद म िकिजए |
२) असायवीणा किवता म नवरहयवाद िक याि ह प िकिजए |
३) असायवीणा किवता म तीक और िबब योजना का कुशलता से वणन हआ ह
िववरण िकिजए |
४) असायवीणा किवता िक भाषा और शदावली आधुिनकता का बोध कराती ह
समझाइए ?
५) असायवीणा किवता के काय और िशपगत सदय ता पर काश डािलए |८. ७
लघुरी

८.७

१) असायवीणा किवता म राजा िकसक े िवषय म कहता ह िक वह वीणा साधन े म
िवफल न होगा |
उर - विकित

२) असायवीणा किवता म रानी ने वीणा के बजने पर ियंवद को या भेट दी |
उर - अपने गले म पहनी िकमती सतलड़ी माला

३) नवरहयवाद को कहते ह |
उर - सृजनामक रहयवाद

४) ''एक बार वीणा को लख, िटक गयी ियंवद के चेहरे पर |’ उ पंिय म कौनस े
िबब िक अिभयि ह |
उर - य िबब

५) असायवीणा किवता म कौनसा छंद यु हआ ह|
उर - िवषम मांिक छंद


८.८ संदभ पुतके

१) अेय क किवता एक म ूयांकन – डॉ. चंकांत बांिदवडेकर
२) अेय क काय िततीषा – डॉ. नंदिकशोर आचाय
३) अेय क किवता परपरा और योग – रमेश ऋिषकप
४) अेय, िचंतन और सािहय – ेम धन

 munotes.in

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93 ९
ितिनधी किवताए ँ मुिबोध

इकाई क पर ेखा
९.० इकाई का उ ेय
९.१ तावना
९.२ मुिबोध – जीवन परचय
९.३ ह रास (किवता )
९.४ भूल-गलती (किवता )
९.५ अँधेरे म (किवता )
९.६ सारांश
९.७ दीघरी
९.८ लघुरी
९.९ सदभ पुतक

९.० इकाई का उ ेय

इस इकाई का म ूल उ ेय आध ुिनक िहदी सािहय क े महवप ूण किव मुिबोध क े जीवन
परचय , और पाठ ्यम म िनिहत किवताओ ं का अययन कर गे |

९.१ तावना

हरास , भूल-गलती और अ ँधेरे म किवता िहदी सािहय के आध ुिनक दौर क
किवताओ ं म िवशेष महवप ूण ह | इनम किव क सामािजक ि ख ुलकर हमार े सम
उपिथत होती ह |

९.२ मुिबोध – जीवन परचय

परचय : मुिबोध का जम १३ नवबर , १९१७ को वािलयर िजल े के योप ुर गाँव म
हआ था | उनके िपता माधव राव जी मुरैना म सब-इपेटर थ े | उनके साथ म ुिबोध का
बचपन िविदशा , अजम ेर और सरदारप ुर आिद े म सपनता क े बीच बीता | बचपन स े
ही मुिबोध भाव ुक और अ ंतमुख क ृित के थे | अपने परवार म उनके सबस े िनकट उनक े
छोटे भाई शरतच ंद मुिबोध थ े | शरतच ंद वयं भी मराठी गितशील कायधारा क े मुख
रचनाकार रह े ह | इस महान रचनाकार का द ेहावसान मा ४६ वष क अवथा म ११
िसतबर , १९६४ को हो गया |
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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
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मुिबोध क म ुख रचनाए ँ :

कायस ंह: चाँद का म ुँह टेढा ह, भूरी-भूरी ख़ाक ध ूल

आलोचनामक थ : नई किवता का आमस ंघष तथा अय िनबध , कामायनी एक
पुनिवचार, नये सािहय का आमस ंघष, समीा क समयाए ँ , एक सािहियक क डायरी

कहानी स ंह :काठ का सपना , सतह स े उठता आदमी

उपयास : िवपा
इस कार क अन ेक अय रचनाए ं भी िहदी सािहय क ी वृि कर रही ह | इसके बाद
अपनी लबी किवताओ ं के िलए भी म ुिबोध आध ुिनक िहदी सािहय म चचा के क म रहे
ह |

मुिबोध का रचना स ंसार यि और परव ेश के बीच द ुहरा तनाव ल ेकर त ुत हआ ह,
भीतरी और बाहरी तनाव | वह मानव िवरोधी हरकत को समझता हआ सामािजक च ेतना
क सही भ ूिम तलाशता ह और भय , सदेश, उपीड़न तथा आश ंकाओ ं के बीच जीत े हए
समकालीन मन ुय के िविवध प का िव ेषण करता ह |

९.३ ह रास (किवता )

‘चाँद का म ुँह टेढा ह’ काय स ंकलन म संकिलत 'रास ' मुिबोध क िस किवताओ ं
म से एक ह | यह किवता सव थम बनारस स े कािशत होन ेवाली लघ ु पिका 'किव' के
अैल, 1957 के अंक म कािशत हई थी । अनुमानतः इसका रचनाकाल 1957 ही ह,
यिप इसम अितम स ंशोधन मुिबोध न े 1962 म िकया । आलोचक न े इस किवता को
मुिबोध क े आमस ंघष माना ह | वैसे भी म ुिबोध को आमस ंघष का किव कहा गया ह ।
इसम संदेह नह िक उनम आमस ंघष अयत खर प म िमलता ह, लेिकन ातय ह
िक यह स ंघष िसफ उनका क ेवल अपना न होकर उस पूरे मयवग का ह, िजसक े वे एक
सदय थ े । दूसरी बात यह िक उनक े आमस ंघष के अनेक पहल ू ह । ‘रास ' किवता म
आमस ंघष,यि और समाज , आम और िव तथा भीतर और बाहर क े बीच ह |

यह किवता दो ख ंड म िवभािजत ह । पहल े खंड म किव न े रास क े असामाय यवहार
का िच ण िकया ह, िफर द ूसरे खंड म उसक े आमस ंघष का । दोन ख ंड अपन े िचण क
ि स े बेजोड़ ह और अपन े भीतर अथ क कई -कई परत िछपाए हए ह । मुिबोध क
किवता िचतन स े गहरा सरोकार रखती ह, इसिलए उसको समझन े के िलए उनक
वैचारक अवधारणाओ ं से परचय आवयक ह । यह सही ह िक उनम किठनाई िजतनी
शािदक तर पर ह, उसस े अिधक व ैचारक तर पर । उनक सफलता इस बात म ह िक वे
ान को स ंवेदना म और स ंवेदना को ान म पातरत करन े म एक साथ सफल होत े ह । munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
95 जैसा िक किवता क े शीषक से ही प ह, इसका िवषय एक रास ह । रास का
मतलब ह िपशाच । शा क े अनुसार वह ाण , जो मनुय-योिन म पापकम करता ह,
मरने पर ेत-योिन पाता ह और रास या िपशाच बन जाता ह । इस किवता म
रास का पाप यह था िक वह कम से िवरत रहकर अपन े िवचार और काय म सामंजय
थािपत करना चाहता था । यह उसक े मनुय-योिन म होने के समय क बात ह । वभावतः
वह मरन े के बाद मो लाभ करन े के बदल े एक ेत हो गया ।

किवता म रास क े ेतोिचत यवहार का वण न करन े के पहल े मुिबोध ने उसक े
परवेश का वण न िकया ह । शहर क े बाहर , जहाँ अनेक मकान क े खंडहर ह , एक प ुरानी
और परय बावड़ी ह । बावड़ी उस चौड़ े कुएँ या छोट े तालाब को कहत े ह, िजस तक
पहँचने के िलए चार तरफ स े सीिढ़या ँ बनी होती ह । इस बावड़ी का जल बहत गह रा ह ।
उसम उसक अन ेक सीिढ़या ँ डूबी हई ह । जल को थाहा नह गया , लेिकन द ेखने से ही
उसक गहराई का आभास हो जाता ह । ठीक व ैसे ही, जैसे कोई बात समझ म न आ रही
हो, लेिकन महसूस हो रहा हो िक उसम कुछ गहरा मतलब ह । बावड़ी क े चार ओर ग ूलर के
पेड़ खड़े ह, िजनक डाल आपस म उलझी हई ह । उनक डाल स े उल ुओं के भूरे और
गोल घसल े लटक रह े ह । वे भी परय ह , यानी उनम उल ू नह रहत े । कहने क
आवयकता नह िक मन म भय उपन करन ेवाली िनज नता का यह बहत सटीक िचण ह।
हवा म जंगल क हरी कची गध बसी हई ह । यह गध अनजानी और यतीत िकसी े
वतु के होने का सद ेह मन म उपन कर देती ह । वह वत ु भूलती नह , हमेशा िदल म
एक खटक े-सी लगी रहती ह बावड़ी क म ुँडेर पर टगर क े सफेद फूल िखल े हए ह , तार-
जैसे । इस य का मुिबोध न े बहत स ुदर वण न िकया ह :

'बावड़ी क इन म ुँडेर पर
मनोहर हरीक ुहनी ट ेक बैठी ह टगर
ले पुप-तारे ेत ।'
उसी क े पास लाल कन ेर के फूल का एक ग ुछा लटक रहा ह । यह ज ैसे खतर े के िसगनल
का काम कर रहा ह, यिक उधर बावड़ी का म ुँह खुला हआ ह और आसमान क ओर
ताक रहा ह ।

इस परव ेश-वणन के बाद रास का वण न शु होता ह । वह अभी बावड़ी क े गहरे जल
म घुसा हआ ह । उसम डुबिकया ँ भी लगाता ह, िजसस े उसक े मुँह क आवाज क अन ुगूंज
सतह पर स ुनाई पड़ती ह, साथ-साथ पागल -जैसे उसक बड़बड़ा हट के शद भी । अनुमान
होता ह िक उसक े शरीर पर बहत गदगी जमी ह, िजसे दूर करन े के िलए वह नहाता ह और
पंज से अपन े शरीर क े अंग को लगातार रगड़ता रहता ह । मैल िफर भी नह छ ूटती । यहाँ
मुिबोध न े कहा ह िक रास ‘पाप-छाया' से मु होन े के िलए िनरतर नान करता ह ।
डॉ. रामिवलास शमा ने इस पाप को ‘अितववाद -यि का अपराध -बोध’ से जोड़ा ह |’
लेिकन इससे सहमत होना कोई आवयक नह ह यिक रास का पाप यिगत
नह ह । उसक समया एक सामािजक समया ह, पूरे िशित मय वग क । उसका पाप
यह था िक आमक ेित रहकर यानी जनता स े जुड़े बगैर उसन े अपन े को बदलना चाहा । munotes.in

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96 मुिबोध धािम क नह थ े । किवता म उनका अिभाय िबलक ुल िभन ह । इसिलए इसक
अितववादी याया उिचत नह होगी |

रास क े यवहार का वण न आग े तक चलता ह । चूँिक, वह एक बुिजीवी का ेत ह,
इसिलए नहात े समय वह ब ेचैनी के साथ कोई अनोखा तो और म ब ुदबुदाता ह । इतना
ही नह , उसके मुँह से धारा वाह श ु संकृत म गािलया ँ िनकलती ह । उसक े माथे क
लकर को द ेखकर लगता ह िक वह लगाता र आलोचनामक म ुा म ह । मुिबोध कहत े ह,
'ाण म संवेदना हयाह!!' तापय यह िक रास क े मन म भी कािलख जमी ह ।
िदलचप यह ह िक जल म डूबी बावड़ी क दीवार पर जब स ूय क िकरण ितरछ े िगरती ह ,
तो उस े लगता ह िक सूय ने उसक ेता वीकार कर झ ुककर उस े नमत े िकया ह । यह
िच द ेखने लायक ह -
िकत ु गहरी बावड़ी
क भीतरी दीवार पर
ितरछी िगरी रिव -रिम
के उड़त े हए परमाण ु जब
तल तक पह ँचतेह कभी
तब रास समझता ह, सूय ने
झुककर नमत े कर िदया।
इसी तरह बावड़ी क दी वार स े जब कभी चा ँदनी क िकरण अपना राता भ ूलकर टकराती
ह, तो उस े लगता ह िक चा ँदनी न े भी उसक वदना क ह और उस े ान-गु मान िलया ह!
यह ऊ ँचे आकाश का उसक े आगे िवनत होना था । इस बात को वह रोमा ंिचत हो -होकर
अनुभव करता था ।

उपयु य स े और उ ेिजत होकर अपनी महानता क े ित आत रास तमाम
इितहास , दशन और िवान क नई याया करन े लगता था , उस प ुरानी बावड़ी क े गहरे
जल म नहाता हआ। म ुिबोध न े इितहास , दशन आिद का जो िज िकया ह, उसम सुमेरी
और ब ैिबलौनी जन -कथाओ ं तथा व ैिदक ऋचाओ ं से लेकर आज तक क े सभी स ू, म
और िसात आत े ह । इितहासकार , दाशिनक, िवचारक और गिणत म उहन े
मास , एंगेस, रसेल, टॉयबी , हाइडेगर, पसर, साच और महामा गा ँधी सबका उल ेख
िकया ह । इसस े प ह िक वह रास िकसी मा मूली ाण का नह , बिक बहत ही
िवान ् ाण का ेत ह । किव न े रास को िलया ही इसिलए ह िक ाण परपरा स े
बुिजीवी होता रहा ह । यह ब ुिजीवी िवान ् तो ह ही, गितशील भी ह, यिक इसक
मुय समया का सबध समाज क े िहत म अपन े को बदलन े से ह ।

रास बावड़ी क े गहरे जल म डुबिकया ँ लगा-लगाकर अयिधक उसाह से िविभन
दशन और िवचार क अपयाया करता हआ जब नान करता ह, तो जल आदोिलत हो
उठता ह । उसस े आपस म उलझ े हए शद क े भँवर बनत े ह, िजनम येक शद अपन े
ित-शद को भी काटता हआ होता ह । शद का वह प अपन े िबब स े ही ज ूझता हआ
िवकृत आकार धारण कर ल ेता ह । उस बावड़ी म उस समय विन अपनी ितविन स े ही
लड़ती िदखलाई पड़ती ह ।रास उसाह म ह, पर वभावतः मानिसक प से अितशय munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
97 असामाय अवथा म । िव ुध बावड़ी का वण न िकसी हद तक उसक मनोदशा को भी
य करता ह । यथा -
...ये गरजती , गूंजती, आदोिलता
गहराइय स े उठ रह विनया ँ, अतः
उद्ात शद क े नए आवत म
हर शद िनज ितशद को भी काटता ,
वह प अपन े िबब स े ही ज ूझ
िवकृताकार -कृित
ह बन रहा
विन लड़ रही अपनी ितविन स े यहाँ।
मुिबोध किवता को मािम क बनात े हए कहत े ह िक उस विन को टगर क े फूल, करदी क े
फूल और ग ूलर क े पेड़ सभी स ुनते ह । किव भी उह सुनता ह । वह विन वत ुतः एक
ासदी का तीकामक आयान ह, जो अभी बावड़ी म देखने को िमल रही ह । या थी वह
ासदी ? यह िक एक सयशोधक , िजसे मनुय-योिन क े बाद ेत-योिन ा हई , अपने
उेय म बुरी तरह स े िवफल हआ ।

रास वत ुतः सयशोधक था । सय क ाि क े िलए मनुय-योिन म उसन े जो िवकट
आमस ंघष िकया था , उसका बहत ही गहन वण न किवता क े दूसरे खंड म ह । सवथम
इसम मुिबोध न े उसक े यिव क कपना फिटक -िनिमत एक ासाद क े प म क ह,
िजसम ऐसी स ंकण सीिढ़या ँ बनी हई थ , िजन पर चढ़ना बहत ही म ुिकल था । वे सीिढ़या ँ
काली थ और अ ँधेरे म डूबी हई । उहन े जैसे यह प कर िदया ह िक यिव वह
कोमल । फिटक ासाद -सा', वैसे ही सीिढ़य क े बारे म यह बतला िदया ह िक वे एक
आयतर िनराल े लोक क ' सीिढ़या ँ थ । सयशोधक उन पर चढ़ता था और ल ुढ़क जाता
था । इस कारण उसक े पैर म मोच आ जाती थी और छाती पर अन ेक जम बन जात े थे ।
यह उसका आमस ंघष ह, जो उसक े भीतर एक प ूण यिव क ाि क े िलए चला करता
था । पूण यिव क ाि कैसे सभव थी ? यह तभी हो पाता , जब िक वह अपन े
यिव का प ूणतया समाजवादी पातरण कर लेता । बुरे और अछ े के बीच का स ंघष
िजतना उ होता ह, उसस े अिधक उ अछे और उसस े अिधक अछ े के बीच का स ंघष
होता ह । यहाँ संकेत से मुिबोध न े बतला िदया ह िक सयशोधक क े भीतर सामतवादी
और प ूँजीवादी संकार एव ं मूय क े बीच नह , बिक प ूँजीवादी और समाजवादी स ंकार
एवं मूय क े बीच स ंघष क िथित थी । उसक गलती यह थी िक वह प ूँजीवाद स े, अथात्
यि-चेतना स े पूणतः िप ंड छुड़ाकर एक शत -ितशत समाजवादी यिव क ाि
करना चा हता था । यि -चेतना का प ूणतः िनष ेध न तो अप ेित ह, न सभव , इसिलए
सयशोधक को अिनवाय तः अपन े उेय म सफलता थोड़ी और असफलता अिधक
िमली । एक द ूसरी बात यह थी िक वह जो भी हािसल करना चाहता था , वह कम और
यवहार क े े से दूर रहकर ; अपने कमर े म बद, मा अपन े िचतन क े ारा । वभावतः
उसे यादातर िवफलता ही हाथ लगी ।

प ह िक मुिबोध हर तरह स े पूण समाजवादी यिव का लय रखनेवाले किव नह
थे । उनक े िलए अपन े िनजी यिव का बहत महव था , िजसे िनय ही व े यि वाद स े munotes.in

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98 अलग करत े थे । लेिकन यिद कोई यि हर तरह स े पूण समाजवादी यिव को अपना
लय बनाए और उसक े िलए ममातक मानिसक पीड़ा उठाए , तो इस े वे एक बड़ी बात
समझत े थे । उनका कहना था िक न ैितकता क े मानद ंड गिणत क तरह सटीक ह ,
आमच ेतन और सूम, यह सभ व नह ह, िफर भी यिद कोई उनक े िलए यन करता ह
और उसम यथा पाता ह, तो यह प ृहणीय ह । समाजवादी न ैितकता गिणत क े िनयम क
तरह प ूण होती ह, इशारा इस मायता क तरफ ह । उस अितर ेक पर पह ंची हई नैितकता
क उपलिध सदा स े किठन रही ह । िनन िलिखत प ंिय काआशय यही ह -
..अितर ेकवादी प ूणता
क ये यथाए ँ बहत यारी ह ...
यािमितक स ंगित-गिणत
क ि स े कृत
भय न ैितक मान
आमच ेतन स ूम नैितक भान -
...अितर ेकवादी प ूणता क त ुि करना
कब रहा आसान
मानवी अतक थाएँ बहत यारी ह !!
इस आमस ंघष म पड़े हए सयशोधक अथा त् रास क े िदन-रात, जब वह मनुय-योिन
म था, बड़ी ब ेचैनी से कटत े थे । िदन म जब स ूय िनकलता , तो उस े लगता िक िचता क
रधारा वािहत हो उठी ह और रात म जब चमा उदय होता, तो उस े महस ूस होता िक
उसक िकरण उसक े घाव और उिन भाल पर बँधी हई सफ ेद पया ँ ह । पूरे आकाश पर
फैले हए तार े उसे गिणत क े दशमलव -िबदुओं क तरह चार ओर िछतराए नजर आत े थे ।
उह क े मैदान म वह मारा गया । अब उस म ैदान म उसक लाश पड़ी ह । मुिबोध क े
शद म , 'व-बाँह खुली फैली/ एक शोधक क। ' पतः यहा ँ वे सयशोधक क े अयिधक
तीखे आमस ंघष का वण न कर रह े ह, जो उसक े िलए जानल ेवा सािबत हआ । 'शोधक ' शद
यान द ेने लायक ह, यिक इसस े यह स ंकेत िमलता ह िक रास म ुनय-योिन म अपन े
गलत िचतन और अकम यता क े कारण अपनी मंिजल न पा सका , लेिकन वह अततः
एक नकारामक नह , बिक सकारामक चर ह । मुिबोध उसक सीमाओ ं से परिचत
ह, लेिकन उसक े संघष को सहान ुभूित ही नह , आशंसा के भाव द े देखते ह ।

आगे पुनः वे ासाद क स ुनसान सीिढ़य का वणन करत े ह, िजन पर चढ़ना बहत म ुिकल
था और जो रास क े भाय म ही बदा था । उसक समया यह थी िक वह िचतन और
कम म सामंजय थािपत न कर सका था । यह किठन काय सबक े वश का नह । उसक े
िलए वही अिभश था । जैसा िक कहा जा च ुका ह, उसके िलए उसने बहत यास िकया ,
लेिकन उस े कोई राता िदखलान े वाला न िमला , सो वह अपन े उेय म चूकता रहा ।
मुिबोध न े िलखा ह :
'उस भाव -तक व काय -सामंजय-योजन -
शोध म /सब प ंिडत, सब िचतकक े पास
वह गु ा करन े के िलए भटका !!'
तापय यह िक ग ु क खोज म वह लगातार भटकता रहा , लेिकन परवित त यानी प ूँजीवादी
युग म उसे गु न िमला । पूँजीवादी य ुग म वह सभव भी नह था , यिक उसम िकसी को munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
99 ान नह िदया जाता ह, गु लोग अपनी कित का यवसाय करत े ह । उनका यान अपने
लाभ क े िलए िकए गए काय पर रहता ह, िजनस े वे धन ा कर सक । इस धन म िल मन
सय का धोखा अथा त् मरीिचका ही खड़ी कर सकता था । इस तरह सयशोधक क खोज
पूरी न हई । इस स ंग म मुिबोध क कहानी 'रास का िशय ' को भी याद िकया जा
सकता ह, िजसम एक यि गु क ही तलाश करता हआ रास स े िमलता ह, जो
अत म उसे यह बतलाता ह िक वह इस योिन को इसिलए ा हआ िक उसक े पास जो
ान था , उसे लोक को अिप त नह िकया था , यानी उस े लेकर अपन े तक ही िसमटा रहा
था ।

तुत किवता का रास जब मन ुय-योिन म था, तो आमिन था , लेिकन उसक
आका ंा थी िक वह िविन बन े । इस कारण उसक े भीतर एक बे-बनाव अथा त्
अतःस ंघष क िथित बनी रहती थी । वह अपन े को लघ ु समझता था और साव जिनकता
को ही महान ् मानकर उसक े ित समिप त न होन े के कारण मन म हमेशा िवष ण रहता था ।
इसके बाद म ुिबोध न े जो क ुछ कहा ह, वह बहत महवप ूण ह, खास तौर स े िहदी क उस
गितशील कायधारा क े संग म, जो यिव क लघ ुता को कोई महव न द ेकर उस े
समाज क े िलए यौछावर कर द ेना चाहती थी । मुिबोध का कथन ह -
मेरा उसी से उस िदन होता िमलन यिद
तो यथा उसक वय ं जीकर
बताता म उसे उसका वय ं का म ूय
उसक महा !
व उस महा का
हम सरीख क े िलए उपयोग ,
उस आतरकता का बताता म महव !!
मुिबोध कहते ह िक सयशोधक क पर ेशानी बहत क ुछ बेमतलब थी । वह अपन े आपको
हीन मानकर जो समाज क े चरण म अपन े व को िवसिज त करना चाहता था , उसक
जरत नह थी । कारण यह िक समाज क े साथ-साथ यि क िनजता का भी महव ह ।
उसके अभाव म यि स ंवेदनशील ाणी न रहकर एक य बन जाएगा । इस तरह मयवग
के जो ब ुिजीवी अपन े यिव स े छुटकारा पान े म असमथ ह, उनके िलए यह ातय ह
िक उनक े व, उनके भीतरी जगत ् और उनक आतरकता का भी महव ह । उसे सुरित
रखते हए समाज को समिप त होना ह, न िक उस े याग कर । ऐसी िथित म सयशोधक का
भीतर और बाहर के संघष म पड़कर समा हो जाना एक िवकट ासदी थी -

िपस गया वह भीतरी
औ' बाहरी दो किठन पाट बीच ,
ऐसी ैजेडी ह नीच!!
रास बावड़ी म नान करता हआ लगातार पागलपन -भरे तीक क े मायम से अपन े
दुःखद अत क ही कहानी कहता रहता ह िक िकस तरह वह अपन े कमरे म ही सारा सोच -
िवचार करता रहा और अततः समा हो गया । उसका समा होना या मरना िकसी सघन
झाड़ी क े अँधेरे और क ँटीले कोटर म मरे हए पी क तरह ल ु हो जाना था । मुिबोध यहा ँ
पर दो बात कहत े ह । एक तो यह िक 'वह योित अनजानी सदा को खो गई ' और द ूसरी यह munotes.in

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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
100 िक 'यह य हआ!/ य यह ह आ!!' कहा जा च ुका ह िक सयशोधक एक सकारामक
चर ह । इस कारण उसक अतःस ंघषजिनत पीड़ा का भी उहन े उपहास नह िकया ह,
िजसका माण यह ह िक जहा ँ उहन े उसे उसक े िनजी यिव का महव बतलान े वाली
बात कही ह, वहाँ भी कहा ह िक 'यथा उसक वय ं जीकर ' अथात वे जो भी उस े
बतलात े, उसक तकलीफ का गहराई स े एहसास करत े हए । इसी कारण व े उसे 'अनजानी
योित ' कहकर याद करत े ह । 'अनजानी ' इसिलए िक सयशोधक इस स ंसार म अलित
रह गया । इसक े अलावा िचता यह जानन े क ह िक वह अपन े उेय म िवफल य रहा
और उसका अत इतना ासद य हआ ?

अत म मुिबोध न े बहत मािम कता क े साथ यह कहा ह िक वे उस रास का िशय
होना चाहत े ह, उसक ासदी स े िवत , िजसक े िक वह िजस काय को अध ूरा छोड़ गया ह,
उसे तक संगत परणित तक पह ँचा सक । उसक वेदना का ोत उसका अध ूरा काय या
उेय ही ह । उसी स े वह हम ेशा बेचैन बना रहता ह और असामाय यवहार करता ह ।
िनकष यह िक म ुिबोध क आका ंा अपनी िनजता को स ुरित रखत े हए कम -े म
उतरकर अपन े यिव के सामािजक पातरण क ह ।

९.४ भूल-गलती (किवता )

'भूल-गलती ' मुिबोध क एक महवप ूण किवता ह | यह उनक आिखरी दौर क किवताओ ं
म से एक ह । यह 'कपना ' के अैल, 1964 के अंक म कािशत हई थी और 'चाँद का म ुँह
टेढ़ा ह' काय स ंह क पहली किवता ह । 'भूल-गलती '-यह उसी कार का शद ह, िजस
कार क े मुिबोध ाराय ु ‘खाक-धूल', 'लाभ-लोभ' आिद शद । यहा ँ भूल-गलती ' से
किव का आशय मयवगय यि क उस व ृि स े ह, िजसस े ेरत होकर वह यिगत
िहत-िसि क े िलए सचा ई और ईमानदारी को ितला ंजिल द ेकर नाना कार क े समझौत े
करता ह । किवता म एक जगह 'बतरबद समझौत े' ये शद आए भी ह । मुिबोध न े इसम
मयवगय यि क े आमस ंघष को बहत ही नाटकय बनाकर उपिथत िकया ह । भूल-
गलती को उहन े सुलतान का प दा न िकया ह और ईमान को एक िवोही का , जो िक
बदी बनाकर ब ुरे हाल म सुलतान क े सामन े पेश िकया जाता ह । िवान न े यह सवाल
उठाया ह िक स ुलतान और उसक े दरबार का पक इस किवता म य ? उनके अनुसार
उसके ारा म ुिबोध वत मान सा क अमानवीयता और ूरता का िचण कर ना चाहते
थे। वातिवकता यह ह िक इस किवता म उनका यान राजनीितक सा पर कतई नह ह ।
वे उ पक क े ारा क ेवल यह िदखलाना चाहत े ह िक यिगत वाथ -भावना एक बहत
ही ताकतवर चीज होती ह । उसक े िलए न सचाई का कोई मतलब होता ह, न िकसी
कोमल मानवीय भावना का । ऐसी शिशाली और अमानवीय भावना को अपन े जुम क े
िलए इितहास म िस कोई स ुलतान ही म ूत कर सकता था ।

मुिबोध क ख ूबी ह िक वे किवता म कोई पक या फ टेसी खड़ी करत े ह, तो उसका अथ
भी बतलात े चलत े ह । इस किवता क े आरभ म ही वे कहत े ह -
munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
101
भूल-गलती
आज ब ैठी ह िजरहबतर पहनकर
तत पर िदल क े
चमकत े ह खड़े हिथयार उसक े दूर तक ,
आँख िचलकती ह नुकले तेज पथर -सी;
खड़ी ह िसर झ ुकाए
सब कतार
बेजुबाँ बेबस सलाम म ,
अनिगनत खभ व म ेहराब -थमे
दरबार े-आम म ।
सुलतान कौन ह ? इससे साफ बात और या होगी िक वह हमारी ही यानी मयवगय
यिय क ही वाथ -भावना ह, जो स ुरा कवच धारण कर हमार े िदल क े तत पर
आसीन ह ! यह स ुलतान बाजाा स ुलतान ह, बहत ही ताकतवर , बहत ही आत ंककारी ।
उसक आ ँख म घायल कर द ेनेवाले तेज नुकले पथर -सी चमक ह और उसक े दरबार म
श धारण िकए हए स ैिनक द ूर तक खड़े ह । आग े इन स ैिनक का अथ भी किव न े प
कर िदया ह : 'कतार म खड़े खुदगज बा-हिथयार / बतरबद समझौत े' । दरबार म
िजतन े भी लोग ह , सभी पंिब , अपने पाँव पर , मूक, िववश और बदगी म नतमतक ।
यह दरबार े-आम ह, जो अन ेक खभ और म ेहराब पर िटका हआ ह । ईमानदारी और
सचाई क े राते से हटाकर यिगत लाभ -लोभ म समझौत े के िलए ेरत करन ेवाली
मयवगय यि क े भीतर िथत वाथ -भावना का यह रोब किवता म देखते ही बनता ह !

असल म यह किवता भी आमस ंघष क किवता ह । इस कारण इसम केवल ख ुदगज का
आतंक नह ह, न िसफ समझौता परती क शम नाक िथित का वण न । मयवगय यि
आमस ंघष म पड़ा ह । उसक े भीतर ईमानदारी क भावना भी ह, जो खुदगज होने औ र
समझौता करन े से इनकार करती ह । वभावतः इसक े चलत े उसे दंिडत होना पड़ता ह ।
भूल-गलती पी स ुलतान स े बगावत करन े के जुम म उसे िगरतार िकया जाता ह, उस पर
िनममता पूण हार करके उ से जमी बना िदया जाता ह । लेिकन उसक े बाद भी वह
सुलतान क अधीनता वीकार करन े को त ैयार नह । वह स ुलतान क े सामन े खड़ा ह,
लेिकन जरा भी अदब नह िदखलाता । उसक े चेहरे पर उसक े भीतर का ब ेचैनी से भरा
िवोहप ूण भाव का ँप-काँप उठता ह । और तो और , वह स ुलतान क िनगाह म अपनी िनगाह
डालता ह, उनसे बेखौफ और खामोश नीली लपट फकता हआ । जािहर ह िक इस िवोह -
भावना का साथ व े भावनाए ँ नह द गी, जो यि को सुख-सुिवधा और पद -िता क ओर
ले जानेवाली ह । यह सब वण न मुिबोध ने किवता क े दूसरे बद म िकया ह-
सामन े
बेचैन घाव क अजब ितरछी लकर स े कटा
चेहरा
िक िजस पर का ँप
िदल क भाफ उठती ह....
पहने हथकड़ी वह एक ऊ ँचा कद , munotes.in

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102 समूचे िजम पर लर ,
झलकत े लाल लब े दाग
बहते खून के।
वह कैद कर लाया गया ईमान ...
सुलतानी िनगाह म िनगाह डालता ,
बेखौफ नीली िबजिलय को फ कता
खामोश !!
सब खामोश
मनसबदार ,
शायर और स ूफ,
अलगजाली , इने िसना , अलबनी ,
आिलमो फािजल , िसपहसालार , सब सरदार
ह खामोश !!
यहाँ भी म ुिबोध न े बतला िदया ह िक िजस बागी को हथकिड़या ँ पहनाकर दरबार म हािजर
िकया गया ह, वह कोई यि नह , बिक एक भावना ह-'वह कैद कर लाया गया ईमान ' ।
जैसे पहल े बद म आतंककारी स ुलतान और उसक े दरबार का वण न बहत सश ह, वैसे
ही इस बद म ईमानपी िवोही का । 'िदल क भाफ ' - िववश आोश स े भरे भाव क े
िलए बहत ही सटीक अिभयि ह । इस वण न म एक भयता ह, यिक यह एक िवोही
का वण न ह । अिधकारी , किव, सत, दाशिनक, योितषी , याी, िवान ्, सेनापित और
सरदार य े सभी मन क स ुिवधा भोगी और समझौतावादी वृियाँ ह, जो िवोह -भावना का
साथ नह द ेत; जब वह िसर उठाती ह, संघष म त-िवत हो जाती ह, वे चुप रह जाती ह ।
मुिबोध न े जब स ुलतान और उसके दरबार का िच खचा ह, तो उसी क े अनुप मयय ुग
के अलग जाली, इनेिसना और अलबनी -जैसे दाशिनक, योितषी और याी का भी
संकेत गिभत उलेख िकया ह । इस ि स े किवता का यह अ ंश 'अँधेरे म' के 'सब च ुप,
सािहियक च ुप और किवजन िनवा क् िचतक , िशपकार , नतक चुप ह' वाले अंश से
तुलनीय नह हो सकता , यिक वह वण न यथाथ ह, तीकामक नह । यहाँ पुनः यह कहन े
क जरत नह होनी चािहए िक यह दो भावनाओ ं के बीच का स ंघष ह, जो मयवगय
यि क े मन के भीतर चल रहा ह और म ुिबोध ने उसे अिधकािधक म ूत बनान े के िलए
इस किवता म नाटकय प म तुत िकया ह । चूंिक मयवगय यि का ह, इसिलए
यह स ंघष परव ेश िनरपे कोई आयािमक स ंघष नह । इस कारण इसका सबध िसफ
भीतर स े नह, बाहर स े भी ह ।

ईमान िवोह करन े पर इसिलए उता हो गया ह िक उस े सुख-सुिवधाओ ं के िलए कोई
शमनाक शत वीकार नह । वह िसर ऊ ँचा िकए हए हठ पूवक वैसी हर शत को अवीकार
करता ह । वह वत ह, िकसी और का उस पर िनयण नह । ईमानदारी स े जीवन
िबतान े क इछा रखन े वाला उसाही यि ऐसा ही हो सकता ह, समझौत े से दूर, अपने
मूय पर अिडग , अपना मािलक आप । यहाँ मुिबोध न े जो खास बात कही ह, वह यह िक
केवल ईमानदारी स े भूल-गलतीया वाथ -भावना को परािजत नह िकया जा सकता ।
ईमानदारी का उसाह या जोश द ेखकर यिद कोई यि सोचता ह िक भ ूल-गलती पी
सुलतान क सतनत अब खम होन ेवाली ह, उसका कवच अब उसक रा नह कर munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
103 सकेगा, वह रेत का ढ ेर-भर बचा ह और उसक े आत ंक म अब जोर नह , तो उसका ऐसा
सोचना गलत ह । इसका माण प ूरा वत मान काल ह, जो िक उसस े त ह । भूल-गलती
क रा करन ेवाली हमारी कमजोरया ँ ह, िजह खम करन े के िलए ईमानदारी क े अलावा
कोई और चीज भी चािहए । हमारी कमजोरया ँ-हमारी िशिथलता और िढलाई -हमारी
खुदगज को बहत ख ूँखार बना द ेती ह । यहा ँ अँधेरे म' क य े पंियाँ भी मर णीय ह -
...भयानक खड ्डे के अँधेरे म आहत और त-िवत , म पड़ा ह आ हँ; /शि ही नह ह
िक उठ सक ूँ जरा भी / (यह भीतो सही ह िक/ कमजोरय स े ही मोह ह मुझको) ।
खुदगज न सचाई क आ ँख िनकालन े से िहचकती ह, न कोमल मानवीय भावनाओ ं का
गला घटन े से । वह हम घेरकर हमारी सभी उच भावनाओ ं को न कर हम बेबुिनयाद बना
डालती ह, जैसे हमारा िसर और प ैर दोन काट डाल े ह । हम सभी इस ख ुदगज क े ऐय के
बदी ह , उसके शाही महल क े कैदी । किवता क े तीसर े बद म मुिबोध न े यही कहा ह -
नामंजूर
हठ इनका र का िसर तान ...खुद-मुखतार।
कोई सोचता उस व -
छाए जा रह े ह सतनत पर घन े साए याह ,
सुलतानी िजहरबतर बना ह िसफ िमी का ,
वो-रेत का-सा ढेर-शाहंशाह,
सब बितया ँ िदल क उजाड़ े डालता ,
करता , हम वह घ ेर,
बेबुिनयाद , बेिसर-पैर...
हम सब क ैद ह, उसके चमकत े ताम-झाम म ,
शाही म ुकाम म !!
पतः यहा ँ ‘भूल का सबध अपनी अतरामा और अपनी िजदगी स े ह । आकिमक
नह िक इसस े पहल े इस किवता म 'अपराध ' शद भी आया ह-'अचानक जाने िकस च ेतना
म डूब/ उर म समाए ह ए अपन े तलातल / टटोलता ह ँ... या कह म ेरा अपराध ?/ मेरा
अपराध ?' आगे इसम समझौता भी ह-'वहाँ िकसी पाताली थाह म समझौत े...और/ साझे
ह, ठीक उह स े िक/ िजनस े ह िवरि / िजनक े ित रहा आया / भीतरी िवरोध का
जोर'। 'भूल-गलती ' का स ुलतान इस किवता म आकर दय ु हो गया ह और उसन े यापक
अथ हण कर िलया ह, जैसे इसके आमस ंघष ने ।

मुिबोध क े सामन े यह प था िक वाथ -भावना को खाली ईमानदारी से परात नह
िकया जा सकता । उनक े सामन े समया थी िक तब वह क ैसे सभव ह ? किवता म आगे
उहन े कहा ह िक स ुलतान क े दरबार म दरबारय अथवा क ैिदय म से अचानक कोई
िनकल भागता ह, जैसे मुँह से एक अजीब सी कराह िनकल जाए और यि स े अलग यानी
आजाद हो जाए ! किवता एकदरबारी अथवा क ैदी क ही ज ुबानी ह । वह कहता ह िक उसक े
िनकल भागन े से जो हलचल हई , तो वह भी सच ेत हो गया । पंिब खड़ े वाथ , सश
और सुरा कवचधारी समझौत क े पुतल को वहम हआ िक कोई और बात हई ह, कैदी
नह भागा । दरबार म जो दोहर े चर क े अनुभव स े सपन , घुटे और सध े हए दिढ़यल
सेनाय थ े, उहन े समझ िलया िक कोई क ैदी भागा ह । वह स ुलतान के िलए स ंकट का
कारण बन सकता ह, यह सोचकर व े सहम उठ े, लेिकन क ुछकर नह सक े । यह स ुलतान क े munotes.in

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104 एक क ैदी के भीतर , यानी वाथ -भावना स े वशीभ ूत यि क े भीतर स ंकप-शि का
जागना ह । यिद यि यह स ंकप कर ल े िक वह ईमानदारी का आचरण कर ेगा, तो वह
अपनी वाथ -भावना को परािजत करने म सफल होगा । संकप क े जात ् होने का मतलब
ही ह वाथ-भावना या भूल-गलती क क ैद से छूटना । सुलतान क े दरबार स े कैदी के भागन े
का यही तापय ह | यहाँ उनका कहना ह िक -
इतने म, हम म से
अजीब कराह -सा कोई िनकल भागा ,
भरे दरबार े-आम म म भी
सँभल जागा !!
कतार म खड़े खुदगज बा-हिथयार
बतरबद समझौत े
वहम कर , रह गए
िदल म अलग जबड़ा , अलग दाढ़ी िलए ,
दुमुँहेपने के सौ तज ुष क ब ुजुग से भरे,
दिढ़यल िसपहसालार स ंजीदा
सहमकर रह गए !!
'हम म से' का सबध िपछल े बद क उि 'हम सब क ैद ह' से ह ।'भरे दरबार े-आम म म
भी/ सँभल जागा ' से इस बात क प ुि होती ह िक किवता िजसक ज ुबानी ह, वह भी
कैिदय म से एक ह । दिढ़यल स ेनाय का म ुिबोध ने जो वण न िकया ह, वह इतना
सश और स ंि ह िक उस े उस तरह ग म ला सकना सभव नह ह । ऐसे ही थल
पर उनक काय -भाषा और साधारण िहदी ग क े बीच क े फासल े का पता चलता ह ।

जो कैदी भागा था , वह शाही ब ुज के दूसरी तरफ िनकल गया और गोल टील तथा घन े पेड़
वाली घािटय म खो गया । मुिबोध कहत े ह, ऐसा लगता ह िक वह अनाम और अात
दरवा ले इलाक म सेना संगिठत कर रहा ह । यह काम च ूँ िक गैरकानूनी ह, इसिलए वह
घािटय और वािदय म िछपकर ही िकया जा सकता ह; रोशनी म नह, अँधेरे म । मरणीय
ह िक कैदी के कैद से छूटकर भागने का मतलब ह ईमानदारी बरतन े के िलए मन म संकप-
शि का जगना । उसके अनुसार स ेना संगिठत करन े का मतलब हआ स ंकप-शि को ढ़
बनाना , उसे आवयक साज -सामान स े लैस करना । यह करना जरी ह, वरना संकप
कमजोर हआ , तो वाथ -भावना उस े भी न कर द ेगी ।‘

इस काम क े िलए कोई णाली पहल े से तय नह , इसिलए स ेना-संगठन का काम अनाम
और अात दरवाल े इलाक े म ही हो सकता ह । चूँिक यह काय सही ह, भूल-गलती क
सा को खम करन े के िलए, इसिलए यह उस अ ँधेरे म नह हो सकता , जो हमारा परिचत
ह और सत ् का नह , असत ् का तीक ह। इस कारण मुिबोध न े जो अ ँधेरा खड़ा िकया ह,
वह सचाई का ‘विणम अधकार ' ह ! सचाई क े काश को अधकार म बदलन े म उह
काफ किठनाई हई ह, िफरभी यह काम उहन े सफलताप ूवक िकया ह । उनक जिटल
संवेदना और अिभयि दोन क स ूचना उनक इस प ंि स े िमलती ह, जो पक का अथ
भी खोलती ह-‘सचाई क े सुनहले तेज अस क े धुंधलके म' । वह कैदी संकप-शि क े munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
105 सैय-बल क े ारा या कर ेगा ? वह भूल-गलती पी स ुलतान को िशकत द ेकर हमारी हार
का ितशोध ल ेगा ।

अत म मुिबोध न े कहा ह-'संकप-धमा चेतना का रलािवत वर , / हमारे ही दय
का गु वणा र कट होकर िवकट हो जायगा !!' वह कैदी, िजसक जुबानी यह किवता
ह, कहता ह िक जो क ैदी अपनी स ेना के ारा स ुलतान पर आमण कर ेगा, वह स ंकपधम
चेतना का रलािवत वर ह, जो तैयारी प ूरी होते ही कट होकर िवकट प धारण कर
लेगा ।

िवान का यान इस तरफ भी गया ह िक पूरी किवता जहा ँ अरबी -फारसी क े शद म
िलखी गई ह, उसक अितम तीन पंिय म किव न े संकृतिन भाषा का योग िकया ह ।
ऐसा इसिलए ह िक पूरी किवता म जहा ँ सुलतान , उसके दरबार और उसस े बगावत
करनेवाले का व णन ह, वहाँ अितम तीन प ंिय म ढ़ स ंकप-भाव का । जब किव को
संकप-भाव का वण न करना होता ह, तो वह अपनी वाभािवक और िवषय क े उपय ु
भाषा का सहारा ल ेता ह । यथा -
लेिकन, उधर उस ओर ,
कोई, बुज के उस तरफ जा पह ँचा
अँधेरी घािटय क े गोल टील , घने पेड़ म
कह पर खो गया ,
महसूस होता ह िक वह ब ेनाम
बेमालूम दर क े इलाक े म
(सचाई क े सुनहले तेज अस क े धुंधलके म)
मुहया कर रहा लकर ;
हमारी हार का बदला च ुकाने आयगा
संकप-धमा चेतना का रलािवत वर ,
हमारे ही दय का ग ु वणा र
कट होकर िवकट हो जायगा !!
इस कार यह कहा जा सकता ह िक मयवगय यिय क वाथ -भावना और समझौता
परती उनक जीवनगत परिथितय क द ेन ह । ऐसी िथित म वे उनस े तभी म ु हो
सकत े ह, जबिक उनक परिथितया ँ बदल । ऐसा मानन ेवाले लोग यि क संकप-
भावना को एक मनोगत वत ु मानकर उस े िवशेष महव द गे । लेिकन मुिबोध यि क े
यिव या चर -िनमाण म उसक े िनजी यास को भी महव द ेते ह | इसी कारण द ूसरे
गितशील किवय क किवता जहा ँ आमस ंघष से शूय ह, वहाँ मुिबोध म तीखा
आमस ंघष ह । वे मयवग से आने वाने किव थ े और ब ेहतर समाज क े िनमाण म मयवग
क महवप ूण भूिमका मानत े थे, इसिलए मयवग और मयवगय यि का आमस ंघष
उनक किवता का महवप ूण िवषय ह । दूसरी बात यह िक ज ैसे उनक अय किवताए ँ आशा
और आथा क े वर क े साथ समा होती ह , यह किवता भी इस िवास क े साथ समा हई
ह िक यि म ढ़ स ंकप-भाव हो , तो वह वाथ -भावना और समझौता परती स े मु
होकर ईमानदारी क े रात े पर चल सकता ह । यहाँ यह भी पतः एक पकामक किवता
ह, िजसम दरबार स े एक क ैदी का िनकल भागना , उसके ारा पहाड़ी इलाक े म जाकर स ेना munotes.in

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106 संगिठत करना और तैयारी प ूरी हो जान े के बाद स ुलतान पर आमण क योजना बनाना
सब पक ह ।

९.५ अँधेरे म (किवता )

'अंधरे म' किवता ‘चाँद का म ुँह टेढा ह’ संकलन क अितम और सश रचना ह | डॉ.
नामवरिस ंह ने इसे 'नई किवता क चरम उपलिध ’ और 'किव-कम क चरम परणित ' कहा
ह । अशोक वाजप ेयी ने इसे 'िपछल े बीस वष क किवता क सभवतः ेतम उपलिध
माना ह ।' यह रचना फ ैटेसी पर आधारत संपस, ितलम , सदेह, आशंका, भयावन ेपन,
दुिता और द ु:वन क लबी किवता ह । गहन अधकार क पीिठका पर िवक ृत भयावह
िच ारा यह किवता िकसी म ृयु-दलक शोभा याा का नन यथाथ त ुत करती हई
सैिनक शासन और अमानवी िह ंसाओ ं के बीच जनाित का स ूपात करती ह । वातावरण
रहयमय , आतंकपूण िकत ु मूत ह । वतुतः यह रचना 'खोई हई परम अिभयि क
खोज' ह ।

किवता म दो पा ह -काय नायक 'म' और उसका ितप 'वह' । किव क े शद म 'वह
रहयमय यि अब तक न पाई गई म ेरी अिभयि ह।' यह परम अिभयि या ह?
किव क े शद म ही -
पूण अवथा वह
िनज सभावनाओ ं, िनिहत भाव , ितभाओ ं क,
मेरे परप ूण का आिवभा व,
दय म रस रह े ान का तनाव वह ,
आमा क ितभा।

पहले 'वह' ितलमी खोह म िगरतार कोई 'एक' ह बाद म यह अनजानी -अनपहचानी
आकृित 'रालोक नात प ुष' के प म कट होती ह । यह रहयमय प ुष हमेशा तीक
म यु हआ ह और काय नायक को किठन काय का आद ेश देता ह -
पार करो पव त-सिध क े गर,
रसी क े पुल पर चलकर
दूर उस िशखर -कगार पर वय ं ही पह ँचो।
पूरी किवता गहर े म 'जगत समीा ' करती हई जान पड़ती ह और कायनायक क
आमा म भीषण सिचत ्-वेदना दहलान े वाली ह । यह प ूणतम परम अिभयि अथात्
रहय प ुष काय नायक को िवव ेक, भिवय का नशा और जगत -समीा क शि दान
ह । फैटेसी 'ोसेशन' के प म एक नया मोड ल ेती ह । सुनसान मयराि के अँधेरे म
कोलतार सड़क ‘भरी ह ई िख ंची हई काली िजा ' जैसी तीत होती ह, यहाँ मुिबोध
वातावरण क े भयावन ेपन क े अनुप ही िबब उपिथत करत े ह । किव वन म िकसी
मृयु-दल क शोभा -याा द ेखता ह । जुलूस भयावना और िविच ह िजसम सैिनक
तानाशाही का िचण भी ह और वाथ तव क े यथाथ नंगे िच मौज ूद ह । काल े घोड़े,
िमिली -ेस, िगेिडयर, जनरल , माशल स ेनाय , सपादक , किव, आलोचक , munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
107 उोगपित , मी, कुयात हयारा , डोमा जी , उताद आ िद सभी उसम शािमल ह , जैसे
'भीतर का रासी वाथ अब साफ उभर आया ह, िछपे हए उ ेय यहा ँ िनखर आए ह'
काय नायक किव न े उन सबक अमानवीयता , पैशािचकता , वाथबता िछप े तरीक से
देख ली ह अत: उसे सजा द ेने के िलए पकड़ा जाता ह — 'अँधेरे म उसन े देख िलया हमको ,
व जान गया वह सब , मार डालो , उसको खम करो एकदम। ' किव को महस ूस हआ िक य े
भयानक वाथ तव दतर , के, घर आिद म सािजश करत े रहते ह 'हाय,हमको ,
हाय!! मने उह देख िलया न ंगा, उसक म ुझे और सजा िमल ेगी।' सचाई जान ल ेने पर
सजा िमल ती ही ह, आज क े जमान े म ।

पुनः फैटेसी ारभ होती ह और नायक वन म 'जनाित क े दमन िनिम 'माशल-लॉ
देखता ह और बरगद क े नीचे उपेित, वंिचत, गरीब क े लुटे-िपटे डेरे । उसी समय िकसी
पागल का एकाएक आम उोधन स ुनाता ह जो सैिनक शासन क ितिया म कहता ह ।
वतुतः यह पागल किव का अतम ुखी यिव ह या वह रहय -पुष ही ह जो कई तीक
म वयं को और यवथा को कचता ह । उसक े यंय-िमित आलाप 'फैटेसी गत किवता
के अदर किवता ' बन गए ह । ये 'कण रसाल दय के वर' ह िजनम उपीड़न का कट ु
यथाथ , सामािजक व ंचन, बुिजीवी क े िबके िलजिलज े यिव , यि क जड़
िनियता और िनजी वाथ बता को प ूरी ताकत क े साथ कचोटन े वाला य ंय उभरा ह-
ओ मेरे आदश वादी मन
ओ मेरे िसातवादी मन ,
अब तक या िकया?
जीवन या िजया !!
उदरभर बन अनाम बन गए ,
भूत क शादी म कनात स े तन गए ,
िकसी यिभचारी क े बन गए िबतर
बताओ तो िकस -िकस क े िलए त ुम दौड़ गए ,
कणा क े य स े हाय! मुँह मोड़ गए
बन गए पथर , /बहत-बहत यादा िलया ,
िदया बह त-बहत कम ,
मर गया द ेश, अरे जीिवत रह गए त ुम!!
इस आलोचन और िचतन क े बाद नायक महस ूस करता ह िक उसक जड़ता , िनियता
ही मान इन सब बात क े िलए िजम ेदार ह । अतः इस बाहरी और भीतरी द ुिनया के गहरे
न े किव क नद हराम कर दी । वह तलाशता ह उस जन -संसार को जहा ँ मानवीय ता
क स ुगध महक रही हो । उसक े भीतर 'मिणमय त ेजिय जीवनान ुभव' पुनःसजग और
बल हो जात े ह और वह िनकष िनकालता ह िक 'जूझना ही ह ।' जब िकस तरफ हो त ुम ?
का उर यि को िमल जाए तब उसम िनित ही सियता आ जाती ह ।

फैटेसी का िवता र होता ह, वह ितलक क म ूित देखता ह िफर गाधी क । उसे यह स ुनने
को िमलता ह िक िचलान े से कोई मसीहा नह बन जाता और 'जनता क े गुण से ही सभव
भावी का उव। ' अतः नायक जनवादी च ेतना स े अनुािणत हो उठता ह । 'भावी का उव '
फैटेसी स े िशश ु के प म मूत हो उठता ह जो जनता क े उभरत े संघष का तीक बन munotes.in

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DeeOegefvekeÀ keÀeJ³e
108 जाता ह-'िजसको न म इस जीवन म कर पाया वह कर रहा ह।' वह िशश ु सूरजमुखी फूल
गुछ वण पुप के प म बदल जाता ह और बाद म वजनदार बदूक के प म यािन
सिय जनवादी सश ाित म परिणत हो जाता ह ।

जनसंघष म एक कलाकार क म ृयु होती ह जो बधन स े मुि का गायक था , जीवनान ुभव
से सबम हलचल प ैदा करता था , शुिचतर िव क े मानवीय हदय क े सपन े देखता था -
उसका य वध हआ , मर गया एक य ुग, मर गया एक जीवनादश ।' अत: नायक सािथय क
तलाश कर स ंगिठत जनाित करना चाहता ह - 'नए-नए सहचर , सकम कसत ्-िचत्-
वेदना भाकर। ' नायक को जीन े म उतरत े हए सा न े धर दबोचा , उसका िन ंग िकया
गया, मितक म या ऊजा , सपने, िवोह , आथा क जा ँच क गई । सारी यातनाओ ं के
बावज ूद भी काय -नायक अपना लय नह यागता और बाद म उसे अपने सहचर िम
िमल जात े ह 'हम कहा ँ नह ह , सभी जगह हम। ' वह अिभयि क े सारे खतर े उठान े को
तैयार हो जाता ह, शद म ही नह कम म ही िजसस े िक वह अण -कमल ' को पा सक े ।
महज बौिक ज ुगाली स े काम न ह होता इसिलए -
अब अिभयि क े सारे खतर े
उठान े ही हग े।
तोड़न े हगे ही मठ और गढ़ सब / पहँचना होगा द ुगम
पहाड़ क े उस पार / तब कह द ेखने िमलगी बात ।
िजसम िक ितपल का ँपता रहता / अण कमल एक।
फलवप व ृ-बालक -युवा गण सबम ाित क आग लग जाती ह, िसात क सिय
परणित क े समाचार पचक े मायम स े िमलत े ह । किव बहत सीधी और सपाट िटपणी म
अपना सामािजक आशय य कर द ेता ह -
किवता म कहन े क आदत नह , पर कह द ूँ
वतमान समाज चल नह सकता /
पूँजी स े जुड़ा हआ दय बदल नह सकता ,
वातय यि का वादी
छल नह सकता म ुि के मन को / जन को।
मुिबोध यि -वातय क े नाम पर पनपन े वाले यावसायीकरण और शोषण क े सत
िवरोधी ह । किवता का नायक द ेखता ह िक इस जनाित म किव सािहयकार , िचतक ,
नतक आिद सब च ुप ह यिक 'बौिक वग ह त दास , िकराए क े िवचार का उास। '
सा ारा ाित का दमन िकया जाता ह ‘कह आग लग गई , कह गोली चल गई |’ इस
पंि क प ुनरावृि खौफनाक दमन का गहरा स ंकेत देती ह । दादा का सटा , कका क
लाठी, बचे क प प और ल ेट पी भी स ंघष म काम आती ह । जब ‘आमा क े चक ेपर'
संकप शि क े लोहे का मजब ूत वल ंत टायर चढ़ाया जाता ह तब ाित क लहर
फैलती ह और ऐितहािसक स ंघष का ान और िमक का सताप 'युवक म
यिवा ंतर' लाता ह । किव क न ेह-वेदना ा ित-ेिमका स े िमलती ह ।

गैलरी म खड़े काय नायक को वह रहयमय प ुष (परम अिभयि ) िदखलाई देता ह जो
सड़क पर जन -यूथ म खो जाता ह । वह सव हारा क म ुि स े जुड़ा जन -ाित का अद ूत munotes.in

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ितिनधी किवताए ँ मुिबोध
109 रहयमय प ुष फट ेहाल गिलय म घूमता ह िजसे खोजन े के िलए किव हर गली, हर सड़क ,
हर चेहरे को द ेखता ह यिक उस परम अिभयि का अपार फ ैलाव ह -
इसीिलए म हर गली म / और हर सड़क पर
झाँक-झाँक देखता ह ँ हर एक च ेहरा,
येक गितिविध / येक चर
व हर एक आमा का इितहास
हर एक द ेश व राजनीितक परिथित
येक मानवीय वान ुभूत आदश
िववेक-िया , ियागत परणित !!
खोजता ह ँ पठार -पहाड़ -समुदर
जहाँ िमल सक े मुझे/मेरी वह खोई ह ई
परम अिभयि अिनवार। आमा -सभवा।
इसी खोज म किवता क समाि होती ह । अत म पूरी जनाित क िया को तीन बात
म प िकया गया ह-पहले दय म 'मानवीय वान ुभूत आदश जम ल ेते ह िफर 'िववेक
िया ' ारा राता तय िकया जाता ह और बाद म ाित क े प म 'ियागत परणित '
होती ह । यह रचना आध ुिनक जन इितहास का थायी दताव ेज मानी गई ह । किव ता म
'अिमता क खोज ' नह, दर असल यिवा ंतर धान ह । मुिबोध क यह ेतम
सजना ह।

एक बात बहत उल ेखनीय ह - मुिबोध न े अपनी अिधका ंश रचनाओ ं म परवत न का
माहौल और ाित का स ूपात करात े हए आथामय समापन िकया ह लेिकन कह भी
'सवहारा का अिधनायकव ' घोिषत नह ह । 'अँधेरे म परम अिभयि क खोज म किवता
का समापन हआ ह, 'भूल गलती ' म यह िवास य हआ ह िक 'संकपधमा चेतना का
र लािवत वर हार का बदला च ुकाने आएगा ।' इसका कारण यह ह िक परवत न और
ाित -िया क ताकािलकता समझकर म ुिबोध एक माहौल प ैदा करत े हए प
वैचारकता और लय िनधा रत करत े ह, िसि क घोषणा नह करत े यिक वह तो
अिनवाय परणाम ह ही। समसामियकता तो िया क तलाश और वत ुिथित क े सारे
प को यथाथ क ख ुरदरी जमीन पर मानवीयता क े साथ त ुत कर द ेना ह । इस दाियव
को मुिबोध न े भरसक िनभाया ह और इस िदशा म वे बेिमसाल ह। उनका भाव ही आग े
चलकर ध ूिमल एव ं अय किवय पर भी िदखलाई द ेता ह । इसिलए म ुिबोध को
समकालीन काय को सवा िधक भािवत करन े वाला किव कहना कोई अितयोि नह
होगी |

९.६ सारांश

इस इकाई म हमने मुिबोध क े जीवन परचय को जाना | साथ ही पाठ ्यम म सिमिलत
तीन किवताओ ं का सिवतर अययन िकया ह | िवाथ इकाई म शािमल सभी किवताओ ं
से जुड़े को हल कर सक गे |
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110 ९.७ दीघरी

१) हरास किवता क स ंवेदना काश डािलए |
२) भूल-गलती किवता क भावधारा को प िकिजए |
३) अंधेरे म किवता क स ंवेदना पर काश डािलए |

९.८ लघुरीय

१) मुिबोध का जम कब और कहा ँ हआ था ?
उर – १३ नवबर सन १९१७ म मयद ेश मर हआ था |

२) मुिबोध िवश ेष प स े िकस िवचार फ =धारा क े कवी मान े गए ?
उर – गितवादी िवचारधारा

३) अंधेरे म किवता म ुिबोध क े िकस काय स ंह म संकिलत ह |
उर – चाँद का म ुँह टेढा ह

४) भूल-गलती किवता सव थम िकस पिका म कािशत हई थी ?
उर – ‘कपना ’ पिका म

५) ‘अंधेरे म’ किवता िकस आलोचक ने नई किवता चरम उपलिध कहा ह ?
उर – नामवर िस ंह

९.९ संदभ पुतके

१) मुिबोध और उनक किवता – डॉ. बृजबाला िस ंह, िविवालय काशन , वाराणसी ,
संकरण – 2004
२) मुिबोध – िनमल शमा , यी काशन , रतलाम (म..),
३) तारसकस े ग किवता (मुिबोध -शमशेर-रघुवीर) रामवप चत ुवदी, लोकभारती
काशन , इलाहाबाद , वष – 1997
४) समकालीनिहदी किवता – अेय और म ुिबोध -शिश शमा , वाणी काशन , वष
1995
५) मुिबोध क किवताए ँ –िबब ितिबब , नंदिकशोर नवल , काशनस ंथान , नई
िदली , थम स ंकरण – 2006
६) गजानन माधव म ुिबोधकितिनिध किवताए ँ – टीका, राजेश वमा एवं सुरेश अवाल ,
अशोक काशन , िदली , संकरण- 2010
७) अेय से अण कमल – भाग १, डॉ. संतोष क ुमार ितवारी , भारतीय थ िनक ेतन,
नई िदली , वष- 2005

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111 १०
मुिबोध क काय भाषा
और
मुिबोध क े काय म फटेसी

इकाई क पर ेखा
१०.० इकाई का उ ेय
१०.१ तावना
१०.२ मुिबोध क काय भाषा
१०.३ मुिबोध क े काय म फटेसी
१०.४ सारांश
१०.५ दीघरी
१०.६ लघुरी
१०.७ संदभ पुतक

१०.० इकाई का उ ेय

इस इकाई का म ूल उ ेय आध ुिनक िहदी सािहय क े महवप ूण किव म ुिबोध क काय
भाषा और उनक े काय म फटेसी का अययन करना ह |

१०.१ तावना

मुिबोध क भाषा भाव क सबल अिभयि करन े म पूणत: सम र ही ह | यहाँ हम काय
म िवमान फ टेसी के अितर म ुिबोध ारा य ु भाषा व श ैली दोनो म ु पर िवचार
िकया जायगा |

१०.२ मुिबोध क काय भाषा

मुिबोध क कायभाषा िवचार क खरता को सबल अिभयि द े सक ह, परपरा क े
मोह को याग कर मौिलकता क े साथ | चाहे मानिसक तनाव और अ ंतसघष हो या युगीन
पाशिवकता और यवथा क ूरता, किव क काय भाषा आत ंक, गित िवफोट और
ऊजा से संपृ होकर एक -एक पाट को उध ेड़ कर सामन े रख द ेती ह | आलोचक क े
अनुसार किव होन े के िलए अथ वान शद का साधक होना आवयक ह । इस ि स े
मुिबोध किव ह यिक उनक े ाण अथ -खोजी ह , उनक म ुय िच ंता अथ -ाि क रही
ह, उनक साधना साथ क अथ क ाि क रही ह । उनक यह साधना 'तार-सक' से munotes.in

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112 आरभ होती ह और 'चाँद का म ुँह टेढ़ा ह' म पूण उकष को ा होती ह। उनक काय -
भाषा िनरतर तव शदावली क े योग क ओर बढ़ती रही ह । 'तार-सक' क किवताओ ं
म छायावादी पदावली , िचमयता एव ं रहयवािदता का वर िमलता ह -
घनी रात , बादल रम -िझम ह , िदशा म ूक, िनतध बनातर ।
यापक अधकार म िसकुड़ी सोई नर क बती , भयंकर ।
तसम शद का योग छायावादी काय -शैली क िवश ेषता रही ह । मुिबोध क
आरिभक रचनाओ ं म यह िवश ेषता प िगत होती ह । इसक े िवपरीत 'चाँद का म ुँह टेढ़ा
ह' म तवशद का योग बहत अ िधक माा म पाया जाता ह ।

मुिबोध क काय -भाषा क सबस े बड़ी िवश ेषता ह िवषय और भाव क े अनुप शदावली
का योग । लोक शदावली का योग जहा ँ ामीण अ ंचल स े जुड़ा ह, वहाँ तसम शद
अिधकतर िश, आिभजाय और नागरक भावधारा स े जुड़े होते ह । मुिबोध जनत ंी
भावधारा क े किव ह, अतः उहन े तव शद क े मायम स े ही महनीय क े थान पर
सामाय अिक ंचन क िता क ह । सामाय जन क ाित का यह िच द ेिखए -
दादा का सटा भी करता ह दाँव-पच / नाचता ह हवा म
गगन म नाच रही कका क लाठी।
लर, कनटोप , कदील , िसयाह , हलसी , अकुलायी, संवलायी आिद अन ेक शद उनक
काय-भाषा को जन -जीवन स े जोड़ द ेते ह। धूल-धकड़ , िगरितन , दिलर , हेठा,
फफोला आिद भी ऐस े ही शद ह । वह नगरीय स ंवेदना का िचण करत े समय उनक भाषा
का तेवर बदल जाता ह, उनका शद -चयन ऐसा होता ह िक स ंग और कय सहज ही
सकार हो उठता ह । नगर क े आिभजाय म ुहले म फैली चा ंदनी का यह िच द ेिखए -
नंगी-सी नारय क े / उघरे हए अंग के
िविभन पोज़ म / लेटी थी चा ँदनी।
तथाकिथत स ंात वग के जीवन क े िच को उभारन े के िलए वह अ ंेजी के उह शद
को चुनते ह जो चिलत ह , जैसे-गैस-लाट, ैस, माशल, कप, फोटो,ेम, यूज बब आिद ।
वांिछत भाव उपन करन े के िलए वह अरबी -फारसी शद का योग भी करत े ह -
भूल गलती / आज ब ैठी ह िजरहबतर पर
सब क ृतार / बेजुबाँ वेवस सलाम म
अनिगनत खभ व म ेहराब -थमे / दरबार े आम म ।
अपने कय को भावप ूण बनान े के िलए उहन े िवान क पारभािषक शदावली स े भी
सहायता ली ह-चुबकय शि , गुव-आकष ण, इलेान, मैगनेट आिद ऐस े ही शद ह ।
इनक काय-भाषा म हठयोग क े रहयवादी शद भी िमलत े ह -
तब धरती क महानािड़या ँ / इड़ा-िपंगला फड़क रही थ
और स ुषमा क े अयतर / उन अ ंगारी ाण -पय पर
जीवन -संयम क क ुडिलनी / पृवी क े भीतर क वालामयी कमिलनी क
िववेकमय प ंखुरय पर / हम जा ल ेटे।
वतुतः मुिबोध का इरादा अपनी किवता को रहयवादी बनाना नह था जिपत ु हठयोगी
अयाम -बोध का अथ -संदभ देकर अपनी बात को भावशाली बनाना था । अपनी
कायान ुभूित को सटीक एव ं सश बनान े के िलए उहन े जो भी शद उपय ु समझा , उसी
को हण कर िलया । यही कारण ह िक तस म, तव, अंेजी, अरबी-फारसी क े अितर munotes.in

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मुिबोध क काय भाषा
और
मुिबोध क े काय म फटेसी
113 उहन े मराठी क े भी शद -ने, गजर, पूर, हकाल िदया आिद का योग िकया ह | मराठी
क प -रचना को अपनाकर िहदी को नय े शद -योग िदय े ह जैसे िवषारी , कुहरीले,
रकताल , धुमैला, रोगीला आिद । जब उह कोई उपय ु िवश ेषण नह िमलता तो वह या तो
नया िवश ेषण गढ़ ल ेते ह या अय िवश ेय का िवश ेषण जोड़ देते ह िजसस े वत ुतः वह
अपनी अन ुभूित को बड़ े यथाथ और सश प म कट कर सक े ह, जैसे भुसभुसा
उजाला , फुसफुसाता षड ्यं, िकरनीली म ूितयाँ, ऐयारी , चाँदनी,सँवलाई िकरण , चहचहाती
सड़क क सािड़या ँ, सद अध ेरा आिद । त ुछता , ुता आिद का स ंकेत देने के िलए
उहन े 'भदेस' का भी योग िकया ह -
लार टपकाती आमा क क ुितया / वाथ -सफलता क े पहाड़ी ढाल पर
चढ़ती ह हाँफती / राह का हर कोई क ुा छेड़ता ह।
उनक काय-भाषा क एक अय िवश ेषता ह िविश और सामाय को एक साथ िविभन
शद को िचित करना । इसस े उनक भाषा म खरता आ गई ह और वह दोन कार क
संवेदनाओ ं को संेिषत करन े म सफल ह -
म कनफटा ह ँ हेटा हँ / शैलेट-डाज क े नीच म लेटा हँ
तेिलया-िलवास म पुरजे सुधारता ह ँ / तुहारी आाए ँ ढोता ह ँ।
मुहावर और लोकोिय क े योग न े भी उनक काय -भाषा को सम ृ बनाया ह । मुहावरे
भाषा-सौदय के साथ अथ को भी गभीर बनात े ह और अपन े-आप म काय क इकाई -से
लगते ह -जब तार े िसफ साथ देते, पर नह हाय द ेते पल भर ।

तसम शद का योग कम शद म अथ-छटा उपिथत करता ह-
"पाउँ म नए-नए सहचर / सकम क सत ्-िचत-वेदना-भाकर ।
यहाँ अितम प ंि म यु तसम शदावली सहचर क िवश ेषताओ ं को थोड़ े शद म ही
कटकर द ेती ह - ऐसे िम जो य वातिवकता (ासदी ) क पीड़ा भोगकर स ूय के
समान वलनशील हो । इसक े िवपरीत ‘सयता िभिचवश ', 'यिवा ंतरत',
'तिडलता ' जैसे समासय ु तसम शद खटकत े ह, उनक कायभाषा क े गौरव को
कलुिषत करत े ह । पर क ुल िमलाकर उनक काय भाषा संवेदन को स ंेिषत करन े म पूण
समथ ह यिक वह उनक भ ंिगमाओ ं और बहिवध क ृित के अनुप बदलती चलती ह ।
डॉ. राजनारायण मौय के शद म “वह कभी स ंकृतिन सामािसक पदावली क अल ंकृत
वीिथका स े गुजरती ह । कभी अरबी -फारसी तथा उद ू के नाज़ुक लचील े को थामकर चलती
ह । कभी अ ंेजी क इल ेिक ेन पर ब ैठकर जदी स े खटाक -खटाक िनकल जाती ह ।"

मुिबोध काय -भाषा म िचांकन क अ ुत मता ह । शद क े बाद शद आकर िच म रंग
भरते जाते ह और भाव क इकाई ज ैसे ही पूरी होती ह िच भी सजीव हो जाता ह । य ेक
िच म चेतना झा ँकती ह और भाव द ुलराता ह । मनोदशा का एक िच द ेिखए -
गहरा गड़ गया और ध ंस गया इतना / िक ऊपर ाण भीतर घ ुस आया
लगी ह झनझनाती आग / लाख बर काँट म अचानक काट खाया ह।
उनक शद -योजना भावाव ेश के वाह म इस कार िवयत ह िक मनोगत अथ मूित शद
क अथ -विन-मूित म न केवल पातरत हो गई ह अिपत ु उसक े संवेदनामक लय भी
उसम झलक उठ े ह -
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114 िकत ु वे उान कहा ँ ह / अंधेरे म पता नह चलता / मा स ुगध ह सब ओर
पर, उस महक-लहर म / कोई िछपी व ेदना, कोई ग ु िचता / छटपटा रही ह।
मुिबोध शद ारा वातावरण त ैयार करन े म अितीय ह । पाठक किवता पढ़त े समय
अपने परव ेश को ‘भूल किवता ’ के वातावरण म वेश कर जाता ह । किव साधारण शद
ारा ही रहय , रोमांच, िजासा, आतंक आिद का ऐसा वातावरण िनिम त कर द ेता ह िक
पाठक उसम डूब जाता ह -
ितलमी खोह का िशला -ार / खुलता
घुसती ह लाल-लाल मशाल अजीब -सी, / अंतराल -िववर क े तम म
लाल-लाल क ुहरा / कुहरे म, सामन े रालोक -नात प ुष एक
रहय साात !!
मुिबोध श द के िशपी ह । शद क े पारखी जौहरी ह । कुशल िशपी क े समान वह शद
क आमा परखत े ह, काट-छांट कर उनका योग करत े ह और आवयकतान ुसार उह
तराश देते ह । इसक े िलए वह याकरण क े शासन को भी ला ँघ जात े ह और कह -कह अपन े
ढंग से याकरण का िनमाण करत े ह । उनक भाषा म कह अवाभािवकता नह ह । उनक े
शद वयामक होने के साथ-साथ अथ -गांभीय क ि स े भी उपय ु ह । इसीिलए उह
भाषा-भु कहा गया ह । आचाय नदद ुलारे वाजप ेयी को म ुिबोध क भाषा म िचलाहट
सुनाई दी थी , “मुिबोध क काय -भाषा म लय और स ंगीत क अप ेा िचलाहट का
अिधक यय िमलता ह।" उनकायह कथन ठीक भी ह यिक म ुिबोध का काय स ंगीत
का िनष ेध करता ह, पर ह, य िनषेध करता ह ? उनक भाषा म कोमल ैणतान
होकर दाण पौष ह; वह पराजय क नह पराम क भाषा ह जो उनक े यिव क े
अनुप ही ह, उनके कय क ितविन ह। िजस सामािजक अयवथा और जीवन क
कठोर वातिवकता को उहन े अपनी रचनाओ ं म उकेरा ह उसके िलए ऐसी ही पौषप ूण,
अनगढ़ और िचलाहट -भरी भाषा क आवयकता थी ।

मुिबोध क किवता स ंगीत का िनष ेध करती ह, अतः उनक े छद म यितगित का
िनवाहायः नह हआ ह । उहन े अपनी लबी किवताए ँ ायः म ु छद म िलखी ह । 'तार-
सक' क उनक किवताओ ं म छदोबता पाई जाती ह, पर अत तक आकर उनक
किवता छ ंद िवहीन हो गई ह,उसम गामकता आ गई ह । वत ुतः मुिबोध न े अपन े छद-
िनमाण का काय भाषा क नाटकयता स े िलया ह । उनक किवताए ं संगीतामकन होकर
नाट्यामक ह ।

काय-भाषा किव क े अंतजगत् और य ुग क नई च ेतना स े संब होती ह । नई च ेतना और
अपनी भावभ ूिम को भावशाली ढ ंग से अिभय करन े के िलए किव को भाषा क
परंपराओ ं को चिलत योग को , याकरण क े िनयम को तोड़ना पड़ता ह, नए योग करन े
पड़ते ह । मुिबोध क चेतना, उनक भावभ ूिम, उनक जीवन ि नई ह, वह िवोही किव
ह इसीिलए उनक भाषा भी पर ंपरा को तोड़न ेवाली, लीक स े हटकर चलन ेवाली योगशील
भाषा ह।

मुिबोध कह-कह अथ को ग ंभीर बनाने के िलए समानाथ क दो शद ज ैसे- काली-अथाह ,
संवलाया -किलयासा -का योग करत े ह । वयामक शद का योग म ुिबोध क munotes.in

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मुिबोध क काय भाषा
और
मुिबोध क े काय म फटेसी
115 िवशेषता ह -सटरपटर ,धड़ाम , खट्, खटाक , खट्, छपछप , फुसफुसाते, सरसर आिद ऐस े
ही शद ह ।

यंय करन े म भी वह नह च ूकते । आज क प ूंजीवादी , महानगरीय सयता का पदा फाश
करने के िलए उहन े यंयपूण भाषा का योग िकया ह -
गहन म ृतालाए ं इस नगर क / हर रात ज ुलूस म चलती / परत ु िदन म
बैठती ह िमलकर करती ह ई षड ्यं / िविभन दतर , कायालय, के म ,
घर म ।
अंत म यह कहना समीचीन होगा िक म ुिबोध का भाषा पर प ूण अिधकार ह । सचम ुच वे
शद क े िशपी और जौहरी ह | उनक काय भाषा उह लबी किवताओ ं का समथ किव
बनाने म सहायक ह | यह उनक रचनाओ ं को महाकायामक और नाटकयता स े संपन
बनाती ह |
यहाँ हम मुिबोध क म ुख किवता ‘ रास ’ का िव ेषण कर गे

१०.३ मुिबोध क े काय म फटेसी

फटेसी ारा िजए और भोग े हए जीवन क वातिवकताओ ं को, बौिक िनकष को , अथात
जीवनान को , वातिवक जीवनिच म उपिथत कपना क े रंग म तुत िकया जाता ह |
इसके ारा रचनाकार वातिवकता क े दीघ िचण स े बच जाता ह और सार प म जीवन
क पुनरचना करता ह |

मुिबोध म ूलतः फ ैटेसी के किव ह । उहन े वय ं कहा ह िक फैटेसी स ृजन-िया क
एक महवप ूण इकाई ह, "कला का पहला ण ह, जीवन का उक ृ ती अन ुभव-ण |
दूसरा ण ह इस अन ुभव का अपन े कसकत े-दुःखते हए म ूल स े पृथक् हो जाना और एक
ऐसी फ ैटेसी ह िजसका प धारण कर ल ेना मानो वह फ ैटेसी अपनी आ ँख के सामन े ही
खड़ी हो । तीसरा और अितम ण ह इस फ ैटेसी के शद -ब होन े क िया का
आरभ | ----- वह अन ुभव स े सूत ह इसिलए वह उसस े वत ह ।"

मुिबोध फ ैटेसी के मायम स े अपन े परव ेश क भयानकता तथा मन ुय क दद नाक
हालत को य करत े ह । फैटेसी का िनमा ण करत े समय वह िविभन रहयमय शद को
अपनात े ह िजसस े किवता म आा ंत रहयामक वातावरण बन जाता ह और उसक े मूल म
रहते ह -आतंक,भय, असुरा, उपीड़न , क अन ुभूित । फ ैटेसी अतािक क घटनाओ ं का
अवाध वाह िलय े होती ह अतः उनक लबी किवताओ ं क ब ुनावट फ ैटेसी के तार स े हई
ह ।

मुिबोध क कला फ ैटेसी क कला ह । बाहरी कट ु यथाथ के सपक म आने पर किव के
मन म जो ितिया ह ई उसम कपना का योग द ेकर वह ऐस े िच खड़ े कर द ेते ह िजसम
अुत और िवलण का रोमा ंचक योग होता ह; वह भयानक रहयमयता स े भरपूर, िदल
दहला देने वाली फ ैटेसी क स ृि करत े ह और उसम अपन े िवचार क लिड़या ँ िपरोत े munotes.in

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116 चलते ह । िजतना खर उनका यथाथ -बोध होता ह उतनी ही सश फ ैटेसी क रचना
होती ह । इन फ ैटेिसय म पाठक क े मनोजगत ् को उ ेिलत करन े क असाधारण शि ह ।
िव-सपृि अतव त संवेदनशीलता म ढलकर भयानक वन -संसृित म परणत हो गयी
ह।

'लकड़ी का बना रावण ', 'रा स' और 'अंधेरे म उनक सफल फ टेसी रचना का
वलंतमाण ह । लकड़ी का बना रावण ' म वह प ूँजीवादी सयता क े ितिनिध अह ंत
यिव क खोखली , िनसार महानता का िव ेषण करत े ह । पूंजीवाद का ितिनिध
सामाय जन को जनती वानर कहता ह। रावण क िवडंबना थी िक वह परम िवान ,
योा, राजनीित कुशल और सावान था, पर असय , जंगली वानर क स ेना से परात
हआ । इसी कार प ूँजीवादी सयता का िवनाश जनती वानर क े हाथ होगा -यह किव
इस फैटेसी ारा बताना चाहता ह -
हाय, हाय / उतर हो रहा च ेहर का सम ुदाय
जड़ खड़ा ह ँ / अब िगरा , तब िगरा / इसी पल िक उस पल ।
'रास ' म वन -कथा ारा बताया गया ह िक अतीत क े संिचत ानकोष , अनुभव और
िवा क साथ कता इस बात म ह िक वह नयी पीढ़ी या भिवय क े ित समिप त हो जाय ।
ऐसा न होन े पर व ह रास क तरह भटकता रह ेगा । ान क अिभयि ही म ुि ह ।
'अँधेरे म' किवता अ ँधेरे से आरभ होती ह, पर किवता का अत होता ह 'गैलरी म फैले
सुनहले रिवछोर ' से । ितलमी खोह म िनवािसत रालोक नात प ुष जगत क गिलय म
िवचरण करता ह, समि होकर जन -जन म घुल जाता ह । रालोक -नात प ुष किव क
अिभयि ह जो केवल किव क न रहकर सब क बन जाती ह - 'व' का 'पर' म अतभा व
हो गया ह । इस वन-कथा ारा म ुिबोध यह बताना चाहत े ह िक किव -अिभयि क
साथकता इसी म ह िक वह सबक अन ुभूित क अिभयि हो सक े । काय का सय भी
यही ह ।

मुिबोध न े अनेक भयानक फ ैटेिसय क रचना क ह यिक वह समाज क े भयानक ,
आतंकपूण, िहंसा से आात , पूँजीवाद ारा शोिषत जनसम ूह और उसक पीड़ा का िच
अंिकत करना चाहत े ह । उनक फ ैटेिसयाँ याज क े िछलक क तरह पत -दर-पत खुलती
जाती ह , य िफमी रील क तरह बदलत े जाते ह और यथाथ के सजीव िच पाठक क े
सामन े उािटत होत े चलत े ह । पाठक तीख े, मम तक च ुभने वाले, तेज धार स े यु कट ु
सय का सााकार करता ह और वह िनणय नह कर पाता िक िजस कट ु यथाथ को उसन े
अभी-अभी द ेखा ह वह फैटेसी था या जीवत य ।

मुिबोध क फ ैटेसी सामाय कपना -जीवी फ ैटेसी स े िविश होती ह यिक वह उस े
खर यथाथ -बोध और गहन जीवनान ुभूित से जोड़ द ेते ह । उनक वन -कथा म
संवेदनामक ान और ानामक स ंवेदनाएँ रहती ह । फटेसी के योग क े कारण म ुिबोध
यथाथ िचण क दीघ ता से बच जात े ह ; उनके वणन म िमतययता और सघनता अपन े-
आप आ जाती ह । भाषा फ टेसी को काटती -छाँटती ह और फ टेसी भाषा को सपन और
समृ बनाती चलती ह, शद को नय े िच दान करती ह, शद और म ुहावर म नयी अथ
वा नयी अथ -मता , नयी अिभयि भर द ेती ह । फैटेसी को कदािचत ् इसीिलए उहन े munotes.in

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मुिबोध क काय भाषा
और
मुिबोध क े काय म फटेसी
117 काय क आमा कहा ह । इसस े तय क े िवतार क स ुिवधा होती ह । रावण , रास ,
लााग ृह आिद क पौरािणक कथाओ ं और तीक का आध ुिनक जीवन क समयाओ ं के
भाय क े िलए योग इसका उदाहरण ह । भयानक वातव का िचण और सामना करन े म
उहन े फटेसी से जो काम िलया ह वह उनक े फटेसी-योग क सफलता का परचायक ह ।
मुिबोध के िलए फ टेसी अिभय ंजना का मायम मा नह ह बिक उनके मन क सहज
वृि ह । यथाथ को वन -िच म बदल े िबना वह मान उस े समझ ही नह सकत े । फटेसी
के योग ारा वह ' कभी य ंय-उपहास करत े ह -
उनम कई काड आलोचक , िवचारक जगमगात े किवगण
मी भी , उोगपित और िवान
यहाँ तक िक शहर का हयारा क ुयात / डोमा जी उताद ।
तो कभी कण भाव क स ृि करत े ह.
पकड़ कर कॉलर गला दबाया गया। / चाटे से कनपटी ट ूटी िक अचानक
वचा उखड़ गयी गाल क प ूरी । / कान म भर गयी
भयानक अनहद -नाद क भनभ न ।
मुिबोध क े काय -िशप क िवश ेषता यह ह िक उहन े लण -यंजना, पक -उपमा,
तीक -िबब आिद क े बने-बनाये शाीय ढा ंचे को बदल कर उह फटेसी के मायम स े एक
नयी तरतीब और तहजीब दान क ह | वतुतः यह ब ुजुआ िशप का जनवादी िशप म
पातरण ह । इसीिलए कहा जा सकता ह िक भाववादी िशप को अपनान े के बावज ूद
मुिबोध एक यथाथ वादी समाजवादी कलाकार ह ।

१०.४ सारांश

आलोचक ने किव होन े के िलए उसक भाषा का अथ वान होना आवयक माना ह और
मुिबोध क काय साधना साथ क अथ ाि क ही रही ह | फटेसी क यिद बात कर े तो
मुिबोध म ूलत: फटेसी के किव मान े जाते ह | उहोन े फटेसी को काय िया म सृजन
क म ुख इकाई माना ह | इस इकाई म हमने मुिबोध क काय भाषा और उनक े काय म
फटेसी का वृहत अययन िकया ह | इन मु को िवाथ भिलभा ँित समझ सक े हगे |

१०.५ दीघरी

१) मुिबोध क काय भाषा पर िटपणी िलिखए |
२) मुिबोध फटेसी के किव ह | इस कथन पर काश डािलए |
३) मुिबोध क े काय म फटेसी क म ुखता ह | प िकजीए |
४) मुिबोध क काय भाषा समाज म संघषशील यि को साअथ दान करती ह |
उदाहरण ारा समझाइए |


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118 १०.६ लघुरीय

१) मुिबोध क किवताओ ं म यु शद म कौन सी काय श ैली क धानता िमलती
ह?
उर – छायावादी कायश ैली

२) मुबोध क किवताओ ं म यु – गैस – लाट , ेस, माशल आिद शद कौन सी
भाषा क े ह ?
उर – अंेजी भाषा

३) चुबकय शि , गुव-आकष ण, इलेॉन, मॅगनेट आिद शद म ुिबोध न े कहाँ से
िलए ह ?
उर - िवान क पारभािषक शदावली

४) मुिबोध फटेसी के मयम स े या य कर ते ह ?
उर – अपने परव ेश क भयानकता तथा मन ुय क दद नाक हालत |

१०.७ संदभ पुतके

१) मुिबोध और उनक किवता – डॉ. बृजबाला िस ंह, िविवालय काशन , वाराणसी ,
संकरण – 2004
२) मुिबोध – िनमल शमा , यी काशन , रतलाम (म..),
३) तारसकस े ग किवता (मुिबोध -शमशेर-रघुवीर) रामवप चत ुवदी, लोकभारती
काशन , इलाहाबाद , वष – 1997
४) समकालीनिहदी किवता – अेय और म ुिबोध -शिश शमा , वाणी काशन , वष
1995
५) मुिबोध क किवताए ँ –िबब ितिबब , नंदिकशोर नवल , काशनस ंथान , नई
िदली , थम संकरण – 2006
६) गजानन माधव म ुिबोधकितिनिध किवताए ँ – टीका, राजेश वमा एवं सुरेश अवाल ,
अशोक काशन , िदली , संकरण- 2010
७) अेय से अण कमल – भाग १, डॉ. संतोष क ुमार ितवारी , भारतीय थ िनक ेतन,
नई िदली , वष- 2005



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119 ११
मुिबोध क े काय म िबब योजना
और तीक िवधान
इकाई क पर ेखा
११.० इकाई का उ ेय
११.१ तावना
११.२ मुिबोध क े काय म िबब योजना
११.३ मुिबोध क े काय तीक िवधान
११.४ सारांश
११.५ दीघरी
११.६ लघुरीय
११.७ संदभ पुतके

११.० इकाई का उ ेय

इस इकाई का म ूल उ ेय म ुिबोध क े काय म िबब योजना और तीक िवधान स े
िवाथय को अवगत करता ह |

११.१ तावना

मुिबोध क े काय म िबब और तीक िवश ेष महव रखत े ह | इस इकाई म िबब और
तीक का िकस कार योग म ुिबोध क े काय म हआ ह इस पर िवत ृत चचा करगे |

११.२ मुिबोध क े काय म िबब योजना

िबब शद अँेजी के ‘इमेज’ का िहदी पा ंतर ह | इसका अथ ह-मूत प दान करना |
काय म िबब को वह शद िच माना जाता ह जो कपना ारा ऐीय अन ुभव क े आधार
पर िनिम त होता ह | िकसी भी किव क भाषा धानतः िबब क भाषा होती ह; वह अपन े
'अनुभूत भाव ' को िबब के मायम स े य और ऐिय बनाकर त ुत करता ह िजसस े
पाठक किव क स ंवेदना को सहज ही हण कर ल ेता ह । मुिबोध का काय िबब -योजना
क ि स े अयत सम ृ ह । आरभ म उनके िबब म छायावादी िबब -सजना का भाव
िगत होता ह । मुिबोध क 'आमा के िम म ेरे' किवता म साँझ और उषा को असरा
मानकर उह नव यौवना नारी क े मूत िबब ारा म ूितत िकया गया ह –
असराए ँ साँझ-ातः मूदु हवा क लहर पर स े िसध ु पर रख अण तल ुए
उतर आती , काितमय नव हास ल ेकर। munotes.in

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120 आगे चलकर उहन े अिधका ंश िबब को द ैनंिदन जीवन क वत ुओं, य और घटनाओ ं
से िलया ह । नई किव ता क तरह उनक े िबब गढ़ े हए नह ह ; वे अनगढ़ ह - न उन पर
पािलश ह और न व े खराद पर चढ़ाय े गये ह । कृित से जो िबब च ुने गये ह उनम भी
अनगढ़ , , सुनसान क ृित को ही अिधक महव िदया गया ह । मानव -दय क जिटलता
को एक ाक ृितक गुहा के िबब ारा पाियत िकया गया ह -
भूिम क सतह क े बहत नीच े / अँिधयारी एकात / ाकृत गुहा एक ।
िवत ृत खोह क े साँवले तल म ितिमर को भ ेदकर चमकत े ह पथर ।
उनके काय म यु तालाब , बूढा बरगद , बावड़ी , खडहर , घटाघर , चौराहा , गिलया ँ
आिद आकटाइपल िबब बनकर अन ेक अथ वाल े तीक और िमथक म खुलते चले गये
ह। आिदम जीवन से चुने गये उपकरण -बरगद क घनी शाखाओ ं क गिठयल म ेहराब और
परय स ूनी बावड़ी ,भूत-ेत रास आिद क े िबब क े साथ िमलकर आिदम वय
जीवन क े भ य प ूण वातावरण कोसाकार क र देते ह । "रास का िबब इितहास क
अवीा -वृि का ेत ह या इितहास क दिमत अव ेषण-एषणा या दिमत अवीा ह जो
इितहास -मन क बावड़ी क े गहरे अवच ेतन या अय अचेतन म कैद रहन े के िलए अिभश
ह।" सैिनक शासन स े सब िबब भी आत ंक सृि म सहायक हए ह -
गगन म करय ू ह | धरती पर च ुपचाप जहरीली िछः प ू: ह।
पीपल क े खाली पड़ े घसल म पिय क े पैठे ह खाली ह ए कारत ूस ।
उनके काय म एक ओर िवान और गिणत स े िबब हण िकय े ग ये ह तो द ूसरी ओर
सािहय , याकरण और भाषा -िवान स े। रेिडयो-एिटव मिणया ँ, नीले इलेॉन,
ेपणा ,समीकरण क े गिणत क सीिढया ँ यिद थम े से अपनाय े ह तो िनना ंिकत
पंिय म यु िबब द ूसरे े से िलया गया ह -
िकसी काल े डैश क घनी काली पी ही / आँख म बंध गई
िकसी खड़ी पाई क स ूली म / टांग िदया गया।
मुिबोध क े काय म सवािधक िबब य -िबब ह । उनक र ंग-चेतना अिधक िवकिसत ह,
अतः उनक े काय म काल े और सा ँवले के अितर भ ूरे, खाक , पीले, लाल, नीले, धूवाले,
मटमैले, गोरे, गेए, मोितया , चपई , गुलाबी और स ुनहले रंग के िबब िमलत े ह । सुनसान
साँवले चौराह े, वीरान ग ेआ घटाघर , कथई ग ुबद, पीले घड़ी-चेहरे उनके काय म सहज
ही देखे जा सकत े ह । उनक चा ँदनी स ंवलाई हई ह िजसक े ओठ तक काल े पड़ गय े ह ।
उनके काय म वातावरण क रहयमयता और भयानक रोमा ँचकता को म ूत करन े के िलए
िबब क स ृि क गई ह | ये िबब अयत सटीक और सफल ह । चाँद क िकरण जासूस
ह, भयानक काली लवादा ओढ़ े, थाह परद े से ढका च ेहरा, ठडे पश वाला अनजाना
यि भय और सनसनाहट को प पाियतकर द ेता ह । मुिबोध क िव ब स ृि म
बीभस और िवराट िबब भी िमलत े ह -
िफर भी , यशकाय िदकाल साट / तुम कुछ नह हो , िफर भी हो सब क ुछ !
ओ नट -नायक , सारे जगत पर रोब त ुहारा ह।
मुिबोध का िबब -संसार य , विनय , गितय , पश और गध का स ंसार ह ।
'रास' किवता म रास क नान -िया विन -िबब ारा म ूत हो गई ह -
रास / िघस रहा ह देह / हाथक े पंजे बराबर / बाँह-छाती-मुँह छपाछप ।
मुिबोध म संि िबब -िनमाण क शि अ ुत ह । अंधेरे म चमकती हई मिणय से
िनःसृत काश क कपना बहत े हए जल स े कर तथा खोह क ब ेडौल भीत पर चमकन े munotes.in

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मुिबोध क े काय म िबब योजना
और तीक िवधान
121 वाली काश -िकरण क िझलिमल को दशा कर पाठक क े मन म एक िवव ृत िबब क स ृि
क गई ह -
झरता ह िजनपर बल पात एक / ाकृत जल वह आव ेग भरा ह,
युितमान मिणय क अिनय पर से / िफसल -िफसल कर बहती लहर ।
उनके िबब बड़ े शिशाली ह , अतः य ेक िच को अथ पूण और िचमय बना द ेते ह ।
येक िबब कय को अिधक प और स ुढ़ बना द ेता ह । उनको िशप -शि क े पीछे
खर िबब -योजना का योगदान िनय ही महवप ूण ह । िबंब क नवीनता और मौिलकता
उनक एक अय उपलिध ह । उनक े िबब ठोस िवचार स े ेरत और अथ पूण होते ह ; वे
अपने आप म पूण न होकर िकसी अगल े िबब स े जुड़कर अथ को और भी गहन बना द ेते ह
। उनक े िबब म तीकाथ भी होता ह ; उनके अिधका ंश िबब क ेवल या ंकन क े िलए
यु न होकर तीकाथ को सम ेटे हए ह , अतः जीवन क े गितमान सय को पाठक क े
सामन े त ुत करत े ह । अतः म ुिबोध का िबब -िवधान क ेवल किवता का अल ंकरण नह
ह, वह स ृजन क े तर पर ह, सूम, जिटल स वेदन को स ंेिषत क रने के िलए य ु हआ
ह, किव क आतरक िववशता का परणाम ह । 'चाँद का म ुंह टेढ़ा ह' म चाँद के मुँह का
टेढ़ापन तीक बनकर आया ह । इस चा ँद क चा ँदनी म षड्य ह, राजनीितक हलचल ह,
पोटर बाज़ी ह । भैरव िवोह का तीक ह तो बरगद इितहा स-बोध का संकेत देता ह ।
सारांश यह िक म ुिबोध क े काय -िबब म िविवधता , भौितकता और नवीनता तो ह ही
साथ ही व े किव क काय -िया का अिभन अ ंग ह, उसक अतर ंग उपज ह , से थोपे गये
नह ह ।

आ िबब -अचेतन मानस म सोचन े और अन ुभव करन े के कुछ ढंग ऐस े ह िजह ह म
ागैितहािसक प ूवज स े आनुवंिशक प म आया हआ मानत े ह । ये आप देशकाल -
िनरपे होत े ह । आप क अिभयि वन -िबब आिद क े मायम स े य होत े ह,
इसीिलए कहा गया ह िक आपवतः अय होत े हए भी आ िबब ारा य हो
सकता ह । किव क े दय म पूवसंिचत सौदया नुभव क रािशया ँ आप को विनत
करती ह और िविभन िबब क े प म अिभय होती ह । मुिबोध क े काय म समु,
बावड़ी , जल आिद क े िबब अन ेकश: यु हए ह । वे सब अच ेतन के ोतक आिबब ह ।
अचेतन-त अह ं को रास और उसक ामक िथित का िचण बावड़ी क
सीिढ़या ँ चढ़न े और उतरन े क िया ारा िकया गया ह । 'अंधेरे म' किवता म जलो ूत ेत
आकृित चेतन यिव को हतभ कर द ेती ह यिक अह ं के िलए अचेतन सामी ायः
ोभक होती ह । चेतन अह ं अचेतन क अ ंधी गहराइय स े नये-नये रचनामक िवचार और
यय क े कमल ा करता ह -
संवलाय े कमल जो खोह क े जल म / भूिम के पाताल -तल म
सुझाव-संदेश भेजते रहते।
मुिबोध क े काय म राि एव ं अंधेरा यिगत अच ेतन के ोतक ह -
उठने दो अ ंधेरे म विनय क े बुलबुले ।
युग के अनुसार, गुहा, वापी आिद खोखली स ंरचनाए ँ अवच ेतन क तीक ह । गुहा वह थल
ह जहाँ यि यिवातर क े िलए बद होता ह, अतः उस े अचेतन के सृजनामक प का
तीक भी कहा जा सकता ह । अच ेतन प ूणतया वाय ह, वह सच ेतन यास स े नह,
अनायास खुलता ह । मुिबोध क े काय म भी "ितिलसी खोह का िशला -ार ख ुलता ह munotes.in

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122 धड़ स े" और उसके खुलते ही 'रालोक -नात प ुष' के दशन होत े ह जो आमा क ितमा
ह। 'अंधेरे म' का नायक खड ्डे के अंधेरे म पड़े रहकर गित -ाित क स ंभावनाओ ं को
टालना चाहता ह, पर 'तम-शूय' क ुित-आकृित उस े बरबस गय ुमुख करती ह ।

जल क तलहटी म डूबा या ग ुफा म िछपा चमकला मिण -रल एक आिबब ह । मुिबोध
यिवातरण क े िलए अच ेतन म िनवा िसत ेयकर ग ुण-ानामक स ंवेदन या
संवेदनामक ान को आवयक मानत े ह और उसको मिण क े िबब ारा त ुत िकया
गया ह ।

जल क तलहटी म डूबा या ग ुफा म िछपा चमकला मिण -रन एक आिबब ह । मुिबोध
यिवांतरण क े िलए अच ेतन म िनवा िसत ेयकर ग ुण-ानामक स ंवेदन या
संवेदनामक ान को आवयक मानते ह और उसको मिण क े िबब ारा त ुत िकया
गया ह ।

वृ बहय ु मात ृ-िबब ह । अनेक पुराकथाओ ं म मानव व ृ से जम ल ेते ह । मुिबोध ने
उसे अचेतन का तीक बताया ह । 'अंधेरे म' बरगद क े नीचे िसर-िफरा जन अच ेतन म बैठी
आमा का तीक ह, आयािमक उिनता का िबब ह । 'मेरे सहचर िम ' म अयवट
िच क धारणामक शि का तीक ह । ितगित क े ण म वही मा नवीय अन ुभव को
धारण करता ह ।

इस कार म ुिबोध क े काय म समु, बावड़ी , तालाब , राि, अंधकार , गुहा, घाटी, खड्ड,
धरती, वृ, दपण आिद अच ेतन क े िस आिबब ह । उसक े ारा ल ेखक न े मानवीय
यिव के उस अ ंधकारमय प क अिभयि क ह िजसक याा िकय े िबना कोई भी
कारियी ितभा सफल नह हो सकती ।

मुिबोध क े काय म भी छाया, माया, आप ुष आिद आिबब का योग हआ ह ।
उहन े यिव क े दिमत , हीनप का िचण करन े के िलए दय ु, डाकू, काला याह च ेहरा
के िबब तुत िकय े ह जो छाया के ही नाना प ह । 'अंधेरे म' मार खाया च ेहरा, लेट-
पी पर खची गई भ ूत जैसी आक ृित यिव क े हीन प का िचण करती ह , तो शृंगाल,
ान, माजार, रीछ, िग, घुघू, सप आिदमानव क पािक व ृिय को िबब -प म तुत
करते ह -
कु क द ूर-दूर अलग -अलग आवाज़ / टकराती रहती िसयार क विन स े।
अचेतन क स ृजनामक शि भी अ ुत ह; वह सामािजक सा ंकृितक िनमा ण क, आदश
क, वतता , ांित क ेरणा द ेती ह । मुिबोध न े कह उस े 'माँ' कहा ह और कह
णियनी -
अात णियनी कौन थी , कौन थी ?
या कोई ेिमका सचम ुच िमल ेगी ?
हाय ! यह व ेदना न ेहक गहरी / जाग गयी यकर ?
आप ुष एक ओर ान , अत ि, ा और द ूसरी ओर श ुभ संकप एव ं सहयोग ज ैसे
नैितक ग ुण का ितिनिधव करता ह । मुिबोध क े काय म पी, महापुष-ितलक , गांधी munotes.in

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मुिबोध क े काय म िबब योजना
और तीक िवधान
123 आिद, आप ुष स े सब आिबब ह जो कह कोई रहय बतात े ह, कह कम क ेरणा
देते ह और कह आमज िशश ु सपत े ह । आप ुष के ये िबब ायः उस े उवल प का
ही ितिनिधव करते ह ।

मनोिवान म यिव क प ूणता को आम कहा गया ह । आम क यह अन ुभूित मन ुय को
अहंत च ेतना स े मु कर यापकतर और गभीरतर च ेतना को जम द ेती ह । इसक े िलए
िवराट् पुष के िबब क योजना क गई ह । 'अंधेरे म' किवता म अनेक बार कट होन े वाले
पुष को 'परपूण का आिवभा व' एवं 'आमा क ितमा ' कहा गया ह । वह नायक का परम
उकष और ग ु ह । अय किवताओ ं म आम क े िलए पवन , सूय, आमदीप , कमल , िशशु
आिद क े िबब तुत हए ह । िशश ु भावी यिवातर ् का, चेतन-अचेतन के समवय का
ोतक ह । उसका दन ितपालन -दाियव क मा ँग का तीक ह ।

मुिबोध क िवश ेषता ह िक मास वादी और अितववादी दश न से भािवत होत े हए भी
उहन े भारतीय िबब का योग िकया ह, उसका प ुनसृजन िकया ह ।

११.३ मुिबोध क े काय तीक िवधान

मुिबोध क े काय म तीक काय -िशप का उपादान मा नह ह । उहन े अपनी स ंवेदना
को य करन े के िलए तीक -योग को आवयक समझकर उनका योग िकया ह । आज
क युग-चेतना अिधक जिटल , संकुल और उलझी हई ह । अपन े युगीन यथाथ और
अत ेतना के यथाथ को साकार करन े के िलए तीक का योग अयावयक हो गया ह,
अतः अपनी जिटल और सूम अन ुभूित को य करन े के िलए ही म ुिबोध न े तीक का
आय िलया ह । इसीिलए िजन तीक का योग उनक े काय म हआ ह वे वतमान परव ेश
से िलए गए ह ।

मूलतः तीक दो कार क े होते ह -परपरागत और नवीन या व ैयिक तीक । म ुिबोध ने
अपने अमूत भाव को य करन े के िलए नय े तीक का योग िकया ह अथवा परपरागत
तीक को अथ िकया ह । इितहास , पुराण अथवा अपनी स ंिचत मृित से तीक को हण
कर उहन े उह आध ुिनक सदभ दान िकया ह । एकलय , अजुन आिद क े पौरािणक
तीक नये संदभ म यु हए ह -
म एकलय िजसन े िनरखा / ान क े दरवाज े क दरार स े ही
भीतर का महा -मनोमथन -शाली मनोज / ाणाकष क काश द ेखा।
अयवट , तक, पनादाई िशवाजी आिद पौरािणक -ऐितहािसक स ंग का तीकामक
योग नय े सदभ म िकया गया ह । 'लकड़ी का बना ' रावण' अहंत, खोखल े, िनसार
यिव का तीक ह जो अपन े अहंकार क े कारण वय ं को महान समझता ह, पर जो
िकसी भी ण धराशायी हो सकता ह । नये तीक का योग उनक िस किवता 'अंधेरे
म’ सवािधक हआ ह । यहाँ अंधेरा सामािजक अयवथा को भी य ंिजत करता ह और किव
के मनोजगत ् म छाई अम ूत िनिबड़ता को भी । रालोक -नात प ुष िनरतर स ंघष करन े
वाले संकृित-पुष का तीक ह जो मयमवग का आदश वादी और ढ़ चर ह तथा munotes.in

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124 जीवन क स ुिवधाओ ं से समझौता नह करता । िशश ु ऐितहािसक दाियव का तीक ह,
सूरजमुखी क े गुछे दाियव -बोध क सनता क े तीक ह तो रायफल कम यता क
तीक ह। अण कमल एक ओर किव क प ूण संभावनाओ ं का तीक ह तो दूसरी ओर नयी
अथवा स े यु भाषा क े आदश प क ओर स ंकेत करता ह –
म वह कमल तोड़ लाया ह ँ। भीतर स े इसिलए गीला ह ँ / पंक से आवृ ।
यहाँ कमल जीवन क कट ुताओ ं से संघष करन े के उपरात ा होन े वाले ानमय िवव ेक
या जीवन -सय का तीक ह । अवच ेतन मन क गहनता एव ं िनिबड़ता को य करन े के
िलए उहन े' चबल क घाटी ' को तीक बनाया ह -
अजी यह चबल घाटी ह, िजसम / पहाड़ क िबयावान
अजीब उठान और ध ंसान िनचाइया ँ
पठार व दर / और गहरी ह पथरीली गिलया ँ।
रास अ तीत क बौिक च ेतना का तीक ह जो भिवय क े ित समिप त न होन े के
कारण ‘तम िविवर म मरे पी सा ' िवदा होता ह। वह हमार े पौरािणक अच ेतन और अत ृ मन
का भी तीक ह जो समाज क े अथ व ृ पर ब ैठा हआ ह । वह किव का भोगा हआ आम
ह जो उपच ेतन क संकुलता म कैद ह । वह अवीा का तीक या ेत ह जो ु और
अिभश ह और िजसका स ंशोधन इितहास -मन क बावड़ी म हो रहा ह-भय, सदेह, खतरे
और अिभशाप के वातावरण म । उसक स ंवेदना याह ह यिक उस े शाप लगा हआ ह ।
ओरांग जोटा ंग हमारी नैसिगक अिवकिसत द ुदमनीय पाशवी व ृिय का तीक ह जो यि
के अवच ेतन क अधकारमयी आव म िछपी रहती ह । सयता का जामा पहन े हए आज क े
मानव का भी वह तीक हो सकता ह यिक जघय काय और मानवता को न करन े वाले
िहं अ उसक े नाखून ह और झूठे अहं से दूसर का शोषण करन े वाला काय उसक प ूँछ
ह । अतः ओरा ंग-ओटांग आज क े मानवक बब रता और िह ंसा का ितप ह । सयता पर
संकृित क िवजय तभी होगी जब िदमागी गुहाधकार क े इस ओरा ंग-ओटांग को िवव ेक से
सदूक म बद कर िदया जाय ेगा । माँ ऐसे यि -मन का तीक ह जो परपरा क े जीवत
अंश को पहचानता ह । इसीिलए वह ज ंगल म िबखरी स ूखी टहिनय , डठल को जो
मूयवान ान क े तीक ह , उनको बटोरती ह । बरगद इितहास -बोध का तीक ह तो भैर
िवोही च ेतना का और ढहा हआ मकान परपरागत ढ़ म ूय के वत हो जान े का
तीक ह ।

मुिबोध क े काय म ऐसे तीक का भी योग हआ ह िजनका सबध योग साधना से ह,
िकतु उनका अथ -सदभ मनुय क अवच ेतन मनोभ ूिम से जुड़ा ह । अतः इनक े योग स े
किवताए ँ रहयामक भल े ही बन गई ह , वे रहय वादी नह ह । ितलमी खोह , अधेरे
कमरे, बावड़ी आिद क तीक -योजना उनक किवता को क ुछ दुह और जिटल अवय
बना द ेती ह िफर भी उनक े तीक साथ क ह, कय को ेषणीय बनान े म सहायक ह और
उनके मायम स े किव क अन ुभूितय को िशप क े नए आयाम िमल े ह ।

मुिबोध क तीक -योजना क एक अय िवश ेषता यह ह िक एक ही तीक कई थान पर
यु हआ ह, पर िभन -िभन अथ म । अतः उनम एकरसता या अथ का दोहराव नह आ
पाया ह । कह उहन े वत एव ं लघु तीक का योग िकया ह तो कह िव तृत आयाम
वाले तीक का िजनका अथ -सदभ सपूण किवता म समाया हआ ह । यहाँ रनमिण और munotes.in

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मुिबोध क े काय म िबब योजना
और तीक िवधान
125 कमल यिद वत सदभ से यु ह, तो रास , ओरांग-ओटांग, रालोक -नात-पुष
का तीक -सदभ पूरी किवता म छाया हआ ह । अपन े तीक ारा एक ओर म ुिबोध
अपने कय को प बनान े म सफल हए ह और द ूसरी ओर उनक े कारण उनका काय -
िशप अिधक प ैना और धारदार हो गया ह । उनक े तीक म अय , अेय, अमूत और
अनत को य करन े क अ ुत शि ह ।

११.४ सारांश

मुिबोध क े काय म य िबब क अिधकता ह और आ िबब को भी िवत ृत प स े
विणत िकया गया ह | तीक योजना क यिद बात कर तो एक ही तीक कई थान पर
योग करन े क ला म ुिबोध को ात थी | और इन सभी म ु का उ अयाय म
िवतृत वणन हआ ह िजसक े अय यन स े िवाथ इकाई क े सभी म ु को समझ गय े हगे |

११.५ दीघरी

१) मुिबोध क े काय म िबब स ृी क िवश ेषताएँ बताइय े ?
२) मुिबोध क े काय म तीक िवधान पर अपन े िवचार य किजए |

११.६ लघुरी

१) िबब शद अ ँेजी के कौन से शद का पातर ह ?
उर – ‘इमेज’

२) मुिबोध का िबब िवधान क ैसा था ?
उर – अनगढ़, पॉिलश न िकए हए |

३) मुिबोध क े काय म सवािधक कौन स े िबब क य ुि ह ?
उर – य िबब



४) मुिबोध न े तीक योजना का योग य आवयक माना ?
उर – अपनी स ंवेदना को य करन े के िलए

५) हरास किवता म अतीत __________ तीक ह |
उर – बौिक च ेतना का



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126 ११.७ संदभ पुतके

१) मुिबोध और उनक किवता – डॉ. बृजबाला िस ंह, िविवालय काशन , वाराणसी ,
संकरण – 2004
२) मुिबोध – िनमल शमा, यी काशन , रतलाम (म..),
३) तारसकस े ग किवता (मुिबोध -शमशेर-रघुवीर) रामवप चत ुवदी, लोकभारती
काशन , इलाहाबाद , वष – 1997
४) समकालीनिहदी किवता – अेय और म ुिबोध -शिश शमा , वाणी काशन , वष
1995
५) मुिबोध क किवताए ँ –िबब ित िबब, नंदिकशोर नवल , काशनस ंथान , नई
िदली , थम स ंकरण – 2006
६) गजानन माधव म ुिबोधकितिनिध किवताए ँ – टीका, राजेश वमा एवं सुरेश अवाल ,
अशोक काशन , िदली , संकरण- 2010
७) अेय से अण कमल – भाग १, डॉ. संतोष क ुमार ितवारी , भारतीय थ िनक ेतन,
नई िदली , वष- 2005





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127 १२
मुिबोध क े काय म मूल संवेदना
इकाई क पर ेखा
१२.० इकाई का उ ेय
१२.१ तावना
१२.२ मुिबोध का काय : मूल संवेदना
१२.३ सारांश
१२.४ दीघरी
१२.५ लघुरी
१२.६ संदभ पुतके
१२.० इकाई का उ ेय
इस इकाई का मूल उ ेय मुिबोध क े काय क म ूल संवेदना को जानना ह |
१२.१ तावना
मुिबोध का काय जन िहताय का काय ह , साथ ही पी ड़ा, िधा, मनुय क आशा एव ं
िनपाय क और यह काय स ंकेत करता ह इह सब म ु क सिवतर चचा हम इस
अयाय म करगे |
१२.२ मुिबोध का काय : मूल संवेदना
ढ़ और वािभमानी यिव क े धनी, तन-मन-धन स े कला क े ित समिप त मुिबोध का
काय नयी किवता क महवप ूण उपलिध ह । मुिबोध आजीवन नयी ि , नये युग के
अनुभव और काय क िवलण अन ुभूितयाँ खोजते रहे । उनका सप ूण काय उनक े जीवन
को ितिबिबत करता ह । उसम एक तरफ मयद ेश के पठारी ज ंगल क े किव का सहज
बोध ह तो वह ऐितहािसक खडहर क े िवयाबान म रमने वाले मन क िनभ य पुकार भी ह ।
अपनी काय -ेरणा क े सबध म उहन े वयं िलखा ह, "मेरे बाल-मन क पहली भ ूख
सौदय और द ूसरी िव -मानव का स ुख-दुःख,इन दोन का स ंघष मेरे सािहियक जीवन क
पहली उलझन थी ।" मालवा क े ाकृितक सौदय , सामाय जन क े सुख-दुःख, तालताय
क लोक-मंगल-भावना , बग शॉ क वत ियमाण जीवन -शि तथा मास वाद न े उनक
काय-चेतना को भािवत िकया । उनक काय -संवेदना पर अितववाद का भी भाव munotes.in

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128 िगत होता ह । अितववादी य ेक ण को महवप ूण मानता ह; उसके सामन े चुनाव
क समया होती ह ; वह मानता ह िक मन ुय को उसक इछा क े िव इस स ंसार म
धकेल िदया गया ह, पर जम ल ेने के बाद उसका काय ह िक वह अपन े जीवन स े अथ और
योजन का िनण य वय ं करे । मुिबोध भी िधात ह , एक प ैर रखत े ह िक सौ राह
फूटती ह । वह अपन े को िकसी शिारा िनयोिजत पात े ह -
यब गितय का ह -पथ यागन े म असमथ
अयास , अबोध िनरा सच म ।
वयं को असहाय , सामय हीन िथित म बताकर म ुिबोध मनुय क आशा एव ं िनपाय
िथित क ओर ही स ंकेत कर रह े ह ।
मुिबोध क काय -चेतना का म ूलाधार ह मानवीय स ंवेदना । व े जीवन -पयत एक ही
समया को लेकर िचितत थ े -
मेरे सय नगर और ाम म
सभी मानव
सुखी, सुदर व शोषण -मु कब हग े।।
उनक काय स ंवेदना ाइ ंग म -संकृित क स ंवेदना नह थी । उनका नाता छोट े से छोटे
एवं नगय मन ुय से था ; उसके छोटे से छोटा द ुःख भी उनक े दय को कचोटता था और
वह उसक पीड़ा को वर द ेने के िलए अधीर हो उठत े थे । उनक किवताओ ं म पहली बार
िनन मय वग के जीवन का सम िचण हआ ह । इस वग के यि क े आदश और यथाथ
म होनेवाला स ंघष उनक किवता का क ेीय िवषय ह । उसक े साथ उनक प ूरी
सहान ुभूित ह -
िवशाल मशीलता क जीवत
मूितय के चेहर पर
झुलसी ह ई आमा क अनिगन लकर ।
मुझे जकड़ ल ेती ह अपन े म, अपना सा जानकर ।
मुिबोध का काय सामाय जनता क व ेदना का काय ह ।उनक व ेदना बड़ी यापक और
साथ ही गहरी ह । यि और स माज क े पारपरक सबध क वैािनक याया और
उसक कायमय अिभयि ही उनक किवताओ ं का अतम न ह और चूँिक उहन े केवल
वानुभूत का िचण िकया ह, अतः व ैयिक अन ुभव क ामािणकता उनक काय-
संवदेना को खर बना द ेती ह । मुिबोध क े काय को 'मानवता का दताव ेज' कहा गया ह।
मानवता अमर ह और मानवता क धारा को आग े बढ़ात े रहना ही वह स ृजनशीलता मानत े
ह। इसक े िलए आवयकता ह िक वह प ुरातन को न करन े के िलए मरण -गीत गाएँ और
जन-जनम नई योित , नई आशा जगाए ँ - munotes.in

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मुिबोध क े काय म मूल संवेदना
129 हम घ ुटन पर नाश द ेवता
बैठ तुझे करते ह बदन
मेरे िसर पर एक प ैर रख
नाप तीन जग त ू असीम बन।
मुिबोध का काय आज क े सामाय मानव क असहायता , घुटन, छटपटाहट को
उपिथत कर उसक म ुि का माग खोजता ह, वह िनब ल मानव को नव आशा स े योितत
देखना चाहता ह । लेिकन, इसके िलए म ुिबोध म को, मेहनत को , िनरंतर यास और
अपने अिधकार क े ित जागकता को आवयक मानत े ह | इसके िलए मन ुय को को
कमठ बनना होगा , म का त ल ेना होगा इसिलए वे म हारा को सज न क शि हण
करने और स ंघष क ेरणा द ेते ह । उनका िवास ह िक -
येक पथर म
चमकता हीरा ह।
हर एक छाती म आमा अधीरा ह
येक सुिमत म िवमल सदानीरा ह
येक वाणीम
महाकाय पीड़ा ह।
मुिबोध अिनधम च ेतना क े किव ह , अतः उनक े काय म तनाव , ितिया एव ं िवोह के
तव सहज ही िदखाई द ेते ह । उनके भाई शरच न े उह 'True rebel' कहा ह ।
मुिबोध का िस काय स ंह ‘चाँद का मुंह टेढ़ा ह' शोषण और यातना स े अिभश हमार े
वातयोर -युग का स ुलगता काय -संह ह । उसस े पूव भी 'तार-सक' म वह प ूंजीवादी
समाज क े ित अपना आोश य करत े हए िलख च ुके थे िक -
तेरी रेशमी वह शद स ंकृित अध
देती ोध म ुझको, खूब जलता ोध
तुमको द ेख िमतली उमड़ आती शी ।
इस स ंकृित के नाश क े िलए ही किव नाश-देवता का आान करता ह ।
अंधेरे म किवता म उहन े उच वग से जुड़े िवान, किवय , आलोच क को 'रपायी वग
से नािभनाल ब' कहा ह, बौिक वग को उनका तदास कहा ह । 'भूल गलती ' म इसी
अवसरवादी , सुिवधा भोगी वग को बड़ े सश शद म बेनकाब िकया ह -
आिलमो फािज़ल िसपहसालार , सब सरदार
ह खामोश ! munotes.in

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130 'भूल गलती ' सामािजक और यि क आतरक क ुयवथा का तीक ह । इस यवथा
म, यांिक सयता म सुिवधा भोगी ही पनप सकत े ह । इस अवसरवािदता को पहचानन े के
कारण ही वह तथाकिथत महान ुभाव, अनुभव-समृ िवान को शहर क े गुडे डोमाजी
और स ंगीनधारी सैिनक क े साथ खड़ा कर द ेते ह । ये सभी रासी वाथ के पुतले ह, अतः
उह 'भूत-िपशाच -काय' कहा गया ह । उनका िवास ह िक जब -जब शोषण पर आधारत
पूंजीवादी यवथा पनपती ह, सयता मर जाती ह -
शोषण क अितमाा
वाथ क स ुख-याा
सपन ह ई.
आमा स े अथ गया
मर गयी सयता।
आधुिनक सयता क िवस ंगित और िव ूपताओं से परिचत म ुिबोध न े उन पर करारा
यंय िकया ह । चाँद और चा ँदनी क े मायम स े उहन े मूल कय को ख ूब उभारा ह । इनक े
ारा उहन े आज क े कुप, कठोर , िनमम जमान े का िच त ुत िकया ह । उनक चा ँदनी
गौरवणा कुद-वदना न होकर शोहद े आवारा मछ ुओं सी मछिलया ँ फँसाती ह । इस चा ँदनी
क रोशनी ऐयारी ह िजसम करय ू लगा ह, सनाटा ह, फुसफुसाते षड़य ं होत े ह । इस
िचण म सन् १९५३ के िघनौन े, गदे, भय और ास स े भरपूर परव ेश को साकार कर
िदया गया ह । राीय -अतरा ीय तर पर होन े वाले शोषण -ाचार को 'बारह बज े रात
के' म य िकया गया ह । यहा ँ चाँद आसमानी तत पर सोन े क िगनी -सा चेहरा िलए
बैठा ह और य ूरोपीय सयता क े भय भवन का ठाठ म ुकरा कर द ेखता ह । यह चा ँद अंेज
साायवािदय का तीक ह जो अपन े बढ़ते सााय और ऐय को द ेख मुकरा रहा ह ।
उसे इस यवथा क क ृिमता और खोखली आडबर -ियता स े घोर घ ृणा ह -
खूबसूरत दमकत े रेतुर म
कैटन स े गरबील े
बैज स े, बटन स े खेलते ह सुकुमार
रंगे हए नाख ून
पट के बटन चमकत े-से लगत े ह
कामुक काश म ।
सााय िवतार क े िलए िकय े गये षड्य और रपाल क पोल खोलत े हए वह
िलखत े ह -
खून क लकर स े
देश-िवदेश क नई -नई
खूनी लाल -खूनी लाल
सरहद -सीमाए ँ बनात े ही जात े ह। munotes.in

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मुिबोध क े काय म मूल संवेदना
131 नगर क े लोग का क ृिम रहन -सहन और उनक बनावटी सयता किव क आ ँख स े िछपी
नह ह -
पावडर क े सफेद अथवा ग ुलाबी
िछये बड़े-बड़े चेचक क े दाग म ुझे दीखत े ह
सयता क े चेहरे पर।
'काय :एक सा ंकृितक िया ' नामक िनबध म मुिबोध न े िजस िवषमता -त समाज
और उस के नैितक हास क बात कही थी , उसका िचण उहन े अपनी किवताओ ं म
िनभक होकर ढ़ता पूवक िकया ह -
उदरभर बन अनाम बन गय े
भूत क शादी म कनात -से तन गय े
िकसी यिभचारी क े बन गए िबतर।
लो िहत -िपता को घर स े िनकाल िदया
जन-मन-कणा -सी मा ँ को हकाल िद या
वाथक े टेरयार क ु को पाल िलया।
पुरातनता और नवीनता क े बीच िपसी मानवता क यथा को उहन े '-रास ' किवता म
वाणी दी ह-
पीस गया वह भीतरी
और बाहरी दो किठन पाट बीच
ऐसी ेजेडी ह नीच !
और आज क े तथाकिथत सय मानव को उहन े ओरा ंग ओटा ंग कहा ह यिक उसक े
जघय काय और िह ं अ इस ज ंगली असय क े नाखून से कम नह ह ।
जहाँ मुिबोध क े नगर िच म किव क उनक े ित घोर िवत ृणा िगत होती ह, वहाँ वह
ामीण सहज जीवन को अपनी सहान ुभूित दान करत े ह । वहाँ उह नगर रंगीन मायाओ ं
का दी प ुंज लगता ह, वहाँ ामीण वातावरण क े िचण म किव क े मन का सहज उलास
और उस वातावरण क े ित उसका न ेह प झलकता ह -
दूर-दूर मुफिलसी क े टूटे-फूटे पर म
सुनहले िचराग बल उठत ेह
आधी -अंधेरी शाम
ललाई म िनलाई स े नहाकर
पूरी झुक जाती ह। munotes.in

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132 'तार-सक' के किवय म अकेलेपन का भाव सवा िधक म ुिबोध म ह -
ाण क ह बुरी हालत
और जज र देह; यह ह बुरी हालत ।
इस अक ेलेपन के भाव का कारण अितववादी दश न न होकर उनक े जीवन क ितक ूल
परिथितया ँ थ िजनस े संघष करत े-करते वह ट ूटते चले गये । नयी किवता िजस 'लघु
मानव' और 'ण क महा ' क बात करती ह, मुिबोध क े काय म उन दोन क िता
ह। जब मानव को अपनी त ुछता का अहसास हो जाता ह तब वह ण क े महव को
वीकार करन े लगता ह । वह जीवन क साथ कता अिधक समय तक जीन े म न मानकर
साथक जीवन जीन े म मानत े ह, अतः आवयक ह िक यि य ेक ण को उसक
संपूणता म जीने का यास कर । वह अह ं को अप ूण मानत े ह । इसी अप ूणता के कारण
यि न प ूरी तरह घ ृणा कर पाता जय और न ेम; न िकसी पर ोध कर सकता ह और न
िकसी क े ित लािन कट कर सकता ह । 'नूतन अह ं' करीता म मुिबोध न े यि क
इसी म ुता को य िकया ह। इस अह ं भाव क त ुछता बतात े हए वह िलखत े ह -
अहं भाव उ ुंग हआ ह तेरे मन म
जैसेघूरे पर उा ह
घृ कुकुरमुा उम।
यिप म ुिबोध आध ुिनक य ुग म अयाम को यथ बतात े ह -
लोग-बाग
अनाकार क े सीमाहीन श ूय के
बुलबुल म याा करत े हए गोल -गोत
खोजत े ह जाने या ?
पर जीवन म सौहा के महव , परपर िवास , अटूट आथा को र ेखांिकत करत े ह और
जड़ता के ित साहसप ूण िवदोह करत े ह । कूप मड ूक बन े रहने से केवल सतही सय पाया
जा सकता ह, ऐसा उनका िवास ह ।
मुिबोध क े काय म बिलदान क भावना को उब ु, उी और परपव करन ेवाली
सामी भी च ुर माा म उपलध ह । याय -चेतना और कणा क सदव ृियाँ याग -भावना
को उु करती ह । याय च ेतना वाथ से हटाती ह और कणा परोपकार म वृ करती
ह । मुिबोध कयाणमयी कणा को यिवतरकारी शि मानत े ह । इसीिलए तो उनक े
युवक म वेदना-जलपीकर यिवातर होता ह और व े िविभन े से संघष करत े ह -
बेदना-निदय का जल पीकर
मेरे युवक म यिवातर
िविभन े म कई तरह स े करत े ह संगर। munotes.in

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मुिबोध क े काय म मूल संवेदना
133 मुिबोध का काय जीवन के ित अट ूट आथा का काय ह । शोषणम ु समाज ,
सांकृितक मूय और मानवता म उनक अट ूट आथा थी । उनका ढ़ िवास ह िक
अंधेरे से यु जंगल म से नदी पार करन े पर जीवन का अयवट अवय िमल ेगा और
जीवन म -गरमा का तयपी कर िवकास कर ेगा। अतः वह कलाकार क े सबध म कहत े
ह िक “कलाकार को प ुषाथ होना चािहए वह जमीन म गड़कर भी सदा यन और
पुषाथ करता रह ेगा।" उनके वाय म समपण का वर भी बड़ा बल ह -
आमा म ेरी
उस वलन क भ ूिम म तू वयं िबघ ल े।
उनम ढ़-संकप क आथा ह, अतः उनका मन िवपरीत परिथितय म भी नह ट ूटता
और न कोई समझौता करता ह । वह उस सामाय जन क े ित आथावान ह िजसक े उच
भाल पर िव का भार ह और िजसक े अतर म िनसीम यार ह। इसीिलए वह किव का
आान करत े हए कहत े ह -
तुम किव हो , वे फैल चल े मृदु गीत िनवल मानव क े घर-घर
योितत हो म ुख नव आशा से, जीवन क गित जोवन का वर ।
परपरागत आदश ,आथा व िवास क े मलव े से नयी स ंकृित का िनमा ण करन े का
उोधन भी उनक इसी अदय आथा और समप ण-भावना का परचायक ह -
कोिशश करो
कोिशश करो
जीने क
जमीन म गड़कर भी।
और म ुिबोध को शत ितशत िवा स ह िक किव क े यन िवफल नह हग े -
बेकार नह जाय ेगा
ज़मीन म गड़े हए देह क खाक स े
शरीर क िमी स े, धूल से
िखलगे गुलाबी फ ूल।
शत केवल यह ह िक केवल बड़ी िवाप ूण बात स े कुछ होन े वाला नह ह , अब क ेवल
बौिक ज ुगाली स े काम नह चलेगा, अपने कम म िवास करना होगा , कमिशलाओ ं से
वन क मूित बनानी होगी । म ेहनत करन े वाले को कोई बहत द ेर तक नह रोक सकता |
इस कम िना जय ाित क े िलए उपादान क आवयकता ह, उनका िचण किव न े
िवतार स े िकया ह । मास वादी ाित िहंसामक होती ह । अतः किव नाश -देवता क munotes.in

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134 वदना करता ह और मानता ह िक 'िबना स ंहार' के सजन अस ंभव ह । इस उ ाित क
िनदा वह नह सह सकत े -
लावा कहकर िन ंदा करक े, कोई उसको रोक न सकत े
वह भिवतय अटल ह, उसको अ ंिधयार े म झक न सकत े।
ाित के िलए याग करना होगा , सुिवधाए ं यागकर ख़तर े उठान े हगे, संगिठत होना पड़ ेगा,
संगठन क े िलए आवयक ह िक ाितकारी यश िलसा स े दूर रहे, अपने आप को एक
आयुध, मा साधन समझ े । किव का िवास ह िक य ुग का अ ंिधयारा छट ेगा, तमस् क
अगलाएँ टूटगी और ाित होगी । युग के ास और उपीड़न को प ूरी वातिवकता और
भयावहता क े साथ भोगन े और पचान े के बाद ही य ुग क अत ेतना जात होगी ।
मुिबोध का काय सामािजकता क े िविभन आयाम को त ुत करता ह । उसम पूँजीवाद ,
साायवाद , शोषण और अयाय का िव रोध ह, नागरक सयता और उसक क ृिमता क े
ितिवत ृणा ह, ामीण क सहजता क े ित सहान ुभूित ह, वतमान स े िवदोह कर नवीन क े
िनमाण का उोधन ह । प ह िक वह समाज क पीड़ा क उप ेा नह कर सक े, पर साथ
ही उनक े काय म उनक े अपन े मन क गह राइय म होने वाली हलचल और अन ुभूित-तरंग
क भी झा ँक िमलती ह ।
इस बात को वीकार करत े हए व े वयं कहत े ह - “मानिसक मेरे यिव म बमूल
ह । मेरी ये किवताए ँ अपना पथ ढ ूँढ़नेवाले बेचैन मन क ही अिभयि ह ।" उनक यह
पूण मनःिथित और िधा ही उनक आमतता का म ूल कारण ह । मुिबोध का
मन अ ंधेरे म िघरा रहता ह और काश क खोज म भटकता ह । सन् १९४७ के बाद उन
पर ायड और य ुंग के मनोिव ेषण-शा का भाव िदखाई द ेता ह | िजसक े फलवप
उनक अतम ुख दशाएँ और भी गहन होती चली गई । उपच ेतन का स ंसार अधकारमय
होता ह, अतः उनक े काय म अध े कुएँ, बावड़ी , समु क तलहटी , पठार क े गड्ढे आिद
हम िमलत े ह | डॉ. रामिवलास शमा ने इस आमतता क े दो प मान े ह - रहयवाद और
अितववाद । हठयोग क शदा वली का योग , ानमिण और अण कमल क चचा
उनक ि म मुिबोध क े रहयवादी होन े का माण ह तो 'रास ' का अपराध -भावना ,
पाप सबधी चेतना स े जुड़कर अितववादी भाव का स ंकेत देती ह । पर या म ुिबोध
सचमुच रहयवादी ह ? यिद रहय वाद अतः फ ुरत अन ुभूित ारा परमतव का
सााकार करन े क व ृि ह तो मुिबोध िनय ही रहयवादी नह ह । वह तो ईर म
िवास तक नह करत े थे । रहयवादी यथाथ जगत ् को सय नह मानता , अतः उस े
यागता ह, पर मुिबोध क े काय म े तकालीन समाज का सम िचण ह । अयाम -
साधना ारा नह िवदोह एव ं पीड़ा क आग स े िनकलकर मानव को स ुखी बनान े क लालसा
भी उह रहयवादी होन े से मना करती ह । उनक े काय म रहयलोक का वातावरण तो ह
पर वह रहयवादी नह ह । मुिबोध पर अितववा द एवं मास वाद का भाव तो था , पर
उह अितववादी या क ेवल मास वादी कहना अस ंगत ह ।
वातव म मुिबोध वैयिक ितियाओ ं क अिभय ंजना करन े वाले किव ह । उनक
काय-संवेदना क े मूल म 'यि न होकर 'मानव' ह ऐसा मानव जो स ंघषरत ह, जो munotes.in

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मुिबोध क े काय म मूल संवेदना
135 सामािजकता स े जुड़ा ह और इसीिलए स ंघष ारा समाज को स ुखी और स ुदर द ेखना
चाहता ह । वत ुतः उनक काय -संवेदना क े िनमा ण म एक ओर उनक े युग क िवषम
परिथितया ँ थ तो द ूसरी ओर यिव का अतः स ंघष था । उनका आमबोध बा
जगत् के यथाथ बोध से जुड़ा हआ था । अतः उनक े काय म जो स ंघष िचित ह वह
अकेले, एकात िय, समाज स े कटे यि का स ंघष न होकर प ूरी जागक पीढ़ी का स ंघष
ह जो अपन े अितव क रा क े िलए सजग ह, यनशील ह और आथावान ह । वह
िजदगी क दलदल और कचड़ म धंस कर िवव ेक के वल ंत सरिसज को तोड़ लान े वाला
किव ह िजसक हथ ेली पर िवव ेक क जलती हई आग रखी ह । ऐसा आथावान ्,
मानवतावादी , जन क शि म िवास रखन ेवाला, नव-िनमाण क आका ंा का दीप स ंजोने
वाला किव आमत नह हो सकता । वह िनय ही मानव वादी ह और उसका काय
यथाथम ुख यिवाद का काय ह ।
१२.३ सारांश
मुिबोध ितियाओ ं क अिभय ंजना करन े वाले किव ह | उनक काय स ंवेदना का म ूल
म यि नह वरन मानव ह जो हम े सामािजकता स े जोड़ता ह | इस कार म ुिबोध क
काय म ूल संवेदना का अययन इस इकाई म िकया गया ह |
१२.४ दीघरी
१) मुिबोध क े काय क म ूल संवेदना पर काश डािलए |
२) मुिबोध क े काय म मानव का यथाथ वादी प िगोचर होता ह , इस भाव को प
किजए |
१२.५ लघुरी
१) मुिबोध का काय आज क े सामाय मानव क घ ुटन, छटपटाहट को उपिथत कर
कौन सा माग खोजता ह |
उर – मु का माग
२) मुिबोध क े काय क म ूल संवेदना ह |
उर – सामाय जनता क व ेदना
३) मुिबोध क काय च ेतना का म ूलाधार ह |
उर – मानवीय स ंवेदना
४) ‘तार सक ’ के किवय म अकेलेपन का भाव सवा िधक कौन स े किव म ह |
उर – मुिबोध
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136 १२.६ संदभ पुतके
१) मुिबोध और उनक किवता – डॉ. बृजबाला िस ंह, िविवालय काशन , वाराणसी ,
संकरण – 2004
२) मुिबोध – िनमल शमा , यी काशन , रतलाम (म..),
३) तारसकस े ग किवता (मुिबोध -शमशेर-रघुवीर) रामवप चत ुवदी, लोकभारती
काशन , इलाहाबाद , वष – 1997
४) समकालीनिहदी किवता – अेय और म ुिबोध -शिश शमा , वाणी काशन , वष
1995
५) मुिबोध क किवताए ँ –िबब ितिबब , नंदिकशोर नवल , काशनस ंथान , नई
िदली , थम स ंकरण – 2006
६) गजानन माधव म ुिबोधकितिनिध किवताए ँ – टीका, राजेश वमा एवं सुरेश अवाल ,
अशोक काशन , िदली , संकरण- 2010
७) अेय से अण कमल – भाग १, डॉ. संतोष क ुमार ितवारी , भारतीय थ िनक ेतन,
नई िदली , वष- 2005

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