Comparative-Study-Theoratical-तुलनात्मक-साहित्य-–-सैद्धांतिक-M.A-Sem-IV-Hindi-4-munotes

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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
इकाई की रूपरेखा
१.० आकाइ का ईद्ङेश्य
१.१ प्रस्तावना
१.२ तुलनात्मक साहहत्य का ऄथथ
१.३ तुलनात्मक साहहत्य की व्युत्पहि
१.३.१ तुलनात्मक साहहत्य की पररभाषा
१.३.२ तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
१.४ तुलनात्मक साहहत्य का प्रारंभ
१.४.१ तुलनात्मक साहहत्य - भारतीय परम्परा
१.४.२ तुलनात्मक साहहत्य - पाश्चात्य परम्परा
१.४.२.१ फ्रेंच
१.४.२.२ जमथन
१.४.२.३ ऄमेररकन (यू.एस.)
१.५ तुलनात्मक साहहत्य वतथमान संदभथ में
१.६ सारांश
१.७ दीघोिरी प्रश्न
१.८ लघुिरीय प्रश्न
१.९ वस्तुहनष्ठ प्रश्न
१.१० संदभथ ग्रंथ
१.० इकाई का उद्देश्य १. आस पाठ का ऄध्ययन करने के बाद अप तुलनात्मक साहहत्य के ऄथथ, स्वरूप और
व्युत्पहि को समझेंगे ।
२. भारतीय तुलनात्मक साहहत्य की परम्परा को समझ पायेंगे ।
३. पाश्चात्य तुलनात्मक साहहत्य की परम्परा को समझ पायेंगे ।
४. तुलनात्मक साहहत्य का अधुहनक समय महत्व से ऄवगत हो पायेंगे ।

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तुलनात्मक साहहत्य (सैद्चांहतक)
2 १.१ प्रस्तावना




१.२ तुलनात्मक साहहत्य का अथथ अथथ:
तुलनात्मक साहहत्य (Comparative literature ) वह हवद्या शाखा है हजसमें दो या दो से
ऄहधक हभन्न भाषाओं, राष्ट्रीय या सााँस्कृहतक समूहों के साहहत्य का ऄध्ययन हकया जाता
है । साहहत्य का तुलनात्मक ऄध्ययन हवश्व के मानव समाज को समझने के हलए व्यापक
दृहि देता है । तुलनात्मक साहहत्य राष्ट्रीय, भौगोहलक और ऄनुशासनात्मक सीमाओं के
पार साहहत्य और सांस्कृहतक ऄहभव्यहि के ऄध्ययन से सम्बन्ध रखता है । तुलनात्मक
साहहत्य ऄंतराथष्ट्रीय भाषाओं और कलात्मक परंपराओं को समझने में मदद करता है, ताहक
हवहभन्न देशों की संस्कृहतयों को 'ऄंदर से' समझा जा सके ।
तुलनात्मक साहहत्य साहहहत्यक ऄध्ययन के ऄन्य रूपों के हवपरीत, तुलनात्मक साहहत्य
ऄथथव्यवस्था, राजनीहतक गहतशीलता , सांस्कृहतक अंदोलनों, ऐहतहाहसक बदलाव , धाहमथक
ऄंतर, शहरी वातावरण , ऄंतराथष्ट्रीय संबंध, सावथजहनक नीहत के भीतर सामाहजक और
सांस्कृहतक ईत्पादन के ऄंतः हवषय हवश्लेषण पर जोर देता है ।
हेनरी एच. एच. रेमाक ने तुलनात्मक साहहत्य की पररभाषा आस प्रकार दी है- “ तुलनात्मक
साहहत्य एक राष्ट्र के साहहत्य की पररहध के परे दूसरे राष्ट्रों के साहहत्य के साथ तुलनात्मक
ऄध्ययन है तथा यह ऄध्ययन कला, आहतहास, समाज हवज्ञान, धमथशास्त्र अहद ज्ञान के
हवहवध क्षेत्रों के अपसी सम्बन्धों का भी ऄध्ययन है ।” तुलना मानव की सहज प्रवृहि है ।
तुलना मनुष्ट्य के हवकहसत महस्तष्ट्क की हजज्ञासा से ईत्त्पन्न हुइ ज्ञान-यात्रा है । मानक हहंदी
कोश में ‘तुलना’ शब्द के ऄथथ हदए हैं- ‘‘( कााँटे, तराजू अहद पर रखकर तौला जाना। )
ऄथवा दो या ऄहधक वस्तुओं के गुण, मान अहद के एक-दूसरे से तारतम्य, बराबरी,
समता, ईपमा या हगनती करने को कहा जा सकता है ’’। ईसी प्रकार ‘तुलनात्मक’ शब्द को
स्पि करते हुए हलखा है - ‘‘हजसमें दो या कइ चीजों के गुणों की समानता और ऄसमानता
हदखलाइ गइ हो । हजसमें हकसी के साथ तुलना करते हुए हवचार हकया गया हो ।
१.३ तुलनात्मक साहहत्य की व्युत्पहि तुलनात्मक साहहत्य ऄंग्रेजी के कंपैरेहटव हलटरेचर का हहंदी ऄनुवाद है । एक स्वतंत्र हवद्या
शाखा के रूप में देश-हवदेश के हवहभन्न हवश्वहवद्यालयों में आसके ऄध्ययन- ऄध्यापन के कायथ
को अजकल हवशेष महत्व हदया जा रहा है । ऄंग्रेजी के कहव मैथ्यू ऄनाथल्ड ने सन १८४८
में ऄपने एक पत्र में सबसे पहले कंपैरेहटव हलटरेचर वाक्य का प्रयोग हकया था । munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
3 भारत में वषथ १९०७ में रवीन्रनाथ टेगौर ने हवश्व साहहत्य का ईल्लेख करते हुए साहहत्य के
ऄध्ययन में तुलनात्मक दृहि की अवश्यकता पर ज़ोर हदया था तथा मानव आहतहास की
सााँस्कृहतक धारा के सहज ऄध्ययन और हवकास के हलए तुलनात्मक साहहत्य के ऄध्ययन
पर बल हदया ।
तुलनात्मक साहहत्य के हवषय में एक स्वतंत्र ऄध्ययन को मान्यता देना अज भी हववाद
ग्रस्त हवषय है । तुलनात्मक साहहत्य का भी एक दृहिकोण है । एक प्रवृहि और एक
तकनी है ।
तुलनात्मक साहहत्य, एक साहहत्य (हसंगल हलटरेचर) के ऄध्ययन से ऄलग है ।
एक साहहत्य का ऄध्ययन जहां साहहत्य के सीहमत ऄध्ययन के हदशा की ओर संकेत करता
है, व तुलनात्मक साहहत्य में साहहत्य के व्यापक ऄध्ययन की हदशा की ओर ले जाता है
। यहााँ तुलना आस बात की नहीं होती हक कौन सा साहहत्यकार श्रेष्ठ है बहल्क तुलना आस बात
की होती है हक दोनों साहहत्यकारों में समानता और हभन्नता के हबंदु कौन-कौन से हैं ? कहााँ
भाव-संवेदना- हवचार- कला एक दूसरे के साथ हमलते हैं कहां ऄलग हैं । एक दूसरे को
पहचानना तथा स्वीकारने की हदशा में पाठक को ले जाते हैं वतथमान समय में आसकी हवशेष
अवश्यकता है ।
परंतु प्रारंभ में ही आस शाहब्दक ऄथथ को लेकर हववाद रहा क्योंहक साहहत्य एक
कहानीकार, कहव अहद की सृजनशील कलात्मक ऄहभव्यहि है तो वह हकसी तरह भी
तुलनात्मक नहीं हो सकता है । साहहत्य सृजन की प्रहिया ऄपने अप में पररपूणथ होती है
और एक साहहत्य सृहि में कहीं दूसरे साहहत्य के साथ तुलना ईनके साहहत्य में ऄहभव्यि
युगीन संदभथ, समाज, आहतहास अहद की तुलना की जा सकती है ।
जैसे-कबीर और नानक का तुलनात्मक ऄध्ययन ।’’ ‘ऄध्ययन’ के बारे में स्पि हकया है-
‘‘हकसी हवषय के सब ऄंगों या गूढ़ तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करने के हलए ईसे देखना, समझना
तथा पढ़ना ।’’ आन शब्दों को ज्ञात करने पर तुलना का सरल एवं व्यावहाररक ऄथथ है- हकन्हीं
दो वस्तुओं या व्यहियों का कहतपय समान गुणों के अधार पर पूणथतया जानने के हलए
परीक्षण या तुलना करना ।
तुलना शब्द ईपरोि सरल ऄथथ से हटकर शोध के क्षेत्र में एक हवहशि, हनहश्चत एवं संकुहचत
ऄथथवाची हो गया है । आसे भाषा-हवज्ञान में ऄथथ संकोच कहा जाता है । तुलना करते समय
हकन्हीं दो वस्तुओं में शत प्रहतशत तुलना-समानता संभव नहीं है ऄत: तुलना में कुछ
हवषमता, ऄसमानता एवं हवपरीतता भी सहज अती है । वैषम्यमूलक ऄध्ययन भी
तुलनात्मक ऄध्ययन का एक ऄंग है ।
तुलनात्मक ऄध्ययन के ऄंतगथत हकन्हीं दो समकालीन या हवषमकालीन समान गुणात्मक
प्रतीत होनेवाली कृहतयों का ऄध्ययन हकया जाता है। यह ऄध्ययन दो युगों, दो भाषाओं एवं
दो व्यहियों का हो सकता है । यह ऄध्ययन गंभीर, वैज्ञाहनक, तटस्थ, सांगोपांग एवं
हनष्ट्कषथमूलक होना चाहहए ।
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तुलनात्मक साहहत्य (सैद्चांहतक)
4 १.३.१ तुलनात्मक साहहत्य की पररभाषा:
ऄनुसंधान के समान तुलनात्मक साहहत्य तथा तुलनात्मक ऄनुसंधान पहश्चमी साहहत्य से
हलया गया है । तुलनात्मक ऄध्ययन को ऄनके पाश्चात्य एवं भारतीय हवद्वानों ने पररभाहषत
करने की कोहशश आस प्रकार की है-
हवश्वकोशात्मक क्सफोर्थ हर्क्शनरी में तुलना के हवषय में हलखा है:
‘‘तुलना, हकन्हीं दो वस्तुओं में समान गुणों एवं ऄंतरों का ईद्घाटन या प्रस्तुतीकरण ऄथवा
आन्हीं हवशेषताओं का संयोजन है । तुलना कभी-कभी अरंभ में संभावनापूणथ लग सकती है ।
पर ऄंतत: ईससे कुछ भी हसद्च न हो सके, यह भी होता है ।’’ ईपयुथि पररभाषा तुलना-
प्रहिया को स्पि करती है । तुलना में वस्तुओं का समता-हवषमता हमलना हनहश्चत नहीं
मानती ।
प्रहसद्ध हवश्वकोशकार वेबस्टर ने तुलना के अथथ और आशय को बहुत हवश्वसनीय ढंग से
स्पष्ट हकया है:
‘‘दो या दो से ऄहधक वस्तुओं के समान एवं ऄसमान तत्वों को ज्ञात करने के हलए ईन्हें
साथ रखकर पररहक्षत करना । दो वस्तुओं की ऄसमानता की मात्रा का पता लगाने के हलए
भी तुलना की जाती है । दो वस्तुओं के साम्य-वैषम्य की हनष्ट्पक्ष जााँच के हलए तथा हनष्ट्कषथ
प्राहप्त के हलए भी तुलना की जाती है ।”
रेने वेलेक पासनेट के अनुसार ‘‘साहहहत्यक हवकास के सामान्य हसद्चांतो का ऄध्ययन
हनश्चय ही तुलनात्मक साहहत्य का महत्वपूणथ ऄंग है ।”
पैररस जमथन स्कूल के अनुसार ‘‘तुलनात्मक साहहत्य हवहवध साहहत्यों के पारस्पररक
संबंधों का ऄध्ययन है ऄथवा ऄंतराथ य साहहहत्यक संबंधो का आहतहास है या हिर वह
साहहत्येहतहास की एक शाखा है ।”
र्ॉ. नगेंद्र तुलनात्मक साहहत्य को स्पष्ट करते हुए हलखते हैं:
‘‘तुलनात्मक साहहत्य जैसे नाम से ही स्पि है साहहत्य का तुलनात्मक दृहि से ऄध्ययन
प्रस्तुत करना है । तुलनात्मक साहहत्य एक प्रकार का साहहहत्यक ऄध्ययन है जो ऄनेक
भाषाओं को अधार मानकर चलता है और हजसका ईद्ङेश्य होता है, ऄनेकता में एकता का
संधान ।”
वसंत बापट के अनुसार ‘‘तुलना को ऄहधक व्याख्याहयत कर हो तो साधम्र्य और
वैधम्र्य, ईद्गम और प्रभाव आन चार दृहियों से हकया गया शोध, ऐसा कहना होगा ।’’ बापट जी
की पररभाषा शोध की प्रहिया एवं ऄंगो की अरे आंहगत करती है । तुलना में अधारभूत बातें
कौन-सी हैं ईनको स्पि करती हैं ।”
र्ॉ. सरगु कृष्णमूहतथ तुलना के बारे में हलखते हैं:
‘‘तुलनात्मक ऄनुसंधान हवहभन्न भाषा-साहहत्यों की कृहतयों एवं हस्थहतयों का तुलनात्मक
हववेचन प्रस्तुत करता हुअ, हवहभन्न भाषाओं एवं क्षेत्रों में ध्वहनत मानव जाहत के रृदय एवं munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
5 महस्तष्ट्क में पररलहक्षत भाव साम्य का समुद्घाटन कर हवश्व-मानवता की एकता का हनरूपम -
हवश्लेषण करता है ।’’ कृष्ट्णमूहतथ जी की पररभाषा तुलना के एक ईद्ङेश्य को स्पि करनेवाली है
। तुलनात्मक ऄध्ययन के माध्यम से हवश्वमानव की एकता स्पि होनी चाहहए, आस पर बल
देती है ।
ईपयुथि पररभाषा में साम्य और वैषम्य पर ऄहधक बल हदया है । आसमें तुलना वस्तुओं से
तात्पयथ दो कृहतयों, लेखकों, साहहहत्यक प्रवृहियों, हवचार प्रणाहलयों अहद का साम्य -वैषम्य
हनहहत है ।
१.३.२ तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप:
ईपयुथि पररभाषाओं के अधार पर तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप स्पि होता है ।
तुलनात्मक साहहत्य साहहहत्यक समस्याओं का वह ऄध्ययन है, जहााँ एक से ऄहधक
साहहत्यों का ईपयोग हकया जाता है । तुलनात्मक साहहत्य के ऄध्ययन में प्रत्येक ऄध्याय
या पृष्ठ में तुलनात्मक होने की अवश्यकता नहीं पर ईसकी दृहि, ईद्ङेश्य तथा कायाथन्वयन
को तुलनात्मक होना चाहहए । यहााँ एक से ऄहधक से तात्पयथ एक से ऄहधक भाषाओं,
रचनाकारों, कृहतयों, युगों, प्रवृहियो से है । तुलनात्मक साहहत्य में समता- हवषमता का
ईद्घाटन कर ऄध्ययन कताथ को दोनों हवषयों की पूणथ प्रकृहत और सीमाओं का पूणथ ज्ञान हो
जाता है । तुलनात्मक ऄध्ययन की पूणथता तथा वैज्ञाहनकता के हलए कृहतयों पर पडे प्रभावों
एवं साम्य-वैषम्य के कारणों की खोज करनी पडती है । तुलनात्मक साहहत्य के स्वरूप को
स्पि करते हुए कहा जा सकता है हक-
तुलनात्मक साहहत्य, साहहत्य को राष्ट्रीय तथा भाहषक सीमाओं से परे, ईस समग्र रूप में
ग्रहण करता है । यह साहहत्य के बाह्य रूपों को महत्व न देकर ईसके अंतररक तत्त्वों को ही
रेखांहकत करता है । तुलनात्मक साहहत्य ऄनेकता में एकता की भावना से प्रेररत, मानव
संस्कृहत की एक्यता तथा ऄनेक साहहत्यों के तुलनात्मक ऄध्ययन से जुडा हुअ है ।
१.४ तुलनात्मक साहहत्य का प्रारम्भ हकसी भी हवधा या पद्चहत के प्रारंभ एवं हवकास के ऄध्ययन से ईसके आहतहास का पता
चलता है । हजससे ऄध्ययन में स्पिता एवं वास्तहवकता अ जाती है । कल, अज और कल
का पता चलता है । तुलनात्मक साहहत्य ऄंग्रेजी के ‘कम्पैरेहटव हलटरेचर’ का हहंदी ऄनुवाद
है । ‘‘आस पद का प्रथम प्रयोग ऄंग्रेजी के मैथ्यू अनथल्ड ने सन् १८४८ में ऄपने एक पत्र में
हकया था ।’’
प्रारंभ में आसके शाहब्दक ऄथथ को लेकर हववाद रहा क्योंहक साहहत्य हवधा कलाकार की
सृजनशील ऄहभव्यहि होती है, हिर वह तुलनात्मक कैसे हो सकती है? ऄत: ‘तुलनात्मक
शब्द’ साहहत्य सृहि के संदभथ में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता । ‘ऐहतहाहसक ऄथथहवज्ञान’ के
सहारे रेने वेलेक ने आस समस्या को हल करने का प्रयास हकया ।
ईनके ऄनुसार ‘‘तुलनात्मक शब्द में तुलना करने की प्रहिया जुडी हुइ है और तुलना में
वस्तुओ को कुछ आस प्रकार प्रस्तुत हकया जाता है, हजससे ईनमें साम्य या वैषम्य का पता
लग सके ।’’ आसी दृहि से ऄंग्रेजी में तुलनात्मक शब्द का प्रयोग लगभग सन् १५९८ इ. से हो munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य (सैद्चांहतक)
6 रहा है । तत्पश्चात सन् १८८६ इ. में ऄपनी हकताब का शीषथक ‘कम्पैरेहटव हलटरेचर’ रखकर
सवथप्रथम एच. एम. पॉसनेट ने आ हवद्याशाखा को स्थाहयत्व प्रदान करने का प्रयास हकया
था ।
आन बातों से यह ऄवश्य स्पि होता है हक बीसवीं सदी के प्रारंभ से ‘कम्पैरेहटव हलटरेचर’ पद
का प्रयोग शुरू हो गया था ।
भारत में सन् १९०७ इ. में रवींरनाथ ठाकुर ने ‘हवश्व साहहत्य’ का ईल्लेख करते हुए
साहहत्य के ऄध्ययन में तुलनात्मक दृहि की अवश्यकता पर जोर हदया था । भारत में
तुलनात्मक ऄध्ययन के प्रारंभ के संबंध में ए. बी. साइ प्रसाद ने कहा है ‘‘बीसवी सदी से ही
हम तुलना शब्द को शब्द का पयाथयवाची शब्द मान आस्तेमाल करते अ रहे हैं ।
आसके पहले यह शब्द भारत में प्रचहलत नहीं था ।’’
१.४.१ तुलनात्मक साहहत्य - भारतीय परम्परा :
प्रत्येक भाषा एवं साहहत्य की ऄपनी भाहषक प्रकृहत होती है । तुलनात्मक ऄध्ययन करते
समय ईसके शब्द, वाक्य, पद, व्यंजना, ऄलंकार, प्रादेहशक छहवयों अहद का ईद्घाटन होता
है । दोनों भाषाओं के साम्य-वैषम्य से हम भाषा की प्रकृहत का ऄनुमान लगा सकते हैं । एन.
इ. हवश्वनाथ ऄय्यर के ऄनुसार ‘‘तुलनात्मक ऄध्ययन से हवहभन्न भाषाओं में रहचत
साहहत्य का रसास्वादन तो होगा ही साथ ही हम गंभीरता से समीक्षा प्रधान ऄथवा काव्य-
शास्त्रीय ऄध्ययन करना चाहते हैं तो हमें बडी मात्रा में सामग्री हमलेगी । चररत्र-हचत्रण, प्रकृहत
वणथन, परंपरा, कहव-समय, हबंब हवधान, अख्यान शैली, छंद, कल्पना, हमथक, पररकल्पना
अहद हकतने ही क्षेत्रों में हम नए-नए साहहहत्यक ऄनुभव प्राप्त कर सकते हैं ।
डॉ. पी. एम. वामदेव ने भी भारत में तुलनात्मक ऄध्ययन स्वतंत्रता प्राहप्त के बाद तीव्र गहत
से चलने की बात कही है । हहंदी में भहि एवं रीहत कालीन कहव तुलसी, सूर, केशव अहद ने
ऄपने कहव रूप के संबंध में जो ऄनूठी ईहियााँ कही हैं, ईनमें हहंदी के तुलनात्मक
ऄनुसंधान के बीज हनहहत हैं । भारतेंदु जी ने नाटकों के हववेचन में तुलनात्मक चेतना को
प्रदहशथत हकया । हमश्रबंधु अहद ने देव, हबहारी की तुलना कर श्रेष्ठ-कहनष्ठ को स्थाहपत हकया
। महावीर प्रसाद हद्ववेदी, अ. रामचंर शुक्ल ने भी आसे हवकहसत हकया ।
फ्रीडररख श्लेगल ने १७९८ में ‘सावथभौम काव्यकला’ की बात कही थी और ईसके 25 वषथ
के बाद गोआते ने ‘हवश्व साहहत्य’ का संकेत या था । आन दोनों के ईल्लेख ऄवधारणाओं का
अशय यह है हक साहहत्य में- वस्तुतः सवोत्कृि कहवयों के कृहत के तत्व रूप में हवद्यमान
प्रहतहनहध साहहत्य में- सदा ही कुछ ऐसा तत्व बना रहता है, हजसे समान रूप से समस्त
मानव जाहत का दाहयत्व माना जा सकता है और आसी कारण हजसमें आतनी व्याहप्त होती है
हक वह मानवीय ऄनुभव के प्रत्येक पक्ष को ऄपने में समा सकता है । तुलनात्मक साहहत्य
ऄध्ययन में मानवी ऄनुभव और कलात्मक ईत्कषथ के आस सीमा हवस्तार को समझने का
प्रयत्न हकया जाता है । तुलनात्मक साहहत्य ऄध्ययन में समानताओं की खोज की जाती है
और हिर ईन ईपलहब्धयों के अलोक में पाठालोचन और कृहत का वैज्ञाहनक पहलू प्रस्तुत
करते हैं । राजशेखर ने ठीक ही कहा था- ‚ नाहस्त ऄचौरः कहवजन: ‛ (ऄथाथत कभी दूसरे से munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
7 ग्रहण तो करते हैं, हकंतु वह चोर नहीं है) । जाने ऄनजाने में ही वे ऄन्य कृहत कारों से ऐसे
तत्व ऄंगीकार करते रहते हैं, जो ईन्हें हकसी भी दृहि से ग्रहणीय जान पडते हैं ।
भारतीय साहहत्य में अधुहनक लेखकों ने वतथमान समय में भी प्राचीन साहहत्य-ऋग्वेद,
ईपहनषदों, पुराणों, महाभारत तथा रामायण - का भरपूर ईपयोग हकया है । आन ग्रंथों में
कृहतकारों को पात्र तथा हमथक घटनाएं तथा कथानक सुलभ हकए हैं । कहा जाए तो
भारतीय साहहत्य में तुलनात्मक साहहत्य के ऄध्ययन की परंपरा अहद काल से प्रचहलत
थी।
प्रो. रवींर नाथ श्रीवास्त व का यह कथन दृहि है हक ‚भारत एक बहुभाषी देश
है, यहां न केवल १६५२ मात्र भाषाएं हैं, ऄहपतु ऄनेक समुन्नत साहहहत्यक भाषाएं भी
है, पर हजस प्रकार ऄनेक वषों के अपसी संपकथ और सामाहजक हवहवधता के कारण
भारतीय भाषाएं ऄपनी रचना में हभन्न होते हुए भी ऄथथ के मामले में समरूप है ईसी प्रकार
यह भी कहा जा सकता है हक ऄपनी जाहत, आहतहास, सामाहजक चेतना, सांस्कृहतक मूल्य
एवं साहहहत्यक संरचना के संदभथ में भारतीय साहहत्य एक हैं भले ही वह हवहभन्न भाषाओं के
ऄहभव्यहि माध्यम द्वारा व्यि हुअ है यहद आस संकल्पना का हवस्तार करें और भाषा भेद
की सीमा को तोडकर मनुष्ट्य के आहतहास और हवकास को देखने का प्रयास करें तो हवश्व
साहहत्य की ऄवधारणा सामने अती है वास्तव में प्रत्येक भाषा के साहहत्य के हवषय वस्तु
और रूप ऄहभव्यहि एवं ईसकी मूल चेतना और हवधा हनरूपण आहतहास राष्ट्रीय
और ऄंतरराष्ट्रीय संदभथ में भी हुअ करता है जो ईसे िमशः राष्ट्रीय साहहत्य और हवश्व
साहहत्य के रूप में प्रहतहष्ठत करता है ।
वस्तुतः राष्ट्रीय साहहत्य द्वारा तुलनात्मक साहहत्य का अधार तैयार होता है आसे यों भी कह
सकते हैं हक तुलनात्मक ऄध्ययन के द्वारा ही राष्ट्रीय साहहत्य और ईसमें हनहहत राष्ट्रीयता
के तत्वों की पहचान की जा सकती है । आसहलए अर. ए .साइसी ने तुलनात्मक साहहत्य को
हवहभन्न राष्ट्रीय साहहत्य का एक दूसरे से अश्रय में तुलनात्मक संबंधों का ऄध्ययन कहा
है ।
आसी प्रकार गोआते ने हवश्व साहहत्य के संदभथ में ऄपनी साहहहत्यक परंपराओं से ऄन्य
परंपराओं के बोध को ऄहनवायथ माना है ।
जैसे हक हम जानते हैं भारत एक बहुभाषी देश है और यहााँ का साहहत्य हवहभन्न भाषाओं में
रचा जाता है हवहभन्न भाषाओं में राष्ट्रीय संस्कृहत और मूल्यों की ऄहभव्यहि के हलए
तुलनात्मक पद्चहत का सहारा हलया जाता है और यह देखा जाता है हक हकसी साहहहत्यक
कृहत को दूसरे प्रान्त के वाहसयों द्वारा हकस प्रकार ग्रहण हकया जाता है ऄथवा कोइ एक
साहहत्य दूसरे साहहत्य पर हकस प्रकार प्रभाव डालता है ईदाहरण के हलए हम बंगला और
तेलुगु के साहहत्य के संबंध की चचाथ कर सकते हैं- बंगला के कथा साहहत्य को तेलुगु में
आतनी सहजता से ग्रहण हकया जाता है हक बहुत से पाठक तो अज शरतचंर को बंगला के
बजाय तेलुगु का ही साहहत्यकार समझते हैं रवीन्रनाथ ठाकुर के साहहत्य के हवहभन्न
भारतीय भाषाओं के साहहत्य पर जो प्रभाव डाला है वह भी भारत के राष्ट्रीय साहहत्य का
एक महत्वपूणथ भाग है । आसी प्रकार बाबासाहेब अंबेडकर के हचंतन से प्रभाहवत होकर जब
मराठी में दहलत साहहत्य का ईदय हुअ तो ईसका प्रभाव तेलुगू, हहंदी, ईदूथ पंजाबी अहद munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य (सैद्चांहतक)
8 सभी साहहत्य पर भी पडा । आसी प्रकार ऄलग ऄलग प्रांत के प्रबुद्च महहला लेखकों / कहव
के साहहत्य में भी तुलनात्मक ऄध्ययन की प्रचुर सामग्री ईपलब्ध होती हैं । स्त्री हवमशथ
अज हकसी एक भाषा के साहहत्य की प्रवृहियां ना होकर भारतीय साहहत्य के समानता की
प्रवृहि है ओल्गा, घंटसाला और हनमथला भले ही तेलुगू की कहवयत्री हो, ऄनाहमका और
कात्यायनी हहंदी की, हनमथला पुतुल संताली की हो, दशथन कौर और तरन्नुम ररयाज पंजाबी
की हो- आन सब के द्वारा स्त्री की यातना का हचत्रण एक जैसा है और समग्र भारतीय स्त्री की
यातना का द्योतक है । यह समरसता ही आन तमाम स्त्री हवमशथ को भारतीय तुलनात्मक
साहहत्य का हहस्सा बनाते हैं ।
आस प्रकार, साहहत्य का ऄनुशीलन के क्षेत्र में हमारे सामने ऄवधारणाओं का ऄंतहीन
अयाम प्रकट हो जाता है । रामायण और महाभारत महाकाव्यों , बौद्च जातकों तथा जैन
कथाओं को भारतीय साहहत्य के हलए हवषय वस्तु तथा कथानक का भंडार माना जा सकता
है । तुलनात्मक साहहत्य में काव्य रूपों के ऄध्ययन को हवहशि स्थान प्राप्त है । भरत ने
ऄपने ‘नाट्य शास्त्र’ में नाटक के १० रूपों का वणथन हकया है और नाट्यशास्त्र के ऄन्य सभी
ऄग्रणी नाटककारों ने आसे ऄंगीकार कर हलया है ।
तुलनात्मक साहहत्य ऄध्ययन के ऄंतगथत साहहत्य में सामान्य कला- प्रहतमानों के
ऄनुप्रयोग, युग हवशेष के हवहभन्न साहहहत्यक अंदोलन तथा प्रवृहियों के बोध, हवहभन्न
साहहत्य में हनहहत प्रहतपाद्य हवषयों तथा हवचारों के ऄनुशीलन, और ऄंततः शैली, रचना
हवधान एवं प्रहतमानों के हवश्लेषण का समावेश हकया जाता है । अज भारतवषथ में सैंकडों की
संख्या में तुलनात्मक ऄध्ययन हो रहे हैं । अज आक्कीसवीं सदी में भूमंडलीकरण,
बाजारवाद के कारण संपूणथ हवश्व एक ‘हवश्वग्राम’ के रूप में बन गया है । ऐसे में तुलनात्मक
साहहत्य को ऄनेक कारणों से ऄनन्यसाधारण महत्त्व प्राप्त हुअ है ।
१.४.२ तुलनात्मक साहहत्य - पाश्चात्य परम्परा:
अधुहनक युग में तुलनात्मक साहहत्य के ऄनुशासन में कइ देशों में ऄंतराथष्ट्रीय तुलनात्मक
साहहत्य संघ- International Comparative Literature Association (ICLA) और
तुलनात्मक साहहत्य संघ जैसे हवद्वानों के संघ हैं और कइ पहत्रकाएाँ हैं जो तुलनात्मक
साहहत्य में हवश्व साहहत्य का ऄध्ययन करने में सहायक हुइ हैं । तुलनात्मक साहहत्य की
परम्परा पहश्चमी देशों में बीसवीं सदी के प्रारम्भ में हुइ, आसके कुछ प्रमुख स्कूल आस प्रकार हैं-
१.४.२.१ फ्रेंच:
बीसवीं शताब्दी के शुरु ती भाग से दूसरे हवश्व - युद्च के दरम्यान फ्रान्स में तुलनात्मक
साहहत्य को एक हवशेष रूप से ऄनुभव वादी और प्रत्यक्ष वादी दृहिकोण को केहन्रत कर एक
राष्ट्र के साहहत्य की दूसरे देश के साहहत्य की तुलना करने की हवशेषता थी हजसे "फ्रांसीसी
स्कूल" कहा जाता था, हजसमें पॉल वान, टाइघम जैसे हवद्वान शाहमल थे हजन्होंने "मूल"
और "हवहभन्न रा ष्ट्रों के कायों के बीच प्रभाव" ऄनेक राष्ट्रों के साहहत्य के माध्यम से
समझने का प्रयास हकया । आस प्रकार एक हवद्वान यह पता लगाने का प्रयास कर सकता है
हक समय के साथ राष्ट्रों के बीच एक हवशेष साहहहत्यक हवचार या अदशथ कैसे यात्रा करता
है? तुलनात्मक साहहत्य के फ्रेंच स्कूल में, प्रभावों और मानव वतथन का ऄध्ययन हावी है munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
9 । अज, फ्रांसीसी स्कूल ऄनुशासन के राष्ट्र-राज्य दृहिकोण का ऄभ्यास करता है हालांहक
यह "यूरोपीय तुलनात्मक साहहत्य" के दृहिकोण को भी बढ़ावा देता है । आस स्कूल के
प्रकाशनों में शाहमल हैं, (१९६७) सी. हपचोआस और ए. एम रूसो द्वारा , ला हिहटक
हलटरेरे (१९६९), जे.सी. कालोनी और जीन हिलौक्स द्वारा और ला हलटरेचर
कम्पैरी (१९८९), यवेस शेवरेल द्वारा, ऄंग्रेजी में तुलनात्मक साहहत्य के रूप में ऄनुवाहदत
तरीके और पररप्रेक्ष्य (१९९५) ।
१.४.२.२ जमथन:
फ्रेंच स्कूल की तरह, जमथन तुलनात्मक साहहत्य की ईत्पहि १९ वीं शताब्दी के ऄंत में हुइ
थी । हद्वतीय हवश्व युद्च के बाद, हवशेष रूप से एक हवद्वान पीटर सोंडी (१९२९-१९७१),
एक हंगेररयन जो मुि यूहनवहसथटी, बहलथन में पढ़ाते थे उ के कारण तुलनात्मक साहहत्य की
परम्परा कािी हद तक हवकहसत हुइ । ऑलगेमीन ऄंड वेरग्लीचेंडे हलटरेचरहवसेन्सचाफ्ट
("सामान्य और तुलनात्मक साहहहत्यक ऄध्ययन" के हलए जमथन) में सोंडी के काम में नाटक
की शैली, गीत (हवशेष रूप से ईपदेशात्मक) कहवता, और Hermeneutics (हेमेनेयुहटक्स-
धमथग्रन्थ, बाआबल / scripture ) शाहमल थे: "ऑलगेमीन और वग्लीचेंडे
हलटरेचरहवसेन्सचाफ्ट की सोंडी की दृहि ईनकी दोनों नीहत में स्पि हो गइ । बहलथन में
ऄंतराथष्ट्रीय ऄहतहथ विाओं को अमंहत्रत करना और ईनकी वाताथ में ईनका एवम् ईनके
कायथ का पररचय हदया । सोंडी ने ऄन्य लोगों के बीच, जैक्स डेररडा का स्वागत हकया
(दुहनया भर में मान्यता प्राप्त करने से पहले), फ्रांस से हपयरे बॉहडथयू और लुहसएन गोल्डमैन ,
जेरूसलम से गेशोम शोलेम, फ्रैंकिटथ से हथयोडोर डब्ल्यू एडोनो, तत्कालीन युवा
हवश्वहवद्यालय कोन्स्टांज से हंस रॉबटथ जौस, और यू. एस रेने से ईदार प्रचारक हलयोनेल
हरहलंग के साथ वेलेक, जेफ्री हाटथमैन और पीटर डेमेट्ज़ (येल में सभी). आन हवहज़हटंग
हवद्वानों (ऄहतहथ हवद्वान) के नाम, जो एक प्रोग्रामेहटक नेटवकथ (कायथिम सम्बहन्धत नमूना)
और एक पद्चहतगत हसद्चांत बनाते हैं । हालांहक, पूवी जमथनी में काम करने वाले जमथन
तुलनावाहदयों को अमंहत्रत नहीं हकया गया था और न ही फ्रांस या नीदरलैंड से मान्यता
प्राप्त सहयोगी थे । हिर भी जब वे पहश्चम और पहश्चम जमथनी के नए सहयोहगयों की ओर
ईन्मुख हुए थे और पूवी यूरोप में तुलनावाहदयों की तरि बहुत कम ध्यान हदया एक
ऄंतरराष्ट्रीय और तुलनात्मक साहहत्य की ईनकी ऄवधारणा रूसी और पूवी यूरोपीय
साहहहत्यक हसद्चांतकारों से बहुत ऄहधक प्रभाहवत थी । संरचनावाद के स्कूल, हजनके कायों
से रेने वेलेक ने भी ऄपनी कइ ऄवधारणाएं प्राप्त कीं जो अज भी तुलनात्मक साहहहत्यक
हसद्चांत के हलए गहरा प्रभाव डालती हैं । हालााँहक, यह हस्थहत तेजी से बदल रही है, क्योंहक
कइ हवश्वहवद्यालय हाल ही में शुरू हकए गए बैचलर और मास्टर ऑि अट्थस की नइ
अवश्यकताओं के ऄनुकूल हैं । जमथन तुलनात्मक साहहत्य को एक ओर पारंपररक
भाषाशास्त्र द्वारा चाहलत हकया जा रहा है और दूसरी ओर ऄध्ययन के ऄहधक व्यावसाहयक
कायथिम जो छात्रों को वह व्यावहाररक ज्ञान प्रदान करना चाहते हैं जो ईन्हें व्यवहाररक
कायथ के हलए 'एप्लाआड हलटरेचर’ के माध्यम से ज्यादा ईपलब्ध हुअ । जमथन हवश्वहवद्यालय
ऄब ऄपने छात्रों को मुख्य रूप से एक ऄकादहमक क्षेत्र के हलए हशहक्षत नहीं कर रहे हैं
बहल्क छात्रों को तुलनात्मक साहहत्य के माध्यम से वैहश्वक स्तर पर ऄहधक व्यावसाहयक
दृहिकोण प्रदान करने का प्रयास करने लगे हैं । munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य (सैद्चांहतक)
10 १.४.२.३ अमेररकन (यू.एस.):
फ्रांसीसी स्कूल पर प्रहतहिया करते हुए हद्वतीय हवश्व युद्च के बाद हवद्वानों ने सामूहहक रूप से
"ऄमेररकन स्कूल" को मान्यता दी साहहहत्यक अलोचना से ऄहधक सीधे हवस्तृत
ऐहतहाहसक शोध पर जोर हदया हजसकी फ्रांसीसी स्कूल ने मांग की थी । ऄमेररकन स्कूल
को गोएथे और पॉसनेट के मूल ऄंतराथष्ट्रीय दृहिकोण के साथ और ऄहधक हनकटता से
जोडा गया था (यकीनन ऄंतरराष्ट्रीय सहयोग के हलए युद्च के बाद की पररहस्थहत को
दशाथता है) सावथभौहमक मानव "सत्य" के ईदाहरणों की तलाश में साहहहत्यक कट्टरपंहथयों
के अधार पर जो हर समय और हर जगह साहहत्य में हदखाइ देते हैं । .
ऄमेररकन स्कूल के अगमन से पहले, पहश्चम में तुलनात्मक साहहत्य का दायरा अमतौर पर
पहश्चमी यूरोप और एंग्लो-ऄमेररका के साहहत्य तक सीहमत था मुख्य रूप से ऄंग्रेजी , जमथन
और फ्रेंच साहहत्य में साहहत्य आतालवी (Italy) साहहत्य में सामहयक प्रयासों के साथ
(मुख्यतः के हलए) दांते) और स्पेहनश साहहत्य (मुख्य रूप से हमगुएल डे सवेंट्स के हलए) ।
आस ऄवहध के दृहिकोण के हलए एक स्मारक है एररच ऑरबैक की पुस्तक हमहमहसस: जो
पहश्चमी साहहत्य में वास्तहवकता का प्रहतहनहधत्व करती है । यथाथथवाद की तकनीकों का एक
सवेक्षण ग्रंथों में हजनकी ईत्पहि कइ महाद्वीपों तक िैली हुइ है ।
ऄमेररकन स्कूल का दृहिकोण सांस्कृहतक ऄध्ययन के वतथमान हचहकत्सकों के हलए
पररहचत होगा और यहां तक हक कुछ लोगों द्वारा १९७० और १९८० के दशक के दौरान
हवश्वहवद्यालयों में सांस्कृहतक ऄध्ययन प्रहिया के ऄग्रदूत होने का भी दावा हकया जाता है
। अज का क्षेत्र ऄत्यहधक हवहवध है: ईदाहरण के हलए तुलनावादी हनयहमत रूप से चीनी
साहहत्य , ऄरबी साहहत्य और ऄहधकांश ऄन्य प्रमुख हवश्व भाषाओं और क्षेत्रों के साहहत्य के
साथ-साथ ऄंग्रेजी और महा पीय यूरोपीय साहहत्य का ऄध्ययन करते हैं ।
१.५ तुलनात्मक साहहत्य वतथमान संदभथ में संयुि राज्य ऄमेररका और ऄन्य जगहों पर तुलनावाहदयों के बीच एक अंदोलन है हक
ऄनुशासन को राष्ट्र-अधाररत दृहिकोण से दूर हिर से केंहरत हकया जाए हजसके साथ
यह पहले एक िॉस-सांस्कृहतक दृहिकोण की ओर जुडा हुअ है जो राष्ट्रीय सीमाओं पर
ध्यान नहीं देता है । आस प्रकृहत के कायों में शाहमल हैं अलमगीर हाशमी की द कॉमनवेल्थ,
कम्पेरेहटव हलटरेचर एंड द वल्डथ, गायत्री चिवती हस्पवक की डेथ ऑि ए हडहसहप्लन,
डेहवड डमरोश की व्हाट आज वल्डथ हलटरेचर?, स्टीवन टोटोसी डी ज़ेपेटनेक की
"तुलनात्मक सांस्कृहतक ऄध्ययन" की ऄवधारणा, और पास्कल कैसानोवा की द वल्डथ
ररपहब्लक ऑफ़ लेटसथ यह देखा जाना बाकी है हक क्या यह दृहिकोण सिल साहबत होगा
क्योंहक तुलनात्मक साहहत्य की जडें राष्ट्र-अधाररत सोच में थीं और ऄध्ययन के तहत
साहहत्य ऄभी भी राष्ट्र-राज्य के मुद्ङों से संबंहधत है । वैश्वीकरण और ऄंतथसंस्कृहतवाद के
ऄध्ययन में हवकास को देखते हुए तुलनात्मक साहहत्य, जो पहले से ही एकल-भाषा राष्ट्र-
राज्य दृहिकोण की तुलना में व्यापक ऄध्ययन का प्रहतहनहधत्व करता है राष्ट्र-राज्य के
प्रहतमान से दूर जाने के हलए ईपयुि हो सकता है । जबहक पहश्चम में तुलनात्मक साहहत्य
संस्थागत संकुचन का ऄनुभव कर रहा है ऐसे संकेत हैं हक दुहनया के कइ हहस्सों में यह munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
11 ऄनुशासन िल-िूल रहा है, खासकर एहशया, लैहटन ऄमेररका, कैररहबयन और भूमध्य
सागर में ऄंतरराष्ट्रीय ऄध्ययनों में वतथमान रुझान भी औपहनवेहशक साहहहत्यक अंकडों के
बढ़ते महत्व को दशाथते हैं जैसे हकजेएम कोएत्ज़ी, मरीस कोंडे, ऄलथ लवलेस, वी.एस.
नायपॉल, माआकल ओन्डात्जे, वोले सोहयंका, डेरेक वालकॉट, और लसाना एम. सेकोई ।
ईिरी ऄमेररका में हाल के औपहनवेहशक ऄध्ययनों के हलए जॉजथ आहलयट क्लाकथ की
रचनाओं का तुलनात्मक ऄध्ययन हकया जा रहा है । हदशा-हनदेश होम ऄफ्रीकी-कनाडाइ
साहहत्य के दृहिकोण का ऄध्ययन हकया गया (रूटलेज, २०१२) । कनाडा के हवद्वान
जोसेि हपवाटो ऄपनी पुस्तक कम्पेरेहटव हलटरेचर िॉर द न्यू सेंचुरी एड के साथ
तुलनात्मक ऄध्ययन को पुनजीहवत करने के हलए एक ऄहभयान चला रहे हैं । कनाडा के
तुलनात्मक साहहत्य संघ की एक पहल हपवाटो कनाडाइ तुलनावाहदयों सुसान आनग्राम और
अआरीन हसवेनकी के सह-संपाहदत तुलनात्मक साहहत्य कनाडा:- यह संघ अधुहनक
दुहनया में तुलनात्मक साहहत्य के क्षेत्र में महत्वपूणथ भूहमका हनभा रहा है ।
तुलनात्मकवादी साहहत्यकार- वतथमान समय के मानकों के ऄनुसार, ऄहधकांश हवद्वानों का
आरादा ऄन्य संस्कृहतयों की समझ को बढ़ाना था न हक ईन पर श्रेष्ठता का दावा करना ।
१.६ सारांश तुलनात्मक साहहत्य की एक मौहलक योजना भाषाइ सीमाओं के पार ऄन्य देशों के साहहत्य
को पढ़ने की रुहच जागृहत करना है । पारंपररक रूप से साहहत्य का ऄध्ययन करने का
मतलब एक ऄकादहमक हवभाग चुनना है जो मूल रूप से यूरोपीय मॉडल पर राष्ट्र राज्य को
दशाथता है । ऄंग्रेजी, फ्रेंच और जमथन कायथिम प्रत्येक ऄपनी-ऄपनी राष्ट्रीय परंपराओं के
हसद्चांतों पर ध्यान केंहरत करते हैं । लेहकन साहहत्य और पाठक दोनों हमेशा एक राष्ट्रभाषा
की सीमाओं से बाहर रहे हैं । जमथन साहहत्य ऄंग्रेजी और फ्रेंच और आतालवी और ग्रीक और
रोमन साहहत्य अहद के प्रभाव से भरा हुअ है । और यहां तक हक लेखक जो एक दूसरे के
बारे में कुछ नहीं जानते थे अज तुलनात्मक साहहत्य के माध्यम से ईनके साहहत्य में
अकषथक समानताएं और ऄंतर हदखा सकते हैं ।
परंपरागत रूप से, एहशयाइ, ऄफ्रीकी और मध्य पूवी साहहत्य (जब ईनका हबल्कुल भी
ऄध्ययन हकया गया था) लंबे समय से क्षेत्रीय ऄध्ययन के रूहिक में शाहमल थे । यूरोपीय
साहहत्य को सौंदयथ की दृहि से स्वायि और "राष्ट्रीय प्रहतभा" की ऄहभव्यहि दोनों के रूप
में समझा जाता था जबहक गैर-पहश्चम के ग्रंथों को ऄपने अप में साहहत्य के कायों की तुलना
में ऐहतहाहसक या मानवशास्त्रीय दृहिकोण से ऄहधक पढ़ा जाता था । तुलनात्मक साहहत्य
का क्षेत्र भी क्षेत्रीय ऄध्ययनों की ऄंतःहवषय पहुंच के साथ यूरोपीय साहहहत्यक ऄध्ययन की
औपचाररक कठोरता को जोडकर "पहश्चम" और "बाकी" के बीच आस हवभाजन को दूर करने
का प्रयास करता है ।
तुलनात्मक साहहत्य के छात्र समय और स्थान पर साहहहत्यक हवधाओं और ग्रंथों के
पररवतथन और यात्रा का पता लगाते हैं । वे आहतहास, दशथन, राजनीहत और साहहहत्यक
हसद्चांत के साथ साहहत्य के संबंधों का पता लगाते हैं और वे हिल्म, नाटक, दृश्य कला,
संगीत और न्यू मीहडया जैसे ऄन्य सांस्कृहतक रूपों के साथ साहहत्य के ऄंतसंबंधों का munotes.in

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तुलनात्मक साहहत्य (सैद्चांहतक)
12 ऄध्ययन करते हैं । हमारे बढ़ते हुए वैहश्वक युग में, ऄनुवाद ऄध्ययन भी साहहत्य के
तुलनात्मक दृहिकोण का एक महत्वपूणथ हहस्सा है ।
तुलनात्मक साहहत्य में एकाग्रता के मूल में तुलनात्मक पररप्रेक्ष्य में पहश्चमी, पूवी एहशयाइ,
मध्य पूवी और दहक्षण एहशयाइ साहहहत्यक परंपराओं को पेश करने वाले पाठ्यिम हैं । ये
पाठ्यिम छात्रों को तुलनात्मक साहहहत्यक ऄध्ययन के तरीकों से पररहचत कराते हुए
साहहहत्यक रूपों और शैहलयों की वैहश्वक हवहवधता से पररहचत कराते हैं ।
तुलनात्मक साहहत्य में एकाग्रता स्नातक स्तर पर अगे के काम के हलए एक ईत्कृि अधार
है । यह छात्रों को हकसी भी क्षेत्र में काम करने के हलए तैयार करता है जहां महत्वपूणथ सोच,
मजबूत लेखन कौशल और हवदेशी भाषा की क्षमता और सांस्कृहतक ऄंतर और हवहवधता
की एक पररष्ट्कृत समझ की अवश्यकता होती है ।
१.७ दीघोिरी प्रश्न १. तुलनात्मक का ऄथथ, पररभाषा एवम् व्युत्पहि स्पि कीहजए ।
२. तुलनात्मक साहहत्य के प्रारम्भ एवम् भारतीय परम्परा पर प्रकाश डाहलए ।
३. पाश्चात्य तुलनात्मक साहहत्य के स्कूलों का ईल्लेख कीहजये ।
१.८ लघुिरीय प्रश्न १. एक वाक्य में उिर हलहखए ।
) भारत में सवथप्रथम कम्पेरेहटव literature शब्द का प्रयोग हकस हव ने हकया ?
ब) रेने वेलेक पासनेट के ऄनुसार तुलनात्मक साहहत्य की पररभाषा क्या दी गयी है ?
स) हवश्व को त्मक ऑक्सफ़ोडथ हडक्शनरी में तुलना के हवषय में क्या हलखा गया है ?
क) ‘क रेहटव literature ’ आस पद का प्रयोग सवथप्रथम ऄंग्रेजी के हकस हव ने हकया ?
१.९ वस्तुहनष्ठ प्रश्न प) ------------ साहहत्य में दो या दो से ऄहधक हभन्न भाषाओाँ, राष्ट्रीय या सााँस्कृहतक
समूहों का साहहहत्यक ऄध्ययन हकया जाता है ।
(तुलनात्मक, ऄनुवाद, आहतहासात्मक, त्मक)
ि) नाहस्त ऄचौरः कहवजन: ------------ ने कहा है ।
(चन्रभान, राजकुमार, चंरशेखर, राजशेखर)
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तुलनात्मक साहहत्य का स्वरूप
13 ब) -------------- तुलनात्मक साहहत्य को हवशेष रूप से ऄनुभववादी और प्रत्यक्षवादी
दृहिकोण हदया था ।
(फ्रेंच स्कूल, ऄमेररकी स्कूल, जमथन स्कूल, भारतीय स्कूल)
भ) तुलनात्मक साहहत्य ऄंग्रेजी के--------- हलटरेचर शब्द का हहन्दी ऄनुवाद है ।
(continuous, cunning, compact, comparative).
१.१० संदभथ ग्रंथ १. तुलनात्मक साहहत्य, सम्पादक – डॉ नगेन्र
२. हलटरेरी हिहटहसज्म आन आहडडया , सम्पादक – नगेन्र
३. आन्टरनेट ।


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14 २
तुलनाÂमक अÅययन के तÂव
तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
इकाई कì łपरेखा
२.० इकाई का उĥेÔय
२.१ ÿÖतावना
२.२ तुलनाÂमक अÅययन के तÂव
२.३ तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
२.३.१ Ā¤च-Āांसीसी Öकूल
२.३.२ जमªन Öकूल
२.३.३ अमेåरकन Öकूल
२.३.४ łसी Öकूल
२.४ सारांश
२.५ दीघō°री ÿij
२.६ लघु°रीय ÿij
२.७ वÖतुिनķ ÿij
२.८ संदभª úंथ
२.० इकाई का उĥेÔय इस इकाई के अÅययन से िवīाथê िनÌनिलिखत मुĥŌ से अवगत हो सक¤गे ।
 तुलनाÂमक अÅययन के तÂवŌ का अÅययन कर सक¤गे ।
 तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख ÖकूलŌ कì िवÖतार पूवªक जानकारी हािसल कर सक¤गे ।
२.१ ÿÖतावना िवĵ Öतर पर मानव जीवन एक समान सा है । जैसे िक मनुÕय का रहन सहन, जीवन-
यापन, सोच- िवचार और जीवन के िविवध आयाम एक समान िदखाई देते ह§ । इस तÃय के
आधार पर वैिĵक एकता और मानवता को बल देने के उĥेÔय से तुलनाÂमक अÅययन
बहòत ही महÂव रखता है । सामाÆयत: संसार कì ÿÂयेक वÖतु म¤ िभÆनता होती है । “इस
संसार म¤ वÖतुओं के िचंतन - मनन आिद के संबंध म¤ एक ÿकार का सापे±वाद कायª करता
है । इसी सापे±ता कì सािहिÂयक Öतर पर तुलना कì जा सकती है और इस ÿकार का शोध
तुलनाÂमक शोध कहलाएगा ।”१ मनुÕय के Öवभाव म¤ तुलना होती है । वह अपने सुख-दुख
कì तुलना से लेकर आिथªक, सामािजक, भौगोिलक आिद सभी ±ेýŌ कì तुलना करता munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के तÂव तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
15 रहता है । इस तुलना के माÅयम से अपने सुख- दुख कì पåरपूणªता और अभावúÖतता का
अनुभव करता है । इसी तजª पर सािहÂय कì तुलना का उĩव और िवकास हòआ है । इस
तरह कह सकते ह§ िक तुलनाÂमक अÅययन मानवीय Öवभाव कì पåरिणित है ।
तुलनाÂमक अÅययन के िलए तुलनाÂमक सािहÂय शÊद का ही ÿयोग िकया जाता है ।
“तुलनाÂमक अÅययन म¤ िकसी भी सािहिÂयक रचना का सामाÆयतः शैली, रचना िशÐप,
मनिÖथित या िवचारगत समानताओं का अÅययन िवĴेषण होता है ।”२ िकÆहé दो
रचनाकारŌ म¤ आकृित ,ÿकृित, िवचारधारा और िचंतन-मनन म¤ अंतर होता है । उनके
भावभूिम म¤ अंतर होता है । अत: िकÆहé दो रचनाकारŌ कì रचनाओं म¤ अंतर अवÔय होता है
। इसके साथ ही संÖकृित, पåरवेश, भाषा ,ÿदेश तथा काल के कारण यह िभÆनता अिधक
अधोरेिखत होती है । ‘úेट माइंड्स िथंकस अलाइक’ कì उिĉ के अनुसार रचनाकारŌ के
सािहÂय म¤ पयाªĮ सूàम साÌय भी ŀिĶगोचर होता है । तुलनाÂमक अÅययन यह संकÐपना
५० से ६० वषª पहले अनुसंधान के ±ेý म¤ आयी है । तुलनाÂमक अÅययन के िलए कोई
िविशĶ पåरिध नहé है । जहां जो तुलना के योµय है, वही तुलनाÂमक अÅययन का िवषय बन
जाता है । मै³स- मूलर मानते ह§ िक उ¸चतर ²ान कì ÿािĮ तुलना पर ही आधाåरत होती है
। “दो या दो से अथवा अिधक िभÆन भाषाओं के उनकì राÕůीयता को Åयान म¤ रखकर
सािहÂय का िकया गया अÅययन तुलनाÂमक अÅययन है ।”३ तुलनाÂमक अनुसंधान के
अंतगªत एक ही सािहÂय के दो युगŌ, काÓय ÿवृि°यŌ, दो सािहÂयकारŌ कì तुलना एक
सािहÂय कला का दूसरे सािहÂय पर ÿभाव आिद कì तुलना तथा िविभÆन सािहÂय के दो
सािहÂयकारŌ कì तुलना, एक सािहÂय कला का दूसरे सािहÂय पर ÿभाव आिद कì तुलना
तथा िविभÆन सािहÂयो के दो किवयŌ, लेखकŌ, कृितयŌ, ÿवृि°यŌ का तुलनाÂमक अÅययन
िकया जाता है ।“ सैĦांितक ŀिĶ से तुलना या तो अंतर भािषक पåरÿेàय से जुड़ी हो सकती
है जहां तुलनीय िविभÆन सािहिÂयक कृितयŌ एकल सािहÂयानुशासन से संबĦ होती है नहé
तो यह तुलना अंतर भािषक पåरÿेàय से संबĦ होती है । जहां तुलना एकल सािहÂय
अनुशासन कì पåरिध को पार कर दूसरी भाषाओं म¤ िलिखत सािहÂय को अपने म¤ समेट
लेती है । तुलनाÂमक सािहÂय मूलतः अंतः भािषक पåरÿेàय से जुड़ा हòआ तुलनाÂमक
अÅययन है ।“
तुलनाÂमक अनुसंधान या पिIJम से आयी हòई संकÐपना है । सािहÂय के ±ेý म¤ उसका
ÿयोग तुलनाÂमक सािहÂय के िलए िकया जाता है । पिIJम म¤ तुलनाÂमक सािहÂय का
अÅययन करने वाले ÿमुख तीन संÿदाय ह§:
१. अमेåरका Öकूल
२. पेåरस Öकूल और
३. Łसी Öकूल ।
अमेåरकì Öकूल इस बात पर जोर देता है िक अÆय कलाएं भी सािहÂय को ÿभािवत करती ह§
। इसिलए सािहÂय और अÆय कलाओं का तुलनाÂमक अÅययन होना चािहए । पेåरस और
जमªन Öकूल इस बात का समथªन करता है िक दो िभÆन भाषाओं के सािहÂय के बीच जो
वाÖतिवक संबंध ह§ उनके आधार पर तुलनाÂमक अÅययन होना चािहए । łसी Öकूल के munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
16 अनुसार लोक सािहÂय िशĶ सािहÂय को ÿभािवत करता है । अतः लोक सािहÂय िशĶ
सािहÂय को िकस ÿकार ÿभािवत करता है यही आधार तुलनाÂमक अÅययन का होना
चािहए ।
भारत म¤ तुलनाÂमक अÅययन ÿाचीन काल से होता आ रहा है । संÖकृत म¤ कािलदास और
दंडी तथा िहंदी म¤ सूरदास और तुलसीदास के काÓय का उदाहरण िदया जा सकता है । देव
और िबहारी के काÓय का भी तुलनाÂमक अÅययन िकया जा चुका है । संÖकृत और ÿाकृत
के किवयŌ एवं नाटक,कारŌ कì तुलना आनंद वधªन, कुंतक आिद आचायŎ ने कì है । लेिकन
यह केवल तुलना है उसे सैĦांितक तुलनाÂमक अÅययन नहé कहा जा सकता । ऑÖकर जे.
क§पबेल, वेन¥र Āेडåरच, ए.जी.माऊलटन, रेने वैलक, ए. आÐűीज आवन आिद पाIJाÂय
तुलनाÂमक अनुसंधानकताªओं ने तुलनाÂमक अÅययन का महÂव जाना और समझाया है ।
भारत म¤ तुलनाÂमक अÅययन कì संकÐपना २० वé सदी म¤ पहòंची । भारत म¤ तुलनाÂमक
अÅययन कì शाखा का उदय होने से अनुसंधान को नई ŀिĶ ÿाĮ हòई । इससे ÿदेश, भाषा,
वंश,काल एवं संÖकृित कì सीमाओं को लांघ कर सािहÂय का अÅययन िकया जा रहा है ।
तुलनाÂमक अÅययन का ±ेý िवÖतृत हो रहा है । भारतीय िवĬान इसके ÿित आकिषªत हòए
ह§ । आज एक Öवतंý िवīा शाखा के łप म¤ तुलनाÂमक अÅययन को ÿितķा ÿाĮ हòई है ।
शुł म¤ भारतीय सािहÂय कì तुलना अंúेजी सािहÂय से कì जाने लगी । तÂकालीन िवĬानŌ
के िवचारŌ का ÿभाव िविभÆन िवĵिवīालयŌ म¤ शोध कायª करने वाले शोधािथªयŌ पर भी
पड़ा, और तुलनाÂमक अÅययन को बढ़ावा िमला । आज तक अनेक शोधािथªयŌ ने
महÂवपूणª िवषयŌ म¤ तुलनाÂमक अÅययन िकया है । सािहिÂयक भाषा वै²ािनक एवं लोक
सािहÂय को लेकर तुलनाÂमक अनुसंधान िकया जा रहा है । भारत जैसे बहòभाषी राÕů म¤
तुलनाÂमक अÅययन के िलए Óयापक अवसर है । संिवधान कì अनुसूची म¤ िनिदªĶ सभी
भाषाओं म¤ िलिखत सािहÂय का तुलनाÂमक अÅययन िकया जा सकता है । "संिवधान
भाषाई सहयोग कì बात करता है" (६) इसके माÅयम से भारत कì िभÆन संÖकृित के
िविभÆन पहलुओं पर ÿकाश डाला जा रहा है । सामािजक, सांÖकृितक ŀिĶ से भी
तुलनाÂमक अÅययन महÂव रखता है । इसे दूर समाज तथा संÖकृितयŌ के नजदीक आने म¤
सहायता हो रही है ।
२.२ तुलनाÂमक अÅययन के तÂव तुलनाÂमक अÅययन के शुŁआती दौर से ही तुलनाÂमक अÅययन कì ÿाथिमकता और
पĦित कì मीमांसा पर ÿij उठाए जा रहे ह§ । पाIJाÂय िवĬान हेलन िटिफन Ĭारा अपने लेख
म¤ यह कहा गया है िक-"औपिनवेिशक तुलनाÂमक फलक तÂवत: पĦित मीमांसा ना होते हòए
भी वह केवल उपयुĉ ही नहé पर अित आवÔयक है । तुलनाÂमक सािहÂय म¤ नई-नई और
पĦितयां िमलने कì संभावनाएं हो सकती ह§ । यहां अनुसंधानकताªओं को िवषय चयन के
बाद िनरथªक िवषयŌ पर Åयान न देते हòए अपनी Öवतंýता का उपयोग करना चािहए ।
सािहिÂयक कृित के मूÐयांकन म¤ तािÂवक मतभेद के मु´यत: दो मुĥे िवचारणीय होते ह§ ।
ÿथम मुĥा है रचना के बाĻ बातŌ का समावेश तुलना म¤ िकया जाए या नहé । और दूसरा
मुĥा है रचनाकार का चåरý तथा सामािजक राजनीितक मनोवै²ािनक पृķभूिम को क¤þ म¤
रखा जाए या रचना के मूÐयांकन के िलये उसके कला गुण समुदायŌ पर तवºजो दे । munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के तÂव तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
17 अमेåरकन Öकूल और Ā¤च Öकूल म¤ जो तािÂवक भेद है उसी पर यह समÖया खड़ी हòई है ।
Ā¤च Öकूल रचना का अÅययन करते हòए ‘डॉ³यूम¤टेशन’ अथाªत रचना कì सामúी के आधार
पर सामािजक पåरिÖथितयŌ के संदभŎ से तुलना करता है । अमेåरकन Öकूल को यह
Öवीकायª नहé है । सािहÂय म¤ सामािजक पåरिÖथित से िबÐकुल िवपरीत सािहÂय रचना के
उदाहरण भी िमलते ह§ । तुलनाÂमक सािहÂय म¤ रचना का संबंध सामािजक और चåरýाÂमक
पåरिÖथितयŌ से जोड़ना जłरी होता है । यह मत डॉ. अनंत केदारे जी का है .उनका मानना
है िक सािहÂयकार समाज से िनरपे± नहé रह सकता है । सािहÂयकार अपनी रचना म¤
समाज कì ÿवृि°यŌ को ही उĤािटत करता है. डॉ. केदारी जी के मतानुसार तुलनाÂमक
सािहÂय के दो मूल िवचार ह§- तुलना इितहास सÌमत होनी चािहए । तथा तुलना सŏदयªवादी
होनी चािहए । इन दो धाराओं म¤ अपने अपने ŀिĶकोण ह§, िजनके कारण इन दोनŌ म¤ संघषª
होता है । इस संघषª को दूर करने के िलए उÆहŌने तीन मागª बताए ह§:
१. दूसरे ŀिĶकोण को कचरे कì टोकरी म¤ डाला जाए ।
२. वांङमय समी±ा और इितहास कì अलग-अलग शाखा बनाई जाए, और
३. उपरोĉ दोनŌ मागō से तनाव ही बढ़ेगा तुलना कार का Åयेय सािहिÂयक कृित के संबंध
म¤ खोजना है ।
अपनी खोज जारी रखने के िलए चािहए िक रचना म¤ से ऐितहािसक और सŏदयªशाľ संबंधŌ
का अÅययन िकया जाए । डॉ. अनंत केदारी जी ने Ā¤च और अमेåरका के सािहिÂयक
संÿदायŌ के तुलनाÂमक सािहÂय कì माÆयताओं को जोड़कर तािÂवक आधार सुलझाने के
ÿयास िकये है, जो िनÌनिलिखत है ।
१. तुलनाÂमक सािहÂय अÅययन म¤ शैली शाľीय अÅययन कì सं´या बढ़ाए । उसम¤
इितहास का िवचार हो पर शैली के साधन क¤þ Öथान पर रहने चािहए ।
२. सािहिÂयक रचना कì ओर वापस चले यह िसफª अनुसंधान के िलए आवÔयक तथा
संिहताओं को पåरपूणª करने के िलए हो तो उिचत है पर टुकड़Ō म¤ तुलना करने का
कोई महÂव नहé है ।
३. Ā¤च लोगŌ कì साधÌयª-शोध (Analogy) अिधक पसंद नहé है, बिÐक साÌय-भेद
(Parallels) कì खोज लाभदायक होती है । अमेåरका कì नई समी±ा म¤ कलाकृित
िबÐकुल अलग हो जाती है ।
जब हम साÌय-भेद खोजते ह§, तब कलाकृित के साथ रहते है । दो लेखकŌ का
तुलनाÂमक अÅययन भी हो सकता है, उनके समú सािहÂय कì तुलना भी कì जा
सकती है ।
४. Ā¤च परंपरा म¤ लेखक सािहिÂयक रचना कì पåरिÖथित और मनोवै²ािनक संवेदना
कì खोज करने कì परंपरा पयाªĮ समृĦ िदखाई देती है । िशवाजी सावंत का उपÆयास
‘मृÂयुंजय’ का सŏदयª शाľीय रसúहण वी.स. खंडेकर कì सŏदयª ŀिĶ के संदभª म¤ ही munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
18 संभव है । ³यŌ और ³या दोनŌ ÿij अÆय पर आि®त ह§ । अनेक कई बार भाई यह चीज¤
अंतगªत बन जाती ह§, इस िबंदु पर तुलना महÂवपूणª बनती है ।
५. आज तक ‘ÿभाव’ संकÐपना का अिधक िवकास तुलनाÂमक पाIJाÂय म¤ िवकिसत
िदखाई नहé देता हालांिक उसकì ±मता अिधक है । िकंतु पाIJाÂय िवĬानŌ ने पूरब के
सािहÂयकार यूरोप और अमेåरका के ÿभाव से ÿभािवत होने कì बात कही है । इस
तरह अमेåरकन तथा łसी िवĬानŌ के ÿभाव के बात Öवीकार कì है ।
६. Ā¤च िवĬानŌ ने लोककाÓय और ÿिसĦ अÅययन को पसंद िकया है । इनका मानना है
िक इसके Ĭारा ही ऐितहािसक और सŏदयª शाľीय अÅययन िकया जा सकता है ।
७. भाषांतर को Öवतंý वांङमयी िवधा के łप म¤ माÆयता नहé िमलती थी । क¤þीय
सािहÂय अकादमी ने भाषांतर के िलए पुरÖकार ÿारंभ करने के बाद तुलनाÂमक
सािहÂय कì पåरिÖथित म¤ सकाराÂमक बदलाव आया है ।
८. कÐपना िव²ान इस तÂव का आज तुलनाÂमक सािहÂय म¤ महÂव बढ़ता जा रहा है ।
िमथक, ÿतीक, łपांतरण, दूरीकरण जैसे िवषय कì लोकिÿयता बढ़ रही है ।
इस तरह तुलनाÂमक अÅययन के मूल तÂव सामने आए ह§ । और आने वाले िदनŌ म¤ इनम¤
वृिĦ होने कì संभावना बनी हòई है ।
२.३ तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल तुलनाÂमक अÅययन एक Óयापक संकÐपना है । उसका ±ेý िवशाल है । इसिलए उसका
उĥेÔय महान है । “तुलनाÂमक अनुसंधान के Ĭारा ²ान कì वृिĦ, सुख समृिĦ, उ¸चतर
मानवीय मूÐयŌ कì Öथापना कì जा सकती है ।”१ इसिलए इस ÿकार के अनुसंधान को
सवō°म एवं सवª®ेķ माना जाता है । “िकÆहé भी दो रचनाकारŌ कì रचनाओं का पूणªत:
अÅययन, िवĴेषण एवं संभावना, संपÆनता का पयाªĮ ²ान तुलनाÂमक अÅययन कì
पूवªपीिठका है ।”२ तुलनाÂमक अनुसंधान सामाÆय शोध कì अपे±ा किठन है । इसिलए
तुलनाÂमक अÅययन करते समय शोधाथê को िविशĶ बातŌ पर Åयान देना पड़ता है । “एक
ही भाषा के सािहÂय का एक ही ŀिĶ से िकए जाने वाले शोध कायª कì तुलना म¤ दो या
अिधक भाषा के सािहÂय का तुलनाÂमक ŀिĶ से िकया गया शोध कायª ²ान कì ŀिĶ से
अिधक महÂवपूणª है ।”३
तुलनाÂमक अÅययन के दो महÂवपूणª िबंदु ह§ -साÌय और वैषÌय । तुलनाÂमक अÅययन म¤
दोनŌ ÿकार का िववेचन िकया जाता है । संसार कì िकÆहé भी दो वÖतुओं म¤ जहां िवषमता
होती है, वहां समता के कुछ ना कुछ िबंदु अवÔय उपिÖथत होते ह§ । तुलनाÂमक अÅययन म¤
साÌयकì खोज के िलए िनÌनिलिखत िबंदुओं का ÿयोजन होता है ।
१) तुलना के िलए आवÔयक आधारŌ कì ÿािĮ करना,
२) जीवन मूÐयŌ कì समानताओं से भावनाÂमक एकता कì ÿािĮ करना, जैसे आचार,
Óयवहार आिद सांÖकृितक समानताओं से आÂमीयता ÿाĮ करना, munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के तÂव तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
19 ३) आÂमीयता से वतªमान समÖयाओं को समझने और उनके समाधान ढूंढने के िलए
आवÔयक सĩाव एवं वातावरण कì िनिमªित करना,
४) समानताओं कì खोज से कला या सृजन के Öतर पर असीम अटूट आÂमिवĵास का
िनमाªण कì संभावनाएं तलाशना ।
साÌय कì खोज कì तरह तुलनाÂमक अÅययन म¤ वैषÌय याने असमानताओं कì खोज भी
महÂवपूणª होती है । वैषÌय या असमानताओं कì खोज तुलनाÂमक अÅययन के िलए तÂवŌ
कì पहचान होती है । इस पहचान से उन तÂवŌ के ÿित सजग रहने कì चेतना ÿाĮ होती है ।
और असमानता कì खोज से अपने अभावŌ का पता चलता है । तथा उÆह¤ दूर करने के िलए
राÖते कì तलाश संभव होती है । तुलनाÂमक सािहÂय म¤ साÌय एवं वैषÌय का होना अÂयंत
आवÔयक है । इसी तरह का भाव प± और कला प± कì ŀिĶ से भी उनम¤ पयाªĮ साÌय
होना चािहए ।”४ इस ÿकार कì समी±ा म¤ एक शाĵत तथा Óयापक िनयम यह है, िक जो
परÖपर तुलनीय हो उÆहé कì तुलना करनी चािहए और इस कसौटी का ÿयोग रचना के
भाव, उĥेÔय, शैली और िवषय आिद पर करना चािहए ।”५ केवल एक भाषा के अथवा िभÆन
भाषाओं के दो लेखक किव होने से उनके काÓय कì तुलना नहé कì जा सकती. उनम¤
आकृित -ÿकृित, िवचारधारा, िचंतन -मनन, संÖकृित पåरवेश, भाषा ,काल, सापे±तावाद
आिद अनेक ŀिĶयŌ से साÌय होने कì आवÔयकता होती है । तुलनाÂमक अÅययन के
इÆहé माÆयताओं को लेकर िवĬानŌ म¤ िविवध मत ÿवाह िदखाई देते ह§ । इन मतÿवाहŌ के
चलते तुलनाÂमक अÅययन के ÖकूलŌ कì Öथापना हòई है ।
तुलनाÂमक सािहÂय िकसी एक देश म¤ या िकसी एक आंदोलन के łप म¤ उभर कर सामने
नहé आया है । इसिलए इसका एक ही एकìकृत इितहास िदखाई नहé देता है, ना ही इस
तरह का इितहास िलखना संभव हो सकता है । तुलनाÂमक अÅययन के िवकास म¤ भी
असमानता िदखाई देती है । इसका कारण यह है िक िभÆन देशŌ के उĩव और िवकिसत हòए
तुलनाÂमक सािहÂय म¤ समानता िदखाई नहé देती है । तुलनाÂमक अÅययन का िवकास,
उससे संबंिधत देशŌ म¤ उनकì पåरिÖथितयŌ तथा राजनीितक गितिविधयŌ पर िनभªर रहा है ।
िवĬानŌ का मानना है िक वैिĵक Öतर पर तुलनाÂमक अÅययन के िलए Āांस कì भूिम
सवªÿथम अनुकूल रही थी । Āांस का वसाहतवाद इस संदभª म¤ वांµमयी Óयापार के िलए
पूरक िसĦ हòआ यह हम¤ नहé भूलना चािहए । इसका अथª यह हòआ िक तुलनाÂमक सािहÂय
का इितहास िविशĶ देशŌ कì पåरिÖथित अनुłप घिटत हòआ है । िजस तरह भारतीय
सािहÂय, अमेåरकन सािहÂय अथवा राÕůकुल सािहÂय का ऐसे नामŌ से िदखाया जाना
संभव नहé, वैसे ही तुलनाÂमक सािहÂय का एक संघ एक ही इितहास िदखाना असंभव है
।”६ वैसे तो िवĵ के िविभÆन देशŌ म¤ तुलनाÂमक सािहÂय का उĩव और िवकास हòआ है,
िकंतु उनकì तुलनाÂमक अÅययन संबंधी धारणाएं माÆयताएं पĦितयां आिद िभÆन-िभÆन
रही ह§. िजसके फलÖवłप समúता से उनका इितहास िदखाया नहé जा सकता है. इन सारे
मुĥŌ के चलते िवĵ भर म¤ तुलनाÂमक सािहÂय के िविवध Öकूल Öथािपत हòए ह§ िजनम¤ से
ÿमुख Öकूल िनÌनिलिखत ह§:
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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
20 २.३.१ Ā¤च-Āांसीसी Öकूल:
बीसवé सदी के ÿारंिभक काल से लेकर िĬतीय महायुĦ तक तुलनाÂमक सािहÂय के ±ेý म¤
अनुभववादी और ÿÂय±वादी िवचारधारा का ÿचलन िवशेष Łप से अनुसरण िकया जाता
था िजसे िवĬानŌ ने Ā¤च या Āांसीसी Öकूल नाम िदया है । कुछ िवĬानŌ ने इसे तुलनाÂमक
सािहÂय का आīपीठ माना है । Āांसीसी Öकूल के िवĬान 'पॉल वैन, टाईघम' आिद िवĬानŌ
ने ‘मूल’ और ‘मूल’ के साàय कì तलाश म¤ फॉर¤िसक łप कì तलाश कì । इस तरह इस
Öकूल के िवĬान यह खोजने का ÿयास करते रहे ह§ िक समय के साथ राÕůŌ के बीच एक
सािहिÂयक िवशेष िवचार या आदशª कैसे याýा करता है? तुलनाÂमक Ā¤च Öकूल म¤ ‘ÿभाव’
के अÅययन को क¤þ म¤ रखकर तुलना कì जाती है । Āांस म¤ १९ वé सदी से ही तुलनाÂमक
सािहÂय िलखा जा रहा था । “मादाम Öताइल से लेकर Öट§दाल तक अनेक Ā¤च लेखकŌ ने
तुलना का ÿयोग १९ वé सदी के ÿारंभ िकया था । Öट§दाल का “रािसन और शे³सिपयर”
इसका अ¸छा उदाहरण है ।”७ Ā¤च Öकूल म¤ तुलना के िलए िलए गये úंथŌ का उदय और
अंत के काल कì भी खोज करने का आúह रहता है । कुछ िवĬान भारतीय तुलनाÂमक
सािहÂय के िलए Ā¤च Öकूल कì पĦित उपयुĉ मानते ह§ । डॉ अनंत केदारी जी ने पॉल
वैन,िटथेम का ÿी-रोमांिटिसजम यह तीन खंडŌ म¤ िलखे गए úंथ और फना«द वाÐदेन Öपगªर
का 'µयोएथे इन Āांस'को Ā¤च Öकूल का सही और संÖमरणीय बड़ा कायª माना है । "बीसवé
शताÊदी के उ°राधª म¤ Ā¤च Öकूल कì परंपरा म¤ Ā¤च िवĬान रेन एतेआंÊल ने तुलनाÂमक
सािहÂय के िवचार कì कैिफयत कì उसके बाद बदलाव आने लगा । अमेåरका म¤ तुलनाÂमक
सािहÂय म¤ जो पेच- ÿसंगŌ का वाद उठा था उसी का वह पåरणाम था । तुलना कार का अथª
पुरातÂव खोजी नहé होता ।”८ इसके पIJात Ā¤च Öकूल कì माÆयताओं म¤ पåरवतªन होता
हòआ िदखाई देता है । डॉ. अनंत केदारी जी का मत है िक अपने बदलावŌ म¤ Ā¤च Öकूल के
िवĬानŌ ने ऐितहािसक संबंध ÿÖतािवत करने का अपना दुराúह छोड़कर वैिĵक łप िवचार
(Morphology) कÐपना का इितहास और अंतरराÕůीय वांµमय इितहास का जायजा लेना
शुł िकया । Ā¤च Öकूल पर अपना मत ÿकट करते हòए डॉ³टर अनंत केदारी जी कहते ह§
िक Ā¤च Öकूल शÊद Āांस देश का या भाषा का संकेत न कर वह एक िवषय को सवªसाधारण
łप म¤ दी हòई िदशा के łप म¤ उसे लेना चािहए ।
२.३.२ जमªन Öकूल:
"Ā¤च Öकूल कì तरह ही जमªनी म¤ तुलनाÂमक सािहÂय का उĩव िĬतीय महायुĦ के बाद
हòआ । कई िवĬान यह मानते ह§ िक Āांस और जमªनी Öकूल के सांÖकृितक संबंध एक दूसरे
कì परंपरा पर दोषारोपण न करते हòए, सावधानी से और कुशलतापूवªक तुलनाÂमक सािहÂय
म¤ नए ŀिĶकोण Öवीकारने के िलए ÿिसĦ ह§ ।” Ā¤च कì तरह जमªनŌ को भी राÕůीय धागे
यूरोपीय बोध से कैसे जोड़े जाए यह ÿij सताता रहता है । हेनरी रेमाक (१९६८ इयरबुक)
के मतानुसार तुलनाÂमक सािहÂय इस िवīाशाखा कì ओर देखने का ŀिĶकोण अिवचल है
ऐसा Ā¤च और अमेåरकन मागŎ के ŀिĶकोण म¤ एक मÅयÖथ और कदािचत शांितदूत बनने
का है जमªन तुलनाÂमक िवīाÓयासंग का सदैव ही होना चािहए ।"९ इस तरह जमªन Öकूल,
Ā¤च और अमेåरकन Öकूल के बीच तुलना के मत को जोड़ने वाला सािबत हो जाता है ।
जमªन Öकूल ने यह माना है िक तुलनाÂमक सािहÂय म¤ िविवध वांµमयी का िवचार होना
चािहए उसे िचरंतन कालातीत अथवा रहÖयवादी बनाने कì जłरत नहé जमªन Öकूल का munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के तÂव तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
21 मानना है िक तुलनाÂमक अÅययन म¤ वांµमयी िसĦांतŌ और राजनीितक सामािजक मीमांसा
कì टकराहट अिनवायª है । जमªन Öकूल तुलनाÂमक सािहÂय को Öवतंý िवīा शाखा कì
माÆयता देता है ।"दूसरे महायुĦ के बाद Ā¤च और पिIJम जमªनी म¤ तुलनाकारŌ ने संयुĉ
ÿकÐप शुł िकया । अपने देश कì पåरिÖथित के अनुłप समी±ा पĦित को गढ़ने का ÿयÂन
तुलनाÂमक सािहÂय म¤ जमªनीयŌ ने कैसे िकया यह देखना उĨोधक है ।”१० डॉ. अनंत केदारी
जी के इस अवतरण से ÖपĶ हो जाता है िक जमªन Öकूल पर Ā¤च Öकूल का ÿभाव शनै शनै
बढ़ता हòआ िदखाई देता है । जमªन Öकूल के शुŁआती दौर म¤ हंगरी के अÅयापक जो
बरिलन म¤ यूिनविसªटी म¤ पढ़ाते थे, उÆहŌने तुलनाÂमक सािहÂय म¤ अनुशासन िवकिसत कर
जमªन Öकूल को िवĬानŌ से जोड़ा ।
२.३.३ अमेåरकन Öकूल:
अमेåरकन Öकूल अÆय तूलनाÂमक ÖकूलŌ कì तुलना म¤ अधुनातन है । िकंतु िवĵ Öतर पर
ÿभावशाली बन गया है । अमेåरकन Öकूल कì शुŁवात ÿथम महायुĦ के बाद Āांसीसी
Öकूल कì ÿितिøया के łप म¤ हòई मानी जाती है । अमेåरकन Öकूल के आगमन के पूवª
पिIJम म¤ तुलनाÂमक सािहÂय का ±ेý सामाÆयतः पिIJमी यूरोप और एंµलो अमेåरका के
सािहÂय तक ही सीिमत था । िवĬानŌ का मानना है िक अमेåरकन Öकूल कì Öथापना ही
Öथलांतåरत जमªन तुलनाकारŌ से हòई । "एåरक ऑरबाक (१९८२-१९५७) के िलओ
Öपीटजर (१९८७-१९६०) और अनªÖट रॉबटª ³युिटªस (१८८६-१९५६) इनके जैसे
िवÖथािपत िवĬानŌ के गट ने अमेåरका म¤ Öथलांतर िकए हòए अमेåरका म¤ जÆमे हòए रेने वेलेक
(जÆम १९०३) और सेरी लेिवन जैसे तुलनाकार िदए ।"११ डॉ अनंत केदारी जी का मानना
है िक अमेåरका तुलनाÂमक सािहÂय का नंदनवन है । आज अमेåरका म¤ तुलनाÂमक सािहÂय
के िलए आशादायी वातावरण है । बहò संÖकृितयŌ कì भरमार अमेåरका म¤ तुलनाÂमक
सािहÂय के िवÖतार कì गित आIJयª- चिकत करने वाली है ।
बीसवé सदी के मÅय म¤ अमेåरकन तुलनाकारŌ ने Ā¤च तुलनाÂमक सािहÂयकारŌ को सलाह
मशवरा भी िदया । अमेåरकन तुलनाÂमक सािहÂय शीत युĦ काल म¤ िववादŌ का िवषय भी
बना रहा । कुछ िवĬान यह मानते ह§ िक अमेåरकì Öकूल Ā¤च Öकूल कì ÿितिøया के łप म¤
उभर कर सामने आया । अमेåरकन Öकूल म¤ अÅययन के ÿमुख दो ±ेý ह§ िजनम¤ एक है
‘समांतरवाद’ और दूसरा है’ इंटरटे³सुअिलटी’ । इनके समांतरवाद के अंतगªत लेखक को
और उसके कायŎ के बीच समानताएं तलाश कì जाती ह§ तथा पुराने úंथŌ को क¸चा माल
मानकर उनका उपयोग नव िनमाªण के िलए करने के बात Öवीकार कì जाती है । अमेåरकन
Öकूल म¤ मुĉ पĦित से तुलनाÂमक सािहÂय कì रचना होती है । िजसम¤ तुलनाÂमक िवषय
कì कोई मयाªदा नहé होती । और िकसी भी चीज कì तुलना िकसी भी दूसरी चीज से कì जा
सकती है । इस तरह अमेåरकन Öकूल का तुलनाÂमक सािहÂय का दायरा िवÖतृत है ।
२.३.४ łसी Öकूल:
साÌयवादी दशªन पर आधाåरत Łसी Öकूल तुलनाÂमक सािहÂय का Öकूल है । इस Öकूल के
संपादक के łप म¤ Êलािदसाव इिलच सृिवटच और अहरोन डोलगोपलÖकì का नाम िलया
जाता है । और ÓयाचेÖलाव इवानोÓह और एंůी एंűी जािलºÆयाक इन दोनŌ का भी Öकूल कì
Öथापना म¤ बहòमूÐय योगदान माना जाता है । माÖको Öकूल ऑफ कंपैरेिटव िलंिµविÖट³स munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
22 िजसे नॉÖůेिटक Öकूल भी कहा जाता है । यह माÖको का एक भाषा िव²ान का Öकूल है, जो
कई वषŎ से तुलनाÂमक भाषा िव²ान के िलए काम कर रहा है । और Łसी तुलनाकर मानते
ह§ िक सािहÂय समाज कì संपि° है । रचनाकार सामािजक घटनाओं को देखता है और
अनुभव कर समाज का यथाथª िचýण करता है । इस तरह से Öकूल म¤ सािहÂय का
तुलनाÂमक अÅययन सामािजक यथाथªवाद के ÿकार और िविवधता के आकंलन से होता है

२.४ सारांश यह िĬतीय इकाई है इस इकाई से आपने जाना िक:
 तुलना अÅययन के तÂव ³या है और कौनसे है ।
 सािहÂय का सवा«ग िवकास म¤ तुलनाÂमक अÅययन ³यŌ उपयोगी है ।
 तुलनाÂमक अÅययन के ÿमुख Öकूल कौनसे है ।
 तुलनाÂमक सािहÂय का अÅययन १९ वी – २० वी सदी के ÿारिÌभक काल से हो रहा
है ।
२.५ दीघō°री ÿij १) तुलनाÂमक अÅययन के तÂवŌ का उÐलेख कìिजए ।
२) तुलनाÂमक अÅययन के ÿमुख Öकूल और उनकì िवशेषताओं का िववेचन कìिजए ।
३) तुलनाÂमक अÅययन के ÿमुख Öकूल अपनी अलग माÆयताओं के साथ अÅययन रत
है तुलनाÂमक समी±ा कìिजए ।
२.६ लघु°रीय ÿij १) तुलनाÂमक अÅययन कì संकÐपना का िवकास कहाँ से हòआ?
उ°र: पिIJमी देशŌ से ।
२) डॉ. केदारी के अनुसार तुलनाÂमक सािहÂय के िकतने मूल िवचार है ?
उ°र: तुलनाÂमक सािहÂय के दो ÿमुख मूल िवचार है ।
३) अमेåरकन ÖकूलŌ कì Öथापना कैसे हòई ?
उ°र: अमेåरकन Öकूल कì Öथापना Öथलांतåरत जमªन तुलनाकारŌ से हòई ।
४) तुलनाÂमक सािहÂय म¤ कुल िकतने लेखकŌ के सािहÂय का अÅययन हो सकता है ?
उ°र: दो या दो से अिधक लेखकŌ का और समú सािहÂय का भी तुलनाÂमक अÅययन हो
सकता है । munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के तÂव तुलनाÂमक सािहÂय के ÿमुख Öकूल
23 २.७ वÖतुिनķ ÿij १) “सािहÂयकार समाज से िनरपे± नहé रह सकता है । सािहÂयकार अपनी रचना म¤
समाज कì ÿवृि°यŌ को ही उĦािटत करता है ।” यह पåरभाषा ………. है ।
i) हेलन िटिफन ii) डॉ. नगेÆद
iii) डॉ. अनंत केदारे iv) मैÃयू अनाªÐड
२) तुलनाÂमक शÊद कì उÂपि° िकस धातू से हòई है ।
i) तुल ii) तुस
iii) तुन iv) तूल
३) Ā¤च िवĬानŌ ने तुलनाÂमक अÅययन म¤ िकस पहलू को अिधक पसंद िकया ?
i) लोक काÓय और ÿिसĦ अÅययन ii) ÿाचीन सािहÂय
iii) सैĦािÆतक सािहÂय अÅययन iv) नाटक और उपÆयास
४) िवĬानŌ के अनुसार तुलनाÂमक सािहÂय का आīपीठ है ।
i) Ā¤च Öकूल ii) जमªन Öकूल
iii) अमेåरकन Öकूल iv) łसी Öकूल
५) तुलनाÂमक अÅययन म¤ कौनसा Öकूल अधूनातन माना जाता है ?
i) Ā¤च Öकूल ii) जमªन Öकूल
iii) अमेåरकन Öकूल iv) łसी Öकूल
२.८ संदभª úंथ १. वैजनाथ िसंहल -शोध- Öवłप एवं मानक Óयापाåरक कायª िविध - पृ.ø.२९-३०
२. øांित मुिदराज -तुलनाÂमक सािहÂय कì चुनौितयां - पृ.ø.८
३. िनिशगंधा Óयवहारे- तौलिनक सािहÂयाËयास संकÐपना व Öवłप - पृ.ø.७
४. इंदर नाथ चौधरी- तुलनाÂमक सािहÂय- भारतीय पåरÿेàय - पृ.ø.२३
५. समांतर कोश - िहंदी कì िथसारस-संपा. अरिवंद कुमार - पृ.ø.१५
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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
24 ६. आय.एन. चंþशेखर रेड्डी - तुलनाÂमक अÅययन: िनकष एवं िनłपण
७. पंिडत चतुव¥दी - समी±ा शाľ
८. डॉ अनंत केदारे - तुलनाÂमक अÅययन Óयवहाåरक कायª िविध
९. अजुªन तड़वी - अनुसंधान: सजªन एवं ÿिøया

*****

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25 ३
तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
इकाई कì łपरेखा
३.० इकाई का उĥेÔय
३.१ ÿÖतावना
३. २ तुलनाÂमक अÅययन के िसĦांत
३. ३ तुलनाÂमक सािहिÂयक अÅययन के ÿितमान
३.४ तुलनाÂमक अÅययन कì उपयोिगता एवं महßव
३.५ तुलनाÂमक अÅययन कì समÖयाएँ
३.६ तुलनाÂमक सािहÂय के मूÐय
३.७ उĥेÔय
३.८ सारांश
३.९ दीघō°री ÿij
३.१० लघु°रीय ÿij
३.११ बहòिवकÐपीय ÿij
३.१२ संदभª úंथ
३.० इकाई का उĥेÔय i. इस इकाई को पढ़ने के बाद हम तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆतŌ के बारे म¤ जान
सक¤गे ।
ii. इस इकाई के अÅययन से हम यह भी जान सक¤गे िक तुलनाÂमक अÅययन के
िसĦाÆतŌ का ÿमुख उĥेÔय ³या है?
Iii. इसम¤ हम तुलनाÂमक सािहÂय के ÿितमान, उसकì उपयोिगता एवं महßव, अÅययन
कì समÖयाएँ, एवं उसके मूÐयŌ को समझ सक¤गे ।
३.१ ÿÖतावना िकस ÿकार हमारे दैिनक जीवन म¤ पग-पग पर तुलना का उपयोग िकया जाता है । हम शूÆय
म¤ नहé रहते, ÿितिदन हमारा सामना कई तरह के लोगŌ से होता है । अपने पåरवेश को
समझने-देखने और परखने म¤ कई बार हम दूसरŌ से भी ÿभािवत होते है । जब हम अपने
आस-पास कì दुिनया को परखते है तो हम यह देखते ह§ िक हमारा कई लोगŌ से संबंध है,
और हम कई घटनाओं से एक साथ जुड़े ह§ । यही संबंध हम¤ पåरवार से जोड़ता है । यही
हमारे कामकाज के दौरान या कही आने-जाने के दौरान भी हम संबंध Öथािपत करते ह§ । munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
26 इस ÿकार के संबंध म¤ एक िनयिमत पĦित या एकरसता हो सकती है, और यह भी हो
सकता है िक उसके कुछ िनयम कानून हŌ । यहाँ हम तुलनाÂमक िसĦाÆतŌ के माÅयम से
यह बताने कì कोिशश कर रहे ह§ िक ÿÂयेक Óयिĉ कì एक िवशेष िदनचयाª होती है, परÆतु
यिद हम समú łप म¤ देखे तो यह भी पता चलता है िक अनेकŌ लोग इसी िदनचयाª को
अपनाते ह§ । हम यह भी कह सकते ह§ िक इन ÓयिĉयŌ कì िदनचयाª म¤ एक िनयिमतता ह§,
िजसकì तुलना समानता के िलए कì जा सकती है ।
आज हमारा राÕů -राºय के भौगोिलक सीमाÆतो कì ओर तीĄ गित से अúसर हो रहा है ।
पूँजी, ®म, इÆटरनेट इÂयािद के माÅयम से दुिनया का Öवłप भी उभर रहा है । भाषा,
समूह, संÖकृित, अिÖमता जैसी चीजे आज नयी पहचान एवं नई Óया´या कì तलाश मे ह§ ।
वैिĵक Öतर पर भी सब कुछ बदलने लगा है । यह एक नया और खुद को लगातार िवकिसत
करता हòआ अनुशासन है । एक बड़ी वैिĵक-सािहिÂयक सांÖकृितक ÿिøया है, और इस
ÿिøया के रथ चø का पिहया तुलनाÂमक िसĦाÆतŌ से ही संचािलत हो रहा है । तुलनाÂमक
सािहÂय के ±ेý म¤ आ रहे बदलावŌ के पåरÿेàय म¤ सािहिÂयक आलोचना और सािहिÂयक
िसĦाÆतŌ के बारे म¤ भी जानना जłरी हो जाता है । साथ ही यह भी जानना होगा िक
पारÌपåरक łप से ÿचिलत सािहÂयालोचना एवं सािहÂय सैĦांितकì कì कोिटयाँ एवं
ÿितमान अब िकतने अथªपूणª एवं उपयोगी रह गए । और वे कौन-कौन से नए सािहिÂयक
ÿितमान एवं उपसर हŌगे जो आलोचना एंव सािहिÂयक िसĦाÆतŌ को नवीन तुलनाÂमक
सािहÂय कì कृितयŌ के मूÐयांकन म¤ स±म बना सक¤गे ।
संÖकृित, राÕů, एवं भाषा कì सीमाबĦता को तोड़ते हòए दुिनया भर मे आज तुलनाÂमक
सािहÂय का महßव बढ़ रहा है । पारंपåरक तुलनाÂमक सािहÂय से अलग एवं Óयापक धरातल
पर इसका िवकास हो रहा है । पारÌपåरक łप से तुलनाÂमक सािहिÂयक अÅययन अपनी
पूवª संकÐपना म¤ अÆयता पर आधाåरत रही है । यह अÆय िकसी दूसरी भाषा कì सािहिÂयक
कृितया या कोई अÆय सांÖकृितक भी हो सकता है । ऐसे अÅययनŌ म¤ ÿाय: दोनŌ कì तुलना
कर दी जाती है और उनकì िविशĶताओं को भी रेखांिकत कर िदया जाता है । लेिकन आज
तुलनाÂमक सािहÂय िसĦांत वही नहé रहा । मान-िवøì एवं समाज िव²ान जैसे िवषयŌ से
खुद को समृĦ िकया इसी कारण सािहिÂयक आलोचना एवं सािहिÂयक िसĦाÆतŌ का
Öवłप तथा उनसे अपे±ाएँ भी आज काफì कुछ बदल गई है ।
३.२ तुलनाÂमक अÅययन के िसĦांत लगभग सभी सामा िजक िव²ानŌ म¤ तुलनाÂमक अÅययन का िकसी न िकसी łप म¤ ÿयोग
िकया जाता है । समाज शाľ एवं मानव शाľ म¤ तो काफì समय से तुलनाÂमक Óया´या को
या उसके िसĦाÆतŌ को सवō°म िसĦांत समझा जाता है । इसका िवकास ऐितहा िसक एवं
उिĬकासवादी पåरÿेàयŌ म¤ पायी जाने वाली किमयŌ को दूर करने के ÿयास के पåरणाम
Öवłप हòआ । तुलनाÂमक िसĦांत वह पĦित है िजसमे िकÆही दो घटनाओं संÖथाओं तथा
समाजŌ आिद कì तुलना करके उनम¤ अÆतर और समानता का पता लगाया जाता है
संÖथाओं तथा समाजŌ का तुलनाÂमक अÅययन भी िकया जाता है । ÿÂयेक तुलना को
तुलनाÂमक िविध नहé कहा जा सकता ह§ ³यŌिक जीÆसबगª के अनुसार तुलनाÂमक
अÅययन का अथª केवल तुलना करना ही नहé है अिपतु तुलना के पIJात घटनाओं कì munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
27 Óया´या करना भी है । इसका अथª यह हòआ िक यिद तुलना करके तुलना कì जाने वाली
घटनाओं कì Óया´या नहé कì जा सकती है तो इसे तुलनाÂमक अÅययन नहé कहा जायेगा
। इमाइल दुखêम का कहना है िक तुलना कì जाने वाली वÖतुएँ पूणªत: एक-दूसरे से िभÆन
नहé होनी चािहए । उनका यह कहना था िक तुलना कì जाने वाली वÖतुओं म¤ कुछ न कुछ
समानता भी होना अÂया वÔयक है ।
३.३ तुलनाÂमक सािहिÂयक अÅययन के ÿितमान समाज और सािहÂय के बीच अÆयोÆयाि®त संबंध होता है । सािहÂयकार अपने आस-पास
का वातावरण, रीित-åरवाज, परÌपरा, िवचारधारा , आिद को ही अपने सािहÂय म¤ उतारता
है, और इस तरह से हम तÂकालीन पåरवेशो से िविधवत पåरिचत हो जाते ह§ । इस ÿकार
सािहÂय म¤ समाज का ÿितिबंब अंिकत होने के कारण इसे समाज का आईना भी Öवीकार
िकया जाता है । आज के दौर म¤ हमारे भारत वषª म¤ भूमडलीकरण, सांÿदाियकता,
आतंकवाद, ĂĶाचार, आर±ण नीित, ľी उÂपीडन आिद ऐसे ÿमुख मुĥे ह§, िजससे समाज
को भयंकर पåरणामŌ का सामना करना पड़ रहा है । ऐसे समय म¤ सािहÂय इन ýासिदयŌ से
उबारने म¤ हमारे िलए सहायक िसĦ होता है । िवमशª को लेकर वैिĵक Öतर पर ÿचुर माýा म¤
सािहÂय सृजन हòआ है । िवĵ कì लगभग सभी िľयाँ अपने अिÖतÂव तथा आÂमसÌमान से
जूझती िदखाई देती ह§ । सािहिÂयक तथा सुधारवादी ÿयÂनŌ से आज कì ľी का दायरा
बढ़ता ही जा रहा है । वह पåरवार कì दहलीज लाँघकर खुले आसमान म¤ िवचरण करने लगी
है । िफर भी उसके सामािजक Öतर पर इसका िवशेष ÿभाव पड़ता िदखाई नहé देता है ।
उसे अपने पåरवार तथा कायाªलय दोनŌ म¤ संतुलन बनाए रखना आवÔयक हो जाता है ।
हमारा देश बहòभािषक देश है, यहाँ ÿÂयेक भाषा म¤ सÌपÆन सािहÂय है । इसी भाषा और
सािहÂय म¤ राÕů कì पहचान बनती है । इसिलए िविवधता म¤ एकता का सÆदेश देने वाले
हमारे देश म¤ तुलनाÂमक अनुसंधान के ÿितमानŌ के िलए बहòत बड़ा मंच उपलÊध हो सकता
है । तथा एक दूसरे कì संÖकृितयŌ के आदान-ÿदान म¤ भी यह तुलनाÂमक अÅययन काफì
सहायक भी हो सकता है । भारतवषª म¤ तुलना कì शुŁआत बंगाल से मानी जाती है । जहाँ
सवªÿथम बंगाल के िव´यात किव माइकेल मधुसूदन द° ने १८६० ई. म¤ अपने एक िमý
को िलखे पý से ÖपĶ हो जाता है िक िजन किवयŌ कì रचनाओं म¤ उनको अपनी पसंद का
काÓय िमलता है,उÆहé कì किवता वे पढ़ते ह§ । वहé उÆहŌने यूरोपीय तथा भारतीय नाटकŌ
कì तुलना ÿÖतुत करते हòए, कहा िक यूरोपीय नाटक म¤ जहाँ जीवन के कठोर यथाथª,
उदा° आवेग तथा वीर रस का पåरचय िमलता है । वहé भारतीय नाटक म¤ ÿेम और
कोमलता का ।’ इस ÿकार भारतीय और पाIJाÂय सािहÂय को िमलाकर तुलनाÂमक
अÅययन के ÿचार - ÿसार कì शुŁआत मायकेल मधुसूदन द° से ही मानी जाती है ।
कुछ समय पIJात उनका ÿभाव बंिकमचÆþ चटजê पर पड़ा और उÆहŌने १८७३ म¤ शकुतला
‘पिIJम कì िमरांडा तथा ‘डेसडोमाना’ कì तुलना कì तथा वापरना एवं शैली कì किवताओं
कì तुलना वैिदक सािहÂय से कर भारतीय सािहÂय कì तुलनाÂमक ÿितमानŌ कì पåरिध
बढ़ा दी । यह वही समय था जब पिIJम म¤ तुलनाÂमक अÅययन के ÿितमानŌ को एक गित
ÿाĮ हो रही थी munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
28 िजसका सीधा िकÆतु ÖपĶ ÿभाव भारतीयŌ पर भी िदखने लग गया था । µयोरथे कì िवĵ
सािहÂय कì संकÐपना को रबीÆþनाथ ठाकुर ने आगे बढ़ाते हòए सन १९०७ म¤ भारतीय
तुलनाÂमक सािहÂय अÅययन को ‘िवĵसािहÂय’ कì सं²ा ÿदान कर इसका मागª भी ÿशÖत
िकया । आगे चलकर िÿयरंजन सेन ने सन १९३२ ई. म¤ बंगाली उपÆयासŌ पर पाIJाÂय
सािहÂय के ÿभाव का अÅययन िकया । इससे पहले वारेन हेिÖटंगस के Ĭारा ‘भगवदगीता’ के
धािमªक तÂवŌ कì तुलना ईसाई धमª से सन् १७८५ से कì गई थी । अलेµज¤þ बेबर ने अपने
úंथ ‘द िहÖůी ऑफ इंिडयन िलटरेचर’ १८५२ म¤ संÖकृत नाटकŌ पर यूनानी सािहÂय के
ÿभाव कì छानबीन कì थी । िकÆतु भारतीय िवĬानŌ Ĭारा यह शुŁआत बंगाल से होती हòई
ही िदखाई देती है ।
जहाँ तक तुलनाÂमक सािहिÂयक ÿितमानŌ कì बात है तो तुलनाÂमक अËयास से हम¤ िकसी
भी सािहिÂयक कृित को समझने तथा जाँचने म¤ काफì आसानी होती है । इससे सािहÂय
तथा सािहÂयकार कì उपलिÊधयाँ भी हमारे सामने आ जाती ह§, तथा उसके Ĭारा िनिमªत
सािहÂय कì कालजियता को भी हम आसानी से समझ सकते ह§ । भारतीय अÅययनŌ के
अनुसार तुलनाÂमक सािहिÂयक अÅययनŌ के कुछ ÿमुख ÿितमान तय िकए गए है, जो इस
ÿकार ह§ ।
i. संÖकृित:
हमारी वाÖतिवक पहचान संÖकृितयŌ से ही बनती है, संÖकृित से ताÂपयª है िक मनुÕय कì
भाषा, रहन-सहन, रीित-åरवाज, खान-पान, आिद । िदनकर के अनुसार, “अनेक शतािÊदयŌ
तक एक ही समाज के लोग िजस तरह खाते, पीते, रहते-सहते, पढ़ते-िलखते, सोचते-
समझते और राज-काज चलाते अथवा धमª-कमª करते ह§, उन सभी कायŎ से उनकì संÖकृित
उÂपÆन होती है । हम जो कुछ भी करते ह§ उससे हमारी संÖकृित कì झलक िमलती है । यहाँ
तक िक हमारे उठने-बैठने पहनने-ओढ़ने, घूमने-िफरने और रोने-हंसने से भी हमारी
संÖकृित कì पहचान होती है । यīिप हमारा कोई भी एक काम हमारी संÖकृित का पयाªय
नहé बन सकता । असल म¤ संÖकृित िजÆदगी का एक तरीका है और यह तरीका सिदयŌ से
जमा होकर उस समाज म¤ छाया रहता है िजसम¤ हम जÆम लेते ह§ । इसिलए िजस समाज म¤
हम पैदा हòए ह§ अथवा िजस समाज म¤ रहकर हम जी रहे ह§ उसकì संÖकृित हमारी संÖकृित
है । यīिप अपने जीवन म¤ हम जो संÖकार जमा करते ह§, वह भी हमारी संÖकृित का अंग
बन जाता है, और मरने के बाद हम अÆय वÖतुओं के साथ अपनी संÖकृित कì िवरासत भी
अपनी संतानŌ के िलए छोड़ जाते ह§ । इसिलए संÖकृित वह चीज मानी जाती है जो हमारे
सारे जीवन को Óयापे हòए है तथा िजसकì रचना और िवकास म¤ अनेक सिदयŌ से अनुभवŌ
का साथ है ।”
अतः हम कह सकते ह§ िक मनुÕय कì संÖकृित ही अÆय मानवांतर ÿािणयŌ से अलग बनती
है । मानव संÖकृित पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती है और जीिवत रहती है । यह मौिखक होती है
। हमारे बुजुगŎ से यह हम¤ िवरासत म¤ िमलती जłर है, पर उसम¤ वĉ के साथ-साथ बदलाव
भी आता रहता है । जैसे रामायण-महाभारत कालीन संÖकृित म¤ आज पूणªतः बदलाव आ
चुका है । यह एक मनोवै²ािनक कृित है ।
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तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
29 ii. सामािजक दाियÂव एवं राजनीितक युग बोध:
िकसी भी देश कì शासन ÓयवÖथा को सुÓयिÖथत तथा सुचाŁ ढंग से चलाने के िलए
िनधाªåरत कì गई िवशेष नीितयŌ को राजनीित कहा जाता है । ÿशासन कì शुŁआत तो
कबीलाई समाज से ही हो चुकì थी । जहाँ कबीलŌ का एक मुिखया होता था, धीरे-धीरे यह
संकÐपना भी आगे बढ़ने लगी । ÿाचीन कल म¤ āाĺण ±िýय, वैÔय तथा शूþ सभी वणŎ के
कमª िनिIJत कर िदए गए थे । िजनम¤ ±िýयŌ के िलए राºय कì ÓयवÖथा तथा र±ा करने का
िजÌमा सौपा गया । जाित तक सीिमत इस ±ेý का आगे चल कर कमŎ के आधार पर चयन
होने लगा, िजसके कारण अपने अतुÐय पराøम तथा कूटनीित के बल पर अनेक राजाओं ने
अपना नाम भारतीय राजनीितक इितहास म¤ हमेशा-हमेशा के िलए रख छोड़ा । अंúेजŌ के
आगमन के बाद हमारे देश ने स°ारण तथा गुलामी झेली । अंúेजŌ के दाँवपेच के तले
भारतीय अिशि±त जनता पूरी तरह दब गई ।
मनुÕय तथा समाज एक दूसरे पर ही आि®त ह§ । मनुÕय ही समाज बनाता है और समाज से
ही मनुÕय कì पहचान बनती है । उÆनीसवी शती मे हमारे देश म¤ आधुिनकता कì हवा चलने
लगी । पåरणाम Öवłप पाåरवाåरक टूटन तथा तनाव भी िनिमªत होने लगे । इस ŀिĶ से
तुलनाÂमक सािहÂय के अÆतगªत एक से अिधक भाषा के सािहÂय का अÅययन भी िकया
जाता है । गयोएथ ने सन १८५७ म¤ ‘वÐडª िलटरेचर’ सं²ा का ÿयोग िकया । वही भारत वषª
म¤ १९०७ म¤ रवीÆþनाथ ठाकुर ने इसी संकÐपना को आगे बढ़ाते हòए तुलनाÂमक सािहÂय
के िलए ‘िवĵ सािहÂय’ कì संकÐपना को पेश िकया था और कहा था िक- ‘यह पृÃवी
िविभÆन टुकड़Ō म¤ बटी हòई है । लोगŌ का रहने का अलग-अलग Öथान नहé है, उनका
सािहÂय अलग-अलग रिचत सािहÂय नहé है । ÿÂयेक लेखक Ĭारा रिचत सािहÂय एक पूणª
इकाई है, तथा वह इकाई समूचे मानव समाज कì सवªभौम सृजनाÂमकता का पåरचायक है ।’
इस कथन से यह ÖपĶ है िक रवीÆþनाथ ठाकुर ने, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कì कÐपना ÿÖतुत
सािहÂय के माÅयम से ही कì है । जे.एम. कैरे के अनुसार-‘तुलनाÂमक सािहÂय सािहÂय
इितहास कì एक शाखा है तÃयानुłप सÌपकŎ के आधार पर तुलनाÂमक सािहÂय का अथª
है उसकì पåरिध से सािहÂयालोचन को हटाकर माý िवषय संúह को तुलनाÂमक सािहÂय
मान लेना ।’ हेनरी.एच.एच रेमाक का कथंन है िक- “तुलनाÂमक सािहÂय एक राÕů के
सािहÂय कì पåरिध के परे दूसरे राÕůŌ के सािहÂय के साथ तुलनाÂमक अÅययन है तथा यह
अÅययन कला, इितहास , समाज िव²ान, धमªशाľ आिद के ²ान के िविभÆन ±ेýŌ के
आपसी संबंधŌ का भी अÅययन है । ‘इस कथन से यह ÖपĶ है िक तुलनाÂमक अÅययन के
ÿितमानŌ के माÅयम से सांÖकृितक आदान-ÿदान पर जोर देते ह§ । इस ÿकार सभी
तुलनातमक सािहÂयकारŌ का ÿमुख उĥेÔय तुलनाÂमक सािहÂय के माÅयम से िविवधता म¤
एकता Öथािपत करना है । िवĵ सािहÂय कì संकÐपना को आगे बढ़ाना है तथा यह अÅययन
सािहÂय तक सीिमत न रखते हòए अÆय ±ेýŌ म¤ भी इस को सिÌमिलत करना है ।
३.४ तुलनाÂमक अÅययन कì उपयोिगता एवं महÂव समाज िव²ान म¤ सामािजक घटनाओं के अÅययन हेतु तुलनाÂमक पĦित का ÿयोग वतªमान
म¤ बहòत हòआ है। तुलनाÂमक अÅययन के उपयोग के Ĭारा एक ही समूह अथवा समाज म¤ munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
30 घटने वाली समान ÿकृित कì सामािजक घटनाओं या समÖयाओं कì परÖपर तुलना कì
जाती है, और उनकì समानता व असामानता को ²ात िकया जाता है। एक ही समाज म¤
िविभÆन समय म¤ घटने वाली घटनाओं अथवा िविभÆन समाजŌ म¤ िविभÆन ÖथानŌ पर घटने
वाली समान ÿकृित कì घटनाओं का तुलनाÂमक अÅययन भी इस िविध के Ĭारा िकया
जाता है। उदाहरण Öवłप औīोगीकìकरण एवं नगरीकरण ने यूरोपीय पåरवारŌ को एवं
भारतीय पåरवारो को िकस łप म¤ ÿभािवत िकया है उनमे कौन-कौन सी जीवन ÿकृितयाँ
उÂपÆन हòई ह§ । दोनŌ समाजŌ म¤ पåरवतªन कì समानताएँ और िभÆनताएँ ³या है, आिद सभी
प±ो को जानने के िलए हम¤ तुलनाÂमक अÅययन का ही सहारा लेना पड़ेगा । एस तरह से
िविभÆन समूह समाजŌ, संÖथाओं व समुदायŌ म¤ घटने वाली सामािजक घटनाओं का
तुलनाÂमक अÅययन करने के िलए तुलनाÂमक पĦित का सहारा लेना पड़ेगा ।
तुलनाÂमक पĦित का उपयोग समाजशाľ और मानवशाľ म¤ अनेक िवĬानŌ ने िकया है ।
सामािजक और सांÖकृितक मानव शािľयŌ ने सामािजक और सांÖकृितक िवकास को
जानने समझने हेतु ही इसका ÿयोग िकया था । ÿारिÌभक मानव शािľयŌ म¤ िजÆहŌने
इसका ÿयोग िकया उनके नाम मॉगªन, बेकोफन, टेगाटª, हेनरीमॅन, मॅकलीनन, टॉयलर,
Āेजर तथा लेवी आिद के नाम उÐलेखनीय ह§ । िवकासवादी समाज वै²ािनकŌ ने
ऐितहािसक और तुलनाÂमक पĦित का साथ-साथ ÿयोग िकया । समाजशाľ के जनक
‘अगÖतकामटे’ ने समाज के िवकास के िविभÆन चरणŌ कì तुलना कì, इÆहŌने सामािजक
िवकास के तीन ÖतरŌ का िनयम म¤ काÐपिनक दाशªिनक एवं वै²ािनक ÖतरŌ का उÐलेख
िकया और इनकì तुलना भी कì । हरबटª Öप¤सर ने समाजवाद समवय कì तुलना कì और
इन दोनŌ के बीच कì समानताओं का उÐलेख भी िकया । इसी आधार पर इÆहŌने समाज को
एक सावयव कहा । उÆहŌने िविभÆन समाजŌ कì भी परÖपर तुलना कì ।
तुलनाÂमक सािहÂय के महÂव को आधुिनक युग म¤ लगभग सभी देशŌ म¤ Öवीकार कर िलया
गया है । ³यŌिक तुलनाÂमक सािहÂय आधुिनक सËयता का ÿमुख िवमशª बन गया है ।
तुलनाÂमक सािहÂय या तुलनाÂमक पĦित आज कì एक ÿमुख सािहिÂयक पĦित है,
िजसके माÅयम से दो भाषा संÖकृित कì अÆतिनªिहत िवशेषताओं को एक-दूसरे कì सापे±ता
म¤ रखकर िवĴेिषत िकया जाता है । इस ÿकार तुलनाÂमक पĦित के माÅयम से सािहिÂयक
कृितयŌ को परखने के सूý भी तलाशे जाते ह§ । तुलनाÂमक सािहÂय कì िवशेषता से पूवª हम¤
यह भी समझना आवÔयक है िक तुलनाÂमक सािहÂय के लेखक के िलए अिनवायª धमª ³या
है? आज कल Óयवसायीकरण के दबाव मे ÿाय: लेखक तुलनाÂमक आलोचना म¤ ही ÿवृ°
हो जाते ह§ । इस ÿकार से यह तुलनाÂमक सािहÂय को गंभीरता से देखते हòए बहòत हÐका
ÿयास ही कहा जा सकता है । तुलना करने के िलए लेखक को केवल दो ही भाषाओं का
²ान अिनवायª नहé है । बिÐक उन भाषाओं के Óयाकरण और संÖकार व उसके अथª
तथागत ±ेý कì संÖकृित को जानना भी आवÔयक है ।
तुलनाÂमक सािहÂय का महÂव िदनŌ -िदन बढ़ता ही जा रहा है । राजनीितक िवÖतार के िलए
अनुवाद कायª को छोड़ िदया जाए तो भी तुलनाÂमक सािहÂय का महÂव कì ŀिĶयŌ से
महÂवपूणª ही माना जाएगा । तुलनाÂमक सािहÂय का सवाªिधक महÂवपूणª कायª, सािहÂय के
िवÖतार कì ŀिĶ से है । एक सािहÂय एक िवशेष ÿकार कì ऊजाª व लोकरंग से िनिमªत होता
है । दूसरे देश से सािहÂय का पåरवेश उस पर िवचाराÂमक एवं संवेदनागत ÿभाव डालता है । munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
31 इस ढंग से तुलनाÂमक सािहÂय का ÿाथिमक कायª सािहिÂयक िवÖतार का पåरवेश िनिमªत
करना है । तुलनाÂमक सािहÂय के माÅयम से सािहिÂयक ÿितमानŌ के िवÖतार को गित
िमलती है । सािहÂय का एक महÂवपूणª कायª चूंिक सËयता का ÿसार करना भी है,
तुलनाÂमक सािहÂय उसम¤ हमारे िलए मददगार सािबत होता है । सËयता िवÖतार के बाद
तुलनाÂमक सािहÂय का सवाªिधक महÂवपूणª कायª सांÖकृितक िवÖतार करना है । दो भाषा,
दो पåरवेश, दो ÿकार का सािहÂय अपने संÖकृित म¤ वैिवÅय िलए हòए होते है, अत: दोनŌ को
उनकì सापे±ता म¤ úहण कर एक दूसरे को समझने कì ŀिĶ का िवÖतार िकया जाता है ।
तुलनाÂमक सािहÂय के महÂव व लोकिÿयता का सवाªिधक महÂवपूणª कारण मनुÕय के
सांÖकृितक िवÖतार कì आकां±ा है । िदन-ÿितिदन हमारा भौितक िवÖतार होता जा रहा है ।
मनुÕय, मनुÕय के िनकट आता जा रहा है । लेिकन øमश: सांÖकृितक अवमूलन का ÿij भी
तीĄ होता जा रहा है । सËयता के ÿसार ने सांÖकृितक संकट को नए िसरे से खड़ाकर िदया
है । पåरणाम Öवłप सांÖकृितक समृिĦ व िवÖतार के िलए सांÖकृितक कमª के łप म¤
तुलनाÂमक सािहÂय कì मह°ा िदनŌ िदन बढ़ती ही जा रही है । तुलनाÂमक पĦित का ÿयोग
हम अपने जीवन म¤ िदन-ÿितिदन करते आ रहे है । इसका सीधा ÿयोग या उपयोग ÿाकृितक
और सामािजक िव²ानŌ म¤ भी िकया जाता है । हम िविभÆन भौगोिलक ±ेýŌ, आिथªक तÃयŌ
जनसं´या के आँकडŌ आिद कì परÖपर तुलना करके िविभÆन ÿदेशŌ कì आिथªक समृिĦ
जीवनÖतर तथा खुशाहली और समृिĦ का पता लगाते ह§ ।
३.५ तुलनाÂमक अÅययन कì समÖयाएँ भारत म¤ सन १९०७ म¤ रवीÆþनाथ ठाकुर ने ‘िवĵ सािहÂय’ का उÐलेख करते हòए सािहÂय
के अÅययन म¤ तुलनाÂमक ŀिĶ कì आवÔयकता पर जोर िदया था । भारत म¤ तुलनाÂमक
अÅययन के ÿारंभ के संबंध म¤ ए.बी. साई ÿसाद ने कहा है िक ‘बीसवी’ सदी से ही हम
तुलना शÊद को ‘कंपरीिटव’ शÊद का पयाªयवादी शÊद मान इÖतेमाल करते आ रहे ह§ ।
इसके पहले यह शÊद भारत म¤ ÿचिलत ही नहé था ।’ डॉ.पी.एम.वासुदेव ने भी भारत म¤
तुलनाÂमक अÅययन Öवतंýता ÿािĮ के बाद तीĄगित से चलने कì बात कही है । िहÆदी मे
भिĉ एवं रीितकालीन किव तुलसी, सुर, केशव आिद ने अपने किव łप के संबंध म¤, जो
अनूठी उिĉयाँ कही है, उनम¤ िहÆदी के तुलनाÂमक अनुसंधान के बीज िनिहत ह§ । पĪ िसंह
शमाª ‘कमलेश’, िम® बंधु आिद ने देव और िबहारी कì तुलना कर ®ेķ और किनķ को
Öथािपत िकया । महावीरÿसाद िĬवेदी, शिचरानी देवी तथा आचायª रामचÆþ शु³ल ने भी
इसे िवकिसत िकया । तुलनाÂमक अÅययन के माÅयम से िवĵभर म¤ रचा गया सािहÂय एक
तुला म¤ तौलकर उसे एक दूसरे के काफì करीब लाया जा सकता है । ÿÖतुत अÅययन
संबंधी तुलनाकारŌ म¤ संĂम कì िÖथित होने के कारण इसके अंतगªत अÅययनकताªओ के
िलए समÖयाएँ िनिमªत होती है । रवीÆþनाथ ठाकुर ने इसका मागª ÿशÖत िकया, िकÆतु ठोस
नीित के अभाव म¤ आज भी या अÅययन सही मायने म¤ गित ÿाĮ नहé कर सकता है । यहाँ
यह भी ÖपĶ है िक भारतीय तुलनाÂमक अÅययन अपने अिÖतÂव के िलए जूझ रहा है । इस
अÅययन के अÆतगतª अÅयेताओ को कई तरह कì समÖयाएँ सामने आ सकती है ।

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
32 i. संÖकृत सािहÂय:
भारत वषª म¤ सभी ÿादेिशक भाषाओ कì जननी के łप म¤ संÖकृत भाषा को ´याित ÿाĮ है ।
आī सािहÂय िनिमªती का ®ेय भी इसी भाषा को जाता है । कालजयी सािहÂय जैसे वेद,
पुराण, महाभारत, रामायण नाट्यशाľ, कुमारसंभव, मेघदूत, काÓयालंकार, रीितिसधाÆत
आिद के साथ वेदÓयास, भरतमुिन, कािलदास, अिभनवगुĮ, मममट जैसे कालजयी
रचनाकारŌ के होते हòए भी इस काल म¤ तुलनाÂमक अÅययन पर कोई कायª नहé हो सका ।
इसका सबसे ÿमुख कारण था िक जहाँ कहé भी एक सािहिÂयक कृित दूसरे से िकस ÿकार
िभÆन है, तथा ³यŌ िभÆन है, इसका िववेचन ÿाĮ नहé होता तथा ÿÖतुत आचायŎ ने अपने
जीवन संबंधी जानकारी को भी गोपनीय बनाए रखा, िजसके फलÖवłप उनके Óयिĉßव
तथा सािहÂय के अनुसंबधो कì जानकारी ÿाĮ नहé होती । आज भारतीय सािहÂय कì नी व
संÖकृत सािहÂय पर खड़ी है । ऐसे समय म¤ संÖकृत सािहÂय कì आलोचना कì अनुपिÖथित
म¤ तुलनाÂमक अÅययन को िनिIJत िदशा ÿाĮ होने म¤ समÖया हो सकती है ।
ii. अनुवाद:
तुलनाÂमक अÅययन के िलए तुलनाकार के पास एक से अिधक भाषा तथा संÖकृित का
²ान होना आवÔयक है । तब ÿij यह उठता है िक एक ही Óयिĉ िकतनी भाषाओं का ²ान
रखे । जब हम िवĵसािहÂय कì बात करते ह§ तो उसम¤ अनेक भाषाओं का सािहÂय अंतåरत
होते है । ऐसे समय पर अनुवाद कारगर सािबत हो सकता है । जैसे तुलनाकार को बांµला के
उपÆयासकार शरतचÆद कì तुलना िहÆदी के िनराला से करनी हो तो िहÆदी भाषा
तुलनाकार, अनुवाद का सहारा ले सकता है । तब सवाल यह उठता है िक ³या वह अनुवाद
मौिलक है? कभी-कभी अनुवाद का पंिडत उसकì ÿकांड िवĬता अनुवाद कायª म¤ सहायता
कì अपे±ा बाधा उपिÖथत कर देती है । ³यŌिक उसकì वाÖतिवक वृि°, पािÁडÂय ÿदशªन
कì ललक, के कारण अनुवाद कì संÿेषनीयता को ÿभािवत करती है । अपवाद कì सीमा
िनधाªरण म¤ अनुवादाभास का महÂव िनिIJत łप से Öवीकायª है । ³यŌिक जब लàय भाषा को
िविशĶ अनुवाद के िलए ÿयोग म¤ लाया जाता है तो अनुवादाभास कì िÖथित उÂपÆन होती
है । वह भूल से पåरिचत होने के कारण कभी भी अथª बोध म¤ िकसी ÿकार कì बाधा का
अनुभव नहé कर पाता है, इसिलए वह अनुभवादाभास कì ओर से उदासीन हो जाता है ।
उसके Ĭारा अनूिदत सामúी सफल नहé हो पाती है । ऐसे समय पर अनुवाद पर तुलनाकार
का िनभªर रहना किठन िसĦ होता है ।
iii. तÂव िनधाªरण:
भारत भले ही अनेक भाषा तथा ÿदेशŌ म¤ बंटा हो, लेिकन भारतीय संÖकृित को एक माना
गया है । ऐसी पåरिÖथित म¤ तुलनाÂमक अÅययन के अंतगतª िनिIJत तÂवŌ का िनधाªरण
करना आवÔयक है । भले ही हमारी संÖकृित एक हो, परÆतु हम जाित ÓयवÖथा, पहनावा,
खान-पान, रीित-åरवाज, सामािजकता, एवं भौगोिलकता म¤ बटे हòए ह§ । इन सभी िनकष को
Åयान म¤ रखते हòए तÂवŌ का िनधाªरण िकया जाना भी आवÔयक है । तुलनाÂमक अÅययन के
अÆतगतª साÌय तथा वैषÌय िसĦ करना अिनवायª है, या कुछ और तßव इसके अंतगªत होने
ज़łरी है, यह भी पहले से तय होना चािहए । munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
33 iv. भारतीयता:
भारतीय संकÐपना को भी तुलनाÂमक सÆदभŎ म¤ पåरभािषत करना अÂयावÔयक है । भारत
देश एक बहòभािषक देश है, िफर भी यहाँ अनेकता म¤ एकता ŀिĶगोचर होती है । भारतीय
वांगमय अनेक भाषाओं म¤ अिभÓयĉ एक ही िवचार है । भारतीय वांगमय को इकाई के łप
म¤ जब Öवीकार िकया जाता है तब इसके िविशĶ िनकष होने आवÔयक हो जाते ह§ । भारतीय
Ĭारा िलखा गया अंúेजी सािहÂय का भारतीयकरण िकन िनकषो पर होना चािहए यह भी तय
होना आवÔयक है ।
v. तुलना के मानदÁड:
तुलना के एक िनिIJत मानदÁड होने आवÔयक ह§ िजसके आधार पर तुलनाÂमक अÅययन
कì नéव रखी जा सकती है । जैसे ³या तुलना दो िभÆन भाषा के सािहÂय म¤ होनी चािहए?
³या तुलना एक ही भाषा के िभÆन सािहÂयकारŌ म¤ होनी चािहए? ³या तुलना एक ही
सािहÂयकार के दो िभÆन सािहÂय कृितयŌ पर होनी चािहए? तुलना के िलए कौन-कौन से
आधार तÂव होने चािहए?
उपरोĉ सभी बातŌ पर िनिIJत मानदÁड Öथािपत होने अÂयावÔयक ह§ । िजससे ÿÖतुत
अËयास को िनिIJत िदशा तथा गित ÿाĮ हो सके ।
३.६ तुलनाÂमक सािहÂय के मूÐय तुलनाÂमक सािहÂय के कुछ महÂवपूणª मूÐय हमारे सामने इस तरह से आते है ।
१. तुलनाÂमक सािहÂय सािहÂय कì सावªभौम संकÐपना है जो सािहÂय को राÕůीय तथा
भािषक सीमाओं से परे, उसे उसके समú łप म¤ úहण करती है ।
२. यह सािहÂय के बाĻ łपŌ को महÂव न देकर उसके आंतåरक तÂवŌ को ही रेखांिकत
करता है ।
३. सभी ÿकार के पूवाªúहŌ से अिवकृत सभी ÿकार कì मूÐयवान मानव अनुभूितयाँ
उसकì िवषय-वÖतु ह§ और उसकì अिभÓय िĉ का िनमाªण सावªभौम भािषक łपŌ म¤
होता है ।
४. िभÆन सािहÂयŌ के जातीय, सामािजक, राजनीितक एवं भािषक łप भेदो से तो इसका
कोई संबंध ही नहé रहता है ।
५. तुलनाÂमक सािहÂय का आिवभाªव अनेकता म¤ एकता के संधान कì भावना से ÿेåरत,
अनेक सािहÂयŌ के तुलनाÂमक अÅययन से हòआ है । आज इ³कìसवी सदी म¤
भूमंडलीकरण, बाजारवाद के कारण संपूणª िवĵ एक ‘िवĵúाम’ के łप म¤ बन गया है ।
ऐसे म¤ तुलनाÂमक सािहÂय को अनेक कारणŌ से अनÆय साधारण महÂव भी और मूÐय
भी ÿाĮ हòए ह§ । तुलनाÂमक अनुसंधान अÆय शोध पĦितयŌ से िविशĶ है । अÆय शोध
म¤ जहाँ एक ही ÿमुख आयाम रहता है वहाँ तुलनाÂमक अनुसंधान म¤ दो या दो से
अिधक आयाम रहते ह§ तुलनाÂमक सामúी भी दो या अिधक सािहÂय से इकęा कì munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
34 जाती ह§ । तुलनाÂमक अÅययन से िवशेष लाभ यह होता है िक इसम¤ अनुसंधान कì
ŀिĶ सूàम से सूàमतर होकर अिधक गहराई म¤ िÖथत काÓय कì अंतराÂमा का Öपशª
कर लेती है । पåरणाम Öवłप बहòत अमूÐय िनÕकषª कì ÿािĮ होती है । ²ान कì
पåरपुिĶ एवं संपुिĶ के िलए तुलनाÂमक अÅययन आवÔयक ही नहé अिनवायª भी है ।
तुलनाÂमक अÅययन से वै²ािनक ŀिĶकोण िवकिसत होता है । इससे हम¤ उ¸चतर
²ान कì ÿािĮ भी होती है ।
भारतीय िवचारधारा ÿाय : एक समान है । भाषाओं का िनवास पहने वह एक ही भाव अनेक
łपŌ म¤ ÿÂय± होता है । परÆतु परÖपर अपåरचय के कारण यह तÂव ÿाय: अ²ात ही रह
गया है । इस एकता को उजागर कर भारत कì भाव नाÂमक एकता को सुŀढ़ बनाने कì िदशा
म¤ तुलनाÂमक अÅययन का मूÐय और महÂव दोनŌ पता चलता है । आज पाIJाÂय सËयता
बाजारवाद, Öवाथªपरता एवं भोगवािदता कì ÿवृि° भारत म¤ अिधक ÿवृ° होती जा रही है ।
िजससे Óयिĉवाद बढ़ा, संयुĉ पåरवार टूटे, तथा आदर भाव भी कम हòआ है । मानव मूÐय,
नैितक मूÐय पयाªĮ गित से संøिमत तथा पåरवितªत हòए ह§ । तुलनाÂमक अÅययन Ĭारा
अनेक समानतापरक तÃयŌ एवं सÂयŌ कì Öथापना करके भारतीय संÖकृित कì मूलभूत
एकता ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कì भावना को िफर चåरताथª िकया जा सकता है ।
३.७ उĥेÔय िवĵ के तमाम देशवािसयŌ के बीच जाित, वणª और धमª आिद के वैमनÖय होते हòए भी उनके
मिÖतÕक, तथा मानव Ńदय म¤ ÿाय: समानता का भाव िदखाई देता है । िवĵ के ÿितिķत
किवयŌ एवं सािहÂयकरो ने अपनी देश, कालजयी रचनाओं म¤ इसी मानव मनोभूिम कì
एकłपता का ÿितपादन िकया है । यहाँ ÖपĶ है िक िविभÆन ÿाÆतŌ एवं देशŌ के सािहÂयŌ म¤
िविवध łपŌ म¤ Óयĉ मानव चेतना कì अखंडता, िवराटता एवं सह िजजीिवषा को
तुलनाÂमक अÅययन Ĭारा ÿÖतुत िकया जा सकता है । और यही इसका ÿमुख उĥेÔय भी
माना जाता है । िहÆदी तथा अÆय ÿादेिशक भाषाओं एवं सािहÂयŌ म¤ तुलनाÂमक अनुसंधान
के उĥेÔय से भी आदान - ÿदान कì भावना बढ़ेगी । दोनŌ भाषाएँ आपसी आदान-ÿदान से
सÌपÆन एवं समृĦ बनेगी । िहÆदी को राजभाषा के साथ-साथ संपकª भाषा एवं िवĵ भाषा के
िवराट तथा महान उ°र दाियÂव को िनभाना है । इसके िलए िहÆदी को अपने ÿादेिशक
Öवłप से राÕůीय Öवłप म¤ िवकिसत होना पड़ेगा और यह उĥेÔय भी तुलनाÂमक अÅययन
से ही संभव हो सकता है ।
ÿÂयेक भाषा तथा सािहÂय कì अपनी भािषक ÿकृित होती है । तुलनाÂमक अÅययन करते
समय उसके शÊद, वा³य, पद-Óयंजना, अलंकार तथा ÿादेिशक छिबयŌ आिद का उĤाटन
होता है । दोनŌ भाषाओ के साÌय-वैषÌय से भाषा कì ÿकृित का पता चलता है । एन.ई.
िवĵनाथ अÍयर ने तुलनाÂमक अÅययन के उĥेÔय को ÖपĶ करते हòए िलखा है िक
‘तुलनाÂमक अÅययन से िविभÆन भाषाओं म¤ रिचत सािहÂय का रसाÖवादन तो होगा ही
साथ ही हम गंभीरता से समी±ा ÿधान अथवा काÓयशाľीय अÅययन करना चाहते ह§ तो,
हम¤ बड़ी माýा म¤ सामúी उपलÊध हो सकेगी । चåरत-िचýण, ÿकृित वणªन, परÌपरा, किव
समय, िवंबिवधान, आ´यान शैली, छंद, कÐपना, िमथक, पåरकÐपना, आिद िकतने ही
±ेýŌ म¤ हम नए-नए अनुभव ÿाĮ कर सकते ह§ । munotes.in

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तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
35 तुलनाÂमक अÅययन का उĥेÔय अनुवाद को महÂव देना भी है, अनुवाद के ²ान के िबना
तुलना संभव ही नहé है । सािहÂयŌ कì तुलना से नए सािहÂय िसĦांत एवं तÂवŌ कì खोज कì
जाती है । उसी तरह पुराने सािहÂय िसĦाÆतŌ एवं तÂवŌ कì योµयता, अयोµयता कì जांच-
पड़ताल कì जा सकती है । आज तक हम सािहÂय को िकसी Óयिĉ Ĭारा िनिमªत मानते थे
परÆतु तुलनाÂमक अÅययन उसे राÕůीय-अÆतराÕůीय पåर ÿे±य म¤ देखने का नजåरया देता
है । दूसरŌ म¤ खुद को जाँचने का माÅयम ही तुलनाÂमक अÅययन कहलाता है ।
३.८ सारांश तुलनाÂमक सािहÂय के िनÕकषª के आधार पर यह कहा जा सकता है, िक िविभÆन
सािहिÂयक अÅययन म¤ तुलना का ÿयोग मूलत: साŀÔय संबंध परÌपरा िववेचन तथा ÿभाव
सूýŌ के खोज के िलए िकया जाता है । सारांशत: यह कहा जा सकता है िक,
१. तुलनाÂमक अÅययन के Ĭारा ऐसी िवशेषताएँ उजागर होती है जो सामाÆय अÅययन से
संभव नहé है । तुलनाÂमक अÅययन के नवीन संदभª नवीन अथª म¤ ही ÿकट होते है ।
२. इसम¤ भाषा और सािहÂय के बीच गहन संबंध Öथािपत होता है ।
३. इसके माÅयम से मशीन ůांसलेशन म¤ भी सहायता िमलती है ।
४. पारÖपåरक आदान -ÿदान Ĭारा भाषाओं और सािहÂयŌ के ि±ितज इसम¤ िवÖतृत होते
है ।
५. तुलनाÂमक अÅययन कहé न कहé पूवाªúहŌ से मुिĉ िदलाता है ।
६. एक ही देश कì िविवध इकाईयŌ म¤ परÖपर िनकट आने का ÿोÂसाहन िमलता है ।
इन सभी िबंदुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है िक तुलनाÂमक अÅययन एक िविशĶ
ÿकार का अÅययन है जो दो रचनाओं, दो रचनकारो या दो सािहÂयŌ के बीच पारÖपåरक
संबंध Öथािपत कर उनके नवीन संदभŎ एवं आयामŌ को उजागर करता है । आगे भी इस
संबंध म¤ कहा जा सकता है िक तुलनाÂमक अÅययन के आधार पर भाषाओं के अलगाव को
दूर िकया जा सकता है और साथ ही एकता कì मूल भावना को भी Öथािपत िकया जा
सकता है । तुलनाÂमक सािहÂय के माÅयम से िवĵबंधुÂव कì भावना साकार हो जायेगी ।
संसार का अनुपम सौÆदयª, अĩुतता, सÂय तथा मयाªदाओ आिद का पåरचय तुलनाÂमक
सािहÂय से ही संभव हो सकता है । यह कहा जा सकता है िक तुलनाÂमक सािहÂय और
तुलना के ŀिĶकोण से िकए गए अÅययन के एक िवशेष उपागम है जो िविभÆन भाषाओं के
सािहÂयŌ कì एकरस चेतना का संधान करता है तथा उनकì समÖयाओं का अÅययन करते
हòए ²ान के अÆय िविभÆन ±ेýŌ के साथ अंत: संबंधŌ को दशाªने का काम करता है । इस łप
म¤ वह सावªभौम ŀिĶकोण अपनाते हòए िवĵसािहÂय के łप म¤ ŀिĶगोचर होता है तथा अपने
सवª ÿमुख उĥेÔय अनेकता म¤ एकता कì घोषणा करता है ।
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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
36 ३.९ दीघōतरी ÿij १. तुलनाÂमक अÅययन कì ÿÖतावना एवं उĥेÔय को ÖपĶ कìिजए ।
२. तुलनाÂमक अÅययन के Öवłप को िवÖतारपूवªक समझाइए ।
३. तुलनाÂमक अÅययन का महÂव िनłिपत कìिजए ।
४. तुलनाÂमक अÅययन के दौरान आने वाली समÖयाओं का उÐलेख कìिजए ।
५. तुलनाÂमक अÅययन म¤ सामािजक राजनीितक बोध को सिवÖतार समझाइए ।
३.१० लघू°रीय ÿij १. तुलनाÂमक अÅययन के महÂव पर िटÈपणी िलिखए
२. तुलनाÂमक अÅययन कì िसĦांत पर िटÈपणी िलिखए ।
३. तुलनाÂमक अÅययन कì उपयोिगता को सं±ेप म¤ िलिखए ।
४. तुलनाÂमक अÅययन को सारांशत: ÖपĶ कìिजए ।
५. तुलनाÂमक अÅययन के ÿितमान पर िटÈपणी िलिखए ।
३.११ बहòिवकÐपीय ÿij ÿij १. “तुलनाÂमक सािहÂय एक देश िवशेष कì सीमाओं से परे सािहÂय का अÅययन है”
तुलनाÂमक सािहÂय कì यह पåरभाषा िकसकì है?
उ°र: एच. एच. रेमाकì
ÿij २. अनुłप अÅययन कì पĦित कì वकालत िकसके Ĭारा कì गई थी?
उ°र: तुलनाÂमक सािहÂय के अमेåरकì Öकूल
ÿij ३. एक ‘काउंटर िडजाईन’ िकसके Ĭारा लोकिÿय है?
उ°र: बतōÐत āे´तो
ÿij ४. िकसका िवचार है िक सामाÆय वगêकरण समय कì बबाªदी है?
उ°र: बेनेडेटो øोचे
ÿij ५. िवĵ सािहÂय िकसके Ĭारा िलखा गया है?
उ°र: डेिवड डमरोÖचो
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तुलनाÂमक अÅययन के िसĦाÆत
37 ३.१२ संदभª úंथ १. आय.एन. चंþशेखर रेड्डी - तुलनाÂमक अÅययन: िनकष एवं िनłपण
२. पंिडत चतुव¥दी - समी±ा शाľ
३. डॉ अनंत केदारे - तुलनाÂमक अÅययन Óयवहाåरक कायª िविध
४. अजुªन तड़वी - अनुसंधान: सजªन एवं ÿिøया


*****
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38 ४
तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
इकाई कì łपरेखा
४.० इकाई का उĥेÔय
४.१ ÿÖतावना
४.२ तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध
४.२.१ तुलनाÂमक आलोचना
४.२.१.१ साŀÔय संबंधाÂमक ÿिविध
४.२.१.२ ÿभाव ÿिविध
४.२.१.३ अÅययन कì Öवीकृित तथा संचारण ÿिविध
४.२.१.४ तुलनाÂमक कì सौभाµय ÿिविध
४.२.१.५ संबंधाÂमक ĬÆĬाÂमक ÿिविध
४.२.१.६ तुलनाÂमक आलोचना कì ÿिविध
४.३ तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध : भारतीय सािहÂय के संदभª म¤
४.३.१ असािहिÂयक
४.३.२ गैर सािहिÂयक
४.३.३ सािहिÂयक
४.४ तुलनाÂमक अÅययन कì िदशाएँ
४.५ तुलनाÂमक सािहÂय कì कÃयिममांसा
४.६ तुलनाÂमक सािहÂय म¤ łप एवं िशÐप िममांसा
४.७ तुलनाÂमक सािहिÂयक अÅययन का ÿभाव ±ेý
४.८ सारांश
४.९ दीघō°री ÿij
४.१० लघु°रीय ÿij
४.११ वÖतुिनķ ÿij
४.१२ संदभª úंथ
४.० इकाई का उĥेÔय  इस इकाई के अÅययन से िवīाथê तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव को जान
सक¤गे । munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
39  तुलनाÂमक ÿिविध के अÅययन म¤ तुलनाÂमक आलोचना का अÅययन करते हòए
तुलनाÂमक सािहिÂयक कì ÿमुख ÿिविधयŌ को जान सक¤गे ।
 तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿमुख िदशाओं का अÅययन कर¤गे ।
 तुलनाÂमक सािहÂय कì कÃय िममांसा का अÅययन कर¤गे ।
 तुलनाÂमक अÅययन का ÿमुख ÿभाव ±ेý को जान¤गे ।
४.१ ÿÖतावना तुलनाÂमक सािहÂय:
तुलना करना एक सहज मानवीय ÿवृि° है िकÆहé दो ÓयिĉयŌ, ÖथानŌ अथवा वÖतुओं के
सामने वैषÌय को जानने का मु´य मागª तुलनाÂमक अÅययन है । ऐसा करते समय वह कभी
Öथूल भाव को तो कभी सूàम भावŌ को अपना आधार बनाता है, उसी आधार पर वह िकसी
िवषय वÖतु के ÿित अपनी धारणा बनाता है। यही कारण है िक एक ही िवषय वÖतु मंतÓय
िवचार कायª िøयाकलाप िनणªय िकसी एक Óयिĉ कì ŀिĶ म¤ सही हो सकता है, तो दूसरे के
ŀिĶ म¤ वही गलत िसĦ हो सकता है िकसी भी िवषय वÖतु कì गुणव°ा तय करने के िलए
उसे ®ेķ या किनķ िसĦ करने के िलए कुछ आधारभूत बात¤ तय करनी होती है उसकì
कसौिटयां बनानी होती ह§ । योµयता के िलए कई सारे मानदंडŌ का िनधाªरण करना होता है
तब कहé जाकर हम िकसी िवषय वÖतु को जांच परख कर ®ेķ या किनķ सािबत करते ह§
परंतु ऐसा करने के िलए तुलनाÂमक िवĴेषण करना अÂयंत आवÔयक है िबना तुलना िकए
यह कायª असंभव सा ÿतीत होता है ³यŌिक तुलना करते समय ऐसे अनिगनत पहलू हमारे
सम± उपिÖथत होते ह§, जो अपने असं´य łप, रंग और गुणŌ से युĉ होकर उनसे संबंिधत
होते ह§ जब िकसी भी Óयिĉ या िवषय वÖतु कì तुलना िकसी दूसरे Óयिĉ या िवषय वÖतु के
साथ कì जाती है तो दो तरह कì बात¤ उभर कर सामने आती ह§ पहली बात नकाराÂमकता
से जुड़ी हòई होती ह§, िजसम¤ Óयिĉ दुखी होता है तो वहé दूसरी बात सकाराÂमकता से जुड़ी
हòई है, िजसम¤ तुलना करने म¤ मानव सËयता का िवकास होता है । जब हम िकसी भी दो
राजाओं, दो शासकŌ को एक समान ही महान समझते ह§ तो इसके िलए हम दोनŌ शासकŌ के
शासनकाल, उनके Ĭारा ÿजा िहत म¤ िकए गए उनके कायª, उनकì कृिष Óयापार राजनीितक,
कूटनीितक, सामािजक, आिथªक, सांÖकृितक सभी नीित िनयमŌ कì तुलना करते ह§ ।
उनकì समूची ÿशासिनक ÓयवÖथा को तुलनाÂमक ŀिĶकोण से समझने और िवचिलत
करने कì कोिशश करते ह§ । यह तो बात रही दो शासकŌ कì इसी ÿकार हम दो ÓयिĉयŌ दो
राºयŌ दो देशŌ दो सािहÂय या अलग-अलग भाषाओं म¤ िलखे गए सािहÂय कì तुलना करते
ह§ । रवीÆþनाथ टैगोर ने जब १९०७ ई. म¤ ‘िवĵ सािहÂय’ शÊद का ÿयोग िकया था, तब से
तुलनाÂमक अÅययन को भारत म¤ िवशेष बल िमला। भारतीय सािहÂय के संदभª म¤
तुलनाÂमक अÅययन एवं सािहÂय कì नई पåरकÐपनाएँ सामने आई । इसी उĥेÔय से सन्
१९५४ ई. म¤ सािहÂय अकादमी कì Öथापना हòई । भारतीय सािहÂय कì ÿÖतावना ÿÖतुत
करते हòए सवªपÐली राधाकृÕणन ने िलखा था िक “भारतीय सािहÂय एक है यīिप वह बहòत-
सी भाषाओं म¤ िलखा जाता है ।” भारतीय सािहÂय चूँिक िविभÆन भाषा पåरवारŌ म¤,
भारोपीय, चीनी-ितÊबती, कÔमीरी, þािवड़ इÂयािद - बांटा हòआ है, इसिलए भी इसे Óयापक munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
40 ÿचार-ÿसार ÿाĮ नहé हो सका। िकÆतु भारत कì मूलभूत संÖकृित को िदखाने के िलए
भारतीय सािहÂय कì अवधारणा का Óयापक ÿचार-ÿसार आवÔयक है ।
²ान के अÆय अनुशासनŌ के समान तुलनाÂमक सािहÂय कì भी ³या कोई मुकÌमल
पåरभाषा दी जा सकती है? हर Óयिĉ, अÅयेता अपनी ŀिĶ को पåरभाषा म¤ जोड़ देता है,
इसिलए हर पåरभाषाएँ िभÆन-िभÆन Öवłप को ÿाĮ हो जाती है । यहाँ हम भारतीय और
पाIJाÂय कुछ ÿमुख िवĬानŌ कì पåरभाषाओं के संदभª म¤ तुलनाÂमक सािहÂय को समझने
का ÿयास कर¤गे । ³लाइव Öकॉट के अनुसार “तुलनाÂमक सािहÂय म¤ िविभÆन भाषाओं म¤
िलिखत सािहÂयŌ अथवा उनके संि±Į घटकŌ कì सािहिÂयक तुलना होती है और यही
उसकì आधार तÂव है । इस पåरभाषा के अनुसार सािहिÂयक ÿितमानŌ के आधार पर
सािहÂय कì तुलना कì जाती है । रेमाक तुलनाÂमकता को वह सांĴेिषक ŀिĶ बताया है
िजसके Ĭारा भौगोिलक एवं जातीय Öतर पर सािहÂय का अनुसंधानाÂमक िवĴेषण संभव हो
पाता है । इस पåरभाषा म¤ दो िविभÆन संÖकृितयŌ Öतर पर एक संÖकृित दूसरे से िकस ÿकार
िभÆन है और उसके कारण ³या ह§ । इसी ÿकार एक पåरभाषा ÿो. लेन कपूर कì है । उनके
अनुसार तुलनाÂमक सािहÂय, सािहÂय के तुलनाÂमक अÅययन कì पंिĉ अिभÓयिĉ है । यह
पåरभाषा भी अपयाªĮ व अधूरी है, ³यŌिक इससे यह ÖपĶ नहé होता िक तुलना िकस łप म¤
और िकनके बीच? सािहÂय कì तुलना के मापदÁड ³या हŌगे? यह भी ÖपĶ नहé है ।
हालाँिक एक पåरभाषा म¤ यह संभव भी नहé है । सैĦािÆतक łप से तुलनाÂमक सािहÂय के
कुछ मापदÁड है जैसे एक ही भाषा म¤ िलिखत दो किवयŌ लेखकŌ कì तुलना, एक ही
संÖकृित कì दो भाषाओं के सािहÂय कì तुलना या दो संÖकृितयŌ कì दो भाषाओं या
सािहÂय कì तुलना इसम¤ दूसरी व तीसरी िÖथित ही तुलनाÂमक सािहÂय के िलए उपयोगी
है । डॉ. इÆþनाथ चौधरी ने अपनी पुÖतक ‘तुलनाÂमक सािहÂय’ भारतीय पåरÿे±’ म¤
उलåरच वाइनÖटाइन कì पुÖतक का संदभª िकया है, िजसम¤ तुलनाÂमक सािहÂय कì
पåरभाषाओं को दो वगŎ म¤ बाँटा गया है ।
(क) वगª म¤ पॉल वा िटगलैम, ºयाँ माåर कारे तथा माåरओस ĀांÖवास गुईयादª जैसे िवĬान है
। इस वगª कì पåरभाषाओं के अनुसार तुलनाÂमक सािहÂय को सौÆदयªमूलक ÿितमानŌ
के आधार पर नहé बिÐक ऐितहािसक अनुशासन के łप म¤ देखने का ÿयास िकया
गया है ।
(ख) वगª म¤ रेने वेलेक, रेमाक, ऑिÖटन वारेन तथा ÿावर जैसे िवĬान ह§ । िजÆहŌने
तुलनाÂमक सािहÂय के अÅययन को ऐितहािसक अनुशासनŌ से इतर काÓयशाľीय या
सौÆदयªशाľीय ÿितमानŌ के आधार पर देखने कì पहल कì है ।
४.२ तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध तुलनाÂमक अÅययन के संदभª म¤ भारी Ăम यह है िक इसकì कोई पĦित नहé है । िकसी
भाषा दूसरी भाषा कì कृितयŌ कì तुलना कर देने माý से ही तुलनाÂमक सािहÂय का कायª
पूरा हो जाता है । लेिकन ³या वाकई ऐसा है? िजस ÿकार लेिवस ने आलोचना के िलए
ÿिविध भरी (िसÖटेिमक) सुिवचाåरत ®ृंखला व øम अिनवायª बताया था। ³यŌिक ÿिविध के
अभाव म¤ सािहÂय अराजकता का केÆþ बन जाता है, ³यŌिक ÿिविध जहाँ एक ओर िवचार व munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
41 रचना को अनुशािसत करती है, वहé दूसरी और उसे िदशा भी देती है। ³या पĦित व
सािहÂय का इतना अिनवायª सÌबÆध होता है? सािहÂय िलखने के पIJात् हम उसे िवशेष
øम म¤ ÓयविÖथत कर देते ह§, ऐसा आमतौर पर समझा जाता है, लेिकन सािहÂय लेखन से
पूवª ³या लेखक के मिÖतÕक म¤ िवचार øम सुÓयविÖथत नहé होते? िनिIJत तौर पर
ÓयवÖथा पहले आती है और लेखन बाद म¤ होता है । यह तो हòई लेखन कì ÿिøया से
ºयादा ÓयवÖथा कì माँग करती है । रेने वेलेक जैसे अÅयेता यह कहते ह§ िक तुलनाÂमक
सािहÂय कì कोई िनिIJत कायªपĦित नहé है । उनका तकª है िक सािहÂय के अÆदर
तुलनाÂमक तÂव सिøय रहता ही है, उसकì अलग ÿिविध का ÿij उिचत नहé है । øमशः
तुलनाÂमक सािहÂय कì तीन ŀिĶ या पåरÿेàय माने गये ह§-
१. Āांसीसी - जमªन Öकूल का अंतराªÕůीयता के आ®य से सािहÂय का कालøिमक
अÅययन सािहिÂयक िवकासवाद, ऐितहािसक सापे±तावाद तथा ऐितहािसक
पåरिÖथित ।
२. अमरीकì Öकूल कì łपवादी ŀिĶ काÓयशाľीय सौÆदयाªÂमक कलापरक तथा
िवĴेषणाÂमक अंतŀिĶ
३. समाजशाľीय - संÖकृितपरक यथाथªवादी ŀिĶ
४.२.१ तुलनाÂमक आलोचना:
तुलनाÂमक आलोचक के िलए तुलना एक सचेत और मूलभूत पĦित है । तुलनाÂमक पĦित
के आ®य से एक से अिधक सािहÂयŌ कì तुलना करना तुलनाÂमक अÅययन है । इस
ÿिøया म¤ दो सािहÂयŌ के साŀÔय संबंध, परÌपरा तथा उनके ÿभावŌ के सूýŌ कì खोज कì
जाती है । तुलनाÂमक सािहÂय कì कुछ ÿमुख ÿिविधयां िनÌन ह§:
४.२.१.१ साŀÔय संबंधाÂमक ÿिविध:
यह ÿिविध अÆतराªÕůीय संदभª के अंतगªत आती है । अंतराªÕůीय संदभª के आ®य से दो
कृितयŌ का सािहÂयगत शैली, संरचना, मूड या िवचार का साŀÔय संबंधाÂमक अÅययन
होता है । इस ÿकार का अÅययन साŀÔय या वैशÌयमूलक दोनŌ हो सकता है । िकसी भी दो
बेमेल िवषयवÖतु कì साŀÔयमूलक अÅययन पĦित को पॉलीजेनेिटक पĦित कहते ह§ ।
साŀÔयमूलक पĦित कì सहायता से आलोचक िविभÆन समाज तथा पåरिÖथित म¤
अिभÓयĉ होने वाले सािहÂय का िववेचन करता है और िभÆन-िभÆन ÿijŌ कì तलाश करता
है । िविभÆन अिभÓयिĉयŌ कì समानता का कारण ³या है? तथा वे कैसे एक-दूसरे से िभÆन
ह§, इसका उ°र तुलनाÂमक आलोचना के साŀÔय-संबंधाÂमक ÿिविध म¤ खोजा जाता है ।
अंतराªÕůीय संदभªवाद के अंतगªत परÌपरा अÅययन ÿिविध म¤ भी दो कृितयŌ का
साŀÔयमूलक अÅययन होता है । इस ÿिविध कì माÆयता के मूल म¤ यह तÃय है िक रचना,
एक बड़े वगª का अंश होती है । और जो समान ऐितहािसक, कालानुøिमक तथा łपाÂमक
बंधनŌ से अनुÖयुत होती है । इस ÿिविध म¤ खास तौर से भाषा तथा सािहÂय म¤ ÿितफिलत
राÕůीय चेतना का अÅययन िकया जाता है, या उनके संदभª को भी अिनवायª łप से शािमल
कर िलया जाता है । इस ÿिविध के अÅययन के संदभª म¤ भी दो ÿÖताव ह§ । एक, ÿÖताव यह
है िक अÅययन ÿिविध म¤ पूरी ÿÖताव है । एक ÿÖताव यह है िक अÅययन ÿिविध म¤ पूरी munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
42 परÌपरा के संदभª म¤ अÅययन िकया जाये, जबिक ÿावर जैसे अÅयेता इसके िवपरीत यह
ÿÖताव रखते ह§ िक अÅययन के ±ेý को सीिमत करके िकसी एक ऐितहािसक काल अथवा
ऐितहािसक ŀिĶ से उभरते हòए िकसी एक काÓयłप का दो सािहÂयŌ के संदभª म¤ अÅययन
िकया जाता है । परÌपरा अÅययन कì ÿणाली म¤ राÕůीयता एवं अंतराªÕůीयता एंव
अंतराªÕůीय परÌपराएँ िनकट आ जाती है ।
४.२.१.२ ÿभाव ÿिविध:
łथवेन म¤ ÿभाव ÿिविध के दो धरातल बताये ह§ एक जब शिĉशाली ÓयिĉÂव का ÿभाव,
अÅयेता को अपनी धारा म¤ बहा ले जाता है और दूसरा धरातल यह होता है जब उस
शिĉशाली ÓयिĉÂव के ÿभाव से अÅयेता अपनी ŀिĶ को और पåरÕकृत व सÌपÆन करता
चलता है । साइमन िजयून ने ÿभाव को ‘अनुकरण’ न मानकर ‘ÿेरणा’ मानने से ÿभाव-
अÅययन के िवरोध म¤ कì गई आलोचना माना है । तुलनाÂमक सािहÂयाÅययन म¤ ÿभाव-
सूýŌ का अÅययन ही उसकì केÆþीय पĦित है । ³लांद गुइए ने इसीिलए ÿभाव सूýŌ के
अÅययन को मनोवै²ािनक ÿितभास कहा है । इसे ÖपĶ करते हòए गुइएँ ÿÂय± और अÿÂय
ÿभाव कì बात करता है । ÿÂय± ÿभाव म¤ आलो¸य लेखक और अÿÂय± ÿभाव म¤
सृजनाÂमक परÌपरा को शािमल िकया जा सकता है ।
४.२.१.३ अÅययन कì Öवीकृित तथा संचारण ÿिविध:
उलåरच वाइÖटाइन ने इस ÿिविध को ÖपĶ करते हòए िलखा है- ÿभावसूýŌ का अÅययन
मूलतः पåरपूणª दो सािहिÂयक कृितयŌ को लेकर िकया जाता है िकÆतु Öवीकृित अÅययन का
±ेý काफì बड़ा होता है । इसम¤ कृितयŌ के पारÖपåरक संबंधŌ से लेकर उनके आस-पास कì
पåरिÖथितयŌ, लेखक, पाठक, समी±क, ÿकाशक तथा ÿितवेशी पåरवेश सब कुछ अÅययन
के िवषय के अंतगªत आता है । इस तरह Öवीकृित अÅययन सािहिÂयक समाजशाľ अथवा
मनोिव²ान कì िदशा म¤ िवशेष łप से अúसर होता है । उदाहरणÖवłप हम समझ सकते ह§
िक िĬवेदी कालीन नैितकता केवल रीितकाल के ÿित ÿितिøया नहé थी। बिÐक सÌपूणª
िव³टोåरयन युग के सािहÂय कì Öवीकृित भी थी । ÿावर ने इसे ‘संचारण अÅययन’ कहा है ।
ÿावर ने इसकì पåरभाषा देते हòए िलखा है- “संचारण संÖथाओं एवं łपŌ के सŀश है िजसके
माÅयम से िवचार,सूचना तथा अिभवृि°यां Öथानांतåरत अथवा Öवीकृत होती है ।”
४.२.१.४ तुलनाÂमक कì सौभाµय ÿिविध:
अÅययन कì सौभाµय ÿिविध ³या है? इसे समझाते हòए इÆþनाथ चौधरी ने िलखा है ।
Öवीकृित अÅययन के अंतगªत संचारण िवĴेषण के अितåरĉ िकसी एक लेखक या कृित का
‘सौभाµय’ िवĴेषण भी िकया जाता है । िकसी एक िवदेशी लेखक या कृित कì दूसरे देश म¤
िकÆही कारणŌ से, नोबेल पुरÖकार िमलने से या आकिÖमक मृÂयु होने से या िकसी स°ा का
िवरोध करने से ´याित के बढ़ जाने पर वह कैसे दूसरे लेखकŌ या सािहिÂयक पåरवेश को
ÿभािवत करता है इसका अÅययन ही सौभाµय अÅययन है ।” वाÐटर मुथा ने ‘Öटडीज इन द
ůेिजक िहÖůी ऑफ िलटरेचर’ म¤ जमªन सािहÂय को ÿभािवत करने कì ÿिøया म¤ ‘हेमलेट’
का अÅययन िकया है । वाँ िटगहैम, आंþ मोåरजे तथा गुÖतव łþलर ने Öवीकृित अÅययन
का िववेचन िकया है । munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
43 ४.२.१.५ संबंधाÂमक ĬÆĬाÂमक ÿिविध:
डॉ. इÆþनाथ चौधरी ने संबंधाÂमक ĬÆĬाÂमक ÿिविध को ÖपĶ करते हòए िलखा है-
“अंतराªÕůीय संदभªवाद सािहÂय को मानवीय ²ान के दूसरे ±ेýŌ के साथ भी जोड़ते है जैसे
दशªन, इितहास, मनोिव²ान, राजनीितशाľ, धमª, समाजशाľ तथा लिलत कलाएँ ।”
४.२.१.६ तुलनाÂमक आलोचना कì ÿिविध:
तुलनाÂमक ÿिविध म¤ आलोचक सुÓयविÖथत ढंग से तुलनाÂमक आलोचना के अंग łप म¤
तुलना ‘के तकनीकŌ का ÿसार करता है और Óयिĉगत लेखकŌ के Ĭारा िकए गए ÿयासŌ का
अÅययन आलोचना के मूल अंग द¤ । इस ÿिविध म¤ कालøिमक अÅययन नहé, समकािलक
अÅययन होता है ।
४.३ तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध: भारतीय सािहÂय के संदभª म¤ तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध से इतर तुलनाÂमक अÅययन कì ÿिøया एवं भारतीय
सािहÂय को Åयान म¤ रखते हòए िवĬानŌ तुलनाÂमक ÿिविध को कुछ अलग ढंग से अलग
मानकŌ को आधार बनाते हòए पुनªपåरभािषत करने का ÿयास िकया है । उÐलेखनीय है िक
तुलनाÂमक अÅययन कì ÿिøया का ÿथम चरण रचना िवषयक चयन / आलो¸य िवषय (या
कृित) है । िकसी कृित को तुलनाÂमक Öवłप के चयन म¤ भी आलोचक कì ŀिĶ ही काम
करती है । आलो¸य कृित ³यŌ महßवपूणª है? इसे लेखक को ÖपĶ करना ही पड़ता है । और
उससे भी महßवपूणª ÿij यह है िक लेखक ने उसका चयन ³यŌ िकया है? िकसी भी कृित का
चयन लेखक कì ÿितभा पर ÿij िचĹ लगा देता है । लेखक को सवªÿथम चयिनत रचना के
महÂव और उसके चुने जाने के कारणŌ का औिचÂय िसĦ करना पड़ता है । िफर इस ÿिøया
म¤ एक नहé दो रचनाएँ होती है । ÿथम रचना का दूसरी रचना से सÌबÆध िकस ÿकार
Öथािपत हो रहा है या नहé हो पा रहा है? यह ÿij भी महÂवपूणª है । िवषय चयन के िनयम के
अंतगªत यह तÃय भी है िक Åयान रखने योµय है िक गī और पī कì रचनाओं का तुलना
करना उिचत नहé है, ³यŌिक दोनŌ िवधाओं कì रचना ÿिøया म¤ बहòत अÆतर है, दोनŌ दो
अनुशासन ह§ । तुलनाÂमक अÅययन ÿिøया का दूसरा चरण होता है आलो¸य कृित के पूणª
पाठ के समय म¤ लेखक क¤þ म¤ हòआ करता था, आज उसका Öथान पाठक ने úहण कर
िलया है । पूवª कì अपे±ा आज पाठ लेखक से Öवतंý हो चुका है..... इसिलए पाठ कì
अनÆत संभावनाएँ होती है । िकसी कृित का पाठ कैसे िकया जाये, यह ÿij महßवपूणª है
पाठक भी कई ÿकार के होते ह§ । तुलनाÂमक अÅययन Öवłप और समÖयाएँ (संपादक
भ.ह. राजूरकर एवं राजमल बोरा) म¤ पाठकŌ का वगêकरण इस ÿकार िकया गया है-
४.३.१ असािहिÂयक:
असािहिÂयक पाठक वे होते ह§ जो रचना का पाठ करते समय सािहिÂयक ममª कì िचÆता
नहé करते । ऐसे पाठक रचना म¤ िछपे घटना øम म¤ ही ºयादा िदलचÖपी रखते ह§ ।
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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
44 ४.३.२ गैर-सािहिÂयक:
गैर- सािहिÂयक पाठक से ताÂपयª ऐसे पाठक से है, जो रचना / पाठ म¤ अपनी Łिच के
अनुसार तÃयŌ कì खोज करता ह§ । ऐसे पाठकŌ म¤ भी उ¸च सािहिÂयक बोध का अभाव
होता है ।
४.३.३ सािहिÂयक:
सािहिÂयक पाठक का ताÂपयª ऐसे पाठकŌ से है जो पूरी रचना के आधार पर सÌपूणªता म¤
िकसी पाठ का मूÐय िनधाªåरत करते ह§ । ऐसे पाठकŌ का Åयान पाठ के हर अंश पर होता है ।
तुलनाÂमक आलोचना ÿिविध का सबसे ÿमुख चरण तÃय चयन होता है । िकसी रचना म¤
ढेरŌ तÃय होते ह§, जो रचना को ÓयविÖथत łप ÿदान करने म¤ अपनी भूिमका िनभाते ह§ ।
इस ÿिøया म¤ एक खास एÿोच / ŀिĶ से आलोचक उस रचना को देखता है । वह एÿोच
िवचारधारा का भी हो सकता है और िकसी खास तÃय का चुनाव व उसका िवÖतार भी
तÃय चयन का भी वÖतुितķ आधार होता है, लेिकन ÿायः लेखक आÂमिनķ ढंग से ही
िवĴेषण करते ह§ । सािहÂय कì आलोचना ÿिøया म¤ अ³सर ही लेखकŌ कì तुलना के संदभª
म¤ आलोचक एकिनķ ŀिĶ के िशकार हो ही जाते ह§ । कबीर -तुलसी, तुलसी-सूर, तुलसी -
जायसी कािलदास भवभूित, वाÐमीिक-Óयास, ÿसाद-िनराला, पंत-िनराला, मीरा-महादेवी,
अ²ेय-मुिĉबोध, वडसªवथª- कॉलåरज जैसे ढेरŌ उदाहरण है, जब दो रचनाकरŌ कì तुलना
के बहाने एक को ®ेķ िसĦ करना ही आलोचक का उĥेÔय रहा है ।
तुलनाÂमक आलोचना ÿिविध का चतुथª चरण तÃयŌ के िवĴेषण से जुड़ा हòआ है। तÃय का
Öवłप कैसा है? तÃय के घटक-इितहास और दशªन कì ŀिĶ से िवĴेषण िकया जाता है ।
इितहास और दशªन म¤ रचना के सारे संदभª को समेट िलया जाता है । इितहास ने अतगªत
सारे तÃय (चाहे वह राजनीित, चाहे व समाजशाľ या पýकाåरता या अÆय िकसी िवधा हो)
आ जाते ह§ व दशªन के अंतगªत सारे िवचार व वाद (मा³सªवाद, अिÖतÂववाद, मनोिवĴेषण,
उ°र- आधुिनकता, आधुिनकता, संरचनावाद या ÿाचीन दशªन सभी आ जाते ह§)
तुलनाÂमक आलोचना ÿिविध का पंचम चरण / ÿिøया है- िवषय वÖतु एवं िशÐप के Öतर
पर आलो¸य रचनाओं कì संगित कì िवचारणा एवं उनका मूÐयांकन करना । िवषयवÖतु का
सÌबÆध उस देशकाल - पåरिÖथित से अिनवायª सूàम łप से जुड़ा हòआ होता है ।
सािहिÂयक रचना िजतना कहती है, उतना ही अनकहा रह जाता है... .। इस ŀिĶ से रचना
के łप के माÅयम से भी आलोचक युग समाज के पåरवतªन को पकड़ने का ÿयास करता है ।
भारतीय काÓयशाľ कì सैĦािÆतक व िशÐपगत बारीिकयŌ को लेकर ही लÌबी चचाª देखने
को िमलती है ।
४.४ तुलनाÂमक अÅययन कì िदशाएं तुलनाÂमक सािहÂय, एकल सािहÂय (single literature) अÅययन से िभÆन है । एकल
सािहÂय का अÅययन जहाँ सािहÂय के सीिमत अÅययन कì िदशा कì ओर संकेत करता है,
वहé तुलनाÂमक सािहÂय हम¤ सािहÂय के Óयापक अÅययन कì िदशा म¤ ले जाता है । यहाँ
तुलना इस बात कì नहé होती िक कौन-सा सािहÂयकार ®ेķ है बिÐक तुलना इस बात कì munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
45 होती है िक दोनŌ सािहÂयकारŌ म¤ समानता और िभÆनता के िबÆदु कौन-से ह§ । कहाँ भाव-
संवेदनाएं-िवचार-कला एक दूसरे के साथ िमलते ह§ कहाँ अलग ह§। यह दूसरे को पहचानने
तथा Öवीकार करने कì िदशा म¤ पाठक को ले जाता है । वतªमान समय म¤ इसकì िवशेष
आवÔयकता है । तुलनाÂमक सािहÂय के िवषय म¤ एक Öवतंý अÅययन को माÆयता देना
आज भी िववादúÖत िवषय है । तुलनाÂमक सािहÂय का भी एक ŀिĶकोण है, एक ÿिविध है
और एक तकनीकì है । तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿवृि°याँ अभी भी पूरी तरह से िÖथर नहé
हो पायी ह§ । इसके अÅययन का आरÌभ हम इितहास बोध से करते ह§, िकÆतु उसकì
पåरसमािĮ एक ÿकार के सावªभौम सािहÂयेितहास म¤ होती ह§ ।
तुलना करना एक सहज मानवीय ÿवृि° है िकÆहé दो ÓयिĉयŌ, ÖथानŌ अथवा वÖतुओं के
सामने वैषÌय को जानने का मु´य मागª तुलनाÂमक अÅययन है । ऐसा करते समय वह कभी
Öथूल भाव को तो कभी सूàम भावŌ को अपना आधार बनाता है, उसी आधार पर वह िकसी
िवषय वÖतु के ÿित अपनी धारणा बनाता है। यही कारण है िक एक ही िवषय वÖतु मंतÓय
िवचार कायª िøयाकलाप िनणªय िकसी एक Óयिĉ कì ŀिĶ म¤ सही हो सकता है, तो दूसरे के
ŀिĶ म¤ वही गलत िसĦ हो सकता है िकसी भी िवषय वÖतु कì गुणव°ा तय करने के िलए
उसे ®ेķ या किनķ िसĦ करने के िलए कुछ आधारभूत बात¤ तय करनी होती है उसकì
कसौिटयां बनानी होती ह§ । योµयता के िलए कई सारे मानदंडŌ का िनधाªरण करना होता है
तब कहé जाकर हम िकसी िवषय वÖतु को जांच परख कर ®ेķ या किनķ सािबत करते ह§
परंतु ऐसा करने के िलए तुलनाÂमक िवĴेषण करना अÂयंत आवÔयक है िबना तुलना िकए
यह कायª असंभव सा ÿतीत होता है ³यŌिक तुलना करते समय ऐसे अनिगनत पहलू हमारे
सम± उपिÖथत होते ह§, जो अपने असं´य łप रंग और गुणŌ से युĉ होकर उनसे संबंिधत
होते ह§ जब िकसी भी Óयिĉ या िवषय वÖतु कì तुलना िकसी दूसरे Óयिĉ या िवषय वÖतु के
साथ कì जाती है तो दो तरह कì बात¤ उभर कर सामने आती ह§ पहली बात नकाराÂमकता
से जुड़ी हòई होती ह§, िजसम¤ Óयिĉ दुखी होता है तो वहé दूसरी बात सकाराÂमकता से जुड़ी
हòई है, िजसम¤ तुलना करने म¤ मानव सËयता का िवकास होता है । जब हम िकसी भी दो
राजाओं, दो शासकŌ को एक समान ही महान समझते ह§ तो इसके िलए हम दोनŌ शासकŌ के
शासनकाल, उनके Ĭारा ÿजा िहत म¤ िकए गए उनके कायª उनकì कृिष Óयापार, राजनीितक,
कूटनीितक, सामािजक, आिथªक, सांÖकृितक सभी नीित िनयमŌ कì तुलना करते ह§ उनकì
समूची ÿशासिनक ÓयवÖथा को तुलनाÂमक ŀिĶकोण से समझने और िवचिलत करने कì
कोिशश करते ह§ यह तो बात रही दो शासकŌ कì इसी ÿकार हम दो ÓयिĉयŌ दो राºयŌ दो
देशŌ दो सािहÂय या अलग-अलग भाषाओं म¤ िलखे गए सािहÂय कì तुलना करते ह§ ।
तुलनाÂमक अÅययन का कायª सÂय कì खोज और नई अवधारणा कì Öथापना का अनुķान
है । इसे पåरभािषत करते हòए ³लाइव िलखते ह§ तुलनाÂमक सािहÂय म¤ िविभÆन भाषाओं म¤
िलिखत सािहÂय अथवा उसके संि±Į घटकŌ कì सािहिÂयक तुलना होती है और यही
उसका आधार तÂव है । तुलनाÂमक सािहÂय (Comparative literature) वह िवīा-शाखा
है िजसम¤ दो या अिधक िभÆन भाषायी, राÕůीय या सांÖकृितक समूहŌ के सािहÂय का
अÅययन िकया जाता है । तुलना इस अÅययन का मु´य अंग है। सािहÂय का तुलनाÂमक
अÅययन Óयापक ŀिĶ ÿदान करता है । संकìणªता के िवरोध म¤ Óयापकता आज के िवĵ-
मनुÕय कì आवÔयकता है । तुलनाÂमक सािहÂय पर िवचार करते समय हमारे िदमाग म¤
पहला ÿij यही आता है िक तुलनाÂमक सािहÂय होता ³या है । ³या कोई ऐसा सािहÂय munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
46 होता है जो अपनी ÿकृित म¤ ही तुलनाÂमक होता है? या कुछ ऐसे लेखक होते ह§ जो
तुलनाÂमक सािहÂय िलखते ह§? इस ŀिĶ से हम¤ पहली बात तो यह जान लेना चािहए िक
ÿÂयेक लेखक सािहÂय ही रचता है, तुलनाÂमक सािहÂय नहé िलखता । अथाªत ‘तुलनाÂमक
सािहÂय’ अपने आप म¤ कुछ नहé होता । जब हम ‘तुलनाÂमक सािहÂय’ पद का ÿयोग करते
ह§, तब हमारा मतलब होता है, सािहÂय का तुलनाÂमक अÅययन । हमारे अÅययन कì
पĦित तुलनाÂमक होती है । हम उसी का अÅययन करते ह§ । वैसे कुछ लोगŌ का यह भी
मानना है िक सािहÂय का ÿÂयेक अÅययन तुलनाÂमक ही होता है तुलना के Ĭारा ही हम
िकसी चीज को समझ सकते ह§ । िबना तुलना िकए हòए हम कभी नहé समझ पाते िक
सूरदास बड़े किव ह§ या तुलसीदास, ÿेमचंद और ÿसाद कì तुलना करके ही हम दोनŌ
लेखकŌ को समझ पाते ह§ । जब कहा जाता था िक “सूर-सूर तुलसी सिस उड्गन केशवदास”
तब तुलना ही तो होती थी । इसी तरह लोक कहावतŌ म¤ कहा जाता है कहाँ “राजा भोज
और कहाँ गंगू तेली” इसम¤ तुलना कì गई है । परÆतु यह तुलनाÂमक सािहÂय के अÆतगªत
नहé आता । भले ही तुलनाÂमक सािहÂय के िवरोधी मानते रहे हŌ िक सािहÂय का ÿÂयेक
अÅययन तुलनाÂमक सािहÂय ही होता है । तुलना के िबना हम न तो कोई मानदÁड िÖथर
कर सकते ह§ और न सािहÂय को समझ ही सकते ह§ ।
हेनरी एच.एच. रेमाक ने तुलनाÂमक सािहÂय कì पåरभाषा इस ÿकार दी है, तुलनाÂमक
सािहÂय एक राÕů के सािहÂय कì पåरिध के परे दूसरे राÕůŌ के सािहÂय के साथ तुलनाÂमक
अÅययन है तथा यह अÅययन कला, इितहास, समाज िव²ान, धमªशाľ आिद ²ान के
िविभÆन ±ेýŌ के आपसी सÌबÆधŌ का भी अÅययन है । तुलनाÂमक सािहÂय एक िवशेष
ÿकार का अÅययन है । इस अÅययन का Êयौरा देते हòए तुलनाÂमक सािहÂय कì भूिमका म¤
ÿो. इÆþनाथ चौधरी ने िलखा है-
तुलनाÂमक सािहÂय अंúेजी के ‘कÌपेरेिटव िलटरेचर’ का िहंदी अनुवाद है । एक Öवंतंý
िवīाशाखा के łप म¤ िवदेश के िविभÆन िवĵिवīालयŌ म¤ इसके अÅययन-अÅयापन के कायª
को आजकल िवशेष महÂव िदया जा रहा है । अंúेजी के किव मैÃयू अनाªÐड ने सन् १८४८
म¤ अपने एक पý म¤ सबसे पहले ‘कÌपैरेिटव िलटरेचर’ पद का ÿयोग िकया था (मैÃयू
अनाªÐड के पý, १८९५ १ ८ सं. जी.डÊÐयू.ई. रसल) । परÆतु ÿारÌभ म¤ ही इसके शािÊदक
अथª को लेकर िववाद रहा ³यŌिक सािहÂय यिद कहानीकार किव आिद कì सृजनशील
कलाÂमक अिभÓयिĉ है तो वह िकसी तरह भी तुलनाÂमक नहé हो सकता । हमने आज
तक ऐसा कोई किव नहé देखा जो तुलानाÂमक किवता, कहानी या उपÆयास िलखता हो ।
सािहÂय कì ÿÂयेक कृित अपने आप म¤ पूणª होती है और सािहÂय सृिĶ म¤ कहé दूसरे
सािहÂय के साथ तुलना कì जłरत लाया जा सकता । नाथाª Āाई ने १९४० के दशक के
उ°राĦª तथा १९५० के दशक म¤ सािहÂय कì िनरÖतक को िमथक कì केÆþीयता म¤ देखा ।
इसके पहले टी. एस. इिलयट परÌपरा के पåरÿेàय म¤ कृित के (तुलनाÂमक) अÅययन कì
बात कर चुके थे । १९६३ म¤ तुलनाÂमक सािहÂय को पåरभािषत करते हòए रेनेवेलेक इसे
िवषय वÖतु एवं पĦित के बीच यांिýक ढंग से भेदक रेखा खéचने वाली पĦित मानने का
िवरोध करते है वे सािहÂय और इितहास संयोजन पर बल देते ह§ । लेिवन (levin) १९६९ म¤
कहते ह§ िक तुलनाÂमक सािहÂय बात करने के बजाय सािहÂयŌ कì तुलना करने कì जłरत
ह§ । munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
47 ४.५ ‘तुलनाÂमक सािहÂय’ कì कÃय मीमांसा ‘तुलनाÂमक सािहÂय’ पदबंध ‘सावªभौम सािहÂय’, ‘सािहÂय’, ‘आम सािहÂय’, ‘िवĵ सािहÂय’
से ÿितÖपधाª करते हòए आया है । वेन ितघेम के अनुसार “तुलनाÂमक सािहÂय का लàय है
िविभÆन सािहÂयŌ का एक-दूसरे के संबंध के साथ अÅययन करना ।” कुछ िवचारक
तुलनाÂमक सािहÂय को अंतराªÕůीय सािहÂय संबंधŌ के इितहास के संदभª म¤ िवĴेिषत करते
ह§ । इस øम म¤ वे तÃय, संपकª और आÅयािÂमक संबंधŌ का अÅययन करते ह§ । इसी øम म¤
हम¤ यह भी Åयान रखना होगा िक लेखक कì िजंदगी और आकां±ाएं अनेक सािहÂयŌ से
जुड़ी होती ह§ । एक मुिÔकल यह है िक ‘तुलनाÂमक सािहÂय’ और ‘जनरल सािहÂय’ म¤
िवभाजक रेखा खéचना मुिÔकल है ।
तुलनाÂमक सािहÂय के नजåरए से देख¤ तो संÖकृत, उदूª और िहÆदी म¤ कुछ चीज¤ साझा ह§ ।
इन तीनŌ भाषाओं के सािहÂय पर दरबारी संÖकृित और सËयता का गहरा असर है । इनम¤
संÖकृत और उदूª पर दरबारी संÖकृित का ºयादा असर है । िहÆदी पर कम असर है । िहÆदी
म¤ वीरगाथाकाल और रीितकाल पर दरबारी संÖकृित का Óयापक असर देखा जा सकता है ।
इसके अलावा िहÆदी कì मÅयकालीन किवता जन-जीवन से जुड़ी किवता है । इसम¤ राम-
कृÕण के आ´यान कì आंधी चली है । राम-कृÕण के बहाने दरबारी संÖकृित का िवकÐप
िनिमªत िकया गया । राजा के सामने िसर झुकाने से बेहतर भगवान के सामने िसर झुकाने का
भाव है, जो िक ÿितवादी भाव है । इसके िवपरीत संÖकृत काÓय परंपरा म¤ राजा को
अपदÖथ नहé िकया जा सका । संÖकृत काÓय का बड़ा िहÖसा राजा केिÆþत आ´यानŌ से
भरा है । इसम¤ जनता के भावŌ और सुख-दुख के िलए कोई जगह नहé है । इसम¤ पशु ह§, प±ी
ह§, उपदेश ह§, काÓयमानक ह§ और सबसे बड़ी बात यह िक इसम¤ सामािजक यथाथª का
ÿितिबÌब नहé है ।
हजारीÿसाद िĬवेदी ने रेखांिकत िकया है िक संÖकृत किवता जीवन से कटी हòई है । जबिक
िहÆदी किवता सामािजक जीवन से जुड़ी है । संÖकृत किवता जÆम से िनयमŌ से बंधी रही है
। काÓय िनयमŌ का यथोिचत िनवाªह करना किव का लàय रहा है । इसके िवपरीत िहÆदी के
जनकिवयŌ ने कभी भी काÓय िनयमŌ का पालन नहé िकया । काÓय िनमाªण के उपकरणŌ को
उÆहŌने जन ÿचिलत काÓय łपŌ से úहण िकया । काÓय िनयमŌ के ÿित िहÆदी के जनकिवयŌ
का उपे±ाभाव वह ÿÖथान िबंदु है, जहां से हम¤ ÿितवादी काÓय के आरंभ को देखना चािहए
। िनयमŌ कì उपे±ा से पैदा हòआ ÿितवादी काÓयłप अपने साथ राजतंý का िवकÐप भी
लेकर आया । रामा®यी-कृÕणा®यी, सगुण- िनगुªण काÓय परंपरा से उसने अंतवªÖतु ली। इन
किवयŌ ने ³या िलखा और िकस नजåरए से िलखा इसका उनकì मंशा से गहरा संबंध है ।
मÅयकालीन जनकिवयŌ ने राम-कृÕण, सगुण-िनगुªण आिद Óयापक अिभÓयिĉ का ±ेý चुना ।
उसम¤ धारावािहकता बनाए रखी । यह मूलतः उनके दरबारी संÖकृित के ÿित िवरोधभाव कì
अिभÓयिĉ है । इस ÿितवाद के केÆþ म¤ काÓय के łप और अंतवªÖतु दोनŌ ह§ । किव कì मंशा
लàयीभूत ®ोता कì ÿकृित के साथ नािभनालबĦ होती है । संÖकृत के किव का लàयीभूत
®ोता और िहÆदी के जनकिवयŌ का लàयीभूत ®ोता िभÆन है । यह िभÆन ही नहé बिÐक
इनके िहतŌ म¤ गहरा अंतिवªरोध है । इस पåरÿेàय म¤ देख¤ तो संÖकृत-िहÆदी किवयŌ के
काÓयजगत म¤ गहरी िवचारधाराÂमक टकराहट नजर आएगी । संÖकृत-िहÆदी के किवयŌ के munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
48 सामािजक सरोकारŌ म¤ गहरा अंतर नजर आएगा । यही वजह है िक िहÆदी के मÅयकालीन
जनकिव संÖकृत काÓय परंपरा से अपने को पूरी तरह अलग करते ह§ ।
संÖकृत किव दरबार के िलए िलखता है । िहÆदी का जनकिव भĉ के िलए िलखता है, सबके
िलए िलखता है । संÖकृत किव अपनी िनजता को सावªजिनक नहé करता इसके िवपरीत
िहÆदी किव अपनी िनजता को सावªजिनक łप से Óयĉ करता है । संÖकृत किव अपने िनजी
जीवन के दुखŌ को िछपाता है, िहÆदी किव उÆह¤ सावªजिनक करता है । Óयिĉगत को
सामािजक बनाता है और Óयिĉगत और सावªजिनक के सामंतीभेद को नĶ करते हòए
Óयिĉगत को सावªजिनक बनाता है । यहां से वह सचेत łप से आधुिनक भावबोध के ल±णŌ
कì नéव डालता है ।
उÐलेखनीय है मÅयकालीन किवयŌ ने अपने सारे उपकरण Óयापाåरक पूंजीवाद से िलए ह§ ।
ये किव नई उदीयमान सामािजक शिĉयŌ कारीगर-दÖतकार और उदीयमान Óयापारीवगª के
भावबोध से संसार को देखते ह§ । उपेि±त शूþŌ और िľयŌ को समानता और अिभÓयिĉ का
मंच देते ह§ । उनके यहां सब कुछ पसªनल है, Óयिĉगत है । भिĉ का łप भी Óयिĉगत है ।
Óयिĉगत स°ा का ऐसा महाराग इसके पहले कभी नहé सुना गया । Óयिĉगत भावŌ कì
अिभÓयिĉ के बहाने राजतंý कì समूची स°ा और उसके सांÖकृितक बोध और मूÐय
संरचना को सजªनाÂमक चुनौती दी गयी ।
तुलनाÂमक सािहÂय के ±ेý म¤ अÅययन कì कई पĦितयां ÿचलन म¤ ह§ । Āांसीसी
तुलनाशाľी ‘ÿभाव’के अÅययन पर जोर देते ह§ । रेने वैलेक ने ‘कारण-ÿभाव’ को मह°ा दी
है। हंगरी के तुलनाशाľी ‘ąोत’ और ‘मौिलकता’ को महÂवपूणª मानते ह§ । इस ÿिøया म¤
उÆहŌने राÕůीय चåरýŌ कì पहचान Öथािपत कì । उÐलेखनीय है िक ‘ÿभाव’ का ‘úहण’ के
साथ संबंध है । फलतः úहणकताª मूÐयांकन के केÆþ म¤ रहेगा । वेन तेघम और अÆय
िवचारकŌ ने ‘úहण’ के िसĦांत के अनुłप ही अपने तुलनाÂमक नजåरए का िवकास िकया ।
सािहÂय संÿेषण और úहण के सवालŌ पर सामियक तुलनाशाľी िविभÆन ŀिĶयŌ से िवचार
करते रहे ह§ । हंगरी के तुलनाशािľयŌ ने ‘ąोत’ और ‘मौिलकता’ पर जब जोर िदया था तो
उस समय हंगरी म¤ १९वé शताÊदी का समय था और संÖथानŌ के िनमाªण कì ÿिøया चल
रही थी । तुलनाÂमक सािहÂय के मूÐयांकन और िसĦाÆत कì िकताबŌ को गौर से देख¤ तो
पाएंगे िक कुछ महÂवपूणª पदबंधŌ का ÿयोग िमलता है । जैसे, फाचूªन, िडÉयूजन, रेिडएशन
आिद इन पदबंधŌ का पाठक पर पड़ने वाले ÿभाव के संदभª म¤ धडÐले से ÿयोग चल रहा है
। जबिक úहणक°ाª के संदभª म¤ ÿितिøया, िøिटक, ओिपिनयन, रीिडंग, ओåरएÁटेशन
आिद का खूब ÿयोग हो रहा है । पुनłªÂपादन के संदभª म¤ फेस, åरÉले³शन, िमरर, इमेज,
åरजोन¤स, इको, Ìयूटेशन आिद का ÿयोग िमलता है ।
Āांस म¤ úहण िसĦांत का िवरोध करने वालŌ का भी एक गुट है जो िवषयवÖतु केिÆþत
अÅययन पर जोर देता है । इस ±ेý म¤ मनोवै²ािनक और शैलीवै²ािनक आलोचना ŀिĶयŌ
का जमकर ÿयोग हòआ है । इसके दायरे म¤ िमखाइल बाि´तन के ‘इंटरटे³चुअिलटी’ से
लेकर वा³य-िवÆयास, łपकŌ, वा³य कì बहòअथê संरचना और łपवाद आिद सब कुछ
शािमल ह§ । Āांसीसी तुलनाशािľयŌ ने इमेज और इमेनोलॉजी म¤ अंतर िकया है और इमेज
के अÅययन पर जोर िदया है । इन िवचारकŌ ने िवचारŌ के इितहास, मनोदशा, munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
49 संवेदनशीलता और मूÐयŌ का भी अÅययन िकया है । ये लोग वैिवÅय और उदारता के
आधार पर मूÐयांकन करते ह§ । Āांसीसी तुलनाशािľयŌ ने łपवादी ŀिĶकोण का िवरोध
करते हòए अनेक महÂवपूणª कायª िकए ह§ । उनके Ĭारा िकए गए अÅययनŌ को चार भागŌ म¤
बांट सकते ह§ ।
१. काÐपिनकता का अÅययन
२. िकसी महान िवषयवÖतु का अÅययन
३. ÿतीकŌ का अÅययन
४. िवषयवÖतु का अÅययन
Āांसीसी तुलनाशािľयŌ के यहां सामाÆय सािहÂय और तुलनाÂमक सािहÂय का अंतर साफ
िदखाई देता है । इन लोगŌ ने åरÈसेशन Ãयोरी को सामाÆय सािहÂय के ±ेý के बाहर रखा है ।
इसके अलावा पĦित कì समÖयाओं को भी उठाया है । तुलनाÂमक सािहÂय कì जिटलता
और समृिĦ को रेखांिकत िकया है । उनके मूÐयांकन के केÆþ म¤ पाठ है । िकंतु यह काम
उÆहŌने łपवादी और संरचनावािदयŌ से िभÆन łप म¤ िकया है । वे हमेशा इमेजरी और
ओिपिनयन पर केिÆþत होकर काम करते रहे ह§ । िवधाओं के इितहास का पुनल¥खन, काÓय
कì Óया´या के िलए इंटरटे³चुअिलटी या अÆतपाªठीयता कì धारणा, इितहास और
अÆतªवÖतु का ÿयोग करते रहे ह§ । इस øम म¤ उÆहŌने पाठ का िवकेÆþीकरण िकया है ।
४.६ तुलनाÂमक सािहÂय म¤ łप एवं िशÐप–मीमांसा तुलनाÂमक सािहÂय अंúेजी के ‘कÌपैरेिटव िलटरेचर’ का िहÆदी अनुवाद है । यह एक
ÖवतÆý िवīाशाखा के łप म¤ िवकिसत है तथा िवदेश के िविभÆन िवĵिवīालयŌ म¤ इसके
अÅययन-अÅयापन के कायª को आजकल िवशेष महÂव िदया जा रहा है । अंúेजी के किव
‘मैÃयू आनªÐड’ ने सन् १८४८ म¤ अपने एक पý म¤ सबसे पहले ‘कÌपैरेिटव िलटरेचर’ पद
का ÿयोग िकया था । भारत म¤ सन् १९०७ म¤ रवीÆþ नाथ ठाकुर ने िवĵ सािहÂय का
उÐलेख करते हòए सािहÂय के अÅययन म¤ तुलनाÂमक ŀिĶ कì आवÔयकता पर जोर िदया
था । मानव के सांÖकृितक इितहास कì सहज धारा के आ®य म¤ ही ‘रिव बाबू’ ने तुलनाÂमक
सािहÂय के अÅययन पर बल िदया था । तुलनाÂमक सािहÂय के िवषय म¤ एक Öवतंý
अÅययन को माÆयता देना आज भी िववादúÖत िवषय है । तुलनाÂमक सािहÂय का भी एक
ŀिĶकोण है, एक तकनीकì है । तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿवृि°याँ अभी भी पूरी तरह से
िÖथर नहé हो पायी ह§ । इसके अÅययन का आरÌभ हम इितहास बोध से करते ह§, िकÆतु
उसकì पåरसमािĮ एक ÿकार के सावªभौम सािहÂयेितहास म¤ होती ह§ । तुलनाÂमक पĦित
सािहÂय और अकादिमक जगत कì बहòÿचिलत पĦित है । तुलनाÂमक पĦित के कारण
सािहÂय के अंतजªगत और सािहÂय जगत दोनŌ का िवÖतार होता है । तुलनाÂमक सािहÂय
कì अवधारणा पर िलखते हòए डॉ. इÆþनाथ चौधरी ने िलखा है, तुलनाÂमक सािहÂय अंúेजी
के ‘कÌपैरेिटव िलटरेचर’ का िहÆदी अनुवाद है एक Öवतंý िवīाशाखा के łप म¤ िवदेश के
िविभÆन िवĵिवīालयŌ म¤ इसे अÅययन- अÅयापन के कायª को आजकल िवशेष महßव िदया
जा रहा है । तुलनाÂमक सािहÂय का सवªÿथम ÿयोग मैÃयम ऑनªÐड ने सन् १८४८ म¤ munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
50 अपने एक पý म¤ सबसे पहले िकया था । वÖतुतः तुलनाÂमक सािहÂय म¤ दो देश, दो भाषा
या दो रचनाकारŌ कì कृितयŌ को एक दूसरे के सापे± रखकर देखा जाता है । तुलनाÂमक
पĦित का मूल उĥेÔय सांÖकृितक पåरÿेàय म¤ एक दूसरे को रखकर नई अथªव°ा कì
तलाश करना होता है । इस ढंग से तुलनाÂमक पĦित साधन है, साÅय नहé हैनरी एच. एच.
रेमाकª ने भी तुलनाÂमक सािहÂय कì िवशेषताओं के ÖपĶ िकया है । उनके अनुसार सािहÂय
कì िवशेष तßवŌ को ÖपĶ िकया है । उनके अनुसार एकक राÕůŌ कì पåरिध से परे दूसरे
राÕůŌ के सािहÂय के साथ तुलनाÂमक अÅययन है तथा यह अÅययन कला, इितहास,
समाज िव²ान, धमªशाľ आिद ²ान के िविभÆन ±ेýŌ के आपसी संबंधŌ का ²ान है । रेमाकª
ने दो राÕů के संदभª म¤ तुलनाÂमक सािहÂय कì उपयोिगता िनधाªåरत कì है। Óयापक łप से
दो िवधाओं कì कृितयŌ के वगêकरण को भी इसम¤ समेट िलया जाता है ।
४.७ तुलनाÂमक सािहिÂयक अÅययन का ÿभाव ±ेý आज इ³कìसवé सदी म¤ भूमंडलीकरण, बाजारवाद के कारण संपूणª िवĵ एक ‘िवĵúाम’ के
łप म¤ बन गया है । ऐसे म¤ तुलनाÂमक सािहÂय को अनेक कारणŌ से अनÆय साधारण महÂव
ÿाĮ हòआ है । तुलनाÂमक सािहÂय म¤ दो या दो से अिधक आयाम रहते ह§ । तुलनाÂमक
सामúी भी दो या अिधक ąोतŌ से इकęा कì जाती है। इस पĦित के महÂव के बारे म¤ डॉ.
पी. आर डोिडया का मत है- “तुलनाÂमक अÅययन से िवशेष लाभ यह होता है िक इसम¤
अनुसंधान कì ŀिĶ सूàम से सूàमतर होकर अिधक गहराई म¤ िÖथत काÓय कì अंतराÂमा
का Öपशª कर लेती है । पåरणाम Öवłप बहòत अमूÐय िनÕकषª कì ÿािĮ होती है । ²ान कì
पåरपुिĶ एवं संपुिĶ के िलए तुलनाÂमक अÅययन आवÔयक ही नहé अिनवायª भी है ।”
तुलनाÂमक अÅययन से वै²ािनक ŀिĶकोण िवकिसत होता है । इससे हम¤ उ¸चतर ²ान कì
ÿािĮ होती है ।
ÿिसĦ पाIJाÂय िवĬान मै³समूलर ने इस संदभª म¤ कहा है, “All higher Knowledge is
gained by comparison and rests on comparisan.” अथाªत- “सभी उ¸चतर ²ान
कì ÿािĮ तुलना से हòई है और वह तुलना पर ही आधाåरत है ।”
तुलनाÂमक अÅययन Ĭारा अनेक समानतापरक तÃयŌ एवं सÂयŌ कì Öथापना करके
भारतीय संÖकृित कì मूलभूत एकता (वसुधैव कुटुंबकम्) कì भावना को िफर चåरताथª िकया
जा सकता है ।
िवĵ के िविभÆन देशवािसयŌ के बीच जाित, वणª और धमª आिद के वैमनÖय के होते हòए भी
उनके मिÖतÕक, मानव-Ńदय म¤ ÿाय: समानता पाई जाती है । िवĵ के ÿितिķत किवयŌ एवं
सािहÂयकारŌ ने अपनी देश-काल जयी कृितयŌ म¤ इसी मानव मनोभूिम कì एकłपता का
ÿितपादन िकया है । ÖपĶ है िक िविभÆन ÿांतŌ एवं देशŌ के सािहÂयŌ म¤ िविवध łपŌ म¤ Óयĉ
मानव-चेतना कì अखंडता, िवराटता एवं सह िजजीिवषा को तुलनाÂमक अÅययन Ĭारा
ÿÖतुत िकया जा सकता है ।
ÿÂयेक भाषा एवं सािहÂय कì अपनी भािषक ÿकृित होती है । तुलनाÂमक अÅययन करते
समय उसके शÊद, वा³य, पद, Óयंजना, अलंकार, ÿादेिशक छिवयŌ आिद का उĤाटन होता
है । दोनŌ भाषाओं के साÌय-वैषÌय से भाषा कì ÿकृित का पता चलता है । एन. ई. िवĵनाथ munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
51 अÍयर के अनुसार, “तुलनाÂमक अÅययन से िविभÆन भाषाओं म¤ रिचत सािहÂय का
रसाÖवादन तो होगा ही साथ ही हम गंभीरता से समी±ा ÿधान अथवा काÓय-शाľीय
अÅययन करना चाहते ह§ तो हम¤ बड़ी माýा म¤ सामúी िमलेगी। चåरý-िचýण, ÿकृित वणªन,
परंपरा, किव-समय, िबंब िवधान, आ´यान शैली, छंद, कÐपना, िमथक, पåरकÐपना आिद
िकतने ही ±ेýŌ म¤ हम नए-नए अनुभव ÿाĮ कर सकते ह§ ।” तुलनाÂमक अÅययन अनुवाद
को महÂव देता है । अनुवाद के ²ान िबना तुलना संभव नहé है। सािहÂयŌ कì तुलना से नए
सािहÂय िसĦांत एवं तßवŌ कì खोज कì जाती है । उसी तरह पुराने सािहÂय िसĦांतो एवं
तßवŌ कì योµयता-अयोµयता कì जाँच-पड़ताल कì जा सकती है । आज तक हम सािहÂय
िकसी Óयिĉ Ĭारा िनिमªत मानते थे परंतु तुलनाÂमक अÅययन उसे राÕůीय अंतरराÕůीय
पåरÿेàय म¤ देखने का नज़åरया दतेा है । दूसरŌ म¤ खुद को जाँचने का माÅयम तुलनाÂमक
अÅययन है । िजससे खुद कì स¸ची पहचान बनती है । िकसी कृित का अलगपन िबना
तुलना िकए समझता नहé है ।
उपरोĉ उदाहरणŌ के आधार पर हम कह सकते ह§ िक तुलनाÂमक अÅययन अनेक ŀिĶयŌ
से मानव-जाित के िवकास का साधन है । ²ान-िव²ान कì नई िदशाओं का उĤाटन, भाषा-
शैली एवं अिभÓयंजना कì मनोहारी अिभनव छटाओं का िदµदशªन, राÕůीय एवं भावाÂमक
ऐ³य का ÿितपादन, िवĵ मानव का गौरव, बहòमुखी ÿकट łप जाित, धमª एवं łिढ़यŌ Ĭारा
आरोिपत िभÆनता म¤ एकता दशªन, Âयाग ÿधान भारतीय संÖकृित का संÖथापन एवं अनके
Æयूनताओं के ÿित सतकªता, तुलनाÂमक अÅययन Ĭारा संभव है ।
आम तौर पर हम मानते ह§ िक सािहÂय समाज का दपªण होता है । यिद हम दपªण कì इस
अवधारणा को पूरी तरह से Öवीकार न भी कर¤, तो भी इतना तो मानते ही ह§ िक सािहÂय का
उस समाज और पåरवेश से गहरा åरÔता होता है, िजस समाज और पåरवेश म¤ उसकì रचना
होती है । पåरवेश का सÌबÆध देश से होता है । देश म¤ वहां का भूगोल और समाज संरचना
होती है । िफर कोई भी देश Öथायी नहé होता, वह पåरवितªत होता रहता है। यह पåरवतªन
काल सापे± है । काल के साथ देश म¤ पåरवतªन होता है । इस पåरवतªन का ÿभाव सािहÂय म¤
लि±त िकया जाता है िकसी सािहिÂयक कृित का मूÐयांकन करते समय आÖवाद न करते
समय हम इन बातŌ का Åयान रखते ह§ । अथाªत् सािहÂय का अÅययन करते समय हम सबसे
पहले उसे देश और काल म¤ िÖथत करते ह§ । उसका Öथान तय करते ह§ । उदाहरण के िलए
जब हम कबीर का अÅययन करते ह§ तो उनके जुलाहा होने का तÃय भी सामने रखते ह§ ।
कबीर उस युग म¤ पैदा हòए थे, उस समय म¤ पैदा हòए थे जहाँ ऊँच-नीच कì भावनाएं ÿबल थी
और सामािजक मयाªदा के नाम से Öवीकृत हो चली थी । ऐसे समाज के िवŁĦ कबीर ने
िवþोह िकया । इस िवþोह का संबंध उस देश और काल से था । ऐसे ही मीरा मेवाड़ के
राजपåरवार कì बेटी थी । िच°ौड़ राजघराने कì बहó थी । तब वह कुल कì मयाªदा को
Âयागने कì बात करती है तो यह Âयाग बड़ा है । यह काल सापे± है । यिद कबीर राज
पåरवार म¤ पैदा हòए होते या मीरा सामाÆय पåरवार म¤ जÆम लेती, तो उनका सािहÂय अलग
तरह का होगा ।
सािहÂय के सामाÆय अÅययन म¤ जब हम जाते है तो यह बात¤ हम¤ िमलती ह§ परÆतु जब
इनका सािहÂय तुलनाÂमक अÅययन के ±ेý म¤ आता है, तब हम देश और काल कì इस
चेतना को देखना शुł कर देते ह§ । यिद कोई िभÆन दुिनया का Óयिĉ, अलग काल खÁड म¤ munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
52 कबीर और मीरा का पढ़ेगा, तब भी उसम¤ सािहिÂयकता होगी या नहé होगी और ऐसे ही
िकसी अलग देश के अलग काल के किव से जब तुलना होगी, तब उनके मूÐयांकन को ³या
नाम िदया जाएगा। जािहर है िक यह जो अÅययन है, वह तुलनाÂमक सािहÂय के अÆतगªत
आता है । इसी तरह जब हम िकसी किव का अÅययन करते ह§ तो उसे एक भािषक परंपरा
म¤ रखते ह§ । भाषा कì अपनी ÿकृित होती है, अपना सौÆदयª होता है, अपनी सीमाएं होती ह§
। इसी तरह ÿÂयेक कृित एक िवधा िवशेष म¤ होती है । ‘गोदान’ एक उपÆयास है, ‘अतीत के
चलिचý’ संÖमरण है, ‘अपनी ख़बर आÂम कथा है और ‘कामायनी’ महाकाÓय है । ये िवधाएं
इनकì सािहिÂयकता कì पåरिध का िनधाªरण करती ह§ । कुछ बातŌ को आÂमकथा म¤ शािमल
नहé िकया जा सकता । अतः वह इन बातŌ को छोड़ देता है । यिद वही लेखक उसी कÃय
पर उपÆयास िलखता तो उसम¤ शािमल कर सकता था । हर तरह का अÅययन सािहÂय म¤
होता आया है । इस बात कì जांच भी चलती है िक िवधा िवशेष कì सीमाएं कृित कì सीमा
बन जाती है । कई बार लेखक इन सीमाओं को तोड़ते भी ह§ । तुलनाÂमक सािहÂय इन
िवधागत भेदŌ कì अनदेखी करता है । िवधागत सीमाओं के बाद पाठ का अÅययन इस ±ेý
म¤ होता है । इसी तरह संगीत, िचýकला, मूितªकला से सÌबĦ सीमाओं का अितøमण िकया
जाता है । तुलनाÂमक अÅययन को दशªनशाľ, समाजशाľ, राजनीितशाľ आिद िविभÆन
अनुशासनŌ कì भी अपनी मयाªदा से मुĉ होना होता है। अतः कहा जा सकता है िक
तुलनाÂमक सािहÂय सीमाहीन सािहÂय का अÅययन करता है । कोई सीमा सािहÂय को
िविशĶ तो बनाती है, परÆतु तब वह तुलनाÂमक सािहÂय के भीतर नहé आता । इन सीमाओं
के अितøमण के बाद सािहÂय म¤ जो पैटनª बनता है उनका अÅययन तुलनाÂमक सािहÂय
कì सीमा म¤ आता है ।
जब तुलनाÂमक सािहÂय का अÅययन आगे बढ़ा तब उपिनवेशŌ का सािहÂय से भी यूरोपीय
सािहÂय कì तुलना करने का ÿij उठा । ऐसे म¤ यूरोपीय मनीषा म¤ राÕůवाद कì भावना ने
पुनः अपना łप िदखाया । तुलनाÂमक सािहÂय के यूरोपीय िवĬानŌ ने यह मत Óयĉ िकया
िक तुलना िसफª समान Öतर के सािहÂय म¤ ही संभव होती है । अतः उपिनवेशŌ के सािहÂय
से यूरोपीय सािहÂय कì तुलना नहé हो सकती। िसफª यूरोपीय सािहÂय कì ही सावªदेिशक
और सावªकािलक Öवीकृित हो सकती है । उपिनवेशŌ का सािहÂय उस Öतर तक कभी नहé
पहòंच पाएगा । १८३५ म¤ जब लाडª मैकाले ने कहा िक ÿा¸य देशŌ का सािहÂय, चाहे वह
भारत हो या अरब का संपूणª सािहÂय यूरोपीय पुÖतकालय कì एक अलमारी म¤ समािहत हो
सकता है । मैकाले कì इस नÖलवादी, साăाºयवादी घोषणा म¤ तुलनाÂमक सािहÂय के
िवĬानŌ कì माÆयता शािमल थी । उमर खैÍयाम कì łवाइयŌ को अनुवाद करने वाले
यूरोपीय िवĬान िफट्जराÐड कì भी यही माÆयता थी। िजसके मूल म¤ यह िवĵास था िक
यूरोपीय मनीषा ®ेķ है, यूरोपीय सािहÂय ®ेķ ह§, जबिक एिशया और अĀìका के लोग अभी
‘आिदम’ और ‘बबªर’ ह§ । उÆह¤ अभी यूरोप से सËयता सीखनी है । तुलनाÂमक सािहÂय ने
इस समय यह तकª िवकिसत िकया िक तुलनाÂमक अÅययन पाठ का हो सकता है । मौिखक
सािहÂय या मौिखक संÖकृित का तुलनाÂमक अÅययन नहé हो सकता । इसका कारण यह
है िक मौिखक सािहÂय से िलिखत पाठ ®ेķ होता है । इसीिलए मौिखक महाकाÓयŌ को
महाकाÓय नहé माना जा सकता । िपछड़े समाजŌ म¤ सािहÂय का अिधकांश िहÖसा मौिखक
होता है । वह तो िगनती म¤ ही नहé आता । इसिलए होमर, úीक सािहÂय, शे³सपीयर के
नाटक, Öप¤सर तथा िमÐटन कì किवता महÂवपूणª है ³यŌिक यह पाठ है । munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध एवं ÿभाव
53 तुलनाÂमक सािहÂय कì यह साăाºयवादी समझ िसफª मैकाले कì ही नहé है, १९८७ म¤
सी. एल. रेन. (C.L. Wrenn) ने आधुिनकì मानिवकì अनुसंधान संघ के अÅय±ीय भाषण
म¤ तुलनाÂमक सािहÂय कì अवधारणा पर िवचार करते हòए कहा “कुछ भाषाएं बहòत संकुिचत
ढंग से सोचती ह§, जैसे अĀìकì भाषाएं यहां तक िक संÖकृित का भी बहòत सीिमत महÂव है
। अंततः यूरोपीय सािहÂय का ही तुलनाÂमक अÅययन हो सकता है ।”
साăाºयवािदयŌ का जब एिशया और अĀìका म¤ आगमन हòआ तो उनके साथ उनका
सािहÂय भी आया । भले ही वह सांÖकृितक साăाºयवाद के तकŎ के साथ जाया । भले ही
वह घोिषत करके आया िक यूरोपीय ही ®ेķ है परÆतु उपिनवेशŌ म¤ भी एक नए ढंग का
राÕůवाद पैदा हòआ और इस राÕůवाद ने तुलनाÂमक सािहÂय को नई ŀिĶ दी । इस ÿिøया
म¤ दो नए तकª आए:-
(१) जैसा यूरोपीय लोगŌ का सािहÂय है, हमारा सािहÂय भी वैसा ही है और कई अथŎ म¤
यह यूरोपीय सािहÂय से ®ेķ है । इस तकª के िलए रामायण, महाभारत, वेद पुराण,
कािलदास कì कृितयां आिद सवª®ेķ ³लािसक सािहÂय का नया पाठ सामने आया ।
इस अÅययन के मूल म¤ उपिनवेशŌ का नया राÕůवाद सामने आया ।
४.८ सारांश तुलनाÂमक सािहÂय एक िवशेष पĦित Ĭारा कायाªिÆवत होता है । यह पĦित सचेत और
मुलभूत आधारŌ पर चलती है । इन पĦितयŌ के उिचत ÿयोग से अंतराªÕůीय संदभª कì दो
सािहÂय कृितयŌ का शैली िवचार संरचनागत अÅययन हो सकता है । तुलनाÂमक सािहÂय
अÅययन ÿिविध म¤ भारतीय संदभō म¤ िविभÆन चरणŌ व तÃयŌ को लेकर पåरपूणª अÅययन
हòआ है । इसम¤ तुलनाÂमक अÅययन कì िदशा और कÃयिममांसा साथ ही तुलनाÂमक
अÅययन के ÿभाव ±ेý और वै²ािनक ŀिĶकोण पर िवÖतृत चचाª उĉ इकाई म¤ हòई है ।
४.९ दीघō°री ÿij १) तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध पर िवÖतार से चचाª कìिजए ।
२) तुलनाÂमक सािहÂय कì िदशाएँ और कÃयिममांसा िवĬानŌ ने िकस ÿकार ÿिदपािदत
कì है । िववरण दीिजए ।
३) तुलनाÂमक सािहÂय कì कÃय, łप एवं िशÐप िममांसा का वणªन कìिजए ।
४) तुलनाÂमक सािहÂय अÅययन के ÿभाव कì समी±ा कìिजए ।
४.१० लघु°रीय ÿij १. तुलनाÂमक सािहÂय ÿिविध के ÿकार
२. तुलनाÂमक सािहÂय कì ÿिविध – भारतीय संदभª म¤
३. तुलनाÂमक अÅययन कì िदशाएँ munotes.in

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तुलनाÂमक सािहÂय (सैĦांितक)
54 ४. तुलनाÂमक अÅययन म¤ łप एवं िशÐप िममांसा
५. तुलनाÂमक अÅययन का ÿभाव ±ेý
४.११ वÖतुिनķ ÿij १. तुलनाÂमक सािहÂय के िकतने पåरपेàय माने गये है?
(i) १, (ii) २,
(iii) ३, (iv) ४.
२. िकस िवĬान ने ÿभाव को ‘अनुकरण’ न मानकर ‘ÿेरणा’ मानने से ÿभाव अÅययन के
िवरोध म¤ कì गई आलोचना माना है ।
(i) łथ वेन, (ii) साइमन िजयून,
(iii) ³लांद गुइए, (iv) ³लाइव Öकॉट.
३. तुलनाÂमक अÅययन कì भूिमका पुÖतक के लेखक है ।
(i) नगेÆþ, (ii) ÿो. इÆþनाथ चौधरी ,
(iii) हजारी ÿसाद िĬवेदी, (iv) आ. रामचंþ शु³ल.
४. भारत म¤ िवĵ सािहÂय का उÐलेख और उसकì तुलनाÂमक ŀिĶ कì आवÔयकता पर
िकस िवĬान ने और कब उÐलेिखत िकया है?
(i) सन् १८४८ म¤ वसंत वापट, (ii) सन् १८९० म¤ डॉ. सरगु कृÕण मूितª,
(iii) सन् १९०३ म¤ इंþनाथ चौधरी, (iv) सन् १९०७ म¤ रवीÆþनाथ ठाकुर.
४.१२ संदभª úंथ १. आय.एन. चंþशेखर रेड्डी - तुलनाÂमक अÅययन: िनकष एवं िनłपण
२. पंिडत चतुव¥दी - समी±ा शाľ
३. डॉ अनंत केदारे - तुलनाÂमक अÅययन Óयवहाåरक कायª िविध
४. अजुªन तड़वी - अनुसंधान: सजªन एवं ÿिøया

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