132-TYBA-Sem-VI-Paper-No.-VII-Literary-Criticism-Prosody-साहित्य-समीक्षा-छंद-एवं-अलंकार-Inner-pages-munotes

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1 १शब्दशक्ति इकाई की रूपरेखा १ .० इकाई का उद्देश्य १.१ प्रस्तावना १.२ शब्दशक्ति की परिभाषा १.३ शब्दशक्ति का स्वरूप १.४ शब्दशक्ति के प्रकाि १.५ सािाांश १.६ बोध प्रश्न १.७ क्तिप्पक्तियााँ १.८ सांदभभ ग्रांथ १.० इकाई का उद्देश्य:- प्रस्तुत इकाई के अन्तर्भत क्तवद्याथी क्तनम्नक्तिक्तित क्तबांदुओां का अध्ययन किेंर्े - ➢ क्तवद्याथी शब्दशक्ति के क्तवक्तवध रूपों से परिक्तित होंर्े। ➢ क्तवद्याथी शब्दशक्ति के िक्षिों व उदाहििों से परिक्तित होंर्े। ➢ क्तवद्याथी शब्दशक्ति के क्तवक्तवध रूपों में अांति किते हुए उनका प्रयोर् कि सकेंर्े। १.१ प्रस्तावना :- प्रस्तुत इकाई शब्दशक्ति के क्तवक्तवध भेदों औि उपभेदों से क्तवद्याथी को परिक्तित किायेर्ी। शब्दशक्ति के महत्व को समझते हुए क्तवद्याथी उसके काव्यर्त मूल्य व प्रयोर् को समझ सकेर्ा तथा उस शब्दशक्ति के क्तवक्तभन्न भेदों का प्रयोर् कक्तवता को ििते व पढ़ते हुए कि सकेर्ा। शब्द व अथभ के पिस्पि सांबांध को समझने की स्पष्ट दृक्तष्ट का क्तवकास क्तवद्याथी में होर्ा। १.२ शब्दशक्ति की परिभाषा: शब्द एवां अथभ के सांबांध में क्तविाि किनेवािे तत्व को शब्दशक्ति कहा जाता है। शब्दशक्ति द्वािा शब्द के अथभ का बोध या ज्ञान होता है, अतएव शब्दशक्ति को परिभाक्तषत किते हुए ऐसा भी कहा जा सकता है क्तक क्तजस शक्ति या व्यापाि द्वािा अथभबोध होता है उसे शब्दशक्ति कहते हैं। munotes.in

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साक्तहत्य समीक्षा : छांद एवां अिांकाि
2 आिायभ क्तिांतामक्ति क्तििते हैं, “जो सुक्तन पड़े सो शब्द है, समुक्तझ पिै सो अथभ” अथाभत जो सुनाई पड़ता है वह शब्द है औि जो समझ पड़ता है वह अथभ है। शब्द से अथभ की प्राक्ति कैसे होती है? इसी तत्व पि शब्दशक्ति क्तविाि किती है। १.३ शब्दशक्ति का स्वरूप:- शब्दशक्ति शब्द औि अथभ के सांबांध पि क्तविाि किती है। इसीक्तिए सांस्कृत काव्यशास्त्र में ‘शब्दाथभ - सांबांध शक्ति’ कहा र्या है। शब्दशक्ति शब्द के अथभ पि क्तविाि किनेवािी शक्ति है। अतः क्तजतने तिह के शब्द होते हैं उतनी तिह की शक्तियााँ भी होती है। शब्द तीन तिह के होते है इसक्तिए शब्दशक्तियााँ भी तीन तिह की होती हैं। ये तीन शब्दशक्तियााँ तीन अिर्-अिर् तिह के अथों का बोध किाती हैं। इस तथ्य को क्तनम्मक्तिक्तित ताक्तिका के द्वािा समझा जा सकता है। शब्द अथभ शब्दशक्ति १ वािक वाच्याथभ अक्तभधा २ िक्षक िक्ष्याथभ िक्षिा ३ व्यांजक व्यांग्याथभ व्यांजन शब्दशक्तियााँ उपयुभि तीन प्रकाि के शब्दों से प्राि होनेवािे अथों के बोध या ज्ञान से सांबांध ििती हैं। १.४ शब्दशक्ति के प्रकाि :- उपयुभि क्तवविि से स्पष्ट है क्तक शब्दशक्तियों के तीन भेद हैं - १ ) अक्तभधा २) िक्षिा ३) व्यांजना ये तीनों शब्दशक्तियााँ अिर्-अिर् तिह के शब्दों से जुड़ी हैं औि तीन अिर्-अिर् तिह के अथों का बोध किाती हैं। इन शब्दशक्तियों का क्तवस्तृत क्तवविि क्तनम्नवत है- १ .४.१ अक्तभधा : अक्तभधा, शब्द की पहिी शक्ति है। यह शब्द के साक्षात साांकेक्ततक अथभ को बताती है। अक्तभधा को परिभाक्तषत किते हुए आिायभ मम्मि कहते है, “क्तजसके द्वािा शब्द के साक्षात् साांकेक्ततक अथभ की प्रतीक्तत अथाभत् ज्ञान होता है, वह अक्तभधा पद शक्ति है। आिायभ अप्पय दीक्तक्षत अक्तभधा को परिभाक्तषत किते हुए कहते हैं, “वस्तु का साक्षात बोध किाने वािी शक्ति का नाम ही अक्तभधा है।” munotes.in

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3 पांक्तितिाज जर्न्ननाथ अक्तभधा को परिभाक्तषत किते हुए कहते है, “अथभ का शब्द के साथ औि शब्द का अथभ के साथ क्तस्थत प्रत्यक्ष सांबांध ही अक्तभधा है।” सभी अथों का मुि होने के कािि इसे मुख्य भी कहते हैं। आिायभ मुकुि भट्ट का कहना है क्तक जैसे शिीि के सभी अवयवों में सबसे पहिे मुि क्तदिाई पड़ता है, उसी तिह सभी प्रकाि के अथों में सबसे पहिे इसी अथभ का बोध होता है। इसीक्तिए, मुि की तिह मुख्य होने के कािि इसे अन्य सभी प्रतीत होने वािे अथों का मुि कहा जाता है। अक्तभधा की क्तवशेषता को िेिाांक्तकत किते हुए आिायभ सोमनाथ क्तििते हैं - या अक्षि को यह अिथ ठीकक्तहां ये ठहिाय । जाक्तन पिै जातैं सु वह अक्तभधावृक्ति कहाय ॥ अक्तभधा को शब्द की मुख्य शक्ति मानते हुए आिायभ कक्तव देव कहते हैं - अक्तभधा उिम काव्य है, मध्य िक्षनानीि। अधम व्यांजन िस क्तविस उििी कहत नवीन॥ आिायभ कक्तव देव अक्तभधा में ििे र्ए काव्य को उिम काव्य मानते हैं। अक्तभधा शक्ति से क्तजन वािक शब्दों का अथभबोध होता है, उनके तीन भेद हैं – I) रूढ़ II) यौक्तर्क III) योर्रूक्तढ़ I) रूढ़:- रूढ़ या रूक्तढ़ शब्द वे हैं क्तजनकी व्युत्पक्ति सांभव नहीं। ये शब्द एक समुदाय के रूप में अपने अथभ की प्रतीक्तत किते हैं। जैसे घड़ी, िश्मा, शेि, कुिा, मकान इत्याक्तद | II) यौक्तिक :- यौक्तर्क शब्द वे है क्तजनकी व्युत्पक्ति की जा सकती है। इन शब्दों का अथभ व्युत्पक्ति के द्वािा ही स्पष्ट हो पाता है। जैसे भूपक्तत शब्द की व्युत्पक्तत ‘भू + पक्तत’ है। ‘भू’ का अथभ है पृथ्वी औि ‘पक्तत’ का अथभ है स्वामी या माक्तिक । इस तिह भूपक्तत शब्द का अथभ होर्ा - पृथ्वी का स्वामी या माक्तिक । निपक्तत, पािक, सुधाांशु इत्याक्तद शब्द यौक्तर्क शब्द ही हैं। व्युत्पक्ति द्वािा ही इनके अथों का बोध हो पाता है। III) योिरूक्तढ़ :- योर्रूक्तढ़ शब्द दो शब्दों से क्तमिकि बना है - योर् औि रूक्तढ़। यह अपने आप में ही दो र्ुिों के बािे में सूक्तित किता है- अथाभत योर्रूक्तढ़ शब्द वे शब्द है जो यौक्तर्क तो होते हैं क्तकांतु ऊनका अथभ रूढ़ होता है। इन शब्दों की व्युत्पक्ति किने पि व्युत्पक्तिर्त शब्दों के अथभ अिर् क्तनकिते हैं पि उनका अथभ पहिे से ही रूढ़ (पूवभक्तनधाभरित) होता है। जैसे पांकज शब्द की व्युत्पक्तत किने पि ‘पांक+ज’ यह रूप हमािे सामने आता है। ‘पांक’ का अथभ होता है कीिड़ औि ‘ज’ का अथभ होता है जन्म िेनेवािा | इस प्रकाि इसका शब्द का व्युत्पक्तिपिक अथभ होर्ा कीिड़ में जन्म िेनेवािा। यक्तद हम इस अथभ को िें तो कीिड़ में जन्म िेने वािे सेवाि, काई, घोंघा, कमि इत्याक्तद सभी पांकज हैं। क्तकांतु यह अथाभत पांकज शब्द के क्तिए कमि अथभ पहिे से रूढ़ कि क्तदया र्या है। इसीक्तिए ऐसे शब्दों को योर्रूक्तढ़ शब्द कहा जाता है। अन्य योर्रूक्तढ़ शब्द है - पशुपक्तत, जिज, पयोद, िांद्रमौक्ति इत्याक्तद | munotes.in

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4 १ .४.२ लक्षणा : शब्द का अथभ केवि अक्तभधा शक्ति तक ही सीक्तमत नहीं होता। जब शब्द के मुख्य अथभ वाच्याथभ को समझने में बाधा आती है तब रूक्तढ़ या प्रयोजन के आधाि पि हम दूसिे अथभ को िर्ाते हैं। इस अथभ का क्तनधाभिि विा के प्रयोर् के आधाि पि होता है। इस दूसिे अथभ को िाक्षक्तिक अथभ कहा जाता है। इस िाक्षक्तिक अथभ को व्यि किनेवािी शब्द की शक्ति का नाम है िक्षिा तथा ऐसे शब्द िक्षक शब्द कहिाते हैं। आिायभ मम्मि िक्षिा के स्वरूप को क्तनधाभरित किते हुए अपने ग्रांथ ‘काव्यप्रकाश’ में क्तििते हैं – मुख्याथभबाधे तद् योर्े रूक्तढ़तोऽय प्रयोजनात्। अन्येऽथो िक्ष्यते यत् सा िक्षिािोक्तपता क्तिया || अथाभत मुख्य अथभ में बाधा उत्पन्न होने पि, मुख्य अथभ के साथ िक्ष्य अथभ का सांबांध होने पि रूक्तढ़ अथवा प्रयोजन क्तवशेष के आधाि पि क्तजस शब्दशक्ति के द्वािा अन्य अथभ का बोध होता है वह शब्द का आिोक्तपत व्यापाि िक्षिा है। उपयुभि कथन से यह स्पष्ट होता है की िक्षिा व्यापाि के सांपन्न होने के क्तिए तीन बातें आवश्यक हैं - I) मुख्य अथभ में बाधा का आना | II) मुख्याथभ औि िक्ष्याथभ का योर् (सांबांध) | III) रूक्तढ़ या प्रयोजन | I) मुख्य अर्थ में बाधा का आना :- शब्द के मुख्य अथभ की प्रतीक्तत में जब बाधा पड़ती है, अथवा जब यह पता ििे क्तक विा क्तजस अथभ को व्यि किना िाहता है वह अथभ अक्तभधा शब्दशक्ति से व्यि नहीं हो पा िहा है तब इस क्तस्थक्तत को हम मुख्य अथभ में बाधा कहते हैं। II) मुख्य अर्थ औि लक्ष्यार्थ का योि :- मुख्य अथभ में बाधा उत्पन्न होने के बाद विा के प्रयोजन के आधाि पि शब्द का जो दूसिा अथभ ग्रहि क्तकया जाता है उसका मुख्य अथभ के साथ सांबांध होना आवश्यक है। इस क्तस्थक्तत को मुख्याथभ औि िक्ष्याथभ का योर् कहते हैं। III) रूक्तढ़ या प्रयोजन :- रूक्तढ़ शब्द का अथभ है क्तकसी क्तवशेष प्रकाि से कहने का ढांर् या तिीका या अक्तभप्राय इसी तिह प्रयोजन का अथभ हुआ क्तकसी क्तवशेष उद्देश्य को िेकि शब्द का प्रयोर्। शब्द के मुख्याथभ में बाधा पड़ने के बाद इसी रुक्तढ़ या प्रयोजन के आधाि पि शब्द का दूसिा अथभ िर्ाया जाता है। यह दूसिा अथभ िाक्षक्तिक होता है। जैसे जब एक क्तमत्र दूसिे क्तमत्र को यह कहता है क्तक - 'तुम पूिे र्धे हो’ तब यहााँ र्धे शब्द का प्रयोर् एक क्तवशेष प्रयोजन को ध्यान में ििकि क्तकया र्या होता है। यहााँ प्रयोर् क्तकए र्ए शब्द र्धे पि जब हम ध्यान देते हैं तब प्रश्न उठता है क्तक भिा मनुष्य र्धा कैसे हो सकता है? ऐसे में यहााँ मुख्याथभ में बाधा उत्पन्न होती है क्योंक्तक मनुष्य औि र्धा दोनों अिर् है। ऐसे में हम र्धे शब्द के प्रयोर् के पीछे विा के प्रयोजन पि ध्यान देते हैं तब पता ििता है क्तक विा र्धे शब्द का प्रयोर् मुिभता के प्रयोजन को ध्यान में ििकि munotes.in

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5 कि िहा है औि यही अथभ र्धे शब्द के साथ रूढ़ कि क्तदया र्या है। इस प्रकाि बात स्पष्ट हो जाती है क्तक क्तमत्र र्धा कहकि दूसिे क्तमत्र को मूिभ कहना िाह िहा है। इस प्रकाि उपयुभि क्तवश्लेषि में तीनों तत्वों का समावेश हमें क्तमिता है। मुख्याथभ में बाधा पड़ने के बाद हम मुख्याथभ औि िक्ष्याथभ के योर् को तिाशते है औि विा के प्रयोजन के आधाि पि र्धे शब्द के िाक्षक्तिक अथभ को समझ पाते हैं। लक्षणा के भेद :- काव्यशास्त्र के अिर्-अिर् क्तवद्वानों ने िक्षिा के अिर्- अिर् भेद बताए हैं। आिायभ मम्मि ने प्रयोजनवती िक्षिा के छः भेद क्तर्नाए हैं। आिायभ क्तवश्वनाथ ने िक्षिा के सोिह भेद माने हैं। िक्षिा के क्तवक्तवध भेदों व उपभेदों को क्तनम्नक्तिक्तित ताक्तिका के माध्यम से समझा जा सकता है -
आिायभ मम्मि के अनुसाि िक्षिा के क्तनम्नक्तिक्तिते भेद है - १) र्ौिी िक्षिा २) शुद्धा िक्षिा ३) उपादान िक्ष ४) िक्षि िक्षिा ५) सािोपा िक्षिा ६) साध्यवसाना िक्षिा १ ) िौणी लक्षणा - जहााँ सादृश्यता अथाभत समान र्ुि या धमभ के कािि िक्ष्याथभ की प्रतीक्तत होती है वहााँ र्ौिी िक्षिा होती है। उदाहिि के रूप में ‘मुिकमि’ इस शब्द के द्वािा मुख्य अथभ के बोध में बाधा उत्पन्न होती है क्योंक्तक मुि कमि नहीं हो सकता। क्तकांतु यहााँ सादृश्यता के कािि अथाभत समान र्ुि के कािि िक्ष्याथभ की प्रतीक्तत हो जाती है। मुि का र्ुि कोमिता व सुांदिता है औि कमि भी कोमि व सुांदि होता है। अतः मुि व कमि के बीि र्ुिों का साम्य होने के कािि िक्ष्याथभ यह क्तमिता है क्तक मुि कमि के समान कोमि व सुांदि है। सादृश्यता के कािि यहााँ िक्ष्याथभ की प्राक्ति हो िही है अतः यहााँ र्ौिी िक्षिा है। २) शुद्धा लक्षणा - जहााँ सादृश्य-सांबांध को छोड़कि क्तकसी अन्य सांबांध से िक्ष्याथभ की प्रतीक्तत होती है वहााँ शुद्धा िक्षिा होती है। ये अन्य सांबांध है – आधािाधेय भाव सांबांध, तात्कम्यभ सांबांध, सामीप्य सांबांध, कायभ कािि सांबांध, अनाक्तद सांबांध इत्याक्तद ।
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6 ३) उपादान लक्षणा - उपादान िक्षिा का दूसिा नाम अजहत्स्वाथी िक्षिा भी है। जहााँ प्रयोजन- प्राि अथभ की प्राक्ति के क्तिए अन्य अथभ में ग्रहि क्तकए जाने पि भी मुख्य अथभ बना िहे वहााँ उपादान िक्षिा होती है। ४) लक्षण - लक्षणा - िक्षि - िक्षिा का दूसिा नाम जहत्स्वाथाभ िक्षिा भी है। यहााँ मुख्य अथभ में बाधा आने पि प्रसांर् के अनुसाि मुख्य अथभ का त्यार् कि िक्ष्य अथभ को ग्रहि क्तकया जाता है वह िक्षि-िक्षिा होती है। अपने अथभ को छोड़कि दूसिे अथभ को ग्रहि किने के कािि ही इसे जहत्स्वाथाभ कहा जाता है। ५) सािोपा लक्षणा - िक्षिा के क्तजस रूप में क्तवषयी (आिोप्यमाि) तथा आिोप के क्तवषय दोनों का शब्दशः उल्िेि क्तकया र्या हो वहााँ सिोपा िक्षिा होती है। सािोपा िक्षिा में क्तवषयी (उपमान) औि क्तवषय (उपमेय) दोनों का उल्िेि क्तमिता है। सांक्षेप में कहा जा सकता है क्तक क्तजस िक्षिा में एक वस्तु में दूसिी वस्तु की अभेद - प्रतीक्तत का आिोपि हो वह सािोपा िक्षिा होती है। ६) साध्यवसाना लक्षणा - आिोप के क्तवषय का क्तवषयी के द्वािा क्ततिोभूत कि िेना, अध्यवसान है। साध्यवसाना में क्तवषयी अथाभत उपमान द्वािा क्तवषय अथाभत उपमेय को आत्मसात कि क्तिया जाता है। आिायभ मम्मि साध्यवसाना िक्षिा के िक्षिों पि प्रकाश िािते हुए क्तििते है – “आिोप्यमाि के द्वािा आिोप के क्तवषय को क्तनमाभि क्तकये जाने पि साध्यवसाना िक्षिा होती है।” इस प्रकाि िक्षिा के उपयुभि छः भेदों की ििाभ की हैं । ये छः भेद आिायभ मम्मि द्वािा वक्तिभत है क्तकांतु अन्य आिायों ने िक्षिा के अन्य अनेक भेद भी क्तकए हैं। १ .४.३ व्यंजना :- व्यांजना शब्द की तीसिी शक्ति है। व्यांजना शब्द की क्तनष्पक्ति किने पि ‘क्तव+अांजना’ ये दो शब्द क्तमिते हैं। इनमें ‘क्तव’ उपसर्भ है औि ‘अांज’ प्रकाशन धातु है। आिायों ने इन दोनों शब्दों के अथभ के आधाि पि व्यांजन के अथभ को स्पष्ट किते हुए यह माना है क्तक व्यांजना अथाभत क्तवशेष प्रकाि का अांजन। आिायों का मानना है क्तक अांजन िर्ाने से नेत्रों की ज्योक्तत बढ़ जाती है औि क्तवशेष प्रकाि का अांजन िर्ाने से पिोक्ष वस्तु भी क्तदिाई पड़ने िर्ती है। ठीक इसी तिह व्यांजना शब्द शक्ति से शब्दों के पिोक्ष अथभ भी क्तदिाई पड़ने िर्ते है या प्रकाक्तशत होकि हमािी समझ में आने िर्ते हैं। जब अक्तभधा औि िक्षिा शब्दशक्ति से काव्य के र्ूढ़ अथभ नहीं समझ में आते तब वहााँ व्यांजना शब्द शक्ति की सहायता से काव्य के र्ूढ अथों को समझने की कोक्तशश की जाती है। व्यांजना शब्द शक्ति काव्य के र्ूढ सौंदयभ का उद्घािन किती है। हमािे काव्य शास्त्रीय क्तवद्वान इसी तिह सौंदयभ को ध्वन्यथभ, प्रक्ततयमान अथभ, सूच्यथभ आक्षेपाथभ भी सांबोक्तधत किते हैं। व्यांजना शब्दशक्ति का काव्य में महत्वपूिभ स्थान है। ध्वक्तनवादी आिायों का मानना है क्तक साक्तहत्यशास्त्र की आधािक्तशिा ही व्यांजन शब्दशक्ति पि आधारित है। आिायभ मम्मि व्यांजना के िक्षिों की ििाभ किते हुए कहते हैं - सांकेत न होने के कािि जब अक्तभधा नामक शब्द-व्यापाि समथभ नहीं िहता औि प्रयोजन की प्रतीक्तत में हेतु अथाभत - मुख्य अथभ का योर्, रूक्तढ़ तथा प्रयोजन न क्तमिने के कािि िक्षिा भी अथभबोध किाने में समथभ नहीं होती तब व्यांजना के प्रयोर् के अक्ततरिि औि कोई शब्द व्यापाि नहीं िह जाता। munotes.in

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7 व्यांजना शब्दशक्ति का सबसे िक्तिभत उदाहिि सांस्कृत काव्यशास्त्र में - 'र्ांर्ाय घोषः' अथाभत 'र्ांर्ा में र्ााँव है' यह वाक्य है। र्ांर्ा एक नदी है औि नदी में र्ााँव का होना सांभव नहीं अतः अक्तभधा शब्दशक्ति से वाक्य का ठीक अथभ नहीं क्तनकिता ऐसे में क्तिि िक्षिा शब्दशक्ति का सहािा िेना आवश्यक प्रतीत होने िर्ता है। िक्षिा से प्रयोजन पिक अथभ क्तनकिाने की कोक्तशश किने पि एक यह अथभ क्तनकिता है क्तक शायद विा का अक्तभप्राय यह है क्तक र्ाांव र्ांर्ा नदी के ति पि है। क्तकांतु विा का प्रयोजन यह नहीं है। ऐसे में वाक्य की तीसिी शक्ति बिती है औि वह है व्यांजना | अक्तभद्या औि व्यांजना से अथभ की प्राक्ति नहीं हो पाने पि क्तिि व्यांजना शब्दशक्ति का हम प्रयोर् किते हैं। व्यांजना शब्दशक्ति से वाक्य का वास्तक्तवक अथभ क्तनकिता है औि वह यह है क्तक ‘र्ांर्ा में र्ााँव है’ अथाभत र्ााँव र्ांर्ा नदी की तिह पक्तवत्रता औि शीतिता से भिा हुआ है। इस प्रकाि वाक्य के पीछे क्तदये हुए अथभ अथाभत पक्तवत्रता औि शीतिता के भाव का प्रकाशन व्यांजना शब्दशक्ति द्वािा ही सांभव होता है। व्यांजना के स्वरूप पि आिायभ प्रताप सक्तह क्तिप्पिी किते हुए क्तििते है – व्यांग्य जीव है कक्तवत में, शब्द अथभ र्क्तत अांर्। सोई उिम काव्य है वििै व्यांग्य प्रसांर् ।। व्यंजना के भेद : व्यांजना शब्दशक्ति के दो मूि भेद हैं - १) शाब्दी व्यांजना २) आथी व्यांजना शाब्दी व्यांजना के भी दो उप भेद क्तमिते हैं - क) अक्तभधामूिा शाब्दी व्यांजना ि) िक्षिामूिा शाब्दी व्यांजना १) शाब्दी व्यंजना : शाब्दी व्यांजना में शब्दों को प्रधानता व महत्व क्तदया जाता है। शब्दों के परिवतभन के साथ अथभ भी बदि जाते हैं। काव्य में प्रयुि अनेकाथभक शब्दों का अथभ जब क्तनक्तित हो जाता है तब शाब्दी व्यांजना कायभ किती है। अनेकाथी शब्दों के क्तवशेष अथभ क्तनक्तित हो जाने से इन शब्दों के अन्य अथभ अवाच्य हो जाते हैं। अक्तभधा शब्दशक्ति उनके अथभ को िेकि मौन हो जाती है औि उनका वाच्याथभ नहीं क्तनकिता। ऐसे में अनेकाथी शब्दों से वाच्याथभ से अिर् अथभ का बोध होता है, इस अथभ का बोध किानेवािी शक्ति को अक्तभधामूिा शाब्दी व्यांजना कहते हैं। उदाहिि में क्तनम्नक्तिक्तित वाक्य को देिा जा सकता है – ‘शििि युत हरि िसे’ अथाभत शांि िि से युि हरि शोभायमान होते हैं। हरि शब्द के अनेक अथभ होते है क्तकांतु यहााँ अनेक अथभ मौन हो जाते है औि शांि िि के कािि हरि शब्द का अथभ भर्वान क्तवष्िु ही क्तनकिता है। २) आर्ी व्यंजना : आथी व्यांजना में अथभ महत्वपूिभ भूक्तमका में होता है। इसमें अथभ की सहायता से व्यांग्याथभ का बोध होता है। जहााँ पि व्यांग्याथभ का बोध क्तकसी शब्द पि आधारित न होकि उसने अथभ के आधाि पि होता है वहााँ आथी व्यांजना होती है। आथी व्यांजना केवि केवि अथभ की क्तवक्तशष्टता के कािि ही अपने अथभ का बोध किा पाती है। आथी व्यांजना के उदाहिि के रूप में क्तनम्नक्तिक्तित दोहे को देिा जा सकता है - घि न कन्त हेमांत रितु, िाक्तत जार्ती जाक्तत: । दनक्तक द्यौस मौस सोका िर्ी, भिी नहीं यह बात ॥ munotes.in

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8 इस दोहे का वाच्याथभ यह है क्तक एक सिी दूसिी सिी को समझाते हुए कहती है क्तक हे सिी तुम्हािा पक्तत आजकि घि पि नहीं है ऋतु भी हेमांत है क्तजसमें प्राय शिीि स्वस्थ िहता है। ऐसे में तुम िात भि जार्ती िहती हो औि क्तदन में क्तछपकि सोती हो यह अच्छी बात नहीं है। क्तकांतु इस वाच्याथभ से दोहे के वास्तक्तवक अथभ का ज्ञान नहीं होता। वास्तक्तवक अथभ उसमें क्तछपे व्यांग्याथभ से स्पष्ट होता है औि वह व्यांर् अथभ यह है क्तक सिी िाक्तत्र भि इसक्तिए जर्ती है क्योंक्तक पक्तत की अनुपक्तस्थक्तत में सिी िाक्तत्रभि अपने प्रेमी के साथ िमि किती हुई जर्ती है औि क्तदन में क्तछपकि सोती है। सिी की ये आदत अच्छी बात नहीं है अथाभत ये अनैक्ततक क्तनांदनीय व त्याज्य कमभ है। क्तजसे उसे तुिांत बांद कि देना िाक्तहए। इस प्रकाि यहाां व्यांग्याथभ का बोध शब्द के आधाि पि नहीं विन् अथभ के आधाि पि होता है इसक्तिए यहााँ आथी व्यांजना है। १.५ सािांश : प्रस्तुत इकाई में छात्रो ने शब्द शक्ति का क्तवस्ताि से अध्ययन क्तकया है | शब्द शक्ति के अथभ का बोध होना तथा ज्ञान होता है, उसे देिा हैं | क्तवशेषतः यहााँ पि शब्द शक्ति के अक्तभधा, िक्षिा औि व्यांजना का क्तवस्ताि से अध्ययन क्तकया र्या हैं | ये तीनों शब्द शक्तियाां अिर् - अिर् तिह के शब्दों से जुिी होती है औि अिर् - अिर् तिह के अथों का हमें बोध किाती है | १.६ बोध प्रश्न : १. शब्दशक्ति के प्रकािों को उदाहििों सक्तहत क्तवस्ताि से स्पष्ट कीक्तजए | २. शब्द्शक्ति में िक्षिा को क्तवस्ताि से क्तिक्तिए | ३. शब्दशक्ति में व्यांजना का सामान्य परििय देकि भेदों को िेिाांक्तकत कीक्तजए | ४. शब्दशक्ति का अथभ, परिभाषा औि उसके स्वरुप पि प्रकाश िाक्तिए | १.७ क्तिप्पक्तणयााँ : १. शब्दशक्ति का स्वरुप २. शब्दशक्ति में अक्तभधा ३. व्यांजना के भेद १.८ संदभथ ग्रंर् : १. काव्यदपभि - िामदाक्तहन क्तमश्र २. भाितीय काव्यशास्त्र की पिांपिा - िॉ नर्ेन्द्र ३. वाङ् मय क्तवमशभ - क्तवश्वनाथ प्रसाद क्तमश्र ४. काव्यशास्त्र - िॉ. भर्ीिथ क्तमश्र ५. भाितीय काव्यशास्त्र - िॉ योर्ेन्द्र प्रताप क्तसांह  munotes.in

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9 २रस इकाई कì łपरेखा २.० इकाई का उĥेÔय २.१ ÿÖतावना २.२ रस का अथª २.३ रस कì पåरभाषा २.४ रस का Öवłप २.५ रस के अवयव या अंग २.६ सारांश २.७ बोध ÿij २.८ िटÈपिणयाँ २.९ संदभª úंथ २.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत इकाई के अÆतगªत िवīाथê िनÌनिलिखत िबÆदुओं का अÅययन कर¤गे - ➢ िवīाथê रस के अथª, पåरभाषा व Öवłप से पåरिचत हŌगे। ➢ िवīाथê रस के अवयवŌ से पåरिचत हŌगे। ➢ िवīाथê रस के सामाÆय भेदŌ से पåरिचत हŌगे। २.१ ÿÖतावना : ÿÖतुत इकाई के Ĭारा िवīाथêयŌ म¤ रस के अथª, Öवłप, उसके अवयवŌ व भेदŌ को लेकर बोध का िनमाªण होगा। िवद् याथê रस के िविवध अवयवŌ या अंगŌ को समझकर उनकì वै²ािनकता व रस िनÕपि° कì ÿिøया से पåरिचत हो सकेगा। िवīाथê रस के िविवध भेदŌ से पåरिचत होकर उनम¤ भेद कर सकेगा तथा रस के िविवध łपŌ का ÿयोग Öवतंý łप से कर सकेगा। २.२ रस का अथª : ‘रस’ ‘भारतीय काÓयशाľ’ कì एक महÂवपूणª अवधारणा है। यīिप इसकì परंपरा बहòत पहले से िमलती है िकंतु इसपर ÓयविÖथत िचंतन आचायª भरत के Ĭारा ‘नाट् यशाľ’ म¤ िकया गया। भरतमुिन ने रस िनÕपित के िसĦांत को ÿितपािदत कर रस कì वै²ािनकता को ÖपĶ िकया और एक महÂवपूणª काÓय-संÿदाय के łप म¤ उसे Öथािपत िकया। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
10 ‘रस’ शÊद रस धातु और 'अ' ‘अच्’ अथवा ‘घञ्’ ÿÂयय से बना है। काÓयशाľीय ŀिĶ से इसकì Óया´या िनÌनिलिखत łप से कì जा सकती है - ‘रÖयते आÖवाīते रसः’ अथाªत वह जो आÖवािदत िकया जाये रस है। इसे एक और तरह से Óया´याियत िकया जाता है, ‘रस इित रस:’ अथाªत वह जो बहता है रस है। इस ÿकार िजसका आÖवादन िलया जाये और िजसम¤ þवÂव है वह रस है। नाटक अथवा काÓय म¤ रस का ÿयोग ला±िणक अथª म¤ िकया जाता है। िजसे लोक म¤ आनंद कहा जाता है उसे ही नाटक या काÓय म¤ रस कì सं²ा दी जाती है। २.३ रस कì पåरभाषा : अलग-अलग िवĬानŌ ने रस को अलग-अलग ŀिĶकोणŌ से पåरभािषत िकया है - आचायª भरत रस को पåरभािषत करते हòए कहते है - "आÖवादयÂवात रस:" अथाªत आÖवादन ही रस है। आचायª िवĵनाथ ने रस को पåरभािषत करते हòए “रÖयते आÖवाīते इित रस:” अथाªत रस आÖवाद Łप है। आचायª मÌमट रस को पåरभािषत करते हòए कहते ह§, “Óयĉः स तै िवभावīैः Öथायी भावो रसः Öमृतः।” अथाªत िवभािद के Ĭारा अथवा उनके साथ Óयंजना Ĭारा Óयĉ िकया गया Öथायी भाव रस कहलाता है। २.४ रस का Öवłप : रस के Öवłप को लेकर अनेक काÓयशाľी िवĬानŌ ने पयाªĮ िवचार िकया है। भĘनायक, अिभनव गुĮ, मÌमट, िवĵनाथ जैसे समथª व लÊध ÿितिķत िवĬानŌ ने बड़ी गंभीरता से रस के Öवłप पर िवचार िकया। इन सभी म¤ आचायª िवĵनाथ के Ĭारा रस के Öवłप पर िकया गया िवचार ºयादा संतुिलत व समावेशी है - 'सßवŌþेकादखÁडÖव ÿकाशानÆदिचÆमयः । वेīाÆतर Öपशª शूÆयो āĺÖवादसहोदरः ॥ लोको °र चमÂकार ÿाणः कैिIJÂÿमातृिभः । Öवाकारवद िभÆनÂवेनाय भा Öवायªते रसः ॥ - सािहÂय दपªण आचायª िवĵनाथ के Ĭारा रचे गए इस Ĵोक के अनुसार रस के Öवłप म¤ िनÌनिलिखत तÂवŌ का समावेश होता है - १ . अखंड २. ÖवÿकाशानÆद ३. िचÆमय munotes.in

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रस
11 ४. वेīांतर ५. ÖपशªशूÆय ६. āĺÖवाद सहोदर ७. लोको°र चमÂकार इस ÿकार रस के Öवłप म¤ उपयुªĉ सभी तÂवŌ का समावेश होता है। २.५ रस के अवयव या अंग : आचायª भरतमुिन ने अपने रससुý ‘तý िवभावानुभावÓयिभचाåरसंयोगाþसिनÕपितः’ म¤ रस के तीन अंगŌ का उÐलेख िकया है - क) िवभाव ख) अनुभाव ग) Óयिभचारी भाव अथवा संचारी भाव आचायª भरतमुिन उपयुªĉ Ĵोक म¤ कहते है - िवभाव अनुभाव और Óयिभचारी या संचारी भाव के संयोग से Öथायी भाव रस दशा म¤ पåरवितªत हो जाता है। इस ÿकार Öथायी भाव के रसदशा या रस म¤ पåरवितªत हो जाने के तÃय को Öवीकार कर लेने पर रस के उपयुªĉ तीन अवयव या अंग माने गए ह§। (क) िवभाव: िवभाव का अथª है - कारण, जो Óयिĉ अथवा पदाथª Öथायी भावŌ के जागृत होने का कारण बनते ह§ वे िवभाव कहलाते ह§। आचायª रामचÆþ शु³ल के अनुसार "िवभाव से अिभÿाय उन वÖतुओं या िवषयŌ के वणªन से है िजनके ÿित िकसी ÿकार का भाव या संवेदना जागृत होती है।" इस ÿकार जो भी Óयिĉ, पदाथª या िÖथितयाँ हमारी संवेदना या हमारे Öथायी भावŌ को जागृत करती ह§ वे िवभाव कì ®ेणी म¤ आती ह§। िवभाव के दो भेद माने गये ह§ - १) आलÌबन २) उĥीपन १. आलंÌबन िवभाव : आलंबन िवभाव वे होते ह§ िजनका आलÌबन (सहारा) लेकर रित, øोध हास उÂसाह, शोक, िवÖमय इÂयािद Öथािपत भाव जागृत होते है। ÿाय: शृंगार रस के संदभª म¤ नायक - नाियका आलÌबन िवभाव होते ह§। आलÌबन िवभाव के भी दो ÿकार होते ह§ - क - आ®यालÌबन ख - िवषयालÌबन क - आ®यालÌबन : िजस Óयिĉ के मन म¤ भाव जगते है उसे आ®यालÌबन कहते ह§। ख - िवषयालंबन : िजसके कारण भाव जग¤ वह िवषयालंबन कहलाता है। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
12 जैसे राम को देखकर सीता के मन म¤ रित नामक भाव के जगने पर सीता आ®यालंबन हŌगी और राम िवषयालंबन हŌगे। २. उĥीपन िवभाव : िÖथितयाँ या वÖतुएँ देख अथवा सुनकर जगा हòआ Öथायी भाव और तीĄ होने लगता है उÆह¤ उĥीपन िवभाव कहा जाता है। ÿÂयेक Öथायी भाव के उĥीपन हेतु अलग - अलग िÖथितयाँ या वÖतुएँ िजÌमेदार होती ह§ जैसे रित नामक Öथायी भाव को उĥीĮ बनाने का कायª कोिकल कुजन, चंþोदय, उīान, सुरÌय व सुगंिधत वातावरण इ. करते ह§। ख) अनुभाव:- ‘अनुभावयÆतीित अनुभावः’ अथाªत िजनको होते हòए या घटते हòए महसूस कर सक¤ अथवा अनुभव कर सक¤ वे अनुभाव कहलाते ह§। अनुभाव शÊद दो शÊदŌ से िमलकर बना है – ‘अनु + भाव।’ अनु का अथª है पीछे या बाद म¤, वे भाव जो Öथायी भाव के जगने के बाद जगते है, आनुभाव कहलाते ह§। सं±ेप म¤ कहा जा सकता है िक Öथायी भावŌ के जागृत होने के बाद जो शारीåरक एवं मानिसक िवकार या बदलाव देखे जाते ह§ वे अनुभाव कहलाते ह§। इनकì सं´या पांच मानी गई है - १ ) कािýक २) मानिसक ३) आहायª ४) वािचक ५) सािÂवक १ ) काियक:- शारीåरक िÖथित म¤ आने वाले बदलाव, शारीåरक चेĶाएँ, भौहŌ का तनना, ओठŌ का फड़फड़ाना, भुजाओं को फड़फड़ाना इÂयािद काियक अनुभाव के अÆतगªत ह§। २) मानिसक :- मन म¤ उठनेवाली भावना के अनुłप, मन म¤ उठने वाली हषª-िवषाद, तनाव इÂयािद भाव मानिसक अनुभाव कहलाते ह§ । ३) आहायª:- मन म¤ उठने या जगने वाले भाव के अनुłप वेशभूषा, अलंकार इÂयािद को धारण करना आहायª कहलाता है । ४) वािचक :- मन म¤ जगे हòए भावŌ के अनुसार वाणी कì कठोरता अथवा मृदुता वािचक अनुभाव के अÆतगªत आता है । ५) सािÂवक:- ऐसे अनुभाव िजनका घटना या होना बहòत चुपचाप तरीके से होता है। कई बार िजनका घटना या होना शीŅता से महसूस भी नहé हो पाता ऐसे अनुभाव सािÂवक अनुभाव कहलाते ह§। इनकì सं´या आठ मानी गई है जैसे - Öतंभ, रोमांच, Öवेद, Öवरभंग, वेपयु, अ®ु, वैवÁयª, ÿलय तथा जृÌभा - जृÌभा यह नौवाँ ÿकार है इसका उÐलेख भानु किव ने िकया है। यīिप अÆय आचायª केवल उपयुªĉ आठ दशाओं को ही सािÂवक अनुभाव के अÆतगªत Öवीकार करते ह§ । munotes.in

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रस
13 ग) Óयिभचारी अथवा संचारी भाव :- वे भाव जो Öथायी भाव कì पुिĶ के िलए ही तÂपर होते ह§ तथा उसी के अÆतगªत उठते-िगरते रहते ह§ वे Óयिभचारी भाव कहलाते ह§। जैसे समुþ कì लहर¤ समुþ म¤ उठ - िगरकर उसके ÿवाह को और भी पुĶ करती ह§ ठीक उसी तरह संचारी भाव अथवा Óयिभचारी भाव Öथायी भाव म¤ ही उठ - िगरकर उसे और भी पुĶ करते ह§। ये संचरणशील होते ह§ इसिलए इÆह¤ संचारी भाव कहा जाता है तथा ये िकसी एक िवशेष के साथ न बंधकर सभी Öथायी भावŌ मे आते-जाते रहते ह§ इसिलए इÆह¤ Óयिभचारी भाव कहा जाता है । Öथायी भावŌ कì सं´या ३३ मानी जाती है। अÅययन कì सुिवधा के िलए इनके तीन वणª िकए गए ह§ - १) सुखाÂमक २) दुखाÂमक ३) उभयाÂमक १ ) सुखाÂमक :- गवª, उÂसुकता, हषª, आशा, मद, संतोष, मृदुलता, चपलता, धैयª इÂयािद । २) दुखाÂमक :- शंका, ýास, िवषाद, लºजा, असूया, िचंता, िनराशा इÂयािद । ३) उभयाÂमक:- आवेग, चंचलता, दैÆय, जड़ता, ÖवÈन, Öमृित इÂयािद । इस ÿकार िवभावŌ, अनुभावŌ व संचारी भावŌ से पुĶ होकर Öथायी-भाव रसदशा म¤ बदल जाते ह§। और सŃदय या सामािजक उनका आÖवाद लेने लगता है। ड) Öथायी भाव :- मनुÕय के मन म¤ जÆम से लेकर मृÂयु पय«त बने रहने वाले भावŌ को Öथायी भाव कहा जाता है। उिचत िवभावŌ, अनुभावŌ व Óयिभचारी भावŌ से पुĶ होकर यही Öथायी भाव रस दशा म¤ बदल जाते ह§। इनकì कुल सं´या नौ मानी जाती है। ये नौ Öथायी भाव एवं उनपर आधाåरत रसŌ का िववरण िनÌन तािलका के माÅयम से ÖपĶ िकया गया है - रस Öथायी भाव १ ) शृंगार रित २) हाÖय हास ३) रौþ øोध ४) कŁण शोक ५) बीभÂस जुगुÈसा ६) भयानक भय ७) वीर उÂसाह ८) अĩुत िवÖमय ९) शांत िनव¥द munotes.in

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14 उपयुªĉ नौ रसŌ के अलावा कुछ आचायª भिĉ एवं वाÂसÐय को भी Öवतंý रसŌ कì कोिट म¤ रखते ह§ िकंतु उनका भी Öथायी भाव रित ही ह§। इस ÿकार दसव¤ व µयारहव¤ रस के łप म¤ वाÂसÐय व भिĉ कì कÐपना कì गयी है। बाद के आचायŎ ने उÆह¤ Öवतंý रस के łप म¤ माÆयता ÿदान कì ह§। इस ÿकार उपयुªĉ तािलका म¤ ये दो रस भी िनÌनिलिखत łप म¤ जोड़े जा सकते ह§ - १ ०) वाÂसÐय सÆतान िवषयक रित १ १ ) भिĉ भगवद् िवषयक रित २.६ सारांश ÿÖतुत इकाई म¤ रस का अथª, पåरभाषा और ÖवŁप का छाýो ने अÅययन िकया है | रस भारतीय काÓयशाľ कì एक महÂवपूणª अवधारणा रही है | इसीिलए रस कì परÌपरा और उसका िचंतन भरत कृत ‘नाट्यशाľ’ म¤ हम¤ देखने को िमलता ह§ | इसी के साथ रस के िविभÆन अवयवŌ का भी छाýŌ ने अÅययन िकया ह§ | २.७ बोध ÿij १. रस का अथª, पåरभाषा और ÖवŁप को िवÖतार से समझाइए | २. भरत मुिन के रससुý के अनुसार रस के अवयवŌ को ÖपĶ कìिजए | २.८ िटÈपिणयाँ १. रस का Öवłप २. िवभाव ३. अनुभाव २.९ संदभª úंथ १. काÓयदपªण - रामदािहन िम® २. भारतीय काÓयशाľ कì परंपरा - डॉ नगेÆþ ३. वाङ् मय िवमशª - िवĵनाथ ÿसाद िम® ४. काÓयशाľ - डॉ. भगीरथ िम® ५. भारतीय काÓयशाľ - डॉ योगेÆþ ÿताप िसंह  munotes.in

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15 ३ रस के भेद इकाई कì łपरेखा ३.० इकाई का उĥेÔय ३.१ ÿÖतावना ३.२ रस के भेद : सामाÆय पåरचय ३.३ सारांश ३.४ बोध ÿij ३.५ िटÈपिणयाँ ३.६ संदभª úंथ ३.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत इकाई म¤ िनÌनिलिखत िबंदुओ को छाý समझ सक¤गे - ➢ इस इकाई म¤ रस के भेदŌ को लेकर पूवª कì इकाई म¤ चचाª कì गई है। ➢ इस इकाई म¤ उनके भेदŌ को उदाहरणŌ के Ĭारा ÖपĶ िकया गया है। ➢ इस इकाई के अÅययन के उपरांत िवīाथê ÿÂयेक रस के Öथायी भाव, िवभाव, अनुभाव तथा Óयिभचारी भावŌ से पåरिचत हŌगे और िदए गये उदाहरण के आधार पर उपयुªĉ तÂवŌ का रस के संदभª म¤ िवĴेषण कर सक¤गे। ३.१ ÿÖतावना : ÿÖतुत इकाई के Ĭारा िवīाथê रस के िविवध भेदŌ व उसके उदाहरणŌ को िवÖतार से समझ सक¤गे तथा इस के िविवध अवयवŌ को पहचानकर उनका Öवतंý łप से िवĴेषण कर सक¤गे। ३.२ रस के भेद : सामाÆय पåरचय ३.२.१ ®ृंगार रस : ®ृंगार को ÿथम रस माना जाता है। सबसे महÂवपूणª रस होने के कारण इसे रसराज भी कहा जाता है। इसका Öथायी भाव रित है। सĆदय के मन म¤ िवīमान रित नामक Öथायी भाव अनुकूल िवभावŌ, अनुभावŌ व Óयिभचारी अथवा संचारी भावŌ से संपÆन होकर ®ृंगाररस म¤ पåरवितªत हो जाता है। ®ृंगार रस के दो łप होते है - munotes.in

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16 क) संयोग ®ृंगार ख) िवयोग अथवा िवÿलÌब ®ृंगार (क) संयोग ®ृंगार : नायक और नाियका के परÖपर िमलन, ÿेमालाप एवं ÿेम कì सुखद िÖथितयŌ एवं अनुभूितयŌ का वणªन संयोग ®ृंगार के अÆतगªत होता है। इसे िनÌनिलिखत उदाहरण Ĭारा समझा जा सकता है - कहत नटत रीझत खझत िमलत िखलत लिजयात | रै भौन म¤ करत ह§, नैनम ही सŌ बात || महाकिव िबहारी के Ĭारा रिचत उपयुªĉ दोहे म¤ नाियका व नायक के िमलन तथा ÿेमालाप का िचýण िकया गया है। इसिलए यहाँ संयोग ®ृंगार है। उपयुªĉ उदाहरण म¤ पाये जाने वाले िविभÆन भावŌ का िवĴेषण िनÌनिलिखत łप से िकया जा सकता है - Öथायी भाव - रित िवभाव:- नायक व नाियका का परÖपर एक दूसरे को देखना व आकिषªत होकर िमलन हेतु आकिषªत होना । आ®यालंबन : नायक का मन | िवषयालंबन : नाियका का सुंदर łप व यौवन | उĥीपन भाव :- आस-पास का उÂसव जिनत उÂसाही वातावरण | अनुभाव : नाियका व नायक Ĭारा िकये जानेवाले आंखŌ के इशारे, नाियका का ÿारंिभक नकार के łप म¤ भावभंिगमा व हाव-भाव का ÿदशªन, नायक का रीझन, नाियका का खीझना इÂयािद । Óयिभचारी भाव :- उÂसुकता, उÂसाह, लºजा, िचंता इÂयािद | (ख) िवयोग ®ृंगार : िवयोग या िवÿलंब ®ृंगार के अÆतगªत नायक-नाियका के एक दूसरे से िबछड़ने या िवयोग का वणªन िकया जाता है। इस िवयोग म¤ भी ÿेम का भाव बना रहता है इसिलए इसे शृंगार के अÆतगªत रखा जाता है। यह िवयोग ÿाय: तीन िÖथितयŌ म¤ होता है, जो िनÌनिलिखत है - १ ) पूवªराग २) मान ३) ÿवास िवयोग ®ृंगार कì िÖथित को िनÌनिलिखत उदाहरण Ĭारा समझा जा सकता - उधो, मन न भए दस बीस। एक हòतो सो गयौ Öयाम संग, को अवराधै ईस ।। इÆþी िसिथल भई सबहé माधौ िबनु जथा देह िबनु सीस। munotes.in

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रस के भेद
17 आसा लािग रहित तन Öवासा, जीविहं कोित बरीस ।। तुम तो सखा Öयाम सुÆदर के, सबल जोग के ईस । सूर हमारै नंदनंदन िबनु, और नहé जगदीस || महाकिव सूरदास Ĭारा रिचत उपयुªĉ पद म¤ गोिपयŌ के कृÕण से िवयोग का वणªन है। कृÕण कì अनुपिÖथित म¤ भी गोिपयŌ का मन कृÕण म¤ ही लगा हòआ है। उधो उÆह¤ कृÕण के ÿेम से िवरत कर योग-मागª से िनगुªण āहम कì ÿािĮ उपदेश देने आते ह§ िकंतु गोिपयाँ उÆह¤ अपने तकŎ व समपªण भाव से िनŁ°र कर देती ह§। उपयुªĉ उदाहरण के िविभÆन भावŌ का िवĴेषण िनÌनिलिखत łप से िकया जा सकता है - Öथायी भाव - रित िवभाव:- उĦव का आना और गोिपयŌ को िनगुªण āहम कì उपासना का उपदेस देना तथा कृÕण ÿेम को लौिकक मानकर उसे भूल जाने का आúह करना। आ®यालंबन:- गोिपयŌ का ÿेमानुरĉ मन | िवषयालंबन :- उĦव कì उपिÖथित एवं उपदेश | उĥीपन िवभाव:- उĦव के Ĭारा िनगुªण āहम कì ÿशंसा । अनुभाव :- गोिपयŌ कì मुखमुþा, वाणी व हाव भाव म¤ आनेवाले पåरवतªन | Óयिभचारी भाव:- गोिपयŌ म¤ कृÕण से न िमल पाने के कारण उÂपÆन होनेवाले दैÆय व िनराशा के भाव इÂयािद। ३.२.२ हाÖय रस : िकसी Óयिĉ कì उटपटांग वेश-भूषा, िविचý चेĶाओं व भाषा-ÿयोग के कारण उÂपÆन होनेवाले रस को हाÖय रस कहाँ जाता है। इसका Öथायी भाव हास है। उदाहरण - तंबूरा ले मंच पर बैठे ÿेम ÿताप । साथ िमले पÆþह िमनट घंटे भर आलाप ।। घंटा भर आलाप, राग म¤ मारा गाता। धीरे-धीरे िखसक चुके थे सारे ®ोता ।। Öथायी भाव :- हास िवभाव :- गायक ÿेमÿताप का घंटे भर आलाप भरना और ®ोताओं का गायब हो जाना। आ®यालंबन :- वे ®ोता जो किवता सुन रहे ह§। िवषयालंबन :- गायक का आवÔयकता से अिधक आलाप आना। munotes.in

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18 उĥीपन िवभाव:- भरी महिफल से एक-एक कर ®ोताओं का गायब होना। अनुभाव :- ®ोताओं का हँसना, ठहाके लगाना इÂयािद । Óयिभचारी भाव:- ®ोताओं म¤ उठनेवाले उÂसुकता, चंचलता इÂयािद के भाव। पुŁष सुगंध करिह एिह आसा मनु िहरकाइ लेइ हमपास | ३.२.३ रौþ रस : िकसी Óयिĉ Ĭारा ÿयुĉ अपशÊद, िकए गये अपमान, गुŁजनŌ या ®ेķ जनŌ के ÿित िकए गए िमÃया भाषण के कारण उÂपÆन हòए øोध के कारण उÂपÆन रस रौþ रस कहलाता है। इसका Öथायी भाव øोध है। उदाहरण - सुनत लखन के वचन कठोरा। परसु सुधाåर थरेड कर घोरा। अब जिन दोष मोिह लोगू । कटूवादी बालक वध जोगू ।। ÿÖतुत उदाहरण धनुष भंग ÿकरण से जुड़ा हòआ है। िशव धनुष के तोड़े जाने के बाद परशुराम øोध से भरे जनक दरबार म¤ पहòँचते ह§ और øोध से गजªन-तजªन करने लगते ह§। ऐसे म¤ परसुराम का लàमण िवरोध करते ह§, कटु शÊद बोलते ह§। इससे परशुराम का øोध और बढ़ जाता है। और वे लàमण के वध के िलए उīत हो उठते ह§। Öथायी भाव :- øोध | िवभाव:- िशव धनुष का खंडन | आ®यालंबन:- परशुराम के Ńदय म¤ øोध के भाव का उठना । िवषयालंबन :- टूटा हòआ िशवधनुष व लàमण के कटुवचन् | उĥीपन :- लàमण का कटु शÊद ÿयोग, गजªन तजªन इÂयािद | अनुभाव:- परशुराम कì वाणी का तेज होना, उúता के भाव का ÿदशªन करना इÂयािद। Óयिभचारी भाव : आवेग, िच° कì चंचलता, उúता इÂयािद | munotes.in

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रस के भेद
19 ३.२.४ कŁण रस : िकसी अÂयंत िÿय Óयिĉ, वÖतु इÂयािद के नĶ हो जाने से मन म¤ उÂपÆन होनेवाला दुखद भाव से कłण रस कì ÿतीित होती है। इसका Öथायी भाव शोक है। ऊदाहरण - अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हòए कल ही हÐदी के हाथ खुले भी न थे लाज के बोल िखले थे चुंबन शूÆय कपोल हाय Łक गया यहé संसार बना िसंदूर अनल अंगार वातहत लितका वह सुकुमार पड़ी है िछÆनाधार ! उपयुªĉ पंिĉयŌ म¤ युवा पित कì अकारण मृÂयु से शोक म¤ डूबी नाियका कì िÖथित का वणªन िकया गया है। Öथायी भाव : शोक | आलंबन िवभाव: युवा पित कì अकाल मृÂयु | आ®यालंबन :- पÂनी का मन | िवषयालंबन :- मृत पित कì Öमृित | उĥीपन िवभाव:- मुकुट के बाँधे जाने व हाथŌ म¤ हÐदी के लगाए जाने कì Öमृित । अनुभाव:- वायु के वेग से धरा पर िगरी लाितका कì तरह नाियका का भूिम पर पड़ा होना । वľŌ का िबखरा व धूसåरत होना इÂयािद । Óयिभचारी भाव :- िनराशा, दैÆय, जड़ता इÂयािद। ३.२.५ बीभÂस रस : जीवन का एक प± घृणा भी ह§ । तमाम घृिणत वÖतुओं से हम¤ घृणा होती है। गंदी, भĥी, अमांगिलक, दुग«धपूणª, अĴील वÖतुओं अथवा ŀÔय को देखकर हम¤ घृणा का बोध होता है। इन वÖतुओं के िचýण अथवा वणªन से बीभÂस रस कì उÂपि° होती है। बीभÂस रस का Öथायी भाव जुगुÈसा या घृणा है। munotes.in

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सािहÂय समी±ा
20 उदा - िसर पर बैठ्यो काग, आँख दोड खात िनकात् । खéचत जीभिहं Öयार अितिह आनंद डर धारत । गीĦ जाँिब को खोिद - खोिद के मांस उपारत । Öवान आंगुिन कािट - कािह के खात िवदारत । उपयुªĉ उदाहरण Ôमशान का है। Ôमशान म¤ पड़े शव को िविभÆन ÿाणी ±त-िव±त कर रहे ह§। उपयुªĉ उदाहरण म¤ Öथायी िवभाव, संचारी भाव िनÌनवत ह§ - Öथायी भाव :- जुगुÈसा या घृणा | आलंबन िवभाव :- शव, Öमशान का वातावरण इÂयािद | उĥीपन िवभाव :- कौए, गीध, Öयार व कुते के Ĭारा शव को ±त-िव±त करना, जांघŌ से मांस को काटना, उंगिलयŌ को काटना इÂयािद । अनुभाव :- चेहरे के भावŌ का बदलना, पलायन कì बात सोचना इÂयािद । संचारी भाव :- मोह, µलािन, िचंता इÂयािद । ३.२.६ अĩुत रस : िवÖमय या आIJयª से भर देनेवाले ŀÔयŌ, ÿसंगŌ के िचýण अथवा वणªन से अĩुत रस कì उÂपि° होती है। अĩुत रस का Öथायी भाव िवÖमय या आIJयª है। उदाहरण - अिखल भुवन चर-अचर सब हåर मुख म¤ लिख मातु | चिकत भई गद् गद् वचन िवकिसत ŀग पुलकातु | उपयुªĉ उदाहरण म¤ कृÕण के मुख म¤ अिखल ā ĺांड के दशªन का वणªन िकया गया है। माता यशोदा बालक कृÕण के मुख म¤ संपूणª ā ĺांड के दशªन करके आIJयª म¤ पड़ जाती है। उपयुªĉ उदाहरण म¤ Öथायी भाव, िवभाव, अनुभाव व संचाåरयŌ के िनÌनिलिखत łप म¤ िमलते ह§- Öथायी भाव :- िवÖमय या आIJयª | आलंबन िवभाव: बालक कृÕण का मुख | उĥीपन िवभाव :- बालक कृÕण के मुख म¤ अिखल ā ĺांड का िदखाई पड़ना । अनुभाव :- यशोदा के मुख के हाव-भावŌ का बदलना, आIJयª से आखŌ का चौड़ा हो जाना, गद् गद् भाव से बोलना इÂयािद। संचारी भाव :- भय, दीनता, उÂसुकता इÂयािद | munotes.in

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रस के भेद
21 ३.२.७ वीर रस : वीर रस का Öथायी भाव उÂसाह है। वीरतापूणª कायª अथवा िकसी जłरतमंद लाचार को आगे बढ़कर मदत करने के वणªन अथवा िचýण करने म¤ वीर रस कì िनÕपि° होती है। वीर रस के चार भेद शाľ म¤ Öवीकृत ह§ - i. युĦवीर ii. दानवीर iii. दयावीर iv. धमªवीर उपयुªĉ म¤ से युĦवीर का उदाहरण िनÌनवत है - सौिमý से घननाद का रव अÐप भी न सहा गया। िनज शýु को देखे िबना, उनसे तिनक न रहा गया। रघुवीर से आदेश ले युĦाथª वे सजने लगे। रणवाī भी िनघōष कर धूम से बजने लगे। उपयुªĉ उदाहरण म¤ Öथायी भाव, िवभाव, अनुभाव व संचारी भाव िनÌनवत ह§ - Öथायी भाव :- उÂसाह | आलंबन िवभाव:- घननाद के Ĭारा िकया जाने वाला रव | उĥीपन िवभाव: युĦ के िनिम° बजने वाले रणवाī | अनुभाव : लàमण के मनोभावŌ का बदलना, युĦ के िलए Óयµत होना, रामजी से युĦ कì आ²ा लेना इÂयािद। संचारी :- आवेग, Óयµतता इÂयािद । ३.२.८ भयानक रस : भयानक रस का Öथायी भाव भय है। िहंसक ÿािणयŌ व उĉ Öवभाव व कायªवाले ÓयिĉयŌ के कायŎ के वणªन अथवा िचýण से भयानक रस कì उÂपि° होती है। इसके Öथायी भाव, िवभाव, अनुभाव व संचारी भाव िनÌनवत ह§ - उदाहरण - हाहाकार हòआ ĄÆदनमय किठन वû होते थे चूर, हòए िदगÆत बिधर भीषणख बार-बार होता था øूर िदµदाहŌ से घूम उठे या जलधर उठे ि±ितज तट के सघन गगन म¤ भीम ÿकंपन झंझा के चलते झटके। धँसती घरा धधकती ºवाला ºवालमुिखयŌ के िनĵास और संकुिचत øमश: उसके अवयव का होता था Ćास। munotes.in

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सािहÂय समी±ा
22 उपयुªĉ उदाहरण म¤ ÿलय कì भीषण िÖथितयŌ का वणªन िकया गया है। रथामी भाव :- भय | आलंबन िवभाव :- ÿलय का वणªन | उĥीपन िवभाव:- भयंकर गजªन, झंझावात का चलना, ºवालामुिखयŌ से आग का िनकलना, समुþ का भयंकर िहलोरे लेना इÂयािद | अनुभाव :- हाहाकर करना, øंदन करना, बिधर हो जाना इÂयािद | संचारी भाव :- ýास, िवकलता, मू¸छाª इÂयािद | ३.२.९ शांत रस : शांत रस का Öथायी भाव िनव¥द है। संसार कì असारता, ±णभंगुरता, तीथªदशªन, संत वचन या ÿवचन, Ôमशान याýा इÂयािद के वणªन अथवा िचýण से शांत रस कì उÂपि° होती है। इसके Öथायी भाव, िवभाव, आलंबन भाव तथा संचारी भाव िनÌनवत ह§ - उदाहरण - हाथी न साथी न घोरे न चेरे न गाँव न ठाँव, को नाव िबलै है। लात ने मात न िमý न पुý न िमý न अंग के संग रहे ह§ । ‘केशव’ काम को राम िबसारत और िनकाम ते काम न ऐहै। चेत रे चेत अजŏ िचत अÆतर अÆतक लोक अकेलोइ जैहै ॥ Öथायी भाव :- िनव¥द आलंबन िवभाव-:- संसार कì अिनÂयता व असारता उĥीपन िवभाव:-- हांथी, घोड़े, िमý, िव°, नौकर-चाकर जैसे संसारी वैभव का छूट जाना | अनुभाव :- यह कथन करना या कहना । संचारी भाव :- शंका, तकª, अिनÂयता का बोध इÂयािद | ३.२.१०. वाÂसÐय रस : संÖकृत काÓयशाľ के अिधकांश आचायŎने वाÂसÐय रस को Öवतंý रस के łप म¤ Öवीकार नहé िकया है। वे इसे ®ृंगार के अÆतगªत ही पåरगिणत कर लेते ह§। िकंतु परवतê आचायŎ म¤ भोज, भानुद°, िवĵनाथ और हåरIJÆþ इसे Öवतंý रस के łप म¤ Öवीकार करते ह§। इसका Öथायी भाव पुý Öनेह है। पुý के ÿित Öनेह व उसकì चेĶाओं के वणªन अथवा िचýण से वाÂसÐय रस कì उÂपि° होती है। वाÂसÐय रस का Öथायी भाव, िवभाव, अनुभाव व संचारी भाव िनÌनवत है - munotes.in

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रस के भेद
23 उदाहरण - जसोदा हåर पालने झुलावै हलरावै, दुलराइ मÐहावै जोइ सोई कह गाँवै ।। मेरे लाल कì आउ िनदåरया काहे न आिन सुवावै । तू काहे न बेिग सŌ आवै, तोकŌ काÆह बुलावै ॥ कबहòँ पलक हåर मूँिद लेत ह§ कबहòँ अधर फरकावै । सोवत जािन मौन है रिह रिह कåर कåर सैन बतावै । इिह अÆतर अकुलाय उठे हåर जसुमित मधुरे गावै । जो सुखं ‘सूर’ अमर मुिन दुलªभ सो नँद भािमिन यावै । Öथायी भाव :- पुý Öनेह | आलंबन िवभाव :- बालक कृÕण का सुंदर बाल łप | उĥीपन िवभाव: बालक कृÕण का पलकŌ को झपकाना, अधरŌ को फड़काना, अकुला उठना इÂयािद | अनुभाव :- यशोदा का िशशु को हलराना, मÐहाना गाना इÂयािद । संचारी भाव:- हषª, शंका इÂयािद । ३.२.११. भिĉ रस : भिĉ रस को Öवतंý रस के łप म¤ पुरÖकृत व Öथािपत कराने का ®ेय आचायª मधुसूदन सरÖवती और आचायª łपगोÖवामी को जाता है। इसका Öथायी भाव भगवÂÿेम है। ईĵर या उसके िकसी łप का वणªन या िचýण, ईĵर का गुणानुवाद, धािमªक úंथŌ के ®वण व पारायण से भिĉ रस कì उÂपि° होती है। इसके Öथायी भाव, िवभाव, अनुभाव व संचारी भाव िनÌनवत ह§ - उदाहरण - तू दयालु दीन हौ तू दािन हŏ िभखारी । हŏ ÿिसĦ पातकì तू पाप पुंज हारी ।। नाथ तू अनाथ को अनाथ कौन मोसो मŌ समान आरत निहं आरित हर तोषो āहम तू हŏ जीव हŏ, तू ठाकुर हŏ चेरो । नात मात गुŁ सखा तू सब िबिध िहत मेरो । मŌिह तŌिह नाते अनेक मािनये जो भावै । ÂयŌ ÂयŌ तुलसी कृपालु चरन सरन पावै ॥ munotes.in

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सािहÂय समी±ा
24 Öथायी भाव :- भगवÂÿेम | आलंबन िवभाव :- ईĵर (राम) आलÌबन िवभाव ह§ । उĥीपन िवभाव :- राम कì दानशीलता, कŁणा, भĉ ÿेम इÂयािद उĥीपन िवभाव ह§ । अनुभाव :- गुणकथन, िवनय ÿदशªन इÂयािद । संचारी भाव :- हषª, गवª, इÂयािद । ३.३ सारांश : सारांशतः इस इकाई म¤ छाýŌ ने रस के भेदŌ का अÅययन िकया ह§ | यहाँ पर िविवध रस के पदŌ को उदाहरण के Ĭारा समझाया ह§ | साथ िह Öथायी भाव, िवभाव, आ®यालंबन, िवषयालंबन, उĥीपन, अनुभाव, Óयिभचारी भाव आिद को उदाहरण के Ĭारा ÖपĶ िकया ह§ | ३.४ बोध ÿij १. रस के िविवध भेदŌ कì िवÖतार से चचाª कìिजए | २. रस म¤ Öथायी भाव का ³या Öथान ह§, उसे िवÖतार से ÖपĶ कìिजए | ३.५ िटÈपिणयाँ : १. संयोग शृंगार २. िवयोग शृंगार ३. हाÖय रस ४. बीभÂस रस ३.६ संदभª úंथ : १. काÓयदपªण - रामदािहन िम® २. भारतीय काÓयशाľ कì परंपरा - डॉ नगेÆþ ३. वाङ् मय िवमशª - िवĵनाथ ÿसाद िम® ४. काÓयशाľ - डॉ. भगीरथ िम® ५. भारतीय काÓयशाľ - डॉ योगेÆþ ÿताप िसंह  munotes.in

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25 ४ गī िवधा: गī के िविवध łप इकाई कì łपरेखा ४.० इकाई का उĥेÔय ४.१ ÿÖतावना ४.२ उपÆयास कì पåरभाषा ४.३ उपÆयास का Öवłप व ÿमुख तÂव ४.४ कहानी कì पåरभाषा ४.५ कहानी का Öवłप व ÿमुख तÂव ४.६ रेखािचý का तािÂवक िववेचन ४.७ संÖमरण का तािÂवक िववेचन ४.८ जीवनी का तािÂवक िववेचन ४.९ आÂमकथा का तािÂवक िववेचन ४.१० सारांश ४.११ लघु°रीय ÿij ४.१२ वैकिÐपक ÿij ४.१३ बोध ÿij ४.१४ संदभª úंथ ४.० इकाई का उĥेÔय : ÿÖतुत पाठ के अÅययन से िवīाथê िनÌनिलिखत मुĥŌ से पåरिचत हो सक¤गे । ➢ उपÆयास कì पåरभाषा, उपÆयास के Öवłप और तÃयŌ कì जानकारी िमलेगी । ➢ कहानी कì पåरभाषा, Öवłप और कहानी के तÂवŌ से पåरिचत हŌगे । ➢ रेखािचý तथा संÖमरण के तािÂवक िववेचन ÖपĶ हŌगे । ➢ जीवनी और आÂमकथा के तािÂवक िववेचन से पåरचय होगा । ४.१ ÿÖतावना : अÅययन कì ŀिĶ से िहंदी सािहÂय को मु´य łप से दो भागŌ म¤ िवभािजत िकया गया है एक गī और दूसरा पī। पī के अंतगªत भावनाएँ ÿधान होती ह§ जबिक गī का संबंध हमारे िवचारŌ से संबंिधत होता है। गī, लय, ताल, छंद मुĉ होती है और इसम¤ िवचारŌ का ÿवाह होता है गī दो शÊदŌ गद्+यत से िमलकर बना है। िजसका अथª होता है कहना या बोलना। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
26 िहंदी भाषा म¤ गī कì उÂपि° से ही सािहÂय का िवकास हòआ है। गī को िविभÆन िवधाओं के अंतगªत देखा जा सकता है। जैसे - उपÆयास, कहानी, नाटक, िनबंध, जीवनी, रेखािचý, संÖमरण आिद। इस इकाई के अंतगªत हम गī के इÆहé िवधाओं म¤ से मु´य łप से उपÆयास, कहानी, रेखािचý, संÖमरण, जीवनी तथा आÂमकथा का िवशेष अÅययन कर¤गे। ४.२ उपÆयास कì पåरभाषा : उपÆयास 'उप' और 'Æयास' से िमलकर बना है। 'उप' का अथª है समीप और 'Æयास' का अथª है रचना। अथाªत उपÆयास वह है िजसम¤ मानव जीवन के िकसी तÂव को उिĉउĉ के łप म¤ समिÆवत कर समीप रखा जाए। इसम¤ उपÆयासकार मानव जीवन से संबंिधत सुखद एवं दु:खद परंतु ममªÖपशê घटनाओं को िनिIJत तारतÌय के साथ िचिýत करता है। इस ÿसंग म¤ आचायª नंददुलारे वाजपेयी ने अपनी पुÖतक 'आधुिनक सािहÂय' म¤ िलखा है िक "उपÆयास म¤ आजकल गīाÂमक कृित का अथª िलया जाता है। पīबĦ उपÆयास नहé हòआ करते। उपÆयास के िवकास म¤ गī के िवकास का भी संबंध है। ÿायः वही पåरिÖथित गī के िवकास म¤ सहायक हòई है जो उपÆयास के िवकास म¤ योग दे रही थी। यूरोप म¤ गī उपÆयासŌ के पहले कुछ ÿेमा´यान किवताएँ ÿचिलत थé। उÆह¤ भी आधुिनक उपÆयास कì जननी कहा जा सकता है।" डॉ. हजारी ÿसाद िĬवेदी के अनुसार "उपÆयास आधुिनक युग कì देन है। नए गī के ÿचार के साथ-साथ उपÆयास का ÿचार हòआ है। आधुिनक उपÆयास केवल कथा माý नहé है और पुरानी कथाओं और आ´याियकाओं कì भाँित कथा सूý का बहाना लेकर उपमाओं, łपकŌ, दीपकŌ और ĴेषŌ कì छटा और सरस पदŌ म¤ गुिÌफत पदावली कì छटा िदखाने का कौशल भी नहé है। यह आधुिनक वैयिĉकतावादी ŀिĶकोण का पåरणाम है।" डॉ. Ôयामसुंदर दास उपÆयास को मानव के वाÖतिवक जीवन कì काÐपिनक कथा मानते ह§। मुंशी ÿेमचंद भी कहते ह§ - "म§ उपÆयास को मानव-जीवन का िचý समझता हóँ। मानव-चåरý पर ÿकाश डालना और उसके रहÖयŌ को खोलना ही उपÆयास का मु´य Öवर है।" डॉ. जे.बी. िøÖटले िलखते ह§, "उपÆयास जीवन का िवशाल दपªण है और इसका िवÖतार सािहÂय के िकसी भी łप से बड़ा है।" िविलयम हेनरी हेडसन के अनुसार "मानव और मानवीय भावŌ से तथा िøयाओं कì िवÖतृत िचýावली ही नर एवं नाåरयŌ कì सावªकािलक, सावªदेिशक Łिच ही उपÆयास के अिÖतÂव का कारण है। उपयुªĉ पåरभाषाओं पर िवचार करने से यह ÖपĶ हो जाता है िक उपÆयास कì एक सवªसामाÆय पåरभाषा िनधाªåरत करना किठन है। यīिप उपयुªĉ पåरभाषाओं म¤ एकłपता नहé है तथािप ÿायः सभी िवĬान उपÆयास को मानव-जीवन का काÐपिनक या कलाÂमक िचý मानते ह§। अतः सं±ेप म¤ कहा जा सकता है िक उपÆयास मानव जीवन कì कथा है। munotes.in

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गī िवधा: गī के िविवध łप
27 ४.३ उपÆयास के तÂव : उपÆयास सृजनाÂमक सािहÂय कì सवाªिधक गितशील िवधा है। आरंभ से आज तक इसके ढेर सारे łप हमारे सामने आए ह§। जीवन के सतत िवकासमान और पåरवतªन, शरीर को उसके वृहदमय आकार म¤ ÿÖतुत करने कì जो ±मता उपÆयास म¤ है वह सािहÂय िक िकसी अÆय िवधा म¤ नहé है। कहानी म¤ उसके िविभÆन कोनŌ, मोड़ो, तेवर के संि±Į संकेतŌ कì संभावना रहती है। संि±Įता के अभाव म¤ कहानी कला नĶ होने लगती है। उसके बहòआयामी तथा उलझन पूणª होने का सतत डर लगा रहता है। उपÆयास के तÂवŌ के बारे म¤ िविभÆन मत है। लेिकन भारतीय तथा पाIJाÂय आचायŎ Ĭारा िनÌन तÂव सवªमाÆय है। i. कथावÖतु : कथावÖतु उपÆयास का मूल आधार है। यह उपÆयास कì िभि° है। िजसम¤ कथाकार अपने मन के मुतािबक िचý अंिकत कर सकता है। रचना कì वैिशĶता उसकì सामúी पर आधाåरत करती है। संगमरवर कì मूितª और सामाÆय पÂथर कì मूितª म¤ िनIJय ही फकª होता है। कथानक का चयन कहé से भी हो सकता है। जीवन से भी, ऐितहािसक और पौरािणक ÿदेश से भी। लेिकन सभी िवषयŌ म¤ काÐपिनकता ÿ±य अिधक होता है। øम और ®ृंखलाबĦता उपÆयास का ÿाण है। उपÆयास पाठक को कौतूहल ही नहé जगाता बिÐक उस घटना कì संभावना और रोचकता पर भी नजर गड़ाता है। एक अ¸छे उपÆयास के कथानक म¤ चार गुणŌ का होना जłरी माना जाता है मौिलकता, संभावना, सुसंगठन और रोचकता। ii. पाý एवं चåरý िचýण : इंसान यिद उपÆयास का िवषय है तो उसका सवाªिधक महÂवपूणª िचýण है चåरý-िचýण। ³यŌिक उसका अिÖतÂव उसके चåरý म¤ िनिहत होता है। चåरý ही एक मनुÕय को दूसरे मनुÕय से अलग करता है। िजसके Ĭारा हम उसके संपूणª ÓयिĉÂव को ÿकाश म¤ लाते ह§। इसम¤ ना उसके बाहरी बिÐक भीतरी भाव का दशªन होता है। केवल बाहरी अिÖतÂव का पåरचय तो उसके पहनावे, बोलचाल और आचरण से िमल जाता है। िकंतु उसके अंतगªत भाव कì परख, उसकì कŁणा, उदारता, मानिसक संघषª, राग-िवराग और संवेदनशीलता आिद से होता है। पाý अपने संपूणª ÓयिĉÂव के साथ कुछ अ¸छाइयŌ को लेकर चåरý - िचýण करते समय उपÆयासकार इस ढंग से ÿÖतुत करता है िक उसम¤ सजीवता आ जाए। एक बार िजस łप म¤ पाý का चयन हो जाता है िफर वह पåरिÖथित के अनुसार वैसा ही आचरण करता है। वÖतुतः दो ÿकार के चåरý होते ह§ – १) वगª गत २) ÓयिĉÂव ÿधान। वगªगत चåरý-िचýण म¤ पाýŌ कì उ¸च-िनÌन जाित Ĭारा चåरý पर ÿकाश डाला जाता है। इसम¤ एक Óयिĉ का चåरý ना होकर पूरे वगª को िलया जाता है। दूसरे ÿकार के पाýŌ म¤ अपनी कुछ खािसयत होती है। वे सामाÆय लोगŌ से सवªथा िभÆन होते ह§। जैसे जैन¤þ के पाý, अ²ेय के पाý। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
28 iii. कथोपकथन : कथा को आगे सरकाने और पाýŌ के ÓयिĉÂव का उĤाटन करने के िलए उपÆयासकार को वाताªलाप का सहारा लेना पड़ता है। इसके चुनाव म¤ भी द±ता कì जłरत होती है। यिद वाताªलाप कथानक के अनुłप ÿÖतुत नहé िकया गया तो वह ÿभावपूणª नहé हो सकता और पाýŌ के बौिĦक िवकास के अनुłप कथोपकथन का िनमाªण संभव है। भाषा पाýŌ के अनुłप नहé हòई तो ÓयिĉÂव का िवकास सहज नहé हो पाएगा। ÿसाद जी के पाý चाहे िकसी भी वगª के हŌ वे उ¸च कोिट कì भाषा बोलते ह§। जबिक ÿेमचंþ के पाý रोज़मराª कì िजंदगी म¤ Óयवहाåरत होने वाली भाषा या शÊदŌ का ÿयोग करते ह§। इसिलए भाषा पाýŌ के अनुłप हो, साथ ही उसका िवषय भी उनके मानिसक धरातल के मुतािबक हो। कथोपकथन पाýŌ के अनुłप होने के साथ ही Öवाभािवक, साथªक, सजीव, संि±Į हो। लंबे-लंबे उĦरण या भाषण उपÆयास कì रोचकता म¤ खलल पैदा करते ह§। iv. देशकाल और वातावरण : इसके अंतगªत आचार-िवचार, रीित-åरवाज, रहन-सहन और राजनीितक अथवा सामािजक पåरिÖथितयŌ का वणªन आता है। उपÆयास कì सजीवता एवं Öवाभािवकता लाने के िलए देशकाल या वातावरण का िवशेष Åयान रखना पड़ता है। ÿÂयेक पाý और उसका िøयाकलाप िकसी िवशेष देश काल या वातावरण म¤ होता है। वह उन सबम¤ बंधा होता है इसिलए उपÆयास कì पूणªता के िलए उन सबका वणªन जłरी होता है। ऐितहािसक उपÆयास म¤ इसका खास महÂव होता है। ³यŌिक वतªमान और अतीत के ऐितहािसक काल कì िÖथितयŌ म¤ फकª आ जाता है, इसिलए भूतकाल को वतªमान म¤ घिटत होते हòए नहé दशाªया जा सकता। उसम¤ तत् युगीन सामािजक, राजनीितक, आिथªक िÖथितयŌ का आकलन तो रहता ही है, आचार-िवचार और जीवन-दशªन का िचýण भी रहता है। तÂकालीन ŀÔयŌ और वातावरण का सÌयक िनद¥शन उपÆयास के सŏदयª म¤ अिभवृिĦ करता है। पर इतना जłर है िक िवÖतार दोष नहé आना चािहए अÆयथा उपÆयास अŁिचकर हो जाएगा। v. भाषा-शैली: उपÆयास कì भाषा शैली माधुयª गुण से युĉ होनी चािहए। पåरिÖथित और िवषय के अनुłप यिद भाषा नहé हòई तो उपÆयास अपना ÿभाव नहé छोड़ सकता। इसिलए उपÆयास म¤ भाषा कì सजीवता का होना तथा सहजता का होना जłरी होता है। लंबे भाषण या ि³लĶ भाषा और अलंकारŌ का अनुिचत ÿयोग आिद उपÆयास कì रसमयता पर बाधा उÂपÆन करते ह§। वैसे तो उपÆयासकार अपने मतानुसार शैली का िवकास Öवतंý łप से करता है, इसिलए इसे िकसी िविशĶ सीमा म¤ बांधना नामुमिकन है। vi. उĥेÔय: उपÆयास का मु´य उĥेÔय मनोरंजन करना है िकंतु आज मनोरंजन के अितåरĉ िकसी िविशĶ उĥेÔय को ÿितपादन करने के िलए उपÆयास िलखे जाते ह§। उ¸च Öतरीय उपÆयास वही कहा जाएगा जो हमारी िजंदगी को łपाियत करे। उĥेÔय कì अिभÓयिĉ बड़ी सहजता से होनी चािहए, साथ ही उसका पाठक पर ÿभाव पड़े। आज उपÆयासकार अपना उĥेÔय मनोवै²ािनक ढंग से िवĴेिषत करते ह§। उसके जåरए मानव मन के गहनतम रहÖयŌ का ÿितपादन िकया जाता है। इसिलए उपÆयास आज मानव-जीवन का दपªण बन जाता है। उĥेÔय पूरा उपदेश या भाषण नहé होता। समूचे उपÆयास म¤ सूिĉयŌ या वा³यŌ म¤ िवÖतृत रहता है। अपने िवचारŌ और िसĦांतŌ के ÿितपादन के िलए उपÆयासकार पाýŌ munotes.in

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गī िवधा: गī के िविवध łप
29 कì सजªना करता है और उनके परÖपर िवरोधी िवचारŌ म¤ अंतर संघषª ÿदिशªत करके अपने ŀिĶकोण को ÿदिशªत करता है। पर एक बात का Åयान रखना जłरी है उपÆयासकार का ÿमुख उĥेÔय कहानी कहना होना चािहए, िसĦांतŌ का ÿितपादन करना नहé। उपÆयासकार के आदशª और िवचार कथावÖतु म¤ ही अिभÓयĉ हो जाते ह§। लेखक यिद ÿÂय± Łप से िसĦांत ÿितपािदत करना चाहेगा तो वह ÿचारक बन जाएगा। ४.४ कहानी कì पåरभाषा : कहानी िहंदी गī लेखन कì एक िवधा है। १९वé सदी म¤ गī म¤ एक नई िवधा का िवकास हòआ िजसे कहानी के नाम से जाना जाता है। बांµला म¤ उसे ‘गÐप’ कहा जाता है। मनुÕय के जÆम के साथ ही कहानी का जÆम हòआ और कहानी कहना और सुनना मानव का आिदम Öवभाव बन गया। इसी कारण सभी सËय और असËय समाज म¤ कहािनयाँ पाई जाती ह§। हमारे देश म¤ कहािनयŌ कì बड़ी लंबी और संपÆन परंपरा रही है। िनÌनिलिखत िवĬान ने कहानी को पåरभािषत िकया है - डॉ. आचायª रामचंþ ितवारी का कहना है िक “िहंदी कहािनयŌ के उĩव और िवकास म¤ भारत के ÿाचीन कथा सािहÂय, पाIJाÂय कथा सािहÂय एवं लोक कथा सािहÂय का सिÌमिलत ÿभाव देखा जा सकता है।” ४.५ कहानी का ÖवŁप व ÿमुख तÂव : कहानी का Öवłप : कहानी म¤ मानव जीवन के िकसी एक प± का मनोहारी िचýण िकया जाता है। िकसी एक ÿभाव को उÂपÆन करना ही कहानी का उĥेÔय रहता है। कहानी गī सािहÂय कì सबसे लोकिÿय मनोरंजक िवधा है। कहानी सािहÂय कì वह गī रचना है, िजसम¤ जीवन के िकसी एक प± का कÐपना ÿधान, ŃदयÖपशê एवं सुŁिचपूणª कथाÂमक वणªन होता है। कहानी मानव-जीवन का वह अखंड िचý है, िजसकì कोई सीमा रेखा नहé है। और िजसम¤ िकसी एक प± कì अिनवायªता नहé है। उपÆयास म¤ मानव जीवन का संपूणª बृहत् łप िदखाने का ÿयास िकया जाता है, जबिक कहानी म¤ उपÆयास कì तरह सभी रसŌ का समावेश नहé होता है। अमेåरका के सुÿिसĦ िवĬान एडलर कहानी कì Óया´या करते हòए िलखते ह§, "छोटी कहानी एक ऐसा आ´याना है जो इतना छोटा है िक, एक बैठक म¤ पढ़ा जा सके और पाठक पर एक ही ÿभाव उÂपÆन करने के िलहाज से िलखा गया हो। उसम¤ ऐसी बातŌ को Âयाग िदया जाता है जो उसकì ÿभाव उÂपादकता म¤ बाधक हो। वह Öवतः पूणª होती है।" िहंदी के सुÿिसĦ कथाकार ÿेमचंद ने कहानी कì łपरेखा इस ÿकार आधाåरत कì है िक "गÐप ऐसी रचना है िक िजसम¤ जीवन के िकसी एक अंश, उसका चåरý, उसकì शैली उसका कथा िवÆयास सब उसी एक भाव को पुĶ करते ह§। उपÆयास कì भाँित उसम¤ मानव-जीवन का संपूणª एवं िवÖतृत िचýण ÿÖतुत करने का ÿयÂन नहé िकया जाता। उसम¤ सभी रसŌ का समायोजन िकया जाता है। वह ऐसा रमणीय उīान नहé है िजसम¤ रंग-रंग के फूल या बेल-बूटे सजे हŌ, बिÐक कहानी munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
30 एक मामला है िजसम¤ एक ही पौधे का माधुयª िवīमान रहता है।" डॉ. Ôयाम सुंदर दास ने कहानी म¤ नाटकìय तÂवŌ को ÿमुखता ÿदान करते हòए कहा है िक, "आ´यायी को एक िनिIJत लàय या ÿभाव को लेकर िलखा गया नाटकìय आ´यान है।” उपÆयास यिद जीवन का संपूणª िचýण है तो कहानी उस प± कì झाँकì माý है। इसिलए उसे जीवन का एक 'Öनेक' सांप कहा जाता है। कहानी के तÂव शरीर के अंगŌ कì तरह पूरक होते ह§ | कहानी के तÂव : कहानी के तÂवŌ को िनÌनिलिखत िबंदुओं के अंतगªत देखा जा सकता है - i. कथावÖतु : कहानी कì कथाएं अÂयंत संि±Į होती ह§। उसकì उपयोिगता शरीर कì हड्डी कì तरह है। घटना घिटत होने से पहले उसके कारण का िववेचन िकया जाना चािहए। इसम¤ घटनाएँ ÿमुख होती ह§ िजसका परÖपर संबंध होना जłरी है। उनका तारतÌय एक िनिIJत तौर पर होना चािहए, तािक कौतूहल का भाव सतत बना रहे। कहानी के आरंभ म¤ ही अंत का संकेत िकया जाना चािहए तािक अंत अचानक हो एवं अÿÂय± ना लगे। जीवन का ÿवाह चूँिक संघषªमय है अतः कहानी म¤ भी दो-एक घुमाव होना जłरी है तािक उसकì रोचकता म¤ अिभवृिĦ हो। कथावÖतु के मु´य अवयव इस ÿकार ह§ - ➢ ÿÖतावना: पाýŌ का वैयिĉक पåरचय देने के साथ ही घटनाओं का उनसे संबंध ÖपĶ कर िदया जाता है। वातावरण व सामािजक िÖथित आिद का िचýण भी इसी म¤ कर िदया जाता है। अ³सर वाताªलाप के Ĭारा इसका संकेत कर िदया जाता है। ➢ मु´यअंश: कथा का संघषª आरंभ होने के साथ चरम सीमा कì ओर बढ़ता है। इस बात का उसम¤ Åयान रखना चािहए। िक संघषª कì िÖथित Öवाभािवक łप से उपिÖथत होकर वह पाýŌ के अनुłप हो। ➢ चरम सीमा: इसम¤ संघषª और पाठक कì उÂसुकता चरम सीमा तक पहòँच जाती है। कहानी का संपूणª घटनाचø वातावरण और चåरý-िचýण आिद चरम सीमा कì तैयारी म¤ योगदान देते ह§। ➢ अंत: इसम¤ कहानी का पåरणाम िनिहत होता है। इसम¤ संपूणª रहÖय का उĤाटन हो जाता है। इस ÿकार कथानक म¤ अनावÔयक घटनाओं, तÃयŌ और Öवाभािवक रहÖयŌ को Öथान नहé िमलना चािहए। इसका जीवन के िकसी एक सÂयपरक घटना से उĤाटन िकया जाना चािहए। मौिलकता के साथ-साथ कथानक म¤ सुसंबंध योजना भी आवÔयक है। ii. चåरý िचýण : आज कहािनयŌ म¤ चåरý-िचýण का महÂव अपेि±त łप म¤ बढ़ गया है। इसका संबंध पाýŌ से होता है। कहानी म¤ इसकì सं´या कम होती है। इसम¤ पाýŌ के चåरý का संपूणª िवकास øम न िदखाकर उन अंशŌ पर ÿकाश डाला जाता है, िजनसे उनके ÓयिĉÂव म¤ िनखार आ जाए। पाýŌ कì सजीवता ही कहानी का ÿाण है, भले ही वे काÐपिनक ³यŌ ना हो। यह तो माना ही जाएगा िक कहानी के पाý कÐपना के Ĭारा किÐपत होते ह§, लेिकन उनका अपना एक िनजी अिÖतÂव होता है। कहानीकार पाýŌ के चåरýŌ कì मनोवै²ािनक Óया´या ÿÖतुत करते हòए एक तÃय का िनłपण करता है। munotes.in

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31 इसिलए पाý लेखक कì कठपुतली बनकर उसके इशारे पर नाचने के िलए मजबूर नहé होते। िविलयम घैकरे ने एक जगह पर िलखा है िक, "मेरे पाý मेरे वश म¤ नहé रहते बिÐक मेरी लेखनी इन पाýŌ के वश म¤ रहती है।" वÖतुतः पाýŌ के चåरý का सजीव एवं संभािवत िवĴेषण करने के िलए लेखक को अपना ÓयिĉÂव उसम¤ लादना या थोपना नहé चािहए। उसके चåरý का सहज ÿÖफुटन कहानी कì ÿाणव°ा को बल देता है। चåरý िचýण के ४ तरीके ह§ - १) वणªन Ĭारा २) संकेत Ĭारा ३) वाताªलाप Ĭारा ४) घटनाओं Ĭारा iii. कथोपकथन : इसके माÅयम से पाýŌ कì मानिसक अवÖथा का पåरचय िमलता है। वाताªलाप यिद चåरý के अनुłप नहé होगा तो पाý के चåरý का मूÐयांकन उिचत ढंग से नहé हो सकेगा। िकसी और िक जबान से जानने के बजाय यिद पाýŌ के मुख से सुनकर जाना जाए तो उसका ÿभाव कुछ और ही होगा। इसिलए वाताªलाप को संगिठत और चमÂकार पूणª होना चािहए। iv. वातावरण : वातावरण भौितक एवं मानिसक दोनŌ ही ÿकार का हो सकता है। कथानक कì िवĵसनीयता बनाने के िलए वातावरण के िनमाªण म¤ भी अपनी एक अलग भूिमका होती है। यिद कहानी के पाý काल के अनुłप नहé होते तो यह हमारे जीवन के सहायक नहé हो पाते। घटनाøम के िवकास के िलए पाýŌ के ÓयिĉÂव को उजागर करने के िलहाज से वातावरण कì सृिĶ आवÔयक है। ÿसाद जी इस कला म¤ मािहर ह§। उदाहरण के िलए हम उनकì 'पुरÖकार' कहानी ले सकते ह§। कमलेĵर कì 'िदÐली म¤ एक मौत' म¤ शहरी वातावरण तथा शहरी लोगŌ कì मानिसकता का पता चल जाता है। v. उĥेÔय: उĥेÔय िसफª कहानी के मनोरंजन का साधन माý नहé है। कुछ तÂवŌ का िनłपण अथवा मानव मन का पåरचय पाने का आúह इसका मूल Öवर होता है। कहानी म¤ उĥेÔय ÿाय: Óयंिजत होता है। इसका उĥेÔय जीवन कì समी±ा करना नहé होता बिÐक जीवन के ÿित एक ŀिĶकोण का पåरचय कराना होता है। vi. शैली : शैली का संबंध कहानी के िकसी एक तÂव से नहé, बिÐक सभी तÂवŌ से है और उसकì अ¸छाई और बुराई का ÿभाव समूचे कहानी पर पड़ता है। कला कì ÿेसिणयता शैली पर ही आधाåरत होती है। इसका संबंध िसफª शÊदŌ से नहé, िवचार तथा भाव से होता है। अ¸छी शैली के िलए ल±णा, Óयंजना आिद भाषा कì शिĉयŌ का उपयोग करना पड़ता है। मु´यतः दो ÿकार कì शैिलयŌ का ÿयोग होता है - १. मुहावरेदार शैली िजसके ÿितिनिध मुंशी ÿेमचंद जी ह§। २. अलंकृत संÖकृत िनķ शैली िजसके ÿितिनिध ह§ जयशंकर ÿसाद जी। munotes.in

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32 इस ÿकार कहानी म¤ शÊद चयन, सुसंगिठत वा³य िवÆयास, अलंकार योजना और शÊद शिĉयŌ का सफल ÿयोग आिद शैली के ÿधान गुण ह§, जो कहानी को सफल बनाते ह§। ४.६ रेखािचý के ÿमुख तÂव : अिधकांश रेखािचýŌ का ÿधान वÁयª िवषय कोई न कोई Óयिĉ ही होता है। रेखाओं से बनाए गए िचý के िलए रेखािचý शÊद का ÿयोग िकया जाता है। मलयालम भाषा म¤ रेखा िचý को 'तूिलका िचý' कहा जाता है। रेखािचý के िलए िहंदी म¤ Óयिĉ िचý, चåरत लेख, शÊद िचý आिद अÆय शÊदŌ का ÿयोग होता है। लेिकन रेखािचý शÊद ही अिधक उपयुªĉ साथªक और ÿचिलत है। रेखािचý कì सीमाएं िनिIJत है। उसे कम से कम शÊदŌ म¤ सजीव łप देना करना पड़ता है। छोटे-छोटे वा³यŌ कì सहायता से अिधक से अिधक तीĄ और मािमªक भावनाओं को Óयĉ िकया जाता है। इस कुशल कायª के िलए रेखािचý म¤ िजन गुणŌ का होना जłरी है उनम¤ संवेदनशील Ńदय, सूàम ŀिĶ, ममªवेधी कलम ÿमुख है। रेखािचýकार भावमय łप सॄिĶ करते समय अपना िनजीपन उड़ेल देता है। रेखािचý म¤ िकसी एक Óयिĉ, Öथान, घटना या ŀÔय आिद का वणªन होता है। बाĻ िवशेषताओं के वणªन म¤ ही आंतåरक गुणŌ को भी समिÆवत कर लेता है। रेखािचý सरल, लघु तथा वणªन ÿधान होता है। Óयिĉ के चåरý, गुण, िवशेषताओं को उभारना रेखािचýकार का उĥेÔय होता है। वह िजस चåरý को चुनता है उसकì मुþाओं चेĶाओं और बाĻ आकार ÿकार का िचýाÂमक वणªन लेखक करता ही है। उसके साथ-साथ उसके आंतåरक हलचलŌ का भी सूàम िववेचन ÿÖतुत करता है। रेखािचý लेखन म¤ ÿमुख łप से िनÌनिलिखत तÂवŌ का िवचार आता है - I) यथाथª अनुभूित : सफल रेखािचýŌ का लेखक वही हो सकता है िजसने जीवन को भोगा हो। सफल रेखािचýकार जीवन को करीब से देखता है और उसकì गहराइयŌ म¤ उतरता है। रेखािचý के िलए सूàम िनरी±ण तथा यथाथª अनुभूित आवÔयक है। रेखािचý म¤ कहानी के समान कलाÂमक सजावट के िलए Öथान नहé होता तथा िवÖतार कì भी कोई गुंजाइश नहé होती। रेखािचýकार को अपनी Öमृित म§ अंिकत वाÖतिवक रेखाओं को ही सजीव करता है। रेखािचýकार िजस कायª िवषय को ÿÖतुत करता है उससे उसका ममªÖपशê अंतर संवेदन जłरी होता है। II) संवेदनशील ŀिĶ : रेखािचý लेखन के िलए सहजता और संवेदनशीलता कì आवÔयकता होती है। रेखािचýकार अपने पåरपाĵª से िजतना ही ÿभाव úहण कर सकेगा, िजतनी ही ÿितिøया उसम¤ होगी उतनी ही वाÖतिवकता के साथ वह अपने पåरवेश को रेखािचýŌ म¤ सजीव कर सकेगा। िहंदी के रेखािचýकारŌ म¤ युग कì पåरवितªत माÆयताओं के Öवłप जाित, धमª और धन कì सीमाएं लांघकर उपेि±त िनधªनŌ और अÂयंत साधारण लोगŌ को भी अपनी सहानुभूित ÿदान कì है। िहंदी रेखािचýŌ के िलए यह शुभ िदशा है। युग कì मांग यही है िक लेखक अपने Ńदय कì ममता एवं कŁणा उन munotes.in

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33 उपेि±तŌ को दे, िजÆहŌने वाÖतिवक जीवन कì आपदाओं को झेला है। िफर भी दर-दर कì ठोकर¤ खाने के िलए मजबूर कर िदया है। रेखािचýकार अगर पाठक के Ńदय म¤ संवेदना जगाने म¤ सफल हòआ तो वह रेखािचý सफल माना जा सकता है। वाÖतव म¤ रेखािचý का िवषय इतना अनुभूत होता है िक उसकì शैली इतनी ममªÖपशê होती है िक वह सीधे पाठक के Ńदय को Öपशª करता है। III) संतुलन और तटÖथता : रेखा िचýकार के िलए संतुलन और तटÖथता एक िवशेष गुण है। अितरंिजत िनंदा या अितशयोिĉ, अित ÿशंसा आिद बात¤ रेखािचý के िलए बाधक ह§। िचýांकन करते समय चåरý के गुण दोषŌ पर संतुिलत ŀिĶ डालना उिचत है। रेखािचýकार को भरसक उÐलेख घटनाओं का ही अंकन करना चािहए। रेखािचýकार अपने संबंधŌ का उÐलेख करता है। यह उÐलेख करते हòए उसे आÂमÿशंसा से बचना चािहए। वÖतुतः उसका उĥेÔय तो यही होना चािहए िक िजस चåरý को वह उठाता है उसकì िवशेषताओं का उĤाटन हो। अतः रेखा िचýांकन म¤ तटÖथ ŀिĶ जłरी है। रेखािचýकार का कायª िकसी चåरý कì आरती उतारना नहé है बिÐक उस चåरý कì उजली और काली रेखाओं को उभारना है, िजÆहŌने उसके अंतर को ÖपĶ िकया है और जो उसे वाÖतिवक और सजीव बनाता है। IV) सूàम िनरी±ण और िचýाÂमकता : सफल रेखािचýŌ म¤ िचýण कì बारीकì और िवĴेषण कì सूàमता का होना जłरी है। रेखािचý म¤ चåरý का महÂव सबसे अिधक होता है। अिधकांश चåरýŌ म¤ कोई न कोई Óयिĉ ही िवषय होता है, िजसकì चåरýांकन िवशेषताओं को उभरना ही रेखािचýकार का लàय होता है। ऐसी िÖथित म¤ उस चåरý के बाĻ łप रंग, उसकì मुþाओं चेĶाओं एवं उसकì मानिसक हलचलŌ का िचýण रेखािचýकार के िलए आवÔयक है। िजस ÿकार िविभÆन रंगŌ के अनुपात से तूिलका िचý सजीव हो जाता है। उसी ÿकार मानव कì आकृित उसके अंग िव±ेप तथा उसके Öवभाव वैिशĶ्य से शÊदŌ का रेखािचý हो उठता है। सूàम िनरी±ण रेखािचý का ÿाण तÂव है। िनरी±ण िजतना सूàम, पारदशê होगा िचý उतना ही आकषªक एवं ÿभावशाली होगा। V) उĥेÔय : रेखािचý का ÿमुख उĥेÔय चåरý को सजीवता से ÖपĶ करके Ńदय पåरÕका, धारणा पåरवतªन, उदारता का िवकास, लोकŃदय का िनमाªण, Æयाय के ÿित जागłकता, चेतना, दु:िखयŌ के ÿित कŁणा आिद के भाव जगाना है। इस ÿकार से ÿेम और सहानुभूित पूणª जीवन का आदशª Öथािपत करना और जीवन वाÖतिवक łपŌ और अनुभवŌ म¤ रस लेना ये रेखािचý का ÿमुख उĥेÔय है। रेखािचýकार का ÿमुख उĥेÔय अपने जीिवत रेखाओं Ĭारा पाठक म¤ संवेदना जागृत करना ही होता है। रेखािचýŌ म¤ उसके अनुभूित जीवन का सÂय, ममª का संÖपशª करता है, जो कुल िमलाकर पाठक पर ÿभाव छोड़ जाता है। VI) शैली : गī कì अÆय िवधाओं कì तरह रेखािचý म¤ भी कथाÂमक, वणªनाÂमक, भावाÂमक, िवचाराÂमक आिद शैिलयाँ होती ह§ | munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
34 ४.७ संÖमरण : डॉ. चंþावती िसंह ने संÖकरण के बारे म¤ अपने िहंदी सािहÂय म¤ 'जीवन चåरý का िवकास' úंथ म¤ कहा है िक “जीवन कì बहòत सी बातŌ म¤, संसार कì हलचलŌ म¤, दÉतर कì िकसी कायªवाही म¤ या सभा म¤ जो समय-समय पर बात¤ घटी ह§, उनका अलग-अलग वणª संÖमरण कहा जा सकता है।” डॉ. गोिवंद िýगुणायक ने शाľीय समी±ा के िसĦांत úंथ म¤ कहा है िक "भावुक कलाकार जब अतीत कì अनंत ÖमृितयŌ म¤ से कुछ रमणीय अनुभूितयŌ को अपनी कोमल कÐपना से अितरंिजत कर Óयंजना मूलक संकेत शैली म¤ अपने ÓयिĉÂव कì िवशेषताओं से िविशĶ कर रोचक ढंग से यथाथª łप म¤ Óयĉ कर देता है, तब उसे संÖमरण कहते ह§।" संÖमरण के Öवłप को समझने के िलए उनके तÂवŌ का अÅययन करना जłरी है - संÖमरण के तÂव :- I) वÁयª िवषय: संÖमरणकार के मन म¤ अपने युग का एक िचý होता है। वह अपने समय के इितहास को मूतª करना चाहता है। इितहासकार से उसकì ŀिĶ िभÆन होती है। इितहासकार वÖतुपरक ŀिĶ से अपना अÅययन ÿÖतुत करता है, जबिक संÖमरण लेखन अपने अनुभवŌ का भी वणªन करता है। उसे इितहासकार के समान तटÖथ रहना नहé आता। वह अपने अंतरंग भावŌ को भी िलखता है। अपने वैयिĉक अनुभवŌ को वह िविशĶ ÓयिĉयŌ, वÖतुओं अथवा िøयाकलापŌ के िचýण के माÅयम से Óयĉ करता है। II) यथाथª का िचýण : लेखन म¤ यथाथª का िचýण भावना कì गहनता के साथ ÿÖतुत िकया जाता है। Óयिĉ से अिधक विणªत घटना अथवा Óयवहार को आकिषªत ढंग से ÿÖतुत करना ही संÖमरण लेखक का Åयेय होता है | इस वणªन के माÅयम से संÖमरण लेखक संÖमरÁय िवषय के जीवन के सवाªिधक महÂवपूणª या अबतक अ²ात ऐसी िकÆही तÃयŌ का सा±ाÂकार करना चाहता है। संÖमरÁय के जीवन के िजस अंश को संÖमरण का िवषय बनाया जाता है वह Öवयं लेखक के भी जीवनादशª का सूचक होता है। III) पाý एवं चåरý िचýण : संÖमरण म¤ ÿमुख łप से ľी तथा पुŁष पाý इस ÿकार से पाýŌ कì चचाª आती है। बहòदा संÖमरण लेखक और उनके Ĭारा िचिýत पाý दोनŌ महान होते ह§। वैसे यह कोई सवª सामाÆय नहé है। सामाÆय Óयिĉ महान Óयिĉ के संबंध म¤ संÖमरण िलख सकता है या िफर महान Óयिĉ सामाÆय Óयिĉ के संबंध म¤ भी िलख सकता है। पहले ÿकार के उदाहरण आधुिनक युग म¤ महाÂमा गाँधी, जवाहरलाल नेहł, सरदार वÐलभभाई पटेल, आचायª िवनोबा भावे इनके संबंध म¤ अनेक छोटे कायªकताªओं ने तथा सामाÆय से लगने वाले आ®मवािसयŌ ने संÖमरण िलखे ह§। दूसरे ÿकार के उदाहरण इÆही महान ÓयिĉयŌ Ĭारा अपने िनकट संपकª म¤ आए हòए अपने से सामाÆय ®ेणी के ÓयिĉयŌ के संबंध म¤ िलखे गए संÖमरण िमलते ह§। जब munotes.in

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35 सामाÆय योµयता के महापुŁष अथवा कला एवं सािहÂय के महारथी संÖमरण िलखते ह§ तब संÖमरÁय Óयिĉ के जीवन के अनेक रहÖयपूणª दालान आलोिकत हो उठते ह§। IV) पåरवेश : लेखक अपने समय कì उपज होता है उसका िचंतन अपने पåरवेश से जुड़ा हòआ होता है। संÖमरणकार इस काल िवशेष के पाýŌ के संबंध म¤ अपना लेखन करता है उस काल कì युगीन पåरिÖथित का यथातÃय łप उसके लेखन म¤ झलकता है। युग का अपना एक ÿभाव होता है, उस ÿभाव के ÿकाश म¤ उस काल के चåरý भाषा एवं पूरा पåरवेश राह खोजता है। िविशĶ युग म¤ िविशĶ ±मता या िफर अ±मता से भरे हòए पाý कायाªिÆवत होते हòए चåरý का ÿेरणा Öथल तÂकालीन युग होता है। चåरý युग से ÿभाव úहण करता है और युग को ÿभािवत भी करता है। V) उĥेÔय : सािहÂय का उĥेÔय ²ान और मनोरंजन होता है। संÖमरणकार इसके साथ-साथ युगीन बोध का पåरपूणª आकलन ÿÖतुत करने का भी कायª करता है। बहòत बार संÖमरण लेखक अपने जीवन के भी अंशŌ को लेखन म¤ ÿÖतुित देता है संÖमरÁय चåरý कì गुण संपदा को उजागर कर पाठक को बल ÿदान करने का उĥेÔय संÖमरण लेखक का मु´य सूý है। VI) शैली : संÖमरण लेखक कì कई शैिलयां ह§ िवĬानŌ के मतानुसार िनÌनिलिखत शैिलयŌ या अिभÓयिĉ पĦितयाँ हो सकती ह§ - ● आÂमकथाÂमक शैली ● िनबंधाÂमक शैली ● पýाÂमक शैली ● डायरी शैली ४.८ जीवनी: इस िवधा को िहंदी म¤ ‘जीवनी’, मराठी म¤ ‘चåरý’ तथा अंúेजी म¤ ‘बायोúाफì’ कहते ह§। आÂमकथा म¤ Óयिĉ Öवयं अपनी कहानी अपने शÊदŌ म¤ कहता है। परंतु जीवनी म¤ दूसरा Óयिĉ िकसी ÿितिķत Óयिĉ के संपूणª जीवन को अपने शÊदŌ म¤ कहता है। जीवनी कì पåरभाषा : ● जीवनी Óयिĉ िवशेष के जीवन और चåरý कì रसाÂमक अिभÓयिĉ है। ● जीवनी िकसी Óयिĉ कì बाĻ और सूàम ÓयिĉÂव कì यथाथª परख अनुभूित का एकाÂमक मूÐयांकन है। ● जब कोई लेखक वाÖतिवक घटनाओं के आधार पर ®Ħेय Óयिĉ के जीवन चåरý को कलाÂमक łप म¤ ÿÖतुत करता है तो सािहÂय का वह łप जीवनी कहलाता है। ● िकसी Óयिĉ िवशेष के जीवन वृतांत को जीवनी कहते ह§। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
36 जीवनी के तÂव : १ . वÁयª िवषय : इसके अंतगªत लेखक के नायक का िवĴेषण होता है। नायक के चåरý का वाÖतिवक घटनाओं के आधार पर संĴेषण, िववेचन एवं िवĴेषण कलाÂमक łप से ÿÖतुत िकया जाता है। यहाँ चåरý नायक का चुनाव लेखक अपनी Łिच तथा इ¸छा के अनुसार कर सकता है। अ³सर जीविनयाँ उÆहé पर िलखी गई ह§ िजÆहŌने जीवन के िकसी ±ेý म¤ िवशेष कायª िकया हो, अथवा समाज या राÕů के िलए समिपªत हòए हो। परंतु इन िदनŌ इसे भी आवÔयक नहé माना जाता, यह जłरी भी नहé है। Óयिĉ कोई भी हो सकता है। पर ऐसा चåरý होना चािहए िजसका जीवन-चåरý पढ़ने से पाठक को कुछ ÿेरणा िमल सक¤। अथवा वे िविशĶ ²ान úहण कर सक¤। िजस िकसी पर भी वह िलखे उस िवषय के संबंध म¤ िवÖतृत जानकारी ÿाĮ कर¤, यह उÌमीद लेखक से होती है। २. चåरý : वÁयª िवषय और चåरý यहाँ एक ही होते ह§ परंतु अÅययन कì सुिवधा के िलए इनम¤ अंतर िकया जाता है। जीवनी म¤ घटनाओं का अंकन नहé होता वरन चåरý होता है। अपने चåरत नायक का िचýण वह दो पĦित से करता है - ● चåरत नायक का बाĻ ÓयिĉÂव: इसके अंतगªत जीवनी का अपने नायक के शरीर का, उसकì वेशभूषा का, उसके रहन-सहन का, खानपान का, उसकì कला िÿयता का वणªन करता है। ● चåरत नायक का आंतåरक िवĴेषण: इसके अंतगªत नायक के Öवभाव का उसके अंतĬªÆĬŌ का, उसके िवĵासŌ, अंधिवĵासŌ का, मूÐयŌ के ÿित उसकì ÿितबĦता का वणªन िवĴेषण करता है। वाÖतव म¤ इस वणªन म¤ ही जीवनी कार कì सारी ÿितभा का दशªन होता है। आंतåरक जीवन का यह िवĴेषण अÂयंत यथाथª वाÖतिवक तथा रोचक हो यह शतª तो है ही, केवल इतना ही नहé वह अपने चåरý नायक के दोषŌ का, उसके Öवभाव कì सीमाओं का, उसकì दुबªलताओं का भी िचýण करे ऐसी अपे±ा होती है। ३. पåरवेश देशकाल : चåरý नायक िकसी िविशĶ काल म¤ जीते ह§। वह काल तथा उस काल कì ÿÖथािपत ÓयवÖथा उसके ÓयिĉÂव को आधार देती रहती है अथवा बाधाएं पैदा करती रहती है। इस कारण उस काल का उस पåरवेश का िववेचन िवĴेषण जłरी हो जाता है। पåरवेश के अंतगªत पåरवार, पड़ोसी, िमý, शýु, तÂकालीन राजनीित, अथªनीित, धमª, कमªकांड आिद अनेक बातŌ का समावेश होता है। अथाªत जीवनी का इनम¤ से उÆहé इकाइयŌ को बुनेगा िजÆहŌने चåरत नायक को ÿभािवत िकया हो अथवा बाधाएं उपिÖथत कì हो। ४. उĥेÔय : जीवनी लेखन उĥेÔयपूणª ही होता है आनेवाली पीढ़ी को संÖकाåरत करने के िलए ही जीविनयाँ िलखी जाती ह§। øांितकाåरयŌ को, समाज सुधार को, वै²ािनकŌ, िखलािड़यŌ, लेखकŌ, उīोगपितयŌ आिद कì जीवनी या आकाशदीप कì तरह आनेवाली पीढ़ी का मागªदशªक करती रहती ह§। इसिलए इनकì जीविनयाँ उपयुªĉ उĥेÔयŌ को Åयान म¤ रखकर ही िलखी जाती ह§। इन िदनŌ समाज के उपेि±तŌ कì जीविनयाँ िलखी जा रही ह§। ऐसी जीविनयŌ का उĥेÔय भी ÖपĶ है। िवषमतापूणª समाज munotes.in

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गī िवधा: गī के िविवध łप
37 ÓयवÖथा के कारण समाज के िकसी तबके को िकतनी भयावह यातनाएं भी झेलनी पड़ती ह§। इसे ÖपĶ करना ऐसी जीविनयŌ का उĥेÔय होता है। ५. भाषा शैली : ‘शैली’ िवषय को सजाने के उन तरीकŌ का नाम है जो उस िवषय कì अिभÓयिĉ को सुंदर और ÿभावपूणª बनाते ह§। जीवनी लेखक के पास चåरý नायक के संबंध म¤ िलिखत अिलिखत ऐसी काफì साधन सामúी इकęी हòई है अब उसे पूरी सामúी को इस कौशल से सजाना है िक चåरत नायक पाठक के मन म¤ सीधे घर कर ले | जीवनी कì शैली कì अपनी कुछ िवशेषताएं ह§ और वे इस ÿकार ह§ - ● शैली को सुसंगिठत हो। उनम¤ सुसू®ता हो। ● शैली सरल सीधी परंतु अÂयंत आकषªक हो। ● भाषा पारदशê तथा चåरत नायक के ÓयिĉÂव से िमलती-जुलती हो। ● भाषा सरल सुबोध आकषªक और Łिचकर हो ÿसाद गुण से युĉ हो। ४.९ आÂमकथा : आÂमकथा कì पåरभाषा : १ . आÂमकथा Óयिĉ के िजए हòए जीवन का Êयोरा है जो िक Öवयं उसके Ĭारा िलखा जाता है। २. जे. टी. िशले “आÂमकथा मूलतः लेखक के जीवन का सातÖयपूणª िववरण होता है िजसम¤ मु´य बल आÂमिनरी±ण और अपने जीवन कì साथªकता को बाĻ पåरवेश म¤ ÿÖतुत करने पर होता है।” ३. अमृता ÿीतम “आÂमकथा लेखक कì अपनी आवÔयकता होती है। यथाथª से यथाथª तक पहòंचने कì यह ÿिøया है।” ४. “आÂमकथा Óयिĉ जीवन के सÂय का दÖतावेज है, िजसे Öवयं वह Óयिĉ ही पूणª कृित के łप म¤ िलखता है।” आÂमकथा के तÂव : १. घटनाओं का चुनाव : आÂमकथा म¤ घटनाओं के चुनाव का अÂयिधक महÂव होता है। जीवन म¤ घिटत ÿÂयेक घटना का िववरण आÂमकथा नहé है। इस ÿकार के िववरण से आÂमकथा अÂयंत नीरस हो जाएगी। जीवन म¤ घिटत घटनाओं का चुनाव करते समय आधार łप म¤ उसे अपने वतªमान को Öवीकार करना पड़ता है। जीवन के घटना ÿसंगŌ का पृथ³करण िफर अिनवायª ÿसंगŌ का चुनाव और िवĴेषण उसे करना पड़ता है। ऐसी घटनाओं को ही चुनना चािहए िजसम¤ उसके ÓयिĉÂव को एक नई िदशा ÿाĮ हो गई थी। आÂमकथा म¤ उसका अपना ÓयिĉÂव क¤þ म¤ होता है। उसके इस ÓयिĉÂव को नई िदशा देनेवाली अथवा िबगाड़नेवाली घटनाओं को ही उसे चुनना चािहए। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
38 आÂमकथा म¤ वतªमान और अतीत बोध म¤ िनरंतर ĬÆĬ होता है म§ने जो जीवन िजया जो अनुभव पाए उनम¤ से कौन से पाठकŌ के सÌमुख रखूँ इस ĬÆĬ से आÂमकथाकार गुजरता है। वतªमान कì ŀिĶ से जो महÂवपूणª अनुभव है उÆह¤ ही वह चुने यह आúह तो होगा ही। २. पåरवेश : आÂमकथा म¤ पåरवेश का अपना महÂव होता है, ³यŌिक यह पåरवेश ही उसके ÓयिĉÂव को आकार देता रहता है। इस पåरवेश का यथाथª और सूàम म¤ िचýण आÂमकथा म¤ अपेि±त है। पåरवेश के अंतगªत तÂकालीन समाज ÓयवÖथा, पåरवार के सदÖय, िमý, गुŁजन, िवīालय, वहाँ के संÖकार, ®Ħा-अंध®Ħा, धािमªक कमªकांड, तÂकालीन राजनीितक, आिथªक िÖथितयां अथाªत ये सभी इकाइयां जो एक ÓयिĉÂव को आकार देने म¤ सहायक होती ह§। इनके अलावा जीवन म¤ घिटत िविवध घटनाएं, आए हòए कटु अनुभव, मान-अपमान, िविवध ÿकार के संघषª, संकट, ÿेरणाएं आिद सभी कुछ का समावेश इसम¤ िकया जा सकता है। इस संपूणª पåरवेश को उसकì पूरी यथाथªता के साथ िचिýत िकया जाए ऐसी अपे±ा होती है। कÐपना, अितशयोिĉ अथवा छूट को यहाँ िकसी भी ÿकार का Öथान नहé है। इसिलए यह यथाथª से यथाथª तक कì याýा है। ३. आÂमिवĴेषण : यह पåरवेश के िवĴेषण के साथ-साथ आÂमिवĴेषण भी है। आÂमकथाकार को पूरी तटÖथता और िनभªयता के साथ अपनी बीती हòई िजंदगी कì ओर देखना पड़ता है। भावुकता से यहाँ काम नहé चलता अपनी बीती हòई िजंदगी का िनभªयता के साथ िकया गया यह पदाªफाश है। पूरी ÿामािणकता के साथ अपने बीते जीवन कì परत¤ िनकालकर िदखानी पड़ती ह§। वतªमान म¤ जीता हòआ Óयिĉ पूरी तटÖथता के साथ अपने भूतकाल को देख¤ जैसे जीवन िजया वैसे उसे ÿÖतुत कर¤ ऐसी अपे±ा उससे होती है। ४. कलाÂमकता : आÂमकथा अंततः एक सािहिÂयक िवधा है इस कारण उसे कलाÂमकता कì आवÔयकता होती है यह कलाÂमकता दो ÖतरŌ पर होनी चािहए। i. चयन के Öतर पर। ii. अिभÓयिĉ के Öतर पर। łखी-सूखी घटनाओं कì अपे±ा नाट्यमय घटनाएं ह§ तो वह अिधक पठनीय हो सकती ह§। अथवा अनुभूित का नया संसार हो। जीवन के िविशĶ भयावह अथवा अÂयंत सुखमय ऐसे अनुभव को वह चुने ऐसे अनुभव जो मौिलक नहé और सवªथा अपने हŌ। ५. शैली : आÂमकथा कì शैली भी आकषªक गितशील यथाथª तरल तथा पठनीय हो शैली पर लेखक के ÓयिĉÂव कì अिमट छाप हो। शैली गंभीर तथा अंत:जगत का िवĴेषण करने म¤ समथª हो, भाषा अÂयंत पारदशê, तरल, बोधगÌय तथा सहजता से युĉ हो। munotes.in

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गī िवधा: गī के िविवध łप
39 ४.१० सारांश : िहंदी सािहÂय के िवकास म¤ गī िवधाओं का महÂवपूणª योगदान रहा है गī का वतªमान अधुनातन Öवłप अिधक बौिĦक है। अथª-úहण म¤ Åविन और ला±िणकता कì ÿधानता है। Óयंµय पåरहास कì तीàणता भी कम नहé है। वतªमान युग म¤ गī का ±ेý इतना Óयापक हो गया है िक पī भी गī से ýÖत है। सामियक पý-पिýकाओं के ÿभूत चलन के कारण गī के िवकास कì असीम संभावनाएं ह§। िहंदी सािहÂय म¤ गī का ÿारंभ िजतना सरल था आज उसकì गित उतनी ही तीĄ और जिटल है। उसकì अिभÓयिĉ म¤ इतना िवÖतार हòआ है िक Öवतंý भारत कì राजभाषा बनने कì उसकì अहªता सवाªिधक सुिनिIJत है। ४.११ लघु°रीय ÿij : १. खड़ी बोली गī के ÿथम दशªन िकस úंथ म¤ होते ह§? २. िहंदी गī का वाÖतिवक इितहास कब से आरंभ हòआ? ३. भारत¤दु युग म¤ िकन गī िवधाओं का िवकास हòआ? ४. आलोचना Ĭारा गī सािहÂय को नई िदशा िकस लेखक ने ÿदान कì? ५. शु³लो°र युग कì समय सीमा बताइए? ४.१२ वैकिÐपक ÿij : १ . बाबू गुलाबराय कì आÂमकथा है? अ) कुछ आप बीती कुछ जग बीती ब) मेरा जीवन ÿवाह क) मेरी असफलताएं ड) अपनी खबर २. िनÖसहाय िहंदू रचना है? अ) राधाकृÕण दास ब) बालकÕण भĘ क) ®ीिनवास दास ड) भारत¤दु हåरIJंþ ३. आवारा मसीहा िकस गī िवधा कì रचना है? अ) उपÆयास ब) कहानी क) नाटक ड) जीवनी ४. िनÌनिलिखत रचनाओं म¤ से कौन सी रचना कहानी है? अ) Âयागपý, ब) भाµय और पुŁषाथª, क) पुरÖकार, ड) आन का मान ५. ‘अंबपाली’ िकस िवधा कì रचना है? अ) कहानी, ब) उपÆयास क) नाटक ड) संÖमरण munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
40 ४.१३ बोध ÿij : १. उपÆयास का Öवłप और उसके तÂवŌ पर िवÖतार से ÿकाश डािलए। २. कहानी कì पåरभाषा देते हòए तÂवŌ को रेखांिकत कìिजए। ३. रेखािचý का पåरचय देकर तािßवक िववेचन कìिजए। ४.१४ संदभª úंथ : १ . िहÆदी का उĩव (केÆþीय िहÆदी िनदेशालय) २. िहÆदी सािहÂय का इितहास (गूगल पुÖतक ; लेखक - Ôयाम चÆþ कपूर) ३. आधुिनक िहÆदी सािहÂय का इितहास (गूगल पुÖतक; लेखक - ब¸चन िसंह) ४. िहÆदी सािहÂय का दूसरा इितहास (गूगल पुÖतक ; लेखक - ब¸चन िसंह) ५. िहÆदी सािहÂय का वै²ािनक इितहास (ÿथम खÁड) (गूगल पुÖतक ; लेखक - गणपितचÆþ गुĮ) ६. िहÆदी सािहÂय का वै²ािनक इितहास, खÁड-२ (गूगल पुÖतक ; लेखक - गणपितचÆþ गुĮ) ७. िहÆदी का ÿथम आÂमचåरत् अĦª-कथानक - एक अनुशीलन [मृत किड़याँ] ८. History of the Hindi Language (िहÆदी सोसायटी, िसंगापुर) ९. िहÆदी सािहÂय का इितहास (गूगल पुÖतक ; लेखक - ÔयामसुÆदर कपूर) १ ०. िहÆदी सािहÂय ÿijो°री (गूगल पुÖतक) १ १ . रहÖयवादी जैन अपĂंश काÓय का िहÆदी पर ÿभाव (गूगल पुÖतक ; लेखक - ÿेमचÆþ जैन) १ २. भारत के ÿाचीन भाषा-पåरवार और िहÆदी (गूगल पुÖतक ; लेखक - रामिवलास शमाª) १ ३. िहÆदी सािहÂय का आधा इितहास (गूगल पुÖतक ; लेखक - सुमन राजे) १ ४. Hindustani Textbooks from the Raj १ ५. भारतेÆदु युग और िहÆदी भाषा कì िवकास परÌपरा (गूगल पुÖतक ; लेखक - डॉ. राम िवलास शमाª) १ ६. िहÆदी भाषा, इितहास और Öवłप (गूगल पुÖतक ; लेखक - राजमिण शमाª) १ ७. िहÆदी सािहÂय का इितहास : नये िवचार, नई ŀिĶ (गूगल पुÖतक ; सÌपादक - डॉ सुरेश चÆþ) १ ८. संÖकृत से खड़ीबोली तक का सफर (डॉ. काजल बाजपेयी)  munotes.in

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41 ५ अलंकार सामाÆय पåरचय, ल±ण एवं उदाहरण इकाई कì łपरेखा ५.० इकाई का उĥेÔय ५.१ ÿÖतावना ५.२ अलंकार : शÊदालंकार ५.३ अलंकार : अथाªलंकार ५.४ सारांश ५.५ बोध ÿij ५.६ वैकिÐपक ÿij ५.७ लघु°रीय ÿij ५.८ संदभª úंथ ५.० इकाई का उĥेÔय : - ÿÖतुत पाठ के अÅययन से िवīाथê िनिÌलिखत मुĥŌ से पåरिचत हो सक¤गे - ➢ इस इकाई Ĭारा िवīािथªयŌ को अलंकार का सामाÆय पåरचय तथा अलंकार के ल±णŌ कì जानकारी ÿाĮ होगी। ➢ शÊदालंकार के भेदŌ का सोदाहरण पåरचय िमलेगा। ➢ अथाªलंकार के भेदŌ का सोदाहरण पåरचय ÿाĮ होगा। ५.१ ÿÖतावना : अलंकार शÊद का शािÊदक अथª होता है 'आभूषण यानी गहना', िकंतु शÊद िनमाªण के आधार पर अलंकार शÊद 'अलम' और 'कार' दो शÊदŌ के योग से बना है | 'अलम' का अथª है 'शोभा' तथा 'कार' का अथª है 'करने वाला'। अथाªत काÓय कì शोभा बढ़ाने वाला तथा उसके शÊदŌ एवं अथŎ कì सुंदरता म¤ वृिĦ करके चमÂकार उÂपÆन करने वाले कारकŌ को अलंकार कहते ह§। अलंकार के मु´यतः दो भेद माने जाते ह§ शÊदालंकार और अथाªलंकार । ५.२ अलंकार : शÊदालंकार जहाँ पर अलंकार का चमÂकार अथª पर िनभªर ना होकर शÊद पर िनभªर करता है, वहाँ पर शÊदालंकार होता है। किव किवता म¤ शÊदŌ कì योजना इस ÿकार करता है िक रचना म¤ लािलÂय आ जाए। कभी-कभी समान ÅविनयŌ का अनेक बार ÿयोग करते ह§, तो कभी समान शÊदŌ का अनेक बार ÿयोग कर रचना म¤ सŏदयª सृिĶ करते ह§। तो कभी अनेकािधक शÊदŌ का munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
42 इस ÿकार ÿयोग करते ह§ िजससे िक अनेक वा¸याथŎ का बोधशÊद चमÂकार का कारण होता है। इस आधार पर आचायŎ ने शÊदालंकारŌ के अनेक भेद िकए ह§ जो िनÌन ÿकार से ह§ - i. अनुÿास : अनुÿास का अथª होता है वणŎ का बार-बार ÿयोग। समान वणŎ या शÊदŌ कì आवृि° होने पर अनुÿास अलंकार होता है। उदाहरण : "गरज गगन के गाँव, गरज गंभीर का ÖवरŌ म¤।" उपयुªĉ पंिĉयŌ म¤ ‘ग’ वणª का बार-बार ÿयोग हòआ है अतः यहाँ पर अनुÿास अलंकार है। ii. यमक : जहाँ िभÆन-िभÆन अथŎ को ÿकट करने वाले समान शÊद या वा³य कì आवृि° हो वहाँ पर यमक अलंकार होता है | जैसे - "कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अिधकाय। यह खाए बौराए नर, वह पाए बौराय।।" - िबहारी उपयुªĉ पद म¤ कनक वणª समुदाय कì दो बार आवृि° कì गई है िकंतु िभÆन-िभÆन अथŎ म¤। पहले 'कनक' शÊद का अथª है 'धतूरा' और दूसरे 'कनक' शÊद का अथª है 'सोना'। अतः यहाँ पर यमक अलंकार है। iii. Ĵेष : जहाँ एक ही शÊद म¤ एक से अिधक अथª बताकर चमÂकार उÂपÆन िकया जाता है वहाँ Ĵेष अलंकार होता है | जैसे - "िचर जीवो जोरी जुरे, ³यŌ न सनेह गंभीर। को घिट ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर।।'' इस दोहे म¤ िबहारी ने राधा और कृÕण कì जोड़ी के साथ-साथ एक दूसरा अथª भी जोड़ िदया है - गाय और बैल कì जोड़ी। 'वृषभानुजा और हलधर' के बीच इन दो अनेक अथª देने वाले शÊदŌ कì सहायता से ÿकट होता है। 'वृषभानुजा' का एक अथª है वृषभानु कì पुýी, दूसरा अथª है - गाय (वृषभ+अनुजा)। ऐसा ही हलधर के वीर का एक अथª 'बलराम' हलधर के भाई अथाªत 'कृÕण' और दूसरा अथª है हल धारण करने वाला बैल इसिलए वहाँ Ĵेषा अलंकार है। iv. वøोिĉ : जहाँ िकसी उिĉ म¤ वĉा के अिभÿेत आशय से िभÆन अथª कì कÐपना कì जाए वहाँ वøोिĉ अलंकार होता है | उदाहरण - "एक कबूतर देख हाथ म¤ पूछा कहाँ अपर है, उसने कहा अपर कैसा?, उड़ है गया सपर है।" munotes.in

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अलंकार सामाÆय पåरचय,
ल±ण एवं उदाहरण
43 उपयुªĉ पī म¤ वĉा को 'अपर' शÊद से 'दूसरा कबूतर' अिभÿेत था िकंतु ®ोता ने उसे उस łप म¤ úहण न कर 'अपर' का 'पंख रिहत' अथª úहण कर जवाब यह अथª चमÂकार पूणª होने के कारण वøोिĉ अलंकार है। v. वीÈसा : आदर, øोध, हषª, दुःख, िवÖमय आिद भावŌ को ÿभावशाली बनाने अथवा भाषा म¤ गित लाने के कारण शÊदŌ कì पुनःआवृि° कì जाती है। तब वहाँ वीÈसा अलंकार होता है। जैसे - ''रीिझ-रीिझ रहिस-रहिस हँिस-हँिस उठो। संिस-भåर आँसु भåर कहत दई-दई।'' देवजी ने इस उदाहरण म¤ अपने भावŌ को ÿकट करने के िलए एक या कई शÊदŌ को दो बार िलखा है तािक काÓय म¤ ÿभाव उÂपादकता बनी रहे। भावŌ को उिचत ढंग से िदखाने के िलए वीÈसा अलंकार का ÿयोग होता है। vi. पुनŁिĉ ÿकाश : जब िकसी काÓय पंिĉ म¤ एक ही शÊदŌ कì िनरंतर आवृि° होती हो, पर वहाँ अथª कì िभÆनता नहé होने के कारण वह पुनŁिĉ अलंकार माना गया है। साधारण अथŎ म¤ समझ¤ तो जब किव भाव को रोचक व ÿभावशाली बनाने के िलए एक शÊद का अिधक बार समान अथª म¤ ÿयोग करता है। वहाँ पुनŁिĉ अलंकार होता है। उदाहरण – "सुबह सुबह ब¸चे काम पर जा रहे ह§।" ५.३ अलंकार : अथाªलंकार अथाªलंकार वहाँ होते ह§ जहाँ अलंकार का सŏदयª शÊद पर िनभªर ना होकर अथª पर िनभªर होता है उसे अथाªलंकार कहते ह§। १. उपमा : जहाँ उपमेय और उपमान के बीच साÌय Öथािपत िकया जाता है। वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा म¤ चार तÂवŌ का होना आवÔयक है। a. उपमेय : िजस वÖतु का उपमान के साथ साŀÔय का वणªन होता है, उस वÖतु को उपमेय कहते ह§। b. उपमान : िजस वÖतु के साथ उपमेय का साŀÔय बताया जाता है, वह वÖतु उपमान कहलाती है। c. समानधमª : दोनŌ वÖतुओं (उपमेय और उपमान) म¤ समान łप से पाए जाने वाले धमª का कथन समान धमª कहलाता है। d. वाचक शÊद : उपमेय और उपमान को समान धमª के साथ जोड़ने वाले शÊद को वाचक धमª शÊद कहा जाता है। munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
44 उदाहरण - 'मु´य चंþमा के समान सुंदर है।' इस वा³य म¤ 'मुख' का 'चंþमा' के साथ सŀÔय बताया गया है। इसिलए मु´य उपमेय है और चंþमा के साथ तुलना कì जाने के कारण 'चंþमा' उपमान है। दोनŌ को सुंदरता के समान धमª बताया गया है जो चंþमा के समान मुख म¤ भी समाया है। अतः यहाँ 'सुंदर' शÊद समान धमª है। इसी वा³य के समान शÊद मुख और चंþमा को सुंदर के साथ जोड़ा जा रहा है। इसिलए इसे वाचक शÊद कहा जाएगा। समानता बताने के कारण इसे साŀÔय वाचन भी कह सकते ह§। २. łपक : जहाँ उपमेय और उपमान के बीच एकłपता Öथािपत कì जाती है वहाँ łपक अलंकार होता है। यहाँ साÌयवाचक पद नहé होता। जैसे - ''इस मरण के पवª को म§ आज िदवाली बना दूँ।'' इस पंिĉ म¤ 'मरण के पवª' उपमेय है और िदवाली उपमान है। दोनŌ के बीच एकłपता Öथािपत कì गई है अतः यहाँ पर łपक अलंकार है। ३. अितशयोिĉ : अितशयोिĉ का अथª है उिĉ कì अितशयता का अथाªत िकसी कथन को सामाÆय łप म¤ ÿÖतुत ना कर उसे बढ़ा चढ़ाकर ÿÖतुत िकया जाए वहाँ पर अितशयोिĉ अलंकार होता है। उदाहरण - "उठो उठो शोिणत कì धार¤, रोक नहé पाय¤गी पथ को।" इस पंिĉ म¤ यहाँ बड़ी से बड़ी आपि°याँ उपमेय को शोिणत कì धार¤ उपमान ने úस िलया है। अतः यहाँ पर अितशयोिĉ अलंकार है। ४. उÂÿे±ा : जहाँ उपमेय कì उपमान के łप म¤ संभावना कì जाती है वहाँ उÂÿे±ा अलंकार होता है। इस अलंकार म¤ 'ºयŌ', 'मानहòँ' आिद संभावना वाचक पदŌ का ÿयोग होता है। जैसे - ''रहे 'नर-नाåर' ºयŌ िचतेरे िचतसार ह§।'' यहाँ 'नर-नाåर' उपमेय कì उपमान 'िचýशाला के िचý' इस उपमान के łप म¤ संभावना कì गई है। संभावना वाचक पद 'ºयŌ' है। अतः इस पंिĉ म¤ उÂÿे±ा अलंकार है। ५. िवभावना : जहाँ कारण के अभाव म¤ भी कायª कì संपÆनता का वणªन िकया गया हो, वहाँ िवभावना अलंकार होता है। यहाँ कारण के अभाव म¤ कायª कì संपÆनता का िवरोध है िकंतु, उसके सÂय का अÆवेषण करते ही िवरोध शांत हो जाता है और उसी म¤ चमÂकार आ जाता है। उदाहरण - munotes.in

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अलंकार सामाÆय पåरचय,
ल±ण एवं उदाहरण
45 "िनंदक िनयरे रािखये, आँगन कुटी छवाय। िबन पानी साबुन िबना, िनमªल करे सुभाय।। उपयुªĉ दोहे म¤ पानी और साबुन जो वľािद मैल रिहत करने के कारण उनके अभाव म¤ िच° के िनमªल होने का वणªन िकया गया है। अतः यहाँ पर िवरोध कì ÿतीित हòई िकंतु िनंदक के समीप रहने से वह Óयिĉ के दोष को ÿकट करेगा और संबĦ Óयिĉ उन दोषŌ को जाकर उÆह¤ फलतः िच° िनमªल हो जाएगा। इस ²ान के साथ ही िवरोध का पåरहार हो जाता है अछूत (पानी, साबुन) का शÊदŌ Ĭारा कथन होने से यहाँ शाÊदी िवभावना है। ६. ÿतीप : इसका अथª होता है उÐटा। उपमा के अंगŌ म¤ उलटफेर करने से अथाªत उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलट कर उपमान को ही उपमेय कहा जाता है, वहाँ ÿतीप अलंकार होता है। इस अलंकार म¤ दो वा³य होते ह§, एक उपमेय वा³य और एक उपमान। लेिकन इन दोनŌ वा³यŌ म¤ सŀÔय का साफ कथन नहé होता, वह वंिचत रहता है। इन दोनŌ म¤ साधारण धमª एक ही होता है परंतु उसे अलग-अलग ढंग से कहा जाता है। जैसे - "नेý के समान कमल है।" ७. दीपक : जहाँ पर ÿÖतुत और अÿÖतुत का एक ही धमª Öथािपत िकया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है। जैसे - “चंचल िनशी उदवस रह¤, करत ÿात विसराज। अरिवंदन म¤ इंिदरा, सुंदरी नैनन लाज।” ८. संदेह : जहाँ पर उपमेय और उपमान के िवषय म¤ संदेह का चमÂकार पूणª वणªन िकया जाता है वहाँ पर संदेह अलंकार होता है। सÂय का ²ान अिनिIJत ही संदेह अलंकार होता है। एक ऐसी िÖथित आती है अितशय साŀÔय के कारण एक वÖतु म¤ अÆय अनेक वÖतु का आभास होने लगता है और दशªक इस ऊहापोह म¤ रहता है िक, यह वÖतु यह है िक वह है। अनेक ÖथलŌ पर दो िवरोधी वÖतुओं म¤ भी एक Öथल पर संदेह उÂपÆन हो जाता है। जैसे - ''यह पंिडत है अथवा मूखª।'' या ''वह जाएगा अथवा नहé।'' यह िÖथित भी संदेश जनक होती है। सामाÆय कथन म¤ अलंकार न होगा। अतः संदेह कì उिĉ का चमÂकार पूणª होना आवÔयक है | जैसे – "िकधौ रौþरस? łþ के, िकधौ ओज अवतार। साह सुवन िशवराज तैयार, िकधŏ ÿलय साकार।।" - वीर सतसई munotes.in

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सािहÂय समी±ा : छंद एवं अलंकार
46 उपयुªĉ पंिĉयŌ म¤ महाराÕů के नायक िशवाजी महाराज के िवषय म¤ कायŎ के सŀÔय के कारण रौþ रस, łþ (शंका) ओज के अवतार और साकार ÿलय के सुंदर संदेह का वणªन िकया गया है। अतः यहाँ पर संदेह अलंकार है। ९. िवरोधाभास : जहाँ पर िवरोध ना होने पर भी िवरोध कì ÿतीित (अनुभव) होती है। वहाँ पर िवरोधाभास अलंकार होता है। किव शÊदाथª कì योजना कुछ इस ÿकार करता है िक ÿथम ŀÕया पदाथª म¤ िवरोध ÿतीत होने लगता है। िकंतु थोड़ा सा Åयान देते ही िवरोध शांत हो जाता है। यही उिĉ चमÂकार होती है। जैसे - "तंýीनाद किव° रस, सरय राग रितरंग। अनबूड़े बूड़े, ितरे जो बूड़े सब रंग।।" - िबहारी उपयुªĉ दोहे म¤ नीचे कì पंिĉयाँ पढ़ते ही िवरोध कì ÿतीित होती है। ³यŌिक किव कहता है िक तंýी के नाद आिद म¤ जो Óयिĉ नहé डूबा, वह डूब गया और जो Óयिĉ इन म¤ डूब गया वह ितर गया। दोनŌ ही बात¤ िवरोधमूलक ह§। िकंतु यह ²ान होते ही िक जो Óयिĉ उपयुªĉ िवधाओं का आनंद नहé ले पाते (अनबूड़े) वे इस संसार सागर म¤ डूब जाते ह§, अथाªत जीवन म¤ सफल नहé हो पाते और जो उपयुªĉ िवधाओं म¤ रस लेते ह§ (जो बूड़े सब रंग) वे इस संसार सागर को पार कर लेते ह§। इस अथª का ²ान होते ही िवरोध शांत हो जाता है। ५.४ सारांश काÓय म¤ भाषा को शÊदाथª से सुसिºजत तथा सुÆदर बनाने वाले चमÂकारपूणª मनोरंजन ढंग को अलंकार कहते ह§। अलंकार का शािÊदक अथª है, 'आभूषण'। िजस ÿकार सुवणª आिद के आभूषणŌ से शरीर कì शोभा बढ़ती है उसी ÿकार काÓय अलंकारŌ से काÓय कì। अलंकार को Óयाकरण के अंदर उनके गुणŌ के आधार पर तीन िहÖसŌ म¤ बांटा गया है। शÊदालंकार, अथाªलंकार, उभयालंकार । ५.५ बोध ÿij : ÿij १. अलंकार का अथª समझाते हòए शÊदालंकार के भेदŌ कì सोदाहरण चचाª कìिजए। ÿij २. अथाªलंकार के िकÆही पाँच भेदŌ पर सोदाहरण ÿकाश डािलए। ५.६ वैकिÐपक ÿij ÿij १ . “सो सुख सुजस सुलभ मोिह Öवामी” म¤ कौन सा अलंकार है ? १) उÂÿे±ा २) łपक ३) अनुÿास ४) Óयितरेक ÿij २. “कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अिधकाय” म¤ कौन सा अलंकार है ? १) यमक २) Óयितरेक ३) łपक ४) Ĵेषा munotes.in

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अलंकार सामाÆय पåरचय,
ल±ण एवं उदाहरण
47 ÿij ३. “पýा ही ितिथ पाइयै वा घर क§ चहòँ पास। िनतÿित पूÆयौईं रहै आनन-ओप-उजास॥” िबहारी जी के दोहे म¤ कौन सा अलंकार है पहचािनए ? १) अितशयोिĉ २) संदेहा ३) ÿतीप ४) दीपक ÿij ४. “यह काया है या शेष उसी कì छाया, ±ण भर उनकì कुछ नहé समझ म¤ आया।” यह कौन सा अलंकार है । १) दीपक २) ÿतीप ३) आितशयोिĉ ४) संदेह ÿij ५. "छाया है माथे पर आशीवाªद – सा" पंिĉ म¤ अलंकार पहचािनए ? १) पुनŁिĉ २) अनुÿास ३) उपमा ४) Ĵेषा ५.७ लघु°रीय ÿij : ÿij १. शÊदालंकार िकतने ÿकार के होते ह§? ÿij २. अलंकार के िकतने भेद होते है ? ÿij ३. संदेह अलंकार म¤ िकसका चमÂकार पूणª वणªन िकया जाता है? ÿij ४. िकस अलंकार का अथª उलटा होता है? ५.८ संदभª úंथ : १. अलंकार मंजरी – कÆहैयालाल ÿकाश २. िहÆदी अलंकार सािहÂय – डॉ. ओम ÿकाश ३. अलंकार पåरचय – डॉ. िशÿा ÿभा ४. ®ेķ िनबंध – आचायª रामचंþ शु³ल ५. नए िनबंध – Ôयामजी गोकुल वमाª ६. आधुिनक िहÆदी – िनबंध - डॉ. िýलोकìनारायण दीि±त  munotes.in