History-of-Hindi-Literature-munotes

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हिन्दी साहित्य का काल हिभाजन एंि नामकरण
इकाई की रूपरेखा
१.० इकाई का उद्देश्य
१.१ प्रस्तावना
१.२ साहहत्य-इहतहास
१.२.१ भारतीय दृहिकोण
१.२.२ पाश्चात्य दृहिकोण
१.३ हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
१.३.१ गासाा द तासी
१.३.२ हिव हसंह सेंगर
१.३.३ जाजा हियसान
१.३.४ हमश्र बंधु
१.३.५ आचाया रामचंद्र िुक्ल
१.३.६ आचाया हजारी प्रसाद हिवेदी
१.३.७ डााँ. रामकुमार वमाा
१.३.८ डााँ. नगेन्द्र
१.३.९ गणपहत चंद्र गुप्त
१.४ सारांि
१.५ दीघोत्तरी प्रश्न
१.६ लघुत्तरीय प्रश्न
१.७ संदभा पुस्तकें
१.० इकाई का उद्देश्य इस इकाई के अध्ययन से हवद्याथी हनम्न हलहखत मुद्दों से अवगत होंगे:
 साहहत्य इहतहास की लेखन परम्परा को जान सकेंगे ।
 साहहत्य इहतहास लेखन में भारतीय दृहिकोण और पाश्चात्य दृहिकोण का अध्ययन
करेंगे ।
 इस इकाई के अध्ययन से हवद्याथी हहन्दी साहहत्य हवहभन्न हविानों िारा हकया गया
काल हवभाजन व उनके िारा हकए गए कालहवभाजन का मूलयांकन व उससे संबंहधत
हवहभन्न समस्याओं का अध्ययन करेंगे । munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
2 १.१ प्रस्तािना साहहत्य की उपमा नदी से कर उसे नदी की बहती धारा के समान बताया गया है । जो कभी
भंग नहीं होती,समय के साथ इसका हवकास अटल होता है लेहकन समय के पढ़ाव के साथ
सहहहत्यक पररवेि इसकी हविेषताएाँ बदलती रही है और साहहत्य के समि अध्ययन के
अध्यापन की सुहवधा के हलए काल हवभाजन और नामकरण की उपयोहगता अनदेखा
नहीं हकया जा सकता है ।
१.२ साहित्य इहतिास हकसी भी हवषय के अध्ययन के पूवा उसके गत इहतहास को जानना आवश्यक होता है ।
क्योंहक इहतहास के अध्ययन से तत्कालीन समय के राजनीहतक, आहथाक, सामाहजक,
सांस्कृहतक पृष्ठभूहम हमें ज्ञात हों जाती है । और प्रगहत का मागा अवलंहबत करने में आसानी
होती है । इस संबंध में रेनवेलेक का मत इस प्रकार है-
‘साहहत्य के इहतहास का प्रयोजन है साहहत्य की प्रगहत, परंपरा, हनरंतरता और हवकास की
पहचान करना है । साहहत्य इहतहास में हम रचनाओं का उगम, परम्परा और उससे
सम्बहन्धत पररवेि का अध्ययन करेंगे ।
सन १९ वी सदी में साहहत्य संबंधी इहतहास में सवाप्रथम राजनीहतक इहतहास हमें ज्ञात
होता है । इसके अंतगात ही साहहहत्यक और सांस्कृहतक पररवेि पर यहद हम दृहि डाले तो
इसमें सामान्यत: राजाओं की पहत्नयों िारा राजाओं की प्रिंसा में हलखा काव्य आता है ।
यहीं से साहहत्य इहतहास की नीव तय होती है । समय के साथ साहहहत्यक हवकास का पथ
अिसर हुआ जो उस समय के सामाहजक राजनीहतक और सांस्कृहतक वातावरण पर
आधाररत था । वहीं साहहत्य और साहहत्यकार दोनो के हववेचन के आधार पर साहहत्य
अध्ययन की पररहध तैयार होती है । साहहत्य र हवरहीत साहहत्य का अध्ययन आधा
अधूरा ही माना जायगा क्योंहक साहहत्यकार के अध्ययन सें ही समय – काल और
पररहस्थहत का आढ़ावा हमें हमलता है जो साहहत्य – इहतहास के अध्ययन में आवश्यक है ।
इस संदभा में भारतीय और पाश्चात्य दृहिकोण अलग अलग है जो इस प्रकार है:
१.२.१ भारतीय दृहिकोण:
भारतीय पररवेि प्रारंहभक काल से ही आध्याहत्मक रहा है जो अपने आदिावाद को लेकर
आगे बढ़ता है । इसी आधार पर भारतीय इहतहासकार उन प्रवृहत्तयों को खोजते है जो हवषय
को अमरत्व प्रदान करे । इस प्रकार की सभी काया प्रणाली समाज के हहत में है क्योंहक हमारे
प्राचीन युग का इहतहास नैहतक उपदेिों, चररत्रत्य, आध्याहत्मक हचत्रण के आधार पर
पौराहणक स्वरूप में पररवहतात हुआ ।
परंतु समय के ओघ में कुछ हविान ऐसे भी हुए हजन्होंने यथाथा परक, दृहिकोण को अपनाते
हुए वस्तुहस्थहत और तथ्यों को अहधक महत्व हदया इन इहतहास कारों में बाण और कलहण
का नाम प्रमुखता से हलया जा सकता है । आधुहनक भारतीय इहतहास कारों के संदभा में
साहहत्य इहतहास का अध्ययन करे तो इन इहतहास कारों में प्रमुखत: दो नाम हमारे सामने munotes.in

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हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
3 आते है । डााँ. राहुल साकृत्यायन तथा डााँ. धमाानंद कोसंबी हजन्होंने साहहत्य इहतहास
हवषयक अध्ययन समाज और संस्कृहत को आधार मान कर हकया है जो परंपरागत दृहि से
कुछ हभन्न है । इन इहतहासकारों की यह हविेषता रही है ये भारतीय समाज की
वास्तहवकताओं को न भूलते है और नही उस परम्परा का गुणगान करते है बहलक वतामान
को ध्यान में रखकर भारतीय समाज और इहतहास की गणना नये तरीके से करते है । इस
हवषय में डााँ. नगेन्द्र का मानना है – भारतीय इहतहास कारों की दृहि आदिावाद की है तो
पाश्चात्य दृहि यथाथावादी है ।
१.२.२ पाश्चात्य दृहिकोण:
पाश्चात्य हविानों के मत एक रूप नहीं है इन मतों में परस्पर हभन्नता का स्वर हदखता है ।
यूनानी हविान हहरोदोतस जो इहतहास के प्रथम व्याख्याता माने जाते है इन्होने इहतहास के
प्रमुख चार लक्षण बताए है –
(१) इहतहास वैज्ञाहनक हवद्या है, अत इसकी पद्धहत आलोचनात्मक होती है ।
(२) यह मानवजाहत से सम्बन्ध हवद्या है इसहलए वह मानहवकी हवद्या है ।
(3) यह तका संगत हवद्या है । अत इसके तथ्य और हनष्कषा हसर्ा प्रमाण पर आधाररत
होते है ।
(४) इहतहास अतीत के आलोक में भहवष्य पर प्रकाि डालता है, जो हिक्षाप्रद हवद्या होती
है । इस प्रकार हहरोदोतस आत्मा और भावों का प्रधानता नहीं देते बहलक प्राकृहतक
और भौहतक जगत की पररवतानिीलता का समागम इहतहास में करते है ।
जमान दािाहनक कान्ट बाह्य सृहि की हवकास प्रहिया को प्राकृहतक आन्तररक हवकास
प्रहिया का केवल मात्र प्रहतहबंब मानते है और उनका मानना है हक इहतहास को भी इसी
नजररये से देखा जाना चाहहए । क्योंहक प्रत्येक ऐहतहाहसक घटना के पीछे प्राकृहतक हनयमों
की प्रवृहत को समझने के प्रयास पर बल देने की बात उन्होंने कही है ।
हहगेल नामक हविान ने कांट की हवचारधारा का समथा न करते हुए कहा है – “इहतहास
केवल घटनाओं का अन्वेषण संकलन- मात्र नहीं है, अहपतु उसके भीतर कारण- काया की
श्रृंखला हवद्यमान होती है । उनके अनुसार हवश्वइहतहास की प्रहिया का मूल लक्ष्य मानव
चेतना की हवकास है और वह िंदात्मक पद्धहत पर आहश्रत होता है । यह िंदात्मक प्रहिया
वाद-प्रहतवाद से गुजरती हुई समवाद के रूप में हवकहसत होती है । इस प्रकार हहगेल
इहतहास की व्याख्यात्मक अध्ययन पद्धहत को ही अनुरूप मानते है ।
इस संबंध में काला माक्सा ने कहा है हक तदयुगीन हवहिि सामाहजक हवकास से यूनानी कला
और महाकाव्यात्मक कहवता से सन्बद्ध का बोध कहिन नहीं है, बहलक वतामान काल में
उनकी कलात्मक श्रेष्ठता और सौंदयाबोधीय आनंद प्रदान करने की क्षमता का हवश्लेषण
करना कहिन काम है । माक्सा के इस वक्तव्य पर भारतीय हविान माँनेजर पाण्डेय कहते है-
माक्सा कृहत की उत्पहत्त पर या उसके अतीत पर नहीं उसके वतामान सौंदया बोहधय स्वरूप
के हवश्लेषण पर ही बल देते है । munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
4 ए. एच. कॉर्े ने महान कहव गेटे के साहहत्य का अध्ययन युग चेतना के आधार पर हकया है
उनका कहना है इहतहास की व्याख्या करते समय युगीन चेतना का अध्ययन हकया जा
सकता है लेहकन यह बात नहीं भूलनी चाहहए की पूवावती युग की चेतना का भी कम अहधक
रूप में युग चेतना को हनहमात करने में योगदान रहता है ।
इस प्रकार हवहभन्न मतों के अध्ययन से स्पि होता है हक साहहत्य- इहतहास अध्ययन के
अनेकों मागा है । परंतु यह तय है हक साहहत्य इहतहास का अध्ययन करते समय हवषयगत
एवं िैलीगत प्रवृहत्तयों का हववेचन- हवश्लेषण आवश्यक है । ‚डॉ. नगेन्द्र ने साहहत्य- इहतहास
के अध्ययन के हलए पााँच तत्वों का होना महत्वपूणा माना है । १. साहहत्यकार की प्रहतभा
और उसका व्यहक्तत्व अथाात सृजनिील २. परम्परा ३. वातावरण ४. िंद ५. संतुलन | डॉ.
नगेन्द्र का मानना है हक ये सभी घटक साहहत्य इहतहास को हनरंतर गहतिीलता प्रदान करते
है ।
१.३ हिन्दी साहित्य का काल हिभाजन ि नामकरण साहहत्य समाज का दपाण होता है । साहहत्य इहतहास का हम अध्ययन करें तो यही पायेंगे
समय के प्रवाह के साथ साहहत्य की गहत भी हनरंतर बढ़ती रही है । आज हहन्दी साहहत्य
का १००० से ८०० वषो का इहतहास हमारे सामने प्रस्तुत है, जो अनेकानेक पढ़ावो से
होकर गुजरा है । साहहत्य इहतहास के काल हवभाजन और नामकरण के अध्ययन की सबसे
उपयुक्त प्रणाली साहहत्य में प्रवाहहत साहहहत्यक धाराओं, और उन धाराओं की हवहवध
प्रवृहत्तयों के आधार पर उसे हवभाहजत करना है । क्योंहक उस हविेष काल में समाज में
व्याप्त सामाहजक, सांस्कृहतक, आहथाक, राजनीहतक पररहस्थहतयां और हवचारधाराओं का
सम्बन्ध सीधे साहहत्य से रहा है । और इन सभी संदभो के अनुरूप साहहहत्यक कृहतयााँ रची
गयी है । यही कारण है हक तत्कालीन समाज में घहटत घटनाओं और पररहस्थहतयों का
सक्षात्कार हम साहहत्य में देख सकते है ।
काल हवभाजन करते समय आचाया रामचंद्र िुक्लजी अपना स्पि मत हदया है । वे कहते है-
“जबहक प्रत्येक देि का साहहत्य वहााँ की जनता की हचत्र वृहत्त का संहचत्र प्रहतहबम्ब होता है ।
तब यह हनहश्चत है हक जनता की हचत्रवृहत्त के पररवतान के साथ- साथ साहहत्य के स्वरूप में
भी पररवतान होता चला जाता है । आहद से अन्त तक इन्ही हचत्रवृहतयों की परम्परा को
परखते हुए साहहत्य परम्परा के साथ उनका सामंजस्य हदखाना ही साहहत्य का इहतहास
कहलाता है ।
काल हवभाजन के अध्ययन संबंधी जानकारी के हवहवध आधार हहन्दी साहहत्य इहतहास की
अध्ययन सामिी ‘भक्तमाल’, ‘ रा वैष्णवन की वाताा’ और ‘दो सौ बावन वैष्णवन की
वाताा’ आहद िंथों में है । लेहकन इन िंथों में साहहत्य इहतहास की जानकारी हमल जाती है
लेहकन काल हवभाजन और नामकरण की कोई स्पि जानकारी नहीं हमलती है । और हमारे
अध्ययन का प्रमुख हवषय है हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन और नाम करण हकस तरह
हुआ । इस अध्ययन से संबंहधत तीन प्रश्न हमारे सामने प्रस्तुत है:
१) हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन हकसने हकया? munotes.in

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हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
5 २) काल हवभाजन की आवश्यकता क्यों पडी?
३) काल हवभाजन का आधार क्या रहा?
उक्त प्रश्न श्रृंखला के अनुसार सवाप्रथम हम जानेंगे काल हवभाजन की आवश्यकता क्यों?
हिहभन्न हिद्वानों ने काल हिभाजन के प्रमुख तीन कारण माने िै:
१. साहहत्य अध्ययन की सुहवधा के हलए काल हवभाजन आवश्यक होता है ।
२. साहहत्य को सही ढंग से सही रूप में समझने के हलए काल हवभाजन आवश्यक है ।
३. साहहत्य के हवकास में सहायक तत्व और साहहत्य की हदिा को जानने के हलए काल
हवभाजन की आवश्यकता है ।
इस हवषय के संदभा में साहहहत्यक हविान रेनवेलेक ने अपना मत इस प्रकार प्रस्तुत हकया है
। उनके अनुसार- “काल हवभाजन के हबना साहहत्य का इहतहास, घटनाओं की अथाव्यवस्था
का समूह है, मनमाना नामकरण साहहत्य का हदिाहीन प्रवाह हो जाता ।”
साहहत्य के काल हवभाजन के आधार पर हम उसकी लम्बी यात्रा के हवहवध पडावों को
अच्छी तरह समझ सकते है । हकसी भी भाषा के साहहत्य की बात करे तो वे हकसी एक
हविेष प्रवृहत्त से, युगीन पररहस्थहतयों से, काल घहटत घटनाओं से या हकसी हविेष कारण
से प्रभाहवत होता है तो उसका प्रभाव साहहत्य पर पडता है । समाज में घहटत होने वाली
घटनाएाँ समाज की पररहस्थहत से साहहत्य की प्रभाहन्वहत संभव है । वहीं साहहत्य हकसी युग
हविेष की प्रवृहत्त से प्रभाहवत होता है या उस युग मे कोई महान पुरुष, युग पुरुष अवतररत
होता है, तो उससे समाज को नयी हदिा हमलती है उस नयी हदिा से साहहत्य भी प्रभाहवत
होता है और उसके िारा हकए गए कायों से साहहत्य में भी पररवतान होता है, साहहहत्यक
प्रवृहत्तयां, साहहहत्यक हवकास, साहहहत्यक हवचारधारा से प्रभाहवत होकर साहहत्य आगे
बढ़ता है और इन सभी पररहस्थहतयों के आधार पर उस काल में रहचत साहहत्य को एक
हविेष नाम दे हदया जाता है ।
इस प्रकार साहहत्य को एक व्यवस्था प्रदान करने के हलए, एक हदिा देने की हलए आगे
चलकर कोई भी अपनी मजी से मन-माना नाम न रख दे, काल को कहााँ से कहााँ तक ले
जाए यही अव्यवस्था से बचने के हलए, अ यता की सुहवधा के हलए साहहत्य काल
हवभाजन आवश्यक है ।
काल हिभाजन के आधार:
काल हवभाजन के हवहभन्न आधार रहे है । उनमें सबसे पहला आधार है ऐहतहाहसक
कालिम के आधार पर जैसे- आहदकाल, मध्यकाल, आधुहनक काल, काल हवभाजन का
दूसरा आधार माना जाता है | िासन व िासनकाल के आधार पर जैसे – एहलजाबेथ युग,
हवक्टोररया युग, मरािा युग, तीसरा प्रमुख आधार है । युग प्रवताक या प्रमुख साहहत्यकारों के
आधार पर जैसे- भारतेन्दु युग, हिवेदी युग, प्रसाद युग । समाज में कई
महान पुरुष ऐसे हुए हजनसे समाज का दृहिकोण प्रवहतात होता है, हजससे समाज की हदिा munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
6 बदलती है उसी प्रकार साहहत्य के क्षेत्र में ऐसे महान व्यहक्त हुए हजनके िारा साहहत्य की
हदिा और दृहिकोण प्रवहतात हुआ जैसे- महावीर प्रसाद हिवेदी तत्कालीन समय के
साहहत्यकारों की भाषा व वण्या हवषय संबंधी अनेक नवीन सुधारों के हलए प्रेररत हकया उनके
िारा हदए गए मागादिान और साहहत्य के हलए हकए गए अमूलय काया के कारण उनके समय
काल को हिवेदी काल नाम हदया गया । इसी प्रकार भारतेन्दु जी ने कई गद्य हवधाओं का
हनमााण व हवकास हकया और साहहत्य युग का प्रवतान हकया यही कारण है हक उनका समय
भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है । मुंिी प्रेमचंद एक ऐसा नाम है हजनके हबना हहन्दी
उपन्यास का हजि भी नहीं हो सकता क्योंहक प्रेमचंदजी हहन्दी उपन्यास के आधार स्तंभ है
यही कारण है हक उपन्यास क्षेत्र में सभी कालों के नाम प्रेमचंदजी के नाम पर ही है- प्रेमचंद
युग, प्रेमचंद पूवा युग और प्रेमचंदोत्तर युग इस प्रकार जब साहहत्य कार युग प्रवतान कार
बनता है या साहहत्य को नया रूप प्रदान करता है या उनका साहहत्य के हलए अमूलय
योगदान होता है । तब उनका युग उन्ही के नाम से जाना जाता है ।
साहहत्य में ऐसा नहीं है हक हसर्ा साहहत्यकारों के नाम पर ही युग हवभाजन या नामकरण हो
। नामकरण या युग हवभाजन साहहहत्यक प्रवृहत्तयों और साहहहत्यक रचना के आधार पर भी
हो सकते है जैसे रीहत काल भहक्तकाल, छायावाद, प्रगहतवाद, प्रयोगवाद आहद
इसीप्रकार व्यहक्त हविेष के नाम पर भी नामकरण हुए है इसके अंतगात राजनीहतक नेताओं
के आधार पर भी युग का नामकरण हुआ है जैसे- गांधी युग, स्ताहलन युग, नेहरू युग आहद ।
इन सबके अहतररक्त अन्य कई हविेषताओं के आधार पर भी काल के नामकरण हुए है जैसे
 राष्रीय, सामाहजक, सांस्कृहतक आंदोलन के आधार पर भहक्तकाल, पुनजाागरण काल,
सुधार काल
 साहहहत्यक प्रवृहत्तयों के अनुसार- रीहतकाल, छायावाद, प्रगहतवाद, प्रयोगवाद
इस प्रकार समय समय पर राष्र में नीहहत राजनीहतक सांस्कृहतक, सामाहजक, साहहहत्यक
पररहस्थहतयों के आधार पर उस काल हविेष का नामकरण हकया गया है
हहन्दी साहहत्य के इहतहास में प्रमुख रूप से काल हवभाजन और नामकरण साहहत्यहतहास
अध्ययन का प्रमुख हवषय माना जाता है और इस हवषय के अध्ययन के पूवााहध में कुछ प्रश्न
हमारे महस्तष्क को घेर लेते है जैसे- इहतहासकारों ने कालहवभाजन हकस प्रकार हकया?
हकन हकन रुपों में हकया? साहहत्य का आरंभ और हवकास कब से माना और इस अध्ययन
और इस अध्ययन और िोध प्रणाली में प्रमुख रूप से कौनसे साहहत्यकारों की प्रमुख
भूहमका रही । इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हहन्दी साहहत्य इहतहास के काल
हवभाजन और नामकरण संबंधी सम्पूणा अध्ययन सुलभता हकया जा सकता है ।
१.३.१ गासाा द तासी:
साहहत्य इहतहास की लेखन परम्परा में प्रथम नाम गासाा द तासी का है ये फ्रेंच लेखक थे ।
इन्होने सवाप्रथम साहहत्य इहतहास संबंधी िंथ की रचना की इस िंथ का नाम था ‚ इस्त्वार
द ल हलतरेत्यूर ऐदुई ऐंदूस्तानी‛ िंथ जो १८३९ में प्रकाहित हुआ । हालांहक हम इस िंथ munotes.in

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हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
7 को कालहवभाजन के स्वरूप का इहतहास िंथ नहीं कह सकते क्योंहक इस िंथ में
कालहवभाजन संबंधी हकसी भी प्रकार की अवधारणा नहीं है । पंरतु इस िंथ में हहन्दी और
उदूा के प्रमुख कहवयों का पररचय और उनकी साहहहत्यक कृहतयों का पररचय हदया है । इनके
िारा हदया गया वणान अंिेजी के वणा िमानुसार हलखा गया है, कहवयों के काल िमानुसार
नहीं । काल हवभाजन और युग प्रवृहत्तयों की कोई जानकारी इस िंथ में नहीं है हकन्तु गासाा
द तासी का यह प्रयास सराहनीय है । अपने देि से बहुत दूर परदेिी व्यहक्त िारा हहन्दी
साहहत्य के इहतहास के अध्ययन की िुरूवात कौतुकास्पद और अहभमानास्पद है । िंथ में
कई दोष होते हुए भी यह िंथ इहतहास अध्ययन के मागा को अवलंहबत करता है जो
आलोचक एवं इहतहास कारों के हलए महत्वपूणा भूहमका में है । गासाा द तासी के िंथ में
िताब्दी और कहवयों के नाम इस प्रकार है:
१. नौवीं िताब्दी – सबसे पहहले हहन्दू कहव
२. बारहवी िताब्दी – चंद पीपा
३. तेरहवी िताब्दी – बैजू बावरा
४. चौदहवी िताब्दी – खुसरो
५. पंद्रहवी िताब्दी – भहक्त संबंहधत कहव – गोपालदास, धरमदास, नानक, भोगदास
आहद
६. सोलहवी िताब्दी – सुखदेव, नाभाजी, वललभ, हबहारी, गंगादास
७. सत्रहवी िताब्दी – सूरदास, तुलसीदास, केिवदास
८. अिारहवी िताब्दी – गंगापहत, वीरभान, रामचरण, हिवनारायण
९. उन्नीसवीं िताब्दी – बस्तावर, दुलहाराम, छत्रदास
१.३.२ हिि हसंि सेंगर:
साहहत्य इहतहास में कालहवभाजन और नामकरण संबंहधत अध्ययन का प्रमुख प्रयास
हिवहसंह सेंगर िारा हुआ । उन्होंने ‘हिवहसंह सरोज’ नामक िंथ हलखा इस िंथ की रचना ।
१८३९ ई. में हुई । यह िंथ दो प्रमुख भागों में प्रकाहित हुआ पहला भाग । १८३९ ई. में
और दूसरा भाग १८४७ ई. में । इन दोनों िंथों में हहन्दी के लगभग १००० कहवयों का
पररचय है लेहकन काल-हवभाजन से संबंहधत कोई भी जानकारी इस िंथ में नहीं है । इस
प्रकार गासाा द तासी और हिवहसंह सेंगर दोनो हविानों के िंथ में काल हवभाजन संबंधी
अवधारणा का उललेख नहीं हमलता, वणानानुिम साहहत्य का उललेख मात्र है । क्योंहक
तत्कालीन समय में वणानानुिम साहहत्य हलखने का प्रचलन था ।
१.३.३ जाजा हियसान:
इस संबंध में तीसरा महत्वपूणा िंथ ‘ एहियाहटक सोसायटी ऑर् बंगाल की पहत्रका के
हविेषांक के रूप में सन १८८८ में प्रकाहित हुआ । हजसके लेखक जाजा हियसान है । जाजा munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
8 हियासन ऐसे इहतहासकार माने जाते है हजन्होंने सवाप्रथम हहन्दी साहहत्य के इहतहास को
कालिम के अनुसार हवभाहजत हकया है उनकी पुस्तक ‘ द माडना वनााक्यूलर हलरेचर ऑर्
हहन्दुस्तान’ है । जाजा हियसान स्वयं मानते है हक उनके सामने अनेक कहिनाईयां थी हजससे
वे काल- हवभाजन के अध्ययन में पूणा रूप से सर्लता प्राप्त नहीं कर सके । इस संबंध में
उन्होंने कहा है:- “सामिी को यथा संभव कालिमानुसार प्रस्तुत करने का प्रयास हकया गया
है यह सवात्र सरल नहीं रहा है और कहतपय स्थलों पर तो यह असंभव हसद्ध हुआ है ।‚
अहधकांि साहहत्येहतहास लेखक मानते है हक जाजा हियासन िारा हकया गया काल हवभाजन
हहन्दी साहहत्य का प्रथम काल हवभाजन है । इन्होने हहन्दी साहहत्य के इहतहास को
हनम्नहलहखत ग्यारह िीषाक में हवभाहजत हकया है:
१. वीरगाथा काल या चारणका ल (७०० से १३०० ई.)
२. पंद्रहवी िताब्दी का धाहमाक जागरण
३. माहलक मुहम्मद जायसी का प्रेम काव्य
४. ब्रज का कृष्ण- सम्प्रदाय
५. मुगल दरबार
६. तुलसीदास
७. रीहतकाव्य
८. तुलसीदास के अन्य परवती कहव (सन १६०० से १७०० ई.)
(i) भाग-१- धाहमाक कहव
(ii) भाग २- अन्य कहव
९. अिारहवी िताब्दी
१०. कंपनी के िासनकाल में हहन्दुस्तान (सन १८७० से १८५७ ई.)
११. महारानी हवक्टोररया के िासनकाल में हहन्दुस्तान (सन १८५७-१८८७ ई.)
इस प्रकार जाजा हियासन ने काल-हवभाजन का प्राथहमक प्रयास हकया है । यहद हम इसका
सूक्ष्म अध्ययन करते है तो पाते है हक इस काल हवभाजन में एकरूपता नहीं है जो नामकरण
हुए है वे भी हभन्न-हभन्न आधारों पर हुए है जैसे कभी समय के आधार पर, कभी कहव की
काव्यगत हविेषता के आधार पर तो कभी कहव के आधार पर, कभी राजनीहतक दृहि से
रानी हवक्टोररया के िासन काल या कम्पनी के काल में हहन्दुस्तान को काल हवभाजन का
आधार बना लेते है । इनके िारा साहहहत्यक प्रवृहत्त के आधार पर काल हवभाजन नहीं हकया
गया है जो तथ्यहीन है हजससे हकसी प्रकार की साहहहत्यक प्रवृहत्त का बोध नहीं होता और
हकसी भी प्रकार की एकरूपता नहीं हदखती लेहकन प्रथम प्रयास के रूप में यह काल
हवभाजन सराहनीय है इसके अध्ययन से अन्य साहहत्यकारों को प्रेरणा हमली और काल
हवभाजन संबंधी अवधारणा को गहत हमली । munotes.in

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हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
9 १.३.४ हमश्रबधू:
जाजा हियसान के पश्चात प्रमुख रूप से काल हवभाजन का प्रयास हमश्र बंधुओं िारा हुआ ।
इनके िारा रहचत िंथ ‘हमश्र बन्धु हवनोद’ है जो चार भागों में हवभाहजत है । इस िंथ में पांच
हजार कहवयों के जीवन पररचय और साहहहत्यक पररचय है । इनके िारा हकया गया काल
हवभाजन उपयोगी है जो प्रत्येक दृहि से हियसान के काल हवभाजन का हवकहसत रूप कहा
जा सकता है । हमश्र बन्धु िारा हकया गया काल हवभाजन इस प्रकार है:
१. आरंहभक काल: (i) पूवाारहम्भककाल (६७०-१३४३ हव.)
(ii) उतरारहम्भक काल (१३४४-१४४४ हव.)
२. माध्यहमक काल : (i) पूवा माध्यहमक काल (१४४५-१५६० हव.)
(ii) प्रौढ़ माध्यहमक का ल ( १५६१-१६८० हव.)
३. अलंकृत काल: (i) पूवाालंकृत काल (१६८१-१७९० हव.)
(ii) उत्तरालंकृतकाल (१७९१-१८८९ हव.)
४. पररवतान काल: (१८९०-१९२५ हव.)
५. वतामान काल: (१९२६ से अबतक)
यहद हमश्रबंधु िारा हकए गए काल हवभाज का मूलयांकन हकया जाए तो इनके िारा हकया
गया काल हवभाजन अहधक हवकहसत और तकासंगत है क्योंहक कालों के नाम साहहहत्यक
और समय के आधार पर हदए गए है जो वैज्ञाहनकता का बोध कराते है । लेहकन नामकरण में
एक रूपता नजर नहीं आती वहीं नामकरण की प्रणाली को अहधक लम्बा कर हदया है, पााँच
खण्डो में हवभाहजत करने के बाद भी उसके उपभाग कर हदये है । आरहम्भक काल ७००
हव.सं. से माना है और इस काल में जो रचनाएं हुई वे सभी अहधकांि अपभ्रंि भाषा में हुई
और अपभ्रंि भाषा के साहहत्य को हहन्दी साहहत्य के साथ जोडना त प्रतीत नहीं होता
यहद इस काल हवभाजन में दूसरी त्रुहट देखी जाए तो कालों की समयावहध की है जैसे
१३४४ के बाद दूसरा काल १३४५ कर हदया परंतु एक वषा की कालाव में भाषा
पररवतान नहीं हो सकता । कालगत हविेष प्रवृहत्त को बदलने में समय लगता है एक साल में
पररवतान संभव नहीं है ।
हमश्र बन्धुओ िारा हकए गए काल हवभाजन में अनेक त्रुहटयााँ होते हुए भी यह कालहवभाजन
साहहहत्यक हवकासावस्था का द्योतक है और इसके बाद जो इहतहासकार हुए उनके हलए
यह काल हवभाजन नीव का पत्थर साहबत हुआ है ।
१.३.५ आचाया रामचंद्र िुक्ल:
आचाया रामचंद्र िुक्लजी ने कािी नागरी प्रचररणी सभा से प्रकाहित हहन्दी िब्दसागर की
भूहमका में कालहवभाजन की चचाा की है यह िब्दसागर १९२९ में प्रकाहित हुआ इसमें
आचायाजी ने हहन्दी साहहत्य के नौ सो वषों के साहहत्य को चार भागों में हवभाहजत हकया है । munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
10 इनके िारा हकया गया काल हवभाजन सरल स्पि और सुबोध है और अब तक के सभी
इहतहासकारों के कालहवभाजन में सवा मान्य और सवात्र प्रचहलत है । िुक्लजी िारा हकया
गया काल हवभाजन इस प्रकार है:
१. आहदकाल (वीरगाथा काल) : हव.सं. १०५० से १३७५ तक
२. भहक्तकाल (पूवा मध्यकाल): हव.सं.१३७५ से १७०० तक
३. रीहतकाल (उत्तरमध्यकाल) : हव.सं. १७०० से १९०० तक
४. आधुहनक काल (गद्यकाल): १९०० से अबतक
िुक्लजी िारा हकए गए कालहवभाजन का यहद मूलयांकन हकया जाए तो यह कह सकते है
हक पूवावती साहहत्यकारों की अपेक्षा यह काल हवभाजन अहधक पररष्कृत और वैज्ञाहनक
मापदंडों मे औहचत्यपूणा है । लेहकन िुक्ल जी ने कालहवभाजन का मापदंड तय करते समय
हमश्रबंधु और जाजा हियसान िारा हकए गए काल हवभाजन को सामने रख अपना मत प्रस्तुत
हकया है और उक्त गहन अध्ययन के िारा सुधाररत काल हवभाजन प्रस्तुत हकया ।
इस सुधाररत आवृत्ती के बावजूद भी िुक्लजी िारा हकये गये कालहवभाजन में कुछ त्रुहटयााँ
है िुक्लजी ने अपभ्रंि भाषा के साहहत्य को हहन्दी साहहत्य का आहदकाल माना है । इसके
अहतररक्त आहदकाल को वीरगाथा काल नाम हदया है जबहक वीरकाव्य से संबंहधत
आहदकाल की कई रचनाओं के होने का कोई सबल प्रमाण नहीं है । इसी प्रकार मध्यकाल
को उत्तर मध्य काल और पूवामध्यकाल नाम हदया है वहीं आधुहनक काल के हवभाजन का
भी साहहत्यकार हवरोध करते है । लेहकन ये सभी त्रुहट नगण्य है और हविानों, पािकों िारा
सवााहधक मान्यता िुक्लजी िारा हकए गए कालहवभाजन को हमली है ।
१.३.६ आचाया िजारी प्रसाद हद्विेदी:
आचाया हजारी प्रसाद हिवेदीजी ने आचाया िुक्लजी िारा हकए गए काल हवभाजन का प्रबल
हवरोध हकया है । इन्होंने अपने िंथ हहन्दी साहहत्य का उद्भव और हवकास में जो काल
हवभाजन हकया है वह ईसवी सन् के आधार पर हकया है । आचाया हिवेदीजी ने हहन्दी
साहहत्य के काल को चार गों में हवभाहजत हकया है ।
१. आहदकाल: समय: १००० ई. - १४०० ई.तक
२. पूवामध्यकाल: १४०० ई. - १७०० ई. तक
३. उत्तर मध्यकाल : १७०० ई. - १९०० ई. तक
४. आधुहनक काल: १९०० ई. - से अब तक
इस प्रकार हिवेदीजी िारा हकये गये कालहवभाजन का मूलयांकन करने से हमे ज्ञात होता है
हक उन्होंने हविमी संवत् के स्थान पर ईसवी सन का प्रयोग हकया है । दूसरा महत्वपूणा
कारण हिवेदीजी ने काल हवभाजन का आधार पूरी िताब्दी को माना है क्योंहक कोई भी
बदलाव वषा या वषों में नहीं होते २०-२५ वषा की अवहध में कोई पररवतान संभव हो सकता munotes.in

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हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
11 है । वहीं हिवेदीजी के काल हवभाजन में वीरगाथा काल को आहदकाल नाम हदया गया है
हजसे सभी साहहत्यकारों – इहतहासकारों की स्वीकृहत हमली इस प्रकार एक दो मुद्दों को
छोडकर बाकी सभी मुद्दे िुक्लजी िारा हकये गये कालहवभाजन की तरह ही है ।
१.३.७ डॉ. रामकुमार िमाा:
डॉ. रामकुमार वमााजी िारा हलहखत पुस्तक ‘हहन्दी साहहत्य का आलोचनात्मक इहतहास ’
काल हवभाजन व नामकरण इस प्रकार है ।
१. संहधकाल: हव.सं. ७५० से १००० तक
२. चारणकाल: हव.सं. १००० से १३७५ तक
३. भहक्तकाल: हव.सं.१७०० से १९०० तक
४. रीहतकाल: हव.सं. १९०० से अब तक
इस प्रकार रामकुमार वमााजी ने प्रथमकाल अथाात आहदकाल को संहधकाल नाम हदया है
साथ ही आहदकाल को दो भागों में हवभाहजत कर हदया पहला संहधकाल और दूसरा
चारणकाल । आचाया िुक्ल और आचाया हिवेदी ने हहन्दी साहहत्य इहतहास का प्रारंभ
१००० हव.सं. से माना हैं परंतु डॉ. रामकुमार वमाा ने हहन्दी साहहत्य इहतहास की िुरुवात
३०० वषा पहले करके उसे संहधकाल नाम दे हदया इस प्रकार वमााजी िारा भी अपभ्रंि
भाषा का साहहत्य समावेि भी हहन्दी साहहत्य में मान हलया । और हिवेदी िुक्लजी ने हजन
कालों को पूवा मध्यकाल और उत्तर मध्यकाल नाम हदया था इन कालों को वमााजी ने
भहक्तकाल और रीहतकाल नाम हदया । िुक्लजी ने पूवामध्यकाल अथाात भहक्तकाल का
हवभाजन हनगुाण भहक्त िाखा और सगुण भहक्त िाखा के रूप में करते है वही राम कुमार वमाा
भहक्तकाल का हवभाजन संतकाव्य धारा और प्रेम काव्याधरा के रूप में करते है । इस प्रकार
इनके नामकरण िुक्लजी के नामकरण से हभन्न है । इसके अहतररक्त वमााजी का ७००
हव.सं. से हहन्दी साहहत्य काल का प्रारंभ होना परवती इहतहासकारों, साहहत्यकारों िारा
स्वीकाया नहीं है । साहहहत्यक आचाया हविान १००० हव.सं. से ही हहन्दी साहहत्य का आरंभ
मानते है ।
१.३.८ डॉ. नगेन्द्र:
डॉ. नगेन्द्र के कालहवभाजन लेखन की प्रमुख हविेषता यह है हक इनके िारा हलखा गया
हहन्दी साहहत्य का इहतहास संपाहदत स्वरूप का इहतहास है । इसमे हवहभन्न लेखकों
साहहत्यकारों के हवचार व लेख संपाहदत है । इनके िारा हकया गया कालहवभाजन इस प्रकार
है ।
१. आहदकाल : ७ वी सदी से १४ वी सदी के मध्य तक
२. भहक्तकाल : १४ वी सदी के मध्य से १७ वी सदी के मध्य तक
३. रीहतकाल : १७ वी सदी के मध्य से १९ वी सदी के मध्य काल munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
12 ४. आधुहनक काल:१९ वी सदी के मध्य से अब तक
डॉ. नगेन्द्र िारा हकए गए काल हवभाजन का यहद हम मूलयांकन करें तो देखते है हक उन्होंने
हहन्दी साहहत्य का आरंभ ७ वी िताब्दी से माना है और इसके अहतररक्त हवहभन्न काल
खंडो का नामकरण हिवेदीजी िारा हकए गए नामकरण के अनुसार ही है । डॉ. नगेन्द्र िारा
हकए गए कालखंड संपूणा िताब्दी के अनुसार सहदयों पर आधाररत है जो वैज्ञाहनक जान
पडता है ।
१.३.९ गणपहत चंद्र गुप्त:
हहन्दी साहहत्य के कालहवभाजन व नामकरण की हवस्तृत चचाा गणपती चंद्र गुप्तजी ने की है ।
उनके िारा हलहखत िंथ ‘हहन्दी साहहत्य का वैज्ञाहनक इहतहास’ में वैज्ञाहनक मूलयांकन को
आत्मसात कर कालहवभाजन हकया गया है । इनके िारा हकया गया कालहवभाजन इस
प्रकार है :
१. प्रारंहभक काल : सन ८८४ से १३५० ई. तक
२. मध्यकाल : (i) पूवा मध्यकाल – सन १३५० से १५०० तक
(ii) उत्तर मध्यकाल – सन १५०० से १८७५ तक
(iii) आधुहनक काल – सन् १८५७ से आज तक
गणपती चंद्र ने मध्यकाल की तरह आधुहनक काल को भी कई भागों में हवभाहजत हकया है
और आधुहनक काल का समय १८५७ ई. स से १९६५ ई. स. तक ही मानते है इस प्रकार
गणपती चंद्र गुप्त िारा हकया गया काल हवभाजन त्रुहट पूणा है और मध्यकाल का अनायास
हवभाजन उहचत नहीं है और इहतहासकारों व साहहत्यकारों को भी यह मान्य नहीं है ।
इस प्रकार कालहिभाजन और नामकरण की प्रहिया में आधुहनक काल के काल
हिभाजन इस प्रकार िै :
भारतेन्दु युग – १८५७ ई. से १९०० तक
हिवेदी युग – १९०० ई. स.से १९२० तक
छायावादयुग – १९२० ई. स. से १९४५ तक
प्रगहतवादी युग – १९३५ ई. स. से १९४५ तक
प्रयोगवादी युग – १९४५ ई. स. से १९६५ तक
यह सभी वगीकरण आधुहनक युग के है । उक्त वगीकरण में एक बात ध्यान देने योग्य यह है
हक आहदकाल, रीहतकाल और मध्यकाल आहद कालहवभाजन िताब्दी में हुए इन कालों का
समय २०० से ३०० और कई हविानों ने ४०० वषा भी तय हकया है । वहीं आधुहनक काल
के संदभा में काल हवभाजन संबंधी अध्ययन करते है त हमें ज्ञात होता है हक एक-दो दिक
में ही काल हवभाजन हुआ है । ितकों से दिकों तक का पररवतान कैसे हुआ इसका कारण है munotes.in

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हहन्दी साहहत्य का काल हवभाजन एंव नामकरण
13 आधुहनक काल में हवज्ञान व तंत्रज्ञान में बहुत तरक्की हुई साथ ही पत्र-पहत्रकाओं के
प्रकािन में बढ़ोत्तरी हुई, हमहडया व जनसंचार माध्यमों का हवस्तार हुआ । साहहत्यकारों को
लेखन के अनेक अवसर हमलने लगे । सामाहजक, राजनीहतक, आहथाक स्तर प पररवतान
िीघ्र अहत िीघ्र हुए हजसके र्लस्वरूप साहहत्य की हदिा व दिा भी अलपकालवहध में
पररवहतात होती ग ।
१.४ सारांि हहन्दी साहहत्य का इहतहास काल हवभाजन और नामकरण के अध्ययन के हबना अपूणा है ।
इस इकाई के अध्ययन से हवद्याथी काल हवभाजन और नामकरण के संदभा में हवहभन्न
हविानों के मत का मूलयांकन सहहत अभ्यास कर सके, साथ ही साहहत्य इहतहास में
भारतीय और पाश्चात्य हविानों के मत को स्पि रूप से समझ सके ।
१.५ दीघोत्तरी प्रश्न १. साहहत्य-इहतहास को स्पि करते हुए इस संबंध में भारतीय और पाश्चात्य दृहिकोण को
स्पि कीहजए ।
२. हहन्दी साहहत्य के काल हवभाजन और नामकरण को रेखांहकत कीहजए ।
३. काल हवभाजन संबंधी सभी प्रमुख हविानों िारा हदए गए मत पर सहवस्तार चचाा
कीहजए ।
४. हहन्दी साहहत्य का कालहवभाजन व नामकरण का हवहवरण देते हुए, नामकरण की
समस्याओं पर प्रकाि डाहलए ।
१.६ लघूत्तरीय प्रश्न १. हहन्दी साहहत्य के काल हवभाजन का सवाप्रथम प्रयास हकसने हकया?
उत्तर: फ्रेंच हविान गासाा द तासी
२. हकस हविान लेखक के कालहवभाजन को प्रथम काल हवभाजन माना जाता है?
उत्तर: जाजा हियसान
३. हहन्दी साहहत्य के काल हवभाजन व नामकरण की िृंखला में सबसे सुगम और उपयुक्त
नामकरण हकस हविान का माना जाता है?
उत्तर: आचाया रामचंद्र िुक्ल
४. डॉ. रामकुमार वमाा ने हहन्दी साहहत्य के काल हवभाजन को हकतने भागों में बााँटा है?
उत्तर: प च
५. आचाया िुक्ल वीरगाथा काल का प्रारंभ कब से है?
उत्तर: ई. स. १०५० से munotes.in

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हहंदी साहहत्य का इहतहास
14 १.७ संदभा पुस्तकें  हहंदी साहहत्य का इहतहास - आ. रामचंद्र िुक्ल
 हहंदी साहहत्य का इहतहास - सम्पादक डॉ. नगेन्द्र
 हहंदी साहहत्य का वैज्ञाहनक इहतहास - डॉ. गणपहत चंद्र गुप्त
 हहंदी साहहत्य की प्रवृहत्तयााँ - डॉ. जयहकिन प्रसाद

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15 २
आिदकालीन िहÆदी सािहÂय कì पृķभूिम
इकाई िक łपरेखा
२.० इकाई का उĥेÔय
२.१ ÿÖतावना
२.२ आिदकालीन िहÆदी सािहÂय कì पृķभूिम
२.२.१ राजनीितक पåरिÖथितयाँ
२.२.२ सामािजक पåरिÖथितयाँ
२.२.३ धािमªक पåरिÖथितयाँ
२.२.४ सािहिÂयक पåरÖथितयाँ
२.२.५ सांÖकृितक पåरिÖथितयाँ
२.३ सारांश
२.४ दीघō°री ÿij
२.५ लघु°रीय ÿij
२.६ संदभª पुÖतक¤
२.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अÅययन से िवīाथê िनÌन िलिखत मुĥŌ को समझ सक¤गे ।
 आिदकालीन पåरवेश कì सामािजक, राजनीितक, धािमªक, सािहिÂयक, सांÖकृितक
पåरिÖथितयŌ को समझ सक¤गे ।
२.१ ÿÖतावना सािहÂय और समाज म¤ ÿगाढ़ संबंध होता है । िकसी भी ÿकार का सािहÂय सामािजक
चेतना का िवकास अंिकत करता है ³यŌिक सािहÂय का समाज कì तÂकालीन पåरिÖथित से
जुड़ना मानवीय मनोभाव का ŀिĶकोण ÖपĶ करता है ³यŌिक पåरिÖथितयŌ के पåरÿेàय म¤
ही सािहÂय रचना संभव है । यही तÂव तÂकालीन समाज का और तÂकालीन सािहÂय का
ÿितिबÌब है ।
२.२ आिदकालीन िहÆदी सािहÂय कì पृķभूिम सािहÂय के १० वी शताÊदी से १४ वी शताÊदी तक रिचत सािहÂय को आिदकालीन
सािहÂय माना जाता है । इस काल म¤ जो सािहÂय िलखा गया उस सािहÂय म¤ अपĂंश भाषा munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
16 से िवकिसत होकर खड़ी बोली भाषा का ÖपĶ łप आिदकालीन सािहÂय म¤ ÖपĶ िदखाई
देता है ।
सािहÂय सामािजक चेतना का िवकास अंिकत करता है ³यŌिक सािहÂय समाज कì
तÂकालीन पåरिÖथितयŌ से ÿभािवत होता है । सािहÂय को आधार मानकर युगीन
पåरिÖथितयŌ का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है । ³यŌिक पåरिÖथितयŌ के
पåरÿेàय म¤ ही सािहÂय रचना संभव है । यही तÂव, तÂकालीन समाज का तÂकालीन
सािहÂय का ÿितिबÌब है । यही ÿितिबÌब आिदकालीन सािहÂय कì सामािजक, राजनीितक,
धािमªक, सािहिÂयक, सांÖकृितक पåरिÖथितयŌ के अÅययन कì ÿेरणा हम¤ देता है ।
२.२.१ राजनीितक पåरिÖथितयाँ:
आिदकाल का समय राजनीितक ŀिĶ से पराजय काल माना जाता है | आपसी मतभेद, गृह
कलह पारÖपåरक Ĭेष कì भावना आिद कारणŌ से देश खोखला होता जा रहा था । उ°र
भारत म¤ हषªवधªन का साăाºय सबसे अिधक शिĉशाली था उनके शासनकाल म¤ ही भारत
कì सीमा पर यवनŌ हóणŌ और शकŌ के आøमण होने लगे थे उनका सामना करते करते ही
हषªवधªन का साăाºय कमजोर होने लगा | सăाट हषªवधªन कì मृÂयु से उ°री भारत म¤
केÆþीय भावना का Ćास बढ़ता गया दूसरी ओर पूवª म¤ िवदेशी आøमण, इÖलाम का बढ़ता
हòआ वचªÖव और āाĺण राजाओं के Óयवहार से असंतुĶ जाट और अÆय समाज आøमण
काåरयŌ के साथ जा िमले । आपसी रंिजशŌ और बढ़ते मनमुटाव के कारण कई वीर, महान
राजाओं को भी मुहँकì खानी पड़ी । मुहÌमद गजनबी ने गुजरात और राजÖथान कì ओर
राºय िवÖतार िकया । ११ वी- १२ वी सदी म¤ िदÐली म¤ तोमर अजमेर म¤ चौहान और
कÆनोज म¤ गहड़वालŌ का शिĉ साăाºय Öथािपत हो चुका था । पृÃवीराज चौहान िवदेशी
आøमणŌ के ÿित पूणª सजग नहé थे उÆहŌने मुहÌमद गौरी को रोकने का कोई भरसक ÿयास
नहé िकया और अÆत: कÆनोज के राजा जयचंद राठोड के षडयंý के कारण पृÃवीराज
चौहान मुहÌमद गौरी से युĦ हार गये | इसी ÿकार सभी ÿमुख राºयŌ का पतन हो गया और
सÌपूणª उ°री भारत म¤ मुिÖलम पताका पहराने लगी । इस ÿकार आठवी से पंþहवी शताÊदी
तक का भारतीय इितहास देखे तो राजनीितक पåरवेश म¤ िहÆदू साăाºय समाĮ होने लगा ।
इसीिलए राजनीितक ŀिĶ से इस काल को पतन का काल कहा जाता है । मुिÖलम आøमण
का अिधक आøोश मÅयभारत को झेलना पड़ा ³यŌिक यहé के राजाओं ने आøमण
काåरयŌ का सवाªिधक िवरोध िकया था ।
इस ÿकार तÂकालीन राजनीितक पåरवेश आपसी मन मुटाव, पड़ोसी राºय के ÿित
उदासीनता, पद लोलुपता, धन कì लालसा आिद के कारण देश पतन कì ओर उÆमुख था ।
राजाओं कì वचªÖवता उनके सव¥सवाª होने का ÿमाण देता है | राजा कì आ²ा का पालन
करने हेतु ÿÂयेक Óयिĉ मर िमटने को तैयार था । उिचत-अनुिचत जाने िबना इस ÿकार
जनता म¤ राजनीितक चेतना का अभाव था ।
२.२.२ सामािजक पåरिÖथितयाँ:
आिदकाल के समय समाज असमानताओं से जकड़ा हòआ था । जाितवाद परम सीमा पर था
। जाितयाँ उपजाितयŌ म¤ िवभािजत हो रही थी । समाज łिढ़यŌ -परÌपराओं से úÖत था । munotes.in

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आिदकालीन िहÆदी सािहÂय कì पृķभूिम
17 िľयŌ िक िÖथित दयनीय थी । वह माý भोग कì वÖतु बनकर रह गयी थी और इससे भी
आगे वह øय-िवøय का साधन बन चुकì थी । राजपूत, सामंती आिद वंश कुलीनता का
बोलबाला था । शौयª म¤ राजपूत ľीयाँ िकसी से कम नहé थी । Öवयंवर ÿथा इस युग कì
िवशेषता थी । राजाओं का अिधकांश समय अपनी पÂनी, उप पÂनीयां व रि±ताओं के साथ
रंग रिलयŌ म¤ Óयतीत होता था । राज पåरवार म¤ भाषागत, राजनीित, तकªशाľ, काÓयशाľ,
गिणत, नवरस मंý वशीकरण आिद कì िश±ा रीित-नीित के अनुसार दी जाती थी । वहé
सामाÆय वगª िश±ा से दूर था वह अपने आजीिवका के साधन जुटाने म¤ लगा हòआ था ।
िनधªनता बढ़ती जा रहा था । सतीÿथा जैसी कुपरÌपरा चरमोÂकषª पर थी । राजपूतŌ म¤
Öवािभमान िक कमी थी । सु²ा से जुड़े सामंत और Óयापारी वगª के लोग सुखी और संपÆन
थे । समाज पर अनेक ÿकार के साधु-सÆयािसयŌ का ÿभाव होने के कारण जनता म¤
अंधिवĵास, शाप, वरदान जैसे तÂव ÿसाåरत थे लेिकन इस ÓयवÖथा से कुछ िसĦ-साधक
िवरोधी भी थे जो समाज म¤ समानता और सुधार के प±धर थे ।
२.२.३ धािमªक पåरिÖथितयाँ:
इस युग म¤ सामािजक और राजनीितक पåरिÖथित कì भाँित धािमªक पåरिÖथित भी
अराजकतापूणª थी । धमª म¤ आडÌबर का बोलबाला था । लगभग सातवी शताÊदी तक भारत
का धािमªक पåरवेश शांत और सĩावना पूणª था । परंतु सातवी शताÊदी के बाद धमª अपने
वाÖतिवक पåरवेश से हट चुका था ³यŌिक धमª के अनेक सÌÿदाय और उपसंÿदायŌ का
िनमाªण अब तक हो चुका था । वैिदक धमª, बौĦ धमª, जैन धमª आिद धमª उपसंÿदाय म¤
िवभĉ हो गये । और यह संÿदाय धमª के मूलłप को भूलकर, अघोरी ÿवृि° आिद
आडÌबरŌ म¤ ÿवृ° होते जा रहे थे । इस ÿकार के आडÌबरŌ को वाम साधना कहते थे ।
इसके अितåरĉ मुþा साधना करना, ľी का भोग करना और ľी भोग काम वासना को भी
साधना का एक अंग मानना इस ÿकार के कमª काÁड से धमª का Öवłप िवकृत हो चुका था
। वैिदक धमª जो सनातन काल से चला आ रहा था उसम¤ भी कमª काÁडŌ का बाहòÐय हो
गया तब जब बौĦ धमª और जैन धमª आये ÿारंभ म¤ इन धमō ने सदाचार िनभाया लेिकन
आगे चलकर िवकृत हो गये इन धमō म¤ हीनयान, महायान, बûयान जैसे उपसÌÿदाय बने ।
उनम¤ मठŌ कì परÌपरा पनपने लगी, बड़े बड़े मठ बनाये गये ये मठ राºयाि®त थे उन मठŌ म¤
Óयिभचार बढ़ने लगा | पंचमकार और काय-साधना जैसे ÿकार मठŌ म¤ िनÂय कमª łप म¤
िकये जाने लगे इस ÿकार इन मठŌ का वाÖतिवक Öवłप िवलुĮ होने लगा इससे जन
सामाÆय म¤ भय और अिवĵास पनपने लगा । िविभÆन सÌÿदायŌ के योगी चमÂकार िसिĦयŌ
िदखाकर भोली -भाली जनता को फँसाने का कायª करते बौĦ धमª को पिIJम बंगाल म¤
पालवंशीय व गोड वंशीय राजाओं का ÿ®य िमला । इसके फलÖवłप पिIJम बंगाल म¤ िसĦ
सािहÂय कì फल®ुित हòई । दि±ण भाग म¤ वैिदक धमª पनपता रहा ³यŌिक दि±ण भाग
िवदेशी आøमणŌ से अछूता था । वैिदक धमª को पूवê बंगाल, मालवा और मÅयÿदेश के
राजाओं ने आ®य िदया तो इसके फलÖवłप वैिदक धमª यहाँ िवकिसत हòआ । दि±ण
भारत से और þिवड़ ÿदेशŌ से भिĉ का आिवभाªव हòआ ।
गुजरात और राजÖथान म¤ जैन धमª को आ®य िमला लुइपा, कडÈपा, राÕů कूट जैसे
गुजराती राजाओं से आिथªक सहयोग पाकर जैन किवयŌ ने जैन धमª úंथ का ÿणयन िकया ।
जो जैन काÓय रचा गया वह चåरत काÓय, पुराणŌ आिद से ÿेåरत था । इÆहोने 25 तीथ«कर munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
18 और उनके Ĭारा िकए गये कायō का वणªन अपनी रचना म¤ िकया । इसी ÿकार वैिदक धमª
úंथ भी इनकì रचनाओं का आधार था । राम और कृÕण कì कथा भी जनमानस को
ÿभािवत करने के िलए रची । जैन किवयŌ ने राजा दशरथ और राजा राम को जैन धमª कì
दी±ा úहण करते हòए बताया है । साथ ही जैन किवयŌ ने रासो काÓय कì रचना कì इन
रचनाओं म¤ उÆहŌने अपने अनुयािययŌ का वणªन िकया है, ये सभी रचनाएं अपĂंश भाषा म¤
है।
इस ÿकार यह काल िहÆदू धमª मे पतन का और मुिÖलम धमª के िवकास का काल है ।
आिदकाल धािमªक ŀिĶ से बाĻ देश से मुगल आये वे अपने नये धमª को लेकर आये । इस
ÿकार देश का मूल धमª ±ित कì ओर था, अंधिवĵास फेल रहा था । जनमानस म¤ ±ोभ था,
आडÌबर कमªकाÁड बढ़ने लगे | सभी धमª अपनी मूल चेतना से भटककर कमªकाÁड म¤ लग
गये इस ÿकार धािमªक पåरिÖथित समय और धमª के अनुकूल नहé थी ।
२.२.४ सािहिÂयक पåरÖथितयाँ:
आिदकाल म¤ ÿमुखत: सािहÂय कì तीन धाराएं ÿचिलत रही िजनका ÿमुख आधार भाषा है
इन धाराओं म¤ सबसे ÿमुख धारा थी संÖकृत सािहÂय कì धारा थी । ९ वी से ११ वी
शताÊदी तक कÆनौज और काÔमीर म¤ पयाªĮ माýा म¤ संÖकृत सािहÂय रचा गया । काÓय
शाľ के आचायª िवĵनाथ, कुÆतक, ±ेमेÆþ, अिभनव गुĮ, भोजदेव मÌमट आिद िवĬानŌ
Ĭारा िविभÆन िसĦांतो कì परÌपरा का इस शताÊदी म¤ पयाªĮ िवकास हòआ । दशªन के ±ेý म¤
शंकराचायª जो वैिदक धमª उÂथान के ÿवतªक माने जाते है उनसे साथ कुमाåरल भĘ
भाÖकर, राजुŊ आिद दशªन आचायŎ ने भी दशªन सािहÂय का पयाªĮ िवकिसत िकया । इसके
अितåरĉ भवभूित, ®ी हषª, जयदेव आिद किवयŌ ने उÂकृķ रचनाएं कì । संकेत भाषा के
साथ ÿाकृत, अपĂंश और पाली भाषा म¤ बौĦ धÌम के अनुसरण म¤ काÓय रचा गया वहé
ÿाकृत भाषा म¤ जैन सािहÂय और अपĂंश भाषा म¤ िसĦ सािहÂय कì रचना हòई । ११ वी-
१२ वी शताÊदी कì अिधकांश रचनाएँ अपĂंश भाषा म¤ थी । आिदकाल म¤ एक और धारा
ÿवािहत थी चारण एवं भाट किवयŌ कì िजÆहŌने वीर काÓय कì रचना कì | पुराण चåरत
काÓय, रासो काÓय नीितपरक काÓयŌ कì रचना इसी काल म¤ हòई ।
२.२.५ सांÖकृितक पåरिÖथितयाँ:
आिदकाल को सांÖकृितक ŀिĶ से देखा जाए तो यह काल संøमणकाल माना जाएगा ।
िहÆदू संÖकृित जो वैिदक काल से चली आ रही थी वही संÖकृित मुगलकाल म¤ हासता कì
ओर बढ़ती है । ³यŌिक इÖलामी संÖकृित का िवकास भारत देश म¤ हो रहा था ये दोनो
संÖकृित एक दूसरे के िवपरीत थी इसी कारण दोनो संÖकृित का टकराव मनमुटाव बढ़ाने
वाला था । लेिकन मुगलŌ का दीघªकाल तक भारत देश म¤ साăाºय Öथािपत होने के बाद
जब बाबर, िहमायूं, जहांगीर आिद राजाओं का जÆम भारत देश म¤ हòआ तो उनके Öवभाव
कì नăता ने दोनो संÖकृितयां जुड़ने का ÿयÂन होने लगा । आगे चलकर संगीत, कला,
िचýकला, ÖथापÂय कला आिद ±ेýŌ म¤ हम दोनो संÖकृितयŌ म¤ अपनी मेलजोल कì ÿचीित
देख सकते है । संगीत के ±ेý म¤ कÓवाली, गजल, सूफì संगीत आिद का संबंध इÖलामी
संÖकृित से होते हòए भी हर एक भारतीय के िदल म¤ अपनी पसंद के अनुसार जगह बनाली है
। वाīयंý जैसे तबला, तुरई आिद भी एक दूसरे के संÖकृित म¤ अपने से लगते है । इस ÿकार munotes.in

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आिदकालीन िहÆदी सािहÂय कì पृķभूिम
19 का मेल-जोल देखकर अरब इितहासकार अलबłनी भी आIJयª चिकत हो कहते है:- “वे
(िहÆदू) कला के अÂयंत उ¸च सोपान पर आरोहन कर चुके है । हमारे लोग (मुसलमान) जब
उनके मंिदर आिद को देखते है आIJयª चिकत रह जाते है । वे न तो उनका वणªन ही कर
सकते है न वैसा िनमाªण कर सकते है । इस ÿकार के िवचारŌ को पढ़कर या सुनकर हम कह
सकते है ÖथापÂय कला िवकिसत थी लेिकन इÖलामी धमª मूितª िवरोधी होने के कारण
ÖथापÂय कला म¤ िजतना चािहए उतना िवकास नहé हòआ । हम कह सकते है िक तÂकालीन
समय कì सांÖकृितक पåरिÖथित उस समय ÓयाĮ धमª पर आधाåरत थी ।
२.३ सारांश आिदकालीन भारतीय समाज राजनीितक, सामािजक, धािमªक, सांÖकृितक, सािहिÂयक
आिद सभी ±ेýŌ म¤ संøमण का ही काल था । इसके दीघª अÅययन के उपरांत हम कह
सकते है िक भारत वषª म¤ आिदकालीन समयकाल पåरिÖथित के ÿितकूल था यहé से सभी
±ेýŌ म¤ Öतर िगरता गया और समाज कì पराजय का ÿभाव सािहÂय पर भी पड़ा ।
२.४ दीघō°री ÿij १. िहÆदी सािहÂय के आिदकालीन पåरवेश पर ÿकाश डािलए ।
२. आिदकालीन पृķभूिम का सािहÂय पर ³या ÿभाव पड़ा िवÖतृत िववरण दीिजए ।
२.५ लघु°रीय ÿij १. आिदकालीन सािहÂय म¤ ÿथम धारा म¤ कौनसी भाषा सािहिÂयक भाषा रही?
उ°र: संÖकृत
२. बौĦ धमª कौनसे दो भागŌ म¤ िवभािजत हòआ?
उ°र: हीनयान और महायान
३. जैन धमª म¤ कौनसे िहÆदू देवता को जैन धमª कì दी±ा लेते हòए विणªत िकया गया है?
उ°र: ®ी राम
४. ११ वी – १२ वी शताÊदी म¤ िदÐली म¤ िकसकì स°ा थी?
उ°र: तोमर वंश
५. आचायª राम चंþ शु³ल ने आिदकाल को ³या नाम िदया है?
उ°र: वीरगाथा काल

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िहंदी सािहÂय का इितहास
20 २.६ संदभª पुÖतक¤  िहंदी सािहÂय का इितहास - आ. रामचंþ शु³ल
 िहंदी सािहÂय का इितहास - सÌपादक डॉ. नगेÆþ
 िहंदी सािहÂय का वै²ािनक इितहास - डॉ. गणपित चंþ गुĮ
 िहंदी सािहÂय कì ÿवृि°याँ - डॉ. जयिकशन ÿसाद

*****
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21 २.१
िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
इकाई कì Łपरेखा
२.१.० इकाई का उĥेÔय
२.१.१ ÿÖतावना
२.१.२ िसĦ सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ
२.१.३ नाथ सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ
२.१.४ जैन सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ
२.१.५ रासो सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ
२.१.६ सारांश
२.१.७ लघु°रीय ÿij
२.१.८ दीघō°री ÿij
२.१.९ संदभª úंथ
२.१.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओं का छाý अÅययन कर¤गे ।
 िसĦ सािहÂय कì िवशेषताओं से छाý पåरिचत हŌगे ।
 नाथ और जैन सािहÂय का अÅययन कर¤गे ।
 रासो सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताओं को समझ जाय¤गे ।
२.१.१ ÿÖतावना िहंदी सािहÂय म¤ सवªÿथम ÿÖतुत िकये गए काल को आिदकाल कहाँ जाता है । आिदकाल
को वीरगाथा काल , चारण काल, िसĦ सामÆत युग, बीजवपन काल , वीरकाल, चारण काल
या संिध काल, आरिÌभक काल आिद कई नामŌ से पहचाना जाता है । िहंदी सािहÂय के
आिदकाल कì सामúी म¤ 'उ°र अपĂंश' कì सभी रचनाये आती है । िहंदी सािहÂय का
आरंभ िसĦŌ कì रचनाओं से आरंभ मानना युिĉसंगत रहेगा । िसĦŌ कì वÖतु-ŀिĶ धािमªक
चेतना पर आधाåरत रही है । इसीिलए उनका सीधा संबंध 'नाथ सािहÂय' से होता है ।
वÖतुतः आिदकाल के अंतगªत िसĦ सािहÂय, नाथ सािहÂय, जैन सािहÂय और रासो
सािहÂय का िनमाªण हòआ । इसका िवÖतृत अÅययन करना आवÔयक है ।
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िहंदी सािहÂय का इितहास
22 २.१.२ िसĦ सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ िसĦ सािहÂय:
भारतीय साधना के इितहास म¤ ८वé शती म¤ िसĦŌ कì स°ा रही है । िसĦ सािहÂय को बौĦ
धमª कì घोर िवकृित माना जाता ह§ । बुĦ का िनवाªण ४८३ ई. पू. म¤ हòआ । उनके िनवाªण के
४५ वषª पIJात बौĦ धमª के िसĦांतŌ का खूब ÿचार हòआ । इस धमª कì िवजय पताका देश
तथा िवदेशŌ म¤ बजती रही । बौĦ धमª का उदय वैिदक कमªकांड कì जिटलता एवं िहंÖसा कì
ÿितिøया के łप म¤ हòआ । यह धमª सहानुभूित और सदाचार के मूल तÂवŌ पर आधाåरत है ।
ईसा कì ÿथम शताÊदी म¤ बौĦ धमª ‘महायान’ और ‘हीनयान’ आिद दो शाखाओं म¤
िवभािजत हòआ था । महायानी ‘बड़े रथ के आरोही रहे’ और हीनयान ‘छोटे रथ के आरोही
थे ।’ हीनयान शÊद का ÿयोग महायान संÿदाय कì ओर से ÓयंµयाÂमक łप म¤ हòआ ।
हीनयान म¤ िसĦांत प± का ÿाधाÆय रहा जबिक महायान म¤ Óयवहाåरकता का । महायान
वाले ऊँच-नीच, छोटे-बड़े, साधु-सÆयाशी सबको बैठाकर िनवाªण तक पहòँचा सकने का दावा
करते थे । हीनयान केवल िवरĉŌ और सÆयािसयŌ को आ®य देता था । बौĦ धमª को गुĮ
नरेशŌ के समय म¤ बहòत आघात पहòँचा था । आचयª कì बात है िक भारत का धमª भारत से
िनवाªिसत हो गया । अब यह धमª शैव धमª से ÿभािवत हòआ और इसने जनता को अपने
आ®य म¤ लाने के िलए तंý-मंý एवं अिभचार का आ®य िलया । जो धमª, वैिदक धमª कì
कमªकाÁड कì उलझनŌ कì ÿितिøया म¤ उठा था वही समािध, जंý-तंý, डािकनी-शािकनी,
भैरवी-चø, मī-मैथुन म¤ उलझ गया और सदाचार से हाथ धो बैठा । िजस धमª ने ईĵर का
अिÖतÂव तक का Öवीकार नहé िकया था , कालांतर म¤ उसी म¤ बुĦ कì भगवान के łप म¤
पूजा होने लगी और आगे चलकर तंý से इस धमª को अपनी मूल िदशा से एकदम नई राह म¤
मोड़ िदया । अब इसम¤ Âयाग और संयम का Öथान भोग और सुख ने ले िलया । इस ÿकार
से महायान मंýयान बन गया । इसके आगे दो भाग हो गए वûयान तथा सहजयान । जो
सचमुच अपनी गाड़ी को इतना मजबूत और सहज बना सके िक उसम¤ पांिडÂय और कृ¸छ
साधना का कोई महÂव नहé रहा । आगे चलकर वाम मागª भी इसी से िनकला जो िवकृत
अवÖथा का एक ही न िचý है । मÆýŌ Ĭारा िसिĦ चाहने वाले िसĦ कहलाये । बौĦ धमª ने
जब तांिýक łप धारण िकया, तब उसम¤ से पाँच Åयानी बुĦ और उनकì शिĉयŌ के
अितåरĉ अनेक बोिधसÂवŌ कì भावना कì गयी जो सृिĶ का पåरचालन करते है । वûयान म¤
आकर 'महासुखवाद' का ÿवªतन हòआ । ÿ²ा और उपाय के योग से इसे महासुख दशा कì
ÿािĮ मानी गयी । इसे आनंदÖवłप ईĵरÂव ही समिझए । िनवाªण के तीन अवयव ठहराए गए
- शूÆय, िव²ान और महासुख । उपिनषद म¤ तो āĺानंद के सुख के पåरणाम का अंदाजा
करने के िलए उसे सहवाससुख से सौ गुना कहा था, पर वûयान म¤ िनवाªण के सुख का
Öवłप ही सहवाससुख के समान बताया गया ह§ । िसĦ सािहÂय का मुÐयांकन करते हòए
ÿिसĦ िवĬान आलोचक कहते है िक “जो जनता नरेशŌ कì Öवे¸छाचाåरता, पराजय या
पतन से ýÖत होकर िनराशावाद के भीतर से आशावाद का संदेश देना, संसार कì ±िणकता
म¤ उसके वैिचÞय का इÆþधनुषी िचý खéचना इन िसĦŌ कì किवता का गुण था और उसका
आदशª था जीवन कì भयानक वाÖतिवकता कì अिµन से िनकाल कर मनुÕय को महासुख के
शीतल सरोवर म¤ अवगाहन कराना ।” munotes.in

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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
23 िहंदी सािहÂय के इितहास म¤ िसĦŌ कì सं´या ८४ मानी जाती है िजनम¤ से कुछ ही रचनाएँ
उपलÊध हòई है । ÿÂयेक िसĦ के नाम के पीछे 'पा' शÊद लगा हòआ है । इन िसĦŌ म¤ सरहपा,
शबरपा, लुइपा, डŌिभपा, कÁहपा एवं कु³कुåरपा आिद आिदकालीन िसĦ सािहÂय के ÿमुख
िसĦ किव रहे ह§ ।
िसĦ सािहÂय कì िवशेषताएँ:
िसĦ सािहÂय कì रचनाओं कì शैली संÅया या उलटबाँसी शैली है । और ऊपर से रचनाओं
का कुिÂसत अथª भी िनकलता है िकÆतु िसĦ सािहÂय के जानकर उसके मूल एवं
साधनाÂमक अथª को समझ सकते ह§ । िसĦ सािहÂय अपनी ÿवृि° और ÿभाव के कारण
िहंदी सािहÂय म¤ िवशेष महÂव रखता है । उसकì िवशेषताएँ इस ÿकार से है:
१. जीवन कì सहजता और Öवाभािवकता म¤ ŀढ़ िवĵास:
िसĦ सािहÂय म¤ किवयŌ ने जीवन कì सहजता और Öवाभािवकता म¤ ŀढ़िवĵास Óयĉ िकया
गया है । दूसरे धमª के अनुयािययŌ ने कई ÿकार के ÿितबंध लगाकर जीवन को कृिýम बनाया
था । िसĦ सािहÂय म¤ िविभÆन कमªकाÁडो से साधना मागª को कृिýम बनाया था । िसĦŌ ने
इन सभी कृिýमताओं का िवरोध िकया और जीवन कì सहजता तथा Öवाभािवकता पर बल
िदया है । सहज सुख से ही महासुख कì ÿािĮ होती है । इसीिलए िसĦŌ ने सहज मागª का
ÿचार िकया । सहज मागª के अनुसार ÿÂयेक नारी ÿ²ा और ÿÂयेक नर कŁणा का ÿितक है
। इसीिलए नर-नारी का िमलन, ÿ²ा और कŁणा, िनवृि° और ÿवृि° का िमलन है - दोनŌ
को अभेदता ही 'महासुख' कì िÖथित है ।
२. गुł मिहमा का ÿितपादन:
िसĦ सािहÂय म¤ गुł मिहमा का वणªन िकया है । िसĦŌ के अनुसार गुł का Öथान वेद और
शाľŌ से भी ऊँचा ह§ । सरहया ने कहा है कì गुł कì कृपा से ही सहजानंद कì ÿािĮ होती
है । गुł के िबना कुछ भी ÿाĮ नहé होगा । िजसने गुŁपदेश का अमृतपान नहé िकया, वह
शाľŌ कì मŁभूिम म¤ Èयास से Óयाकुल होकर मर जाएगा -
"गुł उपािस आिमरस धावण पीएड जे ही ।
बहò सÂयÂय नł Öथलिह ितिसय मåरयड ते हो ।।"
३. बाĻाडÌबरŌ पाखÁडŌ कì कटु आलोचना:
िसĦ सािहÂय म¤ पुराणी łिढ़यŌ, परÌपराओं और बाĻ आडÌबरŌ, पाखÁडŌ का खुलकर
िवरोध िकया गया है । इसी कारणवंश वेदŌ, पुराणŌ और शाľŌ कì खुलकर िनंदा कì ह§ ।
सरहया ने वणª ÓयवÖथा, ऊँच-नीच और āाĺण धमŎ के कमªकाÁडŌ पर ÿहार िकया है और
कहते है िक "āाĺण āĺा के मुख से तब पैदा हòए थे, अब तो वे भी वैसे ही पैदा होते ह§, जैसे
अÆय लोग ह§ । तो िफर āाĺणÂव कहाँ रहा? यिद कहा िक संÖकारŌ से āाĺणÂव होता है तो
चाÁडाल को अ¸छे संÖकार देकर āाĺण को नंदी बना देते? यिद आग म¤ घी डालने से मुिĉ
िमलती है तो सबको ³यŌ नहé डालने देते । होम करने से मुिĉ मुलती है यह पता नहé
लेिकन धुआ लगाने से आँखŌ को कĶ जłर होता है ।" इसी के साथ िदगÌबर साधुओं को munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
24 लàय करते हòए िफर से सरहया कहते ह§ िक “यिद नंगे रहने से मुिĉ हो जाए तो िसयार,
कु°Ō को भी मुिĉ अवÔय होनी चािहए । केश बढ़ाने से मुिĉ हो सके तो मयुर उसके सबसे
बड़े अिधकारी है । यिद कंध भोजन से मुिĉ हो तो हाथी, घोड़Ō को मुिĉ पहले होनी चािहए
।” इस ÿकार से िसĦŌ ने वेद, पुराण और पंिडतŌ कì कटु आलोचना कì है ।
४. तÂकालीन जीवन म¤ आशावादी संचार:
िसĦ सािहÂय का मुÐयांकन करते हòए हजारीÿसाद िĬवेदी जी ने िलखा है िक “जो जनता
नरेशŌ कì Öवै¸छाचाåरता, पराजय या पतन से ýÖत होकर िनराशावाद के गतª म¤ िगरी हòई
थी, उसके िलए इन िसĦŌ कì वाणी ने संजीवनी का कायª िकया ।.... जीवन कì भयानक
वाÖतिवकता कì अिµन से िनकालकर मनुÕय को महासुख के शीतल सरोवर म¤ अवगाहन
कराने का महÂवपूणª कायª इÆहŌने िकया ।” बाद म¤ आगे चलकर िसĦŌ म¤ Öवैराचार फैल गया,
िजसका बूरा असर जन-जीवन पर पड़ गया ।
५. रहÖयाÂमक अनुभूित:
िसĦ सािहÂय म¤ िसĦŌ ने ÿ²ा और कłणा के िमलनोपराÆत ÿाĮ महासुख का वणªन और
िववेचन łपकŌ के माÅयम से िकया है । नौका, वीणा, चूहा, िहरण आिद łपकŌ का ÿयोग
रहÖयानुभूित कì Óया´या के िलए िकया है । रिव, शिश, कमल, कुिलश, ÿाण, अवधूत आिद
तांिýक शÊदŌ का ÿयोग भी इसी Óया´या के िलए हòआ है । डॉ. धमªवीर भारती ने अपने शोध
úंथ ‘िसĦ सािहÂय’ म¤ िसĦŌ कì शÊदावली कì दाशªिनक Óया´या कर उसके आÅयािÂमक
प± को ÖपĶ िकया है ।
६. ®ृंगार और शांत रस:
आिदकालीन िसĦŌ कì रचना म¤ ®ृंगार और शांत रस का सुÆदर ÿयोग हòआ है । कहé-कहé
पर उÂथान ®ृंगार िचýण िमलता है । अलौिकक आनÆद कì ÿािĮ का वणªन करते समय ऐसा
हòआ है ।
७. जनभाषा का ÿयोग :
िसĦ सािहÂय कì रचनाओं म¤ संÖकृत तथा अपĂंश िमि®त देशी भाषा का ÿयोग िमलता है
। डॉ. रामकुमार वमाª इनकì भाषा को जन समुदाय कì भाषा मानते ह§ । जनभाषा को
अपनाने के बावजूद जहाँ वे अपनी सहज साधना कì Óया´या करते है, वहाँ उनकì भाषा
ि³लĶ बन जाती है । िसĦŌ कì भाषा को हरीÿसाद शाľी ने ‘संधा-भाषा’ कहा है । साँझ के
समय िजस ÿकार चीज¤ कुछ ÖपĶ और कुछ अÖपĶ िदखाई देती है, उसी ÿकार यह भाषा
कुछ ÖपĶ और कुछ अÖपĶ अथª-बोध देती है । यही मत अिधक ÿचिलत है ।
८. सािहÂय के आिद łप कì ÿामािणक सामúी:
िसĦ सािहÂय का महÂव इस बात म¤ बहòत अिधक है िक उससे हमारे सािहÂय के आिद łप
कì सामúी ÿामािणक ढंग से ÿाĮ होती है । चारण कालीन सािहÂय तो केवल तÂकालीन
राजनीितक जीवन कì ÿितछाया है । लेिकन शतािÊदयŌ से आनेवाली धािमªक और
सांÖकृितक िवचारधारा का एक सही दÖतावेज के łप म¤ िसĦ सािहÂय उपलÊध है । munotes.in

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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
25 ९. तांिýक साधना:
िसĦ सािहÂय म¤ योग तंý कì साधनाओं म¤ मī तथा िľयŌ के िवशेषतः डोिमना, रजनी
आिद के अबाध सेवन के महÂव का ÿितपादन िकया है । कहते है -
गंगा जउँना माझे रे बहई नाई ।
तिह बुिड़िल मांतिग पोइआ लीले पार करेई ।
पाहतु डŌबी, बाहलो डŌबी बाट त भइल उछारा ।
सदगुł पाअ-पए जाइब पुणु िजणधारा ।।
- कÁहपा
१०. छंद ÿयोग:
िसĦ सािहÂय कì अिधकांश रचना चयाª गीतŌ म¤ हòई है । तथािप इसम¤ दोहा, चैपाई जैसे
लोकिÿय छंद भी ÿयुĉ हòए है । िसĦŌ के िलए दोहा बहòत ही िÿय छंद रहा है । उनकì
रचनाओं म¤ कहé-कहé सोरठा और छÈपय का भी ÿयोग पाया जाता है । अतः इस ÿकार से
िसĦ सािहÂय कì िवशेषताएँ रही है ।
२.१.३ नाथ सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ नाथ सािहÂय:
आिदकाल म¤ िसĦ सािहÂय से आ गई िवकृितयŌ के िवरोध म¤ नाथ सािहÂय का जÆम हòआ ।
अथाªत नाथ पंथ का मूल भी बौĦŌ कì यही वûयान शाखा ह§ । बौĦ धमª महायान से
वûयान, वûयान से सहजयान और सहजयान से नाथ संÿदाय के łप म¤ िवकिसत हòआ है
। इस ÿकार से नाथ सÌÿदाय को िसĦŌ का िवकिसत तथा शिĉशाली łप कहा जाता है ।
िसĦŌ कì िवचारधारा को लेकर इस सÌÿदाय ने नवीन िवचारŌ कì ÿाण-ÿितķा कì । उÆहŌने
िनरीĵरवादी शूÆय को ईĵरवादी शूÆय बना िदया । नाथ सÌÿदाय वûयान कì परÌपरा म¤
शैवमत कì गोद म¤ पला है । इस ÿकार से नाथ युग को िसĦ युग और संतŌ के बीच कì कड़ी
माना जा सकता है । कुछ िवĬानŌ का कहना है िक "यिद नाथ लोग िसĦŌ के िदखाये हòए
मागª को अपना साधन चुन लेते तो उनकŌ कोई भी महßव न िमलता ।"
िहंदी सािहÂय म¤ नाथ सािहÂय का िवशेष महÂव रहा ह§ । यहाँ पर ‘नाथ’ शÊद म¤ ‘ना’ का अथª
है ‘अनािद łप’ और ‘थ’ का ‘भूवनýय म¤ Öथािपत होना ।’ इस ÿकार से ‘नाथ’ शÊद का अथª
होता है “वह अनािद धमª, जो भूवनýय कì िÖथित का कारण है ।” अÆय Óया´या के अनुसार
“‘नाथ’ वह तÂव है, जो मो± ÿदान करता है ।” नाथ सÌÿदाय उन साधकŌ का सÌÿदाय है
जो ‘नाथ’ को परमतÂव Öवीकार कर उसकì ÿािĮ के िलए योग साधना करते थे तथा इस
सÌÿदाय म¤ दीि±त होकर अपने नाम के अÆत म¤ ‘नाथ’ कì उपािध लगा देते थे । साथ ही
साथ ‘āĺ’ और ‘सदगुł’ के िलए भी नाथ शÊद का ÿयोग हòआ है । इनकì वेशभुषा म¤ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
26 ÿÂयेक जोगी कान कì लौ म¤ बडे़-बड़े छेद करके कुंडल धारण करते है इसे कनफटे कहलाते
है ।
नाथ सािहÂय तथा नाथ सÌÿदाय के अंतगªत कुल नौ नाथ आते है िजनके नाम है -
आिदनाथ, मÂÖय¤þनाथ, गोरखनाथ, गैणीनाथ, चपªटनाथ, चौरंगीनाथ, जालंधरनाथ,
भरथरीनाथ, गोपीचंद नाथ आिद । इसम¤ गोरखनाथ नाथ सािहÂय के आरÌभकताª के łप म¤
माने जाते है । वे िसĦ मÂय¤þनाथ के िशÕय थे । उÆहŌने अपने सािहÂय म¤ गुł-मिहमा, इंिþय-
िनúह, ÿाण-साधना, वैराµय, मन: साधना, कुंडिलनी-जागरण, शूÆय समािध आिद को
अिधक महÂव िदया ह§ । नाथ सािहÂय म¤ गोरखनाथ ने हठयोग का भी उपदेश िदया था ।
इसम¤ हठयोिगयŌ के ‘िसĦ-िसĦांत-पĦित’ úंथ के अनुसार अथª िदया है - ‘ह’ का अथª है
‘सूयª’ और ‘ठ’ का अथª है ‘चंþ’ । इन दोनŌ के योग को ‘हठयोग’ कहा जाता है । यहाँ पर सूयª
‘इड़ा नाडी’ का और चंþ ‘िपंगला नाडी’ का ÿतीक है । इस साधना पĦित के अनुसार
ÿÂयेक Óयिĉ कुÁडिलनी और ÿाणशिĉ लेकर पैदा होता है । गोरखनाथ ने ही िहंदी सािहÂय
म¤ षट्चøŌ वाला योगमागª चलाया था । इस मागª पर िवĵास करने वाले हठयोग कì साधना
Ĭारा शरीर और मन को शुĦ करके शूÆय म¤ समािध लगाता था और वहé āĺ का सा±ाÂकार
करता था । गोरखनाथ ने िलखा ह§ िक धीर वह है, िजसका िच° िवकार साधन होने पर भी
िवकृत नहé होता है ।
नौ लख पातåर आगे नाच§, पीछे सहज अखाड़ा ।
ऐसे मन लै जोगी खेलै, तब अंतåर बसै भंडारा ।।
अथाªत गोरखनाथ कì हठयोग साधना म¤ ईĵरवाद ÓयाĮ था । इन हठयोिगयŌ ने भी उसका
ÿचार िकया, जो रहÖयवाद के łप म¤ ÿितफिलत हòआ है और िजसका भिĉकाल म¤ कबीर
के साथ अÆय संतŌ ने अनुकरण िकया है ।
नाथ सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ:
िसĦŌ कì वाममागê भोगÿधान योग-साधना कì ÿितिøया के łप म¤ आिदकाल म¤
नाथपंिथयŌ कì हठयोग साधना आरंभ हòई । इसे िसĦŌ कì परÌपरा का ही िवकिसत łप
माना जाता है । इसकì ÿमुख िवशेषताएँ िनÌनिलिखत है -
१. िच° शुिĦ और सदाचार म¤ िवĵास:
िसĦ सािहÂय म¤ िजस तरह कì मानिसकता फैली हòई थी वहé मानिसकता अथाªत अिहंसा
कì, िवषवेिल को काटकर चाåरिýक ŀढ़ता और मानिसक पिवýता पर भर देकर नाथ
सािहÂय म¤ उसे अपनाया था । इसी के साथ नैितक आचरण और मन कì शुĦता पर अिधक
बल देने का ÿयास नाथŌ का रहा ह§ । मī, भांग और धतुरा आिद मादक पदाथŎ का सेवन
करने से परहेज िकया था । योग साधना के समय नारी के आकषªण कì सबसे बड़ी बाधा
होती है उससे दूर रहने का उपदेश भी नाथŌ ĬारŌ िदया गया था ।

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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
27 २. łिढ़यŌ और बाĻडÌबरŌ का िवरोध:
बाĻडÌबरŌ और परÌपरागत चलने वाली łिढ़यŌ का नाथŌ ने खुलकर िवरोध िकया है ।
कहते है िक िपÁड म¤ āĺाÁड होने से परमतÂव को बाहर खोजना ही Óयथª है । हठयोग का
ÿयोग करके उस परमतÂव का अनुभव कर सकते है और मन कì शुĦता को ओर बढ़ा
सकते है । इसीिलए नाथ सािहÂय म¤ बाĻडÌबरŌ और łिढ़यŌ को कोई Öथान नहé है । इसी
के साथ मूितªपूजा, मुÁडन करके िविशĶ वľ धारण करना, वेद-पुराण पढ़ना और ऊँच-नीच
आिद का खुलकर िवरोध िकया है ।
३. गुł मिहमा:
नाथ सािहÂय तथा सÌÿदाय म¤ गुł का महÂवपूणª Öथान रहा है । इसी कारणवंश गुł-िशÕय
परÌपरा म¤ नाथ सÌÿदाय म¤ इसे ºयादा महÂव िदया गया है । गोरखनाथ खुद कहते है िक
गुł ही आÂमāĺ से अवगत कराते है । गुł Ĭारा ²ान ÿाĮ होने से तीनŌ लोक का रहÖय
ÿकट हो सकता है । इसी के साथ वैराµयभाव का ŀिढ़करण और िýिवध साधना गुł के
²ान से ही ÿाĮ होती है ।
४. उलटबािसयाँ:
नाथ सािहÂय म¤ उलटबािसयाँ का ÿयोग अपनी साधना कì अिभÓयिĉ के िलए िकया है ।
इसम¤ कहé-कहé ि³लĶ जłर है लेिकन यह उलटबािसयाँ रस से ओत-ÿोत है । नाथ
सािहÂय म¤ मनः साधना और ÿाण साधना रही है । मनः साधना से ताÂपयª है िक मन को
संसार से खéचकर अÆतकरण कì ओर उÆमुख कर देना है । मन कì Öवाभािवक गित है
बाहरी जगत कì ओर रहना उसे पलटकर अंतर जगत कì ओर करनेवाली इस ÿिøया को
उलटबाँसी कहते है ।
५. जनभाषा का पåरÕकार:
आिदकालीन सािहÂय म¤ िहंदी को समृĦ कराने म¤ नाथ सािहÂय कì महÂवपूणª भूिमका रही है
। नाथŌ Ĭारा संÖकृत भाषा म¤ िवपुल माýा म¤ सािहÂय िलखा गया ह§ लेिकन सामाÆय जनता
के िलए अपने िवचार जन-भाषा म¤ ही ÿÖतुत िकए है । िजस ÿकार से उनकì परÌपरागत
łिढ़ को लेकर िवचारधारा अलग रही है उसी ÿकार से उनकì भाषा रही है । अंत कह
सकते है िक नाथ सािहÂय म¤ Öव¸छÆद भाव और िवचारŌ कì ÿामािणकता को ही Öथान
िदया है ।
इस ÿकार से नाथ सािहÂय कì िवशेषताएँ रहé ह§ ।
२.१.४ जैन सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ जैन सािहÂय:
आिदकाल कì उपलÊध साधन सामúी के अनुसार सबसे अिधक úंथŌ कì रचना जैन úंथŌ
कì रही है । जैन धमª के ÿवतªक के łप म¤ महावीर Öवामी है । इनका समय छठी शताÊदी से
माना जाता है । बौĦŌ कì तरह इÆहŌने भी संसार के दुःखŌ कì ओर बहòत Åयान िदया । सुख-munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
28 दुख के बंधनŌ पर इÆहŌने जीत हािसल कì है । उसे ‘िजÆन’ कहा गया है । ‘िजÆन’ शÊद कì
उÂपि° जैन शÊद से रही है । महावीर Öवामी ने अिहंसा पर ºयादा बल देकर मूितªपूजा का
िवरोध िकया । आगे जैन धमª दो शाखाओं म¤ िवभािजत हòआ िदगंबर और ĵेतांबर । जैन धमª
कì इन दो शाखाओं ने धमª ÿसार के िलए जो सािहÂय िलखा वह जैन सािहÂय के नाम से
जाना जाता है । जैन सािहÂय के संबंध म¤ यही कह सकते है िक वे उ°र भारत फैले रहे परंतु
आठवी शताÊदी से लेकर तेरहवé शताÊदी तक कािठयावाड़ गुजरात म¤ इनकì ÿधानता रही ।
वहाँ के राजाओं म¤ से चालु³य, राÕůकूट और सोलंकì राजाओं पर इसका पयाªĮ ÿभाव रहा
है । महावीर Öवामी का जैन धमª, िहÆदू धमª के अिधक नजदीक है । अिहंसा, कłणा, दया
और Âयाग को जीवन म¤ महßवपूणª Öथान बताया । Âयाग इिÆþयŌ के अनुशासन म¤ नहé कĶ
सहने म¤ है । उÆहŌने उपवास तथा Ąतािद कृ¸छ साधना पर अिधक बल िदया और कमªकांड
कì जिटलता को हटाकर āाĺण तथा शुþ को मुिĉ का समान भागी ठहरा िदया ।
आिदकाल के अंतगªत िहंदी के पूवê ±ेý म¤ िसĦŌ ने बौĦ धमª के वûयान मत का ÿचार-
ÿसार िहंदी किवता के माÅयम से िकया । उसी ÿकार से जैन साधुओं ने पिIJमी ±ेý म¤ अपने
मत का ÿचार-ÿसार िहंदी किवता के माÅयम से िकया है । इन किवयŌ कì रचनाओं म¤ रास,
फागु, चåरत और आचार आिद िविभÆन शैली िमलती है । ‘रास’ को जैन साधुओं ने एक
ÿभावशाली रचनाशैली का łप िदया है । जैन मंिदरŌ म¤ ®ावक लोग ताल देकर रािý के
समय म¤ ‘रास’ का गायन करते थे । ‘आचार’ शैली जैन-काÓयŌ म¤ घटनाओं के Öथान पर
उपदेशाÂमकता को ÿधानता दी गई है । ‘फागु’ और ‘चåरतकाÓय’ शैली कì सामाÆयता के
िलए ÿिसĦ ह§ । जैन मुिनयŌ ने अपĂंश म¤ ÿचुर माýा म¤ रचनाएँ िलखी है जो धमª से संबंिधत
है । िवशेषतः इसम¤ अिहंसा, कĶ सिहÕणुता, िवरिĉ और सदाचार कì बातŌ का वणªन िकया
है । इसके अितåरĉ उस समय के Óयाकरणािद úंथŌ म¤ सािहÂय के उदाहरण िमलते है । कुछ
जैन किवयŌ ने िहÆदुओं के ÿिसĦ úंथ ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ कì कथाओं म¤ से राम
और कृÕण के चåरýŌ को अपने धािमªक िसĦांतŌ और िवĵासŌ के अनुłप अंिकत िकया है ।
इसके अितåरĉ जैन किवयŌ ने रहÖयाÂमक काÓय भी िलखे ह§ । इस सािहÂय के ÿणेता शील
और ²ान-सÌपÆन उ¸च वगª के थे ।
जैन अपĂंश सािहÂय कì रचना करनेवाले ÿिसĦ किव Öवयंभू, पुÕपदंत और धनपाल ह§ ।
इÆहŌने काÓयŌ कì रचना कì है । इनके अितåरĉ देवसेन, हेमचंþ, सोमÿभू सूåर, िजनधमª
सूåर, िजनद° सूåर, शािलभþ सूåर, िवजयसेन सूåर आिद कई किव इस संÿदाय के ÿिसĦ
रहे है ।
जैन सािहÂय कì िवशेषताएँ:
िहंदी सािहÂय के िवकास म¤ जैन धमª का बहòत बड़ा योगदान रहा है । अपĂंश भाषा म¤ जैनŌ
Ĭारा कई úंथ िलखे गए है । अपĂंश से िहंदी का िवकास होने के कारण जैन सािहÂय का
िहंदी पर पयाªĮ ÿभाव पड़ा । इस सािहÂय कì सामाÆय िवशेषताएँ इस ÿकार से है -
१. उपदेश मूलकता:
उपदेश मुलकता जैन सािहÂय कì ÿमुख तथा िवशेष ÿवृि° है । इसके मुल म¤ जैन धमª के
ÿित ŀढ़ आÖथा और उसका ÿचार है । जैन किवयŌ ने दैिनक जीवन कì ÿभावोÂपादक munotes.in

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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
29 घटनाएँ, चåरत नायकŌ, आदशª ®ावकŌ, अÅयाÂम के पोषक तÂव, शलाका पुłषŌ, तपिÖवयŌ
एवं पाýŌ के जीवन का िवशेष łप से वणªन िकया है । इसी कारण यह उपदेश मुलकता का
Öवर मु´य Öवर के łप म¤ उभरकर आया है ।
२. िवषय कì िविवधता:
जैन सािहÂय के अंतगªत धािमªक सािहÂय ºयादा होने के बावजुद सामािजक, धािमªक और
ऐितहािसक िवषयŌ के साथ-साथ लोक आ´यान कì कई कथाओं को अपनाता है । यहाँ पर
िवशेष łप से रामायण, महाभारत आिद कथाओं को जैन किवयŌ ने अÂयािधक द±ता के
साथ अपनाया है और जैन सािहÂय म¤ सभी ÿकार कì रचनाओं के िवषय का समावेश हòआ
है ।
३. तÂकालीन िÖथितयŌ का यथाथª िचýण:
जैन सािहÂय िक रचना राजा®य के दबाव और दरबारी संÖकृित से मुĉ होने से किवयŌ कì
रचनाओं म¤ तÂकालीन िÖथितयŌ का यथाथª िचýण हòआ है । आिदकालीन आचार-िवचार,
सामािजक, धािमªक, राजनीितक िÖथितयŌ पर ÿकाश डालने म¤ जैन सािहÂय कì रचनाएँ
पयाªĮ łप म¤ सहायक होती है । और तÂकालीन समाज को परखने म¤ भी आसानी होती है ।
४. कमªकाÁड łिढ़यŌ तथा परÌपराओं का िवरोध:
जैन अपĂंश किवयŌ ने बाĻ उपासना, पूजा-पाठ, शाľीय ²ान, łिढ़यŌ और परÌपराओं
का घोर िवरोध िकया है । वे मंिदर, तीथª, शाľीय ²ान, वेष, जाित, वणª, योग, तंý, मंý
आिद िकसी भी ÿकार कì संÖथाओं को नहé मानते है । मन कì शुĦता के िलए हर Óयिĉ
को एक आवÔयक वÖतु मानते है । इसी के साथ धन-सÌपि° कì ±िणकता, िवषयŌ कì
िनंदा, मानव देह कì नĵरता, संसार से संबंधीत िमÃयापन आिद का िवरोध करते हòए जैन
किवयŌ ने केवल शुĦ आÂमाओं पर बल िदया है ।
५. रहÖयवादी िवचारधारा का समावेश:
जैन सािहÂय म¤ किवयŌ कì रचनाएँ रहÖयवादी िवचार धारा से ओत-ÿोत है । इनकì
रचनाओं म¤ बाĻ आचार, कमªकांड, मूितª का बिहÕकार, तीथªĄत, देहłपी देवालय म¤ ईĵर
कì िÖथित बताना तथा शरीर म¤ िÖथत परमाÂमा कì अनुभूित पाकर परम समािध łपी
आनÆद ÿाĮ करना किवताओं का मु´य Öवर रहा है । यह आनÆद शरीर म¤ िÖथत परमाÂमा
गुł कì कृपा से ÿाĮ होता है यही जैन किवयŌ कì धारणा है ।
६. शांत या िनव¥द रस कì ÿमुखता:
जैन सािहÂय म¤ शांत या िनव¥द रस कì ÿमुखता रही है । इसम¤ कłण, वीर और ®ृंगार रसŌ
का पåरपाक हòआ है । िवशेषतः इसम¤ शांत रस कì ÿधानता पाई जाती है । इसीिलए जैन
सािहÂय के अंत म¤ िनिIJत ही शांत रस ÿधान łप म¤ िदखाई देता है । कुछ किवयŌ ने ®ृंगार
रस कथाओं म¤ उपयोग िकया है ।
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िहंदी सािहÂय का इितहास
30 ७. ÿेम के िविवध łपŌ का िचýण:
जैन अपĂंश म¤ िववाह के िलए ÿेम, िववाह के बाद ÿेम, असामािजक ÿेम, रोमािÁटक ÿेम
और िवषम ÿेम आिद ÿेम के पाँच łप िमलते है । जैन सािहÂय कì रचनाओं म¤ से
‘पउमचåरउ’ म¤ ÿेम कì िवषमता का उदाहरण देख सकते है । इस रचना के भीतर रावण के
ÿेम को िदखाया है । परंतु इसम¤ रोमािÁटक ÿेम का ही इस सािहÂय म¤ अिधक ÿÖफुटन हòआ
है ।
८. अलंकार योजना:
जैन सािहÂय म¤ अथाªलंकार और शÊदालंकार दोनŌ ही ÿयुĉ हòए है । लेिकन मु´य łप से
अथाªलंकार का ÿभाव अिधक िदखाई देता है । अथाªलंकार म¤ उपमा, उÂÿे±ा, łपक,
Óयिĉरेक, उÐलेख, अनÆवय, िवरोधाभास, ĂािÆत, संदेह आिद का सफलपूवªक ÿयोग हòआ
है । शÊदालंकारŌ म¤ Ĵेष, यमक और अनुÿास कì बहòलता है ।
९. छÆद-िवधान:
छंद कì ŀिĶ से जैन सािहÂय समृĦ है । इसम¤ कड़वक, पट्पदी, चतुÕपदी, ध°ा बदतक,
अिहÐया, िबलिसनी, ÖकÆदक, दुबई, रासा, दोहा, उÐलाला, सोरठा आिद छÆदŌ का ÿयोग
िमलता है ।
१०. लोकभाषा कì ÿितķा:
जैन सािहÂय म¤ अपĂंश से िनकली हòई िहंदी ÿाचीन łप म¤ िमलती है । जैन साधु úाम-úाम,
नगर-नगर घूमकर धमª का ÿचार करते थे । इसीिलए जैन साधुओं ने अपनी अिभÓयिĉ के
िलए लोक भाषा का ÿयोग िकया और उसी को ÿितķा ÿदान कì थी । इस ÿकार से जैन
सािहÂय कì िवशेषताएँ ह§ ।
२.१.५ रासो सािहÂय कì ÿमुख िवशेषताएँ रासो सािहÂय:
सवªÿथम हम रासो शÊद कì उÂपि° के बारे म¤ जान लेते है । इस उÂपि° के संबंध म¤ अनेक
िवĬानŌ म¤ मत-भेद है । सबसे पहले ÿिसĦ Āांसीसी िवĬान गासाª द तॉसी ने ‘रासो’ शÊद कì
उÂपि° ‘राजसूय’ शÊद से मानी है । कहते है िक चारण काÓयŌ म¤ ‘राजसूय य²’ का उÐलेख
है और इसी कारण इनका नाम ‘रासो’ पड़ गया होगा । डॉ. रामकुमार वमाª ने रासो शÊद कì
उÂपि° 'रहÖय' शÊद से मानी ह§ । कुछ िवĬान तो रासो शÊद का संबंध रहÖय से भी जोड़ना
चाहते है । लेिकन यह िठक नहé है । दूसर¤ लोगŌ ने इसे राजÖथानी तथा āज-भाषा को
‘रासो’ शÊद का अथª लड़ाई-झगड़ा रहा है ऐसा माना है । परंतु इस łप म¤ इस शÊद कì कोई
साथªकता इन चåरत काÓयŌ के साथ ŀिĶगोचर नहé होती है । कुछ रासŌ úंथŌ म¤ लड़ाई-झगडे़
का वणªन है पर कुछ úंथŌ म¤ शुĦ łप से ÿेम का िचýण हòआ है । जैसे िक वीरगाथाओं म¤
‘बीसलदेव रासो’ तथा अपĂंश सािहÂय म¤ ‘संदेश रासक’ आिद । इन úंथŌ म¤ युĦŌ का
अभाव होने के बावजुद भी इनका नाम रासो ह§ । और एक िवĬान नरो°म Öवामी है । उÆहŌने
‘रासो’ शÊद कì उÂपि° ‘रिसक’ शÊद से मानी है िजसका अथª ÿाचीन राजÖथानी भाषा के munotes.in

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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
31 अनुसार कथा-काÓय म¤ िमलता है । उनके अनुसार शÊद łप म¤ अथª है ‘रिसकरासरासो ’ ।
आचायª चÆþबली पांडेय ने ‘रासो’ शÊद का संबंध संÖकृत सािहÂय के ‘रासक’ से माना है ।
संÖकृत सािहÂय म¤ रासक कì गणना łपक तथा उपłपक म¤ कì जाती है । उनके अनुसार
रासŌ úंथŌ का ÿणयन ÿदशªन के िनिम° हòआ था । कुछ िवĬानŌ ने रासो शÊद का संबंध
‘रास या रासक ’ से जोड़ा है । इसका अथª होता है Åविन, øìड़ा, ®ृंखला, िवलास, गजªन
और नृÂय ।
आचायª रामचंþ शु³ल ने रासो शÊद का संबंध ‘रसायन’ से माना है जो िक बीसलदेव रासŌ
म¤ काÓय के अथª म¤ ÿयुĉ हòआ है । वे अपने मत को समथªन करते हòए कहते है िक बीसलदेव
रासो कì एक पंिĉ भी उĦृत कì है:
“नाÐह रसायन आरÌभई शारदा तुठी āĺ कुमाåर ।”
आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी रास से संबंध म¤ कहते है िक ‘रासक एक छÆद भी है और
काÓय भेद भी ।’ उनके अनुसार जो काÓय रासक छÆद म¤ िलखे जाते थे, वे ही िहÆदी म¤
‘रासो’ कहलाने लगे । इस ÿकार से ‘रासो’ शÊद को लेकर िवĬानŌ म¤ पयाªĮ मत-भेद िदखाई
देते है ।
रासो सािहÂय म¤ चåरýŌ को बाँधने के िलए ही छÆदŌ का ÿयोग होता था । वÖतुतः रासो
काÓय मूलतः रासक छÆद का समु¸चय है । अपĂंश म¤ 29 माýा का एक रासो या रास छÆद
ÿचिलत थे । ऐसे अनेक छÆदŌ कì परÌपरा लोकगीतŌ म¤ रही होगी । एकरसता के िनवारणाथª
बीच-बीच म¤ दूसरे छÆद जोड़ने तथा गाने कì ÿथा चल पड़ी । ‘संदेश रासक’ इसका उ°म
उदाहरण है । पहले रासो काÓय छÆदŌ म¤ िलखे गए । कालाÆतर म¤ बदलाव आया । ‘बीसलदेव
रासो’ ऐसा ही एक काÓय रहा है िजसम¤ छÆदŌ का ÿयोग हòआ है । यह काÓय आगे चलकर
łप कोमल भावŌ के अितåरĉ अÆय िवचारŌ के वाहन का साधन बना । ÿेम भाव के साथ
इमस¤ वीरŌ कì गाथाओं का सिÌम®ण देखने को िमला । इस तरह से इस काल के रासŌ
काÓयŌ म¤ िवरोिचत और ®ृंगाåरक भावनाओं के वणªन सुलभतापूवªक िमल जाते है । इसी के
साथ-साथ रासो सािहÂय सामंती-ÓयवÖथा, ÿकृित और संÖकार से रहा है । इसे ‘देशीभाषा
काÓय’ के नाम से भी जाना जाता है । इस ±ेý के रचनाकार िहÆदू राजपूत राजा®य म¤
रहनेवाले चारण या भाट थे । समाज म¤ उनका Öथान और सÌमान था, ³यŌिक उनका
जुड़ाव सीधे राजा से होता था । ये चारण या भाट कलापारखी और कलारचना म¤ िनपुण थे ।
कुशलता से युĦ करना भी जानते थे और युĦ शुł होने पर अपनी सेना कì अगुवाई
िवłदावली गा-गाकर िकया करते थे । ये राजाओं, आ®यदाताओं, वीर पुłषŌ तथा सैिनकŌ
के वीरोिचत युĦ घटनाओं को केवल बढ़ा-चढ़ाकर ही नहé , उसकì यथाथªपरक िÖथितयŌ
एवं संदभŎ को भी बारीकì के साथ िचिýत करते थे । वीरोिचत भावनाओं के वणªन के िलए
इÆहŌने ‘रासक या रासो ’ छÆद का ÿयोग िकया था , ³यŌिक यह छÆद भावना को सÌÿेिषत
करने के िलए अनुकूल था । इसिलए इनके Ĭारा रिचत काÓय को ‘रासो काÓय’ कहा गया है ।
रासो सािहÂय के ÿमुख úंथ है खुमाण रासो, परमाल रासो, हÌमीर रासो, िवजयपाल रासो ,
बीसलदेव रासो, पृÃवीराज रासो और संदेश रासक आिद ।
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िहंदी सािहÂय का इितहास
32 रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ:
रासो सािहÂय मूलतः सामÆती ÓयवÖथा, ÿकृित और संÖकार से उपजा हòआ सािहÂय है
िजसका मु´य Öवर वीरÂव रहा ह§ । उसकì ÿमुख िवशेषताएँ िनÌनिलिखत ह§ -
१. संिदµध रचनाएँ:
आिदकाल म¤ उपलÊध हòई सभी रासो से संबंिधत रचनाएँ ऐितहािसकता कì ŀिĶ से संिदµध
मानी गई है । इस काल म¤ ÿमुखतः चार रासो úंथ उपलÊध हòए है - ‘खुमान रासो’,
‘िबसलदेव रासो’, ‘परमाल रासो’ और ‘पृÃवीराज रासो’ आिद । भाषा शैली और िवषय
सामúी कì ŀिĶ से इन úंथŌ म¤ कई शतािÊदयŌ तक कई ÿकार का पåरवतªन और पåरवधªन
होता रहा । इसी पåरवतªन और पåरवधªन के कारण इन úंथŌ का मूÐय łप ही दब गया है ।
इसीिलए िनिIJत नहé कहा जा सकता है िक यह úंथ आ®यदाताओं के समय म¤ ही िलखे थे
आ अÆय समय िलखे गए थे ।
२. ऐितहािसकता और कÐपना का सिÌम®ण:
आिदकालीन रासो सािहÂय म¤ ऐितहािसक तÃय और कÐपना का सिÌम®ण िमलता है ।
इनम¤ ऐितहािसक तÃयŌ कì र±ा नहé हो पायी है और काÐपिनक वणªनŌ कì अिधकता हो
गई है । इन वीर गाथाओं म¤ ऐितहािसक और कÐपना का समावेश हो गया है । इन समय के
किवयŌ ने काÐपिनक घटनाओं और अÂयुिĉयŌ का सहारा लेना पड़ा है । इसीिलए यह úंथ
ऐितहािसक ŀिĶ से उिचत नहé है । कुछ रासŌ úंथŌ कì घटनाएँ भी एक-दूसरे से मेल नहé
खाती है । उदाहरण के तौर पर ‘परमाल रासो’ को ले सकते है । इस úंथ का नायक राजा
परमाल को पृÃवीराज चौहान Ĭारा मार िदए जाने का उÐलेख िमलता है । बिÐक चंद किव
कृत ‘पृÃवीराज रासो’ म¤ िसफª दÁड देकर छोड़ने का उÐलेख िमलता है । दोनŌ úंथŌ कì
घटना ऐितहािसक ही है । रासो काÓय म¤ ऐितहािसक घटनाओं म¤, ितिथयŌ म¤, वंशावली म¤
कì गई छेड-छाड ने उनकì ÿामािणकता पर ÿij िचĹ लगा िदया है ।
३. युĦ और ÿेम:
रासो सािहÂय म¤ चåरत नायकŌ के युĦ अिधकांशतः अपने साăाºय का िवÖतार करने के
िलए होता था और कभी-कभी राजकाज चलाने के िलए धन कì आवÔयकता उÆह¤ पड़ती
थी । इन सब ŀिĶ से देखने से लगता है िक रासो úंथŌ म¤ युĦ अपने साăाºय का िवÖतार
करने के िलए ही होते थे । इसी के साथ रासो úंथŌ म¤ ®ृंगार तथा वीर दोनŌ रसŌ का सुंदर
पåरपाक भी िदखाई देता है । इसम¤ ‘पृÃवीराज रासो’ के चåरत नायक पृÃवीराज चौहान एक
वीर योĦा होने के साथ-साथ एक ÿेमी भी ह§ । किव ने युĦ वणªनŌ म¤ पृÃवीराज कì वीरता
और पराøम का वणªन िकया है । दूसरी ओर इसम¤ łप-सŏदयª, ÿेम का सुंदर िचýण भी
िकया गया है । ÿेम के अंतगªत रासŌ किवयŌ ने ®ृंगार रस के साथ संयोग तथा िवयोग दोनŌ
प±Ō का िचýण िकया है । इसी के साथ ‘संदेश रासक’ के समान ही ‘बीसलदेव रासो’ कì
भावभूिम ÿेम कì िनIJल अिभÓयिĉ से सरस है ।
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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
33 ४. काÓय łप:
आिदकाल के अंतगªत रासो सािहÂय कì रचनाएँ दो ÿकार कì रही है मुĉक काÓय और
ÿबंध काÓय । मुĉक काÓय म¤ ÿाचीन úंथ ‘बीसलदेव रासो’ है और ÿबंध काÓय म¤ ‘पृÃवीराज
रासो’ यह ÿाचीन úंथ है । आज इस úंथ को िहंदी का पहला महाकाÓय कहा जाता है । इन
दो काÓय łपŌ के अितåरĉ और दूसरा कोई काÓयłप उपलÊध नहé है । इन úंथŌ म¤ काÓय
łपŌ कì िविवधता का अभाव है । यहाँ पर न तो कोई ŀÔय काÓय िलखा गया और न ही गī
िलखने का िकसीने ÿयÂन िकया । इस समय म¤ कुछ अÿामािणक úंथ िमलते है जैसे िक
‘जयचंद ÿकाश’ और ‘जयमयंक जसचंिþका’ इस कोिट के úंथ है ।
५. ÿशिÖत काÓय:
रासो सािहÂय का ÿितपाī रहा है िक राजा के शौयª और वीरता का यशोगान करना था ।
रासो काÓय के रचियताओं ने अपने चåरत नायकŌ के युĦ कौशल और उनके वीरता का
अितशयोिĉपूणª वणªन ÿÖतुत िकया है । अपने काÓयŌ म¤ किवयŌ ने चåरतनायक के सम±
दूसर¤ राजाओं कì हीनता का वणªन भी िकया है । ³यŌिक आ®य देने वाले राजाओं को
ÿसÆन रखना था । और राजाओं के वीरता का संचार करना किवयŌ का कतªÓय भी था ।
६. ÿकृित - िचýण:
रासो सािहÂय के अंतगªत ÿकृित का आलÌबन और उĥीपन दोनŌ łपŌ म¤ िचýण िकया है ।
इस सािहÂय म¤ निद, पवªत और नगर आिद का वÖतु वणªन भी सुंदर हòआ है । अिधक°र
किवयŌ ने ÿकृित का िचýण उĥीपन के łप म¤ ही िकया है । ÿकृित का Öवतंý łप म¤ िचýण
िकए हòए Öथान इस सािहÂय के काÓयŌ म¤ थोडे़ ही िमलते है । अिधक°र उसका उपयोग
उĥीपन łप म¤ िकया गया ह§ ।
७. रासो úंथ:
आिदकालीन सािहÂय म¤ रासो शÊद कì ÓयुÂपि° के संदभª म¤ अनेक िवĬानŌ ने अपने-अपने
मत ÿÖतुत िकए है । इसम¤ आ. रामचंþ शु³ल जी ने रासो शÊद का संबंध ‘रसायन’ से माना
है । और कुछ िवĬान इसका संबंध 'रहÖय' से मानते ह§ । परंतु ‘बीसलदेव रासो’ म¤ इसका
अथª रसायन का पåरचायक के łप म¤ िदया िजसका संबंध मूल कथानक से है । मुल łप म¤
‘रासो’ शÊद छÆद के िलए ÿयुĉ हòआ है, िजसका उपयोग अपĂंश सािहÂय म¤ हòआ है । िफर
इसका ÿयोग गेय łपक के अथª म¤ होने लगा । पीछे इस शÊद का ÿयोग चåरत काÓय एवं
कथा काÓय के िलए होने लगा था । रासो नाम के चåरत काÓयŌ म¤ से कुछ का उपयोग गाने के
िलए अिधक°र होने लगा । इसी से जनवाणी ने इनको धीरे-धीरे अपने समय के अनुसार
इनका पुराना łप ही बदल िदया गया ।
८. जनजीवन से संपकª नहé:
रासŌ सािहÂय म¤ सामÆती जीवन उभरकर आते हòए िदखाई देता है । सामाÆय जनजीवन से
िकसी भी ÿकार का संबंध नहé रहा है । जो किव राजदरबार म¤ थे उनसे जन-जीवन कì munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
34 िवÖतृत Óया´या कì आशा करना ठीक नहé था । उÆहŌने ÖवािमÂव के सुखाय काÓयŌ कì
सृिĶ कì है । अतः उनम¤ भी जन-जीवन के घात-ÿितघातŌ का अभाव ह§ ।
९. िडंगल और िपंगल भाषा:
रासो सािहÂय कì एक िडंगल और िपंगल भाषा महÂवपूणª िवशेषता है । आिदकालीन समय
म¤ सािहÂय के ±ेý म¤ राजÖथानी भाषा को आज के िवĬान िडंगल नाम से जानते है । यह
भाषा वीरÂव के Öवर के िलये बहòत उपयुĉ भाषा है । वीरगाथाओं के रचियता चारण किव
अपनी किवता राजदरबार म¤ ऊँचे Öवर म¤ गाते है तब उसम¤ िडंगल भाषा उपयुĉ थी । ÿायः
इसका ÿयोग युĦ वणªन के िलए ही हòआ है । िपंगल भाषा का ÿयोग िववाह और ÿेम के
ÿसंगŌ के वणªन के िलए िकया जाता था । इस तरह से िडंगल भाषा का ÿयोग युĦ के िलए
और िपंगल भाषा का ÿयोग ÿेम तथा िववाह के वणªन के िलए होता था । ये दोनŌ भाषा इतनी
घुल-मील गई ह§ िक दोनŌ भाषाओं म¤ िवभाजक रेखा खéचना किठन हो गया है । और इन
दोनŌ भाषाओं के łपŌ का पृथक-पृथक िवĴेषण करना एक समÖया बनी हòई है । अतः यही
कह सकते है िक िडंगल और िपंगल दो Öवतंý भाषाएँ नहé ह§, एक ही भाषा के अंतगªत आते
ह§ ।
१०. अलंकार:
रासो सािहÂय म¤ अलंकारŌ का ÿयोग हòआ है । वीरगाथाकालीन चारण किवयŌ ने अलंकारŌ
पर ºयादा Åयान नहé िदया िफर भी उपमा, łपक, उÂÿे±ा आिद अलंकारŌ का ÿयोग हòआ
है । पृÃवीराज रासो म¤ कई जगह पर अलंकारŌ का ÿयोग हòआ है । जो िक सजीव एवं सुंदर ह§
। वÖतुतः रासŌ काÓय म¤ शÊदांलकार और अथाªलंकार का ÿयोग हòआ है ।
११. छÆद:
आिदकालीन रासो सािहÂय म¤ छंद के ±ेý म¤ एक øािÆत हòई है । छÆदŌ का िजतना
िविवधमुखी ÿयोग उस सािहÂय म¤ हòआ है उतना उसके पूवªवतê सािहÂय म¤ नहé हòआ ।
‘पृÃवीराज रासो’ म¤ तो दोहा, चौपाई, रोला आिद ÿमुख łप से रहे है । इसी के साथ तोटक,
तोमर, गाथा, गाहा, पĦåर, आयाª, उÐलाला और कुÁडिलया आिद छंदो का ÿयोग बड़ी ही
कलाÂमकता के साथ िकया गया ह§ । इस ÿकार से छÆदŌ का ÿयोग रासो सािहÂय म¤ हòआ है।
इस ÿकार से रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ ह§ ।
२.१.६ सारांश सारांशतः यह कह सकते है भारतीय साधना के इितहास म¤ िसĦŌ कì स°ा रही है । िसĦ
सािहÂय को बौĦ धमª कì घोर िवकृित माना गया ह§ । यह धमª सहानुभूित और सदाचार के
मूल तÂवŌ पर आधाåरत है । िसĦ ÿायः अिशि±त और िहन् जाित से संबंध रखते थे, उनकì
साधना कì साधनभूत मुþाय¤ कापाली, डोÌबी आिद नाियकाएँ भी िनÌन जाित कì थé
³यŌिक उनके िलए ये ही सुलभ थé । उÆहŌने धमª और अÅयाÂम कì आड़ म¤ जन-जीवन के
साथ िवड़Ìबना करते नारी का उपभोग िकया । बस यहé उनका चरम गÆतÓय था । िसĦ
सािहÂय म¤ आयी हòई िवकृितयŌ के िवरोध म¤ नाथ सािहÂय का जÆम हòआ ह§ और इसका मूल munotes.in

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िसĦ, नाथ, जैन एवं रासो सािहÂय कì िवशेषताएँ
35 भी बौĦ कì वûयान शाखा रहé ह§ । इसी संÿदाय म¤ गोरखनाथ के Ĭारा हठयोग का उपदेश
िदया गया ह§ । जैन सािहÂय म¤ महाÂमा बुĦ के समान महावीर Öवामी ने अपने धमª का ÿचार
लोकभाषा के माÅयम से िकया । जैन सािहÂय के संबंध म¤ यही कह सकते है िक वे उ°र
भारत फैले रहे परंतु आठवी शताÊदी से लेकर तेरहवé शताÊदी तक इनकì ÿधानता रही ।
महावीर Öवामी का जैन धमª, िहÆदू धमª के अिधक नजदीक है । अिहंसा, कłणा, दया और
Âयाग को जीवन म¤ महßवपूणª Öथान बताया । उÆहŌने उपवास तथा Ąतािद कृ¸छ साधना पर
अिधक बल िदया और कमªकांड कì जिटलता को हटाकर āाĺण तथा शुþ को मुिĉ का
समान भागी ठहरा िदया । रासो सािहÂय के संदभª म¤ यह कह सकत है िक राजाओं के वीरता
का गुणगान को िचिýत िकया है । इसी के साथ इस सािहÂय के भीतर हम¤ ®ृंगार एवं युĦŌ
का वणªन देखने को िमलता है ।
२.१.७ लघु°रीय ÿij १. िसĦ सािहÂय म¤ बड़े रथŌ के आरोही कौन थे?
उ°र: ‘महायान’ िसĦ सािहÂय म¤ बड़े रथŌ के आरोही थे ।
२. बौĦ धमª का उदय िकस ÿितिøया के łप म¤ हòआ?
उ°र: वैिदक कमªकांड कì जिटलता एवं िहंÖसा कì ÿितिøया के łप म¤ बौĦ धमª का उदय
हòआ ।
३. िसĦŌ कì सं´या िकतनी मानी गई है?
उ°र: िसĦŌ कì सं´या ८४ मानी ह§ ।
४. िसĦŌ कì भाषा को हरीÿसाद शाľी ³या कहते ह§?
उ°र: संधा भाषा ।
५. जैन धमª के ÿवªतक कौन है?
उ°र: महावीर Öवामी ।
६. जैन अपĂंश सािहÂय कì रचना करने वाले ÿिसĦ किव कौन-कौन ह§?
उ°र: पुÕपदंत, Öवयंभू और धनपाल ।
७. जैन किवयŌ ने िकस िहंदुओं के ÿिसĦ úंथŌ म¤ राम और कृÕण के चåरýŌ को अंिकत
िकया है?
उ°र: रामायण और महाभारत ।
८. नाथ संÿदाय को िकसका िवकिसत łप कहा जाता है?
उ°र: नाथ संÿदाय को िसĦŌ का िवकिसत तथा शिĉशाली łप कहा है । munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
36 ९. नाथ सािहÂय म¤ कुल िकतने नाथ ह§?
उ°र: नाथ सािहÂय म¤ कुल नौ नाथ है ।
१०. हठयोग म¤ चंþ िकसका ÿितक है?
उ°र: हठयोग म¤ चंþ िपंगला नाड़ी का ÿितक है ।
११. 'संदेश रासक' यह úंथ आिदककाल के िकस सािहÂय अंतगªत आता ह§?
उ°र: रासो सािहÂय म¤ 'संदेश रासक' यह úंथ आता ह§ ।
२.१.८ दीघō°री ÿij १. िसĦ सािहÂय कì िवशेषताओं पर िवÖतार से ÿकाश डािलए?
२. जैन संÿदाय कì जानकारी देकर उसकì िवशेषताएँ कì चचाª कìिजये?
३. रासो सािहÂय म¤ कौन-कौन सी ÿमुख िवशेषताएँ आती ह§ उस पर िवÖतृत लेख
िलिखए?
४. नाथ संÿदाय कì ÿमुख िवशेषताओं का उÐलेख कìिजये?
२.१.९ संदभª úंथ १. िहंदी सािहÂय का इितहास - डॉ. नग¤þ
२. िहंदी सािहÂय का इितहास - आ. रामचंþ शु³ल
३. िहंदी सािहÂय : युग और ÿवृि°याँ - डॉ. िशवकुमार वमाª
४. िहंदी सािहÂय कì ÿवृि°याँ - डॉ. जयिकशनÿसाद खÁडेलवाल
५. िहंदी सािहÂय उĩव और िवकास - हजारीÿसाद िĬवेदी

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37 ३
भिĉकाल कì पृķभूिम
इकाई कì łपरेखा
३.० इकाई का उĥेÔय
३.१ ÿÖतावना
३.२ भिĉकाल कì पृķभूिम
३.२.१ राजनीितक पåरिÖथित
३.२.२ आिथªक पåरिÖथित
३.२.३ धािमªक पåरिÖथित
३.२.४ सामािजक पåरिÖथित
३.२.५ सािहिÂयक पåरिÖथित
३.२.६ सांÖकृितक पåरिÖथित
३.३ सारांश
३.४ दीघō°री ÿij
३.५ लघु°रीय ÿij
३.६ संदभª पुÖतके
३.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अÅययन से िवīाथê:
 भिĉकालीन, राजनीितक, आिथªक, सामािजक, धािमªक, सांÖकृितक और सािहिÂयक
पåरिÖथित को समझ सक¤गे ।
३.१ ÿÖतावना चौदहवी शताÊदी से सोलहवé शताÊदी तक का समय भिĉकाल के नाम से ÿिसĦ है । इस
काल को पहला भारतीय नवजागरण काल माना जाता है । जैसे िक नाम से ही ²ात होता है
िक यह भिĉकाल के उ¸चतम धमª कì ÓयवÖथा करता है । और भिĉकाल नामकरण और
काल के ÿदीघª अÅययन के ÿारंभ म¤ हम इस काल कì पृķभूिम समझ लेना आवÔयक
समझते है ।
३.२ भिĉकाल कì पृķभूिम भिĉकाल म¤ भिĉकाÓय धारा के साथ काÓय कì अÆय परÌपराएं भी ÿचिलत रही भागवत
भिĉ दि±ण से होकर उ°री भारत भिĉ परÌपरा से एक łप होकर पूरे भारत वषª म¤ ÓयाĮ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
38 हòई । इस काल म¤ भगवान कì िनगुªण और सगुण दोनो ÿकार कì भिĉ ÿबल रही ।
तÂकालीन समय म¤ देश के सभी िहÖसŌ जैसे महाराÕů, गुजरात, पंजाब, बंगाल, तिमलनाडु,
कनाªटक आिद राºयŌ म¤ वहां बोली जाने वाली ÿमुख भाषा म¤ भिĉ सािहÂय कì रचना हòई ।
ऐसे म¤ भिĉकाल का सवा«गीण अÅययन के पूवª यह जान लेना आवÔयक है तÂकालीन समय
का राजनीितक, सामािजक, आिथªक, सांÖकृितक Öतर या पåरिÖथित कैसी थी ।
३.२.१ राजनीितक पåरिÖथित :
इस समय भारत म¤ मुिÖलम साăाºय अपनी जड़े जमा चुका था िकÆतु मुगलŌ के आपसी
मतभेद अफगान से होने के कारण मुिÖलम साăाºय िहÆदुओं के साथ सुलह-संबंध बढ़ाकर
अपना राºय ŀढ़ करने म¤ लगे हòए थे । सन १३७५ से १५८३ तक िदÐली म¤ लोधी वंश का
शासन था और १५८३ से १७०० तक मुगल वंश के बाबर, हòमायूं अकबर, जहांगीर आिद
बादशाहŌ के शासनकाल रहे । १२९५ म¤ अलाउĥीन िखलजी िदÐली कì गĥी पर बैठा
उसने मालवा, महाराÕů, गुजरात आिद ÿांतŌ को जीता । िखलजी कì मृÂयु के पIJात िदÐली
का िसंहासन िहल उठा १३२० म¤ जब गयासुĥीन तुगलक इस राजिसंहासन पर िवराजमान
हòए उÆहŌने ÿबलता से इस बागडोर को आगे बढ़ाया । धीरे धीरे ÿांतŌ म¤ Öवतंý साăाºय कì
Öथापना हòई, दि±ण म¤ बहमनी राºय कì Öथापना हòई । मदुरा और बंगाल म¤ िदÐली
सÐतनत के सूबेदार Öवतंý सुÐतान बन गये और काÔमीर म¤ शाहमीर ने अपना Öवतंý
राºय Öथािपत िकया ।
१५ वी शताÊदी ÿाÆतीय शासकŌ का युग था । इस काल म¤ राजÖथान और मेवाड़ म¤
महाराणा लाखा चूड़ा और कुंभा शासन कì मजबूत शिĉ बने । बुंदेलखंड म¤ गहड़वाल वंशज
बुंदेल सरदार राºय करने लगे इस ÿकार सूयªवंशी किपल¤þ Ĭारा उड़ीसा म¤ Öवतंý राºय कì
Öथापना हòई । १५२६ म¤ बाबर ने पानीपत के मैदान म¤ इāािहम लोदी को पराÖत िकया
इसके बाद राणा सांगा को पराÖत िकया । परंतु कुछ समय पIJात बाबर के पुý हòमायूं को
शेरशाह सूरी ने पराÖत िकया । शेरशाह के समय म¤ ही पĪावत महाकाÓय कì रचना हòई ।
शेरशाह सूरी के उ°रािधकारी अयोµय िनकले पåरणामत: अकबर जैसे बादशाह के आगमन
के पIJात छोटे-छोटे राजाओं ने अकबर का अधीनÂव Öवीकार कर िलया । मेवाड़ के
महाराणा ÿताप के पुý अमर िसंह ने १६ वषª तक संघषª कर अंत म¤ जहांगीर का अधीनßव
Öवीकार िकया । लेिकन शहाजहाँ के अंितम दौर म¤ महाराÕů म¤ िशवाजी महाराज और
बुंदेलखंड म¤ चंपतराय कì स°ा Öथािपत हòई ।
३.२.२ आिथªक पåरिÖथित:
भारत म¤ तुकê आगमन के पIJात शहरŌ कì Öथापना हòई और कई कÖबŌ का उदय हòआ
शहर और कÖबŌ म¤ Óयापार के ÿमुख केÆþ थे | गांव से कÖबे और कÖबे से शहर ऐसा
परÖपर संबध Öथािपत हòए । िदÐली आगरा, इलाहाबाद आिद शहरŌ का िवकास मुगलकाल
म¤ ही हòआ । इस दरÌयान शहरŌ म¤ चरखा, कागज, चुÌबक व उपकरण आिद के िवकास के
साथ वľ उīोग और रेशम से बने रेशमी वľ के कारोभार म¤ अनिगनत बढ़ो°री हòई |
इसके अितåरĉ वľŌ म¤ कसीदाकारी, कढ़ाई, जरी काम आिद भी महÂवपूणª Óयवसाय के
साधनŌ म¤ दजª हो गए थे । Óयापार का Öतर इतना बढ़ गया था िक आयात जैस उपøम भी
इसी काल म¤ ÿसाåरत हòए भारत से सूती वľ बड़े पैमाने पर िनयाªत िकया जाता था वहé munotes.in

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भिĉकाल कì पृķभूिम
39 कई देशŌ से चीनी और चावल का आयात हमारे यहां होता था । इस ÿकार भिĉ काल म¤
Óयापारी वगª अिधक सुखी और संपÆन हòआ वहé मजदूर वगª कì अवÖथा िदन-हीन थी ।
३.२.३ धािमªक पåरिÖथित:
भिĉकाल के धािमªक पåरवेश का अÅययन करे तो िविवध धमª और संÿदायŌ का ÿचलन था
। इस काल म¤ वैÕणव धमª मजबूत हो रहा था वहé बौĦ धमª का िवकृत łप उभर रहा था ।
बौĦधमª म¤ िविवध ÿभाव के फलÖवłप दो िवभाग हòए हीनयान और महायान । हीनयान
अपने जिटल िनयमŌ के कारण जनसामÆय के अनुकूल नहé बन पाया और महायान अपनी
अितÓयवहाåरकता के कारण आगे बड़ा इस भाग म¤ समाज के अिशि±त, िनÌन वगª के लोग
दीि±त हòए इस सÌÿदाय ने जनता को Óयिभचार, चमÂकार, जÆý- तÆý आिद बातŌ से
वशीभूत कर िलया इस सÌÿदाय को मंýयान या वाममागª भी कहा जाता है । मंýयान ने मī,
मांस, मैथुन, मुþा आिद अनेक िनरथªक तÂवŌ को अपनाते हòए ľी भोग को ÿमुख माना जो
समाज पर िघनौना ÿभाव डाल रहा था । इसी मंýयान का िवकिसत łप वûयान के łप म¤
उभरा । चौरासी िसÅद इसी वûयान म¤ दीि±त हòए िसĦŌ ने चमÂकार, जंý-तंý आिद का
िवरोध िकया और आÅयाÂÌय साधना के प±धर बन धािमªक øांित का बीज बोया । लेिकन
आगे चलकर यह साधना पĦित भी वकृितयŌ का िशकार बनी । नाथ पंिथयŌ ने इसे शुĦ
बनाने के िलए भरसक ÿयास िकये । नाथŌ ने पिवý-साधना पĦित का ÿवतªन कर समाज
को कई बुराईयŌ से बाहर िनकालने और शुĦता का ÿितपादन करने का ÿयÂन िकया ।
शंकराचायª के पूवª ही आलवार संतो ने भिĉ के ÿचार का बीड़ा उठा िलया था । इस समय
अनेक धािमªक संÿदाय का आिवभाªव हòआ उसम¤ िवÕणु भिĉ कì ÿधानता अिधक रही |
िवÕणु के अवतार łप म¤ राम और कृÕण कì भिĉ को ÿधानता िमली रामानंद ने भिĉ का
मागª जन-जन के िलए ÿशÖत कर िदया । िहÆदू धमª के अÆतगªत शैव, शाĉ, सौर, Öमातª
और गणपÂय आिद ध मª का ÿितपादन भी भिĉकाल म¤ हòआ । शैव धमª के अÆतगªत कई धमª
कì गणना होती है नाथ योगी सÌÿदाय भी इसी के अÆतगªत आते है ।
भारत म¤ मुिÖलम आøमणŌ के साथ सूफì किवयŌ ने भारतीय आÅयािÂमकता और अĬैत
को अपने ढंग से Öवीकारा । सूिफयŌ ने ÿेम, िनराकार, िनगुªण ईĵर कì स°ा को माना । सूफì
संत स¸चåरý और शांत Öवभाव के थे । भिĉ धमª के ÿित आÖथा के कारण उÆहŌने
भारतीय जन-जन के मन म¤ Öथान बना िलया था । एक ÿकार से िहÆदू मुिÖलम कì िवरोध
कì खाई को िमटाने का अमूÐय कायª िकया ।
३.२.४ सामािजक पåरिÖथित:
भिĉकाल कì सामािजकता वणª भेद से िघरी हòई थी । जाित-पाित ÓयवÖथा अिधक कठोर
थी इसी कारण िववाह और खानपान संबंधी िनयम कठोर थे । āाĺण वगª अहंकारी था । वहé
शुþ वणª कì दशा अÂयंत दयनीय होती जा रही थी । शुþो के साथ अछूता से Óयवहार होता
था । िवदेिशयŌ के आगमन जैसे तुकê, ईरानी, आफगानी और भारतीयŌ के बीच वैवािहक
संबंध नहé होते थे । िहÆदू-मुिÖलमŌ कì अपनी दो टुको कì िवचारधारा ने समाज म¤
असमानता का वातावरण फैला िदया लेिकन भिĉ काल म¤ मुिÖलम और िहंदुओं munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
40 सामंजÖयता भी इस काल म¤ देखने को िमली यही कारण था िक ®ीकृÕण के मिहमा का गान
मुिÖलम किवयŌ ने भी िकया । ľी जाित के िलए यह काल ýासदी का काल था । िहÆदू
कÆयाओं को मुिÖलम शासक उनके łप रंग को देखकर उस िहसाब से कìमत लगाते ।
कुलीन नाåरयŌ का अपहरण कर मनोरंजन करते थे । वहé िहÆदू शासक भी मुिÖलम नाåरयŌ
को संगीत नृÂय का ÿिश±ण देकर मनोरंजन करते । मुिÖलम शासकŌ के यहां हजारŌ िľयाँ
होती थी ľीयŌ के रहने के Öथान को हरम कहा जाता था इन सभी दशाओं के कारण ही
पदाªÿथा और बाल-िववाह जैसी ÿथा ÿचिलत हòई । जोहर और सती ÿथा जैसी कुÿथा भी
समाज के इसी अवÖथा कì देन मानी जाती है । ľी जाित चार िदवारी के अंदर अपना
जीवन वसर करने के िलए मजबूर हो गई । इस ÿकार समाज जाितगत धमªगत और नारी कì
ŀिĶ से िवि±Į अवÖथा पर जा प हòँचा था ।
३.२.५ सािहिÂयक पåरिÖथित:
भिĉकाल म¤ िहÆदू धमª के अनुयायी और उ¸च वणª के लोग संÖकृत भाषा म¤ लेखन कायª
करते थे उनके िवचार गī łप म¤ न होकर छÆदोबĦ łप म¤ होते थे । मुगलŌ के आगमन से
फारसी भाषा म¤ भी सािहÂय रचा गया | संÖकृत के कई धािमªक और ऐितहािसक úंथŌ का
फारसी भाषा म¤ अनुवाद हòआ । मुगलकाल म¤ राजकìय काम-काज कì भाषा भी फारसी
भाषा थी । शेरशाह सूरी कई मुगल राजाओं के साथ भारतीय राजाओं ने िहÆदी भाषा को
ÿोÂसाहन िदया लेिकन संÖकृत और फारसी के समान िहÆदी भाषा ÿचिलत न हòई ।
राजÖथानी और वûभाषा म¤ पī के साथ गī लेखन भी हòआ । राजा-महाराजाओं के
आि®त किवयŌ ने उनके गुणगान म¤ वीर और ®ृंगार परक काÓय रचा इसी संदभª म¤ कई
मुĉक और ÿबंध काÓयŌ कì रचना हòई अनेक किवयŌ ने ईĵर भिĉ म¤ लीन हो आराÅया के
जीवन चåरत और भाव िवचारो से िवभोर हो काÓय रचना कì वहé दूसरी ओर कई किव ऐसे
थे िजÆहŌने काÓय रचना के माÅयम से समाज सुधार का बीड़ा उठाया उÆहŌने समाज म¤
ÿचिलत कुÿथाओं, जाितगत अनªगलता अÆय आडÌबर, ढŌग पाखंड कì आलोचना खड़े
शÊदो म¤ कì और काÓय रचना के िलए जन-समुदाय म¤ ÿचिलत भाषा का ÿयोग िकया इन
किवयŌ म¤ – कबीर, दादू, गुŁ गोिवÆद िसंह, आिद ÿमुख है । सूरदास ने āज भाषा और
तुलसीदासजी ने अविध भाषा म¤ ÿशÖत और अमूÐय काÓय रचकर इन भाषाओं को उ¸च
दजाª ÿदान िदया । सािहÂयगत सŏदयª कì ŀिĶ से भी इस काल सािहÂय सवōÂकृķ माना
जाता है । कबीर, सूर, तुलसी िबहारी, मीरा, मितराम, आिद कईयŌ ऐसे किव है िजÆहŌने
भिĉकाल के सािहÂय को सभी कालो के सािहÂय से सवōÂकृķ िशखर ÿदान िकया ।
३.२.६ सांÖकृितक पåरिÖथित:
भिĉ काल म¤ सांÖकृितक ŀिĶ से समÆवय कì भावना िदखी । कला, िशÐप, सािहÂय और
संगीत म¤ सभी धमª कì समÆवयता थी । योग का ÿभाव बहòत अिधक बढ़ा भिĉ, ²ान और
कमª को भी योग के साथ जोड़ा जाने लगा । वैिदक धमª के उÂथान से देवी-देवताओं और
देवालयŌ कì Öथापना हòई वैÕणव धमª को ÿ®य और ÿोÂसाहन िमला | मूितªपूजा,
अवतारवाद, तीथाªटन और कमª फल म¤ िवĵास, पौरािणक धमª पर आÖथा इस काल कì
ÿमुख िवशेषता रही जन जन भावनाÂमक था | िवचारशीलता से भी अिधक समÆवयाÂमक
ÿवृि° धमª और अÆय तÂवŌ के साथ मूितªकला और वाÖतुकला म¤ भी देखी जाने लगी । munotes.in

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भिĉकाल कì पृķभूिम
41 खजुराहŌ के वैīनाथ मंिदर के िशलालेख म¤ āĺ बुĦ तथा वामन को िशव łप म¤ िचिýत
िकया है । ऐलोरा के समीप कैलाश मंिदर म¤ िशव कì मूितª के िसर पर बोिधवृ± है ।
इस ÿकार तÂकालीन समय म¤ धमª सÌÿदाय कì अिधकता थी लेिकन िवरोधी Öतर के साथ
दूसरा Öवर सामंजÖय कर अपनी साख जमाने लगा था ।
३.३ सारांश भिĉकाल म¤ समाज म¤ सवाªिधक धमō का, भाषाओं का सांÖकृितक सृजन हòआ है । सभी
मत अपना अलग राग अलापते हòए भी िवþोही नहé बने यही कारण है िक भिĉकाल को
सािहÂय का सुवणª युग माना जाता है । समाज म¤ कुÿथा, जाती ÿथा थी तो उनकì
अवहेलना के िलए ÿखर किव भी थे । सूर और तुलसी जैसे किव एक भाव से भिĉ कì
पताका पराकाķा पर सुशोिभत कर रहे थे, मीरा, रहीम, रसखान एकिनķ भिĉ को दशाª रहे
थे । वहé कबीर, दादू, गुŁ गोिवÆद, दयाल आिद किव समाज सुधार का कायª कर रहे थे ।
इसीिलए भिĉका लीन सािहÂय आÂमा को तृिĮ देता है ।
३.४ दीघō°री ÿij १. भिĉकालीन पåरवेश कì िवÖतार से चचाª कìिजए ।
२. समÆवयवाद कì ŀिĶ से भिĉकाल कì पृķभूिम का िववरण दीिजए ।
३.५ लघु°रीय ÿij १. गणपित चंþ शु³ल ने भिĉकाल को ³या नाम िदया है?
उ°र: पूवªमÅयकाल
२. आचायª रामचंþ शू³ल ने भिĉकाल कì कालाविध िनधाªåरत कì है?
उ°र: १३९२ से १६४३ तक
३. भिĉकाल कì पृķभूिम म¤ शहरŌ का िवकास कौनसे शासनकाल म¤ माना जाता है?
उ°र: तुकê शासनकाल
४. ऐलोरा के समीप कैलाश मंिदर म¤ िशव कì मूितª के िसर पर ³या िÖथत है?
उ°र: बोधी वृ±


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िहंदी सािहÂय का इितहास
42 ३.६ संदभª पुÖतके  िहंदी सािहÂय का इितहास - आ. रामचंþ शु³ल
 िहंदी सािहÂय का इितहास - सÌपादक डॉ. नगेÆþ
 िहंदी सािहÂय का वै²ािनक इितहास - डॉ. गणपित चंþ गुĮ
 िहंदी सािहÂय कì ÿवृि°याँ - डॉ. जयिकशन ÿसाद

*****
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43 ४
संत काÓय : परÌपरा और ÿवृि°याँ
इकाई कì łपरेखा
४.० इकाई का उĥेÔय
४.१ ÿÖतावना
४.२ संतशÊद का अथª व ÓयुÂपि°
४.३ संत मत व संत परÌपरा
४.४ संत काÓय कì ÿवृि°याँ
४.५ सारांश
४.६ बोध ÿij या दीघō°री ÿij
४.७ लघु°रीय ÿij
४.८ संदभª पुÖतक¤
४.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अÅययन से िवīाथê संत काÓय (²ान मागêय शाखा) का अÅययन कर¤गे ।
इसके अÅययन के उपरांत िवīाथê:
 संत शÊद का अथª जान सक¤गे ।
 संत काÓय परÌपरा का अÅययन कर सक¤गे ।
 संत काÓयधारा कì िवशेषताओं को समझ सक¤गे ।
४.१ ÿÖतावना यह इकाई ²ानमागêय धारा से संबंिधत है िजसे संत काÓय धारा भी कहा जाता है । संत
काÓय धारा के किवयŌ ने लोक-चेतना, लोक-धमª को Åयेय मानकर काÓय कृित कì ।
तÂकालीन समय कì सामािजक, राजनीितक पåरिÖथितयाँ िवपरीत होते हòए भी संत किवयŌ
ने बेधड़क समाज कì सभी कुरीितयŌ, कुÁठाओं से úिसत जन-जन को जागृत करने का
मौिलक कायª िकया । और िसफª किव कì भूिमका न िनभाकर समाज सुधारक कì भूिमका
िनभाई । यही कारण है िक भिĉकाल िहÆदी सािहÂय का Öवणªयुग है ।
४.२ संत शÊद का अथª व ÓयुÂपित संत शÊद का शािÊदक अथª है िवरĉ िनÕकाम जो भोग िवषयािद से दूर हो । संत शÊद कì
उÂपि° संत शÊद से हòई है िजसका अथª अिÖतÂव है िजसे ®ी मद् भागवत गीता म¤ 'ॐ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
44 तÂसत' कहा गया है इसके अंतगªत संत का अथª सĩाव, साधुभाव या उ¸चकमª करने वाले
के िलए ÿयोग हòआ है ।
®ी ÿभाकर माचवेजी ने आज के समय म¤ साधारण जन मानस के िवचार म¤ संत शÊद कì
Óया´या इस ÿकार कì है । “संत शÊद से आजकल ąी - पुłषािद - पåरवार - गृहÖथी
छोड़कर दुिनया से िवरĉ मनुÕय कì कÐपना सामने आती है । िजसने दुिनया से पीठ फेर
ली है, बदन म¤ राख मली है, जटाएँ बढ़ा ली है, ऐसे मनुÕय को संत साधु वैरागी कहने कì
ÿथा ÿचिलत है ।”१
इस ÿकार हम कह सकते है िक संत शÊद का ÿयोग हम उन िवशेष ÓयिĉयŌ के िलए करते
है जो अपना जीवन Öवयं हेतु न मानकर सामािजक िहत म¤ Óयतीत करते है । सÂय, Æयाय,
अिहंसा, सदाचार आिद अनेक अ¸छाईयŌ को जीवन मूÐय मानकर समाज के और जन जन
के िलए ÿेरणा ąोत बन जाते ह§ ।
संत शÊद कì ÓयुÂपि° से संबंिधत िवचार िपतांबरद° बड़ĵाल जी ने Óयĉ करते हòए कहा
िक 'संत शÊद कì संभवत: दो ÿकार कì ÓयुÂपि° हो सकती है या तो उसे पाली भाषा के
उस शांत शÊद से िनकला हòआ मान सकते है । िजसका अथª िनवृि° मागê व वैरागी होता है
। अथवा यह उस संत शÊद का बहòवचन हो सकता है िजसका ÿयोग िहÆदी म¤ एकवचन
जैसा होता है और िजसका अिभÿाय एक माý सÂय म¤ िवĵास करने वाला अथवा उसका
पूणªत: अनुभव कर लेने वाला Óयिĉ समझा जाता है ।'२
४.३ संत मत एवं संत परÌपरा कालøम कì ŀिĶ से भिĉकाल का ÿारंभ १३ वé शताÊदी से माना जाता है िजसे सािहÂय
का मÅयकाल भी कहा जाता है । मÅयकालीन समाज ÓयवÖथा म¤ सामंतवाद, łिढवािदता,
जिटल जाितवाद ÓयवÖथा और उ¸चवगª और िनÌन वगª के बीच बढ़ती अथांग दूरीयाँ
सामािजक असमानता और ÓयवÖथा से सने समाज का िचý ÿÖतुत करता है । ऐसी
पåरिÖथित म¤ भिĉ आंदोलन िवĬानŌ कì ŀिĶ म¤ एक øांितकारी घटना है । सामािजक
पåरवेश को देखते हòए भिĉ आंदोलन कì शुŁवात ही िनगुªण काÓय परंपरा से मानी जाती है ।
िनगुªण काÓय परÌपरा म¤ ईĵर कì ÿािĮ का ÿमुख मागª ²ान और ÿेम को माना गया । ²ान
मागê काÓय संत काÓय कहलाया और ÿेम मागê काÓय सूफì काÓय कहलाया ।
भिĉ आंदोलन के ÿवाह म¤ वगª, वणª, नÖल, धमª और िलंग के मतभेदŌ को भुलाकर मानव
माý एक समान कì अवधारणा को बल िमला । संत सािहÂय मानवता का पुनªउÂथान है
िजसम¤ मनुÕय Ĭारा ÿेिषत Ĭेष, वैमनÖय, असमानता और दुªभावनाओं को कोई Öथान नहé है
। संतो के संबंध म¤ डॉ. वासुदेव िसंह कहते है – “संतवाणी केवल सामाियक पåरिÖथितयŌ
कì ÿितिøया माý नहé है । यह गंभीर िचंतन और अनुभूित कì सहज अिभÓयिĉ है । इसी
कारण यह काÓय आज भी राÕůीय और अंतराªÕůीय धरातल पर उपादेय और ÿासंिगक है ।”
संत सािहÂय जन-जन का सािहÂय है । संतो ने जो रचनाओं के माÅयम से उपदेश देकर जन
जागृित का ÿयास िकया और इस ÿयास म¤ अथाह सफलता भी हािसल कì संत सािहÂय munotes.in

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संत काÓय : परÌपरा और ÿवृि°याँ
45 का, महÂव और इसकì उपयोिगता िसफª सािहÂय ±ेý तक ही संकुिचत न बनी रहकर
सामािजक, सांÖकृितक और धािमªक ±ेý को भी झकझोर कर रख देती है ।
संतो ने केवल एक ही मागª का अवलोकन िकया वह मागª है जन कÐयाण का मागª इस सुŀढ
मागª म¤ मंगल-कामना का भाव, ÿतािड़त मानवीय िचýण, शोिषत सामािजक िचýण के साथ-
साथ अÅयािÂमक भावनाओं और सदाचरण कì ÖपĶ Óया´या का ÿित łिपत कर
आÂमानुभूित कì ÿमािणकता का ÿÂय± Łप पåरलि±त होता है इस िवषय म¤ डॉ. नगेÆþ
िलखते है- “धािमªक łिढ़यŌ और सामािजक सांÖकृितक परÌपराओं का अंधानुसरण न कर
इÆहŌने वणाª®म ÓयवÖथा के िवरोध, øोध, लोभ, मोह, िहंसा आिद कì िनंदा, सदाचारािद
गुणŌ कì ÿितķा, शाąीय ²ान कì अिनवायªता के िनषेध, आÂमानुभूित कì ÿमािणकता
आिद पर बल िदया । संत काÓय साधना म¤ तÂपर एवं सवªजन म¤ मंगल कामना करने वाले
भĉो के सरल ĆदयŌ कì सहज अनुभूित का िचýण माý है ।”३
इस ÿकार संत सािहÂय समाज के ÿित समिपªत सजग सािहÂय है । इसका िवराट Öवłप
तÂकालीन सामािजक ÓयवÖथा म¤ ÓयाĮ वणाª®म ÓयवÖथा, ऊँच-नीच भेदभाव कì भावना,
अमानवीय वगª वैशÌय आिद अनेक कुÿचलनाओं को अधीन करने के िलए बैचेन थी । संत
किवयŌ ने धािमªकता के आधार पर ÓयाĮ वाĆयाडÌबरो का, पाखंडो का ÓयंगाÂमक तौर पर
ÿहार कर उÅवÖत िकया, धमªगुŁओं के साăºय िहलाकर ÿेम कì भावना का उĤोष िकया
वही लोक संÖकृित का जय घोष कर अिभजाÂय संÖकृित को िनराधार िकया और समाज म¤
फैले असंतोष के वातावरण म¤ नव Öफूितª और ŀढ़ िवĵास का ÿसार हर एक जन के मन म¤
Öथािपत िकया ।
ÿमुख संत किव - संत कबीरदास, Öवामी रामानंद, नामदेव, दादूदयाल, रैदास, गुŁनानक,
जयदेव आिद ।
४.४ संत काÓय कì ÿवृि°याँ संत काÓय सामािजक चेतना का काÓय है, समाज सुधार का काÓय है । संतो कì ÿमुख
ÿेरणा, ²ान और भिĉ का योग है जो रहÖयवाद और आÅयािÂमक ŀिĶकोण को सुŀढ़
करता है । संत काÓय धारा कì िवÖतृतता केवल काÓयानंद के िलए नहé है । यह समाज को
राजनीितक, धािमªक, आिथªक, सांÖकृितक आचरण का ²ान देती है । इस ÿकार िचÆतन
वादी िवचारधारा का अनुसरण करते हòए सभी संत किवयŌ ने अपनी अपनी शैली म¤ महा²ान
वादी िवचारŌ को सािहÂय म¤ िपरोया और समाज को अंधकार łपी िवचारो से सदाचार łपी
ÿकाश म¤ लेकर आये । संत काÓयधारा के अÅययन से हम िनÌनिलिखत ÿवृि°यŌ का
िवĴेषण कर सकते है ।
समाज सुधार कì भावना:
मÅय भिĉकालीन पåरवेश के अÅययन से हम¤ ²ात होता है िक तÂकालीन समय कì
सामािजक जीवन ÓयवÖथा, धािमªक ÿयोग वािदता िकस ÿकार से लोकजीवन म¤ ÿचिलत
था । समाज म¤ भावाÂमक एकता Öथािपत करने का ÿयÂन और ÿारंभ संत किवयो Ĭारा
हòआ यह उÆहोने जन जीवन म¤ मानिसक पåरवतªन, मानवतावाद, सदाचार, दिलतोĦार, munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
46 दाशªिनकता का िनŁपण, पूजा अचªना आिद ±ेýो म¤ जन-भाषा का ÿयोग कर समाज सुधार
भावना को ÿोÂसािहत िकया संत वह महापुŁष थे िजÆहोने लोक कÐयाण के िलए सÌपूणª
जीवन समिपªत कर िदया । उनका सामािजक, धािमªक ²ान, उनके कमª और भिĉ सािहÂय
के माÅयम से ÿÖतुत है जो आज भी सािहÂय łपी भंडार से, जीवन और भिĉ का ²ान हमे
दे रहा है ।
मूितª पूजा का िवरोध:
²ाना®यी काÓयधारा łिढयŌ आडंबरो, अंधिवĵासŌ का डटकर िवरोध िकया है । िनगुªण
िवचारधारा म¤ मूितªपूजा और धमª कì आड़ म¤ हो रही िहंसा और अÆयाय का िवरोध कर
सदाचार और समानता कì भावना को जन जन के सÌमुख ÿÖतुत िकया | Ąत, रोजा, तीथª,
िविध - िवधान को अवांछनीय मानकर वाÖतिवक धमª को आचरण म¤ लाने कì बात कही ।
संतवादी काÓय ने राजा से रंक और āĺण से शुþ तक सभी को समाज म¤ एक Öतर का
मानकर समानता Öथािपत करने का ÿयास िकया । िविभÆन संतो ने अपनी वाणी म¤ इस
ÿकार धािमªक आडÌबर और मूितª पूजा का िवरोध िकया है ।
गुŁ नानक देव:
१) “पूिज िसला तीरथ बनवास, भरमत डोलत भये उडाया ।”
मिन मैले सूचा िकड होई, सािच िमलै पावै पित सोई ।
२) कबीरदासजी
पÂथर पूजै हåर िमल¤, तो म§ पूजूँ पहाड़ ।
ताते वह चाकì भली, पीस खाय संसार ।
३) मूँड मुडाए हåर िमलै, सब कोई लेिह मुँडाय
बार बार के मूँड़ते, भेड़ वैकुंठ न जाय । ।
माया के ÿित सचेतता:
संत किवयŌ ने माया को आÂमा से परमाÂमा से िमलने के राÖते म¤ सबसे बड़ा गितरोध माना
। माया आÂमा को मलीन करती है । सदाचार के पद को ĂĶ कर देती है । कबीरदासजी तो
माया को महाठिगनी मानते हòए कहते है – “माया तो ठगनी भई, ठगत िफरै सब देत संत
रिवदास माया से बचने का एक ही उपाय सुझाते हòए राम नाम कì भिĉ का उपदेश देते है ।”
'रे मन राम नाम संभाåर ।
माया के िĂम कहाँ मूÐयŌ, जािहगौ कर झाåर ।'

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संत काÓय : परÌपरा और ÿवृि°याँ
47 जाित ÿथा का िवरोध:
मÅय कालीन भारतीय समाज वगª-भेद कì भावना से ýÖत था । जाित और जÆम के आधार
पर समाज कई भागŌ म¤ बँट गया था । समाज को इस भयंकर समÖया से उभारने का कायª
संत किवयो Ĭारा हòआ । संत कबीर का िनिभªक और अ³खड़ Öवभाव हमेशा सदाचार और
सÂय के आगे स±म łप िलए खड़ा रहा । उÆहोने संसार के सभी मनुÕयŌ कì उÂपित एक ही
ºयोित से मानी और जाित ÿथा का डटकर िवरोध करते हòए कहा है ।
एकै पवन एक ही पानी, करी रसोई Æयारी जानी ।
मानी तूँ माटी ले पोती, लागी कहाँ कहाँ धूँ छोती ।।
अंधिवĵास व वाĻाडंबर का िवरोध:
मÅयकालीन समाज कì धािमªक अवÖथा अंधिवĵास और वाĻाडंबरŌ से पåरपूणª थी । वैिदक
धमª म¤ य² अनुķान ÿचूर माýा म¤ होते थे यह कमª काÁड केवल āĺण वगª Ĭारा कराये जाते
थे । सामाÆय जनता को बल, उÂसाह, एĵयª और मो± का लालच देकर मन माना धन
दि±णा के Łप म¤ िलया जाता था । पाप और पुÁय कì Óया´या कर जन सामाÆय को मुखª
बनाया जाता था ।
संत किवयŌ ने इस ÿकार के सभी कमªकाÁड य², तीथª जप-तप, माला फेरना, मूितª पूजा,
Ąत, ÿवास सेवा आिद का िवरोध कर जन जन को समझाते हòए कहा -
“³या जप ³या तप संयमी ³या Ąत ³या इÖनान ।
जब लग जुिĉ न जािनयै गाव भिĉ भगवान ॥”
“रोजा धरै िनवाजु गुंजारै, कलमा िमÖत न होई ।
स°र काबा घर ही भीतर जे कåर जानै कोई ॥”
संत काÓय म¤ मूितª पूजा का डटकर िवरोध हòआ है:
“हम भी पाहन पुजते, होते रन के रोझ ।
सतगुŁ कì कृपा भई, डारया िसर थै बोझ ॥”
इसी ÿकार संत किवयŌ का मानना है िक िसर के केश िनकालने से कोई साधू पंिडत नहé
बनता है और न ही ईĵर कì ÿािĮ होती है ।
“कैसौ कहा िबगािडया जे मूड़े सौ बार ।
मन कौ न काहे मूिड़ए, जामै िवषय िवकार ॥”

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िहंदी सािहÂय का इितहास
48 भिĉ िनŁपण:
संत किवयŌ का मागª कमªभूिम या और उĥेÔय सामािजक एकता और जन -जन के Ćदय म¤
ÿेम और ±ृþा का तÂव एक दूसरे के ÿित हो इसी आधार पर संत किवयŌ म¤ अनुभूित प±
कì ÿधानता रही है । संत किवयŌ का ²ान और िनगुªण āĺ अवतार वाद और मूितªपूजा
अÖवीकार करता है । संतो कì भिĉ परāĺ परमेĵर क भिĉ है । संतो कì भिĉ आÂमा से
परमाÂमा का िमलन मागª है जो आÅयािÂमक िदशा को सुिनिIJत करता है । साथ ही ³यŌिक
भिĉ Ćदय कì युित है । जो ईĵर का सामीÈय ÿाĮ कर आनंद शांित, मो± कì और उÆमुख
होती इसीिलए संत किवयŌ ने िनगुªण भिĉ को िनÕकामना भिĉ माना और इस ÿकार शÊदŌ
म¤ ÿितबĦ िकया है ।
“अकश कहानी ÿेम कì कछू कही न जाय ।
गूंगे केरी सरकरा, खाए और मुसकाय ॥”
सदगुŁ कì मिहमा:
संत किवयŌ ने परāĺ ईĵर के मागª के सा±ाÂकार के िलए सģुŁ का होना आवÔयक माना है
। संत किवयŌ का मानना है यिद गुŁ कì कृपा हो तो िशÕय संसार के बंधनŌ से मुिĉ पा
सकता है । संत किवयŌ ने गुŁ को ²ान का अपार सागर माना और गुŁ ²ान कì मूितª है,
कृपा के सागर और गुŁ Öवयं परāĺ परमेĵर है । गुŁ िशÕय को उपदेश के Ĭारा हर शंका का
िनरासन करता है, और जीवन आनंद कì शाĵती गुŁ कì कृपा से ही होती है इसीिलए गुŁ
को हमेशा Öमरण म¤ रखना चािहए । संत किवयŌ ने गुŁ कì मिहमा का गान इस ÿकार िकया
है:
“परमेĵर Óयापक सकल, घट धारे गुŁदेव ।
घट घट उपदेश दे, सुÆदर पावै पद ॥”
अंतकरण म¤ िवचारŌ कì शुिĦ करने वाले गुŁ ही है । Ăम, दु:खŌ का नाश कर जीवन म¤ ²ान
łपी ÿकाश गुŁ से ही िमलता है ।
“गुŁ ितन ²ान नहé, गुŁ िबन Åयान नहé
गुŁ िबन आÂमा िवचार न लहतु है ॥”
“गुŁ िबन बाट नहé, कौडा िबन हाट नािहं ।
सुंदर ÿकट लोक वेद थौ कहतु है ॥”
नारी के ÿित ŀिĶकोण:
सभी संत वैवािहक जीवन म¤ बंधै रहे । नारी के ÿित संतकाÓय वैचाåरक ŀिĶकोण अपनाता है
। ÿितĄता नारी कì मुĉ कंठ से ÿशंसा करते है और नारी को मायावीनी मान कनक और
कािमिन को मो± के राÖते का सबसे बड़ा बंधन मानते है । कबीर कहते है । munotes.in

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संत काÓय : परÌपरा और ÿवृि°याँ
49 “नारी कì झाई परत, अंधा होत भुजंग ।
किबरा िजन कì कहा गित िनत नारी संग ॥”
“पितवरता मैलीभली काली कचील कुŁप ।
पितवरता के Łप पै वारी कोिट Öवłप ॥”
संत काÓय म¤ राम:
संत किवयŌ के राम साकार मुितª नहé िनराकार āĺ Łप है । लेिकन ईĵर के नाम कì मह°ा
को संत किव Öवीकार करते है । तुलसीदास के राम साकार मूितª łप है लेिकन कबीर के
राम अÆतर आÂमा म¤ िनिहत परāĺ है दोनो राम एक जैसे नहé है । लेिकन उपासक के मन
को आनंद और शांित दोनŌ राम बराबर देते है । कबीर के राम िनगुªण राम कì अनुभूित राम
नाम के Åयान माý से हो जाती है । कबीर के राम भाव गÌय है । वे ®ी राम दशरथ के पुý है
यह भी Öवीकार नहé करते -
“दशरथ सुत ितहò लोक बखाना
राम नाम का मर हम आना ॥”
अवतार वाद और बहòदेव वाद का िवरोध:
संत किव अवतार वाद और बहòदेव वाद का िवरोध करते है ³यŌिक इनकì भिĉ भावना ईĵर
के Öवłप को Öवीकार नहé करती तो अवतार को कैसे मान सकती है । संत किव
एकेĵरवाद पर िवĵास करते है । ईĵर परāĺ है और हर एक ÿाणी कì आÂमा म¤ िनिहत है ।
उसके Öमरण माý से ÿािण का कÐयाण हो सकता है । इस संबंध म¤ महÂवपूणª लेख हमे
कबीर पुनªपाठ / पुनªमूÐयांकन संत परमानंद ®ीवाÖतव म¤ िमलता है जो इस ÿकार है -
’उÆहŌने समÖत Ąतो, उपवासŌ और तीथō को एक साथ अÖवीकार कर िदया । इनकì संगित
लगाकर और अिधकार भेद कì कÐपना करके इनके िलए भी दुिनया के मान सÌमान कì
ÓयवÖथा कर जाने को उÆहŌने बेकार पåर®म समझा । उÆहŌने एक अÐलाह, िनरंजन, िनल¥प
के ÿित लगन को ही अपना लàय घोिषत िकया । इस लगन या ÿेम का साधन यह ÿेम ही है
और कोई मÅयवतê साधन उÆहŌने Öवीकार नहé िकया । ÿेम ही साÅय है, ÿेम ही साधन,
Ąत भी नहé, मुहरªम भी नहé, पूजा भी नहé, नमाज भी नहé, हज भी नहé, तीथª भी नहé ।“
“सहजो सुमåरन कìिजये िहरदै मािह िछपाई ।
होठ होठ सूं ना िहलै सकै नहé कोई पाई ॥”
“मो को कहाँ ढूँढ़े बदे मै तो तैरे पास म¤ ।
ना म§ देवन, ना म§ मिÖजद, न कावे कैलास म¤ ॥”

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िहंदी सािहÂय का इितहास
50 ÿेम का महÂव:
ÿेम का महÂव सूफì मत म¤ अिधक पåरलि±त होता ह§ । संत किवयŌ ने परमाÂमा को िÿयतम
और Öवयं को िÿयतमा के łप म¤ ÿÖतुत कर ÿेम कì मिहमा का गान िकया । ³यŌिक संत
किवयŌ ने शाľानुमत ²ान कì अपे±ा ÿेम कì सराहना कì ÿेम से ही मानव मानव को जान
सकता है उसका आदर करता है । ÿेम से सदाचार और सĩावना समाज म¤ अपनी सवōपåर
जगह बनाती है ।
“िजिह घिट ÿीित न ÿेम रस, पुिन रसना नहé राम ।
ते नर इस संसार म¤, उपिज बये बेकाम ॥”
रहÖयवादी ÿवृि°याँ:
²ानमागê संत किव अपने अथाह ²ान से िनराकार ईĵर का अनुकरण कर आÂमा से
परमाÂमा के िमलन का अĩुत ÿदशªन िकया और इसी भाव को रहÖयवादी कहा गया है ।
रहÖयवाद के पहले चरण म¤ आÂमा परमाÂमा कì और आकिषªत होती है । दूसरे चरण म¤ यह
आकषªण बढ़ता है और तीसरे चरण म¤ आÂमा परमाÂमा के बीच घिनķ संबंध Öथािपत हो
जाता है । रहÖयवाद को आचायª रामचंþ शु³ल ने इस ÿकार शÊद बĦ िकया है । ’आÂमा
परमाÂमा का जो अभेद है तथा जो āĺोÆमुखी ÿवृि° है, साधन के ±ेý म¤ िजसे अĬैतवाद
कहते ह§, काÓय म¤ उसे ही रहÖयवाद कहते ह§ ।” आÂमा ³या है और परमाÂमा ³या है
िनÕकषªत: आÂमा परमाÂमा एक ही है उनके बीच मोह, माया, िवकार का नाश होते ही आÂमा
परमाÂमा का िमलन हो जाता है । इस संबंध म¤ रैदास कहते ह§ ।
“सब म¤ हåर है, हåर म¤ सब है, हåर अपनी िजन जाना ।
साखी नहé और कोई दूसरा जानन हार सयाना ॥”
“जल म¤ कुंभ, कुंभ म¤ जल है, बािहर भीतर पानी ।
फूटा कुंभ जल जलिह समाना, यहò तत कÃयौ िगयानी ॥”
अĬैतवाद:
समाज िचÆतन के ÿÂयेक ±ेý म¤ भारतीय संतŌ का महßवपूणª Öथान है । सांसाåरक जीवन
का एक-एक तßव Öवयं जीवन ±ण भंगुर करता है । सदाचार के पद को ĂĶ कर देता है । सब
म¤ मानव िफर भी सवōÂकृĶ ही संत ²ान का अपार भंडार है वे अपने ²ान कì शिĉ से
मानव और समाज का समुिचत िवकास कì पूणªता कì कामना करता है । संतो कì साधना म¤
²ान योग, भिĉ योग, कमª योग कì पूणªता के साथ राज योग, हठयोग, मंýयोग का भी
आवÔयकतानुसार ÿयोग हòआ है । इस ÿकार सभी संतŌ ने मÅयवतê सहज मागª को
अपनाया और िवĵ कÐयाण कì भावना को िशरोधायª रखा इसीिलए शंकराचायª के
अĬैतवाद का िसĦांत संतो ने सŃदय से Öवीकार कर आज सािहÂय कì अमूÐय देणगी बन
गई । िजसम¤ आÂमा और परमाÂमा के मÅय केवल एक माया का आवरण है िजसे ईĵर कì
उपासना, आराधना से हटाया जा सकता है । munotes.in

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संत काÓय : परÌपरा और ÿवृि°याँ
51 “पावक łपी सांइयां, सब घटा रहा समाय ।
िचत चकमक लागे नहé, ताते बुझ बुझ जाय ॥”
दाशªिनक ŀिĶ:
संपूणª िहÆदी संत सािहÂय दाशªिनक काÓय है । सभी संत सारúाही ये उÆहŌने शुĦ दाशªिनक
िचÆतन के िवचारŌ कì आÂमानुभूित के Öतर पर आÂमसात िकया और सभी संतŌ का एक ही
मत था । सģुŁ के िमलने से ही मानव का उĦार होता है उसे मुिĉ ÿाĮ होती है । संतो का
दशªन शाľीय ŀिĶकोण एक माý ईĵर कì स°ा को Öवीकार करता है यह िवचार वेदŌ,
उपिनषदŌ और दाशªिनक िवचारŌ के अनुłप ही है कबीर कहते ह§ :

“कहँ कबीर िवचार कåर, िजन कोऊ खोजे दूåर ।
Åयान धरौ मन शुिĦ कåर, राम रĻा मåर पूåर ॥” (कबीर बीज--)
कला प±:
सभी संत किव अिधकांशतः िनÌन वगª से संबĦ थे, पांिडÂय, ÿगाढ़ ²ान, संÖकृत भाषा या
काÓय कì िश±ा, दी±ा के कोई अवसर इÆह¤ ÿाĮ नहé हòए । सभी संत किवयŌ का भाव वादी
ŀिĶकोण था । इनका ÿयोजन सािहÂय रचना न होकर नव समाज रचना या इसीिलए इनका
Åयान कला प± कì ओर बंिधत नहé हòआ । भाषा और Óयाकरण इनके सािहÂय म¤ लाचार
कभी नहé हòई, कभी सहजता से कभी कुशलता से जैसा चाहा वैसे भाषा का ÿयोग िकया ।
भाषा:
संत किवयŌ ने अपनी बोलचाल कì भाषा का ÿयोग काÓय कला के िलए िकया जो लोक
जीवन कì सादगी समेटे हòए थी । ³यŌिक संत काÓय समाज सुधार का काÓय है । भाषा भी
जन जन को पåरिचत हो ऐसी थी । संत किवयŌ ने āज, अविध, भोजपुरी, मैिथली,
राजÖथानी, हåरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अरबी, फारसी, उदुª, िसंधी, िनमाडी आिद
शÊदावली का ÿयोग िकया । कबीर पढ़े िलखे नहé थे इसीिलए उनकì भाषा का िनणªय
करना बहòत किठन कायª है उनकì भाषा म¤ अ³खड़ता है, िवĬान इसे गँवाł भाषा कहते ह§ ।
लेिकन सÂय यही है िक संतकिवयŌ कì भाषा जनभाषा और जनशिĉ है िजसम¤ नीिहत भाव
आज भी लोक Óयवहाåरक जीवन को जागृत करती है ।
“का भाषा, का संÖकृत, ÿेम चािहए साँच ।
काम जो आवे कामरी, का लै करै कमाच ॥”
४.५ सारांश संत काÓय परÌपरा भिĉ भावना से ÿेåरत काÓय है लेिकन संत काÓय कì आसिĉ ईĶ कì
ओर न होकर समाज के ÿित थी । ³यŌिक तÂकालीन समय का समाज धमª, जाित, munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
52 िवपृÔयता से जूझ रहा था । समाज को आवÔयकता थी । मागªदशªक कì और सिहÕणुता कì
संत किव मागªदशªक के łप म¤ सामने आये । अपनी शैली म¤ काÓय रचना कर समाज को
िहताथª और जन-जन के पुłषाथª, Öवािभमान आिद आवÔयकताओं पर भर िदया । संतो कì
भाषा लोक-भाषा थी इसका उĥेÔय यही था िक संतो कì वाणी जन-जन को समझे और
समाज उÆह¤ सुनकर उसका अनुसरण करे उन िवचारŌ को अपनाये ।
४.६ बोध ÿij या दीघō°री ÿij १) संत शÊद का अथª ÖपĶ करते हòए संत परÌपरा का पåरचय दीिजए ।
२) संत काÓय कì ÿमुख िवशेषताओं का िववेचन कìिजए ।
४.७ लघु°रीय ÿij १) संत शÊद का शािÊदक अथª ³या है?
२) दादू दयाल का संबंध िकस राºय से है?
३) Öवामी रामानंदजी ने कौनसे संÿदाय कì Öथापना कì?
४) 'रोिहदास' कौनसे संत किव कì रचना है?
५) संत नामदेव ने िहÆदी के साथ अÆय कौनसी भाषा म¤ भजन गान करते थे?
४.८ संदभª पुÖतक¤ १) संत काÓय संúह - परशुराम चतुव¥दी
२) संत काÓय - डॉ. ÿवेश िवरमाणी
३) िहÆदी और मराठी का िनगुªण संत काÓय - डॉ. ÿभाकर माचवे
४) िहÆदी काÓयधारा - राहòल सांकृÂयायन
५) मÅयकालीन िहÆदी काÓयभाषा - रामÖवłप चतुव¥दी

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53 ५
सूफì काÓय : परÌपरा एवं िवशेषताएँ
इकाई कì łपरेखा
५.० इकाई का उĥेÔय
५.१ ÿÖतावना
५.२ सूफì शÊद का अथª
५.३ सूफì मत एवं संÿदाय
५.४ सूफì काÓय कì िवशेषताएँ
५.५ सारांश
५.६ दीघō°रीय ÿij
५.७ लघु°रीय ÿij
५.८ संदभª पुÖतक¤
५.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अंतगªत सूफì काÓयधारा का अÅययन कर¤गे । इस इकाई के अÅययन पIJात
िवīाथê:
 सूफì शÊद का अथª समझ सक¤गे ।
 सूफì मत कì अवधारणा को िवÖतृत जान सक¤गे ।
 सूफì काÓय कì िवशेषताओं का िवÖतृत अÅययन कर सक¤गे ।
५.१ ÿÖतावना इस इकाई म¤ हम सूफì काÓय का अÅययन कर रहे ह§ िजसे ÿेम मागê काÓय धारा भी कहा
जाता है । और सूफìयŌ को ÿेम कì पीर के गायक कहा जाता है िजसके Ĭारा मानव के बाहरी
आवरण पर नहé मन और कमª कì शुĦता पर बल देती है उÆह¤ पिवý करने का कायª सूफì
काÓय करता है । आÂमा का सा±ाÂकार परमाÂमा से करा देता है यही कारण है िक सूफì
काÓय मानवतावादी ŀिĶकोण के ÿित सजग ŀिĶ रखता है ।
५.२ सूफì शÊद का अथª िवĬानŌ के अनुसार सूफì शÊद कì उÂपि° अनेक शÊदŌ से मानी गयी ह§ । यह शÊद है
सुÉफा, सुफ, सफ, सफा - 'सफा' का शािÊदक अथª है पिवý । सभी सूफì किव मन, कमª,
वचन से पिवý थे और आचरण कì शुĦता उनम¤ ÓयाĮ थी इसीिलए सफा शÊद का łपाÆतर munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
54 सूफì म¤ कर इन किवयŌ को सूफì कहा गया । इस संबंध म¤ हòजेरीजी ने कहा ह§ - मूलतः
सफा शÊद से ही सूफì शÊद बना है - जो लोग पिवý थे - वे 'सूफì' कहलाये ।
१. सुÉफा: तीथª ±ेý मदीना म¤ मिÖजद के सामने सपÌफा नामक चबुतरा था वहाँ हजरत
मुहÌमदजी अिधकांश समय परमाÂमा म¤ लीन रह Óयतीत करते थे । उनके साथ अÆय
संत भी अपना समय परमाÂमा कì आराधना करते हòए वही Óयतीत करते थे । इस
ÿकार सुÉफा चबुतरे पर बैठने वाले संत सूफì कहलाये ।
२. सफ: 'सफ' का शािÊदक अथª है ÿथम अथाªत सबसे आगे या अपने कमª और सदाचार
से अपना एक अलग Öथान बनाने वाले समाज म¤ िविशĶ Öथान पर जो ह§ उÆह¤ सफ
अथवा सूफì कहा गया ।
३. सोिफया: सोिफया शÊद का अथª होता है '²ान' सभी किवयŌ ने अपने ²ान और
तपÖया से जो मुकाम हािसल िकया और समाज को नयी िदशा दी इसीिलए इÆह¤ सूफì
कहा गया ।
४. सुफाह: िगयामुल लुगात नामक úंथ म¤ सुफाह शÊद से सूफì शÊद कì उÂपि° मानी
गयी है िजसम¤ कहा गया है िक जाहीिलया काल म¤ एक ऐसी ÿजाित िजसका वाÖतÓय
अरब देश म¤ था जो सांसाåरकता से अलग म³का के देवालय म¤ सेवा-भाव म¤ लगे हòए
थे ।
सोिफÖता:
यह úीक भाषा का शÊद है िजसका अथª है वैराµयवादी अथाªत िजसने सांसाåरकता से वैराµय
ले िलया है और आÅयाÂम और परमाÂमा कì तरफ उÆमुख हòआ हो । इसी कारणवश
सोिफÖता सूफì कहलाये ।
सूफ:
अनेक िवĬानो ने सूफì शÊद कì ÓयुÂपि° 'सूफ' शÊद से मानी है िजसका अथª है 'ऊन' । इस
धारणा के अनुसार मोटे ऊन के कपड़े पहनकर परमाÂमा कì भिĉ म¤ लीन रहने वाले सूफì
कहलाये । सूफ शÊद के संबंध म¤ िवचारक परशुराम चतुव¥दी जी ने िलखा है - 'सूफ एवं सूफì
के बीच सीधा शÊद साÌय िदखता है ऐसे लोग अपने इन वľŌ के पहनावे और Óयवहार Ĭारा
अपना सादा जीवन तथा Öवे¸छा दाåरþ्य भी ÿदिशªत करते थे । ये लोग परमेĵर कì
उपलिÊध को ही अपना एक माý Åयेय मानते थे ।'
जायसी úंथावली म¤ सूफì मत कì Óया´या आचायª रामचंþ शु³ल ने इस ÿकार दी है –
“आरंभ म¤ सूफì एक ÿकार के फकìर या दरवेश थे, जो खुदा कì राह पर अपना जीवन ले
चलते थे, दीनता और नăता के साथ बड़ी फटी हालत म¤ िदन िबताते थे । ऊन के कंबल
लपेटे रहते थे । कुछ िदनŌ तक तो इÖलाम कì साधारण धमª िश±ा के पालन म¤ िवशेष Âयाग
और आúह के अितåरĉ उनम¤ कोई नई बात या िवल±णता नहé िदखाई पड़ती थी । पर
ºयŌ ºयŌ ये साधना के मानिसक प± कì ओर अिधक ÿवृ° होते गए, ÂयŌ ÂयŌ इÖलाम के munotes.in

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सूफì काÓय : परÌपरा एवं िवशेषताएँ
55 बाĻ िवधानŌ से उदासीन होते गए । िफर तो धीरे धीरे अंतःकरण कì पिवýता और Ńदय के
ÿेम को मु´य कहने लगे और बाहरी बातŌ को आडंबर ।”
िनÌन िलिखत सभी शÊदŌ के अथª और िवĬानŌ कì माÆयता सूफ शÊद से ही सूफì शÊद कì
ÓयुÂपि° मानते है । इन िवĬानŌ म¤ अवूनअल सराªज, लुई मािसयो, अलबłनी, āउन,
नोएÐदके, अलकलावाघी, मारगोिलय, आरबरी, िनकÐसन, इÊजरकदुन अनेक पाIJाÂय
िवĬान और मुिÖलम आिलद भी सूफ (ऊन) शÊद से सहमत है। इस िवषय म¤ अल सराªज ने
अपना मत इस ÿकार Óयĉ िकया है - 'ऊन का उपयोग सÆत, साधक व पैगÌबर लोग करते
आये है। िविभÆन हसीदŌ और िववरणŌ से भी यह तÃय िसĦ हो चुका है। ऊनी िलबास
धारण करनेवाले को ŀिĶ म¤ और ईĵर के िचÆतन म¤ एकािÆतक जीवन Óयतीत करनेवाले
साधको को ŀिĶ म¤ रखकर यिद उÆह¤ सूफì कहा गया तो इसम¤ कोई असंगित नहé मालूम
होती ।' अल सराªज और अÆय अिधकांश िवĬानŌ का यही मत है उस समय के संतो ने
चमक-धमक और अÆय साज-सजावट को छोड़ ऊनी वľ धारण िकए और सदाचार -
सादगी युĉ जीवन िजया ।
५.३ सूफì मत एवं सÌÿदाय सूफì मत के उĩव के िवषय म¤ सूफì शÊद कì भाँित ही अनेक िविभÆन िवचार िवĬानŌ ने
Óयĉ िकये है । सूफì मत ÿमुखतः ÿेम कì भावना को उĨोिधत करता है । सूफì किवयŌ ने
सिदयŌ से चली आ रही łिढ़यŌ और परÌपराओं का डटकर िवरोध िकया और Öवछंद
िवचारŌ को अनुúह कर अनेक कĘरपंिथयŌ के दुÔमन बने यही कारण है िक सूफìयŌ के
िसĦांत िकसी िविशĶ सÌÿदाय या पूवाªúह के िलए न होकर मानवता वादी ŀिĶकोण के िलए
समिपªत था । जो उदारता, सहानुभूित और समाज म¤ एकता ÿितÖथािपत करने म¤ कारगर
िसĦ हòआ ।
भारत म¤ सूफì मत के आगमन का संबंध इÖलाम धमª के साथ जोड़ा जाता है । ³यŌिक सूफì
सÌÿदाय जब उदयोÆमुख था तब अिधकांश सूफì किव इÖलािमक थे । लेिकन िवĬानŌ के
मतानुसार भारत म¤ पहले इÖलाम धमª आया और बाद म¤ सूफì मत का आिवभाªव हòआ ।
सूफì मत के उĩव के िवषय म¤ कुछ िवĬानŌ के मतानुसार सूफìमत का आिवभाªव मानीमत,
नव अफलातूनी मत, जरतुÖमत, बुĦमत एवं भारतीय वेदांत का पåरणाम है यīिप अनेक
मुिÖलम लेखको ने इसका िवरोध िकया है िफर भी इसम¤ कोई संदेह नहé िक सूफìमत के
ÿमुख ÿचारको ने इन सभी माÆयताओं का समावेश कर िलया था, फलतः इसका Öवłप
कुछ न कुछ समÆवयाÂमक हो गया था । उनकì समÆवयाÂमकता ने िजतना ÿभाव भारत पर
डाला उतना मुिÖलम शासकŌ कì बलपूवªक धमाªÆतåरत करने कì नीित भी नहé डाल सकì ।
िनकÆसन ने सूफìमत के अÆतगªत िविभÆन मतŌ का उÐलेख िकया है:
१. सूफì पर वे िøयाएँ िनÕपÆन होती है िजÆह¤ केवल ईĵर जानता है, सूफì सदैव ईĵर के
साथ रहता है ।
२. सूफìमत पूणªतः अनुशािसत मत है ।
३. सूफì िकसी पर िनयंýण नही रखता । वह Öवयं भी िकसी से िनयंिýत नहé होता । munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
56 ४. सूफì मत एक ऐसी ÿणाली नहé है, जो िविध - िवधानŌ अथवा ²ान िव²ान पर िनभªर
हो । वह केवल नैितकता को आधार मानता है ।
५. सूफìमत का अथª है: उदारता और Öवतंýता । इस मत म¤ Öव का दमन नहé होता ।
६. सूिफयो का कहना है: ईĵर तुÌहारा अहम नĶ करता है और तुÌह¤ अपने म¤ बसाता है ।
७. सूफì िजस वĉ बोलता है तो उसका कथन वाÖतिवकता को ÿकट करता है अथाªत
वह कोई ऐसी बात नहé करता जो Öवयं उसम¤ न हो और जब वह मौन होता है तो जो
कहता है सब सÂय कहता है और जब चुप होता है तो वह िचÆतन म¤ डूबा रहता ह§ ।
८. तसÊबुफ कì हकìकत तो बÆदे के अहं का नाश चाहती है अथाªत तसÊबुफ समÖत
भोग-िवलासŌ को समाĮ करने का नाम ह§ ।
९. सूफìमत मनुÕय और ईĵर के मÅय िकसी को सहन नहé करता ।
इस ÿकार सभी मुĥो को Åयान म¤ रखते हòए हम कह सकते ह§ िक सूफìमत का आिवभाªव
िकसी एक भाव - िवचार कì उपज नहé है । उस पर िविभÆन दशªनŌ और िवचारधाराओं का
ÿभाव पåरलि±त होता है । सूफìयŌ का मूल Öतंभ इÖलाम, इÖलाम कì कĘरता और शामी
परÌपराओं बौĦ धमª एवं भारतीय वेदाÆत का ÿभाव, नव अफलातुनी मत का ÿभाव,
नािÖतक मत का ÿभाव, मानीमत व अĬैतवाद का ÿभाव रहा ह§ ।
सूफìयŌ का उĥेÔय केवल इिÆþयŌ को वश म¤ कर जीवन को सुचाł बनाना नहé था बिÐक
परमेĵर कì िनकटता पाना भी था । सूफì ईĵर भिĉ म¤ Öवयं इतना लीन हो जाता है िक
Öवयं म¤ और चारŌ तरफ केवल ईĵर का अनुभव करता है । सूफì मत कì उÆनित और ÿचार
के संदभª म¤ य² द° शमाª ने कहा है – “सूफì धमª का ÿचार भारत म¤ पूणªतया शािÆत और
अिहंसा के िसĦांतो पर चलकर हòआ । यह इÖलाम का वह łप नहé था जो तलवार कì धार
पर चलकर या िफर रĉ कì सåरता म¤ बहकर भारत भूिम म¤ आया है । ÿेम, आÂमीयता,
सरलता और सचåरýता के सहारे यह िवचारधारा भारत म¤ फैली और इससे इÖलाम के
ÿसार म¤ जोर िमला । यह Öथायी योग था िजसने जनता के िदलŌ म¤ घर िकया िकसी के भय
या आतंक के कारण इसका ÿसार नहé हòआ ।”
भारत म¤ सूफì मत के िनÌनिलिखत चार सÌÿदाय अिधक ÿचिलत है:
१. िचÔती सÌÿदाय
२. कािदरी सÌÿदाय
३. सुहरावदê सÌÿदाय
४. न³शबंदी सÌÿदाय
सूफì किव – मुÐला दाउद, असाइत, दामोदर किव कÐलोल किव, ईĵरदास,कुतुबन,
मिलक मुहÌमद जायसी आिद । munotes.in

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सूफì काÓय : परÌपरा एवं िवशेषताएँ
57 ५.४ सूफì काÓयधारा कì िवशेषताएँ भारतीय समाज धािमªक कमªकांडो म¤ जकड़ा हòआ था । वहé िहÆदु और मुिÖलम धमª के
अलग िनयम समाज को दो राहे पर ला रहे थे., सामािजक सामÆजÖय टूटने कì कगार पर
था । उस समय िनगुªण भावना ने अंतः साधना पर बल िदया िहÆदु और मुिÖलम बंधु म¤ बेर
भावना को कम कर समाज म¤ सामÆजÖय और शुĦ ÿेम कì पåरकÐपना को ÿधानता दी ।
सूफì काÓयधारा कì िवशेषताएँ इस ÿकार है:
१. ÿेमा´यानक काÓय:
इस काÓयधारा को ÿेमा®यी काÓयधारा भी कहा जाता है । ³यŌिक इस काÓयधारा का मूल
ÿेम है िजसे ®ृंगार भी कहा जाता है । अिधकांश सभी सूफì किवयŌ ने लोक ÿेमकथाओं को
अपने काÓय म¤ ÿमुख माना । ÿेम के माÅयम से ही ईĵर से िमलन का मागª िमलता है, वही
सूफì किवयो ने भारतीय और िवदेशी ÿेम पĦितयŌ का वणªन भी िकया है और दोनो
पĦितयŌ को िमलाकर ÿेम का आदशª łप ÿÖतुत िकया है । िवदेशी ÿेम पĦित के अंतगªत
फारसी ÿेम म¤ नायक कì ÿेम गित अिधक तीĄ ह§ वहé भारतीय ÿेम पĦित म¤ नाियक अिधक
ÿेम िवÓहल िदखाई देती है। सूफì किवयŌ ने लौिकक और अलौिकक दोनŌ ÿेम साधनाओं
का वणªन िकया है वही ÿेम कì संयोग और िवयोग दो अवÖथाओं म¤ िवयोगावÖथा का वणªन
अिधक ŀिĶगत होता है ।
२. लौिकक ÿेम Ĭारा अलौिकक ÿेम Óयंजना:
सूफì काÓय धारा म¤ ÿेम कथाओ का वणªन है और इÆहé ÿेम कथाओं म¤ अलौिकक ÿेम कì
अिभÓयंजना हòई ह§ । जैसे जायसी कृत पĪावत म¤ रानी पĪावती को परमाÂमा का ÿतीक
माना गया है और रÂन सेन को पĪावती के ÿित ÿेम लालसा आÂमा से परमाÂमा के िमलन
कì अिभलाषा माना गया है । पĪावत म¤ एक नहé कई ऐसे ÿसंग है जो हम¤ यह सोचने पर
बाÅय करते ह§ िक पĪावती परमाÂमा का ÿतीक है इसके िलए अÆयोिĉ और समासोिĉ का
ÿयोग िकया गया है अलौिकक तÂव कì ओर गहरा संकेत इन पंिĉयŌ म¤ देखा जा सकता है ।
“जब लािग अहै, िपता कर राजू । खेिल लेहò जौ खेलहò आजु
पुिन सासुर हम गौनब कािल । िकत हम िकत यह सरवर पािल ॥”
३. सूफì काÓय म¤ रहÖयवाद:
वैसे तो भारत देश म¤ भिĉ का Öवłप रहÖयमयी नहé था । लेिकन सूफì काÓयधारा म¤
रहÖयाÂमक ÿवृि° का िवÖतार से वणªन हòआ और यह वणªन रहÖय के दोनो भेद
साधनाÂमक और भावनाÂमक रीित से हòआ है । इस िवषय म¤ आचायª रामचंþ शु³ल ने अपने
िवचार इस ÿकार ÿÖतुत िकए ह§ -
“योगमागª साधनाÂमक रहÖयवाद है । यह अनेक अÿाकृितक और जिटल अËयासŌ Ĭारा मन
को अÓयĉ तÃयŌ का सा±ाÂकार कराने कì आशा देता है । तंý और रसायन साधनाÂमक
रहÖयवाद कì ही ®ेिणयाँ है, जैसे भूत-ÿेत कì स°ा मानकर चलने वाली भावना Öथूल munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
58 रहÖयवाद के अंतगªत होगी । अĬैतवाद āĺवाद को लेकर चलने वाली भावना से सूàम और
उ¸च कोिट के रहÖयवाद कì ÿितķा होती है ।”
सूफì काÓयधारा म¤ रहÖयाÂमक माधुयª, Óयापक Öतर पर िदखाई देता है । खासकर सूफì
ÿेमा´यानक काÓय म¤ इन łिढयŌ को िवÖतार से देखा जा सकता है । सूफìयŌ के रहÖयवाद
िवरह कì Óयंजना से बँधा रहा इस भावना का िनगुªण संतो के साथ-साथ हठयोिगयŌ,
रसायिनयŌ, तांिýकŌ पर भी ÿभाव िदखाई देता है ।
४. मसनवी शैली का ÿयोग:
सूफì काÓयधारा के अिधकांश किव मुसलमान थे लेिकन कĘरपंथी नहé थे । सूफì मत का
इतना ÿचार - ÿसार होने का कारण उÆहŌने िहÆदुओं म¤ ÿचिलत ÿेमकथा को अपने काÓय
का िवषय बनाया । जैसे जायसी Ĭारा रिचत पĪावत कì कथा राजा रÂनसेन और रानी
पĪावती कì कहानी एक ऐितहािसक ÿेमकथा है इसे जायसी ने मसनवी शैली म¤ इस ÿकार
ÿÖतुत िकया है । सबसे पहले ईĵर वंदन उसके पIJात अपने ईĶ हजरत मुहÌमद को नमन ।
तÂपIJात मुहÌमद साहब के िमýŌ कì ÿशंसा और इसके बाद गुŁ कì मिहमा का गान कर
अपने अनुिदत िवषय का वणªन करना । इस ÿकार से अपनी खास मसनवी शैली का ÿयोग
सूफì किवयŌ ने अपने काÓय म¤ िकया है जो अÆयý देखने को नही िमलता ।
५. कथानक łिढ़याँ:
सूफì ÿेमा´यान कì रचना का Öवłप ÿबंध काÓय रहा है । इनम¤ जो कथा वणªन है वह
मसनवी शैली म¤ होते हòए भी भारतीय कथाओं से ÿेåरत है । अिधकांश सूफì किवयŌ ने लोक
जीवन म¤ ÿचिलत कथाओं को अपने काÓय का मूल िवषय बनाया और इसके Ĭारा समाज म¤
सिहÕणुता और मानवीय ÿेम कì भावना को ÿफुिÐलत करना चाहा । इनके कथानक राजा-
महाराजा कì ÿेम कहािनयŌ से जुड़े अवÔय थे लेिकन फारसी शैली म¤ ढ़ले हòए थे । भारतीय
कथानक और उसे िवदेशी (फारसी) शैली म¤ अिभÿेत करने कì कला सािहÂय म¤ केवल
सूफì किवयŌ के पास ही थी ।
कथाकाÓय के ल±णŌ के अनुसार कथा के आरंभ म¤ गुŁ कì वंदन और रचियता का पåरचय
होता है उसके उपरांत कथा का ÿयोजन ÖपĶ िकया जाता ह§ तÂपIJात रचना का ÿितपाī
और सुखकर अंत का उÐलेख होता है । काÓय कथा म¤ धािमªक नैितक तßवŌ के समावेश के
साथ उस देश कì संÖकृित लोक शैली को अंगीकार कर सÌपूणª कथा उसी वातावरण म¤ रंग
जाती है ।
इन सभी आधारÖतंभŌ पर सूफì काÓय मूल चेतना के आधार से कथानक को गित देने के
िलए कथानक łिढ़यŌ कì परÌपरा से भारतीय कथा म¤ Óयĉ होती रही ।
६. चåरý िचýण:
सूफì काÓय पाý और चåरý-िचýण कì ŀिĶ से देखा जाए तो अÂयंत महÂवपूणª काÓय है
³यŌिक ऐितहािसक ŀिĶ से ÿिसĦ पाý सूफì काÓय कì शोभा बढ़ाते है । सूफì ÿेमा´यान म¤
पाýŌ कì पåरिÖथितनुसार उÆह¤ तीन ÿमुख भागŌ म¤ िवभािजत िकया गया है इस ÿकार है: munotes.in

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सूफì काÓय : परÌपरा एवं िवशेषताएँ
59 मानवीय पाý तथा अमानवीय पाý, मु´य पाý, गौण पाý व अनावÔयक पाý, ऐितहािसक
पाý व काÐपिनक पाý ।
मानवीय पाýŌ म¤ काÓय म¤ ÿÖतुत नायक-नाियका का वणªन और उसके साथ उनके
तÂकालीन पåरवेश का िचýण भी ŀिĶगत होता है । इसके अितåरĉ अमानवीय पाýŌ म¤ कोई
भी जानवर, प±ी, रा±स आिद आते ह§ । जो मानवीय पाý कì पåरिÖथित काÓय म¤ और
अिधक मजबूत बनाने का कायª करते है, जैसे पĪावत म¤ हीरामन तोते का ÿमुखता से वणªन
है ।
सूफì काÓय ÿेमा´यानक काÓय है इसम¤, गौण पाý कì भूिमका नाियका के िपता उसके
संर±क िनभाते ह§ । ये अिधकांश नायक या नाियका के िवरोधी दशाªये गये है जैसे पĪावत म¤
पĪावती के िपता Ĭारा रÂनसेन को मारने का फरमान जािहर करना आिद ।
ऐितहािसक पाý व काÐपिनक पाýŌ म¤ कथा िवधान के अंतगªत देवी - देवता, परी आिद
वणªन ÿमुखतः आते है, जैसे रÂनसेन का पĪावती को िशवमंिदर म¤ देखते ही मूिछªत हो जाने
पर पावªती अÈसरा का łप धारण कर आती है ।
इस ÿकार सूफì काÓय म¤ चåरý कथा कì माँग को पूरा करते ह§ । जो ऐितहािसक तौर पर
कहé उÐलेिखत नहé है, ऐसे काÐपिनक पाýŌ के Ĭारा भी कथा और काÓय को रोचकता के
साथ रोमांचकारी भी बनाया गया है ।
७. लोक अवधारणा व लोक संÖकृित:
सूफì किवयŌ कì रचना म¤ ÿेम को ÿधानता दी गई है । अिधकांश किव मुिÖलम धमª के
अनुयायी थे परंतु तÂकालीन पåरिÖथित और लोक धमª से पåरिचत थे । उनके काÓय म¤ उस
समय जन मानस म¤ ÿचिलत अंध िवĵास, जादू-टोना, तंý-मंý आिद उÐलेख के साथ िहÆदु
धमª म¤ ÿचिलत माÆयता, तीथª, Ąत, उÂसव, पवª आिद का िववरण है । सूफì किव िहÆदु धमª
व संÖकृित कì सÌपूणª जानकारी रखते थे । इसी जानकारी के फल Öवłप इÆहŌने पौरािणक
²ान, ºयोितष, आयुव¥द, बारह मासा आिद वणªन से काÓय कì सŏदयªता के साथ-साथ कथा
को तÂनुłप ÿदान िकया ।
८. खंडन-मंडन का अभाव:
सूफì किव िकसी िवशेष सÌÿदाय म¤ जकड़े नहé उÆहŌने सूफì मत का ÿचार–ÿसार िकया ।
इस कायª के िलए उÆहŌने ÿेमकथाओं का आ®य िलया और िकसी धमª संÿदाय के िवरोध म¤
कोई बात नहé कì इसके िवपरीत काÓय म¤ िहÆदु लोकाचार को ÿÖतुत कर ये किव िहÆदुओं
म¤ भी लोकिÿय हòए । सूफì किवयŌ ने धमª - संÿदाय मजहब और रीित से ऊपर उठकर ÿेम
तßव कì ÿधानता को अपनाया और काÓयłप म¤ पåरणत िकया ।
९. िवरहाÂमक वणªन कì अिधकता:
यह तो हम जानते ही है िक सूफìकाÓय ÿेमा´यानक काÓय है और काÓय łप कì ŀिĶ से
ÿेम को ®ृंगार कहा गया है और ®ृंगार के दो भेद बताये गये है । पहला संयोग और दूसरा
िवयोग । सूफì काÓय संयोग कì अपे±ा िवयोग वणªन कì अिधकता Óयĉ करता है । उÆहŌने munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
60 नायक-नाियका को परमाÂमा और (आÂमा) (साधक) के łप म¤ ÿÖतुत िकया है इसीिलए
सूफì किवयŌ कì साधना म¤ आÂमा परमाÂमा के दशªन हेतु या आÂमा परमाÂमा से िबछड़कर
उसके िवयोग म¤ तड़प रही है । संसार का हर एक ÿाणी उसकì खोज म¤ है उसे पाना चाहता
है । संसार कì हर एक वÖतु वह चंþ हो या सूयª, जल हो या अिµन उसके िमलन हेतु आतुर
है िवरहािµन म¤ जल रही ह§ ।
१०. काÓयशैली:
सूफì काÓय म¤ िवषयानुłप और समयानुłप शैिलयŌ का ÿयोग िकया गया ह§ । मु´यतः
ÿकृित वणªन, नारी सŏदयª, िवरह वेदना आिद ÿसंगो म¤ अिभधापरक शैली का ÿयोग हòआ है
। वही लौिकक ÿेम के माÅयम से अलौिकक ÿेम कì Óयंजना कर ऐितहािसक और
काÐपिनक पाýŌ कì ÿतीकाÂमक भूिमका को ÿÖतुत कर ÿतीकाÂमक शैली कì बहòलता
सूफì काÓय म¤ िदखती है । वहé सूफì जन - मानस के किव थे उनके काÓय म¤ लौिककता,
पारलौिककता अिभÓयĉ हòई है इसीिलए काÓय म¤ अÆयोिĉ, समासोिĉ के माÅयम से यह
वणªन हòआ है ।
११. काÓयगत सŏदयª:
काÓयगत सŏदयª कì ŀिĶ से सूफìकाÓय बहòआयामी िसĦ हòआ है । काÓयगत ŀिĶ से हम
सूफì किवयŌ के काÓय कì भाषा अलंकार और छंद िवधान का अÅययन कर¤गे ।
भाषा:
अिधकांश सूफì किव पूवê देश के िनवासी होने के कारण सूफì काÓय म¤ अवधी भाषा ÿयुĉ
हòई है । सूफì किवयŌ कì भाषा के िवषय म¤ पं. परशुराम चतुव¥दीजी ने िलखा है: “सूफì ÿेम -
गाथा के किवयो का भाषा पर पåरपूणª अिधकार सवªý नहé लि±त होता । जायसी, जान
किव, उसमान और नूर महÌमद इस िवषय म¤ अिधक सफल जान पड़ते ह§ । जायसी Ĭारा
िकया गया शुĦ और मुहावरेदार अवधी का ÿयोग तथा नूर मुहÌमद का संÖकृत शÊद भंडार
पर अिधकार िवशेष łप से उÐलेखनीय है ।”
अलंकार:
सूफì काÓय म¤ अितशयोिĉ, उपमा, łपक, उÂÿे±ा, समासोिĉ, अÆयोिĉ आिद अलंकारŌ
का सुंदर ÿयोग हòआ है वही अविध भाषा के कुछ मुहावरे और लोकोिĉयाँ भी सूफì काÓय म¤
देखी जा सकती है ।
छंद:
छंद ÿयोग कì ŀिĶ से िवदेशी शैली को न अपनाकर भारतीय काÓयशाľीय छंद को ही
अपनाया है । चौपाई छंद का ÿयोग ÿमुखता से िकया है । दोहा छंद का भी ÿयोग बहòलता से
हòआ है । िवĬानो ने दोहा और चौपाई छंदो का उगम पूवê ÿदेशŌ से ही माना है । इसके
अितåरĉ िजस छंद का वणªन हòआ है वह है अĬाªिलयŌ का ÿयोग जायसी और अÆय अवधी
भाषी किवयŌ ने िकया है अÆय सूफì किवयŌ ने सोरठा, बरवै, किव°, सवैया, कुÁडिलया
तथा झूलना छंद का ÿयोग काÓय म¤ ÿमुखता से िकया है । munotes.in

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सूफì काÓय : परÌपरा एवं िवशेषताएँ
61 ५.५ सारांश इस इकाई म¤ हमने सूफì काÓय का िवÖतार से अÅययन िकया, सूफì शÊद कì ÓयुÂपि°,
अथª, Öवłप, सÌÿदाय, ÿमुख किव उनकì रचनाओं को जानने के साथ साथ सूफì काÓय
कì ÿवृि°यŌ का अÅययन िकया है िक िकस ÿकार सूफì किवयŌ ने ÿेमा´यानक काÓय
रचना कर िहÆदु मु्िÖलमŌ के बीच कì दूरी को कम करने का ÿयास िकया । राºयाि®त और
धमाªि®त रचनाओं को Âयाºय कर लोकािथत काÓय रचनाओं को महÂव िदया | िसĦांतवाद,
मत वाद, सÌÿदाय वाद को छोड़ मानव मन कì पीर के किव बने ।
इस इकाई के अÅययन से िवīाथê सूफì संÿदाय को जान सके और सूफì किवयŌ कì उदार
ÿवृि° िजसके Ĭारा मानव मन म¤ ÿेम का िनमाªण हòआ । जाित, धमª के भेद को भुलाकर ÿेम
तÂव कì महानता का पाठ समाज को पढ़ाया । सूफì किवयŌ कì सरसता तÂकालीन समय
कì िवषम पåरिÖथितयŌ म¤ भी जन-जन को आकिषªत करने म¤ सफल हòई ।
५.६ दीघō°रीय ÿij १) सूफì शÊद के िविभÆन अथō पर िवचार करते हòए सूफì शÊद के मूल अथª ÖपĶ कìिजए ।
२) सूफì शÊद का अथª ÖपĶ करते हòए िवशेषताओं को रेखांिकत कìिजए ।
५.७ लघु°रीय ÿij १) सूफì शÊद का शािÊदक अथª ³या है?
२) सूफì मत म¤ ÿमुखत: िकतने सÌÿदायŌ का वणªन है?
३) सुहरा वदê सÌÿदाय के ÿवतªक कौन है?
४) 'इसहाक शामी' ने िकस संÿदाय कì Öथापना कì?
५) सूफì किवयŌ को ÿमुखत: िकतने भागŌ म¤ िवभािजत िकया गया है?
६) सूफì काÓय का दूसरा नाम ³या है?
५.८ संदभª पुÖतक¤ १) सूफì काÓय संúह - संपादक - परशुराम चतुव¥दी
२) िहÆदी के सूफì ÿेमा´यान - परशुराम चतुव¥दी
३) सूफìवाद कुछ महÂवपूणª लेख - एन.आर. फाłकì
*****
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62 ६
रामभिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
इकाई कì łपरेखा
६.० इकाई का उĥेÔय
६.१ ÿÖतावना
६.२ राम भिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
६.२.१ आराÅय ®ी राम का ÖवŁप
६.२.२ समÆवयाÂमकता
६.२.३ लोकमंगल कì भावना
६.२.४ भिĉ का ÖवŁप
६.२.५ ÿकृित िचýण
६.२.६ नैितक मूÐयŌ का आदशª
६.२.७ नारी के ÿित भाव
६.२.८ गुł कì मिहमा का मान
६.२.९ ÿबंध काÓय कì रचना व अÆय शैली
६.२.१० भाषा
६.२.११ रस योजना
६.२.१२ छंद एवं अलंकार
६.३ सारांश
६.४ दीघō°री ÿij
६.५ लघु°रीय ÿij
६.६ संदभª पुÖतक¤
६.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अÅययन से िवīाथê राम भिĉ काÓय धारा और राम भिĉ काÓय कì ÿमुख
िवशेषताओं का अÅययन कर सक¤गे ।
६.१ ÿÖतावना भिĉ काल म¤ ‘राम’ दो अ±रŌ का अथªमान शÊद संत किव, िनगुªण, किव सगुण किव,
ÿेमा®यी किव और ²ाना®यी किव सभी के Ĭारा āĺłप, ईश łप, आराÅय łप, मूितªमान
łप, आदशª łप आिद कई उपमानŌ के साथ ÿयुĉ हòआ है । राम के जीवन से संबंिधत
ÿथम काÓय ‘वािÐमकì रामायण ’ है वािÐमकì रामायण म¤ राम का मयाªदा पुłषो°म łप munotes.in

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रामभिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
63 समाज के िलए आदशª बन गया बाद म¤ राम चåरत मानस अवधी भाषा म¤ तुलसीदासजी Ĭारा
िलखी गई । इस úंथ ने घर-घर के मंिदर म¤ अपना Öथान बनाया ।
६.२ राम भिĉ काÓय कì िवशेषताएँ राम भिĉ काÓय धारा के ÿमुख ÿवतªक रामानुजाचायª माने जाते है । रामानुजाचायª ने वैÕणव
सÌÿदाय कì Öथापना कì । इस संÿदाय म¤ ÿमुखतः िवÕणु कì उपासना कì जाती है ।
राजानुजाचायªजी ने भिĉ के सगुण और िनगुªण दोनो łप कì उपासना कì है । रामानुजाचायª
कì िशÕय परÌपरा म¤ ®ी रामानंद को महÂवपूणª Öथान है । आचायª रामचंþ शु³ल ने Öवामी
रामानंद को िहÆदी कì राम काÓयधारा का ÿमुख और ÿथम किव माना है । परंतु रामकाÓय
धारा के सवªÿमुख किवयŌ म¤ तुलसी दास का वास जन जन के Ćदय म¤ है । तुलसी दासजी
ने दाÖय भाव कì भिĉ ÿितķा कर राम भिĉ काÓय धारा को एक िनिIJत िदशा िमली । वहé
राम कì उपासना से समाज म¤ आदशª ÿÖतुत िकया । ³यŌिक राम भĉ किवयŌ ने राम का
लोकर±क और लोक रंजक łप ÿÖतुत िकया है । राम कì उपासना िवÕणु अवतार के łप
म¤ कì है । राम भĉ किवयŌ Ĭारा कì गई उपासना समाज को आदशōÆमुखी करने वाली थी
और भिĉ िवभोर भी । तुलसी दासजी ने राम को पूवª āĺअवतार łप म¤ ÿितिķत िकया ।
तुलसीदासजी के काÓय कì िवशेषताएँ ही राम भिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ मानी जाती है
। राम भिĉ काÓय धारा म¤ अनेक किव हòए उनम¤ ÿमुख किव है: Öवामी रामानंद, Öवामी
अúदास, नाभादास , ईĵरदास, केशवदास, ÿाणचंद चौहान, सेनापित, कपूरचंþ आिद.
राम भिĉ काÓय कì िवशेषताएँ:
६.२.१ आराÅय ®ी राम का ÖवŁप:
राम भĉ किवयŌ ने आराÅय ®ी राम को िवÕणु अवतार माना । उनका मानना है िक राम
अवतार łप म¤ धरती पर जÆम¤ रा±सŌ का नाश करने के िलए, समाज कì बुराइयŌ को
िमटाने हेतु और एक आदशª, शील ÓयिĉÂव कì सीख देने हेतु वे अपने पुÁयवान भĉŌ के
संकट को हरने के िलए आये है, पापीयŌ का नाश कì शाĵती राम अवतार है, वे मयाªदा
पुłषो°म और आदशª मानव कì कÐपना का साकार łप है । राम भĉ किव राम कì बाल-
लीला से लेकर उनके जीवन के ÿÂयेक ÿसंग को बहòत खुबी के साथ बखानते है और उनके
सुंदर सुशील काÓय को पढ़कर-सुनकर जन जन राम भिĉ म¤ लीन हो जाता है ।
‘राम भगित मिन उर बस जाक¤ ।
दुख लवलेस न सपने हòँ ताक¤ ॥
चतुर िसरोमिन तेइ जग माहé ।
जे मिन लािग सुजतन कराहé ॥’
राम भिĉ किवयŌ के समय कì राजनीितक और सामािजक दशा तकª संगत नहé थी ऐसे
समय म¤ तुलसीदासजी Ĭारा राम मिहमा का वणªन समाज को सही िदशा कì ओर ले जाने
वाला एक अथक ÿयास था । जो सफल भी रहा इस संबंध म¤ डॉ. राम कुमार वमाª ने कहा है: munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
64 ‘राजनीित कì जिटल पåरिÖथितयŌ म¤ धमª कì भावना िकस ÿकार अपना उÂथान कर
सकती है, यह राम काÓय ने ÖपĶ कर िदया ।
६.२.२ समÆवयाÂमकता :
राम, िशव, शिĉ और सŏदयª का समÆवियत łप माने जाते है । माना जाता है सŏदयª म¤ वे
िýभुवन के लजावन हारे है, शिĉ म¤ रा±सŌ का नाश करने वाले और गुणŌ म¤ वे संसार को
कई सदीयो तक सदाचार कì िश±ा के ľोत है । िजस ÿकार ®ी राम म¤ सभी गुणŌ का
समÆवय है उसी ÿकार उनका काÓय भी समÆवय से ŀिĶगत होता है । इस संदभª म¤ हजारी
ÿसाद िĬवेदी कहते है – ‘तुलसी का काÓय समÆवय कì िवराट चेĶा है ।’
ऐसा नहé है िक राम काÓय केवल राम कì उपासना से ही ÿेिषत है बिÐक ®ी गणेश, िशव,
पावªती, गौरी, गंगा. कृÕण आिद देवताओं का Öतुित गान भी राम काÓय कì शोभा बढ़ाता है ।
उसी ÿकार राम काÓय म¤ सगुणवाद और िनगुªणवाद म¤ एकłपता लि±त होती है वहé राम
भिĉ काÓय ²ान, कमª, भिĉ के साथ ÿवृि° और िनवृªि° के बीच समÆवय Öथािपत करता
है । राम भĉ किवयŌ ने Ĭैतवाद, अĬैतवाद, िविशĶाĬैतवाद तथा शुĦाĬैतवाद आिद सभी
िसĦातŌ म¤ समÆवय ÿÖतुत करता है । रामचåरत मानस के एक ÿसंग म¤ सेतुबÆध के अवसर
पर राम ने िशव आराधना कì है –
“िशवþोही मम दास कहावा ।
सोर नर मोिह सपनेहò नहé भावा ॥”
६.२.३ लोकमंगल कì भावना:
तुलसी दासजी का समय िहÆदुओं कì दशा का िचंतनीय और दयनीय अवÖथा का काल था
। ऐसे समय म¤ गोÖवामीजी का ‘राम चåरत मानस’ जैसे úंथ कì रचना कर उसम¤ राम का
चåरý लोक नायक के łप म¤ ÿितिķत करना उनके लोकरंजक और लोकर±क łप को
िदखावा समाज के िलए बहòत बड़ी ÿेरणा थी । राम एक आदशª पुý, आदशª भाई, आदशª
पित, आदशª िशÕय और आदशª राजा के łप िचिýत हòए तुलसीदासजी ने उनके जीवन का
यह उ¸च अंकन दशाªकर समाज के हर तÊखे के जन-मानस को उ¸च लोक ÿेरणा से अवगत
कराया । यही कारण है आदशª राºय को राम राºय कहा जाता है । राम चåरý मानस म¤
िजस ÿकार राम को आदशª पुłष के łप मे िदखाया है उसी ÿकार सीता आदशª पÂनी-पुýी,
कौशÐया आदशª माता, लàमण और भरत आदशª Ăाता, सुúीव आदशª िमý और हनुमान
आदशª सेवक के łप म¤ चåरताथª हòए है ।
‘कìरित भिनित भूित भि° सोई ।
सुरसåर सम सब कहँ िहत होई ॥’
६.२.४ भिĉ का ÖवŁप:
राम काÓय धारा भिĉ आंदोलन कì महÂवपूणª उपलिÊध थी । इन किवयŌ ने रिचत काÓय
Ĭारा भावाÂमक और सांÖकृितक एकता के ±ेý मे जन-जन के िलए जीवन सुलभ बनाने का munotes.in

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रामभिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
65 कायª िकया । इÆहोने ²ान और योग से भिĉ को ®ेķ माना । तुलसीदास भिĉ के मयाªदा
łप को Öवीकार करते हòए दाÖय भिĉ को अपनाकर ®ी राम के चरणŌ म¤ Öवयं को अिपªत
कर देते है । इसी ÿकार सभी राम भĉ किवयŌ ने वैधी या मयाªदा भिĉ को चरम मान भĉ
Ćदय कì आराधना को एकाúिचý से राम łप पर अपªण कर िदया । तुलसीदासजी िनगुªण
और सगुण दोनो माÆयताओं को मानने वाले है वे शैव, शिĉ और पुिĶ मागª का िवरोध नहé
करते वरन् उदार ŀिĶकोण से उÆहे परखते है । तुलसी दासजी का भिĉवादी ŀिĶकोण
आचायª रामचंþ शु³ल इस ÿकार Óयĉ करते है: “गोÖवामीजी कì भिĉ पĦित कì सबसे
बड़ी िवशेषता है उसकì सवा«गपूणªता । जीवन के िकसी प± को सवªथा छोड़कर वह नहé
चलती सब प±Ō के साथ उनका सामÆजÖय है ।”
राम भĉ किवयŌ कì रचनाओं म¤ नवधा भिĉ के उदाहरण िमलते है लेिकन दाÖय भिĉ का
Öवłप शीषª Öथान पर है । वे दाÖय भाव से आराÅय राम कì आराधना करने म¤ सुजलाम,
सुफलाम कì ÿतीित मानते है ।
‘सेवक सेÓय भाव िबनु, भाव न तåरय उरगाåर ।’
इसी ÿकार राम भिĉ किवयŌ के िलए राम सवª®ेķ है –
‘राम से बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो ।
राम सो खरो है कौन मोसो कौन खोटो ॥’
तुलसीदास आराÅय के सगुण और िनगुªण łप दोनो के उपासक है:
‘सगुण अगुण दुई āĺ सłपा
अकथ आनािद अगािधखरो अłपा । ’
पाý तथा चåरý िचýण:
राम काÓय धारा के किवयŌ ने अपने काÓय म¤ सभी पाýŌ को आदशª और लोक मयाªदा का
पालन करते हòए बताया गया है महान चåरý और सदाचार का अनुकरण हòआ है । मानव
ÿवृि° म¤ ÓयाĮ सत, रज, तम तीनŌ गुणŌ को दशाªया गया है । सत गुण को सवōपåर माना है
तम łपी दुगुªण अथाªत रावण कì पराजय और सत łपी सदाचारी राम कì जय इस बात का
ÿमाण है । महाकिव तुलसीदास ने ‘राम चåरý मानस ’ के माÅयम से राम के सÌपूणª जीवन
को चåरताथª िकया है । राम उनके तीनो भाई भरत, लàमण, शýु¶न, िपता दशरथ, माता
कौशÐया, भायाª सीता और अÆय सभी पाý सģुणी, िवभीषण केवल राम के मागªदशªन से
चलकर उनकì भिĉ के īोतक है । रावण, कुंभकरण, मेघनाथ अÆय कई रा±स गणी, ŀĶ
दुराचारी बताये है और दुराचारी दुĶŌ का अंत अटल है यह भी सीख राम चåरत मानस से
समाज को िमलती है ।
िनगुªण łप म¤ राम āĺłप है लेिकन सदगुणी सदाचारी है ।
“मन मुसुकाइ भानुकुलभानू । राम सहज आनंद िनधान ॥ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
66 सुनु जननी, सोई सुत बड़भागी, जो िपतु-सातु बचन अनुरागी ॥
तनय मातु-िपतु तोषिनहारा । दुलªभ जननी, सकल संसारा ॥”
६.२.५ ÿकृित िचýण:
ÿकृित िचýण राम काÓय धारा म¤ Öवभािवकतः आराÅय ®ी राम के माÅयम से हòआ है ।
रामचåरत मानस म¤ िकिÕकंधा कांड और अरÁयकांड म¤ ÿकृि° का िवशेष वणªन हम देख
सकते है । ®ी राम महलŌ म¤ जÆमे राज पुý थे परंतु उस समय के संÖकार के तहत िश±ा
अजªन के िलए गुłकुल परÌपरा का चलन था और गुł पणªकुिट बनाकर वनŌ म¤ रहते, वहé
±ýीय व अÆय बालक ÿकृि° और गुł के सािनÅय म¤ िश±ा úहण करते थे । इसके
अितåरĉ राम को १४ वषª वनवास गमन का वणªन है इिसिलए अनेक Öथल ÿकृि° िचýण
से सजे हòए है । वानरŌ से ®ी राम कì िमýता वनराज सुúीव से मैýी, हनुमान सा सेवक,
िगĦराज और जटायु जैसे मागªदशªक ®Ħालु, िनषादराज और केवट वन म¤ रहने वाले ²ाता
और इन सभी कì सहायता से राम कì रावण पर िवजय पाना राम कथा का महÂवपूणª भाग
है । राम Öवयं āĺÖवłप िवÕणु अवतार थे लेिकन उÆहŌने अपनी िवजय का ®ेय अपने सभी
सहयोिगयŌ को िदया । राम ने अपने जीवन का बहòतसा समय वन म¤ िनवाªह िकया । इसीिलए
राम कथा म¤ वÆय जीव, सभी ऋतुएँ, वृ±, लताएँ, सरोवर, पुÕप, हåरत तृण और ÿकृि° के
अÆय सभी उपादानŌ को ÿÖतुत िकया है ।
“बांधे घाट मनोहर चारी, संत Ćदय जस िनमªल बारी ॥
जहँ जहँ िपयिÆह िविवध मृग नीरा । जनु उदार गृह जाचक भीरा ॥”
सीता हरण के पIJात राम वन के चहचरŌ से सीता का पता पूछते है:
‘हे खग मृग हे मधुकर ®ेणी, तुमने देखी सीता मृगनयनी ।’
६.२.६ नैितक मूÐयŌ का आदशª:
राम भĉ किवयŌ कì भिĉ केवल ®Ħा अंश न होकर समाज के िलए िहतोपदेश का सार भी
है । राम भĉ किव उपदेशक भी थे । ³यŌिक रामभĉ किवयŌ ने राम के चåरý के माÅयम से
एक आदशª जीवन शैली ÿÖतुत कì जो Âयाग धमª, सदाचार, आचार, आदर, ÿेम, सिहÕणुता,
मयाªदा, वचन पालन, Æयाय आिद अनेक नैितक तÂवŌ का पाठ पढ़ाया और यह नैितकता कì
पराकाķा केवल मयाªदा पुłषो°म राम के काÓय म¤ ही संभव है ।
“रघुकुल रीत सदा चली आई,
ÿाण जाय पर वचन न जाई ॥ ”
६.२.७ नारी के ÿित भाव:
राम काÓय म¤ जब नारी के ÿित ŀिĶकोण का िजø होता है तब तुलसी दास के रिचत एक
दोहे के माÅयम से नारी को िनंदनीय करार दे िदया जाता है वह दोहा इस ÿकार है –
‘ढोल गँवार सुþ पसू नारी, सकल ताड़ना के अिधकारी ।’ munotes.in

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रामभिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
67 लेिकन पाठक इस बात का Öमरण माý भी नहé करना चाहते है िक तुलसी दासजी ने सीता,
अनुसूया, पावªती, कौशÐया आिद नारीयŌ को पितĄता, सती, Âयागमयी, ममता मयी łप म¤
ÿÖतुत िकया है । उÆहŌने कुÐटा, कुलि±िण नारी कì अवहेलना कì है न िक सÌपूणª नारी
जाित कì वे पितĄता नारी कì ÿशंसा करते हòए कहते है िक –
“बÆय नाåर पितĄत अनुसरी ।”
तुलसीदासजी नारी जाित के ÿित संवेदना का भाव रखते है वे नारी जाित कì पराधीनता
को ल± करते हòए कहते है –
“कत िवधी सृजी नाåर जग माही ।
पराधीन सपनेहò सुख नाहé ।”
६.२.८ गुł कì मिहमा का मान:
राम काÓय धारा के किव िनगुªणधारा के किवयŌ कì भाँित गुł का Öथान सवō¸च मानते है ।
उनके िलए गुł āÌह का ÿितिनधी łप है । महाकिव तुलसीदास गुł के िबना काÓय ÿािĮ
असंभव मानते है ।
“बंदऊँ गुłपद पदुम परागा । सुłिच सुबास सरस अनुरागा ॥
®िम® मूåरमय चूरन चाł । समन सकल भव łज पåरवाł ॥”
६.२.९ ÿबंध काÓय कì रचना व अÆय शैली:
भिĉकाल म¤ राम भिĉ धारा के किवयŌ ने ÿबंध काÓय रचना का मानस अिधक रहा । इस
®ेणी म¤ िहÆदी सािहÂय का सवª®ेķ समझा जाने वाला काÓय तुलसीदास कृत रामचåरत
मानस का उÐलेख अÓवल है । इसके अितåरĉ लालचंद का अवध िवलास, Ćदय राम का
हनुमÆनाटक, ÿाणचंद चौहान का रामायण महानाटक आिद ÿबंध ÿमुख है ।
राम काÓयधारा मे ÿबंध काÓय के साथ अÆय काÓय शैली म¤ भी रचना हòई जैसे ÿबंध काÓय
म¤ दोहा-चौपाई शैली का ÿयोग, किवता वली म¤ किवý, सव¥या का ÿयोग कर मुĉक काÓय
कì रचना करना इसी ÿकार पद का ÿयोग िवनय म¤ और बरवै शैली का ÿयोग बरवै रामायण
म¤ हòआ है ।
६.२.१० भाषा:
रामानंदजी ने काÓय म¤ संÖकृत भाषा को Âयाग कर जनसमूह कì भाषा का ÿयोग काÓय
रचना म¤ कर भाषायी ŀिĶ से काÓय जन-जन के िलए सुलभ बना िदया । तुलसी दासजी ने
अपनी मातृभाषा अवधी म¤ काÓय रचना कì साथ ही कृÕण चåरतावली म¤ सफलता पूवªक āज
भाषा का ÿयोग िकया । केशव कì राम चंिþका āज भाषा म¤ रिचत है । राम भिĉ काÓय धारा
के अिधकांश किवयŌ ने अवधी भाषा को ही रचना का माÅयम चुना । लालदास कृत अवध
िवलास, ईĵरदास कृत भरत िमलाप और तुलसी व अÆय राम भĉ किवयŌ कì अनेक
रचनाएं अवधी भाषा के ®ेķ उदाहरण है । अवधी और āज भाषा के Óयितåरĉ भोजपुरी munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
68 बुंदेलखंडी, राजÖथानी, संÖकृत, फारसी भाषा के शÊदŌ कì ÿयुिĉ भी राम काÓय म¤
पåरलि±त होती है ।
६.२.११ रस योजना:
राम काÓय ÿबंध शैली के कारण सभी नौ रसŌ कì Óयापक उपलÊधता है । राम भिĉ म¤ āÌह
Öवłप और मयाªदा पुłषो°म है इसीिलए शांत रस कì ÿधानता है । रामचåरý मानस म¤
युĦवणªन म¤ वीर रस और रौþ रस, पुÕप वािटका म¤ सीता के ÿथम दशªन के समय ®ृंगार का
मयाªिदत łप इस ÿकार राम वन गमन के समय कłण रस ÿकार ÿसंगानुłप भयानक और
वीभÂस रस कì िनÕपि° हòई है । नारद मोह के ÿसंग म¤ हाÖय रस और अनेक ŀÔयŌ म¤ अĩुत
रस कì ÓयािĮ कुशलता से हòई है ।
६.२.१२ छंद एवं अलंकार:
राम काÓय म¤ छंद भेद के कई ÿकार बहòत बखुबी से ÿयोग हòए है िजनम¤ दोहा और चौपाई
ÿमुख है । अÆय छंद म¤ वीरगाथा का छÈपय, सÆत काÓय का दोहा के अितåरĉ कुÁडिलया,
सोरठा, सवैया, घना±री, तोमर, िýभंगी आिद छंद ÿयुĉ हòए है ।
रामभĉ किवयŌ ने अलंकार का ÿयोग बड़ी ही सहजता से िकया है तुलसीदासजी के काÓय
मे सभी ÿकार के अलंकार का ÿयोग हòआ है परंतु उपमा और łपक ÿमुखता से ÿयुĉ हòए
है । कवी केशव ने शÊदालंकार का ÿयोग िकया है जो िकसी अÆय किव के काÓय म¤ नहé है ।
वहé अथाªलंकार का सहज Öवाभािवक ÿयोग सभी राम भĉ रचनाओं म¤ हòआ है ।
६.३ सारांश राम भिĉ काÓय समाज व सािहÂय का गौरव है । ³यŌिक यह लोकाचार, सदाचार लोकरंजन
कì ŀिĶ से अ±ुÁण है । तुलसीदासजी जैसे महाकवी इस परÌपरा के īोतक है जो धमª,
समाज म¤ समÆवयवादी ŀिĶकोण के सापे± है । काÓय को उÂकृķ बनाते है और समाज म¤
धमª र±ा, लोकिहत और मंगलवाणी का िवÖतार करते है ।
६.४ दीघō°री ÿij १) राम काÓय कì ÿवृि°यŌ पर ÿकाश डािलए ।
२) राम काÓय कì िवशेषताओं का उदाहरण सिहत िववेचन कìिजए ।
६.५ लघु°रीय ÿij १) राम भिĉ काÓय धारा म¤ राम िकसके अवतार माने गये है ?
उ°र: िवÕणु भगवान
२) राम भिĉ काÓय धारा के ÿमुख किव है ।
उ°र: तुलसी दास munotes.in

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रामभिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
69 ३) किव केशव िकस धारा के किव है ?
उ°र: रामकाÓय धारा
४) रामचåरत मानस कौनसी काÓय शैली कì रचना है ?
उ°र: ÿबंध काÓय शैली
५) िहÆदु धमª के अितåरĉ कौनसे धमª म¤ राम कथा का ÿयोग हòआ है ?
उ°र: जैन धमª
६.६ संदभª पुÖतक¤ १) उ°र िहÆदी राम काÓयधारा - उमेश चंþ मधुकर
२) भिĉकाÓय से सा±ाÂकार - कृÕणद° पालीवाल
*****

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70 ७
कृÕणभिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ
इकाई कì łपरेखा
७.० इकाई का उĥेÔय
७.१ ÿÖतावना
७.२ कृÕण भिĉ काÓय कì िवशेषताएँ
७.२.१ कृÕण का Öवłप
७.२.२ कृÕण लीला का वणªन
७.२.३ भिĉ भावना
७.२.४ िवषय वÖतु को मौिलकता
७.२.५ अÆय देवो कì आराधना
७.२.६ ÿकृित – वणªन
७.२.७ रीित तÂवŌ का समावेश
७.२.८ सामािजक लोकाचार कì ÿितबĦता
७.२.९ ÿेम कì अलौिककता
७.२.१० पाý एवं चåरý-िचýण
७.२.११ ऐितहािसक प±
७.२.१२ संगीत – Öवरािद भाव
७.२.१३ काÓय शैली
७.२.१३.१ भाषा
७.२.१३.२ रस
७.२.१३.३ अलंकार
७.२.१३.४ शÊद शिĉ
७.३ सारांश
७.४ दीघō°री ÿij
७.५ लघु°रीय ÿij
७.६ संदभª पुÖतके
७.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अÅययन से िवīाथê कृÕण भिĉ काÓय कì िवशेषताओं का पåरपूणª अÅययन
कर सकेग¤ । munotes.in

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कृÕणभिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ
71 ७.१ ÿÖतावना भिĉकाल म¤ कृÕण भिĉकाÓय को अÂयिधक महÂव ÿाĮ है । Ĭापर युग म¤ कृÕण जÆम बुराई
और रा±सी ÿवृि° का नाश कर Æयाय ÓयवÖथा को सुŀढ़ बनाने हेतु हòआ था । कृÕण मिहमा
का वणªन हåरवंश पुराण, िवÕणु पुराण, पĪ पुराण आिद म¤ िवÖतार से हòआ है । परंतु
भिĉकाल कì कृÕण भिĉधारा म¤ लोक ÿचिलत भाषा म¤ रिचत कृÕण काÓय जन-जन तक
पहòंचा । अनेक सÌÿदायŌ ने कृÕण भिĉगान को सािहÂय म¤ उ¸च Öथान पर पहòँचा िदया ।
७.२ कृÕण भिĉ काÓय कì िवशेषताएँ भिĉकाल कì सगुण काÓय धारा म¤ कृÕण भिĉ काÓय सवाªिधक सरस, मधुर और आकषªण
से पåरपूणª है । कृÕण भिĉ सÌÿदाय के िवकास म¤ कई सÌÿदायŌ का सहयोग रहा । इनम¤
ÿमुख है- िनÌबाकª सÌÿदाय, चैतÆय सÌÿदाय, वÐलभ सÌÿदाय , राधा वÐलभ सÌÿदाय ,
िहत हåरवंश सÌÿदाय, गोडीय सÌÿदाय , पुिĶ सÌÿदाय, सखी सÌÿदाय आिद । आचायª
वÐलभचायª के अनुसार कृÕण परāÌह है ®ी कृÕण सृिĶ के लालन कताª Öवयं सि¸चदानंद
ÖवŁप है । आचायª हजारी ÿसाद िĬवेदी जी ने कृÕण भिĉ सÌÿदाय के िवषय म¤ िलखा है:-
‘भिĉ का सािहÂय मनुÕय कì सबसे ÿबल भूख का समाधान करता है । वह मनुÕय को बाĻ
िवषयŌ कì आसिĉ से तो अलग कर देता है लेिकन तÂववादी और ÿेमहीन तÂवŌ का
उपासक नहé बनाता । वह मनुÕय कì सरसता को उदबुĦ करता है, उसकì अÆतªिनिहत
अनुराग लालसा को उधवªमुखी करता है और उसे िनरंतर रसािसĉ बनाता है ।’
कृÕण काÓय को Óयापक और संचाåरत करने का सÌपूणª Åयेय सूरदासजी को जाता है ।
सूरदास का मनोरम मनमोहक काÓय अÂयिधक लोकिÿय हòआ । सूरदासजी अपनी बंद
आंखŌ से आराÅय को िचिýत कर सके िहÆदी सािहÂय म¤ कोई दूसरा किव इतने मनोरम
और माधुयª ŀÔय न िदखा सका । सूरदासजी कृÕण भिĉ काÓय के ÿणैता माने जाते लेिकन
कृÕण भĉ किवयŌ कì सूिच बहòत लÌबी है िजनम¤ अĶछाप के किव कुÌभनदास,
परमानÆददास , कृÕणदास, छीतÖवामी गोिवÆद Öवामी , चतुभुªज दास, नंददास इस ÿकार
सूरदासजी सिहत अķछाप के ये आठ किव है । गोÖवामी िहत हåरवंश, मीराबाई , रसखान
आिद कृÕणभिĉ किव लोकिÿय है ।
कृÕणभिĉ काÓय धारा कì िवशेषताएँ:
७.२.१ ®ी कृÕण का Öवłप:
कृÕणभĉ किवयŌ ने कृÕण कì उपासना अवतार łप म¤ कì है कृÕण के माधुयª łप को
सवªगुण सÌपÆन, सवª शिĉमान, बुराई का नाश कर अ¸छाई को िजताने वाला बताया है ।
कृÕण कì बाल िललाएँ वाÖतिवक है पर उन बाल लीलाओं म¤ जब कुछ आIJयª घिटत होता
है तो वे सा±ात देवलीला के समान ŀिĶगत होती है । मानव łप म¤ कृÕण नंद यशोदा के पुý
है, µवाल-बालŌ के सखा है, बलराम के बंधु है और गोिपयŌ के ÿेमी है वहé कुŁ±ेý कì
रणभूिम म¤ ®ी मद् भागवत का उ¸चार, िवराट łप कì ÿÖतुित करना उनके देव अवतार
łप को िदखाता है और उÆह¤ तीनŌ लोको का Öवामी घोिषत करता है । munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
72 ७.२.२ कृÕणलीला का वणªन:
कृÕण भĉ किवयŌ Ĭारा कृÕण के बाल łप और रासलीला के माधुयª वणªन के कारण ही
कृÕण पद आकिषªत और ÿिसĦ हòए है । कृÕण के बाल लीला संबंधी पद अखंड आनंद कì
ÿािĮ देने वाले है साथ ही आÅयािÂमक पåरपूणªता को अिभÓयंिजत करते है । बाल गोपाल
कì माधुयª-िनरामय लीलाओं से ही सÌपूणª कृÕणभिĉ काÓय शोभायमान हòआ है । सूरदास ने
बालक कृÕण कì िविभÆन øìडाओं चेĶाओं का सजीव िचýण िकया है । कृÕण भĉ किवयŌ ने
कृÕण कì लोक रंजनकारी लीलाओं को अपने काÓय का ÿमुख िवषय बना कर जन-जन को
माधुयª रस से िवभोर कर िदया है । इस ÿकार कृÕणभिĉ काÓय म¤ सूरदासजी Ĭारा वाÂसÐय
रस कì िनÕपि° हòई है और ®ृंगार रस कì उदभावना कृÕण भĉ किवयŌ के अितåरĉ और
कही इतनी सजीव नहé है ।
वाÂसÐय रस:
“मैया कब हé बढ़ेगी चौटी?
िकती बार मोिह दूध िपयत भई, यह अजहóँ है छोटी ।।
तू जो कहती बल कì बनी ºयŌ, है लांबी-मोटी ।”
माधुयª रस:
“ÿान इक है देह कìÆहे, भिĉ-ÿीित-ÿकास ।
सूर-Öवाम Öवािमनी िम°ी , करत रंग-िवकास ।।”

७.२.३ भिĉ भावना:
महाÿभु वÐलभाचायª और चैतÆय महाÿभु ने कृÕण भिĉ का Öवłप अÂयंत आकिषªत तैयार
िकया था । ³यŌिक कृÕण अवतार łप भागवत गीता के उ¸चार से कृÕण का जीवन के ÿित
गांभीयª भाव दशाªता है वहé उनके बालपन कì øìड़ा, सखŌ के साथ बीता समय, गोिपयŌ के
साथ छेड़खानी और रास लीला का वणªन कृÕण भिĉ काÓय धारा को नव भिĉ म¤ आकृĶ
करता है वहé माधुयª के चारो ÿकारŌ का वणªन कृÕण भिĉ काÓय म¤ है और ÿेम ÿधान भिĉ
के दोनो ÿकार Öवकìया और परकìया भिĉ का ÿयोग कृÕण भिĉ कì अिधकता होते हòए
भी दाÖय और दाÌपÂय भाव कì ÿधानता काÓय म¤ िमलती है ।
वाÂसÐय भाव म¤ कृÕण कì बाल चेĶाओँ और यशोदा मां का सुंदर वणªन कृÕण भĉ किवयŌ
ने िकया है लेिकन इस झांकì का सवª®ेķ िचý सूरदास बनाने म¤ समथª रहे ।
“जसोदा बार बार यŌ भाखै
है āज म¤ िहतु हमारौ, चलत गोपालिह राखै ।” munotes.in

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कृÕणभिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ
73 स´य भाव म¤ कृÕण और µवाल बालो के संग गोकुल वृंदावन के ÿसंग है वहé सुदामा और
कृÕण कì िमýता तो आज ŀĶांत łप म¤ जन जन के मुख पर है ।
स´य भिĉ भाव कì ÿधानता होते हòए भी दाÖय भिĉ भावना को यथा Öथान कृÕण
भिĉ काÓय म¤ है:
“ÿभु! हो सब पिततन कौ िटकौ ।”
७.२.४ िवषय वÖतु कì मौिलकता:
कृÕण काÓय भागवत पुराण से अिभÿेåरत है । वÐलभाचायªजी ने कृÕण भिĉ के िनयमŌ म¤
िनद¥श िदये थे िक भागवत के दशम ÖकÆध को आधार बना कर कृÕण लीला काÓय रचे ।
इसीिलए कृÕण भĉ किवयŌ ने ®ी कृÕण वणªन का मूलाधार ®ी मदभागवत गीता को माना
और सभी किवयŌ के काÓय म¤ ®ी कृÕण का āÌहÂव और अलौिककता का समावेश है िकÆतु
िहÆदी सािहÂय के अंतगªत āजभाषा म¤ ÿधानत: जो कृÕण भिĉ काÓय रचा गया उसम¤ कृÕण
कì बाल लीला , ÿणयलीला का वणªन अÂयंत माधुयªता से हòआ है । ®ी मदभागवत म¤ राधा
का वणªन ने होते हòए ®ी कृÕण से ÿेम करने वाली एक गोपी का वणªन है परंतु सूरदास व
अÆय कृÕण भĉ किवयŌ ने ÿणय वणªन म¤ कृÕण के साथ राधा का वणªन कर कृÕण काÓय को
भÓय बना िदया है । भागवत म¤ कृÕण गोिपयŌ के अित आúह से रास लीला म¤ शािमल होते है
परंतु कृÕण भĉ किवयŌ के अनुसार कृÕण Öवयं गोिपयŌ कì ओर आकिषªत है और अपनी
मन को हर लेने वाली अटखेिलयŌ से गोिपयŌ को åरझाते है । साथ ही कृÕण भिĉ सािहÂय म¤
गोिपयŌ कì कृÕण ÿेम कì एक-िनķता , ŀढ़ता और कृÕण ÿेम समपªण कì पराकाķा के दशªन
होते है । इस ÿकार कृÕण भĉ किवयŌ Ĭारा रिचत काÓय तÂकालीन समय कì ÿासंिगकता
को आËयािसत कर रचा गया काÓय है ।
७.२.५ अÆय देवŌ कì आराधना:
यह हम¤ ²ात है िक कृÕण भिĉ काÓय धारा के आधार Öतंभ ®ी कृÕण है । अिधकांशतः
सÌपूणª काÓय कृÕण लीला से भरा पड़ा है लेिकन िहÆदू संÖकृित म¤ तैतीस हजार कोिट देवŌ
को Öथान ÿाĮ है इसी अनुसरण से कृÕण भĉ किवयŌ Ĭारा अिधक तो नहé परंतु यý तý
अÆय देवŌ कì उपासना का उÐलेख है । राम भĉ किव तुलसी दासजी ने कईयŌ काÓय úंथ
िलखे | कृÕण चåरतावली म¤ कृÕण कì आराधना कì लेिकन उनका राम भाव से ÿेåरत ओत-
ÿोत मन राम नाम से तिनक भी दूर न हो पाया । कृÕण के साथ राम नाम को जोड़ना वे भूले
नहé:
‘राम - Öयाम सावन – भादौ, िबनु िजय कì जरिन न जाई ।’
किव नरिसंह ने कृÕण कì अपार भिĉ के साथ िशव, नारद, लàमी आिद देवी देवताओं कì
Öतुित कì है:
‘िशव िवरंची जेनूं Åयान धेरे रे, ते तू जने लाड़ लडावो ।’
किव दयाराम ने भी िशव, लàमी , गणेश, सूयª देव, ®ी जी और िवÕणु, पावªती, सीता आिद
देवŌ कì उपासना कì है । वहé मीरा भी कृÕण के साथ िशव कì भी वंदना करता है:- munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
74 ‘िसव मठ पर सोहै लाल छूआ ।।’
उ°र िसखर पर गौåर िवराजे, दि¸छन िसखर पर बम भोला ।
इस ÿकार अंग देवी देवताओं कì आराधना सभी कृÕण भĉ किवयŌ के काÓय म¤ विणªत है ।
७.२.६ ÿकृित वणªन:
कृÕण भĉ किवयŌ ने काÓय रचना को बाललीला वणªन से अिधक माधुयªता और वाÂसÐय
ÿधान बनाया है । ®ी कृÕण Öवयं ÿकृित के सािÆनÅय म¤ पले बढ़े हòए तो ®ी कृÕण के साथ
ÿकृित का समावेश काÓय म¤ होना Öवभािवक है । ÿकृित कृÕण भिĉ काÓय कì शोभा बढ़ाने
वाली सहायक łप है । कृÕण भĉ किवयŌ ने āज मंडल के ÿाकृितक सŏदयª को अपने काÓय
म¤ Öथान िदया है इÆहोने गोकुल, गोवधªन, यमुना तट आिद ÖथानŌ का वणªन िकया है, वन,
उपवन , पवªत, नदी, वृ±, कुंज, लता, फल, फूल, प±ी, ऋतु मास और सभी ÿकार के वÆय
जीव, जÆतुओं के वणªन ने ÿकृित कì छटा कृÕण भिĉ काÓय म¤ िबखेरी है । सूरदासजी का
ÿकृित वणªन उनके ²ान दशªन का आभास कराता है उÆहŌने āÌहांड के सातŌ ĬीपŌ का
वणªन इस ÿकार िकया है:
‘सातŌ Ĭीप कहे सुकमुिन ने सोई कहत अब सूर ।
जंबु, Èल±, øौच, शाÐमिल , कुश, पुÕकर भरपूर ।।”
कृÕणदास ने वृंदावन का वणªन इस ÿकार िकया है:
‘देखौ राधा – माधौ वन – िवहार , तहा ÿफुिÐलत है केसु अपार
गोवधªन-धर Öयाम चंþमा, जुबितन-लोचन तारौ ।’
नंददास के काÓय म¤ गोकुल कì ÿकृित का वणªन इस ÿकार है:
‘जह नग , खग, मृग, लता कुंज िवŁध-तन जेते ।’
‘दूåर दुåर वन कì ओट कहा िहय लोन लगावै ।’
कृÕण काÓय म¤ ÿकृित वणªन संयोग और िवयोग दोनो ÿकार कì अवÖथा म¤ पराकािķत łप
म¤ िमलता है । संयोग अवÖथा म¤ ÿकृित झूमती, नाचती , हरी भरी और कृÕण के साथ मµन
िदखायी है वहé कृÕण के मथुरा गमन पIJात् गोकुल वािसयŌ के समान ÿकृित भी कृÕण
िवयोग म¤ Óयाकुल ŀिĶगत होती है:
‘अहो अब अहो िनंब कदंब ³यŌ रहे मौन गिह ।।’
७.२.७ रीित तÂवŌ का समावेश:
कृÕण भिĉ सािहÂय िनIJल ÿवृि° से मन को माधुयª, भिĉ और वाÂसÐय भाव से भर देता
है । लेिकन कृÕण भिĉ शाखा के कुछ किवयŌ ने ®ृंगार वणªन म¤ साथ रीित तÂवŌ का समावेश
भी िकया है । इसके अंतगªत ÿमुखत: नायक-नाियका भेद वणªन ÿमुखता से सूरदासजी munotes.in

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कृÕणभिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ
75 रिचत सािहÂय लहरी और नंददास रिचत łप मंजरी और रसमंजरी रचनाओं म¤ उÐलेिखत
है । नंददास कì उĉ रचनाओं म¤ नाियका के नौ भेद और नायक के चार भेद बताये है ।
कृÕण भिĉ काÓय और अĶ छाप के अÆय किवयŌ ने भी नाियका भेद का वणªन यदा-कदा
िकया है ।
‘िकशोरी अंग अंग भ¤टी Öयामिह ।
कृÕण तमाल तरल भुज साखा, लटकì िमली ºयŌ दामहé ।’
७.२.८ सामािजक लोकाचार कì ÿितबĦता :
भारतीय जन -मानस कुछ िविशĶ िनयमŌ को लेकर जीवन Óयतीत करता है ये िनयम पीिढ़यŌ
से चले आ रहे है । ÿÂयेक Óयिĉ उन िनयमŌ के ÿित आदर-सĩावना र खता है । कृÕण काÓय
कालीन समाज इन िनयमŌ कì उपे±ा धमª अवहेलना के समान मानता था । इन िनयमŌ कì
झलक हम¤ संÖकारŌ का िनवाªह, उÂसव Âयोहार के माÅयम से देखने को िमलती है । संयुĉ
पåरवार ÿणाली , बड़े बुजुगō का आदर, गुŁ का सÌमान, पूजा-पाठ, िनÂय-िनयम, जीवन म¤
१६ संÖकार जो जÆम से मृÂयु तक िनभाये जाते है, समय समय पर तीज - Âयोहार आिद
अनेक ÿसंग कृÕण काÓय म¤ कृÕण को आधार मान रिचत है । कुंभनदासजी ने कृÕणजÆम के
समय जातकमª संÖकार का वणªन इस ÿकार िकया है:
‘नंद महåर के पूत भयौ ।
उड़त नवनीत दूध, दही, हरद, तेल, बही चली आतुर िसंधु सåरता सबै ।’
दीपावली Âयोहार का वणªन:
‘झलमल दीप समीप सŏज भåर लेकर कंचन थािलका ।
गावत हँसत गताय हंसावत पटिक करतािलका ।।’
र±ाबंधन Âयोहार का वणªन:
‘राखी बंधावत मगन भाए
दि±णा बहòत िĬजन कौ दीनी , गोप हंकार लाए ।’
७.२.९ ÿेम कì आलौिककता:
कृÕण भिĉ काÓय ²ान कì अपे±ा ÿेम का िचंतन करने वाला है । इसका सबसे ठोस
उदाहरण कृÕण के मथुरा गमन पIJात उĦव को गोिपयŌ को समझाने बुझाने के िलए गोकुल
भेजा जाता है । उĦव जो िक ²ानवान बुिĦमान माने जाते है वह भी कृÕण ÿेम म¤ डूबी
गोिपयŌ के आगे हार मान लेते है । उĦव के िनगुªण वाद, परम āÌह और आÂम चैतÆय के
उपदेशŌ को गोिपयाँ कृÕण के ÿित एक िनķ ÿेम भाव, आÂम समपªण, सगुण भाव और ÿबल
युिĉ से हार जाते है – munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
76 ‘उधो मन नाही दस बीस ।
एक हòतो सो गयो Öयाम संग को आराधै ईस ।’
७.२.१० पाý एवं चåरý-िचýण:
कृÕण कथा के नायक ®ी कृÕण अवतार łपी मानव है । कृÕण महाभारत के नीित कुशल,
Óयवहारी योĦा न होकर गोकुल गांव म¤ नंद-यशोदा के बाल-गोपाल है, साँवले-सलोने नट-
खट भाव िलए सभी को अपनी और आकिषªत करने वाले है । कृÕण काÓय म¤ कृÕण के साथ-
नंद यशोदा गोप-गोपी, सखा उĦव , Ăाता बलराम आिद पाýŌ का उÐलेख है । नाियका łप
म¤ राधा वणªन के िबना कृÕणवणªन अधूरा ही माना जाएगा यý-तý वासुदेव, देवकì का वणªन
िमलता है जो कृÕण के जÆमदाता है | मामा कंस को बुराई कì ÿवृित łप म¤ िदखाकर नĶ
कर िदया गया है । इस ÿकार कथा कì साथªकता हेतु कई पाýŌ का यथेĶ वणªन िकया गया
है।
७.२.११ ऐितहािसक प± :
कृÕण काÓय धारा का तÂकालीन पåरवेश सामािजक, राजनीितक , आिथªक, धािमªक
सांÖकृितक आिद सभी ŀिĶ से देखा जाए तो अÂयंत दयनीय अवÖथा थी । परंतु सािहÂयगत
ŀिĶ से देखा जाए तो कृÕण भिĉ सािहÂय पर उस समय का िदÐली कì राजनीित का कोई
असर िदखाई नहé देता । सूरदास और अÆय अĶ छाप किवयŌ ने वÐलभ सÌÿदाय का
पåरचय िदया है और उनके िनत-िनयमŌ को मान कृÕण Öवłप म¤ मानŌ लीन हो कृÕण भिĉ
आÂम समपªण भाव से कì है ।
७.२.१२ संगीत Öवर भाव:
®ी कृÕण भिĉकाÓय म¤ कृÕण लीला गान, कìतªन, भजन, रास के माÅयम से हòआ है । कृÕण
भĉ सभी किवयŌ ने रास के माÅयम से रस िसĦ गायकì को विणªत िकया है । अĶछाप के
कुशल किव व संगीत² गोिवंदÖवामी कì किवताओं म¤ ÿÂयेक राग का उÐलेख हòआ है ।
साथ ही वाī यýŌ का भी किव ने िवशेष वणªन िकया है ।–
‘सĮसूर तीिन úाम इ³कìस मू¸छªना बाइस िसत मित राग मÅय रंग रा´यो ।
सरगम प ध िन सा ससस न न न ध ध ध ध ध ध प प - ।’
‘नाचत गावत करत कुलाहल, फुली अंग न समात
घर घर मंगला चार मुिþत मन उमंगै āजवासी ।’
इस ÿकार संगीत, नृÂय, सांÖकृितक पåरवेश कì ŀिĶ से तीज-Âयोहार -उÂसव के समय Łिच
अिभŁिच के आधार पर जÐलोष और उमंग के साथ िकये जाते थे । तÂकालीन समय म¤
आनंद Óयĉ करने और मनोरंजन के तौर पर संगीत, नृÂय वाīयंý का ÿयोग होता था ।

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कृÕणभिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ
77 वाīयंý:
‘ताल मृदंग, झांझ और झालरी बाजत सरस सुगंध ।
दुंदुभी, झांझ, मुरज, डफ, वीणा, मृदंग, उपगै तार ।’
७.२.१३ काÓय शैली:
७.२.१३.१ भाषा:
कृÕण भĉ किवयŌ ने āज भाषा म¤ रचना कर, āजभाषा को सािहÂय म¤ एक िविशĶ Öथान पर
पहòँचाया है । कृÕण काÓय म¤ सÌपूणª िवकिसत łप āज भाषा का ही है परंतु ÿारंिभक समय
का कृÕण काÓय अवधी, अपĂंश, शौरसेनी और िपंगल भाषा के शÊदो का ÿयोग समय और
देशकाल, वातावरण के अनुłप हòआ है ।
शÊदावली म¤ शÊदŌ को राग और लय के अनुłप बदल िदया है जैसे –
अिल को अली , िनशा को िनसी , अगाध को अगह आिद
तÂसम शÊद: दिध, मंý, खंजन, अिµन, भुजंग लता आिद
तĩव शÊद: यशोदा को जसुदा, जÆम को जनम , आशा को आसा , पुÕप को पुहòप आिद ।
देशज शÊद: िबताना , चोटी, डेरा, दीठ आिद
िवदेशी शÊद: दरवाजा , बजार, परवाह , महल, िनसान िसकार आिद
इस ÿकार āज भाषा के साथ तÂकालीन समय कì जन भाषा कì शÊदावली का पåरपूणª
ÿयोग कृÕण भĉ किवयŌ ने िकया है ।
७.२.१३.२ रस:
कृÕण भĉ किव पूणªत: भिĉभाव के रस म¤ डूबे हòए थे । उÆहŌने अपने आराÅय के जीवन के
सभी भावŌ को काÓय म¤ िपरोने कì कोिशश कì है । भिĉ भाव म¤ िवभोर कृÕण भĉ किवयŌ
के काÓय म¤ रस कì ÿिचित आयोजन अनुłप न होकर अनायास ही हòई है ।
®ृंगार रस को रसŌ का राजा कहा जाता है ³यŌिक यह रस सवाªिधक आनंददायी होने के
साथ सुंदरता और मधुरता कì पहचान है । ®ी कृÕण को ®ृंगार का राजा माना जाता है ।
कृÕण काÓय म¤ कृÕण-राधा गोिपयŌ कì रास लीला , रािधका का सुÆदर łप कृÕण कì
मनमोहक छिब , āज कì ÿकृित सभी ®ृंगार रस से ओत ÿोत है । ®ृंगार रस के दो ÿकार है
संयोग ®ृंगार और िवयोग ®ृंगार ।
संयोग ®ृंगार का वणªन इस ÿकार है:
‘झूलत राधा मोहन कािलंिद के कूल ।
सूखी सबै चहòं िदस तै आई कमल नयन ओर,
बोलत वचन सुहावने ‘नंददास’ िचतचोर ।’ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
78 िवयोग ®ृंगार:
कृÕण जब मथुरा चले जाते है उस समय गोकुल म¤ कृÕण कì याद म¤ यशोदा गोप-गोिपयां,
राधा, नंद सभी जन-वासी कृÕण को याद कर दू:खी हो जाती है अपनी सुध-बुध खो बैठती है
– िवयोग ®ृंगार का ऐसा वणªन अिधकांश कृÕण भĉ किवयŌ के काÓय म¤ हòआ है ।
‘अब िदन – राती पहार से भाए
तब ते िनघटत नाहीन जब ते हåर मधुपुरी गए ।’
कृÕण काÓय म¤ ®ृंगार रस कì अिधकता है परंतु नव रस का ÿयोग या भाव कृÕण काÓय म¤
हम¤ िमल जाते है जैसे-शांत रस, अĩुत रस हाÖय, रस, वीर रस , कłण रस , रौþ रस ,
भयानक रस , िवभÂस रस वाÂसÐय रस ।
७.२.१३.३ अलंकार:
कृÕण भĉ किवयŌ ने ÿकृित वणªन लोक ÿिसĦ तथा शाľ सÌमत तÂवŌ को काÓय कì
पåरिध माना है । काÓय सŏदयª कì इस पराकाķा से काÓय िसĦांतो का िनमाªण होता है यही
कारण है िक कृÕण भĉ किवयŌ के काÓय म¤ अलंकारŌ का सफल łप देखने को िमलता है ।
अलंकार सŏदयª म¤ उपमा, łपक , उÂÿे±ा, ŀĶांत अितÔयोिĉ, वøता मूलक अलंकारŌ का
ÿयोग अिधक हòआ है जैसे –
उपमा अलंकार:
‘दुितया के ससी लौ बाढे िससु ।’
łपक अलंकार:
‘Öयाम łप चरी आई जब ते हåर आई अंिखया भई री मेरी ।’
७.२.१३.४ शÊद शिĉ:
शÊद शिĉयां तीन ÿकार कì होती है अिमधा, ल±णा Óयंजना । कृÕण भĉ किवयŌ ने ल±णा
शÊद शिĉ का पåरपूणª वणªन िकया है ल±ण के दो भेद – łढ़ी ल±णा और ÿयोजन वती
ल±णा का वणªन कृÕण भिĉ के सÌपूणª काÓय म¤ है । साथ ही तÂकालीन समय कì
पåरिÖथित के अनुłप Óयंजना शÊद शिĉ का पूणª साथªक वणªन कृÕण काÓय म¤ हòआ है
³यŌिक कृÕण काÓय संयोग, Óयोग, िवरोध अथª, सामÃयª, औिचÂय , देश, काल, Óयिĉ, Öवर
अिभनय , वĉा, ÿÖताव , चेĶा आिद पåरिÖथितयŌ से भरा पड़ा है ।
ल±णा शÊद शिĉ :
‘करत ÿवेश रजनी मुख āज म¤ देखत łप Ńदय म§ अटकत ।’
Óयंजना शÊद शिĉ:
‘घट म¤ गंगा घट म¤ जमुना कासी भटकत कौन िफरै ।’ munotes.in

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कृÕणभिĉ काÓयधारा कì िवशेषताएँ
79 ७.३ सारांश कृÕण काÓय सरस काÓय के łप म¤ सवाªिधक ÿचिलत काÓय है । सूरदासजी जैसे महान किव
जो नेýहीन थे िफर भी उनकì भिĉ का मनोभाव आसमान को छेड़ने जैसा था उनके जैसा
कृÕण बाल लीलाओं का वणªन अÆयý असंभव है । कृÕण भिĉ काÓय Öवांत सुखाय काÓय है
इसीिलए कृÕण काÓय पाठक के मन को भाव-िवभोर कर उसे कृÕण भिĉ म¤ अनायास ही
लीन कर देता है ।
७.४ दीघō°री ÿij १. कृÕण भिĉ काÓय कì िवशेषताओं का उÐलेख कìिजए ।
७.५ लघु°रीय ÿij १. अĶछाप के संÖथापक कौन है?
उ°र: िवęल ना थ
२. कृÕण भिĉकाÓय धारा के ÿमुख किव कौन माने जाते है?
उ°र: सूरदासजी
३. ‘भĉन को कहा सीकरी काम ’ िकस किव Ĭारा िलिखत पिĉयाँ है?
उ°र: कुंभनदास
४. कृÕण भिĉ किव मीरा ने कौनसी भाषा म¤ अपने भाव Óयĉ िकये?
उ°र: राजÖथानी
५. कृÕण भिĉ सािहÂय पर िकन सÌÿदायŌ का गहरा ÿभाव रहा ?
उ°र: चैतÆय, िहत, हåरवंश, अĶछाप , हåरदास और राधा Öवामी संÿदाय ।
७.६ संदभª पुÖतक¤ १. भिĉ काÓय याýा - राम Öवłप चतुव¥दी
२. िहÆदी भिĉ काÓय – राम रतन भटनागर
३. अĶछाप किवयŌ के काÓय म¤ लोकतÂव - डॉ. संÅया गज¥
*****
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80 ८
रीितकाल
इकाई कì łपरेखा
८.० इकाई का उĥेÔय
८.१ ÿÖतावना
८.२ रीितकाल कì पृķभूिम
८.२.१ राजनीितक
८.२.२ सामािजक
८.२.३ सांÖकृितक
८.२.४ सािहÂय एवं कला
८.३ सारांश
८.४ लघु°रीय ÿij
८.५ दीघō°री ÿij
८.६ संदभª पुÖतक¤
८.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत पाठ के अÅययन के बाद िनÌनिलिखत मुĥŌ से पåरचय होगा ।
 रीितकाल का वगêकरण एवं उसकì पृķभूिम को समझ पाएँगे ।
८.१ ÿÖतावना रीितकाल अराजकता का काल रहा है । वहé काÓयगत ŀĶी से रीितकालीन काÓय
®ृंगाåरकता ÿधान काÓय रहा है । दरबारी संÖकृित के उĩव के कारण मनोरंजन के हेतु से
दरबार म¤ किवयŌ का किवता ÿÖतुितकरण होता था । अिधकांश रचनाएँ लोलुपता और झूठी
ÿशंसा से उÆमािदत थी । लेिकन जड़ो म¤ पनप रही शिĉहीनता अनदेखी न हो सकì इसी
कारण अÓयवÖथा और असुर±ा का वातावरण बनने लगा और बाहरी शासकŌ के हाथ राºय
और जनता शोिषत होती रही ।
८.२ रीितकाल कì पृķभूिम िकसी भी सािहÂय के िनमाªण म¤ उस समय का युगीन वातावरण का मु´य योगदान होता है,
इसीिलए आचायª शु³ल कहते है िक “सािहÂय जनता के िच°वृि°यŌ का इितहास होता है
िजसके माÅयम से तÂकाल पåरवेश के बारे म¤ जानकारी होती ह§ । उस वातावरण के िनमाªण
म¤ राजनीित, संÖकृित और सािहÂय कला का महßव पूणª योगदान होता है और सािहÂय के munotes.in

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रीितकाल
81 अÅययन के िलए उस समय के युगीन पåरिÖथितयŌ कì जानकारी होना अिनवायª हो जाता
है।” सािहÂय के िविवध कलाओं का िनमाªण तÂकालीन समाज के पåरिÖथितयŌ पर िनभªर
होता है और सािहÂय उस समय का इितहास बन जाता ह§ । िजस ÿकार एक सािहÂय का
असर पड़ता है उसी ÿकार एक सािहÂय का िनमाªण भी समाज कì पृķभूिम पर िनभªर होता
है । मुगलो कì स°ा आने के बाद समाज कì पåरिÖथित बदल गई थी, िजसके कारण
राजनीितक, सामािजक, सांÖकृितक, धािमªक, सािहिÂयक łप से ÿभाव रहा ह§ ।
८.२.१ राजनीितक:
रीितकाल म¤ पूणª łप से शासन मुगलŌ के हाथो म¤ था | भारत म¤ इस काल को चरमोÂकषª
और उसके बाद उ°रो°र öहास, पतन और िवनाश का युग कहा जा सकता है और अंúेजŌ
का आगमन काल देखा जा सकता है । मुगलो म¤ उस समय का शासन काल शाहजहां का
था । जहाँगीर के बाद शाहजहाँ ने ही मुगल स°ा का िवÖतार िकया और उसी समय
ताजमहल और मयूर िसंघासन जैसे ऐितहािसक वैभव का िनमाªण िकया गया । शाहजहां के
मृÂयु कì खबर फैलाने के पIJात १६५८ ई. म¤ उसके पुý औरंगजेब और दारािशकोह के
बीच स°ा के िलए संघषª ÿारंभ हो गया और दारा कì हÂया कर औरंगजेब ने िसंहासन पर
अिधकार जमा िलया उसके उपराÆत जागीरदारŌ, राजाओ और िहÆदुओं म¤ धािमªक उपþव
आरÌभ हो गए । औरंगजेब ने अपने तानाशाही शासन से सभी पर राज िकया ।
१७०७ ई. म¤ औरंगजेब कì मृÂयु के बाद उसके िĬतीय पुý शाहआलम गĥी पर बैठे और
१७१२ ई. म¤ मुगल साăाºय का पतन ÿारंभ हो गया । छोटे-छोटे जागीरदार Öवयं को
Öवतंý घोिषत करने लगे । िवलािसता इतनी अिधक होने लगी िजससे मुगलŌ कì क¤þ स°ा
कì पकड़ धीरे-धीरे ÅवÖत होने लगी । उसके बाद १७३८ ई. म¤ नािदरशाह के आøमण ने
मुगलŌ कì नीव िहला दी और बाद म¤ १७६१ ई. म¤ अहमद शाह अÊदाली के आøमण ने
उनका साăाºय पूरी तरह ÅवÖत कर िदया । इस आøमणो का पूरा लाभ िवदेशी ÓयापाåरयŌ
ने ले िलया और अंúेज भीतर-ही-भीतर शिĉ के łप म¤ १८०३ ई. म¤ उ°री भारत पर
अपना अिधकार जमा िलया और मुगल िसफª नाममाý के िलए ही शासक रह गए । उसके
बाद १८५७ ई. के िवþोह के पIJात् िफर से मुगलो ने स°ा को Öथापन करने का ÿयास
िकया लेिकन वह भी असफल रह गए ।
क¤þ शासन कì िÖथित भी रीितकाÓय के रचना के ±ेý म¤ अवध, राजÖथान, बुंदेलखंड कì
कथा भी इसी ÿकार कì है; िजसमे अवध के िवलासी शासको का अंत भी मुगल साăाºय के
समान ही रहा ह§ । राजÖथान म¤ भी िवलासी ÿवृि° और बहò पÂनी ÿथा के कारण राजपुŁष
भी आंतåरक कलह के िशकार हो गए । बुंदेलो के भले ही मराठŌ से लाभ उठाने का ÿयÂन
िकया परÆतु पारंपåरक ĬषŌ के कारण सफल न रहे और मुगल साăाºय कì तरह ही िहÆदु
रजवाड़Ō का अंत हो गया । इस ÿकार मुगलŌ के पतन का यह काल रहा जहाँ िसफª
िवलािसता रहने के कारण अराजकता ने जÆम िलया ।
८.२.२ सामािजक:
सामािजक ŀिĶ से भी यह काल िवलािसता का युग कहा जाना चािहए । इस काल म¤
सामंतवादी ÿवृि° का अिधक बोलबाला है । सामंतवाद के दोष सवªý ÓयाĮ थे । िजसका munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
82 असर ÿÂय± और अÿÂय± łप से सामाÆय जनता पर पड़ रहा था । िवलासी शासको,
सामंतो अिधकाåरयŌ मनसबदारो के अिधपÂय के कारण जनता उसम¤ शोिषत हो रही थी ।
ऊपर से लेकर नीचे तक शासकŌ का वगª था । शोिषत वगª म¤ कृषक, मजदूर थे िजनपर
अिधक कर लादकर साहóकार शोषण कर रहे थे । सामाÆय जनता के िलए िचिकÂसालय,
िश±ा, आिद का भी कोई ÿबंध नहé था । कायª िसिĦ के िलए उÂकोच िलया करते थे ।
िवलािसता भी उस समय चरम सीमा पर थी िजसम¤ िवलािसता कì बढती ÿवृ°ी के कारण
नारी को अपनी संपि° मानकर उनका भोग करना सामाÆय हो गया था । िवलास के
उपकरणŌ का संúह करना एवं िवलािसता म¤ लीन रहना उ¸च वगª के जीवन का एक माý
ल± हो गया था । मÅयम वगª भी उÆही का अनुसरण करता था । िवलािसता म¤ डूबे होने के
कारण वे अपने संतान कì भी देखभाल नहé कर पाते थे । िश±क तो इस ÿकार होते थे जो
काम कलाओं कì िश±ा देकर कामुकता को पूणª करते थे । लडिकयŌ के साथ छेडछाड,
अभþ Óयवहार, राजकुमारŌ कì िदनचयाª हो गई थी । िवलासी माता िपता कì संताने
अनैितक कायō म¤ लीन थी । िववािहत िľयाँ भी पित से ÿेम ना पाने के कारण अनैितक
सÌबÆध बनाती थी । इस ÿकार उस समय कì सामािजक पåरिÖथित बड़ी भयानक थी जहाँ
पर िसफª शोषण, अÂयाचार, भोग, िवलािसता ही सभी जगह ÓयाĮ थी ।
८.२.३ सांÖकृितक:
सामािजक पåरवेश के सामान ही सांÖकृितक पåरवेश भी दयनीय अवÖथा म¤ थी । जहाँ
अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ कì उदार नीित के कारण िहÆदू-मुिÖलम संÖकृितयो मे जो
समÆवय के भाव थे वे औरंगजेब के शासनकाल म¤ धािमªक कĘरता के कारण िछÆन-िभÆन हो
गए । िवलािसता के कारण धािमªक आÖथाओं का पालन करना किठन हो गया था । वे अपने
झूठे पराøम, दान कì ÿशंसापरक किवता सुनने और भोग-िवलास का उĥीपन करने वाली
रचनाओं म¤ ही Łिच रखते थे । ऐसा काÓय दरबारी कहलाता है, जो आ®यदाताओं कì Łिच
को Åयान म¤ रखकर उनकì कृपा ÿाĮ करने के िलए रचा जाता है । मंिदरŌ, मठो के पीठाधीश
अपनी लोभी ÿवृि° के कारण राज और सेठŌ को गुŁ दी±ा देकर भौितक सुख ÿाĮ कर रहे
थे । मंिदरŌ म¤ ऐĵयª और िवलास होने लगे । िहÆदू और मुिÖलम दोनŌ ही अपने िसĦांतŌ से
दूर होकर कमªकांड और बाĻ आडÌबर कì सीमा तक रहने लगे । ऐसी अवÖथा म¤ धमª के
साथ नैितकता का जो सÌबÆध था वह टूटने लगा था । धमª Öथान पापाचार का क¤þ बन गये
। जनता म¤ अंधिवĵास बढ़ने लगे िजसका फायदा मुÐला-मौलवी और पंिडत-पुरोिहत उठा
रहे थे । उस समय भी पुरानी परÌपरा के सूफì फ़कìर िवīमान थे परंतु िकसी पर भी कबीर,
नानक तथा जायसी जैसी ÿितभा नहé थी । वे øांितकारी पåरवतªन लाने म¤ असमथª थे ।
िकसी पर भी उनकì वािणयŌ का कोई भी असर नहé पड़ रहा था । इस ÿकार िवलािसता के
कारण धािमªक संÖकृित भी ÅवÖत होती िदखाई दे रही थी और हर जगह अनाÖथा,
अंधिवĵास बढता जा रहा था ।
८.२.४ सािहÂय एवं कला:
सािहÂय कला कì ŀिĶ से इस युग म¤ अनेक कलाएं िवकिसत हòई । भारत म¤ अिधकतर मुगल
शासन काल म¤ ही कलाओं का िवकास हòआ । मुगल राजा कला ÿेमी हòआ करते थे । अपने
िवलािसता को पूणª करने के िलए फारसी और िहÆदू शैली के सÌयक संयोग से लिलत munotes.in

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रीितकाल
83 कलाओं का िनमाªण करवाया । मुगलो कì अĩूत और सौÆदयª / कला आगरा के मोटी
मिÖजद और ताजमहल के िनमाªण से देखने िमलती ह§ जो शाहजहाँ ने बनवाया था । इस
काल के दरबारी किव एवं कलाकार रहा करते थे और अपने आ®यदाताओं से उÆह¤ इतना
सÌमान िमलता था िक उनकì भी गणना सामंतŌ म¤ होने लगी थी । अपने आ®यदाताओं कì
अिभŁिचयŌ को Åयान म¤ रख कर वे सािहÂय कलाओं का िनमाªण करते थे । मुगलŌ कì
राजकìय भाषा फारसी थी और भाषा फारसी होने के कारण अलंकार ÿधान शैली का ÿभाव
इस युग के ÿÂयेक भाषा पर पडा । उस समय काÓय भाषा के िलए āजभाषा ही सबसे
िनकटतम भाषा थी । इस काल के ÿÂयेक राजाि®त किव अपने राजाओं को ÿसÆन रखने
के िलए उनकì ÿशंसा एवं ®ृंगाåरक रचनाऐँ करते थे ।
जहाँ तक लिलत कलाओं का सÌबÆध रहा है िचý कला भी काÓय के समान ही ÿचिलत
और समृĦ रही हे । जहाँगीर का राजकÂव काल कला का Öवणªयुग काल कह सकते हे ।
िवशेष łप से राजÖथान और पवªतीय ±ेýो म¤ भी िचýकला के िविभÆन łप देखने िमलते है
। राजÖथान शैली म¤ िचýो का मु´य िवषय रागमाला थी । इसम¤ Ưतुओ का आ®य लेकर
शÊद को रेखाओ और रंगो म¤ बĦ िकया जाता था । इस शैली म¤ िचýŌ का िवषय कृÕणलीला,
नाियकाभेद, बारहमासा रहा है ।
औकांगड़ा शैली म¤ िचýŌ का िवषय महाभारत, पुराण एवं दैिनक जीवन से सÌबिÆधत बाते
रही ह§ । िचýकला के अितåरĉ संगीत का भी िविशĶ Öथान रहा ह§ । िशÐपकला कì भी
िवशेष łप से भÓयता रही है िजसम¤ शाहजहाँ Ĭारा बनवाया गया आगरा का ताजमहल,
िदÐली के लाल िकले, दीवाने खास िवशेष łप से उÐलेखनीय है । समú łप से देखे तो
सािहÂय कला कì ŀिĶ से यह काल संपÆन और उÂकषª का काल कहा जा सकता है ।
८.३ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ िवīािथªयŌ ने रीितकाल का नामकरण एवं वगêकरण, सीमांकन, उसका
शाľीय िववेचन, रीित-úंथŌ कì परÌपरा, रीितकाल का वगêकरण और उसकì पृķभूिम
आिद का अÅययन िकया | िकसी भी ÿकार के सािहÂय के िनमाªण के िलए उस समय का
युगीन वातावरण का मु´य योगदान होता है । इसी वातावरण के िनमाªण म¤ राजनीितक,
सामािजक, सांÖकृितक और सािहÂय कला का महÂवपूणª योगदान होता है । इसी योगदान
से समाज के पåरिÖथितयŌ पर ÿभाव पड़ता है और उसी से इितहास बनता है । यहé
रीितकाल के अंतगªत उĤािटत िकया गया हे ।
८.४ लघु°रीय ÿij १) आ. रामचंþ शु³ल को रीितकाल के नामकरण कì ÿेरणा िकस िवĬान से िमली ?
२) ‘िहंदी सािहÂय के इितहास’ म¤ उ°र मÅयकाल को रीितकाल कì सं²ा िकसने दी है?
३) ‘रस सÌÿदाय’ के ÿवतªक है -
४) ‘काÓयिववेक’ úंथ के रचनाकार है - munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
84 ५) सन १७०७ ई. म¤ औरंगजेब के मृÂयु के बाद गĥी पर कौन बैठा ?
६) ब¸चन िसंह ने रीितकाल को िकतने भागŌ मे िवभािजत िकया है ?
८.५ दीघō°री ÿij १) रीितकाल के नामकरण को ÖपĶ करते हòए शाľीय िववेचन पर ÿकाश डािलए ।
२) रीितकाल का नामकरण और उसकì पृķभूिम पर चचाª कìिजए ।
८.६ संदभª पुÖतक¤ १) िहंदी सािहÂय का इितहास - आचायª रामचंþ शु³ल
२) िहंदी सािहÂय का इितहास - संपादक डॉ. नग¤þ
३) िहंदी सािहÂय का सरल इितहास - िवĵनाथ िýपाठी
४) रीितकाल - डॉ. नग¤þ
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85 ९
रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
इकाई कì łपरेखा
९.० इकाई का उĥेÔय
९.१ ÿÖतावना
९.२ रीितबÅद काÓय-धारा
९.२.१ रीितबÅद काÓयधारा कì ÿमुख ÿवृि°याँ
९.३ रीितिसÅद काÓय-धारा
९.३.१ रीितिसÅद के ÿमुख किव
९.३.२ रीितिसÅद काÓय कì ÿवृि°याँ
९.४ रीितमुĉ काÓय धारा
९.४.१ रीितमुĉ के किव
९.४.२ रीितमुĉ काÓय-धारा कì ÿमुख ÿवृि°याँ
९.५ सारांश
९.६ लघु°रीय ÿij
९.७ दीघō°री ÿij
९.८ संदभª पुÖतक¤
९.० इकाई का उĥेÔय ÿÖतुत पाठ के अÅययन के बाद िनÌनिलिखत मुĥŌ से पåरचय होगा ।
 रीितबÅद काÓय-धारा और उसकì ÿवृि°याँ को िवÖतार जान सक¤गे ।
 रीितबÅद काÓय-धारा और उसकì ÿमुख ÿवृि°यŌ से भिलभाँित पåरिचत हो सक¤गे ।
 रीितमुĉ काÓय-धारा और ÿमुख ÿवृि°यŌ से अवगत हो पाएँगे ।
९.१ ÿÖतावना रीितकाल म¤ अिधकतर ®ृंगाåरक रचनाएं क¤þ म¤ रहé और भिĉ ÿेम कì ÿधानता øमशः
कम होने लगी । पåरणामतः भिĉ म¤ जो ÿेम तßव थे वो मूलतः लौिकक ÿेम म¤ पåरवितªत
होकर ®ृंगाåरक होने लगे । इस ÿकार इस काल कì रचनाएं ®ृंगार ÿधान तथा नायक-
नाियका भेद, नखिशख-वणªन एवं िविवध øìडाओं का रसमयी शैली म¤ िववेचन िकया गया ।
सामािजक पåरिÖथितयŌ को देख कर मुगलŌ के पतन का काल भी कह सकते ह§ । इस समय
िहंदी ±ेý म¤ छोटे-छोटे राजे-नवाब थे जो क¤þीय स°ा Ĭारा अनुशािसत होते थे । munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
86 वीरगाथाकालीन सामंतŌ कì तरह आपस म¤ लड़ नहé सकते थे । इस काल म¤ घोर
अराजकता, िवलािसता के कारण सभी जगह अÂयाचार और दुराचार का ही िवÖतार था
जहाँ राजा िसफª अपनी ÿसÆनता सुन कर उसी म¤ मµन रहते थे उनके आि®त राजदरबारी
किव ®ृंगाåरक रचनाएं िलख कर धन इकĘा िकया करते थे । इस ÿकार इस काल म¤
सािहÂय म¤ भावŌ कì ÿधानता कम रही और अलंकाåरकता अिधक रही । दरबारी किवता म¤
एकरसता तो होती ही है, उसम¤ ÿधानतः मुĉक ही रचने का अवकाश होता है, ³यŌिक
किवयŌ म¤ आ®यदाता के तÂकाल ÿसÆन करने कì होड़ होती है । इसीिलए चमÂकार-
िÿयता, आलंकाåरता, अितशयोिĉ आिद दरबारी किवता कì ÿवृि°याँ बन जाती है । इसके
अितåरĉ कुछ किव वीर ÿधान काÓय भी िलखे गए । िशवाजी, छýसाल जैसे आ®यदाता
पराøमी राजा के िलए भूषण कì किवताएँ ®ृंगारहीन होकर भी वीररसाÂमक ह§ । इसिलए यह
समझना भूल होगी िक इस काल कì सभी रचनाएँ दरबारी ह§ । वÖतुतः दरबारीपन का
िवरोध भी इस काल कì किवता म¤ िमलता है, उÂकृĶ ÿेम कì किवताओं कì भी कमी नहé है
रीितकाल म¤ । दरबारीपन तो रीितकाल कì एक ÿवृि° ही है ।
रीितकाल म¤ ल±ण úÆथ िलखने कì जो पåरपाठी िवकिसत हòई वह संÖकृत के ल±ण- úÆथ
कì रचना करनेवाले आचायŎ से रही ह§ । रीितकालीन किव िनłपण कì ÿिøया म¤ ल±ण
बताकर उदाहरण के łप म¤ ÿिसĦ किवयŌ कì रचनाएँ अपनी बात को सुÖपĶ या ÿमािणत
करने के िलए ÿÖतुत करते थे । ल±ण तो परंपरा से ÿाĮ होते थे, उÆह¤ úंथकार अपने शÊदŌ
म¤ ÿÖतुत कर देते थे, िकंतु किवताओं म¤ उनकì मौिलकता होती थी । इसीिलए कहा जाता
है िक रीितकाल के ल±ण-úंथकार वÖतुतः किव थे, आचायªÂव को तो उÆहŌने किवता करने
का बहाना बना िलया था । फलतः िहंदी म¤ आचायª और किव, दोनŌ एक ही Óयिĉ होने लगे ।
इस ÿणाली से इस काल म¤ ÿचुर एवं उÂकृĶ रचनाएँ हòई ।
रीितकाल के सािहÂय को ÿवृि°गत ŀिĶ से आचायª िवĵनाथ ÿसाद िम® ने रीितबĦ,
रीितिसĦ और रीितमुĉ इन तीन भागŌ म¤ िवभािजत िकया गया है ।
९.२ रीितबĦ काÓय-धारा आचायª िवĵनाथ ÿसाद िम® ने इसका रीितकाल के अंतगªत िवभाजन िकया है इसके
अंतगªत वो सभी काÓय आ जाते ह§ िजसम¤ काÓयŌ का पĪमय ल±ण ÿÖतुत कर Öव रिचत
काÓय ÿÖतुत िकया गया हो और डॉ. नगेÆþ इसे 'आचायª किवयŌ का काÓय' कहा ह§ ।
रीितबĦ काल के अंतगªत उन किवयŌ को समावेश िकया गया है जो रीित के बंधन म¤ बंधे हòए
है िजÆहŌने ल±ण बĦ, शाľीय पĦित का अनुसरण कर रीितúंथ कì रचना कì ह§ । इस
काल के अंतगªत ÿमुख किव - िचंतामिण, मितराम, देव, जसवंत िसंह, कुलपित िम®, सूरती
िम®, सोमनाथ, िभखारीदास, दूहल, रघुनाथ, रिसक गोिवंद, ÿताप िसंह, µवाल ।
९.२.१ रीितबĦ काÓयधारा कì ÿमुख ÿवृि°याँ:
रीितबĦ किवयŌ ने अिधकांश łप से काÓय म¤ रस और अलंकार िनłपण पर ही बल िदया ।
इस काल के राजाओं कì िवलािसतावृि° को तुĶ करने के िलए राºयाि®त किव अनेक
®ृंगाåरक रचनाये िलखते थे; और इस काल कì ®ृंगाåरकता ही ÿमुख ÿवृि°यŌ म¤ से एक थी munotes.in

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रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
87 । राजाओं के पराøम कì ÿशंसा म¤ अनेक ल±णबĦ रचना िलखते गए िजससे किवयŌ को
राजाओं Ĭारा अिधक धन ÿािĮ हो जाती थी । इस ÿकार िविभÆन ÿकार कì ÿवृि°याँ ह§ -
१. किव कमª और आचायª कमª का सÌबÆध:
संÖकृत म¤ सािहÂयशाľ का िनłपण, िववेचन तथा िसĦांत का ÿितपादन करना आचायŎ
का काम था । संÖकृत सािहÂय म¤ किव कमª और आचायª कमª को पृथक माना गया ह§ ।
लेिकन राजाि®त दरबार म¤ सािहÂय शाľ का िनłपण करनेवाला एक ही Óयिĉ आचायª भी
और किव भी था लेिकन आचायª शु³ल ने शाľीय पĦित का अनुसरण करने के पIJात भी
इन किवयŌ को आचायª कì सं²ा नहé दी रीितúÆथ कì रचना करने वाले किवयŌ के
आचायªÂव पर ÿijिचÆह लगाते हòए आचायª शु³ल िलखते है - ’िहंदी के ल±ण úंथŌ कì
पåरपाठी पर रचना करने वाले सैकड़Ō किव हòए वे आचायª कì कोिट म¤ नहé आ सकते वे
वाÖतव म¤ किव ही थे ।“ आचायª कì िवशेषता को िनधाªåरत करते हòए कहते ह§ िक ’आचायªÂव
के िलए िजस सूàम िववेचन या पयाªलोचन शिĉ कì अपे±ा होती है उसका िवकास नहé
हòआ ।“ रीित úंथकारŌ का ÿमुख उĥेÔय किवता करना था शाľ िववेचन नहé अतः किव
लोग एक ही दोहे मे अपयाªĮ ल±ण देकर अपने किव कमª म¤ ÿवृ° हो जाते थे । किवयŌ का
उĥेÔय काÓयŌ का पåरचय देना था । अपने किव° शिĉ का पåरचय देना नहé ।
२. काÓय म¤ ®ृंगाåरकता:
रीितबĦ किवयŌ कì दूसरी ÿमुख ÿवृि° ®ृंगाåरकता है । इन किवयŌ का ®ृंगार वणªन एक
ओर तो शाľीय बÆधनŌ से युĉ है; तो दूसरी ओर िवलासी आ®यदाताओं कì ÿवृि° ने इसे
उस सीमा तक पहòँचा िदया जहाँ यह अĴीलता का संÖपशª करने लगा । नायक-नाियका भेद
का िनłपण ÿायः इसी के अÆतगªत िकया गया है । इस काल म¤ काÓय का मु´य िवषय
नाियका भेद ही रहा है, िजसमे नाियका ®ृंगार łप का आलंबन ह§ और आलंबन के अंगŌ का
वणªन करना ÿमुख िवषय हो गया । इस िवषय पर कई úंथŌ कì रचना हòई । वÖतुतः इन
किवयŌ को वह दरबारी वातावरण ÿाĮ हòआ िजसम¤ Óयिĉ कì ŀिĶ िवलास के समÖत
उपकरणŌ के संúह कì ओर ही रहती है । िनĬªÆĬ भोग म¤ ही जीवन कì साथªकता समझी गई
और नारी को उपभोग कì वÖतु मानकर देखा गया । पुŁष कì समÖत चेĶाएं उसे एक वÖतु
के łप म¤ ही देखती ह§ । िवलास वृि° कì ÿधानता के कारण इनकì सौÆदयª ŀिĶ भी अंग
सौķव, शारीåरक बनावट एवं बाĻ łपाकार तक सीिमत रही, आÆतåरक सौÆदयª के
उĦाटन म¤ उनकì वृि° नहé रही ।
नारी के ÿित सामÆती ŀिĶ होते हòए भी कहé-कहé Öवकìया ÿेम के ŀÔय उपलÊध हो जाते ह§,
अÆयथा सवªý बाĻ सौÆदयª कì ÿधानता िदखाई पड़ती है । संयोग िचýण म¤ जहां सुख वणªन
एवं िवपरीत रित का िचýण है, वहां अĴीलता का समावेश हो गया है । िवयोग वणªन के
अÆतगªत रीितमुĉ किवयŌ - घनानÆद, आिद ने Ńदय कì िवकलता का मािमªक एवं
अनुभूितपरक िचýण िकया । इस पर डॉ.भागीरथ िम® ने रीितकालीन किवयŌ कì इस
®ृंगाåरकता पर िटÈपणी करते हòए िलखा है - ’उनका ŀिĶकोण मु´यतः भोगपरक था,
इसिलए ÿेम के उ¸चतर सोपानŌ कì ओर वे नहé जा सके । ÿेम कì अनÆयता, एकिनķता,
Âयाग, तपIJयाª, आिद उदा° प± उनकì ŀिĶ म¤ बहòत कम आए ह§ ।“ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
88 ३. भारतीय काÓयशाľ परÌपरा का सुबोध वणªन:
भारतीय काÓयशाľ म¤ िविभÆन सÌÿदाय रहे ह§ लेिकन रीितबĦ किवयŌ ने िविशĶ एक
सÌÿदाय के ÿित अपनी ÿितबĦता घोिषत नहé कì ³यŌिक इनका उĥेÔय काÓयशाľीय
िसĦांतŌ का Óया´या करना नहé था बिÐक संÖकृत काÓयशाľ म¤ रिचत काÓयांगŌ को
लोकभाषा म¤ ÿितपादन करना था । किवयŌ ने काÓयशाľीय परÌपरा को अपनाकर अपने
अनुकूल भाषा म¤ úंथŌ कì रचना करने के उपरांत उÆहŌने आधार úÆथ के łप म¤ ®ृंगार रस
और नाियका भेद के िलए रसमंजरी, रस तरंगनी, चंþलोक आधार िलया । इसी ÿकार
संÖकृत कì काÓयशाľीय रचना भी सरल łप से लोकभाषा म¤ भी उपयोग होने लगी ।
४. आलंकाåरकता:
रीितकालीन किवयŌ के काÓय म¤ अलंकार इनकì ÿमुख िवशेषताओं म¤ से एक है । किवताओं
को िविभÆन अलंकारŌ के माÅयम वे दरबारी किव रचनाएं करते थे और अपने किव कमª कì
साथªकता समझते थे । अलंकारŌ के ÿित इनका मोह अित ÿबल था, अतः वे किवता म¤
अलंकारŌ का अिधक ÿयोग करते थे । केशव तो अलंकार िवहीन किवता को 'सुÆदर' मानते
ही नहé भले ही वह अÆय िकतने ही गुणŌ से युĉ ³यŌ न हो इसिलए काÓय म¤ अलंकारŌ कì
अिनवायªता घोिषत कर कहते ह§ -
जदिप सुजाित सुल¸छनी सुवरन सरस सुवृ° ।
भूषन िबनु न िवराजई किवता बिनता िम° ।।
इस ÿकार कÐपना कì ऊँची उड़ान, चमÂकार ÿदशªन कì ÿवृि° एवं पािÁडÂय ÿदशªन
रीितकालीन काÓय म¤ आलंकाåरकता के कारण ही आया है । यमक, Ĵेष, अनुÿास जैसे
शािÊदक चमÂकार कì सृिĶ उसम¤ पयाªĮ कì गई है तो दूसरी ओर उसम¤ उपमा, łपक,
उÂÿे±ा, अितशयोिĉ जैसे - भाव िनłपक अलंकारŌ का भी सुÆदर ÿयोग हòआ है । रीितबĦ
किवयŌ के िलए अलंकार शाľ कì जानकारी एक अिनवायªता थी, ³यŌिक इसके िबना उसे
सÌमान िमलना किठन था, पåरणामतः इस काल म¤ आलंकाåरकता खूब फली-फूली ।
अलंकार जो किवता का 'साधन' है । इस काल म¤ 'साÅय' बन गया ।
५. आ®यदाताओं कì ÿशंसा :
रीितबĦ के अिधकांश किव राजदरबारŌ म¤ आ®य ÿाĮ थे । देव, भूषण, सूदन, केशव,
मितराम, आिद सभी ÿिसĦ किव राजदरबारŌ से वृि° ÿाĮ करते थे, अतः यह Öवाभािवक
था िक वे अपने आ®यदाताओं कì ÿशंसा म¤ काÓय रचना करते । देव ने अपने आ®यदाता
भवानी िसंह कì ÿशंसा म¤ 'भवानी िवलास' िलखा तो सूदन ने भरतपुर के राजा सुजानिसंह
कì ÿशंसा म¤ 'सुजान चåरत' कì रचना कì । वीर रस के ÿिसĦ किव भूषण ने िशवाजी कì
ÿशंसा म¤ 'िशवा बावनी' एवं छýसाल बुÆदेला कì ÿशंसा म¤ 'छýसाल दशक' कì रचना कì ।
भूषण जैसे कुछ को यिद छोड़ िदया जाए तो रीितकाल के अिधकांश किवयŌ Ĭारा कì गई
आ®यदाताओं कì ÿशंसा अितशयोिĉपूणª है । किवयŌ का गुणगान करना अनचाही िववशता
थी । किवयŌ को दरबार से बाहर करने के िलए भी षड्यÆý चलते रहते थे, अतः
आ®यदाताओं को ÿसÆन रखने के िलए उÆह¤ ÿयÂनशील रहना पड़ता था । Öवतः Öफूतª munotes.in

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रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
89 काÓय रचना कì ÿवृि° राजनीितक जोड़-तोड़ एवं दांव-पेच म¤ लीन इन किवयŌ म¤ हो ही नहé
सकती थी ।
६. ÿकृित – िचýण:
ÿकृित का वणªन भी रीितबĦ किव अलंकार के łप म¤ िकया करते थे । रीितबĦ किवयŌ ने
आलÌबन łप म¤ ÿकृित िचýण ÿायः बहòत कम हòआ है जबिक आलंकाåरक łप म¤ तथा
उĥीपन łप म¤ अिधक हòआ है । परÌपरागत łप म¤ षड्ऋतुवणªन एवं बारहमासा का िचýण
भी उपलÊध होता है; िकÆतु उसम¤ मौिलकता एवं नवीनता नहé है । देव, मितराम,
िभखारीदास आिद किवयŌ के ÿकृित िचýण इसी ÿकार के ह§ । सेनापित ÿकृित िचýण कì
ŀिĶ से रीितकाल के सवª®ेķ किव माने गए ह§ । उनके Ĭारा िकया गया वषाª ऋतु का वणªन
उÐलेखनीय है जैसे
सेनापित उनए नए जलद सावन के
चाåरहó िदसान घुमरत भरे तोय कै ।
सोभा सरसाने न बखाने जात केहó भांित ।
आने ह§ पहार मानŌ काजर के ढोय कै ।।
इसी ÿकार रीितबĦ के एक अÆय किव पĪाकर का वसंत वणªन भी अÂयÆत मनोहारी बन
पड़ा है । यथाः
Ĭार म¤ िदसान म¤ दुनी म¤ देस-देसन म¤
देखी दीप दीपन म¤ िदपत िदगंत है ।
बीिथन म¤ āज म¤ नवेिलन म¤ वेिलन म¤
बनन म¤ बागन म¤ बगयō वसंत है ।।
ÿकृित के अनेक उपमान-कमल, चÆþमा, चातक, हंस, कोयल, मेघ, पवªत, पुÕप आिद लेकर
इÆहŌने नाियका के अंग-ÿÂयंगŌ का सुÆदर िचýण िकया है ।
७. āजभाषा का ÿयोग:
रीितकालीन किवयŌ कì काÓय रचना āजभाषा म¤ रही है । रीितकाल म¤ केवल āज±ेý के
किवयŌ ने ही āजभाषा म¤ काÓय रचना नहé कì अिपतु āज±ेý के बाहर के िहÆदी किवयŌ ने
भी āजभाषा म¤ ही काÓय रचना कì । जैसे - 'िभखारीदास' जी ने िलखा है:
āजभाषा हेत āजवास ही न अनुमानौ
ऐसे ऐसे किवन कì बानी हò सŏ जािनए ।
ÖपĶ है िक रीितकाल तक आते-आते āजभाषा Óयापक काÓय भाषा के łप म¤ Öवीकृत हो
चुकì थी । रीितकालीन āजभाषा अपने शÊद-सौķव, अनुÿासंिगकता, मधुरता एवं munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
90 पदलािलÂय के कारण काÓयभाषा के िलए पूणª उपयुĉ बन चुकì थी, िकÆतु उसम¤ किवयŌ ने
मनमानी तोड़- मरोड़ थी ।
८. आलोचनाÂमक ŀिĶ का अभाव:
रीितबĦ कालीन किवयŌ म¤ आलोचनाÂमक ŀिĶ का अभाव रहा ह§ उनका उĥेÔय िसफª किव
िश±ा ही रहा ह§ इसिलए उÆहŌने िसफª काÓय शाľीय úंथो का अनुवाद माý िकया । उÆहोने
ल±णŌ के आधार पर सािहÂय कì रचना कर सािहिÂयक योगदान िदया ह§ । दरबारी ÿवृि°
के कारण उÆहŌने काÓय Öतुित म¤ ही कायª िकया उनकì ŀिĶ आलोचनाÂमक नहé बन पायी
वे भले ही काÓयशाľीय úंथो का िनłपण िकया िसफª काÓयŌ म¤ अलंकाåरकता और
शाľीयता लाने के िलए आलोचना नहé कì उनम¤ ÿायः आलोचनाÂमक ŀिĶ का अभाव रहा
ह§ ।
९. जीवन के ÿित एिहक ŀिĶकोण:
रीितबĦ किवयŌ का जीवन के ÿित ŀिĶकोण एिहक रहा ह§ वे आदशªवादी नहé थे । वे
भिĉकाल के किवयŌ के भाित संसार के सुख दुःख को छोड़कर वैराµय धारण करना उनका
ÿितपाī नहé था । वे ऐिहक जीवन के िविभÆन अंगŌ को देख नहé पाएं इसीिलए उनके
जीवन म¤ तÂकाल पåरिÖथित तथा जीवन के िवलासी अंक का िचýण िकया । िजस पåरवेश
म¤ रहते थे वे उसी का िचýण करते थे उनका ŀिĶकोण यथाथªवादी रहा ह§ । वे उस समय के
समाज को काÓय म¤ अिभÓयĉ करते थे जो उनके úाहक थे । उनका समपªण राजा-रजवाड़Ō,
सामंतŌ के ÿित रहता था । इसके अलावा भी वे समाज के अÆय वगŎ के जीवन का भी परो±
िचýण करते ह§ । उनके काÓय म¤ ल±ण के उदाहरण Öवłप कÐपना के साथ-साथ अपने युग
के सामािजक जीवन कì िविवध रंग छटाएं भी िवīमान थी ।
९.३.२ रीितिसĦ काÓय कì ÿवृि°याँ:
रीितिसĦ काÓय किवयŌ से िवशेषताओं के कारण िभÆन ह§ इÆहŌने कभी रीित úÆथ परÌपरा
के अनुसार शाľीय बĦ रचना नहé कì परÆतु रीित कì भाँित ही वे भी अलंकाåरक और
®ृंगाåरक रचना के पारंगत थे यह पूणªतः रीित ²ाता थे । िजनका काÓय शाľीय ²ान से
आबĦ था लेिकन उनके ल±णŌ के च³कर म¤ नहé पड़े । आचायª िवĵनाथ ने ऐसे किवयŌ को
रीितिसĦ किव कì सं²ा देकर रीितबĦ किवयŌ से िभÆन रखा है । रीितिसĦ के ÿितिनिधÂव
किव िबहारी, रसिनिध, नृपशÌभू, नवाज, हठीजी, पजनेश आिद ह§ । उनम¤ से ÿिसĦ किव
िबहारी रहे है िजनका एक माý úÆथ िबहारी सतसई है ।
१. बहò²ता एवं चमÂकार ÿदशªन:
रीितबĦ किवयŌ म¤ पािÁडÂय ÿदशªन कì जो ÿवृि° पåरलि±त होती है, उसके कारण
रीितिसĦ किव काÓय म¤ िविवध िवषयक ²ान का समावेश करके अपनी बहò²ता ÿदिशªत
करते थे । जैसे िबहारी ने अपने काÓय म¤ ºयोितष, पुराण, आयुव¥द, गिणत, कामशाľ,
नीित, िचýकला आिद अनेक िवषयŌ कì जानकारी समािवĶ है । िबहारी ने अपने काÓय म¤
ºयोितष के राजयोग ÿकरण का उÐलेख िनÌन दोहे म¤ है : munotes.in

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रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
91 सिन कºजल चख झख लगन उपºयो सुिदन सनेह ।
³यŌ न नृपित है भोगवै लिह सुदेस सब देह ।।
इसी ÿकार आयुव¥द ²ान का पåरचय उनके िनÌन दोहे से ÿाĮ होता है । िवषम ºवर का
उपचार 'सुदशªन' चूणª से होता है । सुदशªन का िĴĶ ÿयोग करते हòए चमÂकार ÿदशªन कì
ÿवृि° का पåरचय भी यहां िदया गया है :
यह िवनसत नग रािख क§ जगत बड़ो जस लेहò ।
जरी िवषम ºवर ºयाइए आइ सुदरसन देहò ।।
रीितिसĦ किवयŌ ने भी रीितबĦ कì तरह ही काÓय म¤ यमक, Ĵेष, अनुÿास जैसे
शÊदालंकारŌ का ÿयोग चमÂकार ÿदशªन हेतु िकया गया है । वÖतुतः इस काल म¤ शÊदŌ कì
प¸चीकारी एवं कला कì रमणीयता पर ही अिधक Åयान िदया गया । ये लोग इसी को किव
कमª समझते थे । वÁयª िवषय कì मािमªकता एवं भावÓयंजना पर इÆहŌने उतना Åयान नहé
िदया िजतना अलंकार योजना पर िदया ।
२. भिĉ एवं नीित :
िबहारी ने िजस ÿकार ®ृंगाåरक रचना म¤ महारत हािसल कì उसी ÿकार उÆहŌने भिĉ और
नीित कì रचनाएं िलखकर गागर म¤ सागर भर िदया । इनके काÓय कì ÿशंसा करते हòए
डॉ.नगेÆþ के कहते है - ’रीितकाल का कोई भी किव भिĉभावना से हीन नहé है - हो भी नहé
सकता था, ³यŌिक भिĉ उसके िलए मनोवै²ािनक आवÔयकता थी । भौितक रस कì
उपासना करते हòए उनके िवलास जजªर मन म¤ इतना नैितक बल नहé था िक भिĉ रस म¤
अनाÖथा ÿकट कर¤ अथवा सैĦािÆतक िनषेध कर सक¤ ।“ िबहारी के कई दोहे है जो भिĉ
परक है; लेिकन राधाकृÕण के नाम पर िलखी गई रचनाओं म¤ भिĉभावना ÿमुख न होकर
®ृंगार भावना ÿमुख है । जैसे -
रीिझ ह§ सुकिव जोतौ जानौ किवताई ।
न तौ रािधका-कÆहाई सुिमरन को बहानो है ।।
रीितिसĦ किव िबहारी कì कृित 'सतसई' म¤ ७० दोहे भिĉभावना के ह§ । नीित सÌबÆधी
उिĉयां भी इन किवयŌ ने पयाªĮ माýा म¤ िलखी ह§ । दरबारी वातावरण के सतसई म¤ नीित के
अनेक दोहे उपलÊध है; यथा -
नर कì अŁ नल नीर कì गित एकै कåर जोय ।
जेतो नीचौ है चले तेतो ऊंचो होय ।।
घाघ, बेताल, वृंद एवं िगरधरदास ने नीित सÌबÆधी ÿचुर काÓय कì रचना कì थी । वृंद
सतसई म¤ नीित सÌबÆधी सुÆदर उिĉयŌ को काÓय łप िदया गया है । यथा -
भले बुरे सब एक सम जौ लŏ बोलत नांिह ।
जािन परत ह§ काग िपक åरतु वसंत के मांिह ।। munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
92 इस ÿकार िबहारी के काÓय म¤ ®ृंगाåरकता के साथ साथ भिĉ और नीित के भी दोहे
ÿभािवत łप से ŀिĶपात है ।
३. ÿाकृितक वणªन:
रीितिसĦ काल म¤ किवयŌ के ÿकृित का वणªन ÿायः उĥीपन हेतु िचýण िकया है । ®ृंगार के
संयोग प± एवं िवयोग प± को अिभÓयĉ करने के िलए ÿकृित का वणªन िविभÆन अवÖथा म¤
िकया गया है । िबहारी ने अपने काÓय म¤ ÿकृित का ÿयोग काÓय म¤ अिधकतर संयोग प± को
ÿधानता दी िजसम¤ उÆहŌने षट ऋतू वणªन एवं बारहमासा का वणªन िकया है; िजसमे िबहारी
के दोहे इस ÿकार है -
रिनत भृंग घंतावली झåरत दान मधुनीर ।
मंद मंद आवतु चाÐयो कुंजर कुज समीर ।।
कहलाने एकत बसत अिह मयूर मृग बाघ ।
जगतु तपोवन सो िकयो दीरघ दाध िनदाघ ।।
ÿकृित के अनेक उपमान किव ने नाियका के अंको कì ®ृंगाåरकता को अिभÓयĉ करने के
िलए नख िशख वणªन िकये है ।
४. ®ृंगार कì सरस अिभÓयिĉ:
®ृंगाåरक रचना करना रीितकालीन किवयŌ कì ÿधान िवशेषता ह§ । संयोग प± हो या िवयोग
प± रीितिसĦ किवयŌ कì ®ृंगाåरक रचना अĩुत ह§ । ®ृंगाåरक रचना म¤ रीितिसĦ किवयŌ ने
इसे ल±णबĦ िकया लेिकन रीित िसĦ किवयŌ ने इसे सामान łप से िलखा िजसम¤ कोई भी
िनयम या शाľीय बंधन नहé थे । इसी कारण ®ृंगाåरक रचना म¤ रीितबĦ किवयŌ कì तुलना
म¤ रीितिसĦ किवयŌ कì रचनाओं म¤ रस-संचार कì ±मता अिधक पायी जाती ह§ जैसे िबहारी
के काÓय म¤ राधा-कृÕण के ®ृंगाåरक संयोग-प± को इस ÿकार अिभÓयĉ करते ह§ जैसे-
बतरस लालच लाल कì, मुरली धरी लुकाय
सŏह करे भौहनी हंसे, दैन कहे, नटी जाइ ।
इनके ®ृंगार कÐपना म¤ जो मधुरता झलकती है यह रीित बĦ किवयŌ म¤ नहé ह§ । इसके
अलावा ऋतू वणªन, बारामासा वणªन, नखिशख वणªन को रीितिसĦ किवयŌ ने िवशेष łप से
इÆह¤ काÓय का िवषय बनाया ह§ ।
५. āजभाषा का पåरÕकृत łप:
भाषा कì ŀिĶ से रीितिसĦ किवयŌ कì भाषा अिधकतर āज ही रहé ह§ वह भी काÓय म¤
āजभाषा का ÿयोग लोक भाषा ही रही ह§ । िबहारी के भाषा के संदभª म¤ आचायª शु³ल कहते
ह§ ’िबहारी कì भाषा चलाती होने पर भी सािहिÂयक ह§ और शÊदŌ के łप का Óयवहार एक
िनिIJत ÿणाली पर ह§ यह बात बहòत कम किवयŌ म¤ पायी जाती ह§ ।“ āज के साथ-साथ
इनके शÊदŌ म¤ अरबी-फारसी शÊदŌ का उपयोग करते ह§ जैसे िबहारी के दोहे - munotes.in

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रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
93 सघन कु¼ज, छाया सुखद सीतल सुरिभ समीर ।
मन हवे जात अजŏ, वा जमुना के तीर ।।
āज भाषा म¤ कोमलता, अथª ÿधानता, ÓयंजनाÂमकता कì माýा अिधक पायी जाती ह§ । रीित
िसĦ किवयŌ ने अपने काÓय म¤ āज भाषा को ही अपनाया ह§ ।
६. भावप± एवं कलाप± का समÆवय:
रीितिसĦ किवयŌ कì रचनाएं ल±णबĦ तथा शाľीयबĦ न होने के कारण काÓय म¤ भाव
प± और कलाप± कì ÿगÐभता िमलती ह§ । रीितबĦ किवयŌ म¤ शाľीयबĦता होने के
कारण उनके काÓय म¤ भाव प± नीरस बन गया और उनम¤ कला कì ÿधानता अिधक रही
परÆतु रीितिसĦ काÓय म¤ भावप± और कलाप± का समÆवय रहा । जैसे -
जपमाला छापा ितलक सरे न एकौ काम ।
मन कांचे नाचे बृथा साँचे रांचे राम ।।
कनक-कनक ते सौगुनी मादकता अिधकाय ।
वह खाए बौराय नर, यह पाए बौराय ।।
इस ÿकार इनकì किवता कì कÐपना म¤ नवीनता ही नहé बिÐक भाव और कला का
लािलÂय भी ह§ ।
७. अलंकार का ÿयोग:
रीितबĦ किवयŌ कì भाँित ही रीित िसĦ किवयŌ कì रचनाओं म¤ भी अलंकार योजना
िनपुणता के िविवध łप देखने िमलते ह§ जैसे अनुÿास, Ĵेष अलंकारŌ का ÿयोग अिधक
łप से िकया जाता ह§ । िकसी-िकसी दोहŌ म¤ कई अलंकार उलझ पड़े ह§ परÆतु उसके कारण
उनके काÓय म¤ भĥापन नहé आया । जैसे असंगित और िवरोधभास कì मािमªक ÿिसĦ
उिĉयां -
ŀग अŁइत टूटत कुटुम, जुरत चतुर िचत ÿीित ।
परित गाँठ दुजªन िहए, दई नई यह रीित ।।
तंýीनाद किब° रस, सरस राग रित रगं ।
अनबूड़े बूड़े तरे, जे बूड़े सब अंग ।
इस ÿकार काÓय म¤ अलंकारŌ का ÿयोजन सही łप म¤ िकया है ।
८. शुĦ कलाÂमक ŀिĶकोण:
रीितिसĦ किवयŌ का कलाÂमक ŀिĶकोण शुĦ ही रहा है रीितबĦ किवयŌ का कलाÂमक
प± शाľीयता से अिधक जुड़ा हòआ था । इसके िवपरीत रीितिसĦ किवयŌ का कलाÂमक
ÿयोजन शाľीय रिहत शुĦ ÿयोजन था िजसके संदभª म¤ आ. िम® कहते है िक ’िहंदी
सािहÂय के इितहास म¤ शुĦ सािहÂय कì ŀिĶ से काÓय-िनमाªण करनेवालŌ कì सं´या munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
94 रीितकाल म¤ इसी ŀिĶ से काÓय िनमाªण करनेवालŌ कì सं´या इसकì अपे±ा िनिIJत ही
Æयून-ÆयुÆतर है ।“ शुĦ कलाÂमकता का ताÂपयª काÓय िनखार से है । जो िबहारी, नवाज
आिद किवयŌ म¤ िदखाई देती है जो चाँद अशिफ़ªयŌ के िलए काÓय नहé िलखते थे बिÐक
काÓय कì ÿितबĦता के कारण उनके काÓय म¤ शुĦ कलाÂमकता िनखरती है ।
९. मुĉक काÓय łप:
मुĉक काÓय धारा का सही िवकास रीितिसĦ सािहÂय म¤ देखा जा सकता ह§ । िजसम¤ गाथा
सĮशती का नाम इस परÌपरा म¤ सवªÿथम आता है । यह जीवन को सहजता से सरल łप
से िचýाÂमक शैली म¤ ÿÖतुत करनेवाला ÿथम मुĉक काÓय है । इसके अलावा मुĉक काÓय
म¤ जो गुण होते है िबहारी के दोहŌ म¤ भी पुणªतः िवīमान िदखाई देते है । इनकì रचनाओं को
देखकर मुĉक काÓय के संदभª म¤ आचायª शु³ल का कहना है िक ’मुĉक म¤ ÿबंध के समान
रस कì धारा नहé रहती िजसम¤ कथा ÿसंग कì पåरिÖथित म¤ अपने को भूला हòआ पाठक
मµन हो जाता है और Ńदय म¤ Öथायी ÿभाव úहण करता ह§ । इसम¤ तो रस के ऐसे छीटे पड़ते
ह§ िजनसे Ńदयकािलका थोड़ी देर के िलए िखल उठती है ।“
९.४ रीितमुĉ काÓयधारा रीित मुĉ वह काÓय-धारा है जो शाľीय तथा ल±ण úंथो से मुĉ हŌ । जो Öव¸छÆद łप से
िलखा गया काÓय हो । कई किव रीित शाľŌ का िनłपण न करके अपने अनुभूितयŌ के सही
अिभÓयिĉ कì तलाश म¤ ÖवछÆद łप से रचनाएं िलखी एक तरह से ये किव अनुभूित और
अिभÓयिĉ के धरातल पर िवþोही थे । इनका िवþोह काÓय रीितयŌ के ÿित ही नहé तÂकाल
समाज के सामािजक - राजिनितक पåरिÖथितयŌ के िवŁĦ भी था । इस काÓय धारा के
किवयŌ म¤ अिधकतर ÿबंध काÓय कम िलखकर ®ृंगाåरक तथा फुटकल रचनाय¤ िलखी ह§ ।
इनकì रचनाएं सभी मुĉक शैली म¤ रहती ह§ । इसम¤ भाव कì ÿधानता अिधक होती ह§ । इस
काÓय धारा के ÿमुख किव रसखान, घनानंद, आलम, ठाकुर आिद सभी रीितमुĉ
काÓयधारा के अंतगªत है इÆहŌने ल±णबĦ रचना नहé िलखी । यह सािहÂय धारा
रीितसािहÂय के ÿितिøयाÂमक łप से िवकिसत हòई है िजसके संदभª म¤ डॉ.भागीरथ िम®
जी कहते है िक ’वाÖतव म¤ यह रीित मुĉ होने कì छटपटाहट रीितकाल के आरÌभ म¤ नहé
िमलती, वरन यह युग उ°राधª म¤ िवकिसत हòई ह§ ।“ रीितमुĉ किवयŌ कì रचनाओं को ŀिĶ
म¤ रखकर आ. शु³ल ने उÆह¤ िनÌन वगŎ म¤ िवभĉ िकया जा सकता ह§ - ÖवछÆदवादी किव,
रीितमुĉ ÿबंधकार, रीितमुĉ सूिĉकार, रीितमुĉ पīकार ।
१. रीित परÌपराओं का िवरोध:
रीितमुĉ काÓय म¤ रीित परÌपराओं कì पåरपाठी पर नहé चला बिÐक उनम¤ उनका िवरोध
िदखाई देता ह§ . जैसे - ल±णबĦ रचना के ÿितिøया के łप म¤ ÖवछÆद धारा के काÓय कì
रचना िदखाई देती ह§ । इनकì रचनाओं म¤ बाĻांग सजानेवाले उपकरण नहé पाए जाते ह§
अथाªत अितशयोिĉ का ÿयोग कम िदखाई देता है । इनके काÓयŌ म¤ काÓयशाľीय ढंग से
िलखे रचनाओं को उपेि±त रखा जाता ह§ तथा संवदेना कì धरातल पर काÓय कì रचना
करके आंतåरक भाव को अिभÓयĉ िकया गया ह§; जैसे - ठाकुर के काÓय म¤ रीित-परÌपरा
का िवरोध इस ÿकार िदखाई देता ह§ - munotes.in

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रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
95 “डेल सो बनाय आय मेलत सभा के बीच
लोनत किव° िकबŌ खेली कåर जाने ह§ ।”
यह िवरोध अनुभूित और अिभÓयिĉ दोनŌ धरातल पर हòआ ह§ ये किव काÓयŌ के बाĻांग के
सजानेवाले तßवŌ को अनावÔयक मानते थे । देखा जाए तो इनका मुĉक सािहÂय रीित-
अ²ान कì उपज नहé ह§ । ये काÓयशाľ से भी भली भाित पåरिचत थे ।
२. काÓयगत ÖवछÆद ŀिĶकोण:
रीितकाÓय म¤ अनुशासन कì ÿधानता िदखाई देती ह§ लेिकन रीितमुĉक काÓय म¤ अनुभूित
को ÿधानता दी ह§; िजससे उनकì रचनाएं Öवछंद अनुभूित का काÓय ह§ । उÆहŌने आंतåरक
भाव को ही सवōपरी रखा ह§ । जैसे - ’रीित सुजान स¸ची पटरानी बुिĦ बावरी है कर दासी ।“
वे किव° शाľीयता पर नहé बिÐक ÖवछÆद भाव धारा ÿेम पर िवĵास करते थे । ÿेम भाव
धारा कì ŀिĶ से घनानंद रीितमुĉ धारा के सवª®ेķ किव ह§ इनकì ÿशंसा करते हòए आ.
शु³ल जी िलखते ह§ -
’ÿेममागª का ऐसा ÿवीण और धीर पिथक तथा जवाÆदानी का ऐसा दावा रखनेवाला
āजभाषा का दूसरा किव नहé हòआ ।“वे संवेदनाओंको सहजता से ÿगट करने म¤ िवĵास
करते थे । वे हमेशा राजा®य म¤ रहे लेिकन चाटुकाåरता कì ÿवृि° को नहé अपनाया ।
घनानंद किव ने तो अपना राजा®य तक खो िदया लेिकन अपनी आंतåरक ÿवृि° पर
ÿितबÆध नहé लगाया ।
३. भाव-ÿवणता:
रीितमुĉ किवयŌ म¤ भाव ÿवणता इनकì काÓयधारा कì ÿमुख िवशेषता रही ह§ । मनुÕय म¤
भावना कì ÿवीणता रहती ह§ । हर मनुÕय भावनाÂमक łप से एक दुसरे से जु़ड़ा होता ह§
रीित मुĉक किवयŌ ने इÆहé भावनाओं को अपनी किवता का मूल आधार बनाया ह§ तथा
यथाथªता को महßवकम िदया ह§ । वे दूसरी दुिनया म¤ रमे रहते ह§ और भावनाÂमकता के
कारण ही इनकì काÓयŌ म¤ रहÖयाÂमकता िदखाई देती ह§ । इनकì रहÖयाÂमकता बोधा के
काÓय म¤ िदखाई देता है
जैसे–
अित खीन मृनाल के तारहóँ त¤, तेिह ऊपर पाँव दे आवनो है ।
सुई बेह के Ĭार सकै न तहां, परतीित को टाडो लादावनो है ।।
भावुकता के कारण इनके काÓय म¤ एक िवल±ण माधुयª रमता हòआ िदखाई देता ह§ िजसके
कारण कहé-कहé रहÖयाÂमकता कì झलक िदखाई देती है Ńदय ही उ°ेजना ÿवेग के साथ
इनका काÓय लहराता हòआ अिभÓयĉ होता है ।
४. वैयिĉकता:
काÓय म¤ Óयिĉ कì वैयिĉकता कì झलक िदखाई देती ह§ । िजसम¤ अनुभूित और भावना का
िम®ण रहता ह§ इसिलए वैयिĉकता इनके काÓय कì एक िवशेषता ह§ । रीित मुĉक किवयŌ munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
96 ने अपनी िनजी अनुभूितयाँ किवताओं के माÅयम अिभÓयĉ िकया ह§ जैसे–ठाकुर कì ÖपĶ
वािदता और लोकंमुख भाषा, िĬजदेव का ÿाकृितक ÿेम, घनानंद कì भावोþेकता आिद ।
इस ÿकार रीितमुĉ काÓय म¤ किवयŌ ने िनजी वैयिĉकता उनकì िवशेषता रही ह§ ।
५. ÿेम का उĥंत Öवłप:
काÓय म¤ ÿेम के तßव कì ÿधानता आिदकाल से ही िदखाई देती है परÆतु रीितकाल म¤ िवशेष
łप म¤ िमलती ह§ । रीितमुĉक के ÖवछÆद किव ÿेम के मतवाले किव थे । इनका ÿेम ना ही
शारीåरक था न काÐपिनक था न पुÖतकìय था उनका ÿेम शुĦ भावŌ के धरातल पर
अलौिकक था । इनके ÿेम म¤ िवरह कì ÿधानता अिधक पायी जाती है । जहां ÿेम उनके िलए
साधना भी है साÅय भी । इनका ÿेम िवलािसता और वासना के Öतर से अिधक ऊँचा
िदखाई देता ह§ । जैसे बोधा का काÓय सुजान के ÿित जो ÿेम भाव है वो लौिकक ना होकर
अलौिकक हो गया है जैसे–
एक सुभान के आनन पे, कुरबान जहाँ लिग łप जहाँ को ।
जािन िमले तो जहान िमले तो जहान कहाँ को ।
६. नारी के ÿित नया ŀिĶकोण:
रीितमुĉ काल के किवयŌ का नारी के ÿित ŀिĶकोण उदा° रहा ह§ । उनके ÿित सौÆदयª
भाव का वणªन किवयŌ ने सूàम एवं उĥत łप से िकया ह§ । इसके पूवª रीितिसĦ और
रीितबĦ सािहÂय म¤ नारी के ÿित ŀĶ, वासनायुĉ और कलुिषत रहा ह§ । रीितकालीन
किवयŌ के नारी का वणªन िसफª शारीåरक नख िशख वणªन है िजससे कामुकता को बढ़ावा
िमलता रहा लेिकन रीित मुĉ ÖवछÆद किवयŌ कì ŀिĶ आÖथा कì रहé है इसिलए उÆहŌने
नख िशख वणªन कì पåरपाठी को Âयागकर सौÆदयª का वणªन अनुभूित के धरातल पर िकया
ह§ । जैसे–ÿेयसी का सौÆदयª िचýण करने के िलए उनकì अनोखी उÿे±ाएं अÂयंत आकषªक
बन जाती ह§ िजसका मनोरम वणªन िनÌन ÿकार से है -
Ôयाम घटा िलपटी िथर बीजू के, सोहे अमावस अंग उºयारी ।
घूम के पुंज म¤ ºवाल कì माल सी, पे ŀग सीतलता सुखकारी ।।
७. ÿाकृितक िचýण:
रीित-किवयŌ ने ÿकृित का िचýण सौÆदयªबोध तथा िवरह म¤ बारहमासा और उĥीपन के łप
म¤ िकया ह§; जो कì यहाँ रीितकाल कì एक पåरपाटी के łप म¤ िनवाªह हòआ ह§ । यहाँ पर
ÿकृित का अपना मूल łप नहé एक परÌपरागत शÊदŌ, िबÌबŌ के łप म¤ वणªन हòआ ह§ । यह
िवशेषता रीितमुĉ काÓय किवयŌ म¤ भी िवīमान ह§ इÆहŌने ÿकृित के सौÆदयª का वणªन
िविभÆन
łप म¤ िकया ह§ िजसम¤ किव कì रागाÂमकता िदखाई देती ह§ जैसे–किव िĬजदेव के काÓय म¤
ÿकृित वणªन-
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रीितकालीन काÓय एवं ÿवृि°याँ
97 ’डोली रे िवकासे तŁ एकै
सू एकै रहे ह§ नवाइकै सौसिह ।
ÂयŌ िĬजदेव मरांड के Óयाजही
एकै अनंद के आंसू बåरसिहं । तैसेउ के अनुराग भरे
कर पÐलव जोåर के एकै असीसाही ।।“
इसके अितåरĉ बोधा ने िवशेष łप से ÿकृित िचýण म¤ वषाª ऋतु म¤ हो रही वाåरश को 'िवरह
वाåरश' के łप म¤ विणªत िकया ह§ ।
८. भाषा का ÿयोग:
रीितमुĉ काÓय म¤ किवयŌ ने भाषा का ÿयोग लोग भाषा के सहज łप म¤ िकया ह§ इनकì
भाषा ÿायः संगीत और लय गुणŌ से युĉ ह§ । इनम¤ कही भी कृिýमता ल±णबĦता नहé पायी
जाती । रीित-मुĉक किवयŌ कì भाषा अिधकतर टकसाली āजभाषा है और अथª गाÌभीयª,
मधुर तथा ÿांजल भी ह§ । इनके भाषाओं म¤ कहé-न-कही अिभÓयिĉ के धरातल पर अरबी
और फारसी सािहÂय के ²ाता थे इसिलए इनकì भाषा म¤ फारसी शैिलयŌ का ÿभाव िदखाई
देता ह§ । भाषा म¤ काÓय सौÆदयªता लाने के िलए ÿतीक, łपक, लोकोिĉयाँ आिद भाषा-
तßवŌ से भाषा कì अथªवता म¤ वृिĦ िदखाई देती ह§ । डॉ. मनोहर लाल गौड़ के शÊदŌ म¤
‘ठाकुर ने लोकोिĉयŌ के ÿयोग Ĭारा, रसखान ने मुहावरŌ Ĭारा, आनंदघन ने ल±णा,
मुहावरŌ, Óयाकरण- शुिĦ आिद गुणŌ से भाषा के ÖवŁप को सुसंÖकृत बनाया ह§ ।’
९. मुĉक रचनाएं कì ÿधानता:
मुĉक रचनाएं रीितमुĉ काÓय कì ÿधान िवशेषता रहé ह§ । वह ÿबंध काÓय म¤ नहé बंधे रहे
अपनी भावŌ को अिभÓयĉ करने के िलए मुĉक शैली को अपनाया ह§ । मुĉक किवता के
संदभª म¤ आ. शु³ल जी कहते ह§ “यिद ÿबंधकाÓय एक िवÖतृत वनÖथली है तो मुĉक एक
चुना हòआ गुलदÖता” मुĉक काÓय म¤ Ńदय कì ÿधानता होती ह§ जो Ńदय म¤ एक Öथायी
भाव úहण करता ह§ । रीित-मुĉ काÓय का ÿायः अिधकतर किवयŌ ने मुĉक रचनाएं िलखी
ह§ ।
उपयुªĉ िववेचन से िनÕकषªतः कहा जाता ह§ िक रीितमुĉ काÓय िहंदी सािहÂय का अमूÐय
काÓय धारा ह§ । िजस ÿकार ÿेम के पीर किवयŌ ने ÿेम के उदा° ÖवŁप को लोगो तक
पåरिचत करवाया तथा दूसरी और रीितकालीन काÓयधारा कì पåरपाठी से किवता को मुिĉ
िदलाई । भाषा कì शिĉ का अĩुत ÿयोग कर Ńदय कì अनुभूितयŌ को ÿभावी łप से ÿकट
िकया और ÿेम के उĥंत तÂव को काÓय के माÅयम से लोगŌ तक पहòंचायाँ ।
९.५ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ िवīािथªयŌ ने रीितिसÅद, åरितबÅद और रीितमुĉ कì ÿवृि°यŌ का
अÅययन िकया है । इस रीितकाल म¤ अनेक राजाओंके आ®य म¤ किव रहा करते थे । उनका
मनोरंजन करने के िलए यही किव ®ृंगाåरक रचनाओंका िनमाªण करते थे। यही ®ृंगाåरकता munotes.in

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िहंदी सािहÂय का इितहास
98 रीितकाल के ÿमुख ÿवृि°यŌ म¤ से एक रही है । इसी ÿवृि°यŌ को िवīाथê इस इकाई के
माÅयम से समझ सक¤ ।
९.६ लघु°रीय ÿij १) आ. रामचंþ शु³ल ने रीितकाल का आरंभ करनेवाले किव िकसे माना है?
२) िबहारी िकस काÓय-धारा के ÿमुख किव है?
३) रसिनिध का वाÖतिवक नाम ³या था?
४) घनानंद िकस बादशाह के यहाँ मुंशी थे?
५) 'काÓय िनणªय' िकस किव कì रचना है?
६) तृप शंभु किव िकसके पुý थे?
९.७ दीघō°री ÿij १) रीितबÅद काÓय-धारा कì ÿवृि°यŌ को ÖपĶ कर¤ ।
२) रीितिसĦ काÓय-धारा कì ÿमुख ÿवृि°यŌ पर ÿकाश डाल¤ ।
३) रीितमुĉ काÓय-धारा के ÿवृि°यŌ पर िवशद चचाª कर¤ ।
४) रीितकाल के ÿमुख किवयŌ पर ÿकाश डाल¤ ।
९.८ संदभª पुÖतक¤ १) िहंदी सािहÂय का इितहास - आ. रामचंþ शु³ल
२) िहंदी सािहÂय का इितहास - सं. डॉ. नग¤þ
३) िहंदी सािहÂय का आलोचनाÂमक इितहास - रामकुमार वमाª
४) िहंदी सािहÂय का दूसरा इितहास - डॉ. ब¸चन िसंह रीितकाल - डॉ. नग¤þ
५) िहंदी सािहÂय का सव¤दनाÂमक िवकास - रामÖवłप चतुव¦दी

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